12. मसीह विरोधियों से कैसे संपर्क करें और निपटें
अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन
परमेश्वर के चुने हुए लोगों को मसीह-विरोधियों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए? उन्हें उनकी पहचान करनी चाहिए, उन्हें उजागर करना चाहिए, उनकी रिपोर्ट करनी चाहिए और उन्हें ठुकरा देना चाहिए। केवल तभी अंत तक परमेश्वर का अनुसरण और परमेश्वर में आस्था रखने के सही मार्ग में प्रवेश सुनिश्चित किया जा सकता है। मसीह-विरोधी तुम्हारे अगुआ नहीं हैं, चाहे उन्होंने दूसरों को गुमराह करके कैसे भी खुद को अगुआ चुनवाया हो। उन्हें स्वीकार मत करो और उनकी अगुआई मत मानो—तुम्हें उनकी पहचान करनी चाहिए और उन्हें ठुकरा देना चाहिए, क्योंकि वे सत्य को समझने में तुम्हारी मदद नहीं कर सकते और न ही वे तुम्हारा समर्थन कर सकते हैं या तुम्हारा पोषण कर सकते हैं। यही तथ्य हैं। अगर वे सत्य वास्तविकता की ओर तुम्हारा मार्गदर्शन नहीं कर सकते, तो वे अगुआ या कार्यकर्ता बनने के काबिल नहीं हैं। अगर वे सत्य को समझने और परमेश्वर के कार्य का अनुभव करने की ओर तुम्हारा मार्गदर्शन नहीं कर सकते, तो ये वे लोग हैं जो परमेश्वर का विरोध करते हैं और तुम्हें उन्हें पहचान लेना चाहिए, उन्हें उजागर करना चाहिए और उन्हें ठुकरा देना चाहिए। वे जो कुछ भी करते हैं उसका उद्देश्य तुम्हें अपना अनुसरण कराने के लिए गुमराह करना, और कलीसिया के कार्य को कमजोर करने और उसमें बाधा डालने के लिए तुम्हें अपने समूह में शामिल करना होता है, ताकि वे तुम्हें मसीह-विरोधियों का रास्ता अपनाने के लिए प्रेरित कर सकें, जैसा कि वे करते हैं। वे तुम्हें नरक में खींचना चाहते हैं! अगर तुम उन्हें बता नहीं सकते कि वे क्या हैं और मानते हो कि चूँकि वे तुम्हारे अगुआ हैं इसलिए तुम्हें उनकी आज्ञा माननी चाहिए और उनके प्रति रियायत बरतनी चाहिए, तो तुम एक ऐसे व्यक्ति हो जो सत्य और परमेश्वर दोनों के साथ विश्वासघात करता है—और ऐसे लोगों को बचाया नहीं जा सकता। अगर तुम बचाए जाना चाहते हो, तो तुम्हें न केवल बड़े लाल अजगर की बाधा पार करनी होगी, और न केवल बड़े लाल अजगर को पहचानने, उसके भयानक चेहरे की असलियत देखने और इसके खिलाफ पूरी तरह से विद्रोह करने में सक्षम होना होगा—बल्कि मसीह-विरोधियों की बाधा भी पार करनी होगी। कलीसिया में मसीह-विरोधी न केवल परमेश्वर का शत्रु होता है, बल्कि परमेश्वर के चुने हुए लोगों का भी शत्रु होता है। अगर तुम मसीह-विरोधी को नहीं पहचान सकते, तो तुम्हारे गुमराह होने और उनकी बातों में आ जाने, मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलने, और परमेश्वर द्वारा शापित और दंडित किए जाने की संभावना है। अगर ऐसा होता है, तो परमेश्वर में तुम्हारा विश्वास पूरी तरह से विफल हो गया है। उद्धार प्रदान किए जाने के लिए लोगों में क्या होना चाहिए? पहले, उन्हें कई सत्य समझने चाहिए, और मसीह-विरोधी का सार, स्वभाव और मार्ग पहचानने में सक्षम होना चाहिए। परमेश्वर में विश्वास करते हुए लोगों की आराधना या अनुसरण न करना सुनिश्चित करने का यह एकमात्र तरीका है, और अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करने का भी यही एकमात्र तरीका है। मसीह-विरोधी की पहचान करने में सक्षम लोग ही वास्तव में परमेश्वर में विश्वास कर सकते हैं, उसका अनुसरण कर सकते हैं और उसकी गवाही दे सकते हैं। तब कुछ लोग कहेंगे, “अगर मेरे पास इसके लिए फिलहाल सत्य नहीं है तो मैं क्या करूँ?” तुम्हें खुद को जल्दी से जल्दी सत्य से सुसज्जित करना चाहिए; तुम्हें लोगों और चीजों को समझना सीखना चाहिए। मसीह-विरोधी की पहचान करना कोई आसान बात नहीं है, इसके लिए उनका सार स्पष्ट रूप से देखने और उनके हर काम के पीछे की साजिशें, चालें और इरादे देख पाने की क्षमता होनी आवश्यक है। इस तरह तुम उनके द्वारा गुमराह नहीं होगे या उनके काबू में नहीं आओगे, और तुम अडिग होकर, सुरक्षित रूप से सत्य का अनुसरण कर सकते हो, और सत्य का अनुसरण करने और उद्धार प्राप्त करने के मार्ग पर दृढ़ रह सकते हो। अगर तुम मसीह-विरोधी की बाधा को पार नहीं कर सकते, तो यह कहा जा सकता है कि तुम एक बड़े ख़तरे में हो, और तुम्हें मसीह-विरोधी द्वारा गुमराह करके अपने कब्जे में किया जा सकता है और तुम्हें शैतान के प्रभाव में जीवन व्यतीत करना पड़ सकता है। वर्तमान में तुम लोगों के बीच कुछ ऐसे लोग हो सकते हैं जो सत्य का अनुसरण करने वालों को रोकें या ठोकर मारें, और ये उन लोगों के शत्रु हैं। क्या तुम लोग इसे स्वीकार करते हो? कुछ ऐसे लोग हैं जो इस तथ्य का सामना करने की हिम्मत नहीं रखते, न ही वे इसे तथ्य के रूप में स्वीकार करने की हिम्मत रखते हैं। लेकिन मसीह विरोधियों द्वारा लोगों को गुमराह करना वास्तव में कलीसियाओं में होता है और अक्सर होता है; बात केवल इतनी है कि लोग पहचान नहीं पाते। अगर तुम इस परीक्षा को पास नहीं कर सकते—मसीह-विरोधियों की परीक्षा, तब तुम या तो मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह हो चुके हो और उन्हीं के द्वारा नियंत्रित हो या उन्होंने तुम्हें कष्ट दिया है, पीड़ा पहुँचायी है, बाहर धकेला है और प्रताड़ित किया है। अंततः, तुम्हारा यह छोटा-सा तुच्छ जीवन लंबे समय