17. धार्मिक जगत की धारणा कि : “पादरियों और एल्डरों को प्रभु ने स्थापित किया है”

धार्मिक जगत बाइबल के इन वचनों को, “इसलिये अपनी और पूरे झुण्ड की चौकसी करो जिसमें पवित्र आत्मा ने तुम्हें अध्यक्ष ठहराया है, कि तुम परमेश्वर की कलीसिया की रखवाली करो” (प्रेरितों 20:28), आधार बनाकर विश्वास करता है कि पादरियों और एल्डरों को प्रभु ने स्थापित किया है, और जब प्रभु के लौटने का स्वागत करने की बात हो, तब उन्हें नियंत्रण अपने हाथ रखना चाहिए और उनकी बात ही अंतिम होनी चाहिए।

बाइबल से उद्धृत वचन

“यीशु ने उसको उत्तर दिया, ‘हे शमौन, योना के पुत्र, तू धन्य है...। मैं तुझे स्वर्ग के राज्य की कुंजियाँ दूँगा : और जो कुछ तू पृथ्वी पर बाँधेगा, वह स्वर्ग में बंधेगा; और जो कुछ तू पृथ्वी पर खोलेगा, वह स्वर्ग में खुलेगा’” (मत्ती 16:17-19)

“उसने उससे कहा, ‘मेरे मेमनों को चरा।’” (यूहन्ना 21:15)

“तू प्रभु अपने परमेश्वर को प्रणाम कर, और केवल उसी की उपासना कर” (मत्ती 4:10)

“मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना ही हमारा कर्तव्य है” (प्रेरितों 5:29)

“स्रापित है वह पुरुष जो मनुष्य पर भरोसा रखता है, और उसका सहारा लेता है, जिसका मन यहोवा से भटक जाता है” (यिर्मयाह 17:5)

“हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय! तुम मनुष्यों के लिए स्वर्ग के राज्य का द्वार बन्द करते हो, न तो स्वयं ही उसमें प्रवेश करते हो और न उस में प्रवेश करनेवालों को प्रवेश करने देते हो” (मत्ती 23:13)

“हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय! तुम एक जन को अपने मत में लाने के लिये सारे जल और थल में फिरते हो, और जब वह मत में आ जाता है तो उसे अपने से दूना नारकीय बना देते हो” (मत्ती 23:15)

“उन को जाने दो; वे अंधे मार्गदर्शक हैं और अंधा यदि अंधे को मार्ग दिखाए, तो दोनों ही गड़हे में गिर पड़ेंगे” (मत्ती 15:14)

अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन

अपनी सेवा के लिए किसी व्यक्ति को चुनने में, परमेश्वर के सदैव अपने स्वयं के सिद्धांत होते हैं। परमेश्वर की सेवा करना मात्र एक उत्साह की बात नहीं है, जैसा कि लोग कल्पना करते हैं। आज तुम लोग देखते हो कि वे सभी जो परमेश्वर के समक्ष उसकी सेवा करते हैं, ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि उनके पास परमेश्वर का मार्गदर्शन और पवित्र आत्मा का कार्य है; और इसलिए क्योंकि वे सत्य का अनुसरण करने वाले लोग हैं। ये परमेश्वर की सेवा करने वाले सभी लोगों के लिए न्यूनतम शर्तें हैं।

