6. लोगों के भ्रष्ट स्वभाव
अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन
मनुष्य में उत्पन्न होने वाले भ्रष्ट स्वभावों का मूल कारण शैतान द्वारा गुमराह किया जाना, उसकी भ्रष्टता और जहर है। मनुष्य को शैतान द्वारा बाँधा और नियंत्रित किया गया है, और शैतान ने उसकी सोच, नैतिकता, अंतर्दृष्टि और समझ को जो गंभीर नुकसान पहुँचाया है, उसे वह भुगतता है। शैतान ने इंसान की मूलभूत चीजों को भ्रष्ट कर दिया है, और वे बिल्कुल भी वैसी नहीं हैं जैसा परमेश्वर ने मूल रूप से उन्हें बनाया था, ठीक इसी वजह से मनुष्य परमेश्वर का विरोध करता है और सत्य को नहीं स्वीकार पाता। इसलिए मनुष्य के स्वभाव में बदलाव उसकी सोच, अंतर्दृष्टि और समझ में बदलाव के साथ शुरू होना चाहिए, जो परमेश्वर और सत्य के बारे में उसके ज्ञान को बदलेगा। जो लोग अधिकतम गहराई से भ्रष्ट देशों में जन्मे हैं, वे इस बारे में और भी अधिक अज्ञानी हैं कि परमेश्वर क्या है, या परमेश्वर में विश्वास करने का क्या अर्थ है। लोग जितने अधिक भ्रष्ट होते हैं, वे उतना ही कम परमेश्वर के अस्तित्व के बारे में जानते हैं, और उनकी समझ और अंतर्दृष्टि उतनी ही खराब होती है। परमेश्वर के प्रति मनुष्य के विरोध और उसकी विद्रोहशीलता का स्रोत शैतान द्वारा उसकी भ्रष्टता है। शैतान द्वारा भ्रष्ट कर दिए जाने के कारण मनुष्य की अंतरात्मा सुन्न हो गई है, वह अनैतिक हो गया है, उसके विचार पतित हो गए हैं, और उसका मानसिक दृष्टिकोण पिछड़ा हुआ है। शैतान द्वारा भ्रष्ट किए जाने से पहले मनुष्य स्वाभाविक रूप से परमेश्वर को समर्पित था और उसके वचनों को सुनने के बाद उनके प्रति समर्पण करता था। उसमें स्वाभाविक रूप से सही समझ और विवेक था, और उसमें सामान्य मानवता थी। शैतान द्वारा भ्रष्ट किए जाने के बाद उसकी मूल समझ, विवेक और मानवता मंद पड़ गई और शैतान द्वारा बिगाड़ दी गई। इस प्रकार, उसने परमेश्वर के प्रति अपना समर्पण और प्रेम खो दिया है। मनुष्य की समझ पथभ्रष्ट हो गई है, उसका स्वभाव जानवरों के स्वभाव के समान हो गया है, और परमेश्वर के प्रति उसकी विद्रोहशीलता और भी अधिक बढ़ गई है और गंभीर हो गई है। लेकिन मनुष्य इसे न तो जानता है और न ही पहचानता है, बस आँख मूँदकर विरोध और विद्रोह करता है। मनुष्य का स्वभाव उसकी समझ, अंतर्दृष्टि और अंतःकरण की अभिव्यक्तियों में प्रकट होता है; और चूँकि उसकी समझ और अंतर्दृष्टि सही नहीं हैं, और उसका अंतःकरण अत्यंत मंद पड़ गया है, इसलिए उसका स्वभाव परमेश्वर के प्रति विद्रोही है। यदि मनुष्य की समझ और अंतर्दृष्टि बदल नहीं सकती, तो फिर उसके स्वभाव में परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप बदलाव होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। यदि मनुष्य की समझ सही नहीं है, तो वह परमेश्वर की सेवा नहीं कर सकता और वह परमेश्वर द्वारा उपयोग के अयोग्य है। “सामान्य समझ” का अर्थ है परमेश्वर के प्रति समर्पण करना और उसके प्रति निष्ठावान होना, परमेश्वर के लिए तरसना, परमेश्वर के प्रति पूर्ण होना, और परमेश्वर के प्रति विवेकशील होना। यह परमेश्वर के साथ एकचित्त और एकमन होने को दर्शाता है, जानबूझकर परमेश्वर का विरोध करने को नहीं। पथभ्रष्ट समझ का होना ऐसा नहीं है। चूँकि मनुष्य शैतान द्वारा भ्रष्ट कर दिया गया था, इसलिए उसने परमेश्वर के बारे में धारणाएँ बना ली हैं, और उसमें परमेश्वर के लिए कोई निष्ठा या तड़प नहीं है, परमेश्वर के प्रति विवेकशीलता की तो बात ही छोड़ो। मनुष्य जानबूझकर परमेश्वर का विरोध करता और उस पर दोष लगाता है, और इसके अलावा, यह स्पष्ट रूप से जानते हुए भी कि वह परमेश्वर है, उसकी पीठ पीछे उस पर अपशब्दों की बौछार करता है। मनुष्य स्पष्ट रूप से जानता है कि वह परमेश्वर है, फिर भी उसकी पीठ पीछे उस पर दोष लगाता है; वह परमेश्वर के प्रति समर्पण करने का कोई इरादा नहीं रखता, बस परमेश्वर से अंधाधुंध माँग और अनुरोध करता रहता है। ऐसे लोग—वे लोग जिनकी समझ भ्रष्ट होती है—अपने घृणित स्वभाव को जानने या अपनी विद्रोहशीलता पर पछतावा करने में अक्षम होते हैं। यदि लोग अपने आप को जानने में सक्षम होते हैं, तो उन्होंने अपनी समझ को थोड़ा-सा पुनः प्राप्त कर लिया होता है; परमेश्वर के प्रति अधिक विद्रोही लोग, जो अभी तक अपने आप को नहीं जान पाए, वे उतने ही कम समझदार होते हैं।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अपरिवर्तित स्वभाव होना परमेश्वर के साथ शत्रुता रखना है
मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव के प्रकटीकरण का स्रोत उसका मंद अंतःकरण, उसकी दुर्भावनापूर्ण प्रकृति और उसकी विकृत समझ से अधिक किसी में नहीं है; यदि मनुष्य का अंतःकरण और समझ फिर से सामान्य हो पाएँ, तो फिर वह परमेश्वर के सामने उपयोग करने के योग्य बन जाएगा। यह सिर्फ इसलिए है, क्योंकि मनुष्य का अंतःकरण हमेशा सुन्न रहा है, और मनुष्य की समझ, जो कभी सही नहीं रही, लगातार इतनी मंद होती जा रही है कि मनुष्य परमेश्वर के प्रति अधिक से अधिक विद्रोही होता जा रहा है, इस हद तक कि उसने यीशु को क्रूस पर चढ़ा दिया और अंत के दिनों के देहधारी परमेश्वर को अपने घर में प्रवेश देने से इनकार करता है, और परमेश्वर के देह पर दोष लगाता है, और परमेश्वर के देह को तुच्छ समझता है। यदि मनुष्य में थोड़ी-सी भी मानवता होती, तो वह परमेश्वर द्वारा धारित देह के साथ इतना निर्मम व्यवहार न करता; यदि उसे थोड़ी-सी भी समझ होती, तो वह देहधारी परमेश्वर के देह के साथ अपने व्यवहार में इतना शातिर न होता; यदि उसमें थोड़ा-सा भी विवेक होता, तो वह देहधारी परमेश्वर को इस ढंग से “धन्यवाद” न देता। मनुष्य देहधारी परमेश्वर के युग में जीता है, फिर भी वह इतना अच्छा अवसर दिए जाने के लिए परमेश्वर को धन्यवाद देने में असमर्थ है, और इसके बजाय परमेश्वर के आगमन को कोसता है, या परमेश्वर के देहधारण के तथ्य को पूरी तरह से अनदेखा कर देता है, और प्रकट रूप से उसके विरोध में है और उससे विमुख हो चुका है। मनुष्य परमेश्वर के आगमन को चाहे जैसा समझे, परमेश्वर ने, संक्षेप में, हमेशा धैर्यपूर्वक अपना कार्य जारी रखा है—भले ही मनुष्य ने परमेश्वर के प्रति थोड़ा-सा भी स्वागत करने वाला रुख नहीं अपनाया है, और उससे अंधाधुंध अनुरोध करता रहता है। मनुष्य का स्वभाव अत्यंत शातिर बन गया है, उसकी समझ अत्यंत मंद हो गई है, और उसका अंतःकरण उस दुष्ट द्वारा पूरी तरह से रौंद दिया गया है और वह बहुत पहले से मनुष्य का मौलिक अंतःकरण नहीं रहा है। मानवजाति को बहुत अधिक जीवन और अनुग्रह प्रदान करने के लिए मनुष्य देहधारी परमेश्वर का न केवल एहसानमंद नहीं है, बल्कि परमेश्वर द्वारा उसे सत्य दिए जाने पर वह क्रोधित भी हो गया है; ऐसा इसलिए है, क्योंकि मनुष्य को सत्य में थोड़ी-सी भी रुचि नहीं है, इसीलिए वह परमेश्वर के प्रति क्रोधित हो गया है। मनुष्य देहधारी परमेश्वर के लिए न सिर्फ अपनी जान देने में अक्षम है, बल्कि वह उससे अनुग्रह हासिल करने की कोशिश भी करता है, और ऐसे सूद का दावा करता है जो उससे दर्जनों गुना ज्यादा है जो मनुष्य ने परमेश्वर को दिया है। ऐसे विवेक और समझ वाले लोगों को यह कोई बड़ी बात नहीं लगती, और वे अब भी यह मानते हैं कि उन्होंने परमेश्वर के लिए स्वयं को बहुत खपाया है, और परमेश्वर ने उन्हें बहुत थोड़ा दिया है। कुछ लोग ऐसे हैं, जो मुझे एक कटोरा पानी देने के बाद अपने हाथ पसारकर माँग करते हैं कि मैं उन्हें दो कटोरे दूध की कीमत चुकाऊँ, या मुझे एक रात के लिए कमरा देने के बाद मुझसे कई रातों के किराए की माँग करते हैं। ऐसी मानवता और ऐसे विवेक के साथ तुम अब भी जीवन पाने की कामना कैसे कर सकते हो? तुम कितने घृणित अभागे हो!
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अपरिवर्तित स्वभाव होना परमेश्वर के साथ शत्रुता रखना है
तुम लोगों की अभिमानी और दंभी प्रकृति तुम लोगों को अपने ही अंतःकरण के साथ विश्वासघात करने, मसीह से विद्रोह करने और उसका विरोध करने, और अपनी कुरूपता प्रकट करने के लिए प्रेरित करती है, और इस तरह तुम लोगों के इरादों, धारणाओं, असंयत इच्छाओं और लालच से भरी नजरों को प्रकाश में ले आती है। फिर भी तुम लोग मसीह के कार्य के लिए अपने जीवन भर के जोश के बारे में बक-बक करते रहते हो और बार-बार मसीह द्वारा बहुत पहले कहे गए सत्य दोहराते रहते हो। यही तुम लोगों की “आस्था”—तुम लोगों की “अशुद्धता-रहित आस्था” है। मैंने पूरे समय मनुष्य के लिए बहुत कठोर मानक रखा है। अगर तुम्हारी वफादारी इरादों और शर्तों के साथ आती है, तो मैं तुम्हारी तथाकथित वफादारी के बिना रहना चाहूँगा, क्योंकि मैं उन लोगों से घृणा करता हूँ, जो मुझे अपने इरादों से धोखा देते हैं और शर्तों द्वारा मुझसे जबरन वसूली करते हैं। मैं मनुष्य से सिर्फ यही चाहता हूँ कि वह मेरे प्रति पूरी तरह से वफादार हो और सभी चीजें एक ही शब्द : आस्था—के वास्ते—और उसे साबित करने के लिए करे। मैं तुम्हारे द्वारा मुझे प्रसन्न करने की कोशिश करने के लिए की जाने वाली खुशामद का तिरस्कार करता हूँ, क्योंकि मैंने हमेशा तुम लोगों के साथ ईमानदारी से व्यवहार किया है, और इसलिए मैं तुम लोगों से भी यही चाहता हूँ कि तुम भी मेरे प्रति एक सच्ची आस्था के साथ कार्य करो। जब आस्था की बात आती है, तो कई लोग यह सोच सकते हैं कि वे परमेश्वर का अनुसरण इसलिए करते हैं क्योंकि उनमें आस्था है, अन्यथा वे इस प्रकार की पीड़ा न सहते। तो मैं तुमसे यह पूछता हूँ : अगर तुम परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास करते हो, तो उसका भय क्यों नहीं मानते? अगर तुम परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास करते हो, तो तुम्हारे हृदय में उसका थोड़ा-सा भी खौफ क्यों नहीं है? तुम स्वीकार करते हो कि मसीह परमेश्वर का देहधारण है, तो तुम उसकी अवमानना क्यों करते हो? तुम उसके प्रति अनादरपूर्वक क्यों पेश आते हो? तुम उसकी खुलेआम आलोचना क्यों करते हो? तुम हमेशा उसकी गतिविधियों की जासूसी क्यों करते हो? तुम उसकी व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित क्यों नहीं होते? तुम उसके वचन के अनुसार कार्य क्यों नहीं करते? क्यों तुम उसकी भेंटें जबरन छीनने और लूटने का प्रयास करते हो? क्यों तुम मसीह की स्थिति से बोलते हो? क्यों तुम यह आकलन करते हो कि उसका कार्य और वचन सही हैं या नहीं? क्यों तुम पीठ पीछे उसकी निंदा करने का साहस करते हो? क्या तुम्हारी आस्था इन्हीं और अन्य बातों से मिलकर बनी है?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या तुम परमेश्वर के सच्चे विश्वासी हो?
तुम लोगों का परमेश्वर के प्रति विरोध और पवित्र आत्मा के कार्य में अवरोध तुम लोगों की धारणाओं और तुम लोगों के अंतर्निहित अहंकार के कारण है। ऐसा इसलिए नहीं है कि परमेश्वर का कार्य गलत है, बल्कि इसलिए है कि तुम लोग स्वाभाविक रूप से अत्यंत विद्रोही हो। परमेश्वर में विश्वास हो जाने के बाद भी, कुछ लोग यकीन से यह भी नहीं कह सकते हैं कि मनुष्य कहाँ से आया, फिर भी वे पवित्र आत्मा के कार्यों के सही और गलत होने के बारे में बताते हुए सार्वजनिक भाषण देने का साहस करते हैं। यहाँ तक कि वे उन प्रेरितों को भी व्याख्यान देते हैं जिनके पास पवित्र आत्मा का नया कार्य है, उन पर टिप्पणी करते हैं और बेमतलब बोलते रहते हैं; उनकी मानवता बहुत ही निम्न है, और उनमें बिल्कुल भी समझ नहीं होती है। क्या वह दिन नहीं आएगा जब इस प्रकार के लोग पवित्र आत्मा के कार्य के द्वारा तिरस्कृत कर दिए जाएँगे, और नरक की आग द्वारा भस्म कर दिए जाएँगे? वे परमेश्वर के कार्यों को नहीं जानते हैं, फिर भी उसके कार्य की आलोचना करते हैं और परमेश्वर को यह निर्देश देने की कोशिश करते हैं कि कार्य किस प्रकार किया जाए। इस प्रकार के अविवेकी लोग परमेश्वर को कैसे जान सकते हैं? मनुष्य खोजने और अनुभव करने की प्रक्रिया के दौरान ही परमेश्वर को जान पाता है; न कि अपनी सनक में उसकी आलोचना करने के द्वारा मनुष्य पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता के माध्यम से परमेश्वर को जान पाया है। परमेश्वर के बारे में लोगों का ज्ञान जितना अधिक सही होता जाता है, उतना ही कम वे उसका विरोध करते हैं। इसके विपरीत, लोग परमेश्वर के बारे में जितना कम जानते हैं, उतनी ही ज्यादा उनके द्वारा परमेश्वर का विरोध करने की संभावना रहती है। तुम लोगों की धारणाएँ, तुम्हारी पुरानी प्रकृति, और तुम्हारी मानवता, चरित्र और नैतिक दृष्टिकोण वह पूँजी है जिससे तुम परमेश्वर का प्रतिरोध करते हो, और जितना अधिक तुम्हारी नैतिकता जितनी भ्रष्ट होगी, तुम्हारे गुण जितने तुच्छ और तुम्हारी मानवता जितनी निम्न होगी, उतना ही अधिक तुम परमेश्वर के शत्रु बन जाते हो। जो लोग प्रबल धारणाएँ रखते हैं और आत्मतुष्ट स्वभाव के होते हैं, वे देहधारी परमेश्वर के प्रति और भी अधिक शत्रुतापूर्ण होते हैं; इस प्रकार के लोग मसीह-विरोधी हैं। यदि तुम्हारी धारणाओं में सुधार न किया जाए, तो वे सदैव परमेश्वर की विरोधी रहेंगी; तुम कभी भी परमेश्वर के अनुकूल नहीं होगे, और सदैव उससे दूर रहोगे।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों को जानना ही परमेश्वर को जानने का मार्ग है
कुछ लोग सत्य में आनंदित नहीं होते, न्याय में तो बिल्कुल भी नहीं। इसके बजाय, वे सामर्थ्य और संपत्तियों में आनंदित होते हैं; ऐसे लोग सामर्थ्य चाहने वाले कहे जाते हैं। वे केवल दुनिया के प्रभावशाली संप्रदायों को, और सेमिनरीज से आने वाले पादरियों और शिक्षकों को खोजते हैं। हालाँकि उन्होंने सत्य के मार्ग को स्वीकार कर लिया है, फिर भी वे केवल अर्ध-विश्वासी हैं; वे अपने दिलो-दिमाग पूरी तरह से समर्पित करने में असमर्थ हैं, वे कहने को तो परमेश्वर के लिए खुद को खपाने की बात करते हैं, लेकिन उनकी नजरें बड़े पादरियों और शिक्षकों पर गड़ी रहती हैं, और वे मसीह की ओर फेर कर नहीं देखते। उनके हृदय प्रसिद्धि, वैभव और महिमा पर ही टिके रहते हैं। वे इसे असंभव समझते हैं कि ऐसा छोटा व्यक्ति इतने लोगों पर विजय प्राप्त कर सकता है, कि इतना साधारण व्यक्ति लोगों को पूर्ण बना सकता है। वे इसे असंभव समझते हैं कि ये धूल और घूरे में पड़े नाचीज लोग परमेश्वर द्वारा चुने गए हैं। वे मानते हैं कि अगर ऐसे लोग परमेश्वर के उद्धार के पात्र होते, तो स्वर्ग और पृथ्वी उलट-पुलट हो जाते और सभी लोग हँसते-हँसते लोटपोट हो जाते। उनका मानना है कि अगर परमेश्वर ने ऐसे नाचीज लोगों को पूर्ण बनाने के लिए चुना होता, तो वे सभी बड़े लोग स्वयं परमेश्वर बन जाते। उनके दृष्टिकोण अविश्वास से दूषित हैं; अविश्वासी होने से भी बढ़कर, वे बेहूदे जानवर हैं। क्योंकि वे केवल हैसियत, प्रतिष्ठा और सामर्थ्य को महत्व देते हैं, और केवल बड़े समूहों और संप्रदायों को सम्मान देते हैं। उनमें उन लोगों के लिए बिल्कुल भी सम्मान नहीं है, जिनकी अगुआई मसीह करता है; वे तो बस ऐसे विश्वासघाती हैं, जिन्होंने मसीह से, सत्य से और जीवन से मुँह मोड़ लिया है।
तुम मसीह की विनम्रता की प्रशंसा नहीं करते, बल्कि विशेष हैसियत वाले उन झूठे चरवाहों की प्रशंसा करते हो। तुम मसीह की मनोहरता या बुद्धि से प्रेम नहीं करते, बल्कि उन व्यभिचारियों से प्रेम करते हो, जो संसार के कीचड़ में लोटते हैं। तुम मसीह की पीड़ा पर हँसते हो, जिसके पास अपना सिर टिकाने तक की जगह नहीं है, लेकिन उन मुरदों की तारीफ करते हो, जो चढ़ावे हड़प लेते हैं और ऐयाशी में जीते हैं। तुम मसीह के साथ कष्ट सहने को तैयार नहीं हो, लेकिन खुद को उन धृष्ट मसीह-विरोधियों की बाँहों में प्रसन्नता से फेंक देते हो, जबकि वे तुम्हें सिर्फ देह, शब्द और नियंत्रण ही प्रदान करते हैं। अब भी तुम्हारा हृदय उनकी ओर, उनकी प्रतिष्ठा, उनकी हैसियत, उनके प्रभाव की ओर ही मुड़ता है। अभी भी तुम ऐसा रवैया बनाए रखते हो, जिससे मसीह के कार्य को गले से उतारना तुम्हारे लिए कठिन हो जाता है और तुम उसे स्वीकारने के लिए तैयार नहीं होते। इसीलिए मैं कहता हूँ कि तुममें मसीह को स्वीकार करने की आस्था की कमी है। तुमने आज तक उसका अनुसरण सिर्फ इसलिए किया है, क्योंकि तुम्हारे पास कोई और विकल्प नहीं था। बुलंद छवियों की एक शृंखला हमेशा तुम्हारे हृदय में बसी रहती है; तुम उनके किसी शब्द और कर्म को नहीं भूल सकते, न ही उनके प्रभावशाली शब्दों और हाथों को भूल सकते हो। वे तुम लोगों के हृदय में हमेशा सर्वोच्च और हमेशा नायक रहते हैं। लेकिन आज के मसीह के लिए ऐसा नहीं है। तुम्हारे हृदय में वह हमेशा महत्वहीन और हमेशा भय के अयोग्य है। क्योंकि वह बहुत ही साधारण है, उसका बहुत ही कम प्रभाव है और वह ऊँचा तो बिल्कुल भी नहीं है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या तुम परमेश्वर के सच्चे विश्वासी हो?
