15. एक शिक्षिका की पसंद
संध्या के समय जब सूरज पश्चिम दिशा में डूब रहा था, एक छोटे से फार्महाउस का दरवाजा खुला हुआ था, दरवाजे की घुंडी पर एक सफेद कपड़ा बंधा हुआ था और धूप की आखिरी किरण आँगन की लाल-ईंटों की बिना रंगी दीवार पर फैली हुई थी।
हॉल के बीच में एक ताबूत रखा था। ताबूत के सामने सात साल की एक लड़की, नौ साल का एक लड़का और तीस साल की एक ग्रामीण महिला घुटनों के बल बैठे थे।
“माँ, हमारे परिवार में हादसा हुआ है। कोई रिश्तेदार मदद के लिए क्यों नहीं आया?” छोटी लड़की की कोमल आवाज ने घर के अंदर पसरी खामोशी को तोड़ दिया।
“तुम्हारे पिता की बीमारी और हमारी सारी बचत खत्म होने के साथ ही हमारी गरीबी के कारण हमारे रिश्तेदार हमारा तिरस्कार करते हैं और हमें नीची नजरों से देखते हैं। अब तुम्हारे पिता के चले जाने के बाद से बस हम माँ और बच्चे ही एक-दूसरे का सहारा रहेंगे। तुम दोनों को खुद को साबित करने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी—दूसरों को यह मत समझने देना कि तुम तुच्छ हो। मुझे उम्मीद है कि तुम दोनों का भविष्य आशाजनक होगा, तुम अपने आप को किसी काबिल बनाओगे और हमारा भाग्य बदलोगे!” माँ ने अपने आँसू पोंछे, उसकी आँखें दृढ़ संकल्प से भर गईं और उसने दोनों छोटे बच्चों की ओर देखते हुए गंभीरता से ये शब्द कहे।
यह सात साल की बच्ची एन रैन थी।
बचपन का यह दृश्य एन रैन के दिल पर गहराई से छप गया था। एन रैन को बचपन से ही पता था कि उसे खुद को साबित करने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी; उत्कृष्टता के लिए कोशिश करना और दूसरों की प्रशंसा प्राप्त करना उसके जीवन का लक्ष्य था। एन रैन ने यह मानकर स्कूल में खास तौर से कड़ी मेहनत की कि केवल लगन से पढ़कर ही उसका भविष्य आशाजनक हो सकता है। प्राइमरी स्कूल के दौरान एन रैन लगभग हमेशा अपनी कक्षा के शीर्ष तीन विद्यार्थियों में एक रहती थी।
जब वह तेरह साल की उम्र में जूनियर हाई स्कूल में थी तो एक पड़ोसी ने उसकी माँ के साथ सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों का सुसमाचार साझा किया। उस दिन एन रैन ने अपनी माँ के साथ परमेश्वर के प्रारंभिक सृजन के बारे में एक वीडियो देखा। उस दिन से, एन रैन को पता चला कि मनुष्य परमेश्वर द्वारा बनाए गए थे और स्वर्ग, पृथ्वी और सभी चीजों के बीच एक संप्रभु है जो पूरी मानवजाति का मार्गदर्शन और देखभाल करता है। एन रैन को अंदर से खुशी महसूस हुई—परमेश्वर इतना अच्छा है!
पंद्रह साल की उम्र में स्कूल के लिए पैसे न होने के कारण एन रैन को पढ़ाई छोड़ने और काम करने पर मजबूर होना पड़ा। यूँ तो एन रैन को पता था कि परमेश्वर में विश्वास करना अच्छा है, लेकिन उसे लगा कि वह अभी जवान है और उसका पूरा भविष्य उसके सामने पड़ा है। वह उपलब्धियों के बिना सामान्य जीवन नहीं जीना चाहती थी, क्योंकि उसे नहीं लगता था कि तब कोई उसका सम्मान करेगा। इसलिए उसने कड़ी मेहनत करने और पैसा कमाने, एक अच्छी और सम्मानजनक नौकरी ढूँढ़ने का फैसला किया, उसे लगता था कि अगर वह खुद को स्थापित कर पाई तो दूसरों के सामने शान से जी सकेगी और फिर उसे नीची नजरों से नहीं देखा जाएगा। एन रैन का दिमाग इन ख्यालों से भरा हुआ था कि कैसे वह जल्दी से खुद को किसी लायक बना पाए। इसलिए वह अपने खाली समय के दौरान कभी-कभार ही संगतियों में शामिल हो पाती थी।
एन रैन जब सत्रह साल की थी तो एक शाम को हवा में मौजूद गर्मी अभी तक खत्म नहीं हुई थी। क्लिक। धम्म। दरवाजा खुलने-बंद होने की आवाजों और तेजी से होती हलचल के साथ तेज कदमों की आवाज आई। उसका चचेरा भाई वापस आया था।
