3. एक विषमता का परीक्षण

शिंगदाओ, दक्षिण कोरिया

"हे परमेश्वर, चाहे मेरी हैसियत हो या न हो, अब मैं स्वयं को समझती हूँ। यदि मेरी हैसियत ऊँची है तो यह तेरे उत्कर्ष के कारण है, और यदि यह निम्न है तो यह तेरे आदेश के कारण है। सब-कुछ तेरे हाथों में है। मेरे पास न तो कोई विकल्प हैं न ही कोई शिकायत है। तूने निश्चित किया कि मुझे इस देश में और इन लोगों के बीच पैदा होना है, और मुझे पूरी तरह से तेरे प्रभुत्व के अधीन आज्ञाकारी होना चाहिए क्योंकि सब-कुछ उसी के भीतर है जो तूने निश्चित किया है। मैं हैसियत पर ध्यान नहीं देती हूँ; आखिरकार, मैं मात्र एक प्राणी ही तो हूँ। यदि तू मुझे अथाह गड्ढे में, आग और गंधक की झील में डालता है, तो मैं एक प्राणी से अधिक कुछ नहीं हूँ। यदि तू मेरा उपयोग करता है, तो मैं एक प्राणी हूँ। यदि तू मुझे पूर्ण बनाता है, मैं तब भी एक प्राणी हूँ। यदि तू मुझे पूर्ण नहीं बनाता, तब भी मैं तुझ से प्यार करती हूँ क्योंकि मैं सृष्टि के एक प्राणी से अधिक कुछ नहीं हूँ। मैं सृष्टि के परमेश्वर द्वारा रचित एक सूक्ष्म प्राणी से अधिक कुछ नहीं हूँ, सृजित मनुष्यों में से सिर्फ एक हूँ। तूने ही मुझे बनाया है, और अब तूने एक बार फिर मुझे अपने हाथों में अपनी दया पर रखा है। मैं तेरा उपकरण और तेरी विषमता होने के लिए तैयार हूँ क्योंकि सब-कुछ वही है जो तूने निश्चित किया है। कोई इसे बदल नहीं सकता। सभी चीजें और सभी घटनाएँ तेरे हाथों में हैं"("मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ" में 'मैं हूँ बस एक अदना सृजित प्राणी')। जब मैं परमेश्वर के वचनों का यह गीत गाता हूँ तो यह मुझे गहराई तक प्रेरित करता है और विषमता के परीक्षण के दौरान जो अनुभव मैंने किए, उन्हें याद किए बिना मैं नहीं रह पाता।

1993 की शुरुआत में, मुझे कलीसिया में नए विश्वासियों का सिंचन करने का काम मिला। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा ईसाइयों के भयंकर उत्पीड़न की वजह से हम जहां भी जाते, गिरफ़्तारी का ख़तरा बना रहता था। इस प्रतिकूल माहौल के बावजूद, मैं कभी पीछे नहीं हटा, बस अपना कर्तव्य निभाता रहा। मैंने परमेश्वर के इन वचनों को पढ़ा, "केवल वे जो परमेश्वर से प्रेम करते हैं, परमेश्वर की गवाही दे पाते हैं, केवल वे ही परमेश्वर के गवाह हैं, केवल वे ही परमेश्वर द्वारा धन्य किए जाते हैं, और केवल वे ही परमेश्वर की प्रतिज्ञाएँ प्राप्त कर पाते हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर से प्रेम करने वाले लोग सदैव उसके प्रकाश के भीतर रहेंगे)। तब मुझे विश्वास हुआ कि मैं परमेश्वर से प्यार करने वाला इंसान बनने की पूरी कोशिश कर सकता हूँ। मुझे लगा कि इस तरह की कोशिश से मुझे परमेश्वर की स्वीकृति ज़रूर हासिल होगी और मैं स्वर्ग में पहुँचकर ज़रूर परमेश्वर के राज्य के लोगों में से एक बन जाऊँगा।

जिस उत्साह से मैं ख़ुद को खपा रहा था, उससे मुझे पूरा यक़ीन था कि मुझे परमेश्वर के राज्य में प्रवेश मिल जाएगा, मगर सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त वचनों ने मुझे विषमता के परीक्षण में डाल दिया। मार्च के महीने में एक दिन, भाई-बहनों ने हमारी कलीसिया को परमेश्वर का एक नया कथन भेजा, "विजय के कार्य की आंतरिक सच्चाई (1)।" मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : "आज, मैं चीन में परमेश्वर के चुने हुए लोगों में इसलिए काम करता हूँ ताकि उनके सारे विद्रोही स्वभावों को प्रकट करके उनकी समस्त कुरूपता को बेनकाब करूँ, और इससे मुझे वो सब बातें कहने के लिए संदर्भ मिलता है जो मुझे कहने की ज़रूरत है। तत्पश्चात, जब मैं सम्पूर्ण ब्रह्मांड को जीतने के कार्य के अगले चरण पर काम करूँगा, तो मैं पूरे ब्रह्मांड के लोगों की धार्मिकता का न्याय करने के लिए तुम लोगों के प्रति अपने न्याय का प्रयोग करूँगा, क्योंकि तुम्हीं लोग मनुष्यजाति में विद्रोहियों के प्रतिनिधि हो। जो लोग ऊपर नहीं उठ पाएँगे, वे सिर्फ विषमता और सेवा करने वाली चीज़ें बन जाएँगे, जबकि जो लोग ऊपर उठ पाएँगे, उनका प्रयोग किया जाएगा। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ कि वे जो लोग नहीं उठ पाएँगे, वे केवल विषमता के रूप में कार्य करेंगे? क्योंकि मेरे वर्तमान वचन और कार्य, तुम लोगों की पृष्ठभूमि को निशाना बनाते हैं और इसलिए कि तुम सब समस्त मनुष्यजाति में विद्रोही लोगों के प्रतिनिधि और साक्षात प्रतिमान बन चुके हो। बाद में, मैं इन वचनों को, जो तुम सबको जीतते हैं, विदेशों में ले जाऊँगा और वहाँ के लोगों को जीतने के लिए उनका प्रयोग करूँगा, फिर भी तुम उन्हें प्राप्त नहीं कर पाओगे। क्या वह तुम्हें एक विषमता नहीं बनाएगा? समस्त मनुष्यजाति का भ्रष्ट स्वभाव, मनुष्य के विद्रोही कार्य, मनुष्य की भद्दी छवियाँ और चेहरे, आज ये सभी उन वचनों में दर्ज होते हैं, जिनका प्रयोग तुम लोगों को जीतने के लिए किया गया था। तब मैं इन वचनों का प्रयोग प्रत्येक राष्ट्र और सम्प्रदाय के लोगों को जीतने के लिए करूँगा, क्योंकि तुम सब आदर्श और उदाहरण हो। हालाँकि, मैंने तुम लोगों को जानबूझकर नहीं त्यागा; यदि तुम अपने अनुसरण में असफल होते हो और इस प्रकार तुम असाध्य होना प्रमाणित करते हो, तो क्या तुम सब मात्र सेवा करने वाली वस्तु और विषमता नहीं होगे? मैंने एक बार कहा था कि शैतान की युक्तियों के आधार पर मेरी बुद्धि प्रयुक्त की जाती है। मैंने ऐसा क्यों कहा था? क्या वह उसके पीछे का सत्य नहीं है, जो मैं अभी कह और कर रहा हूँ? यदि तुम आगे नहीं बढ़ सकते, यदि तुम पूर्ण नहीं किए जाते, बल्कि दण्डित किए जाते हो, तो क्या तुम विषमता नहीं बन जाओगे? हो सकता है तुम ने अपने समय में अत्यधिक पीड़ा सही हो, परन्तु तुम अभी भी कुछ नहीं समझते; तुम जीवन की प्रत्येक बात के विषय में अज्ञानी हो। यद्यपि तुम्हें ताड़ना दी गई और तुम्हारा न्याय किया गया; फिर भी तुम बिलकुल भी नहीं बदले और तुम ने भीतर तक जीवन ग्रहण ही नहीं किया है। जब तुम्हारे कार्य को जाँचने का समय आएगा, तुम अग्नि जैसे भयंकर परीक्षण और उस से भी बड़े क्लेश का अनुभव करोगे। यह अग्नि तुम्हारे सम्पूर्ण अस्तित्व को राख में बदल देगी। ऐसा व्यक्ति जिसमें जीवन नहीं है, ऐसा व्यक्ति जिसके भीतर एक रत्ती भी शुद्ध स्वर्ण न है, एक ऐसा व्यक्ति जो अभी भी पुराने भ्रष्ट स्वभाव में फंसा हुआ है, और ऐसा व्यक्ति जो विषमता होने का काम भी अच्छे से न कर सके, तो तुम्हें क्यों नहीं हटाया जाएगा?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य)। परमेश्वर के वचनों में "विषमता" शब्द के बार-बार दोहराए जाने की तरफ़ मेरा ध्यान गया। मैंने सोचा, "विषमता? परमेश्वर ने अपने वचनों में विषमता के बारे में पहले भी बात की है, लेकिन क्या ये इशारा बड़े लाल अजगर की तरफ़ नहीं था? मैं अपने विश्वास में परमेश्वर के लिए त्याग करता हूँ और उसे प्यार करना चाहता हूँ। मुझे उसके राज्य के लोगों में से एक होना चाहिए। मैं विषमता कैसे हो सकता हूँ?" मैंने परमेश्वर के वचनों को दोबारा बहुत ध्यान से पढ़ा। परमेश्वर ने कहा कि हम चीनी लोग सबसे ज़्यादा भ्रष्ट हैं, परमेश्वर के खिलाफ़ हमारा प्रतिरोध सबसे बुरा है, और हम इंसानों की हर बग़ावत का प्रतिनिधित्व करते हैं। उसने कहा कि अगर परमेश्वर के अनुयायी नहीं बदलेंगे, जीवन नहीं हासिल करेंगे, तो वो परमेश्वर के काम के लिए विषमता बनेंगे, और परमेश्वर उन्हें हटा देगा। यह पढ़कर मैं घबरा गया, और सोचने लगा, "क्या मैं विषमता हूँ? ऐसा नहीं हो सकता। अगर मैं सच में विषमता हूँ, तो क्या मैं फिर भी स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकता हूँ?"

