23. दिखावा पसंदगी और अपने लिए गवाही देने की समस्या का समाधान कैसे करें

अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन

अपनी बड़ाई करना और अपनी गवाही देना, स्वयं पर इतराना, दूसरों की अपने बारे में बहुत अच्छी राय बनवाने और उनसे अपनी आराधना करवाने की कोशिश करना—भ्रष्‍ट मनुष्‍यजाति इन चीज़ों में माहिर है। जब लोग अपनी शैता‍नी प्रकृतियों से शासित होते हैं, तब वे सहज और स्‍वाभाविक ढंग से इसी तरह प्रतिक्रिया करते हैं, और यह भ्रष्‍ट मनुष्यजाति के सभी लोगों में है। लोग सामान्यतः कैसे अपनी बड़ाई करते हैं और अपनी गवाही देते हैं? वे दूसरों की अपने बारे में बहुत अच्छी राय बनवाने और उनसे अपनी आराधना करवाने के इस लक्ष्‍य को कैसे हासिल करते हैं? वे इस बात की गवाही देते हैं कि उन्‍होंने कितना कार्य किया है, कितना अधिक दुःख भोगा है, स्वयं को कितना अधिक खपाया है, और क्या कीमत चुकाई है। वे अपनी पूँजी के बारे में बातें करके अपनी बड़ाई करते हैं, जो उन्‍हें लोगों के दिमाग़ में अधिक ऊँचा, अधिक मजबूत, अधिक सुरक्षित स्थान देता है, ताकि अधिक से अधिक लोग उनकी सराहना करें, उन्हें मान दें, उनकी प्रशंसा करें, और यहाँ तक कि उनकी अराधना करें, उनका आदर करें, और उनका अनुसरण करें। यह लक्ष्य हासिल करने के लिए लोग कई ऐसे काम करते हैं, जो ऊपरी तौर पर तो परमेश्वर की गवाही देते हैं, लेकिन वास्तव में वे अपनी बड़ाई करते हैं और अपनी गवाही देते हैं। क्या इस तरह से कार्य करना उचित है? वे तार्किकता के दायरे से परे हैं और उन्हें कोई शर्म नहीं है : अर्थात्, वे निर्लज्‍ज ढंग से गवाही देते हैं कि उन्‍होंने परमेश्वर के लिए क्‍या-क्‍या किया है और उसके लिए कितना अधिक दुःख झेला है। वे तो अपनी योग्‍यताओं, प्रतिभाओं, अनुभव, विशेष कौशलों पर, सांसारिक आचरण की चतुर तकनीकों पर, लोगों के साथ खिलवाड़ के लिए प्रयुक्त अपने तौर-तरीक़ों पर इतराते तक हैं। अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने का उनका तरीका स्वयं पर इतराने और दूसरों को नीचा दिखाने के लिए है। वे छद्मावरणों और पाखंड का सहारा भी लेते हैं, जिनके द्वारा वे लोगों से अपनी कमज़ोरियाँ, कमियाँ और त्रुटियाँ छिपाते हैं, ताकि लोग हमेशा सिर्फ उनकी चमक-दमक ही देखें। जब वे नकारात्‍मक महसूस करते हैं तब दूसरे लोगों को यह बताने का साहस तक नहीं करते; उनमें लोगों के साथ खुलने और संगति करने का साहस नहीं होता, और जब वे कुछ ग़लत करते हैं, तो वे उसे छिपाने और उस पर लीपा-पोती करने में अपनी जी-जान लगा देते हैं। अपना कर्तव्‍य निभाने के दौरान उन्‍होंने कलीसिया के कार्य को जो नुक़सान पहुँचाया होता है उसका तो वे ज़ि‍क्र तक नहीं करते। जब उन्‍होंने कोई छोटा-मोटा योगदान किया होता है या कोई छोटी-सी कामयाबी हासिल की होती है, तो वे उसका दिखावा करने को तत्पर रहते हैं। वे सारी दुनिया को यह जानने देने का इंतज़ार नहीं कर सकते कि वे कितने समर्थ हैं, उनमें कितनी अधिक क्षमता है, वे कितने असाधारण हैं, और सामान्‍य लोगों से कितने बेहतर हैं। क्‍या यह अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने का ही तरीका नहीं है? क्‍या अपनी बड़ाई करना और अपनी गवाही देना ऐसी चीज है, जिसे कोई जमीर और विवेक वाला व्यक्ति करता है? नहीं। इसलिए जब लोग यह करते हैं, तो सामान्यतः कौन-सा स्‍वभाव प्रगट होता है? अहंकार। यह प्रकट होने वाले मुख्य स्वभावों में से एक है, जिसके बाद छल-कपट आता है, जिसमें यथासंभव वह सब करना शामिल है जिससे दूसरे उनके प्रति अत्यधिक सम्‍मान का भाव रखें। उनके शब्द पूरी तरह अकाट्य होते हैं और उनमें अभिप्रेरणाएँ और कुचक्र स्पष्ट रूप से होते हैं, वे अपनी खूबियों का प्रदर्शन करते हैं, फिर भी वे इस तथ्‍य को छिपाना चाहते हैं। वे जो कुछ कहते हैं, उसका परिणाम यह होता है कि लोगों को यह महसूस करवाया जाता है कि वे दूसरों से बेहतर हैं, कि उनके बराबर कोई नहीं है, कि हर कोई उनसे हीनतर है। और क्‍या यह परिणाम चालाकीपूर्ण साधनों से हासिल नहीं किया गया है? ऐसे साधनों के पीछे कौन-सा स्‍वभाव है? और क्‍या उसमें दुष्‍टता के कोई तत्त्व हैं? (हाँ, हैं।) यह एक प्रकार का दुष्‍ट स्‍वभाव है। देखा जा सकता है कि उनके द्वारा प्रयुक्‍त ये साधन कपटपूर्ण स्‍वभाव से निर्देशित होते हैं—तो मैं क्‍यों कहता हूँ कि यह दुष्‍टतापूर्ण है? दुष्‍टता के साथ इसका क्‍या संबंध है? आप लोग क्‍या सोचते हो : अपनी बड़ाई करने और अपने बारे में गवाही देने के अपने लक्ष्‍यों के बारे में क्या वे निष्कपट हो सकते हैं? नहीं हो सकते। लेकिन उनके दिलों की गहराइयों में हमेशा एक आकांक्षा होती है, और जो कुछ भी वे कहते और करते हैं वह उस आकांक्षा को बल प्रदान करता है, और वे जो कुछ कहते और करते हैं, उसके लक्ष्‍य और प्रयोजन बहुत गुप्त रखे जाते हैं। उदाहरण के लिए, इन लक्ष्‍यों को हासिल करने के लिए वे गुमराह करने वाली या किन्‍हीं संदिग्ध चालों का इस्‍तेमाल करेंगे। क्‍या इस तरह का दुराव-छिपाव अपनी प्रकृति में ही धूर्ततापूर्ण नहीं है? क्‍या इस तरह की धूर्तता को दुष्‍टता नहीं कहा जा सकता? (हाँ।) इसे निश्‍चय ही दुष्टता कहा जा सकता है, और इसकी जड़ें छल-कपट से कहीं ज्‍़यादा गहराई तक फैली होती हैं। वे अपने लक्ष्य प्राप्त करने के लिए एक निश्चित तरीका या विधि का प्रयोग करते हैं। यह स्वभाव धोखेबाजी है। तथापि, उनके दिलों की गहराइयों में हर समय व्याप्त यह महत्वाकांक्षा और इच्छा कि लोग उनका अनुसरण करें, उनकी प्रशंसा करें, और नित्य उनकी आराधना करें, उन्हें अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने, तथा इन कार्यों को अनैतिकता और बेशर्मी से करने के लिए निर्देशित करती है। यह कैसा स्वभाव है? यह दुष्टता के स्तर तक पहुँच जाता है।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद चार : वे अपनी बड़ाई करते हैं और अपने बारे में गवाही देते हैं

जब लोग अपनी बड़ाई करते हैं और अपनी गवाही देते हैं, तो आम तौर पर वे किस तरह की चीजों के बारे में बात करते हैं? एक चीज है अपनी योग्यताओं के बारे में बात करना। मिसाल के तौर पर, कुछ लोग इस बारे में बात करते हैं कि उन्होंने किस तरह से ऊँचे स्तर के कुछ कलीसियाई अगुआओं की मेजबानी की है। कुछ लोग तो यहाँ तक कहते हैं, “मैंने खुद परमेश्वर की मेजबानी की, और उसने मेरे साथ काफी अच्छा व्यवहार किया—मुझे निश्चित रूप से पूर्ण बनाया जाएगा।” इससे वे क्या कहना चाहते हैं? (वे लोगों के दिलों में अपने बारे में ऊँची राय बनाने का प्रयास कर रहे हैं।) ये चीजें कहने के पीछे उनका एक लक्ष्य है। दूसरे लोग कहते हैं, “मैं ऊपरवाले के संपर्क में आ चुका हूँ, मेरे बारे में वह बहुत ऊँची राय रखता है, और उसने मुझे मेरे लक्ष्य के लिए कड़ी मेहनत करने के लिए प्रेरित किया।” दरअसल, किसी को भी बिल्कुल अंदाजा नहीं है कि ऊपरवाला उसके बारे में क्या सोचता है। कुछ लोग वाकई चीजों को बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं, और कभी-कभी तो कहानियाँ तक बना लेते हैं। अगर लोगों का एक समूह उनकी कहानियों को सत्यापित करने और जाँचने के लिए इकट्ठा आ जाए, तो उन्हें पता नहीं होगा कि क्या करना है। ऊपरवाला किसी से कह सकता है, “तुममें अच्छी काबिलियत है और तुम्हारे पास समझने की क्षमता है। तुम्हें अपनी अनुभवजन्य गवाही को लिखने का अभ्यास करना चाहिए। एक बार जब तुम्हारे पास जीवन अनुभव आ जाएगा, तो तुम अगुआ बन सकते हो।” यहाँ निहितार्थ क्या है? भले ही यह व्यक्ति प्रतिभाशाली है, फिर भी उसे कुछ समय तक प्रशिक्षण लेने और चीजों का अनुभव करने की जरूरत है। जब वह व्यक्ति प्रशिक्षण लेने या अनुभव हासिल करने से पहले अपनी शान दिखाता है और दिखावा करता है, तो इसकी क्या प्रकृति है? वह घमंडी और दंभी हो रहा है, और अपनी सूझ-बूझ खो चुका है, है ना? भले ही ऊपरवाला भाई कहे कि इस व्यक्ति में काबिलियत है और कि वह प्रतिभाशाली है, यह सिर्फ उनका उत्साह बढ़ाना या उसका मूल्यांकन करना है। इस तरह से घूम-घूमकर दिखावा करने के पीछे उस व्यक्ति का क्या लक्ष्य है? यह लोगों के दिलों में अपने बारे में ऊँची राय बनाना और उनसे अपनी आराधना करवाना है। उसके कहने का यह मतलब है, “देखो—ऊपरवाला भाई मेरे बारे में ऊँची राय रखता है, तो तुम क्यों नहीं रखते हो? अब जब मैंने तुम्हें यह बता दिया है, तो तुम्हें भी मेरे बारे में ऊँची राय रखनी चाहिए।” यही वह लक्ष्य है जिसे वह हासिल करना चाहता है। ऐसे भी लोग हैं जो कहते हैं, “मैं अगुआ हुआ करता था। मैं एक क्षेत्र, एक जिले, एक कलीसिया का अगुआ था—मैं सीढ़ी से लगातार नीचे गिरता रहा, और लगातार ऊपर चढ़ता रहा—मुझे कई बार पदोन्नत और पदावनत किया गया है। आखिर में, स्वर्ग मेरी सच्चाई से द्रवित हो उठा और आज, मैं एक बार फिर से ऊँचे स्तर का अगुआ हूँ। और मैं एक बार भी नकारात्मक नहीं रहा हूँ।” जब तुम उससे पूछते हो कि उसने कभी नकारात्मक महसूस क्यों नहीं किया, तो जवाब में वह कहता है, “मुझे आस्था है कि सच्चा सोना अंततः चमकता ही है।” वह इसी निष्कर्ष पर पहुँचा है। क्या यह सत्य वास्तविकता है? (नहीं।) तो अगर यह सत्य वास्तविकता नहीं है, तो फिर यह क्या है? यह एक अजीब सिद्धांत है; हम यह भी कह सकते हैं कि यह एक भ्रांति है। उसके इस तरह से बोलने का क्या परिणाम हो सकता है? कुछ लोग कह सकते हैं, “यह व्यक्ति वाकई सत्य का अनुसरण करता है। वह इतनी बार पदोन्नत और पदावनत होने के बाद भी नकारात्मक नहीं हुआ। और अब उसे फिर से अगुआ बना दिया गया है—असली सोना वाकई चमक उठता है। बहुत जल्द उसे पूर्ण बना दिया जाएगा।” क्या उस व्यक्ति का यही लक्ष्य नहीं था? दरअसल, उसका लक्ष्य ठीक यही था। मसीह-विरोधियों के बोलने का ढंग चाहे जो भी हो, यह हमेशा इसलिए होता है ताकि लोग उनके बारे में ऊँची राय रखें और उनकी आराधना करें, वे उनके दिलों में एक निश्चित जगह बना लें, यहाँ तक कि वहाँ परमेश्वर की स्थिति भी ले लें—ये सभी वे लक्ष्य हैं, जो मसीह-विरोधी अपनी गवाही देते समय हासिल करना चाहते हैं। लोग जो भी कहते हैं, जिसका भी प्रचार करते हैं और जिसकी भी संगति करते हैं, जब भी इसके पीछे की प्रेरणा यह होती है कि लोग उनके बारे में ऊँची राय रखें और उनकी आराधना करें, तो इस तरह का व्यवहार अपनी बड़ाई करना और अपनी गवाही देना होता है, इसे दूसरों के दिलों में एक जगह बनाने के लिए किया जाता है। हालाँकि इन लोगों के बोलने का तरीका पूरी तरह से एक-जैसा नहीं होता है, लेकिन कमोबेश इससे अपनी गवाही देने और दूसरों से अपनी आराधना करवाने का प्रभाव पड़ता है। कमोबेश, ऐसे व्यवहार लगभग सभी अगुआओं और कार्यकर्ताओं में मौजूद होते हैं। अगर वे ऐसी जगह पहुँच जाते हैं जहाँ वे खुद को रोक नहीं पाते हैं और उनके लिए खुद को सीमित करना मुश्किल हो जाता है, और यह इच्छा करते हुए उनमें एक खास तौर से मजबूत और साफ इरादा और लक्ष्य होता है कि वे लोगों से ऐसा व्यवहार करवाएँ मानो वे परमेश्वर या कोई आराध्य व्यक्ति हों और इस तरह से वे दूसरों को बाधित और नियंत्रित करने का और दूसरे लोगों से अपनी आज्ञा मनवाने और अपनी आराधना करवाने का लक्ष्य हासिल कर सकें, तो इस सबकी प्रकृति अपनी बड़ाई करने और अपने बारे में गवाही देने की है, और इसमें मसीह-विरोधियों का एक गुण निहित है।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद एक : वे लोगों के दिल जीतने का प्रयास करते हैं

