29. ईमानदार व्यक्ति क्या होता है और परमेश्वर लोगों से ईमानदार होने की अपेक्षा क्यों करता है

बाइबल से उद्धृत परमेश्वर के वचन

“परन्तु तुम्हारी बात ‘हाँ’ की ‘हाँ,’ या ‘नहीं’ की ‘नहीं’ हो; क्योंकि जो कुछ इस से अधिक होता है वह बुराई से होता है” (मत्ती 5:37)

“ये वे ही हैं कि जहाँ कहीं मेम्ना जाता है, वे उसके पीछे हो लेते हैं; ये तो परमेश्वर के निमित्त पहले फल होने के लिये मनुष्यों में से मोल लिए गए हैं। उनके मुँह से कभी झूठ न निकला था, वे निर्दोष हैं” (प्रकाशितवाक्य 14:4-5)

“परन्तु उसमें कोई अपवित्र वस्तु, या घृणित काम करनेवाला, या झूठ का गढ़नेवाला किसी रीति से प्रवेश न करेगा” (प्रकाशितवाक्य 21:27)

“मैं तुम से सच कहता हूँ कि जब तक तुम न फिरो और बालकों के समान न बनो, तुम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने नहीं पाओगे” (मत्ती 18:3)

अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन

तुम लोगों को पता होना चाहिए कि परमेश्वर ईमानदार इंसान को पसंद करता है। मूल बात यह है कि परमेश्वर निष्ठावान है, अतः उसके वचनों पर हमेशा भरोसा किया जा सकता है; इसके अतिरिक्त, उसका कार्य दोषरहित और निर्विवाद है, यही कारण है कि परमेश्वर उन लोगों को पसंद करता है जो उसके साथ पूरी तरह से ईमानदार होते हैं। ईमानदारी का अर्थ है अपना हृदय परमेश्वर को अर्पित करना; हर बात में उसके साथ सच्चाई से पेश आना; हर बात में उसके साथ खुलापन रखना, कभी तथ्यों को न छुपाना; अपने से ऊपर और नीचे वालों को कभी भी धोखा न देना, और मात्र परमेश्वर की चापलूसी करने के लिए चीज़ें न करना। संक्षेप में, ईमानदार होने का अर्थ है अपने कार्यों और शब्दों में शुद्धता रखना, न तो परमेश्वर को और न ही इंसान को धोखा देना। मैं जो कहता हूँ वह बहुत सरल है, किंतु तुम लोगों के लिए दुगुना मुश्किल है। बहुत-से लोग ईमानदारी से बोलने और कार्य करने की बजाय नरक में दंडित होना पसंद करेंगे। इसमें कोई हैरानी की बात नहीं कि जो बेईमान हैं उनके लिए मेरे भंडार में अन्य उपचार भी है। मैं अच्छी तरह से जानता हूँ तुम्हारे लिए ईमानदार इंसान बनना कितना मुश्किल काम है। चूँकि तुम लोग बहुत चतुर हो, अपने तुच्छ पैमाने से लोगों का मूल्यांकन करने में बहुत अच्छे हो, इससे मेरा कार्य और आसान हो जाता है। और चूंकि तुम में से हरेक अपने भेदों को अपने सीने में भींचकर रखता है, तो मैं तुम लोगों को एक-एक करके आपदा में भेज दूँगा ताकि अग्नि तुम्हें सबक सिखा सके, ताकि उसके बाद तुम मेरे वचनों के प्रति पूरी तरह समर्पित हो जाओ। अंततः, मैं तुम लोगों के मुँह से “परमेश्वर एक निष्ठावान परमेश्वर है” शब्द निकलवा लूँगा, तब तुम लोग अपनी छाती पीटोगे और विलाप करोगे, “कपटी है इंसान का हृदय!” उस समय तुम्हारी मनोस्थिति क्या होगी? मुझे लगता है कि तुम उतने खुश नहीं होगे जितने अभी हो। तुम लोग इतने “गहन और गूढ़” तो बिल्कुल भी नहीं होगे जितने कि तुम अब हो। कुछ लोग परमेश्वर की उपस्थिति में नियम-निष्ठ और उचित शैली में व्यवहार करते हैं, वे “शिष्ट व्यवहार” के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, फिर भी आत्मा की उपस्थिति में वे अपने जहरीले दाँत और पँजे दिखाने लगते हैं। क्या तुम लोग ऐसे इंसान को ईमानदार लोगों की श्रेणी में रखोगे? यदि तुम पाखंडी और ऐसे व्यक्ति हो जो “व्यक्तिगत संबंधों” में कुशल है, तो मैं कहता हूँ कि तुम निश्चित रूप से ऐसे व्यक्ति हो जो परमेश्वर को हल्के में लेने का प्रयास करता है। यदि तुम्हारी बातें बहानों और महत्वहीन तर्कों से भरी हैं, तो मैं कहता हूँ कि तुम ऐसे व्यक्ति हो जो सत्य का अभ्यास करने से घृणा करता है। यदि तुम्हारे पास ऐसे बहुत-से गुप्त भेद हैं जिन्हें तुम साझा नहीं करना चाहते, और यदि तुम प्रकाश के मार्ग की खोज करने के लिए दूसरों के सामने अपने राज़ और अपनी कठिनाइयाँ उजागर करने के विरुद्ध हो, तो मैं कहता हूँ कि तुम्हें आसानी से उद्धार प्राप्त नहीं होगा और तुम सरलता से अंधकार से बाहर नहीं निकल पाओगे। यदि सत्य का मार्ग खोजने से तुम्हें प्रसन्नता मिलती है, तो तुम सदैव प्रकाश में रहने वाले व्यक्ति हो। यदि तुम परमेश्वर के घर में सेवाकर्मी बने रहकर बहुत प्रसन्न हो, गुमनाम बनकर कर्मठतापूर्वक और शुद्ध अंतःकरण से काम करते हो, हमेशा देने का भाव रखते हो, लेने का नहीं, तो मैं कहता हूँ कि तुम एक निष्ठावान संत हो, क्योंकि तुम्हें किसी फल की अपेक्षा नहीं है, तुम एक ईमानदार व्यक्ति हो। यदि तुम स्पष्टवादी बनने को तैयार हो, अपना सर्वस्व खपाने को तैयार हो, यदि तुम परमेश्वर के लिए अपना जीवन दे सकते हो और दृढ़ता से अपनी गवाही दे सकते हो, यदि तुम इस स्तर तक ईमानदार हो जहाँ तुम्हें केवल परमेश्वर को संतुष्ट करना आता है, और अपने बारे में विचार नहीं करते हो या अपने लिए कुछ नहीं लेते हो, तो मैं कहता हूँ कि ऐसे लोग प्रकाश में पोषित किए जाते हैं और वे सदा राज्य में रहेंगे। तुम्हें पता होना चाहिए कि क्या तुम्हारे भीतर सच्चा विश्वास और सच्ची वफादारी है, क्या परमेश्वर के लिए कष्ट उठाने का तुम्हारा कोई इतिहास है, और क्या तुमने परमेश्वर के प्रति पूरी तरह से समर्पण किया है। यदि तुममें इन बातों का अभाव है, तो तुम्हारे भीतर विद्रोहीपन और कपट अभी शेष हैं। चूँकि तुम्हारा हृदय ईमानदार नहीं है, इसलिए तुमने कभी भी परमेश्वर से सकारात्मक स्वीकृति प्राप्त नहीं की है और प्रकाश में जीवन नहीं बिताया है। अंत में किसी व्यक्ति की नियति कैसे काम करती है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि क्या उसके अंदर एक ईमानदार और भावुक हृदय है, और क्या उसके पास एक शुद्ध आत्मा है। यदि तुम ऐसे इंसान हो जो बहुत बेईमान है, जिसका हृदय दुर्भावना से भरा है, जिसकी आत्मा अशुद्ध है, तो तुम अंत में निश्चित रूप से ऐसी जगह जाओगे जहाँ इंसान को दंड दिया जाता है, जैसाकि तुम्हारी नियति में लिखा है। यदि तुम बहुत ईमानदार होने का दावा करते हो, मगर तुमने कभी सत्य के अनुसार कार्य नहीं किया है या सत्य का एक शब्द भी नहीं बोला है, तो क्या तुम तब भी परमेश्वर से पुरस्कृत किए जाने की प्रतीक्षा कर रहे हो? क्या तुम तब भी परमेश्वर से आशा करते हो कि वह तुम्हें अपनी आँख का तारा समझे? क्या यह सोचने का बेहूदा तरीका नहीं है? तुम हर बात में परमेश्वर को धोखा देते हो; तो परमेश्वर का घर तुम जैसे इंसान को, जिसके हाथ अशुद्ध हैं, जगह कैसे दे सकता है?