परमेश्वर का अनुसरण करने वाले बहुत सारे लोग केवल इस बात से मतलब रखते हैं कि आशीष कैसे प्राप्त किए जाएँ या आपदा से कैसे बचा जाए। जैसे ही परमेश्वर के कार्य और प्रबंधन का उल्लेख किया जाता है, वे चुप हो जाते हैं और उनकी सारी रुचि समाप्त हो जाती है। उन्हें लगता है कि इस प्रकार के उबाऊ मुद्दों को समझने से उनके जीवन के विकास में मदद नहीं मिलेगी या कोई लाभ प्राप्त नहीं होगा। परिणामस्वरूप, हालाँकि उन्होंने परमेश्वर के प्रबंधन के बारे में सुना होता है, वे इस पर बहुत कम ध्यान देते हैं। उन्हें यह इतना मूल्यवान नहीं लगता कि इसे स्वीकारा जाए, और वे इसे अपने जीवन के अंग के रूप में लेकर तो बिल्कुल भी नहीं समझते हैं। ऐसे लोगों का परमेश्वर का अनुसरण करने का केवल एक सरल उद्देश्य होता है, और वह उद्देश्य है आशीष प्राप्त करना। ऐसे लोग ऐसी किसी भी दूसरी चीज़ पर ध्यान देने की परवाह नहीं कर सकते जो इस उद्देश्य से सीधे संबंध नहीं रखती। उनके लिए, आशीष प्राप्त करने के लिए परमेश्वर में विश्वास करने से ज्यादा वैध उद्देश्य और कोई नहीं है—यह उनके विश्वास का असली मूल्य है। यदि कोई चीज़ इस उद्देश्य को प्राप्त करने में योगदान नहीं करती, तो वे उससे पूरी तरह से अप्रभावित रहते हैं। आज परमेश्वर में विश्वास करने वाले अधिकांश लोगों का यही हाल है। उनके उद्देश्य और इरादे न्यायोचित प्रतीत होते हैं, क्योंकि जब वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं, तो वे परमेश्वर के लिए स्वयं को खपाते भी हैं, परमेश्वर के प्रति समर्पित होते हैं और अपना कर्तव्य भी निभाते हैं। वे अपनी जवानी न्योछावर कर देते हैं, परिवार और आजीविका त्याग देते हैं, यहाँ तक कि वर्षों अपने घर से दूर व्यस्त रहते हैं। अपने परम उद्देश्य के लिए वे अपनी रुचियाँ बदल डालते हैं, अपने जीवन का दृष्टिकोण बदल देते हैं, यहाँ तक कि अपनी खोज की दिशा तक बदल देते हैं, किंतु परमेश्वर पर अपने विश्वास के उद्देश्य को नहीं बदल सकते। वे अपने आदर्शों के प्रबंधन के लिए भाग-दौड़ करते हैं; चाहे मार्ग कितना भी दूर क्यों न हो, और मार्ग में कितनी भी कठिनाइयाँ और अवरोध क्यों न आएँ, वे दृढ़ रहते हैं और मृत्यु से नहीं डरते। इस तरह से अपने आप को समर्पित रखने के लिए उन्हें कौन-सी ताकत बाध्य करती है? क्या यह उनका विवेक है? क्या यह उनका महान और कुलीन चरित्र है? क्या यह बुराई से बिल्कुल अंत तक लड़ने का उनका दृढ़ संकल्प है? क्या यह बिना प्रतिफल की आकांक्षा के परमेश्वर की गवाही देने का उनका विश्वास है? क्या यह परमेश्वर की इच्छा प्राप्त करने के लिए सब-कुछ त्याग देने की तत्परता के प्रति उनकी निष्ठा है? या यह अनावश्यक व्यक्तिगत माँगें हमेशा त्याग देने की उनकी भक्ति-भावना है? ऐसे किसी भी व्यक्ति के लिए, जिसने कभी परमेश्वर के प्रबंधन को नहीं समझा, फिर भी इतना कुछ देना एक चमत्कार ही है! फिलहाल, आओ इसकी चर्चा न करें कि इन लोगों ने कितना कुछ दिया है। किंतु उनका व्यवहार हमारे विश्लेषण के बहुत योग्य है। उनके साथ इतनी निकटता से जुड़े उन लाभों के अतिरिक्त, परमेश्वर को कभी नहीं समझने वाले लोगों द्वारा उसके लिए इतना कुछ दिए जाने का क्या कोई अन्य कारण हो सकता है? इसमें हमें पूर्व की एक अज्ञात समस्या का पता चलता है : मनुष्य का परमेश्वर के साथ संबंध केवल एक नग्न स्वार्थ है। यह आशीष देने वाले और लेने वाले के मध्य का संबंध है। स्पष्ट रूप से कहें तो, यह कर्मचारी और नियोक्ता के मध्य के संबंध के समान है। कर्मचारी केवल नियोक्ता द्वारा दिए जाने वाले प्रतिफल प्राप्त करने के लिए कार्य करता है। इस प्रकार के संबंध में कोई स्नेह नहीं होता, केवल एक लेनदेन होता है। प्रेम करने या प्रेम पाने जैसी कोई बात नहीं होती, केवल दान और दया होती है। कोई समझदारी नहीं होती, केवल दबा हुआ आक्रोश और धोखा होता है। कोई अंतरंगता नहीं होती, केवल एक अगम खाई होती है। अब जबकि चीज़ें इस बिंदु तक आ गई हैं, तो कौन इस क्रम को उलट सकता है? और कितने लोग इस बात को वास्तव में समझने में सक्षम हैं कि यह संबंध कितना भयानक बन चुका है? मैं मानता हूँ कि जब लोग आशीष प्राप्त होने के आनंद में निमग्न हो जाते हैं, तो कोई यह कल्पना नहीं कर सकता कि परमेश्वर के साथ इस प्रकार का संबंध कितना शर्मनाक और भद्दा है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 3: मनुष्य को केवल परमेश्वर के प्रबंधन के बीच ही बचाया जा सकता है
मेरे कर्मों की संख्या समुद्र-तटों की रेत के कणों से भी ज़्यादा है, और मेरी बुद्धि सुलेमान के सभी पुत्रों से बढ़कर है, फिर भी लोग मुझे मामूली हैसियत का मात्र एक चिकित्सक और मनुष्यों का कोई अज्ञात शिक्षक समझते हैं। बहुत-से लोग केवल इसलिए मुझ पर विश्वास करते हैं कि मैं उनको चंगा कर सकता हूँ। बहुत-से लोग सिर्फ इसलिए मुझ पर विश्वास करते हैं कि मैं उनके शरीर से अशुद्ध आत्माओं को निकालने के लिए अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करूँगा, और बहुत-से लोग मुझसे बस शांति और आनंद प्राप्त करने के लिए मुझ पर विश्वास करते हैं। बहुत-से लोग मुझसे सिर्फ और अधिक भौतिक संपदा माँगने के लिए मुझ पर विश्वास करते हैं। बहुत-से लोग मुझसे सिर्फ इस जीवन को शांति से गुज़ारने और आने वाले संसार में सुरक्षित और स्वस्थ रहने के लिए मुझ पर विश्वास करते हैं। बहुत-से लोग केवल नरक की पीड़ा से बचने के लिए और स्वर्ग के आशीष प्राप्त करने के लिए मुझ पर विश्वास करते हैं। बहुत-से लोग केवल अस्थायी आराम के लिए मुझ पर विश्वास करते हैं और आने वाले संसार में कुछ हासिल करने की कोशिश नहीं करते। जब मैंने अपना क्रोध नीचे मनुष्यों पर उतारा और उसका सारा आनंद और शांति छीन ली जो उसके पास कभी थी, तो मनुष्य संदिग्ध हो गया। जब मैंने मनुष्य को नरक का कष्ट दिया और स्वर्ग के आशीष वापस ले लिए, तो मनुष्य की लज्जा क्रोध में बदल गई। जब मनुष्य ने मुझसे खुद को चंगा करने के लिए कहा, तो मैंने उस पर ध्यान नहीं दिया और उसके प्रति घृणा महसूस की; तो मनुष्य मुझे छोड़कर चला गया और बुरी दवाइयों तथा जादू-टोने का मार्ग खोजने लगा। जब मैंने मनुष्य द्वारा मुझसे माँगा गया सब-कुछ वापस ले लिया, तो हर कोई बिना कोई निशान छोड़े गायब हो गया। इसलिए मैं कहता हूँ कि मनुष्य मुझ पर इसलिए विश्वास करता है, क्योंकि मैं बहुत अनुग्रह देता हूँ, और प्राप्त करने के लिए और भी बहुत-कुछ है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम विश्वास के बारे में क्या जानते हो?
जब भी गंतव्य का जिक्र होता है, तुम लोग उसे विशेष गंभीरता से लेते हो; इतना ही नहीं, यह एक ऐसी चीज़ है, जिसके बारे में तुम सभी विशेष रूप से संवेदनशील हो। कुछ लोग तो एक अच्छा गंतव्य पाने के लिए परमेश्वर के सामने दंडवत करते हुए अपने सिर जमीन से लगने का भी इंतज़ार नहीं करते। मैं तुम्हारी उत्सुकता समझता हूँ, जिसे शब्दों में व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है। यह इससे अधिक कुछ नहीं है कि तुम लोग अपनी देह विपत्ति में नहीं डालना चाहते, और भविष्य में चिरस्थायी सजा तो बिल्कुल भी नहीं भुगतना चाहते। तुम लोग केवल स्वयं को थोड़ा और उन्मुक्त, थोड़ा और आसान जीवन जीने देने की आशा करते हो। इसलिए जब भी गंतव्य का जिक्र होता है, तुम लोग खास तौर से बेचैन महसूस करते हो और अत्यधिक डर जाते हो कि अगर तुम लोग पर्याप्त सतर्क नहीं रहे, तो तुम परमेश्वर को नाराज़ कर सकते हो और इस प्रकार उस दंड के भागी हो सकते हो, जिसके तुम पात्र हो। अपने गंतव्य की खातिर तुम लोग समझौते करने से भी नहीं हिचकेहो, यहाँ तक कि तुममें से कई लोग, जो कभी कुटिल और चंचल थे, अचानक विशेष रूप से विनम्र और ईमानदार बन गए हैं; तुम्हारी ईमानदारी का दिखावा लोगों की मज्जा तक को कँपा देता है। फिर भी, तुम सभी के पास “ईमानदार” दिल हैं, और तुम लोगों ने लगातार बिना कोई बात छिपाए अपने दिलों के राज़ मेरे सामने खोले हैं, चाहे वह शिकायत हो, धोखा हो या भक्ति हो। कुल मिलाकर, तुम लोगों ने अपने अस्तित्व के गहनतम कोनों में पड़ी महत्वपूर्ण चीज़ें मेरे सामने खुलकर “कबूल” की हैं। बेशक, मैंने कभी इन चीज़ों पर ध्यान नहीं दिया, क्योंकि वे सब मेरे लिए बहुत आम हो गई हैं। लेकिन अपने अंतिम गंतव्य के लिए तुम लोग परमेश्वर का अनुमोदन पाने के लिए अपने सिर के बाल का एक रेशा भी गँवाने के बजाय आग के दरिया में कूद जाओगे। ऐसा नहीं है कि मैं तुम लोगों के साथ बहुत कट्टर हो रहा हूँ; बात यह है कि मैं जो कुछ भी करता हूँ, उसके रूबरू आने के लिए तुम्हारे हृदय के भक्ति-भाव में बहुत कमी है। तुम लोग शायद न समझ पाओ कि मैंने अभी क्या कहा है, इसलिए मैं तुम्हें एक आसान स्पष्टीकरण देता हूँ : तुम लोगों को सत्य और जीवन की ज़रूरत नहीं है; न ही तुम्हें अपने आचरण के सिद्धांतों की ज़रूरत है, मेरे श्रमसाध्य कार्य की तो निश्चित रूप से ज़रूरतनहीं है। इसके बजाय तुम लोगों को उन चीज़ों की ज़रूरत है, जो तुम्हारी देह से जुड़ी हैं—धन-संपत्ति, हैसियत, परिवार, विवाह आदि। तुम लोग मेरे वचनों और कार्य को पूरी तरह से ख़ारिज करते हो, इसलिए मैं तुम्हारे विश्वास को एक शब्द में समेट सकता हूँ : उथला। जिन चीज़ों के प्रति तुम लोग पूर्णतः समर्पित हो, उन्हें हासिल करने के लिए तुम किसी भी हद तक जा सकते हो, लेकिन मैंने पाया है कि तुम लोग परमेश्वर में अपने विश्वास से संबंधित मामलों में ऐसा नहीं करते। इसके बजाय, तुम सापेक्ष रूप से समर्पित हो, सापेक्ष रूप से ईमानदार हो। इसीलिए मैं कहता हूँ कि जिनके दिल में पूर्ण निष्ठा का अभाव है, वे परमेश्वर के प्रति अपने विश्वास में असफल हैं। ध्यान से सोचो—क्या तुम लोगों के बीच कई लोग असफल हैं?
तुम लोगों को ज्ञात होना चाहिए कि परमेश्वर पर विश्वास में सफलता लोगों के अपने कार्यों का परिणाम होती है; जब लोग सफल नहीं होते, बल्कि असफल होते हैं, तो वह भी उनके अपने कार्यों के कारण ही होता है, उसमें किसी अन्य कारक की कोई भूमिका नहीं होती। मेरा मानना है कि तुम लोग ऐसी चीज़ प्राप्त करने के लिए सब-कुछ करोगे, जो परमेश्वर में विश्वास करने से ज्यादा मुश्किल होती है और जिसे पाने के लिए उससे ज्यादा कष्ट उठाने पड़ते हैं, और उसे तुम बड़ी गंभीरता से लोगे, यहाँ तक कि तुम उसमें कोई गलती बरदाश्त करने के लिए भी तैयार नहींहोंगे; इस तरह के निरंतर प्रयास तुम लोग अपने जीवन में करते हो। यहाँ तक कि तुम लोग उन परिस्थितियों में भी मेरी देह को धोखा दे सकते हो, जिनमें तुम अपने परिवार के किसी सदस्य को धोखा नहीं दोगे। यही तुम लोगों का अटल व्यवहार और तुम लोगों का जीवनसिद्धांत है। क्या तुम लोग अभी भी अपने गंतव्य की खातिर मुझे धोखा देने के लिए एक झूठा मुखौटा नहीं लगा रहे हो, ताकि तुम्हारा गंतव्य पूरी तरह से खूबसूरत हो जाए और तुम जो चाहते हो वह सब हो? मुझे ज्ञात है कि तुम लोगों की भक्ति वैसी ही अस्थायी है, जैसी अस्थायी तुम लोगों की ईमानदारी है। क्या तुम लोगों का संकल्प और वह कीमत जो तुम लोग चुकाते हो, भविष्य के बजाय वर्तमान क्षण के लिए नहीं हैं? तुम लोग केवल एक खूबसूरत गंतव्य सुरक्षित कर लेने के लिए एक अंतिम प्रयास करना चाहते हो, जिसका एकमात्र उद्देश्य सौदेबाज़ी है। तुम यह प्रयास सत्य के ऋणी होने से बचने के लिए नहीं करते, और मुझे उस कीमत का भुगतान करने के लिए तो बिल्कुल भी नहीं, जो मैंने अदा की है। संक्षेप में, तुम केवल जो चाहते हो, उसे प्राप्त करने के लिए अपनी चतुर चालें चलने के इच्छुक हो, लेकिन उसके लिए खुला संघर्ष करने के लिए तैयार नहीं हो। क्या यही तुम लोगों की दिली ख्वाहिश नहीं है? तुम लोगों को अपने को छिपाना नहीं चाहिए, न ही अपने गंतव्य को लेकर इतनी माथापच्ची करनी चाहिए कि न तो तुम खा सको, न सो सको। क्या यह सच नहीं है कि अंत में तुम्हारा परिणाम पहले ही निर्धारित हो चुका होगा?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, गंतव्य के बारे में
प्रतिदिन प्रत्येक व्यक्ति के कर्म और विचार उस एक की आँखों के द्वारा देखे जाते हैं, और साथ ही, वे अपने कल की तैयारी कर रहे होते हैं। यही वह मार्ग है, जिस पर सभी प्राणियों को चलना चाहिए; यही वह मार्ग है, जिसे मैंने सभी के लिए पूर्वनिर्धारित कर दिया है, और कोई इससे बच या छूट नहीं सकता। मैंने अनगिनत वचन कहे हैं और साथ ही मैंने अनगिनत कार्य किए हैं। प्रतिदिन मैं प्रत्येक मनुष्य को स्वाभाविक रूप से वह सब करते हुए देखता हूँ, जो उसे अपने अंतर्निहित स्वभाव और अपनी प्रकृति के विकास के अनुसार करना है। अनजाने में अनेक लोगों ने पहले ही “सही मार्ग” पर चलना आरंभ कर दिया है, जिसे मैंने विभिन्न प्रकार के लोगों के लिए निर्धारित किया है। इन विभिन्न प्रकार के लोगों को मैंने लंबे समय से विभिन्न वातावरणों में रखा है और अपने-अपने स्थान पर प्रत्येक ने अपनी अंतर्निहित विशेषताओं को व्यक्त किया है। उन्हें कोई बाँध नहीं सकता और कोई उन्हें बहका नहीं सकता। वे पूर्ण रूप से स्वतंत्र हैं और वे जो अभिव्यक्त करते हैं, वह स्वभाविक रूप से अभिव्यक्त होता है। केवल एक चीज उन्हें नियंत्रण में रखती है : मेरे वचन। इस तरह कुछ लोग मेरे वचन अनमने भाव से पढ़ते हैं, कभी उनका अभ्यास नहीं करते, केवल मृत्यु से बचने के लिए ऐसा करते हैं; जबकि कुछ लोगों के लिए मेरे वचनों के मार्गदर्शन और आपूर्ति के बिना दिन गुज़ारना कठिन होता है, और इसलिए वे स्वभाविक तौर पर मेरे वचनों को हर समय थामे रहते हैं। जैसे-जैसे समय बीतता है, वे मनुष्य के जीवन के रहस्य, मानव-जाति के गंतव्य और मनुष्य होने के महत्त्व की खोज करते जाते हैं। मानव-जाति मेरे वचनों की उपस्थिति में इससे अलग कुछ नहीं है और मैं बस चीजों को उनके अपने हिसाब से होने देता हूँ। मैं ऐसा कुछ नहीं करता, जो लोगों को मेरे वचनों को अपने अस्तित्व का आधार बनाने के लिए बाध्य करे। तो जिन लोगों में कभी विवेक नहीं रहा और जिनके अस्तित्व का कभी कोई मूल्य नहीं रहा, वे बेधड़क मेरे वचनों को दरकिनार कर देते हैं और चुपचाप चीजों को घटित होते देखने के बाद जो चाहते हैं, करते हैं। वे सत्य से और उस सबसे जो मुझसे आता है, विमुख होने लगते हैं। इतना ही नहीं, वे मेरे घर में रहने से भी विमुख होने लगते हैं। अपने गंतव्य की खातिर, और सजा से बचने के लिए ये लोग कुछ समय के लिए मेरे घर में रहते हैं, भले ही सेवा प्रदान कर रहे हों। परंतु उनके इरादे और कार्य कभी नहीं बदलते। इससे आशीष पाने की उनकी इच्छा और एक बार राज्य में प्रवेश करने और उसके बाद वहाँ हमेशा के लिए रहने—यहाँ तक कि अनंत स्वर्ग में प्रवेश करने की उनकी इच्छा बढ़ जाती है। जितना अधिक वे मेरे दिन के जल्दी आने की लालसा करते हैं, उतना ही अधिक वे महसूस करते हैं कि सत्य उनके मार्ग की बाधा और अड़चन बन गया है। वे हमेशा के लिए स्वर्ग के राज्य के आशीषों का आनंद उठाने हेतु राज्य में कदम रखने के लिए मुश्किल से इंतजार कर पाते हैं—सब-कुछ बिना सत्य की खोज करने या न्याय और ताड़ना स्वीकार करने, यहाँ तक कि मेरे घर में विनीत भाव से रहने और मेरी आज्ञा के अनुसार कार्य करने की जरूरत समझे बिना। ये लोग न तो सत्य की खोज करने की अपनी इच्छा पूरी करने के लिए मेरे घर में प्रवेश करते हैं, न ही मेरे प्रबंधन में सहयोग करने के लिए; उनका उद्देश्य महज उन लोगों में शामिल होने का होता है, जिन्हें आने वाले युग में नष्ट नहीं किया जाएगा। इसलिए उनके हृदय ने कभी नहीं जाना कि सत्य क्या है, या सत्य को कैसे ग्रहण किया जाए। यही कारण है कि ऐसे लोगों ने कभी सत्य का अभ्यास या अपनी भ्रष्टता की गहराई का एहसास नहीं किया, और फिर भी वे मेरे घर में हमेशा “सेवकों” के रूप में रहे हैं। वे “धैर्यपूर्वक” मेरे दिन के आने का इंतज़ार करते हैं और मेरे कार्य के तरीके से यहाँ-वहाँ उछाले जाकर भी थकते नहीं। लेकिन भले ही उनकी कोशिश कितनी भी बड़ी हो और उन्होंने उसकी कुछ भी कीमत चुकाई हो, किसी ने उन्हें सत्य के लिए कष्ट उठाते हुए या मेरी खातिर कुछ देते हुए नहीं देखा। अपने हृदय में वे उस दिन को देखने के लिए बेचैन हैं, जब मैं पुराने युग का अंत करूँगा, और इससे भी बढ़कर, वे यह जानने का इंतज़ार नहीं कर सकते कि मेरा सामर्थ्य और मेरा अधिकार कितने विशाल हैं। जिस चीज के लिए उन्होंने कभी शीघ्रता नहीं की, वह है खुद को बदलना और सत्य का अनुसरण करना। वे उससे प्रेम करते हैं, जिससे मैं विमुख हूँ और वे उससे विमुख हैं, जिससे मैं प्रेम करता हूँ। वे उसकी अभिलाषा करते हैं जिससे मैं नफरत करता हूँ, लेकिन उसे खोने से डरते हैं जिससे मैं घृणा करता हूँ। वे इस बुरे संसार में रहते हुए भी इससे कभी नफरत नहीं करते, फिर भी इस बात से बहुत डरते हैं कि मैं इसे नष्ट कर दूँगा। अपने परस्पर विरोधी इरादों के बीच वे इस संसार से प्यार करते हैं जिससे मैं घृणा करता हूँ, लेकिन इस बात के लिए लालायित भी रहते हैं कि मैं इस संसार को शीघ्र नष्ट कर दूँ, और इससे पहले कि वे सच्चे मार्ग से भटक जाएँ, उन्हें विनाश के कष्ट से बचा लिया जाए और अगले युग के स्वामियों के रूप में रूपांतरित कर दिया जाए। ऐसा इसलिए है, क्योंकि वे सत्य से प्रेम नहीं करते और उस सबसे विमुख हो गए हैं, जो मुझसे आता है। वे आशीष खोने के डर से थोड़े समय के लिए “आज्ञाकारी लोग” बन सकते हैं, लेकिन आशीष पाने के लिए उनकी उत्कंठा और नष्ट होने तथा जलती हुई आग की झील में प्रवेश करने का उनका भय कभी छिपाया नहीं जा। जैसे-जैसे मेरा दिन नजदीक आता है, उनकी इच्छा लगातार उत्कट होती जाती है। और आपदा जितनी बड़ी होती है, उतना ही वह उन्हें असहाय बना देती है और वे यह नहीं जान पाते कि मुझे प्रसन्न करने के लिए एवं उन आशीषों को खोने से बचाने के लिए, जिनकी उन्होंने लंबे समय से लालसा की है, कहाँ से शुरुआत करें। जैसे ही मेरा हाथ अपना काम करना शुरू करता है, ये लोग एक अग्र-दल के रूप में कार्य करने के लिए उत्सुक हो जाते हैं। इस डर से कि मैं उन्हें नहीं देखूँगा, वे बस सेना की सबसे आगे की टुकड़ी में आने की सोचते हैं। वे वही करते और कहते हैं, जिसे वे सही समझते हैं, और यह कभी नहीं जान पाते कि उनके क्रिया-कलाप कभी सत्य के अनुरूप नहीं रहे, और कि उनके कर्म मेरी योजनाओं को मात्र कमजोर करते और उसमें विघ्न डालते हैं। उन्होंने कड़ी मेहनत की हो सकती है, और वे कष्ट सहने के अपने इरादे और प्रयास में सच्चे हो सकते हैं, पर उनके कार्यों से मेरा कोई लेना-देना नहीं है, क्योंकि मैंने कभी नहीं देखा कि उनके कार्य अच्छे इरादे के साथ किए गए हैं, और उन्हें अपनी वेदी पर कुछ रखते हुए तो मैंने बहुत ही कम देखा है। इन अनेक वर्षों में मेरे सामने उन्होंने ऐसे ही कार्य किए हैं।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम लोगों को अपने कर्मों पर विचार करना चाहिए
