7. मसीह-विरोधियों के दुष्ट स्वभाव को कैसे पहचानें

अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन

मसीह-विरोधियों की दुष्टता की प्राथमिक अभिव्यक्ति क्या है? वह यह है कि उन्हें स्पष्ट रूप से पता होता है कि क्या सही है और क्या सत्य के अनुरूप है, लेकिन जब उन्हें कुछ करना होता है, तो वे हमेशा वही चुनते हैं जो सिद्धांतों का उल्लंघन करता हो और सत्य के विरुद्ध हो, और जो उनके अपने हितों और पद के अनकूल हो—यह मसीह-विरोधियों के दुष्ट स्वभाव की प्राथमिक अभिव्यक्ति है। वे चाहे जितने वचनों और सिद्धांतों को समझते हों, धर्मोपदेशों में वे कितनी भी मधुर भाषा का उपयोग करते हों, या अन्य लोगों को वे कितनी भी आध्यात्मिक समझ रखने वाले लगते हों, पर जब वे काम करते हैं, तो वे केवल एक सिद्धांत और एक तरीका चुनते हैं, और वह है सत्य के विरुद्ध जाना, अपने हितों की रक्षा करना, और अंत तक सत्य का सौ प्रतिशत प्रतिरोध करना—यही वह सिद्धांत और तरीका है जिसके अनुसार वे कार्य करने का फैसला करते हैं। इसके अलावा, वे अपने हृदय में जिस परमेश्वर और सत्य की कल्पना करते हैं, वे वास्तव में कैसे हैं? सत्य के प्रति उनका रवैया केवल इसके बारे में बोलने और उपदेश देने में सक्षम होने की चाह तक है, उनका रवैया उसे अभ्यास में लाने का नहीं है। परमेश्वर के चुने हुए लोगों से खूब सम्मानित होने की इच्छा के साथ वे इसके बारे में केवल बातें करते हैं, और फिर इसका उपयोग कलीसिया के अगुआ के पद पर काबिज होने और परमेश्वर के चुने हुए लोगों पर प्रभुत्व स्थापित करने के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए करते हैं। वे अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए उपदेश सिद्धांत का उपयोग करते हैं—क्या यह सत्य की अवमानना करना, सत्य के साथ खिलवाड़ और सत्य को पैरों तले रौंदना नहीं है? क्या वे सत्य के साथ इस तरह के व्यवहार से परमेश्वर के स्वभाव का अपमान नहीं करते हैं? वे बस सत्य का उपयोग करते हैं। उनके हृदय में सत्य सिर्फ एक नारा है, कुछ ऊँचे शब्द हैं, ऐसे ऊँचे शब्द जिनका उपयोग वे लोगों को गुमराह करने और उन्हें जीतने के लिए कर सकते हैं, जो लोगों की अद्भुत चीजों की प्यास बुझा सकते हैं। वे सोचते हैं कि इस दुनिया में ऐसा कोई नहीं है जो सत्य का अभ्यास कर सके या सत्य को जी सके, कि ऐसा हो ही नहीं सकता, कि यह असंभव है, और केवल वही सत्य है जिसे हर कोई स्वीकार करता हो और जो व्यवहार्य हो। वे सत्य के बारे में बात भले ही करते हों, लेकिन अपने हृदय में वे स्वीकार नहीं करते हैं कि यह सत्य है। हम इस मामले का परीक्षण कैसे करें? (वे सत्य का अभ्यास नहीं करते।) वे कभी सत्य का अभ्यास नहीं करते; यह एक पहलू है। और दूसरा महत्वपूर्ण पहलू क्या है? जब वे वास्तविक जीवन में चीजों का सामना करते हैं, तो वे जिस धर्म-सिद्धांत को समझते हैं, वह कभी भी काम में नहीं लाए जा सकते। वे ऐसे दिखते हैं मानो उन्हें वास्तव में आध्यात्मिक समझ हो, वे एक के बाद एक धर्म-सिद्धांतों का प्रचार करते हैं, लेकिन जब वे मुद्दों का सामना करते हैं, तो उनके तरीके विकृत होते हैं। सत्य का अभ्यास करने में वे भले न सक्षम हों, लेकिन वे जो करते हैं उसे कम से कम मानवीय धारणाओं और कल्पनाओं के अनुरूप होना चाहिए, मानवीय मानकों और पसंद के अनुरूप होना चाहिए, और कम से कम यह सबके लिए स्वीकार्य होना चाहिए। इस तरह, उनकी स्थिति स्थिर रहेगी। यद्यपि, वास्तविक जीवन में वे जो काम करते हैं वे अविश्वसनीय रूप से विकृत होते हैं, और बस एक नजर डालने भर से पता चल जाता है कि वे सत्य नहीं समझते। वे सत्य क्यों नहीं समझते? अपने हृदय में वे सत्य से विमुख होते हैं, वे सत्य को स्वीकार नहीं करते, वे शैतानी दर्शनों के अनुसार काम करने में आनंद पाते हैं, मामलों को सँभालने के लिए वे हमेशा मानवीय तरीकों का उपयोग करना चाहते हैं, और उनके लिए बस इतना ही पर्याप्त होता है कि वे इन मामलों को संभालने के माध्यम से दूसरों को सहमत कर सकें और प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकें। यदि कोई मसीह-विरोधी किसी स्थान पर पहुंचने पर किसी को किसी खोखले सिद्धांत का प्रचार करते पाता है, तो वह बहुत उत्साहित हो जाता है, लेकिन यदि कोई सत्य वास्तविकता का उपदेश दे रहा हो और लोगों की विभिन्न स्थितियों आदि के विवरण दे रहा हो, तो उन्हें हमेशा लगता है कि वक्ता उनकी आलोचना कर रहा है और उनके दिल पर चोट कर रहा है, और इसलिए वे घृणा महसूस करते हैं और उसे नहीं सुनना चाहते। यदि उनसे इस बारे में संगति करने के लिए कहा जाए कि हाल ही में उनकी स्थिति कैसी रही है, क्या उन्होंने कोई प्रगति की है, और क्या उन्हें अपने कर्तव्य निभाने में किसी कठिनाई का सामना करना पड़ा है, तो उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं होता। यदि तुम सत्य के इस पहलू पर संगति करना जारी रखते हो, तो वे सो जाते हैं; उन्हें इस बारे में सुनना अच्छा नहीं लगता। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो तुम्हारे साथ गपशप करते समय खूब रुचि दिखाते हैं, लेकिन किसी को सत्य पर संगति करते हुए सुनते ही वे कोने में छिपकर बैठ जाते हैं और झपकी लेने लगते हैं—उन्हें सत्य से बिल्कुल भी प्रेम नहीं है। वे किस हद तक सत्य से प्रेम नहीं करते? गंभीरता से न देखें तो उनकी इसमें रुचि नहीं होती, और उनके लिए श्रमिक बनना ही पर्याप्त होता है; गंभीरता से देखा जाए तो वे सत्य से विमुख होते हैं, वे सत्य से विशेष रूप से घृणा महसूस करते हैं, और वे इसे स्वीकार नहीं कर सकते। यदि इस तरह का व्यक्ति अगुआ है, तो वह मसीह-विरोधी है; यदि वह कोई साधारण अनुयायी है, तो वह अभी भी मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चल रहा है और मसीह-विरोधियों का उत्तराधिकारी है। बाहर से वे बुद्धिमान और गुणी दिखते हैं, जिनमें कुछ बेहतर काबिलियत दिखती है, लेकिन उनका प्रकृति सार मसीह-विरोधियों वाला होता है—यह ऐसा ही है।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद सात : वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (भाग एक)

मसीह-विरोधियों की दुष्टता की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं? पहली यह है कि वे सकारात्मक चीजों को स्वीकार नहीं करते, वे स्वीकार नहीं करते कि सत्य जैसी कोई चीज है, और वे सोचते हैं कि उनकी विधर्मी भ्रांतियाँ और दुष्टतापूर्ण नकारात्मक चीजें ही सत्य हैं—यह मसीह-विरोधियों की दुष्टता की एक अभिव्यक्ति है। उदाहरण के लिए, कुछ लोग कहते हैं, “खुशियों की चाबी आपके अपने हाथ में होती है” और “केवल शक्ति होने पर ही सब कुछ मिल सकता है”—ये मसीह-विरोधियों के तर्क है। वे मानते हैं कि शक्ति के पीछे-पीछे ऐसे लोग आते हैं जो उनकी खुशामद और चापलूसी करते हैं, उपहार देते हैं और उनकी बेहद चाटुकारिता करते हैं, साथ ही उन्हें रुतबे के सभी प्रकार के लाभ मिलते हैं और सभी प्रकार के आनंद मिलते हैं; उनका विश्वास है कि शक्ति पा लेने के बाद उन्हें किसी के द्वारा आगे की ओर धकेले जाने की या किसी की अगुआई की जरूरत नहीं होगी, और वे दूसरों की अगुआई कर सकते हैं—यह उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता होती है। तुम उनके इस तरह के गुणा-भाग के बारे में क्या सोचते हो? क्या यह दुष्टता नहीं है? (हाँ, है।) मसीह-विरोधी सत्य के स्थान पर अपने शैतानी तर्क और विधर्मी भ्रांतियों का उपयोग करते हैं—यह उनकी दुष्टता का एक पहलू है। सबसे पहली बात यह है कि वे सत्य को स्वीकार नहीं करते, वे सकारात्मक चीजों का होना नहीं स्वीकारते, और वे सकारात्मक चीजों का सही होना नहीं स्वीकार करते। इसके अलावा, यद्यपि कुछ लोग स्वीकार करते हैं कि इस दुनिया में सकारात्मक चीजें और नकारात्मक चीजें हैं, पर वे सकारात्मक चीजों और सत्य के अस्तित्व को कैसे देखते हैं? वे अब भी इसे पसंद नहीं करते, वे जो जीवन चुनते हैं और परमेश्वर में अपने विश्वास में जिस मार्ग पर चलते हैं, वह सब नकारात्मक बना रहता है और सत्य के विपरीत होता है। वे केवल अपने हितों की रक्षा करते हैं। कोई चीज सकारात्मक हो या नकारात्मक, जब तक वह उनके हितों की रक्षा कर सकती है, तब तक वह ठीक है, यह सर्वोच्च है। क्या यह दुष्ट स्वभाव नहीं है? एक और पहलू है : इस तरह के दुष्ट सार वाले लोग स्वाभाविक रूप से परमेश्वर की विनम्रता और छिपे रहने की प्रवृत्ति, उसकी वफादारी और अच्छाई के प्रति तिरस्कार का भाव रखते हैं; वे स्वाभाविक रूप से इन सकारात्मक चीजों के प्रति अवमाननाकारी होते हैं। उदाहरण के लिए, मुझे देखो : क्या मैं बहुत साधारण नहीं हूँ? मैं साधारण हूँ, तुम यह कहने की हिम्मत क्यों नहीं करते? मैं खुद स्वीकार करती हूँ कि मैं साधारण हूँ। मैंने खुद को कभी असाधारण या महान नहीं माना। मैं बस एक साधारण व्यक्ति हूँ; मैंने हमेशा इस तथ्य को स्वीकार किया है और मैं इस तथ्य का सामना करने का साहस करता हूँ। मैं कोई “सुपरमैन” या कोई महान व्यक्ति नहीं बनना चाहता—यह कितना थकाऊ होगा! मैं जैसा साधारण व्यक्ति हूँ, उसे लोग नीची नजर से देखते हैं और हमेशा मेरे बारे में धारणाएँ पालते हैं। वास्तव में परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोग जब मेरे सामने आते हैं, तो मैं बाहर से कैसी भी दिखूँ, वे कुछ पवित्रता के भाव के साथ आते हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो मुझसे बहुत विनम्रता से बात करने के बावजूद अपने दिल में मेरे प्रति अवमाननाकारी रवैया रखते हैं और मैं उनके लहजे और उनके शरीर के हाव-भाव से यह बता सकती हूँ। यद्यपि कभी-कभी वे बहुत सम्मान करते दिखते हैं, लेकिन मैं उनसे जो भी कहती हूँ, उसका जवाब हमेशा “नहीं” में देते हैं, हमेशा मेरी बात को नकारते हैं। उदाहरण के लिए, मैं कहती हूँ कि आज मौसम बहुत गर्म है और वे कहते हैं, “नहीं, ऐसा नहीं है। कल बहुत गर्मी थी।” वे मेरी बात को नकारते हैं, है न? तुम उनसे चाहे जो कहो, वे हमेशा उसे नकारते हैं। क्या हमारे आस-पास ऐसे लोग नहीं हैं? (हाँ, हैं।) मैं कहती हूँ, “आज का खाना नमकीन है। क्या इसमें नमक ज्यादा है या सोया सॉस ज्यादा है?” और, वे कहते हैं, “दोनों में से कुछ भी नहीं। इसमें चीनी बहुत ज्यादा है।” मैं चाहे जो भी