11. परमेश्वर में विश्वास करने वालों को अपने कर्तव्य अच्छे से क्यों निभाने चाहिए

अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन

परमेश्वर मानवजाति का प्रबंधन करने और बचाने का कार्य करता है। बेशक परमेश्वर की लोगों से अपेक्षाएँ हैं, और ये अपेक्षाएँ ही उनका कर्तव्य हैं। यह स्पष्ट है कि लोगों का कर्तव्य परमेश्वर के कार्य और मानवजाति से उसकी अपेक्षाओं से उत्पन्न होता है। इससे फर्क नहीं पड़ता कि कोई व्यक्ति क्या कर्तव्य निभाता है, यह सबसे उचित काम है जो वह कर सकता है, मानवजाति के बीच सबसे सुंदर और सबसे न्यायपूर्ण काम है। सृजित प्राणियों के रूप में, लोगों को अपना कर्तव्य निभाना चाहिए, और केवल तभी वे सृष्टिकर्ता की स्वीकृति प्राप्त कर सकते हैं। सृजित प्राणी सृष्टिकर्ता के प्रभुत्व में जीते हैं और वे वह सब जो परमेश्वर द्वारा प्रदान किया जाता है और हर वह चीज जो परमेश्वर से आती है, स्वीकार करते हैं, इसलिए उन्हें अपनी जिम्मेदारियाँ और दायित्व पूरे करने चाहिए। यह पूरी तरह से स्वाभाविक और न्यायोचित है, और यह परमेश्वर का आदेश है। इससे यह देखा जा सकता है कि लोगों के लिए सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाना धरती पर रहते हुए किए गए किसी भी अन्य काम से कहीं अधिक उचित, सुंदर और भद्र होता है; मानवजाति के बीचइससे अधिक सार्थक या योग्य कुछ भी नहीं होता, और सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाने की तुलना में किसी सृजित व्यक्ति के जीवन के लिए अधिक अर्थपूर्ण और मूल्यवान अन्य कुछ भी नहीं है। पृथ्वी पर, सच्चाई और ईमानदारी से सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाने वाले लोगों का समूह ही सृष्टिकर्ता के प्रति समर्पण करने वाला होता है। यह समूह सांसारिक प्रवृत्तियों का अनुसरण नहीं करता; वे परमेश्वर की अगुआई और मार्गदर्शन के प्रति समर्पण करते हैं, केवल सृष्टिकर्ता के वचन सुनते हैं, सृष्टिकर्ता द्वारा व्यक्त किए गए सत्य स्वीकारते हैं, और सृष्टिकर्ता के वचनों के अनुसार जीते हैं। यह सबसे सच्ची, सबसे शानदार गवाही है, और यह परमेश्वर में विश्वास की सबसे अच्छी गवाही है। सृजित प्राणी के लिए एक सृजित प्राणी का कर्तव्य पूरा करने में सक्षम होना, सृष्टिकर्ता को संतुष्ट करने में सक्षम होना, मानवजाति के बीच सबसे सुंदर चीज होती है, और यह कुछ ऐसा है जिसे एक कहानी के रूप में फैलाया जाना चाहिए जिसकी सभी लोग इसकी प्रशंसा करें। सृजित प्राणियों को सृष्टिकर्ता जो कुछ भी सौंपता है उसे बिना शर्त स्वीकार लेना चाहिए; मानवजाति के लिए यह खुशी और सौभाग्य दोनों की बात है, और उन सबके लिए, जो एक सृजित प्राणी का कर्तव्य पूरा करते हैं, कुछ भी इससे अधिक सुंदर या स्मरणीय नहीं होता—यह एक सकारात्मक चीज़ है। ... एक सृजित प्राणी के रूप में, जब व्यक्ति सृष्टिकर्ता के सामने आता है, तो उसे अपना कर्तव्य निभाना ही चाहिए। यही करना सबसे उचित है, और उसे यह जिम्मेदारी पूरी करनी ही चाहिए। इस आधार पर कि सृजित प्राणी अपने कर्तव्य निभाते हैं, सृष्टिकर्ता ने मानवजाति के बीच और भी बड़ा कार्य किया है, और उसने लोगों पर कार्य का एक और चरण पूरा किया है। और वह कौन-सा कार्य है? वह मानवजाति को सत्य प्रदान करता है, जिससे उन्हें अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए परमेश्वर से सत्य हासिल करने, और इस प्रकार अपने भ्रष्ट स्वभावों को दूर करने और शुद्ध होने का अवसर मिलता है। इस प्रकार, वे परमेश्वर के इरादों को पूरा कर पाते हैं और जीवन में सही मार्ग अपना पाते हैं, और अंततः, वे परमेश्वर का भय मानकर बुराई से दूर रहने, पूर्ण उद्धार प्राप्त करने में सक्षम हो जाते हैं, और अब शैतान के दुखों के अधीन नहीं रहते हैं। यही वह प्रभाव है जो परमेश्वर चाहता है कि अपने कर्तव्य का निर्वहन करके मानवजाति अंततः प्राप्त करे। इसलिए, अपना कर्तव्य निभाने की प्रक्रिया के दौरान परमेश्वर तुम्हें केवल एक चीज स्पष्ट रूप से देखने और थोड़ा-सा सत्य ही समझने नहीं देता, वह तुम्हें केवल एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य निभाने से मिलने वाले अनुग्रह और आशीषों का आनंद मात्र ही लेने नहीं देता है। इसके बजाय, वह तुम्हें शुद्ध होने और बचने, और अंततः, सृष्टिकर्ता के मुखमंडल के प्रकाश में रहने का अवसर भी देता है।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग सात)

