अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (20)

मद बारह : उन विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों की तुरंत और सटीक रूप से पहचान करो, जो परमेश्वर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था में विघ्न-बाधा उत्पन्न करती हैं; उन्हें रोको और प्रतिबंधित करो, और चीजों को बदल दो; इसके अतिरिक्त, सत्य के बारे में संगति करो, ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोग ऐसी बातों के माध्यम से समझ विकसित करें और उनसे सीखें (भाग आठ)

हमने पिछली सभा में अगुआओं और कार्यकर्ताओं की बारहवीं जिम्मेदारी पर संगति समाप्त की। क्या तुम लोगों ने इस संगति की विषय-वस्तु से स्वयं की तुलना की है? क्या तुम इस संगति पर चिंतन-मनन करते रहे हो? जो लोग सत्य से प्रेम करते हैं और जिनमें न्याय की भावना और थोड़ी मानवता होती है, वे जब एक बार मेरी संगति सुन लेते हैं तो वे सत्य समझने के बाद उसका अभ्यास कर सकते हैं। सबसे पहले, वे जिन सत्यों को समझते हैं उनका मिलान अपनी स्थिति से कर सकते हैं, सत्य के आधार पर अपनी जाँच कर सकते हैं, अपनी समस्याओं की पहचान कर सकते हैं, और फिर इन समस्याओं का समाधान करने के लिए असल जिंदगी में और कर्तव्य निभाते समय कुछ मामलों और परिवेशों का इस्तेमाल कर सकते हैं। धीरे-धीरे जिस सत्य को वे समझते हैं, उसके संबंध में, वे उन सिद्धांतों को समझ लेते हैं जिनका लोगों को अभ्यास और पालन करना चाहिए। एक बात तो यह है कि उन्हें स्वयं के बारे में गहरी समझ और ज्ञान प्राप्त होता है, और दूसरी बात यह है कि वे अधिक व्यावहारिक और सटीक रूप से समझ पाते हैं कि सत्य के वास्तव में क्या कहता है और उसमें क्या निहित है। हालाँकि, जो सत्य से प्रेम नहीं करते और जो इससे विमुख हैं, भले ही वे कितना भी सत्य क्यों न सुन ले, उनमें कोई जागरूकता या बदलाव नहीं आता है। उनकी स्थिति, कर्तव्य निभाते समय उनके रवैये, उनके द्वारा साधे जा रहे लक्ष्यों, जीवनशैली, और एक व्यक्ति होने के सिद्धांतों में कतई कोई बदलाव नहीं होता है। वे अपनी इच्छा से कार्य करना और जीवन जीना जारी रखते हैं; इन सत्यों का उन पर कोई प्रभाव नहीं होता, और न ही वे अपने बारे में चिंतन करने और खुद को उस हद तक जानने में सक्षम होते हैं कि वे खुद से घृणा करने लगें। यदि वे खुद से घृणा करने की हद तक नहीं पहुँच सकते, तो वे निश्चित तौर पर सच्चा पश्चाताप नहीं कर सकते हैं। सच्चे पश्चाताप के बिना, कोई सच्चा प्रवेश नहीं होता; सच्चे प्रवेश के बिना निश्चित तौर पर स्वभाव में कोई बदलाव नहीं होता है। इसलिए, कई वर्षों से परमेश्वर में विश्वास करने वाले अनेक लोग यद्यपि वे सभा में भी शामिल होते हैं, कर्तव्य भी निभाते हैं, कई वर्षों से धर्मोपदेश भी सुन रहे होते हैं, और अक्सर भाई-बहनों के साथ बातचीत भी करते हैं, फिर भी उन्हें खुद की कोई समझ नहीं होती, उनमें कोई बदलाव दिखाई नहीं देता, और परमेश्वर में उनकी आस्था में कतई वृद्धि नहीं होती है। वे परमेश्वर का अनुसरण अपनी शुरूआती धारणाओं और कल्पनाओं के साथ और आशीर्वाद प्राप्त करने के इरादे और इच्छा के साथ करते हैं। भले ही उन्होंने कितने ही वर्षों से परमेश्वर में विश्वास किया हो, परमेश्वर में विश्वास करने का उनका नजरिया, चीजों के संबंध में उनके विचार, अनुसरण की उनकी पद्धतियाँ और उनके द्वारा साधे जाने वाले लक्ष्यों, और अपना कर्तव्य निभाते समय उनके रवैयों में कतई कोई बदलाव नहीं होता है। उनके वर्तमान प्रकाशन और उनके द्वारा जी गई अभिव्यक्तियाँ सत्य का अनुसरण न करने का परिणाम हैं। हमनें अगुआओं और कार्यकर्ताओं की बारह जिम्मेदारियों पर संगति की, फिर भी कुछ अगुआओं और कार्यकर्ताओं के व्यवहार में कतई कोई बदलाव नहीं हुआ है। अपने कर्तव्य निभाने और परमेश्वर की अपेक्षाओं के प्रति उनके रवैयों में कतई कोई बदलाव नहीं हुआ है। संगति की विषयवस्तु ने उन लोगों को स्मरण कराने, उनका निरीक्षण करने और उन्हें प्रोत्साहित करने का काम किया जो अपेक्षाकृत सत्य का अनुसरण करते हैं, तथा जिनमें कुछ मानवता है और जिनके अंतःकरण में थोड़ी जागरूकता है। हालाँकि, इसका उन चंद लोगों पर कोई प्रभाव नहीं हुआ जो ज्यादा हठी हैं, धूर्त हैं, और सत्य को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते हैं। ऐसा क्यों है? क्योंकि सत्य के प्रति इन लोगों का रवैया प्रतिरोध और घृणा का है। भले ही सत्य पर कितनी भी संगति की जाए, उनका रवैया वैसे का वैसा ही रहता है : “चाहे जो हो, मैं अपना कर्तव्य निभा रहा हूँ और परमेश्वर का अनुसरण कर रहा हूँ; मैं सचमुच परमेश्वर के लिए स्वयं को खपा रहा हूँ। चाहे मैं कैसा भी व्यवहार करुँ, जब तक मैं अंत तक दृढ़ रहूँगा, मुझे आशीर्वाद प्राप्त हो सकता है!” क्या इस तरह की सोच का कोई कारण है? उनमें सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है और वे पूरी तरह बेशर्म हैं, है न? क्या यह हठधर्मिता और किसी भी हालत में पश्चाताप करने से इंकार करना नहीं है? (हाँ, ऐसा ही है।)

अगुआओं और कार्यकर्ताओं की बारहवीं जिम्मेदारी है : “उन विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों की तुरंत और सटीक रूप से पहचान करो, जो परमेश्वर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था में विघ्न-बाधा उत्पन्न करती हैं; उन्हें रोको और प्रतिबंधित करो, और चीजों को बदल दो; इसके अतिरिक्त, सत्य के बारे में संगति करो, ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोग ऐसी बातों के माध्यम से समझ विकसित करें और उनसे सीखें।” पहले, हमने इस जिम्मेदारी की हमारी संगति को बारह मुद्दों में विभाजित किया था। इन बारह मुद्दों की विषयवस्तु मुख्य रूप से इस बात से जुड़ी है कि जब कलीसिया में गड़बड़ियाँ और विघ्न-बाधाऍं उत्पन्न करने वाले विभिन्न प्रकार के लोग, घटनाऍं और चीजें दिखाई देती हैं तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इन समस्याओं से कैसे निपटना और उन्हें कैसे संभालना चाहिए ताकि परमेश्वर के घर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था को सुरक्षित करने के प्रभाव को प्राप्‍त किया जा सके, और इस प्रकार उन भूमिकाओं और उन जिम्मेदारियों को पूरा किया जा सके जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को निभानी चाहिए। हमनें अगुआओं और कार्यकर्ताओं की बारहवीं जिम्मेदारी में इनमें से प्रत्येक मुद्दे की कुछ विशेष अभिव्यक्तियों पर संगति करते हुए, और कुछ विशेष उदाहरण उद्धृत करके प्रत्येक मुद्दे पर विस्तार से संगति की है। सिद्धांतों के संदर्भ में, जिस विषयवस्तु