iii. सर्वशक्तिमान परमेश्वर और प्रभु यीशु दोनों एक ही परमेश्वर के देहधारण हैं
अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन
मनुष्यों के बीच मैं वह पवित्रात्मा था, जिसे वे देख नहीं सकते थे, वह पवित्रात्मा जिसके साथ वे कभी जुड़ नहीं सकते थे। पृथ्वी पर अपने कार्य के तीन चरणों (संसार का सृजन, छुटकारा और विनाश) के कारण, मैं उनके बीच अपना कार्य करने के लिए भिन्न-भिन्न समयों पर प्रकट हुआ हूँ (सार्वजनिक रूप से कभी नहीं)। पहली बार मैं उनके बीच छुटकारे के युग के दौरान आया था। निस्संदेह मैं यहूदी परिवार में आया; इसलिए पृथ्वी पर परमेश्वर का आगमन देखने वाले पहले लोग यहूदी थे। मैंने इस कार्य को व्यक्तिगत रूप से इसलिए किया, क्योंकि छुटकारे के अपने कार्य में मैं अपने देहधारी शरीर का उपयोग पापबलि के रूप में करना चाहता था। इस प्रकार मुझे सबसे पहले देखने वाले अनुग्रह के युग के यहूदी थे। यह पहली बार था, जब मैंने देह में कार्य किया था। राज्य के युग में मेरा कार्य जीतना और पूर्ण बनाना है, इसलिए मैं पुनः देह में चरवाही का कार्य करता हूँ। यह दूसरी बार है, जब मैं देह में कार्य कर रहा हूँ। कार्य के अंतिम दो चरणों में लोग जिसके साथ जुड़ते हैं, वह अदृश्य, अमूर्त पवित्रात्मा नहीं है, बल्कि एक व्यक्ति है जो देह के रूप में साकार पवित्रात्मा है। इस प्रकार, मनुष्य की नजरों में मैं पुनः इंसान बन जाता हूँ, जिसमें परमेश्वर के रूप और एहसास का लेशमात्र भी नहीं है। इतना ही नहीं, जिस परमेश्वर को लोग देखते हैं, वह न सिर्फ नर, बल्कि नारी भी है, जो उनके लिए सबसे अधिक विस्मयकारी और उलझन में डालने वाला है। मेरे असाधारण कार्य ने कई-कई वर्षों से चले आ रहे पुराने विश्वास चूर-चूर कर दिए हैं। लोग अवाक् रह गए हैं! परमेश्वर केवल पवित्र आत्मा, पवित्रात्मा, सात गुना तीव्र पवित्रात्मा या सर्व-व्यापी पवित्रात्मा ही नहीं है, बल्कि एक मनुष्य भी है—एक साधारण मनुष्य, एक अत्यधिक सामान्य मनुष्य। वह नर ही नहीं, नारी भी है। वे इस बात में एक-समान हैं कि वे दोनों ही मनुष्यों से जन्मे हैं, और इस बात में असमान हैं कि एक पवित्र आत्मा द्वारा गर्भ में आया और दूसरा मनुष्य से जन्मा किंतु सीधे पवित्रात्मा से उत्पन्न है। वे इस बात में एक-समान हैं कि परमेश्वर द्वारा धारित दोनों देह परमपिता परमेश्वर का कार्य करते हैं, और असमान इस बात में हैं कि एक ने छुटकारे का कार्य किया, जबकि दूसरा विजय का कार्य करता है। दोनों परमपिता परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन एक प्रेममय-करुणा और दयालुता से भरा मुक्तिदाता है और दूसरा कोप और न्याय से भरा धार्मिकता का परमेश्वर है। एक सर्वोच्च सेनापति है जिसने छुटकारे का कार्य आरंभ किया, जबकि दूसरा धार्मिक परमेश्वर है जो विजय का कार्य संपन्न करता है। एक आरंभ है, दूसरा अंत। एक निष्पाप देह है, दूसरा वह देह