मानवजाति के एक सदस्य और एक सच्चे ईसाई होने के नाते अपने मन और शरीर परमेश्वर के आदेश की पूर्ति करने के लिए समर्पित करना हम सभी की जिम्मेदारी और दायित्व है, क्योंकि हमारा संपूर्ण अस्तित्व परमेश्वर से आया है, और वह परमेश्वर की संप्रभुता के कारण अस्तित्व में है। यदि हमारे मन और शरीर परमेश्वर के आदेश और मानवजाति के न्यायसंगत कार्य के लिए नहीं हैं, तो हमारी आत्माएँ उन लोगों के सामने शर्मिंदा महसूस करेंगी, जो परमेश्वर के आदेश के लिए शहीद हुए थे, और परमेश्वर के सामने तो और भी अधिक शर्मिंदा होंगी, जिसने हमें सब-कुछ प्रदान किया है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 2: परमेश्वर संपूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियंता है

परमेश्वर के घर में परमेश्वर का आदेश स्वीकारने और इंसान के कर्तव्य-निर्वहन का निरंतर उल्लेख होता है। कर्तव्य कैसे अस्तित्व में आता है? आम तौर पर कहें, तो यह मानवता का उद्धार करने के परमेश्वर के प्रबंधन-कार्य के परिणामस्वरूप अस्तित्व में आता है; ख़ास तौर पर कहें, तो जब परमेश्वर का प्रबंधन-कार्य मानवजाति के बीच खुलता है, तब विभिन्न कार्य प्रकट होते हैं, जिन्हें पूरा करने के लिए लोगों का सहयोग चाहिए होता है। इससे जिम्मेदारियाँ और विशेष कार्य उपजते हैं, जिन्हें लोगों को पूरा करना है, और यही जिम्मेदारियाँ और विशेष कार्य वे कर्तव्य हैं, जो परमेश्वर मानवजाति को सौंपता है। परमेश्वर के घर में जिन विभिन्न कार्यों में लोगों के सहयोग की आवश्यकता है, वे ऐसे कर्तव्य हैं जिन्हें उन्हें पूरा करना चाहिए। तो, क्या बेहतर और बदतर, बहुत ऊँचा और नीच या महान और छोटे के अनुसार कर्तव्यों के बीच अंतर हैं? ऐसे अंतर नहीं होते; यदि किसी चीज का परमेश्वर के प्रबंधन कार्य के साथ कोई लेना-देना हो, उसके घर के काम की आवश्यकता हो, और परमेश्वर के सुसमाचार-प्रचार को उसकी आवश्यकता हो, तो यह व्यक्ति का कर्तव्य होता है। यह कर्तव्य की उत्पत्ति और परिभाषा है। परमेश्वर के प्रबंधन कार्य के बिना, क्या पृथ्वी के लोगों के पास—चाहे वे कैसे भी रहते हों—कर्तव्य होंगे? नहीं। अब तुम स्पष्ट रूप से समझ पा रहे हो। व्यक्ति का कर्तव्य किससे संबंधित है? (यह मानवजाति के उद्धार के लिए परमेश्वर के प्रबंधन कार्य से संबंधित है।) सही कहा। मानवजाति के कर्तव्यों, सृजित प्राणियों के कर्तव्यों और मानवजाति के उद्धार के परमेश्वर के प्रबंधन कार्य में एक प्रत्यक्ष संबंध है। यह कहा जा सकता है कि परमेश्वर द्वारा मानवजाति के उद्धार के बिना और उस प्रबंधन कार्य के बिना जो देहधारी परमेश्वर ने मनुष्यों के बीच आरम्भ किया है, लोगों के पास बताने के लिए कोई कर्तव्य न होता। कर्तव्य परमेश्वर के कार्य से उत्पन्न होते हैं; यही परमेश्वर लोगों से चाहता है। इसे इस परिप्रेक्ष्य से देखते हुए परमेश्वर का अनुसरण करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए कर्तव्य महत्वपूर्ण है, है ना? यह बहुत ही महत्वपूर्ण है। मोटे तौर पर, तुम परमेश्वर की प्रबंधन योजना के काम में हिस्सा ले रहो हो; खासतौर पर, तुम परमेश्वर के विभिन्न प्रकार के कामों में सहयोग कर रहे हो, जिनकी अलग-अलग समय और लोगों के अलग-अलग समूहों के बीच