मेरे कार्य के कई वर्षों के दौरान मनुष्य ने बहुत-कुछ प्राप्त किया है और बहुत-कुछ त्यागा है, फिर भी मैं कहता हूँ कि वे मुझ पर वास्तव में विश्वास नहीं करते। क्योंकि लोग केवल मुख से यह मानते हैं कि मैं परमेश्वर हूँ, जबकि मेरे द्वारा बोले गए सत्यों से वे असहमत होते हैं, और इतना ही नहीं, वे उन सत्यों का अभ्यास भी नहीं करते, जिसके लिए मैं उनसे कहता हूँ। कहने का अर्थ है कि लोग केवल परमेश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं, सत्य के अस्तित्व को नहीं; लोग केवल परमेश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं, जीवन के अस्तित्व को नहीं; लोग केवल परमेश्वर के नाम को स्वीकार करते हैं, उसके सार को नहीं। मैं उनके उत्साह के कारण उनसे घृणा करता हूँ, क्योंकि वे केवल मुझे धोखा देने के लिए कानों को अच्छे लगने वाले शब्द बोलते हैं; उनमें से कोई भी सच्चे हृदय से मेरी आराधना नहीं करता। तुम लोगों के शब्दों में सर्प का प्रलोभन है; इसके अलावा, वे बेहद अहंकारी हैं, प्रधान दूत की यह पक्की उद्घोषणा है। इतना ही नहीं, तुम्हारे कर्म शर्मनाक हद तक तार-तार हो चुके हैं; तुम लोगों की असीमित इच्छाएँ और लोभी मंशाएँ सुनकर ठेस लगती है। तुम सब लोग मेरे घर में कीड़े बन गए हो, मेरे द्वारा तिरस्कृत वस्तुएँ बन गए हो। क्योंकि तुम लोगों में से कोई भी सत्य से प्रेम नहीं करता; इसके बजाय तुम आशीष पाना चाहते हो, स्वर्गारोहण करना चाहते हो, पृथ्वी पर अपने सामर्थ्य का उपयोग करते मसीह के भव्य दर्शन करना चाहते हो। लेकिन क्या तुम लोगों ने कभी सोचा है कि तुम लोगों जैसा कोई व्यक्ति, कोई इतनी गहराई तक भ्रष्ट व्यक्ति, जो नहीं जानता कि परमेश्वर क्या है, परमेश्वर का अनुसरण करने योग्य कैसे हो सकता है? तुम स्वर्गारोहण कैसे कर सकते हो? तुम ऐसे भव्य दृश्य देखने के योग्य कैसे हो सकते हो, जिनका वैभव अभूतपूर्व है। तुम्हारे मुँह छल और गंदगी, विश्वासघात और अहंकार के शब्दों से भरे हैं। तुमने मुझसे कभी ईमानदारी के शब्द नहीं कहे, मेरे वचनों का अनुभव करने पर कोई पवित्र बातें, समर्पण के कोई शब्द नहीं कहे। आखिर तुम लोगों का यह कैसा विश्वास है? तुम लोगों के हृदय में इच्छा और धन के सिवाय कुछ नहीं है; और तुम लोगों के मष्तिष्क में भौतिक वस्तुओं के सिवाय कुछ नहीं है। हर दिन तुम हिसाब लगाते हो कि मुझसे कुछ कैसे प्राप्त किया जाए। हर दिन तुम गणना करते हो कि तुमने मुझसे कितनी संपत्ति और कितनी भौतिक वस्तुएँ प्राप्त की हैं। हर दिन तुम लोग खुद पर और अधिक आशीष बरसने की प्रतीक्षा करते हो, ताकि तुम लोग और अधिक मात्रा में, और ऊँचे स्तर की उन चीजों का आनंद ले सको, जिनका आनंद लिया जा सकता है। तुम लोगों के विचारों में हर क्षण मैं या मुझसे आने वाला सत्य नहीं, बल्कि तुम लोगों के पति या पत्नी, बेटे, बेटियाँ, और तुम लोगों के खाने-पीने की चीजें रहती हैं। तुम लोग यही सोचते हो कि तुम और ज्यादा तथा और ऊँचा आनंद कैसे पा सकते हो। लेकिन अपने पेट फटने की हद तक खाकर भी क्या तुम लोग महज लाश ही नहीं हो? यहाँ तक कि जब तुम लोग खुद को बाहर से इतने सुंदर परिधानों से सजा लेते हो, तब भी क्या तुम लोग एक चलती-फिरती निर्जीव लाश नहीं हो? तुम लोग पेट की खातिर तब तक कठिन परिश्रम करते हो, जब तक कि तुम लोगों के बाल सफेद नहीं हो जाते, लेकिन मेरे कार्य के लिए तुममें से कोई बाल-बराबर भी त्याग नहीं करता। तुम लोग अपनी देह और अपने बेटे-बेटियों के लिए लगातार सक्रिय रहते हो, अपने तन को थकाते रहते हो और अपने मस्तिष्क को कष्ट देते रहते हो—लेकिन मेरी इच्छा के लिए तुममें से कोई एक भी चिंता या परवाह नहीं दिखाता। वह क्या है, जो तुम अब भी मुझसे प्राप्त करने की आशा रखते हो?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बुलाए बहुत जाते हैं, पर चुने कुछ ही जाते हैं
इन सब वर्षों में तुम लोगों ने मेरा अनुसरण किया है, फिर भी तुमने मुझे कभी वफादारी का एक कण भी नहीं दिया है। इसकी बजाय, तुम उन लोगों के इर्दगिर्द घूमते रहे हो, जिनसे तुम प्रेम करते हो और जो चीज़ें तुम्हें प्रसन्न करती हैं—इतना कि हर समय, और हर जगह जहाँ तुम जाते हो, उन्हें अपने हृदय के करीब रखते हो और तुमने कभी भी उन्हें छोड़ा नहीं है। जब भी तुम लोग किसी एक चीज के बारे में, जिससे तुम प्रेम करते हो, उत्सुकता और चाहत से भर जाते हो, तो ऐसा तब होता है जब तुम मेरा अनुसरण कर रहे होते हो, या तब भी जब तुम मेरे वचनों को सुन रहे होते हो। इसलिए मैं कहता हूँ कि जिस वफादारी की माँग मैं तुमसे करता हूँ, उसे तुम अपने “पालतुओं” के प्रति वफादार होने और उन्हें प्रसन्न करने के लिए इस्तेमाल कर रहे हो। हालाँकि तुम लोग मेरे लिए एक-दो चीजों का त्याग करते हो, पर वह तुम्हारे सर्वस्व का प्रतिनिधित्व नहीं करता, और यह नहीं दर्शाता कि वह मैं हूँ, जिसके प्रति तुम सचमुच वफादार हो। तुम लोग खुद को उन उपक्रमों में संलग्न कर देते हो, जिनके प्रति तुम बहुत गहरा चाव रखते हो : कुछ लोग अपने बेटे-बेटियों के प्रति वफादार हैं, तो अन्य अपने पतियों, पत्नियों, धन-संपत्ति, व्यवसाय, वरिष्ठ अधिकारियों, हैसियत या स्त्रियों के प्रति वफादार हैं। जिन चीजों के प्रति तुम लोग वफादार होते हो, उनसे तुम कभी ऊबते या नाराज नहीं होते; उलटे तुम उन चीजों को ज्यादा बड़ी मात्रा और बेहतर गुणवत्ता में पाने के लिए और अधिक लालायित हो जाते हो, और तुम कभी भी ऐसा करना छोडते नहीं हो। मैं और मेरे वचन हमेशा उन चीजों के पीछे धकेल दिए जाते हैं, जिनके प्रति तुम गहरा चाव रखते हो। और तुम्हारे पास उन्हें आखिरी स्थान पर रखने के सिवा कोई विकल्प नहीं बचता। ऐसे लोग भी हैं जो इस आखिरी स्थान को भी अपनी वफादारी की उन चीजों के लिए छोड़ देते हैं, जिन्हें अभी खोजना बाकी है। उनके दिलों में कभी भी मेरा मामूली-सा भी निशान नहीं रहा है। तुम लोग सोच सकते हो कि मैं तुमसे बहुत ज्यादा अपेक्षा रखता हूँ या तुम पर गलत आरोप लगा रहा हूँ—लेकिन क्या तुमने कभी इस तथ्य पर ध्यान दिया है कि जब तुम खुशी-खुशी अपने परिवार के साथ समय बिता रहे होते हो, तो तुम कभी भी मेरे प्रति वफादार नहीं रहते? ऐसे समय में, क्या तुम्हें इससे तकलीफ नहीं होती? जब तुम्हारा दिल खुशी से भरा होता है, और तुम्हें अपनी मेहनत का फल मिलता है, तब क्या तुम खुद को पर्याप्त सत्य से लैस न करने के कारण निराश महसूस नहीं करते? मेरा अनुमोदन प्राप्त न करने पर तुम लोग कब रोए हो? तुम लोग अपने बेटे-बेटियों के लिए अपना दिमाग खपाते हो और बहुत तकलीफ उठाते हो, फिर भी तुम संतुष्ट नहीं होते; फिर भी तुम यह मानते हो कि तुमने उनके लिए ज्यादा मेहनत नहीं की है, कि तुमने उनके लिए वह सब कुछ नहीं किया है जो तुम कर सकते थे, जबकि मेरे लिए तुम हमेशा से असावधान और लापरवाह रहे हो; मैं केवल तुम्हारी यादों में रहता हूँ, तुम्हारे दिलों में नहीं। मेरा प्रेम और कोशिशें लोगों के द्वारा कभी महसूस नहीं की जातीं और तुमने उनकी कभी कोई कद्र नहीं की। तुम सिर्फ मामूली संक्षिप्त सोच-विचार करते हो, और समझते हो कि यह काफी होगा। यह “वफादारी” वह नहीं है, जिसकी मैंने लंबे समय से कामना की है, बल्कि वह है जो लंबे समय से मेरे लिए घृणास्पद रही है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम किसके प्रति वफादार हो?
मैंने बहुत सारे वचन कहे हैं, और अपनी इच्छा और अपने स्वभाव को भी व्यक्त किया है, फिर भी लोग अभी भी मुझे जानने और मुझ पर विश्वास करने में अक्षम हैं। या यह कहा जा सकता है कि लोग अभी भी मेरे प्रति समर्पण करने में अक्षम हैं। जो बाइबल में जीते हैं, जो व्यवस्था में जीते हैं, जो सलीब पर जीते हैं, जो सिद्धांत के अनुसार जीते हैं, जो उस कार्य के मध्य जीते हैं जिसे मैं आज करता हूँ—उनमें से कौन मेरे अनुकूल है? तुम लोग सिर्फ़ आशीष और पुरस्कार पाने के बारे में ही सोचते हो, पर कभी यह नहीं सोचा कि मेरे अनुकूल वास्तव में कैसे बनो, या अपने को मेरे विरुद्ध होने से कैसे रोको। मैं तुम लोगों से बहुत निराश हूँ, क्योंकि मैंने तुम लोगों को बहुत अधिक दिया है, जबकि मैंने तुम लोगों से बहुत कम हासिल किया है। तुम लोगों का छल, तुम लोगों का घमंड, तुम लोगों का लालच, तुम लोगों की फालतू इच्छाएँ, तुम लोगों का धोखा, तुम लोगों की अवज्ञा—इनमें से कौन-सी चीज़ मेरी नज़र से बच सकती है? तुम लोग मेरे प्रति अनमने हो, मुझे मूर्ख बनाते हो, मेरा अपमान करते हो, मुझे फुसलाते हो, मुझसे ज़बरन वसूली करते हो, बलिदानों के लिए मुझसे ज़बरदस्ती करते हो—ऐसे दुष्कर्म मेरी सज़ा से कैसे बचकर निकल सकते हैं? ये सब दुष्कर्म मेरे साथ तुम लोगों की शत्रुता का प्रमाण हैं, और तुम लोगों की मेरे साथ अनुकूलता न होने का प्रमाण हैं। तुम लोगों में से प्रत्येक अपने को मेरे साथ बहुत अनुकूल समझता है, परंतु यदि ऐसा होता, तो फिर यह अकाट्य प्रमाण किस पर लागू होगा? तुम लोगों को लगता है कि तुम्हारे अंदर मेरे प्रति बहुत ईमानदारी और निष्ठा है। तुम लोग सोचते हो कि तुम बहुत ही रहमदिल, बहुत ही करुणामय हो और तुमने मेरे प्रति बहुत समर्पण किया है। तुम लोग सोचते हो कि तुम लोगों ने मेरे लिए पर्याप्त से अधिक किया है। लेकिन क्या तुम लोगों ने कभी इसे अपने कामों से मिलाकर देखा है? मैं कहता हूँ, तुम लोग बहुत ही घमंडी, बहुत ही लालची, बहुत ही लापरवाह हो; और जिन चालबाज़ियों से तुम मुझे मूर्ख बनाते हो, वे बहुत शातिर हैं, और तुम्हारे इरादे और तरीके बहुत घृणित हैं। तुम लोगों की वफ़ादारी बहुत ही थोड़ी है, तुम्हारी ईमानदारी बहुत ही कम है, और तुम्हारी अंतरात्मा तो और अधिक क्षुद्र है। तुम लोगों के हृदय में बहुत ही अधिक द्वेष है, और तुम्हारे द्वेष से कोई नहीं बचा है, यहाँ तक कि मैं भी नहीं। तुम लोग अपने बच्चों या अपने पति या आत्म-रक्षा के लिए मुझे बाहर निकाल देते हो। मेरी चिंता करने के बजाय तुम लोग अपने परिवार, अपने बच्चों, अपनी हैसियत, अपने भविष्य और अपनी संतुष्टि की चिंता करते हो। तुम लोगों ने बातचीत या कार्य करते समय कभी मेरे बारे में सोचा है? ठंड के दिनों में तुम लोगों के विचार अपने बच्चों, अपने पति, अपनी पत्नी या अपने माता-पिता की तरफ मुड़ जाते हैं। गर्मी के दिनों में भी तुम सबके विचारों में मेरे लिए कोई स्थान नहीं होता। जब तुम अपना कर्तव्य निभाते हो, तब तुम अपने हितों, अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा, अपने परिवार के सदस्यों के बारे में ही सोच रहे होते हो। तुमने कब मेरे लिए क्या किया है? तुमने कब मेरे बारे में सोचा है? तुमने कब अपने आप को, हर कीमत पर, मेरे लिए और मेरे कार्य के लिए समर्पित किया है? मेरे साथ तुम्हारी अनुकूलता का प्रमाण कहाँ है? मेरे साथ तुम्हारी वफ़ादारी की वास्तविकता कहाँ है? मेरे प्रति तुम्हारे समर्पण की वास्तविकता कहाँ है? कब तुम्हारे इरादे केवल मेरे आशीष पाने के लिए नहीं रहे हैं? तुम लोग मुझे मूर्ख बनाते और धोखा देते हो, तुम लोग सत्य के साथ खेलते हो, तुम सत्य के अस्तित्व को छिपाते हो, और सत्य के सार को धोखा देते हो। इस तरह मेरे ख़िलाफ़ जाने से भविष्य में क्या चीज़ तुम लोगों की प्रतीक्षा कर रही है? तुम लोग केवल एक अज्ञात परमेश्वर के साथ अनुकूलता की खोज करते हो, और मात्र एक अज्ञात विश्वास की खोज करते हो, लेकिन तुम मसीह के साथ अनुकूल नहीं हो। क्या तुम्हारी दुष्टता के लिए भी वही प्रतिफल नहीं मिलेगा, जो दुष्ट को मिलता है? उस समय तुम लोगों को एहसास होगा कि जो कोई मसीह के अनुकूल नहीं होता, वह कोप के दिन से बच नहीं सकता, और तुम लोगों को पता चलेगा कि जो मसीह के शत्रु हैं, उन्हें कैसा प्रतिफल दिया जाएगा।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम्हें मसीह के साथ अनुकूलता का तरीका खोजना चाहिए
तुम लोगों की खोज में, तुम्हारी बहुत सी व्यक्तिगत अवधारणाएँ, आशाएँ और भविष्य होते हैं। वर्तमान कार्य तुम लोगों की हैसियत पाने की अभिलाषा और तुम्हारी अनावश्यक अभिलाषाओं की काट-छाँट करने के लिए है। आशाएँ, हैसियत और अवधारणाएँ सभी शैतानी स्वभाव के विशिष्ट प्रतिनिधित्व हैं। लोगों के हृदय में इन चीज़ों के होने का कारण पूरी तरह से यह है कि शैतान का विष हमेशा लोगों के विचारों को दूषित कर रहा है, और लोग शैतान के इन प्रलोभनों से पीछा छुड़ाने में हमेशा असमर्थ रहे हैं। वे पाप के बीच रह रहे हैं, मगर इसे पाप नहीं मानते, और अभी भी सोचते हैं : “हम परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, इसलिए उसे हमें आशीष प्रदान करना चाहिए और हमारे लिए सब कुछ सही ढंग से व्यवस्थित करना चाहिए। हम परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, इसलिए हमें दूसरों से श्रेष्ठतर होना चाहिए, और हमारे पास दूसरों की तुलना में बेहतर हैसियत और बेहतर भविष्य होना चाहिए। चूँकि हम परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, इसलिए उसे हमें असीम आशीष देनी चाहिए। अन्यथा, इसे परमेश्वर पर विश्वास करना नहीं कहा जाएगा।” बहुत सालों से, जिन विचारों पर लोगों ने अपने अस्तित्व के लिए भरोसा रखा था, वे उनके हृदय को इस स्थिति तक दूषित कर रहे हैं कि वे विश्वासघाती, डरपोक और नीच हो गए हैं। उनमें न केवल इच्छा-शक्ति और संकल्प का अभाव है, बल्कि वे लालची, अभिमानी और स्वेच्छाचारी भी बन गए हैं। उनमें खुद से ऊपर उठने के संकल्प का सर्वथा अभाव है, बल्कि, उनमें इन अंधेरे प्रभावों की बाध्यताओं से पीछा छुड़ाने की लेश-मात्र भी हिम्मत नहीं है। लोगों के विचार और जीवन इतने सड़े हुए हैं कि परमेश्वर पर विश्वास करने के बारे में उनके दृष्टिकोण अभी भी बेहद वीभत्स हैं। यहाँ तक कि जब लोग परमेश्वर में विश्वास के बारे में अपना दृष्टिकोण बताते हैं तो इसे सुनना मात्र ही असहनीय होता है। सभी लोग कायर, अक्षम, नीच और दुर्बल हैं। उन्हें अंधेरे की शक्तियों के प्रति क्रोध नहीं आता, उनके अंदर प्रकाश और सत्य के लिए प्रेम पैदा नहीं होता; बल्कि, वे उन्हें बाहर निकालने का पूरा प्रयास करते हैं। क्या तुम लोगों के वर्तमान विचार और दृष्टिकोण ठीक ऐसे ही नहीं हैं? “चूँकि मैं परमेश्वर पर विश्वास करता हूँ, इसलिए मुझ पर आशीषों की वर्षा होनी चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि मेरी हैसियत कभी न गिरे, यह अविश्वासियों की तुलना में अधिक बनी रहनी चाहिए।” तुम्हारा यह दृष्टिकोण कोई एक-दो वर्षों से नहीं है; बल्कि बरसों से है। तुम लोगों की लेन-देन संबंधी मानसिकता कुछ ज़्यादा ही विकसित है। यद्यपि आज तुम लोग इस चरण तक पहुँच गए हो, तब भी तुम लोगों ने हैसियत का राग अलापना नहीं छोड़ा, बल्कि लगातार इसके बारे में पूछताछ करते रहते हो, और इस पर रोज नज़र रखते हो, इस गहरे डर के साथ कि कहीकहीं किसी दिन तुम लोगों की हैसियत खो न जाए और तुम लोगों का नाम बर्बाद न हो जाए। लोगों ने सहूलियत की अपनी अभिलाषा का कभी त्याग नहीं किया।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम विषमता होने के अनिच्छुक क्यों हो?
