अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (21)

मसीह-विरोधियों और उन लोगों के बीच कैसे अंतर किया जाए जिनका स्वभाव मसीह-विरोधी है

सत्य के प्रति उनके रवैये के आधार पर उनमें अंतर करना

आज हम अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों के संबंध में संगति करना जारी रखेंगे। औपचारिक रूप से संगति आरंभ करने से पहले, आओ मसीह-विरोधियों से संबंधित एक विषय की समीक्षा करें जिस पर पहले संगति की गई थी : मसीह-विरोधियों को उन लोगों से कैसे अलग किया जाए जिनका सार मसीह-विरोधी है और इन दो प्रकार के लोगों के बीच क्या अंतर है। पहले, हम इस बात पर संगति करेंगे कि मसीह-विरोधियों का भेद कैसे पहचाना जाए; यह बहुतमुश्किल काम नहीं है। सबसे पहले, तुम्हें स्पष्ट रूप से यह देखना चाहिए किमसीह-विरोधी कौन-सी स्पष्ट विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हैं, ताकि तुम यह निर्धारित करते हुए थोड़े समय में ही असली मसीह-विरोधी की पहचान कर सको कि वह निश्चित रूप से कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जिसका स्वभाव मसीह-विरोधियों वाला है या जो मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चल रहा है। इस तरह, तुम्हें मसीह-विरोधियों के बारे में भेद की पहचान हो जाएगी और वे तुम्हें फिर कभी गुमराहनहीं कर पाएँगे, फँसानहीं पाएँगे और नियंत्रित नहीं कर पाएँगे। अब सबसे महत्वपूर्ण बात मसीह-विरोधी प्रकृति सार वाले लोगों और मसीह-विरोधियों के सार वाले लोगों के बीच स्पष्ट भिन्नताओं को पहचानने में सक्षम होना है। इन दो प्रकार के लोगों का भेद पहचानने के लिए, तुम्हें पहले उनकी मुख्य विशेषताओं को समझना चाहिए। कुछ लोग केवल रोजाना के जीवन में मसीह-विरोधियों की भ्रष्टता के खुलासे को ही समझ पाते हैं, जैसेकि अपने रुतबे का दावा करने और दूसरों को उपदेश देने की उनकी प्रवृत्तियाँ, लेकिन वे मसीह-विरोधियों के प्रकृति सार को नहीं समझ पाते हैं। क्या यह ठीक है? (नहीं।) ऐसे लोग भी हैं जो कहते हैं कि मसीह-विरोधियों की सबसे महत्वपूर्ण अभिव्यक्तियाँ उनका अहंकार और दंभ है, और वे सभी अहंकारी और दंभी लोगों को मसीह-विरोधी घोषित कर देते हैं। क्या यह सही है? (नहीं।) यह सही क्यों नहीं है? क्योंकि अहंकार और दंभ मसीह-विरोधियों कीसबसे महत्वपूर्ण अभिव्यक्तियाँ नहीं हैं; वे भ्रष्ट स्वभाव हैं जो सभी भ्रष्ट मनुष्यों में होते हैं। हर व्यक्तिमें अहंकारी और दंभी स्वभाव होता है, इसलिए सभी अहंकारी और दंभी लोगों को मसीह-विरोधी करार देना एक गंभीर गलती है। तो मसीह-विरोधियों की अनिवार्य अभिव्यक्तियाँ क्या हैं, जो ए‍क नजर में मसीह-विरोधियों और मसीह-विरोधियों के स्वभाव वाले लोगों के बीच अनिवार्य अंतर पैदा कर सकती हैं और व्यक्ति को यह भेद पहचानने में सक्षम बना सकती हैं कि इन दो प्रकार के लोगों का सार भिन्न है और ऐसे लोगों के साथ अलगतरीके से व्यवहार किया जाना चाहिए? कार्यकलाप, व्यवहार और स्वभाव जैसे कुछ पहलुओं में, क्या इन दो प्रकार के लोगों के बीच समानताएँ और समरूपताएँ हैं? (हाँ।) यदि तुम ध्यानपूर्वक नहीं देखते, गंभीरता से अंतरनहीं करतेया अपने दिल में इन दो प्रकार के लोगों के स्वभाव और सार की सटीक समझ नहीं रखते और इनका भेद नहीं पहचान पाते, तो इन लोगों के साथ ऐसा व्यवहार करना बहुत आसान है मानो वे एक ही प्रकार के लोग हों। तुम शायद मसीह-विरोधी को मसीह-विरोधी स्वभाव वाला व्यक्ति समझने की भूल कर बैठोऔर इसके उलट भी, यानी आसानी से इस तरह के गलत निर्णय हो सकते हैं। तो इन दो प्रकार के लोगों के बीच कौन-सी मुख्य विशेषताएँ और अंतर हैं जिनसे कोई व्यक्ति पुख्‍ता सबूत के साथ अंतर कर पाता है कि कौन मसीह-विरोधी है और कौन मसीह-विरोधी स्वभाव वाला व्यक्ति है? तुम लोग इस विषय से परिचित नहीं होगे, तो आओ तुम लोगों के विचार सुनते हैं। (मसीह-विरोधियों और मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों के बीच अंतर करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक पहलू सत्य के प्रति उनके रवैये को जानना है; दूसरा उनकी मानवता को जानना है। सत्य के प्रति अपने रवैये में, मसीह-विरोधी सत्य से नफरत करते हैं और इसे बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते। चाहे वे कितने भी बुरे कर्म करें जिनसे विघ्न-बाधा उत्पन्न होती है और चाहे तुम उनके साथ कैसे भी संगति करो या उनकी काट-छाँट करो, वे इसे स्वीकार नहीं करते औरबिल्कुल भी पश्चात्तापनहीं करते। मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों को सत्य समझ नहीं आने या सिद्धांतों की समझ नहीं होने पर वे गलत चीजेंभी कर सकते हैं, लेकिन जब उनकी काट-छाँट होती है, तो वे सत्य को स्वीकार सकते हैं, आत्म-चिंतन कर सकते हैं और खुद को जान सकते हैं; वे पछतावा महसूस करके पश्चात्ताप करने में सक्षम होते हैं। सत्य के प्रति उनके रवैये के परिप्रेक्ष्य से, मसीह-विरोधियों का सार यह है कि वे सत्य से नफरत करते हैं, जबकि मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोग सत्य को स्वीकार सकते हैं। उनकी मानवता के परिप्रेक्ष्य से, मसीह-विरोधी बुरे लोग हैं जिनमें अंतरात्माया शर्म की भावना नहीं होती, जबकि मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों में अंतरात्माऔर शर्म की भावना होती है।) तुमने दो विशेषताओं का उल्लेख किया; क्या इस विषय-वस्तुपर पहले भी संगति की गई है? क्या इन्हें स्पष्ट विशेषताएँ माना जाता है? (हाँ।) सत्य के प्रति मसीह-विरोधियों और मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों का रवैया पूरी तरह से अलग है। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण बिंदु हैऔर यह स्पष्ट विशेषताओं वाली अभिव्यक्ति है। मसीह-विरोधी सत्य से विमुख होते हैं और इसे बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते। वे यह स्वीकारने के बजाय मरना पसंद करेंगे कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं। तुम चाहे सत्य के बारे में कैसे भी संगति करो, वे आंतरिक रूप से इसका विरोध करते हैं और इससे विमुख होते हैं। वे भीतर ही भीतर तुम्हें कोस भी सकते हैं, तुम्हारा मजाक उड़ा सकते हैं और तुमसे नफरत कर सकते हैं, तुम्हारा अपमान कर सकते हैं। मसीह-विरोधियों की सत्य से दुश्मनी होती है; यह एक स्पष्ट विशेषता है। और मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों की विशेषताएँ क्या हैं? सटीक और निष्पक्ष होने के लिए, मसीह-विरोधी स्वभाव के साथ ही थोड़ी अंतरात्मा और विवेक वाले लोग अपनी धारणाओं को बदल सकते हैं और जब दूसरे लोग उनके साथ सत्य पर संगति करें तो वे सत्य को स्वीकार सकते हैं। यदि उनकी काट-छाँट की जाए, तो वे समर्पण भी कर सकते हैं। यानी जब तक मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोग ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, उनमें से अधिकांश अलग-अलग स्तर पर सत्य को स्वीकार सकते हैं। संक्षेप में, मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोग स्वयं परमेश्वर के वचनों को पढ़ने, परमेश्वर के अनुशासन और प्रबोधन को स्वीकारने या भाई-बहनों की काट-छाँट, मदद और समर्थन जैसे तरीकों से सत्य को स्वीकार सकते हैं और समर्पण कर सकते हैं। यह एक स्पष्ट विशेषता है। लेकिन मसीह-विरोधी अलग हैं। चाहे कोई भी सत्य की संगति करे, वे न तो सुनते हैं और न ही समर्पण करते हैं। उनका एक ही रवैया होता है : वे सत्य को स्वीकारने के बजाय मरना पसंद करते हैं। चाहे तुम उनकी कैसे भी काट-छाँट करो, सबबेकार है। भले ही तुम सत्य कीयथासंभव स्पष्ट रूप से संगति करो, वे इसे स्वीकार नहीं करते; वे आंतरिक रूप से इसका विरोध भी करते हैं और इससे विमुख महसूस करते हैं। क्या ऐसे स्वभाव वाला कोई व्यक्ति जो सत्य से नफरतकरता है, परमेश्वर के प्रति समर्पण कर सकता है? निश्चित रूप से नहीं। इसलिए, मसीह-विरोधी परमेश्वर के दुश्मन हैं और वे ऐसे लोग हैं जो छुटकारे से परे हैं।

उनकी मानवता के आधार पर उनमें अंतर करना

अभी-अभी तुम लोगों ने मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों और मसीह-विरोधियों के बीच अंतर करने के लिए एक अन्य विशेषता का भी उल्लेख किया, जो मानवता के परिप्रेक्ष्य से है। इस विशेषता के बारे में कुछ और संगति कौन करना चाहेगा? (मसीह विरोधियों में विशेष रूप से दुर्भावनापूर्ण मानवता होती है; वे लोगों को दबा और सता सकते हैं, और चाहे वे कितनी भी बुराई करें, वे पश्चात्ताप करना नहीं जानते।) यह सही है, मसीह विरोधियों की मुख्य विशेषता उनकी दुर्भावनापूर्ण मानवता, उनकी बेशर्मी और उनमें अंतरात्मा और विवेक की कमी है। चाहे वे कलीसिया में कितने भी बुरे कर्मकरें या कलीसिया के काम को कितना भी नुकसान पहुँचाएँ, वे इसे शर्मनाक नहीं मानते, न ही वे खुद को पापी मानते हैं। चाहे परमेश्वर का घर उन्हें उजागर करे या भाई-बहन उनकीकाट-छाँट करें, वे बेफिक्र रहते हैं, और उन्हें भर्त्सना या परेशानी महसूस नहीं होती। मानवता की दृष्टि से यह मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्ति है। उनकी मुख्य विशेषताएँ अंतरात्मा और विवेक की कमी, शर्म की कमी और अत्यंत दुष्ट स्वभाव हैं। जो कोई भी उनके हितों से छेड़छाड़ करता है, वे उसकी आलोचना करते हैं और उसे सताते हैं, उनमें बदला लेने की विशेष रूप से प्रबल इच्छा होती है, वे किसी को भी नहीं छोड़ते, यहाँ तक कि अपने रिश्तेदारों को भी नहीं। मसीह-विरोधी इतने दुष्ट होते हैं। दूसरी ओर, मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोग, चाहे वे कितनी भी भ्रष्टता दिखाएँ, जरूरी नहीं कि वे बुरे लोग हों। चाहे उनकी मानवता में कितनी भी कमियाँ या खामियाँ हों, वे कोई भी गलती करें या कितने भी मामलों में विफल हों और ठोकर खाएँ, वे आत्म-चिंतन करने के बाद उससे सबक सीख सकते हैं। जब वे काट-छाँट किए जाने का सामना करते हैं, तो अपनी गलतियों को स्वीकारने और पछतावा महसूस करने में सक्षम होते हैं; और जब भाई-बहन उनकी आलोचना करते हैं या उन्हें उजागर करते हैं—भले ही वे खुद का थोड़ा बचाव करने की कोशिश करें और उस समय इसे स्वीकारने के लिए अनिच्छुक हों—तो वे वास्तव में अपने दिल में अपनी गलती स्वीकार कर समर्पण कर चुके होते हैं। इससे साबित होता है कि वे अभी भी सत्य को स्वीकार सकते हैं और उन्हें सुधारा जा सकता है। जब वे गलतियाँ करते हैं या किसी समस्या का सामना करते हैं, तो उनकी अंतरात्मा और विवेक अभी भी काम कर सकता है; वे जागरूक होते हैं, सुन्न और भावनाहीन नहीं होते या हठी नहीं होते और चीजों को स्वीकारने से इनकार नहीं करते। इसके अतिरिक्त, भले हीइस प्रकार के लोगों में मसीह-विरोधी स्वभाव होता है, वे अपेक्षाकृत सहानुभूतिपूर्ण और कुछ हद तक दयालु होते हैं। जब वे विभिन्न मामलों का सामना करते हैं, तो मानवता के संदर्भ में वे जो विशेषताएँ प्रदर्शित करते हैं, उन्हें—सबसे उपयुक्त और समझने में आसान तरीके से—अपेक्षाकृत उचित रूप में वर्णित किया जा सकता है। यदि उनकी गंभीरता से काट-छाँट की जाए, तो वे ज्यादा से ज्यादा अपने दिल में थोड़ी नाराजगी महसूस कर सकते हैं, लेकिन उनकी मानवता की अभिव्यक्ति से इसे देखने पर, यह देखा जा सकता है कि वे अभी भी शर्म महसूस करते हैं, उनकी अंतरात्मा उन्हें दोषी ठहराने में सक्षम है और उनका विवेक एक निश्चित संयमित करने वाला प्रभाव डाल सकता है। यदि वे परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचाते हैं या किसी भाई-बहन को नुकसान पहुँचाते हैं, तो वे हमेशा अंदर से बेचैन महसूस करते हैं और उन्हें लगता है कि उन्होंने परमेश्वर को निराश किया है। ये अभिव्यक्तियाँ मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों में कुछ न कुछ सीमा तक देखी जाती हैं। भले ही वे चीजों के होने के बाद तुरंत सुधार न करें या सही विकल्प न चुनें और सही तरीके से अभ्यास न करें, फिर भी इन लोगों के दिलों में जागरूकता की भावना होती है। उनकी अंतरात्मा उन्हें दोषी ठहराती है; वे जानते हैं कि उन्होंने गलत किया है और उन्हें फिर से ऐसा नहीं करना चाहिए, और उन्हें यह भी लगता है कि वे अच्छे लोग नहीं हैं—सूक्ष्म रूप से, उन सभी में ये भावनाएँ हो सकती हैं। इसके अलावा, समय के साथ, उनकी स्थिति बदल जाएगीऔर वे सच्चा पश्चात्ताप करेंगे। उन्हें गहरा पछतावा महसूस होगा, इस बात का अफसोस होगा कि उन्होंने शुरू में सही विकल्प नहीं चुने या सही तरीके से अभ्यास नहीं किया। ये अभिव्यक्तियाँ वास्तव में भ्रष्ट मनुष्यों की सबसे आम और साधारण अभिव्यक्तियाँ हैं। लेकिन मसीह-विरोधी लोग विशेष हैं; वे मनुष्य नहीं बल्कि दानव हैं। चाहे उनके बुराई या पाप करने के बाद कितना भी समय क्यों न बीत जाए, उन्हें बिल्कुल भी कोई पछतावा नहीं होता; वे अंत तक जिद्दी और दृढ़ बने रहते हैं। मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोग साधारण काट-छाँट का सामना करने पर समर्पण कर सकते हैं। जब गंभीर काट-छाँट का सामना करना पड़ता है, तो वे अपने मामले में बहस कर सकते हैं, चीजों को नकार सकते हैं और उस समय इसे स्वीकारने से इनकार कर सकते हैं, लेकिन बाद में वे आत्म-चिंतन करने और खुद को जानने में सक्षम होते हैं, और पछतावामहसूस करने के बाद पश्चात्ताप करते हैं। भले ही कोई उनका मजाक उड़ाए और मानवताहीन बताकर उनकी आलोचना करे, उन्हें दिलों में दर्द महसूस होसकता है लेकिन वे उस व्यक्ति से नहीं लड़ेंगे या उसे दुश्मन नहीं मानेंगे। वे दूसरे व्यक्ति को समझकर यह भी सोच सकते हैं, “उस गलती के लिए मैं खुद को ही दोषी ठहरा सकता हूँ; दूसरे मेरे साथ जैसा भी व्यवहार करते हैं, मैं उससे बेहतर व्यवहार के लायक नहीं हूँ।” ये अभिव्यक्तियाँ अलग-अलग लोगों में कुछ न कुछ सीमा तक देखी जाती हैं। संक्षेप में, ये खुलासे मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों, भ्रष्ट स्वभाव वाले लोगों की सामान्य और स्वाभाविक अभिव्यक्तियाँ हैं, और यहीं पर वे स्पष्ट रूप से मसीह-विरोधियों से भिन्न होते हैं। इन दो स्थितियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों के माध्यम से, यह तुरंत स्पष्ट हो जाता है कि कौन-से व्यक्ति बुरे लोग और मसीह-विरोधी हैं, और कौन-से ऐसे लोग हैं जो केवल मसीह-विरोधी स्वभाव वाले हैं लेकिन बुरे लोग नहीं हैं।

इस आधार पर उनमें अंतर करना कि वेसचमुच पश्चात्ताप करते हैं या नहीं

मसीह-विरोधियों और मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों के बीच अंतर के दो पहलुओं का अभी-अभी उल्लेख किया गया : पहला पहलू है सत्य के प्रति उनका रवैया; सत्य के प्रति लोगों का रवैया ही परमेश्वर के प्रति उनका रवैया है। इस पहलू में, इन दो प्रकार के लोगों के बीच एक स्पष्ट भिन्नता है। दूसरा पहलू है, मानवता की दृष्टि से भी, इन दोनों प्रकार के लोगों के बीच एक स्पष्ट अनिवार्य अंतर है। ये दोनों विशेषताएँ बेहद स्पष्ट हैं; वे बिल्कुल अलग तरह के लोग हैं। इन दो अंतरों के अलावा, एक और पहलू यह है कि बुराई करने के बाद उनमें पश्चात्ताप की कोई अभिव्यक्ति होती है या नहीं। मसीह-विरोधी लोगों के मामले में, चाहे वे कोई भी बुरे कर्म करें—चाहे वे लोगों को सताएँ, स्वतंत्र राज्य स्थापित करें, रुतबे के लिए परमेश्वर से होड़ करें, चढ़ावे की चोरी करें या कुछ और करें—भले ही वे सीधे तौर पर उजागर हो जाएँ, वे यह स्वीकार नहीं करते कि ये कर्म उन्होंने किए हैं। अगर वे उन्हें स्वीकार नहीं करते, तो क्या वे पश्चात्ताप कर सकते हैं? वे पश्चात्ताप करने के बजाय मरना पसंद करेंगे। वे अपने बुरे कर्मों के तथ्यों को स्वीकार नहीं करते। भले ही उन्हें एहसास हो कि उजागर करना पूरी तरह से सही है, वे इसका प्रतिरोध और विरोध करते हैं। वे इस बात पर बिल्कुल भी चिंतन-मनन नहीं करेंगे कि वे गलत राह पर हैं या यह नहीं कहेंगे, “मुझे मसीह-विरोधी के रूप में चित्रित किया गया है। यह बहुत खतरनाक है, और मुझे पश्चात्ताप करने की आवश्यकता है।” उनके मन में इस तरह के विचार बिल्कुल भी नहीं होते। उनकी मानवता में ये गुण नहीं होते। इसलिए, मसीह-विरोधियों की एक स्पष्ट विशेषता होती है : चाहे वे कितने भी वर्षों तक परमेश्वर में विश्वास रखें, वे सत्य को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते और उनमें कोई वास्तविक बदलाव दिखाई नहीं देते। जब वे पहली बार परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू करते हैं, तो वे भीड़ में अलग दिखना, सत्ता और लाभ के लिए होड़ करना, लोगों को सताना, गुट बनाना और कलीसिया को बाँटना पसंद करते हैं। सत्ता पर कब्जा करने की उनकी कोशिश का उद्देश्य कलीसिया के सहारे जीना और एक स्वतंत्र राज्य स्थापित करना है। तीन से पाँच साल तक विश्वास रखने के बाद, जब तुम उन्हें दोबारा देखते हो, तो वे बिना किसी बदलाव के उन्हीं अभिव्यक्तियों और विशेषताओं को प्रदर्शित करते हैं। आठ या दस साल बाद भी, वे वैसे ही बने रहते हैं। कुछ लोग कहते हैं, “शायद 20 साल विश्वास रखने के बाद वे बदल जाएँ!” क्या वे बदल सकते हैं? (नहीं।) वे नहीं बदलेंगे। वे यही अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हैं, चाहे वे गिने-चुने लोगों के साथ बातचीत कर रहे हों या ज्यादातर लोगों के साथ, चाहे वे सामान्य कर्तव्य निभा रहे हों या अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में कार्य कर रहे हों। वे कभी पश्चात्ताप नहीं करते या पीछे नहीं हटते, अंत तक उसी मार्ग पर चलते रहते हैं। वे बिल्कुल पश्चात्ताप नहीं करेंगे। मसीह-विरोधी ऐसे ही होते हैं। जहाँ तक मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों की बात है, भले ही कुछ लोग बुरे न हों, लेकिन उनमें भी भ्रष्ट स्वभाव होते हैं। वे अहंकार, कपट, स्वार्थ, नीचता और अन्य प्रकार की भ्रष्टता प्रकट करते हैं। वे खराब मानवता भी प्रदर्शित करते हैं। जब वे पहली बार परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू करते हैं, तो वे प्रसिद्धि और लाभ के लिए होड़ भी करना चाहते हैं, लोगों की प्रशंसा पाने के लिए अलग दिखना चाहते हैं, और अगुआबनने और सत्ता हासिल करने की महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ रखते हैं। ये अभिव्यक्तियाँ भ्रष्ट मनुष्यों में कुछ न कुछ सीमा तक मौजूद हैं और मसीह-विरोधियों से बहुत अलग नहीं हैं। हालाँकि, परमेश्वर में विश्वास रखने की प्रक्रिया में, वे परमेश्वर के वचनों के न्याय और प्रकाशन का अनुभव करके कुछ सत्य समझ पाते हैं, और वे इन भ्रष्ट स्वभावों को कम से कम प्रकट करते हैं। ये भ्रष्ट स्वभाव कम से कम क्यों प्रकट होते हैं? ऐसा इसलिए है क्योंकि सत्य समझने के बाद, उन्हें एहसास होता है कि ये व्यवहार और अभिव्यक्तियाँ भ्रष्ट स्वभावों के खुलासे हैं। केवल इस बिंदु पर उनकी अंतरात्मा जाग जाती है और उन्हें दिखाई देता है कि वे अत्यधिक भ्रष्ट हैं और वाकई उनमें एक इंसान होने की झलक भी नहीं है। फिर वे सत्य का अनुसरण करने के लिए इच्छुक हो जाते हैं और इस बारे में सोचते हैं कि इन भ्रष्ट स्वभावों को कैसे दूर किया जाए और वे अपने बंधन से कैसे मुक्त हो सकते हैं, और कैसे ऐसा व्यक्ति बन सकते हैं जो सत्य का अनुसरण और अभ्यास करता है। यह अभिव्यक्ति क्या है? क्या यह धीरे-धीरे पश्चात्ताप करना नहीं है? (हाँ।) परमेश्वर के कार्य का अनुभव करने की प्रक्रिया में, वे अपनी समस्याओं का पता लगाते हैं, अपने भ्रष्ट स्वभावों को पहचानते हैं, और अपनी विभिन्न दशाओं को समझते हैं। वे अपनी मानवता के सार को भी जान जाते हैं और उनकी अंतरात्मा अधिक से अधिक जागरूक हो जाती है; उन्हें अधिक से अधिक यह महसूस होता है कि वे गहराई तक भ्रष्ट हैं और परमेश्वर के उपयोग के लिए अयोग्य हैं, उन्होंने परमेश्वर की घृणा अर्जित की है और वे भीतर से खुद से नफरत करते हैं। अनजाने में, वे धीरे-धीरे अपने दिल की गहराई में पश्चात्ताप करते हैं, और इस पश्चात्ताप के साथ कुछ मामूली बदलाव होते हैं, ऐसे मामूली बदलाव जो उनके व्यवहार में देखे जा सकते हैं। उदाहरण के लिए, शुरू में, जब कोई उनकी समस्याओं को उजागर करता था, तो वे नाराजहो जाते थे, शर्मिंदगी के मारे गुस्से से लाल हो जाते थे, वे खुद के बारे में समझाने और खुद को सही ठहराने की कोशिश करते थे, अपना बचाव करने के लिए अलग-अलग बहाने और तर्क ढूँढ़ने का हर संभव प्रयास करते थे। हालाँकि, निरंतर अनुभवों के माध्यम से उन्हें एहसास हो जाता है कि यह व्यवहार गलत है और वे इस स्थिति और व्यवहार को सुधारना शुरू कर देते हैं, सही विचारों को स्वीकारने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, दूसरों के साथ सामंजस्यपूर्ण सहयोग के लिए प्रयास करते हैं। जब उन पर कोई मुसीबत आती है, तो वे दूसरों से मदद माँगना और उनके साथ संगति करना सीखते हैं, वे दिल से संवाद करना और दूसरों के साथ सौहार्दपूर्ण तरीके से रहना सीखते हैं। क्या ये पश्चात्ताप की अभिव्यक्तियाँ हैं? (हाँ।) परमेश्वर में विश्वास रखने के बाद, वे धीरे-धीरे मसीह-विरोधियों द्वारा प्रकट किए जाने वाले कुछ स्वभावों, व्यवहारों और अभिव्यक्तियों की सच्ची समझ प्राप्त कर लेते हैं। फिर वे धीरे-धीरे अपने भ्रष्ट स्वभावों को त्याग देते हैं, जीवन जीने के अपने पहले के गलत तरीकों को त्यागने में सक्षम होते हैं, प्रसिद्धि और रुतबे के पीछे भागना छोड़ देते हैं, और सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य करने, आचरण करने और अपना कर्तव्य निभाने में सक्षम होते हैं। ऐसा बदलाव कैसे आताहै? क्या यह सत्य को स्वीकारने और लगातार खुद को बदलने और पश्चात्ताप करने से होता है? (हाँ।) ये सभी चीजें निरंतर पश्चात्ताप की प्रक्रिया सेप्राप्त होती हैं। इसके बाद, उनकी स्थिति निश्चित रूप से बेहतर होती है, जैसे-जैसे उनका अनुभव गहरा होता है, उनका आध्यात्मिक कद भी बढ़ता जाता है, और जब उन पर कोई मुसीबत आती है, तो वे आत्म-चिंतन करने में सक्षम होते हैं। चाहे उन्हें नाकामियों या विफलताओं का सामना करना पड़े या उनकी काट-छाँट की जाए, वे इन मामलों को परमेश्वर के सामने लाते हैं और उससे प्रार्थना करते हैं; परमेश्वर के वचनों को पढ़ते समय उनसे अपनी भ्रष्ट स्थिति को सह-संबंधित कर सकते हैं, उसका गहन-विश्लेषण कर सकते हैं और उसे समझ भी सकते हैं। हालाँकि वे अभी भी भ्रष्टता प्रकट कर सकते हैं और जब उन पर मुसीबतें आती हैं तो गलत विचार पनप सकते हैं, वे आत्म-चिंतन करने और खुद के खिलाफ विद्रोह करने में सक्षम होते हैं। जब तक वे इन मुद्दों के बारे में जागरूक होते हैं, वे उन्हें हल करने और पश्चात्ताप करने के लिए लगातार सत्य की तलाश कर सकते हैं। भले ही यह प्रगति बहुत धीमी होती है और नतीजे न्यूनतम होते हैं, वे अपने दिल की गहराइयों में लगातार बदल रहे हैं। इस प्रकार के लोग हमेशा एक सक्रिय, सकारात्मक, आत्म-प्रेरित रवैया और खुद को बदलने और पश्चात्ताप करने की स्थिति बनाए रखते हैं। हालाँकि वे कभी-कभी प्रसिद्धि और रुतबे के लिए दूसरों के साथ होड़ करते हैं और अलग-अलग स्तर तक मसीह-विरोधियों की कुछ अभिव्यक्तियों और क्रियाकलापों को प्रकट करते हैं, थोड़ी काट-छाँट, न्याय और ताड़ना या परमेश्वर के अनुशासन का अनुभव करने के बाद, ये भ्रष्ट स्वभाव अलग-अलग स्तर तक त्याग दिए जाते हैं और बदल दिए जाते हैं। इन नतीजोंकी प्राप्ति का मुख्य मूल कारण यह है कि इस प्रकार का व्यक्ति अपने दिल की गहराइयों में अपने भ्रष्ट स्वभावों और उसकेद्वारा चुने गए गलत रास्तोंके संबंध में चिंतन-मनन कर सकता है, उन्हें समझ सकता है, और खुद को बदल सकता है। भले ही उनके बदलाव से होने वाले परिवर्तन, विकासऔर लाभ बहुत कम हैं, और प्रगति बहुत धीमी है, इस हद तक कि शायद उन्हेंखुद भी पता न लगे, ऐसे अनुभवों के तीन से पांच वर्षों के बाद, वे स्वयं में कुछ परिवर्तन महसूस कर सकते हैं, और उनके आस-पास के लोग भी इसे देख सकते हैं। किसी भी मामले में, मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों और मसीह-विरोधियों के बीच एक अंतर होता है। इस संबंध में मुख्य विशेषता क्या है? (मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोग पश्चात्ताप करने में सक्षम होते हैं।) जब वे कुछ गलत करते हैं, कोई अपराध करते हैंया काट-छाँट, न्याय और ताड़ना का अनुभव करते हैं या फिर ताड़ना या अनुशासन का सामना करते हैं, तो वे पश्चात्ताप कर सकते हैं। यहाँ तक कि जब उन्हें एहसास होता है कि उन्होंने गलत किया है या कोई गलती की है, तो वे आत्म-चिंतन कर सकते हैं और अपने दिलोंमें खुद को बदलने और पश्चात्ताप करने का रवैया रख सकते हैं। यह एक विशिष्ट अंतर है जो मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों को मसीह-विरोधियों से पूरी तरह से अलग करता है।

मसीह-विरोधियों और मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों के बीच अंतर का सारांश

