8. मसीह-विरोधियों के शातिर स्वभाव को कैसे पहचानें

अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन

मसीह-विरोधियों के स्वभाव-सार का एक और अंग क्रूरता है। मसीह-विरोधियों को एक वाक्यांश में सारांशित किया जा सकता है : मसीह-विरोधी बुरे लोग होते हैं। जब उनके पास हैसियत होती है, तब तो यह स्पष्ट हो ही जाता है कि वे मसीह-विरोधी हैं। जब उनके पास हैसियत नहीं होती, तब तुम यह कैसे आँक सकते हो कि वे मसीह-विरोधी हैं या नहीं? तुम्हें उनकी मानवता देखनी चाहिए। अगर उनकी मानवता दुर्भावनापूर्ण, कपटपूर्ण और जहरीली हो, तो वे शत-प्रतिशत मसीह-विरोधी होते हैं। ... मसीह-विरोधियों की क्रूरता एक स्वभाव, एक सार होता है—वह एक वास्तविक शैतानी सार होता है। यह कोई सहज प्रवृत्ति नहीं होती, न ही दैहिक आवश्यकता होती है, बल्कि यह मसीह-विरोधियों के स्वभाव की अभिव्यक्ति और विशेषता होती है। तो मसीह-विरोधियों के क्रूर स्वभाव की अभिव्यक्तियाँ, प्रकाशन और नजरिये क्या होते हैं? उनके कौन-से क्रियाकलाप दर्शाते हैं कि उनका स्वभाव क्रूर है, उनमें बुरे लोगों का सार है? तुम लोग अपने विचार साझा करो। (वे दूसरों को दंडित करते हैं।) (वे उन लोगों को दबाते और बहिष्कृत करते हैं, जो उनसे अलग होते हैं।) (वे दूसरों को फँसाते हैं और उनके लिए जाल बिछाते हैं।) (वे लोगों को नियंत्रित और प्रभावित करते हैं।) (वे गुट बनाते हैं और कलह के बीज बोते हैं।) गुट बनाना और कलह के बीज बोना थोड़ा कपटपूर्ण है; ये दुष्ट स्वभाव की अभिव्यक्तियाँ हैं, लेकिन वे क्रूरता के स्तर तक नहीं पहुँचतीं। धारणाएँ फैलाना, स्वतंत्र राज्य स्थापित करना—क्या ये क्रूरताएँ हैं? (हाँ।) कार्य-व्यवस्थाओं का विरोध करना, परमेश्वर के घर के कार्य में बाधा डालना, परमेश्वर के चढ़ावे हड़पना और सीधे परमेश्वर का विरोध करना—क्या ये क्रूरताएँ हैं? (हाँ।) चढ़ावे हड़पना सिर्फ लालच नहीं है; यह बुरे स्वभाव की अभिव्यक्ति भी है। मसीह-विरोधियों का चढ़ावे हड़पना एक अत्यंत क्रूर स्वभाव दर्शाता है, जो डाकुओं के स्वभाव के बराबर है। जो मदें हमने अभी सारांशित की हैं, उन्हें दोबारा बताओ। (वे दूसरों को दंडित करते हैं, उन लोगों को दबाते और बहिष्कृत करते हैं, जो उनसे अलग होते हैं, उन्हें फँसाते हैं और उनके लिए जाल बिछाते हैं, लोगों को नियंत्रित और प्रभावित करते हैं, धारणाएँ फैलाते हैं, स्वतंत्र राज्य स्थापित करते हैं, कार्य-व्यवस्थाओं का विरोध करते हैं, परमेश्वर पर हमला करते हैं और चढ़ावे हड़प लेते हैं।) ये कुल नौ मदें हैं। ये कमोबेश मसीह-विरोधियों के क्रूर स्वभाव की अभिव्यक्तियाँ हैं। दरअसल कुछ विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ और भी हैं, लेकिन वे इनसे लगभग मिलती-जुलती ही हैं, इसलिए मैं उन्हें विस्तार से सूचीबद्ध नहीं करूँगा। संक्षेप में, जो लोग ये नजरिये और रणनीतियाँ अपनाते हैं, वे बुरे लोग होते हैं। एक ओर, उनके तरीके कपटपूर्ण होते हैं, उदाहरण के लिए, फँसाना, जाल बिछाना और धारणाएँ फैलाना, ये सभी अपेक्षाकृत कपटपूर्ण हैं। दूसरी ओर, उनकी रणनीतियाँ काफी जहरीली और भयंकर होती हैं, जो उन्हें क्रूर स्वभाव वाला बनाती हैं।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, प्रकरण छह : मसीह-विरोधियों के चरित्र और उनके स्वभाव सार का सारांश (भाग तीन)

मसीह-विरोधियों की प्रकृति की मुख्य विकृतियों में से एक है शातिरपन। “शातिरपन” का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि सत्य के बारे में उनका एक विशेष रूप से नीच रवैया होता है—न केवल उसके प्रति समर्पण करने में विफल होना, और न केवल उसे स्वीकार करने से मना करना, बल्कि उन लोगों की निंदा तक करना, जो उनकी काट-छाँट करते हैं। यह मसीह-विरोधियों का शातिर स्वभाव है। मसीह-विरोधियों को लगता है कि जो भी व्यक्ति अपनी काट-छाँट स्वीकार करता है, वह इतना असुरक्षित होता है कि उसके साथ दबंगई हो सकती है और हमेशा दूसरों की काट-छाँट करने वाले लोग हमेशा लोगों को तंग करना और धौंस देना चाहते हैं। इसलिए मसीह-विरोधी हर उस व्यक्ति का विरोध करते हैं और उसके लिए समस्या खड़ी करते हैं जो उनकी काट-छाँट करता है। और जो कोई मसीह-विरोधी की कमियाँ या भ्रष्टता सामने लाता है, या सत्य और परमेश्वर के इरादों के बारे में उनके साथ सहभागिता करता है, या उन्हें स्वयं को जानने के लिए बाध्य करता है, वे सोचते हैं कि वह व्यक्ति उनके लिए समस्या खड़ी कर रहा है और उन्हें अप्रिय लगता है। वे उस व्यक्ति से अपने दिल की गहराई से नफरत करते हैं, उससे बदला लेते हैं और उसके लिए मुश्किलें खड़ी करते हैं। मसीह-विरोधी अपनी काट-छाँट को कैसे लेते हैं, इसकी एक और अभिव्यक्ति है जिसके बारे में हम संगति करेंगे। जो कोई भी उनकी काट-छाँट करता है और उन्हें उजागर करता है वे उससे नफरत करते हैं। यह मसीह-विरोधियों की बहुत स्पष्ट अभिव्यक्ति है। किस तरह के लोग ऐसे शातिर स्वभाव के होते हैं? बुरे लोग। सच तो यह है कि मसीह-विरोधी बुरे लोग होते हैं। इसलिए, केवल बुरे लोग और मसीह-विरोधी ही ऐसे शातिर स्वभाव के होते हैं। जब एक शातिर व्यक्ति को किसी भी प्रकार के सुविचारित उपदेश, आरोप, सीख या सहायता का सामना करना पड़ता है, तो उसका रवैया आभार जताने या विनम्रतापूर्वक इसे स्वीकारने का नहीं होता है, बल्कि वह शर्म से लाल हो जाता है, और अत्यंत शत्रुता, नफरत, और यहाँ तक कि प्रतिशोध का भाव महसूस करता है। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो यह कहते हुए मसीह-विरोधी की काट-छाँट और उसे उजागर करते हैं, “तुम लोग इन दिनों बेलगाम हो गए हो, तुमने सिद्धांत के अनुसार काम नहीं किया है और तुम अपने कर्तव्य निभाते हुए लगातार खुद पर इतराते रहे हो। तुमने रुतबे की खातिर काम करते हुए अपने कर्तव्य को पूरी तरह से अस्त-व्यस्त कर दिया है। क्या तुमने परमेश्वर के अनुसार सही किया है? तुमने अपना कर्तव्य निभाते हुए सत्य क्यों नहीं खोजा? तुम सिद्धांत के अनुसार कार्य क्यों नहीं कर रहे हो? जब भाई-बहनों ने तुम्हारे साथ सत्य के बारे में संगति की तो तुमने इसे स्वीकार क्यों नहीं किया? तुमने उन्हें अनदेखा क्यों किया? तुम अपनी मर्जी से काम क्यों कर रहे हो?” ये कई सवाल, ये शब्द जो उनकी भ्रष्टता के प्रकाशन को उजागर करते हैं—उन्हें अंदर तक झकझोर देते हैं : “क्यों? ऐसा कोई ‘क्यों’ नहीं है—मैं जो चाहता हूँ वही करता हूँ! तुम्हें मेरी काट-छाँट करने का अधिकार किसने दिया? ऐसा करने वाले तुम होते कौन हो? मैं अपनी मनमानी करूँगा; तुम मेरा क्या बिगाड़ लोगे? अब जब मैं इस उम्र में पहुँच गया हूँ, तो कोई भी मुझसे इस तरह बात