में आवश्यकता है। भले ही तुम्हारा कर्तव्य जो भी हो, यह परमेश्वर ने तुम्हें एक लक्ष्य दिया है। कभी-कभी शायद तुम्हें किसी महत्वपूर्ण वस्तु की देखभाल या सुरक्षा करने की जरूरत पड़ सकती है। यह अपेक्षाकृत एक नगण्य-सा मामला हो सकता है जिसे केवल तुम्हारी ज़िम्मेदारी कहा जा सकता है, लेकिन यह एक ऐसा कार्य है जो परमेश्वर ने तुम्हें दिया है; इसे तुमने परमेश्वर से स्वीकार किया है। तुमने इसे परमेश्वर के हाथों से स्वीकार किया है और यह तुम्हारा कर्तव्य है। मुद्दे की बात करें तो तुम्हारा कर्तव्य तुम्हें परमेश्वर ने सौंपा है। इसमें मुख्य रूप से सुसमाचार फैलाना, गवाही देना, वीडियो बनाना, कलीसिया में अगुवा या कार्यकर्ता बनना शामिल है, या यह ऐसा काम हो सकता है जो और भी जोखिम भरा और महत्वपूर्ण हो। चाहे जो हो, जब तक इसका संबंध परमेश्वर के कार्य और सुसमाचार के प्रसार के कार्य की आवश्यकता से है, तब तक लोगों को इसे परमेश्वर से प्राप्त कर्तव्य के रूप में स्वीकार करना चाहिए। इसे और भी व्यापक शब्दों में कहें तो कर्तव्य व्यक्ति का लक्ष्य होता है, परमेश्वर द्वारा सौंपा गया आदेश होता है; खासतौर पर, यह तुम्हारा दायित्व है, तुम्हारी बाध्यता है। ऐसा मानते हुए कि यह तुम्हारा लक्ष्य है, परमेश्वर द्वारा तुम्हें सौंपा गया आदेश है, तुम्हारा दायित्व और बाध्यता है, कर्तव्य निर्वहन का तुम्हारे व्यक्तिगत मामलों से कोई लेना-देना नहीं है।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, कर्तव्‍य का समुचित निर्वहन क्‍या है?

तुम लोगों के मन में यह दृष्टि अब स्पष्ट हो जानी चाहिए : परमेश्वर में विश्वास रखने के लिए कर्तव्य निर्वहन अत्यंत महत्वपूर्ण है। परमेश्वर में विश्वास रखने का सबसे अहम पहलू अब कर्तव्य निर्वहन है। अपना कर्तव्य अच्छे ढंग से निभाए बिना कोई वास्तविकता नहीं हो सकती है। कर्तव्य निर्वहन के जरिये लोग परमेश्वर के इरादों को समझ पाते हैं, और धीरे-धीरे उसके साथ सामान्य संबंध बना लेते हैं। कर्तव्य निर्वहन के जरिये लोग धीरे-धीरे अपनी समस्याएँ पहचान लेते हैं, और अपने भ्रष्ट स्वभाव और सार को पहचान लेते हैं। साथ ही, आत्मचिंतन करके लोग धीरे-धीरे यह पता लगा लेते हैं कि परमेश्वर उनसे क्या चाहता है। क्या अभी तुम यह समझते हो कि परमेश्वर में विश्वास रखते हुए तुम किस चीज में विश्वास रखते हो? दरअसल, यह सत्य पर विश्वास है, सत्य की प्राप्ति है। कर्तव्य निर्वहन से सत्य और जीवन प्राप्ति हो पाती है। कर्तव्य निभाए बिना सत्य और जीवन को प्राप्त नहीं किया जा सकता। कर्तव्य निभाए बिना अगर कोई परमेश्वर में विश्वास रखता है तो क्या वास्तविकता हो सकती है? (नहीं।) कोई वास्तविकता नहीं हो सकती है। इस प्रकार अगर तुम अपना कर्तव्य अच्छी तरह नहीं निभाते तो तुम सत्य हासिल नहीं कर सकते। एक बार तुम्हें हटा दिया गया तो इससे पता चलता है कि तुम परमेश्वर में विश्वास रखने में विफल हो गए हो। भले ही तुम यह कहो कि तुम उसमें विश्वास रखते हो, फिर भी तुम्हारा विश्वास पहले ही अर्थ खो चुका है। यह ऐसी चीज है जिसे पूरी तरह समझ लेना चाहिए।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सत्य सिद्धांत खोजकर ही कोई अपना कर्तव्य अच्छी तरह निभा सकता है

