अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (1)

नकली अगुआओं का भेद पहचानना क्यों जरूरी है

अब जबकि हमने मसीह विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों पर संगति समाप्त कर ली है, आज हम एक नए विषय पर संगति करेंगे—नकली अगुआओं की विभिन्न अभिव्यक्तियाँ। परमेश्वर में विश्वास करने के इन वर्षों में, तुम लोगों ने नकली अगुआओं की सभी प्रकार की अभिव्यक्तियों और तौर-तरीकों का सामना किया है। परमेश्वर के घर द्वारा सभी स्तरों पर नकली अगुआओं को खारिज करने की प्रक्रिया में अधिकांश लोगों को नकली अगुआओं के बारे में थोड़ी-बहुत समझ हो जाती है; यानी, अधिकांश लोगों को नकली अगुआओं की कुछ विशिष्ट अभिव्यक्तियों के बारे में थोड़ी समझ होती है। लेकिन तुम्हारी समझ कितनी भी गहरी हो या तुम उसे कितना भी समझते हो, अंततः यह पर्याप्त व्यवस्थित या विशिष्ट नहीं होती। कलीसिया के चुनावों के दौरान, बहुत से लोग अगुआओं को चुनने के सिद्धांतों को समझने में विफल रहते हैं, वे यह समझने में विफल रहते हैं कि किस तरह के व्यक्ति को अगुआ के रूप में चुनना है और किस तरह का व्यक्ति अगुआ के रूप में भाई-बहनों को परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में पहुँचा सकता है और किस तरह का व्यक्ति योग्य अगुआ है। वे इन चीजों के बारे में बहुत जागरूक या स्पष्ट नहीं हैं। कुछ भ्रमित और नासमझ लोग भी होते हैं जो चुनावों के दौरान साफ तौर पर नकली अगुआओं का चुनाव करते हैं, जो भी नकली अगुआ की तरह दिखता है उसे चुनते हैं जबकि जो वास्तव में अगुआ बनने के योग्य और सक्षम हैं, जिनमें अगुआ होने की काबिलियत और मानवता है, उनकी ओर ध्यान नहीं देते हैं। जिन लोगों में मूल रूप से अगुआ बनने की काबिलियत और मानवता नहीं है, उन्हें उनके बाहरी उत्साह या कुछ अच्छे व्यवहारों के कारण चुना जाता है, और क्योंकि वे लोगों की “अच्छे” होने की धारणाओं को पूरा करते हैं, जबकि जो लोग वास्तव में अगुआई करने की सभी योग्यताएँ रखते हैं, उन्हें कभी नहीं चुना जाता। जो लोग सुर्खियों में रहना चाहते हैं और उत्साह से खुद को खपाते हैं—फिर भी मूल रूप से अक्षम होते हैं—वे ही हमेशा हर जगह दिखाई पड़ते हैं, बहुत सक्रिय दिखते हैं, और उनके बारे में अधिकांश लोग सोचते हैं इस तरह का व्यक्ति योग्य है और उसे ही चुना जाना चाहिए। परिणाम यह होता है कि चुने जाने के बाद ऐसे लोग किसी काम की जिम्मेदारी नहीं ले सकते। वे ऊपरवाले की कार्य व्यवस्था को लागू करने में भी असमर्थ होते हैं, वे नहीं जानते कि उसे कैसे लागू करना है। यद्यपि वे हमेशा बहुत उत्साह के साथ व्यस्त रहते हैं, लेकिन कुछ समय तक उनके द्वारा अगुआई करने के बाद कलीसिया के किसी भी काम में कोई सुधार नहीं होता और बहुत कम प्रगति होती है, और अक्सर ऐसी स्थितियाँ होती हैं जिनमें दुष्ट लोगों द्वारा सत्ता हड़प लेने अथवा विघ्न-बाधाओं के कारण कलीसिया का काम अव्यवस्थित हो जाता है या लोग बिखर जाते हैं। नकली अगुआओं के काम के ये परिणाम होते हैं। किसी नकली अगुआ के चुने जाने से न केवल भाई-बहनों का जीवन प्रवेश प्रभावित होगा और उसे नुकसान पहुँचेगा, बल्कि साथ ही कलीसिया के विभिन्न कार्यों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, जिससे सुसमाचार प्रसार का काम सुचारु या प्रभावी ढंग से नहीं चल सकेगा। यह आंशिक रूप से खुद नकली अगुआओं द्वारा पैदा की गई समस्या होती है, लेकिन आंशिक रूप से इसका संबंध उन लोगों से भी होता है जो उन्हें चुनते हैं। यदि तुम सत्य सिद्धांतों को नहीं समझते, तुम्हारे पास कोई समझ नहीं है, और तुम दृष्टिहीन हो और लोगों की असलियत समझ नहीं सकते जिसके परिमामस्वरूप तुम एक नकली अगुआ को चुन लेते हो, तो तुम न केवल खुद को और दूसरों को नुकसान पहुँचाते हो, बल्कि इससे कलीसिया के काम को भी नुकसान पहुँचता है। यह नकली अगुआओं की वजह से परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश और कलीसिया के कार्य पर पड़ने वाला प्रभाव और क्षति है। इसलिए, हमें नकली अगुआओं की विभिन्न अभिव्यक्तियों को पहचानना चाहिए और उनका क्रमांकन करना चाहिए, और उस आधार पर मैं तुम्हें यह समझने में सक्षम बनाऊँगा कि किसी योग्य अगुआ को कौन-से व्यवहार प्रदर्शित करने चाहिए, उसे क्या कार्य करना चाहिए, और उसकी जिम्मेदारियों का दायरा वास्तव में क्या है। नकली अगुआओं को पहचानने का विषय बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसका संबंध कलीसिया के कार्य, परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश और विशेष रूप से, प्रत्येक कर्तव्य की प्रगति से है। कुछ लोग कह सकते हैं : “मेरा चुनाव में खड़े होने का इरादा नहीं है, न ही अगुआ या कार्यकर्ता बनने की मेरी कोई महत्वाकांक्षा या इच्छा है। मुझमें आत्म-जागृति है, और साधारण विश्वासी होने के लिए इतना पर्याप्त है, इसलिए सत्य सिद्धांतों के इस पहलू से मेरा कोई मतलब नहीं है। मैं अगर कुछ सुनना चाहूँगा, तो मैं अपने जीवन प्रवेश और उद्धार के बारे में कुछ सुनूँगा। नकली अगुआओं की विभिन्न अभिव्यक्तियों और उनमें निहित सत्य मेरे अपने जीवन प्रवेश के लिए प्रासंगिक नहीं हैं, इसलिए मुझे यह सुनने की जरूरत नहीं है, या मैं इसे बेमन से या आधे-अधूरे मन से सुन सकता हूँ और बिना गंभीरता से लिए इस प्रक्रिया से गुजर सकता हूँ।” क्या यह अच्छा रवैया है? (नहीं, यह अच्छा नहीं है।) अन्य लोग कहते हैं : “मेरी कोई महत्वाकांक्षा नहीं है, और मैं अगुआ बनने की उम्मीदवारी में शामिल नहीं होना चाहता। मैंने बचपन से कभी भी अधिकारी बनने या दूसरों से अलग दिखने का इरादा नहीं किया, मुझे बस एक आम, साधारण व्यक्ति बनना पसंद है। परमेश्वर में विश्वास करना शुरू करने के क्षण से ही बस अनुयायी बनना चाहता रहा हूँ। मुझे दूसरों के आदेशों का पालन करना पसंद है, और मैं वही करता हूँ जो वे मुझसे करने के लिए कहते हैं। इस तरह का व्यक्ति होना कितना सरल है! मैं बस एक साधारण व्यक्ति हूँ जो चिंता नहीं करना चाहता या दायित्व नहीं उठाना चाहता, इसलिए मुझे ये बातें सुनने की कोई जरूरत नहीं है, न ही मैं सुनना चाहता हूँ।” यह दृष्टिकोण सही है या नहीं? (यह सही नहीं है।) इसमें क्या सही नहीं है? (यद्यपि वे अगुआ नहीं बनना चाहते, लेकिन अगर वे सत्य के इस पहलू को नहीं समझते और नकली अगुआओं को नहीं पहचान पाते, तो चुनावों के दौरान, उनके द्वारा नकली अगुआ को चुने जाने की बहुत अधिक संभावना होती है, जिससे कलीसिया के काम और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश पर प्रभाव पड़ेगा।) यह एक पहलू है। और कुछ? (नकली अगुआओं की समस्या हम में से हर एक में मौजूद है, और हमें खुद की जाँच करनी चाहिए, आत्म-चिंतन करना चाहिए और स्वयं को समझना चाहिए।) (यदि हम नकली अगुआओं को नहीं पहचान सकते, तो हमें पता ही नहीं चलेगा कि किसी ने हमें कब गुमराह कर दिया, और हमारा अपना जीवन कष्ट में रहेगा।) (इस तरह का नजरिया सत्य का अनुसरण नहीं करने की अभिव्यक्ति है। परमेश्वर के घर में अगुआ बनना महत्वाकांक्षी होने और आम दुनिया में अधिकारी बनने की चाहत रखने के बराबर नहीं है। अगुआ होने का मतलब है सत्य का बेहतर तरीके से अनुसरण करना, कलीसिया के काम का बोझ उठाना और परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील होना। यह सत्य की ओर बढ़ने के लिए प्रयासरत होना है।) (परमेश्वर के चुने हुए लोगों में शामिल व्यक्ति के रूप में, नकली अगुआओं की रिपोर्ट करना हमारा दायित्व और जिम्मेदारी है। यदि हम नकली अगुआओं को नहीं पहचान सकते, तो हम किसी को भी सत्ता हासिल करने और कलीसिया के काम को प्रभावित करने दे सकते हैं।) ये कितने पहलू हो गए? (पाँच पहलू।) इन पाँचों पहलुओं में से प्रत्येक सही है, और काफी सटीक है। मैंने अभी-अभी जिस प्रकार के व्यक्ति का उल्लेख किया है, उसके दृष्टिकोण के आधार पर इस समस्या के सार का गहन-विश्लेषण करते हुए, मूल रूप से इसके ये पाँच पहलू हैं। चाहे तुम अगुआ बनना चाहो या नहीं, परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से एक के रूप में तुम्हें अगुआओं और कार्यकर्ताओं के प्रति पर्यवेक्षक की भूमिका निभानी चाहिए। परमेश्वर का घर तुम्हारा भी घर है, और अगुआ एक छोटे से गृह-प्रबंधक जैसा होता है। यदि वह चीजों का अच्छी तरह से प्रबंधन नहीं करता, तो तुम भी प्रभावित होगे और आरोपी बनोगे, इसलिए तुम्हारे पास उसके सभी कामों की निगरानी करने की जिम्मेदारी और दायित्व है।

अगुआओं और कार्यकर्ताओं की पंद्रह जिम्मेदारियों का अवलोकन

नकली अगुआओं की पहचान करना मुश्किल नहीं है, क्योंकि इस तरह के लोगों का कलीसिया में होना असामान्य नहीं हैं; वे तब से मौजूद हैं जब से कलीसिया की अगुआई और कलीसिया का काम शुरू हुआ है। उनकी काबिलियत और समझने की क्षमता, उनके चरित्र और चुने हुए मार्ग आदि सभी में कई निश्चित अभिव्यक्तियाँ हैं। इन निश्चित अभिव्यक्तियों का गहन-विश्लेषण करने से पहले हमें यह समझना चाहिए कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं की ज़िम्मेदारियाँ क्या हैं, और इनमें मुख्य रूप से कौन-सा विशिष्ट कार्य शामिल है। केवल वे ही सुयोग्य अगुआ और कार्यकर्ता हैं जो इस विशिष्ट कार्य को अच्छी तरह से करने में सक्षम हैं; जो यह कार्य नहीं कर सकते वे नकली अगुआ हैं। शायद अधिकांश लोगों को अभी भी नकली अगुआओं को पहचानना नहीं आता, वे बुनियादी सिद्धांतों को नहीं समझ सकते और नहीं जानते हैं कि पहचान के लिए कौन-से पहलू सबसे महत्वपूर्ण हैं। आज आओ, हम पहले व्यवस्थित रूप से इस बात पर संगति करें कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं की ज़िम्मेदारियाँ वास्तव में क्या हैं, उन्हें एक-एक करके सूचीबद्ध करें ताकि सभी को स्पष्ट रूप से पता चल सके। इन सिद्धांतों को समझने के बाद, जब तुम दोबारा अगुआओं और कार्यकर्ताओं का चुनाव करोगे, तो तुम्हारे पास एक सटीक मानक होगा जिससे तुम तुलना कर सकोगे कि बिलकुल ठीक तरीके से चुनाव कैसे करना है और चुने जाने के लिए बिलकुल सही व्यक्ति कौन है। तो आओ, हम पहले अगुआओं और कार्यकर्ताओं की ज़िम्मेदारियों को सूचीबद्ध करें।

अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ :

1. परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने और समझने, और परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश करने में लोगों की अगुआई करो।

2. हर तरह के व्यक्ति की स्थितियों से परिचित हो, और जीवन प्रवेश से संबंधित जिन विभिन्न कठिनाइयों का वे अपने वास्तविक जीवन में सामना करते हैं, उनका समाधान करो।

3. उन सत्य सिद्धांतों के बारे में संगति करो, जिन्हें प्रत्येक कर्तव्य को ठीक से निभाने के लिए समझा जाना चाहिए।

4. विभिन्न कार्यों के निरीक्षकों और विभिन्न महत्वपूर्ण कार्यों के लिए जिम्मेदार कर्मियों की परिस्थितियों से अवगत रहो, और आवश्यकतानुसार तुरंत उनके कर्तव्यों में बदलाव करो या उन्हें बरखास्त करो, ताकि अनुपयुक्त लोगों को काम पर रखने से होने वाला नुकसान रोका या कम किया जा सके, और कार्य की दक्षता और सुचारु प्रगति की गारंटी दी जा सके।

5. कार्य के प्रत्येक मद की स्थिति और प्रगति की अद्यतन जानकारी और समझ बनाए रखो, और कार्य में आने वाली समस्याएँ ठीक करने, विचलन सही करने और त्रुटियों को तुरंत सुधारने में सक्षम रहो, ताकि वह सुचारु रूप से आगे बढ़े।

6. सभी प्रकार की योग्य प्रतिभाओं को बढ़ावा दो और उन्हें विकसित करो, ताकि सत्य का अनुसरण करने वाले सभी लोगों को प्रशिक्षण प्राप्त करने और सत्य-वास्तविकता में प्रवेश करने का अवसर यथाशीघ्र मिल सके।

7. विभिन्न प्रकार के लोगों को उनकी मानवता और खूबियों के आधार पर समझदारी से कार्य आवंटित कर उनका उपयोग करो, ताकि उनमें से प्रत्येक का सर्वोत्तम उपयोग किया जा सके।

8. काम के दौरान आने वाली उलझनों और कठिनाइयों की तुरंत सूचना दो और उन्हें हल करने का तरीका खोजो।

9. मार्गदर्शन, पर्यवेक्षण, आग्रह और निरीक्षण करते हुए, परमेश्वर के घर की विभिन्न कार्य-व्यवस्थाओं को उसकी अपेक्षाओं के अनुसार सटीक रूप से संप्रेषित, जारी और कार्यान्वित करो, और उनके कार्यान्वयन की स्थिति का निरीक्षण और अनुवर्ती कार्रवाई करो।

