vi. क्य़ा धार्मिक जगत के फरीसियों और मसीह-विरोधी लोगों द्वारा जो गुमराह और नियंत्रित किए जाते हैं, वे परमेश्वर द्वारा बचाए जा सकते हैं
बाइबल से उद्धृत परमेश्वर के वचन
“वे अंधे मार्गदर्शक हैं और अंधा यदि अंधे को मार्ग दिखाए, तो दोनों ही गड़हे में गिर पड़ेंगे” (मत्ती 15:14)।
“क्योंकि जो इन लोगों की अगुवाई करते हैं वे इनको भटका देते हैं, और जिनकी अगुवाई होती है वे नष्ट हो जाते हैं” (यशायाह 9:16)।
“मेरे ज्ञान के न होने से मेरी प्रजा नष्ट हो गई” (होशे 4:6)।
अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन
ऐसे भी लोग हैं जो बड़ी-बड़ी कलीसियाओं में दिन-भर बाइबल पढ़ते और याद करके सुनाते रहते हैं, फिर भी उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य को समझता हो। उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर को जान पाता हो; उनमें से परमेश्वर के इरादों के अनुरूप तो एक भी नहीं होता। वे सबके सब निकम्मे और अधम लोग हैं, जिनमें से प्रत्येक परमेश्वर को सिखाने के लिए ऊँचे पायदान पर खड़ा रहता है। वे लोग परमेश्वर के नाम का झंडा उठाकर, जानबूझकर उसका विरोध करते हैं। वे परमेश्वर में विश्वास रखने का दावा करते हैं, फिर भी मनुष्यों का माँस खाते और रक्त पीते हैं। ऐसे सभी मनुष्य शैतान हैं जो मनुष्यों की आत्माओं को निगल जाते हैं, ऐसे मुख्य राक्षस हैं जो जानबूझकर उन्हें परेशान करते हैं जो सही मार्ग पर कदम बढ़ाने का प्रयास करते हैं और ऐसी बाधाएँ हैं जो परमेश्वर को खोजने वालों के मार्ग में रुकावट पैदा करते हैं। वे “मज़बूत देह” वाले दिख सकते हैं, किंतु उसके अनुयायियों को कैसे पता चलेगा कि वे मसीह-विरोधी हैं जो लोगों से परमेश्वर का विरोध करवाते हैं? अनुयायी कैसे जानेंगे कि वे जीवित शैतान हैं जो इंसानी आत्माओं को निगलने को समर्पित हुए बैठे हैं? जो लोग परमेश्वर के सामने अपने आपको बड़ा मूल्य देते हैं, वे सबसे अधिक अधम लोग हैं, जबकि जो खुद को तुच्छ समझते हैं, वे सबसे अधिक आदरणीय हैं। जो लोग यह सोचते हैं कि वे परमेश्वर के कार्य को जानते हैं, और दूसरों के आगे परमेश्वर के कार्य की धूमधाम से उद्घोषणा करते हैं, जबकि वे सीधे परमेश्वर को देखते हैं—ऐसे लोग बेहद अज्ञानी होते हैं। ऐसे लोगों में परमेश्वर की गवाही नहीं होती, वे अभिमानी और अत्यंत दंभी होते हैं।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर को न जानने वाले सभी लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं
व्यवस्था के युग के वे यहूदी फरीसी, मुख्य याजक, और धर्मशास्त्री, नाममात्र के लिए परमेश्वर में विश्वास रखते थे, लेकिन उन्होंने उसके मार्ग को पीठ दिखाई, और यहाँ तक कि देहधारी परमेश्वर को सूली पर चढ़ा दिया। तो क्या उनके विश्वास को परमेश्वर की स्वीकृति मिल सकती थी? (नहीं।) परमेश्वर ने उन्हें पहले ही यहूदी आस्था के लोगों के रूप में, एक धार्मिक समूह के सदस्यों के रूप में नामित कर रखा था। और इसी तरह आज परमेश्वर, यीशु में विश्वास रखने वालों को एक धार्मिक समूह के सदस्यों के रूप में देखता है, इस अर्थ में कि वह उन्हें अपनी कलीसिया के सदस्यों के रूप में या अपने विश्वासियों के रूप में स्वीकार नहीं करता। परमेश्वर धार्मिक जगत की इस प्रकार निंदा क्यों करता होगा? इसलिए कि धार्मिक समूहों के सभी सदस्यों, विशेष तौर पर विभिन्न सम्प्रदायों के उच्च-स्तरीय अगुआओं के पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल नहीं होता, न ही वे परमेश्वर की इच्छा का अनुसरण करने वाले होते हैं। वे सब छद्म-विश्वासी हैं। सत्य स्वीकारना तो दूर रहा, वे देहधारण में भी विश्वास नहीं रखते। वे कभी खोजते नहीं, सवाल नहीं पूछते, जाँच नहीं करते, या अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य या उसके द्वारा व्यक्त किए गए सत्य को स्वीकार नहीं करते, इसके बजाय वे अंत के दिनों में देहधारी परमेश्वर के कार्य की निंदा और तिरस्कार करते हैं। इससे स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है कि वे शायद परमेश्वर में नाममात्र के लिए विश्वास रखते हों, मगर परमेश्वर उन्हें अपने विश्वासियों के रूप में स्वीकार नहीं करता; वह कहता है कि वे दुष्कर्मी हैं, उनके किए किसी भी काम का उसके उद्धार कार्य से जरा भी संबंध नहीं है, वे गैर-विश्वासी हैं जो उसके वचनों से बाहर हैं। अगर तुम लोग परमेश्वर में विश्वास रखते हो जैसा कि तुम अभी रखते हो, तो क्या वह दिन नहीं आएगा जब तुम लोग भी बस धार्मिक अनुयायी बन कर रह जाओगे? धर्म के भीतर रहकर परमेश्वर में विश्वास रखने से उद्धार प्राप्त नहीं हो सकता—ऐसा आखिर क्यों है? अगर तुम लोग नहीं बता सकते कि ऐसा क्यों है, तो यह दर्शाता है कि तुम लोग बिल्कुल भी न तो सत्य समझते हो, न ही परमेश्वर के इरादे समझते हो। परमेश्वर में विश्वास के साथ सबसे बड़ी त्रासदी यही हो सकती है कि वह धर्म बनकर रह जाए और परमेश्वर उसे खत्म कर दे। मनुष्य के लिए यह अकल्पनीय है, और जो लोग सत्य नहीं समझते, वे इस मामले को स्पष्ट रूप से नहीं देख सकते। बताओ भला, जब एक कलीसिया परमेश्वर की दृष्टि में धीरे-धीरे धर्म में तब्दील हो जाए, और अपनी स्थापना के बाद कई लंबे वर्षों से गुजरकर एक संप्रदाय बन जाए, तो क्या इस कलीसिया के लोग परमेश्वर के उद्धार की वस्तु हैं? क्या वे उसके परिवार के सदस्य हैं? (नहीं।) वे सदस्य नहीं हैं। ये लोग जो सच्चे परमेश्वर में नाममात्र के लिए विश्वास रखते हैं, फिर भी वह उन्हें धर्मनिष्ठ लोग मानता है, किस मार्ग पर चलते हैं? जिस मार्ग पर वे चलते हैं उस पर वे परमेश्वर में विश्वास