25. हैसियत के लाभों में लिप्त होने की समस्या का समाधान कैसे करें
अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन
मेरी पीठ पीछे बहुत-से लोग हैसियत के लाभों की अभिलाषा करते हैं, वे ठूँस-ठूँसकर खाना खाते हैं, सोना पसंद करते हैं तथा देह की इच्छाओं पर पूरा ध्यान देते हैं, हमेशा भयभीत रहते हैं कि देह से बाहर कोई मार्ग नहीं है। वे कलीसिया में अपना उपयुक्त कार्य नहीं करते, पर मुफ़्त में कलीसिया से खाते हैं, या फिर मेरे वचनों से अपने भाई-बहनों की भर्त्सना करते हैं, और अधिकार के पदों से दूसरों को बेबस करते हैं। ये लोग निरंतर कहते रहते हैं कि वे परमेश्वर की इच्छा के अनुसार चल रहे हैं और हमेशा कहते हैं कि वे परमेश्वर के अंतरंग हैं—क्या यह बेतुका नहीं है? यदि प्रेरणा सही सही है, पर तुम परमेश्वर के इरादों के अनुसार सेवा करने में असमर्थ हो, तो तुम मूर्ख हो; किंतु यदि तुम्हारी प्रेरणा सही नहीं हैं, और फिर भी तुम कहते हो कि तुम परमेश्वर की सेवा करते हो, तो तुम एक ऐसे व्यक्ति हो, जो परमेश्वर का विरोध करता है, और तुम्हें परमेश्वर द्वारा दंडित किया जाना चाहिए! ऐसे लोगों से मुझे कोई सहानुभूति नहीं है! परमेश्वर के घर में वे मुफ़्तखोरी करते हैं, हमेशा देह के आराम का लोभ करते हैं, और परमेश्वर की इच्छाओं का कोई विचार नहीं करते; वे हमेशा उसकी खोज करते हैं जो उनके लिए अच्छा है, और परमेश्वर के इरादों पर कोई ध्यान नहीं देते। वे जो कुछ भी करते हैं, उसमें परमेश्वर के आत्मा की जाँच-पड़ताल स्वीकार नहीं करते। वे अपने भाई-बहनों के साथ हमेशा कुटिल और धूर्त तरीके से पेश आते हैं और उन्हें धोखा देते रहते हैं, और दो-मुँहे होकर वे, अंगूर के बाग में घुसी लोमड़ी के समान, हमेशा अंगूर चुराते हैं और अंगूर के बाग को रौंदते हैं। क्या ऐसे लोग परमेश्वर के अंतरंग हो सकते हैं? क्या तुम परमेश्वर के आशीष प्राप्त करने लायक़ हो? तुम अपने जीवन एवं कलीसिया के लिए कोई उत्तरदायित्व नहीं लेते, क्या तुम परमेश्वर का आदेश लेने के लायक़ हो? तुम जैसे व्यक्ति पर कौन भरोसा करने की हिम्मत करेगा? जब तुम इस प्रकार से सेवा करते हो, तो क्या परमेश्वर तुम्हें कोई बड़ा काम सौंप सकता है? क्या इससे कार्य में विलंब नहीं होगा?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के इरादों के अनुरूप सेवा कैसे करें
“हैसियत” शब्द अपने आप में न तो कोई परीक्षण है न ही प्रलोभन। यह इस बात पर निर्भर करता है कि लोग हैसियत को कैसे संभालते हैं। अगर तुम अगुआई के काम को अपने कर्तव्य और पूरी की जाने वाली जिम्मेदारी की तरह लेते हो, तो हैसियत तुम्हें लाचार नहीं करेगी। अगर तुम इसे एक आधिकारिक पदवी या पद के रूप में स्वीकारते हो, तो तुम मुश्किल में पड़कर यकीनन मुँहकी खाओगे। तो फिर कलीसिया का अगुआ और कार्यकर्ता बनने पर किसी को कैसी मानसिकता अपनानी चाहिए? अनुसरण में तुम्हारा ध्यान कहाँ होना चाहिए? तुम्हारा एक मार्ग होना चाहिए! अगर तुम सत्य नहीं खोजते और तुम्हारे सामने अभ्यास का कोई मार्ग नहीं है, तो यह हैसियत तुम्हारे लिए फंदा बन जाएगी और तुम औंधे मुँह गिर पड़ोगे। कुछ लोग हैसियत पाने के बाद अलग किस्म के हो जाते हैं और उनकी मानसिकता बदल जाती है। वे नहीं जानते कि कैसी पोशाक पहनें, दूसरों से कैसे बात करें, किस लहजे में बोलें, लोगों से कैसे संसर्ग करें, और चेहरे पर कैसी भाव-भंगिमाएँ लाएँ। परिणामस्वरूप, वे अपनी एक छवि गढ़ने लगते हैं। क्या यह एक विकृति नहीं है? कुछ लोग गैर-विश्वासियों का केश-विन्यास, उनके कपड़े-लत्ते और उनकी बोलचाल की खूबियाँ ताकते हैं। वे उनकी नकल करते हैं, और इस मार्ग पर गैर-विश्वासियों की दिशा में चल पड़ते हैं। क्या यह सकारात्मक चीज है? (नहीं है।) यहाँ क्या चल रहा होता है? हालाँकि ये सतही परिपाटियाँ लगती हैं, वास्तव में ये एक प्रकार का अनुसरण हैं। ये नकल हैं। यह सही तरीका नहीं है। अब तुम लोग इन जाहिर छवियों और छद्मवेशों में सही और गलत का भेद कर सकते हो, मगर क्या तुम गलत को ठुकराकर उसके विरुद्ध विद्रोह कर सकते हो? (हाँ, अगर हम इसके प्रति जागरूक हों।) यह तुम लोगों का मौजूदा आध्यात्मिक कद है? जब ये विचार तुम्हारे दिल में ताजा हैं, तुम उनमें भेदकर उन्हें पहचान सकते हो। अगर तुम हैसियत के पीछे भागने को प्रेरित हो, तो तुम इस आकांक्षा को मंद कर सकते हो, ताकि तुम उस आसक्त प्रशंसक की तरह बन जाओ जो अपने आदर्श का यों पीछा करता है जैसे कोई मतवाला बर्बर जानवर। अपनी सोच से, तुम उन विचारों की पहचान कर सकते हो। जब तुम लोगों से घिरे हुए न हो, तो तुम किसी प्रलोभन के बिना देह के विरुद्ध विद्रोह कर सकते हो। लेकिन तब क्या जब लोग तुम्हारा अनुसरण करें, तुम्हारी रोजमर्रा की जरूरतों की परवाह करें, तुम्हें भोजन और कपड़े दें, और तुम्हारी हर जरूरत पूरी करें? तब तुम्हारे दिल में कौन-सी भावनाएँ हलचल मचाएँगी? क्या तुम हैसियत के मजे नहीं लूटोगे? क्या तब भी तुम देह के विरुद्ध विद्रोह कर सकोगे? जब लोग तुम्हारे चारों ओर इकट्ठा हो जाएँ, तुम्हारे चारों ओर मँडराएँ मानो तुम कोई सितारा हो, तब तुम इस हैसियत को कैसे सँभालोगे? तुम्हारी चेतना की चीजें, यानी तुम्हारी सोच और विचारों की वे चीजें—हैसियत की प्रशंसा, हैसियत का आनंद, हैसियत का लालच, और यहाँ तक कि उसके प्रति आसक्ति—क्या तुम ये चीजें ढूँढ़ने के लिए अपना दिल टटोल सकते हो? क्या तुम उन्हें पहचान सकते हो? अगर तुम अपने दिल की जाँच कर उसके भीतर इन चीजों को पहचान सको, तो क्या उस हालत में तुम देह के विरुद्ध विद्रोह कर सकोगे? अगर तुममें सत्य का अभ्यास करने की इच्छाशक्ति नहीं है, तो तुम इन चीजों के विरुद्ध विद्रोह नहीं करोगे। तुम इनका मजा लोगे, और मस्त रहोगे। पूरी तरह आत्मसंतुष्ट होकर तुम कहोगे, “परमेश्वर में विश्वासी की हैसियत रखना सचमुच अद्भुत है। एक अगुआ के रूप में सभी लोग मेरी बात मानते हैं। यह कितना शानदार एहसास है। मैं ही इन लोगों की अगुआई कर इनका सिंचन करता हूँ। ये सब अब मेरे आज्ञाकारी हैं। मैं पूरब में जाने को कहता हूँ, तो कोई भी पश्चिम में नहीं जाता। जब मैं कहता हूँ प्रार्थना करो, तो कोई गाना गाने की हिम्मत नहीं करता। यह बहुत बड़ी उपलब्धि है।” तब तुम हैसियत के लाभों का मजे उठाने लगे होगे। तब हैसियत तुम्हारे लिए क्या बन चुकी होगी? (जहर।) और हालाँकि यह जहर है, तुम्हें इससे डरने की जरूरत नहीं। ठीक ऐसी ही स्थिति में तुम्हें सही अनुसरण और अभ्यास के सही तरीकों की जरूरत है। अक्सर, जब लोग हैसियत वाले होते हैं, मगर उनके काम के परिणाम मिलने अभी बाकी हों तो वे यही कहेंगे, “मैं हैसियत का मजा नहीं ले पा रहा हूँ, हैसियत से मिलनेवाली हर चीज का मजा नहीं ले पा रहा हूँ।” मगर, एक बार जब उनका काम कुछ सफल होने लगता है और उन्हें लगता है कि उनकी हैसियत सुरक्षित है, तो वे अपनी समझ खो बैठते हैं, और हैसियत के फायदों के मजे लेने लगते हैं। क्या तुम मानते हो कि सिर्फ प्रलोभन को पहचानकर तुम देह के विरुद्ध विद्रोह कर सकते हो? क्या वास्तव में तुम्हारा आध्यात्मिक कद इतना ऊँचा है? सच्चाई यह है कि यह इतना ऊँचा नहीं है। मनुष्य में जितना बुनियादी जमीर और तार्किकता होती है तुम उससे अधिक पहचान और विद्रोह हासिल नहीं कर सकते हो। ये ही तुम्हें बताते हैं कि इस तरह पेश मत आओ। परमेश्वर में आस्था से प्राप्त जमीर और थोड़ी-सी तार्किकता का मानक ही तुम्हारी मदद करता है या तुम्हें गलत रास्ते से दूर रखता है। इसका संदर्भ क्या है? वह यह है कि तुम हैसियत से प्रेम तो करते हो मगर अभी उसे नहीं पा सके हो, और अभी भी तुममें थोड़ा जमीर और विवेक है। ये कथन तुम्हें अब भी संयमित रख सकते हैं और तुम्हें एहसास करवा सकते हैं कि हैसियत का मजा लेना ठीक नहीं है, यह सत्य के अनुरूप नहीं है, यह सही मार्ग नहीं है, यह परमेश्वर का प्रतिरोध है और उसे खिन्न करता है। तब तुम सचेत होकर देह के विरुद्ध विद्रोह कर सकते हो, और हैसियत का मजा छोड़ सकते हो। जब तुम्हारे पास दिखाने को कोई उपलब्धियाँ या खूबियाँ न हों, तब तुम देह के विरुद्ध विद्रोह कर सकते हो, मगर जैसे ही तुम सराहनीय कार्य करोगे, तो क्या तुम्हारी शर्म, तार्किकता, तुम्हारा जमीर और तुम्हारे नैतिक विचार तुम्हें रोकेंगे? तुम्हारे जमीर का तुच्छ-सा मानक तुम्हारे पास परमेश्वर का भय मानने वाले दिल होने के आसपास नहीं आता, और तुम्हारी नगण्य-सी आस्था किसी काम की नहीं होगी।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, हैसियत के प्रलोभन और बंधन कैसे तोड़ें
