42. मैं ईर्ष्या के जाल में फँस गई थी

शू जुआन, चीन

मैं कलीसिया में तस्वीरें डिजाइन करने का काम करती थी और बाद में मुझे टीम अगुआ चुना गया। सहयोग की अवधि के बाद टीम में काम की प्रगति में कुछ हद तक सुधार हुआ और डिजाइन की गुणवत्ता में भी वृद्धि हुई। अगुआ मुझे बहुत महत्व देता था और ज्यादातर समय टीम के मामलों पर मुझसे सलाह लेता था। अगर किसी बहन की दशा खराब होती या उसके पास तकनीकी कौशल की कमी होती तो मुझे और अधिक संगति और मदद करने के लिए भी कहा जाता था। कई मौकों पर मैंने यह भी सुना था कि अगुआ ने अन्य टीमों में मेरी कार्य क्षमताओं की प्रशंसा की थी जिससे मुझे बहुत खुशी हुई, मैंने सोचा कि मैं दूसरों से बेहतर हूँ और मेरी काबिलियत अच्छी है।

अगस्त 2019 में बहन ली वेन को अपना कर्तव्य निभाने के लिए हमारी टीम में स्थानांतरित कर दिया गया। अगुआ ने कहा कि उसकी काबिलियत काफी अच्छी है और मुझे उसे विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा। बाद की बातचीत में मैंने देखा कि ली वेन में वाकई काफी अच्छी काबिलियत है। कभी-कभी वह तस्वीरों में उन मुद्दों की पहचान करती थी जिन्हें मैं अनदेखा कर देती थी और संशोधनों के लिए उसके सुझाव काफी नवीन और अनूठे होते थे। टीम की एक अन्य बहन झाओ लिंग भी उसका आदर करती थी। इस समय मेरे दिल में संकट की भावना थी, सोचती थी “अगर मैं ली वेन जितनी अच्छी नहीं हूँ तो फिर कौन मेरा आदर करेगा? ऐसे नहीं चलेगा। मुझे अपने कर्तव्य के तकनीकी पक्ष पर कड़ी मेहनत करने की जरूरत है।” लेकिन चाहे मैंने कितनी भी कोशिश की हो, मैं तकनीकी क्षेत्रों में ली वेन जितनी अच्छी नहीं थी और न ही मैं मुद्दों को ली वेन की तरह व्यापक रूप से देख पाती थी। मैं बहुत निराश थी। बाद में मैंने देखा कि झाओ लिंग की ली वेन के साथ अच्छी बन रही थी, वह किसी भी मुद्दे के लिए ली वेन की मदद लेती थी, और जब अगुआ हमारे साथ मुद्दों पर चर्चा करता था, तो ली वेन के दृष्टिकोणों और सुझावों को अक्सर सभी की स्वीकृति मिलती थी। मुझे लगा कि मुझे दरकिनार कर दिया गया है। खासकर जब अगुआ ने ली वेन को और अधिक अभ्यास करने के लिए प्रोत्साहित किया तो यह सुनकर मैं बहुत असहज हो गई, मैंने सोचा, “मैं इस बात से इनकार नहीं करती कि ली वेन में अच्छी काबिलियत है, लेकिन मैं भी बुरी नहीं हूँ! मैंने जो तस्वीरें बनाई हैं, उनमें से कई पहले भी चुनी जा चुकी हैं और मैं समस्याएँ सुलझाने में भी सक्षम हूँ। तुम ये चीजें क्यों नहीं देख सकती?” इन बातों को ध्यान में रखते हुए मैं ली वेन से ईर्ष्या करने लगी, सोच रही थी, “तुम्हारे आने से पहले अगुआ मुझे अधिक महत्व देते थे और हर बात पर मुझसे सलाह लेते थे, लेकिन जब से तुम यहाँ आई हो, मुझे दरकिनार कर दिया गया है, तुमने मेरी ‘आभा’ चुरा ली है!” जितना मैंने इसके बारे में सोचा, असंतुलन की यह भावना उतनी ही बढ़ती गई और मैं ली वेन से नफरत करने लगी।

बाद में मैंने ली वेन और एक मेजबान बहन के बीच कुछ मनमुटाव देखा, लेकिन मैंने कोई संगति या मदद नहीं की और इसके बजाय उसकी स्थिति का आनंद लिया, सोच रही थी, “क्या तुम्हें हर चीज में अच्छा नहीं होना चाहिए? क्या हर कोई तुम्हारा आदर नहीं करता? आखिर तुम इस मेजबान बहन के साथ अपना रिश्ता कैसे नहीं संभाल पा रही हो?” कभी-कभी मेजबान बहन हमारे सामने ली वेन की परेशान करने वाली व्यक्तिगत आदतों का जिक्र करती थी और भले ही मैं उसे ली वेन के साथ सही व्यवहार करने के लिए कहती थी, लेकिन अंदर ही अंदर मुझे उम्मीद रहती थी कि वह उसके खिलाफ पक्षपाती हो जाएगी और इस तरह लोग ली वेन को इतना महान नहीं समझेंगे और वे उसे इतना सम्मान नहीं देंगे। एक दिन हमें अपनी तकनीकों के बारे में संवाद पत्र लिखने की जरूरत थी और हमें कुछ तस्वीरें भी संशोधित करनी थी। मैं संवाद पत्र लिखने में बहुत अच्छी थी, लेकिन अगुआ द्वारा ली वेन की प्रशंसा करने के विचार ने मुझे पत्र लिखने से रोक दिया। मुझे लगता था कि पत्र लिखना ली वेन की कमजोरी है, इसलिए मैंने उसे पत्र लिखने दिया। मुझे लगा था कि अगर वह इसे अच्छी तरह से नहीं लिखेगी तो दूसरे लोग उसके बारे में अच्छा नहीं सोचेंगे। अपनी ईमानदारी के दिखावे के जरिए मैंने ली वेन से कहा, “झाओ लिंग और मैं डिजाइन पर काम करेंगे और तुम पत्र लिख दो। हर किसी को हरफनमौला बनने का अभ्यास करने की जरूरत है, इसलिए इसे लिखने में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करो और अधिक दबाव महसूस मत करो।” ली वेन ने कहा कि उसने पहले कभी इस तरह का पत्र नहीं लिखा था और उसे डर था कि अगर उसने इसे खराब तरीके से लिखा तो समय बर्बाद