मनुष्य द्वारा अपना कर्तव्य निभाना वास्तव में उस सबकी सिद्धि है, जो मनुष्य के भीतर अंतर्निहित है, अर्थात् जो मनुष्य के लिए संभव है। इसके बाद उसका कर्तव्य पूरा हो जाता है। मनुष्य की सेवा के दौरान उसके दोष उसके क्रमिक अनुभव और न्याय से गुज़रने की प्रक्रिया के माध्यम से धीरे-धीरे कम होते जाते हैं; वे मनुष्य के कर्तव्य में बाधा या विपरीत प्रभाव नहीं डालते। वे लोग, जो इस डर से सेवा करना बंद कर देते हैं या हार मानकर पीछे हट जाते हैं कि उनकी सेवा में कमियाँ हो सकती हैं, वे सबसे ज्यादा कायर होते हैं। यदि लोग वह व्यक्त नहीं कर सकते, जो उन्हें सेवा के दौरान व्यक्त करना चाहिए या वह हासिल नहीं कर सकते, जो उनके लिए सहज रूप से संभव है, और इसके बजाय वे बेमन से काम करते हैं, तो उन्होंने अपना वह प्रयोजन खो दिया है, जो एक सृजित प्राणी में होना चाहिए। ऐसे लोग “औसत दर्जे के” माने जाते हैं; वे बेकार का कचरा हैं। इस तरह के लोग उपयुक्त रूप से सृजित प्राणी कैसे कहे जा सकते हैं? क्या वे भ्रष्ट प्राणी नहीं हैं, जो बाहर से तो चमकते हैं, परंतु भीतर से सड़े हुए हैं? यदि कोई मनुष्य अपने आपको परमेश्वर कहता है, मगर अपनी दिव्यता व्यक्त करने, स्वयं परमेश्वर का कार्य करने या परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करने में अक्षम है, तो वह निःसंदेह परमेश्वर नहीं है, क्योंकि उसमें परमेश्वर का सार नहीं है, और परमेश्वर जो सहज रूप से प्राप्त कर सकता है, वह उसके भीतर विद्यमान नहीं है। यदि मनुष्य वह खो देता है, जो उसके द्वारा सहज रूप से प्राप्य है, तो वह अब और मनुष्य नहीं समझा जा सकता, और वह सृजित प्राणी के रूप में खड़े होने या परमेश्वर के सामने आकर उसकी सेवा करने के योग्य नहीं है। इतना ही नहीं, वह परमेश्वर का अनुग्रह प्राप्त करने या परमेश्वर द्वारा ध्यान रखे जाने, बचाए जाने और पूर्ण बनाए जाने के योग्य भी नहीं है। कई लोग जो परमेश्वर का भरोसा खो चुके हैं, परमेश्वर का अनुग्रह भी खोते चले जाते हैं। वे न केवल अपने बुरे कर्मों से घृणा नहीं करते, बल्कि ढिठाई से इस बात का प्रचार भी करते हैं कि परमेश्वर का मार्ग गलत है, और वे विद्रोही परमेश्वर के अस्तित्व तक से इनकार कर देते हैं। इस प्रकार की विद्रोहशीलता रखने वाले लोग परमेश्वर के अनुग्रह का आनंद लेने के पात्र कैसे हो सकते हैं? जो लोग अपना कर्तव्य नहीं निभाते, वे परमेश्वर के विरुद्ध अत्यधिक विद्रोही और उसके अत्यधिक ऋणी होते हैं, फिर भी वे पलट जाते हैं और हमलावर होकर कहते हैं कि परमेश्वर गलत है। इस तरह के मनुष्य पूर्ण बनाए जाने लायक कैसे हो सकते हैं? क्या यह निकाल दिए जाने और दंडित किए जाने की ओर नहीं ले जाता? जो लोग परमेश्वर के सामने अपना कर्तव्य नहीं निभाते, वे पहले से ही सर्वाधिक जघन्य अपराधों के दोषी हैं, जिसके लिए मृत्यु भी अपर्याप्त सज़ा है, फिर भी वे परमेश्वर के साथ बहस करने और उसके साथ अपनी बराबरी करने की धृष्टता करते हैं। ऐसे लोगों को पूर्ण बनाने का क्या महत्व है? जब लोग अपना कर्तव्य पूरा करने में विफल होते हैं, तो उन्हें अपराध और कृतज्ञता महसूस करनी चाहिए; उन्हें अपनी कमजोरी और अनुपयोगिता, अपनी विद्रोहशीलता और भ्रष्टता से घृणा करनी चाहिए, और इससे भी अधिक, उन्हें परमेश्वर को अपना जीवन अर्पित कर देना चाहिए। केवल तभी वे सृजित प्राणी होते हैं, जो परमेश्वर से सच्चा प्रेम करते हैं, और केवल ऐसे लोग ही परमेश्वर के आशीषों और प्रतिज्ञाओं का आनंद लेने और उसके द्वारा पूर्ण किए जाने के योग्य हैं।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारी परमेश्वर की सेवकाई और मनुष्य के कर्तव्य के बीच अंतर

