17. नकलीपन और दिखावा करने की समस्या का समाधान कैसे करें
अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन
भ्रष्ट मनुष्य छद्मवेश धारण करने में कुशल होते हैं। चाहे वे कुछ भी करें या किसी भी तरह की भ्रष्टता प्रकट करें, वे हमेशा छद्मवेश धारण करते ही हैं। अगर कुछ गलत हो जाता है या वे कुछ गलत करते हैं, तो वे दूसरों पर दोष मढ़ना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि अच्छी चीजों का श्रेय उन्हें मिले और बुरी चीजों के लिए दूसरों को दोष दिया जाए। क्या वास्तविक जीवन में इस तरह का छद्मवेश बहुत अधिक धारण नहीं किया जाता? ऐसा बहुत होता है। गलतियाँ करना या छद्मवेश धारण करना : इनमें से कौन-सी चीज स्वभाव से संबंधित है? छद्मवेश धारण करना स्वभाव का मामला है, इसमें अहंकारी स्वभाव, दुष्टता और धूर्तता शामिल होती है; परमेश्वर इससे विशेष रूप से घृणा करता है। वास्तव में, जब तुम छद्मवेश धारण करते हो, तो हर कोई समझता है कि क्या हो रहा है, लेकिन तुम्हें लगता है कि दूसरे इसे नहीं देखते, और तुम अपनी इज्जत बचाने और इस प्रयास में कि दूसरे सोचें कि तुमने कुछ गलत नहीं किया, बहस करने और खुद को सही ठहराने की पूरी कोशिश करते हो। क्या यह बेवकूफी नहीं है? दूसरे इस बारे में क्या सोचते हैं? वे कैसा महसूस करते हैं? ऊब और घृणा। यदि कोई गलती करने के बाद तुम उसे सही तरह से ले सको, और अन्य सभी को उसके बारे में बात करने दे सको, उस पर टिप्पणी और विचार करने दे सको, और उसके बारे में खुलकर बात कर सको और उसका गहन-विश्लेषण कर सको, तो तुम्हारे बारे में सभी की राय क्या होगी? वे कहेंगे कि तुम एक ईमानदार व्यक्ति हो, क्योंकि तुम्हारा दिल परमेश्वर के प्रति खुला है। तुम्हारे कार्यों और व्यवहार के माध्यम से वे तुम्हारे दिल को देख पाएँगे। लेकिन अगर तुम खुद को छिपाने और हर किसी को धोखा देने की कोशिश करते हो, तो लोग तुम्हें तुच्छ समझेंगे और कहेंगे कि तुम मूर्ख और नासमझ व्यक्ति हो। यदि तुम ढोंग करने या खुद को सही ठहराने की कोशिश न करो, यदि तुम अपनी गलतियाँ स्वीकार सको, तो सभी लोग कहेंगे कि तुम ईमानदार और बुद्धिमान हो। और तुम्हें बुद्धिमान क्या चीज बनाती है? सब लोग गलतियाँ करते हैं। सबमें दोष और कमजोरियाँ होती हैं। और वास्तव में, सभी में वही भ्रष्ट स्वभाव होता है। अपने आप को दूसरों से अधिक महान, परिपूर्ण और दयालु मत समझो; यह एकदम अनुचित है। जब तुम लोगों के भ्रष्ट स्वभाव और सार, और उनकी भ्रष्टता के असली चेहरे को पहचान जाते हो, तब तुम अपनी गलतियाँ छिपाने की कोशिश नहीं करते, न ही तुम दूसरों की गलतियों के करण उनके बारे में गलत धारणा बनाते हो—तुम दोनों का सही ढंग से सामना करते हो। तभी तुम समझदार बनोगे और मूर्खतापूर्ण काम नहीं करोगे, और यह बात तुम्हें बुद्धिमान बना देगी। जो लोग बुद्धिमान नहीं हैं, वे मूर्ख होते हैं, और वे हमेशा पर्दे के पीछे चोरी-छिपे अपनी छोटी-छोटी गलतियों पर देर तक बात किया करते हैं। यह देखना घृणास्पद है। वास्तव में, तुम जो कुछ भी करते हो, वह दूसरों पर तुरंत जाहिर हो जाता है, फिर भी तुम खुल्लम-खुल्ला वह करते रहते हो। लोगों को यह मसखरों जैसा प्रदर्शन लगता है। क्या यह मूर्खतापूर्ण नहीं है? यह सच में मूर्खतापूर्ण ही है। मूर्ख लोगों में कोई अक्ल नहीं होती। वे कितने भी उपदेश सुन लें, फिर भी उन्हें न तो सत्य समझ में आता है, न ही वे चीजों की असलियत देख पाते हैं। वे अपने हवाई घोड़े से कभी नीचे नहीं उतरते और सोचते हैं कि वे बाकी सबसे अलग और अधिक सम्माननीय हैं; यह अहंकार और आत्मतुष्टि है, यह मूर्खता है। मूर्खों में आध्यात्मिक समझ नहीं होती, है न? जिन मामलों में तुम मूर्ख और नासमझ होते हो, वे ऐसे मामले होते हैं जिनमें तुम्हें कोई आध्यात्मिक समझ नहीं होती, और तुम आसानी से सत्य को नहीं समझ सकते। मामले की सच्चाई यह है।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, व्यक्ति के आचरण का मार्गदर्शन करने वाले सिद्धांत
जब लोग हमेशा मुखौटा लगाए रहते हैं, हमेशा खुद को अच्छा दिखाते हैं, हमेशा खास होने का ढोंग करते हैं जिससे दूसरे उनके बारे में अच्छी राय रखें, और अपने दोष या कमियाँ नहीं देख पाते, जब वे लोगों के सामने हमेशा अपना सर्वोत्तम पक्ष प्रस्तुत करने की कोशिश करते हैं, तो यह किस प्रकार का स्वभाव है? यह अहंकार है, कपट है, पाखंड है, यह शैतान का स्वभाव है, यह एक दुष्ट स्वभाव है। शैतानी शासन के सदस्यों को लें : वे अंधेरे में कितना भी लड़ें-झगड़ें या हत्या तक कर दें, किसी को भी उनकी शिकायत करने या उन्हें उजागर करने की अनुमति नहीं होती। वे डरते हैं कि लोग उनका राक्षसी चेहरा देख लेंगे, और वे इसे छिपाने का हर संभव प्रयास करते हैं। सार्वजनिक रूप से वे यह कहते हुए खुद को पाक-साफ दिखाने की पूरी कोशिश करते हैं कि वे लोगों से कितना प्यार करते हैं, वे कितने महान, गौरवशाली और अमोघ हैं। यह शैतान की प्रकृति है। शैतान की प्रकृति की सबसे प्रमुख विशेषता धोखाधड़ी और छल है। और इस धोखाधड़ी और छल का उद्देश्य क्या होता है? लोगों की आँखों में धूल झोंकना, लोगों को अपना सार और असली रंग न देखने देना, और इस तरह अपने शासन को दीर्घकालिक बनाने का उद्देश्य हासिल करना। साधारण लोगों में ऐसी शक्ति और हैसियत की कमी हो सकती है, लेकिन वे भी चाहते हैं कि लोग उनके पक्ष में राय रखें और उन्हें खूब सम्मान की दृष्टि से देखें और अपने दिल में उन्हें ऊँचे स्थान पर रखें। यह भ्रष्ट स्वभाव होता है, और अगर लोग सत्य नहीं समझते, तो वे इसे पहचानने में असमर्थ रहते हैं। भ्रष्ट स्वभावों को पहचानना सबसे कठिन है : स्वयं के दोषों और कमियों को पहचानना आसान है, लेकिन अपने भ्रष्ट स्वभाव को पहचानना आसान नहीं है। जो लोग स्वयं को नहीं जानते वे कभी भी अपनी भ्रष्ट दशाओं के बारे में बात नहीं करते—वे हमेशा सोचते हैं कि वे ठीक हैं। और यह एहसास किए बिना, वे दिखावा करना शुरू कर देते हैं : “अपनी आस्था के इतने वर्षों के दौरान, मैंने बहुत उत्पीड़न सहा है और बहुत कठिनाई झेली है। क्या तुम लोग जानते हो कि मैंने इन सब पर जीत कैसे पाई?” क्या यह अहंकारी स्वभाव है? स्वयं को प्रदर्शित करने के पीछे क्या प्रेरणा है? (ताकि लोग उनके बारे में ऊँची राय रखें।) लोग उनके बारे में ऊँची राय रखें, इसके पीछे उनका मकसद क्या है? (ऐसे लोगों के मन में रुतबा पाना।) जब तुम्हें किसी और के मन में रुतबा मिलता है, तब वे तुम्हारे साथ होने पर तुम्हारे प्रति सम्मान दिखाते हैं, और तुमसे बात करते समय विशेष रूप से विनम्र रहते हैं। वे हमेशा प्रेरणा के लिए तुम्हारी ओर देखते हैं, वे हमेशा हर चीज पहले तुम्हें करने देते हैं, वे तुम्हें रास्ता देते हैं, तुम्हारी चापलूसी करते हैं और तुम्हारी बात मानते हैं। सभी चीजों में वे तुम्हारी राय चाहते हैं और तुम्हें निर्णय लेने देते हैं। और तुम्हें इससे आनंद की अनुभूति होती है—तुम्हें लगता है कि तुम किसी और से अधिक ताकतवर और बेहतर हो। यह एहसास हर किसी को पसंद आता है। यह किसी के दिल में अपना रुतबा होने का एहसास है; लोग इसका आनंद लेना चाहते हैं। यही कारण है कि लोग रुतबे के लिए होड़ करते हैं, और सभी चाहते हैं कि उन्हें दूसरों के दिलों में रुतबा मिले, दूसरे उनका सम्मान करें और उन्हें पूजें। यदि वे इससे ऐसा आनंद प्राप्त नहीं कर पाते, तो वे रुतबे के पीछे नहीं भागते। उदाहरण के लिए, यदि किसी के मन में तुम्हारा रुतबा नहीं है, तो वह तुम्हारे साथ समान स्तर पर जुड़ेगा, तुम्हें अपने बराबर मानेगा। वह जरूरत पड़ने पर तुम्हारी बात काटेगा, तुम्हारे प्रति विनम्र नहीं रहेगा या तुम्हें आदर नहीं देगा और तुम्हारी बात खत्म होने से पहले ही उठकर जा भी सकता है। क्या तुम्हें बुरा लगेगा? जब लोग तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार करते हैं तो तुम्हें अच्छा नहीं लगता; तुम्हें अच्छा तब लगता है जब वे तुम्हारी चापलूसी करते हैं, तुम्हें आदर और सराहना की नजर से देखते हैं और हर पल तुम्हें पूजते हैं। तुम्हें तब अच्छा लगता है जब हर चीज तुम्हारे इर्द-गिर्द घूमती है, हर चीज तुम्हारे हिसाब से होती है, हर कोई तुम्हारी बात सुनता है, तुम्हें आदर और सराहना की नजर से देखता है और तुम्हारे निर्देशों का पालन करता है। क्या यह एक राजा के रूप में शासन करने, सत्ता पाने की इच्छा नहीं है? तुम्हारी कथनी और करनी रुतबा चाहने और उसे पाने से प्रेरित होती है और इसके लिए तुम दूसरों से संघर्ष, छीना-झपटी और प्रतिस्पर्धा करते हो। तुम्हारा लक्ष्य एक पद हासिल करना, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को अपनी बात सुनाना, उनसे समर्थन पाना और अपनी आराधना करवाना है। एक बार जब तुम उस पद पर आसीन हो जाते हो, तो फिर तुम्हें सत्ता मिल जाती है और तुम रुतबे के फायदों, दूसरों की प्रशंसा और उस पद के साथ आने वाले अन्य सभी लाभों का मजा ले सकते हो। लोग हमेशा अपना भेष बदलते रहते हैं, दूसरों के सामने दिखावा करते हैं, मुखौटे ओढ़ते हैं, ढोंग करते रहते हैं और खुद को सजाते हैं ताकि दूसरों को लगे कि वे पूर्ण हैं। इसमें उनका उद्देश्य रुतबा हासिल करना होता है ताकि वे रुतबे के फायदों का आनंद उठा सकें। यदि तुम्हें विश्वास न हो तो इस पर ध्यान से सोचो : तुम हमेशा यह क्यों चाहते हो कि लोग तुम्हारे बारे में अच्छा सोचें? तुम