जो लोग मसीह-विरोधी हैं वे जीते-जागतेशैतान हैं। यह कहा जा सकता है कि वे शैतान के रूप में जीते हैं; वे दानव और शैतान हैं जो लोगों को दिखाई देते हैं। तो फिर, आओ मसीह-विरोधियों और मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों के बीच अंतर का सारांश प्रस्तुत करें। सत्य के प्रति उनका रवैया एक पहलू है। मसीह-विरोधी सत्य को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते हैं। हालाँकि वे मौखिक रूप से स्वीकार सकते हैं कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं, सकारात्मक चीजें हैं, ये ऐसे वचन हैं जो लोगों के लिए फायदेमंद हैं, ये सभी सकारात्मक चीजों के लिए मानदंड हैं और लोगों को उन्हें स्वीकारना चाहिए, उनके प्रति समर्पित होना चाहिए और उनका अभ्यास करना चाहिए—हालाँकि वे यह सब कह सकते हैं—लेकिन वे परमेश्वर के वचनों को बिल्कुल भी अभ्यास में नहीं ला पाते। वे उनका अभ्यास क्यों नहीं करते? क्योंकि वे अपने दिलों मेंसत्य को स्वीकार नहीं करते। वे खुद बोलते हैं कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं, लेकिन पूरी तरह से अलग मंशा से : वे यह इस तथ्य को छिपाने के लिए कहते हैं कि वे सत्य को स्वीकार नहीं करते और लोगों को गुमराह करने के लिए ऐसा कहते हैं। सिर्फ इसलिए कि मसीह-विरोधी शब्द और धर्म-सिद्धांत बोल सकते हैं, इसका अर्थयह नहीं है कि वे अपने दिलों में यह स्वीकारते हैं कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं। वे सत्य को व्यवहार में नहीं ला पाते क्योंकि वे मूल रूप से परमेश्वर के वचनों के सत्य को अपने दिलों में स्वीकार नहीं करते; वे सत्य को स्वीकारने और सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने के लिए सत्य का अभ्यास करने को तैयार नहीं हैं। दूसरी ओर, मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोग जरूरी नहीं की मसीह-विरोधी हों। उनमें से कुछ लोग, अलग-अलग स्तर तकसत्य को, सकारात्मक चीजों कोऔर सही शब्दों को स्वीकार सकते हैं और उसके प्रति समर्पित हो सकते हैं—यह एक अंतर है। मसीह-विरोधी सार वाले लोग सत्य के प्रति शत्रुता रखते हैंऔर उससे मुंह मोड़ लेते हैं, लेकिन मसीह-विरोधी स्वभाव वाले कुछ लोग सत्य को स्वीकार सकते हैं और उसका अभ्यास कर सकते हैं। परमेश्वर के वचनों को पढ़ने और परमेश्वर के कार्य का कई वर्षों तक अनुभव करने से, सत्य के प्रति उनका रवैया कुछ हद तक बदल सकता है। उन्हें दिल की गहराई में महसूस होता है कि भले ही वे इसे अभ्यास में लाने में असमर्थ हैं, लेकिन सत्य उत्तम है और यह सही है। बात सिर्फ इतनी है कि वे सत्य से प्रेम नहीं करते या इसमें उनकी उतनी रुचि नहीं रखते हैं, इसलिए इसका अभ्यास करते समय कुछ प्रयास और संघर्ष करना पड़ता है। इसलिए, मसीह-विरोधी स्वभाव के साथ-साथ थोड़ी अंतरात्मा और विवेक वाले लोग अलग-अलग स्तरतक सत्य को स्वीकार सकते हैं। कम से कम, अपने दिलों की गहराई में, वे सत्य को लेकर प्रतिरोधी नहीं होते या उससे दूर नहीं भागते हैं और वे सत्य से विमुख नहीं होते हैं। अधिकांश लोग इस तरह की स्थिति में होते हैं और सत्य के प्रति इस तरह की अभिव्यक्ति प्रदर्शित करते हैं। ऐसे लोगों का वर्णन करने का यह तरीका न तो उन्हें अच्छा बनाता है और न ही उन्हें कलंकित करता है। यह काफी स्पष्ट है, है न? (हाँ।) दूसरा पहलू उनमें मानवता के परिप्रेक्ष्‍य से अंतर करना है, यानी उनकी अंतरात्मा, विवेक और उनकी मानवता की अच्छाई या बुराई के आधार पर उनमें अंतर करना। जिस किसी के पास बुरी मानवता है, जो सत्य को स्वीकार नहीं करता है, और विशेष रूप से सत्य से विमुख है, वह निश्चित रूप से एक छद्म-विश्वासी या मसीह-विरोधी है। कुछ लोग विशेष रूप से सत्य से प्रेम नहीं करते और उसमें रुचि नहीं रखते हैं। जब दूसरे लोग सत्य की संगति करते हैं, तो वे उनींदे और उदासीन हो जाते हैं। हालाँकि, इस प्रकार के लोगों में बुरी मानवता नहीं होती और वे दूसरों को नहीं सतातेहैं। यदि तुम परमेश्वर के इरादों, सत्य सिद्धांतों या परमेश्वर के घर के नियमों के बारे में संगति करते हो, तो वे सत्य को सुन सकते हैं और उसे स्वीकारने और उसके लिए प्रयास करने के लिए इच्छुकहोते हैं, लेकिन हो सकता है कि वे सत्य को अभ्यासमें लाने में सक्षम नहों। यदि वे अगुआबन जाते हैं, तो हो सकता है कि वे सत्य को समझने या परमेश्वर के सामने लाने में तुम्हारी अगुआई करने में सक्षम नहों, लेकिन वे तुम्हें बिल्कुल भी नहीं सताएँगे। यह मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों की मानवता है। किसी भी मामले में, मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों की मानवता उतनी बुरी नहीं होती है; वे अलग-अलग स्तरतक सत्य को स्वीकार सकते हैं। इसके विपरीत, मसीह-विरोधी लोगों में न केवल अंतरात्मा और विवेक की कमी होती है, बल्कि उनमें अत्यंत बुरी मानवता भी होती है। मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों में अंतरात्माकी समझऔर कुछ विवेक होता है, और वे कुछ मामलों को तर्कसंगत रूप से संभाल सकते हैं। उदाहरण के लिए, परमेश्वर के घर की आवश्यकताओं से निपटते समय कैसे चुनना है, किसका पक्ष लेना हैऔर ऐसे अन्य मामलों में, और कलीसिया में विभिन्न लोगों से निपटने में, और सकारात्मक और नकारात्मक चीजों से निपटने में, वे ऐसे मामलों में अंतर कर सकते हैं और अंततः, वे अपनी अंतरात्मा के आधार पर सही विकल्प चुनने में समर्थ होते हैं। इस प्रकार के लोगों में इतनी बुरी मानवता नहीं होती और वे अपेक्षाकृत दयालु होते हैं। एक और अंतर है, जिसके बारे में हमने अभी संगति की, वह यह है कि मसीह-विरोधी स्वभाव वालेकुछ लोग ऐसे होते हैं जो सत्य को स्वीकार सकते हैं, और जब वे गलत करते हैं, तो उस पर चिंतन-मनन कर सकते हैं और उनमें पश्चात्ताप करनेवाला दिल हो सकता है। इसके विपरीत, मसीह-विरोधी इन दो अभिव्यक्तियों को बिल्कुल भी प्रदर्शित नहीं करते हैं। वे जिद्दी और अपरिवर्तनीय होते हैं क्योंकि वे सत्य से विमुख होते हैं, सत्य को स्वीकार नहीं करते, और उनमें अत्यंत दुष्ट मानवता होती है। इस प्रकार के लोगों के लिए खुद को बदलना और पश्चात्ताप करना असंभव होता है। कोई व्यक्ति वास्तव में पश्चात्तापकर सकता है या नहीं, यह मुख्य रूप से इस बात पर निर्भर करता है कि उसके पास अंतरात्मा और विवेक है या नहीं, और सत्य के प्रति उसका रवैया कैसा है। मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोग, क्योंकि उनमें बुरी मानवता नहीं होती, उनमें थोड़ी अंतरात्मा औरविवेक होता है, और वे कुछ सत्य को अलग-अलग स्तरतक स्वीकार सकते हैं, उनमें खुद को बदलने की क्षमता होती है। जब वे गलतियाँ या अपराध करते हैं, तो वे काट-छाँट किए जाने के बाद पश्चात्ताप कर सकते हैं। यह निर्धारित करता है कि मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों के पास बचाए जाने की आशा है, जबकि मसीह-विरोधी लोगों को छुटकारा मिलना नामुमकिन हैं; वे दानवों और शैतान के जैसे हैं। ये कई विशेषताएँ मसीह-विरोधियों और मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों के बीच अनिवार्य अंतर हैं। क्या यह सारांश काफी स्पष्टहै? (हाँ।) मसीह-विरोधियों की इन कई विशेषताओं के बारे में, हमने जिन विस्तृत अभिव्यक्तियों के बारे में संगति की है, वे बिना किसी भी तरह के कलंक के स्पष्ट और तथ्यों के अनुरूप हैं। परमेश्वर के चुने हुए सभी लोगों ने इसका सामना किया है और इसे देखा है; मसीह-विरोधी लोग ठीक ऐसे ही हैं। जहाँ तक मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों की बात है, हमने विभिन्न अभिव्यक्तियों को उजागर भी किया है, जो सभी लोगों को दिखाई देती हैं और बिना किसी दिखावे के तथ्यों के अनुरूप हैं।

मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों की मानवता में कई कमियाँ और खामियाँ होती हैं, और वे अलग-अलग हद तक विभिन्न भ्रष्ट स्वभावों को भी प्रकट करते हैं। इन भ्रष्ट स्वभावों की हर किसी में कुछ स्पष्ट विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ होती हैं। उदाहरण के लिए, कुछ लोग विशेष रूप से अहंकारी होते हैं, कुछ विशेष रूप से जोड़-तोड़ करने वालेऔर धोखेबाज होते हैं, कुछ विशेष रूप से कट्टर होते हैं, कुछ विशेष रूप से आलसी होते हैं, इत्यादि। ये भावमसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों की अभिव्यक्तियाँ हैंऔर ये ऐसे लोगों की मानवता की विशेषताएँ हैं। हालाँकि इन लोगों के दिलोंमें कुछ दया होती है—सरल शब्दों में कहें तो वे कुछ हद तक नेकदिल होते हैं—मामलों का सामना करने पर, उन्हें स्पष्ट रूप से दिखाई देता है कि परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचाया जा रहा है, लेकिन क्योंकि वे दूसरों को नाराज करने से डरते हैं, वे अपने खोल में दुबके कछुए के समान हो जाते हैं, शैतान के फलसफे के अनुसार जीते हैं और सत्य सिद्धांतों को कायमरखने के लिए अनिच्छुक होते हैं। भले ही अंतरमन में उन्हें महसूस होता है कि उन्हें इस तरह से कार्य नहीं करना चाहिए और इस तरह से कार्य करके वे परमेश्वर के साथ गलत कर रहे हैं, फिर भी वे खुशामदी बनने से खुद को रोक नहीं पाते। ऐसा क्यों है? क्योंकि वे मानते हैं कि जीने और जीवित रहने के लिए, उन्हें शैतान के फलसफे पर भरोसा करना चाहिए, और केवल इस तरह से वे खुद को बचा सकते हैं। इसलिए, वे खुशामदी बनने का चुनाव करते हैं और सत्य का अभ्यास नहीं करते। अपने दिलोंमें उन्हें महसूस होता है कि इस तरह से काम करके, वे अंतरात्मा विहीन और मानवता से रहित हैं; वे मानव नहीं हैं और एक रखवाली करने वाले कुत्ते से भी बदतर हैं। हालाँकि, खुद को धिक्कारने के बाद, जब किसी दूसरी स्थिति का सामना करते हैं, तब भी वे पश्चात्ताप नहीं करते और अभीभी उसी तरह से काम करते हैं। वे हमेशा कमजोर रहते हैं और हमेशा अपराध बोध से ग्रसित होतेहैं। इससे क्या साबित होता है? इससे साबित होता है कि भले ही मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोग खुद मसीह-विरोधी नहीं होते, लेकिन उनकी मानवता में समस्याएँ और कमियाँ होती हैं, इसलिए वे निश्चित रूप से काफी भ्रष्टता प्रकट करते हैं। ऐसे व्यक्ति की समग्र अभिव्यक्तियों को देखा जाए तोवह पूरी तरह से ऐसा व्यक्ति है जिसमें शैतान द्वारा गहराई से भ्रष्ट किए जानेपर भी कोई बदलाव नहीं होता; वह बिल्कुल वही है जिसे परमेश्वर शैतान की संतान कहता है। मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोग मसीह-विरोधियों से कैसे बेहतर हैं? सटीक रूप से कहें तोभले हीजिन लोगों में मसीह-विरोधी स्वभाव है लेकिन मसीह-विरोधी सार नहीं है, वे शैतान के विभिन्न भ्रष्ट स्वभावों को प्रकट करते हैं, वे निश्चित रूप से बुरे लोग नहीं हैं। उनकी स्थिति वैसी ही है जैसा कि आम तौर पर कहा जाता है कि फलां व्यक्ति न तो विश्वासघाती और बुरा है और न ही वह भला है; बात सिर्फ इतनी है कि ऐसे लोग ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, पश्चात्ताप करने के इच्छुक होते हैं, और काट-छाँट के बाद सत्य को स्वीकार सकते हैं, उनमें कुछ समर्पण भाव होता है। हालाँकि वे बुरे लोग नहीं हैं और उन्हें अभी भी परमेश्वर द्वारा बचाए जाने की आशा है, लेकिन वे परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के उस मानक से बहुत दूर हैं जिसके बारे में परमेश्वर बात करता है! कुछ लोग तीन से पाँच साल तक परमेश्वर में विश्वास रखते हैं और उनमें कुछ बदलाव और प्रगति होती है। कुछ लोग आठ से दस साल तक परमेश्वर में विश्वास रखते हैं और उनमें बिल्कुल भी कोई प्रगति नहीं होती। कुछ लोग तो बिना किसी महत्वपूर्ण बदलाव के 20 साल तक परमेश्वर में विश्वास रखते हैं; वे अभी भी वैसे ही हैं जैसे पहले थे। वे हठपूर्वक अपनी धारणाओं से चिपके रहते हैं। बात सिर्फ इतनी हैकि उन्होंने परमेश्वर के वचनों को सुना है और वे परमेश्वर के घर के विभिन्न नियमों और विनियमों से नियंत्रित हैं, इसलिए उन्होंने बड़ी गलतियाँ नहीं की हैं, ऐसे बुरे कर्मनहीं किए हैं जो परमेश्वर के घर को गंभीर नुकसान पहुँचाएँ, और उनकी वजह से बड़ी आपदाएँ नहीं आई हैं। मसीह-विरोधी स्वभाव वाले सभीलोग निश्चित रूप से अंत में परमेश्वर द्वारा बचाए नहीं जा सकते। उनमें से ज्यादातर संभवतः श्रमिक हैं, और उनमें से कुछ निश्चित रूप से हटा दिए जाएँगे। किसी भी मामले में, भले हीवे बुरे लोग नहीं हैं, मगर वे खराब मानवता वाले लोग हैं। उनके परिणाम और गंतव्य निश्चित रूप से समान नहीं होंगे। यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि वे सत्य को स्वीकार सकते हैं या नहीं और वे अपना मार्ग कैसे चुनते हैं। कुछ लोग कहते हैं, “तुम्हारे शब्द विरोधाभासी हैं। क्या तुमने नहीं कहा कि ये लोग खुद को बदल सकते हैं और पश्चात्ताप कर सकते हैं?” मेरा मतलब यह है कि ये लोग, कुछ संदर्भों और विभिन्न परिवेशोंमें, अलग-अलग स्तर तक सत्य स्वीकार सकते हैं। “अलग-अलग स्तर तक” का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि कुछ लोगों में तीन से पांच साल तक परमेश्वर में विश्वास रखने के बाद थोड़ा बदलाव आता है, और 10 से 20 साल बाद महत्वपूर्ण बदलाव आता है। कुछ लोग 10 से 20 साल तक परमेश्वर मेंविश्वास रखते हैं और फिर भी वैसे ही रहते हैं जैसे वे पहली बार विश्वास रखना शुरू करते समय थे; वे हमेशा चिल्लाते रहते हैं, “मुझे पश्चात्ताप करना चाहिए, मुझे परमेश्वर के प्यार का मूल्य चुकाना चाहिए!” लेकिन वास्तव में उनमें कोई बदलाव नहीं होता। चूँकि उनमें अंतरात्मा का बोध है, सिर्फ इसीलिए यह उनके दिल में इच्छा होती है और वे खुद को बदलने और पश्चात्ताप करने के लिए तैयार होते हैं। हालाँकि, इच्छा होने का मतलब सत्य का अभ्यास करने में सक्षम होना नहीं है, न ही यह वास्तविकता में प्रवेश करने के बराबर है। इच्छा होने का मतलब केवल सत्य का प्रतिरोध न करना, सत्य से विमुख न होना, सत्य की खुलेआम बदनामीन करना, खुलेआम आलोचना न करना, निंदा न करना या परमेश्वर का तिरस्कार न करना है—यह केवल ये अभिव्यक्तियाँ हैं। लेकिन इसका मतलब वास्तव में सत्य के प्रति समर्पित होने, सत्य को स्वीकारने और उसका अभ्यास करने में सक्षम होना नहीं है, न ही इसका मतलब देह और अपनी इच्छाओं के खिलाफ विद्रोह करने में सक्षम होना है। क्या यह एक निष्पक्ष तथ्य है? (हाँ।) यह बिल्कुल ऐसा ही है। किसी की मानवता में थोड़ी अंतरात्मा और विवेक होने और थोड़ा पश्चाताप करने वाला दिल होने का मतलब यह नहीं है कि उसका स्वभाव भ्रष्ट नहीं है। मसीह-विरोधियों के स्वभाव वाले लोग अनिवार्यरूप से मसीह-विरोधियों से अलग होते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे ऐसे लोग हैं जो सत्य को स्वीकार सकते हैं और उसके प्रति समर्पित हो सकते हैं। इसका यह भी अर्थ नहीं है कि वे सत्य वास्तविकता वाले लोग हैं, या वे ऐसे लोग हैं जिन्हें परमेश्वर प्यार करता है। इन दोनों पहलुओं के बीच अनिवार्य अंतर हैं; वे पूरी तरह से भिन्न हैं। मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोग मानवता, सत्य के प्रति उनके रवैये और मसीह-विरोधियोंकी तुलना में उनके पश्चात्तापके स्तरके मामले में निश्चित रूप से बहुत बेहतर हैं। हालाँकि, जिस मानक से परमेश्वर लोगों को तोलताहै, वह इस बात पर आधारित नहीं है कि वे मसीह-विरोधियों से किस तरह भिन्न हैं; यह मानक नहीं है। परमेश्वर किसी व्यक्ति की मानवता को तोलताहै, चाहे उसमें अंतरात्मा और विवेक हो या नहीं, चाहे वहसत्य से प्रेम करता हो और उसे स्वीकारता हो या नहीं, चाहे वह निष्ठा से अपने कर्तव्य निभाता हो या नहीं, चाहे वह परमेश्वर के प्रति समर्पित होया नहीं, और चाहे वहसत्य को प्राप्त कर सकता हो और उद्धार प्राप्त कर सकता होया नहीं। ये वे मानक हैं जिनसे परमेश्वर लोगों को परखता है। परमेश्वर ने मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों के लिए विभिन्न अपेक्षाएँ रखी हैं। परमेश्वर इन अपेक्षाओं का उपयोग मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों को परखने के लिए करता है, जिसका उद्देश्य उन्हें बचाना है। इसे इस तरह से सुनने के बाद, तुम इसे समझ गए, है न? सबसे पहले, तुम्हें यह स्पष्ट होना चाहिए कि चाहे तुममें मसीह-विरोधियों का कितना भी स्वभाव क्यों न हो, अगर तुम सत्य को स्वीकार सकते हो, तो तुम मसीह-विरोधी नहीं हो। भले ही तुम मसीह-विरोधी नहीं हो, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि तुम परमेश्वर के प्रति समर्पण करने वाले व्यक्ति हो। सत्य से दूर नहीं भागने या सत्य से विमुख न होने का मतलब यह नहीं है कि तुम सत्य का अभ्यास करने वाले और उसके प्रति समर्पण करने वाले व्यक्ति हो। थोड़ी अंतरात्मा और विवेक होने, अपेक्षाकृत दयालु होनेऔर मसीह-विरोधियों से बेहतर मानवता होने का मतलब जरूरी नहीं है कि तुम एक अच्छे व्यक्ति हो। किसी व्यक्ति के अच्छे या बुरे होने को परखने का मानक मसीह-विरोधियों की मानवता पर आधारित नहीं है। चाहे मसीह-विरोधी कितने भी बुरे काम क्यों न करें, वे कभी भी उन्हें स्वीकार नहीं करते और न ही पश्चात्तापकरते हैं, बल्कि उसी तरह से काम करना जारी रखते हैं; वे कभी पीछे नहीं हटते, और वे अंत तक परमेश्वर का विरोध करते हैं। हालाँकि मसीह-विरोधी स्वभाव वाले कुछ लोग ईमानदारी से खुद को बदलना और पश्चात्ताप करना चाहते हैं, लेकिन खुद को थोड़ा बदलनेका मतलब यह नहीं है कि उन्हें सच्चा पश्चात्ताप है। पश्चात्ताप करने का संकल्प होने का मतलब सत्य समझने, सत्य प्राप्त करने और जीवन प्राप्त करने में सक्षम होना नहीं है।

कुछ लोग कहते हैं, “मैं मसीह-विरोधी नहीं हूँ, इसलिए मैं मसीह-विरोधियों से बेहतर हूँ और मसीह-विरोधियों से कम भ्रष्ट हूँ।” क्या ये शब्द सही हैं? क्या यह एक विकृत समझ है? (हाँ, यह विकृत समझ है।) मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोग अपने भ्रष्ट स्वभाव में मसीह-विरोधियों के समान ही होते हैं, लेकिन उनका प्रकृतिसार भिन्न होता है। इसके बारे में सोचो—क्या यह कथन सही है? (हाँ।) फिर इसे समझाओ। (मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों में भी मसीह-विरोधियों की तरह ही भ्रष्ट स्वभाव होते हैं। उन दोनों में ही अहंकारी और दुष्ट स्वभाव होते हैं, और वे दोनों ही रुतबे के पीछे भागते हैं। हालाँकि, उनका मानवता सार भिन्न होता है। मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों में अंतरात्माकी कुछ समझ होती है, और वे अलग-अलग स्तरतक सत्य को स्वीकार सकते हैं। वे सत्य से विमुख नहीं होते और सत्य से नफरतनहीं करते। दूसरी ओर, मसीह-विरोधी सार वाले लोगों में दुर्भावनापूर्ण मानवता सार होता है। उनमें अंतरात्माकी कोई समझ नहीं होती, और वे सत्य से विमुख होते हैं और सत्य से नफरतकरते हैं। वे पश्चात्ताप नहीं करेंगे।) उन सभी में भ्रष्ट स्वभाव होते हैं, तो परमेश्वर मसीह-विरोधी सार वाले लोगों को मसीह-विरोधी और अपना शत्रु क्यों बताता है? (यह मुख्य रूप से सत्य के प्रति उनके रवैये पर आधारित है। मसीह-विरोधी सत्य से विमुख होते हैं और सत्य से नफरत करते हैं, और सत्य से नफरत करना वास्तव में परमेश्वर से नफरतकरना है।) और कुछ? (मसीह-विरोधियों का सार दानवों का होता है।) क्या दानवों का सार रखने वाले लोगों को बचाए जाने की कोई आशा है? (नहीं।) ये लोग सत्य को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते और बचाए नहीं जा सकते। यह देखते हुए कि दोनों प्रकार के लोगों के स्वभाव भ्रष्ट हैं, तो बचाए जा सकने वाले और बचाए नहीं जा सकने वाले लोगों के बीच क्या अंतर है? सिर्फ उनके भ्रष्ट स्वभाव के संदर्भ में, ये दोनों तरह के लोग एक जैसे हैं, तो ऐसा क्यों है कि मसीह-विरोधियों को नहीं बचाया जा सकता, जबकि मसीह-विरोधियों के स्वभाव वाले लेकिन मसीह-विरोधी सार नहीं रखने वाले लोगों को बचाए जाने की बहुत कम आशा है? (मसीह-विरोधियों के स्वभाव वाले लोग मसीह-विरोधियों की तरह नहीं होते, जो सत्य और सकारात्मक चीजों के प्रति काफी शत्रुता रखते हैं। भले ही वे विशेष रूप से सत्य से प्रेम नहीं करते, लेकिन वे सत्य से दूर नहीं भागते और इसे अलग-अलग स्तर तक स्वीकार सकते हैं, थोड़ा-थोड़ा करके बदल सकते हैं। इसके अलावा, उनकी मानवता में अंतरात्मा की कुछ समझ होती है, मसीह-विरोधियों के विपरीत जिनमें शर्म की कोई भावनानहीं होती।) बचाए जाने की आशायहीं निहित है; यह अनिवार्यअंतर है। मसीह-विरोधियों के सार को देखा जाए तोइस प्रकार का व्यक्ति को छुटकारा मिलना नामुमकिनहै और उसे बचाए जाने की कोई आशा नहीं है। भले ही तुम उसे बचाना चाहो, तुम नहीं बचा सकते; वह बदल नहीं सकता। वह शैतान के भ्रष्ट स्वभाव वालासाधारण प्रकार का व्यक्ति नहीं है, बल्कि दानवों और शैतान के जीवन सार वाला व्यक्ति है। इस प्रकार के व्यक्ति को बिल्कुल भी नहीं बचाया जा सकता। इसके विपरीत, भ्रष्ट स्वभाव वाले साधारण लोगों का सार क्या है? उनके पास केवल भ्रष्ट स्वभाव होते हैं; हालाँकि, उनके पास एक निश्चित मात्रा में अंतरात्मा और विवेक होता है, और वे कुछ सत्यों को स्वीकार सकते हैं। इसका मतलब है कि सत्य इन लोगों पर एक निश्चित प्रभाव डाल सकता है, जिससे उन्हें बचाए जाने की आशा मिलती है। यह इस प्रकार का व्यक्ति है जिसे परमेश्वर बचाता है। मसीह-विरोधियों को बिल्कुल भी नहीं बचाया जा सकता, लेकिन क्या मसीह-विरोधियों के स्वभाव वाले लोगों को बचाया जा सकता है? (हाँ।) अगर हम कहते हैं कि उन्हें बचाया जा सकता है, तो यह स्पष्टनहीं है। हम केवल यह कह सकते हैं कि उन्हें बचाए जाने की आशा है—यह अपेक्षाकृत स्पष्ट है। अंततः, यह व्यक्ति पर निर्भर करता है कि उसे बचाया जा सकता है या नहीं। यह इस बात पर निर्भर करता है कि क्या वह वास्तव में सत्य स्वीकार सकता है, सत्य का अभ्यास कर सकता है और सत्य के प्रति समर्पित हो सकता है। इसलिए, केवल यह कहा जा सकता है कि इस प्रकार के व्यक्ति को बचाए जाने की आशाहै। तो मसीह-विरोधियों को बचाए जाने की कोई आशाक्यों नहीं है? क्योंकि वे मसीह-विरोधी हैं; उनकी प्रकृति शैतान की है। वे सत्य के प्रति शत्रुता रखते हैं, परमेश्वर से नफरत करते हैं, और सत्य को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते हैं। क्या परमेश्वर फिर भी उन्हें बचा सकता है? (नहीं।) परमेश्वर भ्रष्ट मनुष्यों को बचाता है, शैतान और दानवों को नहीं। परमेश्वर उन लोगों को बचाता है जो सत्य स्वीकारते हैं, न कि उन नीच लोगों को जो सत्य से नफरतकरते हैं। क्या इससे यह स्पष्ट हो जाता है? (हाँ।) हम कुछ लोगों की विकृत समझ से बचने के लिए इस तरह से संगति करते हैं। मसीह-विरोधियों और मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों के बीच अंतर करने के बाद, कुछ लोग सोचते हैं कि वे मसीह-विरोधी नहीं हैं और इसका मतलब है कि वे एक सुरक्षित क्षेत्र में हैं, उन्होंने वास्तव में अपने लिए सुरक्षित शरण ले ली है और निश्चित रूप से भविष्य में उन्हें निकाला, निष्कासित किया या हटाया नहीं जाएगा। क्या यह एक विकृत समझ है? बचाए जाने की आशारखने का मतलब यह नहीं है कि किसी को बचा लिया जाएगा। इस आशा के लिए अभी भी लोगों को इसे समझने की आवश्यकता है। सत्य के प्रति तुम्हारा रवैया मसीह-विरोधियों से भिन्न है। तुम सत्य से विमुख नहीं हो, या तुम्हारी मानवता मसीह-विरोधियों से थोड़ी बेहतर है; तुम्हारे पास अंतरात्मा की थोड़ी समझ है, तुम अपेक्षाकृत दयालु हो, दूसरों को नुकसान नहीं पहुँचाते हो, जब तुम कुछ गलत करते हो तो पश्चात्ताप करना जानते हो, और खुद को बदल सकते हो। इन कुछ गुणों के होने मात्र का मतलब है कि तुम्हारे पास सत्य को स्वीकारने, सत्य का अभ्यास करने और बचाए जाने के लिए बुनियादी स्थितियाँ हैं। लेकिन मसीह-विरोधी न होने का मतलब यह नहीं है कि तुमबचा लिए जाओगे। तुम मसीह-विरोधी नहीं हो, लेकिन तुम अभी भी एक भ्रष्ट इंसान हो। क्या सभी भ्रष्ट इंसानों को बचाया जा सकता है? जरूरी नहीं। भले ही कोई मसीह-विरोधी या बुराव्यक्ति न हो, जब तक वह सत्य का अनुसरण नहीं करता, तब तक उसे बचाया नहीं जा सकता। लोगों को परमेश्वर का उद्धार सत्य को स्वीकारने और उसका अनुसरण करने से प्राप्त होता है। लोगों के भ्रष्ट स्वभाव परमेश्वर के विरोधी हैं। जब तक किसी व्यक्ति में भ्रष्ट स्वभाव मौजूद हैं, तब तक वह परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह कर सकता है, परमेश्वर की अवहेलना कर सकता है, परमेश्वर को धोखा दे सकता है, इत्यादि। इसलिए, उन्हें परमेश्वर के वचनों के न्याय, ताड़ना, परीक्षण और शुद्धिकरण को स्वीकारने की आवश्यकता है; उन्हें परमेश्वर के वचनों के पोषण और मार्गदर्शन, परमेश्वर की काट-छाँट, अनुशासन और दंड इत्यादि की आवश्यकता है—परमेश्वर द्वारा किए जाने वाले किसी भी कार्य में कोई कमी नहीं हो सकती। इसलिए, बचाए जाने के लिए, एक बात तो यह है किपरमेश्वर के कार्य की आवश्यकता है, और इसके अतिरिक्त, लोगों में सहयोग करने का संकल्प होना चाहिए। उन्हें कठिनाई सहने और कीमत चुकाने में सक्षम होने की आवश्यकता है, सत्य को समझने के बाद सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने की आवश्यकता है, इत्यादि। अंत के दिनों में परमेश्वर काउद्धार प्राप्त करने और सत्य को समझने के आधार पर, देहधारी परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाए जाने का बेहद दुर्लभ आशीष प्राप्त करने का यही एकमात्र तरीका है। यह इतना सरल है। ठीक है, आओ इस विषय पर संगति यहीं समाप्त करें।

