8. धार्मिक जगत की भ्रांति कि : “ऐसे सभी दावे कि प्रभु लौट आए हैं, झूठे हैं और उन पर विश्वास नहीं किया जा सकता”

बाइबल के इन वचनों के अनुसार, “उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता, न स्वर्ग के दूत और न पुत्र, परन्तु केवल पिता(मत्ती 24:36), धार्मिक जगत यह मानता है कि चूँकि कोई नहीं जानता कि प्रभु किस दिन आएगा, ऐसे सारे दावे कि प्रभु लौट आया है झूठे हैं और उन पर विश्वास नहीं किया जा सकता।

बाइबल से उद्धृत वचन

“देख, मैं शीघ्र आनेवाला हूँ; और हर एक के काम के अनुसार बदला देने के लिये प्रतिफल मेरे पास है” (प्रकाशितवाक्य 22:12)

“मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ। और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूँ, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊँगा कि जहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो” (यूहन्ना 14:2-3)

“यदि तू जागृत न रहेगा तो मैं चोर के समान आ जाऊँगा, और तू कदापि न जान सकेगा कि मैं किस घड़ी तुझ पर आ पड़ूँगा” (प्रकाशितवाक्य 3:3)

“इसलिये तुम भी तैयार रहो, क्योंकि जिस घड़ी के विषय में तुम सोचते भी नहीं हो, उसी घड़ी मनुष्य का पुत्र आ जाएगा” (मत्ती 24:44)

“क्योंकि जैसे बिजली आकाश के एक छोर से कौंध कर आकाश के दूसरे छोर तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य का पुत्र भी अपने दिन में प्रगट होगा। परन्तु पहले अवश्य है कि वह बहुत दुःख उठाए, और इस युग के लोग उसे तुच्छ ठहराएँ” (लूका 17:24-25)

“आधी रात को धूम मची : ‘देखो, दूल्हा आ रहा है! उससे भेंट करने के लिये चलो’” (मत्ती 25:6)

“देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ” (प्रकाशितवाक्य 3:20)

“मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं; मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं” (यूहन्ना 10:27)

“जब अन्य चेले उससे कहने लगे, ‘हम ने प्रभु को देखा है,’ तब उसने उनसे कहा, ‘जब तक मैं उसके हाथों में कीलों के छेद न देख लूँ, और कीलों के छेदों में अपनी उँगली न डाल लूँ, और उसके पंजर में अपना हाथ न डाल लूँ, तब तक मैं विश्‍वास नहीं करूँगा।’ आठ दिन के बाद उसके चेले फिर घर के भीतर थे, और थोमा उनके साथ था; और द्वार बन्द थे, तब यीशु आया और उनके बीच में खड़े होकर कहा, ‘तुम्हें शान्ति मिले।’ तब उसने थोमा से कहा, ‘अपनी उँगली यहाँ लाकर मेरे हाथों को देख और अपना हाथ लाकर मेरे पंजर में डाल, और अविश्‍वासी नहीं परन्तु विश्‍वासी हो।’ यह सुन थोमा ने उत्तर दिया, ‘हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर!’ यीशु ने उससे कहा, ‘तू ने मुझे देखा है, क्या इसलिये विश्‍वास किया है? धन्य वे हैं जिन्होंने बिना देखे विश्‍वास किया’” (यूहन्ना 20:25-29)

“हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय! तुम मनुष्यों के लिए स्वर्ग के राज्य का द्वार बन्द करते हो, न तो स्वयं ही उसमें प्रवेश करते हो और न उस में प्रवेश करनेवालों को प्रवेश करने देते हो” (मत्ती 23:13)

“हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय! तुम एक जन को अपने मत में लाने के लिये सारे जल और थल में फिरते हो, और जब वह मत में आ जाता है तो उसे अपने से दूना नारकीय बना देते हो” (मत्ती 23:15)

अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन

चूँकि तुम परमेश्वर में विश्वास रखते हो, इसलिए तुम्हें परमेश्वर के सभी वचनों और कार्यों में विश्वास रखना चाहिए। अर्थात्, चूँकि तुम परमेश्वर में विश्वास रखते हो, इसलिए तुम्हें उसके प्रति समर्पण करना चाहिए। यदि तुम ऐसा नहीं कर पाते हो, तो यह मायने नहीं रखता कि तुम परमेश्वर में विश्वास रखते हो या नहीं। यदि तुमने वर्षों परमेश्वर में विश्वास रखा है, फिर भी न तो कभी उसके प्रति समर्पण किया है, न ही उसके वचनों की समग्रता को स्वीकार किया है, बल्कि तुमने परमेश्वर को अपने आगे समर्पण करने और तुम्हारी धारणाओं के अनुसार कार्य करने को कहा है, तो तुम सबसे अधिक विद्रोही व्यक्ति हो, और छद्म-विश्वासी हो। एक ऐसा व्यक्ति परमेश्वर के कार्य और वचनों के प्रति समर्पण कैसे कर सकता है जो मनुष्य की धारणाओं के अनुरूप नहीं है? सबसे अधिक विद्रोही वे लोग होते हैं जो जानबूझकर परमेश्वर की अवहेलना और उसका विरोध करते हैं। ऐसे लोग परमेश्वर के शत्रु और मसीह विरोधी हैं। ऐसे लोग परमेश्वर के नए कार्य के प्रति निरंतर शत्रुतापूर्ण रवैया रखते हैं, ऐसे व्यक्ति में कभी भी समर्पण का कोई भाव नहीं होता, न ही उसने कभी खुशी से समर्पण किया होता है या दीनता का भाव दिखाया है। वे स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ समझते हैं और कभी किसी के आगे नहीं झुकते। परमेश्वर के सामने, ये लोग वचनों का उपदेश देने में स्वयं को सबसे ज़्यादा निपुण समझते हैं और दूसरों पर कार्य करने में अपने आपको सबसे अधिक कुशल समझते हैं। इनके कब्ज़े में जो “खज़ाना” होता है, ये लोग उसे कभी नहीं छोड़ते, दूसरों को इसके बारे में उपदेश देने के लिए, अपने परिवार की पूजे जाने योग्य विरासत समझते हैं, और उन मूर्खों को उपदेश देने के लिए इनका उपयोग करते हैं जो उनकी पूजा करते हैं। कलीसिया में वास्तव में इस तरह के कुछ ऐसे लोग हैं। ये कहा जा सकता है कि वे “अदम्य नायक” हैं, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी परमेश्वर के घर में डेरा डाले हुए हैं। वे वचन (सिद्धांत) का उपदेश देना अपना सर्वोत्तम कर्तव्य समझते हैं। साल-दर-साल और पीढ़ी-दर-पीढ़ी वे अपने “पवित्र और अलंघनीय” कर्तव्य को पूरी प्रबलता से लागू करते रहते हैं। कोई उन्हें छूने का साहस नहीं करता; एक भी व्यक्ति खुलकर उनकी निंदा करने की हिम्मत नहीं दिखाता। वे परमेश्वर के घर में “राजा” बनकर युगों-युगों तक बेकाबू होकर दूसरों पर अत्याचार करते चले आ रहे हैं। दुष्टात्माओं का यह झुंड संगठित होकर काम करने और मेरे कार्य का विध्वंस करने की कोशिश करता है; मैं इन जीती-जागती दुष्ट आत्माओं को अपनी आँखों के सामने कैसे अस्तित्व में बने रहने दे सकता हूँ? यहाँ तक कि आधा-अधूरा समर्पण करने वाले लोग भी अंत तक नहीं चल सकते, फिर इन आततायियों की तो बात ही क्या है जिनके हृदय में थोड़ा-सा भी समर्पण नहीं है!

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो सच्चे हृदय से परमेश्वर के प्रति समर्पण करते हैं वे निश्चित रूप से परमेश्वर द्वारा हासिल किए जाएँगे

थॉमस नाम के एक शिष्य ने यीशु के कीलों के निशान छूने पर जोर दिया। और प्रभु यीशु ने उससे क्या कहा? (“तू ने मुझे देखा है, क्या इसलिये विश्‍वास किया है? धन्य वे हैं जिन्होंने बिना देखे विश्‍वास किया” (यूहन्ना 20:29)।) “धन्य वे हैं जिन्होंने बिना देखे विश्‍वास किया।” वास्तव में इसका अर्थ क्या है? क्या उन्होंने सचमुच कुछ नहीं देखा? असल में यीशु की सारी बातें और सारे कार्य पहले ही यह साबित कर चुके थे कि यीशु परमेश्वर है, इसलिए लोगों को इस पर विश्वास कर लेना चाहिए था। यीशु को और ज्यादा संकेत और चमत्कार दिखाने या और ज्यादा वचन सुनाने की जरूरत नहीं थी, और लोगों को विश्वास करने के लिए उसके कीलों के निशान छूने की जरूरत नहीं थी। सच्ची आस्था सिर्फ देखने पर निर्भर नहीं करती, बल्कि आध्यात्मिक पुष्टि होने पर विश्वास अंत तक बना रहता है और इस पर कभी कोई संदेह नहीं होता। थॉमस छद्म-विश्वासी था जो केवल देखने पर भरोसा करता था। थॉमस जैसे मत बनो।