चाहते हो कि वे तुम्हारी आराधना करें और तुम्हें आदर और सराहना की नजर से देखें ताकि अंततः तुम सत्ता हासिल कर सको और रुतबे के फायदों का आनंद उठा सको। तुम जिस रुतबे के पीछे इतनी बेसब्री से पड़े हो, वह तुम्हें कई फायदे दिलाएगा और यही वो फायदे हैं जिनसे दूसरे लोग ईर्ष्या करते हैं और जिन्हें चाहते भी हैं। जब लोगों को रुतबे से मिलने वाले अनेक लाभों का स्वाद मिलता है, तो उन पर इसका नशा छा जाता है और वे उस विलासितापूर्ण जीवन में डूब जाते हैं। लोगों को लगता है कि यही एक जीवन है जो बर्बाद नहीं हुआ है। भ्रष्ट मानवता इन चीजों में लिप्त होकर प्रसन्न होती है। इसलिए, एक बार जब कोई व्यक्ति एक निश्चित पद प्राप्त कर लेता है और इससे मिलने वाले विभिन्न फायदे उठाने लगता है, तो वह लगातार इन पापपूर्ण सुखों के लिए ललचाएगा, इस हद तक कि वह इन्हें कभी नहीं छोड़ता। संक्षेप में, प्रसिद्धि और रुतबे की चाहत एक खास पद से मिलने वाले फायदे उठाने, एक राजा के रूप में शासन करने, परमेश्वर के चुने हुए लोगों पर नियंत्रण स्थापित करने, हर चीज पर प्रभुत्व रखने और एक स्वतंत्र राज्य स्थापित करने की इच्छा से प्रेरित होती है जहाँ वे अपने रुतबे के फायदों का आनंद उठा सकते हैं और पापपूर्ण सुखों में डूब सकते हैं। शैतान लोगों को भ्रांत करके उन्हें धोखा देने, ठगने और मूर्ख बनाने के लिए हर तरह के तरीके इस्तेमाल करता है, ताकि अपनी झूठी छवि बना सके। लोग उसकी प्रशंसा करें और उससे डरें, इसके लिए वह उन्हें डराता-धमकाता तक है, जिसका अंतिम लक्ष्य उनसे शैतान के आगे समर्पण करवाकर उसकी आराधना करवाना है। यही चीज है, जो शैतान को प्रसन्न करती है; यह लोगों को जीतने के लिए परमेश्वर के साथ प्रतिस्पर्धा करने में उसका लक्ष्य भी है। तो, जब तुम लोग अन्य लोगों के बीच रुतबे और प्रतिष्ठा के लिए लड़ते हो, तो तुम किस लिए लड़ते हो? क्या यह लड़ाई वाकई प्रसिद्धि के लिए है? नहीं, तुम वास्तव में उन लाभों के लिए लड़ते हो, जो तुम्हें प्रसिद्धि से मिलते हैं। यदि तुम हमेशा उन लाभों का आनंद लेना चाहते हो, तो तुम्हें उनके लिए लड़ना होगा। लेकिन यदि तुम उन लाभों को महत्व नहीं देते और यह कहते हो कि “इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि लोग मेरे साथ कैसा व्यवहार करते हैं। मैं तो बस एक साधारण व्यक्ति हूँ। मैं ऐसे अच्छे व्यवहार के योग्य नहीं हूँ और न ही मेरी इच्छा किसी व्यक्ति की आराधना करने की है। एकमात्र परमेश्वर ही है जिसकी मुझे सचमुच आराधना करनी चाहिए और जिसका भय मानना चाहिए। वही मेरा परमेश्वर और मेरा प्रभु है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई कितना अच्छा है, उसमें कितनी बड़ी क्षमताएँ हैं, उसमें कितनी ज्यादा प्रतिभा है या उसकी छवि कितनी शानदार या पूर्ण है, वह मेरी श्रद्धा का विषय नहीं है क्योंकि वह सत्य नहीं है। वह सृष्टिकर्ता नहीं है; वह उद्धारकर्ता नहीं है, और वह मनुष्य की नियति की योजना नहीं बना सकता या उस पर प्रभुत्व स्थापित नहीं कर सकता। वह मेरी आराधना की वस्तु नहीं है। कोई भी मनुष्य मेरी आराधना के योग्य नहीं है” तो क्या यह सत्य के अनुरूप नहीं है? इसके विपरीत, अगर तुम दूसरों की आराधना नहीं करते लेकिन वे तुम्हारी आराधना करने लगें तो तुम्हें उनके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए? तुम्हें उन्हें ऐसा करने से रोकने का तरीका खोजना होगा और उन्हें ऐसी मानसिकता से मुक्त होने में मदद करनी होगी। तुम्हें उन्हें अपना असली चेहरा दिखाने का तरीका खोजकर अपनी कुरूपता और असली प्रकृति दिखानी होगी। लोगों को यह समझाना महत्वपूर्ण है कि तुममें चाहे कितनी ही अच्छी काबिलियत हो, तुम कितने ही उच्च शिक्षित हो, कितने ही ज्ञानी या बुद्धिमान हो, फिर भी तुम एक साधारण व्यक्ति ही हो। तुम किसी के लिए प्रशंसा या आराधना की वस्तु नहीं हो। सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि तुम अपनी स्थिति पर दृढ़ रहो और गलतियाँ करने या शर्मिंदा होने के बाद पीछे मत हटो। यदि गलतियाँ करने या खुद को शर्मिंदा करने के बाद तुम इसे स्वीकार नहीं करते, बल्कि इसे छिपाने या ढकने के लिए धोखे का सहारा भी लेते हो तो तुम अपनी गलती को कई गुना बढ़ाकर और भी कुरूप दिखने लगते हो। तुम्हारी महत्वाकांक्षा और भी अधिक खुलकर सामने आ जाती है।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, व्यक्ति के आचरण का मार्गदर्शन करने वाले सिद्धांत
लोग स्वयं भी सृजित प्राणी हैं। क्या सृजित प्राणी सर्वशक्तिमान हो सकते हैं? क्या वे पूर्णता और निष्कलंकता हासिल कर सकते हैं? क्या वे हर चीज में दक्षता हासिल कर सकते हैं, हर चीज समझ सकते हैं, हर चीज की असलियत देख सकते हैं, और हर चीज में सक्षम हो सकते हैं? वे ऐसा नहीं कर सकते। हालाँकि, मनुष्यों में भ्रष्ट स्वभाव और एक घातक कमजोरी है : जैसे ही लोग किसी कौशल या पेशे को सीख लेते हैं, वे यह महसूस करने लगते हैं कि वे सक्षम हो गये हैं, वे रुतबे और हैसियत वाले लोग हैं, और वे पेशेवर हैं। चाहे वे कितने भी साधारण हों, वे सभी अपने-आपको किसी प्रसिद्ध या असाधारण व्यक्ति के रूप में पेश करना चाहते हैं, अपने-आपको किसी छोटी-मोटी मशहूर हस्ती में बदलना चाहते हैं, ताकि लोग उन्हें पूर्ण और निष्कलंक समझें, जिसमें एक भी दोष नहीं है; दूसरों की नजरों में वे प्रसिद्ध, शक्तिशाली, या कोई महान हस्ती बनना चाहते हैं, पराक्रमी, कुछ भी करने में सक्षम और ऐसे व्यक्ति बनना चाहते हैं, जिनके लिए कोई चीज ऐसी नहीं, जिसे वे न कर सकते हों। उन्हें लगता है कि अगर वे दूसरों की मदद माँगते हैं, तो वे असमर्थ, कमजोर और हीन दिखाई देंगे और लोग उन्हें नीची नजरों से देखेंगे। इस कारण से, वे हमेशा एक झूठा चेहरा बनाए रखना चाहते हैं। जब कुछ लोगों से कुछ करने के लिए कहा जाता है, तो वे कहते हैं कि उन्हें पता है कि इसे कैसे करना है, जबकि वे वास्तव में कुछ नहीं जानते होते। बाद में, वे चुपके-चुपके इसके बारे में जानने और यह सीखने की कोशिश करते हैं कि इसे कैसे किया जाए, लेकिन कई दिनों तक इसका अध्ययन करने के बाद भी वे नहीं समझ पाते कि इसे कैसे करें। यह पूछे जाने पर कि उनका काम कैसा चल रहा है, वे कहते हैं, “जल्दी ही, जल्दी ही!” लेकिन अपने दिलों में वे सोच रहे होते हैं, “मैं अभी उस स्तर तक नहीं पहुँचा हूँ, मैं कुछ नहीं जानता, मुझे नहीं पता कि क्या करना है! मुझे अपना भंडा नहीं फूटने देना चाहिए, मुझे दिखावा करते रहना चाहिए, मैं लोगों को अपनी कमियाँ और अज्ञानता देखने नहीं दे सकता, मैं उन्हें अपना अनादर नहीं करने दे सकता!” यह क्या समस्या है? यह हर कीमत पर इज्जत बचाने की कोशिश करने का एक जीवित नरक है। यह किस तरह का स्वभाव है? ऐसे लोगों के अहंकार की कोई सीमा नहीं होती, वे अपनी सारी समझ खो चुके हैं। वे हर किसी की तरह नहीं बनना चाहते, वे आम आदमी या सामान्य लोग नहीं बनना चाहते, बल्कि अतिमानव, असाधारण व्यक्ति या कोई दिग्गज बनना चाहते हैं। यह बहुत बड़ी समस्या है! जहाँ तक सामान्य मानवता के भीतर की कमजोरियों, कमियों, अज्ञानता, मूर्खता और समझ की कमी की बात है, वे इन सबको छिपा लेते हैं और दूसरे लोगों को देखने नहीं देते, और फिर खुद को छद्म वेश में छिपाए रहते हैं। कुछ ऐसे लोग होते हैं जो जानते कुछ भी नहीं हैं, फिर भी अपने दिल में सब कुछ जानने का दम भरते हैं। जब तुम उन्हें इसकी व्याख्या करने के लिए कहते हो तो वे कुछ नहीं बता पाते। जब कोई दूसरा उस बात को समझा देता है तो वे दावा करते है कि वे यही बात कहने वाले थे, पर समय पर ऐसा नहीं कर पाए। वे एक छद्म रूप धरने और अच्छा दिखने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। तुम लोग क्या कहते हो, क्या ऐसे लोग कल्पना-लोक में नहीं रहते हैं? क्या वे सपने नहीं देख रहे हैं? वे नहीं जानते कि वे स्वयं क्या हैं, न ही वे सामान्य मानवता को जीने का तरीका जानते हैं। उन्होंने एक बार भी व्यावहारिक मनुष्यों की तरह काम नहीं किया है। यदि तुम कल्पना-लोक में रहकर दिन गुजारते हो, जैसे-तैसे काम करते रहते हो, यथार्थ में रहकर काम नहीं करते, हमेशा अपनी कल्पना के अनुसार जीते हो, तो यह परेशानी वाली बात है। तुम जीवन में जो मार्ग चुनते हो वह सही नहीं है। अगर तुम ऐसा करते हो, तो फिर चाहे तुम जैसे भी परमेश्वर में विश्वास करते हो, तुम सत्य को नहीं समझोगे, न ही तुम सत्य को हासिल करने में सक्षम होगे। सच तो यह है कि तुम सत्य को हासिल नहीं कर सकते, क्योंकि तुम्हारा प्रारंभिक बिंदु ही गलत है। तुम्हें जमीन पर चलने का तरीका सीखना होगा, और तुम्हें स्थिरता से, एक बार में एक कदम उठाकर चलना सीखना होगा। अगर तुम चल सकते हो, तो चलो; दौड़ने का तरीका सीखने की कोशिश मत करो। अगर तुम एक बार में एक ही कदम चल सकते हो, तो एक बार में दो कदम चलने की कोशिश मत करो। तुम्हें एक ऐसे व्यक्ति की तरह आचरण करना चाहिए जिसके पैर मजबूती से जमीन पर टिके हों। अतिमानव, महान, या हवा में उड़ने वाला बनने की कोशिश मत करो।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, पाँच शर्तें, जिन्हें परमेश्वर पर विश्वास के सही मार्ग पर चलने के लिए पूरा करना आवश्यक है
