14. मुझे खुद से बेहतर लोगों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए

काओशेन, चीन

2016 के अंत में मैंने कलीसिया के कार्य में बहन यी शिन के साथ सहयोग किया। कुछ समय तक साथ कार्य करने के बाद मैंने पाया कि यी शिन में अच्छी काबिलियत है और वह परमेश्वर के वचनों को जल्दी समझ लेती है। वह सत्य की संगति करने और भाई-बहनों की कुछ कठिनाइयों को हल करने में मुख्य बिंदुओं को समझने में सक्षम थी। मैंने सोचा, “मैंने अभी कुछ समय से ही परमेश्वर में विश्वास करना शुरू किया है और मैं सत्य को कुछ अधिक नहीं समझती इसलिए अगर यी शिन मेरे साथ सहयोग करेगी तो कलीसिया का कार्य निश्चित रूप से अच्छे से होगा।” मैं बहुत खुश थी और पूरी तरह से संकल्प और उत्साह से भरी हुई थी। जब भी मुझे कुछ समझ में नहीं आता था तो मैं यी शिन से पूछती थी। वह कार्य में अगुआई करती थी और मैंने कभी भी इस पर आपत्ति नहीं जताई क्योंकि मुझे लगता था कि वह मुझसे बेहतर है।

कुछ समय बाद मैंने भाई-बहनों को यह कहते सुना कि यी शिन में अच्छी काबिलियत है, वह चीजों को समझ सकती है और उनकी समस्याओं का समाधान कर सकती है और यह उसकी संगति वाकई प्रबुद्ध करने वाली होती है। शुरू में मैं इस बात को सही तरीके से ले पा रही थी लेकिन अक्सर ये बातें सुनने से मुझे थोड़ी शर्मिंदगी और परेशानी महसूस लगी और मैं सोचने लगी, “हम दोनों अगुआ हैं और साथ में अपना कार्य करती हैं। जब भाई-बहन सिर्फ उसकी प्रशंसा करते हैं तो क्या मैं तब अक्षम नहीं लगती हूँ?” मैं भाई-बहनों से जुबानी तौर पर सहमत होती और कहती, “हाँ यी शिन में अच्छी काबिलियत है” लेकिन अंदर से मैं इसे बर्दाश्त नहीं कर पाती और सोचती, “मैं भी तो भाई-बहनों के लिए कई सभाएँ आयोजित करती हूँ और मैं भी उनकी कुछ समस्याओं और कठिनाइयों का समाधान करने में सक्षम हूँ। तो फिर कोई मेरी प्रशंसा क्यों नहीं करता? क्या मैं सचमुच यी शिन से इतनी कमतर हूँ? यह सही नहीं है। मुझे सभाओं में और अधिक स्पष्ट संगति करने के लिए परमेश्वर के और अधिक वचन पढ़ने होंगे और मुझे कोशिश करनी होगी कि मैं यी शिन की बराबरी कर सकूँ ताकि भाई-बहन यह देखें कि मैं उससे कमतर नहीं हूँ!” उसके बाद मैं कड़ी मेहनत करने लगी, मैं दिन में सभाओं में जाती थी और रात में परमेश्वर के वचन पढ़कर खुद को सुसज्जित करती थी। मैं परमेश्वर के वचनों के वे अंश नोट कर लेती थी जो कुछ विशेष स्थितियों को हल कर सकते थे ताकि समस्याओं को हल करते समय मैं उन्हें जल्दी से खोज सकूँ। जब ऊपरी अगुआ हमारे साथ सभा करते थे तो मैं उनसे उन चीजों के बारे में सलाह लेती थी जो मुझे समझ में नहीं आती थीं क्योंकि मैं और अधिक समझना चाहती थी, बेहतर तरीके से सुसज्जित होना चाहती थी और यी शिन से आगे निकलना चाहती थी।

