अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (6)
आज हम अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों और झूठे अगुआओं की अलग-अलग अभिव्यक्तियों पर संगति करना जारी रखेंगे। पिछली सभा में, हमने अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों के छठे और सातवें मद पर संगति की थी। इन दोनों मदों की मुख्य सामग्री क्या है? (छठा मद है “सभी प्रकार की योग्य प्रतिभा को प्रोत्साहित और विकसित करना ताकि सत्य का अनुसरण करने वाले सभी लोगों को जल्द से जल्द प्रशिक्षित होने और सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने का अवसर मिल सके।” सातवाँ मद है “अलग-अलग प्रकार के लोगों को उनकी मानवता और शक्तियों के आधार पर समझदारी से आवंटित करना और उनका उपयोग करना, ताकि हरेक का सर्वश्रेष्ठ उपयोग किया जा सके।”) पिछली बार, हमने मुख्य रूप से लोगों को प्रोत्साहित और विकसित करने के लिए परमेश्वर के घर के सिद्धांतों पर और इस विषय पर संगति की थी कि परमेश्वर का घर लोगों को क्यों प्रोत्साहित और विकसित करता है। जब अलग-अलग प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को प्रोत्साहित और विकसित करने की बात आती है, तो झूठे अगुआओं के साथ जो समस्याएँ हैं, हमने उनका भी गहन-विश्लेषण किया था। तो इन दो मदों में झूठे अगुआओं की मुख्य अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? हम उन्हें झूठे अगुआ क्यों कहते हैं? यहाँ मुख्य रूप से दो पहलू हैं। एक पहलू यह है कि झूठे अगुआ अलग-अलग प्रकार के लोगों को प्रोत्साहित करने, विकसित करने और उनका उपयोग करने के सिद्धांतों को नहीं समझते हैं, और ना ही वे इन सिद्धांतों की तलाश करते हैं। उन्हें नहीं मालूम है कि लोगों के पास काबिलियत के कौन से पहलू होने चाहिए या अगुआ या कार्यकर्ता बनने के लिए कौन सी कसौटियों पर खरा उतरना महत्वपूर्ण है। परिणामस्वरूप, वे अपनी खुद की धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर अंधाधुंध तरीके से लोगों का उपयोग करते हैं। और एक गंभीर मुद्दा यह है कि इन लोगों को प्रोत्साहित और विकसित करने और इनका उपयोग करने के बाद, वे उनके कार्य पर अनुवर्ती कार्यवाही या उसकी जाँच-पड़ताल नहीं करते हैं, और ना ही वे यह पता लगाते हैं कि वे कितना अच्छा कार्य कर रहे हैं, या वे वास्तविक कार्य कर भी रहे हैं या नहीं, या वे अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करने में समर्थ हैं या नहीं, या उनका चरित्र कैसा है, या ये लोग जो कर्तव्य कर रहे हैं, वे उनके उपयुक्त हैं या नहीं, और वे इस बात पर ध्यान नहीं देते हैं कि वे जिन लोगों को प्रोत्साहित और विकसित करते हैं और जिनका उपयोग करते हैं, वे मानक के अनुरूप और सिद्धांतों के अनुसार हैं या नहीं—वे इन चीजों की कभी जाँच-पड़ताल नहीं करते हैं। झूठे अगुआ सोचते हैं कि यह सिर्फ लोगों को प्रोत्साहित करने, उनके लिए कार्य की व्यवस्था करने का मामला है, बस इससे ज्यादा कुछ नहीं है, और कि फिर उनकी जिम्मेदारियाँ पूरी हो जाती हैं। झूठे अगुआ इसी तरह से अपना कार्य करते हैं, और कार्य करने के दौरान उनका रवैया और नजरिया भी यही होता है। तो क्या झूठे अगुआओं की ये दो मुख्य अभिव्यक्तियाँ यह साबित कर सकती हैं कि जब लोगों को प्रोत्साहित और विकसित करने और उनका उपयोग करने की बात आती है, तो ना वे अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करते हैं और ना ही कर सकते हैं? (हाँ।) झूठे अगुआ कार्य की जाँच-पड़ताल नहीं करते हैं या अलग-अलग प्रकार के लोगों की जाँच-परख नहीं करते हैं, और जब सत्य और सिद्धांतों की बात आती है, तो वे बिल्कुल भी सतर्क नहीं रहते हैं, वे अलग-अलग प्रकार के लोगों की अभिव्यक्तियों और अवस्थाओं की तुलना उन्हें समझ में आने वाले सत्यों और परमेश्वर के घर द्वारा अपेक्षित सिद्धांतों से नहीं करते हैं; वे यह भी समझ नहीं पाते हैं कि अलग-अलग प्रकार के लोगों की मानवता और शक्तियाँ लोगों का उपयोग करने के लिए परमेश्वर के घर के अपेक्षित सिद्धांतों से मेल खाती हैं या नहीं। इन कारणों से, जब लोगों को प्रोत्साहित करने, उनका उपयोग करने और उनके लिए कार्य की व्यवस्था करने की बात आती है, तो वे खास तौर से भ्रमित और लापरवाह होते हैं, और वे सिर्फ खानापूर्ति करते हैं और अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर आधा-अधूरा कार्य करते हैं। ऐसी स्थिति होने के कारण, अगर झूठे अगुआओं से अलग-अलग प्रकार के लोगों का उपयोग उनकी मानवता और शक्तियों के आधार पर समझदारी और उचित तरीके से करने के लिए कहा जाए, तो क्या वे इसे संभाल सकते हैं? (नहीं, वे ऐसा नहीं कर सकते हैं।) चलो हम अभी इस बात पर ध्यान नहीं देते हैं कि झूठे अगुआओं की काबिलियत कैसी होती है। सिर्फ कार्य के प्रति उनके रवैये और कार्य करने की उनकी शैलियों तथा तरीकों को और इस सच्चाई को देखते हुए कि वे कोई वास्तविक कार्य बिल्कुल नहीं करते हैं, बल्कि सिर्फ आम मामलों को संभालते हैं और दिखावे के लिए थोड़ा सा कार्य करते हैं जो उन्हें सुर्खियों में लाता है, और इस सच्चाई को देखते हुए कि वे लोगों को सत्य प्रदान करने का कार्य बिल्कुल नहीं करते हैं, और समस्याओं को सुलझाने के लिए सत्य का उपयोग करने का तरीका नहीं जानते हैं—यह सबकुछ यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि झूठे अगुआ कलीसिया का वास्तविक काम नहीं कर सकते हैं। सिर्फ इस सच्चाई के आधार पर कि झूठे अगुआ वास्तविक कार्य नहीं करते हैं, या वास्तविक समस्याओं को सुलझाने के लिए भाई-बहनों के साथ गहराई से नहीं जुड़ते हैं, और बल्कि ऐसे व्यवहार करते हैं मानो वे बेहतर हों और आदेश जारी करते हैं, यह पुष्टि की जा सकती है कि वे परमेश्वर के घर हेतु लोगों को प्रोत्साहित और विकसित करने के लिए कलीसियाई कार्य के सभी पहलुओं को अच्छी तरह से करने में असमर्थ हैं।
मद सात : विभिन्न प्रकार के लोगों को उनकी मानवता और खूबियों के आधार पर समझदारी से कार्य आवंटित कर उनका उपयोग करो, ताकि उनमें से प्रत्येक का सर्वोत्तम उपयोग किया जा सके (भाग एक)
विभिन्न प्रकार के लोगों का उनकी मानवता के आधार पर समझदारी से उपयोग करना
अलग-अलग प्रकार के लोगों की व्यवस्था करने और उनका उपयोग करने के तरीके के बारे में तुम लोगों की समझ क्या है? (परमेश्वर के घर में जिन अलग-अलग प्रकार के लोगों को प्रोत्साहित और विकसित किया जाता है उनके लिए अलग-अलग जरूरी मानक हैं, और लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए परमेश्वर के घर के जो सिद्धांत और मानक हैं, उन्हीं के अनुसार लोगों को प्रोत्साहित और उनका उपयोग किया जाना चाहिए। अगर कुछ लोग अगुआ और कार्यकर्ता बनने के उपयुक्त हैं, तो उन्हें अगुआओं, कार्यकर्ताओं और पर्यवेक्षकों के रूप में विकसित किया जाना चाहिए; अगर कुछ लोगों के पास किसी खास क्षेत्र में पेशेवर शक्तियाँ हैं, तो उनके द्वारा किए जाने वाले कर्तव्य को उनकी पेशेवर शक्तियों के अनुसार व्यवस्थित किया जाना चाहिए, ताकि उन्हें समझदारी से आवंटित और उनका उपयोग किया जा सके।) क्या कोई इसमें कुछ जोड़ना चाहता है? (दूसरी चीज है लोगों को उनकी मानवता के आधार पर मापना। अगर किसी की मानवता अपेक्षाकृत अच्छी है, और वह सत्य से प्रेम करता है, और उसमें समझने की क्षमता है, तो वह प्रोत्साहन और विकास के लिए उम्मीदवार है। अगर उसकी मानवता औसत दर्जे की है, लेकिन उसके पास शक्तियाँ हैं और वह परमेश्वर के घर में कोई कर्तव्य कर सकता है और सेवा प्रदान कर सकता है, तो इस प्रकार के व्यक्ति को उसकी शक्तियों के आधार पर एक उचित कर्तव्य भी सौंपा जा सकता है, ताकि उसका सर्वश्रेष्ठ उपयोग किया जा सके। अगर वह खराब मानवता वाला व्यक्ति है और गड़बड़ियाँ और विघ्न उत्पन्न कर सकता है, तो उससे कर्तव्य करवाने से फायदा कम, परेशानी ज्यादा होगी, इसलिए उससे कर्तव्य करवाने की व्यवस्था करना उचित नहीं है।) अगर लोगों की मानवता के आधार पर उनमें अंतर किया जाता है, तो जब तक वे कुकर्मी नहीं हैं, गड़बड़ियाँ या विघ्न उत्पन्न नहीं करते हैं, और कोई कर्तव्य करने में समर्थ हैं, तब तक वे लोगों का उपयोग करने के लिए परमेश्वर के घर के सिद्धांतों से मेल खाते हैं। कुकर्मियों और दुष्ट आत्माओं के अलावा, एक और प्रकार के लोग हैं जिनका उपयोग नहीं किया जा सकता है, और वे हैं अपर्याप्त बुद्धि वाले लोग, यानी, वे जो कुछ भी हासिल नहीं करते हैं, जो कोई भी कार्य करवाने में असमर्थ होते हैं, कोई पेशा सीखने में असमर्थ होते हैं, आसान, आम मामलों को संभालने में असमर्थ होते हैं, यहाँ तक कि जो शारीरिक श्रम भी नहीं कर पाते हैं—ऐसे अपर्याप्त बुद्धि और मानवता वाले लोगों का उपयोग नहीं किया जा सकता है। अपर्याप्त बुद्धि वाली इस श्रेणी में कौन से लोग आते हैं? जो लोग मानवीय भाषा नहीं समझते हैं, जिनमें शुद्ध समझ का अभाव है, जो हमेशा चीजों को गलत समझते हैं, चीजों को गलत तरीके से करते हैं, और प्रश्नों के अप्रासंगिक उत्तर देते हैं, और जो बेवकूफों या मंदबुद्धि लोगों जैसे होते हैं—ये सभी अपर्याप्त बुद्धि वाले लोग हैं। फिर बेहद बेतुके लोग होते हैं जो सभी प्रकार की चीजों को सामान्य लोगों से अलग तरीके से समझते हैं—उन्हें भी बुद्धि की समस्या है। क्या अपर्याप्त बुद्धि में कोई भी चीज सीखने में असमर्थ होना शामिल है? (हाँ, है।) तो क्या लेख लिखना सीखने में असमर्थ होने को अपर्याप्त बुद्धि होने के रूप में गिना जाता है? (नहीं, इसे नहीं गिना जाता है।) इस तरह के लोग गिनती में नहीं आते हैं। मिसाल के तौर पर, गाना गाना और नृत्य करना सीखना, कंप्यूटर कौशल सीखना, या कोई विदेशी भाषा सीखना; इन चीजों को सीखने में असमर्थ होने को अपर्याप्त बुद्धि वाला व्यक्ति होने के रूप में नहीं गिना जाता है। तो, किस प्रकार की चीजें सीखने में असमर्थ होने से अपर्याप्त बुद्धि का संकेत मिलता है? मिसाल के तौर पर, कुछ लोगों के पास थोड़ा ज्ञान तो होता है, लेकिन वे दूसरों के साथ गपशप करते समय अपनी भाषा को व्यवस्थित करना सीखने में असमर्थ होते हैं। तो जब इस तरह के लोग परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, तो क्या वे सत्य पर संगति कर सकते हैं, प्रार्थना कर सकते हैं, और दूसरों के साथ सामान्य रूप से बातचीत कर सकते हैं? (नहीं, वे नहीं कर सकते हैं।) जब उनके मन में कोई विचार आता है या जब वे किसी मुश्किल स्थिति में होते हैं, और खुलकर लोगों से इस बारे में बात करना चाहते हैं और समाधान के मार्ग की तलाश करना चाहते हैं, तो वे लगातार कई दिनों तक चिंतन करते रहते हैं, और उन्हें पता नहीं होता है कि कहाँ से शुरू करना है या खुद को कैसे व्यक्त करना है। जैसे ही वे बोलने लगते हैं, वे घबड़ा जाते हैं और भ्रमित ढंग से बात करने लगते हैं, उनके मुँह देखकर लगता है मानो उन्हें जो करने को कहा गया है वे उसे करने से मना कर रहे हैं और उनके विचार अस्त-व्यस्त होते हैं। मिसाल के तौर पर, तुम उन्हें बताते हो, कि “आज मौसम अच्छा है और धूप निकली है,” और वे उत्तर देते हैं, “कल बारिश हुई थी और उस सड़क पर एक कार दुर्घटना घटी थी।” वे जिन लोगों से बातचीत करते हैं उनके साथ विचारों के आदान-प्रदान में तालमेल नहीं बिठा पाते हैं। क्या इस प्रकार का व्यक्ति अपर्याप्त बुद्धि वाला है? (हाँ, है।) मिसाल के तौर पर, अगर उसे सिरदर्द हो रहा है और तुम उससे पूछते हो कि उसे क्या तकलीफ है, तो वह कहेगा कि उसके दिल में थोड़ी सी बेचैनी हो रही है। इस उत्तर का प्रश्न से कोई संबंध नहीं है, है ना? (हाँ, सही कहा।) यह बुद्धि का बहुत ज्यादा अभाव होना है। इस प्रकार के लोग बहुत सारे हैं। क्या तुम लोग कोई मिसाल दे सकते हो? (कुछ लोग प्रश्नों के उत्तर देते समय हमेशा विषय से भटक जाते हैं, वे बस समझ ही नहीं पाते हैं कि दूसरे लोग उनसे क्या पूछ रहे हैं।) बात करते समय अक्सर विषय से भटक जाना—यह अपर्याप्त बुद्धि है। फिर ऐसे लोग भी हैं जो बात करते समय घनिष्ठ और बाहरी लोगों के बीच अंतर करने से चूक जाते हैं, और कभी-कभी बोलते समय अनजाने में अपनी गुप्त बातें भी कह देते हैं—यह भी अपर्याप्त बुद्धि है। मिसाल के तौर पर, कुछ भाई-बहन परिवार के अविश्वासी सदस्यों के साथ रहते हैं, जो उनसे पूछते हैं, “तुम लोगों का परमेश्वर तुम लोगों से क्या करने के लिए कहता है?” वे उत्तर देते हैं : “हम जिस परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, वह बहुत ही अच्छा है। वह हमें ईमानदार व्यक्ति बनना सिखाता है, और कि हमें किसी से झूठ बोलने की अनुमति नहीं है, और हमें सभी से ईमानदारी से बात करनी चाहिए।” ऊपरी तौर पर, ऐसा लगता है मानो वे परमेश्वर द्वारा किए जाने वाले कार्य की गवाही दे रहे हैं, परमेश्वर को महिमान्वित कर रहे हैं, और अपने श्रोताओं के मन में विश्वासियों के बारे में अच्छी धारणा बना रहे हैं और उन्हें विश्वासियों पर भरोसा करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं, लेकिन क्या वास्तव में यही बात है? जब अविश्वासी यह सुनेंगे तो वे क्या कहेंगे? वे कहेंगे, “चूँकि तुम लोगों के परमेश्वर ने तुम लोगों को ईमानदार व्यक्ति बनने के लिए कहा है, तो हमें सच-सच बताओ : तुम लोगों की कलीसिया के पास कितना पैसा है? सबसे ज्यादा चढ़ावा कौन देता है? तुम लोगों की कलीसिया का अगुआ कौन है? तुम लोगों के पास कितने सभा स्थल हैं?” वे भाई-बहन यह सुनकर दंग रह जाएँगे, है ना? क्या ऐसे लोग बेवकूफ नहीं हैं? वे दुष्ट लोगों और अविश्वासियों से ईमानदार व्यक्ति होने के बारे में क्यों बात करते हैं? दरअसल यह जरूरी नहीं है कि वे परमेश्वर के सामने उतने ईमानदार हैं। तो क्या वे अविश्वासियों के साथ इस बारे में इतनी गंभीरता से बात करके अनजाने में अपने भेद नहीं खोल रहे हैं? क्या यह अपने लिए गड्ढा खोदना और जाल बिछाना नहीं है? क्या वे बेवकूफ नहीं हैं? अपने निजी विचार और भावनाएँ किसी को बताते समय या किसी से ईमानदारी से बात करते समय तुम्हें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि तुम किससे बात कर रहे हो—अगर वह कोई दुष्ट व्यक्ति या शैतान है, तो क्या तुम उसे बता सकते हो कि वास्तव में क्या चल रहा है? इसलिए जब इस प्रकार के लोगों की बात आती है, तो “इसलिए तुम सब साँपों के समान बुद्धिमान और कबूतरों के समान भोले बनो” का अभ्यास करना जरूरी है—मानवजाति के लिए परमेश्वर की यही शिक्षा है। बेवकूफ लोग इसे करना नहीं जानते हैं। उन्हें सिर्फ नियमों का पालन करना आता है और इस प्रकार की चीजें कहनी आती हैं, “हम विश्वासी लोग बहुत ईमानदार होते हैं, हम किसी को धोखा नहीं देते हैं। जरा खुद को देखो अविश्वासियों, तुम झूठ के पुतले हो, जबकि हम ईमानदारी से बोलते हैं।” और जब वे ईमानदारी से बोल लेते हैं, तो उसके बाद लोगों के पास उनके खिलाफ उपयोग करने के लिए जानकारी होती है। क्या यह उनकी तरफ से घनिष्ठ और बाहरी लोगों के बीच अंतर करने में चूक नहीं है? क्या ये लोग पागल नहीं है? वे कुछ सिद्धांतों को समझते तो हैं, लेकिन उन्हें नहीं पता है कि उन्हें कैसे लागू करना है। वे थोड़े-बहुत नारे लगाते हैं और फिर उन्हें लगता है कि वे वास्तव में आध्यात्मिक हैं, वे सोचते हैं कि उन्हें सत्य की समझ है और उनके पास सत्य वास्तविकता है और वे हर जगह इसका दिखावा करते फिरते हैं, लेकिन अंत में, शैतान और दुष्ट लोग इसका फायदा उठाते हैं और उनके खिलाफ इसका उपयोग करते हैं। यह अपर्याप्त बुद्धि है।
हमने अभी-अभी ऐसे कई प्रकार के लोगों के बारे में बात की जो अपर्याप्त बुद्धि के हैं। एक प्रकार के लोग वे हैं जो मानवीय भाषा नहीं समझते हैं और जो दूसरे लोगों के शब्दों के सार और मुख्य बिंदुओं को समझने से चूक जाते हैं; एक और प्रकार में बेवकूफ लोग आते हैं जो कोई भी चीज हासिल करने में असमर्थ होते हैं और सिद्धांतों या मुख्य बिंदुओं को पकड़ नहीं पाते हैं, चाहे वे किसी भी तरीके से प्रयास क्यों ना करें; इसके अलावा, एक और प्रकार के लोग होते हैं जिनके विचार हर चीज के बारे में बहुत ज्यादा कट्टर और बेतुके होते हैं। और फिर एक और प्रकार के लोग होते हैं जो कुछ भी सीखने में असमर्थ होते हैं और यहाँ तक कि वे यह सीखने के काबिल भी नहीं होते हैं कि कैसे बोलना और गपशप करना है या अपने विचार कैसे व्यक्त करने हैं ताकि दूसरे लोग उन्हें समझ पाएँ; वैसे तो वे कुछ हद तक साक्षर होते हैं, लेकिन वे अपने दिमागों में अपनी भाषा को व्यवस्थित नहीं कर पाते हैं या स्पष्ट रूप से बोल नहीं पाते हैं और ना ही सही विचारों को व्यक्त कर पाते हैं या कुछ भी हासिल कर पाते हैं। ये सभी अपर्याप्त बुद्धि वाले लोग हैं। वे चाहे कोई भी शिल्प या कौशल क्यों ना सीखे लें, वे हमेशा सिद्धांतों और नियमों को समझने में असमर्थ रहते हैं। अगर वे समय-समय पर कोई शिल्प या कौशल अच्छी तरह से कर भी लेते हैं, तो यह संयोग से ही होता है; वे नहीं जानते हैं कि उन्होंने इसे अच्छी तरह से कैसे किया। अगली बार जब वे इसे अच्छी तरह से करने से चूक जाते हैं, तब भी उन्हें यह नहीं पता होता है कि ऐसा क्यों हुआ। वे किसी भी चीज को सीखने या उसमें कुशल होने में असमर्थ हैं। अगर उन्हें कोई शिल्प या तकनीकी कौशल सीखने के लिए कहा जाए, तो चाहे वे इसे सीखने में कितना भी समय क्यों ना लगा दें, वे सिर्फ सिद्धांत को ही समझ पाएँगे। उन्होंने कई वर्षों तक धर्मोपदेश सुने हैं, लेकिन सत्य को नहीं समझा है। अगर उनसे इन शब्दों और इन खास कथनों को लेने के लिए कहा जाए जिन पर परमेश्वर का घर अक्सर संगति करता है, और फिर उनसे इन्हें अभ्यास के एक सिद्धांत और मार्ग में बदलने के लिए कहा जाए, तो वे ऐसा बिल्कुल नहीं कर पाएँगे, भले ही वे दिन-रात मेहनत ही क्यों ना कर लें, और चाहे उन्हें किसी भी तरीके से क्यों ना सिखाया जाए। इससे यह पुष्टि हो जाती है कि इन लोगों में अपर्याप्त बुद्धि है। कुछ लोग 50 या 60 वर्ष की आयु में भी वही परिणाम प्राप्त करते हैं जो उन्होंने 30 वर्ष की आयु में प्राप्त किए, वे बिल्कुल कोई प्रगति नहीं करते हैं। उन्होंने अपने जीवनकाल में एक भी चीज सफलतापूर्वक नहीं सीखी है। उन्होंने अपना समय बर्बाद नहीं किया है, वे बहुत चौकस हैं और प्रयास करते हैं, लेकिन वे कोई भी चीज सीखने में सफल नहीं हुए; यह दर्शाता है कि उनमें अपर्याप्त बुद्धि है। हमने जो संगति की है, उसके आधार पर, अपर्याप्त बुद्धि जिसे माना जाता है उसका दायरा व्यापक हो गया है, है ना? क्या तुम लोग खुद को अपर्याप्त बुद्धि वाले व्यक्तियों के रूप में गिनोगे? (हाँ।) थोड़ा सा, कुछ या ज्यादा हद तक। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ? ज्यादातर लोगों ने पाँच वर्षों तक धर्मोपदेश सुने हैं, लेकिन वे अब भी नहीं समझ पाए हैं कि सत्य क्या है, या परमेश्वर के इरादे क्या हैं; और कुछ लोगों ने 10 वर्षों, या यहाँ तक कि 20 या 30 वर्षों तक धर्मोपदेश सुने हैं और फिर भी वे नहीं समझते हैं कि सत्य वास्तविकता क्या है और शब्द और धर्म-सिद्धांत क्या हैं, उनके मुँह सिद्धांतों से भरे हुए हैं, और वे बहुत बढ़िया तरीके से उन्हें देर तक बड़बड़ाते रहते हैं—यह उनकी बुद्धि की समस्या है। अभी के लिए सत्य की समझ को नजर अंदाज करते हुए, चलो हम बस इतना ही कहें कि लोग मानव जीवन में कुछ बाहरी चीजों और सामान्य ज्ञान के मामलों के प्रति निम्नलिखित अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हैं : चाहे वे किसी भी चीज को कितने भी वर्षों से करते आ रहे हों, उनकी परिस्थिति, अवस्था और धारणा ठीक वैसी ही बनी रहती है जैसी तब थी जब उन्होंने इसे सीखना शुरू किया था, और चाहे उनका कैसे भी मार्गदर्शन किया जाए, उन्हें सिखाया जाए, या वे कैसे भी अभ्यास करें, वे अब भी कोई प्रगति नहीं करते हैं। यह अपर्याप्त बुद्धि है।
