अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (3)
मद तीन : उन सत्य सिद्धांतों के बारे में संगति करो, जिन्हें प्रत्येक कर्तव्य को ठीक से निभाने के लिए समझा जाना चाहिए (भाग दो)
पिछली सभा में हमने अगुआओं और कार्यकर्ताओं की दूसरी जिम्मेदारी के बारे में अतिरिक्त संगति की थी, जिसमें जीवन प्रवेश की कठिनाइयों के बारे में बात की गई थी, और नकली अगुआओं के कुछ तौर-तरीकों और अभिव्यक्तियों को उजागर किया गया था। फिर, हमने अगुआओं और कार्यकर्ताओं की तीसरी जिम्मेदारी—“उन सत्य सिद्धांतों पर संगति करना जिन्हें प्रत्येक कर्तव्य को ठीक से निभाने के लिए समझा जाना चाहिए”—से संबंधित कई मामलों पर चर्चा की थी और यह उजागर किया था और इस पर गहन-विश्लेषण किया था कि नकली अगुआओं के रवैये, तौर-तरीकों और अभिव्यक्तियों के माध्यम से इन मामलों के प्रति उनका “नकलीपन” कहाँ प्रकट होता है, दूसरे शब्दों में, अगुआ के रूप में अपनी जिम्मेदारियों के निर्वाह में नकली अगुआ कैसे विफल होते हैं। इन मामलों की सूची बनाओ। (उनमें से एक मामला परमेश्वर के वचनों की पुस्तकों की छपाई के बारे में था। उस नकली अगुआ ने कोई ठोस काम नहीं किया था, वह बस खोखले तरीके से धर्म-सिद्धांतों की बातें करता था। उसने विशिष्ट रूप से सत्य सिद्धांतों पर संगति भी नहीं की थी, न ही थोड़ा सा भी वास्तविक काम किया था।) इस मामले में उस नकली अगुआ ने वास्तविक काम नहीं किया, एक अगुआ और कार्यकर्ता के रूप में अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने में वह विफल रहा, और उसने इस काम में शामिल पेशेवर आवश्यकताओं, विशेष सिद्धांतों और ध्यान देने योग्य बिंदुओं पर स्पष्ट रूप से संगति नहीं की। उसने केवल कुछ नारे लगाए और कुछ खोखले शब्द बोले, और फिर सोचा कि उसने अच्छा काम किया है। हमने और क्या चर्चा की थी? (परमेश्वर के लिए पंख वाले कोट खरीदने की घटना भी थी।) इस घटना ने नकली अगुआओं के बारे में क्या समस्या उजागर की थी? (इसने उजागर किया था कि नकली अगुआ वास्तविक काम नहीं करते, और उनमें मानवता और विवेक बिलकुल नहीं होता।) जब किसी ने मेरे लिए कोई कपड़ा खरीदा, तो वे अगुआ उसकी जाँच करने में लग गए—क्या यह उस काम का हिस्सा है जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को करना चाहिए? (नहीं, ऐसा नहीं है।) उन्होंने वह काम किया जो उन्हें नहीं करना चाहिए था—ऐसा होने में क्या समस्या है? (वे अपने उचित काम पर ध्यान नहीं दे रहे थे।) यह नकली अगुआओं की एक अभिव्यक्ति है। इस अभिव्यक्ति ने पहले तो उजागर किया कि नकली अगुआ अपने उचित काम पर ध्यान नहीं देते हैं, और दूसरे, इससे उजागर हुआ कि उनमें विवेक नहीं है और वे केवल घृणास्पद कार्य करते हैं जिनमें विवेक और मानवता नहीं होती। तुम लोगों ने केवल उदाहरणों को याद कर लिया है, लेकिन तुमने उन मुद्दों की असलियत नहीं समझी जिन्हें इन उदाहरणों से स्पष्ट किया गया था, या इन मुद्दों के सार की असलियत नहीं समझी जिनका इन उदाहरणों के माध्यम से गहन-विश्लेषण करने का इरादा था। नकली अगुआओं द्वारा अपने उचित काम पर ध्यान नहीं देने के बारे में मैंने और क्या उदाहरण दिए थे? (एक पेस्ट्री बनाने वाला था जो परमेश्वर के लिए पेस्ट्री बनाता रहता था। परमेश्वर ने उसे ऐसा नहीं करने के लिए कहा, लेकिन अगुआओं और कार्यकर्ताओं ने उसे ऐसा करने की अनुमति देना जारी रखा, और यहाँ तक कि खुद पेस्ट्री का स्वाद भी चखा।) इस उदाहरण ने नकली अगुआओं की किन समस्याओं को उजागर किया? (कि वे अपने उचित काम पर ध्यान नहीं देते, या वह काम नहीं करते हैं जो उन्हें करना चाहिए, और उस काम को करने पर जोर देते हैं जो उन्हें नहीं करना चाहिए।) प्राथमिक रूप से, इसने उजागर किया कि नकली अगुआ अपने उचित काम पर ध्यान नहीं देते और अपने काम के केंद्र और केंद्र बिंदु को समझने में असफल रहते हैं। साथ ही, नकली अगुआओं की एक गंभीर समस्या है। यह क्या है? (वे परमेश्वर के वचनों का पालन नहीं करते, या परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार काम का क्रियान्वयन नहीं करते।) क्या कोई और कुछ बताना चाहता है? (वे आध्यात्मिक होने का दिखावा करते हैं और परमेश्वर के बोझ के लिए विचारशीलता दिखाते हैं, लेकिन वास्तव में वे बुरे काम करते हुए बस बेकाबू हो जाते हैं।) यह उनकी समस्याओं में से एक और समस्या है। कोई और? (कार्य करने से पहले, वे परमेश्वर की अपेक्षाओं को समझने की कोशिश नहीं करते; इसके बदले, वे परमेश्वर की इच्छाओं की जगह पर अपनी कल्पनाओं का प्रयोग करते हैं।) यह विवेक के अभाव की श्रेणी में आता है। कोई और? (परमेश्वर के लिए वस्त्र की खरीद के मामले में नकली अगुआओं ने जो रवैया अपनाया, उससे उनमें सामान्य मानवता के अभाव का पता चला।) उनमें सामान्य मानवता के किस पहलू की कमी है? वे व्यवहार के नियमों को नहीं समझते और उनमें शिष्टाचार नहीं है। क्या यही मामला नहीं है? (हाँ, है।) वास्तव में, तुम लोगों ने जो बातें बताई हैं वे गौण हैं; मुख्य मुद्दा क्या है? अगुआ बन जाने के बाद, वे रुतबे और विशेष व्यवहार के लाभों का आनंद लेना चाहते हैं, और आराम की तीव्र कामना करते हैं। उदाहरण के लिए, वे कुछ पेस्ट्री खाना चाहते हैं, और जब देखते हैं कि कोई व्यक्ति खाना अच्छा पकाता है, तो अपनी लालसा को संतुष्ट करने के लिए वे उनके बनाए भोजन में से कुछ खाने के बारे में सोचते हैं। कितनी उबकाई लाने वाली बात है कि वे अपने उचित काम पर ध्यान नहीं देते या वास्तविक काम नहीं करते, पर इन सब से ऊपर, वे आराम और स्वादलोलुपता के सुखों की लालसा करते हैं। वे अपने रुतबे के लाभों का आनंद भोगते हुए अपनी स्वादलोलुपता को संतुष्ट करने के लिए परमेश्वर के लिए वस्तुओं को चखने और जाँचने के बहानों का इस्तेमाल करते हैं। ये सभी नकली अगुआओं की अभिव्यक्तियाँ हैं। यद्यपि इन अभिव्यक्तियों को मसीह विरोधियों के स्वभाव सार की तुलना में क्रूर या दुष्ट नहीं कहा जा सकता, फिर भी नकली अगुआओं की मानवता इतनी खराब होती है कि लोग उससे घृणा करें। जहाँ तक उनके चरित्र की बात है, उनमें अंतरात्मा और विवेक अपेक्षा से कम होता है; उनकी मानवता काफी निचले दर्जे की और गंदी होती है, और उनमें सत्यनिष्ठा कम होती है। इन उदाहरणों से देखा जा सकता है कि नकली अगुआ वास्तविक कार्य नहीं कर सकते। यह एक तथ्य है।
नकली अगुआ कार्य करने के सिद्धांतों पर संगति नहीं कर सकते
आज हम अगुओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों के आधार पर नकली अगुओं की विभिन्न अभिव्यक्तियों को उजागर करना जारी रखेंगे। नकली अगुआ मूलतः कलीसिया के आवश्यक, महत्वपूर्ण कार्य करने में असमर्थ होते हैं। वे बस कुछ सरल, सामान्य मामलों को निपटाते हैं; उनका काम कलीसिया के समग्र कार्य में महत्वपूर्ण या निर्णायक भूमिका नहीं निभाता और उसके वास्तविक नतीजे नहीं निकलते। उनकी संगति मूल रूप से केवल कुछ घिसे-पिटे और सामान्य विषयों पर होती है, इसमें निरे घिसे-पिटे शब्द और धर्म-सिद्धांत होते हैं और यह अत्यंत खोखली, सामान्य और विवरणहीन होती है। उनकी संगति में केवल वही चीजें होती हैं जिन्हें लोग शाब्दिक रूप से कुछ पढ़कर समझ सकते हैं। ये नकली अगुआ परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश में आने वाली वास्तविक समस्याओं को बिल्कुल हल नहीं कर सकते; खासकर वे लोगों की धारणाओं, कल्पनाओं और भ्रष्ट स्वभावों के खुलासों का समाधान करने में और भी कम सक्षम होते हैं। मुख्य बात यह है कि नकली अगुआ परमेश्वर के घर द्वारा व्यवस्थित महत्वपूर्ण कार्यो, जैसे कि सुसमाचार कार्य, फिल्म निर्माण कार्य या पाठ-आधारित कार्य को अपने कंधे नहीं ले सकते। खास तौर पर जब पेशेवर ज्ञान से जुड़े कार्य की बात आती है, तो हो सकता है कि नकली अगुआ यह अच्छी तरह जानते हों कि इन क्षेत्रों में वे खास जानकार नहीं हैं, लेकिन वे इनका अध्ययन नहीं करते, न ही वे शोध करते हैं, और दूसरों को विशिष्ट निर्देशन दे पाने या उनसे संबंधित किसी भी समस्या का समाधान करने में वे और भी कम सक्षम होते हैं। फिर भी वे बेशर्मी से सभाओं का आयोजन कर खोखले सिद्धांतों के बारे में अंतहीन बातें करते हैं और शब्द और धर्म-सिद्धांत बघारते रहते हैं। नकली अगुआ अच्छी तरह जानते हैं कि वे इस तरह का कार्य नहीं कर सकते, फिर भी वे विशेषज्ञ होने का दिखावा करते हैं, दंभपूर्ण व्यवहार करते हैं और दूसरों पर धौंस जमाने के लिए हमेशा बड़े-बड़े धर्म-सिद्धांतों का इस्तेमाल करते हैं। वे किसी के सवालों का जवाब देने में असमर्थ होते हैं, फिर भी वे दूसरों को झिड़कने के बहाने और कारण ढूँढ़ लेते हैं और पूछते हैं कि वे अपने पेशे को क्यों नहीं सीखते, वे सत्य की खोज क्यों नहीं करते और वे अपनी समस्याओं को हल करने में असमर्थ क्यों हैं। ये नकली अगुए इन क्षेत्रों में अँगूठाटेक होने और किसी भी समस्या का समाधान न कर सकने के बावजूद दूसरों को ऊँचे-ऊँचे उपदेश देते हैं। ऊपरी तौर पर वे दूसरे लोगों को बहुत व्यस्त दिखाई देते हैं, मानो वे बहुत सारा काम करने के योग्य हैं और क्षमतावान हैं, लेकिन वास्तव में वे कुछ भी नहीं हैं। नकली अगुए वास्तविक कार्य करने में बिल्कुल असमर्थ होते हैं, फिर भी वे उत्साहपूर्वक खुद को व्यस्त रखते हैं, और किसी वास्तविक समस्या को हल करने में सक्षम हुए बिना सभाओं में हमेशा एक ही साधारण सी बातें बोलते हैं और बार-बार खुद को दोहराते हैं। लोग इससे बहुत तंग आ जाते हैं और इससे कोई शिक्षा लेने में असमर्थ होते हैं। इस तरह का कार्य बहुत ही खराब है और इससे कोई नतीजा नहीं मिलता है। नकली अगुआ इसी तरह काम करते हैं और इसके कारण कलीसिया के कार्य में देरी होती है। फिर भी नकली अगुआओं को लगता है कि वे बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं और वे बहुत सक्षम हैं, जबकि सच्चाई यह है कि उन्होंने कलीसिया के कार्य का एक भी पहलू अच्छी तरह से नहीं किया होता है। उन्हें नहीं पता होता कि उनके उत्तरदायित्व के दायरे में आने वाले अगुआ और कार्यकर्ता मानकों के अनुरूप हैं या नहीं, न ही वे जानते हैं कि विभिन्न टीमों के अगुआ और सुपरवाइजर अपने कार्य का बीड़ा उठाने में सक्षम हैं या नहीं, और वे न तो इसका ध्यान रखते हैं और न ही यह पूछते हैं कि भाई-बहनों को अपने कर्तव्य निभाने में कोई समस्या तो नहीं आई। संक्षेप में कहें तो नकली अगुआ अपने काम में किसी भी समस्या का समाधान नहीं कर सकते, फिर भी वे पूरी कर्मठता से व्यस्त रहते हैं। दूसरे लोगों के परिप्रेक्ष्य से देखने पर नकली अगुआ कठिनाई झेलने में सक्षम लगते हैं, कीमत चुकाने को तैयार रहते हैं और हर दिन भागदौड़ में बिताते हैं। भोजन के समय उन्हें खाने की मेज पर बुलाना पड़ता है और वे सोने के लिए भी बहुत देर से जाते हैं। फिर भी, उनके काम के नतीजे अच्छे नहीं होते। अगर तुम ध्यान से नहीं देख रहे होगे, तो ऊपरी तौर पर ऐसा लगेगा कि हर काम हो रहा है और हर कोई अपने कर्तव्य निभाने में व्यस्त है, लेकिन अगर तुम ध्यान से देखोगे, सावधान रहोगे और कार्य का ईमानदारी से निरीक्षण करोगे तो असली स्थिति सामने आ जाएगी। उनके दायित्व के दायरे में आने वाला हर कार्य गड्ड-मड्ड होता है, उसकी कोई संरचना या व्यवस्था नहीं मिलेगी। कार्य की हर मद में समस्याएँ या यहाँ तक कि झोल भी मिलेंगे। ये समस्याएँ उत्पन्न होने का संबंध नकली अगुआओं के सत्य सिद्धांतों को न समझने और अपनी धारणाओं, कल्पनाओं और उत्साह के आधार पर काम करने से जुड़ा है। नकली अगुआ कभी भी सत्य सिद्धांतों के बारे में संगति नहीं करते, न ही वे समस्याओं को हल करने के लिए कभी सत्य खोजते हैं। उनमें स्पष्ट रूप से आध्यात्मिक समझ की कमी होती है और वे अगुआई का काम करने में सक्षम नहीं होते, और वे केवल कुछ शब्द और धर्म-सिद्धांत बघार सकते हैं और सत्य को बिल्कुल नहीं समझते, फिर भी वे जिन चीजों को नहीं जानते उन्हीं को जानने का दिखावा कर खुद को विशेषज्ञ के रूप में पेश करने की कोशिश करते हैं। वे जो काम करते हैं वह बस औपचारिकता होता है। जब कोई समस्या आती है तो वे बिना सोचे-समझे इस पर विनियम लागू करते हैं। वे बस आँख मूंदकर ढेरों गतिविधियाँ करते रहते हैं जिनका कोई वास्तविक नतीजा नहीं निकलता। क्योंकि ये नकली अगुआ सत्य सिद्धांतों को नहीं समझते और केवल शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलते हुए दूसरों को विनियमों के पालन की सलाह देते हैं, इसलिए कलीसिया के कार्य की हर मद की प्रगति धीमी हो जाती है और कोई स्पष्ट नतीजा प्राप्त नहीं होता। किसी नकली अगुआ के कुछ समय से काम कर रहे होने का सबसे स्पष्ट दुष्परिणाम यह होता है कि अधिकांश लोग सत्य को समझने में असमर्थ रहते हैं, उन्हें नहीं पता होता कि जब कोई भ्रष्टता प्रकट करता है या धारणाएँ विकसित करता है तो उसे कैसे पहचानते हैं, और वे उन सत्य सिद्धांतों को तो निश्चित रूप से नहीं समझते जिनका पालन उन्हें अपने कर्तव्य निभाने के दौरान करना चाहिए। अपने कर्तव्य निभाने वाले और न निभाने वाले लोग बिल्कुल सुस्त, अनियंत्रित और अनुशासनहीन होते हैं और बिखरी हुई रेत की तरह अव्यवस्थित होते हैं। उनमें से अधिकांश लोग कुछ शब्द और धर्म-सिद्धांत तो बघार सकते हैं लेकिन अपने कर्तव्य निभाते समय वे केवल विनियमों का पालन करते हैं; वे नहीं जानते कि समस्याओं को हल करने के लिए सत्य कैसे खोजें। चूँकि नकली अगुआ स्वयं यह नहीं जानते कि समस्याओं को हल करने के लिए सत्य कैसे खोजें, तो इस काम में वे दूसरों की अगुआई कैसे कर सकते हैं? दूसरे लोगों पर चाहे जो भी बीते, नकली अगुआ उन्हें केवल यह कहकर प्रोत्साहित कर सकते हैं, “हमें परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील होना चाहिए!” “हमें अपने कर्तव्यपालन में निष्ठावान होना चाहिए!” “जब हमारे साथ कुछ घटित हो, तो हमें पता होना चाहिए कि प्रार्थना कैसे करनी है और हमें सत्य सिद्धांत जरूर खोजने चाहिए!” नकली अगुआ अक्सर ये नारे और धर्म-सिद्धांत उच्च स्वर में बोलते हैं और इसका कोई नतीजा नहीं निकलता है। उनकी बातें सुनने के बाद भी लोग नहीं समझ पाते कि सत्य सिद्धांत क्या हैं और उनके पास अभ्यास का मार्ग नहीं होता है। लोगों पर जब कोई विपत्ति आती है तो ऊपरी तौर पर वे प्रार्थना करते हैं और वे अपने कर्तव्य निभाने में निष्ठावान होने की इच्छा रखते हैं—लेकिन उन सभी में ऐसे मामलों की समझ नहीं होती है कि निष्ठावान होने के लिए उन्हें क्या करना चाहिए, परमेश्वर के इरादों को समझने के लिए उन्हें कैसे प्रार्थना करनी चाहिए और जब वे किसी समस्या का सामना कर रहे हों तो उन्हें सत्य सिद्धांतों की समझ हासिल करने के लिए कैसे खोज करनी चाहिए। जब लोग नकली अगुआओं से पूछते हैं तो वे कहते हैं, “जब तुम पर कोई संकट आए तो परमेश्वर के वचनों को और अधिक पढ़ो, अधिक प्रार्थना करो और सत्य पर अधिक संगति करो।” लोग उनसे पूछते हैं कि “यह कार्य किन सिद्धांतों से जुड़ा है?” तो वे कहते हैं, “परमेश्वर के वचन पेशेवर कार्यों के मामले में कुछ नहीं कहते और मैं भी उस कार्य क्षेत्र को नहीं समझता। यदि तुम लोग समझना चाहते हो तो खुद शोध करो—मुझसे मत पूछो। मैं सत्य को समझने में तुम्हारा मार्गदर्शन करता हूँ, पेशेवर कार्यों के मामलों में नहीं।” सवालों से बचने के लिए नकली अगुए इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। और इसके परिणामस्वरूप अधिकांश लोग अपने कर्तव्य निभाने का जुनून होने के बावजूद नहीं जानते कि सत्य सिद्धांतों के आधार पर कैसे कार्य करना है, न ही वे यह जानते हैं कि अपने कर्तव्य निभाते समय सिद्धांतों का पालन कैसे करना है। नकली अगुआओं की जिम्मेदारी के दायरे के हर एक काम के नतीजे देखते हुए अधिकांश लोग अपना कार्य करने के लिए अपने ज्ञान, सीख और खूबियों पर भरोसा कर रहे हैं और वे ऐसे मामलों से अनभिज्ञ हैं कि परमेश्वर की विशिष्ट अपेक्षाएँ क्या हैं, कर्तव्य निभाने के सिद्धांत क्या हैं और कोई कार्य कैसे करें कि उससे परमेश्वर के लिए गवाही देने का नतीजा प्राप्त हो, और सुसमाचार को कैसे और अधिक प्रभावी ढंग से प्रसार करें कि परमेश्वर के प्रकट होने के लिए लालायित सभी लोग उसकी वाणी सुन लें, सच्चे मार्ग को परख लें और जितनी जल्दी हो सके परमेश्वर के पास लौट आएं। ऐसा क्यों है कि वे इन चीजों से अनभिज्ञ हैं? इसका सीधा संबंध नकली अगुआओं की वास्तविक कार्य करने में विफलता से जुड़ा है। इसका मुख्य कारण यह है कि नकली अगुआ खुद नहीं जानते कि सत्य सिद्धांत क्या हैं या लोगों को किन सिद्धांतों को समझना और उनका अनुसरण करना चाहिए। वे सिद्धांतों के बिना काम करते हैं और वे अपने कर्तव्यों में अभ्यास के सिद्धांत और मार्ग खोजने में लोगों की अगुआई कभी नहीं करते। जब किसी नकली अगुआ को कोई समस्या मिलती है तो वह उसे स्वयं हल नहीं कर सकता और दूसरों के साथ उस पर संगति और खोज नहीं करता, जिसके कारण हर काम बार-बार नए सिरे से करने की जरूरत पड़ती है। यह न केवल वित्तीय और भौतिक संसाधनों की बर्बादी है, बल्कि लोगों की ऊर्जा और समय की भी बर्बादी है। ऐसे दुष्परिणामों का संबंध सीधे तौर पर नकली अगुआओं की बहुत खराब काबिलियत और गैरजिम्मेदारी से हैं। हालाँकि यह नहीं कहा जा सकता है कि नकली अगुआ जानबूझकर बुराई करते हैं और विघ्न पैदा करते हैं, पर इतना कहा जा सकता है कि वे अपने काम में सत्य सिद्धांतों की तलाश बिल्कुल नहीं करते और कि वे हमेशा अपनी इच्छा के आधार पर काम करते हैं। यह निश्चित है। नकली अगुआ सत्य सिद्धांतों को नहीं समझते, न ही वे दूसरों के साथ उनके बारे में स्पष्ट रूप से संगति कर सकते हैं; इसके बजाय, वे लोगों को अपनी मर्जी से काम करने की खुली छूट देते हैं। यह अनजाने ही कुछ कार्य प्रभारियों को मनमाने ढंग से और स्वेच्छानुसार विशिष्ट काम करने और जी में आए वह करने की ओर ले जाता है। इसके परिणामस्वरूप, न केवल थोड़े ही वास्तविक नतीजे मिलते हैं, बल्कि कलीसिया का कार्य भी गड्ड-मड्ड हो जाता है। जब किसी नकली अगुआ को बर्खास्त किया जाता है तो न केवल वे आत्मचिंतन नहीं करते या खुद को नहीं जानते, बल्कि वे कुतर्क रचकर बहस भी करते हैं और सत्य को जरा भी स्वीकार नहीं करते, और पश्चात्ताप करने का उनका बिल्कुल भी इरादा नहीं होता। वे यह कहते हुए कि वे निश्चित रूप से अच्छी तरह से काम कर सकते हैं, वे परमेश्वर के घर से एक और मौका भी माँग सकते हैं। क्या तुम लोग उन पर विश्वास करते हो? वे खुद को बिल्कुल नहीं जानते, न ही वे सत्य को स्वीकारते हैं। तब क्या वे अपने तौर-तरीके बदल सकते हैं? उनके पास सत्य वास्तविकता नहीं है, तो क्या वे अच्छी तरह से कार्य कर सकते हैं? क्या यह संभव है? उन्होंने इस बार काम अच्छी तरह से नहीं किया—यदि उन्हें एक और मौका दिया जाए तो क्या वे इसे अच्छी तरह से कर पाएंगे? ऐसा संभव नहीं है। निश्चितता के साथ कहा जा सकता है कि नकली अगुआओं में काम करने की क्षमता नहीं होती; कभी-कभी वे बहुत मेहनत कर सकते हैं और बहुत व्यस्त हो सकते हैं, लेकिन यह बिना सोची-समझी व्यस्तता होती है, जिसका कोई फल नहीं मिलता। इतना यह दिखाने के लिए पर्याप्त है कि नकली अगुआओं की काबिलियत बहुत कम होती है, कि वे सत्य को बिल्कुल नहीं समझते और यह भी कि वे वास्तविक कार्य नहीं कर सकते। इससे कार्य में कई समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, लेकिन वे सत्य के बारे में संगति कर उनका समाधान करने में असमर्थ होते हैं और विनियमों के पालन के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए वे केवल कुछ खोखले धर्म-सिद्धांतों का उपयोग करते हैं और परिणामस्वरूप वे कार्य को गड्ड-मड्ड कर इसे अस्त-व्यस्त छोड़ देते हैं। नकली अगुआओं के कार्य करने का यही तरीका है और इसके यही दुष्परिणाम होते हैं। सभी अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इसे एक चेतावनी के रूप में लेना चाहिए।