तुम लोगों के लिए अगुआ या कार्यकर्ता होना विशेष क्यों है? (ज्यादा जिम्मेदारी उठाना।) जिम्मेदारी इसका हिस्सा है। यह ऐसी चीज है जिसको लेकर तुम सभी सचेत हो, मगर तुम अपनी जिम्मेदारियाँ अच्छी तरह कैसे पूरी कर सकते हो। तुम कहाँ से शुरू करोगे? दरअसल, इस जिम्मेदारी को अच्छे से निभाना, अपना कर्तव्य अच्छे ढंग से निभाना है। “जिम्मेदारी” शब्द सुनकर यूँ लग सकता है मानो यह कोई विशेष चीज हो, मगर अंतिम विश्लेषण में, यह व्यक्ति का कर्तव्य ही है। तुम लोगों के लिए, अपना कर्तव्य अच्छे ढंग से निभाना आसान काम नहीं है, क्योंकि तुम्हारे सामने बहुत-से अवरोध हैं, जैसे कि हैसियत का अवरोध, जिसे पार करना तुम लोगों के लिए बहुत मुश्किल है। अगर तुम्हारे पास कोई हैसियत नहीं है, तुम एक साधारण विश्वासी हो, तो तुम्हारे सामने कम प्रलोभन आएँगे, और तुम्हारे लिए अपना कर्तव्य अच्छे ढंग से निभाना आसान रहेगा। तुम साधारण लोगों की तरह हर दिन आध्यात्मिक जीवन जी सकते हो, परमेश्वर के वचनों को खा-पी सकते हो, सत्य पर संगति कर सकते हो, और अपने कर्तव्य अच्छे ढंग से निभा सकते हो। यह पर्याप्त है। लेकिन अगर तुम्हारे पास हैसियत है, तो तुम्हें पहले हैसियत के कारण उत्पन्न अवरोध को पार करना होगा। पहले तुम्हें इस परीक्षा में खरा उतरना होना होगा। तुम इस अवरोध को पार कैसे कर सकते हो? साधारण लोगों के लिए यह आसान नहीं है, क्योंकि मनुष्य के भीतर भ्रष्ट स्वभाव गहराई से जड़ें जमाए हुए हैं। सभी लोग अपने भ्रष्ट स्वभाव के साथ जीते हैं, और सहज रूप से शोहरत, लाभ और हैसियत के पीछे भागने को लालायित रहते हैं। ऐसी मुश्किलों के बीच आखिरकार हैसियत पा लेने के बाद कौन इसके लाभों का मजा नहीं लूटेगा? अगर तुम्हारे दिल में सत्य के प्रति प्रेम है और तुम्हारे पास एक हद तक परमेश्वर का भय मानने वाला दिल है, तो तुम अपनी हैसियत को सावधानी और सतर्कता से संभालोगे, साथ-ही-साथ अपने कर्तव्य निर्वाह में सत्य को खोजने में भी सक्षम होगे। इस प्रकार, तुम्हारे दिल में शोहरत, लाभ और हैसियत को जगह नहीं मिलेगी, न ही वे तुम्हारे कर्तव्य निर्वाह में रुकावट पैदा कर पाएँगे। अगर तुम्हारा आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है, तो तुम्हें बार-बार प्रार्थना करनी चाहिए, और परमेश्वर के वचनों से खुद को संयम में रखना चाहिए। तुम्हें कुछ खास चीजें करने के लिए या कुछ प्रकार के परिवेशों और प्रलोभनों से सचेत होकर बचने के तरीके ढूँढ़ने चाहिए। उदाहरण के लिए, मान लो कि तुम एक अगुआ हो। जब तुम बहुत-से साधारण भाई-बहनों के संग रहते हो, तो क्या वे तुम्हें अपने से थोड़ा-सा श्रेष्ठ नहीं समझेंगे? भ्रष्ट मानवजाति इसी तरह देखती है और यह तुम्हारे लिए पहले से ही एक प्रलोभन है। यह परीक्षण नहीं, प्रलोभन है! अगर तुम भी मानते हो कि तुम उनसे श्रेष्ठ हो, तो यह बहुत खतरनाक है, लेकिन अगर तुम उन्हें अपनी बराबरी का मानते हो, तो तुम्हारी मानसिकता सामान्य है और तुम भ्रष्ट स्वभाव से विचलित नहीं होगे। अगर तुम्हें लगता है कि अगुआ होने के नाते तुम्हारी हैसियत उनसे श्रेष्ठ है, तो वे तुमसे कैसे पेश आएँगे? (वे अगुआ का आदर करेंगे।) क्या वे सिर्फ तुम्हें आदर देंगे और तुम्हारी सराहना करेंगे, और कुछ नहीं? नहीं। उन्हें उसी अनुरूप बोलना और करना होगा। उदाहरण के लिए, अगर तुम्हें सर्दी-जुकाम हो जाए, और एक साधारण भाई-बहन को भी सर्दी-जुकाम हो जाए, तो वे पहले किसकी देखभाल करेंगे? (अगुआ की।) क्या यह अहमियत देना नहीं है? क्या यह हैसियत के फायदों में से एक नहीं है? अगर किसी भाई-बहन के साथ तुम्हारा विवाद हो गया तो तुम्हारी हैसियत के कारण क्या वे तुमसे निष्पक्ष रूप से पेश आएँगे? क्या वे सत्य का पक्ष लेंगे? (नहीं।) ये तुम्हारे सामने आनेवाले प्रलोभन हैं। क्या तुम इनसे बच सकते हो? तुम्हें इनसे कैसे निपटना चाहिए? अगर कोई तुमसे बुरे ढंग से पेश आए, तो शायद तुम उन्हें पसंद न करो, और उन पर हमला करने, उन्हें अलग-थलग कर देने, उनसे बदला लेने के बारे में सोच सकते हो, जबकि दरअसल, वह व्यक्ति गलत नहीं है। दूसरी ओर, कुछ लोग तुम्हारी चापलूसी कर सकते हैं, और शायद तुम इस पर आपत्ति न करो, बल्कि इसका सचमुच आनंद लेने लगो। क्या यह मुसीबत खड़ी करने वाली बात नहीं है? क्या तुम फौरन चापलूस को आगे बढ़ाना और प्रशिक्षित करना शुरू नहीं कर दोगे, ताकि वह तुम्हारा विश्वासपात्र बनकर तुम्हारा कहा मानने लगे? अगर तुमने ऐसा किया, तो तुम किस मार्ग पर चल रहे होगे? (मसीह-विरोधियों का मार्ग।) अगर तुम इन प्रलोभनों में फँसोगे, तो खतरे में पड़ जाओगे। क्या सारा दिन लोगों का तुम्हें घेरे रहना जरूरी है? मैंने सुना है कि कुछ लोग अगुआ बनने के बाद अपना काम नहीं करते या व्यावहारिक समस्याएँ नहीं सुलझाते। इसके बजाय, वे सिर्फ देह के सुखों के बारे में सोचते रहते हैं। कभी-कभी वे सिर्फ अपने लिए बना विशेष भोजन करते हैं, और अपने मैले कपड़े दूसरों से धुलवाते हैं। एक समय के बाद, उनका खुलासा कर हटा दिया जाता है। ऐसी किसी चीज का सामना होने पर तुम लोगों को क्या करना चाहिए? अगर तुम्हारी कोई हैसियत है, तो लोग तुम्हारी चापलूसी करेंगे, और तुम्हारे साथ खास ढंग से पेश आएँगे। अगर तुम इन प्रलोभनों से उबर कर इन्हें नकार सकते हो, और लोग तुमसे चाहे जैसे भी पेश आएँ, तुम उनके साथ निष्पक्ष बर्ताव कर सकते हो, तो इससे साबित होता है कि तुम सही किस्म के इंसान हो। अगर तुम हैसियत वाले हो, तो कुछ लोग तुम्हें आदर से देखेंगे। वे तुम्हारी खुशामद और चापलूसी करते हुए हमेशा तुम्हारे आसपास मँडराएंगे। क्या तुम इसे समाप्त कर सकते हो? तुम लोग ऐसी स्थितियों को कैसे संभालते हो? जब तुम लोगों को अपनी देखभाल की जरूरत न हो, फिर भी कोई तुम्हारी ओर “मदद का हाथ” बढ़ाकर तुम्हारे लिए सब-कुछ करने लगे, तो संभवतः तुम लोग मन-ही-मन खुश होते होगे, सोचते होगे कि हैसियत तुम्हें अलग दर्जा देती है, और विशेष व्यवहार का पूरा मजा लेना चाहिए। क्या ऐसा नहीं होता? क्या यह एक असली समस्या नहीं है? जब तुम्हारे साथ ऐसी चीजें होती हैं, तो क्या तुम्हारा दिल तुम्हें धिक्कारता है? क्या तुम्हें घिन और नफरत होती है? अगर कोई व्यक्ति घिन और नफरत महसूस नहीं करता, इसे नहीं ठुकराता, दिल से आरोप और दोष से मुक्त रहता है, और इसके बजाय यह महसूस करके कि हैसियत एक अच्छी चीज है, इन चीजों का मजा लेना पसंद करता है, तो क्या ऐसे व्यक्ति में कोई जमीर होता है? क्या उसमें तार्किकता होती है? क्या यह ऐसा व्यक्ति है जो सत्य का अनुसरण करता है? (नहीं।) यह क्या दर्शाता है? यह हैसियत के फायदों की लिप्सा है। हालाँकि यह तुम्हें मसीह-विरोधी की पाँत में खड़ा नहीं करती, फिर भी तुम मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चल पड़े हो। जब तुम विशेष आवभगत का मजा लेने के आदी हो जाते हो, तो अगर किसी दिन तुम्हारी ऐसी आवभगत न हो तो क्या तुम नाराज नहीं हो जाओगे? अगर कुछ भाई-बहन गरीब हैं और उनके पास तुम्हारी खातिरदारी के लिए पैसा नहीं है, तो क्या तुम उनके साथ निष्पक्ष रूप से पेश आओगे? अगर वे तुम्हें नाखुश करनेवाला कोई तथ्य बताएँ, तो क्या तुम उन पर अपनी ताकत आजमाओगे, और उन्हें दंडित करने के बारे में सोचोगे? क्या उन्हें देखकर तुम नाखुश हो जाओगे और उन्हें सबक सिखाना चाहोगे? अगर तुम्हारे मन में ऐसे विचार आने लगें, तो फिर तुम बुराई करने से ज्यादा दूर नहीं हो, है न? क्या लोगों के लिए मसीह-विरोधी मार्ग पर चलना सरल है? क्या मसीह-विरोधी बनना आसान है? (हाँ।) यह बहुत संताप की बात है! अगर अगुआ और कार्यकर्ता के तौर पर, तुम हर चीज में सत्य नहीं खोजते, तो तुम मसीह-विरोधी मार्ग पर चल रहे हो।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, हैसियत के प्रलोभन और बंधन कैसे तोड़ें