आज तुम लोगों से जो कुछ हासिल करने की अपेक्षा की जाती है, वे अतिरिक्त माँगें नहीं, बल्कि मनुष्य का कर्तव्य है, जिसे सभी लोगों द्वारा किया जाना चाहिए। यदि तुम लोग अपना कर्तव्य तक निभाने में या उसे भली-भाँति करने में असमर्थ हो, तो क्या तुम लोग अपने ऊपर मुसीबतें नहीं ला रहे हो? क्या तुम लोग मृत्यु को आमंत्रित नहीं कर रहे हो? कैसे तुम लोग अभी भी भविष्य और संभावनाओं की आशा कर सकते हो? परमेश्वर का कार्य मानवजाति के लिए किया जाता है, और मनुष्य का सहयोग परमेश्वर के प्रबंधन के लिए दिया जाता है। जब परमेश्वर वह सब कर लेता है जो उसे करना चाहिए, तो मनुष्य से अपेक्षा की जाती है कि वह अपने अभ्यास में उदार हो और परमेश्वर के साथ सहयोग करे। परमेश्वर के कार्य में मनुष्य को कोई कसर बाकी नहीं रखनी चाहिए, उसे अपनी वफादारी प्रदान करनी चाहिए, और अनगिनत धारणाओं में सलंग्न नहीं होना चाहिए, या निष्क्रिय बैठकर मृत्यु की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए। परमेश्वर मनुष्य के लिए स्वयं को बलिदान कर सकता है, तो क्यों मनुष्य परमेश्वर को अपनी वफादारी प्रदान नहीं कर सकता? परमेश्वर मनुष्य के प्रति एक हृदय और मन वाला है, तो क्यों मनुष्य थोड़ा-सा सहयोग प्रदान नहीं कर सकता? परमेश्वर मानवजाति के लिए कार्य करता है, तो क्यों मनुष्य परमेश्वर के प्रबंधन के लिए अपना कुछ कर्तव्य पूरा नहीं कर सकता? परमेश्वर का कार्य इतनी दूर तक आ गया है, पर तुम लोग अभी भी देखते ही हो किंतु करते नहीं, सुनते ही हो किंतु हिलते नहीं। क्या ऐसे लोग तबाही के लक्ष्य नहीं हैं? परमेश्वर पहले ही अपना सर्वस्व मनुष्य को अर्पित कर चुका है, तो क्यों आज मनुष्य ईमानदारी से अपना कर्तव्य निभाने में असमर्थ है? परमेश्वर के लिए उसका कार्य उसकी पहली प्राथमिकता है, और उसके प्रबंधन का कार्य सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। मनुष्य के लिए परमेश्वर के वचनों को अभ्यास में लाना और परमेश्वर की अपेक्षाएँ पूरी करना उसकी पहली प्राथमिकता है। इसे तुम सभी लोगों को समझ लेना चाहिए।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का अभ्यास