तक नहीं टिकेगा, और मुरझा जाएगा; तुम परमेश्वर में विश्वास नहीं रख पाओगे, और तुम कहोगे, “परमेश्वर तो धार्मिक भी नहीं है! परमेश्वर कहाँ है? इस दुनिया में कोई न्याय या प्रकाश नहीं है, और परमेश्वर द्वारा मानवजाति का उद्धार जैसी कोई चीज़ नहीं है। हम काम करते हुए और पैसा कमाते हुए भी अपने दिन गुज़ार सकते हैं!” तुम परमेश्वर को नकारते हो, तुम परमेश्वर से भटक जाते हो और अब विश्वास नहीं करते कि वह मौजूद है; ऐसी कोई भी उम्मीद कि तुम्हारा उद्धार होगा, पूरी तरह से समाप्त हो चुकी है। इसलिए, अगर तुम उस जगह पहुँचना चाहते हो जहाँ पर तुम्हें उद्धार प्राप्त हो सके, तो पहली परीक्षा जो तुम्हें पास करनी होगी वह है शैतान की पहचान करने में सक्षम होना, और तुम्हारे अंदर शैतान के विरुद्ध खड़ा होने, उसे बेनकाब करने और उसे छोड़ देने का साहस भी होना चाहिए। फिर, शैतान कहाँ है? शैतान तुम्हारे बाजू में और तुम्हारे चारों तरफ़ है; हो सकता है कि वह तुम्हारे हृदय के भीतर भी रह रहा हो। अगर तुम शैतान के स्वभाव के अधीन रह रहे हो, तो यह कहा जा सकता है कि तुम शैतान के हो। तुम आध्यात्मिक क्षेत्र के शैतान और दुष्ट आत्माओं को देख या छू नहीं सकते, लेकिन व्यावहारिक जीवन में मौजूद शैतान और दुष्ट आत्माएँ हर जगह हैं। जो भी व्यक्ति सत्य से विमुख है, वह बुरा है, और जो भी अगुआ या कार्यकर्ता सत्य को स्वीकार नहीं करता, वह मसीह-विरोधी या नकली अगुआ है। क्या ऐसे लोग शैतान और जीवित दानव नहीं हैं? हो सकता है कि ये लोग वही हों, जिनकी तुम आराधना करते हो और जिनका सम्मान करते हो; ये वही लोग हो सकते हैं जो तुम्हारी अगुआई कर रहे हैं या वे लोग जिन्हें तुमने लंबे समय से अपने हृदय में सराहा है, जिन पर भरोसा किया है, जिन पर निर्भर रहे हो और जिनकी आशा की है। जबकि वास्तव में, वे तुम्हारे मार्ग में खड़ी बाधाएँ हैं और तुम्हें सत्य का अनुसरण करने और उद्धार पाने से रोक रहे हैं; वे नकली अगुआ और मसीह-विरोधी हैं। वे तुम्हारे जीवन और तुम्हारे मार्ग पर नियंत्रण कर सकते हैं, और वे तुम्हारे उद्धार के अवसर को बर्बाद कर सकते हैं। अगर तुम उन्हें पहचानने और उनकी वास्तविकता को समझने में विफल रहते हो, तो किसी भी क्षण तुम गुमराह हो सकते हो या उनके द्वारा पकड़े और दूर ले जाए जा सकते हो। इस प्रकार, तुम बहुत बड़े ख़तरे में हो। अगर तुम इस खतरे से खुद को मुक्त नहीं कर सकते, तो तुम शैतान के बलि के बकरे हो।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद तीन : सत्य का अनुसरण करने वालों को वे निकाल देते हैं और उन पर आक्रमण करते हैं
मसीह-विरोधियों के प्रति तुम्हारा रवैया कैसा होना चाहिए? तुम्हें उन्हें उजागर करना चाहिए और उनसे लड़ना चाहिए। अगर तुम सिर्फ एक या दो लोग हो और इतने कमजोर हो कि अकेले मसीह-विरोधियों का सामना नहीं कर सकते, तो तुम्हें इन मसीह-विरोधियों की रिपोर्ट करने और उन्हें उजागर करने के लिए सत्य को समझने वाले और लोगों के साथ मिल कर उनका मुकाबला करना चाहिए और तब तक लड़ते रहना चाहिए जब तक कि उन्हें बाहर नहीं निकाल दिया जाता। मैंने सुना है कि पिछले दो वर्षों में चीन महादेश के कुछ देहाती इलाकों में परमेश्वर के चुने हुए लोग झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों को उनके पद से हटाने के लिए एकजुट हुए थे; कुछ झूठे अगुआ और मसीह-विरोधी तो निर्णय लेने वाले समूहों के मुखिया भी थे लेकिन फिर भी उन्हें परमेश्वर के चुने हुए लोगों ने वैसे ही हटा दिया। परमेश्वर के चुने हुए लोगों को ऊपरवाले की तरफ से मंजूरी मिलने की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी; सत्य सिद्धांतों के आधार पर वे इन झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों को पहचानने में सक्षम थे—जो वास्तविक कार्य नहीं करते थे और हमेशा भाई-बहनों को परेशान करते थे, जो बेकाबू हो गए थे और परमेश्वर के घर के कार्य को बिगाड़ रहे थे—उनका उन्होंने तुरंत निपटान किया। कुछ को निर्णय लेने वाले समूहों से बाहर धकेल दिया गया और कुछ को कलीसिया से निकाल दिया गया—जो बहुत अच्छी बात है! इससे पता चलता है कि परमेश्वर के चुने हुए लोग पहले ही परमेश्वर में विश्वास के सही रास्ते पर कदम रख चुके हैं। परमेश्वर के कुछ चुने हुए लोग पहले ही सत्य को समझ चुके हैं और अब उनका थोड़ा आध्यात्मिक कद भी है, शैतान अब उन्हें नियंत्रित नहीं करता और मूर्ख नहीं बनाता, वे शैतान के सामने खड़े होने और उसकी बुरी ताकतों के साथ युद्ध करने का साहस करते हैं। इससे यह भी पता चलता है कि कलीसिया में झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों की ताकतों का पलड़ा अब भारी नहीं रहा। इसलिए अब वे अपने शब्दों और कार्यों में इतने बेशर्म होने का साहस नहीं रखते। अब जैसे ही वे कोई चाल चलेंगे, कोई न कोई उन पर नजर रखने, उन्हें पहचानने और उन्हें अस्वीकार करने के लिए वहाँ होगा। कहने का मतलब यह है कि जो लोग वास्तव में सत्य को समझते हैं उनके दिलों में इंसान की हैसियत, प्रतिष्ठा और सत्ता का कोई खास महत्व नहीं होता। ऐसे लोग इन चीजों पर भरोसा नहीं करते। जब कोई व्यक्ति सक्रिय रूप से सत्य की खोज कर सकता है और उस पर संगति कर सकता है, और जब वह इस बात का पुनर्मूल्यांकन करना और आत्म-चिंतन करना शुरू कर देता है कि परमेश्वर में विश्वास रखने वाले लोगों को किस रास्ते पर चलना चाहिए और उसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए और वह यह सोचना शुरू कर देता है कि लोगों को किसका अनुसरण करना चाहिए, कौन से व्यवहार मनुष्य का अनुसरण करने वाले और कौन से परमेश्वर का अनुसरण करने वाले हैं, और फिर कई वर्षों तक इन सत्यों को टटोलने और उनका अनुभव करने के बाद जब वह अनजाने में ही कुछ सत्यों को समझने और पहचानने लगता है—तब उसका आध्यात्मिक कद थोड़ा बढ़ जाता है। सभी चीजों में सत्य की खोज करने में सक्षम होना परमेश्वर के प्रति विश्वास के सही मार्ग में प्रवेश करना होता है।