कलीसिया के भीतर दिखाई देने वाले विभिन्न असंतोषजनक मसले सीधे नकली अगुआओं से संबंधित होते हैं—इस समस्या से बचा नहीं जा सकता। इन नकली अगुआओं में सत्य को पूरी तरह समझने की क्षमता का अभाव होता है, फिर भी वे सोचते हैं कि वे सब कुछ समझते और हासिल कर लेते हैं, और फिर वे अपनी कल्पनाओं और धारणाओं के आधार पर कार्य करते हैं। वे सत्य सिद्धांतों या परमेश्वर द्वारा अपेक्षित मानकों के बारे में अपनी समझ की कमी का समाधान करने के लिए कभी सत्य की खोज नहीं करते। मैंने बहुत से अगुआओं और कार्यकर्ताओं के साथ बातचीत की है, और मैं उनसे अक्सर मिलता हूँ। मुलाकात होने पर मैं उनसे पूछता हूँ, “क्या तुम्हारी कोई समस्या है? क्या तुम लोगों ने काम में मौजूद समस्याओं का लेखाजोखा रखा है? क्या ऐसी कोई समस्या है जिसे तुम अपने बूते हल नहीं कर सकते?” जब मैं अपनी बात खत्म करता हूँ तो वे शून्य भाव से देखते हैं, और उनके दिलों में संदेह होते हैं : “हम अगुआ हैं; क्या हमारी कोई समस्या हो सकती है? अगर होती, तो क्या कलीसिया का कार्य बहुत पहले ही बाधित नहीं हो गया होता? यह किस किस्म का सवाल है? हम धर्मोपदेश और संगति सुनते हैं, और परमेश्वर के वचनों को अपने हाथों में थामे रहते हैं। कलीसिया की अगुआई करने वाले हम जैसे बहुत से लोग हैं, इतना सब होने पर भी तुम चिंतित कैसे हो सकते हो? यह सवाल पूछकर तुम स्पष्ट रूप से हमें कम आँक रहे हो। हमारे पास समस्याएँ कैसे हो सकती हैं? अगर हमारे पास समस्याएँ होतीं, तो हम अगुआ नहीं होते। तुम्हारा सवाल बहुत अनुचित है!” जब भी मैं उनसे पूछता हूँ कि क्या उन्हें कोई समस्या है, तो वे ऐसी ही स्थिति में होते हैं—वे सभी सुन्नता और मंदबुद्धि के प्रतिरूप हैं। कलीसिया के कार्य के विभिन्न मदों में बहुत सारी समस्याएँ हैं, लेकिन ये लोग उन्हें देख या खोज नहीं पाते। व्यक्तिगत जीवन प्रवेश से संबंधित मुद्दों या कार्य में मौजूद जिन मुद्दों में सत्य सिद्धांत शामिल होते हैं, वे उन्हें सामने लाने में असमर्थ होते हैं। चूँकि वे इन मुद्दों को सामने नहीं ला सकते, इसलिए मैं उनसे पूछता हूँ, “परमेश्वर के वचनों के अनुवाद का कार्य कैसे आगे बढ़ रहा है? क्या तुम्हें पता है कि अभी कितनी भाषाओं में अनुवाद किया जाना चाहिए? किन भाषाओं में पहले अनुवाद किया जाना चाहिए और किन भाषाओं में बाद में? किन भाषाओं के लिए परमेश्वर के वचनों की पुस्तक की कितनी प्रतियाँ छापी जानी चाहिए?” वे जवाब देते हैं, “आह, उनका अनुवाद चल रहा है।” मैं उनसे पूछता हूँ, “अनुवाद कहाँ तक आगे बढ़ा? क्या कोई समस्या है?” वे जवाब देते हैं, “मुझे नहीं पता; मुझे पूछना होगा।” मुझे उनसे इन चीजों के बारे में पूछना होता है, और उन्हें जवाब नहीं मालूम होते। तो, वे पूरे समय क्या काम कर रहे थे? मैं उनसे पूछता हूँ, “क्या तुमने उन मुद्दों को हल किया जिनके बारे में भाई-बहनों ने पिछली बार सवाल किया था?” वे जवाब देते हैं, “मैंने उनके साथ एक सभा आयोजित की थी—पूरे एक पूरे दिन की सभा।” मैं उनसे पूछता हूँ, “क्या सभा के बाद मुद्दे हल हो गए थे?” वे जवाब देते हैं, “क्या तुम्हारा मतलब है कि अगर अभी भी समस्याएँ हैं, तो हमें एक और सभा करनी चाहिए?” मैं कहता हूँ, “मैं यह नहीं पूछ रहा हूँ कि तुमने सभा आयोजित की या नहीं। मैं पूछ रहा हूँ कि क्या पेशेवर मुद्दे हल हो गए। क्या ये लोग सिद्धांतों को समझते हैं? क्या उन्होंने अपने कर्तव्यों के पालन में किसी सिद्धांत का उल्लंघन किया है? क्या तुम्हें कोई समस्या मिली है?” वे जवाब देते हैं, “ओह, समस्याएँ? मैं उन्हें हल कर चुका हूँ। मैंने भाई-बहनों के लिए एक सभा आयोजित की थी।” क्या ऐसी बातचीत जारी रखी जा सकती है? (नहीं, ऐसा नहीं हो सकता।) क्या इस बातचीत को सुनकर तुम लोगों को गुस्सा नहीं आता? (हाँ, आता है।) ये अगुआ कैसे हैं? क्या ये केवल छद्म-आध्यात्मिक मूर्ख नहीं हैं? उनमें अगुआओं और कार्यकर्ताओं की काबिलियत नहीं है; वे अंधे हैं, उन्हें समझ नहीं आता कि काम कैसे करना है, और वे हर सवाल के जवाब में कहते हैं, “मुझे नहीं पता”, और जब तुम उनसे और सवाल पूछते रहते हो तो वे जवाब देते हैं, “वैसे भी, मैंने एक सभा की थी; बस अब रहने दो!” क्या इन अगुआओं ने वास्तव में काम किया है? क्या वे मानक स्तर के अगुआ हैं? (नहीं।) ये नकली अगुआ हैं। क्या तुम लोगों को इस तरह के अगुआ पसंद हैं? अगर तुम्हारा सामना ऐसे अगुआओं से हो, तो तुम लोगों को क्या करना चाहिए? जब कुछ अगुआ भाई-बहनों से मिलते हैं, तो वे कहते हैं, “आज तुम्हारे सामने चाहे जो मुद्दे हों, आओ, सबसे पहले इस बात पर संगति करते हैं कि कर्तव्यों को अच्छी तरह से कैसे निभाया जाए।” तब कुछ लोग कहते हैं, “हमें अपने कर्तव्यों में पेशेवर तकनीकों से जुड़े एक मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है : क्या हमें उन पेशेवर तकनीकों का उपयोग करना चाहिए जो गैर-विश्वासियों के बीच लोकप्रिय हैं?” क्या यह ऐसी समस्या नहीं है जिसे अगुआओं को हल करना चाहिए? यदि कुछ मुद्दों को भाई-बहनों के बीच संगति के माध्यम से हल नहीं किया जा सकता, तो अगुआओं को उन्हें हल करने के लिए कदम उठाना चाहिए—यह अगुआओँ की जिम्मेदारियों से जुड़ा मामला है। नकली अगुआ इन समस्याओं के सामने आने पर क्या करते हैं? वे कहते हैं, “यह एक पेशेवर मुद्दा है; यह तुम्हारी समस्या है, इसका मुझसे क्या मतलब? इस मुद्दे पर तुम स्वयं संगति करो, लेकिन पहले मैं तुम लोगों के लिए एक सभा आयोजित करने जा रहा हूँ। आज की सभा में हम सामंजस्यपूर्ण सहयोग पर संगति करेंगे। तुमने जो प्रश्न अभी पूछा है वह सामंजस्यपूर्ण सहयोग से संबंधित है। तुम लोगों को चीजों पर चर्चा करने और एक साथ संगति करने, और अधिक शोध करने में सक्षम होना चाहिए; किसी को भी आत्मतुष्ट नहीं होना चाहिए, और सभी को किसी भी ऐसे निर्णय को स्वीकार करना चाहिए जिसे बहुमत का समर्थन प्राप्त है—क्या यह सामंजस्यपूर्ण सहयोग का प्रश्न नहीं है? ऐसा लगता है कि तुम लोग सामंजस्यपूर्ण सहयोग करना नहीं जानते, या समस्याएँ आने पर उन पर चर्चा करना नहीं जानते। तुम मुझसे हर समस्या के बारे में पूछते हो। तुम मुझसे किसलिए पूछ रहे हो? क्या मैं इन चीजों को समझता हूँ? अगर मैं समझता, तो क्या तुम लोगों के पास करने के लिए कुछ होता? तुम मुझसे हर चीज के बारे में पूछते हो। क्या यह ऐसी समस्या है जिसे मुझे सँभालना चाहिए? मैं केवल सत्य पर संगति करने का जिम्मेदार हूँ; पेशेवर मुद्दों को तुम खुद हल करो। मुझे उनकी क्या चिंता? वैसे भी, मैंने पहले ही तुम लोगों के साथ संगति की है और तुम लोगों को सामंजस्यपूर्ण सहयोग करने के लिए कहा है—यदि तुम लोग ऐसा नहीं कर सकते तो यह कर्तव्य मत निभाओ। मैंने अपनी संगति समाप्त कर ली है; जाकर समस्या खुद हल करो।” क्या ये अगुआ समस्याएँ हल करना जानते हैं? (नहीं, वे नहीं जानते।) यह नहीं जानते हुए भी कि यह काम कैसे करना है, वे खुद को बहुत न्यायसंगत समझते हैं, और जिम्मेदारी से बचने में माहिर होते हैं। सभी तरह से ऐसा प्रतीत होता है कि वे अपना काम कर चुके होते हैं, वे निरीक्षण करने के लिए घटनास्थल पर पहुँचे होते हैं, और काम में ढिलाई नहीं बरत रहे होते हैं। परंतु, वे वास्तविक काम नहीं कर सकते या वास्तविक समस्याओं का समाधान नहीं कर सकते, जिसका अर्थ है कि वे नकली अगुआ हैं। क्या तुम इस तरह के नकली अगुआ को पहचान सकते हो? किसी भी समस्या से सामना होने पर, वे प्रासंगिक सत्य पर संगति नहीं कर सकते : वे केवल कुछ खोखले धर्म-सिद्धांत और सिद्धांत बोलते हैं जो सुनने में काफी ऊँचे और गहन लगते हैं, और जब लोग उन्हें सुनते हैं, तो वे न केवल सत्य नहीं समझ पाते हैं, बल्कि भ्रमित और दिशाभ्रमित भी महसूस करते हैं। यही वह काम है जो नकली अगुआ करते हैं।
“उन सत्य सिद्धांतों पर संगति करना जिन्हें प्रत्येक कर्तव्य को ठीक से निभाने के लिए समझा जाना चाहिए” के कार्य में नकली अगुआ पूरी तरह से उजागर हो जाते हैं। वे सत्य सिद्धांतों पर संगति करने, या लोगों को उनके कर्तव्यों के निर्वाह में सत्य सिद्धांतों का पालन और अभ्यास करने के लिए प्रेरित करने में, या सत्य वास्तविकता समझने और उसमें प्रवेश करने में उनका मार्गदर्शन करने में असमर्थ होते हैं—वे उन जिम्मेदारियों को पूरा नहीं कर सकते जो अगुआओं को करनी चाहिए। और इतना ही नहीं, वे विभिन्न कार्यों के पर्यवेक्षकों और विभिन्न महत्वपूर्ण कार्यों के लिए जिम्मेदार कार्मिकों की परिस्थितियों से भी अवगत नहीं रह पाते, और भले ही इस पर कुछ हद तक उनकी पकड़ हो, लेकिन वह सटीक नहीं होती। इससे काम के विभिन्न मदों में भारी व्यवधान पड़ते हैं और नुकसान होते हैं। ये नकली अगुआओं की विभिन्न अभिव्यक्तियाँ हैं जिन्हें हम आज अगुआओं और कार्यकर्ताओं की चौथी जिम्मेदारी के संबंध में उजागर करने जा रहे हैं।
मद चार : विभिन्न कार्यों के पर्यवेक्षकों और विभिन्न महत्वपूर्ण कार्यों के लिए जिम्मेदार कर्मियों की परिस्थितियों से अवगत रहो, और आवश्यकतानुसार तुरंत उनके कर्तव्यों में बदलाव करो या उन्हें बरखास्त करो, ताकि अनुपयुक्त लोगों को काम पर रखने से होने वाला नुकसान रोका या कम किया जा सके, और कार्य की दक्षता और सुचारु प्रगति की गारंटी दी जा सके
अगुआओं और कार्यकर्ताओं को विभिन्न कार्यों के पर्यवेक्षकों की परिस्थितियों को अवश्य समझना चाहिए
चौथी जिम्मेदारी क्या है? (विभिन्न कार्यों के पर्यवेक्षकों और विभिन्न महत्वपूर्ण कार्यों के लिए जिम्मेदार कर्मियों की परिस्थितियों से अवगत रहना, और आवश्यकतानुसार तुरंत उन्हें हटाना या दूसरा काम देना, ताकि अनुपयुक्त लोगों को काम पर रखने से होने वाला नुकसान रोका या कम किया जा सके, और कार्य की दक्षता और सुचारु प्रगति की गारंटी दी जा सके।) यह सही है, यही वह न्यूनतम मानक है जिसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को काम करते समय पूरा करने में सक्षम होना चाहिए। क्या तुम सब इस चौथे मद के संबंध में अगुआओं और कार्यकर्ताओं की मुख्य जिम्मेदारियों के बारे में स्पष्ट हो? अगुआओं और कार्यकर्ताओं को विभिन्न कार्यों के सुपरवाइजरों और विभिन्न महत्वपूर्ण कार्यों के लिए जिम्मेदार कार्मिकों की साफ समझ होनी चाहिए। अगुआओं और कार्यकर्ताओं की यह जिम्मेदारी भी बनती है कि वे विभिन्न कार्यों के सुपरवाइजरों और विभिन्न महत्वपूर्ण कार्यों के लिए जिम्मेदार कार्मिकों की परिस्थितियों की पकड़ रखें। तो ये कार्मिक कौन होते हैं? ये मुख्य तौर पर कलीसिया के अगुआ और साथ ही टीम सुपरवाइजर और विभिन्न समूहों के अगुआ होते हैं। क्या यह समझना और ऐसी परिस्थितियों पर पकड़ रखना अत्यंत महत्वपूर्ण नहीं है कि विभिन्न कार्यों के सुपरवाइजरों और विभिन्न महत्वपूर्ण कार्यों के लिए जिम्मेदार कार्मिकों में सत्य वास्तविकता है या नहीं, वे अपने कार्यकलापों में सिद्धांतनिष्ठ हैं या नहीं और वे कलीसिया का काम अच्छी तरह से कर सकते हैं या नहीं? यदि अगुआ और कार्यकर्ता विभिन्न कार्यों के मुख्य सुपरवाइजरों की परिस्थितियों पर पूरी तरह पकड़ रखते हैं और कार्मिकों में उपयुक्त समायोजन करते हैं तो यह उनके कार्य के हर हिस्से का उचित पुनरीक्षण करने जैसा और अपने उत्तरदायित्वों और कर्तव्यों को अच्छे से निभाने के बराबर है। यदि इन कार्मिकों का सही समायोजन नहीं किया जाता और कोई समस्या उत्पन्न होती है तो कलीसिया का कार्य बहुत प्रभावित होता है। यदि ये कार्मिक अच्छी मानवता वाले हैं, परमेश्वर में उनके विश्वास का एक आधार है, वे जिम्मेदारी से मामले सँभालते हैं और समस्याएँ हल करने के लिए सत्य खोजने में सक्षम हैं तो उन्हें काम का प्रभार देने से बहुत सी परेशानियों से बचा जा सकेगा और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इससे काम सुचारु रूप से आगे बढ़ सकेगा। लेकिन अगर विभिन्न टीमों के सुपरवाइजर भरोसेमंद नहीं हैं, उनकी मानवता खराब है, व्यवहार अच्छा नहीं है और वे सत्य को अभ्यास में नहीं लाते हैं, और इसके अलावा अगर यह आशंका है कि वे गड़बड़ी पैदा कर सकते हैं और बाधा डाल सकते हैं तो इसका प्रभाव उस कार्य पर पड़ेगा जिसके लिए वे जिम्मेदार हैं और उन भाई-बहनों के जीवन प्रवेश पर भी प्रभाव पड़ेगा जिनकी वे अगुआई करते हैं। बेशक यह प्रभाव बड़ा या छोटा हो सकता है। यदि सुपरवाइजर केवल अपने कर्तव्यों के प्रति उपेक्षा भाव रखते हैं और अपने उचित कार्य पर ध्यान नहीं देते तो इस कारण संभवतः कार्य में कुछ देरी होगी; प्रगति थोड़ी धीमी होगी और काम थोड़ा कम कुशलतापूर्वक होगा। परंतु अगर वे मसीह-विरोधी हैं तो समस्या गंभीर होगी : यह कार्य के थोड़ा अधिक अप्रभावी या अकुशलतापूर्ण होने की समस्या नहीं होगी—वे कलीसिया के उस कार्य को बाधित और बर्बाद कर देंगे जिसके लिए वे जिम्मेदार हैं। इससे गंभीर नुकसान होगा। और इसीलिए विभिन्न कार्यों के सुपरवाइजरों और विभिन्न महत्वपूर्ण कार्यभार के लिए जिम्मेदार कार्मिकों की परिस्थितियों के बारे में हर समय समझ रखना और यह पता चलने पर कि कोई व्यक्ति वास्तविक कार्य नहीं कर रहा है, समय पर उसे बदल देना और बरखास्त करना ऐसा दायित्व नहीं है जिससे अगुआ और कार्यकर्ता बच सकें—यह बहुत गंभीर, बहुत महत्वपूर्ण कार्य है। अगर अगुआ और कार्यकर्ता विभिन्न कार्यों के सुपरवाइजरों और विभिन्न महत्वपूर्ण सेवाओं के लिए जिम्मेदार कार्मिकों के चरित्र और सत्य तथा कर्तव्यों के प्रति उनके दृष्टिकोण के साथ ही प्रत्येक अवधि और प्रत्येक चरण के दौरान उनकी दशाओं और प्रदर्शन को जानते रहें और परिस्थितियों के अनुसार तुरंत फेरबदल कर सकें या उन लोगों को सँभाल सकें, तो कार्य लगातार आगे बढ़ सकता है। इसके विपरीत, यदि वे लोग बेकाबू होकर बुरे काम करते हैं और कलीसिया में वास्तविक कार्य नहीं करते हैं, और अगुआ और कार्यकर्ता इसे तुरंत पहचानकर समय पर फेरबदल नहीं कर पाते, बल्कि कलीसिया के कार्य को काफी नुकसान पहुँचाने वाली तमाम तरह की गंभीर समस्याएँ उभरने की प्रतीक्षा करते हैं, फिर उन्हें संभालने, फेरबदल करने और स्थिति को सुधारने और ठीक करने की कोशिश करते हैं, तो वे अगुआ और कार्यकर्ता बेकार हैं। वास्तव में वे नकली अगुआ हैं जिन्हें बरखास्त कर हटा दिया जाना चाहिए।
अभी-अभी हमने विभिन्न कार्यों के पर्यवेक्षकों की वास्तविक स्थितियों और उनके काम की प्रभावशीलता को समझने और उन पर पकड़ रखने के महत्व पर विस्तृत तरीके से संगति की जिसमें इन वास्तविक स्थितियों का उपयोग यह आकलन करने के लिए किया गया कि क्या अगुआओं और कार्यकर्ताओं ने अपनी जिम्मेदारियों को पूरा किया है, और उजागर किय़ा कि वे किन अभिव्यक्तियों का प्रदर्शन करते हैं जिससे साबित होता हैं कि वे नकली अगुआ हैं, और इससे नकली अगुआओं के सार का गहन-विश्लेषण किया गया। जब कलीसिया के काम में गंभीर समस्याएँ आती हैं, तो नकली अगुआ अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करने में विफल रहते हैं। वे इन मुद्दों को तुरंत नहीं खोज पाते, फिर समय पर उन्हें सँभालना और हल करना तो दूर की बात है। इससे मुद्दे लंबे समय तक खिंचते रहते हैं, जो कलीसिया के काम में देरी और हानि का कारण बनते हैं, और यहाँ तक कि कलीसिया के काम को पूरी तरह से पंगु या अव्यवस्थित कर सकते हैं। ऐसा होने पर ही नकली अगुआ अनिच्छा से कलीसिया के काम की स्थिति की जाँच-परख करने जाते हैं, फिर भी वे समस्याएँ हल करने के लिए संगत या उचित समाधानों की पहचान नहीं कर पाते हैं, और अंततः वे उन्हें अनसुलझा ही छोड़ देते हैं। यह नकली अगुआओं की प्राथमिक अभिव्यक्ति है।
विभिन्न कार्यों के पर्यवेक्षकों को चुनने के मानक
क्या अधिकांश लोग विभिन्न कार्यों के पर्यवेक्षकों और विभिन्न महत्वपूर्ण कार्यों के लिए जिम्मेदार कर्मियों के चयन के मानकों के बारे में थोड़ा-बहुत जानते हैं? उदाहरण के लिए, कलाकृतियाँ बनाने के कार्य के पर्यवेक्षक में मुख्यतः क्या होना चाहिए? (उसमें इस क्षेत्र का व्यावसायिक कौशल होना चाहिए और उसे काम सँभालने में सक्षम होना चाहिए।) व्यावसायिक कौशल होना एक सिद्धांत है। तो, ये व्यावसायिक कौशल विशेष रूप से किससे संबंधित हैं? आओ, इसकी व्याख्या करते हैं। यदि किसी को चित्रकारी पसंद है और कलाकृतियाँ बनाने में रुचि है, लेकिन यह उसका पेशा नहीं है, और उसे इस क्षेत्र का ज्ञान नहीं है, और वह इसे केवल पसंद करता है, तो क्या ऐसे व्यक्ति को कला टीम के पर्यवेक्षक के रूप में चुनना उचित है? (नहीं, यह उचित नहीं है।) कुछ लोग कहते हैं, “यदि उसे कलाकृतियाँ बनाना पसंद है, तो वह काम कर सकता है और धीरे-धीरे इस बारे में सीख सकता है।” क्या यह कथन सही है? (नहीं।) इसका एक अपवाद है, जो यह है कि यदि कला टीम में बाकी सभी लोग भी इस पेशे से अपरिचित हों, और यह व्यक्ति दूसरों की तुलना में थोड़ा अधिक जानता हो और तेजी से सीखता हो। क्या उसे चुनना अपेक्षाकृत उचित होगा? (हाँ।) इस परिदृश्य से अलग, मान लो कि कलाकृति बनाने में शामिल सभी लोगों में से केवल यही व्यक्ति पेशे को नहीं जानता, लेकिन उसे इसलिए चुना जाता है क्योंकि वह सत्य समझता हैं और कलाकृति बनाना पसंद करता है—क्या यह उचित है? (नहीं, यह उचित नहीं है।) यह उचित क्यों नहीं है? क्योंकि ऐसा व्यक्ति पहली या एकमात्र पसंद नहीं हैं। तो फिर इस प्रकार के पर्यवेक्षक का चयन कैसे किया जाना चाहिए? उसे उन लोगों में से चुना जाना चाहिए जो पेशे में सबसे अधिक कुशल और अनुभवी हों; यानी, उसे विशेषज्ञ होना चाहिए, उसमें व्यावसायिक कौशल और कार्य क्षमता दोनों होनी चाहिए—किसी आम आदमी का चयन नहीं किया जाना चाहिए। यह एक पहलू है। इसके अलावा, उसे दायित्व उठाना चाहिए, आध्यात्मिक समझ होनी चाहिए और सत्य समझने में सक्षम होना चाहिए। उसके पास कम से कम परमेश्वर में विश्वास का आधार भी होना चाहिए। मुख्य सिद्धांत हैं : पहला, उसके पास कार्य क्षमताएँ होनी चाहिए; दूसरा, उसे पेशा समझ में आना चाहिए; और तीसरा, उसके पास आध्यात्मिक समझ होनी चाहिए और सत्य समझने में सक्षम होना चाहिए। विभिन्न कार्यों के लिए पर्यवेक्षकों का चयन करने के लिए इन तीन मानदंडों का उपयोग करो।