जो छुटकारे को पूरा करता है, कार्य जारी रखता है और कभी भी पापी नहीं है। दोनों एक ही पवित्रात्मा हैं, लेकिन वे भिन्न-भिन्न देहों में वास करते हैं और भिन्न-भिन्न स्थानों पर पैदा हुए थे और उनके बीच कई हजार वर्षों का अंतर है। फिर भी उनका संपूर्ण कार्य एक-दूसरे का पूरक है, कभी परस्पर-विरोधी नहीं है, और एक-दूसरे के तुल्य है। दोनों ही मनुष्य हैं, लेकिन एक बालक था और दूसरी बालिका। इन तमाम वर्षों में लोगों ने न सिर्फ पवित्रात्मा को और न सिर्फ एक मनुष्य, एक नर को देखा है, बल्कि कई ऐसी चीजें भी देखी हैं, जो मानव-धारणाओं से मेल नहीं खातीं; इसलिए मनुष्य मुझे कभी पूरी तरह नहीं समझ पाते। वे मुझ पर आधा विश्वास और आधा संदेह करते रहते हैं—मानो मेरा अस्तित्व भी हो, लेकिन मैं एक मायावी सपना भी हूँ—यही कारण है कि आज तक भी लोग नहीं जानते कि परमेश्वर क्या है। क्या तुम वास्तव में मुझे एक सरल वाक्य में समेट सकते हो? क्या तुम सचमुच यह कहने का साहस करते हो, “यीशु और कोई नहीं बल्कि परमेश्वर है, और परमेश्वर और कोई नहीं बल्कि यीशु है”? क्या तुम सचमुच इतने निर्भीक हो कि यह कह सको, “परमेश्वर और कोई नहीं बल्कि पवित्रात्मा है, और पवित्रात्मा और कोई नहीं बल्कि परमेश्वर है”? क्या तुम सहजता से कह सकते हो, “परमेश्वर केवल देहधारी मनुष्य है”? क्या तुममें सचमुच दृढ़तापूर्वक यह कहने का साहस है, “यीशु की छवि परमेश्वर की महान छवि है”? क्या तुम अपनी वाक्पटुता का उपयोग करके परमेश्वर के स्वभाव और छवि को पूर्ण रूप से समझाने में सक्षम हो? क्या तुम वास्तव में यह कहने की हिम्मत करते हो, “परमेश्वर ने अपनी छवि के अनुरूप सिर्फ नरों की रचना की, नारियों की नहीं”? अगर तुम ऐसा कहते हो, तो फिर मेरे चुने हुए लोगों के बीच कोई नारी नहीं होगी, नारियाँ मानवजाति का एक वर्ग तो बिल्कुल भी नहीं होंगी। क्या अब तुम वास्तव में जानते हो कि परमेश्वर क्या है? क्या परमेश्वर मनुष्य है? क्या परमेश्वर पवित्रात्मा है? क्या परमेश्वर वास्तव में नर है? क्या जो कार्य मुझे करना है, वह केवल यीशु ही पूरा कर सकता है? अगर तुम मेरा सार प्रस्तुत करने के लिए उपर्युक्त में से केवल एक को ही चुनते हो, तो फिर तुम एक अत्यंत अज्ञानी निष्ठावान विश्वासी हो। अगर मैं एक बार, और केवल एक बार, देहधारी के रूप में कार्य करता, तो क्या तुम लोग मेरा सीमांकन करते? क्या तुम सचमुच एक झलक में मुझे पूरी तरह समझ सकते हो? क्या तुम वास्तव में मुझे अपने जीवनकाल के दौरान अनुभव की गई चीजों के आधार पर पूरी तरह से समेट सकते हो? अगर मैं अपने दोनों देहधारणों में एक-जैसा कार्य करता, तो तुम मुझे किस तरह देखते? क्या तुम मुझे हमेशा के लिए सलीब पर कीलों से जड़ा छोड़ दोगे? क्या परमेश्वर उतना सरल हो सकता है, जितना तुम दावा करते हो?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के बारे में तुम्हारी समझ क्या है?