एक बार टीम अगुआओं की सभा के दौरान यी शिन को कुछ काम था और उसने मुझे पहले जाने के लिए कहा। मैं बहुत खुश थी क्योंकि इससे पहले यी शिन हमेशा मेरे साथ जाती थी और हर सभा में अगुआई करती थी लेकिन आखिरकार आज मेरी बारी थी कि मैं भाई-बहनों के साथ अकेले ही संगति करूँ। मुझे इस अवसर का पूरा उपयोग करके अच्छा प्रदर्शन करना था और यह साबित करना था कि मेरी काबिलियत यी शिन से इतनी कमतर भी नहीं है। सभा के दौरान मैंने हर टीम अगुआ की हाल की स्थिति और उनके कर्तव्यों में आने वाली कठिनाइयों को समझने से शुरुआत की। जब एक बहन बोल रही थी तो मैंने उसकी बात को ध्यान से सुना और मेरा दिमाग तेजी से चलने लगा और यह सोचने लगा कि परमेश्वर के वचनों के कौन से अंश उसकी स्थिति को संबोधित कर सकते हैं। मैंने सोचा, “मैं इसमें कोई गड़बड़ी नहीं कर सकती। अगर मैं इस समस्या का समाधान नहीं कर सकी तो मुझे हमेशा के लिए यी शिन की छाया में रहना होगा। यह तो बहुत ही शर्मनाक और अपमानजनक बात होगी!” जब बहन अपनी स्थिति का वर्णन कर चुकी तो मैंने परमेश्वर के वचनों से संबंधित अंश ढूँढे़ और उसकी प्रतिक्रिया को ध्यान से देखते हुए संगति की। जब मैंने बहन को सहमति में सिर हिलाते हुए देखा तो मुझे अचानक संतुष्टि महसूस हुई और लगा कि मैं अच्छा कार्य कर रही हूँ। लेकिन जैसे ही मैं संगति में डूब रही थी, यी शिन अपना कार्य खत्म करने के बाद वापस आ गई। वे सभी भाई-बहन जो अब तक मेरी ओर देख रहे थे, उन्होंने अपना ध्यान यी शिन की ओर कर लिया। मैंने उनकी आँखों में यह महसूस किया कि वे सभी यी शिन का इंतजार कर रहे थे। मुझे थोड़ी निराशा महसूस हुई। इसके बाद यी शिन ने टीम अगुआ की समस्याओं के बारे में परमेश्वर के वचनों को खोजना और उन पर संगति करना शुरू कर दिया। यी शिन की संगति वास्तव में काफी स्पष्ट थी और मुझे बहुत जलन हो रही थी। मैंने सोचा, “तुम आई और तुमने अगुआई करने लगी और मुझ पर से सारा ध्यान चुरा लिया। ऐसा नहीं चलेगा। मैं यहाँ खली बैठकर तुम्हें सारी सुर्खियाँ लूटने नहीं दे सकती। मुझे संगति करने का मौका खोजना होगा।” मैंने अपने दिमाग पर जोर दिया और यह सोचती रही कि मुझे परमेश्वर के वचनों के कौन से अंशों का उपयोग करना है और यी शिन की तुलना में अधिक स्पष्ट रूप से संगति कैसे करनी है। चूँकि मैं दिखावा करने के लिए इतनी उत्सुक थी, इसलिए जैसे ही यी शिन एक पल के लिए रुकी तो मैं टीम अगुआ के साथ बातचीत को आगे बढ़ाने के लिए तुरंत कूद पड़ी और मैंने कहा, “बहन मैंने भी तुम्हारी स्थिति के बारे में परमेश्वर के वचनों का एक अंश ढूँढ़ा है, चलो इस पर संगति करते हैं।” इसके बाद मैंने पढ़ना शुरू किया लेकिन जैसे-जैसे पढ़ती गई वैसे-वैसे मुझे महसूस हुआ कि जो अंश मैंने चुना था वह इस बहन की स्थिति से पूरी तरह मेल नहीं खा रहा था। मेरा दिमाग शोर करने लगा और मैंने सोचा, “अरे नहीं, क्या मैंने इसमें गड़बड़ कर दी है? मैं तो भाई-बहनों से प्रशंसा पाने की उम्मीद कर रही थी लेकिन क्या ऐसी बुनियादी गलती करना इस बात को साबित नहीं करता कि मैं अयोग्य हूँ? यह कितनी अपमानजनक बात है!” मुझे बेहद अजीब लगा और शर्मिंदगी महसूस हुई, मेरा चेहरा तपने लगा और मैं बस जमीन के अंदर किसी छेद में समा जाना चाहती थी। यी शिन ने अपनी संगति जारी रखी और भाई-बहन उसे ध्यान से सुनते रहे। मुझे यूँ लग रहा था जैसे मानो मुझे किनारे कर दिया गया हो, मैं बहुत तकलीफ में थी और बेचैन थी मानो मैं काँटों पर बैठी हूँ। मेरे भीतर नाराजगी बढ़ने लगी और मैंने सोचा, “मैं यहाँ कौन-सा किरदार निभा रही हूँ? क्या मैं सिर्फ यी शिन की प्रशंसा करने के लिए यहाँ पर हूँ? मुझमें इतनी कमी सिर्फ इसलिए लग रही है क्योंकि यी शिन यहाँ मौजूद है! आज मेरा