10. परमेश्वर के घर की विभिन्न चीजों (किताबें, विभिन्न उपकरण, खाद्य पदार्थ, आदि) को उचित रूप से संगृहीत और समझदारी से वितरित करो, और क्षति और बरबादी कम करने के लिए नियमित निरीक्षण, रखरखाव और मरम्मत करो; साथ ही, दुष्ट लोगों द्वारा उनका दुरुपयोग से बचो।

11. विशेषकर भेंटों के व्यवस्थित रूप से पंजीकरण, मिलान और सुरक्षा के कार्य के लिए मानक स्तर की मानवता वाले भरोसेमंद लोगों को चुनो; आवक और जावक चीजों की नियमित रूप से समीक्षा और जाँच करो, ताकि लापरवाही या बरबादी के मामलों के साथ-साथ अनुचित व्यय के मामलों की भी तुरंत पहचान की जा सके—ऐसी चीजों पर रोक लगाओ और उचित मुआवजे की माँग करो; इसके अतिरिक्त, किसी भी तरह से, भेंटों को दुष्ट लोगों के हाथों में पड़ने और उनके द्वारा दुरुपयोग किए जाने से रोको।

12. उन विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों की तुरंत और सटीक रूप से पहचान करो, जो परमेश्वर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था में विघ्न-बाधा उत्पन्न करती हैं; उन्हें रोको और प्रतिबंधित करो, और चीजों को सकारात्मक दिशा दो; इसके अतिरिक्त, सत्य के बारे में संगति करो, ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोग ऐसी बातों के माध्यम से समझ विकसित करें और उनसे सीखें।

13. परमेश्वर के चुने हुए लोगों को मसीह-विरोधियों द्वारा बाधित किए जाने, गुमराह किए जाने, नियंत्रित किए जाने और नुकसान पहूँचाए जाने से बचाओ, और उन्हें मसीह-विरोधियों को पहचानने और अपने दिलों से त्यागने में सक्षम बनाओ।

14. सभी प्रकार के बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों को तुरंत पहचानो और फिर बहिष्कृत या निष्कासित कर दो।

15. सभी प्रकार के महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों की रक्षा करो, उन्हें बाहरी दुनिया के हस्तक्षेप से बचाकर रखो, और कार्य की विभिन्न महत्वपूर्ण मदों को व्यवस्थित तरीके से आगे बढ़ाना सुनिश्चित करने के लिए उन्हें सुरक्षित रखो।

अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों को कुल पंद्रह मदों में संक्षेपित किया गया है, और हम इनके आधार पर संगति करेंगे। आओ, सबसे पहले इन पंद्रह मदों में शामिल प्रत्येक कार्य को देखें। पहली तीन मदों का संबंध लोगों द्वारा सत्य समझने और जीवन प्रवेश के मुद्दे से है। यह सबसे बुनियादी काम है जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को करना चाहिए, और यह प्रमुख श्रेणियों में से एक है। एक अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में, सबसे बुनियादी रूप से तुम्हें इन कार्यों को करने में सक्षम होना चाहिए, तुम में ऐसी काबिलियत होनी चाहिए, इस तरह का बोझ उठाना चाहिए, और इस जिम्मेदारी को उठाने में सक्षम होना चाहिए। ये वे सबसे बुनियादी चीजें हैं जो तुम्हारे पास होनी चाहिए। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को परमेश्वर के वचनों पर संगति करने, उनसे अभ्यास का मार्ग खोजने, लोगों में परमेश्वर के वचनों की समझ पैदा करने में उनकी अगुआई करने, और वास्तविक जीवन में परमेश्वर के वचनों का अनुभव करने और उनमें प्रवेश करने में लोगों की अगुआई करने में सक्षम होना चाहिए और उन्हें वास्तविक जीवन में उतारने में सक्षम होना चाहिए, वास्तविक जीवन में और अपना कर्तव्य करने की प्रक्रिया में आने वाली विभिन्न समस्याओं या कठिनाइयों को हल करने के लिए उनका उपयोग करना चाहिए। यदि परमेश्वर के चुने हुए लोगों के सामने ऐसी समस्याएँ हों, जिन्हें हल करने के लिए किसी अगुआ या कार्यकर्ता की आवश्यकता है, लेकिन अगुआ या कार्यकर्ता समस्याओं को हल करने के लिए सत्य का उपयोग न कर सके, तो वह अगुआ या कार्यकर्ता बेकार है, सबसे बुनियादी काम करने में भी असमर्थ है। इस तरह का अगुआ या कार्यकर्ता योग्य नहीं है। चौथी और पाँचवीँ मद कलीसिया के कार्य की विभिन्न मदों और उन मदों के पर्यवेक्षकों से संबंधित है। यदि अगुआ और कार्यकर्ता पर्यवेक्षकों पर उचित निगरानी नहीं रखते, तो कलीसिया का कार्य अव्यवस्थित हो सकता है या दुष्टों द्वारा बाधित किया जा सकता है, इससे कार्य की प्रभावोत्पादकता और प्रगति प्रभावित होगी, और पूरा काम ही लुंजपुंज हो सकता है। इसलिए, चौथे और पाँचवें कार्य ऐसे भी हैं जिन्हें किसी योग्य अगुआ को अच्छी तरह से करना ही चाहिए। छठीं और सातवीं मदों का संबंध सभी प्रकार के लोगों की पदोन्नति, उनका विकास और उपयोग करने से है। लोगों का उपयोग करने का सिद्धांत सभी का सर्वोत्तम उपयोग करना है, और मानक स्तर की मानवता होने पर सभी प्रकार के लोग अपना कर्तव्य निभा सकते हैं और वे परमेश्वर के घर के वाँछित मानकों को पूरा कर सकते हैं। यानी, सभी प्रकार के लोगों को उचित कर्तव्य निभाने में सक्षम होने दिया जाए; मछली को पेड़ पर चढ़ने के लिए मजबूर करने की कोई जरूरत नहीं है, किसी व्यक्ति का किसी भी कार्य के लिए उपयुक्त होना, उसे अच्छी तरह से कर सकना, और काबिल होना पर्याप्त है। इसके अलावा, कुछ कार्यों में तकनीकी, पेशेवर पहलू शामिल होते हैं, और कुछ लोग उनमें अच्छे हो सकते हैं लेकिन उन्होंने वास्तव में इस क्षेत्र में कोई काम नहीं किया होता, न ही वे प्रासंगिक सिद्धांतों को समझते हैं। इन लोगों को, यदि वे परमेश्वर के घर में पदोन्नति और विकास के मानक पूरे करते हैं, तो उन्हें एक मौका दिया जाना चाहिए और पदोन्नत और विकसित किया जाना चाहिए, ताकि वे सीख सकें। इस तरह, परमेश्वर के घर में विभिन्न कार्यों को करने के लिए और भी अधिक उपयुक्त लोग मिल सकते हैं, और जब भी कलीसिया को विभिन्न कार्यों के लिए लोगों की आवश्यकता होगी, तो कोई रिक्तियाँ नहीं होंगी। ये लोगों को पदोन्नत व विकसित किए जाने, और लोगों का उपयोग करने के दो पहलुओं के मुद्दे हैं। आओ, आठवीं और नौवीं मदों को देखें : ये दो मदें उस दृष्टिकोण के बारे में हैं जिसके साथ अगुआ और कार्यकर्ता काम करते हैं, यानी, क्या वे अपनी जिम्मेदारियों को पूरा कर सकते हैं, क्या उनमें निष्ठा है, और क्या उनमें परमेश्वर की अपेक्षाओं और परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं का सम्मान करते हुए और कार्य में कठिनाइयों का सामना करते हुए भी अच्छा काम करने की क्षमता है। दसवीं और ग्यारहवीं मद परमेश्वर के घर के चढ़ावों और सभी प्रकार की संपत्तियों के साथ व्यवहार करने के सिद्धांतों के बारे में हैं। एक लिहाज से, ये दोनों मदें लोगों की काबिलियत और कार्य क्षमता से संबंधित हैं, और दूसरे लिहाज से इनका संबंध मानवता के मुद्दों से है, जैसे कि किसी व्यक्ति में वफादारी है कि नहीं, और वह अपनी जिम्मेदारियों को पूरा कर सकता है कि नहीं। इसके बाद हम बारहवीं, तेरहवीं और चौदहवीं मदों पर ध्यान देंगे, जो कलीसिया में होने वाली कुछ असाधारण परिस्थितियों के बारे में हैं—उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति कलीसिया के सामान्य जीवन में विघ्न-बाधा डाल रहा हो और उसे अस्त-व्यस्त कर रहा हो। और हाँ, सबसे गंभीर मसला है मसीह विरोधियों या उस तरह के लोगों की उपस्थिति जिन्हें बहिष्कृत या निष्कासित कर दिया जाना चाहिए। इस तरह के लोगों से कैसे निपटना है और किन सिद्धांतों के तहत काम करना है, यह भी अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी के दायरे में आता है। समस्याओं का तुरंत पता लगाने में सक्षम होना और, यह पाने पर कि कोई व्यक्ति विघ्न-बाधा पैदा कर रहा है, उस विघ्न-बाधा को तुरंत रोकने, सँभालने और उसका हल निकालने में सक्षम होना और यह सुनिश्चित करना कि कलीसिया का काम और कलीसियाई जीवन बाधित न हो—ये ऐसे मुद्दे हैं जिनसे इन तीन मदों का संबंध है। अंतिम मद सभी प्रकार के महत्वपूर्ण कार्मिकों की व्यक्तिगत सुरक्षा के मुद्दे से जुड़ी है, साथ ही इस मुद्दे से भी कि क्या सभी प्रकार के महत्वपूर्ण कार्यों के होने की गारंटी दी जा सकती है। काम तभी आगे बढ़ सकता है जब कार्मिक सुरक्षित हों, लेकिन अगर कार्मिकों की सुरक्षा में समस्याएँ या छिपे हुए खतरे पैदा हो जाएँ तो यह एक मुद्दा बन जाता है कि काम आगे बढ़ सकेगा या नहीं। आओ, पलट कर देखें कि कुल मिलाकर कितनी प्रमुख श्रेणियाँ हैं। पहली, दूसरी और तीसरी मद का संबंध पहली श्रेणी से है : मानव जीवन प्रवेश। चौथी और पाँचवीं मद दूसरी श्रेणी से संबंधित हैं : कलीसिया के कार्य की विभिन्न मदें और कार्यों की उन मदों के पर्यवेक्षक। छछी और सातवीं मद का संबंध तीसरी श्रेणी से है : सभी प्रकार के लोगों का उपयोग, विकास और पदोन्नति। आठवीं और नौवीं मदें चौथी श्रेणी से संबंधित हैं : परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्था और काम में कठिनाइयाँ। दसवीं और ग्यारहवीं मदें पाँचवीं श्रेणी में हैं : परमेश्वर के घर के चढ़ावे और संपत्तियाँ। बारहवीं, तेरहवीं और चौदहवीं का संबंध छठीं श्रेणी से है : कलीसिया में पैदा होने वाली असाधारण परिस्थितियाँ। पंद्रहवीं मद सातवीं श्रेणी में है : महत्वपूर्ण कलीसियाई कार्य और कार्मिकों की सुरक्षा। कुल मिलाकर सात श्रेणियाँ हैं, जिनमें कुल पंद्रह मदें हैं। ये सात श्रेणियाँ अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी के दायरे में हैं, और उनके काम का हिस्सा हैं। एक अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में तुम्हारे काम के सबसे बुनियादी कार्य ये सात श्रेणियाँ हैं, और ये सात श्रेणियाँ एक अगुआ या कार्यकर्ता के लिए परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं का दायरा हैं। अगर हम यह मापना चाहें कि कोई अगुआ अच्छा काम कर सकता है या नहीं, वह क्षमतावान है या नहीं, उसमें अगुआ बनने की काबिलियत है या नहीं, और क्या वह योग्य अगुआ है, तो हमें इन सात श्रेणियों का उपयोग करना चाहिए। इसे समझने के बाद, इन सात प्रमुख श्रेणियों के आधार पर, हम एक-एक करके नकली अगुआओं की अभिव्यक्तियों और उनके विशिष्ट तौर-तरीकों पर संगति करेंगे और उनका गहन विश्लेषण करेंगे, साथ ही यह भी देखेंगे कि अगुआ के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने जो कुछ किया है, उससे साबित होता है कि वे नकली अगुआ हैं और सुयोग्य नहीं हैं। जब इन सात श्रेणियों के अनुसार मापन किया जाता है तो निर्णायक साक्ष्य मिलते हैं, और यह अपेक्षाकृत निष्पक्ष और उचित तरीका है। मुझे बताओ कि क्या हमें इन सात श्रेणियों पर एक-एक करके संगति करनी चाहिए, या पंद्रह मदों पर संगति करनी चाहिए? कौन-सा तरीका बेहतर है? (पंद्रह मदों पर एक-एक करके संगति करो।) यह तुम लोगों की प्राथमिकताओं के अनुकूल है—जितना अधिक विस्तार से हो, उतना बेहतर, है ना? इसके बाद, हम औपचारिक रूप से नकली अगुआओं की विभिन्न अभिव्यक्तियों पर अपनी संगति शुरू करेंगे।

मद एक : परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने और समझने, और परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश करने में लोगों की अगुआई करो