परमेश्वर में विश्वास करने के बाद, बहुत से लोग हमेशा रुतबे का अनुसरण करते हैं और चाहते हैं कि दूसरे लोग उनके बारे में ऊँचा सोचें। परमेश्वर के घर में, वे हमेशा भीड़ से अलग दिखना और सबसे आगे रहना चाहते हैं। इन चीजों की खातिर, वे अपने परिवारों और अपने करियर को छोड़ देते हैं, कठिनाई झेलते हैं और कीमत चुकाते हैं, फिर आखिर में उनकी इच्छा पूरी हो जाती है और वे अगुआ बन जाते हैं। अगुआ बनने के बाद, इन लोगों का जीवन वास्तव में बदल जाता है। उनके मन में दफ्तर जाने वाले लोगों की जो छवि और शैली थी, उनके कपड़े पहनने के ढंग से लेकर तैयार होने, बात करने और काम करने के तरीके तक, वे उनके हर पहलू को अभिव्यक्त करते हैं। वे एक अधिकारी की तरह बात करना सीखते हैं, लोगों को आदेश देना सीखते हैं, और यह भी सीखते हैं कि अपने निजी मामलों को लोगों से कैसे हल करवाएँ। सरल शब्दों में कहूँ तो, वे अधिकारी बनना सीखते हैं। जब वे अगुआ बनने के लिए किसी स्थान पर जाते हैं, तो इसका मतलब है कि वे अधिकारी बनने के लिए वहाँ जा रहे हैं। अधिकारी बनने का क्या अर्थ है? वे “भोजन और वस्त्रों की खातिर पद हासिल करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाते हैं।” यह भौतिक सुखों से संबंधित मामला है। अगुआ बनने के बाद, उनके जीवन में पहले से क्या बदलाव आया है? उनका खान-पान, पहनावा, और उनकी इस्तेमाल की चीजें, ये सब बदल गया है। खाते समय, वे इस बात का ध्यान रखते हैं कि खाना पौष्टिक और स्वादिष्ट हो। वे अपने कपड़ों के ब्रांड और स्टाइल का खास ध्यान रखते हैं। एक साल तक किसी स्थान पर अगुआ रहने के बाद, वे थुलथुल और मोटे हो जाते हैं; वे सिर से पैर तक डिजाइनर कपड़ों में लिपटे होते हैं; और उनके सेल फोन, कंप्यूटर और उनके घर में मौजूद उपकरण सभी उन्नत ब्रांड के होते हैं। क्या अगुआ बनने से पहले उनकी यह स्थिति थी? (नहीं।) अगुआ बनने के बाद उन्होंने पैसे कमाने की कोशिश नहीं की, तो फिर उनके पास ये सब चीजें खरीदने के लिए पैसे कहाँ से आए? क्या भाई-बहनों ने उन्हें ये चीजें दान में दीं, या परमेश्वर के घर ने उन्हें ये चीजें सौंपी? क्या तुम लोगों ने कभी परमेश्वर के घर को हर अगुआ और कार्यकर्ता को ये चीजें सौंपने के बारे में सुना है? (नहीं।) तो, उन्हें ये चीजें कैसे मिलीं? चाहे जो भी हो, उन्होंने ये चीजें अपनी मेहनत से हासिल नहीं की थीं; बल्कि, ये सब चीजें उन्हें रुतबा पाने और “अधिकारी” बनने के बाद—जहाँ उन्होंने रुतबे के लाभों का आनंद लिया—दूसरों से जबरन वसूली करके, धोखाधड़ी से, और चीजें जब्त करके मिलीं। हर जगह कलीसियाओं में, क्या किसी भी पद पर इस तरह के अगुआ और कार्यकर्ता थे जिनसे तुम लोगों की मुलाक़ात हुई हो? जब वे पहली बार अगुआ बनते हैं तो उनके पास कुछ भी नहीं होता है, मगर तीन महीनों के भीतर उनके पास उन्नत ब्रांड के कंप्यूटर और सेल फोन आ जाते हैं। अगुआ बनने के बाद, कुछ लोग सोचते हैं कि लोगों को उनके साथ बहुत अच्छे से पेश आना चाहिए—जब वे बाहर जाएँ तो उन्हें कार से सफर करना चाहिए; वे जिन कंप्यूटर और सेल फोन का इस्तेमाल करते हैं, वे औसत लोगों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले कंप्यूटर और सेल फोन की तुलना में बेहतर होने चाहिए, वे उन्नत ब्रांड के होने चाहिए, और जब मॉडल पुराना हो जाए तो उन्हें नया मॉडल लेना चाहिए। क्या परमेश्वर के घर में ये नियम हैं? परमेश्वर के घर में ये नियम कभी नहीं थे, और ऐसा एक भी भाई या बहन नहीं है जो ऐसा सोचता हो। तो ये चीजें जिनका सभी अगुआ आनंद लेते हैं, कहाँ से आती हैं? एक बात तो यह है कि उन्होंने इनमें से कुछ चीजें भाई-बहनों से जबरन वसूली करके पाई हैं और कुछ चीजें परमेश्वर के घर का काम करने का दिखावा करके अमीर लोगों से अपने लिए खरीदवाई हैं। इसके अलावा, इनमें से कुछ चीजों को उन्होंने भेंटों का गबन और चोरी करके खुद ही खरीदा है। क्या वे ऐसे घिनौने लोग नहीं हैं जो धोखाधड़ी से खाने-पीने की चीजें हासिल करते हैं? क्या यह उन लोगों से जरा भी अलग है जिनके बारे में मैंने पिछले कुछ मामलों में बात की थी? (नहीं।) उनमें क्या समानता है? उन सबने भेंटों का गबन करने और उन्हेंजबरन भेंट वसूलने के लिए अपने पद का इस्तेमाल किया था। कुछ लोग कहते हैं, “परमेश्वर के घर में काम करके और अगुआ या कार्यकर्ता बनकर, क्या वे इन चीजों का आनंद लेने के हकदार नहीं हैं? क्या वे परमेश्वर के साथ उसकी भेंटों का हिस्सा लेने के हकदार नहीं हैं?” मुझे बताओ, क्या वे इसके हकदार हैं? (नहीं।) अगर उन्हें परमेश्वर के घर का काम करने के लिए कुछ चीजें खरीदनी हैं, तो ऐसे में परमेश्वर के घर के अपने नियम हैं जो कहते हैं कि वे ये चीजें खरीद सकते हैं, मगर क्या ये लोग इन नियमों को ध्यान में रखते हुए ये चीजें खरीद रहे हैं? (नहीं।) तुम लोगों को कैसे पता कि वे ऐसा नहीं कर रहे हैं? (अगर उन्हें वाकई काम के लिए इसकी जरूरत होती, तो वे सोचते कि अगर किसी चीज से काम हो सकता है तो वह ठीक है, मगर मसीह-विरोधी उन्नत डिजाइनर चीजें चाहते हैं, और वे सिर्फ सबसे अच्छी चीजों का इस्तेमाल करते हैं। इस बात को देखें तो पता चलता है कि वे इन भौतिक चीजों का आनंद लेने के लिए अपने रुतबे का इस्तेमाल कर रहे हैं।) यह सही है। अगर काम के लिए जरूरत होती, तो कोई भी चीज जिससे काम हो जाए, ठीक है। उन्हें ऐसी फैंसी और महंगी चीजों का इस्तेमाल करने की क्या जरूरत है? साथ ही, जब उन्होंने ये चीजें खरीदीं, तो क्या अन्य लोगों ने फैसला लेने में भाग लिया और क्या वे इससे सहमत थे? क्या यह एक समस्या नहीं है? अगर अन्य लोगों ने फैसला लेने में भाग लिया होता, तो क्या वे सभी इन उन्नत चीजों को खरीदने के लिए उनके साथ सहमत होते? बिल्कुल नहीं। यह एकदम स्पष्ट है कि उन्होंने ये चीजें भेंटों की चोरी करके हासिल की हैं। यह बात बिल्कुल साफ है। वैसे भी, परमेश्वर के घर का एक नियम है—हरेक कलीसिया चाहे भेंटों की सुरक्षा कर रही हो या काम में साझेदारी कर रही हो, यह कभी भी सिर्फ एक व्यक्ति का काम नहीं होता। तो, ये लोग अकेले, अपनी मर्जी से भेंटों का इस्तेमाल और उन्हें खर्च क्यों कर पाए? यह सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है। क्या उनके द्वारा किए जाने वाले इन कामों की प्रकृति भेंटों की चोरी करने की नहीं है? उन्होंने दूसरे अगुआओं और कार्यकर्ताओं की सहमति और स्वीकृति के बिना ही इन चीजों को खरीदा और हासिल किया, दूसरे लोगों को सूचित करना तो दूर की बात है, और किसी को इस बारे में पता तक नहीं लगा। क्या इसकी प्रकृति कुछ चोरी जैसी नहीं है? इसे भेंटों की चोरी करना कहते हैं। चोरी करना धोखा है। इसे धोखा क्यों कहते हैं? क्योंकि उन्होंने परमेश्वर के घर का काम करने का झंडा फहराकर ये शानदार चीजें खरीदीं और उन्हें हासिल किया। इस तरह के व्यवहार को धोखाधड़ी कहते हैं, और यह धोखा है। क्या मैंने कुछ ज्यादा ही बोल दिया? क्या मैं बात का बतंगड़ बना रहा हूँ? (नहीं।) इतना ही नहीं, बल्कि ये तथाकथित अगुआ कुछ समय तक किसी स्थान पर रहने के बाद, पता लगाने की कोशिश करते हैं कि वहाँ के भाई-बहन संसार में क्या काम करते हैं, उनके क्या सामाजिक संबंध हैं, और वे इन लोगों से