i. परमेश्वर के किसी व्यक्ति के अंत का निर्धारण करने का आधार क्या है

अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन

जो अंत के दिनों के दौरान परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के कार्य के दौरान अडिग रहने में समर्थ हैं—यानी, शुद्धिकरण के अंतिम कार्य के दौरान—वे लोग होंगे, जो परमेश्वर के साथ अंतिम विश्राम में प्रवेश करेंगे; तो वे सभी जो विश्राम में प्रवेश करेंगे, शैतान के प्रभाव से मुक्त हो चुके होंगे और परमेश्वर के शुद्धिकरण के अंतिम कार्य से गुज़रने के बाद उसके द्वारा प्राप्त किए जा चुके होंगे। ये लोग, जो अंततः परमेश्वर द्वारा प्राप्त किए जा चुके होंगे, अंतिम विश्राम में प्रवेश करेंगे। परमेश्वर के ताड़ना और न्याय के कार्य का उद्देश्य सार रूप में अंतिम विश्राम की खातिर मानवता को शुद्ध करना है; अन्यथा संपूर्ण मानवता अपने प्रकार के मुताबिक़ विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत नहीं की जा सकेगी, या विश्राम में प्रवेश करने में असमर्थ होगी। यह कार्य ही मानवता के लिए विश्राम में प्रवेश करने का एकमात्र मार्ग है। केवल परमेश्वर द्वारा शुद्धिकरण का कार्य ही मनुष्यों को उनकी अधार्मिकता से शुद्ध करेगा और केवल उसकी ताड़ना और न्याय का कार्य ही मानवता के उन विद्रोही तत्वों को सामने लाएगा, और इस तरह बचाये जा सकने वालों से बचाए न जा सकने वालों को अलग करेगा, और जो बचेंगे उनसे उन्हें अलग करेगा जो नहीं बचेंगे। इस कार्य के समाप्त होने पर जिन्हें बचने की अनुमति होगी, वे सभी शुद्ध किए जाएँगे, और मानवता की उच्चतर दशा में प्रवेश करेंगे जहाँ वे पृथ्वी पर और अद्भुत द्वितीय मानव जीवन का आनंद उठाएंगे; दूसरे शब्दों में, वे अपने मानवीय विश्राम का दिन शुरू करेंगे और परमेश्वर के साथ रहेंगे। जिन लोगों को रहने की अनुमति नहीं है, उनकी ताड़ना और उनका न्याय किया गया है, जिससे उनके असली रूप पूरी तरह सामने आ जाएँगे; उसके बाद वे सब के सब नष्ट कर दिए जाएँगे और शैतान के समान, उन्हें पृथ्वी पर रहने की अनुमति नहीं होगी। भविष्य की मानवता में इस प्रकार के कोई भी लोग शामिल नहीं होंगे; ऐसे लोग अंतिम विश्राम की धरती पर प्रवेश करने के योग्य नहीं हैं, न ही ये उस विश्राम के दिन में प्रवेश के योग्य हैं, जिसे परमेश्वर और मनुष्य दोनों साझा करेंगे क्योंकि वे दंड के लायक हैं और दुष्ट, अधार्मिक लोग हैं। उन्हें एक बार छुटकारा दिया गया था और उन्हें न्याय और ताड़ना भी दी गई थी; उन्होंने एक बार परमेश्वर के लिए मजदूरी भी की थी। हालाँकि जब अंतिम दिन आएगा, तो भी उन्हें अपनी बुराइयों और विद्रोहीपन के कारण और छुटकारा न पाने की योग्यता के परिणामस्वरूप निकालकर नष्ट कर दिया जाएगा; वे भविष्य के संसार में अब कभी अस्तित्व में नहीं आएँगे और कभी भविष्य की मानवजाति के बीच नहीं रहेंगे। जैसे ही मानवता के पवित्र जन विश्राम में प्रवेश करेंगे, चाहे वे मृत लोगों की आत्मा हों या अभी भी देह में रह रहे लोग, सभी बुराई करने वाले और वे सभी जिन्हें बचाया नहीं गया है, नष्ट कर दिए जाएँगे। जहाँ तक इन बुरा करने वाली आत्माओं और मनुष्यों, या धार्मिक लोगों की आत्माओं और धार्मिकता करने वालों की बात है, चाहे वे जिस युग में हों, जो भी बुरे हैं वे सभी अंततः नष्ट हो जाएँगे और जो लोग धार्मिक हैं, वे बच जाएँगे। किसी व्यक्ति या आत्मा को उद्धार प्राप्त होगा या नहीं, यह पूर्णतः अंत के युग के समय के कार्य के आधार पर तय नहीं होगा; बल्कि इस आधार पर निर्धारित किया जाता है कि क्या उन्होंने परमेश्वर का प्रतिरोध या उससे विद्रोह किया था। पिछले युगों में जिन लोगों ने बुरा किया और जो उद्धार नहीं प्राप्त कर पाए, निःसंदेह वे दंड के भागी बनेंगे और वे जो इस युग में बुरा करते हैं और उद्धार प्राप्त नहीं कर सकते, तो वे भी निश्चित रूप से दंड के भागी बनेंगे। मनुष्य अच्छे और बुरे के आधार पर पृथक किए जाते हैं, युग के आधार पर नहीं। एक बार इस प्रकार वर्गीकृत किए जाने पर, उन्हें तुरंत दंड या पुरस्कार नहीं दिया जाएगा; बल्कि, परमेश्वर अंत के दिनों में अपने विजय के कार्य को समाप्त करने के बाद ही बुराई को दंडित करने और अच्छाई को पुरस्कृत करने का अपना कार्य करेगा। वास्तव में, वह मनुष्यों को तब से अच्छे और बुरे में पृथक कर रहा है, जबसे उसने मानवजाति के उद्धार का अपना कार्य आरंभ किया था। बात बस इतनी है कि वह धार्मिकों को पुरस्कृत और दुष्टों को दंड देने का कार्य केवल तब करेगा, जब उसका कार्य समाप्त हो जाएगा; ऐसा नहीं है कि वह अपने कार्य के पूरा होने पर उन्हें श्रेणियों में पृथक करेगा और फिर तुरंत दुष्टों को दंडित करना और धार्मिकों को पुरस्कृत करना शुरू करेगा। बल्कि, यह कार्य तभी किया जाएगा, जब उसका कार्य पूर्ण रूप से समाप्त हो जाएगा। बुराई को दंडित करने और अच्छाई को पुरस्कृत करने के परमेश्वर के अंतिम कार्य के पीछे का पूरा उद्देश्य, सभी मनुष्यों को पूरी तरह शुद्ध करना है, ताकि वह पूरी तरह पवित्र मानवता को शाश्वत विश्राम में ला सके। उसके कार्य का यह चरण सबसे अधिक महत्वपूर्ण है; यह उसके समस्त प्रबंधन-कार्य का अंतिम चरण है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे

अब वह समय है जब मैं प्रत्येक व्यक्ति का अंत निर्धारित करता हूँ, न कि वह चरण जिसमें मैंने मनुष्य पर काम करना आरंभ किया था। मैं अपनी अभिलेख-पुस्तक में एक-एक करके प्रत्येक व्यक्ति के शब्द और कार्य, वह मार्ग जिसके द्वारा उन्होंने मेरा अनुसरण किया है, उनकी अंतर्निहित विशेषताएँ और अंततः उन लोगों द्वारा किया गया आचरण लिखता हूँ। इस तरह, किसी भी प्रकार का मनुष्य मेरे हाथ से नहीं बचेगा, और सभी मेरे द्वारा नियत अपने प्रकार के साथ होंगे। मैं प्रत्येक व्यक्ति की मंजिल उसकी आयु, वरिष्ठता और उसके द्वारा सही गई पीड़ा की मात्रा के आधार पर तय नहीं करता, और जिस सीमा तक वे दया के पात्र होते हैं, उसके आधार पर तो बिल्कुल भी तय नहीं करता, बल्कि इस बात के अनुसार तय करता हूँ कि उनके पास सत्य है या नहीं। इसके अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं है। तुम लोगों को यह समझना चाहिए कि जो लोग परमेश्वर की इच्छा का अनुसरण नहीं करते, वे सब दंडित किए जाएँगे। यह एक अडिग तथ्य है। इसलिए, जो लोग दंडित किए जाते हैं, वे सब इस तरह परमेश्वर की धार्मिकता के कारण और अपने अनगिनत बुरे कार्यों के प्रतिफल के रूप में दंडित किए जाते हैं।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अपनी मंजिल के लिए पर्याप्त अच्छे कर्म तैयार करो

