24. प्रसिद्धि, लाभ और पद की चाहत की समस्या का समाधान कैसे करें
अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन
तुम लोगों के अनुसरण में, तुम्हारी बहुत सी व्यक्तिगत अवधारणाएँ, आशाएँ और भविष्य होते हैं। वर्तमान कार्य तुम लोगों की हैसियत पाने की अभिलाषा और तुम्हारी अनावश्यक अभिलाषाओं की काट-छाँट करने के लिए है। आशाएँ, हैसियत और अवधारणाएँ सभी शैतानी स्वभाव के विशिष्ट प्रतिनिधित्व हैं। लोगों के हृदय में इन चीज़ों के होने का कारण पूरी तरह से यह है कि शैतान का विष हमेशा लोगों के विचारों को दूषित कर रहा है, और लोग शैतान के इन प्रलोभनों से पीछा छुड़ाने में हमेशा असमर्थ रहे हैं। वे पाप के बीच रह रहे हैं, मगर इसे पाप नहीं मानते, और अभी भी सोचते हैं : “हम परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, इसलिए उसे हमें आशीष प्रदान करना चाहिए और हमारे लिए सब कुछ सही ढंग से व्यवस्थित करना चाहिए। हम परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, इसलिए हमें दूसरों से श्रेष्ठतर होना चाहिए, और हमारे पास दूसरों की तुलना में बेहतर हैसियत और बेहतर भविष्य होना चाहिए। चूँकि हम परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, इसलिए उसे हमें असीम आशीष देनी चाहिए। अन्यथा, इसे परमेश्वर पर विश्वास करना नहीं कहा जाएगा।” बहुत सालों से, जिन विचारों पर लोगों ने अपने अस्तित्व के लिए भरोसा रखा था, वे उनके हृदय को इस स्थिति तक दूषित कर रहे हैं कि वे विश्वासघाती, डरपोक और नीच हो गए हैं। उनमें न केवल इच्छा-शक्ति और संकल्प का अभाव है, बल्कि वे लालची, अभिमानी और स्वेच्छाचारी भी बन गए हैं। उनमें खुद से ऊपर उठने के संकल्प का सर्वथा अभाव है, बल्कि, उनमें इन अंधेरे प्रभावों की बाध्यताओं से पीछा छुड़ाने की लेश-मात्र भी हिम्मत नहीं है। लोगों के विचार और जीवन इतने सड़े हुए हैं कि परमेश्वर पर विश्वास करने के बारे में उनके दृष्टिकोण अभी भी बेहद वीभत्स हैं। यहाँ तक कि जब लोग परमेश्वर में विश्वास के बारे में अपना दृष्टिकोण बताते हैं तो इसे सुनना मात्र ही असहनीय होता है। सभी लोग कायर, अक्षम, नीच और दुर्बल हैं। उन्हें अंधेरे की शक्तियों के प्रति क्रोध नहीं आता, उनके अंदर प्रकाश और सत्य के लिए प्रेम पैदा नहीं होता; बल्कि, वे उन्हें बाहर निकालने का पूरा प्रयास करते हैं। क्या तुम लोगों के वर्तमान विचार और दृष्टिकोण ठीक ऐसे ही नहीं हैं? “चूँकि मैं परमेश्वर पर विश्वास करता हूँ, इसलिए मुझ पर आशीषों की वर्षा होनी चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि मेरी हैसियत कभी न गिरे, यह अविश्वासियों की तुलना में अधिक बनी रहनी चाहिए।” तुम्हारा यह दृष्टिकोण कोई एक-दो वर्षों से नहीं है; बल्कि बरसों से है। तुम लोगों की लेन-देन संबंधी मानसिकता कुछ ज़्यादा ही विकसित है। यद्यपि आज तुम लोग इस चरण तक पहुँच गए हो, तब भी तुम लोगों ने हैसियत का राग अलापना नहीं छोड़ा, बल्कि लगातार इसके बारे में पूछताछ करते रहते हो, और इस पर रोज नज़र रखते हो, इस गहरे डर के साथ कि कहीकहीं किसी दिन तुम लोगों की हैसियत खो न जाए और तुम लोगों का नाम बर्बाद न हो जाए। लोगों ने सहूलियत की अपनी अभिलाषा का कभी त्याग नहीं किया। ... जितना अधिक तू इस तरह से तलाश करेगी उतना ही कम तू पाएगी। हैसियत के लिए किसी व्यक्ति की अभिलाषा जितनी अधिक होगी, उतनी ही गंभीरता से उसकी काट-छाँट की जाएगी और उसे उतने ही बड़े शोधन से गुजरना होगा। इस तरह के लोग निकम्मे होते हैं! उनकी अच्छी तरह से काट-छाँट करने और उनका न्याय करने की ज़रूरत है ताकि वे इन चीज़ों को पूरी तरह से छोड़ दें। यदि तुम लोग अंत तक इसी तरह से अनुसरण करोगे, तो तुम लोग कुछ भी नहीं पाओगे। जो लोग जीवन का अनुसरण नहीं करते वे रूपान्तरित नहीं किए जा सकते; जिनमें सत्य की प्यास नहीं है वे सत्य प्राप्त नहीं कर सकते। तू व्यक्तिगत रूपान्तरण का अनुसरण करने और प्रवेश करने पर ध्यान नहीं देता; बल्कि तू हमेशा उन अनावश्यक अभिलाषाओं और उन चीज़ों पर ध्यान देती है जो परमेश्वर के लिए तेरे प्रेम को बाधित करती हैं और तुझे उसके करीब आने से रोकती हैं। क्या ये चीजें तुझे रूपान्तरित कर सकती हैं? क्या ये तुझे राज्य में ला सकती हैं?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम विषमता होने के अनिच्छुक क्यों हो?
तुम लोगों में से हर एक अधिकता के शिखर तक उठ चुका है; तुम लोग बहुतायत के पितरों के रूप में आरोहण कर चुके हो। तुम लोग अत्यंत स्वेच्छाचारी हो, और आराम के स्थान की तलाश करते हुए और अपने से छोटे भुनगों को निगलने का प्रयास करते हुए उन सभी भुनगों के बीच पगलाकर दौड़ते हो। अपने हृदयों में तुम लोग द्वेषपूर्ण और कुटिल हो, और समुद्र-तल में डूबे हुए भूतों को भी पीछे छोड़ चुके हो। तुम गोबर की तली में रहते हो और ऊपर से नीचे तक भुनगों को तब तक परेशान करते हो, जब तक कि वे बिल्कुल अशांत न हो जाएँ, और थोड़ी देर एक-दूसरे से लड़ने-झगड़ने के बाद शांत होते हो। तुम लोगों को अपनी जगह का पता नहीं है, फिर भी तुम लोग गोबर में एक-दूसरे के साथ लड़ाई करते हो। इस तरह की लड़ाई से तुम क्या हासिल कर सकते हो? यदि तुम लोगों के हृदय वास्तव में मेरा भय मानते तो तुम लोग मेरी पीठ पीछे एक-दूसरे के साथ कैसे लड़ सकते थे? तुम्हारी हैसियत कितनी भी ऊँची क्यों न हो, क्या तुम फिर भी गोबर में एक बदबूदार छोटा-सा कीड़ा ही नहीं हो? क्या तुम पंख उगाकर आकाश में उड़ने वाला कबूतर बन पाओगे?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जब झड़ते हुए पत्ते अपनी जड़ों की ओर लौटेंगे, तो तुम्हें अपनी की हुई सभी बुराइयों पर पछतावा होगा
इंसान ने कभी भी मुझसे ईमानदारी से प्रेम नहीं किया। जब मैं उसकी प्रशंसा करता हूँ, तो वह अपने आपको अयोग्य समझता है, लेकिन इससे वह मुझे संतुष्ट करने की कोशिश नहीं करता। वह मात्र उस “स्थान” को पकड़े रहता है जो मैंने उसके हाथों में सौंपा है और उसकी बारीकी से जाँच करता है; मेरी मनोरमता के प्रति असंवेदनशील बनकर, वह खुद को अपने स्थान से प्राप्त लाभों से भरने में जुटा रहता है। क्या यह मनुष्य की कमी नहीं है? जब पहाड़ सरकते हैं, तो क्या वे तुम्हारे स्थान की खातिर अपना रास्ता बादल सकते हैं? जब समुद्र बहते हैं, तो क्या वे मनुष्य के स्थान के सामने रुक सकते हैं? क्या मनुष्य का स्थान आकाश और पृथ्वी को पलट सकता है? मैं कभी इंसान के प्रति दयावान हुआ करता था, बार-बार—लेकिन कोई इसे सँजोता नहीं या खज़ाने की तरह संभालकर नहीं रखता, उन्होंने इसे मात्र एक कहानी की तरह सुना या उपन्यास की तरह पढ़ा। क्या मेरे वचन सचमुच इंसान के हृदय को नहीं छूते? क्या मेरे कथनों का वास्तव में कोई प्रभाव नहीं पड़ता? क्या ऐसा हो सकता है कि कोई भी मेरे अस्तित्व में विश्वास ही नहीं करता? इंसान खुद से प्रेम नहीं करता; बल्कि, वह मुझ पर आक्रमण करने के लिए शैतान के साथ मिल जाता है और मेरी सेवा करने के लिए शैतान को एक “परिसम्पत्ति” के रूप में इस्तेमाल करता है। मैं शैतान की सभी कपटपूर्ण योजनाओं को भेद दूँगा और पृथ्वी के लोगों को शैतान के द्वारा गुमराह होने से रोक दूँगा, ताकि वे उसके अस्तित्व की वजह से मेरा विरोध न करें।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 22
मनुष्य के आदर्श चाहे कितने भी ऊँचे क्यों न हों, उसकी इच्छाएँ चाहे कितनी भी यथार्थपरक क्यों न हों या वे कितनी भी उचित क्यों न हों, वह सब जो मनुष्य हासिल करना चाहता है और खोजता है, वह अटूट रूप से दो शब्दों से जुड़ा है। ये दो शब्द हर व्यक्ति के जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, और ये ऐसी चीजें हैं जिन्हें शैतान मनुष्य के भीतर बैठाना चाहता है। वे दो शब्द कौन-से हैं? वे हैं “प्रसिद्धि” और “लाभ।” शैतान एक बहुत ही धूर्त किस्म का तरीका चुनता है, ऐसा तरीका जो मनुष्य की धारणाओं से बहुत अधिक मेल खाता है; जो बिल्कुल भी क्रांतिकारी नहीं है, जिसके जरिये वह लोगों से अनजाने ही जीने का अपना मार्ग, जीने के अपने नियम स्वीकार करवाता है, और जीवन के लक्ष्य और जीवन में उनकी दिशा स्थापित करवाता है, और वे अनजाने ही जीवन में महत्वाकांक्षाएँ भी पालने लगते हैं। जीवन की ये महत्वाकांक्षाएँ चाहे जितनी भी ऊँची क्यों न प्रतीत होती हों, वे “प्रसिद्धि” और “लाभ” से अटूट रूप से जुड़ी होती हैं। कोई भी महान या प्रसिद्ध व्यक्ति—वास्तव में सभी लोग—जीवन में जिस भी चीज का अनुसरण करते हैं, वह केवल इन दो शब्दों : “प्रसिद्धि” और “लाभ” से जुड़ी होती है। लोग सोचते हैं कि एक बार उनके पास प्रसिद्धि और लाभ आ जाए, तो वे ऊँचे रुतबे और अपार धन-संपत्ति का आनंद लेने के लिए, और जीवन का आनंद लेने के लिए इन चीजों का लाभ उठा सकते हैं। उन्हें लगता है कि प्रसिद्धि और लाभ एक प्रकार की पूँजी है, जिसका उपयोग वे भोग-विलास का जीवन और देह का प्रचंड आनंद प्राप्त करने के लिए कर सकते हैं। इस प्रसिद्धि और लाभ की खातिर, जिसके लिए मनुष्य इतना ललचाता है, लोग स्वेच्छा से, यद्यपि अनजाने में, अपने शरीर, मन, वह सब जो उनके पास है, अपना भविष्य और अपनी नियति शैतान को सौंप देते हैं। वे ईमानदारी से और एक पल की भी हिचकिचाहट के बगैर ऐसा करते हैं, और सौंपा गया अपना सब-कुछ वापस प्राप्त करने की आवश्यकता के प्रति सदैव अनजान रहते हैं। लोग जब इस प्रकार शैतान की शरण ले लेते हैं और उसके प्रति वफादार हो जाते हैं, तो क्या वे खुद पर कोई नियंत्रण बनाए रख सकते हैं? कदापि नहीं। वे पूरी तरह से शैतान द्वारा नियंत्रित होते हैं, सर्वथा दलदल में धँस जाते हैं और अपने आप को मुक्त कराने में असमर्थ रहते हैं। जब कोई प्रसिद्धि और लाभ के दलदल में फँस जाता है, तो फिर वह उसकी खोज नहीं करता जो उजला है, जो न्यायोचित है, या वे चीजें नहीं खोजता जो खूबसूरत और अच्छी हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि प्रसिद्धि और लाभ की जो मोहक शक्ति लोगों के ऊपर हावी है, वह बहुत बड़ी है, वे लोगों के लिए जीवन भर, यहाँ तक कि अनंतकाल तक सतत अनुसरण की चीजें बन जाती हैं। क्या यह सत्य नहीं है? ...
