40. परमेश्वर की बड़ाई करना और उसकी गवाही देना क्या है

अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन

जो कुछ तुम लोगों ने अनुभव किया और देखा है, वह हर युग के संतों और पैगंबरों के अनुभवों से बढ़कर है, लेकिन क्या तुम लोग अतीत के इन संतों और पैगंबरों के वचनों से बड़ी गवाही देने में सक्षम हो? अब जो कुछ मैं तुम लोगों को देता हूँ, वह मूसा से बढ़कर और दाऊद से बड़ा है, अतः उसी प्रकार मैं कहता हूँ कि तुम्हारी गवाही मूसा से बढ़कर और तुम्हारे वचन दाऊद के वचनों से बड़े हों। मैं तुम लोगों को सौ गुना देता हूँ—अतः उसी प्रकार मैं तुम लोगों से कहता हूँ मुझे उतना ही वापस करो। तुम लोगों को पता होना चाहिए कि वह मैं ही हूँ, जो मनुष्य को जीवन देता है, और तुम्हीं लोग हो, जो मुझसे जीवन प्राप्त करते हो और तुम्हें मेरी गवाही अवश्य देनी चाहिए। यह तुम लोगों का वह कर्तव्य है, जिसे मैं नीचे तुम लोगों के लिए भेजता हूँ और जिसे तुम लोगों को मेरे लिए अवश्य निभाना चाहिए। मैंने अपनी सारी महिमा तुम लोगों को दे दी है, मैंने तुम लोगों को वह जीवन दिया है, जो चुने हुए लोगों, इजरायलियों को भी कभी नहीं मिला। उचित तो यही है कि तुम लोग मेरे लिए गवाही दो, अपनी युवावस्था मुझे समर्पित कर दो और अपना जीवन मुझ पर कुर्बान कर दो। जिस किसी को मैं अपनी महिमा दूँगा, वह मेरा गवाह बनेगा और मेरे लिए अपना जीवन देगा। इसे मैंने पहले से नियत किया हुआ है। यह तुम लोगों का सौभाग्य है कि मैं अपनी महिमा तुम्हें देता हूँ, और तुम लोगों का कर्तव्य है कि तुम लोग मेरी महिमा की गवाही दो। अगर तुम लोग केवल आशीष प्राप्त करने के लिए मुझ पर विश्वास करते हो, तो मेरे कार्य का ज़्यादा महत्व नहीं रह जाएगा, और तुम लोग अपना कर्तव्य नहीं निभा रहे होगे। इजराइलियों ने केवल मेरी दया, प्रेम और महानता को देखा था, और यहूदी केवल मेरे धीरज और छुटकारे के गवाह बने थे। उन्होंने मेरे आत्मा के कार्य का एक बहुत ही छोटा भाग देखा था; इतना कि तुम लोगों ने जो देखा और सुना है, वह उसका दस हज़ारवाँ हिस्सा ही था। जो कुछ तुम लोगों ने देखा है, वह उससे भी बढ़कर है, जो उनके बीच के महायाजकों ने देखा था। आज तुम लोग जिन सत्यों को समझते हो, वह उनके द्वारा समझे गए सत्यों से बढ़कर है; जो कुछ तुम लोगों ने आज देखा है, वह उससे बढ़कर है जो व्यवस्था के युग में देखा गया था, साथ ही अनुग्रह के युग में भी, और जो कुछ तुम लोगों ने अनुभव किया है, वह मूसा और एलियाह के अनुभवों से कहीं बढ़कर है। क्योंकि जो कुछ इजरायलियों ने समझा था, वह केवल यहोवा की व्यवस्था थी, और जो कुछ उन्होंने देखा था, वह केवल यहोवा की पीठ की झलक थी; जो कुछ यहूदियों ने समझा था, वह केवल यीशु का छुटकारा था, जो कुछ उन्होंने प्राप्त किया था, वह केवल यीशु द्वारा दिया गया अनुग्रह था, और जो कुछ उन्होंने देखा था, वह केवल यहूदियों के घर के भीतर यीशु की तसवीर थी। आज तुम लोग यहोवा की महिमा, यीशु का छुटकारा और आज के मेरे सभी कार्य देख रहे हो। तुम लोगों ने मेरे आत्मा के वचनों को भी सुना है, मेरी बुद्धिमत्ता की तारीफ की है, मेरे चमत्कार देखे हैं, और मेरे स्वभाव के बारे में जाना है। मैंने तुम लोगों को अपनी संपूर्ण प्रबंधन योजना के बारे में भी बताया है। तुम लोगों ने मात्र एक प्यारा और दयालु परमेश्वर ही नहीं, बल्कि धार्मिकता से भरा हुआ परमेश्वर देखा है। तुम लोगों ने मेरे आश्चर्यजनक कामों को देखा है और जान गए हो कि मैं प्रताप और क्रोध से भरपूर हूँ। इतना ही नहीं, तुम लोग जानते हो कि मैंने एक बार इजराइल के घराने पर अपने क्रोध का प्रकोप उड़ेला था, और आज यह तुम लोगों पर आ गया है। तुम लोग यशायाह और यूहन्ना की अपेक्षा स्वर्ग के मेरे रहस्यों को कहीं ज़्यादा समझते हो; पिछली पीढ़ियों के सभी संतों की अपेक्षा तुम लोग मेरी मनोरमता और पूजनीयता को कहीं ज़्यादा जानते हो। तुम लोगों ने केवल मेरे सत्य, मेरे मार्ग और मेरे जीवन को ही प्राप्त नहीं किया है, अपितु मेरी उस दृष्टि और प्रकटीकरण को भी प्राप्त किया है, जो यूहन्ना को प्राप्त दृष्टि और प्रकटीकरण से भी बड़ा है। तुम लोग कई और रहस्य समझते हो, और तुमने मेरा सच्चा चेहरा भी देख लिया है; तुम लोगों ने मेरे न्याय को अधिक स्वीकार किया है और मेरे धर्मी स्वभाव को अधिक जाना है। और इसलिए, यद्यपि तुम लोग इन अंत के दिनों में जन्मे हो, फिर भी तुम लोग पूर्व की और पिछली बातों की भी समझ रखते हो, और तुम लोगों ने आज की चीजों का भी अनुभव किया है, और यह सब मेरे द्वारा व्यक्तिगत रूप से किया गया था। जो मैं तुम लोगों से माँगता हूँ, वह बहुत ज्यादा नहीं है, क्योंकि मैंने तुम लोगों को इतना ज़्यादा दिया है और तुम लोगों ने मुझमें बहुत-कुछ देखा है। इसलिए, मैं तुम लोगों से कहता हूँ कि सभी युगों के संतों के लिए मेरी गवाही दो, और यह मेरे हृदय की एकमात्र इच्छा है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम विश्वास के बारे में क्या जानते हो?