होगा, लेकिन मैंने जोर देकर कहा कि वह इसे लिखे। उसने जो पत्र लिखा, वह कुल मिलाकर ठीक ही लग रहा था, लेकिन उसमें कुछ विवरण नहीं थे। मैंने सोचा, “यह तुम्हें चुनौती क्यों नहीं दे रहा है? इस गति से तो तुम आखिरकार मेरी चमक चुरा ही लोगी! चूँकि तुमने जो पत्र लिखा है, उसमें कमियाँ हैं, इसलिए मुझे तुम्हें बुरा दिखाना होगा!” मैंने बहुत सी समस्याएँ बताईं, कहा कि कुछ भाग अस्पष्ट थे और अन्य में विवरण की कमी थी। जब ली वेन ने मुझे इतनी सारी समस्याएँ बताते हुए देखा तो वह कुछ हद तक नकारात्मक हो गई। बाद में मैंने जानबूझकर ली वेन को टीम में कुछ अधिक चुनौतीपूर्ण कार्य सौंपे, ताकि उसके लिए चीजें मुश्किल हो जाएँ। कभी-कभी मैं ली वेन की कोई भी छोटी-मोटी भ्रष्टता पकड़ लेती थी और फिर झाओ लिंग के सामने उसकी आलोचना करती थी, कहती थी कि वह कितनी घमंडी है और कैसे वह अपनी चिड़चिड़ी व्यक्तिगत आदतों पर नियंत्रण नहीं रख पाती और मेजबान बहन उसे नापसंद करने लगती है। इससे झाओ लिंग ली वेन के प्रति पक्षपाती हो गई। ली वेन बहुत बेबस और नकारात्मक हो गई और अपना कर्तव्य करने के लिए दूसरी टीम में स्थानांतरित होना चाहती थी। ली वेन को इतना नकारात्मक देखकर मुझे अपराध बोध की पीड़ा हुई, सोच रही थी, “क्या मैं उसके साथ बहुत सख्त हो रही हूँ?” लेकिन फिर मैंने सोचा, “अगर मैं ऐसा नहीं करती हूँ तो मैं टीम में पकड़ कैसे जमा पाऊँगी? कौन मेरी बात पर ध्यान देगा? टीम अगुआ के रूप में मेरा पद भी खतरे में पड़ सकता है।” इन विचारों ने अपराध बोध को गायब कर दिया। बाद में अगुआ की संगति और मदद से ली वेन की अवस्था में सुधार हुआ। इस बीच मैं ईर्ष्या से ग्रस्त रहती थी और ली वेन के साथ सहयोग नहीं कर पाती थी। बाद में मुझे दो महीने से अधिक समय तक दाँत में दर्द रहा और चाहे मैंने कोई भी दवा ली, कुछ भी काम नहीं आया। बहनों ने मुझे आत्म-चिंतन करने की याद दिलाई, लेकिन मैं बस बाहरी कारणों की तलाश करती रही। अगुआ ने तब मुझे प्रतिष्ठा और रुतबे की बहुत परवाह करने, दूसरों को अलग-थलग करने, दूसरों के साथ सामंजस्यपूर्ण ढंग से सहयोग न करने, टीम को अराजकता में डालने और कई महीनों तक काम के नतीजे न मिलने के लिए उजागर किया। उसने कहा कि मैं मसीह-विरोधी के मार्ग पर चल रही थी और मुझे बर्खास्त कर दिया गया। उसके शब्दों ने मेरे दिल को चीर दिया और मैं व्यथित हो गई। मुझे एहसास हुआ कि मैंने बुरा किया है और मैं बस रोती रही। मुझे लगा कि प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए मेरी तीव्र चिंता का मतलब है कि परमेश्वर मुझे नहीं बचाएगा, इसलिए मैंने खुद से हार मान ली। बाद में झाओ लिंग ने अपने अनुभव साझा किए और मेरी मदद की, मुझे हार न मानने के लिए प्रोत्साहित किया और मुझे बताया कि मुझे अपनी समस्याएँ सुलझाने के लिए सत्य की तलाश करनी चाहिए।

एक शाम अपने भक्ति-सत्र के दौरान मैंने परमेश्वर के वचनों का एक भजन सुना जिसका शीर्षक था “सच का अनुसरण करने के लिए ज़रूरी संकल्प” जिसने सचमुच मुझे प्रभावित किया। परमेश्वर कहता है : “तुम्हें यह समझ होनी चाहिए : ‘मेरा सामना किसी भी चीज से हो, ये सब सबक हैं जो मुझे सत्य के अनुसरण में सीखने चाहिए—इन सबकी व्यवस्था परमेश्वर ने की है। मैं कमजोर हो सकता हूँ, मगर निराश नहीं हूँ, और ये सबक सीखने का मौका देने के लिए परमेश्वर का आभारी हूँ। मेरे लिए यह स्थिति तय करने के लिए मैं परमेश्वर का आभारी हूँ। मैं परमेश्वर का अनुसरण करने और सत्य प्राप्त करने का अपना संकल्प त्याग नहीं सकता। अगर मैं त्याग दूँ, तो यह शैतान से हार मानने जैसा होगा, खुद को बर्बाद करना और परमेश्वर को धोखा देना होगा।’ तुम्हें ऐसा संकल्प रखना होगा(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अक्सर परमेश्वर के सामने जीने से ही उसके साथ एक सामान्य संबंध बनाया जा सकता है)। मैंने अपने मन में यह गीत बार-बार गाया और मेरी आँखों में आँसू भर आए। मुझे लगा कि मेरा बर्खास्त किया जाना और अगुआ द्वारा गंभीर रूप से उजागर किया जाना परमेश्वर की ओर से था और यह मेरे लिए परमेश्वर का प्रेम और उद्धार था। मैं बहुत ही सुन्न और अड़ियल हो गई थी, हठपूर्वक प्रतिष्ठा और रुतबे का पीछा कर रही थी और मसीह-विरोधी के मार्ग पर चल रही थी। मुझे इतने लंबे समय से दाँत में दर्द था और बहनों ने मुझे याद दिलाया और मदद भी की, लेकिन मैंने पश्चात्ताप करने के बारे में नहीं सोचा। मेरा मन इस बात के विचारों से भरा हुआ था कि ली वेन का आदर होने का मतलब है कि मेरी उपेक्षा की जा रही है और मैं प्रतिष्ठा और रुतबे की अपनी इच्छा से अंधी हो गई थी, जिसके