28. उद्धार क्या संदर्भित करता है
अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन
लोगों की आस्था का सर्वोच्च महत्व क्या है? सरल शब्दों में कहें तो यह बचा लिए जाने के लिए है। ... साधारण शब्दों में, बचा लिए जाने का अर्थ यह है कि तुम जीते रह सकते हो, तुम्हें दुबारा जीवन दे दिया गया है। कभी तुम पाप में जी रहे थे, और मरना तय था—परमेश्वर की नजरों में तुम मृत इंसान थे। यह कहने का क्या आधार है? उद्धार पाने से पहले लोग किसकी सत्ता के अधीन रहते हैं? (शैतान की सत्ता के अधीन।) और शैतान की सत्ता के अधीन जीने के लिए लोग किस चीज पर निर्भर रहते हैं? वे जीने के लिए अपनी शैतानी प्रकृति और भ्रष्ट स्वभावों पर निर्भर रहते हैं। यदि ऐसा है तो उनका सारा अस्तित्व—उनकी देह, और उनकी आत्मा और विचार जैसे सारे अन्य पहलू—जीवित हैं या मृत? परमेश्वर के नजरिये से वे मृत हैं, वे चलती-फिरती लाशें हैं। ऊपरी तौर पर, तुम साँस लेते और सोच-विचार करते प्रतीत होते हो, लेकिन तुम निरंतर जिस हरेक चीज के बारे में सोच रहे हो वह बुरी है, परमेश्वर की अवज्ञा और उससे विद्रोह करती है, और तुम्हारे सारे विचार उन चीजों के बारे में हैं जिनसे परमेश्वर तिरस्कार और घृणा करता है और जिनकी निंदा करता है। परमेश्वर की नजरों में ये सारी चीजें न सिर्फ देह की इच्छाओं से जुड़ी हैं, बल्कि ये पूरी तरह शैतान और दानवों से जुड़ी हैं। तो परमेश्वर की नजरों में भ्रष्ट इंसान क्या मनुष्य है भी? नहीं, ऐसे लोग जानवर, दानव और शैतान हैं; वे जीवित शैतान हैं! सभी लोग शैतान की प्रकृति और उसके स्वभाव को जीते हैं, और परमेश्वर की नजरों में वे मनुष्य की देह में जीवित और छिपे शैतान हैं, मनुष्य की खाल ओढ़े दानव हैं। परमेश्वर ऐसे लोगों को चलती-फिरती लाशें, मुर्दे बताता है। परमेश्वर अब उद्धार का कार्य कर रहा है, जिसका अर्थ है कि वह शैतान के भ्रष्ट स्वभाव और उसके भ्रष्ट सार के अनुसार जीने वाली चलती-फिरती लाशों—मृत लोगों—को उठा लेगा और उन्हें जीवित लोगों में बदल देगा। बचा लिए जाने का यही अर्थ है। कोई भी व्यक्ति बचा लिए जाने के खातिर परमेश्वर पर विश्वास करता है—बचा लिए जाने का अर्थ क्या है? जब कोई व्यक्ति परमेश्वर से उद्धार पाता है तो वह मृत से जीवित हो जाता है। जहाँ एक समय वह शैतान से जुड़ा था, उसके मरने की आशंका थी, वहीं अब वह जीवन पाकर परमेश्वर का हो जाता है। अगर लोग परमेश्वर के प्रति समर्पण कर सकें, उसे जान सकें, परमेश्वर पर विश्वास और उसका अनुसरण करते हुए आराधना में उसके सामने झुक सकें, अगर उनके दिल में परमेश्वर के प्रति कोई प्रतिरोध और विद्रोह न रहे, और वे उसका विरोध और उस पर आक्षेप न करें, और उसके प्रति सच्चे मन से समर्पण कर सकें तो फिर परमेश्वर की नजरों में वे सच्चे जीवित लोग हैं। ... किसी व्यक्ति के अंततः बचा लिए जाने और जीवित मनुष्य बनने के लिए, उसे कम से कम परमेश्वर के वचन सुनने में सक्षम होना चाहिए, जमीर और विवेक युक्त वचन बोलने में सक्षम होना चाहिए, और उसे विचारवान और विवेकवान होना चाहिए, सत्य समझने और इसका अभ्यास करने योग्य होना चाहिए, परमेश्वर के प्रति समर्पण और उसकी आराधना करने योग्य होना चाहिए। यही सच्चा जीवित व्यक्ति होता है।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, केवल सच्चे समर्पण से ही व्यक्ति असली भरोसा रख सकता है
अंधकार के प्रभाव में रहने वाले लोग मृत्यु के साए में रहते हैं, वे शैतान के कब्ज़े में होते हैं। परमेश्वर द्वारा बचाए जाने और उसके द्वारा न्याय व ताड़ना पाए बगैर लोग मृत्यु के प्रभाव से नहीं बच सकते; वे जीवित नहीं बन सकते। ये “मृत मनुष्य” परमेश्वर के लिए गवाही नहीं दे सकते, ना ही वे परमेश्वर द्वारा इस्तेमाल किए जा सकते हैं, वे परमेश्वर के राज्य में तो प्रवेश कर ही नहीं सकते। परमेश्वर को जीवित लोगों की गवाही चाहिए, मृतकों की नहीं, वो जीवितों से अपने लिए कार्य करने को कहता है, न कि मृतकों से। “मृतक” वे हैं जो परमेश्वर का विरोध और उससे विद्रोह करते हैं, ये वे लोग हैं जिनकी आत्मा संवेदन-शून्य हो चुकी है और जो परमेश्वर के वचन नहीं समझते; ये वे लोग हैं जो सत्य का अभ्यास नहीं करते और परमेश्वर के प्रति जरा भी निष्ठा नहीं रखते, ये वे लोग हैं जो शैतान की सत्ता में रहते हैं और शैतान द्वारा शोषित हैं। मृतक सत्य के विरुद्ध खड़े होकर, परमेश्वर का विरोध और नीचता करते हैं, घिनौना, दुर्भावनापूर्ण, पाशविक, धोखेबाजी और कपट का व्यवहार कर स्वयं को प्रदर्शित करते हैं। अगर ऐसे लोग परमेश्वर का वचन खाते और पीते भी हैं, तो भी वे परमेश्वर के वचनों को जीने में समर्थ नहीं होते; वे जीवित तो हैं, परंतु वे चलती-फिरती, सांस लेने वाली लाशें भर हैं। मृतक परमेश्वर को संतुष्ट करने में पूर्णतः असमर्थ होते हैं, पूर्ण रूप से उसके प्रति समर्पित होने की तो बात ही दूर है। वे केवल उसे धोखा दे सकते हैं, उसकी निंदा कर सकते हैं, उससे कपट कर सकते हैं और जैसा जीवन वे जीते हैं उससे उनकी शैतानी प्रकृति प्रकट होती है। अगर लोग जीवित प्राणी बनना चाहते हैं, परमेश्वर के