लोगों में मानवता है या नहीं, इस आधार पर उन्हें चुनना और उनका उपयोग करना सिद्धांतों के अनुसार है; तो मुझे बताओ, क्या हमें ऐसे लोगों का विकास और उपयोग करना चाहिए जिनमें खराब मानवता, अपर्याप्त बुद्धि या दुष्ट आत्माओं का कार्य है? ऐसा बिल्कुल नहीं चलेगा। इन कई प्रकार के लोगों को छोड़कर जो लोगों का उपयोग करने के लिए परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं हैं, अन्य लोगों का उपयोग उनकी मानवता के आधार पर समझदारी से किया जा सकता है। औसत मानवता वाले लोग, जिन्हें बुरा या अच्छा नहीं कहा जा सकता है, वे बस साधारण दल के सदस्य हो सकते हैं। जिन लोगों में काफी अच्छी मानवता है, जो काफी तर्कसंगत हैं और जिनमें जमीर है, जो सकारात्मक चीजों से प्रेम करते हैं, जो खास तौर से सुस्थिर हैं, जिनमें न्याय की भावना है, और जो परमेश्वर के घर के हितों का बचाव करने में समर्थ हैं, इन लोगों को विकसित करने और इनका उपयोग करने पर जोर दिया जा सकता है। जहाँ तक यह प्रश्न है कि अगुआओं या दल के अगुआओं के रूप में या कोई महत्वपूर्ण कार्य करने के लिए उनका विकास या उपयोग किया जाए या नहीं, यह उनकी काबिलियत और शक्तियों पर निर्भर करता है। यह इस बात का मूल्यांकन करना है कि अलग-अलग प्रकार के लोगों की मानवता के आधार पर उनका कैसे उपयोग किया जाए।
विभिन्न प्रकार के लोगों का उनकी खूबियों के आधार पर समझदारी से उपयोग करना
चलो हम आगे इस बारे में बात करें कि अलग-अलग प्रकार के लोगों की शक्तियों के आधार पर उनका कैसे उपयोग किया जाए। काबिलियत के अलावा, कुछ लोगों के पास ऐसे कुछ पेशेवर कौशल भी होते हैं जिनमें वे बहुत ही माहिर होते हैं। “शक्तियाँ” शब्द का क्या अर्थ है? (किसी विशेषीकृत क्षेत्र में कोई कौशल होना, जैसे कि संगीत रचना करने, कोई वाद्ययंत्र बजाने या तस्वीरें बनाने में समर्थ होना।) संगीत सिद्धांत, कला और साथ ही, नृत्य और लेखन को भी समझना—ये सभी शक्तियाँ हैं। अभिनय और निर्देशन फिल्म निर्माण से जुड़ी शक्तियाँ हैं, अनुवाद करना भाषा-संबंधी शक्ति है, और वीडियो उत्पादन और विशेष प्रभाव भी खास क्षेत्रों में शक्तियाँ हैं। जब हम शक्तियों के बारे में बात करते हैं, तो हम उन पेशेवर कौशलों के बारे में बात कर रहे होते हैं जो कलीसिया के मुख्य कार्य से संबंधित हैं। कुछ लोगों के पास पहले से ही मूलभूत स्तर की प्रवीणता होती है, और कुछ लोग परमेश्वर के घर में आने के बाद इन चीजों का अध्ययन करते हैं। अगर किसी व्यक्ति के पास मूलभूत प्रवीणता है, लेकिन उसकी मानवता संतोषजनक नहीं है, और वह अपर्याप्त बुद्धि वाले लोगों में से एक है, कुकर्मी या दुष्ट आत्मा है, तो उसका उपयोग नहीं किया जा सकता है। अगर व्यक्ति की मानवता संतोषजनक है और उसमें वह शक्ति है जिसकी जरूरत परमेश्वर के घर को है, तो उसे प्रोत्साहित किया जा सकता है और उसका विकास और उपयोग किया जा सकता है, उसे एक ऐसे दल को सौंपा जा सकता है, जो उसकी शक्तियों के उपयुक्त हो या उसके पेशेवर कौशल से संबंधित हो और उसे फौरन कार्य पर लगाया जा सकता है। कुछ लोगों में अभी तक कोई पेशेवर शक्ति नहीं है, लेकिन वे सीखने के इच्छुक हैं और जल्दी सीख भी जाते हैं। अगर उनकी मानवता संतोषजनक है, तो परमेश्वर का घर उनका विकास कर सकता है और उनके सीखने के लिए परिस्थितियों का निर्माण कर सकता है और ऐसे लोगों का भी उपयोग किया जा सकता है। संक्षेप में, लोगों की काबिलियत और शक्तियों के आधार पर कर्तव्य सौंपे जाते हैं और जहाँ तक संभव हो, अलग-अलग शक्तियों वाले लोगों को उनकी विशेषज्ञता के क्षेत्र में कार्य करने के लिए नियुक्त करना चाहिए ताकि वे इन शक्तियों का उपयोग कर सकें। अगर परमेश्वर के घर को उनकी शक्तियों की अब और जरूरत नहीं है, तो उनकी काबिलियत और मानवता के आधार पर, वे जो भी करने में समर्थ हैं उसी में उनकी नियुक्ति की व्यवस्था की जा सकती है; इसे समझदारी से लोगों का उपयोग करना कहते हैं। अगर परमेश्वर के घर को अब भी उनकी शक्तियों की जरूरत है, तो उन्हें इस क्षेत्र में उनके कर्तव्यों को करते रहने की अनुमति देनी चाहिए और उन्हें मनमाने ढंग से स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है जब तक कि इस पेशे में बहुत से लोग कार्य नहीं करने लगें, और ऐसा होने पर जो लोग अपने पेशे में सबसे कम योग्य हैं उन्हें दूसरे कर्तव्य सौंपकर स्थिति के अनुसार लोगों की संख्या घटा देनी चाहिए; यह समझदारी से लोगों का उपयोग करना है।
एक खास प्रकार का व्यक्ति होता है जिसके पास कोई खास कौशल नहीं होता है—वह थोड़ा-बहुत लेख लिख सकता है, गाना गाते समय धुन पर पकड़ बनाए रख सकता है, और कोई भी चीज करना सीख सकता है, लेकिन वह इन चीजों में सर्वश्रेष्ठ नहीं होता है। वह किस चीज में सर्वश्रेष्ठ होता है? उसमें थोड़ी काबिलियत होती है, उसमें अपेक्षाकृत न्याय की भावना होती है, और उसके पास इस बात की थोड़ी समझ होती है कि लोगों का आकलन और उनका उपयोग कैसे किया जाए। इसके अतिरिक्त, सबसे उल्लेखनीय यह है कि उसमें संगठनात्मक कौशल होता है। अगर तुम ऐसे व्यक्ति को कोई काम या दायित्व दो, तो वह उसे करने के लिए लोगों को संगठित कर सकता है। साथ ही, उसमें कार्य क्षमता होती है; यानी, अगर तुम उसे कोई कार्य देते हो, तो वह उसे अच्छी तरह से करने और उसे पूरा करने में समर्थ होता है। उसके मन में एक योजना होती है, जिसमें चरण और संरचना शामिल होती है। वह जानता है कि लोगों का उपयोग कैसे करना है, समय कैसे आवंटित करना है और इस कार्य के लिए किसका उपयोग करना है। अगर कोई समस्या खड़ी होती है, तो उसे पता होता है कि सभी के साथ समाधान पर कैसे चर्चा करनी है। उसे मालूम होता है कि इन सभी चीजों को कैसे संतुलित करना है और सुलझाना है। इस तरह के व्यक्ति में ना सिर्फ कार्य क्षमता होती है, बल्कि वह अपेक्षाकृत अच्छा बोलता भी है। उसके शब्द स्पष्ट और व्यवस्थित होते हैं, और वह लोगों को भ्रमित नहीं करता है। जब वह कार्य सौंप देता है, तो हर व्यक्ति चीजों को स्पष्ट रूप से समझता है और जानता है कि हर व्यक्ति को क्या करना चाहिए; कोई भी खाली नहीं बैठता है और कार्य में कोई चूक नहीं होती है। कार्य के विवरणों के बारे में उसकी व्याख्या भी अपेक्षाकृत स्पष्ट और व्यवस्थित होती है, और खास तौर से पेचीदा मुद्दों के लिए, वह विश्लेषण, संगति प्रदान करता है, और विवरणों की सूची बनाता है ताकि हर व्यक्ति मुद्दों को समझ जाए, यह जाने कि कार्य को कैसे करना है, और यह जाने कि कैसे आगे बढ़ना है। इसके अतिरिक्त, वह इस बात पर भी संगति कर सकता है कि कार्य करने के कौन से तरीके दोषपूर्ण हो सकते हैं, कार्य करने के कौन से तरीके कुशलता को प्रभावित करेंगे, लोगों को अपने कार्य के दौरान किन बातों पर ध्यान देना चाहिए, वगैरह-वगैरह। यानी, वह अपना कार्य शुरू करने से पहले दूसरों से ज्यादा सोचता है—वह दूसरों की तुलना में ज्यादा विस्तार से, ज्यादा यथार्थ रूप से और ज्यादा व्यापक रूप से सोचता है। एक लिहाज से, उसके पास दिमाग है, और दूसरे लिहाज से, वह वाक्पटु है। दिमाग होने का मतलब है कि वह चीजों को एक व्यवस्थित तरीके से, चरणों में और एक योजना के अनुसार, और बहुत स्पष्टता से करता है। वाक्पटु होने का अर्थ है कि वह अपने मन के विचारों, योजनाओं और गणनाओं को स्पष्ट रूप से और समझ में आने लायक ढंग से व्यक्त करने के लिए भाषा का उपयोग कर सकता है और कि वह आसान और संक्षिप्त तरीके से बोलना जानता है, ताकि उसके श्रोता भ्रमित ना हो जाएँ। वह खुद को ऐसी भाषा में व्यक्त करता है जो खास तौर से स्पष्ट, सटीक, सच्ची और उपयुक्त होती है। वाक्पटु होने का यही अर्थ है। इस तरह के लोग वाक्पटु होते हैं, उनमें कार्य क्षमता, संगठनात्मक कौशल होते हैं, और इसके अतिरिक्त, उनमें जिम्मेदारी की भावना होती है, और अपेक्षाकृत न्याय की भावना होती है। ये लोग चापलूस या शांति स्थापित करने वाले लोग नहीं होते हैं। जब वे कुकर्मियों को कलीसिया के कार्य में गड़बड़ियाँ और विघ्न उत्पन्न करते हुए देखते हैं, या उन बेवकूफों और घटिया लोगों को देखते हैं जो अपने उचित मामलों पर ध्यान नहीं देते हैं और अनिश्चित तरीके से कार्य करते हैं, तो उन्हें गुस्सा आ जाता है, वे नाराज हो जाते हैं, और वे फौरन इन समस्याओं को सुलझा सकते हैं और संभाल सकते हैं, और परमेश्वर के घर के कार्य और हितों की रक्षा कर सकते हैं। जिम्मेदारी की भावना और न्याय की भावना होना—क्या ये अभिव्यक्तियाँ इस तरह के व्यक्ति की मानवता की प्रधान विशेषताएँ नहीं हैं? (हाँ।) हो सकता है कि इस तरह के लोग सामाजिक मेलजोल बढ़ाने में अच्छे नहीं हों, या वे किसी खास पेशेवर कौशल में बहुत निपुण नहीं हों, लेकिन अगर उनमें वे विशेषताएँ हैं जिनका मैंने अभी-अभी वर्णन किया, तो उन्हें अगुआओं और कार्यकर्ताओं के रूप में विकसित किया जा सकता है। ये विशेषताएँ उनकी शक्तियाँ भी हैं, यानी, वे वाक्पटु होते हैं, उनमें कार्य क्षमता, संगठनात्मक कौशल होते हैं, और उनमें अपेक्षाकृत न्याय की भावना होती है। न्याय की भावना होना बेहद महत्वपूर्ण है। क्या कुकर्मियों और मसीह-विरोधियों में न्याय की भावना होती है? (नहीं, उनमें नहीं होती है।) मसीह-विरोधियों की प्रकृति दुष्ट होती है; उनमें न्याय की भावना होना असंभव है। एक और बेहद महत्वपूर्ण बात यह है कि इस तरह के व्यक्ति में आध्यात्मिक समझ और सत्य को समझने की क्षमता होती है; यह उनकी काबिलियत से संबंधित है। इस तरह के व्यक्ति की शक्तियों का संबंध उन मानवीय विशेषताओं और प्रतिभाओं से है जिनका मैंने अभी-अभी जिक्र किया, साथ ही, इनका संबंध सत्य को समझने की क्षमता होने, कलीसिया के लिए दायित्व उठाने और कार्य क्षमता होने के तीन मानकों से है। ऐसे लोगों को अगुआओं के रूप में विकसित किया जा सकता है; इसमें कोई समस्या नहीं है। अगुआ में दिमाग और काबिलियत होने के साथ-साथ सत्य को समझने की क्षमता भी होनी चाहिए, और उसमें अपने कार्य के लिए संगठनात्मक कौशल और कार्य क्षमता होनी चाहिए, और साथ ही, उसमें वाक्पटुता भी होनी चाहिए। कुछ लोगों में बहुत अच्छी काबिलियत होती है, उनमें आध्यात्मिक समझ होती है, लेकिन जब सभाओं में संगति करने का समय आता है, तो वे जो कहने का प्रयास कर रहे होते हैं, उसे पूरी तरह से बिगाड़ देते हैं, उनमें अपनी भाषा को व्यवस्थित करने की क्षमता बिल्कुल नहीं होती है, और वे जो भी कहते हैं, वह पूरी तरह से तर्कहीन होता है। क्या ऐसे लोगों को अगुआ के रूप में विकसित किया जा सकता है? (नहीं, उन्हें किया जा सकता है।) कुछ लोग बड़ी मुश्किल से सिर्फ कुछ ही लोगों से बात कर पाते हैं; वे कुछ स्थितियों, विचारों और सत्य की समझ के बारे में संगति कर सकते हैं, और वे दूसरों को सहारा दे सकते हैं, उनका भरण-पोषण कर सकते हैं और उनकी मदद कर सकते हैं, लेकिन वे ज्यादा लोगों के सामने अपने विचार व्यक्त करने की जुर्रत नहीं करते हैं, और डर जाते हैं, और यहाँ तक कि घबड़ाकर रो भी पड़ सकते हैं। क्या ऐसे लोगों को विकसित किया जा सकता है? ऐसा व्यक्ति जो बहुत ही कमजोर और दब्बू मानवता का है, और जिसे मंच पर आने से डर लगता है, अगर उसमें अगुआ बनने के लिए मानवता, शक्तियाँ और समझने की क्षमता है, तो उसे दल का अगुआ या कलीसियाई अगुआ बनने के लिए विकसित किया जा सकता है। पहले बस उसे विकसित और प्रशिक्षित करो; जब वह कुछ समय तक अनुभव कर लेगा, उसके बाद उसे अंतर्दृष्टि प्राप्त हो जाएगी और इस तरह वह थोड़ा बहादुर बन जाएगा, और फिर वह बोलने से या मंच पर आने से नहीं डरेगा। संक्षेप में, जब उन लोगों की बात आती है जिनमें वे मानवता-संबंधी विशेषताएँ और शक्तियाँ हैं जिनके बारे में हमने अभी-अभी चर्चा की, तो उन्हें अगुआ बनने के लिए विकसित किया जा सकता है जब तक कि उनकी मानवता संतोषजनक है। जैसा कि हमने पिछली बार कहा था, किसी व्यक्ति को अगुआ के रूप में विकसित करने के लिए, यह जरूरी नहीं है कि वह सभी सत्यों को समझें, परमेश्वर के प्रति समर्पित होने में समर्थ हो, उसके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल हो, वगैरह-वगैरह। इन कसौटियों पर खरा उतरना बिल्कुल भी जरूरी नहीं है। अगर किसी में एक खास काबिलियत है, उसमें आध्यात्मिक समझ है, और वह सत्य को स्वीकार करने में समर्थ है, तो उसे प्रोत्साहित और विकसित किया जा सकता है। क्या यह लोगों का समझदारी से उपयोग करना नहीं है? (हाँ।) सबसे महत्वपूर्ण कसौटी यह है कि व्यक्ति की मानवता संतोषजनक है या नहीं।
कुछ लोगों को, मेरी कही बातें सुनने के बाद, लगता है कि वे पहले से ही अगुआ बनने की कसौटियों पर खरा उतरते हैं और उन्हें पदोन्नत किया जाना चाहिए। यह उनकी गलतफहमी है, है ना? क्या अगुआ बनना इतना ही आसान मामला है? वे सोचते हैं, “मैं वास्तव में व्यवस्थित हूँ, मेरे पास संगठनात्मक कौशल हैं, और मैं वाक्पटु हूँ, क्योंकि मैं सबसे पेचीदे मामलों को भी स्पष्ट रूप से समझा सकता हूँ, तो परमेश्वर का घर मुझे पदोन्नत क्यों नहीं करता है? भाई-बहन मुझे अगुआ बनने के लिए क्यों नहीं चुनते हैं? वरिष्ठ अगुआ यह पहचानने से कैसे चूक जाते हैं कि मैं प्रतिभाशाली हूँ?” फिक्र मत करो। अगर तुम वास्तव में अगुआ या कार्यकर्ता बनने की कसौटियों पर खरा उतरते हो, तो कभी ना कभी तुम्हें पदोन्नत किया जाएगा और तुम्हें खुद को प्रशिक्षित करने की अनुमति दी जाएगी। अभी जो चीज मायने रखती है वह यह है कि तुम्हें सत्य का अभ्यास करने और सिद्धांतों के अनुसार मामलों को निपटाने, और सक्रियता से खुद आगे बढ़कर दूसरों की मदद करने, और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए वास्तविक समस्याओं को सुलझाने में खुद को खूब प्रशिक्षित करना चाहिए। जब परमेश्वर के चुने हुए लोग देखेंगे कि तुम अच्छी काबिलियत वाले हो और तुम वास्तविक समस्याओं को सुलझा सकते हो, तो वे तुम्हारी सिफारिश करेंगे और तुम्हें चुनेंगे। अगर तुम थोड़ा सा भी वास्तविक कार्य करने की पहल नहीं करते हो, और सिर्फ उस दिन की प्रतीक्षा करते रहते हो जब तुम्हें अचानक अगुआ के रूप में चुन लिया जाता है या ऊपरवाले द्वारा अपवाद के रूप में पदोन्नत किया जाता है, तो ऐसा कभी नहीं होने वाला है। तुम्हें कुछ वास्तविक कार्य करना चाहिए ताकि हर कोई इसे देख सके; जब हर व्यक्ति खुद अपनी आँखों से तुम्हारी शक्तियाँ देख लेगा और महसूस करेगा कि तुम ऐसे व्यक्ति हो जिसे पदोन्नत और विकसित किया जाना चाहिए और जिसका उपयोग किया जाना चाहिए, तो वे स्वाभाविक रूप से तुम्हारी सिफारिश करेंगे और तुम्हें चुनेंगे। अगर अभी तुम्हें लगता है कि तुम अगुआ बनने के लिए उपयुक्त हो, लेकिन किसी ने तुम्हें नहीं चुना है, और परमेश्वर के घर ने तुम्हें पदोन्नत नहीं किया है, तो ऐसा क्यों है? एक बात तो पक्की है : तुम अभी तक भाई-बहनों की नजरों में पहचाने नहीं गए हो। शायद यह तुम्हारी मानवता है, शायद यह तुम्हारा अनुसरण है, या शायद यह तुम्हारी शक्तियाँ या काबिलियत है। अगर भाई-बहन इनमें से किसी एक पहलू को नहीं पहचानते हैं या स्वीकार नहीं करते हैं, तो वे तुम्हें नहीं चुनेंगे या तुम्हारी सिफारिश नहीं करेंगे। इसलिए तुम्हें कड़ी मेहनत करती रहनी होगी, अनुसरण करना और खुद को प्रशिक्षित करना जारी रखना होगा, और जब तुम सही मायने में सत्य को समझ लोगे और सिद्धांतों के अनुसार मामलों को निपटा पाओगे, तो लोग स्वाभाविक रूप से तुम्हारी सिफारिश करेंगे और तुम्हें चुनेंगे; यह परिस्थितियाँ सही होने पर चीजों का अपने स्वाभाविक तरीके से चलने का मामला है। अगुआ बनने के लिए लगातार प्रतीक्षा करते रहने या हर समय इसके बारे में सोचने की कोई जरूरत नहीं है; यह एक बेतुकी इच्छा है। तुम्हारे पास एक साधारण दिल होना चाहिए, तुम्हें सत्य का अनुसरण करने वाला व्यक्ति होना चाहिए, परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील होना चाहिए, और समर्पित और धैर्यवान होना सीखना चाहिए। तुम आँख मूंदकर अगुआ बनने का अनुसरण नहीं कर सकते हो; यह एक महत्वाकांक्षा है, और यह सही मार्ग नहीं है। तुम्हें हर समय यह महत्वाकांक्षा और इच्छा नहीं रखनी चाहिए। अगर तुममें वास्तव में काबिलियत हो, तो भी तुम्हें अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में सेवा करने के लिए योग्य होने से पहले सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने की प्रतीक्षा करनी चाहिए। अगर तुम सत्य को नहीं समझते हो और सत्य का अभ्यास करना नहीं जानते हो, तो अगर तुम्हें अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में चुन लिया जाए, तो भी तुम कोई वास्तविक कार्य नहीं कर पाओगे और तुम्हें बर्खास्त करना और हटाना पड़ेगा, जो कि अक्सर होता है। यदि तुम अगुआई के लिए खुद को उपयुक्त मानते हो, तुम्हें लगता है कि तुम्हारे अंदर प्रतिभा, क्षमता और मानवता होते हुए भी परमेश्वर के घर ने तुम्हें पदोन्नत नहीं किया और भाई-बहनों ने तुम्हें नहीं चुना है, तो तुम्हें इस मामले में कैसे पेश आना चाहिए? अभ्यास का एक मार्ग है जिसका तुम अनुसरण कर सकते हो। तुम्हें अपने आप को भली-भांति जानना चाहिए। देखो कि अंततः कहीं तुम्हारी मानवता में कोई समस्या तो नहीं है या तुम्हारे भ्रष्ट स्वभाव के प्रकाशन का कोई पहलू लोगों में घृणा तो नहीं पैदा करता; या कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम्हारे अंदर सत्य वास्तविकता न हो और दूसरे लोग तुमसे आश्वस्त न होते हों, या तुम्हारा कर्तव्य निष्पादन अधोमानक तो नहीं है। तुम्हें इन सब बातों पर चिंतन कर देखना चाहिए कि वास्तव में तुममें क्या कमी है। कुछ समय आत्मचिंतन करने पर जब तुम्हें पता चल जाए कि समस्या कहाँ है, तो तुम्हें इसे दूर करने के लिए तुरंत सत्य खोजना चाहिए, सत्य वास्तविकता में प्रवेश करना चाहिए, बदलाव लाकर आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए, ताकि आस-पास के लोग यह देखें तो कहें, “आजकल यह व्यक्ति पहले से कहीं बेहतर हो गया। यह ठोस काम करता है, अपने पेशे को गंभीरता से लेता है और खासतौर से सत्य सिद्धांतों पर ध्यान देता है। वह आवेश में आकर या लापरवाही और अनमने ढंग से कोई काम नहीं करता, अपने काम को लेकर बहुत ही कर्तव्यनिष्ठ और जिम्मेदार है। वह पहले मौके-बेमौके बड़ी-बड़ी बातें करना पसंद करता था और हरदम दिखावा करता था, लेकिन अब बहुत सहज हो गया है और ढिठाई नहीं करता। वह अपने काम को लेकर डींगें नहीं हाँकता, कोई कार्य खत्म करने के बाद, यह सोचकर बार-बार चिंतन करता है कि कहीं उससे कुछ गलत तो नहीं हो गया। वह पहले की तुलना में बहुत सतर्कता से और परमेश्वर का भय मानने वाले हृदय के साथ काम करता है और अब वह अपने हृदय में परमेश्वर का भय मानता है—और सबसे बड़ी बात, वह समस्याएँ दूर करने के लिए सत्य पर सहभागिता कर सकता है। वास्तव में, उसका काफी विकास हुआ है।” तुम्हारे आस-पास के लोग जिन लोगों ने तुमसे थोड़ी देर संवाद किया हो पाते हैं कि तुममें साफ तौर पर बदलाव आया है और तुम्हारा विकास हुआ है; अपने मानवीय जीवन में, आचरण में, और मामले सँभालने में, और काम के प्रति अपने रवैये में और सत्य सिद्धांतों के साथ अपने व्यवहार में, तुम पहले की तुलना में अधिक प्रयास करते हो, नपा-तुला बोलने और