कहूँ, वे उसे नकारते हैं, इसलिए मैं कुछ और कहती ही नहीं, हम एकमत नहीं होते और हम अलग-अलग भाषा बोलते हैं। फिर कुछ ऐसे भी हैं जो जब मुझे परमेश्वर में आस्था के बारे में बात करते हुए सुनते हैं, तो कहते हैं, “तुम इस बारे में बात करने में माहिर हो, इसलिए मैं सुनूंगा।” लेकिन, अगर मैं किसी बाहरी चीज के बारे में थोड़ा-भी बोलती हूँ, तो वे आगे नहीं सुनना चाहते, जैसे मुझे बाहरी चीजों के बारे में कुछ भी पता न हो। ठीक है कि वे मेरी ओर ध्यान नहीं देते, तो मैं चुप रहना चाहती हूँ। मुझे जरूरत नहीं कि कोई मेरी ओर ध्यान दे, मैं बस वही करती हूँ जो मुझे करना चाहिए। मेरी अपनी जिम्मेदारियाँ हैं, और मेरा अपना जीवन जीने का तरीका है। मुझे बताओ कि लोगों के ये दृष्टिकोण क्या प्रदर्शित करते हैं? वे देखते हैं कि मैं एक महान या सक्षम व्यक्ति की तरह नहीं दिखती, और मैं एक साधारण व्यक्ति की तरह बोलती और काम करती हूँ, और इसलिए वे सोचते हैं, “तुम ईश्वर की तरह क्यों नहीं हो? मुझे देखो। अगर मैं ईश्वर होता, तो मैं बिल्कुल उनके जैसा होता।” यह परमेश्वर जैसा होने या न होने का मामला नहीं है। यह तो तुम्हारी मांग है कि मैं परमेश्वर जैसी बनूँ, मैंने कभी नहीं कहा कि मैं उसके जैसी हूँ, और मैंने कभी उसके जैसा बनना नहीं चाहा; मैं बस वही करती हूँ जो मुझे करना चाहिए। अगर मैं कहीं जाती हूँ और कुछ लोग मुझे नहीं पहचानते हैं, तो यह बहुत अच्छा है, क्योंकि इससे मैं परेशानी से बच जाती हूँ। देखो, प्रभु यीशु ने उस समय यहूदिया में बहुत-सी बातें कहीं और काम किया, और उसके अनुयायी शिष्यों का स्वभाव चाहे जितना भ्रष्ट क्यों न रहा हो, यीशु के प्रति उन लोगों का रवैया वैसा ही था जैसा मनुष्य का परमेश्वर के प्रति रवैया होता है—उनका रिश्ता सामान्य था। फिर भी कुछ लोग थे जो प्रभु यीशु के बारे में कहते थे, “क्या वह बढ़ई का बेटा नहीं है?” और यहाँ तक कि कुछ लोग जो लंबे समय तक उसका अनुसरण करते रहे, वे भी लगातार यही दृष्टिकोण अपनाए रहे। यह कुछ ऐसी बात है जिसका सामना देहधारी परमेश्वर को साधारण, सामान्य मनुष्य बनने में अक्सर करना पड़ता है, और यह एक सामान्य घटना है। कुछ लोग जब पहली बार मुझसे मिलते हैं तो बहुत उत्साही होते हैं, जब मैं जाती हूँ तो वे जमीन पर लेट जाते हैं और रोते हैं, लेकिन वास्तविक बातचीत के दौरान यह सब काम नहीं करता, और कई बार मुझे यह सहना पड़ता है। मुझे इसे क्यों सहना पड़ता है? क्योंकि कुछ लोग मूर्ख होते हैं, कुछ लोग सुसंस्कृत नहीं हो सकते, कुछ लोगों की सेवाकर्मियों के रूप में जरूरत होती है, और कुछ सभी तर्कों को अनसुना करने वाले होते हैं। इसलिए मुझे कभी-कभी यह सब सहना पड़ता है, और कभी-कभी कुछ ऐसे लोग होते हैं जिन्हें मैं अपने करीब नहीं आने देती; ये लोग बहुत ही घृणास्पद होते हैं और उनका स्वभाव विरोधी होता है। ... कुछ लोग जो कई वर्षों से परमेश्वर पर विश्वास करते आ रहे हैं, उनमें परमेश्वर के कार्य, देहधारी परमेश्वर और परमेश्वर द्वारा लोगों को बचाए जाने के बारे में कुछ अवधारणाएँ होनी चाहिए, फिर भी उनके हृदय परमेश्वर का भय मानने वाले बिल्कुल नहीं हैं। वे बिल्कुल गैर-विश्वासियों जैसे हैं और तनिक भी नहीं बदले हैं। मुझे बताओ, ये लोग क्या चीज हैं? वे जन्मजात शैतान हैं, परमेश्वर के दुश्मन हैं।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद सात : वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (भाग एक)

मसीह-विरोधियों को सकारात्मक चीजें पसंद नहीं होतीं, जिसका अर्थ है कि वे उनके प्रति शत्रुता रखते हैं और नकारात्मक चीजें पसंद करते हैं। नकारात्मक चीजों के कुछ उदाहरण क्या हैं? झूठ और चालबाजी—क्या ये नकारात्मक चीजें नहीं हैं? हाँ, झूठ और चालबाजी नकारात्मक चीजें हैं। तो, झूठ और चालबाजी का सकारात्मक प्रतिरूप क्या है? (ईमानदारी।) ठीक कहा, यह ईमानदारी है। क्या शैतान को ईमानदारी पसंद है? (नहीं।) उसे चालबाजी पसंद है। परमेश्वर की मनुष्यों से सबसे पहली अपेक्षा क्या होती है? परमेश्वर कहता है, “यदि तुम मुझ पर विश्वास करना चाहते हो और मेरा अनुसरण करना चाहते हो, तो तुम्हें सबसे पहले किस तरह का व्यक्ति होना चाहिए?” (एक ईमानदार व्यक्ति।) तो, शैतान लोगों को सबसे पहले क्या करना सिखाता है? झूठ बोलना। मसीह-विरोधियों की दुष्ट प्रकृति का पहला प्रमाण क्या है? (चालबाजी।) हाँ, मसीह-विरोधियों को चालबाजी पसंद है, उन्हें झूठ पसंद है, और ईमानदारी से उन्हें अरुचि और घृणा है। यद्यपि, ईमानदारी सकारात्मक चीज है, लेकिन वे इसे पसंद नहीं करते, और इसके बजाय वे ईमानदारी के प्रति विकर्षण और घृणा महसूस करते हैं। इसके विपरीत, उन्हें चालाकी और झूठ पसंद है। यदि कोई मसीह-विरोधियों के सामने अक्सर सत्यवादन करते हुए कुछ ऐसा कहता है कि “तुम्हें रुतबेदार स्थिति में काम करना पसंद है, और कभी-कभी तुम आलस्य करते हो,” तो मसीह-विरोधियों को यह कैसा लगता है? (वे इसे स्वीकार नहीं करते।) इसे स्वीकार न करना उनके रवैयों में से एक है, लेकिन क्या बस इतना ही है? सत्यवादन करने वाले इस व्यक्ति के प्रति उनका रवैया क्या होता है? वे विकर्षण महसूस करते हैं, और उन्हें पसंद नहीं करते। कुछ मसीह-विरोधी भाई-बहनों से कहते हैं, “मैं पिछले कुछ समय से तुम्हारी अगुआई कर रहा हूँ। कृपया तुम सब मेरे बारे में अपनी राय बताओ।” हर व्यक्ति सोचता है, “क्योंकि तुम इतनी ईमानदारी से पूछ रहे हो, इसलिए हम तुम्हें प्रतिक्रिया देंगे।” कुछ कहते हैं, “तुम जो कुछ भी करते हो, वह तुम बहुत गंभीरता और मेहनत से करते हो, और तुमने बहुत से कष्ट सहे हैं। हमारे लिए यह देखना मुश्किल है, और हम तुम्हारे लिए व्यथित महसूस करते हैं। परमेश्वर के घर को तुम्हारे जैसे और अगुआओं की जरूरत है! अगर कोई कमी बतानी हो, तो वह यह है कि तुम बहुत गंभीर और मेहनती हो। अगर तुम बहुत ज्यादा काम करोगे और चुक जाओगे, तो काम करना जारी नहीं रख सकोगे, और क्या तब हमारा काम तमाम नहीं हो जाएगा? हमारी अगुआई कौन करेगा?” जब मसीह-विरोधी यह सुनते हैं, तो वे प्रसन्न हो जाते हैं। वे जानते हैं कि यह झूठ है, कि ये लोग उनसे फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन वे यही सुनना चाहते हैं। वास्तव में, ऐसा कहने वाले लोग इन मसीह-विरोधियों को मूर्ख बना रहे होते हैं, लेकिन ये मसीह-विरोधी इन शब्दों की वास्तविक प्रकृति को प्रकट करने के बजाय मूर्ख बनना पसंद करते हैं। मसीह-विरोधियों को ऐसे लोग पसंद होते हैं जो इस तरह से उनके तलवे चाटते हैं। ये लोग मसीह-विरोधियों की गलतियों, भ्रष्ट स्वभाव या कमियों को सामने नहीं लाते। इसके बजाय, वे गुप्त रूप से उनकी प्रशंसा करते हैं और उन्हें ऊंचा उठाते हैं। भले ही यह स्पष्ट हो कि उनके शब्द झूठे और चापलूसी-भरे हैं, मसीह-विरोधी इन शब्दों को खुशी-खुशी स्वीकार करते हैं, उनसे सांत्वना और प्रसन्नता पाते हैं। मसीह-विरोधियों के लिए ये शब्द उत्तम व्यंजनों का स्वाद लेने से बेहतर हैं। इन शब्दों को सुनने के बाद वे फूले नहीं समाते। यह क्या बताता है? यह बताता है कि मसीह-विरोधियों के भीतर एक ऐसा स्वभाव है जो झूठ को पसंद करता है। मान लो कोई उनसे कहता है, “तुम बहुत घमंडी हो, और तुम लोगों के साथ अनुचित व्यवहार करते हो। तुम उन लोगों के साथ अच्छे हो जो तुम्हारा समर्थन करते हैं, लेकिन अगर कोई तुमसे दूर रहता है या तुम्हारी चापलूसी नहीं करता, तो तुम उसे नीचा दिखाते हो और उसकी उपेक्षा करते हो।” क्या ये शब्द सच नहीं हैं? (हाँ, ये सच हैं।) यह बात सुनने के बाद मसीह-विरोधी कैसा महसूस करते हैं? वे अप्रसन्न हो जाते हैं। वे ऐसी बातें सुनना नहीं चाहते, और उन्हें स्वीकार नहीं कर सकते। वे स्पष्टीकरण देने और चीजों को शांत करने के लिए बहाने और कारण खोजने की कोशिश करते हैं। जहाँ तक उन लोगों की बात है जो व्यक्तिगत रूप से मसीह-विरोधियों की लगातार चापलूसी करते हैं, जो हमेशा उनकी प्रशंसा में परोक्ष रूप से मधुर शब्द बोलते हैं, और यहाँ तक कि अपने शब्दों से उन्हें स्पष्ट रूप से धोखा देते हैं, मसीह-विरोधी कभी भी उन लोगों की जाँच नहीं करते हैं। इसके बजाय, मसीह-विरोधी उनका उपयोग महत्वपूर्ण व्यक्तियों के रूप में करते हैं। वे हमेशा झूठ बोलने वालों को महत्वपूर्ण पदों पर रखते हैं, उन्हें कुछ महत्वपूर्ण और सम्मानजनक कर्तव्य सौंपते हैं, जबकि हमेशा ईमानदारी से बोलने वालों और अक्सर मुद्दों की सूचना देने वालों को कम महत्व के पदों पर रखने की व्यवस्था करते हैं, जिससे उन्हें उच्च अगुआओं तक पहुँचने या अधिकांश लोगों को उनके बारे में जानने या उनके करीब होने से रोका जा सके। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि ये लोग कितने प्रतिभाशाली हैं या वे परमेश्वर के घर में क्या कर्तव्य कर सकते हैं—मसीह-विरोधी इन सारी बातों की अनदेखी करते हैं। वे केवल इस बात की परवाह करते हैं कि कौन छल-प्रपंच कर सकता है और कौन उनके लिए फायदेमंद है; ये वे लोग हैं जिन्हें वे परमेश्वर के घर के हितों पर जरा भी विचार किए बिना महत्वपूर्ण पदों पर रखते हैं।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद सात : वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (भाग दो)