थॉमस जैसे लोगों का एक तबका वास्तव में अभी भी कलीसिया में है। वे परमेश्वर के देहधारण पर निरंतर संदेह कर रहे हैं, और वे परमेश्वर के धरती छोड़कर चले जाने, तीसरे स्वर्ग में लौटने और अंततः विश्वास करने के लिए परमेश्वर का असली व्यक्तित्व देखने का इंतजार करते हैं। वे परमेश्वर के देहधारण के दौरान कहे वचनों के आधार पर उस पर विश्वास नहीं करते। जब इस किस्म का इंसान विश्वास करना शुरू करेगा, तब तक हर चीज में बहुत देर हो चुकी होगी और यही वो घड़ी होगी जब परमेश्वर उनकी निंदा करेगा। प्रभु यीशु ने कहा था : “तू ने मुझे देखा है, क्या इसलिये विश्‍वास किया है? धन्य वे हैं जिन्होंने बिना देखे विश्‍वास किया।” इन वचनों का यही अर्थ है कि प्रभु यीशु उसे पहले ही तिरस्कृत कर चुका था और वह छद्म-विश्वासी है। अगर तुम वास्तव में प्रभु पर और उसने जो कुछ भी कहा, उस पर विश्वास करते हो तो तुम धन्य होगे। अगर तुम लंबे अरसे से प्रभु का अनुसरण कर रहे हो लेकिन उसकी पुनरुत्थान की क्षमता या उसके सर्वशक्तिमान परमेश्वर होने पर विश्वास नहीं करते तो फिर तुममें सच्ची आस्था नहीं है और तुम उसका आशीष नहीं ले पाओगे। सिर्फ आस्था से ही आशीष मिलता है, और अगर तुम विश्वास नहीं करते तो तुम इसे हासिल नहीं कर सकते। क्या तुम किसी चीज पर केवल तभी विश्वास करने में सक्षम हो जब परमेश्वर सशरीर तुम्हारे सामने उपस्थित हो, खुद को देखने दे और तुम्हें यकीन दिलाए? मनुष्य के रूप में तुम इस योग्य कैसे हो कि परमेश्वर से व्यक्तिगत रूप से अपने सामने आने को कह सको? तुम इस योग्य कैसे हो कि परमेश्वर को अपने जैसे किसी भ्रष्ट मनुष्य से बात करने के लिए कह सको? यही नहीं, तुम इतने योग्य कैसे बन गए कि पहले उसे हर चीज तुम्हें साफ-साफ समझानी पड़े और फिर तुम विश्वास करोगे? अगर तुम्हारे पास सूझ-बूझ है तो परमेश्वर के कहे ये वचन पढ़कर ही विश्वास कर लोगे। अगर तुम वास्तव में विश्वास करते हो तो इससे फर्क नहीं पड़ता कि वह क्या करता है और क्या कहता है। बल्कि यह देखकर कि ये वचन सत्य हैं, तुम सौ फीसदी कायल हो जाओगे कि ये परमेश्वर के सुनाए हुए वचन हैं और उसने ये चीजें कीं, और तुम अंत तक उसका अनुसरण करने के लिए पहले ही तैयार हो जाओगे। तुम्हें इस पर संदेह करने की जरूरत नहीं है। संदेह से भरे हुए लोग बहुत ही धोखेबाज होते हैं। वे परमेश्वर पर विश्वास कर ही नहीं सकते। वे हमेशा उन रहस्यों को समझने में लगे रहते हैं और इन्हें पूरी तरह समझने के बाद ही विश्वास करेंगे। परमेश्वर पर विश्वास करने के लिए उनकी पूर्व शर्त यह होती है कि इन प्रश्नों का स्पष्ट उत्तर मिल जाए : देहधारी परमेश्वर कैसे आया? वह कब आया? जाने से पहले वह कितनी देर रुकेगा? यहाँ से छोड़कर वह कहाँ जाएगा? उसके जाने की प्रक्रिया क्या है? देहधारी परमेश्वर कैसे कार्य करता है, और कैसे जाता है? ... वे कुछ रहस्य समझना चाहते हैं; वे इनकी जाँच करना चाहते हैं, न कि सत्य खोजना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि इन रहस्यों की थाह लिए बिना वे परमेश्वर पर विश्वास नहीं कर पाएँगे; मानो उनके विश्वास में बाधा पड़ गई हो। दिक्कत है कि ये लोग इस नजरिए को अपनाते हैं। रहस्यों का अनुसंधान करने की इच्छा होते ही वे सत्य पर ध्यान देने या परमेश्वर के वचन सुनने की परवाह नहीं करते। क्या ऐसे लोग खुद को जान सकते हैं? उन्हें आत्म-ज्ञान आसानी से नहीं मिल जाता। इसका मतलब एक खास किस्म के इंसान की निंदा करना नहीं है। अगर कोई सत्य नहीं स्वीकारता और परमेश्वर के वचनों पर विश्वास नहीं करता तो फिर उसमें सच्ची आस्था नहीं है। वे बस कुछ वचनों, रहस्यों, तुच्छ चीजों या ऐसी समस्याओं की बाल की खाल निकालने पर ध्यान केंद्रित करेंगे जिन पर लोगों का ध्यान भी नहीं जाता। लेकिन यह भी संभव है कि एक दिन परमेश्वर उन्हें प्रबुद्ध करे, या उनके भाई-बहन सत्य पर नियमित संगति कर उनकी मदद करें और वे पूरी तरह बदल जाएँ। जिस दिन ऐसा होगा, उन्हें लगेगा कि उनके पुराने विचार बेहद बेतुके थे, वे बहुत अहंकारी थे और खुद को बहुत ऊँचा आँकते थे, और इससे वे शर्मसार होंगे।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने पथभ्रष्‍ट विचारों को पहचानकर ही खुद को सचमुच बदला जा सकता है