क्या लाभ पा सकते हैं, और किन संबंधों का फायदा उठा सकते हैं। उदाहरण के लिए, कौन-कौन भाई-बहन किसी अस्पताल में, किसी सरकारी विभाग में या किसी बैंक में काम करते हैं, या कौन उद्यमी है, किसके परिवार के पास दुकान, कार या बड़ा घर वगैरह है, वे ये सब कुछ पता लगाने की कोशिश करते हैं। क्या ये चीजें इन अगुआओं के काम के दायरे में आती हैं? वे इन चीजों का पता लगाने की कोशिश क्यों कर रहे हैं? वे इन संबंधों का इस्तेमाल करना चाहते हैं और इन भाई-बहनों का फायदा उठाना चाहते हैं जिनके पास संसार में विशेष पद हैं, ताकि वे उनसे अपना काम करवा सकें, अपनी सेवा करवा सकें, और उनसे सुविधाएँ ले सकें। क्या तुम लोगों को लगता है कि वे कलीसिया का काम करने के लिए ऐसा कर रहे हैं, और परमेश्वर के चुने हुए लोगों की कठिनाइयाँ दूर करने के लिए सत्य पर संगति कर रहे हैं? क्या वे यही कर रहे हैं? वे जो कुछ भी करते हैं उसके पीछे एक इरादा और उद्देश्य होता है। जब सच्चे अगुआ और कार्यकर्ता काम करते हैं, तो वे समस्याएँ सुलझाने और कलीसिया के काम को अच्छे से करने पर ध्यान देते हैं। वे उन चीजों पर ध्यान नहीं देते जिनका कलीसिया के काम से कोई लेना-देना नहीं है। वे बस यह पूछने पर ध्यान देते हैं कि कलीसिया में कौन अपना कर्तव्य ईमानदारी से निभा रहा है, कौन अपने कर्तव्य में प्रभावी है, कौन सत्य स्वीकार सकता है और सत्य का अभ्यास कर सकता है, और कौन अपने कर्तव्य में निष्ठावान है। फिर, वे उन्हें बढ़ावा देते हैं, और उन लोगों की जाँच-पड़ताल करते हैं जो व्यवधान और गड़बड़ी पैदा करते हैं और सिद्धांत के अनुसार उनसे निपटते हैं। जो लोग इस तरह से अभ्यास करते हैं केवल वे ही सच्चे अगुआ और कार्यकर्ता होते हैं। क्या मसीह-विरोधी ये चीजें करते हैं? (नहीं।) वे क्या करते हैं? वे अपने लिए और अपने हितों की खातिर वाँछनीय चीजें इकट्ठा करने के लिए काम और तैयारियाँ करते हैं, मगर खुद को कलीसिया के काम में नहीं लगाते हैं, और इसे महत्व नहीं देते। इसलिए, किसी स्थान पर अपना पैर जमाने के बाद, वे काफी हद तक यह पता लगा लेते हैं कि कौन-से भाई-बहन उनके लिए क्या सेवाएँ प्रदान कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, जो कोई भी दवा बनाने के कारखाने में काम करता है, वह उनके बीमार होने पर मुफ्त में दवाएँ दे सकता है, और उन्हें उच्च गुणवत्ता वाली विदेशी दवा दे सकता है; जो कोई भी बैंक में काम करता है, वह उनके लिए पैसों की जमा या निकासी का कार्य सुविधाजनक बना सकता है; वगैरह-वगैरह। वे इन सभी चीजों का बहुत स्पष्ट रूप से पता लगाने की कोशिश करते हैं। वे इस बात की परवाह किए बिना कि इन लोगों की मानवता अच्छी है या नहीं, इन्हें अपने सामने इकट्ठा कर लेते हैं। जब तक ये लोग उनकी बात मानते हैं और उनके सहायक और समर्थक बनने के लिए तैयार रहते हैं, तब तक मसीह-विरोधी उन्हें वाँछनीय चीजें देंगे, और उन्हें अपने करीब रखेंगे और उनका भरण-पोषण और सुरक्षा करेंगे, जबकि ये लोग कलीसिया में इन मसीह-विरोधियों की स्थिति को मजबूत करने और इनकी ताकतों को बनाए रखने के लिए काम करते हैं। इसलिए, जब तुम यह देखना चाहते हो कि कलीसिया का कोई अगुआ वास्तविक कार्य कर रहा है या नहीं, तो उससे उस कलीसिया में भाई-बहनों की वास्तविक स्थिति के बारे में पूछो, और यह पूछो कि कलीसिया का काम कैसे चल रहा है, तो तुम स्पष्ट रूप से देख पाओगे कि क्या वह वास्तव में ऐसा व्यक्ति है जो वास्तविक कार्य करता है। कुछ लोगों को कलीसिया में भाई-बहनों के पारिवारिक मामलों और उनकी आजीविका की परिस्थितियों का स्पष्ट रूप से पता होता है। अगर तुम उनसे पूछो कि कौन दवा कारखाने में काम करता है, किसके परिवार के पास दुकान है, किसके परिवार के पास कार है, किसके परिवार का बड़ा व्यवसाय है, या कौन किसी स्थानीय विभाग में काम करता है और कौन भाई-बहनों के लिए काम कर सकता है, तो वे तुम्हें सटीक रूप से बता सकते हैं। यदि तुम उनसे पूछो कि कौन सत्य का अनुसरण करता है, कौन अपने कर्तव्य में अनमना है, कौन मसीह-विरोधी है, कौन लोगों को जीतने की कोशिश करता है, कौन सुसमाचार साझा करने में प्रभावशाली है, या स्थानीय स्तर पर कितने संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ता मौजूद हैं, तो वे ये चीजें नहीं जानते। ये किस तरह के लोग हैं? वे जिस स्थान पर हैं, वहाँ सभी सामाजिक संबंधों का उपयोग करना चाहते हैं, और उन्हें एक छोटे सामाजिक समूह में एकजुट करना चाहते हैं। इसलिए, जिस स्थान पर ये अगुआ हैं उसे कलीसिया नहीं कहा जा सकता। जब वे अपना काम कर चुके होते हैं, तो यह एक सामाजिक समूह बन जाता है। जब ये लोग मिलते हैं, तो वे अपने दिलों को नहीं खोलते और एक-दूसरे की अनुभवजन्य समझ के बारे में संगति नहीं करते; इसके बजाय, वे देखते हैं कि किसके अधिक मजबूत संबंध हैं, समाज में किसकी उच्च प्रतिष्ठा है और कौन बहुत संपन्न है, समाज में कौन जाना-माना है, समाज में किसका प्रभाव है, और कौन अगुआ को विशेष रूप से सुविधाजनक सेवाएँ और वाँछनीय चीजें उपलब्ध करवा सकता है। ये लोग जो भी हों, अगुआ के दिल में उनकी प्रतिष्ठा है। क्या यही मसीह-विरोधी का काम नहीं है? (बिल्कुल है।) मसीह-विरोधी क्या कर रहे हैं? क्या वे कलीसिया का निर्माण कर रहे हैं? वे कलीसिया को तोड़ रहे हैं और नष्ट कर रहे हैं, और परमेश्वर के घर के कार्य में बाधा और गड़बड़ी पैदा कर रहे हैं। वे अपना स्वतंत्र राज्य, अपना निजी समूह और गुट बना रहे हैं। मसीह-विरोधी यही करते हैं।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग पाँच)
कुछ लोगों के पास कोई रुतबा नहीं होता और वे साधारण काम करते हैं, और जब वे कुछ योग्यताएँ हासिल कर लेते हैं, तो वे भी दूसरों से अपनी सेवा करवाना चाहते हैं। कुछ लोग थोड़े जोखिम भरे काम करते हैं और वे भी अपनी सेवा करवाने के लिए दूसरों को आदेश देना चाहते हैं। कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो विशेष कर्तव्य निभाते हैं और जो अपने कर्तव्यों को बुनियादी शर्त, मोलभाव करने का साधन, और ऐसी पूँजी मानते हैं जिसकी मदद से वे भाई-बहनों से अपनी सेवा करवाते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ लोग ऐसे विशेष व्यावसायिक कौशल जानते हैं जिन्हें दूसरों ने सीखा या समझा नहीं है। जब वे परमेश्वर के घर में इन व्यावसायिक कौशलों से संबंधित कोई कर्तव्य निभाना शुरू करते हैं, तो उन्हें लगता है कि वे दूसरे लोगों से अलग हैं, उन्हें परमेश्वर के घर में एक महत्वपूर्ण पद पर रखा जा रहा है, वे अब उच्च पदों पर हैं, और खास तौर पर उन्हें लगता है कि उनका मूल्य दोगुना हो गया है, और अब वे सम्माननीय हैं। नतीजतन, उन्हें लगता है कि कुछ ऐसे काम हैं जो उन्हें खुद करने की जरूरत नहीं है, जब उनके लिए खाना लाने या उनके कपड़े धोने जैसे रोजमर्रा के कामों की बात आती है तो दूसरों को बिना मेहनताने के उनकी सेवा करने का आदेश देना स्वाभाविक है। कुछ ऐसे लोग भी हैं जो भाई-बहनों से अपना कोई न कोई काम करवाने के लिए यह बहाना बनाते हैं कि वे अपने कर्तव्य में व्यस्त हैं। उन कार्यों के अलावा जो नितांत रूप से उन्हें खुद ही करने चाहिए, बाकी सब काम जो वे दूसरों से करवा सकते हैं या दूसरों से करवाने का आदेश दे सकते हैं, वे दूसरों से ही करवाते हैं। ऐसा क्यों है? वे सोचते हैं, “मेरे पास पूँजी है, मैं सम्माननीय हूँ, मैं परमेश्वर के घर में एक दुर्लभ प्रतिभा हूँ, मैं एक विशेष कर्तव्य निभाता हूँ, और मैं मुख्य रूप से परमेश्वर के घर द्वारा विकसित किया जाने वाला व्यक्ति हूँ। तुम लोगों में से कोई भी मेरे जितना अच्छा नहीं है, तुम सब मुझसे निचले स्तर पर हो। मैं परमेश्वर के घर में विशेष योगदान दे सकता हूँ, और तुम लोग नहीं दे सकते। इसलिए, तुम लोगों को मेरी सेवा करनी चाहिए।” क्या ये अत्यधिक और