यीशु और मैं एक ही पवित्रात्मा से आते हैं। यद्यपि हमारे देह एक-दूसरे से जुड़े नहीं है, किन्तु हमारा आत्मा एक ही है; यद्यपि हमारे कार्य की विषयवस्तु और हम जो कार्य करते हैं, वे एक नहीं हैं, तब भी सार रूप में हम समान हैं; हमारे देह भिन्न रूप धारण करते हैं, लेकिन यह युग में परिवर्तन और हमारे कार्य की भिन्न आवश्यकताओं के कारण है; हमारी सेवकाई एक जैसी नहीं है, इसलिए जो कार्य हम आगे लाते हैं और जिस स्वभाव को हम मनुष्य पर प्रकट करते हैं, वे भी भिन्न हैं। यही कारण है कि आज मनुष्य जो देखता और समझता है वह अतीत के समान नहीं है; ऐसा युग में बदलाव के कारण है। यद्यपि उनके देह के लिंग और रूप भिन्न-भिन्न हैं, और वे दोनों एक ही परिवार में नहीं जन्मे हैं, उसी समयावधि में तो बिल्कुल नहीं, किन्तु फिर भी उनके आत्मा एक ही हैं। यद्यपि उनके देह किसी प्रकार के रक्त या भौतिक संबंध साझा नहीं करते, पर इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि वे भिन्न-भिन्न समयावधियों में परमेश्वर के देहधारण हैं। यह एक निर्विवाद सत्य है कि वे परमेश्वर के द्वारा धारित देह हैं। यद्यपि वे एक ही व्यक्ति के वंशज या एक ही भाषा (एक पुरुष था जो यहूदियों की भाषा बोलता था और दूसरा शरीर स्त्री है जो सिर्फ चीनी भाषा बोलता है) साझा नहीं करते। इन्हीं कारणों से उन्हें जो कार्य करना चाहिए, उसे वे भिन्न-भिन्न देशों में, और साथ ही भिन्न-भिन्न समयावधियों में करते हैं। इस तथ्य के बावजूद वे एक ही आत्मा हैं, उनका सार एक ही है, लेकिन उनके देह के बाहरी आवरणों में कोई समानता नहीं है। बस उनकी मानवता समान है, परन्तु जहाँ तक उनके देह के प्रकटन और जन्म की परिस्थितियों की बात है, वे दोनों समान नहीं हैं। इनका उनके अपने-अपने कार्य या मनुष्य के पास उनके बारे में जो ज्ञान है, उस पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता, क्योंकि आखिरकार, वे आत्मा तो एक ही हैं और उन्हें कोई अलग नहीं कर सकता। यद्यपि उनका रक्त-संबंध नहीं है, किन्तु उनका सम्पूर्ण अस्तित्व उनके आत्मा द्वारा निर्देशित होता है, जो उन्हें अलग-अलग समय में अलग-अलग कार्य देता है और उनके देह के अलग-अलग रक्त-संबंध हैं। यहोवा का आत्मा यीशु के आत्मा का पिता नहीं है, यीशु का आत्मा यहोवा के आत्मा का पुत्र नहीं है : वे एक ही आत्मा हैं। उसी तरह, आज के देहधारी परमेश्वर और यीशु में कोई रक्त-संबंध नहीं है, लेकिन वे हैं एक ही, क्योंकि उनके आत्मा एक ही हैं। परमेश्वर दया और करुणा का, और साथ ही धार्मिक न्याय का, मनुष्य की ताड़ना का, और मनुष्य को श्राप देने का कार्य कर सकता है; अंत में, वह संसार को नष्ट करने और दुष्टों को सज़ा देने का कार्य कर सकता है। क्या वह यह सब स्वयं नहीं करता? क्या यह परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता नहीं है? उसने मनुष्य के लिए व्यवस्थाएँ निर्धारित कीं और आज्ञाएँ जारी कीं, वह आरंभिक इस्राएलियों की पृथ्वी पर उनके जीवन-यापन में अगुवाई करने में भी समर्थ था और मंदिर व वेदियाँ बनाने में उनका मार्गदर्शन करने, और समस्त इस्राएलियों को अपने प्रभुत्व में रखने में भी समर्थ था। अपने अधिकार के कारण, वह इस्राएल के लोगों के साथ पृथ्वी पर दो हज़ार वर्षों तक रहा। इस्राएलियों ने उसके खिलाफ विद्रोह करने का साहस नहीं किया; सब यहोवा का भय मानते और उसकी आज्ञाओं का पालन करते थे। उसके अधिकार और उसकी सर्वशक्तिमत्ता के कारण किया जाने वाला कार्य ऐसा था। तब अनुग्रह के युग में, यीशु संपूर्ण