i. सच्चे मसीह और झूठे मसीहों के बीच भेद कैसे करें
बाइबल से उद्धृत परमेश्वर के वचन
“मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता” (यूहन्ना 14:6)।
“उस समय यदि कोई तुम से कहे, ‘देखो, मसीह यहाँ है!’ या ‘वहाँ है!’ तो विश्वास न करना। क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्ता उठ खड़े होंगे, और बड़े चिह्न, और अद्भुत काम दिखाएँगे कि यदि हो सके तो चुने हुओं को भी भरमा दें” (मत्ती 24:23-24)।
अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन
देहधारी हुए परमेश्वर को मसीह कहा जाता है, और इसलिए वह मसीह जो लोगों को सत्य दे सकता है, परमेश्वर कहलाता है। इसमें कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं है, क्योंकि उसमें परमेश्वर का सार होता है, और उसके कार्य में परमेश्वर का स्वभाव और बुद्धि होती है, जो मनुष्य के लिए अप्राप्य हैं। जो अपने आप को मसीह कहते हैं, परंतु परमेश्वर का कार्य नहीं कर सकते, वे धोखेबाज हैं। मसीह पृथ्वी पर परमेश्वर की अभिव्यक्ति मात्र नहीं है, बल्कि वह विशेष देह भी है, जिसे धारण करके परमेश्वर मनुष्यों के बीच रहकर अपना कार्य पूरा करता है। कोई मनुष्य इस देह की जगह नहीं ले सकता, बल्कि यह वह देह है जो पृथ्वी पर परमेश्वर का कार्य पर्याप्त रूप से सँभाल सकती है और परमेश्वर का स्वभाव व्यक्त कर सकती है, और परमेश्वर का अच्छी तरह प्रतिनिधित्व कर सकती है, और मनुष्य को जीवन प्रदान कर सकती है। मसीह का भेस धारण करने वाले लोगों का देर-सबेर पतन हो जाएगा, क्योंकि हालाँकि वे मसीह होने का दावा करते हैं, किंतु उनमें मसीह के सार का लेशमात्र भी नहीं है। और इसलिए मैं कहता हूँ कि मसीह की प्रामाणिकता मनुष्य द्वारा परिभाषित नहीं की जा सकती, बल्कि इसका उत्तर और निर्णय स्वयं परमेश्वर द्वारा ही दिया-लिया जाता है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है
जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर का सार होगा और जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर की अभिव्यक्ति होगी। चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उस कार्य को सामने लाएगा, जो वह करना चाहता है, और चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उसे अभिव्यक्त करेगा जो वह है और वह मनुष्य के लिए सत्य को लाने, उसे जीवन प्रदान करने और उसे मार्ग दिखाने में सक्षम होगा। जिस देह में परमेश्वर का सार नहीं है, वह निश्चित रूप से देहधारी परमेश्वर नहीं है; इसमें कोई संदेह नहीं। अगर मनुष्य यह पता करना चाहता है कि क्या यह देहधारी परमेश्वर है, तो इसकी पुष्टि उसे उसके द्वारा अभिव्यक्त स्वभाव और उसके द्वारा बोले गए वचनों से करनी चाहिए। इसे ऐसे कहें, व्यक्ति को इस बात का निश्चय कि यह देहधारी परमेश्वर है या नहीं और कि यह सही मार्ग है या नहीं, उसके सार से करना चाहिए। और इसलिए, यह निर्धारित करने की कुंजी कि यह देहधारी परमेश्वर की देह है या नहीं, उसके बाहरी स्वरूप के बजाय उसके सार (उसका कार्य, उसके कथन, उसका स्वभाव और कई अन्य पहलू) में निहित है। यदि मनुष्य केवल उसके बाहरी स्वरूप की ही जाँच करता है, और परिणामस्वरूप उसके सार की अनदेखी करता है, तो इससे उसके अनाड़ी और अज्ञानी होने का पता चलता है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना
मसीह का कार्य तथा अभिव्यक्ति उसके सार को निर्धारित करते हैं। वह अपने सच्चे हृदय से उस कार्य को पूर्ण करने में सक्षम है, जो उसे सौंपा गया है। वह सच्चे हृदय से स्वर्ग में परमेश्वर की आराधना करने में सक्षम है और सच्चे हृदय से परमपिता परमेश्वर की इच्छा खोजने में सक्षम है। यह सब उसके सार द्वारा निर्धारित होता है। और इसी प्रकार उसका प्राकृतिक प्रकाशन भी उसके सार द्वारा निर्धारित किया जाता है; इसे मैं उसका “प्राकृतिक प्रकाशन” कहता हूँ क्योंकि उसकी अभिव्यक्ति कोई नकल नहीं है, या मनुष्य द्वारा शिक्षा का परिणाम, या मनुष्य द्वारा कई वर्षों का संवर्धन का परिणाम नहीं है। उसने इसे सीखा या इससे स्वयं को सँवारा नहीं; बल्कि, यह उसमें अंतर्निहित है। मनुष्य उसके कार्य, उसकी अभिव्यक्ति, उसकी मानवता, और सामान्य मानवता के उसके संपूर्ण जीवन से इनकार कर सकता है, किंतु कोई भी इससे इनकार नहीं कर सकता कि वह सच्चे हृदय से स्वर्ग के परमेश्वर की आराधना करता है; कोई इनकार नहीं कर सकता है कि वह स्वर्गिक परमपिता की इच्छा पूरी करने के लिए आया है, और कोई उस निष्कपटता से इनकार नहीं कर सकता, जिससे वह परमपिता परमेश्वर की खोज करता है। यद्यपि उसकी छवि इंद्रियों के लिए सुखद नहीं, उसके प्रवचन असाधारण हाव-भाव से संपन्न नहीं हैं और उसका कार्य धरती या आकाश को थर्रा देने वाला नहीं है जैसा मनुष्य कल्पना करता है, वास्तव में वह मसीह है, जो सच्चे हृदय से स्वर्गिक परमपिता की इच्छा पूरी करता है, पूर्णतः स्वर्गिक परमपिता के प्रति समर्पण करता है और मृत्यु तक समर्पित रहता है। यह इसलिए क्योंकि उसका सार मसीह का सार है। मनुष्य के लिए इस सत्य पर विश्वास करना कठिन है किंतु यह एक तथ्य है। जब मसीह की सेवकाई पूर्णतः संपन्न हो गई है, तो मनुष्य उसके कार्य से देखने में सक्षम होगा कि उसका स्वभाव और उसका अस्तित्व स्वर्ग के परमेश्वर के स्वभाव और अस्तित्व का प्रतिनिधित्व करता है। उस समय, उसके संपूर्ण कार्य का कुल योग इसकी पुष्टि कर सकता है कि वह वास्तव में वही देह है, जिसे वचन धारण करता है, और एक हाड़-मांस के मनुष्य के सदृश नहीं है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, स्वर्गिक परमपिता की इच्छा के प्रति समर्पण ही मसीह का सार है
यद्यपि मसीह देह में स्वयं परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करता है और व्यक्तिगत रूप से वह कार्य करता है, जिसे स्वयं परमेश्वर को करना चाहिए, वह स्वर्ग में परमेश्वर के अस्तित्व को नहीं नकारता, न ही वह उत्तेजनापूर्वक अपने स्वयं के कर्मों की घोषणा करता है। इसके बजाय, वह विनम्रतापूर्वक अपनी देह के भीतर छिपा रहता है। मसीह के अलावा, जो मसीह होने का झूठा दावा करते हैं, उनमें उसकी विशेषताएं नहीं हैं। अभिमानी और ख़ुद की बढ़ाई के स्वभाव वाले उन झूठे मसीहों से तुलना में यह स्पष्ट हो जाता है कि वास्तव में किस प्रकार की देह में मसीह है। जितने