परमेश्वर न्याय और ताड़ना का कार्य करता है ताकि मनुष्य परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त कर सके और उसकी गवाही दे सके। मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव का परमेश्वर द्वारा न्याय के बिना, संभवतः मनुष्य अपने धार्मिक स्वभाव को नहीं जान सकता था, जो कोई अपराध नहीं करता और न वह परमेश्वर के अपने पुराने ज्ञान को एक नए रूप में बदल पाता। अपनी गवाही और अपने प्रबंधन के वास्ते, परमेश्वर अपनी संपूर्णता को सार्वजनिक करता है, इस प्रकार, अपने सार्वजनिक प्रकटन के ज़रिए, मनुष्य को परमेश्वर के ज्ञान तक पहुँचने, उसको स्वभाव में रूपांतरित होने और परमेश्वर की ज़बर्दस्त गवाही देने लायक बनाता है। मनुष्य के स्वभाव का रूपांतरण परमेश्वर के कई विभिन्न प्रकार के कार्यों के ज़रिए प्राप्त किया जाता है; अपने स्वभाव में ऐसे बदलावों के बिना, मनुष्य परमेश्वर की गवाही देने और उसकी इच्छा के अनुरूप बनने लायक नहीं हो पाएगा। मनुष्य के स्वभाव में रूपांतरण दर्शाता है कि मनुष्य ने स्वयं को शैतान के बंधन और अंधकार के प्रभाव से मुक्त कर लिया है और वह वास्तव में परमेश्वर के कार्य का एक आदर्श, एक नमूना, परमेश्वर का गवाह और ऐसा व्यक्ति बन गया है, जो परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप है। आज देहधारी परमेश्वर पृथ्वी पर अपना कार्य करने के लिए आया है और वह अपेक्षा रखता है कि मनुष्य उसके बारे में ज्ञान प्राप्त करे, उसके प्रति समर्पित हो, उसके लिए उसकी गवाही दे—उसके व्यावहारिक और सामान्य कार्य को जाने, उसके उन सभी वचनों और कार्य के प्रति समर्पण करे, जो मनुष्य की धारणाओं के अनुरूप नहीं हैं और उस समस्त कार्य की गवाही दे, जो वह मनुष्य को बचाने के लिए करता है और साथ ही सभी कर्मों की जिन्हें वह मनुष्य को जीतने के लिए कार्यान्वित करता है। जो परमेश्वर की गवाही देते हैं, उन्हें परमेश्वर का ज्ञान अवश्य होना चाहिए; केवल इस तरह की गवाही ही सटीक और व्यावहारिक होती है और केवल इस तरह की गवाही ही शैतान को शर्मिंदा कर सकती है। परमेश्वर अपनी गवाही के लिए उन लोगों का उपयोग करता है, जिन्होंने उसके न्याय, उसकी ताड़ना, और काट-छाँट से गुज़रकर उसे जान लिया है। वह अपनी गवाही के लिए उन लोगों का उपयोग करता है, जिन्हें शैतान द्वारा भ्रष्ट कर दिया गया है और इसी तरह वह अपनी गवाही देने के लिए उन लोगों का भी उपयोग करता है, जिनका स्वभाव बदल गया है और जिन्होंने इस प्रकार उसके आशीर्वाद प्राप्त कर लिए हैं। उसे मनुष्य की आवश्यकता नहीं, जो अपने मुँह से उसकी स्तुति करे, न ही उसे शैतान की किस्म के लोगों की स्तुति और गवाही की आवश्यकता है, जिन्हें उसने नहीं बचाया है। केवल वो जो परमेश्वर को जानते हैं, उसकी गवाही देने योग्य हैं और केवल वो जिनके स्वभाव को रूपांतरित कर दिया गया है, उसकी गवाही देने योग्य हैं। परमेश्वर जानबूझकर मनुष्य को अपने नाम को शर्मिंदा नहीं करने देगा।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर को जानने वाले ही परमेश्वर की गवाही दे सकते हैं

परमेश्वर की गवाही देना मूलतः परमेश्वर के कार्य के बारे में तुम्हारा अपने ज्ञान को बताने का मामला है, और यह बताना है कि परमेश्वर कैसे लोगों को जीतता है, कैसे उन्हें बचाता है और कैसे उन्हें बदलता है; यह बताना है कि वह सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने के लिए कैसे लोगों का मार्गदर्शन करता है, उन्हें जीते जाने की, पूर्ण बनाए जाने की और बचाए जाने की अनुमति देता है। गवाही देने का अर्थ है उसके कार्य के बारे में बोलना, और उस सब के बारे में बोलना जिसका तुमने अनुभव किया है। केवल उसका कार्य ही उसका प्रतिनिधित्व कर सकता है, उसका कार्य ही उसे सार्वजनिक रूप से उसकी समग्रता में प्रकट कर सकता है; उसका कार्य उसकी गवाही देता है। उसका कार्य और उसके कथन सीधे तौर पर पवित्रात्मा का प्रतिनिधित्व करते हैं; वह जो कार्य करता है, उसे आत्मा द्वारा किया जाता है, और वह जो वचन बोलता है, वे आत्मा द्वारा बोले जाते हैं। ये बातें मात्र देहधारी परमेश्वर के जरिए व्यक्त की जाती हैं, फिर भी, असलियत में, वे आत्मा की अभिव्यक्ति हैं। उसके द्वारा किए जाने वाले सारे कार्य और बोले जाने वाले सारे वचन उसके सार का प्रतिनिधित्व करते हैं। अगर, देहधारण करके और इंसान के बीच आकर, परमेश्वर न बोलता या कार्य न करता, और वह तुमसे उसकी व्यावहारिकता, उसकी सामान्यता और उसकी सर्वशक्तिमत्ता