करने की हिम्मत नहीं करता। केवल मैं ही दूसरों से इस तरह बात कर सकता हूँ; कोई और मुझसे इस तरह बात नहीं कर सकता। मुझ पर भाषण झाड़ने की हिम्मत कौन कर सकता है? मुझे भाषण देने वाला व्यक्ति अभी तक पैदा ही नहीं हुआ! क्या तुम्हें वाकई लगता है कि तुम मुझे भाषण दे सकते हो?” उनके दिलों की गहराई में नफरत बढ़ती जाती है और वे बदला लेने का मौका तलाशते हैं। अपने मन में वे हिसाब लगा रहे होते हैं : “क्या मेरे साथ काट-छाँट करने वाले इस व्यक्ति के पास कलीसिया में शक्ति है? अगर मैं उसके खिलाफ जवाबी कार्रवाई करता हूँ तो क्या कोई उसके लिए आवाज उठाएगा? अगर मैं उसे तकलीफ पहुँचाता हूँ तो क्या कलीसिया मुझसे निपटेगी? मेरे पास एक उपाय है। मैं उसके खिलाफ व्यक्तिगत रूप से जवाबी कार्रवाई नहीं करूँगा; मैं एकदम गुप्त रूप से कुछ करूँगा। मैं उसके परिवार के साथ कुछ ऐसा करूँगा जिससे उसे तकलीफ और शर्मिंदगी हो, इस तरह मैं इस नाराजगी से बच जाऊँगा। मुझे बदला लेना ही होगा। अब मैं इस मामले को छोड़ नहीं सकता। मैंने परमेश्वर में विश्वास रखना इसलिए शुरू नहीं किया कि मुझ पर धौंस जमाई जाए और मैं यहाँ इसलिए नहीं आया कि लोग मनमर्जी से मेरे साथ दादागीरी करें; मैं आशीष पाने और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के लिए आया हूँ! जैसे पेड़ को उसकी छाल की जरूरत है वैसे ही लोगों को आत्मसम्मान की जरूरत है। लोगों में अपनी गरिमा के लिए लड़ने की हिम्मत होनी चाहिए। मुझे उजागर करने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई। यह तो सरासर धौंस जमाना है! चूँकि तुम मेरे साथ एक महत्वपूर्ण व्यक्ति की तरह पेश नहीं आते, तो मैं तुम्हारा जीना हराम कर दूँगा, और तुम नतीजे भुगतने के लिए मजबूर होगे। चलो लड़कर देखते हैं कि कौन ज्यादा भारी है!” उजागर करने के कुछ सरल शब्द ही मसीह-विरोधियों को भड़का देते हैं और उनमें इतनी ज्यादा घृणा पैदा करते हैं कि वे बदला लेने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। उनका शातिर स्वभाव पूरी तरह से उजागर हो जाता है। बेशक, जब वे घृणा के कारण किसी के खिलाफ जवाबी कार्रवाई करते हैं, तो ऐसा इसलिए नहीं होता है कि उन्हें उस व्यक्ति से नफरत है या उसके खिलाफ कोई पुरानी दुश्मनी है, बल्कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उस व्यक्ति ने उनकी गलतियों को उजागर किया है। इससे पता चलता है कि किसी मसीह-विरोधी को उजागर करने का कार्य मात्र, चाहे यह कोई भी करे, और चाहे मसीह-विरोधी के साथ उसका संबंध जो भी हो, उसकी नफरत और बदले की आग को भड़का सकती है। चाहे वह कोई भी हो, चाहे वह सत्य को समझता हो या नहीं, चाहे वह अगुआ हो या कार्यकर्ता या परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से कोई मामूली व्यक्ति, अगर कोई मसीह-विरोधियों को उजागर कर उनकी काट-छाँट करता है तो वे उस व्यक्ति को अपना शत्रु मानेंगे। वे खुलेआम यह भी कहेंगे, “जो कोई भी मेरी काट-छाँट करेगा, मैं उसके साथ सख्ती से पेश आऊँगा। जो कोई भी मेरी काट-छाँट करेगा, मेरे रहस्य उजागर करेगा, मुझे परमेश्वर के घर से निष्कासित करवाएगा या मेरे हिस्से के आशीष मुझसे छीन लेगा, मैं उसे कभी नहीं छोड़ूँगा। लौकिक संसार में भी मैं ऐसा ही हूँ : कोई भी मुझे तकलीफ देने की हिमाकत नहीं करता। मुझे परेशान करने की हिम्मत करने वाला व्यक्ति अभी तक पैदा नहीं हुआ!” मसीह-विरोधी अपनी काट-छाँट का सामना करने पर ऐसे ही रूखे शब्द बोलते हैं। जब वे ये रूखे शब्द बोलते हैं तो इसका उद्देश्य दूसरों को डराना नहीं होता है, न ही वे खुद को बचाने के लिए ऐसा कहते हैं। वे वास्तव में बुरा करने में सक्षम हैं और वे अपने पास उपलब्ध किसी भी साधन का इस्तेमाल करने को तैयार हैं। यह मसीह-विरोधियों का शातिर स्वभाव है।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग आठ)

जब मसीह-विरोधियों की काट-छाँट की जाती है, तो उनका रवैया स्वीकारने और आज्ञापालन करने का नहीं होता। बल्कि वे इसके प्रतिरोधी और इससे विमुख होते हैं, जिससे नफरत पैदा होती है। वे अपने दिल की गहराई से उन सबसे नफरत करते हैं जो उनकी काट-छाँट करते हैं, जो उनके रहस्यों को प्रकट करते हैं और उनकी वास्तविक परिस्थितियों को उजागर करते हैं। वे किस हद तक तुमसे नफरत करते हैं? वे नफरत से अपने दाँत पीसते हैं, चाहते हैं कि तुम उनकी नजरों से ओझल हो जाओ और ऐसा महसूस करते हैं कि तुम दोनों एक साथ नहीं रह सकते। अगर मसीह-विरोधी लोगों के साथ ऐसा करते हैं, तो क्या वे परमेश्वर के उन वचनों को स्वीकार सकते हैं जो उन्हें उजागर करते हैं और उनकी निंदा करते हैं? नहीं, वे ऐसा नहीं कर सकते। जो कोई भी उन्हें उजागर करता है, वे सिर्फ उन्हें उजागर करने और उनके अनुकूल नहीं होने के कारण उनसे नफरत करेंगे और प्रतिशोध लेंगे। वे चाहते हैं कि काश उस व्यक्ति को अपनी नजरों से दूर कर सकें जिसने उनकी काट-छाँट की। वे इस व्यक्ति को कुछ भी अच्छा करते हुए नहीं देख सकते। अगर यह व्यक्ति मर जाए या आपदा में फँस जाए तो वे खुश होंगे; अगर यह व्यक्ति जिंदा है और अभी भी परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य निभा रहा है और सब कुछ सामान्य रूप से चलता रहता है तो उनके दिलों में पीड़ा, बेचैनी और झुँझलाहट होती है। जब उनके पास किसी व्यक्ति के विरुद्ध प्रतिशोध लेने का कोई रास्ता नहीं होता है तो वे मन-ही-मन उसे कोसते हैं या परमेश्वर से उस व्यक्ति को दंड और प्रतिफल देने और साथ ही अपनी शिकायतों का निवारण करने की प्रार्थना तक करते हैं। एक बार जब मसीह-विरोधियों में ऐसी नफरत पैदा हो जाती है तो वे कई तरह के क्रियाकलाप करने लगते हैं। इनमें प्रतिशोध लेना, शाप देना और बेशक कुछ अन्य क्रियाकलाप करना भी शामिल हैं, जैसे कि दूसरों को फँसाना, बदनाम करना और निंदा करना, जो नफरत से जन्म लेते हैं। अगर कोई उनकी काट-छाँट करता है तो वे उस व्यक्ति की पीठ पीछे उसे हानि पहुँचाएँगे। जब वह व्यक्ति कुछ सही कहेगा तो वे उसे गलत कहेंगे। वे उस व्यक्ति द्वारा की गई सभी सकारात्मक चीजों को बिगाड़ देंगे और उन्हें नकारात्मक बना देंगे, इन झूठों को फैलाएँगे और उनकी पीठ पीछे गड़बड़ी पैदा करेंगे। वे उन लोगों को भड़काकर अपनी ओर आकर्षित करते हैं जो अनजान हैं और चीजों की असलियत नहीं समझ सकते या इनका भेद नहीं पहचान सकते, ताकि ये लोग उनके पक्ष में शामिल होकर उनका समर्थन करें। जाहिर है कि उनकी काट-छाँट करने वाले व्यक्ति ने कुछ भी खराब नहीं किया है, फिर भी वे इस व्यक्ति पर कुछ गलत कामों का आरोप लगाना चाहते हैं, ताकि हर कोई गलती से यह मान ले कि वे इस तरह के काम करते हैं और फिर