कार्य करने लगे हो। भाई-बहन यह सब देखकर प्रभावित हो जाते हैं। तब शायद तुम अगले चुनाव में प्रत्याशी के रूप में खड़े हो सकते हो और अगुआ के रूप में चुने जाने की उम्मीद कर सकोगे। यदि तुम वास्तव में कोई महत्वपूर्ण कर्तव्य कर पाओ, तो तुम्हें परमेश्वर का आशीष मिलेगा। यदि तुमने सही मायने में बोझ उठाओ और तुममें जिम्मेदारी की भावना है, तुम भार वहन करना चाहते हो, तो तुम अपने आपको प्रशिक्षित करो। सत्य का अभ्यास करने पर ध्यान दो और सिद्धांतों के अनुसार कार्य करो। जब तुम्हारे पास जीवन का अनुभव आ जाएगा और तुम गवाही के निबंध लिख सकोगे, तो इसका अर्थ है कि सच में तुम्हारा विकास हो गया है। और यदि तुम परमेश्वर की गवाही दे सकते हो, तो तुम निश्चय ही पवित्र आत्मा का कार्य प्राप्त कर सकते हो। यदि पवित्र आत्मा तुम पर काम कर रही है, तो इसका अर्थ है कि परमेश्वर तुम्हें अनुग्रह की दृष्टि से देखता है और पवित्र आत्मा का मार्गदर्शन पाकर तुम्हारे लिए शीघ्र ही अवसर का निर्माण होगा। तुम पर इस समय भार हो सकता है, लेकिन तुम्हारा आध्यात्मिक कद अपर्याप्त है और जीवन अनुभव बहुत उथला है, इसलिए यदि तुम अगुआ बन भी जाओ, पर तुम्हारे लड़खड़ाने की संभावना रहेगी। तुम्हें जीवन में प्रवेश करना चाहिए, पहले अपनी असाधारण इच्छाएँ नियंत्रित करो, स्वेच्छा से अनुयायी बनो और बिना कुड़कुड़ाए, परमेश्वर चाहे जो भी आयोजन करे या व्यवस्था बनाए, उसका पालन करो। जब तुम्हारा आध्यात्मिक कद ऐसा बन जाएगा, तो तुम्हारा अवसर आ जाएगा। यह अच्छी बात है कि तुम भारी बोझ उठाना चाहते हो और तुम पर यह बोझ है। यह दर्शाता है कि तुममें एक अग्रगामी हृदय है जो प्रगति करना चाहता है, और तुम परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील होना और परमेश्वर की इच्छा का अनुसरण करना चाहते हो। यह कोई महत्वाकांक्षा नहीं है, बल्कि एक सच्चा भार है; यह सत्य का अनुसरण करने वालों का दायित्व है और उनके अनुसरण का लक्ष्य भी है। तुम्हारे कोई स्वार्थी उद्देश्य नहीं है, और तुम अपने लिए नहीं, बल्कि परमेश्वर की गवाही देने और उसे संतुष्ट करने निकले हो, तो यही वह चीज है जिसे परमेश्वर का सर्वाधिक आशीष प्राप्त है, वह तुम्हारे लिए उपयुक्त व्यवस्था कर देगा। अभी के लिए, तुम बस जीवन प्रवेश का अनुसरण करने की फिक्र करो, पहले अपना कर्तव्य उचित रूप से पूरा करो, और फिर परमेश्वर की गवाही देने के लिए कुछ अनुभवजन्य गवाही पर लेख लिखो। अगर तुम्हारी गवाहियाँ सच्ची और व्यावहारिक हैं, तो उन्हें पढ़ने वाले लोग तुम्हारी सराहना करेंगे और तुम्हें पसंद करेंगे, और तुमसे जुड़ने और तुम्हारी सिफारिश करने के इच्छुक होंगे, और इस तरह तुम्हारा अवसर आएगा। इसलिए, अवसर आने से पहले तुम्हें यकीनन खुद को सत्य से लैस कर लेना चाहिए। सबसे पहले व्यावहारिक अनुभव प्राप्त करो, और फिर तुम्हारे पास स्वाभाविक रूप से सच्ची गवाही होगी; तुम्हारे कर्तव्य के परिणाम बेहतर से और बेहतर होते जाएँगे, और इस समय तक, तुम चाहकर भी छिप नहीं पाओगे, और तुम्हारे आसपास के भाई-बहन तुम्हारी सिफारिश कर देंगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि जिन लोगों के पास सत्य वास्तविकता है, उनकी जरूरत सिर्फ परमेश्वर के घर को ही नहीं, बल्कि परमेश्वर के चुने हुए लोगों को भी होती है; हर कोई ऐसे लोगों से जुड़ना पसंद करता है जिनके पास सत्य वास्तविकता है, और हर कोई ऐसे दोस्तों से मेलजोल रखना पसंद करता है जिनके पास सत्य वास्तविकता है। अगर तुम इस हद तक अनुभव करते हो, और हर कोई देखता है कि तुम्हारे पास सच्ची गवाही है और स्वीकार करता है कि तुम्हारे पास सत्य वास्तविकता है, तो तुम अगुआ बनने से बच नहीं पाओगे, भले ही तुम कितना भी चाह लो, और भाई-बहन तुम्हें चुनने की जिद करेंगे। क्या यही बात नहीं है? जब पापी बेटे को पश्चात्ताप होता है और वह परमेश्वर के पास लौट आता है, तो परमेश्वर संतुष्ट होता है, खुश हो जाता है, और उसके दिल को शांति मिलती है। सत्य वास्तविकता वाले व्यक्ति के रूप में, ऐसा कैसे हो सकता है कि परमेश्वर तुम्हारा उपयोग नहीं करे? यह असंभव होगा। परमेश्वर का इरादा अधिक लोगों को प्राप्त करने की है जो उसके लिए गवाही दे सकें; उसकी इच्छा उन सभी को पूर्ण करने की है जो उससे प्रेम करते हैं और जल्द से जल्द ऐसे लोगों का एक समूह बनाना चाहता है जो उसके साथ हृदय और मन से एक साथ हैं। इसलिए, परमेश्वर के घर में सत्य का अनुसरण करने वाले सभी लोगों के लिए भरपूर संभावनाएं हैं, जो लोग ईमानदारी से परमेश्वर से प्रेम करते हैं, उनके लिए असीम संभावनाएं हैं। सभी को परमेश्वर के इरादे समझने चाहिए। इस भार को वहन करना वाकई एक सकारात्मक बात है। जिन लोगों में अंतरात्मा और विवेक है, उन्हें इसे वहन करना चाहिए, लेकिन जरूरी नहीं कि हर कोई भारी बोझ वहन कर सके। यह विसंगति कहाँ से आती है? तुम्हारी क्षमता या योग्यता कुछ भी हो, तुम्हारा बौद्धिक स्तर कितना भी ऊँचा हो, यहाँ महत्वपूर्ण है तुम्हारा लक्ष्य और वह मार्ग जिस पर तुम चलते हो। अगर तुम्हारी मानवता संतोषजनक है और तुममें एक खास काबिलियत है, लेकिन तुम सत्य का अनुसरण करने वाले व्यक्ति नहीं हो, और तुममें सिर्फ अच्छी मानवता है और कुछ हद तक दायित्व की समझ है, तो क्या तुम एक कलीसियाई अगुआ का कार्य अच्छी तरह से कर सकते हो? क्या तुम यह आश्वासन देते हो कि तुम सत्य का उपयोग करके समस्याओं को सुलझा सकते हो? अगर तुम इसका आश्वासन नहीं दे सकते हो, तो तुम अब भी अपने कार्य में अयोग्य हो। अगर तुम्हें अगुआ के रूप में चुना या नियुक्त किया जाए, तो भी तुम यह कार्य करने में असमर्थ होगे, तो इससे क्या फायदा होगा? वैसे तो यह तुम्हारे अहंकार को संतुष्ट करेगा, लेकिन यह भाई-बहनों को नुकसान पहुँचाएगा और कलीसिया के कार्य में देरी करेगा। अगर तुम अगुआ या कार्यकर्ता बनने की कसौटियों पर खरा उतरते हो, और तुम सत्य का अनुसरण करने वाले व्यक्ति हो, और तुम्हारे पास कुछ अनुभवजन्य गवाहियाँ भी हैं, तो तुम यकीनन एक अगुआ के रूप में अच्छा कार्य करने में समर्थ होगे, क्योंकि तुम्हारे पास अनुभवजन्य गवाहियाँ हैं, तुम सत्य को समझने वाले व्यक्ति हो, और कलीसियाई अगुआ होने का भारी दायित्व उठा सकते हो। यह बात कि तुम्हारी मानवता संतोषजनक है और तुम्हारे पास कुछ खास शक्तियाँ भी हैं, परमेश्वर के घर द्वारा पदोन्नत, विकसित और उपयोग किए जाने के लिए सिर्फ मूलभूत कसौटियाँ हैं, लेकिन तुम एक अगुआ के रूप में अच्छा कार्य कर सकते हो या नहीं, यह इस पर निर्भर करता है कि तुम्हारे पास वास्तविक अनुभव और सत्य वास्तविकता है या नहीं—यह चीज सबसे ज्यादा मायने रखती है। कुछ लोग सही लोग हैं और वे सत्य का अनुसरण करते हैं, लेकिन उन्होंने सिर्फ तीन से पाँच वर्षों तक ही विश्वास रखा है और उन्हें कोई वास्तविक अनुभव नहीं है। क्या ऐसे लोग कलीसियाई अगुआ का कार्य अच्छी तरह से कर सकते हैं? मुझे डर है कि वे इस कार्य में निपुण नहीं होंगे। वे कहाँ कम पड़ जाते हैं? उनके पास व्यावहारिक अनुभव का अभाव है और वे अभी तक सत्य को समझ नहीं पाए हैं। चाहे वे कई शब्द और धर्म-सिद्धांत क्यों ना बोल सकें, वे सत्य का उपयोग करके समस्याओं को सुलझाने में अभी भी असमर्थ हैं। इसलिए, वे अभी भी अगुआ के कार्य में कुशल नहीं हैं और उन्हें सत्य की समझ प्राप्त करने और सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने के लिए खुद को प्रशिक्षित करते रहने की जरूरत है। मिसाल के तौर पर, अगर कोई व्यक्ति संतोषजनक मानवता वाला है और काफी ईमानदार है, और कभी-कभार ही झूठ बोलता है और धोखा देता है, और गड़बड़ी या विघ्न उत्पन्न किए बिना अपना कर्तव्य करता है, लेकिन सत्य का अनुसरण करने में खराब है, तो क्या ऐसे व्यक्ति को अगुआ या कार्यकर्ता बनने के लिए विकसित किया जा सकता है? यह बहुत ही मुश्किल होगा। क्या कोई व्यक्ति जो पदोन्नत, विकसित और उपयोग किए जाने के लिए कसौटियों पर खरा उतरता है, लेकिन वह सत्य का अनुसरण नहीं करता है, उसे अगर अगुआ या कार्यकर्ता बनाने के लिए पदोन्नत किया जाए, तो क्या वह सत्य का अनुसरण करने वाला व्यक्ति बनने में समर्थ होगा? क्या वह सत्य का अनुसरण करना शुरू कर पाएगा? क्या वह कुछ समय के लिए अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में कार्य करने के बाद सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर पाएगा? यह असंभव होगा। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि व्यक्ति कौन सी कसौटियों पर खरा उतरता है, जब तक वह सत्य का अनुसरण करने वाला व्यक्ति नहीं है, तब तक उसे अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में बिल्कुल भी चुना या पदोन्नत नहीं किया जा सकता है। अगर किसी व्यक्ति में संतोषजनक मानवता और काबिलियत है, और वह सत्य को स्वीकार करने और कुछ बदलाव करने में भी समर्थ है, तो उसे पदोन्नत और विकसित किया जा सकता है और उसका उपयोग किया जा सकता है, और परिणामस्वरूप, उसे खुद को प्रशिक्षित करने, सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने और उद्धार और पूर्णता के मार्ग पर चलना शुरू करने का अवसर मिलेगा। इसलिए, चाहे परमेश्वर का घर अगुआ, कार्यकर्ता या पर्यवेक्षक के रूप किसी को भी पदोन्नत क्यों ना करे, इसका उद्देश्य तुम्हारी व्यक्तिगत इच्छाओं और महत्वाकांक्षाओं को संतुष्ट करना या तुम्हारे आदर्शों को पूरा करना नहीं है, बल्कि तुम्हें उद्धार के मार्ग पर चलना शुरू करने और एक पूर्ण व्यक्ति बनने में सक्षम बनाना है।
जहाँ तक उन लोगों की बात है जिनमें पर्याप्त बुद्धि नहीं है, उनकी भी अपने कर्तव्य को अच्छी तरह से करने की आकांक्षाएँ होती हैं और वे परमेश्वर के घर के हितों का बचाव करना चाहते हैं, लेकिन उनमें बुद्धिमत्ता का अभाव होता है, वे सिद्धांतों के अनुसार कार्य करना नहीं जानते हैं, और किसी भी मामले को नहीं समझ पाते हैं। किसी समय, वे लालच का सामना करते हैं और उसके शिकार हो जाते हैं, और परिणामस्वरूप, वे कलीसिया के हितों से गद्दारी करते हैं, भाई-बहनों से गद्दारी करते हैं, और परमेश्वर के घर के कार्य को नुकसान पहुँचाते हैं। हमें इस प्रकार के बेवकूफ और अपर्याप्त बुद्धि वाले लोगों से कैसे निपटना चाहिए और कैसे व्यवहार करना चाहिए? जब ऐसे बेवकूफों की बात आती है जिनमें आध्यात्मिक समझ का अभाव है और जो अपर्याप्त बुद्धि के हैं, तो उनमें से हर एक को बर्खास्त कर देना चाहिए और फिर से नियुक्त करना चाहिए, और इनमें से किसी का भी उपयोग नहीं किया जा सकता है। अगर ऐसे लोगों का उपयोग किया जाता है, तो वे किसी भी समय परमेश्वर के घर के कार्य में मुसीबत खड़ी कर सकते हैं—इस प्रकार के बहुत सारे सबक हैं। आजकल, ऐसे कई लोग हैं जो बाहरी तौर पर कुछ हद तक मनुष्य जैसे होते हैं, लेकिन वे किसी भी सत्य वास्तविकता की संगति नहीं कर सकते हैं। वे कई वर्षों से परमेश्वर में विश्वास रखते आ रहे हैं और फिर भी वे इस स्थिति में रह गए हैं। इस समस्या की जड़ को स्पष्ट रूप से देखना चाहिए; यह बहुत ही खराब काबिलियत और आध्यात्मिक समझ के अभाव की समस्या है। ऐसे लोग चाहे कितने भी वर्षों तक परमेश्वर में विश्वास क्यों ना रख लें, वे नहीं बदलेंगे, और उन्होंने जितने भी धर्मोपदेश सुने हैं, उनके बावजूद उन्होंने कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं की है। उन्हें सिर्फ एक तरफ रखा जा सकता है, ताकि वे अपनी क्षमता के अनुसार जिस भी मामूली तरीके से संभव हो, सेवा प्रदान करें। क्या उनसे निपटने का यह अच्छा तरीका है या नहीं? (यह अच्छा तरीका है।) कुछ अपर्याप्त बुद्धि वाले और शक्तिहीन लोग कई-कई वर्षों तक परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद भी उन्हें बिल्कुल भी नहीं समझ पाते हैं, और कई-कई वर्षों तक धर्मोपदेश सुनने के बावजूद भी उन्हें समझने से चूक जाते हैं। क्या अब भी ऐसे लोगों को परमेश्वर के वचनों की किताबें देना उपयोगी है? (नहीं, यह उपयोगी नहीं है।) अपर्याप्त बुद्धि वाले लोगों को परमेश्वर के वचनों की किताबें नहीं दी जानी चाहिए, क्योंकि ऐसा करना निरर्थक है और बर्बादी के समान है, और उन्हें जो भी किताबें दी गई हैं, उन्हें फौरन वापस ले लेना चाहिए। यह उन्हें परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के अधिकार से वंचित करने के लिए नहीं है, बल्कि इसलिए है क्योंकि उनकी बुद्धि काफी नहीं है। भले ही ऐसे लोग कलीसियाई जीवन जीते हों, लेकिन वे सत्य को नहीं समझ पाते हैं, फिर कर्तव्य करने की तो बात ही छोड़ दो। ऐसे लोग कचरे जैसे ही हैं, है ना? तुम लोगों को कचरा संभालने का तरीका पता होना चाहिए। कुछ लोग बाहर से काफी ईमानदार दिखते हैं, लेकिन उनकी बुद्धि इतनी भयंकर होती है कि वे कोई शारीरिक कार्य भी उचित रूप से नहीं कर पाते हैं, और वे जो भी चीज करते हैं, उसे बर्बाद कर देते हैं। अगर उनसे कोई कार्य करने के लिए कहा जाए, तो वे यकीनन कोई ना कोई चीज खराब कर देंगे, इसलिए ऐसे लोगों का उपयोग नहीं किया जा सकता है। अगर तुम उनसे पानी की बाल्टी उठाने के लिए कहोगे, तो वे तेल की बोतल गिरा देंगे। अगर तुम उनसे कटोरा धोने के लिए कहोगे, तो वे तश्तरी तोड़ देंगे। अगर तुम उनसे खाना पकाने के लिए कहोगे, तो वे या तो बहुत ज्यादा पकाएँगे या बहुत कम, या वह बहुत ही नमकीन होगा या बहुत ही फीका। वे पूरे दिल से इसे करते हैं, लेकिन वे कोई भी कार्य अच्छी तरह से नहीं कर पाते हैं और यहाँ तक कि शारीरिक श्रम भी बखूबी नहीं कर पाते हैं। क्या ऐसे लोगों का उपयोग किया जा सकता है? (नहीं।) तो अगर उनका उपयोग नहीं किया जा सकता है, तो उनसे क्या करने के लिए कहना चाहिए? क्या इसका यह अर्थ है कि उन्हें परमेश्वर में विश्वास रखने की अनुमति नहीं है और कि परमेश्वर का घर उन्हें नहीं चाहता है? नहीं, ऐसा नहीं है। बस उन्हें कोई कर्तव्य मत करने दो। अगर वे सामान्य मानव जीवन के दायरे में आने वाली चीजें उचित रूप से नहीं करते हैं—जिसमें रोजमर्रा की सामान्य बुद्धि वाली चीजें और दैनिक जीवन के नित्य मामले शामिल हैं—या वे इन चीजों को करने में असमर्थ हैं, तो वे परमेश्वर के घर में कोई कर्तव्य करने के लिए उपयुक्त नहीं हैं।
वैसे तो कुछ लोगों में अच्छी मानवता या कोई खास प्रतिभा नहीं होती है, उन्हें अगुआ बनाने के लिए विकसित करना तो दूर की बात है, फिर भी वे कुछ शारीरिक कार्य कर सकते हैं। मिसाल के तौर पर, मुर्गियों और बत्तखों को खिलाना, सूअरों को खिलाना और भेड़ों की देखभाल करना ऐसे काम हैं जिन्हें वे अच्छी तरह से कर सकते हैं। अगर तुम उन्हें कोई आसान कार्य दो, तो वे इसे अच्छी तरह से कर सकते हैं जब तक कि वे इसे पूरे दिल से करें, और इस प्रकार ऐसे लोग परमेश्वर के घर में एक कर्तव्य कर सकते हैं। वैसे तो यह एक अकेला, आसान कार्य है, लेकिन वे इसे पूरे दिल से कर सकते हैं और एक जिम्मेदारी पूरी कर सकते हैं, और वे परमेश्वर के वचनों और सत्य सिद्धांतों के अनुसार खुद से अपेक्षाएँ भी रख सकते हैं। कार्य चाहे बड़ा हो या छोटा, या कार्य महत्वपूर्ण हो या मामूली, पूरा विचार करने के बाद यह कह सकते हैं कि वे उन्हें सौंपा गया एक अकेला कार्य अच्छी तरह से कर सकते हैं। वे ना सिर्फ मुर्गियों को अच्छी तरह से खिला सकते हैं ताकि वे सामान्य रूप से अंडे दें, बल्कि वे मुर्गियों को भेड़ियों द्वारा उठा ले जाने से भी बचा सकते हैं। अगर वे भेड़िये की चीख सुनते हैं, तो वे फौरन अपने पर्यवेक्षक को बता देंगे, वे परमेश्वर के घर द्वारा उन्हें सौंपे गए कार्य को करने में सभी दुर्घटनाओं से बचने का प्रयास करेंगे। अगर वे इस तरह से कार्य करते हैं, तो वे अपेक्षाकृत समर्पित हैं, और यह उनकी जिम्मेदारी पूरी करने और किसी कार्य को अच्छी तरह से करने में समर्थ होने के रूप में गिना जाता है। जो कुछ बचा है—उनका निजी जीवन, और वे कैसे आचरण करते हैं और चीजों से कैसे निपटते हैं—उसमें वे कुछ हद तक कम पड़ते हैं; मिसाल के तौर पर, उन्हें नहीं पता है कि दूसरों से कैसे बातचीत और गपशप करनी है, या दूसरों के साथ अपनी स्थिति पर कैसे संगति करनी है, और कभी-कभी वे चिड़चिड़े हो जाते हैं। क्या इसे समस्या माना जाता है? क्या इन मुद्दों के कारण उनका उपयोग नहीं करना ठीक है? (नहीं, यह ठीक नहीं है।) कुछ लोगों की व्यक्तिगत स्वच्छता खराब होती है; वे कम से कम दस दिनों तक अपने बाल नहीं धोते हैं और आम तौर पर उनसे बदबू आती है। दूसरे लोग खाते-पीते समय बहुत शोर मचाते हैं, जबकि उनके आसपास के लोग आराम कर रहे होते हैं, और वे दूसरे मौकों पर भी जोर-जोर से आवाजें करते हैं, जैसे कि चलते समय, दरवाजे बंद करते समय, और बात करते समय—वे अशिक्षित होते हैं और उनमें शिष्टाचार नहीं होता है। ऐसे लोगों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए? हर किसी को उनके प्रति उदार होना चाहिए, प्रेमपूर्ण दिल से उनकी मदद करनी चाहिए और उन्हें सहारा देना चाहिए, उनके साथ सामान्य मानवता के बारे में संगति करनी चाहिए, और उन्हें धीरे-धीरे बदलने की अनुमति देनी चाहिए। चूँकि तुम सभी एक साथ हो, इसलिए तुम्हें घुलना-मिलना सीखना होगा। ऐसे लोगों का उपयोग तब तक किया जा सकता है जब तक कि वे अपना कार्य उचित रूप से करने मे, और कार्य की जिम्मेदारी उठाने में समर्थ हैं, और ऐसा कुछ नहीं करते हैं जिससे गड़बड़ी और विघ्न उत्पन्न हों। कुछ लोग होशियार होते हैं, उनमें अच्छी काबिलियत होती है, और वे लगन से कार्य करते हैं, और वे अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी कर सकते हैं और उन्हें सौंपे गए कार्यों को अच्छी तरह से कर सकते हैं, इसलिए उन्हें विकसित और उनका उपयोग किया जा सकता है। लेकिन कुछ लोग इतनी ज्यादा खराब काबिलियत वाले होते हैं कि वे कोई भी कार्य ठीक से नहीं कर पाते हैं; वे बस मुर्गियों को खिलाने का कार्य जैसे-तैसे कर पाते हैं, लेकिन अगर उन्हें बत्तखों और हंसों को भी खिलाना पड़े, तो वे बुरी तरह से घबड़ा जाते हैं और उन्हें समझ नहीं आता है कि इसे कैसे करना है। ऐसा नहीं है कि वे इसे अच्छी तरह से नहीं करना चाहते हैं, लेकिन उनकी काबिलियत बहुत ही खराब होती है। उनके दिमाग की अपनी सीमाएँ होती हैं, वे सिर्फ एक ही कार्य करना जानते हैं, और अगर उन्हें करने के लिए एक और कार्य दे दिया जाए, तो यह उनकी क्षमता से परे होता है। उन्हें योजना बनाना नहीं आता है, इसलिए वे बस चीजों को बिगाड़ देते हैं। ऐसे लोग एक समय में सिर्फ एक ही कार्य करने के लिए उपयुक्त होते हैं। उन्हें एक से ज्यादा कार्य मत दो, क्योंकि वे उनकी जिम्मेदारी उठाने में असमर्थ होंगे। ऐसा मत सोचो कि अगर वे एक कार्य अच्छी तरह से कर सकते हैं, तो यकीनन वे दो या तीन कार्य भी कर सकेंगे; जरूरी नहीं है कि ऐसा ही हो, और यह उनकी काबिलियत पर निर्भर करता है। पहले उन्हें दो कार्य करने का प्रयास करने दो। अगर वे अच्छी काबिलियत वाले हैं और यह जिम्मेदारी उठा सकते हैं, तो तुम उनके लिए इस तरीके से व्यवस्था कर सकते हो। अगर वे एक साथ दो कार्य अच्छी तरह से नहीं कर सकते हैं, और गड़बड़ कर देते हैं, तो इसका यह अर्थ है कि यह उनकी काबिलियत से परे है, इसलिए तुम्हें फौरन उनका दूसरा कार्य वापस ले लेना चाहिए। इसका कारण यह है कि अवलोकन और परिवीक्षा के जरिये, तुम्हें पता चल गया है कि वे एक समय में सिर्फ एक ही कार्य करने के लिए उपयुक्त हैं, कई जटिल कार्य करने के लिए नहीं, और उनमें इसके लिए काबिलियत नहीं है। कुछ लोग अपेक्षाकृत होशियार और अपेक्षाकृत