29. दुष्ट स्वभाव का समाधान कैसे करें

अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन

दुष्टता को पहचानना सबसे कठिन है, क्योंकि यह मनुष्य की प्रकृति बन गया है और वे इसे गौरवान्वित करने लगते हैं और अधिक दुष्टता भी उन्हें दुष्टता नहीं लगेगी। अतः दुष्ट स्वभाव की पहचान करना हठधर्मी स्वभाव की पहचान करने से भी अधिक कठिन है। कुछ लोग कहते हैं : “इसे पहचानना आसान कैसे नहीं है? सभी लोगों की दुष्ट इच्छाएँ होती हैं। क्या यह दुष्टता नहीं है?” यह सतही है। असली दुष्टता क्या है? प्रकट होने पर कौन-सी अवस्थाएँ दुष्ट होती हैं? जब लोग अपने दिल की गहराइयों में छिपे दुष्ट और शर्मनाक इरादे छिपाने के लिए प्रभावशाली लगने वाले कथनों का उपयोग करते हैं और फिर दूसरों को यह विश्वास दिलाते हैं कि ये कथन बहुत अच्छे, ईमानदार और वैध हैं, और अंततः अपने गुप्त मकसद हासिल कर लेते हैं, तो क्या यह एक दुष्ट स्वभाव है? इसे दुष्ट क्यों कहा जाता है और कपट करना क्यों नहीं कहा जाता? स्वभाव और सार के अनुसार कपट उतना बुरा नहीं होता। दुष्ट होना कपटी होने से ज्यादा गंभीर है, यह एक ऐसा व्यवहार है जो कपट से ज्यादा घातक और खराब है, और औसत व्यक्ति के लिए इसे समझना मुश्किल है। उदाहरण के लिए, साँप ने हव्वा को लुभाने के लिए किस तरह के शब्दों का इस्तेमाल किया? दिखावटी शब्द, जो सुनने में सही लगते हैं और तुम्हारी भलाई के लिए कहे गए प्रतीत होते हैं। तुम नहीं जानते कि इन शब्दों में कुछ गलत है या इनके पीछे कोई द्वेषपूर्ण मंशा है, और साथ ही, तुम शैतान द्वारा दिए गए इन सुझावों को छोड़ने में असमर्थ रहते हो। यह प्रलोभन है। जब तुम प्रलोभन में पड़ते हो और इस तरह के शब्द सुनते हो, तो तुम प्रलोभन में आए बिना नहीं रह पाते और तुम्हारे जाल में फँसने की संभावना है, जिससे शैतान का लक्ष्य पूरा हो जाएगा। इसे ही दुष्टता कहा जाता है। साँप ने हव्वा को लुभाने के लिए इसी तरीके का इस्तेमाल किया था। क्या यह एक प्रकार का स्वभाव है? (हाँ।) इस प्रकार का स्वभाव कहाँ से आता है? यह साँप से, शैतान से आता है। इस प्रकार का दुष्ट स्वभाव मनुष्य की प्रकृति के भीतर मौजूद है। क्या यह दुष्टता मनुष्यों की दुष्ट अभिलाषाओं से भिन्न नहीं है? दुष्ट अभिलाषाएँ कैसे उत्पन्न होती हैं? इसका संबंध देह से है। सच्ची दुष्टता एक प्रकार का स्वभाव है, गहराई तक छिपा हुआ, जिसकी पहचान सत्य के अनुभव या इसकी समझ से रहित लोग बिल्कुल नहीं कर सकते। इसलिए मनुष्य के स्वभावों में इसे पहचानना सबसे कठिन है। किस प्रकार के व्यक्ति का दुष्ट स्वभाव सबसे प्रबल होता है? जो लोग दूसरों का शोषण करना पसंद करते हैं। वे हेरफेर करने में इतने अच्छे होते हैं कि जिन लोगों के साथ वे हेरफेर करते हैं उन्हें भी पता नहीं चलता कि आगे क्या हुआ। इस प्रकार के व्यक्ति का स्वभाव दुष्ट होता है। दुष्ट लोग, धोखेबाजी के आधार पर, अपने धोखे को, अपने पापों को छिपाने और अपने गुप्त उद्देश्यों, लक्ष्यों और स्वार्थी इच्छाओं को छिपाने के लिए अन्य तरीकों का उपयोग करते हैं। यह दुष्टता है। इसके अलावा, वे तुम्हें आकर्षित करने, लुभाने और बहकाने के लिए विभिन्न तरीकों का उपयोग करेंगे, ताकि तुम उनकी इच्छाओं का पालन करो और उनके लक्ष्यों को प्राप्त करने की उनकी स्वार्थी इच्छाओं को पूरा करो। यह सब दुष्टता है। यह असली शैतानी स्वभाव है। क्या तुम लोगों ने इनमें से कोई व्यवहार दिखाया है? तुम लोगों ने दुष्ट स्वभाव के किन पहलुओं को अधिक दिखाया है : प्रलोभन, लालच, या एक झूठ को छिपाने के लिए कई झूठ का उपयोग करना? (मुझे लगता है थोड़े-बहुत सभी पहलू दिखाए हैं।) तुम्हें लगता है उन सभी का थोड़ा प्रदर्शन किया है। इसका मतलब भावनात्मक स्तर पर तुम लोगों को लगता है कि तुमने ऐसे व्यवहार दिखाए भी हैं और नहीं भी दिखाए हैं। तुम लोगों के पास कोई सबूत नहीं है। तो, अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में किसी चीज से सामना होने पर अगर तुम लोग दुष्ट स्वभाव दिखाते हो तो क्या तुम लोगों को इसका एहसास होता है? दरअसल, ये बातें हर किसी के स्वभाव में मौजूद होती हैं। उदाहरण के लिए, ऐसा कुछ है जो तुम नहीं समझते, लेकिन तुम दूसरों को यह नहीं जताना चाहते कि तुम उसे नहीं समझते, इसलिए तुम उन्हें गुमराह करने के लिए विभिन्न तरीकों का उपयोग करते हो ताकि उन्हें लगे कि तुम इसे समझते हो। यह धोखाधड़ी है। ऐसी धोखाधड़ी दुष्टता की अभिव्यक्ति है। प्रलोभन और लालच देना भी है, जो सभी दुष्टता की अभिव्यक्तियाँ हैं। क्या तुम लोग अक्सर दूसरों को प्रलोभित करते हो? अगर तुम लोग सही तरीके से किसी को समझने की कोशिश कर रहे हो, उनके साथ संगति करना चाहते हो और यह तुम लोगों के कार्य लिए आवश्यक है और यह उचित संवाद है, तो इसे प्रलोभन नहीं माना जाएगा। परंतु यदि तुम लोगों का कोई व्यक्तिगत इरादा और उद्देश्य है और तुम वास्तव में इस व्यक्ति के स्वभाव, प्रयासों और ज्ञान को समझना नहीं चाहते हो, बल्कि उसके गहरे विचार और सच्ची भावनाएँ जानना चाहते हो, तो इसे दुष्टता, व प्रलोभन और लालच देना कहा जाता है। यदि तुम ऐसा करते हो, तो तुम्हारा स्वभाव दुष्ट है; क्या यह ऐसी चीज नहीं जो छुपी हुई है? क्या इस प्रकार के स्वभाव को बदलना आसान है? यदि तुम अपने स्वभाव के प्रत्येक पहलू की अभिव्यक्तियों को, प्रत्येक पहलू अक्सर किन अवस्थाओं का कारण बनता है, इसे पहचान सकते हो और इनका खुद से मिलान कर सकते हो, यह महसूस कर सकते हो कि इस प्रकार का स्वभाव कितना भयानक और खतरनाक है, तो तुम्हें इस संबंध में बदलने की ज़िम्मेदारी का एहसास होगा और तुम परमेश्वर के वचनों के लिए तरसने लगोगे और सत्य को स्वीकार कर पाओगे। तभी तुम बदल सकते हो और उद्धार प्राप्त कर सकते हो। लेकिन अगर खुद से इसका मिलान करने के बाद भी तुममें सत्य के लिए कोई प्यास नहीं जगती है, तुममें ऋणी या दोषी होने का भाव नहीं है—बिल्कुल भी पश्चाताप नहीं है—और सत्य के लिए कोई प्रेम नहीं है, तो तुम्हारे लिए बदलाव मुश्किल होगा। और समझने से मदद नहीं मिलेगी, क्योंकि तुम केवल सिद्धांत ही समझोगे। सत्य का पहलू चाहे जो भी हो, अगर तुम्हारी समझ सिद्धांत के स्तर पर ही रुक जाती है और तुम्हारे अभ्यास और प्रवेश से जुड़ी नहीं है, तो तुमने जो सिद्धांत समझा है वह किसी काम का नहीं रहेगा। यदि तुम सत्य नहीं समझते हो, तो तुम अपना भ्रष्ट स्वभाव नहीं पहचानोगे और परमेश्वर के सामने पश्चाताप नहीं करोगे और पाप कबूल नहीं करोगे और तुम परमेश्वर के प्रति कृतज्ञ महसूस नहीं करोगे और खुद से नफरत नहीं करोगे, इसलिए तुम्हारे बचाए जाने की संभावना शून्य है। यदि तुम समझते हो कि तुम्हारी समस्याएँ कितनी गंभीर हैं, लेकिन तुम परवाह नहीं करते हो और खुद से नफरत नहीं करते हो, अब भी अंदर से बहुत सुन्न और निष्क्रिय महसूस करते हो, परमेश्वर का न्याय और ताड़ना स्वीकार नहीं करते हो और उससे प्रार्थना नहीं करते हो या अपने भ्रष्ट स्वभाव का समाधान करने के लिए उस पर भरोसा नहीं करते हो, तो तुम बड़े खतरे में हो और तुम्हें उद्धार प्राप्त नहीं होगा।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सत्य के अनुसरण में केवल आत्म-ज्ञान ही सहायक है

दुष्टता की जड़ें धोखेबाजी से ज्यादा गहरी होती हैं; यह ज्यादा कपटी, ज्यादा गुप्त, ज्यादा गुमराह करने वाला और समझने में ज्यादा मुश्किल होता है और दुष्टता में लुभाना, मनाना, फुसलाना, दिल जीतना, रिश्वत देना और ललचाना निहित होता है। ये क्रियाकलाप और व्यवहार धोखेबाजी से भी बहुत दूर तक जाते हैं; इसमें जरा भी शक नहीं कि वे दुष्ट हैं। उस आदमी ने यह नहीं कहा, “अगर तुम मुझे नहीं बताओगे, तो मैं तुम्हारी पिटाई करूँगा, तुम्हें लात मारूँगा या मार डालूँगा!” उसने ऐसे तरीकों का उपयोग नहीं किया और बाहर से वह द्वेषपूर्ण नहीं लगा। लेकिन, यह द्वेष से भी ज्यादा भयंकर है—यह दुष्टता है। मैं इसे दुष्टता क्यों कहता हूँ? आम तौर पर, ज्यादातर लोग धोखेबाजी की पहचान कर सकते हैं, लेकिन उसका तरीका ज्यादा धूर्त था। ऊपर-ऊपर से वह विनम्र भाषा का उपयोग करता है जो मानव स्नेह के अनुरूप है, लेकिन वास्तव में, उसके दिल की गहराइयों में बहुत-सी चीजें छिपी हुई हैं। उसके क्रियाकलाप और तरीके उस धोखेबाजी से ज्यादा धूर्त, ज्यादा कपटी हैं जो आम तौर पर देखे जाते हैं और जिनका लोग सामना करते हैं। उसके कौशल ज्यादा परिष्कृत, ज्यादा दोगले और ज्यादा गुमराह करने वाले हैं। यह दुष्टता है।