सभी को इस व्यक्ति को ठुकराने के लिए एक साथ आने को मजबूर कर दें। मसीह-विरोधी इस तरह से कलीसियाई जीवन में बाधा डालते हैं और लोगों के लिए उनके कर्तव्य निभाने में बाधक बनते हैं। उनका लक्ष्य क्या है? यह उनकी काट-छाँट करने वाले व्यक्ति के लिए चीजें मुश्किल बनाना और सभी को इस व्यक्ति को त्यागने के लिए मजबूर करना है। कुछ मसीह-विरोधी ऐसे भी हैं जो कहते हैं : “तुमने मेरी काट-छाँट कर मेरे लिए चीजें मुश्किल बनाई हैं, इसलिए मैं तुम्हें चैन से जीने नहीं दूँगा। मैं तुम्हें इसका स्वाद चखाऊँगा कि काट-छाँट किए जाने और त्यागे जाने का क्या मतलब होता है। तुम मेरे साथ जैसा सलूक करोगे, मैं भी तुम्हारे साथ वैसा ही करूँगा। अगर तुम मुझे चैन से जीने नहीं दोगे, तो यह मत सोचो कि तुम चैन से जी सकोगे!” जब मसीह-विरोधी बुरे काम करते हैं, तो कुछ अगुआ और कार्यकर्ता उन्हें बातचीत के लिए बुलाते हैं, उनसे कहते हैं कि उन्हें पश्चात्ताप करना चाहिए और वे उन्हें मदद और सहारा देने के लिए परमेश्वर के वचन पढ़कर सुनाते हैं। लेकिन न केवल वे इसे स्वीकार नहीं करते, बल्कि अफवाहें भी फैलाते हैं कि अगुआ कोई वास्तविक कार्य नहीं करता और समस्याएँ हल करने के लिए कभी भी परमेश्वर के वचन का उपयोग नहीं करता। वास्तव में, अगुआ ने ऐसा काम किया है, मगर वे तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करते हैं और उनकी मदद करने वाले व्यक्ति को बदनाम करते हैं। क्या यह शातिरपन नहीं है? ये बुरे लोग और मसीह-विरोधी जानबूझकर यह दावा करते हैं कि सकारात्मक चीजें नकारात्मक हैं, और यह कि उनके गलत काम, गलतियाँ, दुष्ट कर्म और दुर्भावनापूर्ण कृत्य ऐसी सकारात्मक चीजें हैं जो सत्य के अनुरूप हैं। अपने कर्तव्य निभाते समय वे चाहे कितनी भी बड़ी गलती कर दें, कलीसिया के कार्य को चाहे जितना भी नुकसान पहुँचाएँ, वे इसे स्वीकार नहीं करते या इसे बिल्कुल भी गंभीरता से नहीं लेते हैं। जब वे इसके बारे में बात करते हैं, तो वे इसे कम करके दिखाते हैं और लीपा-पोती कर देते हैं। इस मामले के कारण जो व्यक्ति उनकी काट-छाँट करता है वह उनकी नजरों में पापी बनकर आलोचना का निशाना बन जाता है। क्या यह सच को झूठ कहना नहीं है? जब अगुआ या कार्यकर्ता मसीह-विरोधियों की काट-छाँट करते हैं तो उनमें से कुछ यह कहते हुए उन पर झूठे आरोप भी लगाते हैं : “हम भाई-बहन जो भी गलतियाँ करते हैं, वे सभी अज्ञानता के कारण और अगुआओं और कार्यकर्ताओं के अच्छे काम न कर पाने के कारण होती हैं। अगर अगुआ और कार्यकर्ता अपना काम करना जानें, हमें तुरंत चीजें याद दिलाते रहें, और चीजों का प्रबंध अच्छी तरह से करें, तो क्या परमेश्वर के घर को होने वाले नुकसान कम नहीं होंगे? इसलिए हम चाहे कोई भी गलती करें, अगुआ और कार्यकर्ता ही पूरी तरह से दोषी हैं और उन्हें सबसे बड़ी जिम्मेदारी लेनी चाहिए।” क्या ये झूठे जवाबी दावे नहीं हैं? ये झूठे जवाबी दावे सच को झूठ कहना और एक प्रकार का प्रतिशोध हैं।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग आठ)

एक बार जब मसीह-विरोधियों को बदला या हटाया जाता है, तो वे लड़ने को तैयार हो जाते हैं और बिना रुके शिकायत करते हैं, और उनका राक्षसी पक्ष उजागर हो जाता है। कौन-सा राक्षसी पक्ष उजागर होता है? अतीत में उन्होंने अपने कर्तव्य सत्य का अनुसरण करने और उद्धार पाने के लिए बिल्कुल नहीं निभाए थे, बल्कि आशीष पाने के लिए निभाए थे और अब वे इस बारे में सत्य बताते हैं और वास्तविक स्थिति को प्रकट करते हैं। वे कहते हैं : “अगर मैं स्वर्ग के राज्य में जाने या बाद में आशीष और महान महिमा पाने की कोशिश नहीं कर रहा होता, तो क्या मैं गोबर से भी गए-गुजरे तुम लोगों के साथ घुलता-मिलता? क्या तुम लोग मेरी मौजूदगी के लायक भी हो? तुम लोग मुझे प्रशिक्षित नहीं करते या मुझे पदोन्नति नहीं देते और तुम मुझे हटा देना चाहते हो। एक दिन मैं तुम्हें दिखाऊँगा कि मुझे हटाने के लिए तुम्हें कीमत चुकानी होगी और इसके कारण तुम्हें दुष्परिणाम भुगतने होंगे!” मसीह-विरोधी इन विचारों का प्रसार करते हैं और ये शैतानी शब्द उनके मुँह से निकल जाते हैं। एक बार जब वे लड़ने को तैयार हो जाते हैं, तो उनकी दुर्भावनापूर्ण प्रकृति और शातिर स्वभाव उजागर हो जाता है, और वे धारणाएँ फैलाना शुरू कर देते हैं। वे उन लोगों को भी अपने साथ जोड़ना शुरू कर देते हैं जो नए विश्वासी हैं, जिनका आध्यात्मिक कद अपेक्षाकृत छोटा है और जिनमें विवेक की कमी है, जो सत्य का अनुसरण नहीं करते हैं और जो अक्सर नकारात्मक और कमजोर होते हैं, और वे उन लोगों को भी अपने साथ जोड़ते हैं जो अपने कर्तव्यों में लगातार लापरवाह होते हैं और जो वास्तव में परमेश्वर में विश्वास नहीं करते हैं। जैसा कि उन्होंने खुद कहा, “अगर तुम मुझे हटा देते हो तो मुझे अपने साथ कई अन्य लोगों को भी नीचे खींचना होगा!” क्या उनकी शैतानी प्रकृति बेनकाब नहीं हुई है? क्या सामान्य लोग ऐसा करेंगे? आम तौर पर, भ्रष्ट स्वभाव वाले लोग बरखास्त होने पर दुखी और आहत महसूस करते हैं, वे खुद को नाउम्मीद मानते हैं, लेकिन उनका जमीर उन्हें सोचने पर मजबूर करता है : “यह मेरी गलती है, मैंने अपने कर्तव्य अच्छे से नहीं निभाए। भविष्य में मैं बेहतर करने का प्रयास करूँगा, और फिर परमेश्वर मेरे साथ कैसा व्यवहार करता है और मेरे बारे में क्या निर्धारित करता है, यह परमेश्वर का काम है। लोगों को परमेश्वर से माँग करने का कोई अधिकार नहीं है। क्या परमेश्वर के कार्य लोगों की अभिव्यक्तियों पर आधारित नहीं हैं? कहने की जरूरत नहीं है कि अगर कोई गलत रास्ते पर चलता है तो उसे अनुशासित और दंडित किया जाना चाहिए। अभी तो दुख की बात यह है कि मेरी काबिलियत कम है और मैं परमेश्वर के इरादे पूरे नहीं कर सकता, मैं सत्य सिद्धांत नहीं समझता और अपने भ्रष्ट स्वभावों के आधार पर मनमाने ढंग से और अपनी मर्जी से काम करता हूँ। मैं हटा दिए जाने के लायक हूँ, लेकिन मुझे उम्मीद है कि मुझे भविष्य में इसकी भरपाई करने का मौका मिलेगा!” थोड़े-से जमीर वाले लोग इस तरह के रास्ते पर चलेंगे। वे इस तरह से समस्या पर विचार करने का फैसला करते हैं और अंत में, वे इस तरह से समस्या हल करने का फैसला भी करते हैं। बेशक, इसके भीतर सत्य का अभ्यास करने के बहुत सारे तत्व नहीं हैं, लेकिन चूँकि इन लोगों में जमीर है, इसलिए वे परमेश्वर का प्रतिरोध करने, परमेश्वर का तिरस्कार करने या परमेश्वर का विरोध करने की हद तक नहीं जाएँगे। लेकिन मसीह-विरोधी उनके जैसे नहीं हैं। चूँकि उनकी शातिर प्रकृति है, इसलिए वे स्वाभाविक रूप से परमेश्वर के विरोधी हैं। जब उनकी संभावनाओं और नियति को