iii. मसीह विरोधियों को औरों से अलग कैसे पहचानें
अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन
परमेश्वर मसीह-विरोधियों का चित्रण किस तरह करता है? यह वे लोग हैं जो सत्य से घृणा करते हैं और परमेश्वर का विरोध करते हैं—वे परमेश्वर के शत्रु हैं! सत्य का विरोध करना, परमेश्वर से घृणा करना, और सभी सकारात्मक चीजों से घृणा करना—यह सामान्य लोगों में पाई जाने वाली क्षणिक कमजोरी या मूर्खता नहीं है, न ही यह गलत विचारों और दृष्टिकोणों का प्रकाशन है जो क्षण भर की विकृत समझ से उत्पन्न हो जाते हैं; यह समस्या नहीं है। समस्या यह है कि वे मसीह-विरोधी हैं, परमेश्वर के दुश्मन हैं, सभी सकारात्मक चीजों और सभी सत्य से घृणा करते हैं; वे ऐसे चरित्र हैं जो परमेश्वर से घृणा करते हैं और उसका विरोध करते हैं। परमेश्वर ऐसे लोगों को कैसे देखता है? परमेश्वर उन्हें नहीं बचाता! ये लोग सत्य से घृणा और नफरत करते हैं, उनमें मसीह-विरोधियों का प्रकृति सार होता है। क्या तुम लोग इसे समझते हो? यहाँ जो उजागर किया जा रहा है वह दुष्टता, क्रूरता और सत्य से नफरत है। यह भ्रष्ट स्वभावों में सबसे गंभीर शैतानी स्वभाव होते हैं, जो शैतान की सबसे विशिष्ट और ठोस विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, न कि सामान्य भ्रष्ट मानव जाति द्वारा प्रकट किए गए भ्रष्ट स्वभावों का। मसीह-विरोधी परमेश्वर के प्रति शत्रुतापूर्ण ताकत हैं। वे कलीसिया में बाधा डालकर उसे नियंत्रित कर सकते हैं, और उनके पास परमेश्वर के प्रबंधन कार्य का विघटन करने और उसमें गड़बड़ करने की क्षमता होती है। यह ऐसा कुछ नहीं है जो भ्रष्ट स्वभाव वाले सामान्य लोग कर पाएँ; केवल मसीह-विरोधी ही ऐसे कार्य करने में सक्षम हैं। इस मामले को कम मत समझो।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद छह
जिस दौरान, परमेश्वर ने देहधारण नहीं किया था, तब कोई इंसान परमेश्वर विरोधी है या नहीं, यह इस बात से तय होता था कि क्या इंसान स्वर्ग के अदृश्य परमेश्वर की आराधना और उसका आदर करता था या नहीं। उस समय परमेश्वर के प्रति विरोध को जिस ढंग से परिभाषित किया गया, वह उतना भी व्यावहारिक नहीं था क्योंकि तब इंसान परमेश्वर को देख नहीं पाता था, न ही उसे यह पता था कि परमेश्वर की छवि कैसी है, वह कैसे कार्य करता है और कैसे बोलता है। परमेश्वर के बारे में इंसान की कोई धारणा नहीं थी, परमेश्वर के बारे में उसकी एक अस्पष्ट आस्था थी, क्योंकि परमेश्वर अभी तक इंसानों के सामने प्रकट नहीं हुआ था। इसलिए इंसान ने अपनी कल्पना में परमेश्वर में चाहे जैसे भी विश्वास किया हो, परमेश्वर ने न तो इंसान की निंदा की, न ही उससे बहुत ही ऊँची अपेक्षाएँ कीं, क्योंकि इंसान परमेश्वर को देखने में बिल्कुल असमर्थ था। परमेश्वर जब देहधारण कर इंसानों के बीच काम करने आता है, तो सभी उसे देखते और उसके वचनों को सुनते हैं, और सभी लोग उन कर्मों को देखते हैं जो परमेश्वर देह रूप में करता है। उस क्षण, इंसान की तमाम धारणाएँ साबुन के झाग बन जाती हैं। जहाँ तक उन लोगों की बात है जिन्होंने परमेश्वर को देह में प्रकट होते देखा है, यदि वे अपनी इच्छा से उसके प्रति समर्पण करेंगे, तो उनकी निंदा नहीं की जाएगी, जबकि जो लोग जानबूझकर परमेश्वर के विरुद्ध खड़े होते हैं, वे परमेश्वर का विरोध करने वाले माने जाएँगे। ऐसे लोग मसीह-विरोधी और शत्रु हैं जो जानबूझकर परमेश्वर के विरोध में खड़े होते हैं।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर को न जानने वाले सभी लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं
जो भी देहधारी परमेश्वर को नहीं मानता, दुष्ट है, यही नहीं, वह नष्ट किया जाएगा। वे सब जो विश्वास करते हैं, पर सत्य का अभ्यास नहीं करते, वे जो देहधारी परमेश्वर में विश्वास नहीं करते और वे जो परमेश्वर के अस्तित्व पर लेशमात्र भी विश्वास नहीं रखते, वे सब नष्ट होंगे। वे सभी जिन्हें रहने दिया जाएगा, वे लोग हैं, जो शोधन के दुख से गुज़रे हैं और डटे रहे हैं; ये वे लोग हैं, जो वास्तव में परीक्षणों से गुज़रे हैं। जो कोई परमेश्वर को नहीं पहचानता, शत्रु है; यानी कोई भी जो देहधारी परमेश्वर को नहीं पहचानता—चाहे वह इस धारा के भीतर है या बाहर—एक मसीह-विरोधी है!
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे
यदि तुमने वर्षों परमेश्वर में विश्वास रखा है, फिर भी न तो कभी उसके प्रति समर्पण किया है, न ही उसके वचनों की समग्रता को स्वीकार किया है, बल्कि तुमने परमेश्वर को अपने आगे समर्पण करने और तुम्हारी धारणाओं के अनुसार कार्य करने को कहा है, तो तुम सबसे अधिक विद्रोही व्यक्ति हो, और छद्म-विश्वासी हो। एक ऐसा व्यक्ति परमेश्वर के कार्य और वचनों के प्रति समर्पण कैसे कर सकता है जो मनुष्य की धारणाओं के अनुरूप नहीं है? सबसे अधिक विद्रोही वे लोग होते हैं जो जानबूझकर परमेश्वर की अवहेलना और उसका विरोध करते हैं। ऐसे लोग परमेश्वर के शत्रु और मसीह विरोधी हैं। ऐसे लोग परमेश्वर के नए कार्य के प्रति निरंतर शत्रुतापूर्ण रवैया रखते हैं, ऐसे व्यक्ति में कभी भी समर्पण का कोई भाव नहीं होता, न ही उसने कभी खुशी से समर्पण किया होता है या दीनता का भाव दिखाया है। वे स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ समझते हैं और कभी किसी के आगे नहीं झुकते। परमेश्वर के सामने, ये लोग वचनों का उपदेश देने में स्वयं को सबसे ज़्यादा निपुण समझते हैं और दूसरों पर कार्य करने में अपने आपको सबसे अधिक कुशल समझते हैं। इनके कब्ज़े में जो “खज़ाना” होता है, ये लोग उसे कभी नहीं छोड़ते, दूसरों को इसके बारे में उपदेश देने के लिए, अपने परिवार की पूजे जाने योग्य विरासत समझते हैं, और उन मूर्खों को उपदेश देने के लिए इनका उपयोग करते हैं जो उनकी पूजा करते हैं। कलीसिया में वास्तव में इस तरह के कुछ ऐसे लोग हैं। ये कहा जा सकता है कि वे “अदम्य नायक” हैं, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी परमेश्वर के घर में डेरा डाले हुए हैं। वे वचन (सिद्धांत) का उपदेश देना अपना सर्वोत्तम कर्तव्य समझते हैं। साल-दर-साल और पीढ़ी-दर-पीढ़ी वे अपने “पवित्र और अलंघनीय” कर्तव्य को पूरी प्रबलता से लागू करते रहते हैं। कोई उन्हें छूने का साहस नहीं करता; एक भी व्यक्ति खुलकर उनकी निंदा करने की हिम्मत नहीं दिखाता। वे परमेश्वर के घर में “राजा” बनकर युगों-युगों तक बेकाबू होकर दूसरों पर अत्याचार करते चले आ रहे हैं। दुष्टात्माओं का यह झुंड संगठित होकर काम करने और मेरे कार्य का विध्वंस करने की कोशिश करता है; मैं इन जीती-जागती दुष्ट आत्माओं को अपनी आँखों के सामने कैसे अस्तित्व में बने रहने दे सकता हूँ? यहाँ तक कि आधा-अधूरा समर्पण करने वाले लोग भी अंत तक नहीं चल सकते, फिर इन आततायियों की तो बात ही क्या है जिनके हृदय में थोड़ा-सा भी समर्पण नहीं है! इंसान परमेश्वर के कार्य को आसानी से ग्रहण नहीं कर सकता। इंसान अपनी सारी ताक़त लगाकर भी थोड़ा-बहुत ही पा सकता है जिससे वो आखिरकार पूर्ण बनाया जा सके। फिर प्रधानदूत की संतानों का क्या, जो परमेश्वर के कार्य को नष्ट करने की कोशिश में लगी रहती हैं? क्या परमेश्वर द्वारा उन्हें ग्रहण करने की आशा और भी कम नहीं है?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो सच्चे हृदय से परमेश्वर के प्रति समर्पण करते हैं वे निश्चित रूप से परमेश्वर द्वारा हासिल किए जाएँगे
ऐसे भी लोग हैं जो बड़ी-बड़ी कलीसियाओं में दिन-भर बाइबल पढ़ते और याद करके सुनाते रहते हैं, फिर भी उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य को समझता हो। उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर को जान पाता हो; उनमें से परमेश्वर के इरादों के अनुरूप तो एक भी नहीं होता। वे सबके सब निकम्मे और अधम लोग हैं, जिनमें से प्रत्येक परमेश्वर को सिखाने के लिए ऊँचे पायदान पर खड़ा रहता है। वे लोग परमेश्वर के नाम का झंडा उठाकर, जानबूझकर उसका विरोध करते हैं। वे परमेश्वर में विश्वास रखने का दावा करते हैं, फिर भी मनुष्यों का माँस खाते और रक्त पीते हैं। ऐसे सभी मनुष्य शैतान हैं जो मनुष्यों की आत्माओं को निगल जाते हैं, ऐसे मुख्य राक्षस हैं जो जानबूझकर उन्हें परेशान करते हैं जो सही मार्ग पर कदम बढ़ाने का प्रयास करते हैं और ऐसी बाधाएँ हैं जो परमेश्वर को खोजने वालों के मार्ग में रुकावट पैदा करते हैं। वे “मज़बूत देह” वाले दिख सकते हैं, किंतु उसके अनुयायियों को कैसे पता चलेगा कि वे मसीह-विरोधी हैं जो लोगों से परमेश्वर का विरोध करवाते हैं? अनुयायी कैसे जानेंगे कि वे जीवित शैतान हैं जो इंसानी आत्माओं को निगलने को समर्पित हुए बैठे हैं?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर को न जानने वाले सभी लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं
प्रत्येक धर्म और संप्रदाय के अगुआओं को देखो—वे सभी अहंकारी और आत्म-तुष्ट हैं, और बाइबल की उनकी व्याख्या में संदर्भ का अभाव है और वे अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के अनुसार चलते हैं। वे सभी अपना काम करने के लिए प्रतिभा और ज्ञान पर भरोसा करते हैं। यदि वे बिल्कुल भी उपदेश न दे पाते तो क्या लोग उनका अनुसरण करते? कुछ भी हो, उनके पास कुछ ज्ञान तो है ही और वे धर्म-सिद्धांत के बारे में थोड़ा-बहुत बोल सकते हैं, या वे जानते हैं कि दूसरों का मन कैसे जीता जाए और कुछ चालों का उपयोग कैसे करें। इन चीजों के माध्यम से वे लोगों को धोखा देते हैं और उन्हें अपने सामने ले आते हैं। नाममात्र के लिए, वे लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, लेकिन वास्तव में वे इन अगुआओं का अनुसरण करते हैं। जब वे उन लोगों का सामना करते हैं जो सच्चे मार्ग का प्रचार करते हैं, तो उनमें से कुछ कहेंगे, “हमें परमेश्वर में अपने विश्वास के मामले में हमारे अगुआ से परामर्श करना है।” देखो, परमेश्वर में विश्वास करने और सच्चा मार्ग स्वीकारने की बात आने पर कैसे लोगों को अभी भी दूसरों की सहमति और मंजूरी की जरूरत होती है—क्या यह एक समस्या नहीं है? तो फिर, वे सब अगुआ क्या बन गए हैं? क्या वे फरीसी, झूठे चरवाहे, मसीह-विरोधी, और लोगों के सही मार्ग को स्वीकारने में अवरोध नहीं बन चुके हैं? इस तरह के लोग पौलुस जैसे ही हैं।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन
हमने धार्मिक मंडलियों के भीतर अनेक अगुआओं को बार-बार सुसमाचार का उपदेश दिया है, किन्तु हम उनके साथ सत्य पर कैसे भी संगति क्यों न करें, वे इसे स्वीकार नहीं करते। ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है कि उनका घमंड उनकी प्रवृत्ति बन गया है और उनके हृदयों में परमेश्वर का अब और स्थान नहीं रह गया है। कुछ लोग कह सकते हैं, “धार्मिक दुनिया में कुछ पादरियों के नेतृत्व में लोगों में वास्तव में बहुत अधिक प्रेरणा होती है; यह ऐसा है मानो उनके बीच में परमेश्वर हो।” क्या तुम उत्साह होने को प्रेरणा होना मानते हो? उन पादरियों के सिद्धांत भले ही कितने भी उच्च क्यों न प्रतीत होते हों, क्या वे परमेश्वर को जानते हैं? यदि उनके अंतरतम में परमेश्वर के प्रति सच में भय होता, तो क्या वे लोगों से अपना अनुसरण और प्रशंसा करवाते? क्या वे दूसरों पर नियंत्रण कर पाते? क्या वे अन्य लोगों को सत्य की तलाश करने और सच्चे मार्ग की जाँच करने से रोकने की हिम्मत करते? यदि वे मानते हैं कि परमेश्वर की भेड़ें वास्तव में उनकी हैं और उन सभी को उनकी बात सुननी चाहिए, तो क्या बात ऐसी नहीं है कि वे स्वयं को परमेश्वर मानते हैं? ऐसे लोग फरीसियों से भी बदतर हैं। क्या वे असली मसीह विरोधी नहीं हैं?
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, परमेश्वर के प्रति मनुष्य के प्रतिरोध की जड़ में अहंकारी स्वभाव है
धार्मिक जगत के पादरी, एल्डर आदि वे लोग हैं जो बाइबल संबंधी ज्ञान और धर्मशास्त्र का अध्ययन करते हैं; वे परमेश्वर का विरोध करने वाले पाखंडी फरीसी हैं। ... ईसाई और कैथोलिक धर्म में जो लोग बाइबल, धर्मशास्त्र और यहाँ तक कि परमेश्वर के कार्य के इतिहास का अध्ययन करते हैं, क्या वे वास्तव में विश्वासी हैं? क्या वे परमेश्वर के उन विश्वासियों और अनुयायियों से भिन्न हैं जिनके बारे में वह बात करता है? परमेश्वर की नजर में, क्या वे विश्वासी हैं? नहीं, वे धर्मशास्त्र का अध्ययन करते हैं, वे परमेश्वर का अध्ययन करते हैं, लेकिन वे परमेश्वर का अनुसरण नहीं करते और न ही उसकी गवाही देते हैं। परमेश्वर के बारे में उनका अध्ययन वैसा ही है जैसे लोग इतिहास, फलसफा, कानून, जीव विज्ञान या खगोल विज्ञान का अध्ययन करते हैं। बात सिर्फ इतनी है कि उन्हें विज्ञान या अन्य विषय पसंद नहीं हैं—उन्हें धर्मशास्त्र का अध्ययन विशेष रूप से पसंद है। परमेश्वर का अध्ययन करने के क्रम में परमेश्वर के कार्य के छोटे-छोटे अंशों को खोजने के उनके प्रयासों का परिणाम क्या है? क्या वे परमेश्वर के अस्तित्व की खोज कर सकते हैं? नहीं, कभी नहीं। क्या वे परमेश्वर के इरादों को समझ सकते हैं? (नहीं।) क्यों? क्योंकि वे शब्दों में, ज्ञान में, फलसफे में, मनुष्य के मन में और मनुष्य के विचारों में रहते हैं; वे परमेश्वर को कभी नहीं देख सकेंगे और कभी पवित्र आत्मा द्वारा प्रबुद्ध नहीं किए जाएँगे। परमेश्वर उन्हें कैसे वर्गीकृत करता है? छद्म-विश्वासियों के रूप में, अविश्वासियों के रूप में। ये अविश्वासी और छद्म-विश्वासी तथाकथित ईसाई समुदाय के भीतर ईसाइयों की तरह परमेश्वर में विश्वासी होने का अभिनय करते हुए घुलमिल जाते हैं, लेकिन वास्तव में क्या उनमें परमेश्वर के प्रति आराधना का भाव होता है? क्या उनमें सच्चा समर्पण होता है? (नहीं।) ऐसा क्यों है? एक बात निश्चित है : उनमें से बड़ी संख्या में लोग अपने हृदय में परमेश्वर के अस्तित्व पर विश्वास नहीं करते; वे यह विश्वास नहीं करते कि यह संसार परमेश्वर ने बनाया है और वही सभी चीजों पर संप्रभु है, और वे इस बात पर और भी कम विश्वास करते हैं कि परमेश्वर देहधारी हो सकता है। इस अविश्वास का क्या मतलब है? इसका मतलब है संदेह करना और इनकार करना। वे परमेश्वर की, विशेष रूप से आपदाओं के संबंध में, कही भविष्यवाणियों के पूरी होने या घटित होने की कोई उम्मीद न रखने का भी रवैया अपनाते हैं। यह परमेश्वर में विश्वास के प्रति उनका रवैया है, और यही उनकी तथाकथित आस्था का सार और असली चेहरा है। ये लोग परमेश्वर का अध्ययन करते हैं क्योंकि वे विशेष रूप से धर्मशास्त्र विषय और धर्मशास्त्रीय ज्ञान, और परमेश्वर के कार्य के ऐतिहासिक तथ्यों में रुचि रखते हैं; वे धर्मशास्त्र का अध्ययन करने वाले विशुद्ध बुद्धिजीवियों का समूह हैं। ये बुद्धिजीवी परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते, तो जब परमेश्वर कार्य करता है, जब परमेश्वर के वचन पूरे होते हैं तो उनकी प्रतिक्रिया कैसी होती है? परमेश्वर के देहधारी होने और एक नया कार्य शुरू करने की बात सुनने पर उनकी पहली प्रतिक्रिया क्या होती है? “असंभव!” जो कोई भी परमेश्वर के नए नाम और परमेश्वर के नए कार्य का प्रचार करता है, वे उसकी निंदा करते हैं, यहाँ तक कि उसे मार देना या खत्म कर देना चाहते हैं। यह किस प्रकार की अभिव्यक्ति है? क्या यह विशिष्ट मसीह-विरोधी की अभिव्यक्ति नहीं है? उनमें और फरीसियों, मुख्य याजकों और प्राचीन शास्त्रियों के बीच क्या अंतर है? वे परमेश्वर के कार्य के प्रति, अंतिम दिनों में परमेश्वर के न्याय के प्रति, देहधारी परमेश्वर के प्रति शत्रुभाव रखते हैं, और इससे भी अधिक, वे परमेश्वर की भविष्यवाणियाँ पूरी होने के प्रति शत्रुभाव रखते हैं। उनका मानना है, “यदि तुम देहधारी नहीं हो, यदि तुम आध्यात्मिक शरीर के रूप में हो, तो तुम परमेश्वर हो; यदि तुमने देहधारण किया और एक व्यक्ति बन गए, तो तुम परमेश्वर नहीं हो, और हम तुम्हें स्वीकार नहीं करते।” यह क्या इंगित करता है? इसका मतलब है कि जब तक वे हैं, तब तक वे परमेश्वर को देहधारी नहीं होने देंगे। क्या यह एक विशिष्ट मसीह-विरोधी भाव नहीं है? यह असली मसीह-विरोधी होना है।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद सात : वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (भाग तीन)
देहधारी परमेश्वर के प्रति व्यवहार में मसीह-विरोधियों की एक और अभिव्यक्ति है : वे कहते हैं, “जैसे ही मैंने यह देखा कि मसीह एक साधारण व्यक्ति है, वैसे ही मेरे मन में धारणाएँ बन गईं। ‘वचन देह में प्रकट होता है,’ यह परमेश्वर की एक अभिव्यक्ति है; यह सत्य है और मैं इसे मानता हूँ। ‘वचन देह में प्रकट होता है’ की एक प्रति मेरे पास है और यही काफी है। मुझे मसीह के साथ संपर्क रखने की जरूरत नहीं है। अगर मुझमें धारणाएँ, नकारात्मकता या कमजोरी है तो मैं इन्हें सिर्फ परमेश्वर के वचन पढ़कर हल कर सकता हूँ। अगर मैं देहधारी परमेश्वर के साथ संपर्क रखता हूँ तो धारणाएँ बना लेना आसान होगा और इससे दिख जाएगा कि मैं बहुत गहराई तक भ्रष्ट हूँ। अगर परमेश्वर मेरी निंदा कर दे, तो मेरे पास उद्धार की कोई आशा नहीं रहेगी। इसलिए बेहतर यही रहेगा कि बस परमेश्वर के वचन मैं स्वयं पढ़ूँ। स्वर्ग का परमेश्वर ही लोगों को बचा सकता है।” परमेश्वर के वर्तमान वचन और संगति, खासकर मसीह-विरोधियों के स्वभाव और सार को उजागर करने वाले वचन उनके दिल में सबसे अधिक चुभते हैं और उन्हें सबसे अधिक पीड़ा पहुँचाते हैं। इन्हीं वचनों को पढ़ने के लिए मसीह-विरोधी सबसे कम तैयार रहते हैं। इसलिए मसीह-विरोधी मन-ही-मन मन्नत माँगते हैं कि परमेश्वर जल्द ही पृथ्वी को छोड़ दे, ताकि वे पृथ्वी पर अपनी शक्ति के बल पर शासन कर सकें। उन्हें लगता है कि परमेश्वर ने जिस देह में देहधारण किया है, यानी यह साधारण व्यक्ति, उनके लिए अनावश्यक है। वे हमेशा यही विचार करते हैं, “मसीह के धर्मोपदेश सुनने से पहले मुझे लगता था कि मैं सब कुछ समझता हूँ और हर लिहाज से ठीक हूँ, लेकिन मसीह के धर्मोपदेश सुनने के बाद वह बात नहीं रही। अब लगता है मानो मेरे पास कुछ भी नहीं है, मानो मैं बहुत तुच्छ और दयनीय हूँ।” इसलिए वे यह तय मान लेते हैं कि मसीह के वचन उन्हें नहीं बल्कि दूसरों को उजागर करने वाले होते हैं, और उन्हें लगता है कि मसीह के धर्मोपदेश सुनने की कोई जरूरत नहीं है, कि “वचन देह में प्रकट होता है” को पढ़ लेना ही काफी है। मसीह-विरोधियों के दिलों में उनका मुख्य इरादा परमेश्वर के देहधारण के तथ्य को नकारना है, इस तथ्य को नकारना है कि मसीह सत्य को व्यक्त करता है, वे यह सोचते हैं कि परमेश्वर में इस तरह विश्वास रखकर उनके बचाए जाने की आशा है और वे कलीसिया में राजाओं की तरह राज कर सकेंगे, और इस प्रकार परमेश्वर में विश्वास रखने के अपने मूल इरादे को पूरा कर सकेंगे। मसीह-विरोधियों की जन्मजात प्रकृति परमेश्वर का प्रतिरोध करने की होती है; देहधारी परमेश्वर के साथ उनका मेल वैसे ही नहीं बैठता, जैसा आग और पानी का सदा-सदा का बैर है। उन्हें लगता है कि मसीह के अस्तित्व का प्रत्येक दिन ऐसा दिन होगा कि उनके लिए चमकना कठिन होगा, और उनके सामने निंदा झेलने, हटाए जाने, नष्ट होने और दंड पाने का खतरा रहेगा। अगर मसीह बोलता नहीं है और कार्य नहीं करता है, अगर परमेश्वर के चुने हुए लोग मसीह को आदर से नहीं देखते हैं, तो मसीह-विरोधियों के पास अवसर रहता है। उनके पास अपनी क्षमताएँ दिखाने का मौका होता है। उनके हाथ हिलाने भर से उनके पक्ष में लोगों की भीड़ उमड़ आएगी और मसीह-विरोधी लोग राजाओं की तरह शासन कर सकेंगे। मसीह-विरोधियों का प्रकृति सार सत्य-विमुख रहना और मसीह के प्रति नफरत से भरे रहना है। वे मसीह से इस बात की होड़ करते हैं कि कौन ज्यादा प्रतिभाशाली है या कौन अधिक सक्षम है; वे मसीह से इस बात की होड़ करते हैं कि किसके शब्दों में अधिक शक्ति है और किसकी योग्यताएँ अधिक हैं। चूँकि वे मसीह के समान ही कार्य कर रहे हैं, इसलिए वे दूसरों को यह दिखाने पर तुले रहते हैं कि भले ही वे और मसीह दोनों मानव हैं, फिर भी मसीह की योग्यताएँ और विद्वता किसी साधारण इंसान से बेहतर नहीं हैं। मसीह-विरोधी हर तरह से मसीह से होड़ लगाते हैं, इस बात पर स्पर्धा करते हैं कि कौन बेहतर है, और हर कोण से इस तथ्य को नकारने की कोशिश करते हैं कि मसीह परमेश्वर है, कि वह परमेश्वर के आत्मा का प्रतिरूप है, कि वह सत्य का प्रतिरूप है। वे हर क्षेत्र में तमाम ऐसे तरीके और उपाय सोचते रहते हैं जिनसे मसीह को परमेश्वर के चुने हुए लोगों के बीच प्रभुत्व रखने से रोका जाए, परमेश्वर के चुने हुए लोगों के बीच मसीह के वचनों का प्रचार या इनका क्रियान्वयन रोका जाए, और यहाँ तक कि मसीह जो चीजें करता है उन्हें रोका जाए और लोगों से उसकी माँगों और लोगों के लिए उसकी आशाओं को परमेश्वर के चुने हुए लोगों के बीच साकार होने से रोका जाए। यह ऐसा है मानो मसीह की मौजूदगी में उनका तिरस्कार होता हो, कलीसिया उनकी निंदा करती हो और उन्हें खारिज कर देती हो—लोगों के एक समूह को एक अंधेरे कोने में डाल दिया जाता हो। हम मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों में देख सकते हैं कि सार और स्वभाव से वे मसीह के साथ मेल नहीं खाते हैं—वे उसके साथ एक ही छतरी तले नहीं रह सकते! मसीह-विरोधी जन्म से ही परमेश्वर के प्रति शत्रुवत रहे हैं; वे मसीह का खास तौर पर प्रतिरोध करने पर तुले रहते हैं, और वे मसीह को हराकर धूल चटा देना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि मसीह जो भी कार्य करता है वह बेकार और बेनतीजा हो जाए, ताकि अंत में मसीह ज्यादा लोगों को हासिल न कर सके, ताकि वह चाहे कहीं भी कार्य करे उसे कोई नतीजा न मिले। तभी मसीह-विरोधी खुश होंगे। अगर मसीह सत्य व्यक्त करता है और लोग इनके लिए प्यासे रहते हैं, इन्हें खोजते हैं, इन्हें खुशी-खुशी अपनाते हैं, मसीह की खातिर खुद को खपाने के लिए तैयार रहते हैं, सब कुछ त्यागकर मसीह के सुसमाचार फैलाने के लिए तैयार रहते हैं तो मसीह-विरोधी निराश हो जाते हैं और उन्हें लगता है कि भविष्य के लिए कोई आशा नहीं बची है, कि उन्हें कभी चमकने का मौका नहीं मिलेगा, मानो उन्हें नरक में झोंक दिया गया हो। मसीह-विरोधियों की इन अभिव्यक्तियों को देखने से क्या परमेश्वर से लड़ने और उसे शत्रुवत मानने का उनका सार किसी दूसरे ने उनके अंदर बैठाया है? ऐसा बिल्कुल भी नहीं है; वे इसके साथ पैदा हुए हैं। इसीलिए मसीह-विरोधी ऐसे लोग हैं जो जन्मे ही दानव के अवतार में हैं, वे पृथ्वी पर उतरे दानव हैं। वे शायद कभी सत्य स्वीकार नहीं कर सकते और मसीह को कभी स्वीकार नहीं करेंगे, मसीह की बड़ाई नहीं करेंगे या मसीह की गवाही नहीं देंगे। हालाँकि उनके हाव-भावों से तुम उन्हें खुलेआम मसीह की आलोचना या निंदा करते नहीं देखोगे, और भले ही वे ईमानदारी से कुछ प्रयास कर लें और कीमत चुका लें, फिर भी जैसे ही उन्हें मौका मिलेगा, जब सही समय आएगा तो परमेश्वर के साथ मसीह-विरोधियों का बेमेलपन खुद-ब-खुद दिखने लगेगा। यह तथ्य सार्वजनिक हो जाएगा कि मसीह-विरोधी परमेश्वर से लड़ते हैं और एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना करते हैं। जिन स्थानों पर मसीह-विरोधी रहते हैं वहाँ ये सारी चीजें पहले घटित हो चुकी हैं और ये इन वर्षों में खास तौर पर आम हो चुकी हैं जब परमेश्वर अंत के दिनों के न्याय का कार्य कर रहा है; कई लोग इनका अनुभव और अवलोकन कर चुके हैं।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद दस : वे सत्य से घृणा करते हैं, सिद्धांतों की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाते हैं और परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं की उपेक्षा करते हैं (भाग चार)
मसीह-विरोधियों के व्यवहार का सार अपनी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ पूरी करने, लोगों को गुमराह करके फँसाने और उच्च हैसियत प्राप्त करने के लिए लगातार विभिन्न साधनों और तरीकों का इस्तेमाल करना है, ताकि लोग उनका अनुसरण और आराधना करें। संभव है कि अपने दिल की गहराइयों में वे जानबूझकर मानवजाति को लेकर परमेश्वर से होड़ न कर रहे हों, पर एक बात तो पक्की है : जब वे मनुष्यों को लेकर परमेश्वर के साथ होड़ नहीं भी कर रहे होते, तब भी वे उनके बीच रुतबा और सत्ता पाना चाहते हैं। अगर वह दिन आ भी जाए, जब उन्हें यह एहसास हो जाए कि वे रुतबे के लिए परमेश्वर के साथ होड़ कर रहे हैं और वे अपने-आप पर थोड़ी-बहुत लगाम लगा लें, तो भी वे रुतबे और प्रतिष्ठा के लिए विभिन्न हथकंडे अपनाते हैं; उन्हें अपने दिल में स्पष्ट होता है कि वे कुछ लोगों की स्वीकृति और सराहना प्राप्त करके वैध रुतबा प्राप्त कर लेंगे। संक्षेप में, हालाँकि मसीह-विरोधी जो कुछ भी करते हैं, उससे वे अपने कर्तव्य निभाते प्रतीत होते हैं, लेकिन उसका परिणाम लोगों को गुमराह करना होता है, उनसे अपनी आराधना और अनुसरण करवाना होता है—ऐसे में, इस तरह अपना कर्तव्य निभाना उनके लिए अपना उत्कर्ष करना और अपनी गवाही देना होता है। लोगों को नियंत्रित करने और कलीसिया में रुतबा और सत्ता हासिल करने की उनकी महत्वाकांक्षा कभी नहीं बदलती। ऐसे लोग पूरे मसीह-विरोधी होते हैं। परमेश्वर चाहे कुछ भी कहे या करे, और चाहे वह लोगों से कुछ भी चाहे, मसीह-विरोधी वह नहीं करते जो उन्हें करना चाहिए या अपने कर्तव्य उस तरह से नहीं निभाते जो परमेश्वर के वचनों और अपेक्षाओं के अनुरूप हो, न ही वे किसी सत्य को समझने के नतीजे के तौर पर सत्ता और रुतबे का अपना अनुसरण ही त्यागते हैं। हर समय, उनकी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छएँ फिर भी बनी रहती हैं, वे फिर भी उनके दिल पर कब्जा किए रहती हैं और उनके पूरे अस्तित्व को नियंत्रित करती हैं, उनके व्यवहार और विचारों को निर्देशित करती हैं, और उस मार्ग को निर्धारित करती है, जिस पर वे चलते हैं। वे प्रमाणिक मसीह-विरोधी हैं। मसीह-विरोधियों में सबसे ज्यादा क्या दिखाई देता है? कुछ लोग कहते हैं, “मसीह-विरोधी लोगों को प्राप्त करने के लिए परमेश्वर से होड़ करते हैं, वे परमेश्वर को नहीं स्वीकारते।” ऐसा नहीं है कि वे परमेश्वर को नहीं स्वीकारते; अपने दिल में वे वास्तव में उसके अस्तित्व को स्वीकारते और उस पर विश्वास करते हैं। वे उसका अनुसरण करने के इच्छुक होते हैं और सत्य का अनुसरण करना चाहते हैं, लेकिन उनका खुद पर बस नहीं चलता, इसलिए वे बुराई कर सकते हैं। हालाँकि वे कई अच्छी लगने वाली बातें कह सकते हैं, लेकिन एक चीज कभी नहीं बदलेगी : सत्ता और रुतबे के लिए उनकी आकांक्षा और इच्छा कभी नहीं बदलेगी। वे कभी असफलता या बाधा के कारण, या परमेश्वर द्वारा उन्हें दरकिनार कर त्याग दिए जाने के कारण सत्ता और रुतबे का अनुसरण करना नहीं छोड़ेंगे। ऐसी होती है मसीह-विरोधियों की प्रकृति। तो तुम क्या कहते हो, क्या कभी कोई ऐसा मसीह-विरोधी हुआ है जिसने इसलिए अपने तरीके बदले हों और सत्य का अनुसरण करना शुरू कर दिया हो क्योंकि उसने कठिनाई झेली, या सत्य को थोड़ा-बहुत समझा और परमेश्वर का थोड़ा-बहुत ज्ञान प्राप्त किया—क्या ऐसे लोग मौजूद हैं? हमने ऐसा कभी नहीं देखा। रुतबे और सत्ता के लिए मसीह-विरोधियों की महत्वाकांक्षा और उनका अनुसरण कभी नहीं बदलेगा, और एक बार जब वे सत्ता पर कब्जा कर लेते हैं, तो वे इसे कभी नहीं छोड़ेंगे; और इससे उनका प्रकृति सार स्पष्ट रूप से निर्धारित हो जाता है। ऐसे लोगों को मसीह-विरोधियों के रूप में परिभाषित करने में परमेश्वर ने जरा-सी भी गलती नहीं की है, इसे उनके प्रकृति सार ने ही निर्धारित कर दिया है। शायद कुछ लोग मानते हैं कि मसीह-विरोधी मानवजाति के लिए परमेश्वर के साथ प्रतिस्पर्धा करने की कोशिश करते हैं। हालाँकि, कई बार यह जरूरी नहीं होता कि मसीह-विरोधी परमेश्वर के साथ प्रतिस्पर्धा ही करें; उनका ज्ञान, समझ और प्रतिष्ठा व सामर्थ्य की आवश्यकता सामान्य लोगों जैसी नहीं होती। सामान्य लोग कभी-कभी दंभी हो सकते हैं; वे दूसरों की प्रशंसा जीतने का प्रयास कर सकते हैं, उन पर धाक जमाने का प्रयास कर सकते हैं, और एक अच्छी श्रेणी पाने की होड़ लगाने का प्रयास कर सकते हैं। यह सामान्य लोगों की महत्वाकांक्षा है। यदि उन्हें नेताओं के रूप में बदल दिया जाता है, वे उपना रुतबा खो देते हैं, तो यह उनके लिए कठिन होगा, लेकिन परिवेश में परिवर्तन से, थोड़े आध्यात्मिक कद के विकास से, सत्य प्रवेश की थोड़ी-बहुत प्राप्ति या सत्य की गहरी समझ आने पर उनकी महत्वाकांक्षा धीरे-धीरे शांत हो जाती है। उनके द्वारा अपनाए गए मार्ग और आगे बढ़ने की दिशा में परिवर्तन आता है, और प्रतिष्ठा व सामर्थ्य की उनकी खोज धूमिल होने लगती है। उनकी इच्छाएँ भी धीरे-धीरे कम होती जाती हैं। हालाँकि मसीह-विरोधी अलग होते हैं : वे प्रतिष्ठा व सामर्थ्य की अपनी खोज कभी नहीं छोड़ सकते। किसी भी समय पर, किसी भी माहौल में, और चाहे उनके आस-पास कोई भी लोग हों और चाहे वे किसी भी उम्र के हों, उनकी महत्वाकांक्षा और इच्छा कभी नहीं बदलेगी। किससे पता चलता है कि उनकी महत्वाकांक्षा कभी नहीं बदलेगी? उदाहरण के लिए, मान लो कि वे किसी कलीसिया में अगुआ हैं। वे अपने दिल में हमेशा यह सोचते रहते हैं कि वे कलीसिया में सभी को कैसे नियंत्रित कर सकते हैं। अगर उन्हें किसी दूसरे कलीसिया में स्थानांतरित कर दिया जाता है जहाँ वे अगुआ नहीं हैं, तो क्या वे खुशी-खुशी एक सामान्य अनुयायी बन जाएँगे? बिल्कुल नहीं। वे अभी भी इस बारे में सोचते रहेंगे कि कैसे पद प्राप्त करें और कैसे सभी को नियंत्रित करें। चाहे वे कहीं भी जाएँ, वे राजा की तरह शासन करना चाहते हैं। भले ही उन्हें बिना लोगों वाली जगह पर, भेड़ों के रेवड़ में रखा जाए तो वे तब भी रेवड़ का नेतृत्व करना चाहेंगे। अगर उन्हें बिल्लियों और कुत्तों के साथ रखा जाए तो वे बिल्लियों और कुत्तों के राजा बनना चाहेंगे और जानवरों पर शासन करना चाहेंगे। वे महत्वाकांक्षा से भरे हुए हैं, है ना? क्या ऐसे लोगों का स्वभाव दानवी नहीं है? क्या ये शैतान के स्वभाव नहीं हैं? शैतान ऐसी ही चीज है। स्वर्ग में शैतान परमेश्वर के बराबर खड़ा होना चाहता था और पृथ्वी पर फेंके जाने के बाद उसने हमेशा मनुष्य को नियंत्रित करने, मनुष्य से अपनी आराधना करवाने और अपने को परमेश्वर मानने के लिए मनुष्य को विवश करने का प्रयास किया। मसीह-विरोधी हमेशा लोगों को नियंत्रित करना चाहते हैं क्योंकि उनके पास शैतानी प्रकृति होती है; वे अपने शैतानी स्वभाव के अनुसार जीते हैं जो पहले से ही सामान्य लोगों की समझ की सीमाओं से परे जा चुका है। क्या यह थोड़ा असामान्य नहीं है? यह असामान्यता किस बात को संदर्भित करती है? इसका अर्थ है कि उनका व्यवहार सामान्य मानवता में नहीं पाया जाना चाहिए। तो, यह व्यवहार क्या है? इसे क्या नियंत्रित करता है? यह उनकी प्रकृति द्वारा नियंत्रित होता है। उनके पास एक दुष्टात्मा का सार है और वे सामान्य भ्रष्ट मानव जाति से भिन्न हैं। यही अंतर है। मसीह-विरोधी सत्ता और रुतबे की खोज में किसी भी हद तक जा सकते हैं, यह न केवल उनकी प्रकृति सार को उजागर करता है, बल्कि लोगों को यह भी दिखाता है कि उनका घिनौना चेहरा बिल्कुल शैतान और दानवों का चेहरा है। वे न केवल रुतबे के लिए लोगों से होड़ करते हैं बल्कि परमेश्वर से भी होड़ करते हैं। वे केवल तभी संतुष्ट होंगे जब परमेश्वर के चुने हुए लोगों को अपने साथ कर लेंगे और वे लोग पूरी तरह से उनके नियंत्रण में होंगे। चाहे मसीह-विरोधी किसी भी कलीसिया या समूह में हों, वे पद प्राप्त करना चाहते हैं, सत्ता हासिल करना चाहते हैं और लोगों से अपनी बात मनवाना चाहते हैं। चाहे लोग इच्छुक और सहमत हों या नहीं, मसीह-विरोधी अंतिम निर्णय लेना चाहते हैं और चाहते हैं कि लोग उनकी बात मानें और उन्हें स्वीकार करें। क्या यह मसीह-विरोधियों की प्रकृति नहीं है? क्या लोग उनकी बात सुनने के लिए तैयार हैं? क्या वे उन्हें चुनते हैं और उनकी संस्तुति करते हैं? नहीं। लेकिन मसीह-विरोधी अभी भी अंतिम निर्णय लेना चाहते हैं। चाहे लोग सहमत हों या नहीं, मसीह-विरोधी उनकी ओर से बोलना और कार्य करना चाहते हैं, वे ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं। वे अपने विचारों को अन्य लोगों पर थोपने की भी कोशिश करते हैं और यदि लोग इसे स्वीकार नहीं करते हैं तो मसीह-विरोधी उन्हें इसे स्वीकार करवाने के लिए अपना दिमाग खपाते हैं। यह क्या समस्या है? यह बेशर्मी और ढीठता है। इस तरह के लोग सच्चे मसीह-विरोधी होते हैं और चाहे वे अगुआ हों या नहीं, वे मसीह-विरोधी तो होते ही हैं। उनमें मसीह-विरोधी का प्रकृति सार होता है।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद पाँच : वे लोगों को गुमराह करने, फुसलाने, धमकाने और नियंत्रित करने का काम करते हैं
मसीह-विरोधियों को भौतिक चीजों, पैसे और रुतबे में अत्यधिक रुचि होती है। वे निश्चित रूप से बिल्कुल ऐसे नहीं होते जैसा वे ऊपर से बोलते हैं, “मैं परमेश्वर में विश्वास रखता हूँ। मैं सांसारिक चीजों के पीछे नहीं भागता और पैसे का लालच नहीं करता।” वे ऐसे बिल्कुल भी नहीं होते जैसा वे कहते हैं। वे अपनी पूरी शक्ति से रुतबे के पीछे भागकर उसे क्यों बनाए रखते हैं? क्योंकि वे अपने अधिकार क्षेत्र की सभी चीजों को हासिल करना या उन्हें नियंत्रित करना और हथिया लेना चाहते हैं—खास तौर पर पैसा और भौतिक चीजें। वे इस पैसे और इन भौतिक चीजों का यों मजा लेते हैं मानो ये उनके रुतबे के फायदे हों। वे नाम और सच्चाई में शैतान के प्रकृति सार वाले प्रधान दूत के वास्तविक वंशज हैं। वे सभी लोग जो रुतबे के पीछे भागते हैं और पैसे को अहमियत देते हैं, उनके स्वभाव सार के साथ यकीनन एक समस्या होती है। यह उनके मसीह-विरोधी का स्वभाव वाले होने जितनी सरल बात नहीं है : वे अत्यंत महत्वाकांक्षी होते हैं। वे परमेश्वर के घर के पैसे पर नियंत्रण करना चाहते हैं। अगर उन्हें किसी काम की जिम्मेदारी दी जाए, तो सबसे पहले वे दूसरों को हस्तक्षेप नहीं करने देंगे, न ही वे ऊपरवाले से पूछताछ या निगरानी को स्वीकार करेंगे; इससे परे, जब वे किसी कार्य की मद के पर्यवेक्षक हों, तो अपना दिखावा करने, खुद को सुरक्षित रखने और ऊँचा उठाने के तरीके ढूँढ़ लेंगे। वे हमेशा चाहते हैं कि सबसे ऊपर पहुँच जाएँ, ऐसे लोग बन जाएँ जो दूसरों पर शासन कर उन्हें नियंत्रित करते हों। वे यह भी चाहते हैं कि ऊँचे रुतबे के लिए, और यहाँ तक कि परमेश्वर के घर के प्रत्येक हिस्से पर नियंत्रण करने के लिए हावी होकर होड़ लगाएँ—खास तौर से उसके पैसे के लिए। मसीह-विरोधियों को पैसे से विशेष प्रेम होता है। उसे देखकर उनकी आँखों में चमक आ जाती है; अपने मन में, वे हमेशा पैसे के बारे में सोचते रहते हैं और उसके लिए प्रयास करते रहते हैं। ये सब मसीह-विरोधियों के संकेत और लक्षण हैं। अगर तुम उनसे सत्य पर संगति करो, या भाई-बहनों की दशा के बारे में जानने की कोशिश करो और ऐसे सवाल पूछो कि उनमें से कितने कमजोर और निराश हैं, उनमें से प्रत्येक अपने कर्तव्य में कैसे नतीजे हासिल कर रहा है, और उनमें से कौन अपने कर्तव्य के लिए उपयुक्त नहीं है, तो मसीह-विरोधियों को रुचि नहीं होगी। लेकिन जब परमेश्वर की भेंटों की बात आती है—पैसे की मात्रा, इसकी सुरक्षा कौन कर रहा है, यह कहाँ रखा गया है, उसके पासकोड क्या हैं आदि-आदि—तो ये ही वे चीजें हैं जिनकी वे सबसे ज्यादा परवाह करते हैं। किसी मसीह-विरोधी की इन चीजों पर सबसे ज्यादा पकड़ होती है। वे इन चीजों को बहुत अच्छी तरह से जानते हैं। यह भी मसीह-विरोधी का एक लक्षण होता है। मसीह-विरोधी मीठी बातें बोलने में माहिर होते हैं, लेकिन वे वास्तविक कार्य नहीं करते। इसके बजाय, वे हमेशा परमेश्वर की भेंटों के मजे लेने के विचारों में खोए रहते हैं। मुझे बताओ, क्या मसीह-विरोधी अनैतिक नहीं होते? उनमें जरा भी मानवता नहीं होती—वे पूरी तरह से दानव होते हैं।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग दो)
परमेश्वर के चुने हुए लोगों को मसीह-विरोधियों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए? उन्हें उनकी पहचान करनी चाहिए, उन्हें उजागर करना चाहिए, उनकी रिपोर्ट करनी चाहिए और उन्हें ठुकरा देना चाहिए। केवल तभी अंत तक परमेश्वर का अनुसरण और परमेश्वर में आस्था रखने के सही मार्ग में प्रवेश सुनिश्चित किया जा सकता है। मसीह-विरोधी तुम्हारे अगुआ नहीं हैं, चाहे उन्होंने दूसरों को गुमराह करके कैसे भी खुद को अगुआ चुनवाया हो। उन्हें स्वीकार मत करो और उनकी अगुआई मत मानो—तुम्हें उनकी पहचान करनी चाहिए और उन्हें ठुकरा देना चाहिए, क्योंकि वे सत्य को समझने में तुम्हारी मदद नहीं कर सकते और न ही वे तुम्हारा समर्थन कर सकते हैं या तुम्हारा पोषण कर सकते हैं। यही तथ्य हैं। अगर वे सत्य वास्तविकता की ओर तुम्हारा मार्गदर्शन नहीं कर सकते, तो वे अगुआ या कार्यकर्ता बनने के काबिल नहीं हैं। अगर वे सत्य को समझने और परमेश्वर के कार्य का अनुभव करने की ओर तुम्हारा मार्गदर्शन नहीं कर सकते, तो ये वे लोग हैं जो परमेश्वर का विरोध करते हैं और तुम्हें उन्हें पहचान लेना चाहिए, उन्हें उजागर करना चाहिए और उन्हें ठुकरा देना चाहिए। वे जो कुछ भी करते हैं उसका उद्देश्य तुम्हें अपना अनुसरण कराने के लिए गुमराह करना, और कलीसिया के कार्य को कमजोर करने और उसमें बाधा डालने के लिए तुम्हें अपने समूह में शामिल करना होता है, ताकि वे तुम्हें मसीह-विरोधियों का रास्ता अपनाने के लिए प्रेरित कर सकें, जैसा कि वे करते हैं। वे तुम्हें नरक में खींचना चाहते हैं! अगर तुम उन्हें बता नहीं सकते कि वे क्या हैं और मानते हो कि चूँकि वे तुम्हारे अगुआ हैं इसलिए तुम्हें उनकी आज्ञा माननी चाहिए और उनके प्रति रियायत बरतनी चाहिए, तो तुम एक ऐसे व्यक्ति हो जो सत्य और परमेश्वर दोनों के साथ विश्वासघात करता है—और ऐसे लोगों को बचाया नहीं जा सकता। अगर तुम बचाए जाना चाहते हो, तो तुम्हें न केवल बड़े लाल अजगर की बाधा पार करनी होगी, और न केवल बड़े लाल अजगर को पहचानने, उसके भयानक चेहरे की असलियत देखने और इसके खिलाफ पूरी तरह से विद्रोह करने में सक्षम होना होगा—बल्कि मसीह-विरोधियों की बाधा भी पार करनी होगी। कलीसिया में मसीह-विरोधी न केवल परमेश्वर का शत्रु होता है, बल्कि परमेश्वर के चुने हुए लोगों का भी शत्रु होता है। अगर तुम मसीह-विरोधी को नहीं पहचान सकते, तो तुम्हारे गुमराह होने और उनकी बातों में आ जाने, मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलने, और परमेश्वर द्वारा शापित और दंडित किए जाने की संभावना है। अगर ऐसा होता है, तो परमेश्वर में तुम्हारा विश्वास पूरी तरह से विफल हो गया है। उद्धार प्रदान किए जाने के लिए लोगों में क्या होना चाहिए? पहले, उन्हें कई सत्य समझने चाहिए, और मसीह-विरोधी का सार, स्वभाव और मार्ग पहचानने में सक्षम होना चाहिए। परमेश्वर में विश्वास करते हुए लोगों की आराधना या अनुसरण न करना सुनिश्चित करने का यह एकमात्र तरीका है, और अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करने का भी यही एकमात्र तरीका है। मसीह-विरोधी की पहचान करने में सक्षम लोग ही वास्तव में परमेश्वर में विश्वास कर सकते हैं, उसका अनुसरण कर सकते हैं और उसकी गवाही दे सकते हैं। तब कुछ लोग कहेंगे, “अगर मेरे पास इसके लिए फिलहाल सत्य नहीं है तो मैं क्या करूँ?” तुम्हें खुद को जल्दी से जल्दी सत्य से सुसज्जित करना चाहिए; तुम्हें लोगों और चीजों को समझना सीखना चाहिए। मसीह-विरोधी की पहचान करना कोई आसान बात नहीं है, इसके लिए उनका सार स्पष्ट रूप से देखने और उनके हर काम के पीछे की साजिशें, चालें और इरादे देख पाने की क्षमता होनी आवश्यक है। इस तरह तुम उनके द्वारा गुमराह नहीं होगे या उनके काबू में नहीं आओगे, और तुम अडिग होकर, सुरक्षित रूप से सत्य का अनुसरण कर सकते हो, और सत्य का अनुसरण करने और उद्धार प्राप्त करने के मार्ग पर दृढ़ रह सकते हो। अगर तुम मसीह-विरोधी की बाधा को पार नहीं कर सकते, तो यह कहा जा सकता है कि तुम एक बड़े ख़तरे में हो, और तुम्हें मसीह-विरोधी द्वारा गुमराह करके अपने कब्जे में किया जा सकता है और तुम्हें शैतान के प्रभाव में जीवन व्यतीत करना पड़ सकता है। वर्तमान में तुम लोगों के बीच कुछ ऐसे लोग हो सकते हैं जो सत्य का अनुसरण करने वालों को रोकें या ठोकर मारें, और ये उन लोगों के शत्रु हैं। क्या तुम लोग इसे स्वीकार करते हो? कुछ ऐसे लोग हैं जो इस तथ्य का सामना करने की हिम्मत नहीं रखते, न ही वे इसे तथ्य के रूप में स्वीकार करने की हिम्मत रखते हैं। लेकिन मसीह विरोधियों द्वारा लोगों को गुमराह करना वास्तव में कलीसियाओं में होता है और अक्सर होता है; बात केवल इतनी है कि लोग पहचान नहीं पाते। अगर तुम इस परीक्षा को पास नहीं कर सकते—मसीह-विरोधियों की परीक्षा, तब तुम या तो मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह हो चुके हो और उन्हीं के द्वारा नियंत्रित हो या उन्होंने तुम्हें कष्ट दिया है, पीड़ा पहुँचायी है, बाहर धकेला है और प्रताड़ित किया है। अंततः, तुम्हारा यह छोटा-सा तुच्छ जीवन लंबे समय तक नहीं टिकेगा, और मुरझा जाएगा; तुम परमेश्वर में विश्वास नहीं रख पाओगे, और तुम कहोगे, “परमेश्वर तो धार्मिक भी नहीं है! परमेश्वर कहाँ है? इस दुनिया में कोई न्याय या प्रकाश नहीं है, और परमेश्वर द्वारा मानवजाति का उद्धार जैसी कोई चीज़ नहीं है। हम काम करते हुए और पैसा कमाते हुए भी अपने दिन गुज़ार सकते हैं!” तुम परमेश्वर को नकारते हो, तुम परमेश्वर से भटक जाते हो और अब विश्वास नहीं करते कि वह मौजूद है; ऐसी कोई भी उम्मीद कि तुम्हारा उद्धार होगा, पूरी तरह से समाप्त हो चुकी है। इसलिए, अगर तुम उस जगह पहुँचना चाहते हो जहाँ पर तुम्हें उद्धार प्राप्त हो सके, तो पहली परीक्षा जो तुम्हें पास करनी होगी वह है शैतान की पहचान करने में सक्षम होना, और तुम्हारे अंदर शैतान के विरुद्ध खड़ा होने, उसे बेनकाब करने और उसे छोड़ देने का साहस भी होना चाहिए। फिर, शैतान कहाँ है? शैतान तुम्हारे बाजू में और तुम्हारे चारों तरफ़ है; हो सकता है कि वह तुम्हारे हृदय के भीतर भी रह रहा हो। अगर तुम शैतान के स्वभाव के अधीन रह रहे हो, तो यह कहा जा सकता है कि तुम शैतान के हो। तुम आध्यात्मिक क्षेत्र के शैतान और दुष्ट आत्माओं को देख या छू नहीं सकते, लेकिन व्यावहारिक जीवन में मौजूद शैतान और दुष्ट आत्माएँ हर जगह हैं। जो भी व्यक्ति सत्य से विमुख है, वह बुरा है, और जो भी अगुआ या कार्यकर्ता सत्य को स्वीकार नहीं करता, वह मसीह-विरोधी या नकली अगुआ है। क्या ऐसे लोग शैतान और जीवित दानव नहीं हैं? हो सकता है कि ये लोग वही हों, जिनकी तुम आराधना करते हो और जिनका सम्मान करते हो; ये वही लोग हो सकते हैं जो तुम्हारी अगुआई कर रहे हैं या वे लोग जिन्हें तुमने लंबे समय से अपने हृदय में सराहा है, जिन पर भरोसा किया है, जिन पर निर्भर रहे हो और जिनकी आशा की है। जबकि वास्तव में, वे तुम्हारे मार्ग में खड़ी बाधाएँ हैं और तुम्हें सत्य का अनुसरण करने और उद्धार पाने से रोक रहे हैं; वे नकली अगुआ और मसीह-विरोधी हैं। वे तुम्हारे जीवन और तुम्हारे मार्ग पर नियंत्रण कर सकते हैं, और वे तुम्हारे उद्धार के अवसर को बर्बाद कर सकते हैं। अगर तुम उन्हें पहचानने और उनकी वास्तविकता को समझने में विफल रहते हो, तो किसी भी क्षण तुम गुमराह हो सकते हो या उनके द्वारा पकड़े और दूर ले जाए जा सकते हो। इस प्रकार, तुम बहुत बड़े ख़तरे में हो। अगर तुम इस खतरे से खुद को मुक्त नहीं कर सकते, तो तुम शैतान के बलि के बकरे हो। वैसे भी, जो लोग गुमराह और नियंत्रित होते हैं, और मसीह-विरोधी के अनुयायी बन जाते हैं, वे कभी उद्धार प्राप्त नहीं कर सकते। चूँकि वे सत्य से प्रेम नहीं करते या उसका अनुसरण नहीं करते, इसलिए इसका अपरिहार्य परिणाम यह होगा कि वे गुमराह हो जाएंगे और मसीह-विरोधी का अनुसरण करेंगे।
—वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद तीन : सत्य का अनुसरण करने वालों को वे निकाल देते हैं और उन पर आक्रमण करते हैं
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