नकली अगुआओं में परमेश्वर के वचनों को समझने की काबिलियत और क्षमता नहीं होती

नकली अगुआ कौन होता है? निश्चित रूप से, कोई ऐसा व्यक्ति जो यथार्थ में कार्य न कर सके, जो एक अगुआ के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन न करता हो। ऐसे लोग कोई वास्तविक या महत्वपूर्ण कार्य नहीं करते; वे केवल कुछ सामान्य मामलों और सतही कार्यों को देखते हैं, जिनका जीवन प्रवेश या सत्य से कोई लेना-देना नहीं होता। इस कार्य को वे चाहे जितना कर लें, लेकिन इसे करने का कोई महत्व नहीं होता। इसलिए ऐसे अगुआओं को नकली करार दिया जाता है। तो वास्तव में नकली अगुआ की पहचान कैसे करें? आओ, अब हम इसका गहन विश्लेषण शुरू करते हैं। पहले तो यह स्पष्ट समझ लेना चाहिए कि एक अगुआ या कार्यकर्ता की पहली जिम्मेदारी यह है कि परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने में वह लोगों को की अगुवाई करे और सत्य पर इस तरह से संगति करे कि लोग उसे समझकर सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर सकें। किसी भी अगुआ के नकली या असली होने की जाँच की यह सबसे महत्वपूर्ण कसौटी है। देखो कि क्या वे परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने और सत्य समझने में लोगों की अगुवाई कर सकते हैं और क्या वे समस्याएँ हल करने के लिए सत्य का उपयोग कर सकते हैं। यही एकमात्र कसौटी है जिससे जाँचा जा सकता है कि किसी अगुआ या कार्यकर्ता में परमेश्वर के वचनों को समझने की क्या काबिलियत और योग्यता है और क्या वे सत्य वास्तविकता में प्रवेश के लिए परमेश्वर के चुने हुए लोगों की अगुवाई कर सकते हैं। यदि कोई अगुआ या कार्यकर्ता परमेश्वर के वचनों और सत्य को शुद्धता से समझने में सक्षम है, तो परमेश्वर में आस्था के बारे में लोगों की धारणाओं और कल्पनाओं का परमेश्वर के वचनों के अनुसार समाधान करने और लोगों को परमेश्वर के कार्य की व्यावहारिकता समझने में मदद करनी चाहिए। उन्हें परमेश्वर के वचनों के अनुसार उसके चुने हुए लोगों के सामने आने वाली वास्तविक कठिनाइयों को भी हल करना चाहिए, विशेष रूप से जब उनमें अपनी आस्था के बारे में गलत विचार हों या उनमें अपना कर्तव्य करने के बारे में गलतफहमियाँ हों। उन्हें उन समस्याओं के हल के लिए भी परमेश्वर के वचनों का इस्तेमाल करना चाहिए जब लोग विभिन्न परीक्षणों और परेशानियों का सामना कर रहे हों और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को सत्य समझने, उसका अभ्यास करने और परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश कराने में सक्षम होना चाहिए। साथ ही, उन्हें परमेश्वर के वचनों में प्रकट भ्रष्ट अवस्थाओं के आधार पर लोगों के विभिन्न भ्रष्ट स्वभावों का विश्लेषण करना चाहिए, ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोग देख सकें कि उनमें से कौन-से उन पर लागू होते हैं और वे अपने बारे में ज्ञान प्राप्त कर शैतान से घृणा करें और उसके विरुद्ध विद्रोह करें ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोग अपनी गवाही में अडिग रह सकें और शैतान को हरा सकें, और सभी प्रकार के परीक्षणों के बीच परमेश्वर को महिमा प्रदान कर सकें। यह वह कार्य है जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को करना चाहिए। यह कलीसिया का सबसे बुनियादी, महत्वपूर्ण और आवश्यक कार्य है। यदि अगुआओं के रूप में सेवा करने वाले लोगों में परमेश्वर के वचनों को समझने की काबिलियत और सत्य समझने की क्षमता है, तो वे न केवल खुद परमेश्वर के वचनों को समझ पाएंगे और उनकी वास्तविकता में प्रवेश कर पाएंगे, बल्कि वे परमेश्वर के वचनों की समझ और उनकी वास्तविकता में प्रवेश करने के लिए जिन लोगों को राह दिखा रहे हैं, उनका मार्गदर्शन और अगुआई कर उनकी सहायता कर पाएँगे। लेकिन वास्तव में परमेश्वर के वचनों और सत्य को समझने की क्षमता नकली अगुआओं में नहीं होती। वे परमेश्वर के वचनों को नहीं समझते, वे उन भ्रष्ट स्वभावों को नहीं जानते जिन्हें लोग उन अलग-अलग परिस्थितियों में प्रकट करते हैं जो परमेश्वर के वचनों में उजागर की गई हैं या जो परमेश्वर के विरुद्ध प्रतिरोध, शिकायत और विश्वासघात को जन्म देती हैं, इत्यादि। नकली अगुआ आत्मचिंतन करने या परमेश्वर के वचनों को स्वयं से जोड़ पाने में समर्थ नहीं होते, वे परमेश्वर के वचनों के शाब्दिक अर्थ से केवल थोड़े से धर्म-सिद्धांत और कुछ विनियमों को समझते हैं। जब वे दूसरों के साथ संगति करते हैं, तो केवल परमेश्वर के कुछ वचनों को सुनाते हैं, फिर उसका शाब्दिक अर्थ समझाते हैं। ऐसा करके वे सोचते हैं कि वे सत्य पर संगति और वास्तविक कार्य कर रहे हैं। यदि कोई उनकी तरह परमेश्वर के वचनों को पढ़ और सुना सके तो वे सोचेंगे कि ऐसा कर सकने वाले लोग सत्य से प्रेम करते हैं और उसे समझते हैं। नकली अगुए परमेश्वर के वचनों का केवल शाब्दिक अर्थ समझते हैं; उनमें परमेश्वर के वचनों के सत्य की आधारभूत समझ नहीं होती, इसलिए वे उनसे संबंधित अपने अनुभवात्मक ज्ञान के बारे में बात नहीं कर पाते। नकली अगुआओं में परमेश्वर के वचनों को समझने की योग्यता नहीं होती; वे केवल उनका सतही अर्थ ही समझते हैं, लेकिन विश्वास करते हैं कि यही परमेश्वर के वचनों और सत्य को समझना है। अपने दैनिक जीवन में, वे दूसरों को सलाह देने और उनकी सहायता करने के लिए हमेशा परमेश्वर के वचनों के शाब्दिक अर्थ ही समझाते हैं, और मानते हैं कि यह करना ही काम करना है, और वे लोगों को परमेश्वर के वचन खाने और पीने और उनकी वास्तविकता में प्रवेश करने की अगुआई कर रहे हैं। सच्चाई यह है कि यद्यपि नकली अगुआ इस तरह अक्सर दूसरों के साथ परमेश्वर के वचनों के बारे में संगति करते हैं, लेकिन वे थोड़ी-सी भी वास्तविक समस्या का समाधान नहीं कर पाते और परमेश्वर के चुने हुए लोग उसके वचनों का अभ्यास या अनुभव करने में अक्षम रह जाते हैं। वे चाहे जितने भी समागमों में उपस्थिति दर्ज करा लें या परमेश्वर के वचनों को खा-पी लें, फिर भी वे सत्य को नहीं समझते, न ही जीवन प्रवेश हासिल कर पाते, और उनमें से कोई भी अपने अनुभवात्मक ज्ञान के बारे में बात करने योग्य नहीं हो पाता। यदि कलीसिया में गड़बड़ी पैदा करने वाले दुष्ट और छद्मविश्वासी लोग हों, तो भी कोई उन्हें पहचान नहीं पाता। नकली अगुआ जब किसी छद्मविश्वासी या दुष्ट व्यक्ति को बाधा उत्पन्न करते हुए देखता है, तो वह विवेक का प्रयोग नहीं करता, बल्कि वह उनके प्रति प्रेम और प्रोत्साहन व्यक्त करते हुए औरों को भी उनके प्रति सहिष्णु और धैर्यवान होने को कहता है, और दुष्ट लोगों से आनंदित होता है, जबकि वे कलीसिया में गडबड़ियाँ पैदा करते रहते हैं। इससे कलीसिया का हर कार्य एकदम निष्फल हो जाता है। नकली अगुआ के वास्तविक कार्य न करने का यही परिणाम होता है। नकली अगुआ समस्याओं को हल करने के लिए सत्य का उपयोग नहीं कर सकते, इससे साफ जाहिर होता है कि उनमें सत्य वास्तविकता नहीं होती। जब वे बोलते हैं, तो उनके मुख से केवल परमेश्वर के वचन और धर्म-सिद्धांत निकलते हैं और वे लोगों से जिन चीजों का अभ्यास करने को कहते हैं, वे केवल धर्म-सिद्धांतों और विनियम होते हैं। उदाहरण के लिए, जब किसी में परमेश्वर के प्रति कोई गलतफहमी पैदा हो जाती है, तो नकली अगुआ उससे कहेंगे कि, “परमेश्वर के वचनों में तो यह सब पहले से ही शामिल है : परमेश्वर जो कुछ भी करता है, वह इंसान का उद्धार होता है, उसका प्रेम होता है। देखो उसके वचन कितने साफ, कितने स्पष्ट हैं। फिर भी उसके बारे में तुम्हारी समझ गलत कैसे हो गई?” नकली अगुआ लोगों को इस प्रकार के निर्देश देते हैं। वे लोगों को झिड़कने, उन्हें विवश करने और उनसे विनियमों का पालन कराने के लिए धर्म-सिद्धांतों की बातें करते हैं। इसका रत्ती भर फायदा नहीं होता, और इससे किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता। नकली अगुए केवल वचन और धर्म-सिद्धांत बोल पाते हैं जिससे उन लोगों को लगता है कि धर्म-सिद्धांत बोल लेने का मतलब है कि वे सत्य वास्तविकताओं में प्रवेश कर गए हैं। फिर भी, जब उन पर कोई मुसीबत आती है तो उन्हें नहीं पता होता कि कैसे अभ्यास करें, उनके पास कोई रास्ता नहीं होता और जिन वचनों और धर्म-सिद्धांतों को वे समझते हैं, वे सब किनारे धरे रह जाते हैं। यह क्या दिखाता है? यह दिखाता है कि सिद्धांत समझ लेना जरा भी उपयोगी या मूल्यवान नहीं होता। नकली अगुआओं को मात्र धर्म-सिद्धांत की समझ होती है। वे समस्याएँ हल करने के लिए सत्य पर संगति नहीं कर सकते; उनके कार्यों के कोई सिद्धांत नहीं होते और अपने जीवन में वे सिर्फ कुछ उन विनियमों का पालन करते हैं जिन्हें वे अच्छा समझते हैं। ऐसे लोगों में सत्य वास्तविकता नहीं होती। इसीलिए, जब नकली अगुए परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने में लोगों की अगुआई करते हैं, तो उसका कोई सच्चा प्रभाव नहीं होता। वे केवल लोगों को परमेश्वर के वचनों का शाब्दिक अर्थ समझा पाते हैं, उन्हें परमेश्वर के वचनों से प्रबोधन पाने में मदद नहीं कर पाते या यह नहीं समझा पाते कि उनके अंदर किस प्रकार का भ्रष्ट स्वभाव है। नकली अगुए नहीं समझते कि लोगों की स्थितियाँ कैसी हैं या किसी स्थिति-विशेष में लोग कैसा स्वभाव सार प्रकट करेंगे, या इन गलत स्थितियों और भ्रष्ट स्वभावों को दूर करने के लिए परमेश्वर के कौन से वचनों का उपयोग किया जाना चाहिए, परमेश्वर के वचनों में उनके बारे में क्या कहा गया है, परमेश्वर के वचनों की अपेक्षाएँ और सिद्धांत क्या हैं या उनमें क्या सत्य निहित है। नकली अगुए इन सत्य वास्तविकताओं के बारे में कुछ नहीं समझते। वे लोगों को बस यह कहते हुए सलाह देते हैं कि “परमेश्वर के वचनों को और अधिक खाओ-पियो। उनमें सत्य है। जब तुम उसके और अधिक वचन पढ़ोगे तो तुम समझ जाओगे। यदि उनमें से कुछ को न समझ पाओ, तो बस और अधिक प्रार्थना, खोज और उन पर विचार करो।” वे लोगों को इसी तरह की सलाह देते हैं और ऐसा करते हुए वे उनकी समस्याओं का समाधान करने में अक्षम होते हैं। कोई समस्या लेकर उनके पास हल की खोज में चाहे जो आए, वे बस वही एक बात कहते हैं। बाद में वह व्यक्ति खुद को नहीं जान पाता और न ही उसमें सत्य की समझ पैदा हो पाती है। वे खुद ही अपनी वास्तविक समस्या का समाधान नहीं कर पाते या यह नहीं समझ पाते कि उन्हें परमेश्वर के वचनों का अभ्यास कैसे करना चाहिए, वे बस परमेश्वर के वचनों के शाब्दिक अर्थ से और विनियमों से ही चिपके रहते हैं। जब परमेश्वर के वचनों का अभ्यास करने के सत्य सिद्धांतों की बात आती है या यह बात आती है कि उन्हें किन वास्तविकताओं में प्रवेश करना चाहिए, तो वे इन बातों को कभी नहीं समझ पाते। नकली अगुआओं के काम का यही नतीजा होता है : एक भी व्यावहारिक परिणाम नहीं आ पाता।

परमेश्वर चाहता है कि लोग संतों जैसे सलीके से सादे और शालीन कपड़े पहनें। “संतों जैसे सलीके से सादे और शालीन कपड़े पहनें”—कुल नौ शब्द, लेकिन क्या तुम लोग समझते हो कि उनका क्या मतलब है? (हम सभी जानते हैं कि धर्म-सैद्धांतिक रूप से, परमेश्वर चाहता है कि लोग संतों जैसे सलीके से सादे और शालीन कपड़े पहनें, लेकिन जब हम खुद को तैयार करते हैं तो हम नहीं जानते कि सादगी और शालीनता का अनुमान कैसे करें।) इसका संबंध सत्य समझने या न समझने की समस्या से है। यदि तुम इसका आकलन नहीं कर सकते तो साबित होता है कि तुम परमेश्वर के वचन नहीं समझते। तो, परमेश्वर के वचन समझने का क्या मतलब है? इसका मतलब है सादगी और शालीनता के उन मानदंडों को समझना जिनके बारे में परमेश्वर बात करता है या, बहुत विशेष रूप से, कपड़ों के रंग और शैली को समझना। कौन-से रंग और शैलियाँ सादी और शालीन हैं? सत्य की विस्तृत समझ रखने वाले लोग जानते हैं कि सादगी और शालीनता क्या है, और विचित्रता क्या है। यद्यपि कुछ कपड़े सादे और शालीन होते हैं, लेकिन उनकी शैली पुराने जमाने की होती है। परमेश्वर को पुराने जमाने की चीजें पसंद नहीं हैं, और वह लोगों से अतीत की शैलियों की नकल करने या पाखंडी फरीसी बनने के लिए नहीं कह रहा है। “सादा और शालीन” से परमेश्वर मतलब है एक सामान्य मानवीय समानता रखना, कुलीन, सुरुचिपूर्ण और उच्चस्तरीय दिखना। परमेश्वर लोगों से विचित्र कपड़े पहनने या किसी कंगाल की तरह फटे-पुराने कपड़े पहनने के लिए नहीं कहता है, बल्कि वह लोगों से संतों जैसे सलीके से सादे और शालीन कपड़े पहनने के लिए कहता है। सामान्य लोग ऐसा समझते हैं। लेकिन यह सुनने के बाद, एक नकली अगुआ ने भड़कते हुए कहा : “परमेश्वर के वचन हमें यह बताते हैं कि हमें कैसे कपड़े पहनने चाहिए। ‘संतों जैसे सलीके से सादे और शालीन कपड़े पहनें’—अगर हम इन नौ शब्दों का पालन करते हैं तो हम परमेश्वर का महिमामंडन करते हैं, उन्हें शर्मिंदा नहीं करते, और अविश्वासियों के बीच उच्चस्तरीय सम्मान पाते हैं। तो, सादा और शालीन क्या है? यह है कि तुम्हें मानव के समान बोलना और कार्य करना चाहिए, और संतों जैसा सलीका अपनाना चाहिए। संतों की बात करें तो, हम आम तौर पर प्राचीन संतों को संदर्भित करते हैं। अगर हम संतों जैसा सलीका अपनाना चाहते हैं तो हमें प्राचीन संतों की शैली की नकल करनी चाहिए, लेकिन अगर तुम प्राचीन कपड़े पहनकर घूमोगे तो लोग तुम्हें पागल समझेंगे। यह परमेश्वर का सम्मान करने के सिद्धांत के अनुरूप नहीं है, लेकिन हाल के समय में संतों ने जिस तरह के कपड़े पहने थे, उनके कुछ साक्ष्य होने चाहिए जिन्हें हम खोज सकें। कई दशक पहले सामाजिक परिवेश बेहतर था। लोग सरल थे, और अधिक रूढ़िवादी तरीके और उचित ढंग से कपड़े पहनते थे। यदि तुम इस मानक के अनुसार कपड़े पहनते हो तो तुम सादे और शालीन होगे, और संतों जैसे सलीके वाले होगे। यह अभ्यास का मार्ग है।” यह पता लगने पर कि 1970 और 1980 के दशक में लोग सफेद कमीज और नीली पतलून पहनते थे, उसने भाई-बहनों से कहा, “मैंने परमेश्वर के वचनों में प्रकाश देखा है। 70 और 80 के दशक में लोग ऐसे कपड़े पहनते थे जो काफी उचित और सीधे-सादे थे। उन्हें गरिमापूर्ण नहीं कहा जा सकता था, लेकिन ऐसा लगता है कि वे परमेश्वर के वचन की अपेक्षाओं के अनुरूप हैं, इसलिए हम इस मानक के अनुसार कपड़े पहनेंगे।” अगुआ ने ऐसे कपड़े पहनने की शुरुआत की, और सभी को लगा कि यह अच्छा, काफी बढ़िया और सरल लग रहा है। अगुआ ने कहा : “परमेश्वर ने कहा कि विचित्र कपड़े मत पहनो। सबसे पहले, कमीज की घुंडियाँ गर्दन तक होनी चाहिए, और कलाइयों की सभी घुंडियाँ भी बंद होनी चाहिए। कलाई खुली नहीं होनी चाहिए, कमीज पतलून में अंदर की ओर खोंसा गया होना चाहिए, और सब कुछ कसकर ढका होना चाहिए, छाती या पीठ खुली न रहे। देखो, यह कितना सादा और बढ़िया है! क्या यह सादा और शालिन नहीं है, और क्या यह परमेश्वर की अपेक्षा के अनुरूप संतों जैसे सलीके का नहीं है?” उस समय पहनी पोशाक में अगुआ को विशेष आनंद आया, और साथ ही उसने दूसरों से भी अपेक्षा की, “तुम लोगों के कपड़े बहुत आधुनिक, बहुत फैशनेबल हैं। वे परमेश्वर को शर्मिंदा करते हैं, और वह उन्हें पसंद नहीं करता है। जल्दी करो और जो मैं पहन रहा हूँ उसे पहनो, और बिल्कुल मेरे जैसे बनो!” विवेकहीन लोगों ने भी ऐसा ही करते हुए तथाकथित सादी और शालिन पोशाक ढूंढ़ी जो संतों जैसे सलीके के अनुरूप थी, और अधिकांश लोगों ने तो इसे अच्छा भी माना। लेकिन कुछ लोग अपने हृदय में पुराने जमाने की इन चीजों से घृणा करते थे, और महसूस करते थे कि ऐसा करना अनुचित था, और परमेश्वर के वचनों की यह समझ विकृत थी। अगुआ की बात सुनना सही है या गलत, स्पष्ट रूप से यह न कह पाने और निष्कर्ष निकालने की हिम्मत न होने के बावजूद, इन लोगों ने आँख मूंदकर भीड़ के पीछे न चलने की वकालत की। उनका मानना था कि अगुआ ने जो कहा वह पूरी तरह से ठीक नहीं था, और उन्होंने उसका पालन नहीं किया। केवल वे मूर्ख, जिनमें परमेश्वर के वचन समझने की क्षमता नहीं है, जिन्होंने स्वयं परमेश्वर के वचन नहीं पढ़े, नकली अगुआ की कही हर बात पर चलते रहे, और जो कुछ भी करने के लिए कहा गया, वही करते रहे। उन्होंने नकली अगुआ का अनुसरण किया और उसकी नकल की, बाहर जाते समय उसी तरह के कपड़े पहने। जब भी वे बाहर भीड़ के बीच जाते, तो वे काफी प्रसन्न होते, और सोचते कि “हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करते हैं, और मेरे पहनावे में संतों जैसा सलीका है। तुम लोग क्या पहने हुए हो? कितना भड़कीला, कितना आधुनिक, कितना दुष्टतापूर्ण! हमें देखो, हमारा कोई अंग नहीं दिखता!” उन्हें लगता था कि वे अद्भुत हैं। नकली अगुआ न केवल यह समझने में विफल रहा कि यह परमेश्वर के वचनों की गलत व्याख्या है, बल्कि वास्तव में उसने सोचा कि वह परमेश्वर के वचनों का अभ्यास कर रहा है और उनकी वास्तविकता में प्रवेश कर रहा है। नकली अगुआ यही करते हैं। क्योंकि लोगों के लिए परमेश्वर की अपेक्षाएँ समझने में सबसे सरल और आसान होने के बावजूद, नकली अगुआ सचमुच नहीं समझ सकते कि परमेश्वर के वचन किस बारे में हैं और उनके अपेक्षित मानक या सिद्धांत क्या हैं। तब क्या वे समझ सकते हैं कि परमेश्वर मानवजाति के भ्रष्ट स्वभाव या सभी प्रकार की मानवीय स्थितियों के बारे में क्या कहता है? क्या वे ठीक से जान सकते हैं कि यहाँ सत्य क्या है? बिल्कुल नहीं।