पतित मानवजाति (सिर्फ इस्राएलियों को नहीं) को छुटकारा दिलाने के लिए आया। उसने मनुष्य के प्रति दया और प्रेममयी करुणा दिखायी। मनुष्य ने अनुग्रह के युग में जिस यीशु को देखा वह मनुष्य के प्रति प्रेममयी करुणा से भरा हुआ और हमेशा ही प्रेममय था, क्योंकि वह मनुष्य को पाप से बचाने के लिए आया था। उसने मनुष्यों के पापों को क्षमा किया फिर उसके क्रूस पर चढ़ने ने मानवजाति को पूरी तरह पाप से छुटकारा दिला दिया। उस दौरान, परमेश्वर मनुष्य के सामने दया और प्रेममयी करुणा के साथ प्रकट हुआ; अर्थात्, वह मनुष्य के लिए पापबलि बना और मनुष्य के पापों के लिए सूली पर चढ़ाया गया ताकि उन्हें हमेशा के लिए माफ किया जा सके। वह दयालु, करुणामय, सहिष्णु और प्रेममय था। और वे सब जिन्होंने अनुग्रह के युग में यीशु का अनुसरण किया था, उन्होंने भी सारी चीजों में सहिष्णु और प्रेममय बनने का प्रयास किया। उन्होंने लम्बे समय तक कष्ट सहे, यहाँ तक कि जब उन्हें पीटा गया, धिक्कारा गया या उन्हें पत्थर मारे गए, तो भी उन्होंने पलटकर वार नहीं किया। परन्तु इस अंतिम चरण में ऐसा नहीं हो सकता। हालाँकि यीशु और यहोवा का आत्मा एक ही था, लेकिन उनका कार्य पूरी तरह एक-सा नहीं था। यहोवा के कार्य ने युग का अंत नहीं किया बल्कि युग का मार्गदर्शन किया, पृथ्वी पर मानवजाति के जीवन का सूत्रपात किया, और आज का कार्य अन्यजाति के राष्ट्रों में गहराई से भ्रष्ट किए गए मनुष्यों को जीतने के लिए और न केवल चीन में परमेश्वर के चुने हुए लोगों की, बल्कि समस्त विश्व और मानवजाति की अगुआई करने के लिए है। तुम्हें ऐसा लग सकता है कि यह कार्य सिर्फ़ चीन में हो रहा है, परन्तु यह पहले से ही विदेशों में फैलना शुरू हो गया है। ऐसा क्यों है कि चीन के बाहर के लोग बार-बार सच्चे मार्ग को खोजते हैं? ऐसा इसलिए है क्योंकि आत्मा ने अपना कार्य पहले से ही शुरू कर दिया है, और ये वचन अब समस्त विश्व के लोगों के लिए हैं। इसके साथ, आधा कार्य पहले ही प्रगति पर है। संसार के सृजन से लेकर आज तक, परमेश्वर के आत्मा ने इस महान कार्य को कार्यान्वित कर दिया है, इसके अलावा उसने विभिन्न युगों के दौरान, और भिन्न-भिन्न देशों में भिन्न-भिन्न कार्य किए हैं। प्रत्येक युग के लोग उसके एक भिन्न स्वभाव को देखते हैं, जो कि उस भिन्न कार्य के माध्यम से सहज रूप से प्रकट होता है जिसे वह करता है। वह दया और प्रेममयी करुणा से भरा हुआ परमेश्वर है; वह मनुष्य के लिए पापबलि है और उसकी चरवाही करने वाला है, लेकिन वह मनुष्य का न्याय, ताड़ना, और श्राप भी है। उसने पृथ्वी पर दो हजार साल तक जीवन-यापन करने में मनुष्य की अगुआई की और भ्रष्ट मानवजाति को पाप से छुटकारा भी दिला पाया। आज, वह मानवजाति को जीतने में भी सक्षम है जो उससे अनजान है और उसे अपने अधीन दंडवत कराने में सक्षम है, ताकि हर कोई उसके आगे पूरी तरह से समर्पित हो जाए। अंत में, वह समस्त विश्व में मनुष्यों के अंदर जो कुछ भी अशुद्ध और अधार्मिक है उसे जला कर भस्म कर देगा, ताकि उन्हें यह दिखाए कि वह न सिर्फ करुणामय और प्रेमपूर्ण परमेश्वर है, न सिर्फ बुद्धि और चमत्कार का परमेश्वर है, न सिर्फ पवित्र परमेश्वर है, बल्कि वह मनुष्य का न्याय करने वाला परमेश्वर भी है। मानवजाति के बीच दुष्टजनों के लिए, वह प्रज्ज्वलन, न्याय और दण्ड है; जिन्हें पूर्ण किया जाना है उनके लिए, वह पीड़ा, शोधन, परीक्षण के साथ-साथ आराम, संपोषण, वचनों का पोषण और काट-छाँट है। और जिन्हें हटाया जाना है उनके लिए, वह सज़ा और प्रतिशोध भी है। ...
