15. धार्मिक जगत की धारणा कि: “प्रभु यीशु जब लौटेगा तो वह पुरुष होगा न कि महिला”
धार्मिक जगत मानता है कि चूंकि प्रभु यीशु पुरुष है, इसलिए जब वह लौटेगा तब भी वह पुरुष ही होगा, महिला नहीं।
बाइबल से उद्धृत वचन
“तब परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्वर ने उसको उत्पन्न किया; नर और नारी करके उसने मनुष्यों की सृष्टि की” (उत्पत्ति 1:27)।
अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन
जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर का सार होगा और जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर की अभिव्यक्ति होगी। चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उस कार्य को सामने लाएगा, जो वह करना चाहता है, और चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उसे अभिव्यक्त करेगा जो वह है और वह मनुष्य के लिए सत्य को लाने, उसे जीवन प्रदान करने और उसे मार्ग दिखाने में सक्षम होगा। जिस देह में परमेश्वर का सार नहीं है, वह निश्चित रूप से देहधारी परमेश्वर नहीं है; इसमें कोई संदेह नहीं। अगर मनुष्य यह पता करना चाहता है कि क्या यह देहधारी परमेश्वर है, तो इसकी पुष्टि उसे उसके द्वारा अभिव्यक्त स्वभाव और उसके द्वारा बोले गए वचनों से करनी चाहिए। इसे ऐसे कहें, व्यक्ति को इस बात का निश्चय कि यह देहधारी परमेश्वर है या नहीं और कि यह सही मार्ग है या नहीं, उसके सार से करना चाहिए। और इसलिए, यह निर्धारित करने की कुंजी कि यह देहधारी परमेश्वर की देह है या नहीं, उसके बाहरी स्वरूप के बजाय उसके सार (उसका कार्य, उसके कथन, उसका स्वभाव और कई अन्य पहलू) में निहित है। यदि मनुष्य केवल उसके बाहरी स्वरूप की ही जाँच करता है, और परिणामस्वरूप उसके सार की अनदेखी करता है, तो इससे उसके अनाड़ी और अज्ञानी होने का पता चलता है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना
परमेश्वर द्वारा किए गए कार्य के प्रत्येक चरण के अपने व्यवहारिक मायने हैं। जब यीशु का आगमन हुआ, तो वह पुरुष रूप में आया, लेकिन इस बार के आगमन में परमेश्वर, स्त्री रूप में आता है। इससे तुम देख सकते हो कि परमेश्वर द्वारा पुरुष और स्त्री, दोनों का ही सृजन उसके काम के लिए उपयोगी हो सकता है, वह कोई लिंग-भेद नहीं करता। जब उसका आत्मा आता है, तो वह इच्छानुसार किसी भी देह को धारण कर सकता है और वही देह उसका प्रतिनिधित्व करता है; चाहे पुरुष हो या स्त्री, दोनों ही परमेश्वर का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं, यदि यह उसका देहधारी शरीर है। यदि यीशु स्त्री के रूप में आ जाता, यानी अगर पवित्र आत्मा ने लड़के के बजाय लड़की के रूप में गर्भधारण किया होता, तब भी कार्य का वह चरण उसी तरह से पूरा किया गया होता। और यदि ऐसा होता, तो कार्य का वर्तमान चरण पुरुष के द्वारा पूरा किया जाता और कार्य उसी तरह से पूरा किया जाता। प्रत्येक