कलीसियाई जीवन में लोगों, घटनाओं और चीजों द्वारा विघ्न-बाधा पैदा किए जाने की दूसरी अभिव्यक्ति तब होती है जब लोग लोगों को गुमराह करने और उनसे सम्मान प्राप्त करनेके लिए शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलते हैं। आमतौर पर अधिकांश लोग कुछ शब्द और धर्म-सिद्धांत बोल सकते हैं। अधिकांश लोगों ने ऐसा किया है। हमें किसी व्यक्ति द्वारा शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलने की सामान्य घटना को उस व्यक्ति के छोटे आध्यात्मिक कद और सत्य की समझ की कमी का परिणाम मानना चाहिए। जब तक वे बहुत अधिक समय नहीं लेते, सोद्देश्य ऐसा नहीं करते, बातचीत पर एकाधिकार नहीं स्थापित करते, सभी पर अपनी मर्जी के मुताबिक बोलने में रमने का दबाव नहीं बनाते, सभी को अपनी बात सुनने के लिए मजबूर नहीं करते, और दूसरों को गुमराह करने और उनसे सम्मान प्राप्त करने का प्रयास नहीं करते, तब तक यह विघ्न-बाधा पैदा करना नहीं है। क्योंकि अधिकांश लोगों में सत्य वास्तविकता नहीं होती, इसलिए शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलना बहुत सामान्य घटना होती है। कुछ हद तक अनुपयुक्त रूप से बोलना भी क्षम्य है; इसे माफ किया जा सकता है और इसे बहुत गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए। परंतु एक अपवाद है, जो तब होता है जब शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलने वाला व्यक्ति जानबूझकर ऐसा कर रहा हो। वे जान-बूझकर क्या काम करते हैं? वह यह नहीं है कि वे जानबूझकर शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलते हैं, क्योंकि उनके पास भी सत्य की वास्तविकता नहीं होती। उनके क्रिया-कलाप जैसे शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलना, नारे लगाना, और सिद्धांतों के बारे में बातें करना दूसरों के जैसा ही होता है। परंतु इसमें एक अंतर है : जब वे शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलते हैं, तो वे हमेशा चाहते हैं कि दूसरे लोग उनका सम्मान करें, और वे हमेशा अपनी तुलना अगुआओं और कार्यकर्ताओं के साथ और सत्य का अनुसरण करने वालों के साथ करने की इच्छा करते हैं। और इससे-भी-ज्यादा अनुचित यह है कि सम्मान पाने के लिए वे चाहे जो बोलें और चाहे जैसे बोलें उनका लक्ष्य लोगों को अपने पक्ष में खींचना और लोगों के दिलों को गुमराह करना होता है। सम्मान की तलाश का उद्देश्य क्या है? वे रुतबा और लोगों के दिलों में प्रतिष्ठा पाना चाहते हैं, भीड़ के बीच विशिष्ट व्यक्ति या अगुआ बनना चाहते हैं, कोई असाधारण या असामान्य व्यक्ति बनना चाहते हैं, विशेष व्यक्ति बनना चाहते हैं, जिनके शब्दों में अधिकार हो। यह स्थिति लोगों के शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलने की सामान्य घटनाओं से अलग होती है और विघ्न-बाधा उत्पन्न करती है। वह क्या है जो इन लोगों को सामान्य रूप से शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का उच्चारण किए जाने के मामलों से अलग करता है? यह उनकी बोलते रहने की स्थायी इच्छा है; जब भी मौका मिले, वे बोलेंगे। बोलते रहने की विशेष रूप से सबल इच्छा के चलते जब भी कोई सभा या लोगों का समूह एकत्रित होता है—जब तक उनके पास एक भी श्रोता होता है—वे बोलेंगे। बोलने का उनका उद्देश्य अपने अंदर की सोच, अपने लाभ, अनुभव, समझ या अंतर्दृष्टियों को भाई-बहनों के साथ साझा करना नहीं होता, ताकि सत्य की समझ पैदा की जा सके या सत्य का अभ्यास करने का कोई मार्ग तैयार किया जा सके। इसके बजाय, धर्म-सिद्धांतों का उच्चारण करने के अवसर का उपयोग करके वे प्रदर्शन करना चाहते हैं, दूसरों को दिखाना चाहते हैं कि वे कितने विद्वान हैं, दिखाना चाहते हैं कि उनके पास औसत व्यक्ति से ऊपर का दिमाग, ज्ञान और शिक्षा है। वे चाहते हैं कि उन्हें काबिल व्यक्तियों के रूप में जाना जाए, न कि साधारण व्यक्ति के रूप में। वे ऐसा इसलिए चाहते हैं ताकि किसी भी मामले में सब लोग उनकी ओर देखें और उनसे सलाह लें। वे चाहते हैं कि कलीसिया में किसी भी मुद्दे पर या भाई-बहनों के सामने आई किसी भी कठिनाई के समय दूसरों को सबसे पहले उनका ख्याल आए; वे ऐसा इसलिए चाहते हैं ताकि दूसरे लोग उनके बिना कुछ नहीं कर सकें, ताकि बिना उनसे परामर्श लिए वे किसी मामले को सँभालने की हिम्मत न करें और सारे लोग उनका आदेश पाने का इंतजार करें। यही वह प्रभाव है जो वे चाहते हैं। शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलने का उनका उद्देश्य लोगों को फँसाना और उन्हें काबू में रखना होता है। उनके लिए, शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलना एक तरीका भर है, एक दृष्टिकोण है; उनके शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलने का कारण यह नहीं है कि वे सत्य नहीं समझते, बल्कि इसके माध्यम से वे लोगों को दिल से उनकी प्रशंसा करने, उन्हें बड़ा समझने, और यहाँ तक कि उनसे डरने के लिए प्रेरित करना चाहते हैं, ताकि वे उनके द्वारा बेबस और उनके वश में हो जाएँ। इसीलिए, इस प्रकार शब्द और धर्म-सिद्धांतों बोलने से विघ्न-बाधा उत्पन्न होती है। कलीसियाई जीवन में ऐसे व्यक्तियों को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए, और शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलने के इस व्यवहार को रोका जाना चाहिए, इसे बेरोक-टोक जारी नहीं रहने दिया जाना चाहिए।

—वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (13)