क्या रोजमर्रा के जीवन में तुम दूसरे लोगों के दुष्ट स्वभाव और उनके दुष्ट व्यवहार के प्रकाशन को पहचान सकते हो और उनमें भेद कर सकते हो? वैसे तो धोखेबाज व्यक्ति काफी व्यवहार कुशल हो सकते हैं, लेकिन इसके बावजूद ज्यादातर लोग उनसे थोड़ी देर बातचीत करने के बाद उनके असली इरादे समझ जाते हैं। लेकिन, दुष्ट स्वभाव वाले लोगों की असलियत समझना इतना आसान नहीं है। अगर तुम सार या परिणाम नहीं देख पाते हो, तो तुम्हारे पास उनके असली इरादों को समझने का कोई तरीका नहीं है। दुष्ट व्यक्ति धोखेबाजों से भी ज्यादा कपटी होते हैं। तुम्हारे पास ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे तुम सिर्फ एक-दो वाक्यों से उनकी असलियत समझ सको। जब दुष्ट स्वभाव वाले लोगों की बात आती है, तो हो सकता है कि कुछ समय के दौरान या कम अवधि में तुम उनकी असलियत न समझ सको या इसका पता न लगा सको कि वे उस खास चीज को क्यों कर रहे हैं, और वे इस तरीके से बात या क्रियाकलाप क्यों कर रहे हैं। एक दिन जब उनका असली चेहरा पूरी तरह से प्रकट हो जाएगा और पूरी तरह उजागर हो जाएगा, तो फिर आखिर में सबको पता चल जाएगा कि वे किस तरह के लोग हैं। यह सिर्फ धोखेबाजी नहीं, उससे ज्यादा कुछ है—यह दुष्टता है। इसलिए, दुष्ट स्वभाव को पहचानने में समय लगता है और कभी-कभी परिणाम सामने आने के बाद ही व्यक्ति उसे पहचान पाता है—यह कोई ऐसी चीज नहीं है जिसकी जल्द पहचान की जा सके। मिसाल के तौर पर, बड़ा लाल अजगर कई दशकों से लोगों को गुमराह कर रहा है और अब जाकर कुछ लोगों में सही-गलत पहचानने की योग्यता आ पाई है। बड़ा लाल अजगर अक्सर ऐसी चीजें कहता है जो सुनने में सबसे बढ़िया लगती हैं और मानवीय धारणाओं के सबसे ज्यादा अनुकूल होती हैं। वह लोगों को गुमराह करने के लिए लोगों की सेवा का ध्वज उठाए हुए है और विरोधियों को दूर भगाने के लिए न्याय का ध्वज उठाए हुए है और अनगिनत भले लोगों की हत्या कर रहा है। लेकिन कुछ ही लोग इसे पहचान पाते हैं क्योंकि वह जो भी कहता है और जो भी करता है, वह लोगों को सही लगता है। सभी लोगों को लगता है कि वह जो भी करता है वह सही और उपयुक्त है, कानूनी और यथोचित है और मानवतावाद के अनुरूप है। फलस्वरूप, उसने कई दशकों से लोगों को गुमराह किया हुआ है। आखिर में जब उसे उजागर किया जाएगा और उसका विनाश हो जाएगा, तो लोग देखेंगे कि उसका असली चेहरा शैतान का है और उसका प्रकृति सार दुष्ट है। बड़े लाल अजगर ने इतने वर्षों से लोगों को गुमराह किया हुआ है और उसका जहर सबके भीतर है—वे उसके वंशज बन गए हैं। क्या तुम लोगों में से कोई भी उस तरह की चीजें कर सकता है जो बड़े लाल अजगर ने की हैं? कुछ लोग बड़े लाल अजगर की तरह बोलते हैं और खुशनुमा शब्दों का उपयोग करते हैं, लेकिन कोई असली कार्य नहीं करते हैं। उनके सारे शब्द मधुर होते हैं, लेकिन वे कोई असली कार्य नहीं करते हैं। साथ ही, वे खास तौर पर कपटी और दुष्ट होते हैं। अगर कोई व्यक्ति ऐसे लोगों का अपमान करता है, तो वे बात को पकड़े रहते हैं। आज नहीं तो कल, उन्हें अपने बदला लेने का उद्देश्य पूरा करने का सही मौका मिल ही जाएगा, लेकिन उन्हें कोई फायदा नहीं मिलेगा। वे सामने आए और अपना चेहरा दिखाए बगैर भी इस मामले को संभाल सकते हैं। क्या यह दुष्टता नहीं है? दुष्ट लोग ऐसे सिद्धांतों, तरीकों, इरादों, कारणों और उद्देश्यों से कार्य करते हैं जो खास तौर पर गुप्त और छिपे हुए होते हैं। दुष्ट व्यक्ति योजनाओं का इस्तेमाल करके दूसरों को नुकसान पहुँचाते हैं, कभी-कभी उनकी ओर से हत्या करने के लिए किसी और का उपयोग करते हैं, कभी-कभी दूसरों को पाप करने के लिए फुसलाकर उन्हें तड़पाते हैं और कभी-कभी दूसरों को तड़पाने के लिए नियमों का उपयोग करते हैं या हर तरह के घिनौने साधनों का सहारा लेते हैं। ये सभी दुष्टता की अभिव्यक्तियाँ हैं और इनमें से कोई भी उचित या ईमानदार तरीके नहीं हैं। क्या तुम लोगों में से कोई भी ऐसे व्यवहार या खुलासे प्रदर्शित करता है? क्या तुम उन्हें पहचान सकते हो? क्या तुम्हें मालूम है कि वे दुष्ट स्वभाव वाले लोग हैं? आम तौर पर, धोखेबाजी बाहर ही दिखाई पड़ जाती है : कोई व्यक्ति घुमा-फिराकर बात करता है या बड़े-बड़े शब्दों वाली भाषा का उपयोग करता है और किसी को भनक तक नहीं लग पाती कि वह क्या सोच रहा है। यह धोखेबाजी है। दुष्टता की मुख्य विशेषता क्या है? यह कि सुनने में उनके शब्द खास तौर पर मीठे लगते हैं और ऊपर-ऊपर से सबकुछ सही प्रतीत होता है। ऐसा नहीं लगता कि कहीं कोई समस्या है और हर कोण से चीजें काफी अच्छी नजर आती हैं। जब वे कुछ करते हैं, तो तुम्हें वे किसी खास साधन का उपयोग करते हुए नजर नहीं आते और बाहर से कमजोरियों या गलतियों का कोई चिन्ह दिखाई नहीं देता है, लेकिन फिर भी वे अपना लक्ष्य हासिल कर लेते हैं। वे चीजों को अत्यंत गुप्त तरीके से करते हैं। मसीह-विरोधी ठीक इसी तरीके से लोगों को गुमराह करते हैं। इस तरह के लोगों और मामलों को पहचानना सबसे मुश्किल है। कुछ लोग अक्सर सही चीजें कहते हैं, सुनने में अच्छे लगने वाले बहानों का उपयोग करते हैं और कुछ लोग लोगों की आँखों में धूल झोंकने के लिए ऐसे धर्म-सिद्धांतों, कहावतों या क्रियाकलापों का उपयोग करते हैं जो मानवीय स्नेह के अनुरूप है। वे अपना गुप्त उद्देश्य हासिल करने के लिए एक काम करते हुए दूसरा काम करने का दिखावा करते हैं। यह दुष्टता है, लेकिन ज्यादातर लोग इन व्यवहारों को धोखेबाजी के व्यवहार मानते हैं। लोगों में दुष्टता की समझ और उसके गहन-विश्लेषण की क्षमता सीमित होती है। दरअसल, धोखेबाजी की तुलना में दुष्टता को पहचानना ज्यादा मुश्किल है क्योंकि यह ज्यादा गुप्त होता है और इसके तरीके और क्रियाकलाप ज्यादा जटिल होते हैं। अगर कोई व्यक्ति धोखेबाज स्वभाव का है, तो आम तौर पर, दूसरे लोगों को उससे दो-तीन दिन बात करने के बाद उसकी धोखेबाजी का पता चल जाता है, या वे उस व्यक्ति के क्रियाकलापों और शब्दों में उसके धोखेबाज स्वभाव का खुलासा होते देख सकते हैं। लेकिन, मान लो कि वह व्यक्ति दुष्ट है : यह कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे कुछ दिनों में पहचाना जा सके, क्योंकि छोटी अवधि में कोई महत्वपूर्ण घटना घटे या खास परिस्थिति उत्पन्न हुए बिना, सिर्फ उसकी बातें सुनकर कुछ भी पहचानना आसान नहीं है। वह हमेशा सही चीजें कहता और करता है और एक के बाद एक सही धर्म-सिद्धांत पेश करता रहता है। कुछ दिन उससे बातचीत करने के बाद, तुम्हें लग सकता है कि वह व्यक्ति बहुत अच्छा है, वह चीजों को छोड़ सकता है और खुद को खपा सकता है, उसमें आध्यात्मिक समझ है, उसके पास एक परमेश्वर-प्रेमी दिल है और उसके कार्य करने के तरीके में अंतरात्मा और विवेक दोनों हैं। लेकिन जब वह कुछ मामले संभाल लेता है, तो तुम्हें दिखाई देता है कि उसकी बातों और क्रियाकलापों में बहुत-सी चीजें और बहुत-से शैतानी इरादे मिले हुए हैं। तब तुम्हें एहसास होता है कि यह व्यक्ति ईमानदार नहीं बल्कि धोखेबाज है—यह एक दुष्ट चीज है। वह बार-बार सही शब्दों और ऐसे मधुर वाक्यांशों का उपयोग करता है जो सत्य के अनुरूप होते हैं और उनमें लोगों से बातचीत करने के लिए मानवीय स्नेह होता है। एक लिहाज से, वह खुद को स्थापित करता है और दूसरे लिहाज से, वह दूसरों को गुमराह करता है और इस तरह लोगों के बीच प्रतिष्ठा और रुतबा हासिल करता है। ऐसे लोग बहुत ही ज्यादा गुमराह करने वाले लोग होते हैं और एक बार ताकत और रुतबा हासिल कर लेने के बाद, वे कई लोगों को गुमराह कर सकते हैं और उनका नुकसान कर सकते हैं। दुष्ट स्वभाव वाले लोग बहुत ही खतरनाक होते हैं। क्या तुम्हारे आस-पास इस तरह के लोग हैं? क्या तुम खुद इस तरह के हो? (हाँ।) तो यह कितना गंभीर है? किसी भी सत्य सिद्धांत के बिना बात या कार्य करना, कार्य करने के लिए पूरी तरह से अपनी दुष्ट प्रकृति पर भरोसा करना, हमेशा दूसरों को गुमराह करने और एक मुखौटे के पीछे छिपकर रहने की इच्छा रखना ताकि दूसरों को तुम्हारी असलियत का पता नहीं चल सके या वे तुम्हें पहचान न सकें और तुम्हारी मानवता और रुतबे को आदर और प्रशंसा की नजर से देखें—यह दुष्टता है। क्या तुम ये दुष्ट व्यवहार सिर्फ कभी-कभार दिखाते हो या ज्यादातर समय तुम इसी तरह का व्यवहार करते हो? क्या तुम स्वाभाविक रूप से ऐसे ही हो और क्या तुम्हारे लिए इससे आजाद होना चुनौतीपूर्ण है? अगर तुम सिर्फ कभी-कभार ऐसे तरीकों का उपयोग करते हो, तो इसे अब भी बदला जा सकता है। लेकिन, अगर यही तुम्हारा स्वाभाविक रूप है, और तुम लगातार व्यवहार कुशलता और धोखेबाजी से कार्य करते हो और लगातार योजनाओं पर भरोसा करते हो, तो फिर तुम दानवों में सबसे मक्कार हो। मैं तुम्हें सत्य बताऊँगा : इस तरह के लोग कभी नहीं बदलेंगे।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद पाँच : वे लोगों को गुमराह करने, फुसलाने, धमकाने और नियंत्रित करने का काम करते हैं

मुझे बताओ कि क्या सत्य का अभ्यास करने और सत्य सिद्धांतों के अनुसार मामलों को निपटाने के लिए तरह-तरह के बहानों और औचित्यों की आवश्यकता होती है? (नहीं, ऐसा नहीं है।) यदि किसी व्यक्ति के पास सच्चा हृदय है, तो वह सत्य को व्यवहार में उतार सकता है। क्या सत्य का अभ्यास न करने वाले लोग तरह-तरह के बहाने बनाते हैं? उदाहरण के लिए, जब वे कुछ गलत करते हैं, सिद्धांतों के विरुद्ध जाते हैं, और कोई उन्हें सुधारे, तो क्या वे उसकी बात को सुन सकते हैं? वे नहीं सुनते। क्या उनका न सुनने का तथ्य ही सब कुछ है? वे किस तरह से दुष्ट हैं? (वे तुम्हें राजी करने का एक बहाना खोजते हैं, जिससे तुम सोचो कि वे सही हैं।) वे एक ऐसी व्याख्या खोज लेंगे जो तुम्हारी धारणाओं और कल्पनाओं के साथ मेल खाती हो, फिर वे तुम्हें समझाने के लिए आध्यात्मिक सिद्धांतों के एक समुच्चय का इस्तेमाल करते हैं जिसे तुम मानते हो और स्वीकार कर सकते हो और जो सत्य से मेल खाता हो ताकि वे तुम्हें मना सकें, तुम्हें उनके साथ चलने के लिए बाध्य कर सकें, और तुम्हें ईमानदारी से विश्वास दिला सकें कि वे सही हैं। यह सब वे लोगों को गुमराह करने और नियंत्रित करने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए करते हैं। क्या यह दुष्टता नहीं है? (हाँ।) यह वास्तव में दुष्टता है। स्पष्ट रूप से उन्होंने कुछ गलत किया होता है, अपने कार्यों में सिद्धांतों और सत्य के विरुद्ध गए होते हैं, और सत्य का अभ्यास करने में विफल रहे होते हैं, फिर भी वे सैद्धांतिक औचित्यों का एक समुच्चय पेश करते हैं। यह वास्तव में दुष्टता है। यह भेड़िये द्वारा भेड़ को खाए जाने जैसा है; भेड़ों को खाना मूल रूप से भेड़िये के स्वभाव में है, और परमेश्वर ने इस तरह के जानवर का निर्माण भेड़ों को खाने के लिए किया—भेड़ें उसका भोजन हैं। लेकिन इसे खाने के बाद भी भेड़िया तरह-तरह के बहाने ढूँढ़ता है। क्या तुमने इस बारे में सोचा है? तुम सोचते हो, “तुमने मेरी भेड़ खा ली, और अब तुम चाहते हो कि मैं सोचूँ कि तुम्हें इसे खाना चाहिए था, कि तुम्हारे लिए इसे खाना तर्कसंगत और उचित था, और यहाँ तक कि मुझे तुम्हें धन्यवाद भी देना चाहिए।” क्या तुम्हें गुस्सा नहीं आता? (हाँ, आता है।) जब तुम गुस्से में होते हो, तो तुम्हारे मन में क्या विचार आते हैं? तुम सोचते हो, “यह आदमी बहुत दुष्ट है! अगर तुम इसे खाना चाहते हो, तो आगे बढ़ो, तुम बस यही हो; मेरी भेड़ों को खाना एक बात है, लेकिन तुम तरह-तरह के कारण और बहाने पेश करते हो, और बदले में मुझे तुम्हारा आभारी होने के लिए कहते हो। क्या यह सही और गलत का भ्रम पैदा नहीं करता?” यह दुष्टता है। जब कोई भेड़िया भेड़ को खाना चाहता है, तो वह क्या बहाने ढूँढ़ता है? भेड़िया कहता है, “मेमने, आज तो मुझे तुम्हें खा लेना चाहिए क्योंकि पिछले साल मेरा अपमान करने का तुमसे मुझे बदला लेना है।” मेमना, अन्याय महसूस करते हुए कहता है, “पिछले साल तो मैं पैदा भी नहीं हुआ था।” जब भेड़िया को पता चलता है कि वह गलत बोल गया और उसने मेमने की उम्र गिनने में गलती की है तो वह कहता है, “ठीक है, हम इस बात को छोड़ देते हैं, लेकिन मुझे फिर भी तुम्हें खाना पड़ेगा क्योंकि पिछली बार जब मैं इस नदी से पानी पी रहा था तो तुमने पानी को गंदा कर दिया था, इसलिए मुझे तुमसे बदला लेना है।” मेमना कहता है, “मैं तो नदी के बहाव के नीचे की ओर हूँ और तुम ऊपर की ओर हो। मैं ऊपर की ओर के पानी को कैसे गंदा कर सकता हूँ? अगर तुम मुझे खाना चाहते हो, तो बस आगे बढ़ो और मुझे खा लो। तरह-तरह के बहानों की तलाश मत करो।” यह भेड़िये की प्रकृति है। क्या यह दुष्टता नहीं है? (हाँ, है।) क्या भेड़िये की दुष्टता बिल्कुल बड़े लाल अजगर की दुष्टता के समान है? (हाँ।) यह तुलना बड़े लाल अजगर के लिए सबसे उपयुक्त है। बड़ा लाल अजगर उन लोगों को गिरफ़्तार करना चाहता है जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं; वह इन लोगों पर अपराधों का आरोप लगाना चाहता है। इसलिए, यह पहले कुछ मोर्चे खोलता है, कुछ अफवाहें गढ़ता है, और फिर उन्हें दुनिया भर में प्रसारित करता है ताकि पूरी दुनिया तुम्हारी निंदा करने को उठ खड़ी हो। वह परमेश्वर में विश्वास करने वालों पर कई आरोप लगाता है, जैसे “सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ना,” “राज्य के रहस्यों को सार्वजनिक करना” और “राज्य की शक्ति को कमजोर करना” आदि। वह ऐसी अफवाहें भी फैलाता है कि तुमने कई फौजदारी अपराध किए हैं और ये आरोप तुम पर लगा देता है। अगर तुम उन्हें स्वीकार करने से इनकार करते हो, तो क्या यह ठीक है? क्या इस बात का कोई मतलब है कि तुम उन्हें स्वीकार करते हो या नहीं? नहीं, कोई मतलब नहीं है। वह जब तुम्हें गिरफ़्तार करने पर आमादा हो जाता है, तो भेड़ को खाने पर आमादा भेड़िये की तरह तरह-तरह के बहाने ढूँढ़ता है। यह दावा करते हुए कि हमने कुछ बुरा किया है, बड़ा लाल अजगर कुछ मोर्चे बनाता है जबकि वास्तव में, वह काम दूसरे लोगों ने किया होता है। वह दोष मढ़ता है और कलीसिया को फँसाता है। क्या तुम उससे बहस कर सकते हो? (नहीं।) तुम उससे बहस क्यों नहीं कर सकते? क्या तुम उससे स्पष्ट तर्क कर सकते हो? क्या तुम सोचते हो कि बहस करने और स्थिति को समझाने से वह तुम्हें गिरफ़्तार नहीं करेगा? तुम उसे बहुत अच्छा मान रहे हो। इससे पहले कि तुम बोलना समाप्त करो, वह तुम्हें बालों से पकड़ कर तुम्हारा सिर दीवार पर पटक देगा, और फिर तुमसे पूछेगा, “क्या तुम जानते हो कि मैं कौन हूँ? मैं एक शैतान हूँ!” इसके बाद, तुम्हें बुरी तरह पीटा जाएगा, साथ ही दिन-रात बारी-बारी से पूछताछ होगी और यातनाएँ दी जाएँगी, और फिर तुम उनकी मर्जी के मुताबिक व्यवहार करना शुरू कर दोगे। इस बिंदु पर, तुम्हें एहसास होगा कि “यहाँ तर्क के लिए कोई जगह नहीं है; यह एक जाल है!” बड़ा लाल अजगर तुमसे बहस नहीं करता है—क्या तुम्हें लगता है कि वह बिना इरादे के, संयोगवश उन मोर्चों का निर्माण करता है? इसके पीछे साजिश होती है, और उसने अगले कदम की योजना बनाई होती है। यह तो उसके क्रियाकलापों की शुरूआत है। कुछ लोगों को अभी भी लग सकता है कि, “वे परमेश्वर में विश्वास करने से संबंधित मामलों को नहीं समझते; अगर मैं उन्हें समझाऊँ तो सब ठीक हो जाएगा।” क्या तुम उसे स्पष्ट रूप से समझा सकते हो? उसने तुम्हें किसी ऐसी चीज के लिए फंसाया है, जो तुमने नहीं की है—क्या तुम अभी भी चीजों को स्पष्ट रूप से समझा सकते हो? जब उसने तुम्हें फंसाया तो क्या वह नहीं जानता था कि तुमने ऐसा नहीं किया है? क्या वह इस बात से अनभिज्ञ है कि यह किसका काम है? वह बहुत अच्छी तरह से जानता है! तो वह तुम पर दोष क्यों मढ़ता है? तुम ही वह व्यक्ति हो जिसे उसे पकड़ना है। क्या तुम्हें लगता है कि जब वह तुम पर दोषारोपण कर रहा होता है तो उसे पता नहीं होता कि तुम्हारे साथ अन्याय हो रहा है? वह तुम्हारे साथ अन्याय करना चाहता है और तुम्हें गिरफ़्तार करके सताना चाहता है। यह दुष्टता है।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद सात : वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (भाग तीन)