फरीसियों का वर्णन कैसे किया जाता है? वे ऐसे लोग होते हैं जो पाखंडी हैं, जो पूरी तरह से नकली हैं और अपने हर कार्य में नाटक करते हैं। वे क्या नाटक करते हैं? वे अच्छे, दयालु और सकारात्मक होने का ढोंग करते हैं। क्या वे वास्तव में ऐसे होते हैं? बिल्कुल नहीं। चूँकि वे पाखंडी होते हैं, इसलिए उनमें जो कुछ भी व्यक्त और प्रकट होता है, वह झूठ होता है; वह सब ढोंग होता है—यह उनका असली चेहरा नहीं होता। उनका असली चेहरा कहाँ छिपा होता है? वह उनके दिल की गहराई में छिपा होता है, दूसरे उसे कभी नहीं देख सकते। बाहर सब नाटक होता है, सब नकली होता है, लेकिन वे केवल लोगों को मूर्ख बना सकते हैं; वे परमेश्वर को मूर्ख नहीं बना सकते। अगर लोग सत्य का अनुसरण नहीं करते, अगर वे परमेश्वर के वचनों का अभ्यास और अनुभव नहीं करते, तो वे वास्तव में सत्य नहीं समझ सकते, इसलिए उनके शब्द कितने भी अच्छे क्यों न हों, वे शब्द सत्य वास्तविकता नहीं होते, बल्कि शब्द और धर्म-सिद्धांत होते हैं। कुछ लोग केवल शब्दों और धर्म-सिद्धांतों को रटने पर ही ध्यान देते हैं, जो भी उच्चतम उपदेश देता है वे उसकी नकल करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप कुछ ही वर्षों में उनका शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का पाठ निरंतर उन्नत होता जाता है, और वे बहुत-से लोगों द्वारा सराहे और पूजे जाते हैं, जिसके बाद वे खुद को छद्मावरण द्वारा छिपाने लगते हैं, अपनी कथनी-करनी पर बहुत ध्यान देते हैं, और स्वयं को खास तौर पर पवित्र और आध्यात्मिक दिखाते हैं। वे इन तथाकथित आध्यात्मिक सिद्धांतों का प्रयोग खुद को छद्मावरण से छिपाने के लिए करते हैं। वे जहाँ कहीं जाते हैं, बस इन्हीं चीजों के बारे में बात करते हैं, ऊपर से आकर्षक लगने वाली चीजें जो लोगों की धारणाओं के अनुकूल तो होती हैं, लेकिन जिनमें कोई सत्य वास्तविकता नहीं होती। और इन चीजों का प्रचार करके—जो लोगों की धारणाओं और रुचियों के अनुरूप होती हैं—वे बहुत लोगों को गुमराह करते हैं। दूसरों को ऐसे लोग बहुत ही धर्मपरायण और विनम्र लगते हैं, लेकिन वास्तव में यह नकली होता है; वे सहिष्णु, धैर्यवान और प्रेमपूर्ण लगते हैं परंतु यह सब वास्तव में ढोंग होता है; वे कहते हैं कि वे परमेश्वर से प्रेम करते हैं, लेकिन वास्तव में यह एक नाटक होता है। दूसरे लोग ऐसे लोगों को पवित्र समझते हैं, लेकिन असल में यह झूठ होता है। सच्चा पवित्र व्यक्ति कहाँ मिल सकता है? मनुष्य की सारी पवित्रता नकली होती है, वह सब एक नाटक, एक ढोंग होता है। बाहर से वे परमेश्वर के प्रति वफादार प्रतीत होते हैं, लेकिन वे वास्तव में केवल दूसरों को दिखाने के लिए ऐसा कर रहे होते हैं। जब कोई नहीं देख रहा होता है, तो वे जरा से भी वफादार नहीं होते हैं, और वे जो कुछ भी करते हैं, वह लापरवाही से किया गया होता है। सतह पर वे खुद को परमेश्वर के लिए खपाते हैं और उन्होंने अपने परिवारों और अपनी आजीविकाओं को छोड़ दिया है। लेकिन वे गुप्त रूप से क्या कर रहे हैं? वे परमेश्वर के लिए काम करने के नाम पर कलीसिया का फायदा उठाते हुए और चुपके से चढ़ावे चुराते हुए कलीसिया में अपना उद्यम और अपना कार्य व्यापार चला रहे हैं...। ये लोग आधुनिक पाखंडी फरीसी हैं। फरीसी आते कहाँ से हैं? क्या वे गैर-विश्वासियों के बीच से आते हैं? नहीं, ये सभी विश्वासियों के बीच से आते हैं। ये लोग फरीसी क्यों बन जाते हैं? क्या किसी ने इन्हें इस तरह बनाया है? जाहिर है, ऐसा नहीं है। तो कारण क्या है? कारण यह है कि उनका प्रकृति-सार ही ऐसा होता है और उन्होंने जो रास्ता पकड़ा है वही इसकी वजह है। वे परमेश्वर के वचनों का उपयोग केवल प्रचार करने और कलीसिया से लाभ प्राप्त करने के साधन के रूप में करते हैं। वे अपने दिमाग और मुँह परमेश्वर के वचनों से लैस कर लेते हैं, नकली आध्यात्मिक सिद्धांतों के उपदेश देते हैं, खुद को पवित्र के रूप में पेश करते हैं और फिर कलीसिया से फायदे उठाने के उद्देश्य से इसका पूँजी की तरह इस्तेमाल करते हैं। वे मात्र सिद्धांतों का उपदेश देते हैं, मगर उन्होंने कभी भी सत्य का अभ्यास नहीं किया है। वे किस तरह के लोग हैं जो परमेश्वर के मार्ग का कभी भी अनुसरण न करने के बावजूद वचनों और सिद्धांतों का उपदेश देना जारी रखते हैं? ये पाखंडी फरीसी हैं। उनका थोड़ा-सा कथित अच्छा व्यवहार और अच्छा आचरण, और जो थोड़ा-बहुत उन्होंने त्यागा और खुद को खपाया है, वह सब अपनी इच्छा को रोककर और इसे नया आवरण पहनाकर हासिल किया गया है। ये सारे कृत्य पूरी तरह नकली हैं और ढोंग हैं। इन लोगों के दिल में परमेश्वर का जरा-सा भी भय नहीं है, न परमेश्वर में उनकी कोई सच्ची आस्था है। और तो और, वे अविश्वासी हैं। यदि लोग सत्य की खोज नहीं करते हैं, तो वे इस तरह के रास्ते पर चलेंगे, और वे फरीसी बन जाएँगे। क्या यह डरावना नहीं है? फरीसी जिस धार्मिक स्थान पर एकत्र होते हैं वह एक बाजार बन जाता है। परमेश्वर की दृष्टि में यह धर्म है; यह परमेश्वर की कलीसिया नहीं है, न ही वह कोई ऐसा स्थान है जिसमें उसकी आराधना की जाती है। इस प्रकार, यदि लोग सत्य का अनुसरण नहीं करते, तो फिर वे परमेश्वर के कथनों से संबंधित चाहे जितने भी हू-ब-हू शब्द और सतही धर्म-सिद्धांत धारण कर लें, ये किसी काम नहीं आएंगे।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, जीवन संवृद्धि के छह संकेतक
विशेष रूप से दूसरे लोगों के आसपास होने पर मसीह-विरोधी दिखावा करने लगते हैं। फरीसियों की तरह ही, वे बाहर से लोगों के प्रति बहुत सहिष्णु और धैर्यवान, विनम्र और अच्छे स्वभाव वाले दिखाई देते हैं—वे हर व्यक्ति के लिए बहुत उदार और सहिष्णु प्रतीत होते हैं। समस्याओं का निपटान करते समय, वे हमेशा दिखाते हैं कि वे अपने पद और हैसियत के हिसाब से लोगों के प्रति कितने अधिक सहिष्णु हैं, और हर पहलू से वे उदार और खुले विचारों वाले दिखाई देते हैं, दूसरों में कमियाँ नहीं निकालते हैं और लोगों को दिखाते हैं कि वे कितने महान और दयालु हैं। वास्तव में, क्या मसीह-विरोधियों में सच में ये सार होते हैं? वे दूसरों की भलाई के लिए कार्य करते हैं, लोगों के प्रति सहिष्णु होते हैं, और सभी परिस्थितियों में लोगों की मदद कर सकते हैं, लेकिन इन चीजों को करने के पीछे उनका गुप्त प्रयोजन क्या है? अगर वे लोगों का दिल जीतने और उनका समर्थन खरीदने की कोशिश नहीं कर रहे होते तो क्या तब भी ये सब काम करते? क्या बंद दरवाजों के पीछे भी मसीह-विरोधी सच में ऐसे ही होते हैं? क्या वे वास्तव में वैसे ही होते हैं जैसे वे दूसरे लोगों के आसपास होने पर दिखाई देते हैं—विनम्र और धैर्यवान, दूसरों के प्रति सहिष्णु और प्रेम से दूसरों की मदद करने वाले? क्या उनका सार और स्वभाव ऐसा ही है? क्या उनका चरित्र ऐसा ही है? बिल्कुल नहीं। वे जो कुछ भी करते हैं वह दिखावा है और लोगों को गुमराह करने और लोगों का समर्थन पाने के लिए करते हैं, ताकि और भी लोगों के दिलों पर उनका अनुकूल प्रभाव पड़े और ताकि लोग उन्हें सबसे पहले रखें और जब भी कोई समस्या हो तो उनकी मदद लें। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, मसीह-विरोधी दूसरों के सामने दिखावा करने, सही बातें कहने और सही चीजें करने की सोच-समझकर योजना बनाते हैं। कौन जानता है कि बोलने के पहले वे अपने शब्दों को अपने दिमाग में कितनी बार छानेंगे या संसाधित करेंगे। वे सोच-समझकर योजना बनाएँगे और दिमाग लगाएँगे, अपने शब्दों, मुद्राओं, स्वर, आवाज और यहाँ तक कि लोगों को दिखाए जाने वाले हावभाव और बोलने के लहजे पर भी विचार करेंगे। वे इस बात पर विचार करेंगे कि वे किससे बात कर रहे हैं, वह व्यक्ति वृद्ध है या युवा, उस व्यक्ति की हैसियत उनसे अधिक है या कम, वह व्यक्ति उनका सम्मान करता है या नहीं, क्या वह व्यक्ति निजी तौर पर उनसे नाखुश है, उस व्यक्ति का व्यक्तित्व उनके व्यक्तित्व से मेल खाता है या नहीं, वह व्यक्ति क्या काम करता है, और कलीसिया में और अपने भाई-बहनों के दिलों में उसका क्या स्थान है। वे इन बातों का गौर से अवलोकन करेंगे और ध्यान से उन पर विचार करेंगे, और विचार करने के बाद वे तय करते हैं कि विभिन्न प्रकार के लोगों से कैसे मिलना चाहिए। चाहे मसीह-विरोधी विभिन्न प्रकार के लोगों के साथ जैसा भी व्यवहार करते हों, उनका लक्ष्य यही है कि लोग उन्हें सम्मान दें, लोग उन्हें बराबर का न मानें, बल्कि उनका आदर करें, जब वे बोलें तो और भी अधिक लोग उनकी प्रशंसा और उन पर भरोसा करें, जब वे कुछ करें तो उन्हें प्रोत्साहित करें और उनका अनुसरण करें, और जब वे कोई गलती करें तो उन्हें निरपराध ठहराएँ और उनका बचाव करें, और उनका खुलासा होने तथा उन्हें अस्वीकार किए जाने पर उनकी ओर से ज्यादा लोग संघर्ष करें, उनकी ओर से उग्र शिकायत करें और तर्क-वितर्क करें और परमेश्वर का विरोध करने के लिए आगे आएँ। जब उनके हाथ से सत्ता जाए तो सहायता के लिए, समर्थन व्यक्त करने और साथ देने के लिए उनके पास बहुत से लोग हों, जो दर्शाता है कि मसीह-विरोधियों ने कलीसिया में जिस हैसियत और सत्ता को पाने के लिए जानबूझकर योजना बनाई है, उसने लोगों के दिलों में गहराई से जड़ें जमा ली हैं, और यह कि उनका “श्रमसाध्य प्रयास” व्यर्थ नहीं गया है।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग दस)