गवाह बनना चाहते हैं, परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त करना चाहते हैं, तो उन्हें परमेश्वर का उद्धार स्वीकार करना चाहिए; उन्हें आनंदपूर्वक उसके न्याय व ताड़ना के प्रति समर्पित होना चाहिए, आनंदपूर्वक परमेश्वर की काट-छाँट को स्वीकार करना चाहिए। तभी वे परमेश्वर द्वारा अपेक्षित तमाम सत्य को अपने आचरण में ला सकेंगे, तभी वे परमेश्वर के उद्धार को पा सकेंगे और सचमुच जीवित प्राणी बन सकेंगे। जो जीवित हैं वे परमेश्वर द्वारा बचाए जाते हैं; वे परमेश्वर द्वारा न्याय व ताड़ना का सामना कर चुके होते हैं, वे स्वयं को समर्पित करने और आनंदपूर्वक अपने प्राण परमेश्वर के लिए न्योछावर करने को तत्पर रहते हैं और वे प्रसन्नता से अपना सम्पूर्ण जीवन परमेश्वर को अर्पित कर देते हैं। जब जीवित जन परमेश्वर की गवाही देते हैं, तभी शैतान शर्मिन्दा हो सकता है। केवल जीवित ही परमेश्वर के सुसमाचार का प्रचार कर सकते हैं, केवल जीवित प्राणी ही परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप होते हैं और केवल जीवित ही वास्तविक जन हैं। पहले परमेश्वर द्वारा बनाया गया मनुष्य जीवित था, परंतु शैतान की भ्रष्टता के कारण मनुष्य मृत्यु के साए में रहता है, शैतान के प्रभाव में रहता है और इसलिए जो लोग आत्मा मृत हो चुके हैं जिनमें आत्मा नहीं है, वे ऐसे शत्रु बन गए हैं जो परमेश्वर का विरोध करते हैं, वे शैतान के हथियार बन गए हैं और वे शैतान के कैदी बन गए हैं। परमेश्वर ने जिन जीवित मनुष्यों की रचना की थी, वे मृत लोग बन गए हैं, इसलिए परमेश्वर ने अपने गवाह खो दिये हैं और जिस मानवजाति को उसने बनाया था, एकमात्र चीज जिसमें उसकी सांसे थीं, उसने उसे खो दिया है। अगर परमेश्वर को अपनी गवाही और उन्हें जिसे उसने अपने हाथों से बनाया, जो अब शैतान द्वारा कैद कर लिए गए हैं, वापस लेना है तो उसे उन्हें पुनर्जीवित करना होगा जिससे वे जीवित प्राणी बन जाएँ, उसे उन्हें वापस लाना होगा ताकि वे उसके प्रकाश में जी सकें। मृत वे लोग हैं जिनमें आत्मा नहीं होती, जो चरम सीमा तक सुन्न होकर परमेश्वर-विरोधी हो गए हैं। मुख्यतः, सबसे आगे वही लोग होते हैं जो परमेश्वर को नहीं जानते। इन लोगों का परमेश्वर के प्रति समर्पण करने का जरा-भी इरादा नहीं होता, वे केवल उसके विरुद्ध विद्रोह करते हैं, इन में थोड़ी भी निष्ठा नहीं होती। जीवित वे लोग हैं जिनकी आत्मा ने नया जन्म पाया है, जो परमेश्वर के प्रति समर्पण करना जानते हैं और जो परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होते हैं। इनमें सत्य और गवाही होती है, और यही लोग परमेश्वर को अपने घर में अच्छे लगते हैं।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या तुम ऐसे व्यक्ति हो जो जीवित हो उठा है?
उद्धार का तात्पर्य मुख्यतः किस बात से है? यह मुख्य रूप से स्वभाव में बदलाव को संदर्भित करता है। जब किसी व्यक्ति का स्वभाव बदल जाता है केवल तभी वह शैतान का प्रभाव दूर कर सकता है और बचाया जा सकता है। इसलिए जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं, उनके लिए स्वभावगत बदलाव एक प्रमुख मुद्दा है। जब किसी व्यक्ति का स्वभाव बदल जाता है, तो वह मानव के समान जीवन व्यतीत करेगा और पूर्ण उद्धारप्राप्त करेगा। यह संभव है कि कोई देखने में बहुत अच्छा, विशेष गुण संपन्न या प्रतिभाशाली न हो, भद्दे तरीके से बोलता हो और बहुत वाक्पटु न हो या पहनने-ओढ़ने में बेढंगा हो और बाहरी तौर पर बहुत सामान्य दिखता हो, लेकिन जब उसके साथ कोई घटना हो जाए तो वह अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करने या अपने लिए योजना बनाने के बजाय सत्य की खोज करने में सक्षम हो तथा जब परमेश्वर उसे किसी कर्तव्य के निर्वाह का आदेश दे, तो वह उसका पालन करने में सक्षम हो और उसे जो भी दायित्व सौंपा गया हो उसे पूरा करे। तुम लोग ऐसे व्यक्ति के बारे में क्या सोचते हो? हालाँकि बाहरी तौर पर वह आकर्षक या देखने में नहीं होता, परंतु अपने हृदय में वह परमेश्वर से डरता है और उसकी आज्ञा का पालन करता है और इसी से उसकी ताकतों का पता चलता है। यह देखकर लोग कहेंगे कि, “इस व्यक्ति का स्वभाव स्थिर है और जब कुछ घटित होता है, तो वह बिना लापरवाही के या कोई मूर्खतापूर्ण कार्य किए बिना चुपचाप परमेश्वर से निर्देश प्राप्त कर सकता है। उसका रवैया गंभीर और जिम्मेदार है; वह कर्तव्यपरायण है और अपने कर्तव्य को ईमानदारी से पूरा करने के लिए खुद को पूरी तरह समर्पित कर सकता है।” ऐसे व्यक्ति बोलचाल और काम करने के तरीके में संयमित होते हैं, उनमें सामान्य तार्किकता होती है और वे जिस तरह से जीते हैं तथा जैसा स्वभाव प्रदर्शित करते हैं, उसके आधार पर कहा जा सकता है कि उनके हृदय में परमेश्वर का डर है। यदि उनके हृदय में परमेश्वर का डर है, तो क्या उनके कार्यों के पीछे कोई सिद्धांत हैं? निश्चय ही वे सिद्धांतों की खोज करते हैं और हड़बड़ी में किसी गलत काम में शामिल नहीं होते। यह सत्य का अभ्यास करने और स्वभाव में बदलाव लाने के लिए प्रयासरत होने से हासिल अंतिम परिणाम है। उनकी वाणी नपी-तुली और सटीक होती है, वे गैर-जिम्मेदाराना तरीके से नहीं बोलते, वे आश्वस्तकारी और भरोसेमंद तरीके से कार्य करते हैं और उनके पास परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता और बुराई से दूर रहने की वास्तविकताएँ होती हैं। ये सभी अभिव्यक्तियाँ ऐसे व्यक्तियों में देखी जा सकती हैं। ये ऐसे व्यक्ति होते हैं जिन्होंने सत्य वास्तविकता में प्रवेश किया है और जिनका स्वभाव बदल चुका है।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन
मनुष्य की देह शैतान की है, यह विद्रोही स्वभावों से परिपूर्ण है, यह दुखद रूप से गंदी है, और यह कुछ ऐसी है जो अस्वच्छ है। लोग देह के आनंद के लिए बहुत अधिक ललचाते हैं और देह की कई सारी अभिव्यंजनाएँ हैं; यही कारण है कि परमेश्वर मनुष्य की देह से एक निश्चित सीमा तक घृणा करता है। जब लोग शैतान की गंदी, भ्रष्ट चीजों को निकाल फेंकते हैं, तब वे परमेश्वर से उद्धार प्राप्त करते हैं। परंतु यदि वे गंदगी और भ्रष्टता से स्वयं को अब भी नहीं छुड़ाते हैं, तो वे अभी भी शैतान की सत्ता के अधीन रह रहे हैं। लोगों की धूर्तता, छल-कपट, और कुटिलता सब शैतान की चीजें हैं। परमेश्वर द्वारा तुम्हारा उद्धार तुम्हें शैतान की इन चीजों से छुड़ाने के लिए है। परमेश्वर का कार्य ग़लत नहीं हो सकता है; यह सब लोगों को अंधकार से बचाने के लिए किया जाता है। जब तुमने एक निश्चित बिंदु तक विश्वास कर लिया है और देह की भ्रष्टता से अपने को छुड़ा सकते हो, और इस भ्रष्टता अब और विवश नहीं हो, तो क्या तुम बचाए नहीं जा चुके होगे? जब तुम शैतान की सत्ता के अधीन रहते हो, तब तुम परमेश्वर को प्रत्यक्ष रूप से व्यक्त करने में असमर्थ होते हो, तुम कोई गंदी चीज़ होते हो, और परमेश्वर की विरासत प्राप्त नहीं कर सकते हो। एक बार जब तुम्हें स्वच्छ कर दिया और पूर्ण बना दिया गया, तो तुम पवित्र हो जाओगे, तुम सामान्य व्यक्ति हो जाओगे, और तुम परमेश्वर द्वारा धन्य किए जाओगे और परमेश्वर के प्रति आनंद से परिपूरित होओगे।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अभ्यास (2)
कई लोग स्पष्ट रूप से नहीं जानते कि बचाए जाने का क्या अर्थ होता है। कुछ लोगों का मानना है कि अगर उन्होंने लंबे समय से परमेश्वर में विश्वास किया है, तो उनके बचाए जाने की संभावना है। कुछ लोग सोचते हैं कि अगर वे बहुत सारे आध्यात्मिक सिद्धांत समझते हैं, तो उनके बचाए जाने की संभावना है, या कुछ लोग सोचते हैं कि अगुआ और कार्यकर्ता निश्चित रूप से बचाए जाएँगे। ये सभी मनुष्य की धारणाएँ और कल्पनाएँ हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि लोगों को समझना चाहिए कि उद्धार का क्या अर्थ होता है। मुख्य रूप से बचाए जाने का अर्थ है पाप से मुक्त होना, शैतान के प्रभाव से मुक्त होना, सही मायने में परमेश्वर की ओर मुड़ना और परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना। पाप से और शैतान के प्रभाव से मुक्त होने के लिए तुम्हारे पास क्या होना चाहिए? सत्य होना चाहिए। अगर लोग सत्य प्राप्त करने की आशा रखते हैं, तो उन्हें परमेश्वर के कई वचनों से युक्त होना चाहिए, उन्हें उनका अनुभव और अभ्यास करने में सक्षम होना चाहिए, ताकि वे सत्य को समझकर वास्तविकता में प्रवेश कर सकें। तभी उन्हें बचाया जा सकता है। किसी को बचाया जा सकता है या नहीं, इसका इस बात से कोई लेना-देना नहीं कि उसने कितने लंबे समय से परमेश्वर में विश्वास किया है, उसके पास कितना ज्ञान है, उसमें गुण या खूबियाँ हैं या नहीं, या वह कितना कष्ट सहता है। एकमात्र चीज, जिसका उद्धार से सीधा संबंध है, यह है कि व्यक्ति सत्य प्राप्त कर सकता है या नहीं। तो आज, तुमने वास्तव में कितने सत्य समझे हैं? और परमेश्वर के कितने वचन तुम्हारा जीवन बन गए हैं? परमेश्वर की समस्त अपेक्षाओं में से तुमने किसमें प्रवेश किया है? परमेश्वर में अपने विश्वास के वर्षों के दौरान तुमने परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में कितना प्रवेश किया है? अगर तुम नहीं जानते या तुमने परमेश्वर के किसी भी वचन की किसी वास्तविकता में प्रवेश नहीं किया है, तो स्पष्ट रूप से, तुम्हारे उद्धार की कोई आशा नहीं है। तुम्हें बचाया नहीं जा सकता। यह कुछ महत्व नहीं रखता कि तुम्हारे पास उच्च स्तर का ज्ञान है या नहीं, या तुमने लंबे समय से परमेश्वर में विश्वास किया है या नहीं, तुम्हारा रूप-रंग अच्छा है या नहीं, तुम अच्छा बोल सकते हो या नहीं, और तुम कई वर्षों तक अगुआ या कार्यकर्ता रहे हो या नहीं। अगर तुम सत्य का अनुसरण नहीं करते, और परमेश्वर के वचनों का ठीक से अभ्यास और अनुभव नहीं करते, और तुममें वास्तविक अनुभव और गवाही की कमी है, तो तुम्हारे बचाए जाने की कोई आशा नहीं है। मुझे इसकी परवाह नहीं है कि तुम कैसे दिखते हो, तुम्हारे पास कितना वैज्ञानिक ज्ञान है, तुमने कितना कष्ट सहा है या तुमने कितनी बड़ी कीमत चुकाई है। मैं तुमसे यह कहता हूँ : अगर तुम सत्य नहीं स्वीकारते और कभी परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश नहीं