परमेश्वर न केवल आत्मा है बल्कि वह देहधारण भी कर सकता है। इसके अलावा, वह महिमा का एक शरीर है। यीशु को यद्यपि तुम लोगों ने नहीं देखा है, पर उसकी गवाही इस्राएलियों ने यानी उस समय के यहूदियों ने दी थी। पहले वह एक देह था, परन्तु उसे सलीब पर चढ़ाए जाने के बाद, वह महिमावान शरीर बन गया। वह व्यापक आत्मा है और सभी स्थानों में कार्य कर सकता है। वह यहोवा, यीशु या मसीहा हो सकता है; अंत में, वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर भी बन सकता है। वह धार्मिकता, न्याय, और ताड़ना है; वह श्राप और क्रोध है; परन्तु वह करुणा और प्रेममयी दया भी है। उसके द्वारा किया गया समस्त कार्य उसका प्रतिनिधित्व कर सकता है। तुम्हें वह किस प्रकार का परमेश्वर लगता है? तुम उसकी व्याख्या नहीं कर सकते। यदि तुम सच में उसकी व्याख्या नहीं कर सकते, तो तुम्हें परमेश्वर के बारे में निष्कर्ष नहीं निकालने चाहिए। परमेश्वर हमेशा के लिए करुणा और प्रेममयी दया का ही परमेश्वर है, यह निष्कर्ष मात्र इसलिए मत निकालो क्योंकि परमेश्वर ने एक चरण में छुटकारे का कार्य किया। क्या तुम निश्चित हो सकते हो कि वह मात्र दयालु और प्रेमपूर्ण परमेश्वर है? यदि वह केवल एक दयालु और प्रेममय परमेश्वर है, तो वह अंत के दिनों में युग का अंत क्यों करेगा? वह बहुत-सी विपत्तियाँ क्यों भेजेगा? लोगों की अवधारणाओं और विचारों के अनुसार परमेश्वर बिल्कुल अंत तक दयालु और प्रेममय रहना चाहिए, ताकि मानवजाति के आखिरी सदस्य को भी बचाया जा सके। लेकिन वह अंत के दिनों में इस दुष्ट मानवजाति को नष्ट करने के लिए, जो परमेश्वर को अपना दुश्मन समझती है, भूकंप, महामारी, सूखे जैसी आपदाएँ क्यों भेजता है? वह मनुष्य को इन विपत्तियों से पीड़ित क्यों होने देता है? तुम लोगों में से कोई भी यह नहीं बता सकता कि वह किस प्रकार का परमेश्वर है, और न ही कोई इस बात को समझा सकता है। क्या तुम निश्चित हो सकते हो कि वह आत्मा है? क्या तुम यह कहने का साहस रखते हो कि वह यीशु का ही देह है? और क्या तुम यह कह सकते हो कि वह ऐसा परमेश्वर है जिसे मनुष्य की खातिर हमेशा सलीब पर चढ़ाया जाएगा?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, दो देहधारण पूरा करते हैं देहधारण के मायने
मैं ऐसा क्यों कहता हूँ कि देहधारण का अर्थ यीशु के कार्य में पूर्ण नहीं हुआ था? क्योंकि वचन पूरी तरह से देह नहीं बना था। यीशु ने जो किया वह देह में परमेश्वर के कार्य का केवल एक अंश ही था; उसने केवल छुटकारे का कार्य किया और मनुष्य को पूरी तरह से प्राप्त करने का कार्य नहीं किया। इसी कारण से परमेश्वर एक बार पुनः अंत के दिनों में देह बना है। कार्य का यह चरण भी एक सामान्य देह में किया जाता है; यह एक सर्वथा सामान्य मानव द्वारा किया जाता है, जिसकी मानवता अंश मात्र भी सर्वोत्कृष्ट नहीं होती। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर पूरी तरह से इंसान बन गया है; और वह ऐसा व्यक्ति है जिसकी पहचान परमेश्वर की है, एक पूर्ण मानव, एक पूर्ण देह की, जो कार्य को कर रहा है। मानवीय आँखों के लिए, वह केवल एक देह है जो बिल्कुल भी सर्वोत्कृष्ट नहीं है, एक अति सामान्य व्यक्ति जो स्वर्ग की भाषा बोल सकता है, जो कोई भी अद्भुत संकेत और चमत्कार नहीं दिखाता है, वृहद सभाकक्षों में धर्म के बारे में आंतरिक सत्य को तो उजागर बिल्कुल नहीं करता। लोगों को दूसरे देहधारी देह का कार्य पहले वाले से एकदम अलग प्रतीत होता है, इतना अलग कि दोनों में कुछ भी समान नहीं दिखता, और इस बार पहले वाले के कार्य का थोड़ा-भी अंश नहीं देखा जा सकता। यद्यपि दूसरे देहधारण के देह का कार्य पहले वाले से भिन्न है, लेकिन इससे यह सिद्ध नहीं होता कि उनका स्रोत एक ही नहीं है। उनका स्रोत एक ही है या नहीं, यह दोनों देह के द्वारा किए गए कार्य की प्रकृति पर निर्भर करता है, न कि उनके बाहरी आवरण पर। अपने कार्य के तीन चरणों के दौरान, परमेश्वर ने दो बार देहधारण किया है, और दोनों बार देहधारी परमेश्वर के कार्य ने एक नए युग का शुभारंभ किया है, एक नए कार्य का सूत्रपात किया है; दोनों देहधारण एक-दूसरे के पूरक हैं। मानवीय आँखों के लिए यह बताना असंभव है कि दोनों देह वास्तव में एक ही स्रोत से आते हैं। कहने की आवश्यकता नहीं है कि यह मानवीय आँखों या मानवीय मन की क्षमता से बाहर है। किन्तु अपने सार में वे एक ही हैं, क्योंकि उनका कार्य एक ही पवित्रात्मा से उत्पन्न होता है। दोनों देहधारी देह एक ही स्रोत से उत्पन्न होते हैं या नहीं, इस बात को उस युग और उस स्थान से जिसमें वे पैदा हुए थे, या ऐसे ही अन्य कारकों से नहीं, बल्कि उनके द्वारा किए गए दिव्य कार्य से तय किया जा सकता है। दूसरा देहधारी देह ऐसा कोई भी कार्य नहीं करता जिसे यीशु कर चुका है, क्योंकि परमेश्वर का कार्य किसी परंपरा का पालन नहीं करता, बल्कि हर बार वह एक नया मार्ग खोलता है। दूसरे देहधारी देह का लक्ष्य, लोगों के मन पर पहले देह के प्रभाव को गहरा या दृढ़ करना नहीं है, बल्कि इसे पूरक करना और पूर्ण बनाना है, परमेश्वर के बारे में मनुष्य के ज्ञान को गहरा करना है, उन सभी नियमों को तोड़ना है जो लोगों के हृदय में विद्यमान हैं, और उनके हृदय से परमेश्वर की भ्रामक छवि को मिटाना है। ऐसा कहा जा सकता है कि परमेश्वर के अपने कार्य का कोई भी अकेला चरण मनुष्य को उसके बारे में पूरा ज्ञान नहीं दे सकता; प्रत्येक चरण केवल एक भाग का ज्ञान देता है, न कि संपूर्ण का। यद्यपि परमेश्वर ने अपने स्वभाव को पूरी तरह से व्यक्त कर दिया है, किन्तु मनुष्य की सीमित बोध क्षमता की वजह से, परमेश्वर के बारे में उसका ज्ञान अभी भी अपूर्ण है। मानव भाषा का उपयोग करके, परमेश्वर के स्वभाव की समग्रता को संप्रेषित करना असंभव है; इसके अलावा, परमेश्वर के कार्य का एक चरण परमेश्वर को पूरी तरह से कैसे व्यक्त कर सकता है? वह देह में अपनी सामान्य मानवता की आड़ में कार्य करता है, उसे केवल उसकी दिव्यता की अभिव्यक्तियों से ही जाना जा सकता है, न कि उसके दैहिक आवरण से। परमेश्वर मनुष्य को अपने विभिन्न कार्यों के माध्यम से स्वयं को जानने देने के लिए देह में आता है। उसके कार्य के कोई भी दो चरण एक जैसे नहीं होते। केवल इसी प्रकार से मनुष्य, एक अकेले पहलू तक सीमित न होकर, देह में परमेश्वर के कार्य का पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर सकता है। यद्यपि दोनों देहधारण के कार्य भिन्न हैं, किन्तु देह का सार, और उनके कार्यों का स्रोत समान है; बात केवल इतनी ही है कि उनका अस्तित्व कार्य के दो विभिन्न चरणों को करने के लिए है, और वे दो अलग-अलग युग में आते हैं। कुछ भी हो, देहधारी परमेश्वर के देह एक ही सार और एक ही स्रोत को साझा करते हैं—यह एक ऐसा सत्य है जिसे कोई नकार नहीं सकता।