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तीन चेतावनियाँ

मैं उन लोगों में प्रसन्नता अनुभव करता हूँ जो दूसरों पर शक नहीं करते, और मैं उन लोगों को पसंद करता हूँ जो सच को तत्परता से स्वीकार कर लेते हैं; इन दो प्रकार के लोगों की मैं बहुत परवाह करता हूँ, क्योंकि मेरी नज़र में ये ईमानदार लोग हैं। यदि तुम धोखेबाज हो, तो तुम सभी लोगों और मामलों के प्रति सतर्क और शंकित रहोगे, और इस प्रकार मुझमें तुम्हारा विश्वास संदेह की नींव पर निर्मित होगा। मैं इस तरह के विश्वास को कभी स्वीकार नहीं कर सकता। सच्चे विश्वास के अभाव में तुम सच्चे प्यार से और भी अधिक वंचित हो। और यदि तुम परमेश्वर पर इच्छानुसार संदेह करने और उसके बारे में अनुमान लगाने के आदी हो, तो तुम यकीनन सभी लोगों में सबसे अधिक धोखेबाज हो। तुम अनुमान लगाते हो कि क्या परमेश्वर मनुष्य जैसा हो सकता है : अक्षम्य रूप से पापी, क्षुद्र चरित्र का, निष्पक्षता और विवेक से विहीन, न्याय की भावना से रहित, शातिर चालबाज़ियों में प्रवृत्त, विश्वासघाती और चालाक, बुराई और अँधेरे से प्रसन्न रहने वाला, आदि-आदि। क्या लोगों के ऐसे विचारों का कारण यह नहीं है कि उन्हें परमेश्वर का थोड़ा-सा भी ज्ञान नहीं है? ऐसा विश्वास पाप से कम नहीं है! कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो मानते हैं कि जो लोग मुझे खुश करते हैं, वे बिल्कुल ऐसे लोग हैं जो चापलूसी और खुशामद करते हैं, और जिनमें ऐसे हुनर नहीं होंगे, वे परमेश्वर के घर में अवांछनीय होंगे और वे वहाँ अपना स्थान खो देंगे। क्या तुम लोगों ने इतने बरसों में बस यही ज्ञान हासिल किया है? क्या तुम लोगों ने यही प्राप्त किया है? और मेरे बारे में तुम लोगों का ज्ञान इन गलतफहमियों पर ही नहीं रुकता; परमेश्वर के आत्मा के खिलाफ तुम्हारी निंदा और स्वर्ग की बदनामी इससे भी बुरी बात है। इसीलिए मैं कहता हूँ कि ऐसा विश्वास तुम लोगों को केवल मुझसे दूर भटकाएगा और मेरे खिलाफ बड़े विरोध में खड़ा कर देगा।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पृथ्वी के परमेश्वर को कैसे जानें