की संगति की जा रही है वो बेहद व्यावहारिक है। यद्यपि हो सकता है कि दिए गए उदाहरण हरेक चीज को शामिल न करें, लेकिन विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों के अनिवार्य मुद्दों की स्पष्ट रूप से संगति की गई है। विशेष रूप से, अगुआओं और कार्यकर्ताओं के रूप में तुम लोगों को कलीसिया में उत्पन्न होने वाली विभिन्न समस्याओं का समाधान करने के लिए सत्य के इस पहलु को समझना चाहिए। सबसे पहले, तुम्हें संगति की गई विषयवस्तु से उन वचनों को खोजने की जरूरत है जिनसे समस्याओं के सार का गहन-विश्लेषण किया जा सके और उन्हें समस्याओं से परस्पर संबंधित किया जा सके। समस्याओं के सार को समझने से तदनुरूप समाधान को ढूंढना और सत्य सिद्धांतों के अनुसार समस्याओं का समाधान करना आसान हो जाता है। समस्या का समाधान करने से पहले इसके सार को समझना महत्वपूर्ण है। एकबार समस्या के सार को समझ लेने के बाद, तुम्हें इस समस्या को संभालने के लिए सिद्धांतों को अच्छे से समझना चाहिए। दोनों पहलु अपरिहार्य हैं : एक है समस्या का सार, और दूसरा है ऐसी समस्याओं के समाधान के लिए सिद्धांत। ये वो चीजें हैं जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को स्पष्ट होनी चाहिए। केवल इन दोनों सिद्धांतों को समझकर ही तुम सभी समस्याओं का सटीक हल कर सकते हो और विभिन्न मदों में शामिल लोगों, घटनाओं और चीजों को उचित ढंग से संभाल सकते हो, बजाय इसके कि तुम विनियम लागू करो और तिल का ताड़ बना दो। फिलहाल, जब कुछ अगुआ और कार्यकर्ता खास मुद्दों को संभालते हैं, तो आंशिक रूप से वे विनियमों का पालन करते हैं, और आंशिक रूप से वे मुद्दों का सार समझने में विफल हो जाते हैं, जिससे आसानी से लोगों के साथ गलत व्यवहार होता है और वे मुद्दों से भटक जाते हैं। इसके लिए मुद्दों के विवरण, विशिष्टताओं और संदर्भ की स्पष्ट समझ जरूरी है। इसके अलावा, यह निर्धारित करने के लिए कि वह किस श्रेणी में आता है, उस व्यक्ति के सतत व्यवहार को देखना महत्वपूर्ण है। केवल इन पहलुओं पर महारत हासिल करके ही सिद्धांतों के अनुसार मुद्दों को संभाला जा सकता है। कुछ अगुआ और कार्यकर्ता अपना कार्य करते समय समस्याओं पर केवल विनियम लागू करते हैं और तिल का ताड़ बनाते हैं, जबकि वे इसमें शामिल लोगों के वास्तविक सार को ठीक से नहीं समझ पाते, क्या वे भले हैं या बुरे, क्या उनका व्यवहार आदतन है या बस कभी-कभार का गुनाह है। वे इन पहलुओं को नहीं पहचान पाते हैं, इसलिए उनसे ग‍लतियाँ होने की संभावना बहुत ज्यादा होती है। ऐसे मामलों में, यदि कल‍ीसिया मतदान करवा सकती है, तो इससे कुछ गलतियों से प्रभावी रूप से बचा जा सकता है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं के कार्य में इन विचलनों और गलतियों की मौजूदगी सर्वाधिक स्पष्ट तरीके से खुलासा कर सकती है कि उनमें विवेक है या नहीं और वे सिद्धांतों के अनुसार मामलों को संभाल सकते हैं या नहीं। इससे यह भी खुलासा होता है कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं के पास सत्य वास्तविकता है या नहीं। यदि कई वर्षों तक परमेश्वर में विश्वास करने वाला अगुआ या कार्यकर्ता इन वास्तविक समस्याओं को नहीं संभाल सकता है, तो यह पर्याप्त सबूत है कि यह अगुआ या कार्यकर्ता सत्य का अनुसरण करने वाला व्यक्ति नहीं है।

अगुआओं और कार्यकर्ताओं द्वारा निभाई जानेवाली जिम्मेदारियों, उनके द्वारा पालन किए जाने वाले सिद्धांतों, और उनके कार्य के दायरे को समझने के बाद, हमें संगति करने के इस चरण के विषय पर लौटना चाहिए : नकली अगुआओं को उजागर करना। यह मुख्‍य विषय है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं की बारहवीं जिम्मेदारी के संबंध में, हम आज जिस विषय की संगति करेंगे वो ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें नकली अगुआ अपने कर्तव्य की अवहेलना करते हैं, और वास्तविक कार्य न करने की उनकी अभिव्यक्तियाँ हैं। सबसे पहले, आओ बारहवीं जिम्मेदारी की विषयवस्तु पढ़ें। (संख्या बारह : उन विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों की तुरंत और सटीक रूप से पहचान करो, जो परमेश्वर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था में विघ्न-बाधा उत्पन्न करती हैं; उन्हें रोको और प्रतिबंधित करो, और चीजों को बदल दो; इसके अतिरिक्त, सत्य के बारे में संगति करो, ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोग ऐसी बातों के माध्यम से समझ विकसित करें और उनसे सीखें।) बारहवीं जिम्मेदारी कार्य के उन तीन पहलुओं का स्पष्ट रूप से उल्लेख करती है जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को समझने चाहिए। यह नकली अगुआओं को उजागर करने से कैसे संबंधित है? (सबसे पहले, हमें इस कार्य में अगुआओं और कार्यकर्ताओं की तमाम जिम्मेदारियों को समझना चाहिए। फिर, हम तुलना करते हैं यह देखने के लिए कि नकली अगुआओं ने इन जिम्मेदारियों को पूरा किया है या नहीं, और नकली अगुआओं की क्या अभिव्यक्तियाँ हैं; उन्हें इस मानक से मापना अपेक्षाकृत सटीक है।) सही कहा। कोई व्यक्ति नकली अगुआ है या नहीं, इसका भेद आँखों से उसका चेहरा देखकर नहीं पहचाना जाता है कि उसके नाक-नक्श अच्छे हैं या बुरे, न ही यह देखकर किया जाता है कि बाहर से उसने कितनी पीड़ा सही है या कितनी दौड़-धूप की है। इसके बजाय, तुम्हें यह देखना चाहिए कि वह अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ पूरी करता है या नहीं और वास्तविक समस्याएँ हल करने के लिए सत्य का उपयोग कर सकता है या नहीं। उनका आकलन करने का यह एकमात्र सटीक मानक है। कोई व्यक्ति नकली अगुआ है या नहीं, इसका गहन-विश्लेषण, पहचान और निर्धारण करने का यही सिद्धांत है। केवल इसी तरह से आकलन उचित, सिद्धांतों के अनुरूप, सत्य के अनुसार और सभी के लिए निष्पक्ष हो सकता है। नकली अगुआ या नकली कार्यकर्ता के रूप में किसी का चरित्रांकन पर्याप्त तथ्यों पर आधारित होना चाहिए। यह एक-दो घटनाओं या अपराधों पर आधारित नहीं होना चाहिए, अस्थायी भ्रष्टता के प्रकाशन को इसके आधार के रूप में तो बिलकुल भी इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। किसी के चरित्रांकन का एकमात्र सटीक मानक यह है कि क्या वह वास्तविक कार्य कर सकता है और क्या वह समस्याएँ हल करने के लिए सत्य का उपयोग कर सकता है, साथ ही क्या वह एक सही व्यक्ति है, क्या वह ऐसा व्यक्ति है जो सत्य से प्रेम करता है और परमेश्वर को समर्पित हो सकता है, और क्या उसमें पवित्र आत्मा का कार्य और प्रबुद्धता है। केवल इन्हीं कारकों के आधार पर किसी का एक नकली अगुआ या नकली कार्यकर्ता के रूप में चरित्रांकन सही ढंग से किया जा सकता है। ये कारक यह आकलन और निर्धारण करने के मानक और सिद्धांत हैं कि कोई व्यक्ति नकली अगुआ या नकली कार्यकर्ता है या नहीं।

