ii. परमेश्वर का नाम बदल सकता है, लेकिन उसका सार कभी नहीं बदलता
अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन
हर बार जब परमेश्वर पृथ्वी पर आता है, तो वह अपना नाम, अपना लिंग, अपनी छवि और अपना कार्य बदल देता है; वह अपने कार्य को दोहराता नहीं है। वह ऐसा परमेश्वर है, जो हमेशा नया रहता है और कभी पुराना नहीं पड़ता। जब वह पहले आया, तो उसे यीशु कहा गया; जब वह इस बार फिर से आता है, तो क्या उसे अभी भी यीशु कहा जा सकता है? जब वह पहले आया, तो वह पुरुष था; क्या वह इस बार फिर से पुरुष हो सकता है? जब वह अनुग्रह के युग के दौरान आया था, तो उसका कार्य सलीब पर चढ़ाया जाना था; जब वह फिर से आता है, तो क्या तब भी वह मानवजाति को पाप से छुटकारा दिला सकता है? क्या उसे फिर से सलीब पर चढ़ाया जा सकता है? क्या वह उसके कार्य की पुनरावृत्ति नहीं होगी? क्या तुम्हें नहीं पता था कि परमेश्वर हमेशा नया रहता है और कभी पुराना नहीं पड़ता? ऐसे लोग हैं, जो कहते हैं कि परमेश्वर अपरिवर्तनशील है। यह सही है, किंतु यह परमेश्वर के स्वभाव और सार की अपरिवर्तनशीलता को संदर्भित करता है। उसके नाम और कार्य में परिवर्तन से यह साबित नहीं होता कि उसका सार बदल गया है; दूसरे शब्दों में, परमेश्वर हमेशा परमेश्वर रहेगा, और यह तथ्य कभी नहीं बदलेगा। यदि तुम कहते हो कि परमेश्वर का कार्य अपरिवर्तनशील है, तो क्या वह अपनी छह-हजार-वर्षीय प्रबंधन योजना पूरी करने में सक्षम होगा? तुम केवल यह जानते हो कि परमेश्वर हमेशा अपरिवर्तनशील है, किंतु क्या तुम यह जानते हो कि परमेश्वर हमेशा नया रहता है और कभी पुराना नहीं पड़ता? यदि परमेश्वर का कार्य अपरिवर्तनशील है, तो क्या वह मानवजाति की आज के दिन तक अगुआई कर सकता था? यदि परमेश्वर अपरिवर्तनशील है, तो ऐसा क्यों है कि उसने पहले ही दो युगों का कार्य कर लिया है? उसका कार्य कभी आगे बढ़ने से नहीं रुकता, जिसका अर्थ है कि उसका स्वभाव मनुष्य के सामने धीरे-धीरे प्रकट होता है, और जो कुछ प्रकट होता है, वह उसका अंतर्निहित स्वभाव है। आरंभ में, परमेश्वर का स्वभाव मनुष्य से छिपा हुआ था, उसने कभी भी खुलकर मनुष्य के सामने अपना स्वभाव प्रकट नहीं किया था, और मनुष्य को बस उसका कोई ज्ञान नहीं था। इस वजह से, वह धीरे-धीरे मनुष्य के सामने अपने स्वभाव को प्रकट करने हेतु अपने कार्य का उपयोग करता है, किंतु इस तरह कार्य करने का यह अर्थ नहीं है कि परमेश्वर का स्वभाव हर युग में बदलता है। यह ऐसा मामला नहीं है कि परमेश्वर का स्वभाव लगातार बदल रहा है, क्योंकि उसकी इच्छा हमेशा बदल रही है। बल्कि, यह ऐसा है कि, चूँकि उसके कार्य के युग भिन्न-भिन्न हैं, इसलिए परमेश्वर अपने अंतर्निहित स्वभाव को उसकी समग्रता में लेता है और क्रमशः उसे मनुष्य के सामने प्रकट करता है, ताकि मनुष्य उसे जानने में समर्थ हो जाए। किंतु यह किसी भी भाँति इस बात का साक्ष्य नहीं है कि परमेश्वर का मूलतः कोई विशेष स्वभाव नहीं है या युगों के गुज़रने के साथ उसका स्वभाव धीरे-धीरे बदल गया है—इस प्रकार की समझ भ्रामक होगी। युगों के गुज़रने के अनुसार परमेश्वर मनुष्य को अपना अंतर्निहित और विशेष स्वभाव—अपना स्वरूप—प्रकट करता है; किसी एक युग का कार्य परमेश्वर के समग्र स्वभाव को व्यक्त नहीं कर सकता। और