करते, तो तुम बचाए नहीं जा सकते। इसमें संदेह नहीं। अगर तुम मुझे बताओ कि तुमने परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में कितना प्रवेश किया है, तो मैं तुम्हें बताऊँगा कि तुम्हारे उद्धार की कितनी आशा है। अब जबकि मैंने तुम लोगों को इसे मापने के मानदंड बता दिए हैं, तो तुम लोगों को इसे खुद मापने में सक्षम होना चाहिए। ये वचन तुम लोगों को क्या तथ्य बताते हैं? परमेश्वर ने संसार की रचना करने के लिए वचनों का उपयोग किया, उसने हर तरह का तथ्य पूरा करने के लिए, वे सभी तथ्य पूरे करने के लिए जिन्हें परमेश्वर करना चाहता था, वचनों का उपयोग किया, और परमेश्वर ने अपने कार्य के दो चरण कार्यान्वित करने के लिए वचनों का उपयोग किया। आज परमेश्वर अपने कार्य का तीसरा चरण कार्यान्वित कर रहा है, और कार्य के इस चरण में, परमेश्वर ने किसी भी अन्य चरण की तुलना में ज्यादा वचन बोले हैं। यह वह समय है, जब मानवजाति के पूरे इतिहास में परमेश्वर अपने कार्य में सबसे ज्यादा बोला है। परमेश्वर दुनिया को बनाने के लिए, सभी तथ्य पूरे करने के लिए, सभी तथ्यों को शून्य से अस्तित्व में और अस्तित्व को शून्य में लाने के लिए वचनों का उपयोग कर सकता है—यह परमेश्वर के वचनों का अधिकार है, और अंततः, परमेश्वर मानवजाति के उद्धार का तथ्य पूरा करने के लिए भी वचनों का ही उपयोग करेगा। आज तुम सभी लोग यह तथ्य देख सकते हो, अंत के दिनों के दौरान परमेश्वर ने ऐसा कोई कार्य नहीं किया है जो उसके वचनों से न जुड़ा हो, मनुष्य का मार्गदर्शन करने के लिए वह शुरू से आज तक हर जगह बोला है, उसने शुरू से आज तक वचनों का उपयोग किया है। बेशक, बोलते समय, परमेश्वर ने उन लोगों के साथ अपना रिश्ता बनाए रखने के लिए भी वचनों का उपयोग किया है जो उसका अनुसरण करते हैं, उसने उनका मार्गदर्शन करने के लिए वचनों का उपयोग किया है, और ये वचन उन लोगों के लिए बेहद अहम हैं जो बचाए जाना चाहते हैं या जिन्हें परमेश्वर बचाना चाहता है, परमेश्वर मानवजाति के उद्धार का तथ्य पूरा करने के लिए इन वचनों का उपयोग करेगा। प्रत्यक्षत:, चाहे उनकी विषयवस्तु के संदर्भ में देखा जाए या संख्या के, चाहे वे जिस भी तरह के वचन हों, और चाहे वे परमेश्वर के वचनों का कोई-सा भी हिस्सा हों, वे उन लोगों में से प्रत्येक के लिए बेहद अहम हैं, जो बचाए जाना चाहते हैं। परमेश्वर अपनी छह-हजार-वर्षीय प्रबंधन योजना का अंतिम प्रभाव प्राप्त करने के लिए इन वचनों का उपयोग कर रहा है। मानवजाति के लिए—चाहे आज की मानवजाति हो या भविष्य की—ये बेहद अहम हैं। ऐसा रवैया है परमेश्वर का, ऐसा उद्देश्य और महत्व है उसके वचनों का। तो मानवजाति को क्या करना चाहिए? मानवजाति को परमेश्वर के वचनों और कार्यों में सहयोग करना चाहिए, उनकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। लेकिन परमेश्वर में कुछ लोगों की आस्था का तरीका ऐसा नहीं है : परमेश्वर चाहे कुछ भी कहे, ऐसा लगता है मानो उसके वचनों का उनसे कोई लेना-देना न हो। वे अभी भी उसी का अनुसरण करते हैं जिसका वे करना चाहते हैं, वही करते हैं जो वे करना चाहते हैं, और परमेश्वर के वचनों के आधार पर सत्य नहीं खोजते। यह परमेश्वर के कार्य का अनुभव करना नहीं है। कुछ अन्य लोग हैं जो, परमेश्वर चाहे कुछ भी कहे, उस पर ध्यान नहीं देते, जिनके दिल में सिर्फ एक ही दृढ़ निश्चय होता है : “मैं वही करूँगा जो परमेश्वर कहेगा, अगर परमेश्वर मुझसे पश्चिम की ओर जाने के लिए कहेगा तो मैं पश्चिम की ओर चला जाऊँगा, अगर वह मुझसे पूर्व की ओर जाने के लिए कहेगा तो मैं पूर्व की ओर चला जाऊँगा, अगर वह मुझसे मरने के लिए कहेगा, तो वह मुझे मरता हुआ देखेगा।” लेकिन बस एक ही चीज है : वे परमेश्वर के वचनों को ग्रहण नहीं करते। वे मन में सोचते हैं, “परमेश्वर के बहुत सारे वचन हैं, उन्हें थोड़ा और सरल होना चाहिए, और उन्हें मुझे बताना चाहिए कि ठीक-ठीक क्या करना है। मैं अपने हृदय में परमेश्वर का आज्ञापालन करने में सक्षम हूँ।” परमेश्वर चाहे कितने भी वचन बोले, ऐसे लोग अंततः सत्य समझने में असमर्थ रहते हैं, न ही वे अपने अनुभवों और ज्ञान के बारे में बात कर सकते हैं। वे एक साधारण व्यक्ति की तरह होते हैं, जो आध्यात्मिक मामलों के बारे में कुछ नहीं समझता। क्या तुम लोगों को लगता है कि ऐसे लोग परमेश्वर के प्रिय हैं? क्या परमेश्वर ऐसे लोगों के प्रति दयालु होना चाहता है? (नहीं।) वह निश्चित रूप से नहीं होना चाहता। परमेश्वर ऐसे लोगों को पसंद नहीं करता। परमेश्वर कहता है, “मैंने हजारों अनकहे वचन कहे हैं। ऐसा कैसे है कि किसी अंधे-बहरे की तरह तुमने उन्हें न तो देखा है और न ही सुना है? आखिर तुम अपने दिल में क्या सोच रहे हो? मैं तुम्हें ऐसे व्यक्ति के अलावा कुछ नहीं समझता, जिसे आशीष और सुंदर गंतव्य के पीछे दौड़ने का जुनून है—तुम पौलुस जैसे लक्ष्यों के पीछे दौड़ रहे हो। अगर तुम मेरे वचन नहीं सुनना चाहते, अगर तुम मेरे मार्ग पर नहीं चलना चाहते, तो तुम परमेश्वर में विश्वास क्यों करते हो? तुम उद्धार के पीछे नहीं, बल्कि सुंदर गंतव्य और आशीषों की इच्छा के