अच्छी काबिलियत वाले होते हैं, और अगर तुम उन्हें करने के लिए कई कार्य देते हो, तो वे उन्हें अच्छी तरह से कर सकते हैं। मिसाल के तौर पर, अगर तुम उन्हें खाना पकाने, चूजों को खिलाने और सब्जियों के बगीचे का प्रबंधन करने के लिए कहते हो, तो वे हर रोज समय पर खाना तैयार करने में समर्थ होते हैं, और अपने फुर्सत के पलों में सब्जियों के बगीचे को प्रबंधित करते हैं, बगीचे में ठीक समय पर पानी देते हैं और छँटाई करते हैं, और समय पर चूजों को खिलाते हैं। कुछ लोग कह सकते हैं, “चूँकि उनमें यह काबिलियत है, इसलिए क्यों ना उन्हें कलीसिया का कार्य भी संभालने दिया जाए और कलीसियाई अगुआ बनने दिया जाए।” क्या यह ठीक होगा? वैसे तो वे कुछ शारीरिक कार्य और रोजमर्रा के कार्यों की जिम्मेदारी उठाने में समर्थ हैं, लेकिन जब कलीसियाई अगुआ बनने की बात आती है, तो उसके लिए एक अलग मूल्यांकन की जरूरत पड़ती है; यह कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे इन आसान, बाहरी कार्यों को करने के आधार पर मापा जा सके। वह इसलिए क्योंकि कलीसियाई अगुआ बनना कोई शारीरिक कार्य नहीं है, इसे नेतृत्व के सिद्धांतों से मापा जाना चाहिए। लेकिन, अगर इस व्यक्ति में कलीसियाई अगुआ बनने की काबिलियत और प्रतिभा है, और उसकी मानवता काफी अच्छी है, तो तुम्हारे लिए उसे बाहरी कार्य सौंपना अनुचित होगा; इसे लोगों का अनुचित तरीके से उपयोग करना कहते हैं। ज्यादा-से-ज्यादा, कलीसियाई अगुआ एक और ऐसा अंशकालिक कार्य कर सकते हैं जिसका संबंध रोजमर्रा की जिंदगी से है, और जब भी वे व्यस्त नहीं हों, तब इस पर थोड़ा ज्यादा ध्यान दे सकते हैं—इससे उन्हें थकान नहीं होगी। जब मामूली, नित्य मामलों और इन शारीरिक कार्यों की बात आती है, तो लोग इन्हें अपनी क्षमता के अनुसार जितने संभव हों उतने कर सकते हैं। क्या कोई ऐसा है जो इन सभी को संभाल सकता है? क्या ऐसी काबिलियत वाला कोई है? (नहीं।) हो सकता है कि उनकी काबिलियत और क्षमता पर्याप्त हो, लेकिन एक चीज है जो उनके पास पर्याप्त नहीं होगी, और वह है ऊर्जा। लोग नश्वर हैं, उनकी ऊर्जा सीमित है, और वे जितने कार्यों की जिम्मेदारी उठा सकते हैं, उनकी संख्या भी सीमित है। ज्यादा ऊर्जा वाले लोग दिन में 12 घंटों तक कार्य कर सकते हैं, जबकि औसत ऊर्जा वाले लोग सामान्य रूप से आठ घंटे कार्य कर सकते हैं, और कम ऊर्जा वाले लोग सिर्फ चार या पाँच घंटे ही कार्य कर सकते हैं। इसलिए, चाहे तुम किसी व्यक्ति का उपयोग शारीरिक कार्यों, कलीसिया की अगुवाई का कार्य, या पेशेवर कौशलों से जुड़े कार्यों को करने के लिए क्यों ना करो, तुम्हें यह विचार करना चाहिए कि वे किस कार्य के लिए सबसे उपयुक्त हैं, और उन्हें सबसे उपयुक्त कार्य सौंपने के बाद, अगर वे इसे नहीं कर पाते हैं, तो उन्हें कोई और कार्य सौंप दो। अगर तुम उन्हें उनके लिए सबसे उपयुक्त कार्य के अनुसार कार्य नहीं सौंपते हो, तो यह लोगों का उपयोग करने का गलत तरीका है। जिन लोगों को पदोन्नति, विकास और उपयोग के लिए प्राथमिकता नहीं दी जा सकती है, अगर उन्हें शारीरिक कार्य करने के लिए कहा जाए, तो भी उन्हें उनकी काबिलियत और योग्यताओं के आधार पर ये कार्य सौंपे जाने चाहिए। अगर, वे अपने एक नियुक्त कार्य को अच्छी तरह से करने के साथ-साथ दूसरे कार्यों को भी करने में समर्थ हैं, तो उन्हें अंशकालिक आधार पर कुछ दूसरे शारीरिक कार्य करने के लिए कहा जा सकता है, जब तक कि इससे उनके मुख्य कार्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता हो। कुछ लोग शारीरिक रूप से मजबूत होते हैं और लगातार तीन कार्य कर सकते हैं; एक कार्य समाप्त करने के बाद भी उनमें ऊर्जा बची होती है और वे ज्यादातर समय खाली रहते हैं। लेकिन झूठे अगुआ अंधे होते हैं और कार्य आवंटित करना नहीं जानते हैं, और उन्होंने यह अहसास नहीं किया है कि यह एक समस्या है, इसलिए वे उन लोगों को करने के लिए सिर्फ एक कार्य सौंपते हैं, जो कि एक गलती है।
अभी-अभी मैं अपर्याप्त बुद्धि वाले लोगों के बारे में बात कर रहा था, जिनके पास कोई खास कौशल नहीं होता है और वे सिर्फ शारीरिक मेहनत करने में समर्थ होते हैं। ऐसे भी लोग हैं जिन्हें कोई बीमारी है और वे शारीरिक मेहनत तक करने में असमर्थ हैं, और जब भी वे मामूली शारीरिक मेहनत वाला कोई कार्य करते हैं, तो उन्हें सिरदर्द, पेटदर्द या पीठदर्द होने लगता है। अगर इस किस्म के लोग कोई कर्तव्य करने के लिए उपयुक्त हैं, तो उन्हें कर्तव्य सौंपने के बारे में क्या करना चाहिए? अलग-अलग पहलुओं, जैसे कि उनकी स्वास्थ्य की स्थिति और साथ ही, उनकी मानवता और क्षमता, पर गौर करना चाहिए, ताकि यह पता चल सके कि वे परमेश्वर के घर में कौन से कर्तव्य करने के लिए उपयुक्त हैं। अगर उनका स्वास्थ्य इतना खराब है कि वे कोई कार्य नहीं कर सकते हैं, और उन्हें कुछ समय कार्य करने के बाद कुछ देर का अवकाश लेना पड़ता है, और उन्हें अपनी देखभाल के लिए किसी की जरूरत भी पड़ती है, अगर वे अपने आप अपना कार्य उचित रूप से नहीं कर पाते हैं और उनके साथ किसी ऐसे व्यक्ति को रखना पड़ता है जो उनकी देखभाल कर सके, तो इसका कोई फायदा नहीं है। ऐसे लोग कोई कर्तव्य करने के लिए उपयुक्त नहीं हैं, इसलिए उन्हें घर जाने दो और स्वस्थ होने दो। तुम जो चाहे करो, बस किसी ऐसे व्यक्ति का उपयोग मत करो जो इतना गंभीर रूप से बीमार है कि हवा का एक झोंका उसे उड़ा ले जाने के लिए काफी है। अगर उनका स्वास्थ्य बहुत ज्यादा खराब नहीं है और बस यही है कि अगर वे गलत चीजें खा लेते हैं, तो उन्हें पेटदर्द होने लगता है, या अगर वे अपने दिमाग का बहुत ज्यादा उपयोग करते हैं, तो उन्हें सिरदर्द होने लगता है, इसलिए वे एक सामान्य व्यक्ति से तीन या चार घंटे कम कार्य कर पाते हैं, या एक सामान्य व्यक्ति की तुलना में आधा कार्य कर पाते हैं, तो ऐसे लोगों का तब तक उपयोग किया जा सकता है जब तक कि वे दूसरी कसौटियों पर खरे उतरते हैं। जब तक वे खुद यह बात ना उठाएँ और कहें, “मेरा स्वास्थ्य इतना खराब है कि मैं इस कष्ट को बर्दाश्त नहीं कर सकता। मैं ठीक होने के लिए घर जाना चाहता हूँ। जब मैं ठीक हो जाऊँगा, तो मैं लौट आऊँगा और अपना कर्तव्य करूँगा,” तब बिना देर किए उनकी बात मान लो और उनके सोचने के तरीके पर उन्हें सलाह देने का प्रयास मत करो; अगर तुम ऐसा करोगे, तो भी इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। एक कहावत है, “अनिच्छा से की गई चीज से संतोषजनक परिणाम नहीं मिलेगा”; हर किसी की आस्था, आकांक्षाएँ और अनुसरण अलग-अलग होते हैं। हो सकता है कि कुछ लोग कहें : “क्या यह सिर्फ इसलिए नहीं है कि वे कभी-कभी थोड़ा अस्वस्थ और ऊर्जा का अभाव महसूस करते हैं? अगर लोग गलत चीजें खाते हैं, तो वे अस्वस्थ महसूस कर सकते हैं, लेकिन कुछ दिनों बाद वे ठीक हो जाते हैं; क्या उन्हें घर जाकर ठीक होने की जरूरत है? क्या रात को अच्छी नींद लेने के बाद उनका सिरदर्द और चक्कर आना दूर नहीं हो जाएगा? क्या तब वे सामान्य रूप से कार्य नहीं कर सकते हैं? क्या यह इतनी बड़ी बात है?” हो सकता है कि यह तुम्हारे लिए कोई बड़ी बात नहीं हो, लेकिन कुछ लोग अपने देह को जिस हद तक संजोते हैं, उस लिहाज से वे दूसरों से अलग होते हैं, और कुछ लोगों की सचमुच स्वास्थ्य-संबंधी परेशानियाँ होती हैं। ऐसे मामलों में, अगर वे आराम करने और स्वस्थ होने के लिए घर लौटने का अनुरोध करते हैं, तो कलीसिया को फौरन सहमत हो जाना चाहिए, उनसे कोई अपेक्षाएँ नहीं रखनी चाहिए, उनके लिए चीजें मुश्किल नहीं बनानी चाहिए, और खास तौर से उनके सोचने के तरीके पर उन्हें सलाह देने का प्रयास नहीं करना चाहिए। कुछ झूठे अगुआ ऐसे लोगों पर यह कहकर लगातार कार्य करते रहते हैं : “देखो परमेश्वर का कार्य अब किस हद तक पहुँच गया है। आपदाएँ लगातार बड़ी होती जा रही हैं, चार रक्त चाँद दिखाई देने लगे हैं, और अब महामारी इतनी दूर-दूर तक फैल चुकी है कि अविश्वासियों के पास जिंदा बचने का कोई रास्ता नहीं है! तुम परमेश्वर के घर में हो, अपने कर्तव्य कर रहे हो और परमेश्वर के अनुग्रह का आनंद ले रहे हो—तुम खतरे में नहीं पड़ोगे और तुम सत्य और जीवन भी प्राप्त कर सकते हो—यह कितना बड़ा आशीष है! तुम्हारी यह छोटी सी परेशानी कुछ भी नहीं है। तुम्हें इस पर काबू पाना होगा और परमेश्वर से प्रार्थना करनी होगी। परमेश्वर यकीनन तुम्हें ठीक कर देगा। बस परमेश्वर के वचनों को पढ़ो, कुछ और भजन सीख लो, और अगर तुम अपना ध्यान अपनी बीमारी से हटा लोगे, तो वह स्वाभाविक रूप से ठीक हो जाएगी। क्या परमेश्वर के वचन यह नहीं कहते हैं, ‘बीमारी में रहने का मतलब बीमार होना है’? अभी तुम बीमारी में रह रहे हो। अगर तुम बीमार होने के बारे में सोचते रहोगे, तो यह बीमारी गंभीर हो जाएगी। अगर तुम इसके बारे में नहीं सोचोगे, तो तुम्हारी बीमारी गायब हो जाएगी, है ना? इस तरह से, तुम्हारी आस्था बढ़ जाएगी और तुम आराम करने के लिए घर नहीं जाना चाहोगे। आराम करने के लिए तुम्हारे घर जाने को देह की सुख-सुविधाओं की लालसा करना कहते हैं।” उन्हें उनके सोचने के तरीके के बारे में सलाह देने का प्रयास मत करो, ऐसा करना बेवकूफी है। वे एक मामूली सी अस्थायी तकलीफ में भी दृढ़ नहीं रह पाते हैं और बस आराम करने के लिए घर जाना चाहते हैं, और एक छोटी सी मुश्किल से भी उबर नहीं पाते हैं, जिससे यह साबित होता है कि वे अपना कर्तव्य सच्चाई से नहीं कर रहे हैं। दरअसल, इस किस्म के लोगों का लंबे समय तक अपना कर्तव्य करने का कोई इरादा नहीं होता है, वे इसे सच्चाई से बिल्कुल नहीं करते हैं, वे कीमत चुकाने के इच्छुक नहीं होते हैं, और अब अंत में उन्हें पूरी तरह से भागने का एक अवसर और बहाना मिल गया है। अपने दिल में, वे इस बात पर खुश हो रहे हैं कि वे बहुत ही होशियार हैं और यह बीमारी बिल्कुल सही समय पर आई है। इसलिए तुम चाहे कुछ भी करो, बस उनसे रुकने का आग्रह मत करना। वे ऐसे हर व्यक्ति से नफरत करेंगे जो उनसे रुकने का आग्रह करने का प्रयास करेगा, और वे ऐसे हर किसी को कोसेंगे जो उन्हें उनके सोचने के तरीके के बारे में सलाह देने का प्रयास करेगा। क्या तुम इस बात को नहीं समझते हो? यकीनन, कुछ लोग वास्तव में बीमार होते हैं, और वे लंबे समय से ऐसे होते हैं, और वे डरते हैं कि अगर वे अब और यहाँ बने रहे, तो उनका जीवन खतरे में पड़ जाएगा। वे परमेश्वर के घर में कोई मुसीबत नहीं लाना चाहते हैं, या दूसरे लोगों के कर्तव्य-करने को प्रभावित नहीं करना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि जैसे ही उनका स्वास्थ्य खराब हो जाएगा, उन्हें अपने देखभाल के लिए भाई-बहनों पर भरोसा करना पड़ेगा, और उन्हें परमेश्वर के घर से देखभाल करवाने में बुरा लगता है, इसलिए वे अक्लमंदी से छुट्टी माँगने की पहल करते हैं। इस स्थिति से कैसे निपटना चाहिए? बिल्कुल वैसे ही, आगे कोई झमेला किए बिना उन्हें घर जाने और आराम करने देना चाहिए। परमेश्वर का घर मुसीबत से नहीं डरता है, वह बस लोगों पर उनकी इच्छा के खिलाफ चीजें थोपना नहीं चाहता है। इसके अलावा, सभी लोगों की कुछ व्यक्तिगत और वास्तविक मुश्किलें होती हैं। देह में रहने वाले सभी लोग बीमार पड़ते हैं, और देह की बीमारियाँ एक ऐसी समस्या हैं जो वास्तविकता में मौजूद है—हम सच्चाइयों का आदर करते हैं। कुछ लोग गंभीर रूप से बीमार होने के कारण सच में अपने कर्तव्यों को करने में असमर्थ होते हैं, और अगर वे चाहते हैं कि परमेश्वर का घर उन्हें सुविधाएँ प्रदान करे, या वे चाहते हैं कि भाई-बहन उन्हें दवाइयाँ प्रदान करें या कुछ उपचार-संबंधी सुझाव दें, तो परमेश्वर का घर खुशी-खुशी ये चीजें प्रदान करेगा। अगर वे परमेश्वर के घर को असुविधा नहीं पहुँचाना चाहते हैं और उनके पास जाकर अपनी बीमारी का उपचार करवाने के लिए पैसे, साधन और बाकी जरूरी चीजें हैं, तो यह भी ठीक है। संक्षेप में, अगर कारण यह है कि उनका स्वास्थ्य उन्हें परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्य करना जारी रखने या परमेश्वर के घर द्वारा विकसित किए जाने की अनुमति नहीं देता है, तो वे उचित रूप से अनुरोध कर सकते हैं, और परमेश्वर का घर फौरन इससे सहमत होगा। किसी को भी उन्हें उनके सोचने के तरीके के बारे में सलाह नहीं देनी चाहिए, या उन पर अपेक्षाएँ नहीं थोपनी चाहिए, क्योंकि यह अनुचित और तर्कहीन होगा। ये वही व्यवस्थाएँ हैं जो इस किस्म के लोगों के लिए बनाई गई हैं।
कुछ विशेष प्रकार के लोगों से कैसे पेश आएँ
I. अपने उचित कार्य पर ध्यान न देने वाले लोगों से कैसे पेश आएँ
कुछ लोगों में कामचलाऊ मानवता होती है, उनमें शक्तियाँ होती हैं और तेज दिमाग होता है, वे सामान्य रूप से बोलते हैं, वे आम तौर पर बहुत आशावादी होते हैं, और वे सक्रियता से खुद आगे बढ़कर अपना कर्तव्य करते हैं, लेकिन उनमें एक खोट होता है, जो यह है कि वे बहुत ही भावुक होते हैं। कलीसिया में परमेश्वर का अनुसरण और अपना कर्तव्य करने के दौरान, उन्हें लगातार अपने परिवार और रिश्तेदारों की याद सताती रहती है, या वे लगातार अपने छोड़े हुए मूल शहर में बढ़िया खाना खाने के बारे में सोचते रहते हैं, और इसे नहीं खा पाने पर उन्हें दुःख होता है, जो फिर उनके कर्तव्य के प्रदर्शन को प्रभावित करता है। एक और तरह का व्यक्ति होता है, जो एक जगह पर अकेले रहना पसंद करता है, जहाँ उसके पास अपनी निजी जगह हो। जब वे भाई-बहनों के साथ रहता है, तो उसे लगता है कि कार्य की रफ्तार बहुत ही तेज है और कि उसके पास कोई निजी रहने की जगह नहीं है। वह लगातार तनाव महसूस करता है, और भाई-बहनों के साथ रहते हुए हमेशा खुद को सीमित और असहज महसूस करता है। वह हमेशा चाहता है कि उसकी जो मर्जी हो वही करे और खुद को तुष्ट करने के लिए आजाद रहे। वह बाकी सभी के साथ मिलकर अपना कर्तव्य नहीं करना चाहता है, और वह लगातार घर लौटने के बारे में सोचता रहता है। उसे हमेशा परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य करना बुरा लगता है। वैसे तो भाई-बहनों के साथ घुलना-मिलना आसान है और परमेश्वर के घर में कोई भी उसे डराता-धमकाता नहीं है, फिर भी वह कार्य और विश्राम के कार्यक्रम पर बने रहने के लिए कुछ हद तक संघर्ष करता है—सुबह सभी के उठ जाने के बाद भी वह देर तक सोना चाहता है, लेकिन ऐसा करने में उसे शर्मिंदगी महसूस होती है, और रात को जब बाकी सभी पहले से ही विश्राम कर रहे होते हैं, तो वह सोने नहीं जाना चाहता है और हमेशा कुछ ऐसा करना चाहता है जिसमें उसकी दिलचस्पी हो। कभी-कभी वह वाकई कोई खास चीज खाना चाहता है, लेकिन वह चीज कैंटीन में उपलब्ध नहीं होती है और वह उसका अनुरोध करने में शर्मिंदगी महसूस करता है। कभी-कभी वह टहलने जाना चाहता है, लेकिन चूँकि कोई और व्यक्ति ऐसी इच्छा व्यक्त नहीं करता है, इसलिए वह खुद को तुष्ट करने की जुर्रत नहीं करता है। वह हमेशा सावधान और सतर्क बना रहता है और उसका मजाक उड़ाए जाने, उसे नीचा दिखाए जाने या बचकाना कहे जाने से डरता है। अगर वह अपना कर्तव्य ठीक से नहीं करता है, तो कभी-कभी उसे काट-छाँट कर दिया जाता है। उसे लगता है कि वह हर रोज किसी अनहोनी के डर में जी रहा है, मानो वह कोई जोखिम भरा कार्य कर रहा हो और वह बहुत ही दुःखी रहता है। वह सोचता है, “मुझे याद है, जब मैं घर पर था, तो मैं परिवार में सबसे छोटा था, आजाद और असंयमित था, ठीक एक नन्हे देवदूत की तरह। मैं कितना खुश था! अब मैं परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य कर रहा हूँ, मेरे पिछले व्यक्तित्व के चिन्ह कैसे गायब हो गए हैं? अब मैं जो चाहे वह नहीं कर सकता, जैसा मैं पहले किया करता था,” और इसलिए वह इस किस्म का जीवन नहीं जीना चाहता है। लेकिन वह अपने अगुआ से इस बारे में बात करने की जुर्रत नहीं करता है, और वह लगातार इन विचारों को अपने आसपास के लोगों को सुनाता रहता है, उसे हमेशा अपने घर की याद सताती है, और रात को वह बिस्तर में चुपके से रोता रहता है। इस किस्म के लोगों के साथ क्या करना चाहिए? जो कोई भी इस मामले के बारे में जानता है, उसे बिना देरी किए इसकी रिपोर्ट करनी चाहिए, अगुआ को तुरंत सुनिश्चित करना चाहिए कि यह रिपोर्ट सच्ची है या नहीं, और अगर यह सच्ची है, तो उस व्यक्ति को घर लौटने की अनुमति दी जा सकती है। वह परमेश्वर के घर की खाने-पीने की चीजों और आतिथ्य का आनंद ले रहा है, लेकिन फिर भी अपना कर्तव्य करने का अनिच्छुक है और वह हमेशा चिड़चिड़ा रहता है और असंतुष्ट और दुःखी महसूस करता है, इसलिए उसे जल्द से जल्द विदा कर दो। ऐसा नहीं है कि इस किस्म के लोगों में ये मनोदशाएँ थोड़ी देर के लिए ही होती हैं, और फिर वे चीजों पर विचार करके उन्हें सुलझा लेते हैं—उनकी स्थिति ऐसी नहीं है। कुछ लोगों की व्यक्तिपरक इच्छा दृढ़ता से अपना कर्तव्य करने की होती है, और वैसे तो उन्हें घर की याद सताती है, लेकिन उन्हें पता होता है कि यह किस किस्म की समस्या है, और वे सत्य की तलाश करने और इसे सुलझाने में समर्थ हो जाते हैं। इन लोगों के मामले में, उन्हें जाने देने या उनके बारे में फिक्र करने की कोई जरूरत नहीं है। हम उस स्थिति की बात कर रहे हैं जिसमें लोग 30 वर्ष की आयु में भी बच्चों की तरह कार्य करते हैं, कभी बड़े नहीं होते हैं, और हमेशा अस्थिर बने रहते हैं। वे सिर्फ वही करते हैं जो उन्हें करने के लिए कहा जाता है, और जब उनके पास करने के लिए कुछ नहीं होता है, तो वे मौज-मस्ती करने और बेमतलब के विषयों के बारे में गपशप करने के बारे में सोचते हैं, और अपने उचित कार्य पर कभी ध्यान नहीं देना चाहते हैं। अविश्वासी लोग 30 वर्ष की आयु में स्थिर होने की बात करते हैं। स्थिर होने का अर्थ है अपने उचित कार्य पर ध्यान देना, नौकरी करने और अपना भरण-पोषण करने में समर्थ होना, अपने उचित सरोकार पर ध्यान देना जानना, मौज-मस्ती करने में कम समय बिताना और अपने उचित कार्य में देरी ना करना। “बच्चों की तरह व्यवहार करना” का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कोई भी उचित कार्य स्वीकार करने में असमर्थ होना, हमेशा अपने मन को भटकने देने की इच्छा रखना, और लगातार टहलने, इधर-उधर घूमने, आवारागर्दी करने, नाश्ता खाने, नाटकें देखने, बेमतलब की चीजों के बारे में गपशप करने, खेल खेलने और इंटरनेट पर अजीबोगरीब घटनाएँ और असामान्य कहानियाँ खोजने की इच्छा रखना। इसका अर्थ है कभी भी सभाओं में भाग लेने का इच्छुक नहीं होना, जब भी सभाएँ आयोजित हों, तो हमेशा उनमें सोने की इच्छा रखना, सुस्ती छाते ही तुरंत सो जाने की इच्छा रखना और भूख लगते ही तुरंत खाने की इच्छा रखना, स्वेच्छाचारी होना और अपने उचित कार्य पर ध्यान नहीं देना। इस किस्म के लोगों के बारे में यह नहीं कहा जा सकता है कि उनमें बुरी मानवता है, बस यही है कि वे कभी बड़े नहीं होते हैं और हमेशा अपरिपक्व ही रहते हैं। वे 30 वर्ष की आयु में भी ऐसे ही हैं और 40 वर्ष की आयु में भी ऐसे ही रहेंगे; वे बदलने में असमर्थ हैं। अगर वे चले जाने का अनुरोध करते हैं और अब अपना कर्तव्य नहीं करना चाहते हैं, तो इसे कैसे संभालना चाहिए? परमेश्वर का घर उनसे रुकने का आग्रह नहीं करता है। तुम्हें उन्हें फौरन उत्तर दे देना चाहिए—उन्हें फौरन चले जाने दो और अविश्वासियों के बीच लौटने दो, और उन्हें बता दो कि वे बिल्कुल भी यह नहीं कहें कि वे परमेश्वर में विश्वास रखते हैं। क्या वे लोग जो अपने उचित कार्य पर ध्यान नहीं देते हैं, सत्य को प्राप्त कर सकते हैं? अगर तुम उनसे उम्मीद करते हो कि वे अपनी मानवता के लिहाज से परिपक्व हो जाएँगे और परमेश्वर के घर में कर्तव्य करने के जरिये अपने उचित कार्य पर ध्यान देना शुरू कर देंगे, कार्य के किसी महत्वपूर्ण मद को संभालने की जिम्मेदारी उठा पाएँगे, और फिर सत्य को समझेंगे और उसका अभ्यास करेंगे और मानव के समान जीवन जिएँगे, तो तुम्हें इस पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं करना चाहिए। ऐसे लोग तुम्हें किसी भी समूह में मिल जाएँगे। अविश्वासियों के पास इस तरह के लोगों के लिए एक उपनाम है : “प्रौढ़ बच्चे।” ऐसे लोग कभी भी अपने उचित कार्य पर ध्यान दिए बिना ही 60 वर्ष की आयु तक पहुँच सकते हैं। वे अनुचित रूप से बात करते हैं और चीजों को संभालते हैं, वे हमेशा हँसते रहते हैं, मस्ती-मजाक करते रहते हैं और इधर-उधर उछल-कूद करते रहते हैं, वे किसी भी कार्य को गंभीरता से नहीं करते हैं, और वे मौज-मस्ती करने पर खास तौर से आमादा रहते हैं। परमेश्वर का घर ऐसे लोगों का उपयोग नहीं कर सकता है।
