84. अटूट आस्था

मेंग योंग, चीन

दिसंबर 2012 में, मैं और कई भाई और बहनें सुसमाचार के प्रचार-प्रसार के किए एक स्थान पर गए। कुछ दुष्टों ने इस बारे मेँ सूचना दे दी। थोड़ी ही देर मेँ, काउंटी सरकार ने आपराधिक पुलिस ब्रिगेड, राष्ट्रीय सुरक्षा बल, ड्रग निरोधक दस्ता, सशस्त्र पुलिस बल और स्थानीय पुलिस जैसे विभिन्न विभागों के अधिकारियों को 10 से अधिक पुलिस वाहनों मेँ हमें गिरफ्तार करने के लिए भेज दिया। मैं और एक भाई वहाँ से कार से निकलने की तैयारी कर ही रहे थे कि चार पुलिस वाले तेजी से दौड़ते हुए आए और हमारी कार का रास्ता रोक दिया। एक पुलिस वाले ने हमारी कार की चाबी निकाल ली और हमें कार मेँ बिना हिले-डुले बैठे रहने का आदेश दिया। तभी मैंने देखा कि सात-आठ पुलिस वाले एक अन्य भाई को डंडों से बुरी तरह मार रहे थे। उसे इतना ज्यादा पीटा गया था कि वह हिलने मेँ भी असमर्थ था। मेरा हृदय धार्मिक भावना के कारण आक्रोश से भर गया और उनकी हिंसा को रोकने के प्रयास में मैं कार से तेजी से बाहर निकला, लेकिन पुलिस वालों ने मुझे पकड़कर वहीं रोकलिया। इसके बाद, वे हमे थाने ले गए और हमारी कार को भी जब्त कर लिया गया।

उस रात नौ बजे के बाद, दो आपराधिक पुलिस वाले मुझसे पूछताछ करने आए। जब उन्हें यह भान हो गया कि उन्हें मुझसे कोई उपयोगी सूचना नहीं मिलने वाली है, तो वे झुँझलाकर उत्तेजित हो उठे, और गुस्से से अपने दांतों को पीसते हुए बोले : "कोई बात नहीं, हम तुम्हारी खबर बाद में लेंगे!" इसके बाद उन्होने मुझे पूछताछ प्रतीक्षालय मेँ बंद कर दिया। रात को 11.30 बजे, वे मुझे एक ऐसे कमरे में ले गए जिसमें निगरानी के लिए कैमरे नहीं लगे हुए थे। मुझे आशंका थी कि वे मुझ पर हिंसा का प्रयोग करेंगे, इसलिए मैंने हृदय में परमेश्वर से लगातार प्रार्थना करते हुए मेरी रक्षा करने की विनती की। इसी समय जिआ कुलनाम वाला एक अधिकारी मुझसे पूछताछ करने आया : "क्या तुम पिछले कुछ दिनों के दौरान वोक्सवेगन जेट्टा से यात्रा कर रहे थे?" जब मैंने इस बात का खंडन किया, तो उसने गुस्से से चिल्लाते हुए कहा : "कई लोग तुम्हें ऐसा करते हुए पहले ही देख चुके हैं, और फिर भी तुम अस्वीकार कर रहे हो?" ऐसा कहकर उसने मेरे चेहरे पर जोरदार तमाचा मारा। मुझे अपने गाल में जलन के साथ दर्द महसूस होने लगा। इसके बाद उसने गुर्राते हुए कहा : "देखता हूँ कि कब तक तुम अपना मुंह नहीं खोलते हो!" यह कहते हुए उसने एक चौड़ी बेल्ट उठाई और उसे मेरे चेहरे पर मारने लगा। पता नहीं उसने कितनी बार उस बेल्ट से मेरे चेहरे पर वार किया। दर्द के मारे बार-बार चीखने के अलावा मेरे पास कोई विकल्प नहीं था। यह सब देखकर उन लोगों ने बेल्ट को लगाम की तरह मेरे मुंह पर बाँध दिया। फिर कुछ पुलिस वालों ने मेरे शरीर पर एक कंबल डाल दिया और मुझे डंडों से बुरी तरह पीटने लगे। वे मुझे तब तक पीटते रहे जब तक वे खुद नहीं थक गए और उनकी साँस नहीं फूलने लगी। मुझे इतनी बुरी तरह से पीटा गया था कि मेरा सिर चकराने लगा था और मेरा शरीर इस तरह से दर्द कर रहा था जैसे मेरे शरीर की एक-एक हड्डी चकनाचूर हो गई हो। उस समय तो मुझे यह नहीं पता था कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं, लेकिन बाद मेँ मुझे पता चला कि