बेशर्म माँगें नहीं हैं? हर कोई अपने दिलों में इन माँगों को पालता है, लेकिन बेशक मसीह-विरोधी बेरुखी और बेशर्मी से इन चीजों की और भी ज्यादा माँग करते हैं, और चाहे तुम उनके साथ सत्य पर कितनी भी संगति करो, वे उन्हें नहीं छोड़ेंगे। आम लोगों में भी मसीह-विरोधियों की ये अभिव्यक्तियाँ होती हैं, और अगर उनमें थोड़ी-सी प्रतिभा है या वे थोड़ा-बहुत योगदान देते हैं, तो उन्हें लगता है कि वे कुछ विशेष व्यवहार का आनंद लेने के हकदार हैं। वे अपने कपड़े और मोजे खुद नहीं धोते, बल्कि दूसरों से यह काम करवाते हैं, और वे कुछ अनुचित माँगें रखते हैं जो मानवता के विरुद्ध होती हैं—उनमें सूझ-बूझ की बहुत कमी होती है! लोगों के ये विचार और माँगें तर्कसंगतता के दायरे में नहीं आती हैं; पहले, पैमाने के निचले छोर पर देखें तो वे मानवता और जमीर के मानकों के अनुरूप नहीं हैं, और पैमाने के ऊपरी छोर पर देखें तो वे सत्य के अनुरूप नहीं हैं। इन सभी अभिव्यक्तियों को अपने खुद के फायदों के लिए प्रयास करने वाले मसीह-विरोधियों की श्रेणी में रखा जा सकता है। भ्रष्ट स्वभावों वाला हर व्यक्ति इन चीजों को करने में सक्षम है, और वे इन्हें करने की जुर्रत भी करते हैं। अगर किसी व्यक्ति के पास थोड़ी-सी प्रतिभा और पूँजी है और वह कुछ योगदान देता है, तो वह दूसरों का शोषण करना चाहता है, वह अपने कर्तव्य निर्वहन के अवसर का उपयोग अपने खुद के फायदों के लिए करना चाहता है, वह अपने लिए बनी-बनाई चीजें चाहता है और दूसरों को अपनी सेवा करने का आदेश देने से मिलने वाली खुशी और व्यवहार का आनंद लेना चाहता है। कुछ ऐसे लोग भी हैं जो अपना कर्तव्य निभाने के लिए अपना परिवार और नौकरी छोड़ देते हैं, और इस दौरान उन्हें कोई छोटी-मोटी बीमारी हो जाती है और इसी वजह से वे भावुक हो जाते हैं, और शिकायत करते हैं कि कोई भी उनकी चिंता या देखभाल नहीं करता है। तुम अपने लिए अपना कर्तव्य निभा रहे हो, तुम अपना खुद का कर्तव्य निभा रहे हो और अपनी खुद की जिम्मेदारी पूरी कर रहे हो—इसका दूसरे लोगों से क्या लेना-देना है? कोई व्यक्ति जो भी कर्तव्य निभाता है, वह कभी किसी और के लिए या किसी और की सेवा में नहीं किया जाता है, और इसलिए किसी पर भी बिना किसी मेहनताने के दूसरों की सेवा करने या दूसरों का आदेश मानने का कोई दायित्व नहीं है। क्या यह सत्य नहीं है? (बिल्कुल सत्य है।) हालाँकि परमेश्वर चाहता है कि लोग प्रेमपूर्ण हों, और दूसरों के प्रति धैर्यवान और सहनशील हों, लेकिन कोई व्यक्ति दूसरों से व्यक्तिगत रूप से ऐसा करने की माँग नहीं कर सकता, और ऐसा करना अनुचित है। अगर कोई व्यक्ति तुम्हारे प्रति सहनशील और धैर्यवान हो सकता है और तुम्हारी अपेक्षा के बिना ही तुम्हारे प्रति प्यार दिखा सकता है, तो यह उस व्यक्ति पर निर्भर है। लेकिन, अगर भाई-बहन तुम्हारी सेवा इसलिए करते हैं क्योंकि तुम उनसे इसकी माँग करते हो, अगर तुम उनको जबरन आदेश देते हो और उनका शोषण करते हो, या तुम उनकी आँखों में धूल झोंक कर उनसे तुम्हारी सेवा करवा रहे हो, तो समस्या तुम में ही है। कुछ लोग अपना कर्तव्य निभाने के अवसर का लाभ उठाते हैं और अक्सर कुछ धनवान भाई-बहनों से चीजें ऐंठने के लिए इसका बहाना बनाते हैं, उनसे अपने लिए कोई न कोई चीज खरीदने और सेवाएँ प्रदान करने को कहते हैं। उदाहरण के लिए, अगर उन्हें कुछ और कपड़ों की जरूरत होती है, तो वे किसी भाई या बहन से कहते हैं, “तुम कपड़े बना सकते हो, है ना? जाओ, मेरे पहनने के लिए कुछ बना लाओ।” वह भाई या बहन कहती है, “तो फिर अपना बटुआ निकालो। तुम सामग्री खरीदो और मैं तुम्हारे लिए कुछ बना दूँगी।” वे अपना पैसा नहीं निकालते, बल्कि भाई या बहन को अपने लिए सामग्री खरीदने के लिए मजबूर करते हैं—क्या इस कृत्य की प्रकृति भ्रामक नहीं है? भाई-बहनों के बीच संबंधों का लाभ उठाना, उनकी पूँजी का शोषण करना, भाई-बहनों से सभी प्रकार की सेवाओं और व्यवहार की माँग करने के लिए अपने कर्तव्य निर्वहन के अवसर का लाभ उठाना, भाई-बहनों को अपने लिए काम करने का आदेश देना—ये सभी मसीह विरोधियों के घटिया चरित्र की अभिव्यक्तियाँ हैं।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग चार)
साधारण लोगों में ऐसी शक्ति और हैसियत की कमी हो सकती है, लेकिन वे भी चाहते हैं कि लोग उनके पक्ष में राय रखें और उन्हें खूब सम्मान की दृष्टि से देखें और अपने दिल में उन्हें ऊँचे स्थान पर रखें। यह भ्रष्ट स्वभाव होता है, और अगर लोग सत्य नहीं समझते, तो वे इसे पहचानने में असमर्थ रहते हैं। भ्रष्ट स्वभावों को पहचानना सबसे कठिन है : स्वयं के दोषों और कमियों को पहचानना आसान है, लेकिन अपने भ्रष्ट स्वभाव को पहचानना आसान नहीं है। जो लोग स्वयं को नहीं जानते वे कभी भी अपनी भ्रष्ट दशाओं के बारे में बात नहीं करते—वे हमेशा सोचते हैं कि वे ठीक हैं। और यह एहसास किए बिना, वे दिखावा करना शुरू कर देते हैं : “अपनी आस्था के इतने वर्षों के दौरान, मैंने बहुत उत्पीड़न सहा है और बहुत कठिनाई झेली है। क्या तुम लोग जानते हो कि मैंने इन सब पर जीत कैसे पाई?” क्या यह अहंकारी स्वभाव है? स्वयं को प्रदर्शित करने के पीछे क्या प्रेरणा है? (ताकि लोग उनके बारे में ऊँची राय रखें।) लोग उनके बारे में ऊँची राय रखें, इसके पीछे उनका मकसद क्या है? (ऐसे लोगों के मन में रुतबा पाना।) जब तुम्हें किसी और के मन में रुतबा मिलता है, तब वे तुम्हारे साथ होने पर तुम्हारे प्रति सम्मान दिखाते हैं, और तुमसे बात करते समय विशेष रूप से विनम्र रहते हैं। वे हमेशा प्रेरणा के लिए तुम्हारी ओर देखते हैं, वे हमेशा हर चीज पहले तुम्हें करने देते हैं, वे तुम्हें रास्ता देते हैं, तुम्हारी चापलूसी करते हैं और तुम्हारी बात मानते हैं। सभी चीजों में वे तुम्हारी राय चाहते हैं और तुम्हें निर्णय लेने देते हैं। और तुम्हें इससे आनंद की अनुभूति होती है—तुम्हें लगता है कि तुम किसी और से अधिक ताकतवर और बेहतर हो। यह एहसास हर किसी को पसंद आता है। यह किसी के दिल में अपना रुतबा होने का एहसास है; लोग इसका आनंद लेना चाहते हैं। यही कारण है कि लोग रुतबे के लिए होड़ करते हैं, और सभी चाहते हैं कि उन्हें दूसरों के दिलों में रुतबा मिले, दूसरे उनका सम्मान करें और उन्हें पूजें। यदि वे इससे ऐसा आनंद प्राप्त नहीं कर पाते, तो वे रुतबे के पीछे नहीं भागते। उदाहरण के लिए, यदि किसी के मन में तुम्हारा रुतबा नहीं है, तो वह तुम्हारे साथ समान स्तर पर जुड़ेगा, तुम्हें अपने बराबर मानेगा। वह जरूरत पड़ने पर तुम्हारी बात काटेगा, तुम्हारे प्रति विनम्र नहीं रहेगा या तुम्हें आदर नहीं देगा और तुम्हारी बात खत्म होने से पहले ही उठकर जा भी सकता है। क्या तुम्हें बुरा लगेगा? जब लोग तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार करते हैं तो तुम्हें अच्छा नहीं लगता; तुम्हें अच्छा तब लगता है जब वे तुम्हारी चापलूसी करते हैं, तुम्हें आदर और सराहना की नजर से देखते हैं और हर पल तुम्हें पूजते हैं। तुम्हें तब अच्छा लगता है जब हर चीज तुम्हारे इर्द-गिर्द घूमती है, हर चीज तुम्हारे हिसाब से होती है, हर कोई तुम्हारी बात सुनता है, तुम्हें आदर और सराहना की नजर से देखता है और तुम्हारे निर्देशों का पालन करता है। क्या यह एक राजा के रूप में शासन करने, सत्ता पाने की इच्छा नहीं है? तुम्हारी कथनी और करनी रुतबा चाहने और उसे पाने से प्रेरित होती है और इसके लिए तुम दूसरों से संघर्ष, छीना-झपटी और प्रतिस्पर्धा करते हो। तुम्हारा लक्ष्य एक पद हासिल करना, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को अपनी बात सुनाना, उनसे समर्थन पाना और अपनी आराधना करवाना है। एक बार जब तुम उस पद पर आसीन हो जाते हो, तो फिर तुम्हें सत्ता मिल जाती है और तुम रुतबे के फायदों, दूसरों की प्रशंसा और उस पद के साथ आने वाले अन्य सभी