मसीह-विरोधियों को झूठ और छल-प्रपंच पसंद है—उन्हें और क्या पसंद है? उन्हें चालें, योजनाएँ और षड्यंत्र पसंद हैं। वे शैतान के दर्शन के अनुसार काम करते हैं, कभी सत्य की खोज नहीं करते, पूरी तरह से झूठ और चालबाजी पर निर्भर करते हुए योजनाएँ और षड्यंत्र काम में लाते हैं। तुम चाहे जितनी स्पष्टता से सत्य की संगति करो, भले ही वे स्वीकृति में सिर हिलाएँ, पर वे सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य नहीं करेंगे। इसके बजाय, वे अपने दिमाग दौड़ाएंगे और योजनाओं तथा षड्यंत्र का उपयोग करते हुए काम करेंगे। इससे फर्क नहीं पड़ता कि तुम कितनी स्पष्टता से सत्य पर संगति करते हो, ऐसा लगता है कि वे इसे समझ नहीं सकते; वे चीजों को बस वैसे ही करते हैं जैसे करने के वे इच्छुक हैं, जैसे वे उन्हें करना चाहते हैं, और जो भी तरीका उनके अपने स्वार्थ के अनुरूप है। वे चिकनी-चुपड़ी बातें करते हैं, अपना असली चेहरा और असली रंग छिपाते हैं, लोगों को बेवकूफ बनाते हैं और छलते हैं, और जब दूसरे लोग उनके झांसे में आ जाते हैं, तो वे खुशी महसूस करते हैं, और उनकी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ पूरी हो जाती हैं। मसीह विरोधियों का यह तरीका और रवैया हमेशा बना रहता है। जहाँ तक उन ईमानदार लोगों की बात है जो बातचीत में सीधे-सच्चे होते हैं, जो ईमानदारी से बोलते हैं और अपनी नकारात्मकता, कमजोरी और विद्रोही अवस्थाओं के बारे में खुले तौर पर संगति करते हैं, और दिल से बोलते हैं, तो मसीह-विरोधी उनसे अंदर से घृणा करते हैं और उनके साथ भेदभाव करते हैं। उन्हें ऐसे लोग पसंद होते हैं जो उनकी ही तरह कुटिल और धोखा देने वाले अंदाज में बात करते हैं और सत्य का पालन नहीं करते। जब वे ऐसे लोगों से मिलते हैं, तो उनका हृदय प्रसन्न हो जाता है, जैसे उन्हें उनके जैसा ही कोई मिल गया हो। तब, वे इस बात की चिंता नहीं करते कि दूसरे लोग उनसे बेहतर हैं या उनकी पहचान करने में सक्षम हैं। क्या यह मसीह-विरोधियों की दुष्ट प्रकृति की अभिव्यक्ति नहीं है? क्या इससे यह प्रदर्शित नहीं हो सकता कि वे दुष्ट हैं? (हाँ, इससे प्रदर्शित हो सकता है।) ये मामले क्यों विस्तारपूर्वक बता सकते हैं कि मसीह-विरोधी दुष्ट होते हैं? सकारात्मक चीजें और सत्य वे चीजें हैं जिनसे किसी भी अंतरात्मा से युक्त तर्कसंगत सृजित प्राणी को प्रेम करना चाहिए। परंतु, जब मसीह-विरोधियों की बात आती है, तो वे इन सकारात्मक चीजों को गले की फाँस या बगल में धँसा काँटा मानते हैं। जो कोई भी इन चीजों का पालन करता है या अभ्यास करता है, वह उनका दुश्मन बन जाता है, और वे ऐसे लोगों को शत्रुभाव से देखते हैं। क्या यह अय्यूब के प्रति शैतान की शत्रुता की प्रकृति से मिलता-जुलता नहीं है? (हाँ, ऐसा है।) यह वही प्रकृति, वही स्वभाव और वही सार है। मसीह विरोधियों की प्रकृति शैतान से उत्पन्न होती है, और वे शैतान की ही श्रेणी में आते हैं। इसलिए, मसीह विरोधी शैतान के साथी होते हैं। क्या यह कथन अतिशयोक्तिपूर्ण है? बिल्कुल नहीं; यह पूरी तरह से सही है। क्यों? क्योंकि मसीह विरोधियों को सकारात्मक चीजों से प्रेम नहीं होता। उन्हें छल-कपट में शामिल होने में मजा आता है, वे झूठ, भ्रामक दिखावों और फरेबों को पसंद करते हैं। अगर कोई उनका असली चेहरा उजागर करे, तो क्या वे समर्पण कर सकते हैं और इसे खुशी-खुशी स्वीकार कर सकते हैं? न केवल वे इसे स्वीकार नहीं कर सकते, बल्कि वे गाली-गलौज पर उतर आएँगे। सच बोलने वाले या उनका असली चेहरा उजागर करने वाले लोग उन्हें बहुत क्रोधित कर देते हैं और वे आगबबूला हो उठते हैं। उदाहरण के लिए, कोई मसीह-विरोधी ऐसा हो सकता है जो दिखावा करने में बहुत कुशल हो। हर कोई उसे अच्छे व्यक्ति के रूप में देखता है : प्यार करने वाला, लोगों के साथ सहानुभूति जता सकने वाला, दूसरों की कठिनाइयाँ समझने में सक्षम, और अक्सर कमजोर तथा नकारात्मक स्थिति वाले लोगों को समर्थन और मदद देने वाला व्यक्ति। जब भी दूसरों को कोई कठिनाई होती है, तो वे उनका ध्यान रखने और उन्हें छूट देने में सक्षम होते हैं। लोगों के हृदय में इस मसीह-विरोधी का मान परमेश्वर से भी ज्यादा होता है। खुद को गुणवान व्यक्ति के रूप में पेश करने वाले इस व्यक्ति के ढोंग और धोखेबाजी को यदि तुम उजागर करते हो, यदि तुम उसे तथ्य बताते हो, तो क्या वह इसे स्वीकार कर सकता है? न केवल वह इसे अस्वीकार करेगा, बल्कि वह अपने ढोंग और फरेब को और भी बढ़ा देगा। ... हम क्यों कहते हैं कि मसीह-विरोधी दुष्ट हैं? मसीह विरोधियों की दुष्टता इस तथ्य में निहित है कि जब वे कुछ ऐसा सुनते हैं जो सही हो, तो वे न केवल उसे स्वीकार करने में असमर्थ होते हैं, बल्कि इसके उलट, वे उससे नफरत करते हैं। इसके अतिरिक्त, वे अपने तरीके अपनाते हुए अपने बचाव और स्पष्टीकरण के लिए बहाने, कारण और विभिन्न वस्तुनिष्ठ कारकों की तलाश करते हैं। वे किस उद्देश्य को प्राप्त करना चाहते हैं? वे नकारात्मक चीजों को सकारात्मक में और सकारात्मक चीजों को नकारात्मक में बदलने का लक्ष्य रखते हैं—वे स्थिति को उलटना चाहते हैं। क्या यह दुष्टता नहीं है? वे सोचते हैं, “तुम चाहे जितने सही हो, या तुम्हारे शब्द सत्य के कितने भी अनुरूप हों, क्या तुम मेरी वाक्पटुता के सामने टिक सकते हो? भले ही मैं जो भी शब्द बोलता हूँ वे साफ तौर पर झूठे, धोखा देने वाले और भ्रामक होते हैं, फिर भी मैं तुम्हारी बातों का खंडन करूँगा और उनकी निंदा करूँगा।” क्या यह दुष्टता नहीं है? यह सच में दुष्टता है। क्या तुम सोचते हो कि मसीह-विरोधी जब अच्छे लोगों को देखते हैं, तो उन्हें अपने दिल में ईमानदार नहीं मानते? वे उन्हें ईमानदार और सत्य का अनुसरण करने वाला ही मानते हैं, लेकिन ईमानदारी और सत्य का अनुसरण करने की उनकी परिभाषा क्या है? वे सोचते हैं कि ईमानदार लोग मूर्ख होते हैं। वे सत्य के अनुसरण से विकर्षित होते हैं, घृणा करते हैं, और उसके प्रति शत्रुता रखते हैं। वे इसे झूठ मानते हैं और सोचते हैं कि कोई भी इतना मूर्ख नहीं हो सकता कि सत्य के अनुसरण में सब कुछ त्याग दे, किसी से कुछ भी कह दे, और सब कुछ परमेश्वर को सौंप दे। कोई भी इतना मूर्ख नहीं होता। उन्हें लगता है कि ये सभी कार्य झूठे हैं, और वे इनमें से किसी पर विश्वास नहीं करते। क्या मसीह-विरोधी यह विश्वास करते हैं कि परमेश्वर सर्वशक्तिमान और धार्मिक है? (वे ऐसा नहीं मानते।) इसलिए, वे अपने मन में इन सभी बातों पर प्रश्नचिह्न लगाते हैं। इसका निहितार्थ क्या है? हम प्रश्नचिह्नों के इस ढेर की व्याख्या कैसे करें? वे केवल संदेह या सवाल ही नहीं करते; अंत में, वे इसे अस्वीकार भी करते हैं और स्थिति को उलटने का लक्ष्य रखते हैं। स्थिति को उलटने से मेरा क्या मतलब है? वे सोचते हैं, “इतना न्यायोचित होने का क्या फायदा? अगर झूठ को हजार बार दोहराएँ, तो वह सच हो जाता है। अगर कोई भी सच नहीं बोलता, तो वह सच नहीं रह जाता और उसका कोई फायदा नहीं है—वह सिर्फ झूठ है!” क्या यह सही को गलत और गलत को सही करना नहीं है? यह शैतान की दुष्टता है—तथ्यों को विकृत करना और सही को गलत और गलत को सही करना—यही उन्हें पसंद है। मसीह-विरोधी ढोंग और छल-कपट में माहिर होते हैं। वे जिस चीज में माहिर होते हैं, वह बेशक उनके मूल में निहित है, और जो उनके मूल में निहित है, वह ठीक वही है जो उनके प्रकृति सार में है। इससे भी बढ़कर, यह वही है जिसकी उन्हें लालसा है और जिससे उन्हें प्यार है, और यही उनके दुनिया में जीवित रहने का भी नियम है। वे ऐसी कहावतों पर विश्वास करते हैं कि “अच्छे लोग कम उम्र में ही मर जाते हैं, जबकि बुरे लोग लंबी उम्र तक जीते हैं,” “हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए,” “किसी व्यक्ति की नियति उसी के हाथ में होती है,” “मनुष्य प्रकृति को जीत लेगा,” इत्यादि। क्या इनमें से कोई भी कथन मानवता या प्राकृतिक नियमों के अनुरूप है जिसे सामान्य लोग समझ सकें? एक भी नहीं। तो मसीह-विरोधी शैतान की इन शैतानी बातों को इतना ज्यादा पसंद कैसे कर सकते हैं और उनसे अपने आदर्श-वाक्य की तरह कैसे पेश आ सकते हैं? केवल इतना ही कहा जा सकता है कि ऐसा इसलिए है कि उनकी प्रकृति बहुत दुष्ट है।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद सात : वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (भाग दो)

मसीह-विरोधी अपने अंतर्निहित दुष्ट स्वभाव के कारण कभी सीधे-सीधे बात या काम नहीं करते। वे चीजों को ईमानदार रवैये और निष्ठा से नहीं सँभालते या ईमानदार शब्दों में बात और हृदयस्पर्शी रवैये से काम नहीं करते। जो कुछ भी वे कहते या करते हैं, वह बेबाक नहीं होता, बल्कि घुमावदार और लुका-छिपा होता है, और वे कभी अपने विचार या प्रयोजन सीधे तौर पर व्यक्त नहीं करते। चूँकि वे मानते हैं कि अगर वे उन्हें व्यक्त करेंगे, तो उन्हें पूरी तरह से समझ और जान लिया जाएगा, उनकी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ प्रकाश में उजागर हो जाएँगी और वे दूसरे लोगों के बीच उच्च या कुलीन नहीं माने जाएँगे या दूसरे उनका आदर और आराधना नहीं करेंगे; इसलिए वे हमेशा अपने बदनाम उद्देश्य और इच्छाएँ ढकने-छिपाने की कोशिश करते हैं। तो वे कैसे बोलते और काम करते हैं? वे विभिन्न तरीके इस्तेमाल करते हैं। जैसी कि गैर-विश्वासियों के बीच कहावत है, “स्थिति का पता लगाना,” मसीह-विरोधी भी ऐसा ही नजरिया अपनाते हैं। जब वे कुछ करना चाहते हैं और उनका कोई खास दृष्टिकोण या रवैया होता है, तो वे उसे कभी सीधे तौर पर व्यक्त नहीं करते; बल्कि वे कुछ खास तरीके इस्तेमाल करते हैं, जैसे कि धूर्ततापूर्ण या पूछताछ करने वाले तरीके या लोगों से बातें निकालकर वह जानकारी जुटाना जो वे चाहते हैं। अपने दुष्ट स्वभाव के कारण मसीह-विरोधी कभी सत्य नहीं खोजते, न ही वे उसे समझना चाहते हैं। उनकी एकमात्र चिंता अपनी प्रसिद्धि, लाभ और हैसियत को लेकर होती है। वे उन गतिविधियों में लिप्त होते हैं जो उन्हें प्रसिद्धि, लाभ और हैसियत दे सकती हो, और उनसे बचते हैं जो ऐसी चीजें नहीं देतीं। वे प्रतिष्ठा, हैसियत, अलग पहचान और महिमा से संबंधित गतिविधियों में उत्सुकता से शामिल होते हैं, जबकि उन चीजों से बचते हैं जो कलीसिया के काम की रक्षा करती हों या दूसरों को नाराज कर सकती हों। इसलिए मसीह-विरोधी किसी भी चीज को खोज के रवैये से नहीं देखते; बल्कि वे परीक्षा लेने के तरीके का इस्तेमाल चीजों का पता लगाने के लिए करते हैं और फिर यह तय करते हैं कि आगे बढ़ना है या नहीं—मसीह-विरोधी इतने चालाक और दुष्ट होते हैं। उदाहरण के लिए, जब वे यह जानना चाहते हैं कि परमेश्वर की नजर में वे कैसे व्यक्ति हैं, तो वे खुद को जानने के द्वारा परमेश्वर के वचनों के माध्यम से अपना आकलन नहीं करते। इसके बजाय वे चारों ओर पूछताछ करते हैं और निहित भाषणों को सुनते हैं, अगुआओं और ऊपर वाले के लहजे और रवैये को देखते हैं, और परमेश्वर के वचनों में यह देखते हैं कि परमेश्वर उनके जैसे लोगों के परिणाम कैसे निर्धारित करता है। वे इन मार्गों और तरीकों का उपयोग यह देखने के लिए करते हैं कि वे परमेश्वर के घर में किस स्थिति में हैं और यह पता लगाते हैं कि उनका भावी परिणाम क्या होगा। क्या इसमें किसी तरह की परीक्षा लेना शामिल नहीं है? उदाहरण के लिए, जब कुछ लोगों की काट-छाँट