“क्या हुआ? क्या कोई जरूरी बात है?” एन रैन ने पूछा।
“मेरे पास तुम्हारे लिए अच्छी खबर है। हमारा स्कूल तत्काल शिक्षकों की भर्ती कर रहा है। मैंने स्कूल के अगुआ को तुम्हारे बारे में बता दिया है। अगर तुम्हें यह नौकरी मिल जाती है, तो यह एक प्रतिष्ठित नौकरी है और इसमें अच्छा पैसा मिलता है।” यह खबर सुनकर एन रैन तुरंत प्रलोभन में आ गई। बचपन से ही उसे उम्मीद थी कि वह एक दिन उत्कृष्टता हासिल करेगी और खुद को स्थापित करेगी। अब, उसके लिए शिक्षण पेशे में प्रवेश करने का इतना अच्छा मौका था, जिसे एक सम्मानजनक पेशा माना जाता था। वह जानती थी कि स्कूलों में केवल तभी काम किया जा सकता है जब आप कॉलेज ग्रेजुएट हों या आप के पास कम से कम एसोसिएट की डिग्री हो। उसने मन ही मन सोचा, “चचेरा भाई मदद न करे तो भला कैसे मुझे किसी स्कूल में काम करने का मौका मिल सकता है? बाद में मैं शिक्षण योग्यता प्राप्त करने के लिए परीक्षा देकर एक विधिवत शिक्षक बन सकती हूँ, फिर मैं प्रतिष्ठा और लाभ हासिल कर पाऊँगी, यह सही है ना? जब वह दिन आएगा तो कोई भी मुझे फिर से नीची नजरों से नहीं देखेगा।” यह सोचकर एन रैन बेहिचक सहमत हो गई।
अपने चचेरे भाई के घर से बाहर निकलते हुए एन रैन के दिमाग में उथल-पुथल मच गई और उसने मन में सोचा : “जब मैं भविष्य में किसी निजी स्कूल में काम करने लगूँगी तो मुझे हर दो सप्ताह में केवल एक बार छुट्टी मिलेगी और निश्चित रूप से मैं सभाओं में शामिल नहीं हो पाऊँगी। परमेश्वर का कार्य जल्द ही खत्म होने वाला है। अगर मेरे काम से सभाओं में मेरी उपस्थिति प्रभावित होती है, तो यह मेरे जीवन के लिए नुकसानदेह होगा।” लेकिन यह उत्कृष्ट बनने के अपने बरसों पुराने सपने को साकार करने का अवसर था। एन रैन इसे खोना नहीं चाहती थी। बहुत सोच-विचार के बाद भी एन रैन ने नौकरी को ही चुना। उसने यह कहकर खुद को तसल्ली दी कि अगर मैं परमेश्वर के और अधिक वचन पढ़ती रही और अपने काम में छुट्टियों के दौरान सभाओं में भाग लेती रही तो यह ठीक रहेगा और शायद बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ेगा।
जैसे ही गर्मी की छुट्टियाँ खत्म होने को आईं, एन रैन नौकरी पाने में सफल रही और जैसा उसने चाहा था वह एलीमेंट्री स्कूल की शिक्षिका बन गई। एन रैन को आखिरकार अपने सपनों को साकार करने के लिए एक मंच मिल गया और वह बहुत उत्साहित थी, इस काम में अपना 110% दे रही थी।
सर्दियों की शुरुआत में स्कूल में छात्रों का नया बैच आ गया और परिसर चुलबुली बातों और हँसी-ठिठोली से भर गया। एन रैन के माथे पर शिकन थी, वह अपनी बाँहों में कार्यपुस्तिकाओं का गट्ठर उठाए तेजी से शिक्षण भवन की ओर जा रही थी और मन ही मन सोच रही थी, “इस स्कूल में कक्षाओं के बीच बहुत ही तीखी होड़ है। हर शिक्षक की कक्षा के टेस्ट स्कोर अगुआओं और निदेशकों के बीच चर्चा का केंद्र बनते हैं। मेरे पास पढ़ाने का कोई अनुभव नहीं है। जब मैंने पहली बार स्कूल में कदम रखा तो मैं जिन कक्षाओं को पढ़ाती थी उनके ग्रेड सबसे खराब थे। अगर मुझे उन्हें अन्य कक्षाओं के बराबर लाना है, तो मुझे और भी ज्यादा समय देना होगा और प्रयास करना होगा।” एन रैन ने अपना मन बना लिया : “मुझे उनके टेस्ट स्कोर में सुधार लाना होगा और एक उत्कृष्ट शिक्षक बनना होगा जिसकी छात्रों के माता-पिता तारीफ करें।” यह सोचकर एन रैन एक गहरी साँस लेने के अलावा और कुछ नहीं कर पाई। “यह एक बहुत बड़ा दबाव है!”
उसके बाद एन रैन एक चाबी भरी हुई घड़ी की तरह चलती रही, वह एक पल के लिए भी आराम करने की हिम्मत नहीं करती थी। स्कूल के समय के बाद भी काम करना और देर तक जागना उसका ढर्रा बन गया, वह शाम को असाइनमेंट जाँचती थी और संघर्षरत छात्रों को पढ़ाती थी ताकि उनके ग्रेड सुधार सके। कई महीनों बाद, एन रैन जिन कक्षाओं को पढ़ा रही थी वे अंतिम स्थान से पहले-दूसरे स्थान पर आ गईं। इसके बाद माता-पिता से प्रशंसा और अगुआओं से उच्च सम्मान मिला, जिसने एन रैन के घमंड को काफी हद तक संतुष्ट किया। वह उत्साहित थी, अपना सिर उठा के चल रही थी और अपने गांव के लोगों से मिलकर उसे गर्व महसूस हो रहा था। उसे लगता था कि उसका सारा कष्ट चाहे कितना भी मुश्किल और थकाऊ क्यों न रहा हो, यह सहने लायक था।
लेकिन उसके चमकदार आवरण के अंदर अंतहीन कड़वाहट और पीड़ा छिपी हुई थी जिसे खुद वही जानती थी।
“मैं तुमसे कितनी ही बार कह चुकी हूँ, क्या तुम कोई ऐसी नौकरी नहीं ढूंढ सकतीं जहाँ तुम ज्यादा व्यस्त न रहो? खुद को देखो, डेढ़ साल के अंदर तुम्हारा वजन बारह पाउंड से ज्यादा घट चुका है, तुम लगातार दवाएँ और इंजेक्शन ले रही हो और हमेशा तब तक काम करती रहती हो जब तक थक न जाओ। खुद को मारने की कोशिश कर रही हो क्या तुम? तुम परमेश्वर में विश्वास रखती हो, तुम्हारे लिए सभाओं में शामिल तक न होना ठीक कैसे हो सकता है? अगर यही चलता रहा तो क्या तुम तब भी सत्य को समझने और बचाए लिए जाने में समर्थ हो पाओगी?” एन रैन की माँ ने बिस्तर के पास बैठे हुए दया भरी आँखों के साथ उसे डाँटा।
“माँ, मुझे पता है कि मैं इस नौकरी में बहुत व्यस्त रहती हूँ जिससे सभाओं के लिए समय नहीं बचता, लेकिन ...” इससे पहले कि वह अपनी बात पूरी कर पाती, एन रैन का गला भर्रा गया।
उसकी माँ मुड़ी और उसे एक गिलास पानी दिया। अपनी माँ के जाने के बाद एन रैन ने बीते साल के बारे में सोचा। सहकर्मियों के बीच खुली प्रतिस्पर्धा और छुपे हुए संघर्ष, बार-बार देर रात तक जागने और काम के दबाव की वजह से एन रैन को अनिद्रा की बीमारी हो गई थी, अक्सर जब वह किसी तरह सो जाने में कामयाब हो भी जाती तो उसे बुरे सपने आते। उसका प्रतिरक्षा तंत्र खास तौर से कमजोर हो गया था और वह लगभग हर रोज दवा लेती थी। हर रोज काम के भारी बोझ की वजह से एन रैन के पास परमेश्वर के सामने आने के लिए समय या ऊर्जा नहीं बचती थी। वह एक ऐसी मशीन की तरह महसूस करती थी जो कभी चलना बंद नहीं करती, काम के अलावा उसे कुछ और नहीं पता था। कभी-कभी वह सोचती, “क्या मुझे नौकरी बदलनी चाहिए? इस तरह से चलते रहना सच में मेरे जीवन की प्रगति को प्रभावित कर रहा है। लेकिन अगर मैं इस्तीफा दे दूंगी, तो क्या दूसरों से अलग दिखने का जो सपना मैंने बचपन से देखा था वह पूरी तरह से टूट नहीं जाएगा? क्या मुझे फिर कभी ऐसा अच्छा मौका मिलेगा?” रिश्तेदारों और दोस्तों की प्रशंसा भरी नजरें और छात्रों के माता-पिता और स्कूल के अगुआओं से तारीफ—यह सब वही था जिसके लिए एन रैन तरसती आई थी। “जैसा कि कहा जाता है,” उसने सोचा, “‘लोगों में अपनी गरिमा के लिए लड़ने की हिम्मत होनी चाहिए।’ लोग खुद को साबित करने और सम्मान हासिल करने के लिए जीते हैं, है कि नहीं? अपनी पूरी जिंदगी औसत दर्जे का बना रहकर जीने का क्या मतलब?” एन रैन उठी और वापस अपनी डेस्क पर जाकर बैठ गई, पेन लेकर अपनी पाठ योजनाओं पर काम करने लगी। उसने अपना मन बना लिया और फैसला किया कि वह अपनी नौकरी नहीं छोड़ेगी और सोचा कि अगर वह परमेश्वर के वचन खाने-पीने और ज्यादा सभाओं में हिस्सा लेने के लिए अपनी छुट्टियों का सदुपयोग करेगी तो बात वही रहेगी।
2011 के वसंत महोत्सव के दौरान अपनी माँ के साथ घर की सफाई करते समय एन रैन को अचानक लगा कि वह अपना दाहिना हाथ नहीं उठा पा रही है और अपना सिर नीचे नहीं झुका पा रही है। जब उसने अपना सिर नीचे झुकाने की कोशिश की तो उसे कुछ चटकने की आवाज सुनाई दी। एन रैन भयभीत और असमंजस में थी।