खतरा होता है या उनसे छीन लिया जाता है, जब उन्हें जीने का कोई अवसर नहीं दिखता है, तो वे धारणाएँ फैलाना, परमेश्वर के कार्य की आलोचना करना और उन छद्म-विश्वासियों को अपने साथ जोड़ने का फैसला करते हैं जो उनके साथ मिलकर परमेश्वर के घर के कार्य को बाधित करते हैं। वे अपने पिछले किसी भी कुकर्म और अपराध के लिए और साथ ही परमेश्वर के घर के कार्य या संपत्ति को हुए किसी भी नुकसान की जिम्मेदारी लेने तक से इनकार करते हैं। जब परमेश्वर का घर उनसे निपटता है और उन्हें हटा देता है, तो वे एक ऐसा वाक्य कहते हैं जो अक्सर मसीह-विरोधी बोलते हैं। यह क्या है? (अगर यह जगह मुझे नहीं रखेगी तो मेरे लिए एक दूसरी जगह तैयार है।) क्या यह एक और शैतानी वाक्य नहीं है? यह कुछ ऐसा है जो सामान्य मानवता, शर्म की भावना और जमीर वाला व्यक्ति नहीं कह सकता। हम उन्हें शैतानी शब्द कहते हैं। ये उन शातिर स्वभावों की विभिन्न अभिव्यक्तियाँ हैं जो मसीह-विरोधी तब प्रकट करते हैं जब उनकी काट-छाँट की जाती है और उन्हें लगता है कि उनका रुतबा और प्रतिष्ठा खतरे में है, उनके रुतबे और प्रतिष्ठा को खतरा पहुँचाया जा रहा है और विशेष रूप से वे अपनी संभावनाओं और नियति से वंचित होने वाले हैं; इसी समय, उनका छद्म-विश्वासी सार उजागर होता है।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग आठ)

मसीह-विरोधी अपनी हैसियत और प्रतिष्ठा को किसी भी चीज से ज्यादा महत्वपूर्ण मानते हैं। ये लोग कपटी, चालाक और दुष्ट ही नहीं, बल्कि अत्यधिक विद्वेषपूर्ण भी होते हैं। जब उन्हें पता चलता है कि उनकी हैसियत खतरे में है, या जब वे लोगों के दिलों में अपना स्थान खो देते हैं, जब वे लोगों का समर्थन और स्नेह खो देते हैं, जब लोग उनका आदर-सम्मान नहीं करते, और वे बदनामी के गर्त में गिर जाते हैं, तो वे क्या करते हैं? वे अचानक बदल जाते हैं। जैसे ही वे अपनी हैसियत खो देते हैं, वे कोई भी कर्तव्य निभाने के लिए तैयार नहीं होते, वे जो कुछ भी करते हैं, अनमने होकर करते हैं, और उनकी कुछ भी करने में कोई दिलचस्पी नहीं रहती। लेकिन यह सबसे खराब अभिव्यक्ति नहीं होती। सबसे खराब अभिव्यक्ति क्या होती है? जैसे ही ये लोग अपनी हैसियत खो देते हैं और कोई उनका सम्मान नहीं करता, कोई भी उनसे गुमराह नहीं होता, तो उनकी घृणा, ईर्ष्या और प्रतिशोध बाहर आ जाता है। उनके पास न केवल परमेश्वर का भय मानने वाला दिल नहीं रहता, बल्कि उनमें समर्पण का कोई अंश भी नहीं होता। इसके अतिरिक्त, उनके दिलों में परमेश्वर के घर, कलीसिया, अगुआओं और कार्यकर्ताओं से घृणा करने की संभावना होती है; वे दिल से चाहते हैं कि कलीसिया के कार्य में समस्याएँ आ जाएँ या वह ठप हो जाए; वे कलीसिया, और भाई-बहनों पर हँसना चाहते हैं। वे उस व्यक्ति से भी घृणा करते हैं, जो सत्य का अनुसरण करता है और परमेश्वर का भय मानता है। वे उस व्यक्ति पर हमला करते हैं और उसका मजाक उड़ाते हैं, जो अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठावान और कीमत चुकाने का इच्छुक होता है। यह मसीह-विरोधियों का स्वभाव है—और क्या यह विद्वेषपूर्ण नहीं है? ये स्पष्ट रूप से बुरे लोग हैं; मसीह-विरोधी अपने सार में बुरे लोग होते हैं। यहाँ तक कि जब सभाएँ ऑनलाइन आयोजित की जाती हैं, अगर वे देखते हैं कि सिग्नल अच्छा है, तो वे मन-ही-मन कोसते हैं और कहते हैं : “काश कि सिग्नल चला जाए! काश कि सिग्नल चला जाए! बेहतर है, कोई उपदेश न सुन पाए!” ये लोग क्या हैं? (राक्षस।) वे राक्षस हैं! वे निश्चित रूप से परमेश्वर के घर के लोग नहीं हैं। इस तरह के दानव और बुरे लोग माहौल को इस तरह बिगाड़ते हैं, फिर चाहे वे किसी भी कलीसिया में हों। भले ही समझदार लोग उन्हें उजागर करें और उन्हें रोकें, वे आत्म-चिंतन नहीं करेंगे या अपनी गलतियाँ स्वीकार नहीं करेंगे। वे सोचेंगे कि यह उनकी ओर से बस एक क्षणिक गलती थी और उन्हें इससे सीख लेनी चाहिए। ऐसे लोग, जो पश्चात्ताप करने को बिल्कुल भी तैयार नहीं हैं, वे समर्पण नहीं करेंगे, भले ही कोई भी उन्हें पहचाने और उजागर करे। वे उस व्यक्ति के खिलाफ प्रतिकार करना चाहेंगे। जब उन्हें असहज महसूस हो, तो वे नहीं चाहते कि भाई-बहनों के लिए चीजें आसान रहें। अपने दिलों में, वे चोरी-छिपे भाई-बहनों को कोसते हैं, उनके साथ बुरा होने की कामना करते हैं, और परमेश्वर के घर के कार्य को भी कोसते हुए चाहते हैं कि उसमें मुसीबत आए। जब परमेश्वर के घर में कुछ भी गलत होता है, तो वे चोरे-छिपे खुश होते और जश्न मनाते हैं, सोचते हैं, “हुँह! आखिरकार, कुछ गलत हो ही गया। यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि तुमने मुझे हटाया। अच्छा है जो सब कुछ बिखर रहा है!” वे दूसरों को कमजोर पड़ते और निराश होते देखकर खुश होते हैं और उसका आनंद लेते हैं, वे लोगों को बदनाम करने के लिए उनका मजाक बनाते और हँसी उड़ाते हैं, और यहाँ तक कि नकारात्मकता और मौत के शब्द भी फैलाते हैं, कहते हैं, “हम विश्वासी अपने कर्तव्य निभाने के लिए अपने परिवार और करियर तक त्याग देते हैं और पीड़ा सहते हैं। क्या तुम्हें लगता है कि परमेश्वर का घर वास्तव में हमारे भविष्य की जिम्मेदारी ले सकता है? क्या तुमने कभी इस बारे में सोचा है? क्या यह उस कीमत के लायक है जो हम चुका रहे हैं? मैं अभी बहुत स्वस्थ नहीं हूँ, और अगर मैंने खुद को थका दिया, तो बुढ़ापे में मेरी देखभाल कौन करेगा?” वे ऐसी बातें कहते हैं ताकि हर कोई निराश महसूस करे—तभी उन्हें खुशी मिलती है। क्या वे बेकार नहीं हैं, बुरे और दुर्भावनापूर्ण नहीं हैं? क्या ऐसे लोगों को दंड नहीं मिलना चाहिए? (बिल्कुल मिलना चाहिए।) क्या तुम सबको लगता है कि ऐसे लोगों के दिलों में वास्तव में परमेश्वर बसता है? वे परमेश्वर में सच्चे विश्वासी नहीं लगते, वे यह बिल्कुल नहीं मानते कि परमेश्वर लोगों के दिलों की गहराई की पड़ताल करता है। क्या वे छद्म-विश्वासी नहीं हैं? अगर वे वाकई परमेश्वर में विश्वास करते, तो वे ऐसी बातें कैसे कहते? कुछ लोग कह सकते हैं कि ऐसा इसलिए है क्योंकि उनके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल नहीं है—क्या यह सही है? (नहीं, यह सही नहीं है।) यह गलत क्यों है? (परमेश्वर उनके दिलों में है ही नहीं; वे परमेश्वर के विरोध में हैं।) वास्तव में, वे ऐसी बातें कहने की हिम्मत इसलिए करते हैं क्योंकि वे परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते। वे इस बात पर और भी कम विश्वास करते हैं कि परमेश्वर सबकी पड़ताल कर रहा है, और वे यह भी नहीं मानते कि परमेश्वर उनकी हर कथनी और करनी, हर विचार और धारणा को देख रहा है। वे ये बातें नहीं