वे झूठे होते हैं, उतना ही अधिक इस प्रकार के झूठे मसीह स्वयं का दिखावा करते हैं और उतना ही लोगों को गुमराह करने के लिए वे ऐसे संकेत और चमत्कार करने में समर्थ होते हैं। झूठे मसीहों में परमेश्वर के गुण नहीं होते; मसीह पर झूठे मसीहों से संबंधित किसी भी तत्व का दाग़ नहीं लगता। परमेश्वर केवल देह का कार्य पूर्ण करने के लिए देहधारी बनता है, न कि महज़ मनुष्यों को उसे देखने की अनुमति देने के लिए। इसके बजाय, वह अपने कार्य से अपनी पहचान की पुष्टि होने देता है और जो वह प्रकट करता है, उसे अपना सार प्रमाणित करने देता है। उसका सार निराधार नहीं है; उसकी पहचान उसके हाथ से ज़ब्त नहीं की गई थी; यह उसके कार्य और उसके सार से निर्धारित होती है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, स्वर्गिक परमपिता की इच्छा के प्रति समर्पण ही मसीह का सार है
यदि कोई मनुष्य अपने आपको परमेश्वर कहता है, मगर अपनी दिव्यता व्यक्त करने, स्वयं परमेश्वर का कार्य करने या परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करने में अक्षम है, तो वह निःसंदेह परमेश्वर नहीं है, क्योंकि उसमें परमेश्वर का सार नहीं है, और परमेश्वर जो सहज रूप से प्राप्त कर सकता है, वह उसके भीतर विद्यमान नहीं है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारी परमेश्वर की सेवकाई और मनुष्य के कर्तव्य के बीच अंतर
उन झूठे मसीहाओं, झूठे भविष्यवक्ताओं और गुमराह करने वालों के बीच, क्या ऐसे लोग भी नहीं हैं जिन्हें “परमेश्वर” कहा जाता है? और वे परमेश्वर क्यों नहीं हैं? क्योंकि वे परमेश्वर का कार्य करने में असमर्थ हैं। मूलतः वे मनुष्य हैं, लोगों को गुमराह करने वाले हैं, न कि परमेश्वर; और इसलिए उनके पास परमेश्वर की पहचान नहीं है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पदवियों और पहचान के सम्बन्ध में
कुछ ऐसे लोग हैं, जो दुष्टात्माओं से ग्रस्त हैं और ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाते रहते हैं, “मैं परमेश्वर हूँ!” लेकिन अंत में, उनका भेद खुल जाता है, क्योंकि वे गलत चीज़ का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे शैतान का प्रतिनिधित्व करते हैं, और पवित्र आत्मा उन पर कोई ध्यान नहीं देता। तुम अपने आपको कितना भी बड़ा ठहराओ या तुम कितना भी जोर से चिल्लाओ, तुम फिर भी एक सृजित प्राणी ही रहते हो और एक ऐसा प्राणी, जो शैतान से संबंधित है। मैं कभी नहीं चिल्लाता, “मैं परमेश्वर हूँ, मैं परमेश्वर का प्रिय पुत्र हूँ!” परंतु जो कार्य मैं करता हूँ, वह परमेश्वर का कार्य है। क्या मुझे चिल्लाने की आवश्यकता है? मुझे ऊँचा उठाए जाने की कोई आवश्यकता नहीं है। परमेश्वर अपना काम स्वयं करता है और वह नहीं चाहता कि मनुष्य उसे हैसियत या सम्मानजनक उपाधि प्रदान करे : उसका काम उसकी पहचान और हैसियत का प्रतिनिधित्व करता है। अपने बपतिस्मा से पहले क्या यीशु स्वयं परमेश्वर नहीं था? क्या वह परमेश्वर द्वारा धारित देह नहीं था? निश्चित रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि केवल गवाही मिलने के पश्चात् ही वह परमेश्वर का इकलौता