“तुम्हारा कंधा जाम है और गर्दन का गठिया है। दोनों ही कार्यशैली से जुड़ीं परेशानियाँ हैं। अगर तुम जल्दी इलाज शुरू नहीं करोगी तो इनसे भविष्य में लकवा हो सकता है। इसके अलावा, तुम्हारा शरीर काफी कमजोर है, इसलिए तुम्हें तुरंत इलाज शुरू करने की जरूरत है,” चिकित्सा कक्ष में मौजूद डॉक्टर ने एन रैन को गंभीरता से सलाह दी।
डॉक्टर की बातें सुनकर एन रैन बहुत ही डर गई : “मैं केवल उन्नीस साल की हूँ। मेरा जीवन अभी शुरू ही हुआ है और मुझे कई सपने पूरे करने हैं। अगर मेरे कंधे और गर्दन की स्थिति और बिगड़ गई तो मेरे आने वाले दिन कैसे गुजरेंगे? क्या मैं तब भी सामान्य रूप से कक्षा में जाकर काम कर पाऊँगी?” यह सोचकर कि उत्कृष्टता प्राप्त करने का उसका सपना टूट सकता है, एन रैन बहुत ही अनमनी महसूस करने लगी और शिकायत करने से खुद को रोक नहीं पाई, “मेरा जीवन इतना दुखदायी क्यों है? मैं अपनी इच्छाओं को पूरा क्यों नहीं कर सकती? क्या जीवन भर नीची नजरों से देखा जाना ही मेरी नियति है?” वह अपने आप को रोने से नहीं रोक पाई।
आसमान में बादल छाए हुए थे, मानो बर्फ गिरने वाली हो। ठंडी हवा सनसनाती आ रही थी और इससे लोग ऐसे काँप रहे थे मानो वे बर्फ के तहखाने में गिर गए हों।
एन रैन अपने बिस्तर पर सिकुड़कर लेटी हुई थी, उसका चेहरा कुंठा से भरा हुआ था। उसे ऐसा लगा मानो उसका कोई भविष्य नहीं है और वह जो कुछ भी करती है उसमें उत्साह की कमी रहती है। अपने दर्द में वह परमेश्वर से प्रार्थना ही कर सकती थी, “हे परमेश्वर, मुझे अचानक इतनी गंभीर बीमारी हो गई है और मैं भयभीत हूँ। मुझे नहीं पता कि यहाँ से आगे कैसे बढ़ूँ। बीते साल मैं हर समय काम करती रही और सभाओं में ज्यादा शामिल नहीं हुई। मैं जानती हूँ कि यह तेरे इरादे के अनुरूप नहीं है, लेकिन मैं अपनी नौकरी छोड़ना बर्दाश्त नहीं कर सकती। मुझे ऐसा लगता है कि मेरा जीवन बहुत दुखदायी है और मुझे नहीं पता कि मेरे साथ यह सब क्यों हुआ है। मुझे प्रबुद्ध कर और इस दर्द से उभरने में सक्षम बना।”
उस समय सर्दी की छुट्टियाँ थीं और एन रैन अपना समय सभाओं में भाग लेकर या घर पर परमेश्वर के वचन पढ़कर बिता रही थी। उसे खास तौर से सुसमाचार की फिल्में और वीडियो देखना पसंद था। जब उसने देखा कि अनुग्रह के युग के दौरान बहुत सारी मिशनरियों ने दूर-दूर तक चीन की यात्रा की, अपने परिवारों और विवाहित जीवन को त्याग कर और सभी प्रकार के उत्पीड़न को सहकर भी, अथक रूप से सुसमाचार का प्रचार किया और अपनी इच्छा से खुद को प्रभु के लिए खपाया और उन्हें अपनी पसंद पर पछतावा नहीं हुआ तो एन रैन ने गहराई से प्रेरित महसूस किया। उसने मन ही मन सोचा, “वे प्रभु यीशु में इतने उत्साह से विश्वास करते थे और आज मैंने प्रभु यीशु की वापसी का स्वागत करते हुए परमेश्वर के तीसरे चरण के कार्य को स्वीकार कर लिया है। मैंने उनसे ज्यादा परमेश्वर के वचनों को सुना और सत्य और रहस्यों को समझा है। मैंने परमेश्वर के वचनों से इतना अधिक सिंचन और प्रावधान का आनंद लिया है, इसलिए मुझे और भी अधिक सुसमाचार प्रचार करना चाहिए और परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए।” एन रैन को याद आया कि उसके आस-पास के बहुत से भाई-बहन वैवाहिक जीवन और काम त्यागकर कलीसिया में सक्रिय रूप से अपने कर्तव्य निभा रहे थे और परमेश्वर के प्यार का बदला चुका रहे थे। वह कई सालों से परमेश्वर में विश्वास करते हुए परमेश्वर के अनुग्रह का आनंद ले रही थी, लेकिन अपने कर्तव्य निभाना तो छोड़ो, वह नियमित रूप से सभाओं में भाग तक नहीं ले पा रही थी। वह यह जानने को उत्सुक थी कि क्या वह सचमुच परमेश्वर की विश्वासी है। उसने पीछे मुड़कर उन बहनों के बारे में सोचा जिनके साथ वह संगति किया करती थी, वे अब कलीसिया में अपना कर्तव्य निभा रही थीं, जबकि वह खुद धन, शोहरत और लाभ के पीछे भाग रही थी तो एन रैन ने खुद से पूछा, “मैं धन, शोहरत और लाभ का पीछा करना क्यों बंद नहीं कर सकती?”