बताने के लिए कहता, तो क्या तुम ऐसा कर पाते? क्या तुम जान पाते कि आत्मा का सार क्या है? क्या तुम उसके देह के गुण जान पाते? चूँकि तुमने उसके कार्य के हर चरण का अनुभव कर लिया है, इसलिए उसने तुम लोगों को उसकी गवाही देने के लिए कहा। अगर तुम्हें ऐसा कोई अनुभव न होता, तो वो तुम लोगों को अपनी गवाही देने पर ज़ोर न देता। इस तरह, जब तुम परमेश्वर की गवाही देते हो, तो तुम न केवल उसकी सामान्य मानवीयता के बाह्य रूप की गवाही देते हो, बल्कि उसके कार्य की और उस मार्ग की भी गवाही देते हो जो वो दिखाता है; तुम्हें इस बात की गवाही देनी होती है कि तुम्हें उसने कैसे जीता है और तुम किन पहलुओं में पूर्ण बनाए गए हो। तुम्हें इस किस्म की गवाही देनी चाहिए। अगर, तुम कहीं भी जाकर चिल्लाओगे : “हमारा परमेश्वर कार्य करने आया है, और उसका कार्य सचमुच व्यवहारिक है! उसने हमें बिना अलौकिक कार्यों के, बिना चमत्कारों और करामातों के प्राप्त कर लिया है!” तो लोग पूछेंगे : “तुम्हारा यह कहने का क्या मतलब है कि वो चमत्कार और करामात नहीं दिखाता? बिना चमत्कार और करामात दिखाए उसने तुम्हें कैसे जीत लिया?” और तुम कहते हो : “वह बोलता है और उसने बिना चमत्कार और करामात दिखाए, हमें जीत लिया। उसके कामों ने हमें जीत लिया।” आखिरकार, अगर तुम्हारी बातों में सार नहीं है, अगर तुम कोई विशिष्ट बात न बता सको, तो क्या यह सच्ची गवाही है? देहधारी परमेश्वर जब लोगों को जीतता है, तो यह कार्य उसके दिव्य वचन करते हैं। मानवीयता इस कार्य को नहीं कर सकती; इसे कोई नश्वर इंसान नहीं कर सकता, उच्चतम क्षमता वाले लोग भी इस कार्य को नहीं कर सकते, क्योंकि उसकी दिव्यता किसी भी सृजित प्राणी से ऊँची है। यह लोगों के लिए असाधारण है; आखिरकार, सृष्टिकर्ता सृजित प्राणी से ऊँचा है; सृजित प्राणी सृष्टिकर्ता से ऊँचा नहीं हो सकता; अगर तुम उससे ऊँचे होते, तो वो तुम्हें जीत नहीं पाता, वह तुम्हें इसलिए ही जीत पाता है क्योंकि वह तुमसे ऊँचा है। जो सारी मानवता को जीत सकता है वह सृष्टिकर्ता है, और अन्य कोई नहीं, केवल वही इस कार्य को कर सकता है। ये वचन “गवाही” हैं—ऐसी गवाही जो तुम्हें देनी चाहिए। तुमने धीरे-धीरे ताड़ना, न्याय, शुद्धिकरण, परीक्षण, विफलता और कष्टों का अनुभव किया है, और तुम्हें जीता गया है; तुमने देह की संभावनाओं का, निजी अभिप्रेरणाओं का, और देह के अंतरंग हितों का त्याग किया है। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर के वचनों ने तुम्हें पूरी तरह से जीत लिया है। हालाँकि तुम उसकी अपेक्षाओं के अनुसार अपने जीवन में उतना आगे नहीं बढ़े हो, तुम ये सारी बातें जानते हो और तुम उसके काम से पूरी तरह से आश्वस्त हो। इस तरह, इसे वो गवाही कहा जा सकता है, जो असली और सच्ची है। परमेश्वर न्याय और ताड़ना का जो कार्य करने आया है, उसका उद्देश्य इंसान को जीतना है, लेकिन वह अपने कार्य को समाप्त भी कर रहा है, युग का अंत कर रहा है और समाप्ति का कार्य कर रहा है। वह पूरे युग का अंत कर रहा है, हर इंसान को बचा रहा है, इंसान को हमेशा के लिए पाप से मुक्त कर रहा है; वह पूरी तरह से अपने द्वारा सृजित मानव को हासिल कर रहा है। तुम्हें इस सब की गवाही देनी चाहिए। तुमने परमेश्वर के इतने सारे कार्य का अनुभव किया है, तुमने इसे अपनी आँखों से देखा है और व्यक्तिगत रुप से अनुभव किया है; एकदम अंत तक पहुँचकर तुम्हें सौंपे गए प्रकार्य को पूरा करने में असफल नहीं होना चाहिए। यह कितना दुखद होगा! भविष्य में, जब सुसमाचार फैलेगा, तो तुम्हें अपने ज्ञान के बारे में बताने में सक्षम होना चाहिए, अपने दिल में तुमने जो कुछ पाया है, उसकी गवाही देने में सक्षम होना चाहिए और कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखनी चाहिए। एक सृजित प्राणी को यह सब हासिल करना चाहिए। परमेश्वर के कार्य के इस चरण के असली मायने क्या हैं? इसका प्रभाव क्या है? और इसका कितना हिस्सा इंसान पर किया जाता है? लोगों को क्या करना चाहिए? जब तुम लोग देहधारी परमेश्वर के धरती पर आने के बाद से उसके द्वारा किए सारे कार्य को साफ तौर पर बता सकोगे, तब तुम्हारी गवाही पूरी होगी। जब तुम लोग साफ तौर पर इन पाँच चीजों के बारे में बता सकोगे : उसके कार्य के मायने; उसकी विषय-वस्तु; उसका सार, वह स्वभाव जिसका प्रतिनिधित्व उसका कार्य करता है; उसके सिद्धांत, तब यह साबित होगा कि तुम परमेश्वर की गवाही देने में सक्षम हो और तुम्हारे अंदर सच्चा ज्ञान है। मेरी तुमसे बहुत अधिक अपेक्षाएँ नहीं हैं, जो लोग सच्ची खोज में लगे हैं, वे उन्हें प्राप्त कर सकते हैं। अगर तुम परमेश्वर के गवाहों में से एक होने के लिए दृढ़संकल्प हो, तो तुम्हें समझना चाहिए कि परमेश्वर को किससे घृणा है और किससे प्रेम। तुमने उसके बहुत सारे कार्य का अनुभव किया है; उसके कार्य के जरिए तुम्हें उसके स्वभाव का ज्ञान होना चाहिए, उसकी इच्छा को और इंसान से उसकी अपेक्षाओं को समझना चाहिए, और इस ज्ञान का उपयोग उसकी गवाही देने और अपना कर्तव्य निभाने के लिए करना चाहिए।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अभ्यास (7)