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद तीन : सत्य का अनुसरण करने वालों को वे निकाल देते हैं और उन पर आक्रमण करते हैं
मसीह-विरोधियों का स्वभाव बहुत ही शातिर होता है। अगर तुम उनकी काट-छाँट करने या उन्हें उजागर करने की कोशिश करोगे तो वे तुमसे नफरत करेंगे और जहरीले साँप की तरह तुम पर अपने दाँत गड़ा देंगे। तुम चाहे कितनी भी कोशिश करो, उन्हें बदल नहीं पाओगे या उनसे पीछा नहीं छुड़ा पाओगे। जब ऐसे मसीह-विरोधियों से तुम्हारा सामना होता है तो क्या तुम लोगों को डर लगता है? कुछ लोग डर जाते हैं और कहते हैं, “मुझमें उनकी काट-छाँट करने की हिम्मत नहीं है। वे जहरीले साँपों की तरह बहुत ही खौफनाक हैं और अगर वे अपनी कुंडली में मुझे लपेट लें तो मैं खत्म ही हो जाऊँगा।” ये किस तरह के लोग हैं? उनका आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है, वे किसी काम के नहीं हैं, वे मसीह के अच्छे सैनिक नहीं हैं और वे परमेश्वर की गवाही नहीं दे सकते। तो जब ऐसे मसीह-विरोधियों से तुम लोगों का सामना हो, तो तुम्हें क्या करना चाहिए? अगर वे तुम्हें धमकाते हैं या तुम्हारी जान लेने की कोशिश करते हैं तो क्या तुम्हें डर लगेगा? ऐसी परिस्थितियों में तुम्हें तुरंत अपने भाई-बहनों के साथ मिलकर खड़े होना चाहिए, उनकी छानबीन करनी चाहिए, सबूत इकट्ठा करके मसीह-विरोधी को तब तक उजागर करना चाहिए जब तक कि उसे कलीसिया से नहीं निकाल दिया जाता। यह समस्या को जड़ से हल करना है। जब तुम्हें किसी मसीह-विरोधी का पता चले और तुम स्पष्टता से पहचान लो कि उसमें एक बुरे व्यक्ति की विशेषताएं हैं और वह दूसरों को दंडित करने और उनके खिलाफ प्रतिशोध लेने में सक्षम है तो उससे निपटने के लिए उसके बुरे काम करने और सबूत जुटाने का इंतजार मत करो। यह तो निष्क्रिय होना है और इससे पहले ही कुछ न कुछ नुकसान हो चुका होगा। सबसे अच्छा तो यह है कि जब मसीह-विरोधी यह दिखा दें कि उनमें बुरे व्यक्ति की विशेषताएँ हैं और वे अपना धूर्त और दुर्भावनापूर्ण स्वभाव प्रकट कर दें और वे कुछ करने ही वाले हों तो उसी समय उनसे निपटकर उन्हें संबोधित, बहिष्कृत और निष्कासित कर लिया जाए। यह सबसे समझदारी भरा नजरिया है। कुछ लोग मसीह-विरोधियों के प्रतिशोध से डरकर उन्हें उजागर करने का साहस नहीं करते। क्या यह मूर्खता नहीं है? तुम परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने में असमर्थ हो, जो सहज रूप से दर्शाता है कि तुम परमेश्वर के प्रति निष्ठाहीन हो। तुम डरते हो कि मसीह-विरोधी तुमसे बदला लेने की शक्ति पा सकता है—समस्या क्या है? क्या यह हो सकता है कि तुम परमेश्वर की धार्मिकता पर भरोसा नहीं करते? क्या तुम नहीं जानते कि परमेश्वर के घर में सत्य राज करता है? अगर कोई मसीह-विरोधी तुममें भ्रष्टता की कुछ समस्याएँ पकड़ भी ले और उस पर हंगामा खड़ा कर दे, तो भी तुम्हें डरना नहीं चाहिए। परमेश्वर के घर में समस्याएँ सत्य सिद्धांतों के आधार पर हल की जाती हैं। अपराध करने का यह मतलब नहीं कि कोई व्यक्ति बुरा है। परमेश्वर का घर कभी किसी को भ्रष्टता के क्षणिक प्रकाशन या कभी-कभार होने वाले अपराध के कारण परेशान नहीं करता। परमेश्वर का घर उन मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों से निपटता है, जो लगातार गड़बड़ी पैदा करते और बुराई करते हैं, और जो चुटकी भर भी सत्य नहीं स्वीकारते। परमेश्वर का घर कभी किसी अच्छे व्यक्ति के साथ अन्याय नहीं करेगा। वह सबके साथ उचित व्यवहार करता है। अगर नकली अगुआ या मसीह-विरोधी किसी अच्छे व्यक्ति पर गलत आरोप लगा भी दें, तो भी परमेश्वर का घर उसे दोषमुक्त कर देगा। कलीसिया कभी ऐसे अच्छे व्यक्ति को नहीं निकालेगी या परेशान नहीं करेगी, जो मसीह-विरोधियों को उजागर कर सकता है और जिसमें न्याय की भावना है। लोगों को हमेशा यह डर रहता है कि मसीह-विरोधी किसी बात का फायदा उठाकर उनसे बदला ले लेंगे। लेकिन क्या तुम परमेश्वर को अपमानित करने और उसके द्वारा ठुकराए जाने से नहीं डरते? अगर तुम्हें डर है कि कोई मसीह-विरोधी तुम्हारे खिलाफ बदला लेने के मौके का फायदा उठा सकता है, तो उस मसीह-विरोधी के बुरे कर्मों के सबूत इकट्ठा करके उसकी रिपोर्ट करो और उसे उजागर करो? ऐसा करने से, तुम परमेश्वर के चुने हुए लोगों की स्वीकृति और समर्थन प्राप्त करोगे, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि परमेश्वर तुम्हारे अच्छे कर्मों और न्यायपूर्ण कार्यों को याद रखेगा। तो, क्यों न ऐसा करें? परमेश्वर के चुने हुए लोगों