चरण में किए गए कार्य का अपना अर्थ है; कार्य का कोई भी चरण दोहराया नहीं जाता है या एक-दूसरे का विरोध नहीं करता है। उस समय जब यीशु कार्य कर रहा था, तो उसे इकलौता पुत्र कहा गया, और “पुत्र” का अर्थ है पुरुष लिंग। तो फिर इस चरण में इकलौते पुत्र का उल्लेख क्यों नहीं किया जाता है? क्योंकि कार्य की आवश्यकताओं ने लिंग में बदलाव को आवश्यक बना दिया जो यीशु के लिंग से भिन्न हो। परमेश्वर लिंग के बारे में कोई भेदभाव नहीं करता। वह अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करता है, और अपने कार्य को करते समय उस पर किसी तरह का कोई प्रतिबंध नहीं होता, वह स्वतंत्र होता है, परन्तु कार्य के प्रत्येक चरण के अपने ही व्यवहारिक मायने होते हैं। परमेश्वर ने दो बार देहधारण किया, और यह स्वतः प्रमाणित है कि अंत के दिनों में उसका देहधारण अंतिम है। वह अपने सभी कर्मों को प्रकट करने के लिए आया है। यदि इस चरण में वह व्यक्तिगत रूप से कार्य करने के लिए देहधारण नहीं करता जिसे मनुष्य देख सके, तो मनुष्य हमेशा के लिए यही धारणा बनाए रखता कि परमेश्वर सिर्फ पुरुष है, स्त्री नहीं। इससे पहले, सब मानते थे कि परमेश्वर सिर्फ पुरुष ही हो सकता है, किसी स्त्री को परमेश्वर नहीं कहा जा सकता, क्योंकि सारी मानवजाति मानती थी कि पुरुषों का स्त्रियों पर अधिकार होता है। वे मानते थे कि किसी स्त्री के पास अधिकार नहीं हो सकता, अधिकार सिर्फ पुरुष के पास ही हो सकता है। वे तो यहाँ तक कहते थे कि पुरुष स्त्री का मुखिया होता है, स्त्री को पुरुष की आज्ञा का पालन करना चाहिए और वह उससे श्रेष्ठ नहीं हो सकती। अतीत में जब ऐसा कहा गया कि पुरुष स्त्री का मुखिया है, तो यह आदम और हव्वा के संबंध में कहा गया था जिन्हें सर्प के द्वारा छला गया था—न कि उस पुरुष और स्त्री के बारे में जिन्हें आरंभ में यहोवा ने रचा था। निस्संदेह, स्त्री को अपने पति का आज्ञापालन और उससे प्रेम करना चाहिए, उसी तरह पुरुष को अपने परिवार का भरण-पोषण करना आना चाहिए। ये वे नियम और आदेश हैं जिन्हें यहोवा ने बनाया, जिनका इंसान को धरती पर अपने जीवन में पालन करना चाहिए। यहोवा ने स्त्री से कहा, “तेरी लालसा तेरे पति की ओर होगी, और वह तुझ पर प्रभुता करेगा।” उसने यह सिर्फ इसलिए कहा ताकि मानवजाति (अर्थात् पुरुष और स्त्री दोनों) यहोवा के प्रभुत्व में सामान्य जीवन जी सकें, ताकि मानवजाति के जीवन की एक संरचना हो और वह अपने व्यवस्थित क्रम में ही रहे। इसलिए यहोवा ने उपयुक्त नियम बनाए कि पुरुष और स्त्री को किस तरह व्यवहार करना चाहिए, हालाँकि ये सब पृथ्वी पर रहने वाले प्राणीमात्र के सन्दर्भ में थे, न कि देहधारी परमेश्वर के देह के सन्दर्भ में। परमेश्वर अपनी ही सृष्टि के समान कैसे हो सकता था? उसके वचन सिर्फ उसके द्वारा रची गई मानवजाति के लिए थे; पुरुष और स्त्री के लिए उसने ये नियम इसलिए स्थापित किए थे ताकि