अपमान उसी के कारण ही हुआ है। अगर वह यहाँ नहीं होती तो क्या मैं इतनी चिंतित होती कि मैं परमेश्वर के वचनों के उपयुक्त अंश ही न ढूँढ़ पाती? क्या मुझे इस तरह से अपमानित किया जाता?” मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मैं वहाँ बैठी एक जोकर थी और मैं तुरंत वहाँ से निकल जाना चाहती थी। आखिरकार सभा समाप्त हुई और मैं घर गई और बिस्तर पर लेट गई लेकिन जब मैंने सभा में जो हुआ उसके बारे में सोचा तो मेरा दिल संकट के एक तूफान में डूब गया और मैं बहुत परेशान और निराश महसूस कर रही थी। मैंने उन सभी प्रयासों के बारे में सोचा जो मैंने हाल ही में अपनी समस्या-समाधान कौशल को सुधारने के लिए किए थे। कैसे मैं दिन में सभाओं में भाग लेती थी, रात में खुद को परमेश्वर के वचनों से सुसज्जित करती थी और आधी रात तक जागती रहती थी लेकिन चाहे मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ, फिर भी मैं यी शिन से पीछे ही थी। यह सब सोचकर मुझे यी शिन से चिढ़ होने लगी और मैं अब सभाओं में उसके साथ सहयोग नहीं करना चाहती थी। मैं तो उसे देखना भी नहीं चाहती थी। अगले दिन जब मैं और यी शिन सभा में गईं तो मैंने चुपचाप नाराजगी में मुँह फुला लिया और कुछ नहीं बोली और सोचने लगी, “मैं उसका मुकाबला तो नहीं कर सकती, इसलिए मैं चुप रहूँगी और बस सुनूँगी!” लेकिन अगर मैं मुकाबला न करती तो भी मैं परेशान, निराश और गुस्से में रहती थी। जब भी मैं संगति करने की कोशिश करती तो मेरा दिमाग खाली हो जाता और मुझे समझ ही नहीं आता कि मैं क्या कहूँ। तो मैंने यह सोचकर शिकायत करने लगी, “परमेश्वर ने उसे इतनी अच्छी काबिलियत क्यों दी है? उसने मुझे इतनी खराब काबिलियत क्यों दी है और हमें साथ में कर्तव्य निभाने की व्यवस्था क्यों की है? उसके साथ होने पर ऐसा लगता है जैसे मैं यहाँ हूँ ही नहीं।” मुझे उम्मीद थी कि एक दिन जल्द ही हमें अलग कर दिया जाएगा। अगली कुछ सभाओं में मैंने कम बोला और कार्य संबंधी चर्चाओं में भी कम भाग लिया। मेरी स्थिति और बिगड़ती गई और मैं और ज्यादा तकलीफ और दबाव में रहने लगी। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर! मैं लगातार यी शिन से जलन करती रहती हूँ और हमेशा खुद को उसकी तुलना में देखती हूँ। इस स्थिति में जीना बहुत दर्दनाक है। हे परमेश्वर! अपना भ्रष्ट स्वभाव समझने के लिए मुझे प्रबोधन और मार्गदर्शन दो।”

मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “जैसे ही कोई ऐसी बात आती है जिसमें प्रतिष्‍ठा, हैसियत या वि‍शिष्‍ट दिखने का अवसर सम्मिलित हो—उदाहरण के तौर पर, जब तुम लोग सुनते हो कि परमेश्वर के घर की योजना विभिन्‍न प्रकार के प्रतिभावान व्‍यक्तियों को पोषण देने की है—तुममें से हर किसी का दिल प्रत्याशा में उछलने लगता है, तुममें से हर कोई हमेशा अपना नाम करना चाहता है और सुर्खियों में आना चाहता है। तुम सभी प्रतिष्ठा और हैसियत के लिए लड़ना चाहते हो। तुम्‍हें इस पर शर्मिंदगी भी महसूस होती है, पर ऐसा न करने पर तुम्‍हें बुरा महसूस होगा। जब तुम्‍हें कोई व्यक्ति भीड़ से अलग दिखता है, तो तुम उससे ईर्ष्‍या व घृणा महसूस करते हो और उसकी शिकायत करते हो, और तुम सोचते हो कि यह अन्‍याय है : ‘मैं भीड़ से अलग क्‍यों नहीं हो सकता? हमेशा दूसरे लोग ही क्‍यों सुर्खियों में आ जाते हैं? कभी मेरी बारी क्यों नहीं आती?’ और रोष महसूस करने पर तुम उसे दबाने की कोशिश करते हो, लेकिन ऐसा नहीं कर पाते। तुम परमेश्वर से प्रार्थना करते हो और कुछ समय के लिए बेहतर महसूस करते हो, लेकिन जब तुम्‍हारा सामना दुबारा ऐसी ही परिस्‍थि‍ति से होता है, तो तुम फिर भी उसे नियंत्रित नहीं कर पाते। क्या यह एक अपरिपक्व आध्‍यात्मिक कद का प्रकटीकरण नहीं है? जब लोग ऐसी स्थितियों में फँस जाते हैं, तो क्या वे शैतान के जाल में नहीं फँस गए हैं? ये शैतान की भ्रष्ट प्रकृति के बंधन हैं जो इंसानों को बाँध देते हैं(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। परमेश्वर के वचनों ने मेरी सटीक स्थिति को उजागर किया। मैंने देखा कि जब सभी भाई-बहन यी शिन को सम्मान की नजरों से देखते थे तो मुझे ऐसा लगता था कि मैं अपर्याप्त हूँ, मेरी जलन सामने आ जाती थी और मैं उससे मुकाबला करने लगती थी। मैं परमेश्वर के वचन पढ़ने और खुद को सत्य से सुसज्जित करने के लिए सुबह जल्दी उठती और देर से सोती थी, ताकि हर कोई मेरी प्रशंसा करे और मैं यह साबित करना चाहती थी कि मैं यी शिन से कमतर नहीं हूँ। जब यी शिन टीम अगुआओं की सभा में पहुँची तो भाई-बहनों ने अपना ध्यान उसकी ओर कर लिया था और उसकी संगति काफी अच्छी थी। मुझे जलन हुई और मैं इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं थी, और मैंने संगति के लिए परमेश्वर के वचनों के अधिक उपयुक्त अंश खोजने के लिए अपने दिमाग पर जोर डाला था। लेकिन जो अंश मैंने ढूँढे़ थे, वे टीम अगुआ की स्थिति से बिल्कुल भी मेल नहीं खाते थे। मुझे अपमानित महसूस हुआ था और मैंने यह सोचते हुए अपनी नाराजगी यी शिन पर निकाल दी थी कि जब तक वह वहाँ पर है, मैं अलग नहीं दिख सकती और इसलिए मैं उसके साथ सहयोग करने के लिए तैयार नहीं थी। मैं अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे को लेकर बहुत चिंतित थी। जब भी कोई बात गर्व या रुतबे से जुड़ी होती तो मैं मुकाबला करने से खुद को रोक नहीं पाती थी और अगर मैं असफल हो जाती तो मुझे यह सोचकर उसके प्रति नाराजगी, घृणा और पूर्वाग्रह महसूस होता कि यह सब उसकी गलती है। मैं इतनी घटिया सोच वाली, घृणित और तुच्छ व्यक्ति थी। मैंने “रोमांस ऑफ थ्री किंगडम्स” के झोऊ यू के बारे में सोचा जो झूगे लिआंग की प्रतिभाओं से इतनी जलन करता था कि अपने गुस्से के कारण कम उम्र में ही मर गया। मैं भी यी शिन के प्रति ईर्ष्या के कारण क्रोध और आक्रोश में अपने दिन बिताती थी, मैं अंधकार और पीड़ा में जी रही थी और यहाँ तक कि अपने कर्तव्यों को निभाने में भी असफल हो रही थी। क्या इससे मुझे जल्दी ही बेनकाब नहीं कर दिया जाएगा और निकाल नहीं दिया जाएगा? वास्तविकता में यी शिन चीजों को तुरंत समझ पाती थी, रोशनी के साथ सत्य की संगति कर पाती थी और भाई-बहनों की कठिनाइयों का समाधान कर पाती थी। यह बात कलीसिया के कार्य और भाई-बहनों दोनों के लिए लाभदायक थी और मेरी कमियों को पूरा करती थी। यह एक अच्छी बात थी। फिर भी मुझे अपनी बहन की प्रतिभाओं से जलन थी और मैं उसे मुझसे आगे बढ़ते हुए नहीं देख सकती थी। मैं केवल प्रसिद्धि, लाभ और पद के लिए