को हमेशा परमेश्वर के आदेश को ध्यान में रखना चाहिए। बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों को स्वच्छ करना शैतान के खिलाफ युद्ध में सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई है। अगर यह लड़ाई जीत ली जाती है, तो यह एक विजेता की गवाही बन जाएगी। शैतानों और राक्षसों के खिलाफ लड़ाई एक अनुभवजन्य गवाही है जो परमेश्वर के चुने हुए लोगों के पास होनी चाहिए। यह एक सत्य वास्तविकता है जो विजेताओं के पास होनी चाहिए। परमेश्वर ने लोगों को बहुत सारा सत्य प्रदान किया है, इतने लंबे समय तक तुम्हारी अगुआई की है और तुम्हें इतना कुछ दिया है, ताकि तुम गवाही दे सको और कलीसिया के कार्य की रक्षा करो। ऐसा लगता है कि जब बुरे लोग और मसीह-विरोधी बुरे कर्म करते हैं और कलीसिया के कार्य में बाधा डालते हैं, तो तुम डरपोक बनकर पीछे हट जाते हो, हाथ खड़े कर भाग जाते हो—तुम किसी काम के नहीं हो। तुम शैतानों को नहीं हरा सकते, तुम गवाह नहीं बने हो और परमेश्वर तुमसे घृणा करता है। इस महत्वपूर्ण क्षण में तुम्हें मजबूती से खड़े होकर शैतानों के खिलाफ युद्ध छेड़ना चाहिए, मसीह-विरोधियों के बुरे कर्मों को उजागर करना चाहिए, उनकी निंदा कर उन्हें कोसना चाहिए, उन्हें छिपने की कोई जगह नहीं देनी चाहिए और उन्हें कलीसिया से निकाल बाहर करना चाहिए। केवल इसे ही शैतान पर विजय पाना और उनकी नियति को खत्म करना कहा जा सकता है। तुम परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से एक हो, परमेश्वर के अनुयायी हो। तुम चुनौतियों से नहीं डर सकते; तुम्हें सत्य सिद्धांतों के अनुसार काम करना चाहिए। विजेता होने का यही अर्थ है। अगर तुम चुनौतियों से डरकर और बुरे लोगों या मसीह-विरोधियों के प्रतिशोध से डरकर उनसे समझौता कर लेते हो, तो तुम परमेश्वर के अनुयायी नहीं हो और तुम परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से नहीं हो। तुम किसी काम के नहीं हो, तुम तो सेवाकर्मियों से भी कमतर हो। कुछ कायर लोग कह सकते हैं, “मसीह-विरोधी बहुत भयानक होते हैं; वे कुछ भी करने में सक्षम हैं। अगर वे मुझसे प्रतिशोध लेते हैं तो क्या होगा?” यह भ्रमित सोच है। अगर तुम मसीह-विरोधियों के प्रतिशोध से डरते हो, तो परमेश्वर में तुम्हारी आस्था कहाँ है? क्या परमेश्वर ने तुम्हारे जीवन के इतने वर्षों में तुम्हारी रक्षा नहीं की है? क्या मसीह-विरोधी भी परमेश्वर के हाथ में ही नहीं हैं? अगर परमेश्वर अनुमति न दे तो वे तुम्हारे साथ क्या कर लेंगे? इसके अलावा, चाहे मसीह-विरोधी कितने भी बुरे क्यों न हों, वे वास्तव में क्या करने में सक्षम हैं? क्या परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए एकजुट होकर उन्हें उजागर करना और उनसे निपटना बहुत आसान नहीं है? तो फिर मसीह-विरोधियों से डरना क्यों? ऐसे लोग किसी काम के नहीं हैं और परमेश्वर का अनुसरण करने के लायक नहीं हैं। अपने घर चले जाओ, बच्चे पालो और अपना जीवन जियो। कलीसिया के काम में बाधा डालने वाले और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नुकसान पहुँचाने वाले मसीह-विरोधियों के सामने परमेश्वर के चुने हुए लोगों को उनके बुरे कर्मों का जवाब कैसे देना चाहिए? परमेश्वर का अनुसरण करने वालों को अपनी गवाही में कैसे दृढ़ रहना चाहिए? उन्हें शैतान और मसीह-विरोधियों की ताकतों के खिलाफ कैसे लड़ना चाहिए? तुम परमेश्वर के प्रति समर्पण कर उसके प्रति निष्ठावान हो या फिर एक किनारे बैठकर परमेश्वर को धोखा दे रहे हो, यह पूरी तरह से तब प्रकट होगा जब मसीह-विरोधी परमेश्वर को परेशान करेंगे, बुराई करेंगे और उसका विरोध करेंगे। अगर तुम परमेश्वर के प्रति समर्पण करने वाले और निष्ठावान नहीं हो, तो तुम परमेश्वर को धोखा देने वाले व्यक्ति हो। कोई दूसरा विकल्प नहीं है। कुछ भ्रमित व्यक्ति और विवेकहीन लोग बीच का रास्ता अपनाते हैं और खड़े होकर तमाशा देखते हैं। परमेश्वर की नजरों में, इन लोगों में परमेश्वर के प्रति निष्ठा की कमी है और वे परमेश्वर को धोखा देते हैं। कुछ भ्रमित व्यक्ति अपनी कायरता के कारण मसीह-विरोधियों की सजा से डरते हैं और अपने दिलों में लगातार पूछते रहते हैं, “मैं क्या करूँगा?” तुम्हें यह सवाल नहीं पूछना चाहिए। तुम्हें क्या करना चाहिए? (अपने कर्तव्य अच्छे से निभाएँ, मसीह-विरोधियों के बुरे कर्मों को पूरी तरह से उजागर करें, अपने भाई-बहनों को चीजों में भेद करना सिखाएँ और मसीह-विरोधियों को नकार दें। हमें अपनी सुरक्षा के बारे में चिंता नहीं करनी चाहिए। हमारे लिए विचार करने वाली सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जब बुरे लोग कलीसिया के कार्य में बाधा डालें तो हमें अपने कर्तव्य कैसे पूरे करने चाहिए।) अगर इसका असर तुम्हारे परिवार पर पड़ता हो, तो क्या? (हमें बिना किसी हिचकिचाहट के अपने कर्तव्य पूरे करने चाहिए। हमें अपने परिवार की सुरक्षा की चिंता के कारण अपने कर्तव्यों को त्यागना नहीं चाहिए या अपनी गवाही में दृढ़ रहने में विफल नहीं होना चाहिए।) सही कहा। सबसे पहले, तुम्हें अपनी गवाही में दृढ़ रहना चाहिए और मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों के खिलाफ अंत तक लड़ना चाहिए, ताकि उन्हें परमेश्वर के घर में पैर