कुछ लोग भाषा का इस्तेमाल करके, और स्वयं का बखान करने वाले कुछ शब्द बोलकर अपनी गवाही देते हैं, जबकि अन्य लोग व्यवहारों का इस्तेमाल करते हैं। अपनी गवाही देने के लिए व्यवहारों का इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति के कौन-कौन से लक्षण हैं? सतही तौर पर, वे कुछ ऐसा व्यवहार करते हैं जो अपेक्षाकृत लोगों की धारणाओं के अनुरूप हैं, जो लोगों का ध्यान खींचते हैं, और जिन्हें लोग बेहद नेक और अपेक्षाकृत नैतिक मानकों के अनुरूप मानते हैं। इन व्यवहारों के चलते लोग यह सोचने पर मजबूर होते हैं कि वे सम्मान-योग्य हैं, उनमें ईमानदारी है, वे वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करते हैं, वे बेहद पवित्र हैं, और उनमें वास्तव में परमेश्वर का भय मानने वाला दिल है, और वे सत्य का अनुसरण करने वाले लोग हैं। वे लोगों को गुमराह करने के लिए अक्सर कुछ ऊपरी अच्छे व्यवहारों का प्रदर्शन करते हैं—क्या इसमें भी अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने की बू नहीं आती है? आमतौर पर लोग शब्दों के जरिये अपनी बड़ाई करते हैं और अपनी गवाही देते हैं, स्पष्ट भाषण देकर बताते हैं कि वे आम लोगों से किस प्रकार भिन्न हैं और उनके पास दूसरों के मुकाबले अधिक बुद्धिमान राय कैसे हैं, ताकि लोग उनके बारे में बहुत अच्छी राय कायम करें और उन्हें ऊँची नजरों से देखें। हालाँकि, कुछ ऐसे तरीके हैं जिनमें स्पष्ट भाषण शामिल नहीं होता है, जहाँ लोग दूसरों से बेहतर होने की गवाही देने के लिए इसके बजाय बाहरी अभ्यासों का इस्तेमाल करते हैं। इस तरह के अभ्यास सुविचारित होते हैं, इनमें एक उद्देश्य और एक निश्चित इरादा होता है, और वे बेहद उद्देश्यपूर्ण होते हैं। उन्हें सम्मिलित और संसाधित किया जाता है ताकि लोगों को जो कुछ व्यवहार और अभ्यास दिखाई दें वो व्यक्ति की धारणाओं के अनुरूप हों, नेक हों, पवित्र हों, और संतोचित शालीनता के अनुरूप हों, और परमेश्वर-प्रेमी, परमेश्वर का भय मानने वाले, और सत्य के अनुरूप भी हों। इससे भी अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने और लोगों की अपने बारे में बहुत अच्छी राय बनवाने और अपनी आराधना करवाने का वही लक्ष्य प्राप्त होता है। क्या तुम लोगों ने कभी ऐसी चीज का सामना किया है या ऐसी चीज देखी है? क्या तुम लोगों में ये लक्षण हैं? क्या ये चीजें और यह विषय जिसकी मैं चर्चा कर रहा हूँ असल जिंदगी से भिन्न हैं? वास्तव में, वे भिन्न नहीं हैं। मैं एक बेहद सरल उदाहरण दूंगा। जब कुछ लोग अपना कर्तव्य निभाते हैं, तो वे ऊपरी तौर पर बहुत व्यस्त प्रतीत होते हैं; वे विशेष उद्देश्य से उस समय भी काम कर रहे होते हैं जब अन्य लोग खा या सो रहे हों, और जब अन्य लोग अपना कर्तव्य निभाना शुरू करते हैं, तो वे खाने या सोने चले जाते हैं। ऐसा करने में उनका क्या उद्देश्य होता है? वे ध्यान आ‍कर्षित करना और हरेक को दिखाना चाहते हैं कि वे अपने कर्तव्य निभाने में इतने व्यस्त हैं कि उनके पास खाने या सोने का समय ही नहीं है। वे सोचते हैं : “तुम लोग वास्तव में बोझ नहीं उठाते हो। तुम लोग खाने और सोने को लेकर इतने सक्रिय कैसे हो? तुम लोग किसी काम के नहीं हो! मुझे देखो, मैं काम कर रहा हूँ जबकि तुम सभी खा रहे हो, और मैं रात में अभी भी काम कर रहा हूँ जब तुम सो रहे हो। क्या तुम लोग इस तरह कष्ट सह सकोगे? मैं इस कष्ट को सहन कर सकता हूँ; मैं अपने व्यवहार से एक मिसाल पेश कर रहा हूँ।” तुम लोग इस प्रकार के व्यवहार और लक्षण के बारे में क्या सोचते हो? क्या ये लोग जानबूझकर ऐसा नहीं कर रहे हैं? कुछ लोग ये काम जानबूझकर करते हैं, और यह किस तरह का व्यवहार है? ये लोग संप्रदायवादी बनना चाहते हैं; वे भीड़ से अलग होना और लोगों को दिखाना चाहते हैं कि वे पूरी रात बस अपना कर्तव्य निभाते रहे हैं, वे विशेष रूप से कष्ट सहने में सक्षम हैं। इस प्रकार हरेक व्यक्ति खासकर उनके लिए दुखी होगा और यह सोचते हुए उनके प्रति विशेष रूप से सहानुभूति दिखाएगा कि उनके कंधों पर भारी बोझ है, और इस हद तक है कि वे काम में डूबे हुए हैं और उनके पास खाने या सोने का समय भी नहीं है। और अगर उन्हें बचाया नहीं जा सकता, तो हरेक उनके लिए परमेश्वर से अनुनय-विनय करेगा, उनकी ओर से परमेश्वर से याचना करेगा, और उनके लिए प्रार्थना करेगा। ऐसा करते हुए, ये लोग अन्य लोगों की आँखों में धूल झोंकने और धोखे से उनकी सहानुभूति एवं प्रशंसा प्राप्त करने के लिए ऐसे अच्छे व्यवहारों और अभ्यासों का इस्तेमाल कर रहे हैं जो व्यक्ति की धारणाओं के अनुरूप हैं, जैसे कि मुसीबत झेलना और कीमत चुकाना। और इसका अंतिम परिणाम क्या है? उनके संपर्क में आने वाला हरेक व्‍यक्ति जिसने उन्हें कीमत चुकाते हुए देखा है, वे सभी एक स्वर में कहेंगे : “हमारा अगुआ सर्वाधिक सक्षम है, कष्ट सहने और कीमत चुकाने में सर्वाधिक सक्षम है!” तो क्या वे लोगों को गुमराह करने का अपना उद्देश्य पूरा नहीं कर पाए? फिर एक दिन, परमेश्वर का घर कहता है, “तुम लोगों का अगुआ वास्तविक काम नहीं करता है। वह अपने को व्यस्त रखता है और बिना किसी उद्देश्य के काम करता है; वह लापरवाही से काम करता है और वह मनमाना व्यवहार करने वाला और तानाशाह है। उसने कलीसिया के काम को अस्त-व्यस्त कर दिया है, उसने ऐसा कोई काम नहीं किया है जो उसे करना चाहिए था, उसने सुसमाचार का काम नहीं किया या फिल्म प्रोडक्शन का काम नहीं किया, और कलीसिया का जीवन भी अस्त-व्यस्त कर दिया है। भाई-बहन सत्य नहीं समझते हैं, उनके पास जीवन प्रवेश नहीं है, और वे गवाही के लेख भी नहीं लिख सकते हैं। सबसे दयनीय बात तो यह है कि वे झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों को भी नहीं पहचान सकते हैं। इस तरह का अगुआ अत्यधिक अक्षम होता है; वो झूठा अगुआ है जिसे बर्खास्त कर देना चाहिए!” इन परिस्थितियों में, क्या उसे बर्खास्त करना आसान होगा? यह कठिन हो सकता है। चूंकि सभी भाई-बहनों ने उसे स्वीकार किया है और उसका समर्थन किया है, यदि कोई इस अगुआ को बर्खास्त करने की कोशिश करता है, तो भाई-बहन विरोध करेंगे और उसे पद पर बनाए रखने के लिए ऊपरवाले से अनुरोध करेंगे। ऐसा परिणाम क्यों होगा? क्योंकि यह झूठा अगुआ और मसीह-विरोधी, लोगों को प्रभावित करने, उन्हें खरीदने और गुमराह करने के लिए मुसीबतें झेलने और कीमत चुकाने, और साथ ही मीठे शब्द बोलने जैसे बाहरी अच्छे व्यवहार का इस्तेमाल करता है। एक बार उसने लोगों को गुमराह करने के लिए झूठे दिखावों का इस्तेमाल कर लिया, तो हर कोई उसके पक्ष में बोलेगा और उसे छोड़ने में असमर्थ होगा। उन्हें स्पष्ट रूप से पता है कि इस अगुआ ने कोई खास वास्तविक काम नहीं किया है, और उसने सत्य को समझने और जीवन प्रवेश प्राप्त करने के लिए परमेश्वर के चुने हुए लोगों का मार्गदर्शन भी नहीं किया है, लेकिन ये लोग अभी भी उसका समर्थन करते हैं, उसको स्वीकार करते हैं, उसका अनुसरण करते हैं, और वे इस बात की भी परवाह नहीं करते कि इसका अर्थ यह है कि उन्हें सत्य और जीवन प्राप्त नहीं होगा। सबसे बड़ी बात यह है कि इस अगुआ द्वारा गुमराह होने के कारण, ये सभी लोग उसकी आराधना करते हैं, उसके अलावा किसी अन्य अगुआ को स्वीकार नहीं करते, और उन्हें परमेश्वर की भी अब कोई आवश्यकता नहीं है। क्या वे इस अगुआ को परमेश्वर की तरह मान नहीं दे रहे हैं? यदि परमेश्वर का घर कहता है कि यह व्यक्ति वास्तविक काम नहीं करता है और वो झूठा अगुआ और मसीह-विरोधी है, तो उसके कलीसिया के लोग विरोध करेंगे और विद्रोह के लिए उठ खड़े होंगे। मुझे बताओ, इस मसीह-विरोधी ने किस हद तक उन लोगों को गुमराह किया है? अगर यह पवित्र आत्मा का काम है, तो लोगों के हालात केवल बेहतर होने चाहिए, और उन्हें सत्य ज्यादा समझ आना चाहिए, उन्हें परमेश्वर के प्रति अधिक समर्पित होना चाहिए, उनके दिलों में परमेश्वर का स्थान और बड़ा होना चाहिए, और उन्हें झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों को ज्यादा बेहतर ढंग से पहचानने में सक्षम होना चाहिए। इस दृष्टिकोण से, हमने जिस स्थिति की अभी चर्चा की है वो बिल्कुल भी पवित्र आत्मा का काम नहीं है—केवल मसीह-विरोधी और बुरी आत्माएँ ही कुछ समय काम करने के बाद इस हद तक लोगों को गुमराह कर सकती हैं। अनेक लोगों को इन मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह और नियंत्रित किया गया है, और उनके दिलों में, केवल मसीह-विरोधियों के लिए स्थान है और परमेश्वर के लिए कोई स्थान नहीं है। मसीह-विरोधियों ने बाहरी अच्छे व्यवहारों के माध्यम से अपनी बड़ाई करके और अपनी गवाही देकर यह अंतिम नतीजा प्राप्त किया है।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद चार : वे अपनी बड़ाई करते हैं और अपने बारे में गवाही देते हैं