मानवता के विश्राम में प्रवेश से पहले, हर एक व्यक्ति का दंडित होना या पुरस्कृत होना इस बात पर आधारित होगा कि क्या उन्होंने सत्य की खोज की है, क्या वे परमेश्वर को जानते हैं और क्या वे प्रत्यक्ष परमेश्वर को समर्पण कर सकते हैं। जिन्होंने प्रत्यक्ष परमेश्वर के लिए मजदूरी की है, पर वे उसे न तो जानते हैं न ही उसके प्रति समर्पण करते हैं, उनमें सत्य नहीं है। ऐसे लोग बुराई करने वाले हैं और बुराई करने वाले निःसंदेह दंड के भागी होंगे; इसके अलावा, वे अपने बुरे आचरण के अनुसार दंड पाएंगे। परमेश्वर मनुष्यों के विश्वास करने के लिए है और वह उनका समर्पण पाने के योग्य भी है। वे जो केवल अज्ञात और अदृश्य परमेश्वर पर विश्वास रखते हैं, वे लोग हैं जो परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते और परमेश्वर के प्रति समर्पण करने में असमर्थ हैं। यदि ये लोग तब भी प्रत्यक्ष परमेश्वर पर विश्वास नहीं कर पाते, जब उसका विजय कार्य समाप्त होता है और देह में दिखाई देने वाले परमेश्वर से विद्रोह करना जारी रख उसका विरोध करते हैं, तो ये “अज्ञातवादी” बिना संदेह विनाश की वस्तुएँ बन जाएँगे। यह उसी प्रकार है, जैसे तुममें से कुछ लोग जो मौखिक रूप में देहधारी परमेश्वर को पहचानते हैं, फिर भी देहधारी परमेश्वर के प्रति समर्पण के सत्य का अभ्यास नहीं कर पाते, उन्हें अंत में निकालकर नष्ट किया जाना है। इसके अलावा, जो कोई मौखिक रूप से दृष्टिगोचर परमेश्वर को पहचानता है, उसके द्वारा अभिव्यक्त सत्य को खाता और पीता है जबकि अज्ञात और अदृश्य परमेश्वर को भी खोजता है, वह निश्चित ही विनाश का पात्र होगा। इन लोगों में से कोई भी, परमेश्वर का कार्य पूरा होने के बाद उसके विश्राम का समय आने तक नहीं बचेगा, न ही उस विश्राम के समय, ऐसे लोगों के समान एक भी व्यक्ति बच सकता है। दुष्टात्मा लोग वे हैं, जो सत्य का अभ्यास नहीं करते; उनका सार परमेश्वर का प्रतिरोध और उससे विद्रोह करना है और उनमें परमेश्वर के समक्ष समर्पण की लेशमात्र भी इच्छा नहीं है। ऐसे सभी लोग नष्ट किए जाएँगे। तुम्हारे पास सत्य है या नहीं और तुम परमेश्वर का प्रतिरोध करते हो या नहीं, यह तुम्हारे प्रकटन पर या तुम्हारी कभीकभार की बातचीत और आचरण पर नहीं बल्कि तुम्हारे सार पर निर्भर है। प्रत्येक व्यक्ति का सार तय करता है कि उसे नष्ट किया जाएगा या नहीं; यह किसी के व्यवहार और किसी की सत्य की खोज द्वारा उजागर हुए सार के अनुसार तय किया जाता है। उन लोगों में जो कार्य करने में एक दूसरे के समान हैं, और जो समान मात्रा में कार्य करते हैं, जिनके मानवीय सार अच्छे हैं और जिनके पास सत्य है, वे लोग हैं जिन्हें रहने दिया जाएगा, जबकि वे जिनका मानवीय सार दुष्टता भरा है और जो प्रत्यक्ष परमेश्वर से विद्रोह करते हैं, वे विनाश की वस्तुएँ होंगे। परमेश्वर के सभी कार्य या मानवता के गंतव्य से संबंधित वचन प्रत्येक व्यक्ति के सार के अनुसार उचित रूप से लोगों के साथ व्यवहार करेंगे; थोड़ी-सी भी त्रुटि नहीं होगी और एक भी ग़लती नहीं की जाएगी। केवल जब लोग कार्य करते हैं, तब ही मनुष्य की भावनाएँ या अर्थ उसमें मिश्रित होते हैं। परमेश्वर जो कार्य करता है, वह सबसे अधिक उपयुक्त होता है; वह निश्चित तौर पर किसी सृजित प्राणी के विरुद्ध झूठे दावे नहीं करता। अभी बहुत से लोग हैं, जो मानवता के भविष्य के गंतव्य को समझने में असमर्थ हैं और वे उन वचनों पर विश्वास नहीं करते, जो मैं कहता हूँ। वे सभी जो विश्वास नहीं करते और वे भी जो सत्य का अभ्यास नहीं करते, दुष्टात्मा हैं!

