16. ऐसा क्यों कहा जाता है कि कर्तव्य पालन से लोगों का सबसे अच्छी तरह से प्रकाशन होता है
अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन
परमेश्वर के सभी चुने हुए लोग अब अपने कर्तव्यों का पालन करने का अभ्यास कर रहे हैं, परमेश्वर लोगों के एक समूह को पूर्ण करने और दूसरे को निकालने के लिए उनके कर्तव्यों के प्रदर्शन का उपयोग करता है। तो यह कर्तव्य-प्रदर्शन ही है, जो हर तरह के व्यक्ति को प्रकट कर देता है, और हर तरह का कपटी, गैर-विश्वासी और दुष्ट व्यक्ति अपने कर्तव्य-प्रदर्शन में प्रकट हो जाता और निकाल दिया जाता है। पूरी वफादारी से अपने कर्तव्य निभाने वाले लोग ईमानदार होते हैं; निरंतर अपने कार्य में अनमने रहने वाले लोग धोखेबाज और शातिर होते हैं और वे गैर-विश्वासी होते हैं; और अपने कर्तव्य-प्रदर्शन में विघ्न-बाधाएँ पैदा करने वाले लोग दुष्ट और मसीह-विरोधी होते हैं। इस समय, कर्तव्य निभाने वाले बहुत-से लोगों में समस्याओं की एक विस्तृत शृंखला अभी भी मौजूद है। कुछ लोग अपने कर्तव्यों में हमेशा निष्क्रिय रहते हैं, हमेशा बैठे रहकर प्रतीक्षा करते हैं और दूसरों पर निर्भर रहते हैं। यह कैसा रवैया है? यह गैरजिम्मेदारी है। परमेश्वर के घर ने तुम्हारे लिए एक कर्तव्य निभाने की व्यवस्था की है, फिर भी तुम बिना कोई ठोस काम किए कई दिनों तक इस पर विचार करते हो। तुम कार्यस्थल पर कहीं दिखाई नहीं देते, और जब लोगों को समस्याएँ होती हैं जिन्हें हल करना आवश्यकता होता है, तो वे तुम्हें नहीं ढूँढ़ पाते। तुम इस कार्य का दायित्व नहीं उठाते। अगर कोई अगुआ काम के बारे में पूछता है, तो तुम उन्हें क्या बताओगे? तुम अभी किसी भी तरह का काम नहीं कर रहे। तुम अच्छी तरह से जानते हो कि यह काम तुम्हारी जिम्मेदारी है, लेकिन तुम इसे नहीं करते। आखिर तुम सोच क्या रहे हो? क्या तुम कोई काम इसलिए नहीं करते, क्योंकि तुम उसमें सक्षम नहीं हो? या तुम सिर्फ आरामतलब हो? अपने कर्तव्य के प्रति तुम्हारा क्या रवैया है? तुम केवल शब्दों और सिद्धांतों के बारे में बात करते हो और केवल कर्ण-प्रिय बातें कहते हो, लेकिन तुम कोई व्यावहारिक कार्य नहीं करते। यदि तुम अपना कर्तव्य नहीं निभाना चाहते, तो तुम्हें इस्तीफा दे देना चाहिए। निष्क्रिय रहकर पद पर मत बने रहो। क्या ऐसा करना परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नुकसान पहुँचाना और कलीसिया के काम को खतरे में डालना नहीं है? तुम जिस तरह से बातें करते हो, ऐसा लगता है जैसे तुम सभी तरह के सिद्धांत समझते हो, लेकिन जब काम करने के लिए कहा जाता है, तो तुम अनमने हो जाते हो, और जरा भी कर्तव्यनिष्ठ नहीं रहते। क्या यही परमेश्वर के लिए ईमानदारी से खुद को खपाना है? जब परमेश्वर की बात आती है तो तुम ईमानदार नहीं होते, फिर भी तुम ईमानदारी का दिखावा करते हो। क्या तुम उसे धोखा दे सकते हो? जिस तरह से तुम आमतौर पर बातचीत करते हो, ऐसा लगता है कि तुममें बहुत आस्था है; तुम कलीसिया के स्तंभ और उसकी चट्टान बनना चाहते हो। लेकिन जब तुम कोई कर्तव्य निभाते हो, तो माचिस की तीली से भी कम उपयोगी होते हो। क्या यह परमेश्वर को जान-बूझकर धोखा देना नहीं है? क्या तुम जानते हो कि तुम्हारे परमेश्वर को धोखा देने की कोशिश करने का क्या परिणाम होगा? वह तुम्हें ठुकरा देगा और तुम्हें निकाल बाहर