मद तेरह : परमेश्वर के चुने हुए लोगों को मसीह-विरोधियों द्वारा बाधित किए जाने, गुमराह किए जाने, नियंत्रित किए जाने और गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाए जाने से बचाओ, और उन्हें मसीह-विरोधियों को पहचानने और अपने दिलों से त्यागने में सक्षम बनाओ

कई कार्य जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यह पहचानने पर करने चाहिए कि मसीह-विरोधी कलीसिया को बाधित कर रहे हैं

आगे हम मुख्य विषय पर संगति करेंगे। अगुआओं और कार्यकर्ताओं की बारहवीं जिम्मेदारी पर हमारी संगति पूरी हो गई है। इस संगतिके लिए, हम तेरहवीं जिम्मेदारी पर चर्चा करेंगे : “परमेश्वर के चुने हुए लोगों को मसीह-विरोधियों द्वारा बाधित किए जाने, गुमराह किए जाने, नियंत्रित किए जाने और गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाए जाने से बचाओ, और उन्हें मसीह-विरोधियों को पहचानने और अपने दिलों से त्यागने में सक्षम बनाओ।” तेरहवीं जिम्मेदारी में यह विषय शामिल है कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं को मसीह-विरोधियों के साथ कैसे व्यवहार करना चाहिए। जब मसीह-विरोधी कलीसिया में दिखाई दें तो उस समय अगुआओं और कार्यकर्ताओं को क्या कार्य करना चाहिए? सबसे पहले, यह जिम्मेदारी बताती है कि ऐसी समस्याओं को हल करते समय, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को भाई-बहनों को मसीह-विरोधियों द्वारा बाधित किए जाने, गुमराह किए जाने, नियंत्रित किए जाने और गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाए जाने से बचाने के लिए आगे आना चाहिए। यह पहला काम है जो उन्हें करना चाहिए। जहाँ तक इस बात का सवाल है कि मसीह-विरोधी किस तरह से परमेश्वर के चुने हुए लोगों को बाधित करते हैं, गुमराह करते हैं, नियंत्रित करते हैं और गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाते हैं, इस बारे में पहले भी बहुत संगति की जा चुकी है, इसलिए यह विषय-वस्तु आज की संगति का मुख्य विषय नहीं होगी। आजहम इस बात पर ध्यान केंद्रित करेंगे कि परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नुकसान से बचाने के लिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं को मसीह-विरोधियों के इन व्यवहारों और क्रियाकलापोंका सामना करते समय कौन-सी जिम्मेदारियाँ पूरी करनी चाहिए और उन्हें क्या काम करना चाहिए। सबसे पहले, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को परमेश्वर के चुने हुए लोगों को मसीह-विरोधियों द्वारा बाधित किए जाने, गुमराह किए जाने, नियंत्रित किए जाने और गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाए जाने से बचाना चाहिए—यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों में से एकहै। “जिम्मेदारियों में से एक” का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं द्वारा किए जाने वाले कई कार्यों में से, परमेश्वर के चुने हुए लोगों की सुरक्षा करना एक महत्वपूर्ण कार्य है ताकि वे मसीह-विरोधियों की बाधा और गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाएबिना एक सामान्य कलीसियाई जीवन जी सकें। यह एक अपरिहार्य कार्य भी है जिसमें वे अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इसे महत्व देना चाहिए और इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। कलीसियाई जीवन के सामान्य कामकाज को बनाए रखना एक बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य है और कलीसिया के सभी कार्यों में सबसे प्रमुख कार्य है। यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी भी है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं का मूल कार्य परमेश्वर के चुने हुए लोगों को सत्य वास्तविकता में लेकर जाना है। जब शैतान और मसीह-विरोधी लोगों को परेशान करने और गुमराह करने, और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए परमेश्वर से होड़ करने के लिए आते हैं, तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को मसीह-विरोधियों को उजागर करने के लिए खड़ा होना चाहिए ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोग उनका भेद पहचान सकें, मसीह-विरोधियों को उनके असली रूप को बेनकाबकरने को मजबूर करें, और फिर उन्हें कलीसिया से बाहर निकाल दें। यह परमेश्वर के चुने हुए लोगों को मसीह-विरोधियों द्वारा नियंत्रित किए जाने और गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाए जाने से रोकने के लिए है। यह वह जिम्मेदारी है जिसे कलीसिया का काम करते समय अगुआओं और कार्यकर्ताओं को निभाना चाहिए। तो इन चीजों को रोकने का क्या मतलब है? उन्हें कैसे रोका जाना चाहिए? “रोकना” शब्द का शाब्दिक अर्थ है किसी चीज को होने से यथासंभव अधिकतम सीमा तक रोकना। यहाँ मुख्य बिंदु क्या है? घटनाओं को होने से रोकने से रोकथाम होती है। मसीह-विरोधियों की घटनाओं से निपटने में, अगुआओं और कार्यकर्ताओं का प्राथमिक कार्य मसीह-विरोधियों को परमेश्वर के चुने हुए लोगों को यथासंभव अधिकतम सीमा तक बाधितकरने, गुमराह करने, नियंत्रित करने और गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाने से रोकना है। उन्हें परमेश्वर के चुने हुए लोगों को यथासंभव मसीह-विरोधियों के नुकसान से बचाना चाहिए। यहीवह मुख्य कार्य है जिसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को करना चाहिए, और यही वह है जिसके बारे में हमें तेरहवीं जिम्मेदारी के संबंध में स्पष्ट रूप से संगति करने की आवश्यकता है। तो परमेश्वर के चुने हुए लोगों की सुरक्षा कैसे की जा सकती है? मसीह-विरोधियों द्वारा किए जाने वाले इन बुरे कर्मोंको होने से रोककर। उन्हें रोकने के कई तरीके और उपायहैं, जैसे किउजागर करना, काट-छाँट करना, गहन-विश्लेषणकरना और प्रतिबंध लगाना। और क्या है? (निष्कासित करना।) यह अंतिम चरण है। जब भाई-बहनों में अभी भी समझ की कमी होती है और वे नहीं जानते कि कोई व्यक्ति मसीह-विरोधी है, लेकिन अगुआओं और कार्यकर्ताओं ने पहले से ही उसेइस रूप में पहचान लियाहै, अगर वे उसेसीधे निष्कासित करते हैं, तो जिन लोगों में समझ की कमी है वे धारणाएँ और रायबना सकते हैं, और कुछ लड़खड़ा सकते हैं। ऐसे मामलों में, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को क्या काम करना चाहिए? मैंने अभी क्या उल्लेख किया? (उजागर करना, काट-छाँट करना, गहन-विश्लेषण करना और प्रतिबंध लगाना।) क्या तुम लोगों के पास मसीह-विरोधियों को बुराई करने से रोकने के लिए कोई अच्छा तरीका है? क्या उनकी निगरानी करना एक अच्छा तरीका है? क्या इसे सिद्धांतों के अनुरूप एक प्रभावी तरीका और उपायमाना जाता है? (हाँ।) मसीह-विरोधियों के साथ व्यवहार करने का उचित तरीका क्या है? क्या मसीह-विरोधियों पर न्याय, ताड़ना, परीक्षण और शोधनकाम कर सकते हैं? (नहीं।) क्यों नहीं? (मसीह-विरोधी सत्य स्वीकार नहीं करते; वे इससे विमुख होते हैं।) मसीह-विरोधी सत्य से विमुख होते हैं और इसे स्वीकार नहीं करते, इसलिए मसीह-विरोधियों से निपटने के लिए परीक्षण, शोधन, न्याय और ताड़ना का उपयोग करना उचित नहीं है। इसके अलावा, परमेश्वर उन पर यह कार्य नहीं करता। यह विचार उचित नहीं है, इसलिए यह तरीका निश्चित रूप से काम नहीं करेगा। तो फिर कौन-सा तरीका उचित है? बहुत-से लोग जो मसीह-विरोधियों के नुकसान से बहुत पीड़ित हैं, वे उनसे बहुत नफरत करते हैं और मानते हैं कि मसीह-विरोधियों की आलोचना की जानी चाहिए, उनकी निंदा की जानी चाहिए और उन्हें सार्वजनिक रूप से बेपर्दा किया जाना चाहिए। उन्हें लगता है कि मसीह-विरोधियों को अपनी गलतियों को स्वीकारने और कलीसिया में खुलेआम अपने पापों को स्वीकारने और पूरी तरह से शर्मिंदा होने के लिए मजबूर किया जाना चाहिए। क्या तुम लोगों को लगता है कि इन तरीकों को अपनाना उचित होगा? (नहीं।) अगर हम मसीह-विरोधियों के सार पर विचार करें, तो ऐसी कार्रवाई करना वास्तव में अत्यधिक नहीं होगा—शैतानों के साथ जैसा भी व्यवहार किया जाए, वह ठीक है; इसे एक कीड़े को कुचलने की तरह ही किया जा सकता है। इसलिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं का ऐसा करने का उद्देश्य बहुत जायजऔर सही लगता है, लेकिन क्या इन तरीकों के साथ कोई समस्या है? क्या यह काम अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों के दायरे में आता है? क्या इस तरह से काम करना सिद्धांतों के अनुरूप है या नहीं? (नहीं।) स्पष्ट रूप से, यह सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है। सिद्धांत कहाँ से आते हैं? (परमेश्वर के वचनों से।) यह सही है। हालाँकि इस तरह की कार्रवाइयों का लक्ष्य मसीह-विरोधी—दानव हैं—लेकिन इसके तरीके भी सिद्धांतों और परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुरूप होनेचाहिए, क्योंकि इस काम को करने में अगुआ और कार्यकर्ता अपनी जिम्मेदारियों को पूरा कर रहे हैं, न कि पारिवारिक मामलों या व्यक्तिगत मामलों को निपटारहे हैं।

I. उजागर करना

मसीह-विरोधियों से निपटना और उन्हें बुराई करने, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को गुमराह करने और नुकसान पहुँचाने से रोकना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है। इसका उद्देश्य परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नुकसान से बचाना है, किसी को पीड़ा पहुँचाना या किसी के खिलाफ बदला लेने केअवसर का लाभ उठानानहीं है, और निश्चित रूप से किसी के खिलाफ अभियान चलाना नहीं है। इसलिए, मसीह-विरोधियों को बुराई करने से रोकने के लिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं को अधिकतम संभव सीमा तकक्या कार्य करने की जरूरत है? पहला है उन्हें उजागर करना। उजागर करने का उद्देश्य क्या है? (लोगों को समझ विकसित करने में मदद करना।) यह सही है। इसका उद्देश्य परमेश्वर के चुने हुए लोगों को मसीह-विरोधियों के सार का भेद पहचाननेमें मदद करना है, ताकि वे आंतरिक रूप से मसीह-विरोधियों से खुद को दूर कर सकें और उनके द्वारा गुमराह न हों, और ताकि—जब मसीह-विरोधी उन्हें गुमराह करने और नियंत्रित करने का प्रयास करें—तो वे सक्रिय रूप से उन्हें अस्वीकार करने में सक्षम हों, बजाय इसके कि वे मसीह-विरोधियों को चालाकीकरने और उनके साथ खिलवाड़ करने दें। तोक्या उन्हें उजागर करना महत्वपूर्ण है? (हाँ।) उन्हें उजागर करना बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन तुम्हें उन्हें सही ढंग से उजागर करना चाहिए। तुम्हें उन्हें कैसे उजागर करना चाहिए? तुम्हारे उजागर करने का आधार क्या होना चाहिए? क्या उन्हें मनमाने ढंग से लेबल करना ठीक है? क्या बिना आधार के बिना विचारे उनकी निंदा करना ठीक है? (नहीं।) तो तुम्हें परमेश्वर के चुने हुए लोगों की सुरक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उन्हें सही ढंग से कैसे उजागर करना चाहिए? (एक बाततो यह हैकि हमें उनके बुरे कर्मों के तथ्य के आधार पर उन्हें निष्पक्ष तरीके और सच्चाई से उजागर करना चाहिए। इसके अतिरिक्त, हमें परमेश्वर के वचनों के अनुसार उनका भेद पहचानना और उनका गहन-विश्लेषण करना चाहिए।) ये दोनों कथन बिल्कुल सही हैं; दोनों पहलू अपरिहार्य हैं। एक बात तो यह है, तथ्यात्मक सबूत होना चाहिए। तुम्हें मसीह-विरोधियों द्वारा प्रकट किए गए गलत शब्दों, कार्यों, बेतुके विचारों और दृष्टिकोणों के आधार पर उनके सार को पहचाननाऔर चित्रित करना चाहिए। हालाँकि, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि परमेश्वर के वचनों के अनुसार उनका भेद पहचानना और उनका गहन-विश्लेषण करना चाहिए। तुम्हें परमेश्वर के किन वचनों का संदर्भ लेना चाहिए? कौन-से वचन सबसे सीधे और प्रभावशालीहैं? (जो वचन मसीह-विरोधियों को उजागर करते हैं।) यह सही है; तुम्हेंकुछ ऐसे शब्द खोजने चाहिए जो मसीह-विरोधियों को बेनकाब करें, उजागर करें, उचित और निष्पक्ष रूप से तुलना करें, जिससे पूर्ण सटीकता सुनिश्चित हो। भाई-बहन इसे सुनने के बाद समझ जाएंगे; वे तुरंत शामिल व्यक्ति के प्रति समझरखेंगेऔर उससे सावधान रहेंगे। अपने दिलों में समझहोने के कारण, वे इस व्यक्ति से घृणा महसूस करेंगे : “तो वह आखिरकार एक मसीह विरोधी है! उसने पहले मेरी मदद की थी और यहां तक कि उपकार भी किया था। मुझे लगा कि वह एक अच्छा व्यक्ति है। इस गहन-विश्लेषण और संगति के माध्यम से, उसके पाखंड और उसके अनिवार्य मसीह-विरोधी अभिव्यक्तियों को उजागर किया गया, जिससे सभी को यह देखने में मदद मिली कि यह व्यक्ति खतरनाक है। परमेश्वर के वचनों ने उसे बहुत सटीक रूप से उजागर किया है! वहएक अच्छा व्यक्ति नहीं है। वह अच्छी बातें कहता और उसके कार्यों में कोई समस्या नहीं लगती है, लेकिन उसके सार को उजागर करने से, अब यह स्पष्ट है कि वह वास्तव में एक मसीह विरोधी है।” लोगों के विचारों में बदलाव को देखा जाए, तोजब अगुआ और कार्यकर्ता मसीह-विरोधियों को उजागर करने का कार्य कर रहे होते हैं, तो वे मसीह-विरोधियों को परमेश्वर के चुने हुए लोगों को गुमराह करने और बाधित करने से यथासंभव रोक रहे होते हैं। बेशक, वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को मसीह-विरोधियों के नियंत्रण और गंभीर नुकसान से बचाने की जिम्मेदारी भी पूरी कर रहे हैं। वे अपनाएक कार्य व्यावहारिक तरीके से कर रहे हैं। यह कौन-सा कार्य है? मसीह-विरोधियों को उजागर करना। मसीह-विरोधियों को उजागर करने का कार्य अगुआओं और कार्यकर्ताओं के उन कार्यों में से एक है जिसे परमेश्वर के चुने हुए लोगों की रक्षा करने के लिए उन्‍हें करना चाहिए। जहाँ तक उन विभिन्न कार्यों की बात है जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को करने चाहिए, तो हम उन्हें उनके पैमाने या उनके द्वारा प्राप्त नतीजोंके आधार पर क्रमबद्ध नहीं करेंगे; आओ पहले “उजागर करने” के कार्य पर संगति करें। मसीह-विरोधियों के प्रकृति सार को उजागर करने में ये चीजें शामिल हैं : उनके निरंतर बुरे कर्मों के इरादों, उद्देश्यों और परिणामों को उजागर करना जो कलीसिया के कार्य को अस्त-व्यस्त करते हैं; यह उजागर करना कि कैसे मसीह-विरोधी, अगुआओं और कार्यकर्ताओं के रूप में सेवा करते हुए, कलीसिया का कोई वास्तविक कार्य बिल्कुल नहीं करते हैं और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश की उपेक्षा करते हैं; ऐसे लोगों के रूप में मसीह-विरोधियों के बदसूरत चेहरे को उजागर करना जो खुद को बिल्कुल भी नहीं जानते, कभी भी सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं, और लोगों को गुमराह करने के लिए केवल शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलते हैं; और लोगों के सामने और उनकी पीठ पीछे उनकी अलग-अलग बातों और क्रियाकलापों को उजागर करना। इन पहलुओं को पूरी तरह उजागर करना शैतानों और दानवों के रूप में मसीह-विरोधियों का असली रूप दिखाता है। यह एक महत्वपूर्ण कार्य है जिसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को जरूर करना चाहिए। तो इस कार्य को करने के लिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं के पास क्या होना चाहिए? सबसे पहले, उनमें दायित्व की कुछ भावना होनी चाहिए, है न? (हाँ।) अगुआ और कार्यकर्ता इस जिम्मेदारी को उठाते समय अक्सर सोचते हैं, “वह व्यक्ति एक मसीह-विरोधी है। कुछ भाई-बहन अक्सर सवाल लेकर उसके पास जाते हैं, हमेशा उसके करीब आते हैं और उसके साथ एक अच्छा रिश्ता बनाए रखते हैं। इस व्यक्ति द्वारा गुमराह किए जाने के बाद, कई लोग विशेष रूप से उसे पूजते हैं। इस बारे में क्या किया जाना चाहिए?” वे प्रार्थना करने के लिए परमेश्वर के सामने आते हैं और अक्सर सचेत होकर मसीह-विरोधियों को उजागर करने वाले परमेश्वर के वचनों को ढूँढ़ते हैं, इस संबंध में खुद को सत्य से सुसज्जित करते हैं। फिर वे परमेश्वर से सही समय कीतैयारी करने के लिए कहते हैं या वे इस मामले में भार्इ-बहनों के साथ संगति करने के लिए खुद उपयुक्त समय और अवसर की तलाश करते हैं। वे इसे अपना दायित्व और एक महत्वपूर्ण कार्य मानते हैं जिसे उन्हें आगे करना है। वे लगातार तैयारी कर रहे हैं, प्रयास कर रहे हैं, और मार्गदर्शन के लिए परमेश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं; वे हमेशा इस तरह की मनःस्थिति और हालात में रहते हैं। दायित्व की समझहोने का यही मतलब है। कुछ समय तक इस तरह के दायित्व के साथ तैयारी करने के बाद, उन्हें तब तक इंतजार करना चाहिए जब तक कि परिस्थितियाँ अनुकूल न हो जाएँ। कम से कम, उन्हें तब तक इंतजार करना चाहिए जब तक कि दो या तीन लोगों को मसीह-विरोधियों की वास्तविक समझ न हो जाए, उसके बाद ही वे उन्हें उजागर करना शुरू कर सकते हैं। अगर वे सिर्फ अपनी भावनाओं के आधार परयह तय करते हैं कि कोई व्यक्ति मसीह-विरोधी लगता है, लेकिन वे यह नहीं देख पाते कि वह व्यक्ति वास्तव में मसीह-विरोधी है या नहीं, तो उन्हें जल्दबाजी में कोई काम नहीं करना चाहिए। संक्षेप में, इस कार्य को करते समय, उन्हें निश्चित रूप से परमेश्वर का प्रबोधन और मार्गदर्शन प्राप्त होगा। यही वास्तविक कार्य करने और अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों को पूरा करने का मतलब है।

II. काट-छाँटकरना

मसीह-विरोधियों को उजागर करने का कार्य पूरा हो जाने के बाद, भाई-बहनों को कुछ समझ तो आ जाती है, लेकिन मसीह-विरोधियों को पूरी तरह से सामने लाए जानेसे पहले, वे अनिवार्य रूप से भाई-बहनों को गुमराह और बाधित करने के लिए और अधिक काम करते हैं, जिससे ज्यादा लोग उन्हें पूजते हैं, उनकी प्रशंसा करते हैं और उनका अनुसरण करते हैं। इससे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को परमेश्वर में विश्वास रखने के सही मार्ग में प्रवेश करने में बहुत विलंब हो जाता है, जो उनके जीवन प्रवेश में बाधा डालता है और बहुत नुकसान पहुँचाता है। दूसरा कार्य जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को करना चाहिए, वह यह है कि जब मसीह-विरोधी भाई-बहनों को गुमराह और बाधित करते हैं, या जब उनकी कथनी और करनी से स्पष्ट रूप से सत्य सिद्धांतों का उल्लंघन होता है, तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सबूतों को जब्त करना चाहिए और तुरंत उनकी काट-छाँट करने के लिए आगे आना चाहिए, और परमेश्वर के वचनों के अनुसार उनके बुरे कर्मों को उजागर करना चाहिए, ताकि भाई-बहन मसीह-विरोधियों के असली चेहरे का भेद पहचान सकें और असलियत जान सकें। यह परमेश्वर के चुने हुए लोगों की रक्षा करने और परमेश्वर के घर के कार्य की सुरक्षा करने की जिम्मेदारी है जिससे बचा नहीं जा सकता। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को चुपचाप आराम से नहीं बैठना चाहिए या आँखें नहीं मूंद लेनी चाहिए; उन्हें तुरंत अवसरों का लाभ उठाना चाहिए, घटनाओं को चिन्हित करना चाहिए, और मसीह-विरोधियों की काट-छाँट करने के लिए आगे आना चाहिए, उनके क्रियाकलापों, महत्वाकांक्षाओं, इच्छाओं और सार को एकदम सही ढंग से उजागर करना चाहिए। बेशक, यह भी अधिकसही ढंग से चित्रित करना आवश्यक है कि मसीह-विरोधी किस प्रकार के व्यक्ति हैं, ताकि भाई-बहन इसे स्पष्ट रूप से देख सकें, ताकि मसीह-विरोधी स्वयं इसे जान सकें, और मसीह-विरोधी इस बात से अवगत हों कि हर कोई उनके बारे में नासमझ नहीं है और उनके द्वारा मूर्ख नहीं बनाया जा सकता है—कम से कम कुछ लोग उनके क्रियाकलापों और व्यवहार की असलियत जान सकें और उनकी छिपी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं, और साथ ही उनके सार की भी असलियत जान सकें। बेशक, मसीह-विरोधियों की काट-छाँट करने का उद्देश्य, केवल शब्दों के माध्यम से उनके सार को उजागर करना नहीं है। इससे भी महत्वपूर्ण बात है कि यह क्या है? (सबसे पहले, यह भाई-बहनों को समझ विकसित करने में मदद करता हैऔर मसीह-विरोधियों के बुरे कर्मोंको रोकता है।) सही कहा। यह उन्हें रोकने के लिए है, ताकि जब वे लोगों को गुमराह और बाधित करने वाले काम करें, तो उन्हें कुछ संकोच हो और कुछ डर महसूस हो; यह उन पर प्रतिबंध लगाने, कुछ अंकुश लगाने, और लापरवाही से काम करने की हिम्मत न करने देने के लिए है; उन्हें यह बताने के लिए है कि परमेश्वर के घर में न केवल सत्य है, सत्य की सत्ता है, बल्कि प्रशासनिक आदेश भी हैं, और परमेश्वर के घर में अत्याचारी और मनमाने ढंग से लापरवाही से काम करना, परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचाना और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नुकसान पहुँचाना संभव नहीं है; और उन्हें यह भी बताना है कि उन्हें कलीसिया के काम को बाधित करने और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश को नुकसान पहुँचाने वाले लापरवाही से किए गए गलत काम करने के लिए जवाबदेह ठहराया जाएगा। मसीह-विरोधियों की तुरंत काट-छाँट करते समय, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उन्हें उजागर करने के लिए भी खड़ा होना चाहिए, लोगों को समझ विकसित करने और मसीह-विरोधियों की महत्वाकांक्षाओं, इच्छाओं, इरादों और उद्देश्यों की असलियत जानने में मदद करनी चाहिए। बेशक, यह भी परमेश्वर के चुने हुए लोगों की रक्षा करने और परमेश्वर के घर के हितों की सुरक्षा करने के लिए है। इन सभी विचारों को अगुआओं और कार्यकर्ताओं को ध्यान में रखना चाहिए, और इस कार्य को पूरा करना उनकी जिम्मेदारियों के दायरे में है; वे इसे नजरअंदाज नहीं कर सकते या इसके बारे में लापरवाह नहीं हो सकते। अगर अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कलीसिया में मसीह-विरोधियों का पता चलता है, तो उन्हें हमेशा उनकी कथनी-करनी और पर्दे के पीछे उनके द्वारा फैलाई जाने वाली भ्रांतियों के बारे में सतर्क रहना चाहिए, और उन्हें उनकी काट-छाँटकरने और उन्हें उजागर करने का अभ्यास करना चाहिए। अगुआओं और कार्यकर्ताओं का यह कार्य है कि वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को मसीह-विरोधियों द्वारा बाधित किए जाने और नुकसान पहुँचाए जाने से बचाएँ।

III. गहन-विश्लेषण करना

अगुआओं और कार्यकर्ताओं का अगला काम क्या है? गहन-विश्लेषण करना। गहन-विश्लेषण करना लगभग उजागर करने के समान है, लेकिन दोनों के स्तर में अंतर हैं। जब गहन-विश्लेषण करने की बात आती है, तो यह केवल एक तथ्य, वास्तविक स्थिति या पृष्ठभूमि को उजागर करने के बारे में नहीं है; इसमें चरित्र-चित्रण का मुद्दा शामिल है, यानीइसमें मसीह-विरोधियों का स्वभाव शामिल है, जो अनिवार्य, मूल मुद्दा है। परमेश्वर, सत्य, उनके कर्तव्य और परमेश्वर के घर के कार्य के प्रति उनके रवैये, साथ ही भ्रम फैलाने के पीछे की उनकी मंशाओं, इरादों और उद्देश्य का गहन-विश्लेषण करें—वे ऐसा क्यों करते हैं—और उनके विचारों, दृष्टिकोणों, भाषण, क्रियाकलापों और उनके द्वारा प्रकट किए गए स्वभावों और अभिव्यक्तियों के माध्यम से उनके सार का भेद पहचानें। इनकी तुलना परमेश्वर के वचनों से की जानी चाहिए और समझाया जाना चाहिए ताकि भाई-बहन मसीह-विरोधियों के बारे में गहरी समझ प्राप्त कर सकें और व्यावहारिक परिप्रेक्ष्य से स्पष्ट रूप से देख सकें कि उनके पहले के मसीह-विरोधी ये बातें क्यों कहते और करते हैं, ऐसे लोगों के बारे में परमेश्वर का परिप्रेक्ष्य क्या है और वह उन्हें कैसे चित्रांकित करता है। बेशक, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को भाई-बहनों को यह भी बताना चाहिए कि वे मसीह-विरोधियों से खुद को दूर रखें और उन्हें अस्वीकार करें, और मसीह-विरोधियों के क्रियाकलापों, व्यवहारों, भाषण और दृष्टिकोणों से गुमराह होने के प्रति भी सतर्क रहें, ताकि परमेश्वर को गलत समझने, परमेश्वर से सावधान रहने, परमेश्वर से खुद को दूर रखने, परमेश्वर को अस्वीकार करने और यहाँ तक कि मसीह-विरोधियों की तरह परमेश्वर की आलोचना करने और उसकी निंदा करने से बचें। उजागर करने और काट-छाँटकरने जैसे अन्य कार्यों की तरह, गहन-विश्लेषणकरने का उद्देश्य मसीह-विरोधियों को परमेश्वर के चुने हुए लोगों को गुमराह करने, बाधित करने और नुकसान पहुँचाने से रोकना है। यह परमेश्वर के चुने हुए लोगों को मसीह-विरोधियों द्वारा गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाए जाने से और परमेश्वर में विश्वास रखने के सही मार्ग से भटकने से बचाने के लिए है। जब परमेश्वर के चुने हुए लोग स्पष्ट रूप से तथ्यों और वास्तविक स्थिति को देखते हैं कि मसीह-विरोधी किस तरह से कलीसिया को बाधित करते हैं और मसीह-विरोधियों के सार को स्पष्ट रूप से देखते हैं, तो वे अब उनके द्वारा गुमराह और नियंत्रित नहीं होंगे। भले ही कुछ भ्रमित और मूर्ख लोग अभी भी अंदर से उनकी प्रशंसा करते और उन्हें पूजते हैं, उनके साथ बातचीत करते हैं और उनके करीब आते हैं, फिर भी मसीह-विरोधी अब बड़ी समस्याएँ पैदा नहीं कर सकते। ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास रखने वाले लोगों के जीवन प्रवेश को प्रभावित किए बिना वे मूर्ख लोगों के साथ केवल कुछ चीजेंकरेंगे, और इस प्रकार, वे कलीसिया के काम को अस्त-व्यस्तनहीं कर पाएँगे। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इस स्तर तक पहुँचने में सक्षम होना चाहिए। यानीउन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जो लोग ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास रखते हैं और स्वेच्छा से अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं और जो सत्य से प्रेम करते हैं वे एक सामान्य कलीसियाई जीवन जी सकते हैं और अपने कर्तव्यों को पूरा कर सकते हैं। साथ ही, उन्हें यह भी सुनिश्चित करने में सक्षम होना चाहिए कि ये लोग मसीह-विरोधियोंद्वारा गुमराहऔर बाधित किए जानेसे सतर्क रहेंगेऔर मसीह-विरोधियों को अस्वीकार कर सकेंगे। यह मसीह-विरोधियों के बुरे कामों और बाधाओं को काफी हद तक रोक कर परमेश्वर के चुने हुए लोगों को बचाने के प्रभाव को पूरी तरह से प्राप्त करना है। बेशक, चाहे तुम अपना काम कितने भी प्रभावी ढंग से करो और तुम कितनी भी अच्छी तरह से बोलो, निश्चित रूप से कुछ मूर्ख लोग, कम काबिलियत वाले और भ्रमित लोग होंगे जो मसीह-विरोधियों को अस्वीकार नहीं कर सकते और अभी भी अपने दिल में उनकी प्रशंसा करेंगे और उनका सम्मान करेंगे। हालाँकि, अधिकांश लोग उस हद तक पहुँच चुके होंगे जहाँ वे मसीह-विरोधियों को अस्वीकार कर सकते हैं। यदि अगुआ और कार्यकर्ता ऐसा कर सकते हैं, तो वे पूरी तरह से वांछित परिणाम प्राप्त करके, पहले से ही परमेश्वर के चुने हुए लोगों को काफी हद तक बचा चुके होंगे। जहाँ तक उन मंद बुद्धि लोगों का सवाल है जो सत्य को नहीं समझ सकते, चाहे जैसे भी संगति की जाए, अगर वे अभी भी थोड़ा परिश्रम कर सकते हैं, तो उन्हें थोड़ी देखरेख और मदद देने के साथ ही थोड़ा और प्यार, धैर्य और सहनशीलता भी दिखानी चाहिए। यह वो सब कुछ है जो व्यक्ति को करना चाहिए और इस तरह से काम करना सिद्धांत के हिसाब सेसही है। क्या ऐसे बहुत-से अगुआ और कार्यकर्ता हैं जो इस मानक को पूरा कर सकते हैं? (नहीं।) इसलिए, अधिकतम प्रयास किया जाना चाहिए; तुम्हें अथक प्रयास करके और जितना अधिक हो सके परमेश्वर के चुने हुए लोगों को बचाना चाहिए। “जितना अधिक हो सके” का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि तुम जो सत्य सिद्धांत समझते हो, उन पर संगति करने के लिए हर संभव प्रयास करना, पहले से प्राप्त सबूत प्रस्तुत करना—मसीह-विरोधियों के बुरे कर्मों की विभिन्न अभिव्यक्तियाँ—मसीह-विरोधियों को उजागर करनेवाले परमेश्वर के उन वचनों से सह-संबंधित करना, और उनकी संगति करना और उनका गहन-विश्लेषण करना। ऐसा इसलिए है ताकि भाई-बहन तथ्यात्मक, वास्तविक स्थिति को स्पष्ट रूप से देख सकें, मसीह-विरोधियों के सार का भेद पहचान सकें और उसकी असलियत जान सकें, और मसीह-विरोधियों के प्रति परमेश्वर के रवैये को जान सकें। यह एक महत्वपूर्ण कार्य है जिसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को करना चाहिए।