कुछ समय बाद, मैंने परमेश्वर द्वारा मिली इस सहभागिता को पढ़ा : "क्योंकि तुम लोग कुटिल और कपटी हो और क्योंकि तुम लोगों में क्षमता का अभाव है और तुम लोग निम्न हैसियत के हो, तुम लोग कभी भी मेरी दृष्टि में या मेरे हृदय में नहीं रहे। मेरा कार्य केवल तुम लोगों की निंदा करने के आशय से किया जाता है; मेरा हाथ कभी तुम लोगों से दूर नहीं रहा है, न ही मेरी ताड़ना तुम लोगों से दूर रही है। मैंने तुम लोगों का न्याय करता रहा हूँ और शाप देता रहा हूँ। क्योंकि तुम लोगों को मेरी कोई समझ नहीं है, इसलिए मेरा कोप हमेशा तुम लोगों पर रहा है। यद्यपि मैंने हमेशा तुम लोगों के बीच कार्य किया है, फिर भी तुम लोगों को अपने प्रति मेरी प्रवृत्ति का पता होना चाहिए। यह मात्र घृणा है—कोई अन्य प्रवृत्ति या राय नहीं है। मैं केवल यह चाहता हूँ कि तुम लोग मेरी बुद्धि और मेरे महान सामर्थ्य के लिए विषमता के रूप में कार्य करो। तुम लोग मेरी विषमताओं से अधिक कुछ नहीं हो क्योंकि मेरी धार्मिकता तुम लोगों के विद्रोहीपन के माध्यम से प्रकट होती है। मैं तुम लोगों से अपने कार्य के विषमता के रूप में, अपने कार्य का उपांग होने के लिए कार्य करवाता हूँ..." (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम विषमता होने के अनिच्छुक क्यों हो?)। मैंने देखा, परमेश्वर साफ़ तौर पर कहता है कि हम विषमता हैं, हम उसके कार्य के परिशिष्ट हैं और उसे हमसे सिर्फ़ नफ़रत और घृणा है। मैं भौचक्का रह गया और मुझे लगा कि परमेश्वर ने मुझे छोड़ दिया है। मैं बहुत दुखी था और मेरे अंदर शिकायतों ने घर बनाना शुरू कर दिया। मैंने सोचा, "इतने साल मैंने विश्वास किया, अपना परिवार और काम छोड़ा, ख़ुद को परमेश्वर के लिए खपाकर इतनी तकलीफ़ें उठायीं। मैं सेवाकर्ताओं के परीक्षण से और मौत के परीक्षण से गुज़रा हूँ। फिर मैंने परमेश्वर से यह सोचकर प्रेम करना शुरू कर दिया कि राज्य का निवासी बनना मेरी मुट्ठी में है। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं एक विषमता बनूँगा, सेवा करने की एक ऐसी वस्तु, जिसे परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव की विषमता होने के बाद हटा दिया जाएगा। तो इतने सालों से मैं किस लिए कीमत चुका रहा हूँ? अगर मेरे दोस्त और रिश्तेदार ये बात जान गये, तो वो मेरे बारे में क्या सोचेंगे? जब मैंने अपने विश्वास के लिए अपना काम और परिवार छोड़ा था, तो उन्हें समझ नहीं आया था। वो मुझे ताना देते थे। इसलिए उस समय, मैं एक अच्छा विश्वासी बनना चाहता था ताकि जब परमेश्वर का कार्य पूरा हो जाए और बड़ी आपदाएं आएं, तो मुझे उसके राज्य में ले जाया जाए। तब मैं अपना सिर फ़ख़्र से ऊँचा रख सकूँगा और उन्हें शर्मिंदा होना पड़ेगा। किसने सोचा था कि मैं एक विषमता जैसी नीच चीज़ बन जाऊँगा? विषमताओं में जीवन नहीं होता। वो कचरा होते हैं, और सेवाकर्ताओं से भी गिरे हुए होते हैं। कम से कम सेवाकर्ता कुछ समय के लिए परमेश्वर के लिए सेवाकार्य कर सकते हैं, उसके अनुग्रह और आशीष का आनंद ले सकते हैं। सिर्फ़ सेवाकर्ता होना भी ठीक है। एक विषमता होने से तो सेवाकर्ता होना ही बेहतर लगता है।"