करेगा! अपने कर्तव्य निभाने के जरिये सभी लोगों की कलई खुल जाती है—किसी व्यक्ति को बस कोई कर्तव्य सौंप दो, और तुम्हें यह जानने में अधिक समय नहीं लगेगा कि वह व्यक्ति ईमानदार है या कपटी, और वह सत्य से प्रेम करता है या नहीं। जो लोग सत्य से प्रेम करते हैं, वे ईमानदारी से अपने कर्तव्य निभा सकते हैं और परमेश्वर के घर के कार्य को बनाए रखते हैं; जो लोग सत्य से प्रेम नहीं करते, वे परमेश्वर के घर के कार्य को जरा भी बनाए नहीं रखते और वे अपने कर्तव्य निभाने में गैर-जिम्मेदार होते हैं। स्पष्टदर्शी लोगों को यह तुरंत स्पष्ट हो जाता है। अपना कर्तव्य खराब ढंग से निभाने वाला कोई भी व्यक्ति सत्य का प्रेमी या ईमानदार व्यक्ति नहीं होता; ऐसे तमाम लोग प्रकट कर निकाल दिए जाएँगे। अपने कर्तव्य अच्छी तरह से निभाने के लिए लोगों में जिम्मेदारी की भावना और दायित्व-बोध होना चाहिए। इस तरह, काम निश्चित रूप से ठीक से किया जाएगा। चिंता की बात तभी है, जब व्यक्ति में दायित्व-बोध या जिम्मेदारी की भावना न हो, जब उससे हर काम कह-कहकर करवाना पड़े, जब वह हमेशा अनमना रहे और समस्याएँ पैदा होने पर दोष दूसरों पर मढ़ने की कोशिश करे, जिससे उनके समाधान में देरी हो। तो क्या काम फिर भी ठीक से किया जा सकता है? क्या उसके कर्त्तव्य-प्रदर्शन का कोई परिणाम निकल सकता है? वह अपने लिए व्यवस्थित कोई भी काम नहीं करना चाहता, और जब देखता है कि दूसरों को अपने काम में सहायता की आवश्यकता है, तो वह नजरंदाज कर देता है। वह तभी थोड़ा-बहुत काम करता है, जब उसे आदेश दिया जाता है, जब वह लाचार हो जाता है और उसके पास कोई विकल्प नहीं रहता। यह कर्तव्य निभाना नहीं है—यह तो भाड़े का मजदूर होना है! भाड़े का मजदूर अपने मालिक के लिए काम करता है, दिहाड़ी पर काम करता है, जितने घंटे काम करता है उतने घंटे का वेतन लेता है; वह बस मजदूरी मिलने की बाट जोहता रहता है। वह ऐसा कोई काम करना नहीं चाहता जिसे मालिक न देखे, वह डरता है कि उसे अपने हर काम के लिए इनाम नहीं मिलेगा, वह महज दिखावे के लिए काम करता है—यानी उसमें वफादारी नाम की कोई चीज नहीं होती। काम में आ रही समस्याओं के बारे में पूछे जाने पर अधिकांश समय तुम लोग उत्तर नहीं दे पाते। तुममें कुछ लोग काम में शामिल हुए हैं, लेकिन तुम लोगों ने कभी नहीं पूछा कि काम कैसा चल रहा है, न ही इस बारे में सावधानी से सोचा है। तुम लोगों की क्षमता और ज्ञान को देखते हुए, तुम लोगों को कम से कम कुछ पता होना चाहिए, क्योंकि तुम सबने इस कार्य में भाग लिया है। तो ज्यादातर लोग कुछ भी क्यों नहीं कहते? संभव है कि तुम लोगों को वास्तव में पता न हो कि क्या कहना है—कि तुम जानते ही न हो कि कामकाज ठीक चल रहा है या नहीं। इसके दो कारण हैं : एक यह कि तुम लोग पूरी तरह से उदासीन हो, और तुमने कभी इन चीजों की परवाह ही नहीं की है और केवल यह मानते रहे हो कि इस काम को किसी तरह निपटाना है। दूसरा यह है कि तुम गैर-जिम्मेदार हो और इन बातों की परवाह करने के अनिच्छुक हो। अगर वास्तव में तुम्हें परवाह होती, लगन होती, तो हर चीज पर तुम्हारा एक विचार और दृष्टिकोण होता। कोई दृष्टिकोण या विचार न होना अकसर उदासीन और बेपरवाह होने तथा कोई जिम्मेदारी न लेने से पैदा होता है। तुम जो कर्तव्य निभाते हो, उसे मेहनत से नहीं निभाते, तुम कोई जिम्मेदारी नहीं उठाते, तुम कोई कीमत चुकाने या कर्तव्य में तल्लीन होने को तैयार नहीं होते। तुम कोई कष्ट नहीं उठाते और न ही अधिक ऊर्जा खर्च करने को तैयार होते हो; तुम बस मातहत बनना चाहते हो, जो किसी अविश्वासी के अपने मालिक के लिए काम करने से अलग नहीं है। कर्तव्य का ऐसा प्रदर्शन परमेश्वर को नापसंद है और वह इससे प्रसन्न नहीं होता। इसे उसकी स्वीकृति नहीं मिल सकती।