लाभों का मजा ले सकते हो। लोग हमेशा अपना भेष बदलते रहते हैं, दूसरों के सामने दिखावा करते हैं, मुखौटे ओढ़ते हैं, ढोंग करते रहते हैं और खुद को सजाते हैं ताकि दूसरों को लगे कि वे पूर्ण हैं। इसमें उनका उद्देश्य रुतबा हासिल करना होता है ताकि वे रुतबे के फायदों का आनंद उठा सकें। यदि तुम्हें विश्वास न हो तो इस पर ध्यान से सोचो : तुम हमेशा यह क्यों चाहते हो कि लोग तुम्हारे बारे में अच्छा सोचें? तुम चाहते हो कि वे तुम्हारी आराधना करें और तुम्हें आदर और सराहना की नजर से देखें ताकि अंततः तुम सत्ता हासिल कर सको और रुतबे के फायदों का आनंद उठा सको। तुम जिस रुतबे के पीछे इतनी बेसब्री से पड़े हो, वह तुम्हें कई फायदे दिलाएगा और यही वो फायदे हैं जिनसे दूसरे लोग ईर्ष्या करते हैं और जिन्हें चाहते भी हैं। जब लोगों को रुतबे से मिलने वाले अनेक लाभों का स्वाद मिलता है, तो उन पर इसका नशा छा जाता है और वे उस विलासितापूर्ण जीवन में डूब जाते हैं। लोगों को लगता है कि यही एक जीवन है जो बर्बाद नहीं हुआ है। भ्रष्ट मानवता इन चीजों में लिप्त होकर प्रसन्न होती है। इसलिए, एक बार जब कोई व्यक्ति एक निश्चित पद प्राप्त कर लेता है और इससे मिलने वाले विभिन्न फायदे उठाने लगता है, तो वह लगातार इन पापपूर्ण सुखों के लिए ललचाएगा, इस हद तक कि वह इन्हें कभी नहीं छोड़ता। संक्षेप में, प्रसिद्धि और रुतबे की चाहत एक खास पद से मिलने वाले फायदे उठाने, एक राजा के रूप में शासन करने, परमेश्वर के चुने हुए लोगों पर नियंत्रण स्थापित करने, हर चीज पर प्रभुत्व रखने और एक स्वतंत्र राज्य स्थापित करने की इच्छा से प्रेरित होती है जहाँ वे अपने रुतबे के फायदों का आनंद उठा सकते हैं और पापपूर्ण सुखों में डूब सकते हैं। शैतान लोगों को भ्रांत करके उन्हें धोखा देने, ठगने और मूर्ख बनाने के लिए हर तरह के तरीके इस्तेमाल करता है, ताकि अपनी झूठी छवि बना सके। लोग उसकी प्रशंसा करें और उससे डरें, इसके लिए वह उन्हें डराता-धमकाता तक है, जिसका अंतिम लक्ष्य उनसे शैतान के आगे समर्पण करवाकर उसकी आराधना करवाना है। यही चीज है, जो शैतान को प्रसन्न करती है; यह लोगों को जीतने के लिए परमेश्वर के साथ प्रतिस्पर्धा करने में उसका लक्ष्य भी है। तो, जब तुम लोग अन्य लोगों के बीच रुतबे और प्रतिष्ठा के लिए लड़ते हो, तो तुम किस लिए लड़ते हो? क्या यह लड़ाई वाकई प्रसिद्धि के लिए है? नहीं, तुम वास्तव में उन लाभों के लिए लड़ते हो, जो तुम्हें प्रसिद्धि से मिलते हैं। यदि तुम हमेशा उन लाभों का आनंद लेना चाहते हो, तो तुम्हें उनके लिए लड़ना होगा। लेकिन यदि तुम उन लाभों को महत्व नहीं देते और यह कहते हो कि “इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि लोग मेरे साथ कैसा व्यवहार करते हैं। मैं तो बस एक साधारण व्यक्ति हूँ। मैं ऐसे अच्छे व्यवहार के योग्य नहीं हूँ और न ही मेरी इच्छा किसी व्यक्ति की आराधना करने की है। एकमात्र परमेश्वर ही है जिसकी मुझे सचमुच आराधना करनी चाहिए और जिसका भय मानना चाहिए। वही मेरा परमेश्वर और मेरा प्रभु है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई कितना अच्छा है, उसमें कितनी बड़ी क्षमताएँ हैं, उसमें कितनी ज्यादा प्रतिभा है या उसकी छवि कितनी शानदार या पूर्ण है, वह मेरी श्रद्धा का विषय नहीं है क्योंकि वह सत्य नहीं है। वह सृष्टिकर्ता नहीं है; वह उद्धारकर्ता नहीं है, और वह मनुष्य की नियति की योजना नहीं बना सकता या उस पर प्रभुत्व स्थापित नहीं कर सकता। वह मेरी आराधना की वस्तु नहीं है। कोई भी मनुष्य मेरी आराधना के योग्य नहीं है” तो क्या यह सत्य के अनुरूप नहीं है? इसके विपरीत, अगर तुम दूसरों की आराधना नहीं करते लेकिन वे तुम्हारी आराधना करने लगें तो तुम्हें उनके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए? तुम्हें उन्हें ऐसा करने से रोकने का तरीका खोजना होगा और उन्हें ऐसी मानसिकता से मुक्त होने में मदद करनी होगी। तुम्हें उन्हें अपना असली चेहरा दिखाने का तरीका खोजकर अपनी कुरूपता और असली प्रकृति दिखानी होगी। लोगों को यह समझाना महत्वपूर्ण है कि तुममें चाहे कितनी ही अच्छी काबिलियत हो, तुम कितने ही उच्च शिक्षित हो, कितने ही ज्ञानी या बुद्धिमान हो, फिर भी तुम एक साधारण व्यक्ति ही हो। तुम किसी के लिए प्रशंसा या आराधना की वस्तु नहीं हो। सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि तुम अपनी स्थिति पर दृढ़ रहो और गलतियाँ करने या शर्मिंदा होने के बाद पीछे मत हटो। यदि गलतियाँ करने या खुद को शर्मिंदा करने के बाद तुम इसे स्वीकार नहीं करते, बल्कि इसे छिपाने या ढकने के लिए धोखे का सहारा भी लेते हो तो तुम अपनी गलती को कई गुना बढ़ाकर और भी कुरूप दिखने लगते हो। तुम्हारी महत्वाकांक्षा और भी अधिक खुलकर सामने आ जाती है।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, व्यक्ति के आचरण का मार्गदर्शन करने वाले सिद्धांत
एक बार जब मसीह-विरोधियों को थोड़ी सी भी हैसियत मिल जाती है, तो फिर उन्हें रोकना मुश्किल हो जाता है—वे दूसरों को अपने पैरों तले रौंदने योग्य चीजें समझते हैं और वे जो कुछ भी करते हैं उसमें सुर्खियाँ बटोरना चाहते हैं, उसका पूरा लाभ उठाना चाहते हैं। वे जो कुछ भी करते हैं और जब भी बोलते हैं, तो केवल अपना दबदबा बनाने का प्रयास करते हैं। वे जिस भी सीट पर बैठते हैं, उसे विशेष बनाना चाहते हैं। परमेश्वर के घर में उन्हें जो भी सुविधाएँ मिलती हैं, वे चाहते हैं कि वे अन्य सभी को मिलने वाली सुविधाओं से बेहतर हों। वे चाहते हैं कि हर कोई उनके बारे में ऊंची राय रखे और उन्हें किसी और की तुलना में अधिक सम्मान दे। जब उनके पास हैसियत नहीं होती, तो वे उसे हथियाना चाहते हैं और जैसे ही उन्हें हैसियत मिल जाती है, तो वे अत्यधिक घमंडी हो जाते हैं। वे चाहते हैं कि जो भी उनसे बात करे, वह उनकी ओर देखे, कोई भी उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर नहीं चल सकता, बल्कि उसे एक या दो कदम पीछे रहना चाहिए; कोई भी उनसे बहुत जोर से या बहुत कठोरता से बात नहीं कर सकता, गलत शब्दों का प्रयोग नहीं कर सकता या उन्हें गलत तरीके से नहीं देख सकता। वे सभी को बारीकी से देखेंगे और उन पर टिप्पणी करेंगे। कोई भी उन्हें अपमानित नहीं कर सकता या उनकी आलोचना नहीं कर सकता; बल्कि सभी को उनका सम्मान करना चाहिए, उनकी चापलूसी करनी चाहिए और उनकी तारीफ करनी चाहिए। एक बार जब कोई मसीह-विरोधी हैसियत प्राप्त कर लेता है, तो फिर वह जहाँ भी जाता है, वहाँ मनमाने ढंग से और स्वेच्छा से कार्य करता है और दिखावा करता है, ताकि लोग उसका सम्मान करें। वे न केवल अपनी हैसियत का आनंद लेते हैं और दूसरों की प्रशंसा को बहुत महत्व देते हैं, बल्कि भौतिक सुख भी उनके लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण होते हैं। वे ऐसे मेजबानों के साथ रहना चाहते हैं जो सबसे अच्छी सेवा प्रदान करते हैं। चाहे उनका मेजबान कोई भी हो, अपने खाने-पीने को लेकर उनकी विशेष मांगें होती हैं और अगर खाना अच्छा नहीं है, तो फिर वे अपने मेजबान की काट-छाँट करने का मौका ढूंढ लेते हैं। वे किसी भी निम्न स्तर के सुख को स्वीकार करने से इनकार कर देते हैं—उनका भोजन, कपड़े, आवास और परिवहन सभी औसत से बेहतर होना चाहिए, उनका औसत से काम नहीं चलेगा। वे उन चीजों को स्वीकार नहीं कर सकते जो सामान्य भाइयों और बहनों को प्राप्त होती हैं। अगर अन्य लोग सुबह 5 या 6 बजे उठ रहे हैं, तो वे सुबह 7 या 8 बजे उठेंगे। उनके लिए सबसे अच्छा भोजन और वस्तुएँ आरक्षित होनी चाहिए। यहाँ तक कि लोग जो कुछ भी चढ़ावा देने हैं वे पहले उसकी छानबीन करते हैं और जो भी अच्छी या मूल्यवान चीज होगी या जो भी चीज उनकी नजर में आएगी, वे उसे रख लेंगे और फिर वे बची हुई चीजें कलीसिया के लिए छोड़ देते हैं। और एक और