... शैतान मनुष्य के विचारों को नियंत्रित करने के लिए प्रसिद्धि और लाभ का तब तक उपयोग करता है, जब तक सभी लोग प्रसिद्धि और लाभ के बारे में ही नहीं सोचने लगते। वे प्रसिद्धि और लाभ के लिए संघर्ष करते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए कष्ट उठाते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए अपमान सहते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर देते हैं, और प्रसिद्धि और लाभ के लिए कोई भी फैसला या निर्णय ले लेते हैं। इस तरह शैतान लोगों को अदृश्य बेड़ियों से बाँध देता है और उनमें उन्हें उतार फेंकने का न तो सामर्थ्य होता है, न साहस। वे अनजाने ही ये बेड़ियाँ ढोते हैं और बड़ी कठिनाई से पैर घसीटते हुए आगे बढ़ते हैं। इस प्रसिद्धि और लाभ के लिए मानवजाति परमेश्वर से दूर हो जाती है, उसके साथ विश्वासघात करती है और अधिकाधिक दुष्ट होती जाती है। इसलिए, इस प्रकार एक के बाद एक पीढ़ी शैतान की प्रसिद्धि और लाभ के बीच नष्ट होती जाती है। अब, शैतान की करतूतें देखते हुए, क्या उसके भयानक इरादे एकदम घिनौने नहीं हैं? हो सकता है, आज शायद तुम लोग शैतान के भयानक इरादों की असलियत न देख पाओ, क्योंकि तुम लोगों को लगता है कि व्यक्ति प्रसिद्धि और लाभ के बिना नहीं जी सकता। तुम लोगों को लगता है कि अगर लोग प्रसिद्धि और लाभ पीछे छोड़ देंगे, तो वे आगे का मार्ग नहीं देख पाएँगे, अपना लक्ष्य देखने में समर्थ नहीं हो पाएँगे, उनका भविष्य अंधकारमय, धुँधला और विषादपूर्ण हो जाएगा। परंतु, धीरे-धीरे तुम लोग समझ जाओगे कि प्रसिद्धि और लाभ वे विकट बेड़ियाँ हैं, जिनका उपयोग शैतान मनुष्य को बाँधने के लिए करता है। जब वह दिन आएगा, तुम पूरी तरह से शैतान के नियंत्रण का विरोध करोगे और उन बेड़ियों का विरोध करोगे, जिनका उपयोग शैतान तुम्हें बाँधने के लिए करता है। जब वह समय आएगा कि तुम वे सभी चीजें निकाल फेंकना चाहोगे, जिन्हें शैतान ने तुम्हारे भीतर डाला है, तब तुम शैतान से अपने आपको पूरी तरह से अलग कर लोगे और उस सबसे सच में घृणा करोगे, जो शैतान तुम्हारे लिए लाया है। तभी मानवजाति को परमेश्वर के प्रति सच्चा प्रेम और तड़प होगी।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI
जैसे ही कोई ऐसी बात आती है जिसमें प्रतिष्ठा, हैसियत या विशिष्ट दिखने का अवसर सम्मिलित हो—उदाहरण के तौर पर, जब तुम लोग सुनते हो कि परमेश्वर के घर की योजना विभिन्न प्रकार के प्रतिभावान व्यक्तियों को पोषण देने की है—तुममें से हर किसी का दिल प्रत्याशा में उछलने लगता है, तुममें से हर कोई हमेशा अपना नाम करना चाहता है और सुर्खियों में आना चाहता है। तुम सभी प्रतिष्ठा और हैसियत के लिए लड़ना चाहते हो। तुम्हें इस पर शर्मिंदगी भी महसूस होती है, पर ऐसा न करने पर तुम्हें बुरा महसूस होगा। जब तुम्हें कोई व्यक्ति भीड़ से अलग दिखता है, तो तुम उससे ईर्ष्या व घृणा महसूस करते हो और उसकी शिकायत करते हो, और तुम सोचते हो कि यह अन्याय है : “मैं भीड़ से अलग क्यों नहीं हो सकता? हमेशा दूसरे लोग ही क्यों सुर्खियों में आ जाते हैं? कभी मेरी बारी क्यों नहीं आती?” और रोष महसूस करने पर तुम उसे दबाने की कोशिश करते हो, लेकिन ऐसा नहीं कर पाते। तुम परमेश्वर से प्रार्थना करते हो और कुछ समय के लिए बेहतर महसूस करते हो, लेकिन जब तुम्हारा सामना दुबारा ऐसी ही परिस्थिति से होता है, तो तुम फिर भी उसे नियंत्रित नहीं कर पाते। क्या यह एक अपरिपक्व आध्यात्मिक कद का प्रकटीकरण नहीं है? जब लोग ऐसी स्थितियों में फँस जाते हैं, तो क्या वे शैतान के जाल में नहीं फँस गए हैं? ये शैतान की भ्रष्ट प्रकृति के बंधन हैं जो इंसानों को बाँध देते हैं। यदि लोग इन भ्रष्ट स्वभावों को त्याग दें, तो क्या वे स्वतंत्र और मुक्त महसूस नहीं करेंगे? इस बारे में सोचो : यदि तुम कीर्ति और लाभ के लिए होड़ की इन अवस्थाओं में फँसने से बचना चाहते हो—इन भ्रष्ट अवस्थाओं से स्वयं को आजाद करने और स्वयं को कीर्ति, लाभ और हैसियत के तनाव और बंधन से मुक्त करने के लिए—तो तुम्हें कौन-से सत्य समझने चाहिए? स्वतंत्रता और मुक्ति पाने के लिए तुममें कौनसी सत्य वास्तविकताएँ होनी चाहिए? पहले तो तुम्हें यह देखना चाहिए कि शैतान लोगों को भ्रष्ट करने के लिए, उन्हें फँसाने, दुराचार देने, उन्हें नीचा दिखाने और पाप में डुबोने के लिए कीर्ति, लाभ और हैसियत का प्रयोग करता है; इसके अलावा, केवल सत्य स्वीकारकर ही लोग कीर्ति, लाभ और हैसियत का त्याग कर सकते हैं और उन्हें दर-किनार कर सकते हैं। इन चीजों को दरकिनार करना किसी के लिए भी अत्यंत कठिन है, फिर चाहे वह युवा हो या वृद्ध, नया हो या कोई पुराना विश्वासी। हालाँकि कुछ लोग अंतर्मुखी होते हैं और वे कुछ अधिक कहते हुए नहीं नजर आते, लेकिन उन्होंने अपने हृदय में अन्य लोगों से अधिक परेशानियों को स्थान दिया होता है। कीर्ति, लाभ और हैसियत का त्याग सभी के लिए कठिन है; कोई भी इन चीजों के लालच पर नियंत्रण नहीं पा सकता—लोगों की आंतरिक अवस्थाएँ एक-सी होतीहैं। शैतान ने कीर्ति और लाभ का प्रयोग करके ही इंसान को भ्रष्ट किया है; हजारों वर्षों से पारंपरिक संस्कृति ने लोगों में इन्हीं चीजों को रोपित किया है। इसलिए, इंसान का भ्रष्ट स्वभाव कीर्ति, लाभ और हैसियत से ही प्रेम करता है और उन्हीं चीजों के पीछे भागता है, बस अंतर इतना है कि लोगों के इनका अनुसरण करने और इन्हें अभिव्यक्त करने के तरीके अलग-अलग होत हैं। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो इनके बारे में कभी बात नहीं करते, और इन्हें अपने हृदय में छिपाकर रखते हैं, जबकि कुछ अन्य लोग इन्हें शब्दों में प्रकट कर देते हैं। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो इन चीजों के लिए बेझिझक लड़ाई कर लेंगे, जबकि ऐसे लोग भी हैं जो इनके लिए लड़ाई नहीं करते, लेकिन निजी तौर पर वे शिकायत करते हैं, बड़बड़ाते हैं और चीजें तोड़ देते हैं। हालाँकि, इसका प्रकटन अलग-अलग लोगों में अलग-अलग तरह से होता है, लेकिन उनके स्वभाव बिल्कुल एक जैसे होते हैं। वे सभी भ्रष्ट इंसान हैं जो परमेश्वर का प्रतिरोध करते हैं। यदि तुम हमेशा कीर्ति, लाभ और रुतबे पर ध्यान केंद्रित करते हो, यदि तुम इन चीजों को बहुत महत्व देते हो, यदि ये तुम्हारे हृदय में बसती हैं, और यदि तुम इन्हें त्यागने के इच्छुक नहीं हो, तो तुम इनके द्वारा नियंत्रित होकर इनके बंधन में आ जाओगे। तुम इनके गुलाम बन जाओगे, और अंत में, ये तुम्हें पूरी तरह से बरबाद कर देंगी। तुम्हें नजरअंदाज करने औरइन चीजों को अलग करने, दूसरों की अनुशंसा करने, और उन्हें विशिष्ट बनने देने का तरीका सीखना चाहिए। विशिष्ट बनने और कीर्ति पाने के लिए संघर्ष मत करो अवसरों का लाभ उठाने के लिए जल्दबाजी मत करो। तुम्हें इन चीजों को दरकिनार करना आना चाहिए, लेकिन तुम्हें अपने कर्तव्य के निर्वहन में देरी नहीं करनी चाहिए। ऐसा व्यक्ति बनो जो शांत गुमनामी में काम करता है, और जो वफादारी से अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए दूसरों के सामने दिखावा नहीं करता है। तुम जितना अधिक प अपने अहंकारऔर हैसियत को छोड़ते हो, और जितना अधिक अपने हितों को नजरअंदाज करते हो, उतनी ही शांति महसूस करोगे, तुम्हारे हृदय में उतना ही ज्यादा प्रकाश होगा, और तुम्हारी अवस्था में उतना ही अधिक सुधार होगा। तुम जितना अधिक संघर्ष और प्रतिस्पर्धाकरोगे, तुम्हारी अवस्था उतनी ही अंधेरी होती जाएगी। अगर तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है, तो इसे आजमाकर देखो! अगर तुम इस तरह की भ्रष्ट स्थिति को बदलना चाहते हो, और इन चीज़ों से नियंत्रित नहीं होनाचाहते, तो तुम्हेंसत्य की खोज करनी चाहिए और इन चीजों का सार स्पष्ट रूप से समझना चाहिए, और फिर इन्हें एक तरफ रख देना चाहिए और त्याग देना चाहिए। अन्यथा, तुम जितना अधिक संघर्ष करोगे, तुम्हारा हृदय उतना ही अंधकारमय हो जाएगा, तुम उतनी ही अधिक ईर्ष्या और नफरत महसूस करोगे बस इन चीजों को पाने की तुम्हारी इच्छा अधिक मजबूत ही होगी। इन्हें पाने की तुम्हारी इच्छा जितनी अधिक मजबूत होगी, तुम उन्हें प्राप्त कर पाने में उतने ही कम सक्षम होंगे, और ऐसा होने पर तुम्हारी नफरत बढ़ती जाएगी। जैसे-जैसे तुम्हारीनफरत बढ़ती है, तुम्हारे अंदर उतना ही अंधेरा छाने लगता है। तुम अंदर से जितना अधिक अंधेरामय होते जाओगे, तुम्हारा कर्तव्य निर्वहनउतना ही बुरा हो जाएगा; तुम्हारे कर्तव्य का निर्वहन जितना बुरा हो जाएगा, तुम परमेश्वर के घर के लिए उतना ही कम उपयोगी होंगे। यह एक आपस में जुड़ा हुआ, कभी न ख़त्म होने वाला दुष्चक्र है। अगर तुमकभी भी अपने कर्तव्य का निर्वहन अच्छी तरह से नहीं करसकते, तो धीरे-धीरे तुम्हें हटा दिया जाएगा।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है