दुष्ट स्वभाव दूसरे तरीके से भी प्रकट होते हैं। कुछ लोग देखते हैं कि परमेश्वर के घर में आयोजित सभाओं में हमेशा परमेश्वर के वचन पढ़ने से लेकर सत्य की संगति करने, आत्म-ज्ञान, कर्तव्य के उचित निर्वाह, सिद्धांतों के अनुसार कैसे कार्य करें से लेकर कैसे परमेश्वर का भय मानकर बुराई से दूर रहें, कैसे सत्य को समझें और उसका अभ्यास करें, और सत्य के तमाम दूसरे पहलुओं पर चर्चा होती है। इतने वर्षों तक सुनने के बाद वे जितना ज्यादा सुनते हैं, उतने ही ज्यादा उकताने लगते हैं और यह कहते हुए शिकायत करने लगते हैं, “क्या परमेश्वर में आस्था का उद्देश्य आशीष प्राप्त करना नहीं है? हम क्यों हमेशा सत्य के बारे में बात और परमेश्वर के वचनों पर संगति करते हैं? क्या इसका कोई अंत है? मैं इससे ऊब गया हूँ!” लेकिन वे सांसारिक दुनिया में नहीं लौटना चाहते। वे मन ही मन सोचते हैं, “परमेश्वर में आस्था बहुत नीरस है, उबाऊ है—मैं इसे थोड़ी और रोचक कैसे बना सकता हूँ? मुझे कोई रोचक चीज खोजनी होगी,” इसलिए वे पूछते फिरते हैं, “कलीसिया में परमेश्वर के कितने विश्वासी हैं? कितने अगुआ और कार्यकर्ता हैं? कितनों को बदला गया है? कितने युवा विश्वविद्यालयों के छात्र और स्नातक छात्र हैं? क्या किसी को संख्या मालूम है?” वे इन चीजों और आँकड़ों को सत्य मानते हैं। यह कौन-सा स्वभाव है? यह दुष्टता है, जिसे आम तौर पर “नीचता” कहा जाता है। उन्होंने बहुत-से सत्य सुन चुके हैं, लेकिन वे इनमें से किसी एक पर भी पर्याप्त ध्यान देने या ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित नहीं हुए। जैसे ही किसी के पास कोई गप या अंदर की खबर होती है, तुरंत उनके कान खड़े हो जाते हैं, वे उसे चूक जाने से डरते हैं। यह नीचता है, है न? (बिल्कुल।) नीच लोगों की क्या विशेषता होती है? उन्हें सत्य के प्रति जरा-सी भी रुचि नहीं होती। वे सिर्फ बाहरी मामलों में रुचि रखते हैं, और बिना थके और लोलुपता से गपशप और ऐसी चीजों की तलाश करते हैं जिनका उनके जीवन प्रवेश या सत्य से कोई संबंध नहीं होता। उन्हें लगता है कि इन सारी चीजों और जानकारी का पता लगाने और यह सब अपने दिमाग में रखने का मतलब है कि उनमें सत्य वास्तविकता है, कि वे पूर्णरूपेण परमेश्वर के घर के सदस्य हैं, कि परमेश्वर निश्चित रूप से उन्हें स्वीकृति देगा और वे परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने में सक्षम होंगे। क्या तुम लोगों को लगता है कि वास्तव में ऐसा है? (नहीं।) तुम लोग इसकी असलियत समझ सकते हो, लेकिन परमेश्वर के कई नए विश्वासी नहीं समझ सकते। वे इसी जानकारी पर ध्यान धरे रहते हैं, उन्हें लगता है कि इन चीजों को जानना उन्हें परमेश्वर के घर का सदस्य बनाता है—लेकिन वास्तव में, परमेश्वर ऐसे लोगों से सबसे ज्यादा घृणा करता है, वे सभी लोगों में सबसे बेकार, सतही और अज्ञानी होते हैं। परमेश्वर ने अंत के दिनों में लोगों का न्याय कर उन्हें शुद्ध करने का कार्य करने के लिए देह धारण किया है, जिसका परिणाम लोगों को जीवन के रूप में सत्य देना है। लेकिन अगर लोग परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने पर ध्यान नहीं देते और हमेशा अफवाहें तलाशने की कोशिश कर कलीसिया के आंतरिक मामलों के बारे में और ज्यादा जानने की कोशिश करते हैं तो क्या वे सत्य का अनुसरण कर रहे हैं? क्या वे उचित कार्य करने वाले लोग हैं? मेरे विचार से वे दुष्ट लोग हैं। वे छद्म-विश्वासी हैं। ऐसे लोगों को नीच भी कहा जा सकता है। वे सिर्फ सुनी-सुनाई बातों पर ध्यान देते हैं। इससे उनकी जिज्ञासा शांत होती है, लेकिन परमेश्वर उनका तिरस्कार करता है। वे ऐसे लोग नहीं हैं जो वास्तव में परमेश्वर में विश्वास करते हैं, सत्य का अनुसरण करने वाले लोग तो वे बिल्कुल भी नहीं हैं। वे असल में शैतान के सेवक हैं जो कलीसिया के कार्य में बाधा डालने आते हैं। इससे भी बढ़कर, जो लोग हमेशा परमेश्वर की जाँच और अन्वेषण करते रहते हैं, वे बड़े लाल अजगर के नौकर-चाकर हैं। परमेश्वर इन लोगों से सबसे ज्यादा नफरत और तिरस्कार करता है। अगर तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो, तो तुम परमेश्वर पर भरोसा क्यों नहीं करते? जब तुम परमेश्वर की जाँच और अन्वेषण करते हो तो क्या तुम सत्य की खोज कर रहे होते हो? क्या सत्य की खोज का उस परिवार से कोई संबंध है जिसमें मसीह का जन्म हुआ था या उस परिवेश से कोई संबंध है जिसमें वह पला-बढ़ा था? जो लोग हमेशा परमेश्वर की सूक्ष्म जाँच किया करते हैं—क्या वे घृणित नहीं हैं? अगर तुम्हारे मन में मसीह की मानवता से संबंधित चीजों के बारे में हमेशा धारणाएँ रहती हैं तो तुम्हें परमेश्वर के वचनों के ज्ञान का अनुसरण करने में ज्यादा समय लगाना चाहिए; जब तुम सत्य को समझोगे, तभी अपनी धारणाओं की समस्या दूर कर पाओगे। क्या मसीह की पारिवारिक पृष्ठभूमि या उसके जन्म की परिस्थितियों की जाँच करने से तुम परमेश्वर को जान पाओगे? क्या इससे तुम मसीह का दिव्य सार खोज लोगे? बिल्कुल नहीं। जो लोग वास्तव में परमेश्वर में विश्वास करते हैं, वे परमेश्वर के वचनों और सत्य के प्रति समर्पित होते हैं, सिर्फ यही मसीह का दिव्य सार जानने में सहायक है। लेकिन जो लोग लगातार परमेश्वर की जाँच करते रहते हैं, वे लगातार नीचता में क्यों लगे रहते हैं? आध्यात्मिक समझ से रहित इन तुच्छ लोगों को जल्दी से परमेश्वर के घर से बाहर निकल जाना चाहिए! सभाओं और उपदेशों के दौरान इतने सारे सत्य व्यक्त किए गए हैं, इतनी सारी संगति की गई है—फिर भी तुम लोग परमेश्वर की जाँच क्यों करते हो? इसका क्या अर्थ है कि तुम लोग हमेशा परमेश्वर की जाँच कर रहे हो? यही कि तुम अत्यंत दुष्ट हो! और तो और, ऐसे लोग भी हैं, जो सोचते हैं कि यह सब तुच्छ जानकारी प्राप्त करने से उन्हें पूँजी मिलती है और वे इसे लोगों को दिखाते फिरते हैं। और अंत में क्या होता है? वे परमेश्वर के लिए तिरस्कार योग्य और घृणित हैं। क्या वे इंसान भी हैं? क्या वे जीते-जागते राक्षस नहीं हैं? वे परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोग कैसे हैं? वे अपने तमाम विचार दुष्टता और कुटिलता के तरीके को समर्पित कर देते हैं। ऐसा लगता है, जैसे वे सोचते हों कि जितना ज्यादा वे सुनी-सुनाई बातें जानते हैं, उतना ही ज्यादा वे परमेश्वर के घर के सदस्य होते हैं और उतना ही ज्यादा वे सत्य समझते हैं। इस तरह के लोग बेहद बेतुके होते हैं। परमेश्वर के घर में उनसे ज्यादा घृणित कोई नहीं होता।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, छह प्रकार के भ्रष्ट स्वभावों का ज्ञान ही सच्चा आत्म-ज्ञान है

सबसे ज्यादा दुष्ट स्वभाव कौन-सा है, जिसे लोग परमेश्वर के सामने प्रकट करते हैं? वह है परमेश्वर की परीक्षा लेना। कुछ लोग चिंता करते हैं कि शायद उन्हें अच्छी मंजिल न मिले और शायद उनके परिणाम की गारंटी न हो, क्योंकि परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू करने के बाद वे भटक गए थे, उन्होंने कुछ बुरे काम किए थे और कई अपराध किए थे। उन्हें चिंता होती है कि वे नरक में जाएँगे, अपने परिणाम और मंजिल को लेकर वे लगातार डरे रहते हैं। वे लगातार चिंतित रहते हैं और हमेशा सोचते रहते हैं, “मेरा भावी परिणाम और मंजिल अच्छी होगी या बुरी? मैं नीचे नरक में जाऊँगा या ऊपर स्वर्ग में? मैं परमेश्वर के लोगों में से एक हूँ या सेवाकर्ता? मैं नष्ट हो जाऊँगा या बचाया जाऊँगा? मुझे यह पता लगाना होगा कि परमेश्वर के कौन-से वचन इस बारे में बताते हैं।” वे देखते हैं कि परमेश्वर के सभी वचन सत्य हैं और वे सब लोगों के भ्रष्ट स्वभाव उजागर करते हैं और उन्हें वे उत्तर नहीं मिलते जिन्हें वे खोजते हैं, इसलिए वे लगातार सोचते रहते हैं कि और कहाँ पूछताछ की जाए। बाद में जब उन्हें पदोन्नत होने और महत्वपूर्ण भूमिका में रखे जाने का अवसर मिलता है, तो वे यह कहते हुए ऊपर वाले से पता लगाना चाहते हैं : “मेरे बारे में ऊपर वाले की क्या राय है? अगर उसकी राय अनुकूल है, तो इससे साबित होता है कि परमेश्वर ने मेरे द्वारा अतीत में किए गए बुरे काम और अपराध याद नहीं रखे हैं। इससे साबित होता है कि परमेश्वर अभी भी मुझे बचाएगा और मुझे अभी भी उम्मीद है।” फिर अपने विचारों का अनुगमन करते हुए वे सीधे कहते हैं, “जहाँ हम हैं, वहाँ अधिकांश भाई-बहन अपने पेशे में बहुत कुशल नहीं हैं और उन्हें परमेश्वर में विश्वास रखते हुए बहुत कम समय हुआ है। मैं सबसे अधिक समय से परमेश्वर में विश्वास रखता आया हूँ। मैं गिरा हूँ और असफल हुआ हूँ, मैंने कुछ अनुभव किए हैं और कुछ सबक भी सीखे हैं। अगर मौका मिले, तो मैं भारी दायित्व उठाने और परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशीलता दिखाने के लिए तैयार हूँ।” वे ये शब्द यह देखने के लिए एक परीक्षा के रूप में इस्तेमाल करते हैं कि क्या ऊपर वाले का उन्हें पदोन्नत करने का कोई इरादा है या ऊपर वाले ने उन्हें त्याग दिया है। असलियत यह है कि वे वास्तव में यह जिम्मेदारी या दायित्व नहीं उठाना चाहते; ये शब्द कहने का उनका उद्देश्य सिर्फ संभावनाओं का पता लगाना और यह देखना होता है कि क्या उनके अभी भी बचाए जाने की उम्मीद है। यह परीक्षा है। परीक्षा के इस नजरिये के पीछे कौन-सा स्वभाव है? यह एक दुष्ट स्वभाव है। चाहे इस नजरिये को कितने भी समय के लिए प्रकट किया जाए, वे इसे कैसे भी करें या इसे कितना भी लागू किया जाए, हर हाल में वे जो स्वभाव प्रकट करते हैं वह निश्चित रूप से दुष्ट होता है, क्योंकि इसे करने के दौरान उनके मन में कई विचार, आशंकाएँ और चिंताएँ होती हैं।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, प्रकरण पाँच : मसीह-विरोधियों के चरित्र और उनके स्वभाव सार का सारांश (भाग दो)

अगर कोई व्यक्ति परमेश्वर के नाम का उल्लेख किए जाने पर कुपित हो जाता है और क्रोध से फनफना उठता है, तो क्या उसने परमेश्वर को देखा है? क्या वह जानता है कि परमेश्वर कौन है? वह नहीं जानता कि परमेश्वर कौन है, उस पर विश्वास नहीं करता और परमेश्वर ने उससे बात नहीं की है। परमेश्वर ने उसे कभी परेशान नहीं किया है, तो फिर वह गुस्सा क्यों होता है? क्या हम कह सकते हैं कि यह व्यक्ति दुष्ट है? दुनिया के रुझान, खाना, पीना और सुख की खोज करना, और मशहूर हस्तियों के पीछे भागना—इनमें से कोई भी चीज ऐसे व्यक्ति को परेशान नहीं करेगी। किंतु “परमेश्वर” शब्द या परमेश्वर के वचनों के सत्य के उल्लेख मात्र से ही वह आक्रोश से भर जाता है। क्या यह दुष्ट प्रकृति का होना नहीं है? यह ये साबित करने के लिए पर्याप्त है कि इस मनुष्य की प्रकृति दुष्ट है। अब, तुम लोगों की बात करें, क्या ऐसे अवसर आए हैं, जब सत्य का उल्लेख हो या परमेश्वर द्वारा मानवजाति के परीक्षणों या मनुष्य के विरुद्ध परमेश्वर के न्याय के वचनों का उल्लेख किया जाए, और तुम्हें अरुचि महसूस हो; तिरस्कार महसूस हो, और तुम ऐसी बातें न सुनना चाहो? तुम्हारा हृदय सोच सकता है : “क्या सभी लोग नहीं कहते कि परमेश्वर सत्य है? इनमें से कुछ वचन सत्य नहीं हैं! ये स्पष्ट रूप से सिर्फ परमेश्वर द्वारा मनुष्य की भर्त्सना के वचन हैं!” कुछ लोग अपने दिलों में अरुचि भी महसूस कर सकते हैं और सोच सकते हैं : “यह हर दिन बोला जाता है—उसके परीक्षण, उसका न्याय, यह कब ख़त्म होगा? हमें अच्छी मंजिल कब मिलेगी?” पता नहीं, यह अनुचित क्रोध कहाँ से आता है। यह किस प्रकार की प्रकृति है? (दुष्ट प्रकृति।) यह शैतान की दुष्ट प्रकृति से निर्देशित और मार्गदर्शित होती है।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है V