विभिन्न कार्यों के पर्यवेक्षकों के संबंध में नकली अगुआओं की अभिव्यक्तियाँ
कार्य की विभिन्न विशिष्ट मदों के लिए पर्यवेक्षकों का चयन करने के बाद, ऐसा नहीं होना चाहिए कि अगुआ और कार्यकर्ता बस एक तरफ खड़े रहें और कुछ नहीं करें; कुछ समय तक उन्हें इन पर्यवेक्षकों को प्रशिक्षित और विकसित भी करना होता है, ताकि यह देखा जा सके कि उनके चुने व्यक्ति वास्तव में काम को सँभाल सकते हैं या नहीं और इसे सही रास्ते पर ला सकते हैं या नहीं। अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने का यही मतलब है। मान लो कि चयन के समय तुम देखते हो कि अभ्यर्थी अपने पेशे को समझते हैं, काम करने की क्षमता रखते हैं, थोड़ा दायित्व उठाते है, और आध्यात्मिक समझ तथा सत्य समझने की क्षमता रखते हैं, और तुम्हें लगता है कि सब कुछ ठीक रहेगा क्योंकि वे इन मामलों में योग्य हैं, और तुम कहते हो, “तुम लोग काम करना शुरू कर सकते हो; मैंने तुम लोगों को सभी सिद्धांत बता दिए हैं। अब से बस वही करो जिसका परमेश्वर का घर तुम्हें निर्देश दे।” क्या यह काम करने का स्वीकार्य तरीका है? क्या पर्यवेक्षकों की व्यवस्था कर लेने का मतलब यह है कि तुम इसे ऐसे ही छोड़ सकते हो? (नहीं, ऐसा नहीं है।) तो क्या किया जाना चाहिए? मान लो कि कोई अगुआ सप्ताह में दो बार पर्यवेक्षकों से मिलता है, और यह मानते हुए कि वे सभी पर्यवेक्षक अग्रसक्रिय हैं, भरोसेमंद हैं, और दूसरे लोग जो कहते हैं उसे समझने में सक्षम हैं, इसलिए वे सत्य के अनुसार अभ्यास कर सकते हैं, वह उनके साथ बस सत्य पर संगति करता है। यह अगुआ सोचता है कि उन्हें यह देखने या अनुसरण करने की आवश्यकता नहीं है कि ये पर्यवेक्षक अपना काम खास तौर पर कैसे करते हैं, क्या वे दूसरों के साथ सामंजस्यपूर्ण सहयोग करते हैं, क्या उन्होंने इस अवधि के दौरान इससे संबंधित व्यावसायिक कौशल को समझा है, या उन्होंने परमेश्वर के घर द्वारा उन्हें दिए गए कार्य को कितना पूरा किया है। क्या यही वह तरीका है जिससे किसी अगुआ और कार्यकर्ता को काम संभालना चाहिए? (नहीं, यह तरीका नहीं है।) नकली अगुआ इसी तरह अपना काम करते हैं। वे एक बार में ही पूरा काम निपटा देने की कोशिश करते हैं, वे पर्यवेक्षकों की व्यवस्था करते हैं और कुछ सदस्यों को लेकर एक टीम बनाते हैं, और फिर कहते हैं, “काम शुरू करो। अगर तुम्हें किसी उपकरण की जरूरत हो तो मुझे बताओ, और परमेश्वर का घर तुम लोगों के लिए उसे खरीदेगा। यदि तुम्हें अपने दैनिक जीवन में किसी कठिनाई या परेशानी का सामना करना पड़े तो उन्हें बेझिझक बताओ, और परमेश्वर का घर हमेशा तुम्हारी उन समस्याओं का समाधान करेगा। यदि तुम्हें कोई कठिनाई नहीं है तो अपने काम पर ध्यान दो। विघ्न-बाधाएँ मत पैदा करो और भारी-भरकम लगने वाले विचार मत व्यक्त करो।” नकली अगुआ व्यवस्था करता है कि ये लोग एक साथ काम करें, और सोचता है कि उनके पास खाना-पानी और रहने की जगह होना ही पर्याप्त है, और उन पर कोई ध्यान देने की जरूरत नहीं है। जब ऊपरवाला पूछता है, “इस काम के लिए पर्यवेक्षकों का चयन किए हुए कितना समय हो गया है? काम की प्रगति कैसी है?” नकली अगुआ जवाब देता है, “छह महीने हो गए हैं। मैंने उनके लिए लगभग 10 सभाएँ की हैं, और उनका मन-मिजाज अच्छा दिखता है, और काम हो रहा है।” ऊपरवाला जब पूछता है, “तो, पर्यवेक्षकों की कार्य क्षमता कैसी है?” वह कहता है, “वह ठीक है; जब हमने उन्हें चुना था तो वे सबसे अच्छे थे।” ऊपरवाला उनसे पूछता है, “अब वे कैसे हैं? क्या वे वास्तविक काम कर सकते हैं?” वह जवाब देता है, “मैंने उनके लिए एक सभा आयोजित की थी।” ऊपरवाला कहता है, “मैंने यह नहीं पूछा कि तुमने कोई सभा आयोजित की या नहीं; मैंने पूछा कि उनका काम कैसा चल रहा है।” वह कहता है, “शायद सब ठीक है; किसी ने उनके बारे में कोई भी बुरी बात नहीं बताई है।” ऊपरवाला जवाब देता है, “किसी ने उनके बारे में कुछ भी बुरा नहीं बताया है, यह कोई मानक नहीं है। तुम्हें यह देखना चाहिए कि उनकी कार्य क्षमता और व्यावसायिक कौशल कैसा है, और क्या उनके पास आध्यात्मिक समझ है, और क्या वे वास्तविक काम करते हैं।” वह जवाब देता है, “चयन के समय, वे ठीक लग रहे थे। मैंने बीते कुछ समय से इन विवरणों की जांच नहीं की है। यदि तुम जानना चाहते हो तो मैं फिर से पूछूँगा।” नकली अगुआ इसी तरह काम करते हैं। वे अपने से नीचे के लोगों के साथ अंतहीन सभाएँ और संगति करते रहते हैं, लेकिन जब ऊपरवाले की बात आती है, तो टालमटोल करते हैं और अनमनेपन से जवाब देते हैं। नकली अगुओं का सबसे अच्छा अनमना जवाब यह होता है कि “मैंने उनके लिए एक सभा आयोजित की थी। पिछली बार, मैंने काम के बारे में काफी विस्तार से पूछा था।” ऊपरवाले को वे इस तरह के जवाब देते हैं। क्या ये नकली अगुआ असली काम कर रहे हैं? क्या उन्होंने असली मुद्दों की पहचान की है? क्या उन्होंने उन्हें हल किया है? पर्यवेक्षकों की व्यवस्था करने के बाद, नकली अगुआ इस बारे में पूरी तरह से अनभिज्ञ होते हैं कि क्या पर्यवेक्षकों ने अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी की हैं या क्या वे निष्ठावान रहे हैं, काम कैसे किया जा रहा है, परिणाम अच्छे हैं या बुरे, भाई-बहन उनके बारे में कैसी सूचना दे रहे हैं, या क्या उस काम के लिए और अधिक उपयुक्त व्यक्ति उपलब्ध हैं। वे इन चीजों से अनभिज्ञ क्यों हैं? क्योंकि वे यह वास्तविक काम नहीं करते; वे बस बेकार की चीजों में खुद को व्यस्त रखते हैं। उन्हें लगता है कि इस तरह से लगातार काम की निगरानी और निरीक्षण करना अनावश्यक है, इसका मतलब होगा कि उन्हें उन पर्यवेक्षकों पर भरोसा नहीं है। उनके दिमाग में होता है कि सभाएँ आयोजित करना अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करना और निष्ठा प्रदर्शित करना है। यह नकली अगुआओं द्वारा वास्तविक काम नहीं करने की प्राथमिक अभिव्यक्ति है।
I. नकली अगुआ उन पर्यवेक्षकों से कैसे पेश आते हैं जो वास्तविक कार्य नहीं करते
नकली अगुआ कलीसिया में हर तरह के कार्य के पर्यवेक्षकों की विभिन्न परिस्थितियों के प्रति अपनी आँखें मूँद लेते हैं; उन्हें इन परिस्थितियों की समझ नहीं होती, या वे उन पर ध्यान नहीं देते, या उन्हें सँभालते नहीं, या उनका समाधान नहीं करते। पर्यवेक्षकों के सामने कौन-सी विशिष्ट परिस्थितियाँ होती हैं? पहली परिस्थिति यह होती है कि पर्यवेक्षक कोई दायित्व नहीं उठाते, और अपने उचित या वास्तविक काम पर ध्यान दिए बिना खाते-पीते और मनोरंजन करते रहते हैं। क्या यह एक गंभीर समस्या नहीं है? (हाँ, है।) कुछ लोगों में काम करने की क्षमता होती है, वे किसी पेशे में कुशल होते हैं, और अपने काम में सबसे अच्छे होते हैं; वे स्पष्टवादी और बुद्धिमान होते हैं, और यदि उन्हें कोई निर्देश दोहराने के लिए कहा जाए तो वे उसे शब्दशः दोहरा सकते हैं, वे काफी चतुर होते हैं; सभी लोग उनका मूल्यांकन काफी अच्छे के रूप में करते हैं, और वे काफी समय से विश्वासी रहे होते हैं। परिणामस्वरूप, उन्हें पर्यवेक्षक बनने के लिए चुना जाता है। हालाँकि, कोई नहीं जानता कि ये लोग व्यावहारिक हैं या नहीं, कीमत चुकाने में सक्षम हैं या नहीं, या वास्तविक काम करने में सक्षम हैं या नहीं। चूँकि लोगों ने उन्हें चुना होता है, इसलिए उन्हें शुरू में परीक्षण के आधार पर विकसित और उपयोग करने के लिए प्रोन्नत कर दिया जाता है। परंतु, कुछ समय तक काम करने के बाद, पता चलता है कि व्यावसायिक कौशल और अनुभव होने के बावजूद, वे पेटू और आलसी हैं, और कीमत चुकाने के लिए तैयार नहीं हैं। काम के थोड़ा थकाऊ होते ही वे काम करना छोड़ देते हैं, और वे समस्याओं या कठिनाइयों से जूझ रहे किसी भी ऐसे व्यक्ति पर ध्यान नहीं देना चाहते, जिसे उनके मार्गदर्शन की आवश्यकता हो। सुबह आँख खुलते ही वे सोचते हैं, “आज मैं क्या खाऊँगा? किचन में दम देकर पकाया हुआ सुअर का मांस बने हुए कई दिन हो गए हैं।” आम तौर पर, वे हमेशा दूसरों से कहते हैं, “मेरे गृहनगर में वास्तव में स्वादिष्ट स्नैक्स मिलते हैं; त्योहारों पर हम उन्हें खाने बाहर जाते थे। जब मैं स्कूल में था, तो सप्ताहांत में मैं उस समय तक सोता था जब तक कि मैं अपने आप न जग जाऊँ, और फिर मैं अपना चेहरा धोने या अपने बालों को कंघी करने की जहमत उठाए बिना खाना खाने चला जाता था। अपराह्न में मैं आरामदेह कपड़ों में घर में वीडियो गेम खेलता था, कभी-कभी तो अगली सुबह 5 बजे तक खेलता रहता था। अब, परमेश्वर के घर के कार्य ने मुझे इस बिंदु पर ठेल दिया है, और एक पर्यवेक्षक के रूप में मुझे कुछ निश्चित चीजें करनी होती हैं। देखो कि तुम्हारे लिए यह सब कितना अच्छा है; तुम्हें यह कीमत नहीं चुकानी पड़ती। पर्यवेक्षक के रूप में मुझे कठिनाई सहन करने में सक्षम होना चाहिए।” वे यह सब कहते हैं, लेकिन क्या वे देह के विरुद्ध विद्रोह करते हैं? क्या वे कीमत चुकाते हैं? वे शिकायतों से भरे होते हैं, और कोई भी वास्तविक कार्य करने के लिए तैयार नहीं होते हैं। वे केवल धकेले जाने पर ही आगे बढ़ते हैं, और पर्यवेक्षण न किए जाने पर वे बेपरवाही से व्यवहार करते हैं। अपने कर्तव्य निर्वहन में वे सुस्त और अनुशासनहीन होते हैं, वे अक्सर चालाक होते हैं, काम में ढिलाई बरतते हैं, और रत्ती भर भी जिम्मेदार नहीं होते। जब उनकी जानकारी में आई व्यावसायिक समस्याओं की बात आती है तो वे दूसरों के लिए उन समस्याओं को दूर नहीं करते, और वे तब खुश होते हैं जब बाकी सभी उन्ही की तरह बेपरवाही से काम करें। वे नहीं चाहते कि कोई भी काम को गंभीरता से ले। कुछ पर्यवेक्षक अपने कुछ कामों को लापरवाही और अनमने ढंग से निपटाते हैं, फिर वे लगातार एक के बाद एक टीवी ड्रामा देखते रहते हैं। वे लगातार एक के बाद एक टीवी ड्रामा किस कारण से देखते हैं? “मैंने अपने काम पूरे कर लिए हैं; मैं परमेश्वर के घर में मुफ्तखोरी नहीं कर रहा हूँ। मैं तो बस अपने दिमाग को तरोताजा करने के लिए आराम कर रहा हूँ। नहीं तो, मैं बहुत थक जाऊँगा और मेरी कार्य कुशलता पर बुरा असर पड़ेगा। मुझे अपनी कार्य कुशलता सुधारने के लिए कुछ समय आराम से रहने दो।” वे रात के 2 या 3 बजे तक नाटक देखते रहते हैं। अगले दिन सुबह 8 बजे जब और सभी लोग नाश्ता खत्म कर अपने कर्तव्य करने में लग चुके होते हैं, तब भी ये पर्यवेक्षक सो रहे होते हैं, और सूरज के सिर पर चढ़ आने के बाद भी वे बिस्तर से नहीं उठेते। बाद में, वे अनिच्छापूर्वक बिस्तर छोड़ते हैं, अंगड़ाई और जम्हाई लेते हुए अपने आलसी देह को आगे घसीटते हैं, और जब वे देखते हैं कि बाकी सभी ने काम शुरू कर दिया है, तो उन्हें डर लगता है कि दूसरे लोग उनके आलस्य पर ध्यान देंगे, तो बहाने ढूँढ़ने लगते हैं, “मैं कल रात बहुत देर तक जागता रहा, मेरे पास करने के लिए बहुत कुछ था, काम का बोझ बहुत ज्यादा था। मैं थोड़ा थका हुआ हूँ। मैंने तो कल रात सपना भी देखा कि किसी काम में कोई समस्या थी। जब मैं आज सुबह उठा, तो मेरे हाथ नींद में ही कंप्यूटर पर टाइप करने जैसी स्थिति में थे। मेरा दिमाग वास्तव में बहुत गड्डमड्ड है, और मुझे आज अपराह्न झपकी लेनी पड़ेगी।” वे बहुत देर से उठते हैं और फिर उन्हें दोपहर में भी झपकी लेनी होती है—क्या वे सूअर नहीं बन गए हैं? साफ तौर पर वे ढिलाई बरत रहे थे, फिर भी खुद को सही ठहराने और अपना बचाव करने के लिए बहाने बनाते हैं कि वे देर रात तक अपना काम कर रहे होने के कारण थके हैं। साफ तौर पर वे लगातार एक के बाद एक टीवी ड्रामा देख रहे थे, दैहिक सुख में लिप्त थे, और भोग-विलास की स्थिति में जी रहे थे, फिर भी वे दूसरों को धोखा देने के लिए उन्होंने अंततः एक अच्छा-सा बहाना ढूँढ़ लिया। क्या यह उनके उचित काम की ओर ध्यान नहीं देना नहीं है? (हाँ, यह है।) इस तरह के लोगों में काम करने की क्षमता और व्यावसायिक कौशल हो सकते हैं, लेकिन क्या वे मानक स्तर के पर्यवेक्षक हैं? जाहिर है, नहीं। वे पर्यवेक्षक होने लायक नहीं हैं क्योंकि वे बहुत आलसी हैं, वे दैहिक सुख-सुविधाओं में लिप्त हैं, भोजन, नींद और मनोरंजन के लालची हैं, और पर्यवेक्षक की जिम्मेदारियाँ उठा या निभा नहीं सकते हैं।
कुछ महिलाएँ अक्सर कपड़े, जूते, सौंदर्य प्रसाधन और भोजन सामग्रियाँ ऑनलाइन देखती रहती हैं, और इसके बाद लगातार एक के बाद एक सीरियल नाटक देखना शुरू कर देती हैं। लोग कहते हैं, “जब तुमने अपना काम पूरा नहीं किया है, तो नाटक क्यों देख रही हो? इसके अलावा, दूसरों की अभी भी बहुत सारी समस्याएँ हैं। बतौर पर्यवेक्षक, तुम्हें उनका मार्गदर्शन करना चाहिए। तुम अपनी जिम्मेदारियाँ क्यों नहीं निभा रही हो?” इस पर ये महिलाएँ कहती हैं, “लगातार सीरियल देखना भी मेरे काम का हिस्सा है। परमेश्वर के घर के वीडियो और फिल्में विकसित करनी होती हैं, और इन नाटकों में मैं प्रेरणाएँ ढूँढ़ती हूँ!” क्या यह कहना धूर्तता नहीं है? यदि वे इस पेशे से जुड़ी हैं, तो प्रेरणा के लिए कभी-कभार नाटक देखना स्वीकार्य है, लेकिन क्या दिन-रात नाटक देखना प्रेरणा की तलाश करना है? क्या यह धूर्तता नहीं है? (हाँ, है।) हर कोई जानता है कि क्या हो रहा है, इसलिए ऐसी बातें कहकर, ये महिलाएँ अपनी गरिमा और ईमानदारी का सौदा कर रही हैं। कुछ लोगों को पहले से ही वीडियो गेम खेलने की आदत होती है, और यह उनके जीवन का एक नियमित हिस्सा बन चुका होता है। परंतु, पर्यवेक्षक के रूप में चुने जाने के बाद, क्या उन्हें इन बुरी आदतों और बुराइयों को नहीं बदलना चाहिए? (हाँ।) यदि वे इनके विरुद्ध विद्रोह नहीं कर सकते, तो पर्यवेक्षक के रूप में चुने जाने पर उन्हें कहना चाहिए, “मैं यह काम नहीं कर सकता। मुझे वीडियो गेम खेलने की लत है। जब मैं उन्हें खेलता हूँ, तो मैं विस्मृति की स्थिति में पहुँच जाता हूँ, और किसी का भी हस्तक्षेप नहीं बर्दाश्त नहीं कर सकता, न ही कोई मुझे बदल सकता है। यदि तुम मुझे चुनते हो, तो इससे निश्चित रूप से काम में देरी होगी। इसलिए मुझे पर्यवेक्षक मत बनाओ।” यदि ये लोग पहले से ऐसी घोषणा नहीं करते हैं और पर्यवेक्षक चुने जाने पर प्रसन्न और गौरवान्वित महसूस करते हैं, इस रुतबे को संजोते हैं, लेकिन पर्यवेक्षक बनने से पहले की ही तरह अपनी मर्जी के मुताबिक वीडियो गेम खेलना जारी रखते हैं, तो यह अनुचित है, और इससे निश्चित रूप से काम में देरी होगी।
कुछ पर्यवेक्षकों की कुछ बुरी आदतें होती हैं। जब भाई-बहन उन्हें चुनते हैं, तो कुछ लोग उनकी स्थिति को नहीं समझते, जबकि कुछ दूसरे लोग मानते हैं कि ये लोग खुद को पूरे समय के लिए परमेश्वर के लिए खपा सकते हैं, और सोचते हैं कि युवाओं की बुरी आदतें और बुराइयाँ उम्र और सत्य की निरंतर समझ के साथ धीरे-धीरे बदल सकती हैं। कई लोग जब इन व्यक्तियों को पर्यवेक्षक के रूप में चुनते हैं, तो वे यही रवैया और दृष्टिकोण अपनाते हैं। चुने जाने के बाद, ये लोग कुछ काम करते हैं, लेकिन वे ज्यादा समय तक टिक नहीं पाते और नकारात्मक हो जाते हैं और सोचते हैं, “पर्यवेक्षक बनना आसान नहीं है। मुझे सुबह जल्दी उठ कर देर तक जागना पड़ता है, और मुझे हर कदम पर दूसरे लोगों की तुलना में ज्यादा काम और ज्यादा जाँच-परख करनी पड़ती है। मुझे चिंता भी ज्यादा करनी पड़ती है, और अपना समय और ऊर्जा भी ज्यादा खर्च करनी पड़ती है। यह काम कठिन है; बहुत थकाऊ है!” नतीजतन, वे काम छोड़ने के बारे में सोचते हैं। यदि तुम दायित्व नहीं उठाते हो, तो तुम पर्यवेक्षक का काम नहीं कर सकते। अगर तुम अपने दिल में दायित्व उठाने की भावना रखते हो, तो तुम काम के बारे में चिंता करने के इच्छुक रहोगे, और भले ही तुम दूसरों की तुलना में थोड़े ज्यादा थके हुए हो, लेकिन तुम्हें ऐसा नहीं लगेगा कि तुम कष्ट झेल रहे हो। जब आराम करने का समय होगा, तब भी तुम सोच रहे होगे कि “आज का काम कैसा रहा?” अगर तुम्हें अचानक कोई ऐसा मुद्दा याद आ जाए जो अभी तक अनसुलझा है, तो तुम सो नहीं पाओगे। अगर तुम अपने दिल में दायित्वबोध रखते हो, तो तुम हमेशा काम के बारे में सोचोगे, और तुम्हें इस बात की भी परवाह नहीं होगी कि तुम ढंग से खा रहे हो या नहीं, या आराम कर रहे हो या नहीं। अगर लोग पर्यवेक्षक के तौर पर बहुत कम दायित्वबोध रखते हैं, तो उनका थोड़ा-बहुत उत्साह केवल कुछ दिनों तक ही टिक पाता है, और समय बीतने के साथ, उनमें से कुछ लोग इसे बर्दाश्त नहीं कर पाते। वे सोचते हैं, “यह काम बहुत थका देने वाला है। मैं मनोरंजन करने और थोड़ा आराम करने का क्या तरीका अपनाऊँ? मैं कुछ वीडियो गेम खेलूँगा।” थोड़े समय तक वे अच्छा प्रदर्शन करते हैं, लेकिन अचानक उन्हें वीडियो गेम खेलने की इच्छा होने लगती है। एक बार शुरू करने के बाद, वे रुक नहीं पाते; जो थोड़ा-बहुत दायित्वबोध वे कभी रखते थे, वह गेम खेलते समय खत्म हो जाता है, साथ ही खुद को खपाने की उनकी उत्साहपूर्ण इच्छा, उनका संकल्प और अपने कर्तव्यों को पूरा करने के प्रति उनका सकारात्मक दृष्टिकोण भी खत्म हो जाता है। जब कोई उनसे कुछ पूछता है, तो वे अधीर हो जाते हैं। वे या तो लोगों की काट-छाँट करते हैं, या उन्हें भाषण देते हैं और उन पर कटाक्ष करते हैं, या काम को अनमने तरीके से करते हैं और अपना काम छोड़ देते हैं। क्या ऐसे पर्यवेक्षकों के साथ कोई समस्या नहीं है? (हाँ, है।) दिन में, वे बस ऊँघते हुए से तंद्रिल अवस्था में अपना काम बमुश्किल निपटाते हैं, और रात में, जब कोई नहीं देख रहा होता है, वे चुपके से वीडियो गेम खेलते हैं, पूरी रात पलक भी नहीं झपकाते। शुरुआत में, वे इस बारे में सहज महसूस करते हैं, सोचते हैं कि, “मैंने दिन में काम में देरी नहीं की। जो मुझे करना था, वह सारा काम मैंने कर लिया है। मैंने उन सभी समस्याओं का समाधान कर लिया है जिनके बारे में दूसरों ने मुझसे पूछा था। भले ही मैं वीडियो गेम खेलने के लिए समय निकालने के लिए रात में न सो पाऊँ, क्या इन सब बातों से मुझे निष्ठावान नहीं माना जाएगा?” इसके परिणामस्वरूप, एक बार जब वे वीडियो गेम खेलना शुरू कर देते हैं, तो वे रुक नहीं पाते, और वे किसी की बात नहीं सुनते। यद्यपि, इससे दूसरे लोगों के आराम या काम का वातावरण प्रभावित नहीं होता, फिर भी क्या ऐसे पर्यवेक्षक अपने काम की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा सकते हैं? क्या वे इसे अच्छी तरह से कर सकते हैं? (नहीं।) क्यों नहीं कर सकते? वे अक्सर बिना सोए पूरी रात वीडियो गेम खेलते हैं और उन्हें दिन में काम करना पड़ता है—किसी व्यक्ति में कितनी ऊर्जा हो सकती है? अगर वे वीडियो गेम खेलने से इसी तरह से चिपके रहते हैं, तो क्या उनमें उच्च कार्य कुशलता रहेगी? निश्चित रूप से नहीं। इसलिए, ऐसे पर्यवेक्षक अपने कर्तव्यों को पूरा नहीं कर सकते या अपने काम की जिम्मेदारी बिल्कुल भी नहीं ले सकते। यद्यपि उनके पास व्यावसायिक कौशल और कुछ काबिलियत है, लेकिन उन्हें खेलने से प्रेम है और वे अपने उचित काम पर ध्यान नहीं देते। क्या इन पर्यवेक्षकों को बर्खास्त नहीं किया जाना चाहिए? अगर उन्हें बर्खास्त नहीं किया जाता है, तो काम में देरी होगी। कुछ लोग कहते हैं, “अगर उन्हें बर्खास्त कर दिया जाता है, तो हमें उनके जैसे व्यावसायिक कौशल वाला कोई और मिलना मुश्किल होगा। हमें उन्हें यह काम करने देना होगा—वे वीडियो गेम खेलते हुए भी काम कर सकते हैं।” क्या यह कथन सही है? (नहीं, यह सही नहीं है।) कोई व्यक्ति एक साथ दो चीजों पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सकता; मनुष्यों में सीमित ऊर्जा होती है। यदि तुम अपनी अधिकांश ऊर्जा खेलने पर केंद्रित करते हो, तो अपने कर्तव्यों को करने के प्रति तुम्हारी निष्ठा प्रभावित होगी, और अपने कर्तव्यों को करने में तुम्हारी प्रभावशीलता बहुत कम हो जाएगी। यह कर्तव्य करने के प्रति गैर-जिम्मेदाराना रवैया है। भले ही कोई व्यक्ति अपना पूरा दिल और अपनी सारी ऊर्जा अपने कर्तव्य में लगा दे, तब भी जरूरी नहीं होता कि परिणाम सौ प्रतिशत मानक स्तर के हों। अपना दिल और अपनी अधिकांश ऊर्जा खेलने पर केंद्रित करने पर यह और भी बुरा होगा—उसके पास अपने कर्तव्य निर्वहन में उपयोग के लिए अधिक ऊर्जा और विचार नहीं बचेगा, और अपना कर्तव्य करने में उसकी प्रभावशीलता प्रभावित होगी। यह कहना कि प्रभावशीलता प्रभावित होगी, इसे कहने का रूढ़िवादी तरीका है; वास्तव में, अपने कर्तव्य को करने में उसकी प्रभावशीलता गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो जाएगी। यदि ऐसे पर्यवेक्षकों की पहचान हो जाती है, तो उन्हें तुरंत बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए और उन्हें दूसरी जिम्मेदारी दी जानी चाहिए, क्योंकि उन्हें पहले ही खारिज किया जा चुका होता है। ऐसा नहीं है कि केवल उनका कर्तव्य निर्वहन मानक स्तर का नहीं होगा—वे पहले से ही अपने काम की जिम्मेदारी लेने में असमर्थ हैं और अपने काम पर कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं डाल सकते। इसलिए, उनके काम को सँभालने के लिए किसी ऐसे व्यक्ति को ढूंढ़ना बेहतर विकल्प होगा जिसमें व्यावसायिक कौशल थोड़ा कम होने के बावजूद वह ईमानदार और जिम्मेदार हो।