वे लोग जो अपनी बड़ाई करते हैं और अपनी गवाही देते हैं, क्या वे केवल अपने गुणों के बारे में ही बात करते हैं? कभी-कभी, वे अपने बुरे पहलुओं के बारे में भी बात करते हैं, लेकिन क्या वे सच में विश्लेषण कर रहे होते हैं और ऐसा करते समय स्वयं को जानने का प्रयास कर रहे होते हैं? (नहीं।) तो किसी व्यक्ति को कैसे पता चलता है कि उसका आत्म-ज्ञान वास्तविक नहीं है, बल्कि यह मिलावटी है और इसके पीछे कोई इरादा छिपा है? कोई व्यक्ति इस मामले को पूरी तरह कैसे समझ सकता है? यहाँ मुख्य बिंदु यह है कि जब वह स्वयं को जानने और अपनी कमजोरियों, त्रुटियों, कमियों, और भ्रष्ट स्वभावों को उजागर करने का प्रयास कर रहा होता है, तो उसी समय वह स्वयं को दोष-मुक्त करने के लिए बहाने और कारण भी तलाश रहा होता है। वह गुप्त रूप से लोगों को बताता है, “केवल मैं ही नहीं, हर कोई गलतियाँ करने में सक्षम है। तुम सब भी गलतियाँ करने में सक्षम हो। मैंने जो गलती की है वो क्षम्य है; यह मामूली गलती है। यदि तुम यही गलती करते हो, तो मेरी अपेक्षा तुम्हारा मामला बहुत ज्यादा गंभीर हो जाएगा, क्योंकि तुम लोग आत्म-चिंतन और आत्म-विश्लेषण नहीं करोगे। भले ही मैं गलतियाँ करता हूँ, तो भी मैं तुम लोगों से बेहतर हूँ और मेरे में अधिक तर्क-शक्ति और ईमानदारी है।” जब हर कोई यह सुनता है, तो वह सोचता है, “तुम बिल्कुल सही हो। तुम सत्य को इतना ज्यादा समझते हो, और तुम्हारा वास्तव में आध्यात्मिक कद है। जब तुम गलतियाँ करते हो, तो तुम आत्म-चिंतन और आत्म-विश्लेषण करने में सक्षम होते हो; तुम हम लोगों से कहीं बेहतर हो। यदि हम गलतियाँ करते हैं, तो हम आत्म-चिंतन नहीं करते हैं और स्वयं को जानने का प्रयास नहीं करते हैं, और शर्मिंदगी के भय से हम आत्म-विश्लेषण करने का साहस भी नहीं करते हैं। तुम्हारा आध्यात्मिक कद हमसे ऊँचा है और तुममें हमसे कहीं ज्यादा साहस है।” इन लोगों ने गलतियाँ की, फिर भी दूसरों से सम्मान पाया और अपना गुणगान किया—यह किस तरह का स्वभाव है? कुछ मसीह-विराधी विशेष रूप से दिखावा करने, लोगों को धोखा देने, और मुखौटा लगाने में माहिर होते हैं। जब उनका सत्य समझने वाले लोगों से सामना होता है, तो वे अपने आत्म-ज्ञान के बारे में बात करना शुरू कर देते हैं, और यह भी कहते हैं कि वे दानव और शैतान हैं, कि उनकी मानवता बुरी है, और यह कि वे शापित होने लायक हैं। मान लो कि तुम उनसे पूछते हो, “चूंकि तुम्हारा कहना है कि तुम एक दानव और शैतान हो, तो तुमने कौन-से बुरे काम किए हैं?” वो कहेंगे : “मैंने कुछ नहीं किया, लेकिन मैं एक दानव हूँ। और मैं केवल एक दानव नहीं हूँ; मैं एक शैतान भी हूँ!” फिर तुम उनसे पूछते हो, “चूंकि तुमने कहा कि तुम एक दानव और शैतान हो, तो तुमने दानव और शैतान वाले कौन-से बुरे काम किए, और तुमने परमेश्वर का प्रतिरोध कैसे किया? क्या तुम उन बुरे कामों के बारे में सत्य बता सकते हो जो तुमने किए थे?” वो कहेंगे : “मैंने कुछ भी बुरा नहीं किया!” फिर तुम और दबाव डालते हुए पूछो, “यदि तुमने कोई बुरा काम नहीं किया, तो तुमने ऐसा क्यों कहा कि तुम एक दानव और शैतान हो? ऐसा कह कर तुम क्या प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हो?” जब तुम उनके साथ इस तरह गंभीर हो जाते हो, तो उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं होता है। वास्तव में, उन्होंने कई बुरे काम किए हैं, लेकिन वे उनसे संबंधित तथ्यों को तुम्हारे साथ बिल्कुल भी साझा नहीं करेंगे। वे बस कुछ बड़ी-बड़ी बातें करेंगे और खोखले तरीके से अपने आत्म-ज्ञान के बारे में कुछ सिद्धांत उगलेंगे। जब यह बात आती है कि उन्होंने लोगों को विशेष रूप से कैसे आकर्षित किया, लोगों को कैसे धोखा दिया, लोगों का उनकी भावनाओं के आधार पर कैसे इस्तेमाल किया, परमेश्वर के घर के हितों को गंभीरता से लेने में कैसे विफल हुए, कार्य व्यवस्थाओं के खिलाफ कैसे गए, ऊपरवाले को कैसे धोखा दिया, भाई-बहनों से बातें कैसे छिपाई, और परमेश्वर के घर के हितों को कितना नुकसान पहुँचाया, तो वे इन तथ्यों के बारे में एक शब्द भी नहीं कहेंगे। क्या यह सच्चा आत्म-ज्ञान है? (नहीं।) ऐसा कहकर कि वे एक दानव और शैतान हैं, क्या वे अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने के लिए आत्म-ज्ञान का नाटक नहीं कर रहे हैं? क्या यह उनके द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला एक तरीका नहीं है? (हाँ, है।) एक औसत व्यक्ति इस तरीके को समझ नहीं सकता है। जब कुछ अगुआओं को बर्खास्त कर दिया जाता है, उन्हें जल्द ही फिर से चुन लिया जाता है, और जब तुम इसका कारण पूछते हो, तो कुछ लोग कहते हैं : “वह अगुआ अच्छी क्षमता वाला है। उसे पता है कि वह दानव और शैतान है। और किसके पास ज्ञान का ऐसा स्तर है? सत्य की वास्तव में खोज करने वाले लोगों के पास ही ऐसा ज्ञान होता है। हममें से कोई भी अपने बारे में ऐसा ज्ञान प्राप्त करने में सक्षम नहीं है; औसत व्यक्ति का आध्यात्मिक कद इतना ऊँचा नहीं होता है। इस कारण से, सभी ने उसे फिर से चुना।” यहाँ क्या हो रहा है? इन लोगों को गुमराह किया गया है। इस अगुआ को पता था कि वह दानव और शैतान है लेकिन फिर भी हरेक ने उसे चुना, तो उसके ऐसा कहने से कि वह दानव और शैतान हैं, लोगों पर क्या प्रभाव और परिणाम होता है? (इससे लोग उसके बारे में अच्छा सोचने लगते हैं।) सही है, इससे लोग उसके बारे में अच्छा सोचने लगते हैं। अविश्वासी इस पद्धति को “आगे बढ़ने के लिए पीछे हटना” कहते हैं। इसका अर्थ है कि लोग उसके बारे में अच्छा सोचें, इसके लिए पहले वह अपने बारे में बुरी बातें कहता है ताकि दूसरे मान लें कि वह अपने बारे में खुलकर बात कर सकता है और स्वयं को जान सकता है, कि उसमें गहराई और अंतर्दृष्टि है, और उसे गहरी समझ है, और इस वजह से हर कोई उसकी और अधिक आराधना करता है। और हरेक द्वारा उसकी और अधिक आराधना करने का क्या परिणाम है? जब अगुआओं को फिर से चुनने का समय आता है, तो उसे अभी भी इस भूमिका के लिए एकदम सही व्यक्ति माना जाता है। क्या यह तरीका काफी चतुराई वाला नहीं है? यदि वह इस तरह अपने आत्म-ज्ञान के बारे में बात नहीं करता और यह नहीं कहता कि वह दानव और शैतान है, और इसके बजाय वह केवल नकारात्मक होता, तो जब दूसरे लोग इसे देखते, तो वे कहते, “जैसे ही तुम्हें बर्खास्त कर दिया गया और तुमने अपनी हैसियत खोई, तुम नकारात्मक हो गए। तुम हमें नकारात्मक नहीं होने का ज्ञान देते थे, और अब तुम्हारी नकारात्मकता हमसे भी ज्यादा गंभीर है। हम तुम्हें नहीं चुनेंगे।” कोई भी इस अगुआ के बारे में अच्छा नहीं सोचेगा। यद्यपि हर किसी को अभी भी उसके बारे में समझ नहीं होगी, फिर भी कम से कम वे उसे फिर से अगुआ नहीं चुनेंगे, और यह व्यक्ति दूसरों को अपने बारे में बहुत अच्छी राय रखने के लिए प्रेरित करने का अपना उद्देश्य हासिल नहीं कर पाएगा। लेकिन यह अगुआ यह कहते हुए पहल करता है : “मैं दानव और शैतान हूँ; परमेश्वर मुझे शाप दे सकता है और मुझे नरक के अठारहवें स्तर पर भेज सकता है और हो सकता है कि मुझे अनंत काल के लिए फिर से देह धारण करने की अनुमति न दे!” कुछ लोगों को यह सुनकर उसके लिए दुःख होता है और वे कहते हैं : “हमारे अगुआ ने बहुत कष्ट सहा है। ओह, उसके साथ कैसा अन्याय हुआ है! अगर परमेश्वर उसे अगुआ बनने की अनुमति नहीं देता है, तो हम उसे चुनेंगे।” हर कोई इस अगुआ को इतना समर्थन देता है, तो क्या उन्हें गुमराह नहीं किया गया है? उसके शब्दों के मूल इरादे की पुष्टि हो गई है, जो साबित करता है कि वह वास्तव में इस तरह से लोगों को गुमराह कर रहा है। शैतान कभी अपनी बड़ाई करके और अपनी गवाही देकर दूसरे लोगों को गुमराह करता है तो कभी जब उसके पास कोई विकल्प नहीं होता तो वह घुमा-फिरा कर अपनी गलतियाँ स्वीकार कर सकता है, लेकिन यह सब दिखावा है, और उसका उद्देश्य लोगों की सहानुभूति और समझ हासिल करना है। वह यह भी कहेगा, “कोई भी पूर्ण नहीं है। हर किसी का स्वभाव भ्रष्ट होता है और हर कोई गलतियाँ करने में सक्षम होता है। जब तक कोई अपनी गलतियों को सुधार सकता है, तब तक वह अच्छा इंसान है।” जब लोग यह सुनते हैं, तो उन्हें लगता है कि वह सही है, और वे शैतान की आराधना और उसका अनुसरण करना जारी रखते हैं। अति-सक्रिय रूप से अपनी ग़लतियों को स्वीकार करना, और गुप्त रूप से अपनी बड़ाई करना और लोगों के दिलों में अपनी स्थिति को मजबूत करना शैतान का तरीका है, ताकि लोग उसके बारे में हर चीज स्वीकार करें—यहाँ तक कि उसकी त्रुटियों को भी—और फिर इन त्रुटियों को क्षमा कर दें, धीरे-धीरे उनके बारे में भूल जाएँ, और अंततः शैतान को पूरी तरह से स्वीकार लें, मृत्यु तक उसके प्रति वफादार रहें, उसे कभी न छोड़ें या त्यागें, और अंत तक उसका अनुसरण करते रहें। क्या यह शैतान के कार्य करने का तरीका नहीं है? शैतान इसी तरह से कार्य करता है, और मसीह-विरोधी भी इस तरह केतरीके का उपयोग करते हैं जब वे अपनी महत्वाकांक्षाओं और लोगों से अपनी आराधना और अनुसरण करवाने के उद्देश्य को पूरा करने के लिए कार्य करते हैं। इसके होने वाले परिणाम भी वैसे ही होते हैं, और शैतान द्वारा लोगों को गुमराह और भ्रष्ट करने के परिणामों से बिल्कुल भी भिन्न नहीं होते हैं।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद चार : वे अपनी बड़ाई करते हैं और अपने बारे में गवाही देते हैं