नकली अगुआओं के पास परमेश्वर के वचनों को समझने की क्षमता नहीं होती; वे केवल परमेश्वर के वचनों के शाब्दिक अर्थ से यह जानते हैं कि परमेश्वर ने क्या कहा है, लेकिन यह नहीं समझते हैं कि परमेश्वर के वचन कौन-से सत्यों को व्यक्त करते हैं, परमेश्वर लोगों से क्या अपेक्षा करता है, या लोगों को कौन-से सत्य सिद्धांतों को समझना चाहिए। इसलिए, जब वे परमेश्वर के वचनों के बारे में संगति करते हैं, तो वे बस उनकी कुछ शाब्दिक व्याख्या करते हैं और लोगों को कुछ विनियम, पालन करने के कुछ नियम बताते हैं और इनका उपयोग यह साबित करने के लिए करते हैं कि वे भी परमेश्वर के वचनों को समझते हैं और उन्होंने भी कुछ कार्य किया है। कुछ नकली अगुआ यह भी सोचते हैं कि परमेश्वर के वचन तो पहले से ही स्पष्ट हैं, बस इतना है कि लोग उन्हें खाने-पीने या उन्हें ग्रहण करने का प्रयास करने में हमेशा असफल रहते हैं। यह देख कर कि हर किसी के हाथ में परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें हैं, वे परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने में लोगों की अगुआई करने को अनावश्यक समझते हैं। इसलिए, जब सभाओं के दौरान या अपने कर्तव्य करते समय उनके सामने समस्याएँ आती हैं, तो वे लोगों को केवल परमेश्वर के वचनों के कुछ चुनिंदा अंश भेजते हैं और उनसे कुछ ऐसी बातें कहते हैं, “परमेश्वर के वचनों का यह अंश पढ़ो”; “परमेश्वर के वचनों का वह अंश पढ़ो”; या “इस पहलू के बारे में परमेश्वर के वचन ऐसा कहते हैं, और उस पहलू के बारे में वैसा कहते हैं।” वे लोगों को परमेश्वर के वचनों के केवल चयनित अंश भेजते हैं, लोगों को परमेश्वर के वचन पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करने की प्रेरणा देने वाले तरीकों का उपयोग करते हैं, और विश्वास करते हैं कि परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने में लोगों की अगुआई करने का यही तरीका है और वे अगुआ की जिम्मेदारी पूरी कर रहे हैं। इन वचनों को देखने पर लोग कहते हैं, “मैंने भी परमेश्वर के इन वचनों को पढ़ा है; क्या तुम्हारा मेरे लिए इन वचनों को इकट्ठा करना अनावश्यक नहीं है?” परंतु, नकली अगुआ सोचता है, “मैं अगर इन वचनों को तुम्हें न भेजूँ तो तुम यह भी नहीं खोज पाओगे कि ये वचन किस अध्याय में हैं या किस पृष्ठ पर हैं। तुम यह भी नहीं जानते कि परमेश्वर ने ये वचन किस संदर्भ में कहे थे। अगुआ के रूप में मुझे यह जिम्मेदारी लेनी चाहिए कि मैं तुम्हें कभी भी, कहीं भी परमेश्वर के वचन भेजूँ।” प्रेम की भावना से ओतप्रोत कुछ नकली अगुआ, किसी-किसी को एक दिन में परमेश्वर के वचनों के 10 से 20 अंश भेज देते हैं ताकि वे अपने कार्य के प्रति निष्ठा और लोगों को परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में ले जाने के अपने दृढ़ संकल्प का प्रदर्शन कर सकें। वे परमेश्वर के ये वचन तो लोगों को भेजते हैं, लेकिन क्या लोगों की समस्याएँ हल होती हैं? क्या वे उस भूमिका को निभाते हैं जो किसी अगुआ को निभानी चाहिए? अक्सर, वे इस भूमिका को नहीं निभाते क्योंकि अगर लोग इन वचनों को अपने आप समझ पाते तो उन्हें अगुआ की जरूरत नहीं होती। नकली अगुआओं द्वारा भेजे गए परमेश्वर के वचनों के अंश वास्तव में उन लोगों को अच्छी तरह से ज्ञात होते हैं जो अक्सर परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं, लेकिन लोगों में किस चीज की कमी होती है? उनकी कठिनाइयाँ और समस्याएँ क्या हैं? उनकी कठिनाइयाँ और समस्याएँ ये हैं कि जब इन सत्यों से जुड़े वास्तविक मुद्दों की बात आती है, जब कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, तो वे इन समस्याओं के सार को नहीं समझ पाते हैं, वे नहीं जानते कि उन्हें हल करने के लिए कहाँ से शुरुआत करें, और नहीं जानते कि इन सत्यों में कैसे प्रवेश करें—और यह नकली अगुआ भी नहीं जानते। तो, क्या उन्होंने इस मामले में अपनी जिम्मेदारी पूरी की है? क्या वे अगुआई के कार्य में सक्षम हैं? स्पष्टतः, उन्होंने इस जिम्मेदारी को पूरा नहीं किया है। उदाहरण के लिए, जब लोग परमेश्वर के वचनों में ईमानदार व्यक्ति होने के बारे में पढ़ते हैं, तो परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने का तरीका न जानने वाले नकली अगुआ, जिनमें सत्य को गहराई और व्यवस्थित तरीके से समझने की क्षमता का भी अभाव होता है, कहेंगे : “परमेश्वर की अपेक्षाएँ अधिक नहीं हैं। परमेश्वर हमसे ईमानदार बनने के लिए कहता है, और ईमानदार होने का अर्थ है सच बोलना। क्या परमेश्वर के वचनों में यह सब नहीं कहा गया है : ‘तुम्हारी बात “हाँ” की “हाँ,” या “नहीं” की “नहीं” हो’ (मत्ती 5:37)? परमेश्वर के वचन कितने स्पष्ट हैं! सिर्फ वही कहो जो तुम अपने दिल में सोचते हो; यह कितना सरल है! तुम ऐसा क्यों नहीं कर सकते? परमेश्वर का वचन सत्य है, हमें इसका अभ्यास करना चाहिए। अभ्यास न करना विद्रोह करना है, और क्या परमेश्वर उन लोगों को बचाता है जो उसके विरुद्ध विद्रोह करते हैं? नहीं बचाता।” यह सुनकर लोग जवाब देते हैं, “तुम जो कुछ कहते हो वह सही है, लेकिन हम अब तक नहीं जानते कि ईमानदार कैसे बनें। क्योंकि कई बार झूठ अपने आप निकल जाता है, या कोई ऐसा तब करता है जब उसके पास कोई और विकल्प न हो, और इसका कोई कारण हो। इसका समाधान कैसे किया जाना चाहिए?” नकली अगुआ क्या कहेगा? “क्या इससे निपटना आसान नहीं है? क्या परमेश्वर के वचनों में इसे स्पष्ट नहीं किया गया है? ईमानदार व्यक्ति होना किसी बच्चे की तरह होना है; यह कितना सरल है! तुम्हारी उम्र चाहे जो हो, क्या तुम किसी बच्चे जैसे नहीं हो सकते? बस यह देखो कि बच्चे कैसे व्यवहार करते हैं।” फिर श्रोता सोचता है : “बच्चे के व्यवहार के मुख्य लक्षण भोलापन और जीवंतता, इधर-उधर उछलना, अपरिपक्व होना और बहुत-सी चीजों को न समझना है। चूँकि अगुआ ने ऐसा कहा है, तो मैं ऐसा ही करूँगा।” तीस से चालीस साल का यह व्यक्ति अगले दिन अपने बालों की दो छोटी चोटियाँ बना लेता है, उनमें गुलाबी रंग का फीता और हेयर क्लिप लगाता है, गुलाबी कमीज, जूते और मोजे पहनता है, पूरी तरह से गुलाबी कपड़े पहन लेता है। यह देखकर, अगुआ कहता है, “यह सही है! थोड़ा और बच्चों की तरह चलो, इधर-उधर उछलो। और अधिक बच्चों जैसी मासूमियत से बोलो, आँखों में दुष्टता न हो, और तुम्हारे चेहरे पर मुस्कान हो—क्या यह बच्चों के तौर-तरीकों की ओर लौटना नहीं है? ईमानदार व्यक्ति का आचरण यही है!” अगुआ काफी प्रसन्न होता है, जबकि दूसरे लोग इसे मूर्खतापूर्ण, असामान्य व्यवहार के रूप में देखते हैं। यह नकली अगुआ न केवल समस्या को हल करने में विफल रहा, बल्कि यह भी नहीं जानता था कि सत्य सिद्धांतों की खोज कैसे करें, और लोगों को बेतुकेपन के रास्ते पर ले जा रहा था। नकली अगुआ ईमानदार होने के सबसे सरल सत्य के बारे में भी नहीं जानता कि इसे सही और शुद्ध रूप से कैसे समझा जाए, वह आँख मूंदकर विनियमों को लागू करने का सहारा लेता है, और इसे इतने विकृत रूप से समझता है कि सुनने वालों को भी घृणा होती है। नकली अगुआ यही करते हैं।

नकली अगुआ परमेश्वर के वचनों को हर तरह से समझते हैं, और कई तरह के विचित्र और सनक भरे दृष्टिकोण सामने रखते हैं। वे परमेश्वर के वचनों का अभ्यास और पालन करने का भी झंडा लहराते फिरते हैं, और दूसरों से माँग करते हैं कि वे उनकी समझ को स्वीकारें और उसका पालन करें। संक्षेप में, इन नकली अगुआओं जैसे लोगों में अक्सर परमेश्वर के वचनों की उथली और विकृत समझ होती है। इसे परिभाषित करने के लिए आध्यात्मिक शब्द का उपयोग करते हुए हम कहेंगे कि उनमें “आध्यात्मिक समझ नहीं है।” न केवल परमेश्वर के वचनों की उनकी समझ विकृत होती है, बल्कि वे अक्सर दूसरों से भी इन विकृत धर्म-सिद्धांतों और विनियमों का उन्हीं की तरह पालन करने की मांग करते हैं। इसी बीच, वे अपनी विकृत समझ का उपयोग उन लोगों की निंदा करने के लिए करते हैं जिनमें सत्य की शुद्ध समझ है। आध्यात्मिक समझ न रखने वाले ये नकली अगुआ परमेश्वर के वचनों की जांच और विश्लेषण मसीह विरोधियों की तरह नहीं करते। बाहर से, ऐसा लगता है जैसे वे परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने और स्वीकार करने को श्रद्धापूर्ण रवैये के साथ देखते हैं। परंतु, उनकी निम्नस्तरीय काबिलियत और परमेश्वर के वचनों को समझने में असमर्थता के कारण वे परमेश्वर के वचनों को ऐसे मानते हैं मानो वे कोई पाठ्यपुस्तक हों और मानते हैं कि परमेश्वर के वचनों में “एक और एक दो, दो और दो चार” के तर्क का पालन होता है। वे नहीं जानते कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं, और परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश करने के लिए यह समझना होता है कि उनमें कहे गए सत्य क्या प्रदर्शित करते हैं और उन सत्यों में में कौन-सी विभिन्न स्थितियाँ और विषय-वस्तु शामिल हैं। जब दूसरे लोग परमेश्वर के वचनों को बहुत ठोस और व्यावहारिक तरीके से समझते हैं, तो वे उन वचनों को सतही और न सुनने लायक मानते हैं, और कहते हैं, “मैं यह सब समझता हूँ, मैं सब जानता हूँ। तुम जो बात कर रहे हो, उसे परमेश्वर के वचनों में पहले से ही स्पष्ट रूप से समझाया गया है, फिर तुम्हें इसे कहने की क्या जरूरत है?” वास्तव में, वे इस बात से अनजान हैं कि दूसरे लोग जो चर्चा कर रहे हैं उसमें परमेश्वर के वचनों के सत्य से संबंधित विशिष्ट विषय-वस्तु शामिल है। चूँकि इन नकली अगुआओं में आध्यात्मिक समझ नहीं होती और उनमें परमेश्वर के वचनों को समझने की क्षमता नहीं होती इसलिए उन्हें लगता है कि सभी सत्य कमोबेश एक जैसे हैं, और ये सत्य जिन मुद्दों से संबंधित हैं उनमें कोई विशेष अंतर नहीं है; उनका मानना है कि इन चीजों के बारे में अंतहीन बात किए जाने के बावजूद, इन सब का मुद्दा मूलतः एक ही है। ऐसा विश्वास एक गंभीर समस्या को इंगित करता है और ऐसे लोगों के लिए सत्य को कभी भी न समझ पाने का दुर्भाग्य लाता है।