अभी-अभी मैंने कई तरह के लोगों के बारे में संगति की है जो खाने, सोने और मनोरंजन के लालची होते हैं। एक और तरह का व्यक्ति होता है। शुरू में जब पर्यवेक्षकों का चयन किया जा रहा होता है, तो लगता है कि ऐसा व्यक्ति हर तरह से इस भूमिका के लिए उपयुक्त है, और भाई-बहन सभी उन्हें चुनने के लिए तैयार रहते हैं। उन्हें लगता है कि इस व्यक्ति में अच्छी मानवता है, वह उत्साही है, अपने पेशे में कुशल है, साथ ही टीम में हर लिहाज से सबसे अच्छा और सबसे मजबूत है, जिससे वह पर्यवेक्षक पद के लिए एक स्पष्ट विकल्प बन जाता है। परंतु, चुने जाने के कुछ समय बाद, इस व्यक्ति को अक्सर नींद आने लगती है, यहाँ तक कि सभाओं के दौरान भी। जब दूसरे उनसे बात करते हैं, तो वह हमेशा भ्रमित रहता है और सवालों के अप्रासंगिक जवाब देता है। वह पहले तो ऐसा नहीं था, तो अचानक ऐसा क्यों लगता है कि वह एक अलग व्यक्ति बन गया है? बाद में, किसी को अनजाने में पता चलता है कि इस पर्यवेक्षक की किसी खास व्यक्ति के साथ बातचीत से ऐसा लगता है कि उन दोनों के बीच कोई रोमांटिक रिश्ता है, और अटकलें लगाई जाने लगती हैं कि क्या वे वास्तव में रोमांटिक रिश्ते में हैं। जैसे-जैसे यह मामला अधिक स्पष्ट होता जाता है, यह पर्यवेक्षक पहले से अधिक उलझन में पड़ता जाता है। जब भी उससे कोई सवाल पूछा जाता है या किसी चीज के बारे में बात की जाती है, तो पहले की तरह उसके जवाब तुरंत नहीं होते, और वे पहले की तरह स्पष्ट और समझने योग्य नहीं लगते। वह वह काम कम करने लगता है जो किसी पर्यवेक्षक को करने चाहिए, और अपना कर्तव्य निभाने में उसका उत्साह कम होता जाता है। ऐसा लगता है जैसे वह कोई अलग व्यक्ति बन गया है; वह पहले की तुलना में अपने कपड़ों और व्यक्तिगत साज-सज्जा में अधिक रुचि रखने लगता है। यहाँ एक समस्या है। पहले, काम की व्यस्तता के दौरान, वह शायद ही कभी नहाता था, लेकिन अब वह दिन में दो बार अपना चेहरा धोता है, और अपने बालों में कंघी करता है और मौका मिलते ही खुद को आईने में देखता हैं, और बार-बार दूसरों से पूछता है, “क्या तुम्हें लगता है कि हाल ही में मेरी त्वचा गोरी या काली हो गई है? ऐसा क्यों लगता है कि मेरा रंग साँवला हो गया है?” लोग जवाब देते हैं, “पर्यवेक्षक होते हुए तुम्हारे लिए इन चीजों के बारे में बात करना बहुत ही तुच्छ बात है—गोरा या काला होने से किसी चीज पर क्या फर्क पड़ता है?” वह लगातार इन तुच्छ विषयों के बारे में बात करता है, और अपना काम करने के मूड में नहीं होता। उसे जब भी मौका मिलता है, वह कपड़ों, महिलाओं, पुरुषों, प्रेम और लोग किस तरह का जीवनसाथी चुनते हैं, आदि पर चर्चा करता है, लेकिन वह कभी इस बात पर चर्चा नहीं करता कि लोगों के कर्तव्यों के पालन से संबंधित क्या समस्याएँ हैं या उन्हें कैसे हल किया जाए। क्या इसमें कोई समस्या नहीं है? क्या वह अभी भी काम कर सकता है? (नहीं, वह नहीं कर सकता।) उसकी मानसिकता बदल गई है, और कर्तव्य करने के मामले अब उसके विचारों में नहीं हैं। इसके बजाय, उसका दिमाग पूरे दिन इन विचारों में उलझा रहता है कि कोई रोमांटिक रिश्ता कैसे बनाए, कैसे कपड़े पहने, और किसी विपरीत लिंगी को कैसे आकर्षित करे। गैर-विश्वासियों के बीच एक मुहावरा है : “प्यार में पड़ना।” क्या यह प्यार है? नहीं, यह गहरा गड्ढा है! एक बार जब तुम इसमें प्रवेश कर जाते हो, तो तुम वापस नहीं आ सकते। क्या अपने कर्तव्यों का पालन करने वाले कर्मियों के बीच ऐसे लोग हैं? (हाँ, हैं।) यद्यपि परमेश्वर का घर रोमांटिक साथी की तलाश करने वाले लोगों के मामले में हस्तक्षेप नहीं करता, पर अगर वे ऐसा करने में कलीसिया के जीवन में व्यवधान डालते हैं और कलीसिया के कार्य को प्रभावित करते हैं, तो उन लोगों को दूर करने की आवश्यकता है। उन जोड़ों को चले जाना चाहिए और अपने स्तर पर मिलना-जुलना चाहिए और दूसरों को प्रभावित नहीं करना चाहिए। यदि तुम ऐसे व्यक्ति हो जिसने अपना पूरा जीवन परमेश्वर के लिए खपाने के लिए समर्पित कर दिया है, और तुमने रोमांटिक संबंधों में नहीं फँसने का संकल्प लिया है, तो खुद को परमेश्वर के लिए खपाने पर ध्यान केंद्रित करो। यदि तुम्हारा कोई रोमांटिक संबंध बन गया है और अब तुम्हारा काम करने का मन नहीं करता है, तो तुम्हें पर्यवेक्षक का कर्तव्य नहीं निभाना चाहिए, और तब परमेश्वर का घर इस पद के लिए किसी अन्य व्यक्ति को चुन लेगा। तुम्हारे रोमांटिक संबंध की वजह से परमेश्वर के घर के कार्य में देरी नहीं होनी चााहिए या उसके कार्य पर प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। कार्य जारी रहना चाहिए। यह कैसे जारी रह सकता है? किसी ऐसे पर्यवेक्षक को चुनकर जो किसी रोमांटिक संबंध में न हो, जिसके पास सुदृढ़ व्यावसायिक कौशल हों और जो काम कि जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले सके, जिसे तुम काम सौंप सको। परमेश्वर का घर हमेशा इसी तरह से कार्य करता है, और यह सिद्धांत अपरिवर्तित रहता है। कुछ पर्यवेक्षक कहते हैं, “मेरे रोमांटिक संबंधों से मेरे काम पर असर नहीं पड़ता; मुझे प्रभारी बने रहने दो।” क्या हम इस कथन पर विश्वास कर सकते हैं? (नहीं, हम विश्वास नहीं कर सकते।) हम इस पर विश्वास क्यों नहीं कर सकते? क्योंकि तथ्य सबके सामने हैं! जब कोई व्यक्ति किसी रोमांटिक रिश्ते में होता है, तो वह केवल अपने रोमांटिक साथी के बारे में सोचता है, और उसका दिल इन मामलों में उलझा रहता है, और इसलिए अक्सर सभाओं के दौरान उसे नींद आने लगती है और वह अपने कर्तव्य पूरा नहीं कर पाता। इसलिए, परमेश्वर का घर ऐसे व्यक्तियों के साथ जिस तरह से व्यवहार करता है वह उचित और सिद्धांतों के अनुरूप है। परमेश्वर का घर तुम्हें मिलने-जुलने से नहीं रोकता है, न ही यह मिलने-जुलने की तुम्हारी स्वतंत्रता से तुम्हें वंचित करता है। तुम किसी के साथ अपने दिल की इच्छा के अनुसार मिलना-जुलना कर सकते हो : यह तुम्हारा अपना निर्णय है, जब तक कि तुम्हें इसका पछतावा न हो, और बाद में तुम्हें इसके बारे में रोना न पड़े। कुछ पर्यवेक्षकों को रोमांटिक रिश्ते के कारण बर्खास्त कर दिया गया है। कुछ लोग पूछते हैं, “क्या रोमांटिक रिश्ते में होने के बाद किसी व्यक्ति को परमेश्वर में विश्वास करने की अनुमति नहीं है?” परमेश्वर के घर ने ऐसा कभी नहीं कहा। क्या ऐसा है कि परमेश्वर का घर उन सभी लोगों को अस्वीकार या निष्कासित करता है जिनके रोमांटिक रिश्ते हैं? (नहीं।) यदि तुम किसी रोमांटिक रिश्ते में हो, तो तुम पर्यवेक्षक या अगुआ या कार्यकर्ता नहीं हो सकते, और यदि तुम अपने कर्तव्यों को पूरा करने के लिए समर्पित नहीं हो, तो तुम्हें कलीसिया में पूर्णकालिक कर्तव्य छोड़ देना चाहिए। क्या किसी ने कहा है कि तुम्हें अब परमेश्वर में विश्वास करने की अनुमति नहीं है, या तुम्हें निष्कासित कर दिया जाएगा? क्या किसी ने ऐसा कहते हुए कोई फैसला सुनाया है कि तुम्हें बचाया नहीं जा सकता, या तुम्हें शाप दिया जाएगा? (नहीं।) परमेश्वर के घर ने कभी ऐसी बातें नहीं कही हैं। परमेश्वर का घर तुम्हारी व्यक्तिगत पसंद और स्वतंत्रता में बिल्कुल भी हस्तक्षेप नहीं करता; यह तुम्हारी किसी भी स्वतंत्रता को बिल्कुल भी नहीं छीनता—यह तुम्हें स्वतंत्रता देता है। परंतु, जब इस तरह के पर्यवेक्षक की बात आती है, तो उनके साथ व्यवहार करने के लिए परमेश्वर के घर का सिद्धांत उन्हें बर्खास्त करना और उनकी जगह लेने के लिए एक उपयुक्त व्यक्ति को ढूँढ़ना है। यदि वे कर्तव्य जारी रखने के लिए उपयुक्त हैं, तो वे इसे जारी रख सकते हैं। यदि नहीं, तो उन्हें विदा कर दिया जाएगा। उनके साथ कोई मारपीट या मौखिक दुर्व्यवहार या अपमान नहीं होगा। यह कोई शर्मनाक बात नहीं है; यह बहुत सामान्य बात है। तो जब कुछ लोगों को उनके रोमांटिक संबंधों के कारण पद से हटा दिया जाता है या साधारण कलीसियाओं में भेज दिया जाता है, तो क्या यह शर्मनाक है? इसका केवल यह संकेत हो सकता है कि उनमें अपने कर्तव्यों को निभाने की निष्ठा कम है, वे सत्य में रुचि नहीं रखते, और अपने स्वयं के जीवन प्रवेश के लिए बिल्कुल भी दायित्व नहीं उठाते हैं। इस तरह के पर्यवेक्षक अपने उचित काम पर ध्यान नहीं देते—वे केवल रोमांटिक संबंधों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जिसके कारण कलीसिया के कार्य में देरी होती है, और वे पहले ही कलीसिया के कार्य की प्रगति को प्रभावित कर चुके होते हैं—क्या यह गंभीर समस्या नहीं है? (हाँ, है।) इसलिए, इस तरह के पर्यवेक्षक को बनाए रखना उचित नहीं है और उन्हें उनके पद से हटा दिया जाना चाहिए। कुछ लोग कहते हैं, “क्या उन्हें हटाना थोड़ी जल्दबाजी नहीं है?” यदि उनके रोमांटिक रिश्ते की शुरुआत से लेकर उनके हटाए जाने तक, केवल एक या दो दिन ही बीते हैं, तो इसे जल्दबाजी माना जा सकता है। लेकिन अगर तीन से पाँच महीने बीत चुके हैं, तो क्या इसे तब भी जल्दबाजी माना जाएगा? (नहीं।) कार्रवाई काफी धीमी गति से की गई है, जबकि पहले ही काम में बहुत विलंब हो चुका होता है—तुम लोग इसके बारे में चिंतित क्यों नहीं हो? क्या यह कोई समस्या नहीं है? (हाँ, यह समस्या है।)
नकली अगुआ उन पर्यवेक्षकों के बारे में कभी पूछताछ नहीं करते जो वास्तविक कार्य नहीं कर रहे होते हैं, या जो अपने उचित कार्यों पर ध्यान नहीं दे रहे होते हैं। उन्हें लगता है कि उन्हें बस एक पर्यवेक्षक चुनना है और मामला खत्म; और कि बाद में पर्यवेक्षक सभी कार्य-संबंधी मामलों को अपने आप संभाल सकता है। इसलिए नकली अगुआ जब-तब बस सभाएँ आयोजित करता है और काम का पर्यवेक्षण नहीं करता, न ही पूछता है कि काम कैसा चल रहा है, और कार्यस्थल से दूर रहने वाले उच्चाधिकारियों की तरह से व्यवहार करता है। अगर कोई पर्यवेक्षक से जुड़ी समस्या को लेकर आता है, तो नकली अगुआ कहेगा, “यह तो मामूली-सी समस्या है, कोई बड़ी बात नहीं है। इसे तो तुम लोग खुद ही सँभाल सकते हो। मुझसे मत पूछो।” समस्या की रिपोर्ट करने वाला व्यक्ति कहता है, “वह पर्यवेक्षक आलसी पेटू है। वह केवल खाने और मनोरंजन पर ध्यान केंद्रित रखता है, एकदम निकम्मा है। वह अपने काम में थोड़ा-सा भी कष्ट नहीं उठाना चाहता, काम और जिम्मेदारियों से बचने के लिए हमेशा छलपूर्वक ढिलाई बरतता है और बहाने बनाता है। वह निरीक्षक बनने लायक नहीं है।” झूठा अगुआ जवाब देगा, “जब उसे पर्यवेक्षक चुना गया था, तब तो वह बहुत अच्छा था। तुम जो कह रहे हो, वह सच नहीं है, और अगर है भी तो यह सिर्फ एक अस्थायी अभिव्यक्ति है।” झूठा अगुआ निरीक्षक की स्थिति के बारे में अधिक जानने की कोशिश नहीं करेगा, बल्कि उस पर्यवेक्षक के साथ अपने पिछले अनुभवों के आधार पर ही मामले को परखेगा और इस मामले में फैसला सुनाएगा। चाहे कोई भी पर्यवेक्षक से जुड़ी समस्याओं की रिपोर्ट करे, नकली अगुआ उसे अनदेखा करेगा। पर्यवेक्षक वास्तविक काम नहीं कर रहा है, और कलीसिया का काम लगभग ठप हो गया है, लेकिन नकली अगुआ को कोई परवाह नहीं होती, ऐसा लगता है कि उसका इससे मतलब ही नहीं है। यह वैसे भी बुरी बात है कि जब कोई व्यक्ति पर्यवेक्षक के मुद्दों की रिपोर्ट करता है, तो अगुआ आंखें मूंद लेता है। लेकिन सबसे घृणा करने योग्य क्या होता है? जब लोग उसे पर्यवेक्षक के गंभीर मुद्दों के बारे में बताते हैं, तो वह उन्हें सुलझाने की कोशिश नहीं करेगा, और दुनियाभर के बहाने बनाएगा : “मैं इस निरीक्षक को जानता हूँ, वह सच में परमेश्वर में विश्वास करता है, उसे कभी कोई समस्या नहीं होगी। यदि कोई छोटी-मोटी समस्या हुई भी, तो परमेश्वर उसकी रक्षा करेगा और उसे अनुशासित करेगा। अगर उससे कोई गलती हो भी जाती है, तो वह उसके और परमेश्वर के बीच का मामला है—हमें इससे चिंतित होने की जरूरत नहीं है।” नकली अगुआ इसी तरह अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के अनुसार काम करते हैं। वे सत्य समझने और आस्था होने का दिखावा करते हैं—लेकिन, वे कलीसिया के काम में गड़बड़ी कर देते हैं, कलीसिया का काम ठप भी हो सकता है फिर भी वे इससे अनजान होने का ढोंग करते हैं। क्या नकली अगुआ बहुत हद तक बाबुओं जैसा अभिनय नहीं कर रहे हैं? वे स्वयं कोई वास्तविक कार्य करने में अक्षम होते हैं और समूह अगुआओं और पर्यवेक्षकों के कार्य के बारे में सूक्ष्मता से ध्यान भी नहीं देते—वे इसकी न तो अनुवर्ती देखभाल करते हैं, न ही इस बारे में पूछताछ करते हैं। लोगों के बारे में उनका नजरिया उनकी अपनी सोच और कल्पनाओं पर आधारित होता है। किसी को कुछ समय के लिए अच्छा काम करते देखते हैं, तो उन्हें लगता है कि वह व्यक्ति हमेशा ही अच्छा काम करेगा, उसमें कोई बदलाव नहीं आएगा; अगर कोई कहता है कि इस व्यक्ति के साथ कोई समस्या है, तो वह उस पर विश्वास नहीं करता, अगर कोई उन्हें उस व्यक्ति के बारे में चेतावनी देता है, तो वह उसे अनदेखा कर देता है। क्या तुम्हें लगता है कि नकली अगुआ बेवकूफ होता है? वे बेवकूफ और मूर्ख होते हैं। उन्हें क्या चीज बेवकूफ बनाती है? वे यह मानते हुए लोगों पर सहर्ष विश्वास कर लेते हैं कि चूँकि जब उन्होंने इस व्यक्ति को चुना था, तो इस व्यक्ति ने शपथ ली थी, संकल्प किया था और आँसू बहाते हुए प्रार्थना की थी, यानी वह भरोसे के लायक है और काम का प्रभार लेते हुए उसके साथ कभी कोई समस्या नहीं होगी। नकली अगुआओं को लोगों की प्रकृति की कोई समझ नहीं होती; वे भ्रष्ट मानव-जाति की असल स्थिति से अनजान होते हैं। वे कहते हैं, “पर्यवेक्षक के रूप में चुने जाने के बाद कोई कैसे बदल सकता है? इतना गंभीर और विश्वसनीय प्रतीत होने वाला व्यक्ति कामचोरी कैसे कर सकता है? वह कामचोरी नहीं करेगा, है न? उसमें बहुत ईमानदारी है।” चूँकि नकली अगुआओं की अपनी कल्पनाओं और अनुभूतियों में बहुत ज्यादा आस्था होती है, यह अंततः उन्हें कलीसिया के काम में उत्पन्न होने वाली कई समस्याओं का समय पर समाधान करने में असमर्थ बना देती है, और संबंधित पर्यवेक्षक को तुरंत बर्खास्त करने और उसे दूसरी जगह भेजने से रोकता है। वे प्रामाणिक नकली अगुआ हैं। और यहाँ मुद्दा क्या है? क्या नकली अगुआओं के अपने काम के प्रति रवैये का अन्यमनस्कता से कोई संबंध है? एक लिहाज से वे देखते हैं कि बड़ा लाल अजगर पागलों की तरह परमेश्वर के चुने हुए लोगों की गिरफ्तारियाँ कर रहा है, इसलिए वे खुद को सुरक्षित रखने के लिए यद्दृच्छया किसी को भी प्रभारी चुन लेते हैं कि इससे उनकी समस्या सुलझ जाएगी और उन्हें इस पर और ध्यान देने की आवश्यकता नहीं होगी। वे मन ही मन क्या सोचते हैं? “यह बहुत ही शत्रुतापूर्ण परिवेश है, कुछ समय के लिए मुझे छिप जाना चाहिए।” यह भौतिक सुखों का लोभ है, है न? एक अन्य संदर्भ में नकली अगुआओं में यह घातक कमी होती है कि यह भी एक बड़ी विफलता होती है : वे अपनी कल्पनाओं के आधार पर लोगों पर जल्दी भरोसा कर लेते हैं। और यह सत्य को न समझने के कारण होता है, है न? परमेश्वर के वचन भ्रष्ट लोगों का सार कैसे प्रकट करते हैं? जब परमेश्वर ही लोगों पर भरोसा नहीं करता, तो वे क्यों करें? नकली अगुआ बहुत घमंडी और आत्मतुष्ट होते हैं, है न? वे यह सोचते हैं, “मैं इस व्यक्ति को परखने में गलत नहीं रहा हो सकता। जिस व्यक्ति को मैंने उपयुक्त समझा है, उसके साथ कोई समस्या नहीं होनी चाहिए; वह निश्चित रूप से ऐसा नहीं है, जो खाने, पीने और मस्ती करने में रमा रहे, आराम पसंद करे और मेहनत से नफरत करे। वे पूरी तरह से भरोसेमंद और विश्वसनीय हैं। वे बदलेंगे नहीं; अगर वे बदले, तो इसका मतलब होगा कि मैं उनके बारे में गलत था, है न?” यह कैसा तर्क है? क्या तुम कोई विशेषज्ञ हो? क्या तुम्हारे पास एक्सरे जैसी दृष्टि है? क्या तुममें विशेष कौशल है? तुम किसी व्यक्ति के साथ एक-दो साल तक रह सकते हो, लेकिन क्या तुम उसके प्रकृति सार को पूरी तरह से उजागर करने वाले किसी उपयुक्त वातावरण के बिना यह देख पाओगे कि वह वास्तव में कौन है? अगर परमेश्वर द्वारा उन्हें उजागर न किया जाए, तो तुम्हें तीन या पाँच वर्षों तक उनके साथ रहने के बाद भी यह जानने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा कि उनका प्रकृति सार किस तरह का है। और जब तुम उनसे शायद ही कभी मिलते हो, शायद ही कभी उनके साथ होते हो, तो यह भी कितना सच होगा? किसी के साथ थोड़ी-बहुत बातचीत या किसी के द्वारा उनके सकारात्मक मूल्यांकन