तुम परमेश्वर के आदेशों को कैसे लेते हो, यह अत्यंत महत्वपूर्ण है, और यह एक बहुत ही गंभीर मामला है। परमेश्वर ने जो लोगों को सौंपा है, यदि तुम उसे पूरा नहीं कर सकते, तो तुम उसकी उपस्थिति में जीने के योग्य नहीं हो और तुम्हें दंडित किया जाना चाहिए। यह पूरी तरह से स्वाभाविक और उचित है कि मनुष्यों को परमेश्वर द्वारा दिए जाने वाले सभी आदेश पूरे करने चाहिए। यह मनुष्य का सर्वोच्च दायित्व है, और उतना ही महत्वपूर्ण है जितना उनका जीवन है। यदि तुम परमेश्वर के आदेशों को गंभीरता से नहीं लेते, तो तुम उसके साथ सबसे कष्टदायक तरीक़े से विश्वासघात कर रहे हो। इसमें, तुम यहूदा से भी अधिक शोचनीय हो और तुम्हें शाप दिया जाना चाहिए। परमेश्वर के सौंपे हुए कार्य को कैसे लिया जाए, लोगों को इसकी पूरी समझ हासिल करनी चाहिए, और उन्हें कम से कम यह समझना चाहिए कि वह मानवजाति को जो आदेश देता है, वे परमेश्वर से मिले उत्कर्ष और विशेष कृपाएँ हैं, और वे सबसे शानदार चीजें हैं। अन्य सब-कुछ छोड़ा जा सकता है। यहाँ तक कि अगर किसी को अपना जीवन भी बलिदान करना पड़े, तो भी उसे परमेश्वर का आदेश पूरा करना चाहिए।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, मनुष्य का स्वभाव कैसे जानें

मनुष्य के कर्तव्य और उसे आशीष प्राप्त होते हैं या दुर्भाग्य सहना पड़ता है, इन दोनों के बीच कोई सह-संबंध नहीं है। कर्तव्य वह है, जो मनुष्य के लिए पूरा करना आवश्यक है; यह उसकी स्वर्ग द्वारा प्रेषित वृत्ति है, जो प्रतिफल, स्थितियों या कारणों पर निर्भर नहीं होनी चाहिए। केवल तभी कहा जा सकता है कि वह अपना कर्तव्य पूरा कर रहा है। आशीष प्राप्त होना उसे कहते हैं, जब कोई पूर्ण बनाया जाता है और न्याय का अनुभव करने के बाद वह परमेश्वर के आशीषों का आनंद लेता है। दुर्भाग्य सहना उसे कहते हैं, जब ताड़ना और न्याय का अनुभव करने के बाद भी लोगों का स्वभाव नहीं बदलता, जब उन्हें पूर्ण बनाए जाने का अनुभव नहीं होता, बल्कि उन्हें दंडित किया जाता है। लेकिन इस बात पर ध्यान दिए बिना कि उन्हें आशीष प्राप्त होते हैं या दुर्भाग्य सहना पड़ता है, सृजित प्राणियों को अपना कर्तव्य पूरा करना चाहिए; वह करते हुए, जो उन्हें करना ही चाहिए, और वह करते हुए, जिसे करने में वे सक्षम हैं। यह न्यूनतम है, जो व्यक्ति को करना चाहिए, ऐसे व्यक्ति को, जो परमेश्वर की खोज करता है। तुम्हें अपना कर्तव्य केवल आशीष प्राप्त करने के लिए नहीं करना चाहिए, और तुम्हें दुर्भाग्य सहने के भय से अपना कार्य करने से इनकार भी नहीं करना चाहिए। मैं तुम लोगों को यह बात बता दूँ : मनुष्य द्वारा अपने कर्तव्य का निर्वाह ऐसी चीज़ है, जो उसे करनी ही चाहिए, और यदि वह अपना कर्तव्य करने में अक्षम है, तो यह उसकी विद्रोहशीलता है। अपना कर्तव्य पूरा करने की प्रक्रिया के माध्यम से मनुष्य धीरे-धीरे बदलता है, और इसी प्रक्रिया के माध्यम से वह अपनी वफ़ादारी प्रदर्शित करता है। इस प्रकार, जितना अधिक तुम अपना कर्तव्य करने में सक्षम होगे, उतना ही अधिक तुम सत्य को प्राप्त करोगे, और उतनी ही अधिक तुम्हारी अभिव्यक्ति वास्तविक हो जाएगी। जो लोग अपना कर्तव्य बेमन से करते हैं और सत्य की खोज नहीं करते, वे अंत में निकाल दिए जाएँगे, क्योंकि ऐसे लोग सत्य के अभ्यास में अपना कर्तव्य पूरा नहीं करते, और अपना कर्तव्य निभानेमें सत्य का अभ्यास नहीं करते। ये वे लोग हैं, जो अपरिवर्तित रहते हैं और जिन्हें दुर्भाग्य सहना पड़ेगा। उनकी न केवल अभिव्यक्तियाँ अशुद्ध हैं, बल्कि वे जो कुछ भी व्यक्त करते हैं, वह दुष्टतापूर्ण होता है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारी परमेश्वर की सेवकाई और मनुष्य के कर्तव्य के बीच अंतर