चाहे कोई भी संदर्भ हो, मसीह-विरोधी चाहे कोई भी कर्तव्य कर रहा हो, वह यह छाप छोड़ने का प्रयास करेगा कि वह कमजोर नहीं है, कि वह हमेशा मजबूत, आस्था से पूर्ण है, कभी नकारात्मक नहीं है, ताकि लोग कभी भी उसके वास्तविक आध्यात्मिक कद या परमेश्वर के प्रति उसके वास्तविक रवैये को नहीं देख पाएँ। वास्तव में, अपने दिल की गहराइयों में क्या वे सचमुच यह मानते हैं कि ऐसा कुछ नहीं है जो वे नहीं कर सकते हैं? क्या वे वाकई यह मानते हैं कि उनमें कोई कमजोरी, नकारात्मकता या भ्रष्टता के खुलासे नहीं हैं? बिल्कुल नहीं। वे दिखावा करने में अच्छे होते हैं, चीजों को छिपाने में माहिर होते हैं। वे लोगों को अपना मजबूत और शानदार पक्ष दिखाना पसंद करते हैं; वे नहीं चाहते हैं कि वे उनका वह पक्ष देखें जो कमजोर और सच्चा है। उनका उद्देश्य स्पष्ट होता है : सीधी-सी बात है, वे अपना गरूर और गर्व बरकरार रखना चाहते हैं, इन लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाए रखना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि अगर वे अपनी नकारात्मकता और कमजोरी दूसरों के सामने उजागर कर देंगे, अपना विद्रोही और भ्रष्ट पक्ष प्रकट कर देंगे, तो यह उनकी हैसियत और प्रतिष्ठा के लिए एक गंभीर क्षति होगी—तो बेकार की परेशानी खड़ी होगी। इसलिए, वे इस बात को स्वीकार करने के बजाय मरना ज्यादा पसंद करेंगे कि ऐसे समय भी आते हैं जब वे कमजोर, विद्रोही और नकारात्मक होते हैं। और अगर ऐसा कभी हो भी जाए जब हर कोई उनके कमजोर और विद्रोही पक्ष को देख ले, जब वे देख लें कि वे भ्रष्ट हैं, और बिल्कुल नहीं बदले हैं, तो वे अभी भी उस दिखावे को बरकरार रखेंगे। वे सोचते हैं कि अगर वे यह स्वीकार कर लेंगे कि उनके पास भ्रष्ट स्वभाव है, वे एक साधारण महत्वहीन व्यक्ति हैं, तो वे लोगों के दिलों में अपना स्थान खो देंगे, सबकी आराधना और अगाध प्रेम खो देंगे, और इस प्रकार पूरी तरह से विफल हो जाएँगे। और इसलिए, चाहे कुछ भी हो जाए, वे लोगों से खुलकर बात नहीं करेंगे; कुछ भी हो जाए, वे अपना सामर्थ्य और हैसियत किसी और को नहीं देंगे; इसके बजाय, वे प्रतिस्पर्धा करने का हर संभव प्रयास करेंगे, और कभी हार नहीं मानेंगे। जब भी वे किसी समस्या का सामना करते हैं, तो वे सुर्खियों में आने और खुद को दिखाने और अपना प्रदर्शन करने की पहल करते हैं। जैसे ही कोई समस्या होती है और परिणाम आते हैं, वे भागकर कहीं छिप जाते हैं या किसी और पर जिम्मेदारी डालने का प्रयास करते हैं। अगर वे ऐसी किसी समस्या का सामना करते हैं जिसे वे समझते हैं, तो वे जो कर सकते हैं उसका तुरंत दिखावा करने लगते हैं और दूसरों को अपने बारे में बताने के अवसर ले लेते हैं, ताकि लोग देख सकें कि उनके पास खूबियाँ और खास कौशल हैं और वे उनके बारे में ऊँची राय बना सकें और उनकी आराधना कर सकें। अगर कोई बड़ी घटना घटती है, और कोई उनसे पूछता है कि वे इस घटना को कैसे समझते हैं, तो वे अपने विचार प्रकट करने से कतराते हैं, और इसके बजाय दूसरों को पहले बोलने देते हैं। उनके संकोच के कारण होते हैं : ऐसा नहीं है कि उनका अपना कोई विचार नहीं होता है, लेकिन वे डरते हैं कि उनका विचार कहीं गलत ना हो, कि अगर उन्होंने इसे सबके सामने रख दिया, तो दूसरे लोग इसका खंडन करेंगे, और उन्हें शर्मिंदगी उठानी पड़ेगी और इसलिए वे अपने विचार व्यक्त नहीं करते हैं; या उनके पास कोई विचार ही नहीं होता है और वे उस मामले को स्पष्ट रूप से नहीं समझ पाते हैं, वे यह सोचकर मनमाने ढंग से बोलने की हिम्मत नहीं कर पाते हैं कि उनकी गलती पर लोग हँसेंगे—इसलिए मौन ही उनका एकमात्र विकल्प होता है। संक्षेप में, वे इसलिए अपने विचार व्यक्त करने को तैयार नहीं होते हैं क्योंकि वे डरते हैं कि वे अपनी असलियत प्रकट कर देंगे, कि लोग यह देख लेंगे कि वे दरिद्र और दयनीय हैं, और इससे दूसरों के मन में उनकी जो छवि है वह प्रभावित हो जाएगी। इसलिए, जब बाकी लोग अपने नजरिए, विचारों और ज्ञान पर संगति कर लेते हैं, तो वे कुछ ऊँचे और ज्यादा मजबूत दावों को पकड़ लेते हैं, जिन्हें फिर वे ऐसे पेश करते हैं मानो ये उनके अपने नजरिए और अपनी समझ हों। वे उन्हें संक्षेप में प्रस्तुत करते हैं और सबके साथ उन पर संगति करते हैं और इस तरह से दूसरों के दिलों में ऊँचा रुतबा हासिल कर लेते हैं। मसीह-विरोधी बेहद चालाक होते हैं : जब कोई दृष्टिकोण व्यक्त करने का समय आता है, तो वे कभी भी दूसरों से खुलकर बात नहीं करते हैं और उन्हें अपनी वास्तविक स्थिति नहीं दिखाते हैं, या लोगों को यह नहीं जानने देते हैं कि वे वास्तव में क्या सोचते हैं, उनकी योग्यता कैसी है, उनकी मानवता कैसी है, समझने की उनकी शक्तियाँ कैसी हैं, और क्या उन्हें सत्य का सही ज्ञान है। और इसलिए, डींग मारने और आध्यात्मिक तथा एक आदर्श व्यक्ति होने का दिखावा करने के साथ-साथ, वे अपने असली चेहरे और वास्तविक आध्यात्मिक कद को ढकने की भी पूरी कोशिश करते हैं। वे भाई-बहनों के सामने कभी भी अपनी कमजोरियों को प्रकट नहीं करते हैं, और ना ही वे कभी भी अपनी खुद की कमियों और दोषों को जानने का प्रयास करते हैं; इसके बजाय, वे उन्हें ढकने का पूरा प्रयास करते हैं। लोग उनसे पूछते हैं, “तुमने इतने वर्षों से परमेश्वर में विश्वास रखा है, क्या तुम्हें कभी परमेश्वर के बारे में कोई संदेह हुआ है?” वे उत्तर देते हैं, “नहीं।” उनसे पूछा जाता है, “क्या तुम कभी परमेश्वर के लिए खपाने में अपना सब कुछ त्याग देने पर पछताए हो?” वे उत्तर देते हैं, “नहीं।” “जब तुम बीमार थे, तो क्या तुम परेशान रहते थे और क्या तुम्हें घर की याद सताती थी?” और वे जवाब देते हैं, “कभी नहीं।” तो तुम देखते हो, मसीह-विरोधी खुद को बहुत पक्के, दृढ़-इच्छाशक्ति वाले, अहं का त्याग करने और कष्ट सहने में सक्षम व्यक्ति के रूप में चित्रित करते हैं, एक ऐसे व्यक्ति के रूप में, जो बस निर्दोष, त्रुटिरहित या समस्याविहीन हो। अगर कोई उनकी भ्रष्टता और कमियों की ओर इशारा करता है, उनके साथ किसी सामान्य भाई या बहन के रूप में बराबरी का व्यवहार करता है, और उनके साथ खुलकर सहभागिता करता है, तो वे मामले को कैसे देखते हैं? वे स्वयं को सच्चा और सही ठहराने, खुद को सही साबित करने और अंततः लोगों को यह दिखाने का भरसक प्रयास करते हैं कि उनके साथ कोई समस्या नहीं है, और वे एक परिपूर्ण, आध्यात्मिक व्यक्ति हैं। क्या यह सब कुछ पाखंड नहीं है? जो भी लोग खुद को निष्कलंक और पवित्र समझते हैं, वे सभी ढोंगी हैं।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग दस)
किसी प्रकार के कौशल से युक्त होने पर मसीह-विरोधी अपने आपको विलक्षण मानते हैं, खुद को रहस्यमय दिखाते हैं, अपना दिखावा करते हैं और अपनी ही गवाही देते हैं, जिससे दूसरे लोग उनका सम्मान कर उनकी आराधना करते हैं। जब इस प्रकार के लोगों में थोड़ी-सी कोई खूबी या कोई गुण होता है, तो वे सोचने लगते हैं कि वे दूसरों से बेहतर हैं और उनकी अगुआई करने की आकांक्षा पालते हैं। जब दूसरे लोग उनके पास जवाब के लिए आते हैं, तो मसीह-विरोधी उन्हें एक ऊँचे स्तर से व्याख्यान देते हैं, और इसके बाद भी यदि वे लोग न समझ पाएँ तो वे सिर्फ उनकी कमजोर काबिलियत को इसका कारण बताते हैं, हालाँकि वास्तविकता में, मसीह-विरोधी ही उन्हें स्पष्ट स्पष्टीकरण नहीं दे पाते हैं। उदाहरण के लिए, यह देखकर कि कोई किसी खराब मशीन की मरम्मत करने में असमर्थ है, एक मसीह-विरोधी कहेगा : “तुम यह अभी भी कैसे नहीं जान सकते कि इसे कैसे किया जाए? क्या मैंने पहले ही तुम्हें नहीं बताया है कि यह कैसे करना है? मैंने इतनी स्पष्टता से समझाया है, फिर भी तुम समझ नहीं पा रहे हो। तुम सचमुच कमजोर काबिलियत वाले हो। हर बार इसे करने के बारे में मेरे सिखाने पर भी तुम नाकामयाब रहते हो।” फिर भी जब वह व्यक्ति उनसे मशीन की मरम्मत करने को कहता है, तो इसे बड़े लंबे समय तक देखने के बाद भी वे नहीं जान पाते कि इसे कैसे ठीक करना है, और वे उस व्यक्ति से यह तथ्य भी छिपाएँगे कि उन्हें इसकी मरम्मत करना नहीं आता है। उस व्यक्ति को दूर भेज देने के बाद, मसीह-विरोधी चोरी-छिपे शोध करेंगे और यह पता लगाने की कोशिश करेंगे कि मशीन की मरम्मत कैसे की जाए, लेकिन वे अभी भी इसे ठीक नहीं कर पाएँगे। वे मशीन के पुर्जे अलग कर देंगे, बिल्कुल अस्त-व्यस्त कर देंगे, और उसे फिर से जोड़ नहीं सकेंगे। फिर, इस डर से कि कहीं दूसरे इसे देख न लें, वे पुर्जों को छिपा देंगे। क्या कुछ काम करना न आना कोई शर्मिंदगी की बात है? क्या कोई भी ऐसा है जो सारे काम कर सकता है? कुछ चीजें करना नहीं आना कोई शर्म की बात नहीं है। यह मत भूलो कि तुम बस एक साधारण व्यक्ति हो। कोई भी तुम्हें सम्मान नहीं देता या तुम्हारी आराधना नहीं करता। एक साधारण व्यक्ति बस एक साधारण व्यक्ति ही होता है। यदि तुम कोई काम करना नहीं जानते, तो बस कह दो कि तुम नहीं जानते कि इसे कैसे करते हैं। तुम अपना भेस बदलने की कोशिश क्यों करते हो? यदि तुम हमेशा भेस बदलोगे, तो लोग तुमसे चिढ़ जाएँगे। देर-सवेर, तुम्हारा खुलासा हो जाएगा, और उस वक्त, तुम अपना सम्मान और अपनी सत्यनिष्ठा खो दोगे। यह मसीह-विरोधी लोगों का स्वभाव है—वे खुद के बारे में हमेशा सोचते हैं कि वे हरफनमौला हैं, एक ऐसा व्यक्ति जो सारे काम कर सकता है, जो सभी चीजों में सक्षम और प्रवीण है। क्या यह उन्हें मुसीबत में नहीं डाल देगा? यदि उनका ईमानदार रवैया हो तो वे क्या करेंगे? वे कहेंगे : “मैं इस तकनीकी कौशल में प्रवीण नहीं हूँ; मुझे बस थोड़ा—सा अनुभव है। जो भी