कुछ लोग कुछ बेतुके सिद्धांतों और भावात्मक तर्कों के बारे में बात करते हैं जिससे लोग सोचने लगते हैं कि वे बुद्धिमान और ज्ञानवान हैं, और उनके क्रियाकलाप अत्यंत गहरे हैं, और इस प्रकार वे लोगों द्वारा अपनी आराधना किए जाने के अपने उद्देश्य को प्राप्त कर लेते हैं। यानी वे हर मामले में भागीदारी करना और अपनी राय देना चाहते हैं, और उस स्थिति में भी जब हरेक ने अंतिम फैसला कर लिया हो, यदि वे इससे संतुष्ट नहीं होते हैं, तो वे दिखावा करने के लिए कुछ बड़बोले विचार उगलेंगे। क्या यह अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने का एक तरीका नहीं है? कुछ मामलों में, हरेक ने वास्तव में मुद्दों पर बातचीत कर ली है, एक-दूसरे से सलाह कर ली है, सिद्धांत ढूंढ लिए हैं, और कार्य-योजना पर निर्णय कर लिया है, लेकिन वे निर्णय को स्वीकार नहीं करते हैं और यह कहते हुए अनुचित तरीके से चीजों को बाधित करते हैं, “यह नहीं चलेगा। तुम लोगों ने इस पर व्यपाक रूप से विचार नहीं किया है। हमने जिन पहलुओं पर बात की है, उनके अलावा मैंने एक और पहलू पर विचार किया है।” वास्तव में, उन्होंने जिस पहलू के बारे में सोचा वो केवल एक बेतुका सिद्धांत है; वे केवल बेकार के मुद्दों को तूल दे रहे हैं। उन्हें अच्छे से पता है कि वे बेकार के मुद्दों को तूल दे रहे हैं और अन्य लोगों के लिए चीजों को कठिन बना रहे हैं, लेकिन फिर भी वे ऐसा करते हैं। इसमें उनका क्या उद्देश्य है? यह लोगों को दिखाने के लिए है कि वे उनसे भिन्न हैं, दूसरों की अपेक्षा ज्यादा होशियार हैं। उनका मतलब है, “तुम सब लोगों का यह स्तर है? मुझे तुम लोगों को दिखाना है कि मेरा स्तर कहीं ऊँचा है।” वे आमतौर पर किसी भी व्यक्ति द्वारा कही गई किसी भी बात को नजरंदाज करते हैं, लेकिन जैसे ही कुछ महत्वपूर्ण बात होती है, तो वे चीजों को बिगाड़ना शुरू कर देते हैं। इस तरह के व्यक्ति को क्या कहा जाता है? आम बोलचाल की भाषा में, उसे मीनमेख निकालने वाला और मूर्ख कहा जाता है। मीनमेख निकालने वाले व्यक्ति का आम नजरिया क्या होता है? उसे बड़बोले विचार प्रस्तुत करने और कुछ घृणित और कुटिल अभ्यासों में सम्मिलित होने में आनंद आता है। यदि तुम उसे सही कार्य-योजना प्रस्तुत करने को कहते हो, तो वे एक भी कार्ययोजना प्रस्तुत नहीं कर पाएंगे, और यदि तुम उसे कोई गंभीर मुद्दा संभालने को कहते हो, वे ऐसा नहीं कर पाएंगे। वे केवल घृणित काम करते हैं, और सदैव लोगों को “हैरत” में डालना और अपनी योग्यता दिखाना चाहते हैं। वह वाक्यांश क्या है? “एक बुजुर्ग औरत तुम्हें दिखाने के लिए लिपस्टिक लगाती है।” इसका अर्थ है कि वे सदैव अपनी योग्यताओं का दिखावा करना चाहते हैं, और भले ही वे उनके समक्ष अच्‍छे से दिखावा कर पाएं या नहीं, वे लोगों का बताना चाहते हैं, “मैं तुम लोगों की अपेक्षा कहीं अधिक उत्कृष्ट हूँ। तुम सब निकम्मे हो, तुम लोग बस मरणशील, साधारण लोग हो। मैं असाधारण और सर्वोत्कृष्ट हूँ। मैं तुम लोगों को हैरान करने के लिए अपने विचार साझा करूंगा और फिर तुम लोग देख सकते हो कि मैं सर्वश्रेष्ठ हूँ या नहीं।” क्या यह चीजों को खराब करना नहीं है? वे जानबूझकर चीजों को खराब कर रहे हैं। यह किस प्रकार का व्यवहार है? वे गड़बड़ियाँ और बाधाएँ उत्पन्न कर रहे हैं। उनका मतलब यह है कि : मैंने अभी तक यह नहीं दिखाया है कि मैं इस मामले में कितना चालाक हूँ, इसलिए चाहे किसी के हितों को नुकसान पहुँचे और चाहे किसी के प्रयास व्यर्थ हों, मैं तब तक इसे बिगाड़ता रहूँगा जब तक सभी यह न मान लें कि मैं श्रेष्ठ, योग्य और समर्थ हूँ। केवल तभी मैं इस मामले को बिना किसी बाधा के आगे बढ़ने दूंगा। क्या इस तरह के बुरे लोग मौजूद हैं? क्या तुम लोगों ने पहले भी इस तरह के काम किए हैं? (हॉं। कभी-कभी दूसरे लोगों ने मामले में चर्चा समाप्त कर दी थी और उपयुक्त योजना मिल गई थी, लेकिन चूंकि उन्होंने निर्णय-लेने की प्रक्रिया के दौरान मुझे जानकारी नहीं दी थी, तो मैंने जानबूझकर इसमें खामियाँ ढूंढ ली।) जब तुमने ऐेसा किया, तो क्या तुम्हें अपने अंतरमन में पता था कि यह सही है या गलत? क्या तुम्हें पता था कि इस समस्या की प्रकृति गंभीर है, और इससे गड़बड़ियाँ और बाधाएँ उत्पन्न हो रही हैं? (मुझे उस समय इसकी जानकारी नहीं थी, लेकिन अपने भाई-बहनों द्वारा गंभीर रूप से काट-छाँट किए जाने, और परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के वचनों को खाने-पीने से, मैंने देखा कि प्रकृति में यह समस्या गंभीर है, और यह कलीसिया के काम में गड़बड़ियाँ और बाधाएँ उत्पन्न कर रही है, और यह एक प्रकार का शैतानी व्यवहार है।) चूंकि तुमने पहचान लिया कि यह समस्या कितनी गंभीर है, और जब उसके बाद ऐसी चीजें तुम्हारे साथ भी घटीं, तो क्या तुम थोड़ा बदलाव ला पाए और अपनी पहुँच के संदर्भ में कुछ प्रवेश पाने में सक्षम हुए? (हॉं। जब मैंने ऐसे विचार प्रकट किए, तो मुझे पता था कि यह शैतानी स्वभाव था, और मैं उस तरीके से चीजें नहीं कर सकता था, और मैं होशोहवास में परमेश्वर से प्रार्थना करने और उन गलत विचारों का विरोध करने में सक्षम था।) तुम कुछ हद तक बदल पाए थे। जब तुम्हारे समक्ष भ्रष्टता जैसी समस्याएँ हों, तो तुम्हें उनका समाधान करने और स्वयं को रोकने के लिए सत्य की खोज, और परमेश्वर से प्रार्थना करनी पड़ती है। जब तुम सोचते हो कि दूसरे तुम्हारी तरफ घृणा से देखते हैं, वे तुम्हारे बारे में ऊँचा नहीं सोचते या तुम्हें गंभीरता से नहीं लेते, और इसके परिणामस्वरूप तुम विघ्न-बाधा उत्पन्न करना चाहते हो, जब तुम्हारे मन में यह विचार आता है, तो तुम्हें यह पता होना चाहिए कि यह सामान्य मानवता से नहीं बल्कि शैतानी स्वभाव से आता है, और यदि तुम इसी तरह चलते रहोगे, तो तकलीफ उठानी होगी, और तुम शायद परमेश्वर के स्वभाव को ठेस पहुँचाओगे। तुम्हें सबसे पहले स्वयं को रोकना आना चाहिए, और फिर परमेश्वर से प्रार्थना करने के लिए उसके समक्ष आना चाहिए और अपने मार्ग को बदलना चाहिए। जब लोग अपने विचारों में, अपने भ्रष्ट स्वभावों में मग्न रहते हैं, तो उनके द्वारा किया गया कोई भी काम सत्य के अनुरूप नहीं होता या परमेश्वर को संतुष्ट करने वाला नहीं होता है; वे जो कुछ भी करते हैं वो परमेश्वर का विरोधी हो जाता है। तुम लोग अब इस तथ्य को पहचान सकते हो, है न? तुम हमेशा शोहरत और लाभ के लिए लड़ना चाहते हो, प्रतिष्ठा और रुतबा पाने के लिए कलीसिया के काम में गड़बड़ी और बाधा उत्पन्न करने से भी नही हिचकिचाते, और ये मसीह-विरोधियों की सबसे स्पष्ट लक्षण होते हैं।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद चार : वे अपनी बड़ाई करते हैं और अपने बारे में गवाही देते हैं