अगले कुछ दिनों तक विषमता शब्द बार-बार मेरे कानों में गूँज रहा था और मैं सोचने पर मजबूर हो गया, "मैं विषमता से ज़्यादा कुछ कैसे नहीं हो सकता? मैं चीन में क्यों पैदा हुआ? अगर बड़े लाल अजगर ने चीनी लोगों को इतनी गहराई तक भ्रष्ट नहीं किया होता, तो मैं कभी भी विषमता नहीं बनता! मुझे लगा कि मैं परमेश्वर के राज्य में दाख़िल होकर उसके लोगों में से एक बनने ही वाला हूँ, उन चीज़ों का आनंद लेने वाला हूँ जिनका वादा परमेश्वर ने किया है। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं विषमता बन जाऊंगा।" मैंने इसके बारे में जितना सोचा उतना ही और परेशान हो गया और मैं खुद को रोने से नहीं रोक पाया। मुझे लगा अगर ऐसा ही है, तो मैं कुछ नहीं कर सकता, बस अपनी किस्मत के आगे घुटने ही टेक सकता हूँ।

उसके बाद, भले ही मैं सभाओं में जाता रहा और अपना कर्तव्य पूरा करता रहा, लेकिन मेरा दिल उसमें नहीं लगता था। मेरे पास प्रार्थना में परमेश्वर से कहने के लिए कुछ नहीं था और न गीत गाने का हौसला था। मुझे परमेश्वर के वचनों से कोई प्रबोधन प्राप्त नहीं हो रहा था। मुझे लगा कि अगर मैं विषमता हूँ, तो आगे बढ़ने का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि मुझे निष्कासित कर हटा दिया जाएगा और एक अथाह गड्ढे में फेंक दिया जाएगा। मैं सच में निराश और व्यथित महसूस कर रहा था। एक शाम जब मैं बिस्तर में पड़ा जाग रहा था, मैं उन सभी वचनों के बारे में सोचने लगा जो परमेश्‍वर ने अंत के दिनों में अपने कार्य के दौरान कहे थे, जो हमें सिंचन और पोषण देते रहे थे, साथ ही उन परीक्षणों और शुद्धिकरणों के बारे में सोचा जो हमें शुद्ध करते रहे थे। मैं विशेष रूप से सेवाकर्ताओं के परीक्षण के बारे में सोचने लगा। उस समय, हालांकि परमेश्वर ने हमारी शारीरिक इच्छाएँ छीनकर हमें अथाह गड्ढे में जाने का शाप दिया था, लेकिन यह वचनों का परीक्षण था, और ये बातें सच में हमारे साथ नहीं हुई थीं। उस परीक्षण से मुझे कुछ समझ मिली कि विश्वास के लिए मेरी प्रेरणा आशीष हासिल कर रही थी और मैंने परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव का थोड़ा अनुभव किया। मैंने जाना कि परमेश्वर जो भी कार्य करता है, वह हमें शुद्ध करने और बचाने के लिए करता है। मुझे यह भी याद है कि मैंने परमेश्वर के सामने कैसे संकल्प लिया था कि मैं उसके लिए सेवा करने में ख़ुश हूँ। फिर मैंने कुछ आत्म-ग्लानि महसूस की और कुछ प्रेरणा हासिल की, और सोचा, "चाहे मैं सेवाकर्ता हूँ या विषमता, सृष्टिकर्ता के लिए मेरा कर्तव्य निभाना सही और उचित है, भविष्य में परमेश्वर कोई भी इंतज़ाम करे, भले ही मेरी सेवा का अच्छा नतीजा न निकले, मैं फिर भी अंत तक उसके लिए सेवा करूंगा।" और इसलिए, मैं अपना कर्तव्य निभाता रहा। लेकिन मुझे अभी भी परमेश्वर की इच्छा की समझ नहीं थी, इसलिए मैं जब भी जीवन या अच्छे नतीजे हासिल किए बिना विषमता होने के बारे में सोचता, तो मैं निराश और परेशान हो जाता।

अप्रैल की शुरुआत में हमें परमेश्वर के और भी नए कथन मिले। परमेश्वर के वचनों में मैंने ये पढ़ा : "तुम लोगों की खोज में, तुम्हारी बहुत सी व्यक्तिगत अवधारणाएँ, आशाएँ और भविष्य होते हैं। वर्तमान कार्य तुम लोगों की हैसियत पाने की अभिलाषा और तुम्हारी अनावश्यक अभिलाषाओं से निपटने के लिए है। आशाएँ, हैसियत और अवधारणाएँ सभी शैतानी स्वभाव के विशिष्ट प्रतिनिधित्व हैं। लोगों के हृदय में इन चीज़ों के होने का कारण पूरी तरह से यह है कि शैतान का विष हमेशा लोगों के विचारों को दूषित कर रहा है, और लोग शैतान के इन प्रलोभनों से पीछा छुड़ाने में हमेशा असमर्थ रहे हैं। वे पाप के बीच रह रहे हैं, मगर इसे पाप नहीं मानते, और