की जाती है, तो उसके बाद वे यह जाँच-पड़ताल करने के बजाय कि उनकी काट-छाँट क्यों की गई, अपने क्रियाकलापों के दौरान उनके द्वारा प्रकट किए गए भ्रष्ट स्वभावों और गलतियों की जाँच-पड़ताल क्यों की गई, और खुद को जानने और अपने पिछले दोष सुधारने के लिए उन्हें सत्य के कौन-से पहलू खोजने चाहिए, वे अपने प्रति ऊपर वाले के वास्तविक रवैये का पता लगाने के लिए अप्रत्यक्ष साधनों का उपयोग करके दूसरों पर झूठी छाप छोड़ते हैं। उदाहरण के लिए, काट-छाँट किए जाने के बाद वे जल्दी से एक महत्वहीन मुद्दा उठाकर उससे ऊपर वाले को खोजते हैं, यह देखने के लिए कि ऊपर वाले का लहजा कैसा है, क्या वह धैर्यवान है, क्या जो सवाल वे पूछ रहे हैं उनका गंभीरता से जवाब दिया जाएगा, क्या वह उनके प्रति नरम रवैया अपनाएगा, क्या वह उन्हें काम सौंपेंगा, क्या वह अब भी उनका सम्मान करेगा, और ऊपर वाला वास्तव में उनके द्वारा पहले की गई गलतियों के बारे में क्या सोचता है। ये सभी नजरिये एक तरह से परीक्षा लेना है। संक्षेप में, जब वे ऐसी परिस्थितियों का सामना करते हैं और ये अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हैं, तो क्या लोग अपने दिल में इसे जानते हैं? (हाँ, वे जानते हैं।) तो जब तुम जानते हो और ये चीजें करना चाहते हो, तो तुम लोग इसे कैसे सँभालते हो? पहले, सबसे सरल स्तर पर, क्या तुम अपने खिलाफ विद्रोह कर सकते हो? समय आने पर कुछ लोगों को अपने खिलाफ विद्रोह करना चुनौतीपूर्ण लगता है; वे इस पर सोचते हैं, “इसे भूल जाओ, इस बार यह मेरे आशीषों और परिणाम से संबंधित है। मैं अपने खिलाफ विद्रोह नहीं कर सकता। अगली बार करूँगा।” जब अगली बार आता है और वे फिर से अपने आशीषों और परिणाम से जुड़े किसी मुद्दे का सामना करते हैं, तो तब भी वे खुद को अपने खिलाफ विद्रोह करने में असमर्थ पाते हैं। ऐसे व्यक्तियों में जमीर होता है और हालाँकि उनमें मसीह-विरोधी का स्वभाव-सार नहीं होता, फिर भी यह उनके लिए काफी परेशानी भरा और खतरनाक होता है। दूसरी ओर, मसीह-विरोधी अक्सर ये विचार मन में रखते हैं और ऐसी अवस्था में रहते हैं, लेकिन वे कभी अपने खिलाफ विद्रोह नहीं करते, क्योंकि उनमें जमीर नहीं होता। अगर कोई उनकी अवस्थाएँ इंगित करते हुए उनकी काँट-छाँट करता भी है, तो भी वे डटे रहकर अपने खिलाफ बिल्कुल भी विद्रोह नहीं करेंगे, न ही वे इसके कारण खुद से घृणा करेंगे या इस अवस्था को छोड़कर इसका समाधान ही करेंगे। बर्खास्त किए जाने के बाद कुछ मसीह-विरोधी सोचते हैं, “बर्खास्त होना एक सामान्य बात लगती है, लेकिन कुछ हद तक अपमानजनक महसूस होती है। हालाँकि यह कोई महत्वपूर्ण बात नहीं है, लेकिन एक निर्णायक चीज है जिसे मैं नहीं छोड़ सकता। अगर मुझे बर्खास्त कर दिया जाता है, तो क्या इसका मतलब यह है कि परमेश्वर का घर अब मुझे विकसित नहीं करेगा? फिर मैं परमेश्वर की नजर में किस तरह का व्यक्ति रहूँगा? क्या मेरे पास अभी भी आशा होगी? क्या मैं अभी भी परमेश्वर के घर में किसी काम का रहूँगा?” वे इस पर विचार कर एक योजना बनाते हैं, “मेरे पास दस हजार युआन हैं और अब उनका उपयोग करने का समय है। मैं ये दस हजार युआन चढ़ावे के रूप में अर्पित कर देखूँगा कि क्या मेरे प्रति ऊपरवाले का रवैया थोड़ा बदल सकता है और क्या वह मेरे प्रति कुछ अनुग्रह दिखा सकता है। अगर परमेश्वर का घर पैसे स्वीकार कर लेता है, तो इसका मतलब है कि मेरे पास अभी भी आशा है। अगर वह पैसे अस्वीकार कर देता है, तो यह साबित होता है कि मेरे पास कोई आशा नहीं है और मैं अन्य योजनाएँ बनाऊँगा।” यह किस तरह का नजरिया है? यह परीक्षा लेना है। संक्षेप में, परीक्षा लेना दुष्ट स्वभाव-सार की अपेक्षाकृत स्पष्ट अभिव्यक्ति है। लोग इच्छित जानकारी प्राप्त करने, निश्चितता प्राप्त करने और फिर मन की शांति प्राप्त करने के लिए विभिन्न साधनों का उपयोग करते हैं। परीक्षा लेने के कई तरीके हैं, जैसे कि परमेश्वर से बातें उगलवाने के लिए शब्दों का उपयोग करना, उसकी परीक्षा लेने के लिए चीजों का उपयोग करना, अपने मन में चीजों के बारे में सोचना और उन पर विचार करना। परमेश्वर की परीक्षा लेने का तुम लोगों का सबसे आम तरीका क्या है? (कभी-कभी परमेश्वर से प्रार्थना करते समय मैं अपने प्रति परमेश्वर के रवैये की जाँच-पड़ताल करता हूँ और देखता हूँ कि मेरे दिल में शांति है या नहीं। मैं परमेश्वर की परीक्षा लेने के लिए इस तरीके का उपयोग करता हूँ।) इस तरीके का उपयोग काफी आम है। एक और तरीका यह देखना है कि सभा में संगति के दौरान किसी के पास कहने के लिए कुछ है या नहीं, परमेश्वर प्रबुद्धता या रोशनी प्रदान करता है या नहीं, और इसका यह जाँच-पड़ताल करने के लिए उपयोग करना कि क्या परमेश्वर अभी भी उनके साथ है, क्या वह अभी भी उनसे प्रेम करता है। साथ ही, अपना कर्तव्य निभाने के दौरान यह देखना कि क्या परमेश्वर उन्हें प्रबुद्धता देता है या उनका मार्गदर्शन करता है, क्या उनके कोई विशेष विचार, भाव या अंतर्दृष्टियाँ हैं—इनका यह जाँच करने के लिए उपयोग करना कि परमेश्वर का उनके प्रति कैसा रवैया है। ये सभी तरीके काफी आम हैं। और कुछ? (अगर मैंने प्रार्थना में परमेश्वर के सामने कोई संकल्प लिया है लेकिन उसे पूरा करने में विफल रहता हूँ, तो मैं देखता हूँ कि क्या परमेश्वर मेरे साथ मेरी शपथ के अनुसार व्यवहार करेगा।) यह भी एक तरह का तरीका है। परमेश्वर के साथ पेश आने के लिए लोग चाहे किसी भी तरीके का उपयोग करें, अगर उनके मन में इसके बारे में अपराध-बोध होता है और फिर वे इन क्रियाकलापों और स्वभावों के बारे में ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं और तुरंत उन्हें बदल सकते हैं, तो फिर समस्या उतनी महत्वपूर्ण नहीं है—यह एक सामान्य भ्रष्ट स्वभाव है। लेकिन अगर कोई लगातार और हठपूर्वक ऐसा कर सकता है, भले ही उसे पता हो कि यह गलत है और परमेश्वर को इससे घृणा है, लेकिन वह इसमें लगा रहता है, कभी इसके विरुद्ध विद्रोह नहीं करता या इसे छोड़ता नहीं, तो यह मसीह-विरोधी का सार है। मसीह-विरोधी का स्वभाव-सार साधारण लोगों से अलग होता है, जिसमें वे कभी आत्मचिंतन नहीं करते या सत्य नहीं खोजते, बल्कि लगातार और हठपूर्वक परमेश्वर, लोगों के प्रति उसके रवैये, किसी व्यक्ति के बारे में उसके निष्कर्ष और किसी व्यक्ति के अतीत, वर्तमान और भविष्य के बारे में उसके विचारों और भावों की परीक्षा लेने के लिए विभिन्न तरीकों का उपयोग करते हैं। वे कभी परमेश्वर के इरादे, सत्य और खास तौर से यह नहीं खोजते कि अपने स्वभाव में बदलाव लाने के लिए सत्य के प्रति कैसे समर्पित हों। उनके तमाम क्रियाकलापों के पीछे का उद्देश्य परमेश्वर के विचारों और भावों की जाँच-पड़ताल करना है—यह मसीह-विरोधी है। मसीह-विरोधियों का यह स्वभाव स्पष्ट रूप से दुष्ट होता है। जब वे इन क्रियाकलापों में संलग्न होते हैं और ये अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हैं, तो उनमें अपराध-बोध या पश्चात्ताप का नामोनिशाँ तक नहीं होता। अगर वे खुद को इन चीजों से जोड़ते भी हैं, तो भी वे कोई पश्चात्ताप या रुकने का इरादा नहीं दिखाते, बल्कि तब भी अपने तौर-तरीकों पर कायम रहते हैं। परमेश्वर के प्रति उनके व्यवहार, रवैये और उनके नजरिये से यह स्पष्ट हो जाता है कि वे परमेश्वर को अपना विरोधी मानते हैं। उनके विचारों और दृष्टिकोणों में परमेश्वर को जानने, परमेश्वर से प्रेम करने, परमेश्वर के प्रति समर्पित होने या परमेश्वर का भय मानने का कोई विचार या रवैया नहीं होता; वे सिर्फ परमेश्वर से इच्छित जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं और अपने प्रति परमेश्वर का सटीक रवैया और अपने बारे में उसकी परिभाषा सुनिश्चित करने के लिए अपने ही तरीके और साधन इस्तेमाल करते हैं। ज्यादा गंभीर बात यह है कि भले ही वे अपने दृष्टिकोण परमेश्वर के प्रकाशन के वचनों के अनुरूप रखते हों, अगर उन्हें इस बात की थोड़ी-सी भी जानकारी हो कि यह व्यवहार परमेश्वर को घृणास्पद लगता है और किसी व्यक्ति को ऐसा नहीं करना चाहिए, तो भी वे इसे कभी नहीं छोड़ेंगे।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, प्रकरण छह : मसीह-विरोधियों के चरित्र और उनके स्वभाव सार का सारांश (भाग तीन)

मसीह-विरोधियों के दुष्ट सार की सबसे सामान्य अभिव्यक्ति यह है कि वे दिखावे और पाखंड में विशेष रूप से अच्छे होते हैं। अपने विशेष रूप से शातिर, कपटी, निर्दयी और अहंकारी स्वभाव के बावजूद वे खुद को बाहरी तौर पर विशेष रूप से विनम्र और सौम्य व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करते हैं। क्या यह दिखावा नहीं है? ये लोग अपने दिलों में प्रतिदिन यह सोचते हुए चिंतन करते हैं, “खुद को ज्यादा ईसाई, ज्यादा ईमानदार, ज्यादा आध्यात्मिक, ज्यादा दायित्व उठाने वाला और ज्यादा अगुआ-जैसा दिखाने के लिए मुझे कैसे कपड़े पहनने चाहिए? मुझे कैसे खाना चाहिए, ताकि लोगों को लगे कि मैं काफी परिष्कृत, शिष्ट, प्रतिष्ठित और नेक हूँ? अगुआई और करिश्मे का आभास देने, साधारण व्यक्ति के बजाय एक असाधारण व्यक्ति की तरह दिखने के लिए मुझे चलने की कौन-सी मुद्रा अपनानी चाहिए? दूसरों के साथ बातचीत में कौन-सा लहजा, शब्दावली, रूप और चेहरे के हाव-भाव लोगों को यह महसूस करा सकते हैं कि मैं उच्च वर्ग का हूँ, एक सामाजिक अभिजात वर्ग या उच्च श्रेणी के बुद्धिजीवी जैसा हूँ? मेरा पहनावा, शैली, बोल-चाल और व्यवहार कैसे लोगों से मुझे उच्च सम्मान कैसे दिला सकते हैं, कैसे उन पर एक अमिट छाप छोड़ सकते हैं और यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि मैं हमेशा उनके दिलों में बना रहूँ? लोगों के दिल जीतने और उनमें गर्मजोशी भरने और एक स्थायी छाप छोड़ने के लिए मुझे क्या कहना चाहिए? मुझे दूसरों की मदद करने और उनके बारे में अच्छी बातें करने का काम और ज्यादा करना चाहिए, लोगों के सामने अक्सर परमेश्वर के वचनों के बारे में बात करनी चाहिए और कुछ आध्यात्मिक शब्दावली का इस्तेमाल करना चाहिए, दूसरों को परमेश्वर के वचन और ज्यादा पढ़कर सुनाने चाहिए, उनके लिए ज्यादा प्रार्थना करनी चाहिए, धीमी आवाज में बोलना चाहिए ताकि लोग उत्सुक होकर मेरी बात सुनें, और उन्हें यह महसूस कराना चाहिए कि मैं कोमल, देखभाल करने वाला, प्रेमपूर्ण, उदार