सत्य की खोज करने के बजाय, अधिकतर लोगों के अपने तुच्छ एजेंडे होते हैं। अपने हित, इज्जत और दूसरे लोगों के मन में जो स्थान या प्रतिष्ठा वे रखते हैं, उनके लिए बहुत महत्व रखते हैं। वे केवल इन्हीं चीजों को सँजोते हैं। वे इन चीजों पर मजबूत पकड़ बनाए रखते हैं और इन्हें ही बस अपना जीवन मानते हैं। और परमेश्वर उन्हें कैसे देखता या उनसे कैसे पेश आता है, इसका महत्व उनके लिए गौण होता है; फिलहाल वे उसे नजरअंदाज कर देते हैं; फिलहाल वे केवल इस बात पर विचार करते हैं कि क्या वे समूह के मुखिया हैं, क्या दूसरे लोग उनकी प्रशंसा करते हैं और क्या उनकी बात में वजन है। उनकी पहली चिंता उस पद पर कब्जा जमाना है। जब वे किसी समूह में होते हैं, तो प्रायः सभी लोग इसी प्रकार की प्रतिष्ठा, इसी प्रकार के अवसर तलाशते हैं। अगर वे अत्यधिक प्रतिभाशाली होते हैं, तब तो शीर्षस्थ होना चाहते ही हैं, लेकिन अगर वे औसत क्षमता के भी होते हैं, तो भी वे समूह में उच्च पद पर कब्जा रखना चाहते हैं; और अगर वे औसत क्षमता और योग्यताओं के होने के कारण समूह में निम्न पद धारण करते हैं, तो भी वे यह चाहते हैं कि दूसरे उनका आदर करें, वे नहीं चाहते कि दूसरे उन्हें नीची निगाह से देखें। इन लोगों की इज्जत और गरिमा ही होती है, जहाँ वे सीमा-रेखा खींचते हैं : उन्हें इन चीजों को कसकर पकड़ना होता है। भले ही उनमें कोई सत्यनिष्ठा न हो, और न ही परमेश्वर की स्वीकृति या अनुमोदन हो, मगर वे उस आदर, हैसियत और सम्मान को बिल्कुल नहीं खो सकते जिसके लिए उन्होंने दूसरों के बीच कोशिश की है—जो शैतान का स्वभाव है। मगर लोग इसके प्रति जागरूक नहीं होते। उनका विश्वास है कि उन्हें इस इज्जत की रद्दी से अंत तक चिपके रहना चाहिए। वे नहीं जानते कि ये बेकार और सतही चीजें पूरी तरह से त्यागकर और एक तरफ रखकर ही वे असली इंसान बन पाएंगे। यदि कोई व्यक्ति जीवन समझकर इन त्यागे जाने योग्य चीजों को बचाता है तो उसका जीवन बर्बाद हो जाता है। वे नहीं जानते कि दाँव पर क्या लगा है। इसीलिए, जब वे कार्य करते हैं तो हमेशा कुछ छिपा लेते हैं, वे हमेशा अपनी इज्जत और हैसियत बचाने की कोशिश करते हैं, वे इन्हें पहले रखते हैं, वे केवल अपने झूठे बचाव के लिए, अपने उद्देश्यों के लिए बोलते हैं। वे जो कुछ भी करते हैं, अपने लिए करते हैं। वे हर चमकने वाली चीज के पीछे भागते हैं, जिससे सभी को पता चल जाता है कि वे उसका हिस्सा थे। इसका वास्तव में उनसे कोई लेना-देना नहीं होता, लेकिन वे कभी पृष्ठभूमि में नहीं रहना चाहते, वे हमेशा अन्य लोगों द्वारा नीची निगाह से देखे जाने से डरते हैं, वे हमेशा दूसरे लोगों द्वारा यह कहे जाने से डरते हैं कि वे कुछ नहीं हैं, कि वे कुछ भी करने में असमर्थ हैं, कि उनके पास कोई कौशल नहीं है। क्या यह सब उनके शैतानी स्वभावों द्वारा निर्देशित नहीं है? जब तुम इज्जत और हैसियत जैसी चीजें छोड़ने में सक्षम हो जाते हो, तो तुम अपने भीतर अधिक निश्चिंत और अधिक मुक्त हो पाते हो; तुम ईमानदार होने की राह पर कदम रख देते हो। लेकिन कई लोगों के लिए इसे हासिल करना आसान नहीं होता। मिसाल के लिए, जब कैमरा दिखता है, तो लोग आगे आने के लिए धक्कामुक्की करने लगते हैं; वे कैमरे में दिखना पसंद करते हैं, जितनी ज्यादा कवरेज, उतनी बेहतर; वे पर्याप्त कवरेज न मिलने से डरते हैं और उसे प्राप्त करने का अवसर पाने के लिए हर कीमत चुकाते हैं। क्या यह सब उनके शैतानी स्वभावों द्वारा निर्देशित नहीं है? ये उनके शैतानी स्वभाव हैं। तो तुम्हें कवरेज मिल जाती है—फिर क्या? लोग तुम्हारे बारे में अच्छी राय रखते हैं—तो क्या? वे तुम्हारी आराधना करते हैं—तो क्या? क्या इनमें से कोई भी चीज साबित करती है कि तुम्हारे पास सत्य वास्तविकता है? इसमें से किसी भी चीज का कोई मूल्य नहीं है। जब तुम इन चीजों पर काबू पा लेते हो—जब तुम इनके प्रति उदासीन हो जाते हो और इन्हें महत्वपूर्ण नहीं समझते, जब इज्जत, अभिमान, हैसियत, और लोगों की सराहना तुम्हारे विचारों और व्यवहार को अब नियंत्रित नहीं कर पाते, तुम्हारे कर्तव्य-पालन के तरीके को तो बिल्कुल भी नियंत्रित नहीं करते—तब तुम्हारा कर्तव्य-पालन और भी प्रभावी हो जाता है, और भी शुद्ध हो जाता है।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन
भ्रष्ट मानवजाति शोहरत और हैसियत से प्रेम करती है। सभी लोग सत्ता के पीछे भागते हैं। तुम लोग जो अभी अगुआ और कार्यकर्ता हो, क्या तुम्हें नहीं लगता कि तुम अपने कर्मों पर अपनी पदवी और श्रेणी को थोपते हो? मसीह-विरोधी और नकली अगुआ भी यही करते हैं, जो खुद को परमेश्वर के घर के अधिकारी मानते हैं, बाकी सबसे ऊपर, सबसे श्रेष्ठ। अगर उनके पास आधिकारिक पदवियाँ और श्रेणियाँ नहीं होतीं, तो वे कर्तव्य निर्वाह में जिम्मेदारी का बोझ न उठाते, उत्साह से अपना कामकाज न करते। सभी लोग अगुआ या कार्यकर्ता होने को एक अधिकारी होने के समकक्ष मानते हैं, और सभी लोग एक अधिकारी की तरह कार्रवाई करना चाहते हैं। अनुकूल दृष्टि से पेश करें तो हम इसे कैरियर का अनुसरण करना कहते हैं—मगर बुरी दृष्टि से पेश करें, तो इसे अपने व्यवसाय में लगे रहना कहा जाता है। यह अपनी महत्वाकांक्षाओं और लालसाओं की संतुष्टि के लिए एक स्वतंत्र राज्य बनाना है। अंत में, क्या हैसियत होना अच्छी चीज है या बुरी? मनुष्य की नजर में यह अच्छी चीज है। जब तुम्हारे पास आधिकारिक पदवी होती है, तो तुम्हारी कथनी-करनी अलग होती है। तुम्हारी कथनी में शक्ति होती है, और लोग तुम्हारी बात मानेंगे। वे तुम्हारी चापलूसी करेंगे, तुम्हारे आगे नारे लगाते हुए चलेंगे और पीछे-पीछे चलकर तुम्हारा साथ देंगे। लेकिन तुम्हारे पास हैसियत और पदवी न हो, तो वे तुम्हारी बातें अनसुनी करेंगे। चाहे तुम्हारी बातें सच्ची हों, समझदारी से भरी हों, और लोगों के लिए लाभकारी हों, फिर भी कोई तुम्हारी बात नहीं मानेगा। यह क्या दर्शाता है? सभी इंसान हैसियत का सम्मान करते हैं। सबकी अपनी महत्वाकांक्षाएँ और लालसाएँ होती हैं। वे सभी दूसरों से आराधना करवाने की कोशिश करते हैं, और एक हैसियत के पद से मामले सँभालना पसंद करते हैं। क्या हैसियत के पद पर रहकर कोई नेकी कर सकता है? क्या वे ऐसे काम कर सकते हैं जो लोगों के लिए लाभकारी हों? यह निश्चित नहीं है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि तुम्हारा मार्ग क्या है और तुम हैसियत को किस तरह लेते हो। अगर तुम सत्य का अनुसरण नहीं करते, मगर हमेशा लोगों का समर्थन पाना चाहते हो, अपनी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं को संतुष्ट करना चाहते हो, अपनी हैसियत की लालसा पूरी करना चाहते हो, तो तुम मसीह-विरोधी मार्ग पर चल रहे हो। क्या मसीह-विरोधी मार्ग पर चलने वाला कोई व्यक्ति अपने अनुसरण और कर्तव्य निर्वाह में सत्य के अनुरूप चल सकता है? बिल्कुल नहीं। ऐसा इसलिए कि इंसान का चुना हुआ मार्ग ही सब कुछ तय करता है। अगर इंसान गलत मार्ग चुन लेता है, तो उसके तमाम प्रयास, उसका कर्तव्य निर्वाह, और उसका अनुसरण किसी भी तरह सत्य के अनुरूप नहीं होते हैं। उनके बारे में ऐसी कौन-सी चीज है जो सत्य के विपरीत है? ये लोग अपनी करनी में किसके पीछे भागते हैं? (हैसियत।) हैसियत की खातिर काम करनेवाले सभी लोग क्या प्रदर्शित करते हैं? कुछ लोग कहते हैं, “वे हमेशा शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलते हैं, वे कभी सत्य वास्तविकता के बारे में संगति नहीं करते, वे हमेशा दिखावा करते हैं, अपनी ही खातिर बोलते हैं, वे कभी परमेश्वर की महिमा नहीं गाते या उसकी गवाही नहीं देते। जिन लोगों में ऐसी चीजें प्रदर्शित होती हैं, वे हैसियत के लिए काम करते हैं।” क्या यह सही है? (बिल्कुल।) वे शब्द और धर्म-सिद्धांत क्यों बोलते हैं और दिखावा क्यों करते हैं? वे परमेश्वर की महिमा क्यों नहीं सुनाते, उसकी गवाही क्यों नहीं देते? क्योंकि उनके हृदय में केवल हैसियत, अपनी प्रसिद्धि और लाभ होता है—परमेश्वर पूरी तरह से अनुपस्थित होता है। ऐसे लोग खास तौर पर हैसियत और अधिकार की आराधना करते हैं। उनके लिए उनकी प्रसिद्धि और लाभ बहुत ज्यादा महत्त्व रखते हैं; उनकी प्रसिद्धि, लाभ और हैसियत ही उनका जीवन बन गए हैं। परमेश्वर उनके हृदय से अनुपस्थित है, परमेश्वर को समर्पण करना तो दूर रहा, वे उसका भय भी नहीं मानते; वे बस अपनी बड़ाई करने में लगे रहते हैं, अपनी ही गवाही देते हैं, और दूसरों की सराहना पाने के लिए दिखावा करते हैं। इस प्रकार, वे अक्सर डींग मारते हैं कि उन्होंने क्या-कुछ किया, कितने कष्ट सहे, परमेश्वर को कैसे संतुष्ट किया, काट-छाँट होने पर वे कितने सहनशील रहे, यह सब वे लोगों की सहानुभूति और प्रशंसा पाने के लिए करते हैं। ये लोग मसीह-विरोधियों जैसे ही होते हैं, वे पौलुस के मार्ग पर चलते हैं।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, हैसियत के प्रलोभन और बंधन कैसे तोड़ें
अगर तुम लोग अगुआ या कार्यकर्ता हो, तो क्या तुम परमेश्वर के घर द्वारा अपने काम के बारे में पूछताछ किए जाने और उसका निरीक्षण किए जाने से डरते हो? क्या तुम डरते हो कि परमेश्वर का घर तुम लोगों के काम में खामियों और गलतियों का पता लगाएगा और तुम लोगों की काट-छाँट करेगा? क्या तुम डरते हो कि जब ऊपर वाले को तुम लोगों की वास्तविक क्षमता और आध्यात्मिक कद का पता चलेगा, तो वह तुम लोगों को अलग तरह से देखेगा और तुम्हें प्रोन्नति के लायक नहीं समझेगा? अगर तुममें यह डर है, तो यह साबित करता है कि तुम्हारी अभिप्रेरणाएँ कलीसिया के काम के लिए नहीं हैं, तुम प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए काम कर रहे हो, जिससे साबित होता है कि तुममें मसीह-विरोधी का स्वभाव है। अगर तुममें मसीह-विरोधी का स्वभाव है, तो तुम्हारे मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चलने और मसीह-विरोधियों द्वारा गढ़ी गई तमाम बुराइयाँ करने की संभावना है। अगर, तुम्हारे दिल में, परमेश्वर के घर द्वारा तुम्हारे काम की निगरानी करने का डर नहीं है, और तुम बिना कुछ छिपाए ऊपर वाले के सवालों और पूछताछ के वास्तविक उत्तर देने में सक्षम हो, और जितना तुम जानते हो उतना कह सकते हो, तो फिर चाहे तुम जो कहते हो वह सही हो या गलत, चाहे तुम जितनी भी भ्रष्टता प्रकट करो—भले ही तुम एक मसीह-विरोधी का स्वभाव प्रकट करो—तुम्हें बिल्कुल भी एक मसीह-विरोधी के रूप में परिभाषित नहीं किया जाएगा। महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या तुम मसीह-विरोधी के अपने स्वभाव को जानने में सक्षम हो, और क्या तुम यह समस्या हल करने के लिए सत्य खोजने में सक्षम हो। अगर तुम ऐसे व्यक्ति हो जो सत्य स्वीकारता है, तो मसीह-विरोधी वाला तुम्हारा स्वभाव ठीक किया जा सकता है। अगर तुम अच्छी तरह से जानते हो कि तुममें एक मसीह-विरोधी स्वभाव है और फिर भी उसे हल करने के लिए सत्य नहीं खोजते, अगर तुम सामने आने वाली समस्याओं को छिपाने या उनके बारे में झूठ बोलने की कोशिश करते हो और जिम्मेदारी से जी चुराते हो, और अगर तुम काट-छाँट किए जाने पर सत्य नहीं स्वीकारते, तो यह एक गंभीर समस्या है, और तुम मसीह-विरोधी से अलग नहीं हो। यह जानते हुए भी कि तुम्हारा स्वभाव मसीह-विरोधी है, तुम उसका सामना करने की हिम्मत क्यों नहीं करते? तुम उसे स्पष्ट देखकर क्यों नहीं कह पाते, “अगर ऊपर वाला मेरे काम के बारे में पूछताछ करता है, तो मैं वह सब बताऊँगा जो मैं जानता हूँ, और भले ही मेरे द्वारा किए गए बुरे काम प्रकाश में आ जाएँ, और पता चलने पर ऊपरवाला अब मेरा उपयोग न करे, और मेरा रुतबा खो जाए, मैं फिर भी स्पष्ट रूप से वही कहूँगा जो मुझे कहना है”? परमेश्वर के घर द्वारा तुम्हारे काम का निरीक्षण और उसके बारे में पूछताछ किए जाने का तुम्हारा डर यह साबित करता है कि तुम सत्य से ज्यादा अपने रुतबे को संजोते हो। क्या यह मसीह-विरोधी वाला स्वभाव नहीं है? रुतबे को सबसे अधिक सँजोना