कारण मैं ली वेन से घृणा करने लगी थी और उसके प्रति पक्षपाती हो गई थी, ऐसे काम करने लगी थी जिससे उसे ठेस पहुँची और टीम में अराजकता फैल गई। लेकिन मैंने इस पर विचार नहीं किया और इसके बजाय खुद से हार मान ली, इस गलतफहमी में रही कि परमेश्वर अब मुझे नहीं बचाएगा। क्या मैं परमेश्वर के इरादे को विकृत नहीं कर रही थी? मुझे वाकई परमेश्वर के हृदय की कोई समझ नहीं थी। मैं खुद को बिल्कुल नहीं जानती थी! इसका एहसास होने पर मैं वाकई परमेश्वर के प्रति ऋणी हो गई और अगर परमेश्वर ने मुझे ताड़ना देने और अनुशासित करने के लिए इन परिस्थितियों की व्यवस्था नहीं की होती तो मैं आत्म-चिंतन नहीं करती और मैं गलत रास्ते पर चलती रहती। मैं परमेश्वर को गलत नहीं समझ सकती थी और अपनी अवस्था सुधारने के लिए उसके वचनों को ठीक से खाना और पीना चाहती थी।

इसके बाद मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा जो सीधे मेरी अवस्था से संबंधित था। परमेश्वर कहता है : “कुछ लोग हमेशा इस बात से डरे रहते हैं कि दूसरे लोग उनसे बेहतर और ऊपर हैं, अन्‍य लोगों को पहचान मिलेगी, जबकि उन्हें अनदेखा किया जाता है, और इसी वजह से वे दूसरों पर हमला करते हैं और उन्हें अलग कर देते हैं। क्या यह प्रतिभाशाली लोगों से ईर्ष्या करने का मामला नहीं है? क्या यह स्‍वार्थपूर्ण और निंदनीय नहीं है? यह कैसा स्वभाव है? यह दुर्भावना है! जो लोग दूसरों के बारे में सोचे बिना या परमेश्वर के घर के हितों को ध्‍यान में रखे बिना केवल अपने हितों के बारे में सोचते हैं, जो केवल अपनी स्‍वार्थपूर्ण इच्छाओं को संतुष्ट करते हैं, वे बुरे स्वभाव वाले होते हैं, और परमेश्वर में उनके लिए कोई प्र‍ेम नहीं होता। अगर तुम वाकई परमेश्वर के इरादों का ध्यान रखने में सक्षम हो, तो तुम दूसरे लोगों के साथ निष्पक्ष व्यवहार करने में सक्षम होंगे। अगर तुम किसी अच्छे व्यक्ति की सिफ़ारिश करते हो और उसे प्रशिक्षण प्राप्‍त करने और कोई कर्तव्य निर्वहन करने देते हो, और इस तरह एक प्रतिभाशाली व्यक्ति को परमेश्वर के घर में शामिल करते हो, तो क्या उससे तुम्‍हारा काम और आसान नहीं हो जाएगा? तब क्या यह तुम्‍हारा कर्तव्‍य के प्रति वफादारी प्रदर्शित करना नहीं होगा? यह परमेश्वर के समक्ष एक अच्छा कर्म है; अगुआ के रूप में सेवाएँ देने वालों के पास कम-से-कम इतनी अंतश्‍चेतना और तर्क तो होना ही चाहिए(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। परमेश्वर के वचनों पर मनन करते हुए मैंने देखा कि परमेश्वर ने जो उजागर किया, वह बिल्कुल मेरी अवस्था थी। मैं दूसरों की क्षमताओं से ईर्ष्या करती थी और मेरा स्वभाव बुरा था। डिजाइन बनाने का काम बहुत महत्वपूर्ण है और इसके लिए नवाचार करने वाले और अंतर्दृष्टि वाले लोगों के सहयोग की जरूरत होती है। इससे डिजाइन की प्रभावशीलता बढ़ाई जा सकती है। लेकिन झाओ लिंग और मैं बहुत प्रगतिशील नहीं थे, जबकि ली वेन इस क्षेत्र में उत्कृष्ट थी, जो संयोग से हमारी कमियों की भरपाई करती थी। यह काम के लिए फायदेमंद था और मुझे खुश होना चाहिए था कि कलीसिया में उसके जैसा कोई था। लेकिन मैं ऐसा नहीं सोचती थी। प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागने के कारण मैं हर मोड़ पर ली वेन से ईर्ष्या करती थी। जब मुझे पता चला कि उसकी काबिलियत मुझसे बेहतर है और अगुआ उसे महत्व देते हैं तो मुझे उससे पीछे छूट जाने का डर लगा और मैंने उससे आगे निकलने का दृढ़ निश्चय किया, लेकिन मेरे लिए हैरानी की बात थी कि चाहे मैंने कितनी भी कोशिश की, फिर भी उसकी बराबरी नहीं कर सकी। लेकिन मैं हार मानने को तैयार नहीं थी, इसलिए मैंने ली वेन के लिए चीजें मुश्किल बनानी शुरू कर दीं, छोटी-छोटी बातों पर मीन-मेख निकालना और जानबूझकर उसे शर्मिंदा करना शुरू कर दिया। मैं ली वेन द्वारा प्रकट की गई भ्रष्टता का भी फायदा उठाती थी और पीठ पीछे उसकी आलोचना करती थी, जिसकी वजह से लोग अब उसका सम्मान नहीं करते थे। मैंने देखा था कि मैं वाकई द्वेषपूर्ण थी और मेरे पास सामान्य लोगों की तरह भी कोई विवेक नहीं था! सामान्य मानवता और विवेक वाला व्यक्ति दूसरों को नुकसान पहुँचाने के लिए काम नहीं करेगा। ऐसा व्यक्ति ईमानदार होगा, परमेश्वर के इरादों पर विचार करेगा और उसका हृदय उसकी ओर झुकाव रखेगा और वह किसी को परमेश्वर के घर के काम में सहयोग करते देखकर खुश होगा। लेकिन न केवल मैं काम को बढ़ावा देने में नाकाम रही थी, बल्कि मैंने इसे बाधित किया और इसे नष्ट कर दिया। मेरे क्रियाकलाप और व्यवहार परमेश्वर के लिए बहुत घृणित थे और मैं वाकई मनुष्य कहलाने के लायक नहीं थी!