और क्षमाशील हूँ।” क्या यह दिखावा नहीं है? ये वे विचार हैं जो मसीह-विरोधियों के दिलों पर कब्जा किए रहते हैं। उनके विचारों को कुछ और नहीं, बल्कि गैर-विश्वासियों की प्रवृत्तियाँ भरती हैं, जो पूरी तरह से यह दर्शाता है कि उनके विचार और दृष्टिकोण दुनिया और शैतान से संबंधित हैं। कुछ लोग अकेले में वेश्या या बदचलन महिला की तरह कपड़े पहन सकते हैं; उनके कपड़े विशेष रूप से बुरी प्रवृत्तियों के अनुरूप और खास तौर से फैशनेबल होते हैं। लेकिन जब वे कलीसिया में आते हैं, तो भाई-बहनों के बीच वे पूरी तरह से अलग पोशाक पहनते और चाल-ढाल अपनाते हैं। क्या वे दिखावा करने में बेहद माहिर नहीं हैं? (बिल्कुल हैं।) मसीह-विरोधी अपने दिलों में जो सोचते हैं, जो वे करते हैं, उनकी विभिन्न अभिव्यक्तियाँ और जो स्वभाव वे प्रकट करते हैं, वे सभी स्पष्ट करते हैं कि उनका स्वभाव-सार दुष्ट है। मसीह-विरोधी सत्य, सकारात्मक चीजों, सही मार्ग या परमेश्वर की अपेक्षाओं पर विचार नहीं करते। उनके विचार और उनके द्वारा चुने जाने वाले नजरिये, तरीके और लक्ष्य सब दुष्ट होते हैं—वे सब सही मार्ग से भटक जाते हैं और सत्य के साथ असंगत होते हैं। यहाँ तक कि वे सत्य के विरुद्ध भी चले जाते हैं और सामान्य तौर पर उन्हें बुरे व्यक्तियों के रूप में सारांशित किया जा सकता है; बात यह है कि इस बुरे व्यक्ति की प्रकृति दुष्ट होती है—इसलिए इसे सामूहिक रूप से दुष्टता कहा जाता है। वे ईमानदार व्यक्ति होने, शुद्ध और खुले होने या ईमानदार और वफादार होने पर विचार नहीं करते; इसके बजाय वे दुष्ट तरीकों के बारे में सोचते हैं। उदाहरण के लिए, एक ऐसे व्यक्ति को लो, जो अपने बारे में शुद्ध तरीके से खुलकर बता सकता हो, जो एक सकारात्मक चीज और सत्य का अभ्यास करना है। क्या मसीह-विरोधी ऐसा करते हैं? (नहीं।) वे क्या करते हैं? वे लगातार दिखावा करते हैं और जब वे कुछ बुरा करके खुद को उजागर करने लगते हैं, तो वे इसे उग्र रूप से छिपाते हैं, खुद को सही ठहराकर अपना बचाव करते हैं और तथ्यों को छिपाते हैं—फिर वे अंततः अपने तर्क देते हैं। क्या इनमें से कोई भी अभ्यास सत्य का अभ्यास करने के बराबर है? (नहीं।) क्या इनमें से कोई भी सत्य-सिद्धांतों के अनुरूप है? बिल्कुल नहीं।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, प्रकरण पाँच : मसीह-विरोधियों के चरित्र और उनके स्वभाव सार का सारांश (भाग दो)

मसीह-विरोधियों की दुष्टता की एक स्पष्ट विशेषता होती है, और इसे पहचानने का राज़ मैं तुम लोगों के साथ साझा करूँगा : इसका राज़ है कि उनके भाषण और कार्य दोनों में, तुम उनकी गहराई नहीं समझ सकते या उनके दिल में नहीं झाँक सकते। तुमसे बात करते हुए उनकी आँखें हमेशा इधर-उधर नाचती रहती हैं, और तुम यह नहीं बता सकते कि वे कैसी योजना बना रहे हैं। कभी-कभी, वे तुमको यह एहसास दिलाते हैं कि वे निष्ठावान या काफी ईमानदार हैं, लेकिन ऐसा है नहीं—तुम उनकी असलियत कभी नहीं समझ सकते। तुम्हारे दिल में एक खास अनुभूति होती है, एक बोध कि उनके विचारों में एक गहरी सूक्ष्मता है, उनमें अथाह गहराई है, कि वे कपटपूर्ण हैं। यह मसीह-विरोधियों की दुष्टता का पहला लक्षण है, और यह दिखाता है कि मसीह-विरोधियों में दुष्टता का गुण होता है। मसीह-विरोधियों की दुष्टता का दूसरा लक्षण क्या है? वह यह है कि वे जो कुछ भी कहते और करते हैं, वह अत्यधिक भ्रामक होता है। यह कहाँ प्रदर्शित होता है? लोगों का मनोविज्ञान समझने और लोगों की धारणाओं और कल्पनाओं के साथ ठीक बैठने वाली और स्वीकारने में आसान बातें बोलने में उनकी विशेष कुशलता में प्रदर्शित होती है। परंतु, एक बात है जिसे तुमको समझना चाहिए : वे जो सुखद बातें कहते हैं, उन्हें साकार नहीं करते। उदाहरण के लिए, वे दूसरों को धर्म-सिद्धांतों का उपदेश देते हैं, उन्हें बताते हैं कि ईमानदार कैसे बनें, और कैसे प्रार्थना करें और कोई मुश्किल आने पर परमेश्वर को अपना स्वामी बनाएँ, लेकिन जब खुद मसीह-विरोधियों के सामने कुछ मुश्किल आती है, तो वे सत्य का अभ्यास नहीं करते। वे केवल अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करते हैं, और सबसे सेवा करवाते हुए और उनके मामले संभालते हुए वे खुद को लाभ पहुँचाने के अनगिनत तरीकों के बारे में सोचा करते हैं। वे कभी भी परमेश्वर से प्रार्थना नहीं करते या उसे अपना स्वामी नहीं बनाते। वे ऐसी बातें कहते हैं जो कानों को अच्छी लगती हैं, लेकिन उनके काम वैसे नहीं होते जैसा वे कहते हैं। कोई भी कार्य करते समय वे सबसे पहले अपने लाभ के बारे में सोचते हैं; वे परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं को स्वीकार नहीं करते हैं। लोग देखते हैं कि वे काम करते समय आज्ञाकारी नहीं होते, कि वे हमेशा खुद को लाभ पहुँचाने और आगे बढ़ने का रास्ता खोजते रहते हैं। यह मसीह-विरोधियों का कपटी और दुष्ट पक्ष है जिसे लोग देख सकते हैं। काम करते समय, कभी-कभी मसीह-विरोधी कठिनाई का सामना कर सकते हैं और कीमत चुका सकते हैं, यहाँ तक कि कई बार नींद और भोजन भी त्याग सकते हैं, लेकिन वे ऐसा केवल प्रतिष्ठा पाने या नाम बनाने के लिए करते हैं। वे अपनी महत्वाकांक्षाओं और लक्ष्यों की खातिर कठिनाई झेलते हैं लेकिन परमेश्वर के घर द्वारा उन्हें सौंपे गए महत्वपूर्ण कार्य के प्रति अन्यमनस्क होते हैं, और उसे बमुश्किल पूरा करते हैं। तो, क्या वे अपने सभी कार्यों में परमेश्वर की व्यवस्थाओं के प्रति विनयशील होते हैं? क्या वे अपने कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं? यहाँ एक समस्या है। एक अन्य तरह का व्यवहार भी है, जो यह है कि जब भाई-बहन उनसे अलग राय रखते हैं, तो मसीह-विरोधी उन्हें गोल-गोल घुमाकर खारिज कर देते हैं, वे एक ही बात दोहराते हुए लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि मसीह-विरोधियों ने उनके साथ संगति की है और उनके साथ चर्चा की है—लेकिन जब करने की बात आती है, तो सभी को वही करना होता है जो वे कहें। वे हमेशा दूसरे लोगों के सुझावों को खारिज करने के तरीके खोजते रहते हैं, ताकि लोग उनके विचारों का पालन करें और जैसा वे कहते हैं वैसा ही करें। क्या यह सत्य सिद्धांतों की खोज करना है? निश्चित रूप से ऐसा नहीं है। तो फिर, उनके काम का सिद्धांत क्या है? वह यह है कि हर किसी को उनकी बातें सुननी चाहिए और उनका पालन करना चाहिए, कि उनसे बेहतर कोई नहीं है, और कि उनके विचार सबसे अच्छे और सबसे ऊँचे हैं। मसीह-विरोधी हर किसी को यह महसूस कराना चाहते हैं कि वे जो कहते हैं वही सही है, कि वे सत्य हैं। क्या यह दुष्टता नहीं है? यह मसीह-विरोधियों की दुष्टता का दूसरा लक्षण है। मसीह-विरोधियों की दुष्टता का तीसरा लक्षण यह है कि जब वे खुद की गवाही देते हैं, तो वे अक्सर अपने योगदान, अपने द्वारा झेली गई कठिनाइयों और सभी के लिए किए गए लाभकारी कार्यों की गवाही देते हैं, उसे लोगों के दिमाग में डालते हैं, ताकि लोग याद रखें कि वे मसीह-विरोधी से उत्पन्न प्रकाश में जगमगा रहे हैं। यदि कोई मसीह-विरोधी की प्रशंसा करता है या धन्यवाद देता है, तो वे बहुत ही आध्यात्मिक शब्द भी बोल सकते हैं, जैसे, “परमेश्वर का शुक्रिया। यह सब परमेश्वर का काम है। हमारे लिए परमेश्वर की कृपा ही काफी है,” ताकि हर कोई देख सके कि वे बहुत आध्यात्मिक हैं, और वे परमेश्वर के अच्छे सेवक हैं। वास्तव में, वे खुद को ऊँचा उठा रहे होते हैं और खुद की गवाही दे रहे होते हैं, और उनके दिल में परमेश्वर के लिए कोई जगह नहीं होती। अन्य सभी के दिमाग में, मसीह-विरोधी का ओहदा पहले से ही परमेश्वर से कहीं ऊँचा होता है। क्या यह मसीह-विरोधी द्वारा खुद की गवाही देने का वास्तविक प्रमाण नहीं है? जिन कलीसियाओं में मसीह-विरोधी सत्ता में और नियंत्रण में होते हैं, वहाँ लोगों के दिलों में उनका स्थान सबसे ऊँचा होता है। परमेश्वर दूसरे या तीसरे स्थान पर ही आ सकता है। यदि परमेश्वर किसी ऐसी कलीसिया में जाता है जहाँ मसीह-विरोधी सत्ता में है और कुछ कहता है, तो वह जो भी कहता है क्या वह वहाँ के लोगों तक पहुँचेगा? क्या वे उसे दिल से स्वीकार करेंगे? यह कहना मुश्किल है। यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि मसीह-विरोधी खुद की गवाही देने का कितना प्रयास करते हैं। वे परमेश्वर के लिए गवाही बिल्कुल नहीं देते, बल्कि परमेश्वर की गवाही देने के सभी अवसरों का उपयोग अपने लिए गवाही देने में करते हैं। क्या मसीह-विरोधी द्वारा अपनाई जाने वाली यह रणनीति धूर्ततापूर्ण नहीं है? क्या यह अविश्वसनीय रूप से दुष्ट नहीं है? यहाँ संगति की गई इन तीन विशेषताओं के माध्यम से मसीह-विरोधियों को पहचानना आसान है।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद सात : वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (भाग दो)