नकली अगुआ लोगों को सत्य वास्तविकता में नहीं ले जा सकते

अब, अच्छी काबिलियत और समझने की क्षमता वाले ऐसे लोग हैं जिन्होंने पहले से ही परमेश्वर के मूल वचनों का कुछ अनुभव और उनमें प्रवेश प्राप्त कर लिया है और जिनमें कुछ सत्य वास्तविकता है, लेकिन उन्हें अधिक विशिष्ट मार्गदर्शन और अगुआई की आवश्यकता है जिससे उनका प्रवेश बेहतर और ज्यादा विस्तृत हो सके। केवल नकली अगुआ ही यह समझने में विफल रहते हैं कि सत्य के विशिष्ट विवरण क्या संदर्भित करते हैं या उन्हें इस तरह से क्यों बोला जाता है, और सोचते हैं कि इससे चीजों को अनावश्यक रूप से जटिल बनाया जा रहा है या शब्दों के साथ खेला जा रहा है। वे सत्य में शामिल विभिन्न पहलुओं को समझना या अनुभव करना नहीं जानते। इसलिए, अगुआ बनने के बाद वे जो कर सकते हैं वह केवल आम तौर पर संगति में प्रयुक्त परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने में लोगों की अगुआई करना, फिर कुछ धर्म-सिद्धांतों की बात करना, और नियमों का पालन करने के अभ्यास की कुछ विधियों का सारांश देना है, और लोगों को उनसे जो कुछ मिलता है वह केवल कुछ सतही आध्यात्मिक शब्द और आम तौर पर बोले जाने वाले शब्द और धर्म-सिद्धांत, विनियम और नारे हैं। जो लोग नए विश्वासी हैं, उनके लिए नकली अगुआओं के उपदेश मुश्किल से एक या दो साल तक ही पर्याप्त हो सकते हैं, लेकिन एक या दो साल के बाद, कुछ सत्यों को समझ चुके लोग नकली अगुआओं के कथनों और दृष्टिकोणों को पहचानना शुरू कर देंगे। जहाँ तक उन लोगों की बात है, जिनमें मूल रूप से समझने की क्षमता नहीं है, तो नकली अगुआ चाहे जितने उपदेश दें, उन्हें कुछ भी महसूस नहीं होता, कोई जागृति नहीं होती, और वे यह समझने में विफल रहते हैं कि ये अगुआ जो उपदेश दे रहे हैं, वे केवल शब्द और धर्म-सिद्धांत हैं, और वे जो समझते हैं, वह सब केवल थोड़े-से खोखले सिद्धांत, नारे और विनियम हैं, जो सत्य बिल्कुल नहीं हैं। इन अभिव्यक्तियों के आधार पर क्या नकली अगुआ “परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने और उन्हें समझने, और परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश के लिए प्रेरित करने में लोगों की अगुआई” करने की जिम्मेदारी पूरी कर सकते हैं? क्या वे इस भूमिका को पूरा कर सकते हैं? क्या वे अपनी जिम्मेदारियों को पूरा कर सकते हैं? (नहीं।) वे ऐसा क्यों नहीं कर सकते? इसमें मुख्य समस्या क्या है? (ऐसे लोगों में आध्यात्मिक समझ नहीं होती है और वे सत्य नहीं समझ सकते।) उनमें आध्यात्मिक समझ नहीं होती और वे सत्य नहीं समझ सकते, फिर भी वे दूसरों की अगुवाई करना चाहते हैं—यह घोर असंभव है! नकली अगुआओं से लोगों को परमेश्वर के वचन समझने और परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश करने में मार्गदर्शन की अपेक्षा करना बिल्लियों को एक साथ बैठाने की कोशिश करने जैसा है—ऐसा हो नहीं सकता! जैसे, ईमानदार व्यक्ति होने का उदाहरण लें : इस बिंदु पर परमेश्वर के वचन काफी सरल हैं, वे केवल कुछ वाक्य हैं, जो जटिल नहीं हैं। थोड़ा-सा शिक्षित व्यक्ति भी जानता है कि इन शब्दों का क्या अर्थ है। लेकिन नकली अगुआ यह साबित करने के लिए कि वे कार्य करने में सक्षम हैं और लोगों की अगुआई कर सकते हैं, परमेश्वर के वचनों के आधार पर विस्तार से बताते हैं कि “लोगों से ईमानदार होने की परमेश्वर की अपेक्षा का क्या महत्व है? इसका महत्व यह है कि ईमानदार होना ही परमेश्वर को प्रिय है। गैर-विश्वासी ईमानदार नहीं होते, वे सच नहीं बोलते और जो कुछ वे कहते हैं वह सब झूठ और धोखा देने वाले शब्द होते हैं; पूरी दुनिया झूठ का एक बड़ा-सा राष्ट्र है। इसलिए, आज जब परमेश्वर आएगा तो वह जिस चीज की माँग सबसे पहले करेगा, वह है लोगों का ईमानदार होना। अगर तुम ईमानदार व्यक्ति नहीं हो, तो परमेश्वर तुमसे प्रेम नहीं करेगा; यदि तुम ईमानदार व्यक्ति नहीं हो, तो तुम्हें बचाया नहीं जा सकता, न ही तुम राज्य में प्रवेश कर सकते हो; यदि तुम ईमानदार व्यक्ति नहीं हो, तो तुम सत्य का अभ्यास नहीं कर सकते और तुम निश्चित रूप से धोखेबाज व्यक्ति हो; यदि तुम ईमानदार व्यक्ति नहीं हो, तो तुम एक योग्य सृजित प्राणी नहीं हो।” क्या तुम लोग अब समझते हो कि एक ईमानदार व्यक्ति कैसे बनें? (नहीं।) इतना सब होने के बाद भी, यह स्पष्ट नहीं है। नए विश्वासियों को, यह सुनकर लगता है कि ये शब्द बहुत बढ़िया हैं, कुछ ऐसा जो उन्होंने धर्म में अपने 20 या 30 वर्षों में नहीं सुना था। कुछ लोग तो यहाँ तक कहते हैं, “ये शब्द बहुत शक्तिशाली हैं, हर वाक्य इस लायक है कि आमीन कहा जाए। यह उपदेश वाकई बहुत अच्छा है, यह वास्तव में राज्य के युग का उपदेश है!” फिर नकली अगुआ आगे कहता है : “परमेश्वर हमसे ईमानदार बनने के लिए कहता है, तो क्या हम ईमानदार लोग हैं?” कुछ लोग इस पर विचार करते हैं : “चूँकि परमेश्वर हमसे ईमानदार लोग बनने के लिए कहता है, इसका मतलब है कि हम अभी भी ईमानदार लोगों में नहीं हैं।” कुछ लोग चुप रहते हैं, सोचते हैं, “मैं खुद को बिलकुल भोला समझता हूँ। मैं कभी दूसरों से नहीं लड़ता, और व्यापार करते समय, मैं किसी को धोखा देने की हिम्मत नहीं करता। कभी-कभी, अगर मैं थोड़ा-सा फायदा उठा लेता हूँ, तो मैं रात को सो भी नहीं पाता। क्या मैं ईमानदार व्यक्ति हूँ? मुझे लगता है कि मैं भोलाभाला व्यक्ति हूँ, और क्या इसका मतलब ईमानदार व्यक्ति होने के समान नहीं है?” दूसरे कहते हैं, “मैं स्वाभाविक रूप से झूठ नहीं बोल सकता। जब भी मैं कुछ असत्य कहता हूँ, तो मेरा चेहरा लाल हो जाता है, इसलिए मुझे ईमानदार व्यक्ति होना चाहिए, है ना?” फिर नकली अगुआ आगे कहता है, “इससे कोई मतलब नहीं कि तुम ईमानदार व्यक्ति हो या नहीं, चूँकि परमेश्वर का वचन हमें ईमानदार होने के लिए कहता है, तो तुम्हारे लिए ईमानदार व्यक्ति होना अनिवार्य है। यदि तुम परमेश्वर के वचनों के अनुसार कार्य करते हो, तो तुम ईमानदार व्यक्ति हो। तब तुम छल-कपट से, शैतान के अंधकारमय प्रभाव के बंधनों से मुक्त हो जाते हो। जब तुम ईमानदार व्यक्ति बन जाते हो, तभी तुम सत्य वास्तविकता में प्रवेश करते हो, अपने कर्तव्यों को पूरा कर सकते हो और परमेश्वर के प्रति समर्पण कर सकते हो।” क्या तुम लोग अब समझे कि ईमानदार कैसे बनें? (नहीं।) फिर भी, कुछ लोग प्रसन्न हैं : “ये शब्द शक्तिशाली हैं। आमीन! हर वाक्य सही है। इन वाक्यों में सीधे-सीधे परमेश्वर के वचनों से कुछ नहीं लिया गया है, बल्कि इन सभी को परमेश्वर के वचनों से समझा गया है। यह समझ अद्भुत है! मैं इसे इस तरह क्यों नहीं समझ पाता? ऐसा लगता है कि यह अगुआ वास्तव में इस उपाधि के योग्य है, वह वास्तव में अगुआई के लिए बना है!” यह सुनने के बाद काबिल और चतुर लोग विचार करते हैं : “तुमने यह तो बताया नहीं कि ईमानदार व्यक्ति क्या होता है। वास्तव में कोई व्यक्ति ईमानदार किस तरह बन सकता है?” नकली अगुआ आगे कहता है : “ईमानदार व्यक्ति होने का मतलब है झूठ नहीं बोलना। उदाहरण के लिए, यदि तुमने पहले व्यभिचार किया है, तो तुम परमेश्वर से प्रार्थना करो और कबूल करो कि तुमने यह कितनी बार और किसके साथ किया है। अगर तुम्हें लगता है कि तुम परमेश्वर को देख या छू नहीं सकते, तो तुम्हें अगुआ के सामने अपनी सारी बातें स्पष्ट करते हुए कबूल करनी चाहिए। ईमानदार व्यक्ति होने की सबसे बुनियादी आवश्यकता है खुलकर कबूल करना। इसके अलावा, इसका संबंध किसी भी चीज में झूठ की मिलावट किए बिना अपने दिल की बात कहने से है। तुम किसी चीज के बारे में कैसे सोचते हो, तुम्हारे इरादे क्या हैं, तुम किस तरह की भ्रष्टता प्रकट करते हो, तुम किससे नफरत करते हो या अपने मन में किसे कोसते हो, तुम किसे नुकसान पहुँचाना चाहते हैं या किसके खिलाफ साजिश करना चाहते हो—इन सभी को उन व्यक्तियों के सामने कबूल किया जाना चाहिए। ऐसा करने से तुम खुले और स्पष्टवादी बन जाते हो, प्रकाश में रहते हो। यही ईमानदार व्यक्ति होने का मतलब है। ईमानदार व्यक्ति को अहंकार त्याग देना चाहिए; उसे अपने दिल के सबसे बुरे और सबसे अँधेरे हिस्सों को प्रदर्शित करने और उनका विश्लेषण करने में सक्षम होना चाहिए।” यह सुनकर, क्या अब तुम लोग समझ गए कि ईमानदार व्यक्ति कैसे बनें? (अभी भी नहीं।) सुनने के बाद भी, किसी को केवल धर्म-सिद्धांत ही समझ में आते हैं, विशिष्ट अभ्यास नहीं। परमेश्वर के वचनों की ऐसी समझ के साथ, नकली अगुआ यह सोचते हुए कि वे परमेश्वर के वचनों को सबसे अधिक समझते हैं, परमेश्वर के वचनों को समझने की क्षमता रखते हैं और लोगों को परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में ले जा सकते हैं, वे लोगों को परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने के लिए इस तरह से प्रेरित करते हैं और इसी तरह से संगति भी करते हैं। वास्तव में, वे जो समझते हैं और संगति करते हैं, वे सब केवल धर्म-सिद्धांत और नारे हैं, जो सत्य वास्तविकता की खोज करने और सत्य सिद्धांतों को समझने के इच्छुक लोगों की कोई मदद नहीं करते। फिर भी, नकली अगुआ मानते हैं कि उनमें समझने की बहुत जबरदस्त क्षमता है, उनके पास परमेश्वर के वचनों के बारे में अद्वितीय अंतर्दृष्टि है, और वे सामान्य लोगों से श्रेष्ठ हैं। वे इन धर्म-सिद्धांतों और नारों का प्रचार करते घूमते हैं, यहाँ तक कि दूसरों के साथ तुलना भी करते हैं, अक्सर इन धर्म-सिद्धांतों और नारों का इस्तेमाल करते हुए मौखिक विवादों में उलझते हैं, और यहाँ तक कि अक्सर लोगों को व्याख्यान देने, उनकी काट-छाँट करने, उनके प्रति राय बनाने और उनकी निंदा करने के लिए भी इनका इस्तेमाल करते हैं। उन्हें लगता है कि ऐसा करके वे काम कर रहे हैं, परमेश्वर के वचनों को वास्तविक जीवन में ला रहे हैं और परमेश्वर के वचनों को लागू कर रहे हैं। क्या यह एक परेशान करने वाली बात नहीं है? नकली अगुआ परमेश्वर के वचनों को नहीं समझ सकते, वे लोगों को परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में नहीं ले जा सकते। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद, वे केवल कुछ वचनों और सिद्धांतों पर संगति कर सकते हैं, और फिर भी वे उनका प्रचार और दिखावा करते फिरते हैं। हालाँकि, वास्तविकता में, वे परमेश्वर के वचनों का कोई सत्य नहीं समझते हैं। उदाहरण के लिए, वे कुछ एक जैसे आध्यात्मिक शब्दों या अभिव्यक्तियों को नहीं समझते, न ही वे उनके बीच के अंतरों को जानते हैं, न ही यह जानते हैं उन्हें वास्तविक स्थितियों के अनुकूल कैसे ढालें। विनियमों से बँधे रहने और शब्द तथा धर्म-सिद्धांत बड़बड़ाने के अलावा, उनमें परमेश्वर के वचनों की सच्ची समझ नहीं होती और वे वास्तव में उनका अभ्यास नहीं करते हैं। इसलिए, यह स्पष्ट है कि नकली अगुआ स्वयं सत्य नहीं समझते हैं, न ही वे परमेश्वर के वचन समझने और सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने के लिए लोगों को प्रेरित करने में सक्षम हैं। हमने इस बात को ईमानदार व्यक्ति होने के उदाहरण के साथ स्पष्ट किया है। नकली अगुआ यह नहीं जानते कि कि ईमानदार व्यक्ति होने के सत्य को कैसे समझा जाए, वे शब्दों और धर्म-सिद्धांतों की जुगाली करने और नारों का उपदेश देने का सहारा लेते हैं, और आध्यात्मिक समझ नहीं रखने वाले मूर्खों और भ्रमित लोगों को गुमराह करते हैं जिससे उनमें भटकाव आता है। इन शब्दों और धर्म-सिद्धांतों को सुनने के बाद, वे विशेष रूप से नकली अगुआओं को आदर्श बनाते हैं और कई वर्षों तक उनका अनुसरण करने के बाद भी सबसे बुनियादी सत्य नहीं समझ पाते हैं, उनमें प्रवेश ही नहीं कर पाते हैं। हम इस विषय पर अपनी संगति यहीं समाप्त करेंगे।