मेरी पीठ पीछे बहुत-से लोग हैसियत के लाभों की अभिलाषा करते हैं, वे ठूँस-ठूँसकर खाना खाते हैं, सोना पसंद करते हैं तथा देह की इच्छाओं पर पूरा ध्यान देते हैं, हमेशा भयभीत रहते हैं कि देह से बाहर कोई मार्ग नहीं है। वे कलीसिया में अपना उपयुक्त कार्य नहीं करते, पर मुफ़्त में कलीसिया से खाते हैं, या फिर मेरे वचनों से अपने भाई-बहनों की भर्त्सना करते हैं, और अधिकार के पदों से दूसरों को बेबस करते हैं। ये लोग निरंतर कहते रहते हैं कि वे परमेश्वर की इच्छा के अनुसार चल रहे हैं और हमेशा कहते हैं कि वे परमेश्वर के अंतरंग हैं—क्या यह बेतुका नहीं है? यदि तुम्हारे इरादे सही हैं, पर तुम परमेश्वर की इच्छा के अनुसार सेवा करने में असमर्थ हो, तो तुम मूर्ख हो; किंतु यदि तुम्हारे इरादे सही नहीं हैं, और फिर भी तुम कहते हो कि तुम परमेश्वर की सेवा करते हो, तो तुम एक ऐसे व्यक्ति हो, जो परमेश्वर का विरोध करता है, और तुम्हें परमेश्वर द्वारा दंडित किया जाना चाहिए! ऐसे लोगों से मुझे कोई सहानुभूति नहीं है! परमेश्वर के घर में वे मुफ़्तखोरी करते हैं, हमेशा देह के आराम का लोभ करते हैं, और परमेश्वर की इच्छाओं का कोई विचार नहीं करते; वे हमेशा उसकी खोज करते हैं जो उनके लिए अच्छा है, और परमेश्वर की इच्छा पर कोई ध्यान नहीं देते। वे जो कुछ भी करते हैं, उसमें परमेश्वर के आत्मा की जाँच-पड़ताल स्वीकार नहीं करते। वे अपने भाई-बहनों के साथ हमेशा कुटिल और धूर्त तरीके से पेश आते हैं और उन्हें धोखा देते रहते हैं, और दो-मुँहे होकर वे, अंगूर के बाग में घुसी लोमड़ी के समान, हमेशा अंगूर चुराते हैं और अंगूर के बाग को रौंदते हैं। क्या ऐसे लोग परमेश्वर के अंतरंग हो सकते हैं? क्या तुम परमेश्वर के आशीष प्राप्त करने लायक़ हो? तुम अपने जीवन एवं कलीसिया के लिए कोई उत्तरदायित्व नहीं लेते, क्या तुम परमेश्वर का आदेश लेने के लायक़ हो? तुम जैसे व्यक्ति पर कौन भरोसा करने की हिम्मत करेगा? जब तुम इस प्रकार से सेवा करते हो, तो क्या परमेश्वर तुम्हें कोई बड़ा काम सौंप सकता है? क्या इससे कार्य में विलंब नहीं होगा?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप सेवा कैसे करें
मैं उन लोगों में प्रसन्नता अनुभव करता हूँ जो दूसरों पर शक नहीं करते, और मैं उन लोगों को पसंद करता हूँ जो सच को तत्परता से स्वीकार कर लेते हैं; इन दो प्रकार के लोगों की मैं बहुत परवाह करता हूँ, क्योंकि मेरी नज़र में ये ईमानदार लोग हैं। यदि तुम धोखेबाज हो, तो तुम सभी लोगों और मामलों के प्रति सतर्क और शंकित रहोगे, और इस प्रकार मुझमें तुम्हारा विश्वास संदेह की नींव पर निर्मित होगा। मैं इस तरह के विश्वास को कभी स्वीकार नहीं कर सकता। सच्चे विश्वास के अभाव में तुम सच्चे प्यार से और भी अधिक वंचित हो। और यदि तुम परमेश्वर पर इच्छानुसार संदेह करने और उसके बारे में अनुमान लगाने के आदी हो, तो तुम यकीनन सभी लोगों में सबसे अधिक धोखेबाज हो। तुम अनुमान लगाते हो कि क्या परमेश्वर मनुष्य जैसा हो सकता है : अक्षम्य रूप से पापी, क्षुद्र चरित्र का, निष्पक्षता और विवेक से विहीन, न्याय की भावना से रहित, शातिर चालबाज़ियों में प्रवृत्त, विश्वासघाती और चालाक, बुराई और अँधेरे से प्रसन्न रहने वाला, आदि-आदि। क्या लोगों के ऐसे विचारों का कारण यह नहीं है कि उन्हें परमेश्वर का थोड़ा-सा भी ज्ञान नहीं है? ऐसा विश्वास पाप से कम नहीं है! कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो मानते हैं कि जो लोग मुझे खुश करते हैं, वे बिल्कुल ऐसे लोग हैं जो चापलूसी और खुशामद करते हैं, और जिनमें ऐसे हुनर नहीं होंगे, वे परमेश्वर के घर में अवांछनीय होंगे और वे वहाँ अपना स्थान खो देंगे। क्या तुम लोगों ने इतने बरसों में बस यही ज्ञान हासिल किया है? क्या तुम लोगों ने यही प्राप्त किया है? और मेरे बारे में तुम लोगों का ज्ञान इन गलतफहमियों पर ही नहीं रुकता; परमेश्वर के आत्मा के खिलाफ तुम्हारी निंदा और स्वर्ग की बदनामी इससे भी बुरी बात है। इसीलिए मैं कहता हूँ कि ऐसा विश्वास तुम लोगों को केवल मुझसे दूर भटकाएगा और मेरे खिलाफ बड़े विरोध में खड़ा कर देगा। कार्य के कई वर्षों के दौरान तुम लोगों ने कई सत्य देखे हैं, किंतु क्या तुम लोग जानते हो कि मेरे कानों ने क्या सुना है? तुम में से कितने लोग सत्य को स्वीकारने के लिए तैयार हैं? तुम सब लोग विश्वास करते हो कि तुम सत्य के लिए कीमत चुकाने को तैयार हो, किंतु तुम लोगों में से कितनों ने वास्तव में सत्य के लिए दुःख झेला है? तुम लोगों के हृदय में अधार्मिकता के सिवाय कुछ नहीं है, जिससे तुम लोगों को लगता है कि हर कोई, चाहे वह कोई भी हो, धोखेबाज और कुटिल है—यहाँ तक कि तुम यह भी विश्वास करते हो कि देहधारी परमेश्वर, किसी सामान्य मनुष्य की तरह, दयालु हृदय या कृपालु प्रेम से रहित हो सकता है। इससे भी अधिक, तुम लोग विश्वास करते हो कि कुलीन चरित्र और दयालु, कृपालु प्रकृति केवल स्वर्ग के परमेश्वर में ही होती है। तुम लोग विश्वास करते हो कि ऐसा कोई संत नहीं होता, कि केवल अंधकार एवं दुष्टता ही पृथ्वी पर राज करते हैं, जबकि परमेश्वर एक ऐसी चीज़ है, जिसे लोग अच्छाई और सुंदरता के लिए अपने मनोरथ सौंपते हैं, वह उनके द्वारा गढ़ी गई एक किंवदंती है। तुम लोगों के विचार से, स्वर्ग का परमेश्वर बहुत ही ईमानदार, धार्मिक और महान है, आराधना और श्रद्धा के योग्य है, जबकि पृथ्वी का यह परमेश्वर स्वर्ग के परमेश्वर का एक स्थानापन्न और साधन है। तुम विश्वास करते हो कि यह परमेश्वर स्वर्ग के परमेश्वर के समकक्ष नहीं हो सकता, उनका एक-साथ उल्लेख तो बिल्कुल नहीं किया जा सकता। जब परमेश्वर की महानता और सम्मान की बात आती है, तो वे स्वर्ग के परमेश्वर की महिमा से संबंधित होते हैं, किंतु जब मनुष्य की प्रकृति और भ्रष्टता की बात आती है, तो ये ऐसे लक्षण हैं जिनमें पृथ्वी के परमेश्वर का एक अंश है। स्वर्ग का परमेश्वर हमेशा उत्कृष्ट है, जबकि पृथ्वी का परमेश्वर हमेशा ही नगण्य, कमज़ोर और अक्षम है। स्वर्ग के परमेश्वर में दैहिक अनुभूतियाँ नहीं, केवल धार्मिकता है, जबकि धरती के परमेश्वर के केवल स्वार्थपूर्ण उद्देश्य हैं और वह निष्पक्षता और विवेक से रहित है। स्वर्ग के परमेश्वर में थोड़ी-सी भी कुटिलता नहीं है और वह हमेशा विश्वसनीय है, जबकि पृथ्वी के परमेश्वर में हमेशा बेईमानी का एक पक्ष होता है। स्वर्ग का परमेश्वर मनुष्यों से बहुत प्रेम करता है, जबकि पृथ्वी का परमेश्वर मनुष्य की पर्याप्त परवाह नहीं करता, यहाँ तक कि उसकी पूरी तरह से उपेक्षा करता है। यह भ्रामक ज्ञान तुम लोगों के हृदय में काफी समय से रखा गया है और भविष्य में भी बनाए रखा जा सकता है। तुम लोग मसीह के सभी कर्मों पर अधार्मिकता के दृष्टिकोण से विचार करते हो और उसके सभी कार्यों और साथ ही उसकी पहचान और सार का मूल्यांकन दुष्ट के परिप्रेक्ष्य से करते हो। तुम लोगों ने बहुत गंभीर गलती की है और ऐसा काम किया है, जो तुमसे पहले के लोगों ने कभी नहीं किया। अर्थात्, तुम लोग केवल अपने सिर पर मुकुट धारण करने वाले स्वर्ग के उत्कृष्ट परमेश्वर की सेवा करते हो और उस परमेश्वर की सेवा कभी नहीं करते, जिसे तुम इतना महत्वहीन समझते हो, मानो वह तुम लोगों को दिखाई तक न देता हो। क्या यह तुम लोगों का पाप नहीं है? क्या यह परमेश्वर के स्वभाव के विरुद्ध तुम लोगों के अपराध का विशिष्ट उदाहरण नहीं है? तुम लोग स्वर्ग के परमेश्वर की आराधना करते हो। तुम बुलंद छवियों से प्रेम करते हो और उन लोगों का सम्मान करते हो, जो अपनी वाक्पटुता के लिए प्रतिष्ठित हैं। तुम सहर्ष उस परमेश्वर द्वारा नियंत्रित हो जाते हो, जो तुम लोगों के हाथ धन-दौलत से भर देता है, और उस परमेश्वर के लिए बहुत अधिक लालायित रहते हो जो तुम्हारी हर इच्छा पूरी कर सकता है। तुम केवल इस परमेश्वर की आराधना नहीं करते, जो अभिमानी नहीं है; तुम केवल इस परमेश्वर के साथ जुड़ने से घृणा करते हो, जिसे कोई मनुष्य ऊँची नज़र से नहीं देखता। तुम केवल इस परमेश्वर की सेवा करने के अनिच्छुक हो, जिसने तुम्हें कभी एक पैसा नहीं दिया है, और जो तुम्हें अपने लिए लालायित करवाने में असमर्थ है, वह केवल यह अनाकर्षक परमेश्वर ही है। यह परमेश्वर तुम्हें अपना समझ का दायरा बढ़ाने में, तुम्हें खज़ाना मिल जाने का एहसास कराने में सक्षम नहीं बना सकता, तुम्हारी इच्छा पूरी तो बिल्कुल नहीं कर सकता। तो फिर तुम उसका अनुसरण क्यों करते हो? क्या तुमने कभी इस तरह के प्रश्न पर विचार किया है? तुम जो करते हो, वह केवल इस मसीह का ही अपमान नहीं करता, बल्कि, इससे भी अधिक महत्वपूर्ण रूप से, वह स्वर्ग के परमेश्वर का अपमान करता है। मेरे विचार से परमेश्वर पर तुम लोगों के विश्वास का यह उद्देश्य नहीं है!