परमेश्वर की सेवा करना कोई सरल कार्य नहीं है। जिनका भ्रष्ट स्वभाव अपरिवर्तित रहता है, वे परमेश्वर की सेवा कभी नहीं कर सकते हैं। यदि परमेश्वर के वचनों के द्वारा तुम्हारे स्वभाव का न्याय नहीं हुआ है और उसे ताड़ित नहीं किया गया है, तो तुम्हारा स्वभाव अभी भी शैतान का प्रतिनिधित्व करता है जो प्रमाणित करता है कि तुम परमेश्वर की सेवा अपनी भलाई के लिए करते हो, तुम्हारी सेवा तुम्हारी शैतानी प्रकृति पर आधारित है। तुम परमेश्वर की सेवा अपने स्वाभाविक चरित्र से और अपनी व्यक्तिगत प्राथमिकताओं के अनुसार करते हो। इसके अलावा, तुम हमेशा सोचते हो कि जो कुछ भी तुम करना चाहते हो, वो परमेश्वर को पसंद है, और जो कुछ भी तुम नहीं करना चाहते हो, उनसे परमेश्वर घृणा करता है, और तुम पूर्णतः अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार कार्य करते हो। क्या इसे परमेश्वर की सेवा करना कह सकते हैं? अंततः तुम्हारे जीवन स्वभाव में रत्ती भर भी परिवर्तन नहीं आएगा; बल्कि तुम्हारी सेवा तुम्हें और भी अधिक जिद्दी बना देगी और इससे तुम्हारा भ्रष्ट स्वभाव गहराई तक जड़ें जमा लेगा। इस तरह, तुम्हारे मन में परमेश्वर की सेवा के बारे में ऐसे नियम बन जाएँगे जो मुख्यतः तुम्हारे स्वयं के चरित्र पर और तुम्हारे अपने स्वभाव के अनुसार तुम्हारी सेवा से प्राप्त अनुभवों पर आधारित होंगे। ये मनुष्य के अनुभव और सबक हैं। यह मनुष्य के सांसारिक आचरण का फलसफा है। इस तरह के लोगों को फरीसियों और धार्मिक अधिकारियों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। यदि वे कभी भी जागते और पश्चाताप नहीं करते हैं, तो वे निश्चित रूप से झूठे मसीह और मसीह विरोधी बन जाएँगे जो अंत के दिनों में लोगों को गुमराह करते हैं। झूठे मसीह और मसीह विरोधी, जिनके बारे में कहा गया था, इसी प्रकार के लोगों में से उठ खड़े होंगे। जो परमेश्वर की सेवा करते हैं, यदि वे अपने चरित्र का अनुसरण करते हैं और अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करते हैं, तब वे किसी भी समय निकाल दिए जाने के ख़तरे में होते हैं। जो दूसरों के दिलों को जीतने, उन्हें व्याख्यान देने और बेबस करने तथा ऊंचाई पर खड़े होने के लिए परमेश्वर की सेवा के कई वर्षों के अपने अनुभव का प्रयोग करते हैं—और जो कभी पछतावा नहीं करते हैं, कभी भी अपने पापों को स्वीकार नहीं करते हैं, पद के लाभों को कभी नहीं त्यागते हैं—उनका परमेश्वर के सामने पतन हो जाएगा। ये अपनी वरिष्ठता का घमंड दिखाते और अपनी योग्यताओं पर इतराते पौलुस की ही तरह के लोग हैं। परमेश्वर इस तरह के लोगों को पूर्णता प्रदान नहीं करेगा। इस प्रकार की सेवा परमेश्वर के कार्य में गड़बड़ी करती है। लोग हमेशा पुराने से चिपके रहते हैं। वे अतीत की धारणाओं और अतीत की हर चीज से चिपके रहते हैं। यह उनकी सेवा में एक बड़ी बाधा है। यदि तुम उन्हें छोड़ नहीं सकते हो, तो ये चीजें तुम्हारे पूरे जीवन को विफल कर देंगी। परमेश्वर तुम्हारी प्रशंसा नहीं करेगा, थोड़ी-सी भी नहीं, भले ही तुम दौड़-भाग करके अपनी टाँगों को तोड़ लो या मेहनत करके अपनी कमर तोड़ लो, भले ही तुम परमेश्वर की “सेवा” में शहीद हो जाओ। इसके विपरीत वह कहेगा कि तुम एक कुकर्मी हो।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, धार्मिक सेवाओं का शुद्धिकरण अवश्य होना चाहिए