रखने की भी जगह न मिले। अगर वे श्रम करने के लिए तैयार हैं, तो उन्हें नियमों के अनुसार ऐसा करने दो और वे जो कर पाते हैं उन्हें वो करने दो। अगर वे श्रम करने के लिए तैयार नहीं हैं, तो सबको एकजुट होकर उन्हें बाहर निकालना चाहिए ताकि वे परमेश्वर के घर में कलीसिया के कार्य को गड़बड़, बाधित या बर्बाद न कर सकें। यह पहली चीज है जो तुम्हें करनी चाहिए और इस गवाही पर तुम्हें दृढ़ रहना चाहिए। इसके अलावा, तुम्हें यह समझना होगा कि तुम्हारा परिवार और तुम्हारा जीवन परमेश्वर के हाथ में है और शैतान जल्दबाजी में काम करने की हिम्मत नहीं करता। परमेश्वर ने कहा है : “परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान के लिए जमीन पर पानी की एक बूँद या रेत का एक कण छूना भी मुश्किल है; परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान धरती पर चींटियों का स्थान बदलने के लिए भी स्वतंत्र नहीं है, परमेश्वर द्वारा सृजित मानव-जाति की तो बात ही छोड़ दो।” तुम इन वचनों पर किस हद तक विश्वास कर पाते हो? मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों के खिलाफ लड़ना तुम्हारी आस्था की सीमा को प्रकट करता है। अगर तुममें परमेश्वर के प्रति सच्चा विश्वास है, तो तुममें सच्ची आस्था है। अगर परमेश्वर में तुम्हारा केवल थोड़ा-सा विश्वास है और वह विश्वास अस्पष्ट और खोखला है तो तुममें सच्ची आस्था नहीं है। अगर तुम यह नहीं मानते कि परमेश्वर इन सभी चीजों पर संप्रभु हो सकता है और शैतान परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन है, और तुम अभी भी मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों से डरते हो, उन्हें कलीसिया में बुराई करते हुए, कलीसिया के काम को बाधित और बर्बाद करते हुए बर्दाश्त कर सकते हो और खुद को बचाने के लिए शैतान के साथ समझौता कर सकते हो या उससे दया की भीख माँग सकते हो, उसके खिलाफ खड़े होने और उससे लड़ने की हिम्मत नहीं कर सकते हो, और तुम भगोड़े, खुशामदी और तमाशबीन व्यक्ति बन गए हो, तो तुममें परमेश्वर में सच्चे विश्वास की कमी है। परमेश्वर में तुम्हारा विश्वास बस एक प्रश्नचिह्न बनकर रह जाता है, जो तुम्हारे विश्वास को बहुत दयनीय बना देता है! जब तुम मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों को परमेश्वर के घर में बाधाएँ और गड़बड़ी पैदा करते हुए देखकर भी उदासीन बने रहते हो; जब तुम अपने जीवन, अपने परिवार और अपने सभी हितों की रक्षा करने के लिए परमेश्वर के घर और उसके चुने हुए लोगों के हितों से विश्वासघात करते हो, तो फिर तुम एक गद्दार, यहूदा बन जाते हो। यह साफ और स्पष्ट है। हम अक्सर मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों के बारे में संगति और उनका गहन-विश्लेषण करते हैं, इस बात पर चर्चा करते हैं कि उन्हें कैसे परखा और पहचाना जाए, यह सब सत्य के बारे में स्पष्ट रूप से संगति करने और लोगों को बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों के खिलाफ विवेकशील बनाने के उद्देश्य से किया जाता है, ताकि वे उन्हें उजागर कर सकें। इस तरह, परमेश्वर के चुने हुए लोग अब मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह या परेशान नहीं होंगे, और वे शैतान के प्रभाव और बंधन से मुक्त हो सकते हैं। हालाँकि, कुछ लोगों के दिलों में अभी भी सांसारिक आचरण के फलसफे मौजूद हैं। वे बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों को पहचानने की कोशिश नहीं करते; बल्कि, वे खुशामदी लोगों की भूमिका निभाते हैं। वे मसीह-विरोधियों के खिलाफ नहीं लड़ते, उनके साथ स्पष्ट सीमाएँ तय नहीं करते, और अपने हितों की रक्षा करने के लिए एक कमजोर, बीच का रास्ता चुनते हैं। वे इन राक्षसों—इन बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों—को परमेश्वर के घर में बने रहने देते हैं, राक्षसों को पाल-पोसकर खतरे को न्योता देते हैं। वे इन राक्षसों को बेतहाशा कलीसिया का काम बिगाड़ने और भाई-बहनों को उनके कर्तव्य निभाने से बाधित करने देते हैं। ऐसे लोग क्या भूमिका निभाते हैं? वे मसीह-विरोधियों की ढाल और उनके साथी बन जाते हैं। भले ही तुम लोग मसीह-विरोधियों की तरह वे चीजें नहीं कर सकते या वही बुरे कर्म नहीं कर सकते, मगर तुम लोग उनके बुरे कर्मों में हिस्सेदार हो—और तुम्हारी निंदा की जाती है। तुम मसीह-विरोधियों को बर्दाश्त करते हो और उन्हें आश्रय देते हो, उनके खिलाफ बिना कोई कार्रवाई किए या कोई कदम उठाए उन्हें अपने आस-पास तबाही मचाने देते हो। क्या तुम लोग मसीह-विरोधियों के बुरे कर्मों में भागीदार नहीं हो? यही कारण है कि कुछ झूठे अगुआ और खुशामदी लोग मसीह-विरोधियों के साथी बन जाते हैं। जो कोई भी मसीह-विरोधियों को कलीसिया के काम में बाधा डालते हुए देखता है, मगर उन्हें उजागर नहीं करता या उनके साथ स्पष्ट सीमाएँ तय नहीं करता है, वह उनका अनुचर और साथी बन जाता है। उसमें परमेश्वर के प्रति समर्पण और निष्ठा की कमी होती है। परमेश्वर और शैतान के बीच लड़ाई के महत्वपूर्ण क्षणों में वह शैतान की तरफ खड़े होकर मसीह-विरोधियों की रक्षा करता है और परमेश्वर को धोखा देता है। ऐसे लोगों से परमेश्वर घृणा करता है।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग आठ)
