अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (18)

मद बारह : उन विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों की तुरंत और सटीक रूप से पहचान करो, जो परमेश्वर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था में विघ्न-बाधा उत्पन्न करती हैं; उन्हें रोको और प्रतिबंधित करो, और चीजों को सकारात्मक दिशा दो; इसके अतिरिक्त, सत्य के बारे में संगति करो, ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोग ऐसी बातों के माध्यम से समझ विकसित करें और उनसे सीखें (भाग छह)

कलीसियाई जीवन में विघ्न-बाधा उत्पन्न करनेवाले विभिन्न लोग, घटनाएँ और चीजें

X. निराधार अफवाहें फैलाना

पिछली सभा में, हमने अगुआओं और कार्यकर्ताओं की बारहवीं जिम्मेदारी पर संगति की थी : “उन विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों की तुरंत और सटीक रूप से पहचान करो, जो परमेश्वर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था में विघ्न-बाधा उत्पन्न करती हैं। उन्हें रोको और प्रतिबंधित करो, और चीजों को सकारात्मक दिशा दो। इसके अतिरिक्त, सत्य के बारे में संगति करो, ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोग ऐसी बातों के माध्यम से समझ विकसित करें और उनसे सीखें।” परमेश्वर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था में विघ्न-बाधा उत्पन्न करनेवाले विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों को, जो कलीसिया में दिखाई देती हैं, हमने ग्यारह मुद्दों में विभाजित किया था। उन्हें फिर से पढ़ो। (पहला, सत्य पर संगति करते समय अक्सर विषय से भटक जाना; दूसरा, लोगों को गुमराह करने और उनसे सम्मान प्राप्त करने के लिए शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलना; तीसरा, घरेलू मामलों के बारे में बकबक करना, व्यक्तिगत संबंध बनाना और व्यक्तिगत मामले सँभालना; चौथा, गुट बनाना; पाँचवाँ, हैसियत के लिए होड़ करना; छठा, अनुचित संबंधों में लिप्त होना; सातवाँ, आपसी हमलों और मौखिक झगड़ों में लिप्त होना; आठवाँ, धारणाएँ फैलाना; नौवाँ, नकारात्मकता फैलाना; दसवाँ, निराधार अफवाहें फैलाना; और ग्यारहवाँ, चुनावों में हेरफेर और गड़बड़ी करना।) पिछली बार, हमने नौवें मुद्दे पर संगति की थी। आज, हम दसवें मुद्दे—निराधार अफवाहें फैलाना, पर संगति करेंगे।

क. निराधार अफवाहें फैलाने की अभिव्यक्तियाँ

कलीसिया में निराधार अफवाहें फैलाने की घटनाएँ हो चुकी हैं। कुछ लोग सत्य से प्रेम नहीं करते और अपने कर्तव्य के निर्वहन में सत्य का अभ्यास करने पर ध्यान केंद्रित नहीं करते; चाहे सत्य सिद्धांतों से संबंधित मामले हों या उनके व्यक्तिगत अनुसरण, वे सत्य की खोज पर ध्यान केंद्रित नहीं करते—इन मुद्दों का उनके दिल में कोई स्थान नहीं है। परमेश्वर में अपने विश्वास में, वे सिर्फ गपशप करना, व्यक्तिगत जानकारी के बारे में पूछताछ करना और अजीब और असामान्य कहानियाँ इकट्ठा करना पसंद करते हैं। बेशक, वे जिस चीज के बारे में ज्यादा उत्साहित हैं, वह है परमेश्वर और परमेश्वर के कार्य से जुड़े मामलों के साथ-साथ परमेश्वर के घर और कलीसिया के अगुआओं और कार्यकर्ताओं से जुड़े मामलों में दखल देना। साथ ही, वे बेबुनियादी गपशप फैलाना, जो बातें उन्होंने सुनी हैं या जिन बातों की उन्होंने कल्पना की हैं, उनका प्रसार करना पसंद करते हैं जो बिल्कुल भी सच नहीं हैं। ऐसे लोग परमेश्वर के वचनों को पढ़ना पसंद नहीं करते, वे कभी प्रार्थना नहीं करते हैं, और सभाओं के दौरान वे शायद ही कभी सत्य पर संगति करते हैं और अपनी स्थिति, व्यक्तिगत अनुसरण और प्रवेश, या परमेश्वर के कार्य की अपनी समझ वगैरह के बारे में बात तो करते ही नहीं हैं। बेशक, उनकी उन लोगों में कोई रुचि नहीं है जो सत्य की संगति करते हैं या अपनी अनुभवजन्य गवाही के बारे में संगति करते हैं, न ही उनकी इन मामलों में कोई रुचि है। हालाँकि, जैसे ही वे किसी को इस बारे में बात करते सुनते हैं कि परमेश्वर का कार्य किस सीमा तक पहुँच गया है, या परमेश्वर के वचनों में आपदाओं, लोगों की मंजिलों, परमेश्वर के अपना रूप बदलने वगैरह के बारे में कोई सामग्री देखते हैं, तो उनकी आँखों में अचानक चमक आ जाती है, और वे विशेष रूप से ध्यान केंद्रित करते हैं। जैसे ही वे इन वचनों को पढ़ते या सुनते हैं, उनकी रुचि तुरंत जाग जाती है। इन लोगों की अभिव्यक्तियों से से देखें तो यह स्पष्ट है कि वे सत्य का अनुसरण करने, या अपना कर्तव्य निभाने और परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते, और परमेश्वर के प्रति समर्पण करने या उसकी आराधना करने के लिए तो बिल्कुल भी नहीं। वे परमेश्वर के घर में आकर अपना कर्तव्य निभाने पर बिल्कुल भी विचार नहीं करते। वे केवल दखल देना चाहते हैं या कुछ गपशप इकट्ठा करना या अफवाहें फैलाना चाहते हैं। उन्हें इन गतिविधियों में आनंद आता है और उनकी अनुभवजन्य गवाहियों, भजनों या परमेश्वर के घर की फिल्मों में बिल्कुल भी कोई रुचि नहीं है। वे बस ऑनलाइन जाकर परमेश्वर के घर, कलीसिया के कार्य, और देहधारी परमेश्वर के बारे में धार्मिक समुदाय में मसीह-विरोधी ताकतों द्वारा दिए गए बयानों और आकलनों को इकट्ठा करना पसंद करते हैं। यहाँ तक कि अगर वे कभी-कभार परमेश्वर के घर के वीडियो देखते हैं, तो भी यह अपनी समस्याओं को हल करने के लिए सत्य की तलाश करने की उनकी आंतरिक चाह से प्रेरित नहीं होता है। तो फिर वे क्या देखते हैं? वे वीडियो के नीचे दी गई टिप्पणियाँ देखते हैं, और वे जो पढ़ते हैं उसके बारे में चयनशील होते हैं। वे कलीसिया के भाई-बहनों की टिप्पणियों को छोड़ देते हैं लेकिन धार्मिक समुदाय और अविश्वासियों की टिप्पणियों में विशेष रुचि लेते हैं। वे बड़े लाल अजगर की टिप्पणियों और बयानों को भी विशेष रूप से देखते हैं, और उनसे कुछ चीजें पता लगाने की को‍शिश करते हैं। जब वे नकारात्मक प्रचार, बयानों और गढ़ी गई अफवाहों को देखते हैं, तो वे सत्य की तलाश नहीं करते और उनके भेद नहीं पहचानते; इसके बजाय, वे इनमें से कुछ नकारात्मक टिप्पणियों और बयानों को स्वीकार भी सकते हैं, और उन्हें तथ्य मान सकते हैं। भले ही वहाँ कितनी भी सकारात्मक टिप्पणियाँ हों, वे उन्हें पढ़ना नहीं चाहते और उन्हें सच भी नहीं मानते हैं; केवल नकारात्मक टिप्पणियाँ या अफवाहें उनका ध्यान आकर्षित करती हैं और उनकी दिलचस्पी जगाती हैं। हर बार जब वे इन नकारात्मक टिप्पणियों को देखते हैं, तो उन्हें बेहद प्रसन्नता होती है और उनके दिल को सुकून मिलता है। वे दुनिया में, धार्मिक समुदाय में या ऑनलाइन प्रसारित हो रही पूरी तरह से असत्य अफवाहों और आलोचनाओं में विशेष रूप से, और यहाँ तक कि परमेश्वर के खिलाफ हमलों और उसकी बदनामी में भी रुचि रखते हैं, और वे हमेशा बड़ी मेहनत से इनका अध्ययन करते हैं और ऐसी जानकारी इकट्ठा करते हैं। इसके विपरीत, परमेश्वर के वचनों, धर्मोपदेशों और संगति, भाई-बहनों की अनुभवजन्य गवाहियों, और ऐसी अन्य चीजों में उनकी बिल्कुल भी कोई दिलचस्पी नहीं होती है। इसलिए, जब सभाओं के दौरान अन्य लोग परमेश्वर के वचन पढ़ते हैं, सत्य की संगति करते हैं और अनुभवजन्य गवाही साझा करते हैं, तो वे विमुख होने लगते हैं, और उन्हें ये चीजें परेशान करने वाली और अनावश्यक लगने लगती हैं। दिल से वे सत्य की संगति करने और खुद को जानने के बारे में बातचीत करने को लेकर विशेष रूप से विमुख होते हैं। तो, वे क्या सुनना चाहते हैं? वे केवल अजीब और विचित्र चीजों के बारे में सुनना चाहते हैं, चाहे वे आध्यात्मिक क्षेत्र से जुड़े रहस्य हों या धार्मिक समुदाय द्वारा फैलाई गई अफवाहें और गपशप हों—वे बस इन बातों को सुनने के लिए इच्छुक रहते हैं। उनके दिल इन नकारात्मक चीजों से भरे हुए हैं, और कोई भी उनसे इन नकारात्मक चीजों को नहीं निकाल सकता या उन्हें इन नकारात्मक चीजों से दूर नहीं कर सकता है। ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है क्योंकि उनकी उन चीजों में खासी रुचि है और उनसे लगाव भी है! इसलिए, जब वे विशेष रूप से सभाओं के दौरान भाई-बहनों के बीच होते हैं, तो वे कुछ निराधार गपशप के बारे में बातचीत करना और परमेश्वर के घर और कलीसिया के बारे में उन्हें ऑनलाइन मिली कुछ नकारात्मक टिप्पणियाँ भी फैलाना पसंद करते हैं। इन लोगों की इन अफवाहों में अत्यधिक रुचि होती है। भले ही वे स्पष्ट रूप से जानते हैं कि इन बातों को फैलाना दूसरों के लिए फायदेमंद नहीं है, फिर भी वे खुद को नियंत्रित नहीं कर पाते और इन्हें फैलाने पर जोर देते हैं। भले ही उन्हें इन अफवाहों और नकारात्मक प्रचार को फैलाने के लिए अवसर तलाशने पड़ें, या उन्हें ऐसी चीजों को इकट्ठा करने में समय बिताना पड़े, या ऐसी चीजों को गढ़ने के लिए अपने दिमाग का इस्तेमाल करना पड़े, फिर भी वे इसके लिए अथक प्रयास करते रहते हैं। यदि किसी कलीसिया में, कलीसिया अगुआओं की काबिलियत कम है और वे वास्तविक कार्य नहीं कर पाते हैं या लोगों का भेद नहीं पहचान पाते हैं, तो अफवाहें और भ्रांतियाँ फैलाने वाले लोगों के वहाँ मौजूद होने पर कलीसियाई जीवन बाधित और प्रभावित हो जाएगा, और ये व्यक्ति कुछ लोगों को गुमराह और नियंत्रित भी कर लेंगे। क्यों कई लोग अक्सर दूसरों द्वारा परेशान और गुमराह हो सकते हैं? एक कारण यह है कि वे सत्य को नहीं समझते और परमेश्वर के घर को बदनाम करने वाली अफवाहों के बारे में उनमें कोई समझ नहीं होती है। दूसरा कारण यह है कि कुछ भाई-बहन जिन्होंने केवल कुछ समय के लिए विश्वास रखा है, उनका आध्यात्मिक कद अपरिपक्व है, वे दर्शनों के सत्य को नहीं समझते हैं, और वे परमेश्वर के देहधारण, अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय के कार्य, और लोगों को बचाने के परमेश्वर के इरादे के बारे में अस्पष्ट हैं, वे इन चीजों को स्पष्ट रूप से देखने में असमर्थ हैं, और वे इस बारे में अनिश्चित हैं कि कार्य का यह चरण परमेश्वर का प्रकटन और कार्य है या नहीं। नतीजतन, उनकी आस्था सच्ची नहीं है और उन्हें यह भी नहीं पता कि वे कब तक परमेश्वर का अनुसरण करने में समर्थ होंगे। स्वाभाविक रूप से, वे भी अफवाह फैलाने वालों द्वारा बहुत आसानी से गुमराह, प्रभावित और नियंत्रित हो जाते हैं।

ख. निराधार अफवाहें फैलाने का सार शैतान के सेवक के रूप में कार्य करना है

ये लोग जो निराधार अफवाहें फैलाते हैं, न केवल सत्य में और परमेश्वर के वचनों में विश्वास नहीं करते, बल्कि वे सही और गलत का भेद भी नहीं पहचान पाते हैं। वे हमेशा सकारात्मक चीजों पर संदेह करते हैं और अफवाहों और शैतानी शब्दों के आसानी से कायल हो जाते हैं। ये लोग परमेश्वर में विश्वास रखने और परमेश्वर का अनुसरण करने का दावा करते हैं, लेकिन फिर भी ऐसी अफवाहें फैलाते हैं जो परमेश्वर और कलीसिया को बदनाम करती हैं, और वे इकट्ठा की हुई विभिन्न अफवाहों को भाई-बहनों में फैलाते हैं; यहाँ तक कि उन्हें जानबूझकर और बार-बार फैलाते हैं और हर जगह उनका प्रचार करते हैं। इससे यह स्पष्ट है कि ये लोग सत्य से प्रेम नहीं करते और केवल अविश्वासियों के शैतानी शब्दों पर विश्वास करते हैं। सच पूछिए तो वे बिल्कुल भी परमेश्वर के चुने हुए लोग नहीं हैं और वे परमेश्वर के घर के सदस्य भी नहीं हैं। तो फिर वे क्या हैं? सटीक तौर पर कहें तो ये लोग छद्म-विश्वासी हैं, वे शैतान के सेवक हैं। कुछ लोगों का कहना है, “क्या शैतान के सेवक सीसीपी द्वारा भेजे गए जासूस हैं? क्या वे परमेश्वर के घर में घुसपैठ करनेवाले एजेंट हैं?” यह जरूरी नहीं है। उन एजेंटों और जासूसों का भेद पहचानना आसान है, लेकिन अफवाहें फैलाने वाले ये लोग सतही तौर पर सच्चे विश्वासी नजर आते हैं। हालाँकि, वे सत्य का अनुसरण नहीं करते और अक्सर शैतान के प्रवक्ता के रूप में कार्य करते हैं, और शैतान के नाम पर वे ऐसे शब्द फैलाते हैं जो परमेश्वर को बदनाम करते हैं और उस पर हमला करते हैं, और वे कलीसिया और परमेश्वर के घर के बारे में मनगढ़ंत अफवाहें फैलाते हैं। इस आधार पर देखा जाए, तो उन्हें चाहे किसी ने भी भेजा हो, क्या ये लोग शैतान के सेवक नहीं हैं? (बिल्कुल हैं।) चाहे उन्होंने इन अफवाहों को सक्रिय रूप से खुद इकट्ठा किया हो या चुपचाप सुना हो, ये लोग सत्य की खोज करने या उनका भेद पहचानने के बारे में नहीं सोचते, बल्कि उन्हें तथ्य मानकर उन पर विश्वास करते हैं। वे इन्हें अनैतिक और अनियंत्रित तरीके से, न केवल एक स्थान पर या एक जैसे अवसर पर, लोगों के बीच फैला सकते हैं और प्रसारित कर सकते हैं। इन अफवाहों को फैलाने का उनका उद्देश्य और अधिक लोगों को इनके बारे में जागरूक करना है, कमजोर लोगों को और भी कमजोर बनाना है, और जो लोग ताकतवर हैं और परमेश्वर में आस्था रखते हैं उन्हें अफवाहों की वजह से परमेश्वर और उसके कार्य पर संदेह करवाना है—इसका उद्देश्य सभी लोगों को सत्य में, परमेश्वर के वचनों में, परमेश्वर के कार्य में और बचाए जाने के प्रति उदासीन बनाना है, और इसके बजाय उनकी दिलचस्पी विभिन्न अफवाहों और नकारात्मक प्रचार में बढ़ाना है, ठीक वैसे ही जैसे ये व्यक्ति स्वयं हैं, ताकि जब भी लोग इकट्ठा हों, वे इन नकारात्मक चीजों के बारे में बात करें। क्या सामान्य लोग और मानवता और तर्क शक्ति वाले लोग ऐसी बातें करेंगे? जब अधिकांश लोग अफवाहें या विभिन्न नकारात्मक प्रचार सुनते हैं, भले ही उन्हें पता न हो कि अफवाहें सत्य हैं या असत्य, परमेश्वर में अपनी आस्था और थोड़ा-सा परमेश्वर का भय माननेवाले अपने दिल के कारण, वे प्रार्थना करने और सत्य की खोज के लिए परमेश्वर के सामने आएँगे। भले ही वे अफवाहों से प्रभावित हों और थोड़ा कमजोर और संदिग्ध महसूस करें, लेकिन इससे उनके कर्तव्य पालन या परमेश्वर का अनुसरण करने पर कोई असर नहीं पड़ेगा। वे खुद को आगाह भी करेंगे कि वे अपनी जबान पर लगाम लगाएँ और ऐसे काम न करें जो परमेश्वर का विरोध करते हों या उसे नाराज करते हों। इस तरह का नजरिया कुछ ऐसा है जिसे अधिकतर भाई-बहन हासिल कर सकते हैं। जब तक लोगों में थोड़ी मानवता, थोड़ी सच्ची आस्था और थोड़ा परमेश्वर का भय मानने वाला दिल है, वे इसे हासिल कर सकते हैं। चूँकि लोग मानते हैं कि परमेश्वर मौजूद है, इसलिए उन्हें यह मानना चाहिए कि परमेश्वर जो कुछ भी करता है वह सही है। चूँकि यह कार्य परमेश्वर द्वारा किया जाता है, इसलिए लोगों को इसके बारे में कोई आकलन नहीं करना चाहिए। उन्हें यह यकीन करना चाहिए कि : “कलीसिया के बाहर से चाहे जो भी अफवाहें आ रही हों, मैं उन पर विश्वास नहीं कर सकता, और मैं निश्चित रूप से उन्हें फैला नहीं सकता। भले ही मैं अपने दिल में थोड़ा कमजोर और विचलित महसूस करूँ, मुझे परमेश्वर के अस्तित्व को नकारना नहीं चाहिए!” यदि कोई परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास करता है, तो उसे यह विश्वास करना चाहिए कि परमेश्वर जो कुछ भी करता है वह सही है; यदि वह परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास करता है, तो उसके पास ऐसा दिल होना चाहिए जो परमेश्वर से डरता हो और और उसका भय मानता हो—यह बिल्कुल सही है। चूँकि ऐसे लोगों के पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल है, इसलिए चाहे वे कोई भी अफवाह सुनें, उन्हें अपनी जबान पर लगाम लगानी होगी, वे अफवाहें फैलाने वाले नहीं बनेंगे, शैतान के फरेब के धोखे में नहीं आएँगे और शैतान की चालों में नहीं फँसेंगे। क्या यह कुछ ऐसा नहीं है जिसे ज्यादातर लोग आसानी से हासिल कर सकते हैं? (हाँ।) तुम में सामान्य सोच और तर्क शक्ति है, इसलिए जब तुम अफवाहें सुनते हो, तो तुम उन्हें फैलाते हो या नहीं, यह पूरी तरह से तुम पर निर्भर करता है। क्या कोई और तुम्हें नियंत्रित कर रहा है? (नहीं।) तो इन अफवाहों को सुनने के बाद, क्या लोगों को इस बारे में स्पष्ट रूप से पता नहीं होना चाहिए कि उन्हें इनसे कैसे निपटना चाहिए, और उन्हें इनको कैसे मानना चाहिए और कैसे व्यवहार में लाना चाहिए ताकि वे सिद्धांतों, मानवता और तर्क के अनुरूप हों? हर किसी को थोड़ा यह निर्णय करना चाहिए और उसे दूसरों की शिक्षा के बिना इस पद्धति और अभ्यास के मार्ग को समझना चाहिए। यहाँ तक कि बच्चे भी जानते हैं कि गपशप नहीं फैलानी चाहिए, यह अपमानजनक, अनैतिक है, और मतभेद पैदा करता है, और किसी को इस तरह का व्यक्ति नहीं बनना चाहिए; ये वे विचार और व्यवहार हैं जो सामान्य तर्क शक्ति वाले लोगों में होने चाहिए। लेकिन एक किस्म के लोग ऐसे होते हैं जिनमें ऐसे विवेक का अभाव होता है और उससे भी बढ़कर, उनमें ऐसी मानवता का अभाव होता है। इस कारण वे ये बातें सुनकर जल्द से जल्द अपने करीबी लोगों तक अफवाहें फैलाना और नकारात्मक प्रचार करना चाहते हैं ताकि हर कोई उनका विश्लेषण और आलोचना कर सके, साथ मिलकर उनमें नमक-मिर्च लगा सके और फिर इन अफवाहों को और ज्यादा लोगों तक फैला सके। उन्हें लगता है, “क्या यह शानदार नहीं है? क्या यह मजेदार नहीं है? यदि कलीसियाई जीवन इस विषय-वस्तु से भरा होता तो यह कितना समृद्ध होता! लोगों को कितना अधिक ज्ञान प्राप्त होता!” ये किस तरह के विचार और दृष्टिकोण हैं? क्या ये किसी बुरे व्यक्ति के विचार और दृष्टिकोण नहीं हैं? यह किस तरह का तर्क है? क्या वे ऐसे व्यक्ति नहीं हैं जो अराजकता फैलाने के लिए बेताब हैं? क्या ऐसा नहीं है कि वे दूसरों को अच्छे से काम करते हुए नहीं देख सकते? अपने दिल में वे भाई-बहनों का मजाक उड़ाते हैं : “मूर्खो, कलीसिया के बाहर हर जगह अफवाहें उड़ रही हैं; परमेश्वर के घर के खिलाफ, विशेष रूप से मसीह और परमेश्वर के कार्य के खिलाफ हर जगह नकारात्मक मूल्यांकन और हमले हो रहे हैं और बदनामी की जा रही है। धर्मी समुदाय की कलीसियाओं में तमाम तरह की नकारात्मक प्रचार सामग्री लटकायी गई है। जैसे ही वहाँ के लोग ‘चमकती पूर्वी बिजली’ का नाम सुनते हैं, वे निंदा करना शुरू कर देते हैं और उससे दूरी बना लेते हैं। हर कोई तुम लोगों की आलोचना और निंदा कर रहा है, फिर भी तुम मूर्ख लोग अभी भी यहाँ परमेश्वर में विश्वास और सत्य का अनुसरण कर रहे हो!” इन लोगों को इतनी दृढ़ आस्था के साथ परमेश्वर का अनुसरण करते देखना उन्हें परेशान कर देता है और बेहद घृणा से भर देता है। विशेष रूप से, जब वे देखते हैं कि सत्य पर किसी की संगति वास्तविक समझ और स्वभाव में बदलाव को दर्शाती है और हर कोई उसकी प्रशंसा करता है तो वे उस व्यक्ति से घृणा करते हैं। यदि वे किसी व्यक्ति को सिद्धांतों पर डटे, नतीजे हासिल करते और परमेश्वर के घर में वफादारी से अपना कर्तव्य निभाते देखते हैं तो वे क्रोधित हो जाते हैं और कहते हैं, “तुम कलीसिया के बाहर की अफवाहें या दुष्प्रचार क्यों नहीं सुनते हो? तुम इतने मूर्ख और निष्ठावान क्यों हो? देखो मैं कितना चालाक हूँ—मैं दोनों खेमों में शामिल हूँ। मैं परमेश्वर के घर के कलीसियाई जीवन में भाग लेता हूँ और मैं यह नहीं कहता कि मैं परमेश्वर में विश्वास नहीं करता, और अगर मुझे कोई कर्तव्य नहीं करने दिया जाता, तो मैं इसके लिए सहमत नहीं होता, लेकिन मैं कलीसिया के बाहर की खबरों की भी खोजबीन करता हूँ। मैं धर्मी समुदाय, अविश्वासियों की दुनिया और इंटरनेट पर हो रहे नकारात्मक प्रचार और टिप्पणियों पर ध्‍यान देना जारी रखता हूँ।” उनका हमेशा एक अनुचित दृष्टिकोण होता है। भाई-बहनों को सत्य का अनुसरण करते और अपना कर्तव्य निभाते देखकर उनके मन में असंतोष पैदा होने लगता है। वे हमेशा उनमें से एक या दो लोगों को गुमराह करना और उन्हें अपने पक्ष में करना चाहते हैं और यहाँ तक कि उनमें से कुछ को लगातार परेशान और प्रभावित करना चाहते हैं। वे लगातार अफवाहें फैलाकर कुछ लोगों को “जगाना” चाहते हैं ताकि वे अफवाहों पर विश्वास करें और गुमराह हो जाएँ। मुझे बताओ, आखिर यह किस तरह का व्यक्ति है? क्या ऐसे लोगों को परमेश्वर के घर का हिस्सा और भाई-बहन मानना उचित है? (नहीं।) तो फिर उनके साथ पेश आने का सबसे उचित तरीका क्या है? उन्हें छद्म-विश्वासी, शैतान के सेवक मानना सबसे उचित है। यह उनकी बेबुनियाद निंदा करना या उन्हें गलत ठहराना नहीं है; यह एक तथ्य है।