एक दिन एन रैन ने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “मनुष्य का भाग्य परमेश्वर के हाथों से नियंत्रित होता है। तुम स्वयं को नियंत्रित करने में असमर्थ हो : हमेशा अपनी ओर से भाग-दौड़ करते रहने और व्यस्त रहने के बावजूद मनुष्य स्वयं को नियंत्रित करने में अक्षम रहता है। यदि तुम अपने भविष्य की संभावनाओं को जान सकते, यदि तुम अपने भाग्य को नियंत्रित कर सकते, तो क्या तुम तब भी एक सृजित प्राणी होते? संक्षेप में, परमेश्वर चाहे जैसे भी कार्य करे, उसका समस्त कार्य केवल मनुष्य के वास्ते होता है। उदाहरण के लिए, स्वर्ग और पृथ्वी और उन सभी चीज़ों को लो, जिन्हें परमेश्वर ने मनुष्य की सेवा करने के लिए सृजित किया : चंद्रमा, सूर्य और तारे, जिन्हें उसने मनुष्य के लिए बनाया, जानवर और पेड़-पौधे, बसंत, ग्रीष्म, शरद और शीत ऋतु इत्यादि—ये सब मनुष्य के अस्तित्व के वास्ते ही बनाए गए हैं। और इसलिए, परमेश्वर मनुष्य को चाहे जैसे भी ताड़ित करता हो या चाहे जैसे भी उसका न्याय करता हो, यह सब मनुष्य के उद्धार के वास्ते ही है। यद्यपि वह मनुष्य को उसकी दैहिक आशाओं से वंचित कर देता है, पर यह मनुष्य को शुद्ध करने के वास्ते है, और मनुष्य का शुद्धिकरण इसलिए किया जाता है, ताकि वह जीवित रह सके। मनुष्य की मंज़िल सृजनकर्ता के हाथ में है, तो मनुष्य स्वयं को नियंत्रित कैसे कर सकता है?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मनुष्य के सामान्य जीवन को बहाल करना और उसे एक अद्भुत मंजिल पर ले जाना)। एन रैन समझ गई कि मनुष्य का भाग्य परमेश्वर के हाथों में है और उसकी अपनी इच्छाओं के अधीन नहीं है। उसे एहसास हुआ कि वह बस एक महत्वहीन सृजित प्राणी है और यह नियंत्रित नहीं कर सकती कि वह जीवन में किन अनुभवों से गुजरेगी। लेकिन, वह हमेशा चीजों को अपने तरीके से करना चाहती थी और उसने परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण नहीं किया। वह यह भी मानती थी कि उसका जीवन दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि वह बीमार पड़ गई और अपनी नौकरी जारी नहीं रख सकी या सबसे अलग नहीं दिख पाई। उसने मन ही मन सोचा, “क्या यह परमेश्वर के खिलाफ शिकायत करना नहीं है?” बीते साल पर विचार करते हुए एन रैन को एहसास हुआ कि अपने काम पर ध्यान केंद्रित करने के कारण परमेश्वर के साथ उसके रिश्ते में दूरी आ चुकी थी। अगर वह बीमार न होती तो उसका सारा ध्यान काम और पैसा कमाने में लगा रहता, जिससे परमेश्वर के सामने आने के लिए समय या ऊर्जा नहीं बचती। अब अपनी शारीरिक पीड़ा के बावजूद वह शांत हो सकती है और परमेश्वर के वचन पढ़ने में समय बिता सकती है, जो एक अच्छी बात है। एन रैन समर्पण करने और परमेश्वर का इरादा खोजने को तैयार थी।
जब सर्दियों का सूरज उगा तो उसकी गर्माहट बहुत ही आकर्षक थी। धूप आँगन के हर कोने में फैलकर उसके शरीर को गर्माहट से भर रही थी।
आँगन में बैठी एन रैन अपनी कुर्सी पर पीछे झुककर चुपचाप परमेश्वर के ये वचन पढ़ रही थी : “अब वह समय है, जब मेरा आत्मा बड़ी चीजें करता है, और वह समय है, जब मैं अन्यजाति देशों के बीच कार्य आरंभ करता हूँ। इससे भी अधिक, यह वह समय है, जब मैं सभी सृजित प्राणियों को वर्गीकृत करता हूँ और उनमें से प्रत्येक को उसकी संबंधित श्रेणी में रख रहा हूँ, ताकि मेरा कार्य अधिक तेजी से और प्रभावशाली ढंग से आगे बढ़ सके। इसलिए, मैं तुम लोगों से जो माँग करता हूँ, वह अभी भी यही है कि तुम लोग मेरे संपूर्ण कार्य के लिए अपने पूरे अस्तित्व को अर्पित करो; और, इसके अतिरिक्त, तुम उस संपूर्ण कार्य को स्पष्ट रूप से जान लो और उसके बारे में निश्चित हो जाओ, जो मैंने तुम लोगों में किया है, और मेरे कार्य में अपनी पूरी ताक़त लगा दो, ताकि यह और अधिक प्रभावी हो सके। इसे तुम लोगों को अवश्य समझ लेना चाहिए। बहुत पीछे तक देखते हुए, या दैहिक सुख की खोज करते हुए, आपस में लड़ना बंद करो, उससे मेरे कार्य और तुम्हारे बेहतरीन भविष्य में विलंब होगा। ऐसा करने से तुम्हें सुरक्षा मिलनी तो दूर, तुम पर बरबादी और आ जाएगी। क्या यह तुम्हारी मूर्खता नहीं होगी? जिस चीज का तुम आज लालच के साथ आनंद उठा रहे हो, वही तुम्हारे भविष्य को बरबाद कर रही है, जबकि वह दर्द जिसे तुम आज सह रहे हो, वही तुम्हारी सुरक्षा कर रहा है। तुम्हें इन चीजों का स्पष्ट रूप से पता