IV. प्रतिबंध लगाना

अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कौन-सा अगला काम करना चाहिए? यह है प्रतिबंध लगाना। “प्रतिबंध लगाने” का यह काम करना आसान है; इसमें प्रतिबंध लगाने के नतीजे को प्राप्त करने के लिए कुछ विशेष उपाय अपनाना शामिल है। उदाहरण के लिए, मसीह-विरोधी सभाओं के दौरान हमेशा शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलते हैं, हमेशा अपनी बड़ाईकरते हैं, कभी-कभी दूसरों को नीचा दिखाते हैं, अक्सर इस बात की गवाही देते हैं कि उन्होंने कितना कष्ट सहा है और परमेश्वर के घर में उन्होंने क्या योगदान दिया है, और दूसरे लोग कैसे उनकी प्रशंसा करते हैं, वे दूसरों से कैसे बेहतर हैं, वे कैसे अनूठे हैं, इत्यादि के बारे में बात करते हुए, बेशर्मी से खुद की गवाही देते हैं। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को मसीह-विरोधियों के विभिन्न बुरे कर्मोंको प्रतिबंधित करने की पूरी कोशिश करनी चाहिए जो परमेश्वर के चुने हुए लोगों को गुमराह और नियंत्रित करते हैं, बजाय इसके कि वे लगातार उन्हें बढ़ावा दें। उन्हें उनकेबोलने के समय और चर्चा के विषयों को प्रतिबंधित करना चाहिए। इसके अतिरिक्त, मसीह-विरोधियों के सार्वजनिक और निजी दोनों तरह के क्रियाकलापों के संबंध में, जैसेकि लोगों को अपने पक्ष में करने के लिए छोटे-मोटे उपकार करना, कलह के बीज बोना, धारणाएँ और नकारात्मक टिप्पणियाँ फैलानाइत्यादि, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को बहरे या अंधे की तरहकार्य नहीं करना चाहिए। उन्हें तुरंत मसीह-विरोधियों के क्रियाकलापों को समझ लेना चाहिए; जैसे ही उन्हें दूसरों को गुमराह और बाधित करने वाले व्यवहारों का पता चलता है, उन्हें तुरंत इन व्यवहारों को उजागर करना चाहिए और इनका गहन-विश्लेषण करना चाहिए और मसीह-विरोधियों पर प्रतिबंध लगाने चाहिए, उन्हें लोगों को गुमराह करने और कलीसिया के काम में बाधा डालने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। क्या यह उन महत्वपूर्ण कार्यों में से एक है जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को करनाचाहिए? (हाँ।) क्या तुम मसीह-विरोधियों के बुरे कर्मोंको सिर्फ उनकी काट-छाँट करके, उन्हें उजागर करकेऔर उनका गहन-विश्लेषण करके प्रतिबंधित कर सकते हो? (नहीं।) तुम उन्हें इस तरह से प्रतिबंधित नहीं कर सकते क्योंकि वे शैतान और दानव हैं। जब तक उनके हाथ-पैर बंधे नहीं हैं, और उनके मुंह बंद नहीं हैं, वे भ्रांतियाँ फैलाएँगे और शैतानी शब्द बोलेंगे जो लोगों को बाधित करते हैं। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उन्हें प्रतिबंधित करने के लिए तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए; खासकर जब वे लोगों को गुमराह करने और बाधित करने के लिए भ्रांतियाँ फैलाते हैं, तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को समय रहते उन्हें रोकना चाहिए। उन्हें परमेश्वर के चुने हुए लोगों को समझ रखने और मसीह-विरोधियों का असली चेहरा स्पष्ट रूप से देखने में सक्षम बनाना चाहिए। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यह वास्तविक कार्य चाहिए।

V. निगरानी करना

मसीह-विरोधियों पर प्रतिबंध लगाने के बाद, अगला काम उनकी निगरानी करना है। देखो कि मसीह-विरोधियों ने किसे गुमराह किया है और पर्दे के पीछे उन्होंने कौन-सी भ्रांतियाँ और शैतानी बातें फैलाई हैं, जाँच करोकि क्या वे बड़े लाल अजगर का पक्ष ले रहे हैं और उसके साथ मिलकर काम कर रहे हैं, क्या उन्होंने धार्मिक समुदाय के साथ गठजोड़ किया है, क्या वे अपने गिरोह के सदस्यों के साथ गुप्त रूप से अवैध गतिविधियाँ कर रहे हैं, क्या वे परमेश्वर के घर के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी दूसरों को देकर विश्वासघात कर सकते हैं, इत्यादि। यह भी एक जिम्मेदारी है जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को निभानी चाहिए। मसीह-विरोधियों के क्रियाकलाप सामने आने से पहले, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को “संतों की पुस्तकों का अध्ययन करने में पूरी तरह से खुद को समर्पित नहीं करना चाहिए और बाहरी मामलों पर कोई ध्यान नहीं देना चाहिए,” बल्कि साँपों की तरह चतुर होना चाहिए। एक बार जब अगुआओं और कार्यकर्ताओं को पता चलता है कि कोई व्यक्ति मसीह-विरोधी है, अगर उस व्यक्ति को बाहर निकालने या निष्कासित करने का समय अभी नहीं आया है, तो उन्हें उसे बुराई करने से रोकने के लिए उसकी बारीकी से निगरानी करनी चाहिए, और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसकी कथनी और करनी की निगरानी परमेश्वर के चुने हुए लोगों द्वारा की जाए। क्योंकि मसीह-विरोधी सत्ता और शक्तिशाली लोगों के साथ संबंध बनाना पसंद करते हैं, इसलिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इस बात पर बारीकी से नजर रखनी चाहिए कि मसीह-विरोधी पर्दे के पीछे किन लोगों के साथ बातचीत करते हैं और क्या वे धार्मिक लोगों के संपर्क में हैं। कुछ मसीह-विरोधी अक्सर धार्मिक पादरियों और एल्डर्स के साथ जुड़ते हैं, और कुछ तो यूनाइटेड फ्रंट वर्क डिपार्टमेंट के लोगों से भी मिलते-जुलते हैं। जब ऐसी घटनाएँ होती हैं, तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इस पर आँखें मूंदकर नहीं बैठना चाहिए, बल्कि मसीह-विरोधी लोगों के खिलाफसतर्क और सावधान रहना चाहिए। अगर कोई मसीह-विरोधी देखता है कि लोगों को गुमराह करने और अपनी तरफ आकर्षित करने के उनके तरीके परमेश्वर के घर में काम नहीं करते हैं और उनके बुरे कर्मउजागर हो गए हैं, और उन्हें पता है कि उनका अंत अच्छा नहीं होगा, तो तुम यह अनुमान नहीं लगा सकते कि वे क्या कर सकते हैं या उनकी बुराई किस हद तक जा सकती है। इसलिए, एक बार जब तुम अपने दिल में निश्चित हो जाओ कि कोई मसीह-विरोधी है, तो तुम्हें बिना रुके उसकी निगरानी करनी चाहिए और उसपर नजर रखनी चाहिए। यह तुम्हारी जिम्मेदारी है। ऐसा करने का क्या मतलब है? यह परमेश्वर के चुने हुए लोगों को बचाना, और जहाँ तक हो सके मसीह-विरोधी लोगों को भाई-बहनों को नुकसान पहुँचाने के लिए कलीसिया और भाई-बहनों के खिलाफ गलत काम करने से रोकना है। कुछ मसीह-विरोधी हमेशा चढ़ावे के बारे में पूछते हैं : “परमेश्वर के घर के पैसे का प्रबंधन कौन करता है? हिसाब-किताब कौन रखता है? क्या हिसाब-किताब सही तरीके से रखा जाता है? क्या यह संभव है कि गबन हो रहा हो? कलीसिया का पैसा कहाँ रखा जाता है? क्या इन चीजों को सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए, ताकि हर किसी को इनके बारे में जानने का अधिकार मिल सके? परमेश्वर के घर में कितनी संपत्तियाँ हैं? सबसे ज्यादा दान किसने दिया है? मुझे ये बातें क्यों नहीं पता?” उनकी बातों से ऐसा लगता है कि वे परमेश्वर के घर के वित्तीय मामलों के बारे में चिंतित हैं, लेकिन वास्तव में, उनकी मंशा कुछ और है। ऐसा एक भी मसीह-विरोधी नहीं है जो पैसे का लालच न करता हो। तो ऐसे मामलों में अगुआओं और कार्यकर्ताओं को क्या करना चाहिए? सबसे पहले, तुम्हें चढ़ावे का उचित प्रबंधन करना चाहिए, उन्हें सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी विश्वसनीय लोगों को सौंपनी चाहिए, और तुम्हें मसीह-विरोधियों को उनके उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल नहीं होने देना चाहिए—तुम्हें इस बिंदु पर भ्रमित नहीं होना चाहिए। जैसे ही इस तरह की स्थिति उत्पन्न होती है, तुम्हें एहसास होना चाहिए : “कुछ तो गड़बड़ है। मसीह-विरोधी कुछ करने जा रहा है। वहकलीसिया के पैसे को निशाना बनाएगा। वह कलीसिया के पैसे को जब्त करने के लिए बड़े लाल अजगर के साथ गठजोड़ करने की योजना बना रहा होगा। हमें इसे तुरंत दूसरी जगह भेजना होगा!” एक बात तो यह है कि तुम मसीह-विरोधियों को यह नहीं बता सकते कि परमेश्वर के घर के वित्त का प्रबंधन कौन करता है। इसके अलावा, अगर पैसे का प्रबंधन करने वाले लोगों को लगता है कि कोई सुरक्षा जोखिम है, तो पैसे और इसे प्रबंधित करने वाले लोगों दोनों को जल्दी से दूसरी जगह भेज दिया जाना चाहिए। क्या यह ऐसा कुछ नहीं है जिसके बारे में अगुआओं और कार्यकर्ताओं को खुद चिंतित होना चाहिए और क्या यही वह कार्य नहीं है जो उन्हें करना चाहिए? (हाँ।) इसके विपरीत, मूर्ख अगुआ मसीह-विरोधियों को ये बातें कहते हुए सुनते हैं और फिर भी वे सोचते हैं, “यह व्यक्ति दायित्व उठाता है और परमेश्वर के घर के पैसे की चिंता करना जानता है, इसलिए चलो उसेकुछ जिम्मेदारी दें और उसेहिसाब-किताब में मदद करने दें।” ऐसा करने से, क्या वे यहूदा नहीं बन गए हैं? (हाँ।) न केवल वे चढ़ावे की रक्षा करने में विफल रहे हैं, बल्कि प्रभावी रूप से यहूदा बनते हुए उन्होंने उस चढ़ावे को मसीह-विरोधियों के हाथोंबेच दिया है। तुम इन अगुआओं और कार्यकर्ताओं के बारे में क्या सोचते हो? क्या वे बुरे लोग नहीं हैं? क्या वे दानव नहीं हैं? वे न केवल अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने में विफल रहे हैं, बल्कि उन्होंने परमेश्वर के चढ़ावे और भाई-बहनों को भी मसीह-विरोधियों को सौंप दिया है। इसलिए, जहाँ मसीह-विरोधी हैं, वहाँ अगुआओं और कार्यकर्ताओं को एक बार इसका कोई सुराग मिल जाए, तो उन्हें छानबीनशुरू करनी चाहिए और कुछ विशिष्ट कार्य करना चाहिए, जिसके भीतर “निगरानी करने” का कार्य अपरिहार्य है।

अगुआओं और कार्यकर्ताओं द्वारा किया जाने वाला निगरानी का कार्य कोई जासूसी करना या जासूसी गतिविधियाँ करना नहीं है; यह केवल अपनी जिम्मेदारी को पूरा करना, अधिक चिंतित होना, ध्यान से निरीक्षण करनाऔर यह जानना है कि मसीह-विरोधी क्या कर रहे हैं और क्या करने का इरादा रखते हैं। यदि तुम्हें उनके द्वारा कोई बुराई करने और कलीसिया को बाधित करने के कोई संकेत मिलते हैं, तो तुम्हें जल्द से जल्द निवारक उपाय करने चाहिए; तुम उन्हें बिल्कुल भी सफल होने नहीं दे सकते। यह मसीह-विरोधी लोगों द्वारा की जाने वाली उन घटनाओं को काफी हद तकरोकना है जो कलीसिया के काम को बाधित करती हैं। स्वाभाविक रूप से, यह कलीसिया के काम की सबसे अच्छी सुरक्षा भी करता है और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को बचाता है। यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं द्वारा अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने की एक अभिव्यक्ति है। निगरानी करने का मतलब गुप्त एजेंट के रूप में काम करने के लिए कुछ लोगों की व्यवस्था करना और उन्हें जासूसों की तरह लोगों के पीछे लगाना, उनका पीछा करना और उनकी निगरानी करना या उनके घरों की तलाशी लेना और पूछताछ के गंभीर तरीकों का इस्तेमाल करना नहीं है। परमेश्वर का घर ऐसी गतिविधियों में शामिल नहीं होता है। लेकिनतुम्हें तुरंत मसीह-विरोधी लोगों की स्थिति को समझना चाहिए। तुम उनके परिवार के सदस्यों या भाई-बहनों से बात करके उनकी हाल की स्थिति के बारे में पूछताछ कर सकते हो जो उनका भेद पहचान सकते हैं या उनसे परिचित हैं। क्या ये सभी इस कार्य को करने की पद्धतियाँ और तरीके नहीं हैं? यदि अगुआ और कार्यकर्ता उन कार्यों को करते हैं जो उनकी जिम्मेदारियों के दायरे में आते हैं और परमेश्वर द्वारा अपेक्षित सिद्धांतों के अनुरूप हैं, तो वे अपनी जिम्मेदारियों को पूरा कर रहे हैं। अगुआओं और कार्यकर्ताओं द्वारा अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने का उद्देश्य क्या है? यह तुम पर निर्भर है कि तुम यथासंभव वह सब करो जिससे मसीह-विरोधियों को विघ्न-बाधाएँ डालने से रोका जा सके, जिससे मसीह-विरोधियों को परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नुकसान पहुँचाने और परमेश्वर के घर के हितों के साथ सौदा करने से रोका जा सके। यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है। क्या यह काफी हद तक मसीह-विरोधी घटनाओं को होने से नहीं रोकता है? क्या अगुआ और कार्यकर्ता जो ये कार्य करते हैं, वे वह सब नहीं कर रहे हैं जो मानवीय रूप से संभव है? (हाँ।) क्या ऐसा करना मुश्किल है? (नहीं।) यह मुश्किल नहीं है; यह कुछ ऐसा है जिसे सत्य समझने वाले लोग हासिल कर सकते हैं। लोग जो हासिल कर सकते हैं, उसे पूरा करने के लिए उन्हें अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करना चाहिए; बाकी सब परमेश्वर के हाथों में है कि वह अपनी संप्रभुता का प्रयोग करे, उसे आयोजित करे और उसका मार्गदर्शन करे। हमें इस बारे में सबसे कम चिंता करनी है। हमारे पीछे परमेश्वर है। न केवल हमारे दिलोंमें परमेश्वर है, बल्कि हमारे पास सच्ची आस्था भी है। यह कोई आध्यात्मिक सहारा नहीं है; वास्तव में, परमेश्वर दिखाई नहीं देता लेकिन वह सदा लोगों को देखता रहता है और उनकी रक्षा करता है, और वह लोगों के साथ है, हमेशा उनके पास मौजूद होता है। जब भी लोग कुछ करते हैं या कोई कर्तव्य निभाते हैं, तो वह देख रहा होता है; वह किसी भी समय और स्थान पर तुम्हारी मदद करने, तुम्हारी रक्षा करने और तुम्हें बचाने के लिए मौजूद होता है। लोगों को बस इतना करना चाहिए कि उन्हें जो करना चाहिए उसे पूरा करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करें। अगर तुम परमेश्वर के वचनों से अवगत हो जाते हो, उन्हें अपने दिल में महसूस करते होऔर उन्हें समझते हो, तुम्हारेआस-पास के लोग तुम्हेंयाद दिलाते हैं या परमेश्वर द्वारा तुम्हें कोई संकेत या शकुन दिया जाता है जो तुम्हें जानकारी प्रदान करता है—यह कुछ ऐसा है जो तुम्हें करना चाहिए, यह परमेश्वर का तुम्हें दिया गया आदेश है—तो तुम्हें अपनी जिम्मेदारी पूरी करनीचाहिए और निष्क्रिय होकर नहीं बैठना चाहिए या किनारे खड़े होकर इसे नहीं देखना चाहिए। तुम रोबोट नहीं हो; तुम्हारे पास दिमाग और विचार हैं। जब कुछ होता है, तो तुम्हें बिल्कुल पता होता है कि तुम्हें क्या करना चाहिए, और तुम्हारे पास निश्चित रूप से भावनाएँ और जागरूकता होती है। इसलिए इन भावनाओं और जागरूकता को वास्तविक स्थितियों पर लागू करो, उन्हें अपने क्रियाकलापों में तब्दील करो, और इस तरह, तुमने अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली होगी। जिन चीजों के बारे में तुम जान सकते हो, उनके लिए तुम्हें उन सत्य सिद्धांतों के अनुसार अभ्यास करना चाहिए जिन्हें तुम समझते हो। इस तरह, तुम अपना सर्वश्रेष्ठ कर रहे हो और अपना कर्तव्य निभाने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर रहे हो। एक अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में, जब तुम अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करते हो, यानीजब तुम मसीह-विरोधियों के बुरे कर्मोंको काफी हद तक होने से रोक देते हो, तो परमेश्वर संतुष्ट होगा कि तुम इस तरह से अभ्यास कर सकते हो। परमेश्वर संतुष्ट क्यों होगा? परमेश्वर ऐसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं के बारे में यह निर्धारणकरेगा : वे अपनी जिम्मेदारियों को पूरा कर रहे हैं और अपनी भूमिका में निहित कार्य को करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर रहे हैं। क्या यह परमेश्वर की स्वीकृति है? (हाँ, है।)

VI. निष्कासित करना

अगुआओं और कार्यकर्ताओं की तेरहवीं जिम्मेदारी में विशेष कार्य शामिल हैं जो उन्हें पूरे करने होते हैं, जिनमें से कई कार्यों को हमने सूचीबद्ध किया है : उन्हें मसीह-विरोधियों को उजागर करने, उनकी काट-छाँट करने, उनका गहन-विश्लेषण करने, उन्हें प्रतिबंधित करने और उनकी निगरानी करने का अभ्यास करना चाहिए। इन बुनियादी सिद्धांतों पर संगति पूरी हो चुकी है। विशेष स्थितियों में अगुआ और कार्यकर्ता चाहे जो भी विशिष्टकार्य करें, मसीह-विरोधियों से निपटने के सिद्धांतों में कोई बदलाव नहीं होता है। इसके अलावा, इन कार्यों का मुख्य उद्देश्य परमेश्वर के चुने हुए लोगों की रक्षा करना है। मान लोकि परमेश्वर के चुने हुए लोगों ने पहले ही सर्वसम्मति से किसी को मसीह-विरोधी के रूप में पहचान लिया है और यह भेद पहचान लिया है और भली-भाँति समझ लिया है कि मसीह-विरोधी हमेशा लोगों को गुमराह करने और नियंत्रित करने की कोशिश करता है; उन्हें पता है कि मसीह-विरोधी की उपस्थिति में न तो अच्छे दिन हो सकते हैं और न ही अच्छा कलीसियाई जीवन हो सकता है, और हर कोई सर्वसम्मति से मसीह-विरोधी को कलीसिया से निकाल दिए जाने की माँग करता है। ऐसी परिस्थितियों में, यदि कुछ अगुआ और कार्यकर्ता अभीभी मसीह-विरोधी को रहने देने का समर्थन करते हैं ताकि वे मसीह-विरोधियों को उजागर करने, उनकी काट-छाँट करने, उनका गहन-विश्लेषण करने, उन्हें प्रतिबंधित करने और उनकी निगरानी करने का अभ्यास करने के लिए प्रशिक्षण के रूप में उनका उपयोग कर सकें—तो क्या इन प्रक्रियाओं को पूरा करने की अभी भी आवश्यकता है? हो सकता है कुछ अगुआ और कार्यकर्ता कहें, “यदि हम इन प्रक्रियाओं को पूरा नहीं करते, तो क्या मैं अपनी जिम्मेदारियों की उपेक्षा नहीं करूँगा? केवल इन प्रक्रियाओं को पूरा करने से अगुआ के रूप में मेरी भूमिका स्पष्ट होती है। मुझे इस कार्य को अवश्य करना चाहिए। चाहे भाई-बहनों की सहमति हो या नहीं, मुझे पहले मसीह-विरोधी को रहने देना चाहिए। मैं पहले उन्हें उजागर करूँगा, फिर उनकी काट-छाँट और गहन-विश्लेषण करूँगा, और भाई-बहनों को यह पुष्टि करने दूँगा कि वे मसीह-विरोधी हैं। सर्वसम्मति से सहमति मिलने के बाद, हम उसे बाहर निकाल देंगे या निष्कासित कर देंगे। क्या यह तरीका अधिक प्रभावी नहीं होगा?” नतीजतन इस दौरान मसीह-विरोधी फिर से लोगों को गुमराह करने और कलीसिया के कार्य को बाधित करने के लिए धारणाएँ फैलाना शुरू कर देता है, जिससे सभी में दहशत फैल जाती है, और कुछ लोग तो सभाओं में आने से भी इनकार कर देते हैं। अपनी दृढ़ता दिखाने और यह साबित करने के लिए कि वे अपनी जिम्मेदारियों की अनदेखी नहीं कर रहे हैं, ये अगुआ और कार्यकर्ता केवल सतही तौर पर खानापूर्ति करते हैं और काम को किसी तरह घसीटते रहते हैं। नतीजतन, वे कई अनावश्यक चक्कर लगाते हैं, कलीसियाई जीवन की व्यवस्था कोबाधितकरते हैं, और परमेश्वर के चुने हुए लोगों का सत्य का अनुसरण करने में लगने वाला कीमती समय बर्बाद कर देते हैं, और बाद में मसीह-विरोधी को बाहर निकालदिया जाता है। क्या यह दृष्टिकोण स्वीकार्य है? (नहीं।) इसमें क्या गलत है? (यह केवल विनियमों का पालन करना और खानापूर्ति करना है।) अगुआओं और कार्यकर्ताओं द्वारा इन कार्यों को करने का क्या उद्देश्य है? (परमेश्वर के चुने हुए लोगों की रक्षा करना।) तो यदि कुछ लोगों ने अभी तक मसीह-विरोधी का भेद नहीं पहचाना है और वे अब भी उससे काफी जुड़े हुए हैं, और जब अगुआ और कार्यकर्ता मसीह-विरोधी को कलीसिया सेनिष्कासितकरने का निर्णय लेते हैं, तब कुछ लोग यह कहते हुए नाराज हो जाते हैं कि परमेश्वर का घर लोगों के साथ स्नेही या निष्पक्ष नहीं है, इसके काम करने के तरीके में सिद्धांतों का अभाव है, इत्यादि। यहाँ तक कि कुछ भ्रमित लोग मसीह-विरोधी द्वारा गुमराह और प्रभावित हो जाते हैं और कलीसिया छोड़ने के बाद उनका अनुसरण करने की इच्छा रखते हैं। इस स्थिति में क्या किया जाना चाहिए? इस समय, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कुछ अनिवार्य कार्य करना जरूरी होता है, जैसे कि मसीह-विरोधी कीकाट-छाँट करना और परमेश्वर के वचनों का उपयोग करके उन्हें उजागर करना और उनका गहन-विश्लेषण करना ताकि भाई-बहन व्यावहारिक रूप से सबक सीख सकें और अंततः मसीह-विरोधी का भेद पहचान सकें। एक दिन, वे कहते हैं, “यह व्यक्ति कितना घृणास्पद है। यह वास्तव में एक बुरा व्यक्ति और मसीह-विरोधी है। आओजल्दी से इसे शुद्ध करके बाहर निकालें!” यह केवल किसी एक व्यक्ति की आवाज नहीं है, बल्कि कई भाई-बहनों की सामूहिकआवाज है। ऐसी स्थिति में, क्या अभी भी मसीह-विरोधी कोप्रतिबंधित करनेऔरउसकी निगरानी करनेका कार्य करने की आवश्यकता है? नहीं, बस उसेसीधेनिष्कासितकर दो। जो अगुआ और कार्यकर्ता अपने कार्य में इस स्तर तक पहुँच जाते हैं, उन्होंने परमेश्वर के चुने हुए लोगों को मसीह-विरोधियों केनुकसानसे बचाने का नतीजा हासिल कर लिया है। यह क्या साबित करता है? एक तरफ, यह साबित करता है कि इस कलीसिया के भाई-बहनों में समझ, काबिलियत और न्याय की भावना है। दूसरी तरफ, यह हो सकता है कि अगुआ और कार्यकर्ता वास्तविक कार्य करने में सक्षम हैं, या यह कि इस मसीह-विरोधी के क्रियाकलाप बेहद स्पष्ट हैं, उसकी मानवताबेहद बुरी और दुष्ट है, जिसने जन आक्रोश को जन्म दिया है, और उसने खुद अपनी राह पहले ही अलग कर ली है, जिससे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उससे निपटने की प्रक्रिया में बहुत राहत मिली है। क्या इससे बहुत सारा परिश्रम नहीं बच जाता? ऐसी स्थिति में, उसेबाहर निकालना यानिष्कासितकरना अच्छी बात है, है ना? इसके अलावा, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को बहुत व्यापक कार्य करने होते हैं और उनके कार्य का दायरा केवल इस एक कार्य तक सीमित नहीं होता है। क्या तुमसोचते हो कि मसीह-विरोधी को निष्कासित करना ही इस समस्या का अंत है? तुम नेसब कुछ पूरी सफलता तक पहुँचा दिया है? ऐसा बिल्कुल नहीं है! तुम्हारेपास करने को अन्य कार्य भी हैं। मसीह-विरोधियों से निपटने और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को उनके द्वारा नुकसान पहुँचाए जाने से बचाने के अलावा, अनेक अन्य महत्वपूर्ण कार्यों के साथ अगुआओं और कार्यकर्ताओं की यह भी जिम्मेदारी है कि वे परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में परमेश्वर के चुने हुए लोगों की अगुआई करें, उनके भ्रष्ट स्वभाव का समाधान करने में उनकी अगुआई करें, और उनमें मसीह-विरोधी स्वभाव को भी ठीककरने में उनकी अगुआई करें। हालाँकि, अगर इन कार्यों को करते समय कोई मसीह-विरोधी दिखाई देता है, तो मसीह-विरोधी से निपटना सबसे बड़ी प्राथमिकता बन जाती है। उन्हें सबसे पहले मसीह-विरोधी को उजागरकरना और उससे निपटना चाहिए, और साथ ही सत्य के अन्य पहलुओं पर संगति भी करनी चाहिए। यदि मसीह-विरोधी की बाधा उत्पन्न होती है और अन्य कार्यों को आगे बढ़ाना अत्यंत कठिन हो जाता है, कार्य में रुकावट और हस्तक्षेप होता है, और मसीह-विरोधी भाई-बहनों के जीवन के विकास, कलीसियाई जीवन की व्यवस्था और कर्तव्य निभाने के परिवेशपर गंभीर असर डालता है, तो बेशक यह आवश्यक है कि पहले इस सबसे बड़े संकट और आपदा के मूल कारण से निपटा जाए। केवल मसीह-विरोधी को बाहर निकालनेऔर उससे निपटने के बाद ही अन्य कार्य सामान्य और व्यवस्थित रूप से आगे बढ़ सकते हैं। इसलिए, यदि किसी कलीसिया में कोई मसीह-विरोधी दिखाई देता है और भाई-बहन थोड़े ही समय में उसका भेद पहचान लेते हैं और सर्वसम्मति से कहते हैं, “भागो यहाँ से, मसीह-विरोधी!”, तो क्या इससे अगुआओं और कार्यकर्ताओं का बहुत सारा परिश्रम नहीं बच जाएगा? क्या तुम्हें मन-ही-मन खुश नहीं होना चाहिए? तुमशायद कहो, “मुझे चिंता थी कि मैं इस मसीह-विरोधी, इस दानव को प्रतिबंधित नहीं कर पाऊँगा। मुझे यह भी चिंता थी कि कुछ भाई-बहन उनके द्वारा गुमराह हो जाएँगे और उन्हें भारी नुकसान पहुँचेगा, और मेरा अपना आध्यात्मिक कद इतना छोटा है कि मैं मसीह-विरोधी के सार को उजागर नहीं कर पाऊँगा, इन बातों का पूरी तरह से गहन-विश्लेषण नहीं कर पाऊँगा और इस समस्या को हल नहीं कर पाऊँगा।” अब चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है। भाई-बहनों के इस एक कथन के साथ ही समस्या हल हो गई है और अगुआओं और कार्यकर्ताओं का “दायित्व” हट गया है। यह कितना बढ़िया है! तुम्हें परमेश्वर का धन्यवाद करना चाहिए; यह परमेश्वर का अनुग्रह है! ऐसा कुछ कलीसिया में होने की संभावना रहती है, क्योंकि मसीह-विरोधियों को उजागर करने के विषय में बहुत चर्चा की जा चुकी है, और क्योंकि अगुआओं और कार्यकर्ताओं के मुकाबले भाई-बहन उतने कमजोर नहीं हैं जितना शायद तुम मानते हो। परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन में, उनके पास सत्य को स्वतंत्र रूप से समझने और समस्याओं को हल करने की कुछ क्षमता भी होती है। जब वे एकजुट होकर मतदान करवाते हैं और किसी मसीह-विरोधी को निष्कासित कर देते हैं, तो यह एक अच्छी बात है, एक अच्छीघटना है! अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इस पर दुःखी, निराश या नकारात्मक महसूस करने की आवश्यकता नहीं है। इन बाधाओं, अर्थात् मसीह-विरोधियों को हटाने के बाद भी, आने वाले कार्य का प्रत्येक कदम अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए एक गंभीर परीक्षा की तरह होता है। जो भी कार्य उन्हें करने होते हैं, वे उनकी जिम्मेदारियों से जुड़े होते हैं और उनकी काबिलियत और कार्यक्षमता से संबंधित मुद्दे होते हैं।