अभी भी सोचते हैं: 'हम परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, इसलिए उसे हमें आशीष प्रदान करना चाहिए और हमारे लिए सब कुछ सही ढंग से व्यवस्थित करना चाहिए। हम परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, इसलिए हमें दूसरों से श्रेष्ठतर होना चाहिए, और हमारे पास दूसरों की तुलना में बेहतर हैसियत और बेहतर भविष्य होना चाहिए। चूँकि हम परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, इसलिए उसे हमें असीम आशीष देनी चाहिए। अन्यथा, इसे परमेश्वर पर विश्वास करना नहीं कहा जाएगा।' बहुत सालों से, जिन विचारों पर लोगों ने अपने अस्तित्व के लिए भरोसा रखा था, वे उनके हृदय को इस स्थिति तक दूषित कर रहे हैं कि वे विश्वासघाती, डरपोक और नीच हो गए हैं। उनमें न केवल इच्छा-शक्ति और संकल्प का अभाव है, बल्कि वे लालची, अभिमानी और स्वेच्छाचारी भी बन गए हैं। उनमें ऐसे किसी भी संकल्प का सर्वथा अभाव है जो स्वयं को ऊँचा उठाता हो, बल्कि, उनमें इन अंधेरे प्रभावों की बाध्यताओं से पीछा छुड़ाने की लेश-मात्र भी हिम्मत नहीं है। लोगों के विचार और जीवन इतने सड़े हुए हैं कि परमेश्वर पर विश्वास करने के बारे में उनके दृष्टिकोण अभी भी बेहद वीभत्स हैं। यहाँ तक कि जब लोग परमेश्वर में विश्वास के बारे में अपना दृष्टिकोण बताते हैं तो इसे सुनना मात्र ही असहनीय होता है। सभी लोग कायर, अक्षम, नीच और दुर्बल हैं। उन्हें अंधेरे की शक्तियों के प्रति क्रोध नहीं आता, उनके अंदर प्रकाश और सत्य के लिए प्रेम पैदा नहीं होता; बल्कि, वे उन्हें बाहर निकालने का पूरा प्रयास करते हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम विषमता होने के अनिच्छुक क्यों हो?)। परमेश्वर के वचन मुझे चुभ गए। उन वचनों ने मेरे शैतानी स्वभाव और अपने जीवन के प्रति मेरे विचारों को पूरी तरह से उजागर कर दिया। मुझे सच में शर्म आ रही थी। मुझे लगा कैसे शुरुआत में, मेरा विश्वास सिर्फ़ आशीष पाने के लिए था। "चूँकि हम परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, इसलिए उसे हमें असीम आशीष देनी चाहिए। अन्यथा, इसे परमेश्वर पर विश्वास करना नहीं कहा जाएगा।" मैं उस वक्त यही सोचता था। सेवाकर्ताओं के परीक्षणों और मौत के परीक्षणों से गुज़रने के बाद, मैंने आशीष हासिल करने के अपने इरादों को समझना शुरू कर दिया और परमेश्वर की ख़ातिर सेवा करने के लिए तैयार हो गया, लेकिन मेरे दिल की गहराई में, आशीष पाने की इच्छा अभी भी पूरी तरह समाई हुई थी और पूरी तरह शुद्ध नहीं की गई थी। ख़ासतौर पर जब मैंने उन लोगों के लिए परमेश्वर के आशीष का वादा देखा, जो उससे प्यार करते हैं, तो आशीष पाने की मेरी इच्छा फिर से उभर आई। मुझे लगा, इस बार तो मेरा स्वर्ग के राज्य में जाना पक्का है, इसलिए मैंने परमेश्वर के लिए ख़ुद को और भी ज़्यादा खपाया। लेकिन जब परमेश्वर ने हमें विषमता के रूप में, परिशिष्ट के रूप में, और अपनी घृणा के लक्ष्य के रूप में उजागर किया, तो मुझे लगा कि आशीष पाने की मेरी आशाएं धराशायी हो गईं, अब मेरा कोई भविष्य या हैसियत नहीं रही। मुझे लगा कि मेरे साथ बहुत गलत हुआ है, मैं शिकायतों से भरा हुआ था। मैंने अपने त्याग और मेहनत को पूंजी की तरह इस्तेमाल किया, जिसे मैं परमेश्वर के साथ सौदेबाज़ी करने के लिए, परमेश्वर से उसके राज्य में मुफ़्त प्रवेश हासिल करने के लिए इस्तेमाल कर सकता था, वरना मैं ख़ुद को खपाने के