जब तुम्हें किसी व्यक्ति के मसीह-विरोधी होने का पता चलता है, तो मैं तुम्हें बता देता हूँ, यदि उसका प्रभाव बहुत बड़ा है, अनेक अगुआ और कर्मी उसकी बात सुनते हैं और तुम्हारी बात नहीं सुनते, और यदि तुम उन्हें उजागर करते हो और तुम्हें अच्छी तरह से अलग-थलग या बाहर किया जा सकता है, तो तुम्हें अपनी रणनीति पर सावधानीपूर्वक विचार करना चाहिए। अकेले उनका सामना मत करो; परिस्थितियां तुम्हारे पक्ष में नहीं हैं। ऐसे चंद लोगों से संपर्क करके शुरुआत करो जो सत्य को समझते हों और जिनमें विवेक हो, जो उनसे संगति चाहते हों। यदि तुम एकमत हो जाते हो, तो ऐसे दो और अगुआओं या कर्मियों के पास जाओ जो सत्य को स्वीकार कर सकें और किसी सहमति पर पहुंच सकें। कई लोग एक साथ काम करके, संयुक्त रूप से मसीह-विरोधी को उजागर करो और उससे निपटो। इस तरह, तुम्हें सफलता मिल सकती है। यदि मसीह-विरोधी का प्रभाव बहुत ज्यादा है, तो तुम लोग ऊपरवाले को एक सूचना पत्र भी लिख सकते हो। यह एकदम सही दृष्टिकोण है। यदि कुछेक अगुआ और कर्मी सच में तुम लोगों को दबाने का प्रयास करें, तो तुम लोग उन्हें बता सकते हो, “यदि आप लोग हमारे खुलासे और रिपोर्ट को स्वीकार नहीं करते हैं, तो हम ऊपरवाले के समक्ष इस मामले को उठाएंगे और फिर वो आप लोगों को संभालेगा!” इससे तुम्हारी सफलता की संभावनाएँ बढ़ती हैं, चूंकि वे तुम लोगों के विरुद्ध जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाएंगे। मसीह-विरोधियों से निपटते समय, तुम्हें इस भरोसेमंद दृष्टिकोण—कभी अकेले कुछ मत करो, को अपनाना चाहिए। यदि तुम्हारे पास कुछेक अगुआओं और कर्मियों का समर्थन नहीं है, तो तुम्हारे प्रयास निश्चित ही असफल हो जाएंगे, जब तक कि तुम एक सूचना पत्र लिखकर ऊपरवाले को सौंप नहीं देते। मसीह-विरोधी अत्यधिक धोखेबाज और धूर्त होते हैं। यदि तुम्हारे पास पर्याप्त सबूत नहीं है, तो उनके खिलाफ जाने की कोशिश मत करो। उनसे तर्क या बहस करना बेकार है, उनमें बदलाव लाने की कोशिश करने के लिए प्रेम जताना बेकार है, और उनके साथ सत्य पर संगति करना भी काम नहीं आएगा; तुम उनमें बदलाव नहीं ला पाओगे। ऐसी स्थिति में जहां तुम उन्हें बदल नहीं सकते, तुम्हारे लिए सबसे अच्छा यही है कि उनसे खुले दिल से बात मत करो, उनसे तर्क मत करो, और उनके पश्चात्ताप का इंतजार मत करो। इसके बजाय उन्हें बताए बिना उजागर करो और उनकी रिपोर्ट करो, ऊपरवाले को उन्हें संभालने दो, और अधिक लोगों को उन्हें उजागर करने, उनकी रिपोर्ट करने, और उन्हें अस्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित करो, ताकि आखिर उन्हें कलीसिया से उखाड़ फेंका जाए। क्या यह अच्छा तरीका नहीं है? यदि उनका उद्देश्य तुम्हारे अंतरमन के विचारों को परखना, तुम्हारी जाँच करना, और यह देखना है कि उनके प्रति तुममें कोई समझ तो नहीं है, तो तुम क्या करोगे यदि तुमने पहले ही उन्हें मसीह-विरोधी के रूप में पहचान लिया है? (मुझे उनके साथ सच नहीं बोलना चाहिए, बल्कि कुछ समय के लिए उनकी बातों के अनुसार चलना चाहिए, उन्हें अपनी समझ का पता नहीं चलने देना चाहिए, और फिर मुझे निजी तौर पर उन्हें उजागर करना चाहिए और उनकी रिपोर्ट करनी चाहिए।) यह दृष्टिकोण कैसा है? (अच्छा है।) तुम्हें दानवों और शैतानों की चालों को समझना चाहिए और उनके बिछाए जाल में फँसने से बचना चाहिए या उनके बनाए गढ्ढों में गिरने से बचना चाहिए। शैतानों और दानवों से निपटते समय, तुम्हें अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करना चाहिए और उनसे सच बोलने से बचना चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि तुम केवल परमेश्वर और असली भाई-बहनों से ही सच बोल सकते हो। तुम्हें शैतानों से, दानवों से, या मसीह-विरोधियों से कभी सच नहीं बोलना चाहिए। केवल परमेश्वर ही इस योग्य है कि वह तुम्हारे दिल में जो है उसे समझे और तुम्हारे दिल पर संप्रभुता बनाए रखे और तुम्हारे दिल की जाँच-पड़ताल करे। कोई भी, विशेष रूप से दानव और शैतान, तुम्हारे दिल को नियंत्रित करने और उसकी पड़ताल करने के योग्य नहीं है। इसलिए यदि दानव और शैतान तुम्हारे अंतरमन की सच्चाई जानने की कोशिश करें, तो तुम्हारे पास “न” कहने का, उत्तर देने से इनकार करने का, और जानकारी को दबाकर रखने का अधिकार है—यह तुम्हारा अधिकार है। यदि तुम कहते हो, “दानव, तुम मेरे अंतरमन की बातों को परखना चाहते हो, लेकिन मैं तुमसे सच नहीं बोलूंगा, मैं तुम्हें नहीं बताऊंगा। मैं तुम्हारी रिपोर्ट करूँगा—तुम मेरा क्या बिगाड़ सकते हो? यदि तुम मुझे सताने की हिम्मत करोगे, तो मैं तुम्हारी रिपोर्ट करूँगा, यदि तुम मुझे सताओगे तो परमेश्वर तुम्हें शाप देगा और तुम्हें सजा देगा!” क्या इससे काम चलता है? (नहीं चलता है।) बाइबल कहती है, “इसलिए तुम सब साँपों के समान बुद्धिमान और कबूतरों के समान भोले बनो” (मत्ती 10:16)। ऐसी स्थितियों में तुम्हें साँपों के समान बुद्धिमान होना चाहिए; तुम्हें बुद्धिमान होना चाहिए। हमारे दिल केवल इसके लिए उपयुक्त हैं कि परमेश्वर उनकी पड़ताल करे और उन्हें धारण करे, और उन्हें केवल परमेश्वर को ही दिया जाना चाहिए। केवल परमेश्वर ही हमारे दिल के योग्य है, शैतान और दानव इसके योग्य नहीं हैं! इसलिए क्या मसीह-विरोधियों के पास यह जानने का अधिकार है कि हमारे दिल में क्या है या हम क्या विचार कर रहे हैं? उनके पास वह अधिकार नहीं है। तुम्हारे अंतरमन की सच्चाई जानने और तुम्हारी जाँच करने का उनका मकसद क्या है? उनका उद्देश्य तुम्हारे ऊपर नियंत्रण करना है; तुम्हें इसे स्पष्ट रूप से पहचानना चाहिए। इसलिए उनसे सच मत बोलो। तुम्हें उनको उजागर कर उनका तिरस्कार करने, उनकी जगह से उन्हें नीचे उतारने तथा उन्हें कभी सफल न होने देने के लिए और अधिक भाई-बहनों को एकजुट करने के तरीके ढूँढ़ने चाहिए। उन्हें कलीसिया से उखाड़ फेंको, और परमेश्वर के घर में फिर से सत्ता में बाधा डालने और सत्ता हथियाने के किसी भी और सभी अवसरों से उन्हें वंचित कर दो।