पुत्र बना। क्या उसके द्वारा काम शुरू करने से बहुत पहले ही यीशु नाम का कोई व्यक्ति नहीं था? तुम नए मार्ग लाने या पवित्रात्मा का प्रतिनिधित्व करने में असमर्थ हो। तुम पवित्र आत्मा के कार्य को या उसके द्वारा बोले जाने वाले वचनों को व्यक्त नहीं कर सकते। तुम स्वयं परमेश्वर का या पवित्रात्मा का कार्य करने में असमर्थ हो। परमेश्वर की बुद्धि, चमत्कार और अगाधता, और उसके स्वभाव की समग्रता, जिसके द्वारा परमेश्वर मनुष्य को ताड़ना देता है—इन सबको व्यक्त करना तुम्हारी क्षमता के बाहर है। इसलिए परमेश्वर होने का दावा करने की कोशिश करना व्यर्थ होगा; तुम्हारे पास सिर्फ़ नाम होगा और कोई सार नहीं होगा। स्वयं परमेश्वर आ गया है, किंतु कोई उसे नहीं पहचानता, फिर भी वह अपना काम जारी रखता है और ऐसा वह पवित्रात्मा के प्रतिनिधित्व में करता है। चाहे तुम उसे मनुष्य कहो या परमेश्वर, प्रभु कहो या मसीह, या उसे बहन कहो, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। परंतु जो कार्य वह करता है, वह पवित्रात्मा का है और वह स्वयं परमेश्वर के कार्य का प्रतिनिधित्व करता है। वह इस बात की परवाह नहीं करता कि मनुष्य उसे किस नाम से पुकारता है। क्या वह नाम उसके काम का निर्धारण कर सकता है? चाहे तुम उसे कुछ भी कहकर पुकारो, जहाँ तक परमेश्वर का संबंध है, वह परमेश्वर के आत्मा का देहधारी स्वरूप है; वह पवित्रात्मा का प्रतिनिधित्व करता है और उसके द्वारा अनुमोदित है। यदि तुम एक नए युग के लिए मार्ग नहीं बना सकते, या पुराने युग का समापन नहीं कर सकते, या एक नए युग का सूत्रपात या नया कार्य नहीं कर सकते, तो तुम्हें परमेश्वर नहीं कहा जा सकता!
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारण का रहस्य (1)
यदि वर्तमान समय में ऐसा कोई व्यक्ति उभरे, जो चिह्न और चमत्कार प्रदर्शित करने, दुष्टात्माओं को निकालने, बीमारों को चंगा करने और कई चमत्कार दिखाने में समर्थ हो, और यदि वह व्यक्ति दावा करे कि वह यीशु है जो आ गया है, तो यह बुरी आत्माओं द्वारा उत्पन्न नकली व्यक्ति होगा, जो यीशु की नकल उतार रहा होगा। यह याद रखो! परमेश्वर वही कार्य नहीं दोहराता। कार्य का यीशु का चरण पहले ही पूरा हो चुका है, और परमेश्वर कार्य के उस चरण को पुनः कभी हाथ में नहीं लेगा। परमेश्वर का कार्य मनुष्य की धारणाओं के साथ मेल नहीं खाता; उदाहरण के लिए, पुराने नियम ने मसीहा के आगमन की भविष्यवाणी की, और इस भविष्यवाणी का परिणाम यीशु का आगमन था। चूँकि यह पहले ही घटित हो चुका है, इसलिए एक और मसीहा का पुनः आना ग़लत होगा। यीशु एक बार पहले ही आ चुका है, और यदि यीशु को इस समय फिर आना पड़ा, तो यह गलत होगा। प्रत्येक युग के लिए एक नाम है, और प्रत्येक नाम में उस युग का चरित्र-चित्रण होता है। मनुष्य की धारणाओं के अनुसार, परमेश्वर को सदैव चिह्न और चमत्कार दिखाने चाहिए, सदैव बीमारों को चंगा करना और दुष्टात्माओं को निकालना चाहिए, और सदैव ठीक यीशु के समान होना चाहिए। परंतु इस बार परमेश्वर इसके समान बिल्कुल नहीं है। यदि अंत के दिनों के दौरान, परमेश्वर अब भी चिह्नों और चमत्कारों को प्रदर्शित