की पताका लिए होते हैं, फिर भी वे कभी उसके मार्ग का अनुसरण नहीं करते; यह ऐसा मार्ग है जिस पर वे उसमें विश्वास तो रखते हैं फिर भी उसकी आराधना नहीं करते, यहाँ तक कि वे उसे त्याग देते हैं; यह ऐसा मार्ग है जिस पर वे परमेश्वर में विश्वास रखने का दावा करते हैं, फिर भी उसका प्रतिरोध करते हैं, परमेश्वर के नाम में, सच्चे परमेश्वर में, नाममात्र के लिए विश्वास रखते हैं, फिर भी शैतान और दानवों की आराधना करते हैं, और इंसानी कामकाज से जुड़कर एक स्वतंत्र मानवी राज्य की स्थापना करते हैं। यही वो मार्ग है जिस पर वे चलते हैं। उनके चलने का मार्ग देखने से यह स्पष्ट है कि वे छद्म-विश्वासियों का जत्था हैं, मसीह-विरोधियों का गिरोह हैं, उन शैतानों और दानवों का समूह हैं जो स्पष्ट रूप से परमेश्वर का प्रतिरोध करने और उसके कार्य को बाधित करने के लिए निकल पड़े हैं। धार्मिक जगत का यही सार है। क्या ऐसे लोगों के समूह का मनुष्य के उद्धार के लिए परमेश्वर की प्रबंधन योजना से कोई सरोकार है? (नहीं।) परमेश्वर के विश्वासी लोगों, चाहे वे जितने भी हों, की आस्था की विधि को एक बार परमेश्वर ने एक सम्प्रदाय या एक समूह के रूप में परिभाषित कर दिया, तो उन्हें भी परमेश्वर बचाए नहीं जा सकने वाले लोगों के रूप में परिभाषित कर देता है। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ? परमेश्वर के कार्य या मार्गदर्शन के बिना एक समूह जो बिल्कुल भी न उसके सामने समर्पण करता है और न उसकी आराधना करता है, शायद वह नाममात्र के लिए उसमें विश्वास रखता हो, लेकिन वह धर्म के याजकों और एल्डरों का ही अनुसरण और पालन करता है, और धर्म के याजक और एल्डर अपने सार से ही शैतानी और पाखंडी होते हैं। इसलिए, वे लोग जिनका अनुसरण और पालन करते हैं वे शैतान और दानव हैं। वे अपने दिलों में परमेश्वर में विश्वास का अभ्यास करते हैं, लेकिन दरअसल, मनुष्य उनके साथ हेर-फेर करता है, वे इंसानी आयोजनों और वर्चस्व के अधीन होते हैं। तो, अनिवार्यतः वे जिनका अनुसरण और पालन करते हैं वे शैतान और दानव हैं, परमेश्वर का प्रतिरोध करने वाली दुराचारी शक्तियाँ हैं, और परमेश्वर के शत्रु हैं। क्या परमेश्वर ऐसे लोगों के गिरोह को बचाएगा? (नहीं।) क्यों नहीं? देखो, क्या ऐसे लोग प्रायश्चित्त करने में सक्षम हैं? नहीं; वे प्रायश्चित्त नहीं करेंगे। वे परमेश्वर में आस्था की पताका के नीचे इंसानी कामकाज और उद्यमों से जुड़ जाते हैं, जोकि मनुष्य के उद्धार हेतु परमेश्वर की प्रबंधन योजना के विपरीत है, जिसका अंतिम परिणाम यह होता है कि परमेश्वर उन्हें ठुकरा देगा। परमेश्वर द्वारा इन लोगों को बचाना असंभव है; वे प्रायश्चित्त करने में सक्षम नहीं हैं, और चूंकि वे शैतान के बहकावे में आ गए हैं, इसलिए परमेश्वर इन लोगों को उसे ही सौंप देता है। ... तुमने चाहे जितने भी धर्मोपदेश सुने हों, जितने भी सत्य समझ लिए हों, कोई फर्क नहीं पड़ता—अगर तुम अभी भी मनुष्य का अनुसरण करते हो, अभी भी शैतान का अनुसरण करते हो, और अंत में परमेश्वर के मार्ग का अनुसरण करने में सक्षम नहीं हो पाते हो, न ही उसका भय मान पाते हो, और बुराई से दूर रह पाते हो, तो ऐसे लोगों को परमेश्वर ठुकरा देता है। संभव है धर्म के लोग बाइबल के विशाल ज्ञान का प्रचार करने में सक्षम हों, और वे कुछ आध्यात्मिक धर्म-सिद्धांत समझते हों, लेकिन वे परमेश्वर के कार्य के प्रति समर्पण नहीं कर पाते, उसके वचनों का अभ्यास और अनुभव नहीं कर पाते, या सच्चे दिल से उसकी आराधना नहीं कर पाते, न ही वे उसका भय मान पाते हैं और न बुराई से दूर रह पाते हैं। वे सब पाखंडी हैं, वे ऐसे लोग नहीं हैं जो सच्चे दिल से परमेश्वर के प्रति समर्पण करते हैं। परमेश्वर की दृष्टि में, ऐसे लोगों को किसी सम्प्रदाय, इंसानी समूह या इंसानी गिरोह के व्यक्तियों के रूप में परिभाषित किया जाता है जिनमें शैतान का बसेरा है। सामूहिक रूप में, वे शैतान के गिरोह हैं, मसीह-विरोधियों का राज्य हैं, और परमेश्वर उन्हें पूरी तरह ठुकरा देता है।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, परमेश्वर का भय मानकर ही इंसान उद्धार के मार्ग पर चल सकता है
जो लोग परमेश्वर के नए कार्य को स्वीकार नहीं करते, वे परमेश्वर की उपस्थिति से वंचित रहते हैं, और, इससे भी बढ़कर, वे परमेश्वर के आशीषों और सुरक्षा से रहित होते हैं। उनके अधिकांश वचन और कार्य पवित्र आत्मा की पुरानी अपेक्षाओं को थामे रहते हैं; वे सिद्धांत हैं, सत्य नहीं। ऐसे सिद्धांत और विनियम यह साबित करने के लिए पर्याप्त हैं कि इन लोगों का एक-साथ इकट्ठा होना धर्म के अलावा कुछ नहीं है; वे चुने हुए लोग या परमेश्वर के कार्य के लक्ष्य नहीं हैं। उनमें से सभी लोगों की सभा को मात्र धर्म का महासम्मेलन कहा जा सकता है, उन्हें कलीसिया नहीं कहा जा सकता। यह एक अपरिवर्तनीय तथ्य है। उनके पास पवित्र आत्मा का नया कार्य नहीं है; जो कुछ वे करते हैं वह धर्म का द्योतक प्रतीत होता है, जैसा जीवन वे जीते हैं वह धर्म से भरा हुआ प्रतीत होता है; उनमें पवित्र आत्मा की उपस्थिति और कार्य नहीं होता, और वे पवित्र आत्मा का अनुशासन या प्रबुद्धता प्राप्त करने के लायक तो बिल्कुल भी नहीं हैं। ये समस्त लोग निर्जीव लाशें और कीड़े हैं, जो आध्यात्मिकता से रहित हैं। उन्हें मनुष्य की विद्रोहशीलता और विरोध का कोई ज्ञान नहीं है, मनुष्य के समस्त कुकर्मों का कोई ज्ञान नहीं है, और वे परमेश्वर के समस्त कार्य और परमेश्वर के वर्तमान इरादों को तो बिल्कुल भी नहीं जानते। वे सभी अज्ञानी, अधम लोग हैं, और वे कूडा-करकट हैं जो विश्वासी कहलाने के योग्य नहीं हैं! वे जो कुछ भी करते हैं, उसका परमेश्वर के प्रबंधन के कार्य के साथ कोई संबंध नहीं है, और वह परमेश्वर के कार्य को बिगाड़ तो बिल्कुल भी नहीं सकता। उनके वचन और कार्य अत्यंत घृणास्पद, अत्यंत दयनीय, और एकदम अनुल्लेखनीय हैं। जो लोग पवित्र आत्मा की धारा में नहीं हैं, उनके द्वारा किए गए किसी भी कार्य का पवित्र आत्मा के नए कार्य के साथ कोई लेना-देना नहीं है। इस वजह से, चाहे वे कुछ भी क्यों न करें, वे पवित्र आत्मा के अनुशासन से रहित होते हैं, और, इससे भी बढ़कर, वे पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता से रहित होते हैं। कारण, वे सभी ऐसे लोग हैं, जिन्हें सत्य से कोई प्रेम नहीं है, और जिन्हें पवित्र आत्मा ने तिरस्कृत कर दिया है। उन्हें कुकर्मी कहा जाता हैं, क्योंकि वे देह के अनुसार चलते हैं, और परमेश्वर के नाम की तख्ती के नीचे जो उन्हें अच्छा लगता है, वही करते हैं। जब परमेश्वर कार्य करता है, तो वे जानबूझकर उसके प्रति शत्रुता रखते हैं और उसकी विपरीत दिशा में दौड़ते हैं। परमेश्वर के साथ सहयोग करने में मनुष्य की असफलता अपने आप में चरम रूप से विद्रोही है, इसलिए क्या वे लोग, जो जानबूझकर परमेश्वर के प्रतिकूल चलते हैं, विशेष रूप से अपना उचित प्रतिफल प्राप्त नहीं करेंगे?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का अभ्यास
कुछ लोग सत्य में आनंदित नहीं होते, न्याय में तो बिल्कुल भी नहीं। इसके बजाय, वे सामर्थ्य और संपत्तियों में आनंदित होते हैं; ऐसे लोग सामर्थ्य चाहने वाले कहे जाते हैं। वे केवल दुनिया के प्रभावशाली संप्रदायों को, और सेमिनरीज से आने वाले पादरियों और शिक्षकों को खोजते हैं। हालाँकि उन्होंने सत्य के मार्ग को स्वीकार कर लिया है, फिर भी वे केवल अर्ध-विश्वासी हैं; वे अपने दिलो-दिमाग पूरी तरह से समर्पित करने में असमर्थ हैं, वे कहने को तो परमेश्वर के लिए खुद को खपाने की बात करते हैं, लेकिन उनकी नजरें बड़े पादरियों और शिक्षकों पर गड़ी रहती हैं, और वे मसीह की ओर फेर कर नहीं देखते। उनके हृदय प्रसिद्धि, वैभव और महिमा पर ही टिके रहते हैं। वे इसे असंभव समझते हैं कि ऐसा छोटा व्यक्ति इतने लोगों पर विजय प्राप्त कर सकता है, कि इतना साधारण व्यक्ति लोगों को पूर्ण बना सकता है। वे इसे असंभव समझते हैं कि ये धूल और घूरे में पड़े नाचीज लोग परमेश्वर द्वारा चुने गए हैं। वे मानते हैं कि अगर ऐसे लोग परमेश्वर के उद्धार के पात्र होते, तो स्वर्ग और पृथ्वी उलट-पुलट हो जाते और सभी लोग हँसते-हँसते लोटपोट हो जाते। उनका मानना है कि अगर परमेश्वर ने ऐसे नाचीज लोगों को पूर्ण बनाने के लिए चुना होता, तो वे सभी बड़े लोग स्वयं परमेश्वर बन जाते। उनके दृष्टिकोण अविश्वास से दूषित हैं; अविश्वासी होने से भी बढ़कर, वे बेहूदे जानवर हैं। क्योंकि वे केवल हैसियत, प्रतिष्ठा और सामर्थ्य को महत्व देते हैं, और केवल बड़े समूहों और संप्रदायों को सम्मान देते हैं। उनमें उन लोगों के लिए बिल्कुल भी सम्मान नहीं है, जिनकी अगुआई मसीह करता है; वे तो बस ऐसे विश्वासघाती हैं, जिन्होंने मसीह से, सत्य से और जीवन से मुँह मोड़ लिया है।
तुम मसीह की विनम्रता की प्रशंसा नहीं करते, बल्कि ऊँचे रुतबे वाले झूठे चरवाहों की प्रशंसा करते हो। तुम मसीह की मनोहरता या बुद्धि से प्रेम नहीं करते, बल्कि उन व्यभिचारियों से प्रेम करते हो, जो संसार के कीचड़ में लोटते हैं। तुम मसीह की पीड़ा पर हँसते हो, जिसके पास अपना सिर टिकाने तक की जगह नहीं है, लेकिन उन मुरदों की तारीफ करते हो, जो चढ़ावे हड़प लेते हैं और ऐयाशी में जीते हैं। तुम मसीह के साथ कष्ट सहने को तैयार नहीं हो, बल्कि खुद को खुशी-खुशी उन मनमाने मसीह-विरोधियों की बाँहों में सौंप देते हो, जबकि वे तुम्हें सिर्फ देह, शब्द और नियंत्रण ही प्रदान करते हैं। अब भी तुम्हारा हृदय उनकी ओर, उनकी प्रतिष्ठा, उनके रुतबे, उनके प्रभाव की ओर ही मुड़ता है। अभी भी तुम्हारा यही रवैया है कि मसीह का कार्य स्वीकारना कठिन है और तुम इसे स्वीकारने के लिए तैयार नहीं रहते। इसीलिए मैं कहता हूँ कि तुममें मसीह को स्वीकार करने की आस्था की कमी है। तुमने आज तक उसका अनुसरण सिर्फ इसलिए किया है, क्योंकि तुम्हारे पास कोई और विकल्प नहीं था। बुलंद छवियों की एक शृंखला हमेशा तुम्हारे हृदय में बसी रहती है; तुम उनके किसी शब्द और कर्म को नहीं भूल सकते, न ही उनके प्रभावशाली शब्दों और हाथों को भूल सकते हो। वे तुम लोगों के हृदय में हमेशा सर्वोच्च और हमेशा नायक रहते हैं। लेकिन आज के मसीह के लिए ऐसा नहीं है। तुम्हारे हृदय में वह हमेशा महत्वहीन और हमेशा भय के अयोग्य है। क्योंकि वह बहुत ही साधारण है, उसका बहुत ही कम प्रभाव है और वह ऊँचा तो बिल्कुल भी नहीं है।
बहरहाल, मैं कहता हूँ कि जो लोग सत्य को महत्व नहीं देते, वे सभी छद्म-विश्वासी हैं और सत्य के प्रति विश्वासघाती हैं। ऐसे लोगों को कभी भी मसीह का अनुमोदन प्राप्त नहीं होगा। क्या अब तुमने पहचान लिया है कि तुम्हारे भीतर कितना अविश्वास है, और तुममें मसीह के प्रति कितना विश्वासघात है? मैं तुमसे यह आग्रह करता हूँ : चूँकि तुमने सत्य का मार्ग चुना है, इसलिए तुम्हें खुद को संपूर्ण हृदय से समर्पित करना चाहिए; दुविधाग्रस्त या अनमने न बनो। तुम्हें समझना चाहिए कि परमेश्वर इस संसार का या किसी एक व्यक्ति का नहीं है, बल्कि उन सबका है जो उस पर सचमुच विश्वास करते हैं, जो उसकी आराधना करते हैं, और जो उसके प्रति समर्पित और निष्ठावान हैं।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या तुम परमेश्वर के सच्चे विश्वासी हो?
परमेश्वर के चुने हुए लोगों को मसीह-विरोधियों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए? उन्हें उनकी पहचान करनी चाहिए, उन्हें उजागर करना चाहिए, उनकी रिपोर्ट करनी चाहिए और उन्हें ठुकरा देना चाहिए। केवल तभी अंत तक परमेश्वर का अनुसरण और परमेश्वर में आस्था रखने के सही मार्ग में प्रवेश सुनिश्चित किया जा सकता है। मसीह-विरोधी तुम्हारे अगुआ नहीं हैं, चाहे उन्होंने दूसरों को गुमराह करके कैसे भी खुद को अगुआ चुनवाया हो। उन्हें स्वीकार मत करो और उनकी अगुआई मत मानो—तुम्हें उनकी पहचान करनी चाहिए और उन्हें ठुकरा देना चाहिए, क्योंकि वे सत्य को समझने में तुम्हारी मदद नहीं कर सकते और न ही वे तुम्हारा समर्थन कर सकते हैं या तुम्हारा पोषण कर सकते हैं। यही तथ्य हैं। अगर वे सत्य वास्तविकता की ओर तुम्हारा मार्गदर्शन नहीं कर सकते, तो वे अगुआ या कार्यकर्ता बनने के काबिल नहीं हैं। अगर वे सत्य को समझने और परमेश्वर के कार्य का अनुभव करने की ओर तुम्हारा मार्गदर्शन नहीं कर सकते, तो ये वे लोग हैं जो परमेश्वर का विरोध करते हैं और तुम्हें उन्हें पहचान लेना चाहिए, उन्हें उजागर करना चाहिए और उन्हें ठुकरा देना चाहिए। वे जो कुछ भी करते हैं उसका उद्देश्य तुम्हें अपना अनुसरण कराने के लिए गुमराह करना, और कलीसिया के कार्य को कमजोर करने और उसमें बाधा डालने के लिए तुम्हें अपने समूह में शामिल करना होता है, ताकि वे तुम्हें मसीह-विरोधियों का रास्ता अपनाने के लिए प्रेरित कर सकें, जैसा कि वे करते हैं। वे तुम्हें नरक में खींचना चाहते हैं! अगर तुम उन्हें बता नहीं सकते कि वे क्या हैं और मानते हो कि चूँकि वे तुम्हारे अगुआ हैं इसलिए तुम्हें उनकी आज्ञा माननी चाहिए और उनके प्रति रियायत बरतनी चाहिए, तो तुम एक ऐसे व्यक्ति हो जो सत्य और परमेश्वर दोनों के साथ विश्वासघात करता है—और ऐसे लोगों को बचाया नहीं जा सकता। अगर तुम बचाए जाना चाहते हो, तो तुम्हें न केवल बड़े लाल अजगर की बाधा पार करनी होगी, और न केवल बड़े लाल अजगर को पहचानने, उसके भयानक चेहरे की असलियत देखने और इसके खिलाफ पूरी तरह से विद्रोह करने में सक्षम होना होगा—बल्कि मसीह-विरोधियों की बाधा भी पार करनी होगी। कलीसिया में मसीह-विरोधी न केवल परमेश्वर का शत्रु होता है, बल्कि परमेश्वर के चुने हुए लोगों का भी शत्रु होता है। अगर तुम मसीह-विरोधी को नहीं पहचान सकते, तो तुम्हारे गुमराह होने और उनकी बातों में आ जाने, मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलने, और परमेश्वर द्वारा शापित और दंडित किए जाने की संभावना है। अगर ऐसा होता है, तो परमेश्वर में तुम्हारा विश्वास पूरी तरह से विफल हो गया है। उद्धार प्रदान किए जाने के लिए लोगों में क्या होना चाहिए? पहले, उन्हें कई सत्य समझने चाहिए, और मसीह-विरोधी का सार, स्वभाव और मार्ग पहचानने में सक्षम होना चाहिए। परमेश्वर में विश्वास करते हुए लोगों की आराधना या अनुसरण न करना सुनिश्चित करने का यह एकमात्र तरीका है, और अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करने का भी यही एकमात्र तरीका है। मसीह-विरोधी की पहचान करने में सक्षम लोग ही वास्तव में परमेश्वर में विश्वास कर सकते हैं, उसका अनुसरण कर सकते हैं और उसकी गवाही दे सकते हैं। तब कुछ लोग कहेंगे, “अगर मेरे पास इसके लिए फिलहाल सत्य नहीं है तो मैं क्या करूँ?” तुम्हें खुद को जल्दी से जल्दी सत्य से सुसज्जित करना चाहिए; तुम्हें लोगों और चीजों को समझना सीखना चाहिए। मसीह-विरोधी की पहचान करना कोई आसान बात नहीं है, इसके लिए उनका सार स्पष्ट रूप से देखने और उनके हर काम के पीछे की साजिशें, चालें और इरादे देख पाने की क्षमता होनी आवश्यक है। इस तरह तुम उनके द्वारा गुमराह नहीं होगे या उनके काबू में नहीं आओगे, और तुम अडिग होकर, सुरक्षित रूप से सत्य का अनुसरण कर सकते हो, और सत्य का अनुसरण करने और उद्धार प्राप्त करने के मार्ग पर दृढ़ रह सकते हो। अगर तुम मसीह-विरोधी की बाधा को पार नहीं कर सकते, तो यह कहा जा सकता है कि तुम एक बड़े ख़तरे में हो, और तुम्हें मसीह-विरोधी द्वारा गुमराह करके अपने कब्जे में किया जा सकता है और तुम्हें शैतान के प्रभाव में जीवन व्यतीत करना पड़ सकता है। वर्तमान में तुम लोगों के बीच कुछ ऐसे लोग हो सकते हैं जो सत्य का अनुसरण करने वालों को रोकें या ठोकर मारें, और ये उन लोगों के शत्रु हैं। क्या तुम लोग इसे स्वीकार करते हो? कुछ ऐसे लोग हैं जो इस तथ्य का सामना करने की हिम्मत नहीं रखते, न ही वे इसे तथ्य के रूप में स्वीकार करने की हिम्मत रखते हैं। लेकिन मसीह विरोधियों द्वारा लोगों को गुमराह करना वास्तव में कलीसियाओं में होता है और अक्सर होता है; बात केवल इतनी है कि लोग पहचान नहीं पाते। अगर तुम इस परीक्षा को पास नहीं कर सकते—मसीह-विरोधियों की परीक्षा, तब तुम या तो मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह हो चुके हो और उन्हीं के द्वारा नियंत्रित हो या उन्होंने तुम्हें कष्ट दिया है, पीड़ा पहुँचायी है, बाहर धकेला है और प्रताड़ित किया है। अंततः, तुम्हारा यह छोटा-सा तुच्छ जीवन लंबे समय तक नहीं टिकेगा, और मुरझा जाएगा; तुम परमेश्वर में विश्वास नहीं रख पाओगे, और तुम कहोगे, “परमेश्वर तो धार्मिक भी नहीं है! परमेश्वर कहाँ है? इस दुनिया में कोई न्याय या प्रकाश नहीं है, और परमेश्वर द्वारा मानवजाति का उद्धार जैसी कोई चीज़ नहीं है। हम काम करते हुए और पैसा कमाते हुए भी अपने दिन गुज़ार सकते हैं!” तुम परमेश्वर को नकारते हो, तुम परमेश्वर से भटक जाते हो और अब विश्वास नहीं करते कि वह मौजूद है; ऐसी कोई भी उम्मीद कि तुम्हारा उद्धार होगा, पूरी तरह से समाप्त हो चुकी है। इसलिए, अगर तुम उस जगह पहुँचना चाहते हो जहाँ पर तुम्हें उद्धार प्राप्त हो सके, तो पहली परीक्षा जो तुम्हें पास करनी होगी वह है शैतान की पहचान करने में सक्षम होना, और तुम्हारे अंदर शैतान के विरुद्ध खड़ा होने, उसे बेनकाब करने और उसे छोड़ देने का साहस भी होना चाहिए। फिर, शैतान कहाँ है? शैतान तुम्हारे बाजू में और तुम्हारे चारों तरफ़ है; हो सकता है कि वह तुम्हारे हृदय के भीतर भी रह रहा हो। अगर तुम शैतान के स्वभाव के अधीन रह रहे हो, तो यह कहा जा सकता है कि तुम शैतान के हो। तुम आध्यात्मिक क्षेत्र के शैतान और दुष्ट आत्माओं को देख या छू नहीं सकते, लेकिन व्यावहारिक जीवन में मौजूद शैतान और दुष्ट आत्माएँ हर जगह हैं। जो भी व्यक्ति सत्य से विमुख है, वह बुरा है, और जो भी अगुआ या कार्यकर्ता सत्य को स्वीकार नहीं करता, वह मसीह-विरोधी या नकली अगुआ है। क्या ऐसे लोग शैतान और जीवित दानव नहीं हैं? हो सकता है कि ये लोग वही हों, जिनकी तुम आराधना करते हो और जिनका सम्मान करते हो; ये वही लोग हो सकते हैं जो तुम्हारी अगुआई कर रहे हैं या वे लोग जिन्हें तुमने लंबे समय से अपने हृदय में सराहा है, जिन पर भरोसा किया है, जिन पर निर्भर रहे हो और जिनकी आशा की है। जबकि वास्तव में, वे तुम्हारे मार्ग में खड़ी बाधाएँ हैं और तुम्हें सत्य का अनुसरण करने और उद्धार पाने से रोक रहे हैं; वे नकली अगुआ और मसीह-विरोधी हैं। वे तुम्हारे जीवन और तुम्हारे मार्ग पर नियंत्रण कर सकते हैं, और वे तुम्हारे उद्धार के अवसर को बर्बाद कर सकते हैं। अगर तुम उन्हें पहचानने और उनकी वास्तविकता को समझने में विफल रहते हो, तो किसी भी क्षण तुम गुमराह हो सकते हो या उनके द्वारा पकड़े और दूर ले जाए जा सकते हो। इस प्रकार, तुम बहुत बड़े ख़तरे में हो। अगर तुम इस खतरे से खुद को मुक्त नहीं कर सकते, तो तुम शैतान के बलि के बकरे हो। वैसे भी, जो लोग गुमराह और नियंत्रित होते हैं, और मसीह-विरोधी के अनुयायी बन जाते हैं, वे कभी उद्धार प्राप्त नहीं कर सकते। चूँकि वे सत्य से प्रेम नहीं करते या उसका अनुसरण नहीं करते, इसलिए इसका अपरिहार्य परिणाम यह होगा कि वे गुमराह हो जाएंगे और मसीह-विरोधी का अनुसरण करेंगे।
कुछ लोग सोचते हैं कि वे सत्य का अनुसरण करने वाले व्यक्ति हैं और कहते हैं कि वे मसीह-विरोधियों को पहचानने में सक्षम हैं। वे खुद को जरूरत से ज्यादा आंक रहे हैं, है न? अगर तुम्हारा सामना साफ तौर पर किसी मसीह-विरोधी से होता है जिसके दांत नुकीले हैं, जिसमें खराब मानवता है और जिसने कुछ बुरे कर्म किए हैं, तो तुम स्वाभाविक रूप से उसे पहचानने में सक्षम होगे। लेकिन अगर तुम्हारा सामना किसी ऐसे मसीह-विरोधी से होता है जो देखने में धर्मपारायण लगता है, जो बहुत ही मृदुभाषी है और एक अच्छा व्यक्ति लगता है—एक ऐसा मसीह-विरोधी जो लोगों की धारणाओं के अनुरूप है—तो क्या तुम अभी भी इतना साहस दिखाओगे कि यह दावा करो कि तुम उसकी असलियत बता सकते हो? क्या तुम उस पर मसीह-विरोधी का ठप्पा लगाने का साहस रखते हो? अगर तुम उसे पहचानने में असमर्थ हो, तो तुम निश्चित रूप से उसकी प्रशंसा करोगे और उसके प्रति अच्छा रवैया रखोगे और ऐसे में उसका व्यवहार, उनकी राय और दृष्टिकोण, उसके कार्य—यहाँ तक कि सत्य की उसकी समझ भी—तुम्हें प्रभावित करेंगे। ये चीजें तुम्हें किस हद तक प्रभावित करेंगी? तुम मसीह-विरोधी से जलने लगोगे, उसकी नकल करोगे, उनका अनुकरण करोगे, उनका अनुसरण करोगे, जिससे तुम्हारा जीवन प्रवेश प्रभावित होगा; इससे सत्य की तुम्हारी तलाश और वास्तविकता में प्रवेश भी प्रभावित होगा, यह परमेश्वर के प्रति तुम्हारे रवैये को प्रभावित करेगा और यह इस बात को भी प्रभावित करेगा कि तुम वास्तव में परमेश्वर के प्रति समर्पण करते हो या नहीं और अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करते हो या नहीं। अंततः मसीह-विरोधी तुम्हारे लिए एक आराध्य बन जाएगा, तुम्हारे दिल में उसके लिए जगह बन जाएगी और तुम उससे बच नहीं पाओगे। जब तुम इस हद तक गुमराह किए जाते हो, तो तुम्हारे पास बचाए जाने की बहुत ही कम उम्मीद होती है, क्योंकि परमेश्वर के साथ तुम्हारा संबंध पूरी तरह से टूट चुका होता है, परमेश्वर के साथ तुम्हारा सामान्य संबंध भी खत्म हो गया होता है, और तुम खतरे के कगार पर होते हो। और यह तुम्हारे लिए एक आपदा होती है या आशीष? बेशक यह एक आपदा ही है; यह आशीष तो बिल्कुल भी नहीं है। हालाँकि कुछ मसीह-विरोधी छोटी-छोटी बातों में तुम्हारी मदद कर सकते हैं और तुम्हारे लिए लाभकारी सिद्ध हो सकते हैं या फिर वे तुम्हें प्रबुद्ध करने के लिए शब्द और धर्म-सिद्धांतों का उपदेश भी दे सकते हैं, लेकिन एक बार तुम उनके द्वारा गुमराह हुए, उनकी आराधना करने लगे और उनका अनुसरण करने लगे, तो तुम मुसीबत में पड़ जाओगे। तुम खुद के लिए बरबादी लाओगे और अपने लिए उद्धार का मौका खो दोगे। कुछ लोग कहते हैं, “वे कोई शैतान या एक बुरे व्यक्ति नहीं हैं, वे तो आध्यात्मिक व्यक्ति जैसे लगते हैं, एक ऐसा व्यक्ति जो सत्य का अनुसरण करता है।” क्या इन बातों में कोई सच्चाई है? (नहीं।) क्यों नहीं? जो भी कोई सचमुच सत्य का अनुसरण करता है, उसके मार्गदर्शन, सहायता और पोषण का प्रभाव या लाभ तुम्हें परमेश्वर के समक्ष लाता है, ताकि तुम उसके वचन और सत्य की तलाश कर सको, और तुम परमेश्वर के समक्ष आओ और उस पर निर्भर होना और उसे तलाशना सीखो और उसके साथ तुम्हारा रिश्ता और अधिक घनिष्ठ होता जाए। इसके विपरीत, अगर मसीह-विरोधी के साथ तुम्हारा रिश्ता और अधिक घनिष्ठ होता जाए, यहाँ तक कि तुम उसके इशारे पर नाचने लगो तो इसका क्या परिणाम निकलेगा? तुम गलत मार्ग पर भटक जाओगे और खुद को बरबाद कर दोगे। जब तुम किसी मसीह-विरोधी के साथ घनिष्ठ संबंध रखते हो, तो तुम्हारा परमेश्वर के साथ संबंध दूर का हो जाता है। और इसका परिणाम क्या होता है? वे तुम्हें अपने नजदीक लाएँगे और तुम परमेश्वर से दूर हो जाओगे। अगर तुम अपने दिल में किसी को आराध्य बना लेते हो, तो जब भी तुम परमेश्वर के वचनों और कार्य के बारे में धारणाएँ बनाओगे या जब परमेश्वर के वचन तुम्हारे इस आराध्य को उजागर करने लगेंगे, तो तुम तुरंत परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह कर दोगे, और यहाँ तक कि तुम परमेश्वर का विरोध और उससे विश्वासघात भी कर सकते हो; तुम अपने आराध्य के पक्ष में खड़े होगे और परमेश्वर का विरोध करोगे। ऐसा अक्सर होता है। जब कुछ झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों को बदला या निष्कासित किया जाता है, तो उनके साथी और अनुचर उनके बचाव में उतर आते हैं और शिकायत करने लगते हैं; कुछ तो नकारात्मक तक हो जाते हैं और परमेश्वर पर विश्वास करना बंद कर देते हैं। यह एक आम बात है, क्या ऐसा नहीं है? और ऐसा क्यों होता है कि वे विश्वास करना बंद कर देते हैं? वे कहते हैं, “हमारे अगुआ को बदल दिया गया है और उसे निष्कासित कर दिया गया है, तो फिर अब मुझ जैसा एक साधारण विश्वासी क्या उम्मीद कर सकता है?” क्या यह बकवास बात नहीं है? उनके शब्द संकेत देते हैं कि वे मसीह-विरोधी का अनुसरण करते हैं, कि वे मसीह-विरोधी द्वारा पूरी तरह से गुमराह किए जा चुके हैं। और उनके गुमराह होने का क्या परिणाम होता है? मसीह-विरोधी उनके लिए एक ऐसा आराध्य बन गया है जिसकी वे आराधना करते हैं; मसीह-विरोधी उनके लिए पूर्वज समान बन गया है : वे कैसे न छोड़ते, जब उनके पूर्वज को ही निष्कासित कर दिया गया? वे केवल मसीह-विरोधी की बात सुनते हैं और वे पूरी तरह से मसीह-विरोधी के नियंत्रण में होते हैं। उनका मानना होता है कि मसीह-विरोधी जो कुछ भी कहता और करता है वह सही है, और उसे सत्य के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए और उसके प्रति समर्पण किया जाना चाहिए, और इसलिए वे यह कभी भी बरदाश्त नहीं करते कि परमेश्वर के घर में कोई भी मसीह-विरोधी को उजागर करे और उसकी निंदा करे। एक बार जब मसीह-विरोधी को परमेश्वर के घर से निष्कासित कर दिया जाता है, तो जो लोग मसीह-विरोधी का अनुसरण करते हैं, वे खुद भी कलीसिया को छोड़ने का निर्णय कर लेते हैं; जैसा कि कहा जाता है, “पेड़ के गिरते ही बंदर तितर-बितर हो जाते हैं,” जैसा होता है। ऐसी बातें दर्शाती हैं कि मसीह-विरोधी और उनके अनुयायी शैतान के सेवक हैं, जो परमेश्वर के कार्य को अस्त-व्यस्त करने के लिए आए हैं। एक बार जब परमेश्वर के चुने हुए लोगों द्वारा उनका पर्दाफाश किया जाता है, उन्हें उजागर कर ठुकरा दिया जाता है, तो परमेश्वर में उनकी आस्था समाप्त हो जाती है। सभी मसीह-विरोधियों के अनुयायियों की एक विशिष्ट विशेषता होती है जो स्पष्ट रूप से दिखाई देती है : उन्हें किसी की भी बात समझ नहीं आती; वे केवल मसीह-विरोधियों की ही सुनते हैं। और एक बार जब मसीह-विरोधियों द्वारा उन्हें गुमराह कर दिया जाता है, तो फिर वे परमेश्वर के वचनों को सुनना बंद कर देते हैं और केवल मसीह-विरोधी को ही अपना प्रभु मानते हैं। क्या इस स्थिति में, उन्हें गुमराह नहीं किया जा रहा है, क्या उन पर नियंत्रण नहीं किया जा रहा है? केवल मसीह-विरोधियों के अनुयायी ही मसीह-विरोधियों के साथ खड़े होने की कोशिश करते हैं। जब मसीह-विरोधियों को उजागर और बेनकाब कर दिया जाता है, तो उनका अनुसरण करने वाले लोग उनके लिए चिंतित हो जाते हैं, वे उनके लिए आँसू बहाते हैं, वे उनकी ओर से शिकायत करते हैं और उनका बचाव करने की कोशिश करते हैं। ऐसे समय में वे परमेश्वर को भूल चुके होते हैं और अब वे परमेश्वर से प्रार्थना नहीं करते या सत्य की तलाश नहीं करते; वे केवल मसीह-विरोधियों का बचाव करते हैं और उनके लिए अपने दिमाग पर जोर डालते हैं; वे तो अब परमेश्वर को भी नहीं पहचानते। क्या वे वास्तव में परमेश्वर में विश्वास रखते हैं? वे वास्तव में किस पर विश्वास रखते हैं? यह बात तो पहले से ही स्पष्ट है। ... तुम कहते हो कि तुम्हें मसीह-विरोधी द्वारा गुमराह किए जाने की कोई चिंता नहीं है, कि तुम्हें एक मसीह-विरोधी का अनुसरण करने का कोई डर नहीं है, लेकिन ऐसा दावा करने का कोई फायदा नहीं है। यह भ्रमित करने वाली टिप्पणी है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अगर तुम सत्य का अनुसरण नहीं करते और हमेशा लोगों की आराधना और उनका अनुसरण करते रहते हो, तो तुम मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चल रहे होगे और तुम्हें इसका एहसास भी नहीं होगा। कई वर्षों तक परमेश्वर पर विश्वास रखने के बावजूद अनुभवात्मक गवाही से वंचित रहना न केवल सत्य और जीवन प्राप्त न करना बल्कि परमेश्वर का विरोध करने वाला व्यक्ति बन जाना : यह मसीह-विरोधियों का अनुसरण करने का अंतिम परिणाम होता है और यह एक ऐसा परिणाम है जिससे तुम खुद को बचा नहीं सकते, यह एक अपरिवर्तनीय तथ्य है। यह उसी तरह है जैसे कोई व्यक्ति बिजली को छू लेता है : तो उसे निश्चित रूप से झटका लगेगा। कुछ लोग यह कह सकते हैं, “मैं यह नहीं मानता; मुझे कोई डर नहीं है”—लेकिन क्या यहाँ मामला यह है कि तुम इस पर विश्वास रखते