6. मसीह-विरोधियों का चरित्र कैसे पहचानें
अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन
मसीह-विरोधियों के चरित्र की पहली अभिव्यक्ति आदतन झूठ बोलना है, जिसे हम राक्षसी प्रकृति की श्रेणी में रखेंगे। इस राक्षसी प्रकृति की अभिव्यक्ति यह है कि चाहे जब भी हो या जहाँ भी हो, चाहे जो भी अवसर हो या वे जिसके भी साथ बातचीत करें, ऐसे लोग जो शब्द कहते हैं वे साँप और राक्षसों के शब्दों के समान होते हैं—वे भरोसे के लायक नहीं होते। ऐसे लोगों के साथ विशेष रूप से सतर्क और विवेकशील होना चाहिए, राक्षसों के शब्दों पर फौरन विश्वास नहीं करना चाहिए। उनके आदतन झूठ बोलने की विशिष्ट अभिव्यक्ति यह है कि वे आसानी से झूठ बोल लेते हैं; उनकी कही हुई बातें विचार-विमर्श, विश्लेषण या विवेकशीलता का सामना नहीं कर सकतीं। वे किसी भी समय झूठ बोल सकते हैं, और वे मानते हैं कि वे सभी मामलों में कोई सच नहीं बोल सकते, कि वे जो कुछ भी कहते हैं वह झूठ ही होना चाहिए। यहाँ तक कि अगर तुम उनसे उनकी उम्र के बारे में पूछते हो, तो भी वे इस पर विचार करते हैं और यह सोचते हैं, “मेरी उम्र के बारे में पूछने से उनका क्या मतलब है? अगर मैं कहूँ कि मैं बूढ़ा हूँ, तो क्या वे मुझे नीची नजर से देखेंगे और विकसित नहीं करेंगे? अगर मैं कहूँ कि मैं जवान हूँ, तो क्या वे मुझे नीची नजर से देखकर कहेंगे कि मेरे पास अनुभव की कमी है? मुझे क्या जवाब देना चाहिए?” इतने सरल मामले में भी वे झूठ बोल सकते हैं और तुम्हें सच बताने से मना कर सकते हैं, यहाँ तक कि पलटकर तुम्हीं से सवाल पूछ सकते हैं, “तुम्हें क्या लगता है?” तुम कहते हो, “पचास साल?” “तकरीबन।” “पैंतालीस?” “तुम करीब हो।” क्या वे तुम्हें सही जवाब देते हैं? उनके जवाबों से क्या तुम जान पाते हो कि उनकी उम्र कितनी है? (नहीं।) यह आदतन झूठ बोलना है।
मसीह-विरोधियों की आदतन झूठ बोलने की एक और अभिव्यक्ति है, यानी वे गवाही देते समय भी झूठ बोलते हैं। झूठी गवाही देना एक शापित कार्य है, जो परमेश्वर के स्वभाव को ठेस पहुँचाता है। गवाही देने के मामले में भी वे मनगढ़ंत बातें करने, झूठ बोलने और छल करने की हिम्मत करते हैं, जो वास्तव में परिणामों के प्रति उनकी लापरवाही भरी उपेक्षा और उनकी न बदलने वाली प्रकृति दर्शाता है! जब वे देखते हैं कि दूसरे लोग अनुभव और समझ के आधार पर गवाही देते हैं जबकि वे नहीं दे सकते, तो वे उनकी नकल करते हैं, दूसरे लोग जो कहते हैं वही कहते हैं और दूसरों के अनुभवों को अपना बताकर पेश करते हैं। अगर वे कोई ऐसी चीज नहीं समझते जिसे दूसरे लोग समझते हैं, तो वे दावा करते हैं कि वे समझते हैं। अगर उनके पास ऐसे अनुभव, समझ और प्रबुद्धता नहीं होती, तो वे जोर देते हैं कि उनके पास वे हैं। अगर परमेश्वर ने उन्हें अनुशासित नहीं किया होता, तो भी वे जोर देते हैं कि उसने उन्हें अनुशासित किया है। इस मामले में भी वे झूठ बोल सकते हैं और जालसाजी कर सकते हैं, इसके परिणाम कितने गंभीर होंगे, इसकी न तो उन्हें चिंता है, न इसमें उन्हें दिलचस्पी है। क्या यह आदतन झूठ बोलना नहीं है? इतना ही नहीं, इस तरह के लोग किसी को भी धोखा दे देंगे। कुछ लोग सोच सकते हैं, “जो भी हो, मसीह-विरोधी फिर भी इंसान हैं : क्या वे अपने सबसे करीबी लोगों, अपनी मदद करने वालों या अपनी मुश्किलें बाँटने वालों को धोखा देने से परहेज नहीं करेंगे? क्या वे परिवार के सदस्यों को धोखा देने से परहेज नहीं करेंगे?” वे आदतन झूठ बोलते हैं, यह कहने का मतलब यह है कि वे किसी को भी धोखा दे सकते हैं, यहाँ तक कि अपने माता-पिता, बच्चों और निश्चित रूप से अपने भाई-बहनों को भी। बड़े और छोटे दोनों मामलों में वे लोगों को धोखा दे सकते हैं, यहाँ तक कि उन मामलों में भी जहाँ उन्हें सच बोलना चाहिए, जहाँ सच बोलने का कोई परिणाम नहीं होगा या उन पर किसी भी तरह से असर नहीं पड़ेगा, और जहाँ बुद्धि का इस्तेमाल करने की कोई जरूरत नहीं है। वे ऐसे छोटे-छोटे मामले सुलझाने के लिए भी लोगों को धोखा देते हैं और झूठ का इस्तेमाल करते हैं, जहाँ बाहरी लोगों को झूठ बोलना जरूरी नहीं लगता, जहाँ उनके लिए सीधे-सीधे सच बोलना आसान होता है, बिल्कुल भी परेशानी नहीं होती। क्या यह आदतन झूठ बोलना नहीं है? आदतन झूठ बोलने को दानवों और शैतान की मुख्य अभिव्यक्तियों में से एक कहा जा सकता है। इस परिप्रेक्ष्य से क्या हम यह नहीं कह सकते कि मसीह-विरोधियों की मानवता न सिर्फ बेईमान होती है, बल्कि आदतन झूठ बोलने से भी पहचानी जाती है, जो उसे गैर-भरोसेमंद बनाता है? (हाँ, हम कह सकते हैं।) अगर ऐसे व्यक्ति कोई गलत काम करते हैं, फिर भाई-बहनों द्वारा काट-छाँट और आलोचना किए जाने के बाद आँसू बहाते हैं, सतही तौर पर परमेश्वर के ऋणी होने का दावा करते हैं और भविष्य में पश्चात्ताप करने का वादा करते हैं, तो क्या तुम उन पर विश्वास करने की हिम्मत करोगे? (नहीं।) क्यों नहीं? सबसे अकाट्य सबूत यह है कि वे आदतन झूठ बोलते हैं! भले ही वे बाहरी तौर पर पश्चात्ताप करें, फूट-फूटकर रोएँ, अपनी छाती पीटें और कसम खाएँ, उन पर विश्वास मत करना, क्योंकि वे मगरमच्छ के आँसू बहा रहे होते हैं, लोगों को धोखा देने के लिए आँसू बहा रहे होते हैं। वे जो दुख और पश्चात्ताप भरे शब्द बोलते हैं, वे दिल से नहीं निकलते; वे कपटी तरीकों से लोगों का विश्वास जीतने के लिए सोची गई तिकड़मी चालें होती हैं। लोगों के सामने वे फूट-फूटकर रोते हैं, भूल स्वीकारते हैं, कसम खाते हैं, और अपनी स्थिति जाहिर करते हैं। लेकिन जिनके निजी तौर पर उनके साथ अच्छे संबंध होते हैं, जिन पर वे अपेक्षाकृत भरोसा करते हैं, वे एक अलग ही कहानी बताते हैं। सार्वजनिक रूप से भूल स्वीकारना और अपने तौर-तरीके बदलने की कसम खाना ऊपर से तो वास्तविक लग सकता है, लेकिन पर्दे के पीछे वे जो कहते हैं, वह साबित करता है कि उन्होंने जो पहले कहा था, वह सच नहीं था, बल्कि झूठ था, जिसे ज्यादा लोगों की आँखों में धूल झोंकने के लिए कहा गया था। पर्दे के पीछे वे क्या कहेंगे? क्या वे स्वीकारेंगे कि उन्होंने जो पहले कहा था, वह झूठ था? नहीं, वे नहीं स्वीकारेंगे। वे नकारात्मकता फैलाएँगे, तर्क पेश करेंगे और खुद को सही ठहराएँगे। यह खुद को सही ठहराना और तर्क-वितर्क करना इस बात की पुष्टि करता है कि उनकी स्वीकारोक्तियाँ, पश्चात्ताप और कसमें सब झूठी थीं, जिनका उद्देश्य लोगों को धोखा देना था। क्या ऐसे व्यक्तियों पर भरोसा किया जा सकता है? क्या यह आदतन झूठ बोलना नहीं है? यहाँ तक कि वे स्वीकारोक्तियाँ भी गढ़ सकते हैं, झूठे आँसू बहाकर अपने तरीके बदलने की प्रतिज्ञा कर सकते हैं, यहाँ तक कि उनकी कसम भी झूठ होती है। क्या यह राक्षसी प्रकृति नहीं है? अगर वे यही कहें, “मैं सिर्फ इतना ही समझता हूँ; बाकी मैं नहीं जानता, और धीरे-धीरे समझ हासिल करने के लिए मैं परमेश्वर की प्रबुद्धता खोजता हूँ और भाई-बहनों की मदद की आशा करता हूँ,” तो यह एक ईमानदार रवैया और कथन होगा। लेकिन मसीह-विरोधी ऐसे सच्चे शब्द बिल्कुल नहीं बोल सकते। उन्हें लगता है कि, “सच बोलने से लोग मेरा अपमान करेंगे : मैं अपना सम्मान खो दूँगा और अपमानित महसूस करूँगा—क्या मेरी प्रतिष्ठा पूरी तरह से खत्म नहीं हो जाएगी? मैं कौन हूँ? क्या मैं हार मान सकता हूँ? अगर मैं समझ नहीं पाता, तो भी मुझे बहुत अच्छी तरह से समझने का दिखावा करना चाहिए; मुझे लोगों को धोखा देकर पहले उनके दिलों में अपनी स्थिति मजबूत करनी चाहिए।” क्या यह मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्ति नहीं है? जिस स्रोत और तरीके से मसीह-विरोधी बोलते हैं, साथ ही जो शब्द वे बोलते हैं, उससे यह स्पष्ट है कि ऐसे लोग कभी ईमानदार नहीं होंगे; यह उनके बस की बात नहीं है। चूँकि आदतन झूठ बोलना उनके चरित्र में निहित है, इसलिए वे लोगों को धोखा देना चाहते हैं और हर चीज में मामले छिपाना चाहते हैं, वे नहीं चाहते कि कोई सही तथ्यों या वास्तविक स्थिति को जाने या देखे। उनका अंतरतम अस्तित्व बहुत अंधकारमय होता है। मसीह-विरोधियों के चरित्र के इस पहलू को विश्वसनीय रूप से मानवता की कमी और राक्षसी प्रकृति होने के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। झूठ उनकी जुबान से बिना किसी प्रयास के आसानी से निकलता है, इस हद तक कि नींद में बोलने पर भी वे कोई बात सच नहीं बोलते—वह सब छल होता है, झूठ होता है। यह आदतन झूठ बोलना है।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, प्रकरण चार : मसीह-विरोधियों के चरित्र और उनके स्वभाव सार का सारांश (भाग एक)
मसीह-विरोधी अपना कपट और निर्दयता कैसे अभिव्यक्त करते हैं? (झूठ गढ़ने और दूसरों को फँसाने की अपनी क्षमता में।) झूठ गढ़ने और दूसरों को फँसाने में आदतन झूठ बोलना और कपटी और निर्दयी होना दोनों शामिल हैं; ये दोनों लक्षण आपस में घनिष्ठता से जुड़े हैं। उदाहरण के लिए, अगर वे कोई दुष्कर्म करते हैं और जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते, तो वे एक मायावी रूप रचते हैं, झूठ बोलते हैं और लोगों को विश्वास दिलाते हैं कि यह किसी और का काम था, उनका नहीं। वे दोष किसी और पर मढ़ देते हैं, जिससे परिणाम उसे भुगतने पड़ते हैं। यह न सिर्फ दुष्टतापूर्ण और घिनौना है, बल्कि उससे भी ज्यादा कपटपूर्ण और निर्दयी है। मसीह-विरोधियों के कपट और निर्दयता की कुछ अन्य अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? (वे लोगों को सता सकते हैं, उन पर हमला कर सकते हैं और उनसे बदला ले सकते हैं।) लोगों को सताने में सक्षम होना निर्दयी होना है। जो कोई उनकी हैसियत, प्रतिष्ठा या ख्याति के लिए खतरा पैदा करता है, या जो कोई उनके प्रतिकूल होता है, वे उस पर हमला कर उससे बदला लेने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा देंगे। कभी-कभी वे लोगों को नुकसान पहुँचाने के लिए दूसरों का इस्तेमाल भी कर सकते हैं—यह कपट और निर्दयता है। संक्षेप में, “कपटी और निर्दयी” वाक्यांश यह दर्शाता है कि मसीह-विरोधी विशेष रूप से दुर्भावनापूर्ण होते हैं। जिस तरह से वे लोगों के साथ व्यवहार और बातचीत करते हैं, वह जमीर पर आधारित नहीं होता, और वे उनके साथ समान स्तर पर सद्भाव में नहीं रहते हैं; इसके बजाय, वे अपने उपयोग के लिए हर मोड़ पर दूसरों का शोषण और नियंत्रण कर उन्हें प्रभावित करना चाहते हैं। दूसरों के साथ बातचीत करने का उनका तरीका सामान्य या सीधा नहीं होता; इसके बजाय, वे लोगों को गुमराह करने, उनका शोषण करने और उनकी जानकारी के बिना सूक्ष्म रूप से उनका अस्त्र के रूप में इस्तेमाल करने के लिए निश्चित साधनों और तरीकों का उपयोग करते हैं। दूसरों से पेश आते समय, चाहे उनका व्यवहार सतह पर अच्छा प्रतीत हो या बुरा, इसमें कोई ईमानदारी तो बिल्कुल नहीं होती। वे उन लोगों के करीब जाते हैं जिन्हें वे उपयोगी पाते हैं और उन लोगों से खुद को दूर रखते हैं जिन्हें वे बेकार समझते हैं और उन पर कोई ध्यान नहीं देते। यहाँ तक कि अपेक्षाकृत भोले या कमजोर व्यक्तियों को भी गुमराह करने और फँसाने के लिए वे विभिन्न साधनों और तरीकों का उपयोग करने के उपाय सोचते हैं, जिससे वे उनके लिए उपयोगी बन जाते हैं। लेकिन जब लोग कमजोर होते हैं, कठिनाई में होते हैं या उन्हें मदद की जरूरत होती है, तो मसीह-विरोधी बस आँखें मूँद लेते हैं और उनके प्रति उदासीन हो जाते हैं। वे कभी ऐसे लोगों के प्रति प्रेम नहीं दिखाते या उन्हें मदद की पेशकश नहीं करते; इसके विपरीत, वे उन्हें धौंस देने, गुमराह करने, यहाँ तक कि उनका और भी ज्यादा शोषण करने के तरीके सोचने लगते हैं। अगर वे उनका शोषण करने में असमर्थ रहते हैं, तो वे उन्हें तिलांजलि दे देते हैं और उनके प्रति कोई प्रेम या सहानुभूति नहीं दिखाते—क्या इसमें दया का कोई निशान है? क्या यह दुर्भावना की अभिव्यक्ति नहीं है? जिस पद्धति और फलसफे के साथ मसीह-विरोधी लोगों के साथ बातचीत करते हैं, वह लोगों का शोषण करने और उन्हें धोखा देने के लिए साजिशों और रणनीतियों का उपयोग करना है, जिससे लोग उन्हें समझने में असमर्थ हो जाते हैं, फिर भी उनके लिए कठिन परिश्रम करने को तैयार रहते हैं और हमेशा उनके इशारे पर काम करते हैं। जो उन्हें पहचान जाते हैं और अब उनसे और शोषित नहीं होते, उन लोगों को वे धमका और सता सकते हैं। यहाँ तक कि वे यूँ ही उन लोगों को दोषी भी ठहरा सकते हैं, जिससे भाई-बहन उन्हें छोड़ देते हैं, और फिर वे उन लोगों को निकाल या हटा देते हैं। संक्षेप में, मसीह-विरोधी कपटी और निर्दयी होते हैं, उनमें दया और ईमानदारी बिल्कुल नहीं होती। वे कभी दूसरों की वास्तविक रूप से मदद नहीं करते, जब दूसरे मुश्किलों का सामना करते हैं तो वे कोई सहानुभूति या प्रेम नहीं दिखाते। अपने मेलजोल में वे अपने फायदे और लाभ के लिए षड्यंत्र करते हैं। कठिनाई में चाहे जो भी उनके पास आए या उनकी मदद माँगे, वे हमेशा उस व्यक्ति के बारे में हिसाब-किताब लगाते रहते हैं और अपने दिल में सोचते हैं : “अगर मैं इस व्यक्ति की मदद करता हूँ, तो भविष्य में मुझे इससे क्या लाभ मिल सकता है? क्या यह मेरी मदद कर सकता है? क्या यह मेरे काम आ सकता है? मैं इससे क्या हासिल कर सकता हूँ?” क्या हमेशा इन मामलों के बारे में सोचना उनका स्वार्थी और नीच होना नहीं है? (बिल्कुल है।) कलीसिया के चुनावों में, मसीह-विरोधी कौन-से तरीके अपनाएँगे? (वे दूसरों को नीचा दिखाएँगे और खुद को ऊँचा उठाएँगे, और अपने से बेहतर लोगों को नीचे गिराएँगे।) दूसरों को नीचा दिखाना और खुद को ऊँचा उठाना भी कपटी और निर्दयी होना है।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, प्रकरण चार : मसीह-विरोधियों के चरित्र और उनके स्वभाव सार का सारांश (भाग एक)
गौरव की भावना होना ऐसी चीज है, जो सामान्य मानवता में मौजूद होनी चाहिए; इसका मतलब है विवेक होना। गौरव की भावना होने का विपरीत शब्द क्या है? (शर्म से बेपरवाह।) शर्म से बेपरवाह होने का मतलब है निर्लज्ज होना। दूसरे शब्दों में, इसे गौरव की भावना के अभाव के रूप में सारांशित किया जा सकता है। मसीह-विरोधी कौन-से कार्य करते हैं और उनकी कौन-सी विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ या अभ्यास यह दिखाते हैं कि उनमें गौरव की भावना का अभाव है और वे शर्म से बेपरवाह हैं? मसीह-विरोधी खुलेआम परमेश्वर से हैसियत के लिए होड़ करते हैं, जिसमें गौरव की भावना का अभाव होता है और जो शर्म से बेपरवाह होता है। सिर्फ मसीह-विरोधी ही परमेश्वर से हैसियत और उसके चुने हुए लोगों के लिए खुलेआम झगड़ सकते हैं। चाहे लोग इच्छुक हों या नहीं, मसीह-विरोधी उन्हें नियंत्रित करना चाहते हैं। चाहे उनमें क्षमता हो नहीं, मसीह-विरोधी हैसियत के लिए प्रयास करना चाहते हैं, और उसे प्राप्त करने के बाद वे कलीसिया पर आश्रित होकर जीते हैं और परमेश्वर के चुने हुए लोगों से लेकर खाते-पीते हैं, खुद कुछ न करके परमेश्वर के चुने हुए लोगों को अपना भरण-पोषण करने देते हैं। वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को बिल्कुल भी जीवन प्रदान नहीं करते और फिर भी उन्हें अपनी शक्ति के अधीन करना चाहते हैं, उन्हें अपनी बात सुनने, अपनी सेवा करने और अपने लिए कठिन परिश्रम करने पर मजबूर करना चाहते हैं, और लोगों के दिलों में अपनी प्रतिष्ठा स्थापित करना चाहते हैं। अगर तुम दूसरों के बारे में अच्छा बोलते हो, अगर तुम परमेश्वर की महान दयालुता, अनुग्रह, आशीषों और सर्वशक्तिमत्ता की प्रशंसा करते हो, तो वे दुखी और अप्रसन्न महसूस करते हैं। वे हमेशा चाहते हैं कि तुम उनके बारे में अच्छी-अच्छी बातें करो, अपने दिल में उनके लिए जगह बनाओ, उनका आदर-सम्मान करो और इसमें कोई मिलावट नहीं होनी चाहिए। तुम जो कुछ भी करो, वह उनके लिए और उन्हें ध्यान में रखते हुए होना चाहिए। तुम्हें उनके विचारों और भावनाओं को ध्यान में रखते हुए हर मोड़ पर, अपनी हर कथनी और करनी में उन्हें सबसे आगे रखना चाहिए। क्या यह गौरव की भावना का अभाव और शर्म से बेपरवाह होना नहीं है? क्या मसीह-विरोधी इसी तरह से काम नहीं करते? (हाँ, करते हैं।) और क्या अभिव्यक्तियाँ हैं? वे परमेश्वर के चढ़ावे चुराते और बरबाद करते हैं, परमेश्वर के चढ़ावे खुद हड़प लेते हैं। यह भी गौरव की भावना का अभाव और शर्म से बेपरवाह होना है—यह बहुत स्पष्ट है!
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, प्रकरण चार : मसीह-विरोधियों के चरित्र और उनके स्वभाव सार का सारांश (भाग एक)
मसीह-विरोधियों में जमीर और विवेक की कमी होती है; वे और कैसे अभिव्यक्त करते हैं कि उनमें गौरव की भावना नहीं है और वे शर्म से बेपरवाह हैं? जब वे कुछ गलत करते हैं, तो वे पश्चात्ताप महसूस करना नहीं जानते और उनके दिल में कोई अपराध-बोध नहीं होता। वे इस बात पर विचार नहीं करते कि सुधार या पश्चात्ताप कैसे करें, यहाँ तक कि वे यह भी मानते हैं कि उनके कार्य उचित हैं। जब उन्हें काट-छाँट किए जाने या बदले जाने का सामना करना पड़ता है, तो वे महसूस करते हैं कि उनके साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार किया गया है। वे लगातार बहस और कुतर्क करते हैं—यह गौरव की भावना का अभाव है। वे कोई वास्तविक काम नहीं करते; हर मोड़ पर वे दूसरों को भाषण देते हैं और खोखले सिद्धांतों से लोगों को गुमराह करते हैं, जिससे दूसरे सोचते हैं कि वे आध्यात्मिक हैं और सत्य समझते हैं। वे अक्सर इस बात की डींग भी हाँकते हैं कि उन्होंने कितना काम किया है और कितना कष्ट सहा है और कहते हैं कि वे परमेश्वर के अनुग्रह और भाई-बहनों के स्वागत और देखभाल का आनंद लेने के योग्य हैं, और इन सबके कारण कलीसिया पर आश्रित होकर जीते हैं और स्वादिष्ट चीजें खाना-पीना और विशेष व्यवहार का आनंद लेना भी चाहते हैं। यह गौरव की भावना से रहित और शर्म से बेपरवाह होना है। इसके अलावा, स्पष्ट रूप से कमजोर क्षमता होने, सत्य न समझने और अभ्यास के सिद्धांत खोजने में असमर्थ होने के साथ-साथ प्रत्येक काम करने में असमर्थ होने के बावजूद वे हर चीज में सक्षम और अच्छे होने की डींग हाँकते हैं। क्या यह शर्म से बेपरवाह होना नहीं है? स्पष्ट रूप से कुछ न होने के बावजूद वे सब-कुछ जानने का दिखावा करते हैं, ताकि लोग उनका आदर-सम्मान करें। अगर किसी को कोई समस्या है लेकिन वह उनकी सलाह नहीं माँगता, और इसके बजाय दूसरे लोगों से पूछता है, तो वे क्रोधित, ईर्ष्यालु और नाराज हो जाते हैं और उस व्यक्ति को सताने का हर संभव तरीका खोजते हैं। क्या यह शर्म से बेपरवाह होना नहीं है? यह स्पष्ट है कि वे अक्सर झूठ बोलते हैं, उनमें कई भ्रष्ट स्वभाव होते हैं, लेकिन वे दिखावा करते हैं कि उनमें भ्रष्ट स्वभाव नहीं हैं, परमेश्वर उन पर अनुग्रह करता है और उनसे प्रेम करता है; हर मोड़ पर वे दिखावा करते हैं कि वे कष्ट सहने में बहुत सक्षम हैं, समर्पण कर सकते हैं, सत्य और काट-छाँट स्वीकार सकते हैं, कड़ी मेहनत या आलोचना से नहीं डरते और कभी शिकायत नहीं करते—लेकिन वास्तव में वे आक्रोश से भरे रहते हैं। किसी भी समझ के बारे में संगति करने या किसी भी सत्य के बारे में स्पष्ट रूप से बात करने में उनकी स्पष्ट अक्षमता के बावजूद और अनुभवजन्य गवाही न होने पर भी वे ढोंग और पाखंड में लिप्त रहते हैं, अपने आत्म-ज्ञान के बारे में खोखली बातें करते हैं ताकि लोग उन्हें बहुत आध्यात्मिक और बहुत ज्यादा समझ रखने वाला समझें। क्या यह शर्म से बेपरवाह होना नहीं है? उनमें स्पष्ट रूप से कई समस्याएँ और बुरी मानवता होती है, वे बिना किसी निष्ठा के अपना कर्तव्य निभाते हैं और वे जो भी काम करते हैं उसमें सिर्फ अपनी बुद्धि और चतुराई पर भरोसा करते हैं, सत्य बिल्कुल नहीं खोजते, फिर भी वे मानते हैं कि वे दायित्व उठाते हैं, बहुत आध्यात्मिक हैं और उनमें क्षमता है और वे अधिकांश लोगों से श्रेष्ठ हैं। क्या यह शर्म से बेपरवाह होना नहीं है? क्या ये मसीह-विरोधियों में मानवता न होने की अभिव्यक्तियाँ नहीं हैं? क्या वे अक्सर ऐसी चीजें प्रकट नहीं करते? स्पष्ट रूप से, उनमें सत्य-सिद्धांतों की समझ की कमी होती है, और चाहे वे कोई भी काम करें, उन्हें अभ्यास का कोई सिद्धांत नहीं मिल पाता, लेकिन वे खोज या संगति करने से इनकार करते हैं; वे काम करवाने के लिए अपनी चतुराई, अनुभव और बुद्धि पर ही भरोसा करते हैं। यहाँ तक कि वे अगुआ बनना चाहते हैं, दूसरों को निर्देश देना चाहते हैं, और चाहते हैं कि हर व्यक्ति उनकी बात सुने, और जब कोई उनकी बात नहीं सुनता तो वे क्रोधित और पागल हो जाते हैं। क्या यह शर्म से बेपरवाह होना नहीं है? चूँकि उनमें महत्वाकांक्षाएँ, गुण और थोड़ी चतुराई होती है, इसलिए वे परमेश्वर के घर में हमेशा अलग दिखना चाहते हैं, और चाहते हैं कि परमेश्वर का घर उन्हें महत्वपूर्ण पदों पर रखे और उनका विकास करे। अगर उनका विकास नहीं किया जाता, तो वे परेशान और नाराज हो जाते हैं और शिकायत करते हैं कि परमेश्वर का घर अन्यायी है, वह प्रतिभाशाली लोगों को नहीं पहचान सकता और परमेश्वर के घर में कोई प्रतिभा का अच्छा पारखी नहीं है जो उनकी असाधारण क्षमताओं का पता लगा सके। अगर उनका विकास नहीं किया जाता तो वे अपने कर्तव्य निभाने के लिए कड़ी मेहनत नहीं करना चाहते, कठिनाइयाँ नहीं सहना चाहते या कीमत नहीं चुकाना चाहते; इसके बजाय, वे काम से बचने के लिए अपनी चालाकी का इस्तेमाल करना चाहते हैं। अपने दिलों में वे आशा करते हैं कि परमेश्वर के घर में कोई उन्हें सम्मान देगा और उन्हें ऊपर उठाएगा, जिससे वे दूसरों से आगे निकल जाएँ और यहाँ अपनी महान योजनाएँ पूरी कर सकें। क्या ये महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ नहीं हैं? क्या यह शर्म से बेपरवाह होना नहीं है? क्या यह मसीह-विरोधियों की सबसे आम अभिव्यक्ति नहीं है? अगर तुममें वास्तव में योग्यताएँ हैं तो तुम्हें सत्य का अनुसरण करना चाहिए, अपने कर्तव्य अच्छी तरह से करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, और परमेश्वर के चुने हुए लोग स्वाभाविक रूप से तुम्हारा सम्मान करेंगे। अगर तुम्हारे पास कुछ भी सत्य नहीं है और फिर भी तुम हमेशा दूसरों से अलग दिखना चाहते हो, तो यह विवेक का अत्यधिक अभाव है! अगर तुम्हारी भी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ हैं और तुम हमेशा भरसक प्रयास करना चाहते हो, तो तुम्हारा गिरना तय है। समाज में एक निश्चित हैसियत और प्रतिष्ठा प्राप्त करने के बाद कुछ लोग अपनी शान बघारना चाहते हैं, अपनी चलाना चाहते हैं और परमेश्वर में विश्वास करने और उसके घर में प्रवेश करने के बाद सभी को अपनी आज्ञाओं पर ध्यान देने के लिए मजबूर करना चाहते हैं। वे अपनी योग्यताओं और साख का प्रदर्शन करना चाहते हैं, वे सभी को अपने से नीचे मानते हैं और सोचते हैं कि सभी को उनकी शक्ति के अधीन होना चाहिए। क्या यह शर्म से बेपरवाह होना नहीं है? बिल्कुल है। जब कुछ लोग परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्य निभाते हुए कुछ परिणाम प्राप्त कर लेते हैं और थोड़े योगदान दे देते हैं, तो वे हमेशा चाहते हैं कि भाई-बहन उनके साथ एल्डरों, उच्च पदस्थ व्यक्तियों और विशेष हस्तियों की तरह बहुत सम्मान से पेश आएँ। वे यह भी चाहते हैं कि लोग उनका सम्मान करें, उनका अनुगमन करें और उनकी बात सुनें। वे कलीसिया में अग्रणी हस्ती बनने की आकांक्षा रखते हैं; वे हर बात में फैसला लेना चाहते हैं, निर्णय देना चाहते हैं और सभी मामलों में अपनी चलाना चाहते हैं। अगर कोई उनका कहा नहीं सुनता या अपनाता, तो वे अपना पद छोड़ना चाहते हैं और बाकी सभी को कमजोर बनाना और उन पर हँसना चाहते हैं। क्या यह शर्म से बेपरवाह होना नहीं है? शर्म से बेपरवाह होने के अलावा वे विशेष रूप से दुर्भावनापूर्ण होते हैं—ये मसीह-विरोधी हैं।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, प्रकरण चार : मसीह-विरोधियों के चरित्र और उनके स्वभाव सार का सारांश (भाग एक)
मसीह-विरोधियों में कोई जमीर, विवेक या मानवता नहीं होती। वे न केवल शर्म से बेपरवाह होते हैं, बल्कि उनकी एक और खासियत भी होती है : वे असाधारण रूप से स्वार्थी और नीच होते हैं। उनके “स्वार्थ और नीचता” का शाब्दिक अर्थ समझना कठिन नहीं है : उन्हें अपने हित के अलावा कुछ नहीं सूझता। अपने हितों से संबंधित किसी भी चीज पर उनका पूरा ध्यान रहता है, वे उसके लिए कष्ट उठाएँगे, कीमत चुकाएँगे, उसमें खुद को तल्लीन और समर्पित कर देंगे। जिन चीजों का उनके अपने हितों से कोई लेना-देना नहीं होता, वे उनकी ओर से आँखें मूँद लेंगे और उन पर कोई ध्यान नहीं देंगे; दूसरे लोग जो चाहें सो कर सकते हैं—मसीह-विरोधियों को इस बात की कोई परवाह नहीं होती कि कोई विघ्न-बाधा पैदा तो नहीं कर रहा, उन्हें इन बातों से कोई सरोकार नहीं होता। युक्तिपूर्वक कहें तो, वे अपने काम से काम रखते हैं। लेकिन यह कहना ज्यादा सही है कि इस तरह का व्यक्ति नीच, अधम और दयनीय होता है; हम उन्हें “स्वार्थी और नीच” के रूप में परिभाषित करते हैं। मसीह-विरोधियों की स्वार्थपरता और नीचता कैसे प्रकट होती हैं? उनके रुतबे और प्रतिष्ठा को जिससे लाभ होता है, वे उसके लिए जो भी जरूरी होता है उसे करने या बोलने के प्रयास करते हैं और वे स्वेच्छा से हर पीड़ा सहन करते हैं। लेकिन जहाँ बात परमेश्वर के घर द्वारा व्यवस्थित कार्य से संबंधित होती है, या परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन के विकास को लाभ पहुंचाने वाले कार्यों से संबंधित होती है, वे पूरी तरह इसे अनदेखा करते हैं। यहाँ तक कि जब बुरे लोग विघ्न-बाधा डाल रहे होते हैं, सभी प्रकार की बुराई कर रहे होते हैं और इसके फलस्वरूप कलीसिया के कार्य को बुरी तरह प्रभावित कर रहे होते हैं, तब भी वे उसके प्रति आवेगहीन और उदासीन बने रहते हैं, जैसे उनका उससे कोई लेना-देना ही न हो। और अगर कोई किसी बुरे व्यक्ति के बुरे कर्मों के बारे में जान जाता है और इसकी रिपोर्ट कर देता है, तो वे कहते हैं कि उन्होंने कुछ नहीं देखा और अज्ञानता का ढोंग करने लगते हैं। लेकिन अगर कोई उनकी रिपोर्ट करता है और यह उजागर करता है कि वे वास्तविक कार्य नहीं करते और सिर्फ प्रसिद्धि, लाभ और हैसियत का अनुसरण करते हैं, तो वे आगबबूला हो जाते हैं। यह तय करने के लिए आनन-फानन में बैठकें बुलाई जाती हैं कि क्या उत्तर दिया जाए, यह पता लगाने के लिए जाँच की जाती है कि किसने गुपचुप यह काम किया, सरगना कौन था और कौन शामिल था। जब तक वे इसकी तह तक नहीं पहुँच जाते और मामला शांत नहीं हो जाता, तब तक उनका खाना-पीना हराम रहता है—उन्हें केवल तभी खुशी मिलती है जब वे अपनी रिपोर्ट करने वाले सभी लोगों को धराशायी कर देते हैं। यह स्वार्थ और नीचता की अभिव्यक्ति है, है न? क्या वे कलीसिया का काम कर रहे हैं? वे अपने सामर्थ्य और रुतबे के लिए काम कर रहे हैं, और कुछ नहीं। वे अपना कारोबार चला रहे हैं। मसीह-विरोधी व्यक्ति चाहे जो भी कार्य करें, वे कभी परमेश्वर के घर के हितों पर विचार नहीं करते। वह केवल इस बात पर विचार करता है कि कहीं उसके हित तो प्रभावित नहीं हो रहे, वह केवल अपने सामने के उस छोटे-से काम के बारे में सोचता है, जिससे उसे फायदा होता है। उसकी नजर में, कलीसिया का प्राथमिक कार्य बस वही है, जिसे वह अपने खाली समय में करता है। वह उसे बिल्कुल भी गंभीरता से नहीं लेता। वह केवल तभी हरकत में आता है जब उसे काम करने के लिए कोंचा जाता है, केवल वही करता है जो वह करना पसंद करता है, और केवल वही काम करता है जो उसकी हैसियत और सत्ता बनाए रखने के लिए होता है। उसकी नजर में, परमेश्वर के घर द्वारा व्यवस्थित कोई भी कार्य, सुसमाचार फैलाने का कार्य, और परमेश्वर के चुने हुए लोगों का जीवन-प्रवेश महत्वपूर्ण नहीं हैं। चाहे अन्य लोगों को अपने काम में जो भी कठिनाइयाँ आ रही हों, उन्होंने जिन भी मुद्दों को पहचाना और रिपोर्ट किया हो, उनके शब्द कितने भी ईमानदार हों, मसीह-विरोधी उन पर कोई ध्यान नहीं देते, वे उनमें शामिल नहीं होते, मानो इन मामलों से उनका कोई लेना-देना ही न हो। कलीसिया के काम में उभरने वाली समस्याएँ चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हों, वे पूरी तरह से उदासीन रहते हैं। अगर कोई समस्या उनके ठीक सामने भी हो, तब भी वे उस पर लापरवाही से ही ध्यान देते हैं। जब ऊपर वाला सीधे उनकी काट-छाँट करता है और उन्हें किसी समस्या को सुलझाने का आदेश देता है, तभी वे बेमन से थोड़ा-बहुत काम करके ऊपर वाले को दिखाते हैं; उसके तुरंत बाद वे फिर अपने धंधे में लग जाते हैं। जब कलीसिया के काम की बात आती है, व्यापक संदर्भ की महत्वपूर्ण चीजों की बात आती है, तो वे इन चीजों में रुचि नहीं लेते और इनकी उपेक्षा करते हैं। जिन समस्याओं का उन्हें पता लग जाता है, उन्हें भी वे नजरअंदाज कर देते हैं और समस्याओं के बारे में पूछने पर लापरवाही से जवाब देते हैं या आगा-पीछा करते हैं, और बहुत ही बेमन से उस समस्या की तरफ ध्यान देते हैं। यह स्वार्थ और नीचता की अभिव्यक्ति है, है न? इसके अलावा, मसीह-विरोधी चाहे कोई भी काम कर रहे हों, वे केवल यही सोचते हैं कि क्या इससे वे सुर्ख़ियों में आ पाएँगे; अगर उससे उनकी प्रतिष्ठा बढ़ती है, तो वे यह जानने के लिए अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाते हैं कि उस काम को कैसे करना है, कैसे अंजाम देना है; उन्हें केवल एक ही फिक्र रहती है कि क्या इससे वे औरों से अलग नजर आएँगे। वे चाहे कुछ भी करें या सोचें, वे केवल अपनी प्रसिद्धि, लाभ और हैसियत से सरोकार रखते हैं। वे चाहे कोई भी काम कर रहे हों, वे केवल इसी स्पर्धा में लगे रहते हैं कि कौन बड़ा है या कौन छोटा, कौन जीत रहा है और कौन हार रहा है, किसकी ज्यादा प्रतिष्ठा है। वे केवल इस बात की परवाह करते हैं कि कितने लोग उनकी आराधना और सम्मान करते हैं, कितने लोग उनका आज्ञापालन करते हैं और कितने लोग उनके अनुयायी हैं। वे कभी सत्य पर संगति या वास्तविक समस्याओं का समाधान नहीं करते। वे कभी विचार नहीं करते कि अपना काम करते समय सिद्धांत के अनुसार चीजें कैसे करें, न ही वे इस बात पर विचार करते हैं कि क्या वे निष्ठावान रहे हैं, क्या उन्होंने अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी कर दी हैं, क्या उनके काम में कोई विचलन या चूक हुई है या अगर कोई समस्या मौजूद है, तो वे यह तो बिल्कुल नहीं सोचते कि परमेश्वर क्या चाहता है और परमेश्वर के इरादे क्या हैं। वे इन सब चीजों पर रत्ती भर भी ध्यान नहीं देते। वे केवल प्रसिद्धि, लाभ और हैसियत के लिए, अपनी महत्वाकांक्षाएँ और जरूरतें पूरी करने का प्रयास करने के लिए कार्य करते हैं। यह स्वार्थ और नीचता की अभिव्यक्ति है, है न? यह पूरी तरह से उजागर कर देता है कि उनके हृदय किस तरह उनकी महत्वाकांक्षाओं, इच्छाओं और बेहूदा माँगों से भरे होते हैं; उनका हर काम उनकी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं से नियंत्रित होता है। वे चाहे कोई भी काम करें, उनकी महत्वाकांक्षाएँ, इच्छाएँ और बेहूदा माँगें ही उनकी प्रेरणा और स्रोत होता है। यह स्वार्थ और नीचता की विशिष्ट अभिव्यक्ति है।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, प्रकरण चार : मसीह-विरोधियों के चरित्र और उनके स्वभाव सार का सारांश (भाग एक)
मसीह-विरोधियों के स्वार्थ और नीचता का सार स्पष्ट है; उनकी इस तरह की अभिव्यक्तियाँ विशेष रूप से प्रमुख हैं। कलीसिया उन्हें एक काम सौंपती है, और अगर वह प्रसिद्धि और लाभ लाता है, और उन्हें अपना चेहरा दिखाने देता है, तो वे उसमें बहुत रुचि लेते हैं और उसे स्वीकारने को तैयार रहते हैं। अगर वह ऐसा कार्य है, जिससे सराहना नहीं मिलती या जिसमें लोगों को अपमानित करना शामिल है, या जिसमें उन्हें लोगों के बीच जाने का मौका नहीं मिलता या जिससे उनकी प्रसिद्धि, लाभ और हैसियत को कोई लाभ नहीं पहुँचता, तो उसमें उनकी कोई रुचि नहीं होती, और वे उसे स्वीकार नहीं करते, मानो उस काम का उनसे कोई लेना-देना न हो, और वह ऐसा कार्य न हो जो उन्हें करना चाहिए। जब वे कठिनाइयों का सामना करते हैं, तो इस बात की कोई संभावना नहीं होती कि वे उन्हें हल करने के लिए सत्य की तलाश करेंगे, बड़ी तसवीर देखने की कोशिश करना और कलीसिया के काम पर ध्यान देना तो दूर की बात है। उदाहरण के लिए, परमेश्वर के घर के कार्य के दायरे में, कार्य की समग्र आवश्यकताओं के आधार पर, कुछ कर्मियों का तबादला हो सकता है। अगर किसी कलीसिया से कुछ लोगों का तबादला कर दिया जाता है, तो उस कलीसिया के अगुआओं को समझदारी के साथ इस मामले से कैसे निपटना चाहिए? अगर वे समग्र हितों के बजाय सिर्फ अपनी कलीसिया के हितों से ही सरोकार रखते हैं, और अगर वे उन लोगों को स्थानांतरित करने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं होते, तो इसमें क्या समस्या है? कलीसिया-अगुआ के रूप में, क्यों वे परमेश्वर के घर की केंद्रीकृत व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होने में असमर्थ रहते हैं? क्या ऐसा व्यक्ति परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील होता है? क्या वह कार्य की बड़ी तस्वीर के प्रति सचेत होता है? अगर वह परमेश्वर के घर के कार्य के बारे में समग्र रूप से नहीं सोचता, बल्कि सिर्फ अपनी कलीसिया के हितों के बारे में सोचता है, तो क्या वह बहुत स्वार्थी और नीच नहीं है? कलीसिया-अगुआओं को परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं, और परमेश्वर के घर की केंद्रीकृत व्यवस्थाओं और समन्वय के प्रति बिना शर्त समर्पित होना चाहिए। यही सत्य सिद्धांतों के अनुरूप है। जब परमेश्वर के घर के कार्य को आवश्यकता हो, तो चाहे वे कोई भी हों, सभी को परमेश्वर के घर के समन्वय और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होना चाहिए, और किसी एक अगुआ या कार्यकर्ता द्वारा नियंत्रित नहीं होना चाहिए, मानो वे उसके हों या उसके निर्णयों के अधीन हों। परमेश्वर के चुने हुए लोगों की परमेश्वर के घर की केंद्रीकृत व्यवस्थाओं के प्रति आज्ञाकारिता बिल्कुल स्वाभाविक और उचित है और इन व्यवस्थाओं की किसी के द्वारा अवहेलना नहीं की जा सकती, जब तक कि कोई अगुआ या कार्यकर्ता कोई मनमाना तबादला नहीं करता जो सिद्धांत के अनुसार न हो—उस मामले में इस व्यवस्था की अवज्ञा की जा सकती है। अगर सिद्धांतों के अनुसार सामान्य स्थानांतरण किया जाता है, तो परमेश्वर के सभी चुने हुए लोगों को आज्ञापालन करना चाहिए, और किसी अगुआ या कार्यकर्ता को किसी को नियंत्रित करने का प्रयास करने का अधिकार या कोई कारण नहीं है। क्या तुम लोग कहोगे कि ऐसा भी कोई कार्य होता है जो परमेश्वर के घर का कार्य नहीं होता? क्या कोई ऐसा कार्य होता है जिसमें परमेश्वर के राज्य-सुसमाचार का विस्तार शामिल नहीं होता? यह सब परमेश्वर के घर का ही कार्य होता है, हर कार्य समान होता है, और उसमें कोई “तेरा” और “मेरा” नहीं होता। अगर तबादला सिद्धांत के अनुरूप और कलीसिया के कार्य की आवश्यकताओं पर आधारित है, तो इन लोगों को वहाँ जाना चाहिए जहाँ इनकी सबसे ज्यादा जरूरत है। फिर भी, जब इस तरह की परिस्थिति का सामना करना पड़े तो मसीह-विरोधियों की प्रतिक्रिया क्या होती है? वे इन उपयुक्त लोगों को अपने साथ रखने के लिए तरह-तरह के कारण और बहाने ढूँढ़ते हैं और केवल दो साधारण लोगों की पेशकश करते हैं, और फिर तुम पर शिकंजा कसने के लिए कोई बहाना ढूँढते हैं, या तो यह कहते हुए कि उनके पास काम बहुत है या यह कि उनके पास लोग कम हैं, लोगों का मिलना मुश्किल होता है, यदि इन दोनों को भी स्थानांतरित कर दिया गया, तो इसका काम पर असर पड़ेगा। और वे तुमसे ही पूछते हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए, और तुम्हें यह महसूस कराते हैं कि लोगों को स्थानांतरित करने का मतलब है कि आप उनके एहसानमंद हैं। क्या शैतान इसी तरह काम नहीं करते? गैर-विश्वासी इसी तरह काम करते हैं। जो लोग कलीसिया में हमेशा अपने हितों की रक्षा करने का प्रयास करते हैं—क्या वे अच्छे लोग होते हैं? क्या वे सिद्धांत के अनुसार कार्य करने वाले लोग होते हैं? बिल्कुल नहीं। वे गैर-विश्वासी और छद्म-विश्वासी हैं। और क्या यह काम स्वार्थी और नीच नहीं है? अगर किसी मसीह-विरोधी के अधीनस्थ किसी अच्छी काबिलियत वाले व्यक्ति को दूसरा काम करने के लिए स्थानांतरित किया जाता है, तो अपने दिल में मसीह-विरोधी इसका हठपूर्वक विरोध करता और इसे नकार देता है—वह काम छोड़ देना चाहता है, और उसमें अगुआ या समूह-प्रमुख होने का कोई उत्साह नहीं रह जाता। यह क्या समस्या है? उनमें कलीसिया की व्यवस्थाओं के प्रति आज्ञाकारिता क्यों नहीं होती? उन्हें लगता है कि उनके “दाएँ-हाथ जैसे व्यक्ति” का तबादला उनके काम के परिणामों और प्रगति को प्रभावित करेगा, और परिणामस्वरूप उनकी हैसियत और प्रतिष्ठा प्रभावित होगी, जिससे उन्हें परिणामों की गारंटी देने के लिए कड़ी मेहनत करने और ज्यादा कष्ट उठाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा—जो आखिरी चीज है, जिसे वे करना चाहते हैं। वे सुविधाभोगी हो गए हैं, और ज्यादा मेहनत करना या अधिक कष्ट उठाना नहीं चाहते, इसलिए वे उस व्यक्ति को जाने नहीं देना चाहते। अगर परमेश्वर का घर तबादले पर जोर देता है, तो वे बहुत शिकायत करते हैं, यहाँ तक कि अपना काम भी छोड़ देना चाहते हैं। क्या यह स्वार्थी और नीच होना नहीं है? परमेश्वर के घर द्वारा परमेश्वर के चुने हुए लोगों को केंद्रीय रूप से आवंटित किया जाना चाहिए। इसका किसी अगुआ, समूह-प्रमुख या व्यक्ति से कोई लेना-देना नहीं है। सभी को सिद्धांत के अनुसार कार्य करना चाहिए; यह परमेश्वर के घर का नियम है। मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुसार कार्य नहीं करते, वे लगातार अपनी हैसियत और हितों के लिए साजिशें रचते हैं, और अपनी शक्ति और हैसियत मजबूत करने के लिए अच्छी क्षमता वाले भाई-बहनों से अपनी सेवा करवाते हैं। क्या यह स्वार्थी और नीच होना नहीं है? बाहरी तौर पर, अच्छी क्षमता वाले लोगों को अपने पास रखना और परमेश्वर के घर द्वारा उनका तबादला न होने देना ऐसा प्रतीत होता है, मानो वे कलीसिया के काम के बारे में सोच रहे हों, लेकिन वास्तव में वे सिर्फ अपनी शक्ति और हैसियत के बारे में सोच रहे होते हैं, कलीसिया के काम के बारे में बिल्कुल नहीं सोचते। वे डरते हैं कि वे कलीसिया का काम खराब तरह से करेंगे, बदल दिए जाएँगे, और अपनी हैसियत खो देंगे। मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर के व्यापक कार्य के बारे में कोई विचार नहीं करते, सिर्फ अपनी हैसियत के बारे में सोचते हैं, परमेश्वर के घर के हितों को होने वाले नुकसान के लिए जरा भी खेद न करके अपनी हैसियत की रक्षा करते हैं, और कलीसिया के कार्य को हानि पहुँचाकर अपनी हैसियत और हितों की रक्षा करते हैं। यह स्वार्थी और नीच होना है। जब ऐसी स्थिति आए, तो कम से कम व्यक्ति को अपने विवेक से सोचना चाहिए : “ये सभी परमेश्वर के घर के लोग हैं, ये कोई मेरी निजी संपत्ति नहीं हैं। मैं भी परमेश्वर के घर का सदस्य हूँ। मुझे परमेश्वर के घर को लोगों को स्थानांतरित करने से रोकने का क्या अधिकार है? मुझे केवल अपनी जिम्मेदारियों के दायरे में आने वाले काम पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय परमेश्वर के घर के समग्र हितों पर विचार करना चाहिए।” जिन लोगों में जमीर और विवेक होता है, उन लोगों के विचार ऐसे ही होने चाहिए, और जो परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, उनमें ऐसा ही विवेक होना चाहिए। परमेश्वर का घर समग्र के कार्य में संलग्न है और कलीसियाएँ हिस्सों के कार्य में संलग्न हैं। इसलिए, जब परमेश्वर के घर को कलीसिया से कोई विशेष आवश्यकता हो, तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं का पालन करना सबसे महत्वपूर्ण है। नकली अगुआओं और मसीह-विरोधियों में ऐसा जमीर और विवेक नहीं होता। वे सब बहुत स्वार्थी होते हैं, वे सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं, और वे कलीसिया के कार्य के बारे में नहीं सोचते। वे सिर्फ अपनी आँखों के सामने के लाभों पर विचार करते हैं, वे परमेश्वर के घर के व्यापक कार्य पर विचार नहीं करते, इसलिए वे परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं का पालन करने में बिल्कुल अक्षम रहते हैं। वे बेहद स्वार्थी और नीच होते हैं! परमेश्वर के घर में उनकी हिम्मत इतनी बढ़ जाती है कि वे विनाशकारी हो जाते हैं, यहाँ तक कि वे अपने मनसूबों से बाज नहीं आते; ऐसे लोग मानवता से बिल्कुल शून्य होते हैं, दुष्ट होते हैं। मसीह-विरोधी इसी प्रकार के लोग हुआ करते हैं। वे हमेशा कलीसिया के काम को, भाइयों और बहनों को, यहाँ तक कि परमेश्वर के घर की सारी संपत्ति को जो उनकी जिम्मेदारी के दायरे में आती है, निजी संपत्ति के रूप में ही देखते हैं। मानते हैं कि यह उन पर है कि इन चीजों को कैसे वितरित करें, स्थानांतरित करें और उपयोग में लें, और कि परमेश्वर के घर को दखल देने की अनुमति नहीं होती। जब वे चीजें उनके हाथों में आ जाती हैं, तो ऐसा लगता है कि वे शैतान के कब्जे में हैं, किसी को भी उन्हें छूने की अनुमति नहीं होती। वे बड़ी तोप चीज होते हैं, वे ही सबसे बड़े होते हैं, और जो कोई भी उनके क्षेत्र में जाता है उसे उनके आदेशों और व्यवस्थाओं का पालन शिष्ट और कोमल तरीके से करना होता है और उनकी अभिव्यक्तियों से इशारा लेना होता है। यह मसीह-विरोधियों के चरित्र के स्वार्थ और नीचता की अभिव्यक्ति होती है। वे परमेश्वर के घर के कार्य पर कोई ध्यान नहीं देते, वे सिद्धांतों का ज़रा भी पालन नहीं करते, और केवल निजी हितों और अपने ही रुतबे के बारे में सोचते हैं—जो मसीह-विरोधियों के स्वार्थ और नीचता के हॉल्मार्क हैं।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, प्रकरण चार : मसीह-विरोधियों के चरित्र और उनके स्वभाव सार का सारांश (भाग एक)
मसीह-विरोधियों की मानवता में एक ऐसी चीज भी होती है जो घृणित और वीभत्स दोनों होती है—यानी वे ताकतवरों से चिपकते हैं और कमजोरों को दबाते हैं। अगर कलीसिया या दुनिया में कुछ मशहूर हस्तियाँ या शक्तिशाली या हैसियतदार लोग हैं, तो चाहे वे कोई भी हों, मसीह-विरोधी उनके लिए अपने दिल में असीम ईर्ष्या और प्रशंसा रखते हैं, यहाँ तक कि वे उनकी चापलूसी भी करते हैं। जब वे ईसाई धर्म में विश्वास करते हैं, तो वे दावा करते हैं कि कुछ राजनीतिक प्रमुख हैं जो विश्वासी हैं, और जब वे अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य के इस चरण को स्वीकारते हैं, तो वे दावा करते हैं कि प्रमुख संप्रदायों के कुछ पादरी भी इसे स्वीकार चुके हैं। जो कुछ भी वे करते हैं, उसे हमेशा एक प्रभावशाली शीर्षक देते हैं, वे हमेशा मशहूर हस्तियों का सम्मान और अनुकरण करते हैं और सिर्फ तभी संतुष्ट महसूस करते हैं जब वे कम से कम किसी मशहूर हस्ती या हैसियतदार व्यक्ति से चिपकने में कामयाब हो जाते हैं। जब हैसियतदार लोगों की बात आती है, तो चाहे वे अच्छे हों या बुरे, मसीह-विरोधी बिना थके उनकी खुशामद, चापलूसी और ठकुरसुहाती करते हैं। यहाँ तक कि वे उन्हें चाय बनाकर पिलाने और उनका मल-मूत्र उठाने के लिए भी तैयार रहते हैं। दूसरी ओर, बिना हैसियत वाले लोग चाहे कितने भी सच्चे, ईमानदार और दयालु क्यों न हों, उनके साथ व्यवहार करते समय मसीह-विरोधी उन्हें जब भी संभव हो, धमकाते और रौंद देते हैं। वे अक्सर इस बात की डींग हाँकते हैं कि फलाँ व्यक्ति समाज में कितना बड़ा बिजनेस एग्जीक्यूटिव है, फलाँ व्यक्ति का पिता कितना अमीर है, फलाँ व्यक्ति के पास कितना पैसा है और फलाँ व्यक्ति का परिवार या कंपनी कितनी बड़ी है, और वे समाज में उनकी प्रमुखता पर जोर देते हैं। जहाँ तक कलीसिया में नकली अगुआओं और मसीह-विरोधियों की बात है, तो चाहे वे कितने भी बुरे कर्म क्यों न करें, मसीह-विरोधी कभी उनकी रिपोर्ट नहीं करते, उन्हें उजागर नहीं करते या उन्हें पहचानते नहीं। इसके बजाय, वे उनका घनिष्ठता से अनुगमन करते हैं और जो कुछ भी उनसे करने के लिए कहा जाता है, वही करते हैं। वे जिस भी स्तर के अगुआ का अनुगमन करते हैं, उसी के अनुयायी, प्यादे और गुलाम बन जाते हैं। शक्ति, प्रभाव, धन और हैसियत वाले लोगों के साथ व्यवहार करते समय वे असाधारण रूप से आज्ञाकारी, विनम्र और अनाड़ी दिखते हैं। वे अत्यंत आज्ञाकारी और विनम्र हो जाते हैं और उन लोगों की हर बात का सिर हिलाकर पालन करते हैं। लेकिन बिना हैसियत वाले आम लोगों से व्यवहार करते समय वे एक अलग ही शान बघारते हैं, लोगों पर हावी होने के लिए बोलते समय एक रोबदार तरीका अपनाते हैं, श्रेष्ठ बनना चाहते हैं, मानो वे अपराजेय, औरों से ज्यादा शक्तिशाली और ऊँचे हों, जिससे उनमें किसी भी समस्या, दोष या कमजोरी को पहचानना मुश्किल हो जाता है। यह किस तरह का चरित्र है? क्या इसके और कपटी, निर्दयी और शर्म से बेपरवाह होने के बीच कोई संबंध है? (बिल्कुल है।) ताकतवरों से चिपकना और कमजोरों को दबाना—क्या यह मसीह-विरोधियों की मानवता का कुरूप और बुरा पक्ष नहीं है? क्या तुम लोगों को लगता है कि ऐसी मानवता वाले लोग ईमानदार होते हैं? (नहीं।) क्या वे हैसियतदार और शक्तिशाली लोगों से जो कहते हैं, वह सच होता है? क्या वे कमजोरों से जो कहते हैं, वह सच होता है? (उसमें से कुछ भी सच नहीं होता।) इसलिए इस मद का आदतन झूठ बोलने से कुछ संबंध है। इस मद से आँकें तो, मसीह-विरोधियों का चरित्र बेहद घिनौना होता है और उनके दो बिल्कुल अलग चेहरे होते हैं। ऐसे व्यक्ति का एक उपनाम होता है—“गिरगिट।” वे लोगों के साथ कभी सत्य-सिद्धांतों, मानवता या इस आधार पर व्यवहार नहीं करते कि वे लोग परमेश्वर के घर में सत्य का अनुसरण कर रहे हैं या नहीं। इसके बजाय, वे लोगों के साथ सिर्फ उनकी हैसियत और प्रभाव के आधार पर अलग-अलग तरह से व्यवहार करते हैं। हैसियत और योग्यताओं वाले लोगों के साथ व्यवहार करते समय वे उनकी खुशामद करने, उनकी चापलूसी करने और उनके करीब जाने की हर संभव कोशिश करते हैं। अगर वे इन लोगों द्वारा पीटे या डाँटे भी जाएँ, तो भी वे बिना किसी शिकायत के इसे सह लेते हैं। यहाँ तक कि वे लगातार अपनी अनुपयोगिता भी स्वीकारते हैं और दास बन जाते हैं, हालाँकि वे अंदर से जो सोचते हैं वह उनके बाहरी व्यवहार से बिल्कुल अलग होता है। अगर कोई हैसियत और प्रतिष्ठा वाला व्यक्ति बोलता है, भले ही वह शैतान की भ्रांति और पाखंड ही हो जो सत्य से पूरी तरह से असंबंधित हो, तो वे इसे सुनेंगे, सहमति में सिर हिलाएँगे और ऊपरी तौर पर इसे स्वीकारेंगे। दूसरी ओर, अगर किसी में योग्यता या हैसियत की कमी होती है, तो चाहे उसके शब्द कितने भी सही क्यों न हों, मसीह-विरोधी उसे अनदेखा कर नीची निगाह से देखेंगे। भले ही वह जो कहता है वह सिद्धांतों और सत्य के अनुरूप हो, वे इसे नहीं सुनेंगे, बल्कि उसका खंडन करेंगे, मजाक उड़ाएँगे और उपहास करेंगे। यह मसीह-विरोधियों के चरित्र में पाया जाने वाला एक और लक्षण है। आचरण और दुनिया से व्यवहार करने के उनके तरीकों और सिद्धांतों से आँकें तो, इन व्यक्तियों को निश्चित रूप से असंदिग्ध छद्म-विश्वासियों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। उनके चरित्र की अभिव्यक्तियाँ नीच, घिनौनी और अधम होती हैं।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, प्रकरण चार : मसीह-विरोधियों के चरित्र और उनके स्वभाव सार का सारांश (भाग एक)
मसीह-विरोधियों की मानवता में एक और अभिव्यक्ति होती है : वे सामान्य लोगों से ज्यादा भौतिक चीजों के अभिलाषी होते हैं। यानी भौतिक चीजों के लिए उनकी इच्छा और माँग विशेष रूप से बड़ी होती है—वह असीमित होती है। वे एक असाधारण जीवनशैली की आकांक्षाओं से भरे होते हैं और अतृप्त रूप से लालची होते हैं। कुछ लोग कह सकते हैं : “अधिकांश मसीह-विरोधियों में यह अभिव्यक्ति नहीं होती।” इसके न होने का मतलब यह नहीं है कि यह उनकी मानवता में अनुपस्थित है। जब ऐसे लोग हैसियत प्राप्त कर लेते हैं, तो वे क्या खाते हैं, कैसे कपड़े पहनते हैं और कैसे दिखते हैं, इसके लिए उनके क्या सिद्धांत होते हैं? जैसे ही वे हैसियत प्राप्त करते हैं, उन्हें अपनी मर्जी से काम करना होता है, उन्हें अवसर मिलते हैं, कुछ स्थितियाँ मिलती हैं और उनका जीवन अलग होता है। वे अपने खाने के बारे में तुनकमिजाज हो जाते हैं, आडंबर और विलासिता पर बल देते हैं। वे ब्रांडेड चीजें पहनने और इस्तेमाल करने पर जोर देते हैं, और वे जिस घर में रहते हैं और जो कार चलाते हैं, वह उच्च-स्तरीय और शानदार होनी चाहिए। यहाँ तक कि जब वे कोई यूटिलिटी वाहन खरीदते हैं, तो उसके अंदर भी शानदार सामान लगा होना चाहिए। कुछ लोग पूछ सकते हैं : “अगर उनके पास पैसे नहीं होते, तो वे इन चीजों पर इतना जोर क्यों देते हैं?” सिर्फ इसलिए कि उनके पास पैसे नहीं हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि वे ऐसी चीजों के पीछे नहीं भागते या यह इच्छा उनकी मानवता में अनुपस्थित होती है। इसलिए, जब मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर में चढ़ावों पर पकड़ बना लेते हैं, तो वे उन्हें लापरवाही से उड़ाते हैं। वे हर चीज खरीदना और उसका आनंद लेना चाहते हैं, वे ऐसा बेशर्मी की हद तक, और इस हद तक करते हैं कि इसे नियंत्रित करना मुश्किल होता है। उन्हें सोने की परत चढ़ी प्यालियों में परोसी गई उच्च गुणवत्ता वाली चाय पीनी होती है, उनका भोजन शानदार दावत होना चाहिए, वे विशेष ग्रेड की जिनसेंग का सेवन करने पर जोर देते हैं और सिर्फ विश्वस्तरीय ब्रांडों के कंप्यूटरों और फोनों का उपयोग करते हैं जो हमेशा नवीनतम मॉडलों के होते हैं। वे हजारों युआन के चश्मे पहनते हैं, हेयरस्टाइल पर सैकड़ों युआन खर्च करते हैं, और मालिश और सौना सत्रों के लिए एक हजार युआन या उससे भी ज्यादा का भुगतान करते हैं। संक्षेप में, वे हर चीज के सर्वश्रेष्ठ और ब्रांडेड होने की माँग करते हैं और उसी चीज का आनंद लेना चाहते हैं जिसका मशहूर हस्तियाँ और शक्तिशाली लोग आनंद लेते हैं। जब मसीह-विरोधी हैसियत प्राप्त कर लेते हैं, तो ये तमाम बदसूरत चीजें जाहिर हो जाती हैं। सभाओं के दौरान अगर सिर्फ तीन से पाँच लोग उनके उपदेश सुनते हैं, तो वे इसे अपर्याप्त पाते हैं और तीन सौ से पाँच सौ लोगों के होने पर जोर देते हैं। जब दूसरे कहते हैं कि बाहरी परिस्थितियाँ प्रतिकूल हैं, इसलिए तीन से पाँच लोगों की सभा भी काफी अच्छी है, तो वे जवाब देते हैं : “यह नहीं चलेगा—मेरा उपदेश सुनने वाले इतने कम लोग क्यों हैं? यह इस लायक नहीं है कि मैं इसके लिए समय दूँ। हमें कलीसिया के लिए एक बड़ा भवन खरीदना चाहिए, जिसमें ज्यादा सम्मानजनक उपदेश के लिए हजारों लोग आ सकें।” क्या वे मौत को बुलावा नहीं दे रहे? यह वैसी ही चीज है, जैसी मसीह-विरोधी करते हैं। क्या वे शर्म से बेपरवाह भी नहीं हैं? उनमें आलीशान जीवन और भौतिक चीजों के लिए एक बेहद अनियंत्रित इच्छा और रुचि होती है, जो मसीह-विरोधियों के चरित्र का एक और लक्षण है। जैसे ही कोई स्वादिष्ट भोजन, लग्जरी कारों, ब्रांडेड कपड़ों और उच्च-स्तरीय और महँगी वस्तुओं का उल्लेख करता है, उनकी आँखें चमक उठती हैं और लालच से हरी हो जाती हैं, और उनकी इच्छा सतह पर आ जाती है। यह इच्छा कैसे पैदा होती है? यह स्पष्ट रूप से उनकी राक्षसी प्रकृति का प्रकाशन है। कुछ मसीह-विरोधियों के पास पैसे कम हो सकते हैं, और जब वे किसी को महँगे गहने या दो-तीन कैरेट की हीरे की अँगूठी पहने देखते हैं, तो उनकी आँखें चमक उठती हैं और वे सोचते हैं, “अगर मैं परमेश्वर में विश्वास न करता तो पाँच कैरेट की अँगूठी पहन सकता था।” वे इस तथ्य पर विचार करते हैं कि उनके पास एक कैरेट की भी अँगूठी नहीं है, और वे परेशान हो जाते हैं और सोचने लगते हैं कि परमेश्वर में विश्वास करना किसी लायक नहीं है। फिर भी, आगे विचार करने पर वे सोचते हैं, “परमेश्वर में विश्वास रखने के कारण मुझे भविष्य में बड़े आशीष प्राप्त होंगे। मेरे पास पाँच सौ कैरेट का हीरा हो सकता है और मैं उसे अपने सिर पर पहन सकता हूँ।” क्या उनमें इच्छाएँ नहीं हैं? टीवी पर धनी व्यक्तियों को डिजाइनर कपड़े पहने और समुद्र में आलीशान क्रूज जहाजों पर देख उन्हें लगता है कि यह बेहद आनंदमय, रोमांटिक, शानदार और ईर्ष्यायोग्य है। वे इस पर लार टपकाते हुए कहते हैं, “मैं कब उस तरह का व्यक्ति, लोगों के बीच असाधारण व्यक्ति बन सकता हूँ? मैं कब ऐसी जिंदगी का आनंद लूँगा?” वे इसे तब तक बार-बार देखते हैं, जब तक कि उन्हें नहीं लगता कि परमेश्वर में विश्वास करना वास्तव में नीरस है। लेकिन फिर वे दोबारा चिंतन करते हुए सोचते हैं, “मैं इस तरह नहीं सोच सकता। मैं परमेश्वर में विश्वास क्यों करता हूँ? ‘सबसे महान इंसान बनने के लिए व्यक्ति को सबसे बड़ी कठिनाइयाँ सहनी होंगी।’ भविष्य में मेरा जीवन उनसे बहुत बेहतर होगा। वे एक आलीशान क्रूज पर जाते हैं, लेकिन मैं एक आलीशान विमान या आलीशान उड़न-तश्तरी पर उड़ूँगा—मैं चाँद पर जाऊँगा!” क्या ये विचार थोड़े भी समझदारी भरे हैं? क्या ये सामान्य मानवता के अनुरूप हैं? (नहीं, ये सामान्य मानवता के अनुरूप नहीं हैं।) यह मसीह-विरोधियों की मानवता का एक और तत्त्व है—भौतिक चीजों और एक शानदार जीवन-शैली के लिए एक बेहद अनियंत्रित अभिलाषा। जब वे इन्हें प्राप्त कर लेते हैं, तो वे एक लोलुप नजर और प्रकृति के साथ अतृप्त रूप से लालची हो जाते हैं और हमेशा के लिए ये चीजें पाना चाहते हैं। मसीह-विरोधियों की मानवता में शक्तिशाली लोगों से ईर्ष्या करना भर शामिल नहीं है; वे भौतिक चीजें और उच्च गुणवत्ता वाला जीवन भी चाहते हैं। सामान्य मानवता में जीवन और भौतिक चीजों के लिए जरूरतों की एक उचित सीमा होती है : उनकी दैनिक जरूरतें, कार्य और जीवन-परिवेशों की जरूरतें और साथ ही उनकी शारीरिक जरूरतें भी होती हैं। इतना ही काफी है कि ये जरूरतें पूरी हो जाएँ, और अपनी क्षमता और आर्थिक स्थितियों के आधार पर उन्हें नियंत्रित करना अपेक्षाकृत सामान्य माना जाता है। लेकिन मसीह-विरोधियों की भौतिक चीजों की जरूरत और उनमें उनकी लिप्तता असामान्य और अतृप्त होने वाली होती है।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, प्रकरण चार : मसीह-विरोधियों के चरित्र और उनके स्वभाव सार का सारांश (भाग एक)
आदतन झूठे होना, कपट और निर्दयता, गौरव की भावना से रहित और शर्म से बेपरवाह होना, स्वार्थी और नीच होना, ताकतवरों से चिपकना और कमजोरों को दबाना, और सामान्य लोगों से ज्यादा भौतिक चीजों का अभिलाषी होना—मसीह-विरोधियों के चरित्र के ये लक्षण विशिष्ट, अत्यधिक प्रतिनिधिक और स्पष्ट हैं। हालाँकि इनमें से कुछ अभिव्यक्तियाँ कुछ हद तक सामान्य लोगों में दिखाई दे सकती हैं, लेकिन उनकी अभिव्यक्तियाँ सिर्फ एक भ्रष्ट स्वभाव या असामान्य मानवता की अभिव्यक्तियाँ या मानवता की कमी होती हैं, जो शैतान की भ्रष्टता से उत्पन्न होती हैं। परमेश्वर के वचन पढ़कर ये लोग जमीर की जागरूकता और इन चीजों को छोड़ने और इनके खिलाफ विद्रोह कर पश्चात्ताप करने की क्षमता विकसित कर लेते हैं। ये लक्षण उनमें प्रभावी भूमिका नहीं निभाते और ये सत्य के उनके अनुसरण या उनके कर्तव्यों के प्रदर्शन को प्रभावित नहीं करेंगे। सिर्फ मसीह-विरोधी कितने ही उपदेश सुनकर भी सत्य स्वीकारने से इनकार करते हैं। उनकी मानवता में निहित गुण और लक्षण नहीं बदलेंगे, और यही कारण है कि ऐसे लोगों की परमेश्वर के घर में निंदा की जाती है और उन्हें कभी बचाया नहीं जा सकता। उन्हें क्यों नहीं बचाया जा सकता? ऐसे चरित्र वाले लोगों को इसलिए नहीं बचाया जा सकता कि वे सत्य स्वीकारने से इनकार करते हैं और इसलिए भी कि वे सत्य, परमेश्वर और सभी सकारात्मक चीजों के प्रति शत्रुता रखते हैं। उनमें उद्धार के लिए अपेक्षित स्थितियाँ और मानवता नहीं होती, इसलिए इन व्यक्तियों का हटाया जाना और नरक में डाला जाना नियत है।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, प्रकरण चार : मसीह-विरोधियों के चरित्र और उनके स्वभाव सार का सारांश (भाग एक)