लिए तैयार नहीं था। तब जाकर मुझे एहसास हुआ कि रुतबा पाने और अनावश्यक इच्छाओं की पूर्ति के लिए मेरी लालसा कितनी बड़ी थी। मुझ में परमेश्वर के लिए सच्चे प्रेम या समर्पण का भाव नहीं था। यह लेनदेन, विद्रोह और धोखेबाज़ी थी। सच्चाई का सामना होने पर, मुझे पूरा यक़ीन हो गया। मैंने देखा कि शैतान ने मुझे कितना भ्रष्ट कर दिया है। मैं घमंडी, कुटिल, स्वार्थी और नीच, पूरी तरह से ज़मीर और विवेक से रहित इंसान था। मैंने परमेश्वर के पवित्र और धार्मिक स्वभाव को भी देखा, जो ज़रा-सा भी अपमान नहीं सहन करता। मेरे जैसा भ्रष्ट इंसान, जिस पर इतने इरादों और भ्रष्ट स्वभावों के दाग़ लगे हुए थे, कैसे परमेश्वर की नफ़रत के लायक नहीं था? परमेश्वर मुझे कुछ भी बुलाए, मेरे साथ कैसा भी व्यवहार करे, यह धार्मिक है।

बाद में, मैंने एक सभा में परमेश्वर के इन वचनों को पढ़ा : "तुम्हें ऐसे और कथनों को पढ़ना चाहिए जो परमेश्वर ने इस दौरान व्यक्त किए हैं, उनसे अपने क्रियाकलापों कि तुलना करनी चाहिए : यह बिलकुल एक तथ्य है कि तुम अच्छी तरह से और वास्तव में एक विषमता हो! आज तुम्हारे ज्ञान की क्या सीमा है? तुम्हारे विचार, तुम्हारा चिंतन, तुम्हारा व्यवहार, तुम्हारे शब्द और कर्म—क्या ये सभी अभिव्यक्तियाँ परमेश्वर की धार्मिकता और पवित्रता के लिए विषमता के तुल्य नहीं हैं? क्या तुम्हारी अभिव्यक्तियाँ मनुष्य के उस भ्रष्ट स्वभाव का प्रकटीकरण नहीं है जिसे परमेश्वर के वचनों द्वारा उजागर किया गया है? तुम्हारे विचार और राय, तुम्हारी अभिप्रेरणाएँ, और जो भ्रष्टता तुममें प्रकट होती है, वह सभी परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव और साथ ही उसकी पवित्रता को दर्शाते हैं। परमेश्वर भी मलिनता की धरती पर ही पैदा हुआ था, फिर भी वह मलिनता से बेदाग रहा। वह उसी गंदी दुनिया में रहता है, जिसमें तुम रहते हो, पर उसमें विवेक और दृष्टिबोध है, वह गंदगी से घृणा करता है। तुम शायद अपने शब्दों और कर्मों में कुछ भी गंदगी न ढूँढ़ पाओ, लेकिन वह ढूँढ़ सकता है और तुम्हें बता सकता है। तुम्हारी वे पुरानी बातें—तुम्हारे अंदर संवर्धन का अभाव, अंतर्दृष्टि, बोध और जीने के तुम्हारे पिछड़े तरीके—वे सब आज के प्रकाशन से प्रकाश में लाए जा चुके हैं; केवल परमेश्वर के धरती पर आकर इस तरह काम करने से ही लोग उसकी पवित्रता और धार्मिक स्वभाव का अवलोकन करते हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, विजय-कार्य के दूसरे चरण के प्रभावों को कैसे प्राप्त किया जाता है)। "बेशक, परमेश्वर तुम लोगों को नाममात्र के लिए विषमता नहीं बनाता। बल्कि जब यह कार्य फलीभूत होता है, तभी यह स्पष्ट हो पाता है कि मनुष्य की विद्रोहशीलता परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव के लिए विषमता है, और केवल तुम्हारे विषमता होने के कारण ही तुम्हारे पास परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव की प्राकृतिक अभिव्यक्ति को जानने का अवसर है। तुम लोगों की विद्रोहशीलता के कारण तुम लोगों का न्याय किया जाता है और तुम्हें ताड़ना दी जाती है, लेकिन तुम लोगों की विद्रोहशीलता ही तुम्हें विषमता भी बनाती है, और तुम्हारी विद्रोहशीलता के कारण ही तुम्हें परमेश्वर का महान अनुग्रह भी प्राप्त होता है, जो वह तुम लोगों को प्रदान करता है। तुम लोगों की विद्रोहशीलता परमेश्वर की सर्वशक्ति और बुद्धिमत्ता के लिए विषमता है, और