फिर मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : “मसीह-विरोधी के सार की सबसे स्पष्ट विशेषताओं में से एक यह होती है कि वे अपनी सत्ता का एकाधिकार और अपनी तानाशाही चलाते हैं : वे किसी की नहीं सुनते हैं, किसी का आदर नहीं करते हैं, और लोगों की क्षमताओं की परवाह किए बिना, या इस बात की परवाह किए बिना कि वे क्या सही विचार या बुद्धिमत्तापूर्ण मत व्यक्त करते हैं और कौन-से उपयुक्त तरीके सामने रखते हैं, वे उन पर कोई ध्यान नहीं देते; यह ऐसा है मानो कोई भी उनके साथ सहयोग करने या उनके किसी भी काम में भाग लेने के योग्य न हो। मसीह-विरोधियों का स्वभाव ऐसा ही होता है। कुछ लोग कहते हैं कि यह बुरी मानवता वाला होना है—लेकिन यह सामान्य बुरी मानवता कैसे हो सकती है? यह पूरी तरह से एक शैतानी स्वभाव है; और ऐसा स्वभाव अत्यंत क्रूरतापूर्ण है। मैं क्यों कहता हूँ कि उनका स्वभाव अत्यंत क्रूरतापूर्ण है? मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर और कलीसिया की संपत्ति से सब-कुछ हर लेते हैं और उससे अपनी निजी संपत्ति के समान पेश आते हैं जिसका प्रबंधन उन्हें ही करना हो, और वे इसमें किसी भी दूसरे को दखल देने की अनुमति नहीं देते हैं। कलीसिया का कार्य करते समय वे केवल अपने हितों, अपनी हैसियत और अपने गौरव के बारे में ही सोचते हैं। वे किसी को भी अपने हितों को नुकसान नहीं पहुँचाने देते, किसी योग्य व्यक्ति को या किसी ऐसे व्यक्ति को, जो अनुभवजन्य गवाही देने में सक्षम है, अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत को खतरे में डालने तो बिल्कुल भी नहीं देते। ... इसके अलावा मसीह-विरोधी अक्सर भाई-बहनों के बीच झूठ गढ़ते हैं और तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करते हैं, अपनी अनुभवजन्य गवाही पर बोलने वाले लोगों को नीचा दिखाते हैं और उनकी निंदा करते हैं। वे लोग चाहे जो भी काम करते हों, मसीह-विरोधी उन्हें अलग-थलग करने और उनका दमन करने के बहाने ढूँढ़ लेते हैं, और यह कहते हुए उनकी आलोचना भी करते हैं कि वे घमंडी और आत्मतुष्ट हैं, कि वे दिखावा करना पसंद करते हैं, और कि वे महत्वाकांक्षाएँ पालते हैं। वास्तव में, उन लोगों के पास कुछ अनुभवजन्य गवाही होती है और उनमें थोड़ी सत्य वास्तविकता होती है। वे अपेक्षाकृत अच्छी मानवता वाले, जमीर और विवेक युक्त होते हैं, और सत्य को स्वीकारने में सक्षम होते हैं। और भले ही उनमें कुछ कमियाँ, खामियाँ, और कभी-कभी भ्रष्ट स्वभाव के खुलासे हों, फिर भी वे आत्मचिंतन कर प्रायश्चित्त करने में सक्षम होते हैं। यही वे लोग हैं जिन्हें परमेश्वर बचाएगा, और जिन्हें परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाए जाने की उम्मीद है। कुल मिलाकर ये लोग कर्तव्य निभाने के लिए उपयुक्त हैं, ये कर्तव्य करने की अपेक्षाओं और सिद्धांतों को पूरा करते हैं। लेकिन मसीह-विरोधी मन-ही-मन सोचते हैं, ‘मैं इसे कतई बरदाश्त नहीं करूँगा। तुम मेरे साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए मेरे क्षेत्र में एक भूमिका पाना चाहते हो। यह असंभव है; इसके बारे में सोचना भी मत। तुम मुझसे अधिक शिक्षित हो, मुझसे अधिक मुखर हो, और मुझसे अधिक लोकप्रिय हो, और तुम मुझसे अधिक परिश्रम से सत्य का अनुसरण करते हो। अगर मुझे तुम्हारे साथ सहयोग करना पड़े और तुम मेरी सफलता चुरा लो, तो मैं क्या करूँगा?’ क्या वे परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करते हैं? नहीं। वे किस बारे में सोचते हैं? वे केवल यही सोचते हैं कि अपनी हैसियत कैसे बनाए रखें(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग एक))। प्रकाशन से जुड़े परमेश्वर के वचन बहुत स्पष्ट हैं। मसीह-विरोधी रुतबे को बहुत महत्व देते हैं और दूसरों को उनसे आगे निकलने नहीं देते। जब कोई उनसे आगे निकल जाता है और उनके रुतबे को खतरे में डालता है तो वे उस व्यक्ति पर हमला करने और उसे बहिष्कृत करने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं, जब तक कि वे दूसरे व्यक्ति को पूरी तरह से नष्ट नहीं कर देते। यह वाकई द्वेषपूर्ण है! मसीह-विरोधी केवल इस बात पर विचार करते हैं कि अपने रुतबे की रक्षा कैसे करें और परमेश्वर के घर के हितों के बारे