कलीसियाओं में जो लोग उपदेश देते हैं और जिनके पास रुतबा, पद और प्रतिष्ठा है, वे धर्मशास्त्रीय सेमिनेरियों से धार्मिक ज्ञान और सिद्धांतों का प्रशिक्षण प्राप्त लोगों का एक समूह हैं, और वे दरअसल ईसाई धर्म का मुख्य निकाय हैं। ईसाई धर्म ऐसे लोगों को मंच पर जाकर उपदेश देने, सुसमाचार फैलाने और हर जगह काम करने के लिए प्रशिक्षित करता है। उनका मानना है कि धर्मशास्त्र के इन छात्रों, उपदेशक पादरियों और धर्मशास्त्रियों जैसी प्रतिभाओं की वजह से ही ईसाई धर्म का अब तक अस्तित्व में बने रहना सुनिश्चित हो सका है, और यही लोग ईसाई धर्म के अस्तित्व का मूल्य और पूँजी बनते हैं। यदि किसी कलीसिया का पादरी धर्मशास्त्रीय सेमिनेरी से स्नातक है, वह बाइबल पर अच्छी तरह से चर्चा करता है, उसने कुछ आध्यात्मिक किताबें पढ़ी हैं, उसके पास कुछ ज्ञान और वाक्पटुता है, तो उस कलीसिया में आने वालों की संख्या बढ़ेगी और वह कलीसिया दूसरे कलीसियाओं की तुलना में बहुत अधिक प्रसिद्ध हो जाएगी। ईसाई धर्म के ये लोग किस चीज का सम्मान करते हैं? ज्ञान का, धर्मशास्त्रीय ज्ञान का। यह ज्ञान आता कहाँ से है? क्या यह प्राचीन काल से आने वाली पीढ़ियों को हस्तांतरित नहीं किया जा रहा है? प्राचीन काल से ही धर्मशास्त्र मौजूद रहे हैं जिन्हें पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ाया जाता रहा है और यही वह तरीका है जिससे सब लोग उन्हें आज तक पढ़ते और सीखते आए हैं। लोग बाइबल को विभिन्न खंडों में बाँटते हैं, उसके अलग-अलग संस्करणों का संकलन करते हैं और उसके अध्ययन तथा सीखने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करते हैं, लेकिन उनका बाइबल का अध्ययन करना परमेश्वर को जानने हेतु सत्य समझने के लिए नहीं है, न ही यह परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने की परमेश्वर के इरादों को समझने के लिए है; बल्कि यह बाइबल में संग्रहीत ज्ञान और रहस्यों के अध्ययन के लिए है जिससे जाना जा सके कि किन घटनाओं ने किस प्रकाशित वाक्य की किस भविष्यवाणी को कब पूरा किया, और बड़ी आपदाएँ और सहस्राब्दी कब आएँगी—वे इनका अध्ययन करते हैं। क्या उनका अध्ययन सत्य से संबंधित है? (नहीं, ऐसा नहीं है।) वे ऐसी चीजों का अध्ययन क्यों करते हैं जिनका सत्य से कोई लेना-देना नहीं है? ऐसा इसलिए है कि जितना अधिक वे अध्ययन करते हैं, उतना ही अधिक उन्हें लगता है कि वे समझ रहे हैं और जितने अधिक शब्दों और धर्म-सिद्धांतों से वे लैस होते हैं, उनकी योग्यताएँ उतनी ही अधिक बढ़ती जाती हैं। उनकी योग्यताएँ जितनी अधिक होंगी, उन्हें लगता है कि वे उतने ही अधिक क्षमतावान हो गए हैं और उतना ही उनका यह विश्वास बढ़ता जाता है कि अंततः उनकी आस्था से उन्हें आशीष मिलेगी, मृत्यु के बाद वे स्वर्ग जाएँगे या कि उनका जीवन प्रभु से मिलन के लिए अंतरिक्ष में विलीन हो जाएगा। ये उनकी धार्मिक धारणाएँ हैं, जो परमेश्वर के वचनों के अनुरूप कतई नहीं हैं।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद सात : वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (भाग तीन)