जानता हूँ, मैंने लगा दिया है, लेकिन ये जो नई समस्याएँ हमारे सामने आ रही हैं, मैं इन्हें नहीं समझ पा रहा हूँ। इसलिए, अगर हम अपना कर्तव्य अच्छे ढंग से करना चाहते हैं तो हमें कुछ पेशेवर ज्ञान सीखना होगा। पेशेवर ज्ञान पर महारत हासिल करने से हम अपना कर्तव्य प्रभावी ढंग से कर पाएँगे। परमेश्वर ने हमें यह कर्तव्य सौंपा है, इसलिए इसे अच्छे ढंग से करने की जिम्मेदारी हम पर है। हमें अपने कर्तव्य की जिम्मेदारी लेने के रवैए के आधार पर इस पेशेवर ज्ञान को सीखना होगा।” यह सत्य का अभ्यास करना है। मसीह-विरोधी के स्वभाव वाला व्यक्ति यह नहीं करेगा। यदि किसी व्यक्ति में थोड़ा विवेक है तो वह कहेगा : “मैं सिर्फ इतना ही जानता हूँ। तुम्हें मुझे सम्मान देने की जरूरत नहीं है, और मुझे रौब दिखाने की जरूरत नहीं है—क्या इससे चीजें आसान नहीं हो जाएँगी? हमेशा अपना भेस बदलते रहना दुखदाई होता है। अगर ऐसी कोई चीज है जो हम नहीं जानते तो हम साथ मिल कर इसे सीख सकते हैं और फिर अपना कर्तव्य अच्छे ढंग से करने के लिए सामंजस्यपूर्ण तरीके से कार्य कर सकते हैं। हमें जिम्मेदार रवैया अपनाना चाहिए।” यह देख कर लोग सोचेंगे, “यह व्यक्ति हम लोगों से बेहतर है; किसी समस्या से सामना होने पर वह आँखें मूँद कर जबरन अपनी हद पार नहीं करता, न ही वह इसे दूसरों को सौंप देता है, और न ही जिम्मेदारी से जी चुराता है। इसके बजाय वह इसकी जिम्मेदारी लेकर इसे एक गंभीर और जिम्मेदार रवैए के नजरिये से देखता है। वह एक नेक इंसान है जो अपने कार्य और कर्तव्य के प्रति गंभीर और जिम्मेदार है। वह भरोसेमंद है। परमेश्वर के घर ने इस व्यक्ति को यह महत्वपूर्ण काम सौंप कर सही किया। परमेश्वर सच में लोगों के दिलों की गहराई से जाँच-पड़ताल करता है!” अपना कर्तव्य इस तरह से निभा कर वे अपने कौशल सुधारेंगे और सभी की स्वीकृति प्राप्त करेंगे। यह स्वीकृति कैसे मिलती है? पहले तो, वे अपने कर्तव्य को गंभीर और जिम्मेदार रवैए से देखते हैं; दूसरे, वे एक ईमानदार इंसान बनने में सक्षम होते हैं, और वे एक व्यावहारिक और परिश्रमी रवैया रखते हैं; तीसरे, इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि उन्हें पवित्र आत्मा का मार्गदर्शन और प्रबुद्धता प्राप्त है। ऐसे व्यक्ति को परमेश्वर का आशीष मिलता है; यह वह चीज है जो जमीर और विवेक वाला कोई व्यक्ति हासिल कर सकता है। हालाँकि उनमें भ्रष्ट स्वभाव होता है, कमियाँ और खामियाँ होती हैं, और वे बहुत-से काम करने के तरीके नहीं जानते, फिर भी वे अभ्यास के सही मार्ग पर हैं। वे अपना भेस नहीं बदलते या धोखा नहीं देते; अपने कर्तव्य के प्रति उनका एक गंभीर और जिम्मेदार रवैया होता है, और सत्य के प्रति उनमें एक लालसा होती है, एक पवित्र रवैया होता है। मसीह-विरोधी कभी भी ये काम नहीं कर सकेंगे क्योंकि उनके सोचने का ढंग उन लोगों से हमेशा भिन्न होगा जो सत्य से प्रेम करते हैं और उसका अनुसरण करते हैं। वे अलग ढंग से क्यों सोचते हैं? इस वजह से कि उनके भीतर शैतान की प्रकृति होती है; वे शैतान के स्वभाव के साथ जीते हैं ताकि वे सत्ता प्राप्त करने का अपना लक्ष्य हासिल कर सकें। वे षड्यंत्रों और चालों में संलग्न होने के लिए हमेशा विभिन्न साधनों का उपयोग करने का प्रयास करते हैं, और येन केन प्रकारेण लोगों से अपनी आराधना और अपना अनुसरण करवाने के लिए उन्हें गुमराह करते हैं। इसलिए लोगों की आँखों में धूल झोंकने हेतु वे अपना भेस बदलने, चाल चलने, झूठ बोलने और धोखा देने के तमाम तरीके ढूँढ़ते हैं, जिससे दूसरे यकीन कर लें कि सभी चीजों के बारे में वे सही हैं, वे हर चीज में सक्षम हैं, और वे कोई भी काम कर सकते हैं; वे दूसरों से अधिक चतुर हैं, दूसरों से ज्यादा अक्लमंद हैं, दूसरों से ज्यादा समझते हैं, वे सभी चीजों में दूसरों से बेहतर हैं, और हर लिहाज से दूसरों से ऊपर हैं—यहाँ तक कि वे किसी भी समूह में सर्वोत्तम से भी सर्वोत्तम हैं। उनकी जरूरत ऐसी है; यह मसीह-विरोधियों का स्वभाव है। इस तरह वे कुछ ऐसा दिखना सीख लेते हैं जो वे नहीं हैं, और इन विभिन्न अभ्यासों और अभिव्यक्तियों में से हरेक को उत्पन्न करते हैं।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग तीन)
सभी भ्रष्ट मनुष्य एक आम समस्या से ग्रस्त होते हैं : जब उनकी कोई हैसियत नहीं होती, तो वे किसी के साथ परस्पर संपर्क के समय या बातचीत करते समय शेखी नहीं बघारते, न ही वे अपनी बोल-चाल में कोई निश्चित शैली या लहजा अपनाते हैं; वे बस साधारण और सामान्य होते हैं, और उन्हें खुद को आकर्षक ढंग से पेश करने की आवश्यकता नहीं होती है। वे कोई मनोवैज्ञानिक दबाव महसूस नहीं करते और खुलकर, दिल से संगति कर सकते हैं। वे सुलभ होते हैं और उनके साथ बातचीत करना आसान होता है; दूसरों को यह महसूस होता है कि वे बहुत अच्छे लोग हैं। जैसे ही उन्हें कोई रुतबा प्राप्त होता है, वे घमंडी बन जाते हैं, साधारण लोगों की अनदेखी करते हैं, कोई उन तक नहीं पहुँच सकता; उन्हें लगता है कि वे कुलीन हैं और वे आम लोग से अलग मिट्टी के बने हुए हैं। वे आम इंसान को हेय समझते हैं, बोलते समय रौब दिखाते हैं और दूसरों के साथ खुलकर संगति करना बंद कर देते हैं। वे अब खुले तौर पर संगति क्यों नहीं करते हैं? उन्हें लगता है कि अब उनके पास ओहदा है, और वे अगुआ हैं। उन्हें लगता है कि अगुआओं की एक निश्चित छवि होनी चाहिए, उन्हें आम लोगों की तुलना में थोड़ा ऊँचा होना चाहिए, उनका आध्यात्मिक कद बड़ा होता है और वे जिम्मेदारी संभालने में बेहतर होते हैं; वे मानते हैं कि आम लोगों की तुलना में, अगुआओं में अधिक धैर्य होना चाहिए, उन्हें अधिक कष्ट उठाने और खपने में समर्थ होना चाहिए, और शैतान के किसी भी प्रलोभन का सामना करने में सक्षम होना चाहिए। वे सोचते हैं उनके माता-पिता या परिवार के दूसरे सदस्यों की मृत्यु पर भी उनमें ऐसा आत्म-नियंत्रण होना चाहिए कि वे न रोएँ या उन्हें रोना ही है, तो सबकी नजरों से दूर, गुपचुप रोना चाहिए, ताकि किसी को उनकी कमियाँ, दोष या कमजोरियाँ न दिखाई दें। उन्हें तो यह भी लगता है कि अगुआओं को किसी को भी यह भनक नहीं लगने देनी चाहिए कि वे निराश हो गए हैं; बल्कि उन्हें ऐसी सभी बातें छिपानी चाहिए। वे मानते हैं कि ओहदे वाले व्यक्ति को ऐसा ही करना चाहिए। जब वे इस हद तक अपना दमन करते हैं, तो क्या हैसियत उनका परमेश्वर, उनका प्रभु नहीं बन गई है? और ऐसा होने पर, क्या उनमें अभी भी सामान्य मानवता है? जब उनमें ये विचार होते हैं—जब वे खुद को इस तरह सीमित कर लेते हैं, और इस तरह का कार्य करते हैं—तो क्या वे हैसियत के प्रति आसक्त नहीं हो गए हैं? जब कभी दूसरा उनसे शक्तिशाली और बेहतर होता है, यह उनकी अहम कमजोरियों को छू जाता है। क्या वे दैहिक इच्छाओं से उबर सकते हैं? क्या वे दूसरे व्यक्ति से उचित बर्ताव कर सकते हैं? बिल्कुल नहीं। स्वयं को हैसियत के नियंत्रण से मुक्त करने के लिए, तुम्हें सबसे पहले क्या करना चाहिए? तुम्हें सबसे पहले इसे अपने इरादों, सोच और अपने दिल से निकाल देना चाहिए। यह कैसे किया जाता है? पहले, जब तुम्हारी कोई हैसियत नहीं थी, तुम उन लोगों की अनदेखी करते थे जो तुम्हें आकर्षक नहीं लगते थे। अब जबकि तुम्हारे पास हैसियत है, अगर तुम किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हो, जो अनाकर्षक है, या जिसे समस्याएँ हैं, तो तुम उसकी मदद करने की जिम्मेदारी महसूस करते हो, और इसलिए तुम उसके साथ संगति करने में ज्यादा समय बिताते हो, उसकी कुछ व्यावहारिक समस्याएँ सुलझाने की कोशिश करते हो। ऐसे काम करते समय तुम्हारे दिल में क्या भावना होती है? उल्लास और शांति की भावना होती है। इसलिए भी तकलीफ में या नाकामयाब होने पर, तुम्हें दूसरों से बार-बार अपने मन की बात कहनी चाहिए, अपनी समस्याओं और कमजोरियों पर और परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह करने और फिर उससे उबरकर परमेश्वर के इरादों को संतुष्ट करने योग्य होने के बारे में संगति करनी चाहिए। और उनसे इस तरह मन की बात कहने का क्या असर होता है? बेशक यह सकारात्मक होता है। तुम्हें कोई भी हीन भावना से नहीं देखेगा—बल्कि संभवतः वे इन अनुभवों से गुजरने की तुम्हारी क्षमता से ईर्ष्या करें। कुछ लोग हमेशा यही सोचते हैं कि हैसियत होने पर लोगों को अधिकारियों जैसा पेश आना चाहिए और एक खास लहजे में बोलना चाहिए ताकि लोग उन्हें गंभीरता से लें और उनका सम्मान करें। क्या ऐसी सोच सही है? अगर तुम्हें यह एहसास हो जाए कि ऐसी सोच गलत है, तो तुम्हें परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए, और देह संबंधी चीजों के विरुद्ध विद्रोह करना चाहिए। रौब मत दिखाओ और पाखंड की राह पर मत चलो। ज्यों ही ऐसा विचार आए, तुम्हें सत्य खोजकर इसका समाधान करना चाहिए। अगर तुम सत्य नहीं खोजते, तो यह विचार, यह नजरिया आकार लेकर तुम्हारे दिल में जड़ें जमा लेगा। परिणामस्वरूप, यह तुम पर हावी हो जाएगा, तुम छद्मवेश बनाकर अपनी ऐसी छवि गढ़ोगे कि कोई भी तुम्हारी असलियत न जान सके या तुम्हारी सोच को न समझ पाए। तुम दूसरों से मुखौटा लगाकर बात करोगे जो तुम्हारे सच्चे दिल को उनसे छिपाएगा। तुम्हें यह सीखना होगा कि दूसरे लोग तुम्हारा दिल देख सकें, तुम दूसरों के सामने अपना दिल खोल सको और उनके करीबी बन सको। तुम्हें अपनी देह की प्राथमिकताओं के विरुद्ध विद्रोह