अपनी बहन के साथ मुकाबला करने के बारे में सोचती थी और अगर मैं न जीत पाती तो मैं नकारात्मक हो जाती, कार्य में ढिलाई बरतती और अपनी निराशा अपने कर्तव्य पर निकालती थी। मैं वाकई में बहुत स्वार्थी थी! मैंने परमेश्वर से चुपचाप प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मैं अब इस जलन की स्थिति में नहीं रहना चाहती, इस तरह से जीना बहुत पीड़ादायक और दबावपूर्ण होता है! मैं इस भ्रष्ट स्वभाव को सुलझाने के लिए पश्चात्ताप करना और सत्य खोजना चाहती हूँ। मेरा मार्गदर्शन करो।”

अपनी इस खोज में मैंने परमेश्वर के कुछ वचनों को याद किया : “बहुत सालों से जिन विचारों पर लोगों ने अपने अस्तित्व के लिए भरोसा रखा था, वे उनके हृदय को इस स्थिति तक दूषित कर रहे हैं कि वे विश्वासघाती, डरपोक और नीच हो गए हैं। उनमें न केवल इच्छा-शक्ति और संकल्प का अभाव है, बल्कि वे लालची, अभिमानी और स्वेच्छाचारी भी बन गए हैं। उनमें खुद से ऊपर उठने के संकल्प का सर्वथा अभाव है, यही नहीं, उनमें इन अंधेरे प्रभावों की बाध्यताओं से पीछा छुड़ाने की लेशमात्र भी हिम्मत नहीं है। लोगों के विचार और जीवन इतने सड़े हुए हैं कि परमेश्वर पर विश्वास करने के बारे में उनके दृष्टिकोण अभी भी बेहद वीभत्स हैं। यहाँ तक कि जब लोग परमेश्वर में विश्वास के बारे में अपना दृष्टिकोण बताते हैं तो इसे सुनना मात्र ही असहनीय होता है। सभी लोग कायर, अक्षम, नीच और दुर्बल हैं। उन्हें अंधेरे की शक्तियों के प्रति क्रोध नहीं आता, उनके अंदर प्रकाश और सत्य के लिए प्रेम पैदा नहीं होता; बल्कि, वे उन्हें बाहर निकालने का पूरा प्रयास करते हैं(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम विषमता होने के अनिच्छुक क्यों हो?)। “शैतान मनुष्य के विचारों को नियंत्रित करने के लिए प्रसिद्धि और लाभ का तब तक उपयोग करता है, जब तक सभी लोग प्रसिद्धि और लाभ के बारे में ही नहीं सोचने लगते। वे प्रसिद्धि और लाभ के लिए संघर्ष करते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए कष्ट उठाते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए अपमान सहते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर देते हैं, और प्रसिद्धि और लाभ के लिए कोई भी फैसला या निर्णय ले लेते हैं। इस तरह शैतान लोगों को अदृश्य बेड़ियों से बाँध देता है और उनमें उन्हें उतार फेंकने का न तो सामर्थ्‍य होता है, न साहस। वे अनजाने ही ये बेड़ियाँ ढोते हैं और बड़ी कठिनाई से पैर घसीटते हुए आगे बढ़ते हैं। इस प्रसिद्धि और लाभ के लिए मानवजाति परमेश्वर से दूर हो जाती है, उसके साथ विश्वासघात करती है और अधिकाधिक दुष्ट होती जाती है। इसलिए, इस प्रकार एक के बाद एक पीढ़ी शैतान की प्रसिद्धि और लाभ के बीच नष्ट होती जाती है(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI)। परमेश्वर के वचनों पर चिंतन करते हुए मैंने समझा कि जिस दर्द में मैं जी रही थी वह शैतान की भ्रष्टता और हानि के कारण था। मैंने इस बात पर विचार किया कि कैसे मैं समाज से प्रभावित थी और मुझे मेरे परिवार ने छोटी उम्र से ही सिखाया था और मैं “सारे ब्रह्मांड का सर्वोच्च शासक बस मैं ही हूँ,” “सिर्फ एक अल्फा पुरुष हो सकता है,” और “एक व्यक्‍ति जहाँ रहता है वहाँ अपना नाम छोड़ता है, जैसे कि एक हंस जहाँ कहीं उड़ता है आवाज करता जाता है।” जैसे शैतानी जहर के साथ जी रही थी। मैं बहुत ज्यादा स्वार्थी, घृणित, घमंडी और दंभी थी। अगर कोई मुझसे आगे निकलता या मेरी प्रतिष्ठा और रुतबे को खतरा पहुँचाता तो मैं परेशान हो जाती, जलन करने लगती और घृणा महसूस करती और मुझे बहुत अधिक दबाव और असहनीय पीड़ा महसूस होती थी। मुझे याद है कि मेरी एक सहपाठी थी जो मुझसे काफी करीब थी और पढ़ाई में मुझसे बेहतर थी। जब मैंने देखा कि अन्य सहपाठी उसके आस पास इकट्ठा होते थे और उससे सवाल पूछते थे तो मैं उपेक्षित महसूस करने लगी और उससे जलने लगी और मैं उससे आगे निकलना चाहती थी। बाद में जब मैं पढ़ाई में अपने प्रयासों के माध्यम से उसकी बराबरी नहीं कर सकी तो मैंने उससे अपनी दोस्ती खत्म कर दी और हमारा रिश्ता टूट गया। शादी के बाद जब मैंने देखा कि मेरे पड़ोसी मुझसे ज्यादा कमाते हैं और बेहतर जीवन जीते हैं तो मैं उनसे भी जलन करने लगी और अधिक पैसा कमाने के लिए कड़ी मेहनत करने लगी लेकिन आखिरकार मैं फिर भी उनका मुकाबला नहीं कर सकी और मैंने उनके साथ बातचीत करने की इच्छा ही छोड़ दी। यहाँ तक कि परमेश्वर में विश्वास करने के बाद भी मैंने इन जहरों के अनुसार जीती रही। जब मैंने देखा कि यी शिन की काबिलियत और समझ मुझसे बेहतर है तो मैं उससे जलने लगी और उससे आगे निकलने की कोशिश करने लगी और जब मैं इसमें सफल नहीं हुई तो मुझे असहनीय असुविधा महसूस हुई और मैं उसे देखना तक नहीं चाहती थी और यहाँ तक कि परमेश्वर से भी शिकायत की कि उसने मुझे इतनी खराब काबिलियत क्यों दी है और मैंने अपनी निराशा अपने कर्तव्यों पर निकाली और कलीसिया के कार्यों में भाग लेना बंद कर दिया। मैंने देखा कि मैं कितनी अनुचित थी और मुझमें बिल्कुल भी मानवता नहीं थी। प्रतिष्ठा और रुतबे ने मुझे असहनीय पीड़ा में बाँध रखा था इससे न केवल मुझे दर्द हो रहा था, बल्कि मैं दूसरों को भी नुकसान पहुँचा रही थी। मेरे जीवन प्रवेश पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ा और मैंने सत्य प्राप्त करने के कई अवसर खो दिए। मुझे एहसास हुआ कि शोहरत, लाभ और रुतबे का पीछा करना सही मार्ग नहीं है और इन चीजों का पीछा करना जारी रखने से मैं परमेश्वर से और दूर चली जाऊँगी और आखिरकार उसके द्वारा निकाल दी जाऊँगी। इस बात को समझने के बाद मैं खुद को बदलने और प्रतिष्ठा या रुतबे का पीछा न करने के लिए तैयार हो गई।

बाद में मैंने परमेश्वर के और भी वचन पढ़े : “कार्य समान नहीं हैं। एक शरीर है। प्रत्येक अपना कर्तव्य करता है, प्रत्येक अपनी जगह पर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करता है—प्रत्येक चिंगारी के लिए प्रकाश की एक चमक है—और जीवन में परिपक्वता की तलाश करता है। इस प्रकार मैं संतुष्ट हूँगा(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 21)। “परमेश्वर के कार्य के प्रयोजन के लिए, कलीसिया के फ़ायदे के लिये और अपने भाई-बहनों को आगे बढ़ाने के वास्ते प्रोत्साहित करने के लिये, तुम लोगों को सद्भावपूर्ण सहयोग करना होगा। परमेश्वर के इरादों के प्रति लिहाज दिखाने के लिए तुम्हें एक दूसरे के साथ सहयोग करना चाहिये, एक दूसरे में सुधार करके