तीन काम जो अगुआओं और कार्यकर्ताओँ को बारहवीं जिम्मेदारी के दायरे में करने चाहिए

I. विघ्न-बाधा उत्पन्न करने वाले विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों की तुरंत और सटीक रूप से पहचान करना

अगुआओं और कार्यकर्ताओं की बारहवीं जिम्मेदारी में तीन कार्य या तीन चरण शामिल हैं। इस कार्य को पूरा करने के लिए इन तीन चरणों का पालन करके, इस कार्य के सिद्धांतों को कायम रखा जाता है, और इस कार्य की जिम्मेदारियाँ पूरी की जाती हैं। ये तीन कार्य कौन से हैं? (पहला, उन विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों की तुरंत और सटीक रूप से पहचान करो, जो परमेश्वर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था में विघ्न-बाधा उत्पन्न करती हैं। दूसरा, उन्हें रोको और प्रतिबंधित करो, और चीजों को बदल दो। तीसरा, सत्य के बारे में संगति करो, ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोग ऐसी बातों के माध्यम से समझ विकसित करें और उनसे सीखें।) ये तीन कार्य बारहवीं जिम्मेदारी में अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए अपेक्षाऍं हैं। शुरूआत करें तो, अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए पहली अपेक्षा परमेश्वर के कार्य और कलीसिया के जीवन में गड़बड़ियाँ करने और विघ्‍न-बाधाऍं डालनेवाले विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों की शीघ्र और सटीक पहचान करना है। इसका उद्देश्य शीघ्रता और सटीकता से पहचान करना है, सुस्त और असंवेदनशीलता से जवाब देना नहीं, न ही अंधाधुंध और लापरवाही से निर्णय लेना है—अविवेकपूर्ण निर्णय स्वीकार्य नहीं हैं। कुछ अगुआ और कार्यकर्ता, अपनी खराब काबिलियत और भ्रम के कारण, छुटपुट मामलों पर लोगों की बेतहाशा काट-छाँट करते हैं और उन्हें उपदेश देते हैं, मनमाने ढंग से उन्हें नाम देते हैं, और सिद्धांतों का पालन किए बगैर आँख मूंदकर उन्हें परिभाषित करते हैं। इस तरह कार्य करना सत्य सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। इसलिए, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को परमेश्वर के घर में कम से कम विभिन्न लोगों, घटनाओं, और चीजों को पहचानने में सक्षम होना चाहिए। केवल विवेक से ही वे शीघ्रता और सटीकता से कलीसिया में उत्पन्न होनेवाली विभिन्न समस्याओं की पहचान कर सकते हैं। विभिन्न लोगों, घटनाओं, और चीजों को पहचानने की योग्यता हासिल करने के लिए सबसे पहली अपेक्षा क्या है? सबसे पहले, यह समझना आवश्यक है कि अलग-अलग तरह के लोगों के लिए परमेश्वर की अपेक्षाऍं क्या है, और साथ ही परमेश्वर अलग-अलग लोगों और उनमें विकसित होनेवाली अलग-अलग अवस्थाओं को कैसे परिभाषित करता है। इसके अतिरिक्त, इस बात का गहन-विश्लेषण करना महत्वपूर्ण है कि विभिन्न नकारात्मक अवस्थाऍं कैसे उत्पन्न होती हैं और उनके मूल क्या हैं। इसके अलावा, व्यक्ति को विभिन्न लोगों, घटनाओं, और चीजों के परमेश्वर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था पर पड़नेवाले प्रभाव को समझना चाहिए। इन शर्तों को पूरा करने का क्या आधार है? अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सबसे पहले कौन-सेकार्य का बीड़ा उठाना चाहिए? यदि अगुआ और कार्यकर्ता हमेशा अलग-थलग रहें, और नौकरशाहों की तरह काम करें और भाई-बहनों के साथ बातचीत नहीं करें, भाई-बहनों की विभिन्न अवस्थाओं को नहीं समझें, अलग-अलग तरह के लोगों के साथ निकट संपर्क नहीं रखें, और उनमें विस्तृत अवलोकन और गहन समझ की कमी हो, तो क्या यह स्वीकार्य है? निश्चित तौर पर यह स्वीकार्य नहीं है। कुछ अगुआ और कार्यकर्ता अक्सर अपने कमरों में छिपकर आध्यात्मिक भक्ति करने और अनुभवात्मक गवाही लेख लिखने का बहाना बनाते हैं, ताकि वे कलीसिया के कार्य को अनदेखा कर सकें और उसे समझ न सकें। सतही तौर पर, ऐसा प्रतीत होता है जैसे वे अपने कमरों में छिपकर कलीसिया के मामलों पर काम कर रहे हैं, लेकिन वास्तव में, उन्होंने खुद को कलीसिया के काम और परमेश्वर के चुने हुए लोगों से पहले ही अलग कर लिया है। क्या काम करने का यह तरीका कलीसिया के कार्य की विभिन्न मदों में मौजूद समस्याओं का समाधान कर सकता है? क्या इससे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को अपने कर्तव्य अच्छे ढंग से निभाने में मदद मिल सकती है? जब वे गवाही लेख लिखने के लिए अपने कमरों में छिपते हैं, तो क्या वे परमेश्वर के कार्य का अनुभव करते हैं? इसलिए, यह दृष्टिकोण अनुचित है। बारहवीं जिम्मेदारी के अनुसार, अगुआओं और कार्यकर्ताओं का पहला कार्य परमेश्वर के वचनों और सत्य सिद्धांतों के आधार पर कलीसिया के काम में गड़बड़ी करने और विघ्‍न-बाधा डालनेवाले विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों की शीघ्रता से पहचान करना है। कुछ लोग पूछते हैं, “क्या अगुआओं और कार्यकर्ताओं का कलीसियाई जीवन में गहराई से शामिल होना सिर्फ इसलिए है ताकि वे गड़बड़ियाँ करने और विघ्‍न-बाधाऍं डालनेवाले लोगों, घटनाओं और चीजों की शीघ्रता और सटीकता से पहचान कर सकें?” क्या यह समझ सही है? (नहीं।) यह एक विकृत समझ है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं का अपने कार्य के प्रति सही रवैया और दृष्टिकोण होना चाहिए और उन्हें इसमें गहरे तक पैठ बनानी चाहिए। केवल इस तरीके से वे समस्याओं की शीघ्रता और सटीकता से पहचान सकते हैं और उनका समाधान कर सकते हैं। यदि वे खुद को बुनियादी स्तर तक नहीं ले जाएँगे और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के साथ नहीं रहेंगे, तो कलीसिया के काम में सभी समस्याओं की पहचान करना मुश्किल होगा। यदि लोगों द्वारा रिपोर्ट करने और समाधान मांगने के बाद वे कुछ समस्याओं का समाधान कर सकते हैं, तो इस कार्य का प्रभाव बेहद सीमित होगा। अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए सबसे गलत तरीका है खुद को बंद कर लेना और बंद दरवाजों के पीछे काम करना, प्राचीन विद्वानों की तरह, जो स्वयं को पूरी तरह से ऋषियों की पुस्तकों के अध्ययन में समर्पित कर देते थे और बाहरी मामलों पर कोई ध्यान नहीं देते थे। अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए यह रवैया और जीवनशैली अस्वीकार्य है। तम अकेले अपने कमरे में रहो, धर्मोपदेशों को सुनो, परमेश्वर के वचनों को पढ़ो, आध्यात्मिक भक्ति के नोट लिखो, और धर्मोपदेश लिखो, लेकिन क्या कुछ धर्म-सिद्धांतों और वचनों को प्राप्त कर लेने का यह अर्थ है कि तुम सत्य समझते हो? क्या इसका यह अर्थ है कि तुम सत्य द्वारा उजागर किए गए लोगों के वास्तविक हालात और सत्य अवस्थाओं को समझते हो? (नहीं।) इसलिए, यद्यपि अगुआओं और कार्यकर्ताओं के जीवन में आध्यात्मिक भक्ति का जीवन अनिवार्य है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण चीज है कार्य करने की सही पद्धतियाँ और जीवनशैली।