मद दो : हर तरह के व्यक्ति की स्थितियों से परिचित हो, और जीवन-प्रवेश से संबंधित जिन विभिन्न कठिनाइयों का वे अपने वास्तविक जीवन में सामना करते हैं, उनका समाधान करो (भाग एक)

नकली अगुआ हर प्रकार के व्यक्तियों की स्थितियों की असलियत नहीं जान सकते

अगुआओं और कार्यकर्ताओं की दूसरी जिम्मेदारी है कि वे हर तरह के व्यक्ति की स्थितियों से परिचित हों और उनके वास्तविक जीवन में सामने आने वाली जीवन प्रवेश से जुड़ी विभिन्न कठिनाइयों को हल करें। नकली अगुआ इस कार्य को कैसे अंजाम देते हैं? क्या वे इस कार्य के लिए योग्यता रखते हैं? आओ, इस बिंदु का गहन-विश्लेषण करें। हर तरह के व्यक्ति की स्थितियों से परिचित होना—यह किस आधार पर हासिल होता है? यह विभिन्न लोगों के भ्रष्ट स्वभाव और सार उजागर करने वाले परमेश्वर के वचन समझने के आधार पर हासिल होता है। विभिन्न लोगों की स्थितियों को समझने के लिए व्यक्ति को पहले परमेश्वर के उन वचनों को समझना चाहिए जो लोगों की विभिन्न अवस्थाएँ, भ्रष्ट स्वभाव और भ्रष्ट सार उजागर करते हैं और उनकी अपने आप से तुलना करने में सक्षम होना चाहिए। परमेश्वर द्वारा उजागर किए गए स्वभावों का प्रकार इस बात को संदर्भित करता है कि लोग किस तरह के हैं, उनकी मानवता कैसी है, उनकी अभिव्यक्तियाँ और खुलासे किस तरह के हैं, और परमेश्वर तथा परमेश्वर के वचनों और उनके कर्तव्य के प्रति उनका रवैया क्या है; इन अवस्थाओं का मिलान परमेश्वर के वचनों से किया जाना चाहिए और ऐसा करने से विभिन्न व्यक्तियों की स्थितियों को समझा जा सकता है। इसलिए, विभिन्न लोगों की स्थितियों से परिचित होना सबसे पहले परमेश्वर के वचन समझने और परमेश्वर के वचन समझने की क्षमता रखने के आधार पर होता है। नकली अगुआओं के पास परमेश्वर के वचन समझने की क्षमता नहीं होती, तो क्या वे परमेश्वर के वचनों द्वारा उजागर किए गए विभिन्न प्रकार के लोगों के बारे में जटिल सत्य, साथ ही उजागर की गई विभिन्न अवस्थाएँ और भ्रष्ट सार समझ सकते हैं? (नहीं।) वे इन्हें नहीं समझते, और इनके बीच के संबंध को नहीं जानते, और इसमें शामिल सत्य नहीं जानते हैं। क्योंकि उनके पास परमेश्वर के वचन समझने की क्षमता नहीं होती, इसलिए विभिन्न लोगों की स्थितियों को समझना—यह बहुत ही महत्वपूर्ण और अहम मामला है—नकली अगुआओं के लिए बहुत ही परेशानी भरा और कठिन काम है।

नकली अगुआ विभिन्न लोगों की स्थितियों को कैसे समझते हैं? वे सोचते हैं, “यह व्यक्ति उत्साही है, यह व्यक्ति तुच्छ है, यह सजने-सँवरने का शौकीन है, उसमें बहुत कम आस्था है...।” वे केवल इन सतही घटनाओं को देखते हैं, लेकिन वे नहीं जानते कि परमेश्वर के वचनों और सत्य के प्रति किसी का रवैया वास्तव में कैसा है और उसका प्रकृति सार वास्तव में कैसा है। उदाहरण के लिए, कोई वास्तव में आस्थावान है और वह अपने कर्तव्य करने में ऊर्जावान है, लेकिन उसकी पारिवारिक कठिनाइयाँ और उलझनें उसके कर्तव्यों के परिणामों को प्रभावित करती हैं; यह देखकर नकली अगुआ यह कहते हुए उस पर गलत तरीके से ठप्पा लगाएगा कि “यह व्यक्ति अविश्वासी है। वह अपने परिवार से अलग नहीं हो सकता। वह हमेशा अपने बच्चों के बारे में सोचता रहता है। उसके घर में बचत होती है, लेकिन वह उसे दान नहीं करता। इसलिए यह व्यक्ति बहुत समस्या पैदा करने वाला है, और भविष्य में महत्वपूर्ण कार्यों के लिए उसका उपयोग नहीं किया जा सकता।” वास्तव में, इस व्यक्ति की समस्या गंभीर नहीं है; ऐसा केवल इसलिए है कि वह थोड़े समय से ही परमेश्वर में विश्वास कर रहा है और उसकी सत्य की समझ उथली है, इसलिए वह बहुत-सी चीजों को नहीं देख पाता। वह नहीं जानता कि अपने परिवार और बच्चों के प्रति कैसा रवैया अपनाए, या अपनी संपत्तियों को कैसे सँभालें। वह अभी भी प्रार्थना और खोज की अवधि में हैं, और अभी तक अभ्यास के सटीक सिद्धांतों और तरीकों को नहीं खोज पाया हैं। उनमें सत्य का अभ्यास करने की इच्छाशक्ति है, लेकिन जब पारिवारिक उलझनों और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, तो वह अस्थायी रूप से थोड़ा कमजोर पड़ जाता हैं और अपना कर्तव्य करने में बहुत सक्रिय नहीं होता। हालाँकि, वह कलीसिया द्वारा सौंपे गए उस तरह के कार्य को ईमानदारी से पूरा कर सकता है जिसे अधिकांश लोग नहीं कर सकते। उसकी क्षमता, मानवता और सत्य के प्रति उसके रवैये के आधार पर निर्णय किया जाए तो वह अच्छा व्यक्ति है। लेकिन नकली अगुआ इसे इस तरह से नहीं देखता क्योंकि वह परमेश्वर के वचन नहीं समझता और यह नहीं जानता कि किसी व्यक्ति के प्रकृति सार को मापने के लिए परमेश्वर के वचनों का मानक के रूप में कैसे उपयोग किया जाए, या वह यह नहीं जानता कि किसी व्यक्ति की स्थिति उसके प्रकृति सार के कारण है या किसी अस्थायी कमजोरी के कारण, या यह आध्यात्मिक कद की समस्या है; वह इन चीजों को माप नहीं सकता। इस प्रकार का व्यक्ति जिन कठिनाइयों का सामना करता हैं, वे वास्तविक जीवन में होती हैं और उनका संबंध जीवन प्रवेश से होता है—क्या नकली अगुआ ऐसी समस्याओं को सँभाल सकता हैं? क्या वह इन लोगों की कठिनाइयों को हल कर सकता है? (नहीं।) क्योंकि नकली अगुआ विभिन्न लोगों की स्थितियों को सही ढंग से नहीं समझ सकते और विभिन्न लोगों के प्रकृति सार की अच्छाई और बुराई को सही ढंग से नहीं समझ सकते, इसलिए वे विभिन्न लोगों की कठिनाइयों और समस्याओं को भी सही ढंग से हल नहीं कर सकते। इसके उलट, वे विकसित करने के लिए मुख्य लक्ष्य उन लोगों को मानते हैं जो केवल उत्साह पर निर्भर रहते हैं, खुद को खपा सकते हैं, कठिनाइयाँ सह सकते हैं और कीमत चुका सकते हैं, लेकिन जिनकी काबिलियत कम है और जिनमें समझने की क्षमता नहीं है, और जब इन लोगों के सामने कठिनाइयाँ आती हैं तो वे उनकी समस्याओं को हल करने के लिए संगति करते हैं। लेकिन जिन लोगों में वास्तव में काबिलियत और अच्छी मानवता होती है, जब वे कठिनाइयों का सामना करते हैं और थोड़े कमजोर होते हैं, तो नकली अगुआ उनकी समस्याएँ कैसे हल करते हैं और उन्हें कैसे संबोधित करते हैं? इन लोगों को जब कठिनाइयों का सामना करना पड़े, और वे वास्तव में थोड़े कमजोर हों, तो स्थिति के अनुसार, उन्हें समर्थन और मदद दी जानी चाहिए; उनके साथ परमेश्वर के इरादों के बारे में संगति करनी चाहिए—उन्हें पूरी तरह से खारिज नहीं किया जाना चाहिए, और उन पर ठप्पा तो बिल्कुल नहीं लगाना चाहिए। लेकिन नकली अगुआ ऐसे लोगों की कठिनाइयाँ कैसे हल करते हैं? वे कहते हैं, “परमेश्वर का कार्य पहले ही इस स्तर पर पहुँच चुका है, फिर भी तुम अब तक अपने पति से, अपने बच्चों से चिपकी रहती हो; तुम अपने बच्चों को विश्वविद्यालय में भेजती हो और उनकी संभावनाओं के पीछे लगी रहती हो। जैसे-जैसे आपदाएँ लगातार गंभीर होती जा रही हैं, क्या इस दुनिया में अब भी कोई संभावनाएँ हैं? तुम अपने जीवन का भी ख्याल नहीं रख सकती, फिर तुम उन चीजों की परवाह भला कैसे कर सकती हो? परमेश्वर का कार्य लगभग समाप्त हो चुका है, समय का दबाव कितना ज्यादा है! यदि तुम खुद को पूरी तरह से समर्पित नहीं करती हो, तो क्या तुम्हें अभी भी एक सृजित प्राणी कहा जा सकता है? क्या तुम अभी भी मनुष्य हो?” क्या इन लोगों की कठिनाइयाँ वास्तव में इसी बारे में हैं? (नहीं।) कठिनाइयों का सामना करते हुए इन लोगों के थोड़ा कमजोर होने का कारण सिर्फ़ उनका छोटा आध्यात्मिक कद है, न कि यह कि वे सत्य से प्रेम नहीं करते या अपना कर्तव्य करने के लिए तैयार नहीं हैं। इसलिए, नकली अगुआ जो कहते हैं वह उनकी स्थिति से मेल नहीं खाता; यह स्पष्ट रूप से गलत ठप्पा लगाने का मामला है, उनकी स्थिति के मर्म या प्रमुख पहलू को न समझने का मामला है, यह न समझने का मामला है कि वे वास्तव में क्या सोच रहे हैं, वे किस प्रकार के व्यक्ति हैं, और उन्हें अपनी कठिनाइयों को हल करने के लिए कैसे मार्गदर्शन और मदद दी जानी चाहिए। नकली अगुआ नहीं जानते कि इन समस्याओं को कैसे हल किया जाए। तो, जब ऐसे मामले सामने आएँ, तो उन्हें कैसे हल करना चाहिए? तुम कह सकते हो कि “जिस मुद्दे का तुम सामना कर रही हो, वह ऐसी समस्या है जिसका सामना बहुत से लोग करते हैं। जो लोग वास्तव में अपने परिवारों को पीछे छोड़ कर पूरे दिल से खुद को परमेश्वर के लिए खपा सकते हैं, वे किसी आवेग में काम नहीं कर रहे हैं, बल्कि इसके लिए उन्होंने लंबे समय तक तैयारी की है। एक बात यह है कि उन्होंने पर्याप्त सत्य समझ लिया है और उनमें वास्तव में अपने परिवार से मुक्त होने, और पूरे मन से खुद को परमेश्वर के घर में खपाने की इच्छा है, और वे गारंटी दे सकते हैं कि वे बाद में इस पर पछताएंगे नहीं—उन्होंने इस बारे में खूब अच्छी तरह से विचार कर रखा है। इसके अलावा, इस अवधि के दौरान खुद को सत्य से लैस करना जारी रखते हुए वे तैयारी के लिए, और आगे का रास्ता खोलने के लिए भी, परमेश्वर से प्रार्थना करते रहते हैं, खुद को और अधिक सत्य समझने देते हैं, और खुद को पूरी तरह से परमेश्वर के लिए खपाने के लिए सब कुछ एक किनारे रख देने में पहले से अधिक विश्वास करते रहते हैं। इसके लिए समय, प्रार्थना और निश्चित रूप से, परमेश्वर की अगुआई और व्यवस्था की आवश्यकता होती है। यदि तुममें यह इच्छा है, तो चिंतित मत हो। परमेश्वर से प्रार्थना करो और चुपचाप प्रतीक्षा करो, और परमेश्वर तुम्हारे लिए व्यवस्था करेगा। यदि तुम्हारी प्रार्थनाएँ और तुम्हारी इच्छा परमेश्वर के इरादों के अनुरूप हुई और उसे परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त हुई, यदि तुम तैयार हो और परमेश्वर चाहे जो करे तुम उसके प्रति समर्पण करोगी और कोई पछतावा महसूस नहीं करोगी, तो परमेश्वर निश्चित रूप से तुम्हारे लिए एक रास्ता खोलेगा। इस अवधि के दौरान, लोगों को जो करना चाहिए वह है तैयारी करना और प्रतीक्षा करना; एकमात्र चीज जो वे कर सकते हैं वह है खुद को सत्य से लैस करना, परमेश्वर के इरादों को समझना, और अपने आध्यात्मिक कद को धीरे-धीरे बढ़ने देना। जब परमेश्वर विभिन्न वातावरणों की व्यवस्था करता है, तब यदि तुम बिना किसी शिकायत के परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करना चुन सकती हो, तो यह आध्यात्मिक कद का होना है—परमेश्वर चाहे जो करे या कैसे भी व्यवस्था करे, तुम समर्पण करने में सक्षम रहोगी।” इस तरह के मार्गदर्शन के बारे में तुम क्या सोचते हो? (यह अच्छा है।) एक ओर, तुम अपनी जिम्मेदारी पूरी कर रहे हो, लोगों को परमेश्वर के इरादों को समझने में मदद कर रहे हो; साथ ही, तुम उन्हें उनकी क्षमताओं के परे जाने के लिए मजबूर नहीं कर रहे हो, बल्कि उनकी वास्तविक स्थिति के अनुसार उनके साथ व्यवहार कर रहे हो। क्या यह परमेश्वर के वचनों के माध्यम से समस्याएँ हल करना नहीं है? क्या यह लोगों के वास्तविक जीवन में उनकी स्थिति के आधार पर आने वाली कठिनाइयों का समाधान करना नहीं है? (हाँ, है।)

अपने कर्तव्यों के निर्वहन में कुछ लोग हमेशा अनमने होते हैं और कोई जिम्मेदारी नहीं दिखाते, साथ ही हमेशा अपने आप को किसी अधिकारी जैसा पेश करते हैं, अहंकारी, आत्मतुष्ट और दूसरों के साथ सहयोग करने में असमर्थ होते हैं, और बिना रत्ती भर भी अपराधबोध के कलीसिया के काम को नुकसान पहुँचाते हैं। नकली अगुआ, ऐसी स्थिति को देखकर, इस समस्या को सँभालने और हल करने के लिए आगे बढ़ता है, और कहता है, “यह व्यक्ति इस कार्य में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ऐसा लगता है कि कोई भी उसकी जगह लेने के उपयुक्त नहीं है, इसलिए हमें उसकी कठिनाइयों को हल करने के लिए उसके साथ संगति करने की आवश्यकता है।” संगति के दौरान, नकली अगुआ को पता चलता है कि वह व्यक्ति अपना कर्तव्य बिल्कुल नहीं करना चाहता। वह सांसारिक चीजें पाने का प्रयास करना चाहता है, अपनी जीवनवृत्ति से पैसा कमाना चाहता है और अच्छा जीवन जीना चाहता है, और मानता है कि अपना कर्तव्य निभाने के लिए बाध्य किया जाना उससे बहुत अधिक की अपेक्षा करना है। उसे लगता है कि परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य निभाने का मतलब है हर दिन व्यस्त रहना, इससे न केवल अपने निजी पारिवारिक जीवन नष्ट हो जाता है बल्कि परिवार के सदस्यों के साथ संबंध बनाए रखना भी असंभव हो जाता है, और अगर अपना कर्तव्य निभाते हुए सिद्धांतों का उल्लंघन होता है तो काट-छाँट भी सहनी पड़ती है। उसे ऐसा जीवन बहुत कड़वा लगता है और वह ऐसे नहीं जीना चाहता। समस्या स्पष्ट है : उसका व्यवहार संकेत करता है कि वह छद्म-विश्वासी हैं। लेकिन नकली अगुआ इससे कैसे निपटता है? नकली अगुआ सोचता है, “छद्म-विश्वासियों के बीच यह व्यक्ति प्रतिभाशाली है; उसके जैसा व्यक्ति मिलना आसान नहीं है। उसकी स्थिति में समस्या है; मुझे जल्दी से अपने सबसे जरूरी काम एक तरफ रखकर उसके साथ संगति करने और इस समस्या को हल करने में उसकी मदद करने की आवश्यकता है। इसे कैसे हल किया जाए? परमेश्वर के वचन सबसे शक्तिशाली हैं; सबसे पहले, मैं उसे परमेश्वर के वचनों के कुछ अंश पढ़कर सुनाऊँगा ताकि अपना कर्तव्य करने के प्रति उसकी अनिच्छा का समाधान हो सके।” नकली अगुआ उससे कहता है, “अब जब आपदाएँ आ गई हैं, तो लोग अच्छा जीवन नहीं जी सकते। तुम अभी भी करियर बना कर पैसा कमाना और एक साधारण पारिवारिक जीवन जीना चाहते हो, लेकिन जल्द ही पूरी दुनिया में अराजकता होगी और कोई भी साधारण परिवार नहीं रहेगा। क्या तुम इन चीजों को नहीं समझ सकते? तुम्हें चाहिए कि परमेश्वर से और अधिक प्रार्थना करो। परमेश्वर से प्रार्थना करने से तुम्हें आस्था मिलेगी। तुम्हें परमेश्वर के वचनों को और अधिक खाने-पीने की भी आवश्यकता है। परमेश्वर के वचनों को कुछ बार खाने-पीने के बाद, तुम्हारी समस्या हल हो जाएगी।” फिर, वह परमेश्वर के वचनों के पाँच-दस अंश पढ़ता है और उसके साथ संगति करता है। व्यक्ति जवाब देता है, “बहुत संगति हो चुकी। मैं परमेश्वर के इन सभी वचनों को समझता हूँ; मैं तुमसे अधिक शिक्षित हूँ। दिखावा मत करो।” पूरे दिन संगति करने के बाद भी कुछ हल नहीं होता। नकली अगुआ सोचता है, “मैं इतने सालों से कलीसिया का काम कर रहा हूँ; मुझे नहीं लगता कि मैं तुम्हारी समस्या हल नहीं कर सकता।” शाम को, वह जल्दी से संगति को आगे बढ़ाता है, “तुम्हें परमेश्वर से प्रेम करना चाहिए और उसकी आराधना करनी चाहिए! तुममें एक योग्य सृजित प्राणी बनने की संभावना है। यह कर्तव्य आसानी से नहीं मिलता; तुम्हें इस अवसर को सँजो कर रखना चाहिए, क्योंकि यदि तुमने इसे गँवा दिया, तो दूसरा अवसर कभी नहीं मिलेगा। तुम्हारी काबिलियत और परिस्थितियाँ इतनी अच्छी हैं, क्या यह तुम्हारे लिए दुर्भाग्यपूर्ण नहीं होगा कि तुम अपना कर्तव्य न निभाओ? तुम्हारे जैसी प्रतिभा वाले व्यक्ति को परमेश्वर के घर में पदोन्नति मिलनी चाहिए और तुम्हारा उपयोग किया जाना चाहिए; यहाँ तुम्हारे लिए बहुत संभावनाएँ हैं!” वह व्यक्ति कहता है, “बातें करना बंद करो। यदि तुम मुझसे मेरा कर्तव्य करने के लिए कहते हो, तो मेरा रवैया वैसा ही रहेगा। यदि मुझे ऐसा करने की अनुमति नहीं दी जाती, तो मैं तुरंत चला जाऊँगा। ऐसा नहीं है कि मैं यहाँ रहने के लिए मरा जा रहा हूँ!” नकली अगुआ अपने सभी शब्दों का उपयोग करता है, लेकिन उस व्यक्ति को मना नहीं पाता या उसकी समस्या का समाधान नहीं कर पाता। ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है क्योंकि नकली अगुआ यह असलियत नहीं जान पाता कि उस व्यक्ति की मूल समस्या क्या है। अपना कर्तव्य करते हुए यह व्यक्ति जब भी मन करे बेपरवाह हो जाता है, जब भी उसका मन करे धोखा देता है, और जब मन करे, तो बस औपचारिकता करता है; चाहे वह कोई भी काम करे, वह गैर-जिम्मेदार रहा है। कुछ समस्याओं को हल करने के लिए थोड़ा अतिरिक्त प्रयास करने या कुछ और शब्द कहने के लिए वह तैयार नहीं होता, उसे यह मुश्किल भरा और परेशान करने वाला लगता है। वह स्पष्ट रूप से जानता है कि अपने कर्तव्य का समुचित निर्वहन कैसे करना है और उचित तरीके से काम कैसे करना है, लेकिन वह इस तरह से अभ्यास करने का अनिच्छुक होता है। फिर भी, वह परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य करना जारी रखता है। इस स्थिति की प्रकृति क्या है? यहाँ समस्या क्या है? (वह आशीष पाने और सौदे करने के इरादे से आया था।) वह ऐसी आशा के साथ आया था; ऐसे लोगों को अवसरवादी कहते हैं। वह कहता है, “मैंने सुना है कि दुनिया जल्द ही खत्म होने वाली है, सर्वनाश हमारे सिर पर है, इसलिए मुझे अब काम पर जाने की ज़रूरत नहीं है; वैसे भी, मैंने काफी पैसा कमा लिया है। मुफ्त भोजन पाने और अपने लिए एक जगह सुरक्षित करने के लिए मैं परमेश्वर के घर आ सकता हूँ, ताकि मुझे बाद में आशीष पाने की उम्मीद रह सके।” अपना कर्तव्य करने में उसके रवैये और इरादे को देखते हुए कह सकते हैं कि परमेश्वर में उसका विश्वास अवसरवादी है; वह सच्ची आस्था के कारण नहीं, बल्कि मुफ्तखोरी के लिए परमेश्वर के घर आया है। अपना कर्तव्य करते समय उसका रवैया विशेष रूप से उपेक्षापूर्ण होता है। उसका उपयोग करने के लिए कलीसिया को उसे मनाना पड़ता है और उससे समझौते करने पड़ते हैं, फिर भी, वह अपने कर्तव्य का ठीक से निर्वहन नहीं करता। क्या ऐसा व्यक्ति जिसके पास अंतरात्मा तक न हो, वास्तव में अपना कर्तव्य निभा सकता है? वह केवल अवसरवाद और मुफ्तखोरी में लगा रहता है, वह छद्म-विश्वासी होता है। इस समस्या के दो पहलुओं की प्रकृति को देखते हुए, इसे हल करने की कोशिश में क्या नकली अगुआ इसका सार समझ सका? (नहीं।) समस्या के सार की असलियत जानने में विफल होने के कारण वह अभी भी इस व्यक्ति को सच्चा विश्वासी मानता है, एक ऐसा विश्वासी जिसमें बस सत्य की समझ नहीं है, जिसका आध्यात्मिक कद छोटा है, जो तात्कालिक रूप से कमजोर है और जिसे सहारे की जरूरत है। इन दृष्टिकोणों से उसने संगति करने और मदद करने का प्रयास किया, जिस पर उसे सुनने को मिला कि “बातें बंद करो। तुम जिन धर्म-सिद्धांतों की चर्चा करते हो, वे बेकार हैं। मैं वह सब जानता हूँ, मैं तुमसे ज्यादा समझता हूँ। तुम कितने धर्म-सिद्धांतों को वास्तव में समझते हो? तुम कितने शिक्षित हो? जितना तुमने खाना खाया होगा, उससे ज्यादा मैंने किताबें पढ़ी हैं!” उसकी प्रकृति खुद को प्रकट कर चुकी है, है ना? यह महसूस किए बिना कि यह व्यक्ति वास्तव में छद्म-विश्वासी है, नकली अगुआ अभी भी मानता है कि वह एक अगुआ वाला काम कर रहा है। जब छद्म-विश्वासी परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य करते हैं, तो उनका श्रम भी अपर्याप्त होता है। क्या ऐसे लोगों को अपने आस-पास रखना चाहिए? (नहीं।) इसलिए, परमेश्वर के घर में इस तरह के व्यक्ति को सँभालने का यह सिद्धांत है : यदि वे श्रम कर सकते हैं और करने के लिए तैयार हैं, तो उन्हें रखो; अगर वे अनिच्छुक हैं, तो उन्हें तुरंत दूर कर दो, उन्हें रुकने के लिए मत कहो, न ही उन्हें नसीहत दो। क्या नकली अगुआ इस सिद्धांत को जानते हैं? वे नहीं जानते। वे मरे हुए लोगों के साथ वैसा ही व्यवहार करते हैं जैसे वे जीवित हों, उन्हें खाना खिलाते हैं और पानी पिलाते हैं; क्या यह मूर्खतापूर्ण नहीं है? नकली अगुआ ऐसी ही मूर्खतापूर्ण बातें करते हैं।

नकली अगुआ लोगों के जीवन प्रवेश में आने वाली कठिनाइयों और समस्याओं का समाधान नहीं कर पाते

विभिन्न स्थितियों में, जब अलग-अलग लोग अलग-अलग स्थितियाँ और अभिव्यक्तियाँ प्रकट करते हैं, तो नकली अगुआ हमेशा इन खुलासों के सार को समझने में विफल रहते हैं और उनसे उत्पन्न होने वाली समस्याओं को हल नहीं कर पाते। चूँकि वे सत्य नहीं समझते, इसलिए वे गलत तरीके से वर्गीकरण करते हैं और लापरवाही से दुराचार करते हैं, और अस्थायी रूप से कमजोर या कभी-कभार नकारात्मक होने वाले लोगों को परमेश्वर को धोखा देने वाला छद्म-विश्वासी समझ लेते हैं। इस बीच, सतही तौर पर कुछ खूबियाँ रखने वाले उन छद्म-विश्वासियों को जो सरल कार्य कर सकते हैं और कुछ प्रयास कर सकते हैं, समर्थन प्रदान करने का मुख्य लक्ष्य माना जाता है। ये लोग अपना कर्तव्य करने में अनिच्छा को सीधे तौर पर व्यक्त करने में शर्मिंदगी महसूस करते हैं, फिर भी नकली अगुआ इसे समझने में विफल रहते हैं और उन्हें रुकने के लिए मनाने में लगे रहते हैं। नकली अगुआ मूर्खतापूर्ण काम करने के अलावा कुछ नहीं करते; बुरे लोग कलीसिया को बाधित करते हैं, पर वे इस ओर से आँखें मूँदे रहते हैं और इस समस्या पर ध्यान नहीं देते हैं। क्या यह लापरवाही से दुराचार करना नहीं है? नकली अगुआ दुस्साहसिक दुराचार कैसे करते हैं? उनमें परमेश्वर के वचनों को समझने की क्षमता का अभाव होता है और वे सत्य नहीं समझते हैं, इसलिए जब विभिन्न परिस्थितियों से सामना होता है, तो वे अपनी समझ में आने वाले सबसे सतही धर्म-सिद्धांतों का सहारा लेते हैं, बार-बार उन्हें इस तरह से लागू करते हैं जिससे केवल विघ्न-बाधाएँ पैदा होती हैं। अक्सर, वे न केवल लोगों के जीवन प्रवेश में आने वाली कठिनाइयों का समाधान करने में विफल रहते हैं और लोगों को कमजोरीसे ताकत तक समर्थन देने में विफल रहते हैं, बल्कि वे लोगों में परमेश्वर के बारे में धारणाओं और गलतफहमियों को आश्रय देने का कारण भी बनते हैं, जिससे उन्हें लगता है कि कलीसिया उनकी सेवाओं का लाभ उठाने के लिए उन्हें भर्ती करने की कोशिश कर रही है, मानो परमेश्वर के घर में प्रतिभाशाली व्यक्तियों की कमी हो और उसे उपयुक्त लोग नहीं मिल पा रहे हों। यह नकली अगुआओं के काम से उत्पन्न नकारात्मक प्रभाव है। यह कैसे होता है? (नकली अगुआ सत्य को व्यापक या व्यवस्थित रूप से नहीं समझ सकते, और जब वे किन्हीं परिस्थितियों का सामना करते हैं, तो केवल विनियम लागू करते हैं।) वे सत्य को व्यापक रूप से नहीं समझ सकते, वे केवल कुछ बंधे-बँधाए शब्दो और कहावतों को याद करने की क्षमता रखते हैं। उनके पास सत्य की वास्तविक अनुभजन्य समझ और जानकारी नहीं होती। इसीलिए अंततः जब समस्याएँ उठती हैं तो वे केवल कुछ रूखी-सूखी कहावतें, जैसे “परमेश्वर से प्रेम करो”; “ईमानदार बनो”; “परिस्थितियों का सामना करते समय आज्ञाकारी और विनम्र बनो”; “अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाओ”; “तुम्हें वफादार होना चाहिए”; “तुम्हें देह के विरुद्ध विद्रोह करना चाहिए”; “तुम्हें खुद को परमेश्वर के लिए खपाना चाहिए” आदि ही बोल सकते हैं। वे इन खोखले धर्म-सिद्धांतों, नारों और कहावतों का इस्तेमाल खुद को आकर्षक बनाने के लिए करते हैं और इन्हें दूसरों को भी सिखाते हैं, ताकि उन्हें प्रभावित किया जा सके और उन पर सकारात्मक असर डाला जा सके—लेकिन इसका कोई प्रभाव नहीं होता, और कुछ भी नहीं बदलता। इसलिए, नकली अगुआ कोई भी काम पूरा करने में असमर्थ होते हैं। चूँकि वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश में आने वाली कठिनाइयों को हल करने में भी सक्षम नहीं होते, तो फिर वे कलीसिया की अगुआई करते हुए अच्छा काम कैसे कर सकते हैं?

जब लोग वास्तविक जीवन में विभिन्न कठिनाइयों का सामना करते हैं और नहीं जानते कि उनका सामना कैसे करें, न ही यह जानते हैं कि सत्य का अभ्यास कैसे करें, तो उन्हें इन मामलों के समाधान के लिए परमेश्वर के वचनों में सत्य की खोज करनी चाहिए। यदि छोटे आध्यात्मिक कद का कोई व्यक्ति नहीं जानता कि परमेश्वर के वचनों में सत्य की खोज कैसे करें, न ही वह यह जानता है कि परमेश्वर के प्रासंगिक वचनों को कैसे खोजें, तो उसे इस समस्या के हल के लिए संगति करने के लिए ऐसे लोगों की तलाश करनी चाहिए जो सत्य समझते हों, साथ ही उन्हें यह भी प्रशिक्षण लेना चाहिए कि परमेश्वर के प्रासंगिक वचन कैसे खोजें और सत्य कैसे समझें। इसका अर्थ परमेश्वर के वचनों में यह खोजना है कि सिद्धांत और परमेश्वर के अपेक्षित मानक क्या हैं, परमेश्वर इस मामले को कैसे परिभाषित करता है और इसके संबंध में वह क्या माँग करता है, और क्या किसी विशिष्ट विवरण की व्याख्या की गई है। यदि इस विषय पर परमेश्वर के वचन कुछ सरल हैं, केवल सिद्धांतों की रूपरेखा प्रस्तुत करते हैं और विस्तृत उदाहरण नहीं देते, तो तुम्हें चिंतन करना सीखना चाहिए। यदि तुम चिंतन करके इसे समझ नहीं पाते तो अधिक लोगों के साथ संगति करो, सभाओं में संगति करो, और अपने कर्तव्य को करने की प्रक्रिया में इधर-उधर टटोलो और खोजो, प्रबोधन और रोशनी प्राप्त करो, और इस प्रकार धीरे-धीरे समझो कि सामने मौजूद समस्या का सार क्या है। अंत में, इन कठिनाइयों के समाधान पर पहुँचने के लिए परमेश्वर के वचनों के सिद्धांतों के अनुसार आगे बढ़ो। उदाहरण के लिए, कुछ लोग आलसी होते हैं और कभी भी अपना कर्तव्य करने की शक्ति नहीं जुटा पाते; लेकिन खाने-पीने और मौज-मस्ती का जिक्र आते ही वे खुश हो जाते हैं और जोश से भर जाते हैं, मानो अचानक जी उठे हों। नकली अगुआ इस तरह की समस्याओं को कैसे सुलझाते हैं? उनके पास भी एक तरीका है : इन लोगों को अधिक कार्य सौंपना, ताकि उन्हें आलस्य दिखाने का कोई समय न मिले। क्या इस दृष्टिकोण से समस्या हल हो सकती है? कुछ लोग उन्हें दिए गए थोड़े से काम को भी करने से हिचकिचाते हैं; वे बस मुफ्तखोरी करना चाहते हैं, सोचते है कि कोई भी काम न करना ही सबसे बढ़िया है! बेहद आलसी लोगों के साथ क्या समस्या है? सकारात्मक चीजों को पसंद करने य़ा न करने का संबंध उनके प्रकृति सार से, और साथ ही उनकी प्राथमिकताओं और लक्ष्यों से भी होता है। कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनमें थोड़ी काबिलियत होती है; अगर वे साधारण अनुयायी हैं जिन पर कोई बोझ नहीं डाला जाता है, तो उनमें अपना काम करने की ऊर्जा नहीं होती और वे उसमें कोई रुचि नहीं लेते। परंतु, अगर उनकी क्षमता और उनके द्वारा किए जा सकने वाले कर्तव्य के अनुसार उन्हें पर्यवेक्षक होने का भार दिया जाए, कुछ पद दिया जाए और कुछ दायित्व उठाने की अनुमति दी जाए, तो काम में उनकी रुचि बढ़ जाती है। कभी-कभी, जब वे अपने काम के प्रति गैर-जिम्मेदार हो जाते हैं या आलसी हो जाते हैं, तो उनकी कटाई-छँटाई की जा सकती है; अन्य अवसरों पर उन्हें कुछ प्रोत्साहन दिया जा सकता है और उनकी प्रशंसा की जा सकती है। इस प्रकार, ये लोग, जो प्रतिष्ठा की परवाह करते हैं, रुतबे का शौक रखते हैं, और चापलूसी में आनंद पाते हैं, अपने कर्तव्य को करने की ऊर्जा पा लेते हैं। जब वे ढिलाई बरतने के बारे में सोचते हैं, तो वे चिंतन करते हैं, “मेरा जो रुतबा है और मुझ पर जो बोझ है, उसके मद्देनजर मुझे अच्छा प्रदर्शन करना चाहिए।” इस तरह, ऐसे लोगों का आलस्य आंशिक रूप से हल किया जा सकता है। जब नकली अगुआओं को मानवता से संबंधित इस तरह की समस्याओं या कर्तव्य करने की प्रक्रिया में उत्पन्न होने वाली जीवन प्रवेश से जुड़ी स्थितियों का सामना करना पड़ता है, तो उन्हें इनका समाधान करना बहुत कठिन और चुनौतीपूर्ण लगता है। वे नहीं जानते कि इन स्थितियों और समस्याओं को कैसे हल किया जाए, या किसी लक्षित समाधान के लिए परमेश्वर के किन वचनों का उपयोग किया जाए। ज्यादातर मौकों पर उनका रवैया लोगों को अच्छे तरीके से काम करने के लिए राजी करना या प्रेरित करना होता है; अगर समझाने और प्रेरित करने से काम नहीं बनता, तो वे गुस्सा करने और उनकी काट-छाँट करने का सहारा लेते हैं। अगर उनकी काट-छाँट से काम नहीं बनता, तो वे चेतावनी के तौर पर परमेश्वर के कठोर वचनों के कुछ अंश पढ़ते हैं, जिससे लोगों को पता चले कि उन्हें सुधर जाना चाहिए। अगर इसका भी कोई असर नहीं होता, तो उनका आखिरी उपाय किसी ऐसे व्यक्ति की व्यवस्था करना होता है जो उन पर नजर रखे और उनकी व्यवस्था करे। उनके पास केवल यही कुछ तकनीकें होती हैं, और अगर ये काम नहीं आतीं, तो वे विकल्पहीन हो जाते हैं।

संक्षेप में, समस्या चाहे जो भी हो, नकली अगुआ समस्या के सार को समझने में असमर्थ होते हैं, विभिन्न लोगों की वास्तविक स्थितियों और पृष्ठभूमि को समझने में उन्हें संघर्ष करना पड़ता है, और इससे भी कम वे यह समझ पाते हैं कि समस्या की जड़ कहाँ है या इसे सबसे उचित तरीके से हल करने के लिए कहाँ से शुरुआत की जाए। समस्याओं से निपटने के इन सिद्धांतों और तरीकों का उनमें अभाव होता है, इसलिए नकली अगुआओं का काम विभिन्न वास्तविक समस्याओं को हल नहीं कर सकता है। वे केवल कुछ धर्म-सिद्धांतों का प्रचार करने, कुछ नारे लगाने, कुछ विनियमों का पालन करने और औपचारिकताएँ निभाने में सक्षम होते हैं। ऐसे लोग कलीसिया की अगुआई करने के कार्य के लिए कैसे उपयुक्त हो सकते हैं? वे कितना भी प्रशिक्षण ले लें या कितने भी साल विश्वास करें, वे कलीसिया की अगुआई करने के कार्य के लिए उपयुक्त नहीं होंगे। क्या तुम लोगों ने ऐसा कोई उदाहरण देखा है? (हमारी कलीसिया में मेजबानी का काम करने वाला एक व्यक्ति हमेशा आलोचनात्मक और आक्रामक टिप्पणियाँ करता था, जिससे हमारा कर्तव्य-पालन प्रभावित होता था और विघ्न-बाधा पैदा होती थी। जब हमने अगुआ को इसकी सूचना दी, तो उसने बिना वास्तविक समस्या को हल किए केवल इस बात पर जोर दिया कि हम खुद को जानें और परमेश्वर द्वारा व्यवस्थित वातावरण के प्रति समर्पण करें, जिससे कलीसिया का कार्य प्रभावित हुआ। समस्या का समाधान अगुआई में बदलाव के बाद ही हुआ।) यह नकली अगुआ की एक विशिष्ट अभिव्यक्ति है। नकली अगुआ का यह एक सामान्य प्रकार है : वे जो किसी दुष्ट व्यक्ति या मसीह-विरोधी से सामना होने पर उसे पहचान नहीं पाते हैं और दूसरों को धैर्य और सहनशक्ति रखने, अनुभव से सीखने और दुष्ट व्यक्ति या मसीह-विरोधी की आज्ञा मानने के लिए कहते हैं। वे मसीह-विरोधी या बुरे लोगों को नहीं पहचानते, न ही वे उनके बारे में कुछ करते हैं। मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्तियों के तौर-तरीकों के बारे में इतनी ज्यादा संगतियों के बाद सत्य समझने वाले हर व्यक्ति को उनमें से कुछ लोगों को पहचानने में सक्षम होना चाहिए। लेकिन क्या नकली अगुआ के रूप में ऐसे लोग यह देखने में सक्षम हैं कि वह संगति मसीह-विरोधियों के व्यवहार से कैसे मेल खाती है? क्या वे मसीह-विरोधियों को पहचान सकते हैं? (नहीं।) और, मसीह-विरोधियों को पहचानने में उनकी असमर्थता का क्या परिणाम होता है? संभव है कि कोई मसीह-विरोधी उनसे सत्ता छीन ले, वे उस मसीह-विरोधी को कलीसिया का नियंत्रण करने दें और अंत में, उस मसीह-विरोधी द्वारा स्वतंत्र राज्य स्थापित करने पर वे कुछ न करें। यदि वे मसीह-विरोधी को नहीं पहचान सकते, तो उनके पास मसीह-विरोधी को अपना शत्रु मानने और उसे उजागर करने, पहचानने और अस्वीकार करने का कोई तरीका नहीं होगा; यदि वे मसीह-विरोधी को नहीं पहचान सकते, तो पूरी संभावना है कि वे मसीह-विरोधी को धैर्य और सहनशीलता के साथ भाई या बहन मानते रहें, जिसके परिणामस्वरूप मसीह-विरोधी कलीसिया में सत्ता में आ जाता है और उसका नियंत्रण करता है। इसलिए, मसीह-विरोधियों को न पहचान पाने के परिणाम अनुमान से भी ज्यादा गंभीर होते हैं। नकली अगुआ सत्य नहीं समझते; वे विभिन्न प्रकार के लोगों के सार को नहीं समझ सकते। वे केवल शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का प्रचार करते हैं और सभी के लिए प्रेम के साथ विनियम लागू करते हैं, सभी को पश्चात्ताप करने देते हैं और हर किसी को, चाहे वह कोई भी हो, एक मौका देते हैं। क्या यह धार्मिक पादरियों का तरीका नहीं है? क्या यह फरीसियों का तरीका नहीं है? नकली अगुआ, जब मसीह-विरोधियों का सामना करते हैं, तो आमतौर पर समझौता करना और उन्हें निकलने देने का विकल्प चुनते हैं, यहाँ तक कि वे यह दावा करने का बहाना या कारण भी ढूँढ़ लेते हैं कि वे दूसरों के साथ प्रेम से पेश आ रहे हैं। यह जानते हुए भी कि कोई व्यक्ति समस्या पैदा करने वाला और मसीह-विरोधी है, वे न तो उसका सामना करने की हिम्मत करते हैं और न ही उसे पहचानने और उजागर करने का साहस रखते हैं; यही वह काम है जो नकली अगुआ करते हैं। यहाँ तक कि जब कुछ भाई-बहन समझ चुके होते हैं कि कोई व्यक्ति दुष्ट या मसीह-विरोधी है, तब भी नकली अगुआ कहेगा, “हम हल्के तरीके से लोगों के बारे में राय नहीं बना सकते या उनकी निंदा नहीं कर सकते। वह व्यक्ति खुद को खपाने के लिए इतना उत्साही है और कीमत चुकाने का बहुत इच्छुक है—वह मसीह-विरोधी या दुष्ट व्यक्ति नहीं है। सिर्फ इसलिए कोई दुष्ट नहीं हो जाता कि वह कुछ कठोर शब्द कहता है, है ना?” नकली अगुआ लोगों के सार को नहीं देख सकते, न ही वे मसीह-विरोधियों के कार्यों के परिणामों को देख सकते हैं, फिर भी वे मसीह-विरोधियों के प्रति प्रेम, सहिष्णुता और धैर्य दिखाते हैं, यहाँ तक कि मसीह-विरोधियों को आत्मचिंतन करने, खुद को जानने और सच्चा पश्चात्ताप करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। मसीह-विरोधी खुद को जानने की कितनी भी कोशिश करें, क्या उनकी प्रकृति बदल सकती है? क्या वे सच में खुद को जान सकते हैं? बिल्कुल नहीं। यद्यपि मसीह-विरोधी कुछ चीज़ों को त्यागते और सतही तौर पर खुद को थोड़ा खपाते हुए दिखाई दे सकते हैं, लेकिन अपने अंदर वे महत्वाकांक्षाएँ और बड़ी योजनाएँ रखते हैं। नकली अगुआ ऐसे लोगों को मसीह-विरोधियों के रूप में नहीं देख पाते, क्योंकि वे सत्य नहीं समझते, न ही वे विभिन्न प्रकार के लोगों को पहचान सकते हैं। वे विभिन्न लोगों के प्रकृति सार की असलियत नहीं देख सकते हैं, न ही वे विभिन्न प्रकार के लोगों के साथ व्यवहार करना या उन्हें सँभालना जानते हैं। जब वे दूसरों को मसीह-विरोधियों को उजागर करते हुए देखते हैं, तब भी वे इसमें शामिल होने की हिम्मत नहीं करते, और वे इस डर से मसीह-विरोधियों के खिलाफ़ कार्रवाई करने से और अधिक डरते हैं कि अगर मसीह-विरोधियों को अपमानित किया गया तो वे बदला लेंगे। मसीह-विरोधियों के प्रति उनका रवैया धर्म-सिद्धांतों और उपदेशों के प्रचार तक ही सीमित होता है। बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों को पहचानने में असमर्थ होने के अलावा, नकली अगुआ परमेश्वर के चुने हुए लोगों के बीच मौजूद विभिन्न समस्याओं को भी हल नहीं कर सकते। यह साबित करता है कि नकली अगुआओं को सत्य की बिल्कुल भी समझ नहीं होती; वे वास्तविक समस्याओं को हल करने में असमर्थ होते हैं और संभवतः परमेश्वर के चुने हुए लोगों को सत्य वास्तविकता में ले जाने की अगुआई नहीं कर सकते। नकली अगुआ चाहे जो कुछ भी कहें या करें, तुम उनसे पवित्र आत्मा के ज्ञान से प्रेरित प्रकाश के किसी भी शब्द को नहीं सुनोगे, और यह तो बिलकुल भी नहीं देखोगे कि उनके पास कोई सत्य वास्तविकता है। इसलिए, नकली अगुआ लोगों के जीवन प्रवेश के मामले में कोई लाभ या मदद नहीं दे पाते हैं; वे जो थोड़ा बहुत काम करते हैं, उसमें शब्दो और धर्म-सिद्धांतों का प्रचार करना, नारे लगाना और औपचारिकताएँ निभाना शामिल है। वे उस भूमिका को निभाने में पूरी तरह विफल होते हैं जो एक अगुआ को निभानी चाहिए।

आज की संगति में बस इतना ही। अलविदा!

9 जनवरी 2021

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परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

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