सभी बुरे लोगों में दुष्ट स्वभाव होते हैं। कुछ दुष्टता क्रूर स्वभावों के माध्यम से व्यक्त होती है, जैसे कि अक्सर भोले-भाले लोगों पर धौंस जमाना, उनके साथ व्यंग्यात्मक या ताने-भरे तरीके से व्यवहार करना, उन्हें हमेशा मजाक का पात्र बनाना और उनका फायदा उठाना। जब बुरे लोग किसी दूसरे बुरे व्यक्ति को देखते हैं तो बेहद सम्मान दिखाते हैं, लेकिन जब वे किसी कमजोर व्यक्ति को देखते हैं, तो वे उसे दबाते हैं और अपना रौब दिखाते हैं। ये बेहद क्रूर और दुष्ट लोग होते हैं। जो कोई भी ईसाइयों पर धौंस जमाता या उन पर अत्याचार करता है, वह इंसान के भेस में छिपा हुआ शैतान है; वह एक आत्मा विहीन जानवर है, और शैतान का पुनर्जन्म है। अगर दुष्ट लोगों के जमावड़े में ऐसे लोग हैं जो भोले-भाले लोगों पर धौंस नहीं जमाते, ईसाइयों के साथ क्रूरता नहीं करते, जो केवल उन लोगों पर अपना क्रोध निकालते हैं जो उनके स्वार्थ को नुकसान पहुँचाते हैं, तो ये लोग अविश्वासियों के बीच अच्छे लोग माने जाते हैं। लेकिन मसीह-विरोधियों की दुष्टता किस तरह भिन्न होती है? मसीह-विरोधियों की दुष्टता मुख्य रूप से प्रतिस्पर्धा के लिए उनके विशेष झुकाव में अभिव्यक्त होती है। वे स्वर्ग से होड़ करने, धरती से होड़ करने और दूसरे लोगों से होड़ करने की हिम्मत करते हैं। न केवल वे दूसरों को खुद पर धौंस नहीं जमाने देते, बल्कि वे दूसरों पर धौंस जमाते और उन्हें दंडित भी करते हैं। हर दिन वे सोच-विचार करते रहते हैं कि लोगों को कैसे दंडित किया जाए। अगर वे किसी से ईर्ष्या करते हैं या किसी से नफरत करते हैं, तो वे इसे कभी नहीं छोड़ेंगे। मसीह-विरोधी इस तरह से दुष्ट होते हैं। यह दुष्टता और कहाँ अभिव्यक्त होती है? यह उनके काम करने के कुटिल तरीके में देखी जा सकती है, जिसे थोड़े दिमाग वाले, थोड़े ज्ञान और थोड़े सामाजिक अनुभव वाले लोगों को पहचानने में कठिनता होती है। वे असाधारण रूप से कुटिल तरीके से काम करते हैं, और यह दुष्टता तक पहुँच जाता है; यह साधारण धोखेबाजी नहीं है। वे छिपकर खेल कर सकते हैं और चालें चल सकते हैं, और ज्यादातर लोगों की तुलना में वे ऐसा ऊँचे स्तर पर करते हैं। ज्यादातर लोग उनसे मुकाबला नहीं कर सकते और उनसे निपट नहीं सकते। यही मसीह-विरोधी है। मैं क्यों कहता हूँ कि आम लोग उनसे नहीं निपट सकते? क्योंकि उनकी दुष्टता इतनी चरम पर है कि उनके पास लोगों को गुमराह करने की बहुत बड़ी शक्ति है। वे लोगों से अपनी आराधना करवाने और अपना अनुसरण करवाने के लिए हर तरह के तरीके सोच सकते हैं। वे कलीसिया के काम में व्यवधान डालने और उसे नुकसान पहुँचाने के लिए सभी प्रकार के लोगों का शोषण भी कर सकते हैं। ऐसी परिस्थितियों में, परमेश्वर का घर बार-बार मसीह विरोधियों की हर तरह की अभिव्यक्ति, स्वभाव और सार पर संगति करता रहता है, ताकि लोग उन्हें पहचान सकें। यह आवश्यक है। कुछ लोग समझ नहीं पाते, और कहते हैं, “हमेशा मसीह-विरोधियों को पहचानने के तरीके पर संगति क्यों की जाती है?” क्योंकि मसीह-विरोधी लोगों को गुमराह करने में बहुत अधिक सक्षम हैं। वे कई लोगों को गुमराह कर सकते हैं, किसी प्राणघातक महामारी की तरह, जो अपने संक्रमण के माध्यम से एक ही प्रकोप में कई लोगों को नुकसान पहुँचा सकती है और मार सकती है; अत्यधिक संक्रामक और व्यापक होती है, और उसकी संक्रामकता और मृत्यु दर काफी अधिक होती है। क्या ये गंभीर परिणाम नहीं हैं? अगर मैं तुम लोगों के साथ इस तरह संगति न करूँ, तो क्या तुम लोग मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह और बेबस किए जाने से बच सकते हो? क्या तुम लोग सचमुच परमेश्वर की ओर मुड़ सकते हो और उसके प्रति समर्पित हो सकते हो? यह बहुत मुश्किल है। जब साधारण लोग अहंकारी स्वभाव प्रकट करते हैं, तो अधिक से अधिक यह दूसरों को उनके अहंकार की बदसूरत स्थिति को दिखाता है। कभी-कभी वे शेखी बघारते हैं, कभी-कभी वे इतराते हैं, दिखावा करते हैं और कभी-कभी वे अपने रुतबे का रौब जमाकर दूसरों को उपदेश देना पसंद करते हैं। लेकिन क्या मसीह-विरोधियों के साथ भी ऐसा ही होता है? ऊपर से, वे अपने रुतबे का रौब जमाते या उसे पसंद करते न दिखें, वे कभी भी रुतबे में दिलचस्पी लेते न दिखें, लेकिन अंदर ही अंदर उनमें इसकी प्रबल इच्छा होती है। यह कुछ सम्राटों या अविश्वासियों के डाकू सरदारों की तरह होता है : अपनी भूमि के लिए लड़ते समय वे मिलकर अपने साथियों के साथ कष्ट सहते हैं, विनम्र और महत्वाकांक्षाहीन दिखाई देते हैं। लेकिन क्या तुमने उनके दिलों की गहराई में छिपी इच्छाओं को देखा है? वे ऐसे कष्ट क्यों सह पाते हैं? ये उनकी इच्छाएँ हैं जो उन्हें मजबूत बनाती हैं। वे अंदर ही अंदर एक बड़ी महत्वाकांक्षा रखते हैं, कोई भी पीड़ा सहने या किसी भी बदनामी, मानहानि, अपराध और अपमान को सहने के लिए तैयार रहते हैं ताकि वे एक दिन सिंहासन पर बैठ सकें। क्या यह कुटिलता नहीं है? क्या वे किसी को अपनी इस महत्वाकांक्षा के बारे में बता सकते हैं? (नहीं।) वे इसे छिपाते हैं और इसे गुप्त रखते हैं। ऊपर-ऊपर जो दिखाई देता है वह एक ऐसा व्यक्ति होता है जो उसे झेल सकता है जो दूसरे नहीं झेल सकते, जो असहनीय कष्टों को सहन कर सकता है, जो दृढ़ निश्चयी, महत्वाकांक्षाहीन, विनम्र और अपने आसपास के लोगों के लिए अच्छा दिखाई देता है। लेकिन जिस दिन वह सिंहासन पर चढ़ता है और वास्तविक शक्ति प्राप्त करता है, अपने अधिकार को मजबूत करने और उसे हड़पे जाने से रोकने के लिए वह उन सभी को मार देता है जिन्होंने उसके साथ कष्ट सहे थे और लड़ाई लड़ी थी। जब सत्य सामने आता है, तभी लोगों को एहसास होता है कि वे कितने चालाक हैं। जब तुम पीछे मुड़कर देखते हो और पाते हो कि उन्होंने जो कुछ भी किया वह महत्वाकांक्षा से प्रेरित था, तो तुम्हें पता चलता है कि उनका स्वभाव दुष्टता का था। यह कौन सी चाल थी? यह कुटिलता थी। यह मसीह-विरोधियों के काम करने का स्वभाव होता है। मसीह-विरोधी और आधिकारिक शक्ति का उपयोग करने वाले शैतान राजा एक ही तरह के होते हैं; अगर उन्हें शक्ति और रुतबा न मिले तो वे कलीसिया में बिना किसी कारण कष्ट नहीं झेलेंगे और कष्ट सहन नहीं करेंगे। दूसरे शब्दों में, ये लोग साधारण अनुयायी होने, परमेश्वर के घर में परमेश्वर के सामान्य उपासकों के रूप में रहने या चुपचाप और गुमनाम ढंग से कुछ कर्तव्य करने से बिल्कुल संतुष्ट नहीं होते; वे निश्चित रूप से ऐसा करने के लिए तैयार नहीं होंगे। यदि किसी रुतबे वाले व्यक्ति को इसलिए बदल दिया जाता है क्योंकि वह मसीह-विरोधी के मार्ग पर चला था, और वह सोचता है, “अब रुतबे के बिना मैं सीधे-सीधे एक साधारण व्यक्ति की तरह काम करूँगा, जो भी कर्तव्य कर सकता हूँ, करूँगा; मैं रुतबे के बिना भी परमेश्वर पर विश्वास कर सकता हूँ,” तो क्या वह मसीह-विरोधी है? नहीं, यह व्यक्ति एक बार मसीह-विरोधी के मार्ग पर चला था, एक बार क्षणिक मूर्खता के कारण गलत मार्ग पर चला था, लेकिन वह मसीह-विरोधी नहीं है। एक सच्चा मसीह-विरोधी क्या करेगा? यदि वह अपना रुतबा खो देता है, तो वह अब और विश्वास नहीं करेगा। इतना ही नहीं, वह दूसरों को गुमराह करने, दूसरों से अपनी आराधना करवाने और अपना अनुसरण करवाने, अपनी महत्वाकांक्षा और सत्ता पाने की इच्छा पूरी करने के लिए विभिन्न तरीकों के बारे में भी सोचेगा। मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चलने वालों और वास्तविक मसीह-विरोधियों के बीच यही अंतर होता है। हम मसीह-विरोधी के इन स्वभाव सार और अभिव्यक्तियों का विश्लेषण और गहन विश्लेषण करते हैं क्योंकि इस मुद्दे की प्रकृति बहुत गंभीर है। अधिकांश लोग मसीह-विरोधी को नहीं पहचान सकते। साधारण भाई-बहनों की बात तो दूर, यहाँ तक कि कुछ अगुआ और कार्यकर्ता भी जो यह सोचते हैं कि वे कुछ सत्य समझते हैं, वे भी मसीह-विरोधियों को पहचानने में पूरी तरह से निपुण नहीं हैं। यह कहना मुश्किल है कि उन्होंने कितनी निपुणता हासिल की है, जो दर्शाता है कि उनका आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है। केवल वे ही लोग सच्चे आध्यात्मिक कद वाले लोग होते हैं जो मसीह-विरोधियों को सही-सही पहचान सकते हैं।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद छह

मसीह-विरोधियों के दुष्ट सार की सबसे सामान्य अभिव्यक्ति यह है कि वे दिखावे और पाखंड में विशेष रूप से अच्छे होते हैं। अपने विशेष रूप से शातिर, कपटी, निर्दयी और अहंकारी स्वभाव के बावजूद वे खुद को बाहरी तौर पर विशेष रूप से विनम्र और सौम्य व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करते हैं। क्या यह दिखावा नहीं है? ये लोग अपने दिलों में प्रतिदिन यह सोचते हुए चिंतन करते हैं, “खुद को ज्यादा ईसाई, ज्यादा ईमानदार, ज्यादा आध्यात्मिक, ज्यादा दायित्व उठाने वाला और ज्यादा अगुआ-जैसा दिखाने के लिए मुझे कैसे कपड़े पहनने चाहिए? मुझे कैसे खाना चाहिए, ताकि लोगों को लगे कि मैं काफी परिष्कृत, शिष्ट, प्रतिष्ठित और नेक हूँ? अगुआई और करिश्मे का आभास देने, साधारण व्यक्ति के बजाय एक असाधारण व्यक्ति की तरह दिखने के लिए मुझे चलने की कौन-सी मुद्रा अपनानी चाहिए? दूसरों के साथ बातचीत में कौन-सा लहजा, शब्दावली, रूप और चेहरे के हाव-भाव लोगों को यह महसूस करा सकते हैं कि मैं उच्च वर्ग का हूँ, एक सामाजिक अभिजात वर्ग या उच्च श्रेणी के बुद्धिजीवी जैसा हूँ? मेरा पहनावा, शैली, बोल-चाल और व्यवहार कैसे लोगों से मुझे उच्च सम्मान कैसे दिला सकते हैं, कैसे उन पर एक अमिट छाप छोड़ सकते हैं और यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि मैं हमेशा उनके दिलों में बना रहूँ? लोगों के दिल जीतने और उनमें गर्मजोशी भरने और एक स्थायी छाप छोड़ने के लिए मुझे क्या कहना चाहिए? मुझे दूसरों की मदद करने और उनके बारे में अच्छी बातें करने का काम और ज्यादा करना चाहिए, लोगों के सामने अक्सर परमेश्वर के वचनों के बारे में बात करनी चाहिए और कुछ आध्यात्मिक शब्दावली का इस्तेमाल करना चाहिए, दूसरों को परमेश्वर के वचन और ज्यादा पढ़कर सुनाने चाहिए, उनके लिए ज्यादा प्रार्थना करनी चाहिए, धीमी आवाज में बोलना चाहिए ताकि लोग उत्सुक होकर मेरी बात सुनें, और उन्हें यह महसूस कराना चाहिए कि मैं कोमल, देखभाल करने वाला, प्रेमपूर्ण, उदार और क्षमाशील हूँ।” क्या यह दिखावा नहीं है? ये वे विचार हैं जो मसीह-विरोधियों के दिलों पर कब्जा किए रहते हैं। उनके विचारों को कुछ और नहीं, बल्कि गैर-विश्वासियों की प्रवृत्तियाँ भरती हैं, जो पूरी तरह से यह दर्शाता है कि उनके विचार और दृष्टिकोण दुनिया और शैतान से संबंधित हैं। कुछ लोग अकेले में वेश्या या बदचलन महिला की तरह कपड़े पहन सकते हैं; उनके कपड़े विशेष रूप से बुरी प्रवृत्तियों के अनुरूप और खास तौर से फैशनेबल होते हैं। लेकिन जब वे कलीसिया में आते हैं, तो भाई-बहनों के बीच वे पूरी तरह से अलग पोशाक पहनते और चाल-ढाल अपनाते हैं। क्या वे दिखावा करने में बेहद माहिर नहीं हैं? (बिल्कुल हैं।) मसीह-विरोधी अपने दिलों में जो सोचते हैं, जो वे करते हैं, उनकी विभिन्न अभिव्यक्तियाँ और जो स्वभाव वे प्रकट करते हैं, वे सभी स्पष्ट करते हैं कि उनका स्वभाव-सार दुष्ट है। मसीह-विरोधी सत्य, सकारात्मक चीजों, सही मार्ग या परमेश्वर की अपेक्षाओं पर विचार नहीं करते। उनके विचार और उनके द्वारा चुने जाने वाले नजरिये, तरीके और लक्ष्य सब दुष्ट होते हैं—वे सब सही मार्ग से भटक जाते हैं और सत्य के साथ असंगत होते हैं। यहाँ तक कि वे सत्य के विरुद्ध भी चले जाते हैं और सामान्य तौर पर उन्हें बुरे व्यक्तियों के रूप में सारांशित किया जा सकता है; बात यह है कि इस बुरे व्यक्ति की प्रकृति दुष्ट होती है—इसलिए इसे सामूहिक रूप से दुष्टता कहा जाता है। वे ईमानदार व्यक्ति होने, शुद्ध और खुले होने या ईमानदार और वफादार होने पर विचार नहीं करते; इसके बजाय वे दुष्ट तरीकों के बारे में सोचते हैं। उदाहरण के लिए, एक ऐसे व्यक्ति को लो, जो अपने बारे में शुद्ध तरीके से खुलकर बता सकता हो, जो एक सकारात्मक चीज और सत्य का अभ्यास करना है। क्या मसीह-विरोधी ऐसा करते हैं? (नहीं।) वे क्या करते हैं? वे लगातार दिखावा करते हैं और जब वे कुछ बुरा करके खुद को उजागर करने लगते हैं, तो वे इसे उग्र रूप से छिपाते हैं, खुद को सही ठहराकर अपना बचाव करते हैं और तथ्यों को छिपाते हैं—फिर वे अंततः अपने तर्क देते हैं। क्या इनमें से कोई भी अभ्यास सत्य का अभ्यास करने के बराबर है? (नहीं।) क्या इनमें से कोई भी सत्य-सिद्धांतों के अनुरूप है? बिल्कुल नहीं।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, प्रकरण पाँच : मसीह-विरोधियों के चरित्र और उनके स्वभाव सार का सारांश (भाग दो)

