viii. परमेश्वर का उद्धार केवल अंतिम दिनों में उसके कामों को स्वीकार करके तथा धार्मिक जगत को छोड़ कर प्राप्त किया जा सकता है

अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन

वो सभी धन्य हैं, जो पवित्र आत्मा के वर्तमान प्रकाश का अनुसरण करने में सक्षम हैं। पिछले युगों के लोग भी परमेश्वर के पदचिह्नों पर चलते थे, फिर भी वो आज तक इसका अनुसरण नहीं कर सके; यह आखिरी दिनों के लोगों के लिए आशीर्वाद है। जो लोग पवित्र आत्मा के वर्तमान कार्य का अनुसरण कर सकते हैं और जो परमेश्वर के पदचिह्नों पर चलने में सक्षम हैं, इस तरह कि चाहे परमेश्वर उन्हें जहाँ भी ले जाए वो उसका अनुसरण करते हैं—ये वो लोग हैं, जिन्हें परमेश्वर का आशीर्वाद प्राप्त है। जो लोग पवित्र आत्मा के वर्तमान कार्य का अनुसरण नहीं करते हैं, उन्होंने परमेश्वर के वचनों के कार्य में प्रवेश नहीं किया है और चाहे वो कितना भी काम करें या उनकी पीड़ा जितनी भी ज़्यादा हो या वो कितनी ही भागदौड़ करें, परमेश्वर के लिए इनमें से किसी बात का कोई महत्व नहीं और वह उनकी सराहना नहीं करेगा। आज वो सभी जो परमेश्वर के वर्तमान वचनों का पालन करते हैं, वो पवित्र आत्मा के प्रवाह में हैं; जो लोग आज परमेश्वर के वचनों से अनभिज्ञ हैं, वो पवित्र आत्मा के प्रवाह से बाहर हैं और ऐसे लोगों की परमेश्वर द्वारा सराहना नहीं की जाती। वह सेवा जो पवित्र आत्मा के वर्तमान कथनों से जुदा हो, वह देह और धारणाओं की सेवा है और इसका परमेश्वर की इच्छा के अनुसार होना असंभव है। यदि लोग धार्मिक धारणाओंमें रहते हैं, तो वो ऐसा कुछ भी करने में असमर्थ होते हैं, जो परमेश्वर की इच्छा के अनुकूल हो और भले ही वो परमेश्वर की सेवा करें, वो अपनी कल्पनाओं और धारणाओं के घेरे में ही सेवा करते हैं और परमेश्वर की इच्छा के अनुसार सेवा करने में पूरी तरह असमर्थ होते हैं। जो लोग पवित्र आत्मा के कार्य का अनुसरण करने में असमर्थ हैं, वो परमेश्वर की इच्छा को नहीं समझते और जो परमेश्वर की इच्छा को नहीं समझते, वो परमेश्वर की सेवा नहीं कर सकते। परमेश्वर ऐसी सेवा चाहता है जो उसकी इच्छा के अनुरूप हो; वह ऐसी सेवा नहीं चाहता, जो धारणाओं और देह की हो। यदि लोग पवित्र आत्मा के कार्य के चरणों का पालन करने में असमर्थ हैं, तो वो धारणाओं के बीच रहते हैं। ऐसे लोगों की सेवा गड़बड़ी और विघ्न पैदा करती है और ऐसी सेवा परमेश्वर के विरुद्ध चलती है। इस प्रकार, जो लोग परमेश्वर के पदचिह्नों पर चलने में असमर्थ हैं, वो परमेश्वर की सेवा करने में असमर्थ हैं; जो लोग परमेश्वर के पदचिह्नों पर चलने में असमर्थ हैं, वो निश्चित रूप से परमेश्वर का विरोध करते हैं और वो परमेश्वर के साथ सुसंगत होने में असमर्थ हैं। “पवित्र आत्मा के कार्य का अनुसरण” करने का मतलब है आज परमेश्वर की इच्छा को समझना, परमेश्वर की वर्तमान अपेक्षाओं के अनुसार कार्य करने में सक्षम होना, आज के परमेश्वर का अनुसरण और उसके प्रति समर्पण करने में सक्षम