होना चाहिए, ताकि तुम उन प्रलोभनों से दूर रह सको जिनसे बाहर निकलने में तुम्हें मुश्किल होगी, और ताकि तुम घने कोहरे में डगमगाने और सूर्य को खोज पाने में असमर्थ होने से बच सको। जब घना कोहरा छँटेगा, तुम अपने आपको महान दिन के न्याय के मध्य पाओगे” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सुसमाचार को फैलाने का कार्य मनुष्य को बचाने का कार्य भी है)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करते हुए एन रैन को धीरे-धीरे समझ में आ गया कि वह बचपन से ही हमेशा उत्कृष्टता प्राप्त करने की कोशिश करती आई थी, अपने हाथों से अपनी किस्मत बदलना चाहती थी। वह हमेशा सोचती थी, “तुम्हें दुनिया में अपना नाम कमाना है और लोगों की प्रशंसा हासिल करनी है, वरना जीवन बेमतलब होगा। निम्न वर्ग का बने रह कर जीने का क्या मतलब?” उत्कृष्टता और यश के पीछे भागते हुए एन रैन ने पैसा कमाने के लिए कड़ी मेहनत की और अंत के दिनों का परमेश्वर का कार्य स्वीकारने के बाद भले ही वह जानती थी कि कार्य के इस चरण का उद्देश्य लोगों को स्वच्छ करना और बदलना है, यह परमेश्वर के कार्य का अंतिम चरण है और यह कि कार्य का यह चरण जीवनकाल में केवल एक बार आता है और अगर वह इससे चूक गई तो वह बचाए जाने का मौका खो देगी, फिर भी वह धन, शोहरत और लाभ की खोज में परमेश्वर से दूर हो गई और उसने अपने आदर्शों और इच्छाओं को पूरा करने और उत्कृष्टता के पीछे भागने को ही जीवन का मूल्य माना। इसके लिए वह अथक काम करती थी, शोहरत, लाभ और धन के भँवर में कड़ा संघर्ष करती थी जिसकी वजह से आखिर में उसे संपूर्ण शारीरिक कष्ट हुआ और गहरी पीड़ा मिली। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि उसने खुद को परमेश्वर से दूर कर लिया और उसे धोखा दिया ताकि वह दूसरों से अलग दिख सके और इन तथाकथित संभावनाओं की खातिर उसने दूसरों के साथ संगति करने और सत्य हासिल करने के अवसरों में देरी की। क्या परमेश्वर के वचनों ने ठीक यही नहीं कहा है : “जिस चीज का तुम आज लालच के साथ आनंद उठा रहे हो, वही तुम्हारे भविष्य को बरबाद कर रही है?” धन, शोहरत और लाभ के पीछे भागने से अच्छी संभावनाएं प्राप्त नहीं होतीं; यह वास्तव में स्वयं को नुकसान पहुँचाता है और बर्बाद कर देता है! एन रैन को एहसास हुआ कि भले ही इस बीमारी की वजह से उसे कुछ तकलीफ हुई, पर इसने उसके शोहरत और लाभ के अनुसरण को भी रोक दिया। बाहर से तो यह बीमारी उसके सपनों को चकनाचूर करती प्रतीत हुई, लेकिन इसने अदृश्य रूप से उसकी रक्षा की थी। इस बीमारी के जरिए एन रैन परमेश्वर के सामने आने, अपने मार्ग पर विचार करने और वास्तव में अपने जीवन के बारे में सोचने में सक्षम हो पाई—ज्यादा महत्वपूर्ण क्या था, सत्य और जीवन का अनुसरण या शोहरत और लाभ का अनुसरण? उस पल एन रैन को बाइबल के वचनों के बारे में सोचते हुए यह एहसास हुआ : “मैं ने उन सब कामों को देखा जो सूर्य के नीचे किए जाते हैं; देखो, वे सब व्यर्थ और मानो वायु को पकड़ना है” (सभोपदेशक 1:14)। “यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे, और अपने प्राण की हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा? या मनुष्य अपने प्राण के बदले क्या देगा?” (मत्ती 16:26)। धन, शोहरत और लाभ अस्थायी आनंद दे सकते हैं और व्यक्ति को प्रसिद्धि और दूसरों से सम्मान दिला सकते हैं, लेकिन इसका मतलब सत्य और उद्धार प्राप्त करने का अवसर खोना है, जो अपने जीवन का बलिदान करने के बराबर है। इसमें क्या सार्थकता है?
एन रैन ने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ना जारी रखा : “सर्वशक्तिमान ने बुरी तरह से पीड़ित इन लोगों पर दया की है; साथ ही, वह उन लोगों से विमुख महसूस करता है जिनमें जरा-सा भी जमीर नहीं है, क्योंकि उसे लोगों से जवाब पाने के लिए बहुत लंबा इंतजार करना पड़ा है। वह तुम्हारे हृदय की, तुम्हारी आत्मा की तलाश करना चाहता है, तुम्हें पानी और भोजन देना चाहता है, ताकि तुम जाग जाओ और अब तुम भूखे या प्यासे न रहो। जब तुम थक जाओ और तुम्हें इस दुनिया के बेरंगपन का कुछ-कुछ एहसास होने लगे, तो तुम हारना मत, रोना मत। द्रष्टा, सर्वशक्तिमान परमेश्वर, किसी भी समय तुम्हारे आगमन को गले लगा लेगा। वह तुम्हारी बगल में पहरा दे रहा है, तुम्हारे लौट आने का इंतजार कर रहा है। वह उस दिन की प्रतीक्षा कर