मानवजाति सामान्य जीवन जी सके। आरंभ में, जब यहोवा ने मानवजाति का सृजन किया, तो उसने दो प्रकार के मनुष्य बनाए, पुरुष और स्त्री; इसलिए, उसके देहधारी शरीर में पुरुष और स्त्री का भेद किया गया। उसने अपना कार्य आदम और हव्वा को बोले गए वचनों के आधार पर तय नहीं किया। दोनों बार जब उसने देहधारण किया तो यह पूरी तरह से उसकी तब की सोच के अनुसार निर्धारित किया गया जब उसने सबसे पहले मानवजाति की रचना की थी; अर्थात्, उसने अपने दो देहधारणों के कार्य को उन पुरुष और स्त्री के आधार पर पूरा किया जिन्हें तब तक भ्रष्ट नहीं किया गया था। ... जब यहोवा ने दो बार देहधारण किया, तो उसके देहधारण का लिंग उन पुरुष और स्त्री से संबंधित था जिन्हें सर्प के द्वारा छला नहीं गया था; उसने दो बार ऐसे पुरुष और स्त्री के अनुरूप देहधारण किया जिन्हें सर्प के द्वारा नहीं छला गया था। ऐसा न सोचो कि यीशु का पुरुषत्व वैसा ही था जैसा कि आदम का था, जिसे सर्प के द्वारा छला गया था। उन दोनों का कोई संबंध नहीं है, दोनों भिन्न प्रकृति के पुरुष हैं। निश्चय ही ऐसा तो नहीं हो सकता कि यीशु का पुरुषत्व यह साबित करे कि वह सिर्फ स्त्रियों का ही मुखिया है पुरुषों का नहीं? क्या वह सभी यहूदियों (पुरुषों और स्त्रियों सहित) का राजा नहीं है? वह स्वयं परमेश्वर है, वह न सिर्फ स्त्री का मुखिया है बल्कि पुरुष का भी मुखिया है। वह सभी सृजित प्राणियों का प्रभु है, सभी सृजित प्राणियों का मुखिया है। तुम यीशु के पुरुषत्व को स्त्री के मुखिया का प्रतीक कैसे निर्धारित कर सकते हो? क्या यह ईशनिंदा नहीं है? यीशु ऐसा पुरुष है जिसे भ्रष्ट नहीं किया गया है। वह परमेश्वर है; वह मसीह है; वह प्रभु है। वह आदम की तरह का पुरुष कैसे हो सकता है जो भ्रष्ट हो गया था? यीशु वह देह है जिसे परमेश्वर के अति पवित्र आत्मा ने धारण किया हुआ है। तुम यह कैसे कह सकते हो कि वह ऐसा परमेश्वर है जो आदम के पुरुषत्व को धारण किए हुए है? उस स्थिति में, क्या परमेश्वर का समस्त कार्य गलत नहीं हो गया होता? क्या यहोवा ने यीशु के भीतर उस आदम के पुरुषत्व को समाविष्ट किया होगा जिसे सर्प द्वारा छला गया था? क्या वर्तमान देहधारण देहधारी परमेश्वर के कार्य का दूसरा उदाहरण नहीं है जो कि यीशु के लिंग से भिन्न परन्तु प्रकृति में यीशु के ही समान है? क्या तुम अब भी यह कहने का साहस करते हो कि देहधारी परमेश्वर स्त्री नहीं हो सकता क्योंकि स्त्री ही सबसे पहले सर्प के द्वारा छली गई थी? क्या तुम अब भी यह बात कह सकते हो कि चूँकि स्त्री सबसे अधिक अशुद्ध होती है और मानवजाति की भ्रष्टता का मूल है, इसलिए परमेश्वर संभवतः एक स्त्री के रूप में देह धारण नहीं कर सकता? क्या तुम अब भी यह कह सकते हो कि “स्त्री हमेशा पुरुष का आज्ञापालन करेगी और कभी भी परमेश्वर को अभिव्यक्त या प्रत्यक्ष रूप से उसका प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती?”