मसीह-विरोधी केवल लाभ और आशीष प्राप्त करने के उद्देश्य से परमेश्वर पर विश्वास करते हैं। यदि वे कुछ कष्ट सहते हैं या कुछ कीमत चुकाते हैं, तो वह सब भी परमेश्वर के साथ सौदा करने के लिए होता है। आशीष और पुरस्कार प्राप्त करने की उनकी मंशा और इच्छा बहुत बड़ी होती है, और वे उससे कसकर चिपके रहते हैं। वे परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए अनेक सत्यों में से किसी को भी स्वीकार नहीं करते और अपने हृदय में हमेशा सोचते हैं कि परमेश्वर पर विश्वास करना आशीष प्राप्त करने और एक अच्छी जगह पहुंचना सुनिश्चित करने के लिए है, कि यह सर्वोच्च सिद्धांत है, और इससे बढ़कर कुछ भी नहीं हो सकता। वे सोचते हैं कि लोगों को आशीष प्राप्त करने के अलावा परमेश्वर पर विश्वास नहीं करना चाहिए, और अगर यह सब आशीष के लिए नहीं है, तो परमेश्वर पर विश्वास का कोई अर्थ या महत्व नहीं होगा, कि यह अपना अर्थ और मूल्य खो देगा। क्या ये विचार मसीह-विरोधियों में किसी और ने डाले थे? क्या ये किसी अन्य की शिक्षा या प्रभाव से निकले हैं? नहीं, वे मसीह-विरोधियों के अंतर्निहित प्रकृति सार द्वारा निर्धारित होते हैं, जिसे कोई भी नहीं बदल सकता। आज देहधारी परमेश्वर के इतने सारे वचन बोलने के बावजूद, मसीह-विरोधी उनमें से किसी को भी स्वीकार नहीं करते, बल्कि उनका विरोध करते हैं और उनकी निंदा करते हैं। सत्य के प्रति उनके विमुख होने और सत्य से घृणा करने की प्रकृति कभी नहीं बदल सकती। अगर वे बदल नहीं सकते, तो यह क्या संकेत करता है? यह संकेत करता है कि उनकी प्रकृति दुष्ट है। यह सत्य का अनुसरण करने या न करने का मुद्दा नहीं है; यह दुष्ट स्वभाव है, यह निर्लज्ज होकर परमेश्वर के विरुद्ध हल्ला मचाना और परमेश्वर को नाराज करना है। यह मसीह-विरोधियों का प्रकृति सार है; यही उनका असली चेहरा है। चूँकि मसीह-विरोधी निर्लज्जता से परमेश्वर के विरुद्ध हल्ला मचाने और उसका विरोध करने में सक्षम हैं, तो उनका स्वभाव क्या है? दुष्टता का। मैं क्यों कहता हूँ कि यह दुष्ट स्वभाव है? मसीह-विरोधी आशीष पाने के लिए, और प्रसिद्धि, लाभ और रुतबा पाने के लिए परमेश्वर का विरोध करने और उसके विरुद्ध शोर मचाने का साहस करते हैं। वे ऐसा करने का साहस क्यों करते हैं? उनके हृदय की गहराई में एक शक्ति है, एक दुष्ट स्वभाव है जो उन्हें नियंत्रित करता है, इसलिए वे बेईमानी से कार्य करने, परमेश्वर के साथ बहस करने और उसके विरुद्ध हल्ला मचाने में सक्षम होते हैं। इससे पहले कि परमेश्वर कहे कि वह उन्हें मुकुट नहीं देगा, इससे पहले कि परमेश्वर उनका गंतव्य छीन ले, उनका दुष्ट स्वभाव उनके हृदय के भीतर से फूट पड़ता है, और वे कहते हैं, “यदि तुम मुझे मुकुट और मंजिल नहीं देते, तो मैं तीसरे स्वर्ग में जाकर तुमसे बहस करूँगा!” यदि यह उनके दुष्ट स्वभाव के कारण न होता, तो उन्हें इतनी ऊर्जा कहाँ से मिलती? क्या ज्यादातर लोग ऐसी ऊर्जा जुटा सकते हैं? मसीह-विरोधी क्यों विश्वास नहीं करते कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं? वे आशीष पाने की इच्छा पर दृढ़ता से क्यों टिके रहते हैं? क्या यह एक और बार उनकी दुष्टता नहीं है? (है।) परमेश्वर लोगों को जो आशीष देने का वादा करता है, वही मसीह-विरोधियों की महत्वाकांक्षा और इच्छा बन गया है। वे उन्हें प्राप्त करने के लिए दृढ़ हैं, लेकिन वे परमेश्वर के मार्ग का अनुसरण नहीं करना चाहते, और वे सत्य से प्रेम नहीं करते। इसके बजाय, वे आशीष, पुरस्कार और मुकुट की तलाश में लगे रहते हैं। इससे पहले कि परमेश्वर कहे कि वह उन्हें ये चीजें नहीं देगा, वे परमेश्वर से मुकाबला करना चाहते हैं। उनका तर्क क्या है? “यदि मुझे आशीष और पुरस्कार नहीं मिले, तो मैं तुमसे बहस करूँगा, मैं तुम्हारा विरोध करूँगा, और कहूँगा कि तुम परमेश्वर नहीं हो!” क्या वे ऐसी बातें कहकर परमेश्वर को धमका नहीं रहे हैं? क्या वे उसे उखाड़ फेंकने की कोशिश नहीं कर रहे हैं? वे तो हर चीज पर परमेश्वर की संप्रभुता को नकारने की भी हिम्मत करते हैं। अगर परमेश्वर के कार्य उनकी इच्छा के अनुरूप नहीं होते, वे यह भी नकारने की हिम्मत करते हैं कि परमेश्वर सृष्टिकर्ता है, एकमात्र सच्चा परमेश्वर है। क्या यह शैतान का स्वभाव नहीं है? क्या यह शैतान की दुष्टता नहीं है? क्या मसीह-विरोधियों के काम के तरीके और परमेश्वर के प्रति शैतान के रवैये में कोई अंतर है? इन दोनों रवैयों को पूरी तरह से एक जैसा माना जा सकता है। मसीह-विरोधी हर चीज पर परमेश्वर की संप्रभुता को स्वीकार करने से इनकार करते हैं, और वे परमेश्वर के हाथों से आशीष, पुरस्कार और मुकुट छीनना चाहते हैं। यह किस तरह का स्वभाव है? किस आधार पर वे इस तरह से काम करना और चीजों को हथियाना चाहते हैं? वे इतनी ऊर्जा कैसे जुटा सकते हैं? इसके कारण को अब सारांशित किया जा सकता है : यह मसीह-विरोधियों की दुष्टता है। मसीह-विरोधी सत्य से प्रेम नहीं करते, फिर भी वे आशीष और मुकुट प्राप्त करना चाहते हैं, और परमेश्वर के हाथों से जबरन इन पुरस्कारों को लेना चाहते हैं। क्या यह मृत्यु का आह्वान करना नहीं है? क्या उन्हें भान है कि वे मृत्यु का आह्वान कर रहे हैं? (उन्हें इसका भान नहीं है।) उन्हें शायद जरा-सा यह भी आभास हो सकता है कि पुरस्कार प्राप्त करना असंभव है, इसलिए वे पहले ही ऐसी बात बोलते हैं कि, “यदि मुझे आशीष प्राप्त नहीं हुआ, तो मैं तीसरे स्वर्ग में जाकर परमेश्वर से बहस करूँगा!” वे पहले से ही यह अनुमान लगा लेते हैं कि उनके लिए आशीष प्राप्त करना असंभव होगा। आखिरकार, शैतान ने कई वर्षों तक बीच आसमान में परमेश्वर के विरुद्ध शोर मचाया है, और परमेश्वर ने उसे क्या दिया है? परमेश्वर का उसके लिए एकमात्र कथन है कि “कार्य समाप्त होने के बाद, मैं तुझे अथाह कुंड में फेंक दूँगा। तू अथाह कुंड में ही रहने के योग्य है!” यह शैतान से परमेश्वर का एकमात्र “वादा” है। क्या यह विकृत बात नहीं है कि वह अभी भी पुरस्कार की इच्छा रखता है? यह दुष्टता है। मसीह-विरोधियों का जन्मजात सार परमेश्वर के प्रति शत्रुतापूर्ण है, और मसीह-विरोधी स्वयं भी नहीं जानते कि ऐसा क्यों है। उनके हृदय केवल आशीष और मुकुट प्राप्त करने पर केंद्रित होते हैं। जब भी कोई चीज सत्य या परमेश्वर से जुड़ी होती है, तो उनके अंदर प्रतिरोध और क्रोध उत्पन्न होता है। यह दुष्टता है। सामान्य लोग शायद मसीह-विरोधियों की आंतरिक भावनाओं को नहीं समझ सकते; मसीह-विरोधियों के लिए यह काफी कठिन होता है। मसीह-विरोधियों की बहुत बड़ी महत्वाकांक्षाएँ होती हैं, उनके भीतर बहुत बड़ी दुष्ट ऊर्जा होती है, और आशीष पाने की बहुत बड़ी इच्छा होती है। उन्हें इच्छाओं के ताप में जलते व्यक्ति के रूप में वर्णित किया जा सकता है। लेकिन परमेश्वर का घर लगातार सत्य पर संगति करता रहता है—इसे सुनना उनके लिए बहुत दर्दनाक और कठिन होता होगा। वे अपने साथ खुद गलत करते हैं और उसे सहन करने के लिए भारी दिखावा करते हैं। क्या यह एक तरह की दुष्ट ऊर्जा नहीं है? अगर सामान्य लोग सत्य से प्रेम नहीं करते, तो उन्हें कलीसियाई जीवन अरुचिकर लगता और यहाँ तक कि वे इसके प्रति विकर्षण का भाव भी महसूस करते। परमेश्वर के वचनों को पढ़ना और सत्य पर संगति करना उन्हें आनंद से अधिक पीड़ा जैसा लगता है। तो, मसीह-विरोधी इसे कैसे सहन कर लेते हैं? ऐसा इसलिए है क्योंकि उनमें आशीष पाने की इच्छा इतनी प्रबल होती है कि वह उन्हें खुद अपने साथ गलत करने और उसे अनिच्छापूर्वक सहने के लिए मजबूर करती है। इसके अलावा, वे शैतान के अनुचर के रूप में कार्य करने के लिए परमेश्वर के घर में घुस जाते हैं, और कलीसिया के काम में गड़बड़ी करने और बाधा डालने के प्रति समर्पित हो जाते हैं। वे मानते हैं कि यह उनका मिशन है, और अगर वे परमेश्वर का विरोध करने का अपना कार्य पूरा नहीं कर लेते, तब तक बेचैनी महसूस करते हैं और मानते हैं कि उन्होंने शैतान को निराश किया है। यह मसीह-विरोधियों की प्रकृति से निर्धारित होता है।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद सात : वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (भाग दो)

अंत के दिनों में, परमेश्वर कार्य करने के लिए देहधारण करता है, कई सत्य व्यक्त करता है, मानवजाति के सामने परमेश्वर की प्रबंधन-योजना के सभी रहस्य खोलता है, और उन सभी सत्यों की आपूर्ति करता है जिन्हें लोगों को समझना और जिनमें प्रवेश करना चाहिए ताकि वे बचाए जा सकें। ये सत्य और परमेश्वर के ये वचन उन सभी के लिए खजाने हैं, जो सकारात्मक चीजों से प्रेम करते हैं। भ्रष्ट मानवजाति को इन सत्यों की जरूरत है, और ये मानवजाति के लिए अमूल्य निधि भी हैं। परमेश्वर का प्रत्येक वचन, उसकी प्रत्येक अपेक्षा और प्रत्येक इरादा ऐसी चीजें हैं, जिन्हें लोगों को समझना और बूझना चाहिए, वे ऐसी चीजें हैं जिनका लोगों को उद्धार प्राप्त करने के लिए पालन करना चाहिए, और वे वो सत्य हैं जिन्हें मनुष्यों को प्राप्त करना चाहिए। लेकिन मसीह-विरोधी इन वचनों को सिद्धांत और नारे समझते हैं, वे इन पर ध्यान तक नहीं देते, इससे भी बढ़कर वे इनसे घृणा करते हैं और इन्हें नकार देते हैं। मसीह-विरोधी मनुष्यों के बीच की सबसे कीमती चीजों को कपटियों के झूठ मानते हैं। मसीह-विरोधी अपने दिलों में यह मानते हैं कि दुनिया में कोई उद्धारकर्ता नहीं है, सत्य या सकारात्मक चीजों की तो बात ही छोड़ दो। उन्हें लगता है कि इंसानी हाथों को हर सुंदर चीज या लाभ प्राप्त होना चाहिए और इसे इंसानी संघर्ष द्वारा जबरन हासिल किया जाना चाहिए। मसीह-विरोधियों को लगता है कि बिना महत्वाकांक्षाओं और सपनों के लोग कभी सफल नहीं होंगे, और उनके हृदय परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए सत्य के प्रति बेरुखी और नफरत से भरे हुए हैं। वे परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए सत्यों को सिद्धांत और नारे मानते हैं, और सत्ता, हितों, महत्वाकांक्षा और इच्छा को ऐसे उचित मकसद मानते हैं, जिनका प्रबंधन करना चाहिए और जिनके पीछे भागना चाहिए। स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने, मुकुट प्राप्त करने और अधिक बड़े आशीषों का आनंद लेने के प्रयास में वे अपने गुणों के माध्यम से की गई सेवा का उपयोग परमेश्वर के साथ लेन-देन करने के साधन के रूप में भी करते हैं। क्या यह दुष्टता नहीं है? वे परमेश्वर के इरादों की व्याख्या कैसे करते हैं? वे कहते हैं, “मालिक कौन है, इसका फैसला परमेश्वर यह देखकर करता है कि कौन उसके लिए सबसे अधिक खपता और कष्ट उठाता है, और कौन सबसे अधिक कीमत चुकाता है। कौन राज्य में प्रवेश कर सकता है और कौन मुकुट प्राप्त करता है, इसका निर्धारण वह यह देखकर करता है कि कौन दौड़-धूप कर सकता है, कौन वाक्पटुता से बोल सकता है, और किसमें किसी डाकू की आत्मा है जिससे वह बलपूर्वक चीजें छीन सकता है। जैसा कि पौलुस ने कहा था, ‘मैं अच्छी कुश्ती लड़ चुका हूँ, मैं ने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, मैं ने विश्वास की रखवाली की है। भविष्य में मेरे लिये धर्म का वह मुकुट रखा हुआ है’ (2 तीमुथियुस 4:7-8)।” वे पौलुस के इन शब्दों का अनुसरण करते हैं और मानते हैं कि उसकी बातें सत्य हैं, लेकिन मानवजाति से परमेश्वर की सभी अपेक्षाओं और मानवजाति के लिए उसके सभी कथनों की यह सोचते हुए उपेक्षा करते हैं, “ये चीजें बेमानी हैं। बस इतना ही मायने रखता है कि अपनी कुश्ती लड़ लेने और अपनी दौड़ पूरी कर लेने के बाद, अंत में मुझे एक मुकुट मिल जाएगा। यह सच है। क्या परमेश्वर का यही मतलब नहीं है? परमेश्वर ने हजारों-हजारों वचन बोले हैं और अनगिनत उपदेश दिए हैं। अंततः लोगों से वह यही कहना चाहता है कि अगर तुम मुकुट और पुरस्कार चाहते हो, तो यह तुम पर है कि तुम लड़ो, संघर्ष करो, छीनो और ले लो।” क्या यह मसीह-विरोधियों का तर्क नहीं है? अपने दिलों की गहराई में मसीह-विरोधी परमेश्वर के कार्य को हमेशा इसी प्रकार देखते हैं, और परमेश्वर के वचन और प्रबंधन-योजना की वे इसी प्रकार व्याख्या करते हैं। उनका स्वभाव दुष्टतापूर्ण है, है न? वे परमेश्वर के इरादों, सत्य और सभी सकारात्मक चीजों को तोड़-मरोड़कर पेश करते हैं। वे मानवजाति को बचाने की परमेश्वर की प्रबंधन-योजना को एक नग्न लेन-देन के रूप में देखते हैं, और परमेश्वर मानवजाति से जिस कर्तव्य को पूरा करने की अपेक्षा करता है, उसे वे एक नग्न जब्ती, आक्रामकता, धोखा और लेन-देन समझते हैं। क्या यह मसीह-विरोधियों का दुष्ट स्वभाव नहीं है? मसीह-विरोधियों का मानना है कि आशीषों की प्राप्ति और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश, उन्हें लेन-देन के माध्यम से ही प्राप्त करना होगा, और यह उचित, तर्कसंगत और सबसे वैध है। क्या यह दुष्टतापूर्ण तर्क नहीं है? क्या यह शैतानी तर्क नहीं है? मसीह-विरोधी हमेशा अपने दिलों की गहराई में ऐसे ही विचार और रवैया रखते हैं, जो साबित करता है कि मसीह-विरोधियों का स्वभाव बेहद दुष्टतापूर्ण है।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग सात)