तुम लोगों में से प्रत्येक को अपना कर्तव्य खुले और ईमानदार दिलों के साथ निभाना चाहिए, और जो भी कीमत ज़रूरी हो, उसे चुकाने के लिए तैयार रहना चाहिए। जैसा कि तुम लोगों ने कहा है, जब दिन आएगा, तो परमेश्वर ऐसे किसी भी व्यक्ति के प्रति लापरवाह नहीं रहेगा, जिसने उसके लिए कष्ट उठाए होंगे या कीमत चुकाई होगी। इस प्रकार का दृढ़ विश्वास बनाए रखने लायक है, और यह सही है कि तुम लोगों को इसे कभी नहीं भूलना चाहिए। केवल इसी तरह से मैं तुम लोगों के बारे में निश्चिंत हो सकता हूँ। वरना तुम लोगों के बारे में मैं कभी निश्चिंत नहीं हो पाऊँगा, और तुम हमेशा मेरी घृणा के पात्र रहोगे। अगर तुम सभी अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुन सको और अपना सर्वस्व मुझे अर्पित कर सको, मेरे कार्य के लिए कोई कोर-कसर न छोड़ो, और मेरे सुसमाचार के कार्य के लिए अपनी जीवन भर की ऊर्जा अर्पित कर सको, तो क्या फिर मेरा हृदय तुम्हारे लिए अक्सर हर्ष से नहीं उछलेगा? इस तरह से मैं तुम लोगों के बारे में पूरी तरह से निश्चिंत हो सकूँगा, या नहीं?

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, गंतव्य के बारे में

आज, मुझे वह आदमी पसंद है, जो मेरी इच्छा के अनुसार चल सके, जो मेरी ज़िम्मेदारियों का ध्यान रख सके, और जो मेरे लिए सच्चे दिल और ईमानदारी से अपना सब-कुछ दे सके। मैं उन्हें लगातार प्रबुद्ध करूँगा, उन्हें अपने से दूर नहीं जाने दूँगा। मैं अक्सर कहता हूँ, “जो ईमानदारी से मेरे लिए स्वयं को खपाता है, मैं निश्चित रूप से तुझे बहुत आशीष दूँगा।” “आशीष” किस चीज़ का संकेत करता है? क्या तुम जानते हो? पवित्र आत्मा के वर्तमान कार्य के संदर्भ में, यह उन ज़िम्मेदारियों का संकेत करता है, जो मैं तुम्हें देता हूँ। वे सभी, जो कलीसिया के लिए ज़िम्मेदारी वहन कर पाते हैं, और जो ईमानदारी से मेरे लिए खुद को अर्पित करते हैं, उनकी ज़िम्मेदारियाँ और उनकी ईमानदारी दोनों आशीष हैं, जो मुझसे आते हैं। इसके अलावा, उनके लिए मेरे प्रकटन भी मेरे आशीष हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि जिनके पास अभी कोई ज़िम्मेदारी नहीं है, वे मेरे द्वारा पूर्वनिर्धारित और चयनित नहीं हैं; मेरे शाप पहले ही उन पर आ चुके हैं। दूसरे शब्दों में, जिन्हें मैंने पूर्वनिर्धारित और चयनित किया है, उनका मेरे द्वारा कही गई बातों के सकारात्मक पहलुओं में एक हिस्सा है, जबकि जिन्हें मैंने पूर्वनिर्धारित और चयनित नहीं किया है, उनका मेरे कथनों के केवल नकारात्मक पहलुओं में एक हिस्सा है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 82