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे

अंत के दिनों के अपने कार्य में परमेश्वर लोगों की अभिव्यक्तियों के आधार पर उनके परिणाम निर्धारित करता है। क्या तुम लोग जानते हो कि यहाँ “अभिव्यक्तियों” से क्या तात्पर्य है? तुम्हें लगता होगा कि अभिव्यक्तियाँ उन भ्रष्ट स्वभावों को कहते हैं जिन्हें लोग अपने क्रियाकलापों में प्रकट करते हैं, लेकिन वास्तव में इसका यह मतलब नहीं है। यहाँ अभिव्यक्तियों से यह तात्पर्य है कि तुम सत्य का अभ्यास कर पाते हो या नहीं; अपना कर्तव्य निभाते समय वफादार रह पाते हो या नहीं; परमेश्वर पर विश्वास करने का तुम्हारा दृष्टिकोण, परमेश्वर के प्रति तुम्हारा रवैया, कष्ट सहने का तुम्हारा संकल्प कैसा है; न्याय, ताड़ना और काट-छाँट स्वीकारने को लेकर तुम्हारा रवैया क्या है; तुम्हारे किए गंभीर अपराधों की संख्या क्या है; और तुम आखिर किस हद तक पश्चात्ताप कर पाते हो और खुद में बदलाव ला पाते हो। ये सभी मिलकर तुम्हारी अभिव्यक्तियाँ बनते हैं। यहाँ अभिव्यक्ति से यह तात्पर्य नहीं है कि तुमने कितने भ्रष्ट स्वभाव प्रकट किए या कितने बुरे काम किए, बल्कि इसका मतलब यह है कि तुम्हें कितने नतीजे मिल चुके हैं और परमेश्वर में विश्वास करते हुए तुम खुद में कितना वास्तविक बदलाव ला पाए हो। यदि लोगों के परिणाम इस आधार पर निर्धारित किए जाते कि उनकी प्रकृति ने कितनी ज्यादा भ्रष्टता प्रकट की है तो कोई भी उद्धार प्राप्त नहीं कर पाता क्योंकि सभी मनुष्य गहराई तक भ्रष्ट हैं, सबकी प्रकृति शैतानी है और वे सभी परमेश्वर का प्रतिरोध करते हैं। परमेश्वर उन लोगों को बचाना चाहता है जो सत्य को स्वीकार कर उसके कार्य के प्रति समर्पित हो सकते हैं। वे चाहे जितनी भ्रष्टता प्रकट करें, अगर वे अंततः सत्य को स्वीकार सकते हैं, सच्चा पश्चात्ताप कर सकते हैं और खुद में सच्चा बदलाव ला सकते हैं तो वे ऐसे लोग हैं जिन्हें परमेश्वर बचाता है। कुछ लोग इसकी असलियत नहीं जान पाते और सोचते हैं कि जो कोई भी अगुआ के रूप में कार्य करेगा वह अपने भ्रष्ट स्वभाव और अधिक प्रकट करेगा, और जो कोई अधिक भ्रष्टता प्रकट करेगा उसे निश्चित रूप से हटा दिया जाएगा और वह बच नहीं पाएगा। क्या यह दृष्टिकोण सही है? भले ही अगुआ अधिक भ्रष्टता प्रकट करते हैं, यदि वे सत्य का अनुसरण करते हैं तो वे परमेश्वर के न्याय और ताड़ना का अनुभव करने योग्य हैं, वे बचाए जाने और पूर्ण बनाए जाने के मार्ग पर चल सकते हैं, और अंततः वे परमेश्वर की एक सुंदर गवाही देने में सक्षम होंगे। ये वे लोग हैं जो सचमुच बदल गए हैं। यदि लोगों के परिणाम इस आधार पर निर्धारित किए जाते कि उनके भ्रष्ट स्वभाव का कितना खुलासा हुआ है, तो जितना अधिक वे अगुआ और कार्यकर्ता के रूप में कार्य करते, उतनी ही जल्दी उनका खुलासा हो जाता। अगर ऐसा मामला होता तो अगुआ या कार्यकर्ता बनने की हिम्मत कौन करता? कौन परमेश्वर द्वारा उपयोग किए जाने और पूर्ण बनाए जाने के मुकाम तक पहुँच पाता? क्या यह दृष्टिकोण बहुत ही बेतुका नहीं है? परमेश्वर मुख्य रूप से यह देखता है कि क्या लोग सत्य को स्वीकार कर उसका अभ्यास कर सकते हैं, क्या वे अपनी गवाही पर दृढ़ रह सकते हैं, और क्या वे वास्तव में बदल गए हैं। यदि लोगों के पास सच्ची गवाही है और उनमें सच्चा परिवर्तन आया है, तो वे ऐसे लोग हैं जिन्हें परमेश्वर स्वीकृति देता है। कुछ लोग ऊपर से देखने में कोई भ्रष्टता प्रकट नहीं करते लेकिन उनके पास सच्ची अनुभवात्मक गवाही नहीं होती, वे सचमुच नहीं बदले हैं और परमेश्वर उन्हें स्वीकृति नहीं देता।