बहुत लोग हैं, जो बिल्कुल नहीं समझते कि ईमानदार व्यक्ति वास्तव में क्या होता है। कुछ लोग कहते हैं कि ईमानदार लोग वे हैं जो निष्कपट और स्पष्टवादी होते हैं, जो जहाँ भी जाते हैं धौंस देकर निकाल दिए जाते हैं, या जो बोलने और काम करने में दूसरे लोगों की तुलना में हमेशा धीमे होते हैं। कुछ मूर्ख और अज्ञानी लोग भी, जो ऐसी मूर्खता करते हैं कि दूसरे उन्हें हेय दृष्टि से देखते हैं, खुद को ईमानदार व्यक्ति बताते हैं। इसी तरह समाज के निचले तबके के वे तमाम अशिक्षित लोग भी, जो खुद को हीन समझते हैं, कहते हैं कि वे ईमानदार लोग हैं। उनकी गलती कहाँ है? वे नहीं जानते कि ईमानदार व्यक्ति क्या होता है। उनकी गलतफहमी का स्रोत क्या है? इसका मुख्य कारण यह है कि वे सत्य नहीं समझते। उनका मानना है कि परमेश्वर जिन “ईमानदार लोगों” की बात करता है, वे मूर्ख और बुद्धिहीन हैं, अशिक्षित हैं, बोलचाल में मंद हैं, दमित और उत्पीड़ित हैं, और आसानी से ठगे और छले जाते हैं। निहितार्थ यह है कि परमेश्वर के उद्धार के पात्र समाज के सबसे निचले पायदान के वे बुद्धिहीन लोग हैं, जिन्हें अक्सर दूसरों के द्वारा इधर-उधर धकेला जाता है। इन दीन-दरिद्रों को नहीं, तो परमेश्वर किसे बचाएगा? क्या वे यही नहीं मानते? क्या वास्तव में यही वे लोग हैं, जिन्हें परमेश्वर बचाता है? यह परमेश्वर की इच्छा की गलत व्याख्या है। जिन लोगों को परमेश्वर बचाता है, वे वो हैं जो सत्य से प्रेम करते हैं, जिनमें समझने की काबिलियत और क्षमता है, वे सभी ऐसे लोग हैं जिनमें जमीर और विवेक है, जो परमेश्वर के आदेश पूरे करने और अपना कर्तव्य अच्छी निभाने में सक्षम हैं। ये वे लोग हैं, जो सत्य स्वीकारने और अपने भ्रष्ट स्वभाव त्यागने में सक्षम हैं, और ये वे लोग हैं जो वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करते हैं, परमेश्वर का आज्ञापालन करते हैं और परमेश्वर की आराधना करते हैं। हालाँकि इनमें से ज्यादातर लोग समाज के निचले स्तर से हैं, मजदूरों और किसानों के परिवारों से, लेकिन वे निश्चित रूप से भ्रमित व्यक्ति, अनाड़ी या निकम्मे नहीं हैं। इसके विपरीत, वे चतुर लोग हैं जो सत्य स्वीकारने, उसका अभ्यास करने और उसके प्रति समर्पित होने में सक्षम हैं। वे सब धार्मिक लोग हैं, जो परमेश्वर का अनुसरण करने और सत्य और जीवन प्राप्त करने के लिए सांसारिक वैभव और धन-दौलत त्याग देते हैं—वे सबसे बुद्धिमान लोग हैं। ये सब ईमानदार लोग हैं, जो वास्तव में परमेश्वर में विश्वास करते हैं और वास्तव में उसके लिए खुद को खपाते हैं। वे परमेश्वर की स्वीकृति और आशीष प्राप्त कर सकते हैं और उन्हें उसके लोगों और उसके मंदिर के स्तंभों में पूर्ण किया जा सकता है। वे सोने, चांदी और बहुमूल्य रत्नों के लोग हैं। वे तो भ्रमित, मूर्ख, बेतुके और निकम्मे लोग हैं, जिन्हें बाहर निकाला जाएगा। गैर-विश्वासी और बेतुके लोग परमेश्वर के कार्य और प्रबंधन-योजना को किस रूप में देखते हैं? डंपिंग ग्राउंड के रूप में, है न? ये लोग न सिर्फ कम क्षमता के होते हैं, बल्कि बेतुके भी होते हैं। वे चाहे परमेश्वर के कितने भी वचन पढ़ लें, सत्य नहीं समझ पाते, और चाहे कितने भी उपदेश सुन लें, वास्तविकता में प्रवेश करने में असमर्थ रहते हैं—अगर वे इतने मूर्ख हैं, तो क्या फिर भी उन्हें बचाया जा सकता है? क्या परमेश्वर इस तरह का व्यक्ति चाहता है? चाहे वे जितने भी वर्षों से विश्वासी हों, वे फिर भी कोई सत्य नहीं समझते, वे फिर भी बकवास करते हैं, और फिर भी वे खुद को ईमानदार मानते हैं—क्या उन्हें कोई शर्म नहीं है? ऐसे लोग सत्य नहीं समझते। वे हमेशा परमेश्वर की इच्छा की गलत व्याख्या करते हैं, और फिर भी जहाँ भी वे जाते हैं, अपनी गलत व्याख्याएँ दोहराते हैं, उन्हें सत्य के रूप में प्रचारित करते हैं, लोगों से कहते हैं, “थोड़ा धमकाया जाना अच्छा है, लोगों को थोड़ा नुकसान उठाना चाहिए, उन्हें थोड़ा मूर्ख होना चाहिए—ये परमेश्वर के उद्धार के पात्र हैं और ये वे लोग हैं जिन्हें परमेश्वर बचाएगा।” जो लोग ऐसी बातें कहते हैं, वे घिनौने हैं; इससे परमेश्वर का बहुत अपमान होता है! यह कितना घिनौना है! परमेश्वर के राज्य के स्तंभ और वे विजेता जिन्हें परमेश्वर बचाता है, वे सब ऐसे लोग होते हैं, जो सत्य समझते हैं और बुद्धिमान हैं। ये वे लोग हैं, जिनका स्वर्गिक राज्य में हिस्सा होगा। जो मूर्ख और अज्ञानी हैं, बेशर्म और नासमझ हैं, जिन्हें सत्य की रत्ती भर भी समझ नहीं, जो अनाड़ी और मूर्ख हैं—क्या वे सभी निकम्मे नहीं हैं? ऐसे लोगों का स्वर्गिक राज्य में हिस्सा कैसे हो सकता है? परमेश्वर जिन ईमानदार लोगों के बारे में बात करता है, वे वो हैं जो सत्य समझने के बाद उसे अभ्यास में ला सकते हैं, जो बुद्धिमान और चतुर हैं, जो परमेश्वर के सामने सरलता से खुल जाते हैं, और जो सिद्धांत के अनुसार कार्य करते हैं और परमेश्वर का पूरी तरह से आज्ञापालन करते हैं। इन सभी लोगों के पास परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय होता है, वे सिद्धांतों के अनुसार काम करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, और वे सभी परमेश्वर के प्रति पूर्ण आज्ञाकारिता का अनुसरण करते हैं और अपने हृदय में परमेश्वर से प्रेम करते हैं। सिर्फ वे ही वास्तव में ईमानदार लोग हैं। अगर कोई यह भी नहीं जानता कि ईमानदार होने का क्या अर्थ है, अगर वह यह नहीं देख सकता कि ईमानदार लोगों का सार परमेश्वर के प्रति पूर्ण आज्ञाकारिता, परमेश्वर का भय मानना और बुराई से दूर रहना है, या यह कि ईमानदार लोग इसलिए ईमानदार होते हैं क्योंकि वे सत्य से प्रेम करते हैं, क्योंकि वे परमेश्वर से प्रेम करते हैं, क्योंकि वे सत्य का अभ्यास करते हैं—तो इस प्रकार का व्यक्ति बहुत मूर्ख है और उसमें वास्तव में विवेक की कमी है। ईमानदार लोग वैसे सरल, भ्रमित, अज्ञानी और मूर्ख व्यक्ति बिल्कुल नहीं होते, जैसी लोग कल्पना करते हैं; वे सामान्य मानवता वाले ऐसे लोग होते हैं, जिनमें जमीर और विवेक होता है। ईमानदार लोगों के बारे में चतुराई भरी बात यह है कि वे परमेश्वर के वचन सुनने और ईमानदार होने में सक्षम होते हैं, और यही कारण है कि वे परमेश्वर का आशीष पाते हैं।

लोगों के ईमानदार होने के परमेश्वर के अनुरोध से ज्यादा महत्वपूर्ण कुछ नहीं है—वह कहता है कि लोग उसके सामने रहें, उसकी जाँच स्वीकारें और प्रकाश में रहें। सिर्फ ईमानदार लोग ही मानवजाति के सच्चे सदस्य हैं। जो लोग ईमानदार नहीं हैं, वे जानवर हैं, वे इंसानों के भेष में घूमने वाले जानवर हैं, वे इंसान नहीं हैं। ईमानदार व्यक्ति बनने के लिए तुम्हें परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार व्यवहार करना चाहिए; तुम्हें न्याय, ताड़ना, निपटारे और काट-छाँट से गुजरना चाहिए। जब तुम्हारा भ्रष्ट स्वभाव शुद्ध हो जाता है और तुम सत्य का अभ्यास करने और परमेश्वर के वचनों के अनुसार जीने में सक्षम हो जाते हो, तभी तुम एक ईमानदार व्यक्ति बनते हो। जो लोग अज्ञानी, मूर्ख और सरल हैं, वे बिल्कुल ईमानदार लोग नहीं होते। ईमानदार होने की माँग करके परमेश्वर लोगों से सामान्य मानवता रखने, अपना कपट और छद्मवेश त्यागने, दूसरों से झूठ न बोलने या चालाकी न करने, वफादारी के साथ अपना कर्तव्य निभाने, और परमेश्वर से वास्तव में प्रेम करने और उसकी आज्ञा मानने में सक्षम होने के लिए कहता है। सिर्फ यही लोग परमेश्वर के राज्य के लोग हैं। परमेश्वर माँग करता है कि लोग मसीह के अच्छे सैनिक बनें। मसीह के अच्छे सैनिक कौन हैं? उन्हें सत्य की वास्तविकता से लैस होना चाहिए और मसीह के साथ एक-चित्त और एक-मन होना चाहिए। हर समय और स्थान पर उन्हें परमेश्वर का गुणगान करने और उसकी गवाही देने और शैतान के साथ युद्ध करने के लिए सत्य का उपयोग करने में सक्षम होना चाहिए। सभी चीजों में उन्हें परमेश्वर के पक्ष में खड़ा होना चाहिए, गवाही देनी चाहिए और सत्य की वास्तविकता को जीना चाहिए। उन्हें शैतान को अपमानित करने और परमेश्वर के लिए अद्भुत जीत हासिल करने में सक्षम होना चाहिए। मसीह का अच्छा सैनिक होने का यही अर्थ है। मसीह के अच्छे सैनिक विजेता हैं, ये वे हैं जो शैतान पर विजय पाते हैं। लोगों से ईमानदार होने और कपटी न होने की अपेक्षा करके परमेश्वर उन्हें मूर्ख बनने के लिए नहीं कहता, बल्कि यह कहता है कि वे खुद को अपने कपटी स्वभावों से छुटकारा दिलाएँ, उसके प्रति समर्पण प्राप्त करें और उसके लिए महिमा लाएँ। यही है, जो सत्य का अभ्यास करके हासिल किया जा सकता है।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, छह प्रकार के भ्रष्ट स्वभावों का ज्ञान ही सच्चा आत्म-ज्ञान है