एक मसीह-विरोधी द्वारा अपनी बड़ाई करना और गवाही देना एक औसत व्यक्ति के ऐसा करने से कैसे अलग है? औसत व्यक्ति अक्सर शेखी बघारता है और दिखावा करता है ताकि लोग उसके बारे में ऊँचा सोचें, और उसके पास इन स्वभावों और अवस्थाओं की अभिव्यक्तियाँ भी होंगी, तो एक मसीह-विरोधी द्वारा अपनी बड़ाई करना और गवाही देना ऐसा करने वाले सामान्य लोगों से कैसे अलग है? अंतर कहाँ है? ... जब भ्रष्ट स्वभाव वाला एक औसत व्यक्ति अपनी बड़ाई करता है और इतराता है, तो वह केवल दिखावा करने के लिए ऐसा करता है। एक बार दिखावा हो गया, तो बात खत्म, और उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि दूसरे लोग उसके बारे में अच्छा सोचते हैं या बुरा। उसका इरादा अधिक स्पष्ट नहीं है, यह बस एक स्वभाव है जो उसे नियंत्रित कर रहा है, उस स्वभाव का बस एक प्रकटन है। बस इतना ही। क्या इस तरह के स्वभाव को बदलना आसान है? यदि ऐसा व्यक्ति सत्य का अनुसरण करता है, तो वह धीरे-धीरे बदलने में सक्षम होगा, जब वह काट-छाँट, न्याय और ताड़ना का अनुभव करेगा। उसमें धीरे-धीरे शर्म एवं तर्क-शक्ति की भावना और बढ़ेगी, और वह इस प्रकार के व्यवहार को कम से कम प्रदर्शित करेगा। वह इस प्रकार के व्यवहार की निंदा करेगा, और वह संयम बरतेगा तथा स्वयं पर लगाम लगाएगा। यह अनजाने में अपनी बड़ाई करना और अपनी गवाही देना ही है। यद्यपि होशोहवास में अपनी बड़ाई करना और अपनी गवाही देना और यही कार्य अनजाने में करना, इन दोनों के निहित स्वभाव एक जैसे ही हैं, लेकिन दोनों की प्रकृति भिन्न है। प्रकृति में वे दोनों कैसे भिन्न हैं? होशोहवास में अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने का काम इरादे से किया जाता है। जो लोग ऐसा करते हैं वे यूँ ही नहीं बोल रहे होते हैं—हर बार जब वे अपनी बड़ाई करते हैं और अपनी गवाही देते हैं, तो उनके निश्चित इरादे और छिपे हुए उद्देश्य होते हैं, और वे शैतानी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं के चलते ऐसे काम करते हैं। ऊपरी तौर पर, यह उसी प्रकार की अभिव्यक्ति प्रतीत होती है। दोनों मामलों में, लोग अपनी बड़ाई कर रहे हैं और अपनी गवाही दे रहे हैं, लेकिन अनजाने में अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने को परमेश्वर कैसे परिभाषित करता है? भ्रष्ट स्वभाव के प्रकटन के रूप में। और होशोहवास में अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने को परमेश्वर कैसे परिभाषित करता है? एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो लोगों को गुमराह करना चाहता है, जिसका इरादा है कि लोग उसके बारे में ऊँचा सोचें, उसकी आराधना करें, उसकी प्रशंसा करें और फिर उसका अनुसरण करें। उसके क्रियाकलापों की प्रकृति गुमराह करने वाली है। इसलिए, जैसे ही उसका इरादा लोगों को गुमराह करने और लोगों को अपने अधीन करने का होता है ताकि वे उसका अनुसरण करें और उसकी आराधना करें, तो वह बोलते और कार्य करते समय कुछ ऐसे साधनों और तरीकों का उपयोग करेगा जो आसानी से उन लोगों को गुमराह और पथभ्रष्ट कर सकते हैं जो सत्य नहीं समझते हैं और जिनका आधार मजबूत नहीं है। ऐसे लोगों में न केवल विवेक की कमी होती है, बल्कि, इसके विपरीत, उन्हें लगता है कि यह व्यक्ति जो कहता है वही सही है, और हो सकता है वे उसकी प्रशंसा करें और उसके प्रति ऊँचा सोचें, और समय के साथ वे उसकी आराधना और उसका अनुसरण करने लगेंगे। दैनिक जीवन में एक सबसे आम घटना यह है कि कोई व्यक्ति उपदेश सुनने के बाद उसे अच्छी तरह से समझता हुआ प्रतीत होता है, परन्तु बाद में जब उस पर आपदाएँ आती हैं, तो उसे नहीं पता होता है कि इन्हें कैसे हल किया जाए। वह प्रार्थना करने के लिए परमेश्वर के सामने जाता है, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं होता है, और अंत में, उसे इस मामले के बारे में पता लगाने के लिए अपने अगुआ के पास जाना पड़ता है और उससे समाधान पूछना पड़ता है। हर बार उस पर कोई समस्या आने पर, वह इसका समाधान अपने अगुआ से पूछना चाहता है। यह ऐसा ही है जैसे अफीम पीना कुछ लोगों के लिए एक लत और एक पैटर्न बन जाता है, और कुछ ही समय में, वे इसे पिए बिना नहीं रह सकते। इसलिए, मसीह-विरोधियों का अपनी बड़ाई करना और अपनी गवाही देना उन लोगों के लिए एक प्रकार का नशा बन जाता है जो छोटे आध्यात्मिक कद के, अविवेकी, मूर्ख और अज्ञानी हैं। जब भी उन पर कोई समस्या आती है, वे इसके बारे में पूछने के लिए मसीह-विरोधी के पास जाएँगे, और यदि मसीह-विरोधी कोई आदेश नहीं देता है, तो वे कुछ भी करने की हिम्मत नहीं करते, भले ही इस मामले पर सभी लोग पहले से ही चर्चा कर आम सहमति पर पहुँच चुके हों। वे मसीह-विरोधी की इच्छा के विरुद्ध जाने और दबाए जाने से डरते हैं, इसलिए हर मामले में, वे मसीह-विरोधी के बोलने के बाद ही कार्रवाई करने का साहस करते हैं। भले ही उन्होंने सत्य सिद्धांतों को स्पष्ट रूप से समझ लिया हो, फिर भी वे कोई निर्णय लेने या मामले को संभालने की हिम्मत नहीं करते हैं, इसके बजाय वे उस “स्वामी” की प्रतीक्षा करते हैं जिसकी ओर वे अंतिम फैसले और निर्णय के लिए आदर से देखते हैं। यदि उनका स्वामी कुछ नहीं कहता है, तो जो कोई भी इस मामले को संभाल रहा है, वह इस बारे में अनिश्चित महसूस करेगा कि उसे क्या करना चाहिए। क्या इन लोगों के विचारों को विषाक्त नहीं कर दिया गया है? (उन्हें विषाक्त कर दिया गया है।) विषाक्त किए जाने का यही अर्थ है। उनके विचारों को इतना अधिक विषाक्त करने के लिए, मसीह-विरोधी को कितना काम करना पड़ेगा, और मसीह-विरोधी को उनके भीतर कितने विषाक्त विचार डालने होंगे ताकि वे बहक जाएँ? यदि मसीह-विरोधी बार-बार स्वयं का गहन-विश्लेषण करें, और स्वयं को जानने लगें, और अक्सर अपनी कमजोरियाँ, गलतियाँ, और अपराध खुले में लोगों को दिखाने लगें, तो क्या अभी भी हर कोई उनकी ऐसे ही आराधना करेगा? बिल्कुल नहीं। ऐसा प्रतीत होता है कि मसीह-विरोधी अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने के लिए काफी प्रयास करते हैं, यही वजह है कि उन्होंने इतनी “सफलता” हासिल की है। वे यही परिणाम चाहते हैं। उनके बिना, किसी को पता नहीं होगा कि अपने कर्तव्यों को सही ढंग से कैसे निभाना है, और हर कोई पूरी तरह से असमंजस में रहेगा। यह स्पष्ट है कि इन लोगों को नियंत्रित करते समय, मसीह-विरोधी उनके भीतर चुपके से अनेक विषाक्त विचार डाल देते हैं हैं और इसके लिए वे काफी मेहनत करते हैं! यदि वे केवल कुछ शब्द ही कहते, तो क्या ये लोग तब भी उनसे इसी तरह विवश होते? कतई नहीं। जब मसीह-विरोधी औरों से अपनी आराधना करवाने, और हर मामले में अपनी प्रशंसा करवाने और अपनी बात मनवाने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में कामयाब हो जाते हैं, तो क्या उन्होंने ऐसे बहुत से काम नहीं किए हैं और ऐसे बहुत से शब्द नहीं कहे हैं जो उनकी बड़ाई करते हैं और उनकी गवाही देते हैं? ऐसा करने से उन्हें क्या परिणाम प्राप्त होता है? परिणाम यह है कि लोगों के पास कोई रास्ता नहीं होगा और वे उनके बिना जी नहीं पाएँगे—यह ऐसा है कि मानो आसमान टूट पड़ेगा और पृथ्वी उनके बिना घूमना बंद कर देगी, और परमेश्वर पर विश्वास करने का कोई मूल्य या अर्थ नहीं रहेगा, और धर्मोपदेश सुनना बेकार हो जाएगा। यह ऐसा भी है कि मसीह-विरोधी के आसपास होने पर उन्हें अपने जीवन में कुछ उम्मीद नजर आती है, और यदि मसीह-विरोधी की मृत्यु हो जाए तो वे सारी उम्मीद खो देंगे। क्या इन लोगों को शैतान ने बंदी नहीं बना लिया है? (उन्हें बंदी बना लिया गया है।) और क्या इस तरह के लोग इसी लायक नहीं हैं? (वे इसी लायक हैं।) हम ऐसा क्यों कहते हैं कि वे इसी लायक हैं? परमेश्वर एक है जिसमें तुम विश्वास करते हो, तो तुम मसीह-विरोधियों की आराधना और उनका अनुसरण क्यों करते हो, और हर मोड़ पर तुम उन्हें स्वयं को विवश और नियंत्रित क्यों करने देते हो? इसके अलावा, व्यक्ति चाहे कोई भी कर्तव्य क्यों न कर रहा हो, परमेश्वर के घर ने लोगों को स्पष्ट सिद्धांत और नियम प्रदान किए हैं। यदि कोई ऐसी कठिनाई है जिसे व्यक्ति अपने आप हल नहीं कर सकता है, तो उसे किसी ऐसे व्यक्ति से राय लेनी चाहिए जो सत्य समझता हो, और अधिक गंभीर मामलों में ऊपरवाले से राय लेनी चाहिए। लेकिन न केवल तुम सत्य की खोज नहीं करते हो, बल्कि इसके विपरीत, तुम इन मसीह-विरोधियों की बातों पर विश्वास करके लोगों की आराधना करते हो और उनकी प्रशंसा करते हो। इसलिए तुम शैतान के नौकर बन गए हो, और क्या इसके लिए केवल तुम स्वयं ही जिम्मेदार नहीं हो? क्या तुम इसी लायक नहीं हो? अपनी बड़ाई करना और अपनी गवाही देना मसीह-विरोधियों में एक साझा व्यवहार और अभिव्यक्ति है, और सबसे आम अभिव्यक्ति यही है। मसीह-विरोधी कैसे अपनी बड़ाई करते हैं और अपनी गवाही देते हैं, इसका मुख्य लक्षण क्या है? एक औसत व्यक्ति जिस तरह अपनी बड़ाई करता है और अपनी गवाही देता है, यह उससे किस तरह से अलग है? ऐसा है कि इस कार्रवाई के पीछे मसीह-विरोधियों का अपना इरादा होता है, और वे इसे अनजाने में बिल्कुल नहीं कर रहे होते हैं। बल्कि, वे इरादों, इच्छाओं और महत्वाकांक्षाओं को पाल रहे होते हैं, और इस तरह से अपनी गवाही देने के परिणामों पर विचार करना भी बहुत भयावह है—वे लोगों को गुमराह और नियंत्रित कर सकते हैं।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद चार : वे अपनी बड़ाई करते हैं और अपने बारे में गवाही देते हैं

कुछ लोग कहते हैं : “चूँकि अपनी बड़ाई करना और अपने बारे में गवाही देना एक ऐसा दृष्टिकोण है जो सत्य के अनुरूप नहीं है और जो शैतान और मसीह-विरोधियों का दृष्टिकोण है; यदि मैं कुछ नहीं कहता या कुछ नहीं करता हूँ, तो क्या इसका यह अर्थ नहीं है कि मैं अपनी बड़ाई नहीं कर रहा हूँ या अपने बारे में गवाही नहीं दे रहा हूँ?” यह सही नहीं है। तो कार्य करने का कौन-सा तरीका खुद को ऊँचा उठाना और अपने बारे में गवाही देना नहीं है? अगर तुम किसी मामले के संबंध में दिखावा करते और अपने बारे में गवाही देते हो, तो तुम यह परिणाम प्राप्त करोगे कि, कुछ लोग तुम्हारे बारे में ऊँची राय बनाएँगे और तुम्हारी पूजा करेंगे। लेकिन अगर तुम उसी मामले के संबंध में खुद को उजागर कर देते हो, और अपने आत्मज्ञान को साझा करते हो, तो उसकी प्रकृति अलग होती है। क्या यह सच नहीं है? अपने आत्मज्ञान के बारे में बात करने के लिए खुद को पूरी तरह उजागर कर देना, कुछ ऐसा है जो साधारण मानवता में होनी चाहिए। यह एक सकारात्मक चीज है। अगर तुम वास्तव में खुद को जानते हो और अपनी अवस्था के बारे में सही, वास्तविक और सटीक ढंग से बोलते हो; अगर तुम उस ज्ञान के बारे में बोलते हो जो पूरी तरह से परमेश्वर के वचनों पर आधारित है; अगर तुम्हें सुनने वाले इससे सीखते और लाभान्वित होते हैं; और अगर तुम परमेश्वर के कार्य की गवाही देते हो और उसे महिमामंडित करते हो, तो यह परमेश्वर के बारे में गवाही देना है। अगर खुद को पूरी तरह उजागर करने के माध्यम से, तुम अपनी खूबियों के बारे में खूब बोलते हो और इस बारे में कि तुमने कैसे कष्ट उठाया, और कैसे कीमत चुकाई और अपनी गवाही में कैसे दृढ़ता से खड़े रहे, और इसके परिणामस्वरूप लोग तुम्हारे बारे में ऊँची राय रखते हैं और तुम्हारी पूजा करते हैं, तो यह अपने बारे में गवाही देना है। तुम्हें इन दो व्यवहारों के बीच अंतर बता पाने में समर्थ होना चाहिए। उदाहरण के लिए, यह बताना परमेश्वर की बड़ाई करना और उसके बारे में गवाही देना है कि परीक्षणों का सामना करते समय तुम कितने कमजोर और नकारात्मक थे, और कैसे प्रार्थना करने और सत्य खोजने के बाद तुमने अंततः परमेश्वर का इरादा समझा, आस्था प्राप्त की और अपनी गवाही में दृढ़ रहे। यह दिखावा करना और अपने बारे में गवाही देना बिल्कुल नहीं है। इसलिए, तुम दिखावा कर रहे हो और अपने बारे में गवाही दे रहे हो या नहीं, यह मुख्य रूप से इस बात पर निर्भर करता है कि तुम अपने वास्तविक अनुभवों के बारे में बात कर रहे हो या नहीं, और इस पर भी कि क्या तुम परमेश्वर के बारे में गवाही देने का परिणाम हासिल करते हो; यह भी देखना आवश्यक है कि जब तुम अपनी अनुभवात्मक गवाही के बारे में बात करते हो, तो तुम्हारे इरादे और उद्देश्य क्या हैं। ऐसा करने से यह पहचानना आसान हो जाएगा कि तुम किस प्रकार के व्यवहार में लिप्त हो। अगर तुम गवाही देते समय सही इरादे रखते हो, तो भले ही लोग तुम्हारे बारे में ऊँची राय रखते हों और तुम्हारी पूजा करते हों, यह वास्तव में कोई समस्या नहीं है। अगर तुम्हारा इरादा गलत है, तो भले ही कोई तुम्हारे बारे में ऊँची राय न रखता हो या तुम्हारी पूजा न करता हो, फिर भी यह एक समस्या है—और अगर लोग तुम्हारे बारे में ऊँची राय रखते हैं और तुम्हारी पूजा करते हैं, तो यह और भी बड़ी समस्या है। इसलिए, यह निर्धारित करने के लिए कि कोई व्यक्ति अपनी बड़ाई कर रहा और अपने बारे में गवाही दे रहा है या नहीं, तुम सिर्फ नतीजों पर निर्भर नहीं रह सकते। तुम्हें मुख्य रूप से उनके इरादे को देखना चाहिए; इन दो व्यवहारों के बीच अंतर करने का सही तरीका इरादों पर आधारित है। अगर तुम सिर्फ नतीजों के आधार पर इसे पहचानने की कोशिश करते हो, तो संभव है कि अच्छे लोगों पर गलत ढंग से दोषारोपण कर दोगे। कुछ लोग विशेष रूप से सच्ची गवाही साझा करते हैं, और इसके चलते कुछ अन्य लोग उनके बारे में ऊँची राय रखते हैं और उनकी पूजा करते हैं—क्या तुम कह सकते हो कि वे लोग अपने बारे में गवाही दे रहे थे? नहीं, तुम नहीं कह सकते। उन लोगों में कोई समस्या नहीं हैं, जो गवाही वे साझा करते हैं और जो कर्तव्य वे करते हैं, वे दूसरे लोगों के लिए लाभकारी होते हैं, और सिर्फ विकृत समझ रखने वाले बेवकूफ और अज्ञानी लोग ही दूसरे लोगों की आराधना करते हैं। वक्ता के इरादे को देखना यह पहचानने की कुंजी है कि लोग अपनी बड़ाई कर रहे हैं या नहीं और अपने बारे में गवाही दे रहे हैं या नहीं। अगर तुम्हारा इरादा सभी को यह दिखाना है कि तुम्हारी भ्रष्टता कैसे उजागर हुई, और तुम कैसे बदल गए हो, और दूसरों को इससे लाभ उठाने में समर्थ बनाना है, तो तुम्हारे शब्द गंभीर और सच्चे हैं, और तथ्यों के अनुरूप हैं। ऐसे इरादे सही हैं, और तुम दिखावा नहीं कर रहे या अपने बारे में गवाही नहीं दे रहे। अगर तुम्हारा इरादा सभी को यह दिखाना है कि तुम्हारे पास वास्तविक अनुभव हैं, और तुम बदल गए हो और तुम्हारे पास सत्य वास्तविकता है, ताकि वे तुम्हारे बारे में ऊंचा सोचें और तुम्हारी पूजा करें, तो ये इरादे गलत हैं। यह दिखावा करना और अपने बारे में गवाही देना है। अगर तुम जिस अनुभवात्मक गवाही की बात करते हो वह झूठी है, उसमें मिलावट है और यह लोगों की आँखों पर पट्टी बांधने के इरादे से है, कि वे तुम्हारी वास्तविक अवस्था न देख सकें, और यह तुम्हारे इरादे, भ्रष्टता, कमजोरी या नकारात्मकता दूसरों के सामने प्रकट होने से रोकने के इरादे से है, तो ऐसे शब्द धोखा देने और गुमराह करने वाले हैं। यह झूठी गवाही है, यह परमेश्वर से चालाकी करना और परमेश्वर को लज्जित करता है, और यह वह है जिससे परमेश्वर सबसे ज्यादा नफरत करता है। इन अवस्थाओं के बीच स्पष्ट अंतर है, और इन सबको इरादे के आधार पर पहचाना जा सकता है। यदि तुम दूसरे लोगों को पहचान सकते हो, तो तुम उनकी दशाओं को समझ पाओगे, और फिर तुम स्वयं को भी पहचान पाओगे, और अपनी दशाओं को समझ पाओगे।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद चार : वे अपनी बड़ाई करते हैं और अपने बारे में गवाही देते हैं