के आधार पर नकली अगुआ प्रसन्नतापूर्वक उन पर भरोसा कर लेते है और ऐसे व्यक्ति को कलीसिया का काम सौंप देते हो। इसमें क्या वे अत्यधिक अंधे नहीं हो जाते हो? क्या वे उतावली से काम नहीं ले रहे हैं? और जब नकली अगुआ इस तरह से काम करते हैं, तो क्या वे बेहद गैर-जिम्मेदार नहीं होते? ऊपर के अगुआ और कार्यकर्ता उनसे पूछते हैं, “क्या तुमने उस पर्यवेक्षक के काम की जाँच की है? उसका चरित्र और काबिलियत कैसी है? क्या वह अपने काम में जिम्मेदार है? क्या वह काम को सँभाल सकता है?” नकली अगुआ जवाब देते हैं, “वह निश्चित रूप से सँभाल सकता है! जब उसे चुना गया था, तो उसने प्रतिज्ञा की थी और संकल्प लिया था। मेरे पास अभी भी उनकी लिखित शपथ है। उसे काम की जिम्मेदारी लेने में सक्षम होना चाहिए।” नकली अगुआओं के इन शब्दों के बारे में तुम क्या सोचते हो? वे मानते हैं कि चूँकि इस व्यक्ति ने अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए प्रतिज्ञा की है, इसलिए वह निश्चित रूप से उसका पालन करने में सक्षम होगा। क्या इस कथन में सत्यता है? आजकल कितने लोग वास्तव में अपनी प्रतिज्ञाओं का पालन कर सकते हैं? कितने ऐसे ईमानदार लोग हैं जो अपने संकल्पों के अनुसार काम करते हैं? किसी व्यक्ति के प्रतिज्ञा करने मात्र का मतलब यह नहीं है कि वह वास्तव में इसे पूरा कर सकता है। मान लो कि तुम उनसे पूछते हो, “क्या तुम गारंटी दे सकते हो कि यह पर्यवेक्षक बदलेगा नहीं? क्या तुम उसकी आजीवन निष्ठा की गारंटी दे सकते हो? जब परमेश्वर लोगों को उजागर करना चाहता है तो उसे उन्हें परखने के लिए विभिन्न वातावरण स्थापित करने पड़ते हैं। तुम किस आधार पर कहते हो कि वह विश्वसनीय है? क्या तुमने उसकी जाँच की है?” नकली अगुआ जवाब देते हैं, “इसकी कोई जरूरत नहीं है। सभी भाइयों और बहनों ने अपने अनुभवों के आधार पर जानकारी दी है कि वह विश्वसनीय है।” यह कथन भी गलत है। क्या कोई व्यक्ति मात्र इसलिए सचमुच अच्छा है क्योंकि भाई-बहनों ने जानकारी दी है कि वह ऐसा है? क्या सभी भाई-बहनों के पास सत्य है? क्या वे सभी चीजों की असलियत समझ सकते हैं? क्या सभी भाई-बहन इस व्यक्ति से परिचित हैं? यह कथन तो और भी घिनौना है! वास्तव में, वह व्यक्ति बहुत पहले ही बेनकाब हो चुका है। उसने पवित्र आत्मा का कार्य खो दिया है, और आसान चीजों से प्रेम करने और कड़ी मेहनत से नफरत करने, पेटू और आलसी होने और अपने उचित काम पर ध्यान न देने जैसे उसके नीच लक्षण पहले ही उजागर हो चुके हैं। अभी भी पूरी तरह से अनभिज्ञ नकली अगुआओं के अलावा, हर कोई बहुत पहले ही उसकी असलियत जानता है—मात्र नकली अगुआ ही अब भी उस पर इतना भरोसा करते हैं। इन नकली अगुआओं का क्या उपयोग है? क्या वे निकम्मे नहीं हैं? कुछ मामले तो ऐसे भी हैं, जहाँ ऊपरवाला कुछ पर्यवेक्षकों की जाँच और पूछताछ के लिए मौके पर जाकर उनकी विभिन्न अभिव्यक्तियों के बारे में जान लेता है, जबकि अगुआ पूरी तरह से अंधेरे में रहते हैं। क्या यह कोई समस्या नहीं है? ये अगुआ प्रामाणिक नकली अगुआ हैं। वे असली काम नहीं करते, वे मात्र कागजी काम करते हैं, और किसी भी काम को हाथ न लगाने वाले बॉस की तरह, वे थोड़ा-बहुत काम करते हैं और फिर उसी के आधार पर जीवनयापन करते हैं और सोचते हैं कि उन्हें आनंद लेने का अधिकार है, कुछ भी हो जाए पर एक तिनका भी तोड़ने की जहमत नहीं उठाते। उन्हें रुतबे का लाभ उठाने का क्या अधिकार है? वे सचमुच बेशर्म हैं! जब नकली अगुआ काम करते हैं, तो वे कभी किसी काम की जाँच नहीं करते, वे काम की प्रगति के बारे में पूछताछ नहीं करते, और निश्चित ही विभिन्न टीम पर्यवेक्षकों की परिस्थितियों पर गौर नहीं करते। वे मात्र काम सौंपते हैं और पर्यवेक्षकों की व्यवस्था करते हैं, और फिर उन्हें लगता है कि उनका काम पूरा हो गया, उनका काम खत्म हो गया है, हमेशा के लिए खत्म हो गया है। वे मानते हैं, “इस काम को कोई सँभाल रहा है, इसलिए अब यह मेरा काम नहीं है। मैं आनंद ले सकता हूँ।” क्या यह काम करना है? इसमें कोई संदेह नहीं कि जो कोई भी इस तरह से काम करता है वह नकली अगुआ है—नकली अगुआ जो कलीसिया के कार्य में देरी करता है और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नुकसान पहुँचाता है।
नकली अगुआ कभी भी विभिन्न टीम सुपरवाइजरों की कार्य स्थितियों के बारे में नहीं पूछते या उनकी निगरानी नहीं करते। वे विभिन्न टीमों के सुपरवाइजरों और विभिन्न महत्वपूर्ण कार्यों के लिए जिम्मेदार कार्मिकों के जीवन प्रवेश के साथ ही कलीसिया के कार्य और उनके कर्तव्यों के साथ-साथ परमेश्वर में आस्था, सत्य और स्वयं परमेश्वर के प्रति उनके रवैयों के बारे में भी न तो पूछते हैं, न ही इसकी निगरानी करते हैं या इस बारे में समझ रखते हैं। वे नहीं जानते कि इन व्यक्तियों में कोई परिवर्तन या विकास हुआ है या नहीं, न ही वे उनके कार्य से जुड़ी विभिन्न संभावित समस्याओं के बारे में जानते हैं; खासकर वे कार्य के विभिन्न चरणों में होने वाली त्रुटियों और विचलनों के कारण कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में नहीं जानते, साथ ही वे यह भी नहीं जानते कि इन त्रुटियों और विचलनों को कभी सुधारा गया है या नहीं। वे इन सभी चीजों से पूरी तरह से अनभिज्ञ होते हैं। अगर उन्हें इन विस्तृत स्थितियों के बारे में कुछ भी पता नहीं होता तो समस्याएँ आने पर वे निष्क्रिय हो जाते हैं। परंतु, नकली अगुए अपना काम करते समय इन विस्तृत मुद्दों की बिल्कुल परवाह नहीं करते। वे मानते हैं कि विभिन्न टीम सुपरवाइजरों की व्यवस्था करने और उन्हें काम सौंप देने पर उनका कार्य पूरा हो जाता है—इसे काम को अच्छी तरह से करना समझा जाता है और यदि अन्य समस्याएँ आती हैं तो वे उनकी चिंता का विषय नहीं हैं। चूँकि नकली अगुआ विभिन्न टीम सुपरवाइजरों की देख-रेख करने, उनका निर्देशन करने और उन पर निगरानी रखने में विफल रहते हैं और इन क्षेत्रों में अपनी जिम्मेदारियों को अच्छे से नहीं निभाते, नतीजतन कलीसिया के कार्य में गड़बड़ी हो जाती है। इसे ही अगुआओं और कार्यकर्ताओं का अपनी जिम्मेदारियों में लापरवाही बरतना कहते हैं। परमेश्वर मानव हृदय की गहराइयों की पड़ताल कर सकता है; यह क्षमता मनुष्य में नहीं है। इसलिए काम करते समय लोगों को ज्यादा मेहनती होने और चौकस रहने की जरूरत है, कलीसिया के कार्य की सामान्य प्रगति सुनिश्चित करने के लिए नियमित रूप से कार्यस्थल पर जाकर निगरानी, देख-रेख और निर्देशन करने की जरूरत है। साफ है कि नकली अगुए अपने कार्य में पूरी तरह गैर-जिम्मेदार होते हैं और वे कभी भी विभिन्न कामों की देख-रेख, निगरानी या निर्देशन नहीं करते हैं। परिणामस्वरूप कुछ सुपरवाइजर यह नहीं जानते कि कार्य में आने वाली विभिन्न समस्याओं को कैसे हल किया जाए और कार्य करने में लगभग पर्याप्त रूप से सक्षम न होने के बावजूद वे सुपरवाइजर की भूमिका में बने रहते हैं। अंततः कार्य में बार-बार देरी होती है और वे इसे पूरी तरह से बिगाड़ देते हैं। नकली अगुआओं द्वारा सुपरवाइजरों की स्थितियों के बारे में पूछताछ न करने, उनकी देख-रेख न करने या उसके बारे में निगरानी न करने का यही दुष्परिणाम होता है, जो पूरी तरह से नकली अगुआओं की अपनी जिम्मेदारी के प्रति लापरवाही के कारण होता है। चूँकि नकली अगुआ कार्य का निरीक्षण नहीं करते, उस पर निगरानी नहीं रखते या उसके बारे में नहीं पूछते और स्थिति को तुरंत समझ नहीं पाते, इसलिए वे इस बात से अनजान रहते हैं कि सुपरवाइजर वास्तविक कार्य कर रहे हैं या नहीं, कार्य कैसे आगे बढ़ रहा है और क्या इससे कोई वास्तविक नतीजे मिले हैं। जब उनसे पूछा जाता है कि सुपरवाइजर किस काम में व्यस्त हैं या वे कौन से खास काम संभाल रहे हैं तो नकली अगुआ जवाब देते हैं, “मुझे नहीं पता, लेकिन वे हर सभा में मौजूद होते हैं और हर बार जब मैं उनसे कार्य के बारे में बात करता हूँ तो वे कभी किसी समस्या या कठिनाई का जिक्र नहीं करते।” नकली अगुआओं का मानना है कि जब तक सुपरवाइजर अपना कार्य नहीं छोड़ते और ढूँढ़ने पर हमेशा मौजूद मिलते हैं, तब तक उनके साथ कोई समस्या नहीं है। नकली अगुआ इसी तरह काम करते हैं। क्या यह “नकलीपन” की अभिव्यक्ति नहीं है? क्या यह अपनी जिम्मेदारियों को अच्छे से निभाने में विफलता नहीं है? यह जिम्मेदारी की गंभीर उपेक्षा है! अपने काम में नकली अगुआ मात्र दिखावा करने पर ध्यान देते हैं और वास्तविक परिणाम के लिए प्रयास नहीं करते। ऊपरी तौर पर, वे अक्सर सभाएँ करते हैं, और औसत व्यक्ति से ज्यादा व्यस्त दिखाई देते हैं। परंतु, इस बात का पता नहीं चलता कि उन्होंने वास्तव में कौन-सी समस्याएँ हल की हैं, उन्होंने कौन-से विशिष्ट कार्य ठीक से सँभाले हैं और उन्होंने क्या परिणाम प्राप्त किए हैं। नकली अगुआओं समेत कोई भी इन चीजों के बारे में कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दे सकता। लेकिन एक बात पक्की है : कार्यस्थल पर लोगों को चाहे जो भी समस्या हो, ये नकली अगुआ कहीं नहीं मिलते; किसी ने उन्हें कार्यस्थल पर लोगों की समस्याएँ हल करते हुए कभी नहीं देखा होता। तो, नकली अगुआ पूरे दिन क्या काम करते हैं? उनकी सभाएँ किन समस्याओं को हल करती हैं? कोई भी निश्चित रूप से नहीं जानता, और अनसुलझे मुद्दों के जमा हुए ढेर का अंततः तब पता चलता है जब उनके काम का निरीक्षण किया जाता है। ऊपरी तौर पर, नकली अगुआ वास्तव में काफी व्यस्त दिखते हैं—लगता है कि वे “अनेक मामलों से निपट रहे हैं।” परंतु, जब कोई उनके काम के परिणामों की जाँच करता है, तो वह पूरी तरह से गड़बड़झाला निकलता है; सब कुछ अस्त-व्यस्त होता है, जिसमें कुछ भी मूल्यवान नहीं होता, और यह स्पष्ट होता है कि इन नकली अगुआओं ने जरा भी वास्तविक कार्य नहीं किया है। उन वास्तविक समस्याओं की भरमार होने के बावजूद जिन्हें उन्होंने अनसुलझा छोड़ दिया है, नकली अगुआओं की अंतरात्मा जागृत नहीं होती और उन्हें कोई आत्म-ग्लानि नहीं होती। इसके अलावा, वे बहुत आत्मतुष्ट होते हैं और सोचते हैं कि वे बहुत अच्छे हैं; वे वास्तव में तर्कहीन होते हैं। इस तरह के लोग कलीसिया में अगुआ या कार्यकर्ता होने के लायक नहीं होते।
जिस तरह के पर्यवेक्षक के बारे में हमने अभी-अभी चर्चा की है, वह अपने पेशे को जानता हैं और काम करने की क्षमता रखते हैं, लेकिन वे दायित्व नहीं लेते और अपना उचित काम किए बिना या कोई वास्तविक काम किए बिना पूरे दिन खाने-पीने और मनोरंजन में लिप्त रहते हैं। नकली अगुआ इस तरह के पर्यवेक्षक को तुरंत बर्खास्त कर उसे किसी दूसरे काम पर नहीं लगा सकते, और यह स्थिति काम में बाधाएं और अव्यवस्था पैदा करती है, काम को सुचारू रूप से आगे बढ़ने से रोकती है। क्या यह नकली अगुआओं के कारण नहीं है? यद्यपि नकली अगुआ इसके लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं हैं, लेकिन उनके द्वारा कर्तव्य की उपेक्षा, पर्यवेक्षक के रूप में अपनी भूमिका को पूरा करने में विफलता, उन्हें काम में हुए नुकसान के लिए अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार बनाती है। ये नकली अगुआ पर्यवेक्षक के रूप में अपने कर्तव्य को पूरा नहीं करते, वे अपने कर्तव्यों के प्रति लापरवाह हैं, जिससे अंततः कलीसिया के काम को नुकसान उठाना पड़ता है। कुछ कार्य तो अटक भी जाते हैं और कार्यभार सँभालने, जाँच करने और काम का पर्यवेक्षण करने और उसे आगे बढ़ाने के लिए उपयुक्त पर्यवेक्षक के न होने के कारण अव्यवस्थित हो जाते हैं। कार्मिकों के अनुचित उपयोग से काम को इसी तरह के नुकसान होंगे। यद्यपि इस तरह के पर्यवेक्षकों में थोड़ी काबिलियत होती है और वे पेशे को थोड़ा समझते हैं, लेकिन वे अपने काम को सही तरीके से नहीं करते, अक्सर अपना मनमाना रास्ता अपनाते हैं और सही रास्ते पर नहीं चलते हैं। नकली अगुआओं को पता चल भी जाए कि किसी ने इस तरह के पर्यवेक्षक के बारे में कोई समस्या बताई है, तो वे तुरंत इस पर गौर नहीं करते या इसे सँभालते नहीं, और इससे अंततः कलीसिया का काम ठप हो जाता है। क्या यह नकली अगुआओं की गैरजिम्मेदारी के कारण नहीं होता है? यहाँ तक कि वे जिम्मेदारी से बचने की कोशिश भी करते हैं और यह सोचते हुए कि ऐसा कहने से मामला खत्म हो जाएगा और उन्हें जिम्मेदारी नहीं लेनी पड़ेगी, वे कहते हैं कि वे पर्यवेक्षक की स्थिति को नहीं समझ सके थे कि वे मूर्ख और अज्ञानी हैं। अपने काम में नकली अगुआ हमेशा अनमने तरीके से काम करते हैं। जब लोग समस्याओं की जानकारी देते हैं, तब भी वे न तो उनके बारे में पूछते हैं और न ही उन्हें सँभालते हैं, और जब चीजें गलत हो जाती हैं, तो वे जिम्मेदारी से बचने की कोशिश करते हैं। यह नकली अगुआओं की एक अभिव्यक्ति है।
II. नकली अगुआ उन पर्यवेक्षकों से कैसे पेश आते हैं जिनमें कम काबिलियत होती है और कार्यक्षमता नहीं होती
नकली अगुआ जब काम कर रहे होते हैं तो उनके सामने आने वाली समस्याएँ मात्र इस स्थिति तक सीमित नहीं होतीं—एक और स्थिति है जिसमें पर्यवेक्षकों की काबिलियत कम होती है, उनमें काम करने की कोई क्षमता नहीं होती और वे काम की जिम्मेदारी नहीं ले सकते हैं। ऐसे मामलों में नकली अगुआ समस्या के बारे में पूछताछ करने और उसे तुरंत सँभालने में भी विफल रहते हैं। ऐसा क्यों है? नकली अगुआओं में काम करने की क्षमता नहीं होती, उनकी काबिलियत कम होती है और उन्हें आध्यात्मिक समझ नहीं होती है। वे कभी भी विभिन्न टीम पर्यवेक्षकों की काबिलियत, काम की जिम्मेदारी लेने की उनकी क्षमता या उनकी कार्य परिस्थितियों के बारे में पूछने की परवाह या पहल नहीं करते। वे उन पर्यवेक्षकों की असलियत नहीं पहचान पाते हैं जिनकी काबिलियत कम होती है और जो अपने काम की जिम्मेदारी नहीं ले पाते हैं, न ही वे इन चीजों के बारे में जानते हैं। उनके विचार से जब कोई व्यक्ति पर्यवेक्षक की भूमिका ग्रहण कर लेता है तो वह लंबे समय तक अपने पद पर बना रह सकता है, बशर्ते वह कई तरह की बुराइयों में फँसे, आम आक्रोश न भड़काए और भाई-बहन उसे हटा न दें या जब तक कि कोई व्यक्ति उससे जुड़ी समस्याओं की जानकारी ऊपरवाले को न दे दे और ऊपरवाला उस व्यक्ति को सीधे बर्खास्त न कर दे। अन्यथा नकली अगुआ उस व्यक्ति को कभी बर्खास्त नहीं करेंगे। वे मानते हैं कि चूँकि भाई-बहनों ने उस व्यक्ति को अच्छा बताया है और चुना है, इसलिए वह व्यक्ति ही सबसे अच्छा विकल्प होगा। नकली अगुआ यह निर्धारित करने के लिए हमेशा कल्पनाओं और आलोचनाओं पर भरोसा करते हैं कि कोई व्यक्ति काम कर सकता है या नहीं और क्या वह पर्यवेक्षक के रूप में कार्य करने के लिए उपयुक्त है या नहीं। उदाहरण के लिए, एक नृत्य मंडली का पर्यवेक्षक नृत्य करना नहीं जानता था और वह नृत्यों के चयन के सिद्धांत नहीं समझता था। नृत्य की कोरियोग्राफी करते समय उसे नहीं पता होता था कि किसी समकालीन शैली का चयन करना है या शास्त्रीय शैली का। साफ कहें तो उसे नृत्य का कोई ज्ञान नहीं था। परंतु नकली अगुआ इस बात को नहीं देख सका। यह मानते हुए कि यह व्यक्ति सब कुछ समझता है, नकली अगुआ ने उस व्यक्ति को पर्यवेक्षक के रूप में चुना और उसे भाई-बहनों का मार्गदर्शन करने दिया क्योंकि वह उत्साही था और चर्चा में आने के लिए तैयार था। बाद में नकली अगुआ ने उसके कार्य की निगरानी, जाँच-परख नहीं की या यह नहीं देखा कि वह पर्यवेक्षक भाई-बहनों का कितना ठीक मार्गदर्शन कर रहा है, पर्यवेक्षक विशेषज्ञ है या एक आम आदमी, क्या उसने जो सिखाया वह उचित है या परमेश्वर के घर की जरूरतों के हिसाब से है। नकली अगुआ ये बातें नहीं बता सकते थे और वे इनके बारे में पूछने भी नहीं गए। परिणामस्वरूप, हर कोई बिना किसी नतीजे के लंबे समय तक काम करता रहा और अंत में पता चला कि नकली अगुआ द्वारा चुने गए पर्यवेक्षक को नृत्य बिल्कुल भी नहीं आता था और फिर भी वह विशेषज्ञ होने का दिखावा कर दूसरों का निर्देशन कर रहा था। क्या इससे कार्य में देरी नहीं हुई? लेकिन नकली अगुआ इस समस्या को पहचान नहीं पाया और फिर भी मानता रहा कि वह पर्यवेक्षक अच्छा काम कर रहा है। नकली अगुआओं के हिसाब से इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई व्यक्ति कौन है, अगर उसमें हिम्मत है और वह बोलने, कार्य करने और इसे ग्रहण करने का साहस करता है तो इससे साबित होता है कि उसके पास काबिलियत है और वह इसकी जिम्मेदारी ले सकता है, जबकि अगर वह व्यक्ति उन चीजों को करने की हिम्मत नहीं करता है तो इससे साबित होता है कि उसमें उस कार्य की जिम्मेदारी लेने की काबिलियत अपर्याप्त है। कुछ लोग अधकचरे दिमाग वाले या लापरवाह किस्म के उद्दंड होते हैं जो कुछ भी करने का साहस रखते हैं। ये लोग नहीं जानते कि उनके पास सही काबिलियत है या नहीं या वे काम की जिम्मेदारी ले सकते हैं या नहीं, फिर भी वे पर्यवेक्षक बनने का साहस करते हैं। बाद में होता यह है कि उनके द्वारा भूमिका ग्रहण करने के बाद कोई भी काम आगे नहीं बढ़ता और वे चाहे कोई भी कार्य कर रहे हों, उनके पास कोई स्पष्ट दिशा बोध, प्रक्रिया या सही विचार नहीं होते हैं। उनके सामने कोई भी व्यक्ति कोई भी राय रखे तो उन्हें नहीं पता होता कि वह राय सही है या गलत। अगर कोई व्यक्ति किसी काम को एक तरह से करने के लिए कहता है तो वे उसे ठीक कह देते हैं, जबकि अगर कोई दूसरा व्यक्ति काम को दूसरे तरीके से करने के लिए कहता है तो वे उसे भी ठीक कह देते हैं। और जब बात आती है कि वास्तव में क्या दृष्टिकोण अपनाया जाए तो वे सभी को अपनी बात कहने देते हैं और जो सबसे ऊँची आवाज में बोलता है, उसके विचारों को अमल में लाया जाता है। इस तरह के लोगों में किसी तरह की कोई काबिलियत नहीं होती, वे किसी भी चीज की असलियत समझ नहीं पाते और वास्तव में अपना काम बिगाड़ देते हैं, लेकिन नकली अगुआ तब भी ऐसे पर्यवेक्षकों की असलियत नहीं समझ पाते। कुछ लोग कहते हैं, “उस पर्यवेक्षक की काबिलियत वाकई बहुत खराब है; उसे तुरंत बर्खास्त कर देना चाहिए!” लेकिन नकली अगुआ जवाब देते हैं, “मैंने उससे बात की है और उसने कहा है कि वह यथासंभव अपना हिस्से का काम करने को तैयार है। चलो उसे एक और मौका देते हैं।” इस कथन के बारे में तुम क्या सोचते हो? क्या यह ऐसी बात नहीं है जिसे कोई मूर्ख ही कहेगा? इस कथन में क्या गलत है? (बात यह नहीं है कि वह यथासंभव अपना काम करने के लिए तैयार है या नहीं; उसमें काबिलियत नहीं है और वह काम की जिम्मेदारी सँभाल ही नहीं सकता है।) सही कहा, बात यह नहीं है कि वह इसे करने के लिए तैयार है या नहीं; बात यह है कि उसकी काबिलियत बहुत ही कम है और उसे यह नहीं पता है कि उस काम को कैसे करना है—समस्या का मुख्य बिंदु यही है। यही वजह है कि उसके अगुआओं के पास कुछ दिमाग होना चाहिए और उन्हें लोगों का आकलन करने में सक्षम होना चाहिए, उन्हें यह देखने की जरूरत है कि इन पर्यवेक्षकों में जरूरी काबिलियत है या नहीं। इन अगुआओं को इन पर्यवेक्षकों के भाषण और संगति के आधार पर, इस आधार पर कि क्या वे आमतौर पर उचित रूपरेखा और व्यवस्थित तरीकों और चरणों के हिसाब से काम करते हैं और भाई-बहनों से मिलने वाली प्रतिक्रिया के आधार पर उनका व्यापक मूल्यांकन करने की जरूरत है। यदि इन पर्यवेक्षकों की काबिलियत बहुत कम है और उनमें आवश्यक कार्य क्षमता नहीं है, यदि वे अपना हर काम बिगाड़ देते हैं और यदि वे किसी काम के नहीं हैं तो इन्हें तुरंत बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए।