ईमानदार इंसान वह होता है जो सत्य को स्वीकार कर सकता है—न कि एक दयनीय, नाकारा, बेवकूफ और बेईमान व्यक्ति। तुम लोगों को ये चीजें जानना आना चाहिए, है न? मैं अक्सर कुछ लोगों को यह कहते हुए सुनता हूँ : “मैं कभी झूठ नहीं बोलता—मुझसे ही लोग झूठ बोलते हैं। वहाँ बाहर हमेशा मुझे धकियाया जाता है। परमेश्वर ने कहा कि वह जरूरतमंद लोगों को गोबर में से ऊपर उठाता है, और मैं उन्हीं लोगों में से एक हूँ। यह परमेश्वर का अनुग्रह है। परमेश्वर हम जैसे लोगों पर तरस खाता है, निष्कपट लोग जिनका समाज स्वागत नहीं करता। यह सचमुच परमेश्वर की करुणा है!” परमेश्वर की इस बात का कि वह जरूरतमंद लोगों को गोबर में से ऊपर उठाता है, जरूर एक व्यवहारिक पक्ष भी है। हालाँकि तुम उसे पहचान सकते हो, मगर इससे यह साबित नहीं होता कि तुम ईमानदार हो। असल में, कुछ लोग निरे कमअक्ल होते हैं, बेवकूफ होते हैं; वे बिना किसी कौशल के मूर्ख होते हैं, कम काबिलियत वाले, जिन्हें सत्य की कोई समझ नहीं है। ऐसे व्यक्ति का परमेश्वर द्वारा बताये गए ईमानदार लोगों से कोई संबंध नहीं है। मामला यही है कि परमेश्वर जरूरतमंद लोगों को गोबर में से ऊपर उठाता है, लेकिन बेवकूफ और मूर्ख लोग ऊपर नहीं उठाए जाते। तुम्हारी काबिलियत सहज ही बहुत कम है, तुम बेवकूफ हो, नाकारा हो, और हालाँकि तुम एक गरीब परिवार में पैदा हुए थे, और तुम समाज के निचले तबके के सदस्य हो, फिर भी तुम परमेश्वर के उद्धार का लक्ष्य नहीं हो। सिर्फ इसलिए कि तुमने बहुत कष्ट सहे हैं और समाज में भेदभाव झेले हैं, सिर्फ इसलिए कि सभी लोगों ने तुम्हें धकिया कर धोखा दिया है, यह मत सोचो कि इससे तुम ईमानदार बन गए हो। अगर तुम ऐसा सोचते हो, तो तो बड़ी गलतफहमी में हो। क्या तुम्हें इस बारे में कुछ गलतफहमियाँ या गलत संकल्पनाएँ हैं कि ईमानदार व्यक्ति कौन है? क्या इस संगति से तुम सबको थोड़ी स्पष्टता मिली है? ईमानदार व्यक्ति होना वैसा नहीं है जैसा लोग सोचते हैं; यह सीधी बात करनेवाला नहीं होता, जो गोल-मोल बातें करने से दूर रहता है। हो सकता है कोई व्यक्ति स्वाभाविक रूप से सीधा और सरल हो, मगर इसका यह अर्थ नहीं है कि वह चालबाजी या धोखेबाजी नहीं करता। सभी भ्रष्ट लोगों का स्वभाव भ्रष्ट होता है, जोकि कपटी और धोखेबाज होता है। जब लोग इस दुनिया में शैतान के प्रभाव में जीते हैं, उसकी ताकत से शासित और नियंत्रित होते हैं, तो उनके लिए ईमानदार होना नामुमकिन हो जाता है। वे सिर्फ और ज्यादा धोखेबाज बन सकते हैं।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, एक ईमानदार व्यक्ति होने का सबसे बुनियादी अभ्यास

एक ईमानदार व्यक्ति की अभिव्यंजनाएँ क्या हैं? सबसे पहले, परमेश्वर के वचनों के बारे में कोई संदेह नहीं होना। यह ईमानदार व्यक्ति की अभिव्यंजनाओं में से एक है। इसके अलावा, सबसे महत्वपूर्ण अभिव्यंजना है सभी मामलों में सत्य की खोज और उसका अभ्यास करना—यह सबसे महत्वपूर्ण है। तुम कहते हो कि तुम ईमानदार हो, लेकिन तुम हमेशा परमेश्वर के वचनों को अपने मस्तिष्क के कोने में धकेल देते हो और वही करते हो जो तुम चाहते हो। क्या यह एक ईमानदार व्यक्ति की अभिव्यंजना है? तुम कहते हो, “भले ही मेरी क्षमता कम है, लेकिन मेरे पास एक ईमानदार दिल है।” फिर भी, जब तुम्हें कोई कर्तव्य मिलता है, तो तुम इस बात से डरते हो कि अगर तुमने इसे अच्छी तरह से नहीं किया तो तुम्हें पीड़ा सहनी और इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी, इसलिये तुम अपने कर्तव्य से बचने के लिये बहाने बनाते हो या फिर सुझाते कि इसे कोई और करे। क्या यह एक ईमानदार व्यक्ति की अभिव्यंजना है? स्पष्ट रूप से, नहीं है। तो फिर, एक ईमानदार व्यक्ति को कैसे व्यवहार करना चाहिए? उसे परमेश्वर की व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करना चाहिए, जो कर्तव्य उसे निभाना है उसके प्रति निष्ठावान होना चाहिए और परमेश्वर की इच्छा को संतुष्ट करने का प्रयास करना चाहिए। यह कई तरीकों से व्यक्त होता है। एक तरीका है अपने कर्तव्य को ईमानदार हृदय के साथ स्वीकार करना, अपने दैहिक हितों के बारे में न सोचना, और इसके प्रति अधूरे मन का न होना या अपने लाभ के लिये जाल न बिछाना। ये ईमानदारी की अभिव्यंजनाएँ हैं। दूसरा है अपना कर्तव्य अच्छे से निभाने के लिए अपना तन-मन झोंक देना, चीजों को ठीक से करना, और परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए अपने कर्तव्य में अपना हृदय और प्रेम लगा देना। अपना कर्तव्य निभाते हुए एक ईमानदार व्यक्ति की ये अभिव्यंजनाएँ होनी चाहिए। अगर तुम वह नहीं करते जो तुम जानते और समझते हो, अगर तुम अपने प्रयास का 50-60 प्रतिशत ही देते हो, तो तुम इसमें अपना पूरा दिल और अपनी सारी शक्ति नहीं लगा रहे हो। बल्कि तुम धूर्त और काहिल हो। क्या इस तरह से अपना कर्तव्य निभाने वाले लोग ईमानदार होते हैं? बिल्कुल नहीं। परमेश्वर के पास ऐसे धूर्त और धोखेबाज लोगों का कोई उपयोग नहीं है; उन्हें बाहर कर देना चाहिए। परमेश्वर कर्तव्य निभाने के लिए सिर्फ ईमानदार लोगों का उपयोग करता है। यहाँ तक कि निष्ठावान सेवाकर्ता भी ईमानदार होने चाहिए। जो लोग हमेशा अनमने और धूर्त होते हैं और ढिलाई के तरीके तलाशते रहते हैं—वे सभी लोग धोखेबाज हैं, वे सभी राक्षस हैं। उनमें से कोई भी वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास नहीं करता, और वे सभी बाहर निकाल दिए जाएँगे। कुछ लोग सोचते हैं, “ईमानदार व्यक्ति होने का मतलब बस सच बोलना और झूठ न बोलना है। ईमानदार व्यक्ति बनना तो वास्तव में आसान है।” तुम इस भावना के बारे में क्या सोचते हो? क्या ईमानदार व्यक्ति होने का दायरा इतना सीमित है? बिल्कुल नहीं। तुम्हें अपना हृदय प्रकट करना होगा और इसे परमेश्वर को सौंपना होगा, यही वह रवैया है जो एक ईमानदार व्यक्ति में होना चाहिए। इसलिए एक ईमानदार हृदय अनमोल है। इसका तात्पर्य क्या है? इसका तात्पर्य है कि एक ईमानदार हृदय तुम्हारे व्यवहार को नियंत्रित कर सकता है और तुम्हारी मनोदशा बदल सकता है। यह तुम्हें सही विकल्प चुनने, परमेश्वर के प्रति समर्पण करने और उसकी स्वीकृति प्राप्त करने के लिए प्रेरित कर सकता है। ऐसा हृदय सचमुच अनमोल है। यदि तुम्हारे पास इस तरह का ईमानदार हृदय है, तो तुम्हें इसी स्थिति में रहना चाहिए, तुम्हें इसी तरह व्यवहार करना चाहिए, और इसी तरह तुम्हें खुद को समर्पित करना चाहिए।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन

परमेश्वर लोगों से ईमानदार होने की अपेक्षा क्यों करता है? क्या इसका उद्देश्य लोगों को सरलता से समझना है? बेशक नहीं। परमेश्वर लोगों को ईमानदार बनने को इसलिए कहता है क्योंकि वह ईमानदार लोगों से प्रेम करता है और उन्हें आशीष देता है। ईमानदार इंसान होने का अर्थ है अंतरात्मा और विवेक युक्त व्यक्ति होना। इसका अर्थ है भरोसेमंद होना, ऐसा व्यक्ति जिससे परमेश्वर प्रेम करता है, और जो सत्य का अभ्यास और परमेश्वर से प्रेम कर सके। ईमानदार इंसान होना सामान्य मानवता होने और सच्चे मनुष्य जैसा जीवन जीने की सबसे मूल अभिव्यक्ति है। अगर कोई व्यक्ति कभी भी ईमानदार नहीं रहा या उसने ईमानदार बनने की नहीं सोची, तो फिर उसके लिए सत्य हासिल करना तो बहुत दूर रहा, वह सत्य को समझ भी नहीं सकता है। अगर तुम मुझ पर विश्वास नहीं करते, तो जाओ और खुद परख लो या इसका खुद अनुभव कर लो। केवल ईमानदार बनकर ही तुम्हारे दिल के द्वार परमेश्वर के लिए खुल पाएँगे, तुम सत्य स्वीकार कर पाओगे, सत्य तुम्हारा जीवन बन सकेगा और तुम सत्य को समझ और हासिल कर सकोगे। अगर तुम्हारे दिल के दरवाजे हमेशा बंद रहते हैं, अगर तुम खुलकर नहीं बोलते हो या अपने दिल की बात किसी को नहीं बताते, इस कदर कि कोई भी तुम्हें समझ नहीं सकता तो फिर तुम बड़े ही घुन्ने हो और सबसे धोखेबाज लोगों में शामिल हो। अगर तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो लेकिन खुद को परमेश्वर के सामने शुद्ध मन से नहीं खोल सकते, अगर तुम परमेश्वर से झूठ बोल सकते हो या उसे धोखा देने के लिए बढ़ा-चढ़ाकर बात कर सकते हो, अगर तुम परमेश्वर के सामने अपना दिल खोलने में असमर्थ हो, और अब भी घिसी-पिटी बातें करके अपनी मंशा छिपा सकते हो, तो फिर तुम अपना ही नुकसान कर रहे होगे और परमेश्वर तुम्हारी उपेक्षा करेगा और तुम पर कार्य नहीं करेगा। तुम न कोई सत्य समझ पाओगे, न कोई सत्य हासिल कर सकोगे। क्या तुम लोग अब सत्य का अनुसरण करने और इसे हासिल करने का महत्व समझ पा रहे हो? सत्य का अनुसरण करने के लिए तुम्हें पहला काम क्या करना चाहिए? तुम्हें ईमानदार इंसान बनना चाहिए। अगर लोग ईमानदार होने की कोशिश करें तभी वे जान सकते हैं कि वे कितनी बुरी तरह से भ्रष्ट हैं, उनमें वास्तव में इंसानियत बची है या नहीं, और क्या वे अपनी थाह ले सकते हैं कि नहीं या अपनी कमियाँ देख सकते हैं कि नहीं। ईमानदारी पर अमल करने पर ही वे जान सकते हैं कि वे कितने झूठ बोलते हैं और कपट और बे‌ईमानी उनके अंदर कितनी गहराई में छिपे हैं। ईमानदारी पर अमल करने का अनुभव होने पर ही वे धीरे-धीरे अपनी भ्रष्टता की सच्चाई को जान सकते है और अपने प्रकृति-सार को पहचान सकते हैं और तभी उनका भ्रष्ट स्वभाव निरंतर शुद्ध हो सकेगा। अपने भ्रष्ट स्वभाव की निरंतर शुद्धि के दौरान ही लोग सत्य पा सकते हैं। इन वचनों का अनुभव करने के लिए समय लो। परमेश्वर उन लोगों को सिद्ध नहीं बनाता है जो धोखेबाज हैं। अगर तुम लोगों का हृदय ईमानदार नहीं है, अगर तुम ईमानदार व्यक्ति नहीं हो, तो तुम परमेश्वर द्वारा प्राप्त नहीं किए जाओगे। इसी तरह, तुम कभी भी सत्य को प्राप्त नहीं कर पाओगे, और परमेश्वर को पाने में भी असमर्थ रहोगे। परमेश्वर को न पाने का क्या अर्थ है? अगर तुम परमेश्वर को प्राप्त नहीं करते हो और तुमने सत्य को नहीं समझा है, तो तुम परमेश्वर को नहीं जानोगे और तुम्हारे पास परमेश्वर के अनुकूल होने का कोई रास्ता नहीं होगा, ऐसा हुआ तो तुम परमेश्वर के शत्रु हो। अगर तुम परमेश्वर से असंगत हो, तो परमेश्वर तुम्हारा परमेश्वर नहीं है; अगर परमेश्वर तुम्हारा परमेश्वर नहीं है, तो तुम्हें बचाया नहीं जा सकता। अगर तुम उद्धार प्राप्त करने की कोशिश नहीं करते, तो तुम परमेश्वर में विश्वास क्यों करते हो? अगर तुम उद्धार प्राप्त नहीं कर सकते, तो तुम हमेशा परमेश्वर के कट्टर शत्रु बनकर रहोगे और तुम्हारा परिणाम तय हो चुका होगा। इस प्रकार, अगर लोग चाहते हैं कि उन्हें बचाया जाए, तो उन्हें ईमानदार बनना शुरू करना होगा। अंत में जिन्हें परमेश्वर प्राप्त कर लेता है, उन पर एक संकेत चिह्न लगाया जाता है। क्या तुम लोग जानते हो कि वह क्या है? बाइबल में, प्रकाशित-वाक्य में लिखा है : “उनके मुँह से कभी झूठ न निकला था, वे निर्दोष हैं” (प्रकाशितवाक्य 14:5)। कौन हैं “वे”? ये वे लोग हैं, जिन्हें परमेश्वर द्वारा बचाया, पूर्ण किया और प्राप्त किया जाता है। परमेश्वर उनका वर्णन कैसे करता है? उनके आचरण की विशेषताएँ और अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? उन पर कोई दोष नहीं है। वे झूठ नहीं बोलते।‌ तुम सब शायद समझ-बूझ सकते हो कि झूठ न बोलने का क्या अर्थ है : इसका अर्थ ईमानदार होना है। “निर्दोष” का क्या मतलब है? इसका मतलब है कोई बुराई न करना। और कोई बुराई न करना किस नींव पर निर्मित है? बिना किसी संदेह के, यह परमेश्वर का भय मानने की नींव पर निर्मित है। अतः निर्दोष होने का अर्थ है परमेश्वर का भय मानना और बुराई से दूर रहना। निर्दोष व्यक्ति को परमेश्वर कैसे परिभाषित करता है? परमेश्वर की दृष्टि में केवल वे ही पूर्ण हैं, जो परमेश्वर का भय मानते हैं और बुराई से दूर रहते हैं; इस प्रकार, निर्दोष लोग वे हैं जो परमेश्वर का भय मानते हैं और बुराई से दूर रहते हैं, और केवल पूर्ण लोग ही निर्दोष हैं। यह बिल्कुल सही है। अगर कोई रोज झूठ बोलता है, तो क्या यह एक दोष नहीं है? अगर वह अपनी ही मर्जी के अनुसार बोलता और काम करता है तो क्या यह दोष नहीं है? अगर वह कार्य करते हुए हमेशा सम्मान पाना चाहता है, हमेशा परमेश्वर से पुरस्कार माँगता है तो क्या यह दोष नहीं है? अगर उसने कभी भी परमेश्वर का उत्कर्ष नहीं किया, हमेशा अपनी ही गवाही देता है, तो क्या यह दोष नहीं है? अगर वह अपना कर्तव्य लापरवाही से निभाता है, अवसरवादी ढंग से काम करता है, बुरे इरादे पालता है और सुस्त पड़ा रहता है, तो क्या यह दोष नहीं है? भ्रष्ट स्वभाव के ये सारे के सारे लक्षण दोष हैं। बात बस इतनी है कि सत्य को समझने से पहले लोग इसे जानते नहीं हैं। अब तुम सभी लोग जानते हो कि ये सारे भ्रष्ट लक्षण दोष और गंदगी हैं; जब तुम सत्य को थोड़ा-सा समझ लेते हो, तभी तुममें इस प्रकार का विवेक आ सकता है। जो कुछ भी भ्रष्ट लक्षणों से संबंधित है, वह सब झूठ से जुड़ा है; बाइबल के ये शब्द, “कोई झूठ नहीं मिला,” यह चिंतन करने के लिए महत्वपूर्ण तत्व हैं कि तुममें दोष हैं या नहीं। इसलिए किसी व्यक्ति ने अपने जीवन में प्रगति का अनुभव किया है या नहीं, यह आँकने का एक और संकेतक यह है : तुम ईमानदार व्यक्ति बनने में प्रवेश कर चुके हो या नहीं, तुम जो कहते हो उसमें कितने झूठ पाए जा सकते हैं, और क्या तुम्हारे झूठ धीरे-धीरे कम हो रहे हैं या पहले जितने ही हैं। अगर तुम्हारे झूठ, जिनमें तुम्हारे भ्रामक और फरेबी शब्द भी शामिल हैं, धीरे-धीरे घट रहे हैं तो यह साबित करता है कि तुमने वास्तविकता में प्रवेश करना शुरू कर दिया है, और तुम्हारा जीवन प्रगति कर रहा है। क्या यह चीजों को देखने का व्यावहारिक तरीका नहीं है? (बिल्कुल है।) अगर तुम्हें लगता है कि तुम पहले ही प्रगति का अनुभव कर चुके हो, लेकिन तुम्हारे झूठ बिल्कुल भी कम नहीं हुए हैं और तुम मूल रूप से किसी अविश्वासी जैसे ही हो, तो क्या यह सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने का सामान्य लक्षण है? (नहीं।) जब कोई व्यक्ति सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर लेता है तो वह झूठ बहुत ही कम बोलेगा; वह मूल रूप से ईमानदार इंसान होगा। अगर तुम बहुत ज्यादा झूठ बोलते हो और तुम्हारे शब्दों में बहुत मिलावट होती है, तो इससे साबित हो जाता है कि तुम बिल्कुल नहीं बदले हो और तुम अभी भी एक ईमानदार इंसान नहीं हो। अगर तुम ईमानदार नहीं हो, तो फिर तुम्हारे पास जीवन प्रवेश भी नहीं होगा, फिर तुम कैसी प्रगति का अनुभव कर सकोगे? तुम्हारा भ्रष्ट स्वभाव अब भी मजबूती से कायम है, और तुम अविश्वासी और दुष्ट हो। ईमानदार होना यह आँकने का संकेतक है कि किसी व्यक्ति ने अपने जीवन में प्रगति का अनुभव किया है या नहीं; लोगों को पता होना चाहिए कि कैसे इन चीजों को अपने पर परखा जाए और अपनी थाह ली जाए।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, जीवन संवृद्धि के छह संकेतक