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, दो देहधारण पूरा करते हैं देहधारण के मायने
यदि परमेश्वर केवल एक पुरुष के रूप में देह में आए, तो लोग उसे पुरुष के रूप में, पुरुषों के परमेश्वर के रूप में परिभाषित करेंगे, और कभी विश्वास नहीं करेंगे कि वह महिलाओं का परमेश्वर है। तब पुरुष यह मानेंगे कि परमेश्वर पुरुषों के समान लिंग का है, कि परमेश्वर पुरुषों का प्रमुख है—लेकिन फिर महिलाओं का क्या? यह अनुचित है; क्या यह पक्षपातपूर्ण व्यवहार नहीं है? यदि यही मामला होता, तो वे सभी लोग जिन्हें परमेश्वर ने बचाया, उसके समान पुरुष होते, और एक भी महिला नहीं बचाई गई होती। जब परमेश्वर ने मानवजाति का सृजन किया, तो उसने आदम को बनाया और उसने हव्वा को बनाया। उसने न केवल आदम को बनाया, बल्कि पुरुष और महिला दोनों को अपनी छवि में बनाया। परमेश्वर केवल पुरुषों का ही परमेश्वर नहीं है—वह महिलाओं का भी परमेश्वर है। परमेश्वर अंत के दिनों में कार्य के एक नए चरण में प्रवेश करता है। वह अपने स्वभाव को और अधिक प्रकट करेगा, और वह यीशु के समय की करुणा और प्रेम नहीं होगा। चूँकि उसके हाथ में नया कार्य है, इसलिए इस नए कार्य के साथ एक नया स्वभाव होगा। ... परमेश्वर वास्तव में और सच में मनुष्यों के बीच रहता है। वह मूर्त है; मनुष्य वास्तव में उसके स्वभाव के साथ जुड़ सकता है, उसके स्वरूप के साथ जुड़ सकता है; केवल इसी तरह से मनुष्य वास्तव में उसे जान सकता है। इसके साथ-साथ, परमेश्वर ने वह कार्य भी पूरा कर लिया है, जिसमें “परमेश्वर पुरुषों का परमेश्वर है और महिलाओं का परमेश्वर है,” और उसने देह में अपने कार्य की समग्रता को संपन्न कर लिया है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)
यदि मात्र यीशु का कार्य किया गया होता और अंत के दिनों में इस चरण का कार्य इसका पूरक न होता, तो मनुष्य हमेशा के लिए इस अवधारणा से चिपका रहता कि केवल यीशु ही परमेश्वर का पुत्र है, अर्थात्, परमेश्वर का सिर्फ एक ही पुत्र है, यदि उसके बाद कोई किसी दूसरे नाम से आता है तो वह परमेश्वर का एकमात्र पुत्र नहीं होगा, स्वयं परमेश्वर तो बिल्कुल भी नहीं होगा। मनुष्य की यह अवधारणा है कि जो कोई भी पापबलि बनता है या जो परमेश्वर की ओर से सामर्थ्य ग्रहण करता है और समस्त मानवजाति को छुटकारा दिलाता है, वही परमेश्वर का एकमात्र पुत्र है। कुछ ऐसे भी हैं जो यह मानते हैं कि यदि आने वाला कोई पुरुष है, तो उसे ही परमेश्वर का एकमात्र पुत्र और परमेश्वर का प्रतिनिधि समझा जा सकता है। कुछ तो यहाँ तक कहते हैं कि यीशु यहोवा का पुत्र है, उसका एकमात्र पुत्र है। क्या मनुष्य की ऐसी अवधारणाएँ अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं हैं? यदि कार्य का यह चरण अंत के युग में न किया गया होता, तो जब परमेश्वर की बात आती तो समस्त मानवजाति एक काली परछाईं में ढकी होती। यदि ऐसा होता, तो पुरुष अपने आपको स्त्री से श्रेष्ठ समझता, और स्त्रियाँ कभी अपना सिर ऊँचा नहीं उठा पातीं, और तब एक भी स्त्री को बचाना संभव न होता। लोग हमेशा यही मानते हैं कि परमेश्वर पुरुष है, वह हमेशा से स्त्री से घृणा करता रहा है और कभी उसका उद्धार नहीं करेगा। यदि ऐसा होता, तो क्या यह सच नहीं है कि यहोवा द्वारा रची गयी सभी स्त्रियाँ, जो भ्रष्ट भी की जा चुकी हैं, उन्हें कभी भी बचाए जाने का अवसर न मिलता? तो क्या यहोवा के लिए स्त्री यानी हव्वा की रचना करना व्यर्थ नहीं हो गया होता? और क्या स्त्री अनंतकाल के लिए नष्ट नहीं हो जाती? इसलिए, अंत के दिनों में कार्य का यह चरण समस्त मानवजाति को बचाने के लिए किया जाता है, न कि सिर्फ स्त्री को। यदि कोई यह सोचता है कि अगर परमेश्वर ने स्त्री के रूप में देहधारण किया, और वह मात्र स्त्रियों को बचाने के लिये होगा, तो वह व्यक्ति सचमुच बेवकूफ़ है!