उन्होंने कंबल ओढ़ाकर मुझे इसलिए पीटा था ताकि मेरे शरीर के मांस पर इस पिटाई का कोई निशान न पड़े। बिना कैमरे वाले कमरे मेँ मुझे ले जाना, मेरा मुंह बंद करना और कंबल से ढँककर मुझे पीटना—यह सब सिर्फ इसलिए किया गया था क्योंकि उन्हे भय था कि कहीं उनका कुकृत्य प्रकट न हो जाए। मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की पुलिस इतनी अधर्मी और पापी हो सकती है। जब वे चारों मुझे पीटते-पीटते थक गए, तो उन्होने मुझे यातना देने की दूसरी तरकीब निकाली: दो पुलिस वाले मेरी एक बांह को ऐंठकर पीछे ले गए और फिर उसे झटके से ऊपर खींच दिया, जबकि दो अन्य पुलिस वालों ने मेरी दूसरी बांह को कंधे से पीछे की ओर ले जाकर जोर से नीचे खींच दिया। (यातना के इस तरीके को उन्होंने "पीठ पर तलवार ढोना" नाम दे रखा था; जिसे सहन करना सामान्य लोगों की सहन-क्षमता के परे है।) लेकिन कुछ भी करके, मेरे दोनों हाथों को पास-पास नहीं लाया जा सका, इसलिए उन्होंने घुटने के जोर से मेरी एक बाँह को जोर से आगे धकेल दिया। मुझे कुछ चटकने की हल्की-सी आवाज सुनाई दी और मुझे लगा जैसे मेरे दोनों हाथ शरीर से उखड़ गए हों। मुझे इतना दर्द हुआ कि मैं लगभग बेहोश हो गया। थोड़ी ही देर बाद मेरे दोनों हाथ सुन्न पड़ गए। लेकिन इतना सब करने के बाद भी उन्होंने मुझे नहीं बख्शा, उन्होंने मुझे और तकलीफ देने के लिए जमीन पर बैठने का आदेश दिया। मुझे इतना दर्द हो रहा था कि मेरे पूरे शरीर से ठंडा पसीना छूटने लगा था, मेरा सर चकरा रहा था और मेरी चेतना धीरे-धीरे धुंधली पड़ती जा रही थी। मैंने सोचा : "जीवन के इतने वर्षों में, मेरे साथ ऐसा कभी नहीं हुआ कि मैं अपनी चेतना को नियंत्रित न कर सकूँ। क्या मैं मरने वाला हूँ?" चूंकि मैं अब और सहने की स्थिति मेँ नहीं था, इसलिए मैं सोचने लगा कि मृत्यु के जरिए इस कष्ट से मुक्ति प्राप्त कर लूँ। उसी क्षण, परमेश्वर के वचनों ने मुझे अंदर से प्रबुद्धता प्रदान की : "आज अधिकाँश लोगों के पास यह ज्ञान नहीं है। वे मानते हैं कि दुःख उठाने का कोई महत्व नहीं है...। कुछ लोगों के कष्ट चरम तक पहुँच जाते हैं, और उनके विचार मृत्यु की ओर मुड़ जाते हैं। यह परमेश्वर के लिए सच्चा प्रेम नहीं है; ऐसे लोग कायर होते हैं, उनमें धीरज नहीं होता, वे कमजोर और शक्तिहीन होते हैं!" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पीड़ादायक परीक्षणों के अनुभव से ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे अचानक जागृत किया और मुझे समझाया कि मेरे सोचने का ढंग परमेश्वर की भावनाओं के अनुरूप नहीं था और यह परमेश्वर को केवल दुखी और मायूस कर सकता था। क्योंकि दर्द और क्लेश के इस माहौल मेँ परमेश्वर यह नहीं चाहते हैं कि मैं मृत्यु के लिए कोशिश करूँ, बल्कि वे यह चाहते हैं कि मैं शैतान से लड़ने, परमेश्वर की गवाही देने, और शैतान को शर्मसार और पराजित करने के लिए परमेश्वर के मार्गदर्शन पर भरोसा रख सकूँ। मृत्यु को वरण करने की इच्छा शैतान के जाल मेँ फंसना है। इसका आशय यह होगा कि मैं परमेश्वर के लिए साक्षी नहीं बन सकूँगा और शर्म का प्रतीक बन जाऊंगा। परमेश्वर के इरादों को समझने के बाद, मैंने परमेश्वर से मौन प्रार्थना की : "हे परमेश्वर! मेरे सामने यह