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, केवल एक ईमानदार व्यक्ति ही सच्चे मनुष्य की तरह जी सकता है
किसी व्यक्ति की सचमुच परमेश्वर पर आस्था है या नहीं, यह उसके कर्तव्य निर्वहन से स्पष्ट हो जाता है। कोई व्यक्ति सत्य का अनुसरण कर रहा है या नहीं, यह जानने के लिए देखो कि क्या वह अपना कर्तव्य सिद्धांत के अनुसार निभा रहा है या नहीं। कुछ लोग कर्तव्य निभाते हुए कोई सिद्धांत नहीं अपनाते। वे लगातार अपने रुझानों के अनुसार चलते हैं और मनमाने ढंग से काम करते हैं। क्या यह अनमनापन नहीं दिखाता है? क्या वे परमेश्वर को धोखा नहीं दे रहे हैं? क्या तुम लोगों ने कभी ऐसे व्यवहार के दुष्परिणाम सोचे हैं? तुम लोग अपने कर्तव्य निर्वाह के जरिये परमेश्वर के इरादों के प्रति कोई परवाह नहीं दिखाते हो। तुम हर काम विचारहीन और अप्रभावी ढंग से करते हो, इसे पूरी लगन और मेहनत से नहीं करते। क्या तुम इस तरह परमेश्वर की स्वीकृति पा लोगे? बहुत-से लोग अपना कर्तव्य अनिच्छा से निभाते हैं, और वे डटे नहीं रह पाते। वे थोड़ा-सा भी कष्ट नहीं उठा पाते, और हमेशा महसूस करते हैं कि कष्ट उठाने से उनका बड़ा नुकसान हुआ है, न वे कठिनाइयाँ हल करने के लिए सत्य खोजते हैं। क्या वे इस तरह अपना कर्तव्य निभाकर अंत तक परमेश्वर का अनुसरण कर सकते हैं? क्या वे जो कुछ भी करते हैं, उसमें अनमना होना ठीक है? क्या अंतरात्मा को यह स्वीकार्य होगा? मनुष्य के मानदंड के अनुसार भी मापा जाए, तो ऐसा व्यवहार अस्वीकार्य है—तो क्या इसे संतोषजनक ढंग से कर्तव्य निभाना माना जा सकता है? अगर तुम इस तरह से अपना कर्तव्य निभाते हो, तो तुम कभी सत्य प्राप्त नहीं कर पाओगे। तुम जो सेवा प्रदान करोगे वह संतोषजनक नहीं होगी। तो फिर, तुम परमेश्वर का अनुमोदन कैसे प्राप्त कर सकते हो? बहुत-से लोग अपना कर्तव्य निभाते समय कठिनाई से डरते हैं, वे बहुत आलसी होते हैं, वे दैहिक सुविधाओं के लिए लालायित रहते हैं। वे अपने कौशल में महारत हासिल करने का कभी कोई प्रयास नहीं करते, न ही वे परमेश्वर के वचनों के सत्यों पर विचार करने की कोशिश करते हैं। उन्हें लगता है कि इस तरह लापरवाही करके वे परेशानी से बच जाते हैं। उन्हें कुछ भी शोध करने या दूसरे लोगों से राय लेने की जरूरत नहीं है। उन्हें अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करने या गहराई से सोचने की जरूरत नहीं है। इससे लगता है कि वे बहुत सारी मेहनत और शारीरिक असुविधा से बच जाते हैं, और किसी तरह काम पूरा कर लेते हैं। और अगर तुम उनकी काट-छाँट करते हो, तो वे विद्रोही तेवर अपनाकर बहस करते हैं : “मैं आलसी या निठल्ला बनकर नहीं बैठा था, काम हो गया था—तुम इतनी मीन-मेख क्यों निकाल रहे हो? क्या तुम सिर्फ बाल की खाल नहीं निकाल रहे हो? मैं इस तरह अपना कर्तव्य निभाकर पहले से ही अच्छा काम कर रहा हूँ। तुम संतुष्ट क्यों नहीं हो?” क्या तुम लोग सोचते हो कि ऐसे लोग आगे