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, दो देहधारण पूरा करते हैं देहधारण के मायने
यीशु और मैं एक ही पवित्रात्मा से आते हैं। यद्यपि हमारे देह एक-दूसरे से जुड़े नहीं है, किन्तु हमारा आत्मा एक ही है; यद्यपि हमारे कार्य की विषयवस्तु और हम जो कार्य करते हैं, वे एक नहीं हैं, तब भी सार रूप में हम समान हैं; हमारे देह भिन्न रूप धारण करते हैं, लेकिन यह युग में परिवर्तन और हमारे कार्य की भिन्न आवश्यकताओं के कारण है; हमारी सेवकाई एक जैसी नहीं है, इसलिए जो कार्य हम आगे लाते हैं और जिस स्वभाव को हम मनुष्य पर प्रकट करते हैं, वे भी भिन्न हैं। यही कारण है कि आज मनुष्य जो देखता और समझता है वह अतीत के समान नहीं है; ऐसा युग में बदलाव के कारण है। यद्यपि उनके देह के लिंग और रूप भिन्न-भिन्न हैं, और वे दोनों एक ही परिवार में नहीं जन्मे हैं, उसी समयावधि में तो बिल्कुल नहीं, किन्तु फिर भी उनके आत्मा एक ही हैं। यद्यपि उनके देह किसी प्रकार के रक्त या भौतिक संबंध साझा नहीं करते, पर इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि वे भिन्न-भिन्न समयावधियों में परमेश्वर के देहधारण हैं। यह एक निर्विवाद सत्य है कि वे परमेश्वर के द्वारा धारित देह हैं। यद्यपि वे एक ही व्यक्ति के वंशज या एक ही भाषा (एक पुरुष था जो यहूदियों की भाषा बोलता था और दूसरा शरीर स्त्री है जो सिर्फ चीनी भाषा बोलता है) साझा नहीं करते। इन्हीं कारणों से उन्हें जो कार्य करना चाहिए, उसे वे भिन्न-भिन्न देशों में, और साथ ही भिन्न-भिन्न समयावधियों में करते हैं। इस तथ्य के बावजूद वे एक ही आत्मा हैं, उनका सार एक ही है, लेकिन उनके देह के बाहरी आवरणों में कोई समानता नहीं है। बस उनकी मानवता समान है, परन्तु जहाँ तक उनके देह के प्रकटन और जन्म की परिस्थितियों की बात है, वे दोनों समान नहीं हैं। इनका उनके अपने-अपने कार्य या मनुष्य के पास उनके बारे में जो ज्ञान है, उस पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता, क्योंकि आखिरकार, वे आत्मा तो एक ही हैं और उन्हें कोई अलग नहीं कर सकता। यद्यपि उनका रक्त-संबंध नहीं है, किन्तु उनका सम्पूर्ण अस्तित्व उनके आत्मा द्वारा निर्देशित होता है, जो उन्हें अलग-अलग समय में अलग-अलग कार्य देता है और उनके देह के अलग-अलग रक्त-संबंध हैं। यहोवा का आत्मा यीशु के आत्मा का पिता नहीं है, यीशु का आत्मा यहोवा के आत्मा का पुत्र नहीं है : वे एक ही आत्मा हैं। उसी तरह, आज के देहधारी परमेश्वर और यीशु में कोई रक्त-संबंध नहीं है, लेकिन वे हैं एक ही, क्योंकि उनके आत्मा एक ही हैं। परमेश्वर दया और करुणा का, और साथ ही धार्मिक न्याय का, मनुष्य की ताड़ना का, और मनुष्य को श्राप देने का कार्य कर सकता है; अंत में, वह संसार को नष्ट करने और दुष्टों को सज़ा देने का कार्य कर सकता है। क्या वह यह सब स्वयं नहीं करता? क्या यह परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता नहीं है?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, दो देहधारण पूरा करते हैं देहधारण के मायने