किसी खेत का एक पर्यवेक्षक था जिसने खेती-बाड़ी के काम को गड़बड़ कर दिया। उसे नहीं पता था कि उसे किस जमीन पर कौन-सी फसलें लगानी चाहिए, या कौन-सी जमीन सब्जियाँ उगाने के लिए उपयुक्त है, और वह सभी से न तो जानकारी लेता था, न ही संगति करता था—वह नहीं जानता था कि इन चीजों के बारे में संगति कैसे की जाए, इसलिए वह ऐसा नहीं करता था। उसने अपनी इच्छानुसार फसलें लगायीं, और परमेश्वर के घर के सिद्धांतों को ताक पर रख दिया। नतीजतन, उसने खेत की हर जमीन को अव्यवस्थित तरीके से बोया, जिसमें कम मात्रा में बोई जाने वाली फसलें ज्यादा मात्रा में उगाई गईं, और बड़ी मात्रा में बोई जाने वाली फसलें कम मात्रा में उगाई गईं। जब ऊपरवाले ने उसकी काट-छाँट की, तब भी वह अड़ा रहा, और महसूस करता रहा कि इस तरह से फसलें लगाने में कुछ भी गलत नहीं था। मुझे बताओ कि क्या इस तरह के पर्यवेक्षक बहुत मुश्किल नहीं होते? वह परमेश्वर के घर द्वारा स्थापित सिद्धांतों के आधार पर मामलों को सँभालना नहीं जानता था, न ही वह यह जानता था कि कलीसिया में पूर्णकालिक कर्तव्य करने वाले लोगों की संख्या के आधार पर निर्धारित किया जाना चाहिए कि कितने खेतों में अनाज बोया जाना चाहिए और कितने खेतों में सब्जियाँ लगाई जानी चाहिए। इसके बजाय, उसने अपनी पसंद के आधार पर कुछ फसलों को ज्यादा और कुछ को कम लगाने का फैसला लिया, और उसका मानना था कि ऐसा करना पूरी तरह से उचित था। अंततः, उसने फ़सलों को अव्यवस्थित तरीके से लगाया। बाद में, पौधे उगे तो उनमें से कुछ पीले पड़ गए और उन्हें खाद की जरूरत थी, लेकिन उसे नहीं पता था कि कितनी खाद डालनी है या कब डालनी है। कुछ फसलों में कीट लग गए, और उसे नहीं पता था कि उसे उन पर कीटनाशक डालना चाहिए या नहीं। कुछ लोगों ने कीटनाशकों का इस्तेमाल करने की वकालत की, और कुछ ने ऐसा नहीं करने की वकालत की जिससे वह भ्रमित हो गया, और उसे नहीं पता था कि कीटनाशकों के बारे में क्या करना है। इस तरह, वह तब तक उलझन में रहा जब तक कि कटाई का मौसम नहीं आ गया। उसे यह भी नहीं पता था कि प्रत्येक फसल के उगने का मौसम कितने समय तक चलता है या फसलें कब पकेंगी। परिणामस्वरूप, जल्दी काटी गई फसलों के दाने अभी भी कुछ हद तक हरे रह गए थे, जबकि देर से काटी गई फसलों के दाने जमीन पर झड़ गए। अंततः, इन सबके बावजूद, फसलें कट गईं, अनाज का आखिरकार भंडारण हो गया, और उस साल की खेती-बाड़ी की गतिविधियाँ कमोबेश खत्म हो गईं। खेत के पर्यवेक्षक ने अपने काम को कैसे अंजाम दिया? (उसने इसे गड़बड़ कर दिया।) यह इतना गड़बड़ क्यों था? इस समस्या का मूल कारण खोजो। (उसकी काबिलियत बेहद खराब है।) इस पर्यवेक्षक की काबिलियत बेहद खराब है! मुश्किलों का सामना करना पड़ा, तो उसने सटीक निर्णय नहीं लिए, वह सिद्धांतों को नहीं खोज पाया, और उसके पास चीजों को सँभालने का कोई रास्ता या तरीका नहीं था। इसके कारण उसने फसल बोने जैसे सरल कार्य को अविश्वसनीय रूप से अव्यवस्थित तरीके से सँभाला, और इस काम में बहुत गड़बड़ कर दी। कम काबिलियत के मुख्य लक्षण क्या हैं? (सटीक निर्णय नहीं ले पाना और सिद्धांतों को खोजने में असमर्थ होना।) क्या ये शब्द महत्वपूर्ण नहीं हैं? क्या तुम लोग इन्हें याद रखोगे? जब किसी व्यक्ति को किसी मुश्किल का सामना करना पड़ता है, तो सटीक निर्णय नहीं ले पाना और सिद्धांतों को खोजने में असमर्थ होना बेहद खराब काबिलियत का संकेत करता है। दूसरे लोगों ने जितने अधिक सुझाव और संकेत दिए, यह पर्यवेक्षक उतना ही अधिक भ्रमित होता गया। उसने सोचा कि अगर केवल एक ही सुझाव हो तो बहुत अच्छा होगा, फिर वह इसे एक विनियम मानते हुए उसका पालन कर सकेगा, जिससे चीजें एकदम सरल हो जाएँगी और इसका मतलब होगा कि उसे सोचने या निर्णय लेने की आवश्यकता नहीं होगी। उसे कई लोगों द्वारा सुझाव दिए जाने से डर लगता था क्योंकि उन्हें सुनते हुए उसे नहीं पता होता था कि उन सुझावों से कैसे निपटें। वास्तव में, दिमाग और अच्छी काबिलियत वाले लोग दूसरों के सुझावों से नहीं डरते। उन्हें लगता है कि जब अधिक लोग सुझाव दे रहे होते हैं तो उनका निर्णय अधिक सटीक हो जाता है और त्रुटि की संभावना कम हो जाती है। बिना दिमाग या बिना काबिलियत वाले लोग बहुत से लोगों की अलग-अलग राय और सुझावों से डरते हैं; कई स्रोतों से सलाह मिलने पर वे हैरान हो जाते हैं। मैंने अभी खेत के जिस पर्यवेक्षक का जिक्र किया था, क्या उसकी काबिलियत बहुत कम नहीं थी—क्या इस काम की जिम्मेदारी लेने के लिए उसकी क्षमता अपर्याप्त नहीं थी? (हाँ, थी।) कुछ लोग तर्क देते हैं, “हो सकता है कि उसने पहले खेती न की हो। तुम ने ही उससे खेती का काम करवाने पर जोर दिया था—क्या यह बत्तख को जबरन पेड़ पर बिठाने जैसी बात नहीं थी?” क्या पहले से खेती का अनुभव नहीं होने का मतलब यह है कि कोई व्यक्ति खेती नहीं कर सकता? खेती करने की जन्मजात क्षमता किसमें होती है? क्या ऐसा हो सकता है कि किसान इस क्षमता के साथ पैदा होते हों? (नहीं।) क्या ऐसा कोई किसान हुआ है, जो अनुभव की कमी और खेती करना नहीं जानने के कारण फसल नहीं ले पाया हो और पहली बार फसल उगाने पर उसके पास खाने के लिए अनाज नहीं रहा हो, जिसके कारण उसे साल भर भूखे रहना पड़ा हो? क्या इस तरह की चीजें होती हैं? (नहीं।) अगर ऐसा सच में होता, तो यह एक प्राकृतिक आपदा होती, न कि मानवीय गतिविधियों का नतीजा। ऐसी परिस्थितियाँ अत्यंत दुर्लभ हैं! किसान खेती करके अपना जीवन यापन करते हैं, और यहाँ तक कि जो लोग एक या दो साल खेती करते हैं, वे भी इसे करना सीख जाते हैं। अच्छी काबिलियत वाले व्यक्ति खेती करके थोड़ी ज्यादा उपज प्राप्त कर सकते हैं, जबकि कम काबिलियत वाले लोगों की उपज कम हो सकती है। इसके अलावा, वर्तमान प्रगति और जानकारी की प्रचुरता के साथ, यदि किसी व्यक्ति में काबिलियत है तो यह जानकारी सटीक फैसले लेने और निर्णय प्रक्रिया के लिए संदर्भ के रूप में काम करने के लिए पर्याप्त है। जानकारी जितनी व्यापक और सटीक होगी, उसके फैसले और निर्णय उतने ही सटीक होंगे, और वह उतनी ही कम गलतियाँ करेगा। परंतु, कम काबिलियत वाले व्यक्ति इसके विपरीत होते हैं; जितनी अधिक जानकारी होगी, वे उतने ही अधिक भ्रमित होंगे। अंततः उनके लिए हर कदम संघर्षपूर्ण और बहुत कठिन हो जाता है। खेती करना समय के साथ चलने जैसा है; तुम बहुत जल्दी या बहुत देर से आओगे, तो काम नहीं होगा। यदि तुम देर से आते हो और सही समय चूक जाते हो, तो अंतिम उत्पादन प्रभावित होगा। खेती करने के दौरान, यह पर्यवेक्षक समय से हारता रहा, समय बीतने पर हड़बड़ी करता रहा था, और हर कदम पर दबाव में था। हालाँकि वह फिर भी हर कदम उठाने में कामयाब रहा, लेकिन यह उसके लिए बहुत कठिन था, और अंततः इसका परिणाम यह हुआ कि उसने काम को गड़बड़ कर दिया। ऐसे व्यक्तियों की काबिलियत बहुत कम होती है!
बेहद कम काबिलियत वाले लोग कोई भी कार्य, यहाँ तक कि एकल कार्य भी, ठीक से नहीं कर सकते; वे चाहे जो भी कार्य कर रहे हों, उसमें भारी गड़बड़ करते हैं। यदि इन पर्यवेक्षकों के अगुओं में अच्छी काबिलियत है और वे अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करने में सक्षम हैं, तो उन्हें ये चीजें देखने में सक्षम होना चाहिए। उन्हें मार्गदर्शन, मानकीकरण और जाँच के माध्यम से कम काबिलियत वाले पर्यवेक्षकों की सहायता करनी चाहिए। यद्यपि, नकली अगुआ ऐसा करने में विफल रहते हैं; वे उन चीजों को करने में भी असमर्थ होते हैं जो पर्यवेक्षक नहीं कर पाते, और जब पर्यवेक्षकों को अपना काम मुश्किल लगता है या वे अपने काम में अनिश्चितता और हिचकिचाहट महसूस करते हैं, तो नकली अगुआ भी उनके साथ ही हिचकिचा रहे होते हैं। वे इस बात से भी अनजान होते हैं कि पर्यवेक्षकों का काम कैसा चल रहा है, उन्होंने कितना काम कर लिया है, क्या चुनौतियाँ आई हैं, या उन्हें क्या भ्रम है। जब किसी ने उस अगुआ से खेती के बारे में पूछा, तो उसने कहा, “मैं अगुआ हूँ, मैं खेती की प्रभारी नहीं हूँ।” उसने उत्तर दिया, “तुम अगुआ हो, इसलिए तुमसे खेती के बारे में पूछने में क्या गलत है? यह काम तुम्हारी जिम्मेदारियों के दायरे में आता है।” उसने कहा, “मैं पूछ कर इसके बारे में बताती हूँ।” पूछने के बाद उसने कहा, “हम अभी आलू लगा रहे हैं।” उसने पूछा, “तुम कितने आलू लगा रही हो?” उसने जवाब दिया, “मैंने यह नहीं पूछा, तुम्हारे लिए मैं यह भी पता करके आती हूँ।” फिर से पूछने के बाद उसने कहा, “हमने दो एकड़ में आलू लगाया है।” उसने पूछा : “तुमने कौन-सी किस्म के आलू बोए हैं? क्या वह जमीन आलू बोने के लिए उपयुक्त है? जब तुमने आलू बोए थे, तो क्या तुमने खाद डाली थी? आलू के बीज कितनी गहराई में बोए गए थे?” वह इनमें से किसी भी बात के बारे में नहीं जानती थी। वह ये चीजें नहीं जानती थी, लेकिन उसने इनके बारे में पता नहीं किया और न ही किसी ऐसे व्यक्ति को तलाश सकी जिससे इन सब के बारे में पूछ सके—क्या इससे काम में देरी नहीं हुई? क्या वह अगुआ थी भी? अगुआ के रूप में वह क्या काम कर रही थी? वह अगर यह छोटा-सा बाहरी काम करने में भी लोगों की अगुआई नहीं कर सकती थी, तो उसके अगुआ होने का क्या फायदा था? भले ही पर्यवेक्षक की काबिलियत बहुत खराब थी, लेकिन यह नकली अगुआ इस बात को ढूँढ़ पाने में असफल रही, और जब उससे पूछा गया कि पर्यवेक्षक कितना काबिल है, फसल का क्या हाल है, और उपज मिलने की गारंटी है या नहीं, तो उसका विश्वास था : “तुम्हारा इन चीजों के बारे में पूछताछ करना अनावश्यक है; खेती करना बहुत आसान काम है! हम खेत में फसल की बुआई कर चुके हैं, है ना? उपज कैसे नहीं होगी?” उसने कुछ भी नहीं सोचा, किसी चीज के बारे में जानकारी नहीं हासिल की, और उसके पास दिमाग बिल्कुल भी नहीं था। यह किस तरह की अगुआ थी? (नकली अगुआ।) जब भी पर्यवेक्षक का किसी चीज से सामना होता, तो वह ऐसे बेखबर रहता था जैसे कोई सिर कटा मुर्गा हो। उसे पता ही नहीं होता था कि किससे पूछे, जानकारी कैसे प्राप्त करे, या जब सूचना के विभिन्न स्रोत बहुत सारे अलग-अलग विचार प्रस्तुत कर रहे हों, तो वह किस पक्ष को चुने। इस अगुआ ने इन परिस्थितियों पर गौर नहीं किया। वह सोचती थी कि काम इस व्यक्ति को सौंप दिया गया है, और इसलिए उसने खुद इस बारे में जरा भी चिंता नहीं की। क्या तुम लोग सोचते हो कि ऐसी खराब काबिलियत वाले पर्यवेक्षक का काम के नतीजों पर कोई असर होगा? (हाँ।) तो अगुआ को इस समस्या को हल करने के लिए क्या करना चाहिए था? इस पर गौर करके और अप्रत्यक्ष पूछताछ करके, अपने आस-पास हुई घटनाओं के माध्यम से, और उस मौसम में बोई जाने वाली फसलों के बारे में पता करके उसे पता लगाना चाहिए था कि पर्यवेक्षक बेहद निम्नस्तरीय काबिलियत वाला था, वह कुछ भी करने लायक नहीं था। वर्षों तक खेती करने के बाद भी वह किसी अनुभव का निचोड़ नहीं हासिल कर सका—उस समय तक वह यह भी निश्चित तरीके से नहीं जानता था कि फसल कैसे बोई जाए—उसे यह स्पष्ट हो जाना चाहिए था कि पर्यवेक्षक नाकाबिल है और वह काम के लिए उपयुक्त नहीं है, और ऐसे व्यक्ति को बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए था! उसे इस बारे में पूछताछ करनी चाहिए थी कि पर्यवेक्षक बनने के लिए कौन उपयुक्त है, जो इस काम की चुनौती स्वीकारे और इसे अच्छी तरह से कर सके, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि परमेश्वर के घर के कार्य को नुकसान न पहुँचे। क्या नकली अगुआ की मानसिकता ऐसी थी? क्या वह इन मुद्दों को देख सकती थी? (नहीं।) उसका दिमाग और आँखें बंद थीं; वह पूरी तरह अंधी थी। यह झूठे अगुओं की एक अभिव्यक्ति है। जब खराब काबिलियत वाले लोगों की बात आती है तो उन्हें नहीं पता होता कि काम में ऐसे लोगों का मार्गदर्शन कैसे किया जाए, वे नहीं जानते कि जाँच करके उनकी मदद कैसे की जाए या शीघ्रता से उनकी कठिनाइयों को कैसे हल किया जाए, और वे निश्चित रूप से नहीं जानते कि खराब काबिलियत वाला व्यक्ति काम की जिम्मेदारी नहीं ले सकता और उसे तुरंत किसी उपयुक्त व्यक्ति से बदल दिया जाना चाहिए। नकली अगुआ इनमें से कोई भी कार्य नहीं करते; वे इस लायक नहीं होते, और उन्हें इनमें से कुछ भी दिखाई नहीं देता। क्या ये लोग अंधे नहीं हैं? कुछ लोग कहते हैं, “शायद वे दूसरे कार्यों में व्यस्त हों। तुम उन लोगों से इन महत्वहीन, फुटकर कामों का ध्यान रखने के लिए क्यों कहते रहते हो?” ये ऐसे काम हैं जो अगुओं को करने ही चाहिए, उन्हें फुटकर कार्य कैसे माना जा सकता है? ये मामले अगुओं की जिम्मेदारियों के दायरे में आते हैं—क्या यह ठीक होगा यदि वे इनकी उपेक्षा करें? यदि वे ऐसा करते हैं, तो यह कर्तव्य न करने जैसा होगा। हर दिन अगुओं की नाक के नीचे लोगों के काम में कठिनाइयाँ और समस्याएँ आती हैं, लोग हर दिन उन्हें सामने लाते हैं। परंतु, नकली अगुआओं की आँखें और दिमाग दोनों बंद होते हैं। वे देख नहीं सकते, महसूस नहीं कर सकते, या समझ नहीं सकते कि ये समस्याएँ हैं, इसीलिए, निश्चित रूप से, वे उनका समाधान नहीं कर सकते। वह नकली अगुआ यह पता लगाने में सक्षम नहीं थी कि इस पर्यवेक्षक की काबिलियत बेहद कम थी। वह उस पर्यवेक्षक के काम में आने वाली विभिन्न समस्याओं की पहचान भी नहीं कर पाई। यह पर्यवेक्षक समस्याओं को सँभाल नहीं पाता था और जब कोई कठिनाई आती, तो वह गर्म तवे पर पड़ी चींटियों की तरह इधर-उधर भागता था, वह सिद्धांतहीन था और काम को उलट-पुलटकर देता था, पर वह नकली अगुआ यह सब देख या जान नहीं पाई। नकली अगुआ जैसे अपना काम करते हैं, उसका एक सिद्धांत है : प्रत्येक कार्य के लिए किसी को जिम्मेदार बनाने की व्यवस्था कर देने पर वे कार्य को पूरा हुआ मानते हैं, और इस बात की परवाह किए बिना कि पर्यवेक्षक की काबिलियत अच्छी है या खराब, वे काम को अच्छी तरह से कर पाते हैं या नहीं, या काम में कितनी समस्याएँ आ रही हैं, उन्हें लगता है कि इन सारी बातों से उनका कोई लेना-देना नहीं है। क्या ऐसा अगुआ भी काम करवा सकता है? क्या वे समझते हैं कि कैसे काम करना है? (नहीं।) अगर वे नहीं समझते कि कैसे काम करना है, तो वे अगुआ के रूप में काम क्यों कर रहे हैं? अगर इस सब के बावजूद वे अगुआ के रूप में काम करते हैं, तो वे नकली अगुआ हैं। नकली अगुआ खराब काबिलियत वाले लोगों की विभिन्न अभिव्यक्तियों या उनके कर्तव्यों को निभाते समय आने वाली विभिन्न समस्याओं को देख नहीं पाते या उनका पता नहीं लगा सकते। उनके दिल बेहद सुन्न होते हैं। क्या उनकी आँखें और दिमाग दोनों बंद नहीं होते? कुछ लोग कह सकते हैं कि “वे अंधे नहीं हैं। तुम हमेशा उनकी निंदा और बदनामी करते रहते हो।” खेती-बाड़ी के इस पर्यवेक्षक के साथ इतनी गंभीर समस्याएँ थीं; वह झूठी अगुआ हर दिन उसके साथ रहती थी, और जो कुछ भी हो रहा था वह उसे देख-सुन सकती थी। फिर वह इन समस्याओं का पता लगाने या महसूस करने में असमर्थ कैसे थी? उसने इन मुद्दों को क्यों नहीं सँभाला या हल नहीं किया? क्या वह आँखों और दिमाग से अंधी नहीं थी? क्या यह समस्या गंभीर थी? (हाँ, यह गंभीर थी।) यह झूठे अगुओं की एक और अभिव्यक्ति है—दिमाग और आँखों का अंधापन।
जब तुम किसी ऐसे व्यक्ति को काम सौंपते हो जिसमें कम काबिलियत है, तो तुम उसके बोलने के तरीके, काम पर चर्चा करते समय उसके रवैये और दृष्टिकोण तथा काम को सँभालने के तरीके से यह बता सकते हो कि उसकी काबिलियत बहुत कम है, उसकी सोच अव्यवस्थित है, और वह हर काम को थोड़ा आँखें बंद करके और लापरवाह तरीके से करता है, और उसके पास कोई लक्ष्य नहीं है। बस उसके काम करने के तरीके को देखकर तुम यह तय कर सकते हो कि इस व्यक्ति की काबिलियत बहुत कम है, तो क्या तुम्हें उसे बहुत लंबे समय तक जाँचने-परखने की जरूरत है भी? नहीं, तुम्हें ऐसी जरूरत नहीं है। परंतु, नकली अगुओं में एक घातक समस्या होती है; वह यह है कि, वे मानते हैं कि चूँकि एक व्यक्ति काम छोड़े बिना लगातार इतने समय से काम करता आ रहा है, और नकली अगुआओं ने किसी को भी उसके कुछ बुरा करने, या विघ्न-बाधा उत्पन्न करने, या नकारात्मक या आलसी होने की सूचना देते नहीं सुना है, इसका मतलब है कि यह व्यक्ति अभी भी काम कर सकता है। वे नहीं जानते कि किसी व्यक्ति के भाषण, मामलों के प्रति उसके रवैये और दृष्टिकोण, या उसके काम करने के तरीके के आधार पर उसकी काबिलियत या उसके अच्छा काम करने की योग्यता का आकलन कैसे करें। उनमें यह जागरूकता नहीं होती; वे इस मामले के प्रति एकदम सुन्न हैं और उन्हें इस बारे में कोई समझ नहीं है। उनका एक दृष्टिकोण है : जब तक कोई व्यक्ति निठल्ला नहीं है, तब तक सब कुछ ठीक है और काम आगे चल सकता है। क्या तुम लोगों को लगता है कि इस तरह का दृष्टिकोण रखने वाला अगुआ अच्छा काम कर सकता है? क्या वह इस काम के लायक है? (नहीं।) ऐसे व्यक्ति को अगुआ बनने देने से काम बिगड़ेगा, है कि नहीं? जब कोई व्यक्ति खाने-पीने और मनोरंजन में लिप्त रहता है और अपने कर्तव्यों की उपेक्षा करता है, तो नकली अगुआ इस पर ध्यान देने या सँभालने की जहमत नहीं उठाते, और कोई कितने भी लंबे समय से उनके संपर्क में क्यों न रहा हो, वे यह नहीं देख पाते कि किसी व्यक्ति की काबिलियत या चरित्र अच्छा है या बुरा। क्या इन अगुआओं में अगुआ का काम करने की क्षमता है? (नहीं।) ये नकली अगुआ हैं। नकली अगुआ यह नहीं समझ पाते कि किसी व्यक्ति की काबिलियत अच्छी है या नहीं, और वे इन विशिष्ट कार्यों को करने में असमर्थ होते हैं। उन्हें लगता है कि यह उनके काम का हिस्सा नहीं है। क्या यह कर्तव्य की अवहेलना नहीं है? तुम लोग क्या सोचते हो, क्या कम काबिलियत वाला व्यक्ति काम सँभाल सकता है, या कोई ऐसा व्यक्ति जिसमें कुछ काबिलियत हो? (कुछ काबिलियत वाला व्यक्ति।) इसलिए, किसी व्यक्ति की काबिलियत और काम के लिए उसकी क्षमता का आकलन करना एक ऐसा मुद्दा है जिस पर अगुओं और कार्यकर्ताओं को ध्यान देना चाहिए और उसे समझना चाहिए, और यह ऐसा काम भी है जिसे अगुओं और कार्यकर्ताओं को करना चाहिए। लेकिन नकली अगुआ यह नहीं समझते कि यह उनके काम का हिस्सा है, उनमें इस बारे में जागरूकता नहीं होती, और वे अपनी जिम्मेदारियों के इस हिस्से को पूरा नहीं कर सकते। यहीं पर नकली अगुआ अपने कर्तव्य की अवहेलना करते हैं, और यह नकली अगुआओं के काम के लायक न होने की अभिव्यक्ति भी है। यह दूसरी तरह की स्थिति है : पर्यवेक्षकों की काबिलियत कम है, उनमें काम करने की क्षमता का अभाव है, और वे अपना काम नहीं सँभाल पा रहे हैं, जो उनकी काबिलियत से संबंधित एक मुद्दा है। इस स्थिति में नकली अगुआ भी अगुआ की भूमिका निभाने में विफल रहते हैं और खराब काबिलियत वाले पर्यवेक्षकों को तुरंत बर्खास्त करने में सक्षम नहीं होते।