कोई प्रगति कर सकते हैं? अपना कर्तव्य निभाते समय वे लगातार अनमने रहते हैं, और हमेशा बहाने पेश कर देते हैं। जब समस्याएँ आती हैं तो वे किसी को भी इन्हें बताने नहीं देते। यह कैसा स्वभाव है? क्या यह शैतान का स्वभाव नहीं है? क्या ऐसे स्वभाव के साथ लोग अपना कर्तव्य संतोषजनक ढंग से निभा सकते हैं? क्या वे परमेश्वर को संतुष्ट कर सकते हैं? तो क्या तुम लोग इसी तरह अपना कर्तव्य निभाते हो? ऊपरी तौर पर तुम व्यस्त दिखते हो, दूसरों से लड़े-झगड़े बगैर ठीक से काम करते हो। लेकिन, तुममें से कोई भी अपने कार्य में मेहनत नहीं कर रहा है, न अपने दिमाग को मथ रहा है, और न इसकी चिंता कर रहा है। तुममें से कोई भी ऐसा नहीं है जो अपना कर्तव्य ठीक से न निभा पाने के कारण अपनी भूख या नींद गँवा रहा हो। तुममें से कोई भी सत्य नहीं खोज रहा है, न समस्याएँ दूर करने के लिए सिद्धांतों का पालन कर रहा है। तुम लोग लापरवाही और बेमन से बस काम चलाए जा रहे हो। तुममें से बहुत ही कम लोग अपने कर्तव्य में सच्ची जिम्मेदारी लेते हैं। कठिनाइयाँ सामने आने के बावजूद तुम लोग न तो सच्चे मन से प्रार्थना करने के लिए एकजुट होते हो, न मिल-जुलकर समस्याओं का सामना और समाधान करते हो। नतीजे की कोई चिंता ही नहीं है। तुम बस काम निपटाते हो, फिर पता चलता है कि इसे दुबारा करना पड़ेगा। इस तरह कर्तव्य निभाना तो साफ तौर पर लापरवाही से कार्य करना है और यह अविश्वासियों के काम करने के तरीके से कतई अलग नहीं है। यह तो किसी सेवाकर्मी का रवैया है। अपने कर्तव्य इस तरह निभाकर तुम न तो परमेश्वर के कार्य का अनुभव कर रहे हो, न खुद को ईमानदारी से परमेश्वर के लिए खपा रहे हो। अगर तुम यह मानसिकता नहीं बदलते तो आखिर में उजागर और बहिष्कृत होकर रहोगे।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने पूरे हृदय, मन और आत्मा से अपना कर्तव्य अच्छे से निभाने वाला ही परमेश्वर से प्रेम करने वाला व्यक्ति होता है
कुछ लोग लेशमात्र भी बदले बिना बरसों सेवा कार्य करते रहते हैं। फिर भी वे अक्सर नकारात्मक हो जाते हैं, शिकायतें करते हैं और कठिनाइयों का सामना करने पर अपने भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करते हैं। जब उनकी काट-छाँट होती है और उनसे निपटा जाता है तो वे तर्क-वितर्क और टालमटोल का सहारा लेते हैं, थोड़ा-सा भी सत्य स्वीकार नहीं कर पाते और किसी भी तरह परमेश्वर के प्रति समर्पण नहीं करते। अंततः उन्हें अपने कर्तव्य निभाने से मना कर दिया जाता है। कुछ लोग अपने कर्तव्य निभाते हुए काम बिगाड़ देते हैं और अपनी आलोचना नहीं स्वीकारते, बल्कि बेशर्मी से कहते हैं कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया और उन्हें बिल्कुल भी पश्चात्ताप नहीं होता। और अंततः जब परमेश्वर का घर उनके कर्तव्य रद्द कर उन्हें चलता कर देता है तो वे रोते-झींकते हुए अपना कर्तव्य स्थल छोड़ते हैं। वे इसी तरह निकाले जाते हैं। कर्तव्य इसी तरह लोगों को पूरी तरह उजागर कर देते हैं। लोग आम तौर पर ऊँची-ऊँची हाँकते हैं और जोर-जोर से नारे लगाते हैं, लेकिन ऐसा क्यों होता है कि कोई कर्तव्य निभाते हुए वे मनुष्य की तरह कार्य करने के बजाय शैतान बन जाते हैं? इसकी वजह यह है कि मानवता विहीन लोग जहाँ कहीं जाएँ वे शैतान होते हैं; और सत्य स्वीकारे बिना वे कहीं भी टिक नहीं