मानते, इसलिए वे नहीं डरते और बेधड़क और बेईमानी से ऐसे दानवी शब्द बोल सकते हैं। गैर-विश्वासी अक्सर यह भी कहते हैं, “स्वर्ग की आँखें हैं” और “जब मनुष्य काम करता है, तो स्वर्ग देख रहा होता है।” थोड़ी-सी भी सच्ची आस्था वाला कोई भी व्यक्ति, छद्म-विश्वासियों के ये दानवी शब्द यूँ ही नहीं कहेगा। क्या ऐसी बातें सोचने और बोलने वाले विश्वासियों के लिए गंभीर परिणाम नहीं होंगे? क्या इसकी प्रकृति गंभीर नहीं है? यह बहुत गंभीर है! उनके परमेश्वर को इस तरह से ठुकराने का मतलब है कि वे पक्के शैतान हैं, और बुरे लोग हैं जिन्होंने परमेश्वर के घर में घुसपैठ की है। केवल दानव और मसीह-विरोधी ही परमेश्वर के खिलाफ खुलकर शोर मचाने की हिम्मत रखते हैं। परमेश्वर के घर के हित परमेश्वर के हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं, और परमेश्वर का घर जो कुछ भी करता है वह परमेश्वर की अगुआई में, उसकी अनुमति और उसके मार्गदर्शन से होता है; यह परमेश्वर के प्रबंधन कार्य से नजदीकी से जुड़ा हुआ है और इससे अलग नहीं किया जा सकता। जो लोग खुलेआम इस तरह से परमेश्वर के घर के काम को कोसते हैं, जो अपने दिलों में इसकी निंदा करते हैं, परमेश्वर के घर का मजाक उड़ाना चाहते हैं, जो चाहते हैं कि परमेश्वर के चुने हुए सभी लोग गिरफ्तार हो जाएँ, कलीसिया का काम पूरी तरह से रुक जाए, और विश्वासी अपनी आस्था से मुँह मोड़ लें, और जो ऐसा होने पर खुश हों—ये किस तरह के लोग हैं? (दानव हैं।) वे दानव हैं, वे पुनर्जन्म लेने वाले बुरे राक्षस हैं! साधारण लोगों में भ्रष्ट स्वभाव होते हैं, वे कभी-कभी विद्रोही हो जाते हैं, और जब वे निराश और कमजोर महसूस करते हैं, तो उनके मन में बस कुछ छोटे-मोटे विचार आते हैं, ज्यादा कुछ नहीं, मगर वे इतने बुरे नहीं होंगे या उनके मन में ऐसे बुरे और दुर्भावनापूर्ण विचार नहीं आएँगे। इस तरह का सार केवल मसीह-विरोधियों और दानवों में ही पाया जाता है। जब मसीह-विरोधियों के मन में ये विचार आते हैं, तो क्या उन्हें लगता है कि ये गलत हो सकते हैं? (नहीं, उन्हें ऐसा नहीं लगता।) क्यों नहीं? (क्योंकि वे जो सोचते और कहते हैं उसे ही सत्य मानते हैं। वे परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते, उनके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल नहीं होता, और उनकी प्रकृति परमेश्वर का विरोध करने की होती है।) बिल्कुल, यही उनकी प्रकृति है। शैतान ने कब कभी परमेश्वर को परमेश्वर माना है? उसने कब माना है कि परमेश्वर ही सत्य है? उसने कभी यह नहीं माना है, और न ही कभी मानेगा। मसीह-विरोधी और ये दानव, दोनों एक जैसे हैं; वे परमेश्वर को परमेश्वर नहीं मानते या उसे सत्य नहीं मानते। वे यह नहीं मानते कि परमेश्वर ने ही सभी चीजों की रचना की है और वही उन पर संप्रभुता रखता है। इसलिए उन्हें लगता है कि वे जो कहते हैं वही सही है। वे इस तरह बेईमानी से काम करते और सोचते हैं; यही उनकी प्रकृति है। जब भ्रष्ट मनुष्य ऐसा करते हैं, तो वे अपने भीतर संघर्ष महसूस करते हैं। उनके पास जमीर और मानवीय जागरूकता होती है। उनके जमीर, जागरूकता और वे जिन सत्यों को समझते हैं, वे उन्हें अंदर से प्रभावित करते हैं, और इससे उनमें संघर्ष पैदा होता है। जब यह संघर्ष पैदा होता है, तो उचित-अनुचित, सही-गलत, और न्याय और दुष्टता के बीच संघर्ष होता है, और इसका यह परिणाम निकलता है : सत्य का अनुसरण करने वाले लोग परमेश्वर के साथ खड़े होते हैं, जबकि जो लोग सत्य का अनुसरण नहीं करते वे शैतान की दुष्ट शक्तियों के साथ खड़े होते हैं। मसीह-विरोधी जो कुछ भी करते हैं वह सब शैतान के सहयोग से करते हैं। वे नकारात्मकता फैलाते हैं, अफवाहें फैलाते हैं, और परमेश्वर के घर का मजाक उड़ाते हैं। वे परमेश्वर के घर के कार्य और भाई-बहनों को कोसते हैं। वे यह सब करते हुए सहज भी महसूस करते हैं, उनका जमीर भी उन्हें दोषी नहीं ठहराता, और उन्हें जरा भी पछतावा नहीं होता, और वे मानते हैं कि उनके क्रियाकलाप बिल्कुल सही हैं। यह मसीह-विरोधियों की शैतानी प्रकृति, और परमेश्वर का विरोध करने वाले उनके बदसूरत चेहरों का पूरी तरह से खुलासा करता है। इसलिए, यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि मसीह-विरोधी पक्के दानव और शैतान हैं। मसीह-विरोधी जन्मजात दानव होते हैं और उन्हें परमेश्वर के उद्धार का बिल्कुल भी लाभ नहीं मिलता। वे साधारण भ्रष्ट मानवजाति का हिस्सा बिल्कुल नहीं हैं। मसीह-विरोधी दानवों का पुनर्जन्म होते हैं, वे जन्मजात बुरे राक्षस होते हैं। बात ऐसी ही है।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग दो)

मसीह-विरोधी के सार की सबसे स्पष्ट विशेषताओं में से एक यह होती है कि वे अपनी सत्ता का एकाधिकार और अपनी तानाशाही चलाते हैं : वे किसी की नहीं सुनते हैं, किसी का आदर नहीं करते हैं, और लोगों की क्षमताओं की परवाह किए बिना, या इस बात की परवाह किए बिना कि वे क्या सही विचार या बुद्धिमत्तापूर्ण मत व्यक्त करते हैं और कौन-से उपयुक्त तरीके सामने रखते हैं, वे उन पर कोई ध्यान नहीं देते; यह ऐसा है मानो कोई भी उनके साथ सहयोग करने या उनके किसी भी काम में भाग लेने के योग्य न हो। मसीह-विरोधियों का स्वभाव ऐसा ही होता है। कुछ लोग कहते हैं कि यह बुरी मानवता वाला होना है—लेकिन यह सामान्य बुरी मानवता कैसे हो सकती है? यह पूरी तरह से एक शैतानी स्वभाव है; और ऐसा स्वभाव अत्यंत क्रूरतापूर्ण है। मैं क्यों कहता हूँ कि उनका स्वभाव अत्यंत क्रूरतापूर्ण है? मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर और कलीसिया की संपत्ति से सब-कुछ हर लेते हैं और उससे अपनी निजी संपत्ति के समान पेश आते हैं जिसका प्रबंधन उन्हें ही करना हो, और वे इसमें किसी भी दूसरे को दखल देने की अनुमति नहीं देते हैं। कलीसिया का कार्य करते समय वे केवल अपने हितों, अपनी हैसियत और अपने गौरव के बारे में ही सोचते हैं। वे किसी को भी अपने हितों को नुकसान नहीं पहुँचाने देते, किसी योग्य व्यक्ति को या किसी ऐसे व्यक्ति को, जो अनुभवजन्य गवाही देने में सक्षम है, अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत को खतरे में डालने तो बिल्कुल भी नहीं देते। और इसलिए, वे उन लोगों को दमित करने और प्रतिस्पर्धियों के रूप में बाहर करने की कोशिश करते हैं, जो अनुभवजन्य गवाही के बारे में बोलने में सक्षम होते हैं, जो सत्य पर संगति कर सकते हैं और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को पोषण प्रदान कर सकते हैं, और वे हताशा से उन लोगों को बाकी सबसे पूरी तरह से अलग करने, उनके नाम पूरी तरह से कीचड़ में घसीटने और उन्हें