मसीह-विरोधी का स्वभाव है। तुम रुतबे को इतना क्यों सँजोते हो? रुतबे से तुम्हें क्या फायदे मिल सकते हैं? अगर रुतबा तुम्हारे लिए आपदा, कठिनाइयाँ, शर्मिंदगी और दर्द लेकर आए, तो क्या तुम उसे फिर भी सँजोकर रखोगे? (नहीं।) रुतबा होने से बहुत सारे फायदे मिलते हैं, जैसे दूसरों की ईर्ष्या, आदर, सम्मान और चापलूसी, और साथ ही उनकी प्रशंसा और श्रद्धा मिलना। श्रेष्ठता और विशेषाधिकार की भावना भी होती है, जो रुतबे से तुम्हें मिलती है, जो तुम्हें गरिमा और खुद के योग्य होने का एहसास कराती है। इसके अलावा, तुम उन चीजों का भी आनंद ले सकते हो, जिनका दूसरे लोग आनंद नहीं लेते, जैसे कि रुतबे के लाभ और विशेष व्यवहार। ये वे चीजें हैं, जिनके बारे में तुम सोचने की भी हिम्मत नहीं करते, लेकिन जिनकी तुमने अपने सपनों में लालसा की है। क्या तुम इन चीजों को बहुमूल्य समझते हो? अगर रुतबा केवल खोखला है, जिसका कोई वास्तविक महत्व नहीं है, और उसका बचाव करने से कोई वास्तविक प्रयोजन सिद्ध नहीं होता, तो क्या उसे बहुमूल्य समझना मूर्खता नहीं है? अगर तुम देह के हितों और भोगों जैसी चीजें छोड़ पाओ, तो प्रसिद्धि, लाभ और रुतबा तुम्हारे पैरों की बेड़ियाँ नहीं बनेंगे। तो, रुतबे को बहुमूल्य समझने और उसके पीछे दौड़ने से संबंधित मुद्दे हल करने के लिए पहले क्या हल किया जाना चाहिए? पहले, बुराई और छल करने, छिपाने और ढंकने, और साथ ही रुतबे के फायदों का आनंद लेने के लिए परमेश्वर के घर द्वारा निरीक्षण, पूछताछ और जाँच-पड़ताल से मना करने की समस्या की प्रकृति समझो। क्या यह परमेश्वर का घोर प्रतिरोध और विरोध तो नहीं? अगर तुम रुतबे के फायदों के लालच की प्रकृति और नतीजे समझ पाओ, तो रुतबे के पीछे दौड़ने की समस्या हल हो जाएगी। और रुतबे के फायदों के लालच के सार की असलियत देख पाने की क्षमता के बिना यह समस्या कभी हल नहीं होगी।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग दो)
इस तरह का आदमी, जो कीर्ति, लाभ और हैसियत की खातिर काम करता है, दूसरों को गुमराह करने में सबसे निपुण होता है। जब तुम उससे पहली बार मिलते हो, तो तुम उसे समझ नहीं पाते। तुम देखते हो कि जो धर्म-सिद्धांत वह बोलता है वह अच्छा लगता है, जो वह कहता है वह व्यावहारिक लगता है, जिस कार्य की वह व्यवस्था करता है वह बहुत उपयुक्त होता है, और ऐसा लगता है कि उसमें कुछ क्षमता है, और तुम उसकी बहुत प्रशंसा करते हो। इस तरह का आदमी अपना कर्तव्य निभाते समय कीमत चुकाने को भी तैयार रहता है। वह रोजाना कड़ी मेहनत करता है, लेकिन कभी थके होने की शिकायत नहीं करता। उसमें रत्ती भर भी कमजोरी नहीं होती। जब दूसरे लोग कमजोर होते हैं, तो वह कमजोर नहीं होता। वह दैहिक सुखों की लालसा भी नहीं करता और खाने में नखरेबाज भी नहीं होता। जब उसका मेजबान परिवार उसके लिए कुछ खास बनाता है तो वह उसे मना कर देता है और नहीं खाता। वह सिर्फ रोजमर्रा का खाना खाता है। ऐसे लोगों को जो भी देखता है, उनकी प्रशंसा करता है। तो, कोई यह कैसे पहचान सकता है कि वे हैसियत की खातिर काम कर रहे हैं या नहीं? पहले, व्यक्ति को यह देखना चाहिए कि क्या वे सत्य का अनुसरण करने वाले व्यक्ति हैं। यह कहाँ दिखेगा? (चीजें करते समय उनके इरादे और शुरुआत में।) यह तो इसका एक हिस्सा हुआ। यह मुख्य रूप से उस लक्ष्य में स्पष्ट होगा, जिसका वे अनुसरण कर रहे हैं। अगर यह सत्य ग्रहण करने की खातिर है, तो वे अक्सर परमेश्वर के वचन पढ़ने, सत्य समझने और परमेश्वर के वचनों के माध्यम से खुद को जानने को महत्व देंगे। अगर वे अक्सर खुद को जानने पर संगति करते हैं, तो वे देख पाएँगे कि उनके पास बहुत-सी चीजों का अभाव है, उनके पास सत्य नहीं है, और वे स्वाभाविक रूप से सत्य का अनुसरण करने का प्रयास करेंगे। जितना ज्यादा लोग खुद को जानते हैं, उतना ही ज्यादा वे सत्य का अनुसरण करने में सक्षम होते हैं। जो लोग हमेशा हैसियत की खातिर ही कुछ कहते और करते हैं, वे स्पष्ट रूप से सत्य का अनुसरण करने वाले लोग नहीं होते। जब उनकी काट-छाँट की जाती है तो वे इसे स्वीकार नहीं करते—वे अपनी प्रतिष्ठा खराब होने से बहुत डरते हैं। तो, क्या वे परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के वचन स्वीकारने और आत्मचिंतन करने में सक्षम होते हैं? क्या वे वास्तव में अपने अनुभव में भटकाव को समझ सकते हैं? अगर उनमें इनमें से कोई अभिव्यक्ति नहीं है, तो निश्चित हुआ जा सकता है कि वे सत्य का अनुसरण करने वाले लोग नहीं हैं। मुझे बताओ, जो लोग सत्य से प्रेम नहीं करते और हैसियत के पीछे दौड़ते हैं, उनकी अन्य अभिव्यक्तियाँ क्या होती हैं? (जब दूसरे लोग उनकी आलोचना करते हैं तो वे इसे स्वीकार नहीं करते, बल्कि रक्षात्मक हो जाते हैं, खुद को सही ठहराते हैं और कारण बताते हैं। वे अपना स्वाभिमान और हैसियत बनाए रखने के लिए बोलते हैं। अगर कोई उनका समर्थन नहीं करता, तो वे उस पर हमला कर उसकी आलोचना करते हैं।) जब लोग दूसरों पर हमला कर उनकी आलोचना करते हैं और अपने स्वाभिमान और हैसियत की खातिर बोलकर अपना बचाव करते हैं, तो उनके कार्यों के पीछे का इरादा और लक्ष्य स्पष्ट रूप से गलत होते हैं, और वे पूरी तरह से हैसियत के लिए जीते हैं। क्या ऐसे लोग, जो हर चीज हैसियत की खातिर कहते और करते हैं, परमेश्वर के इरादों का ध्यान रख सकते हैं? क्या वे सत्य स्वीकार सकते हैं? बिल्कुल नहीं। उन्हें लगता है कि अगर वे परमेश्वर के इरादों का ध्यान रखेंगे तो उन्हें सत्य का अभ्यास करना होगा, और अगर वे सत्य का अभ्यास करेंगे तो उन्हें कष्ट सहना होगा और कीमत चुकानी होगी। तब वे हैसियत से मिलने वाला आनंद खो देंगे और हैसियत के लाभ उठाने में असमर्थ रहेंगे। इसलिए, वे सिर्फ कीर्ति, लाभ और हैसियत का अनुसरण करना और पुरस्कार प्राप्त करने के पीछे दौड़ना चुनते हैं। हैसियत के पीछे दौड़ने वाले लोग खुद को और किन अन्य तरीकों से अभिव्यक्त करते हैं? वे और क्या चीजें करते हैं? (अगर वे अपने आस-पास कुछ ऐसे प्रतिभाशाली व्यक्ति देखते हैं जो सत्य का अनुसरण करने के प्रति ज्यादा समर्पित हैं और पोषित किए जाने योग्य होते हैं, और जिनका समर्थन करने के लिए भाई-बहन ज्यादा इच्छुक होते हैं, तो इस डर से कि ये लोग खड़े होकर उनकी जगह ले लेंगे और उनकी हैसियत खतरे में डाल देंगे, वे उन प्रतिभाशाली व्यक्तियों को दबाने के तरीके सोचते हैं, और उन्हें नीचे गिराने के लिए तमाम तरह के कारण और बहाने ढूँढ़ते हैं। सबसे आम तरीका है उन्हें अत्यधिक अहंकारी, आत्म-तुष्ट और हमेशा दूसरों को विवश करने वाला करार देना और लोगों को विश्वास दिलाना कि ये चीजें सच हैं, और परमेश्वर के घर को इन व्यक्तियों को बढ़ावा न देने देना या पोषित न करने देना।) यह सबसे आम अभिव्यक्ति है। क्या तुम कुछ और जोड़ना चाहते हो? (वे हमेशा अपनी गवाही देना और दिखावा करना पसंद करते हैं। वे हमेशा अपने बारे में कुछ अद्भुत चीजें कहते हैं; वे कभी अपने बुरे पक्ष के बारे में बात नहीं करते, और अगर वे कुछ बुरा करते हैं तो वे अपने कार्यों पर विचार या उनका विश्लेषण नहीं करते।) वे हमेशा इस बारे में बात करते हैं कि वे कैसे कष्ट सहते और कीमत चुकाते हैं, परमेश्वर कैसे उनका मार्गदर्शन करता है, और अपना किया हुआ काम दिखाते हैं। यह भी हैसियत सुरक्षित और मजबूत करने की अभिव्यक्ति के तरीके का हिस्सा है। जो लोग हैसियत के पीछे दौड़ते हैं और हैसियत की खातिर चीजें करते हैं, उनमें एक और—सबसे प्रमुख—विशेषता होती है, जो यह है कि चाहे कुछ भी हो जाए, चलेगी उन्हीं की। वे हैसियत के पीछे इसलिए दौड़ते हैं, क्योंकि वे चाहते हैं कि उन्हीं की चले। वे वो व्यक्ति बनना चाहते हैं जो निर्णय लेता है, वो अकेला व्यक्ति बनना चाहते हैं जिसके पास अधिकार होता है। स्थिति कोई भी हो, हर किसी को उसकी बात सुननी चाहिए, और चाहे किसी को भी समस्या हो, उसे दिशा-निर्देश माँगने और पाने के लिए उसके पास आना चाहिए। वे हैसियत के यही लाभ उठाना चाहते हैं। स्थिति चाहे जो भी हो, वे अपनी ही चलाना चाहते हैं। चाहे उनकी बात सही हो या गलत, चाहे वह गलत ही क्यों न हो, फिर भी उन्हें अपनी ही चलानी होती है, और दूसरों को अपनी बात सुनने के लिए बाध्य कर उनसे अपना आज्ञापालन करवाना होता है। यह एक गंभीर समस्या है। स्थिति चाहे जो भी हो, उन्हीं की चलनी चाहिए; चाहे वह ऐसी स्थिति हो या नहीं जिसे वे समझते हों, उन्हें उसमें अपनी टाँग घुसेड़नी होती है और अपनी चलानी होती है। अगुआ और कार्यकर्ता चाहे जिस भी मुद्दे पर संगति कर रहे हों, निर्णय उन्हें ही लेना होता है, और इसमें दूसरों के बोलने की कोई गुंजाइश नहीं होती। चाहे वे जो भी हल सुझाएँ, उन्हें हर किसी से उसे स्वीकार करवाना होता है, और अगर दूसरे लोग उसे न स्वीकारें, तो वे क्रोधित होकर उनकी काट-छाँट करते हैं। अगर कोई आलोचना करता है या अलग राय रखता है, भले ही वह सही और सत्य के अनुरूप हो, तो उन्हें उस पर आपत्ति करने के लिए तमाम तरह के तरीके सोचने होंगे। वे कुतर्क करने में खास तौर से माहिर होते हैं, दूसरे आदमी को चिकनी-चुपड़ी बातों से मना लेते हैं और अंततः उन्हें अपने तरीके से काम करने पर मजबूर कर देते हैं। हर बात में अंतिम निर्णय उनका ही होना चाहिए। वे अपने सहकर्मियों या साथियों के साथ कभी बातचीत नहीं करते; वे लोकतांत्रिक नहीं होते। यह ये साबित करने के लिए पर्याप्त है कि वे अत्यधिक अहंकारी और आत्म-तुष्ट होते हैं, सत्य बिल्कुल नहीं स्वीकार सकते, और सत्य के प्रति बिल्कुल भी समर्पित नहीं होते। अगर कुछ बड़ा या महत्वपूर्ण होता है, और वे हर किसी को आकलन करने और अपनी राय देने के लिए प्रेरित कर पाते हैं, और अंततः बहुमत की राय के अनुसार अभ्यास के किसी तरीके पर सहमत हो जाते हैं, और यह सुनिश्चित करते हैं कि इससे परमेश्वर के घर के कार्य को नुकसान नहीं पहुँचेगा, और इससे समग्र रूप से कार्य को लाभ होगा—अगर उनका यह रवैया होता है, तो वे ऐसे व्यक्ति हैं जो परमेश्वर के घर के कार्य की रक्षा करते हैं, और जो सत्य स्वीकार सकते हैं, क्योंकि चीजें इस तरह करने के पीछे सिद्धांत होते हैं। लेकिन क्या हैसियत के पीछे दौड़ने वाले लोग चीजें इस तरह से करेंगे? (नहीं।) वे चीजें कैसे करेंगे? अगर कुछ हुआ, तो उन्हें इसकी परवाह नहीं होगी कि दूसरे लोगों ने क्या सलाह दी है। लोगों द्वारा अपनी सलाह साझा करने से बहुत पहले ही वे अपने मन में कोई समाधान या निर्णय कर चुके होंगे। अपने दिलों में उन्होंने पहले ही तय कर लिया होगा कि वे क्या करेंगे। इस समय, लोग चाहे कुछ भी कहें, वे उस पर ध्यान नहीं देंगे। अगर कोई उन्हें डाँट भी दे, तो उसकी भी वे कोई परवाह नहीं करेंगे। वे सत्य सिद्धांतों पर कोई विचार नहीं करते, चाहे इससे कलीसिया के काम को लाभ ही क्यों न होता हो, या भाई-बहन इसे स्वीकार कर सकें या नहीं। ये चीजें उनके विचार के दायरे में नहीं आतीं। वे किस चीज पर विचार करते हैं? उन्हें अपनी ही चलानी होती है; वे इस मामले में निर्णयकर्ता होना चाहते हैं; यह मामला उनके तरीके से किया जाना चाहिए; उन्हें देखना होगा कि यह मामला उनकी हैसियत के लिए फायदेमंद है या नहीं। यही वह परिप्रेक्ष्य है जिससे वे मामले देखते हैं। क्या यह ऐसा व्यक्ति है, जो सत्य का अनुसरण करता है? (नहीं।) जब सत्य का अनुसरण न करने वाले लोग चीजें करते हैं, तो वे हमेशा अपनी हैसियत, कीर्ति और लाभ पर ध्यान देते हैं; वे हमेशा इस बात पर विचार करते हैं कि इससे उन्हें कैसे लाभ होता है। चीजें करने की उनकी शुरुआत यहाँ से होती है।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सत्य के अभ्यास में ही होता है जीवन-प्रवेश
अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे के प्रति मसीह-विरोधियों का चाव सामान्य लोगों से कहीं ज्यादा होता है, और यह एक ऐसी चीज है जो उनके स्वभाव सार के भीतर होती है; यह कोई अस्थायी रुचि या उनके परिवेश का क्षणिक प्रभाव नहीं होता—यह उनके जीवन, उनकी हड्डियों में समायी हुई चीज है, और इसलिए यह उनका सार है। कहने का तात्पर्य यह है कि मसीह-विरोधी लोग जो कुछ भी करते हैं, उसमें उनका पहला विचार उनकी अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे का होता है, और कुछ नहीं। मसीह-विरोधियों के लिए प्रतिष्ठा और रुतबा ही उनका जीवन और उनके जीवन भर का लक्ष्य होता है। वे जो कुछ भी करते हैं, उसमें उनका पहला विचार यही होता है : “मेरे रुतबे का क्या होगा? और मेरी प्रतिष्ठा का क्या होगा? क्या ऐसा करने से मुझे अच्छी प्रतिष्ठा मिलेगी? क्या इससे लोगों के मन में मेरा रुतबा बढ़ेगा?” यही वह पहली चीज है जिसके बारे में वे सोचते हैं, जो इस बात का पर्याप्त प्रमाण है कि उनमें मसीह-विरोधियों का स्वभाव और सार है; इसलिए वे चीजों को इस तरह से देखते हैं। यह कहा जा सकता है कि मसीह-विरोधियों के लिए प्रतिष्ठा और रुतबा कोई अतिरिक्त आवश्यकता नहीं है, कोई बाहरी चीज तो बिल्कुल भी नहीं है जिसके बिना उनका काम चल सकता हो। ये मसीह-विरोधियों की प्रकृति का हिस्सा हैं, ये उनकी हड्डियों में हैं, उनके खून में हैं, ये उनमें जन्मजात हैं। मसीह-विरोधी इस बात के प्रति उदासीन नहीं होते कि उनके पास प्रतिष्ठा और रुतबा है या नहीं; यह उनका रवैया नहीं होता। फिर उनका रवैया क्या होता है? प्रतिष्ठा और रुतबा उनके दैनिक जीवन से, उनकी दैनिक स्थिति से, जिस चीज का वे रोजाना अनुसरण करते हैं उससे, घनिष्ठ रूप से जुड़ा होता है। और इसलिए मसीह-विरोधियों के लिए रुतबा और प्रतिष्ठा उनका जीवन हैं। चाहे वे कैसे भी जीते हों, चाहे वे किसी भी परिवेश में रहते हों, चाहे वे कोई भी काम करते हों, चाहे वे किसी भी चीज का अनुसरण करते हों, उनके कोई भी लक्ष्य हों, उनके जीवन की कोई भी दिशा हो, यह सब अच्छी प्रतिष्ठा और ऊँचा रुतबा पाने के इर्द-गिर्द घूमता है। और यह लक्ष्य बदलता नहीं; वे कभी ऐसी चीजों को दरकिनार नहीं कर सकते। यह मसीह-विरोधियों का असली चेहरा और सार है। तुम उन्हें पहाड़ों की गहराई में किसी घने-पुराने जंगल में छोड़ दो, फिर भी वे प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे दौड़ना नहीं छोड़ेंगे। तुम उन्हें लोगों के किसी भी समूह में रख दो, फिर भी वे सिर्फ प्रतिष्ठा और रुतबे के बारे में ही सोचेंगे। भले ही मसीह-विरोधी भी परमेश्वर में विश्वास करते हैं, फिर भी वे प्रतिष्ठा और रुतबे के अनुसरण को परमेश्वर में आस्था के बराबर समझते हैं और उसे समान महत्व देते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि जब वे परमेश्वर में आस्था के मार्ग पर चलते हैं, तो वे प्रतिष्ठा और रुतबे का अनुसरण भी करते हैं। कहा जा सकता है कि मसीह-विरोधी अपने दिलों में यह मानते हैं कि परमेश्वर में उनकी आस्था में सत्य का अनुसरण प्रतिष्ठा और रुतबे का अनुसरण है; प्रतिष्ठा और रुतबे का अनुसरण सत्य का अनुसरण भी है, और प्रतिष्ठा और रुतबा प्राप्त करना सत्य और जीवन प्राप्त करना है। अगर उन्हें लगता है कि उनके पास कोई प्रतिष्ठा, लाभ या रुतबा नहीं है, कि कोई उनकी प्रशंसा या सम्मान या उनका अनुसरण नहीं करता है, तो वे बहुत निराश हो जाते हैं, वे मानते हैं कि परमेश्वर में विश्वास करने का कोई मतलब नहीं है, इसका कोई मूल्य नहीं है, और वे मन-ही-मन कहते हैं, “क्या परमेश्वर में ऐसा विश्वास असफलता है? क्या यह निराशाजनक है?” वे अक्सर अपने दिलों में ऐसी बातों पर सोच-विचार करते हैं, वे सोचते हैं कि कैसे वे परमेश्वर के घर में अपने लिए जगह बना सकते हैं, कैसे वे कलीसिया में उच्च प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकते हैं, ताकि जब वे बात करें तो लोग उन्हें सुनें, और जब वे कार्य करें तो लोग उनका समर्थन करें, और जहाँ कहीं वे जाएँ, लोग उनका अनुसरण करें; ताकि कलीसिया में अंतिम निर्णय उनका ही हो, और उनके पास शोहरत, लाभ और रुतबा हो—वे वास्तव में अपने दिलों में ऐसी चीजों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। ऐसे लोग इन्हीं चीजों के पीछे भागते हैं। वे हमेशा ऐसी बातों के बारे में ही क्यों सोचते रहते हैं? परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद, उपदेश सुनने के बाद, क्या वे वाकई यह सब नहीं समझते, क्या वे वाकई यह सब नहीं जान पाते? क्या परमेश्वर के वचन और सत्य वास्तव में उनकी धारणाएँ, विचार और मत बदलने में सक्षम नहीं हैं? मामला ऐसा बिल्कुल नहीं है। समस्या उनमें ही है, यह पूरी तरह से इसलिए है क्योंकि वे सत्य से प्रेम नहीं करते, क्योंकि अपने दिल में वे सत्य से विमुख हो चुके हैं, और परिणामस्वरूप वे सत्य के प्रति बिल्कुल भी ग्रहणशील नहीं होते—जो उनके प्रकृति सार से निर्धारित होता है।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग तीन)
चाहे वे किसी भी समूह में क्यों न हों, मसीह-विरोधियों का आदर्श वाक्य क्या होता है? “मुझे प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए! प्रतिस्पर्धा! प्रतिस्पर्धा! मुझे सर्वोच्च और सबसे बड़ा बनने के लिए प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए!” यह मसीह-विरोधियों का स्वभाव है; वे जहाँ भी जाते हैं, प्रतिस्पर्धा करते हैं और अपने लक्ष्य हासिल करने का प्रयास करते हैं। वे शैतान के अनुचर हैं, और वे कलीसिया के काम में बाधा डालते हैं। मसीह-विरोधियों का स्वभाव ऐसा होता है : वे कलीसिया के चारों ओर यह देखने से शुरुआत करते हैं कि कौन लंबे समय से परमेश्वर पर विश्वास कर रहा है और किसके पास पूँजी है, किसके पास कुछ खूबियाँ या प्रतिभाएँ हैं, कौन भाई-बहनों के जीवन-प्रवेश में लाभकारी रहा है, किसके पास अधिक प्रतिष्ठा है, किसमें वरिष्ठता है, किसका भाई-बहनों के बीच आदर से उल्लेख किया जाता है, किसमें अधिक सकारात्मक चीजें हैं। उन्हीं लोगों से उन्हें प्रतिस्पर्धा करनी है। संक्षेप में, हर बार जब मसीह-विरोधी लोगों के समूह में होते हैं, तो वे हमेशा यही करते हैं : वे रुतबे के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं, अच्छी प्रतिष्ठा के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं, मामलों पर अपना अंतिम फैसला देने और समूह में निर्णय लेने का अधिकार पाने के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं, जिनकी प्राप्ति उन्हें खुश कर देती है। मगर क्या वे इन चीजों को हासिल करने के बाद भी कोई वास्तविक कार्य कर पाते हैं? बिल्कुल नहीं, वे वास्तविक कार्य करने के लिए प्रतिस्पर्धा या संघर्ष नहीं करते; उनका लक्ष्य दूसरों को काबू में करना होता है। “मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम मेरे सामने झुकने को तैयार हो या नहीं; पूंजी के मामले में मैं सबसे बड़ा हूँ, जहाँ तक बोलने के कौशल की बात है, मैं सबसे अच्छा हूँ, और मेरे पास सबसे अधिक खूबियाँ और प्रतिभाएँ हैं।” क्षेत्र चाहे कोई भी हो, वे हमेशा पहले स्थान पर रहने के लिए प्रतिस्पर्धा करना चाहते हैं। अगर भाई-बहन उन्हें सुपरवाइजर बनाते हैं तो वे अपनी बात मनवाने और निर्णय लेने के अधिकार के लिए अपने साथियों से प्रतिस्पर्धा करेंगे। अगर कलीसिया उन्हें किसी खास कार्य का प्रभारी बनाती है तो वे इस पर जोर देंगे कि इसे कैसे किया जाए इसका निर्णय वे खुद लें। वे जो कुछ भी कहते हैं और जो भी फैसले लेते हैं, उसे पूरा करने और वास्तविकता में बदलने की कोशिश करना चाहेंगे। अगर भाई-बहन किसी और के विचार को अपनाते हैं तो क्या यह बात उनकी समझ में आएगी? (नहीं।) यह मुसीबत वाली बात है। अगर तुम उनकी बात नहीं सुनते, तो वे तुम्हें सबक सिखाएँगे, तुम्हें यह महसूस कराएँगे कि उनके बिना तुम्हारा काम नहीं चल सकता, और तुम्हें यह भी दिखाएँगे कि उनकी बात न मानने के क्या परिणाम होंगे। मसीह-विरोधियों का स्वभाव इतना दंभी, घिनौना और अविवेकी होता है। उनके पास न तो जमीर होता है, न विवेक, न ही सत्य का कोई कण। मसीह-विरोधी के कार्यों और कर्मों में देखा जा सकता है कि वह जो कुछ करता है, उसमें सामान्य व्यक्ति का विवेक नहीं होता, और भले ही कोई उनके साथ सत्य के बारे में संगति करे, वे उसे नहीं स्वीकारते। तुम्हारी बात कितनी भी सही हो, उन्हें स्वीकार्य नहीं होती। एकमात्र चीज, जिसका वे अनुसरण करना पसंद करते हैं, वह है प्रतिष्ठा और रुतबा, जिसके प्रति वे श्रद्धा रखते हैं। जब तक वे रुतबे के लाभ उठा सकते हैं, तब तक वे संतुष्ट रहते हैं। वे मानते हैं कि यह उनके अस्तित्व का मूल्य है। चाहे वे किसी भी समूह के लोगों के बीच हों, उन्हें लोगों को वह “प्रकाश” और “गर्मजोशी” दिखानी होती है जो वे प्रदान करते हैं, अपनी प्रतिभाएँ, अपनी विशिष्टता दिखानी होती है। चूँकि वे मानते हैं कि वे विशेष हैं, इसलिए वे स्वाभाविक रूप से सोचते हैं कि उनके साथ साधारण लोगों के मुकाबले बेहतर व्यवहार किया जाना चाहिए, कि उन्हें लोगों का समर्थन और प्रशंसा मिलनी चाहिए, कि लोगों को उन्हें सम्मान देना चाहिए, उनकी पूजा करनी चाहिए—उन्हें लगता है कि यह सब उनका हक है। क्या ऐसे लोग निर्लज्ज और बेशर्म नहीं होते? क्या ऐसे लोगों का कलीसिया में मौजूद रहना समस्या नहीं है? जब कुछ घटित होता है, तो यह सामान्य समझ की बात है कि लोगों को उसकी सुननी चाहिए जो सही बोलता हो, उसकी बात माननी चाहिए जो परमेश्वर के घर के कार्य के लिए लाभकारी सुझाव देता हो, और जिसका भी सुझाव सत्य सिद्धांतों के अनुरूप हो उन्हें उसे अपनाना चाहिए। अगर मसीह-विरोधी कुछ ऐसा कहते हैं जो सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है, तो हो सकता है कि बाकी सभी लोग उनकी बात न सुनें या उनके सुझाव को न अपनाएँ। ऐसे में, मसीह-विरोधी क्या करेंगे? वे खुद का बचाव करने और अपने आपको सही ठहराने की कोशिश करते रहेंगे, और दूसरों को समझाने के तरीके सोचेंगे, और भाई-बहनों को उनकी बात सुनने और उनके सुझाव को अपनाने के लिए मजबूर करेंगे। वे इस बात पर विचार नहीं करेंगे कि अगर उनके सुझाव को अपनाया जाता है तो इसका कलीसिया के काम पर क्या प्रभाव पड़ सकता है। यह उनके विचार के दायरे में नहीं आता। वे केवल किस बात पर विचार करेंगे? “अगर मेरा सुझाव नहीं अपनाया जाता है तो मैं अपना चेहरा कहाँ दिखा पाऊँगा? इसलिए, मुझे प्रतिस्पर्धा करनी होगी और कोशिश करनी होगी ताकि मेरा सुझाव अपनाया जाए।” जब भी कुछ घटित होता है, तो वे इसी तरह सोचते और काम करते हैं। वे कभी इस बात पर विचार नहीं करते कि यह सिद्धांतों के अनुरूप है या नहीं, और न ही वे कभी भी सत्य को स्वीकारते हैं। यही मसीह-विरोधियों का स्वभाव है।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग तीन)
यदि कोई कहता है कि उसे सत्य से प्रेम है और वह सत्य का अनुसरण करता है, लेकिन सार में, जो लक्ष्य वह हासिल करना चाहता है, वह है अपनी अलग पहचान बनाना, दिखावा करना, लोगों का सम्मान प्राप्त करना और अपने हित साधना, और उसके लिए अपने कर्तव्य का पालन करने का अर्थ परमेश्वर के प्रति समर्पण करना या उसे संतुष्ट करना नहीं है बल्कि शोहरत, लाभ और रुतबा प्राप्त करना है, तो फिर उसका अनुसरण अवैध है। ऐसा होने पर, जब कलीसिया के कार्य की बात आती है, तो उनके कार्य एक बाधा होते हैं या आगे बढ़ने में मददगार होते हैं? वे स्पष्ट रूप से बाधा होते हैं; वे आगे नहीं बढ़ाते। कुछ लोग कलीसिया का कार्य करने का झंडा लहराते फिरते हैं, लेकिन अपनी व्यक्तिगत शोहरत, लाभ और रुतबे के पीछे भागते हैं, अपनी दुकान चलाते हैं, अपना एक छोटा-सा समूह, अपना एक छोटा-सा साम्राज्य बना लेते हैं—क्या इस प्रकार का व्यक्ति अपना कर्तव्य कर रहा है? वे जो भी कार्य करते हैं, वह अनिवार्य रूप से कलीसिया के कार्य को अस्त-व्यस्त और खराब करता है। उनके शोहरत, लाभ और रुतबे के पीछे भागने का क्या परिणाम होता है? पहला, यह इस बात को प्रभावित करता है कि परमेश्वर के चुने हुए लोग सामान्य रूप से परमेश्वर के वचनों को कैसे खाते-पीते हैं और सत्य को कैसे समझते हैं, यह उनके जीवन-प्रवेश में बाधा डालता है, उन्हें परमेश्वर में विश्वास के सही मार्ग में प्रवेश करने से रोकता है और उन्हें गलत मार्ग पर ले जाता है—जो चुने हुए लोगों को नुकसान पहुँचाता है, और उन्हें बरबाद कर देता है। और यह अंततः कलीसिया के साथ क्या करता है? यह गड़बड़ी, खराबी और विघटन है। यह लोगों के शोहरत, लाभ और रुतबे के पीछे भागने का परिणाम है। जब वे इस तरह से अपना कर्तव्य करते हैं, तो क्या इसे मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलना नहीं कहा जा सकता? जब परमेश्वर कहता है कि लोग अपनी शोहरत, लाभ और रुतबे को अलग रखें, तो ऐसा नहीं है कि वह लोगों को चुनने के अधिकार से वंचित कर रहा है; बल्कि यह इस कारण से है कि शोहरत, लाभ और रुतबे के पीछे भागते हुए लोग कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन-प्रवेश को अस्त-व्यस्त कर देते हैं, यहाँ तक कि उनका ज्यादा लोगों के द्वारा परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने, सत्य को समझने और इस प्रकार परमेश्वर का उद्धार प्राप्त करने पर भी प्रभाव पड़ सकता है। यह एक निर्विवाद तथ्य है। जब लोग अपनी शोहरत, लाभ और रुतबे के पीछे भागते हैं, तो यह निश्चित है कि वे सत्य का अनुसरण नहीं करेंगे और ईमानदारी से अपना कर्तव्य नहीं पूरा करेंगे। वे सिर्फ शोहरत, लाभ और रुतबे की खातिर ही बोलेंगे और कार्य करेंगे, और वे जो भी काम करते हैं, वह बिना किसी अपवाद के इन्हीं चीजों के लिए होता है। इस तरह से व्यवहार और कार्य करना, बिना किसी संदेह के, मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चलना है; यह परमेश्वर के कार्य में विघ्न-बाधा डालना है, और इसके सभी विभिन्न परिणाम राज्य के सुसमाचार के प्रसार और कलीसिया के भीतर परमेश्वर की इच्छा पूरी करने में बाधा डालना है। इसलिए, यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि शोहरत, लाभ और रुतबे के पीछे भागने वालों द्वारा अपनाया जाने वाला मार्ग परमेश्वर के प्रतिरोध का मार्ग है। यह उसका जानबूझकर किया जाने वाला प्रतिरोध है, उसे नकारना है—यह परमेश्वर का प्रतिरोध करने और उसके विरोध में खड़े होने में शैतान के साथ सहयोग करना है। यह लोगों की शोहरत, लाभ और रुतबे के पीछे भागने की प्रकृति है। अपने हितों के पीछे भागने वाले लोगों के साथ समस्या यह है कि वे जिन लक्ष्यों का अनुसरण करते हैं, वे शैतान के लक्ष्य हैं—वे ऐसे लक्ष्य हैं, जो दुष्टतापूर्ण और अन्यायपूर्ण हैं। जब लोग शोहरत, लाभ और रुतबे जैसे व्यक्तिगत हितों के पीछे भागते हैं, तो वे अनजाने ही शैतान का औजार बन जाते हैं, वे शैतान के लिए एक साधन बन जाते हैं, और तो और, वे शैतान का मूर्त रूप बन जाते हैं। वे कलीसिया में एक नकारात्मक भूमिका निभाते हैं; कलीसिया के कार्य के प्रति, और सामान्य कलीसियाई जीवन और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के सामान्य लक्ष्य पर उनका प्रभाव बाधा डालने और काम बिगाड़ने वाला होता है; उनका प्रतिकूल और नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जब कोई सत्य का अनुसरण करता है, तो वह परमेश्वर के इरादों और उसके दायित्व के प्रति विचारशील हो पाता है। जब वह अपना कर्तव्य करता है, तो हर तरह से कलीसिया के कार्य को बनाए रखता है। वह परमेश्वर को महिमा-मंडित करने और उसकी गवाही देने में सक्षम होता है, वह भाई-बहनों को लाभ पहुँचाता है, उन्हें सहारा देता है और उन्हें पोषण प्रदान करता है, और परमेश्वर महिमा और गवाही प्राप्त करता है जो शैतान को लज्जित करता है। उसके अनुसरण के परिणामस्वरूप परमेश्वर एक ऐसे सृजित प्राणी को प्राप्त करता है जो वास्तव में परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने में सक्षम होता है, जो परमेश्वर की आराधना करने में सक्षम होता है। उसके अनुसरण के परिणामस्वरूप परमेश्वर की इच्छा भी कार्यान्वित हो जाती है, और परमेश्वर का कार्य भी प्रगति कर पाता है। परमेश्वर की दृष्टि में ऐसा अनुसरण सकारात्मक है, निष्कपट है। ऐसा अनुसरण परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए बहुत फायदेमंद होता है, और साथ ही कलीसिया के कार्य के लिए पूरी तरह से लाभदायक होने के कारण यह चीजें आगे बढ़ाने में मदद करता है, और परमेश्वर इसे स्वीकृति देता है।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग एक)
प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागना सही मार्ग नहीं है—यह मार्ग सत्य की खोज के बिल्कुल विपरीत दिशा में है। संक्षेप में, तुम्हारी खोज की दिशा या लक्ष्य चाहे जो भी हो, यदि तुम रुतबे और प्रतिष्ठा के पीछे दौड़ने पर विचार नहीं करते और अगर तुम्हें इन चीजों को दरकिनार करना बहुत मुश्किल लगता है, तो इनका असर तुम्हारे जीवन प्रवेश पर पड़ेगा। जब तक तुम्हारे दिल में रुतबा बसा हुआ है, तब तक यह तुम्हारे जीवन की दिशा और उन लक्ष्यों को पूरी तरह से नियंत्रित और प्रभावित करेगा जिनके लिए तुम प्रयासरत हो और ऐसी स्थिति में अपने स्वभाव में बदलाव की बात तो तुम भूल ही जाओ, तुम्हारे लिए सत्य वास्तविकता में प्रवेश करना भी बहुत मुश्किल होगा; तुम अंततः परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त कर पाओगे या नहीं, यह बेशक स्पष्ट है। इसके अलावा, यदि तुमने कभी रुतबे के पीछे भागना नहीं छोड़ा, तो इससे तुम्हारे मानक स्तर के अनुरूप कर्तव्य करने की क्षमता पर भी असर पड़ेगा। तब तुम्हारे लिए मानक स्तर का सृजित प्राणी बनना बहुत मुश्किल हो जाएगा। मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ? जब लोग रुतबे के पीछे भागते हैं, तो परमेश्वर को इससे बेहद घृणा होती है, क्योंकि रुतबे के पीछे भागना शैतानी स्वभाव है, यह एक गलत मार्ग है, यह शैतान की भ्रष्टता से पैदा होता है, परमेश्वर इसका तिरस्कार करता है और परमेश्वर इसी चीज का न्याय और शुद्धिकरण करता है। लोगों के रुतबे के पीछे भागने से परमेश्वर को सबसे ज्यादा घृणा है और फिर भी तुम अड़ियल बनकर रुतबे के लिए होड़ करते हो, उसे हमेशा संजोए और संरक्षित किए रहते हो, उसे हासिल करने की कोशिश करते रहते हो। क्या इन तमाम चीजों की प्रकृति परमेश्वर-विरोधी नहीं है? लोगों के लिए रुतबे को परमेश्वर ने नियत नहीं किया है; परमेश्वर लोगों को सत्य, मार्ग और जीवन प्रदान करता है, ताकि वे अंततः मानक स्तर के सृजित प्राणी, एक छोटा और नगण्य सृजित प्राणी बन जाएँ—वह इंसान को ऐसा व्यक्ति नहीं बनाता जिसके पास रुतबा और प्रतिष्ठा हो और जिस पर हजारों लोग श्रद्धा रखें। और इसलिए, इसे चाहे किसी भी दृष्टिकोण से देखा जाए, रुतबे के पीछे भागने का मतलब एक अंधी गली में पहुँचना है। रुतबे के पीछे भागने का तुम्हारा बहाना चाहे जितना भी उचित हो, यह मार्ग फिर भी गलत है और परमेश्वर इसे स्वीकृति नहीं देता। तुम चाहे कितना भी प्रयास करो या कितनी बड़ी कीमत चुकाओ, अगर तुम रुतबा चाहते हो, तो परमेश्वर तुम्हें वह नहीं देगा; अगर परमेश्वर तुम्हें रुतबा नहीं देता, तो तुम उसे पाने की लड़ाई में नाकाम रहोगे, और अगर तुम लड़ाई करते ही रहोगे, तो उसका केवल एक ही परिणाम होगा : बेनकाब करके तुम्हें हटा दिया जाएगा, और तुम्हारे सारे रास्ते बंद हो जाएँगे। तुम इसे समझते हो, है ना?
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग तीन)
हैसियत के पीछे मनुष्य की भागदौड़ इसकी केवल एक अभिव्यक्ति है। यह अभिव्यक्ति, मनुष्य के अहंकारी स्वभाव, और परमेश्वर से उसके विद्रोह और प्रतिरोध की तरह, उसकी शैतानी प्रकृति से उपजती है। इसे दूर करने के लिए किस तरीके का प्रयोग किया जा सकता है? तुम्हें अभी भी सबसे बुनियादी तरीका इस्तेमाल करना चाहिए। अगर तुम परमेश्वर के मार्ग का अनुसरण करते हो और सत्य के अनुसरण के मार्ग पर चलते हो, तो ये सारी समस्याएँ हल की जा सकती हैं। हैसियत न होने पर, तुम अक्सर विश्लेषण करके खुद को जान सकते हो। दूसरों को इससे लाभ हो सकता है। अगर तुम हैसियत वाले हो, फिर भी अक्सर विश्लेषण कर स्वयं को समझ सकते हो, लोगों को देखने दे सकते हो कि तुम्हारी खूबियाँ क्या हैं, कि तुम सत्य को समझते हो, तुम्हें व्यावहारिक अनुभव है, तुम सचमुच बदल सकते हो, तो क्या दूसरों को इससे लाभ नहीं पहुँचेगा? चाहे तुम्हारे पास हैसियत हो या न हो, अगर तुम सत्य पर अमल कर सकते हो, और तुम्हारे पास सच्ची अनुभवजन्य गवाही है, तुम अपने अनुभव से लोगों को परमेश्वर के इरादों और सत्य को समझने देते हो, तो क्या इससे लोगों को लाभ नहीं होता? तो तुम्हारे लिए हैसियत का अर्थ क्या है? दरअसल, हैसियत बस एक फालतू, अतिरिक्त चीज है, एक वस्त्र या एक टोपी की तरह। यह बस एक आभूषण है। इसका कोई वास्तविक उपयोग नहीं है, और इसकी मौजूदगी किसी को प्रभावित नहीं करती। तुम्हारी कोई हैसियत हो या न हो, तुम अभी भी वही व्यक्ति हो। लोग सत्य को समझ कर सत्य और जीवन को हासिल कर सकते हैं या नहीं, इसका हैसियत से कुछ लेना-देना नहीं है। अगर तुम हैसियत को बहुत बड़ी चीज नहीं मानते, तो यह तुम्हें विवश नहीं कर सकती। अगर तुम हैसियत से प्रेम कर उस पर विशेष जोर देते हो, हमेशा उसे महत्वपूर्ण चीज मानते हो, तो यह तुम्हें अपने नियंत्रण में रखेगी; तुम खुलने, अपना असली रूप दिखाने, खुद को जानने या अपनी अगुआई की भूमिका को दरकिनार कर, दूसरों के साथ कार्य करने, बात करने, संसर्ग करने और अपना कर्तव्य निभाने के लिए तैयार नहीं होगे। यह कैसी समस्या है? क्या यह हैसियत के आगे विवश होने का मामला नहीं है? ऐसा इसलिए होता है क्योंकि तुम हैसियत वाले स्थान से बोलते और कार्य करते हो, और अपने श्रेष्ठ होने का अहंकार नहीं छोड़ना चाहते हो। ऐसा करके क्या तुम खुद को ही तकलीफ नहीं दे रहे हो? अगर तुम सचमुच सत्य को समझते हो और खुद को अभी की तरह रोके बिना हैसियत रख सकते हो, बल्कि इसके बजाय अच्छे ढंग से अपना कर्तव्य निभाने में ध्यान लगा सकते हो, वह हर चीज कर सकते हो और अपना वह कर्तव्य पूरा कर सकते हो, जो तुम्हें करना चाहिए, और अगर तुम खुद को एक साधारण भाई-बहन की तरह देखते हो, तो फिर क्या तुम हैसियत से बाध्य नहीं होगे? जब तुम हैसियत से विवश नहीं होते और तुम्हारे पास सामान्य जीवन प्रवेश होता है, तो क्या तुम तब भी दूसरों से अपनी तुलना करते हो? अगर दूसरों की हैसियत तुमसे ऊँची हो, तो क्या तुम तब भी बेचैन हो जाते हो? तुम्हें सत्य खोजकर खुद को हैसियत के बंधनों और दूसरे सभी लोगों, घटनाओं और चीजों के बंधनों से मुक्त कर लेना चाहिए। अपना कर्तव्य अच्छे ढंग से निभाने से बढ़कर कुछ भी नहीं है। तभी तुम ऐसे व्यक्ति बनोगे जो सत्य वास्तविकता से युक्त है।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, हैसियत के प्रलोभन और बंधन कैसे तोड़ें
उनके मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चलने की समस्या का समाधान कैसे किया जा सकता है? (एक ओर, उन्हें इस मामले को समझना होगा, और जब वे रुतबा पाने की कोशिश करने वाले विचार प्रकट करें, तो उन्हें प्रार्थना के लिए परमेश्वर के सामने आना होगा। इसके अलावा, उन्हें भाई-बहनों के सामने दिल खोलकर अपनी बात कहनी होगी और होशोहवास में इन गलत विचारों के खिलाफ विद्रोह करना होगा। उन्हें परमेश्वर से उनका न्याय करने, उन्हें दंडित करने, उन्हें काटने-छाँटने और अनुशासित करने के लिए भी कहना होगा। तभी वे सही मार्ग पर चल पाएँगे।) यह काफी अच्छा जवाब है। हालाँकि, ऐसा करना आसान नहीं है, और यह उन लोगों के लिए और भी ज्यादा कठिन है जो प्रतिष्ठा और रुतबे से बेहद प्यार करते हैं। प्रतिष्ठा और रुतबे को छोड़ना आसान नहीं है—यह लोगों के सत्य का अनुसरण करने पर निर्भर करता है। केवल सत्य समझकर ही व्यक्ति खुद को जान सकता है, शोहरत, लाभ और रुतबे के पीछे दौड़ने का खोखलापन स्पष्ट रूप से देख सकता है और मानवजाति की भ्रष्टता का सत्य साफ तौर पर देख सकता है। जब व्यक्ति वास्तव में खुद को जान लेता है केवल तभी वह रुतबे और प्रतिष्ठा को त्याग सकता है। अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्याग पाना आसान नहीं है। अगर तुम पहचान गए हो कि तुममें सत्य की कमी है, तुम कमियों से घिरे हो और बहुत अधिक भ्रष्टता प्रकट करते हो, फिर भी तुम सत्य का अनुसरण करने का कोई प्रयास नहीं करते और छद्मवेश धारण करके पाखंड में लिप्त होते हो, इससे लोगों को विश्वास दिलाते हो कि तुम कुछ भी कर सकते हो, तो यह तुम्हें खतरे में डाल देगा और देर-सवेर एक ऐसा समय आएगा जब तुम्हारे आगे का रास्ता बंद हो जाएगा और तुम गिर जाओगे। तुम्हें स्वीकारना चाहिए कि तुम्हारे पास सत्य नहीं है, और पर्याप्त बहादुरी से वास्तविकता का सामना करना चाहिए। तुममें कमजोरी है, तुम भ्रष्टता प्रकट करते हो और हर तरह की कमियों से घिरे हो। यह सामान्य है, क्योंकि तुम एक सामान्य व्यक्ति हो, तुम अलौकिक या सर्वशक्तिमान नहीं हो, और तुम्हें यह पहचानना चाहिए। जब दूसरे लोग तुम्हारा तिरस्कार या उपहास करें, तो इसलिए तुरंत चिढ़कर प्रतिक्रिया मत दो, क्योंकि वे जो कहते हैं वह अप्रिय है, या इसलिए इसका प्रतिरोध मत करो क्योंकि तुम खुद को सक्षम और परिपूर्ण मानते हो—ऐसी बातों के प्रति तुम्हारा रवैया ऐसा नहीं होना चाहिए। तुम्हारा रवैया कैसा होना चाहिए? तुम्हें अपने आपसे कहना चाहिए, “मेरे अंदर दोष हैं, मेरी हर चीज भ्रष्ट और दोषपूर्ण है और मैं एक साधारण-सा व्यक्ति हूँ। उनके द्वारा मेरा तिरस्कार और उपहास किए जाने के बावजूद, क्या इसमें कोई सच्चाई है? अगर वे जो कहते हैं उसका थोड़ा-सा हिस्सा भी सच है, तो मुझे इसे परमेश्वर से आया मानकर स्वीकार कर लेना चाहिए।” अगर तुम्हारा ऐसा रवैया है, तो यह इस बात का प्रमाण है कि तुम रुतबे, प्रतिष्ठा और अपने बारे में दूसरे लोगों की राय को सही तरीके से संभालने में सक्षम हो। रुतबे और प्रतिष्ठा को आसानी से दरकिनार नहीं किया जाता। उन लोगों के लिए तो इन चीजों को अलग रखना और भी मुश्किल है, जो कुछ हद तक प्रतिभाशाली होते हैं, जिनमें थोड़ी-बहुत क्षमता होती है या जो कुछ कार्य-अनुभव रखते हैं। भले ही वे कभी-कभी उन्हें दरकिनार करने का दावा करें, मगर वे अपने दिलों में ऐसा नहीं कर सकते। जैसे ही अनुकूल परिस्थिति आएगी और उन्हें अवसर मिलेगा, वे पहले की तरह शोहरत, लाभ और रुतबे के पीछे दौड़ने लगेंगे, क्योंकि सभी भ्रष्ट मनुष्य इन चीजों से प्यार करते हैं, बस जिनके पास खूबियाँ या प्रतिभाएँ नहीं हैं, उनमें रुतबे के पीछे दौड़ने की थोड़ी कम इच्छा होती है। जिनके पास भी ज्ञान, प्रतिभा, सुंदरता और विशेष पूंजी है, उनमें प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए विशेष रूप से तीव्र इच्छा होती है, इस हद तक कि वे इस महत्वाकांक्षा और इच्छा से भरे होते हैं। इसे दरकिनार करना उनके लिए सबसे ज्यादा कठिन काम है। जब उनके पास कोई रुतबा नहीं होता, तो उनकी इच्छा प्रारंभिक अवस्था में होती है। एक बार जब वे रुतबा पा लेते हैं, जब परमेश्वर का घर उन्हें कोई महत्वपूर्ण कार्य सौंप देता है, और विशेष रूप से जब वे बरसों तक काम कर चुके होते हैं और उनके पास बहुत अनुभव और पूँजी होती है, तब उनकी इच्छा प्रारंभिक अवस्था में नहीं रहती, बल्कि गहरी जड़ जमा चुकी होती है, खिल चुकी होती है, और उस पर फल लगने वाले होते हैं। अगर किसी व्यक्ति में महान कार्य करने, प्रसिद्ध होने, कोई महान व्यक्ति बनने की निरंतर इच्छा और महत्वाकांक्षा रहती है, तो जैसे ही वह कोई बड़ा कुकर्म करता है, और इसके परिणाम सामने आते हैं, वह पूरी तरह से समाप्त हो जाता है और उसे हटा दिया जाता है। और इसलिए, इससे पहले कि यह बड़ी विपदा की ओर ले जाए, उसे फौरन और समय रहते स्थिति को पलट देना चाहिए। जब भी तुम कुछ करते हो, और चाहे उसका जो भी संदर्भ हो, तुम्हें सत्य की खोज करनी चाहिए, ऐसा व्यक्ति बनने का अभ्यास करना चाहिए जो परमेश्वर के प्रति ईमानदार और आज्ञाकारी हो, और रुतबे और प्रतिष्ठा के अनुसरण को दरकिनार कर देना चाहिए। जब तुममें रुतबे के लिए प्रतिस्पर्धा करने की निरंतर सोच और इच्छा होती है, तो तुम्हें यह बात पता होनी चाहिए कि अगर इस तरह की स्थिति को अनसुलझा छोड़ दिया जाए तो कैसी बुरी चीजें हो सकती हैं। इसलिए समय बर्बाद न करते हुए सत्य खोजो, रुतबे के लिए प्रतिस्पर्धा करने की इच्छा पर प्रारंभिक अवस्था में ही काबू पा लो, और इसके स्थान पर सत्य का अभ्यास करो। जब तुम सत्य का अभ्यास करने लगोगे, तो रुतबे के लिए प्रतिस्पर्धा करने की तुम्हारी इच्छा और महत्वाकांक्षा कम हो जाएगी और तुम कलीसिया के काम में बाधा नहीं डालोगे। इस तरह, परमेश्वर तुम्हारे क्रियाकलापों को याद रखेगा और उन्हें स्वीकृति देगा। तो मैं किस बात पर जोर दे रहा हूँ? वह बात यह है : इससे पहले कि तुम्हारी इच्छाएँ और महत्वाकांक्षाएँ पुष्पित और फलीभूत होकर बड़ी विपत्ति लाएँ, तुम्हें उनसे छुटकारा पा लेना चाहिए। यदि तुम उन्हें शुरुआत में ही काबू नहीं करोगे, तो तुम एक बड़े अवसर से चूक जाओगे; अगर वे बड़ी विपत्ति का कारण बन गईं, तो उनका समाधान करने में बहुत देर हो जाएगी। यदि तुममें दैहिक इच्छाओं के खिलाफ विद्रोह करने की इच्छा तक नहीं है, तो तुम्हारे लिए सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर चलना बहुत मुश्किल हो जाएगा; यदि तुम शोहरत, लाभ और रुतबा पाने के प्रयास में असफलताओं और नाकामयाबियों का सामना करने पर होश में नहीं आते, तो यह स्थिति बहुत खतरनाक होगी : इस बात की संभावना है कि तुम्हें हटा दिया जाए। जब सत्य से प्रेम करने वालों को अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे को लेकर एक-दो असफलताओं और नाकामियों का सामना करना पड़ता है, तो वे स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि प्रतिष्ठा और रुतबे का कोई मूल्य नहीं है। वे रुतबे और प्रतिष्ठा को पूरी तरह त्यागने में सक्षम होते हैं, और यह संकल्प लेते हैं कि भले ही उनके पास कभी भी रुतबा न हो, फिर भी वे सत्य का अनुसरण करते हुए अपना कर्तव्य अच्छे से निभाना जारी रखेंगे, और अपनी अनुभवजन्य गवाही साझा करते रहेंगे और इस तरह परमेश्वर की गवाही देने का नतीजा हासिल करेंगे। वे साधारण अनुयायी होकर भी, अंत तक अनुसरण करने में सक्षम बने रहते हैं। उनकी बस एक ही चाहत होती है कि उन्हें परमेश्वर की स्वीकृति मिले। ऐसे लोग ही वास्तव में सत्य से प्रेम करते हैं और उनमें संकल्प होता है। परमेश्वर के घर ने बहुत-से मसीह-विरोधियों और दुष्ट लोगों को हटाया है और सत्य का अनुसरण करने वाले कुछ लोग मसीह-विरोधियों की विफलता देखकर उनके अपनाए गए मार्ग के बारे में चिंतन करते हैं और आत्मचिंतन कर खुद को भी जानते हैं। इससे वे परमेश्वर के इरादे की समझ प्राप्त करते हैं, सामान्य अनुयायी बनने का संकल्प लेते हैं और सत्य का अनुसरण करके अपना कर्तव्य अच्छे से निभाने पर ध्यान देते हैं। भले ही परमेश्वर उन्हें सेवाकर्ता या तुच्छ नाचीज कह दे, तो भी वे इसे सिर माथे लेते हैं। वे परमेश्वर की नजर में बस नीच लोग और तुच्छ, महत्वहीन अनुयायी बनने का प्रयास करेंगे जो अंततः परमेश्वर द्वारा स्वीकार्य सृजित प्राणी कहलाएँगे। इस तरह के लोग ही नेक होते हैं और वे ऐसे लोग होते हैं जिन्हें परमेश्वर स्वीकृति देता है।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग तीन)
जब परमेश्वर यह अपेक्षा करता है कि लोग अपने कर्तव्य को अच्छे से निभाएं तो वह उनसे एक निश्चित संख्या में कार्य पूरे करने या किसी महान उपक्रम को संपन्न करने को नहीं कह रहा है, और न ही वह उनसे किन्हीं महान उपक्रमों का निर्वहन करवाना चाहता है। परमेश्वर बस इतना चाहता है कि लोग ज़मीनी तरीके से वह सब करें, जो वे कर सकते हैं, और उसके वचनों के अनुसार जिएँ। परमेश्वर यह नहीं चाहता कि तुम कोई महान या उत्कृष्ट व्यक्ति बनो, न ही वह चाहता है कि तुम कोई चमत्कार करो, न ही वह तुममें कोई सुखद आश्चर्य देखना चाहता है। उसे ऐसी चीज़ें नहीं चाहिए। परमेश्वर बस इतना चाहता है कि तुम मजबूती से उसके वचनों के अनुसार अभ्यास करो। जब तुम परमेश्वर के वचन सुनते हो तो तुमने जो समझा है वह करो, जो समझ-बूझ लिया है उसे क्रियान्वित करो, जो तुमने सुना है उसे अच्छे से याद रखो और जब अभ्यास का समय आए, तो परमेश्वर के वचनों के अनुसार ऐसा करो। उन्हें तुम्हारा जीवन, तुम्हारी वास्तविकताएं और जो तुम लोग जीते हो, वह बन जाने दो। इस तरह, परमेश्वर संतुष्ट होगा। तुम हमेशा महानता, उत्कृष्टता और हैसियत ढूँढ़ते हो; तुम हमेशा उन्नयन खोजते हो। इसे देखकर परमेश्वर को कैसा लगता है? वह इससे घृणा करता है और वह खुद को तुमसे दूर कर लेगा। जितना अधिक तुम महानता और कुलीनता जैसी चीजों के पीछे भागते हो; दूसरों से बड़ा, विशिष्ट, उत्कृष्ट और महत्त्वपूर्ण होने का प्रयास करते हो, परमेश्वर को तुम उतने ही अधिक घिनौने लगते हो। यदि तुम आत्म-चिंतन करके पश्चात्ताप नहीं करते, तो परमेश्वर तुमसे घृणा कर तुम्हें त्याग देगा। ऐसे व्यक्ति बनने से बचो जिससे परमेश्वर घृणा करता है; बल्कि ऐसे इंसान बनो जिसे परमेश्वर प्रेम करता है। तो इंसान परमेश्वर का प्रेम कैसे प्राप्त कर सकता है? आज्ञाकारिता के साथ सत्य स्वीकार करके, सृजित प्राणी के स्थान पर खड़े होकर, परमेश्वर के वचनों का पालन करते हुए व्यावहारिक रहकर, अपने कर्तव्यों का अच्छी तरह निर्वहन करके, ईमानदार इंसान बनके और मानव के सदृश जीवन जीकर। इतना काफी है, परमेश्वर संतुष्ट होगा। लोगों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे मन में किसी तरह की महत्वाकांक्षा न पालें या बेकार के सपने न देखें, प्रसिद्धि, लाभ और हैसियत के पीछे न भागें या भीड़ से अलग दिखने की कोशिश न करें। इससे भी बढ़कर, उन्हें महान या अलौकिक व्यक्ति या लोगों में श्रेष्ठ बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए और दूसरों से अपनी पूजा नहीं करवानी चाहिए। यही भ्रष्ट इंसान की इच्छा होती है और यह शैतान का मार्ग है; परमेश्वर ऐसे लोगों को नहीं बचाता। अगर लोग पश्चात्ताप किए बिना लगातार प्रसिद्धि, लाभ और हैसियत के पीछे भागते हैं, तो उनका कोई इलाज नहीं है, उनका केवल एक ही परिणाम होता है : हटा दिया जाना। आज, अगर तुम लोग शीघ्रता से पश्चात्ताप करो, तो अभी भी समय है; लेकिन जब वह दिन आएगा और परमेश्वर अपना काम पूरा करेगा, आपदाएँ बढ़ती जाएंगी, और तुम मौका खो चुके होगे। जब वह समय आएगा, तब जो लोग यश, लाभ और प्रतिष्ठा के पीछे भाग रहे होंगे और अड़ियल बनकर पश्चात्ताप करने से इनकार करेंगे, वे हटा दिए जाएँगे। तुम सब लोगों को इस बारे में स्पष्ट होना चाहिए कि परमेश्वर का कार्य किस तरह के लोगों को बचाता है, और उसके उद्धार का क्या अर्थ है। परमेश्वर लोगों को अपने वचन सुनने, सत्य को स्वीकारने, भ्रष्ट स्वभाव को त्यागने के लिए अपने सामने आने, और परमेश्वर के कथन और उसकी आज्ञा के अनुसार अभ्यास करने को कहता है। इसका अर्थ है उसके वचनों के अनुसार जीना, न कि अपनी धारणाओं, कल्पनाओं और शैतानी फलसफों के अनुसार जीना या इंसानी “आनंद” का अनुसरण करना। जो कोई भी परमेश्वर के वचन नहीं सुनता या सत्य नहीं स्वीकारता है, बल्कि अभी भी पश्चात्ताप किए बिना शैतान के फलसफों के अनुसार और शैतानी स्वभाव के साथ जीता है, तो इस तरह के व्यक्ति को परमेश्वर नहीं बचा सकता। तुम परमेश्वर का अनुसरण करते हो, मगर बेशक यह भी इसलिए है क्योंकि परमेश्वर ने तुम्हें चुना है—मगर परमेश्वर द्वारा तुम्हें चुने जाने का क्या अर्थ है? यह तुम्हें ऐसा व्यक्ति बनाना है, जो परमेश्वर पर भरोसा करता है, जो वास्तव में परमेश्वर का अनुसरण करता है, जो परमेश्वर के लिए सब-कुछ त्याग सकता है, और जो परमेश्वर के मार्ग का अनुसरण करने में सक्षम है; जिसने अपना शैतानी स्वभाव त्याग दिया है, जो अब शैतान का अनुसरण नहीं करता या उसकी सत्ता के अधीन नहीं जीता है। अगर तुम परमेश्वर का अनुसरण करते हो और उसके घर में अपना कर्तव्य निभाते हो, फिर भी हर मामले में सत्य का उल्लंघन करते हो, और उसके वचनों के अनुसार अभ्यास या अनुभव नहीं करते हो, यहाँ तक कि उसका विरोध भी करते हो, तो क्या परमेश्वर तुम्हें स्वीकार सकता है? बिल्कुल नहीं। इससे मेरा क्या आशय है? अपना कर्तव्य निभाना वास्तव में कठिन नहीं है, और न ही उसे निष्ठापूर्वक और स्वीकार्य मानक तक करना कठिन है। तुम्हें अपने जीवन का बलिदान या कुछ भी खास या मुश्किल नहीं करना है, तुम्हें केवल ईमानदारी और दृढ़ता से परमेश्वर के वचनों और निर्देशों का पालन करना है, इसमें अपने विचार नहीं जोड़ने हैं या अपना खुद का कार्य संचालित नहीं करना है, बल्कि सत्य के अनुसरण के रास्ते पर चलना है। अगर लोग ऐसा कर सकते हैं, तो उनमें मूल रूप से एक मानवीय सदृशता होगी। जब उनमें परमेश्वर के प्रति सच्चा समर्पण होता है, और वे ईमानदार व्यक्ति बन जाते हैं, तो उनमें एक सच्चे इंसान की सदृशता होगी।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, उचित कर्तव्यपालन के लिए आवश्यक है सामंजस्यपूर्ण सहयोग
जैसा कि मैं आज जिस तरह तुम्हारा न्याय कर रहा हूँ, अंत में तुम लोगों के अंदर किस स्तर की समझ होगी? तुम लोग कहोगे कि यद्यपि तुम लोगों की हैसियत ऊँची नहीं है, फिर भी तुम लोगों ने परमेश्वर के उत्कर्ष का आनंद तो लिया ही है। क्योंकि तुम लोग अधम पैदा हुए थे इसलिए तुम लोगों की कोई हैसियत नहीं है, लेकिन तुम हैसियत प्राप्त कर लेते हो क्योंकि परमेश्वर तुम्हारा उत्कर्ष करता है—यह तुम लोगों को परमेश्वर ने प्रदान किया है। आज तुम लोग व्यक्तिगत रूप से परमेश्वर का प्रशिक्षण, उसकी ताड़ना और उसका न्याय प्राप्त करने में सक्षम हो। यह भी उसी का उत्कर्ष है। तुम लोग व्यक्तिगत रूप से उसके द्वारा शुद्धिकरण और प्रज्ज्वलन प्राप्त करने में सक्षम हो। यह परमेश्वर का महान प्रेम है। युगों-युगों से एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जिसने उसका शुद्धिकरण और प्रज्ज्वलन प्राप्त किया हो और एक भी व्यक्ति उसके वचनों के द्वारा पूर्ण नहीं हो पाया है। परमेश्वर अब तुम लोगों से आमने-सामने बात कर रहा है, तुम लोगों को शुद्ध कर रहा है, तुम लोगों के भीतर के विद्रोहीपन को उजागर कर रहा है—यह सचमुच उसका उत्कर्ष है। लोगों में क्या योग्यता हैं? चाहे वे दाऊद के पुत्र हों या मोआब के वंशज, कुल मिला कर, लोग ऐसे सृजित प्राणी हैं जिनके पास गर्व करने के लिए कुछ नहीं है। चूँकि तुम लोग सृजित प्राणी हो, इसलिए तुम लोगों को एक सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाना चाहिए। तुम लोगों से अन्य कोई अपेक्षाएँ नहीं हैं। तुम लोगों को ऐसे प्रार्थना करनी चाहिए : “हे परमेश्वर, चाहे मेरी हैसियत हो या न हो, अब मैं स्वयं को समझती हूँ। यदि मेरी हैसियत ऊँची है तो यह तेरे उत्कर्ष के कारण है, और यदि यह निम्न है तो यह तेरे आदेश के कारण है। सब-कुछ तेरे हाथों में है। मेरे पास न तो कोई विकल्प हैं न ही कोई शिकायत है। तूने निश्चित किया कि मुझे इस देश में और इन लोगों के बीच पैदा होना है, और मुझे पूरी तरह से तेरे प्रभुत्व के अधीन समर्पित होना चाहिए क्योंकि सब-कुछ उसी के भीतर है जो तूने निश्चित किया है। मैं हैसियत पर ध्यान नहीं देती हूँ; आखिरकार, मैं एक सृजित प्राणी ही तो हूँ। यदि तू मुझे अथाह गड्ढे में, आग और गंधक की झील में डालता है, तो मैं एक सृजित प्राणी से अधिक कुछ नहीं हूँ। यदि तू मेरा उपयोग करता है, तो मैं एक सृजित प्राणी हूँ। यदि तू मुझे पूर्ण बनाता है, मैं तब भी एक सृजित प्राणी हूँ। यदि तू मुझे पूर्ण नहीं बनाता, तब भी मैं तुझ से प्यार करती हूँ क्योंकि मैं सृष्टि के एक सृजित प्राणी से अधिक कुछ नहीं हूँ। मैं सृष्टि के प्रभु द्वारा रचित एक सूक्ष्म सृजित प्राणी से अधिक कुछ नहीं हूँ, सृजित मनुष्यों में से सिर्फ एक हूँ। तूने ही मुझे बनाया है, और अब तूने एक बार फिर मुझे अपने हाथों में अपनी दया पर रखा है। मैं तेरा उपकरण और तेरी विषमता होने के लिए तैयार हूँ क्योंकि सब-कुछ वही है जो तूने निश्चित किया है। कोई इसे बदल नहीं सकता। सभी चीजें और सभी घटनाएँ तेरे हाथों में हैं।” जब वह समय आएगा, तब तू हैसियत पर ध्यान नहीं देगी, तब तू इससे छुटकारा पा लेगी। तभी तू आत्मविश्वास से, निर्भीकता से खोज करने में सक्षम होगी, और तभी तेरा हृदय किसी भी बंधन से मुक्त हो सकता है। एक बार लोग जब इन चीज़ों से छूट जाते हैं, तो उनके पास और कोई चिंताएँ नहीं होतीं।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम विषमता होने के अनिच्छुक क्यों हो?
सृजित मानवता के एक सदस्य के रूप में, मनुष्य को अपनी स्थिति बनाए रखनी चाहिए, और कर्तव्यनिष्ठा से आचरण करना चाहिए। सृष्टिकर्ता द्वारा तुम्हें जो सौंपा गया है, उसकी कर्तव्यपरायणता से रक्षा करो। अनुचित कार्य मत करो, न ही ऐसे कार्य करो जो तुम्हारी क्षमता के दायरे से बाहर हों या जो परमेश्वर के लिए घृणित हों। महान इंसान, अतिमानव या एक भव्य व्यक्ति बनने की कोशिश मत करो, और परमेश्वर बनने का प्रयास मत करो। लोगों को ऐसा बनने की इच्छा नहीं करनी चाहिए। महान या अतिमानव बनने की कोशिश करना बेतुका है। परमेश्वर बनने की कोशिश करना तो और भी ज्यादा शर्मनाक है; यह घृणित और निंदनीय है। जो प्रशंसनीय है, और जो सृजित प्राणियों को किसी भी चीज से ज्यादा करना चाहिए, वह है एक सच्चा सृजित प्राणी बनना; यही एकमात्र लक्ष्य है जिसका सभी लोगों को अनुसरण करना चाहिए।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I
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चुनाव से पहले
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न्याय और ताड़ना परमेश्वर का प्रेम है
मसीह-विरोधी स्वभाव के बारे में मेरा थोड़ा ज्ञान
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शैतान प्रसिद्धि और लाभ के जरिए लोगों के विचारों को नियंत्रित करता है
अपने दर्जे को संजोये रखने का क्या मोल है?
तुम्हें हर चीज में परमेश्वर की जाँच-पड़ताल स्वीकार करनी चाहिए
मैं बस एक अदना-सा सृजित प्राणी हूँ