धार्मिक जगत के पादरी, एल्डर आदि वे लोग हैं जो बाइबल संबंधी ज्ञान और धर्मशास्त्र का अध्ययन करते हैं; वे परमेश्वर का विरोध करने वाले पाखंडी फरीसी हैं। ... ईसाई और कैथोलिक धर्म में जो लोग बाइबल, धर्मशास्त्र और यहाँ तक कि परमेश्वर के कार्य के इतिहास का अध्ययन करते हैं, क्या वे वास्तव में विश्वासी हैं? क्या वे परमेश्वर के उन विश्वासियों और अनुयायियों से भिन्न हैं जिनके बारे में वह बात करता है? परमेश्वर की नजर में, क्या वे विश्वासी हैं? नहीं, वे धर्मशास्त्र का अध्ययन करते हैं, वे परमेश्वर का अध्ययन करते हैं, लेकिन वे परमेश्वर का अनुसरण नहीं करते और न ही उसकी गवाही देते हैं। परमेश्वर के बारे में उनका अध्ययन वैसा ही है जैसे लोग इतिहास, फलसफा, कानून, जीव विज्ञान या खगोल विज्ञान का अध्ययन करते हैं। बात सिर्फ इतनी है कि उन्हें विज्ञान या अन्य विषय पसंद नहीं हैं—उन्हें धर्मशास्त्र का अध्ययन विशेष रूप से पसंद है। परमेश्वर का अध्ययन करने के क्रम में परमेश्वर के कार्य के छोटे-छोटे अंशों को खोजने के उनके प्रयासों का परिणाम क्या है? क्या वे परमेश्वर के अस्तित्व की खोज कर सकते हैं? नहीं, कभी नहीं। क्या वे परमेश्वर के इरादों को समझ सकते हैं? (नहीं।) क्यों? क्योंकि वे शब्दों में, ज्ञान में, फलसफे में, मनुष्य के मन में और मनुष्य के विचारों में रहते हैं; वे परमेश्वर को कभी नहीं देख सकेंगे और कभी पवित्र आत्मा द्वारा प्रबुद्ध नहीं किए जाएँगे। परमेश्वर उन्हें कैसे वर्गीकृत करता है? छद्म-विश्वासियों के रूप में, अविश्वासियों के रूप में। ये अविश्वासी और छद्म-विश्वासी तथाकथित ईसाई समुदाय के भीतर ईसाइयों की तरह परमेश्वर में विश्वासी होने का अभिनय करते हुए घुलमिल जाते हैं, लेकिन वास्तव में क्या उनमें परमेश्वर के प्रति आराधना का भाव होता है? क्या उनमें सच्चा समर्पण होता है? (नहीं।) ऐसा क्यों है? एक बात निश्चित है : उनमें से बड़ी संख्या में लोग अपने हृदय में परमेश्वर के अस्तित्व पर विश्वास नहीं करते; वे यह विश्वास नहीं करते कि यह संसार परमेश्वर ने बनाया है और वही सभी चीजों पर संप्रभु है, और वे इस बात पर और भी कम विश्वास करते हैं कि परमेश्वर देहधारी हो सकता है। इस अविश्वास का क्या मतलब है? इसका मतलब है संदेह करना और इनकार करना। वे परमेश्वर की, विशेष रूप से आपदाओं के संबंध में, कही भविष्यवाणियों के पूरी होने या घटित होने की कोई उम्मीद न रखने का भी रवैया अपनाते हैं। यह परमेश्वर में विश्वास के प्रति उनका रवैया है, और यही उनकी तथाकथित आस्था का सार और असली चेहरा है। ये लोग परमेश्वर का अध्ययन करते हैं क्योंकि वे विशेष रूप से धर्मशास्त्र विषय और धर्मशास्त्रीय ज्ञान, और परमेश्वर के कार्य के ऐतिहासिक तथ्यों में रुचि रखते हैं; वे धर्मशास्त्र का अध्ययन करने वाले विशुद्ध बुद्धिजीवियों का समूह हैं। ये बुद्धिजीवी परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते, तो जब परमेश्वर कार्य करता है, जब परमेश्वर के वचन पूरे होते हैं तो उनकी प्रतिक्रिया कैसी होती है? परमेश्वर के देहधारी होने और एक नया कार्य शुरू करने की बात सुनने पर उनकी पहली प्रतिक्रिया क्या होती है? “असंभव!” जो कोई भी परमेश्वर के नए नाम और परमेश्वर के नए कार्य का प्रचार करता है, वे उसकी निंदा करते हैं, यहाँ तक कि उसे मार देना या खत्म कर देना चाहते हैं। यह किस प्रकार की अभिव्यक्ति है? क्या यह विशिष्ट मसीह-विरोधी की अभिव्यक्ति नहीं है? उनमें और फरीसियों, मुख्य याजकों और प्राचीन शास्‍त्रियों के बीच क्या अंतर है? वे परमेश्वर के कार्य के प्रति, अंतिम दिनों में परमेश्वर के न्याय के प्रति, देहधारी परमेश्वर के प्रति शत्रुभाव रखते हैं, और इससे भी अधिक, वे परमेश्वर की भविष्यवाणियाँ पूरी होने के प्रति शत्रुभाव रखते हैं। उनका मानना है, “यदि तुम देहधारी नहीं हो, यदि तुम आध्यात्मिक शरीर के रूप में हो, तो तुम परमेश्वर हो; यदि तुमने देहधारण किया और एक व्यक्ति बन गए, तो तुम परमेश्वर नहीं हो, और हम तुम्हें स्वीकार नहीं करते।” यह क्या इंगित करता है? इसका मतलब है कि जब तक वे हैं, तब तक वे परमेश्वर को देहधारी नहीं होने देंगे। क्या यह एक विशिष्ट मसीह-विरोधी भाव नहीं है? यह असली मसीह-विरोधी होना है।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद सात : वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (भाग तीन)