नीचे गिराने की कोशिश करते हैं। सिर्फ तभी मसीह-विरोधी शांति का अनुभव करते हैं। अगर ये लोग कभी नकारात्मक नहीं होते और अपना कर्तव्य निभाते रहने में सक्षम होते हैं, अपनी गवाही के बारे में बात करते हैं और दूसरों की मदद करते हैं, तो मसीह-विरोधी अपने अंतिम उपाय की ओर रुख करते हैं, जोकि उनमें दोष ढूँढ़ना और उनकी निंदा करना है, या उन्हें फँसाना और उन्हें सताने और दंडित करने के लिए कारण गढ़ना है, और ऐसा तब तक करते रहते हैं, जब तक कि वे उन्हें कलीसिया से बाहर नहीं निकलवा देते हैं। सिर्फ तभी मसीह-विरोधी पूरी तरह से आराम कर पाते हैं। मसीह-विरोधियों की सबसे कपटी और द्वेषपूर्ण चीज यही है। उन्हें सबसे अधिक भय और चिंता उन्हीं लोगों से होती है, जो सत्य का अनुसरण करते हैं और जिनके पास सच्ची अनुभवात्मक गवाही होती है, क्योंकि जिन लोगों के पास ऐसी गवाही होती है, उन्हीं का परमेश्वर के चुने हुए लोग सबसे अधिक अनुमोदन और समर्थन करते हैं, न कि उन लोगों का, जो शब्दों और सिद्धांतों के बारे में खोखली बकवास करते हैं। मसीह-विरोधियों के पास सच्ची अनुभवात्मक गवाही नहीं होती, न ही वे सत्य का अभ्यास करने में सक्षम होते हैं; ज्यादा से ज्यादा वे लोगों की चापलूसी करने के लिए कुछ अच्छे काम करने में सक्षम होते हैं। लेकिन चाहे वे कितने भी अच्छे काम करें या कितनी भी कर्णप्रिय बातें कहें, वे फिर भी उन लाभों और फायदों का मुकाबला नहीं कर सकते, जो एक अच्छी अनुभवात्मक गवाही से लोगों को मिल सकते हैं। अपनी अनुभवात्मक गवाही के बारे में बात करने में सक्षम लोगों द्वारा परमेश्वर के चुने हुए लोगों को प्रदान किए जाने वाले पोषण और सिंचन के परिणामों का कोई विकल्प नहीं है। इसलिए, जब मसीह-विरोधी किसी को अपनी अनुभवात्मक गवाही के बारे में बात करते देखते हैं, तो उनकी निगाह खंजर बन जाती है। उनके दिलों में क्रोध प्रज्वलित हो उठता है, घृणा उभर आती है, और वे वक्ता को चुप कराने और आगे कुछ भी कहने से रोकने के लिए अधीर हो जाते हैं। अगर वे बोलते रहे, तो मसीह-विरोधियों की प्रतिष्ठा पूरी तरह से नष्ट हो जाएगी, उनके बदसूरत चेहरे पूरी तरह से सबके सामने आ जाएँगे, इसलिए मसीह-विरोधी गवाही देने वाले व्यक्ति को बाधित करने और दमित करने का बहाना ढूँढ़ते हैं। मसीह-विरोधी सिर्फ खुद को शब्दों और सिद्धांतों से लोगों को गुमराह करने देते हैं, वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को अपनी अनुभवजन्य गवाही देकर परमेश्वर को महिमामंडित नहीं करने देते, जो यह इंगित करता है कि किस प्रकार के लोगों से मसीह-विरोधी सबसे अधिक घृणा करते और डरते हैं। जब कोई व्यक्ति थोड़ा कार्य करके अलग दिखने लगता है, या जब कोई सच्ची अनुभवजन्य गवाही बताने में सक्षम होता है, और इससे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को लाभ, शिक्षा और सहारा मिलता है और इसे सभी से बड़ी प्रशंसा प्राप्त होती है, तो मसीह-विरोधियों के मन में ईर्ष्या और नफरत पैदा हो जाती है, और वे उस व्यक्ति को अलग-थलग करने और दबाने की कोशिश करते हैं। वे किसी भी परिस्थिति में ऐसे लोगों को कोई काम नहीं करने देते, ताकि उन्हें अपने रुतबे को खतरे में डालने से रोक सकें। सत्य-वास्तविकताओं से युक्त लोग जब मसीह-विरोधियों के पास होते हैं, तो उनकी दरिद्रता, दयनीयता, कुरूपता और दुष्टता उजागर करने का काम करते हैं, इसलिए जब मसीह-विरोधी कोई साझेदार या सहकर्मी चुनता है, तो वह कभी सत्य-वास्तविकता से युक्त व्यक्ति का चयन नहीं करता, वह कभी ऐसे लोगों का चयन नहीं करता जो अपनी अनुभवात्मक गवाही के बारे में बात कर सकते हों, और वह कभी ईमानदार लोगों या ऐसे लोगों का चयन नहीं करता, जो सत्य का अभ्यास करने में सक्षम हों। ये वे लोग हैं, जिनसे मसीह-विरोधी सबसे अधिक ईर्ष्या और घृणा करते हैं, और जो मसीह-विरोधियों के जी का जंजाल हैं। सत्य का अभ्यास करने वाले ये लोग परमेश्वर के घर के लिए कितना भी अच्छा या लाभदायक काम क्यों न करते हों, मसीह-विरोधी इन कर्मों पर पर्दा डालने की पूरी कोशिश करते हैं। यहाँ तक कि वे खुद को ऊँचा उठाने और दूसरे लोगों को नीचा दिखाने के लिए अच्छी चीजों का श्रेय खुद लेने और बुरी चीजों का दोष दूसरों पर मढ़ने के लिए तथ्यों को तोड़-मरोड़ भी देते हैं। मसीह-विरोधी सत्य का अनुसरण करने और अपनी अनुभवात्मक गवाही के बारे में बात करने में सक्षम लोगों से बहुत ईर्ष्या और घृणा करते हैं। वे डरते हैं कि ये लोग उनकी हैसियत खतरे में डाल देंगे, इसलिए वे उन पर हमला कर उन्हें निकालने के हर संभव प्रयास करते हैं। वे भाई-बहनों को से संपर्क करने, उनके करीब होने, या अपनी अनुभवजन्य गवाही के बारे में बात करने में सक्षम इन लोगों का समर्थन या प्रशंसा करने से रोकते हैं। इसी से मसीह-विरोधियों की शैतानी प्रकृति का सबसे ज्यादा खुलासा होता है, जो कि सत्य से विमुख होती है और परमेश्वर से घृणा करती है। और इसलिए, इससे यह भी साबित होता है कि मसीह-विरोधी कलीसिया में एक दुष्ट विपरीत धारा हैं, वे कलीसिया के काम में बाधा और परमेश्वर की इच्छा में अवरोध पैदा करने के दोषी हैं। इसके अलावा मसीह-विरोधी अक्सर भाई-बहनों के बीच झूठ गढ़ते हैं और तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करते हैं, अपनी अनुभवजन्य गवाही पर बोलने वाले लोगों को नीचा दिखाते हैं और उनकी निंदा करते हैं। वे लोग चाहे जो भी काम करते हों, मसीह-विरोधी उन्हें अलग-थलग करने और उनका दमन करने के बहाने ढूँढ़ लेते हैं, और यह कहते हुए उनकी आलोचना भी करते हैं कि वे घमंडी और आत्मतुष्ट हैं, कि वे दिखावा करना पसंद करते हैं, और कि वे महत्वाकांक्षाएँ पालते हैं। वास्तव में, उन लोगों के पास कुछ अनुभवजन्य गवाही होती है और उनमें थोड़ी सत्य वास्तविकता होती है। वे अपेक्षाकृत अच्छी मानवता वाले, जमीर और विवेक युक्त होते हैं, और सत्य को स्वीकारने में सक्षम होते हैं। और भले ही उनमें कुछ कमियाँ, खामियाँ, और कभी-कभी भ्रष्ट स्वभाव के खुलासे हों, फिर भी वे आत्मचिंतन कर प्रायश्चित्त करने में सक्षम होते हैं। यही वे लोग हैं जिन्हें परमेश्वर बचाएगा, और जिन्हें परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाए जाने की उम्मीद है। कुल मिलाकर ये लोग कर्तव्य निभाने के लिए उपयुक्त हैं, ये कर्तव्य करने की अपेक्षाओं और सिद्धांतों को पूरा करते हैं। लेकिन मसीह-विरोधी मन-ही-मन सोचते हैं, “मैं इसे कतई बरदाश्त नहीं करूँगा। तुम मेरे साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए मेरे क्षेत्र में एक भूमिका पाना चाहते हो। यह असंभव है; इसके बारे में सोचना भी मत। तुम मुझसे अधिक