क्या तुम लोगों को लगता है कि ये “प्रौढ़ बच्चे” बुरे हैं? क्या वे कुकर्मी हैं? (नहीं।) इनमें से कुछ लोग कुकर्मी नहीं हैं, वे काफी सीधे-सादे हैं और बुरे नहीं हैं। इनमें से कुछ लोग काफी रहमदिल होते हैं और दूसरों की मदद करने के इच्छुक होते हैं। लेकिन इन सभी में एक खोट है—वे स्वेच्छाचारी हैं, मौज-मस्ती पसंद करते हैं और अपने उचित कार्य पर ध्यान नहीं देते हैं। मिसाल के तौर पर, मान लो कि एक महिला अपनी शादी के बाद घर का कोई कार्य करना नहीं सीखती है। वह सिर्फ तभी खाना पकाती है जब वह खुश होती है, लेकिन तब नहीं पकाती है जब वह दुःखी होती है—उसे हर समय मनाना पड़ता है। अगर कोई उससे कोई चीज करवाना चाहे, तो उसे उससे बातचीत करनी पड़ती है, और उस पर नजर रखनी पड़ती है। वह हमेशा बढ़िया पोशाक पहनना पसंद करती है ताकि खरीदारी करने बाहर जा सके, कपड़े और सौंदर्य-प्रसाधन खरीद सके और सौंदर्य उपचार करवा सके। घर लौटकर वह एक भी कार्य नहीं करती है और बस ताश और माहजोंग खेलना चाहती है। अगर तुम उससे पूछोगे कि एक पाउंड गोभी की कीमत कितनी है, तो उसे नहीं पता होगा; अगर तुम उससे पूछोगे कि वह कल क्या खाने वाली है, तो उसे यह भी नहीं पता होगा, और अगर तुम उससे कुछ पकाने के लिए कहोगे, तो वह उसका बुरा हाल कर देगी। तो वह किस चीज में सबसे कुशल है? वह इन चीजों में सबसे कुशल है, जैसे कि कौन सा भोजनालय सबसे बढ़िया खाना परोसता है, कौन सी दुकान में सबसे आधुनिक शैली के कपड़े मिलते हैं और कौन सी दुकान किफायती और कारगर सौंदर्य-प्रसाधन बेचती है, लेकिन वह दूसरी चीजें नहीं समझती या सीखती है, जैसे कि अपना दिन कैसे गुजारना है, या वे कौशल जिनकी सामान्य मानव जीवन में जरूरत होती है, वगैरह। क्या वह ये चीजें इसलिए नहीं सीखती है क्योंकि उसकी काबिलियत अपर्याप्त है? नहीं, ऐसी बात नहीं है। वह जिन चीजों में कुशल है, उन्हें देखकर यह कहा जा सकता है कि उसमें काबिलियत तो है, लेकिन वह अपने उचित कार्य पर ध्यान नहीं देती है। जब तक उसके पास खर्च करने के लिए पैसे होंगे, वह भोजनालय में खाने-पीने, और सौंदर्य-प्रसाधन और कपड़े खरीदने जाती रहेगी। अगर घर में बर्तनों की कमी है और उसे कुछ बर्तन खरीदने के लिए कहा जाता है, तो वह कहेगी, “बाहर स्वादिष्ट भोजन बिक तो रहा है, मुझे इतना सब खरीदने की क्या जरूरत है?” अगर घर में वैक्यूम क्लीनर खराब हो गया है, और उसे एक नया खरीदने हेतु पैसे बचाने के लिए एक पोशाक कम खरीदने के लिए कहा जाता है, तो वह कहेगी, “भविष्य में जब मैं पैसे कमाऊँगी, तो मैं घर की सफाई के लिए बस एक नौकरानी रख लूँगी, इसलिए वैक्यूम क्लीनर खरीदने की कोई जरूरत नहीं है।” आम तौर पर, अगर वह कोई खेल या माहजोंग नहीं खेल रही होती है, तो वह आधुनिक कपड़ों की खरीदारी कर रही होती है, और वह कभी घर की सफाई नहीं करती है। यह अपने उचित कार्य पर ध्यान नहीं देना है, है ना? फिर कुछ ऐसे पुरुष भी होते हैं, जो जैसे ही कुछ पैसे कमा लेते हैं, उससे मोटरगाड़ी खरीद लेते हैं या उसे जुए में उड़ा देते हैं। अगर घर में कोई चीज टूट जाती है, तो वे उसकी मरम्मत नहीं करते हैं। वे अपने दिन उचित तरीके से नहीं गुजारते हैं। उनके घर में रेफ्रिजरेटर काम नहीं करता है, और ना ही वॉशिंग मशीन काम करती है, नालियाँ बंद रहती हैं, और बारिश होने पर छत से पानी टपकता है, और वे बहुत लंबे समय तक इन चीजों की मरम्मत नहीं करते हैं। तुम ऐसे पुरुषों के बारे में क्या सोचते हो? वे अपने उचित कार्य पर ध्यान नहीं देते हैं। चाहे वे पुरुष हों या महिला, परमेश्वर का घर ऐसे लोगों का उपयोग नहीं कर सकता है जो बहुत ज्यादा स्वेच्छाचारी हैं और अपने उचित कार्य पर ध्यान नहीं देते हैं।
कुछ लोग माता-पिता के रूप में अपने उचित कार्य पर ध्यान नहीं देते हैं, और वे अपने बच्चों की उचित देखभाल करने से चूक जाते हैं। परिणामस्वरूप, उनके बच्चे उबलते पानी से जल जाते हैं या उन्हें चोटें और खरोंचें लग जाती है; कुछ बच्चों की नाक टूट जाती है, अन्य बच्चों के नितंब चूल्हे पर जल जाते हैं, और कुछ अन्य बच्चों के गले उबलता पानी पीने के बाद जल जाते हैं। इस किस्म के लोग अपने किसी भी कार्य के प्रति चौकस नहीं होते हैं, और वे कोई भी चीज उचित रूप से करने में असमर्थ होते हैं। वे अपने उचित कार्य पर ध्यान नहीं देते हैं, वे खिलवाड़ करते रहते हैं, वे स्वेच्छाचारी और मौज-मस्ती पसंद होते हैं, और वे उन जिम्मेदारियों को उठाने में असमर्थ होते हैं जो एक व्यक्ति को उठानी चाहिए। माता-पिता के रूप में, वे अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करने में असमर्थ होते हैं और वे लापरवाह होते हैं। तो, क्या ऐसे लोग वे जिम्मेदारियाँ उठा सकते हैं जो सामान्य लोगों को परमेश्वर के घर में कोई कर्तव्य करते समय उठानी चाहिए? नहीं, बिल्कुल नहीं। जो लोग अपने उचित कार्य पर ध्यान नहीं देते हैं, उनका उपयोग नहीं किया जा सकता है। अगर वे कहते हैं कि अब वे अपना कर्तव्य नहीं करना चाहते हैं और घर लौटने की माँग करते हैं, तो बस उन्हें फौरन जाने दो। किसी को भी रुकने के लिए उन पर दबाव नहीं डालना चाहिए या उनसे आग्रह नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह समस्या उनकी प्रकृति से जुड़ी हुई है, यह कोई कभी-कभार होने वाली, क्षणिक अभिव्यक्ति नहीं है। जब ये लोग अपना कर्तव्य करने के लिए परमेश्वर के घर में आए थे, तो वे गलतफहमियों से भरे हुए थे; उन्होंने सोचा था कि कर्तव्य करना और परमेश्वर का अनुसरण करना अदन की वाटिका में आने जैसा होगा, कनान की अच्छी भूमि में होने जैसा होगा। उन्होंने जिस जीवन की कल्पना की थी वह अद्भुत था, उसमें दिन भर खाने-पीने के लिए सुंदर-सुंदर चीजें थीं, आजादी थी और कोई अंकुश नहीं था, और करने के लिए बिल्कुल कोई कार्य नहीं था। वे फुर्सतों से भरा मस्त जीवन जीना चाहते थे, लेकिन यह उनकी कल्पना से बिल्कुल अलग निकला। इन लोगों ने बहुत अनुभव किया है, और उन्हें लगता है कि यहाँ सबकुछ उबाऊ और बेरंग है, और वे यहाँ से चले जाना चाहते हैं, इसलिए उन्हें बिना देरी किए चले जाने दो, परमेश्वर का घर इन लोगों से रुकने का आग्रह नहीं करता है। परमेश्वर का घर लोगों पर दबाव नहीं डालता है, और तुम लोगों को भी ऐसा नहीं करना चाहिए; यह सत्य का अभ्यास करना और सिद्धांतों के अनुसार कार्य करना है। तुम्हें ऐसी चीजें करनी चाहिए जो सत्य सिद्धांतों के अनुसार हों, तुम्हें ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो परमेश्वर के इरादों को समझता हो, बुद्धिमान व्यक्ति हो—भ्रमित व्यक्ति या विवेकहीन चापलूस मत बनो। जिस किस्म के लोग अपने उचित कार्य पर ध्यान नहीं देते हैं उन्हें इस तरीके से संभालो—क्या इसे प्रेमहीनता या लोगों को पश्चात्ताप करने का मौका नहीं देना माना जा सकता है? (नहीं, ऐसा नहीं माना जा सकता है।) परमेश्वर सभी के प्रति निष्पक्ष है, और परमेश्वर के घर को तुम्हें प्रोत्साहित करने, विकसित करने और उपयोग करने का अधिकार है। अगर तुम अपना कर्तव्य करने के अनिच्छुक हो, और तुम कलीसिया से चले जाना चाहते हो, तो यह पूरी तरह से तुम्हारी मर्जी है, इसलिए कलीसिया को तुम्हारे अनुरोध पर सहमत होना चाहिए, वह तुम्हें बिल्कुल भी मजबूर नहीं करेगा। यह नैतिकता के अनुरूप है, मानवता के अनुरूप है, और यकीनन, यह खास तौर से सत्य सिद्धांतों के अनुरूप है। यह एक बहुत ही उचित कार्यवाही योजना है! अगर कोई व्यक्ति कुछ समय के लिए अपना कर्तव्य करता है, और उसे यह थकाऊ और मुश्किल लगता है, और अब उसे यह कर्तव्य करके खुशी नहीं होती है, और परिणामस्वरूप वह अपना कर्तव्य छोड़ देना चाहता है और परमेश्वर पर विश्वास रखना बंद करना चाहता है, तो मैं आज तुम्हें इसका एक निश्चित उत्तर दूँगा, जो यह है कि परमेश्वर का घर इससे सहमत होगा, और वह कभी भी तुम्हें रुकने के लिए मजबूर नहीं करेगा, या तुम्हारे लिए चीजों को मुश्किल नहीं बनाएगा। इसमें कोई कशमकश नहीं है, और तुम्हें ऐसा महसूस करने की जरूरत नहीं है कि तुम उलझन में पड़ गए हो, या तुमने अपना मान-सम्मान खो दिया है। परमेश्वर के घर के लिए यह कोई मुद्दा है ही नहीं, और ना ही परमेश्वर का घर तुमसे कोई माँग करता है। इतना ही नहीं, अगर तुम चले जाना चाहते हो, तो परमेश्वर का घर तुम्हारी निंदा नहीं करेगा या तुम्हारे रास्ते में नहीं आएगा, क्योंकि तुमने यही मार्ग चुना है, और परमेश्वर का घर सिर्फ तुम्हारी माँगे पूरी कर सकता है। क्या यह उचित कार्यवाही योजना है? (हाँ।)
मैंने अभी-अभी ऐसी कई स्थितियाँ सूचीबद्ध की हैं जिनमें लोग अपने उचित कार्य पर ध्यान नहीं देते हैं। परमेश्वर का घर इन लोगों पर दबाव नहीं डालेगा; अगर वे अपना कर्तव्य करने के अनिच्छुक हैं या उन्हें कुछ व्यक्तिगत परेशानियाँ हैं और अब वे किसी कर्तव्य को नहीं करने का अनुरोध करते हैं, तो परमेश्वर का घर सहमत होगा। वह अब उनका उपयोग नहीं करेगा, और उन्हें कोई कर्तव्य नहीं करने देगा। ऐसे लोगों को इसी तरह से संभाला जाता है, और यह पूरी तरह से उचित कार्यवाही योजना है।
II. यहूदाओं से कैसे पेश आएँ
कुछ लोग बेहद डरपोक होते हैं, और जब भी वे सुनते हैं कि किसी भाई या बहन को गिरफ्तार कर लिया गया है, तो वे खुद भी गिरफ्तार हो जाने से बेहद डरने लगते हैं। यह स्पष्ट है कि अगर वे गिरफ्तार हो भी जाते हैं, तो उनके कलीसिया से गद्दारी करने का खतरा रहता है। ऐसे लोगों को कैसे संभालना चाहिए? क्या ये लोग कुछ महत्वपूर्ण कर्तव्यों को करने के योग्य हैं? (नहीं, वे नहीं हैं।) कुछ लोग यह कह सकते हैं कि “कौन यह आश्वासन दे सकता है कि वे खुद यहूदा नहीं बनेंगे?” कोई भी यह आश्वासन नहीं दे सकता है कि अगर उन्हें यातना दी जाती है, तो वे खुद कभी भी यहूदा नहीं बनेंगे। तो, परमेश्वर का घर ऐसे डरपोक लोगों का उपयोग क्यों नहीं करता है जो यहूदा बन सकते हैं? क्योंकि जो लोग जाहिर तौर पर डरपोक हैं, वे कभी भी गिरफ्तार हो सकते हैं और कलीसिया से गद्दारी कर सकते हैं; अगर ऐसे लोगों का उपयोग कोई महत्वपूर्ण कर्तव्य करने के लिए किया जाता है, तो इस बात की बेहद संभावना रहती है कि चीजें गलत हो जाएँगी। यह एक सिद्धांत है जिसे मुख्य भूमि चीन के जोखिम भरे परिवेश में लोगों का चयन और उपयोग करते समय समझना चाहिए। यहाँ एक खास परिस्थिति है, जो यह है कि कुछ लोगों को कठोर, लंबे समय तक यातना दी गई जिसके कारण उनका जीवन खतरे में पड़ गया, और अंत में, वे वास्तव में इसे और सहन नहीं कर सके, इसलिए वे कमजोरी के कारण यहूदा बन गए और उन्होंने कुछ मामूली चीजों को उजागर करके कलीसिया से गद्दारी की। ऐसे लोगों को कोई नहीं पहचान सकता है और इन लोगों का अब भी उपयोग किया जा सकता है। लेकिन फिर ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने अपनी गिरफ्तारी से पहले ही अपने लिए एक बचाव का रास्ता तैयार कर लिया है। उन्होंने इस बारे में बहुत देर तक और गहराई से सोचा है कि गिरफ्तारी के बाद बिना कोई यातना सहे रिहाई कैसे सुनिश्चित की जाए—सबसे पहले, यातना से बचना, दूसरा, सजा सुनाई जाने से बचना और तीसरा, जेल जाने से बचना। वे इसी तरीके से सोचते हैं। उनमें यह संकल्प नहीं है कि वे यहूदा बनने के बजाय कष्ट सहना या कैद किया जाना पसंद करेंगे। वे बिना यातना दिए भी कलीसिया के साथ गद्दारी कर सकते हैं, तो क्या यह कहा जा सकता है कि वे गिरफ्तार होने और कैद किए जाने से पहले से ही यहूदा हैं? (हाँ।) यही असली यहूदा हैं। क्या कलीसिया इस किस्म के लोगों का उपयोग करने की जुर्रत करती है? (नहीं, वह नहीं करती है।) अगर उन्हें पहचाना जा सकता है, तो उनका बिल्कुल भी विकास और उपयोग नहीं करना चाहिए। आम तौर पर ये लोग खुद को कैसे अभिव्यक्त करते हैं? वे बेहद डरपोक होते हैं। जैसे ही कुछ गलत हो जाता है, वे पहला मौका मिलते ही अपनी जिम्मेदारियों से मुँह मोड़ लेते हैं, और जब भी उन्हें थोड़ा सा भी जोखिम होता है, तो वे अपना कर्तव्य छोड़ देते हैं और वहाँ से हवा हो जाते हैं। जब भी उनके सुनने में आता है कि परिवेश खतरनाक हो गया है, तो वे छिपने के लिए एक सुरक्षित जगह ढूँढ लेते हैं; कोई उन्हें नहीं ढूँढ पाता है, और वे किसी से संपर्क नहीं रखते हैं। दुबककर रहने का कार्य वे बहुत ही बढ़िया तरीके से करते हैं। उन्हें कलीसिया के कार्य में आ रही मुश्किलों की बिल्कुल परवाह नहीं होती है, और वे किसी भी किस्म के संकटमय कार्य की उपेक्षा करने के काबिल होते हैं; वे अपनी सुरक्षा को बाकी सभी चीजों से ज्यादा महत्वपूर्ण मानते हैं। और यही नहीं, खतरे का सामना होने पर, वे दूसरों को खुद को मुसीबत में डालने और जोखिम उठाने के लिए कहते हैं, जबकि वे अपनी रक्षा करते हैं। चाहे वे दूसरों को कितना भी खतरे में क्यों ना डाल दें, उन्हें लगता है कि अपनी सुरक्षा की खातिर ऐसा करना सार्थक और उचित है। साथ ही, खतरे का सामना होने पर, वे प्रार्थना करने के लिए जल्दी से परमेश्वर के सामने नहीं आते हैं, ना ही वे जल्दी से उन भाई-बहनों या कलीसिया की संपत्ति के स्थानांतरण की व्यवस्था करते हैं जिन्हें खतरा हो सकता है। बल्कि, वे पहले इस बारे में गहराई से सोचते हैं कि कैसे भाग निकलना है, कैसे छिपना है, और कैसे खुद को खतरे से बाहर निकालना है। यहाँ तक कि वे अपने लिए बाहर निकलने की योजना भी तैयार रखते हैं—अगर वे गिरफ्तार हो गए, तो सबसे पहले किससे गद्दारी करनी है, यातना से कैसे बचना है, जेल की सजा से कैसे बचना है, और मुसीबत से कैसे बचना है। जब भी वे किसी किस्म की मुसीबत का सामना करते हैं, तो वे बुरी तरह डर जाते हैं और उनमें रत्ती भर भी आस्था नहीं होती है। क्या इस किस्म के लोग खतरनाक नहीं होते हैं? अगर उन्हें जोखिम भरा कार्य करने के लिए कहा जाता है, तो वे इसके बारे में लगातार बड़बड़ाते रहते हैं, वे डर जाते हैं और भाग जाने के बारे में लगातार सोचते रहते हैं, और इसे स्वीकार करने के अनिच्छुक होते हैं। इस किस्म के लोग गिरफ्तार होने से पहले से ही यहूदा होने के लक्षण दिखाने लगते हैं। उनके गिरफ्तार होते ही यह सौ प्रतिशत निश्चित होता है कि वे कलीसिया से गद्दारी करेंगे। परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य करने के दौरान, वे उस हर चीज में वास्तव में सक्रिय होते हैं जो उन्हें जोखिम में डाले बिना सुर्खियों में ले आती है; लेकिन जब जोखिम लेने की बात आती है, तो वे पीछे हट जाते हैं, और अगर तुम उनसे कोई जोखिम भरी चीज करने के लिए कहोगे, तो वे उसे नहीं करेंगे, वे उस जिम्मेदारी को बिल्कुल नहीं उठाएँगे। जैसे ही वे कहीं खतरे के बारे में सुनते हैं, मिसाल के तौर पर, कि बड़ा लाल अजगर गिरफ्तारियाँ कर रहा है, या कि कुछ विश्वासियों को पकड़ लिया गया है, तो वे सभाओं में शामिल होना बंद कर देते हैं, वे भाई-बहनों से संपर्क रखना बंद कर देते हैं, और कोई भी उन्हें ढूँढ नहीं पाता है। अफवाहें शांत होने और सबकुछ ठीक हो जाने के बाद वे फिर से बाहर निकल आते हैं। क्या इस तरह के लोग भरोसेमंद हैं? क्या वे परमेश्वर के घर में कोई कर्तव्य कर सकते हैं? (नहीं।) वे क्यों नहीं कर सकते हैं? उनमें यहूदा नहीं बनने का संकल्प या आकांक्षा तक नहीं होती है; वे बस डरपोक, कमजोर और नाकारा होते हैं। इस किस्म के लोगों में एक स्पष्ट विशेषता होती है, जो यह है कि चाहे उनमें कितनी भी शक्तियाँ और योग्यताएँ क्यों ना हों, अगर परमेश्वर के घर ने उनका उपयोग किया, तो वे परमेश्वर के घर के हितों का बचाव करने के लिए कभी भी पूरे दिल से समर्पित नहीं होंगे। क्या वे परमेश्वर के घर के हितों का बचाव इसलिए नहीं करते हैं क्योंकि वे ऐसा करने में असमर्थ हैं? नहीं, ऐसी बात नहीं है; अगर उनमें यह योग्यता हो, तो भी वे परमेश्वर के घर के हितों का बचाव नहीं करेंगे। वे ठेठ यहूदा हैं। जब भी उन्हें अपना कर्तव्य करने के दौरान अविश्वासियों से निपटने की जरूरत होती है, तो वे उनके साथ मैत्रीपूर्ण रिश्ते बनाए रखते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि अविश्वासियों के मन में उनके लिए उच्च सम्मान, आदर और सराहना बनी रहे। तो फिर, वे किस कीमत पर ये सबकुछ हासिल करते हैं? यह कीमत उनके व्यक्तिगत गौरव और हितों के बदले परमेश्वर के घर के हितों से गद्दारी करना है। इस किस्म का व्यक्ति गिरफ्तार होने से भी पहले से खास तौर से डरपोक होता है, और गिरफ्तार होने के बाद उसका गद्दार बनना सौ प्रतिशत निश्चित है। परमेश्वर का घर इस किस्म के लोगों—इन यहूदाओं—का बिल्कुल भी उपयोग नहीं कर सकता है और उसे उन्हें जल्द से जल्द हटा देना चाहिए।