मसीह-विरोधियों द्वारा बाधाएँ उत्पन्न किए जाने पर नकली अगुआओं द्वारा प्रदर्शित की जाने वाली अभिव्यक्तियाँ

हमने अगुआओं और कार्यकर्ताओं की तेरहवीं जिम्मेदारी पर संगति पूरी कर ली है : “परमेश्वर के चुने हुए लोगों को मसीह-विरोधियों द्वारा बाधित किए जाने, गुमराह किए जाने, नियंत्रित किए जाने और गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाए जाने से बचाओ, और उन्हें मसीह-विरोधियों को पहचानने और अपने दिलों से त्यागने में सक्षम बनाओ।” अब, हम ऐसे लोगों की अभिव्यक्तियों का गहन-विश्लेषण करेंगे और उन्हें उजागर करेंगे जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ पूरी नहीं कर सकते—जो नकली अगुआ हैं—हम उन कार्यों से उनकी तुलना करेंगे जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को पूरे करने चाहिए। इस कार्य को करते समय, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को बहुत से कार्य करने होते हैं, जिसके लिएउनसे विशेष काबिलियत रखने, सचेत रहने, सतर्क रहने, ईमानदारी दिखाने, जिम्मेदार बनने, परमेश्वर के दायित्व के प्रति विचारशीलरहने, परमेश्वर के चुने हुए लोगों की रक्षा करनेवाला प्रेमपूर्ण हृदय रखनेऔर इसी तरह के अन्य गुणों की अपेक्षा की जाती है। केवल इन गुणों के साथ ही वे अपनी जिम्मेदारियाँ और दायित्व निभा सकते हैं। हालाँकि, नकली अगुआ इसके पूरी तरह विपरीत होते हैं; उनकी मानवता में इन गुणों की कमी होती है। उनके पास विशेष काबिलियत हो सकती है, जिससे वे सत्य को समझ सकते हैं और मसीह-विरोधियों का भेद पहचान सकते हैं, या उनकी काबिलियत थोड़ी कम हो सकती है, कम से कम अनेकबुरे कर्मकरने वाले कुछ स्पष्ट मसीह-विरोधियों का भेद आसानी से पहचानने में सक्षम होते हैं, भले ही वे मसीह-विरोधियों के प्रकृति सार का भेद पूरी तरह से नहीं पहचान पाते हों; या फिर, उनकी काबिलियत इतनी खराब हो सकती है कि वे मसीह-विरोधियों के सार और मसीह-विरोधियों के स्वभाव वाले लोगों के बीच अंतर के भेद को नहीं पहचान पाते या उसकी असलियत नहीं जान पाते हैं। किसी भी स्थिति में, नकली अगुआओं में ये दो अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित होती हैं : एक तो यह है कि वे वास्तविक काम नहीं करते; दूसरा यह है कि वे केवल सतही, सामान्य मामलों के काम में ही व्यस्त रहते हैं, जबकि वे वास्तविक समस्याओं को हल करने या वास्तविक काम करने में पूरी तरह असमर्थ होते हैं। तेरहवीं जिम्मेदारी से संबंधित कार्य में, नकली अगुआओं में ये दो विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ प्रमुख रूप से पाई जाती हैं। अब हम इस बात पर संगति करेंगे कि उनके पास विशेष रूप से कौन-सी अभिव्यक्तियाँ होती हैं।

I. मसीह-विरोधियों को नाराज करने के भय के कारण उन्हें उजागर नहीं करना और उनसे नहीं निपटना

जब मसीह-विरोधी परमेश्वर के चुने हुए लोगों को बाधित, गुमराह और नियंत्रित करते हैं या उन्हें गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाते हैं, तो नकलीअगुआओं की पहली अभिव्यक्ति निष्क्रियता होती है। निष्क्रियता का क्या मतलब है? इसका मतलब है वास्तविक कार्य न करना। वास्तविक कार्य न करने के पीछे कारण होते हैं, जो मुख्य रूप से लोगों को नाराजकरने का भय और सिद्धांतों को कायम रखने के साहस की कमी है। अगुआ बनने के बाद, ये लोग यह सोचते हुए अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने लगते हैं, “अब मेरे पास रुतबा है और मैं कलीसिया का एक अधिकारी हूँ। मुझे भाई-बहनों के भोजन, वस्त्र, आवास और परिवहन का प्रबंधन करना पड़ता है; मुझे यह भेद पहचानना होता है कि जो कुछ भी भाई-बहन कह रहे हैं, क्या वह सत्य से मेल खाता है और संतों के शिष्टाचार के अनुरूप हैं या नहीं। मुझे देखना होता है कि वे परमेश्वर के प्रति ईमानदार हैं या नहीं, क्या उनका आत्मिक जीवन सामान्य है, क्या वे सुबह और शाम को प्रार्थना करते हैं, क्या उनकी नियमित सभाएँ सामान्य रूप से होती हैं—मुझे इन सब चीजों का प्रबंधन करनापड़ता है।” नकली अगुआ केवल इन मुद्दों की चिंता करते हैं। औपचारिक रूप से, वे अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों को पूरा करते हुए दिखाई देते हैं, लेकिन जब सिद्धांतों के अनिवार्य मुद्दे उठते हैंया यहाँ तक कि जब मसीह-विरोधी दिखाई देते हैं, तो नकली अगुआ बिना अपनी शक्ल दिखाएपरदे के पीछे छिप जाते हैं, जहाँवे चुप रहते हैं और किसी भी चीज बेखबर होने और ध्यान देने में असमर्थ होने का नाटक करते हैं। चाहे मसीह-विरोधी जो भी भ्रांतियाँ फैला रहे हों, वे इसेन सुनने का नाटक करते हैं। जब मसीह-विरोधी परमेश्वर के चुने हुए लोगों को बाधित, गुमराह और नियंत्रित करते हैं, तो वे भी बेखबर होने का नाटक करते हैं, जैसे यह सारी जानकारी उनके पास पहुँचते ही गायब हो जाती है। वे उन मसीह-विरोधियों का भेद पहचानने में असमर्थ होने का नाटक करते हैं जिनका भेद साधारण भाई-बहन भी पहचान सकते हैं और कहते हैं, “मैं उनकी असलियत नहीं जान पा रहा हूँ। क्या होगा अगर मैंने गलत व्यक्ति को निष्कासितकर दिया? क्या होगा अगर मैंने भाई-बहनों को गलत समझ लिया? और फिर, परमेश्वर के घर को अभी भी सेवा प्रदान करने के लिए लोगों की आवश्यकता है!” वे अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों से बचने के लिए सभी प्रकार के बहानों का इस्तेमाल करते हैं, मसीह-विरोधियों से निपटने से बचते हैं और भाई-बहनों को मसीह-विरोधियों द्वारा नुकसान पहुँचाए जाने से नहीं बचाते हैं। कुछ नकली अगुआ यह भी कहते हैं, “अगर मैं हमेशा मसीह-विरोधियों को उजागर करता रहूँ, तो क्या होगा अगर वे भाई-बहनों को मुझ पर हमला करने के लिए उकसा देंगे? फिर अगले चुनाव में कोई भी मेरे पक्ष में मतदान नहीं करेगाऔर मैं फिर से अगुआ नहीं बन सकूँगा। मेरा प्रभाव उतना मजबूत नहीं है जितना उनका है!” अपने रुतबे और व्यक्तिगत सुरक्षा को बचाने के लिए, नकली अगुआ परमेश्वर के चुने हुए लोगों की रक्षा करने की अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह से नहीं निभाते हैं, और न ही वे मसीह-विरोधियों को अधिकतम संभव सीमा तक भाई-बहनों को नुकसान पहुँचाने से रोकते हैं। वे लोगों को खुश करने वाले और अपने काम से काम रखने वाले दोनों तरह के व्यक्ति की भूमिका निभाते हैं, साथ हीवे स्वार्थी और नीच व्यक्ति होते हैं। वे भाई-बहनों की रक्षा नहीं करते, लेकिन अपने आपको बचाने के बारे में बहुत सोचते हैं। जब मसीह-विरोधियों से निपटने या उनकी काट-छाँट करने और उन्हें उजागर करने की बात आती है ताकि भाई-बहनों को समझ हासिल हो सके, तो वे डर से बुरी तरह कांपने लगते हैं, अपना रुतबा खोने के डर से चिंतित रहते हैं, और यह महसूस करते हैं कि ऐसा करना उनके लिए हानिकारक है। वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों के हितों को पूरी तरह से नजरअंदाज करते हैं, केवल अपने हितों, प्रतिष्ठा, व्यक्तिगत सुरक्षा और अपने परिवार की सुरक्षा के बारे में सोचते हैं, वे डरते हैं कि कहीं गलती से मसीह-विरोधियों को नाराज कर दिया, तो वे निर्दयतापूर्वक शत्रुता दिखा सकते हैं और प्रतिशोध ले सकते हैं। इस प्रकार के नकली अगुआ में दरअसल कुछ काबिलियत होती है। अपनी काबिलियत और अंतर्दष्टि से, वे पूरी तरह जानते हैं कि मसीह-विरोधी कौन हैं, लेकिन समस्या यह है कि उन्हें भय होता है कि कहीं मसीह-विरोधी नाराज न हो जाएँ। मसीह-विरोधियों के शातिर स्वभाव को देखते हुए, वे उन्हें नाराज करने की हिम्मत नहीं करते। हालांकि, खुद को बचाने के लिए, वे परमेश्वर के घर और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के हितों की बलि चढ़ाने में कोई संकोच नहीं करते; वे उदासीनता से देखते हैं कि कैसे भाई-बहनों को मसीह-विरोधियों के हवाले कर दिया जाता है, और मसीह-विरोधियों को अपनी मनमर्जी से उन्हें गुमराह करने, नियंत्रित करने औरगंभीर रूप से नुकसान पहुँचाने देते हैं। नकली अगुआ केवल कभी-कभी पर्दे के पीछे कुछ अपेक्षाकृत सरल और अच्छे मानव स्वभाव वाले लोगोंसे, जिनसे उन्हें कोई खतरा नहीं होता, कहते हैं, “वह व्यक्ति मसीह-विरोधी है। वह दूसरों को गुमराह करता है। वह अच्छा व्यक्ति नहीं है।” लेकिन, सभी भाई-बहनों के सामने और मसीह-विरोधियों के सामने, वे कभी भी मसीह-विरोधियों को “ना” कहने की हिम्मत नहीं करते। वे कभी भी मसीह-विरोधियों के किसी भी बुरे कर्मया उनके सार को उजागर करने का साहस नहीं करते। यहाँ तक कि सभाओं के दौरान, जब मसीह-विरोधी एक या दो घंटे तक एकतरफा बोलते रहते हैं, वे एक शब्द भी बोलने का साहस नहीं कर पाते। अगर मसीह-विरोधी धम्म से मेज पीटते हैं और लोगों को घूरते हैं, तो वे जोर से साँस भी नहीं ले पाते। अपने काम के दायरे में, छोटे आध्यात्मिक कद वाले, डरपोक मानवता वाले और जो सत्य का अनुसरण करना चाहते हैं लेकिन जिन्हें अभी तक समझ हासिल नहीं हुई है, ऐसे लोगों से उन्हें परेशानी होती है क्योंकि ऐसा कोई अगुआ या कार्यकर्ता नहीं है जो मसीह-विरोधियों के बुरे कर्मों को उजागर करने और उनका भेद पहचानने के लिए सामने आए। वे मुकाबला करने के किसी भी साधन के बिना असहाय होकर मसीह-विरोधियों को मनमाने ढंग से लापरवाही से काम करते और कलीसियाई जीवन को बाधित करते हुए कलीसिया में अत्याचार करते हुए देखते हैं। इस बीच, नकली अगुआ न तो कोई वास्तविक काम करते हैं और न ही परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए वास्तविक समस्याओं का समाधान करते हैं। जब भाई-बहन कठिनाइयों में होते हैं, तो नकली अगुआ न केवल मसीह-विरोधियों के बुरे कर्मों को उजागर करने और उन्हें प्रतिबंधित करने में विफल रहते हैं, बल्कि वे निष्पक्षता की एक भी बात कहने की हिम्मत नहीं करते हैं। भले ही उनका जमीर कुछ महसूस करता हो और उन्हें थोड़ा दोषी ठहराता हो, और वे बंद दरवाजों के पीछे परमेश्वर के सामने कुछ आँसू बहाते हैं, मगर अगले दिन सभा के दौरान, जब वे मसीह-विरोधियों को परमेश्वर के घर के काम के बारे में गैर-जिम्मेदाराना टिप्पणियाँ करते हुए और मनमाने ढंग से उसकी आलोचना करते हुए और परमेश्वर के बारे में धारणाएँ फैलाते हुए देखते हैं, तो यह पता होने के बावजूद कि यह गलत है, वे इसके बारे में कुछ भी नहीं करते। यहाँ तक कि जब वे मसीह-विरोधियों को चढ़ावे की बरबादी करते हुए देखते हैं, तो भी वे इसे नजरअंदाज करने का रवैया अपनाते हैं। वे मसीह-विरोधियों को न तो उजागरकरते हैं और न ही प्रतिबंधित करते हैं, और फिर भी उनके दिलोंमें थोड़ी-सी भी ग्लानि नहीं होती—यह अत्यंत गैर-जिम्मेदाराना है! कोई भी व्यक्ति जिसमें थोड़ा भी जमीर है, भले ही उसेलगता है कि उसकी ताकत बेहद कमजोर है, उसे उन भाई-बहनों के साथ मिलकर इस मुद्दे पर संगति करनी चाहिए जिनके पास थोड़ा आध्यात्मिक कद और समझ है; साथ ही यह चर्चा करनी चाहिए कि मसीह-विरोधियों से कैसे निपटा जाए। लेकिन नकली अगुआओं में ऐसी दृढ़ता और साहस की कमी होती है, और इससे भी अधिक, उन्हें जिम्मेदारी का कोई एहसास नहीं होता। वे भाई-बहनों से यह भी कहते हैं, “मसीह-विरोधी बहुत शातिरहैं। अगर हम उन्हें नाराज करेंगे, तो वे हमारे बारे में सरकार को रिपोर्ट कर देंगे, और फिर हम में से कोई भी परमेश्वर में विश्वास नहीं रखपाएगा। मसीह-विरोधी कलीसिया की सभाओं के स्थान जानते हैं, इसलिए हम उन्हें भड़का नहीं कर सकते।” यह पूरी तरह से मसीह-विरोधियों के सामने हथियार डालने और आत्मसमर्पण करने का घिनौना रूप है, यह शैतान के साथ समझौता करने और उससे रहम की भीख मांगने जैसा है।

अपने आपको बचाने के अलावा, नकली अगुआ ऐसाकोई भी काम नहीं करते जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को करना चाहिए, जैसेकि परमेश्वर के चुने हुए लोगों की रक्षा करना और मसीह-विरोधियों के प्रति समझप्राप्त करने में उनकी मदद करना; वे किसी भी जिम्मेदारी को बिल्कुल भी पूरा नहीं करते, फिर भी वे लगातार यही चाहते हैं कि भाई-बहन उन्हें अगुआ के रूप में चुनें। एक कार्यकाल समाप्त करने के बाद, वे अगले कार्यकाल के लिए फिर से निर्वाचित होना चाहते हैं। क्या यह शर्मनाक और कभी न सुधरने लायक नहीं है? क्या ऐसे लोग अगुआ बनने के लायक हैं? (नहीं।) परमेश्वर का घर झुंडका जिम्मा तुम्हें सौंपता है, लेकिन जब जंगली जानवर आते हैं, तो ऐसे महत्वपूर्ण क्षण में तुम केवल खुद को बचाते हो और झुंड को जंगली जानवरों के हवाले कर देते हो। तुम एक सहमे हुए कछुए की तरह व्यवहार करते हो, एक आश्रय, एक सुरक्षित स्थान ढूँढ़ते हो, ताकि खुद को छिपा सको। नतीजतन, झुंडको नुकसान होता है—कुछ भेड़ें मार दी जाती हैं और कुछ खो जाती हैं। मान लो कि कोई अगुआ यह देखता है कि मसीह-विरोधी बेहिचक कलीसिया के काम को बाधित कर रहे हैं और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को गुमराह और नियंत्रित कर रहे हैं, और फिर भी वहअपनी इज्जत, रुतबे और आजीविका को बचाने के लिए इसे नजरअंदाज करने का रवैया अपनाता है ताकि अपनी सुरक्षा सुनिश्चित कर सके। इसके परिणामस्वरूप परमेश्वर के चुने हुए अधिकांश लोग गुमराह हो जाते हैं, असहाय महसूस करते हैं, और नकारात्मक और कमजोर हो जाते हैं; कुछ मसीह-विरोधियों द्वारा पकड़ भी लिए जाते हैं, और कुछ लोग अपना कर्तव्य निभाने के अनिच्छुक होते हैं। और फिर भी इस अगुआ को मसीह-विरोधियों द्वारा उत्पन्न की गई बाधाओं को देखकर कुछ भी महसूस नहीं होता; उनके जमीर को कोई ग्लानि महसूस नहीं होती। क्या इस तरह का अगुआ या कार्यकर्ता कोई मानवता रखता है? अपने आत्म-रक्षण के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए, उसेपरमेश्वर के चुने हुए लोगों को मसीह-विरोधियों के हवाले करने में कोई संकोच नहीं होता और वह मसीह-विरोधियों को उन्हें गुमराह करने, गम्भीर रूप से नुकसान पहुँचाने और तबाह करने देता है। यह किस प्रकार का अगुआ है? (एक नकली अगुआ।) क्या यह शैतान का सहयोगी नहीं है? वह असल में किस ओर है? भले ही उसे नकली अगुआ के रूप में चित्रित किया जाता है, इस समस्या का सार शायद एक नकली अगुआ होने से भी अधिक गंभीर हो सकता है। इसकी प्रकृति भाई-बहनों को उसके हाथों बेच देने की है, यह ठीक उन लोगों की तरह है जो पकड़े जाते हैं और जब उन्हें यातनाएँ दी जाती हैं तोवे यहूदाबन जाते हैं, अपने भाई-बहनों को बड़े लाल अजगर के हवाले कर देते हैं ताकि उन्हें गम्भीर रूप से नुकसान पहुँचाया जा सके। तोएक नकली अगुआ की परमेश्वर के चुने हुए लोगों को मसीह-विरोधियों के हवाले करने की क्या प्रकृति है? क्या ऐसे नकली अगुआ अत्यंत नीच नहीं होते? मसीह-विरोधियों की तुलना में, ये नकली अगुआ बाहरी रूप से सत्य का प्रतिरोध करने का इरादा नहीं रखते हैं। ऐसा दिखाई पड़ता है कि वे कुछ सत्य पर संगति करने में सक्षम हैं, उनमें कुछ समझने की क्षमता है, वे थोड़े बहुत सत्य का अभ्यास करने में सक्षम हैं, उनमें से कुछ लोग कष्ट सह सकते हैं और मूल्य चुका सकते हैं। और फिर भी, जब परमेश्वर का घर उन्हें परमेश्वर के झुंडका जिम्मा सौंपता है, और जब बुरे लोग और दानव दिखाई देते हैं, तो वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को बचाने के लिए जो कुछ वे कर सकते हैं वह सब करने के लिए अपने जीवन का उपयोग नहीं करते। इसके बजाय, वे अपनी सुरक्षा और हितों को सुरक्षित करने के लिए हर संभव तरीके से खुद को बचाने की कोशिश करते हैं, और भाई-बहनों को एक सुरक्षा ढाल के रूप में कार्य करने के लिए बाहर धकेल देते हैं। ये लोग कितने नीच और स्वार्थी हैं! सतही तौर पर, इनकी मानवता में कोई बड़ी समस्या दिखाई नहीं देती। उनके पास लोगों के लिए प्रेम है, वे दूसरों की मदद कर सकते हैं, वे किसी भी कठिनाई को सहन करने और अपने कर्तव्यों को निभाने के लिए मोल चुकाने के इच्छुक हैं। हालाँकि, जब मसीह-विरोधी दिखाई देते हैं, तो वे कुछ अप्रत्याशित और अविश्वसनीय चीजें करते हैं : चाहे मसीह-विरोधी परमेश्वर के चुने हुए लोगों को कैसे भी गुमराह करें या कलीसियाई जीवन को कैसे भी बाधित करें, वे कुछ नहीं करते, और चाहे मसीह-विरोधी कितने भी लोगों पर हमला करें, उन्हें बाहर निकालें या नुकसान पहुँचाएँ, वे इसे नजरअंदाज कर देते हैं। ऐसा करते हुए, ये अगुआ पूरी तरह से परमेश्वर के चुने हुए लोगों को मसीह-विरोधियों के नियंत्रण में सौंप रहे हैं, और मसीह-विरोधियों को उन्हें अपनी मर्जी से गुमराह करने और गम्भीर रूप से नुकसान पहुँचाने दे रहे हैं, जबकि ये अगुआ खुद कोई काम नहीं करते हैं। जब मसीह-विरोधियों को बाहर निकाल दिया जाता है और समस्या हल हो जाती है, तो ये अगुआ फिर से अपने आत्म-ज्ञान पर और इस बारे में संगति करने के लिए आ जाते हैं कि वे कितने कमजोर, डरपोक, आतंकित, स्वार्थी, और धोखेबाज थे, और वफादार नहीं थे, वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों की ठीक से रक्षानहीं कर पाए, और परमेश्वर और भाई-बहनों को निराश किया। वे बहुत पछताते हुए दिखते हैं; ऐसा लगता है जैसे उन्होंने खुद को बदल लिया हो और पश्चात्ताप करने में सक्षम हों। हालाँकि, जब फिर से मसीह-विरोधी दिखाई देते हैं, तो वे भाई-बहनों को मसीह-विरोधियों के पास धकेल देते हैं, ठीक वैसे ही जैसा उन्होंने पिछली बार किया था, और अपने छिपने के लिए एक सुरक्षित स्थान ढूंढ लेते हैं। भले ही खुद मसीह-विरोधियों ने उन्हें गुमराह किया हो या नुकसान पहुँचायाहो, वे अपनी जिम्मेदारियों में लापरवाह रहे हों, उन्होंने परमेश्वर के आदेश का उल्लंघन किया हो, और अपने कर्तव्य के प्रति उनका रवैया, परमेश्वर के चुने हुए लोगों के प्रति उनका रवैया, और उनका असली चेहरा पूरी तरह से उजागर हो चुका हो। हर बार जब मसीह-विरोधी दिखाई देते हैं, तो वे परमेश्वर का पक्ष लेकर मसीह-विरोधियों से आखिरी दम तक लड़ने का चुनाव नहीं करते, और न ही वे ऐसा कुछ कहते हैं जो कहा जाना चाहिए या ऐसा कोई काम करते हैं जो परमेश्वर के चुने हुए लोगों को बचाने के लिए किया जाना चाहिए और इस तरह वे अपनी अंतरात्मा में शांति महसूस कर सकें; वे अगुआओं की जिम्मेदारियों को पूरा करते हुए परमेश्वर के इरादों को पूरा करने की कोशिश तो बिल्कुल नहींकरते हैं। इन सभी नकली अगुआओं के विकल्प और क्रियाकलाप पूरी तरह से अपने रुतबे को नुकसान पहुँचने से बचाने के लिए होते हैं। उन्हें परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन या मृत्यु की कोई परवाह नहीं होती। उनके लिए, जब तक उनकी अपनी प्रतिष्ठा, हित और रुतबे को नुकसान नहीं पहुँचता, तब तक सब ठीक रहता है। कौन मसीह-विरोधियों को उजागर करता है, कौन मसीह-विरोधियों को निष्कासित करता है, मसीह-विरोधियों से कैसे निपटना चाहिए—यह कुछ ऐसा है जैसे इन मुद्दों का उनसे कोई लेना-देना नहीं है; वे न तो परवाह करते हैं और न ही हस्तक्षेप करते हैं। जब मसीह-विरोधी कलीसियाई जीवन को बाधित करते हैं, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नुकसान पहुँचाते हैं, और सत्य का अनुसरण करने वाले लोगों को फंसाते और सताते हैं, तो वे इसे नजरअंदाज कर देते हैं। ये चीजें उनके लिए कोई मायने नहीं रखतीं; उनके लिए यह सब ठीक है, जब तक उनका रुतबा खतरे में नहीं पड़ता। तुम इस प्रकार के लोगों के बारे में क्या सोचते हो? आमतौर पर, उनकी मानवता बुरी नहीं लगती और वे कुछ काम करने में सक्षम प्रतीत होते हैं। जब वे काट-छाँट का सामना करते हैं, तो वे खुद को जानने में सक्षम प्रतीत होते हैं और उनके दिल में थोड़ा पछतावा होता है। लेकिन, जब वे मसीह-विरोधियों को कलीसिया को बाधित करते हुए देखते हैं, तो वे पूरी तरह से अपना विवेक खो बैठते हैं, उनमें न्याय की भावना नहीं होती और उनमें मसीह-विरोधियों का विरोध करने का साहस भी नहीं होता। जब वे दानवों और शैतानों को देखते हैं, तो वे समझौता कर लेते हैं; जब वे बुरे लोगों को विघ्न डालते हुए देखते हैं, तो उनसे बचते हैं। बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों के प्रति उनके रवैये को देखा जाए तो वे किस मार्ग पर चल रहे हैं? क्या यह उनकी समस्या को स्पष्ट रूप से नहीं दर्शाता? (हाँ।) इस प्रकार का व्यक्ति शायद सतही तौर पर मसीह-विरोधी नहीं लग सकता है, लेकिन जो रवैया वहबुरे लोगों और मसीह-विरोधियों के क्रियाकलापों और व्यवहारों के प्रति दिखाता है, वही मसीह-विरोधियों का स्वभाव है, और इसकी प्रकृति बहुत गंभीर है। यह कहा जा सकता है कि यह अपनी जिम्मेदारियों से मुँह मोड़ लेने और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को धोखा देने की प्रकृतिहै। क्या यह प्रकृति बहुत गंभीर नहीं है? क्या वे कलीसिया के काम और परमेश्वर के आदेश के प्रति कोई वफादारी दिखाते हैं? क्या उनमें जिम्मेदारी के रवैये की कोई झलक दिखाई देती है? चाहे जब भी उन्हें कोई आदेश दिया जाता हैया कोई काम सौंपा जाता है, तो उनका सिद्धांत यही होता है कि वे लोगों को नाराज करने से बचें और अपनी रक्षा करें। यह उनके आचरण और काम करने के लिए उनके सिद्धांत का सर्वोच्च मानक है और यह कभी नहीं बदलेगा। अभी हम यह सवाल छोड़ देते हैं कि ऐसे लोगों को बचाया जा सकता है या नहीं—अगर हम केवल मसीह-विरोधियों से निपटने के काम के संदर्भ में देखें, तो क्या ये नकली अगुआ परमेश्वर का आदेश स्वीकारने के योग्य हैं? क्या वे अगुआ और कार्यकर्ता बनने के योग्य हैं? (नहीं।) ये लोग अगुआ और कार्यकर्ता बनने के योग्य नहीं हैं। इसका कारण यह है कि उनमें जमीर और विवेककी कमी होती है, और वे कलीसिया की अगुआई का कार्य संभालने के योग्य नहीं हैं; वे मसीह-विरोधियों को अधिकतम संभव सीमा तक परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नुकसान पहुँचाने से रोकते नहीं हैं, और न ही वे इस जिम्मेदारी को पूरा करने या इसे सही से करने के लिए अपनी पूरी कोशिश करते हैं ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोगों की रक्षा हो सके—ऐसा इसलिए नहीं है कि उनमें काबिलियत की कमी है और वे यह करने में असमर्थ हैं, बल्कि ऐसा इसलिए है कि वे बस इसे करते नहीं हैं। इसलिए, इस परिप्रेक्ष्य से देखें तोजो लोग दूसरों को नाराज करने से डरते हैं, वे बिल्कुलभी अगुआ और कार्यकर्ता बनने के योग्य नहीं हैं। क्या ऐसे अगुआ और कार्यकर्ता बहुत सारे नहीं हैं? (हाँ, हैं।) जब कुछ नहीं हुआ होता है, तो वे किसी और की तुलना में अधिक उत्साह से इधर-उधर दौड़ते हैं; वे इतने व्यस्त होते हैं कि न तो वे अपने बालों को संवारते हैं और न ही चेहरा धोते हैं, ऐसा प्रतीत होता है जैसे वे बहुत आध्यात्मिक स्तर पर पहुँच चुके हैं। लेकिन जब मसीह-विरोधी दिखाई देते हैं, तो वे गायब हो जाते हैं; वे बचने के लिए हर तरह के बहाने ढूँढ़ते हैं, और बस मसीह-विरोधियों से निपटते नहीं हैं। इस व्यवहार की प्रकृति क्या है? यह उनके कर्तव्य पालन में वफादारी की कमी और विश्वासघात है। निर्णायक समय में, वे परमेश्वर से भी विश्वासघात कर सकते हैं और शैतान का पक्ष ले सकते हैं, जब बुरे लोग और मसीह-विरोधी कलीसिया केकाम को बाधित करते हैं और नुकसान पहुँचाते हैं, तब वे आँखें मूँद लेते हैं। वे तो एक रखवाली करने वालेकुत्ते जितने भी उपयोगी नहीं होते हैं। यह नकली अगुआओं का एक प्रकार है।