इसलिए, “परमेश्वर हमेशा नया रहता है और कभी पुराना नहीं पड़ता” वचन उसके कार्य को संदर्भित करते हैं, और “परमेश्वर अपरिवर्तनशील है” उसे संदर्भित करते हैं, जो परमेश्वर का अंतर्निहित स्वरूप है। इसके बावज़ूद, तुम छह-हज़ार-वर्ष के कार्य को एक बिंदु पर आधारित नहीं कर सकते, या उसे केवल मृत शब्दों के साथ सीमित नहीं कर सकते। मनुष्य की मूर्खता ऐसी ही है। परमेश्वर इतना सरल नहीं है, जितना मनुष्य कल्पना करता है, और उसका कार्य किसी एक युग में रुका नहीं रह सकता। उदाहरण के लिए, यहोवा हमेशा परमेश्वर का नाम नहीं हो सकता; परमेश्वर यीशु के नाम से भी अपना कार्य कर सकता है। यह इस बात का संकेत है कि परमेश्वर का कार्य हमेशा आगे की ओर प्रगति कर रहा है।
परमेश्वर हमेशा परमेश्वर है, और वह कभी शैतान नहीं बनेगा; शैतान हमेशा शैतान है, और वह कभी परमेश्वर नहीं बनेगा। परमेश्वर की बुद्धि, परमेश्वर की चमत्कारिकता, परमेश्वर की धार्मिकता और परमेश्वर का प्रताप कभी नहीं बदलेंगे। उसका सार और उसका स्वरूप कभी नहीं बदलेगा। किंतु जहाँ तक उसके कार्य की बात है, वह हमेशा आगे बढ़ रहा है, हमेशा गहरा होता जा रहा है, क्योंकि वह हमेशा नया रहता है और कभी पुराना नहीं पड़ता। हर युग में परमेश्वर एक नया नाम अपनाता है, हर युग में वह नया कार्य करता है, और हर युग में वह अपने सृजित प्राणियों को अपनी नई इच्छा और नया स्वभाव देखने देता है। यदि नए युग में लोग परमेश्वर के नए स्वभाव की अभिव्यक्ति देखने में असफल रहेंगे, तो क्या वे उसे हमेशा के लिए सलीब पर नहीं टाँग देंगे? और ऐसा करके, क्या वे परमेश्वर को परिभाषित नहीं करेंगे?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3)
कुछ लोग कहते हैं कि परमेश्वर का नाम नहीं बदलता, तो फिर यहोवा का नाम यीशु क्यों हो गया? यह भविष्यवाणी की गई थी मसीहा आएगा, तो फिर यीशु नाम का एक व्यक्ति क्यों आ गया? परमेश्वर का नाम क्यों बदल गया? क्या इस तरह का कार्य काफी समय पहले नहीं किया गया था? क्या परमेश्वर आज नया कार्य न करे? कल का कार्य बदला जा सकता है, और यीशु का कार्य यहोवा के कार्य के बाद आ सकता है। तो क्या यीशु के कार्य के बाद कोई अन्य कार्य नहीं हो सकता? यदि यहोवा का नाम बदल कर यीशु हो सकता है, तो क्या यीशु का नाम भी नहीं बदला जा सकता? इसमें कुछ भी असामान्य नहीं है; बात केवल इतनी-सी है कि लोग बहुत सरल दिमाग के हैं। परमेश्वर हमेशा परमेश्वर ही रहेगा। चाहे उसका काम कैसे भी बदले, चाहे उसका नाम कैसे भी बदल जाए, लेकिन उसका स्वभाव और बुद्धि कभी नहीं बदलेगी। यदि तुम्हें लगता है कि परमेश्वर को केवल यीशु के नाम से ही पुकारा जा सकता है, तो फिर तुम्हारा ज्ञान बहुत सीमित है। क्या तुम यह दावे से कह सकते हो कि परमेश्वर का नाम हमेशा के लिए यीशु रहेगा, परमेश्वर हमेशा यीशु नाम से ही जाना जाएगा, और यह कभी नहीं बदलेगा? क्या तुम यह यकीन से कह सकते हो कि यीशु नाम ने ही व्यवस्था के युग का समापन किया और वही अंतिम युग का भी समापन करेगा? कौन कह सकता है कि यीशु का अनुग्रह, युग का समापन कर सकता है?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, वो मनुष्य, जिसने परमेश्वर को अपनी ही धारणाओं में सीमित कर दिया है, किस प्रकार उसके प्रकटनों को प्राप्त कर सकता है?