शिक्षित हो, मुझसे अधिक मुखर हो, और मुझसे अधिक लोकप्रिय हो, और तुम मुझसे अधिक परिश्रम से सत्य का अनुसरण करते हो। अगर मुझे तुम्हारे साथ सहयोग करना पड़े और तुम मेरी सफलता चुरा लो, तो मैं क्या करूँगा?” क्या वे परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करते हैं? नहीं। वे किस बारे में सोचते हैं? वे केवल यही सोचते हैं कि अपनी हैसियत कैसे बनाए रखें। हालाँकि मसीह-विरोधी जानते हैं कि वे वास्तविक कार्य करने में असमर्थ हैं, फिर भी वे सत्य का अनुसरण करने वाले और अच्छी योग्यता वाले लोगों को विकसित नहीं करते या बढ़ावा नहीं देते; वे केवल उन्हीं को बढ़ावा देते हैं जो उनकी चापलूसी करते हैं, जो दूसरों की आराधना करने को तत्पर रहते हैं, जो अपने दिलों में उनका अनुमोदन और सराहना करते हैं, जो सहज संचालक हैं, जिन्हें सत्य की कोई समझ नहीं और जो अच्छे-बुरे की पहचान करने में असमर्थ हैं। मसीह-विरोधी अपनी सेवा करवाने, अपने लिए दौड़-भाग करवाने, और हर दिन अपने चारों ओर घूमते रहने के लिए इन लोगों को अपनी ओर ले आते हैं। इससे मसीह-विरोधियों को कलीसिया में सामर्थ्य मिलती है, और इसका अर्थ होता है कि बहुत-से लोग उनके करीब आते हैं, उनका अनुसरण करते हैं, और कोई उनका अपमान करने की हिम्मत नहीं करता है। ये सभी लोग, जिन्हें मसीह-विरोधी विकसित करते हैं, वे सत्य का अनुसरण नहीं करते। उनमें से ज्यादातर लोगों में आध्यात्मिक समझ नहीं होती है और वे नियम-पालन के सिवा कुछ नहीं जानते हैं। वे रुझानों और शक्तिशाली लोगों का अनुसरण करना पसंद करते हैं। वे ऐसे लोग होते हैं जो शक्तिशाली मालिक के होने से हिम्मत पाते हैं—भ्रमित लोगों की मंडली होते हैं। अविश्वासियों की उस कहावत में क्या कहा गया है? किसी बुरे आदमी का आराध्य पूर्वज होने की तुलना में किसी अच्छे इंसान का अनुचर होना बेहतर है। मसीह-विरोधी ठीक इसका उल्टा करते हैं—वे ऐसे लोगों के आराधित पूर्वजों के तौर पर कार्य करते हैं, और उन्हें अपना झंडा लहराने वालों और प्रोत्साहित करने वालों के रूप में पालते हैं। जब भी कोई मसीह-विरोधी किसी कलीसिया में सत्ता में होता है, तो वह हमेशा अपने सहायकों के रूप में भ्रमित लोगों और आँखें मूँद कर समय गँवाने वालों को भर्ती करता है, और उन काबिलियत वाले लोगों को छोड़ देता है और दबाता है, जो सत्य को समझकर उसका अभ्यास कर सकते हैं, जो काम सँभाल सकते हैं—विशेष रूप से उन अगुआओं और कार्यकर्ताओं को, जो वास्तविक कार्य करने में सक्षम होते हैं। इस प्रकार कलीसिया में दो खेमे बन जाते हैं : एक खेमे में वे लोग होते हैं जो अपेक्षाकृत ईमानदार मानवता वाले होते हैं, जो ईमानदारी से अपना कर्तव्य करते हैं, और सत्य का अनुसरण करने वाले होते हैं। दूसरे खेमे में ऐसे लोगों की मंडली होती है जो भ्रमित होते हैं और मसीह-विरोधियों की अगुआई में आँखें मूँद कर बेवकूफियाँ करते फिरते हैं। ये दोनों खेमे एक-दूसरे से तब तक झगड़ते रहेंगे जब तक मसीह-विरोधियों का खुलासा नहीं हो जाता और वे हटा नहीं दिए जाते। मसीह-विरोधी हमेशा उन लोगों के खिलाफ लड़ते और कार्य करते हैं जो अपना कर्तव्य ईमानदारी से निभाते हैं और सत्य का अनुसरण करते हैं। क्या इससे कलीसिया का कार्य गंभीर रूप से बाधित नहीं होता? क्या यह परमेश्वर के कार्य में गड़बड़ी कर उसे बाधित नहीं करता? क्या मसीह-विरोधियों की यह शक्ति कलीसिया में परमेश्वर की इच्छा को कार्यान्वित करने में एक रोड़ा और बाधा नहीं है? क्या यह परमेश्वर का विरोध करने वाली दुष्ट शक्ति नहीं है?

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग एक)

लोगों के दिलों को नियंत्रित करने के उनके दृष्टिकोण को देखें तो मसीह-विरोधियों की मानवता घृणित और स्वार्थी होती है, और उनका स्वभाव सत्य से विमुख, दुष्ट और क्रूर होता है। मसीह-विरोधी अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए बिना किसी शर्मिंदगी के सभी प्रकार की घृणित और कपटपूर्ण चालों का उपयोग करते हैं—यह उनकी दुष्ट प्रकृति की विशेषता होती है। इसके अतिरिक्त, इस बात पर ध्यान दिए बिना कि लोग इच्छुक हैं या नहीं, उन्हें बताए बिना या उनकी सहमति प्राप्त किए बिना, वे हमेशा लोगों को नियंत्रित करना, उनके साथ हेरफेर करना और उन पर हावी होना चाहते हैं। लोग अपने दिलों में जो कुछ भी सोचते और चाहते हैं, वे उस सब कुछ को अपनी इस हेरफेर के अधीन लाना चाहते हैं, वे चाहते हैं कि लोग उनके लिए अपने दिलों में जगह बनाएँ, उनकी आराधना करें और सभी चीजों में उनका आदर करें। वे अपने शब्दों और दृष्टिकोणों से लोगों को घेर लेना और प्रभावित करना चाहते हैं, और अपनी इच्छाओं के आधार पर उनके साथ हेरफेर करना और उन पर नियंत्रण करना चाहते हैं। यह किस तरह का स्वभाव है? क्या यह क्रूरता नहीं है? यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे बाघ तुम्हारी गर्दन को अपने जबड़े में फँसा लेता है—तुम साँस लेने की चाहे जितनी भी कोशिश करो और हिलने-डुलने के लिए संघर्ष करो, तुम अपनी मर्जी से कुछ नहीं कर सकते, इसके बजाय तुम उसके क्रूर जबड़े की मजबूत, जानलेवा जकड़ में होते हैं। तुम आजाद होने के लिए चाहे जितना छटपटाओ, तुम मुक्त नहीं हो सकते, और भले ही तुम बाघ से उसका जबड़ा ढीला करने की विनती करो, लेकिन यह असंभव है, इस पर चर्चा की कोई गुंजाइश नहीं होती। मसीह-विरोधियों का स्वभाव बस ऐसा ही होता है। मान लो कि तुम उनसे चर्चा करते हो, और कहते हो, “क्या तुम लोगों को नियंत्रित करने के तरीके ढूँढ़ने की कोशिश बंद नहीं कर सकते? क्या तुम अच्छा व्यवहार नहीं कर सकते और अनुयायी नहीं बन सकते? क्या तुम अच्छा व्यवहार नहीं कर सकते और अपने कर्तव्यों को पूरा नहीं कर सकते और अपनी स्थिति पर बने नहीं रह सकते?” क्या वे इस पर सहमत हो पाएँगे? क्या तुम अच्छे आचरण या सत्य के बारे में अपनी समझ का उपयोग करके उन्हें उनके रास्ते पर चलते रहने से रोक पाओगे? क्या कोई ऐसा है जो उनके दृष्टिकोण को बदल सकता है? मसीह-विरोधियों के क्रूर स्वभाव को देखें तो कोई भी उनके विचारों और दृष्टिकोणों को बदलने में सक्षम नहीं होगा, न ही कोई लोगों के दिलों को नियंत्रित करने की उनकी इच्छा को बदल पाएगा। कोई भी उन्हें बदल नहीं सकता, और उनके साथ कोई बातचीत नहीं की जा सकती है—इसे “क्रूरता” कहा जाता है।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद तेरह : वे कलीसिया के वित्त को नियंत्रित करने के साथ-साथ लोगों के दिलों को भी नियंत्रित करते हैं