करे, और अब भी दुष्टात्माओं को निकाले और बीमारों को चंगा करे—यदि वह बिल्कुल यीशु की तरह करे—तो परमेश्वर वही कार्य दोहरा रहा होगा, और यीशु के कार्य का कोई महत्व या मूल्य नहीं रह जाएगा। इसलिए परमेश्वर प्रत्येक युग में कार्य का एक चरण पूरा करता है। ज्यों ही उसके कार्य का प्रत्येक चरण पूरा होता है, बुरी आत्माएँ शीघ्र ही उसकी नकल करने लगती हैं, और जब शैतान परमेश्वर के बिल्कुल पीछे-पीछे चलने लगता है, तब परमेश्वर तरीक़ा बदलकर भिन्न तरीक़ा अपना लेता है। ज्यों ही परमेश्वर ने अपने कार्य का एक चरण पूरा किया, बुरी आत्माएँ उसकी नकल कर लेती हैं। तुम लोगों को इस बारे में स्पष्ट होना चाहिए। आज परमेश्वर का कार्य यीशु के कार्य से भिन्न क्यों है? आज परमेश्वर चिह्नों और चमत्कारों का प्रदर्शन, पिशाचों का बहिष्करण और बीमारों को चंगा क्यों नहीं करता? यदि यीशु का कार्य व्यवस्था के युग के दौरान किए गए कार्य के समान ही होता, तो क्या वह अनुग्रह के युग के परमेश्वर का प्रतिनिधित्व कर पाता? क्या वह सलीब पर चढ़ने का कार्य पूरा कर पाता? यदि व्यवस्था के युग की तरह यीशु मंदिर में गया होता और उसने सब्त को माना होता, तो उसे कोई नहीं सताता और सब उसे गले लगाते। यदि ऐसा होता, तो क्या उसे सलीब पर चढ़ाया जा सकता था? क्या वह छुटकारे का कार्य पूरा कर सकता था? यदि अंत के दिनों का देहधारी परमेश्वर यीशु के समान चिह्न और चमत्कार दिखाता, तो इसमें भला कौन-सी खास बात होती? यदि परमेश्वर अंत के दिनों के दौरान अपने कार्य का दूसरा भाग करता है, जो उसकी प्रबंधन योजना के भाग का प्रतिनिधित्व करता है, तो केवल तभी मनुष्य परमेश्वर का अधिक गहरा ज्ञान प्राप्त कर सकता है, और केवल तभी परमेश्वर की प्रबंधन योजना पूर्ण हो सकती है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आज परमेश्वर के कार्य को जानना
कार्य के इस चरण में, परमेश्वर संकेत और चमत्कार नहीं दिखाता, ताकि कार्य वचनों के माध्यम से अपने परिणाम प्राप्त करे। क्योंकि देहधारी परमेश्वर का इस बार का कार्य बीमार को चंगा करना और दुष्टात्माओं को निकालना नहीं है, बल्कि बोलकर मनुष्य को जीतना है, जिसका अर्थ है कि परमेश्वर के इस देहधारण का सहज गुण वचन बोलना और मनुष्य को जीतना है, न कि बीमार को चंगा करना और दुष्टात्माओं को निकालना। सामान्य मानवता में उसका कार्य चमत्कार करना नहीं है, बीमार को चंगा करना और दुष्टात्माओं को निकालना नहीं है, बल्कि बोलना है, और इसलिए दूसरा देहधारी देह लोगों को पहले वाले की तुलना में अधिक सामान्य लगता है। लोग देखते हैं कि परमेश्वर का देहधारण मिथ्या नहीं है; बल्कि यह देहधारी परमेश्वर यीशु के देहधारण से भिन्न है, हालाँकि दोनों ही परमेश्वर के देहधारण हैं, फिर भी वे पूरी तरह से एक नहीं हैं। यीशु में सामान्य और साधारण मानवता थी, लेकिन उसमें अनेक संकेत और चमत्कार दिखाने की शक्ति थी। जबकि इस देहधारी परमेश्वर में, मानवीय आँखों को न तो कोई संकेत दिखाई देगा, और न कोई चमत्कार, न तो बीमार चंगे होते हुए दिखाई देंगे, न ही दुष्टात्माएँ बाहर निकाली जाती हुई दिखाई देंगी, न तो समुद्र पर चलना दिखाई