यहोवा द्वारा क्रियान्वित किए गए कार्य के पहले चरण में, वह न तो देह बना और न मनुष्य के सामने प्रकट हुआ। तो मनुष्य ने कभी उसके प्रकटन को नहीं देखा। कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि वह कितना बड़ा और कितना ऊँचा था, वह फिर भी आत्मा था, स्वयं परमेश्वर जिसने आरंभ में मनुष्य को बनाया था। अर्थात, वह परमेश्वर का आत्मा था। वह बादलों में से मनुष्य से बात करता था, केवल एक आत्मा, और किसी ने भी उसका प्रकटन नहीं देखा। केवल अनुग्रह के युग में जब परमेश्वर का आत्मा देह में आया और यहूदिया में देहधारी हुआ, तो मनुष्य ने पहली बार एक यहूदी के रूप में देहधारण की छवि देखी। उसमें यहोवा जैसा कुछ भी नहीं था। हालांकि, वह पवित्र आत्मा द्वारा गर्भ में आया था, अर्थात स्वयं यहोवा के आत्मा के गर्भ में आया था, और यीशु का जन्म तब भी परमेश्वर के आत्मा के मूर्तरूप में हुआ था। मनुष्य ने जो सबसे पहले देखा वह यह था कि पवित्र आत्मा यीशु पर एक कबूतर की तरह उतर रहा है; यह यीशु के लिए विशेष आत्मा नहीं था, बल्कि पवित्र आत्मा था। तो क्या यीशु का आत्मा पवित्र आत्मा से अलग हो सकता है? अगर यीशु यीशु है, पुत्र है, और पवित्र आत्मा पवित्र आत्मा है, तो वे एक कैसे हो सकते हैं? यदि ऐसा है तो कार्य क्रियान्वित नहीं किया जा सकता। यीशु के भीतर का आत्मा, स्वर्ग में आत्मा और यहोवा का आत्मा सब एक हैं। इसे पवित्र आत्मा, परमेश्वर का आत्मा, सात गुना सशक्त आत्मा और सर्वसमावेशी आत्मा कहा जाता है। परमेश्वर का आत्मा बहुत से कार्य क्रियान्वित कर सकता है। वह दुनिया को बनाने और पृथ्वी को बाढ़ द्वारा नष्ट करने में सक्षम है; वह सारी मानव जाति को छुटकारा दिला सकता है और इसके अलावा वह सारी मानवजाति को जीत और नष्ट कर सकता है। यह सारा कार्य स्वयं परमेश्वर द्वारा क्रियान्वित किया गया है और उसके स्थान पर परमेश्वर के किसी अन्य व्यक्तित्व द्वारा नहीं किया जा सकता है। उसके आत्मा को यहोवा और यीशु के नाम से, साथ ही सर्वशक्तिमान के नाम से भी बुलाया जा सकता है। वह प्रभु और मसीह है। वह मनुष्य का पुत्र भी बन सकता है। वह स्वर्ग में भी है और पृथ्वी पर भी है; वह ब्रह्मांडों के ऊपर और बहुलता के बीच में है। वह स्वर्ग और पृथ्वी का एकमात्र स्वामी है! सृष्टि के समय से अब तक, यह कार्य स्वयं परमेश्वर के आत्मा द्वारा क्रियान्वित किया गया है। यह कार्य स्वर्ग में हो या देह में, सब कुछ उसकी आत्मा द्वारा क्रियान्वित किया जाता है। सभी प्राणी, चाहे स्वर्ग में हों या पृथ्वी पर, उसकी सर्वशक्तिमान हथेली में हैं; यह सब स्वयं परमेश्वर का कार्य है और उसके स्थान पर किसी अन्य के द्वारा नहीं किया जा सकता। स्वर्ग में वह आत्मा है, लेकिन स्वयं परमेश्वर भी है; मनुष्यों के बीच वह देह है, पर स्वयं परमेश्वर बना रहता है। यद्यपि उसे सैकड़ों-हज़ारों नामों से बुलाया जा सकता है, तो भी वह स्वयं है, आत्मा की प्रत्यक्ष अभिव्यक्ति है। उसके क्रूसीकरण के माध्यम से सारी मानव जाति का छुटकारा उसके आत्मा का प्रत्यक्ष कार्य था और वैसे ही अंत के दिनों के दौरान सभी देशों और सभी भूभागों के लिए उसकी घोषणा भी। हर समय, परमेश्वर को केवल सर्वशक्तिमान और एक सच्चा परमेश्वर, सभी समावेशी स्वयं परमेश्वर कहा जा सकता है। अलग-अलग व्यक्ति अस्तित्व में नहीं हैं, पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा का यह विचार तो बिल्कुल नहीं है! स्वर्ग में और पृथ्वी पर केवल एक ही परमेश्वर है!
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या त्रित्व का अस्तित्व है?
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