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद चौदह : वे परमेश्वर के घर को अपना निजी अधिकार क्षेत्र मानते हैं
कुछ लोग कहते हैं, “मसीह-विरोधी केवल भ्रष्ट स्वभाव वाले लोग हैं। लोगों में मानवीय भावनाएँ होती हैं। यदि तुम उनसे भावनात्मक रूप से निवेदन करोगे, चीजों को तार्किक रूप से समझाओगे, और उनके सामने पक्ष-विपक्ष रखोगे, तो तर्क समझने के बाद शायद वे इस तरह से कार्य न करें। वे अपनी गलतियाँ स्वीकार कर सकते हैं, पश्चाताप कर सकते हैं और मसीह-विरोधियों के रास्ते पर चलना बंद कर सकते हैं। संभव है कि वे परमेश्वर के घर के भीतर अपना खुद का अधिकार क्षेत्र स्थापित न करें, परमेश्वर के घर में सत्ता पर एकाधिकार करने के लिए अपने कट्टर अनुयायियों को जमा न करें, और ऐसे कामों में न लगें जो मानवता और नैतिकता के अनुरूप नहीं हैं।” क्या मसीह-विरोधियों को इस तरह प्रभावित किया जा सकता है? (नहीं।) क्या कभी किसी ने किसी मसीह-विरोधी को बदला है? कुछ लोग कहते हैं, “शायद छोटी उम्र से उनकी मां ने उन्हें ठीक से शिक्षा नहीं दी थी जिससे वे खराब हो गए। अब, यदि उसकी माँ या उसके परिवार का सबसे सम्मानित व्यक्ति उससे बात करे, या कोई लंबे समय का विश्वासी उसे समझाए, तो संभव है कि वह उन कामों को छोड़ दे जो मसीह-विरोधी करते हैं।” क्या इसमें कोई सत्य है? (नहीं।) क्यों नहीं? (उनके साथ तर्क करना बेकार है; तुम जितनी ज्यादा बात करोगे, वे उतना ही वे उससे नाराज होंगे। यदि तुम उन्हें उजागर करते हो और उनकी काट-छाँट करते हो, तो वे तुमसे नफरत करने लगेंगे।) सही कहा। क्या उन्होंने परमेश्वर के वचनों और सत्य को थोड़ा भी नहीं सुना है? कुछ मसीह-विरोधियों ने दस या बीस वर्षों तक विश्वास किया है फिर भी कोई बदलाव नहीं हुआ। उन्होंने परमेश्वर के वचनों को काफी पढ़ा है, मगर कोई बदलाव क्यों नहीं हुआ? ऐसा इसलिए कि उनके हृदय बुराई से भरे हुए हैं—यहाँ तक कि परमेश्वर भी उन्हें नहीं बचाता, तो, क्या मनुष्य अपने थोड़े से ज्ञान और धर्म-सिद्धांत से उन्हें बदल सकते हैं? मानव समाज में, देशों में शिक्षा है और समाज में कानून हैं, जो सभी को अच्छा बनने और अपराध करने से बचने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। लेकिन यह लोगों को बदल क्यों नहीं पाता? क्या राष्ट्रीय शिक्षा और व्यवस्थाओं का समाज पर कोई सकारात्मक प्रभाव पड़ा है? क्या राष्ट्र द्वारा प्रचारित उन चीजों का मानवता के लिए कोई शैक्षिक महत्व या मूल्य है? क्या वे प्रभावी रहे हैं? (नहीं।) यहाँ तक कि प्रत्येक देश में कानूनी विभाग, जैसे कि किशोर सुधार सुविधाएँ और जेल, हैं जो लोगों को अनुशासित करने के सबसे बड़े और सख्त स्थान हैं, क्या इनसे लोगों का सार बदल गया? बलात्कारियों, चोरों और ठगों को ही लो—वे इतनी बार जेल के अंदर और बाहर जाते हैं कि वे आदतन अपराधी बन जाते हैं—क्या अंततः वे बदलते हैं? नहीं, उन्हें कोई नहीं बदल सकता। किसी व्यक्ति का सार नहीं बदला जा सकता। इसी प्रकार, मसीह-विरोधियों का सार भी नहीं बदला जा सकता है। सत्ता पर एकाधिकार करने का अभ्यास मसीह-विरोधियों के सार को दर्शाता है, और इसे बदला नहीं जा सकता। बदलाव में असमर्थ इस प्रकार के व्यक्ति के प्रति परमेश्वर का रवैया क्या है? क्या यह उसे बदलने और बचाने के लिए अपना अधिकतम प्रयास करने और फिर उनकी प्रकृति में परिवर्तन लाने का रवैया है? क्या परमेश्वर यह कार्य करता है? (नहीं।) अब जब तुम लोग समझ गए हो कि परमेश्वर इस तरह का काम नहीं करता, तो तुम्हें मसीह-विरोधियों से कैसे निपटना चाहिए? (उन्हें अस्वीकार करो।) पहले, समझो और विश्लेषण करो; जब तुम उनकी असलियत जान लो, तो उन्हें अस्वीकार कर दो। केवल अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर किसी को यह सोचकर अस्वीकार न करो कि वह अहंकारी और दंभी है और मसीह-विरोधी जैसा है। इससे काम नहीं चलेगा; तुम दृष्टिहीन नहीं बन सकते। संपर्क, जांच और विवेक के माध्यम से, धीरे-धीरे स्थापित करो और पुष्टि करो कि कोई व्यक्ति मसीह-विरोधी है। पहले, संगति करो और सभी के सामने उनका विश्लेषण करो, उन्हें समझो, और फिर कलीसिया में उन लोगों के साथ एकजुट हो जो सत्य का अनुसरण करते हैं और मसीह-विरोधी को अस्वीकार करने के लिए न्याय की भावना रखते हैं। पहले उन्हें पहचानो और विश्लेषण करो, और तब उन्हें अस्वीकार करो—मसीह-विरोधियों से निपटने का यही सबसे अच्छा तरीका है।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद चौदह : वे परमेश्वर के घर को अपना निजी अधिकार क्षेत्र मानते हैं