मसीह-विरोधियों की दुष्टता की प्राथमिक अभिव्यक्ति क्या है? वह यह है कि उन्हें स्पष्ट रूप से पता होता है कि क्या सही है और क्या सत्य के अनुरूप है, लेकिन जब उन्हें कुछ करना होता है, तो वे हमेशा वही चुनते हैं जो सिद्धांतों का उल्लंघन करता हो और सत्य के विरुद्ध हो, और जो उनके अपने हितों और पद के अनकूल हो—यह मसीह-विरोधियों के दुष्ट स्वभाव की प्राथमिक अभिव्यक्ति है। वे चाहे जितने वचनों और सिद्धांतों को समझते हों, धर्मोपदेशों में वे कितनी भी मधुर भाषा का उपयोग करते हों, या अन्य लोगों को वे कितनी भी आध्यात्मिक समझ रखने वाले लगते हों, पर जब वे काम करते हैं, तो वे केवल एक सिद्धांत और एक तरीका चुनते हैं, और वह है सत्य के विरुद्ध जाना, अपने हितों की रक्षा करना, और अंत तक सत्य का सौ प्रतिशत प्रतिरोध करना—यही वह सिद्धांत और तरीका है जिसके अनुसार वे कार्य करने का फैसला करते हैं। इसके अलावा, वे अपने हृदय में जिस परमेश्वर और सत्य की कल्पना करते हैं, वे वास्तव में कैसे हैं? सत्य के प्रति उनका रवैया केवल इसके बारे में बोलने और उपदेश देने में सक्षम होने की चाह तक है, उनका रवैया उसे अभ्यास में लाने का नहीं है। परमेश्वर के चुने हुए लोगों से खूब सम्मानित होने की इच्छा के साथ वे इसके बारे में केवल बातें करते हैं, और फिर इसका उपयोग कलीसिया के अगुआ के पद पर काबिज होने और परमेश्वर के चुने हुए लोगों पर प्रभुत्व स्थापित करने के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए करते हैं। वे अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए उपदेश सिद्धांत का उपयोग करते हैं—क्या यह सत्य की अवमानना करना, सत्य के साथ खिलवाड़ और सत्य को पैरों तले रौंदना नहीं है? क्या वे सत्य के साथ इस तरह के व्यवहार से परमेश्वर के स्वभाव का अपमान नहीं करते हैं? वे बस सत्य का उपयोग करते हैं। उनके हृदय में सत्य सिर्फ एक नारा है, कुछ ऊँचे शब्द हैं, ऐसे ऊँचे शब्द जिनका उपयोग वे लोगों को गुमराह करने और उन्हें जीतने के लिए कर सकते हैं, जो लोगों की अद्भुत चीजों की प्यास बुझा सकते हैं। वे सोचते हैं कि इस दुनिया में ऐसा कोई नहीं है जो सत्य का अभ्यास कर सके या सत्य को जी सके, कि ऐसा हो ही नहीं सकता, कि यह असंभव है, और केवल वही सत्य है जिसे हर कोई स्वीकार करता हो और जो व्यवहार्य हो। वे सत्य के बारे में बात भले ही करते हों, लेकिन अपने हृदय में वे स्वीकार नहीं करते हैं कि यह सत्य है। हम इस मामले का परीक्षण कैसे करें? (वे सत्य का अभ्यास नहीं करते।) वे कभी सत्य का अभ्यास नहीं करते; यह एक पहलू है। और दूसरा महत्वपूर्ण पहलू क्या है? जब वे वास्तविक जीवन में चीजों का सामना करते हैं, तो वे जिस धर्म-सिद्धांत को समझते हैं, वह कभी भी काम में नहीं लाए जा सकते। वे ऐसे दिखते हैं मानो उन्हें वास्तव में आध्यात्मिक समझ हो, वे एक के बाद एक धर्म-सिद्धांतों का प्रचार करते हैं, लेकिन जब वे मुद्दों का सामना करते हैं, तो उनके तरीके विकृत होते हैं। सत्य का अभ्यास करने में वे भले न सक्षम हों, लेकिन वे जो करते हैं उसे कम से कम मानवीय धारणाओं और कल्पनाओं के अनुरूप होना चाहिए, मानवीय मानकों और पसंद के अनुरूप होना चाहिए, और कम से कम यह सबके लिए स्वीकार्य होना चाहिए। इस तरह, उनकी स्थिति स्थिर रहेगी। यद्यपि, वास्तविक जीवन में वे जो काम करते हैं वे अविश्वसनीय रूप से विकृत होते हैं, और बस एक नजर डालने भर से पता चल जाता है कि वे सत्य नहीं समझते। वे सत्य क्यों नहीं समझते? अपने हृदय में वे सत्य से विमुख होते हैं, वे सत्य को स्वीकार नहीं करते, वे शैतानी दर्शनों के अनुसार काम करने में आनंद पाते हैं, मामलों को सँभालने के लिए वे हमेशा मानवीय तरीकों का उपयोग करना चाहते हैं, और उनके लिए बस इतना ही पर्याप्त होता है कि वे इन मामलों को संभालने के माध्यम से दूसरों को सहमत कर सकें और प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकें। यदि कोई मसीह-विरोधी किसी स्थान पर पहुंचने पर किसी को किसी खोखले सिद्धांत का प्रचार करते पाता है, तो वह बहुत उत्साहित हो जाता है, लेकिन यदि कोई सत्य वास्तविकता का उपदेश दे रहा हो और लोगों की विभिन्न स्थितियों आदि के विवरण दे रहा हो, तो उन्हें हमेशा लगता है कि वक्ता उनकी आलोचना कर रहा है और उनके दिल पर चोट कर रहा है, और इसलिए वे घृणा महसूस करते हैं और उसे नहीं सुनना चाहते। यदि उनसे इस बारे में संगति करने के लिए कहा जाए कि हाल ही में उनकी स्थिति कैसी रही है, क्या उन्होंने कोई प्रगति की है, और क्या उन्हें अपने कर्तव्य निभाने में किसी कठिनाई का सामना करना पड़ा है, तो उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं होता। यदि तुम सत्य के इस पहलू पर संगति करना जारी रखते हो, तो वे सो जाते हैं; उन्हें इस बारे में सुनना अच्छा नहीं लगता। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो तुम्हारे साथ गपशप करते समय खूब रुचि दिखाते हैं, लेकिन किसी को सत्य पर संगति करते हुए सुनते ही वे कोने में छिपकर बैठ जाते हैं और झपकी लेने लगते हैं—उन्हें सत्य से बिल्कुल भी प्रेम नहीं है। वे किस हद तक सत्य से प्रेम नहीं करते? गंभीरता से न देखें तो उनकी इसमें रुचि नहीं होती, और उनके लिए श्रमिक बनना ही पर्याप्त होता है; गंभीरता से देखा जाए तो वे सत्य से विमुख होते हैं, वे सत्य से विशेष रूप से घृणा महसूस करते हैं, और वे इसे स्वीकार नहीं कर सकते। यदि इस तरह का व्यक्ति अगुआ है, तो वह मसीह-विरोधी है; यदि वह कोई साधारण अनुयायी है, तो वह अभी भी मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चल रहा है और मसीह-विरोधियों का उत्तराधिकारी है। बाहर से वे बुद्धिमान और गुणी दिखते हैं, जिनमें कुछ बेहतर काबिलियत दिखती है, लेकिन उनका प्रकृति सार मसीह-विरोधियों वाला होता है—यह ऐसा ही है।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद सात : वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (भाग एक)

मसीह-विरोधियों जैसे लोग सभी सकारात्मक चीजों और सत्य के प्रति शत्रुता और गहरी वितृष्णा महसूस करते हैं। सत्य और सकारात्मक चीजों के प्रति उनकी शत्रुता और वितृष्णा के लिए किसी कारण की आवश्यकता नहीं होती, न ही यह किसी के उकसावे के परिणामस्वरूप होता है, और यह निश्चित रूप से उन पर किसी दुष्ट आत्मा का कब्जा हो जाने का परिणाम नहीं होता। इसके बजाय, वे स्वाभाविक रूप से इन चीजों को पसंद नहीं करते हैं। अपने जीवन और समूचे अस्तित्व के आंतरिक ढाँचे में वे इन चीजों के प्रति शत्रुता और घोर वितृष्णा महसूस करते हैं; जब वे सकारात्मक चीजों का सामना करते हैं तो उन्हें विकर्षण महसूस होता है। यदि तुम परमेश्वर की गवाही देते हो या उनके साथ सत्य के बारे में संगति करते हो, तो उनमें तुम्हारे प्रति घृणा पैदा हो जाएगी, और वे तुम पर हमला करने तक का मन बना सकते हैं। अपनी पिछली संगति में हमने मसीह-विरोधियों द्वारा सकारात्मक चीजों के प्रति शत्रुता और घृणा महसूस किए जाने के इस पहलू को शामिल किया था, इसलिए हम इस बार इस पर फिर से चर्चा नहीं करेंगे। इस संगति में हम एक और पहलू का पता लगाएंगे। वह दूसरा पहलू क्या है? मसीह विरोधी सकारात्मक चीजों के प्रति शत्रुता और घृणा महसूस करते हैं, तो उन्हें पसंद क्या है? आज हम मसीह-विरोधियों की दुष्ट प्रकृति का गहन विश्लेषण इस पक्ष और परिप्रेक्ष्य से करेंगे। क्या यह आवश्यक है? (हाँ।) यह आवश्यक है। क्या तुम लोग इसे अपने आप समझ सकते हो? (नहीं।) सकारात्मक चीजों और सत्य के प्रति मसीह-विरोधियों की नापसंदगी उनकी दुष्ट प्रकृति है। इसलिए, इस आधार पर ध्यान से विचार करो कि मसीह-विरोधियों को क्या पसंद है, और वे किस तरह की चीजें करना पसंद करते हैं, साथ ही कोई चीज करने में उनके काम करने का तरीका और साधन क्या होता है, और वे किस तरह के लोगों को पसंद करते हैं—क्या उनके दुष्ट प्रकृति को देखने का यह एक बेहतर परिप्रेक्ष्य और पक्ष नहीं है? यह अधिक विशिष्ट और वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण प्रदान करता है। सबसे पहले, मसीह-विरोधियों को सकारात्मक चीजें पसंद नहीं होतीं, जिसका अर्थ है कि वे उनके प्रति शत्रुता रखते हैं और नकारात्मक चीजें पसंद करते हैं। नकारात्मक चीजों के कुछ उदाहरण क्या हैं? झूठ और चालबाजी—क्या ये नकारात्मक चीजें नहीं हैं? हाँ, झूठ और चालबाजी नकारात्मक चीजें हैं। तो, झूठ और चालबाजी का सकारात्मक प्रतिरूप क्या है? (ईमानदारी।) ठीक कहा, यह ईमानदारी है। क्या शैतान को ईमानदारी पसंद है? (नहीं।) उसे चालबाजी पसंद है। परमेश्वर की मनुष्यों से सबसे पहली अपेक्षा क्या होती है? परमेश्वर कहता है, “यदि तुम मुझ पर विश्वास करना चाहते हो और मेरा अनुसरण करना चाहते हो, तो तुम्हें सबसे पहले किस तरह का व्यक्ति होना चाहिए?” (एक ईमानदार व्यक्ति।) तो, शैतान लोगों को सबसे पहले क्या करना सिखाता है? झूठ बोलना। मसीह-विरोधियों की दुष्ट प्रकृति का पहला प्रमाण क्या है? (चालबाजी।) हाँ, मसीह-विरोधियों को चालबाजी पसंद है, उन्हें झूठ पसंद है, और ईमानदारी से उन्हें अरुचि और घृणा है। यद्यपि, ईमानदारी सकारात्मक चीज है, लेकिन वे इसे पसंद नहीं करते, और इसके बजाय वे ईमानदारी के प्रति विकर्षण और घृणा महसूस करते हैं। इसके विपरीत, उन्हें चालाकी और झूठ पसंद है। यदि कोई मसीह-विरोधियों के सामने अक्सर सत्यवादन करते हुए कुछ ऐसा कहता है कि “तुम्हें रुतबेदार स्थिति में काम करना पसंद है, और कभी-कभी तुम आलस्य करते हो,” तो मसीह-विरोधियों को यह कैसा लगता है? (वे इसे स्वीकार नहीं करते।) इसे स्वीकार न करना उनके रवैयों में से एक है, लेकिन क्या बस इतना ही है? सत्यवादन करने वाले इस व्यक्ति के प्रति उनका रवैया क्या होता है? वे विकर्षण महसूस करते हैं, और उन्हें पसंद नहीं करते। कुछ मसीह-विरोधी भाई-बहनों से कहते हैं, “मैं पिछले कुछ समय से तुम्हारी अगुआई कर रहा हूँ। कृपया तुम सब मेरे बारे में अपनी राय बताओ।” हर व्यक्ति सोचता है, “क्योंकि तुम इतनी ईमानदारी से पूछ रहे हो, इसलिए हम तुम्हें प्रतिक्रिया देंगे।” कुछ कहते हैं, “तुम जो कुछ भी करते हो, वह तुम बहुत गंभीरता और मेहनत से करते हो, और तुमने बहुत से कष्ट सहे हैं। हमारे लिए यह देखना मुश्किल है, और हम तुम्हारे लिए व्यथित महसूस करते हैं। परमेश्वर के घर को तुम्हारे जैसे और अगुआओं की जरूरत है! अगर कोई कमी बतानी हो, तो वह यह है कि तुम बहुत गंभीर और मेहनती हो। अगर तुम बहुत ज्यादा काम करोगे और चुक जाओगे, तो काम करना जारी नहीं रख सकोगे, और क्या तब हमारा काम तमाम नहीं हो जाएगा? हमारी अगुआई कौन करेगा?” जब मसीह-विरोधी यह सुनते हैं, तो वे प्रसन्न हो जाते हैं। वे जानते हैं कि यह झूठ है, कि ये लोग उनसे फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन वे यही सुनना चाहते हैं। वास्तव में, ऐसा कहने वाले लोग इन मसीह-विरोधियों को मूर्ख बना रहे होते हैं, लेकिन ये मसीह-विरोधी इन शब्दों की वास्तविक प्रकृति को प्रकट करने के बजाय मूर्ख बनना पसंद करते हैं। मसीह-विरोधियों को ऐसे लोग पसंद होते हैं जो इस तरह से उनके तलवे चाटते हैं। ये लोग मसीह-विरोधियों की गलतियों, भ्रष्ट स्वभाव या कमियों को सामने नहीं लाते। इसके बजाय, वे गुप्त रूप से उनकी प्रशंसा करते हैं और उन्हें ऊंचा उठाते हैं। भले ही यह स्पष्ट हो कि उनके शब्द झूठे और चापलूसी-भरे हैं, मसीह-विरोधी इन शब्दों को खुशी-खुशी स्वीकार करते हैं, उनसे सांत्वना और प्रसन्नता पाते हैं। मसीह-विरोधियों के लिए ये शब्द उत्तम व्यंजनों का स्वाद लेने से बेहतर हैं। इन शब्दों को सुनने के बाद वे फूले नहीं समाते। यह क्या बताता है? यह बताता है कि मसीह-विरोधियों के भीतर एक ऐसा स्वभाव है जो झूठ को पसंद करता है। मान लो कोई उनसे कहता है, “तुम बहुत घमंडी हो, और तुम लोगों के साथ अनुचित व्यवहार करते हो। तुम उन लोगों के साथ अच्छे हो जो तुम्हारा समर्थन करते हैं, लेकिन अगर कोई तुमसे दूर रहता है या तुम्हारी चापलूसी नहीं करता, तो तुम उसे नीचा दिखाते हो और उसकी उपेक्षा करते हो।” क्या ये शब्द सच नहीं हैं? (हाँ, ये सच हैं।) यह बात सुनने के बाद मसीह-विरोधी कैसा महसूस करते हैं? वे अप्रसन्न हो जाते हैं। वे ऐसी बातें सुनना नहीं चाहते, और उन्हें स्वीकार नहीं कर सकते। वे स्पष्टीकरण देने और चीजों को शांत करने के लिए बहाने और कारण खोजने की कोशिश करते हैं। जहाँ तक उन लोगों की बात है जो व्यक्तिगत रूप से मसीह-विरोधियों की लगातार चापलूसी करते हैं, जो हमेशा उनकी प्रशंसा में परोक्ष रूप से मधुर शब्द बोलते हैं, और यहाँ तक कि अपने शब्दों से उन्हें स्पष्ट रूप से धोखा देते हैं, मसीह-विरोधी कभी भी उन लोगों की जाँच नहीं करते हैं। इसके बजाय, मसीह-विरोधी उनका उपयोग महत्वपूर्ण व्यक्तियों के रूप में करते हैं। वे हमेशा झूठ बोलने वालों को महत्वपूर्ण पदों पर रखते हैं, उन्हें कुछ महत्वपूर्ण और सम्मानजनक कर्तव्य सौंपते हैं, जबकि हमेशा ईमानदारी से बोलने वालों और अक्सर मुद्दों की सूचना देने वालों को कम महत्व के पदों पर रखने की व्यवस्था करते हैं, जिससे उन्हें उच्च अगुआओं तक पहुँचने या अधिकांश लोगों को उनके बारे में जानने या उनके करीब होने से रोका जा सके। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि ये लोग कितने प्रतिभाशाली हैं या वे परमेश्वर के घर में क्या कर्तव्य कर सकते हैं—मसीह-विरोधी इन सारी बातों की अनदेखी करते हैं। वे केवल इस बात की परवाह करते हैं कि कौन छल-प्रपंच कर सकता है और कौन उनके लिए फायदेमंद है; ये वे लोग हैं जिन्हें वे परमेश्वर के घर के हितों पर जरा भी विचार किए बिना महत्वपूर्ण पदों पर रखते हैं।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद सात : वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (भाग दो)

मसीह-विरोधी अपने अंतर्निहित दुष्ट स्वभाव के कारण कभी सीधे-सीधे बात या काम नहीं करते। वे चीजों को ईमानदार रवैये और निष्ठा से नहीं सँभालते या ईमानदार शब्दों में बात और हृदयस्पर्शी रवैये से काम नहीं करते। जो कुछ भी वे कहते या करते हैं, वह बेबाक नहीं होता, बल्कि घुमावदार और लुका-छिपा होता है, और वे कभी अपने विचार या प्रयोजन सीधे तौर पर व्यक्त नहीं करते। चूँकि वे मानते हैं कि अगर वे उन्हें व्यक्त करेंगे, तो उन्हें पूरी तरह से समझ और जान लिया जाएगा, उनकी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ प्रकाश में उजागर हो जाएँगी और वे दूसरे लोगों के बीच उच्च या कुलीन नहीं माने जाएँगे या दूसरे उनका आदर और आराधना नहीं करेंगे; इसलिए वे हमेशा अपने बदनाम उद्देश्य और इच्छाएँ ढकने-छिपाने की कोशिश करते हैं। तो वे कैसे बोलते और काम करते हैं? वे विभिन्न तरीके इस्तेमाल करते हैं। जैसी कि गैर-विश्वासियों के बीच कहावत है, “स्थिति का पता लगाना,” मसीह-विरोधी भी ऐसा ही नजरिया अपनाते हैं। जब वे कुछ करना चाहते हैं और उनका कोई खास दृष्टिकोण या रवैया होता है, तो वे उसे कभी सीधे तौर पर व्यक्त नहीं करते; बल्कि वे कुछ खास तरीके इस्तेमाल करते हैं, जैसे कि धूर्ततापूर्ण या पूछताछ करने वाले तरीके या लोगों से बातें निकालकर वह जानकारी जुटाना जो वे चाहते हैं। अपने दुष्ट स्वभाव के कारण मसीह-विरोधी कभी सत्य नहीं खोजते, न ही वे उसे समझना चाहते हैं। उनकी एकमात्र चिंता अपनी प्रसिद्धि, लाभ और हैसियत को लेकर होती है। वे उन गतिविधियों में लिप्त होते हैं जो उन्हें प्रसिद्धि, लाभ और हैसियत दे सकती हो, और उनसे बचते हैं जो ऐसी चीजें नहीं देतीं। वे प्रतिष्ठा, हैसियत, अलग पहचान और महिमा से संबंधित गतिविधियों में उत्सुकता से शामिल होते हैं, जबकि उन चीजों से बचते हैं जो कलीसिया के काम की रक्षा करती हों या दूसरों को नाराज कर सकती हों। इसलिए मसीह-विरोधी किसी भी चीज को खोज के रवैये से नहीं देखते; बल्कि वे परीक्षा लेने के तरीके का इस्तेमाल चीजों का पता लगाने के लिए करते हैं और फिर यह तय करते हैं कि आगे बढ़ना है या नहीं—मसीह-विरोधी इतने चालाक और दुष्ट होते हैं। उदाहरण के लिए, जब वे यह जानना चाहते हैं कि परमेश्वर की नजर में वे कैसे व्यक्ति हैं, तो वे खुद को जानने के द्वारा परमेश्वर के वचनों के माध्यम से अपना आकलन नहीं करते। इसके बजाय वे चारों ओर पूछताछ करते हैं और निहित भाषणों को सुनते हैं, अगुआओं और ऊपर वाले के लहजे और रवैये को देखते हैं, और परमेश्वर के वचनों में यह देखते हैं कि परमेश्वर उनके जैसे लोगों के परिणाम कैसे निर्धारित करता है। वे इन मार्गों और तरीकों का उपयोग यह देखने के लिए करते हैं कि वे परमेश्वर के घर में किस स्थिति में हैं और यह पता लगाते हैं कि उनका भावी परिणाम क्या होगा। क्या इसमें किसी तरह की परीक्षा लेना शामिल नहीं है? उदाहरण के लिए, जब कुछ लोगों की काट-छाँट की जाती है, तो उसके बाद वे यह जाँच-पड़ताल करने के बजाय कि उनकी काट-छाँट क्यों की गई, अपने क्रियाकलापों के दौरान उनके द्वारा प्रकट किए गए भ्रष्ट स्वभावों और गलतियों की जाँच-पड़ताल क्यों की गई, और खुद को जानने और अपने पिछले दोष सुधारने के लिए उन्हें सत्य के कौन-से पहलू खोजने चाहिए, वे अपने प्रति ऊपर वाले के वास्तविक रवैये का पता लगाने के लिए अप्रत्यक्ष साधनों का उपयोग करके दूसरों पर झूठी छाप छोड़ते हैं। उदाहरण के लिए, काट-छाँट किए जाने के बाद वे जल्दी से एक महत्वहीन मुद्दा उठाकर उससे ऊपर वाले को खोजते हैं, यह देखने के लिए कि ऊपर वाले का लहजा कैसा है, क्या वह धैर्यवान है, क्या जो सवाल वे पूछ रहे हैं उनका गंभीरता से जवाब दिया जाएगा, क्या वह उनके प्रति नरम रवैया अपनाएगा, क्या वह उन्हें काम सौंपेंगा, क्या वह अब भी उनका सम्मान करेगा, और ऊपर वाला वास्तव में उनके द्वारा पहले की गई गलतियों के बारे में क्या सोचता है। ये सभी नजरिये एक तरह से परीक्षा लेना है। संक्षेप में, जब वे ऐसी परिस्थितियों का सामना करते हैं और ये अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हैं, तो क्या लोग अपने दिल में इसे जानते हैं? (हाँ, वे जानते हैं।) तो जब तुम जानते हो और ये चीजें करना चाहते हो, तो तुम लोग इसे कैसे सँभालते हो? पहले, सबसे सरल स्तर पर, क्या तुम अपने खिलाफ विद्रोह कर सकते हो? समय आने पर कुछ लोगों को अपने खिलाफ विद्रोह करना चुनौतीपूर्ण लगता है; वे इस पर सोचते हैं, “इसे भूल जाओ, इस बार यह मेरे आशीषों और परिणाम से संबंधित है। मैं अपने खिलाफ विद्रोह नहीं कर सकता। अगली बार करूँगा।” जब अगली बार आता है और वे फिर से अपने आशीषों और परिणाम से जुड़े किसी मुद्दे का सामना करते हैं, तो तब भी वे खुद को अपने खिलाफ विद्रोह करने में असमर्थ पाते हैं। ऐसे व्यक्तियों में जमीर होता है और हालाँकि उनमें मसीह-विरोधी का स्वभाव-सार नहीं होता, फिर भी यह उनके लिए काफी परेशानी भरा और खतरनाक होता है। दूसरी ओर, मसीह-विरोधी अक्सर ये विचार मन में रखते हैं और ऐसी अवस्था में रहते हैं, लेकिन वे कभी अपने खिलाफ विद्रोह नहीं करते, क्योंकि उनमें जमीर नहीं होता। अगर कोई उनकी अवस्थाएँ इंगित करते हुए उनकी काँट-छाँट करता भी है, तो भी वे डटे रहकर अपने खिलाफ बिल्कुल भी विद्रोह नहीं करेंगे, न ही वे इसके कारण खुद से घृणा करेंगे या इस अवस्था को छोड़कर इसका समाधान ही करेंगे। बर्खास्त किए जाने के बाद कुछ मसीह-विरोधी सोचते हैं, “बर्खास्त होना एक सामान्य बात लगती है, लेकिन कुछ हद तक अपमानजनक महसूस होती है। हालाँकि यह कोई महत्वपूर्ण बात नहीं है, लेकिन एक निर्णायक चीज है जिसे मैं नहीं छोड़ सकता। अगर मुझे बर्खास्त कर दिया जाता है, तो क्या इसका मतलब यह है कि परमेश्वर का घर अब मुझे विकसित नहीं करेगा? फिर मैं परमेश्वर की नजर में किस तरह का व्यक्ति रहूँगा? क्या मेरे पास अभी भी आशा होगी? क्या मैं अभी भी परमेश्वर के घर में किसी काम का रहूँगा?” वे इस पर विचार कर एक योजना बनाते हैं, “मेरे पास दस हजार युआन हैं और अब उनका उपयोग करने का समय है। मैं ये दस हजार युआन चढ़ावे के रूप में अर्पित कर देखूँगा कि क्या मेरे प्रति ऊपरवाले का रवैया थोड़ा बदल सकता है और क्या वह मेरे प्रति कुछ अनुग्रह दिखा सकता है। अगर परमेश्वर का घर पैसे स्वीकार कर लेता है, तो इसका मतलब है कि मेरे पास अभी भी आशा है। अगर वह पैसे अस्वीकार कर देता है, तो यह साबित होता है कि मेरे पास कोई आशा नहीं है और मैं अन्य योजनाएँ बनाऊँगा।” यह किस तरह का नजरिया है? यह परीक्षा लेना है। संक्षेप में, परीक्षा लेना दुष्ट स्वभाव-सार की अपेक्षाकृत स्पष्ट अभिव्यक्ति है। लोग इच्छित जानकारी प्राप्त करने, निश्चितता प्राप्त करने और फिर मन की शांति प्राप्त करने के लिए विभिन्न साधनों का उपयोग करते हैं। ... परमेश्वर के साथ पेश आने के लिए लोग चाहे किसी भी तरीके का उपयोग करें, अगर उनके मन में इसके बारे में अपराध-बोध होता है और फिर वे इन क्रियाकलापों और स्वभावों के बारे में ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं और तुरंत उन्हें बदल सकते हैं, तो फिर समस्या उतनी महत्वपूर्ण नहीं है—यह एक सामान्य भ्रष्ट स्वभाव है। लेकिन अगर कोई लगातार और हठपूर्वक ऐसा कर सकता है, भले ही उसे पता हो कि यह गलत है और परमेश्वर को इससे घृणा है, लेकिन वह इसमें लगा रहता है, कभी इसके विरुद्ध विद्रोह नहीं करता या इसे छोड़ता नहीं, तो यह मसीह-विरोधी का सार है। मसीह-विरोधी का स्वभाव-सार साधारण लोगों से अलग होता है, जिसमें वे कभी आत्मचिंतन नहीं करते या सत्य नहीं खोजते, बल्कि लगातार और हठपूर्वक परमेश्वर, लोगों के प्रति उसके रवैये, किसी व्यक्ति के बारे में उसके निष्कर्ष और किसी व्यक्ति के अतीत, वर्तमान और भविष्य के बारे में उसके विचारों और भावों की परीक्षा लेने के लिए विभिन्न तरीकों का उपयोग करते हैं। वे कभी परमेश्वर के इरादे, सत्य और खास तौर से यह नहीं खोजते कि अपने स्वभाव में बदलाव लाने के लिए सत्य के प्रति कैसे समर्पित हों। उनके तमाम क्रियाकलापों के पीछे का उद्देश्य परमेश्वर के विचारों और भावों की जाँच-पड़ताल करना है—यह मसीह-विरोधी है। मसीह-विरोधियों का यह स्वभाव स्पष्ट रूप से दुष्ट होता है। जब वे इन क्रियाकलापों में संलग्न होते हैं और ये अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हैं, तो उनमें अपराध-बोध या पश्चात्ताप का नामोनिशाँ तक नहीं होता। अगर वे खुद को इन चीजों से जोड़ते भी हैं, तो भी वे कोई पश्चात्ताप या रुकने का इरादा नहीं दिखाते, बल्कि तब भी अपने तौर-तरीकों पर कायम रहते हैं। परमेश्वर के प्रति उनके व्यवहार, रवैये और उनके नजरिये से यह स्पष्ट हो जाता है कि वे परमेश्वर को अपना विरोधी मानते हैं। उनके विचारों और दृष्टिकोणों में परमेश्वर को जानने, परमेश्वर से प्रेम करने, परमेश्वर के प्रति समर्पित होने या परमेश्वर का भय मानने का कोई विचार या रवैया नहीं होता; वे सिर्फ परमेश्वर से इच्छित जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं और अपने प्रति परमेश्वर का सटीक रवैया और अपने बारे में उसकी परिभाषा सुनिश्चित करने के लिए अपने ही तरीके और साधन इस्तेमाल करते हैं। ज्यादा गंभीर बात यह है कि भले ही वे अपने दृष्टिकोण परमेश्वर के प्रकाशन के वचनों के अनुरूप रखते हों, अगर उन्हें इस बात की थोड़ी-सी भी जानकारी हो कि यह व्यवहार परमेश्वर को घृणास्पद लगता है और किसी व्यक्ति को ऐसा नहीं करना चाहिए, तो भी वे इसे कभी नहीं छोड़ेंगे।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, प्रकरण छह : मसीह-विरोधियों के चरित्र और उनके स्वभाव सार का सारांश (भाग तीन)

मसीह-विरोधी केवल लाभ और आशीष प्राप्त करने के उद्देश्य से परमेश्वर पर विश्वास करते हैं। यदि वे कुछ कष्ट सहते हैं या कुछ कीमत चुकाते हैं, तो वह सब भी परमेश्वर के साथ सौदा करने के लिए होता है। आशीष और पुरस्कार प्राप्त करने की उनकी मंशा और इच्छा बहुत बड़ी होती है, और वे उससे कसकर चिपके रहते हैं। वे परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए अनेक सत्यों में से किसी को भी स्वीकार नहीं करते और अपने हृदय में हमेशा सोचते हैं कि परमेश्वर पर विश्वास करना आशीष प्राप्त करने और एक अच्छी जगह पहुंचना सुनिश्चित करने के लिए है, कि यह सर्वोच्च सिद्धांत है, और इससे बढ़कर कुछ भी नहीं हो सकता। वे सोचते हैं कि लोगों को आशीष प्राप्त करने के अलावा परमेश्वर पर विश्वास नहीं करना चाहिए, और अगर यह सब आशीष के लिए नहीं है, तो परमेश्वर पर विश्वास का कोई अर्थ या महत्व नहीं होगा, कि यह अपना अर्थ और मूल्य खो देगा। क्या ये विचार मसीह-विरोधियों में किसी और ने डाले थे? क्या ये किसी अन्य की शिक्षा या प्रभाव से निकले हैं? नहीं, वे मसीह-विरोधियों के अंतर्निहित प्रकृति सार द्वारा निर्धारित होते हैं, जिसे कोई भी नहीं बदल सकता। आज देहधारी परमेश्वर के इतने सारे वचन बोलने के बावजूद, मसीह-विरोधी उनमें से किसी को भी स्वीकार नहीं करते, बल्कि उनका विरोध करते हैं और उनकी निंदा करते हैं। सत्य के प्रति उनके विमुख होने और सत्य से घृणा करने की प्रकृति कभी नहीं बदल सकती। अगर वे बदल नहीं सकते, तो यह क्या संकेत करता है? यह संकेत करता है कि उनकी प्रकृति दुष्ट है। यह सत्य का अनुसरण करने या न करने का मुद्दा नहीं है; यह दुष्ट स्वभाव है, यह निर्लज्ज होकर परमेश्वर के विरुद्ध हल्ला मचाना और परमेश्वर को नाराज करना है। यह मसीह-विरोधियों का प्रकृति सार है; यही उनका असली चेहरा है। चूँकि मसीह-विरोधी निर्लज्जता से परमेश्वर के विरुद्ध हल्ला मचाने और उसका विरोध करने में सक्षम हैं, तो उनका स्वभाव क्या है? दुष्टता का। मैं क्यों कहता हूँ कि यह दुष्ट स्वभाव है? मसीह-विरोधी आशीष पाने के लिए, और प्रसिद्धि, लाभ और रुतबा पाने के लिए परमेश्वर का विरोध करने और उसके विरुद्ध शोर मचाने का साहस करते हैं। वे ऐसा करने का साहस क्यों करते हैं? उनके हृदय की गहराई में एक शक्ति है, एक दुष्ट स्वभाव है जो उन्हें नियंत्रित करता है, इसलिए वे बेईमानी से कार्य करने, परमेश्वर के साथ बहस करने और उसके विरुद्ध हल्ला मचाने में सक्षम होते हैं। इससे पहले कि परमेश्वर कहे कि वह उन्हें मुकुट नहीं देगा, इससे पहले कि परमेश्वर उनका गंतव्य छीन ले, उनका दुष्ट स्वभाव उनके हृदय के भीतर से फूट पड़ता है, और वे कहते हैं, “यदि तुम मुझे मुकुट और मंजिल नहीं देते, तो मैं तीसरे स्वर्ग में जाकर तुमसे बहस करूँगा!” यदि यह उनके दुष्ट स्वभाव के कारण न होता, तो उन्हें इतनी ऊर्जा कहाँ से मिलती? क्या ज्यादातर लोग ऐसी ऊर्जा जुटा सकते हैं? मसीह-विरोधी क्यों विश्वास नहीं करते कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं? वे आशीष पाने की इच्छा पर दृढ़ता से क्यों टिके रहते हैं? क्या यह एक और बार उनकी दुष्टता नहीं है? (है।) परमेश्वर लोगों को जो आशीष देने का वादा करता है, वही मसीह-विरोधियों की महत्वाकांक्षा और इच्छा बन गया है। वे उन्हें प्राप्त करने के लिए दृढ़ हैं, लेकिन वे परमेश्वर के मार्ग का अनुसरण नहीं करना चाहते, और वे सत्य से प्रेम नहीं करते। इसके बजाय, वे आशीष, पुरस्कार और मुकुट की तलाश में लगे रहते हैं। इससे पहले कि परमेश्वर कहे कि वह उन्हें ये चीजें नहीं देगा, वे परमेश्वर से मुकाबला करना चाहते हैं। उनका तर्क क्या है? “यदि मुझे आशीष और पुरस्कार नहीं मिले, तो मैं तुमसे बहस करूँगा, मैं तुम्हारा विरोध करूँगा, और कहूँगा कि तुम परमेश्वर नहीं हो!” क्या वे ऐसी बातें कहकर परमेश्वर को धमका नहीं रहे हैं? क्या वे उसे उखाड़ फेंकने की कोशिश नहीं कर रहे हैं? वे तो हर चीज पर परमेश्वर की संप्रभुता को नकारने की भी हिम्मत करते हैं। अगर परमेश्वर के कार्य उनकी इच्छा के अनुरूप नहीं होते, वे यह भी नकारने की हिम्मत करते हैं कि परमेश्वर सृष्टिकर्ता है, एकमात्र सच्चा परमेश्वर है। क्या यह शैतान का स्वभाव नहीं है? क्या यह शैतान की दुष्टता नहीं है? क्या मसीह-विरोधियों के काम के तरीके और परमेश्वर के प्रति शैतान के रवैये में कोई अंतर है? इन दोनों रवैयों को पूरी तरह से एक जैसा माना जा सकता है। मसीह-विरोधी हर चीज पर परमेश्वर की संप्रभुता को स्वीकार करने से इनकार करते हैं, और वे परमेश्वर के हाथों से आशीष, पुरस्कार और मुकुट छीनना चाहते हैं। यह किस तरह का स्वभाव है? किस आधार पर वे इस तरह से काम करना और चीजों को हथियाना चाहते हैं? वे इतनी ऊर्जा कैसे जुटा सकते हैं? इसके कारण को अब सारांशित किया जा सकता है : यह मसीह-विरोधियों की दुष्टता है। मसीह-विरोधी सत्य से प्रेम नहीं करते, फिर भी वे आशीष और मुकुट प्राप्त करना चाहते हैं, और परमेश्वर के हाथों से जबरन इन पुरस्कारों को लेना चाहते हैं। क्या यह मृत्यु का आह्वान करना नहीं है? क्या उन्हें भान है कि वे मृत्यु का आह्वान कर रहे हैं? (उन्हें इसका भान नहीं है।) उन्हें शायद जरा-सा यह भी आभास हो सकता है कि पुरस्कार प्राप्त करना असंभव है, इसलिए वे पहले ही ऐसी बात बोलते हैं कि, “यदि मुझे आशीष प्राप्त नहीं हुआ, तो मैं तीसरे स्वर्ग में जाकर परमेश्वर से बहस करूँगा!” वे पहले से ही यह अनुमान लगा लेते हैं कि उनके लिए आशीष प्राप्त करना असंभव होगा। आखिरकार, शैतान ने कई वर्षों तक बीच आसमान में परमेश्वर के विरुद्ध शोर मचाया है, और परमेश्वर ने उसे क्या दिया है? परमेश्वर का उसके लिए एकमात्र कथन है कि “कार्य समाप्त होने के बाद, मैं तुझे अथाह कुंड में फेंक दूँगा। तू अथाह कुंड में ही रहने के योग्य है!” यह शैतान से परमेश्वर का एकमात्र “वादा” है। क्या यह विकृत बात नहीं है कि वह अभी भी पुरस्कार की इच्छा रखता है? यह दुष्टता है। मसीह-विरोधियों का जन्मजात सार परमेश्वर के प्रति शत्रुतापूर्ण है, और मसीह-विरोधी स्वयं भी नहीं जानते कि ऐसा क्यों है। उनके हृदय केवल आशीष और मुकुट प्राप्त करने पर केंद्रित होते हैं। जब भी कोई चीज सत्य या परमेश्वर से जुड़ी होती है, तो उनके अंदर प्रतिरोध और क्रोध उत्पन्न होता है। यह दुष्टता है। सामान्य लोग शायद मसीह-विरोधियों की आंतरिक भावनाओं को नहीं समझ सकते; मसीह-विरोधियों के लिए यह काफी कठिन होता है। मसीह-विरोधियों की बहुत बड़ी महत्वाकांक्षाएँ होती हैं, उनके भीतर बहुत बड़ी दुष्ट ऊर्जा होती है, और आशीष पाने की बहुत बड़ी इच्छा होती है। उन्हें इच्छाओं के ताप में जलते व्यक्ति के रूप में वर्णित किया जा सकता है। लेकिन परमेश्वर का घर लगातार सत्य पर संगति करता रहता है—इसे सुनना उनके लिए बहुत दर्दनाक और कठिन होता होगा। वे अपने साथ खुद गलत करते हैं और उसे सहन करने के लिए भारी दिखावा करते हैं। क्या यह एक तरह की दुष्ट ऊर्जा नहीं है? अगर सामान्य लोग सत्य से प्रेम नहीं करते, तो उन्हें कलीसियाई जीवन अरुचिकर लगता और यहाँ तक कि वे इसके प्रति विकर्षण का भाव भी महसूस करते। परमेश्वर के वचनों को पढ़ना और सत्य पर संगति करना उन्हें आनंद से अधिक पीड़ा जैसा लगता है। तो, मसीह-विरोधी इसे कैसे सहन कर लेते हैं? ऐसा इसलिए है क्योंकि उनमें आशीष पाने की इच्छा इतनी प्रबल होती है कि वह उन्हें खुद अपने साथ गलत करने और उसे अनिच्छापूर्वक सहने के लिए मजबूर करती है। इसके अलावा, वे शैतान के अनुचर के रूप में कार्य करने के लिए परमेश्वर के घर में घुस जाते हैं, और कलीसिया के काम में गड़बड़ी करने और बाधा डालने के प्रति समर्पित हो जाते हैं। वे मानते हैं कि यह उनका मिशन है, और अगर वे परमेश्वर का विरोध करने का अपना कार्य पूरा नहीं कर लेते, तब तक बेचैनी महसूस करते हैं और मानते हैं कि उन्होंने शैतान को निराश किया है। यह मसीह-विरोधियों की प्रकृति से निर्धारित होता है।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद सात : वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (भाग दो)

इसमें कोई संदेह नहीं है कि मसीह-विरोधी सत्य स्वीकार नहीं करते; अगर वे सत्य स्वीकार सकते तो वे मसीह-विरोधी नहीं होते। तो फिर मसीह-विरोधी अभी भी अपने कर्तव्य क्यों निभाते हैं? अपने कर्तव्यों को निभाने के पीछे उनका वास्तविक इरादा क्या है? उनका इरादा है, “इस जीवन में सौ गुना और आने वाली दुनिया में अनंत जीवन पाना।” वे अपने कर्तव्यों में पूरी तरह से इस कहावत का पालन कर रहे हैं। क्या यह एक लेन-देन नहीं है? यह बिल्कुल एक लेन-देन है। इस लेन-देन की प्रकृति को देखते हुए, क्या यह दुष्ट स्वभाव नहीं है? (बिल्कुल है।) तो वे किस तरह से दुष्ट हैं? क्या कोई मुझे बता सकता है? (भले ही मसीह-विरोधी परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए बहुत से सत्य सुनते हैं, मगर वे कभी उनका अनुसरण नहीं करते। वे दृढ़ता से अपने पद पर बने रहते हैं और उसे छोड़ते नहीं हैं, केवल अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए और दूसरों पर अपनी शक्ति का प्रयोग करने के लिए अपना कर्तव्य निभाते हैं।) यह जवाब कुछ हद तक सही है, तुमने इसे लगभग समझ लिया है, मगर यह उतना विशिष्ट नहीं है। अगर वे अच्छी तरह से जानते हैं कि परमेश्वर के साथ लेन-देन करना गलत है, मगर फिर भी अंत तक दृढ़ रहते हैं और पश्चात्ताप करने से इनकार करते हैं, तो यह समस्या गंभीर है। आजकल, ज्यादातर लोग आशीष पाने के इरादे से अपने कर्तव्य निभाते हैं। वे सभी अपने कर्तव्यों के निर्वहन का इस्तेमाल इनाम और मुकुट पाने के लिए करना चाहते हैं, और वे अपने कर्तव्य निर्वहन का महत्व नहीं समझते। इस समस्या पर स्पष्ट रूप से संगति करने की जरूरत है। तो आओ, पहले बात करते हैं कि लोगों का कर्तव्य कैसे अस्तित्व में आया। परमेश्वर मानवजाति का प्रबंधन करने और बचाने का कार्य करता है। बेशक परमेश्वर की लोगों से अपेक्षाएँ हैं, और ये अपेक्षाएँ ही उनका कर्तव्य हैं। यह स्पष्ट है कि लोगों का कर्तव्य परमेश्वर के कार्य और मानवजाति से उसकी अपेक्षाओं से उत्पन्न होता है। इससे फर्क नहीं पड़ता कि कोई व्यक्ति क्या कर्तव्य निभाता है, यह सबसे उचित काम है जो वह कर सकता है, मानवजाति के बीच सबसे सुंदर और सबसे न्यायपूर्ण काम है। सृजित प्राणियों के रूप में, लोगों को अपना कर्तव्य निभाना चाहिए, और केवल तभी वे सृष्टिकर्ता की स्वीकृति प्राप्त कर सकते हैं। सृजित प्राणी सृष्टिकर्ता के प्रभुत्व में जीते हैं और वे वह सब जो परमेश्वर द्वारा प्रदान किया जाता है और हर वह चीज जो परमेश्वर से आती है, स्वीकार करते हैं, इसलिए उन्हें अपनी जिम्मेदारियाँ और दायित्व पूरे करने चाहिए। यह पूरी तरह से स्वाभाविक और न्यायोचित है, और यह परमेश्वर का आदेश है। इससे यह देखा जा सकता है कि लोगों के लिए सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाना धरती पर रहते हुए किए गए किसी भी अन्य काम से कहीं अधिक उचित, सुंदर और भद्र होता है; मानवजाति के बीचइससे अधिक सार्थक या योग्य कुछ भी नहीं होता, और सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाने की तुलना में किसी सृजित व्यक्ति के जीवन के लिए अधिक अर्थपूर्ण और मूल्यवान अन्य कुछ भी नहीं है। पृथ्वी पर, सच्चाई और ईमानदारी से सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाने वाले लोगों का समूह ही सृष्टिकर्ता के प्रति समर्पण करने वाला होता है। यह समूह सांसारिक प्रवृत्तियों का अनुसरण नहीं करता; वे परमेश्वर की अगुआई और मार्गदर्शन के प्रति समर्पण करते हैं, केवल सृष्टिकर्ता के वचन सुनते हैं, सृष्टिकर्ता द्वारा व्यक्त किए गए सत्य स्वीकारते हैं, और सृष्टिकर्ता के वचनों के अनुसार जीते हैं। यह सबसे सच्ची, सबसे शानदार गवाही है, और यह परमेश्वर में विश्वास की सबसे अच्छी गवाही है। सृजित प्राणी के लिए एक सृजित प्राणी का कर्तव्य पूरा करने में सक्षम होना, सृष्टिकर्ता को संतुष्ट करने में सक्षम होना, मानवजाति के बीच सबसे सुंदर चीज होती है, और यह कुछ ऐसा है जिसे एक कहानी के रूप में फैलाया जाना चाहिए जिसकी सभी लोग इसकी प्रशंसा करें। सृजित प्राणियों को सृष्टिकर्ता जो कुछ भी सौंपता है उसे बिना शर्त स्वीकार लेना चाहिए; मानवजाति के लिए यह खुशी और सौभाग्य दोनों की बात है, और उन सबके लिए, जो एक सृजित प्राणी का कर्तव्य पूरा करते हैं, कुछ भी इससे अधिक सुंदर या स्मरणीय नहीं होता—यह एक सकारात्मक चीज़ है। और जहाँ तक प्रश्न यह है कि सृष्टिकर्ता उन लोगों के साथ कैसा व्यवहार करता है जो सृजित प्राणी का कर्तव्य पूरा कर सकते हैं, और वह उनसे क्या वादे करता है, यह सृष्टिकर्ता का मामला है; सृजित मानवजाति का इससे कोई सरोकार नहीं है। इसे थोड़ा और सरल तरीके से कहूँ तो, यह परमेश्वर पर निर्भर है, और लोगों को इसमें हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। तुम्हें वही मिलेगा जो परमेश्वर तुम्हें देता है, और यदि वह तुम्हें कुछ भी नहीं देता है, तो तुम इसके बारे में कुछ भी नहीं कह सकते। जब कोई सृजित प्राणी परमेश्वर के आदेश को स्वीकार करता है, और अपना कर्तव्य निभाने और जो वह कर सकता है उसे करने में सृष्टिकर्ता के साथ सहयोग करता है, तो यह कोई लेन-देन या व्यापार नहीं होता है; लोगों को परमेश्वर से कोई वादा या आशीष पाने के लिए रवैयों की अभिव्यक्तियों या क्रियाकलापों और व्यवहारों का सौदा करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। जब सृष्टिकर्ता तुम लोगों को यह काम सौंपता है, तो यह सही और उचित है कि सृजित प्राणियों के रूप में, तुम इस कर्तव्य और आदेश को स्वीकार करो। क्या इसमें कोई लेन-देन शामिल है? (नहीं।) सृष्टिकर्ता की ओर से, वह तुम लोगों में से हर एक को वे कर्तव्य सौंपने के लिए तैयार है जो लोगों को निभाने चाहिए; और सृजित मानवजाति की ओर से, लोगों को यह कर्तव्य सहर्ष स्वीकार करना चाहिए, इसे अपने जीवन का दायित्व मानना चाहिए, वह मूल्य मानना चाहिए जिसे उन्हें इस जीवन में जीना है। यहाँ कोई लेन-देन नहीं है, यह एक समकक्ष विनिमय नहीं है, इसमें कोई भी इनाम या अन्य कथन शामिल होने की संभावना तो और भी कम है जिनकी लोग कल्पना करते हैं। यह किसी भी तरह से एक व्यापार नहीं है; यह लोगों द्वारा अपने कर्तव्य निभाते हुए चुकाई गई कीमत या उनकी कड़ी मेहनत के बदले में कुछ और पाना भी नहीं है। परमेश्वर ने ऐसा कभी नहीं कहा है, और न ही लोगों को इसे इस तरीके से समझना चाहिए। सृष्टिकर्ता मानवजाति को एक आदेश देता है, और सृष्टिकर्ता से परमेश्वर द्वारा दिया गया आदेश प्राप्त करने के बाद, सृजित प्राणी अपना कर्तव्य निभाने का बीड़ा उठाता है। इस मामले में, इस प्रक्रिया में, कोई लेन-देन नहीं है; यह एकदम सरल और उचित है। यह वैसा ही है जैसे माता-पिता के साथ होता है, जो अपने बच्चे को जन्म देने के बाद, बिना किसी शर्त या शिकायत के उसका पालन-पोषण करते हैं। जहाँ तक यह सवाल है कि क्या बच्चा बड़ा होकर संतानोचित कर्तव्य निभाता है या नहीं, उसके माता-पिता ने उसके जन्म से ही ऐसी कोई अपेक्षाएँ नहीं रखी थीं। ऐसा एक भी माता-पिता नहीं है जो बच्चे को जन्म देने के बाद कहे, “मैं उसे सिर्फ इसलिए पाल रहा हूँ ताकि वह भविष्य में मेरी सेवा करे और मेरा सम्मान करे। अगर वह मेरा सम्मान नहीं करेगा, तो मैं उसे अभी गला घोंटकर मार डालूँगा।” ऐसा एक भी माता-पिता नहीं है। तो, जिस तरह से माता-पिता अपने बच्चों का पालन-पोषण करते हैं, उससे यह पता चलता है कि यह एक दायित्व है, एक जिम्मेदारी है, है ना? (बिल्कुल है।) माता-पिता अपने बच्चे का पालन-पोषण करते रहेंगे, चाहे वे अपना संतानोचित कर्तव्य निभाएँ या नहीं, और चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न हों, वे उन्हें तब तक पालेंगे जब तक वे बालिग नहीं हो जाते, और वे उनके लिए सिर्फ अच्छा ही चाहते हैं। माता-पिता की अपने बच्चे के प्रति इस जिम्मेदारी और दायित्व में कोई शर्त या लेन-देन नहीं है। जिनके पास इससे संबंधित अनुभव है वे लोग इसे समझ सकते हैं। ज्यादातर माता-पिता के पास इस बात के कोई अपेक्षित मानक नहीं होते कि उनका बच्चा संतानोचित है या नहीं। अगर उनका बच्चा संतानोचित है, तो वे सामान्य से थोड़े ज्यादा हंसमुख रहेंगे, और अपने बुढ़ापे में वे थोड़े ज्यादा खुश रहेंगे। अगर उनका बच्चा संतानोचित नहीं है, तो वे कुछ नहीं करेंगे। ज्यादातर माता-पिता जो अपेक्षाकृत खुले विचारों वाले होते हैं, इसी तरह सोचते हैं। कुल मिलाकर, चाहे माता-पिता अपने बच्चों का पालन-पोषण कर रहे हों या बच्चे अपने माता-पिता की मदद कर रहे हों, मामला जिम्मेदारी का है, दायित्व का है, और यह व्यक्ति की अपेक्षित भूमिका के दायरे में आता है। बेशक, ये सभी सृजित प्राणी द्वारा अपना कर्तव्य निभाने की तुलना में तुच्छ मामले हैं, मगर इंसानी दुनिया के मामलों में, ये ज्यादा सुंदर और न्यायपूर्ण मामलों में से हैं। जाहिर है कि यह सृजित प्राणी द्वारा अपना कर्तव्य निभाने पर और भी अधिक लागू होता है। एक सृजित प्राणी के रूप में, जब व्यक्ति सृष्टिकर्ता के सामने आता है, तो उसे अपना कर्तव्य निभाना ही चाहिए। यही करना सबसे उचित है, और उसे यह जिम्मेदारी पूरी करनी ही चाहिए। इस आधार पर कि सृजित प्राणी अपने कर्तव्य निभाते हैं, सृष्टिकर्ता ने मानवजाति के बीच और भी बड़ा कार्य किया है, और उसने लोगों पर कार्य का एक और चरण पूरा किया है। और वह कौन-सा कार्य है? वह मानवजाति को सत्य प्रदान करता है, जिससे उन्हें अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए परमेश्वर से सत्य हासिल करने, और इस प्रकार अपने भ्रष्ट स्वभावों को दूर करने और शुद्ध होने का अवसर मिलता है। इस प्रकार, वे परमेश्वर के इरादों को पूरा कर पाते हैं और जीवन में सही मार्ग अपना पाते हैं, और अंततः, वे परमेश्वर का भय मानकर बुराई से दूर रहने, पूर्ण उद्धार प्राप्त करने में सक्षम हो जाते हैं, और अब शैतान के दुखों के अधीन नहीं रहते हैं। यही वह प्रभाव है जो परमेश्वर चाहता है कि अपने कर्तव्य का निर्वहन करके मानवजाति अंततः प्राप्त करे। इसलिए, अपना कर्तव्य निभाने की प्रक्रिया के दौरान परमेश्वर तुम्हें केवल एक चीज स्पष्ट रूप से देखने और थोड़ा-सा सत्य ही समझने नहीं देता, वह तुम्हें केवल एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य निभाने से मिलने वाले अनुग्रह और आशीषों का आनंद मात्र ही लेने नहीं देता है। इसके बजाय, वह तुम्हें शुद्ध होने और बचने, और अंततः, सृष्टिकर्ता के मुखमंडल के प्रकाश में रहने का अवसर भी देता है। इस सृष्टिकर्ता के “मुखमंडल के प्रकाश” में बड़ी मात्रा में विस्तारित अर्थ और विषयवस्तु शामिल है—आज हम इस पर चर्चा नहीं करेंगे। निस्संदेह, परमेश्वर निश्चित रूप से ऐसे लोगों को वादे और आशीष देगा, और उनके बारे में अलग वक्तव्य देगा—यह आगे का मामला है। वर्तमान की बात करें तो, हर वह इंसान जो परमेश्वर के सामने आता और एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य निभाता है, परमेश्वर से क्या पाता है? सत्य और जीवन, जो मानवजाति के बीच सबसे मूल्यवान और सुंदर चीजें हैं। मानवजाति का कोई भी सृजित प्राणी आसानी से सृष्टिकर्ता के हाथों से ऐसे आशीष प्राप्त नहीं कर सकता। ऐसी खूबसूरत और बड़ी चीज को मसीह-विरोधियों की किस्म के लोग एक लेन-देन के रूप में विकृत कर देते हैं, जिसमें वे परमेश्वर के हाथों से मुकुटों और पुरस्कारों की माँग करते हैं। इस प्रकार का लेन-देन सबसे सुंदर और उचित चीज को सबसे बदसूरत और दुष्ट चीज में बदल देता है। क्या मसीह-विरोधी ऐसा ही नहीं करते? इस हिसाब से देखें तो क्या मसीह-विरोधी दुष्ट नहीं हैं? वे वास्तव में काफी दुष्ट हैं!

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग सात)

भ्रष्ट स्वभाव बदलने की शुरुआत खुद को जानने से होनी चाहिए। इसके लिए मनोयोग, धीरे-धीरे अपने इरादों और दशाओं का परीक्षण करने पर ध्यान केंद्रित करने, और अपनी कथनी पीछे के इरादों और आदतन तरीकों की लगातार जाँच-पड़ताल करने की जरूरत पड़ती है। और फिर एक दिन अचानक यह बोध होगा : “मैं अपनी असलियत छिपाने के लिए हमेशा अच्छी बातें करके दूसरों के दिलों में छाप छोड़ना चाहता हूँ। यह दुष्ट स्वभाव है। यह सामान्य मानवता का प्रकटीकरण नहीं है और सत्य से मेल नहीं खाता है। बोलने का यह दुष्ट तरीका और ये इरादे गलत हैं, और इन्हें बदलना और त्यागना जरूरी है।” यह बोध होने के बाद तुम्हें अपने दुष्ट स्वभाव की भयावह गंभीरता और भी स्पष्टता से महसूस होगी। तुम्हें लगता था कि आदमी-औरत के बीच थोड़ी-बहुत काम-वासना होना ही दुष्टता है, और यह सोचते थे कि इस लिहाज से तुममें थोड़ी-बहुत दुष्टता तो है, मगर तुम दुष्ट स्वभाव वाले इंसान नहीं हो। यह बताता है कि तुममें दुष्ट स्वभाव की समझ का अभाव था; ऐसा लगता है कि तुम “दुष्ट” शब्द का सतही अर्थ जानते थे, लेकिन दुष्ट स्वभाव को जानते-पहचानते नहीं थे; और दरअसल, तुम अभी भी नहीं समझते कि “दुष्ट” शब्द का अर्थ क्या है। जब तुम्हें यह एहसास होता है कि तुमने इस प्रकार का स्वभाव प्रकट किया है, तुम आत्म-चिंतन करना शुरू कर इसे पहचान लेते हो, इसकी गहरी जड़ें खोज निकालते हो, और खुद देख लेते हो कि वास्तव में तुम्हारा ऐसा स्वभाव है। तो फिर तुम्हें आगे क्या करना चाहिए? तुम्हें अपने बोलने के ऐसे तरीकों के पीछे छिपे इरादों की निरंतर जाँच करनी चाहिए। इस तरह की निरंतर खोज से तुम और भी प्रामाणिक और सटीक ढंग से यह जान लोगे कि वास्तव में तुममें इस प्रकार का स्वभाव और सार है। जिस दिन तुम सचमुच मान लोगे कि तुममें वास्तव में दुष्ट स्वभाव है, उसी दिन से तुममें इसके प्रति नफरत और घृणा पैदा होने लगेगी। तुम खुद को नेक, सदाचारी, न्यायी, नैतिक रूप से ईमानदार और निष्कपट इंसान मानने से आगे बढ़कर यह पहचानने लगोगे कि तुममें अहंकार, हठ, कुटिलता, दुष्टता और सत्य से विमुख होने जैसा प्रकृति सार है। तब तुम अपना सटीक मूल्यांकन कर चुके होगे और जान लोगे कि तुम वास्तव में क्या हो। केवल मौखिक तौर पर यह मानने या सरसरी तौर पर यह पहचानने से कि तुममें ये अभिव्यक्तियाँ और मनोदशाएँ हैं, सच्ची घृणा पैदा नहीं होगी। जब कोई यह पहचान ले कि इन भ्रष्ट स्वभावों का सार शैतान का घिनौना तरीका है, तभी वह वास्तव में खुद से नफरत कर सकता है। खुद से घृणा करने की हद तक जानने के लिए वास्तव में किस प्रकार की मानवता की जरूरत होती है? व्यक्ति को सकारात्मक चीजों से प्रेम करना चाहिए, सत्य से प्रेम करना चाहिए, निष्पक्षता और धार्मिकता से प्रेम करना चाहिए, उसमें अंतरात्मा और बोध होना चाहिए, उसे दयालु होना चाहिए और सत्य स्वीकारने और उसका अभ्यास करने में सक्षम होना चाहिए—इस तरह के सभी लोग वास्तव में खुद को जान सकते हैं और खुद से नफरत कर सकते हैं।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सत्य के अनुसरण में केवल आत्म-ज्ञान ही सहायक है

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1. प्रभु ने हमसे यह कहते हुए, एक वादा किया, "मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ। और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूँ, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊँगा कि जहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो" (यूहन्ना 14:2-3)। प्रभु यीशु पुनर्जीवित हुआ और हमारे लिए एक जगह तैयार करने के लिए स्वर्ग में चढ़ा, और इसलिए यह स्थान स्वर्ग में होना चाहिए। फिर भी आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु लौट आया है और पृथ्वी पर ईश्वर का राज्य स्थापित कर चुका है। मुझे समझ में नहीं आता: स्वर्ग का राज्य स्वर्ग में है या पृथ्वी पर?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद :"हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नाम पवित्र माना जाए। तेरा राज्य आए। तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी...

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

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