आज जो लोग मेरे लिए वास्तविक प्रेम रखते हैं, ऐसे लोग धन्य हैं। धन्य हैं वे लोग जो मुझे समर्पित हैं, वे निश्चय ही मेरे राज्य में रहेंगे। धन्य हैं वे लोग जो मुझे जानते हैं, वे निश्चय ही मेरे राज्य में शक्ति प्राप्त करेंगे। धन्य हैं वे जो मुझे खोजते हैं, वे निश्चय ही शैतान के बंधनों से स्वतंत्र होंगे और मेरे आशीषों का आनन्द लेंगे। धन्य हैं वे लोग जो खुद की इच्छाओं के खिलाफ विद्रोह करते हैं, वे निश्चय ही मेरे राज्य में प्रवेश करेंगे और मेरे राज्य की प्रचुरता पाएंगे। जो लोग मेरी खातिर दौड़-भाग करते हैं उन्हें मैं याद रखूंगा, जो लोग मेरे लिए व्यय करते हैं, मैं उन्हें आनन्द से गले लगाऊंगा, और जो लोग मुझे भेंट देते हैं, मैं उन्हें आनन्द दूंगा। जो लोग मेरे वचनों में आनन्द प्राप्त करते हैं, उन्हें मैं आशीष दूंगा; वे निश्चय ही ऐसे खम्भे होंगे जो मेरे राज्य में शहतीर को थामेंगे, वे निश्चय ही मेरे घर में अतुलनीय प्रचुरता को प्राप्त करेंगे और उनके साथ कोई तुलना नहीं कर पाएगा। क्या तुम लोगों ने कभी मिलने वाले आशीषों को स्वीकार किया है? क्या कभी तुमने उन वादों को खोजा जो तुम्हारे लिए किए गए थे? तुम लोग निश्चय ही मेरी रोशनी के नेतृत्व में, अंधकार की शक्तियों के गढ़ को तोड़ोगे। तुम अंधकार के मध्य निश्चय ही मेरी रोशनी का मार्गदर्शन नहीं खोओगे। तुम सब निश्चय ही सम्पूर्ण सृष्टि के स्वामी होगे। तुम लोग निश्चय ही शैतान के सामने विजेता बनोगे। तुम सब निश्चय ही बड़े लाल अजगर के राज्य के पतन के समय मेरी विजय के सबूत के रूप में असंख्य लोगों की भीड़ में खड़े होगे। तुम लोग निश्चय ही सिनिम के देश में दृढ़ और अटूट खड़े रहोगे। तुम लोग जो कष्ट सह रहे हो, उनसे तुम मेरे आशीष प्राप्त करोगे और निश्चय ही सकल ब्रह्माण्ड में मेरी महिमा को चमकाओगे।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 19

संबंधित भजन

परमेश्वर के वचनों का अभ्यास और परमेश्वर को संतुष्ट करना सबसे पहले आता है

पिछला: 10. परीक्षण और शोधन का अनुभव कैसे करें

अगला: 12. मानक-स्तर के तरीके से अपने कर्तव्य का निर्वहन कैसे किया जा सकता है

परमेश्वर का आशीष आपके पास आएगा! हमसे संपर्क करने के लिए बटन पर क्लिक करके, आपको प्रभु की वापसी का शुभ समाचार मिलेगा, और 2024 में उनका स्वागत करने का अवसर मिलेगा।

संबंधित सामग्री

1. प्रभु ने हमसे यह कहते हुए, एक वादा किया, "मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ। और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूँ, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊँगा कि जहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो" (यूहन्ना 14:2-3)। प्रभु यीशु पुनर्जीवित हुआ और हमारे लिए एक जगह तैयार करने के लिए स्वर्ग में चढ़ा, और इसलिए यह स्थान स्वर्ग में होना चाहिए। फिर भी आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु लौट आया है और पृथ्वी पर ईश्वर का राज्य स्थापित कर चुका है। मुझे समझ में नहीं आता: स्वर्ग का राज्य स्वर्ग में है या पृथ्वी पर?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद :"हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नाम पवित्र माना जाए। तेरा राज्य आए। तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी...

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

सेटिंग

  • इबारत
  • कथ्य

ठोस रंग

कथ्य

फ़ॉन्ट

फ़ॉन्ट आकार

लाइन स्पेस

लाइन स्पेस

पृष्ठ की चौड़ाई

विषय-वस्तु

खोज

  • यह पाठ चुनें
  • यह किताब चुनें

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें