5. मसीह विरोधियों को कैसे पहचानें
अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन
परमेश्वर मसीह-विरोधियों का चित्रण किस तरह करता है? यह वे लोग हैं जो सत्य से घृणा करते हैं और परमेश्वर का विरोध करते हैं—वे परमेश्वर के शत्रु हैं! सत्य का विरोध करना, परमेश्वर से घृणा करना, और सभी सकारात्मक चीजों से घृणा करना—यह सामान्य लोगों में पाई जाने वाली क्षणिक कमजोरी या मूर्खता नहीं है, न ही यह गलत विचारों और दृष्टिकोणों का प्रकाशन है जो क्षण भर की विकृत समझ से उत्पन्न हो जाते हैं; यह समस्या नहीं है। समस्या यह है कि वे मसीह-विरोधी हैं, परमेश्वर के दुश्मन हैं, सभी सकारात्मक चीजों और सभी सत्य से घृणा करते हैं; वे ऐसे चरित्र हैं जो परमेश्वर से घृणा करते हैं और उसका विरोध करते हैं। परमेश्वर ऐसे लोगों को कैसे देखता है? परमेश्वर उन्हें नहीं बचाता! ये लोग सत्य से घृणा और नफरत करते हैं, उनमें मसीह-विरोधियों का प्रकृति सार होता है। क्या तुम लोग इसे समझते हो? यहाँ जो उजागर किया जा रहा है वह दुष्टता, क्रूरता और सत्य से नफरत है। यह भ्रष्ट स्वभावों में सबसे गंभीर शैतानी स्वभाव होते हैं, जो शैतान की सबसे विशिष्ट और ठोस विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, न कि सामान्य भ्रष्ट मानव जाति द्वारा प्रकट किए गए भ्रष्ट स्वभावों का। मसीह-विरोधी परमेश्वर के प्रति शत्रुतापूर्ण ताकत हैं। वे कलीसिया में बाधा डालकर उसे नियंत्रित कर सकते हैं, और उनके पास परमेश्वर के प्रबंधन कार्य का विघटन करने और उसमें गड़बड़ करने की क्षमता होती है। यह ऐसा कुछ नहीं है जो भ्रष्ट स्वभाव वाले सामान्य लोग कर पाएँ; केवल मसीह-विरोधी ही ऐसे कार्य करने में सक्षम हैं। इस मामले को कम मत समझो।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद छह
जिस दौरान, परमेश्वर ने देहधारण नहीं किया था, तब कोई इंसान परमेश्वर विरोधी है या नहीं, यह इस बात से तय होता था कि क्या इंसान स्वर्ग के अदृश्य परमेश्वर की आराधना और उसका आदर करता था या नहीं। उस समय परमेश्वर के प्रति विरोध को जिस ढंग से परिभाषित किया गया, वह उतना भी व्यावहारिक नहीं था क्योंकि तब इंसान परमेश्वर को देख नहीं पाता था, न ही उसे यह पता था कि परमेश्वर की छवि कैसी है, वह कैसे कार्य करता है और कैसे बोलता है। परमेश्वर के बारे में इंसान की कोई धारणा नहीं थी, परमेश्वर के बारे में उसकी एक अस्पष्ट आस्था थी, क्योंकि परमेश्वर अभी तक इंसानों के सामने प्रकट नहीं हुआ था। इसलिए इंसान ने अपनी कल्पना में परमेश्वर में चाहे जैसे भी विश्वास किया हो, परमेश्वर ने न तो इंसान की निंदा की, न ही उससे बहुत ही ऊँची अपेक्षाएँ कीं, क्योंकि इंसान परमेश्वर को देखने में बिल्कुल असमर्थ था। परमेश्वर जब देहधारण कर इंसानों के बीच काम करने आता है, तो सभी उसे देखते और उसके वचनों को सुनते हैं, और सभी लोग उन कर्मों को देखते हैं जो परमेश्वर देह रूप में करता है। उस क्षण, इंसान की तमाम धारणाएँ साबुन के झाग बन जाती हैं। जहाँ तक उन लोगों की बात है जिन्होंने परमेश्वर को देह में प्रकट होते देखा है, यदि वे अपनी इच्छा से उसके प्रति समर्पण करेंगे, तो उनकी निंदा नहीं की जाएगी, जबकि जो लोग जानबूझकर परमेश्वर के विरुद्ध खड़े होते हैं, वे परमेश्वर का विरोध करने वाले माने जाएँगे। ऐसे लोग मसीह-विरोधी और शत्रु हैं जो जानबूझकर परमेश्वर के विरोध में खड़े होते हैं।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर को न जानने वाले सभी लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं
यदि तुमने वर्षों परमेश्वर में विश्वास रखा है, फिर भी न तो कभी उसके प्रति समर्पण किया है, न ही उसके वचनों की समग्रता को स्वीकार किया है, बल्कि तुमने परमेश्वर को अपने आगे समर्पण करने और तुम्हारी धारणाओं के अनुसार कार्य करने को कहा है, तो तुम सबसे अधिक विद्रोही व्यक्ति हो, और छद्म-विश्वासी हो। एक ऐसा व्यक्ति परमेश्वर के कार्य और वचनों के प्रति समर्पण कैसे कर सकता है जो मनुष्य की धारणाओं के अनुरूप नहीं है? सबसे अधिक विद्रोही वे लोग होते हैं जो जानबूझकर परमेश्वर की अवहेलना और उसका विरोध करते हैं। ऐसे लोग परमेश्वर के शत्रु और मसीह विरोधी हैं। ऐसे लोग परमेश्वर के नए कार्य के प्रति निरंतर शत्रुतापूर्ण रवैया रखते हैं, ऐसे व्यक्ति में कभी भी समर्पण का कोई भाव नहीं होता, न ही उसने कभी खुशी से समर्पण किया होता है या दीनता का भाव दिखाया है। वे स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ समझते हैं और कभी किसी के आगे नहीं झुकते। परमेश्वर के सामने, ये लोग वचनों का उपदेश देने में स्वयं को सबसे ज़्यादा निपुण समझते हैं और दूसरों पर कार्य करने में अपने आपको सबसे अधिक कुशल समझते हैं। इनके कब्ज़े में जो “खज़ाना” होता है, ये लोग उसे कभी नहीं छोड़ते, दूसरों को इसके बारे में उपदेश देने के लिए, अपने परिवार की पूजे जाने योग्य विरासत समझते हैं, और उन मूर्खों को उपदेश देने के लिए इनका उपयोग करते हैं जो उनकी पूजा करते हैं। कलीसिया में वास्तव में इस तरह के कुछ ऐसे लोग हैं। ये कहा जा सकता है कि वे “अदम्य नायक” हैं, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी परमेश्वर के घर में डेरा डाले हुए हैं। वे वचन (सिद्धांत) का उपदेश देना अपना सर्वोत्तम कर्तव्य समझते हैं। साल-दर-साल और पीढ़ी-दर-पीढ़ी वे अपने “पवित्र और अलंघनीय” कर्तव्य को पूरी प्रबलता से लागू करते रहते हैं। कोई उन्हें छूने का साहस नहीं करता; एक भी व्यक्ति खुलकर उनकी निंदा करने की हिम्मत नहीं दिखाता। वे परमेश्वर के घर में “राजा” बनकर युगों-युगों तक बेकाबू होकर दूसरों पर अत्याचार करते चले आ रहे हैं। दुष्टात्माओं का यह झुंड संगठित होकर काम करने और मेरे कार्य का विध्वंस करने की कोशिश करता है; मैं इन जीती-जागती दुष्ट आत्माओं को अपनी आँखों के सामने कैसे अस्तित्व में बने रहने दे सकता हूँ? यहाँ तक कि आधा-अधूरा समर्पण करने वाले लोग भी अंत तक नहीं चल सकते, फिर इन आततायियों की तो बात ही क्या है जिनके हृदय में थोड़ा-सा भी समर्पण नहीं है! इंसान परमेश्वर के कार्य को आसानी से ग्रहण नहीं कर सकता। इंसान अपनी सारी ताक़त लगाकर भी थोड़ा-बहुत ही पा सकता है जिससे वो आखिरकार पूर्ण बनाया जा सके। फिर प्रधानदूत की संतानों का क्या, जो परमेश्वर के कार्य को नष्ट करने की कोशिश में लगी रहती हैं? क्या परमेश्वर द्वारा उन्हें ग्रहण करने की आशा और भी कम नहीं है?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो सच्चे हृदय से परमेश्वर के प्रति समर्पण करते हैं वे निश्चित रूप से परमेश्वर द्वारा हासिल किए जाएँगे
ऐसे भी लोग हैं जो बड़ी-बड़ी कलीसियाओं में दिन-भर बाइबल पढ़ते और याद करके सुनाते रहते हैं, फिर भी उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य को समझता हो। उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर को जान पाता हो; उनमें से परमेश्वर के इरादों के अनुरूप तो एक भी नहीं होता। वे सबके सब निकम्मे और अधम लोग हैं, जिनमें से प्रत्येक परमेश्वर को सिखाने के लिए ऊँचे पायदान पर खड़ा रहता है। वे लोग परमेश्वर के नाम का झंडा उठाकर, जानबूझकर उसका विरोध करते हैं। वे परमेश्वर में विश्वास रखने का दावा करते हैं, फिर भी मनुष्यों का माँस खाते और रक्त पीते हैं। ऐसे सभी मनुष्य शैतान हैं जो मनुष्यों की आत्माओं को निगल जाते हैं, ऐसे मुख्य राक्षस हैं जो जानबूझकर उन्हें परेशान करते हैं जो सही मार्ग पर कदम बढ़ाने का प्रयास करते हैं और ऐसी बाधाएँ हैं जो परमेश्वर को खोजने वालों के मार्ग में रुकावट पैदा करते हैं। वे “मज़बूत देह” वाले दिख सकते हैं, किंतु उसके अनुयायियों को कैसे पता चलेगा कि वे मसीह-विरोधी हैं जो लोगों से परमेश्वर का विरोध करवाते हैं? अनुयायी कैसे जानेंगे कि वे जीवित शैतान हैं जो इंसानी आत्माओं को निगलने को समर्पित हुए बैठे हैं?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर को न जानने वाले सभी लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं
प्रत्येक धर्म और संप्रदाय के अगुआओं को देखो—वे सभी अहंकारी और आत्म-तुष्ट हैं, और बाइबल की उनकी व्याख्या में संदर्भ का अभाव है और वे अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के अनुसार चलते हैं। वे सभी अपना काम करने के लिए प्रतिभा और ज्ञान पर भरोसा करते हैं। यदि वे बिल्कुल भी उपदेश न दे पाते तो क्या लोग उनका अनुसरण करते? कुछ भी हो, उनके पास कुछ ज्ञान तो है ही और वे धर्म-सिद्धांत के बारे में थोड़ा-बहुत बोल सकते हैं, या वे जानते हैं कि दूसरों का मन कैसे जीता जाए और कुछ चालों का उपयोग कैसे करें। इन चीजों के माध्यम से वे लोगों को धोखा देते हैं और उन्हें अपने सामने ले आते हैं। नाममात्र के लिए, वे लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, लेकिन वास्तव में वे इन अगुआओं का अनुसरण करते हैं। जब वे उन लोगों का सामना करते हैं जो सच्चे मार्ग का प्रचार करते हैं, तो उनमें से कुछ कहेंगे, “हमें परमेश्वर में अपने विश्वास के मामले में हमारे अगुआ से परामर्श करना है।” देखो, परमेश्वर में विश्वास करने और सच्चा मार्ग स्वीकारने की बात आने पर कैसे लोगों को अभी भी दूसरों की सहमति और मंजूरी की जरूरत होती है—क्या यह एक समस्या नहीं है? तो फिर, वे सब अगुआ क्या बन गए हैं? क्या वे फरीसी, झूठे चरवाहे, मसीह-विरोधी, और लोगों के सही मार्ग को स्वीकारने में अवरोध नहीं बन चुके हैं? इस तरह के लोग पौलुस जैसे ही हैं।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन
मसीह-विरोधी सत्य और परमेश्वर के प्रति खुले तौर पर वैर रखते हैं; वे परमेश्वर से उसके चुने हुए लोगों, उसके पद और लोगों के हृदय में जगह के लिए परमेश्वर से होड़ करते हैं, और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के दिलों को जीतने और उन्हें गुमराह करने और निष्क्रिय करने के लिए उनके इर्द-गिर्द कई तरह की चीजें भी करते हैं। संक्षेप में, मसीह विरोधियों के कामों और व्यवहार की प्रकृति, चाहे वह खुले तौर हो या गुप्त, हमेशा परमेश्वर की विरोधी होती है। मैं क्यों कहता हूँ कि यह परमेश्वर के प्रति शत्रुतापूर्ण है? ऐसा इसलिए है क्योंकि वे अच्छी तरह से जानते हैं कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं और कि वह परमेश्वर है, फिर भी चाहे जितनी संगति की जाए वे परमेश्वर का विरोध करते हैं और सत्य को नहीं स्वीकार करते। उदाहरण के लिए, कुछ मसीह-विरोधी कुछ लोगों को अपने जाल में फंसाते हैं और उन्हें गुमराह करते हैं और नियंत्रित करते हैं। वे इन लोगों को अपनी आज्ञा मानने और अनुसरण करने के लिए मजबूर करते हैं, और फिर वे धोखा देकर कलीसिया से सभी प्रकार की पुस्तकें और सामग्री प्राप्त करते हैं, और अपने स्वयं के कलीसिया स्थापित करते हैं और अपने राज्य स्थापित करते हैं, ताकि वे अपने अनुयायियों द्वारा अनुसरण और पूजा किए जाने का आनंद ले सकें, इसके बाद वे कलीसिया से लाभ उठाना शुरू कर देते हैं। इस तरह का व्यवहार स्पष्ट रूप से परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए परमेश्वर के साथ उनका होड़ करना है—क्या यह मसीह-विरोधियों का लक्षण नहीं है? क्या इस प्रत्यक्ष लक्षण के आधार पर इन लोगों को मसीह-विरोधी के रूप में परिभाषित करना अन्यायपूर्ण है? यह बिल्कुल अन्यायपूर्ण नहीं है—यह परिभाषा अत्यंत सटीक है! कुछ मसीह-विरोधी ऐसे भी हैं जो कलीसिया के भीतर गुट बनाते हैं और कलीसिया को तोड़ते हैं। वे लगातार कलीसिया के भीतर अपनी ताकतों को संवर्द्धित करते हैं, और जो उनसे असहमत होते हैं, उन्हें बाहर कर देते हैं। फिर वे उन लोगों को अपने साथ रखते हैं जो उनकी बात सुनते हैं और उनका अनुसरण करते हैं, ताकि वे अपनी सेना बना सकें और सभी को अपना कहा करने के लिए मजबूर कर सकें। क्या यह उनका अपना राज्य स्थापित करने जैसा नहीं है? ऊपर वाले की कार्य व्यवस्था या आवश्यकताओं की अनदेखी करते हुए वे उन्हें पूरा करने से इनकार करते हैं और इसके बजाय अपने तरीके से काम करते हैं, जिससे उनके अनुयायी ऊपर वाले का खुले आम विरोध करते हैं। उदाहरण के लिए, परमेश्वर के घर की अपेक्षा है कि वास्तविक कार्य करने में अक्षम अगुओं और कार्यकर्ताओं को तुरंत बदल दिया जाए। परंतु, मसीह-विरोधी सोचेगा कि, “हालाँकि कुछ नेता और कार्यकर्ता वास्तविक कार्य करने में सक्षम नहीं हैं, लेकिन वे मेरा समर्थन करते हैं और मुझे स्वीकार करते हैं, और मैं उनका पोषण करता रहा हूँ। ऐसे में ऊपर वाला जब तक मुझे न हटा दे, मैं किसी हाल में इन लोगों को नहीं बदलने दे सकता।” बताओ कि क्या वह कलीसिया उस मसीह-विरोधी के नियंत्रण में नहीं है? परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाएँ मसीह-विरोधी की मर्जी के हिसाब से नहीं हैं और उन्हें पूरा नहीं किया जा सकता है। जब कार्य व्यवस्थाएँ लंबे समय के लिए जारी की गई हों, और हर कलीसिया ने सूचना दी हो कि उन्हें कैसे लागू किया गया है, उदाहरण के लिए किसे दूसरे कर्तव्य पर फिर से नियुक्त किया गया है या किन परिस्थितियों के कारण प्रतिस्थापित किया गया है, फिर भी मसीह-विरोधी कभी कोई सूचना नहीं देता और कभी भी किसी की पुनर्नियुक्ति नहीं करता। कुछ लोग हमेशा अपने कर्तव्यों में बेपरवाही बरतते हैं जिससे कलीसिया का काम गंभीर रूप से प्रभावित होता है, लेकिन मसीह-विरोधी उनकी नियुक्ति में बदलाव नहीं करता। यहां तक कि जब ऊपर वाला मसीह-विरोधी को सीधे इन लोगों को बदलने के लिए कहता है, तो भी वह लंबे समय तक कोई जवाब नहीं देता। क्या इसमें कोई समस्या नहीं है? जब ऊपर वाला मसीह-विरोधी को कार्य व्यवस्थाएं लागू करने के लिए कहता है या किसी चीज के बारे में पूछताछ करने की कोशिश करता है, तो मसीह-विरोधी के साथ उसका संवाद प्रतिक्रियाहीन छोर पर पहुँच जाता है। कलीसिया में अन्य भाई-बहनों को इसके बारे में कुछ भी पता नहीं होता, उन्हें कोई संदेश नहीं मिलते, और ऊपर वाले से उनका कोई सम्पर्क नहीं होता—कलीसिया पूरी तरह से उस एक व्यक्ति के नियंत्रण में होता है। इस तरह से काम करने वाले मसीह-विरोधी की प्रकृति क्या है? यह मसीह-विरोधी द्वारा कलीसिया पर कब्जा करना है। मसीह-विरोधी कलीसिया में गुट बनाते हैं, वे अपना राज्य स्थापित करते हैं, वे परमेश्वर के घर का विरोध करते हैं, और वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नुकसान पहुँचाते हैं। लोग पवित्र आत्मा का काम छोड़ देते हैं, वे परमेश्वर की उपस्थिति को महसूस नहीं कर पाते हैं, वहाँ शांति या आनंद नहीं मिलता है, वे परमेश्वर में विश्वास खो देते हैं, औरअपने कर्तव्यों को पूरी ऊर्जा के साथ निभाना बंद कर देते हैं। वे नकारात्मक और भ्रष्ट भी हो जाते हैं, और उनका जीवन गतिहीन हो जाता है। ये सभी मसीह-विरोधी द्वारा लोगों को गुमराह और नियंत्रित किए जाने के परिणाम होते हैं।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद सात : वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (भाग एक)
देहधारी परमेश्वर के प्रति व्यवहार में मसीह-विरोधियों की एक और अभिव्यक्ति है : वे कहते हैं, “जैसे ही मैंने यह देखा कि मसीह एक साधारण व्यक्ति है, वैसे ही मेरे मन में धारणाएँ बन गईं। ‘वचन देह में प्रकट होता है,’ यह परमेश्वर की एक अभिव्यक्ति है; यह सत्य है और मैं इसे मानता हूँ। ‘वचन देह में प्रकट होता है’ की एक प्रति मेरे पास है और यही काफी है। मुझे मसीह के साथ संपर्क रखने की जरूरत नहीं है। अगर मुझमें धारणाएँ, नकारात्मकता या कमजोरी है तो मैं इन्हें सिर्फ परमेश्वर के वचन पढ़कर हल कर सकता हूँ। अगर मैं देहधारी परमेश्वर के साथ संपर्क रखता हूँ तो धारणाएँ बना लेना आसान होगा और इससे दिख जाएगा कि मैं बहुत गहराई तक भ्रष्ट हूँ। अगर परमेश्वर मेरी निंदा कर दे, तो मेरे पास उद्धार की कोई आशा नहीं रहेगी। इसलिए बेहतर यही रहेगा कि बस परमेश्वर के वचन मैं स्वयं पढ़ूँ। स्वर्ग का परमेश्वर ही लोगों को बचा सकता है।” परमेश्वर के वर्तमान वचन और संगति, खासकर मसीह-विरोधियों के स्वभाव और सार को उजागर करने वाले वचन उनके दिल में सबसे अधिक चुभते हैं और उन्हें सबसे अधिक पीड़ा पहुँचाते हैं। इन्हीं वचनों को पढ़ने के लिए मसीह-विरोधी सबसे कम तैयार रहते हैं। इसलिए मसीह-विरोधी मन-ही-मन मन्नत माँगते हैं कि परमेश्वर जल्द ही पृथ्वी को छोड़ दे, ताकि वे पृथ्वी पर अपनी शक्ति के बल पर शासन कर सकें। उन्हें लगता है कि परमेश्वर ने जिस देह में देहधारण किया है, यानी यह साधारण व्यक्ति, उनके लिए अनावश्यक है। वे हमेशा यही विचार करते हैं, “मसीह के धर्मोपदेश सुनने से पहले मुझे लगता था कि मैं सब कुछ समझता हूँ और हर लिहाज से ठीक हूँ, लेकिन मसीह के धर्मोपदेश सुनने के बाद वह बात नहीं रही। अब लगता है मानो मेरे पास कुछ भी नहीं है, मानो मैं बहुत तुच्छ और दयनीय हूँ।” इसलिए वे यह तय मान लेते हैं कि मसीह के वचन उन्हें नहीं बल्कि दूसरों को उजागर करने वाले होते हैं, और उन्हें लगता है कि मसीह के धर्मोपदेश सुनने की कोई जरूरत नहीं है, कि “वचन देह में प्रकट होता है” को पढ़ लेना ही काफी है। मसीह-विरोधियों के दिलों में उनका मुख्य इरादा परमेश्वर के देहधारण के तथ्य को नकारना है, इस तथ्य को नकारना है कि मसीह सत्य को व्यक्त करता है, वे यह सोचते हैं कि परमेश्वर में इस तरह विश्वास रखकर उनके बचाए जाने की आशा है और वे कलीसिया में राजाओं की तरह राज कर सकेंगे, और इस प्रकार परमेश्वर में विश्वास रखने के अपने मूल इरादे को पूरा कर सकेंगे। मसीह-विरोधियों की जन्मजात प्रकृति परमेश्वर का प्रतिरोध करने की होती है; देहधारी परमेश्वर के साथ उनका मेल वैसे ही नहीं बैठता, जैसा आग और पानी का सदा-सदा का बैर है। उन्हें लगता है कि मसीह के अस्तित्व का प्रत्येक दिन ऐसा दिन होगा कि उनके लिए चमकना कठिन होगा, और उनके सामने निंदा झेलने, हटाए जाने, नष्ट होने और दंड पाने का खतरा रहेगा। अगर मसीह बोलता नहीं है और कार्य नहीं करता है, अगर परमेश्वर के चुने हुए लोग मसीह को आदर से नहीं देखते हैं, तो मसीह-विरोधियों के पास अवसर रहता है। उनके पास अपनी क्षमताएँ दिखाने का मौका होता है। उनके हाथ हिलाने भर से उनके पक्ष में लोगों की भीड़ उमड़ आएगी और मसीह-विरोधी लोग राजाओं की तरह शासन कर सकेंगे। मसीह-विरोधियों का प्रकृति सार सत्य-विमुख रहना और मसीह के प्रति नफरत से भरे रहना है। वे मसीह से इस बात की होड़ करते हैं कि कौन ज्यादा प्रतिभाशाली है या कौन अधिक सक्षम है; वे मसीह से इस बात की होड़ करते हैं कि किसके शब्दों में अधिक शक्ति है और किसकी योग्यताएँ अधिक हैं। चूँकि वे मसीह के समान ही कार्य कर रहे हैं, इसलिए वे दूसरों को यह दिखाने पर तुले रहते हैं कि भले ही वे और मसीह दोनों मानव हैं, फिर भी मसीह की योग्यताएँ और विद्वता किसी साधारण इंसान से बेहतर नहीं हैं। मसीह-विरोधी हर तरह से मसीह से होड़ लगाते हैं, इस बात पर स्पर्धा करते हैं कि कौन बेहतर है, और हर कोण से इस तथ्य को नकारने की कोशिश करते हैं कि मसीह परमेश्वर है, कि वह परमेश्वर के आत्मा का प्रतिरूप है, कि वह सत्य का प्रतिरूप है। वे हर क्षेत्र में तमाम ऐसे तरीके और उपाय सोचते रहते हैं जिनसे मसीह को परमेश्वर के चुने हुए लोगों के बीच प्रभुत्व रखने से रोका जाए, परमेश्वर के चुने हुए लोगों के बीच मसीह के वचनों का प्रचार या इनका क्रियान्वयन रोका जाए, और यहाँ तक कि मसीह जो चीजें करता है उन्हें रोका जाए और लोगों से उसकी माँगों और लोगों के लिए उसकी आशाओं को परमेश्वर के चुने हुए लोगों के बीच साकार होने से रोका जाए। यह ऐसा है मानो मसीह की मौजूदगी में उनका तिरस्कार होता हो, कलीसिया उनकी निंदा करती हो और उन्हें खारिज कर देती हो—लोगों के एक समूह को एक अंधेरे कोने में डाल दिया जाता हो। हम मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों में देख सकते हैं कि सार और स्वभाव से वे मसीह के साथ मेल नहीं खाते हैं—वे उसके साथ एक ही छतरी तले नहीं रह सकते! मसीह-विरोधी जन्म से ही परमेश्वर के प्रति शत्रुवत रहे हैं; वे मसीह का खास तौर पर प्रतिरोध करने