पीछे दौड़ रहे हो। और चूँकि तुम यही साजिश रच रहे हो, इसलिए तुम्हारे लिए सबसे उपयुक्त चीज सेवाकर्ता बनना है।” वास्तव में, वफादार सेवाकर्ता होना भी परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता की एक अभिव्यक्ति है, लेकिन यह न्यूनतम मानक है। एक वफादार सेवाकर्ता बने रहना किसी अविश्वासी की तरह तबाही और विनाश में डूबने से कहीं बेहतर है। विशेष रूप से, परमेश्वर के घर को सेवाकर्ताओं की जरूरत है, और परमेश्वर की सेवा करने में सक्षम होना भी आशीष ही माना जाता है। यह शैतान राजाओं के अनुचर होने से कहीं बेहतर—बहुत बेहतर—है। हालाँकि, परमेश्वर की सेवा करना परमेश्वर के लिए पूरी तरह से संतोषजनक नहीं है, क्योंकि परमेश्वर का न्याय का कार्य लोगों को बचाने, शुद्ध और पूर्ण करने के लिए है। अगर लोग परमेश्वर की सेवा करने से ही संतुष्ट रहते हैं, तो यह वह उद्देश्य नहीं है जिसे परमेश्वर लोगों में कार्य करके हासिल करना चाहता है, न ही यह वह परिणाम है जिसे परमेश्वर देखना चाहता है। लेकिन लोग इच्छा की आग में जलते रहते हैं, वे मूर्ख और अंधे हैं : वे थोड़े-से लाभ से मोहित हो जाते हैं, भस्म हो जाते हैं, और परमेश्वर द्वारा कहे गए जीवन के अनमोल वचनों को नकार देते हैं। वे उन्हें गंभीरता से भी नहीं ले पाते, उन्हें प्रिय मानना तो दूर की बात है। परमेश्वर के वचन न पढ़ना या सत्य न सँजोना : यह चतुराई है या मूर्खता? क्या लोग इस तरह से उद्धार प्राप्त कर सकते हैं? लोगों को यह सब समझना चाहिए। उनके उद्धार की आशा तभी होगी, जब वे अपनी धारणाएँ और कल्पनाएँ एक तरफ रख दें और सत्य का अनुसरण करने पर ध्यान केंद्रित करें।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, परमेश्वर के वचनों को सँजोना परमेश्वर में विश्वास की नींव है
वह सब जो परमेश्वर करता है आवश्यक है और असाधारण महत्व रखता है, क्योंकि वह मनुष्य में जो कुछ करता है उसका सरोकार उसके प्रबंधन और मनुष्यजाति के उद्धार से है। स्वाभाविक रूप से, परमेश्वर ने अय्यूब में जो कार्य किया वह भी कोई भिन्न नहीं है, फिर भले ही परमेश्वर की नजरों में अय्यूब पूर्ण और खरा था। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर चाहे जो करता हो या वह जो करता है उसे चाहे जिन उपायों से करता हो, क़ीमत चाहे जो हो, उसका ध्येय चाहे जो हो, किंतु उसके कार्यकलापों का उद्देश्य नहीं बदलता है। उसका उद्देश्य है मनुष्य में परमेश्वर के वचनों, और साथ ही मनुष्य से परमेश्वर की अपेक्षाओं और उसके प्रति परमेश्वर के इरादों को आकार देना; दूसरे शब्दों में, यह मनुष्य के भीतर उस सबको आकार देना है जिसे परमेश्वर अपने सोपानों के अनुसार सकारात्मक मानता है, जो मनुष्य को परमेश्वर का हृदय समझने और परमेश्वर का सार बूझने में समर्थ बनाता है, और मनुष्य को परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने देता है, इस प्रकार मनुष्य को परमेश्वर का भय मानना और बुराई से दूर रहना प्राप्त करने देता है—यह सब परमेश्वर जो करता है उसमें निहित उसके उद्देश्य का एक पहलू है। दूसरा पहलू यह है कि चूँकि शैतान परमेश्वर के कार्य में विषमता और सेवा की वस्तु है, इसलिए मनुष्य प्रायः शैतान को दिया जाता है; यह वह साधन है जिसका उपयोग परमेश्वर लोगों को शैतान के प्रलोभनों और हमलों में शैतान की दुष्टता, कुरूपता और घृणास्पदता को देखने देने के लिए करता है, इस प्रकार लोगों में शैतान के प्रति घृणा उपजाता है और उन्हें वह जानने और पहचानने में समर्थ बनाता जो नकारात्मक है। यह प्रक्रिया उन्हें शैतान के नियंत्रण से और आरोपों, विघ्नों और हमलों से धीरे-धीरे स्वयं को स्वतंत्र करने देती है—जब तक कि परमेश्वर के वचनों, परमेश्वर के प्रति अपने ज्ञान और समर्पण, और परमेश्वर के प्रति अपनी आस्था और परमेश्वर का भय मानने की बदौलत वे शैतान के हमलों और आरोपों पर विजय नहीं पा लेते हैं; केवल तभी वे शैतान की सत्ता से पूर्णतः मुक्त कर दिए गए होंगे। लोगों की मुक्ति का अर्थ है कि शैतान को हरा दिया गया है; इसका अर्थ है कि वे अब और शैतान के मुँह का भोजन नहीं हैं—उन्हें निगलने के बजाय, शैतान ने उन्हें छोड़ दिया है। ऐसा इसलिए है क्योंकि ऐसे लोग खरे हैं, क्योंकि उनमें परमेश्वर के प्रति आस्था, समर्पण और भय है, और क्योंकि उन्होंने शैतान के साथ पूरी तरह नाता तोड़ लिया है। वे शैतान को लज्जित करते हैं, वे शैतान को कायर बना देते हैं, और वे शैतान को पूरी तरह हरा देते हैं। परमेश्वर का अनुसरण करने में उनका दृढ़विश्वास, और परमेश्वर के प्रति समर्पण और उसका भय शैतान को हरा देता है, और उन्हें पूरी तरह छोड़ देने के लिए शैतान को विवश कर देता है। केवल इस जैसे लोग ही परमेश्वर द्वारा सच में प्राप्त किए गए हैं, और यही मनुष्य को बचाने में परमेश्वर का चरम उद्देश्य है। यदि वे बचाए जाना चाहते हैं, और परमेश्वर द्वारा पूरी तरह प्राप्त किए जाना चाहते हैं, तो उन सभी को जो परमेश्वर का अनुसरण करते हैं शैतान के बड़े और छोटे दोनों प्रलोभनों और हमलों का सामना करना ही चाहिए। जो लोग इन प्रलोभनों और हमलों