रहा है जिस दिन तुम अचानक अपनी याददाश्त फिर से पा लोगे : जब तुम्हें यह एहसास होगा कि तुम परमेश्वर से आए हो लेकिन किसी अज्ञात समय में तुमने अपनी दिशा खो दी थी, किसी अज्ञात समय में तुम सड़क पर होश खो बैठे थे, और किसी अज्ञात समय में तुमने एक ‘पिता’ को पा लिया था; इसके अलावा, जब तुम्हें एहसास होगा कि सर्वशक्तिमान तो हमेशा से ही तुम पर नज़र रखे हुए है, तुम्हारी वापसी के लिए बहुत लंबे समय से इंतजार कर रहा है। वह हताश लालसा लिए देखता रहा है, जवाब के बिना, एक प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करता रहा है। उसका नज़र रखना और प्रतीक्षा करना बहुत ही अनमोल है, और यह मानवीय हृदय और मानवीय आत्मा के लिए है। शायद ऐसे नज़र रखना और प्रतीक्षा करना अनिश्चितकालीन है, या शायद इनका अंत होने वाला है। लेकिन तुम्हें पता होना चाहिए कि तुम्हारा दिल और तुम्हारी आत्मा इस वक्त कहाँ हैं” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सर्वशक्तिमान की आह)। परमेश्वर के वचनों को बार-बार मानवजाति को पुकारते देखकर एन रैन का हृदय गहराई से प्रभावित हुआ और आंसुओं ने उसकी दृष्टि को धुंधला कर दिया। उसने मन ही मन आह भरी, “तो परमेश्वर हमेशा से मेरी वापसी का इंतजार करता आया है, उसने मुझे बचाने में कभी हार नहीं मानी।” एन रैन को एहसास हुआ कि भले ही वह बहुत पहले परमेश्वर की वाणी सुन चुकी है, परमेश्वर के बहुत से वचन पढ़ चुकी है और यह जानती है कि अंत के दिनों में परमेश्वर ने मानवजाति को व्यक्तिगत रूप से बचाने के लिए देहधारण किया है और यह एक बहुत ही दुर्लभ मौका है, पर वह दिल से बहुत अड़ियल और भावनाहीन थी, अपने विचारों, ऊर्जा और समय को पैसे के लिए काम करने, दूसरों से सम्मान पाने और खुद को ऊँचा उठाने का प्रयास करने पर केंद्रित कर रही थी। वह जानती थी कि अगर वह इस रास्ते पर चलती रही, तो केवल खुद को थका देगी और पूरी तरह से शोहरत, लाभ और रुतबे के लिए बलि का बकरा बनकर अच्छी संभावनाएं प्राप्त करने में असमर्थ रहेगी और आखिर में खुद को बर्बाद कर लेगी। उस पल एन रैन बहुत भावुक हो गई और उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। उसने माना कि परमेश्वर ने उसे जो कुछ भी दिया था वह प्रेम और उद्धार था, जबकि उसने इसका जवाब अस्वीकृति, टालमटोल और प्रतिरोध के साथ दिया। उसे परमेश्वर के प्रति आभार महसूस हुआ। उसने चुपचाप संकल्प लिया कि वह गंभीरता से परमेश्वर के वचनों को खाएगी-पीएगी और संगति में भाग लेगी और फिर कभी मायूसी और पतन में नहीं डूबेगी।
फिर उसने परमेश्वर के वचनों का पाठ सुना : “तुम सृजित प्राणी हो—तुम्हें निस्संदेह परमेश्वर की आराधना और सार्थक जीवन का अनुसरण करना चाहिए। यदि तुम परमेश्वर की आराधना नहीं करते हो बल्कि अपनी अशुद्ध देह के भीतर रहते हो, तो क्या तुम बस मानव भेष में जानवर नहीं हो? चूँकि तुम मानव प्राणी हो, इसलिए तुम्हें स्वयं को परमेश्वर के लिए खपाना और सारे कष्ट सहने चाहिए! आज तुम्हें जो थोड़ा-सा कष्ट दिया जाता है, वह तुम्हें प्रसन्नतापूर्वक और दृढ़तापूर्वक स्वीकार करना चाहिए और अय्यूब तथा पतरस के समान सार्थक जीवन जीना चाहिए। इस संसार में, मनुष्य शैतान का भेष धारण करता है, शैतान का दिया भोजन खाता है, और शैतान के अँगूठे के नीचे कार्य और सेवा करता है, और गंदगी में पूरी तरह ढँक जाने तक उसके पैरो तले रौंदा जाता है। यदि तुम जीवन का अर्थ नहीं समझते हो या सच्चा मार्ग प्राप्त नहीं करते हो, तो इस तरह जीने का क्या महत्व है? तुम सब वे लोग हो, जो सही मार्ग का अनुसरण करते हो, जो सुधार की खोज करते हो। तुम सब वे लोग हो, जो बड़े लाल अजगर के देश में ऊपर उठते हो, जिन्हें परमेश्वर धार्मिक कहता है। क्या यह सबसे सार्थक जीवन नहीं है?