सकते। कुछ लोग अक्सर अपना कर्तव्य लापरवाही और अनमने ढंग से निभाते हैं, और अपनी काट-छाँट और निपटान होने पर वे तर्क-वितर्क और बहस करने की कोशिश करते हैं। बार-बार निपटान होने पर उन्हें पश्चात्ताप की कुछ इच्छा होती है, इसलिए वे आत्म-संयम के तरीके अपनाने लगते हैं। लेकिन अंत में वे खुद को रोक नहीं पाते, और भले ही उन्होंने कसमें खाई हों और खुद को लानतें दी हों, इनसे बात नहीं बनती, और अब भी वे न तो अपनी लापरवाही और अनमनेपन की समस्या दूर करते हैं, न ही बहस और टालमटोल की समस्या हल करते हैं। आखिर में जब हर कोई ऐसे व्यक्ति से घृणा और उसकी आलोचना करने लगता है, तब जाकर वे यह स्वीकारने को बाध्य होते हैं, “हाँ, मुझमें भ्रष्ट स्वभाव हैं। मैं पश्चात्ताप करना चाहता हूँ लेकिन कर नहीं पा रहा हूँ। जब मैं अपना कर्तव्य निभाता हूँ तो हमेशा अपनी पसंद और अपने मान-सम्मान के बारे में सोचता हूँ, जिसके कारण मैं अक्सर परमेश्वर से विद्रोह कर बैठता हूँ। मैं सत्य का अभ्यास करना चाहता हूँ लेकिन मैं अपने इरादे और इच्छाएँ नहीं त्याग सकता; मैं उन्हें छोड़ नहीं पाता हूँ। मैं हमेशा अपनी इच्छानुसार कार्य करना चाहता हूँ, मैं काम से बचने की जुगत भिड़ाता हूँ, और मौज-मस्ती के लिए लालायित रहता हूँ। मैं अपना निपटान और काट-छाँट नहीं स्वीकारता और मैं हमेशा बहस करके इससे बचने की कोशिश करता हूँ। मुझे लगता है कि मेरा कड़ी मेहनत करना और कष्ट सहना ही काफी है, इसलिए जब कोई मुझसे निपटने की कोशिश करता है तो यह बात मेरे दिल में नहीं उतरती और मैं बहस और टालमटोल पर उतर आता हूँ। मुझे सँभालना सचमुच बहुत मुश्किल है! ये दिक्कतें दूर करने के लिए मुझे सत्य कैसे खोजना चाहिए?” वे ये बातें सोचने लगते हैं। यानी उन्हें थोड़ी-सी यह समझ है कि लोगों को कैसे कार्य करना चाहिए, साथ ही उनमें कुछ विवेक भी हैं। अगर कोई सेवाकर्मी किसी मुकाम पर अपना उचित कार्य करने लगे और अपना स्वभाव बदलने पर ध्यान केंद्रित करने लगे, और उसे एहसास हो जाए कि उसमें भी भ्रष्ट स्वभाव हैं, कि वह भी अहंकारी है और परमेश्वर की आज्ञा मानने में असमर्थ है, और इसी तरह चलते रहने से बात नहीं बनेगी—जब वह इन चीजों के बारे में सोचने लगता है और इनकी थाह लेने की कोशिश करता है, जब वह पकड़ में आ चुकी समस्याओं का सामना करने के लिए सत्य खोज सकता है—तो क्या तब वह अपना रास्ता बदलना शुरू नहीं कर देगा? अगर वह अपना रास्ता बदलना शुरू कर दे, तो उसके बदलने की उम्मीद है। लेकिन अगर उसका कभी भी सत्य के अनुसरण का इरादा नहीं है, अगर उसमें सत्य के लिए प्रयास करने की इच्छा नहीं है और वह केवल मेहनत और काम करना जानता है, यह मान बैठा हो कि जो काम उसके हाथ में है उसे पूरा करना ही उसका कार्य सिद्ध करना और परमेश्वर का आदेश पूरा करना है—अगर वह ऐसा मानता है थोड़ी-सी मेहनत करने का अर्थ ही अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेना है, यह विचार नहीं करता कि परमेश्वर की अपेक्षाएँ या सत्य क्या है, या क्या वह परमेश्वर का आज्ञापालन करने वाला इंसान है या नहीं, और कभी भी इनमें से किसी भी चीज का पता लगाने की कोशिश नहीं करता—अगर उसके कार्य करने का यही तरीका है तो क्या वह उद्धार पा सकेगा? नहीं करेगा। उसने उद्धार के मार्ग पर कदम नहीं रखा है, वह परमेश्वर पर विश्वास करने के सही मार्ग पर नहीं पहुँचा है, और उसने परमेश्वर के साथ कोई संबंध नहीं बनाया है। वह परमेश्वर के घर में अभी भी केवल मेहनत कर रहा है और सेवा दे रहा है।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सत्य सिद्धांत खोजकर ही कोई अपना कर्तव्य अच्छी तरह निभा सकता है