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पृथ्वी के परमेश्वर को कैसे जानें
बहुत-से लोग ईमानदारी से बोलने और कार्य करने की बजाय नरक में दंडित होना पसंद करेंगे। इसमें कोई हैरानी की बात नहीं कि जो बेईमान हैं उनके लिए मेरे भंडार में अन्य उपचार भी है। मैं अच्छी तरह से जानता हूँ तुम्हारे लिए ईमानदार इंसान बनना कितना मुश्किल काम है। चूँकि तुम लोग बहुत चतुर हो, अपने तुच्छ पैमाने से लोगों का मूल्यांकन करने में बहुत अच्छे हो, इससे मेरा कार्य और आसान हो जाता है। और चूंकि तुम में से हरेक अपने भेदों को अपने सीने में भींचकर रखता है, तो मैं तुम लोगों को एक-एक करके आपदा में भेज दूँगा ताकि अग्नि तुम्हें सबक सिखा सके, ताकि उसके बाद तुम मेरे वचनों के प्रति पूरी तरह समर्पित हो जाओ। अंततः, मैं तुम लोगों के मुँह से “परमेश्वर एक निष्ठावान परमेश्वर है” शब्द निकलवा लूँगा, तब तुम लोग अपनी छाती पीटोगे और विलाप करोगे, “कपटी है इंसान का हृदय!” उस समय तुम्हारी मनोस्थिति क्या होगी? मुझे लगता है कि तुम उतने खुश नहीं होगे जितने अभी हो। तुम लोग इतने “गहन और गूढ़” तो बिल्कुल भी नहीं होगे जितने कि तुम अब हो। कुछ लोग परमेश्वर की उपस्थिति में नियम-निष्ठ और उचित शैली में व्यवहार करते हैं, वे “शिष्ट व्यवहार” के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, फिर भी आत्मा की उपस्थिति में वे अपने जहरीले दाँत और पँजे दिखाने लगते हैं। क्या तुम लोग ऐसे इंसान को ईमानदार लोगों की श्रेणी में रखोगे? यदि तुम पाखंडी और ऐसे व्यक्ति हो जो “व्यक्तिगत संबंधों” में कुशल है, तो मैं कहता हूँ कि तुम निश्चित रूप से ऐसे व्यक्ति हो जो परमेश्वर को हल्के में लेने का प्रयास करता है। यदि तुम्हारी बातें बहानों और महत्वहीन तर्कों से भरी हैं, तो मैं कहता हूँ कि तुम ऐसे व्यक्ति हो जो सत्य का अभ्यास करने से घृणा करता है। यदि तुम्हारे पास ऐसे बहुत-से गुप्त भेद हैं जिन्हें तुम साझा नहीं करना चाहते, और यदि तुम प्रकाश के मार्ग की खोज करने के लिए दूसरों के सामने अपने राज़ और अपनी कठिनाइयाँ उजागर करने के विरुद्ध हो, तो मैं कहता हूँ कि तुम्हें आसानी से उद्धार प्राप्त नहीं होगा और तुम सरलता से अंधकार से बाहर नहीं निकल पाओगे।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तीन चेतावनियाँ
मनुष्य दर्द के बीच मुझे खोजता है, और परीक्षणों के बीच मेरी ओर देखता है। शांति के समय के दौरान वह मेरा आनंद उठाता है जब संकट में होता है तो वह मुझे नकारता है, जब वह व्यस्त होता है तो मुझे भूल जाता है, और जब वह खाली होता है तब अन्यमनस्क तरीके से मेरे लिए कुछ करता है—फिर भी किसी ने भी अपने संपूर्ण जीवन भर मुझसे प्रेम नहीं किया है। मैं चाहता हूँ कि मनुष्य मेरे सम्मुख ईमानदार हो : मैं नहीं कहता कि वह मुझे कोई चीज़ दे, किन्तु केवल यही कहता हूँ कि सभी लोग मुझे गंभीरता से लें, कि, मुझे फुसलाने के बजाए, वे मुझे मनुष्य की ईमानदारी को वापस लाने की अनुमति दें। मेरी प्रबुद्धता, मेरी रोशनी और मेरे प्रयासों की कीमत सभी लोगों के बीच व्याप्त हो जाती हैं, लेकिन साथ ही मनुष्य के हर कार्य के वास्तविक तथ्य, मुझे दिए गए उनके धोखे भी, सभी लोगों के बीच व्याप्त हो जाते हैं। यह ऐसा है मानो मनुष्य के धोखे के अवयव उसके गर्भ में आने के समय से ही उसके साथ रहे हैं, मानो उसने चालबाजी के ये विशेष कौशल जन्म से ही धारण किए हुए है। इसके अलावा, उसने कभी भी इरादों को प्रकट नहीं किया है; किसी को भी कभी इन कपटपूर्ण कौशलों के स्रोत की प्रकृति का पता नहीं लगा है। परिणामस्वरूप, मनुष्य धोखे का एहसास किए बिना इसके बीच रहता है, और यह ऐसा है मानो वह अपने आपको क्षमा कर देता है, मानो यह उसके द्वारा मुझे जानबूझ कर दिए गए धोखे के बजाए परमेश्वर की व्यवस्था है। क्या यह मनुष्य का मुझसे धोखे का वास्तविक स्रोत नहीं है? क्या यह उसकी धूर्त योजना नहीं है? मैं कभी भी मनुष्य की चापलूसियों और झाँसापट्टी से संभ्रमित नहीं हुआ हूँ, क्योंकि मैंने बहुत पहले ही उसके सार को जान लिया था। कौन जानता है कि उसके खून में कितनी अशुद्धता है, और शैतान का कितना ज़हर उसकी मज्जा में है? मनुष्य हर गुज़रते दिन के साथ उसका और अधिक अभ्यस्त होता जाता है, इतना कि वह शैतान द्वारा की गई क्षति को महसूस नहीं करता, और इस प्रकार उसमें “स्वस्थ अस्तित्व की कला” को ढूँढ़ने में कोई रुचि नहीं होती है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 21
तुम लोगों का विश्वास बहुत सुंदर है; तुम्हारा कहना है कि तुम अपना सारा जीवन-काल मेरे कार्य के लिए खपाने को तैयार हो, और तुम इसके लिए अपने प्राणों का बलिदान करने को तैयार हो, लेकिन तुम्हारे स्वभाव में अधिक बदलाव नहीं आया है। तुम लोग बस हेकड़ी से बोलते हो, बावजूद इस तथ्य के कि तुम्हारा वास्तविक व्यवहार बहुत घिनौना है। यह ऐसा है जैसे कि लोगों की जीभ और होंठ तो स्वर्ग में हों, लेकिन उनके पैर बहुत नीचे पृथ्वी पर हों, परिणामस्वरूप उनके वचन और कर्म तथा उनकी प्रतिष्ठा अभी भी चिथड़ा-चिथड़ा और विध्वस्त हैं। तुम लोगों की प्रतिष्ठा नष्ट हो गई है, तुम्हारा ढंग खराब है, तुम्हारे बोलने का तरीका निम्न कोटि का है, तुम्हारा जीवन घृणित है; यहाँ तक कि तुम्हारी सारी मनुष्यता डूबकर नीच अधमता में पहुँच गई है। तुम दूसरों के प्रति संकीर्ण सोच रखते हो और छोटी-छोटी बात पर बखेड़ा करते हो। तुम अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत को लेकर इस हद तक झगड़ते हो कि नरक और आग की झील में उतरने तक को तैयार रहते हो। तुम लोगों के वर्तमान वचन और कर्म मेरे लिए यह तय करने के लिए काफी हैं कि तुम लोग पापी हो। मेरे कार्य के प्रति तुम लोगों का रवैया मेरे लिए यह तय करने के लिए काफी है कि तुम लोग अधर्मी हो, और तुम लोगों के समस्त स्वभाव यह इंगित करने के लिए पर्याप्त हैं कि तुम लोग घृणित आत्माएँ हो, जो गंदगी से भरी हैं। तुम लोगों की अभिव्यक्तियाँ और जो कुछ भी तुम प्रकट करते हो, वह यह कहने के लिए पर्याप्त हैं कि तुम वे लोग हो, जिन्होंने अशुद्ध आत्माओं का पेट भरकर रक्त पी लिया है। जब राज्य में प्रवेश करने का जिक्र होता है, तो तुम लोग अपनी भावनाएँ जाहिर नहीं करते। क्या तुम लोग मानते हो कि तुम्हारा मौजूदा ढंग तुम्हें मेरे स्वर्ग के राज्य के द्वार में प्रवेश कराने के लिए पर्याप्त है? क्या तुम लोग मानते हो कि तुम मेरे कार्य और वचनों की पवित्र भूमि में प्रवेश पा सकते हो, इससे पहले कि मैं तुम लोगों के वचनों और कर्मों का परीक्षण करूँ? कौन है, जो मेरी आँखों में धूल झोंक सकता है? तुम लोगों का घृणित, नीच व्यवहार और बातचीत मेरी दृष्टि से कैसे छिपे रह सकते हैं? तुम लोगों के जीवन मेरे द्वारा उन अशुद्ध आत्माओं का रक्त और मांस पीने और खाने वालों के जीवन के रूप में तय किए गए हैं, क्योंकि तुम लोग रोज़ाना मेरे सामने उनका अनुकरण करते हो। मेरे सामने तुम्हारा व्यवहार विशेष रूप से ख़राब रहा है, तो मैं तुम्हें घृणित कैसे न समझता? तुम्हारे शब्दों में अशुद्ध आत्माओं की अपवित्रताएँ है : तुम फुसलाते हो, भेद छिपाते हो चापलूसी करते हो, ठीक उन लोगों की तरह जो टोने-टोटकों में संलग्न रहते हैं और उनकी तरह भी जो कपट करते हैं और अधर्मियों का खून पीते हैं। मनुष्य के समस्त भाव बेहद अधार्मिक हैं, तो फिर सभी लोगों को पवित्र भूमि में कैसे रखा जा सकता है, जहाँ धर्मी रहते हैं? क्या तुम्हें लगता है कि तुम्हारा यह घिनौना व्यवहार तुम्हें उन अधर्मी लोगों की तुलना में पवित्र होने की पहचान दिला सकता है? तुम्हारी साँप जैसी जीभ अंततः तुम्हारी इस देह का नाश कर देगी, जो तबाही बरपाती है और घृणा ढोती है, और तुम्हारे वे हाथ भी, जो अशुद्ध आत्माओं के रक्त से सने हैं, अंततः तुम्हारी आत्मा को नरक में खींच लेंगे। तो फिर तुम मैल से सने अपने हाथों को साफ़ करने का यह मौका क्यों नहीं लपकते? और तुम अधर्मी शब्द बोलने वाली अपनी इस जीभ को काटकर फेंकने के लिए इस अवसर का लाभ क्यों नहीं उठाते? कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम अपने हाथों, जीभ और होंठों के लिए नरक की आग में जलने के लिए तैयार हो? मैं अपनी दोनों आँखों से हरेक व्यक्ति के दिल पर नज़र रखता हूँ, क्योंकि मानव-जाति के निर्माण से बहुत पहले मैंने उनके दिलों को अपने हाथों में पकड़ा था। मैंने बहुत पहले लोगों के दिलों के भीतर झाँककर देख लिया था, इसलिए उनके विचार मेरी दृष्टि से कैसे बच सकते थे? मेरे आत्मा द्वारा जलाए जाने से बचने में उन्हें ज्यादा देर कैसे नहीं हो सकती थी?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम सभी कितने नीच चरित्र के हो!
तुम्हारे होंठ कबूतरों से अधिक दयालु हैं, लेकिन तुम्हारा दिल पुराने साँप से ज्यादा भयानक है। तुम्हारे होंठ लेबनानी महिलाओं जितने सुंदर हैं, लेकिन तुम्हारा दिल उनकी तरह दयालु नहीं है, और कनानी लोगों की सुंदरता से तुलना तो वह निश्चित रूप से नहीं कर सकता। तुम्हारा दिल बहुत कपटी है! जिन चीज़ों से मुझे घृणा है, वे केवल अधर्मी के होंठ और उनके दिल हैं, और लोगों से मेरी अपेक्षाएँ, संतों से मेरी अपेक्षा से जरा भी अधिक नहीं हैं; बात बस इतनी है कि मुझे अधर्मियों के बुरे कर्मों से घृणा महसूस होती है, और मुझे उम्मीद है कि वे अपनी मलिनता दूर कर पाएँगे और अपनी मौजूदा दुर्दशा से बच सकेंगे, ताकि वे उन अधर्मी लोगों से अलग खड़े हो सकें और उन लोगों के साथ रह सकें और पवित्र हो सकें, जो धर्मी हैं। तुम लोग उन्हीं परिस्थितियों में हो जिनमें मैं हूँ, लेकिन तुम लोग मैल से ढके हो; तुम्हारे पास उन मनुष्यों की मूल समानता का छोटे से छोटा अंश भी नहीं है, जिन्हें शुरुआत में बनाया गया था। इतना ही नहीं, चूँकि तुम लोग रोज़ाना उन अशुद्ध आत्माओं की नकल करते हो, और वही करते हो जो वे करती हैं और वही कहते हो जो वे कहती हैं, इसलिए तुम लोगों के समस्त अंग—यहाँ तक कि तुम लोगों की जीभ और होंठ भी—उनके गंदे पानी से इस क़दर भीगे हुए हैं कि तुम लोग पूरी तरह से दाग़ों से ढँके हुए हो, और तुम्हारा एक भी अंग ऐसा नहीं है जिसका उपयोग मेरे कार्य के लिए किया जा सके। यह बहुत हृदय-विदारक है! तुम लोग घोड़ों और मवेशियों की ऐसी दुनिया में रहते हो, और फिर भी तुम लोगों को वास्तव में परेशानी नहीं होती; तुम लोग आनंद से भरे हुए हो और आज़ादी तथा आसानी से जीते हो। तुम लोग उस गंदे पानी में तैर रहे हो, फिर भी तुम्हें वास्तव में इस बात का एहसास नहीं है कि तुम इस तरह की दुर्दशा में गिर चुके हो। हर दिन तुम अशुद्ध आत्माओं के साहचर्य में रहते हो और “मल-मूत्र” के साथ व्यवहार करते हो। तुम्हारा जीवन बहुत भद्दा है, फिर भी तुम इस बात से अवगत नहीं हो कि तुम बिल्कुल भी मनुष्यों की दुनिया में नहीं रहते और तुम अपने नियंत्रण में नहीं हो। क्या तुम नहीं जानते कि तुम्हारा जीवन बहुत पहले ही अशुद्ध आत्माओं द्वारा रौंद दिया गया था, या कि तुम्हारा चरित्र बहुत पहले ही गंदे पानी से मैला कर दिया गया था? क्या तुम्हें लगता है कि तुम एक सांसारिक स्वर्ग में रह रहे हो, और तुम खुशियों के बीच में हो? क्या तुम नहीं जानते कि तुमने अपना जीवन अशुद्ध आत्माओं के साथ बिताया है, और तुम हर उस चीज़ के साथ सह-अस्तित्व में रहे हो जो उन्होंने तुम्हारे लिए तैयार की है? तुम्हारे जीने के ढंग का कोई अर्थ कैसे हो सकता है? तुम्हारे जीवन का कोई मूल्य कैसे हो सकता है? तुम अपने माता-पिता के लिए, अशुद्ध आत्माओं के माता-पिता के लिए, दौड़-भाग करते रहे हो, फिर भी तुम्हें वास्तव में इस बात का अंदाज़ा नहीं है कि तुम्हें फँसाने वाले वे अशुद्ध आत्माओं के माता-पिता हैं, जिन्होंने तुम्हें जन्म दिया और पाल-पोसकर बड़ा किया। इसके अलावा, तुम नहीं जानते कि तुम्हारी सारी गंदगी वास्तव में उन्होंने ही तुम्हें दी है; तुम बस यही जानते हो कि वे तुम्हें “आनंद” दे सकते हैं, वे तुम्हें ताड़ना नहीं देते, न ही वे तुम्हारी आलोचना करते हैं, और विशेष रूप से वे तुम्हें शाप नहीं देते। वे कभी तुम पर गुस्से से भड़के नहीं, बल्कि तुम्हारे साथ स्नेह और दया का व्यवहार करते हैं। उनके शब्द तुम्हारे दिल को पोषण देते हैं और तुम्हें लुभाते हैं, ताकि तुम गुमराह हो जाओ, और बिना एहसास किए, तुम फँसालिए जाते हो और उनकी सेवा करने के इच्छुक हो जाते हो, उनके निकास और नौकर बन जाते हो। तुम्हें कोई शिकायत नहीं होती है, बल्कि तुम उनके लिए कुत्तों और घोड़ों की तरह कार्य करने के लिए तैयार रहते हो; वे तुम्हें गुमराह करते हैं। यही कारण है कि मेरे कार्य के प्रति तुम्हारी कोई प्रतिक्रिया नहीं है। कोई आश्चर्य नहीं कि तुम हमेशा मेरे हाथों से चुपके से निकल जाना चाहते हो, और कोई आश्चर्य नहीं कि तुम हमेशा मीठे शब्दों का प्रयोग करके छल से मेरी सहायता चाहते हो। इससे पता चलता है कि तुम्हारे पास पहले से एक दूसरी योजना थी, एक दूसरी व्यवस्था थी। तुम मेरे कुछ कार्यों को सर्वशक्तिमान के कार्य के रूप में देख सकते हो, पर तुम्हें मेरे न्याय और ताड़ना की जरा-सी भी जानकारी नहीं है। तुम्हें कोई अंदाज़ा नहीं है कि मेरी ताड़ना कब शुरू हुई; तुम केवल मुझे धोखा देना जानते हो—लेकिन तुम यह नहीं जानते कि मैं मनुष्य का कोई उल्लंघन बरदाश्त नहीं करूँगा। चूँकि तुम पहले ही मेरी सेवा करने का संकल्प ले चुके हो, इसलिए मैं तुम्हें जाने नहीं दूँगा। मैं ईर्ष्यालु परमेश्वर हूँ, और मैं वह परमेश्वर हूँ, जो मनुष्य के प्रति ईर्ष्या रखता है। चूँकि तुमने पहले ही अपने शब्दों को वेदी पर रख दिया है, इसलिए मैं यह बरदाश्त नहीं करूँगा कि तुम मेरी ही आँखों के सामने से भाग जाओ, न ही मैं यह बरदाश्त करूँगा कि तुम दो स्वामियों की सेवा करो। क्या तुम्हें लगता है कि मेरी वेदी पर और मेरी आँखों के सामने अपने शब्दों को रखने के बाद तुम किसी दूसरे से प्रेम कर सकते हो? मैं लोगों को इस तरह से मुझे मूर्ख कैसे बनाने दे सकता हूँ? क्या तुम्हें लगता था कि तुम अपनी जीभ से यूँ ही मेरे लिए प्रतिज्ञा और शपथ ले सकते हो? तुम मेरे सिंहासन की शपथ कैसे ले सकते हो, मेरा सिंहासन, मैं जो सबसे ऊँचा हूँ? क्या तुम्हें लगा कि तुम्हारी शपथ पहले ही खत्म हो चुकी है? मैं तुम लोगों को बता दूँ : तुम्हारी देह भले ही खत्म हो जाए, पर तुम्हारी शपथ खत्म नहीं हो सकती। अंत में, मैं तुम लोगों की शपथ के आधार पर तुम्हें दंड दूंगा। हालाँकि तुम लोगों को लगता है कि अपने शब्द मेरे सामने रखकर लापरवाही से मेरा सामना कर लोगे, और तुम लोगों के दिल अशुद्ध और बुरी आत्माओं की सेवा कर सकते हैं। मेरा क्रोध उन कुत्ते और सुअर जैसे लोगों को कैसे सहन कर सकता है, जो मुझे धोखा देते हैं? मुझे अपने प्रशासनिक आदेश कार्यान्वित करने होंगे, और अशुद्ध आत्माओं के हाथों से उन सभी पाखंडी, “पवित्र” लोगों को वापस खींचना होगा जिनका मुझमें विश्वास है, ताकि वे एक अनुशासित प्रकार से मेरे लिए “सेवारत” हो सकें, मेरे बैल बन सकें, मेरे घोड़े बन सकें, मेरे संहार की दया पर रह सकें। मैं तुमसे तुम्हारा पिछला संकल्प फिर से उठवाऊँगा और एक बार फिर से अपनी सेवा करवाऊँगा। मैं ऐसे किसी भी सृजित प्राणी को बरदाश्त नहीं करूँगा, जो मुझे धोखा दे। तुम्हें क्या लगा कि तुम बस बेहूदगी से अनुरोध कर सकते हो और मेरे सामने झूठ बोल सकते हो? क्या तुम्हें लगा कि मैंने तुम्हारे वचन और कर्म सुने या देखे नहीं? तुम्हारे वचन और कर्म मेरी दृष्टि में कैसे नहीं आ सकते? मैं लोगों को इस तरह अपने को धोखा कैसे देने दे सकता हूँ?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम सभी कितने नीच चरित्र के हो!