सबसे घिनौना काम है जो मसीह-विरोधी करते हैं। वह क्या है? जब उन्हें हैसियत मिल जाती है, तो फिर उनकी भूख बढ़ जाती है, उनका दृष्टिकोण विस्तृत हो जाता है और वे आनंद उठाना सीख जाते हैं, इसके बाद, उनमें पैसे खर्च करने, उपभोग करने की इच्छा विकसित होती है और परिणामस्वरूप वे अपने लिए वह सारा पैसा रखना चाहते हैं जो कलीसिया के कामों के लिए उपयोग होता है, उसे अपनी मर्ज़ी से आवंटित करना चाहते हैं, और अपनी इच्छाओं के अनुसार उसे नियंत्रित करना चाहते हैं। मसीह-विरोधी विशेष रूप से इस प्रकार की शक्ति और इस प्रकार की सुविधाओं का आनंद लेते हैं और जब उनके पास शक्ति आ जाती है, तो वे हर चीज पर अपने हस्ताक्षर करना चाहते हैं, जैसे सभी चेक और विभिन्न समझौतों पर। वे बार-बार कलम से हस्ताक्षर करने तथा पानी की तरह पैसा बर्बाद करने के उस एहसास का आनंद लेना चाहते हैं। जब एक मसीह-विरोधी के पास कोई हैसियत नहीं होती, तो कोई भी उनमें ये अभिव्यक्तियाँ नहीं देख सकता या यह भी नहीं देख सकता कि वे इस प्रकार के व्यक्ति हैं, कि उनका स्वभाव इस प्रकार का है, कि वे ऐसे काम करेंगे। लेकिन जैसे ही वे हैसियत प्राप्त कर लेते हैं, यह सब चीजें प्रकट हो जाती हैं। अगर उन्हें सुबह चुना जाए, तो उसी दोपहर तक वे अत्यधिक घमंडी हो जाते हैं, खुद को दूसरों से बेहतर समझते हैं, उनकी गर्दन घमंड से अकड़ जाती है और उन्हें आम लोगों की कोई परवाह नहीं होती। उनमें यह बदलाव बहुत जल्द आता है। लेकिन वास्तव में, वे बदले नहीं हैं—वे बस बेनकाब हुए हैं। वे ऐसे घमंडी बन जाते हैं और वे क्या करेंगे? वे कलीसिया पर निर्भर रहना चाहते हैं और हैसियत के लाभों का आनंद लेना चाहते हैं। जब भी कोई व्यक्ति स्वादिष्ट भोजन का आयोजन करता है, वे उसे चट कर जाते हैं और साथ ही अपने बदबूदार शरीर को बनाए रखने के लिए स्वास्थ्य सप्लीमेंट की मांग करते हैं। सभी मसीह-विरोधी अक्सर विशेषाधिकारों का आनंद उठाते हैं और इसमें अंतर केवल गंभीरता के स्तर में होता है। जब कोई ऐसा व्यक्ति अगुआ बनता है जो भौतिक सुख-सुविधाओं सुखों से चिपका रहता है, तो वह विशेषाधिकार का आनंद उठाना चाहता है। यही मसीह-विरोधियों का स्वभाव है। जैसे ही वे हैसियत प्राप्त करते हैं, वे पूरी तरह से बदल जाते हैं। वे हैसियत के साथ मिलने वाले सभी सुखों और विशेष सुविधाओं को दृढ़तापूर्वक और सुरक्षित रूप से अपनी निगाहों में और अपनी मुट्ठी में रखते हैं और वे उनका एक कण भी नहीं छोड़ते, न तो अपनी पकड़ ढीली होने देते हैं और न ही किसी भी हिस्से को अपने हाथों से फिसलने देते हैं। मसीह-विरोधियों की इनमें से कौन सी अभिव्यक्तियाँ और अभ्यास सत्य सिद्धांतों के अनुसार हैं? एक भी नहीं। इनमें से हर एक घृणा पैदा करने वाला और घिनौना है; न केवल उनके अभ्यास और अभिव्यक्तियाँ सत्य सिद्धांतों के अनुरूप नहीं हैं, बल्कि उनमें निश्चित रूप से बिल्कुल भी विवेक, सूझ-बूझ या शर्म की भावना नहीं होती। जब मसीह-विरोधियों के पास हैसियत होती है, तो लापरवाही से बुरे काम करने और अपनी सत्ता और हैसियत के लिए काम करने के अलावा, वे न केवल ऐसा कुछ भी करने में विफल रहते हैं जिससे कलीसिया के कार्य या भाइयों और बहनों के जीवन में प्रवेश को लाभ हो, बल्कि वे हैसियत, दैहिक सुखों के लाभों और लोगों द्वारा उनकी प्रशंसा करने और आदर करने का आनंद भी उठाते हैं। कुछ मसीह-विरोधियों को अपनी सेवा करवाने के लिए लोग भी मिल जाते हैं, वे जो चाय पीते हैं वह दूसरे लोग लेकर आते हैं, वे जो कपड़े पहनते हैं उन्हें दूसरे लोग धोते हैं, यहाँ तक कि वे एक व्यक्ति ऐसा भी रखते हैं जो नहाते समय उनकी पीठ रगड़े और एक ऐसा व्यक्ति जो खाते समय एक वेटर का काम करे। इससे भी बदतर यह है कि कुछ लोगों ने अपने रोज के तीन वक्त के खाने का मेन्यू भी निर्धारित किया होता है और इसके अलावा वे स्वास्थ्य-पूरक लेना चाहते हैं और चाहते हैं कि उनके लिए सभी प्रकार के विभिन्न सूप तैयार किए जाएँ। क्या मसीह-विरोधियों को कुछ शर्म आती है? नहीं, उन्हें कोई शर्म नहीं आती! क्या तुम लोग कहोगे कि इस प्रकार के व्यक्तियों से केवल निपटना और उनकी काट-छाँट करना उदारता है? क्या उनकी काट-छाँट करने से उन्हें कुछ शर्मिंदगी महसूस होगी? (ऐसा नहीं होगा।) तो इस मुद्दे को कैसे हल किया जा सकता है? यह बिल्कुल आसान है। काट-छाँट करने के बाद, उन्हें उजागर करो और उन्हें बताओ कि वे क्या हैं। चाहे वे इसके लिए समर्पण करें या न करें, उन्हें बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए और सभी को उन्हें अस्वीकार कर देना चाहिए।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद ग्यारह
भ्रष्ट मनुष्य हैसियत का पीछा कर उसके फायदों का आनंद उठाना चाहता है। हर इंसान के साथ ऐसा ही होता है, भले ही वह वर्त्तमान में हैसियत वाला हो या न हो : हैसियत त्याग देना और उसके प्रलोभनों से छूट जाना बहुत मुश्किल है। इसके लिए मनुष्य की ओर से बड़े सहयोग की जरूरत होती है। ऐसे सहयोग में क्या करना होता है? मुख्य रूप से सत्य खोजना, सत्य को स्वीकार करना, परमेश्वर के इरादों को समझना, और समस्याओं के सार में साफ तौर पर घुस जाना। इन चीजों के साथ, एक व्यक्ति के पास हैसियत के प्रलोभन से उबरने की आस्था होगी। इसके अलावा, तुम्हें प्रलोभन से छुटकारा पाने और परमेश्वर के इरादों को संतुष्ट करने के प्रभावी तरीके सोचने चाहिए। तुम्हारे सामने अभ्यास के मार्ग होने चाहिए। यह तुम्हें सही मार्ग पर रखेगा। अभ्यास के मार्गों के बिना, तुम अक्सर प्रलोभनों के फेर में पड़ जाओगे। हालाँकि तुम सही मार्ग पर चलना चाहोगे, फिर भी बेहद कड़ी मेहनत के बाद भी अंत में तुम्हारे प्रयासों का ज्यादा लाभ नहीं होगा। तो ऐसे कौन-से प्रलोभन हैं जो अक्सर तुम्हारे सामने आते हैं? (जब अपने कर्तव्य निर्वाह में मैं थोड़ी सफलता हासिल करता हूँ, और भाई-बहनों का सम्मान अर्जित करता हूँ, तो मैं आत्मसंतुष्ट महसूस करता हूँ और इस एहसास से मुझे बहुत मजा आता है। कभी-कभी मुझे इसका एहसास नहीं होता; कभी-कभी मुझे एहसास तो होता है कि यह दशा गलत है, मगर फिर भी मैं इसके खिलाफ विद्रोह नहीं कर पाता।) यह एक प्रलोभन है। फिर दूसरा कौन बोलेगा? (मेरे अगुआ होने के कारण, भाई-बहन कभी-कभी मुझसे विशेष व्यवहार करते हैं।) यह भी एक प्रलोभन है। अगर तुम सामने आने वाले प्रलोभनों के प्रति सचेत न रहो, उन्हें हल्के में संभालो और सही विकल्प न चुन सको, तो ये प्रलोभन तुम्हें संताप और दुःख देंगे। उदाहरण के लिए, भाई-बहनों के विशेष व्यवहार में तुम्हें रोटी, कपड़ा, मकान जैसे भौतिक लाभ और रोजमर्रा की जरूरतें मुहैया करना शामिल हैं। अगर तुम जिन चीजों का आनंद उठाते हो, वे उनकी दी हुई चीजों से बेहतर हैं, तो तुम उन्हें हेय दृष्टि से देखोगे, और शायद उनके उपहारों को ठुकरा दो। लेकिन अगर तुम किसी धनी व्यक्ति से मिले, और वह तुम्हें उम्दा सूट देकर कहे कि वह इसे नहीं पहनता, तो क्या तुम ऐसे प्रलोभन के सामने भी अडिग रह सकोगे? शायद तुम उस स्थिति पर सोच-विचार करो और खुद से कहो, “वह धनी है, उसके लिए ये कपड़े मायने नहीं रखते। वैसे भी वह ये कपड़े नहीं पहनता। अगर वह ये मुझे नहीं देगा, तो उठाकर किसी और को दे देगा। इसलिए मैं ही रख लेता हूँ।” इस फैसले का तुम क्या अर्थ निकालोगे? (वह पहले से हैसियत का आनंद उठा रहा है।) यह हैसियत के लाभों का आनंद उठाना कैसे है? (क्योंकि उसने उम्दा चीजें स्वीकार कर लीं।) क्या तुम्हें दी गईं उम्दा चीजें स्वीकार करना ही हैसियत का लाभ उठाना है? अगर तुम्हें कोई साधारण चीज दी जाए, मगर यह तुम्हारी जरूरत की चीज हो, तो क्या इसे भी हैसियत के लाभों का आनंद उठाना कहा जाएगा? (हाँ। जब भी वह अपनी स्वार्थपरक इच्छाओं को संतुष्ट करने के लिए दूसरों से चीजें स्वीकार करता है, इसे लाभ का आनंद उठाने में गिना जाएगा।) लगता है तुम इस बारे में स्पष्ट नहीं हो। क्या तुमने कभी इस बारे में सोचा है : अगर तुम अगुआ नहीं होते, तुम्हारी कोई हैसियत नहीं होती, तो क्या वह तब भी तुम्हें यह उपहार देता? (वह नहीं देता।) यकीनन वह नहीं देता। तुम्हारे अगुआ होने के कारण ही वह तुम्हें यह उपहार देता है। इस चीज की प्रकृति बदल चुकी है। यह सामान्य दान नहीं है, और समस्या इसी में है। अगर तुम उससे पूछोगे, “अगर मैं अगुआ न होता, सिर्फ एक भाई-बहन होता, तो क्या तब भी तुम मुझे यह उपहार देते? अगर इस चीज की किसी भाई-बहन को जरूरत होती, तो क्या तुम उसे यह चीज दे देते?” वह कहेगा, “मैं नहीं दे सकता। मैं किसी भी व्यक्ति को यूँ ही चीजें नहीं दे सकता। मैं तुम्हें इसलिए देता हूँ क्योंकि तुम मेरे अगुआ हो। अगर तुम्हारी यह विशेष हैसियत नहीं होती, तो मैं ऐसा उपहार भला क्यों देता?” अब देखो, तुम स्थिति को किस तरह नहीं समझ पाए हो। उसके यह कहने पर कि उस उम्दा सूट की उसे जरूरत नहीं है, तो तुम्हें यकीन हो गया, मगर वह तुमसे छल कर रहा था। उसका प्रयोजन तुमसे उसका उपहार स्वीकार करवाना है, ताकि भविष्य में तुम उससे अच्छा बर्ताव करो, और उसका विशेष ख्याल रखो। यह उपहार देने के पीछे उसकी नीयत यही है। सच्चाई यह है कि तुम दिल से जानते हो कि तुम हैसियतवाले न होते, तो वह तुम्हें कभी भी ऐसा उपहार न देता, फिर भी तुम उसे स्वीकार कर लेते हो। अपनी जीभ से बुलवाते हो, “परमेश्वर का धन्यवाद। मैंने यह उपहार परमेश्वर से स्वीकार किया है। यह मुझ पर परमेश्वर की उदारता है।” न केवल तुम हैसियत के लाभों का आनंद उठाते हो, बल्कि तुम परमेश्वर के चुने हुए लोगों की चीजों में भी आनंद उठाते हो, मानो कि उचित रूप से वे तुम्हें ही मिलने थे। क्या यह बेशर्मी नहीं है? अगर इंसान को जमीर की समझ न हो, उसमें बिल्कुल शर्म न हो, तो यह एक समस्या है। क्या यह सिर्फ बर्ताव का मामला है? क्या दूसरों से चीजें स्वीकार कर लेना गलत है और इनकार कर देना सही? ऐसी स्थिति से सामना होने पर तुम्हें क्या करना चाहिए? तुम्हें इस उपहार देने वाले से पूछना चाहिए कि क्या वे जो कर रहे हैं, वह सिद्धांतों के अनुरूप हैं। उनसे कहो, “आइए, हम परमेश्वर के वचनों, या कलीसिया के प्रशासनिक आदेशों में मार्गदर्शन ढूँढ़ें और देखें कि जो आप कर रहे हैं, वह सिद्धांतों के अनुरूप है या नहीं। अगर नहीं, तो मैं ऐसा उपहार स्वीकार नहीं कर सकता।” अगर उपहार देनेवाले को उन सूत्रों द्वारा सूचित किया जाता है कि उनका यह काम सिद्धांतों का उल्लंघन करता है, फिर भी वे उपहार देना चाहते हैं, तो तुम्हें क्या करना चाहिए? तुम्हें सिद्धांतों के अनुसार करना चाहिए। साधारण लोग इससे उबर नहीं सकते। वे उत्सुकता से लालसा रखते हैं कि दूसरे उन्हें और ज्यादा दें, वे और अधिक विशेष व्यवहार का आनंद उठाना चाहते हैं। अगर तुम सही किस्म के इंसान हो, तो ऐसी स्थिति सामने आने पर तुम्हें फौरन यह कहकर परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए, “हे परमेश्वर, आज जिससे मेरा सामना हुआ है वह यकीनन तुम्हारी सदिच्छा है। यह मेरे लिए तुम्हारा निर्धारित सबक है। मैं सत्य खोजने और सिद्धांतों के अनुसार कर्म करने को तैयार हूँ।” हैसियतवाले लोगों के सामने आनेवाले प्रलोभन बहुत बड़े हैं, और एक बार प्रलोभन आने पर, उससे उबर पाना बहुत कठिन है। तुम्हें परमेश्वर से सुरक्षा और सहायता लेने की जरूरत है; तुम्हें परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए, तुम्हें सत्य खोजना चाहिए और अक्सर आत्मचिंतन करना चाहिए। इस प्रकार, तुम खुद को जमीन से जुड़ा और शांत महसूस करोगे। लेकिन अगर प्रार्थना करने के लिए तुम ऐसे उपहार मिलने तक प्रतीक्षा करोगे, तो क्या तुम इस तरह जमीन से जुड़ा हुआ और शांत महसूस करोगे? (तब नहीं करोगे।) तब परमेश्वर तुम्हारे बारे में क्या सोचेगा? क्या तुम्हारे कर्मों से परमेश्वर प्रसन्न होगा, या उनसे नफरत करेगा? वह तुम्हारे कर्मों से घृणा करेगा। क्या समस्या सिर्फ तुम्हारे किसी चीज को स्वीकार करने की है? (नहीं।) तो फिर समस्या कहाँ है? समस्या इस बात में है कि ऐसी स्थिति का सामना होने पर तुम कैसी राय और रवैया अपनाते हो। क्या तुम खुद फैसला कर लेते हो या सत्य खोजते हो? क्या तुम्हारा जमीर का कोई मानक है? क्या तुम्हारे पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल है भी? जब भी ऐसी स्थिति से सामना होता है, तो क्या तुम परमेश्वर से प्रार्थना करते हो? क्या तुम पहले अपनी इच्छाएँ संतुष्ट करने की कोशिश करते हो, या पहले प्रार्थना कर परमेश्वर के इरादे जानने की कोशिश करते हो? इस मामले में तुम्हारा खुलासा हो जाता है। तुम्हें ऐसी स्थिति को कैसे सँभालना चाहिए? तुम्हारे पास अभ्यास के सिद्धांत होने चाहिए। पहले बाहर से तुम्हें ऐसे विशेष भौतिक लाभों, इन प्रलोभनों को इनकार करना चाहिए। भले ही तुम्हें ऐसी कोई चीज दी जाए जो तुम्हें खास तौर पर चाहिए, या यह ठीक वही चीज हो जिसकी तुम्हें जरूरत है, तुम्हें इसी तरह उसे इनकार करना चाहिए। भौतिक चीजों का क्या अर्थ है? रोटी, कपड़ा और मकान, और रोजमर्रा जरूरत की तमाम चीजें इनमें शामिल हैं। इन विशेष भौतिक चीजों को जरूर इनकार करना चाहिए। तुम्हें इन्हें इनकार क्यों करना चाहिए? क्या ऐसा करना महज तुम्हारे कर्म का मामला है? नहीं; यह तुम्हारे सहयोगी रवैए का मामला है। अगर तुम सत्य पर अमल करना चाहते हो, परमेश्वर को संतुष्ट करना चाहते हो, और प्रलोभन से दूर रहना चाहते हो, तो पहले तुम्हें सहयोगी रवैया अपनाना होगा। इस रवैए के साथ तुम प्रलोभन से दूर रह सकोगे, और तुम्हारा अंतःकरण शांत रहेगा। अगर तुम्हारी चाही कोई चीज तुम्हें दी जाए, और तुम उसे स्वीकार कर लो, तो तुम्हारा दिल कुछ हद तक तुम्हारे जमीर की फटकार महसूस करेगा। लेकिन अपने बहानों और मनगढ़ंत बातों के कारण तुम कहोगे कि तुम्हें यह चीज दी जानी चाहिए, यह तुम्हें देय है। और फिर, तुम्हारे जमीर की टीस उतनी सही या स्पष्ट व्यक्त नहीं होगी। कभी-कभी कुछ कारण या विचार और दृष्टिकोण तुम्हारे जमीर को डुला सकते हैं, जिससे कि उसकी टीस उतनी स्पष्ट नहीं होगी। तो क्या तुम्हारा जमीर एक भरोसेमंद मानक है? यह नहीं है। यह अलार्म की घंटी है जो लोगों को चेतावनी देती है। यह कैसी चेतावनी देती है? यह कि सिर्फ जमीर की भावनाओं के सहारे रहने में कोई सुरक्षा नहीं है; व्यक्ति को सत्य सिद्धांत भी खोजने चाहिए। वही भरोसेमंद होता है। लोग, उन्हें रोकनेवाले सत्य के बिना, प्रलोभन में फँस सकते हैं, बहुतेरे कारण और बहाने बना सकते हैं जिससे कि हैसियत के लाभों का उनका लालच संतुष्ट हो सके। इसलिए एक अगुआ के रूप में, तुम्हें अपने दिल में इस एक सिद्धांत का पालन करना होगा : मैं हमेशा इनकार करूँगा, हमेशा दूर रहूँगा, और किसी भी विशेष व्यवहार को पूरी तरह से ठुकरा दूँगा। बुराई से दूर रहने की पहली शर्त इसे पूरी तरह से ठुकरा देना है। अगर तुम्हारे पास बुराई से दूर रहने की पहली शर्त मौजूद है, तो कुछ हद तक तुम पहले से ही परमेश्वर की रक्षा के अधीन हो। और अगर तुम्हारे पास अभ्यास के ऐसे सिद्धांत हैं, और उन्हें मजबूती से थामे रहते हो, तो तुम पहले से ही सत्य पर अमल कर रहे हो और परमेश्वर को संतुष्ट कर रहे हो। तुम पहले से ही सही मार्ग पर चल रहे हो। जब तुम सही मार्ग पर चल रहे हो, और पहले से ही परमेश्वर को संतुष्टि दे रहे हो, तो क्या तुम्हें जमीर की परीक्षा देने की जरूरत है? सिद्धांतों के अनुसार कर्म करना और सत्य पर अमल करना जमीर के मानकों से ऊँचा है। अगर किसी में सहयोग करने का संकल्प हो, और वह सिद्धांतों के अनुसार कर्म कर सकता हो तो वह पहले ही परमेश्वर को संतुष्ट कर चुका है। परमेश्वर मनुष्य से इसी मानक की अपेक्षा रखता है।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, हैसियत के प्रलोभन और बंधन कैसे तोड़ें