तुम्हारी विद्रोहशीलता के कारण ही तुम्हें ऐसा महान उद्धार और आशीष प्राप्त हुए हैं। हालाँकि मैंने बार-बार तुम लोगों का न्याय किया है, फिर भी तुम लोगों को मेरा भरपूर उद्धार प्राप्त हुआ है, जो मनुष्य को पहले कभी प्राप्त नहीं हुआ। यह कार्य तुम लोगों के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। तुम लोगों के लिए विषमता होना भी बेहद मूल्यवान है : तुम लोगों को तुम्हारे विषमता होने के कारण ही बचाया जाता है और तुम लोगों ने उद्धार का अनुग्रह प्राप्त कर लिया है, तो क्या ऐसी विषमता अत्यंत मूल्यवान नहीं है? क्या यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण नहीं है? चूँकि तुम लोग उसी क्षेत्र में, उसी मलिन धरती पर रहते हो, जिसमें परमेश्वर रहता है, इसलिए तुम विषमता हो और तुम्हें महानतम उद्धार प्राप्त होता है। अगर परमेश्वर ने देहधारण न किया होता, तो तुम जैसे नीच लोगों पर कौन दया करता और कौन तुम लोगों की देखभाल करता? कौन तुम लोगों की परवाह करता? अगर परमेश्वर ने तुम लोगों के बीच रहकर कार्य करने के लिए देहधारण न किया होता, तो तुम लोग वह उद्धार कब प्राप्त करते, जो तुमसे पहले वालों को कभी नसीब नहीं हुआ था? अगर मैंने तुम लोगों की परवाह करने के लिए, तुम्हारे पापों का न्याय करने के लिए देहधारण न किया होता, तो क्या तुम लोग बहुत पहले ही नरक में न जा गिरे होते? अगर मैं देहधारण करके और दीन बनकर तुम लोगों के बीच न रहता, तो तुम लोग परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव की विषमता बनने के पात्र कैसे हो सकते थे? ... हालाँकि मैंने तुम लोगों को जीतने के लिए 'विषमता' का इस्तेमाल किया है, लेकिन तुम लोगों को पता होना चाहिए कि यह उद्धार और आशीष तुम लोगों को पाने के लिए है; यह विजय के लिए है, लेकिन यह इसलिए भी है ताकि मैं तुम्हें बचा सकूँ। विषमता एक सच्चाई है, लेकिन तुम लोगों के विषमता होने का कारण तुम लोगों की विद्रोहशीलता है, और इसी वजह से तुमने वे आशीष प्राप्त किए हैं, जो कभी किसी को प्राप्त नहीं हुए। आज तुम लोगों को दिखाया और सुनाया जाता है; कल तुम लोग प्राप्त करोगे, और उससे भी अधिक, तुम लोग बहुत अधिक आशीष पाओगे। इस तरह, क्या विषमता अत्यंत मूल्यवान नहीं है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, विजय-कार्य के दूसरे चरण के प्रभावों को कैसे प्राप्त किया जाता है)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे दिखाया कि विषमता होने का क्या मतलब है। हम चीन में पैदा हुए थे, इसलिए हमें इतने सालों से बड़े लाल अजगर ने पढ़ाया, प्रभावित किया और भ्रष्ट किया है। हमारे दिमाग़ में शैतानी फ़लसफ़े, नास्तिकता, क्रमिक विकास और अन्य भ्रांतियाँ भरी हुई हैं। हमारा हर विचार बुरा और सत्य के विपरीत है। लेकिन हमें इस बात का एहसास नहीं होता, बल्कि यह सोचते हैं कि हम अच्छे लोग हैं और परमेश्वर की इच्छा के मुताबिक चलते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर साफ़ तौर पर अहंकार, चालाकी, और दुष्टता जैसे हमारे सभी शैतानी स्वभावों को उजागर करता है, और फिर वह तथ्यों का खुलासा करके हमें पूरी तरह से यकीन दिलाता है। जब परमेश्वर हमारा न्याय करने और हमारी भ्रष्टता को उजागर करने के लिए सत्य व्यक्त करता है, तो पाप और बुराई से नफ़रत करने वाला उसका धार्मिक स्वभाव सहज रूप से सामने आता है। हम उसकी पवित्रता और उसके धार्मिक स्वभाव