अतीत के बारे में सोचो : कब तुम लोगों के प्रति मेरी दृष्टि क्रोधित, और मेरी आवाज़ कठोर हुई है? मैंने कब तुम लोगों में मीनमेख निकाली है? मैंने कब तुम लोगों को बेवजह प्रताड़ित किया है? मैंने कब तुम लोगों को तुम्हारे मुँह पर डाँटा है? क्या यह मेरे कार्य के वास्ते नहीं है कि मैं तुम लोगों को हर प्रलोभन से बचाने के लिए अपने परमपिता को पुकारता हूँ? तुम लोग मेरे साथ इस प्रकार का व्यवहार क्यों करते हो? क्या मैंने कभी भी अपने अधिकार का उपयोग तुम लोगों की देह को मार गिराने के लिए किया है? तुम लोग मुझे इस प्रकार का प्रतिफल क्यों दे रहे हो? मेरे प्रति कभी हाँ और कभी ना करने के बाद, तुम लोग न हाँ में हो और न ही ना में, और फिर तुम मुझे मनाने और मुझसे बातें छिपाने का प्रयास करते हो और तुम लोगों के मुँह अधार्मिकता के थूक से भरे हुए हैं? क्या तुम लोगों को लगता है कि तुम लोगों की ज़ुबानें मेरे आत्मा को धोखा दे सकती हैं? क्या तुम लोगों को लगता है कि तुम लोगों की ज़ुबानें मेरे कोप से बच सकती हैं? क्या तुम लोगों को लगता है कि तुम लोगों की ज़ुबानें मुझ यहोवा के कार्यों की, जैसी चाहे वैसी आलोचना कर सकती हैं? क्या मैं ऐसा परमेश्वर हूँ, जिसके बारे में मनुष्य आलोचना कर सकता है? क्या मैं छोटे से भुनगे को इस प्रकार अपनी ईशनिंदा करने दे सकता हूँ? मैं ऐसे विद्रोह के पुत्रों को कैसे अपने अनंत आशीषों के बीच रख सकता हूँ? तुम लोगों के वचनों और कार्यों ने तुम लोगों को काफी समय तक उजागर और निंदित किया है। जब मैंने स्वर्ग का विस्तार किया और सभी चीज़ों का सृजन किया, तो मैंने किसी भी सृजित प्राणी को उसके मन मुताबिक़ भाग लेने की अनुमति नहीं दी, किसी भी चीज़ को उसके हिसाब से मेरे कार्य और मेरे प्रबंधन में गड़बड़ करने की अनुमति तो बिल्कुल नहीं दी। मैंने किसी भी मनुष्य या वस्तु को सहन नहीं किया; मैं कैसे उन लोगों को छोड़ सकता हूँ, जो मेरे प्रति निर्दयी और क्रूर और अमानवीय हैं? मैं कैसे उन लोगों को क्षमा कर सकता हूँ, जो मेरे वचनों से विश्वासघात करते हैं? मैं कैसे उन्हें छोड़ सकता हूँ, जो मुझसे विद्रोह करते हैं? क्या मनुष्य की नियति मुझ सर्वशक्तिमान के हाथों में नहीं है? मैं कैसे तुम्हारी अधार्मिकता और विद्रोहीपन को पवित्र मान सकता हूँ? तुम्हारे पाप मेरी पवित्रता को कैसे मैला कर सकते हैं? मैं अधर्मी की अशुद्धता से दूषित नहीं होता, न ही मैं अधर्मियों के चढ़ावों का आनंद लेता हूँ। यदि तुम मुझ यहोवा के प्रति वफादार होते, तो क्या तुम मेरी वेदी से बलिदानों को अपने लिए ले सकते थे? क्या तुम मेरे पवित्र नाम की ईशनिंदा के लिए अपनी विषैली ज़ुबान का उपयोग कर सकते थे? क्या तुम इस प्रकार मेरे वचनों से विश्वासघात कर सकते थे? क्या तुम मेरी महिमा और पवित्र नाम को, एक दुष्ट, शैतान की सेवा के लिए एक उपकरण के रूप में उपयोग कर सकते थे? मेरा जीवन पवित्र लोगों के आनंद के लिए प्रदान किया जाता है। मैं तुम्हें कैसे अपने जीवन के साथ तुम्हारी इच्छानुसार खेलने और तुम लोगों के बीच के संघर्ष में इसे एक उपकरण के रूप में उपयोग करने की इजाज़त दे सकता हूँ? तुम लोग अच्छाई के मार्ग में इतने निर्दयी और इतने अभावग्रस्त कैसे हो सकते हो, जैसे तुम मेरे प्रति हो? क्या तुम लोग नहीं जानते कि मैंने पहले ही तुम लोगों के दुष्कृत्यों को जीवन के इन वचनों में लिख दिया है? जब मैं मिस्र को ताड़ना देता हूँ, तब तुम लोग कोप के दिन से कैसे बच सकते हो? मैं कैसे तुम लोगों को इस तरह बार-बार मेरा विरोध और मुझसे विद्रोह करने की अनुमति दे सकता हूँ? मैं तुम लोगों को सीधे तौर पर कहता हूँ कि जब वह दिन आएगा, तो तुम लोगों की ताड़ना मिस्र की ताड़ना की अपेक्षा अधिक असहनीय होगी! तुम लोग कैसे मेरे कोप के दिन से बच सकते हो?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कोई भी जो देह में है, कोप के दिन से नहीं बच सकता
जो लोग केवल अपने देह-सुख की सोचते हैं और सुख-साधनों का आनंद लेते हैं; जो विश्वास रखते हुए प्रतीत होते हैं लेकिन सचमुच विश्वास नहीं रखते; जो बुरी औषधियों और जादू-टोने में लिप्त रहते हैं; जो व्यभिचारी हैं, जो बिखर चुके हैं, तार-तार हो चुके हैं; जो यहोवा के चढ़ावे और उसकी संपत्ति को चुराते हैं; जिन्हें रिश्वत पसंद है; जो व्यर्थ में स्वर्गारोहित होने के सपने देखते हैं; जो अहंकारी और दंभी हैं, जो केवल व्यक्तिगत शोहरत और धन-दौलत के लिए संघर्ष करते हैं; जो कर्कश शब्दों को फैलाते हैं; जो स्वयं परमेश्वर की निंदा करते हैं; जो स्वयं परमेश्वर की आलोचना और बुराई करने के अलावा कुछ नहीं करते; जो गुटबाज़ी करते हैं और स्वतंत्रता चाहते हैं; जो खुद को परमेश्वर से भी ऊँचा उठाते हैं; वे तुच्छ नौजवान, अधेड़ उम्र के लोग और बुज़ुर्ग स्त्री-पुरुष जो व्यभिचार में फँसे हुए हैं; जो स्त्री-पुरुष निजी शोहरत और धन-दौलत का मजा लेते हैं और लोगों के बीच निजी रुतबा तलाशते हैं; जिन लोगों को कोई मलाल नहीं है और जो पाप में फँसे हुए हैं—क्या वे तमाम लोग उद्धार से परे नहीं हैं? व्यभिचार, पाप, बुरी औषधि, जादू-टोना, अश्लील भाषा और असभ्य शब्द सब तुम लोगों में निरंकुशता से फैल रहे हैं; सत्य और जीवन के वचन तुम लोगों के बीच कुचले जाते हैं और तुम लोगों के मध्य पवित्र भाषा मलिन की जाती है। तुम मलिनता और विद्रोह से भरे हुए अन्यजाति राष्ट्रो! तुम लोगों का अंतिम परिणाम क्या होगा? जिन्हें देह-सुख से प्यार है, जो देह का जादू-टोना करते हैं, और जो व्यभिचार के पाप में फँसे हुए हैं, वे जीते रहने का दुस्साहस कैसे कर सकते हैं! क्या तुम नहीं जानते कि तुम जैसे लोग कीड़े-मकौड़े हैं जो उद्धार से परे हैं? किसी भी चीज की माँग करने का हक तुम्हें किसने दिया? आज तक, उन लोगों में जरा-सा भी परिवर्तन नहीं आया है जिन्हें सत्य से प्रेम नहीं है, जो केवल देह से प्यार करते हैं—ऐसे लोगों को कैसे बचाया जा सकता है? जो जीवन के मार्ग को प्रेम नहीं करते, जो परमेश्वर को ऊँचा उठाकर उसकी गवाही नहीं देते, जो अपने रुतबे के लिए षडयंत्र रचते हैं, जो अपनी प्रशंसा करते हैं—क्या वे आज भी वैसे ही नहीं हैं? उन्हें बचाने का क्या मूल्य है? तुम्हारा बचाया जाना इस बात पर निर्भर नहीं है कि तुम कितने वरिष्ठ हो या तुम कितने साल से काम कर रहे हो, और इस बात पर तो बिल्कुल भी निर्भर नहीं है कि तुमने कितनी साख बना ली है। बल्कि इस बात पर निर्भर है कि क्या तुम्हारा लक्ष्य फलीभूत हुआ है। तुम्हें यह जानना चाहिए कि जिन्हें बचाया जाता है वे ऐसे “वृक्ष” होते हैं जिन पर फल लगते हैं, ऐसे वृक्ष नहीं जो हरी-भरी पत्तियों और फूलों से तो लदे होते हैं, लेकिन जिन पर फल नहीं आते। अगर तुम बरसों तक भी गलियों की खाक छानते रहे हो, तो उससे क्या फर्क पड़ता है? तुम्हारी गवाही कहाँ है? तुम्हारे पास परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय, खुद से और अपनी वासनायुक्त कामनाओं से प्रेम करने वाले हृदय से कहीं कम है—क्या इस तरह का व्यक्ति पतित नहीं है? वे उद्धार के लिए नमूना और आदर्श कैसे हो सकते हैं? तुम्हारी प्रकृति सुधर नहीं सकती, तुम बहुत ही विद्रोही हो, तुम्हारा उद्धार नहीं हो सकता! क्या ऐसे लोगों को हटा नहीं दिया जाएगा? क्या मेरे काम के समाप्त हो जाने का समय तुम्हारा अंत आने का समय नहीं है? मैंने तुम लोगों के बीच बहुत सारा कार्य किया है और बहुत सारे वचन बोले हैं—इनमें से कितने सच में तुम लोगों के कानों में गए हैं? इनमें से कितनों के प्रति तुमने कभी समर्पण किया है? जब मेरा कार्य समाप्त होगा, तो यह वो समय होगा जब तुम मेरा विरोध करना बंद कर दोगे, तुम मेरे खिलाफ खड़ा होना बंद कर दोगे। जब मैं काम करता हूँ, तो तुम लोग लगातार मेरे खिलाफ काम करते रहते हो; तुम लोग कभी मेरे वचनों का अनुपालन नहीं करते। मैं अपना कार्य करता हूँ, और तुम अपना “काम” करते हो, और अपना छोटा-सा राज्य बनाते हो। तुम लोग लोमड़ियों और कुत्तों से कम नहीं हो, सब-कुछ मेरे विरोध में कर रहे हो! तुम लगातार उन्हें अपने आगोश में लाने का प्रयास कर रहे हो जो तुम्हें अपना अविभक्त प्रेम समर्पित करते हैं—तुम लोगों का भय मानने वाला हृदय कहाँ है? तुम्हारा हर काम कपट से भरा होता है! तुम्हारे अंदर न समर्पण है, न भय है, तुम्हारा हर काम कपटपूर्ण और ईश-निंदा करने वाला होता है! क्या ऐसे लोगों को बचाया जा सकता है? जो पुरुष यौन-संबंधों में अनैतिक और लम्पट होते हैं, वे हमेशा कामोत्तेजक वेश्याओं को आकर्षित करके उनके साथ मौज-मस्ती करना चाहते हैं। मैं ऐसे काम-वासना में लिप्त अनैतिक राक्षसों को कतई नहीं बचाऊंगा। मैं तुम मलिन राक्षसों से घृणा करता हूँ, तुम्हारा व्यभिचार और तुम्हारी कामोत्तेजना तुम लोगों को नरक में धकेल देगी। तुम लोगों को अपने बारे में क्या कहना है? मलिन राक्षसो और दुष्ट आत्माओ, तुम लोग घिनौने हो! तुम निकृष्ट हो! ऐसे कूड़े-करकट को कैसे बचाया जा सकता है? क्या ऐसे लोगों को जो पाप में फँसे हुए हैं, उन्हें अब भी बचाया जा सकता है? आज, यह सत्य, यह मार्ग और यह जीवन तुम लोगों को आकर्षित नहीं करता; बल्कि, तुम लोग पाप की ओर, धन की ओर, रुतबे की ओर, शोहरत और लाभ की ओर आकर्षित होते हो; देह-सुख की ओर आकर्षित होते हो; सुंदर स्त्री-पुरुषों की ओर आकर्षित होते हो। मेरे राज्य में प्रवेश करने की तुम लोगों की क्या पात्रता है? तुम लोगों की छवि परमेश्वर से भी बड़ी है, तुम लोगों का रुतबा परमेश्वर से भी ऊँचा है, लोगों में तुम्हारी प्रतिष्ठा का तो कहना ही क्या—तुम लोग ऐसे आदर्श बन गए हो जिन्हें लोग पूजते हैं। क्या तुम प्रधान स्वर्गदूत नहीं बन गए हो? जब लोगों के परिणाम उजागर होते हैं, जो वो समय भी है जब उद्धार का कार्य समाप्ति के करीब होने लगेगा, तो तुम लोगों में से बहुत-से ऐसी लाश होंगे जो उद्धार से परे होंगे और जिन्हें हटा दिया जाना होगा।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अभ्यास (7)
जब तक लोग परमेश्वर के कार्य का अनुभव नहीं कर लेते हैं और सत्य को समझ नहीं लेते हैं, तब तक यह शैतान की प्रकृति है जो भीतर से इन पर नियंत्रण कर लेती है और उन पर हावी हो जाती है। वह प्रकृति विशिष्ट रूप से किस चीज को अपरिहार्य बनाती है? उदाहरण के लिए, तुम स्वार्थी क्यों हो? तुम अपने पद की रक्षा क्यों करते हो? तुम्हारी भावनाएँ इतनी प्रबल क्यों हैं? तुम उन अधार्मिक चीज़ों से प्यार क्यों करते हो? ऐसी बुरी चीजें तुम्हें अच्छी क्यों लगती हैं? ऐसी चीजों को पसंद करने का आधार क्या है? ये चीजें कहाँ से आती हैं? तुम इन्हें स्वीकारकर इतने खुश क्यों हो? अब तक, तुम सब लोगों ने समझ लिया है कि इन सभी चीजों के पीछे मुख्य कारण यह है कि मनुष्य के भीतर शैतान का जहर है। तो शैतान का जहर क्या है? इसे कैसे व्यक्त किया जा सकता है? उदाहरण के लिए, यदि तुम पूछते हो, “लोगों को कैसे जीना चाहिए? लोगों को किसके लिए जीना चाहिए?” तो लोग जवाब देंगे, “हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाये।” यह अकेला वाक्यांश समस्या की जड़ को व्यक्त करता है। शैतान का फलसफा और तर्क लोगों का जीवन बन गए हैं। लोग चाहे जिसका भी अनुसरण करें, वे ऐसा बस अपने लिए करते हैं, और इसलिए वे केवल अपने लिए जीते हैं। “हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाये”—यही मनुष्य का जीवन-दर्शन है, और इंसानी प्रकृति का भी प्रतिनिधित्व करता है। ये शब्द पहले ही भ्रष्ट इंसान की प्रकृति बन गए हैं, और वे भ्रष्ट इंसान की शैतानी प्रकृति की सच्ची तस्वीर हैं। यह शैतानी प्रकृति पहले ही भ्रष्ट इंसान के अस्तित्व का आधार बन चुकी है। कई हजार सालों से वर्तमान दिन तक भ्रष्ट इंसान शैतान के इस जहर से जिया है। शैतान का हर काम अपनी भूख, महत्वाकांक्षाओं और उद्देश्यों के लिए होता है। वह परमेश्वर से आगे जाना चाहता है, परमेश्वर से मुक्त होना चाहता है, और परमेश्वर द्वारा रची गई सभी चीजों पर नियंत्रण पाना चाहता है। आज लोग शैतान द्वारा इस हद तक भ्रष्ट कर दिए गए हैं : उन सभी की प्रकृति शैतानी है, वे सभी परमेश्वर को नकारने और उसका विरोध करने की कोशिश करते हैं, और वे अपने भाग्य पर अपना नियंत्रण चाहते हैं और परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं का विरोध करने की कोशिश करते हैं। उनकी महत्वाकांक्षाएँ और भूख बिल्कुल शैतान की महत्वाकांक्षाओं और भूख जैसी हैं। इसलिए, मनुष्यों की प्रकृति शैतान की प्रकृति है।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, पतरस के मार्ग पर कैसे चलें
शैतान द्वारा मनुष्यों को भ्रष्ट किए जाने के बाद से उनकी प्रकृति बिगड़नी शुरू हो गई है और उन्होंने धीरे-धीरे सामान्य लोगों में मौजूद समझ को खो दिया है। मनुष्य होते हुए भी लोगों ने मनुष्य की तरह बरताव करना बंद कर दिया है; बल्कि, वे जंगली आकांक्षाओं से भरे हुए हैं; वे मनुष्य की स्थिति पार कर चुके हैं, फिर भी, वे और भी ऊँचे जाने की लालसा रखते हैं। यह “और भी ऊँचे” क्या दर्शाता है? वे परमेश्वर से बढ़कर होना चाहते हैं, स्वर्ग से बढ़कर होना चाहते हैं, और बाकी सभी से बढ़कर होना चाहते हैं। लोगों के इस तरह के स्वभाव दिखाने का मूल कारण क्या है? कुल मिलाकर यही नतीजा निकलता है कि मनुष्य की प्रकृति बहुत अधिक अहंकारी है। ज्यादातर लोग “अहंकार” शब्द का अर्थ समझते हैं। यह एक निंदात्मक शब्द है। अगर कोई अहंकार दिखाता है, तो दूसरे सोचते हैं कि वह अच्छा इंसान नहीं है। जब भी कोई अविश्वसनीय रूप से अहंकारी होता है, तो दूसरे हमेशा मान लेते हैं कि वह कुकर्मी है। कोई भी इस शब्द को अपने साथ जोड़ा जाना पसंद नहीं करता। पर तथ्य यह है कि हर कोई अहंकारी है, और सभी भ्रष्ट मनुष्यों का यही सार है। कुछ लोग कहते हैं, “मैं जरा भी अहंकारी नहीं हूँ। मैंने कभी भी महादूत नहीं बनना चाहा, न ही मैंने कभी परमेश्वर से या दूसरों से ऊंचा उठना चाहा है। मैं हमेशा एक ऐसा व्यक्ति रहा हूँ जो शिष्ट और कर्तव्यनिष्ठ है।” कोई जरूरी नहीं है; ये शब्द गलत हैं। जब लोगों की प्रकृति और सार अहंकारी हो जाते हैं, तो वे परमेश्वर की अवज्ञा और विरोध करते हैं, उसके वचनों पर ध्यान नहीं देते, उसके बारे में धारणाएं उत्पन्न करते हैं, उसे धोखा देने वाले, अपना उत्कर्ष करने वाले और अपनी ही गवाही देने वाले काम करते हैं। तुम्हारा कहना है कि तुम अहंकारी नहीं हो, लेकिन मान लो कि तुम्हें कलीसिया चलाने और उसकी अगुआई करने की जिम्मेदारी दे दी जाती है; मान लो कि मैंने तुम्हारे साथ काट-छाँट नहीं की, और परमेश्वर के परिवार के किसी सदस्य ने तुम्हारी आलोचना या सहायता नहीं की है : कुछ समय तक उसकी अगुआई करने के बाद, तुम लोगों को अपने पैरों पर गिरा लोगे और उनसे अपने सामने इस हद तक समर्पण करवा लोगे कि वे तुम्हारी प्रशंसा और आदर करने लगें। और तुम ऐसा क्यों करोगे? यह तुम्हारी प्रकृति द्वारा निर्धारित होगा; यह स्वाभाविक प्रकटीकरण के अलावा और कुछ नहीं होगा। तुम्हें इसे दूसरों से सीखने की आवश्यकता नहीं है, और न ही दूसरों को तुम्हें यह सिखाने की आवश्यकता है। तुम्हें दूसरों की आवश्यकता नहीं है कि वे तुम्हें निर्देश दें या उसे करने के लिए तुम्हें विवश करें; इस तरह की स्थिति स्वाभाविक रूप से आती है। तुम जो भी करते हो, वह इसलिए होता है कि लोग तुम्हारी बड़ाई करें, तुम्हारी प्रशंसा करें, तुम्हारी आराधना करें, तुम्हारे आगे समर्पण करें और हर बात में तुम्हारी सुनें। जब तुम अगुआ बनने की कोशिश करते हो, तो स्वाभाविक रूप से इस तरह की स्थिति पैदा होती है और इसे बदला नहीं जा सकता। यह स्थिति कैसे पैदा होती है? ये मनुष्य की अहंकारी प्रकृति से निर्धारित होती है। अहंकार की अभिव्यक्ति परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह और उसका विरोध है। जब लोग अहंकारी, दंभी और आत्मतुष्ट होते हैं, तो उनकी अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करने और अपने तरीके से चीज़ों को करने की प्रवृत्ति होती है। वे दूसरों को भी अपनी ओर खींचकर उन्हें अपने आलिंगन में ले लेते हैं। लोगों का ऐसी अहंकारी हरकतें करने में सक्षम होना साबित करता है कि उनकी अहंकारी प्रकृति का सार शैतान का है; प्रधान दूत का है। जब उनका अहंकार और दंभ एक निश्चित स्तर पर पहुँच जाता है, तो उनके दिलों में परमेश्वर के लिए स्थान नहीं रहता, और परमेश्वर अलग रख दिया जाता है। तब वे परमेश्वर बनना चाहते हैं, लोगों से अपना आज्ञापालन करवाते हैं और प्रधान दूत बन जाते हैं। यदि तुम्हारी प्रकृति ऐसी ही शैतानी अहंकारी है, तो तुम्हारे हृदय में परमेश्वर के लिए कोई स्थान नहीं होगा। भले ही तुम परमेश्वर पर विश्वास करो, परमेश्वर तुम्हें नहीं पहचानेगा, वह तुम्हें कुकर्मी समझेगा और बाहर निकाल देगा।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, परमेश्वर के प्रति मनुष्य के प्रतिरोध की जड़ में अहंकारी स्वभाव है