जहाँ तक यहूदा लोगों की बात है, वैसे तो बाहर से वे बुरे व्यक्ति नहीं लगते हैं, लेकिन वास्तव में वे बेहद निम्न निष्ठा और शैतानी चरित्र वाले लोग होते हैं। वे चाहे कितना भी धर्मोपदेश सुन लें या परमेश्वर के वचन पढ़ लें, वे बस सत्य समझ ही नहीं पाते हैं, और ना ही उन्हें लगता है कि परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचाना सबसे शर्मनाक, दुष्ट और खराब चीज है। जब उन चीजों की बात आती है जो दूसरों का ध्यान उनकी तरफ आकर्षित करती हैं, तो वे अपने प्रयासों को बेहतर करने के इच्छुक रहते हैं, लेकिन जब जोखिम भरी या चुनौतीपूर्ण चीजों की बात आती है, तो वे दूसरों को उनका जिम्मा लेने और उनसे निपटने देते हैं। वे किस किस्म के लोग हैं? क्या वे बहुत ही निम्न निष्ठा वाले लोग नहीं हैं? कुछ लोग परमेश्वर के घर के लिए चीजें खरीदते हैं, और ऐसा करते समय, उन्हें परमेश्वर के घर के हितों का ध्यान रखना चाहिए, और निष्पक्ष तथा उचित होना चाहिए। लेकिन, यहूदा किस्म के लोग ना सिर्फ परमेश्वर के घर के हितों का बचाव करने में विफल रहते हैं, बल्कि इसके विपरीत, वे परमेश्वर के घर की कीमत पर अविश्वासियों की मदद करते हैं, और हर अवसर पर अविश्वासियों की माँगें पूरी करते हैं, और वे परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचाना पसंद करेंगे अगर इससे उन्हें अविश्वासियों को खुश करने में मदद मिलती हो। इसे जिस थाली में खाते हो, उसीमें छेद करना कहते हैं, और इसमें सद्गुण का अभाव है! क्या यह घिनौनी मानवता का होना नहीं है? यह यहूदा द्वारा प्रभु और उसके दोस्तों से विश्वासघात करने से कोई बेहतर कार्य नहीं है। परमेश्वर का घर उन्हें करने के लिए जो भी कार्य सौंपता है, उसमें वे परमेश्वर के घर के हितों के बारे में नहीं सोचते हैं। जब उनसे कुछ खरीदने के लिए कहा जाता है, तो वे कभी भी कई दुकानों में जाकर पूछताछ नहीं करते हैं और कई आपूर्तिकर्ताओं द्वारा ऑफर की गई कीमतों, सामान की गुणवत्ता और बिक्री के बाद की सेवा की तुलना नहीं करते हैं, और फिर उपलब्ध विकल्पों के फायदों और नुकसानों को सावधानी से नहीं तोलते हैं और उचित जाँचें नहीं करते हैं, ताकि वे धोखा खाने से बच सकें, परमेश्वर के घर के कुछ पैसों की बचत करवा सकें, और परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचने से बचा सकें—वे ऐसा कभी नहीं करते हैं। अगर किसी भाई या बहन का यह सुझाव होता है कि जाँच-परखकर खरीददारी करना सबसे अच्छा रहेगा, तो वे कहते हैं, “जाँच-परखकर खरीददारी करने की कोई जरूरत नहीं है; इस आपूर्तिकर्ता का कहना है कि उसका सामान सबसे बढ़िया है।” उस भाई या बहन के यह पूछने पर कि “तो क्या तुम उससे कीमत पर मोल-भाव कर सकते हो?”, वे जवाब देते हैं, “कीमत पर मोल-भाव क्यों करना? उसने मुझे पहले ही बता दिया है कि कीमत क्या है, और अगर मैंने उनके साथ सौदेबाजी करना शुरू कर दिया, तो यह यकीनन शर्मनाक होगा, और ऐसा लगेगा जैसे हमारे पास बिल्कुल पैसे नहीं हैं। परमेश्वर का घर तो दौलतमंद है, है ना?” किसी चीज की कीमत चाहे कितनी भी हो या उसकी गुणवत्ता चाहे कैसी भी हो, जब तक वे उसे उपयुक्त समझते हैं, तब तक वे उसे फौरन किसी से खरीदवा लेंगे, और जो कोई भी यह खरीददारी करने में देरी करेगा, वे उसकी आलोचना करेंगे, उसे फटकारेंगे और यहाँ तक कि उसकी निंदा भी करेंगे। कोई भी उनके मुँह पर “नहीं” कहने की जुर्रत नहीं करता है, और कोई भी अपनी राय पेश करने की जुर्रत नहीं करता है। चाहे वे कोई बड़ा सौदा कर रहे हों या परमेश्वर के घर के लिए कोई छोटा-मोटा कार्य कर रहे हों, उनके सिद्धांत क्या हैं? “परमेश्वर के घर को बस पैसे देने की जरूरत है, और परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचता है या नहीं, इससे मेरा कोई लेना-देना नहीं है। मैं इसी तरीके से कार्य पूरे करवाता हूँ; मुझे अविश्वासियों से अच्छे संबंध स्थापित करने हैं। अविश्वासियों की कही हर बात सही है, और मैं इसका समर्थन करूँगा। मैं परमेश्वर के घर की जरूरतों के अनुसार मामलों को नहीं संभालूँगा। अगर तुम मेरा उपयोग करना चाहते हो, तो करो; अगर तुम मेरा उपयोग नहीं करना चाहते हो, तो मत करो—यह तुम्हारी मर्जी है। मैं बस ऐसा ही हूँ!” क्या यह शैतानी प्रकृति नहीं है? ऐसे लोग अविश्वासी और छद्म विश्वासी होते हैं। क्या परमेश्वर के घर के मामलों को संभालने के लिए उनका उपयोग किया जा सकता है? इस किस्म के व्यक्ति के पास कुछ शिक्षा, शक्तियाँ और कुछ बाहरी क्षमताएँ होती हैं, और वह बात करने में अच्छा होता है, और कुछ काम-धंधे संभाल सकता है। लेकिन वह परमेश्वर के घर के लिए चाहे कोई भी मामला संभाले, वह अनिवार्य रूप से इसे लापरवाही और मनमर्जी से करता है जिससे परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचता है। वह लगातार परमेश्वर के घर को धोखा देता है और मामलों की सच्ची स्थिति को छिपाता है, और एक बार जब वह चीजों को गड़बड़ कर देता है, तो परमेश्वर के घर को उसकी गड़बड़ी ठीक करने के लिए किसी की व्यवस्था करनी पड़ती है। यह परमेश्वर के घर के हितों का सौदा करने के लिए बाहरी लोगों के साथ मिलीभगत करने का एक खास उदाहरण है। यह यहूदा द्वारा प्रभु और उसके मित्रों से विश्वासघात करने से कैसे अलग है? जब इस किस्म के लोगों का उपयोग कोई कर्तव्य करने के लिए किया जाता है तो वे ना सिर्फ परमेश्वर के घर को सेवाएँ प्रदान करने में असमर्थ रहते हैं, बल्कि वे अपव्ययी और मनहूस भी साबित होते हैं। वे सेवाकर्मी होने के योग्य भी नहीं हैं; शुद्ध और सरल शब्दों में कहूँ तो वे अधम हैं! ऐसे लोग पूरी तरह से शैतान के चाकर हैं और बड़े लाल अजगर की संतानें हैं, और जैसे ही वे बेनकाब हो जाते हैं, उन्हें फौरन बहिष्कृत और निष्कासित कर देना चाहिए। परमेश्वर के विश्वासी और परमेश्वर के घर के सदस्य के रूप में, वे परमेश्वर के घर के हितों का बचाव करने की अपनी जिम्मेदारी भी पूरी नहीं कर सकते हैं, तो क्या उनके पास अब भी जमीर और विवेक है? वे पहरेदार कुत्ते से भी बदतर हैं!
यहूदा किस्म के लोगों के माथे पर “यहूदा” शब्द पलस्तर किया हुआ नहीं होता है, लेकिन उनके आचरण और क्रियाकलापों की प्रकृति बिल्कुल यहूदा के समान ही होती है, और तुम्हें इस किस्म के लोगों का कभी भी उपयोग नहीं करना चाहिए। “कभी उपयोग नहीं करने” से मेरा क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि उन पर महत्वपूर्ण मामलों के संबंध में कभी भी भरोसा नहीं करना चाहिए। अगर यह कोई मामूली मामला है जो परमेश्वर के घर के हितों को बिल्कुल प्रभावित नहीं करता है, तो उनका अस्थायी रूप से उपयोग करना ठीक है, लेकिन इस प्रकार का व्यक्ति, लोगों का उपयोग करने के लिए परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के यकीनन अनुरूप नहीं है, क्योंकि वह पैदाइशी यहूदा है, और वह सहज रूप से बुरा है। संक्षेप में, ये खतरनाक चरित्र वाले लोग हैं और इनका बिल्कुल भी उपयोग नहीं करना चाहिए। इस किस्म के लोगों का उपयोग तुम जितनी ज्यादा देर तक करोगे, उतना ही ज्यादा तुम असहज महसूस करोगे और भविष्य में इसके उतने ही ज्यादा दुष्परिणाम होंगे। इसलिए, अगर तुम्हें पहले से ही स्पष्ट रूप से यह दिखाई देता है कि वे यहूदा किस्म के लोग हैं, तो तुम्हें बिल्कुल उनका उपयोग नहीं करना चाहिए—यह सब सच है। क्या उनके साथ इस तरीके से व्यवहार करना उचित है? हो सकता है कि कुछ लोग कहें : “उनके साथ इस तरीके से व्यवहार करना प्रेमपूर्ण नहीं है। उन्होंने किसी से भी विश्वासघात नहीं किया है; वे यहूदा कैसे हो सकते हैं?” क्या तुम्हें उनके किसी से विश्वासघात करने की प्रतीक्षा करने की जरूरत है? यहूदा ने खुद को कैसे अभिव्यक्त किया था? क्या इस बारे में कोई संकेत मिले थे कि वह प्रभु से विश्वासघात करने वाला है? (हाँ, उसने प्रभु यीशु के पैसों के थैले में से पैसे चुराए थे।) जो लोग परमेश्वर के घर के हितों का लगातार सौदा करते हैं, उनकी प्रकृति यहूदा के समान ही होती है, जिसने पैसों के थैले में से पैसे चुराए थे। जैसे ही इस तरह के लोगों को गिरफ्तार कर लिया जाता है, वे विश्वासघात करते हैं, और शैतान के सामने बिना कुछ भी छिपाए सारी जानकारी उगल देते हैं। इस किस्म के व्यक्ति में यहूदा का सार होता है। उसका सार पहले से ही स्पष्ट रूप से प्रकट और उजागर हो चुका है; अगर तुम फिर भी उसका उपयोग करते हो, तो क्या तुम मुसीबत को दावत नहीं दे रहे हो? क्या यह जान-बूझकर परमेश्वर के घर को नुकसान पहुँचाना नहीं है? कुछ लोग खुलेआम कहते हैं, “अगर कोई मेरी काट-छाँट करता है, या अगर कोई कुछ ऐसा करता है जिससे मेरे हितों को नुकसान पहुँचता है या जो अच्छी चीज मैं यहाँ चला रहा हूँ उसे बर्बाद करता है, तो उसे इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा!” यह खास तौर से ऐसा मामला है कि इस किस्म के व्यक्ति में यहूदा का सार है; यह पूरी तरह से स्पष्ट है। वह खुद दूसरों को बताता है कि वह यहूदा है, इसलिए इस तरह के व्यक्ति का यकीनन उपयोग नहीं किया जा सकता है।
III. कलीसिया के दोस्तों से कैसे पेश आएँ
एक और तरह के लोग होते हैं जिन्हें न तो अच्छा माना जा सकता है और न ही बुरा, और जो नाम मात्र के विश्वासी होते हैं। अगर तुम उनसे कभी किसी मौके पर कुछ करने के लिए कहो, तो वे उसे कर सकते हैं, लेकिन यदि तुम उनके लिए व्यवस्था नहीं करते, तो वे आगे बढ़ कर अपना कर्तव्य नहीं निभाएँगे। जब भी उनके पास समय होता है, वे सभाओं में जाते हैं, लेकिन उनके निजी समय में इस बारे में कुछ पता नहीं चलता कि वे परमेश्वर के वचनों को खाते-पीते, भजन सीखते, या प्रार्थना करते हैं या नहीं। परंतु वे परमेश्वर के घर और कलीसिया के प्रति अपेक्षाकृत मैत्रीपूर्ण होते हैं। अपेक्षाकृत मैत्रीपूर्ण होने का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि अगर भाई-बहन उनसे कुछ करने के लिए कहते हैं, तो वे उसके लिए तैयार हो जाते हैं; विश्वासी साथी होने के कारण वे अपनी क्षमता भर कुछ काम करवाने में मदद भी कर सकते हैं। किंतु, यदि उनसे खुद को किसी बड़े प्रयास में खपाने या किसी तरह की कीमत चुकाने के लिए कहा जाए, तो वे ऐसा बिल्कुल नहीं करेंगे। अगर कोई भाई या बहन किसी परेशानी में है और उसे मदद की जरूरत है, जैसे कि कभी-कभार घर की देखभाल करना, खाना बनाना या कुछ छोटे-मोटे कामों में मदद करना—या वह व्यक्ति कोई विदेशी भाषा जानता हो तो भाई-बहनों को पत्र पढ़ने में मदद कर देना—ऐसे कामों में वे मदद कर सकते हैं और अपेक्षाकृत मित्रवत होते हैं। आम तौर पर वे दूसरों के साथ बहुत अच्छी तरह से घुल-मिल जाते हैं और लोगों के प्रति किसी तरह का दुर्भाव नहीं रखते, लेकिन वे नियमित रूप से सभाओं में भाग नहीं लेते और खुद कोई कर्तव्य लेने के लिए भी नहीं कहते, किसी महत्वपूर्ण या खतरनाक काम की जिम्मेदारी लेने की तो बात ही दूर है। अगर तुम उन्हें कोई खतरनाक काम करने के लिए कहो, तो वे निश्चित रूप से तुमको यह कहते हुए मना कर देंगे, “मैं शांति पाने के लिए परमेश्वर में विश्वास करता हूँ, तो मैं खतरनाक काम कैसे कर सकता हूँ? क्या यह मुसीबत मोल लेने जैसा नहीं होगा? मैं ऐसा बिल्कुल नहीं कर सकता!” लेकिन अगर भाई-बहन या कलीसिया उन्हें कोई छोटा-मोटा काम करने के लिए कहते हैं, तो वे बिल्कुल दोस्तों की तरह नाम भर को मदद कर सकते हैं। ऐसे प्रयास करना और मदद करना कर्तव्य नहीं कहा जा सकता, न ही इसे सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य करना कहा जा सकता है, और इसे सत्य का अभ्यास करना तो नहीं ही कहा जा सकता; यह इतना भर है कि परमेश्वर के विश्वासियों के बारे में उनकी धारणा अनुकूल होती है और वे उनके प्रति काफी मैत्रीभाव रखते हैं और जरूरत पड़ने पर वे मदद करने में सक्षम होते हैं। ऐसे लोगों को क्या नाम दिया जाता है? परमेश्वर का घर उन्हें कलीसिया का मित्र कहता है। कलीसिया के मित्र श्रेणी के लोगों के साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए? अगर उनके पास काबिलियत और कुछ क्षमताएँ है और वे कलीसिया की कुछ बाहरी मामलों को सँभालने में मदद कर सकते हैं, तो वे सेवाकर्ता भी हैं, जो कलीसिया के मित्र भी हैं। ऐसा इसलिए कि इस तरह के लोगों को परमेश्वर में विश्वास रखने वालों के रूप में नहीं गिना जाता, और परमेश्वर का घर उन्हें मान्यता नहीं देता। और यदि उन्हें परमेश्वर के घर द्वारा मान्यता नहीं दी जाती, तो क्या परमेश्वर उन्हें विश्वासियों के रूप में मान्यता दे सकता है? (नहीं।) इसलिए, इस तरह के लोगों को कभी भी पूर्णकालिक कर्तव्य निभाने वाले लोगों की श्रेणी में शामिल होने के लिए न कहो। ऐसे लोग हैं जो कहते हैं : “कुछ लोग जब पहली बार विश्वास करना शुरू करते हैं, तो उनमें बहुत कम आस्था होती है और वे मात्र कलीसिया के मित्र बनना चाहते हैं। वे परमेश्वर में विश्वास करने के बारे में बहुत सी बातें नहीं समझते, तो वे कर्तव्य निभाने के लिए कैसे तैयार हो सकते हैं? वे पूरे दिल से खुद को खपाने के लिए कैसे तैयार हो सकते हैं?” हम उन लोगों की बात नहीं कर रहे हैं जिन्होंने तीन से पाँच महीने तक या एक साल तक परमेश्वर में विश्वास किया है, बल्कि उन लोगों की बात कर रहे हैं जिन्होंने नाम भर के लिए तीन, पाँच या दस साल तक परमेश्वर में विश्वास किया है। ऐसे लोग मौखिक रूप से चाहे जितना स्वीकारें कि परमेश्वर ही एकमात्र सच्चा परमेश्वर है और सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कलीसिया ही सच्चा कलीसिया है, इससे यह साबित नहीं होता कि वे सच्चे विश्वासी हैं। इस तरह के लोगों की विभिन्न अभिव्यक्तियों और उनकी आस्था के माध्यमों के आधार पर हम उन्हें कलीसिया के मित्र कहते हैं। उन्हें भाई-बहनों जैसा न मानो—वे भाई या बहन नहीं हैं। ऐसे लोगों को पूर्णकालिक कर्तव्य वाली कलीसिया में शामिल न होने दो, और उन्हें पूर्णकालिक कर्तव्य निभाने वालों की श्रेणी में शामिल न होने दो; परमेश्वर का घर ऐसे लोगों का उपयोग नहीं करता। कुछ लोग कह सकते हैं : “क्या तुम इस तरह के लोगों के प्रति पूर्वाग्रह रखते हो? हालाँकि वे बाहर से निरुत्साह लग सकते हैं, लेकिन वास्तव में वे अंदर से बहुत उत्साही हैं।” ईमानदार विश्वासियों के लिए पाँच या दस साल तक परमेश्वर में विश्वास करने के बाद भी निरुत्साहित रहना संभव नहीं है; इस तरह के लोगों का व्यवहार पहले से ही पूरी तरह से प्रकट कर देता है कि वे छद्म-विश्वासी हैं, परमेश्वर के वचनों के बाहर वाले, और अविश्वासी लोग हैं। यदि तुम इतने पर भी उन्हें भाई या बहन कहते हो, और अब भी कहते हो कि उनके साथ अनुचित व्यवहार किया जा रहा है, तो यह तुम्हारी धारणा और तुम्हारी भावनाएँ बोल रही हैं।
हमें इस किस्म के लोगों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए जो कलीसिया के मित्र हैं? वे गर्मजोशी से भरे हुए होते हैं और कुछ मामलों को संभालने में मदद करने के इच्छुक होते हैं। अगर उनकी जरूरत पड़ जाती है, तो तुम उन्हें कुछ मामले संभालने का अवसर दे सकते हो। अगर वे कुछ कर सकते हैं, तो उन्हें करने दो। जहाँ तक उन चीजों की बात है जिन्हें वे ठीक से नहीं कर पाते हैं, और यहाँ तक कि गड़बड़ी भी कर सकते हैं, ऐसे कार्यों को यकीनन उन पर मत छोड़ो, ताकि कोई मुसीबत खड़ी ना हो—खुद को उनके अच्छे इरादों से मजबूर महसूस मत करने दो। वे सत्य नहीं समझते हैं, और ना ही वे सिद्धांतों को समझते हैं। अगर ऐसे बाहरी मामले हैं जिन्हें वे संभाल सकते हैं, तो उन्हें संभालने दो। लेकिन उन्हें कभी भी ऐसे बड़े मामले मत संभालने दो जो कलीसिया के कार्य को प्रभावित करते हैं—ऐसी स्थिति में, उनके अच्छे इरादों और उत्साहपूर्ण मदद को ठुकरा देना चाहिए। जब तुम्हारी मुलाकात इस किस्म के व्यक्ति से हो, तो उसके साथ सिर्फ ऊपरी तौर पर व्यवहार रखो, और इसे वहीं छोड़ दो; उसके साथ गहरा रिश्ता मत बनाओ। तुम्हें उसके साथ गहरा रिश्ता क्यों नहीं बनाना चाहिए? क्योंकि वह सिर्फ कलीसिया का मित्र है, और वह भाई या बहन बिल्कुल नहीं है। क्या ऐसे लोग, लोगों का उपयोग करने के लिए परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुरूप हैं? (नहीं, वे नहीं हैं।) इसलिए, अगर इस किस्म का व्यक्ति सभाओं में शामिल नहीं होता है, धर्मोपदेश नहीं सुनता है, या कोई कर्तव्य नहीं करता है, तो उसे आमंत्रित करने की कोई जरूरत नहीं है। अगर वह परमेश्वर के वचनों को खाता-पीता नहीं है या प्रार्थना नहीं करता है, अगर उसके साथ अनहोनी होने पर वह सत्य सिद्धांतों की तलाश नहीं करता है, और अगर वह भाई-बहनों से जुड़ने का इच्छुक नहीं है, तो उसका समर्थन करने या उसकी मदद करने की कोई जरूरत नहीं है। पाँच शब्द—उस पर ध्यान मत दो। ऐसे लोगों के साथ गहरा रिश्ता मत बनाओ जो कलीसिया के मित्र हैं और छद्म-विश्वासी हैं, और उन पर ध्यान मत दो। उनके लिए फिक्रमंद होने की कोई जरूरत नहीं है, और उनकी खैर-खबर पूछने की कोई जरूरत नहीं है। उनकी खैर-खबर क्यों नहीं पूछनी है? ऐसे लोगों की खैर-खबर पूछने का क्या फायदा है जिनका हमसे कोई लेना-देना नहीं है? यह फालतू है, है ना? क्या तुम लोग इस किस्म के लोगों पर ध्यान देना चाहते हो? शायद तुम लोगों को दूसरों के फटे में अपना पैर डालना अच्छा लगता है और तुम फिक्रमंद होना चाहते हो, और यही सोचते रहते हो, “अभी वे किस हाल में होंगे? क्या वे शादीशुदा हैं या नहीं? क्या वे ठीक हैं? अभी वे क्या कार्य कर रहे हैं?” वे चाहे किसी भी हाल में हों, इसका तुमसे कोई लेना-देना नहीं है। इसके बारे में चिंता करने का क्या फायदा है? उन पर बिल्कुल ध्यान मत दो, और उन पर टिप्पणी भी मत करो। कुछ लोग टिप्पणी करना पसंद करते हैं, जैसे कि : “देखा तुमने? वे परमेश्वर में उचित रूप से विश्वास नहीं रखते हैं, वे हर रोज हिम्मत तोड़ने वाला और थकाऊ जीवन जीते हैं, और वे हर समय बहुत ही थके हुए और कमजोर दिखते हैं,” या “देखा तुमने? वे परमेश्वर में उचित रूप से विश्वास नहीं रखते हैं, इसलिए उनके पास शांति नहीं है, और उनके परिवार में फिर से कुछ बुरा हुआ है।” यह सब बकवास है, और यह फालतू है। वे अपना जीवन कैसे जीते हैं और वे अपने मार्ग पर कैसे चलते हैं, इससे तुम्हारा कोई लेना-देना नहीं है। उनका जिक्र तक मत करो; तुम उस मार्ग पर नहीं हो जिस पर वे हैं। तुम खुद को ईमानदारी से परमेश्वर के लिए खपाते हो और पूरा समय अपना कर्तव्य करते हो, तुम सिर्फ सत्य की प्राप्ति और उद्धार की प्राप्ति के लिए अनुसरण करना चाहते हो, और परमेश्वर चाहे कुछ भी कहे, तुम उसे संतुष्ट करने के लिए अपना भरसक प्रयास करना चाहते हो; उन लोगों के दिल में ये चीजें नहीं हैं। जब तुम बुरे रुझानों को देखते हो, तो तुम्हारा मन नफरत से भर जाता है और तुम घिनौना महसूस करते हो, और तुम्हें लगता है कि इस दुनिया में जीने से कोई खुशी नहीं मिलती है, और सिर्फ परमेश्वर में विश्वास रखकर ही तुम खुशी पा सकते हो; जबकि वे तुम्हारे बिल्कुल विपरीत हैं : इससे यह साबित होता है कि वे उस मार्ग पर नहीं हैं जिस पर तुम हो। इस किस्म के व्यक्ति को संभालने के लिए परमेश्वर के घर का सिद्धांत यह है कि अगर वह मदद करने का इच्छुक है, तो परमेश्वर का घर उसे एक अवसर दे सकता है जब तक कि कोई संभावित दुष्परिणाम ना हो। अगर परमेश्वर के घर को उसकी बिल्कुल जरूरत नहीं है और वह फिर भी मदद करने का इच्छुक है, तो विनम्रता से मना कर देना सबसे अच्छा है—अपने लिए मुसीबत खड़ी मत करो। विश्वासी हर रोज सत्य पर संगति करते हैं और काट-छाँट किया जाना स्वीकार करते हैं, लेकिन फिर भी वे कार्य को लापरवाह तरीके से कर सकते हैं, तो क्या कलीसिया के मित्र बदले में कोई मुआवजा लिए बिना मामलों को उचित रूप से संभाल सकते हैं? (नहीं, वे ऐसा नहीं कर सकते हैं।) मुझे बताओ, क्या यह लोगों के बारे में बुरा सोचना है? क्या यह लोगों को हद से ज्यादा नकारात्मक रोशनी में देखना है? (नहीं, ऐसा नहीं है।) यह सच्चाई के आधार पर बोलना है, लोगों के सार के आधार पर बोलना है। अज्ञानी मत बनो, मूर्ख मत बनो, और कोई बेवकूफी वाली चीज मत करो। विश्वासियों को अभी भी काट-छाँट किए जाने, न्याय और ताड़नाओं, सख्ती से अनुशासित किए जाने, ताड़ना दिए जाने और उजागर किए जाने से गुजरना होगा और उसके बाद ही उनके कर्तव्य का निर्वहन धीरे-धीरे परमेश्वर के इरादे के अनुरूप हो पाएगा। कलीसिया का मित्र या अविश्वासी व्यक्ति किसी भी सत्य को बिल्कुल स्वीकार नहीं करता है, और वह सिर्फ और सिर्फ अपने हितों के बारे में सोचता है, इसलिए उसके द्वारा परमेश्वर के घर के लिए या भाई-बहनों के लिए मामले संभाले जाने से क्या भला हो सकता है? यह पूरी तरह से असंभव है। इस किस्म के लोगों पर ध्यान नहीं देना बिल्कुल उचित है, है ना? (हाँ।) “उन पर ध्यान नहीं देने” का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि परमेश्वर का घर उन्हें विश्वासी नहीं मानता है। वे जैसे चाहें वैसे परमेश्वर में विश्वास रख सकते हैं, लेकिन परमेश्वर के घर के कार्य और मामलों का उनसे बिल्कुल कोई लेना-देना नहीं है। वे मदद करने के इच्छुक हैं, लेकिन हमें चीजों की जाँच-परख करनी चाहिए और यह अनुमान लगाना चाहिए कि क्या वे ऐसा करने के लिए उपयुक्त हैं, और अगर वे इसके लिए उपयुक्त नहीं हैं, तो हम उन्हें यह अवसर नहीं दे सकते हैं। मुझे बताओ, क्या इस तरह से कार्य करना सिद्धांतों के अनुसार है? क्या हमें ऐसे लोगों के साथ इस तरह से व्यवहार करने का अधिकार है? हाँ, बिल्कुल है!