II. मसीह-विरोधियों का भेद पहचानने में असमर्थहोना

एक अन्य प्रकार के नकली अगुआ होते हैं : जब मसीह-विरोधी दिखाई देते हैं, तो वे यह भेद नहीं पहचान पाते कि उनका स्वभाव और सार कैसा है, वे क्या व्यक्त और प्रकट करते हैं, वे भाई-बहनों के लिए कौन सी समस्याएँ उत्पन्न करते हैं, ऐसे कौन-से बयान, विचार, दृष्टिकोण और व्यवहार हैं जो भाई-बहनों को गुमराह और बाधित कर सकते हैं, मसीह-विरोधी लोगों को नियंत्रित करने के लिए कौन-से तरीके अपनाते हैं, किन परिस्थितियों में मसीह-विरोधियों द्वाराभाई-बहनों को गुमराह किया जा सकता है, नियंत्रित किया जा सकता हैऔर गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाया जा सकताहै, इत्यादि—ये सभी समस्याएँहैं जिनका भेद नकली अगुआनहीं पहचान पाते हैं। मसीह-विरोधी भाई-बहनों को गुमराह करते हैं; वे और गुमराह हुए भाई-बहन कलीसिया से अलग होकरअपनी स्वयं की सभाएँ आयोजित करते हैं और स्वतंत्र राज्य बनाते हैं। वे परमेश्वर के घर की अगुआई को स्वीकार नहीं करते, परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं को स्वीकार नहीं करते और परमेश्वर के घर की किसी भी व्यवस्था या मार्गदर्शन के प्रति समर्पित नहीं होते, वे लोगों के लिए परमेश्वर की अपेक्षाओं के प्रति तो बिल्कुल भी समर्पित नहीं होते। लेकिन मसीह-विरोधियों द्वारा परमेश्वर के चुने हुए लोगों को गुमराह करने के ऐसे सभी क्रियाकलापों को नकली अगुआ समस्याओं के रूप में नहीं देखते। वे यह नहीं देख सकते कि इन परिस्थितियों में क्या गलत हो रहा है, वे यह तो बिल्कुल भी नहीं देख सकते कि मसीह-विरोधियों के शब्द, क्रियाकलाप, विचार, और दृष्टिकोण लोगों को कैसे बाधित करते हैं, गुमराह करते हैं और नुकसान पहुँचाते हैं। वे इन नकारात्मक प्रभावों को नहीं देख पाते और उनकोयह पता नहीं होता कि उनका भेद कैसे पहचाना जाए। कुछ सामान्य भाई-बहन, जो बहुत कुछ देख और सुन चुके हैं, उनमें थोड़ी समझ, बोधऔर जागरूकता हो सकती है, लेकिन नकली अगुआ इन चीजों की असलियत नहीं जान पाते। यहाँ तक कि जब कोई यह इंगित करता है कि फलाँ-फलाँ व्यक्ति लोगों को गुमराह करने और गुप्त रूप से गुट बनाने के लिए कुछ काम कर रहा है, तब भी नकली अगुआ यह कहते हुए बाधा डालते हैं, “हमइन बयानोंको नहीं फैलासकते। बाधाएँ मत खड़ी करो। उनका अच्छा संबंध है—उनके एक-दूसरे के साथ संगति करने में क्या गलत है? हमें लोगों को स्वतंत्रता देनी चाहिए!” वे अब भी इसकी असलियत नहीं जान पाते। यदि वे चीजों की असलियत नहीं जान सकते, तो वे निरीक्षण और प्रयास कर सकते हैं, उन भाई-बहनों के साथ संगति कर सकते हैं जो सत्य समझते हों और जिनमें थोड़ी समझ हो। हालाँकि, नकली अगुआ काफी आत्मतुष्ट होते हैं। जब भाई-बहन उन्हें याद दिलाते हैं, तो वे यह सोचते हुए इसे स्वीकार नहीं करते, “अगुआ तुम हो या मैं? चूँकि मुझे अगुआ चुना गया है, तो मुझे औसत व्यक्ति से अधिक बेहतर ढंग से सत्य समझना चाहिए। अन्यथा, किसी और के बजायमुझे क्यों चुना जाता? यह साबित करता है कि मैं तुम सब से बेहतर हूँ। चाहे मैं तुम लोगों से उम्र में बड़ा हूँ या छोटा, मेरी काबिलियत निश्चित रूप से तुम सब से बेहतर है। जब कोई मसीह-विरोधी दिखाई देता है, तो सबसे पहले मुझे उसे पहचानना चाहिए। अगर तुम लोग उसे पहले पहचान लेते हो, तो मैं तुम्हारेआकलन से सहमत नहीं होऊँगा। कुछ भी करने से पहले, हम तब तक इंतजार करेंगे जब तक मैं उसेपहचान नहीं लेता!” इसके परिणामस्वरूप, मसीह-विरोधी भाई-बहनों के बीच अनेकपाखंड और भ्रांतियाँ फैलाते हैं, परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं का खुलकर प्रतिरोध करते हैंऔर खुलेआम कलीसिया, परमेश्वर के घर और ऊपरवाले की कार्य व्यवस्थाओं के खिलाफ आवाज उठाते हैं और उनका विरोध करते हैं। यहाँ तक कि मसीह-विरोधी विशेष सभाओं में भाग लेने के लिए भाई-बहनों को अपने पक्ष में खींच लेते हैं, जहाँ उपस्थित लोग केवल मसीह-विरोधी को ही प्रचार करते हुए सुनते हैं और उसकी अगुआई को स्वीकारते हैं। कलीसिया में सबसे कम काबिलियत वाले लोग भी देख सकते हैं कि यह व्यक्ति मसीह-विरोधी है। सिर्फ ऐसी स्थिति में ही नकली अगुआ यह स्वीकारते हैं : “हे प्रभु, वह मसीह-विरोधी है! मुझे इसका एहसास अभी कैसे हुआ? नहीं, दरअसल मुझे इसका एहसास पहले ही हो गया था, लेकिन मैंने कुछ नहीं कहा क्योंकि मुझे डर था कि भाई-बहनों का आध्यात्मिक कद छोटा हैऔर उनमें समझकी कमी है।” वे अपने लिए एक शानदार झूठ भी गढ़ लेते हैं। साफ तौर पर ऐसा इसलिए है क्योंकि वे स्वयं सुन्न, मंद-बुद्धि, कम काबिलियत वाले लोग हैं और मसीह-विरोधी का भेद पहचानने में असमर्थ हैं, जिस वजह से उन्होंने भाई-बहनों को उनके हाथों इतना नुकसान सहने दिया। अपराध बोध के बजाय, वे बकवास करने, निराधार अफवाहें फैलाने, लोगों को गलत समझने, इत्यादि के लिए भाई-बहनों पर ही दोषारोपण करते हैं। यह किस प्रकार का अगुआ है? क्या वहपूरी तरह से भ्रमित नहीं है? ऐसा अगुआ मूल रूप से कलीसिया का कार्य संभालने में असमर्थ है। सतही तौर पर, ऐसे अगुआ अक्सर परमेश्वर के वचनों को खाते-पीते हैं, प्रार्थना करते हैं, सभाओं में भाग लेते हैं, धर्मोपदेश सुनते हैं, आध्‍यात्मिक नोट्स लिखते हैंऔर गवाही लेख लिखते हैं, जिससे ऐसा लगता है कि वे बहुत प्रयास कर रहे हैं, लेकिन जब समस्याएँ सामने आती हैं, तो वे उन्हें हल नहीं कर पाते, परमेश्वर के वचनों के अनुसार सत्य की खोज नहीं कर पातेऔर निश्चित रूप से परमेश्वर के वचनों के आधार पर मसीह-विरोधियों का भेद नहीं पहचान पाते। नकली अगुआ आमतौर पर एक या दो घंटे तक प्रचार कर सकते हैं और परमेश्वर के वचनों और अपने अनुभवों पर संगति करते समय तो अंतहीन बातें कर सकते हैं, लेकिन जब मसीह-विरोधी पाखंड और भ्रांतियाँ फैलाते हैं, भाई-बहनों को गुमराह करते हैं और कलीसिया के कार्य में बाधा उत्पन्न करते हैं, तब उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं होता और वे बिल्कुल भी कोई कार्य नहीं करते। वे न केवल कोई भी निवारक उपाय लागू करने में या मसीह-विरोधियों के पाखंड और भ्रांतियों का भेद पहचानने में भाई-बहनों की अगुआई करने में असफल रहते हैं, बल्कि जब वे मसीह-विरोधियों द्वारा उत्पन्न विघ्न-बाधाओं को देखते हैं, तब भी वे उन्हें उजागर नहीं करते या उनका गहन-विश्लेषण नहीं करते, और न ही वे मसीह-विरोधियों की काट-छाँट करते हैं; वे बिल्कुल भी कोई कार्य नहीं करते। ऐसे लोगों के साथ क्या समस्या है? (उनकी काबिलियत बहुत खराब है।) उनकी खराब काबिलियत के बावजूद, वे अभी भी बड़ाई करते हैं कि वे आध्यात्मिक व्यक्ति हैं, अच्छे अगुआ हैं, और सत्य का अनुसरण करने वाले और परमेश्वर के वचनों से प्रेम करने वाले हैं; वे बेशर्मी से दावा करते हैं कि उन्होंने अगुआओं और कार्यकर्ताओ की जिम्मेदारियों को निभाने के लिए पारिवारिक और दैहिक सुखों का त्याग कर दिया है। वास्तव में, वे सही मायनों में नकली अगुआ हैं जो गैर-जिम्मेदार हैं, जिनमें जमीर और विवेककी कमी है, जो अत्यधिक सुन्न और मंद-बुद्धि हैं—वे पक्के, पाखंडी फरीसी हैं। वे केवल धर्म-सिद्धांतों का प्रचार करना और नारे लगाना जानते हैं। जब लोग उनसे सवाल पूछते हैंतो वे उन्हें गुमराह करने के लिए सिद्धांतों की झड़ी लगा सकते हैं, लेकिन वास्तव मेंवे बिल्कुल भी सत्य सिद्धांतों को स्पष्ट रूप से समझा नहीं सकते हैं। फिर भीवे मानते हैं कि उनमें समझने की क्षमता और सत्य की समझ है। अपने दिलों में उन्हें स्पष्ट रूप से पता है कि जब लोग उनसे समस्याओं का समाधान पूछते हैंतो वे सत्य के अनुरूप उत्तर नहीं दे पाते हैं, फिर भीवे अभी भी अच्छे अगुआ और आध्‍यात्मिक व्यक्ति होने का दिखावा करते रहते हैं। क्या यह कुछ हद तक बेशर्मी नहीं है? (हाँ।) अधिकांश नकली अगुआओं में एक सामान्य विशेषता और सामान्य समस्या होती है : वे बेशर्म होते हैं। उनके विचार में अगुआ का रुतबा और उपाधि होना और आध्‍यात्मिक सिद्धांतों के बारे में बोलने में सक्षम होना उन्हेंआध्यात्मिक व्यक्ति बनाता है। वे परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने, धर्मोपदेश सुनने, और परमेश्वर के घर के वीडियो देखने में दूसरों की तुलना में अधिक समय बिताते हैंऔर परमेश्वर के वचनों पर दूसरों से ज्यादा संगति करते हैं, इसलिए उनका माननाहै कि वे अगुआओं और कार्यकर्ताओं का कार्य कर सकते हैं और उनकी जिम्मेदारियों को पूरा कर सकते हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि जब मसीह-विरोधियों द्वारा परमेश्वर के चुने हुए लोगों को बेहिचक गुमराह और बाधित करने जैसी गंभीर समस्या उत्पन्न होती हैतो वे केवल देखते रहते हैं लेकिन कुछ भी करने में असमर्थ होते हैं; उन्हें यह भी नहीं पता होता कि मसीह-विरोधियों से जुड़ने और उनका गहन-विश्लेषण करने के लिए परमेश्वर के वचनों के किन हिस्सों का उपयोग किया जाए, ताकि भाई-बहन समझपा सकें, अपने दिलोंसे मसीह-विरोधियों को अस्वीकार करसकें, उनके द्वारा गुमराह और नियंत्रित होने से बच सकें। हालाँकि कभी-कभी वे अपने भीतर थोड़ीघबराहट महसूस करते हैं, फिर भी वे सोचते हैं कि उन्होंने लंबे समय से परमेश्वर में विश्वास रखाहै और उन्होंने अनेकधर्मोपदेश सुने हैं, वे औसत व्यक्ति की तुलना में सत्य को बेहतर समझते हैं और प्रभावी ढंग से बोल सकते हैं। वे अक्सर डींग मारते हैं : “मैं आध्‍यात्मिक व्यक्ति हूँ। मैं प्रचार कर सकता हूँ। भले हीमैं मसीह-विरोधियों द्वारा परमेश्वर के चुने हुए लोगों को गुमराह और बाधित करने की समस्या का समाधान नहीं कर सकताऔर परमेश्वर के वचनों को मसीह-विरोधियों से नहीं जोड़ सकता और उनका भेद नहीं पहचान सकता, फिर भी मैंने वह कार्य किया है जो मुझे करना चाहिए और वह कहा है जो मुझे कहना चाहिए। अगर भाई-बहन समझ सकेंतो यह ठीक है!” जहाँ तक अंतिमनतीजेका सवाल हैकि क्या परमेश्वर के चुने हुए लोगों को बचाया गया है, इस बारे में उनके दिल में कोई स्पष्टता नहीं होती। वे यह भी सोचते हैं कि वे चतुर हैं और समस्याओं को हल करने का नाटक करते हैं, लेकिन अंत में वास्तविक समस्याओंको हल किए बिना वे केवल बहुत से शब्दों और धर्म-सिद्धांतों की बातें करते हैं। वे मसीह-विरोधियों को उजागर करने और उनका गहन-विश्लेषण करने के लिए सत्य की संगति नहीं कर सकते। इसके बजाय, वे केवल अपने को सही ठहराने और अपनी रक्षा करने के लिए शब्दों और धर्म-सिद्धांतों की बातें करते हैं, एक या दो घंटे तक बोलते रहते हैं और लोगों को पूरी तरह से भ्रमित कर देते हैं; यहाँ तक कि जो चीजें लोग पहले समझते थे, वे भी अस्पष्ट हो जाती हैं। वे भाई-बहनों को मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह करने से बचा पाने में असफल रहते हैं और वे उन्हें मसीह-विरोधियों का भेद पहचानने में और उन्हें दिल से अस्वीकार करने में सक्षम बनाने में भी असफलरहते हैं। वे कभीभी भाई-बहनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का नतीजाप्राप्त नहीं करते। भले ही वे इस परिणाम को देख सकें, तो भी वे अगुआ की पहचान होने का दावा करते रहते हैं और दूसरों के साथ सत्य की खोज करने के लिए विनम्र नहीं होतेऔर न ही समस्या को हल करने के लिए ऊपर रिपोर्ट करते हैं। क्या ऐसे लोग बदमाश नहीं हैं? तुम कुछ भी नहीं हो, फिर भी तुम दिखावा करते हो। तुम किस बात का दिखावा कर रहे हो? चूँकि तुम अगुआ नहीं बन सकते, तुम्हें पद छोड़ देना चाहिए और कहीं और जाकर दिखावा करना चाहिए। तुम्हें परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नुकसान नहीं पहुँचाना चाहिए! जब तुम दिखावा कर रहे होते हो, तो मसीह-विरोधी इस अवसर का फायदा उठाकर इतने सारे बुरे काम करते हैं, जो लोगों को बाधित और नियंत्रित करते हैं, अनेकों को गुमराह करते हैं और नुकसान पहुँचाते हैं! इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? परमेश्वर का घर पता लगाएगा कि कौन जिम्मेदार है!

कुछ अगुआ और कार्यकर्ता मसीह-विरोधियों की घटनाओं से निपटने में कोई वास्तविक कार्य नहीं करते और मसीह-विरोधियों का भेद भी नहीं पहचान पाते हैं। जब मसीह-विरोधी भाई-बहनों को गुमराह और नियंत्रित करते हैं उस अवधि के दौरान, वे कभी भी मसीह-विरोधियों के बुरे कर्मोंऔर सार कोसच्चे अर्थों में उजागर नहीं करतेऔर न ही उन्हें स्पष्ट रूप से समझा सकते हैं। बाद में, परमेश्वर के चुने हुए कुछ विवेकशील लोग मसीह-विरोधियों को उजागर करते हैं और उन्हें निष्कासित कर देते हैं और ये नकली अगुआ इसे अपनी उपलब्धि समझते हैं। मसीह-विरोधियों को निष्कासित कर दिए जाने के बाद, वे एक सारांश बनाते हैं और धर्म-सिद्धांत की कुछ बातें करते हैं : “देखो, जब मसीह-विरोधी बोलते और कार्य करते हैंतो कलीसियाई जीवन असामान्य हो जाता है, लोग परेशानहोते हैं और उनके जीवन को नुकसान होता है। मसीह-विरोधियों के नुकसान से बचने के लिए, हमें मसीह-विरोधियों के क्रियाकलापों, शब्दों, मानवताऔर सार आदि का भेद पहचानना चाहिए—हमें इन सभी चीजों को समझना चाहिए। परमेश्वर कलीसिया में मसीह-विरोधियों के दिखाई देने की अनुमति देता है, उन्हें कार्य करने की अनुमति देता है, उनकी कुरूपता को उजागर करता है, मसीह-विरोधियों को बेनकाबकरता है, ताकि हम खुद को सत्य से सुसज्जितकर सकें, हमारी समझबढ़ सकेऔर जितनी जल्दी हो सके हम अपने आध्‍यात्मिक कद को बढ़ा सकें—परमेश्वरकेयही इरादे हैं! अब हमने मसीह-विरोधियों का भेद पहचान लिया है और उनसे बेबस नहीं हैं; हर कोई उन्हें अस्वीकार करने में सक्षम है। यह ऐसी बात है जिसका जश्‍न मनाना चाहिए!” अंत मेंये नकली अगुआ एक अधिकारी की तरह बात करते हुए अपना सारांश प्रस्तुत करते हैं, जैसे कि उन्होंने बहुत वास्तविक कार्य किया हो, भारी कीमत चुकाई होऔर मसीह-विरोधियों को निष्कासित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हो। क्या यह थोड़ी बेशर्मी नहीं है? साफ तौर पर, शुरू से अंत तक, वे यह भेद नहीं पहचान सके कि मसीह-विरोधी क्या है; वे यह नहीं समझ सके कि मसीह-विरोधी लोगों को कैसे गुमराह करते हैं, मसीह-विरोधी परमेश्वर के चुने हुए लोगों के साथ क्या करते हैंया मसीह-विरोधियों का स्वभाव सार कैसा है। फिर भीवे ऐसा दिखावा करते हैं मानो उन्होंने बहुत कार्य किया हो। यह स्पष्ट है कि वे भाई-बहन ही थे जिन्होंने मसीह-विरोधियों का भेद पहचाना और उन्हें कलीसिया से निष्कासित किया; यह भी स्पष्ट है कि नकली अगुआओं ने वह भूमिका नहीं निभाई जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को निभानी चाहिएया उन्होंने अगुआ और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों को पूरा नहीं किया, फिर भीवे सारांश बनाते हैं और अपनी पीठ थपथपाते हैं, मानो उन्होंने सब कुछ पहले से योजना बनाकर किया हो और अब भाई-बहनों को बता रहे हों कि उनके क्रियाकलापोंने नतीजेदिए और यहएक बड़ी सफलता थी। क्या यह बेशर्मी नहीं है? तुम अधिकारी की तरह क्यों बात कर रहे हो? तुम कोई वास्तविक कार्य नहीं करते और फिर भी एक अधिकारी की तरह बोलते हो। क्या तुम बड़े लाल अजगर के कोई अधिकारी हो? क्या ऐसे लोग फरीसी नहीं हैं? (हाँ, हैं।) वे केवल नारे लगाना और धर्म-सिद्धांतों का प्रचार करना जानते हैं। जब समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, तो न केवल ये लोग उनसेसही ढंग से निपटनेमें असफल रहते हैं, बल्कि उनके पास अभ्यास का कोई मार्ग भी नहीं होता है। वे केवल बेकार की बातें करते हैं और अंधाधुंध विनियम लागू करते हैं; वे मूल रूप से किसी भी समस्या का समाधान करने में असमर्थ होते हैं। जब समस्याएँ समाप्त हो जाती हैं, तो वे ऐसा दिखावा करते हैं मानो कुछ हुआ ही नहीं, वे अच्छे व्यक्ति बनने का नाटक करते हैंऔर एकदम बेशर्मी से अपनी पीठ थपथपाते हैं। ऐसे लोग पक्के तौर परफरीसी हैं। वे केवल धर्म-सिद्धांतों का प्रचार कर सकते हैं, नारे लगा सकते हैं, कुछ प्रयास कर सकते हैं, थोड़ाकष्ट सह सकते हैं और कोई वास्तविक कार्य करने में सक्षम नहीं हैं, फिर भी वे आध्‍यात्मिक लोगहोने का दिखावा करते हैं। वे फरीसी हैं। यही इस प्रकार के नकली अगुआ का सार है। वे सभी के सामने इतने सारे धर्म-सिद्धांतों का प्रचार कर सकते हैं, तो फिरमसीह-विरोधियों को उजागर क्यों नहीं कर सकते और उनसे निपटक्यों नहीं सकते? वे घंटों तक लगातार प्रचार कर सकते हैं और अत्यधिक वाक्पटुता दिखा सकते हैं, तो जब वास्तविक समस्याओं का सामना करना पड़ता है—खासतौर पर मसीह-विरोधियों के बुरे कर्मोंका—वे उनसे निपटने में क्यों असमर्थ दिखते हैं, भौंचक्के क्यों दिखते हैं? इसका कारण क्या है? इसका कारण यही है कि उनकी काबिलियत बहुत खराब है। वह कितनी खराब है? उनमें आध्‍यात्मिक समझ नहीं है। वे शिक्षित और प्रतिभावानहैं, बाहरी मामलों को संभालने में काफी चतुर हैं और कानून की कुछ समझ भी रखते हैं। हालाँकि, जब बात परमेश्वर में विश्वास रखने, आध्‍यात्मिक मामलों और विभिन्न अनिवार्य मुद्दों की आती है, तो वे भेद पहचानने में असमर्थ होते हैं और किसीचीज की असलियत नहीं जान पाते हैं और न ही सत्य सिद्धांत खोज सकते हैं। जब कोई समस्या न हो, तो वे मछुआरे की तरह शांत बैठकर अपने शिकार का इंतजार कर सकते हैं, लेकिन जब समस्या उत्पन्न होती है, तो वे हास्यास्पद जोकरों की तरह व्यवहार करते हैं, जैसे गर्म तवे पर चींटियाँ चढ़ गई हों, वे बेहद दयनीय भाव दिखाते हैं। कभी-कभी वे अत्यधिक गंभीर और शांत व्यवहार करते हैं। जब वे शांत नहीं होते, तो सामान्य दिखते हैं, लेकिन जब वे शांतहो जाते हैं, तो वास्तव में लोगों को हँसी आ जाती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जब वे शांतहोते हैं, तो केवल झूठी बातें और आध्‍यात्मिक समझ से रहित शब्द कहते हैं, जो पूरी तरह से नौसिखिया जैसी टिप्पणियाँ होती हैं। फिर भी, वे गंभीरता बनाए रखते हैं—क्या यह हास्यास्पद नहीं है? अगर कोई उनसे कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न पूछे जिनका उत्तर देना हो, तो वे चकित और मौन हो जाते हैं, विशेष रूप से शर्मिंदा दिखाई देते हैं। ऐसे नकली अगुआ बहुत सारे हैं। खराब काबिलियत और आध्यात्मिक समझ की कमी उनकी प्रमुख अभिव्यक्तियाँ हैं; वे भ्रमित लोग हैं। आध्‍यात्मिक समझ की कमी का क्या अर्थ है? जब आध्‍यात्मिक मामलों और सत्य से संबंधित मुद्दों की बात आती है, तो ऐसा लगता है जैसे वे प्राचीन यूनानी शब्दों का अनुवाद करने की कोशिश कर रहे हों—उन्हें कुछ भी समझ में नहीं आता। फिर भी, वे यह कहते हुए दिखावा करते हैं : “मैं आध्‍यात्मिक हूँ। मैंने लंबे समय से परमेश्वर में विश्वास रखाहै। मुझे कई सत्य समझ में आते हैं। तुम लोग नए विश्वासी हो, तुम लोगों ने अभी-अभी परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू किया है और सत्य नहीं समझते हो। तुम लोग भरोसेमंद नहीं हो।” वे हमेशा खुद को ऐसा मानते हैं कि उन्होंने लंबे समय से परमेश्वर में विश्वास रखाहै और सत्य समझते हैं। ऐसे लोग घृणास्पद और हास्यास्पद दोनों हैं। ऐसे नकली अगुआओं की अभिव्यक्तियों पर संगति यहीं समाप्त होती है।