में कभी नहीं सोचते। भले ही परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचा हो या भाई-बहनों को ठेस पहुँची हो, वे उदासीन रहते हैं। मेरा प्रदर्शन भी इस विवरण के अनुरूप था। मैंने देखा कि ली वेन की समझ अच्छी थी, वह तेजी से आगे बढ़ रही थी, वह अनूठी अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकती थी और उसे अगुआ और साथी बहन से स्वीकृति मिली थी, इसलिए मैं अपना रुतबा खोने के बारे में चिंतित थी और ली वेन के प्रति शत्रुता विकसित कर ली थी। मुझे लगा कि उसने मेरी “आभा” छीन ली है, इसलिए मैंने उसे बहिष्कृत करना शुरू कर दिया। मैंने जानबूझकर उसके लिए चीजें मुश्किल बना दीं ताकि वह बुरी दिखे और मैंने पीठ पीछे उसकी आलोचना भी की, मेजबान बहन और झाओ लिंग को ली वेन को बहिष्कृत करने और निशाना बनाने में मेरा साथ देने के लिए अपनी तरफ खींच लिया। मैं उसे नकारात्मकता में धकेलना चाहती थी और फिर उसे अपने “क्षेत्र” से बाहर निकाल देना चाहती थी। मैंने देखा कि मैं वाकई अनैतिक और विश्वासघाती थी! मैं “सारे ब्रह्मांड का सर्वोच्च शासक बस मैं ही हूँ” और “सिर्फ एक अल्फा पुरुष हो सकता है” के शैतानी जहर से नियंत्रित हो रही थी। मैं किसी और को बर्दाश्त करने में असमर्थ थी और जो भी मुझे अपने से बेहतर लगता, उससे मैं नफरत या ईर्ष्या करती थी, यहाँ तक कि उसे सताने के लिए साजिशों का इस्तेमाल करती थी, जब तक वह नकारात्मक नहीं होकर हार नहीं मान लेता था। अब पीछे मुड़कर देखती हूँ, तो मैं इन शैतानी जहरों के साथ जीती थी और मेरा स्वभाव खासकर अभिमानी और द्वेषपूर्ण था। अपनी कथनी और करनी में मैं कभी भी परमेश्वर के घर के हितों पर विचार नहीं करती थी। मेरा यह स्वभाव मसीह-विरोधी के स्वभाव से किस तरह अलग था?

बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा जिससे मुझे अपने हितों की रक्षा करने और कलीसिया के काम में बाधा डालने के अपने क्रियाकलापों की प्रकृति और परिणामों के बारे में कुछ समझ आई। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “अगर तुम हमेशा उन चीजों में विघ्न-बाधा डालते को और उन चीजों को कमजोर करते हो जिनकी परमेश्वर रक्षा करना चाहता है, अगर तुम हमेशा ऐसी चीजों का अपमान करते हो, और हमेशा उनके बारे में धारणाएँ और राय रखते हो, तो तुम परमेश्वर का विरोध कर रहे हो और उसके खिलाफ खड़े हो रहे हो। अगर तुम परमेश्वर के घर के कार्य और परमेश्वर के घर के हितों को महत्वपूर्ण नहीं मानते, और हमेशा उन्हें कमजोर करना चाहते हो, और हमेशा चीजों को तबाह करना चाहते हो, या हमेशा उनसे लाभ कमाना, धोखा देना या गबन करना चाहते हो, तो क्या परमेश्वर तुमसे गुस्सा होगा? (बिल्कुल होगा।) परमेश्वर के गुस्से के क्या परिणाम हैं? (हमें दंडित किया जाएगा।) यह निश्चित है। परमेश्वर तुम्हें माफ नहीं करेगा, बिल्कुल भी नहीं! क्योंकि तुम्हारे कारण कलीसिया का कार्य बिखर रहा और नष्ट हो रहा है, और यह परमेश्वर के घर के कार्य और हितों के विपरीत है। यह बहुत बड़ी बुराई है, यह परमेश्वर के साथ दुश्मनी मोल लेना है, और यह परमेश्वर के स्वभाव को सीधे तौर पर नाराज करता है। परमेश्वर तुमसे गुस्सा कैसे नहीं होगा? अगर कुछ लोग खराब काबिलियत के कारण अपने काम करने में सक्षम नहीं हैं और अनजाने में बाधा और गड़बड़ी पैदा करने वाले काम करते हैं, तो इसे माफ किया जा सकता है। लेकिन, अगर अपने व्यक्तिगत हितों के कारण तुम ईर्ष्या और झगड़े में लिप्त होते हो और जानबूझकर ऐसे काम करते हो जो परमेश्वर के घर के कार्य में विघ्न-बाधा डालता और उसे नष्ट करता है, तो इसे जानबूझकर किया गया उल्लंघन माना जाता है, और यह परमेश्वर के स्वभाव को नाराज करने का मामला है। क्या परमेश्वर तुम्हें माफ करेगा? परमेश्वर अपनी 6,000 वर्षीय प्रबंधन योजना का कार्य कर रहा है, और इसमें उसकी सारी मेहनत लगी है। अगर कोई परमेश्वर का विरोध करता है, जानबूझकर परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचाता है, और जानबूझकर परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचाने की कीमत पर अपने व्यक्तिगत हितों और अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे का अनुसरण करता है, और कलीसिया के कार्य को बिगाड़ने में