सच्चाई खुल गई है कि मैं अंदर से कितना कमजोर हूँ। मेरे अंदर तुम्हारे लिए कष्ट सहने की न तो इच्छा-शक्ति है और न ही साहस है। थोड़े से शारीरिक कष्ट के कारण मैं मरना चाहता था। अब मैं इससे बचना नहीं चाहता और मैं तुम्हारे लिए साक्षी बनूँगा और चाहे मुझे जितनी भी तकलीफ झेलनी पड़े, मैं तुम्हें संतुष्ट करूंगा। लेकिन इस समय मेरा शरीर दर्द से तड़प रहा है और कमजोर हो गया है। इन राक्षसों की मार को अब और बर्दाश्त करना मेरे अपने बूते के बाहर है। कृपया मुझे और अधिक आत्म-विश्वास एवं शक्ति दो, ताकि मैं शैतान को पराजित करने के लिए तुम पर निर्भर रह सकूँ। मैं अपने प्राणों की सौगंध खाता हूँ कि मैं आपको धोखा नहीं दूंगा और न ही अपने भाइयों और बहनों के बदले कोई सौदेबाजी करूंगा।" परमेश्वर से बार-बार प्रार्थना करने से मेरा हृदय धीरे-धीरे शांत हो गया। दुष्ट पुलिस देख रही थी कि मैं बड़ी मुश्किल से सांस ले पा रहा था और उन्हें डर था कि अगर मैं मर गया तो उन्हें इसकी ज़िम्मेदारी लेनी होगी। इसलिए उन्होंने आकर मेरे हाथों को खोल दिया। लेकिन मेरी बाहें पहले ही जकड़ चुकी थीं और मेरे बंधनों की गाँठे इतनी कसी हुई थीं कि उन्हे खोलना मुश्किल हो गया था। मेरे हाथों को खोलने मेँ उन चार दुष्ट पुलिस वालों को कई मिनट लगे और उसके बाद वे मुझे घसीटकर पूछताछ प्रतीक्षालय मेँ वापस ले गए।

अगले दिन दोपहर मेँ पुलिस मुझ पर मनमाने ढंग से "आपराधिक मामले" का आरोप लगाकर, मेरे घर पर छापेमारी करने के लिए मुझे अपने साथ ले गई। इसके बाद उन्होंने मुझे एक बंदीगृह मेँ भेज दिया। मैं जैसे ही बंदीगृह में पहुंचा, चार सुधारक अधिकारियों ने मेरी सूती अस्तर वाली जैकेट, ट्राउजर, जूतों और घड़ी के साथ-साथ 1,300 युआन जब्त कर लिए। उन्होंने मुझे जेल की वर्दी पहनाई और उनसे कंबल खरीदने के लिए 200 युआन खर्च करने के लिए विवश किया। इसके बाद सुधारक अधिकारियों ने मुझे डकैतों, हत्यारों, बलात्कारियों और नशीले पदार्थों के तस्करों के साथ बंद कर दिया। जब मैं अपने सेल मेँ घुसा, तो मैंने देखा कि एक दर्जन गंजे कैदी मुझे खा जाने वाली निगाहों से घूर रहे थे। कमरे का माहौल मनहूस और भयावह था और मुझे लगा कि मेरा कलेजा मेरे गले मेँ आ गया है। सेल के दो मुखिया उठकर मेरे पास आए और उन्होंने मुझसे पूछा : "तुम यहाँ क्यों आए हो?" मैंने कहा : "सुसमाचार का प्रचार करने के लिए"। बिना कुछ कहे, उनमें से एक ने मेरे चेहरे पर दो तमाचे जड़ते हुए कहा : "तुम धार्मिक मुखिया हो? हो कि नहीं?" बाकी कैदी जंगलियों की तरह अट्टहास करने लगे और मेरा मज़ाक उड़ाते हुए मुझसे पूछने लगे : "यहाँ से खुद को बचाने के लिए तुम अपने परमेश्वर को क्यों नहीं बुला रहे हो?" इस उपहास और तानाकशी के माहौल मेँ, सेल के मुखिया ने मेरे चेहरे पर कई और तमाचे मारे। उसके बाद इन लोगों ने मेरा नाम "धर्म का मुखिया" रख दिया और प्रायः मुझे अपमानित करने लगे और मेरा मजाक उड़ाने लगे। उस सेल के दुसरे मुखिया ने उन चप्पलों को देखा जो मैं पहने हुए था। उसने गुर्राते हुए कहा : "क्या तुम्हें अपनी औकात नहीं पता है? क्या तुम इन चप्पलों को पहनने के लायक हो? इन्हें निकालो!" ऐसा कहते हुए उसने जबर्दस्ती उन्हें मुझसे छीन लिया और बदले में मुझे एक पुरानी और घिसी-पिटी चप्पल दे दी। उन्होंने मेरा कम्बल भी दूसरे कैदियों को दे दिया। सब कैदी मेरे कम्बल के लिए छीना-झपटी करने लगे, और बाद में उन्होंने मुझे एक पुराना, फटा हुआ, गंदा और बदबूदार कम्बल दे दिया। सुधारक अधिकारियों द्वारा भड़काए जाने के कारण दूसरे कैदी मुझे हर प्रकार का कष्ट और प्रताड़ना देते रहे। रात के समय सेल में बिजली हमेशा जलती रहती थी, लेकिन सेल के एक मुखिया ने मुझसे कुटिल मुस्कान के साथ कहा : "मेरे लिए उस लाइट को बंद कर दो" चूँकि मैं ऐसा करने में असमर्थ था (बुझाने के लिए कोई स्विच भी नहीं था) इसलिए वे फिर मेरा उपहास करने लगे और मुझे ताने देने लगे। अगले दिन कुछ नाबालिग कैदियों ने मुझे एक कोने में खड़े होने के लिए मजबूर किया और यह धमकी देते हुए मुझसे जेल के नियम-कायदों को याद करने के लिए कहा : "अगर दो दिनों में इन्हें नहीं याद कर लेते हो तो फिर देखना तुम्हारे साथ क्या होता है।" मैं भयभीत हो गया और पिछले कुछ दिनों में जो कुछ मेरे साथ हुआ था, उसे याद करके मैं और भी अधिक भयभीत हो गया। इसलिए मैं परमेश्वर को पुकारता रहा और उनसे याचना करता रहा कि वे मेरी रक्षा करें, ताकि मैं इस भय से मुक्ति पा सकूं। ऐसे क्षण में परमेश्वर के वचनों के इस भजन ने मुझे प्रबुद्ध किया : "जब परीक्षण आते हैं, तो भी आप परमेश्‍वर से प्रेम कर सकते हैं; चाहे आपको जेल हो जाए, आप बीमार हो जाएँ, आपका उपहास या अपमान किया जाए, या लगे कि अब बचने का कोई मार्ग नहीं है, तो भी आप परमेश्‍वर से प्रेम कर सकते हैं। इसका अर्थ है कि आपका हृदय परमेश्‍वर की ओर मुड़ गया है"("मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ" में 'क्‍या आपका हृदय परमेश्‍वर की ओर मुड़ गया है?')। परमेश्वर के वचनों ने मुझे शक्ति दी और अभ्यास के लिए एक मार्ग दिखाया—परमेश्वर से प्रेम करने और अपना ह्रदय परमेश्वर की ओर मोड़ने का मार्ग! उस क्षण, मेरे ह्रदय में अचानक यह स्पष्ट हो गया कि परमेश्वर यह यातना मुझे कष्ट देने के लिए नहीं दे रहा है या उसका उद्देश्य जानबूझकर मुझे कष्ट देना नहीं है, बल्कि यह प्रक्रिया, ऐसे माहौल में मेरे दिल को परमेश्वर की ओर मोड़ने का अभ्यास है, ताकि मैं शैतान के बुरे प्रभावों के नियंत्रण का सामना कर सकूँ एवं अपने ह्रदय को परमेश्वर के समीप ला सकूँ और उसको प्यार कर सकूं, और परमेश्वर के आयोजन और व्यवस्था का बिना किसी शिकायत के पालन कर सकूँ। इस विचार के मन मेँ आने के बाद, अब मुझे कोई डर नहीं था। पुलिस वाले और कैदी मेरे साथ चाहे जैसा भी व्यवहार करें मुझे इसकी कोई चिंता नहीं थी, अब मैं सिर्फ खुद को परमेश्वर को समर्पित करने का ध्यान रखूँगा; मैं शैतान के सामने कभी भी नहीं झुकूँगा।

जेल का जीवन पृथ्वी पर नर्क जैसा होता है। जेल के संतरियों द्वारा उकसाए जाने के कारण अन्य कैदी मुझे यातना देने के नए-नए तरीकों का इस्तेमाल करते थे : रात मेँ सोने के लिए मेरे साथ अनेक कैदियों को ठूंस दिया जाता गया था। हालत यह थी कि करवट लेना भी मुश्किल था। मुझे शौचालय के पास सोना पड़ता था। पकड़े जाने के बाद चूंकि मैं कई दिनों तक नहीं सो सका था, अत: मुझे इतनी नींद आती थी कि मैं खुद को नहीं रोक पाता था और कभी भी झपकी लेने लगता था। जो कैदी संतरी की ड्यूटी पर होते थे वे मुझे परेशान करने आ जाते थे और जानबूझकर मेरे सर पर तब तक ठोकते रहते थे जब तक मैं जग नहीं जाता था। एक कैदी था जिसने मुझे जानबूझकर उठाया और मेरे अंतर्वस्त्र लेने की कोशिश की। दूसरे दिन, नाश्ते के बाद सेल के मुखिया ने मुझसे रोज फर्श को रगड़कर साफ करने को कहा। ये वर्ष के सबसे ठंडे दिन थे और गर्म पानी की कोई व्यवस्था नहीं थी, अतः पोछे के लिए मैं सिर्फ ठंडे पानी का ही प्रयोग कर सकता था। इसके बाद, कई कैदी डाकुओं ने जोर देकर मुझे जेल के नियमों को याद कराया। जब मैं नहीं याद कर पाता था तो वे मुझे लात-घूंसे मारते थे। चेहरे पर झापड़ खाना आम बात थी। इस तरह के माहौल मेँ, मैं बहुत ही दुखी था। रात मेँ मैंने कंबल से अपना मुँह ढककर मौन प्रार्थना की : "हे परमेश्वर, तुमने मुझे इस माहौल मेँ आने दिया, अतः इसमें तुम्हारा कोई भला इरादा होगा। कृपया अपना यह इरादा प्रकट करो।" उस क्षण, परमेश्वर के इन वचनों ने मुझे प्रबुद्ध किया : "मैं पहाड़ियों में खिलती कुमुदिनी की प्रशंसा करता हूँ; ढलानों पर फूलों और घास का तो फैलाव होता है, लेकिन वसंत ऋतु के आने से पहले कुमुदिनी पृथ्वी पर मेरी महिमा को चार चाँद लगा देती है—क्या मनुष्य ऐसी चीज़ें हासिल कर सकता है? क्या वह पृथ्वी पर मेरी वापसी से पहले मेरी गवाही दे सकता है? क्या वह बड़े लाल अजगर के देश में मेरे नाम की खातिर खुद को समर्पित कर सकता है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 34)। मैं मन-ही-मन सोचने लगा, "फूल और घास, मैं और सब कुछ परमेश्वर की रचना हैं। परमेश्वर ने हमें इसलिए सृजित किया है ताकि हम उसे अभिव्यक्त करें, उसका महिमामंडन करें। ये कुमुदिनियाँ, बसंत के आगमन के पहले, परमेश्वर की महिमा मेँ कांति का समावेश करने मेँ समर्थ हैं, अर्थात परमेश्वर की रचना के रूप मेँ इन्होंने अपने कर्तव्य को पूरा किया है। मेरा आज कर्तव्य है परमेश्वर के आयोजन का पालन करना और शैतान के समक्ष परमेश्वर की गवाही देना। मैं जो उत्पीड़न और अपमान झेल रहा हूँ, उसका कारण मेरी आस्था है, यह धार्मिकता के लिए है और यह गौरवपूर्ण है। शैतान मुझे जितना अधिक अपमानित करेगा, उतना ही अधिक मैं परमेश्वर के पक्ष मेँ खड़ा होऊंगा और उससे प्रेम करूंगा। इस प्रकार परमेश्वर की महिमा बढ़ेगी और मैं अपने उस कर्तव्य को पूरा कर सकूँगा जो मुझे पूरा करना चाहिए। जब तक परमेश्वर प्रसन्न और खुश हैं, मेरा दिल भी संतुष्टि प्राप्त करेगा। मैं परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए और परमेश्वर द्वारा पूरी तरह से आयोजित होने के लिए चरम यातना भी सहने के लिए तैयार हूँ।" जब मैंने इस प्रकार सोचना शुरू किया, मेरा दिल भाव-विभोर हो उठा और एक बार फिर मैं अपने आंसुओं को रोकने मेँ विफल रहा। मैंने परमेश्वर से मौन प्रार्थना की : "हे परमेश्वर, तुम सचमुच प्रेम के योग्य हो! मैं वर्षों से तुम्हारा अनुसरण कर रहा हूँ, लेकिन जिस तरह तुम्हारे कोमल स्नेह को मैं आज महसूस कर रहा हूँ वैसा मैंने पहले कभी नही किया था, और तुम्हारे साथ इतनी निकटता भी मैंने पहले कभी महसूस नहीं की थी।" मैं अपने कष्टों को पूरी तरह भूल गया और भावनाओं के इस प्रवाह मेँ बहुत देर तक डूबा रहा ...

बंदीगृह में छठे दिन तापमान बहुत कम था। चूंकि दुष्ट पुलिस ने मेरा सूती अस्तर वाला कोट जब्त कर लिया था, अतः मैं सिर्फ अपना लंबा जाँघिया पहने हुए था जिसके कारण मुझे सर्दी लग गई। मैं तेज बुखार के साथ-साथ लगातार खाँस रहा था। रात मेँ मैंने बीमारी की यंत्रणा को बर्दाश्त करने के लिए, खुद को एक फटे हुए कंबल मेँ लपेट लिया और कैदियों के अपने प्रति अनंत दुर्व्यवहार के बारे मेँ भी सोचता रहा। मैं खुद को बेहद अकेला औए असहाय महसूस कर रहा था। जब मेरा दुख सीमा से पार हो गया, तो मैं परमेश्वर के सम्मुख पतरस की सच्ची और निष्ठापूर्ण प्रार्थना के बारे में सोचने लगा : "यदि तू मुझे बीमारी देकर मेरी स्वतंत्रता छीन लेता है, तो भी मैं जीवित रह सकता हूँ, परंतु अगर तेरी ताड़ना और न्याय मुझे छोड़ दें, तो मेरे पास जीने का कोई रास्ता न होगा। यदि मेरे पास तेरी ताड़ना और न्याय न होता, तो मैंने तेरे प्रेम को खो दिया होता, एक ऐसा प्रेम जो इतना गहरा है कि मैं इसे शब्दों में बयाँ नहीं कर सकता। तेरे प्रेम के बिना, मैं शैतान के कब्जे में जी रहा होता, और तेरे महिमामय मुखड़े को न देख पाता। मैं कैसे जीवित रह पाता?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान)। इन वचनों ने मुझे आस्था और शक्ति दी। पतरस ने शारीरिक कष्ट के बारे में कुछ भी नहीं सोचा था। उसने जो सँजोया, जिसकी वास्तव में परवाह की, वह था परमेश्वर का न्याय और उसकी ताड़ना। उसने परमेश्वर के न्याय और ताड़ना का अनुभव करने की कोशिश की ताकि उसे स्वच्छ किया जा सके और अंततः वह मृत्युपर्यंत आज्ञाकारिता प्राप्त कर सके, और परमेश्वर के लिए परम प्रेम पा सके। मुझे पता था कि मुझे पतरस के रास्ते को अपनाना होगा, क्योंकि परमेश्वर ने मुझे उसी स्थिति में ला रखा था। भले ही मैं शारीरिक पीड़ा झेल रहा था, लेकिन यह परमेश्वर का प्यार था जो मुझ पर बरस रहा था। परमेश्वर मेरी आस्था और मेरे संकल्प को मेरी पीड़ा की स्थिति में पूर्ण करना चाहता था। परमेश्वर के सच्चे इरादों को समझने के बाद मैं बहुत द्रवित हो गया, और मुझे इस बात से नफरत होने लगी कि मैं कितना कमजोर, कितना स्वार्थी था। मैंने महसूस किया कि परमेश्वर की इच्छा पर विचार न करने के कारण मैं उसका कितना अधिक ऋणी था, और मैंने कसम खाई कि चाहे मेरी पीड़ा कितनी भी बड़ी क्यों न हो, मैं गवाही दूंगा और परमेश्वर को संतुष्ट करूंगा। अगले दिन, मेरा तेज बुखार चमत्कारिक ढंग से उतर गया। मैंने अपने हृदय में परमेश्वर को धन्यवाद दिया।

एक रात एक फेरीवाला खिड़की पर आया और सेल के मुखिया ने उससे काफी मात्र मेँ सूअर, कुत्ते और मुर्गे का मांस तथा और भी कुछ खरीदा। इसके बाद उसने मुझे भुगतान करने का आदेश दिया। मैंने कहा कि मेरे पास पैसे नहीं हैं। इस पर उसने कुटिलतापूर्वक कहा : "यदि तुम्हारे पास पैसे नहीं हैं तो मैं तिल-तिल करके तुम्हें यातना दूंगा!" अगले दिन उसने मुझे चादरें, कपड़े और मोजे धोने के लिए कहा। कारावास मेँ मौजूद सुधारक अधिकारियों ने भी मुझे अपने मोजे धोने के लिए कहा। कारावास मेँ मुझे लगभग रोज उनकी पिटाई झेलनी पड़ती थी। जब मुझसे और अधिक बर्दाश्त नहीं होता था तो मैं परमेश्वर के इन वचनों के बारे में सोचता था : "पृथ्वी पर अपने समय के दौरान तुम्हें परमेश्वर के प्रति अपना अंतिम कर्तव्य अवश्य निभाना चाहिए। अतीत में, पतरस को परमेश्वर के लिए क्रूस पर उलटा लटका दिया गया था; परंतु तुम्हें अंत में परमेश्वर को संतुष्ट करना चाहिए, और अपनी सारी