चूँकि हम परमेश्वर के पदचिह्नों की खोज कर रहे हैं, इसलिए हमारा दायित्व बनता है कि हम परमेश्वर के इरादों, उसके वचन और कथनों की खोज करें—क्योंकि जहाँ कहीं भी परमेश्वर द्वारा बोले गए नए वचन हैं, वहाँ परमेश्वर की वाणी है, और जहाँ कहीं भी परमेश्वर के पदचिह्न हैं, वहाँ परमेश्वर के कर्म हैं। जहाँ कहीं भी परमेश्वर की अभिव्यक्ति है, वहाँ परमेश्वर प्रकट होता है, और जहाँ कहीं भी परमेश्वर प्रकट होता है, वहाँ सत्य, मार्ग और जीवन विद्यमान होता है। परमेश्वर के पदचिह्नों की तलाश में तुम लोगों ने इन वचनों की उपेक्षा कर दी है कि “परमेश्वर सत्य, मार्ग और जीवन है।” और इसलिए, बहुत-से लोग सत्य को प्राप्त करके भी यह नहीं मानते कि उन्हें परमेश्वर के पदचिह्न मिल गए हैं, और वे परमेश्वर के प्रकटन को तो बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते। कितनी गंभीर ग़लती है! परमेश्वर के प्रकटन का समाधान मनुष्य की धारणाओं से नहीं किया जा सकता, और परमेश्वर मनुष्य के आदेश पर तो बिल्कुल भी प्रकट नहीं हो सकता। परमेश्वर जब अपना कार्य करता है, तो वह अपनी पसंद और अपनी योजनाएँ बनाता है; इसके अलावा, उसके अपने उद्देश्य और अपने तरीके हैं। वह जो भी कार्य करता है, उसके बारे में उसे मनुष्य से चर्चा करने या उसकी सलाह लेने की आवश्यकता नहीं है, और अपने कार्य के बारे में हर-एक व्यक्ति को सूचित करने की आवश्यकता तो उसे बिल्कुल भी नहीं है। यह परमेश्वर का स्वभाव है, और हर व्यक्ति को इसे पहचानना चाहिए। यदि तुम लोग परमेश्वर के प्रकटन को देखने और उसके पदचिह्नों का अनुसरण करने की इच्छा रखते हो, तो तुम लोगों को पहले अपनी धारणाओं को त्याग देना चाहिए। तुम लोगों को यह माँग नहीं करनी चाहिए कि परमेश्वर ऐसा करे या वैसा करे, तुम्हें उसे अपनी सीमाओं और अपनी धारणाओं तक सीमित तो बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए। इसके बजाय, तुम लोगों को खुद से यह पूछना चाहिए कि तुम्हें परमेश्वर के पदचिह्नों की तलाश कैसे करनी चाहिए, तुम्हें परमेश्वर के प्रकटन को कैसे स्वीकार करना चाहिए, और तुम्हें परमेश्वर के नए कार्य के प्रति कैसे समर्पण करना चाहिए : मनुष्य को ऐसा ही करना चाहिए। चूँकि मनुष्य सत्य नहीं है, और उसके पास भी सत्य नहीं है, इसलिए उसे खोजना, स्वीकार करना और समर्पण करना चाहिए।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 1: परमेश्वर के प्रकटन ने एक नए युग का सूत्रपात किया है

आज परमेश्वर ने नया कार्य किया है। हो सकता है, तुम इन वचनों को स्वीकार न कर पाओ और वे तुम्हें अजीब लगें, पर मैं तुम्हें सलाह दूँगा कि तुम अपनी स्वाभाविकता प्रकट मत करो, क्योंकि केवल वे ही सत्य को पा सकते हैं, जो परमेश्वर के समक्ष धार्मिकता के लिए सच्ची भूख-प्यास रखते हैं, और केवल वे ही परमेश्वर द्वारा प्रबुद्ध किए जा सकते हैं और उसका मार्गदर्शन पा सकते हैं जो वास्तव में धर्मनिष्ठ हैं। परिणाम संयम और शांति के साथ सत्य की खोज करने से मिलते हैं, झगड़े और विवाद से नहीं। जब मैं यह कहता हूँ कि “आज परमेश्वर ने नया कार्य किया है,” तो मैं परमेश्वर के देह में लौटने की बात कर रहा हूँ। शायद ये वचन तुम्हें व्याकुल न करते हों; शायद तुम इनसे घृणा करते हो; या शायद ये तुम्हारे लिए बड़े रुचिकर हों। चाहे जो भी मामला हो, मुझे आशा है कि वे सब, जो परमेश्वर के प्रकट होने के लिए वास्तव में लालायित हैं, इस तथ्य का सामना कर सकते हैं और इसके बारे में झटपट निष्कर्षों पर पहुँचने के बजाय इसकी सावधानीपूर्वक जाँच कर सकते हैं; जैसा कि बुद्धिमान व्यक्ति को करना चाहिए।