देगा, न ही चालीस दिन तक उपवास रखना दिखाई देगा...। वह उसी कार्य को नहीं करता जो यीशु ने किया, इसलिए नहीं कि उसका देह सार रूप में यीशु से भिन्न है, बल्कि इसलिए कि बीमार को चंगा करना और दुष्टात्माओं को निकालना उसकी सेवकाई नहीं है। वह अपने ही कार्य को ध्वस्त नहीं करता, अपने ही कार्य में विघ्न नहीं डालता। चूँकि वह मनुष्य को अपने व्यावहारिक वचनों से जीतता है, इसलिए उसे चमत्कारों से वश में करने की आवश्यकता नहीं है, और इसलिए यह चरण देहधारण के कार्य को पूरा करने के लिए है। आज तुम जिस देहधारी परमेश्वर को देखते हो वह पूरी तरह से देह है, और उसमें कुछ भी अलौकिक नहीं है। वह दूसरों की तरह ही बीमार पड़ता है, उसी तरह उसे भोजन और कपड़ों की आवश्यकता होती है; वह पूरी तरह से देह है। यदि इस बार भी देहधारी परमेश्वर अलौकिक संकेत और चमत्कार दिखाता, बीमारों को चंगा करता, दुष्टात्माओं को निकालता, या एक वचन से मार सकता, तो विजय का कार्य कैसे हो पाता? कार्य को अन्यजाति राष्ट्रों में कैसे फैलाया जा सकता था? बीमार को चंगा करना और दुष्टात्माओं को निकालना अनुग्रह के युग का कार्य था, छुटकारे के कार्य का यह पहला चरण था, और अब जबकि परमेश्वर ने लोगों को सलीब से बचा लिया है, इसलिए अब वह उस कार्य को नहीं करता। यदि अंत के दिनों में यीशु के जैसा ही कोई “परमेश्वर” प्रकट हो जाता, जो बीमार को चंगा करता और दुष्टात्माओं को निकालता, और मनुष्य के लिए सलीब पर चढ़ाया जाता, तो वह “परमेश्वर”, बाइबल में वर्णित परमेश्वर के समरूप तो अवश्य होता और उसे मनुष्य के लिए स्वीकार करना भी आसान होता, लेकिन तब वह अपने सार रूप में, परमेश्वर के आत्मा द्वारा नहीं, बल्कि एक दुष्टात्मा द्वारा धारण किया गया देह होता। क्योंकि जो परमेश्वर ने पहले ही पूरा कर लिया है, उसे कभी नहीं दोहराना, यह परमेश्वर के कार्य का सिद्धांत है। इसलिए परमेश्वर के दूसरे देहधारण का कार्य पहले देहधारण के कार्य से भिन्न है। अंत के दिनों में, परमेश्वर विजय का कार्य एक सामान्य और साधारण देह में पूरा करता है; वह बीमार को चंगा नहीं करता, उसे मनुष्य के लिए सलीब पर नहीं चढ़ाया जाएगा, बल्कि वह केवल देह में वचन कहता है, देह में मानव को जीतता है। ऐसा देह ही देहधारी परमेश्वर का देह है; ऐसा देह ही देह में परमेश्वर के कार्य को पूर्ण कर सकता है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर द्वारा धारण किये गए देह का सार
तुम लोगों की सत्यनिष्ठा सिर्फ वचन में है, तुम लोगों का ज्ञान सिर्फ बौद्धिक और वैचारिक है, तुम लोगों की मेहनत सिर्फ स्वर्ग की आशीष पाने के लिए है और इसलिए तुम लोगों का विश्वास किस प्रकार का होना चाहिए? आज भी, तुम लोग सत्य के प्रत्येक वचन को अनसुना कर देते हो। तुम लोग नहीं जानते कि परमेश्वर क्या है, तुम लोग नहीं जानते कि मसीह क्या है, तुम लोग नहीं जानते कि यहोवा का भय कैसे मानें, तुम लोग नहीं जानते कि कैसे पवित्र आत्मा के कार्य में प्रवेश करें और तुम लोग नहीं जानते कि परमेश्वर स्वयं के कार्य और मनुष्य द्वारा गुमराह किए जाने के बीच कैसे भेद करें। तुम परमेश्वर द्वारा व्यक्त सत्य