को देखते हैं जो कोई अपमान सहन नहीं करता। फिर हमारी भ्रष्टता और बुराई परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव के लिए एक विषमता बन जाती है। मैंने परमेश्वर के वचनों में मानवजाति के लिए प्यार और उद्धार को भी देखा, ख़ासतौर पर जब वो कहता है, "अगर परमेश्वर ने देहधारण न किया होता, तो तुम जैसे नीच लोगों पर कौन दया करता और कौन तुम लोगों की देखभाल करता? कौन तुम लोगों की परवाह करता?" इन वचनों ने मुझे अंदर तक प्रेरित किया। जब मैंने परमेश्वर के वचनों पर विचार किया, तो मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर ने हमारी मलिनता और भ्रष्टता की वजह से हमें त्यागा या हटाया नहीं है, बल्कि उसने शैतान के हाथों बुरी तरह से भ्रष्ट और नष्ट हो चुके हम जैसे लोगों पर दया की है। उसने हमें बचाने के लिए स्वयं देहधारण किया, वह हमारे बीच कार्य करने के लिए भयंकर अपमान सह रहा है, हमें सिंचित और पोषित करने, हमारा न्याय करने और हमें उजागर करने के लिए सत्य व्यक्त कर रहा है। भले ही उसने विषमता के रूप में हमें उजागर किया, लेकिन उसकी इच्छा हमें हटाने की नहीं है, बल्कि वो चाहता है कि हम रुतबे की अपनी इच्छा और भविष्य के लिए अपनी आशाओं को पहचानें, अहंकार, धोखे और बुराई के अपने शैतानी स्वभावों को जानें ताकि हम सत्य पर चल सकें, अपनी भ्रष्टता को दूर कर, परमेश्वर द्वारा पूरी तरह से बचाए जा सकें। हमारे लिए परमेश्वर का यही व्यवहारिक प्यार और उद्धार है! एक बार जब मैंने परमेश्वर की इच्छा को समझ लिया, तो सोचने लगा कि मैं परमेश्वर के साथ कैसा व्यवहार कर रहा था और चाहता था कि ज़मीन मुझे निगल जाए। मैं शैतान द्वारा पूरी तरह से भ्रष्ट, गंदा और नीच तुच्छ प्राणी था। सर्वोच्च परमेश्‍वर के लिए विषमता की तरह सेवा कर पाना, परमेश्वर के कार्य का अनुभव करने और उसकी धार्मिकता एवं पवित्रता का गवाह बनने का मौक़ा पाना, मेरे लिए परमेश्वर का महान अनुग्रह था! अगर परमेश्वर देहधारण नहीं करता, हमारे बीच आकर वचन नहीं बोलता और कार्य नहीं करता, तो मुझे इतने सारे सत्यों को समझने का मौका कैसे मिलता? मुझे उसके धार्मिक स्वभाव को जानने का मौका कैसे मिलता? मैंने परमेश्वर का धन्यवाद करने के बजाय, विषमता कहलाए जाने के कारण उससे बहस करने की कोशिश की। मेरे अंदर न कोई विवेक था, न मानवता थी। जब मुझे इस बात का एहसास हुआ, तो मुझे समझ आया कि शैतान ने मुझे कितनी बुरी तरह से भ्रष्ट कर दिया है, और परमेश्वर का मुझ पर कितना बड़ा एहसान है। मैं परमेश्वर के सामने प्रायश्चित करना चाहता था, मैं परमेश्वर के आयोजनों के सामने झुकना चाहता था, चाहे वह मुझे कुछ भी नाम दे, चाहे मेरा भविष्य और अंत कुछ भी हो। मैं सत्य की तलाश करना और स्वभाव को बदलना चाहता था।

विषमता के परीक्षण से गुज़रने के बाद, मैंने आशीष पाने की अपनी मंशा और अपने शैतानी स्वभाव के बारे में कुछ समझ हासिल की, मुझे एहसास हुआ कि रुतबा चाहे ऊँचा हो या नीचा, मैं एक तुच्छ सृजित प्राणी के अलावा कुछ नहीं हूँ और मुझे हर समय परमेश्वर की व्यवस्थाओं को स्वीकार करना चाहिए। अगर मैं परमेश्वर के लिए विषमता के रूप में सेवा कर रहा हूँ, तो भी मुझे उसकी धार्मिकता की प्रशंसा करनी है, ईमानदारी से सत्य पर चलकर, एक सृजित जीव के रूप में अपना कर्तव्य निभाना है। एक प्राणी को ऐसी ही उपयुक्त गवाही देनी चाहिए।

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