मसीह विरोधियों का स्वभाव दुष्टतापूर्ण होता है; वे न केवल सत्य को स्वीकार नहीं करते, बल्कि वे परमेश्वर का प्रतिरोध भी कर सकते हैं, अपना स्वयं का राज्य स्थापित कर सकते हैं, और वे बिना डिगे परमेश्वर का विरोध करते हैं—यह दुष्ट स्वभाव है। क्या तुम लोगों को दुष्ट स्वभावों की कोई समझ है? अधिकांश लोग शायद इन स्वभावों को पहचानना नहीं जानते, तो चलो एक उदाहरण लेते हैं। कुछ लोग आम तौर पर सामान्य परिस्थितियों में बहुत सामान्य व्यवहार करते हैं : वे दूसरों से बहुत सामान्य तरीके से बात करते हैं और सामान्य तरीके से ही दूसरों से मेलजोल करते हैं, सामान्य लोगों की तरह दिखते हैं और कुछ भी बुरा नहीं करते। परंतु, जब वे सभाओं में आते हैं और परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं और सत्य पर संगति करते हैं, तो उनमें से कुछ लोग उसे नहीं सुनना चाहते, कुछ को नींद आ जाती है, कुछ इससे विमुख होते हैं और वे उन्हें यह सब असहनीय लगता है, वे इसे नहीं सुनना चाहते, और कुछ अनजाने ही सो जाते हैं और उन्हें कुछ पता नहीं होता—यह क्या हो रहा है? जब कोई सत्य पर संगति करना शुरू करता है तो इतनी सारी असामान्य घटनाएँ क्यों अभिव्यक्त होती हैं? इनमें से कुछ लोग असामान्य स्थिति में होते हैं, लेकिन कुछ दुष्टता के कारण ऐसा करते हैं। उनके दुष्टात्माओं के वश में होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता, और कई बार लोग इसे पूरी तरह से समझ नहीं पाते या स्पष्ट रूप से भेद नहीं कर पाते। मसीह विरोधियों के भीतर दुष्टात्माएँ होती हैं। यदि तुम उनसे पूछो कि वे सत्य से शत्रुता क्यों रखते हैं, तो वे कहते हैं कि उनकी सत्य से शत्रुता नहीं है और इस बात को स्वीकार करने से हठपूर्वक इनकार करते हैं, जबकि वास्तविक तथ्य यह है कि अपने हृदय में वे जानते हैं कि वे सत्य से प्रेम नहीं करते। जब कोई भी परमेश्वर के वचनों को नहीं पढ़ रहा होता, तो वे दूसरों के साथ ऐसे मिलते-जुलते हैं जैसे वे सामान्य लोग हों और तुम्हें नहीं पता होता कि उनके मन में क्या है। परंतु, जब कोई परमेश्वर के वचनों को पढ़ता है, तो वे सुनना नहीं चाहते और उनके हृदय में घृणा पैदा होती है। यह उनकी प्रकृति का अनावृत होना है—वे दुष्टात्माएँ हैं; वे इस तरह की चीज हैं। क्या परमेश्वर के वचनों ने इन लोगों के सार को उजागर किया है या उनकी दुखती रग को छेड़ा है? ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है। जब वे सभाओं में जाते हैं, तो वे परमेश्वर के वचन पढ़ रहे किसी व्यक्ति को नहीं सुनना चाहते—क्या यह उनका दुष्ट होना नहीं है? “दुष्ट होना” का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है सत्य के प्रति, सकारात्मक चीजों के प्रति, और सकारात्मक लोगों के प्रति अकारण शत्रुता रखना; उन्हें स्वयं भी नहीं पता होता कि इसका कारण क्या है, उन्हें तो बस वैसे ही काम करना है। दुष्ट होने का यही अर्थ है और सादा शब्दों में, यह केवल नीच होना है। कुछ मसीह-विरोधी कहते हैं, “कोई केवल परमेश्वर के वचनों को पढ़ना शुरू कर दे, और मेरा सुनने का मन ही नहीं होता। मुझे केवल किसी को परमेश्वर के लिए गवाही देते हुए सुनने की जरूरत है और मुझे घृणा हो जाती है, लेकिन मुझे भी नहीं पता कि ऐसा क्यों है। जब मैं किसी को सत्य से प्रेम करते और उसका अनुसरण करते हुए देखता हूँ, तो मैं उससे तालमेल नहीं बना पाता, मैं उसके खिलाफ खड़ा होना चाहता हूँ, हमेशा उन्हें शाप देना चाहता हूँ, उनके पीठ पीछे उन्हें नुकसान पहुंचाना चाहता हूँ और उन्हें मौत के घाट उतारना चाहता हूँ।” वे यह भी नहीं जानते कि वे ऐसा क्यों महसूस करते हैं—यह उनका दुष्ट होना है। इसका वास्तविक कारण क्या है? मसीह-विरोधियों के अंदर सामान्य व्यक्ति की भावना नहीं होती, उनमें सामान्य मानवता नहीं होती—अंतिम विश्लेषण में ऐसा ही होता है। यदि कोई सामान्य व्यक्ति परमेश्वर को सत्य के विभिन्न पहलुओं पर इतना साफ-साफ और सुबोधगम्य तरीके से बोलते हुए सुनता है, तो वह सोचता है, “ऐसे दुष्ट और अनैतिक युग में, जहाँ सही और गलत में अंतर नहीं किया जा सकता और अच्छे-बुरे को लेकर भ्रम हैं, इतना सारा सत्य और इतने उत्कृष्ट वचनों को सुन पाना कितना मूल्यवान और दुर्लभ है!” यह मूल्यवान क्यों है? परमेश्वर के वचन उन लोगों की इच्छाओं और प्रेरणा को जगाते हैं जिनके पास हृदय और आत्मा दोनों हैं। कौन सी प्रेरणा? वे न्याय और सकारात्मक चीजों के लिए लालायित रहते हैं, वे परमेश्वर के सामने जीने की तीव्र लालसा करते हैं, दुनिया में निष्पक्षता और धार्मिकता चाहते हैं, और चाहते हैं कि परमेश्वर आकर दुनिया पर सत्ता स्थापित करे—यह उन सभी लोगों की पुकार है जो सत्य से प्रेम करते हैं। परंतु, क्या मसीह-विरोधी इन चीजों के लिए लालायित होते हैं? (नहीं।) मसीह-विरोधी किस चीज की लालसा करते हैं? मसीह-विरोधियों के हृदय की गहराइयों में होता है कि “अगर मैं सत्ता में होता, तो मैं उन सभी को नष्ट कर देता जिन्हें मैं नापसंद करता हूँ! जब कोई मसीह के बारे में यह गवाही देता है कि वह प्रकट होकर कार्य करने वाला परमेश्वर है, परमेश्वर के मानवजाति के संप्रभु होने की गवाही देता है, और परमेश्वर के वचनों के सत्य होने, मानवजाति के सर्वोच्च जीवन सिद्धांत होने और मानव अस्तित्व के लिए आधार होने की गवाही देता है, तो मुझे घृणा होती है, नफरत महसूस होती है, और मैं इसे सुनना नहीं चाहता!” यह कुछ ऐसा है जो मसीह-विरोधियों के भीतर गहराई तक समाया होता है। क्या मसीह-विरोधियों का यह स्वभाव नहीं होता? जब तक कोई उनकी आराधना करता है, उनका सम्मान करता है, और उनका अनुसरण करता है, तब तक वे दोस्त होते हैं, वे एक ही दल में होते हैं; यदि कोई हमेशा सत्य पर संगति करता है और परमेश्वर के लिए गवाही देता है, तो मसीह-विरोधी उनसे दूर हो जाते हैं और उनके प्रति घृणा महसूस करते हैं, और यहाँ तक कि उन पर हमला करते हैं, उन्हें बहिष्कृत करते हैं, और उन्हें पीड़ा देते हैं—यह दुष्टता है। जब हम दुष्टता के बारे में बात करते हैं, तो उसका संदर्भ हमेशा शैतान की चालाक योजनाओं से होता है; शैतान जो काम करता है वह दुष्टता है, बड़ा लाल अजगर जो काम करता है वह दुष्टता है, मसीह-विरोधी जो काम करते हैं वह दुष्टता है, और जब हम उनके दुष्ट होने के बारे में बात करते हैं, तो यह मुख्य रूप से सभी सकारात्मक चीजों के प्रति शत्रुता रखने और विशेष रूप से सत्य और परमेश्वर का विरोध करने को संदर्भित करता है—यह दुष्टता है, और यह मसीह-विरोधियों का स्वभाव है।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद सात : वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (भाग एक)

यदि मसीह-विरोधी सत्य से प्रेम करने और उसका अनुसरण करने वाले कुछ लोगों को देखते हैं, तो उन्हें बेचैनी महसूस होती है। यह बेचैनी कहाँ से आती है? यह उनके दुष्ट स्वभाव के कारण होती है, अर्थात, उनकी प्रकृति में दुष्ट स्वभाव होता है जो न्याय से, सकारात्मक चीजों से, सत्य से नफरत करता है, और परमेश्वर का विरोध करता है। इसीलिए, जब वे किसी को सत्य का अनुसरण करते देखते हैं, तो कहते हैं कि “तुम बहुत शिक्षित नहीं हो और देखने में भी कुछ खास नहीं हो, लेकिन फिर भी तुम वास्तव में सत्य का अनुसरण करते हो।” यह कैसा दृष्टिकोण प्रदर्शित करता है? यह अवमानना है। उदाहरण के लिए, कुछ भाई-बहनों के पास कुछ खूबियाँ या विशेष कौशल हैं और वे उनसे संबंधित कर्तव्य निभाना चाहते हैं। वास्तव में, यह उनकी विभिन्न स्थितियों के संदर्भ में उपयुक्त है, लेकिन मसीह-विरोधी ऐसे भाई-बहनों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं? अपने हृदय में वे सोचते हैं, “यदि तुम यह कर्तव्य निभाना चाहते हो तो तुम्हें पहले मेरे नजदीक होना होगा और मेरे गिरोह में शामिल होना होगा, और उसके बाद ही मैं तुम्हें वांछित कर्तव्य निभाने की अनुमति दूंगा। नहीं तो, बस सपने देखो!” क्या मसीह-विरोधी इसी तरह से कार्य नहीं करते? मसीह-विरोधी उन लोगों से इतना क्यों चिढ़ते हैं जो ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास करते हैं, जिनमें न्याय और मानवता की थोड़ी समझ है, और जो सत्य का अनुसरण करने का थोड़ा प्रयास करते हैं? वे हमेशा ऐसे लोगों से क्यों नाराज रहते हैं? जब वे लोगों को सत्य का अनुसरण करते और अच्छा व्यवहार करते देखते हैं, ऐसे लोग जो कभी नकारात्मक नहीं होते और जिनके इरादे नेक होते हैं, तो वे असहज महसूस करते हैं। मसीह-विरोधी जब लोगों को निष्पक्ष रूप से कार्य करते देखते हैं, उन लोगों को देखते हैं जो अपना कर्तव्य सिद्धांतों के अनुसार निभा सकते हैं और जो सत्य समझने के बाद उसे व्यवहार में ला सकते हैं, तो वे वास्तव में क्रोधित हो जाते हैं, वे उन लोगों को पीड़ा देने का तरीका सोचने में अपना दिमाग दौड़ाते हैं, और उनके लिए चीजों को मुश्किल बनाने की कोशिश करते हैं। यदि कोई