कोई संकोच नहीं करता है, जिससे परमेश्वर के घर का कार्य बाधित और नष्ट हो जाता है, और यहाँ तक कि परमेश्वर के घर को भारी भौतिक और वित्तीय नुकसान भी होता है, तो क्या तुम लोगों को लगता है कि ऐसे लोगों को माफ किया जाना चाहिए? (नहीं, उन्हें माफ नहीं करना चाहिए।) ... शोहरत, लाभ और रुतबे के पीछे भागना, और अपने व्यक्तिगत हितों का अनुसरण करना—यह बुराई करने में शैतान का सहयोग करना, और परमेश्वर का विरोध करना है। परमेश्वर के कार्य में बाधा डालने के लिए, शैतान लोगों को लुभाने, परेशान करने और गुमराह करने, उन्हें परमेश्वर का अनुसरण करने और परमेश्वर के प्रति समर्पित हो सकने से रोकने के लिए कई तरह के माहौल बनाता है। बल्कि लोग शैतान के साथ सहयोग करते हैं और उसका अनुसरण करते हैं, जानबूझकर परमेश्वर के कार्य को बाधित करने और नष्ट करने के लिए आगे बढ़ते हैं। परमेश्वर सत्य पर चाहे कितनी भी संगति क्यों न करे, वे फिर भी होश में नहीं आते। चाहे परमेश्वर का घर उनकी कितनी भी काट-छाँट करे, वे फिर भी सत्य को स्वीकार नहीं करते। वे परमेश्वर के प्रति बिल्कुल भी समर्पित नहीं होते, बल्कि चीजों को अपने तरीके से और अपनी मनमर्जी करने पर जोर देते हैं। नतीजतन, वे कलीसिया के कार्य में बाधा डालते और उसे नष्ट कर देते हैं, कलीसिया के विभिन्न कार्यों की प्रगति को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं, और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश को बहुत अधिक नुकसान पहुँचाते हैं। यह बहुत बड़ा पाप है, और ऐसे लोगों को परमेश्वर निश्चित रूप से दंड देगा(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग एक))। परमेश्वर के वचन पढ़ते हुए मुझे ऐसा लगा जैसे परमेश्वर मुझे आमने-सामने उजागर कर रहा है। उसके वचनों ने मेरा दिल छू लिया और मैं वाकई भयभीत हो गई। यह देखते हुए कि ली वेन अधिक और बेहतर डिजाइन बना सकती है, जिससे कलीसिया के काम को फायदा होता, मैं न केवल उसका साथ देने और इस काम को आगे बढ़ाने में नाकाम रही, बल्कि मैंने उसे बहिष्कृत किया और जानबूझकर उसके लिए चीजों को मुश्किल बनाने और उसे अलग-थलग करने के लिए उसकी कमियों का फायदा उठाया। इसका नतीजा यह हुआ कि ली वेन नकारात्मक अवस्था में चली गई और सामान्य रूप से अपना कर्तव्य करने में असमर्थ हो गई। टीम में काम भी बुरी तरह प्रभावित हुआ, महीनों तक कोई नतीजा नहीं निकला। मैंने जो किया वह कलीसिया के काम को कमजोर करना, बाधित करना और बर्बाद करना था। यह परमेश्वर का विरोध करना और उसके स्वभाव को नाराज करना था। मैंने सोचा कि शाऊल कैसे दाऊद से ईर्ष्या करता था। परमेश्वर ने दाऊद का अभिषेक किया और दाऊद ने जीत हासिल करने और इस्राएलियों का समर्थन पाने के लिए यहोवा परमेश्वर पर भरोसा किया। शाऊल उसे बर्दाश्त नहीं कर सका और उसे लगा कि दाऊद के रहते वह अपनी गद्दी नहीं बचा सकता, इसलिए उसने दाऊद का लगातार पीछा किया, उसे मारने की कोशिश की, लेकिन परमेश्वर की सुरक्षा के कारण शाऊल कभी दाऊद को नुकसान नहीं पहुँचा सका और शाऊल आखिरकार युद्ध के मैदान में ही मर गया। मेरे क्रियाकलाप मूलतः शाऊल जैसे ही थे। मैं अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे की रक्षा के लिए चालबाजियों का इस्तेमाल कर रही थी और मैंने ली वेन को बहिष्कृत और प्रताड़ित किया था, नतीजतन वह नकारात्मक दशा में रहने लगी थी और अपना कर्तव्य करने की प्रेरणा खो बैठी थी, इस हद तक कि वह टीम भी छोड़ना चाहती थी। पीछे मुड़कर देखने पर भले ही ऐसा लग सकता है कि मैं ली वेन के लिए जीवन जीना कठिन बनाने की कोशिश कर रही थी, दरअसल मैं कलीसिया के काम को नष्ट कर रही थी और परमेश्वर का विरोध कर रही थी! ली वेन अपने कर्तव्य में प्रभावी थी, लेकिन मैं उसे बहिष्कृत करने के लिए हर संभव कोशिश करती थी और जब मैंने उसे बहिष्कृत कर दिया तो मुझे खुशी हुई। इससे कलीसिया के काम में बाधा और गड़बड़ी पैदा हो रही थी। क्या यह राक्षस और शैतान की हरकत नहीं थी? इस विचार ने मुझे भयभीत कर दिया। मुझे उम्मीद नहीं थी कि मेरा स्वभाव इतना द्वेषपूर्ण होगा। अब पीछे मुड़कर देखती हूँ तो मेरी बर्खास्तगी वाकई परमेश्वर की धार्मिकता थी! उसी पल मैंने पछतावे के आँसू बहाए और मुझे खुद से नफरत हुई कि मुझमें मानवता इतनी कम थी! मैंने पश्चात्ताप में परमेश्वर से प्रार्थना की, अपने पिछले गलत कामों को पूरी तरह से सुधारने के लिए तैयार थी।