के किसी भी ऐसे वचन की केवल निंदा करना ही जानते हो, जो तुम्हारे विचारों के अनुरूप नहीं होता। तुम्हारी विनम्रता कहाँ है? तुम्हारा समर्पण कहाँ है? तुम्हारी सत्यनिष्ठा कहाँ है? सत्य खोजने की तुम्हारी इच्छा कहाँ है? परमेश्वर का भय मानने वाला तुम्हारा हृदय कहाँ है? मैं तुम लोगों को बता दूँ कि जो परमेश्वर में संकेतों की वजह से विश्वास करते हैं, वे निश्चित रूप से वह श्रेणी होगी, जो नष्ट की जाएगी। जो देह में लौटे यीशु के वचनों को समझने में अक्षम हैं, वे निश्चित ही नरक के वंशज, महादूत के वंशज हैं, उस श्रेणी में हैं, जो अनंत विनाश झेलेगी। बहुत से लोगों को शायद इसकी परवाह न हो कि मैं क्या कहता हूँ, किंतु मैं ऐसे हर तथाकथित संत को, जो यीशु का अनुसरण करते हैं, बताना चाहता हूँ कि जब तुम लोग यीशु को एक श्वेत बादल पर स्वर्ग से उतरते अपनी आँखों से देखोगे, तो यह धार्मिकता के सूर्य का सार्वजनिक प्रकटन होगा। शायद वह तुम्हारे लिए एक बड़ी उत्तेजना का समय होगा, मगर तुम्हें पता होना चाहिए कि जिस समय तुम यीशु को स्वर्ग से उतरते देखोगे, यही वह समय भी होगा जब तुम दंडित किए जाने के लिए नीचे नरक में जाओगे। वह परमेश्वर की प्रबंधन योजना की समाप्ति का समय होगा, और वह समय होगा, जब परमेश्वर सज्जन को पुरस्कार और कुकर्मी को दंड देगा। क्योंकि परमेश्वर का न्याय मनुष्य के चिह्न देखने से पहले ही समाप्त हो चुका होगा, जब सिर्फ़ सत्य की अभिव्यक्ति होगी। वे जो सत्य को स्वीकार करते हैं और संकेतों की खोज नहीं करते और इस प्रकार शुद्ध कर दिए गए हैं, वे परमेश्वर के सिंहासन के सामने लौट चुके होंगे और सृष्टिकर्ता के आलिंगन में प्रवेश कर चुके होंगे। सिर्फ़ वे जो इस विश्वास में बने रहते हैं कि “ऐसा यीशु जो श्वेत बादल पर सवारी नहीं करता, एक झूठा मसीह है” अनंत दंड के अधीन कर दिए जाएँगे, क्योंकि वे सिर्फ़ उस यीशु में विश्वास करते हैं जो संकेत प्रदर्शित करता है, पर उस यीशु को स्वीकार नहीं करते, जो कड़े न्याय की घोषणा करता है और जीवन और सच्चा मार्ग जारी करता है। इसलिए केवल यही हो सकता है कि जब यीशु खुलेआम श्वेत बादल पर वापस लौटे, तो वह उनके साथ निपटे। वे बहुत हठधर्मी, अपने आप में बहुत आश्वस्त, बहुत अभिमानी हैं। ऐसे अधम लोग यीशु द्वारा कैसे पुरस्कृत किए जा सकते हैं? यीशु की वापसी उन लोगों के लिए एक महान उद्धार है, जो सत्य को स्वीकार करने में सक्षम हैं, पर उनके लिए जो सत्य को स्वीकार करने में असमर्थ हैं, यह दंडाज्ञा का संकेत है। तुम लोगों को अपना स्वयं का रास्ता चुनना चाहिए, और पवित्र आत्मा के खिलाफ निंदा नहीं करनी चाहिए और सत्य को अस्वीकार नहीं करना चाहिए। तुम लोगों को अज्ञानी और अभिमानी व्यक्ति नहीं बनना चाहिए, बल्कि ऐसा बनना चाहिए जो पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन के प्रति समर्पण करता हो और सत्य के लिए लालायित होकर इसकी खोज करता हो; सिर्फ इसी तरीके से तुम लोग लाभान्वित होगे। मैं तुम लोगों को परमेश्वर में विश्वास के रास्ते पर सावधानी से चलने की सलाह देता हूँ। निष्कर्ष पर पहुँचने की जल्दी में न रहो; और परमेश्वर में अपने