पर तुले रहते हैं, और वे मसीह को हराकर धूल चटा देना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि मसीह जो भी कार्य करता है वह बेकार और बेनतीजा हो जाए, ताकि अंत में मसीह ज्यादा लोगों को हासिल न कर सके, ताकि वह चाहे कहीं भी कार्य करे उसे कोई नतीजा न मिले। तभी मसीह-विरोधी खुश होंगे। अगर मसीह सत्य व्यक्त करता है और लोग इनके लिए प्यासे रहते हैं, इन्हें खोजते हैं, इन्हें खुशी-खुशी अपनाते हैं, मसीह की खातिर खुद को खपाने के लिए तैयार रहते हैं, सब कुछ त्यागकर मसीह के सुसमाचार फैलाने के लिए तैयार रहते हैं तो मसीह-विरोधी निराश हो जाते हैं और उन्हें लगता है कि भविष्य के लिए कोई आशा नहीं बची है, कि उन्हें कभी चमकने का मौका नहीं मिलेगा, मानो उन्हें नरक में झोंक दिया गया हो। मसीह-विरोधियों की इन अभिव्यक्तियों को देखने से क्या परमेश्वर से लड़ने और उसे शत्रुवत मानने का उनका सार किसी दूसरे ने उनके अंदर बैठाया है? ऐसा बिल्कुल भी नहीं है; वे इसके साथ पैदा हुए हैं। इसीलिए मसीह-विरोधी ऐसे लोग हैं जो जन्मे ही दानव के अवतार में हैं, वे पृथ्वी पर उतरे दानव हैं। वे शायद कभी सत्य स्वीकार नहीं कर सकते और मसीह को कभी स्वीकार नहीं करेंगे, मसीह की बड़ाई नहीं करेंगे या मसीह की गवाही नहीं देंगे। हालाँकि उनके हाव-भावों से तुम उन्हें खुलेआम मसीह की आलोचना या निंदा करते नहीं देखोगे, और भले ही वे ईमानदारी से कुछ प्रयास कर लें और कीमत चुका लें, फिर भी जैसे ही उन्हें मौका मिलेगा, जब सही समय आएगा तो परमेश्वर के साथ मसीह-विरोधियों का बेमेलपन खुद-ब-खुद दिखने लगेगा। यह तथ्य सार्वजनिक हो जाएगा कि मसीह-विरोधी परमेश्वर से लड़ते हैं और एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना करते हैं। जिन स्थानों पर मसीह-विरोधी रहते हैं वहाँ ये सारी चीजें पहले घटित हो चुकी हैं और ये इन वर्षों में खास तौर पर आम हो चुकी हैं जब परमेश्वर अंत के दिनों के न्याय का कार्य कर रहा है; कई लोग इनका अनुभव और अवलोकन कर चुके हैं।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद दस : वे सत्य से घृणा करते हैं, सिद्धांतों की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाते हैं और परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं की उपेक्षा करते हैं (भाग चार)
कुछ लोगों के हृदय बिल्कुल भी परमेश्वर का भय नहीं मानते हैं। उनका मानना है कि कार्य व्यवस्थाएँ मनुष्य ने लिखी हैं, वे मनुष्य से आती हैं, और जहाँ भी वे व्यवस्थाएँ इन लोगों की धारणाओं के अनुरूप नहीं होती, वे उन्हें जैसा चाहें वैसे बदल देते हैं। क्या तुम्हें पता हैं कि यह परमेश्वर के किस प्रशासनिक आदेश का उल्लंघन है? (7. “कलीसिया के कार्यों और मामलों में परमेश्वर के प्रति समर्पण के अलावा, उस व्यक्ति के निर्देशों का पालन करो जिसे पवित्र आत्मा हर चीज में उपयोग करता है। जरा-सा भी उल्लंघन अस्वीकार्य है। अपने अनुपालन में एकदम सही रहो और सही या ग़लत का विश्लेषण न करो; क्या सही या ग़लत है, इससे तुम्हारा कोई लेना-देना नहीं। तुम्हें केवल संपूर्ण समर्पण की चिंता करनी चाहिए” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, दस प्रशासनिक आदेश जो राज्य के युग में परमेश्वर के चुने लोगों द्वारा पालन किए जाने चाहिए)।) जो चीजें प्रशासनिक आदेशों का उल्लंघन करती हैं वे परमेश्वर के स्वभाव को ठेस पहुँचाती हैं। क्या तुम्हें यह साफ दिखाई नहीं देता? कुछ लोग ऊपरवाले की कार्य व्यवस्थाओं के प्रति अपने रवैये में अत्यधिक लापरवाह होते हैं। उनका मानना है, “ऊपरवाला कार्य व्यवस्था बनाता है, और कलीसिया में हम कार्य करते हैं। कुछ वचनों और मामलों को लागू करने में ढिलाई बरती जा सकती है। विशेष रूप से, उन्हें करना कैसे है यह हम पर निर्भर करता है। ऊपरवाला सिर्फ बोलता है और कार्य-व्यवस्थाएँ बनाता है; व्यावहारिक कार्रवाई करने वाले तो हम ही हैं। इसलिए, एक बार जब ऊपरवाले ने कार्य हमें सौंप दिया उसके बाद इसे हम जैसे चाहें वैसे कर सकते हैं। यह कैसे भी हो जाए, ठीक है। किसी को भी इसमें दखलअंदाजी का अधिकार नहीं है।” वे जिन सिद्धांतों पर कार्य करते हैं वे इस प्रकार हैं : वे वही सुनते हैं जिसे वे सही मानते हैं और जिसे वे गलत मानते हैं उसे नजरअंदाज कर देते हैं, वे अपनी मान्यताओं को ही सत्य और सिद्धांत मानकर चलते हैं, वे हर उस चीज का विरोध करते हैं जो उनकी इच्छा के अनुरूप नहीं है, और वे उन चीजों को लेकर तुम्हारे सख्त विरोधी हैं। जब ऊपरवाले के वचन उनकी इच्छा के अनुरूप नहीं होते हैं, तो वे आगे बढ़कर उन्हें बदल देते हैं, और उन्हें नीचे के लोगों को तभी बताते हैं जब वे वचन उनकी सहमति के अनुरूप होते हैं। अपनी सहमति के बिना, वे उन्हें नीचे के लोगों को उन्हें जानने की अनुमति नहीं देते हैं। हालाँकि अन्य क्षेत्रों में ऊपरवाले की कार्य व्यवस्थाओं को वे जैसी हैं वैसी ही नीचे बता दी जाती हैं, जबकि ये लोग उन कलीसियाओं में जिनका प्रभार उनके पास है, कार्य व्यवस्थाओं के अपने संशोधित संस्करणों को भेजते हैं। ऐसे लोग परमेश्वर को हमेशा हाशिए पर रखना चाहते हैं; वे इस बात के लिए उतावले रहते हैं कि हर कोई उन पर विश्वास करे, उनका अनुसरण करे, और उनके प्रति समर्पित हो। उनके मन में, कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें परमेश्वर उनके बराबर नहीं है—उन्हें स्वयं परमेश्वर होना चाहिए, और दूसरों को उन पर विश्वास करना चाहिए। यही इसकी प्रकृति है। यदि तुम लोग इसे समझ गए तो जब उन्हें बर्खास्त किया जाएगा, क्या तब भी तुम रोओगे? क्या तुम तब भी उनके लिए अफसोस करोगे? क्या तब भी तुम सोचोगे, “ऊपरवाले ने ठीक नहीं किया। वे लोगों के साथ बेजा व्यवहार करते हैं। वे ऐसे कर्मनिष्ठ व्यक्ति को बर्खास्त कैसे कर सकते हैं?” जो लोग ऐसा कहते हैं वे अविवेकी हैं। वे कड़ी मेहनत किस लिए कर रहे हैं? परमेश्वर के लिए? कलीसिया के काम के लिए? नहीं, वे अपनी हैसियत को मजबूत करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं; वे स्वतंत्र राज्य स्थापित करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। क्या वे परमेश्वर की सेवा कर रहे हैं? क्या वे अपने कर्तव्य निभा रहे हैं? क्या वे परमेश्वर के प्रति निष्ठावान और समर्पित हैं? वे पूरी तरह से शैतान के नौकर हैं, और जब वे काम करते हैं तो दानव ही शासन करता है। वे परमेश्वर की प्रबंधन योजना को क्षति पहुँचाते हैं और परमेश्वर के कार्य में विघ्न डालते हैं। वे प्रामाणिक मसीह-विरोधी हैं!
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन
अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे के प्रति मसीह-विरोधियों का चाव सामान्य लोगों से कहीं ज्यादा होता है, और यह एक ऐसी चीज है जो उनके स्वभाव सार के भीतर होती है; यह कोई अस्थायी रुचि या उनके परिवेश का क्षणिक प्रभाव नहीं होता—यह उनके जीवन, उनकी हड्डियों में समायी हुई चीज है, और इसलिए यह उनका सार है। कहने का तात्पर्य यह है कि मसीह-विरोधी लोग जो कुछ भी करते हैं, उसमें उनका पहला विचार उनकी अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे का होता है, और कुछ नहीं। मसीह-विरोधियों के लिए प्रतिष्ठा और रुतबा ही उनका जीवन और उनके जीवन भर का लक्ष्य होता है। वे जो कुछ भी करते हैं, उसमें उनका पहला विचार यही होता है : “मेरे रुतबे का क्या होगा? और मेरी प्रतिष्ठा का क्या होगा? क्या ऐसा करने से मुझे अच्छी प्रतिष्ठा मिलेगी? क्या इससे लोगों के मन में मेरा रुतबा बढ़ेगा?” यही वह पहली चीज है जिसके बारे में वे सोचते हैं, जो इस बात का पर्याप्त प्रमाण है कि उनमें मसीह-विरोधियों का स्वभाव और सार है; इसलिए वे चीजों को इस तरह से देखते हैं। यह कहा जा सकता है कि मसीह-विरोधियों के लिए प्रतिष्ठा और रुतबा कोई अतिरिक्त आवश्यकता नहीं है, कोई बाहरी चीज तो बिल्कुल भी नहीं है जिसके बिना उनका काम चल सकता हो। ये मसीह-विरोधियों की प्रकृति का हिस्सा हैं, ये उनकी हड्डियों में हैं, उनके खून में हैं, ये उनमें जन्मजात हैं। मसीह-विरोधी इस बात के प्रति उदासीन नहीं होते कि उनके पास प्रतिष्ठा और रुतबा है या नहीं; यह उनका रवैया नहीं होता। फिर उनका रवैया क्या होता है? प्रतिष्ठा और रुतबा उनके दैनिक जीवन से, उनकी दैनिक स्थिति से, जिस चीज का वे रोजाना अनुसरण करते हैं उससे, घनिष्ठ रूप से जुड़ा होता है। और इसलिए मसीह-विरोधियों के लिए रुतबा और प्रतिष्ठा उनका जीवन हैं। चाहे वे कैसे भी जीते हों, चाहे वे किसी भी परिवेश में रहते हों, चाहे वे कोई भी काम करते हों, चाहे वे किसी भी चीज का अनुसरण करते हों, उनके कोई भी लक्ष्य हों, उनके जीवन की कोई भी दिशा हो, यह सब अच्छी प्रतिष्ठा और ऊँचा रुतबा पाने के इर्द-गिर्द घूमता है। और यह लक्ष्य बदलता नहीं; वे कभी ऐसी चीजों को दरकिनार नहीं कर सकते। यह मसीह-विरोधियों का असली चेहरा और सार है। तुम उन्हें पहाड़ों की गहराई में किसी घने-पुराने जंगल में छोड़ दो, फिर भी वे प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे दौड़ना नहीं छोड़ेंगे। तुम उन्हें लोगों के किसी भी समूह में रख दो, फिर भी वे सिर्फ प्रतिष्ठा और रुतबे के बारे में ही सोचेंगे। भले ही मसीह-विरोधी भी परमेश्वर में विश्वास करते हैं, फिर भी वे प्रतिष्ठा और रुतबे के अनुसरण को परमेश्वर में आस्था के बराबर समझते हैं और उसे समान महत्व देते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि जब वे परमेश्वर में आस्था के मार्ग पर चलते हैं, तो वे प्रतिष्ठा और रुतबे का अनुसरण भी करते हैं। कहा जा सकता है कि मसीह-विरोधी अपने दिलों में यह मानते हैं कि परमेश्वर में उनकी आस्था में सत्य का अनुसरण प्रतिष्ठा और रुतबे का अनुसरण है; प्रतिष्ठा और रुतबे का अनुसरण सत्य का अनुसरण भी है, और प्रतिष्ठा और रुतबा प्राप्त करना सत्य और जीवन प्राप्त करना है। अगर उन्हें लगता है कि उनके पास कोई प्रतिष्ठा, लाभ या रुतबा नहीं है, कि कोई उनकी प्रशंसा या सम्मान या उनका अनुसरण नहीं करता है, तो वे बहुत निराश हो जाते हैं, वे मानते हैं कि परमेश्वर में विश्वास करने का कोई मतलब नहीं है, इसका कोई मूल्य नहीं है, और वे मन-ही-मन कहते हैं, “क्या परमेश्वर में ऐसा विश्वास असफलता है? क्या यह निराशाजनक है?” वे अक्सर अपने दिलों में ऐसी बातों पर सोच-विचार करते हैं, वे सोचते हैं कि कैसे वे परमेश्वर के घर में अपने लिए जगह बना सकते हैं, कैसे वे कलीसिया में उच्च प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकते हैं, ताकि जब वे बात करें तो लोग उन्हें सुनें, और जब वे कार्य करें तो लोग उनका समर्थन करें, और जहाँ कहीं वे जाएँ, लोग उनका अनुसरण करें; ताकि कलीसिया में अंतिम निर्णय उनका ही हो, और उनके पास शोहरत, लाभ और रुतबा हो—वे वास्तव में अपने दिलों में ऐसी चीजों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। ऐसे लोग इन्हीं चीजों के पीछे भागते हैं। वे हमेशा ऐसी बातों के बारे में ही क्यों सोचते रहते हैं? परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद, उपदेश सुनने के बाद, क्या वे वाकई यह सब नहीं समझते, क्या वे वाकई यह सब नहीं जान पाते? क्या परमेश्वर के वचन और सत्य वास्तव में उनकी धारणाएँ, विचार और मत बदलने में सक्षम नहीं हैं? मामला ऐसा बिल्कुल नहीं है। समस्या उनमें ही है, यह पूरी तरह से इसलिए है क्योंकि वे सत्य से प्रेम नहीं करते, क्योंकि अपने दिल में वे सत्य से विमुख हो चुके हैं, और परिणामस्वरूप वे सत्य के प्रति बिल्कुल भी ग्रहणशील नहीं होते—जो उनके प्रकृति सार से निर्धारित होता है।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग तीन)
मसीह-विरोधी के सार की सबसे स्पष्ट विशेषताओं में से एक यह होती है कि वे अपनी सत्ता का एकाधिकार और अपनी तानाशाही चलाते हैं : वे किसी की नहीं सुनते हैं, किसी का आदर नहीं करते हैं, और लोगों की क्षमताओं की परवाह किए बिना, या इस बात की परवाह किए बिना कि वे क्या सही विचार या बुद्धिमत्तापूर्ण मत व्यक्त करते हैं और कौन-से उपयुक्त तरीके सामने रखते हैं, वे उन पर कोई ध्यान नहीं देते; यह ऐसा है मानो कोई भी उनके साथ सहयोग करने या उनके किसी भी काम में भाग लेने के योग्य न हो। मसीह-विरोधियों का स्वभाव ऐसा ही होता है। कुछ लोग कहते हैं कि यह बुरी मानवता वाला होना है—लेकिन यह सामान्य बुरी मानवता कैसे हो सकती है? यह पूरी तरह से एक शैतानी स्वभाव है; और ऐसा स्वभाव अत्यंत क्रूरतापूर्ण है। मैं क्यों कहता हूँ कि उनका स्वभाव अत्यंत क्रूरतापूर्ण है? मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर और कलीसिया की संपत्ति से सब-कुछ हर लेते हैं और उससे अपनी निजी संपत्ति के समान पेश आते हैं जिसका प्रबंधन उन्हें ही करना हो, और वे इसमें किसी भी दूसरे को दखल देने की अनुमति नहीं देते हैं। कलीसिया का कार्य करते समय वे केवल अपने हितों, अपनी हैसियत और अपने गौरव के बारे में ही सोचते हैं। वे किसी को भी अपने हितों को नुकसान नहीं पहुँचाने देते, किसी योग्य व्यक्ति को या किसी ऐसे व्यक्ति को, जो अनुभवजन्य गवाही देने में सक्षम है, अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत को खतरे में डालने तो बिल्कुल भी नहीं देते। और इसलिए, वे उन लोगों को दमित करने और प्रतिस्पर्धियों के रूप में बाहर करने की कोशिश करते हैं, जो अनुभवजन्य गवाही के बारे में बोलने में सक्षम होते हैं, जो सत्य पर संगति कर सकते हैं और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को पोषण प्रदान कर सकते हैं, और वे हताशा से उन लोगों को बाकी सबसे पूरी तरह से अलग करने, उनके नाम पूरी तरह से कीचड़ में घसीटने और उन्हें नीचे गिराने की कोशिश करते हैं। सिर्फ तभी मसीह-विरोधी शांति का अनुभव करते हैं। अगर ये लोग कभी नकारात्मक नहीं होते और अपना कर्तव्य निभाते रहने में सक्षम होते हैं, अपनी गवाही के बारे में बात करते हैं और दूसरों की मदद करते हैं, तो मसीह-विरोधी अपने अंतिम उपाय की ओर रुख करते हैं, जोकि उनमें दोष ढूँढ़ना और उनकी निंदा करना है, या उन्हें फँसाना और उन्हें सताने और दंडित करने के लिए कारण गढ़ना है, और ऐसा तब तक करते रहते हैं, जब तक कि वे उन्हें कलीसिया से बाहर नहीं निकलवा देते हैं। सिर्फ तभी मसीह-विरोधी पूरी तरह से आराम कर पाते हैं। मसीह-विरोधियों की सबसे कपटी और द्वेषपूर्ण चीज यही है। उन्हें सबसे अधिक भय और चिंता उन्हीं लोगों से होती है, जो सत्य का अनुसरण करते हैं और जिनके पास सच्ची अनुभवात्मक गवाही होती है, क्योंकि जिन लोगों के पास ऐसी गवाही होती है, उन्हीं का परमेश्वर के चुने हुए लोग सबसे अधिक अनुमोदन और समर्थन करते हैं, न कि उन लोगों का, जो शब्दों और सिद्धांतों के बारे में खोखली बकवास करते हैं। मसीह-विरोधियों के पास सच्ची अनुभवात्मक गवाही नहीं होती, न ही वे सत्य का अभ्यास करने में सक्षम होते हैं; ज्यादा से ज्यादा वे लोगों की चापलूसी करने के लिए कुछ अच्छे काम करने में सक्षम होते हैं। लेकिन चाहे वे कितने भी अच्छे काम करें या कितनी भी कर्णप्रिय बातें कहें, वे फिर भी उन लाभों और फायदों का मुकाबला नहीं कर सकते, जो एक अच्छी अनुभवात्मक गवाही से लोगों को मिल सकते हैं। अपनी अनुभवात्मक गवाही के बारे में बात करने में सक्षम लोगों द्वारा परमेश्वर के चुने हुए लोगों को प्रदान किए जाने वाले पोषण और सिंचन के परिणामों का कोई विकल्प नहीं है। इसलिए, जब मसीह-विरोधी किसी को अपनी अनुभवात्मक गवाही के बारे में बात करते देखते हैं, तो उनकी निगाह खंजर बन जाती है। उनके दिलों में क्रोध प्रज्वलित हो उठता है, घृणा उभर आती है, और वे वक्ता को चुप कराने और आगे कुछ भी कहने से रोकने के लिए अधीर हो जाते हैं। अगर वे बोलते रहे, तो मसीह-विरोधियों की प्रतिष्ठा पूरी तरह से नष्ट हो जाएगी, उनके बदसूरत चेहरे पूरी तरह से सबके सामने आ जाएँगे, इसलिए मसीह-विरोधी गवाही देने वाले व्यक्ति को बाधित करने और दमित करने का बहाना ढूँढ़ते हैं। मसीह-विरोधी सिर्फ खुद को शब्दों और सिद्धांतों से लोगों को गुमराह करने देते हैं, वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को अपनी अनुभवजन्य गवाही देकर परमेश्वर को महिमामंडित नहीं करने देते, जो यह इंगित करता है कि किस प्रकार के लोगों से मसीह-विरोधी सबसे अधिक घृणा करते और डरते हैं। जब कोई व्यक्ति थोड़ा कार्य करके अलग दिखने लगता है, या जब कोई सच्ची अनुभवजन्य गवाही बताने में सक्षम होता है, और इससे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को लाभ, शिक्षा और सहारा मिलता है और इसे सभी से बड़ी प्रशंसा प्राप्त होती है, तो मसीह-विरोधियों के मन में ईर्ष्या और नफरत पैदा हो जाती है, और वे उस व्यक्ति को अलग-थलग करने और दबाने की कोशिश करते हैं। वे किसी भी परिस्थिति में ऐसे लोगों को कोई काम नहीं करने देते, ताकि उन्हें अपने रुतबे को खतरे में डालने से रोक सकें। सत्य-वास्तविकताओं से युक्त लोग जब मसीह-विरोधियों के पास होते हैं, तो उनकी दरिद्रता, दयनीयता, कुरूपता और दुष्टता उजागर करने का काम करते हैं, इसलिए जब मसीह-विरोधी कोई साझेदार या सहकर्मी चुनता है, तो वह कभी सत्य-वास्तविकता से युक्त व्यक्ति का चयन नहीं करता, वह कभी ऐसे लोगों का चयन नहीं करता जो अपनी अनुभवात्मक गवाही के बारे में बात कर सकते हों, और वह कभी ईमानदार लोगों या ऐसे लोगों का चयन नहीं करता, जो सत्य का अभ्यास करने में सक्षम हों। ये वे लोग हैं, जिनसे मसीह-विरोधी सबसे अधिक ईर्ष्या और घृणा करते हैं, और जो मसीह-विरोधियों के जी का जंजाल हैं। सत्य का अभ्यास करने वाले ये लोग परमेश्वर के घर के लिए कितना भी अच्छा या लाभदायक काम क्यों न करते हों, मसीह-विरोधी इन कर्मों पर पर्दा डालने की पूरी कोशिश करते हैं। यहाँ तक कि वे खुद को ऊँचा उठाने और दूसरे लोगों को नीचा दिखाने के लिए अच्छी चीजों का श्रेय खुद लेने और बुरी चीजों का दोष दूसरों पर मढ़ने के लिए तथ्यों को तोड़-मरोड़ भी देते हैं। मसीह-विरोधी सत्य का अनुसरण करने और अपनी अनुभवात्मक गवाही के बारे में बात करने में सक्षम लोगों से बहुत ईर्ष्या और घृणा करते हैं। वे डरते हैं कि ये लोग उनकी हैसियत खतरे में डाल देंगे, इसलिए वे उन पर हमला कर उन्हें निकालने के हर संभव प्रयास करते हैं। वे भाई-बहनों को से संपर्क करने, उनके करीब होने, या अपनी अनुभवजन्य गवाही के बारे में बात करने में सक्षम इन लोगों का समर्थन या प्रशंसा करने से रोकते हैं। इसी से मसीह-विरोधियों की शैतानी प्रकृति का सबसे ज्यादा खुलासा होता है, जो कि सत्य से विमुख होती है और परमेश्वर से घृणा करती है। और इसलिए, इससे यह भी साबित होता है कि मसीह-विरोधी कलीसिया में एक दुष्ट विपरीत धारा हैं, वे कलीसिया के काम में बाधा और परमेश्वर की इच्छा में अवरोध पैदा करने के दोषी हैं। इसके अलावा मसीह-विरोधी अक्सर भाई-बहनों के बीच झूठ गढ़ते हैं और तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करते हैं, अपनी अनुभवजन्य गवाही पर बोलने वाले लोगों को नीचा दिखाते हैं और उनकी निंदा करते हैं। वे लोग चाहे जो भी काम करते हों, मसीह-विरोधी उन्हें अलग-थलग करने और उनका दमन करने के बहाने ढूँढ़ लेते हैं, और यह कहते हुए उनकी आलोचना भी करते हैं कि वे घमंडी और आत्मतुष्ट हैं, कि वे दिखावा करना पसंद करते हैं, और कि वे महत्वाकांक्षाएँ पालते हैं। वास्तव में, उन लोगों के पास कुछ अनुभवजन्य गवाही होती है और उनमें थोड़ी सत्य वास्तविकता होती है। वे अपेक्षाकृत अच्छी मानवता वाले, जमीर और विवेक युक्त होते हैं, और सत्य को स्वीकारने में सक्षम होते हैं। और भले ही उनमें कुछ कमियाँ, खामियाँ, और कभी-कभी भ्रष्ट स्वभाव के खुलासे हों, फिर भी वे आत्मचिंतन कर प्रायश्चित्त करने में सक्षम होते हैं। यही वे लोग हैं जिन्हें परमेश्वर बचाएगा, और जिन्हें परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाए जाने की उम्मीद है। कुल मिलाकर ये लोग कर्तव्य निभाने के लिए उपयुक्त हैं, ये कर्तव्य करने की अपेक्षाओं और सिद्धांतों को पूरा करते हैं। लेकिन मसीह-विरोधी मन-ही-मन सोचते हैं, “मैं इसे कतई बरदाश्त नहीं करूँगा। तुम मेरे साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए मेरे क्षेत्र में एक भूमिका पाना चाहते हो। यह असंभव है; इसके बारे में सोचना भी मत। तुम मुझसे अधिक शिक्षित हो, मुझसे अधिक मुखर हो, और मुझसे अधिक लोकप्रिय हो, और तुम मुझसे अधिक परिश्रम से सत्य का अनुसरण करते हो। अगर मुझे तुम्हारे साथ सहयोग करना पड़े और तुम मेरी सफलता चुरा लो, तो मैं क्या करूँगा?” क्या वे परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करते हैं? नहीं। वे किस बारे में सोचते हैं? वे केवल यही सोचते हैं कि अपनी हैसियत कैसे बनाए रखें। हालाँकि मसीह-विरोधी जानते हैं कि वे वास्तविक कार्य करने में असमर्थ हैं, फिर भी वे सत्य का अनुसरण करने वाले और अच्छी योग्यता वाले लोगों को विकसित नहीं करते या बढ़ावा नहीं देते; वे केवल उन्हीं को बढ़ावा देते हैं जो उनकी चापलूसी करते हैं, जो दूसरों की आराधना करने को तत्पर रहते हैं, जो अपने दिलों में उनका अनुमोदन और सराहना करते हैं, जो सहज संचालक हैं, जिन्हें सत्य की कोई समझ नहीं और जो अच्छे-बुरे की पहचान करने में असमर्थ हैं। मसीह-विरोधी अपनी सेवा करवाने, अपने लिए दौड़-भाग करवाने, और हर दिन अपने चारों ओर घूमते रहने के लिए इन लोगों को अपनी ओर ले आते हैं। इससे मसीह-विरोधियों को कलीसिया में सामर्थ्य मिलती है, और इसका अर्थ होता है कि बहुत-से लोग उनके करीब आते हैं, उनका अनुसरण करते हैं, और कोई उनका अपमान करने की हिम्मत नहीं करता है। ये सभी लोग, जिन्हें मसीह-विरोधी विकसित करते हैं, वे सत्य का अनुसरण नहीं करते। उनमें से ज्यादातर लोगों में आध्यात्मिक समझ नहीं होती है और वे नियम-पालन के सिवा कुछ नहीं जानते हैं। वे रुझानों और शक्तिशाली लोगों का अनुसरण करना पसंद करते हैं। वे ऐसे लोग होते हैं जो शक्तिशाली मालिक के होने से हिम्मत पाते हैं—भ्रमित लोगों की मंडली होते हैं। अविश्वासियों की उस कहावत में क्या कहा गया है? किसी बुरे आदमी का आराध्य पूर्वज होने की तुलना में किसी अच्छे इंसान का अनुचर होना बेहतर है। मसीह-विरोधी ठीक इसका उल्टा करते हैं—वे ऐसे लोगों के आराधित पूर्वजों के तौर पर कार्य करते हैं, और उन्हें अपना झंडा लहराने वालों और प्रोत्साहित करने वालों के रूप में पालते हैं। जब भी कोई मसीह-विरोधी किसी कलीसिया में सत्ता में होता है, तो वह हमेशा अपने सहायकों के रूप में भ्रमित लोगों और आँखें मूँद कर समय गँवाने वालों को भर्ती करता है, और उन काबिलियत वाले लोगों को छोड़ देता है और दबाता है, जो सत्य को समझकर उसका अभ्यास कर सकते हैं, जो काम सँभाल सकते हैं—विशेष रूप से उन अगुआओं और कार्यकर्ताओं को, जो वास्तविक कार्य करने में सक्षम होते हैं। इस प्रकार कलीसिया में दो खेमे बन जाते हैं : एक खेमे में वे लोग होते हैं जो अपेक्षाकृत ईमानदार मानवता वाले होते हैं, जो ईमानदारी से अपना कर्तव्य करते हैं, और सत्य का अनुसरण करने वाले होते हैं। दूसरे खेमे में ऐसे लोगों की मंडली होती है जो भ्रमित होते हैं और मसीह-विरोधियों की अगुआई में आँखें मूँद कर बेवकूफियाँ करते फिरते हैं। ये दोनों खेमे एक-दूसरे से तब तक झगड़ते रहेंगे जब तक मसीह-विरोधियों का खुलासा नहीं हो जाता और वे हटा नहीं दिए जाते। मसीह-विरोधी हमेशा उन लोगों के खिलाफ लड़ते और कार्य करते हैं जो अपना कर्तव्य ईमानदारी से निभाते हैं और सत्य का अनुसरण करते हैं। क्या इससे कलीसिया का कार्य गंभीर रूप से बाधित नहीं होता? क्या यह परमेश्वर के कार्य में गड़बड़ी कर उसे बाधित नहीं करता? क्या मसीह-विरोधियों की यह शक्ति कलीसिया में परमेश्वर की इच्छा को कार्यान्वित करने में एक रोड़ा और बाधा नहीं है? क्या यह परमेश्वर का विरोध करने वाली दुष्ट शक्ति नहीं है? मसीह-विरोधी इस तरह से कार्य क्यों करते हैं? क्योंकि उनके दिमाग में यह स्पष्ट होता है कि यदि ये सकारात्मक चरित्र खड़े हो कर अगुआ और कार्यकर्ता बन गए, तो वे मसीह-विरोधियों के प्रतिस्पर्धी बन जाएँगे; वे मसीह-विरोधियों का विरोध करने वाली शक्ति बन जाएँगे और वे मसीह-विरोधियों की बातों को बिल्कुल भी नहीं सुनेंगे या उनकी आज्ञा नहीं मानेंगे; वे मसीह-विरोधियों के हर बोल का बिल्कुल पालन नहीं करेंगे। ये लोग मसीह-विरोधियों के रुतबे के लिए खतरा बनने को काफी होंगे। जब मसीह-विरोधी इन लोगों को देखते हैं, तो उनके दिलों में घृणा उमड़ती है; और अगर वे इन लोगों को अलग-थलग करके पराजित नहीं करते, और उनका नाम बदनाम नहीं करते, तो उनके दिलों को सुकून और आश्वस्ति नहीं होती। इसलिए उन्हें अपनी सत्ता को बढ़ा कर अपनी श्रेणी को शक्तिमान बनाने के लिए तेजी से काम करना होगा। इस तरह से वे परमेश्वर के चुने हुए ज्यादा लोगों को काबू में कर सकेंगे, और फिर उन्हें सत्य का अनुसरण करने वाले मुट्ठी भर लोगों से अपने रुतबे के लिए होने वाले खतरे की चिंता नहीं करनी पड़ेगी। मसीह-विरोधी कलीसिया में उन सब लोगों को साथ ले कर अपनी शक्ति बनाते हैं, जो उनकी बात सुनते हैं, उनकी आज्ञा मानते हैं और उनकी चापलूसी करते हैं, और उन्हें काम के हर पहलू का प्रभारी बना देते हैं। क्या ऐसा करना परमेश्वर के घर के कार्य के लिए लाभकारी है? नहीं। न सिर्फ यह लाभकारी नहीं है, इससे कलीसिया के कार्य में गड़बड़ी और बाधा पैदा होती है। यदि इस दुष्ट शक्ति के पास आधे से ज्यादा लोग हो जाएँ, तो हो सकता है कि यह कलीसिया को गिरा दे। यह इस वजह से है क्योंकि कलीसिया में सत्य का अनुसरण करने वाले अल्पसंख्यक होते हैं, जबकि मेहनत करने वाले और छद्म-विश्वासी जो वहाँ सिर्फ रोटी तोड़ने के लिए होते हैं, उनकी संख्या कम-से-कम आधी होती है। ऐसी स्थिति में, अगर मसीह-विरोधी इन लोगों को गुमराह कर उन्हें अपनी तरफ खींचने में अपनी शक्ति लगाते हैं, तो कलीसिया द्वारा अगुआओं को चुनते समय स्वाभाविक रूप से उनका पलड़ा भारी होगा। इसलिए परमेश्वर का घर हमेशा जोर देता है कि चुनावों के दौरान सत्य पर तब तक संगति की जानी चाहिए, जब तक वह स्पष्ट समझ न आ जाए। यदि तुम सत्य पर संगति करके मसीह-विरोधियों को उजागर और पराजित करने में असमर्थ रहते हो, तो मसीह-विरोधी लोगों को गुमराह करके अगुआ के तौर पर चुने जा सकते हैं, और कलीसिया पर कब्जा कर उस पर नियंत्रण कर सकते हैं। क्या यह खतरनाक चीज नहीं होगी? यदि एक या दो मसीह-विरोधी कलीसिया में दिखते हैं, तो इससे भय नहीं होगा, लेकिन अगर मसीह-विरोधियों की शक्ति तैयार हो जाए और वे एक विशेष स्तर तक प्रभाव हासिल कर लेते हैं, तो उससे भय होगा। इसलिए मसीह-विरोधी उस स्तर तक प्रभाव हासिल करें, इससे पहले ही उन्हें उखाड़ फेंकना चाहिए और कलीसिया से निष्कासित कर देना चाहिए। यह कार्य सर्वोच्च प्राथमिकता का है, और यह करना जरूरी है।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग एक)
मसीह-विरोधियों के व्यवहार का सार अपनी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ पूरी करने, लोगों को गुमराह करके फँसाने और उच्च हैसियत प्राप्त करने के लिए लगातार विभिन्न साधनों और तरीकों का इस्तेमाल करना है, ताकि लोग उनका अनुसरण और आराधना करें। संभव है कि अपने दिल की गहराइयों में वे जानबूझकर मानवजाति को लेकर परमेश्वर से होड़ न कर रहे हों, पर एक बात तो पक्की है : जब वे मनुष्यों को लेकर परमेश्वर के साथ होड़ नहीं भी कर रहे होते, तब भी वे उनके बीच रुतबा और सत्ता पाना चाहते हैं। अगर वह दिन आ भी जाए, जब उन्हें यह एहसास हो जाए कि वे रुतबे के लिए परमेश्वर के साथ होड़ कर रहे हैं और वे अपने-आप पर थोड़ी-बहुत लगाम लगा लें, तो भी वे रुतबे और प्रतिष्ठा के लिए विभिन्न हथकंडे अपनाते हैं; उन्हें अपने दिल में स्पष्ट होता है कि वे कुछ लोगों की स्वीकृति और सराहना प्राप्त करके वैध रुतबा प्राप्त कर लेंगे। संक्षेप में, हालाँकि मसीह-विरोधी जो कुछ भी करते हैं, उससे वे अपने कर्तव्य निभाते प्रतीत होते हैं, लेकिन उसका परिणाम लोगों को गुमराह करना होता है, उनसे अपनी आराधना और अनुसरण करवाना होता है—ऐसे में, इस तरह अपना कर्तव्य निभाना उनके लिए अपना उत्कर्ष करना और अपनी गवाही देना होता है। लोगों को नियंत्रित करने और कलीसिया में रुतबा और सत्ता हासिल करने की उनकी महत्वाकांक्षा कभी नहीं बदलती। ऐसे लोग पूरे मसीह-विरोधी होते हैं। परमेश्वर चाहे कुछ भी कहे या करे, और चाहे वह लोगों से कुछ भी चाहे, मसीह-विरोधी वह नहीं करते जो उन्हें करना चाहिए या अपने कर्तव्य उस तरह से नहीं निभाते जो परमेश्वर के वचनों और अपेक्षाओं के अनुरूप हो, न ही वे किसी सत्य को समझने के नतीजे के तौर पर सत्ता और रुतबे का अपना अनुसरण ही त्यागते हैं। हर समय, उनकी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छएँ फिर भी बनी रहती हैं, वे फिर भी उनके दिल पर कब्जा किए रहती हैं और उनके पूरे अस्तित्व को नियंत्रित करती हैं, उनके व्यवहार और विचारों को निर्देशित करती हैं, और उस मार्ग को निर्धारित करती है, जिस पर वे चलते हैं। वे प्रमाणिक मसीह-विरोधी हैं। मसीह-विरोधियों में सबसे ज्यादा क्या दिखाई देता है? कुछ लोग कहते हैं, “मसीह-विरोधी लोगों को प्राप्त करने के लिए परमेश्वर से होड़ करते हैं, वे परमेश्वर को नहीं स्वीकारते।” ऐसा नहीं है कि वे परमेश्वर को नहीं स्वीकारते; अपने दिल में वे वास्तव में उसके अस्तित्व को स्वीकारते और उस पर विश्वास करते हैं। वे उसका अनुसरण करने के इच्छुक होते हैं और सत्य का अनुसरण करना चाहते हैं, लेकिन उनका खुद पर बस नहीं चलता, इसलिए वे बुराई कर सकते हैं। हालाँकि वे कई अच्छी लगने वाली बातें कह सकते हैं, लेकिन एक चीज कभी नहीं बदलेगी : सत्ता और रुतबे के लिए उनकी आकांक्षा और इच्छा कभी नहीं बदलेगी। वे कभी असफलता या बाधा के कारण, या परमेश्वर द्वारा उन्हें दरकिनार कर त्याग दिए जाने के कारण सत्ता और रुतबे का अनुसरण करना नहीं छोड़ेंगे। ऐसी होती है मसीह-विरोधियों की प्रकृति। तो तुम क्या कहते हो, क्या कभी कोई ऐसा मसीह-विरोधी हुआ है जिसने इसलिए अपने तरीके बदले हों और सत्य का अनुसरण करना शुरू कर दिया हो क्योंकि उसने कठिनाई झेली, या सत्य को थोड़ा-बहुत समझा और परमेश्वर का थोड़ा-बहुत ज्ञान प्राप्त किया—क्या ऐसे लोग मौजूद हैं? हमने ऐसा कभी नहीं देखा। रुतबे और सत्ता के लिए मसीह-विरोधियों की महत्वाकांक्षा और उनका अनुसरण कभी नहीं बदलेगा, और एक बार जब वे सत्ता पर कब्जा कर लेते हैं, तो वे इसे कभी नहीं छोड़ेंगे; और इससे उनका प्रकृति सार स्पष्ट रूप से निर्धारित हो जाता है। ऐसे लोगों को मसीह-विरोधियों के रूप में परिभाषित करने में परमेश्वर ने जरा-सी भी गलती नहीं की है, इसे उनके प्रकृति सार ने ही निर्धारित कर दिया है। शायद कुछ लोग मानते हैं कि मसीह-विरोधी मानवजाति के लिए परमेश्वर के साथ प्रतिस्पर्धा करने की कोशिश करते हैं। हालाँकि, कई बार यह जरूरी नहीं होता कि मसीह-विरोधी परमेश्वर के साथ प्रतिस्पर्धा ही करें; उनका ज्ञान, समझ और प्रतिष्ठा व सामर्थ्य की आवश्यकता सामान्य लोगों जैसी नहीं होती। सामान्य लोग कभी-कभी दंभी हो सकते हैं; वे दूसरों की प्रशंसा जीतने का प्रयास कर सकते हैं, उन पर धाक जमाने का प्रयास कर सकते हैं, और एक अच्छी श्रेणी पाने की होड़ लगाने का प्रयास कर सकते हैं। यह सामान्य लोगों की महत्वाकांक्षा है। यदि उन्हें नेताओं के रूप में बदल दिया जाता है, वे उपना रुतबा खो देते हैं, तो यह उनके लिए कठिन होगा, लेकिन परिवेश में परिवर्तन से, थोड़े आध्यात्मिक कद के विकास से, सत्य प्रवेश की थोड़ी-बहुत प्राप्ति या सत्य की गहरी समझ आने पर उनकी महत्वाकांक्षा धीरे-धीरे शांत हो जाती है। उनके द्वारा अपनाए गए मार्ग और आगे बढ़ने की दिशा में परिवर्तन आता है, और प्रतिष्ठा व सामर्थ्य की उनकी खोज धूमिल होने लगती है। उनकी इच्छाएँ भी धीरे-धीरे कम होती जाती हैं। हालाँकि मसीह-विरोधी अलग होते हैं : वे प्रतिष्ठा व सामर्थ्य की अपनी खोज कभी नहीं छोड़ सकते। किसी भी समय पर, किसी भी माहौल में, और चाहे उनके आस-पास कोई भी लोग हों और चाहे वे किसी भी उम्र के हों, उनकी महत्वाकांक्षा और इच्छा कभी नहीं बदलेगी। किससे पता चलता है कि उनकी महत्वाकांक्षा कभी नहीं बदलेगी? उदाहरण के लिए, मान लो कि वे किसी कलीसिया में अगुआ हैं। वे अपने दिल में हमेशा यह सोचते रहते हैं कि वे कलीसिया में सभी को कैसे नियंत्रित कर सकते हैं। अगर उन्हें किसी दूसरे कलीसिया में स्थानांतरित कर दिया जाता है जहाँ वे अगुआ नहीं हैं, तो क्या वे खुशी-खुशी एक सामान्य अनुयायी बन जाएँगे? बिल्कुल नहीं। वे अभी भी इस बारे में सोचते रहेंगे कि कैसे पद प्राप्त करें और कैसे सभी को नियंत्रित करें। चाहे वे कहीं भी जाएँ, वे राजा की तरह शासन करना चाहते हैं। भले ही उन्हें बिना लोगों वाली जगह पर, भेड़ों के रेवड़ में रखा जाए तो वे तब भी रेवड़ का नेतृत्व करना चाहेंगे। अगर उन्हें बिल्लियों और कुत्तों के साथ रखा जाए तो वे बिल्लियों और कुत्तों के राजा बनना चाहेंगे और जानवरों पर शासन करना चाहेंगे। वे महत्वाकांक्षा से भरे हुए हैं, है ना? क्या ऐसे लोगों का स्वभाव दानवी नहीं है? क्या ये शैतान के स्वभाव नहीं हैं? शैतान ऐसी ही चीज है। स्वर्ग में शैतान परमेश्वर के बराबर खड़ा होना चाहता था और पृथ्वी पर फेंके जाने के बाद उसने हमेशा मनुष्य को नियंत्रित करने, मनुष्य से अपनी आराधना करवाने और अपने को परमेश्वर मानने के लिए मनुष्य को विवश करने का प्रयास किया। मसीह-विरोधी हमेशा लोगों को नियंत्रित करना चाहते हैं क्योंकि उनके पास शैतानी प्रकृति होती है; वे अपने शैतानी स्वभाव के अनुसार जीते हैं जो पहले से ही सामान्य लोगों की समझ की सीमाओं से परे जा चुका है। क्या यह थोड़ा असामान्य नहीं है? यह असामान्यता किस बात को संदर्भित करती है? इसका अर्थ है कि उनका व्यवहार सामान्य मानवता में नहीं पाया जाना चाहिए। तो, यह व्यवहार क्या है? इसे क्या नियंत्रित करता है? यह उनकी प्रकृति द्वारा नियंत्रित होता है। उनके पास एक दुष्टात्मा का सार है और वे सामान्य भ्रष्ट मानव जाति से भिन्न हैं। यही अंतर है। मसीह-विरोधी सत्ता और रुतबे की खोज में किसी भी हद तक जा सकते हैं, यह न केवल उनकी प्रकृति सार को उजागर करता है, बल्कि लोगों को यह भी दिखाता है कि उनका घिनौना चेहरा बिल्कुल शैतान और दानवों का चेहरा है। वे न केवल रुतबे के लिए लोगों से होड़ करते हैं बल्कि परमेश्वर से भी होड़ करते हैं। वे केवल तभी संतुष्ट होंगे जब परमेश्वर के चुने हुए लोगों को अपने साथ कर लेंगे और वे लोग पूरी तरह से उनके नियंत्रण में होंगे। चाहे मसीह-विरोधी किसी भी कलीसिया या समूह में हों, वे पद प्राप्त करना चाहते हैं, सत्ता हासिल करना चाहते हैं और लोगों से अपनी बात मनवाना चाहते हैं। चाहे लोग इच्छुक और सहमत हों या नहीं, मसीह-विरोधी अंतिम निर्णय लेना चाहते हैं और चाहते हैं कि लोग उनकी बात मानें और उन्हें स्वीकार करें। क्या यह मसीह-विरोधियों की प्रकृति नहीं है? क्या लोग उनकी बात सुनने के लिए तैयार हैं? क्या वे उन्हें चुनते हैं और उनकी संस्तुति करते हैं? नहीं। लेकिन मसीह-विरोधी अभी भी अंतिम निर्णय लेना चाहते हैं। चाहे लोग सहमत हों या नहीं, मसीह-विरोधी उनकी ओर से बोलना और कार्य करना चाहते हैं, वे ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं। वे अपने विचारों को अन्य लोगों पर थोपने की भी कोशिश करते हैं और यदि लोग इसे स्वीकार नहीं करते हैं तो मसीह-विरोधी उन्हें इसे स्वीकार करवाने के लिए अपना दिमाग खपाते हैं। यह क्या समस्या है? यह बेशर्मी और ढीठता है। इस तरह के लोग सच्चे मसीह-विरोधी होते हैं और चाहे वे अगुआ हों या नहीं, वे मसीह-विरोधी तो होते ही हैं। उनमें मसीह-विरोधी का प्रकृति सार होता है।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद पाँच : वे लोगों को गुमराह करने, फुसलाने, धमकाने और नियंत्रित करने का काम करते हैं
जैसे ही मसीह-विरोधी लोग अगुआ बनते हैं, वे सबसे पहली चीज जो करते हैं वह है लोगों के दिल जीतने का प्रयास करना, लोगों को उनका विश्वास करने, उन पर भरोसा करने और उनका समर्थन करने के लिए मजबूर करने का प्रयास करना। जब उनका रुतबा सुरक्षित हो जाता है, तो वे असामान्य होने लगते हैं। अपने रुतबे और शक्ति की रक्षा करने के लिए, वे विरोधियों पर आक्रमण करना और उन्हें निकाल देना शुरू कर देते हैं। वे विरोधियों को—खासकर सत्य का अनुसरण करने वाले लोगों को—दबाने और उन पर आक्रमण करने के लिए, उन्हें सताने के लिए स्थिर, सटीक और अथक तरीकों का उपयोग करते हुए उन पर कुछ भी आजमाएँगे। उन्हें चैन सिर्फ तभी मिलता है जब वे अपने रुतबे को खतरे में डालने वाले हर व्यक्ति को नीचे गिरा देते हैं और बदनाम कर देते हैं। हर मसीह-विरोधी ऐसा ही होता है। लोगों को जीतने और दबाने के लिए इन अनगिनत चालों का उपयोग करने के पीछे उनका क्या लक्ष्य है? उनका लक्ष्य शक्ति हासिल करना, अपने रुतबे को मजबूत करना, लोगों को गुमराह और नियंत्रित करना है। उनके इरादे और उद्देश्य क्या दर्शाते हैं? वे अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करना चाहते हैं, वे परमेश्वर के विरुद्ध खड़े होना चाहते हैं। ऐसा सार भ्रष्ट स्वभाव से भी ज़्यादा शोचनीय है : शैतान की महत्वाकांक्षाएँ और विश्वासघाती साजिशें पूरी तरह से उजागर हो चुकी हैं। यह सिर्फ भ्रष्ट स्वभाव को प्रकट करने की समस्या नहीं है। मिसाल के तौर पर, जब लोग थोड़े घमंडी और खुदपसंद होते हैं, या कभी-कभी थोड़े धोखेबाज और झूठे होते हैं, तो ये सिर्फ भ्रष्ट स्वभाव के खुलासे होते हैं। इस बीच, मसीह-विरोधी जो भी चीज करते हैं, वह लोगों के दिल जीतने, विरोधियों पर आक्रमण करने और उन्हें निकाल देने, अपने रुतबे को मजबूत करने, शक्ति छीनने और लोगों को नियंत्रित करने के लिए होता है। इन क्रियाकलापों की क्या प्रकृति है? क्या वे सत्य का अभ्यास कर रहे हैं? क्या वे परमेश्वर के वचनों में प्रवेश करने और परमेश्वर के सामने आने में परमेश्वर के चुने हुए लोगों की अगुवाई कर रहे हैं? (नहीं।) तो वे क्या कर रहे हैं? वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए उससे होड़ कर रहे हैं, लोगों के दिलों के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, और अपना खुद का, स्वतंत्र राज्य स्थापित करने प्रयास कर रहे हैं। लोगों के दिलों में किसे जगह मिलनी चाहिए? परमेश्वर को जगह मिलनी चाहिए। लेकिन मसीह-विरोधी जो भी करते हैं, वह ठीक इसका उल्टा होता है। वे परमेश्वर या सत्य को लोगों के दिलों में जगह लेने नहीं देते हैं; इसके बजाय, वे चाहते हैं कि मनुष्य को, अगुआ को जो कि वे खुद ही हैं, और शैतान को लोगों के दिलों में जगह मिले। जैसे ही उन्हें पता चलता है कि किसी व्यक्ति के दिल में उनके लिए जगह नहीं है, कि यह व्यक्ति उन्हें अगुआ नहीं मानता है, तो वे बेहद नाराज हो जाते हैं, और शायद उसे दबाने और सताने का प्रयास करेंगे। मसीह-विरोधी जो भी करते और कहते हैं, वह उनके रुतबे और प्रतिष्ठा पर केंद्रित होता है, और इसका आशय लोगों के दिलों में अपके बारे में ऊँची राय बनवाना है, लोगों कोअपने से ईर्ष्या और अपनी आराधना करवाना है—यहाँ तक कि लोगों को अपने से डरने के लिए मजबूर करना भी होता है। वे चाहते हैं कि परमेश्वर के चुने हुए लोग यह सोचकर उन्हें परमेश्वर मानें कि “मैं चाहे किसी भी कलीसिया में क्यों ना रहूँ, लोगों को मेरी बात जरूर सुननी चाहिए, उन्हें मुझसे संकेत लेने चाहिए। चाहे कोई भी व्यक्ति ऊपरवाले को किसी भी समस्या के बारे में रिपोर्ट करे, यह रिपोर्ट मेरे जरिए ही जानी चाहिए, लोगों को सिर्फ मुझे रिपोर्ट करने की अनुमति है, सीधे ऊपरवाले को नहीं। अगर कोई मुझे ‘ना’ कहेगा, तो मैं उसे सजा दूँगा, ताकि मुझे देखने वाला हर व्यक्ति डर और घबराहट महसूस करे और अपने दिल में सिहरने लगे। इतना ही नहीं, अगर मैं कोई आदेश देता हूँ या जोर देकर कुछ कहता हूँ, तो किसी को भी असहमत होने की जुर्रत नहीं करनी चाहिए; मैं जो भी कहूँ, लोगों को उसी के मुताबिक चलना चाहिए। उन्हें मेरी बात अवश्य सुननी चाहिए, उन्हें सभी चीजों में मेरी आज्ञा माननी चाहिए, और मुझे ही वहाँ के सारे फैसले लेने वाला व्यक्ति होना चाहिए।” मसीह-विरोधी