अगली सुबह अपनी भक्ति के दौरान मैंने ईर्ष्या को दूर करने के अपने अनुभवों के बारे में भाई-बहनों द्वारा लिखे अनुभवजन्य गवाही लेख पढ़े और मुझे अभ्यास का एक मार्ग मिला। परमेश्वर कहता है : “कार्य समान नहीं हैं। एक शरीर है। प्रत्येक अपना कर्तव्य करता है, प्रत्येक अपनी जगह पर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करता है—प्रत्येक चिंगारी के लिए प्रकाश की एक चमक है—और जीवन में परिपक्वता की तलाश करता है। इस प्रकार मैं संतुष्ट हूँगा(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 21)। “तुम्‍हें नजरअंदाज करने औरइन चीजों को अलग करने, दूसरों की अनुशंसा करने, और उन्हें विशिष्ट बनने देने का तरीका सीखना चाहिए। विशिष्‍ट बनने और कीर्ति पाने के लिए संघर्ष मत करो अवसरों का लाभ उठाने के लिए जल्‍दबाजी मत करो। तुम्‍हें इन चीजों को दरकिनार करना आना चाहिए, लेकिन तुम्‍हें अपने कर्तव्य के निर्वहन में देरी नहीं करनी चाहिए। ऐसा व्यक्ति बनो जो शांत गुमनामी में काम करता है, और जो वफादारी से अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए दूसरों के सामने दिखावा नहीं करता है। तुम जितना अधिक प अपने अहंकारऔर हैसियत को छोड़ते हो, और जितना अधिक अपने हितों को नजरअंदाज करते हो, उतनी ही शांति महसूस करोगे, तुम्‍हारे हृदय में उतना ही ज्‍यादा प्रकाश होगा, और तुम्‍हारी अवस्था में उतना ही अधिक सुधार होगा। तुम जितना अधिक संघर्ष और प्रतिस्पर्धाकरोगे, तुम्‍हारी अवस्था उतनी ही अंधेरी होती जाएगी(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करते हुए मैंने समझा कि ली वेन के साथ हमारे कर्तव्यों में भागीदारी करते हुए मुझे एक सत्य का अभ्यास करना था। मुझे अपने स्थान पर सही तरीके से खड़ा होना था, अपने हितों से जुड़े लाभ-हानि के अपने विचारों को अलग रखना था और मुझे कलीसिया के काम को बनाए रखना और अपने कर्तव्य को अच्छी तरह से निभाना सीखना था। किसी व्यक्ति की काबिलियत परमेश्वर द्वारा निर्धारित की जाती है और उसे कोई भी व्यक्ति स्वयं नहीं बदल सकता। ठीक ली वेन की तरह, जिसके पास गहरी समझ और अंतर्दृष्टि थी, उसके दृष्टिकोण और उसके द्वारा बनाए गए डिजाइन प्रगतिशील और रचनात्मक थे और वह अच्छी काबिलियत वाली इंसान थी। जबकि मेरी काबिलियत औसत थी और मैं ली वेन जितनी प्रगतिशील नहीं थी, इसलिए चाहे मैं उसके साथ कितनी भी प्रतिस्पर्धा करूँ, मैं उससे आगे नहीं निकल सकती थी। मेरे काम में पहले जो प्रभावशीलता थी, वह सब परमेश्वर के मार्गदर्शन और भाई-बहनों के सहयोग से मिले नतीजों के कारण थी, मेरी मजबूत कार्य क्षमता या मेरी काबिलियत के कारण नहीं। लेकिन मैंने परमेश्वर को उसके मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद नहीं दिया। इसके बजाय मैंने इन नतीजों का श्रेय खुद को दिया और दावा किया कि मेरे पास अच्छी काबिलियत है और मैं प्रतिभाशाली हूँ। मैं वाकई बेशर्म थी! अगर यह बर्खास्तगी नहीं होती और अगुआ द्वारा कठोर काट-छाँट नहीं होती तो मैं अभी भी प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए ली वेन के साथ प्रतिस्पर्धा कर रही होती, अंत में मुझे यह भी पता नहीं होता कि मुझे क्यों हटाया गया! अब मुझे एहसास हुआ कि प्रतिष्ठा और रुतबे का पीछा करना बिल्कुल भी मूल्यवान नहीं है। इसके बारे में सोचते हुए, अगर दूसरे मुझे उच्च सम्मान देते हैं तो इसका क्या फायदा है? मुझे एक बार दूसरों से आदर और समर्थन मिला था, लेकिन वह केवल अस्थायी गौरव और यश था। मेरा भ्रष्ट स्वभाव जरा भी नहीं बदला था और मैं अभी भी प्रसिद्धि और लाभ के लिए प्रतिस्पर्धा कर रही थी। अंत में मैं इतनी सुन्न हो गई कि जब मेरी बहनों ने मेरी नाक के नीचे मेरी गलतियाँ बताईं, तब भी मुझे एहसास नहीं हुआ कि मुझे आत्म-चिंतन करने की जरूरत है। मैंने देखा कि मैं प्रतिष्ठा और रुतबे से अंधी हो गई थी। मैं वाकई मूर्ख थी! मैं बेकार की प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए संघर्ष करती थी और परमेश्वर के सामने अपने पीछे गंभीर अपराध छोड़ती थी। मैंने