II. बुरे लोगों को तुरंत रोकना और प्रतिबंधित करना

बारहवीं जिम्मेदारी में अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए रेखांकित दूसरी अपेक्षा है कि जब वे कलीसिया के काम में गड़बड़ी करने और विघ्न-बाधा उत्पन्न करने वाले विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों को पहचान लें, तो उन्हें शीघ्रता और सटीकता से निर्णय लेने में सक्षम होना चाहिए। उनके लिए विभिन्न लोगों और घटनाओं की प्रकृति की स्पष्ट रूप से पहचान करना और यह समझना जरूरी है कि वे कलीसियाई जीवन को कैसे प्रभावित करती हैं, क्या वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों की दशाओं, जीवन प्रवेश, और कर्तव्य निर्वहन को खतरे में डालती, बाधित करती या नुकसान पहुँचाती हैं, और क्या वे लोगों के कर्तव्य निर्वहन के परिणाम को प्रभावित करती हैं—अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इन मामलों का शीघ्रता और सटीकता से आकलन और मूल्यांकन करना चाहिए। यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है। यदि उनमें इसके लिए बुद्धि का अभाव है और उनमें सही काबिलियत नहीं है, तो वे कलीसिया के कार्य को करने में असमर्थ होंगे। इसके अलावा, अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों के प्रति तीव्र प्रतिक्रिया और विवेक रखना आवश्यक है। उदाहरण के लिए, जब कलीसिया में विवाद उत्पन्न होते हैं और विभिन्न गड़बड़ियाँ और विघ्न-बाधाऍं घटित होती हैं, तो तुम समस्या को पहचान नहीं सकते हो और मान लेते हो कि यह मामूली समस्या है, जिसके परिणामस्वरूप कई लोग प्रभावित होते हैं और अपने कर्तव्यों को सही से नहीं निभा पाते हैं। क्या ऐसा अगुआ और कार्यकर्ता सुन्न और अंधा नहीं है? (हाँ।) अगुआओं और कार्यकर्ताओं के साथ यह समस्या है। जब तुम्हें पता लगता है कि कोई व्यक्ति कलीसिया के काम में गड़बड़ी कर रहा और विघ्न-बाधा डाल रहा है, तो तुम्हें क्या करना चाहिए? सबसे पहले, तुम्हें मुद्दे की गंभीरता सुनिश्चित करने और ऐसे लोगों के सार का मूल्यांकन और आकलन करने और कलीसिया के काम और कलीसियाई जीवन पर ऐसी चीजों के प्रभाव और परिणामों को सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। ऐसे निर्णय का क्या आधार होना चाहिए? यह परमेश्वर के वचनों और सत्य पर आधारित होना चाहिए। कुछ लोगों का कहना है, “तुम इसे परमेश्वर के वचनों पर कैसे आधारित करते हो? मुझे यह बेकार की बात लगती है।” वास्तव में, यह बेकार की बात नहीं है। मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ? जब तुम्हारे सामने ऐसी चीजें आती हैं या तुम उनके बारे में सुनते हो, तो तुम्हें बस परमेश्वर के वचनों से उजागर हुए मुद्दों की उनसें तुलना करनी होती है। यह देखो कि परमेश्वर के वचन किस प्रकार ऐसे लोगों और मामलों को उजागर करते हैं और उनका गहन-विश्लेषण करते हैं, और परमेश्वर इन मुद्दों को किस प्रकार चित्रित करता है, जैसे कि वह किस प्रकार नकली अगुआओं और मसीह-विरोधियों को उजागर करता है, या किस प्रकार वह विभिन्न लोगों के भ्रष्ट स्वभावों को उजागर करता है, इत्यादि। फिर, तुम उन वचनों के अनुसार इन मामलों की तुलना करो और उनका गहन-विश्लेषण करो, और भाई-बहनों के साथ संगति करके और अपने खुद के अवलोकन से, तुम आखिरकार तुम्हें दिखाई देनेवाले लोगों, घटनाओं, और चीजों का सटीक आकलन और चित्रांकन कर सकते हो, और समनुरूपी समाधान तैयार कर सकते हो। जो लोग गड़बड़ी करने और विघ्न-बाधा डालने वालों के रूप में निर्धारित किए जाते हैं उनके साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए? लोग उन्हें पहचाने इसके लिए न केवल उन्हें उजागर और उनका गहन-विश्लेषण किया जाना चाहिए, अपितु उन्हें रोकना और प्रतिबंधित भी करना चाहिए, और और जिन लोगों में बार-बार चेतावनी देने के बावजूद भी कोई सुधार नहीं होता है, उन्हें हटा देना चाहिए। उन्हें रोकने और प्रतिबंधित करने की पद्धतियाँ और विशेष दृष्टिकोण क्या हैं? (उनकी काट-छाँट करो और उन्हें चेतावनी दो।) क्या काट-छाँट करना सही तरीका है? (हाँ।) उनके कार्यों को उजागर करना, उनकी सर्वाधिक गंभीर समस्याएँ बताना, उनके सार का गहन-विश्लेषण करना, और चेतावनियाँ देना—क्या ये सभी साध्‍य तरीके नहीं हैं? बेशक, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्हें परमेश्वर के वचनों को पढ़कर सुनाया जाए और उन्हें मनाने और उनका गहन-विश्लेषण करने के लिए परमेश्वर के वचनों को आधार के रूप में उपयोग किया जाए। यदि वे सत्य को स्वीकार नहीं करते हैं और अपनी गलतियों को मानने से दृढ़ता से इंकार करते हैं, तो अधिक गंभीर उपायों की जरूरत होगी। सबसे पहले, उन्हें चेतावनी दो, फिर कलीसिया के प्रशासनिक आदेशों का इस्तेमाल करके उन्हे लापरवाही से गलत काम करने और भाई-बहनों को बाधित करने से रोको। उनकी काट-छाँट और फिर उनकी निगरानी भी की जानी चाहिए। ये सभी तरीके आवश्यक हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कलीसिया का काम अच्छे ढंग से हो रहा है और लोगों को बचाया जा सके, और मार्गदर्शन करके उन्हें सही मार्ग पर लाया जा सके। इन तरीकों का इस्तेमाल करने से निश्चित रूप से अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे। एक बात तो यह है कि लोगों को समझाने और उन्हें उजागर करने के लिए उस सत्य का उपयोग करो जिसे लोग समझते हैं, उनके स्वभाव और सार का गहन-विश्लेषण करो, उनके कार्यों की प्रकृति और उनके कारण होने वाले गंभीर परिणामों को उजागर करो—लोग कम से कम इतना तो कर सकते हैं। अगला कदम है परमेश्वर के वचनों के अनुसार उनका गहन-विश्लेषण और उनकी पहचान करना, और तदनुसार उन्हें चित्रांकित करना। यदि वे सलाह मान लें, इसे स्वीकार करें, और पश्चाताप करें, तो बेशक वह सर्वोत्तम होगा। हालाँकि, यदि वे इसे स्वीकार नहीं करते और कलीसिया के काम में विघ्न डालना जारी रखते हैं, तो फिर क्या करना चाहिए? उस मामले में, विनम्र होने की कोई जरूरत नहीं है। परमेश्वर के घर के पास प्रशासनिक आदेश होते हैं, और इस अवसर पर, परमेश्वर के घर के प्रशासनिक आदेशों के अनुसार व्यक्ति को रोका और प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। यदि व्यक्ति नया विश्वासी है और उसका आध्यात्मिक कद छोटा है और वह सत्य नहीं समझता है, तो उसकी प्रेम से मदद की जा सकती है; तुम उसे स्वयं को जानने में मदद करने के लिए सत्य की संगति कर सकते हो। जो लोग सत्य को स्वीकार कर और पश्चाताप कर सकते हैं उन्हें रोकने, प्रतिबंधित करने, या काट-छाँट करने की कोई जरूरत नहीं है। यदि वे सत्य स्वीकार नहीं करते, तो यह छिछली नींव या छोटे आध्यात्मिक कद और सत्य को नहीं समझने का मामला नहीं है; यह उनकी मानवता की समस्या है। ऐसे लोगों के लिए, उन्हें रोकने और प्रतिबंधित करने के लिए प्रशासनिक प्रबंधन और प्रशासनिक दंड का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। अंतिम प्रभाव जो प्राप्त होता है वह है कलीसिया के कार्य और कलीसियाई जीवन की सामान्य व्यवस्था को कायम रखना, जिससे कलीसियाई जीवन व्यवस्थित तरीके से आगे बढ़ सके। इसे चीजों को पूरी तरह बदलना कहा जाता है, और अगुआओं और कार्यकर्ताओं को अपने कार्य में यह प्रभाव प्राप्त करना चाहिए। केवल इस प्रभाव को प्राप्त करके की वे अपनी जिम्मेदारी पूरी करते हैं। यदि अगुआ और कार्यकर्ता उत्पन्न होनेवाली समस्याओं को नजरंदाज करते हैं, और बस चंद शब्दों और धर्म-सिद्धांतों के साथ अनमने ढंग से जवाब देते हैं, या साधारण तरीके से चंद शब्दों के साथ कलीसिया के काम में गड़बड़ी करने और विघ्न-बाधा डालने वाले लोगों को डांटने और काट-छाँट करने से, क्या इस समस्या का समाधान हो सकता है? इससे न केवल समस्या का समाधान नहीं होता, अपितु कलीसिया में भी अत्यधिक अव्यवस्था फैल जाती है—अधिकांश लोग अपना कर्तव्य निभाने की इच्छा खो देते हैं और विभिन्न स्तरों पर अशांत रहते हैं, जिससे उनके कर्तव्य-निर्वहन पर असर पड़ता है। क्या ऐसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं ने अपनी जिम्मेदारी पूरी की है? (नहीं।) इससे पता चलता है कि ये अगुआ और कार्यकर्ता अपने काम में सक्षम नहीं हैं।

III. बुरे लोगों के बुरे कर्मों को उजागर करना ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोग भेद पहचानने की समझ विकसित करें और सबक सीखें

अगुआओं और कार्यकर्ताओं की बारहवीं जिम्मेदारी में तीसरी अपेक्षा यह है कि बुरे लोगों द्वारा उत्पन्न की गई विघ्न-बाधाओं से निपटते समय, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को परमेश्वर के चुने हुए लोगों के साथ मिलकर परमेश्वर के वचनों को खाना और पीना चाहिए ताकि वे आत्मचिंतन कर सकें और स्वयं को जान सकें, और वास्तविक बदलाव ला सकें। उन्हें परमेश्वर के चुने हुए लोगों को सत्य वास्तविकता में प्रवेश कराने, उनके भ्रष्ट स्वभावों को त्यागने और परमेश्वर का अनुसरण करने, परमेश्वर के प्रति समर्पण करने, और परमेश्वर की गवाही देने में सक्षम होना चाहिए। केवल इस तरह का कार्य परमेश्वर के इरादों के अनुरूप होता है। एक बात तो यह है कि इस तरह से काम करने वाले अगुआ और कार्यकर्ता समस्याओं का समाधान करने और कार्य करते समय स्वयं को सत्य से लैस करने में सक्षम होते हैं। इसके अलावा, समस्याओं का समाधान करने के लिए सत्य पर संगति करने के द्वारा वह भाई-बहनों को सत्य समझने, स्वयं के बारे में आत्मचिंतन करने और स्वयं को जानने, अपने भ्रष्ट स्वभावों को त्यागने, अपने कर्तव्य अच्छे से निभाने, लोगों को पहचानने और उनके साथ व्यवहार करने, परमेश्वर का अनुसरण करने और उसके प्रति समर्पित होने, दूसरों द्वारा विवश न होने, अपनी गवाही में दृढ़ रहने में सक्षम होने में सहायता करते हैं। यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं के कर्तव्यों को पूरा करना है; अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कलीसिया का कार्य करते समय समस्याओं को हल करने के लिए इस सिद्धांत का अभ्यास करना चाहिए। कलीसिया में भले ही कैसी भी समस्याएँ उत्पन्न हों, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सबसे पहले सत्य की तलाश करनी चाहिए, परमेश्वर के इरादों को समझना चाहिए, और साथ मिलकर परमेश्वर का मार्गदर्शन खोजना चाहिए। फिर उन्हें विभिन्न मौजूदा समस्याओं का समाधान करने के लिए परमेश्वर के प्रासंगिक वचनों को जानना चाहिए। समस्याओं का समाधान करने की प्रक्रिया में, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को भाई-बहनों के साथ परमेश्वर के प्रासंगिक वचनों के बारे में और ज्यादा संगति करनी चाहिए, और परमेश्वर के वचनों के आधार पर समस्याओं का सार समझना चाहिए। उन्हें परमेश्वर के चुने हुए लोगों से इन मुद्दों को पहचानने के लिए उनकी खुद की समझ पर संगति करानी चाहिए। एक बार जब अधिकांश लोग एक समान समझ और एकमत होने में समर्थ हो जाते हैं, तो समस्याओं का समाधान करना आसान हो जाता है। समस्याओं का समाधान करने में, घटनाओं का बार-बार जिक्र न करो, या मामूली ब्यौरों के पीछे मत भागो या समस्याओं में शामिल व्यक्तियों को दोष न दो। सबसे पहले, मामूली मुद्दों पर ध्यान न दो, इसके बजाय, स्पष्ट रूप से सत्य पर संगति करो, क्योंकि इससे समस्याओं की प्रकृति का खुलासा होगा। केवल इस तरह से परमेश्वर के चुने हुए लोगों की परमेश्वर के वचनों के आधार पर मुद्दों को पहचानने, लोगों, घटनाओं और उत्पन्न होने वाली चीजों से विवेक प्राप्त करने और उनसे व्यावहारिक सबक सीखने में मदद मिलती है। यह उन्हें उन वचनों और धर्म-सिद्धांतों की वास्तविक जीवन से तुलना करने का भी अवसर देता है जिन्हें वे आमतौर पर समझते हैं, जिससे वे सत्य को सही मायने में समझने में सक्षम हो जाते हैं। क्या अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यही काम नहीं करना चाहिए? परमेश्वर के चुने हुए लोगों का सत्य वास्तविकता में प्रवेश कराने में उनकी धारणाओं और उनकी कल्पनाओं और उनके भ्रष्ट स्वभावों का समाधान करने के लिए प्राथमिक तौर पर सत्य का उपयोग करना शामिल है। इस तरह से सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त होते हैं। जितने ज्यादा अगुआ और कार्यकर्ता समस्याऍं हल करने के लिए सत्य का उपयोग करने में सक्षम होंगे, उतना आसानी से परमेश्वर के चुने हुए लोग सत्य समझ सकते हैं। इस तरीके से, वे जान सकेंगे कि वास्तविक जीवन में परमेश्वर के वचनों का अभ्यास और अनुप्रयोग कैसे किया जाए। यदि अगुआ और कार्यकर्ता अक्सर वास्तविक समस्याओं को हल करने के लिए परमेश्वर के चुने हुए लोगों की अगुआई करते हैं, तो वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को सत्य वास्तविकता में लाने में सक्षम होंगे और परमेश्वर के वचनों को अपने खुद के दैनिक जीवन में समाहित भी कर पाएंगे। कुछ लोगों का कहना है, “क्या अगुआओं और कार्यकर्ताओं से यह अपेक्षा बहुत ज्यादा नहीं है? हममें इतनी समझ कैसे हो सकती है?” हो सकता है कि तुम्हारे पास पहले ऐसी समझ न रही हो, लेकिन क्या तुम यह परिणाम प्राप्त करने के लिए सीख नहीं सकते और अभ्यास नहीं कर सकते हो? यही तरीका है जिससे परमेश्वर का कार्य अगुआओं और कार्यकर्ताओं और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने में प्रशिक्षित करता है। यदि तुम्हें तरीका नहीं पता है, तो तुम सीख और अभ्यास कर सकते हो। चाहे कैसी भी समस्याऍं आएँ, तुम्हें परमेश्वर के वचनों के आधार पर आत्मचिंतन करना और स्वयं को जानना सीखना चाहिए; यह अभ्यास करने की प्रक्रिया है। कुछेक बार अभ्यास करने और परिणाम प्राप्त होने के बाद, तुम्हारे पास एक रास्ता होगा और तुम जान जाओगे कि सत्य का अभ्यास कैसे करना है। जब परमेश्वर कार्य करने लगता है, तो यही वह तरीका है जिससे वह सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने में लोगों की अगुआई करता है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को अ‍क्सर भाई-बहनों से बातचीत करनी चाहिए, समस्याओं का मिलकर सामना करना चाहिए, समस्याओं को मिलकर हल करना चाहिए, और कलीसिया का कार्य अच्छे से करना चाहिए। कलीसिया के अगुआओं को परमेश्वर के चुने हुए लोगों की अगुआई कैसे करनी चाहिए? प्रमुख तरीका है कि वास्तविक जीवन की समस्याओं की पहचान करने और उन्हें हल करने में परमेश्वर के चुने हुए लोगों की अगुआई करना, वास्तविक जीवन में परमेश्वर के वचन का अभ्यास और अनुभव करना ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोग न केवल सत्य का अभ्यास करने में सक्षम हों, अपितु नकारात्मक चीजों और नकारात्मक लोगों—नकली अगुआओं, नकली कार्यकर्ताओं, बुरे लोगों, छद्म-विश्वासियों, और मसीह-विरोधियों को पहचानने में भी सक्षम हों। विभिन्न लोगों को पहचानने का उद्देश्य समस्याओं का समाधान करना है। केवल बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों द्वारा उत्पन्न की गई बाधाओं का पूरी तरह समाधान करके ही कलीसिया का कार्य निर्विघ्न रूप से चल सकता है, और परमेश्वर की इच्छा को कलीसिया में कार्यान्वित किया जा सकता है। उसी समय, बुरे लोगों को संबोधित करना भी गलतियाँ करने या बुराई करने से बचने की चेतावनी का काम करता है, और व्यक्ति को परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने में सक्षम बनाता है। इस तरह, न केवल तुम अपना कर्तव्य निभाते हो और जीवन प्रवेश पाते हो, अपितु तुम सत्य भी समझते हो और सत्य वास्तविकता में प्रवेश भी करते हो। क्या यह एक तीर से दो निशाने लगाना नहीं है? जब तुम सत्य समझते हो और समस्याओं को हल कर सकते हो, तो यह प्रमाणित करता है कि तुम्हारे भीतर अगुआ या कार्यकर्ता बनने की काबिलियत है और तुम परमेश्वर के घर में विकसित किए जाने की अपेक्षाओं को पूरा करते हो; इस प्रकार तुम्हें वास्तविक जीवन में विभिन्न लोगों, घटनाओं, और चीजों को पहचानना सीखने में भाई-बहनों की अगुआई और मार्गदर्शन करना चाहिए; सत्य की समझ प्राप्त करनी चाहिए; यह जानना चाहिए कि कलीसिया के कार्य में विघ्न-बाधा डालने वाले सभी प्रकार के लोगों के साथ कैसा व्यवहार करना है; यह जानना चाहिए कि सत्य का अभ्यास कैसे करना है, सिद्धांतों के अनुसार विभिन्न लोगों के साथ कैसा व्यवहार करना है, और समस्याओं को हल करने के लिए सत्य पर संगति कैसे करनी है। यह तुम्हारी जिम्मेदारी है। इस तरीके से अभ्यास करके, तुम परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश करते हो। तुम सबक सीखोगे, विवेक प्राप्त करोगे, और वास्तविक जीवन में तुम्हारी राह में आनेवाले हर मामले में परमेश्वर के इरादों को समझोगे, तुम्हारे पास मामलों को संभालने, लोगों के साथ व्यवहार करने और अपने कर्तव्य करने के तरीके में अभ्यास के सिद्धांत होंगे। इस तरह, तुम सत्य का अभ्यास करने में सक्षम होगे। लोगों के लिए परमेश्वर की अपेक्षा ऐसे परिणाम प्राप्त करना है। इसलिए, चाहे जो भी मामले उत्पन्न हों, तुम्हें सदैव अपना सब‍क सीखना चाहिए और विवेक विकसित करना चाहिए; तुम उन्हें यूं ही हाथ से जाने नहीं दे सकते, न ही तुम अपना सबक सीखने और विवेक विकसित करने का कोई अवसर चूक सकते हो। चूंकि बात ऐसी है कि कुछ घटित हुआ है, इसलिए हमें इसे नकारात्मक, दोष देने वाले रवैये से नहीं देखना चाहिए; इसके बजाय, हमें इसका सामना सकारात्मक रवैये से करना चाहिए। यह किस तरह किया जाता है? समस्या का समाधान करने के लिए सत्य की तलाश करके। सभी लोगों में भ्रष्ट स्वभाव होते हैं, और उनकी मानवता भली या बुरी हो सकती है, तो लोगों के एकत्र होने पर समस्याऍं कैसे उत्पन्न नहीं होंगी? इस बात के मद्देनजर कि परमेश्वर ने तुम्हारे लिए यह परिवेश बनाया, उसने तुम्हें ऐसे लोग, घटनाऍं और चीजें दिखाईं जो तुम्हारे आसपास होती हैं, तो तुम्हारा रवैया कैसा होना चाहिए? तुम्हारे समक्ष इन विभिन्न समस्याओं को रखने के लिए परमेश्वर का धन्यवाद करो। वह तुम्हें सबको अभ्यास करने, सबक सीखने, और सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने का अवसर दे रहा है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं के रूप में, ऐसा अवसर प्रदान करने के लिए तुम्हें परमेश्वर का धन्यवाद भी करना चाहिए। चाहे तुम्हारे सामने जो भी समस्याऍं आएँ, तुम्हें अपने साथ-साथ भाई-बहनों को भी भेद पहचानने, सबक सीखने, और अंतर्दृष्टि प्राप्त करने के लिए अग्रसर करना चाहिए। इसके अलावा, तुम्हें अपने साथ-साथ उनको भी इस बात पर आत्मचिंतन करने और समझने की ओर ले जाना चाहिए कि समस्या के संबंध में लोगों की क्या धारणाऍं और कल्पनाऍं हैं, कौन से विकृत दृष्टिकोण मौजूद हैं, इस मामले का सामना करने से क्या सबक मिले हैं, कौन-सी गलत धारणाओं और दृष्टिकोण का समाधान हो गया है, और आखिरकार कौन-कौन-से सत्य समझ में आ गए हैं। व्यक्ति को एक भी मामला चूके बिना, इस तरह परमेश्वर के कार्य का अनुभव करना चाहिए। यदि तुमने कई वर्षों से परमेश्वर के कार्य का अनुभव किया है, तो तुम देखोगे कि परमेश्वर के सभी वचन सत्य हैं और वे लोगों को पूरी तरह से शुद्ध कर सकते हैं और उन्हें शैतान के प्रभाव से बचा सकते हैं। जब लोग सत्य समझ लेते हैं और उसे पा लेते हैं, तो उन्हें दिखाई देगा कि परमेश्वर के वचन पूरी तरह से निभाए जाते और पूरे किए जाते हैं। जब परमेश्वर के चुने हुए लोग परमेश्वर के वचनों का अभ्यास और अनुभव करने में सक्षम होते हैं, तो फिर वे परमेश्वर