से उभरकर निकलते हैं और शैतान को पूरी तरह परास्त कर पाते हैं ये वे लोग हैं जिन्हें परमेश्वर द्वारा बचा लिया गया है। कहने का तात्पर्य यह, वे लोग जिन्हें परमेश्वर पर्यंत बचा लिया गया है ये वे लोग हैं जो परमेश्वर की परीक्षाओं से गुजर चुके हैं, और अनगिनत बार शैतान द्वारा लुभाए और हमला किए जा चुके हैं। वे जिन्हें परमेश्वर पर्यंत बचा लिया गया है परमेश्वर के इरादों और अपेक्षाओं को समझते हैं, और परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण कर पाते हैं, और वे शैतान के प्रलोभनों के बीच परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के मार्ग को नहीं छोड़ते हैं। वे जिन्हें परमेश्वर पर्यंत बचा लिया गया है वे ईमानदारी से युक्त हैं, वे उदार हृदय हैं, वे प्रेम और घृणा के बीच अंतर करते हैं, उनमें न्याय की समझ है और वे तर्कसंगत हैं, और वे परमेश्वर की परवाह कर पाते और वह सब जो परमेश्वर का है सँजोकर रख पाते हैं। ऐसे लोग शैतान की बाध्यता, जासूसी, दोषारोपण या दुर्व्यवहार के अधीन नहीं होते हैं, वे पूरी तरह स्वतंत्र हैं, उन्हें पूरी तरह मुक्त और रिहा कर दिया गया है। अय्यूब बिल्कुल ऐसा ही स्वतंत्र मनुष्य था, और ठीक यही परमेश्वर द्वारा उसे शैतान को सौंपे जाने का महत्व था।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II
अभी जब लोगों को बचाया नहीं गया है, तब शैतान के द्वारा उनके जीवन में प्रायः विघ्न डाला, और यहाँ तक कि उन्हें नियंत्रित भी किया जाता है। दूसरे शब्दों में, वे लोग जिन्हें बचाया नहीं गया है शैतान के क़ैदी होते हैं, उन्हें कोई स्वतंत्रता नहीं होती, उन्हें शैतान द्वारा छोड़ा नहीं गया है, वे परमेश्वर की आराधना करने के योग्य या पात्र नहीं हैं, शैतान द्वारा उनका क़रीब से पीछा और उन पर क्रूरतापूर्वक आक्रमण किया जाता है। ऐसे लोगों के पास कहने को भी कोई खुशी नहीं होती है, उनके पास कहने को भी सामान्य अस्तित्व का अधिकार नहीं होता, और इतना ही नहीं, उनके पास कहने को भी कोई गरिमा नहीं होती है। यदि तुम डटकर खड़े हो जाते हो और शैतान के साथ संग्राम करते हो, शैतान के साथ जीवन और मरण की लड़ाई लड़ने के लिए शस्त्रास्त्र के रूप में परमेश्वर में अपनी आस्था और समर्पण, और परमेश्वर के भय का उपयोग करते हो, ऐसे कि तुम शैतान को पूरी तरह परास्त कर देते हो और उसे तुम्हें देखते ही दुम दबाने और भीतकातर बन जाने को मजबूर कर देते हो, ताकि वह तुम्हारे विरुद्ध अपने आक्रमणों और आरोपों को पूरी तरह छोड़ दे—केवल तभी तुम बचाए जाओगे और स्वतंत्र हो पाओगे। यदि तुमने शैतान के साथ पूरी तरह नाता तोड़ने का ठान लिया है, किंतु यदि तुम शैतान को पराजित करने में तुम्हारी सहायता करने वाले शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित नहीं हो, तो तुम अब भी खतरे में होगे। समय बीतने के साथ, जब तुम शैतान द्वारा इतना प्रताड़ित कर दिए जाते हो कि तुममें रत्ती भर भी ताक़त नहीं बची है, तब भी तुम गवाही देने में असमर्थ हो, तुमने अब भी स्वयं को अपने विरुद्ध शैतान के आरोपों और हमलों से पूरी तरह मुक्त नहीं किया है, तो तुम्हारे उद्धार की कम ही कोई आशा होगी। अंत में, जब परमेश्वर के कार्य के समापन की घोषणा की जाती है, तब भी तुम शैतान के शिकंजे में होगे, अपने आपको मुक्त करने में असमर्थ, और इस प्रकार तुम्हारे पास कभी कोई अवसर या आशा नहीं होगी। तो, निहितार्थ यह है कि ऐसे लोग पूरी तरह शैतान की दासता में होंगे।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II
उद्धार प्रदान किए जाने के लिए लोगों में क्या होना चाहिए? पहले, उन्हें कई सत्य समझने चाहिए, और मसीह-विरोधी का सार, स्वभाव और मार्ग पहचानने में सक्षम होना चाहिए। परमेश्वर में विश्वास करते हुए लोगों की आराधना या अनुसरण न करना सुनिश्चित करने का यह एकमात्र तरीका है, और अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करने का भी यही एकमात्र तरीका है। मसीह-विरोधी की पहचान करने में सक्षम लोग ही वास्तव में परमेश्वर में विश्वास कर सकते हैं, उसका अनुसरण कर सकते हैं और उसकी गवाही दे सकते हैं। ... मसीह-विरोधी की पहचान करना कोई आसान बात नहीं है, इसके लिए उनका सार स्पष्ट रूप से देखने और उनके हर काम के पीछे की साजिशें, चालें और अभिप्रेत लक्ष्य देख पाने की क्षमता होनी आवश्यक है। इस तरह तुम उनसे धोखा नहीं खाओगे या उनके काबू में नहीं आओगे, और तुम अडिग होकर, सुरक्षित रूप से सत्य का अनुसरण कर सकते हो, और सत्य का अनुसरण करने और उद्धार प्राप्त करने के मार्ग पर दृढ़ रह सकते हो। यदि तुम मसीह-विरोधी को नहीं पहचान सकते, तो यह कहा जा सकता है कि तुम एक बड़े ख़तरे में हो, और तुम्हें मसीह-विरोधी द्वारा धोखा देकर अपने कब्जे में किया जा सकता है और तुम्हें शैतान के प्रभाव में जीवन व्यतीत करना पड़ सकता है। वर्तमान में तुम लोगों के बीच कुछ ऐसे लोग हो सकते हैं जो सत्य का अनुसरण करने वालों को रोकें या ठोकर मारें, और ये उन लोगों के शत्रु हैं। क्या तुम इसे स्वीकार करते हो? कुछ ऐसे लोग हैं जो इस तथ्य का सामना करने की हिम्मत नहीं रखते, न ही वे इसे तथ्य के रूप में स्वीकार करने की हिम्मत रखते हैं। हक़ीक़त में, ये चीज़ें कलीसिया में मौजूद हैं; बात केवल इतनी है कि लोग पहचान नहीं पाते। यदि तुम इस परीक्षा को पास नहीं कर सकते—मसीह-विरोधियों की परीक्षा, तब तुम या तो मसीह-विरोधियों के हाथों धोखा खा चुके हो और उन्हीं के द्वारा नियंत्रित हो या उन्होंने तुम्हें कष्ट दिया है, पीड़ा पहुँचायी है, बाहर धकेला है और प्रताड़ित किया है। अंततः, तुम्हारा यह छोटा-सा तुच्छ जीवन लंबे समय तक नहीं टिकेगा, और मुरझा जाएगा; तुम परमेश्वर में विश्वास नहीं रख पाओगे, और तुम उसे छोड़ दोगे, यह कहते हुए, “परमेश्वर तो धार्मिक भी नहीं है; परमेश्वर कहाँ है? इस दुनिया में कोई धार्मिकता या प्रकाश नहीं है, और परमेश्वर द्वारा मानवजाति का उद्धार जैसी कोई चीज़ नहीं है। हम काम करते हुए और पैसा कमाते हुए भी अपने दिन गुज़ार सकते हैं!” तुम परमेश्वर को नकारते हो और अब विश्वास नहीं करते कि वह मौजूद है; ऐसी कोई भी उम्मीद कि तुम्हारा उद्धार होगा, पूरी तरह से समाप्त हो चुकी है। इसलिए, यदि तुम उस जगह पहुँचना चाहते हो जहाँ पर तुम्हें उद्धार प्राप्त हो सके, तो पहली परीक्षा जो तुम्हें पास करनी होगी वह है शैतान की पहचान करने में सक्षम होना, और तुम्हारे अंदर शैतान के विरुद्ध खड़ा होने, उसे बेनकाब करने और उसे छोड़ देने का साहस भी होना चाहिए। फिर, शैतान कहाँ है? शैतान तुम्हारे बाजू में और तुम्हारे चारों तरफ़ है; हो सकता है कि वह तुम्हारे हृदय के भीतर भी रह रहा हो। यदि तुम शैतान के स्वभाव के अधीन रह रहे हो, तो यह कहा जा सकता है कि तुम शैतान के हो। तुम आध्यात्मिक क्षेत्र के शैतान और दुष्ट आत्माओं को देख या छू नहीं सकते, लेकिन व्यावहारिक जीवन में मौजूद शैतान और दुष्ट आत्माएँ हर जगह हैं। जो भी व्यक्ति सत्य से चिढ़ता है, वह बुरा है, और जो भी अगुआ या कार्यकर्ता सत्य को स्वीकार नहीं करता, वह मसीह-विरोधी या नकली अगुआ है। क्या ऐसे लोग शैतान और जीवित दानव नहीं हैं? हो सकता है कि ये लोग वही हों, जिनकी तुम आराधना करते हो और जिनका सम्मान करते हो; ये वही लोग हो सकते हैं जो तुम्हारी अगुआई कर रहे हैं या वे लोग जिन्हें तुमने लंबे समय से अपने हृदय में सराहा है, जिन पर भरोसा किया है, जिन पर निर्भर रहे हो और जिनकी आशा की है। जबकि वास्तव में, वे तुम्हारे रास्ते में खड़ी बाधाएँ हैं और तुम्हें सत्य का अनुसरण करने और उद्धार पाने से रोक रहे हैं; वे नकली अगुआ और मसीह-विरोधी हैं। वे तुम्हारे जीवन और तुम्हारे मार्ग पर नियंत्रण कर सकते हैं, और वे तुम्हारे उद्धार के अवसर को बर्बाद कर सकते हैं। यदि तुम उन्हें पहचानने और उनकी वास्तविकता को समझने में विफल रहते हो, तो किसी भी क्षण तुम उनके जाल में फँस सकते हो या उनके द्वारा पकड़े और दूर ले जाए जा सकते हो। इस प्रकार, तुम बहुत बड़े ख़तरे में हो। अगर तुम इस खतरे से खुद को मुक्त नहीं कर सकते, तो तुम शैतान के बलि के बकरे हो।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद तीन : सत्य का अनुसरण करने वालों को वे निकाल देते हैं और उन पर आक्रमण करते हैं
अगर परमेश्वर पर विश्वास करते हुए लोग बचाए जाना चाहते हैं, तो मुख्य यह है कि उनके पास परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय है या नहीं, उनके हृदय में परमेश्वर का स्थान है या नहीं, वे परमेश्वर के सामने जीने और उसके साथ सामान्य संबंध बनाए रखने में सक्षम हैं या नहीं। अहम यह है कि लोग सत्य का अभ्यास करने और परमेश्वर की आज्ञाकारिता प्राप्त करने में सक्षम हैं या नहीं। बचाए जाने के लिए ऐसी शर्तें और मार्ग हैं। अगर तुम्हारा हृदय परमेश्वर के सामने जीने में सक्षम नहीं है, अगर तुम परमेश्वर से अक्सर प्रार्थना और संगति नहीं करते, और परमेश्वर के साथ सामान्य संबंध खो देते हो, तो तुम कभी बचाए नहीं जाओगे, क्योंकि तुमने उद्धार का मार्ग अवरुद्ध कर दिया है। अगर तुम्हारा परमेश्वर के साथ कोई संबंध नहीं है, तो तुम मार्ग के अंत पर पहुँच गए हो। अगर तुम्हारे दिल में परमेश्वर नहीं है, तो यह दावा करना बेकार है कि तुम आस्था रखते हो, परमेश्वर में केवल नाममात्र का विश्वास रखना बेकार है। तुम धर्म-सिद्धांत के चाहे जितने शब्द बोलने में सक्षम हो, परमेश्वर में आस्था के लिए तुमने चाहे जितने भी कष्ट सहे हों, या तुम चाहे जितने भी प्रतिभाशाली हो, कोई फर्क नहीं पड़ता; अगर परमेश्वर तुम्हारे दिल में नहीं है, और तुम परमेश्वर का भय नहीं मानते, तो तुम परमेश्वर पर कैसे भी विश्वास रखो, कोई फर्क नहीं पड़ता। परमेश्वर कहेगा, “जा, मुझसे दूर हो जा, कुकर्मी।” तुम्हें एक कुकर्मी के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा। तुम परमेश्वर से असंबद्ध कर दिए जाओगे; वह तुम्हारा प्रभु या तुम्हारा परमेश्वर नहीं होगा। हालाँकि तुम स्वीकार करते हो कि परमेश्वर सभी पर शासन करता है, और स्वीकार करते हो कि परमेश्वर सृष्टिकर्ता है, मगर तुम उसकी आराधना नहीं करते, उसकी संप्रभुता के प्रति समर्पित नहीं होते। तुम