सत्य पाने के बहुत से अवसर खो दिए थे। यह वाकई बेकार था! कलीसिया ने ली वेन और मेरे लिए एक साथ अपने कर्तव्यों को करने की व्यवस्था की थी ताकि हम सामंजस्यपूर्ण सहयोग कर सकें और अपनी खूबियाँ सामने ला सकें। यह वैसा ही था जैसा कि परमेश्वर कहता है : “प्रत्येक अपना कर्तव्य करता है” और “प्रत्येक चिंगारी के लिए प्रकाश की एक चमक है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 21)। जब हम अपने कर्तव्य अच्छी तरह से करने और परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए मिलकर कड़ी मेहनत करते हैं तो परमेश्वर का हृदय संतुष्ट होता है। इस बारे में चिंतन-मनन करके मुझे बहुत राहत महसूस हुई। अपनी ईर्ष्या छोड़ने से मैं अपने हृदय में बहुत शांत और सहज हो गई।

एक महीने से अधिक समय तक भक्ति और चिंतन के बाद मुझे अपने बारे में कुछ समझ मिली और फिर अगुआ ने मुझे ली वेन और अन्य लोगों के साथ फिर से अपना कर्तव्य निभाने में लगा दिया। मुझे पता था कि यह परमेश्वर की दया थी और परमेश्वर मुझे पश्चात्ताप करने का मौका दे रहा था और मैं वाकई परमेश्वर की आभारी थी! उस समय ली वेन टीम अगुआ थी और अगुआ सभी प्रकार के मामलों पर उससे सलाह लेता था। मैं थोड़ी असहज थी। मुझे एहसास हुआ कि मेरी ईर्ष्या फिर से भड़क रही थी, इसलिए मैंने जल्दी से परमेश्वर से प्रार्थना की, परमेश्वर से मुझ पर नजर रखने और मुझे सत्य का अभ्यास करने और मेरी बहन के प्रति मेरी ईर्ष्या दूर करने में मदद करने के लिए कहा। बाद में मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : “अपने आचरण के संबंध में तुम लोगों के क्‍या सिद्धांत हैं? तुम्हारा आचरण तुम्हारे पद के अनुसार होना चाहिए, अपने लिए सही स्‍थान खोजो और जो कर्तव्य तुम्हें निभाना चाहिए उसे निभाओ; केवल ऐसा व्यक्ति ही समझदार होता है। उदाहरण के तौर पर, कुछ लोग कुछ पेशेवर कौशलों में निपुण होते हैं और सिद्धांतों की समझ रखते हैं, और उन्हें जिम्मेदारी लेनी चाहिए और उस क्षेत्र में अंतिम जाँचें करनी चाहिए; कुछ ऐसे लोग हैं जो अपने विचार और अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकते हैं, और दूसरों को प्रेरित कर उन्हें अपने कर्तव्य बेहतर तरीके से निभाने में मदद कर सकते हैं—तो फिर उन्हें अपने विचार साझा करने चाहिए। यदि तुम अपने लिए सही स्‍थान खोज सकते हो और अपने भाई-बहनों के साथ सद्भाव से कर्तव्य पूरा कर सकते हो—इसका अर्थ होता है अपने पद के अनुसार आचरण करना(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, व्यक्ति के आचरण का मार्गदर्शन करने वाले सिद्धांत)। यह देखते हुए कि ली वेन के पास बेहतर तकनीकी कौशल थे और उसकी रचनाएँ प्रगतिशील और रचनात्मक थीं और टीम अगुआ के रूप में वह टीम का काम आगे बढ़ा सकती थी, मुझे उसके साथ सामंजस्यपूर्ण सहयोग करते हुए अपने कर्तव्यों को अच्छी तरह से करना था। यह एक तथ्य है कि मैं ली वेन की तरह तकनीकी रूप से कुशल नहीं थी और इसलिए मुझे अपनी कमियों को सही ढंग से देखना था और उनसे ईर्ष्या नहीं करनी थी। मेरी काबिलियत परमेश्वर द्वारा निर्धारित की जाती है और मुझे इसे परमेश्वर से आया मानकर स्वीकारना चाहिए, समर्पण करना सीखना चाहिए और अपनी खूबियों का योगदान देना चाहिए। यह मेरा कर्तव्य और जिम्मेदारी है। ली वेन के साथ पहले ठीक से सहयोग न करने से कलीसिया के काम में नुकसान हुआ था, लेकिन परमेश्वर ने मुझे एक और अवसर दिया था, जिसे मुझे संजोना चाहिए और मुझे अब कोई भी विघटनकारी या कमतर करने वाला काम नहीं करना चाहिए। इस बात को ध्यान में रखते हुए मैं ली वेन के प्रति अपनी ईर्ष्या कुछ हद तक दूर करने में सक्षम थी। हमारे सहयोग के दौरान मैंने जितना समझा, उतना साझा किया और ली वेन द्वारा दिए गए अच्छे सुझावों को स्वीकार किया। इस तरह हमने एक मन और दिल से सामंजस्यपूर्ण सहयोग किया और हमारे कर्तव्यों की प्रभावशीलता में सुधार हुआ। मैंने अपने जीवन प्रवेश और अपने तकनीकी कौशल में भी कुछ प्रगति की। मैं ईर्ष्या के बंधनों से मुक्त होने और अपनी बहन के साथ सामंजस्यपूर्ण सहयोग करने में सक्षम थी। यह मुझमें परमेश्वर के वचनों के काम करने का नतीजा था। परमेश्वर का धन्यवाद!

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