जब तुम परमेश्वर के लिए गवाही देते हो, तो तुमको मुख्य रूप से इस बारे में बात करनी चाहिए कि परमेश्वर कैसे न्याय करता है और कैसे लोगों को ताड़ना देता है, लोगों का शोधन करने और उनके स्वभाव में परिवर्तन लाने के लिए किन परीक्षणों का उपयोग करता है। तुम लोगों को इस बारे में भी बात करनी चाहिए कि तुम्हारे अनुभव में कितनी भ्रष्टता उजागर हुई, तुमने कितना कष्ट सहा, परमेश्वर का विरोध करने के लिए तुमने कितनी चीजें कीं, और आखिरकार परमेश्वर ने कैसे तुम लोगों को जीता; इस बारे में भी बात करो कि परमेश्वर के कार्य का कितना वास्तविक ज्ञान तुम्हारे पास है और तुम्हें परमेश्वर के लिए कैसे गवाही देनी चाहिए और कैसे परमेश्वर के प्रेम का मूल्य चुकाना चाहिए। तुम्हें इन बातों को सरलता से प्रस्तुत करते हुए, इस प्रकार की भाषा में सत्व डालना चाहिए। खोखले सिद्धांतों की बातें मत करो। वास्तविक बातें अधिक किया करो; दिल से बातें किया करो। तुम्हें इसी प्रकार चीजों का अनुभव करना चाहिए। अपने आपको बहुत ऊंचा दिखाने की कोशिश मत करो, दिखावा करने के लिए खोखले सिद्धांतों की बात मत करो; ऐसा करने से तुम्हें बहुत घमंडी और तर्कहीन माना जाएगा। तुम्हें अपने वास्तविक अनुभव की असली, सच्ची और दिल से निकली बातों पर ज्यादा बोलना चाहिए; यह दूसरों के लिए सबसे अधिक लाभकारी होगा और उनके समझने के लिए सबसे उचित होगा। तुम लोग परमेश्वर के सबसे कट्टर विरोधी थे, और उनके प्रति समर्पित होने के लिए तैयार ही नहीं थे, लेकिन अब तुम जीत लिए गए हो, इस बात को कभी नहीं भूलो। इन बातों पर तुम्हें और अधिक विचार करना और सोचना चाहिए। एक बार जब लोग इसे साफ तौर पर समझ जाएँगे, तो उन्हें गवाही देने का तरीका पता चल जाएगा; अन्यथा वे और अधिक बेशर्मी भरे, मूर्खतापूर्ण कृत्य करने लगेंगे, जो कि परमेश्वर के लिए गवाही देना नहीं, बल्कि उसे शर्मिंदा करना है।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, केवल सत्य की खोज करके ही स्वभाव में बदलाव लाया जा सकता है

एक दिन, जब तुम सुसमाचार का प्रचार करने के लिए विदेश में होगे और कोई तुमसे पूछेगा : “परमेश्वर पर तुम्हारा विश्वास कैसा चल रहा है?” तो तुम यह कहने में सक्षम होगे : “परमेश्वर के कार्य बहुत ही अद्भुत हैं!” वे महसूस करेंगे कि तुम्हारे वचन वास्तविक अनुभवों की बात करते हैं। यही वास्तव में गवाही देना है। तुम कहोगे कि परमेश्वर का कार्य बुद्धिमत्ता से भरा है, और तुम्हारे भीतर उसके कार्य ने तुम्हें वास्तव में आश्वस्त कर दिया है और तुम्हारे हृदय को जीत लिया है। तुम हमेशा उससे प्रेम करोगे, क्योंकि वह मानवजाति के प्रेम के अत्यधिक योग्य है! अगर तुम इन चीजों के बारे में बात कर सकते हो, तो तुम मनुष्यों के हृदयों को द्रवित कर सकते हो। यह सब-कुछ गवाही देना है। अगर तुम एक जबरदस्त गवाही देने में सक्षम हो, लोगों को द्रवित कर उनकी आँखों में आँसू लाने में सक्षम हो, तो यह दर्शाता है कि तुम वास्तव में ऐसे व्यक्ति हो जो परमेश्वर से प्रेम करता है, क्योंकि तुम परमेश्वर को प्रेम करने की गवाही देने में सक्षम हो और तुम्हारे माध्यम से परमेश्वर के कार्य की गवाही दी जा सकती है। तुम्हारी गवाही के कारण अन्य लोग परमेश्वर के कार्य की खोज करते हैं, परमेश्वर के कार्य का अनुभव करते हैं, और वे जिस भी परिवेश का अनुभव करें, उसमें वे दृढ़ रहने में समर्थ होंगे। गवाही देने का यही एकमात्र वास्तविक तरीका है, और अब तुमसे ठीक यही अपेक्षित है। तुम्हें देखना चाहिए कि परमेश्वर का कार्य अत्यंत मूल्यवान और लोगों द्वारा सँजोकर रखे जाने योग्य है, कि परमेश्वर बहुत मूल्यवान है और बहुत प्रचुर है; वह न केवल बात कर सकता है, बल्कि लोगों का न्याय भी कर सकता है, उनके हृदयों का शोधन कर सकता है, उनके लिए आनंद ला सकता है, उन्हें प्राप्त कर सकता है, उन्हें जीत सकता है और उन्हें