ऐसी चीज़ की जाँच-पड़ताल करना कठिन नहीं है, परंतु इसके लिए हममें से प्रत्येक को इस सत्य को जानने की ज़रूरत है : जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर का सार होगा और जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर की अभिव्यक्ति होगी। चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उस कार्य को सामने लाएगा, जो वह करना चाहता है, और चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उसे अभिव्यक्त करेगा जो वह है और वह मनुष्य के लिए सत्य को लाने, उसे जीवन प्रदान करने और उसे मार्ग दिखाने में सक्षम होगा। जिस देह में परमेश्वर का सार नहीं है, वह निश्चित रूप से देहधारी परमेश्वर नहीं है; इसमें कोई संदेह नहीं। अगर मनुष्य यह पता करना चाहता है कि क्या यह देहधारी परमेश्वर है, तो इसकी पुष्टि उसे उसके द्वारा अभिव्यक्त स्वभाव और उसके द्वारा बोले गए वचनों से करनी चाहिए। इसे ऐसे कहें, व्यक्ति को इस बात का निश्चय कि यह देहधारी परमेश्वर है या नहीं और कि यह सही मार्ग है या नहीं, तो उसे इसकी पहचान उसके सार के आधार पर करनी चाहिए। और इसलिए, यह निर्धारित करने की कुंजी कि यह देहधारी परमेश्वर की देह है या नहीं, उसके बाहरी स्वरूप के बजाय उसके सार (उसका कार्य, उसके कथन, उसका स्वभाव और कई अन्य पहलू) में निहित है। यदि मनुष्य केवल उसके बाहरी स्वरूप की ही जाँच करता है, और परिणामस्वरूप उसके सार की अनदेखी करता है, तो इससे उसके अज्ञ और अज्ञानी होने का पता चलता है। बाहरी स्वरूप सार का निर्धारण नहीं कर सकता; इतना ही नहीं, परमेश्वर का कार्य कभी भी मनुष्य की अवधारणाओं के अनुरूप नहीं हो सकता। क्या यीशु का बाहरी रूपरंग मनुष्य की अवधारणाओं के विपरीत नहीं था? क्या उसका चेहरा और पोशाक उसकी वास्तविक पहचान के बारे में कोई सुराग देने में असमर्थ नहीं थे? क्या आरंभिक फरीसियों ने यीशु का ठीक इसीलिए विरोध नहीं किया था क्योंकि उन्होंने केवल उसके बाहरी स्वरूप को ही देखा, और उसके मुख से निकले वचनों को गंभीरता से स्वीकार नहीं किया? मुझे उम्मीद है कि परमेश्वर के प्रकटन के आकांक्षी सभी भाई-बहन इतिहास की त्रासदी को नहीं दोहराएँगे। तुम्हें आधुनिक काल के फरीसी नहीं बनना चाहिए और परमेश्वर को फिर से सलीब पर नहीं चढ़ाना चाहिए। तुम्हें सावधानीपूर्वक विचार करना चाहिए कि परमेश्वर की वापसी का स्वागत कैसे किया जाए और तुम्हारे मस्तिष्क में यह स्पष्ट होना चाहिए कि ऐसा व्यक्ति कैसे बना जाए, जो सत्य के प्रति समर्पित होता है। यह हर उस व्यक्ति की जिम्मेदारी है, जो यीशु के बादल पर सवार होकर लौटने का इंतजार कर रहा है। हमें अपनी आध्यात्मिक आँखों को मलकर उन्हें साफ़ करना चाहिए और अतिरंजित कल्पना के शब्दों के दलदल में नहीं फँसना चाहिए। हमें परमेश्वर के वास्तविक कार्य के बारे में सोचना चाहिए और परमेश्वर के व्यावहारिक पक्ष पर दृष्टि डालनी चाहिए। खुद को दिवास्वप्नों में बहने या खोने मत दो, सदैव उस दिन के लिए लालायित न रहो, जब प्रभु यीशु बादल पर सवार होकर अचानक तुम लोगों के बीच उतरेगा और तुम्हें, जिन्होंने उसे कभी जाना या देखा नहीं और जो नहीं जानते कि उसकी इच्छा के अनुसार कैसे चलें, ले जाएगा। अधिक व्यावहारिक मामलों पर विचार करना बेहतर है!