III. मसीह-विरोधियों के सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करना

एक अन्य प्रकार का नकली अगुआ है जो और भी ज्यादा घृणास्पद है। ऐसे नकली अगुआन केवल मसीह-विरोधियों को उजागर करने में असफल रहते हैं, बल्कि मसीह-विरोधियों के सुरक्षा कवच के रूप में भी कार्य करते हैं, वे प्रेमपूर्ण सहायता करने का बहाना बनाकर मसीह-विरोधियों के उन बुरे कर्मोंमें लिप्त होते हैं, जो कलीसिया के कार्य को बाधित करते हैं। चाहे मसीह-विरोधी लोगों को गुमराह करने के लिए कितनी भी भ्रांतियाँ फैलाएँ, ये नकली अगुआ न तो उनका खंडन नहीं करते हैं या उन्हें उजागर नहीं करते हैं, बल्कि मसीह-विरोधियों को अपने विचार व्यक्त करने और खुलकर बोलने के अवसर भी प्रदान करते हैं। भले ही परमेश्वर के चुने हुए लोग कितनी भी बाधाओं, गुमराह करने वाली बातोंया नुकसान का सामना करें, वेउदासीन रहते हैं। यहाँ तक कि जब कुछ लोग यह बताते हैं : “ये व्यक्ति मसीह-विरोधी हैं। इन्हें परमेश्वर के घर द्वारा नियंत्रित किया जाना चाहिए; इन्हें न तो बढ़ावा दिया जाना चाहिए और न ही विकसित किया जाना चाहिए और इन्हें बिल्कुल भी संरक्षित नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने भाई-बहनों को काफी नुकसान पहुँचाया है। अब समय आ गया है कि इनके साथ हिसाब-किताब किया जाए और इन्हें पूरी तरह से उजागर कर इनसे निपटा जाए,” नकली अगुआ मसीह-विरोधियों के पक्ष में बोलने के लिए आगे आते हैं। वे मसीह-विरोधियों की उम्र, परमेश्वर में उनके विश्वास के वर्षोंऔर उनके पिछले योगदान जैसे कारकों को ध्यान में रखते हुए उनके पक्ष में बोलने और उनका बचाव करने के लिए विभिन्न बहानों का उपयोग करते हैं। जब उच्च-स्तरीय अगुआ कार्य का निरीक्षण करने या मसीह-विरोधियों से निपटने के लिए आते हैं, तो नकली अगुआ भाई-बहनों को मसीह-विरोधियों के बुरे कर्मोंके तथ्य आगे रिपोर्ट करने से रोकते हैं। वे कलीसिया को सील बंद करने जैसे उपाय भी करते हैं ताकि उच्च-स्तरीय अगुआ मसीह-विरोधियों द्वारा कलीसिया में उत्पन्न की जा रही बाधाओं से अनजान रहेंऔर वे भेद पहचानने वाले भाई-बहनों को मसीह-विरोधियों को उजागर करने से भी रोकते हैं। चाहे नकली अगुआ मसीह-विरोधियों के सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करने के लिए जो भी बहाने दें या उनके जो भी उद्देश्य हों, अंततः वे एक तरफ मसीह-विरोधियों के हितों की रक्षा कर रहे होते हैं वहीं दूसरी तरफ कलीसिया और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के हितों के साथ विश्वासघात कर रहे होते हैं। वे मसीह-विरोधियों की रक्षा के लिए विभिन्न बहानों का उपयोग करते हैं, जैसेकि “मसीह-विरोधी भी परमेश्वर में विश्वास करते हैं और परमेश्वर के घर में बोलने का अधिकार रखते हैं” और “उन्होंने पहले खतरनाक कर्तव्यों को निभाया है; परमेश्वर के घर को उनके पिछले योगदानोंपर विचार करना चाहिए।” वे भाई-बहनों को मसीह-विरोधियों का भेद पहचानने से रोकते हैं और उच्च-स्तरीय अगुआओं को उनके बुरे कर्मों के बारे में जानने नहीं देते; साथ ही, वे स्वयं मसीह-विरोधियों को न तो उजागर करते हैं और न ही उनकी किसी भी प्रकार की काट-छाँट करते हैं। ये मसीह-विरोधी उनके परिवार के सदस्य, करीबी मित्रयाइससे भी बढ़कर ऐसे लोग हो सकते हैं जिन्हें वे आदर्श मानते हैं और भावनात्मक रूप से छोड़ने में कठिनाई महसूस करते हैं। चाहे स्थिति कोई भी हो, यदि वे जानते हैं कि ये लोग मसीह-विरोधी हैं और फिर भी उनके बुरे कर्मों का बचाव करते हैं, दूसरों से कहते हैं कि उनके साथ प्रेम से व्यवहार करोऔर यहाँ तक कि विभिन्न तरीकों से मसीह-विरोधियों को विभिन्न भ्रांतियाँ फैलाने और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को गुमराह और बाधित करने के अवसर प्रदान करते हैं, तो ये अभिव्यक्तियाँ यह दर्शाती हैं कि वे मसीह-विरोधियों के सुरक्षा कवच के रूप में कार्य कर रहे हैं। हो सकता है कि कुछ नकली अगुआओं ने अन्य क्षेत्रों में थोड़ा-बहुत वास्तविक कार्य किया हो, लेकिन जब मसीह-विरोधियों से निपटने की बात आती है, तो वे परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं के अनुसार उनसे नहीं निपटते। यही नहीं, वे परमेश्वर के घर द्वारा अपेक्षित अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ भी पूरी नहीं करते—वे मसीह-विरोधियों को कलीसिया में लोगों को गुमराह करने के लिए अधिकतम संभव सीमा तक धारणाएँ, नकारात्मक भावनाएँ, पाखंड और भ्रांतियाँ फैलाने से नहीं रोकते हैं। इसके बजाय, वे अक्सर मसीह-विरोधियों द्वारा बोले गए दिखावटी धर्म-सिद्धांतों को, साथ ही उनके कथनों और टिप्पणियों को, जो ज्ञान या शैतान के फलसफेपर आधारित होते हैं, सकारात्मक चीजों के रूप में बनाए रखते हैं। ये सब उनकी अभिव्यक्तियाँ हैं जो दर्शाती हैं कि वे मसीह-विरोधियों के सुरक्षा कवच के रूप में कार्य कर रहे हैं। बेशक, कुछ नकली अगुआ मसीह-विरोधियों से इसलिए नहीं निपटते हैं क्योंकि वे समाज में उनके प्रभाव को महत्व देते हैं। वे कहते हैं, “अधिकांश भाई-बहन समाज के निचले तबकेसे आते हैं और उनका कोई प्रभाव नहीं है। भले ही यह व्यक्ति मसीह-विरोधी है और इसमें बुरी मानवता है, लेकिन उसके पास ताकत है, उसका दुनिया में प्रभाव है और वह सक्षम है। जब भाई-बहन या कलीसिया खतरे का सामना करेंगे, तो क्या हमें एक मजबूत व्यक्ति की आवश्यकता नहीं होगी जो आगे आकर हमारी रक्षा करे? इसलिए, उनकेगलत कार्यों को नजरअंदाज कर देना चाहिए और इसे इतना गंभीर मुद्दा नहीं बनाना चाहिए।” नकली अगुआ मसीह-विरोधियों के सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करने के इच्छुक होते हैं ताकि मसीह-विरोधी उनका पक्ष लें और उनका समर्थन करें—यह भी नकली अगुआओं से नीचेके स्तर का कार्य नहीं है। कुछ नकली अगुआओं मेंगलत दृष्टिकोण भी होता है। उनका कहना है, “कुछ मसीह-विरोधियों का समाज में रुतबा और प्रभाव है; उनकी प्रतिष्ठा है। हमारी कलीसिया में ऐसे दो व्यक्ति हैं। भले हीवे मसीह-विरोधी हैं, लेकिन अगर हमने उन्हें बाहर निकाल दिया, तो लोग सोचेंगे कि हमारी कलीसिया में कोई सक्षम व्यक्ति नहीं है, और धार्मिक मंडलियों में लोग हमें तुच्छ समझेंगे। हमें दिखावे के लिए उन्हें अपने आसपास बनाए रखना चाहिए। इसलिए, ये दो लोग हमारी कलीसिया का खजाना हैं; कोई भी उनका भेद नहीं पहचान सकता या उन्हें बाहर नहीं निकाल सकता। उन्हें बचाया जाना चाहिए।” यह किस प्रकार कातर्क है? वे मसीह-विरोधियों को प्रतिभाएँ मानते हैं, इसलिए वे उन्हें बचाते हैं। क्या ये नकली अगुआ बदमाश नहीं हैं? (हाँ।) परिस्थितियाँ चाहे जो भी हों, जब तक अगुआ और कार्यकर्ता मसीह-विरोधियों को कलीसिया में जो चाहे करने देते हैं और कलीसिया के कार्य को बाधित करने देते हैं, तब तक वे नकली अगुआ और कार्यकर्ता हैं। मसीह-विरोधी और बुरे लोग चाहे कितनी भी भ्रांतियाँ फैलाएँ, इस तरह चाहे कितने ही लोग उनके द्वारा गुमराह हों, चाहे वे सकारात्मक हस्तियों पर कैसे भी आक्रमण करें और उनका बहिष्कार करें और चाहे परमेश्वर के चुने हुए कितने ही लोगों को नुकसान पहुँचाएँ, नकली अगुआ इसकी अनदेखी करते हैं और अनजान बनने का नाटक करते हैं—जब तक वे खुद को संरक्षित रख सकते हैं, उनके लिए सब ठीक रहता है। ये नकली अगुआओं की मुख्य अभिव्यक्तियाँ हैं। मसीह-विरोधी चाहे कुछ भी कहें या करें, नकली अगुआ न तो उन्हें उजागर करते हैं, न उनका गहन-विश्लेषण करते हैं, और न ही उन्हें प्रतिबंधित करते हैं, ताकि भाई-बहन उनका भेद पहचान सकें और उन्हें अस्वीकार कर सकें। इसके बजाय, वे मसीह-विरोधियों को अपने पालतू जानवरों की तरह पालते हैं, उन्हें गणमान्य व्यक्तियों की तरह सेवा और सुरक्षा प्रदान करते हैं, उनके लिए रास्ता साफ करते हैं, और उन्हें प्रदर्शन के लिए विभिन्न अवसर प्रदान करते हैं। जब वे मसीह-विरोधियों को पूरी तरह से उनकी स्वतंत्रता का आनंद लेने देते हैं, तो किसके हितों की बलि दी जाती है? (परमेश्वर के चुने हुए लोगों के हितों की।) नकली अगुआ न केवल परमेश्वर के चुने हुए लोगों की रक्षा करने में असफल रहते हैं, बल्कि वे मसीह-विरोधियों को कलीसिया में कार्यभार संभालने देते हैं, जिससे भाई-बहन बैलों और घोड़ों की तरह, दासों की तरह मसीह-विरोधियों की सेवा करने लगते हैं, वे मसीह-विरोधियों के आदेशों का पालन करते हैं, उनकी भ्रामक टिप्पणियों, विचारों और दृष्टिकोणों को स्वीकारते हैं, उनके नियंत्रण को सहते हैं और यहाँ तक कि उनके द्वारा पहुँचाए गए गंभीर नुकसान को भी स्वीकारते हैं, इत्यादि। यही कार्य नकली अगुआ करते हैं। क्या वे मसीह-विरोधियों को परमेश्वर के चुने हुए लोगों को काफी हद तक तक गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाने से रोक रहे हैं? क्या उन्होंने अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों को पूरा किया है? क्या उन्होंने परमेश्वर के चुने हुए लोगों को बचाने का कार्य किया है? (नहीं।) संक्षेप में, चाहे जो भी कारण हो, ऐसा कोई भी अगुआ जो बिना कोई कार्य किए मसीह-विरोधियों को मनमानी करने की अनुमति देता है, वह नकली अगुआ है। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ कि वहनकली अगुआ है? क्योंकि जब मसीह-विरोधी परमेश्वर के चुने हुए लोगों को गुमराह और नियंत्रित करते हैं, तो वे भाई-बहनों को मसीह-विरोधियों से होने वाले विभिन्न नुकसान झेलने देते हैंऔर परमेश्वर द्वारा उन्हेंदिए गए आदेश को पूरा करने में असफल रहते हैं। परमेश्वर के घर ने परमेश्वर की भेड़ों, परमेश्वर के चुने हुए लोगोंको तुम्हारे हाथों में सौंपा और तुमने अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं की। तुम परमेश्वर के आदेश को वहन करने के योग्य नहीं हो! चाहे जो भी कारण हो या तुम्हारा जो भी औचित्य हो, यदि तुमने अगुआ के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान मसीह-विरोधियों के सुरक्षा कवच के रूप में कार्य किया, जिससे भाई-बहनों को मसीह-विरोधियों की बाधाओं, गुमराह करने, नियंत्रित करने और गंभीर नुकसान कासामना करना पड़ा, तो तुम सदा के लिए एक पापी हो। इसका कारण यह नहीं है कि तुम मसीह-विरोधियों का भेद नहीं पहचान सकते या उनके सार की असलियत नहीं जान सकते—तुम्हें अपने दिल मेंस्पष्ट रूप से पता है कि मसीह-विरोधी शैतान और दानव हैं, फिर भी तुम परमेश्वर के चुने हुए लोगों को उन्हें उजागर करने और उनका भेद पहचानने की अनुमति नहीं देते। इसके बजाय, तुम भाई-बहनों को उनकी बातें सुनने, उन्हें स्वीकार करनेऔर उनकी आज्ञा का पालन करने देते हो। यह सत्य के पूर्णतया विपरीत है। क्या यह तुम्हें सदा के लिए पापी नहीं बनाता? (हाँ।) तुम न केवल उन लोगों को बचाने में असफल हुए जो ईमानदारी से अपने कर्तव्य निभाते हैं और सत्य का अनुसरण करते हैं, बल्कि तुमने मसीह-विरोधियों को भी अगुआओं और कार्यकर्ताओं के पदों पर प्रोन्नतकर दिया, उन्हें पालतू जानवरों की तरह पालाऔर भाई-बहनों को उनके आदेशों का पालन करने पर मजबूर किया। परमेश्वर के घर ने परमेश्वर के चुने हुए लोगों को तुम्हें इसलिए नहीं सौंपा था कि वे मसीह-विरोधियों के दास बनें या तुम्हारे दास बनें, बल्कि इसलिए कि तुम परमेश्वर के चुने हुए लोगों की अगुआई करो, ताकि वे शैतान और मसीह-विरोधियों के खिलाफ लड़ सकें, उनका भेद पहचान सकें और उन्हें अस्वीकार कर सकें; साथ ही, परमेश्वर के चुने हुए लोग एक सामान्य कलीसियाई जीवन जीने में सक्षम हों, अपने कर्तव्यों को सामान्य रूप से निभाएँ, सत्य वास्तविकता में प्रवेश करेंऔर परमेश्वर के मार्गदर्शन में उसके प्रति समर्पित हों और उसकी गवाही दें। यदि तुम यह जिम्मेदारी भी पूरी नहीं कर सकते, तो क्या तुम इंसान कहलाने के योग्य हो? और फिर भी तुम मसीह-विरोधियों को बचाना चाहते हो। क्या मसीह-विरोधी तुम्हारे पूर्वज हैं या तुम्हारे आदर्श? भले ही तुम्हारा उनसे रक्त का संबंध हो, तुम्हें सत्य सिद्धांतों का पालन करना चाहिए और न्याय को परिवार से ऊपर रखना चाहिए। तुम्हें अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए कर्तव्य-परायण होना चाहिए—मसीह-विरोधियों को उजागर करना, उनका भेद पहचानना और उन्हें अस्वीकार करना चाहिए, तुम्हें भाई-बहनों को बचाने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करना चाहिए, ताकि उन्हें मसीह-विरोधियों द्वारा नुकसान पहुँचाने से अधिकतम संभव सीमा तक बचाया जा सके। यही सच्चे मन से अपना कर्तव्य निभाना और परमेश्वर के आदेश को पूरा करना है; केवल ऐसा करने से ही तुम एक योग्य अगुआ या कार्यकर्ता कहला सकते हो जो मानक के अनुरूप है। यदि तुम अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों को पूरा करने में असफल रहते हो और स्वेच्छा से मसीह-विरोधियों के सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करते हो, तो तुम सदा के लिए एक पापी होने के सिवाय और क्या हो सकते हो? मसीह-विरोधियों के सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करने वाले नकली अगुआओं पर संगति यहीं समाप्त होती है। यह स्पष्ट है कि ऐसे लोगों को नकली अगुआओं की श्रेणी में रखना बिल्कुल भी अनुचित नहीं है; यह वास्तविक नकली अगुआओं की अभिव्यक्तियों में से एक है।

IV. मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह किए गए लोगों की परवाह नहीं करना या उनकी खैरियत नहीं पूछना

नकली अगुआओं की एक और ऐसी अभिव्यक्ति है जो और भी ज्यादा क्रोध दिलाने वाली है। कुछ नकली अगुआ अपनी बातचीत के दौरान कुछ हद तक मसीह-विरोधियों का भेद पहचान सकते हैं लेकिन फौरन उनसे निपटने में असफल रहते हैं। वे मसीह-विरोधियों के विभिन्न व्यवहारों के जरिए फौरन उनके बुरे कर्मों और सार को उजागर करने और उसका गहन-विश्लेषण करने में भी असफल रहते हैं, जिससे भाई-बहन मसीह-विरोधियों का भेद पहचानने और उन्हें अस्वीकार करने में समर्थ होते हैं। इसे पहले ही अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों को पूरा न करना माना जाता है। जब कुछ भाई-बहन मसीह-विरोधियों से गुमराह होते हैं और उनका अनुसरण करने लगते हैं, तो ये नकली अगुआ उदासीन रहते हैं, मानो इसका उनसे कोई लेना-देना ही नहीं है। इसके अलावा, उन्हें अपने दिल में कोई आत्म-ग्लानि या आत्म-दोष महसूस नहीं होता। उन्हें ऐसा महसूस नहीं होता कि उन्होंने परमेश्वर या भाई-बहनों को निराश किया है। इसके बजाय वे अक्सर यह “आदर्श” पंक्ति कहते हैं : “इन लोगों को मसीह-विरोधियों ने गुमराह किया था। वे इसी लायक थे! यह उनकी गलती है कि उनमें समझ नहीं है। अगर वे मसीह-विरोधियों का अनुसरण नहीं भी करते, तो भी परमेश्वर के घर द्वारा उन्हें बाहर निकाला जाना तय था।” मसीह-विरोधियों द्वारा भाई-बहनों को गुमराह किए जाने के बाद न केवल इन नकली अगुआओं को आत्म-ग्लानि या अपराध-बोध नहीं होता, बल्कि इससे भी बढ़कर वे चिंतन-मनन या पश्चात्ताप तक नहीं करते। इसके बजाय, वे ऐसी अमानवीय बातें कहते हैं और दावा करते हैं कि ये भाई-बहन मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह होने लायक ही थे। इन शब्दों से क्या स्पष्ट होता है? क्या ऐसे लोगों में मानवता होती है? (नहीं।) उनमें मानवता का अभाव होना निश्चित है। तो वे ऐसी बातें क्यों कहते हैं? (अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए।) सबसे पहले, यह जिम्मेदारी से बचने, लोगों को गुमराह करने और सुन्न करने के लिए है। उनका मानना है : “उन लोगों को मसीह-विरोधियों ने गुमराह किया था क्योंकि उनमें समझ की कमी थी, जिसका मुझसे कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने सत्य का अनुसरण नहीं किया, इसलिए वे गुमराह होने के ही लायक थे!” “लायक थे” का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि इन लोगों को मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह और नियंत्रित किया जाना चाहिए, और मसीह-विरोधियों द्वारा गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाया जाना चाहिए—मसीह-विरोधी उनके साथ जो भी व्यवहार करते हैं, वे उसी के लायक हैं; वे मसीह-विरोधियों का अनुसरण करने के ही लायक हैं। इसका निहितार्थ यह है कि इन लोगों को परमेश्वर का नहीं बल्कि मसीह-विरोधियों का अनुसरण करना चाहिए, परमेश्वर का अनुसरण करना उनके लिए एक गलती थी, परमेश्वर का उन्हें चुनना भी एक गलती थी; यहाँ तक कि परमेश्वर के घर में आने के बाद भी, मसीह-विरोधियों द्वारा उन्हें बहकाया जाना अपरिहार्य था। क्या नकली अगुआ यही बात नहीं समझाना चाहते हैं? वे न केवल भाई-बहनों की बदनामी करते हैं, बल्कि परमेश्वर का तिरस्कार भी करते हैं। क्या ऐसे लोग घृणास्पद नहीं हैं? (हाँ।) वे अत्यधिक घृणास्पद हैं! अपनी जिम्मेदारी से बचने और इस तथ्‍य और सत्य को छिपाने के अलावा कि उन्होंने भाई-बहनों को नहीं बचाया, उन्होंने यह कहते हुए उन पर हमला भी किया कि ये लोग मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह होने के लायक ही थे और परमेश्वर में विश्वास करने और उसके उद्धार को प्राप्त करने के अयोग्य थे। यह एक कथन उनके घिनौने चरित्र को बेनकाब करता है! भले ही वे मसीह-विरोधियों की तरह भाई-बहनों को सीधे तौर पर बाधित या गुमराह नहीं करते थे या दबाते नहीं थे, लेकिन भाई-बहनों के प्रति, परमेश्वर के आदेश और परमेश्वर के घर द्वारा सौंपे गए झुंड के प्रति उनका रवैया दर्शाता है कि वे वास्तव में कितने कठोर और निर्मम हैं! परमेश्वर के कार्य को स्वीकारने वाला कोई भी व्यक्ति इसे इतनी आसानी से नहीं करता; इसमें सुसमाचार का प्रचार करने वालों का बलिदान और सहयोग शामिल होता है। इसमें बहुत अधिक जनबल और संसाधन लगते हैं, और सबसे बढ़कर, इसमें परमेश्वर का गहरा परिश्रम समाहित होता है। यह परमेश्वर ही है जो लोगों को अपने सामने लाने के लिए विभिन्न लोगों, घटनाओं, चीजों और परिवेशों की व्यवस्था करता है। नकली अगुआ इसमें से किसी पर भी कोई ध्यान नहीं देते। मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह किए गए किसी भी व्यक्ति के बारे में, वे एक ही वाक्य में बात खत्म कर देते हैं : “वे इसी के लायक थे!” ऐसा कहते हुए, वे इसमें शामिल सभी लोगों की मेहनत और परमेश्वर के अथक प्रयास को शून्य कर देते हैं। “वे इसी के लायक थे” का क्या मतलब है? इसका मतलब है : “तुम्हें उनके सामने सुसमाचार प्रचार करने के लिए किसने कहा? वे परमेश्वर में विश्वास करने के अयोग्य हैं। उनके सामने सुसमाचार प्रचार करना एक गलती थी। उन्हें मसीह-विरोधियों का अनुसरण करने के लिए किसने कहा था? भले ही मैंने कोई वास्तविक काम नहीं किया, लेकिन मैंने उन्हें मसीह-विरोधियों का अनुसरण करने के लिए भी मजबूर नहीं किया। यह उनकी ही जिद थी; वे मसीह-विरोधियों का अनुसरण करने के लायक थे!” ऐसे व्यक्ति में किस प्रकार की मानवता होती है? क्या उसमें तनिक भी दिल है? वह रखवाली करने वाले कुत्ते से भी बदतर निर्दयी जानवर है और फिर भी वह एक अगुआ है? वह इसके लायक नहीं है! तुम लोगों को भेद पहचानने की क्षमता होनी चाहिए : ऐसे लोगों को देखकर, जिनमें जमीर और विवेक की कमी है और जो इतने निर्मम हैं, उन्हें अगुआ के रूप में चुनना नहीं चाहिए। भ्रमित मत हो! वे न केवल मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह हुए लोगों को वापस लाने और नुकसान की भरपाई करने के लिए हर संभव प्रयास करने में असफल रहते हैं, बल्कि वे ऐसी निर्दयी बातें भी कहते हैं—वे कितने दुष्ट हैं! इस प्रकार के व्यक्ति की समस्या की प्रकृति सामान्य नकली अगुआ से कहीं अधिक गंभीर है। भले ही उन्हें मसीह-विरोधी नहीं कहा जा सकता, उनकी अभिव्यक्तियों के आधार पर यह स्पष्ट है कि उनमें कोई मानवता नहीं है और वे अगुआ या कार्यकर्ता बनने के योग्य नहीं हैं। वे केवल एक कुरूप, कृतघ्न गद्दार हैं! उन्हें यह भी नहीं पता कि परमेश्वर का आदेश क्या है और न ही इस बात का कोई बोध है कि उन्हें क्या कार्य करना चाहिए। वे इसे जमीर और विवेक के साथ नहीं करते; वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों के अगुआ बनने के योग्य नहीं हैं और न ही परमेश्वर का आदेश स्वीकारने के योग्य हैं। विशेष रूप से, नकली अगुआओं में परमेश्वर के चुने हुए लोगों के प्रति कोई प्रेम नहीं होता। जब भाई-बहन गुमराह हो जाते हैं, तो उनकी स्थिति खराब होने पर किसी भी प्रकार की सहानुभूति दिखाए बिना यह कहते हुए उन्हें लात भी मार देते हैं, “वे इसी के लायक थे।” ऐसा व्यक्ति जब किसी को कठिनाइयों या विपत्ति में देखता है, तो उसकी मदद करने के बजाय उसकी स्थिति खराब होने पर उसे लात मारने का काम करेगा। उसका जमीर कोई आत्म-ग्लानि महसूस नहीं करेगा और वह हमेशा की तरह अगुआ बना रहेगा। क्या यह बेशर्मी नहीं है? (हाँ।) भाई-बहनों की तो बात ही छोड़ दो, अगर दानव किसी अच्छे अविश्वासी को भी गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाते हैं, तो परमेश्वर में विश्वास रखने वाले और एक सृजित प्राणी के रूप में, सामान्य मानवता वाला कोई भी व्यक्ति सहानुभूति महसूस करेगा; और अगर वही भाई-बहन हों—जो ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास रखते हैं—जिन्हें मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह किया और नुकसान पहुँचाया गया है, तो उनके दिल को और भी अधिक पीड़ा होनी चाहिए। जब मसीह-विरोधी बुराई करते हैं और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नुकसान पहुँचाते हैं, उस दौरान ये नकली अगुआ कोई वास्तविक कार्य नहीं करते। वे न तो मसीह-विरोधियों के बुरे कर्मों और सार को उजागर करते हैं, और न ही उनका गहन-विश्लेषण करते हैं। उनमें भाई-बहनों को मसीह-विरोधियों की समझ प्राप्त करने देने और दिल से उन्हें अस्वीकारने में उनकी मदद करने को लेकर दायित्व की कोई भावना तो बिल्कुल नहीं होती। इस मामले में उन्हें कोई जिम्मेदारी महसूस नहीं होती। यहाँ तक कि जब मसीह-विरोधी कुछ लोगों को गुमराह करते हैं, तो वे केवल भाव-शून्य और निर्मम टिप्पणी करते हैं, “वे इसी के लायक थे।” यह वास्तव में क्रोध दिलाने वाला है! अपनी जिम्मेदारी से बचने, खुद को सुरक्षित रखने, अधिक लोगों को गुमराह और सुन्न करने और परमेश्वर द्वारा दोषी ठहराए जाने से बचने के लिए, वे ऐसी अमानवीय बातें कहते हैं। क्या यह घृणास्पद नहीं है? (हाँ।) तुम चाहे कुछ भी कहो, तुमने अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी नहीं कीं और न ही अपना कार्य सही ढंग से किया—ये नकली अगुआ की अभिव्यक्तियाँ हैं; तुम चाहे जितना भी प्रयास करो, इन बातों से इनकार नहीं कर सकते। तुम नकली अगुआ हो।

कुछ नकली अगुआ मसीह-विरोधियों द्वारा कुछ भाई-बहनों के गुमराह होने के बाद यह कहते हुए न केवल बेरहम, निर्मम और गैर-जिम्मेदाराना तरीके से व्यवहार करते हैं कि ये लोग गुमराह होने के ही लायक थे, बल्कि जब परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वे उन लोगों को बचाने के लिए अपनी जिम्मेदारी पूरी करें जिनमें अपेक्षाकृत अच्छी मानवता है और उनमें से कुछ लोगों को यथासंभव काफी हद तक बचाए जाने की आशा है, तब भी ये नकली अगुआ कोई वास्तविक कार्य नहीं करते हैं। यहाँ तक कि जब कुछ लोग कलीसिया में लौटने का अनुरोध करते हैं, तो भी वे उदासीन और लापरवाह बने रहते हैं, लोगों के जीवन को सबसे अनमोल चीज के रूप में नहीं देखते जिसे संजोना चाहिए। वे काफी हद तक गुमराह हुए भाई-बहनों को यथासंभव बचाने में असफल रहते हैं। वे इस जिम्मेदारी को पूरा नहीं कर सकते और इसे पूरा करने का कोई प्रयास नहीं करते। भले ही परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाएँ बार-बार यह कार्य अच्छी तरह से करने की माँग करती हैं, फिर भी नकली अगुआ निष्क्रिय रहते हैं, कोई कार्रवाई नहीं करते और कोई काम नहीं करते। परिणामस्वरूप, मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह हुए और अलग-थलग कर दिए गए या बाहर निकाल दिए गए कुछ लोग अभी भी परमेश्वर के घर में वापस नहीं लौट सके हैं और उन्होंने सामान्य कलीसियाई जीवन फिर से शुरू नहीं किया है। बेशक, कुछ लोग विभिन्न पहलुओं में परमेश्वर के घर द्वारा बचाए जाने की शर्तों को पूरा नहीं करते हैं, लेकिन अन्य लोग हैं जिन्हें बचाया जा सकता है। यदि उन्हें प्रेमपूर्ण मदद और धैर्यपूर्वक समर्थन दिया जाए, तो वे सत्य समझ सकते हैं, मसीह-विरोधियों का भेद पहचान सकते हैं और उन्हें अस्वीकार कर सकते हैं, जिससे उन्हें बचाया जा सकता है। हालाँकि, क्योंकि अगुआ और कार्यकर्ता वास्तविक कार्य नहीं करते, परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं को लागू नहीं करते और इन लोगों के जीवन को महत्वपूर्ण नहीं मानते, इस वजह से कुछ लोग अब भी बाहर भटक रहे हैं। ये अगुआ और कार्यकर्ता परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं को विभिन्न बहानों का सहारा लेकर नजरअंदाज करते हैं। वे उन भाई-बहनों को भी अनदेखा कर देते हैं जो कलीसिया में लौटना चाहते हैं और कलीसिया की स्वीकार्यता की शर्तों को पूरा करते हैं। वे यह कहते हुए तरह-तरह के बहाने बनाते हैं कि ये लोग खराब मानवता वाले हैं, सुरक्षा के लिए जोखिम पैदा करते हैं, सजने-संवरने के शौकीन हैं, दैहिक सुखों का आनंद लेते हैं, रुतबे से लगाव रखते हैं, इत्यादि। इन गढ़े हुए बहानों और तर्कों का उपयोग करके वे उन्हें कलीसिया में लौटने से मना कर देते हैं। ये लोग मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह और नियंत्रित किए गए हैं, लेकिन उनका खो जाना नकली अगुआओं के लिए कोई चिंता की बात नहीं है। उनमें न तो कोई जिम्मेदारी का भाव है और न ही कोई जमीर। हो सकता है कि वे सोचते हों कि इन लोगों को वापस लाना मुश्किल या खतरनाक है या हो सकता है कि वे मन-ही-मन इसे करने के लिए अनिच्छुक या असहमत हों। किसी भी स्थिति में, विभिन्न कारणों से, वे परमेश्वर के घर की उपरोक्त कार्य व्यवस्था को बिल्कुल भी लागू नहीं करते। ये ऐसे नकली अगुआओं की अभिव्यक्तियाँ हैं। वे न केवल परमेश्वर या परमेश्वर के घर द्वारा सौंपे गए किसी भी कार्य में सक्रिय रूप से सहयोग करने और अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने में असफल रहते हैं, बल्कि जब कोई उनके द्वारा की गई जिम्मेदारी की उपेक्षा को उजागर करता है, तो वे अपना बचाव करने, अपनी जिम्मेदारी से बचने और अपनी उपेक्षा की सच्चाई को छिपाने के लिए खुद को सही ठहराने वाले बहाने बनाने लगते हैं। क्या ऐसे नकली अगुआ और भी अधिक घृणास्पद नहीं हैं? (हाँ।) सारांश रूप में, ये नकली अगुआ भी मसीह-विरोधियों द्वारा परमेश्वर के चुने हुए लोगों को गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाने से निपटने में लापरवाह रहते हैं और कोई वास्तविक कार्य नहीं करते। वे परमेश्वर के घर द्वारा अपेक्षित इस कार्य की हर बारीकी को अनदेखा करते हैं। वे न तो कष्ट सहने को इच्छुक होते हैं और न ही कोई कीमत चुकाने को। इसके बजाय, वे केवल अपनी मनमर्जी से और इच्छानुसार काम करना पसंद करते हैं—मन हुआ तो थोड़ा कर लिया और अगर मन नहीं हुआ तो बिल्कुल भी कुछ नहीं करते। वे परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं की पूरी तरह से अनदेखी करते हैं। वे परमेश्वर के घर द्वारा सौंपी गई जिम्मेदारियों और कर्तव्यों की उपेक्षा करते हैं और विशेष रूप से, परमेश्वर के इरादों और अपेक्षाओं की भी उपेक्षा करते है। ऐसे लोगों में न तो मानवता होती है और न ही कोई जमीर; वे चलती-फिरती लाशें हैं। क्या तुम लोग परमेश्वर में विश्वास करते हुए उद्धार का अनुसरण करने के अपने जीवन के इस महत्वपूर्ण विषय को ऐसे लोगों को सौंपने की हिम्मत करोगे जिनमें मानवता नहीं है? (नहीं।) भले ही वे तुम्हें मसीह-विरोधियों के हवाले न करें, लेकिन जब मसीह-विरोधी परमेश्वर के चुने हुए लोगों को गुमराह करते हैं और गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाते हैं, तो क्या वे मसीह-विरोधियों के खिलाफ पूरी ताकत से लड़ेंगे? नहीं, वे ऐसा नहीं करेंगे, क्योंकि ऐसे लोग निर्दयी जानवर हैं, जिनमें जिम्मेदारी का कोई भाव नहीं होता। वे केवल अपने फायदे के लिए अगुआ के रूप में सेवा करते हैं।

कभी-कभी नकली अगुआ भाई-बहनों के लिए चिंता जाहिर करते हैं; वे उनसे पूछते हैं कि क्या उन्हें किसी चीज की जरूरत है, उनका खाना-पीना और आवास कैसा है, इत्यादि। वे रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ी बातों को लेकर काफी सजग रहते हैं, लेकिन जब बात परमेश्वर के आदेश, भाई-बहनों के जीवन-मरण और सत्य सिद्धांतों की आती है, तो चाहे कोई भी उनसे पूछे, वे उदासीन रहते हैं और कुछ नहीं करते। वे केवल लोगों के दैहिक आनंद, भोजन, वस्त्र, आश्रय, परिवहन या भौतिक लाभों के बारे में ही चिंता करते हैं और इन्हीं मामलों को निपटाते हैं। कुछ लोग कहते हैं, “तुम्हारे शब्दों में विरोधाभास है। क्या तुमने नहीं कहा कि वे लोग निर्दयी हैं? क्या कोई निर्दयी व्यक्ति दूसरों की खातिर ये सब करने के लिए तैयार होगा?” क्या कोई निर्दयी व्यक्ति हर किसी के लिए इतना दयालु होगा? (नहीं।) वास्तव में, कुछ निर्दयी लोग वाकई ये काम कर सकते हैं और इसके दो कारण हैं। पहला, जब वे सबके लिए कुछ कर रहे होते हैं, तो वे अपने लिए भी कुछ कर रहे होते हैं और इसका फायदा उठाते हैं। यदि उन्हें कुछ फायदा नहीं मिल रहा हो, तब देखना, क्या वे फिर भी ये काम करेंगे—वे तुरंत अपना रवैया बदल देंगे और रुक जाएंगे। इसके अलावा, वे इन कार्यों को करने के लिए किसके पैसों का इस्तेमाल कर रहे हैं और सबके लिए लाभ प्राप्त कर रहे हैं? यह परमेश्वर का घर है जो इसका खर्च उठाता है। परमेश्वर के घर के संसाधनों के प्रति उदारता दिखाना इन लोगों की विशेषता है। जब उन्हें व्यक्तिगत लाभ प्राप्त होते हैं, तो वे ये काम कैसे नहीं करेंगे? जब वे सबके लिए लाभ हासिल कर रहे होते हैं, तो असल में वे अपने लिए ही कुछ कर रहे होते हैं। वे इतने दयालु नहीं हैं कि सिर्फ दूसरों की खातिर ही लाभ हासिल करें! यदि वे वास्तव में सभी के लिए लाभ चाहते, तो उनमें कोई स्वार्थी मंशाएँ नहीं होना चाहिए थीं और उन्हें परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुसार काम करना चाहिए था। लेकिन, इसके बजाय वे हमेशा अपने लिए ही लाभ ढूँढ़ रहे होते हैं और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश के बारे में वे कोई विचार नहीं करते। इसके अलावा, वे हर किसी के लिए काम करते हैं ताकि लोग उन्हें महत्व दें और कहें, “यह व्यक्ति हमारा लाभ चाहता है और हमारे हितों की रक्षा करने की कोशिश करता है। अगर हमें किसी चीज की कमी हो, तो हमें उनसे इसका ख्‍याल रखने के लिए कहना चाहिए। उनके आसपास रहने से, हमें कोई भी बुरा व्यवहार नहीं सहना पड़ेगा।” वे ये सब करते हैं ताकि हर कोई उनका धन्यवाद करे। इस तरह से काम करके, वे शोहरत और लाभ दोनों प्राप्त करते हैं, तो वे ये काम क्यों नहीं करेंगे? अगर वे सभी के लिए लाभ चाहते, लेकिन कोई नहीं जानता कि यह उनका काम था, सभी परमेश्वर का धन्यवाद करते, कोई भी उनके प्रति आभार व्यक्त नहीं करता, तो क्या वे फिर भी ये काम करते? वे बिल्कुल भी ऐसा करने की मनःस्थिति में नहीं होंगे; उनका असली रूप उजागर हो जाएगा। जब इस तरह के लोग कुछ करते हैं, तो उनका प्रकृति सार पूरी तरह से उजागर हो जाता है। इसलिए, जब मसीह-विरोधी कलीसिया को बाधित करते हैं, तो ये लोग कभी भी परमेश्वर के चुने हुए लोगों को बचाने के लिए कोई वास्तविक काम नहीं करेंगे।

अभी हमने इस विषय पर संगति की कि जब मसीह-विरोधी परमेश्वर के चुने हुए लोगों को गुमराह करते हैं, नियंत्रित करते हैं और नुकसान पहुँचाते हैं, तब भी नकली अगुआ इसे नजरअंदाज कर देते हैं। वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को बचाने के लिए कोई उपाय नहीं सोचते, न ही वे अपने दायित्वों और जिम्मेदारियों को पूरा करते हैं। वे केवल अपनी भावनाओं, मनोदशा और हितों के बारे में सोचते हैं। वे अपनी जिम्मेदारियाँ नहीं निभाते और न ही अपने आप को जवाबदेह ठहराते हैं; इसके बजाय, वे अपनी जिम्मेदारियों से भागते हैं और उन्हें टालते हैं। जब मसीह-विरोधी परमेश्वर के चुने हुए लोगों को गुमराह और नियंत्रित करते हैं, तो वे यह कहते हुए उनकी आलोचना करते हैं कि वे ईमानदारी से परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते, ताकि वे अपने जमीर की किसी कचोट के बिना अपनी जिम्मेदारी से बच सकें। ये नकली अगुआ सबसे घृणित हैं। हमने नकली अगुआओं की जिन विभिन्न अभिव्यक्तियों पर चर्चा की है, वे सभी काफी घिनौनी हैं, लेकिन इस अंतिम प्रकार के व्यक्ति में तो मानवता बिल्कुल भी नहीं होती है। इस प्रकार का व्यक्ति एक निर्दयी जानवर है, इंसान की खाल में जंगली जानवर है; इसे मानवजाति का हिस्सा नहीं माना जा सकता, बल्कि इसे जंगली जानवरों के समूह में रखा जाना चाहिए। वे अपनी जिम्मेदारियाँ क्यों नहीं निभाते? क्योंकि उनके पास मानवता नहीं है, उनके पास जमीर या विवेक नहीं है। जिम्मेदारियाँ, दायित्व, प्रेम, धैर्य, करुणा, भाई-बहनों की रक्षा करना—इनमें से कुछ भी उनके दिल में नहीं है; इनमें से कोई भी गुण उनके पास नहीं है। उनकी मानवता में इन गुणों का न होना, मानवता का नहीं होना ही है। यही नकली अगुआओं के चौथे प्रकार की अभिव्यक्तियाँ हैं।

यह नकली अगुआओं की कमोवेश चार प्रकार की अभिव्यक्तियाँ हैं जिन्हें अगुआओं और कार्यकर्ताओं की तेरहवीं जिम्मेदारी के तहत उजागर करना आवश्यक है। बेशक, कुछ अन्य समान अभिव्यक्तियाँ भी हैं, लेकिन ये चार प्रकार की अभिव्यक्तियाँ इस कार्य को करने और साथ ही उनके मानवता सार में नकली अगुआओं की विभिन्न अभिव्यक्तियों का पहले ही मूल रूप से प्रतिनिधित्व करती हैं। चाहे हम इनकी अभिव्यक्तियों को कितनी भी श्रेणियों में बाँट लें, नकली अगुआओं की दो प्रमुख अभिव्यक्तियाँ, किसी भी स्थिति में, इन चार श्रेणियों के भीतर पाई जाती हैं : एक है वास्तविक कार्य नहीं करना और दूसरी है वास्तविक कार्य करने में असमर्थ होना। ये नकली अगुआओं की दो सबसे प्रमुख अभिव्यक्तियाँ हैं। चाहे नकली अगुआओं की मानवता और काबिलियत कैसी भी हो और चाहे वे सत्य के साथ कैसा भी व्यवहार करें, किसी भी स्थिति में, ये दोनों अभिव्यक्तियाँ इन चार श्रेणियों के भीतर सन्निहित हैं। यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं की तेरहवीं जिम्मेदारी के संबंध में आज की हमारी संगति में नकली अगुआओं को उजागर करने की विषय-वस्तु का समापन है।

परिशिष्ट : सवालों के जवाब

क्या तुम लोगों के कोई सवाल हैं? (परमेश्वर, मुझे एक सवाल पूछना है। सभा की शुरुआत में, परमेश्वर ने हमसे पूछा था कि मसीह-विरोधियों के स्वभाव वाले लोगों और वास्तविक मसीह-विरोधियों में क्या अंतर है और मसीह-विरोधियों के स्वभाव की सामान्य विशेषताएँ क्या हैं। उस समय, हमें कोई स्पष्ट जवाब समझ नहीं आया और थोड़ी देर चिंतन-मनन करने के बाद, हम केवल कुछ बहुत साधारण शब्दों और धर्म-सिद्धांतों को ही समझ सके। परमेश्वर एक साल से भी अधिक समय से मसीह-विरोधियों को उजागर करने वाले सत्य की संगति कर रहा है, लेकिन हम अभी तक उस सत्य का बहुत छोटा-सा हिस्सा ही समझने और अभ्यास करने में समर्थ हुए हैं। इसका एक कारण यह है कि हमने इन सत्यों पर पर्याप्त कोशिश नहीं की और दूसरा कारण यह है कि हमने अपेक्षाकृत बहुत कम मसीह-विरोधियों का सामना किया है, और हम इस सत्य को यह देखकर नहीं समझ पाए हैं कि यह वास्तविक स्थितियों से कैसे जुड़ती है। इसलिए, अब भी हम इन सत्यों में कोई विशेष प्रवेश नहीं कर पाए हैं, हमें मसीह-विरोधियों ज्यादा समझ नहीं है और हमारे अंदर मसीह-विरोधियों के स्वभाव की कई अभिव्यक्तियाँ हैं जिन्हें हम अभी तक पहचान नहीं पाए हैं। मैं यह पूछना चाहता हूँ कि इस समस्या को कैसे हल किया जाए?) सत्य के किसी भी पहलू के लिए, तुम्हें कुछ वास्तविक अनुभव और अनुभवजन्य ज्ञान होना चाहिए और एक सच्ची समझ प्राप्त होनी चाहिए, ताकि सत्य वचन तुम्हारे दिल में अंकित हो जाएँ। सत्य को प्राप्त करने की प्रक्रिया हमेशा ऐसी ही होती है। वे बातें जिन्हें तुम याद रख सकते हो, वही हैं जिन्हें तुमने अपने अनुभवों के जरिए प्राप्त किया है; उनकी छाप सबसे गहरी होती है। इसलिए, आज जब हम मसीह-विरोधियों के विषय पर संगति कर रहे थे, तो मैंने तुम लोगों को पहले इस विषय-वस्तु की समीक्षा करने के लिए कहा। तुम लोग इसमें से कुछ याद कर पाए। जो तुम लोग याद कर पाए, उनमें से कुछ तुम्हारे लिए सैद्धांतिक है, लेकिन स्वाभाविक रूप से मसीह-विरोधियों की कुछ अभिव्यक्तियाँ हैं जिन्हें तुम कमोवेश वास्तविक जीवन से जोड़ सकते हो—हर किसी को इसे इसी तरह से अनुभव करना होता है। लोगों के लिए सामान्य स्थिति यह है कि लोग जब धर्मोपदेश सुनते हैं तो वे चाहे इसे जितनी अच्छी तरह से समझने का प्रयास करें, वे केवल सैद्धांतिक और धर्म-सिद्धांतों के हिसाब से समझते हैं, उन्हें सत्य का ज्ञान नहीं होता। सत्य को कब समझा जा सकता है? ऐसा केवल तभी होता है जब किसी ने इन चीजों का अनुभव किया हो तभी उसे कुछ व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त हो सकता है। वास्तविक परिस्थितियों का अनुभव किए बिना कोई भी ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता। इसलिए, आज जब हम मसीह-विरोधियों के विषय पर संगति कर रहे थे, तो यह जरूरी था कि एक त्वरित समीक्षा की जाए और तुम्हें सीधे स्मरण कराया जाए। इसके बाद, चाहे हम अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों या नकली अगुआओं की विभिन्न अभिव्यक्तियों के बारे में संगति करें या नहीं, कम से कम यह तुम लोगों के लिए ज्यादा थोथला नहीं होगा—बस इतना ही। हालांकि, तुम लोगों को अभी भी मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों से परिचित होना जरूरी है। कुछ लोग कहते हैं, “अगर परमेश्वर कुछ वास्तविक लोगों, घटनाओं और चीजों की व्यवस्था नहीं करता, तो हम कहाँ से परिचित हो सकते हैं? हम खुद तो मसीह-विरोधियों ढूँढ नहीं सकते, क्या हम कर सकते हैं?” तुम्हें उनको ढूँढने की जरूरत नहीं है। सबसे सरल समाधान यह है कि जब तुम मसीह-विरोधियों का सामना करो, तो तुम उन्हें परमेश्वर के वचनों से मिलाने की पूरी कोशिश करो। उनके बाहरी खुलासों, बयानों, क्रियाकलापों, स्वभावों, साथ ही उनके विचारों और दृष्टिकोणों, यहाँ तक कि उनके आचरण और दुनिया से निपटने के तरीके, उनकी जीवनशैली, आदि का मिलान करो—यानी, उन्हें मसीह-विरोधियों की उन पंद्रह अभिव्यक्तियों से मिलाओ जिनके बारे में हमने चर्चा की है। जितना हो सके तुम उनका मिलान कर सकते हो। यही है लोगों की समझ का तरीका : वे याददाश्त से बहुत कुछ नहीं याद रख सकते क्योंकि मानव की याददाश्त सीमित होती है। लोग उन चीजों के बारे में पूरा ढंग से बात कर सकते हैं जो उन्होंने प्रत्यक्ष अनुभव से प्राप्त की हैं। चाहे वे जितना भी कहें, यह याददाश्त पर आधारित नहीं होता है बल्कि उनके अनुभवों और जो उन्होंने सहा है, उस पर आधारित होता है। ये जो चीजें उन्होंने प्राप्त की हैं, वे सत्य और तथ्यात्मक रूप से सही चीजों के सबसे करीब हैं—ये वो चीजें हैं जो लोगों ने अनुभव से प्राप्त की हैं। इसके अलावा, जो चीजें मानव धारणाओं और कल्पनाओं के अनुरूप हैं और जो ज्ञान आधारित हैं, वे सत्य से मेल नहीं खातीं, चाहे तुम्हारे मन में प्रवेश करने के बाद कितने ही सालों से वे प्रमुख स्थान पर बैठी हों। जब तुम वास्तव में सत्य को समझते हो, तो ये चीजें हटा दी जाएंगी और मिटा दी जाएंगी। हालाँकि, जो चीजें सत्य के करीब हैं और सत्य के अनुरूप हैं, जो तुमने अनुभव से प्राप्त की हैं, वही मूल्यवान हैं। चाहे तुम लोग आज मेरे पूछे गए सवालों को पूरी तरह से समझो या नहीं, निश्चित रूप से मसीह-विरोधियों का भेद पहचानने के विषय का कुछ हिस्सा तुम लोग समझ सकते हो, क्योंकि तुम सभी लोगों ने कुछ हद तक मसीह-विरोधियों से लोगों के गुमराह होने और बाधित होने का अनुभव किया है। इसने तुम्हें थोड़ा-बहुत भेद पहचानने की समझ दी है और जब तुम लोग मसीह-विरोधियों को बुराई करते और कलीसिया के काम को नुकसान पहुँचाते हुए देखते हो, तो ये सत्य तुम लोगों के लिए प्रभावी हो सकते हैं। ये शब्द केवल तब प्रभावी होते हैं जब तुम वास्तविक परिवेशों का सामना करते हो। यदि तुमने मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह किए जाने का अनुभव नहीं किया है और केवल अपने मन में उनके क्रियाकलापों की कल्पना करते हो, तो यह बेकार है। चाहे तुम्हारी कल्पना कितनी भी अच्छी क्यों न हो, इसका मतलब यह नहीं कि तुम उनका भेद पहचानने में सक्षम हो पाओगे। ऐसा केवल वास्तविक परिस्थितियों का सामना करते समय ही होता है जब लोग सहज प्रतिक्रिया देते हुए, अपने विचारों और दृष्टिकोणों का, कुछ सिद्धांतों का जिनसे वे परिचित हैं, कुछ धर्म-सिद्धांतों, पद्धतियों और तरीकों का जो उन्होंने सीखे हैं, इस्तेमाल उन मामलों का सामना करने और उनसे निपटने के लिए और अंततः विभिन्न विकल्प चुनने के लिए करते हैं। लेकिन इससे पहले कि लोग इन परिस्थितियों का सामना करें, बेहद अच्छी बात है कि उनके पास पहले से ही विभिन्न सिद्धांतों की एक शुद्ध समझ और प्रभाव हो। कुछ लोग कहते हैं, “जब तक हम मसीह-विरोधियों का सामना नहीं करते, तुम्हारा इतनी सारी बातें कहने का क्या उपयोग हैं?” यह उपयोगी है। क्या मसीह-विरोधियों को उजागर करने वाले वचन पुस्तक में मुद्रित नहीं हैं? क्या उन वचनों को तुम एक या दो दिन में पूरी तरह से अनुभव कर सकते हो और उनकी असलियत जान सकते हो? नहीं। उन वचनों को उस पुस्तक में मुद्रित करने का उद्देश्य तुम लोगों बचाना है ताकि तुम लोग इन वचनों को अक्सर पढ़ सको, इन सत्य को समझ सको, साथ ही जब तुम लोग भविष्य में विभिन्न परिस्थितियों का सामना करो—चाहे वह मसीह-विरोधियों से जुड़ी घटना हो, अपने स्वभाव को बदलने में कठिनाई हो या कुछ और—तब तुम लोग परमेश्वर के वचनों को पढ़कर जीवन की आपूर्ति प्राप्त कर सको। इस पुस्तक में परमेश्वर के वचन तुम्हारे लिए इन मामलों का अनुभव करने, इनसे निपटने और सत्य के इन पहलुओं में प्रवेश करने का स्रोत हैं। धर्मोपदेश सुनते समय तुम जितना समझ पाते हो, वह यह नहीं दर्शाता कि तुम्हारे पास कितनी वास्तविकता है। अगर तुम किसी बात को एक बार में समझ नहीं पाते या याद नहीं रख पाते हो, तो इसका मतलब यह नहीं है कि तुम इसे कभी अनुभव नहीं करोगे या भविष्य में इसे कभी नहीं समझ पाओगे। संक्षेप में, तुम लोगों को यह समझना चाहिए कि केवल वही चीजें जो लोग अनुभव से प्राप्त करते हैं और परमेश्वर के वचनों के आधार पर जानते हैं, सत्य से संबंधित हैं। जो बातें लोग याद रखते हैं और जो बातें वे अपने दिमाग में समझते हैं, वे ज्यादातर सत्य से संबंधित नहीं होतीं; वे केवल सैद्धांतिक होती हैं। सत्य के संबंध में सबसे महत्वपूर्ण बातें क्या हैं? सबसे महत्वपूर्ण बातें अनुभव और प्रवेश हैं। किसी भी सत्य के पहलू में, जब लोग वास्तव में इसका अनुभव करते हैं, तो उनका अंतिम फल सत्य का फल और उनके अस्तित्व के लिए मार्ग होता है। इसलिए, याद न रख पाना कोई समस्या नहीं है।

अगर मैं सभा की शुरुआत में सीधे मुख्य विषय पर चर्चा शुरू करता, तो क्या तुम लोग समय रहते प्रतिक्रिया कर पाते? इसलिए, मुझे कुछ तरीकों का इस्तेमाल करने की जरूरत पड़ी और सबसे पहले मैंने तुम लोगों से पूछा, “क्या तुम्हें मसीह-विरोधियों के सार और मसीह-विरोधियों के स्वभाव वाले लोगों के बीच का अंतर याद है?” इस सवाल को पहले पूछने का मेरा उद्देश्य यह नहीं था कि मैं तुम लोगों को अचंभित कर दूं या तुम लोगों को बेनकाब कर दूँ, बल्कि इसका उद्देश्य तुम लोगों को सूचना देना था। फिर, हमने समीक्षा की और कुछ लोग धीरे-धीरे याद करने लगे : “हमने पहले इस बारे में संगति की थी कि मसीह-विरोधी सत्य को कैसे देखते हैं और मसीह-विरोधियों की मानवता कैसी है।” मसीह-विरोधियों से संबंधित कुछ विषय-वस्तु ने पहले ही तुम पर गहरा प्रभाव छोड़ा है; यह विषय-वस्तु उस पल के इंतजार में है जब तुम ऐसी चीजों का अनुभव करो और तब यह तुम्हारे अभ्यास के लिए मार्गदर्शक और दिशानिर्देश के रूप में काम करेगी। लेकिन इससे भी ज्यादा ऐसी विषय-वस्तु है जिसके बारे में पहली बार सुनने के बाद तुम पर उसका बिल्कुल भी कोई प्रभाव नहीं होता। इस विषय-वस्तु का भी अनुभव करना जरूरी है। जब तुम इन अनुभवों से गुजरते हो और फिर इन वचनों को खाते-पीते हो और इन्हें पढ़कर प्रार्थना करते हो, तो तुम्हें और भी लाभ होगा। चाहे इस विषय-वस्तु का तुम पर प्रभाव हो या न हो, इन चीजों के अनुभव से गुजरने के बाद, यह सब एक साथ मिल जाएगा। जो धर्म-सिद्धांत तुमने याद किए थे वे तुम्हारी व्यावहारिक समझ और उनका अनुभव करने के बाद वे तुम्हारा लाभ बन जाएँगे। जिस विषय-वस्तु का तुम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा था, उसे एक बार अनुभव करने के बाद, तुम पर थोड़ा प्रभाव हो सकता है, लेकिन यह केवल एक तरह का बोधात्मक ज्ञान रहेगा। यह बोधात्मक ज्ञान केवल धर्म-सिद्धांत के स्तर पर ही रहेगा। अब तुम्हें फिर से इसी तरह के अनुभवों से गुजरने की जरूरत होगी, तब जाकर यह तुम्हारा मार्गदर्शन करेगा, दिशानिर्देश देगा और तुम्हें अभ्यास के लिए एक मार्ग प्रदान करेगा। परमेश्वर के शब्दों को अनुभव करना और सत्य का अनुभव करना ऐसी ही एक प्रक्रिया है। क्या यह शर्म की बात है कि तुम लोगों को यह नहीं पता कि उस सवाल का जवाब कैसे देना है जो मैंने पूछा था? यह शर्म की बात नहीं है। अगर तुम लोग मुझसे अचानक कोई सवाल पूछोगे, तो मुझे भी उस समय यह समझने के लिए सोचने की जरूरत पड़ेगी कि उस सवाल का क्या मतलब है और सत्य के कौन-से पहलू उसमें शामिल हैं। मानव मस्तिष्क और मन इसी तरह से काम करते हैं—उन्हें प्रतिक्रिया देने के लिए समय की आवश्यकता होती है। भले ही वह कोई ऐसी बात हो जिसकी तुम्हें अच्छी तरह से जानकारी है, अगर तुमने कई वर्षों से उसका सामना नहीं किया है, तो जब अचानक वह सामने आएगा, तब भी तुम्हें प्रतिक्रिया देने के लिए समय की आवश्यकता होगी। तुमने किसी चीज का चाहे कितना भी गहरा अनुभव किया हो, अगर कई दिनों या वर्षों बाद फिर से तुम्हारा उससे सामना होता है, तो तुम्हें फिर भी प्रतिक्रिया देने के लिए समय चाहिए होगा—यह जिक्र करने की आवश्यकता ही नहीं है कि मसीह-विरोधियों के विषय में तुम्हारी समझ केवल शब्दों और धर्म-सिद्धांतों के स्तर पर ही है, तुम अभी भी इसका मिलान उन मसीह-विरोधियों से नहीं कर सकते जिनका तुम वास्तविक जीवन में सामना करते हो और यह कहा जा सकता है कि तुम अभी भी मूल रूप से मसीह-विरोधियों का भेद नहीं पहचान सकते हो। तो ये सत्य तुम लोगों के लिए इंतजार कर रहे हैं ताकि तुम उनका व्यावहारिक अनुभव ले सको—केवल तभी तुम परमेश्वर के वचनों की प्रमाणिकता और सटीकता की पुष्टि कर सकते हो। उदाहरण के लिए, हमने पहले संगति की थी कि मसीह-विरोधी बिल्कुल भी पश्चात्ताप नहीं करते हैं। मान लो कि तुमने इसे याद कर लिया और तुम कहते हो, “परमेश्वर ने कहा कि मसीह-विरोधी बिल्कुल भी पश्चात्ताप नहीं करते हैं। वे परमेश्वर की उपेक्षा करेंगे और अंत तक उसका विरोध करेंगे। वे सत्य को स्वीकार नहीं करते और चाहे कुछ भी हो, वे कभी यह स्वीकार नहीं करेंगे कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं। वे सत्य से विमुख हैं।” यह केवल सैद्धांतिक रूप से है कि तुम इस कथन को समझते हो, स्वीकारते हो या तुम पर इसका कुछ प्रभाव पड़ता है; यह बस थोड़ा-सा बोधात्मक ज्ञान है। तुम्हारे अवचेतन में, तुम्हें लगता है कि यह कथन सही है, लेकिन मसीह-विरोधी कौन-से विशेष शब्द कहते हैं, कौन-से भ्रष्ट स्वभाव हैं जो वे प्रकट करते हैं और कौन सी प्रकृति उन्हें संचालित करती है, इत्यादि, क्या ये परमेश्वर के उन वचनों से मेल खाते हैं और उनसे सह-संबंधित हैं जो मसीह-विरोधियों को उजागर करते हैं? इनमें से क्या यह प्रदर्शित कर सकता है कि परमेश्वर का प्रकाशन तथ्यात्मक है? इसके लिए तुम्हें या तो किसी मसीह-विरोधी से व्यक्तिगत रूप से मिलना पड़ेगा या मसीह-विरोधी की कथनी और करनी के बारे में पर्यवेक्षकों से सुनना पड़ेगा और अंत में तुम्हें यह एहसास होगा, “परमेश्वर के वचन कितने व्यावहारिक हैं, वे पूरी तरह से सही हैं। इस व्यक्ति को कई बार मसीह-विरोधी के रूप में चित्रित किया गया है और बरखास्त किया गया है। भले ही उसे अभी तक निष्कासित नहीं किया गया है या बाहर नहीं निकाला गया है, लेकिन उसकी अभिव्यक्तियाँ और खुलासे यह दर्शाते हैं कि वह सत्य को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करता, वह बिल्कुल भी पश्चात्ताप नहीं करता; उसमें न केवल मसीह-विरोधी स्वभाव है, बल्कि मसीह-विरोधी का प्रकृति सार भी है—वह सचमुच में पूर्ण रूप से मसीह-विरोधी है।” फिर एक दिन, जब इस व्यक्ति को निष्कासित किया जाता है, तो तुम अपने दिल में यह पुष्टि करते हो : “परमेश्वर के वचन कितने सही हैं! मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोग बदल सकते हैं, लेकिन मसीह-विरोधी सार वाले लोग नहीं बदल सकते।” ये शब्द तुम्हारे दिल में अपनी जड़ें जमा लेते हैं। यह सिर्फ कोई याददाश्त या थोड़ा-सा प्रभाव नहीं है और न ही यह सिर्फ एक प्रकार का बोधात्मक ज्ञान है। इसके बजाय, तुम परमेश्वर के वचनों को गहराई से समझते और स्वीकार करते हो : “एक मसीह-विरोधी कभी नहीं बदलेगा; वह अंत तक परमेश्वर का विरोध करेगा। कोई आश्चर्य नहीं कि परमेश्वर उसे बचाता नहीं हैं; कोई आश्चर्य नहीं कि परमेश्वर ऐसे लोगों पर कार्य नहीं करता। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि अपना कर्तव्य निभाते समय उन्हें कभी भी प्रबोधन या प्रकाश नहीं मिलता और वे किसी भी प्रकार की प्रगति नहीं करते—उन्होंने अपने रास्ते पर चलने के लिए दृढ़ संकल्प लिया है। यह वास्तव में एक मसीह-विरोधी है!” जब तुम परमेश्वर के वचनों की सटीकता की पुष्टि करते हो, तो तुम मन ही मन सोचते हो : “परमेश्वर के वचन सचमुच सत्य हैं। ये वचन सही हैं। आमीन!” तुम्हारे लिए आमीन कहने का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि अपने अनुभवों के माध्यम से, तुमने यह समझ लिया है कि परमेश्वर के वचन सभी चीजों को परखने का मापदंड हैं, परमेश्वर के वचन सत्य हैं, भले ही यह युग और यह मानवतजाति समाप्त हो जाए, परमेश्वर के वचन कभी समाप्त नहीं होंगे। वे क्यों समाप्त नहीं होंगे? क्योंकि चाहे जब भी हो, मसीह-विरोधियों का सार कभी नहीं बदलेगा और मसीह-विरोधियों के सार को उजागर करने वाले परमेश्वर के वचन भी कभी नहीं बदलेंगे। भले ही यह युग समाप्त हो जाए, भले ही यह भ्रष्ट मानवजाति समाप्त हो जाए, परमेश्वर के ये वचन हमेशा तथ्यों का सत्य होंगे—कोई भी इसे नकार नहीं सकता। यह परमेश्वर का वचन है! जब तुम्हें लगता है कि परमेश्वर के वचन उन तथ्यों के अनुरूप हैं और उनसे मेल खाते हैं जिन्हें तुम देखते हो और जिनका तुम सामना करते हो और तुम्हारे दिल को इसकी पुष्टि होती है, यह सिर्फ ऐसी भावना नहीं रह जाती है कि परमेश्वर के वचन सही हैं या परमेश्वर के वचन गलत नहीं हैं, इसके बजाय तुमने इसे देखा और व्यक्तिगत रूप से अनुभव किया है, तो तुम स्वाभाविक रूप से परमेश्वर के वचनों को आमीन कहोगे। उस समय, अगर मैं फिर से पूछूँ, “मसीह-विरोधी के सार वाले लोगों की अभिव्यक्तियाँ क्या हैं?” तो तुम्हारी आंतरिक समझ तुरंत सामने आ जाएगी। तुम्हारे पास सिर्फ एक प्रभाव, एक याद किया हुआ वाक्यांश या एक तरह की जागरूकता या बोधात्मक ज्ञान नहीं होगा। तुम तुरंत कहोगे, “मसीह-विरोधी बिल्कुल भी सत्य स्वीकार नहीं करते हैं और रत्ती भर भी पश्चात्ताप नहीं करते हैं!” भले ही इस कथन में बहुत तार्किक संरचना नहीं हो सकती, भले ही यह एकदम अचानक कहा गया है और लोगों को पहली बार में यह समझ में नहीं आएगा, तुम्हें पता है कि इसका क्या मतलब है क्योंकि तुमने इसे अनुभव किया है और इसे अपनी आँखों से देखा है। मसीह-विरोधी बिल्कुल ऐसे ही नीच लोग हैं—वे कभी पश्चात्ताप नहीं करेंगे। इन शब्दों को अनुभव करने की जरूरत है; जो कोई भी इनका अनुभव नहीं करता है, उसे कुछ भी हासिल नहीं होगा।

2 अक्टूबर 2021

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