मसीह-विरोधियों का, इन राक्षसों और शैतानों का, जन्मजात प्रकृति सार सभी चीजों के लिए परमेश्वर से होड़ करना है। मसीह-विरोधी कलीसिया के भीतर परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए उससे लड़ने के अलावा, लोगों द्वारा उसे अर्पित किए गए चढ़ावे को भी छीनने की कोशिश करते हैं। ऊपर से ऐसा प्रतीत होता है कि मसीह-विरोधी लालची हैं, लेकिन वास्तव में ऐसा इसलिए है क्योंकि उनके पास मसीह-विरोधियों का स्वभाव और सार होता है। उनका लोगों द्वारा परमेश्वर को अर्पित किए गए धन और वस्तुओं को हथियाने और हड़पने की इच्छा करना—यह अपने सार में, क्रूरता है। उदाहरण के लिए, यह वैसा ही है जैसे तुम एक नई गद्देदार जैकेट खरीदते हो, जो स्टाइलिश और अच्छी गुणवत्ता वाली है, और फिर कोई इसे देखकर कहता है, “तुम्हारी यह गद्देदार जैकेट मेरी वाली से बेहतर है। मैंने जो फटी हुई जैकेट पहनी है उसमें छेद हैं और इसका चलन भी नहीं है। तुम्हारी इतनी अच्छी कैसे है?” और जब वह बोलना समाप्त करता है तो वह जबरदस्ती तुम्हारी गद्देदार जैकेट तुमसे खींच लेता है, और फिर अपनी फटी हुई जैकेट तुम्हें दे देता है। तुम उसके साथ इस लेन-देन से इनकार नहीं कर सकते—वह तुम्हें कष्ट देगा, तुम्हें परेशान करेगा, तुम्हें पीटेगा, और वह तुम्हें मार भी सकता है। क्या तुम उसका विरोध करने की हिम्मत करोगे? तुम उसका विरोध करने की हिम्मत नहीं करोगे, और वह तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध तुम्हारा सामान ले जाएगा। तो, इस व्यक्ति का स्वभाव क्या है? यह एक क्रूर स्वभाव है। क्या इसमें और कलीसिया की संपत्ति पर कब्जा करके उसका उपयोग करने वाले मसीह-विरोधियों के स्वभाव में कोई अंतर है? (नहीं, कोई अंतर नहीं है।) संपत्ति को लेकर मसीह-विरोधियों के दृष्टिकोण के अनुसार, जैसे ही वे अगुआ और “अधिकारी” बन जाते हैं, और कलीसिया की संपत्ति उनके हाथ में आ जाती है, कलीसिया की संपत्ति उनकी हो जाती है। चाहे किसी ने भी चढ़ावा दिया हो, या उन्होंने चढ़ावे के रूप में कुछ भी दिया हो, मसीह-विरोधी इसे अपने लिए कब्जा लेंगे। किसी चीज पर कब्जा करने का क्या मतलब है? इसका मतलब यह है कि कलीसिया की संपत्ति—जिसका सही तरीके से इस्तेमाल किया जाना चाहिए और जिसका कलीसिया के विनियमों के अनुसार आवंटन किया जाना चाहिए—मसीह-विरोधियों के नियंत्रण में आ जाने के बाद इसका इस्तेमाल करने की एकमात्र शक्ति केवल उनके पास ही होती है। यहाँ तक कि जब कलीसिया के काम के लिए या कलीसिया के कार्यकर्ताओं को इस संपत्ति की जरूरत होती है, तब भी मसीह-विरोधी इसका इस्तेमाल नहीं करने देते। केवल उन्हें ही इसका इस्तेमाल करने की अनुमति होती है। कलीसिया की संपत्ति का इस्तेमाल और आवंटन कैसे किया जाएगा, इस पर अंतिम फैसला मसीह-विरोधियों का होता है; अगर वे तुम्हें इसका इस्तेमाल करने देना चाहते हैं तो तुम इसका इस्तेमाल कर सकते हो, और अगर नहीं करने देना चाहते हैं तो तुम इसका इस्तेमाल नहीं कर सकते। अगर कलीसिया के चढ़ावे के पैसे पर्याप्त नहीं होते और मसीह-विरोधियों के कब्जे में आने के बाद वे पूरी तरह उनके निजी खर्चों में इस्तेमाल हो जाते हैं, तो उन्हें इस बात की परवाह नहीं होती कि कलीसिया के काम के लिए कोई पैसा नहीं बचा है। वे कलीसिया के काम या कलीसिया के सामान्य खर्चों पर ध्यान नहीं देते। वे बस इतना चाहते हैं कि इन पैसों को लेकर खुद ही खर्च कर लें, उन्हें अपनी कमाई की तरह समझें। क्या इस तरह से काम करना शर्मनाक नहीं है? (हाँ, है।) अपेक्षाकृत समृद्ध क्षेत्रों में स्थित कुछ कलीसियाओं में मसीह-विरोधी सोचते हैं : “यह जगह काफी अच्छी है। जब खर्चों की बात आती है तो मैं अपनी मर्जी से खर्च कर सकता हूँ और कलीसिया के विनियमों और सिद्धांतों से चिपके रहने की कोई जरूरत नहीं है। मैं जैसे चाहूँ वैसे पैसा खर्च कर सकता हूँ। जब से मैं अगुआ बना हूँ, मैं आखिरकार बिना हिसाब-किताब किए पैसे खर्च करने की जिंदगी का आनंद लेने में सक्षम हो गया हूँ। अगर मुझे किसी चीज पर खर्च करना है तो मुझे बस कहना भर होता है, मुझे इसके बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं होती, और मुझे निश्चित रूप से इस बारे में किसी से बात नहीं करनी पड़ती।” जब कलीसिया की संपत्ति खर्च करने की बात आती है तो मसीह-विरोधी खुद ही सारी शक्ति का इस्तेमाल करते हैं, वे लापरवाही से काम लेते हैं, और वे पानी की तरह पैसा बहाते हैं। कलीसिया के सिद्धांतों या कार्य व्यवस्थाओं की अवहेलना करने के अलावा, मसीह-विरोधी कलीसिया की संपत्ति के साथ भी बिना किसी सिद्धांत के ऐसा ही व्यवहार करते हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि वे सिद्धांतों को नहीं समझते? नहीं, वे कलीसिया की संपत्ति के आवंटन और व्यय को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों को अच्छी तरह से जानते हैं, लेकिन वे अपने लालच और इच्छाओं को नियंत्रण में नहीं रख पाते। जब वे बिना किसी रुतबे के साधारण लोग होते हैं, तो वे विनम्र होते हैं और साधारण दैनिक जीवन जीते हैं, लेकिन जैसे ही वे अगुआ बनते हैं, वे खुद को बहुत बड़ा समझने लगते हैं। वे इस बारे में विशेष ध्यान रखने लगते हैं कि वे कैसे कपड़े पहनते हैं और क्या खाते हैं—वे अब साधारण भोजन नहीं करते, और वे अपने कपड़े पहनते समय गुणवत्ता और प्रसिद्ध ब्रांडों की तलाश करना सीख जाते हैं। सब कुछ उच्च-स्तरीय होना चाहिए; केवल तभी उन्हें लगता है कि यह उनकी पहचान और रुतबे के अनुकूल है। जैसे ही मसीह-विरोधी अगुआ बनते हैं, ऐसा लगता है जैसे भाई-बहनों ने उनसे कर्ज ले रखा है, और उन्हें उनको उपहार देने चाहिए। अगर कुछ अच्छा होता है तो उन्हें प्राथमिकता मिलनी चाहिए, और भाई-बहनों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपना पैसा उन पर खर्च करें। मसीह-विरोधी मानते हैं कि अगुआ बनने का मतलब है कि उनके पास कलीसिया की संपत्ति पर अपने कब्जे और उपयोग को प्राथमिकता देने की शक्ति होनी चाहिए। न केवल वे इस तरह से सोचते हैं, बल्कि वे इस तरह से व्यवहार भी करते हैं। इसके अलावा वे इसे यहाँ तक ले जाते हैं कि दूसरे लोग घृणा करने लगते हैं। इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो मसीह-विरोधियों का चरित्र कैसा है? अगुआ बनने के बाद, और बिना थोड़ा-सा भी कोई काम किए, वे चढ़ावे पर अपने कब्जे और उपयोग को प्राथमिकता देना चाहते हैं। किस तरह का व्यक्ति ऐसी चीजें करने में सक्षम होता है? केवल एक डाकू, एक तानाशाह, या स्थानीय गुंडा ही ऐसी चीजें कर सकता है।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद तेरह : वे कलीसिया के वित्त को नियंत्रित करने के साथ-साथ लोगों के दिलों को भी नियंत्रित करते हैं

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