ऊर्जा परमेश्वर के लिए खर्च करनी चाहिए। एक सृजित प्राणी परमेश्वर के लिए क्या कर सकता है? इस कारण से तुम्हें जितना जल्दी हो सके, अपने आपको परमेश्वर पर छोड़ देना चाहिए, ताकि वह अपनी इच्छानुसार तुम्हारी व्यवस्था कर सके। जब तक परमेश्वर खुश और प्रसन्न है, तब तक उसे जो चाहे करने दो। मनुष्यों को शिकायत करने का क्या अधिकार है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों” के रहस्यों की व्याख्या, अध्याय 41)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे शक्ति दी। यद्यपि समय-समय पर मुझे अब भी हमले, अपमान, निंदा और कैदियों द्वारा पीटे जाने की प्रताड़ना सहनी पड़ती थी, फिर भी परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन में, मुझे भीतर से सूकून मिला और मुझे पीड़ा महसूस होनी बंद हो गई।

एक बार एक सुधारक अधिकारी मुझे अपने कार्यालय में ले गया। जब मैं वहाँ पहुंचा तो मैंने देखा कि लगभग एक दर्जन लोग मुझे विचित्र नज़रों से घूर रहे थे। उनमें से एक आदमी मेरे सामने बाईं ओर एक वीडियो कैमरा लिए खड़ा था, जबकि एक दूसरा आदमी हाथ मेँ माइक्रोफोन लेकर मेरे पास आया और उसने मुझसे पूछा : "तुम क्यों सर्वशक्तिमान परमेश्वर मेँ विश्वास करते हो?" उसके ऐसा कहते ही मैं समझ गया कि यह साक्षात्कार मीडिया के लिए है। इसलिए मैंने गर्वपूर्ण विनम्रता के साथ उत्तर दिया : "बचपन से ही मैं लोगों की दादागिरी और खराब व्यवहार को झेलता रहा हूँ, और मैंने देखा है कि लोग परस्पर एक-दूसरे को धोखा देते हैं और दूसरों से सिर्फ अपना मतलब निकालते हैं। मुझे लगा कि यह समाज अत्यंत अंधकारमय और खतरनाक है; लोग एक खोखला और असहाय जीवन जी रहे हैं। उनका भावी जीवन भी खोखला और लक्ष्यहीन है। बाद मेँ, जब किसी ने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के सुसमाचारों का प्रवचन दिया तो मैं उनमें विश्वास करने लगा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर मेँ विश्वास करने के बाद, मैंने यह अनुभव किया है कि अन्य विश्वासी लोग मेरे साथ परिवार के सदस्य के रूप में व्यवहार करते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया मेँ कोई भी मेरे विरुद्ध साजिश नहीं करता है। हर सदस्य एक-दूसरे को समझता है और एक-दूसरे का खयाल रखता है। वे सब एक-दूसरे की देख-भाल करते हैं और उनके मन मेँ जो होता है उसे बोलने मेँ संकोच नहीं करते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों मेँ मैंने जीवन का प्रयोजन और मूल्य पाया है। मुझे लगता है कि परमेश्वर मेँ विश्वास करना अत्यंत शुभ है।" इसके वाद रिपोर्टर ने मुझसे पूछा : "क्या तुम्हें पता है कि तुम यहाँ क्यों हो?" मैंने उत्तर दिया कि : "सर्वशक्तिमान परमेश्वर मेँ विश्वास करने के बाद, मैंने देखा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सचमुच ही लोगों को बचा सकते हैं, उन्हें शुद्ध कर सकते हैं और उन्हें सही रास्ते पर ले जा सकते हैं। इसलिए मैंने यह शुभ समाचार दूसरे लोगों को बताने का निर्णय लिया, लेकिन मैंने सपने मेँ भी नहीं सोचा था कि इस प्रकार का धार्मिक कार्य भी चीन में प्रतिबंधित होगा। और इसलिए मुझे गिरफ्तार कर लिया गया और यहाँ लाया गया।" संवाददाता ने जब यह महसूस किया कि मेरे उत्तर उसके पक्ष के लिए लाभदायक नहीं हैं तो उसने साक्षात्कार को तत्काल बंद कर दिया और वहाँ से चला गया। उस समय राष्ट्रीय सुरक्षा ब्रिगेड का उप प्रमुख इतना भड़क गया था कि बार-बार अपने पाँव पटक रहा था। उसने दुष्टतापूर्वक मेरी ओर देखा और अपने दाँत पीसते हुए बोला : "बस थोड़ा इंतज़ार करो और फिर देखो!" लेकिन मुझे उसकी धमकियों या धौंस की कोई चिंता नहीं थी। बल्कि इसके उल्टे, इस अवसर पर परमेश्वर के साक्षी के रूप मेँ प्रस्तुत होने के कारण, मैं भीतर से बहुत सम्मानित महसूस कर रहा था; और इसके साथ ही मैंने परमेश्वर के नाम को उच्च दर्जा देकर और शैतान को पराजित करके परमेश्वर को महिमामंडित किया था।