III. नकली अगुआ दूसरों को सताने वाले और कलीसिया के कार्य में बाधा डालने वाले पर्यवेक्षकों से कैसे पेश आते हैं
तीसरी तरह की स्थिति में वे पर्यवेक्षक शामिल होते हैं जो दूसरों को सताते हैं और बेबस करते हैं, जिससे कलीसिया का काम बाधित होता है। पहली स्थिति, जिसके बारे में हमने पहले बात की थी, वह थी जिसमें कुछ पर्यवेक्षक अपेक्षाकृत अच्छी काबिलियत होने और अपना काम करने में सक्षम होने के बावजूद काम को गंभीरता से नहीं लेते हैं, और बस अनमने तरीके से व्यवहार करते हैं, जबकि नकली अगुआ इस बात से अनभिज्ञ होते हैं और उन्हें तुरंत नहीं हटाते। दूसरी स्थिति में कुछ पर्यवेक्षकों की काबिलियत कम होती है और वे काम सँभालने में सक्षम नहीं होते हैं, लेकिन नकली अगुआ इस पर ध्यान देने या उन्हें तुरंत बदलने में असफल रहते हैं। यह तीसरी स्थिति उन पर्यवेक्षकों के बारे में है जिनकी काबिलियत अच्छी हो या बुरी, वे अपने उचित काम पर ध्यान नहीं देते हैं, और बस दूसरों को सताते हैं और बेबस करते हैं, जिससे कलीसिया का काम बाधित होता है। पर्यवेक्षक के रूप में चुने जाने के बाद से वे अपने क्षेत्र के बारे में जानने या अध्ययन करने की कोशिश नहीं करते, न ही वे सत्य सिद्धांतों की तलाश करते हैं, और वे निश्चित रूप से, अपने कर्तव्य ठीक से करने के लिए दूसरों का मार्गदर्शन नहीं करते हैं। इसके बजाय, जब भी उन्हें मौका मिलता है, वे किसी को परेशान करते हैं, और किसी और का मजाक उड़ाते हैं और उसका उपहास करते हैं; जब तक उन्हें मौका मिलता है, वे दिखावा करते रहते हैं, और वे चाहे जो भी कर रहे हों, उनके पैर कभी जमीन पर मजबूती से नहीं टिकते। एक दिन वे लोगों को किसी एक तरह से काम करने के लिए कहते हैं, और अगले दिन वे उन्हें दूसरी तरह से काम करने के लिए कहते हैं; वे बस नई-नई तरकीबें निकालते हैं, हमेशा दूसरों से अलग दिखने की चाहत रखते हैं। यह सब लोगों को उद्विग्नता की स्थिति में पहुँचा देता है। वे जब भी बोलते हैं, तो कुछ लोगों के दिल काँपने लगते हैं। जब वे सभी को अपने अधीन कर लेते हैं, और सभी को डरने और अपनी आज्ञा मानने पर मजबूर कर देते हैं, तो वे बहुत खुश होते हैं। वे चाहे नकली अगुआ हों या मसीह-विरोधी, और चाहे वे सत्ता में हों या न हों, इस तरह के लोग कलीसिया की शांति को नष्ट कर देते हैं। न केवल वे वास्तविक कार्य नहीं कर सकते या सामान्य रूप से अपना कर्तव्य नहीं निभा सकते हैं, बल्कि वे लोगों के बीच कलह भी पैदा करते हैं और लड़ाइयाँ भी करवाते हैं, जिससे कलीसिया का जीवन बाधित हो जाता है। वे न केवल सत्य समझने में दूसरों की मदद नहीं कर पाते, बल्कि वे अक्सर लोगों के बारे में निर्णय सुनाते हैं और उनकी निंदा करते हैं, और लोगों को हर बात में अपनी आज्ञा मानने के लिए मजबूर करते हैं, और उन्हें इस हद तक बेबस करते हैं कि वे कि वे यह भी नहीं समझ पाते कि उचित तरीके से कार्य कैसे करें—खास तौर पर रहन-सहन के मामले में। लोग थोड़ा पहले या थोड़ी देर से सो भी नहीं सकते। कुछ भी करते हुए उन्हें इन लोगों के चेहरे के भावों पर नजर रखनी पड़ती है, जिससे उनका जीवन बेहद थका देने वाला हो जाता है। अगर इस तरह के लोग पर्यवेक्षक बन जाएँगे, तो बाकी सभी के लिए मुश्किल समय आ जाएगा। अगर तुम उनसे ईमानदारी से बात करते हो और उनकी समस्याएँ उजागर करते हो, तो वे कहेंगे कि तुम उन्हें जानबूझकर निशाना बना रहे हो और उजागर कर रहे हो। अगर तुम उनसे उनकी समस्याओं के बारे में बात नहीं करते, तो वे कहेंगे कि तुम उन्हें नीचा दिखा रहे हो। अगर तुम काम के बारे में गंभीर और जिम्मेदार हो और उन्हें कुछ सलाह देते हो, तो वे अवज्ञाकारी हो जाएँगे और कहेंगे कि तुम उन पर हमला कर रहे हो और तुम्हें घमंडी बताएँगे। बहरहाल, तुम जो भी करोगे, वे उसे नापसंद करेंगे। वे हमेशा लोगों को सताने के बारे में सोचते रहते हैं, और वे लोगों को इस तरह से बेबस करते हैं कि उनके हाथ-पैर बँध जाते हैं और उन्हें लगता है कि वे जो कुछ भी कर रहे हैं वह सही नहीं है। ऐसे पर्यवेक्षक कलीसिया के काम में बाधा डालते हैं।
नकली अगुआ सतही कार्य करने में माहिर होते हैं, लेकिन वे कभी भी वास्तविक कार्य नहीं करते। वे विभिन्न पेशेवर कार्यों का निरीक्षण, पर्यवेक्षण या निर्देशन नहीं करते, या समय-समय पर यह पता नहीं लगाते कि विभिन्न टीमों में क्या चल रहा है, यह निरीक्षण नहीं करते कि कार्य किस तरह से आगे बढ़ रहा है, क्या समस्याएँ हैं, क्या टीम सुपरवाइजर अपना काम करने में निपुण हैं, और भाई-बहन सुपरवाइजरों के बारे में कैसी सूचना देते हैं या उनका कैसा मूल्यांकन करते हैं। वे यह नहीं जाँचते हैं कि टीम के अगुआ या सुपवाइजर किसी को बेबस तो नहीं कर रहे हैं, क्या लोगों के सही सुझावों को अपनाया जा रहा है या नहीं, क्या किसी प्रतिभाशाली व्यक्ति या सत्य का अनुसरण करने वाले व्यक्ति को दबाया या बहिष्कृत तो नहीं किया जा रहा है, क्या किसी सीधे-सादे व्यक्ति को धमकाया तो नहीं जा रहा है, क्या नकली अगुआओं को उजागर कर उनकी सूचना देने वाले लोगों पर हमला तो नहीं किया जा रहा है, उनसे बदला तो नहीं लिया जा रहा है, उन्हें हटाया या निष्कासित तो नहीं किया जा रहा है, क्या टीम के अगुआ या सुपरवाइजर बुरे लोग तो नहीं हैं और क्या किसी को सताया तो नहीं जा रहा है। अगर नकली अगुआ इनमें से कोई भी ठोस कार्य नहीं करते तो उन्हें बरखास्त कर दिया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, मान लो कि कोई व्यक्ति नकली अगुआ को सूचना देता है कि एक सुपरवाइजर अक्सर लोगों को बेबस करता है और दबाता है। सुपरवाइजर ने कुछ कार्य गलत किए हैं, लेकिन वह भाई-बहनों को कोई सुझाव नहीं देने देता और वह खुद को सही साबित करने और अपना बचाव करने के बहाने भी तलाशता है और कभी अपनी गलतियों को स्वीकार नहीं करता। क्या ऐसे सुपरवाइजर को तुरंत बरखास्त नहीं किया जाना चाहिए? ये ऐसी समस्याएँ हैं जिन्हें अगुआओं को समय रहते ठीक कर लेना चाहिए। कुछ नकली अगुआ अपने द्वारा नियुक्त सुपरवाइजरों को उजागर नहीं होने देते, फिर चाहे उनके काम में कोई भी समस्या क्यों न पैदा हो रही हो, और वे निश्चित रूप से उनकी रिपोर्ट उच्च अधिकारियों तक नहीं जाने देते—यहाँ तक कि वे लोगों को समर्पण करना सीखने को कहते हैं। यदि कोई व्यक्ति सुपरवाइजर से जुड़ी समस्याएँ उजागर करता है, तो ये नकली अगुआ यह कहते हुए उन्हें बचाने या वास्तविक तथ्यों को छिपाने की कोशिश करते हैं कि “सुपरवाइजर के जीवन प्रवेश में समस्या है। उसका अहंकारी स्वभाव होना सामान्य है—थोड़ी-सी भी काबिलियत वाला हर इंसान अहंकारी होता है। यह कोई बड़ी बात नहीं है, मुझे बस उनके साथ थोड़ी संगति करने की आवश्यकता है।” संगति में सुपरवाइजर अपना पक्ष रखता है, “मैं मानता हूँ कि मैं अभिमानी हूँ। मैं मानता हूँ कि ऐसे मौके होते हैं जब मैं अपने घमंड, गर्व और रुतबे की परवाह कर दूसरे लोगों के सुझाव स्वीकार नहीं करता। लेकिन दूसरे लोग इस पेशे में अच्छे नहीं हैं, वे अक्सर बेकार सुझाव देते हैं, यही कारण है कि मैं उनकी बातें नहीं सुनता।” नकली अगुआ स्थिति को पूरी तरह से समझने की कोशिश नहीं करता, वह सुपरवाइजर के कार्य के नतीजे नहीं देखता और उनकी मानवता, स्वभाव और अनुसरण कैसे हैं, इस पर तो बिलकुल भी ध्यान नहीं देता। वह बस चीजों को कम आँकते हुए कहता है, “मुझे यह सूचना दी गई थी, इसलिए मैं तुम पर नजर रख रहा हूँ। मैं तुम्हें एक और मौका दे रहा हूँ।” इस बातचीत के बाद सुपरवाइजर कहता है कि वह पश्चात्ताप करने के लिए तैयार हैं, लेकिन नकली अगुआ इस बात पर कोई ध्यान नहीं देता कि उस सुपरवाइजर ने बाद में वास्तव में पश्चात्ताप किया या नहीं, या सिर्फ झूठ बोला है और धोखा दिया है। इस मामले पर अगर कोई सवाल उठाता है तो नकली अगुआ कहते हैं, “मैंने उनसे पहले ही बात कर ली है और यहाँ तक कि परमेश्वर के वचनों के कई अंशों पर उनसे संगति भी की है। वे पश्चाताप करने को तैयार हैं, और समस्या पहले ही हल हो चुकी है।” जब वह व्यक्ति पूछता है, “उस पर्यवेक्षक की मानवता कैसी है? क्या वह सत्य स्वीकार करने वाला व्यक्ति है? तुमने उसे एक मौका दिया है, लेकिन क्या वह असल में पश्चाताप कर पाएगा और बदल जाएगा?” नकली अगुआ, इसकी अयलियत समझ पाने में असमर्थ होकर जवाब देते हैं, “मैं अभी भी उनकी जाँच-परख कर रहा हूँ।” वह व्यक्ति जवाब देता है : “तुम कितने समय से उनकी जाँच-परख कर रहे हो? क्या तुम किसी निष्कर्ष पर पहुँचे हो?” नकली अगुआ कहते हैं : “छह महीने से अधिक समय हो गया है, और मैं अभी भी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँचा हूँ।” यदि छह महीने से अधिक समय तक उनकी जाँच-परख करने के बाद भी कोई परिणाम नहीं मिला है, तो यह कैसी कार्य कुशलता है? नकली अगुआ मानते हैं कि पर्यवेक्षक के साथ एक बार बातचीत करना प्रभावी है और इससे समस्या का समाधान हो जाता है। क्या यह विचार स्वीकार्य है? उन्हें लगता है कि उनके एक बार किसी से बात कर लेने पर वह व्यक्ति बदल सकता है, और अगर कोई व्यक्ति फिर से वह गलती नहीं करने का दृढ़ संकल्प व्यक्त करता है, तो वे बिना किसी और जांच-पड़ताल या स्थिति पर दोबारा गौर किए उस पर पूरी तरह से भरोसा कर लेते हैं। अगर कोई मामले के पीछे नहीं पड़े, तो वे शायद छह महीने तक काम को देखने या उस पर अनुवर्ती कार्रवाई करने का कष्ट भी न करें। नकली अगुआ तब भी अनजान बने रहते हैं जब कोई पर्यवेक्षक काम में गड़बड़ी कर रहा होता है। वे समझ ही नहीं पाते कि पर्यवेक्षक कैसे उनके साथ छल और खिलवाड़ कर रहा है। इससे भी अधिक घृणित बात यह है कि जब कोई व्यक्ति पर्यवेक्षक की समस्याओं के बारे में सूचना देता है, तो नकली अगुआ उन्हें अनदेखा कर देते हैं और वास्तव में यह नहीं देखते कि समस्याएँ मौजूद हैं या नहीं, या जिन समस्याओं की सूचना दी गई है, वे वास्तविक हैं या नहीं। वे इन मुद्दों पर विचार नहीं करते—वास्तव में, उन्हें खुद पर बहुत अधिक भरोसा होता है! कलीसिया के काम में चाहे जो भी परिस्थितियाँ उत्पन्न हों, नकली अगुआ उन पर उचित कार्रवाई करने की जल्दी नहीं करते; उन्हें लगता है कि यह वैसे भी उनकी चिंता का विषय नहीं है। इन समस्याओं के प्रति नकली अगुआओं की प्रतिक्रिया बड़ी ही ढीली-ढाली होती है, वे बहुत सुस्त गति से चलते और जरूरी उपाय करते हैं, टालमटोल करते रहते हैं, और लोगों को पश्ताचाप करने के और मौके देते रहते हैं, मानो जो मौके लोगों को देते हैं, वे बहुत कीमती और महत्वपूर्ण हों, मानो वे मौके उनकी नियति बदल सकते हों। नकली अगुआ नहीं जानते कि किसी व्यक्ति में जो कुछ अभिव्यक्त होता है, उसके जरिये उसका प्रकृति सार कैसे देखें, या उसके प्रकृति सार के आधार पर यह आँकें कि वह व्यक्ति किस मार्ग पर चल रहा है, या उसके चलने के मार्ग के आधार पर यह देख सकें कि कोई व्यक्ति पर्यवेक्षक बनने या अगुआ का कार्य करने लायक है या नहीं। वे इस तरह से चीजें देख पाने में सक्षम नहीं होते। नकली अगुआ अपने काम में केवल दो ही चीजें करने में सक्षम होते हैं : एक, बातचीत करने के लिए लोगों को बुलाना और बेमन से काम करना; दो, लोगों को मौके देना, दूसरों को खुश करना और किसी को नाराज न करना। क्या वे वास्तविक कार्य कर रहे हैं? स्पष्ट रूप से नहीं। लेकिन नकली अगुआ मानते हैं कि बातचीत के लिए किसी को बुलाना वास्तविक काम है। वे इन वार्तालापों को बहुत मूल्यवान और महत्वपूर्ण मानते हैं, और जो खोखले शब्द और सिद्धांत वे झाड़ते हैं, उन्हें अत्यंत सार्थक समझते हैं। उन्हें लगता है कि उन्होंने इन वार्तालापों के माध्यम से बड़ी समस्याएँ सुलझाई हैं और वास्तविक कार्य किया है। वे नहीं जानते कि परमेश्वर लोगों का न्याय और ताड़ना, उनकी काट-छाँट और निपटारा या उनका परीक्षण और शोधन क्यों करता है। वे नहीं जानते कि केवल परमेश्वर के वचन और सत्य ही मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव का समाधान कर सकते हैं। वे परमेश्वर के कार्य और उसके द्वारा मानवजाति के उद्धार का अति सरलीकरण कर देते हैं। वे मानते हैं कि कुछ शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलना परमेश्वर के कार्य की जगह ले सकते हैं, कि यह मनुष्य की भ्रष्टता की समस्या हल कर सकते हैं। क्या यह नकली अगुआओं की मूर्खता और अज्ञानता नहीं है? नकली अगुआओं में रत्ती भर भी सत्य वास्तविकता नहीं होती, फिर वे इतने आश्वस्त क्यों रहते हैं? क्या कुछ धर्म सिद्धांत झाड़ने से लोग स्वयं को जानने हेतु प्रेरित हो जाते हैं? क्या यह उन्हें उनका भ्रष्ट स्वभाव दूर करने में सक्षम बनाएगा? ये नकली अगुआ इतने अज्ञानी और मूढ़ कैसे हो सकते हैं? क्या व्यक्ति के गलत अभ्यास और भ्रष्ट व्यवहार सुलझाना वास्तव में इतना आसान है? क्या मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव का मुद्दा हल करना इतना आसान है? नकली अगुआ कितने मूर्ख और छिछले होते हैं! परमेश्वर मनुष्य की भ्रष्टता का मुद्दा हल करने के लिए केवल एक तरीके का उपयोग नहीं करता। वह लोगों को प्रकट, शुद्ध और पूर्ण करने के लिए कई तरीकों का उपयोग करता है और विभिन्न परिवेशों का आयोजन करता है। नकली अगुआ अत्यंत नीरस और सतही तरीके से काम करते हैं : वे लोगों को बातचीत के लिए बुलाते हैं, उनके सोचने के तरीके पर थोड़ा परामर्श का कार्य करते हैं, लोगों को थोड़ा प्रोत्साहित करते हैं और मानते हैं कि यही असली कार्य है। यह सतही है, है न? और इस सतहीपन के पीछे कौन-सी समस्या छिपी है? क्या यह बुद्धिहीनता नहीं है? नकली अगुआ बेहद बुद्धिहीन होते हैं और वे लोगों और चीजों को भी अत्यंत बुद्धिहीन ढंग से देखते हैं। लोगों के भ्रष्ट स्वभावों का समाधान करने से ज्यादा कठिन कुछ नहीं है—तेंदुआ अपने धब्बे नहीं बदल सकता। नकली अगुआ इस समस्या की असलियत बिल्कुल नहीं समझ पाते। इसलिए जब कलीसिया में ऐसे सुपरवाइजरों की बात आती है जो लगातार बाधाएँ पैदा करते हैं, जो हमेशा लोगों को बेबस करते और पीड़ा पहुँचाते हैं तो नकली अगुआ उनसे बात करने, और चंद शब्दों में उनकी काट-छाँट करने के सिवाय कुछ नहीं करता, और बस काम खत्म। वे तुरंत फेरबदल कर उन्हें बरखास्त नहीं करते। नकली अगुआओं का यह दृष्टिकोण कलीसिया के कार्य को बहुत नुकसान पहुँचाता है और अक्सर कुछ बुरे लोगों के बाधा डालने के कारण कलीसिया का कार्य अटक जाता है, उसमें देरी होती है, क्षति होती है और वह सामान्य रूप से, सुचारु रूप से और कुशलता से आगे नहीं बढ़ पाता—यह सब नकली अगुआओं द्वारा अपनी भावनाओं के आधार पर कार्य करने, सत्य सिद्धांतों का उल्लंघन करने और गलत लोगों का उपयोग करने का गंभीर दुष्परिणाम होता है। बाहरी तौर पर देखें तो नकली अगुआ मसीह-विरोधियों की तरह जानबूझकर असंख्य बुरे काम नहीं कर रहे होते, न ही अपने तरीके से काम कर रहे होते हैं और न अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित कर रहे होते हैं। लेकिन नकली अगुआ कलीसिया के कार्य में आने वाली विभिन्न समस्याओं को तुरंत हल करने में सक्षम नहीं होते और जब विभिन्न टीमों के सुपरवाइजरों में समस्याएँ आती हैं और जब ये सुपरवाइजर अपने कार्य की जिम्मेदारी उठाने में असमर्थ होते हैं तो नकली अगुआ उनके कर्तव्यों को तुरंत बदल नहीं पाते या उन्हें बरखास्त नहीं कर पाते, जिससे कलीसिया के कार्य को गंभीर नुकसान होता है। और इस सबका कारण यह है कि नकली अगुआ अपनी जिम्मेदारी में लापरवाही बरतते हैं। क्या नकली अगुआ अत्यंत घिनौने नहीं हैं? (हाँ, हैं।)
IV. नकली अगुआ कार्य व्यवस्थाओं के विरुद्ध जाने वाले और अपने तरीके से कार्य करने वाले पर्यवेक्षकों से कैसे पेश आते हैं