IV. बरखास्त किए जा चुके लोगों से कैसे पेश आएँ
एक और तरह के लोग होते हैं, मतलब कि वे जिन्हें बरखास्त कर दिया गया है। हमें उनसे कैसे पेश आना चाहिए? इन लोगों को चाहे इसलिए बरखास्त किया गया हो कि वे वास्तविक कार्य करने में अक्षम हैं और उन्हें नकली अगुआओं के रूप में वर्गीकृत किया गया है, या इसलिए कि वे मसीह-विरोधियों के मार्ग का अनुसरण करते हैं और उन्हें मसीह-विरोधियों के रूप में वर्गीकृत किया गया है, इन्हें उचित रूप से अन्य कार्य सौंपना और इनके लिए उचित व्यवस्थाएँ करना आवश्यक है। यदि वे बहुत से बुरे काम करने वाले मसीह-विरोधी हैं, तो निश्चित रूप से उन्हें निष्कासित कर दिया जाना चाहिए; यदि उन्होंने बहुत से बुरे काम नहीं किए हैं, लेकिन उनमें मसीह-विरोधी का सार है और वे मसीह-विरोधी के रूप में चिह्नित होते हैं, तो जब तक वे कोई विघ्न-बाधा पैदा किए बिना छोटे-मोटे तरीके से सेवा करते रह सकते हैं, तब तक उन्हें निकालने की आवश्यकता नहीं है—उन्हें सेवा प्रदान करते रहने दो और उन्हें पश्चात्ताप करने का मौका दो। जिन नकली अगुआओं को बरखास्त किया गया है, उन्हें उनकी क्षमताओं और वे जो कर्तव्य करने के लिए उपयुक्त हैं, उस के आधार पर उनके भिन्न काम करने की व्यवस्था करो, लेकिन उन्हें अब कलीसिया के अगुआ के रूप में सेवा करने की अनुमति नहीं होगी; ऐसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं के मामले में जिन्हें इसलिए बरखास्त किया गया है कि उनमें काबिलियत बहुत कम है और वे कोई भी काम करने में अक्षम हैं, उनकी क्षमताओं और वे जो कर्तव्य करने के लिए उपयुक्त हैं, उस के आधार पर उनके भिन्न काम करने की व्यवस्था करो, लेकिन उन्हें अब अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में पदोन्नत नहीं किया जा सकता। ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता? उन्हें पहले ही आजमाया जा चुका है। उन्हें बेनकाब किया गया था, और यह पहले से ही स्पष्ट है कि ऐसे लोगों की काबिलियत और कार्य क्षमता ऐसी है जो उन्हें अगुआ बनने के लिए अयोग्य ठहराती है। यदि वे अगुआ बनने के योग्य नहीं हैं, तो क्या वे अन्य कर्तव्य करने में असमर्थ हैं? जरूरी नहीं। उनकी खराब काबिलियत उन्हें अगुआ बनने के अयोग्य बनाती है, लेकिन वे दूसरे कर्तव्य कर सकते हैं। ऐसे लोगों को बरखास्त किए जाने के बाद वे जो भी करने लायक हैं, कर सकते हैं। उन्हें कर्तव्य करने के अधिकार से वंचित नहीं किया जाना चाहिए; भविष्य में उनका आध्यात्मिक कद बढ़ने पर उन्हें फिर से इस्तेमाल किया जा सकता है। कुछ लोगों को इसलिए बरखास्त किया जाता है कि वे युवा हैं और उन्हें जीवन का कोई अनुभव नहीं है, और उनके पास कार्य अनुभव की भी कमी है, इसलिए वे कार्य करने में असमर्थ होते हैं और अंततः बरखास्त कर दिए जाते हैं। इस तरह के लोगों को सेवामुक्त करने में कुछ छूट होती है। अगर उनकी मानवता मानक के अनुसार है और उनमें पर्याप्त काबिलियत है, तो पदावनत करने के बाद उनका उपयोग किया जा सकता है, या उन्हें उनके लायक किसी दूसरे काम पर लगाया जा सकता है। उनकी सत्य की समझ स्पष्ट हो जाने पर और कलीसिया के काम से थोड़ा-बहुत परिचित हो लेने और अनुभव कर लेने पर ऐसे लोगों को उनकी क्षमता के आधार पर फिर से पदोन्नत और विकसित किया जा सकता है। यदि उनकी मानवता मानक के अनुसार है, लेकिन काबिलियत बहुत खराब है, तो उन्हें विकसित करने का कोई फायदा नहीं है, और उन्हें बिल्कुल विकसित नहीं किया जा सकता और काम पर नहीं रखा जा सकता।
बरखास्त किए गए लोगों में दो तरह के लोग होते हैं जिन्हें बिल्कुल भी पदोन्नत या फिर से तैयार नहीं किया जा सकता। एक वे जो मसीह-विरोधी हैं, और दूसरे वे जिनकी काबिलियत बहुत कम है। कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जिन्हें मसीह-विरोधी नहीं माना जाता, लेकिन वे केवल खराब मानवता वाले, स्वार्थी और कपटी होते हैं, और उनमें से कुछ लोग आलसी होते हैं, देह सुख का लालच करते हैं और कठिनाई सहन करने में असमर्थ होते हैं। भले ही ऐसे लोग अत्यधिक अच्छी काबिलियत वाले हों, उन्हें दोबारा से पदोन्नत नहीं किया जा सकता। अगर उनमें थोड़ी काबिलियत है, तो उनके लिए उपयुक्त व्यवस्था किए जाने तक उन्हें वह करने दो जो करने में वे सक्षम हों; संक्षेप में, उन्हें अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में पदोन्नत न करो। काबिलियत होने और कार्य क्षमता होने से बढ़ कर अगुआओं और कार्यकर्ताओं में सत्य को समझने, कलीसिया के प्रति जिम्मेदारी का बोझ उठाने, कड़ी मेहनत करने और पीड़ा सहने में सक्षम होना चाहिए, और उन्हें लगन से मेहनत करने वाला होना चाहिए और आलसी नहीं होना चाहिए। इसके अलावा, उन्हें अपेक्षाकृत ईमानदार और निश्छल होना चाहिए। तुम कपटी लोगों का चयन बिलकुल भी नहीं कर सकते। जो लोग बहुत कुटिल और कपटी होते हैं, वे हमेशा भाई-बहनों, अपने उच्च अधिकारियों और परमेश्वर के घर के विरुद्ध षड्यंत्र रचते रहते हैं। उनका समय केवल कुटिल विचारों में ही बीतता है। ऐसे किसी व्यक्ति से निपटते समय तुम्हें हमेशा अनुमान लगाना चाहिए कि वे वास्तव में क्या सोच रहे हैं, तुम्हें यह पूछते रहना चाहिए कि वे हाल ही में वास्तव में क्या करते रहे हैं, और तुम्हें हमेशा उन पर नजर रखनी चाहिए। उन्हें काम पर लगाना बहुत थकाऊ और बहुत चिंताजनक काम होता है। यदि इस तरह के व्यक्ति को कर्तव्य करने के लिए पदोन्नत किया जाता है, तो भले ही वह थोड़ा धर्म-सिद्धांत समझता हो, वह उसका अभ्यास नहीं करेगा, और वह अपने हर काम के बदले सभी तरह के लाभों की अपेक्षा करेगा। ऐसे लोगों का उपयोग करना बहुत चिंताजनक और समस्यामूलक होता है, इसलिए ऐसे लोगों को पदोन्नत नहीं किया जा सकता। इसलिए जब मसीह-विरोधियों की बात आती है, तो जो बहुत खराब काबिलियत वाले हैं, जिनकी मानवता खराब है, जो आलसी हैं, देह सुख की लालसा रखते हैं और कठिनाइयाँ नहीं झेल सकते, और जो अत्यधिक कुटिल और कपटी हैं—उन लोगों का जब खुलासा हो चुका होता है और उन्हें काम पर रखने के बाद बरखास्त कर दिया जाता है, तो उन्हें दूसरी बार पदोन्नत न करो; जब एक बार उनका पूरी तरह से पता चल जाए तो उनका दोबारा गलत उपयोग न करो। कुछ लोग कह सकते हैं, “इस व्यक्ति को इससे पहले मसीह-विरोधी के रूप में परिभाषित किया गया था। हमने देखा है कि वह कुछ समय से अच्छा कार्य कर रहा है, वह भाई-बहनों से सामान्य रूप से बातचीत कर पाता है और अब दूसरों को बाधित नहीं करता है। क्या उसे पदोन्नत किया जा सकता है?” इतनी जल्दबाजी मत करो—जैसे ही उसे पदोन्नत किया जाएगा और वह रुतबा प्राप्त कर लेगा, उसकी मसीह-विरोधी प्रकृति उजागर हो जाएगी। दूसरे लोग कह सकते हैं : “पहले इस व्यक्ति की काबिलियत बहुत ही खराब थी; जब उसे दो लोगों के कार्य की निगरानी करने के लिए कहा गया था, तो उसे नहीं पता था कि कार्यों को कैसे आवंटित करना है, और अगर दो चीजें एक साथ घटती थीं, तो उसे नहीं पता होता था कि उचित व्यवस्था कैसे करनी है। अब जब उसकी उम्र थोड़ी और बढ़ गई है, तो वह इन चीजों में बेहतर हो गया होगा, है ना?” क्या इस दावे में कोई औचित्य है? (नहीं, इसमें नहीं है।) जब दो चीजें एक ही समय में घटित होती हैं, तो वह व्यक्ति भ्रमित हो जाता है और उसे नहीं पता होता है कि उन्हें कैसे संभालना है। वह किसी व्यक्ति या चीज की असलियत समझ नहीं पाता है। उसकी काबिलियत इतनी खराब है कि उसमें कोई कार्य क्षमता या समझने की क्षमता नहीं है। ऐसे व्यक्ति को फिर से अगुआ के रूप में पदोन्नत नहीं किया जा सकता है। यह उम्र का मामला नहीं है। खराब काबिलियत वाले लोगों की काबिलियत अस्सी वर्ष की उम्र में भी खराब ही रहेगी। यह लोगों की कल्पना जैसा नहीं है, कि जैसे-जैसे किसी की उम्र बढ़ती है और वह ज्यादा अनुभव हासिल करता है, वह सब कुछ समझ सकता है—यह ऐसा नहीं है। उसके पास बस जीवन का कुछ अनुभव होगा, लेकिन जीवन का अनुभव काबिलियत के तुल्य नहीं है। कोई चाहे कितनी भी चीजों का अनुभव कर ले या कितने भी सबक सीख ले, इसका यह अर्थ नहीं है कि उसकी काबिलियत में सुधार होगा।
अगर किसी की मानवता बहुत ही स्वार्थी, बहुत ही धोखेबाज और बहुत ही दुष्ट है, और वह चालाकियों से भरा हुआ है, और वह सिर्फ अपने बारे में सोचता है, तो क्या इस किस्म का व्यक्ति बदल सकता है? उसे इन्हीं कारणों से बर्खास्त किया गया था; अब जब दस वर्ष गुजर चुके हैं और उसने कई धर्मोपदेश सुन लिए हैं—क्या अब उसकी मानवता स्वार्थी, कुटिल और धोखेबाज नहीं है? मैं तुम्हें बताता हूँ : इस किस्म का व्यक्ति नहीं बदलेगा, वह अगले 20 वर्षों बाद भी ऐसा ही रहेगा। इसलिए, अगर तुम्हारी उससे 20 वर्षों बाद फिर से मुलाकात हुई और तुमने उससे पूछा कि क्या वह अब भी उतना ही स्वार्थी और धोखेबाज है, तो वह खुद भी इस बात को स्वीकार करेगा। खराब मानवता वाले लोग क्यों नहीं बदलेंगे? क्या वे बदल सकते हैं? मान लो कि वे बदल सकते हैं, तो ऐसा हो पाने के लिए आधार और शर्तें क्या होनी चाहिए? उन्हें सत्य स्वीकार करने में समर्थ होना चाहिए। खराब मानवता वाले लोग सत्य स्वीकार नहीं करते हैं, और वे अंदर से, सकारात्मक चीजों से नफरत करते हैं, इन्हें नापसंद करते हैं, इनका मजाक उड़ाते हैं, और इनसे शत्रुता रखते हैं—वे बदल ही नहीं सकते हैं। इसलिए चाहे कितने भी वर्ष क्यों ना गुजर चुके हों, उन्हें पदोन्नत मत करो, क्योंकि वे बदलने में असमर्थ हैं। हो सकता है कि 20 वर्षों के समय में, वे और ज्यादा शातिर बनना सीख जाएँगे, और सुखद लगने वाली और दूसरों को धोखा देने वाली चीजें कहने में और बेहतर हो जाएँगे। लेकिन अगर तुम इन लोगों से मेलजोल रखते हो और उनके कार्यों की जाँच-परख करते हो, तो तुम्हें एक सच्चाई का पता चलेगा, जो यह है कि वे बिल्कुल भी नहीं बदले हैं। तुम्हारा मानना है कि इतने वर्ष गुजर जाने और उन्होंने जो इतने सारे धर्मोपदेश सुने हैं और इतने लंबे समय से परमेश्वर के घर में कर्तव्य किए हैं उसके बाद, उन्हें बदल जाना चाहिए था—तुम गलत हो! वे नहीं बदलेंगे। क्यों? उन्होंने इतने सारे धर्मोपदेश सुने हैं और परमेश्वर के इतने सारे वचन पढ़े हैं, लेकिन वे एक वाक्य भी स्वीकार नहीं करते हैं या उसका अभ्यास नहीं करते हैं, इसलिए वे रत्ती भर भी नहीं बदले हैं, उनके लिए बदलना असंभव है। एक बार जब ऐसे लोग बेनकाब हो जाते हैं और उन्हें बर्खास्त कर दिया जाता है, तो फिर से उनका उपयोग नहीं किया जा सकता है, और अगर तुम उनका उपयोग करते हो, तो तुम परमेश्वर के घर और भाई-बहनों को नुकसान पहुँचा रहे हो। अगर तुम्हें यकीन नहीं है, तो बस यह देखो कि वे कैसे कार्य करते हैं, और देखो कि जब उनके अपने हितों का टकराव परमेश्वर के घर के हितों से होता है, तो वे किसके हितों का बचाव करते हैं; वे अपने हितों का त्याग बिल्कुल नहीं करेंगे और परमेश्वर के घर के हितों का बचाव करने के लिए भरसक प्रयास नहीं करेंगे। इस लिहाज से देखते हुए, वे भरोसेमंद नहीं हैं, और वे परमेश्वर के घर द्वारा पदोन्नत और उपयोग किए जाने के योग्य नहीं हैं। यही कारण है कि ऐसे लोगों की किस्मत में उपयोग नहीं किया जाना लिखा है। क्या जो लोग सत्य स्वीकार नहीं करते हैं, वे फिर भी बदल सकते हैं? यह संभव नहीं है, और यह बेवकूफों का सपना है!