विश्वास में लापरवाह और विचारहीन न बनो। तुम लोगों को जानना चाहिए कि कम से कम, जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं उनके पास विनम्र और परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय होना चाहिए। जिन्होंने सत्य सुन लिया है और फिर भी इस पर अपनी नाक-भौंह सिकोड़ते हैं, वे मूर्ख और अज्ञानी हैं। जिन्होंने सत्य सुन लिया है और फिर भी लापरवाही के साथ निष्कर्षों तक पहुँचते हैं या उसकी निंदा करते हैं, ऐसे लोग अभिमान से घिरे हैं। जो भी यीशु पर विश्वास करता है वह दूसरों को शाप देने या निंदा करने के योग्य नहीं है। तुम सब लोगों को ऐसा व्यक्ति होना चाहिए, जो समझदार है और सत्य स्वीकार करता है। शायद, सत्य के मार्ग को सुनकर और जीवन के वचन को पढ़कर, तुम विश्वास करते हो कि इन 10,000 वचनों में से सिर्फ़ एक ही वचन है, जो तुम्हारे दृढ़ विश्वास और बाइबल के अनुसार है, और फिर तुम्हें इन 10,000 वचनों में खोज करते रहना चाहिए। मैं अब भी तुम्हें सुझाव देता हूँ कि विनम्र बनो, अति-आत्मविश्वासी न बनो और अपनी बहुत बड़ाई न करो। परमेश्वर का भय मानने वाले अपने थोड़े-से हृदय से तुम अधिक रोशनी प्राप्त करोगे। यदि तुम इन वचनों की सावधानी से जाँच करो और इन पर बार-बार मनन करो, तब तुम समझोगे कि वे सत्य हैं या नहीं, वे जीवन हैं या नहीं। शायद, केवल कुछ वाक्य पढ़कर, कुछ लोग इन वचनों की आँखें मूँदकर यह कहते हुए निंदा करेंगे, “यह पवित्र आत्मा की थोड़ी प्रबुद्धता से अधिक कुछ नहीं है,” या “यह एक झूठा मसीह है जो लोगों को गुमराह करने आया है।” जो लोग ऐसी बातें कहते हैं वे अज्ञानता से अंधे हो गए हैं! तुम परमेश्वर के कार्य और बुद्धि को बहुत कम समझते हो और मैं तुम्हें पुनः शुरू से आरंभ करने की सलाह देता हूँ! तुम लोगों को अंत के दिनों में झूठे मसीहों के प्रकट होने की वजह से आँख बंदकर परमेश्वर द्वारा अभिव्यक्त वचनों का तिरस्कार नहीं करना चाहिए और चूँकि तुम गुमराह होने से डरते हो, इसलिए तुम्हें पवित्र आत्मा के खिलाफ निंदा नहीं करनी चाहिए। क्या यह बड़ी दयनीय स्थिति नहीं होगी? यदि, बहुत जाँच के बाद, अब भी तुम्हें लगता है कि ये वचन सत्य नहीं हैं, मार्ग नहीं हैं और परमेश्वर की अभिव्यक्ति नहीं हैं, तो फिर अंततः तुम दंडित किए जाओगे और आशीष के बिना होगे। यदि तुम ऐसा सत्य, जो इतने सादे और स्पष्ट ढंग से कहा गया है, स्वीकार नहीं कर सकते, तो क्या तुम परमेश्वर के उद्धार के अयोग्य नहीं हो? क्या तुम ऐसे व्यक्ति नहीं हो, जो परमेश्वर के सिंहासन के सामने लौटने के लिए पर्याप्त सौभाग्यशाली नहीं है? इस बारे में सोचो! उतावले और अविवेकी न बनो और परमेश्वर में विश्वास के साथ खेल की तरह पेश न आओ। अपनी मंज़िल के लिए, अपनी संभावनाओं के वास्ते, अपने जीवन के लिए सोचो और स्वयं से खेल न करो। क्या तुम इन वचनों को स्वीकार कर सकते हो?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जब तक तुम यीशु के आध्यात्मिक शरीर को देखोगे, परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को नया बना चुका होगा
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