हो या डरते हो या नहीं? बिजली को छू कर देखो! तुम्हें झटका जरूर लगेगा। इसे न मानने से कोई फायदा नहीं होगा। इसे न मानना अज्ञानता है; ऐसा कहना गैरजिम्मेदाराना बात है। इसलिए, चाहे तुम किसी मसीह-विरोधी का अनुसरण करने के लिए तैयार हो या न हो, अगर तुम सत्य का अनुसरण नहीं करते और तुम्हारे प्रयास हमेशा शोहरत, लाभ और हैसियत पाने के उद्देश्य से होते हैं, तो तुम पहले ही मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चल पड़े हो। यह परिणाम तुम्हें धीरे-धीरे दिखेगा, जैसे पानी में बहता हुआ कचरा सतह पर आता है। यह अपरिहार्य है। मसीह-विरोधी जो करते हैं, वह यह कि वे लोगों को अपने समक्ष लाते हैं, वे उन्हें परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं को स्वीकार करने या परमेश्वर की संप्रभुता के प्रति समर्पण करने के बजाय अपने नियंत्रण और चालाकी को स्वीकार करने के लिए मजबूर करते हैं। मसीह-विरोधी लोगों को जीतना चाहते हैं, वे उन्हें प्राप्त करना चाहते हैं, उनका लक्ष्य परमेश्वर के चुने हुए सभी लोगों को नियंत्रित करना है, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को अपने हाथों में नियंत्रित करना है; वे तस्कर हैं। और मसीह-विरोधी लोगों को नियंत्रित करने के अपने उद्देश्य को हासिल करने के लिए क्या उपयोग करते हैं? वे उस आध्यात्मिक सिद्धांत का उपयोग करते हैं जिसकी लोग आराधना करते हैं, वे बाहर से आकर्षक सिद्धांतों का उपयोग करते हैं, वे लोगों को गुमराह करने के लिए उनकी सिद्धांतों की आराधना करने की भ्रष्ट मानसिकता का फायदा उठाकर बकवास करते हैं और अलंकृत बातें कहते हैं। संक्षेप में कहें तो, वे जो कुछ भी कहते हैं वे केवल शब्द और धर्म-सिद्धांत होते हैं, खाली सिद्धांत जो बाहर से आकर्षक और सत्य से उलट होते हैं। अगर लोग सत्य को नहीं समझते, तो वे निश्चित रूप से गुमराह हो जाएँगे; कम से कम, वे होश में आने से पहले कुछ समय के लिए तो गुमराह जरूर होंगे। वे अपने होश में आते तब हैं जब मसीह-विरोधी बेनकाब हो जाते हैं, फिर उस समय उन्हें बेहद पछतावा महसूस होता है। मसीह-विरोधियों का अनुसरण करने वाले लोगों ने पहले ही पवित्र आत्मा के कार्य को खो दिया है; क्योंकि वे अपने दिल में आराध्यों की आराधना करते हैं, लोगों का अनुसरण करते हैं और परमेश्वर द्वारा ठुकराए जाते हैं और उसने उन्हें बेनकाब करने के लिए एक तरफ कर दिया है। इसलिए, मसीह-विरोधियों का अनुसरण करना बहुत खतरनाक होता है; मसीह-विरोधियों की तरह जो लोग मसीह-विरोधियों का अनुसरण करते हैं उनसे परमेश्वर सबसे अधिक घृणा करता है।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद तीन : सत्य का अनुसरण करने वालों को वे निकाल देते हैं और उन पर आक्रमण करते हैं
तुम लोगों को मसीह-विरोधियों को पहचानना सीखना होगा। कभी भी यदि तुम मसीह-विरोधी को गंभीरता से नहीं लेते, तो खतरे में रहोगे, और कौन जानता है कि कब या किस अवसर पर तुम उनके द्वारा गुमराह हो जाओगे। बिना यह जाने कि क्या हो रहा है, भ्रमित तरीके से तुम मसीह-विरोधी का अनुसरण भी कर सकते हो। उस समय तुम्हें नहीं लगेगा कि इसमें कुछ भी गलत है, और यह भी लगेगा कि यह मसीह-विरोधी जो कहता है वह सही है—इस तरह से तुम अनजाने ही गुमराह हो जाओगे। तुम्हारे गुमराह हो जाने का तथ्य बताता है कि तुमने परमेश्वर को धोखा दिया है, और फिर परमेश्वर के पास तुम्हें बचाने का कोई रास्ता नहीं होगा। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो आम तौर पर अच्छा प्रदर्शन करते हैं, लेकिन यह कुछ समय के लिए होता है, वे मसीह-विरोधियों के झाँसे में आ जाते हैं, और अंत में कलीसिया उन्हें गलत काम करने से रोक कर और संगति के माध्यम से वापस ले आती है। लेकिन, कुछ ऐसे भी हैं जो सत्य की कितनी भी संगति किए जाने के बाद भी वापस नहीं आते, और वे मसीह-विरोधियों के साथ जाने पर आमादा हो जाते हैं—क्या तब वे पूरी तरह से बर्बाद नहीं हो जाते हैं? वे दृढ़ता से वापस आने से इनकार करते हैं, और उसके बाद परमेश्वर उन पर और काम नहीं करता। कुछ लोगों में समझ की कमी होती है, और वे इस तरह के व्यक्ति के लिए दुःखी होते हैं, कहते हैं, “वह व्यक्ति बहुत अच्छा है : उसने कई वर्षों तक परमेश्वर पर विश्वास किया है, और चीजों को त्यागा है, खुद को खपाया है; वह अपना कर्तव्य पूरी निष्ठा से निभाता था, परमेश्वर में उसकी आस्था बहुत ज्यादा थी, और वह सच्चा विश्वासी था—क्या हमें उसे एक और मौका नहीं देना चाहिए?” क्या यह दृष्टिकोण सही है? क्या यह सत्य के अनुरूप है? लोग किसी दूसरे व्यक्ति की केवल ऊपरी सतह देख सकते हैं, उसके हृदय को नहीं देख सकते; वे स्पष्ट रूप से नहीं देख सकते कि वह वास्तव में किस प्रकार का व्यक्ति है, या उसमें किस प्रकार का सार है। उनकी असलियत जान पाने के लिए उन्हें उस व्यक्ति के संपर्क में रहना चाहिए या कुछ समय के लिए उसे ध्यान से देखना चाहिए, और उस व्यक्ति को ऐसी घटनाओं का सामना करना चाहिए जो उनका खुलासा करती हों। इसके अलावा, यदि तुम अपने हृदय की अच्छाई के कारण इन लोगों की मदद करने की कोशिश करते हो, लेकिन तुम उनके साथ चाहे जितनी भी संगति कर लो, वे नहीं लौटते हैं तो तुम नहीं जान पाओगे कि इसके पीछे क्या कारण हैं। वास्तव में, परमेश्वर ने पहले ही इन लोगों को परख लिया है और उन्हें हटा दिया है। परमेश्वर ने उन्हें क्यों हटाया? इसका सबसे सीधा कारण यह है कि कुछ मसीह-विरोधी स्पष्ट रूप से दुष्ट आत्माएँ हैं, और उन्हें ऐसे मसीह-विरोधियों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है