जब लोगों का हठी स्वभाव होता है, तो उनके भीतर किस तरह की अवस्था होती है? मुख्य रूप से यह कि वे जिद्दी और आत्मतुष्ट होते हैं। वे हमेशा अपने ही विचारों पर अडिग रहते हैं, हमेशा यही सोचते हैं कि वे जो कहते हैं वह सही है, और पूरी तरह से अनम्य और दुराग्रही होते हैं। यह हठधर्मिता का रवैया है। वे एक टूटे हुए रिकॉर्ड की तरह अटक-अटककर बजते रहते हैं, किसी की नहीं सुनते, किसी एक कार्य पर अपरिवर्तनीय ढंग से स्थिर रहते हैं, उसे ही पूरा करने पर जोर देते हैं, चाहे वह सही हो या गलत; इसमें कुछ न पछताने का भाव होता है। जैसी कि कहावत है, “मरे हुए सूअर उबलते पानी से नहीं डरते।” लोग अच्छी तरह जानते हैं कि क्या करना सही है, फिर भी वे वैसा नहीं करते, दृढ़तापूर्वक सत्य स्वीकारने से मना कर देते हैं। यह एक प्रकार का स्वभाव है : हठधर्मिता। तुम लोग किस प्रकार की स्थितियों में हठी स्वभाव प्रकट करते हो? क्या तुम प्राय: हठी होते हो? (हाँ।) बहुत बार! और चूँकि हठधर्मिता तुम्हारा स्वभाव है, इसलिए वह तुम्हारे अस्तित्व के प्रत्येक दिन के प्रत्येक सेकंड तुम्हारे साथ रहती है। हठधर्मिता लोगों को परमेश्वर के सामने आ पाने से रोकती है, वह उन्हें सत्य स्वीकार पाने से रोकती है और वह उन्हें सत्य की वास्तविकता में प्रवेश करने से रोकती है। और अगर तुम सत्य की वास्तविकता में प्रवेश नहीं कर पाते, तो क्या तुम्हारे स्वभाव के इस पहलू में बदलाव हो सकता है? बड़ी मुश्किल से ही हो सकता है। क्या अब तुम लोगों के स्वभाव के इस हठधर्मिता वाले पहलू में कोई बदलाव आया है? और कितना बदलाव आया है? उदाहरण के लिए, मान लो, तुम बेहद जिद्दी हुआ करते थे, लेकिन अब तुममें थोड़ा बदलाव आया है : जब तुम किसी समस्या का सामना करते हो, तो तुम्हारे दिल में जमीर की भावना होती है, और तुम मन ही मन कहते हो, “इस मामले में मुझे सत्य का कुछ अभ्यास करना है। चूँकि परमेश्वर ने इस हठी स्वभाव को उजागर कर दिया है—चूँकि मैंने इसे सुन लिया है और अब मैं इसे जानता हूँ—इसलिए मुझे बदलना होगा। जब मैंने अतीत में कुछ बार इस तरह की चीजों का सामना किया था, तो मैं अपनी देह के साथ रहा था और असफल रहा था, और मैं इससे खुश नहीं हूँ। इस बार मुझे सत्य का अभ्यास करना चाहिए।” ऐसी आकांक्षा के साथ सत्य का अभ्यास करना संभव है, और यही बदलाव है। जब तुम कुछ समय तक इस तरह से अनुभव कर लेते हो, और तुम और ज्यादा सत्यों को अभ्यास में लाने में सक्षम होते हो, और इससे बड़े बदलाव आते हैं, और तुम्हारे विद्रोही और हठी स्वभाव पहले से कम हो जाते हैं, तो क्या तुम्हारे जीवन-स्वभाव में कोई बदलाव आता है? अगर तुम्हारा विद्रोही स्वभाव स्पष्ट रूप से पहले से ज्यादा कम हो गया है, और परमेश्वर के प्रति तुम्हारी आज्ञाकारिता पहले से ज्यादा बढ़ गई है, तो वास्तविक बदलाव हो गया है।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, छह प्रकार के भ्रष्ट स्वभावों का ज्ञान ही सच्चा आत्म-ज्ञान है
सत्य से चिढ़ना मुख्य रूप से रुचि की कमी और सत्य और सकारात्मक चीजों के प्रति घृणा दर्शाता है। सत्य से चिढ़ना तब होता है, जब लोग सत्य समझने और यह जानने में सक्षम होते हैं कि सकारात्मक चीजें क्या होती हैं, और फिर भी सत्य और सकारात्मक चीजों को प्रतिरोधी, लापरवाह, प्रतिकूल, टालमटोल और उदासीन रवैये और अवस्था के साथ लेते हैं। यह सत्य से चिढ़ने का स्वभाव है। क्या इस तरह का स्वभाव सभी में होता है? कुछ लोग कहते हैं, “हालाँकि मैं जानता हूँ कि परमेश्वर का वचन सत्य है, फिर भी मैं उसे पसंद या स्वीकार नहीं करता, या कम से कम, मैं उसे अभी नहीं स्वीकार सकता।” यहाँ क्या मामला है? यह सत्य से चिढ़ना है। उनके अंदर का स्वभाव उन्हें सत्य नहीं स्वीकारने देता। सत्य न स्वीकारने की कौन-सी विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ हैं? कुछ लोग कहते हैं, “मैं सभी सत्य समझता हूँ, बस मैं उन्हें अभ्यास में नहीं ला सकता।” इससे पता चलता है कि यह वह व्यक्ति है जो सत्य से चिढ़ता है, और यह सत्य से प्रेम नहीं करता, इसलिए यह किसी भी सत्य को अमल में नहीं ला सकता। कुछ लोग कहते हैं, “मैं जो इतना पैसा कमा पाया हूँ, वह परमेश्वर की बदौलत है। परमेश्वर ने मुझे वास्तव में आशीष दिया है, परमेश्वर ने मेंरे साथ बहुत अच्छा किया है, परमेश्वर ने मुझे बहुत धन-दौलत दी है। मेरा पूरा परिवार अच्छा पहनता-खाता है, और उसे न तो कपड़े की जरूरत है और न खाने की।” खुद को परमेश्वर का आशीष मिला देख ये लोग अपने हृदय में परमेश्वर को धन्यवाद देते हैं, वे जानते हैं कि यह सब परमेश्वर द्वारा शासित था, और अगर उन्हें परमेश्वर का आशीष न मिला होता—अगर वे अपनी प्रतिभा पर ही भरोसा करते—तो उन्होंने निश्चित रूप से यह सब पैसा न कमाया होता। वे वास्तव में अपने हृदय में यही सोचते हैं, वे वास्तव में यही जानते हैं और वास्तव में परमेश्वर को धन्यवाद देते हैं। लेकिन एक दिन ऐसा आता है, जब उनका व्यवसाय विफल हो जाता है, जब समय उनके लिए कठिन होता है और वे गरीबी का शिकार हो जाते हैं। ऐसा क्यों होता है? क्योंकि वे सुविधाभोगी हो जाते हैं और इस पर कोई ध्यान नहीं देते कि अपना कर्तव्य ठीक से कैसे निभाया जाए, और वे अपना पूरा समय धन-दौलत के पीछे भागते हुए, धन के गुलाम बनकर बिताते हैं, जो उनके कर्तव्य के प्रदर्शन को प्रभावित करता है, इसलिए परमेश्वर उनसे यह छीन लेता है। अपने दिल में वे जानते हैं कि परमेश्वर ने उन्हें बहुत आशीष दिया है, और उन्हें इतना कुछ दिया है, फिर भी उनमें परमेश्वर के प्रेम का प्रतिदान करने की कोई इच्छा नहीं होती, वे बाहर जाकर अपना कर्तव्य निभाना नहीं चाहते, वे बुजदिल होते हैं और लगातार गिरफ्तारी से भयभीत रहते हैं, और वे यह तमाम धन-दौलत और ये सब सुख खोने से डरते हैं, और नतीजतन, परमेश्वर उनसे ये चीजें छीन लेता है। उनका हृदय दर्पण की तरह साफ है, वे जानते हैं कि परमेश्वर ने उनसे ये चीजें ले ली हैं, और परमेश्वर उन्हें अनुशासित कर रहा है, इसलिए वे परमेश्वर से प्रार्थना करते हुए कहते हैं, “हे परमेश्वर! तुमने मुझे एक बार आशीष दिया था, तो तुम मुझे दूसरी बार भी आशीष दे सकते हो। तुम्हारा अस्तित्व शाश्वत है, इसलिए तुम्हारे आशीष भी मनुष्य के साथ हैं। मैं तुम्हें धन्यवाद देता हूँ! चाहे कुछ भी हो जाए, तुम्हारे आशीष और वादा नहीं बदलेगा। अगर तुम मुझसे ले लेते हो, तब भी मैं आज्ञापालन करूँगा।” लेकिन “आज्ञापालन” शब्द उनके मुँह से खोखला लगता है। मुँह से वे कहते हैं कि वे आज्ञापालन कर सकते हैं, लेकिन बाद में वे इसके बारे में सोचते हैं, और उन्हें कुछ स्वीकार्य नहीं लगता : “पहले चीजें बहुत अच्छी हुआ करती थीं। परमेश्वर ने यह सब क्यों छीन लिया? क्या घर पर रहकर अपना कर्तव्य निभाना वैसा ही नहीं था, जैसा कि अपना कर्तव्य निभाने के लिए बाहर जाना? मैं किस चीज में देरी कर रहा था?” वे हमेशा अतीत को याद करते रहते हैं। उनमें परमेश्वर के प्रति एक तरह की नाराजगी और असंतोष रहता है और वे लगातार उदास महसूस करते हैं। क्या परमेश्वर अभी भी उनके हृदय में होता है? उनके दिल में पैसा, भौतिक सुख-सुविधाएँ और वह अच्छा समय ही रहता है। परमेश्वर का उनके हृदय में कोई स्थान नहीं रहता, वह अब उनका परमेश्वर नहीं रहता। हालाँकि वे जानते हैं कि यह सत्य है कि “परमेश्वर ने दिया और परमेश्वर ने ले लिया,” फिर भी वे “परमेश्वर ने दिया,” शब्दों को पसंद करते हैं और “परमेश्वर ने ले लिया” शब्दों से घृणा करते हैं। स्पष्ट रूप से, सत्य की उनकी स्वीकृति चयनात्मक है। जब परमेश्वर उन्हें आशीष देता है, तब तो वे इसे सत्य के रूप में स्वीकारते हैं—लेकिन जैसे ही परमेश्वर उनसे लेता है, वे इसे नहीं स्वीकार पाते। वे परमेश्वर की ऐसी व्यवस्थाएँ नहीं स्वीकार पाते, इसके बजाय वे विरोध करते हैं और असंतुष्ट हो जाते हैं। जब उनसे अपना कर्तव्य निभाने के लिए कहा जाता है, तो वे कहते हैं, “अगर परमेश्वर मुझे आशीष देगा और मुझ पर अनुग्रह करेगा, तो मैं अपना कर्तव्य निभाऊँगा। परमेश्वर के आशीषों के बिना और अपने परिवार के ऐसी गरीबी की हालत में रहते हुए मैं अपना कर्तव्य कैसे निभाऊँ? मैं नहीं निभाना चाहता!” यह कौन-सा स्वभाव है? हालाँकि अपने हृदय में वे व्यक्तिगत रूप से परमेश्वर के आशीषों का और इस बात का अनुभव करते हैं कि कैसे उसने उन्हें इतना कुछ दिया है, लेकिन जब परमेश्वर उनसे लेता है तो वे इसे स्वीकारने के इच्छुक नहीं होते। ऐसा क्यों होता है? क्योंकि वे पैसा और अपना आरामदायक जीवन नहीं छोड़ सकते। भले ही उन्होंने इसके बारे में कोई बड़ा हंगामा न किया हो, भले ही उन्होंने परमेश्वर के सामने अपना हाथ न बढ़ाया हो, और भले ही उन्होंने अपने प्रयासों पर भरोसा करके अपनी पिछली संपत्तियाँ वापस लेने की कोशिश न की हो, पर वे परमेश्वर के कार्यों से पहले ही निराश हो गए होते हैं, वे स्वीकारने में पूरी तरह से अक्षम रहते हैं और कहते हैं, “परमेश्वर का इस तरह से कार्य करना वास्तव में विचारहीनता है। यह समझ से परे है। मैं परमेश्वर में विश्वास कैसे करता रह सकता हूँ? मैं अब यह नहीं मानना चाहता कि वह परमेश्वर है। अगर मैं यह नहीं मानता कि वह परमेश्वर है, तो वह परमेश्वर नहीं है।” क्या यह एक तरह का स्वभाव है? (हाँ।) इस तरह का स्वभाव शैतान का होता है, परमेश्वर को इस तरह से शैतान नकारता है। इस तरह का स्वभाव सत्य से चिढ़ने और सत्य से घृणा करने का होता है। जब लोग सत्य से इस हद तक चिढ़ते हैं, तो यह उन्हें कहाँ ले जाता है? यह उनसे परमेश्वर का विरोध करवाता है और यह उनसे हठपूर्वक अंत तक परमेश्वर का विरोध करवाता है—जिसका अर्थ है कि उनके लिए सब-कुछ खत्म हो गया है।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, छह प्रकार के भ्रष्ट स्वभावों का ज्ञान ही सच्चा आत्म-ज्ञान है
जो लोग दुष्ट स्वभाव के होते हैं, वे हमेशा दूसरों को नियंत्रित करना चाहते हैं। लोगों को नियंत्रित करने का क्या मतलब है? क्या यह केवल तुम्हें कुछ शब्द कहने से रोकना है? क्या यह सिर्फ तुम्हें एक निश्चित तरीके से सोचने से रोकना है? निश्चित रूप से नहीं—यह किसी शब्द या विचार की समस्या नहीं है, बल्कि यह है कि उनका स्वभाव दुष्ट है। “दुष्ट” शब्द के आधार पर, वे कौन सी चीजें हैं जो एक व्यक्ति तब कर सकता है जब वह ऐसा स्वभाव प्रकट करता है? सबसे पहले, वे लोगों का अपने हित में इस्तेमाल करना चाहेंगे। अपने हित में इस्तेमाल करने का क्या मतलब है? इसका मतलब यह है कि कलीसिया में जो कुछ भी होता है, उसमें वे दखल और हस्तक्षेप करना तथा उसकी व्यवस्था करना चाहेंगे। वे तुम्हारे लिए एक नियम निर्धारित करेंगे और फिर तुम्हें उसका पालन करना होगा। यदि तुम ऐसा नहीं करोगे तो वे क्रोधित हो जाएँगे। वे तुम्हारा इस्तेमाल करना चाहते हैं : यदि वे तुम्हें पूर्व में जाने के लिए कहते हैं, तो तुम्हें पूर्व में जाना होगा, और यदि वे तुम्हें पश्चिम में जाने के लिए कहते हैं, तो तुम्हें पश्चिम में जाना होगा। उनकी यही इच्छा होती है, और फिर वे इस तरह से कार्य करते हैं—इसे किसी का अपने हित में इस्तेमाल करना कहा जाता है। ये लोग किसी व्यक्ति के भाग्य को वश में करना चाहते हैं, किसी व्यक्ति के जीवन, मस्तिष्क, व्यवहार और प्राथमिकताओं को वश में और नियंत्रित करना चाहते हैं, ताकि उस व्यक्ति का मस्तिष्क, विचार, प्राथमिकताएँ और इच्छाएँ, वे जो कहते हैं और जो वे चाहते हैं, उसके अनुरूप हों, न कि उसके अनुरूप जो परमेश्वर कहता है—इसे किसी का अपने हित में इस्तेमाल करना कहा जाता है। वे हमेशा यह व्यवस्था करना चाहते हैं कि लोग उनकी इच्छा के अनुसार ऐसा या वैसा करें, वे सिद्धांतों के आधार पर नहीं, बल्कि अपने इरादों और प्राथमिकताओं के आधार पर कार्य करते हैं। उन्हें इसकी परवाह नहीं है कि तुम कैसा महसूस करते हो, वे तुम्हें जबरन आदेश देते हैं, और तुम्हें वही करना होगा जो वे तुमसे कहते हैं; यदि तुम उनकी इच्छा के अनुसार कार्य नहीं करते, तो वे तुमसे निपटेंगे और तुम्हें महसूस कराएँगे कि तुम्हारे पास वास्तव में कोई विकल्प नहीं है और कुछ भी नहीं किया जा सकता। तुम अपने दिल में जानते हो कि तुम्हें धोखा दिया जा रहा है और नियंत्रित किया जा रहा है, लेकिन तुम अभी भी नहीं जानते कि इसे कैसे समझा जाए, विरोध करने का साहस तो बिल्कुल भी नहीं करते। क्या उनके कार्य शैतान का व्यवहार नहीं हैं? (हाँ) यह शैतान का व्यवहार है। शैतान इसी तरह से लोगों को मूर्ख बनाता है और नियंत्रित करता है, इसलिए शैतानी स्वभाव लोगों में हमेशा दूसरों को नियंत्रित करने और उन्हें इस्तेमाल करने की कोशिश के रूप में प्रकट होता है। भले ही वे दूसरों को नियंत्रित करने और उनका इस्तेमाल करने के इस उद्देश्य को प्राप्त कर सकें या नहीं, सभी लोगों का स्वभाव ऐसा होता है। यह कैसा स्वभाव है? (दुष्टता।) यह दुष्टता है। इसे दुष्टता क्यों कहा जाता है? इस स्वभाव के स्पष्ट संकेत क्या हैं? क्या इसमें जबरदस्ती की भावना निहित है? (हाँ।) इसमें जबरदस्ती की भावना है, जिसका अर्थ है कि चाहे तुम सुनो या न सुनो, चाहे तुम कैसा भी महसूस करो, चाहे तुम इसका आनंद लो या इसे समझो या फिर नहीं, वे बिना किसी चर्चा के, तुम्हें बोलने का मौका और किसी तरह की स्वतंत्रता दिए बिना तुमसे जबरन माँग करते हैं कि तुम उनकी बात सुनो और वही करो जो वे कहते हैं—क्या इसका एक अर्थ यह नहीं है? (हाँ।) इसे “क्रूरता” कहा जाता है, जो दुष्टता का ही एक पहलू है।[क] दुष्टता का दूसरा पहलू “बुराई” है,[ख] “बुराई” किसका संदर्भ देती है? यह इस बात को संदर्भित करती है कि लोग तुम्हें नियंत्रित और इस्तेमाल करने के लिए और उसके परिणामस्वरूप खुद को इस प्रकार संतुष्ट करने के लिए जबरन सिद्धांतों की शिक्षा देने और दमन के तरीकों का प्रयोग करते हैं। इसे “बुराई” कहा जाता है। अपने कार्यों में, शैतान तुम्हें स्वतंत्र इच्छा रखने से, सोचना-समझना सीखने से, और जीवन को परिपक्व करने वाले सत्य को समझने से रोकना चाहता है। शैतान तुम्हें वे काम करने नहीं देता, और वह तुम्हें नियंत्रित करना चाहता है। शैतान तुम्हें सत्य की खोज नहीं करने देता और परमेश्वर की इच्छा समझने नहीं देता, वह तुम्हें परमेश्वर के सामने ले जाने के बजाय अपने सामने लाता है और तुम्हें अपनी बात सुनने के लिए मजबूर करता है, जैसे कि वही सत्य हो, और जो कुछ भी वह कहता है वही सही हो, और जैसे वही सभी चीजों का केंद्र हो, इसलिए तुम्हें उसे सुनना होगा और यह विश्लेषण करने का प्रयास नहीं करना होगा कि उसके शब्द सही हैं या गलत। लोगों के व्यवहार और मस्तिष्क को जबरदस्ती और हिंसक रूप से अपने हित में इस्तेमाल और नियंत्रित करने का स्वभाव दुष्टता कहलाता है।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने स्वभाव का ज्ञान उसमें बदलाव की बुनियाद है
फुटनोट :
क. मूल पाठ में, “जो दुष्टता का ही एक पहलू है” यह वाक्यांश नहीं है।
ख. मूल पाठ में “दुष्टता का दूसरा पहलू ‘बुराई’ है” वाक्यांश नहीं है।