यदि तुम ईमानदारी से खुद को परमेश्वर के लिए खपाते और तुम्हारे पास परमेश्वर-प्रेमी दिल होता, तो तुम उन कार्यों को कैसे करते जो तुच्छ, मेहनत वाले या कठिन हैं? तुम्हारी मानसिकता अलग होती : तुम कठिन कार्य करना पसंद करते और अपने कंधे पर भारी बोझ उठाने की कोशिश करते। तुम उन कार्यों को अपने हाथों में ले लेते जिन्हें अन्य लोग करना नहीं चाहते और तुम इन्हें केवल परमेश्वर के प्रेम के लिए और उसे संतुष्ट करने के लिए करते। तुम किसी बिना कोई शिकायत किए खुशी से यह कार्य करते। तुच्छ, कड़ी मेहनत वाले और कठिन कार्य लोगों की असलियत दिखा देते हैं। तुम उन लोगों से कैसे अलग हो जो केवल आसान और महत्वपूर्ण कार्य ही लेते हैं? तुम उनसे कोई बेहतर नहीं हो। क्या बात ऐसी ही नहीं है? तुम्हें इन चीजों को इसी तरह से देखना चाहिए। तो फिर, जो चीज सबसे ज्यादा लोगों की असलियत का खुलासा करती है वह उनके द्वारा अपने कर्तव्य का पालन करना है। कुछ लोग हर समय बड़ी-बड़ी बातें करते हैं और दावा करते हैं कि वे परमेश्वर से प्रेम करने और उसके प्रति समर्पण करने के लिए तैयार हैं, लेकिन जब उन्हें अपने कर्तव्य निभाने में कोई कठिनाई आती है, तो वे सभी प्रकार की शिकायतों और नकारात्मक शब्दों का उपयोग करना शुरू कर देते हैं। यह स्पष्ट है कि वे लोग पाखंडी हैं। यदि कोई सत्य का प्रेमी है, तो जब उसे अपने कर्तव्य को करने में किसी कठिनाई का सामना करना पड़ेगा, तो वह परमेश्वर से प्रार्थना करेगा और अपने कर्तव्य को ईमानदारी से निभाते हुए सत्य की तलाश करेगा, भले ही इसकी उचित व्यवस्था न की गई हो। भले ही उसका सामना भारी, तुच्छ, या कठिन कार्यों से क्यों न हो जाए वह शिकायत नहीं करेगा, और वह परमेश्वर के प्रति समर्पण करने वाले हृदय के साथ अपने कार्यों को अच्छी तरह से करने और अपने कर्तव्य को अच्छी तरह से निभाने में सक्षम हो सकता है। उसे ऐसा करने में बहुत आनंद मिलता है और परमेश्वर को यह देखकर सुकून मिलता है। इस तरह के व्यक्ति को परमेश्वर की स्वीकृति मिलती है। जैसे ही किसी को तुच्छ, कठिन या ऐसे कार्यों का सामना करना पड़े जिसमें बहुत मेहनत करनी पड़े और वह चिड़चिड़ा और क्रोधित हो जाता है और वह किसी को भी अपनी आलोचना नहीं करने देता, तो वह ऐसा व्यक्ति नहीं है जो खुद को ईमानदारी से परमेश्वर के लिए खपाता है। उन्हें केवल बेनकाब कर बाहर निकाला जा सकता है।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन
ऐसा इसलिए है क्योंकि जो चीज परमेश्वर के साथ तुम्हारे संबंध को सबसे स्पष्ट रूप से दिखाती है, वह यह है कि तुम उन मामलों और कर्तव्यों से कैसे बर्ताव करते हो, जिन्हें परमेश्वर तुम्हें सौंपता और निभाने को देता है, और तुम्हारा रवैया कैसा है। यही मुद्दा है जो सबसे ज्यादा गौर करने लायक और सबसे ज्यादा व्यावहारिक है। परमेश्वर इंतजार कर रहा है; वह तुम्हारा रवैया देखना चाहता है। इस अहम पड़ाव पर, तुम्हें जल्दी करनी चाहिए और परमेश्वर को अपनी स्थिति से अवगत कराना चाहिए, उसका आदेश स्वीकारना और अपना कर्तव्य