होना और परमेश्वर के नवीनतम कथनों के अनुसार प्रवेश करना। केवल यही ऐसा है, जो पवित्र आत्मा के कार्य का अनुसरण करता है और पवित्र आत्मा के प्रवाह में है। ऐसे लोग न केवल परमेश्वर की सराहना प्राप्त करने और परमेश्वर को देखने में सक्षम हैं बल्कि परमेश्वर के नवीनतम कार्य से परमेश्वर के स्वभाव को भी जान सकते हैं और परमेश्वर के नवीनतम कार्य से मनुष्य की धारणाओं और उसके विद्रोह को, मनुष्य की प्रकृति और सार को जान सकते हैं; इसके अलावा, वो अपनी सेवा के दौरान धीरे-धीरे अपने स्वभाव में परिवर्तन हासिल करने में सक्षम होते हैं। केवल ऐसे लोग ही हैं, जो परमेश्वर को प्राप्त करने में सक्षम हैं और जो सचमुच में सच्चा मार्ग पा चुके हैं। जिन लोगों को पवित्र आत्मा के कार्य से हटा दिया गया है, वो लोग हैं, जो परमेश्वर के नवीनतम कार्य का अनुसरण करने में असमर्थ हैं और जो परमेश्वर के नवीनतम कार्य के विरुद्ध विद्रोह करते हैं। ऐसे लोग खुलेआम परमेश्वर का विरोध इसलिए करते हैं क्योंकि परमेश्वर ने नया कार्य किया है और क्योंकि परमेश्वर की छवि उनकी धारणाओं के अनुरूप नहीं है—जिसके परिणामस्वरूप वो परमेश्वर का खुलेआम विरोध करते हैं और परमेश्वर पर निर्णय देते हैं, जिसके नतीजे में परमेश्वर उन्हें ठुकरा देता है। परमेश्वर के नवीनतम कार्य का ज्ञान रखना कोई आसान बात नहीं है, लेकिन अगर लोगों में परमेश्वर के कार्य के प्रति समर्पण करने और परमेश्वर के कार्य की तलाश करने का ज्ञान है, तो उन्हें परमेश्वर को देखने का मौका मिलेगा, और उन्हें पवित्र आत्मा का नवीनतम मार्गदर्शन प्राप्त करने का मौका मिलेगा। जो जानबूझकर परमेश्वर के कार्य का विरोध करते हैं, वो पवित्र आत्मा के प्रबोधन या परमेश्वर के मार्गदर्शन को प्राप्त नहीं कर सकते; इस प्रकार, लोग परमेश्वर का नवीनतम कार्य प्राप्त कर पाते हैं या नहीं, यह परमेश्वर के अनुग्रह पर निर्भर करता है, यह उनके अनुसरण पर निर्भर करता है और यह उनके इरादोंपर निर्भर करता है।

वो सभी धन्य हैं जो पवित्र आत्मा के वर्तमान कथनों के प्रति समर्पण करने में सक्षम हैं। इस बात से कोई फ़र्कनहीं पड़ता कि वो कैसे हुआ करते थे या उनके भीतर पवित्र आत्मा कैसे कार्य कियाकरती थी—जिन्होंने परमेश्वर का नवीनतम कार्य प्राप्त किया है, वो सबसे अधिक धन्य हैं और जो लोग आज नवीनतम कार्य का अनुसरण नहीं कर पाते, वे बाहर निकाल दिए जाते हैं। परमेश्वर उन्हें चाहता है जो नई रोशनी स्वीकार करने में सक्षम हैं और वह उन्हें चाहता है जो उसके नवीनतम कार्य को स्वीकार करते और जान लेते हैं। ऐसा क्यों कहा गया है कि तुम लोगों को पवित्र कुँवारी होना चाहिए? एक पवित्र कुँवारी पवित्र आत्मा के कार्य की तलाश करने में और नई चीज़ों को समझने में सक्षम होती है, और इसके अलावा, पुरानी धारणाओं को भुलाकर परमेश्वर के आज के कार्य के प्रति समर्पण करने में सक्षम होती है। इस समूह के लोग, जो आज के नवीनतम कार्य को स्वीकार करते हैं, परमेश्वर द्वारा युगों पहले ही पूर्वनिर्धारित किए जा चुके थे और वो सभी लोगों में सबसे अधिक धन्य हैं। तुम लोग सीधे परमेश्वर की आवाज़ सुनते हो और परमेश्वर की उपस्थिति का दर्शन करते हो और इस तरह समस्त स्वर्ग और पृथ्वी परऔर सारे युगों में, कोई भी तुम लोगों, लोगों के इस समूह से अधिक धन्य नहीं रहा है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के सबसे नए कार्य को जानो और उसके पदचिह्नों का अनुसरण करो

पवित्र आत्मा का कार्य हमेशा आगे बढ़ रहा है, और जो लोग पवित्र आत्मा की धारा में हैं, उन्हें भी अधिक गहरे जाना और कदम-दर-कदम बदलना चाहिए। उन्हें एक ही चरण पर रुक नहीं जाना चाहिए। जो लोग पवित्र आत्मा के कार्य को नहीं जानते, केवल वे ही परमेश्वर के मूल कार्य के बीच बने रहेंगे और पवित्र आत्मा के नए कार्य को स्वीकार नहीं करेंगे। जो लोग विद्रोही हैं, केवल वे ही पवित्र आत्मा के कार्य को प्राप्त करने में अक्षम होंगे। यदि मनुष्य का अभ्यास पवित्र आत्मा के नए कार्य के साथ गति बनाए नहीं रखता, तो मनुष्य का अभ्यास निश्चित रूप से आज के कार्य से कटा हुआ है, और वह निश्चित रूप से आज के कार्य के साथ असंगत है। ऐसे पुराने लोग परमेश्वर की इच्छा पूरी करने में एकदम अक्षम होते हैं, और वे ऐसे लोग तो बिल्कुल भी नहीं बन सकते, जो अंततः परमेश्वर की गवाही देंगे। इतना ही नहीं, संपूर्ण प्रबंधन-कार्य ऐसे लोगों के समूह के बीच समाप्त नहीं किया जा सकता। क्योंकि जिन लोगों ने किसी समय यहोवा की व्यवस्था थामी थी, और जिन्होंने कभी सलीब का दुःख सहा था, यदि वे अंत के दिनों के कार्य के चरण को स्वीकार नहीं कर सकते, तो जो कुछ भी उन्होंने किया, वह सब व्यर्थ और निष्फल होगा। पवित्र आत्मा के कार्य की स्पष्टतम अभिव्यक्ति अभी वर्तमान को गले लगाने में है, अतीत से चिपके रहने में नहीं। जो लोग आज के कार्य के साथ बने नहीं रहे हैं, और जो आज के अभ्यास से अलग हो गए हैं, वे वो लोग हैं जो पवित्र आत्मा के कार्य का विरोध करते हैं और उसे स्वीकार नहीं करते। ऐसे लोग परमेश्वर के वर्तमान कार्य की अवहेलना करते हैं। यद्यपि वे अतीत के प्रकाश को पकड़े रहते हैं, किंतु इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि वे पवित्र आत्मा के कार्य को नहीं जानते। मनुष्य के अभ्यास में परिवर्तनों के बारे में, अतीत और वर्तमान के बीच के अभ्यास की भिन्नताओं के बारे में, पूर्ववर्ती युग के दौरान किस प्रकार अभ्यास किया जाता था और आज किस प्रकार किया जाता है इस बारे में, यह सब बातचीत क्यों की गई है? मनुष्य के अभ्यास में ऐसे विभाजनों के बारे में हमेशा बात की जाती है, क्योंकि पवित्र आत्मा का कार्य लगातार आगे बढ़ रहा है, इसलिए मनुष्य के अभ्यास का निरंतर बदलना आवश्यक है। यदि मनुष्य एक ही चरण में अटका रहता है, तो यह प्रमाणित करता है कि वह परमेश्वर के नए कार्य और नए प्रकाश के साथ बने रहने में असमर्थ है; इससे यह प्रमाणित नहीं होता कि परमेश्वर की प्रबंधन-योजना नहीं बदली है। जो पवित्र आत्मा की धारा के बाहर हैं, वे सदैव सोचते हैं कि वे सही हैं, किंतु वास्तव में उनके भीतर परमेश्वर का कार्य बहुत पहले ही रुक गया है, और पवित्र आत्मा का कार्य उनमें अनुपस्थित है। परमेश्वर का कार्य बहुत पहले ही लोगों के एक अन्य समूह को हस्तांतरित हो गया था, ऐसे लोगों के समूह को, जिन पर वह अपने नए कार्य को पूरा करने का इरादा रखता है। चूँकि धर्म में मौजूद लोग परमेश्वर के नए कार्य को स्वीकार करने में अक्षम हैं और केवल अतीत के पुराने कार्य को ही पकड़े रहते हैं, इसलिए परमेश्वर ने इन लोगों को छोड़ दिया है, और वह अपना कार्य उन लोगों पर करता है जो इस नए कार्य को स्वीकार करते हैं। ये वे लोग हैं, जो उसके नए कार्य में सहयोग करते हैं, और केवल इसी तरह से उसका प्रबंधन पूरा हो सकता है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का अभ्यास

चूँकि मनुष्य परमेश्वर में विश्वास करता है, इसलिए उसे परमेश्वर के पदचिह्नों का, कदम-दर-कदम, निकट से अनुसरण करना चाहिए; और उसे “जहाँ कहीं मेमना जाता है, उसका अनुसरण करना” चाहिए। केवल ऐसे लोग ही सच्चे मार्ग को खोजते हैं, केवल ऐसे लोग ही पवित्र आत्मा के कार्य को जानते हैं। जो लोग शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का ज्यों का त्यों अनुसरण करते हैं, वे ऐसे लोग हैं जिन्हें पवित्र आत्मा के कार्य द्वारा बाहर निकाल दिया गया है। प्रत्येक समयावधि में परमेश्वर नया कार्य आरंभ करेगा, और प्रत्येक अवधि में मनुष्य के बीच एक नई शुरुआत होगी। यदि मनुष्य केवल इन सत्यों का ही पालन करता है कि “यहोवा ही परमेश्वर है” और “यीशु ही मसीह है,” जो ऐसे सत्य हैं, जो केवल उनके अपने युग पर ही लागू होते हैं, तो मनुष्य कभी भी पवित्र आत्मा के कार्य के साथ कदम नहीं मिला पाएगा, और वह हमेशा पवित्र आत्मा के कार्य को हासिल करने में अक्षम रहेगा। परमेश्वर चाहे कैसे भी कार्य करता हो, मनुष्य बिना किसी संदेह के अनुसरण करता है, और वह निकट से अनुसरण करता है। इस तरह, मनुष्य पवित्र आत्मा द्वारा कैसे बाहर निकाला जा सकता है? परमेश्वर चाहे जो भी करे, जब तक मनुष्य निश्चित है कि यह पवित्र आत्मा का कार्य है, और बिना किसी आशंका के पवित्र आत्मा के कार्य में सहयोग करता है, और परमेश्वर की अपेक्षाएँ पूरी करने का प्रयास करता है, तो उसे कैसे दंड दिया जा सकता है? परमेश्वर का कार्य कभी नहीं रुका है, उसके कदम कभी नहीं थमे हैं, और अपने प्रबंधन-कार्य की पूर्णता से पहले वह सदैव व्यस्त रहा है और कभी नहीं रुकता। किंतु मनुष्य अलग है : पवित्र आत्मा के कार्य का थोड़ा-सा अंश प्राप्त करने के बाद वह उसके साथ इस तरह व्यवहार करता है मानो वह कभी नहीं बदलेगा; जरा-सा ज्ञान प्राप्त करने के बाद वह परमेश्वर के नए कार्य के पदचिह्नों का अनुसरण करने के लिए आगे नहीं बढ़ता; परमेश्वर के कार्य का थोड़ा-सा ही अंश देखने के बाद वह तुरंत ही परमेश्वर को लकड़ी की एक विशिष्ट आकृति के रूप में निर्धारित कर देता है, और यह मानता है कि परमेश्वर सदैव उसी रूप में बना रहेगा जिसे वह अपने सामने देखता है, कि यह अतीत में भी ऐसा ही था और भविष्य में भी ऐसा ही रहेगा; सिर्फ एक सतही ज्ञान प्राप्त करने के बाद मनुष्य इतना घमंडी हो जाता है कि स्वयं को भूल जाता है और परमेश्वर के स्वभाव और अस्तित्व के बारे में बेहूदा ढंग से घोषणा करने लगता है, जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं होता; और पवित्र आत्मा के कार्य के एक चरण के बारे में निश्चित हो जाने के बाद, परमेश्वर के नए कार्य की घोषणा करने वाला यह व्यक्ति चाहे किसी भी प्रकार का क्यों न हो, मनुष्य उसे स्वीकार नहीं करता। ये ऐसे लोग हैं, जो पवित्र आत्मा के नए कार्य को स्वीकार नहीं कर सकते; वे बहुत रूढ़िवादी हैं और नई चीजों को स्वीकार करने में अक्षम हैं। ये वे लोग हैं, जो परमेश्वर में विश्वास तो करते हैं, किंतु परमेश्वर को अस्वीकार भी करते हैं। मनुष्य का मानना है कि इस्राएलियों का “केवल यहोवा में विश्वास करना और यीशु में विश्वास न करना” ग़लत था, किंतु अधिकतर लोग ऐसी ही भूमिका निभाते हैं, जिसमें वे “केवल यहोवा में विश्वास करते हैं और यीशु को अस्वीकार करते हैं” और “मसीहा के लौटने की लालसा करते हैं, किंतु उस मसीहा का विरोध करते हैं जिसे यीशु कहते हैं।” तो कोई आश्चर्य नहीं कि लोग पवित्र आत्मा के कार्य के एक चरण को स्वीकार करने के पश्चात् अभी भी शैतान की सत्ता के अधीन जीते हैं, और अभी भी परमेश्वर के आशीष प्राप्त नहीं करते। क्या यह मनुष्य की विद्रोहशीलता का परिणाम नहीं है? दुनिया भर के सभी ईसाई, जिन्होंने आज के नए कार्य के साथ कदम नहीं मिलाया है, यह मानते हुए कि परमेश्वर उनकी हर इच्छा पूरी करेगा, इस उम्मीद से चिपके रहते हैं कि वे भाग्यशाली होंगे। फिर भी वे निश्चयपूर्वक नहीं कह सकते कि क्यों परमेश्वर उन्हें तीसरे स्वर्ग तक ले जाएगा, न ही वे इस बारे निश्चित हैं कि कैसे यीशु उनका स्वागत करने के लिए सफेद बादल पर सवार होकर आएगा, और वे पूर्ण निश्चय के साथ यह तो बिल्कुल नहीं कह सकते कि यीशु वास्तव में उस दिन सफेद बादल पर सवार होकर आएगा या नहीं, जिस दिन की वे कल्पना करते हैं। वे सभी चितित और हैरान हैं; वे स्वयं भी नहीं जानते कि परमेश्वर उनमें से प्रत्येक को ऊपर ले जाएगा या नहीं, जो विभिन्न समूहों के थोड़े-से मुट्ठी भर लोग हैं, जो हर पंथ से आते हैं। परमेश्वर द्वारा अभी किया जाने वाला कार्य, वर्तमान युग, परमेश्वर की इच्छा—इनमें से किसी भी चीज की उन्हें कोई समझ नहीं है, और वे अपनी उँगलियों पर दिन गिनने के सिवाय कुछ नहीं कर सकते। जो लोग बिल्कुल अंत तक मेमने के पदचिह्नों का अनुसरण करते हैं, केवल वे ही अंतिम आशीष प्राप्त कर सकते हैं, जबकि वे “चतुर लोग”, जो बिल्कुल अंत तक अनुसरण करने में असमर्थ हैं, किंतु विश्वास करते हैं कि उन्होंने सब-कुछ प्राप्त कर लिया है, वे परमेश्वर के प्रकटन को देखने में असमर्थ हैं। वे सभी विश्वास करते हैं कि वे पृथ्वी पर सबसे चतुर व्यक्ति हैं, और वे बिल्कुल अकारण ही परमेश्वर के कार्य के लगातार जारी विकास को काटकर छोटा करते हैं, और पूर्ण निश्चय के साथ विश्वास करते प्रतीत होते हैं कि परमेश्वर उन्हें स्वर्ग तक ले जाएगा, वे जो कि “परमेश्वर के प्रति अत्यधिक वफादार हैं, परमेश्वर का अनुसरण करते हैं, और परमेश्वर के वचनों का पालन करते हैं।” भले ही उनमें परमेश्वर द्वारा बोले गए वचनों के प्रति “अत्यधिक वफादारी” हो, फिर भी उनके वचन और करतूतें अत्यंत घिनौनी हैं क्योंकि वे पवित्र आत्मा के कार्य का विरोध करते हैं, और छल और दुष्टता करते हैं। जो लोग बिल्कुल अंत तक अनुसरण नहीं करते, जो पवित्र आत्मा के कार्य के साथ कदम मिलाकर नहीं चलते, और जो केवल पुराने कार्य से चिपके रहते हैं, वे न केवल परमेश्वर के प्रति वफादारी हासिल करने में असफल हुए हैं, बल्कि इसके विपरीत, वे ऐसे लोग बन गए हैं जो परमेश्वर का विरोध करते हैं, ऐसे लोग बन गए हैं जिन्हें नए युग द्वारा ठुकरा दिया गया है, और जिन्हें दंड दिया जाएगा। क्या उनसे भी अधिक दयनीय कोई है? अनेक लोग तो यहाँ तक विश्वास करते हैं कि जो लोग प्राचीन व्यवस्था को ठुकराते हैं और नए कार्य को स्वीकार करते हैं, वे सभी विवेकहीन हैं। ये लोग, जो केवल “विवेक” की बात करते हैं और पवित्र आत्मा के कार्य को नहीं जानते, अंततः अपने ही विवेक द्वारा अपने भविष्य की संभावनाओं को कटवाकर छोटा कर लेंगे। परमेश्वर का कार्य सिद्धांत का पालन नहीं करता, और भले ही वह उसका अपना कार्य हो, फिर भी परमेश्वर उससे चिपका नहीं रहता। जिसे नकारा जाना चाहिए, उसे नकारा जाता है, जिसे हटाया जाना चाहिए, उसे हटाया जाता है। फिर भी मनुष्य परमेश्वर के प्रबंधन के कार्य के सिर्फ एक छोटे-से भाग को ही पकड़े रहकर स्वयं को परमेश्वर से शत्रुता की स्थिति में रख लेता है। क्या यह मनुष्य की बेहूदगी नहीं है? क्या यह मनुष्य की अज्ञानता नहीं है? परमेश्वर के आशीष प्राप्त न करने के डर से लोग जितना अधिक भयभीत और अति-सतर्क होते हैं, उतना ही अधिक वे और बड़े आशीष प्राप्त करने और अंतिम आशीष पाने में अक्षम होते हैं। जो लोग दासों की तरह व्यवस्था का पालन करते हैं, वे सभी व्यवस्था के प्रति अत्यंत वफादारी का प्रदर्शन करते हैं, और जितना अधिक वे व्यवस्था के प्रति ऐसी वफादारी का प्रदर्शन करते हैं, उतना ही अधिक वे ऐसे विद्रोही होते हैं जो परमेश्वर का विरोध करते हैं। क्योंकि अब राज्य का युग है, व्यवस्था का युग नहीं, और आज के कार्य और अतीत के कार्य को एक जैसा नहीं बताया जा सकता, न ही अतीत के कार्य की तुलना आज के कार्य से की जा सकती है। परमेश्वर का कार्य बदल चुका है, और मनुष्य का अभ्यास भी बदल चुका है; वह व्यवस्था को पकड़े रहना या सलीब को सहना नहीं है, इसलिए, व्यवस्था और सलीब के प्रति लोगों की वफादारी को परमेश्वर का अनुमोदन प्राप्त नहीं होगा।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का अभ्यास

व्यवस्था के युग के वे यहूदी फरीसी, मुख्य पादरी, और धर्मशास्त्री, नाममात्र के लिए परमेश्वर में विश्वास रखते थे, लेकिन उन्होंने उसके मार्ग को पीठ दिखाई, और देहधारी परमेश्वर को सूली पर भी चढ़ा दिया। तो क्या उनकी आस्था को परमेश्वर की स्वीकृति मिल सकती थी? (नहीं।) परमेश्वर ने उन्हें पहले ही यहूदी आस्था के लोगों के रूप में, एक धार्मिक समूह के सदस्यों के रूप में नामित कर रखा था। और इसी तरह आज परमेश्वर यीशु में विश्वास रखनेवाले लोगों को एक धार्मिक समूह के सदस्यों के रूप में देखता है, इस अर्थ में कि वह उन्हें अपनी कलीसिया के सदस्यों के रूप में या अपने विश्वासियों के रूप में स्वीकार नहीं करता। परमेश्वर धार्मिक जगत की इस प्रकार निंदा क्यों करता होगा? इसलिए कि धार्मिक समूहों के सभी सदस्यों, विशेष तौर पर विभिन्न सम्प्रदायों के उच्च-स्तरीय अगुआओं के मन में परमेश्वर का भय नहीं होता, न ही वे परमेश्वर की इच्छा का अनुसरण करनेवाले होते हैं। वे सब गैर-विश्वासी हैं। वे सत्य को स्वीकार करना तो दूर रहा, देहधारण में भी विश्वास नहीं रखते। वे कभी खोजते नहीं, सवाल नहीं पूछते, जाँच नहीं करते, या अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य या उसके द्वारा व्यक्त किए गए सत्य को स्वीकार नहीं करते, इसके बजाय वे अंत के दिनों में देहधारी परमेश्वर के कार्य की निंदा और तिरस्कार करते हैं। इसमें स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है कि वे परमेश्वर में नाममात्र के लिए विश्वास रख सकते हैं, मगर परमेश्वर उन्हें अपने विश्वासियों के रूप में स्वीकार नहीं करता; वह कहता है कि वे दुष्कर्मी हैं, उनके किए किसी भी काम का उसके उद्धार कार्य से जरा भी संबंध नहीं है, वे अविश्वासी हैं, जो उसके वचनों से बाहर के लोग हैं। अगर तुम परमेश्वर में अब जैसा विश्वास रखते हो, तो क्या वह दिन नहीं आएगा जब तुम भी बस धर्म-समर्थक बन कर नहीं रह जाओगे? धर्म के भीतर रहकर परमेश्वर में आस्था रखने से उद्धार प्राप्त नहीं हो सकता—ऐसा आखिर क्यों है? अगर तुम लोग नहीं बता सकते कि ऐसा क्यों है, तो यह दर्शाता है कि न तो तुम लोग सत्य को समझते हो, न ही कम-से-कम उसकी इच्छा को। परमेश्वर में आस्था के साथ सबसे बड़ी त्रासदी यही हो सकती है कि वह धर्म बनकर रह जाए और उसे परमेश्वर निकालकर दूर डाल दे। मनुष्य के लिए यह अकल्पनीय है, और जो लोग सत्य को नहीं समझते, वे इस मामले को स्पष्ट रूप से नहीं देख सकते। बताओ भला, जब एक कलीसिया परमेश्वर की दृष्टि में धीरे-धीरे धर्म में तब्दील हो जाए, और अपनी स्थापना के बाद अनेक वर्षों के दौरान एक संप्रदाय बन जाए, तो क्या इसमें समाहित लोग परमेश्वर के उद्धार के उम्मीदवार हैं? क्या वे उसके परिवार के सदस्य हैं? (नहीं।) वे सदस्य नहीं हैं। वे किस मार्ग पर चलते हैं, ये लोग जो सच्चे परमेश्वर में नाममात्र को विश्वास रखते हैं, फिर भी वह उन्हें धार्मिक लोग मानता है? जिस मार्ग पर वे चलते हैं उस पर वे परमेश्वर में आस्था की पताका लिए होते हैं, फिर भी वे कभी उसके मार्ग का अनुसरण नहीं करते; यह ऐसा रास्ता है जिस पर वे उसमें विश्वास तो रखते हैं फिर भी उसकी आराधना नहीं करते, यहाँ तक कि वे उसे त्याग देते हैं; यह ऐसा है जिस पर वे परमेश्वर में विश्वास रखने का दावा करते हैं, फिर भी उसका प्रतिरोध करते हैं, परमेश्वर के नाम में, सच्चे परमेश्वर में नाममात्र का विश्वास रखते हैं, फिर भी दानवी शैतान की आराधना करते हैं, और इंसानी कामकाज से जुड़ते और एक स्वतंत्र मानवी राज्य की स्थापना करते हैं। यही वो मार्ग है जिस पर वे चलते हैं। उनके चलने का मार्ग देखने से यह स्पष्ट है कि वे गैर-विश्वासियों का जत्था हैं, मसीह-विरोधियों का गैंग, शैतानों और दानवों का समूह, जो स्पष्ट रूप से परमेश्वर का प्रतिरोध करने और उसके कार्य को बाधित करने के लिए निकल पड़े हैं। धार्मिक जगत का यही सार है। क्या ऐसे लोगों के समूह का मनुष्य के उद्धार के लिए परमेश्वर की प्रबंधन योजना से कोई सरोकार है? (नहीं।) परमेश्वर के विश्वासी रहे ऐसे लोगों, चाहे वे जितने भी हों, की आस्था की विधि को एक बार परमेश्वर ने एक सम्प्रदाय या एक समूह के रूप में परिभाषित कर दिया, तो उन्हें भी परमेश्वर यूँ परिभाषित कर देता है जिन्हें बचाया नहीं जा सकता। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ? परमेश्वर के कार्य या मार्गदर्शन से रिक्त एक समूह जो बिल्कुल भी न उसके सामने समर्पण करता है न उसकी आराधना करता है, वह उसमें नाममात्र को विश्वास रख सकता है, लेकिन वह धर्म के पादरियों और एल्डरों का ही अनुसरण और पालन करता है, और धर्म के पादरी और एल्डर अपने सार से ही शैतानी और पाखंडी होते हैं। इसलिए, वे जिसका अनुसरण और पालन करते हैं वे शैतान और दानव हैं। वे अपने दिलों में परमेश्वर में आस्था का अभ्यास करते हैं, लेकिन दरअसल, मनुष्य उनके साथ हेर-फेर करता है, वे इंसानी आयोजनों और प्रभुत्व के अधीन होते हैं। तो, अनिवार्यत: वे जिनका अनुसरण और पालन करते हैं वे शैतान और दानव हैं, परमेश्वर का प्रतिरोध करनेवाली दुराचारी शक्तियाँ हैं, और परमेश्वर के शत्रु हैं। क्या परमेश्वर ऐसे लोगों के गिरोह को बचाएगा? (नहीं।) क्यों नहीं? देखो, क्या ऐसे लोग प्रायश्चित्त करने में सक्षम हैं? नहीं; वे प्रायश्चित्त नहीं करेंगे। वे परमेश्वर में विश्वास की पताका के नीचे इंसानी कामकाज और उद्यमों से जुड़ जाते हैं, जोकि मनुष्य के उद्धार की परमेश्वर की प्रबंधन योजना के विपरीत है, जिसका अंतिम परिणाम यह होता है कि परमेश्वर उनसे घृणा कर उन्हें ठुकरा देगा। परमेश्वर का इन लोगों को बचाना असंभव है; वे प्रायश्चित्त करने में सक्षम नहीं हैं, और चूंकि शैतान उन्हें उठा ले गया है, इसलिए परमेश्वर इन लोगों को उसे ही सौंप देता है।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, परमेश्वर का भय मानकर ही इंसान उद्धार के मार्ग पर चल सकता है

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