मसीह-विरोधी के प्रकृति सार को स्पष्टता से समझ लेता है, उसकी धूर्तता और दुष्टता को देख लेता है और उन्हें उजागर करना चाहता है और उनकी रिपोर्ट करना चाहता है, तो मसीह-विरोधी क्या करते हैं? मसीह-विरोधी अपनी आँख की किरकिरी और देह में चुभने वाले इस काँटे को निकालने के लिए जो कुछ भी किया जा सकता है उस हर तरीके के बारे में सोचता है और भाई-बहनों को उकसाता है कि वे इस व्यक्ति को अस्वीकार करें। साधारण भाई-बहनों की कलीसिया में कोई प्रतिष्ठा और रुतबा नहीं होता; उन्हें इस मसीह-विरोधी के बारे में थोड़ी-बहुत ही समझ होती है और वे इस मसीह-विरोधी के लिए कोई खतरा नहीं होते। फिर मसीह-विरोधी हमेशा उन्हें नापसंद क्यों करता है और ऐसे व्यक्तियों के साथ ऐसा व्यवहार करता है मानो वे उसकी आँख की किरकिरी और उसके शरीर में चुभा हुआ काँटा हों? ऐसे व्यक्ति मसीह-विरोधी की राह में बाधक कैसे हैं? मसीह-विरोधी ऐसे लोगों से तालमेल क्यों नहीं बना पाता? ऐसा इसलिए है क्योंकि मसीह-विरोधी में दुष्ट स्वभाव होता है। वह सत्य का अनुसरण करने वाले या सही मार्ग पर चलने वाले लोगों को बर्दाश्त नहीं कर सकता। वे जानबूझकर उन लोगों के खिलाफ खड़े होते हैं जो सही मार्ग पर चलना चाहते हैं और उनके लिए चीजों को मुश्किल बनाते हैं, और उनसे छुटकारा पाने का कोई रास्ता निकालने की कोशिश में दिमाग खपाते हैं, या फिर वे उन लोगों पर अत्याचार करते हैं ताकि वे नकारात्मक और कमजोर हो जाएँ, या वे उनके खिलाफ कुछ तलाश लेंगे और उसे चारों ओर फैलाएँगे ताकि दूसरे लोग उन्हें अस्वीकार कर दें, और तब वे खुश होंगे। यदि तुम उनकी बात नहीं सुनते या उनकी कही बातों का पालन नहीं करते, और सत्य का अनुसरण करना, सही मार्ग का अनुसरण करना और अच्छा व्यक्ति बनना जारी रखते हो, तो वे अपने हृदय में असहज महसूस करते हैं, और तुम्हें अपना कर्तव्य निभाते हुए देखकर वे परेशानी और बेचैनी महसूस करते हैं। यह किसलिए है? क्या तुमने उन्हें नाखुश किया है? नहीं, तुमने ऐसा नहीं किया है। जब तुमने उनके साथ कुछ नहीं किया या किसी भी तरह से उनके हितों को नुकसान नहीं पहुँचाया, तो वे तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार क्यों करते हैं? यह सब केवल इतना दिखाता है कि इस तरह की चीज—मसीह-विरोधी—की प्रकृति दुष्टतापूर्ण होती है, और वे स्वाभाविक रूप से न्याय, सकारात्मक चीजों और सत्य के विरोधी हैं। यदि तुम उनसे पूछो कि वास्तव में क्या हो रहा है, तो उन्हें भी नहीं पता होता; वे बस इरादतन तुम्हारे लिए चीजों को मुश्किल बनाते हैं। यदि तुम किसी चीज को किसी एक तरीके से करने को कहो, तो उन्हें इसे किसी दूसरे तरीके से करना होता है; अगर तुम कहो कि फलाँ आदमी बहुत ढंग का नहीं है, तो वे बताएंगे कि वह व्यक्ति तो बहुत बढ़िया है; जो तुम कहो कि सुसमाचार फैलाने का यह बढ़िया तरीका है, तो वे कहेंगे कि वह खराब तरीका है; यदि तुम कहो कि कोई बहन जिसने केवल एक या दो साल से परमेश्वर में विश्वास किया है, वह नकारात्मक और कमजोर हो गई है और उसे सहारा दिया जाना चाहिए, तो वे कहते हैं, “कोई जरूरत नहीं है, वह तुमसे ज्यादा मजबूत है।” संक्षेप में, वे तुमसे हमेशा असहमत रहते हैं और जानबूझकर तुम्हारे उलट ही कार्य करते हैं। तुमसे असहमत रहने का उनका सिद्धांत क्या है? वह यह है कि तुम जिस किसी चीज को सही कहो, वे उसे गलत कहेंगे, और तुम जिसे भी गलत कहोगे, वे उसे सही कहेंगे। क्या उनके कामों में कोई सत्य सिद्धांत हैं? बिल्कुल नहीं। वे बस चाहते हैं कि तुम मूर्खता कर बैठो, चित हो जाओ, टूट जाओ, हार जाओ ताकि तुम अपना सिर ऊँचा न उठा सको, आगे से सत्य का अनुसरण न करो, कमजोर हो जाओ, और अब और विश्वास न करो, तभी उनका लक्ष्य हासिल होता है और वे अपने दिल में खुशी महसूस करते हैं। यहाँ क्या मामला है? यह उस तरह के लोगों का दुष्ट सार है जो मसीह-विरोधी हैं।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद सात : वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (भाग एक)

मसीह-विरोधियों की दुष्ट प्रकृति में कुछ ऐसा है जिसके बारे में लोगों को कुछ पता नहीं है : वे तुम्हें उनकी बात सुनने के लिए राजी करने, तुमको यह विश्वास दिलाने के लिए कि वे सही, उचित और सकारात्मक हैं, विभिन्न साधनों, भाषणों, विधियों, रणनीतियों, तरीकों और भ्रांतियों का उपयोग कर सकते हैं, और भले ही वे बुराई करें, सत्य सिद्धांतों का उल्लंघन करें, और भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करें, अंत में, वे चीजों को पलट देते हैं और लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि वे सही हैं। उनके पास ऐसी योग्यता है। यह योग्यता क्या है? यह अत्यधिक भ्रममूलक होना है। यह उनकी दुष्टता है कि वे अत्यधिक भ्रममूलक हैं। अपने हृदय में, उन्हें क्या पसंद हैं, क्या नापसंद हैं, किनसे वे घृणा करते हैं, और किनका सम्मान और उपासना करते हैं, इन चीजों का निर्माण कुछ विकृत दृष्टिकोणों द्वारा किया जाता है। इन दृष्टिकोणों के भीतर सिद्धांतों का एक समूह होता है, जिसमें सब की सब अच्छी लगने वाली भ्रांतियाँ होती हैं जिनका खंडन करना आम लोगों के लिए मुश्किल होता है क्योंकि वे सत्य को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते और अपनी गलतियों के लिए परिष्कृत तर्क भी प्रस्तुत कर सकते हैं। सत्य वास्तविकता के बिना, उनके साथ सत्य पर संगति करके तुम उन्हें मना नहीं सकते। अंतिम परिणाम यह होता है कि वे अपने खोखले सिद्धांतों का उपयोग करके तुम्हारी बातों का खंडन करते हैं, जिससे तुम अवाक रह जाते हो, और धीरे-धीरे उनके सामने हार जाते हो। ऐसे लोगों की दुष्टता इस तथ्य में निहित होती है कि वे अत्यधिक भ्रममूलक होते हैं। स्पष्टतः, वे कुछ भी नहीं हैं और अपने हर कर्तव्य में गड़बड़ करते हैं; फिर भी, अंत में, वे अभी भी कुछ लोगों उनकी आराधना करने, उनके सामने “घुटने टेकने” और उनकी आज्ञाओं का पालन करने के लिए गुमराह कर सकते हैं। इस तरह का व्यक्ति गलत को सही में, काले को सफेद में बदल सकता है। वे सत्य और असत्य को उलट सकते हैं, अपने किए गए गलत कामों को दूसरों पर डाल सकते हैं, और दूसरों के किए अच्छे कामों का श्रेय ले सकते हैं। समय के साथ, तुम भ्रमित हो जाते हो और यह नहीं जान पाते कि वे वास्तव में कौन हैं। उनके शब्दों, कार्यों और रूप-रंग को देखते हुए तुम सोच सकते हो, “यह व्यक्ति असाधारण है; हम उसकी तुलना नहीं कर सकते!” क्या यह गुमराह होना नहीं है? जिस दिन तुम गुमराह होते हो, उसी दिन तुम खतरे में पड़ोगे। क्या इस तरह का व्यक्ति, जो दूसरों को गुमराह करता है, बहुत दुष्ट नहीं है? जो कोई भी उसकी बातों को सुनता है, वह गुमराह और परेशान हो सकता है, उसे लंबे समय तक संभलना मुश्किल हो जाता है। कुछ भाई-बहन उसे पहचान सकते हैं और देख सकते हैं कि वह गुमराह करने वाला है, वे उसे उजागर कर सकते हैं और अस्वीकार कर सकते हैं, लेकिन गुमराह होने वाले अन्य लोग यह कहते हुए उसका बचाव भी कर सकते हैं कि, “नहीं, परमेश्वर का घर उसके साथ अन्याय कर रहा है; मुझे उसके पक्ष में खड़ा होना चाहिए।” यहाँ समस्या क्या है? स्पष्ट रूप से, वे गुमराह हैं, फिर भी वे उस व्यक्ति का बचाव करते हैं और उसे सही ठहराते हैं जिसने उन्हें गुमराह किया होता है। क्या ये लोग परमेश्वर में विश्वास करने वाले, लेकिन मनुष्य का अनुसरण करने वाले लोग नहीं हैं? वे परमेश्वर में विश्वास करने का दावा करते हैं, फिर वे इस व्यक्ति की इस तरह से आराधना क्यों करते हैं, और विशेष रूप से उसका बचाव क्यों करते हैं? यदि वे इतने स्पष्ट मामले को नहीं पहचान सकते तो क्या वे एक निश्चित सीमा तक गुमराह नहीं हुए हैं? मसीह-विरोधी ने लोगों को इस हद तक गुमराह किया होता है कि वे मनुष्यों जैसे नहीं लगते या उनमें परमेश्वर का अनुसरण करने का दिमाग नहीं रह जाता; इसके बजाय, वे मसीह-विरोधी की आराधना करते हैं और उसका अनुसरण करते हैं। क्या ये लोग परमेश्वर के साथ धोखा नहीं कर रहे हैं? यदि तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो, लेकिन उसने तुम्हें नहीं जीता है, और मसीह-विरोधी ने तुम्हारा दिल जीत लिया है, और तुम पूरे दिल से उसका अनुसरण करते हो, तो साबित होता है कि उसने तुम्हें परमेश्वर के घर से दूर कर दिया है। एक बार जब तुम परमेश्वर की देखभाल और सुरक्षा से, परमेश्वर के घर से दूर हो जाते हो, तो मसीह-विरोधी तुम्हें अपनी इच्छानुसार नचा सकता है और तुम्हारे साथ खिलवाड़ कर सकता है। जब तुम्हारे साथ उसका खेल पूरा हो जाता है, तो तुम में उसकी रुचि खत्म हो जाती है, और वह दूसरों को गुमराह करना शुरू कर देता है। यदि तुम उसकी बातों को सुनना जारी रखते हो और तुम्हारे पास उसके लिए फायदा उठाने लायक कोई बात है, तो वह तुम्हें कुछ और समय तक साथ चलने दे सकता है। हालाँकि, अगर उसे तुमसे फायदा उठाने लायक कोई बात नहीं दिखती, यदि उसके मन में तुम्हारे लिए कोई सम्मान नहीं बचा है, तो वह तुम्हें त्याग देगा। क्या तुम अभी भी परमेश्वर में विश्वास करने के लिए वापस आ सकते हो? (नहीं।) तुम अब और विश्वास क्यों नहीं कर सकते? क्योंकि तुम्हारी आरंभिक आस्था चली गई है; खत्म हो गई है। मसीह-विरोधी इसी तरह से लोगों को गुमराह करते हैं और नुकसान पहुँचाते हैं। वे लोगों द्वारा आराधित ज्ञान और शिक्षा का उपयोग अपनी खूबियों के साथ मिलाकर लोगों को गुमराह करने और नियंत्रित करने के लिए करते हैं, ठीक वैसे ही जैसे शैतान ने आदम और हव्वा को गुमराह किया था। मसीह-विरोधियों के प्रकृति सार की परवाह किए बिना, इस बात का ख्याल किए बिना कि उनके प्रकृति सार में उन्हें क्या पसंद है, किस बात से घृणा है और किस बात का वे सम्मान करते हैं, एक बात तय है कि जो चीज उन्हें पसंद है और लोगों को गुमराह करने के लिए वे जिस बात का उपयोग करते हैं वह सत्य के विरुद्ध है, उसका सत्य से कोई लेना-देना नहीं है, और वह परमेश्वर के प्रति शत्रुतापूर्ण है—इतना तो तय है। याद रखो : मसीह-विरोधियों की कभी भी परमेश्वर से सुसंगति नहीं हो सकती।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद सात : वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (भाग तीन)

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