धार्मिक जगत के पादरी, एल्डर आदि वे लोग हैं जो बाइबल संबंधी ज्ञान और धर्मशास्त्र का अध्ययन करते हैं; वे परमेश्वर का विरोध करने वाले पाखंडी फरीसी हैं। ... ईसाई और कैथोलिक धर्म में जो लोग बाइबल, धर्मशास्त्र और यहाँ तक कि परमेश्वर के कार्य के इतिहास का अध्ययन करते हैं, क्या वे वास्तव में विश्वासी हैं? क्या वे परमेश्वर के उन विश्वासियों और अनुयायियों से भिन्न हैं जिनके बारे में वह बात करता है? परमेश्वर की नजर में, क्या वे विश्वासी हैं? नहीं, वे धर्मशास्त्र का अध्ययन करते हैं, वे परमेश्वर का अध्ययन करते हैं, लेकिन वे परमेश्वर का अनुसरण नहीं करते और न ही उसकी गवाही देते हैं। परमेश्वर के बारे में उनका अध्ययन वैसा ही है जैसे लोग इतिहास, फलसफा, कानून, जीव विज्ञान या खगोल विज्ञान का अध्ययन करते हैं। बात सिर्फ इतनी है कि उन्हें विज्ञान या अन्य विषय पसंद नहीं हैं—उन्हें धर्मशास्त्र का अध्ययन विशेष रूप से पसंद है। परमेश्वर का अध्ययन करने के क्रम में परमेश्वर के कार्य के छोटे-छोटे अंशों को खोजने के उनके प्रयासों का परिणाम क्या है? क्या वे परमेश्वर के अस्तित्व की खोज कर सकते हैं? नहीं, कभी नहीं। क्या वे परमेश्वर के इरादों को समझ सकते हैं? (नहीं।) क्यों? क्योंकि वे शब्दों में, ज्ञान में, फलसफे में, मनुष्य के मन में और मनुष्य के विचारों में रहते हैं; वे परमेश्वर को कभी नहीं देख सकेंगे और कभी पवित्र आत्मा द्वारा प्रबुद्ध नहीं किए जाएँगे। परमेश्वर उन्हें कैसे वर्गीकृत करता है? छद्म-विश्वासियों के रूप में, अविश्वासियों के रूप में। ये अविश्वासी और छद्म-विश्वासी तथाकथित ईसाई समुदाय के भीतर ईसाइयों की तरह परमेश्वर में विश्वासी होने का अभिनय करते हुए घुलमिल जाते हैं, लेकिन वास्तव में क्या उनमें परमेश्वर के प्रति आराधना का भाव होता है? क्या उनमें सच्चा समर्पण होता है? (नहीं।) ऐसा क्यों है? एक बात निश्चित है : उनमें से बड़ी संख्या में लोग अपने हृदय में परमेश्वर के अस्तित्व पर विश्वास नहीं करते; वे यह विश्वास नहीं करते कि यह संसार परमेश्वर ने बनाया है और वही सभी चीजों पर संप्रभु है, और वे इस बात पर और भी कम विश्वास करते हैं कि परमेश्वर देहधारी हो सकता है। इस अविश्वास का क्या मतलब है? इसका मतलब है संदेह करना और इनकार करना। वे परमेश्वर की, विशेष रूप से आपदाओं के संबंध में, कही भविष्यवाणियों के पूरी होने या घटित होने की कोई उम्मीद न रखने का भी रवैया अपनाते हैं। यह परमेश्वर में विश्वास के प्रति उनका रवैया है, और यही उनकी तथाकथित आस्था का सार और असली चेहरा है। ये लोग परमेश्वर का अध्ययन करते हैं क्योंकि वे विशेष रूप से धर्मशास्त्र विषय और धर्मशास्त्रीय ज्ञान, और परमेश्वर के कार्य के ऐतिहासिक तथ्यों में रुचि रखते हैं; वे धर्मशास्त्र का अध्ययन करने वाले विशुद्ध बुद्धिजीवियों का समूह हैं। ये बुद्धिजीवी परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते, तो जब परमेश्वर कार्य करता है, जब परमेश्वर के वचन पूरे होते हैं तो उनकी प्रतिक्रिया कैसी होती है? परमेश्वर के देहधारी होने और एक नया कार्य शुरू करने की बात सुनने पर उनकी पहली प्रतिक्रिया क्या होती है? “असंभव!” जो कोई भी परमेश्वर के नए नाम और परमेश्वर के नए कार्य का प्रचार करता है, वे उसकी निंदा करते हैं, यहाँ तक कि उसे मार देना या खत्म कर देना चाहते हैं। यह किस प्रकार की अभिव्यक्ति है? क्या यह विशिष्ट मसीह-विरोधी की अभिव्यक्ति नहीं है? उनमें और फरीसियों, मुख्य याजकों और प्राचीन शास्‍त्रियों के बीच क्या अंतर है? वे परमेश्वर के कार्य के प्रति, अंतिम दिनों में परमेश्वर के न्याय के प्रति, देहधारी परमेश्वर के प्रति शत्रुभाव रखते हैं, और इससे भी अधिक, वे परमेश्वर की भविष्यवाणियाँ पूरी होने के प्रति शत्रुभाव रखते हैं। उनका मानना है, “यदि तुम देहधारी नहीं हो, यदि तुम आध्यात्मिक शरीर के रूप में हो, तो तुम परमेश्वर हो; यदि तुमने देहधारण किया और एक व्यक्ति बन गए, तो तुम परमेश्वर नहीं हो, और हम तुम्हें स्वीकार नहीं करते।” यह क्या इंगित करता है? इसका मतलब है कि जब तक वे हैं, तब तक वे परमेश्वर को देहधारी नहीं होने देंगे। क्या यह एक विशिष्ट मसीह-विरोधी भाव नहीं है? यह असली मसीह-विरोधी होना है।

—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद सात : वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (भाग तीन)

ऐसे भी लोग हैं जो बड़ी-बड़ी कलीसियाओं में दिन-भर बाइबल पढ़ते और याद करके सुनाते रहते हैं, फिर भी उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य को समझता हो। उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर को जान पाता हो; उनमें से परमेश्वर के इरादों के अनुरूप तो एक भी नहीं होता। वे सबके सब निकम्मे और अधम लोग हैं, जिनमें से प्रत्येक परमेश्वर को सिखाने के लिए ऊँचे पायदान पर खड़ा रहता है। वे लोग परमेश्वर के नाम का झंडा उठाकर, जानबूझकर उसका विरोध करते हैं। वे परमेश्वर में विश्वास रखने का दावा करते हैं, फिर भी मनुष्यों का माँस खाते और रक्त पीते हैं। ऐसे सभी मनुष्य शैतान हैं जो मनुष्यों की आत्माओं को निगल जाते हैं, ऐसे मुख्य राक्षस हैं जो जानबूझकर उन्हें परेशान करते हैं जो सही मार्ग पर कदम बढ़ाने का प्रयास करते हैं और ऐसी बाधाएँ हैं जो परमेश्वर को खोजने वालों के मार्ग में रुकावट पैदा करते हैं। वे “मज़बूत देह” वाले दिख सकते हैं, किंतु उसके अनुयायियों को कैसे पता चलेगा कि वे मसीह-विरोधी हैं जो लोगों से परमेश्वर का विरोध करवाते हैं? अनुयायी कैसे जानेंगे कि वे जीवित शैतान हैं जो इंसानी आत्माओं को निगलने को समर्पित हुए बैठे हैं?

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर को न जानने वाले सभी लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं

प्रत्येक धर्म और संप्रदाय के अगुआओं को देखो—वे सभी अहंकारी और आत्म-तुष्ट हैं, और बाइबल की उनकी व्याख्या में संदर्भ का अभाव है और वे अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के अनुसार चलते हैं। वे सभी अपना काम करने के लिए प्रतिभा और ज्ञान पर भरोसा करते हैं। यदि वे बिल्कुल भी उपदेश न दे पाते तो क्या लोग उनका अनुसरण करते? कुछ भी हो, उनके पास कुछ ज्ञान तो है ही और वे धर्म-सिद्धांत के बारे में थोड़ा-बहुत बोल सकते हैं, या वे जानते हैं कि दूसरों का मन कैसे जीता जाए और कुछ चालों का उपयोग कैसे करें। इन चीजों के माध्यम से वे लोगों को धोखा देते हैं और उन्हें अपने सामने ले आते हैं। नाममात्र के लिए, वे लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, लेकिन वास्तव में वे इन अगुआओं का अनुसरण करते हैं। जब वे उन लोगों का सामना करते हैं जो सच्चे मार्ग का प्रचार करते हैं, तो उनमें से कुछ कहेंगे, “हमें परमेश्वर में अपने विश्वास के मामले में हमारे अगुआ से परामर्श करना है।” देखो, परमेश्वर में विश्वास करने और सच्चा मार्ग स्वीकारने की बात आने पर कैसे लोगों को अभी भी दूसरों की सहमति और मंजूरी की जरूरत होती है—क्या यह एक समस्या नहीं है? तो फिर, वे सब अगुआ क्या बन गए हैं? क्या वे फरीसी, झूठे चरवाहे, मसीह-विरोधी, और लोगों के सही मार्ग को स्वीकारने में अवरोध नहीं बन चुके हैं? इस तरह के लोग पौलुस जैसे ही हैं।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन

जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं, उन्हें परमेश्वर के प्रति समर्पण करना चाहिए और उसकी आराधना करनी चाहिए। किसी व्यक्ति को ऊँचा न ठहराओ, न किसी पर श्रद्धा रखो; परमेश्वर को पहले, जिनका आदर करते हो उन्हें दूसरे और ख़ुद को तीसरे स्थान पर मत रखो। किसी भी व्यक्ति का तुम्हारे हृदय में कोई स्थान नहीं होना चाहिए और तुम्हें लोगों को—विशेषकर उन्हें जिनका तुम सम्मान करते हो—परमेश्वर के समतुल्य या उसके बराबर नहीं मानना चाहिए। यह परमेश्वर के लिए असहनीय है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, दस प्रशासनिक आदेश जो राज्य के युग में परमेश्वर के चुने लोगों द्वारा पालन किए जाने चाहिए

कुछ लोग सत्य में आनंदित नहीं होते, न्याय में तो बिल्कुल भी नहीं। इसके बजाय, वे सामर्थ्य और संपत्तियों में आनंदित होते हैं; ऐसे लोग सामर्थ्य चाहने वाले कहे जाते हैं। वे केवल दुनिया के प्रभावशाली संप्रदायों को, और सेमिनरीज से आने वाले पादरियों और शिक्षकों को खोजते हैं। हालाँकि उन्होंने सत्य के मार्ग को स्वीकार कर लिया है, फिर भी वे केवल अर्ध-विश्वासी हैं; वे अपने दिलो-दिमाग पूरी तरह से समर्पित करने में असमर्थ हैं, वे कहने को तो परमेश्वर के लिए खुद को खपाने की बात करते हैं, लेकिन उनकी नजरें बड़े पादरियों और शिक्षकों पर गड़ी रहती हैं, और वे मसीह की ओर फेर कर नहीं देखते। उनके हृदय प्रसिद्धि, वैभव और महिमा पर ही टिके रहते हैं। वे इसे असंभव समझते हैं कि ऐसा छोटा व्यक्ति इतने लोगों पर विजय प्राप्त कर सकता है, कि इतना साधारण व्यक्ति लोगों को पूर्ण बना सकता है। वे इसे असंभव समझते हैं कि ये धूल और घूरे में पड़े नाचीज लोग परमेश्वर द्वारा चुने गए हैं। वे मानते हैं कि अगर ऐसे लोग परमेश्वर के उद्धार के पात्र होते, तो स्वर्ग और पृथ्वी उलट-पुलट हो जाते और सभी लोग हँसते-हँसते लोटपोट हो जाते। उनका मानना है कि अगर परमेश्वर ने ऐसे नाचीज लोगों को पूर्ण बनाने के लिए चुना होता, तो वे सभी बड़े लोग स्वयं परमेश्वर बन जाते। उनके दृष्टिकोण अविश्वास से दूषित हैं; अविश्वासी होने से भी बढ़कर, वे बेहूदे जानवर हैं। क्योंकि वे केवल हैसियत, प्रतिष्ठा और सामर्थ्य को महत्व देते हैं, और केवल बड़े समूहों और संप्रदायों को सम्मान देते हैं। उनमें उन लोगों के लिए बिल्कुल भी सम्मान नहीं है, जिनकी अगुआई मसीह करता है; वे तो बस ऐसे विश्वासघाती हैं, जिन्होंने मसीह से, सत्य से और जीवन से मुँह मोड़ लिया है।

तुम मसीह की विनम्रता की प्रशंसा नहीं करते, बल्कि ऊँचे रुतबे वाले झूठे चरवाहों की प्रशंसा करते हो। तुम मसीह की मनोहरता या बुद्धि से प्रेम नहीं करते, बल्कि उन व्यभिचारियों से प्रेम करते हो, जो संसार के कीचड़ में लोटते हैं। तुम मसीह की पीड़ा पर हँसते हो, जिसके पास अपना सिर टिकाने तक की जगह नहीं है, लेकिन उन मुरदों की तारीफ करते हो, जो चढ़ावे हड़प लेते हैं और ऐयाशी में जीते हैं। तुम मसीह के साथ कष्ट सहने को तैयार नहीं हो, बल्कि खुद को खुशी-खुशी उन मनमाने मसीह-विरोधियों की बाँहों में सौंप देते हो, जबकि वे तुम्हें सिर्फ देह, शब्द और नियंत्रण ही प्रदान करते हैं। अब भी तुम्हारा हृदय उनकी ओर, उनकी प्रतिष्ठा, उनके रुतबे, उनके प्रभाव की ओर ही मुड़ता है। अभी भी तुम्हारा यही रवैया है कि मसीह का कार्य स्वीकारना कठिन है और तुम इसे स्वीकारने के लिए तैयार नहीं रहते। इसीलिए मैं कहता हूँ कि तुममें मसीह को स्वीकार करने की आस्था की कमी है। तुमने आज तक उसका अनुसरण सिर्फ इसलिए किया है, क्योंकि तुम्हारे पास कोई और विकल्प नहीं था। बुलंद छवियों की एक शृंखला हमेशा तुम्हारे हृदय में बसी रहती है; तुम उनके किसी शब्द और कर्म को नहीं भूल सकते, न ही उनके प्रभावशाली शब्दों और हाथों को भूल सकते हो। वे तुम लोगों के हृदय में हमेशा सर्वोच्च और हमेशा नायक रहते हैं। लेकिन आज के मसीह के लिए ऐसा नहीं है। तुम्हारे हृदय में वह हमेशा महत्वहीन और हमेशा भय के अयोग्य है। क्योंकि वह बहुत ही साधारण है, उसका बहुत ही कम प्रभाव है और वह ऊँचा तो बिल्कुल भी नहीं है।

बहरहाल, मैं कहता हूँ कि जो लोग सत्य को महत्व नहीं देते, वे सभी छद्म-विश्वासी हैं और सत्य के प्रति विश्वासघाती हैं। ऐसे लोगों को कभी भी मसीह का अनुमोदन प्राप्त नहीं होगा। क्या अब तुमने पहचान लिया है कि तुम्हारे भीतर कितना अविश्वास है, और तुममें मसीह के प्रति कितना विश्वासघात है? मैं तुमसे यह आग्रह करता हूँ : चूँकि तुमने सत्य का मार्ग चुना है, इसलिए तुम्हें खुद को संपूर्ण हृदय से समर्पित करना चाहिए; दुविधाग्रस्त या अनमने न बनो। तुम्हें समझना चाहिए कि परमेश्वर इस संसार का या किसी एक व्यक्ति का नहीं है, बल्कि उन सबका है जो उस पर सचमुच विश्वास करते हैं, जो उसकी आराधना करते हैं, और जो उसके प्रति समर्पित और निष्ठावान हैं।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या तुम परमेश्वर के सच्चे विश्वासी हो?

संबंधित चलचित्र अंश

क्या पादरियों और एल्डर को वाकई प्रभु ने नियुक्त किया है?

क्या पादरियों और बुजुर्गों की आज्ञा मानना ही परमेश्वर की आज्ञा मानना है?

संबंधित अनुभवात्मक गवाहियाँ

पादरी द्वारा पहुँच पर नियंत्रण रखने के परिणाम

संबंधित धर्मोपदेश

क्या धार्मिक अगुआओं का अनुसरण करना परमेश्वर का अनुसरण करना है?

संबंधित भजन

इंसान की मसीह में कोई सच्ची आस्था नहीं है

परमेश्वर में विश्वास रखना मगर सत्य स्वीकार न करना एक छद्म-विश्वासी होना है

पिछला: 16. धार्मिक जगत की धारणा कि : “परमेश्वर जब लौटेगा तो वह संभवतः चीन में नहीं प्रकट होगा और काम करेगा”

अगला: 18. धार्मिक जगत की धारणा कि : “पोप पृथ्वी पर परमेश्वर का प्रतिनिधि है और प्रभु जब वापस आएंगे तो वह इस बात को सबसे पहले पोप पर प्रकट करेंगे”

परमेश्वर का आशीष आपके पास आएगा! हमसे संपर्क करने के लिए बटन पर क्लिक करके, आपको प्रभु की वापसी का शुभ समाचार मिलेगा, और 2024 में उनका स्वागत करने का अवसर मिलेगा।

संबंधित सामग्री

1. प्रभु ने हमसे यह कहते हुए, एक वादा किया, "मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ। और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूँ, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊँगा कि जहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो" (यूहन्ना 14:2-3)। प्रभु यीशु पुनर्जीवित हुआ और हमारे लिए एक जगह तैयार करने के लिए स्वर्ग में चढ़ा, और इसलिए यह स्थान स्वर्ग में होना चाहिए। फिर भी आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु लौट आया है और पृथ्वी पर ईश्वर का राज्य स्थापित कर चुका है। मुझे समझ में नहीं आता: स्वर्ग का राज्य स्वर्ग में है या पृथ्वी पर?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद :"हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नाम पवित्र माना जाए। तेरा राज्य आए। तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी...

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

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