परमेश्वर का घर मसीह-विरोधियों को निष्कासित क्यों करना चाहता है? क्या उन्हें यहीं रहने देने और सेवा करने की अनुमति देना सही होगा? क्या उन्हें पश्चात्ताप का मौका देना सही होगा? (नहीं, यह सही नहीं होगा।) क्या उनके सत्य का अनुसरण करने की कोई संभावना है? (मसीह-विरोधी सत्य का अनुसरण नहीं कर सकते।) अब तुम्हें पता चल गया है कि मसीह-विरोधी बुरे लोग हैं, जो शैतान के हैं और पश्चात्ताप नहीं कर सकते, इसीलिए उन्हें निष्कासित किया जाता है। किसी को भी गंभीर वजह के बिना निष्कासित नहीं किया जाता। परमेश्वर का घर बार-बार धैर्य से काम लेता है, बार-बार उन्हें पश्चात्ताप करने के मौके देता है और उन्हें थोड़ी छूट भी देता है, ताकि अच्छे लोगों पर गलत इल्जाम न लगे और किसी को भी बिना गंभीर वजह से निष्कासित या तबाह न किया जाए। परमेश्वर में इतने सालों से विश्वास करना उनके लिए कोई आसान बात नहीं है; परमेश्वर का घर सभी के प्रति तब तक सहनशीलता दिखता है जब तक उनकी असलियत पूरी तरह से सामने नहीं आती, जब तक वे पूरी तरह से बेनकाब नहीं हो जाते। मगर क्या मसीह-विरोधी पश्चात्ताप कर सकते हैं? वे पश्चात्ताप नहीं कर सकते। परमेश्वर के घर में वे शैतान के चाकरों की भूमिका निभाते हैं, जो परमेश्वर के घर के काम को नष्ट, बाधित और अस्त-व्यस्त करते हैं। भले ही उनके पास कुछ गुण और प्रतिभा हों, मगर वे अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाने के लिए कड़ी मेहनत नहीं कर सकते या सही मार्ग पर नहीं चल सकते। भले ही मसीह-विरोधियों के पास कुछ उपयोगी पहलू हों, मगर वे परमेश्वर के घर में परमेश्वर के कार्य में बिल्कुल भी सकारात्मक योगदान नहीं देंगे। वे परमेश्वर के कार्य को बाधित, अस्त-व्यस्त और कमजोर करने के अलावा कुछ नहीं करते, और वे अच्छे काम नहीं करते। तुमने उन्हें परखने के लिए रुके रहने दिया और पश्चात्ताप करने का मौका दिया, मगर वे पश्चात्ताप करने में असमर्थ रहे। अंत में जो समाधान अपनाया गया वह उन्हें निष्कासित करने का ही था। उन्हें निष्कासित करने से पहले ही तुम यह असलियत जान चुके थे कि इस तरह का व्यक्ति मसीह-विरोधी है जो पश्चात्ताप करने के बजाय मरना पसंद करेगा, और वह परमेश्वर और सत्य का विरोधी है। नतीजतन, उसे निष्कासित कर दिया गया। अगर वह अच्छा व्यक्ति होता तो क्या उसे निष्कासित किया जाता? अगर वह सत्य स्वीकार कर पश्चात्ताप कर पाता तो क्या उसे निष्कासित किया जाता? ज्यादा से ज्यादा उसे उसके कर्तव्य से बर्खास्त कर आध्यात्मिक भक्ति और चिंतन में लगने के लिए भेज दिया जाता, मगर उसे निष्कासित नहीं किया जाता। एक बार जब परमेश्वर का घर किसी को निष्कासित करने का फैसला कर लेता है तो इसका मतलब है कि अगर उसे परमेश्वर के घर में रहने दिया जाए तो वह एक अभिशाप बन जाएगा। ऐसे लोग अच्छे काम नहीं करेंगे, वे सिर्फ विघ्न और गड़बड़ी पैदा करेंगे और तमाम तरह की बुरी चीजें करेंगे। वे जिस भी कलीसिया में होंगे उसमें इतनी बाधाएँ आएँगी कि वह रेत की तरह बिखर जाएगी, उसका काम रुक जाएगा, ज्यादातर लोग बहुत निराश महसूस करेंगे और परमेश्वर में अपनी आस्था खो देंगे और कुछ लोग तो अपनी आस्था छोड़ना भी चाहेंगे और अपने कर्तव्य निभाना जारी नहीं रख पाएँगे। इसका क्या कारण है? यह मसीह-विरोधी की विघ्न-बाधाओं के कारण होता है। मसीह-विरोधी से निपटा जाना चाहिए, उसे हटाया जाना चाहिए और निष्कासित किया जाना चाहिए ताकि इस कलीसिया के लिए कोई उम्मीद बाकी रहे, कलीसिया का जीवन सामान्य हो सके और परमेश्वर के चुने हुए लोग परमेश्वर में विश्वास रखने के सही मार्ग पर प्रवेश कर सकें। कुछ लोग कहते हैं : “परमेश्वर प्रेम है, इसलिए हमें मसीह-विरोधी को भी पश्चात्ताप करने का मौका देना चाहिए।” ये शब्द सुनने में बड़े अच्छे लगते हैं, मगर क्या सच में चीजें ऐसी ही हैं? ध्यान से देखो : जिन मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों को निष्कासित किया गया था, उनमें से कौन बाद में खुद को जान पाया और सत्य का अनुसरण कर उससे प्रेम कर पाया? किन लोगों ने पश्चात्ताप किया? उनमें से किसी ने भी पश्चात्ताप नहीं किया और उन सबने अड़ियल बनकर अपने पाप कबूलने से इनकार कर दिया, और तुम चाहे उन्हें कितने भी साल बाद फिर से देखो, वे अभी भी ऐसे ही होंगे, अभी भी उन चीजों से चिपके होंगे जो पहले हुई थीं और उन्हें नहीं भूल पाएँगे, वे बस खुद को सही ठहराने और अपनी बात समझाने की कोशिश में लगे रहेंगे। उनका स्वभाव बिल्कुल नहीं बदला है। अगर तुम उन्हें वापस अपनाकर फिर से कलीसियाई जीवन शुरू करने देते हो और कोई कर्तव्य निभाने देते हो तो वे अभी भी कलीसिया के काम में विघ्न-बाधा और गड़बड़ी पैदा करेंगे। ठीक पौलुस की तरह, वे अपनी बड़ाई करते और खुद की गवाही देते हुए वही पुरानी गलतियाँ दोहराएँगे। वे सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर बिल्कुल भी नहीं चल सकते और वे अपने पुराने मार्ग, मसीह-विरोधी के मार्ग और पौलुस के मार्ग पर चलेंगे। मसीह-विरोधियों को निष्कासित करने का यही आधार है।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग आठ)
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