केवल ईमानदार लोग ही सत्य का अभ्यास करने में डटे रह सकते हैं और सिद्धांत के साथ कर्म करने में सफल हो सकते हैं, और मानक स्तर के अनुसार कर्तव्यों को निभा सकते हैं। सिद्धांत पर चलकर कर्म करने वाले लोग अच्छी मन:स्थिति में होने पर अपने कर्तव्यों को ध्यान से निभाते हैं; वे सतही ढंग से कार्य नहीं करते, वे अहंकारी नहीं होते और दूसरे उनके बारे में ऊंचा सोचें इसके लिए दिखावा नहीं करते। बुरी मन:स्थिति में होने पर भी वे अपने रोज़मर्रा के काम को उतनी ही ईमानदारी और ज़िम्मेदारी से पूरा करते हैं और उनके कर्तव्यों के निर्वाह के लिए नुकसानदेह या उन पर दबाव डालने वाली या उनके कर्तव्यों में बाधा पहुँचाने वाली किसी चीज़ से सामना होने पर भी वे परमेश्वर के सामने अपने दिल को शांत रख पाते हैं और यह कहते हुए प्रार्थना करते हैं, “मेरे सामने चाहे जितनी बड़ी समस्या खड़ी हो जाए—भले ही आसमान फट कर गिर पड़े—जब तक मैं जीवित हूँ, अपना कर्तव्य निभाने की भरसक कोशिश करने का मैं दृढ़ संकल्प लेता हूँ। मेरे जीवन का प्रत्येक दिन वह दिन होगा जब मैं अच्छी तरह से अपना कर्तव्य निभाऊंगा, ताकि मैं परमेश्वर द्वारा मुझे दिये गये इस कर्तव्य, और उसके द्वारा मेरे शरीर में प्रवाहित इस सांस के योग्य बना रहूँ। चाहे जितनी भी मुश्किलों में रहूँ, मैं उन सबको परे रख दूंगा क्योंकि कर्तव्य निर्वाह करना मेरे लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण है!” जो लोग किसी व्यक्ति, घटना, चीज़ या माहौल से प्रभावित नहीं होते, जो किसी मन:स्थिति या बाहरी स्थिति से बेबस नहीं होते, और जो परमेश्वर द्वारा उन्हें सौंपे गये कर्तव्यों और आदेशों को सबसे आगे रखते हैं—वही परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होते हैं और सच्चाई के साथ उसके सामने समर्पण करते हैं। ऐसे लोगों ने जीवन-प्रवेश हासिल किया है और सत्य की वास्तविकता में प्रवेश किया है। यह सत्य को जीने की सबसे सच्ची और व्यावहारिक अभिव्यक्तियों में से एक है।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, जीवन में प्रवेश कर्तव्य निभाने से प्रारंभ होता है