ठीक इसी लहजे में बोलते हैं, यह मसीह-विरोधियों की आवाज है, इसी तरह मसीह-विरोधी कलीसियाओं पर अपना रोब जमाने का प्रयास करते हैं। अगर परमेश्वर के चुने हुए लोग उनके कहे मुताबिक कार्य करते हैं और उनकी आज्ञा मानते हैं, तो क्या ऐसी कलीसियाएँ मसीह-विरोधी के राज्य नहीं बन जाएँगी? वे कहते हैं, “ऊपरवाले द्वारा जारी की गई कार्य व्यवस्थाओं की जाँच मुझे ही करनी होगी, मुझे तुम लोगों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए, मैं ही सही और गलत का विश्लेषण करने वाला व्यक्ति होना चाहिए, परिणाम का फैसला मुझे ही लेना चाहिए। तुम्हारा आध्यात्मिक कद पर्याप्त नहीं है, और तुम पर्याप्त रूप से योग्य नहीं हो। इस कलीसिया का अगुआ मैं हूँ और सब कुछ मेरी मर्जी पर निर्भर करता है।” क्या ऐसी चीजें कहने वाले लोग बहुत ज्यादा आडंबर नहीं कर रहे हैं? वे वाकई इतने घमंडी हैं कि उनके पास कोई सूझ-बूझ नहीं है! क्या वे अपना खुद का, स्वतंत्र राज्य स्थापित करने का प्रयास नहीं कर रहे हैं? किस तरह के लोग अपना खुद का राज्य बनाने का प्रयास करने के लिए जिम्मेदार हैं? क्या वे सच्चे मसीह-विरोधी नहीं हैं? क्या मसीह-विरोधी जो भी करते और कहते हैं वह सब कुछ उनके अपने खुद के रुतबे की रक्षा करने के लिए नहीं होता है? क्या वे लोगों को गुमराह और नियंत्रित करने का प्रयास नहीं कर रहे हैं? उन्हें मसीह-विरोधी क्यों कहा जाता है? “विरोधी” का क्या मतलब है? इसका मतलब है विरोध और नफरत। इसका मतलब मसीह के प्रति शत्रुता, सत्य के प्रति शत्रुता और परमेश्वर के प्रति शत्रुता है। “शत्रुता” का क्या मतलब है? इसका मतलब है विपरीत पक्ष में खड़ा होना, तुम्हारे साथ दुश्मन जैसा व्यवहार करना, मानो व्यक्ति में बहुत ज्यादा और गहरी नफरत भरी हुई हो; इसका मतलब पूरी तरह से तुम्हारे विरोध में होना है। मसीह-विरोधी ऐसी ही सोच के साथ परमेश्वर के पास जाते हैं। परमेश्वर से नफरत करने वाले लोगों का सत्य के प्रति क्या रवैया होता है? क्या वे सत्य से प्रेम कर पाते हैं? क्या वे सत्य को स्वीकार कर पाते हैं? बिल्कुल नहीं। इसलिए, परमेश्वर के विरोध में जो लोग खड़े होते हैं, वे सत्य से नफरत करने वाले लोग होते हैं। उनमें सबसे मुख्य चीज जो प्रदर्शित होती है, वह है सत्य के प्रति विमुखता और सत्य से नफरत। जैसे ही वे सत्य या परमेश्वर के वचन सुनते हैं, उनके दिलों में नफरत आ जाती है, और जब कोई उन्हें परमेश्वर के वचन पढ़कर सुनाता है, तो उनके चेहरों पर गुस्से और रोष की ठीक वैसी ही अभिव्यक्ति दिखाई देने लगती है, जैसी लोगों द्वारा सुसमाचार फैलाने के दौरान परमेश्वर के वचन किसी राक्षस को पढ़कर सुनाते समय दिखाई देती है। जो लोग अपने दिलों में सत्य से विमुख होते हैं और सत्य से नफरत करते हैं, वे परमेश्वर के वचनों और सत्य से बेहद विमुखता महसूस करते हैं, उनका रवैया प्रतिरोध का होता है, और वे इस हद तक पहुँच जाते हैं कि जो कोई भी उन्हें परमेश्वर के वचन पढ़कर सुनाता है या उनके साथ सत्य की संगति करता है, वे उससे नफरत करने लगते हैं, यहाँ तक कि वे उस व्यक्ति को दुश्मन मानने लगते हैं। वे अलग-अलग सत्य और सकारात्मक चीजों से बेहद विमुखता महसूस करते हैं। सभी सत्य के प्रति, जैसे कि परमेश्वर के प्रति समर्पण करना, निष्ठा से अपना कर्तव्य करना, ईमानदार व्यक्ति होना, सभी चीजों में सत्य की तलाश करना, आदि के प्रति—क्या उनमें थोड़ी-सी व्यक्तिपरक तड़प या प्रेम है? नहीं, नाममात्र भी नहीं। इसलिए, उनकी इस प्रकार के प्रकृति सार को देखते हुए, वे पहले से ही परमेश्वर और सत्य के सीधे विरोध में खड़े हैं। तो, निस्संदेह रूप से, ऐसे लोग सत्य या किसी सकारात्मक चीज से गहराई से प्रेम नहीं करते हैं; यहाँ तक कि वे अपने दिल की गहराई में सत्य से विमुखता महसूस करते है और उससे नफरत करते हैं। मिसाल के तौर पर, अगुवाई के पदों पर बैठे लोगों को अपने भाई-बहनों की अलग-अलग राय स्वीकार करने में समर्थ होना चाहिए, उन्हें भाई-बहनों के सामने अपने दिल खोलकर खुद को उजागर करने और उनकी निंदा को स्वीकार करने में समर्थ होना चाहिए, और उन्हें अपने रुतबे का हक नहीं जताना चाहिए। एक मसीह-विरोधी अभ्यास के इन सभी सही तरीकों के बारे में क्या कहेगा? वह कहेगा, “अगर मैं भाई-बहनों की राय सुन लेता, तो क्या मैं अब भी अगुआ बना रहता? क्या अब भी मेरे पास रुतबा और प्रतिष्ठा होती? अगर मेरे पास कोई प्रतिष्ठा नहीं है, तो मैं क्या काम कर सकता हूँ?” यह ठीक उसी प्रकार का स्वभाव है, जैसा मसीह-विरोधी लोगों में होता है; वे सत्य को सबसे सूक्ष्म तरीके से भी स्वीकार नहीं करते हैं, और अभ्यास का तरीका जितना ज्यादा सही होता है, उतना ही वे उसका विरोध करते हैं। वे यह स्वीकार नहीं करते हैं कि सिद्धांत के अनुसार कार्य करना सत्य का अभ्यास करना है। वे क्या सोचते हैं कि सत्य का अभ्यास करना क्या होता है? वे सोचते हैं कि उन्हें परमेश्वर के वचनों, सत्य और प्रेम पर भरोसा करने के बजाय सभी पर साजिशों, चालों और हिंसा का उपयोग करना चाहिए। उनका हर साधन और मार्ग दुष्ट होता है। यह सब मसीह-विरोधियों के प्रकृति सार को पूरी तरह से दर्शाता है। वे अक्सर जो उद्देश्य, राय, विचार और इरादे प्रकट करते हैं, वे सभी सत्य से विमुखता और सत्य से नफरत के स्वभाव हैं, जो मसीह-विरोधियों का प्रकृति सार है। तो क्या, इसका मतलब सत्य और परमेश्वर के विरुद्ध खड़ा होना है? इसका मतलब है सत्य और सकारात्मक चीजों से नफरत करना। मिसाल के तौर पर, जब कोई कहता है, “एक सृजित प्राणी होने के नाते, व्यक्ति को सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाना चाहिए। परमेश्वर चाहे जो भी कह दे, मनुष्यों को समर्पण करना चाहिए, क्योंकि हम सृजित प्राणी हैं,” लेकिन मसीह-विरोधी कैसे सोचता है? “समर्पण करूँ? यह असत्य नहीं है कि मैं एक सृजित प्राणी हूँ, लेकिन जब समर्पण करने की बात आती है, तो यह परिस्थिति पर निर्भर करता है। सबसे पहला और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि इसमें मेरे लिए कुछ फायदा जरूर होना चाहिए, मेरा कोई नुकसान नहीं होना चाहिए, और मेरे हित सबसे पहले आने चाहिए। अगर यहाँ हासिल करने के लिए इनाम या महान आशीषें हैं, तो मैं समर्पण कर सकता हूँ, लेकिन इनामों के बगैर और किसी मंजिल के बिना, मुझे क्यों समर्पण करना चाहिए? मैं समर्पण नहीं कर सकता।” यह सत्य को नहीं स्वीकार करने का रवैया है। वे शर्तों पर परमेश्वर के प्रति समर्पण करते हैं, और अगर उनकी शर्तें पूरी नहीं होती हैं, तो वे ना सिर्फ समर्पण नहीं करते हैं, बल्कि परमेश्वर का विरोध और प्रतिरोध करने के लिए भी जिम्मेदार होते हैं। मिसाल के तौर पर, परमेश्वर चाहता है कि लोग ईमानदार हों, लेकिन ये मसीह-विरोधी मानते हैं कि सिर्फ बेवकूफ लोग ही ईमानदार होने का प्रयास करते हैं, और कि बुद्धिमान लोग ईमानदार होने का प्रयास नहीं करते हैं। इस तरह के रवैये का सार क्या है? यह सत्य से नफरत है। मसीह-विरोधियों का सार ऐसा ही होता है, और उनका सार तय करता है कि वे किस मार्ग पर चलते हैं, और जिस मार्ग पर वे चलते हैं, वही उनके द्वारा की जाने वाली हर चीज को तय करता है। जब मसीह-विरोधियों में सत्य और परमेश्वर से नफरत का प्रकृति सार होता है, तो वे किस तरह की चीजें करने के लिए जिम्मेदार होते हैं? वे लोगों के दिल जीतने, विरोधियों पर आक्रमण करने और उन्हें निकाल देने और लोगों को सताने का प्रयास करने के लिए जिम्मेदार हैं। इन चीजों को करने में वे जो लक्ष्य हासिल करने का प्रयास रहे हैं, वह है शक्ति का उपयोग करना, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नियंत्रित करना और अपना खुद का, स्वतंत्र राज्य स्थापित करना। इस बारे में कोई शक नहीं है। कोई भी व्यक्ति, जो एक बार रुतबा मिलते ही परमेश्वर के प्रति पूरा समर्पण करने में असमर्थ हो जाता है, और परमेश्वर का अनुसरण करने या सत्य का अनुसरण करने में समर्थ नहीं रहता है, वह मसीह-विरोधी है।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद एक : वे लोगों के दिल जीतने का प्रयास करते हैं
काट-छाँट के प्रति मसीह-विरोधियों का ठेठ रवैया उन्हें स्वीकार करने या मानने से सख्ती से इनकार करने का होता है। चाहे वे कितनी भी बुराई करें, परमेश्वर के घर के कार्य और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन-प्रवेश को कितना भी नुकसान पहुँचाएँ, उन्हें इसका जरा भी पछतावा नहीं होता और न ही वे कोई एहसान मानते हैं। इस दृष्टिकोण से, क्या मसीह-विरोधियों में मानवता होती है? बिल्कुल नहीं। वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को हर तरह की क्षति पहुँचाते हैं, कलीसिया के कार्य को क्षति पहुँचाते हैं—परमेश्वर के चुने हुए लोग इसे एकदम स्पष्ट देख सकते हैं, और मसीह-विरोधियों के कुकर्मों का अनुक्रम देख सकते हैं। और फिर भी मसीह-विरोधी इस तथ्य को मानते या स्वीकार नहीं करते; वे हठपूर्वक यह स्वीकार करने से इनकार कर देते हैं कि वे गलती पर हैं, या कि वे जिम्मेदार हैं। क्या यह इस बात का संकेत नहीं है कि वे सत्य से विमुख हैं? मसीह-विरोधी सत्य से इस हद तक विमुख रहते हैं। चाहे वे कितनी भी दुष्टता कर लें, तो भी अड़ियल बनकर उसे मानने से इनकार कर देते हैं और अंत तक अड़े रहते हैं। यह पर्याप्त रूप से साबित करता है कि मसीह-विरोधी कभी परमेश्वर के घर के कार्य को गंभीरता से नहीं लेते या सत्य स्वीकार नहीं करते। वे परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते हैं; वे शैतान के अनुचर हैं, जो परमेश्वर के घर के कार्य को अस्त-व्यस्त करने के लिए आए हैं। मसीह विरोधियों के दिलों में सिर्फ प्रसिद्धि और हैसियत रहती है। उनका मानना है कि अगर उन्होंने अपनी गलती मानी, तो उन्हें जिम्मेदारी स्वीकार करनी होगी, और तब उनकी हैसियत और प्रसिद्धि गंभीर संकट में पड़ जाएगी। परिणामस्वरूप, वे “मरने तक नकारते रहो” के रवैये के साथ प्रतिरोध करते हैं। लोग चाहे उन्हें कैसे भी उजागर करें या उनका कैसे भी गहन-विश्लेषण करें, वे इसे नकारने के लिए जो बन पड़े वो करते हैं। चाहे उनका इनकार जानबूझकर किया गया हो या नहीं, संक्षेप में, एक ओर ये व्यवहार मसीह-विरोधियों के सत्य से विमुख होने और उससे घृणा करने वाले प्रकृति सार को उजागर करते हैं। दूसरी ओर, यह दिखाता है कि मसीह-विरोधी अपने रुतबे, प्रसिद्धि और हितों को कितना सँजोते हैं। इस बीच, कलीसिया के कार्य और हितों के प्रति उनका क्या रवैया रहता है? यह अवमानना और गैर-जिम्मेदारी का रवैया होता है। उनमें अंतःकरण और विवेक की पूर्णतः कमी होती है। क्या मसीह-विरोधियों का जिम्मेदारी से बचना इन मुद्दों को प्रदर्शित नहीं करता है? एक ओर, जिम्मेदारी से बचना सत्य से विमुख होने और उससे घृणा करने के उनके प्रकृति सार को साबित करता है, तो दूसरी ओर, यह उनमें जमीर, विवेक और मानवता की कमी दर्शाता है। उनकी गड़बड़ी और कुकर्म के कारण भाई-बहनों के जीवन-प्रवेश को कितना भी नुकसान क्यों न हो जाए, उन्हें कोई ग्लानि महसूस नहीं होती और वे इससे कभी परेशान नहीं हो सकते। यह किस प्रकार का प्राणी है? अगर वे अपनी थोड़ी भी गलती मान लेते हैं, तो यह थोड़ा-बहुत जमीर और विवेक का होना माना जाएगा, लेकिन मसीह-विरोधियों में इतनी थोड़ी-सी भी मानवता नहीं होती। तो तुम लोग क्या कहोगे कि वे क्या हैं? सारतः, मसीह-विरोधी लोग दानव हैं। वे परमेश्वर के घर के हितों को चाहे जितना नुकसान पहुँचाते हों, वे उसे नहीं देखते। वे अपने दिलों में इससे जरा भी दुखी नहीं होते, न ही वे खुद को धिक्कारते हैं, एहसानमंद तो वे बिल्कुल भी महसूस नहीं करते। यह वह बिल्कुल नहीं है, जो सामान्य लोगों में दिखना चाहिए। वे दानव हैं, और दानवों में कोई जमीर या विवेक नहीं होता है। चाहे वे कितने भी बुरे काम करें, और उनके कारण कलीसिया के काम को कितने भी बड़े नुकसान उठाने पड़ें, वे अपनी गलती स्वीकारने से पूरी तरह इनकार करते हैं। उनका मानना है कि इसे स्वीकारने का मतलब यह होगा कि उन्होंने कुछ गलत किया है। वे सोचते हैं, “क्या मैं कुछ गलत कर सकता हूँ? मैं कभी कुछ गलत नहीं करूँगा! अगर मुझसे मेरी गलती स्वीकार करवाई जाती है, तो क्या यह मेरे चरित्र का अपमान नहीं होगा? भले ही मैं उस घटना में शामिल था, मगर वह घटना मेरे कारण नहीं हुई, और वहाँ का मुख्य प्रभारी मैं नहीं था। तुम्हें जिसे भी ढूँढ़ना है ढूँढ़ो, मगर मुझे ढूँढ़ते हुए मत आ जाना। चाहे जो भी हो, मैं यह गलती नहीं स्वीकार सकता। मैं यह जिम्मेदारी नहीं ले सकता!” वे सोचते हैं कि अगर उन्होंने अपनी गलती स्वीकार ली तो उनकी निंदा की जाएगी, मौत की सजा सुनाई जाएगी; साथ ही, उन्हें नरक में और आग और गंधक की झील में डाल दिया जाएगा। मुझे बताओ, क्या इस तरह के लोग सत्य स्वीकार सकते हैं? क्या कोई उनसे सच्चे पश्चात्ताप की उम्मीद कर सकता है? दूसरे लोग चाहे सत्य पर कैसे भी संगति करें, मसीह-विरोधी फिर भी इसका प्रतिरोध करेंगे, इसके विरुद्ध खड़े रहेंगे, और अपने दिल की गहराई से इसका खंडन करेंगे। बर्खास्त किए जाने के बाद भी, वे अपनी गलतियाँ स्वीकार नहीं करते, और न ही वे पश्चात्ताप का कोई भी लक्षण दिखाते हैं। जब 10 साल बाद मामले का जिक्र किया जाता है, तब भी वे खुद को नहीं जानते, और यह स्वीकार नहीं करते कि उन्होंने गलती की थी। जब 20 साल बाद मामले को उठाया जाता है, तब भी वे खुद को नहीं जानते, और अपने आप को सही ठहराने और अपना बचाव करने की कोशिश करते हैं। और इससे भी बदतर यह है कि जब 30 साल बाद मामले का जिक्र किया जाता है, तब भी वे खुद को नहीं जानते हैं, और अपने बचाव में तर्क देने और खुद को सही ठहराने की कोशिश करते हैं, और कहते हैं : “मैंने कोई गलती नहीं की थी, तो मैं इसे स्वीकार नहीं कर सकता। यह मेरी जिम्मेदारी नहीं थी; इसकी जिम्मेदारी मैं नहीं उठाऊँगा।” और चौंकाने वाली बात तो यह है कि बर्खास्त किए जाने के 30 साल बाद भी, ये मसीह-विरोधी अभी भी कलीसिया द्वारा उनके साथ किए गए व्यवहार के प्रति प्रतिरोध का रवैया रखते हैं। 30 साल बाद भी उनमें कोई बदलाव नहीं आया है। तो, उन्होंने वे तीस साल कैसे बिताए? क्या ऐसा हो सकता है कि उन्होंने परमेश्वर के वचन नहीं पढ़े या आत्म-चिंतन नहीं किया? क्या ऐसा हो सकता है कि उन्होंने परमेश्वर से प्रार्थना नहीं की या उस पर भरोसा नहीं किया? क्या ऐसा हो सकता है कि उन्होंने धर्मोपदेश नहीं सुने और संगति नहीं की? क्या ऐसा हो सकता है कि वे नासमझ हैं, और उनमें सामान्य मानवता की सोच नहीं हैं? उन्होंने वे तीस साल कैसे बिताए यह वाकई एक रहस्य है। घटना के तीस साल बाद भी, वे यह सोचते हुए अभी भी गुस्से से भरे हुए हैं कि भाई-बहनों ने उनके साथ गलत किया, कि परमेश्वर उन्हें नहीं समझता, कि परमेश्वर के घर ने उनके साथ बुरा व्यवहार किया, उनके लिए समस्याएँ खड़ी कीं, उनके लिए चीजें मुश्किल बना दीं, और उन पर अन्यायपूर्वक दोष लगाया। मुझे बताओ, क्या इस तरह के लोग बदल सकते हैं? वे बिल्कुल नहीं बदल सकते। उनके दिलों में सकारात्मक चीजों के प्रति बैर भाव, प्रतिरोध और विरोध है। उनका मानना है कि उनके बुरे कर्मों को उजागर करके और उन्हें काट-छाँट कर, दूसरे लोगों ने उनके चरित्र को नुकसान पहुँचाया, उनकी प्रतिष्ठा को बदनाम किया, और उनकी प्रतिष्ठा और रुतबे को जबरदस्त नुकसान पहुँचाया है। वे इस मामले में प्रार्थना करने, सत्य खोजने और अपनी गलतियों को पहचानने के लिए कभी भी परमेश्वर के सामने नहीं आएँगे, और उनमें कभी भी पश्चात्ताप करने या अपनी गलतियों को स्वीकारने का रवैया नहीं होगा। वे परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना को तो और भी नहीं स्वीकारेंगे। आज भी, परमेश्वर के सामने खुद को सही ठहराते हुए उनके मन में अवज्ञा, असंतोष और शिकायतें हैं, और वे परमेश्वर से इन गलतियों का निवारण करने, इस मामले का खुलासा करने और वास्तव में यह निर्णय करने के लिए कहते हैं कि कौन सही था और कौन गलत; यहाँ तक कि वे इस मामले के कारण परमेश्वर की धार्मिकता पर संदेह करते हैं और इसे नकराते हैं, और इस तथ्य पर भी संदेह करते हैं कि परमेश्वर के घर में सत्य और परमेश्वर का शासन चलता है, और इसे नकारते हैं। मसीह-विरोधियों के काटने-छाँटने का अंतिम परिणाम यही होता है—क्या वे सत्य स्वीकारते हैं? वे सत्य बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते; वे इसे स्वीकारने के बिल्कुल खिलाफ हैं। हमें इससे पता चलता है कि मसीह-विरोधी का प्रकृति सार सत्य से विमुख होने और उससे घृणा करने वाला होता है।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग तीन)
मसीह-विरोधियों को भौतिक चीजों, पैसे और रुतबे में अत्यधिक रुचि होती है। वे निश्चित रूप से बिल्कुल ऐसे नहीं होते जैसा वे ऊपर से बोलते हैं, “मैं परमेश्वर में विश्वास रखता हूँ। मैं सांसारिक चीजों के पीछे नहीं भागता और पैसे का लालच नहीं करता।” वे ऐसे बिल्कुल भी नहीं होते जैसा वे कहते हैं। वे अपनी पूरी शक्ति से रुतबे के पीछे भागकर उसे क्यों बनाए रखते हैं? क्योंकि वे अपने अधिकार क्षेत्र की सभी चीजों को हासिल करना या उन्हें नियंत्रित करना और हथिया लेना चाहते हैं—खास तौर पर पैसा और भौतिक चीजें। वे इस पैसे और इन भौतिक चीजों का यों मजा लेते हैं मानो ये उनके रुतबे के फायदे हों। वे नाम और सच्चाई में शैतान के प्रकृति सार वाले प्रधान दूत के वास्तविक वंशज हैं। वे सभी लोग जो रुतबे के पीछे भागते हैं और पैसे को अहमियत देते हैं, उनके स्वभाव सार के साथ यकीनन एक समस्या होती है। यह उनके मसीह-विरोधी का स्वभाव वाले होने जितनी सरल बात नहीं है : वे अत्यंत महत्वाकांक्षी होते हैं। वे परमेश्वर के घर के पैसे पर नियंत्रण करना चाहते हैं। अगर उन्हें किसी काम की जिम्मेदारी दी जाए, तो सबसे पहले वे दूसरों को हस्तक्षेप नहीं करने देंगे, न ही वे ऊपरवाले से पूछताछ या निगरानी को स्वीकार करेंगे; इससे परे, जब वे किसी कार्य की मद के पर्यवेक्षक हों, तो अपना दिखावा करने, खुद को सुरक्षित रखने और ऊँचा उठाने के तरीके ढूँढ़ लेंगे। वे हमेशा चाहते हैं कि सबसे ऊपर पहुँच जाएँ, ऐसे लोग बन जाएँ जो दूसरों पर शासन कर उन्हें नियंत्रित करते हों। वे यह भी चाहते हैं कि ऊँचे रुतबे के लिए, और यहाँ तक कि परमेश्वर के घर के प्रत्येक हिस्से पर नियंत्रण करने के लिए हावी होकर होड़ लगाएँ—खास तौर से उसके पैसे के लिए। मसीह-विरोधियों को पैसे से विशेष प्रेम होता है। उसे देखकर उनकी आँखों में चमक आ जाती है; अपने मन में, वे हमेशा पैसे के बारे में सोचते रहते हैं और उसके लिए प्रयास करते रहते हैं। ये सब मसीह-विरोधियों के संकेत और लक्षण हैं। अगर तुम उनसे सत्य पर संगति करो, या भाई-बहनों की दशा के बारे में जानने की कोशिश करो और ऐसे सवाल पूछो कि उनमें से कितने कमजोर और निराश हैं, उनमें से प्रत्येक अपने कर्तव्य में कैसे नतीजे हासिल कर रहा है, और उनमें से कौन अपने कर्तव्य के लिए उपयुक्त नहीं है, तो मसीह-विरोधियों को रुचि नहीं होगी। लेकिन जब परमेश्वर की भेंटों की बात आती है—पैसे की मात्रा, इसकी सुरक्षा कौन कर रहा है, यह कहाँ रखा गया है, उसके पासकोड क्या हैं आदि-आदि—तो ये ही वे चीजें हैं जिनकी वे सबसे ज्यादा परवाह करते हैं। किसी मसीह-विरोधी की इन चीजों पर सबसे ज्यादा पकड़ होती है। वे इन चीजों को बहुत अच्छी तरह से जानते हैं। यह भी मसीह-विरोधी का एक लक्षण होता है। मसीह-विरोधी मीठी बातें बोलने में माहिर होते हैं, लेकिन वे वास्तविक कार्य नहीं करते। इसके बजाय, वे हमेशा परमेश्वर की भेंटों के मजे लेने के विचारों में खोए रहते हैं। मुझे बताओ, क्या मसीह-विरोधी अनैतिक नहीं होते? उनमें जरा भी मानवता नहीं होती—वे पूरी तरह से दानव होते हैं।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग दो)
संबंधित चलचित्र अंश
फरीसियों की परमेश्वर के विरोध की सच्चाई को उजागर करना
संबंधित अनुभवात्मक गवाहियाँ
एक मसीह-विरोधी को पहचानना सीखना
सावधान! मसीह-विरोधी आपके इर्द-गिर्द हैं!
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परमेश्वर द्वारा लोगों की निंदा का आधार
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