जहाँ तक उन लोगों की बात है जो आलसी हैं, दैहिक सुख-सुविधाओं की लालसा करते हैं, और जरा-सा कष्ट सहन करने में भी असमर्थ हैं, वे तो बदलने में और भी कम समर्थ हैं। अगुआ के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, वे कोई कष्ट नहीं सहते हैं, वे उन कष्टों को भी नहीं सहते हैं जो आम भाई-बहन तक सहने में समर्थ हैं। अपना कर्तव्य करते समय वे सिर्फ खानापूर्ति करते हैं—आधे-अधूरे मन से सभाएँ आयोजित करते हैं और कुछ धर्म-सिद्धांतों का प्रचार करते हैं, फिर अपना खयाल ठीक से रखने के लिए सोने चले जाते हैं। अगर रात को सोने में उन्हें थोड़ी-सी भी देर हो जाती है, तो सुबह जब भाई-बहन उठ रहे होते हैं, वे तब भी गहरी नींद में पड़े होते हैं। वे जरा-सा भी थकने या जरा-सा भी व्यस्त रहने या जरा-सा भी कष्ट सहने के इच्छुक नहीं हैं। वे कोई कीमत नहीं चुकाते हैं और कोई वास्तविक कार्य नहीं करते हैं। वे जहाँ भी जाते हैं, वहाँ उन्हें जैसे ही अच्छी खाने-पीने की चीजें दिखाई देती हैं, वे इतने खुश हो जाते हैं कि वे बाकी सब कुछ भूल जाते हैं, और वे कहीं भी नहीं जाते हैं, बस वहीं रह जाते हैं और खाते-पीते रहते हैं और मौज-मस्ती करते रहते हैं, और कोई भी कार्य नहीं करते हैं। ऊपरवाले द्वारा काट-छाँट किए जाने पर वे नहीं सुनते हैं, ना ही वे भाई-बहनों की चेतावनी और खुलासे को स्वीकार करते हैं। वे बिना कोई कीमत चुकाए, और बिना अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी किए या बिना अपना कर्तव्य निभाए, यथासंभव सबसे आरामदायक तरीके से जीवन जीना चुनते हैं, और इस तरह वे निकम्मे बन जाते हैं। क्या ऐसे लोग बदलने के काबिल हैं? इस किस्म के लोग बहुत ही आलसी होते हैं, वे दैहिक सुख-सुविधाओं की लालसा करते हैं; वे बदल नहीं सकते हैं। वे अभी भी ऐसे ही हैं और भविष्य में भी ऐसे ही रहेंगे। कुछ लोग कह सकते हैं : “वह व्यक्ति बदल गया है, वह पिछले कुछ समय से अपने कार्य में बहुत मेहनत कर रहा है।” इतनी जल्दबाजी मत करो। अगर तुम उसे अगुआ के रूप में पदोन्नत कर दोगे, तो वह अपने पुराने तरीकों पर लौट आएगा—वह ऐसा ही है। वह बस एक जुआरी की तरह है, जो पैसे खत्म हो जाने पर भी जुआ खेलता रहेगा, भले ही उसे पैसे उधार लेने पड़ें, अपना घर बेचना पड़े, या यहाँ तक कि अपनी पत्नी और बच्चों को भी बेचना पड़े। अगर वह थोड़े समय से जुआ नहीं खेल रहा है, तो इसका कारण यह हो सकता है कि जुए का वह अड्डा बंद हो गया है और जुआ खेलने के लिए कोई और जगह नहीं है, या क्योंकि उसके सभी जुआरी दोस्त पकड़े गए हैं और अब उसके साथ जुआ खेलने के लिए कोई नहीं है, या क्योंकि उसने अपनी बिकने लायक सारी चीजें बेच दी हैं और उसके पास जुआ खेलने के लिए बिल्कुल पैसे नहीं बचे हैं। एक बार जब उसके हाथ में पैसे आ जाएँगे, तो वह फिर से जुआ खेलना शुरू कर देगा और छोड़ नहीं पाएगा—वह बस ऐसा ही है। इसी तरह, जो लोग आलसी हैं और दैहिक सुख-सुविधाओं की लालसा करते हैं, वे भी बदलने में असमर्थ हैं। एक बार जब वे कुछ रुतबा हासिल कर लेते हैं, तो वे फौरन अपने मूल रूप में लौट आते हैं, और उनके असली रंग उजागर हो जाते हैं। जब उनके पास कोई रुतबा नहीं होता है, तो कोई भी उनके बारे में ऊँची राय नहीं रखता है और कोई भी उनकी सेवा नहीं करता है, और अगर वे कुछ नहीं करते हैं, तो उन्हें बहिष्कृत कर देना चाहिए, क्योंकि कलीसिया निठल्ले लोगों का समर्थन नहीं करती है, इसलिए उनके पास बेमन से कुछ चीजें करने के अलावा और कोई चारा नहीं है। वे दूसरों से अलग तरीके से चीजें करते हैं। दूसरे लोग सक्रियता से खुद आगे बढ़कर चीजें करते हैं, जबकि वे उन्हें निष्क्रियता से करते हैं। वैसे तो बाहरी तौर पर कोई फर्क नहीं है, लेकिन सार में फर्क है। जब दूसरों के पास रुतबा होता है, तो वे वही करते हैं जो उनसे अपेक्षित होता है और वे अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करने में समर्थ होते हैं; एक बार जब इन लोगों को रुतबा मिल जाता है, तो वे अपने रुतबे के लाभों का आनंद लेने के लिए मौके का फायदा उठाते हैं और कोई कार्य नहीं करते हैं, और इस तरह से उनका आलसी और सुख-सुविधा का लोभी प्रकृति सार उजागर हो जाता है। इसलिए, इस किस्म के लोग किसी भी परिस्थिति में नहीं बदलेंगे, और एक बार जब वे बेनकाब हो जाते हैं और बर्खास्त कर दिए जाते हैं, तो ऐसे लोगों को कभी भी पदोन्नत नहीं करना चाहिए और उनका फिर से उपयोग नहीं करना चाहिए—यही सिद्धांत है।
जब अलग-अलग परिस्थितियों वाले लोगों की बात आती है, तो उन्हें पदोन्नत करने और उनका उपयोग करने के लिए ये सिद्धांत हैं। इस बारे में न्यूनतम मानक यह है कि वे बिना कोई विघ्न उत्पन्न किए परमेश्वर के घर में प्रयास करने और सेवा प्रदान करने में समर्थ हों; ऐसे में, वे परमेश्वर के घर में कर्तव्य कर सकते हैं। अगर वे इस न्यूनतम मानक को भी संतुष्ट नहीं कर पाते हैं, तो उनकी मानवता और शक्तियाँ चाहे कैसी भी हों, वे कोई कर्तव्य करने के लिए उपयुक्त नहीं हैं, और इस किस्म के लोगों को कर्तव्य करने वालों की श्रेणियों से हटा देना चाहिए। अगर किसी व्यक्ति की मानवता दुर्भावनापूर्ण है और मसीह-विरोधी की मानवता के समान है, तो एक बार यह पुष्टि हो जाने के बाद कि वह मसीह-विरोधी है, परमेश्वर का घर कभी भी उसका उपयोग नहीं करेगा, और ना ही उसे पदोन्नत या विकसित करेगा। कुछ लोग कह सकते हैं : “क्या उसे सेवा करने देना ठीक है?” यह परिस्थिति पर निर्भर करता है। अगर उसके द्वारा सेवा करने से परमेश्वर के घर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है और उससे परमेश्वर के घर के लिए प्रतिकूल परिणाम आ सकते हैं, तो परमेश्वर का घर उसे सेवा करने का एक अवसर तक नहीं देगा। अगर उसे मालूम है कि वह खुद एक ऐसा कुकर्मी या मसीह-विरोधी हैं जिसे बहिष्कृत कर दिया गया है, लेकिन वह सेवा करने का इच्छुक है, और चीजों को वैसे ही करेगा जैसे कलीसिया उसके लिए उन्हें करने की व्यवस्था करती है, और वह परमेश्वर के घर के किसी भी हित को नुकसान पहुँचाए बिना शिष्ट तरीके से सेवा कर सकता है, तो ऐसे में उसे बनाए रखा जा सकता है। अगर वह उचित रूप से सेवा करने में भी सफल नहीं हो पाता है, और उसकी सेवा से भला कम और नुकसान ज्यादा होता है, तो उसे सेवा करने का अवसर तक नहीं मिलेगा, और अगर वह सेवा करता भी है, तो भी परमेश्वर का घर उसका उपयोग नहीं करेगा, क्योंकि वह सेवा करने के भी योग्य नहीं है या उसके लिए कसौटियों पर खरा भी नहीं उतरता है। इसलिए इस किस्म के लोगों को वापस नहीं आना चाहिए—वे जहाँ जाना चाहते हैं, उन्हें जाने दो। कुछ लोग कह सकते हैं, “अगर परमेश्वर का घर मेरा उपयोग नहीं करता है, तो मैं खुद सुसमाचार का प्रचार करूँगा, और सुसमाचार प्रचार करके मुझे जो लोग प्राप्त होंगे, उन्हें मैं परमेश्वर के घर को सौंप दूँगा।” क्या यह ठीक होगा? (हाँ।) कुछ लोग कह सकते हैं, “तुम उस व्यक्ति का उपयोग सेवा करने के लिए भी नहीं करोगे, तो वह सुसमाचार का प्रचार करके प्राप्त लोगों को तुम्हें किस आधार पर देगा? उसे किस आधार पर तुम्हारे लिए सुसमाचार का प्रचार करना चाहिए?” परमेश्वर का घर तरह-तरह के पहलुओं के कारण उनका उपयोग नहीं करता है। एक तो यह है कि वे लोगों का उपयोग करने के लिए परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं हैं। दूसरा यह है कि परमेश्वर का घर इस किस्म के लोगों का उपयोग करने की हिम्मत नहीं करता है, क्योंकि एक बार उनका उपयोग किया गया, तो मुसीबत कभी समाप्त नहीं होगी। तो हमें उनके सुसमाचार का प्रचार करने के इच्छुक होने के इस मामले को कैसे समझाना चाहिए? सुसमाचार का प्रचार करने में वे जिसकी गवाही देते हैं वह परमेश्वर है, और यह परमेश्वर के वचनों और परमेश्वर के कार्य के कारण ही है कि वे लोगों को प्राप्त करने में समर्थ हैं। वैसे तो ये लोग उस व्यक्ति द्वारा सुसमाचार का प्रचार करने के जरिए ही प्राप्त किए गए हैं, लेकिन इसका श्रेय किसी भी तरीके से उसे नहीं जाता है। ज्यादा-से-ज्यादा, यह बस एक व्यक्ति के रूप में उसके द्वारा अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करना है। चाहे तुम एक मसीह-विरोधी या कुकर्मी हो, या चाहे तुम्हें बहिष्कृत या निष्कासित किया गया हो, एक व्यक्ति के रूप में अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करना एक ऐसी चीज है जो तुम्हें करनी ही चाहिए। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ कि यह एक ऐसी चीज है जो तुम्हें करनी ही चाहिए? तुम्हें परमेश्वर से सत्यों की बहुत बड़ी आपूर्ति मिली है, और यह परमेश्वर के कड़ी मेहनत वाले प्रयास भी हैं। परमेश्वर के घर ने इतने वर्षों तक तुम्हें सींचा है और तुम्हारा भरण-पोषण किया है, लेकिन क्या परमेश्वर तुमसे कुछ माँगता है? नहीं। परमेश्वर के घर द्वारा वितरित तरह-तरह की सभी किताबें मुफ्त हैं, किसी को भी एक पैसा तक खर्च नहीं करना पड़ता है। इसी तरह, परमेश्वर के शाश्वत जीवन का सच्चा तरीका और जीवन के वचन जो वह लोगों को प्रदान करता है, मुफ्त हैं, और परमेश्वर के घर के धर्मोपदेश और संगतियाँ सभी लोगों के सुनने के लिए मुफ्त हैं। इसलिए, चाहे तुम एक साधारण व्यक्ति हो या किसी खास समूह के सदस्य हो, तुम्हें परमेश्वर से मुफ्त में बहुत सारे सत्य मिले हैं, इसलिए यकीनन यह उचित ही है कि तुम, लोगों में परमेश्वर के वचनों और परमेश्वर के सुसमाचार का प्रचार करो और लोगों को परमेश्वर की मौजूदगी में लेकर आओ, है ना? परमेश्वर ने मानवजाति को सभी सत्य प्रदान किए हैं; ऐसे महान प्रेम का प्रतिदान कर पाना किसके सामर्थ्य में है? परमेश्वर का अनुग्रह, परमेश्वर के वचन और परमेश्वर का जीवन अनमोल हैं, और किसी भी मनुष्य में उनका प्रतिदान कर पाने का सामर्थ्य नहीं है! क्या मनुष्य का जीवन इतना कीमती है? क्या इसकी कीमत सत्य जितनी हो सकती है? इसलिए, किसी में भी परमेश्वर के प्रेम और अनुग्रह का प्रतिदान कर पाने का सामर्थ्य नहीं है, और इसमें वे लोग भी शामिल हैं जिन्हें कलीसिया द्वारा निष्कासित कर दिया गया है, बहिष्कृत कर दिया गया है और हटा दिया गया है—वे कोई अपवाद नहीं हैं। जब तक तुम्हारे पास थोड़ा जमीर, सूझ-बूझ और मानवता है, तब चाहे परमेश्वर का घर तुम्हारे साथ कैसा भी व्यवहार क्यों ना करे, तुम्हें परमेश्वर के वचनों को फैलाने और उसके कार्य की गवाही देने का अपना दायित्व पूरा करना ही चाहिए। यह लोगों की अनिवार्य जिम्मेदारी है। इसलिए, चाहे तुम कितने भी लोगों में परमेश्वर के वचनों का प्रचार करो और सुसमाचार फैलाओ, या तुम कितने भी लोगों को प्राप्त कर लो, यह ऐसा कुछ नहीं है जिसके लिए तुम्हारी तारीफ की जाए। परमेश्वर ने इतने सारे सत्य अभिव्यक्त किए हैं और फिर भी तुम उन्हें सुनते नहीं हो या स्वीकार नहीं करते हो। यकीनन थोड़ी सेवा करना और दूसरों में सुसमाचार का प्रचार करना वही चीजें हैं जो तुम्हें करनी चाहिए, है ना? यह देखते हुए कि तुम आज इतनी दूर तक आ गए हो, क्या तुम्हें पश्चात्ताप नहीं करना चाहिए? क्या तुम्हें परमेश्वर के प्रेम का प्रतिदान करने के अवसरों की तलाश नहीं करनी चाहिए? तुम्हें वास्तव में यही करना चाहिए! परमेश्वर के घर में प्रशासनिक आदेश हैं, और लोगों को बहिष्कृत करना, निष्कासित करना और हटा देना ऐसी चीजें हैं जो प्रशासनिक आदेशों और परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार की जाती हैं—ये चीजें करना सही है। कुछ लोग कह सकते हैं, “जिन लोगों को बहिष्कृत या निष्कासित किया गया है, उनके द्वारा सुसमाचार का प्रचार करने से प्राप्त लोगों को कलीसिया में स्वीकार करना कुछ हद तक शर्मनाक है।” दरअसल, यह वही कर्तव्य है जिसे लोगों को करना चाहिए, और इसमें शर्मिंदा होने वाली कोई बात नहीं है। सभी लोग सृजित प्राणी हैं। भले ही तुम्हें बहिष्कृत या निष्कासित कर दिया गया हो, कुकर्मी या मसीह-विरोधी के रूप में तुम्हारी निंदा की गई हो, या तुम हटाए जाने के लिए एक लक्ष्य हो, क्या फिर भी तुम सृजित प्राणी नहीं हो? एक बार जब तुम्हें बहिष्कृत कर दिया जाता है, तो क्या परमेश्वर तब भी तुम्हारा परमेश्वर नहीं रहता है? क्या परमेश्वर ने तुमसे जो वचन कहे हैं और परमेश्वर ने तुम्हें जो चीजें प्रदान की हैं, वे एक ही झटके में मिट जाती हैं? क्या उनका अस्तित्व समाप्त हो जाता है? उनका अस्तित्व अब भी है, बस यही है कि तुमने उन्हें संजोया नहीं है। सभी धर्मांतरित लोग, चाहे किसी ने भी उन्हें धर्मांतरित किया हो, सृजित प्राणी हैं और उन्हें स्वयं सृष्टिकर्ता के सामने समर्पण करना चाहिए। इसलिए, अगर ये लोग जिन्हें बहिष्कृत या निष्कासित कर दिया गया है, सुसमाचार का प्रचार करने के इच्छुक हैं, तो हम उन्हें प्रतिबंधित नहीं करेंगे; लेकिन चाहे वे कैसे भी प्रचार करें, लोगों का उपयोग करने के लिए परमेश्वर के घर के सिद्धांत और परमेश्वर के घर के प्रशासनिक आदेश अपरिवर्तनीय हैं, और यह चीज कभी नहीं बदलेगी।
इन कई किस्म के लोगों में से जिन्हें बर्खास्त कर दिया गया है, ज्यादातर लोगों के सही मायने में पश्चात्ताप करने की संभावना नहीं है और उनका फिर से उपयोग नहीं करना चाहिए। सिर्फ उन लोगों को पदोन्नत करने और उपयोग करने की गुंजाइश है जिन्हें इसलिए बर्खास्त कर दिया गया था या जिनके कर्तव्यों में बदलाव इसलिए किया गया था क्योंकि उनके पास कार्य अनुभव नहीं था और इसलिए वे अस्थायी तौर पर अपना कार्य करने में असमर्थ थे। इस किस्म के लोग पर्याप्त काबिलियत वाले होते हैं और उनकी मानवता के साथ कोई बड़ी समस्या नहीं होती है, उनमें बस कुछ मामूली कमियाँ, बुराइयाँ या बुरी आदतें होती हैं जो उन्हें अपने परिवार से विरासत में मिली होती हैं—इनमें से कोई भी चीज बड़ी समस्या नहीं है। अगर परमेश्वर के घर को उनकी जरूरत है, तो उन्हें सही समय पर फिर से पदोन्नत किया जा सकता है और उनका उपयोग किया जा सकता है; यह उचित है, क्योंकि वे कुकर्मी नहीं हैं और वे मसीह-विरोधी नहीं बनेंगे। उनकी काबिलियत पर्याप्त है, बस यही है कि वे लंबे समय से कार्य नहीं कर रहे थे और उनके पास कोई अनुभव नहीं था, इसलिए वे कार्य करने के लिए योग्य नहीं थे, जो कोई गंभीर समस्या नहीं है। अगर उन्हें इन कारणों से बर्खास्त किया गया था, तो उनके पास भविष्य में विकसित होने की गुंजाइश है और वे बदल सकते हैं। जब तक किसी के पास कार्य क्षमता है, काबिलियत है, और उसकी मानवता मानक के अनुरूप है, तब तक इस प्रकार के लोग जिस अवधि में परमेश्वर के कार्य का अनुभव करते हैं और अपना कर्तव्य करते हैं, वे धीरे-धीरे बदल जाएँगे, उनकी मानवता बदल जाएगी, वे अपने जीवन प्रवेश में विकसित होंगे, उनके स्वभाव में कुछ संगत बदलाव होंगे, और सत्य की उनकी समझ में कुछ प्रगति होगी। परिवेश, उनके द्वारा किए जाने वाले कर्तव्यों और उनकी व्यक्तिगत आकांक्षाओं के आधार पर, वे अलग-अलग मात्राओं में बदलेंगे और विकसित होंगे, इसलिए यह कहा जा सकता है कि इस किस्म के लोगों को पदोन्नत किया जाना चाहिए और उनका उपयोग किया जाना चाहिए। आम तौर पर ये उन कई किस्म के लोगों को फिर से पदोन्नत करने और उनका उपयोग करने के सिद्धांत हैं जिन्हें इससे पहले बर्खास्त किया जा चुका है।
अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों की सातवीं मद है “अलग-अलग प्रकार के लोगों को उनकी मानवता और शक्तियों के आधार पर समझदारी से आवंटित करना और उनका उपयोग करना, ताकि हरेक का सर्वश्रेष्ठ उपयोग किया जा सके।” अभी-अभी हमारी संगति में, लोगों का सर्वश्रेष्ठ उपयोग करने का अर्थ पहले ही स्पष्ट रूप से समझाया जा चुका है। जब तक किसी व्यक्ति को विकसित करने में थोड़ा-सा भी महत्व है, और बशर्ते उसकी मानवता मानक स्तर की है, तब तक परमेश्वर का घर उसे अवसर प्रदान करेगा। जब तक कोई व्यक्ति सत्य का अनुसरण करता है और सकारात्मक चीजों से प्रेम करता है, तब तक परमेश्वर उससे निराश नहीं होगा या उसे इतनी आसानी से नहीं हटाएगा। जब तक तुम्हारी मानवता और काबिलियत उन मानकों को संतुष्ट करती है, जिन पर मैंने अभी-अभी चर्चा की, तब तक परमेश्वर के घर में कोई कर्तव्य करने के लिए यकीनन तुम्हारे लिए जगह होगी, और यकीनन तुम्हारा उपयोग समझदारी से किया जाएगा, और तुम्हें अपनी क्षमता का उपयोग करने के लिए पर्याप्त जगह दी जाएगी। संक्षेप में, अगर तुम्हारे पास शक्तियाँ हैं और ऐसे किसी पेशे में विशेषज्ञता है जिसकी जरूरत कलीसिया के कार्य के लिए है, तो परमेश्वर का घर यकीनन तुम्हें कोई उपयुक्त कर्तव्य करने देगा। लेकिन, अगर तुम्हारी कोई आकांक्षा या इच्छा नहीं है और तुम कुछ प्राप्त करने का प्रयास नहीं करना चाहते हो, तो बस वही करो जो तुम कर सकते हो, कोई ऐसा कर्तव्य करो जिसे करना तुम्हारी क्षमता में है, और इससे ज्यादा कुछ मत करो। अगर तुम्हारी आकांक्षाएँ हैं, और तुम कहते हो, “मैं ज्यादा सत्य समझना और प्राप्त करना चाहता हूँ, और जितनी जल्दी हो सके, उद्धार के मार्ग पर चलना शुरू करना चाहता हूँ, और सत्य वास्तविकता में प्रवेश करना चाहता हूँ। मैं परमेश्वर के दायित्व के प्रति विचारशील होने का इच्छुक हूँ, परमेश्वर के घर में भारी दायित्व उठाने, दूसरों की तुलना में ज्यादा कष्ट सहने, ज्यादा मेहनत करने और दूसरों की तुलना में ज्यादा त्याग करने का इच्छुक हूँ,” और अगर तुम हर लिहाज से उपयुक्त हो, लेकिन फिर भी कोई तुम्हारी सिफारिश नहीं करता है, तो तुम भी खुद को पेश कर सकते हो। क्या यह उचित नहीं है? संक्षेप में, ये सब सभी किस्म के लोगों का उपयोग करने के लिए परमेश्वर के घर के सिद्धांत हैं, जिनका लक्ष्य लोगों को सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने में समर्थ बनाने के अलावा और कुछ नहीं है। सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने की अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? वे हैं सत्य समझना, कार्य की सभी अलग-अलग मदों को करते समय सत्य सिद्धांतों को समझना, और जब भी तुम्हारे साथ कोई अनहोनी हो, तो भ्रमित और हैरान-परेशान होने के बजाय, रोजमर्रा के जीवन में सभी किस्म के लोगों, घटनाओं और चीजों से व्यवहार करते समय संगत सत्यों का अभ्यास करने में समर्थ होना—यही लक्ष्य है। यही वह लक्ष्य है जिसे तय किया गया है, तुम लोगों को इसी की तरफ बढ़ना चाहिए!
अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों की सातवीं मद पर हमारी संगति यहीं समाप्त होती है। कुछ लोग कह सकते हैं, “तुमने अभी भी संगति पूरी नहीं की है, तुमने इस मद से संबंधित झूठे अगुआओं को उजागर नहीं किया है।” मेरा जवाब होगा कि उन्हें उजागर करने की कोई जरूरत नहीं है। एक अर्थ में, झूठे अगुआ खराब काबिलियत वाले होते हैं और वास्तविक कार्य करने में असमर्थ होते हैं; दूसरे अर्थ में, उनमें जमीर और सूझ-बूझ का अभाव होता है; वे कोई दायित्व नहीं उठाते हैं; किसी भी कार्य को दिल से नहीं करते हैं और यहाँ तक कि आसान कार्य को भी अच्छे-से नहीं कर पाते हैं। वे जब भी किसी पेचीदा समस्या या सत्य सिद्धांतों से जुड़ी किसी समस्या का सामना करते हैं, तो वे उसे अलग से बिल्कुल भी पहचान नहीं पाते हैं, और समस्या के सार को पहचान लेने की बात तो भूल ही जाओ। इसलिए, उन्हें उजागर करने की कोई जरूरत नहीं है। अगर उन्हें उजागर कर भी दिया जाए, तो भी वे इसे स्वीकार नहीं करेंगे और यह शब्दों की बर्बादी ही होगी। और तो और, उन्होंने जो भी चीजें की हैं, उनके बारे में बात करना घिनौना होगा और इससे लोग अंदर से पूरी तरह नाराज हो जाएँगे। इन झूठे अगुआओं को इस तरह का महत्वपूर्ण कार्य सौंपना लोगों का उपयोग करने में एक गलती थी। अपना कार्य करने में असमर्थ होना उन्हें पहले से ही निठल्ला महसूस करवाता है और अगर तुम उन्हें उजागर करते हो और उनका गहन-विश्लेषण करते हो, तो उन्हें और ज्यादा दुःख होगा। इसलिए इन झूठे अगुआओं को खुद अपनी तुलना करने दो और उन्हें जितना हो सके अपनी समस्याओं की जाँच करने दो। अगर वे अपनी समस्याओं का पता लगा सकते हैं, तो देखो कि क्या वे भविष्य में सुधार कर सकते हैं या नहीं; अगर वे उनका पता नहीं लगा सकते हैं, तो उन्हें जाँच करते रहने की जरूरत है, और वे इसका विश्लेषण करने और इसे सुलझाने के लिए अपने आसपास के लोगों से मदद माँग सकते हैं। अगर दूसरे लोगों ने उनके साथ संगति की है और उन्होंने इसे पूरे दिल से किया है, लेकिन फिर भी वे अपनी समस्याओं का पता नहीं लगा पा रहे हैं और अब भी उन्हें नहीं मालूम है कि इन्हें कैसे पहचाना जाए या इनका समाधान कैसे किया जाए, तो वे सच में झूठे अगुआ हैं और उन्हें हटा देना चाहिए।
6 मार्च 2021