नकली अगुआ कलीसिया में होने वाले बुरे कामों, जैसे कि पर्यवेक्षकों द्वारा दूसरों को सताना, उन्हें बेबस करना और कलीसिया के कार्य में बाधा डालना आदि को तुरंत नहीं सँभाल पाते हैं। इसी तरह, जब कुछ पर्यवेक्षक परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्था के विरुद्ध जाते हैं और अपने तरीके से काम करते हैं, तो नकली अगुआ इन मुद्दों को तत्काल हल करने के लिए उचित समाधान नहीं निकाल पाते हैं। इसके परिणामस्वरूप कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के घर के भौतिक और वित्तीय संसाधनों को नुकसान होता है। नकली अगुआ नासमझ और उथले होते हैं, सत्य सिद्धांत समझने में असमर्थ होते हैं, और विशेष रूप से लोगों के प्रकृति सारों की असलियत समझने में असमर्थ होते हैं। फलस्वरूप, वे अक्सर अपना काम सतही तरीके से करते हैं, वे औपचारिकता निभाते हैं, विनियमों का पालन करते हैं, और नारे लगाते हैं, लेकिन कार्यस्थल पर जा कर कार्य का निरीक्षण करने, प्रेक्षण करने और प्रत्येक पर्यवेक्षक के बारे में सवाल पूछने में, अथवा समयबद्ध तरीके से यह पूछने में विफल रहते हैं कि उन पर्यवेक्षकों ने क्या कार्य किया है, उनके क्रियाकलापों को निर्देशित करने वाले सिद्धांत कैसे हैं और परवर्ती प्रभाव क्या हैं। परिणामतः, वे इस बारे में बिलकुल अनभिज्ञ होते हैं कि वे जिन लोगों का उपयोग कर रहे हैं, वे वास्तव में कौन हैं और उन्होंने क्या किया है। इसलिए, जब ये पर्यवेक्षक गुप्त रूप से परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाओं के विरुद्ध जाते हैं और अपने तरीके से चीजें करते हैं, तो न केवल इन झूठे अगुआओं को इस बारे में पता नहीं होता, बल्कि वे इन पर्यवेक्षकों का बचाव करने का प्रयास भी करते हैं। अगर वे इसके बारे में सुनते भी हैं, तो वे इस पर ध्यान नहीं देते और इसे तुरंत नहीं सँभालते हैं। नकली अगुआ एक लिहाज से अपने काम में अक्षम होते हैं, और दूसरे लिहाज से अपने कर्तव्यों के प्रति लापरवाह होते हैं। आओ, एक उदाहरण लेते हैं। एक अगुआ ने किसी ऐसी महिला को रोपण तकनीशियन के रूप में चुना, जिसे दूसरी टीम से निकाला जा चुका था। उसने यह नहीं देखा कि इस महिला के पास प्रासंगिक अनुभव और विशेषज्ञता है या नहीं, क्या वह काम अच्छी तरह से कर सकती है, या क्या उसका रवैया गंभीर और जिम्मेदार है, और उसे वह भूमिका देने के बाद, अगुआ ने उसे पूरी तरह से अनियंत्रित छोड़ते हुए कहा, “जाओ, और सब्जियाँ लगाना शुरू करो। तुम बीज चुन सकती हो, और तुम जो भी धनराशि खर्च करोगी उसे मैं मंजूरी दे दूँगा। इस काम को तुम जैसे ठीक समझो, बस वैसे ही करो!” अगुआ ने यह कहा, इसलिए इस पर्यवेक्षक ने जैसे उसे उचित लगा, वैसे काम करना शुरू कर दिया। उसका पहला काम बीजों का चयन करना था। जब उसने ऑनलाइन पता किया तो पाया कि “सब्जियों की बहुत सारी किस्में हैं—यह विशाल दुनिया असाधारण चीजों से भरी है! बीज चुनना तो काफी मजेदार है। मैंने पहले कभी यह काम नहीं किया है, और मुझे नहीं पता था कि मेरा इसमें इतना मन लगेगा। चूँकि मुझे इसमें इतनी रुचि है, इसलिए मैं पूरे मन से इसमें लगूँगी!” उसने सबसे पहले टमाटर के बीजों का खंड खोला, और वह हैरान रह गई। वहाँ सभी तरह की किस्मों और सभी आकारों के बीज थे, और रंगों के लिहाज से, लाल, पीले और हरे रंग के टमाटरों के बीज थे। एक तो बहुरंगी भी था—उसने ऐसा टमाटर पहले कभी नहीं देखा था, और इस खंड ने वास्तव में उसके क्षितिज को विस्तार दिया था! लेकिन वह सही बीज कैसे चुनती? उसने हर किस्म के कुछ पौधे लगाने का फैसला किया, खासकर कई रंगों वाले जो बहुत अनोखे लग रहे थे। पर्यवेक्षक ने अलग-अलग आकार, रंग और आकृति के 10 से अधिक टमाटरों की किस्मों का चयन किया। टमाटर के बीजों का चयन करने के बाद, बैंगन के लिए भी यही करने का समय था। आम तौर पर, लोग लंबे और बैंगनी रंग के बैंगन या सफेद बैंगन खाते हैं, लेकिन उसने सोचा, “बैंगन सिर्फ़ इन्हीं दो तरह के नहीं होने चाहिए। हरे, पैटर्न वाले, लंबे, गोल और अंडाकार किस्म के बैंगन होते हैं। मैं थोड़े-थोड़े हर किस्म के बैंगन चुनूँगी, ताकि सभी को अपनी कल्पना का विस्तार करने का मौका मिले और वे हर तरह के बैंगन खा सकें। देखो, पर्यवेक्षक के रूप में मैं बीज चुनने में कितनी कुशल और साहसी हूँ, मैं भाई-बहनों का कितना ख्याल रखती हूँ, हर किसी के स्वाद को संतुष्ट करती हूँ।” फिर, उसने प्याज के बीजों का चयन किया। स्थानीय स्तर पर प्याज की कुल 14 किस्में थीं, और उसने उन सभी का चयन किया, और जब उसका काम पूरा हो गया, तो वह काफी संतुष्ट महसूस कर रही थी। क्या यह पर्यवेक्षक “साहसी” है? इतनी सारी किस्में चुनने की हिम्मत कौन करेगा? बाद में, मैं इस मामले का गहन-विश्लेषण करता रहा, और किसी ने यह भी बताया कि “स्थानीय स्तर पर सिर्फ 14 किस्में नहीं हैं; और भी कुछ किस्में हैं जिन्हें उसने नहीं चुना!” उसका मतलब था कि 14 किस्में इतनी ज्यादा नहीं थीं, और ऐसी भी कई किस्में थीं जिन्हें पर्यवेक्षक ने नहीं चुना था, इसलिए उसने कुछ भी गलत नहीं किया। क्या यह कहने वाला व्यक्ति मंदबुद्धि नहीं है? यह मंदबुद्धि होना, मानवीय भाषा को नहीं समझना और इस बात से अनभिज्ञ होना है कि मैं मामले का गहन-विश्लेषण क्यों कर रहा था। प्याज के बीज चुनने के बाद, पर्यवेक्षक ने आलू की भी कम से कम आठ किस्में चुनीं। इतनी सारी किस्में चुनने में उसका उद्देश्य क्या था? सभी के क्षितिज को विस्तार देना और उन्हें विभिन्न स्वादों को चखने का मौका देना। पर्यवेक्षक का मानना था कि बीजों का चयन भाई-बहनों को लाभ पहुँचाने के सिद्धांत पर आधारित होना चाहिए। तुम उसकी इस प्रेरणा के बारे में क्या सोचते हो? क्या सभी की ओर से सोचने और सभी की सेवा करने के रवैये के आधार पर कार्य करना परमेश्वर के घर द्वारा अपेक्षित सिद्धांत है? (नहीं।) तो, बीजों के चयन के लिए परमेश्वर के घर का सिद्धांत क्या है? कुछ अजीब और दुर्लभ किस्में मत लगाओ जिन्हें हम आम तौर पर नहीं खाते। जहाँ तक आम तौर पर खाए जाने वाली किस्मों का सवाल है, अगर हमने उन्हें पहले नहीं लगाया है और हम नहीं जानते हैं कि वे स्थानीय मिट्टी और जलवायु के लिए उपयुक्त हैं या नहीं, तो एक या दो किस्में चुनो, ज्यादा से ज्यादा तीन या चार। पहली बात, उन्हें स्थानीय मिट्टी और जलवायु के उपयुक्त होना चाहिए; दूसरी बात, उन्हें उगाना आसान होना चाहिए और बीमारियों और कीटों के प्रति अतिसंवेदनशील नहीं होना चाहिए; तीसरी बात, उनसे अगले वर्ष के लिए बीज मिलना चाहिए; अंतिम बात, उनकी उपज अच्छी होनी चाहिए। यदि वे स्वादिष्ट हैं लेकिन उनसे मिलने वाली फसल खराब है, तो वे उपयुक्त नहीं हैं। बीजों के चयन के मामले के आधार पर देखें तो क्या इस पर्यवेक्षक ने सिद्धांतों के अनुसार काम किया? क्या उसने खोज की? क्या उसने समर्पण किया? क्या उसने परमेश्वर के घर के प्रति विचारशीलता दिखाई? क्या उसने उस दृष्टिकोण के साथ काम किया जो उसे कर्तव्य के निर्वहन में रखना चाहिए था? (नहीं।) स्पष्टतः, वह पागलों की तरह बुरी चीजें कर रही थी, खुले तौर पर परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्था के खिलाफ जा रही थी और अपने तरीके से काम कर रही थी! उसने अपनी व्यक्तिगत जिज्ञासा और मौज-मस्ती की इच्छा को संतुष्ट करने के लिए परमेश्वर की भेंटों को इस तरह से बर्बाद कर दिया, और इस तरह के महत्वपूर्ण कार्य को एक खेल माना, लेकिन उसके नकली अगुआ ने उसे बिना किसी सवाल या हस्तक्षेप के अपनी मर्जी से काम करने दिया। जब उससे पूछा गया, “क्या जो पर्यवेक्षक तुमने चुना है, उसने वास्तव में कोई काम किया? क्या परिणाम रहे? क्या तुमने बीजों के चयन के समय जाँच के माध्यम से उसकी मदद की?” उसने इन मामलों पर ध्यान नहीं दिया, और केवल इतना कहा, “बीज बोए गए हैं; हमने बीजारोपण के दौरान खेतों का दौरा किया था।” उन्हें किसी अन्य मुद्दे की परवाह नहीं थी। अंत में इस पर्यवेक्षक की समस्या का पता कैसे चला? उसने कुछ स्ट्रॉबेरी लगाईं, और संबंधित तकनीकी विनिर्देशों के अनुसार, स्ट्रॉबेरी के पौधों को पहले वर्ष में न ढँका जाना चाहिए न ही उन पर फल लगने देना चाहिए, और सभी फूलों को हटा दिया जाना चाहिए; अन्यथा, दूसरे वर्ष कोई फल नहीं लगेंगे, और अगर पहले वर्ष फल लग भी गए, तो वे बहुत छोटे होंगे। भले ही विशेषज्ञों ने पर्यवेक्षक को यह बताया, लेकिन उसने नहीं सुना। उसका तर्क ऑनलाइन जानकारी पर आधारित था जिसमें कहा गया था कि पहले वर्ष में स्ट्रॉबेरी के पौधों को प्लास्टिक की फिल्म से ढँकना और उन पर फल लगने देना ठीक है। इसका परिणाम यह हुआ कि बीजों से ढँकी विभिन्न प्रकार से विकृत छोटी-छोटी स्ट्रॉबेरी प्राप्त हुईं—कुछ खट्टी, कुछ मीठी, और कुछ बेस्वाद—सभी प्रकार की स्ट्रॉबेरी थीं। समस्या इतनी गंभीर थी, फिर भी वहाँ के नकली अगुआओं ने इसे पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया। क्यों? क्योंकि उन्हें लगा कि उन्हें वैसे भी वे स्ट्रॉबेरी खाने को नहीं मिलेंगी, इसलिए उन्होंने इस मुद्दे को नजरअंदाज करना चुना। क्या खाने को नहीं मिलने का मतलब यह है कि उन्हें इसकी परवाह नहीं करनी चाहिए? आलू और प्याज के बारे में क्या जो उन्हें खाने को मिलेंगे—क्या उन्होंने उनकी परवाह की? इन नकली अगुआओं में से किसी को भी परवाह नहीं थी; पर्यवेक्षक अपनी मर्जी से जो कुछ कर रही थी, उसे वे बस देखते रहे। एक दिन, मैं उनके पास गया, तो किसी ने बताया कि सलाद के पत्ते कड़े हो गए हैं, और अगर उन्हें जल्दी से नहीं काटा जाता, तो वे खाने लायक नहीं रहेंगे और बर्बाद हो जाएँगे। परंतु, पर्यवेक्षक ने इसे लगे रहने पर जोर दिया, और कहा कि अगर उसे काटा जाएगा तो उन्हें दूसरी सब्जियाँ लगानी होंगी, जो उसके लिए दिक्कत की बात थी। इस बारे में जानने के बावजूद, नकली अगुआओं ने कुछ नहीं किया। आखिरकार, ऊपरवाले को उन्हें जल्दी से सलाद की कटाई करने और स्थिति को सँभालने का आदेश देना पड़ा; अन्यथा, सलाद जमीन पर फैलता जाता और गर्मियों की सब्जियों का रोपण नहीं हो पाता। काम में इतनी उल्लेखनीय समस्या उत्पन्न होने के बावजूद, नकली अगुआओं में से किसी ने भी इस बारे में कुछ नहीं किया, वे लोगों को नाराज करने से बहुत डरते थे। चूँकि पर्यवेक्षक को एक नकली अगुआ ने पदोन्नत किया था, और उसने उसे पदोन्नत करने के बाद कभी भी उसके काम की जाँच नहीं की, उसे स्वतंत्र रूप से काम करने दिया, और उसे सहायता और समर्थन दिया, और अन्य अगुआओं ने हस्तक्षेप करने की हिम्मत न करते हुए उनके साथ मिलकर काम किया, इसलिए अंततः बहुत सारी परेशानियाँ उत्पन्न हो गईं। यह वह काम है जो अगुआओं ने किया। क्या उन्हें अभी भी अगुआ कहा जा सकता है? उनकी नाक के नीचे इतनी गंभीर समस्या होने के बावजूद, वे इसे एक समस्या के रूप में पहचानने में विफल रहे, हल करना तो दूर की बात है। क्या ये नकली अगुआ नहीं हैं? (हाँ, वे हैं।) एक तरह से वे खुशामदी इंसान थे और दूसरों को नाराज करने से डरते थे। दूसरे लिहाज से, वे जानते ही नहीं थे कि समस्या कितनी गंभीर थी, उनमें सटीक निर्णय क्षमता नहीं थी, उन्हें नहीं पता था कि यह एक मुद्दा है, और उन्हें यह भी नहीं पता था कि यह काम उनकी जिम्मेदारियों के दायरे में आता है। क्या वे निकम्मे और बरबादी करने वाले नहीं हैं? क्या यह कर्तव्य की अवहेलना नहीं है? (हाँ, है।) यह चौथी स्थिति है जिसमें पर्यवेक्षक परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्था के विरुद्ध जाकर अपने तरीके से काम करते हैं। हमने एक उदाहरण प्रस्तुत किया है, जो इस मामले में नकली अगुआओं द्वारा अपने कर्तव्यों की अवहेलना करने की अभिव्यक्ति को उजागर करता है और नकली अगुआओं के प्रकृति सार को प्रकाश में लाता है।
V. नकली अगुआ उन पर्यवेक्षकों से कैसे पेश आते हैं जो मसीह-विरोधी हैं और अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित करते हैं
एक और स्थिति तब होती है जब पर्यवेक्षक अपने वरिष्ठों के खिलाफ विद्रोह करते हैं और अपने स्वतंत्र राज्य बना लेते हैं—ये पर्यवेक्षक मसीह विरोधी होते हैं। जब पर्यवेक्षकों की खराब काबिलियत, बुरी मानवता या उनके पागलों की तरह बुरे काम करने जैसे मुद्दों की बात आती है, तो नकली अगुआ निरीक्षक की भूमिका निभाने में सक्षम नहीं होते। वे इन प्रकार के पर्यवेक्षकों द्वारा किए जा रहे काम और उनकी समस्याओं के बारे में तुरंत निरीक्षण करने और उनकी उपयुक्तता निर्धारित करने में भी विफल रहते हैं। इसी तरह, मनहूस और क्रूर मसीह विरोधियों के प्रकृति सार को समझने में नकली अगुआ और भी अधिक असमर्थ होते हैं। वे न केवल इसकी असलियत समझने में असमर्थ होते हैं, बल्कि साथ ही वे इन लोगों से एक हद तक डरते हैं, और इस हद तक थोड़े असहाय और शक्तिहीन होते हैं कि मसीह विरोधी अक्सर उनकी नाक में नकेल डाले रखते हैं। यह कितना गंभीर हो सकता है? मसीह-विरोधी नकली अगुआओं के कार्यक्षेत्र में गुट बना सकते हैं, अपनी फौज खड़ी कर सकते हैं और स्वतंत्र राज्य स्थापित कर सकते हैं, और अंततः, वे सत्ता पर कब्जा कर सकते हैं, स्थितियों पर अपना नियंत्रण स्थापित कर सकते हैं, और नकली अगुआओं को नाममात्र का अगुआ बना सकते हैं। ये नकली अगुआ उन चीजों पर ध्यान नहीं देते जिन्हें मसीह-विरोधी तय करते हैं और जानते हैं, और उन्हें इन चीजों के बारे में तभी पता चलता है जब कुछ घटित होता है और कोई उन्हें इनकी सूचना देता है, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। नकली अगुआ मसीह-विरोधियों से यह भी पूछते हैं कि उन्हें क्यों नहीं बताया गया, और उनका जवाब होता है, “तुम्हें बताने का क्या फायदा? तुम किसी भी चीज के बारे में निर्णय नहीं ले सकते, इसलिए तुमसे इस पर चर्चा करने की कोई जरूरत नहीं थी, हमने खुद ही निर्णय कर लिया। अगर हमने तुम्हें सूचित भी किया होता तो तुम निश्चित रूप से सहमत होते। तुम्हारी क्या राय हो सकती थी?” ऐसे मामलों में नकली अगुआ असहाय होते हैं। यदि वे इन मसीह-विरोधियों को पहचान नहीं सकते, उनका समाधान नहीं कर सकते, या सँभाल नहीं सकते, तो उन्हें इनके बारे में ऊपरवाले को सूचना देनी चाहिए, लेकिन वे ऐसा करने की हिम्मत तक नहीं करते—क्या ये निकम्मे नहीं हैं? (हाँ, हैं।) ऐसे मामलों के सामने आने पर ये घोर निकम्मे लोग आँसू बहाते हुए मेरे पास शिकायत करने आते हैं, बड़बड़ाते हैं, “यह मेरी गलती नहीं है; मैंने वह निर्णय नहीं लिया था। उन्होंने जो निर्णय लिया वह सही हो या न हो, इससे मेरा कोई लेना-देना नहीं होता, क्योंकि उन्होंने निर्णय करते समय मुझे इसकी सूचना नहीं दी थी या मुझे इसके बारे में नहीं बताया था।” यह सब कहने से उनका क्या मतलब होता है? (वे जिम्मेदारी से बच रहे होते हैं।) अगुआओं के तौर पर, उन्हें इन मामलों की जानकारी और इन पर पकड़ होनी चाहिए; मसीह-विरोधी यदि उन्हें चीजों के बारे में सूचित नहीं करते, तो वे अग्रसक्रिय रूप से जाकर खुद ही क्यों नहीं पूछते? अगुआओं के तौर पर उन्हें हर मामले को व्यवस्थित करना चाहिए, अध्यक्षता करनी चाहिए और निर्णय लेने चाहिए; यदि मसीह-विरोधी उन्हें किसी भी बात की जानकारी नहीं देते और खुद ही निर्णय लेते हैं, इन अगुआओं को हस्ताक्षर करने के लिए बाद में बीजक भेजते हैं, तो क्या वे अगुआओं के अधिकार को हड़प नहीं रहे हैं? जब नकली अगुआ कलीसिया के कार्य में बाधा डालने वाले मसीह-विरोधी लोगों का सामना करते हैं, तो वे किंकर्तव्यविमूढ़ रह जाते हैं; वे भेड़िये के सामने मूर्खों की तरह असहाय हो जाते हैं, और शक्तिहीन होकर खड़े रहते हैं, जबकि मसीह-विरोधी उन्हें नाममात्र के मुखिया में बदल देते हैं और उनके अधिकार को हड़प लेते हैं। वे इस बारे में कुछ भी नहीं कर सकते हैं—ये कितने बेकार लोग हैं! वे मुद्दों को हल नहीं कर सकते, मसीह-विरोधियों को पहचान या उजागर नहीं कर सकते, और निश्चित ही उन्हें कोई भी बुरा काम करने से रोक नहीं सकते। इसी के साथ, वे ऊपरवाले को इन मुद्दों की सूचना नहीं देते। क्या ये लोग निकम्मे नहीं हैं? उन्हें अगुआ के रूप में चुनने का क्या फायदा है? मसीह-विरोधी पागलों की तरह बुरे काम करते हैं, खुलेआम चढ़ावे को बर्बाद करते हैं, अपनी फौज बनाते हैं और कलीसिया के भीतर अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करते हैं; इस बीच, ये अगुआ उनका पर्यवेक्षण करने, उन्हें उजागर करने, उन्हें नियंत्रित करने या उन्हें सँभालने में पूरी तरह विफल रहते हैं, फिर भी वे मेरे पास शिकायत करने आते हैं। वे किस तरह के अगुआ हैं? वे वास्तव में बेकार हैं! मसीह विरोधियों के नेतृत्व वाले ये गिरोह चाहे जो कुछ भी कर रहे हों, वे आपस में गुप्त रूप से चर्चा करते हैं और फिर बिना प्राधिकार के निर्णय लेते हैं। निर्णय लेने के अधिकार की बात तो दूर, वे अगुआओं को यह जानने का अधिकार भी नहीं देते कि क्या चल रहा है। वे अगुआओं को सीधे नकारते हैं, सारी शक्ति खुद अपने हाथ में लेकर सारे फैसले करते हैं। इन सबके बीच वे अगुआ क्या कर रहे होते हैं जिन्हें इन लोगों को प्रबंधित करने का काम सौंपा गया होता है? वे इस कार्य के बारे में निरीक्षण करने, निगरानी करने, प्रबंधन करने या निर्णय लेने में पूरी तरह विफल रहते हैं। अंत में, वे मसीह विरोधियों को अपना नियंत्रण और प्रबंधन करने देते हैं। क्या यह समस्या नकली अगुआओं के काम से उत्पन्न नहीं हुई होती? इस समस्या का सार क्या है? यह कहाँ से पैदा होती है? यह नकली अगुआओं में कमजोर काबिलियत होने, काम करने की क्षमता न होने और मसीह विरोधियों में उनके प्रति बिलकुल भी सम्मान न होने से पैदा होती है। मसीह विरोधी सोचते हैं, “अगुआओं के रूप में तुम क्या कर सकते हो? मैं अभी भी तुम्हारी बात नहीं सुनूँगा, और तुम्हारी बात काटते हुए काम करता रहूँगा। अगर तुम ऊपरवाले को इसकी सूचना देते हो, तो हम तुम्हें सताएँगे!” नकली अगुआ ऐसे मामलों की सूचना देने की हिम्मत नहीं करते। नकली अगुआओं में न केवल काम करने की क्षमता नहीं होती, बल्कि उनमें सिद्धांतों को बनाए रखने का साहस भी नहीं होता, वे लोगों को अपमानित करने से डरते हैं, और उनमें निष्ठा बिलकुल नहीं होती—क्या यह गंभीर समस्या नहीं है? अगर उनमें वाकई कुछ काबिलियत होती और वे सत्य समझते, तो यह देखकर कि ये लोग बुरे हैं, वे कहते, “मैं उन्हें अकेले उजागर करने की हिम्मत नहीं कर सकता, इसलिए मैं इन मुद्दों को हल करने के लिए सत्य का अनुसरण करने वाले और सत्य को अधिक समझने वाले कुछ भाई-बहनों के साथ संगति करूँगा। अगर, उनके साथ संगति करने के बाद भी हम मसीह विरोधियों से नहीं निपट पाते तो मैं ऊपरवाले को समस्या की सूचना दूँगा और इसे उससे हल करवाऊँगा। मैं और कुछ नहीं कर सकता, लेकिन मुझे पहले परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करनी चाहिए; जिन मुद्दों की असलियत मैंने समझी है और जिन समस्याओं का मैंने पता लगाया है, उन्हें बिल्कुल भी बड़ा नहीं होने देना चाहिए।” क्या यह समस्या से निपटने का एक तरीका नहीं है? क्या इसे भी अपनी जिम्मेदारी पूरी करना नहीं माना जा सकता? अगर वे ऐसा कर सकते, तो ऊपरवाला यह नहीं कहता कि उनमें कम काबिलियत है और काम करने की क्षमता नहीं है। परंतु, ये अगुआ ऊपरवाले को समस्याएँ बता भी नहीं सकते, इसीलिए उन्हें बेकार और नकली अगुआओं के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। उनमें न केवल कम काबिलियत है और काम करने की क्षमता का अभाव है, बल्कि उनके पास मसीह विरोधियों को उजागर करने और उनके खिलाफ लड़ने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करने की आस्था और साहस भी नहीं है। क्या वे बेकार नहीं हैं? मसीह विरोधियों ने जिन लोगों को हड़प लिया है, क्या वे लोग दयनीय हैं? वे दयनीय लग सकते हैं; उन्होंने कुछ भी बुरा नहीं किया है, और अपने काम में वे बहुत सतर्क हैं, वे गलतियाँ करने, काट-छाँट का सामना करने और भाई-बहनों द्वारा तिरस्कृत किए जाने से बहुत डरते हैं। फिर भी वे अपने देखते-देखते मसीह विरोधियों द्वारा हड़प लिए जाते हैं, वे जो कुछ भी कहते हैं उसका कोई असर नहीं होता, और उनके वहाँ होने या न होने से कोई फर्क नहीं पड़ता। ऊपरी तौर पर वे दयनीय लग सकते हैं, लेकिन वे वास्तव में बहुत घृणित हैं। मुझे बताओ, क्या परमेश्वर का घर उन समस्याओं को हल कर सकता है जिन्हें लोग हल नहीं कर सकते? क्या लोगों को समस्याओं की सूचना ऊपरवाले को देनी चाहिए? (हाँ, उन्हें देनी चाहिए।) परमेश्वर के घर में, ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसे हल नहीं किया जा सकता है, और परमेश्वर के वचन किसी भी मुद्दे को हल कर सकते हैं। क्या उन लोगों की परमेश्वर में सच्ची आस्था है? अगर उनमें इतनी भी आस्था नहीं है तो वे अगुआ बनने के योग्य कैसे हैं? क्या वे बेकार के दुष्ट नहीं हैं? इसका संबंध केवल नकली अगुआ होने से नहीं है; उनमें परमेश्वर में सबसे बुनियादी आस्था भी नहीं है। वे छद्म-विश्वासी हैं और वे अगुआ बनने के लायक नहीं हैं!
अगुआओं और कार्यकर्ताओं की चौथी जिम्मेदारी के संबंध में हमने पाँच स्थितियों को सूचीबद्ध किया है ताकि यह उजागर किया जा सके कि नकली अगुआ कार्य की विभिन्न मदों और पर्यवेक्षकों से कैसे पेश आते हैं। इन पाँच स्थितियों के आधार पर हमने नकली अगुआओं की बेहद कम काबिलियत, अक्षमता और वास्तविक कार्य करने में अयोग्यता की विभिन्न अभिव्यक्तियों का गहन-विश्लेषण किया है। इस तरह से संगति करने से क्या तुम लोग इस बारे में थोड़ा स्पष्ट हुए हो कि नकली अगुआओं को कैसे पहचाना जाए? (हाँ।) तो, ठीक है, चलो आज अपनी संगति यहीं समाप्त करते हैं। अलविदा!
23 जनवरी 2021