ठीक से निभाना चाहिए। इस महत्वपूर्ण बिंदु को समझने और परमेश्वर द्वारा सौंपे आदेश को पूरा कर लेने के बाद, परमेश्वर के साथ तुम्हारा संबंध सामान्य हो जाएगा। जब परमेश्वर तुम्हें कोई कार्य सौंपता है, या तुमसे कोई कर्तव्य निभाने को कहता है, तब अगर तुम्हारा रवैया सतही और उदासीन होता है, और तुम इसे गंभीरता से नहीं लेते, तो क्या यह अपना पूरा मन और ताकत लगाने के बिल्कुल विपरीत नहीं है? क्या तुम इस तरह से अपना कर्तव्य अच्छे से निभा सकते हो? निश्चित रूप से नहीं। तुम अपना कर्तव्य ठीक से नहीं निभाओगे। इसलिए, अपना कर्तव्य निभाते समय तुम्हारा रवैया उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना तुम्हारे द्वारा चुना गया तरीका और मार्ग। इससे फर्क नहीं पड़ता कि लोगों ने कितने वर्षों तक परमेश्वर में विश्वास किया है, जो लोग अपने कर्तव्य ठीक से नहीं निभा पाएँगे, उन्हें निकाल दिया जाएगा।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन
इस समय हल करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण मसला यह है कि अपने कर्तव्य को किस रूप में लें। क्योंकि कर्तव्य पालन ही वो चीज है जो सबसे अच्छे ढंग से यह दिखाता है कि किसी व्यक्ति का विश्वास सच्चा है या झूठा, वह सत्य से प्रेम करता है या नहीं, वह सही रास्ता चुनता है या गलत, और क्या उसमें अंतःकरण और विवेक है या नहीं। कर्तव्य के प्रदर्शन में ये सारे मसले उजागर हो सकते हैं। अपने कर्तव्य के प्रति क्या रवैया होना चाहिए, इस प्रश्न का समाधान करने के लिए तुम्हें सबसे पहले यह समझना होगा कि कर्तव्य क्या है, साथ ही यह भी कि इसे किस प्रकार अच्छे से निभाएँ और इसे निभाने के दौरान कठिनाइयों का सामना करते हुए क्या करें—किन सत्यों के अनुरूप किन सिद्धांतों का पालन और अभ्यास करें। तुम्हें यह समझना है कि जब तुम परमेश्वर को गलत समझते हो और जब अपने मंसूबों को नहीं त्याग पाते हो तो तब क्या करना चाहिए। साथ ही, अपने कर्तव्य निभाने के दौरान तुम्हें अपने मन में उठने वाले ऐसे अनुचित विचारों और दृष्टिकोणों पर बार-बार चिंतन करना चाहिए जो शैतान से संबंधित हैं और जो तुम्हारे कर्तव्य को पूरा करने में असर और बाधा डालते हैं; जो तुम्हें कर्तव्य पालन के दौरान परमेश्वर की अवज्ञा और उससे विद्रोह करने को मजबूर कर सकते हैं; और जो तुम्हारा वह काम खराब कर सकते हैं जो परमेश्वर तुम्हें सौंपता है—तुम्हें यह सब जानना चाहिए। क्या किसी व्यक्ति के लिए कर्तव्य महत्वपूर्ण है? यह अत्यंत महत्वपूर्ण है। तुम लोगों की यह दृष्टि अब स्पष्ट हो जानी चाहिए : परमेश्वर पर विश्वास करने के लिए अपना कर्तव्य पूरा करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। परमेश्वर पर विश्वास करने का सबसे महत्वपूर्ण पहलू अब कर्तव्य पालन है। अपना कर्तव्य अच्छे से निभाए बिना कोई वास्तविकता नहीं हो सकती है। कर्तव्य पालन के जरिये लोग परमेश्वर की इच्छा समझ पाते हैं, और धीरे-धीरे उसके साथ सामान्य संबंध बना लेते हैं। कर्तव्य पालन के जरिये लोग धीरे-धीरे अपनी समस्याएँ पहचान लेते हैं, और अपने भ्रष्ट स्वभाव और सार पहचान लेते हैं। साथ ही, आत्मचिंतन करके लोग धीरे-धीरे यह पता लगा लेते हैं कि परमेश्वर उनसे क्या चाहता है। क्या अभी तुम यह समझते हो कि परमेश्वर पर विश्वास करते हुए तुम किस चीज पर