बाद मेँ मेरे मामले के प्रभारी पुलिस अधिकारी ने मुझसे फिर से पूछताछ की। इस बार उसने मेरी स्वीकारोक्ति लेने के लिए, मुझ पर यातना का प्रयोग नहीं किया, बल्कि दयालु भेष बनाकर मुझसे सवाल किया : "तुम्हारा अगुआ कौन है? मैं तुम्हें एक और मौका दूंगा। अगर तुम बता देते हो तो तुम्हारे साथ सब ठीक हो जाएगा। मैं तुम्हारे साथ अत्यधिक नरमी बरतूंगा। तुम बेकसूर थे, लेकिन अन्य लोगों ने तुम्हें फंसा दिया। तो ऐसे लोगों के बारे मेँ क्या छुपाना? तुम बहुत अच्छे व्यक्ति लगते हो। उन लोगों के लिए अपना जीवन क्यों जोखिम मेँ डालते हो? अगर तुम बता दोगे तो तुम घर जा सकते हो। यहाँ रुककर कष्ट झेलने से क्या फायदा?" जब इन दोमुंहे पाखंडियों को लगा कि कड़े तरीके से बात नहीं बन रही तो उन्होंने नरम तरीका अपनाने का फैसला किया। इनके पास चालाकी भरी तरकीबों के भंडार हैं और ये चालबाजी और पैंतरेबाजी के उस्ताद हैं! उसके पाखंडी चेहरे को देखकर मेरा दिल इन राक्षसों के झुंड के प्रति घृणा से भर गया। मैंने उससे कहा, "मैं जो भी जानता था आपको बता चुका हूँ। मेरे पास बताने के लिए और कुछ नहीं है।" मेरे दृढ़ रवैये को देखकर वह समझ गया कि उसे मुझसे कुछ भी मिलने वाला नहीं है, इसलिए वह वहाँ से निराश होकर चला गया।

बंदीगृह मेँ आधा महीना रहने के बाद, मुझे तब छोड़ा गया जब मेरे परिवार ने 8,000 युआन की जमानत राशि जमा की। लेकिन उन लोगों ने मुझे यह चेतावनी भी दी कि मैं कहीं भी बाहर न जाऊँ, और सिर्फ अपने घर मेँ ही रहूँ और बुलाए जाने पर उपस्थित होने की गारंटी दूँ। बाद में, "सामाजिक व्यवस्था को बिगाड़ने" के बेबुनियाद आरोप मेँ सीसीपी ने मुझे एक साल की निश्चित अवधि के कारावास का दंड दिलवाया—जिसे दो वर्षों के लिए निलंबित रखा गया।

इस उत्पीड़न और क्लेश को झेलने के बाद, मुझे बहुत कुछ समझ में आया और मैं चीन की इस नास्तिक कम्युनिस्ट पार्टी का सार तत्व समझ गया और इसके प्रति मेरे मन मेँ अथाह घृणा पैदा हो गई। यह अपनी प्रभुता को बनाए रखने के लिए, हिंसक तरीकों और झूठ का प्रयोग करती है, परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोगों का पागलों की तरह दमन करती है और उनका उत्पीड़न करती है। पृथ्वी पर परमेश्वर के कार्य को रोकने और बाधित करने के लिए यह हर तरकीब का इस्तेमाल करती है, और सत्य से अत्यधिक घृणा करती है। यह परमेश्वर की सबसे बड़ी शत्रु है और परमेश्वर में विश्वास करने वाले हम सभी लोगों की भी शत्रु है। इस क्लेश से गुजरने के बाद, मैं देख सकता हूँ कि सिर्फ परमेश्वर के वचन ही लोगों को जीवन दे सकते हैं। जब मैं जीवन के सबसे निराशाजनक क्षणों में था या मृत्यु की कगार पर था, तो परमेश्वर के शब्दों ने ही मुझे आस्था और शक्ति दी और मुझे अपनी जीवन डोर को मजबूती से थामे रहने में सक्षम बनाया। उन सबसे अंधकारमय, बेहद मुश्किल दिनों में मेरी रक्षा करने के लिए परमेश्वर का धन्यवाद। मेरे लिए उसका प्यार सचमुच महान है!

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