करना होगा और परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार आचरण करना होगा। इस प्रकार तुम्हारे दिल को शांति और खुशी मिलेगी। तुम्हारे साथ जो कुछ भी घटे, सबसे पहले स्वयं की विचारधारा की समस्याओं पर आत्मचिंतन करो। अगर तुम अभी भी अपनी कोई छवि गढ़कर छद्मवेश धरना चाहते हो, तो तुम्हें तुरंत परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए : “हे परमेश्वर! मैं फिर से छद्मवेश धरना चाहता हूँ। मैं फिर से छलपूर्वक षड्यंत्र कर रहा हूँ। मैं कैसा असली दानव हूँ! तुम अवश्य मुझे नफरत योग्य मानते होगे! मैं अब खुद से पूरी तरह तंग आ चुका हूँ। मेरी विनती है कि तुम मुझे फटकारो, अनुशासित करो और दंड दो।” तुम्हें प्रार्थना करनी चाहिए, अपना रवैया सबके सामने लाना चाहिए, और इसे उजागर करने, विश्लेषित करने और रोकने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करना चाहिए। अगर तुम उसे इस तरह विश्लेषित कर रोक दोगे, तो तुम्हारे कार्यकलापों से कोई समस्या खड़ी नहीं होगी, क्योंकि तुम्हारा भ्रष्ट स्वभाव रुक चुका है और यह प्रकट नहीं होता। इस समय तुम्हारे दिल में कौन-सी भावनाएँ होंगी? कम-से-कम तुम थोड़ी राहत महसूस करोगे। तुम्हारा दिल उल्लासमय और शांतिपूर्ण रहेगा। तुम्हारी पीड़ा घट जाएगी, और तुम्हें शुद्धिकरण से कष्ट नहीं होगा। बुरी-से-बुरी स्थिति में, कुछ ऐसे मौके आएँगे जब तुम थोड़ा खोया-खोया महसूस करोगे, और मन-ही-मन सोचोगे, “मैं एक अगुआ हूँ, हैसियत और प्रतिष्ठा वाला इंसान हूँ, मैं महज साधारण लोगों जैसा कैसे हो सकता हूँ? मैं साधारण लोगों के साथ खुले तौर पर, मार्मिक और सच्ची बातें कैसे कर सकता हूँ? यह तो खुद को बहुत नीचे गिराना होगा!” तुम देख सकते हो कि यह थोड़ा तकलीफदेह है। मनुष्य का भ्रष्ट स्वभाव एकाएक पूरी तरह खत्म नहीं हो सकता, न यह थोड़े-से समय में दूर किया जा सकता है। तुम्हें लगता था कि अपने भ्रष्ट स्वभाव को दूर करना बहुत सरल होगा, कि यह लोगों की कल्पना जैसा होगा—कि एक बार वे सत्य पर स्पष्ट रूप से संगति कर दें और भ्रष्ट स्वभाव को पहचान लें, तो वे फौरन इससे दूर फेंक सकेंगे। यह इतनी सरल बात नहीं है। जिस प्रक्रिया से मनुष्य सत्य का अभ्यास करता है, वह अपने भ्रष्ट स्वभाव से लड़ने की प्रक्रिया है। मनुष्य की व्यक्तिगत इच्छा, कल्पना और असंगत इच्छाएँ प्रार्थना के जरिए हमेशा-हमेशा के लिए उनके खिलाफ विद्रोह करने और उन्हें काबू में कर लेने भर से पूरी तरह दूर नहीं होतीं। इसके बजाय, इन्हें बार-बार अनेक युद्ध करने के बाद ही आखिरकार त्यागा जा सकता है। सत्य का अभ्यास करके ही किसी व्यक्ति को वास्तव में इस प्रक्रिया के सुपरिणाम मिलेंगे।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, हैसियत के प्रलोभन और बंधन कैसे तोड़ें
कोई भी समस्या पैदा होने पर, चाहे वह कैसी भी हो, तुम्हें सत्य की खोज करनी चाहिए, और तुम्हें किसी भी तरीके से छद्म व्यवहार नहीं करना चाहिए या दूसरों के सामने नकली चेहरा नहीं लगाना चाहिए। तुम्हारी कमियाँ हों, खामियाँ हों, गलतियाँ हों, तुम्हारे भ्रष्ट स्वभाव हों—तुम्हें उनके बारे में कुछ छिपाना नहीं चाहिए और उन सभी के बारे में संगति करनी चाहिए। उन्हें अपने अंदर न रखो। अपनी बात खुलकर कैसे रखें, यह सीखना जीवन-प्रवेश करने की दिशा में सबसे पहला कदम है और यही वह पहली बाधा है जिसे पार करना सबसे मुश्किल है। एक बार तुमने इसे पार कर लिया तो सत्य में प्रवेश करना आसान हो जाता है। यह कदम उठाने का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि तुम अपना हृदय खोल रहे हो और वह सब कुछ दिखा रहे हो जो तुम्हारे पास है, अच्छा या बुरा, सकारात्मक या नकारात्मक; दूसरों और परमेश्वर के देखने के लिए खुद को खोलना; परमेश्वर से कुछ न छिपाना, कुछ गुप्त न रखना, कोई स्वांग न करना, धोखे और चालबाजी से मुक्त रहना, और इसी तरह दूसरे लोगों के साथ खुला और ईमानदार रहना। इस तरह, तुम प्रकाश में रहते हो, और न सिर्फ परमेश्वर तुम्हारी जांच करेगा बल्कि अन्य लोग यह देख पाएंगे कि तुम सिद्धांत से और एक हद तक पारदर्शिता से काम करते हो। तुम्हें अपनी प्रतिष्ठा, छवि और हैसियत की रक्षा करने के लिए किसी भी तरीके का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं है, न ही तुम्हें अपनी गलतियाँ ढकने या छिपाने की आवश्यकता है। तुम्हें इन बेकार के प्रयासों में लगने की आवश्यकता नहीं है। यदि तुम इन चीजों को छोड़ पाओ, तो तुम बहुत आराम से रहोगे, तुम बिना बाधाओं या पीड़ा के जियोगे, और पूरी तरह से प्रकाश में जियोगे। संगति करते समय कैसे खुलना है, यह सीखना जीवन-प्रवेश की ओर पहला कदम है। इसके बाद, तुम्हें अपने विचारों और कार्यों का विश्लेषण करना सीखना होगा, ताकि यह देख सको कि उनमें से कौन-से गलत हैं और किन्हें परमेश्वर पसंद नहीं करता, और तुम्हें उन्हें तुरंत उलटने और सुधारने की आवश्यकता है। इन्हें सुधारने का मकसद क्या है? इसका मकसद यह है कि तुम अपने भीतर उन चीजों से पीछा छुड़ाओ जो शैतान से संबंधित हैं और उनकी जगह सत्य को लाते हुए, सत्य को स्वीकार करो और उसका पालन भी करो। पहले, तुम हर काम अपने कपटी स्वभाव के अनुसार करते थे, जो कि झूठ और कपट है; तुम्हें लगता था कि तुम झूठ बोले बिना कुछ नहीं कर सकते। अब जब तुम सत्य समझने लगे हो, और शैतान के काम करने के ढंग से नफरत करते हो, तो तुमने उस तरह काम करना बंद कर दिया है, अब तुम ईमानदारी, पवित्रता और समर्पण की मानसिकता के साथ कार्य करते हो। यदि तुम अपने मन में कुछ भी नहीं रखते, दिखावा नहीं करते, ढोंग नहीं करते, चीजें नहीं छिपाते, यदि तुम भाई-बहनों के सामने अपने आपको खोल देते हो, अपने अंतरतम विचारों और सोच को छिपाते नहीं, बल्कि दूसरों को अपना ईमानदार रवैया दिखा देते हो, तो फिर धीरे-धीरे सत्य तुम्हारे अंदर जड़ें जमाने लगेगा, यह खिल उठेगा और फलदायी होगा, धीरे-धीरे तुम्हें इसके परिणाम दिखाई देने लगेंगे। यदि तुम्हारा दिल ईमानदार होता जाएगा, परमेश्वर की ओर उन्मुख होता जाएगा और यदि तुम अपने कर्तव्य का पालन करते समय परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करना जानते हो, और इन हितों की रक्षा न कर पाने पर जब तुम्हारी अंतरात्मा परेशान हो जाए, तो यह इस बात का प्रमाण है कि तुम पर सत्य का प्रभाव पड़ा है और वह तुम्हारा जीवन बन गया है।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन
कुछ लोगों को कलीसिया द्वारा प्रोन्नत किया जाता है और उनका संवर्धन किया जाता है, उन्हें प्रशिक्षित होने का एक अच्छा मौका मिलता है। यह अच्छी बात है। यह कहा जा सकता है कि उन्हें परमेश्वर द्वारा ऊँचा उठाया और अनुगृहीत किया गया है। तो फिर, उन्हें अपना कर्तव्य कैसे करना चाहिए? सबसे पहले जिस सिद्धांत का उन्हें पालन करना चाहिए, वह है सत्य को समझना—जब वे सत्य को न समझते हों, तो उन्हें सत्य की खोज करनी चाहिए, और अगर अपने आप खोजने के बाद भी वे इसे नहीं समझते, तो उन्हें संगति और खोज करने के लिए किसी ऐसे इंसान की तलाश कर सकते हैं, जो सत्य समझता है, इससे समस्या का समाधान अधिक तेजी से और समय पर होगा। अगर तुम केवल परमेश्वर के वचनों को अकेले पढ़ने और उन वचनों पर विचार करने में अधिक समय व्यतीत करने पर ध्यान केंद्रित करते हो, ताकि तुम सत्य की समझ प्राप्त कर समस्या हल कर सको, तो यह बहुत धीमा है; जैसी कि कहावत है, “धीमी गति से किए जाने वाले उपाय तात्कालिक जरूरतों को पूरा नहीं कर सकते।” अगर सत्य की बात आने पर तुम शीघ्र प्रगति करना चाहते हो, तो तुम्हें दूसरों के साथ सामंजस्य में काम करना, अधिक प्रश्न पूछना और अधिक तलाश करना सीखना होगा। तभी तुम्हारा जीवन तेजी से आगे बढ़ेगा, और तुम समस्याएँ तेजी से, बिना किसी देरी के हल कर पाओगे। चूँकि तुम्हें अभी-अभी पदोन्नत किया गया है और तुम अभी भी परिवीक्षा पर हो, और वास्तव में सत्य को नहीं समझते या तुममें सत्य वास्तविकता नहीं है—चूँकि तुम्हारे पास अभी भी इस कद की कमी है—तो यह मत सोचो कि तुम्हारी पदोन्नति का अर्थ है कि तुममें सत्य वास्तविकता है; यह बात नहीं है। तुम्हें पदोन्नति और संवर्धन के लिए केवल इसलिए चुना गया है, क्योंकि तुममें कार्य के प्रति दायित्व की भावना और अगुआ होने की क्षमता है। तुममें यह विवेक होना चाहिए। अगर पदोन्नत किए जाने और अगुआ या कार्यकर्ता बन जाने के बाद तुम अपना रुतबा दिखाना चालू करते हो और मानते हो कि तुम तुम सत्य का अनुसरण करने वाले इंसान हो और तुममें सत्य वास्तविकता है—और अगर, चाहे भाई-बहनों को कोई भी समस्या हो, तुम दिखावा करते हो कि तुम उसे समझते हो, और कि तुम आध्यात्मिक हो—तो यह बेवकूफी करना है, और यह पाखंडी फरीसियों जैसा ही है। तुम्हें सच्चाई के साथ बोलना और कार्य करना चाहिए। जब तुम्हें समझ न आए, तो तुम दूसरों से पूछ सकते हो या ऊपर वाले से संगति प्रदान करने की माँग कर सकते हो—इसमें कुछ भी शर्मनाक नहीं है। अगर तुम नहीं पूछोगे, तो भी ऊपर वाले को तुम्हारे वास्तविक कद का पता चल ही जाएगा, और वह जान ही जाएगा कि तुममें सत्य वास्तविकता नदारद है। खोज और संगति ही वे चीजें हैं, जो तुम्हें करनी चाहिए; यही वह विवेक है जो सामान्य मानवता में पाया जाना चाहिए, और यही वह सिद्धांत है जिसका पालन अगुआओं और कार्यकर्ताओं को करना चाहिए। यह शर्मिंदा होने की बात