पूर्ण बना सकता है। अपने अनुभव से तुम देखोगे कि परमेश्वर बहुत ही प्यारा है। तो अब तुम परमेश्वर को कितना प्रेम करते हो? क्या तुम वास्तव में अपने हृदय से ये बातें कह सकते हो? जब तुम अपने हृदय की गहराइयों से ये शब्द कहने में सक्षम होगे, तो तुम गवाही देने में सक्षम हो जाओगे। जब तुम्हारा अनुभव इस स्तर तक पहुँच जाएगा, तो तुम परमेश्वर का गवाह होने में समर्थ और उसके काबिल हो जाओगे। अगर तुम अपने अनुभव में इस स्तर तक नहीं पहुँचते, तो तुम अभी भी बहुत दूर होगे। शोधन के दौरान लोगों द्वारा कमजोरियों का प्रदर्शन सामान्य बात है, परंतु शोधन के पश्चात् तुम्हें यह कहने में समर्थ होना चाहिए : “परमेश्वर अपने कार्य में बहुत बुद्धिमान है!” अगर तुम वास्तव में इन शब्दों की व्यावहारिक समझ प्राप्त करने में सक्षम हो, तो यह तुम्हारे सँजोने लायक चीज बन जाएगी, और तुम्हारे अनुभव का मूल्य होगा।

अब तुम्हें किसका अनुसरण करना चाहिए? तुम परमेश्वर के कार्य की गवाही देने में समर्थ हो या नहीं, तुम परमेश्वर की गवाही और उसकी एक अभिव्यक्ति बनने में सक्षम हो या नहीं, और तुम उसके द्वारा उपयोग किए जाने के योग्य हो या नहीं—ये वे बातें हैं, जिनका तुम्हें पता लगाना चाहिए। परमेश्वर ने तुम्हारे भीतर वास्तव में कितना कार्य किया है? तुमने कितना देखा है, कितना स्पर्श किया है? तुमने कितना अनुभव किया और चखा है? चाहे परमेश्वर ने तुम्हारी परीक्षा ली हो, तुम्हारी काट-छाँट की हो या तुम्हें अनुशासित किया हो, उसके क्रियाकलाप और उसका कार्य तुम पर किए गए हैं। परंतु परमेश्वर के एक विश्वासी के रूप में और एक ऐसे व्यक्ति के रूप में, जो परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाए जाने के लिए प्रयास करने को उत्सुक है, क्या तुम अपने व्यावहारिक अनुभव के आधार पर परमेश्वर के कार्य की गवाही देने में समर्थ हो? क्या तुम अपने व्यावहारिक अनुभव के माध्यम से परमेश्वर के वचन को जी सकते हो? क्या तुम अपने व्यावहारिक अनुभव के माध्यम से दूसरों को पोषण प्रदान करने और परमेश्वर के कार्य की गवाही देने के लिए अपना पूरा जीवन खपाने में सक्षम हो? परमेश्वर के कार्य की गवाही देने के लिए तुम्हें अपने अनुभव, ज्ञान और स्वयं द्वारा चुकाई गई कीमत पर निर्भर करना चाहिए। केवल इसी तरह तुम उसकी इच्छा पूरी कर सकते हो। क्या तुम ऐसे व्यक्ति हो, जो परमेश्वर के कार्य की गवाही देता है? क्या तुम्हारी यह अभिलाषा है? अगर तुम उसके नाम, और इससे भी बढ़कर, उसके कार्य की गवाही देने में समर्थ हो, और अगर तुम उस छवि को जीने में सक्षम हो जिसकी वह अपने लोगों से अपेक्षा करता है, तो तुम परमेश्वर के गवाह हो। तुम वास्तव में परमेश्वर की किस प्रकार गवाही देते हो? परमेश्वर के वचन को जीने का प्रयास और उसकी लालसा करके और अपने शब्दों से गवाही देकर, और लोगों को परमेश्वर के कार्य को जानने और उसके क्रियाकलाप देखने देकर तुम ऐसा करते हो। अगर तुम वास्तव में यह सब खोजोगे, तो परमेश्वर तुम्हें पूर्ण बना देगा। अगर तुम बस परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाया जाना और अंत में धन्य किया जाना चाहते हो, तो परमेश्वर पर तुम्हारे विश्वास का परिप्रेक्ष्य शुद्ध नहीं है। तुम्हें यह खोजना चाहिए कि वास्तविक जीवन में परमेश्वर के कर्मों को कैसे देखें, जब वह अपनी इच्छा तुम पर प्रकट करे तो उसे कैसे संतुष्ट करें, और तुम्हें यह पता लगाना चाहिए चाहिए कि उसकी अद्भुतता और बुद्धि की गवाही तुम्हें कैसे देनी चाहिए, और इसकी गवाही कैसे देनी चाहिए कि वह तुम्हें कैसे अनुशासित करता है और कैसे तुम्हारी काट-छाँट करता है। ये सभी वे चीजें हैं, जिन पर अब तुम्हें विचार करना चाहिए। अगर तुम्हारा परमेश्वर-प्रेमी हृदय सिर्फ इसलिए है कि परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाए जाने के बाद तुम उसकी महिमा में हिस्सा बँटा सको, तो यह अभी भी अपर्याप्त है और परमेश्वर की अपेक्षाएँ पूरी नहीं कर सकता। तुम्हें परमेश्वर के कार्य की गवाही देने में समर्थ होने, उसकी अपेक्षाएँ पूरी करने और उसके द्वारा लोगों पर किए गए कार्य का व्यावहारिक तरीके से अनुभव करने की आवश्यकता है। चाहे पीड़ा हो, आँसू हो या उदासी, तुम्हें अपने अभ्यास में ये सभी चीजें अनुभव करनी चाहिए। ये तुम्हें ऐसे व्यक्ति के रूप में पूर्ण करने के लिए हैं, जो परमेश्वर की गवाही देता है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा

मनुष्य अंततः परमेश्वर के बारे में क्या गवाही देता है? वह गवाही देता है कि परमेश्वर धार्मिक परमेश्वर है, उसके स्वभाव में धार्मिकता, क्रोध, ताड़ना और न्याय शामिल हैं; मनुष्य परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव की गवाही देता है। परमेश्वर अपने न्याय का उपयोग मनुष्य को पूर्ण बनाने के लिए करता है, उसने मनुष्य से प्रेम किया है और उसे बचाया है—परंतु उसके प्रेम में क्या निहित है? उसमें न्याय, प्रताप, क्रोध और शाप निहित है। यद्यपि अतीत में परमेश्वर ने मनुष्य को शाप दिया था, परंतु उसने मनुष्य को पूरी तरह से अथाह कुंड में नहीं फेंका, बल्कि उसने यह उपाय मनुष्य के विश्वास के शोधन के लिए किया था; उसने मनुष्य को मार नहीं डाला था, बल्कि उसने मनुष्य को पूर्ण बनाने का कार्य किया था। देह का सार वही है जो शैतान का है—परमेश्वर ने यह बिलकुल सही कहा है—परंतु परमेश्वर द्वारा कार्यान्वित तथ्य उसके वचनों के अनुसार पूरे नहीं होते। वह तुम्हें शाप देता है ताकि तुम उससे प्रेम कर सको, ताकि तुम देह के सार को जान सको; वह तुम्हें ताड़ना देता है ताकि तुम्हें जगाया जा सके, तुम अपने भीतर की कमियाँ और मनुष्य की संपूर्ण अयोग्यता जान सको। इस प्रकार, परमेश्वर के शाप, उसका न्याय, और उसका प्रताप और क्रोध—ये सब मनुष्य को पूर्ण बनाने के लिए हैं। वह सब जो परमेश्वर आज करता है, और धार्मिक स्वभाव जिसे वह तुम लोगों के भीतर स्पष्ट दिखाता है—यह सब मनुष्य को पूर्ण बनाने के लिए है। ऐसा है परमेश्वर का प्रेम।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पीड़ादायक परीक्षणों के अनुभव से ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो

आज तुम पूर्ण बनाए जाने का प्रयास कर सकते हो या अपने बाहरी मनुष्यत्व में बदलाव और क्षमता में विकास के लिए कोशिश कर सकते हो, परंतु प्रमुख महत्व की बात यह है कि तुम यह समझ सको कि जो कुछ आज परमेश्वर कर रहा है, वह सार्थक और लाभकारी है : यह तुम्हें, जो गंदगी की धरती पर पैदा हुए हो, उस गंदगी से बच निकलने और उसे झटक देने में सक्षम बनाता है, यह तुम्हें शैतान के प्रभाव से पार पाने और शैतान के अंधकारमय प्रभाव को पीछे छोड़ने में सक्षम बनाता है। इन बातों पर ध्यान देने से तुम इस अपवित्र भूमि पर सुरक्षा प्राप्त करते हो। आखिरकार तुम्हें क्या गवाही देने को कहा जाएगा? तुम एक गंदगी की भूमि पर पैदा होते हो किंतु पवित्र बनने में, पुनः कभी गंदगी से ओतप्रोत न होने के लिए, शैतान की सत्ता में रहकर भी अपने आपको उसके प्रभाव से छुड़ा लेने के लिए, शैतान द्वारा न तो ग्रसित किए जाने के लिए और न ही सताए जाने के लिए, और सर्वशक्तिमान के हाथों में रहने के योग्य हो। यही गवाही और शैतान से युद्ध में विजय का साक्ष्य है। तुम शैतान से विद्रोह करने में सक्षम हो, अपने जीवन में अब और शैतानी स्वभाव प्रकट नहीं करते, इसके बजाय उस स्थिति को जीते हो, जिसे परमेश्वर ने मनुष्य के सृजन के समय चाहा था कि मनुष्य प्राप्त करे : सामान्य मानवता, सामान्य विवेक, सामान्य अंतर्दृष्टि, परमेश्वर से प्रेम करने का सामान्य संकल्प और परमेश्वर के प्रति निष्ठा। यह एक सृजित प्राणी द्वारा दी जाने वाली गवाही है। तुम कहते हो, “हम गंदगी की भूमि पर पैदा हुए हैं, परंतु परमेश्वर की सुरक्षा के कारण, उसकी अगुआई के कारण, और क्योंकि उसने हम पर विजय प्राप्त की है इसलिए, हमने शैतान के प्रभाव से मुक्ति पाई है। हम आज समर्पण कर पाते हैं, तो यह भी इस बात का प्रभाव है कि परमेश्वर ने हम पर विजय पाई है, और यह इसलिए नहीं है कि हम अच्छे हैं, या हम स्वभावतः परमेश्वर से प्रेम करते थे। चूँकि परमेश्वर ने हमें चुना और हमें पूर्वनिर्धारित किया, इसीलिए आज हम पर विजय पाई गई है, और इसीलिए हम उसकी गवाही देने में समर्थ हुए हैं, और उसकी सेवा कर सकते हैं, ऐसा इसलिए भी है कि उसने हमें चुना और हमारी रक्षा की, इसी कारण हमें शैतान की सत्ता से बचाया और छुड़ाया गया है, और हम गंदगी को पीछे छोड़, बड़े लाल अजगर के देश में शुद्ध किए जा सकते हैं।”

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, विजय के कार्य की आंतरिक सच्चाई (2)

जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है, उनके लिए जीत लिए जाने के कार्य का यह कदम अति आवश्यक है; जब मनुष्य पर विजय पा ली जाती है, तो उसके बाद ही मनुष्य पूर्ण बनाए जाने के कार्य का अनुभव कर सकता है। केवल जीत लिए जाने की भूमिका को निभाने का कोई बड़ा महत्व नहीं है, जो तुम्हें परमेश्वर के इस्तेमाल के योग्य नहीं बनाएगा। सुसमाचार फैलाने की अपनी भूमिका को निभाने के लिए तुम्हारे पास कोई साधन नहीं होगा, क्योंकि तुम जीवन-विकास की खोज नहीं कर रहे, अपने अंदर परिवर्तन लाने और नवीनीकरण का प्रयास नहीं कर रहे, और इसलिए तुम्हारे पास जीवन-विकास का कोई वास्तविक अनुभव नहीं होता। इस कदम दर कदम कार्य के दौरान, तुम जब एक बार एक सेवाकर्मी और एक विषम के तौर पर कार्य कर लेते हो, लेकिन अगर अंततः तुम पतरस की तरह बनने का प्रयास नहीं करते, और यदि तुम्हारी खोज उस मार्ग के अनुसार नहीं है जिसके द्वारा पतरस को पूर्ण बनाया गया था, तो स्वाभाविक रूप से, तुम अपने स्वभाव में परिवर्तन का अनुभव नहीं कर पाओगे। यदि तुम पूर्ण बनाए जाने का प्रयास करते हो, तो तुम गवाही दे चुके होगे, और तुम कहोगे : “परमेश्वर के इस कदम दर कदम कार्य में, मैंने परमेश्वर की ताड़ना और न्याय के कार्य को स्वीकार कर लिया है, और हालाँकि मैंने बड़ा कष्ट सहा है, फिर भी मैं जान गया हूँ कि परमेश्वर मनुष्य को पूर्ण कैसे बनाता है, मैंने परमेश्वर द्वारा किए गए कार्य को प्राप्त कर लिया है, मैंने परमेश्वर की धार्मिकता का ज्ञान प्राप्त कर लिया है, और उसकी ताड़ना ने मुझे बचा लिया है। उसका धार्मिक स्वभाव मुझ पर अपना प्रभाव दिखा रहा है, और मेरे लिए आशीष और अनुग्रह लेकर आया है; उसके न्याय और ताड़ना ने ही मुझे बचाया है और मुझे शुद्ध किया है। यदि परमेश्वर ने मुझे ताड़ना न दी होती और मेरा न्याय न किया होता, और यदि परमेश्वर ने मुझे कठोर वचन न कहे होते, तो मैं परमेश्वर को नहीं जान पाता, और न ही मुझे बचाया जा सका होता। आज मैं देखता हूँ : एक सृजित प्राणी के रूप में, न केवल व्यक्ति परमेश्वर द्वारा बनाई गई सभी चीजों का आनंद उठाता है, बल्कि, महत्वपूर्ण यह है कि सभी सृजित प्राणी परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव का आनंद उठाएँ, और उसके धार्मिक न्याय का आनन्द उठाएँ, क्योंकि परमेश्वर का स्वभाव मनुष्य के आनंद के योग्य है। एक ऐसे सृजित प्राणी के रूप में जिसे शैतान द्वारा भ्रष्ट कर दिया गया है, इंसान को परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव का आनंद उठाना चाहिए। उसके धार्मिक स्वभाव में उसकी ताड़ना और न्याय है, इससे भी बढ़कर, उसमें महान प्रेम है। हालाँकि आज मैं परमेश्वर के प्रेम को पूरी तरह प्राप्त करने में असमर्थ हूँ, फिर भी मुझे उसे देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है और इससे मैं धन्य हो गया हूँ।” यह वह पथ है जिस पर वे लोग चले हैं जो पूर्ण बनाए जाने का अनुभव करते हैं और इस ज्ञान के बारे में बोलते हैं। ऐसे लोग पतरस के समान हैं; उनके अनुभव भी पतरस के समान ही होते हैं। ऐसे लोग वे लोग भी हैं जो जीवन-विकास प्राप्त कर चुके होते हैं, जिनके अंदर सत्य है। जब उनका अनुभव अंत तक बना रहता है, तो परमेश्वर के न्याय के दौरान वे अपने-आपको पूरी तरह से शैतान के प्रभाव से छुड़ा लेते हैं और परमेश्वर को प्राप्त हो जाते हैं।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान

आज महत्वपूर्ण बात यह है कि तुम सब मनुष्य के सार को जानो, और यह जानो कि तुम लोगों को किसमें प्रवेश करना चाहिए; तुम्हें जीवन प्रवेश, और स्वभाव में परिवर्तनों, वास्तव में कैसे विजित होना है, और परमेश्वर के प्रति कैसे पूरी तरह समर्पण करना है, परमेश्वर को अंतिम गवाही कैसे देनी है और कैसे मृत्युपर्यंत समर्पित कैसे बने रहना है, इन बातों की चर्चा करनी चाहिए। तुम्हें इन बातों पर केंद्रित होना चाहिए, और जो बात वास्तविक या महत्वपूर्ण न हो, पहले उसे किनारे कर नजरंदाज कर देना चाहिए। आज तुम्हें पता होना चाहिए कि विजित कैसे हुआ जाए, और विजित होने के बाद लोग अपना आचरण कैसा रखें। तुम कह सकते हो कि तुम पर विजय पा ली गई है, पर क्या तुम मृत्युपर्यंत समर्पित रह सकते हो? इस बात की परवाह किए बिना कि इसमें कोई संभावना है या नहीं, तुम्हें बिल्कुल अंत तक अनुसरण करने में सक्षम होना चाहिए, और कैसा भी परिवेश हो, तुम्हें परमेश्वर में विश्वास नहीं खोना चाहिए। अतंतः तुम्हें गवाही के दो पहलू प्राप्त करने चाहिए : अय्यूब की गवाही—मृत्युपर्यंत समर्पण; और पतरस की गवाही—परमेश्वर से परम प्रेम। एक मामले में तुम्हें अय्यूब की तरह होना चाहिए : उसने समस्त भौतिक संपत्ति गँवा दी और शारीरिक पीड़ा से घिर गया, फिर भी उसने यहोवा का नाम नहीं त्यागा। यह अय्यूब की गवाही थी। पतरस मृत्युपर्यंत परमेश्वर से प्रेम करने में सक्षम रहा। जब उसे क्रूस पर चढ़ाया गया और उसने अपनी मृत्यु का सामना किया, तब भी उसने परमेश्वर से प्रेम किया, उसने अपनी संभावनाओं का विचार नहीं किया या सुंदर आशाओं अथवा अनावश्यक विचारों का अनुसरण नहीं किया, और केवल परमेश्वर से प्रेम करने और परमेश्वर की समस्त व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने की ही इच्छा की। इससे पहले कि यह माना जा सके कि तुमने गवाही दी है, इससे पहले कि तुम ऐसा व्यक्ति बन सको जिसे जीते जाने के बाद पूर्ण बना दिया गया है, तुम्हें यह स्तर हासिल करना होगा।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, विजय के कार्य की आंतरिक सच्चाई (2)

यदि लोग परमेश्वर-प्रेमी हृदय के साथ परमेश्वर में विश्वास करते हैं और उसके वचनों को अनुभव करते हैं, तो ऐसे लोगों में परमेश्वर का उद्धार और परमेश्वर का प्रेम देखा जा सकता है। ये लोग परमेश्वर की गवाही दे पाते हैं; वे सत्य को जीते हैं, और जिसकी वे गवाही देते हैं, वह भी सत्य, परमेश्वर का स्वरूप और परमेश्वर का स्वभाव ही होता है। वे परमेश्वर के प्रेम के मध्य में रहते हैं और वे परमेश्वर का प्रेम देख चुके हैं। यदि लोग परमेश्वर से प्रेम करना चाहते हैं, तो उन्हें परमेश्वर की सुंदरता का स्वाद चखना चाहिए और परमेश्वर की सुंदरता को देखना चाहिए; केवल तभी उनमें एक परमेश्वर-प्रेमी हृदय जाग्रत हो सकता है, एक ऐसा हृदय जो लोगों को अपना सर्वस्व निष्ठापूर्वक परमेश्वर के लिए देने को प्रेरित करता है। परमेश्वर लोगों को वचनों के माध्यम से, या उनकी कल्पना के माध्यम से अपने से प्रेम नहीं कराता, और न ही वह अपने से प्रेम करने के लिए उन्हें बाध्य करता है। इसकी बजाय वह उन्हें उनकी इच्छा से अपने से प्रेम करने देता है, और वह अपने कार्य और कथनों में उन्हें अपनी सुंदरता को देखने देता है, जिसके बाद उनमें परमेश्वर के प्रति प्रेम जन्म लेता है। केवल इसी तरह लोग सच्चे अर्थों में परमेश्वर की गवाही दे सकते हैं। लोग परमेश्वर से प्रेम करते हैं तो इसलिए नहीं कि दूसरों ने उनसे ऐसा करने का आग्रह किया है, न ही यह कोई क्षणिक भावनात्मक आवेग होता है। वे परमेश्वर से इसलिए प्रेम करते हैं, क्योंकि उन्होंने उसकी सुंदरता देखी है, उन्होंने देखा है कि उसमें कितना कुछ है जो लोगों के प्रेम के योग्य है, क्योंकि उन्होंने परमेश्वर का उद्धार, बुद्धि और आश्चर्यजनक कर्म देखे हैं—और परिणामस्वरूप, वे सचमुच परमेश्वर का गुणगान करते हैं, और सचमुच उसके लिए तड़पते हैं, और उनमें ऐसा जुनून उत्पन्न हो जाता है कि वे परमेश्वर को प्राप्त किए बिना जीवित नहीं रह सकते। जो सच्चे अर्थों में परमेश्वर की गवाही देते हैं, वे उसकी शानदार गवाही इसलिए दे पाते हैं क्योंकि उनकी गवाही परमेश्वर के सच्चे ज्ञान और उसके लिए सच्ची तड़प की नींव पर टिकी होती है। ऐसी गवाही किसी भावनात्मक आवेग के अनुसार नहीं, बल्कि परमेश्वर और उसके स्वभाव के उनके ज्ञान के अनुसार दी जाती है। चूँकि वे परमेश्वर को जानने लगे हैं, इसलिए उन्हें लगता है कि उन्हें परमेश्वर की गवाही निश्चित रूप से देनी चाहिए, और उन सबको जो परमेश्वर के लिए तड़पते हैं, परमेश्वर को जानने, और परमेश्वर की सुंदरता एवं उसकी व्यावहारिकता से अवगत होने का अवसर मिलना चाहिए। परमेश्वर के प्रति लोगों के प्रेम की तरह उनकी गवाही भी स्वतः स्फूर्त होती है, वह वास्तविक होती है और उसका महत्व एवं मूल्य वास्तविक होता है। वह निष्क्रिय या खोखली और अर्थहीन नहीं होती। जो परमेश्वर से सचमुच प्रेम करते हैं केवल उन्हीं के जीवन में सर्वाधिक मूल्य और अर्थ होता है, और केवल वही लोग क्यों परमेश्वर में सचमुच विश्वास करते हैं, इसका कारण यह है कि ये लोग परमेश्वर के प्रकाश में रह पाते हैं और परमेश्वर के कार्य और प्रबंधन के लिए जी पाते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे अंधकार में नहीं जीते, बल्कि प्रकाश में जीते हैं; वे अर्थहीन जीवन नहीं जीते, बल्कि परमेश्वर द्वारा धन्य किया गया जीवन जीते हैं। केवल वे जो परमेश्वर से प्रेम करते हैं, परमेश्वर की गवाही दे पाते हैं, केवल वे ही परमेश्वर के गवाह हैं, केवल वे ही परमेश्वर द्वारा धन्य किए जाते हैं, और केवल वे ही परमेश्वर की प्रतिज्ञाएँ प्राप्त कर पाते हैं।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर से प्रेम करने वाले लोग सदैव उसके प्रकाश के भीतर रहेंगे

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