परमेश्वर किसी व्यक्ति की अभिव्यक्तियों और सार के आधार पर उसका परिणाम निर्धारित करता है। यहाँ अभिव्यक्तियों से तात्पर्य यह है कि क्या कोई व्यक्ति परमेश्वर के प्रति वफादार है, क्या उसके मन में उसके प्रति प्रेम है, क्या वह सत्य का अभ्यास करता है, और उसका स्वभाव किस हद तक बदला है। इन अभिव्यक्तियों और उनके सार के आधार पर परमेश्वर किसी व्यक्ति का परिणाम निर्धारित करता है, न कि इस आधार पर कि वह अपना भ्रष्ट स्वभाव कितना प्रकट करता है। अगर तुम्हें यह लगता है कि परमेश्वर किसी व्यक्ति का परिणाम इस आधार पर निर्धारित करता है कि उसने कितनी भ्रष्टता प्रकट की है, तो तुमने उसके इरादों की गलत व्याख्या की है। वास्तव में, लोगों में एक समान भ्रष्ट सार होता है, अंतर केवल यह होता है कि उनमें अच्छी या बुरी मानवता है या नहीं और वे सत्य को स्वीकार सकते हैं या नहीं। चाहे कोई अपने भ्रष्ट स्वभाव को कितना भी प्रकट करे, परमेश्वर सबसे अच्छी तरह जानता है कि उसके दिल की गहराई में क्या है; तुम्हें इसे छिपाने की कोई जरूरत नहीं है। परमेश्वर लोगों के दिलों की गहराइयों को परखता है। भले ही कुछ ऐसा हो जिसे तुम दूसरों के सामने या पीठ पीछे करते हो, या तुम मन ही मन करना चाहते हो, परमेश्वर के सामने यह सब कुछ खुला होता है। लोग गुप्त रूप से क्या करते हैं, इसकी जानकारी परमेश्वर को भला कैसे नहीं होगी? क्या यह आत्म-भ्रम नहीं है? सच में तो किसी व्यक्ति की प्रकृति चाहे कितनी भी कपटपूर्ण हो, चाहे वह कितना भी झूठ बोले, चाहे वह छद्मवेश ओढ़ने और धोखा देने में कितना भी कुशल हो, परमेश्वर सब कुछ बखूबी जानता है। परमेश्वर अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इतनी अच्छी तरह से जानता है, तो क्या वह अपने सामान्य अनुयायियों को भी इतनी ही अच्छी तरह नहीं जानेगा? कुछ लोग सोचते हैं, “जो भी अगुआई करता है वह मूर्ख और अज्ञानी है और खुद अपने आप को बर्बाद कर रहा है, क्योंकि एक अगुआ के रूप में कार्य करने से लोग अनिवार्य रूप से परमेश्वर के सामने भ्रष्टता प्रकट करने को मजबूर हो जाते हैं। अगर वे यह काम नहीं करते तो क्या इतनी बड़ी भ्रष्टता सामने आती?” कितना बेतुका विचार है! यदि तुम एक अगुआ के रूप में कार्य नहीं करते, तो क्या तुम भ्रष्टता का खुलासा नहीं करोगे? क्या अगुआ न होने का मतलब यह है कि भले ही तुम कम भ्रष्टता दिखाओ, तुम्हें उद्धार प्राप्त हो गया है? इस तर्क के अनुसार तो क्या वे सभी जो अगुआओं के रूप में सेवा नहीं करते, जीवित रह सकते हैं और बचाए जा सकते हैं? क्या यह कथन बहुत हास्यास्पद नहीं लगता? जो लोग अगुआओं के रूप में सेवा करते हैं वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को परमेश्वर के वचन खाने-पीने और परमेश्वर के कार्य का अनुभव करने का मार्गदर्शन देते हैं। यह अपेक्षा और मानक उच्च है, इसलिए यह अपरिहार्य है कि जब अगुआ पहली बार प्रशिक्षण शुरू करेंगे तो कुछ भ्रष्ट दशाएँ प्रकट करेंगे। यह सामान्य है और परमेश्वर इसकी निंदा नहीं करता। इसकी निंदा करना तो दूर रहा, परमेश्वर इन लोगों को प्रबुद्ध और रोशन कर उनका मार्गदर्शन भी करता है, और उन पर अतिरिक्त बोझ डालता है। अगर वे परमेश्वर के मार्गदर्शन और कार्य के प्रति समर्पण कर सकते हैं तो वे सामान्य लोगों की तुलना में जीवन में तेजी से प्रगति करेंगे। यदि वे सत्य का अनुसरण करने वाले लोग हैं तो वे परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाए जाने के मार्ग पर चल सकते हैं। यही वह चीज है जिस पर परमेश्वर का सबसे अधिक आशीष होता है। कुछ लोग इसे समझ नहीं पाते और तथ्यों को तोड़-मरोड़ देते हैं। मानवीय समझ के अनुसार चाहे कोई अगुआ कितना भी बदल जाए, परमेश्वर परवाह नहीं करेगा; वह केवल यह देखेगा कि अगुआ और कार्यकर्ता कितनी भ्रष्टता प्रकट करते हैं और इसके आधार पर ही उनकी निंदा करेगा। और जो लोग अगुआ और कार्यकर्ता नहीं हैं वे चूँकि भ्रष्टता प्रकट नहीं करते, इसलिए चाहे वे खुद को न भी बदलें तो भी परमेश्वर उनकी निंदा नहीं करेगा। क्या यह बेतुकी बात नहीं है? क्या यह परमेश्वर की ईशनिंदा नहीं है? यदि तुम अपने हृदय में इतनी गहराई से परमेश्वर का विरोध करते हो, तो क्या तुम्हें बचाया जा सकता है? तुम्हें नहीं बचाया जा सकता। परमेश्वर लोगों के परिणाम मुख्य रूप से इस आधार पर निर्धारित करता है कि उनके पास सत्य और सच्ची गवाही है या नहीं, और यह मुख्य रूप से इस पर निर्भर करता है कि क्या वे सत्य का अनुसरण करने वाले लोग हैं या नहीं हैं। यदि वे सत्य का अनुसरण करते हैं, अपने अपराध के लिए न्याय और ताड़ना दिए जाने के बाद वे सच में पश्चात्ताप कर पाते हैं, तो जब तक वे ऐसे शब्द नहीं कहते या ऐसी चीजें नहीं करते हैं जिनसे परमेश्वर की ईशनिंदा हो, वे निश्चित रूप से उद्धार प्राप्त करने में सक्षम होंगे। तुम लोगों की कल्पनाओं के अनुसार सभी सामान्य विश्वासी जो अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करते हैं, उद्धार प्राप्त कर सकते हैं, और जो अगुआ के रूप में सेवा करते हैं, उन सभी को हटा दिया जाना चाहिए। यदि तुम लोगों से अगुआ बनने के लिए कहा जाए, तो तुम सोचोगे कि ऐसा न करना ठीक नहीं रहेगा, लेकिन अगुआ के रूप में काम करना पड़ा तो अनजाने में ही भ्रष्टता प्रकट होगी और यह बिल्कुल अपनी गर्दन कटाने जैसी बात है। क्या यह सब सोचने का कारण परमेश्वर के बारे में तुम लोगों की गलतफहमियाँ नहीं है? यदि लोगों के परिणाम उनके द्वारा प्रकट भ्रष्टता के आधार पर निर्धारित किए जाते, तो किसी को भी नहीं बचाया जा सकता। उस स्थिति में परमेश्वर द्वारा उद्धार का कार्य करने का क्या मतलब होगा? यदि सचमुच ऐसा ही हो तो परमेश्वर की धार्मिकता कहाँ दिखेगी? मानवजाति परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव को देखने में असमर्थ रहेगी। इसलिए तुम सब लोगों ने परमेश्वर के इरादों को गलत समझा है, जो दर्शाता है कि तुम लोगों को परमेश्वर का सच्चा ज्ञान नहीं है।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन

मनुष्य जिस मानक से दूसरे मनुष्य को आंकता है, वह व्यवहार पर आधारित है; जिनका आचरण अच्छा है वे धार्मिक हैं और जिनका आचरण घृणित है वे दुष्ट हैं। परमेश्वर जिस मानक से मनुष्यों का न्याय करता है, उसका आधार यह है कि क्या व्यक्ति का सार परमेश्वर को समर्पित है या नहीं; जो परमेश्वर को समर्पित है वह धार्मिक है और जो नहीं है वह शत्रु और दुष्ट व्यक्ति है, भले ही उस व्यक्ति का आचरण अच्छा हो या बुरा, भले ही इस व्यक्ति की बातें सही हों या गलत हों। कुछ लोग अच्छे कर्मों का उपयोग भविष्य में अच्छी मंज़िल प्राप्त करने के लिए करना चाहते हैं और कुछ लोग अच्छी वाणी का उपयोग एक अच्छी मंज़िल हासिल करने में करना चाहते हैं। प्रत्येक व्यक्ति का यह ग़लत विश्वास है कि परमेश्वर मनुष्य के व्यवहार को देखकर या उनकी बातें सुनकर उसका परिणाम निर्धारित करता है; इसलिए बहुत से लोग परमेश्वर को धोखा देने के लिए इसका फ़ायदा उठाना चाहते हैं, ताकि वह उन पर क्षणिक कृपा कर दे। भविष्य में, जो लोग विश्राम की अवस्था में जीवित बचेंगे, उन सभी ने क्लेश के दिन को सहन किया हुआ होगा और परमेश्वर की गवाही दी हुई होगी; ये वे सब लोग होंगे, जिन्होंने अपने कर्तव्य पूरे किए हैं और जिन्होंने जानबूझकर परमेश्वर को समर्पण किया है। जो केवल सत्य का अभ्यास करने से बचने के इरादे से सिर्फ सेवा करने के अवसर का लाभ उठाना चाहते हैं, उन्हें रहने नहीं दिया जाएगा। परमेश्वर के पास प्रत्येक व्यक्ति के परिणाम के प्रबंधन के लिए उचित मानक हैं; वह केवल यूँ ही किसी के शब्दों या आचरण के अनुसार ये निर्णय नहीं लेता, न ही वह एक अवधि के दौरान किसी के व्यवहार के अनुसार निर्णय लेता है। अतीत में किसी व्यक्ति द्वारा परमेश्वर के लिए की गई किसी सेवा की वजह से वह किसी के बुरे आचरण के प्रति नर्मी कतई नहीं बरतेगा, न ही वह परमेश्वर के लिए स्वयं को खपाने की समय अवधि बिताने के कारण किसी को मृत्यु से बचाएगा। कोई भी अपनी दुष्टता के प्रतिफल से नहीं बच सकता, न ही कोई अपने बुरे व्यवहार को छिपा सकता है और फलस्वरूप विनाश की पीड़ा से बच सकता है। यदि लोग वास्तव में अपने कर्तव्य का अच्छे से पालन कर सकते हैं, तो इसका अर्थ है कि वे अनंतकाल तक परमेश्वर के प्रति वफ़ादार हैं और उन्हें इसकी परवाह नहीं होती कि उन्हें आशीष मिलते हैं या वे दुर्भाग्य से पीड़ित होते हैं, वे पुरस्कार की तलाश नहीं करते। यदि लोग आशीष दिखने पर परमेश्वर के लिए निष्ठावान रहते हैं और आशीष न दिखने पर अपनी निष्ठा खो देते हैं और अगर अंत में भी वे परमेश्वर की गवाही देने में असमर्थ रहते हैं या अपने जिम्मे आए कर्तव्य अच्छे से नहीं निभा पाते तो परमेश्वर के लिए पहले निष्ठापूर्वक की गई मजदूरी के बावजूद वे विनाश की वस्तु बनेंगे। संक्षेप में, दुष्ट लोग अनंतकाल तक जीवित नहीं रह सकते, न ही वे विश्राम में प्रवेश कर सकते हैं; केवल धार्मिक लोग ही विश्राम के अधिकारी हैं।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे

किसी को आशीष मिलेगा या दुर्भाग्य सहना पड़ेगा, इसका निर्धारण व्यक्ति के सार के अनुसार होता है, न कि सामान्य सार के अनुसार, जो वह दूसरों के साथ साझा करता है। इस प्रकार की लोकोक्ति या नियम का राज्य में कोई स्थान है ही नहीं। यदि कोई अंत में बच पाता है, तो ऐसा इसलिए है क्योंकि उसने परमेश्वर की अपेक्षाओं को पूरा किया है और यदि कोई विश्राम के दिनों तक बचने में सक्षम नहीं हो पाता, तो इसलिए क्योंकि वे परमेश्वर के प्रति विद्रोही रहे हैं और उन्होंने परमेश्वर की अपेक्षाओं को पूरा नहीं किया है। प्रत्येक के पास एक उचित गंतव्य है। ये गंतव्य प्रत्येक व्यक्ति के सार के अनुसार निर्धारित किए जाते हैं और दूसरे लोगों से इनका कोई संबंध नहीं होता। किसी बच्चे का दुष्ट व्यवहार उसके माता-पिता को हस्तांतरित नहीं किया जा सकता और न ही किसी बच्चे की धार्मिकता उसके माता-पिता के साथ बाँटी जा सकती है। माता-पिता का दुष्ट आचरण उनकी संतानों को हस्तांतरित नहीं किया जा सकता, न ही माता-पिता की धार्मिकता उनके बच्चों के साथ साझा की जा सकती है। हर कोई अपने-अपने पाप ढोता है और हर कोई अपने-अपने आशीषों का आनंद लेता है। कोई भी दूसरे का स्थान नहीं ले सकता; यही धार्मिकता है। मनुष्य के नज़रिए से, यदि माता-पिता आशीष पाते हैं, तो उनके बच्चों को भी मिलना चाहिए, यदि बच्चे बुरा करते हैं, तो उनके पापों के लिए माता-पिता को प्रायश्चित करना चाहिए। यह मनुष्य का दृष्टिकोण है और कार्य करने का मनुष्य का तरीक़ा है; यह परमेश्वर का दृष्टिकोण नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति के परिणाम का निर्धारण उसके आचरण से पैदा होने वाले सार के अनुसार होता है और इसका निर्धारण सदैव उचित तरीक़े से होता है। कोई भी दूसरे के पापों को नहीं ढो सकता; यहाँ तक कि कोई भी दूसरे के बदले दंड नहीं पा सकता। यह सुनिश्चित है। माता-पिता द्वारा अपनी संतान की बहुत ज़्यादा देखभाल का अर्थ यह नहीं कि वे अपनी संतान के बदले धार्मिकता के कर्म कर सकते हैं, न ही किसी बच्चे के माता-पिता के प्रति कर्तव्यनिष्ठ स्नेह का यह अर्थ है कि वे अपने माता-पिता के लिए धार्मिकता के कर्म कर सकते हैं। यही इन वचनों का वास्तविक अर्थ है, “उस समय दो जन खेत में होंगे, एक ले लिया जाएगा और दूसरा छोड़ दिया जाएगा। दो स्त्रियाँ चक्‍की पीसती रहेंगी, एक ले ली जाएगी और दूसरी छोड़ दी जाएगी।” लोग बुरा करने वाले बच्चों के प्रति गहरे प्रेम के आधार पर उन्हें विश्राम में नहीं ले जा सकते, न ही कोई अपनी पत्नी (या पति) को अपने धार्मिक आचरण के आधार पर विश्राम में ले जा सकता है। यह एक प्रशासनिक नियम है; किसी के लिए कोई अपवाद नहीं हो सकता। अंत में, धार्मिकता करने वाले धार्मिकता ही करते हैं और बुरा करने वाले, बुरा ही करते हैं। अंततः धार्मिकों को बचने की अनुमति मिलेगी, जबकि बुरा करने वाले नष्ट हो जाएंगे। पवित्र, पवित्र हैं; वे गंदे नहीं हैं। गंदे, गंदे हैं और उनमें पवित्रता का एक भी अंश नहीं है। जो लोग नष्ट किए जाएँगे, वे सभी दुष्ट हैं और जो बचेंगे वे सभी धार्मिक हैं—भले ही बुरा कार्य करने वालों की संतानें धार्मिक कर्म करें और भले ही किसी धार्मिक व्यक्ति के माता-पिता दुष्टता के कर्म करें। एक विश्वासी पति और अविश्वासी पत्नी के बीच कोई संबंध नहीं होता और विश्वासी बच्चों और अविश्वासी माता-पिता के बीच कोई संबंध नहीं होता; ये दोनों तरह के लोग पूरी तरह असंगत हैं। विश्राम में प्रवेश से पहले एक व्यक्ति के रक्त-संबंधी होते हैं, किंतु एक बार जब उसने विश्राम में प्रवेश कर लिया, तो उसके कोई रक्त-संबंधी नहीं होंगे। जो अपना कर्तव्य निभाते हैं वे उनके शत्रु हैं जो अपने कर्तव्य नहीं निभाते हैं; जो परमेश्वर से प्रेम करते हैं और जो उससे घृणा करते हैं, वे एक दूसरे के उलट हैं। जो विश्राम में प्रवेश करेंगे और जो नष्ट किए जा चुके होंगे, वे बेमेल किस्म के अलग-अलग सृजित प्राणी हैं। जो सृजित प्राणी अपने कर्तव्य अच्छे से निभाते हैं, बचने में समर्थ होंगे, जबकि वे जो अपने कर्तव्य नहीं निभाते, विनाश की वस्तुएँ बनेंगे; यही नहीं, यह सब अनंत काल तक चलेगा।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे

क्या अब तुम समझ गए हो कि न्याय क्या है और सत्य क्या है? अगर तुम समझ गए हो, तो मैं तुम्हें न्याय किए जाने के लिए आज्ञाकारी ढंग से समर्पित होने की नसीहत देता हूँ, वरना तुम्हें कभी भी परमेश्वर द्वारा स्वीकृत किए जाने या उसके द्वारा अपने राज्य में ले जाए जाने का अवसर नहीं मिलेगा। जो केवल न्याय को स्वीकार करते हैं लेकिन कभी शुद्ध नहीं किए जा सकते, अर्थात् जो न्याय के कार्य के बीच से ही भाग जाते हैं, वे हमेशा के लिए परमेश्वर द्वारा ठुकरा दिए जाएँगे। फरीसियों के पापों की तुलना में उनके पाप संख्या में बहुत अधिक और ज्यादा संगीन हैं, क्योंकि उन्होंने परमेश्वर के साथ विश्वासघात किया है और वे परमेश्वर के प्रति विद्रोही हैं। जो लोग मजदूरी करने के भी योग्य नहीं हैं, वे अधिक कठोर दंड प्राप्त करेंगे, ऐसा दंड जो चिरस्थायी भी होगा। परमेश्वर ऐसे किसी भी गद्दार को नहीं छोड़ेगा, जिसने एक बार तो वचनों से वफादारी दिखाई, मगर फिर परमेश्वर को धोखा दे दिया। ऐसे लोग आत्मा, प्राण और शरीर के दंड के माध्यम से प्रतिफल प्राप्त करेंगे। क्या यह हूबहू परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव का प्रकटन नहीं है? क्या मनुष्य का न्याय करने और उसे उजागर करने में परमेश्वर का यह उद्देश्य नहीं है? परमेश्वर उन सभी को, जो न्याय के समय के दौरान सभी प्रकार के कुकर्म करते हैं, दुष्टात्माओं से आक्रांत स्थान पर भेजता है, और उन दुष्टात्माओं को इच्छानुसार उनके दैहिक शरीर नष्ट करने देता है, और उन लोगों के शरीरों से लाश की दुर्गंध निकलती है। ऐसा उनका उचित प्रतिशोध है। परमेश्वर उन निष्ठाहीन झूठे विश्वासियों, झूठे प्रेरितों और झूठे कार्यकर्ताओं का हर पाप उनकी अभिलेख-पुस्तकों में लिखता है; और फिर जब सही समय आता है, वह उन्हें गंदी आत्माओं के बीच में फेंक देता है, और उन अशुद्ध आत्माओं को इच्छानुसार उनके संपूर्ण शरीरों को दूषित करने देता है, ताकि वे कभी भी पुनः देहधारण न कर सकें और दोबारा कभी भी रोशनी न देख सकें। जो पाखंडी लोग कुछ समय तक सेवा करते हैं, किंतु अंत तक वफ़ादार नहीं बने रह पाते, उन्हें परमेश्वर कुकर्मियों में गिनता है ताकि वे कुकर्मियों की संगत में पड़कर उनकी उपद्रवी भीड़ का हिस्सा बन जाएँ; अंत में परमेश्वर उन्हें जड़ से मिटा देगा। परमेश्वर उन लोगों को अलग फेंक देता है और उन पर कोई ध्यान नहीं देता, जो कभी भी मसीह के प्रति वफादार नहीं रहे या जिन्होंने अपने सामर्थ्य का कुछ भी योगदान नहीं किया, और युग बदलने पर वह उन सभी को जड़ से मिटा देगा। वे अब और पृथ्वी पर मौजूद नहीं रहेंगे, परमेश्वर के राज्य का मार्ग तो बिल्कुल भी प्राप्त नहीं करेंगे। जो कभी भी परमेश्वर के प्रति ईमानदार नहीं रहे, किंतु उसके साथ बेमन से व्यवहार करने के लिए परिस्थिति द्वारा मजबूर किए जाते हैं, वे परमेश्वर के लोगों की सेवा करने वालों में गिने जाते हैं। ऐसे गिने-चुने लोग ही जीवित बचेंगे और जिनकी मेहनत मानक के अनुरूप नहीं होती उनके सहित लोगों की बड़ी संख्या नष्ट हो जाएगी। अंततः परमेश्वर उन सभी को, जिनका मन परमेश्वर के समान है, अपने लोगों और पुत्रों को, और परमेश्वर द्वारा याजक बनाए जाने के लिए पूर्वनियत लोगों को अपने राज्य में ले आएगा। वे परमेश्वर के कार्य का आसवन होंगे। जहाँ तक उन लोगों का प्रश्न है, जो परमेश्वर द्वारा निर्धारित किसी भी श्रेणी में नहीं आ सकते, वे अविश्वासियों में गिने जाएँगे—तुम लोग निश्चित रूप से कल्पना कर सकते हो कि उनका क्या परिणाम होगा। मैं तुम सभी लोगों से पहले ही वह कह चुका हूँ, जो मुझे कहना चाहिए; जो मार्ग तुम लोग चुनते हो, वह केवल तुम्हारी पसंद है। तुम लोगों को जो समझना चाहिए, वह यह है : परमेश्वर का कार्य ऐसे किसी शख्स का इंतज़ार नहीं करता, जो उसके साथ कदमताल नहीं कर सकता, और परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव किसी भी मनुष्य के प्रति कोई दया नहीं दिखाता।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है

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किस प्रकार के लोग परमेश्वर के राज्य में प्रवेश पा सकते हैं?

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परमेश्वर मनुष्य का परिणाम इस आधार पर तय करता है कि क्या उसके पास सत्य है

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संदर्भ के लिए बाइबल के पद :"हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नाम पवित्र माना जाए। तेरा राज्य आए। तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी...

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

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