कार्य का बेहतर परिणाम हासिल करना चाहिये। सच्चे सहयोग का यही मतलब है और जो लोग ऐसा करेंगे सिर्फ़ वही सच्चा प्रवेश हासिल कर पाएंगे। सहयोग करते समय, तुम्हारे द्वारा बोली गई कुछ बातें अनुपयुक्त हो सकती हैं, लेकिन उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। इनके बारे में बाद में सहभागिता करो, और इनके बारे में अच्छी समझ हासिल करो, इन्हें अनदेखा मत करो। इस तरह की सहभागिता करने के बाद, तुम अपने भाई-बहनों की कमियों को दूर कर सकते हो। केवल इस तरह से अपने काम की अधिक गहराई में उतर कर ही तुम बेहतर परिणाम हासिल कर सकते हो। तुम में से हर व्यक्ति, परमेश्वर की सेवा करने वाले के तौर पर सिर्फ़ अपने हितों के बारे में सोचने के बजाय, अपने हर काम में कलीसिया के हितों की रक्षा करने में सक्षम होना चाहिये। एक दूसरे को कमतर दिखाने की कोशिश करते हुए, अकेले काम करना अस्वीकार्य है। इस तरह का व्यवहार करने वाले लोग परमेश्वर की सेवा करने के योग्य नहीं हैं!(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, इस्राएलियों की तरह सेवा करो)। परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद मैंने समझा कि परमेश्वर प्रत्येक व्यक्ति को अलग-अलग तरह की काबिलियत देता है और उनसे अलग-अलग अपेक्षाएँ रखता है। चाहे किसी व्यक्ति की काबिलियत अच्छी हो या बुरी, जब तक वह सही इरादों के साथ अपने कर्तव्यों को निभाता है, सत्य की खोज करता है, सिद्धांतों के अनुसार कार्य करता है और अपनी पूरी कोशिश करता है, परमेश्वर उसे स्वीकार करेगा। परमेश्वर ने मुझे यह काबिलियत दी है जो उसकी पूर्वनियति और संप्रभुता है, इसलिए मुझे पूरी तरह से समर्पण करना चाहिए, जो कुछ मैं कर सकती हूँ उसका अधिकतम उपयोग करना चाहिए और अपने कर्तव्यों को अच्छी तरह से निभाना चाहिए। मैंने इस बारे में भी सोचा कि कैसे मैं कुछ समय से परमेश्वर में विश्वास करने लगी थी और यह कि कैसे मेरा जीवन प्रवेश सतही था, कि मैं अपने दम पर कार्य को अच्छी तरह से नहीं कर सकती थी। सत्य के बारे में यी शिन की संगति अधिक स्पष्ट थी और उसकी क्षमताएँ मेरी कमजोरियों को पूरा करती थीं। आपस में सहयोग करने से हमें कार्य को अच्छे से करने में मदद मिली—क्या यह एक अच्छी बात नहीं थी? मुझे अपनी जलन को त्यागकर अपनी बहन के साथ सही तरीके से सहयोग करना चाहिए और उन चीजों के बारे में उससे अधिक पूछना चाहिए जो मुझे समझ में नहीं आतीं, ताकि मैं जल्दी से आगे बढ़ सकूँ। इस हकीकत को समझते हुए मैंने अपनी खराब क्षमता के बारे में शिकायत करना बंद कर दिया और समर्पण करने और अपना हिस्सा निभाने के लिए तैयार हो गई। जल्द ही एक और सभा का समय आ गया और मैंने अपनी प्रकट होने वाली भ्रष्टता के बारे में यी शिन के साथ खुलकर बात की और उससे माफी माँगी। यी शिन ने भी मेरे साथ खुलकर बात की और मेरे साथ संगति की और इस सभा से मुझे अपने दिल में मुक्ति की बड़ी भावना महसूस हुई। परमेश्वर के वचनों की प्रबुद्धता और मार्गदर्शन के माध्यम से ही मुझे अपने भ्रष्ट स्वभाव के बारे में कुछ समझ प्राप्त हुई और मैंने इसमें कुछ परिवर्तन प्राप्त किया। परमेश्वर के उद्धार के लिए उसका धन्यवाद!

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