परमेश्वर के परिवार में भाई-बहनों के बीच तुम्हारा रुतबा या स्थान चाहे कितना भी ऊँचा हो या तुम्हारा कर्तव्य कितना भी महत्वपूर्ण हो और तुम्हारी प्रतिभा और योगदान कितना ही महान हो या तुमने कितने ही लंबे समय से परमेश्वर में विश्वास किया हो, परमेश्वर की नजर में तुम एक सृजित प्राणी ही हो, एक सामान्य सृजित प्राणी, और तुमने खुद को जो महान पदवियाँ और उपाधियाँ दी हैं उनका कोई अस्तित्व नहीं है। यदि तुम हमेशा उन्हें ताज या पूंजी की तरह मानते हो जो तुम्हें एक विशेष समूह से संबंधित होने या एक विशेष हस्ती बनाता है तो ऐसा करके तुम परमेश्वर के विचारों का विरोध और प्रतिरोध करते हो और परमेश्वर के साथ मेल नहीं खाते हो। ... यदि तुम यह नहीं सोचते कि तुम एक सृजित प्राणी हो, बल्कि मानते हो कि तुम्हारे पास पदवी और सिर पर प्रभामंडल है, और तुम एक रुतबे वाले व्यक्ति, एक महान अगुआ, संचालक, संपादक या परमेश्वर के परिवार में निर्देशक हो, और तुमने परमेश्वर के परिवार के कार्य में महान योगदान दिया है—यदि तुम ऐसा सोचते हो तो तुम एकदम विवेकहीन और निहायत ही बेशर्म व्यक्ति हो। क्या तुम लोग रुतबा, स्थान और अहमियत रखने वाले व्यक्ति हो? (हम ऐसे नहीं हैं।) तो फिर तुम क्या हो? (मैं एक सृजित प्राणी हूँ।) सही कहा, तुम बस एक सामान्य सृजित प्राणी हो। लोगों के बीच तुम अपनी योग्यताओं का प्रदर्शन कर सकते हो, बड़े होने का फायदा उठा सकते हो, अपने योगदानों के बारे में डींगें हाँक सकते हो या अपनी बहादुरी के कारनामों के बारे में बात कर सकते हो। लेकिन परमेश्वर के समक्ष इन चीजों का कोई अस्तित्व नहीं है, और तुम्हें कभी भी उनके बारे में बात नहीं करनी चाहिए, या उनका दिखावा नहीं करना चाहिए, या खुद के बहुत अनुभवी होने का घमंड नहीं करना चाहिए। यदि तुम अपनी योग्यताओं का दिखावा करोगे तो चीजें उलट-पुलट हो जाएंगी। परमेश्वर तुम्हें एकदम विवेकहीन और बेहद अहंकारी मानेगा। तुम्हारे अस्वीकार और नफरत के कारण वह तुम्हें किनारे कर देगा, फिर तुम मुसीबत में पड़ जाओगे। तुम्हें सबसे पहले एक सृजित प्राणी के रूप में अपनी पहचान और स्थिति को स्वीकारना होगा। दूसरों के बीच तुम्हारा रुतबा चाहे जैसा भी हो, या तुम्हारा स्थान कितना ही खास हो है, या तुम्हारे पास कितनी भी खूबियाँ हों, या चाहे परमेश्वर ने तुम्हें किसी प्रकार की विशेष प्रतिभा दी हो, ताकि तुम लोगों के बीच श्रेष्ठ होने का आनंद ले सको—जब तुम परमेश्वर के सामने आते हो, तो इन चीजों का कोई मूल्य या महत्व नहीं होता है। इसलिए, तुम्हें दिखावा नहीं करना चाहिए, बल्कि परमेश्वर के समक्ष विनम्र होकर बस एक सृजित प्राणी बनना चाहिए।

—वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण करने का क्या अर्थ है (11)

जब तुम परमेश्वर के लिए गवाही देते हो, तो तुमको मुख्य रूप से इस बारे में बात करनी चाहिए कि परमेश्वर कैसे न्याय करता है और कैसे लोगों को ताड़ना देता है, लोगों का शोधन करने और उनके स्वभाव में परिवर्तन लाने के लिए किन परीक्षणों का उपयोग करता है। तुम लोगों को इस बारे में भी बात करनी चाहिए कि तुम्हारे अनुभव में कितनी भ्रष्टता उजागर हुई, तुमने कितना कष्ट सहा, परमेश्वर का विरोध करने के लिए तुमने कितनी चीजें कीं, और आखिरकार परमेश्वर ने कैसे तुम लोगों को जीता; इस बारे में भी बात करो कि परमेश्वर के कार्य का कितना वास्तविक ज्ञान तुम्हारे पास है और तुम्हें परमेश्वर के लिए कैसे गवाही देनी चाहिए और कैसे परमेश्वर के प्रेम का मूल्य चुकाना चाहिए। तुम्हें इन बातों को सरलता से प्रस्तुत करते हुए, इस प्रकार की भाषा में सत्व डालना चाहिए। खोखले सिद्धांतों की बातें मत करो। वास्तविक बातें अधिक किया करो; दिल से बातें किया करो। तुम्हें इसी प्रकार चीजों का अनुभव करना चाहिए। अपने आपको बहुत ऊंचा दिखाने की कोशिश मत करो, दिखावा करने के लिए खोखले सिद्धांतों की बात मत करो; ऐसा करने से तुम्हें बहुत घमंडी और तर्कहीन माना जाएगा। तुम्हें अपने वास्तविक अनुभव की असली, सच्ची और दिल से निकली बातों पर ज्यादा बोलना चाहिए; यह दूसरों के लिए सबसे अधिक लाभकारी होगा और उनके समझने के लिए सबसे उचित होगा। तुम लोग परमेश्वर के सबसे कट्टर विरोधी थे, और उनके प्रति समर्पित होने के लिए तैयार ही नहीं थे, लेकिन अब तुम जीत लिए गए हो, इस बात को कभी नहीं भूलो। इन बातों पर तुम्हें और अधिक विचार करना और सोचना चाहिए। एक बार जब लोग इसे साफ तौर पर समझ जाएँगे, तो उन्हें गवाही देने का तरीका पता चल जाएगा; अन्यथा वे और अधिक बेशर्मी भरे, मूर्खतापूर्ण कृत्य करने लगेंगे, जो कि परमेश्वर के लिए गवाही देना नहीं, बल्कि उसे शर्मिंदा करना है। सच्चे अनुभवों और सत्य की समझ के बिना, परमेश्वर के लिए गवाही देना संभव नहीं है; परमेश्वर में जिन लोगों की आस्था संभ्रमित और उलझन भरी होती है, वे कभी भी परमेश्वर के लिए गवाही नहीं दे सकते।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, केवल सत्य की खोज करके ही स्वभाव में बदलाव लाया जा सकता है

परमेश्वर ने मनुष्यों पर काफी मात्रा में कार्य किया है, लेकिन क्या उसने कभी इसके बारे में बात की है? क्या उसने कभी इसका वर्णन किया है? क्या उसने कभी इसकी घोषणा की है? नहीं, उसने ऐसा नहीं किया है। लोग परमेश्वर को चाहे कितना भी गलत समझें, वह वर्णन नहीं करता। परमेश्वर के परिप्रेक्ष्य से, तुम चाहे 60 साल के हो या 80 के, परमेश्वर के बारे में तुम्हारी समझ बहुत सीमित है, और इस आधार पर कि तुम कितना कम जानते हो, तुम अभी बच्चे ही हो। परमेश्वर इसे तुम्हारे खिलाफ नहीं रखता; तुम अब तक अपरिपक्व बच्चे हो। इससे फर्क नहीं पड़ता कि कुछ लोग कई सालों तक जीवित रहे हैं और उनके शरीर पर उम्र के लक्षण दिखाई देते हैं; परमेश्वर के बारे में उनकी समझ अभी भी बहुत बचकानी और सतही है। परमेश्वर इस कारण तुम्हारे बारे में बुरी राय नहीं बनाता—अगर तुम नहीं समझते, तो नहीं समझते। यह तुम्हारी काबिलियत और क्षमता है, और इसे बदला नहीं जा सकता। परमेश्वर तुम पर कुछ भी थोपेगा नहीं। परमेश्वर चाहता है कि लोग उसकी गवाही दें, पर क्या उसने अपनी गवाही खुद दी है? (नहीं।) दूसरी ओर शैतान को डर लगा रहता है कि लोग उसके किसी धेले-भर के काम के बारे में भी नहीं जान पाएँगे। मसीह-विरोधी इससे अलग नहीं हैं : वे स्वयं द्वारा किए गए हर छोटे-मोटे काम के बारे में सबके सामने शेखी बघारते हैं। उनकी बात सुनकर लगता है कि वे परमेश्वर की गवाही दे रहे हैं—लेकिन अगर तुम ध्यान से सुनो तो तुम्हें पता चलेगा कि वे परमेश्वर की गवाही नहीं दे रहे, बल्कि अपनी शान बघार रहे हैं, खुद को स्थापित कर रहे हैं। उनकी बातों के पीछे का इरादा और सार परमेश्वर के चुने हुए लोगों और हैसियत के लिए परमेश्वर के साथ होड़ करना है। परमेश्वर विनम्र और छिपा हुआ है, जबकि शैतान अपनी शान दिखाता है। क्या इनमें कोई अंतर है? दिखावा बनाम विनम्रता और प्रच्छन्नता : इनमें से कौन-सी चीजें सकारात्मक हैं? (विनम्रता और प्रच्छन्नता।) क्या शैतान को विनम्र कहा जा सकता है? (नहीं।) क्यों? उसके दुष्ट प्रकृति-सार को देखते हुए, वह रद्दी का एक बेकार टुकड़ा है; शैतान के लिए अपनी शान न बघारना एक असामान्य बात होगी। शैतान को “विनम्र” कैसे कहा जा सकता है? “विनम्रता” परमेश्वर का अंग है। परमेश्वर की पहचान, सार और स्वभाव उदात्त और आदरणीय हैं, लेकिन वह कभी दिखावा नहीं करता। परमेश्वर विनम्र और छिपा हुआ है, इसलिए लोगों को नहीं दिखता कि उसने क्या किया है, लेकिन जब वह ऐसी गुमनामी में कार्य करता है, तो लोगों को निरंतर समर्थन, पोषण और मार्गदर्शन मिलता है—और इन सब चीजों की व्यवस्था परमेश्वर करता है। क्या यह प्रच्छन्नता और विनम्रता नहीं है कि परमेश्वर इन बातों को कभी घोषित नहीं करता, कभी इनका उल्लेख नहीं करता? परमेश्वर विनम्र ठीक इसलिए है, क्योंकि वह ये चीजें करने में सक्षम है लेकिन कभी इनका उल्लेख या घोषणा नहीं करता, और लोगों के साथ इनके बारे में बहस नहीं करता। तुम्हें विनम्रता के बारे में बोलने का क्या अधिकार है, जब तुम ऐसी चीजें करने में असमर्थ हो? तुमने इनमें से कोई चीज नहीं की है, फिर भी इनका श्रेय लेने पर जोर देते हो—इसे बेशर्म होना कहा जाता है। मानव-जाति का मार्गदर्शन करते हुए परमेश्वर ऐसा महान कार्य करता है, और वह पूरे ब्रह्मांड का संचालन करता है। उसका अधिकार और सामर्थ्य बहुत व्यापक है, फिर भी उसने कभी नहीं कहा, “मेरा सामर्थ्य असाधारण है।” वह सभी चीजों के बीच छिपा रहता है, हर चीज का संचालन करता है, और मानव-जाति का भरण-पोषण करता है, जिससे पूरी मानव-जाति का अस्तित्व पीढ़ी-दर-पीढ़ी बना रहता है। उदाहरण के लिए, हवा और धूप को या पृथ्वी पर मानव-अस्तित्व के लिए आवश्यक सभी भौतिक वस्तुओं को लो—ये सब लगातार बहती रहती हैं। परमेश्वर मनुष्य का पोषण करता है, यह असंदिग्ध है। अगर शैतान कुछ अच्छा करे, तो क्या वह चुप रहेगा, और एक गुमनाम नायक बना रहेगा? कभी नहीं। वह वैसा ही है, जैसे कलीसिया में कुछ मसीह-विरोधी हैं, जिन्होंने पहले जोखिम भरा काम किया, जिन्होंने चीजें त्याग दीं और कष्ट सहे, जो शायद जेल भी गए हों; ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने कभी परमेश्वर के घर के कार्य के एक पहलू में योगदान दिया था। वे ये चीजें कभी नहीं भूलते, उन्हें लगता है कि इन कामों के लिए वे आजीवन श्रेय के पात्र हैं, वे सोचते हैं कि ये उनकी जीवन भर की पूँजी हैं—जो दर्शाता है कि लोग कितने ओछे हैं! लोग सच में ओछे हैं, और शैतान बेशर्म है।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद सात : वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (भाग दो)

परमेश्वर अपना कार्य करने और लोगों को बचाने के लिए अत्यधिक धैर्य के साथ सभी तरह की पीड़ा झेलता है, मगर लोग फिर भी उसे गलत समझते हैं, लगातार उसके खिलाफ खड़े होते हैं, परमेश्वर के घर के हितों की कोई चिंता किए बिना लगातार अपने हितों की रक्षा करते हैं, और हमेशा एक आलीशान जीवन जीना चाहते हैं, मगर परमेश्वर की महिमा में योगदान नहीं करना चाहते—क्या इन सब में कोई मानवता है जिसके बारे में बात की जा सके? भले ही लोग जोर से परमेश्वर की गवाही देते हैं, मगर अपने दिल में वे कहते हैं : “यह कार्य मैंने किया है, जिससे परिणाम प्राप्त हुए हैं। मैंने भी मेहनत की है, मैंने भी कीमत चुकाई है। मेरी गवाही क्यों नहीं दी जाती?” वे हमेशा परमेश्वर की महिमा और गवाही में हिस्सा लेना चाहते हैं। क्या लोग इन चीजों के लायक हैं? “महिमा” शब्द मनुष्यों के लिए नहीं है। यह केवल परमेश्वर के लिए, सृष्टिकर्ता के लिए हो सकता है, और इसका सृजित मनुष्यों से कोई लेना-देना नहीं है। भले ही लोग कड़ी मेहनत और सहयोग करें, वे अभी भी पवित्र आत्मा के कार्य की अगुआई में हैं। अगर पवित्र आत्मा का कोई कार्य न हो, तो लोग क्या कर सकते हैं? “गवाही” शब्द भी मनुष्यों के लिए नहीं है। चाहे वह संज्ञा “गवाही” हो या क्रिया “गवाही देना,” इन दोनों शब्दों का सृजित मनुष्यों से कोई लेना-देना नहीं है। केवल सृष्टिकर्ता ही गवाही दिए जाने और लोगों की गवाही के योग्य है। यह परमेश्वर की पहचान, हैसियत और सार से निर्धारित होता है, और यह इसलिए भी है क्योंकि परमेश्वर जो कुछ भी करता है वह परमेश्वर के प्रयासों से आता है, और परमेश्वर इसे पाने के योग्य है। लोग जो कर सकते हैं वह निश्चित रूप से सीमित है, और यह सब पवित्र आत्मा के प्रबोधन, अगुआई और मार्गदर्शन का परिणाम है। जहाँ तक मानव प्रकृति की बात है, लोग कुछ सत्य समझने और थोड़ा-सा काम कर सकने के बाद ही अहंकारी हो जाते हैं। अगर उनके पास परमेश्वर की ओर से कोई न्याय और ताड़ना नहीं हो, तो कोई भी परमेश्वर के प्रति समर्पण नहीं कर सकेगा और न ही उसकी गवाही दे सकेगा। परमेश्वर के पूर्वनिर्धारण के कारण ही, लोगों के पास कुछ खूबियाँ या विशेष प्रतिभाएँ हो सकती हैं, उन्होंने कुछ पेशे या कौशल सीखे होंगे, या उनमें थोड़ी चतुराई होगी, और इसलिए वे बहुत ज्यादा अहंकारी बन जाते हैं, और लगातार चाहते हैं कि परमेश्वर अपनी महिमा और अपनी गवाही उनके साथ साझा करे। क्या यह अनुचित नहीं है? यह बेहद अनुचित है। यह दर्शाता है कि वे गलत स्थिति में खड़े हैं। वे खुद को मनुष्य नहीं, बल्कि एक अलग नस्ल मानते हैं, अतिमानव मानते हैं। जो लोग अपनी पहचान, सार और उन्हें किस स्थिति में खड़ा होना चाहिए, यह नहीं जानते, उनमें कोई आत्म-जागरूकता नहीं होती है। लोगों में विनम्रता जैसी चीज अपमान से नहीं आती है—लोग शुरू से ही विनम्र और नीच होते हैं। परमेश्वर की विनम्रता ऐसी चीज है जो अपमान से आती है। लोगों को विनम्र कहना, उनका उत्कर्ष करना है—वास्तव में वे नीच होते हैं। लोग हमेशा शोहरत, लाभ और रुतबे के लिए होड़ करना चाहते हैं, और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए परमेश्वर से लड़ना चाहते हैं। इस तरह, वे शैतान की भूमिका निभाते हैं, और यह शैतान की प्रकृति है। वे वास्तव में शैतान के वंशज हैं, उनमें जरा-सा भी अंतर नहीं है। मान लो कि परमेश्वर लोगों को थोड़ा-सा अधिकार और सामर्थ्य देता है, वे संकेत और चमत्कार दिखा सकते हैं और कुछ असाधारण चीजें कर सकते हैं, और मान लो कि वे सब कुछ परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार और एकदम ठीक तरह से करते हैं। मगर क्या वे परमेश्वर से आगे निकल सकते हैं? नहीं, कभी नहीं। क्या शैतान और स्वर्गदूत की योग्यताएँ मनुष्यों से अधिक नहीं हैं? वह हमेशा परमेश्वर से आगे निकलना चाहता है, मगर अंतिम परिणाम क्या होता है? अंत में, उसे अथाह गड्ढे में गिरना ही होगा। परमेश्वर हमेशा न्याय का प्रतिरूप रहेगा, जबकि शैतान, राक्षस और स्वर्गदूत हमेशा दुष्टता की मूरत ही रहेंगे, और दुष्टता की शक्तियों के प्रतिनिधि होंगे। परमेश्वर हमेशा न्यायशील रहेगा, और इस तथ्य को बदला नहीं जा सकता। यह परमेश्वर का अनोखा और असाधारण पक्ष है। भले ही मनुष्य परमेश्वर से उसके सभी सत्य प्राप्त कर लें, वे केवल तुच्छ सृजित प्राणी हैं और परमेश्वर से आगे नहीं निकल सकते। यही मनुष्य और परमेश्वर के बीच का अंतर है। लोग परमेश्वर द्वारा बनाए गए सभी नियमों और व्यवस्थाओं के भीतर ही व्यवस्थित तरीके से जीवन जी सकते हैं, और परमेश्वर द्वारा बनाई गई हर चीज को केवल इन नियमों और व्यवस्थाओं के भीतर ही प्रबंधित कर सकते हैं। लोग किसी भी सजीव चीज की रचना नहीं कर सकते, न ही वे मानवजाति का भाग्य बदल सकते हैं—यह एक तथ्य है। यह तथ्य क्या दर्शाता है? यही कि परमेश्वर मानवजाति को चाहे कितना भी अधिकार और योग्यता दे, अंत में कोई भी परमेश्वर के अधिकार से बड़ा नहीं हो सकता। चाहे कितने भी साल बीत जाएँ या कितनी भी पीढ़ियाँ गुजर जाएँ या चाहे जितने भी मनुष्य हों, मनुष्य हमेशा केवल परमेश्वर के अधिकार और संप्रभुता के अधीन ही अस्तित्व में रह सकते हैं। यह तथ्य हमेशा अडिग रहेगा, यह कभी नहीं बदलेगा, कभी नहीं!

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग एक)

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