विश्वास करते हो? दरअसल, यह सत्य पर विश्वास है, सत्य की प्राप्ति है। कर्तव्य पालन से सत्य और जीवन प्राप्ति की संभावना बनती है। कर्तव्य निभाए बिना सत्य और जीवन प्राप्त नहीं होते। कर्तव्य निभाए बिना अगर कोई परमेश्वर पर विश्वास करता है तो क्या वास्तविकता हो सकती है? (बिल्कुल नहीं।) कोई वास्तविकता नहीं हो सकती है। इस प्रकार अगर तुम अपना कर्तव्य अच्छी तरह नहीं निभाते तो तुम सत्य हासिल नहीं कर सकते। अगर तुम्हें त्याग दिया गया तो यह दिखाता है कि तुम परमेश्वर पर विश्वास करने में विफल रहे। भले ही तुम यह कहो कि तुम उस पर विश्वास करते हो, तुम्हारा विश्वास पहले ही अर्थ खो चुका है। यह ऐसी चीज है जिसे पूरी तरह समझ लेना चाहिए।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सत्य सिद्धांत खोजकर ही कोई अपना कर्तव्य अच्छी तरह निभा सकता है
अब समय आ गया है कि हर किसी को अपनी तरह के समूह में रखा जाए। यह वह समय है जब परमेश्वर लोगों की असलियत प्रकट करता है और उन्हें त्याग देता है। यदि तुम लोग परमेश्वर के सच्चे विश्वासी हो, तो तुम्हें सत्य का अच्छी तरह से अनुसरण करना चाहिए और अपने कर्तव्य को अच्छी तरह से निभाना चाहिए। यदि तुम इस बारे में अपनी अनुभवात्मक गवाही साझा कर सकते हो तो इस से साबित होता है कि तुम सत्य से प्रेम करने वाले व्यक्ति हो, और यह कि तुम्हारे पास कुछ सत्य वास्तविकताएँ हैं। लेकिन यदि तुम अपनी कोई भी अनुभवात्मक गवाही साझा नहीं कर सकते, तो तुम केवल एक सेवाकर्मी हो और तुम्हारे बहिष्कृत किए जाने का खतरा है। यदि तुम अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाते हो और जिम्मेदार और वफादार हो, तो तुम एक वफादार सेवाकर्मी हो और तुम रह सकते हो। जो भी वफादार सेवाकर्मी नहीं है, उसे बहिष्कृत किया जाएगा। इसलिए केवल अपने कर्तव्य को अच्छी तरह से निभाने से ही तुम परमेश्वर के घर में बने रह सकते हो, और आपदा से बचाए जा सकते हो। अपने कर्तव्य को अच्छी तरह से निभाना बहुत महत्वपूर्ण है। कम से कम परमेश्वर के घर के लोग ईमानदार लोग हैं। वे ऐसे लोग हैं जो अपने कर्तव्य के मामले में भरोसेमंद हैं, जो परमेश्वर के आदेश को स्वीकार कर सकते हैं, और वफादारी से अपना कर्तव्य निभा सकते हैं। यदि लोगों में सच्ची आस्था, जमीर और विवेक नहीं है, और यदि उनके दिल में परमेश्वर के प्रति डर और आज्ञाकारिता की भावना नहीं है, तो वे कर्तव्यों को निभाने के लिए उपयुक्त नहीं हैं। भले ही वे अपना कर्तव्य निभाते हैं, लेकिन ऐसा करते समय वे लापरवाही से काम लेते हैं। वे लोग सेवाकर्मी हैं-अर्थात ऐसे लोग जिन्होंने सच्चे दिल से पश्चात्ताप नहीं किया है। इस तरह के सेवाकर्मियों को आज नहीं तो कल बहिष्कृत कर दिया जाएगा। केवल वफादार सेवाकर्मियों को ही बख्शा जाएगा। यद्यपि वफादार सेवाकर्मियों के पास सत्य वास्तविकताएँ नहीं होतीं, उनके पास जमीर और विवेक होता है, वे ईमानदारी से अपने कर्तव्यों को निभाने में सक्षम होते हैं और परमेश्वर उन्हें बख्श देता है। जिनके पास सत्य वास्तविकताएँ होतीं हैं और जो परमेश्वर की शानदार गवाही दे सकते हैं, वे उसके लोग हैं, और उन्हें भी बख्श दिया जाएगा और उसके राज्य में लाया जाएगा।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाने के लिए व्यक्ति में कम से कम जमीर और विवेक तो होना ही चाहिए