मनुष्यों के बीच मैं वह पवित्रात्मा था, जिसे वे देख नहीं सकते थे, वह पवित्रात्मा जिसके साथ वे कभी जुड़ नहीं सकते थे। पृथ्वी पर अपने कार्य के तीन चरणों (संसार का सृजन, छुटकारा और विनाश) के कारण, मैं उनके बीच अपना कार्य करने के लिए भिन्न-भिन्न समयों पर प्रकट हुआ हूँ (सार्वजनिक रूप से कभी नहीं)। पहली बार मैं उनके बीच छुटकारे के युग के दौरान आया था। निस्संदेह मैं यहूदी परिवार में आया; इसलिए पृथ्वी पर परमेश्वर का आगमन देखने वाले पहले लोग यहूदी थे। मैंने इस कार्य को व्यक्तिगत रूप से इसलिए किया, क्योंकि छुटकारे के अपने कार्य में मैं अपने देहधारी शरीर का उपयोग पापबलि के रूप में करना चाहता था। इस प्रकार मुझे सबसे पहले देखने वाले अनुग्रह के युग के यहूदी थे। यह पहली बार था, जब मैंने देह में कार्य किया था। राज्य के युग में मेरा कार्य जीतना और पूर्ण बनाना है, इसलिए मैं पुनः देह में चरवाही का कार्य करता हूँ। यह दूसरी बार है, जब मैं देह में कार्य कर रहा हूँ। कार्य के अंतिम दो चरणों में लोग जिसके साथ जुड़ते हैं, वह अदृश्य, अमूर्त पवित्रात्मा नहीं है, बल्कि एक व्यक्ति है जो देह के रूप में साकार पवित्रात्मा है। इस प्रकार, मनुष्य की नजरों में मैं पुनः इंसान बन जाता हूँ, जिसमें परमेश्वर के रूप और एहसास का लेशमात्र भी नहीं है। इतना ही नहीं, जिस परमेश्वर को लोग देखते हैं, वह न सिर्फ नर, बल्कि नारी भी है, जो उनके लिए सबसे अधिक विस्मयकारी और उलझन में डालने वाला है। मेरे असाधारण कार्य ने कई-कई वर्षों से चले आ रहे पुराने विश्वास चूर-चूर कर दिए हैं। लोग अवाक् रह गए हैं! परमेश्वर केवल पवित्र आत्मा, पवित्रात्मा, सात गुना तीव्र पवित्रात्मा या सर्व-व्यापी पवित्रात्मा ही नहीं है, बल्कि एक मनुष्य भी है—एक साधारण मनुष्य, एक अत्यधिक सामान्य मनुष्य। वह नर ही नहीं, नारी भी है। वे इस बात में एक-समान हैं कि वे दोनों ही मनुष्यों से जन्मे हैं, और इस बात में असमान हैं कि एक पवित्र आत्मा द्वारा गर्भ में आया और दूसरा मनुष्य से जन्मा किंतु सीधे पवित्रात्मा से उत्पन्न है। वे इस बात में एक-समान हैं कि परमेश्वर द्वारा धारित दोनों देह परमपिता परमेश्वर का कार्य करते हैं, और असमान इस बात में हैं कि एक ने छुटकारे का कार्य किया, जबकि दूसरा विजय का कार्य करता है। दोनों परमपिता परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन एक प्रेममय-करुणा और दयालुता से भरा मुक्तिदाता है और दूसरा कोप और न्याय से भरा धार्मिकता का परमेश्वर है। एक सर्वोच्च सेनापति है जिसने छुटकारे का कार्य आरंभ किया, जबकि दूसरा धार्मिक परमेश्वर है जो विजय का कार्य संपन्न करता है। एक आरंभ है, दूसरा अंत। एक निष्पाप देह है, दूसरा वह देह जो छुटकारे को पूरा करता है, कार्य