दुष्टता को पहचानना सबसे कठिन है, क्योंकि यह मनुष्य की प्रकृति बन गया है और वे इसे गौरवान्वित करने लगते हैं और अधिक दुष्टता भी उन्हें दुष्टता नहीं लगेगी। अतः दुष्ट स्वभाव की पहचान करना हठधर्मी स्वभाव की पहचान करने से भी अधिक कठिन है। कुछ लोग कहते हैं : “इसे पहचानना आसान कैसे नहीं है? सभी लोगों की दुष्ट इच्छाएँ होती हैं। क्या यह दुष्टता नहीं है?” यह सतही है। असली दुष्टता क्या है? प्रकट होने पर कौन-सी अवस्थाएँ दुष्ट होती हैं? जब लोग अपने दिल की गहराइयों में छिपे दुष्ट और शर्मनाक इरादे छिपाने के लिए प्रभावशाली लगने वाले कथनों का उपयोग करते हैं और फिर दूसरों को यह विश्वास दिलाते हैं कि ये कथन बहुत अच्छे, ईमानदार और वैध हैं, और अंततः अपने गुप्त मकसद हासिल कर लेते हैं, तो क्या यह एक दुष्ट स्वभाव है? इसे दुष्ट क्यों कहा जाता है और कपट करना क्यों नहीं कहा जाता? स्वभाव और सार के अनुसार कपट उतना बुरा नहीं होता। दुष्ट होना कपटी होने से ज्यादा गंभीर है, यह एक ऐसा व्यवहार है जो कपट से ज्यादा घातक और खराब है, और औसत व्यक्ति के लिए इसे समझना मुश्किल है। उदाहरण के लिए, साँप ने हव्वा को लुभाने के लिए किस तरह के शब्दों का इस्तेमाल किया? दिखावटी शब्द, जो सुनने में सही लगते हैं और तुम्हारी भलाई के लिए कहे गए प्रतीत होते हैं। तुम नहीं जानते कि इन शब्दों में कुछ गलत है या इनके पीछे कोई द्वेषपूर्ण मंशा है, और साथ ही, तुम शैतान द्वारा दिए गए इन सुझावों को छोड़ने में असमर्थ रहते हो। यह प्रलोभन है। जब तुम प्रलोभन में पड़ते हो और इस तरह के शब्द सुनते हो, तो तुम प्रलोभन में आए बिना नहीं रह पाते और तुम्हारे जाल में फँसने की संभावना है, जिससे शैतान का लक्ष्य पूरा हो जाएगा। इसे ही दुष्टता कहा जाता है। साँप ने हव्वा को लुभाने के लिए इसी तरीके का इस्तेमाल किया था। क्या यह एक प्रकार का स्वभाव है? (हाँ।) इस प्रकार का स्वभाव कहाँ से आता है? यह साँप से, शैतान से आता है। इस प्रकार का दुष्ट स्वभाव मनुष्य की प्रकृति के भीतर मौजूद है। क्या यह दुष्टता मनुष्यों की दुष्ट अभिलाषाओं से भिन्न नहीं है? दुष्ट अभिलाषाएँ कैसे उत्पन्न होती हैं? इसका संबंध देह से है। सच्ची दुष्टता एक प्रकार का स्वभाव है, गहराई तक छिपा हुआ, जिसकी पहचान सत्य के अनुभव या इसकी समझ से रहित लोग बिलकुल नहीं कर सकते। इसलिए मनुष्य के स्वभावों में इसे पहचानना सबसे कठिन है। किस प्रकार के व्यक्ति का दुष्ट स्वभाव सबसे प्रबल होता है? जो लोग दूसरों का शोषण करना पसंद करते हैं। वे हेरफेर करने में इतने अच्छे होते हैं कि जिन लोगों के साथ वे हेरफेर करते हैं उन्हें भी पता नहीं चलता कि आगे क्या हुआ। इस प्रकार के व्यक्ति का स्वभाव दुष्ट होता है। दुष्ट लोग, धोखेबाजी के आधार पर, अपने धोखे को, अपने पापों को छिपाने और अपने गुप्त उद्देश्यों, लक्ष्यों और स्वार्थी इच्छाओं को छिपाने के लिए अन्य तरीकों का उपयोग करते हैं। यह दुष्टता है। इसके अलावा, वे तुम्हें आकर्षित करने, लुभाने और बहकाने के लिए विभिन्न तरीकों का उपयोग करेंगे, ताकि तुम उनकी इच्छाओं का पालन करो और उनके लक्ष्यों को प्राप्त करने की उनकी स्वार्थी इच्छाओं को पूरा करो। यह सब दुष्टता है। यह असली शैतानी स्वभाव है। क्या तुम लोगों ने इनमें से कोई व्यवहार दिखाया है? तुम लोगों ने दुष्ट स्वभाव के किन पहलुओं को अधिक दिखाया है : प्रलोभन, लालच, या एक झूठ को छिपाने के लिए कई झूठ का उपयोग करना? (मुझे लगता है थोड़े-बहुत सभी पहलू दिखाए हैं।) तुम्हें लगता है उन सभी का थोड़ा प्रदर्शन किया है। इसका मतलब भावनात्मक स्तर पर तुम लोगों को लगता है कि तुमने ऐसे व्यवहार दिखाए भी हैं और नहीं भी दिखाए हैं। तुम लोगों के पास कोई सबूत नहीं है। तो, अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में किसी चीज से सामना होने पर अगर तुम लोग दुष्ट स्वभाव दिखाते हो तो क्या तुम लोगों को इसका एहसास होता है? दरअसल, ये बातें हर किसी के स्वभाव में मौजूद होती हैं। उदाहरण के लिए, ऐसा कुछ है जो तुम नहीं समझते, लेकिन तुम दूसरों को यह नहीं जताना चाहते कि तुम उसे नहीं समझते, इसलिए तुम उन्हें गुमराह करने के लिए विभिन्न तरीकों का उपयोग करते हो ताकि उन्हें लगे कि तुम इसे समझते हो। यह धोखाधड़ी है। ऐसी धोखाधड़ी दुष्टता की अभिव्यक्ति है। प्रलोभन और लालच देना भी है, जो सभी दुष्टता की अभिव्यक्तियाँ हैं। क्या तुम लोग अकसर दूसरों को प्रलोभित करते हो? अगर तुम लोग सही तरीके से किसी को समझने की कोशिश कर रहे हो, उनके साथ संगति करना चाहते हो और यह तुम लोगों के कार्य लिए आवश्यक है और यह उचित संवाद है, तो इसे प्रलोभन नहीं माना जाएगा। परंतु यदि तुम लोगों का कोई व्यक्तिगत इरादा और उद्देश्य है और तुम वास्तव में इस व्यक्ति के स्वभाव, प्रयासों और ज्ञान को समझना नहीं चाहते हो, बल्कि उसके गहरे विचार और सच्ची भावनाएँ जानना चाहते हो, तो इसे दुष्टता, व प्रलोभन और लालच देना कहा जाता है। यदि तुम ऐसा करते हो, तो तुम्हारा स्वभाव दुष्ट है; क्या यह ऐसी चीज नहीं जो छुपी हुई है? क्या इस प्रकार के स्वभाव को बदलना आसान है? यदि तुम अपने स्वभाव के प्रत्येक पहलू की अभिव्यक्तियों को, उनके कारण पैदा होने वाली अवस्थाओं को पहचान सकते हो और इनका खुद से मिलान कर सकते हो, यह महसूस कर सकते हो कि इस प्रकार का स्वभाव कितना भयानक और खतरनाक है, तो तुम्हें इस संबंध में बदलने की ज़िम्मेदारी का एहसास होगा और तुम परमेश्वर के वचनों के लिए तरसने लगोगे और सत्य को स्वीकार कर पाओगे। तभी तुम बदल सकते हो और उद्धार प्राप्त कर सकते हो। लेकिन अगर खुद से इसका मिलान करने के बाद भी तुममें सत्य के लिए कोई प्यास नहीं जगती है, तुममें ऋणी या दोषी होने का भाव नहीं है—बिलकुल भी पश्चाताप नहीं है—और सत्य के लिए कोई प्रेम नहीं है, तो तुम्हारे लिए बदलाव मुश्किल होगा। और समझने से मदद नहीं मिलेगी, क्योंकि तुम केवल सिद्धांत ही समझोगे। सत्य का पहलू चाहे जो भी हो, अगर तुम्हारी समझ सिद्धांत के स्तर पर ही रुक जाती है और तुम्हारे अभ्यास और प्रवेश से जुड़ी नहीं है, तो तुमने जो सिद्धांत समझा है वह किसी काम का नहीं रहेगा।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सत्य के अनुसरण में केवल आत्म-ज्ञान ही सहायक है
आम तौर पर, इस दुनिया में जन्म लेने वाले एक इंसान के नाते, तुमने कुछ ऐसा किया होगा जिसमें सत्य का उल्लंघन निहित है, इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम्हें याद है या नहीं कि तुमने कभी किसी दूसरे को धोखा देने के लिए कुछ किया है, या तुमने पहले कई बार दूसरों को धोखा दिया है। चूँकि तुम अपने माता-पिता या दोस्तों को धोखा देने में सक्षम हो, तो तुम दूसरों के साथ भी विश्वासघात करने में सक्षम हो, और इससे भी बढ़कर तुम मुझे धोखा देने में और उन चीजों को करने में सक्षम हो जो मेरे लिए घृणित हैं। दूसरे शब्दों में, विश्वासघात महज़ एक सतही अनैतिक व्यवहार नहीं है, बल्कि यह कुछ ऐसा है जो सत्य के साथ टकराता है। यह वास्तव में मानव जाति के मेरे प्रति प्रतिरोध और विद्रोह का स्रोत है। यही कारण है कि मैंने निम्नलिखित कथन में इसका सारांश दिया है : विश्वासघात मनुष्य की प्रकृति है, और यह प्रकृति मेरे साथ प्रत्येक व्यक्ति के सामंजस्य की बहुत बड़ी शत्रु है।
ऐसा व्यवहार जो पूरी तरह से मेरे प्रति समर्पण नहीं कर सकता है, विश्वासघात है। ऐसा व्यवहार जो मेरे प्रति निष्ठावान नहीं हो सकता है विश्वासघात है। मेरे साथ धोखा करना और मेरे साथ छल करने के लिए झूठ का उपयोग करना, विश्वासघात है। धारणाओं से भरा होना और हर जगह उन्हें फैलाना विश्वासघात है। मेरी गवाहियों और हितों की रक्षा नहीं कर पाना विश्वासघात है। दिल में मुझसे दूर होते हुए भी झूठमूठ मुस्कुराना विश्वासघात है। ये सभी विश्वासघात के काम हैं जिन्हें करने में तुम लोग हमेशा सक्षम रहे हो, और ये तुम लोगों के बीच आम बात है। तुम लोगों में से शायद कोई भी इसे समस्या न माने, लेकिन मैं ऐसा नहीं सोचता हूँ। मैं अपने साथ किसी व्यक्ति के विश्वासघात को एक तुच्छ बात नहीं मान सकता हूँ, और निश्चय ही, मैं इसे अनदेखा नहीं कर सकता हूँ। अब, जबकि मैं तुम लोगों के बीच कार्य कर रहा हूँ, तो तुम लोग इस तरह से व्यवहार कर रहे हो—यदि किसी दिन तुम लोगों की निगरानी करने के लिए कोई न हो, तो क्या तुम लोग ऐसे डाकू नहीं बन जाओगे जिन्होंने खुद को अपनी छोटी पहाड़ियों का राजा घोषित कर दिया है? जब ऐसा होगा और तुम विनाश का कारण बनोगे, तब तुम्हारे पीछे उस गंदगी को कौन साफ करेगा? तुम सोचते हो कि विश्वासघात के कुछ कार्य तुम्हारे सतत व्यवहार नहीं, बल्कि मात्र कभी-कभी होने वाली घटनाएँ हैं, और उनकी इतने गंभीर तरीके से चर्चा नहीं होनी चाहिए कि तुम्हारे अहं को ठेस पहुँचे। यदि तुम वास्तव में ऐसा मानते हो, तो तुम में समझ का अभाव है। इस तरीके से सोचना विद्रोह का एक नमूना और विशिष्ट उदाहरण है। मनुष्य की प्रकृति उसका जीवन है; यह एक सिद्धांत है जिस पर वह जीवित रहने के लिए निर्भर करता है और वह इसे बदलने में असमर्थ है। विश्वासघात की प्रकृति का उदाहरण लो। यदि तुम किसी रिश्तेदार या मित्र को धोखा देने के लिए कुछ कर सकते हो, तो यह साबित करता है कि यह तुम्हारे जीवन और तुम्हारी प्रकृति का हिस्सा है जिसके साथ तुम पैदा हुए थे। यह कुछ ऐसा है जिससे कोई भी इनकार नहीं कर सकता है। ...
कोई भी अपना सच्चा चेहरा दर्शाने के लिए अपने स्वयं के शब्दों और क्रियाओं का उपयोग कर सकता है। यह सच्चा चेहरा निश्चित रूप से उसकी प्रकृति है। यदि तुम बहुत कुटिल ढंग से बोलने वाले व्यक्ति हो, तो तुम कुटिल प्रकृति के हो। यदि तुम्हारी प्रकृति कपटपूर्ण है, तो तुम कपटी ढंग से काम करते हो, और इससे तुम बहुत आसानी से लोगों को धोखा दे देते हो। यदि तुम्हारी प्रकृति अत्यंत कुटिल है, तो हो सकता है कि तुम्हारे वचन सुनने में सुखद हों, लेकिन तुम्हारे कार्य तुम्हारी कुटिल चालों को छिपा नहीं सकते हैं। यदि तुम्हारी प्रकृति आलसी है, तो तुम जो कुछ भी कहते हो, उस सबका उद्देश्य तुम्हारी लापरवाही और अकर्मण्यता के लिए उत्तरदायित्व से बचना है, और तुम्हारे कार्य बहुत धीमे और लापरवाह होंगे, और सच्चाई को छिपाने में बहुत माहिर होंगे। यदि तुम्हारी प्रकृति सहानुभूतिपूर्ण है, तो तुम्हारे वचन तर्कसंगत होंगे और तुम्हारे कार्य भी सत्य के अत्यधिक अनुरूप होंगे। यदि तुम्हारी प्रकृति निष्ठावान है, तो तुम्हारे वचन निश्चय ही खरे होंगे और जिस तरीके से तुम कार्य करते हो, वह भी व्यावहारिक और यथार्थवादी होगा, जिसमें ऐसा कुछ न होगा जिससे तुम्हारे मालिक को असहजता महसूस हो। यदि तुम्हारी प्रकृति कामुक या धन लोलुप है, तो तुम्हारा हृदय प्रायः इन चीजों से भरा होगा और तुम बेइरादा कुछ विकृत, अनैतिक काम करोगे, जिन्हें भूलना लोगों के लिए कठिन होगा और वे काम उनमें घृणा पैदा करेंगे। जैसा कि मैंने कहा है, यदि तुम्हारी प्रकृति विश्वासघात की है तो तुम मुश्किल से ही स्वयं को इससे छुड़ा सकते हो। इसे भाग्य पर मत छोड़ दो कि अगर तुम लोगों ने किसी के साथ गलत नहीं किया है तो तुम लोगों की विश्वासघात की प्रकृति नहीं है। यदि तुम ऐसा ही सोचते हो तो तुम घृणित हो। मेरे सभी वचन, हर बार जो मैं बोलता हूँ, वे सभी लोगों पर लक्षित होते हैं, न कि केवल एक व्यक्ति या एक प्रकार के व्यक्ति पर। सिर्फ इसलिए कि तुमने मेरे साथ एक मामले में विश्वासघात नहीं किया है, यह साबित नहीं करता कि तुम मेरे साथ किसी अन्य मामले में विश्वासघात नहीं कर सकते हो। कुछ लोग अपने विवाह में असफलताओं के दौरान सत्य की तलाश करने में अपना आत्मविश्वास खो देते हैं। कुछ लोग परिवार के टूटने के दौरान मेरे प्रति निष्ठावान होने के अपने दायित्व को त्याग देते हैं। कुछ लोग खुशी और उत्तेजना के एक पल की तलाश करने के लिए मेरा परित्याग कर देते हैं। कुछ लोग प्रकाश में रहने और पवित्र आत्मा के कार्य का आनंद प्राप्त करने के बजाय एक अंधेरी खोह में पड़े रहना पसंद करेंगे। कुछ लोग धन की अपनी लालसा को संतुष्ट करने के लिए दोस्तों की सलाह पर ध्यान नहीं देते हैं, और अब भी अपनी गलतियों को स्वीकार नहीं कर सकते हैं और स्वयं में बदलाव नहीं कर सकते हैं। कुछ लोग मेरा संरक्षण प्राप्त करने के लिए केवल अस्थायी रूप से मेरे नाम के अधीन रहते हैं, जबकि अन्य लोग केवल दबाव में मेरे प्रति थोड़ा-सा समर्पित होते हैं क्योंकि वे जीवन से चिपके रहते हैं और मृत्यु से डरते हैं। क्या ये और अन्य अनैतिक कार्य जो सत्यनिष्ठा से रहित हैं, ऐसे व्यवहार नहीं हैं जिनसे लोग लंबे समय पहले अपने दिलों की गहराई में मेरे साथ विश्वासघात करते आ रहे हैं? निस्संदेह, मुझे पता है कि लोग मुझसे विश्वासघात करने की पहले से योजना नहीं बनाते; उनका विश्वासघात उनकी प्रकृति का स्वाभाविक रूप से प्रकट होना है। कोई मेरे साथ विश्वासघात नहीं करना चाहता है, और कोई भी इस बात से खुश नहीं है कि उसने मेरे साथ विश्वासघात करने का कोई काम किया है। इसके विपरीत, वे डर से काँप रहे हैं, है ना? तो क्या तुम लोग इस बारे में सोच रहे हो कि तुम लोग इन विश्वासघातों से कैसे छुटकारा पा सकते हो, और कैसे तुम लोग वर्तमान परिस्थिति को बदल सकते हो?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, एक बहुत गंभीर समस्या : विश्वासघात (1)
लोगों का अक्सर भ्रष्ट स्वभाव को उजागर करना यह साबित करता है कि उनका जीवन शैतान के भ्रष्ट स्वभाव से नियंत्रित होता है, और उनका सार शैतान का ही सार है। लोगों को इस तथ्य को मानना और स्वीकार करना चाहिए। इंसान के प्रकृति-सार और परमेश्वर के सार के बीच अंतर होता है। इस तथ्य को स्वीकार करने के बाद उन्हें क्या करना चाहिए? जब लोग भ्रष्ट स्वभाव दिखाते हैं; जब वे देह के भोगों में लिप्त होते और परमेश्वर से दूर हो जाते हैं; या जब परमेश्वर इस तरह से कार्य करता है जो उनके अपने विचारों के विपरीत होता है, और उनके भीतर शिकायतें पैदा होती हैं, तो उन्हें तुरंत ही खुद को अवगत करा देना चाहिए कि यह कोई समस्या है, और भ्रष्ट स्वभाव है; यह परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह है, परमेश्वर का विरोध है; इसका सत्य के साथ मेल नहीं है, और परमेश्वर इससे घृणा करता है। जब लोगों को इन चीजों का एहसास होता है, तो उन्हें शिकायत नहीं करनी चाहिए, या नकारात्मक होकर ढीला नहीं पड़ जाना चाहिए, और उन्हें परेशान तो बिल्कुल नहीं होना चाहिए; इसके बजाय, उन्हें अधिक गहराई से खुद को जाने में सक्षम होना चाहिए। इसके अलावा, उन्हें अग्रसक्रिय रूप से परमेश्वर के सामने आने में सक्षम होना चाहिए, और परमेश्वर की फटकार और अनुशासन को स्वीकार करना चाहिए, और उन्हें तुरंत अपनी स्थिति पलट देनी चाहिए, ताकि वे सत्य और परमेश्वर के वचनों के अनुसार अभ्यास करने में सक्षम हो जाएँ, और सिद्धांतों के अनुसार कार्य कर सकें। इस तरह, परमेश्वर के साथ तुम्हारा रिश्ता निरंतर सामान्य होता जाएगा, और साथ ही तुम्हारी अंदरूनी स्थिति भी। तुम भ्रष्ट स्वभावों, भ्रष्टता के सार, और शैतान की भिन्न कुरूप स्थितियों की पहचान एक बढ़ती स्पष्टता के साथ करने में सक्षम होगे। फिर तुम इस तरह की मूर्खतापूर्ण और बचकानी बातें नहीं करोगे जैसे कि “यह शैतान था जो मेरे साथ दखलंदाजी कर रहा था,” या “यह ख्याल शैतान ने मुझे दिया था।” इसके बजाय, तुम्हें भ्रष्ट स्वभावों के बारे में, परमेश्वर का विरोध करने वाले इंसानी सार के बारे में सटीक जानकारी होगी। तुम्हारे पास इन चीजों को हल करने का एक अधिक सटीक तरीका होगा, और ये चीजें तुम्हें विवश नहीं करेंगी। तुम इसलिए कमजोर नहीं होगे या परमेश्वर और उसके उद्धार में विश्वास नहीं गंवा दोगे क्योंकि तुमने अपना थोड़ा भ्रष्ट स्वभाव दिखाया है, या अपराध किया है, या अनमनेपन से अपना कर्तव्य निभाया है, या क्योंकि तुम अक्सर खुद को निष्क्रिय, नकारात्मक स्थिति में पाते हो। तुम ऐसी दशाओं में नहीं रहोगे, बल्कि अपने भ्रष्ट स्वभाव का ठीक से सामना करोगे, और सामान्य आध्यात्मिक जीवन जी पाओगे। जब कोई भ्रष्ट स्वभावों को उजागर करता है, तब अगर वह आत्मचिंतन कर सके, परमेश्वर के सामने आकर प्रार्थना करे, सत्य खोजे, और अपने भ्रष्ट स्वभावों का सार इस तरह पहचाने और विश्लेषण करे, कि वह अपने भ्रष्ट स्वभावों से और नियंत्रित और बाधित न हो, बल्कि सत्य का अभ्यास कर सके, तो वह उद्धार के मार्ग पर चल चुका होगा। इस तरह के अभ्यास और अनुभव के साथ, कोई भी अपने भ्रष्ट स्वभावों को दूर कर सकता है और शैतान के प्रभाव से मुक्त हो सकता है। तो क्या वह परमेश्वर के सामने नहीं रहने लगा है और उसने स्वतंत्रता और मुक्ति प्राप्त नहीं कर ली है? यह सत्य का अभ्यास करने और सत्य को प्राप्त करने का मार्ग है, यही उद्धार का मार्ग भी है। मनुष्यों में भ्रष्ट स्वभावों की जड़ें काफी गहरी हैं; शैतान का सार और उसकी प्रकृति लोगों के विचारों, व्यवहार और हृदय पर नियंत्रण करते हैं। हालाँकि, सत्य के सामने, परमेश्वर के कार्य के सामने और परमेश्वर के उद्धार के सामने यह सब फीका है; इससे कोई रुकावट नहीं आती। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसी व्यक्ति में कौन-से भ्रष्ट स्वभाव हैं, ना इससे कि उसे किन मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, ना इससे कि उसकी बाधाएँ क्या हैं, एक मार्ग है जिसे अपनाया जा सकता है, उन्हें हल करने की एक विधि है, और उनका समाधान करने के लिए संबंधित सत्य भी हैं। इस तरह से, क्या लोगों के उद्धार की उम्मीद नहीं है? हाँ, लोगों के उद्धार की उम्मीद है।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन