iii. वे क्यों निकाल दिए जाएंगे जो केवल चिह्नों और आश्चर्यों को देखने की इच्छा रखते हैं
अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन
आज, तुम सभी लोगों को यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि अंत के दिनों में परमेश्वर द्वारा मुख्य रूप से “वचन देहधारी होता है” का तथ्य साकार किया जाता है। पृथ्वी पर अपने वास्तविक कार्य के माध्यम से वह इस बात का निमित्त बनता है कि मनुष्य उसे जाने, उसके साथ जुड़े और उसके व्यावहारिक कर्मों को देखे। वह मनुष्य के लिए यह स्पष्ट रूप से देखने का निमित्त बनता है कि वह चिह्न और चमत्कार दिखाने में सक्षम है और ऐसा समय भी आता है, जब वह ऐसा करने में अक्षम होता है; यह युग पर निर्भर करता है। इससे तुम देख सकते हो कि परमेश्वर चिह्न और चमत्कार दिखाने में अक्षम नहीं है, बल्कि इसके बजाय वह अपने कार्य का ढंग, किए जाने वाले कार्य और युग के अनुसार बदल देता है। कार्य के वर्तमान चरण में वह चिह्न और चमत्कार नहीं दिखाता; यीशु के युग में उसने कुछ चिह्न और चमत्कार दिखाए थे, तो वह इसलिए, क्योंकि उस युग में उसका कार्य भिन्न था। परमेश्वर आज वह कार्य नहीं करता, और कुछ लोग मानते हैं कि वह चिह्न और चमत्कार दिखाने में अक्षम है, या फिर वे सोचते हैं कि यदि वह चिह्न और चमत्कार नहीं दिखाता, तो वह परमेश्वर नहीं है। क्या यह एक भ्रांति नहीं है? परमेश्वर चिह्न और चमत्कार दिखाने में सक्षम है, परंतु वह एक भिन्न युग में कार्य कर रहा है, और इसलिए वह ऐसे कार्य नहीं करता। चूँकि यह एक भिन्न युग है, और चूँकि यह परमेश्वर के कार्य का एक भिन्न चरण है, इसलिए परमेश्वर द्वारा प्रकट किए जाने वाले कर्म भी भिन्न हैं। परमेश्वर में मनुष्य का विश्वास चिह्नों और चमत्कारों में विश्वास करना नहीं है, न ही अजूबों पर विश्वास करना है, बल्कि नए युग के दौरान उसके व्यावहारिक कार्य में विश्वास करना है। मनुष्य परमेश्वर को उसके कार्य करने के ढंग के माध्यम से जानता है, और यही ज्ञान मनुष्य के भीतर परमेश्वर में विश्वास, अर्थात परमेश्वर के कार्य और कर्मों में विश्वास, उत्पन्न करता है। कार्य के इस चरण में परमेश्वर मुख्य रूप से बोलता है। चिह्न और चमत्कार देखने की प्रतीक्षा मत करो, तुम कोई चिह्न और चमत्कार नहीं देखोगे! ऐसा इसलिए है, क्योंकि तुम अनुग्रह के युग में पैदा नहीं हुए थे। यदि हुए होते, तो तुम चिह्न और चमत्कार देख पाते, परंतु तुम अंत के दिनों के दौरान पैदा हुए हो, और इसलिए तुम केवल परमेश्वर की व्यावहारिकता और सामान्यता देख सकते हो। अंत के दिनों के दौरान अलौकिक यीशु को देखने की अपेक्षा मत करो। तुम केवल व्यावहारिक देहधारी परमेश्वर को ही देखने में सक्षम हो, जो किसी भी सामान्य मनुष्य से भिन्न नहीं है। प्रत्येक युग में परमेश्वर विभिन्न कर्म प्रकट करता है। प्रत्येक युग में वह परमेश्वर के कर्मों का अंश प्रकट करता है, और प्रत्येक युग का कार्य परमेश्वर के स्वभाव के एक भाग का और परमेश्वर के कर्मों के एक भाग का प्रतिनिधित्व करता है। वह जो कर्म प्रकट करता है, वे हर उस युग के साथ बदलते जाते हैं जिसमें वह कार्य करता है, परंतु वे सब मनुष्य को परमेश्वर का अधिक गहरा ज्ञान, परमेश्वर में अधिक सच्चा और अधिक यथार्थपरक विश्वास प्रदान करते हैं। मनुष्य परमेश्वर में उसके समस्त कर्मों के कारण विश्वास करता है, क्योंकि वह इतना चमत्कारी, इतना महान है, क्योंकि वह सर्वशक्तिमान और अथाह है। यदि तुम परमेश्वर में इसलिए विश्वास करते हो, क्योंकि वह चिह्न और चमत्कार प्रदर्शित करने में सक्षम है और बीमारों को चंगा कर सकता और पिशाचों को बाहर निकाल सकता है, तो तुम्हारा विचार ग़लत है, और कुछ लोग तुमसे कहेंगे, “क्या दुष्टात्माएँ भी इस तरह की चीजें करने में सक्षम नहीं हैं?” क्या यह परमेश्वर की छवि को शैतान की छवि के साथ गड्डमड्ड नहीं कर देता? आज, परमेश्वर में मनुष्य का विश्वास परमेश्वर के कई कर्मों और उसके द्वारा किए जा रहे कार्य की विशाल मात्रा और उसके बोलने के अनेक तरीक़ों के कारण है। परमेश्वर अपने कथनों का उपयोग मनुष्य को जीतने और उसे पूर्ण बनाने के लिए करता है। मनुष्य परमेश्वर में उसके कई कर्मों के कारण विश्वास करता है, इसलिए नहीं कि वह चिह्न और चमत्कार दिखाने में सक्षम है; लोग परमेश्वर को केवल उसके कर्मों को देखकर ही जानते हैं। परमेश्वर के व्यावहारिक कर्मों को जानकर ही—वह कैसे कार्य करता है, कौन-सी बुद्धिमत्तापूर्ण पद्धतियों का उपयोग करता है, कैसे बोलता है और मनुष्य को कैसे पूर्ण बनाता है—केवल इन पहलुओं को जानकर ही तुम परमेश्वर की व्यावहारिकता को बूझ सकते हो और उसके स्वभाव को समझ सकते हो, यह जानकर कि वह क्या पसंद करता है, किससे घृणा करता है और मनुष्य के ऊपर कैसे कार्य करता है। परमेश्वर की पसंद और नापसंद समझकर तुम सकारात्मक और नकारात्मक के बीच भेद कर सकते हो, और परमेश्वर के बारे में तुम्हारे ज्ञान के माध्यम से तुम्हारे जीवन में प्रगति होती है। संक्षेप में, तुम्हें परमेश्वर के कार्य का ज्ञान प्राप्त करना ही चाहिए, और तुम्हें परमेश्वर में विश्वास करने के बारे में अपने विचारों को दुरुस्त अवश्य कर लेना चाहिए।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आज परमेश्वर के कार्य को जानना
अंत के दिनों के कार्य में वचन चिह्न और चमत्कार दिखाने से कहीं अधिक शक्तिमान है, और वचन का अधिकार चिह्नों और चमत्कारों के अधिकार से कहीं बढ़कर है। वचन मनुष्य के हृदय में गहरे दबे सभी भ्रष्ट स्वभावों को उजागर कर देता है। तुम्हारे पास उन्हें अपने आप पहचानने का कोई उपाय नहीं है। जब उन्हें वचन के माध्यम से तुम्हारे सामने प्रकट किया जाता है, तब तुम्हें स्वाभाविक रूप से उनका पता चल जाएगा; तुम उनसे इनकार करने में समर्थ नहीं होगे, और तुम पूरी तरह से आश्वस्त हो जाओगे। क्या यह वचन का अधिकार नहीं है? यह आज वचन के कार्य द्वारा प्राप्त किया जाने वाला परिणाम है। इसलिए, बीमारी की चंगाई और दुष्टात्माओं को निकालने से मनुष्य को उसके पापों से पूरी तरह से बचाया नहीं जा सकता, न ही चिह्नों और चमत्कारों के प्रदर्शन से उसे पूरी तरह से पूर्ण बनाया जा सकता है। चंगाई करने और दुष्टात्माओं को निकालने का अधिकार मनुष्य को केवल अनुग्रह प्रदान करता है, किंतु मनुष्य का देह फिर भी शैतान से संबंधित होता है और भ्रष्ट शैतानी स्वभाव फिर भी मनुष्य के भीतर बना रहता है। दूसरे शब्दों में, जिसे शुद्ध नहीं किया गया है, वह अभी भी पाप और गंदगी से संबंधित है। केवल वचन के माध्यम से स्वच्छ कर दिए जाने के बाद ही मनुष्य को परमेश्वर द्वारा प्राप्त किया जा सकता है और वह पवित्र बन सकता है। जब मनुष्य के भीतर से दुष्टात्माओं को निकाला गया और उसे छुटकारा दिलाया गया, तो इसका अर्थ केवल इतना था कि उसे शैतान के हाथ से छीनकर परमेश्वर को लौटा दिया गया है। किंतु उसे परमेश्वर द्वारा स्वच्छ या परिवर्तित किए बिना वह भ्रष्ट बना रहता है। मनुष्य के भीतर अब भी गंदगी, विरोध और विद्रोशीलता बनी हुई है; मनुष्य केवल छुटकारे के माध्यम से ही परमेश्वर के पास लौटा है, किंतु उसे परमेश्वर का जरा-सा भी ज्ञान नहीं है और वह अभी भी परमेश्वर का विरोध करने और उसके साथ विश्वासघात करने में सक्षम है। मनुष्य को छुटकारा दिए जाने से पहले शैतान के बहुत-से ज़हर उसमें पहले ही डाल दिए गए थे, और हजारों वर्षों तक शैतान द्वारा भ्रष्ट किए जाने के बाद मनुष्य के भीतर ऐसी प्रकृति है, जो परमेश्वर का विरोध करती है। इसलिए, जब मनुष्य को छुटकारा दिलाया गया है, तो यह छुटकारे के उस मामले से बढ़कर कुछ नहीं है, जिसमें मनुष्य को एक ऊँची कीमत पर खरीदा गया है, किंतु उसके भीतर की विषैली प्रकृति समाप्त नहीं की गई है। मनुष्य को, जो कि इतना अशुद्ध है, परमेश्वर की सेवा करने के योग्य होने से पहले एक परिवर्तन से होकर गुज़रना चाहिए। न्याय और ताड़ना के इस कार्य के माध्यम से मनुष्य अपने भीतर के गंदे और भ्रष्ट सार को पूरी तरह से जान जाएगा, और वह पूरी तरह से बदलने और स्वच्छ होने में समर्थ हो जाएगा। केवल इसी तरीके से मनुष्य परमेश्वर के सिंहासन के सामने वापस लौटने के योग्य हो सकता है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारण का रहस्य (4)
आज जो कहा जाता है, वह वास्तविकता में प्रवेश है—स्वर्ग में आरोहण या राजाओं के समान शासन करना नहीं है; जो कुछ भी कहा जाता है, वह वास्तविकता में प्रवेश की खोज है। इससे अधिक व्यावहारिक कोई खोज नहीं है, और राजाओं के समान शासन करने की बात करना व्यावहारिक नहीं है। मनुष्य में बड़ी जिज्ञासा है, और वह आज भी परमेश्वर के कार्य को अपनी धार्मिक धारणाओं से मापता है। परमेश्वर के कार्य करने के इतने अधिक तरीकों का अनुभव प्राप्त करने के बाद, मनुष्य अभी भी परमेश्वर के कार्य को नहीं जानता, अभी भी संकेत और चमत्कार खोजता है, और अभी भी यह देखता रहता है कि क्या परमेश्वर के वचन पूरे हो गए हैं? क्या यह आश्चर्यजनक अज्ञानता नहीं है? परमेश्वर के वचन पूरे हुए बिना, क्या तुम अभी भी विश्वास करोगे कि वह परमेश्वर है? आज कलीसिया में ऐसे बहुत-से लोग संकेत और चमत्कार देखने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। वे कहते हैं कि यदि परमेश्वर के वचन पूरे हो जाते हैं, तो वह परमेश्वर है; यदि परमेश्वर के वचन पूरे नहीं होते, तो वह परमेश्वर नहीं है। तो क्या तुम परमेश्वर पर इसलिए विश्वास करते हो कि उसके द्वारा कहे गए वचन पूरे होते हैं, या फिर इसलिए कि वह स्वयं परमेश्वर है? परमेश्वर पर विश्वास करने के मनुष्य के दृष्टिकोण को सही किया जाना चाहिए! जब तुम देखते हो कि परमेश्वर के वचन पूरे नहीं हुए हैं, तो तुम रफ़ूचक्कर हो जाते हो—क्या यही परमेश्वर में विश्वास है? जब तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो, तो तुम्हें सब-कुछ परमेश्वर की दया पर छोड़ देना चाहिए और परमेश्वर के समस्त कार्य के प्रति समर्पण करना चाहिए। परमेश्वर ने पुराने विधान में बहुत-से वचन कहे—उनमें से कितने वचनों को तुमने अपनी आँखों से पूरा होते देखा है? क्या तुम कह सकते हो कि यहोवा सच्चा परमेश्वर नहीं है, क्योंकि तुमने वह नहीं देखा? भले ही कई वचन पूरे हो गए हों, मनुष्य उसे स्पष्ट रूप से देखने में अक्षम है, क्योंकि मनुष्य के पास सत्य नहीं है और वह कुछ नहीं समझता। ... आज परमेश्वर मनुष्य को जीवन देने के लिए पृथ्वी पर आया है। वह परमेश्वर और मनुष्य के बीच शांतिपूर्ण संबंध सुनिश्चित करने के लिए संकेत और चमत्कार दिखाकर तुम्हें फुसलाता नहीं है, जैसा कि लोग कल्पना करते हैं। वे सब, जिनका ध्यान जीवन पर नहीं है, और इसके बजाय जो परमेश्वर द्वारा संकेत और चमत्कार दिखाए जाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, वे फरीसी हैं! और वे फरीसी ही थे, जिन्होंने यीशु को सलीब पर चढ़ाया था। यदि तुम परमेश्वर को उस पर अपने विश्वास के अनुसार मापते हो, और यदि उसके वचन पूरे होते हैं तो उस पर विश्वास करते हो, और यदि वचन पूरे नहीं होते तो उस पर संदेह करते हो, यहाँ तक कि ईशनिंदा भी करते हो, तो क्या तुम उसे सलीब पर नहीं चढ़ाते हो? ऐसे लोग अपने कर्तव्यों के प्रति लापरवाह हैं, और लालच के साथ आराम की ज़िंदगी जीते हैं!
एक ओर, मनुष्य के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह परमेश्वर के कार्य को नहीं जानता। यद्यपि मनुष्य की प्रवृत्ति इनकार करने की नहीं है, किंतु संदेह करने की है। मनुष्य इनकार नहीं करता, किंतु पूर्णतः स्वीकार भी नहीं करता। यदि लोगों को परमेश्वर के कार्य का संपूर्ण ज्ञान हो जाए, तो वे भागेंगे नहीं। दूसरी समस्या यह है कि मनुष्य को वास्तविकता का ज्ञान नहीं है। आज परमेश्वर के वचन के साथ प्रत्येक व्यक्ति जुड़ा है; वास्तव में, भविष्य में तुम्हें संकेत और चमत्कार देखने के बारे में नहीं सोचना चाहिए। मैं तुमसे साफ-साफ कहता हूँ : वर्तमान चरण के दौरान तुम परमेश्वर के वचन देखने में सक्षम हो, और यद्यपि यहाँ कोई तथ्य नहीं हैं, फिर भी परमेश्वर का जीवन मनुष्यों में गढ़ा जा सकता है। यही वह कार्य है, जो सहस्राब्दी राज्य का मुख्य कार्य है, और यदि तुम इस कार्य का बोध नहीं कर सकते, तो तुम निर्बल हो जाओगे और गिर जाओगे, और तुम परीक्षणों में उतर जाओगे, और इससे भी अधिक कष्टदायक ढंग से तुम शैतान द्वारा बंदी बना लिए जाओगे। परमेश्वर पृथ्वी पर मुख्य रूप से अपने वचन कहने के लिए आया है; तुम जिससे जुड़ते हो वह परमेश्वर का वचन है, तुम जो देखते हो वह परमेश्वर का वचन है, तुम जिसे सुनते हो वह परमेश्वर का वचन है, तुम जिसका पालन करते हो वह परमेश्वर का वचन है, तुम जिसे अनुभव करते हो वह परमेश्वर का वचन है, और परमेश्वर का यह देह-धारण मनुष्य को पूर्ण करने के लिए मुख्य रूप से वचन का उपयोग करता है। वह संकेत और चमत्कार नहीं दिखाता, और विशेष रूप से वे कार्य नहीं करता, जिन्हें यीशु ने अतीत में किया था। यद्यपि वे परमेश्वर हैं, और दोनों देह हैं, किंतु उनकी सेवकाइयाँ एक-सी नहीं हैं। जब यीशु आया, तो उसने भी परमेश्वर के कार्य का एक भाग पूरा किया और कुछ वचन बोले—किंतु वह कौन-सा प्रमुख कार्य था, जो उसने संपन्न किया? उसने मुख्य रूप से सलीब पर चढ़ने का कार्य संपन्न किया। सलीब पर चढ़ने का कार्य पूरा करने और समस्त मानवजाति को छुटकारा दिलाने के लिए वह पापमय देह की समानता बन गया, और यह समस्त मानवजाति के पापों के वास्ते था कि वह पापबलि बन गया। यही वह मुख्य कार्य है, जो उसने संपन्न किया। अंततः, जो बाद में आए, उनका मार्गदर्शन करने के लिए उसने सलीब का मार्ग उपलब्ध कराया। जब यीशु आया, तब वह मुख्य रूप से छुटकारे का कार्य पूरा करने के लिए था। उसने समस्त मानवजाति को छुटकारा दिलाया, और स्वर्ग के राज्य का सुसमाचार मनुष्य तक पहुँचाया, और, इसके अलावा, वह स्वर्ग के राज्य का मार्ग लाया। परिणामस्वरूप, जो लोग बाद में आए, उन सभी ने कहा, “हमें सलीब के मार्ग पर चलना चाहिए, और स्वयं को सलीब के लिए बलिदान कर देना चाहिए।” निस्संदेह, आरंभ में यीशु ने भी मनुष्य से पश्चात्ताप करवाने और पाप स्वीकार करवाने के लिए कुछ अन्य कार्य भी किए और कुछ वचन भी कहे। किंतु फिर भी उसकी सेवकाई सलीब पर चढ़ने की ही थी, और उसने साढ़े तीन वर्ष जो मार्ग का उपदेश देने में खर्च किए, वे बाद में सलीब पर चढ़ने की तैयारी के लिए ही थे। यीशु ने जो कई बार प्रार्थनाएँ कीं, वे भी सूली पर चढ़ने के वास्ते ही थीं। उसने जो पृथ्वी पर सामान्य मनुष्य का जीवन बिताया और साढ़े तेंतीस वर्ष जो वह जीया, वह मुख्य रूप से सलीब पर चढ़ने का कार्य पूरा करने के लिए था; वह इस कार्य को करने हेतु उसे शक्ति प्रदान करने के लिए था, जिसके परिणामस्वरूप परमेश्वर ने उसे सलीब पर चढ़ने का कार्य सौंपा। आज देहधारी परमेश्वर कौन-सा कार्य संपन्न करेगा? आज परमेश्वर मुख्य रूप से “वचन के देह में प्रकट होने” का कार्य पूरा करने, मनुष्य को पूर्ण बनाने के लिए वचन का उपयोग करने, और मनुष्य से वचन की काट-छाँट और शुद्धिकरण को स्वीकार करवाने के लिए देह बना है। अपने वचनों से वह तुम्हें पोषण और जीवन प्राप्त करवाने का कारण बनता है; उसके वचनों में तुम उसके कार्य और कर्मों को देखते हो। परमेश्वर तुम्हें ताड़ना देने और शुद्ध करने के लिए वचन का उपयोग करता है, और इस प्रकार यदि तुम्हें कठिनाई सहनी पड़ती है, तो वह भी परमेश्वर के वचन के कारण है। आज परमेश्वर तथ्यों के साथ नहीं, बल्कि वचनों के साथ कार्य करता है। केवल जब उसके वचन तुम पर आ जाएँ, तभी पवित्र आत्मा तुम्हारे भीतर कार्य कर सकता है, और तुम्हें पीड़ा भुगतने या मिठास का अनुभव करने का कारण बन सकता है। केवल परमेश्वर का वचन ही तुम्हें वास्तविकता में ला सकता है, और केवल परमेश्वर का वचन ही तुम्हें पूर्ण बनाने में सक्षम है। और इसलिए, तुम्हें कम से कम यह समझना चाहिए : अंत के दिनों में परमेश्वर द्वारा किया जाने वाला कार्य मुख्य रूप से प्रत्येक व्यक्ति को पूर्ण बनाने और मनुष्य का मार्गदर्शन करने के लिए अपने वचन का उपयोग करना है। जो कुछ भी कार्य वह करता है, वह सब वचन के द्वारा किया जाता है; तुम्हें ताड़ना देने के लिए वह तथ्यों का उपयोग नहीं करता। ऐसे अवसर आते हैं, जब कुछ लोग परमेश्वर का प्रतिरोध करते हैं। परमेश्वर भारी असुविधा उत्पन्न नहीं करता, तुम्हारी देह को ताड़ना नहीं दी जाती, न ही तुम कठिनाइयाँ सहते हो—किंतु जैसे ही उसका वचन तुम पर आता है और तुम्हें शुद्ध करता है, तो यह तुम्हारे लिए असहनीय होता है। क्या ऐसा नहीं है? सेवाकर्मियों के समय के दौरान परमेश्वर ने मनुष्य को अतल गड्ढे में डालने के लिए कहा था। क्या मनुष्य वास्तव में अतल गड्ढे में पहुँच गया? मनुष्य को शुद्ध करने हेतु वचनों के उपयोग के माध्यम से ही मनुष्य ने अतल गड्ढे में प्रवेश कर लिया। और इसलिए, अंत के दिनों में जब परमेश्वर देहधारी होता है, तो सब-कुछ संपन्न और स्पष्ट करने के लिए वह मुख्य रूप से वचन का उपयोग करता है। केवल उसके वचनों में ही तुम देख सकते हो कि वह क्या है; केवल उसके वचनों में ही तुम देख सकते हो कि वह स्वयं परमेश्वर है। जब देहधारी परमेश्वर पृथ्वी पर आता है, तो वह वचन बोलने के अलावा कोई अन्य कार्य नहीं करता—इसलिए तथ्यों की कोई आवश्यकता नहीं है; वचन पर्याप्त हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि वह मुख्य रूप से इसी कार्य को करने के लिए आया है, ताकि मनुष्य को अपने वचनों का सामर्थ्य और सर्वोच्चता देखने दे, ताकि मनुष्य को यह देखने दे कि वह कैसे विनम्रतापूर्वक अपने आपको अपने वचनों में छिपाता है, और ताकि मनुष्य को अपने वचनों से अपनी समग्रता जानने दे। उसका समस्त स्वरूप उसके वचनों में है, उसकी बुद्धि और चमत्कारिकता उसके वचनों में है। इसमें तुम्हें वे कई तरीके दिखाए जाते हैं, जिनके द्वारा परमेश्वर अपने वचन बोलता है। इस संपूर्ण समय के दौरान परमेश्वर का अधिकांश कार्य मनुष्य को पोषण देना, प्रकाशन देना और काट-छाँट करना रहा है। वह मनुष्य को बिना विचारे शाप नहीं देता, और जब वह शाप देता भी है, तो वचन के द्वारा उन्हें शाप देता है। और इसलिए, परमेश्वर के देहधारी होने के इस युग में, परमेश्वर को पुनः बीमारों की चंगाई करते और दुष्टात्माओं को निकालते हुए देखने का प्रयास न करो, और लगातार संकेतों को देखने का प्रयास बंद कर दो—इसका कोई मतलब नहीं है! वे संकेत मनुष्य को पूर्ण नहीं बना सकते! स्पष्ट रूप से कहूँ तो : आज देह वाला व्यावहारिक स्वयं परमेश्वर कुछ करता नहीं, केवल बोलता है। यही सत्य है! वह तुम्हें पूर्ण बनाने के लिए वचनों का उपयोग करता है, और तुम्हें भोजन और पानी देने के लिए वचनों का उपयोग करता है। वह कार्य करने के लिए भी वचनों का उपयोग करता है, और वह तुम्हें अपनी व्यावहारिकता का ज्ञान कराने के लिए तथ्यों के स्थान पर अपने वचनों का उपयोग करता है। यदि तुम परमेश्वर के कार्य के इस तरीके को समझने में सक्षम हो, तो नकारात्मक बने रहना कठिन है। नकारात्मक बातों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय तुम्हें केवल उन बातों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जो सकारात्मक हैं—अर्थात्, इस बात की परवाह किए बिना कि परमेश्वर के वचन पूरे होते हैं या नहीं, या तथ्यों का आगमन होता है या नहीं, परमेश्वर अपने वचनों से मनुष्य को जीवन प्राप्त करवाता है, और यह सभी संकेतों में से महानतम संकेत है; और इतना ही नहीं, यह एक अविवादित तथ्य है। यह सर्वोत्तम प्रमाण है, जिसके माध्यम से परमेश्वर को जानना है, और यह संकेतों से भी बड़ा संकेत है। केवल ये वचन ही मनुष्य को पूर्ण बना सकते हैं।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के वचन के द्वारा सब-कुछ प्राप्त हो जाता है
परमेश्वर पूरे ब्रह्मांड में अपना कार्य करता है। वे सब, जो उस पर विश्वास करते हैं, उन्हें उसके वचनों को स्वीकार करना, और उसके वचनों को खाना और पीना चाहिए; परमेश्वर द्वारा दिखाए गए संकेतों और चमत्कारों को देखकर कोई भी व्यक्ति परमेश्वर द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता। युगों-युगों में परमेश्वर ने मनुष्य को पूर्ण बनाने के लिए सदैव वचन का उपयोग किया है। इसलिए तुम लोगों को अपना समस्त ध्यान संकेतों और चमत्कारों पर नहीं लगाना चाहिए, बल्कि परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाए जाने के लिए प्रयास करना चाहिए। पुराने विधान के व्यवस्था के युग में परमेश्वर ने कुछ वचन कहे, और अनुग्रह के युग में यीशु ने भी बहुत-से वचन कहे। यीशु द्वारा बहुत-से वचन कहे जाने के बाद, बाद के प्रेरितों और शिष्यों ने लोगों को यीशु द्वारा जारी की गई आज्ञाओं के अनुसार अभ्यास करने में अगुआई की, और यीशु द्वारा कहे गए वचनों और सिद्धांतों के अनुसार अनुभव किया। अंत के दिनों में परमेश्वर वचन का उपयोग मुख्यतः मनुष्य को पूर्ण बनाने के लिए करता है। वह मनुष्य का दमन करने या उन्हें कायल करने के लिए संकेतों और चमत्कारों का उपयोग नहीं करता; यह परमेश्वर के सामर्थ्य को स्पष्ट नहीं कर सकता। यदि परमेश्वर केवल संकेत और चमत्कार दिखाता, तो परमेश्वर की व्यावहारिकता स्पष्ट करना असंभव होता, और इस तरह मनुष्य को पूर्ण बनाना भी असंभव होता। परमेश्वर संकेतों और चमत्कारों से मनुष्य को पूर्ण नहीं बनाता, अपितु उसे सींचने और उसकी चरवाही करने के लिए वचन का उपयोग करता है, जिसके बाद मनुष्य का पूर्ण समर्पण हासिल होता है और मनुष्य को परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त होता है। यही उसके द्वारा किए जाने वाले कार्य और बोले जाने वाले वचनों का उद्देश्य है। परमेश्वर मनुष्य को पूर्ण बनाने के लिए संकेत एवं चमत्कार दिखाने की विधि का उपयोग नहीं करता—वह मनुष्य को पूर्ण बनाने के लिए वचनों और कार्य की कई भिन्न विधियों का उपयोग करता है। चाहे वह शुद्धिकरण, काँट-छाँट या वचनों का पोषण हो, मनुष्य को पूर्ण बनाने और उसे परमेश्वर के कार्य, उसकी बुद्धि और चमत्कारिकता का और अधिक ज्ञान देने के लिए परमेश्वर कई भिन्न-भिन्न परिप्रेक्ष्यों से बोलता है। अंत के दिनों में परमेश्वर द्वारा युग का समापन करने के समय जब मनुष्य को पूर्ण बना दिया जाएगा, तब वह संकेत और चमत्कार देखने योग्य हो जाएगा। जब तुम परमेश्वर को जान लेते हो और इस बात की परवाह किए बिना कि वह क्या करता है, उसके प्रति समर्पण करने में सक्षम हो जाते हो, तब संकेत और चमत्कार देखकर तुम परमेश्वर के बारे में कोई धारणा नहीं बनाते। इस समय तुम भ्रष्ट हो और परमेश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण करने में अक्षम हो—तुम क्या अपने को संकेत और चमत्कार देखने योग्य समझते हो? जब परमेश्वर संकेत और चमत्कार दिखाता है, तो यह तब होता है, जब वह मनुष्य को दंड देता है, और तब भी, जब युग बदलता है, और इसके अलावा, जब युग का समापन होता है। जब परमेश्वर का कार्य सामान्य रूप से किया जा रहा हो, तो वह संकेत और चमत्कार नहीं दिखाता। संकेत और चमत्कार दिखाना उसके लिए बाएँ हाथ का खेल है, किंतु वह परमेश्वर के कार्य का सिद्धांत नहीं है, न ही वह परमेश्वर के मनुष्यों के प्रबंधन का लक्ष्य है। यदि मनुष्य संकेत और चमत्कार देखता, और यदि परमेश्वर की आत्मिक देह को मनुष्य पर प्रकट होना होता, तो क्या सभी लोग परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते? मैं पहले कह चुका हूँ कि पूर्व से विजेताओं का एक समूह प्राप्त किया जा रहा है, ऐसे विजेताओं का, जो भारी क्लेश के बीच से आते हैं। इन वचनों का क्या अर्थ है? इनका अर्थ है कि केवल इन प्राप्त किए गए लोगों ने ही न्याय, ताड़ना, काँट-छाँट, और सभी प्रकार के शुद्धिकरण से गुजरने के बाद वास्तव में समर्पण किया। इन लोगों का विश्वास अस्पष्ट और अमूर्त नहीं, बल्कि वास्तविक है। उन्होंने कोई संकेत और चमत्कार, या अचंभे नहीं देखे हैं; वे गूढ़ शब्दों और धर्म-सिद्धांतों या गहन अंर्तदृष्टियों की बात नहीं करते; इसके बजाय उनके पास वास्तविकता और परमेश्वर के वचन और परमेश्वर की व्यावहारिकता का सच्चा ज्ञान है। क्या ऐसा समूह परमेश्वर के सामर्थ्य को स्पष्ट करने में अधिक सक्षम नहीं है? अंत के दिनों के दौरान परमेश्वर का कार्य व्यावहारिक कार्य है। यीशु के युग के दौरान, वह मनुष्य को पूर्ण बनाने के लिए नहीं, बल्कि छुटकारा दिलाने के लिए आया, और इसलिए उसने लोगों से अपना अनुसरण करवाने के लिए कुछ चमत्कार प्रदर्शित किए। क्योंकि वह मुख्य रूप से सलीब पर चढ़ने का कार्य पूरा करने आया था, और संकेत दिखाना उसकी सेवकाई का हिस्सा नहीं था। इस प्रकार के संकेत और चमत्कार ऐसे कार्य थे, जो उसके कार्य को कारगर बनाने के लिए किए गए थे; वे अतिरिक्त कार्य थे, और संपूर्ण युग के कार्य का प्रतिनिधित्व नहीं करते थे। पुराने विधान के व्यवस्था के युग के दौरान भी परमेश्वर ने कुछ संकेत और चमत्कार दिखाए—किंतु आज परमेश्वर जो कार्य करता है, वह व्यावहारिक कार्य है, और वह अब निश्चित रूप से संकेत और चमत्कार नहीं दिखाएगा। यदि उसने संकेत और चमत्कार दिखाए, तो उसका व्यावहारिक कार्य अस्तव्यस्त हो जाएगा, और वह कोई और कार्य करने में असमर्थ होगा। यदि परमेश्वर ने मनुष्य को पूर्ण करने हेतु वचन का उपयोग करने के लिए कहा, किंतु संकेत और चमत्कार भी दिखाए, तब क्या यह स्पष्ट किया जा सकता है कि मनुष्य वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करता है या नहीं? इसलिए परमेश्वर इस तरह की चीजें नहीं करता। मनुष्य के भीतर धर्म की अतिशय बातें हैं; अंत के दिनों में परमेश्वर मनुष्य के भीतर से सभी धार्मिक धारणाओं और अलौकिक बातों को बाहर निकालने और मनुष्य को परमेश्वर की व्यावहारिकता का ज्ञान कराने के लिए आया है। वह एक ऐसे परमेश्वर की छवि दूर करने आया है, जो अमूर्त और काल्पनिक है—दूसरे शब्दों में, एक ऐसे परमेश्वर की छवि, जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं है। और इसलिए, अब तुम्हारे लिए जो एकमात्र बहुमूल्य चीज है, वह है व्यावहारिकता का ज्ञान होना! सत्य सभी चीजों पर प्रबल है। आज तुम्हारे पास कितना सत्य है? क्या वे सब, जो संकेत और चमत्कार दिखाते हैं, परमेश्वर हैं? दुष्टात्माएँ भी संकेत और चमत्कार दिखा सकते हैं; तो क्या वे सब परमेश्वर हैं? परमेश्वर पर अपने विश्वास में मनुष्य जिस चीज की खोज करता है, वह सत्य है, और वह जिसका अनुसरण करता है, वह संकेतों और चमत्कारों के बजाय, जीवन है। जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं, उन सबका यही लक्ष्य होना चाहिए।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के वचन के द्वारा सब-कुछ प्राप्त हो जाता है
मैंने पहले कहा है कि “वे सब, जो संकेत और चमत्कार देखने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, त्याग दिए जाएँगे; ये वे लोग नहीं हैं, जो पूर्ण बनाए जाएँगे।” मैंने बहुत-से वचन कहे हैं, फिर भी मनुष्य को इस कार्य का लेशमात्र भी ज्ञान नहीं है, और इस बिंदु तक आकर, लोग अभी भी संकेतों और चमत्कारों के बारे में पूछते हैं। क्या परमेश्वर में तुम्हारा विश्वास संकेतों और चमत्कारों की खोज से अधिक कुछ नहीं, या यह जीवन प्राप्त करने के उद्देश्य से है? यीशु ने भी बहुत-से वचन कहे थे और उनमें से कुछ अभी भी पूरे होने शेष हैं। क्या तुम कह सकते हो कि यीशु परमेश्वर नहीं है? परमेश्वर ने गवाही दी कि वह मसीहा और परमेश्वर का प्यारा पुत्र है। क्या तुम इस बात से इनकार कर सकते हो? आज परमेश्वर केवल वचन कहता है, और यदि तुम इसे पूरी तरह से नहीं जानते, तो तुम अडिग नहीं रह सकते। तुम उसमें इसलिए विश्वास करते हो क्योंकि वह परमेश्वर है, या फिर तुम उसमें इस आधार पर विश्वास करते हो कि उसके वचन पूरे होते हैं या नहीं? क्या तुम संकेतों और चमत्कारों पर विश्वास करते हो, या तुम परमेश्वर पर विश्वास करते हो? आज वह संकेत और चमत्कार नहीं दिखाता—क्या वह वास्तव में परमेश्वर है? यदि उसके द्वारा कहे गए वचन पूरे नहीं होते, तो क्या वह वास्तव में परमेश्वर है? क्या परमेश्वर का सार इस बात से निश्चित होता है कि उसके द्वारा कहे गए वचन पूरे होते हैं या नहीं? ऐसा क्यों है कि कुछ लोग परमेश्वर में विश्वास करने से पहले सदैव उसके द्वारा कहे गए वचनों के पूरे होने की प्रतीक्षा करते हैं? क्या इसका अर्थ यह नहीं कि वे परमेश्वर को नहीं जानते? ऐसी धारणाएँ रखने वाले लोग परमेश्वर को नकारते हैं। वे परमेश्वर को मापने के लिए धारणाओं का उपयोग करते हैं; यदि परमेश्वर के वचन पूरे हो जाते हैं तो वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं, और यदि वचन पूरे नहीं होते तो वे उसमें विश्वास नहीं करते; और वे सदैव संकेतों और चमत्कारों की खोज करते रहते हैं। क्या ये लोग आधुनिक युग के फरीसी नहीं हैं? तुम अडिग रहने में समर्थ हो या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि तुम व्यावहारिक परमेश्वर को जानते हो या नहीं—यह महत्वपूर्ण है! परमेश्वर के वचनों की जितनी अधिक वास्तविकता तुममें होगी, परमेश्वर की व्यावहारिकता का तुम्हारा ज्ञान उतना ही अधिक होगा, और परीक्षणों के दौरान उतना ही अधिक अडिग रहने में तुम समर्थ होगे। जितना अधिक तुम संकेत और चमत्कार देखने पर ध्यान दोगे, उतना ही कम तुम अडिग रहने में समर्थ होगे और परीक्षणों के बीच गिर जाओगे। संकेत और चमत्कार बुनियाद नहीं हैं; केवल परमेश्वर की व्यावहारिकता ही जीवन है। कुछ लोग उन प्रभावों को नहीं जानते, जो परमेश्वर के कार्य के द्वारा प्राप्त किए जाते हैं। वे परमेश्वर के कार्य के ज्ञान की खोज न करते हुए भ्रांति में अपने दिन व्यतीत करते हैं। उनकी खोज का उद्देश्य सदैव परमेश्वर से केवल अपनी इच्छाएँ पूरी करवाना होता है, और केवल तभी वे अपने विश्वास में गंभीर होते हैं। वे कहते हैं कि यदि परमेश्वर के वचन पूरे होंगे, तो वे जीवन की खोज करेंगे, किंतु यदि उसके वचन पूरे नहीं होते, तब उनके द्वारा जीवन की खोज किए जाने की कोई संभावना नहीं है। मनुष्य सोचता है कि परमेश्वर पर विश्वास करने का अर्थ संकेत और चमत्कार देखने और स्वर्ग तथा तीसरे स्वर्ग तक आरोहण करने की कोशिश करना है। उनमें से कोई यह नहीं कहता कि परमेश्वर पर उसका विश्वास वास्तविकता में प्रवेश करने की खोज करना, जीवन की खोज करना, और परमेश्वर द्वारा जीते जाने की खोज करना है। ऐसी खोज का क्या मूल्य है? वे लोग, जो परमेश्वर के ज्ञान और उसकी संतुष्टि की खोज नहीं करते, वे लोग हैं जो परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते, और जो ईशनिंदा करते हैं!
क्या अब तुम लोग समझते हो कि परमेश्वर पर विश्वास करना क्या होता है? क्या संकेत और चमत्कार देखना परमेश्वर पर विश्वास करना है? क्या इसका अर्थ स्वर्ग पर आरोहण करना है? परमेश्वर पर विश्वास जरा भी आसान नहीं है। उन धार्मिक अभ्यासों को निकाल दिया जाना चाहिए; रोगियों की चंगाई और दुष्टात्माओं को निकालने का अनुसरण करना, प्रतीकों और चमत्कारों पर ध्यान केंद्रित करना और परमेश्वर के अनुग्रह, शांति और आनंद का अधिक लालच करना, देह के लिए संभावनाओं और आराम की तलाश करना—ये धार्मिक अभ्यास हैं, और ऐसे धार्मिक अभ्यास एक अस्पष्ट प्रकार का विश्वास हैं। आज परमेश्वर में वास्तविक विश्वास क्या है? यह परमेश्वर के वचन को अपनी जीवन वास्तविकता के रूप में स्वीकार करना, और परमेश्वर का सच्चा प्यार प्राप्त करने के लिए परमेश्वर के वचन से परमेश्वर को जानना है। स्पष्ट कहूँ तो : परमेश्वर में विश्वास इसलिए है, ताकि तुम परमेश्वर के प्रति समर्पण कर सको, उससे प्रेम कर सको, और वह कर्तव्य पूरा कर सको, जिसे एक सृजित प्राणी द्वारा पूरा किया जाना चाहिए। यही परमेश्वर पर विश्वास करने का लक्ष्य है। तुम्हें परमेश्वर की मनोहरता का और इस बात का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए कि परमेश्वर आदर के कितने योग्य है, कैसे अपने सृजित प्राणियों में परमेश्वर उद्धार का कार्य करता है और उन्हें पूर्ण बनाता है—ये परमेश्वर पर तुम्हारे विश्वास की एकदम अनिवार्य चीज़ें हैं। परमेश्वर पर विश्वास मुख्यतः देह-उन्मुख जीवन से परमेश्वर से प्रेम करने वाले जीवन में बदलना है; भ्रष्टता के भीतर जीने से परमेश्वर के वचनों के जीवन के भीतर जीना है; यह शैतान की सत्ता से बाहर आना और परमेश्वर की देखभाल और सुरक्षा में जीना है; यह देह के प्रति समर्पण को नहीं, बल्कि परमेश्वर के प्रति समर्पण को प्राप्त करने में समर्थ होना है; यह परमेश्वर को तुम्हारा संपूर्ण हृदय प्राप्त करने और तुम्हें पूर्ण बनाने देना है, और तुम्हें भ्रष्ट शैतानी स्वभाव से मुक्त करने देना है। परमेश्वर में विश्वास मुख्यतः इसलिए है, ताकि परमेश्वर का सामर्थ्य और महिमा तुममें प्रकट हो सके, ताकि तुम परमेश्वर की इच्छा के अनुसार चल सको, और परमेश्वर की योजना संपन्न कर सको, और शैतान के सामने परमेश्वर की गवाही दे सको। परमेश्वर पर विश्वास संकेत और चमत्कार देखने की इच्छा के इर्द-गिर्द नहीं घूमना चाहिए, न ही यह तुम्हारी व्यक्तिगत देह के वास्ते होना चाहिए। यह परमेश्वर को जानने की कोशिश के लिए, और परमेश्वर के प्रति समर्पण करने, और पतरस के समान मृत्यु तक परमेश्वर के प्रति समर्पण करने में सक्षम होने के लिए, होना चाहिए। यही परमेश्वर में विश्वास करने के मुख्य उद्देश्य हैं। व्यक्ति परमेश्वर के वचन को परमेश्वर को जानने और उसे संतुष्ट करने के उद्देश्य से खाता और पीता है। परमेश्वर के वचन को खाना और पीना तुम्हें परमेश्वर का और अधिक ज्ञान देता है, जिसके बाद ही तुम उसके प्रति समर्पण कर सकते हो। केवल परमेश्वर के ज्ञान के साथ ही तुम उससे प्रेम कर सकते हो, और यह वह लक्ष्य है, जिसे मनुष्य को परमेश्वर के प्रति अपने विश्वास में रखना चाहिए। यदि परमेश्वर पर अपने विश्वास में तुम सदैव संकेत और चमत्कार देखने का प्रयास कर रहे हो, तो परमेश्वर पर तुम्हारे विश्वास का यह दृष्टिकोण गलत है। परमेश्वर पर विश्वास मुख्य रूप से परमेश्वर के वचन को जीवन वास्तविकता के रूप में स्वीकार करना है। परमेश्वर का उद्देश्य उसके मुख से निकले वचनों को अभ्यास में लाने और उन्हें अपने भीतर पूरा करने से हासिल किया जाता है। परमेश्वर पर विश्वास करने में मनुष्य को परमेश्वर द्वारा पूर्ण किए जाने, परमेश्वर के प्रति समर्पण करने में समर्थ होने, और परमेश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण के लिए प्रयास करना चाहिए। यदि तुम बिना शिकायत किए परमेश्वर के प्रति समर्पण कर सकते हो, परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील हो सकते हो, पतरस का आध्यात्मिक कद प्राप्त कर सकते हो, और परमेश्वर द्वारा कही गई पतरस की शैली ग्रहण कर सकते हो, तो यह तब होगा जब तुम परमेश्वर पर विश्वास में सफलता प्राप्त कर चुके होगे, और यह इस बात का द्योतक होगा कि तुम परमेश्वर द्वारा प्राप्त कर लिए गए हो।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के वचन के द्वारा सब-कुछ प्राप्त हो जाता है
तुम लोगों की सत्यनिष्ठा सिर्फ वचन में है, तुम लोगों का ज्ञान सिर्फ बौद्धिक और वैचारिक है, तुम लोगों की मेहनत सिर्फ स्वर्ग की आशीष पाने के लिए है और इसलिए तुम लोगों का विश्वास किस प्रकार का होना चाहिए? आज भी, तुम लोग सत्य के प्रत्येक वचन को अनसुना कर देते हो। तुम लोग नहीं जानते कि परमेश्वर क्या है, तुम लोग नहीं जानते कि मसीह क्या है, तुम लोग नहीं जानते कि यहोवा का भय कैसे मानें, तुम लोग नहीं जानते कि कैसे पवित्र आत्मा के कार्य में प्रवेश करें और तुम लोग नहीं जानते कि परमेश्वर स्वयं के कार्य और मनुष्य द्वारा गुमराह किए जाने के बीच कैसे भेद करें। तुम परमेश्वर द्वारा व्यक्त सत्य के किसी भी ऐसे वचन की केवल निंदा करना ही जानते हो, जो तुम्हारे विचारों के अनुरूप नहीं होता। तुम्हारी विनम्रता कहाँ है? तुम्हारा समर्पण कहाँ है? तुम्हारी सत्यनिष्ठा कहाँ है? सत्य खोजने की तुम्हारी इच्छा कहाँ है? परमेश्वर का भय मानने वाला तुम्हारा हृदय कहाँ है? मैं तुम लोगों को बता दूँ कि जो परमेश्वर में संकेतों की वजह से विश्वास करते हैं, वे निश्चित रूप से वह श्रेणी होगी, जो नष्ट की जाएगी। जो देह में लौटे यीशु के वचनों को समझने में अक्षम हैं, वे निश्चित ही नरक के वंशज, महादूत के वंशज हैं, उस श्रेणी में हैं, जो अनंत विनाश झेलेगी। बहुत से लोगों को शायद इसकी परवाह न हो कि मैं क्या कहता हूँ, किंतु मैं ऐसे हर तथाकथित संत को, जो यीशु का अनुसरण करते हैं, बताना चाहता हूँ कि जब तुम लोग यीशु को एक श्वेत बादल पर स्वर्ग से उतरते अपनी आँखों से देखोगे, तो यह धार्मिकता के सूर्य का सार्वजनिक प्रकटन होगा। शायद वह तुम्हारे लिए एक बड़ी उत्तेजना का समय होगा, मगर तुम्हें पता होना चाहिए कि जिस समय तुम यीशु को स्वर्ग से उतरते देखोगे, यही वह समय भी होगा जब तुम दंडित किए जाने के लिए नीचे नरक में जाओगे। वह परमेश्वर की प्रबंधन योजना की समाप्ति का समय होगा, और वह समय होगा, जब परमेश्वर सज्जन को पुरस्कार और कुकर्मी को दंड देगा। क्योंकि परमेश्वर का न्याय मनुष्य के चिह्न देखने से पहले ही समाप्त हो चुका होगा, जब सिर्फ़ सत्य की अभिव्यक्ति होगी। वे जो सत्य को स्वीकार करते हैं और संकेतों की खोज नहीं करते और इस प्रकार शुद्ध कर दिए गए हैं, वे परमेश्वर के सिंहासन के सामने लौट चुके होंगे और सृष्टिकर्ता के आलिंगन में प्रवेश कर चुके होंगे। सिर्फ़ वे जो इस विश्वास में बने रहते हैं कि “ऐसा यीशु जो श्वेत बादल पर सवारी नहीं करता, एक झूठा मसीह है” अनंत दंड के अधीन कर दिए जाएँगे, क्योंकि वे सिर्फ़ उस यीशु में विश्वास करते हैं जो संकेत प्रदर्शित करता है, पर उस यीशु को स्वीकार नहीं करते, जो कड़े न्याय की घोषणा करता है और जीवन और सच्चा मार्ग जारी करता है। इसलिए केवल यही हो सकता है कि जब यीशु खुलेआम श्वेत बादल पर वापस लौटे, तो वह उनके साथ निपटे। वे बहुत हठधर्मी, अपने आप में बहुत आश्वस्त, बहुत अभिमानी हैं। ऐसे अधम लोग यीशु द्वारा कैसे पुरस्कृत किए जा सकते हैं? यीशु की वापसी उन लोगों के लिए एक महान उद्धार है, जो सत्य को स्वीकार करने में सक्षम हैं, पर उनके लिए जो सत्य को स्वीकार करने में असमर्थ हैं, यह दंडाज्ञा का संकेत है। तुम लोगों को अपना स्वयं का रास्ता चुनना चाहिए, और पवित्र आत्मा के खिलाफ निंदा नहीं करनी चाहिए और सत्य को अस्वीकार नहीं करना चाहिए। तुम लोगों को अज्ञानी और अभिमानी व्यक्ति नहीं बनना चाहिए, बल्कि ऐसा बनना चाहिए जो पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन के प्रति समर्पण करता हो और सत्य के लिए लालायित होकर इसकी खोज करता हो; सिर्फ इसी तरीके से तुम लोग लाभान्वित होगे। मैं तुम लोगों को परमेश्वर में विश्वास के रास्ते पर सावधानी से चलने की सलाह देता हूँ। निष्कर्ष पर पहुँचने की जल्दी में न रहो; और परमेश्वर में अपने विश्वास में लापरवाह और विचारहीन न बनो। तुम लोगों को जानना चाहिए कि कम से कम, जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं उनके पास विनम्र और परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय होना चाहिए। जिन्होंने सत्य सुन लिया है और फिर भी इस पर अपनी नाक-भौंह सिकोड़ते हैं, वे मूर्ख और अज्ञानी हैं। जिन्होंने सत्य सुन लिया है और फिर भी लापरवाही के साथ निष्कर्षों तक पहुँचते हैं या उसकी निंदा करते हैं, ऐसे लोग अभिमान से घिरे हैं। जो भी यीशु पर विश्वास करता है वह दूसरों को शाप देने या निंदा करने के योग्य नहीं है। तुम सब लोगों को ऐसा व्यक्ति होना चाहिए, जो समझदार है और सत्य स्वीकार करता है। शायद, सत्य के मार्ग को सुनकर और जीवन के वचन को पढ़कर, तुम विश्वास करते हो कि इन 10,000 वचनों में से सिर्फ़ एक ही वचन है, जो तुम्हारे दृढ़ विश्वास और बाइबल के अनुसार है, और फिर तुम्हें इन 10,000 वचनों में खोज करते रहना चाहिए। मैं अब भी तुम्हें सुझाव देता हूँ कि विनम्र बनो, अति-आत्मविश्वासी न बनो और अपनी बहुत बड़ाई न करो। परमेश्वर का भय मानने वाले अपने थोड़े-से हृदय से तुम अधिक रोशनी प्राप्त करोगे। यदि तुम इन वचनों की सावधानी से जाँच करो और इन पर बार-बार मनन करो, तब तुम समझोगे कि वे सत्य हैं या नहीं, वे जीवन हैं या नहीं। शायद, केवल कुछ वाक्य पढ़कर, कुछ लोग इन वचनों की आँखें मूँदकर यह कहते हुए निंदा करेंगे, “यह पवित्र आत्मा की थोड़ी प्रबुद्धता से अधिक कुछ नहीं है,” या “यह एक झूठा मसीह है जो लोगों को गुमराह करने आया है।” जो लोग ऐसी बातें कहते हैं वे अज्ञानता से अंधे हो गए हैं! तुम परमेश्वर के कार्य और बुद्धि को बहुत कम समझते हो और मैं तुम्हें पुनः शुरू से आरंभ करने की सलाह देता हूँ! तुम लोगों को अंत के दिनों में झूठे मसीहों के प्रकट होने की वजह से आँख बंदकर परमेश्वर द्वारा अभिव्यक्त वचनों का तिरस्कार नहीं करना चाहिए और चूँकि तुम गुमराह होने से डरते हो, इसलिए तुम्हें पवित्र आत्मा के खिलाफ निंदा नहीं करनी चाहिए। क्या यह बड़ी दयनीय स्थिति नहीं होगी? यदि, बहुत जाँच के बाद, अब भी तुम्हें लगता है कि ये वचन सत्य नहीं हैं, मार्ग नहीं हैं और परमेश्वर की अभिव्यक्ति नहीं हैं, तो फिर अंततः तुम दंडित किए जाओगे और आशीष के बिना होगे। यदि तुम ऐसा सत्य, जो इतने सादे और स्पष्ट ढंग से कहा गया है, स्वीकार नहीं कर सकते, तो क्या तुम परमेश्वर के उद्धार के अयोग्य नहीं हो? क्या तुम ऐसे व्यक्ति नहीं हो, जो परमेश्वर के सिंहासन के सामने लौटने के लिए पर्याप्त सौभाग्यशाली नहीं है? इस बारे में सोचो! उतावले और अविवेकी न बनो और परमेश्वर में विश्वास के साथ खेल की तरह पेश न आओ। अपनी मंज़िल के लिए, अपनी संभावनाओं के वास्ते, अपने जीवन के लिए सोचो और स्वयं से खेल न करो। क्या तुम इन वचनों को स्वीकार कर सकते हो?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जब तक तुम यीशु के आध्यात्मिक शरीर को देखोगे, परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को नया बना चुका होगा
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