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अभ्यास (2))। परमेश्वर के वचन सुनकर एन रैन को जीवन का सही लक्ष्य मिल गया जिससे उसे खास तौर से मुक्ति और आराम महसूस हुआ। उसने उन सभी सालों पर विचार किया जो उसने शोहरत और लाभ के लिए जिए, दूसरों से अलग दिखने की चाहत में खुद को बहुत कष्ट दिए, तनाव, दर्द और कड़वाहट से बोझिल रही, आखिरकार वह शैतान के साथ ही साथ विनाश का सामना कर रही थी। यह सब जीवन के प्रति एक गलत दृष्टिकोण के अनुसार जीने की वजह से था। अब एन रैन को समझ आ गया था कि धन, रुतबा, शोहरत और लाभ सभी चीजें खोखली हैं। एक सृजित प्राणी के रूप में अपना जीवन परमेश्वर को समर्पित करने के लिए जीना, सत्य का अनुसरण करना और परमेश्वर को जानना ही सबसे सार्थक अस्तित्व है। अगर वह परमेश्वर के कार्य के दौरान गंभीरता से सत्य का अनुसरण कर पाती है, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्याग सकती है तो वह आखिरकार एक ऐसी इंसान बन सकती है जिसे परमेश्वर स्वीकृति देता है। भले ही उसे अपने जीवनकाल में लोगों से कोई मान्यता न मिले, पर परमेश्वर से स्वीकृति मिलना सबसे सार्थक और मूल्यवान होगा। उसने उन बहुत सारे भाई-बहनों के बारे में सोचा जिनमें से कुछ विश्वविद्यालय स्नातक थे, कुछ के परिवार व्यवसाय चलाते थे, उन्होंने अपने कर्तव्य निभाने के लिए शोहरत और लाभ का त्याग कर लिया तो उसने खुद से पूछा कि ऐसा क्या है जो उसके जैसी एक मामूली सी शिक्षिका नहीं छोड़ सकती। एन रैन ने परमेश्वर के वचनों की अपनी किताब बंद की, घुटने टेके और प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मैं विद्रोही बनी रही, धन, शोहरत और लाभ के पीछे भागकर जीती रही, तेरे सामने आने को तैयार नहीं हुई। आज मैं जाग गई हूँ और महसूस कर रही हूँ कि शोहरत, लाभ और धन के लिए अपने जीवन का बलिदान देना इसके लायक नहीं है। परमेश्वर, मुझे बचाने में कभी हार न मानने के लिए, हमेशा मेरी वापसी का इंतजार करने के लिए धन्यवाद। मैं अब से तेरे वचन खाने-पीने पर ध्यान केंद्रित करने, और अधिक सभाओं में भाग लेने और अपने कर्तव्य निभाने को तैयार हूँ। मैं अब शैतान द्वारा मूर्ख बनने और नुकसान पहुँचाए जाने के लिए तैयार नहीं हूँ।” प्रार्थना करने के बाद एन रैन को अपने दिल में दृढ़ता का एहसास हुआ। इसके बाद के दिनों में उसने रोज लगन से परमेश्वर के वचनों को खाया-पीया और ज्यादा सभाओं में भाग लिया।
वसंत महोत्सव के तुरंत बाद उसे अचानक एक ऐसे सहपाठी ने फोन किया जिसके संपर्क में वह नहीं थी और उसे शहर के स्कूल-पश्चात कार्यक्रम के लिए काम करने की पेशकश की, जहाँ उसे सिर्फ खाने के समय के दौरान छात्रों को पढ़ाना था। हालाँकि इस नौकरी में कम वेतन मिलता था और इससे कोई पहचान या प्रशंसा नहीं मिलती थी, पर एन रैन को यह खुशी हुई कि उसे परमेश्वर के वचन खाने-पीने और अपना कर्तव्य निभाने के लिए ज्यादा समय मिलेगा।
एक रविवार की सुबह एन रैन पैदल घर जा रही थी, जबकि अन्य लोग सड़क पर इधर-उधर तेजी से चल रहे थे, उसने अपनी गति धीमी कर ली, यह सोचते हुए कि कैसे उसे कल अपने चचेरे भाई का फोन आया जिसने उससे स्कूल में काम पर लौटने का आग्रह किया; उसके रिश्तेदारों ने भी यही आग्रह किया। एन रैन ने विचार किया : “मेरी बीमारी में सुधार हो चुका है और मैं अभी भी जवान हूँ—क्यों न इसे एक बार और आजमा लूँ? अगर मैं स्कूल लौट जाती हूँ तो दूसरे लोगों से सम्मान और प्रशंसा मेरे पीछे-पीछे आएगी।”
तभी हवा के एक झोंके के साथ एन रैन को स्कूल के कड़वे दिन याद आ गए। अब वह आखिरकार खुद को धन, शोहरत और लाभ की दलदल से बाहर निकालने में कामयाब हो गई थी और सामान्य रूप से सभाओं में भाग लेने, परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने और अपना कर्तव्य निभाने में सक्षम थी। उसने मन में सोचा, “अगर मैं स्कूल में काम पर लौटती हूँ तो क्या इससे बेकार की कठिनाई नहीं आएगी?”
यह सोचते हुए एन रैन ने अपना फोन निकाला और चचेरे भाई को संदेश भेजकर विनम्रतापूर्वक मना कर दिया।
बीप! हॉर्न बजाते हुए एक कार एन रैन के सामने आकर रुकी। उसने अपना सूटकेस उठाया और अपने कर्तव्यों को निभाने के मार्ग पर चल पड़ी।
कार की खिड़की के पास बैठकर एन रैन ने अपनी यात्रा को याद किया जो पैसे, शोहरत और लाभ में गहरी फँसी एक इंसान से लेकर परमेश्वर के घर में कर्तव्य निभाने वाली सदस्य बनने तक की थी। उसे एहसास हुआ कि हर कदम की अगुआई वास्तव में परमेश्वर ने की थी और परमेश्वर के अत्यधिक प्रेम और उद्धार से भरपूर था और अगर परमेश्वर के वचनों ने प्रबुद्धता और अगुआई प्रदान न की होती तो वह अभी भी शोहरत, लाभ और रुतबे के अनुसरण के भँवर में फँसी हुई होती। उसने खामोशी से अपने दिल में परमेश्वर को धन्यवाद दिया, सिर्फ उस बहुमूल्य समय को संजोने को तैयार होते हुए, ताकि गंभीरता से सत्य का अनुसरण करे और परमेश्वर के हृदय को सुकून देने के लिए अपने कर्तव्य अच्छे से निभाए।