जिनमें दुष्ट आत्माएँ सक्रिय हैं। यदि लोग कुछ समय तक उनका अनुसरण करते हैं, तो उनके हृदय अंधकारमय हो जाएँगे, और वे इतने कमजोर हो जाएँगे कि वे टूट जाएँगे, जो साबित करता है कि परमेश्वर ने बहुत पहले ही उनसे हार मान ली है। परमेश्वर का स्वभाव धार्मिक है, और वह शैतान से घृणा करता है। चूँकि ये लोग शैतान और दुष्ट आत्माओं का अनुसरण करते हैं, तो क्या परमेश्वर फिर भी उन्हें अपने अनुयायी के रूप में स्वीकार कर सकता है? परमेश्वर पवित्र है और बुराई से अत्यधिक घृणा करता है। वह उन लोगों को नहीं चाहता जो दुष्ट आत्माओं का अनुसरण करते हैं; भले ही दूसरे लोग सोचते हों कि वे अच्छे लोग हैं, लेकिन वह उन्हें नहीं चाहता है। इसका क्या अर्थ है कि परमेश्वर बुराई से अत्यधिक घृणा करता है? “बुराई से अत्यधिक घृणा करना” क्या प्रदर्शित करता है? मैं अब जो कहता हूँ उसे सुनो, और तुम लोग समझ जाओगे। जब परमेश्वर किसी व्यक्ति को चुनता है, तब से लेकर जब तक वह व्यक्ति यह स्वीकार नहीं कर लेता कि परमेश्वर ही सत्य, धार्मिकता, बुद्धि और सर्वशक्तिमान है, कि वह एकमात्र है—एक बार जब व्यक्ति इन चीजों को समझ लेता है, और कुछ अनुभव प्राप्त कर लेता है, तो उसके हृदय की गहराई में परमेश्वर के स्वभाव, सार और उसके पास जो है और जो वह है, इसकी एक बुनियादी समझ हो जाती है, और यह बुनियादी समझ उसकी आस्था बन जाती है। यह आस्था लोगों को परमेश्वर का अनुसरण करने, परमेश्वर के लिए खुद को खपाने और अपना कर्तव्य निभाने के लिए भी प्रेरित करती है। एक बार जब उन्हें अनुभव हो जाता है, सत्य की समझ हो जाती है, और परमेश्वर के स्वभाव की उनकी समझ और परमेश्वर के बारे में ज्ञान उनके हृदय में जड़ जमा लेता है—जब उन्हें यह आध्यात्मिक कद मिल जाता है—तो वे परमेश्वर को अस्वीकार नहीं करेंगे। लेकिन अगर उन्हें मसीह, व्यावहारिक परमेश्वर का सच्चा ज्ञान नहीं है, और अगर वे मसीह-विरोधी की आराधना और उसका अनुसरण कर सकते हैं, तो वे अभी भी खतरे में हैं। वे अभी भी दुष्ट मसीह-विरोधी का अनुसरण करने के लिए देहधारी मसीह से मुँह मोड़ सकते हैं। यह खुले तौर पर मसीह को नकारना और परमेश्वर के साथ संबंध तोड़ना होगा। इसका निहितार्थ यह है : “मैं अब परमेश्वर का अनुसरण नहीं करता—मैं शैतान का अनुसरण करता हूँ। मैं शैतान से प्रेम करता हूँ और मैं उसकी सेवा करने के लिए तैयार हूँ; मैं शैतान का अनुसरण करने के लिए तैयार हूँ। वह मेरे साथ चाहे जैसा व्यवहार करे, मुझे कैसे भी बर्बाद करे, रौंदे और भ्रष्ट करे, मैं पूरी तरह से तैयार हूँ। परमेश्वर चाहे जितना भी धार्मिक और पवित्र क्यों न हो, चाहे वह कितना भी सत्य व्यक्त करे, मैं उसका अनुसरण करने के लिए तैयार नहीं हूँ। मुझे सत्य पसंद नहीं है। मैं भले ही प्रसिद्धि, हैसियत, पुरस्कार और मुकुट हासिल न कर सकूँ, पर मुझे ये पसंद हैं।” और बिल्कुल इस तरह, वे एक ऐसे व्यक्ति का अनुसरण करते हैं जिसका उनसे कोई संबंध नहीं है, वे परमेश्वर का विरोध करने वाले एक मसीह-विरोधी के साथ भाग जाते हैं। क्या परमेश्वर अब भी ऐसे व्यक्ति को चाहेगा? कतई नहीं। क्या यह उचित है कि परमेश्वर उन्हें न चाहे? बहुत ज्यादा उचित है। धर्म-सिद्धांत से तुम जानते हो कि परमेश्वर ऐसा परमेश्वर है जो बुराई से अत्यधिक घृणा करता है, और वह पवित्र है। तुम यह धर्म-सिद्धांत समझते हो, लेकिन क्या तुम जानते हो कि परमेश्वर इस तरह के लोगों के साथ कैसा व्यवहार करता है? यदि परमेश्वर किसी का तिरस्कार करता है, तो वह बिना किसी हिचकिचाहट के उसे त्याग देता है। क्या मैं जो कह रहा हूँ चीजें वैसी ही नहीं है? (ऐसी ही हैं।) चीजें ऐसी ही हैं। तो, क्या परमेश्वर द्वारा ऐसे व्यक्ति को त्यागने का अर्थ यह है कि उसका हृदय क्रूर है? (नहीं।) परमेश्वर सिद्धांतों से अपने कार्य करता है। यदि तुम जानते हो कि परमेश्वर कौन है, लेकिन तुम्हें उसका अनुसरण करना पसंद नहीं है—यदि तुम जानते हो कि शैतान कौन है, फिर भी तुम उसका अनुसरण करने पर जोर देते हो—तो परमेश्वर तुम पर दबाव नहीं डालेगा। जाओ, और हमेशा शैतान का अनुसरण करो। वापस मत आना; परमेश्वर ने तुम्हें त्याग दिया है। कोई परमेश्वर के स्वभाव को कैसे समझ सकता है? परमेश्वर का स्वभाव धार्मिक और पवित्र है, और उसके स्वभाव में एक तत्व है जो बुराई से अत्यधिक घृणा करता है। दूसरे शब्दों में, यदि सृजित प्राणी के रूप में, तुम भ्रष्ट होने के लिए तैयार हो, तो परमेश्वर और क्या कह सकता है? परमेश्वर कभी भी लोगों को ऐसी चीजें करने के लिए बाध्य नहीं करता है जो वे करने के लिए तैयार न हों। वह कभी भी लोगों को सत्य स्वीकार करने के लिए मजबूर नहीं करता। यदि तुम भ्रष्ट होना चाहते हो, तो यह तुम्हारी व्यक्तिगत पसंद है—अंततः परिणाम तुम्हीं को भुगतने हैं, और केवल खुद तुम ही इसके दोषी होगे। लोगों के साथ व्यवहार के परमेश्वर के सिद्धांत अपरिवर्तनीय हैं, इसलिए यदि तुम भ्रष्टता से खुश हो, तो दंडित होना तुम्हारा अपरिहार्य अंत है। इससे फर्क नहीं पड़ता कि तुमने कितने वर्षों तक परमेश्वर का अनुसरण किया है; यदि तुम अनैतिक होना चाहते हो, तो परमेश्वर तुम्हें पश्चाताप करने के लिए बाध्य नहीं करेगा। यह तुम ही हो जो शैतान का अनुसरण करने, शैतान द्वारा गुमराह होने और बर्बाद होने के लिए तैयार है, और इसलिए, अंत में, यह तुम ही होगे जिसे परिणाम भुगतने होंगे।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद सात : वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (भाग दो)
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