जारी रखता है और कभी भी पापी नहीं है। दोनों एक ही पवित्रात्मा हैं, लेकिन वे भिन्न-भिन्न देहों में वास करते हैं और भिन्न-भिन्न स्थानों पर पैदा हुए थे और उनके बीच कई हजार वर्षों का अंतर है। फिर भी उनका संपूर्ण कार्य एक-दूसरे का पूरक है, कभी परस्पर-विरोधी नहीं है, और एक-दूसरे के तुल्य है। दोनों ही मनुष्य हैं, लेकिन एक बालक था और दूसरी बालिका। इन तमाम वर्षों में लोगों ने न सिर्फ पवित्रात्मा को और न सिर्फ एक मनुष्य, एक नर को देखा है, बल्कि कई ऐसी चीजें भी देखी हैं, जो मानव-धारणाओं से मेल नहीं खातीं; इसलिए मनुष्य मुझे कभी पूरी तरह नहीं समझ पाते। वे मुझ पर आधा विश्वास और आधा संदेह करते रहते हैं—मानो मेरा अस्तित्व भी हो, लेकिन मैं एक मायावी सपना भी हूँ—यही कारण है कि आज तक भी लोग नहीं जानते कि परमेश्वर क्या है। क्या तुम वास्तव में मुझे एक सरल वाक्य में समेट सकते हो? क्या तुम सचमुच यह कहने का साहस करते हो, “यीशु और कोई नहीं बल्कि परमेश्वर है, और परमेश्वर और कोई नहीं बल्कि यीशु है”? क्या तुम सचमुच इतने निर्भीक हो कि यह कह सको, “परमेश्वर और कोई नहीं बल्कि पवित्रात्मा है, और पवित्रात्मा और कोई नहीं बल्कि परमेश्वर है”? क्या तुम सहजता से कह सकते हो, “परमेश्वर केवल देहधारी मनुष्य है”? क्या तुममें सचमुच दृढ़तापूर्वक यह कहने का साहस है, “यीशु की छवि परमेश्वर की महान छवि है”? क्या तुम अपनी वाक्पटुता का उपयोग करके परमेश्वर के स्वभाव और छवि को पूर्ण रूप से समझाने में सक्षम हो? क्या तुम वास्तव में यह कहने की हिम्मत करते हो, “परमेश्वर ने अपनी छवि के अनुरूप सिर्फ नरों की रचना की, नारियों की नहीं”? अगर तुम ऐसा कहते हो, तो फिर मेरे चुने हुए लोगों के बीच कोई नारी नहीं होगी, नारियाँ मानवजाति का एक वर्ग तो बिल्कुल भी नहीं होंगी। क्या अब तुम वास्तव में जानते हो कि परमेश्वर क्या है? क्या परमेश्वर मनुष्य है? क्या परमेश्वर पवित्रात्मा है? क्या परमेश्वर वास्तव में नर है? क्या जो कार्य मुझे करना है, वह केवल यीशु ही पूरा कर सकता है? अगर तुम मेरा सार प्रस्तुत करने के लिए उपर्युक्त में से केवल एक को ही चुनते हो, तो फिर तुम एक अत्यंत अज्ञानी निष्ठावान विश्वासी हो। अगर मैं एक बार, और केवल एक बार, देहधारी के रूप में कार्य करता, तो क्या तुम लोग मेरा सीमांकन करते? क्या तुम सचमुच एक झलक में मुझे पूरी तरह समझ सकते हो? क्या तुम वास्तव में मुझे अपने जीवनकाल के दौरान अनुभव की गई चीजों के आधार पर पूरी तरह से समेट सकते हो? अगर मैं अपने दोनों देहधारणों में एक-जैसा कार्य करता, तो तुम मुझे किस तरह देखते? क्या तुम मुझे हमेशा के लिए सलीब पर कीलों से जड़ा छोड़ दोगे? क्या परमेश्वर उतना सरल हो सकता है, जितना तुम दावा करते हो?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के बारे में तुम्हारी समझ क्या है?
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