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना

तुम लोगों की निष्ठा सिर्फ वचन में है, तुम लोगों का ज्ञान सिर्फ सोच और धारणाओं का है, तुम लोगों की कड़ी मेहनत सिर्फ स्वर्ग की आशीष पाने के लिए है और इसलिए तुम लोगों का विश्वास किस प्रकार का होना चाहिए? आज भी, तुम लोग सत्य के प्रत्येक वचन को अनसुना कर देते हो। तुम लोग नहीं जानते कि परमेश्वर क्या है, तुम लोग नहीं जानते कि मसीह क्या है, तुम लोग नहीं जानते कि यहोवा का भय कैसे मानें, तुम लोग नहीं जानते कि कैसे पवित्र आत्मा के कार्य में प्रवेश करें और तुम लोग नहीं जानते कि परमेश्वर स्वयं के कार्य और मनुष्य द्वारा गुमराह किए जाने के बीच कैसे भेद करें। तुम परमेश्वर द्वारा व्यक्त सत्य के किसी भी ऐसे वचन की केवल निंदा करना ही जानते हो, जो तुम्हारे विचारों के अनुरूप नहीं होता। तुम्हारी विनम्रता कहाँ है? तुम्हारा समर्पण कहाँ है? तुम्हारी सत्यनिष्ठा कहाँ है? सत्य खोजने का तुम्हारा रवैया कहाँ है? परमेश्वर का भय मानने वाला तुम्हारा हृदय कहाँ है? मैं तुम लोगों को बता दूँ कि जो परमेश्वर में संकेतों की वजह से विश्वास करते हैं, वे निश्चित रूप से वह श्रेणी होगी, जो नष्ट की जाएगी। जो देह में लौटे यीशु के वचनों को स्वीकारने में अक्षम हैं, वे निश्चित ही नरक के वंशज, महादूत के वंशज हैं, उस श्रेणी में हैं, जो अनंत विनाश झेलेगी। बहुत से लोगों को शायद इसकी परवाह न हो कि मैं क्या कहता हूँ, किंतु मैं ऐसे हर तथाकथित संत को, जो यीशु का अनुसरण करते हैं, बताना चाहता हूँ कि जब तुम लोग यीशु को एक श्वेत बादल पर स्वर्ग से उतरते अपनी आँखों से देखोगे, तो यह धार्मिकता के सूर्य का सार्वजनिक प्रकटन होगा। शायद वह तुम्हारे लिए एक बड़ी उत्तेजना का समय होगा, मगर तुम्हें पता होना चाहिए कि जिस समय तुम यीशु को स्वर्ग से उतरते देखोगे, यही वह समय भी होगा जब तुम दंडित किए जाने के लिए नीचे नरक में जाओगे। वह परमेश्वर की प्रबंधन योजना की समाप्ति का समय होगा, और वह समय होगा, जब परमेश्वर सज्जन को पुरस्कार और कुकर्मी को दंड देगा। क्योंकि परमेश्वर का न्याय मनुष्य के चिह्न देखने से पहले ही समाप्त हो चुका होगा, जब सिर्फ़ सत्य की अभिव्यक्ति होगी। वे जो सत्य को स्वीकार करते हैं और संकेतों की खोज नहीं करते और इस प्रकार शुद्ध कर दिए गए हैं, वे परमेश्वर के सिंहासन के सामने लौट चुके होंगे और सृष्टिकर्ता के आलिंगन में प्रवेश कर चुके होंगे। सिर्फ़ वे जो इस विश्वास में बने रहते हैं कि “ऐसा यीशु जो श्वेत बादल पर सवारी नहीं करता, एक झूठा मसीह है” अनंत दंड के अधीन कर दिए जाएँगे, क्योंकि वे सिर्फ़ उस यीशु में विश्वास करते हैं जो संकेत प्रदर्शित करता है, पर उस यीशु को स्वीकार नहीं करते, जो कड़े न्याय की घोषणा करता है और जीवन और सच्चा मार्ग जारी करता है। इसलिए केवल यही हो सकता है कि जब यीशु खुलेआम श्वेत बादल पर वापस लौटे, तो वह उनके साथ निपटे। वे बहुत हठधर्मी, अपने आप में बहुत आश्वस्त, बहुत अभिमानी हैं। ऐसे अधम लोग यीशु द्वारा कैसे पुरस्कृत किए जा सकते हैं? यीशु की वापसी उन लोगों के लिए एक महान उद्धार है, जो सत्य को स्वीकार करने में सक्षम हैं, पर उनके लिए जो सत्य को स्वीकार करने में असमर्थ हैं, यह दंडाज्ञा का संकेत है। तुम लोगों को अपना स्वयं का रास्ता चुनना चाहिए, और पवित्र आत्मा के खिलाफ निंदा नहीं करनी चाहिए और सत्य को अस्वीकार नहीं करना चाहिए। तुम लोगों को अज्ञानी और अभिमानी व्यक्ति नहीं बनना चाहिए, बल्कि ऐसा बनना चाहिए जो पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन के प्रति समर्पण करता हो और सत्य के लिए लालायित होकर इसकी खोज करता हो; सिर्फ इसी तरीके से तुम लोग लाभान्वित होगे। मैं तुम लोगों को परमेश्वर में विश्वास के रास्ते पर सावधानी से चलने की सलाह देता हूँ। निष्कर्ष पर पहुँचने की जल्दी में न रहो; और परमेश्वर में अपने विश्वास में लापरवाह और विचारहीन न बनो। तुम लोगों को जानना चाहिए कि कम से कम, जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं उनके पास विनम्र और परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय होना चाहिए। जिन्होंने सत्य सुन लिया है और फिर भी इस पर अपनी नाक-भौंह सिकोड़ते हैं, वे मूर्ख और अज्ञानी हैं। जिन्होंने सत्य सुन लिया है और फिर भी लापरवाही के साथ निष्कर्षों तक पहुँचते हैं या उसकी निंदा करते हैं, ऐसे लोग अभिमान से घिरे हैं। जो भी यीशु पर विश्वास करता है वह दूसरों को शाप देने या निंदा करने के योग्य नहीं है। तुम सब लोगों को ऐसा व्यक्ति होना चाहिए, जो समझदार है और सत्य स्वीकार करता है। शायद, सत्य के मार्ग को सुनकर और जीवन के वचन को पढ़कर, तुम विश्वास करते हो कि इन 10,000 वचनों में से सिर्फ़ एक ही वचन है, जो तुम्हारे दृढ़ विश्वास और बाइबल के अनुसार है, और फिर तुम्हें इन 10,000 वचनों में खोज करते रहना चाहिए। मैं अब भी तुम्हें सुझाव देता हूँ कि विनम्र बनो, अति-आत्मविश्वासी न बनो और अपनी बहुत बड़ाई न करो। परमेश्वर का भय मानने वाले अपने थोड़े-से हृदय से तुम अधिक रोशनी प्राप्त करोगे। यदि तुम इन वचनों की सावधानी से जाँच करो और इन पर बार-बार मनन करो, तब तुम समझोगे कि वे सत्य हैं या नहीं, वे जीवन हैं या नहीं। शायद, केवल कुछ वाक्य पढ़कर, कुछ लोग इन वचनों की आँखें मूँदकर यह कहते हुए निंदा करेंगे, “यह पवित्र आत्मा की थोड़ी प्रबुद्धता से अधिक कुछ नहीं है,” या “यह एक झूठा मसीह है जो लोगों को गुमराह करने आया है।” जो लोग ऐसी बातें कहते हैं वे अज्ञानता से अंधे हो गए हैं! तुम परमेश्वर के कार्य और बुद्धि को बहुत कम समझते हो और मैं तुम्हें पुनः शुरू से आरंभ करने की सलाह देता हूँ! तुम लोगों को अंत के दिनों में झूठे मसीहों के प्रकट होने की वजह से आँख बंदकर परमेश्वर द्वारा अभिव्यक्त वचनों का तिरस्कार नहीं करना चाहिए और चूँकि तुम गुमराह होने से डरते हो, इसलिए तुम्हें पवित्र आत्मा के खिलाफ निंदा नहीं करनी चाहिए। क्या यह बड़ी दयनीय स्थिति नहीं होगी? यदि, बहुत जाँच के बाद, अब भी तुम्हें लगता है कि ये वचन सत्य नहीं हैं, मार्ग नहीं हैं और परमेश्वर की अभिव्यक्ति नहीं हैं, तो फिर अंततः तुम दंडित किए जाओगे और आशीष के बिना होगे। यदि तुम ऐसा सत्य, जो इतने सादे और स्पष्ट ढंग से कहा गया है, स्वीकार नहीं कर सकते, तो क्या तुम परमेश्वर के उद्धार के अयोग्य नहीं हो? क्या तुम ऐसे व्यक्ति नहीं हो, जो परमेश्वर के सिंहासन के सामने लौटने के लिए पर्याप्त सौभाग्यशाली नहीं है? इस बारे में सोचो! उतावले और अविवेकी न बनो और परमेश्वर में विश्वास के साथ खेल की तरह पेश न आओ। अपनी मंज़िल के लिए, अपनी संभावनाओं के वास्ते, अपने जीवन के लिए सोचो और स्वयं से खेल न करो। क्या तुम इन वचनों को स्वीकार कर सकते हो?