जब परमेश्वर लोगों को बचाता है, तो वह उन्हें ईमानदार बनकर उसके वचनों के अनुसार जीने के लिए शैतान का प्रभाव और अपना भ्रष्ट स्वभाव त्यागने देता है। एक ईमानदार इंसान की तरह जीना स्वतंत्रता और मुक्ति देने वाला होता है। यह सबसे खुशहाल जीवन होता है। ईमानदार लोग ज्यादा सरल होते हैं। वे अपने दिल की बात करते हैं, वही बोलते हैं जो वे सोचते हैं। अपने कथनों और कृत्यों में वे अपने जमीर और समझ का अनुसरण करते हैं। वे सत्य के लिए मेहनत करने को तैयार रहते हैं और उसे समझ लेने के बाद वे उस पर अमल करते हैं। जब वे कोई बात समझ नहीं पाते, तो सत्य खोजने को तैयार रहते हैं, और फिर वे वही करते हैं जो सत्य के अनुरूप होता है। वे हर जगह हर चीज में परमेश्वर की इच्छा खोजते हैं, और फिर अपने कार्यों में इसका पालन करते हैं। ऐसे कुछ क्षेत्र हो सकते हैं जिनमें वे बेवकूफ होते हैं और जिनमें उन्हें सत्य सिद्धांतों से लैस होना चाहिए, और इसके लिए जरूरी होता है कि वे निरंतर विकास करें। इस तरह अनुभव करने का अर्थ है कि वे ईमानदार और बुद्धिमान हो सकते हैं, और पूरी तरह से परमेश्वर की इच्छा का पालन कर सकते हैं। लेकिन धोखेबाज लोग ऐसे नहीं होते। वे शैतानी स्वभावों के अनुसार जीते हैं, अपनी भ्रष्टता प्रदर्शित करते हैं, फिर भी डरते हैं कि ऐसा करने से कहीं दूसरे लोग उनके खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए कुछ पता न लगा लें। इसलिए वे जवाब में कुटिल, धोखेबाज चालें चलते हैं। वे तमाम चीजों का खुलासा करने वाले समय से डरते हैं, इसलिए वे झूठ बनाने और उन्हें छिपाने के सभी साधन इस्तेमाल करते हैं जो उनके वश में हैं, और जब कुछ अंतराल नजर आता है तो उसे भरने के लिए वे और झूठ बोलते हैं। हमेशा झूठ बोलना और अपना झूठ छिपाना—क्या यह जीने का एक थकाऊ तरीका नहीं है? वे हमेशा झूठ और उन्हें दबाने के तरीके सोचने के लिए अपने दिमाग कुरेदते रहते हैं। यह बहुत ज्यादा थकाऊ होता है। इसीलिए झूठ तैयार करने और उन्हें दबाने में दिन बिताने वाले धोखेबाज लोगों का जीवन हमेशा थकाऊ और दर्दनाक होता है! लेकिन ईमानदार लोगों के साथ यह अलग होता है। ईमानदार इंसान को बोलते और कर्म करते समय इतनी सारी चीजों पर विचार नहीं करना पड़ता। ज्यादातर स्थितियों में, ईमानदार इंसान बस सच्चाई से बोल सकता है। सिर्फ जब कोई खास मामला उनके हितों को प्रभावित करे, तभी वे अपना दिमाग थोड़ा ज्यादा चलाते हैं—वे अपने हितों की रक्षा करने और अपना अभिमान और गर्व बनाए रखने के लिए थोड़ा झूठ बोल सकते हैं। ऐसे झूठ सीमित होते हैं, इसलिए ईमानदार लोगों के लिए बोलना और कार्य करना उतना थकाऊ नहीं होता। धोखेबाज लोगों के इरादे ईमानदार लोगों के मुकाबले काफी पेचीदा होते हैं। उनके ध्यान देने योग्य विचार बहुत ज्यादा बहुआयामी होते हैं : उन्हें अपनी प्रतिष्ठा, शोहरत, लाभ और हैसियत का विचार करना होता है; उन्हें अपने हितों की रक्षा करनी होती है—और ये सब लोगों को खामियाँ दिखाए बिना या खेल का खुलासा किए बिना, इसलिए उन्हें झूठ तैयार करने के लिए अपना दिमाग कुरेदना पड़ता है। इसके अलावा, धोखेबाज लोगों की बहुत बड़ी और अत्यधिक आकांक्षाएँ और कई माँगें होती हैं। उन्हें अपने लक्ष्य पाने के लिए तरीके ईजाद करने होते हैं, इसलिए उन्हें झूठ बोलते और ठगते रहना पड़ता है, और ज्यादा झूठ बोलते हुए उन्हें ज्यादा झूठ छिपाने पड़ते हैं। इसीलिए धोखेबाज का जीवन ईमानदार इंसान की अपेक्षा बहुत ज्यादा थकाऊ और पीड़ादायक होता है। कुछ लोग अपेक्षाकृत ईमानदार होते हैं। उन्होंने चाहे जो भी झूठ बोले हों, अगर वे सत्य का अनुसरण कर आत्मचिंतन कर सकें, जो भी चालबाजी की हो अगर वे उसे पहचान सकें, उसका विश्लेषण करने, समझने और फिर उसे बदलने के लिए परमेश्वर के वचनों के प्रकाश में उसे देख सकें, तो फिर वे कुछ ही वर्षों में अपने झूठ और चालबाजी से काफी हद तक छुटकारा पा सकेंगे। फिर वे वैसे व्यक्ति बन चुके होंगे जो बुनियादी तौर पर ईमानदार हैं। इस तरह जीना उन्हें न सिर्फ अधिक पीड़ा और थकान से मुक्त कर देता है, इससे उन्हें शांति और खुशी भी मिलती है। कई मामलों में, वे प्रतिष्ठा, लाभ, हैसियत, अभिमान और गर्व के प्रतिबंधनों से स्वतंत्र रह कर स्वाभाविक रूप से एक आजाद और मुक्त जीवन जिएँगे।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, एक ईमानदार व्यक्ति होने का सबसे बुनियादी अभ्यास