निराधार अफवाहें फैलाने वाले इन लोगों के बारे में क्या घृणास्पद है? चाहे वे किसी भी माध्यम से नकारात्मक प्रचार सुनें, भले ही उन्हें स्पष्ट रूप से पता हो कि ये बिना किसी तथ्यात्मक आधार की अफवाहें और शैतानी शब्द हैं, फिर भी वे अथक उत्साह के साथ इन्हें दूसरों तक फैलाते हैं। इसकी प्रकृति क्या है? परमेश्वर का भय मानने वाला व्यक्ति अफवाहें सुनने पर घृणा महसूस करेगा। विशेष तौर पर जब बात परमेश्वर पर हमला करने और उसका अपमान करने वाले शब्दों की आती है, तो वे अपनी जुबान को गंदा होने से बचाने के लिए उनका जिक्र बिल्कुल नहीं करेंगे, जिससे साबित होता है कि उनके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल है। वे कहते हैं, “दूसरों का परमेश्वर की आलोचना करना और उसकी निंदा करना, कलीसिया पर हमला करना और उसे बदनाम करना, उनका काम है। मुझे उनके पापों में भागीदार नहीं होना चाहिए। उनके द्वारा परमेश्वर की बदनामी करना पहले से ही एक घोर विद्रोह और जघन्य पाप है—मैं अपने मुँह से ये शब्द नहीं बोल सकता। मुझे उन जैसी बातें नहीं कहनी चाहिए। मैं बिल्कुल भी ऐसा नहीं करूँगा!” लेकिन जो लोग शैतान के सेवक हैं, वे नकारात्मक प्रचार और अफवाहों को शब्दशः सुना सकते हैं और वे ऐसा बार-बार और बिना किसी आशंका के करते हैं, यहाँ तक कि इन्हें हर जगह फैलाते हैं। क्या इन लोगों के पास थोड़ा-सा भी परमेश्वर का भय मानने वाला दिल है? क्या वे परमेश्वर से डरते हैं? नहीं, वे नहीं डरते। सतही तौर पर वे परमेश्वर के अस्तित्व में भी विश्वास करते हैं, लेकिन विश्वास करना यह स्वीकारने के बराबर नहीं है कि परमेश्वर ही वो सृष्टिकर्ता है जो सभी चीजों पर संप्रभुता रखता है। शैतान भी यह मानता है कि दुनिया में और ब्रह्मांड में और सभी चीजों में परमेश्वर है, लेकिन जब परमेश्वर उससे बात करता है तो वह परमेश्वर के साथ कैसा व्यवहार करता है? वह परमेश्वर से कैसे बातचीत करता है? क्या उसके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल होता है? क्या वह परमेश्वर को परमेश्वर मानता है? नहीं। परमेश्वर से बातचीत करने के लिए वह कौन-सा तरीका अपनाता है? वह परमेश्वर को परखता है, उसे धोखा देता है और उसका उपहास उड़ाता है, मानो मसखरी कर रहा हो। जब परमेश्वर ने पूछा, “तू कहाँ से आता है?” तो शैतान ने कैसे उत्तर दिया? (“पृथ्वी पर इधर-उधर घूमते-फिरते और डोलते-डालते आया हूँ” (अय्यूब 1:7)।) क्या ये मानवीय शब्द हैं? (नहीं।) तो इन शब्दों का क्या अर्थ है? शैतान ने इस तरह बात क्यों की? किस प्रकार के रवैये से ऐसे शब्द निकलते हैं? क्या यह उपहास की बात नहीं है? (हाँ।) उपहास का क्या अर्थ है? यह किसी के साथ खिलवाड़ करना है, है ना? (हाँ।) “मैं तुम्हें नहीं बताऊँगा कि मैं कहाँ से आया हूँ। तुम क्या कर लोगे?” शैतान ने परमेश्वर से बात की, लेकिन उसका इरादा उसे यह बताना नहीं था कि वास्तव में क्या हो रहा है—वह उसे यह बताने से इनकार कर रहा था, बल्कि वह उसके साथ बस खिलवाड़ कर रहा था। यह उपहास है। क्या यह रवैया परमेश्वर को परमेश्वर मानने का कोई भाव दिखाता है? क्या इसमें परमेश्वर का सम्मान करने या उसका भय मानने का कोई भाव है? बिल्कुल भी नहीं—यही शैतान का चेहरा है। जो अफवाहें फैलाते हैं वे इन्हें भाई-बहनों के बीच आसानी से फैला सकते हैं। उन्हें अच्छी तरह पता है कि ये अफवाहें तथ्यात्मक नहीं हैं, फिर भी वे इन्हें फैलाने की पूरी कोशिश करते हैं, ऐसा करने के लिए हर तरह के अवसर और मौके की ताक में रहते हैं। क्या यह शैतान का व्यवहार और नजरिया नहीं है? शैतान इसी तरह काम करता है। वह परमेश्वर के अस्तित्व को स्वीकारता है और जानता है कि परमेश्वर की सभी चीजों पर संप्रभुता है लेकिन उसे उसका थोड़ा-सा भी भय नहीं होता है। यह शैतान का चेहरा है, यह शैतान का प्रकृति सार है। कुछ भाई या बहन कह सकते हैं, “भले ही यह व्यक्ति सत्य का अनुसरण नहीं करता है लेकिन परमेश्वर में उसका विश्वास सच्चा है। जब उसने सुना कि कलीसिया उसे अलग-थलग करने या बाहर निकालने जा रही है, तो वह इतना व्यथित हो गया कि रो पड़ा और बहुत दुखी हो गया; यहाँ तक कि उसके मुँह में छाले भी हो गए! वह परमेश्वर के घर को छोड़ने को तैयार नहीं है; वह परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास करता है। इसलिए वह चाहे कुछ भी करे, हमें उसके साथ एक भाई की तरह व्यवहार करना चाहिए, उसे प्यार देना चाहिए और सहनशीलता बरतनी चाहिए और यहाँ तक कि जब वह अफवाहें फैलाए, तब भी हमें उसकी मदद और समर्थन करने के लिए उसके साथ प्यार से पेश आना चाहिए।” क्या ये शब्द सही हैं? क्या ये सत्य हैं? (नहीं।) परमेश्वर ने बहुत सारे वचन कहे हैं, फिर भी ये लोग उन पर विश्वास नहीं करते। वहीं, दानव और शैतान चाहे जितनी भी अफवाहें फैलाएँ, ये लोग उन सभी पर विश्वास करते हैं और यहाँ तक कि परमेश्वर पर हमला करने और उसे बदनाम करने के लिए निर्लज्ज होकर ये अफवाहें फैलाते हैं। सिर्फ इसी आधार पर वे भाई या बहन कहलाने लायक नहीं हैं। क्या यह सही है? (हाँ।) चूँकि वे निर्लज्ज होकर अफवाहें फैला सकते हैं, परमेश्वर को बदनाम कर सकते हैं, परमेश्वर पर हमला कर सकते हैं और परमेश्वर के घर और कलीसिया को बदनाम कर सकते हैं, इसलिए हमारे पास उन्हें शैतान के सेवक, शैतान मानने का अच्छा कारण है। वे परमेश्वर के दुश्मन हैं और परमेश्वर के सभी चुने हुए लोगों के दुश्मन हैं। तो हमें अपने दुश्मनों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए? (उन्हें ठुकरा देना चाहिए।) सही कहा, हमें उन्हें ठुकरा देना चाहिए।

कुछ लोग सत्य से प्रेम नहीं करते। अफवाहें सुनने के बाद, भले ही वे कलीसिया में उन्हें खुलकर नहीं फैलाते हैं, मगर पर्दे के पीछे से उन लोगों में उन्हें फैलाते हैं जो उनके नजदीकी होते हैं। भेद न पहचानने वाले कुछ लोग इन अफवाहों को सुनने पर नकारात्मक और कमजोर हो जाते हैं; कुछ लोग सभाओं में भाग लेना बंद कर देते हैं, और कुछ कलीसिया से निकल जाते हैं—फिर भी अफवाहें फैलाने वाला व्यक्ति अब भी यह स्वीकार नहीं करता कि उसके अफवाहें फैलाने के कारण ऐसा हुआ। बार-बार की चेतावनियों और संगति के बावजूद, वे ऐसे मामलों का सामना करने पर ऐसा करना जारी रखते हैं, केवल खुद को उजागर करने, भाई-बहनों द्वारा ठुकराए जाने या कलीसिया द्वारा बाहर निकाल दिए जाने के भय से सभाओं में या सार्वजनिक रूप से खुले तौर पर और निर्लज्जता से अफवाहों को फैलाने से परहेज करते हैं, इसके बजाय वे दूसरों को संदेश भेजकर या लोगों से संपर्क करके गुप्त रूप से कुछ अफवाहें फैलाने का विकल्प चुनते हैं। तो क्या ऐसा है कि ऐसे लोग बुरे नहीं हैं? वास्तव में, वे और भी अधिक कपटी हैं। चाहे वे कितना भी गुप्त रूप से कार्य करें, उनकी मंशाएँ और उनके क्रियाकलापों की प्रकृति शैतान के सेवकों के समान ही है। अफवाहें फैलाने का उनका मकसद लोगों के कर्तव्य-पालन में बाधा डालना, लोगों को नकारात्मक और कमजोर बनाना, उनसे परमेश्वर को अस्वीकार करवाना, खुद को परमेश्वर से दूर करना और अपने कर्तव्यों का त्याग करना है। क्या कभी किसी ने कहा है, “अफवाहें फैलाने का मेरा उद्देश्य लोगों के कर्तव्य-पालन में बाधा डालना या उनकी पहल को कमजोर करना नहीं है, बल्कि समझ विकसित करने और प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में उनकी मदद करना है, ताकि जब वे अफवाहें सुनें, तो उनका बचाव हो जाए, वे उन पर विश्वास न करें, सत्य का उचित रूप से अनुसरण कर सकें और शांति से अपने कर्तव्यों का पालन कर सकें”? क्या कभी किसी ने इस इरादे से अफवाहें फैलाई हैं? (नहीं।) क्या यह दावा सही है? वास्तव में, यह दावा सही नहीं है। जब तक वे अफवाहें फैला सकते हैं, विशेष रूप से वे जो परमेश्वर पर हमला करते हैं, उसकी बदनामी करते हैं और उसका तिरस्कार करते हैं—जब भी वे अपना मुँह खोलते हैं तो ये बातें बेपरवाही से बोलते हैं और बिना किसी संकोच के उन्हें हर जगह फैलाते हैं—चाहे वे कितनी भी अफवाहें फैलाएँ, चाहे अफवाहें खुलेआम फैलाई जाएँ या पीठे पीछे, और चाहे लोगों पर उनका कैसा भी प्रभाव हो, संक्षेप में, अफवाहें फैलाने का उनका उद्देश्य लोगों को सत्य समझने और समझ विकसित करने में मदद करना नहीं है, बल्कि उन्हें परेशान और गुमराह करना है, और उन्हें परमेश्वर पर संदेह करना सिखाना और परमेश्वर से दूर करना है—वे जो कर रहे हैं वह कलीसिया के कार्य में बाधा पैदा करना और उसे नष्ट करना है। इस परिप्रेक्ष्य से, चाहे जिस कारण या संदर्भ में अफवाहें फैलाई जाएँ, अफवाहें फैलाने वाले लोगों का सार निःसंदेह शैतान के सेवकों का है। जो कोई भी अफवाहें फैलाता है, जिनसे परमेश्वर की बदनामी होती है, उस पर हमला होता है और उसका तिरस्कार होता है, वह परमेश्वर का विरोध कर रहा है और परमेश्वर का दुश्मन है। क्या यह सही है? (हाँ।) भले ही तुम अफवाहों के जनक नहीं हो, लेकिन यह तथ्य कि तुम उन्हें फैला सकते हो, साबित करता है कि तुम मानते हो कि अफवाहें सच हैं या आंतरिक रूप से तुम उन पर विश्वास करने के लिए बहुत इच्छुक हो। “अगर केवल अफवाहें सच होतीं, तो मुझे परमेश्वर पर विश्वास करने की आवश्यकता नहीं होती, परमेश्वर परमेश्वर नहीं होता, और परमेश्वर के देहधारण के तथ्य का कोई वजूद नहीं होता। वह केवल एक व्यक्ति होता, और मैं उसके बारे में बेधड़क अफवाहें गढ़ता, उसे बदनाम करता, और उस पर हमला करता और उसकी बदनामी करता।” क्या यही लक्ष्य नहीं है? यदि तुम परमेश्वर पर विश्वास रखते हो, लेकिन हमेशा मनमाने ढंग से बोलना और कार्य करना चाहते हो, तो क्या यह परमेश्वर का विरोध करना नहीं है? (हाँ।) कुछ लोग कहते हैं, “क्या यह परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह करना है? क्या यह परमेश्वर में कोई आस्था नहीं रखना है?” इसकी प्रकृति बहुत अधिक गंभीर है। यह परमेश्वर का प्रतिरोध करना और उसका विरोध करना है। केवल परमेश्वर के शत्रु ही इस तरह से परमेश्वर का प्रतिरोध और विरोध करते हैं। भ्रष्ट मानवजाति, शैतान के भ्रष्ट स्वभाव के कारण और सत्य की समझ और परमेश्वर के ज्ञान की कमी के कारण, परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह कर सकती है। लेकिन, शैतान परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह करने से कहीं अधिक करता है; यह परमेश्वर को धोखा देता है, परमेश्वर का प्रतिरोध करता है, और परमेश्वर का विरोध करता है। यह उसे परमेश्वर का शत्रु बनाता है। परमेश्वर के शत्रुओं और परमेश्वर के बीच का संबंध विरोध का है। विरोध का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है असंगत होना। परिस्थिति या परिवेश चाहे जो भी हो, शैतान का परमेश्वर के प्रति विरोध समय या भूगोल के साथ नहीं बदलता। शैतान का सार परमेश्वर का विरोध करना है, और इसमें कोई बदलाव नहीं होता; शैतान बस परमेश्वर का शत्रु है। परमेश्वर के प्रति शैतान का प्रतिरोध और उसके साथ उसका असंगत होना एक दिन या केवल कुछ वर्षों या दशकों तक नहीं चला है; उसने परमेश्वर का विरोध करना तब से शुरू किया है जब से उसने उसे धोखा दिया। तो यह विरोध कब समाप्त होगा? क्या परमेश्वर कभी शैतान को प्रेरित कर सकेगा और सुधार सकेगा? क्या समय के साथ परमेश्वर के प्रति उसका विरोध धीरे-धीरे कम होता जाएगा? नहीं। वह परमेश्वर का विरोध करना जारी रखेगा। यह विरोध कब समाप्त होगा? जब परमेश्वर का कार्य समाप्त हो जाएगा, और शैतान ने अपनी सेवा पूरी कर ली होगी और वह किसी काम का नहीं रह जाएगा, और परमेश्वर ने उसे नष्ट कर दिया होगा—तभी यह विरोध समाप्त होगा। और उन लोगों का क्या जो शैतान के सेवक हैं? जब तक वे कलीसिया में हैं, वे कलीसिया, परमेश्वर के घर और परमेश्वर का विरोध करना जारी रखेंगे। कुछ लोग कहते हैं, “वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं, कभी-कभी चढ़ावा चढ़ाते हैं, दान देते हैं, और यहाँ तक कि भाई-बहनों की मेजबानी भी करते हैं। वे परमेश्वर का विरोध कैसे कर रहे हैं? वे उसका विरोध नहीं कर रहे हैं; वे कुछ अच्छे कर्म भी करते हैं।” क्या ये शब्द सही हैं? क्या भाई-बहनों की मेजबानी करना और गरीब भाई-बहनों को थोड़ा पैसा देना परमेश्वर के प्रति उनके विरोध को रद्द कर सकता है? क्या यह साबित कर सकता है कि वे परमेश्वर के अनुकूल हैं? (नहीं।) तो यह विरोध कैसे होता है? (यह उनके प्रकृति सार से निर्धारित होता है।) यह सही है, उनका प्रकृति सार परमेश्वर का विरोध करना और उससे दुश्मनी मोल लेना है। ऐसे लोगों के लिए, तुम लोगों को परमेश्वर के वचनों के आधार पर उन्हें पहचानने की ज़रूरत है : विचार करो कि कौन विभिन्न माध्यमों से परमेश्वर के घर और कलीसिया पर हमला करने और बदनाम करने वाले नकारात्मक प्रचार या अफवाहें इकट्ठा करना पसंद करता है, और कौन इन नकारात्मक चीजों में रुचि रखता है और इन अफवाहों और शैतानी शब्दों पर विश्वास करने को तैयार है। इससे तुम्हें इन छद्म-विश्वासियों के असली चेहरे देखने को मिलेंगे। ये लोग आम तौर पर परमेश्वर के वचनों को नहीं पढ़ते हैं, भाई-बहनों को सत्य की संगति करते हुए सुनते समय उत्साहित नहीं होते हैं, और अपने कर्तव्यों को निभाने में उदासीन होते हैं। उन्हें हमेशा यही लगता है कि परमेश्वर में विश्वास करना दिलचस्प नहीं है। परमेश्वर के घर के वीडियो और कार्यक्रम देखते समय वे किस बात पर ध्यान केंद्रित करते हैं? जब वे धार्मिक लोगों द्वारा की गई सकारात्मक टिप्पणियाँ देखते हैं, तो वे असहज महसूस करते हैं और उन्हें अनदेखा कर देते हैं। लेकिन जब वे धार्मिक लोगों और अविश्वासियों को बड़े लाल अजगर के साथ खड़े होकर, कलीसिया का अपमान करते, परमेश्वर के घर का अपमान करते, और अपने शैतानी शब्दों से भाई-बहनों का अपमान करते हुए देखते हैं, तो वे विशेष रूप से खुश और उत्साहित महसूस करते हैं। जब भी वे इन नकारात्मक प्रचार और अफवाहों को सुनते हैं, तो वे इतने उत्साहित हो जाते हैं जैसे कि उन्हें एड्रिनलिन का इंजेक्शन लगा दिया गया हो, उनके पैरों में स्प्रिंग लगा दिए गए हों और यहाँ तक कि खुशी के मारे नींद से जाग उठते हैं। क्या यह दुष्टता नहीं है? अपने आस-पास के लोगों को देखो कि कौन इस प्रकार के व्यक्ति से संबंधित है; विचार करो कि क्या उनके पास ऐसा स्वभाव है जो सत्य और परमेश्वर से घृणा करता है। यदि तुम्हें वास्तव में ऐसा कोई व्यक्ति मिलता है, तो तुमको विशेष रूप से सावधान रहना चाहिए और उन्हें पहचानना चाहिए; उनके शब्दों, क्रियाकलापों और चाल-ढाल का निरीक्षण करना चाहिए। एक बार जब तुम पुष्टि कर लेते हो कि वह दुष्ट व्यक्ति है, शैतान का सेवक है, तो तुम्हें उसे अस्वीकार कर देना चाहिए और उसके साथ भाई या बहन जैसा व्यवहार नहीं करना चाहिए। ऐसे लोगों को जितनी जल्दी हो सके कलीसिया से बाहर निकाल देना चाहिए। कुछ लोग कहते हैं, “हमें इन लोगों को बाहर क्यों निकाल देना चाहिए? परमेश्वर के घर में, एक और व्यक्ति होने का मतलब है काम करने के लिए शक्ति का एक और स्रोत होना; एक और व्यक्ति होने से यह थोड़ा और जीवंत भी बना देता है। उसने कई सालों से परमेश्वर में विश्वास रखा है, और भले ही वह सत्य से प्रेम नहीं करता या उसका अभ्यास नहीं करता, लेकिन बचपन से ही वह परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास करता आया है, आकाश में परमपिता परमेश्वर पर विश्वास करता आया है। उसे यह भी विश्वास है कि तुम्हारे तीन फीट ऊपर एक परमेश्वर है, और इससे भी ज्यादा उसे यह विश्वास है कि अच्छाई और बुराई का अपना प्रतिफल होता है। वह आम तौर पर स्पष्ट रूप से बुरे कर्म करने की हिम्मत नहीं करता है और दूसरों की मदद करने के लिए तैयार रहता है। बात बस इतनी सी है कि उसका यह छोटा सा शौक है; उसे अफवाहें फैलाने और गपशप करने में आनंद आता है। विशेष रूप से, वह बड़े लाल अजगर से आयी अफवाहें फैलाता है जो परमेश्वर पर कीचड़ उछालता है, वह इन बातों को बिना ज्यादा सोचे-समझे दोहराता है, शायद इसलिए क्योंकि वह नादान और अज्ञानी है।” सतही तौर पर, वह बुरे लोगों जैसा नहीं लगता और उसने कलीसिया के काम में विघ्न या बाधा उत्पन्न नहीं की है, लेकिन वह अफवाहें फैलाने में विशेष रूप से सक्रिय है और हमेशा उन्हें फैलाने वाला पहला व्यक्ति बनना चाहता है। क्या लोगों को ऐसे व्यक्तियों के प्रति सतर्क नहीं होना चाहिए? क्या वे शैतान के सेवक नहीं हैं? ऐसे लोगों का सार बिल्कुल स्पष्ट है! वे कभी भी परमेश्वर के वचनों या सत्य में रुचि नहीं रखते हैं, और वे अपना कर्तव्य निभाते समय कभी भी सत्य सिद्धांतों की खोज नहीं करते हैं। वे जो कुछ भी करते हैं, उसमें ईमानदारी नहीं दिखाते हैं, न ही काम में दिल लगाते हैं, और कठिनाई सहन करने के लिए तैयार नहीं होते हैं। वे बस अनमने ढंग से काम करते हैं और लगातार मजाक करते हुए खानापूर्ति में लगे रहते हैं। अपनी कथनी और करनी से वे किसी को नाराज नहीं करते और सबके साथ मिलजुलकर रहते हैं, दूसरों के साथ दोस्ताना व्यवहार करते हैं—बस उन्हें सभाएँ करना और अफवाहें फैलाना पसंद है। इन क्रियाकलापों से, क्या हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि ये लोग शैतान के सेवक हैं? (हाँ।) हम ऐसा क्यों कर सकते हैं? क्या यह चीजों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना है? (नहीं।) उन्हें सत्य का अनुसरण करने में कोई दिलचस्पी नहीं है। जैसे ही वे कोई धर्मोपदेश सुनते हैं, वे उनींदे हो जाते हैं; जैसे ही परमेश्वर के वचनों पर संगति की जाती है, उन्हें विकर्षण और बेचैनी महसूस होने लगती है, पानी पीने या बाथरूम जाने के लिए लगातार उठते रहते हैं, हमेशा अंदर से बेचैनी महसूस करते हैं—संगति सुनना उन्हें यातना सहने जितना ही बेहद कठिन लगता है। लेकिन, जैसे ही वे शैतान की अफवाहें या अविश्वासियों के शैतानी शब्द सुनते हैं, उनकी रुचि बढ़ जाती है, वे उत्साहित हो जाते हैं, और वे बड़ी पहल के साथ इन अफवाहों और शैतानी शब्दों को फैलाना शुरू कर देते हैं। क्या ऐसे लोग भाई-बहन हैं? नहीं। वे सत्य से विमुख हैं और अपने दिल की गहराइयों में सत्य से नफरत करते हैं। परमेश्वर और उसके कार्य से संबंधित मामलों के बारे में, चाहे वह परमेश्वर की पहचान और सार हो, परमेश्वर की स्थिति हो, परमेश्वर की गरिमा हो, या वह देह हो जिसे परमेश्वर ने धारण किया है, वे दिल से इन चीजों से नफरत करते हैं। उनमें परमेश्वर का भय मानने वाला दिल बिल्कुल भी नहीं है। इसलिए, वे हमेशा परमेश्वर और उसके कार्य के बारे में धारणाएँ रखते हैं। वे शैतान की सभी तरह की अफवाहों और शैतानी शब्दों को आसानी से दोहरा सकते हैं, इस प्रकार अंतरात्मा को झकझोरे बिना उन्हें फैलाने के अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। यह किस तरह का दुष्ट है? क्या वे परमेश्वर के विश्वासी हैं? (नहीं।) ये उन लोगों के क्रियाकलाप हैं जो मौखिक तौर पर परमेश्वर को मानते हैं और उसका अनुसरण करने का दावा करते हैं, जिनका विश्वास है कि आकाश में एक परमपिता परमेश्वर है, जो मानते हैं कि तुम्हारे तीन फीट ऊपर एक परमेश्वर है, और अच्छाई और बुराई का अपना-अपना प्रतिफल होता है। परमेश्वर के प्रति उनका यही रवैया है। अगर कोई उनके माता-पिता का अपमान करता है या उनकी पीठ पीछे उनके माता-पिता के बारे में अफवाहें फैलाता है, तो वे निःसंदेह मरते दम तक लड़ेंगे। लेकिन, जब कोई परमेश्वर का अपमान करता है, परमेश्वर पर हमला करता है या परमेश्वर की बदनामी करता है, तो न केवल परेशान नहीं होते हैं, बल्कि वे इसे मजाक के तौर पर दोहरा सकते हैं और इसे हर जगह फैला भी सकते हैं। परमेश्वर के अनुयायी को ऐसा कुछ करना चाहिए? (नहीं।) तो क्या कई लोगों का इन छद्म-विश्वासियों को भाई-बहनों के रूप में मानना उचित है? (नहीं।) इसलिए, जब ऐसे लोगों पर शैतान के सेवक होने का संदेह होता है, तो दूसरों को सतर्क हो जाना चाहिए। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को तुरंत भाई-बहनों को इन लोगों से सावधान रहने के लिए सूचित करना चाहिए, ताकि हर कोई उन्हें पहचान सके। एक बार जब शैतान के सेवक या शैतान के रूप में उनकी पुष्टि हो जाती है, तो सभी को सामूहिक रूप से उन्हें ठुकरा देना चाहिए और उन्हें कलीसिया से बाहर निकाल देना चाहिए। क्या यह सिद्धांतों के अनुरूप है? (बिल्कुल है।) तो फिर यही किया जाना चाहिए।

ग. परमेश्वर की बदनामी और उस पर हमला करने वाली सीसीपी की सरकार और धार्मिक दुनिया की निराधार अफवाहों से कैसे निपटें

चीनी कम्युनिस्ट सरकार और धार्मिक समुदाय ने यह दावा करते हुए परमेश्वर के घर के बारे में अनेक निराधार अफवाहें गढ़ी हैं कि भाई-बहन सुसमाचार स्वीकारने के लिए लोगों से जबरदस्ती करते हैं, वगैरह। इन अफवाहों को सुनने के बाद तुम लोगों को कैसा लगता है? (गुस्सा आता है, आक्रोश होता है।) ये अफवाहें तुम लोगों के बारे में हैं, और तुम लोग आक्रोश महसूस करते हो। तुम किस हद तक आक्रोश महसूस करते हो? क्या तुम अफवाहें गढ़ने वाले लोगों को ढूँढ़ना, उनसे बहस करना, और उन्हें सबक भी सिखाना चाहते हो? (हाँ।) ये अफवाहें सतही तौर पर कलीसिया को निशाना बनाती हैं, लेकिन वास्तव में, वे कलीसिया के प्रत्येक सदस्य और प्रत्येक सदस्य की प्रतिष्ठा और सत्यनिष्ठा को शामिल कर लेती हैं। उन्हें सुनने के बाद तुम लोग आक्रोश महसूस करते हो, और कहते हो, “हमने वो सब नहीं किया! हमने सत्य सिद्धांतों के अनुसार सुसमाचार का प्रचार किया था। जो लोग परमेश्वर में विश्वास नहीं करना चाहते हैं, हमने कभी भी उनके साथ जबरदस्ती नहीं की। विश्वास स्वैच्छिक है। हम कभी भी किसी को मजबूर नहीं करते हैं, न ही लोगों को नुकसान पहुँचाते हैं और न ही उनसे बदला लेते हैं। इसके विपरीत, हम में से जो लोग सुसमाचार का प्रचार करते हैं उन्हें धार्मिक लोगों द्वारा बुरी तरह पीटा गया और पुलिस में उनकी रिपोर्ट की गई, यातना देने के लिए बड़े लाल अजगर को सौंप दिया गया; हम में से बहुतों को जेल में डाल दिया गया, और कुछ को धार्मिक लोगों द्वारा बनाई गई निजी जेलों में बंद करके रखा गया। हमारे साथ गलत हुआ है!” ये अफवाहें सुनने के बाद, तुम लोग आक्रोश महसूस करते हो और हमेशा उनसे बहस करना चाहते हो। तुम लोगों की यह प्रतिक्रिया आई क्योंकि ये अफवाहें सीधे कलीसिया और परमेश्वर के चुने हुए लोगों पर हमला करती हैं और उन्हें नीचा दिखाती हैं। तुम्हें कैसा महसूस होता है जब तुम लोग ऐसी अफवाहें सुनते हो जो परमेश्वर को नीचा दिखाती हैं और उसकी आलोचना करती हैं? इनमें तुम लोगों के निजी हित या तुम्हारी सत्यनिष्ठा और गरिमा शामिल नहीं है; वे परमेश्वर से जुड़ी अफवाहें हैं। उदाहरण के लिए, जब पहले तुमने यीशु पर विश्‍वास किया था, तो कुछ लोगों ने कहा कि यीशु एक कुंवारी की कोख से पैदा हुआ था और उसका कोई पिता नहीं था। जब तुमने यह सुना तो तुम्हें कैसा महसूस हुआ था? क्या तुम उनके साथ बहस करना चाहते थे? “यह परमेश्वर है जिसमें हम विश्वास करते हैं!” फिर तुमने इस बारे में सोचा : “मरियम कुंवारी थी, यीशु पवित्र आत्मा द्वारा गर्भधारण करके एक कुंवारी की कोख से पैदा हुआ था। यह सच है, लेकिन अविश्वासी इसके बारे में भद्दे ढंग से बात करते हैं, और मुझे वह सुनना अच्छा नहीं लगता!” ज्यादा से ज्यादा तुम्हारे अंदर ऐसी भावनाएँ उत्पन्न हुई होंगी, लेकिन अपने दिल में, तुमने अभी भी महसूस किया होगा कि पवित्र आत्मा द्वारा गर्भधारण मानवीय धारणाओं का दृढ़ता से खंडन करता है। तुम इस बात में विश्वास नहीं कर पाते क्योंकि तुम विज्ञान में विश्वास करते हो; तुम दिल से परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता पर विश्वास नहीं करते, न ही तुम इस बात में विश्वास करते हो कि जो भी परमेश्वर कहता और करता है वह सत्य है, और फिर तुम छद्म-विश्वासियों की शैतानी बातों का खंडन नहीं करोगे। क्योंकि तुम्हारे पास सत्य नहीं है और तुम सत्य नहीं समझते हो, ज्यादा से ज्यादा, अफवाहें फैलाने वाले लोगों की बातें तुम्हें सुनने में खराब लग सकती हैं, और तुम सोचते हो कि लोगों को इस तरीके से बात नहीं करनी चाहिए क्योंकि इन अफवाहों में तुम्हारी प्रतिष्ठा शामिल है; तुम सोचते हो, “अविश्वासी इतने घृणित और घिनौने हैं! वे लोग गंदी बातें कहने की हिम्मत रखते हैं; वे लोग वास्तव में छद्म-विश्वासी हैं! वे लोग वास्तव में दानव हैं!” बस इतना ही, और तुम अधिकतम इतना ही प्राप्त कर सकते हो। उनसे ऐसी अफवाहें सुनने के बाद तुम उत्तेजित क्यों महसूस करते हो और अविश्वासियों को घृणित और घिनौना क्यों मानते हो? क्योंकि उनसे तुम्हारी प्रतिष्ठा जुड़ी होती है; ये अफवाहें तुम्हारे दिल को भड़काती हैं, तुम्हें अपमानित महसूस कराती हैं, इसलिए वे तुम्हारे क्रोध को भड़काती हैं, और तुम खंडन में कुछ सकारात्मक शब्द कहने के लिए खड़े हो जाते हो। क्या ऐसा खंडन पूरी तरह से परमेश्वर के पक्ष में खड़ा होना है? क्या यह परमेश्वर की गवाही का बचाव करना है? नहीं, यह पूरी तरह से अपनी इज्जत और गरिमा का बचाव करना है। ऐसा क्यों कहते हो? क्योंकि तुमने समस्या के सार की असलियत नहीं जानी है; इससे भी ज्यादा, तुम परमेश्वर के इरादों को नहीं समझते हो या यह नहीं समझते हो कि परमेश्वर तुमसे क्या अपेक्षा करता है। तुम जो समझते और महसूस करते हो वह परमेश्वर के इरादों के अनुरूप नहीं है; यह सिर्फ़ मानवीय आवेग और मानव का अच्छा व्यवहार है। मानव का अच्छा व्यवहार परमेश्वर के लिए तुम्हारी गवाही का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। तुम अपनी गवाही में अडिग नहीं रह पाते हो; तुम सिर्फ अपनी इज्जत और गरिमा बचा रहे हो, तुम अपने जमीर को थोड़ा सुकून देने के लिए अफवाहों का खंडन कर रहे हो—तुम परमेश्वर की ओर से बोलने के लिए उसके पक्ष में नहीं खड़े हो रहे हो, न ही तुम अफवाहों का खंडन करने और परमेश्वर की गवाही देने के लिए सत्य या तथ्यों का उपयोग कर रहे हो। तुम परमेश्वर के लिए नहीं बोल रहे हो, और जो तुम कहते हो वह निश्चित रूप से सत्य के अनुरूप नहीं होता है; यह केवल तुम्हारे दैहिक हितों के अनुरूप है—इससे केवल तुम्हारा दिल थोड़ा कम परेशान होता है, ताकि तुम्हें प्रभु यीशु में विश्वास करना शर्मनाक न लगे। बस इतना ही। इसलिए, जब तुम लोग किसी को परमेश्वर पर हमला करते और उसकी निंदा करते, परमेश्वर की कलीसिया को बदनाम करते और उसकी आलोचना करते या यहाँ तक कि तुम लोगों की निंदा करते सुनते हो, तो तुम लोग विशेष रूप से आक्रोश महसूस करते हो और अपनी प्रतिष्ठा को बहाल करने और इन बातों को स्पष्ट करने के लिए उनसे बहस और वाद-विवाद करना चाहते हो। लेकिन क्या इसका मतलब यह है कि तुम लोग अपनी गवाही में अडिग हो? यह उससे कमतर है; सत्य को समझे बिना, कोई गवाही नहीं होती है!

जब तुम लोग बाहरी दुनिया में फैली हुई ऐसी अफवाहें सुनते हो जो परमेश्वर को बदनाम करती हैं और उस पर हमला करती हैं, तो चाहे वे स्वर्ग के परमेश्वर पर हमला कर रही हों या धरती के देहधारी परमेश्वर पर, तब तुम लोग कैसा महसूस करते हो? क्या तुम उदासीन रहते हो या तुम्हें थोड़ा दर्द महसूस होता है? क्या तुम इसे बर्दाश्त नहीं कर पाते और इससे समझौता नहीं कर पाते या तुम असहाय होते हो? कुछ लोग, इन अफवाहों को सुनने के बाद सोचते हैं, “परमेश्वर निर्दोष है; परमेश्वर ने ये काम नहीं किए। दुनिया और धार्मिक समुदाय उस पर इस तरह के हमले क्यों कर रहा है और उसे बदनाम क्यों किया जा रहा है? हमें निष्ठापूर्वक खुद को खपाना चाहिए, अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए, और परमेश्वर के नाम की रक्षा करनी चाहिए। जब परमेश्वर का महान कार्य पूरा हो जाएगा, तो हर चीज का सत्य सामने आ जाएगा, और दुनिया के सभी लोग देखेंगे कि जिस देहधारी परमेश्वर में हम विश्वास करते हैं, वही एकमात्र सच्चा परमेश्वर है, स्वर्ग का परमेश्वर है, और यह बिल्कुल भी गलत नहीं है!” अन्य लोग सोचते हैं, “परमेश्वर ने इतने सारे सत्यों को व्यक्त किया है, और ये अवि‍श्वासी बुरे लोग और दानव अच्छी तरह से जानते हैं कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं, फिर भी वे परमेश्वर को बदनाम करते हैं और उस पर हमला करते हैं। परमेश्वर को कब तक कष्ट झेलना पड़ेूगा?” अभी भी अन्य लोग कहते हैं, “लोग जो चाहे वह कह सकते हैं; हम उन पर कोई ध्यान नहीं देते। परमेश्वर ने उसकी बदनामी करने वाली अफवाहों का कभी भी खंडन नहीं किया है; वह उनका जवाब नहीं देता है। फिर हम मामूली इंसान के तौर पर क्या कर सकते हैं? क्या परमेश्वर को हमेशा इसी तरह मानवजाति द्वारा गलत नहीं समझा गया है, उस पर हमला नहीं किया गया है, उसका तिरस्कार नहीं किया गया है और उसे ठुकराया नहीं गया है? जो भी हो परमेश्वर की कोई शिकायते नहीं हैं, और वह अभी भी लोगों को बचाता है। समय को सब खुलासा करने दो; परमेश्वर अपनी गवाही खुद देगा!” तुम लोगों का दृष्टिकोण क्या है? अभी-अभी मैंने जिक्र किया कि अडिग होना, आक्रोश में आना, उससे समझौता न करना, असहाय होना—तुम लोगों को इनमें से कौन सी भावना महसूस होती है? कौन सी भावना सबसे सही है? इन मामलों को सत्य सिद्धातों के अनुसार कैसे देखा जाना चाहिए? जब तुम लोग इन अफवाहों को सुनते हो तो तुम लोगों को कैसा महसूस होता है? (आक्रोश।) आक्रोश, और फिर तुम इन अफवाहें गढ़ने वालों, इन धार्मिक धोखेबाजों और धर्म के बुरे लोगों के खिलाफ निंदा पत्र लिखना चाहते हो। क्या तुम्हारे ऐसे विचार हैं? तुम्हें ऐसा नहीं लगेगा कि क्रोध में अपनी मुट्ठी बंद कर लेना ही काफी है, है न? क्या तुम्हें इस बारे में कुछ करने की उत्तेजना महसूस होती है? या यह सिर्फ खोखला आक्रोश है? (घृणा और अस्वीकृति भी है।) आक्रोश, घृणा, अस्वीकृति—ये ऐसी भावनाएँ हैं जो बिना किसी विशिष्ट शब्द, व्यवहार या क्रियाकलाप के, मानसिक गतिविधियों से उत्पन्न होती हैं; वे सिर्फ भावनाएँ हैं, और निश्चित रूप से वे कुछ रवैयों को भी दर्शाती हैं। (आक्रोश महसूस करने के अलावा, कभी-कभार हम तथ्यों को स्पष्ट करने और यह उजागर करने के लिए लेख लिखते हैं या कार्यक्रम तैयार करते हैं कि उनके क्रियाकलापों का सार सत्य और परमेश्वर से घृणा करना है, ताकि लोग सही तथ्य देख सकें।) क्या वे लोग सही तथ्य देखने के बाद इसे स्वीकारेंगे? भले ही वे यह स्वीकारें कि तुम लोग जो कहते हो वह सही है और फिर निष्पक्ष टिप्पणी करते हुए कहें, “तुम लोगों का विश्वास सही है; विश्वास करते रहो, हम तुम्हारा समर्थन करते हैं!” और धार्मिक धोखेबाज शर्मिंदा महसूस करते हुए कहते हैं, “क्षमा करना, हम गलत थे, हमने जो कहा वह तथ्यात्मक नहीं था; अब से, तुम लोग अपने तरीके से विश्वास करो, और हम अपने तरीके से विश्वास करेंगे,” क्या इससे तुम लोग सहज महसूस करोगे? क्या यही एकमात्र लक्ष्य है जिसे तुम लोग प्राप्त करना चाहते हैं? (हम परमेश्वर की गवाही भी देना चाहते हैं ताकि जो लोग सच्चे मार्ग की छानबीन कर रहे हैं और जो सत्य के प्यासे हैं वे स्पष्ट रूप से सही और गलत का भेद पहचान सकें और सच्चे मार्ग को स्वीकार सकें।) यह एक मार्ग है; यह अभ्यास का एक सकारात्मक तरीका है। क्या सिर्फ गुस्सा और नफरत करना लाभकारी है? तुम लोगों के गुस्से और नफरत का क्या कारण है? गुस्सा और नफरत क्यों करना? (परमेश्वर लोगों को बचाने के लिए देहधारी हुआ है, जो कि सबसे धार्मिक बात है, लेकिन वे परमेश्वर की आलोचना करने और उसे नीचा दिखाने के लिए अफवाहें फैलाते हैं। हम यह सोचकर बहुत आक्रोश महसूस करते हैं कि वे वास्तव में सही और गलत को उलट-पुलट कर रहे हैं और बकवास कर रहे हैं।) क्या तुम लोग सोचते हो कि मानवजाति और संसार द्वारा परमेश्वर को ठुकराना और परमेश्वर के प्रति उनका रवैया केवल परमेश्वर के इस देहधारण की अवधि के दौरान ही ऐसा है? परमेश्वर के प्रति मानवजाति और संसार का रवैया शुरू से अंत तक हमेशा एक जैसा रहा है, हमेशा से उसकी निंदा, बदनामी, हमला और तिरस्कार किया गया है। जब से परमेश्वर ने अपना कार्य आरंभ किया है, तब से लेकर अब तक, परमेश्वर ने जो कुछ भी किया है, उसके प्रति और देहधारी परमेश्वर के प्रति मानवजाति का रवैया नहीं बदला है। यह केवल परमेश्वर के प्रथम देहधारण के बाद ही नहीं था कि मानवजाति ने परमेश्वर पर हमला किया, उसका तिरस्कार किया और देहधारी परमेश्वर के बारे में विभिन्न अफवाहें गढ़ना आरंभ कर दिया—यह सब तब से हो रहा है जब से परमेश्वर ने अपना कार्य आरंभ किया है, जब से मानवजाति पहली बार परमेश्वर और उसके कार्य के संपर्क में आई है, और यह अब तक जारी है। और जो लोग परमेश्वर का अनुसरण करते हैं, उन्हें हमेशा शैतान के शासन और परमेश्वर और कलीसिया के खिलाफ काम करनेवाली धार्मिक मसीह-विरोधी ताकतों की ओर से अपमान, हमले, आलोचनाएँ, तिरस्कार, विभिन्न अफवाहें और बहुत कुछ सहना पड़ता है। क्या ऐसा हो सकता है कि परमेश्वर के अनुयायियों को ये सब सहना पड़े? कुछ लोग कहते हैं, “हम इन अफवाहों से बहुत निराश हैं क्योंकि वे तथ्यों को पूरी तरह से तोड़-मरोड़ कर पेश करते हैं और सही-गलत को उलट-पुलट कर देते हैं। जैसे ही हम उन्हें सुनते हैं, हमें गुस्सा आ जाता है और अपने दिल की गहराई से हम उन लोगों से नफरत करते हैं जो अफवाहें गढ़ते और उन्हें फैलाते हैं। चाहे ये अफवाहें धार्मिक समुदाय से आती हों या शैतानी सीसीपी सरकार से, हमारा एक ही रवैया है, और वह है नफरत और गुस्सा; और फिर हम उनका खंडन करना चाहते हैं और सब कुछ स्पष्ट करना चाहते हैं।” कुछ लोग तो यहाँ तक कहते हैं, “हम इन दानवों और मसीह-विरोधियों के साथ वाद-विवाद करना चाहते हैं ताकि हम शैतान को शर्मिंदा कर सकें और उसे अपमानित कर सकें!” क्या यह अधिकांश लोगों का दृष्टिकोण है? क्या यह दृष्टिकोण सही है? अगर सामान्य मानवता के परिप्रेक्ष्य से देखा जाए, तो यह उचित है। लोगों में थोड़ी ईमानदारी और भावनाओं का सामान्य दायरा होना चाहिए; उन्हें स्पष्ट रूप से प्यार और नफरत करनी चाहिए, जिससे प्यार किया जाना चाहिए उससे प्यार करना चाहिए और जिससे नफरत की जानी चाहिए उससे नफरत करनी चाहिए। सामान्य मानवता वाले लोगों में ये गुण होने चाहिए। लेकिन, क्या केवल सामान्य मानवता के परिप्रेक्ष्य से खड़े होना ही सत्य सिद्धांतों के अनुरूप होने के लिए पर्याप्त है? इसे और अधिक स्पष्ट रूप से कहें तो क्या यह नजरिया परमेश्वर के इरादों के अनुरूप है? या फिर, क्या यह एक ऐसा रवैया और नजरिया है जिससे परमेश्वर प्रसन्न होता है? जब मैं यह कहता हूँ, तो ज्यादातर लोग यह सोचते हुए कुछ समझ सकते हैं, “तुमने कहा कि यह सिर्फ सामान्य मानवता के परिप्रेक्ष्‍य से चीजों को देखना है। तुमने जो कहा उसके निहितार्थों को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि यह नजरिया उतावला होने का है, यह सत्य सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है और परमेश्वर के इरादों के अनुरूप भी नहीं है।” परमेश्वर के इरादों के अनुरूप न होने का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि परमेश्वर नहीं चाहता कि लोग इस तरह से काम करें; परमेश्वर की इच्छाएँ और लोगों के लिए उसके अपेक्षित मानक ऐसे नहीं हैं। यदि तुम इस तरह से काम करते हो, तो भले ही परमेश्वर अपने परिप्रेक्ष्य से इसकी निंदा नहीं करता, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि तुम उसकी इच्छा का पालन कर रहे हो, और वह इसे स्वीकार नहीं करता है। सतही तौर पर, ऐसा लगता है कि तुम इन कामों को सही ढंग से कर रहे हो, नफरत और प्यार दोनों रखते हो, परमेश्वर के लिए इन तथ्यों को स्पष्ट करना चाहते हो ताकि पूरी दुनिया जान सके कि परमेश्वर परमेश्वर है, परमेश्वर सारी मानवजाति का परमेश्वर है, और सभी को परमेश्वर की आराधना करनी चाहिए और परमेश्वर के उद्धार को स्वीकारना चाहिए। सतही तौर पर, ऐसा लगता है कि तुम जो कर रहे हो वह त्रुटिहीन, उचित, व्यवस्था के अनुरूप, मानवता के अनुरूप, नैतिकता के अनुरूप और इससे भी बढ़कर, सभी लोगों की पसंद के अनुरूप है। लेकिन क्या तुमने परमेश्वर से इस बारे में पूछा है? क्या तुमने परमेश्वर की तलाश की है? क्या तुमने परमेश्वर के वचनों में उन कार्य सिद्धांतों को पाया है जिनकी परमेश्वर लोगों से अपेक्षा करता है? परमेश्वर के इरादे वास्तव में क्या हैं? कुछ लोगों का कहना है, “परमेश्वर के वचन बहुत सारे हैं; हर मामले में लोगों के लिए परमेश्वर की विशिष्ट अपेक्षाओं को ढूँढ़ पाना आसान नहीं है।” चूँकि तुम्हें परमेश्वर के स्पष्ट वचन नहीं मिले हैं, इसलिए तुम इस तरह की अफवाहों के प्रति परमेश्वर के रवैये से संकेत ढूँढ़ सकते हो। तो क्या तुम यह निर्धारित नहीं कर सकते कि इस मामले के प्रति लोगों का रवैया क्या होना चाहिए और उन्हें किन सिद्धांतों का अभ्यास करना चाहिए जो इस मामले के प्रति परमेश्वर के रवैये पर आधारित हैं? (बिल्कुल।) तो आओ देखें कि इस मामले के प्रति परमेश्वर का रवैया वास्तव में क्या है।

मानवजाति का परमेश्वर के कार्य से सामना होने की शुरुआत से ही, लोगों ने परमेश्वर के बारे में शिकायत की है और उससे असंतुष्ट रहे हैं, यहाँ तक कि परमेश्वर के प्रति गुप्त रूप से संदेह, शंका, और अस्वीकृति जैसे अनेकों घृणास्पद शब्द भी बोले हैं। सत्तारूढ़ दल और धार्मिक समुदाय की ओर से भी विभिन्न अफवाहें फैलाई जा रही हैं, जो तथ्यों या सत्य के बिल्कुल भी अनुरूप नहीं हैं। परमेश्वर के लिए इन शब्दों के क्या मायने हैं? चाहे वे शंकाएँ, गलतफहमियाँ या शिकायतें हों, वे परमेश्वर के खिलाफ हमलों, बदनामी और तिरस्कार से भरी हुई हैं, और वे थोड़ा सा भी परमेश्वर का भय मानने वाले दिल को नहीं दर्शाती हैं; शुरुआत से ही यह इसी तरह का रहा है। कलीसिया में हमेशा कुछ ऐसे लोग रहे हैं जो सत्य से प्रेम नहीं करते। ये छद्म-विश्वासी हैं, जो परमेश्वर के वचनों और सत्य पर शक करते हैं, परमेश्वर के प्रति इस तरह का रवैया प्रदर्शित करते हैं। इससे भी बढ़कर उन अविश्वासियों और नास्तिक सत्तारूढ़ दलों के लिए, जो लोग सत्य से विमुख हैं—परमेश्वर के प्रति उनके रवैये के लिए कोई सफाई देने की जरूरत नहीं है; वे अनैतिक ढंग से हमला और आलोचना करते हैं, और जो भी चाहते हैं वो कहते हैं। विशेष रूप से, धार्मिक समुदाय के वे फरीसी लोग इस अवसर का लाभ मनमाने ढंग से आलोचना और निंदा करने के लिए उठाते हैं। ये सभी टिप्पणियाँ सकारात्मक नहीं हैं, और वे निश्चित तौर पर वस्तुनिष्ठ और सटीक नहीं हैं। फिर, इन टिप्पणियों का क्या सार है? परमेश्वर के लिए, ये शब्द केवल बयान या दृष्टिकोण नहीं हैं, बल्कि उसके खिलाफ अपमान, हमले, बदनामी, और तिरस्कार भी करते हैं। मैंने “परमेश्वर के लिए” क्यों कहा है? क्योंकि परमेश्वर इन सब को बेहद सटीकता से आंकता है, हम केवल एक उपसर्ग जोड़ सकते हैं। पूरे इतिहास में, परमेश्वर के प्रति मानवजाति का रवैया ऐसा ही रहा है; लोगों के शब्द बहुत अधिक रहे हैं जिनसे वे परमेश्वर पर हमला और उसका अपमान करते हैं, उनमें से एक भी शब्द नेक इरादे वाला नहीं रहा है। आज भी, तुम लोगों के कान जो सुनते हैं और तुम्हारी आँखें जो देखती हैं वो एक समान है। शुरुआत से, परमेश्वर के प्रति संपूर्ण मानवजाति का रवैया बदला नहीं है। परमेश्वर इन मामलों से कैसे निपटता है? क्या परमेश्वर के पास स्वयं का बचाव करने, अपने कार्य के वास्तविक तथ्यों को स्पष्ट करने, और मानवजाति के समक्ष स्वयं को उचित ठहराने के लिए वैश्विक धार्मिक सम्मेलन बुलाने की परिस्थितियाँ या क्षमता है? नहीं, परमेश्वर चुप रहता है, वह संपूर्ण स्थिति को स्पष्ट नहीं करता है, न ही वह स्वयं का बचाव करता है या स्‍वयं को सही ठहराता है। हालाँकि, उन लोगों के लिए जो परमेश्वर पर खासकर घृणित तरीके से हमला करते हैं, परमेश्वर ने कुछ सजा का प्रबंध किया है, कुछ तथ्यों को उनके सामने आने दिया है। जहाँ तक जनता के हमलों, अपमान, और तिरस्कार की बात है, परमेश्वर का रवैया क्या है? परमेश्वर इससे कैसे निपटता है? वह इसे नजरंदाज कर देता है; वह वही काम करता है जो करना जरूरी है, वह इसे उसी तरीके से करता है जिस तरीके से इसे किया जाना चाहिए, उसे चुनता है जिसका चुनाव किया जाना चाहिए, उसका मार्गदर्शन करता है जिसका उसे मार्गदर्शन करना चाहिए। सारा संसार परमेश्वर के हाथों में व्यवस्थित है; उसने मानव के हमलों, अपमान या तिरस्कार के कारण कभी भी अपनी योजनाओं में कोई बाधा नहीं डाली या उनमें बदलाव नहीं किया। जब शैतान की बुरी ताकतें परमेश्वर के चुने हुए लोगों को दबाती और हिरासत में लेती हैं, तो चाहे वे कितनी भी उन्मादी क्यों न हों, परमेश्वर ने कभी भी अपनी योजनाओं या अपने मन में कोई बदलाव नहीं किया है। उसकी सोच और उसके विचार पूरी तरह से अपरिवर्तित रहते हैं; वह हमेशा की तरह अपनी मानवजाति का प्रबंधन करते हुए अपना कार्य जारी रखता है, जिसे वह करना चाहता है। परमेश्वर के लिए, इन हमलों, अपमानों और तिरस्कारों ने कभी भी कोई हस्तक्षेप नहीं किया है; परमेश्वर उन पर कोई ध्यान नहीं देता। परमेश्वर खुद को सही क्यों नहीं ठहराता या खुद का बचाव क्यों नहीं करता। परमेश्वर के लिए, ये चीजें पूरी तरह से सामान्य हैं। मानव केवल मानव है, और शैतान सिर्फ शैतान। सत्य या वास्तविक तथ्यों को नहीं समझने वाले इंसानों के लिए ऐसी चीजें करना बहुत सामान्य है। क्या यह परमेश्वर के कार्य के चरणों को प्रभावित करता है? यह प्रभावित नहीं करता है। परमेश्वर के पास महान सामर्थ्य है; वह सभी पर संप्रभुता रखता है। सभी चीजें और सब कुछ परमेश्वर के वचनों के भीतर, परमेश्वर के विचारों के भीतर, और परमेश्वर की संप्रभुता के अधीन व्यवस्थित रूप से संचालित होता है; चाहे मानवजाति कुछ भी कहे या करे, यह किसी भी तरह से परमेश्वर के कार्य को प्रभावित नहीं कर सकती है—यह वही है जो दिव्य सार वाला परमेश्वर करने में सक्षम है। परमेश्वर समय आने पर कार्य करता है, बिना किसी भी विसंगति के अपनी योजनाओं को पूरा करता है, और कोई भी इसे बदल नहीं सकता। मानवीय टिप्पणियाँ और परमेश्वर पर कोई भी मानवीय हमला या बदनामी, चाहे वे परमेश्वर के कार्य को बाधित और नष्ट करने के लिए जानबूझकर किए गए प्रयास हों या अनजाने में परमेश्वर के कार्य में बाधा डालने और उसे नष्ट करने के लिए किए गए प्रयास हों, कभी भी अपने इच्छित लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाए हैं। क्यों? यह परमेश्वर का अधिकार है; यह पुष्टि करता है कि परमेश्वर का अधिकार अनूठा है; कोई भी ताकत उसकी जगह नहीं ले सकती है, और कोई भी ताकत उससे बढ़कर नहीं है। यह सच है। परमेश्वर के पास यह अधिकार और यह सामर्थ्य है, परमेश्वर के पास उसकी सच्ची पहचान है, और कोई भी ताकत कुछ भी नहीं बदल सकती, तो परमेश्वर को लोगों के छोटे-मोटे हमलों और बदनामी से क्यों परेशान होना चाहिए? परमेश्वर के लिए, चाहे कितनी भी महत्वपूर्ण हस्तियाँ या मानवजाति में कितनी भी बड़ी ताकत उसके काम में हस्तक्षेप करने, उसे बदनाम करने, उस पर हमला करने या उसका तिरस्कार करने की कोशिश करे, यह परमेश्वर के काम को थोड़ा भी बाधित नहीं कर सकती। बल्कि, ये क्रियाकलाप केवल परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव और सर्वशक्तिमत्ता पर रोशनी डालने का काम करते हैं। शैतान की बुरी ताकतों द्वारा पैदा की गई गड़बड़ी मानव इतिहास के दौरान एक छोटी सी घटना मात्र है। जो समस्त मानवजाति पर संप्रभुता रख सकता है, समस्त मानवजाति को प्रभावित कर सकता है, और समस्त मानवजाति को परिवर्तित कर सकता है, वह है परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर की योजना, और परमेश्वर की महान सामर्थ्य और अधिकार। यह सच है। इसके विपरीत, क्या परमेश्वर को लोगों द्वारा की गई उसकी निंदा, उस पर किए गए हमलों, उसकी बदनामी और उसके खिलाफ किए गए तिरस्कार से परेशान होने की आवश्यकता है? नहीं। क्योंकि परमेश्वर के पास अधिकार है, परमेश्वर के लिए, उसका कथन, “जो मैं कहता हूँ वही मेरा अर्थ होता है, जो मैं कहता हूँ वह किया जाएगा और जो मैं करता हूँ वह हमेशा के लिए बना रहेगा,” हमेशा सच रहेगा; यह हर दिन सच हो रहा है और पूरा हो रहा है। यह परमेश्वर का अधिकार है। कुछ लोग पूछते हैं, “क्या यह परमेश्वर का आत्मविश्वास, उसकी आस्था है?” तुम गलत हो! मनुष्यों में आत्मविश्वास होता है, मनुष्यों को आस्था की आवश्यकता होती है, लेकिन परमेश्वर को नहीं। क्यों? क्योंकि परमेश्वर के पास अधिकार और सामर्थ्य है, और चाहे मानवजाति उसकी कितनी भी बदनामी करे या उसकी निंदा करे, चाहे शैतान की शत्रुतापूर्ण ताकतें उसे कितना भी परेशान और गड़बड़ी करें, कुछ भी नहीं बदलेगा। इसलिए, परमेश्वर को अपना कार्य करने से पहले भ्रष्ट मानवजाति के बीच से उन शत्रुतापूर्ण ताकतों को खत्म करने की आवश्यकता नहीं है जो उस पर हमला करती हैं, उसकी बदनामी करती हैं और उसका तिरस्कार करती हैं। परमेश्वर किन परिस्थितियों में कार्य करता है? वह किन परिस्थितियों में विजय प्राप्त करता है? वह किन परिस्थितियों में अपना कार्य पूरा करता है? यह समस्त मानवजाति और सभी शत्रुतापूर्ण ताकतों के हमलों, बदनामी और तिरस्कार के कोलाहल के बीच किया जाता है; वह ऐसे परिवेश और पृष्ठभूमि में अपना कार्य पूरा करता है। क्या यह परमेश्वर की महान सामर्थ्य का प्रदर्शन नहीं है? क्या यह परमेश्वर का अधिकार नहीं है? (बिल्कुल है।) इस तथ्य से कौन इनकार कर सकता है? क्या तुम में इस तथ्य को स्वीकार नहीं करने की हिम्मत है?

पूरे इतिहास में, मानवजाति ने लगातार परमेश्वर की बदनामी और तिरस्कार किया है, और अंत के दिनों में, परमेश्वर की बदनामी और निंदा करने वाले लोगों की संख्‍या और अधिक होने के साथ ही पूरी मानवजाति में परमेश्वर का विरोध करने वाली ताकतें और भी अधिक ताकतवर हो गई हैं। मानवजाति परमेश्वर की बदनामी करने और उस पर हमला करने के लिए अखबारों, टेलीविजन, इंटरनेट, और अन्य मीडिया के माध्यम से विभिन्न तरीकों का उपयोग करती है। लेकिन क्या हमने कभी अपनी सारी सभाओं में इन अफवाहों का गहन-विश्लेषण किया है? (नहीं किया।) क्यों नहीं किया? कुछ लोगों का कहना है, “ऐसा इसलिए है क्योंकि बुद्धिमान के पास पहुँचने पर निर्दोष इंसान निर्दोष ही रहता है, और अफवाहें समाप्त हो जाती हैं?” क्या यही कारण है? (ये अफवाहें मूलभूत रूप से परमेश्वर के कार्य को प्रभावित नहीं कर सकती हैं। चाहे शैतान कैसे भी बाधा डाले, वह परमेश्वर के कार्य और उसकी योजना की प्रगति को नष्ट या बाधित नहीं कर सकता है।) शैतान ऐसी ही चीज है; जब तक परमेश्वर कार्रवाई करता है, जब तक परमेश्वर कार्य करता है, यह बाधा डालने आता है। वास्तव में यही वो भूमिका है जो वह निभाता है। क्या इसे कार्य करने से रोकना तुम्हारे लिए ठीक है? तुम्हें इसे काम करने के लिए पर्याप्त स्थान, पर्याप्त मंच, पर्याप्त अवसर देना होगा। जब वह पर्याप्त काम कर चुका होगा, अपनी उथल-पुथल से थक चुका होगा, और काफी बुराइयाँ कर चुका होगा, तो उसका समय बीत चुका होगा। हमें इन अफवाहों का भंडाफोड़ करने के लिए उसकी विभिन्न अफवाहों और बुरे कर्मों का गहन-विश्लेषण करने में कीमती समय बर्बाद करने की जरूरत नहीं है; ऐसा करना व्यर्थ और बेकार है। उनका गहन-विश्लेषण करने का क्या लाभ होगा? क्या यह सत्य समझने वाले लोगों को दर्शा सकता है? बहुत से सत्य हैं जिन्हें लोगों को समझना चाहिए; वे इन सभी सत्य को सुन भी नहीं सकते हैं, इन अफवाहों का भंडाफोड़ करना तो दूर की बात है। क्या लोगों के पास इतना फालतू समय है? सच कहूँ तो मुझे वास्तव में उन मामलों में कोई दिलचस्पी नहीं है, न ही मैं उनका उल्लेख करने या उन पर ध्यान देने को तैयार हूँ। कुछ लोग कहते हैं, “इन वर्षों में, क्या ऐसा है कि तुम कहीं जाने की हिम्मत नहीं कर पाते हो? क्या ऐसा इसलिए है कि इतनी सारी अफवाहें उड़ रही हैं कि तुम जहाँ भी जाते हो, हमेशा चिंतित और डरे हुए रहते हो?” मेरा कहना है कि मुझे कुछ भी महसूस नहीं होता। कुछ लोग कहते हैं, “क्या तुम उन चीजों के खिलाफ अपना बचाव नहीं करना चाहते जो तुमने नहीं की हैं?” बचाव करने के लिए क्या है? मैं तो अपना उचित काम भी नहीं कर सकता! मैं लोगों से, सृजित प्राणियों से बात करता हूँ, दानवों से नहीं। कुछ लोग पूछते हैं, “क्या ये अफवाहें सुनकर तुम्हें गुस्सा नहीं आता?” मैं कहता हूँ कि मुझे उनके प्रति कुछ भी महसूस नहीं होता, वे मुझे कुछ भी महसूस नहीं करा पाती हैं; मैं इन मामलों से परेशान नहीं होता। कुछ लोग पूछते हैं, “क्या तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि तुम्हारे साथ अन्याय हुआ है?” मैं कहता हूँ कि मुझे ऐसा नहीं लगता कि मेरे साथ अन्याय हुआ है, इसमें अन्याय लगने की क्या बात है? मैं जो कर सकता हूँ, जो करना चाहिए, वह करूँ, जो कर सकता हूँ और करना चाहिए, उसे अच्छे से करूँ, अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करूँ—यही सबसे अच्छी बात है, यही सार्थक है। मैं उन अर्थहीन, बेकार की चीजों से विचलित नहीं होऊँगा या उन पर समय नष्ट नहीं करूँगा। मेरे पास उन मामलों को लेकर चिंता करने समय नहीं है। कुछ लोग कहते हैं, “जब तुम्हारे पास खाली समय होगा, तो क्या तब तुम उनके बारे में चिंता करोगे?” नहीं, तब भी नहीं जब मेरे पास खाली समय होगा। मैं दानवों से बात करने के बजाय अपने कुत्ते से बात करना पसंद करूँगा। अगर तुम्हें स्पष्ट रूप से पता है कि दानव अपनी शैतानी बातें कर रहा है, तो इससे परेशान क्यों होना? तुम्हें बिल्कुल भी परेशान नहीं होना चाहिए; दानव को पूरी तरह से शर्मिंदा होने देना ही सही काम है। संक्षेप में, इन अफवाहों के प्रति परमेश्वर का रवैया इस प्रकार है : कुछ भी करने या हर वाक्य कहने में, परमेश्वर यह कहकर कि वह निर्मल और निर्दोष है, और दोषरहित है, स्वयं को सही नहीं ठहरा रहा है, न ही मानवजाति के सामने स्वयं को साबित कर रहा है, और निश्चित रूप से शैतान, अपने दुश्मन के सामने स्वयं को सही नहीं ठहरा रहा है। परमेश्वर हर काम अपने प्रबंधन के लिए करता है, उन मानवों को बचाने के लिए करता है जिन्हें उसका इरादा बचाने का होता है। वह कदम-दर-कदम अपनी प्रबंधन योजना का अनुसरण करता है; वह यह काम किसी को कुछ भी प्रदर्शित करने के लिए नहीं करता, न ही अपनी पहचान की पुष्टि करने के लिए करता है। मानवीय शब्दों में कहें तो परमेश्वर जो कुछ भी करता है वह बिना किसी कपट या निष्क्रियता के सहज रूप से करता है। परमेश्वर द्वारा सहज रूप से इन सभी कार्यों को पूरा करना उसकी पहचान और उसके सार की पुष्टि करता है। मानवजाति परमेश्वर की योजना को बदल नहीं सकती, न ही वह परमेश्वर के अधिकार और सामर्थ्य से बढ़कर कुछ कर सकती है; यह सच है। इसलिए, परमेश्वर उन अफवाहों और शैतानी शब्दों की उपेक्षा करता है जो मानवजाति के भीतर किसी भी पक्ष से उस पर हमला करती हैं और उसे बदनाम करती हैं। मुझे बताओ, क्या परमेश्वर के लिए दुनिया में नास्तिक सतारूढ़ दलों और धार्मिक समुदाय द्वारा परमेश्वर के खिलाफ किए जा रहे हमलों और प्रतिरोध के विरोध में वचनों का एक अध्याय बोलना या निंदा लिखना बहुत आसान नहीं होगा? लेकिन परमेश्वर शैतान के साथ इस तरह से व्यवहार नहीं करेगा। परमेश्वर सिद्धांतों के अनुसार काम करता है; जब परमेश्वर द्वारा शैतान की बुरी ताकतों को नष्ट करने की बात आती है, तो उसका अपना समय होता है। परमेश्वर के लिए, कार्य करना बहुत आसान है। परमेश्वर स्वर्ग में कुछ चमत्कारिक कार्य कर सकता है, और अचानक स्वर्ग फट जाएगा और एक आवाज सुनाई देगी, “मैं ही एकमात्र सच्चा परमेश्वर हूँ जिसे तुम लोग बदनाम करते हो, जिस पर हमला करते हो, और जिसका तिरस्कार करते हो; मैं ही वह सर्वशक्तिमान हूँ जिसकी तुम लोग फिलहाल बदनामी और तिरस्कार कर रहे हो!” यह सुनकर, मानवजाति तुरंत स्तब्ध और हैरान हो जाएगी, केवल जमीन पर दण्डवत होकर रोएगी और अपने दाँत पीसेगी। यह एक वाक्य सब कुछ हल कर देगा, सब कुछ साबित कर देगा; क्या तब कोई परमेश्वर का अपमान करने का साहस करेगा? क्या धार्मिक समुदाय के वे दानव पूरी तरह गायब होने से डर नहीं जाएँगे? शैतान परमेश्वर के बारे में अफवाहें गढ़ता है, परमेश्वर को बदनाम करता है और उस पर हमले करता है, जिससे परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोग क्रोधित और घृणास्पद हो जाते हैं, वे खाने या सोने में असमर्थ हो जाते हैं, वे इसका खंडन करने के लिए लेख लिखना और कार्यक्रम बनाना चाहते हैं, जबकि परमेश्वर सरलता से कार्य करता है—वह बस कुछ वाक्य बोल सकता है और फिर सारी मानवजाति पूरी तरह से आत्मसमर्पण कर देगी, और उस पर हमला करने या उसका तिरस्कार करने का साहस नहीं करेगी। पौलुस को आज्ञाकारी कैसे बनाया गया था? (परमेश्वर ने दमिश्क के रास्ते पर उसे दर्शन दिए।) परमेश्वर ने उसे दर्शन दिए। वास्तव में उसने कुछ भी नहीं देखा; वहाँ केवल एक प्रकाश था जिसने पौलुस को इतना डरा दिया कि वह जमीन पर दण्डवत हो गया, और उसने अब यीशु को सताने की हिम्मत नहीं की। शैतान से निपटना इतना सरल है; वास्तव में, यह परमेश्वर के लिए बहुत आसान है। परमेश्वर इसे केवल एक वचन से सुलझा सकता है। ऐसा करना तुम लोगों से दशकों तक बात करने और तुम लोगों पर यह सब कोशिश करने से कहीं अधिक आसान होगा, लेकिन परमेश्वर इस तरह से कार्य नहीं करता है। क्यों? यह एक रहस्य है जो मुझे तुम लोगों को बताना चाहिए : परमेश्वर इंसानों को बचाता है, अर्थात्, वे लोग जिन्हें परमेश्वर ने चुना है; बाकी, जिन्हें परमेश्वर ने नहीं चुना है, उन्हें मनुष्य नहीं माना जाता है, बल्कि वे जानवर हैं, दानव हैं, जो परमेश्वर की वाणी सुनने, परमेश्वर का चेहरा देखने के योग्य नहीं हैं, या परमेश्वर के बारे में कुछ भी जानने लायक तो और भी नहीं हैं। इसलिए, परमेश्वर इस तरह से कार्य नहीं करता है। परमेश्वर की पहचान सम्माननीय है; कोई भी व्यक्ति जो उसे देखना चाहता है, वह ऐसा नहीं कर सकता, और वह किसी के सामने सिर्फ इसलिए प्रकट नहीं होगा क्योंकि वह हमेशा ध्यानपूर्वक, उत्सुकता से, और पूरे दिल से आकाश में एक निश्चित स्थान की ओर देख रहा है। क्या तुम सोचते हो कि कोई भी व्यक्ति जो परमेश्वर को देखना चाहता है, उसे देख सकता है? परमेश्वर में गरिमा है; परमेश्वर उन लोगों के सामने प्रकट होता है जो उसका भय मानते हैं और बुराई से दूर रहते हैं, वह पवित्र स्थानों में प्रकट होता है और गंदी जगहों से छिपता है। क्या पूरी मानवजाति गंदी है या पवित्र है, इस पर चर्चा की आवश्यकता नहीं है। यह मानवजाति परमेश्वर को देखने के योग्य नहीं है; लोग यह स्वीकार नहीं करते कि कोई परमेश्वर है, तो परमेश्वर उनके सामने क्यों प्रकट होगा? वे इस लायक नहीं हैं! परमेश्वर चीजें करने में सक्षम है लेकिन उन्हें करता नहीं है; यह परमेश्वर की विनम्रता और गुप्तता, और उसकी पहचान की सम्माननीयता की पुष्टि करता है। मुझे बताओ, अगर शैतान उन चीजों को कर सकता, तो वह उन्हें दिन में कितनी बार करता, वह कितना दिखावा करता? जब शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए मनुष्य कोई छोटा-मोटा पद धारण करते हैं और थोड़ी-बहुत ताकत रखते हैं, तो कौन जानता है कि वे किस हद तक इस ताकत का दिखावा करेंगे—शैतान की तो बात ही छोड़ दो, जो अपनी किसी भी ताकत का अकल्पनीय तरीकों से दुरुपयोग और दिखावा करेगा। परमेश्वर इस तरह से कार्य नहीं करता; परमेश्वर को शैतान के तर्क से मत मापो, यह एक भारी गलती होगी। जहाँ तक परमेश्वर के कार्य करने की बात है, यह परमेश्वर पर निर्भर करता है कि वह इसे करना चाहता है या नहीं; यदि परमेश्वर चाहे, तो यह एक पल में हो सकता है, और यदि वह नहीं चाहे, तो कोई भी उसे मजबूर नहीं कर सकता। अफवाहों के प्रति परमेश्वर का रवैया बस यही है—वह उन्हें नजरंदाज करता है। परमेश्वर अभी भी वही करता है जो उसे करना चाहिए, जो वह करने का इरादा रखता है; कोई भी व्यक्ति, कोई भी ताकत उसकी योजना को बिगाड़ या बदल नहीं सकती। परमेश्वर पर हमला करने, उसे बदनाम करने और नीचा दिखाने वाली ये अफवाहें कुछ भी नहीं बदलतीं। अफवाहें, आखिरकार, सिर्फ अफवाहें ही हैं और कभी तथ्य नहीं बन सकतीं। भले ही वे मानवीय फलसफे, विज्ञान, नैतिकता, सिद्धांत आदि के अनुरूप हो जाएँ, भले ही पूरी मानवजाति परमेश्वर पर हमला करने के लिए उठ खड़ी हो, लेकिन सत्य मानवजाति के साथ खड़ा नहीं होगा, न ही मानवजाति सत्य की स्वामी बनेगी। परमेश्वर सदा के लिए परमेश्वर है; उसकी पहचान और स्थिति कभी नहीं बदलती। इस प्रकार, चाहे शैतान कितना भी परेशान करे, परमेश्वर का कार्य अभी भी व्यवस्थित ढंग से आगे बढ़ता है, क्योंकि यह परमेश्वर का कार्य है। यदि यह मानवीय कार्य होता, तो शैतान का शासन ऐसी गड़बड़ियाँ पैदा करता और विभिन्न सामाजिक ताकतें ऐसे हमला करतीं और बदनाम करना शुरू करतीं, जो पहले ही इसे ध्वस्त कर देतीं और इसका अस्तित्व समाप्त हो जाता। केवल जब परमेश्वर बोलता है और कार्य करता है, केवल जब पवित्र आत्मा कार्य करता है, तभी कलीसिया अधिक से अधिक समृद्ध होती है। क्या यह एक तथ्य नहीं है? क्या तुम लोगों ने इस तथ्य को देखा है? (हाँ, हमने देखा है।) तुमने क्या देखा है? (राज्य का सुसमाचार पहले ही दर्जनों देशों में फैल चुका है, और शैतान द्वारा गढ़ी और फैलाई गई उन अफवाहों ने सत्य से प्रेम करने वालों को परमेश्वर की ओर मुड़ने से बिल्कुल भी नहीं रोका है।) यह परमेश्वर का कार्य है; परमेश्वर का कार्य इस प्रभाव को प्राप्त कर सकता है, परमेश्वर के वचन इस प्रभाव को प्राप्त कर सकते हैं—यह शैतान की अपेक्षाओं से परे है। परमेश्वर के वचनों में इतनी अपार सामर्थ्य है; सुसमाचार एक अच्छी दिशा में फैल रहा है और सब कुछ परमेश्वर की योजना के अनुसार व्यवस्थित रूप से आगे बढ़ रहा है, वह भी बिना किसी विसंगति के। परमेश्वर का कार्य और परमेश्वर के वचन परमेश्वर के चुने हुए लोगों के बीच फैल रहे हैं, जैसा कि लंबे समय से पूर्वनिर्धारित है। सुसमाचार का प्रचार करने से प्राप्त लोगों की संख्या और सच्चे मार्ग की छानबीन करने वाले लोगों की संख्या महीने-दर-महीने बढ़ रही है। क्या यह नहीं दिखाता कि सुसमाचार का कार्य कैसे फैल गया है? यदि यह परमेश्वर का कार्य नहीं होता, तो चाहे कितने भी लोग कितनी भी बड़ी कीमत चुकाएँ, वे इस प्रभाव को प्राप्त नहीं कर सकते थे। यह परमेश्वर की शक्ति है, परमेश्वर के वचनों की सामर्थ्य से हासिल किया गया प्रभाव है।

आओ फिर से उस बारे में बात करें कि लोग विभिन्न अफवाहों के प्रति कैसे पेश आते हैं। लोग विभिन्न अफवाहों के प्रति परमेश्वर जैसा रवैया नहीं अपना सकते। उन्हें परमेश्वर के इरादे समझ नहीं आते हैं, और अफवाहें सुनने पर, उन्हें हमेशा लगता है: “यदि मैं कुछ नहीं करता हूँ, तो मैं अपने जमीर को धोखा दे रहा हूँ। यदि अफवाहें गढ़ने वाले लोग हावी हो गए तो मैं असहज, असंतुष्ट और आक्रोश महसूस करूँगा, असंतुलन महसूस करूंगा, इसलिए मुझे उनका खंडन करना होगा। मुझे अफवाहों का स्पष्टीकरण देने के लिए वीडियो बनाना चाहिए या लेख लिखना चाहिए।” यह विचार करने लायक है कि क्या ऐसी मानसिकता के तहत काम करना परमेश्वर के इरादों के अनुरूप है, क्या यह सत्य सिद्धांतों के अनुरूप है। यदि कलीसिया का काम करने और अपना कर्तव्य निभाने में तुम लोगों का उद्देश्य और मंतव्य केवल अफवाहों के प्रति स्पष्टीकरण देना है और स्पष्ट रूप से यह समझाना है कि यही वह सच्चा परमेश्वर है जिसमें तुम लोग विश्वास रखते हो, कि तुम लोग जीवन में सही मार्ग पर हो, और तुम सभी ने सुसमाचार का प्रचार करने और परमेश्वर की गवाही देने के लिए जो कुछ भी किया है वह न्यायसंगत है—और यह न्यायसंगत इसलिए है क्योंकि दुनिया इन सभी तथ्यों के सत्य को जानती या समझती नहीं है कि उन्होंने तुम लोगों पर कई निराधार अपराधों का आरोप लगाया है—और इस तरह तुम लोग आशा करते हो कि जब सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा, तो दुनिया तुम लोगों को निर्दोष के रूप में पहचान लेगी, दुनिया के सभी पक्ष सार्वभौमिक रूप से स्वीकारेंगे कि “यही वह सच्चा परमेश्वर है जिसमें तुम लोग विश्वास रखते हो, तुम लोग जीवन में सही मार्ग पर हो, और परमेश्वर ने तुम लोगों से जो कुछ भी करने के लिए कहा है वह सही है और एक न्यायसंगत कारण है,” तो क्या? क्या तब तुम लोग अपने विश्वास में सहज और न्यायसंगत महसूस करोगे? क्या तुम लोग परमेश्वर में विश्वास रखने के सही मार्ग पर चल चुके होगे? क्या तुम लोग बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के उद्धार के मार्ग पर चल चुके होगे? क्या तुम लोगों में परमेश्वर का भय मानने वाला दिल विकसित हो चुका होगा? क्या तब तुम लोग परमेश्वर के प्रति समर्पण प्राप्त कर सकते हो? क्या तब तुम लोग परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त कर सकते हो? (नहीं।) क्या यह संभव है कि लोगों के मन में तुम्हारे बारे में कोई गलतफहमी न रहे और वे केवल तुम्हारी प्रशंसा और आदर करें, जिसके बाद तुम शुद्ध अंतःकरण के साथ परमेश्वर में विश्वास कर सको? बिल्कुल नहीं! बेशक, लोग अफवाहों के प्रति परमेश्वर जैसा रवैया नहीं अपना सकते, लेकिन व्यक्ति का यह कहते हुए सही परिप्रेक्ष्य, सही रवैया और रुख होना चाहिए : “ये अफवाहें सचमुच घृणास्पद और घनौनी हैं। इन अफवाहों से, यह देखा जा सकता है कि यह भ्रष्ट मानवजाति सचमुच परमेश्वर की शत्रु है; यह बिल्कुल सही है! मुझे शैतान की अफवाहों के आधार पर यह राय नहीं बनानी चाहिए कि परमेश्वर का कार्य सही है या गलत। परमेश्वर के वचनों को पढ़ने और अपना कर्तव्य निभाने के दौरान हुए अनुभवों के माध्यम से, मैं यह पुष्टि करता हूँ कि परमेश्वर के सभी वचन सत्य हैं, और वह जो कुछ भी करता है वह लोगों को बचाए जाने में सक्षम बनाता है। आज परमेश्वर के सामने आकर उसके उद्धार को स्वीकारते हुए, मुझे अपना कर्तव्य निभाना चाहिए, और परमेश्वर के वचनों का प्रचार करने, उसके नाम का गुणगान करने, और परमेश्वर के कार्य और उसके इरादों की गवाही देने के अपने दायित्वों और जिम्मेदारियों को पूरा करना चाहिए, ताकि परमेश्वर द्वारा चुने हुए लोग परमेश्वर के घर लौट सकें, उसकी वाणी सुन सकें, और जितनी जल्दी हो उससे वचनों और जीवन की आपूर्ति प्राप्त कर सकें। यह मेरा दायित्व है, मेरी जिम्मेदारी है। मैं परमेश्वर के कार्य में सहयोग कर रहा हूँ, लेकिन यह साबित करने के लिए नहीं कि मैं जिस मार्ग पर चल रहा हूँ वह सही है या मैं जिस उद्देश्य को अपना रहा हूँ वह न्यायसंगत है—इन चीजों के लिए नहीं। मैं परमेश्वर पर शैतान के हमलों और उसकी बदनामी करने का बदला लेने के लिए अपना कर्तव्य नहीं निभा रहा हूँ। इसके बजाय, मैं परमेश्वर के प्रेम का मूल्य चुकाने, परमेश्वर के आदेश को स्वीकारने और परमेश्वर के कार्य में सहयोग करने के लिए अपने स्वयं के दायित्वों और जिम्मेदारियों को, और बेशक अपनी स्वयं की निष्ठा को पूरा कर रहा हूँ।” क्या यह सही परिप्रेक्ष्य है? क्या लोगों को यह परिप्रेक्ष्य अपनाना चाहिए? (हाँ।) इस दृष्टिकोण से, विभिन्न कार्यक्रम बनाते समय, चाहे वह भजन गाना हो, नृत्य करना हो, फिल्म बनाना हो या अनुभवजन्य गवाहियों के बारे में मंच नाटकों का निर्माण करना हो, क्या लोगों के रुख, जिस दृष्टिकोण से वे देखते हैं, और उनके द्वारा दिए गए कुछ विशिष्ट बयानों में कुछ बदलाव नहीं होने चाहिए? (हाँ, होने चाहिए।) हालाँकि, अधिकांश लोगों ने ये सभी कार्य करते समय, ऐसा आवेग और घृणा, और मानवीय भावनाओं के मेल से किया है। इसलिए, उन्होंने अविश्वासियों, सत्तारूढ़ दल और धार्मिक समुदाय के क्रियाकलापों और व्यवहारों के बारे में बहुत कुछ उजागर किया है, और उनके शब्द बहुत कठोर हैं, जिससे ऐसे कार्यक्रमों को देखने के बाद दूसरों पर कुछ हद तक नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसका कारण सरल है : लोग ये सभी गतिविधियाँ एक निश्चित भावना के साथ करते हैं, बिल्कुल सही दृष्टिकोण से नहीं। और लोगों को अभी भी लगता है कि यह बिल्कुल न्यायसंगत है, वे कहते हैं : “वे हम पर हमला करते हैं, हमें नीचा दिखाते हैं और हमारे बारे में अफवाहें गढ़ते हैं; उन्हें उजागर करने में क्या गलत है? यह वैध आत्मरक्षा है! वैध तरीके से खुद का बचाव करना गैरकानूनी नहीं है, न ही हम कोई बात गढ़ रहे हैं; हम सभी तथ्यों के आधार पर चीजों का गहन-विश्लेषण कर रहे हैं। वे बिना किसी कारण के हमारे बारे में अफवाहें गढ़ते हैं; क्या हमारे लिए उन्हें उजागर करना और उनका गहन-विश्लेषण करना गलत है? क्या हम बदला नहीं ले सकते?” बदला लेने का क्या फायदा? शैतान झूठ से भरे होते हैं और कभी भी एक भी सत्य कथन नहीं बोलते; लगातार उनके झूठ का गहन-विश्लेषण करने से उन्हें पता चलता है कि वे जो कहते हैं वह झूठ है और इसलिए यह मान लेने के बाद कि उन्होंने झूठ बोला है वे फिर कभी झूठ न बोलें—क्या इसमें कोई मूल्य है? क्या वे इसे हासिल कर सकते हैं? (नहीं।) क्या यह नजरिया मूर्खतापूर्ण और अज्ञानतापूर्ण नहीं है? मैंने बहुत पहले कहा है कि हमारा मुख्य कार्य परमेश्वर के कार्य, उसके वचनों और लोगों पर उसके वचनों के प्रभाव की गवाही देना है, और सत्तारूढ़ दल द्वारा दमन और उत्पीड़न, और धार्मिक समुदाय द्वारा प्रतिरोध और निंदा के संबंध में, इसमें शामिल पृष्ठभूमि का संक्षेप में उल्लेख करना ही काफी है। लेकिन लोग इसे कैसे भी सुनें, वे इसे समझ नहीं पाते। वे हमेशा इन मुद्दों को उग्रता से लेते हैं और बहस करना चाहते हैं। और इसका नतीजा क्या होता है? इसका कोई प्रभाव नहीं होता, क्योंकि शैतान की बुरी ताकतें तर्क से परे हैं। क्या यह लोगों की मूर्खता और अज्ञानता नहीं है?

अफवाहों को स्पष्ट करने और जो सत्य है उसके बारे में लोगों को बताने, परमेश्वर का प्रतिरोध करनेवाली अंधेरी दुनिया और बुरे इंसानों के खिलाफ युद्ध छेड़ने की एकमात्र प्रेरणा के साथ कुछ लोग सुसमाचार का प्रचार करते हैं, कुछ तकनीकी पेशा सीखते हैं या खास तरह का कर्तव्य करते हैं। क्या यह न्याय का कार्य है? क्या तुम यह काम करने में सही हो या गलत, तुम्हें यह समझने की जरूरत है : क्या परमेश्वर उन दुष्ट लोगों को बचा सकता है जो उसके वैरी हैं? क्या तुम्हारे ऐसा करने का कोई मोल है? यदि तुम्हें समझ नहीं है कि परमेश्वर किस तरह के इंसानों को बचाता है और हमेशा कोई न कोई ऐसा दृष्टिकोण व्यक्त करते हो जो सही प्रतीत होते हैं लेकिन वास्तव में गलत हैं, तो क्या यह तुम्हारे अपने उद्धार में बाधा नहीं पहुँचा रहा है? कुछ लोग अपना कर्तव्य केवल परमेश्वर का प्रतिरोध और दुनियावी रुझानों का विरोध करनेवाली बुरी ताकतों के खिलाफ लड़ने के लिए निभाते हैं। “उनका कहना है कि हम अपने परिवारों को नजरंदाज करते हैं और सामान्य जीवन नहीं जीते हैं, इसलिए मैं अपना कर्तव्य अच्छे से निभाकर स्वयं को साबित करना चाहता हूँ। भविष्य में, जब मैं स्वर्ग जाऊँगा और राज्य में प्रवेश करूँगा और उनका न्याय किया जाएगा, तो वे देख पाएँगे कि मैं सही हूँ!” खुद को इस तरह साबित करने का क्या फायदा है? भले ही तुमने खुद को साबित कर दिया हो, इससे क्या भला हो सकता है? यह क्या दिखाता है? उसका क्या मोल है? यदि यह सचमुच तुम्हें राज्य में प्रवेश करने और परमेश्वर की स्वीकृति हासिल करने देता है, तो यह लाभकारी होगा और तुम्हारा मार्ग सही होगा। लेकिन दुर्भाग्य से, यह मार्ग साध्य नहीं है। यह वो मार्ग नहीं है जो परमेश्वर ने लोगों के लिए पूर्व-निर्धारित किया है, और परमेश्वर लोगों से इस तरह कार्य करने की अपेक्षा नहीं करता है। लोग हमेशा मूर्ख होते हैं, यह सोचते हैं कि चूँकि वे सत्य के पक्ष में खड़े हैं और उनके पास सत्य है, इसलिए उन्हें उचित कार्य करना चाहिए, इस बुरी दुनिया और अफवाहें गढ़ने वाले उन सभी लोगों के खिलाफ युद्ध छेड़ देना चाहिए : “हम परमेश्वर में विश्वास रखते हैं और परमेश्वर का अनुसरण करते हैं, हम अपना कर्तव्य निभाते हैं—हम तुम लोगों को दिखाएंगे कि कौन सही मार्ग पर है!” क्या यह उतावलापन नहीं है? क्या इन बातों पर बहस करने से कोई फायदा है? इसका कोई मोल नहीं है। अगर तुम्हारे पास वास्तव में समय और ऊर्जा है, तो किसी पेशे के बारे में कुछ और सीखना, उस पेशे से जुड़ी कुछ और जानकारी और सामान्य ज्ञान का अध्ययन करना बेहतर होगा। यह तुम्हारे कर्तव्य पालन के लिए लाभकारी और सहायक है। तुम हमेशा दुनिया की बुरी ताकतों से क्यों जूझते रहते हो? हमेशा अफवाहों से क्यों जूझते रहते हो? क्या यह उस जगह प्रयास करना नहीं है जहाँ इसकी आवश्यकता नहीं है? चाहे दूसरे तुम पर कैसे भी हमला करें, उन पर ध्यान देने की कोई आवश्यकता नहीं है। वे शैतानी प्रकृति के हैं और जानवर हैं, वे बस उसी तरह की चीज हैं; परमेश्वर उन्हें बचाता नहीं है, उन्हें बदलता नहीं है, और उनसे बात नहीं करता है। परमेश्वर उन्हें अनदेखा करता है, तो क्या तुम्हें उन पर ध्यान देने की जरूरत है? अगर लोग हठपूर्वक वही करने पर अड़े रहते हैं जो परमेश्वर नहीं करता है, तो क्या यह थोड़ी मूर्खता और बुद्धि की कमी नहीं है? कम से कम, तुम ऐसे व्यक्ति हो जिसके पास परमेश्वर के प्रति समर्पण वाला दिल नहीं है, और तुम उससे प्रेम नहीं करते जिससे परमेश्वर प्रेम करता है, या उससे घृणा नहीं करते जिससे परमेश्वर घृणा करता है। तुम नहीं देखते कि इन चीजों के प्रति परमेश्वर का रवैया क्या है—परमेश्वर उन्हें अनदेखा करता है; तुम्हें यह भी एहसास नहीं होता कि ऐसा क्यों है। परमेश्वर के कार्य के तीनों चरणों में से प्रत्येक में, परमेश्वर ने कई वचन कहे हैं। परमेश्वर और मानवजाति के बीच कई संवाद हैं, और इन संवादों से, कोई भी परमेश्वर के इरादों, परमेश्वर के स्वभाव और सार को देख सकता है। हालाँकि, परमेश्वर कभी भी इस बारे में बात नहीं करता है कि वह कुछ विशिष्ट मामलों में किस प्रकार शैतान के साथ बातचीत करता है, और इस प्रकार शैतान को उजागर करता है, जिससे मानवजाति को शैतान का असली चेहरा स्पष्ट रूप से देखने, और यह स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है कि शैतान परमेश्वर के साथ कैसा व्यवहार करता है। ऐसे बहुत से मामले हैं, लेकिन परमेश्वर उनका जि‍क्र नहीं करता। परमेश्वर उनका जि‍क्र क्यों नहीं करता? क्योंकि उन चीजों के बारे में बात करना तुम्हारे लिए कोई फायदे की बात नहीं है। तुम्हारे लिए जो सबसे ज्यादा लाभकारी है, वो है परमेश्वर के जीवन के वचन; ये वचन जो तुम्हें परमेश्वर के सामने आने और परमेश्वर के प्रति समर्पित होने, परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने वाला व्यक्ति बनने में सक्षम बना सकते हैं, तुम्हारे लिए सबसे ज्यादा लाभकारी हैं। परमेश्वर तुम्हें बताता है कि कैसे जीना है और कैसे बोलना है, और साथ ही लोगों और मामलों को कैसे पहचानना है और सत्य का अभ्यास करना कैसे सीखना है और विभिन्न परिवेशों और स्थितियों में कैसे बुद्धिमान बनना है—ये सभी तुम्हारे लिए लाभकारी हैं। परमेश्वर जो भी कहता और करता है वह तुम्हारे लिए लाभकारी है। परमेश्वर एक भी वचन ऐसा नहीं कहता जो तुम्हारे लिए लाभकारी नहीं है। क्या परमेश्वर के लिए उन वचनों को कहना बहुत आसान नहीं होगा? तो वह उन्हें क्यों नहीं कहता है? क्योंकि भ्रष्ट मानवजाति को उन वचनों की जरूरत नहीं है। ये अफवाहें दानवों और शैतान के शब्दों के बराबर हैं, और परमेश्वर उन्हें अनदेखा करता है, इसलिए तुम्हें भी उनसे संघर्ष नहीं करना चाहिए। समझे? (समझ गया।) एक बार जब तुम समझ जाते हो, तो तुम्हें पता है कि अभ्यास कैसे करना है, है न? अफवाहों का गहन-विश्लेषण करने, अफवाहों का खंडन करने, अफवाहों के स्रोतों की खोज करने वगैरह में मेहनत मत करो। यदि तुम में वास्तव में परमेश्वर के लिए गवाही देने वाला दिल है और तुम अपनी गवाही में दृढ़ रहना चाहते हो और परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त करना चाहते हो, तो ऐसे बहुत से शब्द हैं जो तुम कह सकते हो और बहुत सी चीजें कर सकते हो। परमेश्वर द्वारा लोगों को दिए जाने वाले वचनों और सत्य के लिए तुम्हें उन पर विचार करने, उन्हें अनुभव करने और उनसे जुड़ने की आवश्यकता होती है, ताकि वे तुम्हारे अपने सिद्धांत और अभ्यास के मार्ग बन जाएँ, और अंततः तुम्हारा अपना जीवन बन जाएँ। इसे कार्यान्वित करने के लिए तुम्हें समय और ऊर्जा लगानी पड़ेगी। यदि तुम मूर्ख और बेवकूफ हो, हमेशा अफवाहों पर मेहनत करते हो, हमेशा खुद को निर्दोष साबित करने और दुनिया को अपने बारे में सफाई देने की कोशिश करते हो, जिससे मुसीबत आ जाती है; तो तुम सत्य प्राप्त नहीं कर पाओगे, और तुम इन दुनियावी अफवाहों में बुरी तरह उलझकर बेहाल हो जाओगे। अंत में, तुम चीजों के बारे में स्पष्ट रूप से नहीं बता पाओगे। तुम चीजों के बारे में स्पष्ट रूप से क्यों नहीं बता पाओगे? क्योंकि तुम दानव का सामना कर रहे हो, और यह सरासर झूठ बोलता है। दानव अब क्या कहता है? बड़ा लाल अजगर कहता है, “चीन विश्व व्यवस्था का रक्षक है, विश्व शांति का रक्षक है और विश्व शांति एवं व्यवस्था बनाए रखने में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण है।” इसके कहे शब्दों में से कौन से शब्द तथ्य हैं? क्या ये शब्द तथ्य हैं? जब तुम इन शब्दों को सुनते हो, तो क्या तुम्हें नाराजगी महसूस नहीं होती है? इसे सुनने के बाद, तुम सोचते हो कि शैतान इतना बेशर्म है कि वो अब ये बातें भी कहेगा। तुम उससे बहस क्यों करते हो? क्या तुम मूर्खता नहीं कर रहे हो? यह बिल्कुल ऐसी ही चीज है—परमेश्वर इसका उपयोग केवल सेवा प्रदान करने के लिए करता है, उसका इसे बचाने या बदलने का बिल्कुल भी इरादा नहीं है। क्या उससे बहस करना मूर्खता नहीं है? ऐसी बेवकूफी की बातें मत करो। बुद्धिमान लोग इन अफवाहों को नहीं सुनते, न ही वे उनसे बेबस होते हैं। कुछ लोग कहते हैं, “अफवाहें सुनने के बाद, मैं परेशान हो जाता हूँ!” फिर तुम्हें मन में प्रार्थना करनी चाहिए, भेद पहचानने के लिए सत्य का उपयोग करना चाहिए, और फिर उन दानवों और शैतानों को धिक्कारना चाहिए, और फिर इन अफवाहों का तुम्हारे दिल पर कोई असर नहीं होगा। एक दूसरा तरीका भी है : तुम्हें उसके सार से असलियत जाननी चाहिए। तुम कहते हो, “भले ही परमेश्वर के क्रियाकलाप मेरी धारणाओं के अनुरूप न हों और भ्रष्ट मानवजाति द्वारा उनकी निंदा की जाती हो और उन्हें अस्वीकार किया जाता हो, मुझे दिखाई देता है कि वह सत्य है और दानवों और शैतान के पास कोई सत्य नहीं है। मैं परमेश्वर में विश्वास रखने के लिए कृतसंकल्प हूँ! केवल परमेश्वर मुझे बचा सकता है। उसमें परमेश्वर का सार है, वह परमेश्वर है, और उसका सार कभी नहीं बदलता। चाहे दानव और शैतान परमेश्वर का कितना ही प्रतिरोध कर लें, उनके पास कोई सत्य नहीं है, और मैं दानवों और शैतान के शब्दों पर विश्वास नहीं करता हूँ!” क्या तुम में इतनी आस्था है? (हाँ, है।) यदि तुम में यह आस्था है, तो तुम्हें किसी भी व्यक्ति, घटना या चीज से विचलित नहीं होना चाहिए, और शैतान द्वारा तुम्हें गुमराह या आक्रमण किए जाने की चिंता तो और भी कम होनी चाहिए। फिर, तुम्हें क्या करना चाहिए? इसे नजरंदाज करो; और बस सत्य के अनुसरण पर ध्यान केंद्रित करो और अपनी गवाही में अडिग खड़े रहो, और शैतान शर्मिंदा हो जाएगा।

अभी-अभी, हमने कलीसिया के भीतर अफवाहें फैलाने से संबंधित कुछ मुद्दों पर संगति की। अधिकांश लोगों ने चीनी कम्युनिस्ट सरकार और धार्मिक समुदाय से कुछ अफवाहें सुनी हैं; हमने अभी-अभी इस बारे में भी संगति की कि इन अफवाहों के प्रति कैसे पेश आएँ और उनसे कैसे निपटा जाए। एक बार जब लोग सत्य सिद्धांतों को समझ लेंगे, तो वे अफवाहों से गुमराह या परेशान नहीं होंगे। जब कोई व्यक्ति कलीसिया में अफवाहें फैलाता दिखता है, चाहे वह किसी भी तरीके से या किसी भी लहजे में किसी भी तरह की अफवाहें फैलाए, हमें उससे कैसे निपटना चाहिए? क्या हमें हस्तक्षेप किए बिना ऐसा होने देना चाहिए, या उस व्यक्ति को उजागर करना चाहिए, उसका गहन-विश्लेषण करना चाहिए और उससे निपटना चाहिए? कौन सा तरीका सिद्धांतों के अनुरूप है? कुछ लोग कहते हैं, “क्या बोलने की स्वतंत्रता नहीं है? उस व्यक्ति को बोलने क्यों नहीं दिया जाता? बस उसे बोलने दो। अफवाहों को सुनने के बाद, एक बार जब हर कोई उसे पहचान लेगा कि वह क्या है, तो वे इन शैतानी शब्दों पर विश्वास नहीं करेंगे, और अफवाहें स्वाभाविक रूप से ध्वस्त हो जाएँगी।” अन्य लोग कहते हैं, “उनके लिए अफवाहें फैलाना और परमेश्वर की निंदा करना अस्वीकार्य है। हम उसे ऐसा कुछ नहीं करने दे सकते जिससे परमेश्वर की निंदा हो। हमें उसे होश में लाने के लिए सबक सिखाना चाहिए। परमेश्वर ने हमें बचाने के लिए बोलने और काम करने के लिए बहुत कष्ट सहे हैं, फिर भी वह अफवाहें फैला रहा है। उसके पास कोई जमीर नहीं है! केवल उसे धिक्कार कर ही हम अपनी नफरत को कम कर सकते हैं; अगर हम उससे नहीं निपटेंगे, तो हम परमेश्वर को निराश करेंगे।” कौन सा तरीका सही है? इनमें से कोई भी तरीका अच्छा नहीं है। जैसी कि हमने पहले भी संगति की है, जो लोग अफवाहें फैलाते हैं, वे निश्चित रूप से अच्छे नहीं हैं, और ऐसे व्यक्तियों को पहचाने जाने की आवश्यकता है। यदि वे कभी-कभार ही अफवाहें फैलाते हैं, तो उन्हें चेतावनी दी जानी चाहिए। यदि वे लगातार अफवाहें फैलाते हैं, तो उन्हें उजागर किया जाना चाहिए, उनका गहन-विश्लेषण किया जाना चाहिए, और फिर उन्हें कलीसिया से बाहर निकाल दिया जाना चाहिए, ताकि वे अब लोगों को गुमराह न कर सकें या उन्हें नुकसान न पहुँचा सकें। क्या इस मामले से निपटना आसान है? क्या तुम लोग इससे इस तरह से निपटोगे, या तुम लोग कलीसिया अगुआओं के आदेश की प्रतीक्षा करोगे? एक बार जब यह पता चल जाता है कि कोई व्यक्ति लगातार अफवाहें फैला रहा है, और हर बार जब वह किसी सभा में आता है तो वह इन चीजों के बारे में बात करता है, कभी भी परमेश्वर के वचनों को नहीं पढ़ता है, कभी भी प्रार्थना नहीं करता है, भजन नहीं सीखता है, और इससे भी अधिक, वह परमेश्वर के वचनों की अपनी अनुभवजन्य समझ को साझा नहीं करता है, और जब भी कोई परमेश्वर के वचनों के बारे में संगति करता है और अनुभवजन्य गवाही साझा करता है, तो वह इससे घृणा और विरक्ति महसूस करता है, लेकिन अविश्वासियों की अफवाहों के प्रति ऐसी कोई विरक्ति महसूस नहीं करता है, और उनके बारे में जानने को बहुत उत्साहित हो जाता है—एक बार जब यह सब पता चल जाता है, तो ऐसे व्यक्ति के प्रति कोई भद्रता क्यों दिखायी जाए? यह स्पष्ट है कि वह शैतान का सेवक है जिसने परमेश्वर के चुने हुए लोगों को परमेश्वर का अनुसरण करने से रोकने के लिए कलीसिया में घुसपैठ की है। क्या तुम उसके व्यवधान को अनदेखा कर देते हो? (नहीं।) यदि तुम इसे अनदेखा नहीं करते हो, तो खड़े होकर कहो, “फलाँ व्यक्ति कलीसिया में आता है और हमेशा अफवाहें फैलाता है, परमेश्वर के वचनों को नहीं पढ़ता है, और परमेश्वर के वचनों की अपनी अनुभवजन्य समझ को साझा नहीं करता है। वह छद्म-विश्वासी है और उसे कलीसिया से बाहर निकाल दिया जाना चाहिए। क्या किसी को कोई आपत्ति है?” यदि हर कोई कहता है कि उसे कोई आपत्ति नहीं है और सहमति में अपने हाथ उठाता है, तो उस व्यक्ति को बाहर निकाल दिया जाना चाहिए। क्या इस तरह से अफवाह फैलाने वाले से निपटना संतोषजनक नहीं है? (हाँ, है।) ऐसे लोगों से इसी तरह से निपटा जाना चाहिए।

घ. परमेश्वर के वचनों की गलत व्याख्या करने वाली और परमेश्वर के कार्य की आलोचना करने वाली कई प्रकार की निराधार अफवाहों का भेद पहचानना

हमने अभी जिन विभिन्न प्रकार की अफवाहों की बात की है वे कहाँ से आती हैं? वे बड़े लाल अजगर, धार्मिक समुदाय, और अविश्वासियों से आती हैं। बाहरी दुनिया से आई अफवाहों के अलावा, कलीसिया के भीतर की चीजों के बारे में भी कुछ बातें और गपशप भी हैं। यहाँ तक कि परमेश्वर, परमेश्वर के कार्य, परमेश्वर के दिन और परमेश्वर के कुछ वचनों के बारे में पूरी तरह से झूठे दावे, और साथ ही परमेश्वर और उसके कार्य से जुड़े कुछ रहस्य भी हैं, जिन्हें लोग अपनी कल्पनाओं और धारणाओं के आधार पर, या गलत जानकारी और निराधार अटकलों के निरंतर प्रसार के आधार पर बनाते हैं। और क्योंकि लोग ऐसी बातों, गपशप और दावों को अलंकृत करके पेश करते हैं, इसलिए ये अफवाहें बनती हैं। एक बार अफवाहें बन जाने के बाद, कुछ लोग जिनका अफवाहों के प्रति झुकाव होता है, उन्हें फैलाने के काम को लेकर उत्साही हो जाते हैं, अफवाहों को वास्तविक मानते हैं और उन्हें हर जगह फैलाते हैं, उनका इतना सजीव और विस्तृत वर्णन करते हैं कि कुछ लोग जो वास्तविक स्थिति से अनजान हैं, और जो सत्य को नहीं समझते हैं और मूर्ख और अज्ञानी हैं, वे सचमुच इन अफवाहों से गुमराह हो जाते हैं। एक बार गुमराह होने पर, क्या वे प्रभावित और परेशान होते हैं? (हाँ, होते हैं।) ये कलीसिया में उत्पन्न होने वाले सामान्य मुद्दे भी हैं। भले ही ये अफवाहें उन अफवाहों की तुलना में फीकी हैं जो परमेश्वर और परमेश्वर के घर की बदनामी करती हैं और उस पर हमला करती हैं—वे न तो परमेश्वर की बदनामी करती हैं और न ही उसका तिरस्कार करती हैं—और भले ही वे परमेश्वर के कार्य में कोई गड़बड़ी या क्षति नहीं पहुंचाती हैं, फिर भी वे कुछ लोगों के जीवन प्रवेश को प्रभावित करती हैं और उन्हें रोका जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, जब कुछ लोग कुछ भ्रामक टिप्पणियाँ सुनते हैं, तो वे उन पर दिल से विश्वास कर लेते हैं और अपने नजदीकी लोगों में उन्हें तेजी से फैला देते हैं। जैसे-जैसे अफवाहें फैलती हैं, विवरण अधिकाधिक और पूर्ण होते जाते हैं, और अंततः अफवाहें वास्तविक घटनाओं की तरह लगने लगती हैं। समय, स्थान और पात्रों जैसे तत्व सभी अपनी जगह पर होते हैं—ऐसी अफवाहें सार्वजनिक रूप से फैलाए जाने योग्य होने की शर्तों को पूरा करती हैं, है ना? क्या जानकारी फैलाई जा रही है? अफवाह फैलाने वाला कहता है, “आज मुझे तुम लोगों को कुछ महत्वपूर्ण बातें बतानी हैं। अगर मैं ऐसा नहीं करूँगा तो मैं अंदर से असहज महसूस करूँगा; मैं परमेश्वर के वचनों को पढ़ने पर भी ध्यान केंद्रित नहीं कर पाऊँगा। मैं इस मामले को लेकर बहुत उत्साहित हूँ। अब परमेश्वर में विश्वास रखने वाले हम लोगों के पास आखिरकार उम्मीद है!” जब हर कोई उम्मीद के बारे में सुनता है, तो वे रुचि लेने लगते हैं और जोश में आ जाते हैं; यह विषय बेहद दमदार है। उनका कहना है, “परमेश्वर का कार्य शीघ्र समाप्त होने वाला है। परमेश्वर ने अपने कार्य की समाप्ति के विषय में जो भविष्यवाणी पहले की थी, उसके कई संकेत पहले ही प्रकट हो चुके हैं। उदाहरण के लिए, चाँद और सूर्य की स्थिति, पूरब और पश्चिम के हालात, प्रत्येक देश में परमेश्वर के चुने हुए लोगों की संख्‍या, कितने लोग अपना कर्तव्य निभाने में सक्षम हैं, इत्यादि—परमेश्वर के कार्य की समाप्ति के ये संकेत अब हमारे सामने हैं। हमें शीघ्रता से तैयार होने की जरूरत है!” किसी ने पूछा, “हमें क्या तैयारी करनी चाहिए?” अफवाह फैलाने वाला कहता है, “हमें अच्छे कर्म करने चाहिए, भोजन तैयार करना चाहिए, और शीघ्रता से अपनी सारी बचत परमेश्वर को भेंट कर देनी चाहिए, फिर हम एक अच्छे गंतव्य को सुरक्षित कर सकते हैं।” उसका यह भी कहना है, “फलाँ-फलाँ साल और महीने में, फलाँ-फलाँ तारीख को, और फलाँ-फलाँ समय पर, हमें एक विशिष्ट स्थान पर एकत्र होना है जहाँ परमेश्वर हमें ले जाने के लिए हमारा इंतजार कर रहा होगा। परमेश्वर कहता है, ‘यदि तुम लोग हर एक चीज का त्याग नहीं करते हो, तो तुम लोग मेरा शिष्य होने के लायक नहीं हो, और मेरे अनुयायी होने के लायक नहीं हो।’ अब आखिरकार परमेश्वर का दिन आ गया है, और परमेश्वर के वचन पूर्ण हो गए हैं। हमें सारी सांसारिक चीजों को छोड़ देना चाहिए, न केवल अपने भविष्य और करियर बल्कि हमारे परिवार, रिश्तेदारों, और दैहिक रिश्तों को भी छोड़ देना चाहिए। हमें सारी सांसारिक उलझनों को त्याग देना चाहिए; हम परमेश्वर से मिलने जा रहे हैं!” अधिकांश लोग पूछते हैं, “क्या यह सत्य है?” अफवाह फैलाने वाला कहता है, “हाँ, मैंने अपना घर और कार बेच दी है और अपनी बचत के पैसे को निकाल लिया है। यदि तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है तो परमेश्वर के वचनों को पढ़ो। एक अध्‍याय में, किसी खास वाक्य को समझने पर एक पते का खुलासा होता है, और दूसरे अध्याय में, किसी खास अंश को समझने पर साल और महीने का खुलासा होता है...।” इसे सुनकर, क्या कोई ऐसा है जिसे सिरहन न हुई हो? क्या कोई ऐसा है जो इन शब्दों का भेद पहचानता हो? क्या ये वो चीजें नहीं हैं जिनके बारे में लोग बेहद चिंता करते हैं? क्या ये वो चीजें नहीं हैं जिनकी लोगों ने लंबे समय से उम्मीद लगाई है? कुछ लोग, यह सुनने के बाद और फिर परमेश्वर के वचनों को पढ़कर और यह सोचकर कि यह सचमुच मेल खाता है, बैकअप योजना बनाने पर विचार करने लगते हैं। भले ही कुछ लोग अंदर से संशय में हैं, फिर भी वे यह सोचते हुए आशा करते हैं कि यह सत्य हो, “भले ही निर्दिष्ट वर्ष और दिन थोड़ा दूर हैं, कम से कम एक सटीक तारीख और समय तो है, इसलिए हमें उम्मीद है।” भले ही वे वास्तव में इस पर विश्वास नहीं करते, फिर भी वे इस पर कुछ हद तक ध्यान देते हैं। यह ध्यान देना क्या दर्शाता है? यह दर्शाता है कि लोग इन चीजों से आसानी से प्रभावित और परेशान हो जाते हैं। एक बार जब इस तरह की अफवाह कलीसिया में व्यापक रूप से फैलने लगती है, तो 80 से 90 प्रतिशत लोग बेहद उत्साहित हो जाएँगे, और भावनाओं का ज्वार उमड़ पड़ेगा, यह सोचकर कि, “जिस दिन की हम उम्मीद कर रहे थे वह आखिरकार आ ही गया! परमेश्वर ने हमारी प्रार्थनाएँ सुन ली हैं! परमेश्वर हमसे प्रेम करता है और उसने हमें त्यागा नहीं है!” सभाओं के दौरान ऐसे विषयों को फैलाने के क्या परिणाम होंगे? क्या यह हर व्यक्ति की भावनाओं को प्रभावित करेगा? लोग चाहकर भी इसे अस्वीकार नहीं कर पाएँगे; अफवाह का हर वाक्य उनके दिल पर लगेगा, जिससे विश्वास न करना असंभव हो जाएगा। लोगों के इन शब्दों पर विश्वास करने की सबसे अधिक संभावना है; भले ही वे सौ प्रतिशत निश्चित न हों, फिर भी वे चाहते हैं कि यह सच हो, यह सोचते हुए, “इस बात पर चिंतन-मनन करते हुए कि हमने परमेश्वर का अनुसरण करते हुए कितनी कठिनाइयों को सहन किया है—दुनिया द्वारा अस्वीकार किए जाने, सरकार द्वारा सताए जाने, धार्मिक समुदाय द्वारा सताए जाने, मुश्किल से सांस ले पाने, निरंतर भय में जीने के हालात—ये दिन कब समाप्त होंगे? अब, परमेश्वर का दिन आखिरकार आ ही गया है!” ये विचार तुम्हारे दिल को झकझोर देते हैं : “हमने परमेश्वर के लिए खुद को इतना खपाया है, परमेश्वर का अनुसरण करने में हमारा विश्वास इतना दृढ़ है; जो हम सुन रहे हैं वह सच होना चाहिए। हमें इस दुनिया में अब और भटकना और कष्ट नहीं सहना चाहिए—हम इस लायक हैं कि हमारे साथ ऐसा न हो!” जब तुम्हारे मन में यह विचार आता है, और तुम इस अफवाह से इतने आश्वस्त और जोश में हो, तो क्या तुम अभी भी परमेश्वर के वचनों को पढ़ना चाहते हो? इस समय, क्या परमेश्वर के वचनों का कोई अंश पढ़ना अनावश्यक नहीं लगता? तुम्हें लगता है : “ऐसा क्यों है कि परमेश्वर के वचनों की अनुभवजन्य समझ को साझा करना अब इतना अनावश्यक लगता है? अब परमेश्वर से प्रार्थना करने की कोई आवश्यकता नहीं है, है ना? परमेश्वर का दिन आ गया है, और हम जल्द ही परमेश्वर से आमने-सामने मिलेंगे, तो क्या अब परमेश्वर से प्रार्थना करने का मतलब यह नहीं होगा कि हम परमेश्वर का सम्मान नहीं करते हैं? जब हम देह में रहते हुए परमेश्वर से दूर होते हैं, तो हमें अपनी लालसा को कम करने के लिए परमेश्वर के वचनों को पढ़ने की आवश्यकता होती है। अब, हम इस दुनिया से परे जाने वाले हैं और जल्द ही परमेश्वर से व्यक्तिगत रूप से मिलेंगे, इसलिए परमेश्वर के वचनों को पढ़ने की कोई आवश्यकता नहीं है। अब हम जो कुछ भी करते हैं, वह उस विशिष्ट वर्ष, महीने, दिन और समय पर परमेश्वर से मिलने जितना महत्वपूर्ण नहीं है। यह कितनी अद्भुत चीज होगी! उस स्थान पर उस दिन परमेश्वर से मुलाकात की तुलना में, परमेश्वर के वचनों को पढ़ना निरर्थक प्रतीत होता है।” तुम अब और परमेश्वर के वचनों को पढ़ने पर ध्यान नहीं लगा सकते हो। तुम्हारा दिल बेचैन हो गया है, उस दिन के जल्द आने के लिए तड़प रहा है! क्या इस मनोदशा को व्यक्त करना कठिन नहीं है? ऐसी अफवाहें लोगों को बहुत पसंद आती हैं और कलीसिया में बहुत आसानी से फैल सकती हैं। एक व्यक्ति उन्हें दो लोगों तक फैलाता है, दो लोग दस लोगों तक, और अफवाहें ज्यादा से ज्यादा फैलती चली जाती हैं, एक कलीसिया से दो कलीसिया तक, दो कलीसिया से पाँच तक, और व्यापक रूप से फैल जाती हैं। इसके क्या परिणाम होते हैं? ये अफवाहें लोगों को परमेश्वर पर संदेह करने, खुद को परमेश्वर से दूर करने, मानवजाति को बचाने में परमेश्वर के सच्चे प्रेम को भूलने, अपने कर्तव्य को भूलने और जिस मार्ग पर उन्हें चलना चाहिए उसे भूलने का कारण बनती हैं। इसके बजाय, वे एकनिष्ठ होकर परमेश्वर के दिन को आते हुए देखने में लगे रहते हैं और देखते हैं कि क्या उन्हें आशीष मिल सकता है। जब वह दिन सचमुच आता है और कुछ नहीं होता है, केवल तभी लोगों को एहसास होता है कि अफवाहों पर विश्वास करने से उनके जीवन को नुकसान पहुँचा है। क्या तब तुम पहले की तरह वापस आ सकते हो, सुसभ्य तरीके से आचरण कर सकते हो, अपने कर्तव्यों को निभा सकते हो, दोनों पैरों को जमीन पर रखकर सत्य का अनुसरण कर सकते हो, सभी चीजों में सत्य सिद्धांतों की तलाश कर सकते हो, और परमेश्वर के वचनों के अनुसार आचरण कर सकते हो और अपना कर्तव्य निभा सकते हो? समय पहले ही बीत चुका होगा और उसे वापस नहीं लाया जा सकता। इसके लिए कौन दोषी है? खुद को दोषी ठहराओ कि तुम कभी भी सत्य का अनुसरण करने वाले व्यक्ति नहीं बने। तुम हमेशा ख्याली पुलाव बनाते रहे और इसका नतीजा यह हुआ कि तुम अफवाहों के झांसे में आ गए।

जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं लेकिन सत्य को नहीं समझते हैं, एक अफवाह उन्हें अथाह‍ गर्त में ले जा सकती है और उन्हें बर्बाद कर सकती है। अथाह‍ गर्त का क्या अर्थ है? मूल रूप से, तुम्हारा परमेश्वर में सामान्य विश्वास था और उम्मीद थी कि तुम्हें बचा लिया जाएगा, लेकिन एक अफवाह ने तुम्हें भटका दिया। इस बात का एहसास हुए बिना कि शैतान तुम्हें गुमराह कर रहा है, तुमने शैतान द्वारा बोले हुए शैतानी शब्दों पर विश्वास कर लिया और उसका अनुसरण किया। तुम उस मार्ग पर चलते हो और उसका अनुसरण करते हो जो शैतान ने तुम्हारे लिए निर्धारित किया है, और तुम जितनी दूर जाते हो तुम्हारे दिल का अँधेरा उतना ही बढ़ता जाता है और तुम परमेश्वर से और दूर होते चले जाते हो। जब तुमने परमेश्वर को पूरी तरह छोड़ और अस्वीकार कर दिया है, तो तुम्हारे दिल में न केवल परमेश्वर के बारे में संदेह है, बल्कि इससे भी अधिक गंभीर बात यह है कि तुम्हारे दिल में परमेश्वर को लेकर शिकायतें और परमेश्वर को नकारने की प्रवृत्ति विकसित हो जाती है। जब तुम इस स्थिति में पहुँच जाते हो, तो क्या यह तुम्हारे रास्ते का अंत नहीं है? क्या यह अथाह गर्त नहीं है? क्या यह कुछ ऐसा है जिसे तुम देखना चाहते हो? जब तुम इस स्थिति में पहुँच जाते हो, तो क्या तुम अभी भी उद्धार प्राप्त कर सकते हो? नहीं, और वापस मुड़ना बेहद मुश्किल है। क्यों? क्योंकि परमेश्वर ने काम करना बंद कर दिया है, पवित्र आत्मा ने काम करना बंद कर दिया है, और तुम अंधकार से भरे हुए हो। तुम्हारे और परमेश्वर के बीच एक ऊँची दीवार खड़ी कर दी गई है। यह दीवार क्या है? यह वो धारणाएँ, कल्पनाएँ, और अफवाहें हैं जो शैतान ने तुम्हारे अंदर डाल दी हैं, और व्यक्तिगत इच्छाएँ भी हैं। सकारात्मक चीजों जैसे कि परमेश्वर की पहचान, सार, दर्जा वगैरह के बारे में तुम्हारा ज्ञान अचानक धुंधला पड़ जाता है और यहाँ तक कि धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है। यह बेहद भयावह है। क्या यह अथाह गर्त में गिरना नहीं है? (बिल्कुल।) जब तुम ऐसी स्थिति में फंसते हो, तो क्या तुम अभी भी कठिनाई झेल सकते हो और अपना कर्तव्य निभाने की कीमत चुका सकते हो? क्या तुम अभी भी उद्धार प्राप्त करने के लिए सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर चल सकते हो? मैं तुम्हें बताता हूँ, वापस मुड़ना बेहद मुश्किल है। यह भटक जाना है! यदि तुम एक पल के लिए सतर्क नहीं हो और गुमराह हो जाते हो, तो केवल एक अफवाह के अकल्पनीय नतीजे हो सकते हैं। इसलिए, जब परमेश्वर के कार्य के बारे में कलीसिया में ऐसी अफवाहें दिखाई पड़ती हैं, तो उन्हें तुरंत रोका और प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। लोगों को गुमराह करने और उन्हें सही मार्ग से भटकाने के लिए किसी को भी हवा-हवाई बातें नहीं बनानी चाहिए, और ऐसे सभी प्रकार के झूठ नहीं गढ़ने चाहिए, जिनके बारे में सुनना लोगों को अच्छा लगता है। भले ही लोगों को ये विषय पसंद हों, फिर भी इन पर अपने दिल में ध्यान केन्द्रित करने और इनका प्रचार करने से क्या लाभ होगा? क्या लाभ प्राप्त हो सकता है? कुछ लोग कहते हैं, “वह व्यक्ति जो चाहे कह सकता है, क्योंकि यह उसका मुँह है। इसलिए, वो जैसा चाहे उसे बोलने दो।” यह उस बात पर निर्भर करता है कि क्या कहा जा रहा है। अगर यह कुछ ऐसा है जो लोगों को शिक्षित करता है, तो यह कहा जा सकता है और इसका प्रचार किया जा सकता है—इसका प्रचार किसी भी तरह से किया जा सकता है। लेकिन ये अफवाहें लोगों को थोड़ा सा भी शिक्षित नहीं करती हैं; वे केवल लोगों को गुमराह करती हैं और उनका ध्यान भटकाती हैं, उनके अनुसरण को बाधित करती हैं और उन्हें सही रास्ते से भटका देती हैं, परमेश्वर के साथ उनके संबंध को प्रभावित करती हैं, उनके सामान्य कर्तव्य निर्वहन को प्रभावित करती हैं, और कलीसिया के कार्य की सामान्य व्यवस्था को प्रभावित करती हैं। एक बार जब लोग इन अफवाहों को स्वीकार लेते हैं, तो यह उस भूलभुलैया में फँसने जैसा है जिससे वे बच नहीं सकते हैं। इसलिए, जब तुम इन अफवाहों को सुनो, यदि कोई व्यक्ति तुम्हें अकेले में उनके बारे में बताता है, तो तुम्हें उनको अस्वीकार कर देना चाहिए। यदि वह दूसरों के बीच उनके बारे में बोलता है, तो तुम्हें न केवल उनको अस्वीकार कर देना चाहिए बल्कि उन्हें उजागर करके उनका गहन-विश्लेषण भी करना चाहिए—और ज्यादा लोगों को गुमराह मत होने दो। विशेषकर उन लोगों के मामले में जो एक या दो साल, या दो या तीन साल से विश्वासी हैं, वे अभी भी गंतव्य, परमेश्वर के साथ मुलाकात और स्वर्गारोहण के मामलों की असलियत नहीं देख पाते हैं, उनमें अभी तक सत्य में रुचि विकसित नहीं हुई है, और उनके पास सत्य का अनुसरण करने और अपने विश्वास में स्वभावगत परिवर्तन का प्रयास करने का कोई मार्ग नहीं है। ऐसी स्थितियों में, वे इन अफवाहों से सबसे आसानी से गुमराह और प्रभावित होते हैं, और एक बार जब वे गुमराह हो जाते हैं, तो परिणाम अकल्पनीय होते हैं। यह जहर खाने जैसा है; भले ही कोई विषहर दवा हो, फिर भी क्या तुम्हारे शरीर को नुकसान नहीं पहुँचा है? यदि तुम बच भी जाओ तो क्या तुम्हारे शरीर को होने वाली पीड़ा और क्षति को नजरअंदाज किया जा सकता है? इसलिए, जब इन अफवाहों का सामना करो, तो तुम्हें उनका भेद पहचान कर उन्हें खारिज कर देना चाहिए, और उन्हें कहानियों या वास्तविक घटनाओं के तौर पर नहीं मानना चाहिए। कुछ लोग विशेष रूप से इन अफवाहों में रुचि लेते हैं और इन्हें हर जगह प्रसारित करते और फैला देते हैं, और दूसरों के साथ ऐसे साझा करते हैं जैसे ये सत्य हों। इसकी प्रकृति क्या है? क्या यह शैतान के सेवक के तौर पर काम करना नहीं है? ऐसे लोगों की काट-छाँट की जानी चाहिए और उन्हें चेतावनी भी दी जानी चाहिए। यदि वे पश्चात्ताप नहीं करते हैं, तो उन्हें बाहर निकाल देना चाहिए। अगर किसी समय उन्हें होश आ जाता है और वे कहते हैं, “अफवाहें फैलाना गलत था; मैं शैतान का सेवक बनकर काम कर रहा था, और मैं फिर कभी ऐसी अफवाहें नहीं फैलाऊँगा,” तो उन पर नजर रखी जा सकती है : अगर वे पश्चात्ताप करते हैं और अच्छा व्यवहार दिखाते हैं, तो उन्हें अस्थायी रूप से कलीसिया में वापस स्वीकार किया जा सकता है। अगर वे फिर से ऐसी गलती करते हैं, तो उन्हें बाहर कर देना चाहिए।

परमेश्वर के कार्य के बारे में अफवाहें इन्हीं तक सीमित नहीं हैं। लोग विश्लेषण और पड़ताल करने के लिए अपनी कल्पनाओं और धारणाओं, और साथ ही अपने दिमाग का उपयोग करते हैं; वे परमेश्वर के वचनों और विभिन्न भविष्यवाणियों, और साथ ही समाज और दुनिया में होने वाली विभिन्न आपदाओं, संकेतों और घटनाओं की पड़ताल करते हैं, यहाँ तक कि परमेश्वर के कार्य पर स्वतंत्र रूप से टिप्पणी करने के लिए अपने सपनों पर भरोसा करते हैं—वे कई अफवाहें गढ़ते हैं। बहुत से लोग नियमित रूप से परमेश्वर के वचनों को नहीं पढ़ते हैं, या नियमित रूप से सत्य के लिए कड़ी मेहनत नहीं करते हैं, और अपने कर्तव्य निभाते समय सिद्धांतों की तलाश करने में नियमित रूप से कड़ी मेहनत तो बिल्कुल भी नहीं करते हैं। इसके बजाय, वे ऐसे सवालों पर विचार करते हैं, “परमेश्वर का प्रकटन और कार्य कैसे शुरू हुआ? यह सब किसने शुरू किया? लोगों ने क्या भूमिका निभाई? कौन-सी घटनाएँ घटीं?” वे इन बाहरी घटनाओं, और कलीसिया की प्रशासनिक संरचना, कर्मियों वगैरह की बारीकी से पड़ताल करते हैं। इस पूरी पड़ताल के बाद, वे सबका सारांश बनाते हैं और कुछ तथाकथित नियम या घटनाएँ लेकर आते हैं और उन्हें कलीसिया में इस तरह फैला देते हैं जैसे कि वे सत्य हों। उन्हें फैलाते समय, वे उनका सुस्पष्ट और विस्तृत तरीके से वर्णन करते हैं, और बिना समझ वाले लोग यह भी सोच सकते हैं कि वे परमेश्वर के कार्य की चर्चा कर रहे हैं। हालाँकि, समझदार लोग सोचते हैं, “कहीं तुम बकवास तो नहीं कर रहे हो और पाखंड और भ्रांतियां तो नहीं फैला रहे हो? कहीं तुम परमेश्वर के कार्य की आलोचना तो नहीं कर रहे हो? यह समझ और अनुभव साझा करना नहीं है—यह सत्य से असंबंधित है। यह अफवाहें गढ़ना है और इसे तुरंत रोका जाना चाहिए; अन्यथा, कुछ लोग गुमराह हो जाएँगे!” ये भ्रांतियाँ और पाखंड, जो अफवाह प्रतीत होते हैं, सत्य के अनुरूप नहीं हैं और लोगों की सत्य की समझ को बाधित करते हैं। जब कलीसिया में अफवाहें फैलाने का कार्य दिखाई देता है, तो इसे तुरंत रोक दिया जाना चाहिए।

कुछ अफवाहें ऐसी भी हैं जो परमेश्वर के कार्य की आलोचना करने वाले शैतानी शब्दों के बराबर हैं। उदाहरण के लिए, परमेश्वर किससे प्रेम करता है, किसे बचाता है और किसे पूर्ण बनाता है, इस बारे में कुछ लोग अपनी तुच्छ चतुराई का इस्तेमाल करते हुए, यह कहकर अवलोकन और सारांश प्रस्तुत करते हैं, “दुनिया में जो लोग सक्षम हैं, और जिन्होंने अधिकारियों के रूप में सेवा की है, और जो उद्यमों में विभाग प्रमुख या सीईओ रहे हैं, जब वे परमेश्वर के घर में आते हैं, तो सीधे अगुआ बन जाते हैं या तुरंत सामान्य मामलों और वित्त का प्रभार संभाल लेते हैं। ये वो लोग हैं जिन्हें परमेश्वर पूर्ण बनाता है।” क्या यह अफवाहें गढ़ना नहीं है? बेशक यह अफवाहें गढ़ना है। अफवाह क्या होती है? यह गैर-जिम्मेदाराना ढंग से बात करना, बिना सोचे-विचारे निर्णय लेना और इस तरीके से निराधार निष्कर्ष निकालना जो तथ्यों के अनुरूप नहीं है; ये सभी शब्द अफवाहें हैं। अन्य लोग कहते हैं, “फलाँ-फलाँ लोगों ने दसियों हजार युआन का चढ़ावा चढ़ाया। उनका विश्वास महान है, वे राज्य में प्रवेश कर सकते हैं।” इससे बिना पैसे वाले लोग नकारात्मक हो जाते हैं और परेशान महसूस करते हैं; वे कहते हैं, “भले ही मैंने भी काफी चढ़ावा चढ़ाया है, लेकिन यह उतना नहीं है जितना उन्होंने एक बार में चढ़ाया है। क्या इसका मतलब यह है कि मुझे बचाया नहीं जा सकता और पूर्ण नहीं बनाया जा सकता? क्या परमेश्वर मेरे जैसे व्यक्ति को नहीं चाहता है?” फिर अफवाहें गढ़ने वाले अन्य लोग कहते हैं, “अमीर व्यक्ति राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता है; परमेश्वर गरीब को चाहता है।” वे गरीब लोग फिर प्रसन्न हो जाते हैं : “भले ही मैंने ज्यादा चढ़ावा नहीं चढ़ाया है, मैं अभी भी राज्य में प्रवेश कर सकता हूँ, जबकि अमीर लोगों को छोड़ दिया जाएगा।” अफवाहें गढ़ने वाले जो कुछ भी कहते हैं, उसका असर किसी न किसी तरह से गरीब लोगों पर पड़ता है; वे इस तथ्य को नहीं समझ पाते कि यह सब सिर्फ अफवाहें और शैतानी शब्द हैं। ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है क्योंकि वे सत्य को नहीं समझते और उन्हें भेद पहचानना नहीं आता है, इसलिए वे लगातार गुमराह होते रहते हैं। जो लोग अफवाहें गढ़ते हैं और जो उन्हें फैलाते हैं, वे सभी दानव हैं। भले ही वे कितना भी कहें, तुम्हें नहीं पता कि कौन से शब्द सत्य हैं और कौन से शब्द असत्य हैं, ये शब्द वास्तव में कहाँ से आते हैं, इन शब्दों को फैलाने के पीछे उनका वास्तविक मंतव्य क्या है, और वे कौन से लक्ष्य प्राप्त करना चाहते हैं। यदि कोई व्यक्ति इन चीजों की असलियत नहीं जान पाता है और आँख मूंद कर अफवाहें स्वीकार लेता है और फैलाता है, तो क्या यह उसे मूर्ख नहीं बनाता है? क्या मूर्ख को कमीना भी नहीं कहा जाता है? भले ही यह भोंडा शब्द है, लेकिन मुझे यह बिल्कुल उपयुक्त जान पड़ता है। यह उपयुक्त क्यों है? क्योंकि ऐसे लोग गैर-जिम्मेदारी से बोलते हैं। वे लापरवाही से अफवाहें फैलाते हैं, कुछ घटनाओं के आधार पर लापरवाही से निष्कर्ष निकालते और अफवाहें गढ़ते हैं, और फिर लापरवाही से इन अफवाहों को फैलाते हैं और उनका वर्णन इस तरह करते हैं जैसे कि वे वास्तविक घटनाएं हों—नतीजतन यह कुछ लोगों को प्रभावित और परेशान करता है। वे परमेश्वर के वचनों को नहीं पढ़ते या सत्य को नहीं समझते; वे अपने दिन कलीसिया में अफवाहें फैलाने और बकवास करने में बिताते हैं। आज, वे किसी को बहुत सारा चढ़ावा चढ़ाते हुए देखते हैं और कहते हैं कि उस व्यक्ति को बचाया जा सकता है। कल, वे किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जो जेल जाकर भी यहूदा नहीं बना है, तो वे कहते हैं, “वह व्यक्ति परमेश्वर के साथ एकमन है। वह राज्य में प्रवेश कर सकता है और एक अच्छी मंजिल पा सकता है। भविष्य में, वह परमेश्वर के घर में बीस शहरों पर शासन करेगा; हम साधारण पैदल सैनिक उससे अपनी तुलना नहीं कर सकते।” क्या यह शैतानी वार्ता नहीं है? क्या ये अफवाहें नहीं हैं? (हाँ।) इन शब्दों को कहने वाले लोगों के मंतव्य और लक्ष्य चाहे जो भी हों, क्या ऐसे शब्द कुछ लोगों को प्रभावित और परेशान नहीं करेंगे? कुछ लोगों में आस्था कम होती है, और जब वे ये अफवाहें और शैतानी शब्द सुनते हैं, तो वे चिंतन करने लगते हैं : “क्या मुझे बचाया जा सकता है? क्या परमेश्वर मुझसे प्रसन्न होता है?” अपने दिल में वे पूरे दिन इन चीजों के बारे में सोचते रहते हैं, उनके बारे में झिझकते और चिंता करते रहते हैं। अफवाहें गढ़ने वालों की बेबुनियाद बकवास की वजह से, उन्हें लगता है कि उनके बचने की कोई उम्मीद नहीं है, इसलिए वे परमेश्वर के सामने आकर प्रार्थना करते हैं : “परमेश्वर, क्या तुम मुझसे प्यार नहीं करते? मैंने तुम्हारे लिए बहुत कुछ त्याग किया है। मैं तुम्हें कब संतुष्ट कर पाऊँगा?” उनके पास शिकायतों का अंबार है। कुछ भी नहीं हुआ है, तो ये शिकायतें कहाँ से आती हैं? ये उन अफवाहों की वजह से हैं—इन लोगों के दिल में जहर घोला गया है और उनका पतन हो गया है। वे जो भी भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करते हैं या जो भी अपराध उन्होंने किए हैं, उसके लिए उन्हें कोई पछतावा या अपराध बोध नहीं होता, इसके कारण वे कभी रोते नहीं हैं—एक आँसू भी नहीं—लेकिन जब वे अफवाह फैलाने वालों को यह कहते हुए सुनते हैं कि उनके जैसे लोगों को बचाए जाने की कोई उम्मीद नहीं है, तो वे तुरंत व्यथित महसूस करते हैं। क्या वे प्रभावित नहीं हुए हैं? वे प्रभावित और परेशान हुए हैं। ये लोग अपरिपक्व आध्यात्मिक कद के हैं, सत्य को नहीं समझते हैं, और बहुत मूर्ख हैं। जो लोग अफवाहें फैलाते हैं वे ऐसे लोगों को आसानी से ठगने योग्य समझते हैं, और इसलिए उन्हें धोखा देने के लिए कुछ अफवाहें फैलाते हैं। आज वे कहते हैं कि तुम्हारे बचाए जाने की उम्मीद है और तुम खुश हो; कल वे कहते हैं कि तुम्हारे बचाए जाने की कोई उम्मीद नहीं है और तुम रोते हो और परेशान हो जाते हो। तुम उनकी बात क्यों सुनते हो? तुम हमेशा उनसे बेबस क्यों रहते हो? क्या अंतिम निर्णय उनका होता है? अधिक से अधिक, वे केवल विदूषक हैं। यहाँ तक कि उनका भाग्य भी परमेश्वर के हाथों में है, तो दूसरों का मूल्यांकन करने के लिए उनके पास क्या योग्यता है? यह कहने के लिए उनके पास क्या योग्यता है कि किसे बचाया जा सकता है और किसे नहीं, या किस तरह के लोगों को पूर्ण बनाया जा सकता है और किसे नहीं? क्या वे सत्य को समझते हैं? उनके कौन से शब्द परमेश्वर के इरादों और परमेश्वर के वचनों के अनुरूप हैं? उनका एक भी शब्द परमेश्वर के वचनों के अनुरूप नहीं है, तो फिर तुम उन पर विश्वास क्यों करते हो? तुम उनसे परेशान क्यों हो? क्या यह मूर्खता के कारण नहीं है? (हाँ।) चाहे यह मूर्खता और अज्ञानता के कारण हो या क्योंकि तुम्हारा आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है और तुम सत्य को नहीं समझते हो, किसी भी मामले में, जो लोग कलीसिया में अफवाहें फैलाते हैं वे सबसे अधिक घृणित हैं। उनका भेद पहचानना चाहिए, उन्हें उजागर करना चाहिए और फिर प्रतिबंधित करना या बाहर निकाल देना चाहिए।

कुछ लोग कहते हैं, “फलाँ व्यक्ति को देखो, उसकी इन अच्छी खासी विशेषताओं के कारण; उसे कलीसिया अगुआ चुना गया था। फलाँ महिला समाज में सफल हुई, उसे देखने वाला हर व्यक्ति उसे पसंद करता है; जब वह परमेश्वर में विश्वास करने लगी, तो भाई-बहन भी उसे पसंद करने लगे, और परमेश्वर भी उसे पसंद करने लगा।” क्या इन शब्दों में एक भी सही कथन है? (नहीं।) क्यों? (वे सत्य के अनुरूप नहीं हैं।) सही कहा, ये शब्द सत्य के अनुरूप नहीं हैं, वे सारी शैतानी बातें हैं। कुछ लोगों का कहना है, “फलाँ-फलाँ व्यक्ति का परिवार अमीर है, उनकी रहन-सहन की स्थिति अच्छी है, और वे ज्ञानवान हैं। इसलिए, परमेश्वर के घर में, वे वित्त और सामान्य मामलें संभालते हैं। वे उपयोगी हैं और इस कर्तव्य को निभा सकते हैं। यह परमेश्वर का विधान है।” क्या “परमेश्वर का विधान” जोड़ने से यह कथन सत्य के अनुरूप बन गया है? क्या यह शैतानी बात नहीं है? ऐसी शैतानी बात को सामूहिक रूप से अफवाह कहा जाता है। कोई भी गैर-जिम्मेदाराना कथन जो तथ्यों के अनुरूप नहीं है, जो परमेश्वर द्वारा निर्धारित तथ्यों का खंडन करता है, वे बेपरवाह शब्द और मनमाने निष्कर्ष हैं; ऐसे सारे कथन अफवाहें हैं। उन्हें अफवाहों के रूप में चित्रित क्यों किया जाता है? क्योंकि ये कथन, एक बार जारी हो जाने पर, कुछ लोगों की सामान्य मानसिकता और लक्ष्यों के अनुसरण को बाधित करेंगे और नुकसान पहुंचाएंगे, इसलिए उन्हें अफवाह कहा जाता है। परमेश्वर के वचनों के अनुसार, परमेश्वर केवल यह कहता है कि लोगों का जन्म स्थान, पारिवारिक पृष्ठभूमि, रंग-रूप, शिक्षा का स्तर वगैरह परमेश्वर द्वारा निर्धारित होते हैं; उसने लोगों को कभी नहीं बताया है कि रंग-रूप, सामाजिक पृष्ठभूमि या किसी श्रेणी के लोगों की जन्मजात स्थितियाँ धन्य होने की स्थितियाँ हैं। परमेश्वर लोगों से केवल एक मानक की अपेक्षा करता है कि वे सत्य का अनुसरण करने में सक्षम हों और परमेश्वर के प्रति समर्पण भाव रखें। यह सबसे महत्वपूर्ण है। यदि परमेश्वर के वचन स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहते हैं, और यह केवल लोगों की व्यक्तिपरक कल्पनाओं या उनके अनुमानों से उपजा है, तो ऐसे कथनों को भी अफवाह माना जाता है। लोग हमेशा अपने अवलोकन और समझ के माध्यम से, और इसके अतिरिक्त अपनी स्वयं की धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर यह आकलन करना चाहते हैं कि क्या किसी को आशीष दिया जा सकता है या नहीं। फिर, वे दूसरों के सत्य के अनुसरण को प्रभावित करने के लिए इन भ्रांतियों को जारी करते हैं, मनमाने ढंग से निर्णय लेते हैं कि किसे बचाया जा सकता है और किसे नहीं, कौन परमेश्वर के लोग हैं, और कौन श्रमिक हैं। ये सब अफवाहें हैं। अफवाहों के संबंध में, हम उन्हें शैतानी शब्द भी कह सकते हैं। चाहे किसी भी तरह की अफवाहें या शैतानी शब्द दिखाई दें, कलीसिया अगुआओं को तुरंत उन्हें रोकने और प्रतिबंधित करने के लिए आगे आना चाहिए; बेशक, अगर किसी भाई-बहन को भेद पहचानना आता है, तो उसे भी आगे आकर यह गहन-विश्लेषण करना चाहिए और भेद पहचानना चाहिए कि अफवाहें कहाँ से आती हैं और उनकी प्रकृति क्या है। जब इन भाई-बहनों को इन चीजों की समझ हो जाती है, तो वे इन अफवाहों का खंडन करने और उन पर वाद-विवाद करने के लिए खड़े हो सकते हैं, और अफवाहें फैलाने वालों को प्रतिबंधित भी कर सकते हैं, सामूहिक रूप से उनके खिलाफ आवाज उठा सकते हैं। उन्हें यह कैसे करना चाहिए? सबके सामने उन लोगों की खुलेआम निंदा करके : “तुम जो कह रहे हो वह सब अफवाहें और शैतानी बातें हैं, यह परमेश्वर के वचनों के अनुरूप नहीं है, न ही यह हमारी आवश्यकताओं के अनुरूप है। अगर तुम चेतावनियों के बावजूद अफवाहें फैलाना जारी रखते हो, तो हम तुम्हें बाहर निकाल देंगे, ताकि तुम्हें अफवाहें गढ़ने और कलीसिया में गड़बड़ी पैदा करने का कोई मौका न मिले!” यह अभ्यास कैसा है? (अच्छा है।) इस तरह से करना सत्य सिद्धांतों के अनुरूप है। यदि तुम अपनी व्यक्तिगत अनुभवजन्य समझ की संगति करते हो, लोगों को शिक्षित करने वाली बातें कहते हो, तो तुम जो भी बोलते हो वह ठीक है। तुम अपनी पसंद के किसी भी शब्द का उपयोग कर सकते हो, चाहे वह औपचारिक हो या बोलचाल की भाषा; इन सबकी अनुमति है। एकमात्र चीज जो तुम्हें नहीं करनी चाहिए वह है अफवाहें फैलाना।

ङ. निराधार अफवाहों के कारण होने वाला नुकसान

कलीसिया के भीतर फैलाई जाने वाली अफवाहें केवल परमेश्वर को नकारने या परमेश्वर के कार्य की आलोचना करने के बारे में नहीं हैं; अन्य प्रकार की अफवाहें भी होती हैं। इन अफवाहों का भेद पहचानना और इनका गहन-विश्लेषण करना जरूरी होता है, और उन्हें रोकना और प्रतिबंधित भी करना चाहिए। संक्षेप में, अफवाहें निश्चित रूप से अच्छी नहीं होती हैं; उनसे लोगों को कोई लाभ नहीं होता है। कुछ लोग कहते हैं, “मैं अफवाहों को इसलिए सुनना चाहता हूँ ताकि यह जान सकूँ कि वे क्या कह रहे हैं, और उनसे समझ और ज्ञान प्राप्त कर सकूँ।” यदि तुम में थोड़ी सी भी समझने की योग्यता है और अफवाहों से परेशान होने से डरते नहीं हो, तो तुम सुन सकते हो, लेकिन इसके क्या परिणाम होंगे? यदि तुम उलझन में पड़ जाते हो और परमेश्वर और परमेश्वर के कार्य पर संदेह करने लगते हो, तो वह खतरनाक बात है; इसका अर्थ हुआ कि तुम गुमराह हो गए हो। यदि तुम भेद नहीं पहचान सकते और इसके बजाय गुमराह हो जाते हो, तो क्या यह परेशानी की बात नहीं है? क्या तुम्हारा वैसा आध्यात्मिक कद है? तुम्हें लगता है कि तुम में आस्था है, लेकिन क्या तुम सत्य समझते हो? यदि तुम सत्य नहीं समझते हो, तो तुम्हारी आस्था वास्तविक नहीं है, और तुम अभी भी गुमराह हो जाओगे। यदि तुम कुछ सत्य समझते हो, तुम्हारे पास परमेश्वर का थोड़ा वास्तविक ज्ञान है, और तुम इन अफवाहों का भेद पहचान सकते हो और इनका प्रतिरोध कर सकते हो, तो तुम्हें उनको सुनने से ज्ञान प्राप्त हो सकता है। यदि तुम्हें लगता है कि तुम में केवल आस्था है, लेकिन वास्तव में, यह आस्था अभी भी वास्तविक आध्यात्मिक कद नहीं है, और तुम अभी भी सत्य नहीं समझते हो, तो मेरा कहना है कि अफवाहों से समझ और ज्ञान प्राप्त करना तुम्हारे लिए बेहद कठिन होगा। अफवाहें कहाँ से आती हैं? वे शैतान से आती हैं। शैतान हर खामी का फायदा उठाता है और परमेश्वर के वचनों में इस्तेमाल किए गए वाक्यांशों के बारे में चयनशील होने और परमेश्वर के वचनों में कुछ ऐसा ढूँढ़ने के लिए हर अवसर का लाभ उठाना चाहता है जिससे वह परमेश्वर के वचनों को अप्रासंगिक बना सके। ऐसा लगता है कि इसका कोई आधार है, लेकिन वास्तव में ऐसा लोगों को गुमराह करने के लिए अप्रासंगिक रूप से किया गया है। इन अफवाहों को सुनने के बाद, सत्य को नहीं समझने वाले लोग मन-ही-मन सोचते हैं : “वे जो कहते हैं परमेश्वर के वचन उसका एक आधार होता है। यह सही होना चाहिए। यह अफवाह नहीं हो सकती, क्या हो सकती है?” नतीजतन, वे गुमराह हो जाते हैं। कुछ अफवाहें स्पष्ट होती हैं और उनका भेद पहचानना आसान होता है। हालाँकि, कुछ अफवाहों का भेद पहचानना मुश्किल होता है; सतही तौर पर, वे तथ्यों से मेल खाती प्रतीत होती हैं, लेकिन उनका सार ऐसा नहीं होता है। ऐसा मत सोचो कि सिर्फ इसलिए कि ये अफवाहें सतही तौर पर परमेश्वर के वचनों के शाब्दिक अर्थ से मेल खाती हैं, तो वे सही हैं। वास्तव में, इनमें से अनेक कथन खोखले सिद्धांत हैं, वे फँसाने वाले जाल हैं, और उनसे लोगों को कोई शिक्षा या लाभ नहीं मिलता। इन सभी कथनों को खारिज कर देना चाहिए। क्योंकि लोग परमेश्वर के वचनों को जिस हद तक समझते हैं उसमें अंतर होता है, और परमेश्वर जिन संदर्भों में बोलता है वे भी अलग-अलग होते हैं, इसलिए परमेश्वर के वचनों को आँख मूंदकर लागू करना और उनकी व्याख्या करना ही वह चीज है जिससे गलतियाँ होने की सबसे अधिक संभावना रहती है। शैतान अक्सर परमेश्वर के वचनों को अप्रासंगिक बनाकर और उनकी गलत व्याख्या करके लोगों को गुमराह करता है। बाइबल या परमेश्वर के वचनों के आधार पर परमेश्वर के कार्य की कोई भी निंदा शैतान की चालबाजी है, यह लोगों को गुमराह करने का साधन है; वे फँसाने वाले जाल हैं, और ऐसे सभी कथनों को खारिज कर देना चाहिए। सतही तौर पर, अफवाहें एक या दो टिप्पणियाँ, या कुछ टिप्पणियाँ होती हैं; वे भयभीत होने के लिए अपर्याप्त हैं, और उनमें भयभीत होने वाली कोई बात नहीं है। भयभीत होने वाली बात यह है कि उन अफवाहों से बाइबल के आधार पर या सत्य को अप्रासंगिक बनाकर निष्कर्ष निकाले जाते हैं। यही है जो लोगों को गुमराह करने में सबसे ज्यादा सक्षम है; यही है जो लोगों के मन को सबसे ज्यादा परेशान करता है। यह बिना समझ वाले लोगों के ठोकर खाने का कारण बनेगा। केवल जो लोग सत्य समझते हैं वे ही ऐसी गुमराह करने वाली शैतानी बातचीत का भेद पहचान सकते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ लोग परमेश्वर के कुछ वचनों को यह कहने के लिए आधार के रूप में इस्तेमाल करते हैं कि परमेश्वर इस प्रकार के लोगों से प्रेम करता है और उस प्रकार के लोगों से प्रेम नहीं करता है, परमेश्वर इस प्रकार के लोगों को बचाता है और उस प्रकार के लोगों को नहीं बचाता है, इस प्रकार के लोगों को परमेश्वर द्वारा हटा दिया जाता है, और उस प्रकार के लोग परमेश्वर के लिए कुछ भी मायने नहीं रखते हैं वगैरह। क्या ये कथन निष्कर्ष नहीं हैं? ये निष्कर्ष वास्तव में परमेश्वर के वचनों के अनुरूप नहीं हैं। जो आधार उन्होंने ढूँढ़े हैं वे वास्तव में अप्रासंगिक हैं; वे अलग संदर्भों से संबंधित हैं और वे भिन्न कथन हैं। यह पूर्णतः गलत व्याख्या है। वे सार की असलियत नहीं देखते हैं, और वे मनमाने ढंग से विनियम लागू करते हैं। लेकिन इन भ्रांतियों को सुनने के बाद बिना समझ वाले लोगों के मन में जहर भर जाता है और वे गुमराह हो जाते हैं, और यह सोचते हुए दिल से नकारात्मक हो जाते हैं कि जो कुछ कहा गया है वह परमेश्वर के वचनों पर आधारित है, इसलिए वह सटीक होना चाहिए। वे इन भ्रांतियों में त्रुटियों को ढूँढ़ने के लिए बाद में परमेश्वर के वचनों को सावधानीपूर्वक नहीं पढ़ते हैं, इसके बजाय पूरी तरह विश्वास करने लगते हैं कि वे सत्य हैं। क्या उन्हें गुमराह नहीं किया जा रहा है? यदि सत्य को समझने वाला कोई भी व्यक्ति उनके साथ संगति नहीं करता है, तो यह बेहद खतरनाक है। कम से कम, ये लोग छह महीने से एक साल तक के लिए नकारात्मक हो सकते हैं; इससे न केवल उनके जीवन प्रवेश में विलंब होता है, बल्कि अगर वे पीछे हट जाते हैं और विश्वास करना बंद कर देते हैं, तो वे पूरी तरह से बर्बाद हो जाएंगे और परमेश्वर के उद्धार को पूरी तरह से खो देंगे। इसलिए, छोटे आध्यात्मिक कद वाले लोग जो सत्य नहीं समझते हैं उन्हें शैतान द्वारा गुमराह किए जाने का ज्यादा खतरा है! केवल सत्य समझने वाले लोग सुरक्षित और स्थिर हैं। यदि किसी दिन वास्तव में तुम्हारा किसी ऐसे व्यक्ति से सामना हो जाए जो लोगों को गुमराह करने के लिए अफवाहें फैला रहा है, तो सबसे प्रभावी तरीका शीघ्रता से किसी ऐसे व्यक्ति को ढूँढ़ना है जो सत्य समझता हो और जिसके साथ तुम संगति कर सको; केवल तभी तुम्हें इस स्थिति से बचाया जा सकता है। आँख मूंद कर विनियम लागू करने वाले आध्यात्मिक समझ से रहित लोगों से सहायता माँगने पर न केवल तुम समस्या का समाधान करने में विफल होगे बल्कि इससे तुम और ज्यादा गुमराह भी हो जाओगे। इसलिए, गुमराह होना कुछ ऐसा नहीं है जो केवल धर्म में होता है—भले ही तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो और कलीसियाई जीवन जीते हो, यदि तुम सत्य का अनुसरण नहीं करते हो, तो तुम अभी भी आसानी से गुमराह हो सकते हो। भले ही तुमने तीन से पाँच वर्षों, या सात से आठ वर्षों तक विश्वास किया है, लेकिन यदि तुमने सत्य प्राप्त नहीं किया है, तो तुम्हारे लिए अभी भी गुमराह होने का खतरा है; विशेष रूप से, जो लोग अक्सर धारणाएँ रखते हैं और अक्सर नकारात्मक होते हैं, उनके गुमराह होने की संभावना सबसे अधिक होती है और वे किसी भी समय परमेश्वर को धोखा दे सकते हैं। यह एक तथ्य है कि शैतान धरती पर गर्जना करते सिंह की भांति इस तलाश में घूमता है, कि किसका भक्षण करे। यह शैतान कौन है? वे सभी लोग शैतान हैं जो सत्य से विमुख हैं और सत्य से नफरत करते हैं, मसीह-विरोधियों, झूठे अगुआओं, अनर्गल लोगों, और दूसरों को गुमराह करने वाले लोगों सहित—ये सभी लोग शैतान के समान हैं। ये लोग हर जगह घूमते हैं, और जहाँ भी वे जाते हैं परमेश्वर के चुने हुए लोगों को गुमराह और परेशान करते हैं, इसलिए वे सभी परमेश्वर का प्रतिरोध करने वाले शैतान हैं। परमेश्वर के चुने हुए लोगों को यह सुनिश्चित करने के लिए विशेष रूप से सतर्क रहना चाहिए कि वे गुमराह न हों और दृढ़ रह सकें।

यह निर्विवाद है कि कलीसिया में कुछ नए विश्वासी या अत्यधिक खराब काबिलियत वाले लोग, जिनमें परमेश्वर के वचनों को समझने की योग्यता नहीं होती है, वे विभिन्न अफवाहों से अक्सर गुमराह, प्रभावित और परेशान हो जाते हैं। जो लोग अफवाहें गढ़ते हैं वे आसानी से एक साधारण निष्कर्ष से लोगों के समूह को बर्बाद कर सकते हैं। वे जो शब्द और कथन लापरवाही से बोलते हैं वे कुछ लोगों को नकारात्मक, कमजोर और अपना कर्तव्य निभाने में अनिच्छुक बना सकते हैं। जब परमेश्वर का घर बुलाता है, तो ये लोग भय से भर जाते हैं, और इनकार करने और टालने के लिए विभिन्न कारण और बहाने ढूँढ़ते हैं। स्पष्ट रूप से, अफवाहें गढ़ने वाले वे लोग कलीसिया में क्या भूमिका निभाते हैं? इसमें कोई शक नहीं कि वे शैतान के सेवकों की तरह काम करते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ लोगों का कहना है, “अपना कर्तव्य निभाते समय तुम्हें एक बैकअप योजना रखने की जरूरत है। परमेश्वर का घर तुम्हें कर्तव्य निभाने के लिए बुलाता है, और यदि तुम इसे अच्छे से नहीं निभाते हो, तो परमेश्वर का घर किसी भी समय तुम्हारा उपयोग करना बंद कर सकता है। उस समय, यदि तुम घर जाते हो, तो तुम्हें मुश्किल से गुजरना पड़ेगा। तब कोई भी तुम्हारा समर्थन नहीं करेगा!” क्या यह “दिल को छूने वाला” लगता है? यह मानवीय भावनाओं के अनुरूप है और काफी प्रेमपूर्ण और विचारशील लगता है, लेकिन क्या तुम इन शब्दों में परमेश्वर के दिल के लिए कोई विचार पाते हो? क्या उनसे लोगों को कोई समर्थन, पोषण, मदद या प्रोत्साहन मिलता है? (नहीं।) लोगों को बैकअप योजना तैयार करने के लिए कहना—क्या यह उन्हें पीछे खींचना नहीं है? इससे उनका क्या मतलब है? “तुम्हें सजग रहना होगा; परमेश्वर तुम्हारे खिलाफ हो सकता है!” वे लोगों में यह जहर डाल देते हैं। इसे सुनने के बाद, लोग सोचते हैं, “सही बात है, मैं इतना मूर्ख कैसे हो सकता हूँ? मैंने अपना घर लगभग बेच ही दिया था—यदि मैंने अपना कर्तव्य अच्छे से नहीं निभाया और मैं बरखास्त हो गया, तो मेरे पास लौटने के लिए एक घर भी नहीं होगा। शुक्र है, उन्होंने मुझे याद दिलाया, अन्यथा मैं कोई बेवकूफी कर देता।” यह कितनी “उदार” ताकीद है, लेकिन इसमें बहुत अधिक जहर भरा है, और इसके भाव भी गहरे हैं! क्या तुम लोगों ने ऐसी अफवाहें सुनी हैं? ऐसा प्रतीत होता है जैसे वे लोगों के प्रति इतने अच्छे, इतने विचारशील हैं और बेहद “प्रेम” के साथ व्यवहार करते हैं। ये लोग जिनसे बात करते हैं न तो उनके रिश्तेदार हैं न ही उनके दोस्त, उनके बीच खून का कोई रिश्ता नहीं है—ऐसा सिर्फ इसलिए है क्योंकि वे सभी परमेश्वर में विश्वास रखते हैं जिस कारण ये लोग जिनसे बात करते हैं उनके प्रति इतना अधिक “प्रेम” दिखाते हैं। लोग सोचते हैं, “यह सचमुच परमेश्वर की सुरक्षा है! तो फिर बेहतर होगा कि मैं पहले इन बातों पर विचार कर लूँ। यदि मैं अपना कर्तव्य निभाते समय हमेशा लापरवाही बरतता हूँ, और यदि मुझे वापस भेज दिया गया तब मैं क्या करूँगा? इसलिए, मुझे अपना कर्तव्य निभाते समय सावधान रहने की जरूरत है; मुझे ज्यादा काम करना चाहिए जिससे मैं अच्छा दिखूँ, मुझे गलतियाँ करने से बचना चाहिए, और अगर मैं गलतियाँ भी करूँ, तो दूसरों को उनका पता न चलने दूँ। इस तरह, मुझे वापस नहीं भेजा जाएगा, है न? यदि मुझे भेज भी दिया जाता है, तो भी कोई बात नहीं; मेरे पास बैकअप योजना है, मेरे पास बचत है, और मेरा घर अभी भी वहीं है। क्या यह सिर्फ ऐसा नहीं है कि परमेश्वर लोगों की भावनाओं के प्रति विचारशील नहीं है और वह दैहिक भावनाओं से प्रभावित नहीं होता है? फिर भी, डरने की क्या बात है? लोग अपनी भावनाओं से प्रेरित होते हैं, इस मानव संसार में हर जगह प्रेम है!” “दिल को छू लेने वाले” इस कथन से लोगों के बीच “मित्रता” सृजित होती है, लेकिन यह परमेश्वर को कहाँ रखता है? परमेश्वर तीसरी या चौथी प्राथमिकता बन जाता है, यह उसे बाहरी बना देता है, मानो कि परमेश्वर भरोसेमंद नहीं है और केवल लोग ही भरोसा करने लायक हैं, केवल लोग ही दूसरों के प्रति विचारशील हैं। यह एक कथन इतना उल्लेखनीय प्रभाव उत्पन्न करता है, यह एकदम “सामयिक” है! क्या तुम लोगों को ऐसे शब्द सुनना पसंद है? भले ही तुम्हें पता है कि उनके शब्दों में द्वेष छिपा है, तुम अभी भी उम्मीद करते हो कि कोई तुम्हें संकेत दे सकता है, तुम्हारी मदद कर सकता है, जब तुम नहीं जानते कि आगे क्या होने वाला है, तो वह तुम्हें किसी ऐसे व्यक्ति के जरिए चेतावनी दे सकता है जो उस स्थिति से गुजरा हो, वह तुम्हें दिल से कुछ कह सकता है। यह कथन इतना “अहम,” इतना “महत्वपूर्ण” है! क्या यह पूरी तरह से उनकी बातों पर विश्वास करना नहीं है? इस अफवाह-बनाने वाले व्यक्ति के “विचारहीन” शब्दों ने लोगों को खरीद लिया है और परमेश्वर को बेच दिया है। यह कैसा कार्य है? क्या यह अच्छा है? (नहीं।) तुम लोग इसे किस तरह का व्यक्ति कहोगे? लोगों की नजरों में, वह एक अच्छा व्यक्ति, एक दयालु व्यक्ति है, लेकिन सत्य समझने वालों की नजरों में, वह एक मूर्ख है। उसके क्रियाकलापों और व्यवहार को देखा जाए तो वह पूरी तरह से शैतान के सेवक के रूप में कार्य करता है, वह एक असली शैतान है! क्या यह कहना सही है? (हाँ।) यह बहुत सटीक है! यह जरा-सा भी गलत नहीं है। वह सभी को परमेश्वर के खिलाफ सावधान रहने, परमेश्वर का विरोध करने के लिए प्रेरित करता है, और वह एक भी ऐसा शब्द नहीं कहता जो लोगों को शिक्षित कर सके। वह ऐसा क्यों नहीं करता? क्योंकि उसका दिल परमेश्वर के प्रति शत्रुता और नफरत से भरा हुआ है, उसका प्रकृति सार शैतान का है, और वह स्वाभाविक रूप से परमेश्वर का विरोध करता है और उसके विरोध में खड़ा होता है। कुछ लोग कहते हैं, “वह स्वाभाविक रूप से परमेश्वर के विरोध में खड़ा है, तो अभी भी वह परमेश्वर का अनुसरण क्यों करता हैं?” आशीष पाने के लिए! वह परमेश्वर के घर से आशीष पाने के परिणाम को भुनाना चाहता है, फिर भी वह कोई कीमत नहीं चुकाना चाहता या सत्य का अनुसरण नहीं करना चाहता। वह परमेश्वर को भी कमजोर करना चाहता है, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को परेशान करना चाहता है, और उन्हें परमेश्वर से दूर करना चाहता है और परमेश्वर को धोखा देना चाहता है। ऐसा व्यक्ति निःसंदेह असली शैतान है। लेकिन कुछ मूर्ख लोग हमेशा ऐसे लोगों के शैतानी चेहरों की असलियत जानने और उन्हें पहचानने में विफल रहते हैं। वे इन लोगों द्वारा कहे जाने वाले उन सभी शैतानी शब्दों को स्वीकार सकते हैं जो मानवीय धारणाओं और दैहिक भावनाओं की जरूरतों के अनुरूप होते हैं। इन लोगों के बहकावे में आकर, वे किसी भी समय परमेश्वर को धोखा दे सकते हैं और उसे अस्वीकार कर सकते हैं—भले ही वे उसे अस्वीकार नहीं करना चाहते हों, यह उनके नियंत्रण से बाहर है। शैतान, दानव, और शैतान के सेवक इतने कपटी और धोखेबाज हैं! वे स्वयं परमेश्वर का प्रतिरोध करते हैं और उसके विरोध में खड़े हो जाते हैं, वे सत्य से नफरत करते हैं और इसे स्वीकार नहीं करते हैं, और वे तो और अधिक लोगों को परमेश्वर का अनुसरण करने और सत्य का अनुसरण करने से भी रोकना चाहते हैं। परमेश्वर के घर में, ये लोग शैतान के वाहक होने की भूमिका निभाते हैं, और शैतान के लिए बोलते और काम करते हैं। वे विषमता की तरह काम करते हैं, जो विशेष रूप से लोगों की समझ बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। इसलिए, हो सकता है कि उनकी कही गई बहुत सी बातें सतही तौर पर बहुत ज़्यादा समस्याजनक न लगें। वे अक्सर परमेश्वर के वचनों को भी उद्धृत करते हैं, परमेश्वर के वचनों में कुछ सबूत और कहावतें ढूँढ़ते हैं, और फिर कुछ अलंकरण जोड़ते हैं, जिससे ऐसा लगता है कि वे जो कहते हैं वह काफी हद तक परमेश्वर के वचनों के अनुरूप है। लेकिन एक बात तो पक्की है : वे जो कहते हैं वह सत्य के विपरीत है। जब तुम उनका कहा सुनते हो, तो यह सही लग सकता है, लेकिन अगर तुम ध्यान से इसकी तुलना परमेश्वर के वचनों से करो, तो तुम भेद पहचान सकते हो कि यह मूल रूप से सत्य के अनुरूप नहीं है। वे जो भी दिखावटी शब्द बोलते हैं, वे शैतान से आते हैं। वे परमेश्वर की परीक्षा ले रहे हैं, परमेश्वर के वचनों के भीतर से लाभ उठाने की कोशिश कर रहे हैं, परमेश्वर की निंदा करने और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को गुमराह करने के लिए परमेश्वर के वचनों की गलत व्याख्या कर रहे हैं, जिससे वे परमेश्वर के बारे में अटकलें लगाते हैं, उसे गलत समझते हैं, उससे विश्वासघात करते हैं और उसे अस्वीकार करते हैं, वगैरह। इसलिए, मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों के अलावा, जो लोग दूसरों को गुमराह करने के लिए अफवाहें गढ़ते हैं, वे भी कलीसिया में ऐसे लोगों की श्रेणी में आते हैं जिनका भेद पहचानना चाहिए, जिनसे सावधान रहना चाहिए और जिन्हें बाहर निकाल देना चाहिए।

च. निराधार अफवाहें फैलाने वाले लोगों का भेद पहचानना और उनसे निपटने के लिए सिद्धांत

हमें कलीसिया में उन लोगों का भेद कैसे पहचानना चाहिए जो दूसरों को गुमराह‍ करने के लिए अफवाहें गढ़ते हैं? सबसे पहले, अफवाहें गढ़ने वाले लोग सत्य का बिल्कुल भी अनुसरण नहीं करते हैं; वे इससे विमुख होते हैं। इसके अलावा, वे अक्सर सभी प्रकार के शैतानी शब्द और अनर्गल कथन गढ़ते हैं और उनका इस्तेमाल छोटे आध्यात्मिक कद वाले, सतही आधार वाले, और सत्य को नहीं समझने वाले कुछ भाई-बहनों को गुमराह करने और उन्हें आकर्षित करने के लिए करते हैं। इससे उन्हें कलीसियाई जीवन की सामान्य व्यवस्था में विघ्न-बाधा पैदा करने, लोगों के सामान्य कामकाज में व्यवधान डालने और उन्हें सही मार्ग से भटकाने, लोगों को नकारात्मक एवं कमजोर बनाने, और यहाँ तक कि उन्हें अपने कर्तव्यों का परित्याग करने और परमेश्वर में विश्वास न करने के लिए मजबूर करने का प्रभाव प्राप्त होता है—इससे उन्हें प्रसन्नता भी होती है। इसलिए, अफवाहें गढ़ने वालों को शैतान के सेवक कहना एकदम सटीक वर्णन है; ऐसे लोगों का यही असली चेहरा और सार है, और इसका भेद पहचानना आसान है। कुछ लोगों में थोड़ी सूझ-बूझ होती है; भले ही वे स्वयं सत्य से प्रेम नहीं करते, फिर भी वे इस बारे में अपनी राय व्यक्त नहीं करते या इसमें हस्तक्षेप नहीं करते कि अन्य लोग किस प्रकार सत्य का अनुसरण करते हैं। इन लोगों को नजरंदाज किया जा सकता है। लेकिन कुछ लोग सत्य का अनुसरण करने वाले लोगों से ईर्ष्या और नफरत करते हैं; वे हमेशा कुछ निश्चित इरादे रखते हुए उनकी आलोचना करते हैं और उन पर हमला करते हैं और यहाँ तक कि उनकी निंदा करने के अवसर का लाभ भी उठाते हैं। ऐसे लोगों से सावधान रहना चाहिए। भले ही ये लोग जो कहते हैं वह बिल्कुल सही, तर्कसंगत और परमेश्वर के वचनों के शाब्दिक अर्थ के अनुरूप लग सकता है, लेकिन सावधानीपूर्वक विचार करने पर यह ज्यादातर पूरी तरह बकवास, झूठ और अफवाहें होती हैं। इन भ्रामक अफवाहों और झूठ का भेद पहचानना चाहिए। कुछ लोग कहते हैं, “मैंने केवल थोड़े समय के लिए परमेश्वर में विश्वास किया है, परमेश्वर के वचनों को थोड़ा पढ़ा है, और मैं सत्य नहीं समझता हूँ। मैं अफवाहों और झूठ को कैसे पहचान सकता हूँ?” केवल एक तरीका है कि आज के बाद से, परमेश्वर के वचनों को ज्यादा से ज्यादा पढ़ने और परमेश्वर के वचनों में सत्य की खोज पर ज्यादा ध्यान दो, और परमेश्वर के वचनों को तुम्हारे दिल में जड़ें जमाने दो। परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन से और चीजों को सत्य के अनुसार देखने से, तुम्हें समझ आ जाएगा। इन लोगों द्वारा फैलाई जाने वाली अफवाहों का तुम पर कोई प्रभाव नहीं होगा और तुम्हारे सामान्य कामकाज में कोई बाधा नहीं आएगी। चाहे वे कैसी भी अफवाहों पर चर्चा करें या कोई भी बकवास बोलें, तुम इसे सुनने के बाद विचलित नहीं होगे, न ही तुम नकारात्मक और कमजोर होगे, या परमेश्वर के बारे में कोई गलतफहमी तो तुम्हें बिल्कुल भी नहीं होगी; तुम बस सही दिशा में अनुसरण करने पर ध्यान केंद्रित करोगे। इसका मतलब है कि तुम में प्रतिरोध है—शैतान के ऐसे सेवकों का अब कलीसिया में कोई प्रभाव नहीं रहेगा। अफवाहों का भेद पहचानना सीखने का कोई शॉर्टकट नहीं है। एकमात्र तरीका है उपदेशों को ज्यादा से ज्यादा सुनना, परमेश्वर के वचनों को ज्यादा से ज्यादा पढ़ना, और सत्य पर और अधिक संगति करना। जब तुम सत्य की समझ प्राप्त कर लोगे, तो स्वाभाविक रूप से तुम्हें समझ आ जाएगी। परमेश्वर के वचनों को पढ़ने और सत्य पर संगति करने का उद्देश्य क्या है? इसका उद्देश्य परमेश्वर के वचनों को पढ़कर सत्य को समझना और उन अफवाहों और भ्रांतियों का भेद पहचानना है। अगर तुम देखते हो कि वे अफवाहें परमेश्वर के वचनों का खंडन करती हैं और उनके विरुद्ध जाती हैं, जो सत्य के बिल्कुल विपरीत है, तो वे अफवाहें अपने आप ही समाप्त हो जाएँगी। बेशक, कुछ लोग कहते हैं, “मैंने परमेश्वर के वचनों को पढ़ने का प्रयास नहीं किया है और मुझे समझ में नहीं आता कि परमेश्वर के वचनों में सत्य क्या है। मुझे बस एक बात याद है : अपने आचरण के मामले में, मुझे भीड़ का अनुसरण करना है। जो कुछ भी ज्यादातर लोग अस्वीकार करते हैं, मैं भी उसे अस्वीकार करता हूँ; जो कुछ भी ज्यादातर लोग स्वीकार करते हैं, मैं भी उसे स्वीकार करता हूँ। मैं बस भीड़ का अनुसरण करता हूँ।” क्या यह सही है? (नहीं।) कभी-कभी भीड़ भी गलत होती है और भीड़ का अनुसरण करने का मतलब है उनके साथ गलतियाँ करना। तुम्हें उन लोगों का अनुसरण करना सीखना चाहिए जो सत्य समझते हैं; केवल यही एक अच्छा तरीका है।

निराधार अफवाहें फैलाना कुछ ऐसा है जो कलीसिया में अक्सर होता है। भले ही यह मुद्दा कोई बड़ी समस्या नहीं है, लेकिन परमेश्वर के चुने हुए लोगों को इससे होने वाली बाधा और नुकसान मामूली नहीं हैं। कम से कम, यह लोगों को नकारात्मक और कमजोर बना सकता है; सबसे बुरी बात है कि यह लोगों को परमेश्वर से दूर कर सकता है और यहाँ तक कि वे उसे धोखा भी दे सकते हैं। इसलिए, अफवाहें फैलाने को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है। एक बार जब कलीसिया में ऐसा हो, तो इसे तुरंत रोका जाना चाहिए और प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। अगर कलीसिया अगुआ सुन्न और मंदबुद्धि हैं, वास्तविक कार्य करने में असमर्थ हैं, और इस मुद्दे का पता नहीं लगा सकते हैं, लेकिन कुछ अच्छी काबिलियत वाले लोग जो सत्य का अनुसरण करते और समझते हैं, इसका पता लगा लेते हैं, उन्हें इस मुद्दे को हल करने के लिए आगे आना चाहिए। आम सहमति तक पहुँचने और पुष्टि प्राप्त करने के लिए कई लोगों के साथ खोज और संगति करने के माध्यम से, एक बार यह निर्धारित हो जाने पर कि अफवाहें फैलाई जा रही हैं, लोगों को मुद्दे को हल करने के लिए सत्य की तलाश करनी चाहिए। यदि यह स्पष्ट नहीं है कि कोई खास टिप्पणी एक भ्रांति है, तो उसे आँख मूंदकर ऐसा नहीं मान लेना चाहिए। उन टिप्पणियों के लिए जो स्पष्ट और अचूक हैं, जिन्हें अफवाहों और भ्रांतियों के रूप में आसानी से पहचाना जा सकता है, उन्हें तुरंत उजागर किया जाना चाहिए और उनका गहन-विश्लेषण किया जाना चाहिए ताकि हर कोई उनका भेद पहचान सके। यदि तुम किसी को एक या दो वाक्य बोलते हुए सुनने के बाद यह भेद नहीं पहचान सकते हो कि उसने जो कहा वह अफवाह है या भ्रांति, तो तुम्हें इससे सावधानी से निपटाना चाहिए और आँखें मूंद कर निष्कर्ष नहीं निकालने चाहिए। स्पष्ट रूप से भेद पहचानने के लिए उसके बोलना समाप्त करने तक प्रतीक्षा करो। एक बार यह पुष्टि हो जाए कि यह अफवाह है या भ्रांति, तो इस व्यक्ति को तुरंत रोका और प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। यदि बार-बार दी गई चेतावनियों और प्रतिबंधों के बावजूद भी वह नहीं रुकता है और लगातार अफवाहें फैलाता रहता है, तो उसे कलीसिया से बाहर निकाल दिया जाना चाहिए। क्या यह सिद्धांत और मार्ग स्पष्ट है कि कलीसिया में किसी व्यक्ति द्वारा अफवाहें फैलाने का पता चलने पर क्या करना चाहिए और कैसे अभ्यास करना चाहिए? (हाँ।)

अफवाहों की सामग्री में केवल वे प्रमुख मुद्दे ही शामिल नहीं होते हैं जिनका मैंने उल्लेख किया है; कुछ अफवाहें ऐसी भी होती हैं जो केवल मूलभूत जानकारी होती हैं, जैसे कि काट-छाँट के बारे में टिप्पणियाँ, या परमेश्वर का घर किसका उपयोग करता है और किसे हटा देता है, और अन्य असत्य कथन। कलीसिया के पूरी तरह से स्वच्छ होने से पहले, इसमें झूठे अगुआ, मसीह-विरोधी, विभिन्न बुरे लोग, भ्रमित लोग, मूर्ख लोग होते हैं जिनके पास आध्यात्मिक समझ नहीं होती है—इसमें सभी प्रकार के लोग होते हैं। झूठे और अफवाहें गढ़ने वाले लोग आम बात हैं, और लोगों के बीच तरह-तरह की अफवाहें और शैतानी बातें होती हैं। इन अफवाहों के बारे में, एक बात तो यह है कि लोगों को उनकी आलोचना करने के लिए सामान्य तर्कशक्ति की आवश्यकता होती है; दूसरी बात यह है कि परमेश्वर के कार्य, परमेश्वर की प्रबंधन योजना, स्वयं परमेश्वर और यहाँ तक कि परमेश्वर के घर के प्रशासनिक आदेशों और अन्य मामलों से जुड़ी अधिक गंभीर अफवाहों के लिए, लोगों को इनका भेद पहचानने के लिए सत्य की आवश्यकता होती है। बाहरी मामलों के लिए, लोगों को उनकी आलोचना करने के लिए सामान्य मानवता के तर्क की आवश्यकता होती है। उन मामलों के लिए जिनमें परमेश्वर का कार्य और सत्य शामिल होता है, लोगों को उनका भेद पहचानने के लिए सत्य वास्तविकता और आध्यात्मिक कद की आवश्यकता होती है। संक्षेप में, अफवाहें चाहे किसी भी प्रकार की हों, लोगों को उनका भेद पहचानना और अस्वीकार करना चाहिए, उन्हें स्वीकार नहीं करना चाहिए। बेशक, कुछ लोग सत्य का अनुसरण नहीं करते और केवल इन अफवाहों पर भरोसा करके जीते हैं। आज कोई व्यक्ति कोई बात फैला देता है और उससे एकतरफा बयार बहने लगती है, और फिर ये लोग उसका अनुसरण करते हैं। कल कोई दूसरी बात और बयार दूसरी ओर बहने लगती है, और फिर वे उसका अनुसरण करते हैं। उदाहरण के लिए, कोई अगुआ या कार्यकर्ता कहता है कि जो लोग गवाही लेख लिख सकते हैं उन्हें पूर्ण बनाया जा सकता है, इसलिए वे लेख लिखने का अभ्यास करते हैं, लेखन का अध्ययन करते हैं, और संसाधनों की खोज करते हैं। अगले दिन, कोई दूसरा अगुआ या कार्यकर्ता कहता है कि जो लोग अपना कर्तव्य निभाते हैं उन्हें बचाया जा सकता है, इसलिए वे स्वयं को कर्तव्य निभाने में व्यस्त रखना आरंभ कर देते हैं। लेकिन चाहे वे कितने भी व्यस्त क्यों न हो जाएं, वे सबसे महत्वपूर्ण बात के बारे में कभी चिंतित नहीं होते या उसमें कभी रुचि नहीं लेते : सत्य का अनुसरण करना और जीवन प्रवेश। कलीसिया में विभिन्न समूहों के बीच बनने वाली विभिन्न दुष्ट प्रवृत्तियाँ हमेशा कुछ लोगों को बहका देती हैं। कलीसिया के सदस्यों के बीच पैदा होने वाली विभिन्न अफवाहें हमेशा कुछ लोगों को गुमराह और प्रभावित करती हैं। हालाँकि, कुछ लोग ऐसे भी हैं जो उदासीन रहते हैं और सुनी हुई इन अफवाहों पर ध्यान नहीं देते हैं। वे परमेश्वर के घर द्वारा किए जा रहे किसी भी कार्य पर ध्यान नहीं देते हैं; वे परमेश्वर में विश्वास करने में रुचि नहीं रखते हैं और सच्चे विश्वासी नहीं हैं। ये लोग नाममात्र के विश्वासी हैं। लोगों का एक और समूह है जो कुछ हद तक बेहतर है; वे सत्य की तलाश कर सकते हैं और सत्य को स्वीकार सकते हैं, इसलिए वे इन नकारात्मक चीजों और नकारात्मक लोगों से प्रभावित नहीं होते हैं। केवल छोटे आध्यात्मिक कद वाले, बिना किसी आधार के, और जो सत्य का बिल्कुल भी अनुसरण नहीं करते हैं, वे हमेशा अलग-अलग कथनों और टिप्पणियों से प्रभावित होते हैं। क्योंकि ये लोग हमेशा साथ चलते हैं, इसलिए हमेशा कुछ लोग होते हैं जो माहौल को गर्म करने के लिए तरह-तरह की अफवाहें गढ़ते हैं। उन्हें लगता है कि सिर्फ यही बात परमेश्वर में विश्वास को जीवंत और रोमांचक बनाती है, न कि नीरस, और यही उनके लिए महत्वपूर्ण महसूस करने का एकमात्र तरीका है। ये चीजें अक्सर नए विश्वासियों के बीच होती हैं। अगर किसी कलीसिया में अफवाहें फैलाई जा रही हैं और लोगों को गुमराह किया जा रहा है, तो इसका मतलब है कि उस कलीसिया में सत्य समझने वाले लोग बहुत कम हैं। कलीसिया में, ऊपर बताए गए लोग उन सभी अफवाहों और भड़काने वाली बातों का अनुसरण करते हैं जो गुप्त मंशाएँ रखने वाले लोग फैलाते हैं, जो बहुत ही परेशानी वाली बात है। यह आंशिक रूप से खराब काबिलियत के कारण है और सत्य न समझने की एक वास्तविक अभिव्यक्ति भी है। जो लोग सत्य नहीं समझते हैं, वे जो कुछ भी कहते हैं, वह व्यावहारिक नहीं होता और अशुद्धियों से मिश्रित होता है; असल में यह सब झूठ के बराबर है। अगर इसमें मंशाएँ और उद्देश्य हैं, तो यह सिर्फ झूठ ही नहीं बल्कि शैतान की एक योजना और बुरे लोगों की साजिश भी है। इसलिए, सत्य के बिना लोग जो कुछ भी कहते हैं, वह शैतानी बातें होती हैं और उन पर विश्वास नहीं किया जाना चाहिए।

निराधार अफवाहें फैलाने के विषय पर यह संगति समाप्त होती है। अफवाहें फैलाने का यह मामला लोगों में सबसे ज्यादा प्रकाशित करने वाला है, और यह अलग-अलग लोगों के व्यवहार को स्पष्ट रूप से देखने देता है। अब तुम लोगों को समझ जाना चाहिए कि अफवाहों और उन्हें फैलाने वालों के प्रति कैसा रवैया रखना चाहिए, और उनसे निपटने के लिए किन तरीकों का इस्तेमाल करना चाहिए, है न? (सही है।) एक बार जब तुम लोग समझ जाते हो, तो फिर से ऐसे मामलों का सामना करते हुए तुम लोगों को उनकी तुलना हमारी संगति से करनी चाहिए, और इन मुद्दों को हल करने के लिए सबसे सही तरीकों का इस्तेमाल करना चाहिए। यह सिद्धांतों के अनुरूप है।

17 जुलाई 2021

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