नहीं है। अगर तुम्हें यह लगता है कि अगुआ बन जाने के बाद सिद्धांतों को न समझना, या हमेशा दूसरों से या ऊपर वाले से सवाल पूछते रहना शर्मनाक है, और डरे रहना कि दूसरे लोग तुम्हें नीची निगाह से देखेंगे और नतीजतन तुम यह दिखावा करते हुए ढोंग करते हो कि तुम सब कुछ समझते हो, सब कुछ जानते हो, कि तुम काम करने में क्षमता है, कि तुम कलीसिया का कोई भी काम कर सकते हो, और किसी को तुम्हें याद दिलाने या तुम्हारे साथ सहभागिता करने, या किसी को तुम्हें पोषण प्रदान करने या तुम्हारी सहायता करने की आवश्यकता नहीं है, तो यह खतरनाक है, और तुम बहुत अहंकारी और आत्मतुष्ट हो, विवेक की बहुत कमी है। तुम अपना माप तक नहीं जानते—और क्या यह तुम्हें भ्रमित व्यक्ति नहीं बनाता? ऐसे लोग वास्तव में परमेश्वर के घर द्वारा पदोन्नत और विकसित किए जाने के मानदंडों को पूरा नहीं करते और देर-सवेर उन्हें बरखास्त कर दिया जाएगा और हटा दिया जाएगा। और इसलिए नए-नए पदोन्नत हर अगुआ या कार्यकर्ता को स्पष्ट होना चाहिए कि उसमें सत्य वास्तविकता नहीं है, उसमें यह आत्म-जागरूकता होनी चाहिए। तुम अब अगुआ या कार्यकर्ता इसलिए नहीं हो कि तुम्हें परमेश्वर ने नियुक्त किया है, बल्कि इसलिए हो कि तुम्हें दूसरे अगुआओं और कार्यकर्ताओं ने पदोन्नत किया या परमेश्वर के चुने हुए लोगों ने चुना था; इसका यह मतलब नहीं है कि तुम्हारे पास सत्य वास्तविकता और सच्चा आध्यात्मिक कद है। जब तुम यह बात समझ लोगे तो तुममें थोड़ा विवेक आ जाएगा, यह विवेक अगुआओं और कार्यकर्ताओं के पास अवश्य होना चाहिए। ... तुम प्रशिक्षण और विकास के दौर में हो, तुम्हारा स्वभाव भ्रष्ट है और तुम सत्य को बिल्कुल भी नहीं समझते। मुझे बताओ, क्या परमेश्वर इन चीजों के बारे में जानता है? (हाँ।) तो अगर तुम दिखावा करोगे तो क्या तुम मूर्ख नहीं लगोगे? क्या तुम लोग मूर्ख होना चाहते हो? (नहीं, हम ऐसा नहीं चाहते।) यदि तुम मूर्ख नहीं होना चाहते तो तुम्हें किस तरह का व्यक्ति बनना चाहिए? विवेकशील बनो, जो विनम्रतापूर्वक सत्य खोज सके और सत्य को स्वीकार कर सके। दिखावा मत करो, पाखंडी फरीसी मत बनो। तुम जो जानते हो वह केवल थोड़ा सा पेशेवर ज्ञान है, वह सत्य सिद्धांत नहीं है। तुम्हें सत्य सिद्धांतों को समझने के आधार पर अपनी पेशेवर खूबियों का उचित लाभ उठाने और अपने अर्जित ज्ञान और सीखने की प्रक्रिया का सदुपयोग करने का तरीका खोजना होगा। क्या यह एक सिद्धांत नहीं है? क्या यह अभ्यास का मार्ग नहीं है? एक बार जब तुम इसे करना सीख जाओगे तो तुम्हारे पास अनुसरण का एक मार्ग होगा और तुम सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर सकोगे। तुम जो भी करो, उसमें हठी मत बनो और दिखावा न करो। हठी होना और दिखावा करना काम करने का तर्कसंगत तरीका नहीं है। बल्कि यह चीजों को करने का सबसे मूर्खतापूर्ण तरीका है। जो लोग अपने भ्रष्ट स्वभाव के अनुसार जीते हैं, वे सबसे मूर्ख लोग होते हैं। जो लोग सत्य खोजते हैं और सत्य सिद्धांतों के अनुसार मामलों को संभालते हैं, सिर्फ वे ही सबसे बुद्धिमान होते हैं।
—वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (5)
एक सृजित प्राणी के उचित स्थान पर खड़ा होना और एक साधारण व्यक्ति बनना : क्या ऐसा करना आसान है? (यह आसान नहीं है।) इसमें कठिनाई क्या है? वह यह है : लोगों को हमेशा लगता है कि उनके सिर पर कई प्रभामंडल और उपाधियाँ जड़ी हैं। वे खुद को महान विभूतियों और अतिमानवों की पहचान और दर्जा भी देते हैं और तमाम दिखावटी और झूठी प्रथाओं और बाहरी प्रदर्शनों में संलग्न होते हैं। अगर तुम इन चीजों को नहीं छोड़ते, अगर तुम्हारी कथनी-करनी हमेशा इन चीजों से बाधित और नियंत्रित होती है तो तुम्हें परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश करना मुश्किल लगेगा। जिन चीजों को तुम नहीं समझते, उनके समाधानों के लिए चिंता न करना और ऐसी बातों को अक्सर परमेश्वर के समक्ष लेकर लाना और उससे सच्चे दिल से प्रार्थना करना मुश्किल होगा। तुम ऐसा नहीं कर पाओगे। वास्तव में इसका कारण यह है कि तुम्हारी हैसियत, तुम्हारी उपाधियाँ, तुम्हारी पहचान और ऐसी तमाम चीजें झूठी और असत्य हैं क्योंकि वे परमेश्वर के वचनों के खिलाफ जाकर उनका खंडन करती हैं, क्योंकि ये चीजें तुम्हें बाँधती हैं ताकि तुम परमेश्वर के सामने न आ सको। ये चीजें तुम्हारे लिए क्या बुराइयाँ लेकर आती हैं? ये तुम्हें खुद को छिपाने, समझने का दिखावा करने, होशियार होने का दिखावा करने, एक महान हस्ती होने का दिखावा करने, एक सेलिब्रिटी होने का दिखावा करने, सक्षम होने का दिखावा करने, बुद्धिमान होने का दिखावा करने, यहाँ तक कि सब-कुछ जानने, सभी चीजों में सक्षम होने और सब-कुछ करने में सक्षम होने का दिखावा करने में कुशल बनाती हैं। वह इसलिए ताकि दूसरे तुम्हारी पूजा करें और तुम्हें सराहें। वे अपनी तमाम समस्याओं के साथ तुम्हारे पास आएँगे, तुम पर भरोसा करेंगे और तुम्हारा आदर करेंगे। इस तरह, यह ऐसा है मानो तुमने खुद को भुनने के लिए किसी भट्टी में झोंक दिया हो। तुम्हीं बताओ, क्या आग में भुनना अच्छा लगता है? (नहीं।) तुम नहीं समझते, लेकिन तुम यह कहने का साहस नहीं करते कि तुम नहीं समझते। तुम असलियत नहीं समझते लेकिन तुम यह कहने का साहस नहीं करते कि तुम असलियत नहीं समझते। तुमने स्पष्ट रूप से गलती की है लेकिन तुम इसे स्वीकारने का साहस नहीं करते। तुम्हारा दिल व्यथित है लेकिन तुम यह कहने की हिम्मत नहीं करते, “इस बार यह वाकई मेरी गलती है, मैं परमेश्वर और अपने भाई-बहनों का ऋणी हूँ। मैंने परमेश्वर के घर को इतना बड़ा नुकसान पहुँचाया है, लेकिन मुझमें सबके सामने खड़े होकर इसे स्वीकारने की हिम्मत नहीं है।” तुम बोलने की हिम्मत क्यों नहीं करते? तुम मानते हो, “मुझे अपने भाई-बहनों द्वारा दिए गए प्रभामंडल और प्रतिष्ठा पर खरा उतरने की जरूरत है, मैं अपने प्रति उनके उच्च सम्मान और भरोसे को धोखा नहीं दे सकता, उन उत्कट अपेक्षाओं को तो बिल्कुल भी नहीं जो उन्होंने इतने सालों से मेरे प्रति रखी हैं। इसलिए मुझे दिखावा करते रहना होगा।” यह कैसा छद्मवेश है? तुमने खुद को सफलतापूर्वक एक महान हस्ती और अतिमानव बना लिया है। भाई-बहन अपने सामने आने वाली किसी भी समस्या के बारे में पूछने, सलाह लेने, यहाँ तक कि तुम्हारे परामर्श की विनती करने तुम्हारे पास आना चाहते हैं। ऐसा लगता है कि वे तुम्हारे बिना जी नहीं सकते। लेकिन क्या तुम्हारा हृदय व्यथित नहीं होता? बेशक, कुछ लोग यह व्यथा महसूस नहीं करते। किसी मसीह-विरोधी को यह व्यथा महसूस नहीं होती। इसके बजाय, वह यह सोचकर इससे प्रसन्न होता है कि उसकी हैसियत बाकी सबसे ऊपर है। हालाँकि एक औसत, सामान्य व्यक्ति को आग में भुनने पर व्यथा महसूस होती है। उसे लगता है कि वह कुछ भी नहीं है, बिल्कुल एक साधारण व्यक्ति जैसा है। वह यह नहीं मानता कि वह दूसरों से ज्यादा मजबूत है। वह न सिर्फ यह सोचता है कि वह कोई व्यावहारिक कार्य नहीं कर सकता, बल्कि वह कलीसिया के काम में देरी भी कर देगा और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को भी देर करवा देगा, इसलिए वह दोष स्वीकारकर इस्तीफा दे देगा। यह एक विवेकवान व्यक्ति है। क्या यह समस्या हल करना आसान है? विवेकवान लोगों के लिए यह समस्या हल करना आसान है, लेकिन जिनके पास विवेक की कमी है, उनके लिए यह मुश्किल है। अगर, रुतबा हासिल करने के बाद तुम बेशर्मी से रुतबे के लाभ उठाते हो, जिसके परिणामस्वरूप वास्तविक कार्य करने में विफलता के कारण तुम्हें खुलासा कर हटा दिया जाता है तो इसे तुमने खुद न्योता दिया है और तुम जो पाते हो, उसी के हकदार हो! तुम रत्ती भर भी दया या करुणा के पात्र नहीं हो। मैं यह क्यों कह रहा हूँ? इसलिए कि तुम ऊँचे स्थान पर खड़े होने पर जोर देते हो। तुम भुनने के लिए खुद को आग में झोंकते हो। तुमने अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मारी है। अगर तुम आग में बैठकर भुनना नहीं चाहते तो तुम्हें ये सभी उपाधियाँ और प्रभामंडल त्याग देने चाहिए और अपने भाई-बहनों को अपने दिल की वास्तविक दशाएँ और विचार बताने चाहिए। इस तरह, भाई-बहन तुम्हारे साथ ठीक से पेश आ सकेंगे और तुम्हें भेष बदलने की जरूरत नहीं पड़ेगी। अब जबकि तुम खुल गए हो और अपनी वास्तविक दशा पर प्रकाश डाल रहे हो, तो क्या तुम्हारा दिल ज्यादा सहजत, ज्यादा सुकून महसूस नहीं करता? अपनी पीठ पर इतना भारी बोझ लेकर क्यों चला जाए? अगर तुम अपनी वास्तविक दशा बता दोगे तो क्या भाई-बहन वास्तव में तुम्हें हेय दृष्टि से देखेंगे? क्या वे सचमुच तुम्हें त्याग देंगे? बिल्कुल नहीं। इसके विपरीत भाई-बहन तुम्हारा अनुमोदन करेंगे और अपने दिल की बात बताने का साहस करने के लिए तुम्हारी प्रशंसा करेंगे। वे कहेंगे कि तुम एक ईमानदार व्यक्ति हो। इससे कलीसिया में तुम्हारे काम में कोई बाधा नहीं आएगी, न ही उस पर थोड़ा-सा भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। अगर भाई-बहन वास्तव में देखेंगे कि तुम्हें कठिनाइयाँ हैं तो वे स्वेच्छा से तुम्हारी मदद करेंगे और तुम्हारे साथ काम करेंगे। तुम लोग क्या कहते हो? क्या ऐसा ही नहीं होगा? (बिल्कुल, होगा।) ताकि दूसरे लोग तुम्हें आदर की दृष्टि से देखें, इसलिए हमेशा छद्मवेश धारण करना सबसे मूर्खतापूर्ण चीज है। सबसे अच्छा नजरिया है सामान्य दिल वाला