परमेश्वर का लोगों से ईमानदार बनने का आग्रह करना यह साबित करता है कि वह धोखेबाज लोगों से सचमुच घृणा करता है, उन्हें नापसंद करता है। धोखेबाज लोगों के प्रति परमेश्वर की नापसंदगी उनके काम करने के तरीके, उनके स्वभावों, उनके इरादों और उनकी चालबाजी के तरीकों के प्रति नापसंदगी है; परमेश्वर को ये सब बातें नापसंद हैं। यदि धोखेबाज लोग सत्य स्वीकार कर लें, अपने धोखेबाज स्वभाव को मान लें और परमेश्वर का उद्धार स्वीकार करने को तैयार हो जाएँ, तो उनके बचने की उम्मीद भी बँध जाती है, क्योंकि परमेश्वर सभी लोगों के साथ समान व्यवहार करता है, जैसा कि सत्य करता है। और इसलिए, यदि हम परमेश्वर को प्रसन्न करने वाले लोग बनना चाहें, तो सबसे पहले हमें अपने व्यवहार के सिद्धांतों को बदलना होगा : अब हम शैतानी फलसफों के अनुसार नहीं जी सकते, हम झूठ और चालबाजी के सहारे नहीं चल सकते। हमें अपने सारे झूठ त्यागकर ईमानदार बनना होगा। तब हमारे प्रति परमेश्वर का दृष्टिकोण बदलेगा। पहले लोग दूसरों के बीच रहते हुए हमेशा झूठ, ढोंग और चालबाजी पर निर्भर रहते थे, और शैतानी फलसफों को अपने अस्तित्व, जीवन और आचरण की नींव की तरह इस्तेमाल करते थे। इससे परमेश्वर को घृणा थी। अविश्वासियों के बीच यदि तुम खुलकर बोलते हो, सच बोलते हो और ईमानदार रहते हो, तो तुम्हें बदनाम किया जाएगा, तुम्हारी आलोचना की जाएगी और तुम्हें त्याग दिया जाएगा। इसलिए तुम सांसारिक चलन का पालन करते हो और शैतानी फलसफों के अनुसार जीते हो; तुम झूठ बोलने में ज्यादा-से-ज्यादा माहिर और अधिक से अधिक धोखेबाज होते जाते हो। तुम अपना मकसद पूरा करने और खुद को बचाने के लिए कपटपूर्ण साधनों का उपयोग करना भी सीख जाते हो। तुम शैतान की दुनिया में समृद्ध होते चले जाते हो और परिणामस्वरूप, तुम पाप में इतने गहरे गिरते जाते हो कि फिर उसमें से खुद को निकाल नहीं पाते। परमेश्वर के घर में चीजें ठीक इसके विपरीत होती हैं। तुम जितना अधिक झूठ बोलते और कपटपूर्ण खेल खेलते हो, परमेश्वर के चुने हुए लोग तुमसे उतना ही अधिक ऊब जाते हैं और तुम्हें त्याग देते हैं। यदि तुम पश्चाताप नहीं करते, अब भी शैतानी फलसफों और तर्क से चिपके रहते हो, अपना भेस बदलकर खुद को बढ़िया दिखाने के लिए चालें चलते और बड़ी-बड़ी साजिशें रचते हो, तो बहुत संभव है कि तुम्हें उजागर कर निकाल दिया जाए। ऐसा इसलिए क्योंकि परमेश्वर धोखेबाज लोगों से नफरत करता है। केवल ईमानदार लोग ही परमेश्वर के घर में समृद्ध हो सकते हैं, धोखेबाज लोगों को अंततः त्यागकर बाहर निकाल दिया जाता है। यह सब परमेश्वर ने पूर्वनिर्धारित कर दिया है। केवल ईमानदार लोग ही स्वर्ग के राज्य में साझीदार हो सकते हैं। यदि तुम ईमानदार व्यक्ति बनने की कोशिश नहीं करोगे, सत्य का अनुसरण करने की दिशा में अनुभव प्राप्त नहीं करोगे और अभ्यास नहीं करोगे, यदि अपना भद्दापन उजागर नहीं करोगे और यदि खुद को खोल कर पेश नहीं करोगे, तो तुम कभी भी पवित्र आत्मा का कार्य और परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त नहीं कर पाओगे।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, एक ईमानदार व्यक्ति होने का सबसे बुनियादी अभ्यास

परमेश्वर हमेशा इस बात पर जोर क्यों देता है कि लोगों को ईमानदार होना चाहिए? चूँकि ईमानदार होना बहुत महत्वपूर्ण है—इसका सीधा संबंध इस बात से है कि कोई व्यक्ति परमेश्वर को समर्पित हो सकता है या नहीं और वह उद्धार प्राप्त कर सकता है या नहीं। कुछ लोग कहते हैं : “मैं अहंकारी और आत्म-तुष्ट हूँ, और मैं अक्सर नाराज होकर भ्रष्टता दिखाता हूँ।” दूसरे कहते हैं : “मैं बहुत ओछा हूँ, तुच्छ हूँ, और जब लोग मेरी चापलूसी करते हैं तो मुझे बहुत अच्छा लगता है।” ये तमाम चीजें हैं जो लोगों को बाहर से दिखाई देती हैं, और ये बड़ी समस्याएँ नहीं हैं। तुम्हें इनके बारे में बोलते नहीं रहना चाहिए। तुम्हारा स्वभाव या चरित्र चाहे जैसा हो, अगर तुम परमेश्वर की अपेक्षा के अनुसार ईमानदार बन पाते हो, तो तुम्हें बचाया जा सकेगा। तो तुम सब क्या कहते हो? क्या ईमानदार होना महत्वपूर्ण है? यह सबसे महत्वपूर्ण चीज है, इसीलिए परमेश्वर अपने वचनों के अध्याय तीन चेतावनियाँ में ईमानदार होने के बारे में बात करता है। अन्य अध्यायों में, वह अक्सर जिक्र करता है कि विश्वासियों को सामान्य आध्यात्मिक जीवन और उचित कलीसिया जीवन बिताना चाहिए, और वह वर्णन करता है कि उन्हें सामान्य मानवता के साथ कैसे जीना चाहिए। इन विषयों पर उसके वचन सामान्य हैं; उन पर विशिष्ट रूप से या बहुत विस्तार से चर्चा नहीं की गई है। लेकिन जब परमेश्वर ईमानदार होने के बारे में बोलता है, तो वह लोगों को चलने का मार्ग दिखाता है। वह लोगों को बताता है कि अभ्यास कैसे करें, और वह बहुत विस्तार और स्पष्टता से बोलता है। परमेश्वर कहते हैं, “यदि तुम्हारे पास ऐसे बहुत-से गुप्त भेद हैं जिन्हें तुम साझा नहीं करना चाहते, और यदि तुम प्रकाश के मार्ग की खोज करने के लिए दूसरों के सामने अपने राज़ और अपनी कठिनाइयाँ उजागर करने के विरुद्ध हो, तो मैं कहता हूँ कि तुम्हें आसानी से उद्धार प्राप्त नहीं होगा।” ईमानदार होने का संबंध उद्धार प्राप्त करने से है। तो तुम सब क्या कहते हो, परमेश्वर लोगों के ईमानदार होने की माँग क्यों करता है? यह मानव आचरण के सत्य को छूता है। परमेश्वर ईमानदार लोगों को बचाता है, और जिन्हें वह अपने राज्य के लिए चाहता है, वे ईमानदार लोग होते हैं। अगर तुम झूठ और चालबाजी में सक्षम हो, धोखेबाज, कुटिल और छली व्यक्ति हो; तो तुम ईमानदार व्यक्ति नहीं हो। अगर तुम ईमानदार व्यक्ति नहीं हो, तो इसकी कोई संभावना नहीं है कि परमेश्वर तुम्हें बचाएगा, न ही संभवतः तुम्हें बचाया जा सकेगा। तुम कहते हो कि अब तुम बहुत पवित्र हो, अहंकारी या आत्मतुष्ट नहीं हो, अपना कर्तव्य निभाते समय कीमत चुका सकने में समर्थ हो, या सुसमाचार फैलाकर अनेक लोगों का धर्म-परिवर्तन कर सकते हो। लेकिन अगर तुम ईमानदार नहीं हो, अभी भी धोखेबाज हो, बिल्कुल नहीं बदले हो, तो क्या तुम्हें बचाया जा सकेगा? बिल्कुल नहीं। इसलिए परमेश्वर के ये वचन सभी को याद दिलाते हैं कि बचाए जाने के लिए उन्हें पहले परमेश्वर के वचनों और अपेक्षाओं के अनुसार ईमानदार बनना पड़ेगा। उन्हें खुद को खोलकर अपने भ्रष्ट स्वभाव, अपने इरादे और रहस्य दिखाने होंगे, और प्रकाश के मार्ग को खोजना होगा।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, एक ईमानदार व्यक्ति होने का सबसे बुनियादी अभ्यास

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