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जब तक तुम यीशु के आध्यात्मिक शरीर को देखोगे, परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को फिर से बना चुका होगा

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तुम लोगों को सत्य स्वीकार करने वाला बनना चाहिए

सत्य के प्रति तुम्हारा रवैया अति महत्वपूर्ण है

अंत के दिनों के मसीह को स्वीकार न करने वाले पवित्र आत्मा का तिरस्कार करने वाले लोग हैं

पिछला: 7. धार्मिक जगत की भ्रांति कि : “जो भी यह उपदेश देता है कि प्रभु देहधारी होकर लौटा है, वह एक झूठे मसीह के बारे में उपदेश देता है”

अगला: 9. धार्मिक जगत की धारणा कि : “प्रभु पर विश्वास करके वे पहले ही आस्था द्वारा औचित्यपूर्ण ठहराए जा चुके हैं और अपनी आस्था के माध्यम से उद्धार प्राप्त कर चुके हैं तथा उन्हें अंतिम दिनों के न्याय कार्य को स्वीकार करने की जरूरत नहीं है”

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1. प्रभु ने हमसे यह कहते हुए, एक वादा किया, "मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ। और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूँ, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊँगा कि जहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो" (यूहन्ना 14:2-3)। प्रभु यीशु पुनर्जीवित हुआ और हमारे लिए एक जगह तैयार करने के लिए स्वर्ग में चढ़ा, और इसलिए यह स्थान स्वर्ग में होना चाहिए। फिर भी आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु लौट आया है और पृथ्वी पर ईश्वर का राज्य स्थापित कर चुका है। मुझे समझ में नहीं आता: स्वर्ग का राज्य स्वर्ग में है या पृथ्वी पर?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद :"हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नाम पवित्र माना जाए। तेरा राज्य आए। तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी...

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

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