एक साधारण व्यक्ति बनना, परमेश्वर के चुने हुए लोगों के सामने शुद्ध और सरल तरीके से खुलने में सक्षम होना और अक्सर दिली बातचीत करना। जब लोग तुम्हारा आदर करें, तुम्हें सराहें, तुम्हारी अत्यधिक प्रशंसा करें या चापलूसी भरे शब्द बोलें, तो कभी स्वीकार न करो। इन सभी चीजों को खारिज कर देना चाहिए। उदाहरण के लिए, कुछ लोग कह सकते हैं : “क्या तुम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर नहीं हो? चूँकि तुम इतने ज्ञानी हो, इसलिए तुम्हें सत्य की बहुत अच्छी समझ होनी चाहिए।” उनसे कहो : “मैं कैसा विश्वविद्यालय का प्रोफेसर हूँ? ज्ञान कितना भी हो वह सत्य का स्थान नहीं ले सकता। इस ज्ञान ने मुझे बहुत कष्ट पहुँचाया है। यह बिल्कुल बेकार है। मेरे बारे में ऊँची राय मत रखो, मैं सिर्फ एक साधारण व्यक्ति हूँ।” निस्संदेह, कुछ लोगों को अपना रुतबा छोड़ने में कठिनाई होती है। वे साधारण, सामान्य लोग बनना और एक सृजित प्राणी के उचित स्थान पर खड़े होना नहीं चाहते। वे इस तरह कष्ट सहना नहीं चाहते, लेकिन सहे बिना रह भी नहीं पाते। वे हमेशा खुद को श्रेष्ठ जन समझते हैं और अपने ऊँचे मचान से नीचे नहीं उतर पाते। इसमें समस्या है। जब लोग उनके चक्कर लगाते हैं, उन्हें प्रशंसा भरी नजरों से देखते हैं, तो उन्हें अच्छा लगता है। उन्हें यह पसंद है कि लोग अपनी तमाम समस्याएँ लेकर उनके पास आएँ, उन पर भरोसा करें, उनकी बात सुनें और उनका आदर करें। उन्हें पसंद है कि लोग विश्वास करें कि वे हर चीज के विशेषज्ञ श्रेष्ठ जन हैं, कि वे सर्वज्ञ हैं, इसलिए ऐसा कुछ नहीं है जिसे वे न समझते हों और वे यहाँ तक सोचते हैं कि अगर लोग उनका विजेताओं के रूप में सम्मान करें तो कितना अच्छा और अद्भुत होगा। इसका कोई इलाज नहीं। कुछ लोग दूसरों से मिली प्रशंसा और मुकुट स्वीकारते हैं और कुछ समय के लिए अतिमानव और महान हस्ती की भूमिका निभाते हैं। लेकिन वे असहज होकर पीड़ा सहते हैं। उन्हें क्या करना चाहिए? जो भी व्यक्ति तुम्हारी चापलूसी करना चाहता है, वह वास्तव में तुम्हें आग में भुनने के लिए झोंक रहा होता है, और तुम्हें उससे दूर रहना चाहिए। या फिर, उन्हें अपनी भ्रष्टता का सत्य बताने का अवसर ढूँढ़ो, उनसे अपनी वास्तविक दशा के बारे में बात करो और अपनी खामियाँ और असफलताएँ उजागर करो। इस तरह, वे तुम्हारी आराधना या आदर नहीं करेंगे। क्या यह करना आसान है? वास्तव में, यह करना आसान है। अगर तुम वास्तव में ऐसा नहीं कर सकते तो इससे साबित होता है कि तुम बहुत अहंकारी और दंभी हो। तुम वाकई खुद को एक अतिमानव, एक महान हस्ती मानते हो और अपने दिल में इस तरह के स्वभाव से बिल्कुल भी नफरत और तिरस्कार नहीं करते। नतीजतन तुम सिर्फ उस चूक का इंतजार ही कर सकते हो जो तुम्हें दूसरों की नजरों में गिरा दे। अगर तुम वाकई विवेकवान व्यक्ति हो तो तुम उस भ्रष्ट स्वभाव से घृणा और तिरस्कार महसूस करोगे जो हमेशा अतिमानव और महान हस्ती की भूमिका निभाना चाहता है। कम-से-कम तुम्हें यह एहसास तो होना ही चाहिए। तभी तुम खुद से घृणा कर सकते हो और देह-सुख से विद्रोह कर सकते हो। तुम्हें एक औसत व्यक्ति, एक साधारण व्यक्ति, एक सामान्य व्यक्ति बनने का अभ्यास कैसे करना चाहिए? पहले तुम्हें उन चीजों को नकारकर त्याग देना चाहिए जिन्हें तुम बहुत अच्छी और मूल्यवान समझते हो, साथ ही उन सतही, सुंदर शब्दों को भी नकारकर त्याग देना चाहिए जिनसे दूसरे तुम्हें सराहते और तुम्हारी प्रशंसा करते हैं। अगर अपने दिल में तुम स्पष्ट हो कि तुम किस तरह के इंसान हो, तुम्हारा सार क्या है, तुम्हारी विफलताएँ क्या हैं, और तुम कौन-सी भ्रष्टता प्रकट करते हो, तो तुम्हें अन्य लोगों के साथ खुले तौर पर इसकी संगति करनी चाहिए, ताकि वे देख सकें कि तुम्हारी असली हालत क्या है, तुम्हारे विचार और मत क्या हैं, ताकि वे जान सकें कि तुम्हें ऐसी चीजों के बारे में क्या ज्ञान है। चाहे जो भी करो, ढोंग या दिखावा मत करो, दूसरों से अपनी भ्रष्टता और असफलताएँ मत छिपाओ जिससे कि किसी को उनके बारे में पता न चले। इस तरह का झूठा व्यवहार तुम्हारे दिल में एक बाधा है, और यह एक भ्रष्ट स्वभाव भी है और लोगों को पश्चात्ताप करने और बदलने से रोक सकता है। तुम्हें परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए, और दूसरों के द्वारा तुम्हें दी जाने वाली प्रशंसा, उनके द्वारा तुम पर बरसाई जाने वाली महिमा और उनके द्वारा तुम्हें प्रदान किए जाने वाले मुकुटों जैसी झूठी चीजों पर रुककर विचार और विश्लेषण करना चाहिए। तुम्हें देखना चाहिए कि ये चीजें तुम्हें कितना नुकसान पहुँचाती हैं। ऐसा करने से तुम्हें अपना माप पता चल जाएगा, तुम आत्म-ज्ञान प्राप्त कर लोगे, और फिर खुद को एक अतिमानव या कोई महान हस्ती नहीं समझोगे। जब तुम्हें इस तरह की आत्म-जागरूकता प्राप्त हो जाती है, तो तुम्हारे लिए दिल से सत्य को स्वीकार करना, परमेश्वर के वचनों को स्वीकार करना और मनुष्य से परमेश्वर की अपेक्षाएँ स्वीकार करना, अपने लिए परमेश्वर का उद्धार स्वीकार करना, दृढ़ता से एक आम इंसान, एक ईमानदार और भरोसेमंद इंसान बनना, और अपने—एक सृजित प्राणी और परमेश्वर—सृष्टिकर्ता के बीच सामान्य संबंध स्थापित करना आसान हो जाता है। परमेश्वर लोगों से ठीक यही अपेक्षा करता है, और यह उनके द्वारा पूरी तरह से प्राप्य है। परमेश्वर सिर्फ साधारण, सामान्य लोगों को ही अपने सामने आने देता है। वह नकली या झूठी हस्तियों, महान व्यक्तियों और अतिमानवों से आराधना स्वीकार नहीं करता। जब तुम ये झूठे प्रभामंडल छोड़ देते हो, स्वीकारते हो कि तुम एक साधारण, सामान्य व्यक्ति हो और सत्य खोजने और प्रार्थना करने के लिए परमेश्वर के पास आते हो तो उसके लिए तुम्हारे पास जो दिल होगा, वह और ज्यादा वास्तविक होगा और तुम बहुत ज्यादा सहज महसूस करोगे। ऐसे समय तुम महसूस करोगे कि तुम्हें समर्थन और सहायता के लिए परमेश्वर की आवश्यकता है, और तुम खोजने और परमेश्वर से प्रार्थना करने के लिए बारम्बार उसके सामने आ सकोगे। तुम्हीं बताओ, तुम लोगों को एक महान हस्ती, अतिमानव बनना आसान लगता है या एक साधारण व्यक्ति बनना? (एक साधारण व्यक्ति बनना।) सिद्धांत रूप में कहें तो एक साधारण व्यक्ति बनना आसान है जबकि एक महान व्यक्ति या अतिमानव बनना कठिन है, जिसके कारण हमेशा पीड़ा होती है। लेकिन जब लोग अपने विकल्प खुद चुनकर इन्हें अभ्यास में लाते हैं तो वे एक अतिमानव या महान हस्ती बनने की इच्छा किए बिना नहीं रह पाते। वे खुद को रोक नहीं पाते। यह उनके प्रकृति सार के कारण होता है। इसलिए मनुष्य को परमेश्वर से उद्धार की आवश्यकता है। भविष्य में जब कोई तुम लोगों से पूछे कि “व्यक्ति अतिमानव और महान हस्ती बनने की कोशिश करना कैसे बंद कर सकता है?” तो क्या तुम लोग इसका उत्तर दे पाओगे? तुम लोगों को बस मेरे बताए तरीके का अभ्यास करना है। एक साधारण व्यक्ति बनो, खुद को छिपाओ मत, परमेश्वर से प्रार्थना करो और सरल तरीके से खुलना और दूसरों के साथ दिल से बात करना सीखो। ऐसा अभ्यास स्वाभाविक रूप से फलीभूत होगा। धीरे-धीरे तुम एक सामान्य व्यक्ति बनना सीख जाओगे, फिर तुम जीवन से थकोगे नहीं, व्यथित नहीं रहोगे, पीड़ा में नहीं रहोगे। सभी लोग साधारण हैं। उनमें कोई अंतर नहीं है, सिवाय इसके कि उनके व्यक्तिगत गुण अलग-अलग हैं और उनकी काबिलियत कुछ हद तक भिन्न हो सकती है। अगर परमेश्वर का उद्धार और सुरक्षा न हो तो वे सभी बुराई करेंगे और सजा भुगतेंगे। अगर तुम यह स्वीकार सको कि तुम एक साधारण व्यक्ति हो, अगर तुम मानवीय कल्पनाओं और खोखले भ्रमों से बाहर निकल सको और एक ईमानदार व्यक्ति बनने और ईमानदार कर्म करने का प्रयास कर सको, अगर तुम निष्ठापूर्वक परमेश्वर के प्रति समर्पण कर सको तो फिर तुम्हें कोई समस्या नहीं होगी और तुम पूरी तरह मानव के समान जियोगे। यह इतनी सीधी-सरल बात है तो कोई मार्ग क्यों नहीं है? अभी मैंने जो कहा है, वह बहुत सरल है। वास्तव में यह बदल नहीं सकता। जो लोग सत्य से प्रेम करते हैं, वे इसे पूरी तरह से स्वीकार सकते हैं और वे यह भी कहेंगे, “वास्तव में परमेश्वर मनुष्य से बहुत ज्यादा अपेक्षा नहीं करता। उसकी सभी अपेक्षाएँ मानवीय अंतःकरण और विवेक से पूरी की जा सकती हैं। व्यक्ति के लिए अपना कर्तव्य अच्छे से निभाना कठिन नहीं है। अगर व्यक्ति दिल से काम करे और उसमें इसे अभ्यास में लाने की इच्छा और आकांक्षा हो तो इसे हासिल करना आसान है।” लेकिन कुछ लोग इसे हासिल नहीं कर पाते। जिन लोगों में हमेशा महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ होती हैं, जो हमेशा अतिमानव और महान शख्सियत बनना चाहते हैं, भले ही वे साधारण इंसान बनना चाहते हों, उनके लिए यह आसान नहीं है। उन्हें हमेशा लगता है कि वे दूसरों से श्रेष्ठ और बेहतर हैं, इसलिए उनका पूरा दिल और दिमाग एक अतिमानव या महान हस्ती बनने की इच्छा से भरा रहता है। वे न सिर्फ साधारण इंसान बनने और सृजित प्राणियों के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखने के लिए तैयार नहीं होते, बल्कि कसम भी खाते हैं कि वे अतिमानव और महान शख्सियत बनने का प्रयास कभी नहीं छोड़ेंगे। इसका कोई इलाज नहीं।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, परमेश्वर के वचनों को सँजोना परमेश्वर में विश्वास की नींव है
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