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर द्वारा धारण किये गए देह का सार
मैं कभी यहोवा के नाम से जाना जाता था। मुझे मसीहा भी कहा जाता था, और लोग कभी मुझे प्यार और सम्मान से उद्धारकर्ता यीशु भी कहते थे। किंतु आज मैं वह यहोवा या यीशु नहीं हूँ, जिसे लोग बीते समयों में जानते थे; मैं वह परमेश्वर हूँ जो अंत के दिनों में वापस आया है, वह परमेश्वर जो युग का समापन करेगा। मैं स्वयं परमेश्वर हूँ, जो अपने संपूर्ण स्वभाव से परिपूर्ण और अधिकार, आदर और महिमा से भरा, पृथ्वी के छोरों से उदित होता है। लोग कभी मेरे साथ संलग्न नहीं हुए हैं, उन्होंने मुझे कभी जाना नहीं है, और वे मेरे स्वभाव से हमेशा अनभिज्ञ रहे हैं। संसार की रचना के समय से लेकर आज तक एक भी मनुष्य ने मुझे नहीं देखा है। यह वह परमेश्वर है, जो अंत के दिनों के दौरान मनुष्यों पर प्रकट होता है, किंतु मनुष्यों के बीच में छिपा हुआ है। वह सामर्थ्य से भरपूर और अधिकार से लबालब भरा हुआ, दहकते हुए सूर्य और धधकती हुई आग के समान, सच्चे और वास्तविक रूप में, मनुष्यों के बीच निवास करता है। ऐसा एक भी व्यक्ति या चीज़ नहीं है, जिसका मेरे वचनों द्वारा न्याय नहीं किया जाएगा, और ऐसा एक भी व्यक्ति या चीज़ नहीं है, जिसे जलती आग के माध्यम से शुद्ध नहीं किया जाएगा। अंततः मेरे वचनों के कारण सारे राष्ट्र धन्य हो जाएँगे, और मेरे वचनों के कारण टुकड़े-टुकड़े भी कर दिए जाएँगे। इस तरह, अंत के दिनों के दौरान सभी लोग देखेंगे कि मैं ही वह उद्धारकर्ता हूँ जो वापस लौट आया है, और मैं ही वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ जो समस्त मानवजाति को जीतता है। और सभी देखेंगे कि मैं ही एक बार मनुष्य के लिए पाप-बलि था, किंतु अंत के दिनों में मैं सूर्य की ज्वाला भी बन जाता हूँ जो सभी चीज़ों को जला देती है, और साथ ही मैं धार्मिकता का सूर्य भी बन जाता हूँ जो सभी चीज़ों को प्रकट कर देता है। अंत के दिनों में यह मेरा कार्य है। मैंने इस नाम को इसलिए अपनाया और मेरा यह स्वभाव इसलिए है, ताकि सभी लोग देख सकें कि मैं एक धार्मिक परमेश्वर हूँ, दहकता हुआ सूर्य हूँ और धधकती हुई ज्वाला हूँ, और ताकि सभी मेरी, एक सच्चे परमेश्वर की, आराधना कर सकें, और ताकि वे मेरे असली चेहरे को देख सकें : मैं केवल इस्राएलियों का परमेश्वर नहीं हूँ, और मैं केवल छुटकारा दिलाने वाला नहीं हूँ; मैं समस्त आकाश, पृथ्वी और महासागरों के सारे प्राणियों का परमेश्वर हूँ।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, उद्धारकर्ता पहले ही एक “सफेद बादल” पर सवार होकर वापस आ चुका है
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