शैतान और दानवों का अनुसरण करते हो, केवल शैतान और दानव ही तुम्हारे प्रभु हैं। अगर सभी चीजों में तुम खुद पर भरोसा करते हो, और अपनी ही इच्छा का पालन करते हो, अगर तुम मानते हो कि तुम्हारा भाग्य तुम्हारे अपने हाथों में है, तो तुम खुद में ही विश्वास रखते हो। भले ही तुम परमेश्वर पर विश्वास करने और उसे स्वीकार करने का दावा करते हो, मगर परमेश्वर तुम्हें स्वीकार नहीं करता। तुम्हारा परमेश्वर के साथ कोई संबंध नहीं है, और इसलिए तुम अंततः परमेश्वर द्वारा घृणा और अस्वीकार किए जाने, दंडित किए जाने, और उसके द्वारा निकाल दिए जाने के लिए नियत हो; परमेश्वर तुम जैसे लोगों को नहीं बचाता। परमेश्वर में वास्तव में विश्वास करने वाले वही लोग होते हैं, जो परमेश्वर को उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करते हैं, जो यह स्वीकार करते हैं कि वह सत्य, मार्ग और जीवन है। वे उसके लिए खुद को ईमानदारी से खपाने और एक सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाने में सक्षम होते हैं; वे परमेश्वर के कार्य का अनुभव करते हैं, वे उसके वचनों और सत्य का अभ्यास करते हैं, वे सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर चलते हैं। वे ऐसे लोग होते हैं जो परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं का पालन करते हैं, और जो उसकी इच्छा का अनुसरण करते हैं। जब लोगों की परमेश्वर में ऐसी आस्था होती है, केवल तभी उन्हें बचाया जा सकता है; नहीं है, तो उनकी निंदा की जाएगी। क्या परमेश्वर में विश्वास रखनेवाले लोगों का खयाली पुलाव पकाना स्वीकार्य है? परमेश्वर में अपनी आस्था में, क्या लोग हमेशा अपनी धारणाओं और अस्पष्ट, अमूर्त कल्पनाओं से चिपके रहकर सत्य प्राप्त कर सकते हैं? बिल्कुल नहीं। जब लोग परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, तो उन्हें सत्य को स्वीकार करना चाहिए, उसमें ऐसा विश्वास रखना चाहिए जैसा वह कहे, उन्हें उसके आयोजनों और व्यवस्थाओं का पालन करना चाहिए; केवल तभी वे उद्धार प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा कोई रास्ता नहीं है—तुम कुछ भी करो, तुम्हें खयाली पुलाव नहीं पकाना चाहिए। इस विषय पर संगति करना लोगों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, है न? यह तुम लोगों के लिए एक चेतावनी है।
अब जबकि तुम लोगों ने ये संदेश सुन लिए हैं, तो तुम्हें सत्य समझ जाना चाहिए और इस बारे में स्पष्ट होना चाहिए कि उद्धार में क्या शामिल है। लोग क्या पसंद करते हैं, किस चीज के लिए प्रयास करते हैं, किस चीज के प्रति जुनूनी होते हैं—इनमें से कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है। जो सबसे महत्वपूर्ण है, वह है सत्य स्वीकारना। अंतिम विश्लेषण में, सत्य प्राप्त करने में सक्षम होना सबसे महत्वपूर्ण है, और सही मार्ग वह है जो तुम्हें परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने दे सकता है। अगर तुमने कई वर्षों से परमेश्वर पर विश्वास किया है और हमेशा उन चीजों की खोज पर ध्यान केंद्रित किया है जिनका सत्य से कोई संबंध नहीं, तो तुम्हारी आस्था का सत्य से कोई लेना-देना नहीं है, परमेश्वर से कोई लेना-देना नहीं है। तुम परमेश्वर पर विश्वास करने और उसे स्वीकार करने का दावा कर सकते हो, लेकिन परमेश्वर तुम्हारा प्रभु नहीं है, वह तुम्हारा परमेश्वर नहीं है, तुम यह स्वीकार नहीं करते कि परमेश्वर तुम्हारे भाग्य को नियंत्रित करता है, तुम उस सबके प्रति समर्पित नहीं होते जिसकी परमेश्वर तुम्हारे लिए व्यवस्था करता है, तुम यह तथ्य स्वीकार नहीं करते कि परमेश्वर सत्य है—ऐसी स्थिति में तुम्हारी उद्धार की आशाएँ चूर-चूर हो गई हैं; अगर तुम सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर नहीं चल सकते, तो तुम विनाश के मार्ग पर चलते हो। अगर हर वह चीज, जिसका तुम अनुसरण करते हो, जिस पर ध्यान केंद्रित करते हो, जिसके बारे में प्रार्थना करते हो, और जिसके लिए अपील करते हो, परमेश्वर के वचनों और उसकी अपेक्षाओं पर आधारित है, और अगर तुम्हें अधिकाधिक यह लगता है कि तुम सृष्टिकर्ता का आज्ञापालन और उसकी आराधना करते हो, और महसूस करते हो कि परमेश्वर तुम्हारा प्रभु, तुम्हारा परमेश्वर है, अगर तुम उस सबका पालन करने में अधिकाधिक प्रसन्न होते हो जिसका परमेश्वर तुम्हारे लिए आयोजन और व्यवस्था करता है, और परमेश्वर के साथ तुम्हारा रिश्ता पहले से ज्यादा घनिष्ठ, ज्यादा सामान्य होता है, और अगर परमेश्वर के प्रति तुम्हारा प्रेम और अधिक शुद्ध और सच्चा होता है, तो परमेश्वर के बारे में तुम्हारी शिकायतें और गलतफहमियाँ, और परमेश्वर के प्रति तुम्हारी फालतू इच्छाएँ हमेशा कम होती जाएँगी, और तुम पूरी तरह से परमेश्वर का भय मानने लगोगे और बुराई से दूर हो जाओगे, जिसका अर्थ है कि तुम पहले से ही उद्धार के मार्ग पर कदम रख चुके होगे।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, परमेश्वर का भय मानकर ही इंसान उद्धार के मार्ग पर चल सकता है
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