के वचनों को अपने वास्तविक जीवन में समाहित करने, लोगों और मामलों को सही से देखने के लिए परमेश्वर के वचनों का सही ढंग से उपयोग करने, और परमेश्वर के वचनों द्वारा लोगों तथा उनके द्वारा किए जाने वाले हरे‍क कार्य का मूल्यांकन करने में सक्षम हो जाएंगे, जो उन्हें दिखाई देता है या जो उनकी भावनाएँ हैं, उन पर भरोसा नहीं करेंगे, धारणाओं और कल्पनाओं पर तो बिल्कुल भी नहीं। एकबार जब वे ये सबक सीख लेते हैं, तो उनके लिए परमेश्वर के वचनों के अनुसार जीना आसान हो जाता है, और वे अक्सर परमेश्वर की उपस्थिति में जी सकते हैं। इस तरह, अगुआ और कार्यकर्ता अपने कार्य में पूरी तरह से मानक पर खरे उतरते हैं, और उनकी जिम्मेदारियाँ पूरी होती हैं। जब अगुआ और कार्यकर्ता अपना कार्य अच्छी तरह से करते हैं, केवल तभी परमेश्वर के चुने हुए लोगों को ये लाभ प्राप्त होते हैं। यदि, तुम्हारे सामने आने वाली अनेक स्थितियों में, तुम्हें यह पता नहीं है कि सबक सीखने के लिए भाई-बहनों को कैसे आगे बढ़ाना है और तुम विभिन्न लोगों, घटनाओं, और चीजों को पहचान नहीं सकते हो, तो फिर तुम अंधे, सुन्न, और मंद बुद्धि वाले भ्रमित व्यक्ति हो। ऐसी स्थितियों का सामना होने पर, न केवल तुम अभिभूत हो जाओगे, उनसे निपटने के तरीके से अनभिज्ञ होगे, और इस कार्य के अयोग्य होगे, बल्कि इससे इन लोगों, घटनाओं, और चीजों के प्रति भाई-बहनों का अनुभव भी प्रभावित होगा। यदि तुम इन चीजों से अनुचित ढंग से निपटते हो, कोई कार्य नहीं करते हो, सत्य पर संगति करने के लिए एक भी बात नहीं कहते हो जोकि तुम्हें कहनी चाहिए, और दूसरों के लिए कुछ भी लाभप्रद या शिक्षाप्रद नहीं कह सकते हो, तो जब बहुत-से लोग विघ्न-बाधाऍं पैदा करने वाले इन लोगों, घटनाओं और चीजों का सामना करते हैं, तो वे न केवल परमेश्वर की ओर से इन मामलों को स्वीकार करने, उनके साथ सकारात्मक और सक्रिय रूप से पेश आने में, और उनसे सबक सीखने में विफल रहेंगे, बल्कि परमेश्वर के प्रति उनकी धारणाएं और सतर्कता उत्तरोत्तर गंभीर होती जाएगी, साथ ही उनके मन में परमेश्वर के प्रति अविश्वास और संदेह भी बढ़ता जाएगा। क्या यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं में सत्य वास्तविकता की कमी और समस्याओं को हल करने के लिए सत्य का उपयोग करने में असमर्थ होने का परिणाम नहीं है? क्या यह संकेत नहीं है कि अगुआ और कार्यकर्ता वास्तविक कार्य नहीं कर सकते हैं? तुमने कलीसिया का कार्य सही ढंग से नहीं किया है, परमेश्वर ने जो आदेश तुम्हें सौंपा तुमने उसे पूरा नहीं किया है, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों को पूरा नहीं किया है, और भाई-बहनों को शैतान की ताकत से बाहर नहीं निकाला है। वे अभी भी भ्रष्ट स्वभावों और शैतान के प्रलोभनों में जीते हैं। क्या तुम परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश में विलंब नहीं कर रहे हो? तुम लोगों को गहराई तक नुकसान पहुँचा रहे हो! एक अगुआ या कार्यकर्ता के तौर पर, तुम्हें परमेश्वर के आदेश को स्वीकार करना चाहिए, भाई-बहनों को परमेश्वर के समक्ष ले जाना चाहिए, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने देना चाहिए ताकि वे सत्य की समझ हासिल कर सकें और सिद्धांतों के साथ अपने कर्तव्यों का पालन कर सकें, और इससे परमेश्वर में उनका विश्वास बढ़े। न केवल तुम इस तरह से अभ्यास करने में विफल रहे हो, अपितु तुमने बुरे लोगों द्वारा उत्पन्न विघ्नों को न तो रोका, न ही उनका समाधान नहीं किया, और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश को नुकसान पहुँचाया। कई वर्षों तक परमेश्वर में विश्वास करने के बाद भी न उन्होंने प्रगति की, न सत्य को समझा, न परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त किया, बल्कि उन्होंने परमेश्वर के बारे में कई धारणाएँ और गलतफहमियाँ पैदा कर लीं, जिनमें किसी भी प्रकार का वास्तविक समर्पण नहीं है। तो फिर क्या तुमने जो कुछ भी किया है, वह वास्तव में परमेश्वर के कार्य में गड़बड़ियाँ और व्यवधान उत्पन्न नहीं कर रहा है? तुम न केवल परमेश्वर के चुने हुए लोगों को सत्य वास्तविकता की ओर नहीं ले गए, उनकी रक्षा नहीं की है, बल्कि इसके बजाय उन्हें दुष्ट लोगों द्वारा बाधित होने दिया है और मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह और नियंत्रित होने दिया है। क्या तुमने ऐसे काम नहीं किए हैं जिनसे तुम्हारे अपने लोगों को ठेस पहुँची और तुम्हारे शत्रु प्रसन्न हुए? क्या तुम बुराई की मदद और उसे बढ़ावा नहीं दे रहे हो? तुमने इतने लंबे समय तक काम किया है; लेकिन, तुम न केवल सकारात्मक परिणाम प्राप्त करने में विफल रहे हो, बल्कि तुमने भाई-बहनों और परमेश्वर के बीच की दूरी को और भी अधिक बढ़ा दिया है, और ऐसा कर दिया है कि परमेश्वर के चुने हुए लोग सत्य को समझे बिना या बुरे लोगों की विघ्न-बाधाओं को पहचाने बिना वर्षों तक परमेश्वर पर विश्वास करते रहे हैं, जिससे उनके जीवन प्रवेश पर गंभीर प्रभाव पड़ा है। यहाँ समस्या क्या है? क्या यह हर तरह की बुराई करना नहीं है? चाहे कार्य करने वाले अगुआ और कार्यकर्ता कुछ भी करें, अगर वे परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार कार्य नहीं कर सकते और मामलों को सत्य सिद्धांतों के अनुसार नहीं संभाल सकते और समस्याओं को हल नहीं कर सकते, तो उनका प्रभाव खुद तक या सिर्फ कुछ लोगों तक ही सीमित नहीं रहेगा; यह कलीसिया के काम, कलीसिया में परमेश्वर के चुने हुए सभी लोगों के जीवन प्रवेश, परमेश्वर के चुने हुए लोगों द्वारा अपने कर्तव्यों को निभाने के परिणामों, राज्य के सुसमाचार के प्रसार के परिणामों पर नहीं पड़ेगा और यहाँ तक कि इस पर भी कि परमेश्वर के चुने हुए लोगों को बचाया जा सकता है या नहीं और परमेश्वर के राज्य में लाया जा सकता है या नहीं—इन सभी क्षेत्रों पर इसका प्रभाव पड़ सकता है। कुछ लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं लेकिन नकली अगुआओं और मसीह-विरोधियों का अनुसरण करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप उनका विनाश होता है। यह ठीक वैसा ही है जैसे धार्मिक मंडलियों में लोग पादरियों और एल्डरों द्वारा गुमराह और नियंत्रित होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप वे परमेश्वर के लौटने पर उसका स्वागत करने में विफल होते हैं और इसके बजाय आपदा में पड़ जाते हैं। यह सब स्पष्ट रूप से सत्य है। इसलिए, नकली अगुआओं और मसीह-विरोधियों को पहचानने में सक्षम होना परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश के लिए अत्यंत लाभदायक है!

अगुआओं और कार्यकर्ताओं की बारहवीं जिम्मेदारी उनसे तीन अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य करने की अपेक्षा करती है : पहला, उन्हें कलीसिया के कार्य में विघ्न-बाधाऍं उत्पन्न करने वाले विभिन्न लोगों, घटनाओं, और चीजों की पहचान करनी चाहिए। दूसरे, उनकी पहचान और चरित्रांकन कर लेने के बाद, उन्हें बुरे लोगों को तुरंत रोकना और प्रतिबंधित करना चाहिए; यह दूसरा कदम है। तीसरा, बुरे लोगों को रोकते और प्रतिबंधित करते और चीजों को बदलते समय, उन्हें बुरे लोगों के बुरे कार्यों को उजागर करने के लिए भाई-बहनों के साथ अक्सर परमेश्वर के वचनों की संगति करनी चाहिए, और इस मामले के संबंध में भाई-बहनों की प्रतिक्रियाओं और समझ की करीब से निगरानी करनी चाहिए, और अगर उनके कुछ गलत दृष्टिकोण हों तो उन्हें तुरंत सही करना चाहिए। बेशक, यदि सत्य का अनुसरण करनेवाले कुछ भाई-बहनों की अंतर्दृष्टि है, तो उन्हें और ज्यादा संगति करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। इसके अलावा, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कमजोर या छोटे आध्यात्मिक कद वाले लोगों की मदद भी करनी चाहिए, और उन्हें और ज्यादा बोलने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। इसका अभीष्ट परिणाम यह है कि भाई-बहनों को विवेक हासिल करने और होने वाली घटनाओं से सबक सीखने में मदद मिले, तथा वे लोगों और मामलों को पहचानना सीखें। लोगों और मामलों को पहचानने का उद्देश्य उन्हें विभिन्न प्रकार के लोगों को सही ढंग से पहचानने में सक्षम बनाना है, और सत्य सिद्धांतों के अनुसार, सही तरीकों का उपयोग करके उनके साथ व्यवहार करना है, साथ ही स्वयं भी सबक सीखना है। उन्हें कौन-से सबक सीखने चाहिए? उन्हें यह देखना चाहिए कि जब परमेश्वर इन लोगों की अवस्थाओं का गहन-विश्लेषण करता है और उन्हें उजागर करता है तो उनके प्रति परमेश्वर का रवैया कैसा होता है—इन लोगों के प्रति परमेश्वर के रवैये को जानना यह स्पष्ट करता है कि उसे किस प्रकार का व्यक्ति होना चाहिए और उसे किस तरह का रास्ता लेना चाहिए, है न? (हाँ।) संक्षेप में, परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए प्राप्त होने वाला अंतिम है परिणाम सत्य को समझना और वास्तविक जीवन के परिवेशों में वास्तविकता में प्रवेश करना, अपना कर्तव्य सामान्‍य तरीके से निभाने में सक्षम होना, और परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित रहना है। इस तरीके से, अगुआओं और कार्यकर्ताओं का कलीसिया के कार्य का निष्पादन परमेश्वर के इरादों के अनुरूप होगा। इस कार्य के निष्पादन के तीन चरणों के मद्देनजर, क्या अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए यह काम अच्छे ढंग से करना कठिन है? (नहीं।) यदि इंसानी दयालुता और काबिलियत पर भरोसा करें, तो इस कार्य को अच्‍छे ढंग से करना कुछ हद तक बहुत मेहनत का काम हो सकता है, क्योंकि तुम्हें परमेश्वर द्वारा अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं होगा और तुम अगुआओं और कार्यकर्ताओं की सही जिम्मेदारियों को पूरा नहीं कर पाओगे। भ्रष्ट मानवीय स्वभावों पर भरोसा करके क्या तुम इस कार्य को अच्छे ढंग से कर सकते हो? (नहीं।) स्पष्ट रूप से कहें, तो इस कार्य को करने के लिए भ्रष्ट स्वभावों पर भरोसा करने का मतलब है कि अपने खुद के विचारों के अनुसार कार्य करना। इसका क्या परिणाम होगा? (इससे कलीसिया में अव्यवस्था फैल जाएगी।) यह एक परिणाम है : जितना तुम कार्य करोगे, चीजें उतना अव्यवस्थित होती जाएंगी। अव्यवस्था क्या है? अव्यवस्था की विशिष्ट अवस्थाऍं क्या हैं? वे हैं, सभाओं में लोगों का सामान्य रूप से परमेश्वर के वचनों को खा और पी न पाना या सत्य पर संगति नहीं कर पाना है। बुरे लोग और छद्म-विश्वासी सदैव विघ्न उत्पन्न करते हैं, या जब हरेक स्वयं के नजरिये पर अडिग होता है और दल या गुट बनाने लगता है; तो निरंतर विवाद होते हैं; भाई-बहनों में पहचान कर पाने की कमी होती है और वे उलझन में पड़े होते हैं, आध्यात्मिक समझ वाले और सत्य से प्रेम करने वाले भी बाधित होते हैं और उनके जीवन का विकास नहीं होता है। ऐसी कलीसिया में, बुरे लोगों और छद्म-विश्वासियों की सत्ता है, और पवित्र आत्मा काम नहीं करता है। ऐसी कलीसिया में, चाहे जो हो जाए, सभी लोग एकसाथ बात करते रहते हैं, हर तरह के विचार व्यक्त करते हैं, और शायद ही कोई सही दृष्टिकोण पेश करता है। कलीसिया तुरंत कई दलों में बट जाती है, लोगों में कोई एकता नहीं होती, और पवित्र आत्मा के कार्य या मार्गदर्शन का कोई चिह्न नहीं होता है। लोग एक-दूसरे से सावधान रहते हैं और एक-दूसरे को संदेह से देखते हैं; दो या तीन समूह सत्ता और लाभ पाने के लिए होड़ लगाते हैं; हरेक अपने समर्थकों की तलाश करता है, और असहमति जताने वालों पर हमला करता है और उन्हें अलग-थलग करता है; और हर तरह के बुरे कर्म किए जा सकते हैं। अव्यवस्था का यह दृश्य होता है। यह स्थिति कैसे उत्पन्न होती है? क्या इसका कारण यह नहीं है कि अगुआ और कार्यकर्ता अपना कार्य करने में असमर्थ हैं? (हाँ।) अपने स्वयं के विचारों के अनुसार कार्य करने वाले अगुआओं और कार्यकर्ताओं के कारण ये परिणाम सामने आते होते हैं। अपने स्वयं के विचारों के अनुसार कार्य करने का क्या मतलब है? इसका मतलब है सत्य को नहीं समझना, सिद्धांतों की कमी, और भ्रष्ट स्वभावों और मानवीय धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर बिना सोचे-समझे कार्य करना, जिसकी वजह से कलीसिया में और भी ज्यादा अव्यवस्था फैल जाती है। शायद कुछ लोग कहें, “बुरे लोग कैसे कलीसिया में विघ्न उत्पन्न कर सकते हैं? मुझे मालूम नहीं कि कौन सही है और कौन गलत है, या किसका साथ देना है।” अन्य लोग कह सकते हैं, “कलीसिया कई गुटों में बटी हुई है। हमें कलीसियाई जीवन कैसे जीना चाहिए? प्रत्येक सभा निष्फल होती है और समय व्यर्थ होता है। इस तरह विश्वास करते रहने से कोई परिणाम नहीं निकलेंगे।” जब कलीसिया इतनी अव्यवस्थित हो जाती है कि परमेश्वर के चुने हुए लोग कलीसियाई जीवन जीने में असमर्थ हो जाते हैं, तो परमेश्वर इसे पूरी तरह ठुकरा देता है। इससे स्पष्ट दिखाई देता है कि जब तक बुरे लोगों और छद्म-विश्वासियों के पास सत्ता है, वे कलीसिया को नष्ट करेंगे। अच्छे लोगों और सत्य का अभ्यास करने वाले अगुआओं और कार्यकर्ताओं के बिना कलीसिया कार्य नहीं कर सकती है—उनके बिना, चीजों को नियंत्रित करना नामुमकिन होगा! यदि बुरे लोगों और छद्म-विश्वासियों को नहीं रोका जाता है, तो कोई कलीसियाई जीवन नहीं होगा, कलीसिया की सामान्य व्यवस्था पूरी तरह बिगड़ जाएगी, और अव्यवस्थित हो जाएगी। जब अगुआ और कार्यकर्ता अपना कार्य अच्छे ढंग से नहीं करते हैं तो उसका यह परिणाम निकलता है। यदि अगुआ और कार्यकर्ता सत्य को स्वीकार नहीं कर सकते, परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील नहीं हो सकते, या परमेश्वर पर भरोसा नहीं कर सकते, तो वे कलीसिया का काम अच्छी तरह से नहीं कर पाएंगे। वे कलीसिया में उत्पन्न होने वाली किसी भी समस्या या परमेश्वर के चुने हुए लोगों को आने वाली किसी भी मुश्किल का समाधान करने में असमर्थ होंगे। यदि सत्ता ऐसे अगुआ और कार्यकर्ताओं के पास हो तो क्या वे अच्छे परिणाम दे सकते हैं? वे कलीसिया में केवल अव्यवस्था फैला सकते हैं—अंततः, इस तरह की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। यह कलीसिया फिर वीरान हो जाएगी, एक ऐसा स्थान जहाँ शैतान की सत्ता है; यह बिगड़कर कुछ और बन जाती है। परमेश्वर इस कलीसिया को स्वीकार नहीं करेगा, और पवित्र आत्मा इसमें कार्य नहीं करेगा। ऐसी कलीसिया केवल नाममात्र होती है और इसे बंद कर दिया जाना चाहिए।

बारहवीं जिम्मेदारी के संदर्भ में नकली अगुआओं की अभिव्यक्तियों का गहन-विश्लेषण करना

I. नकली अगुआओं में कम काबिलियत होती है और वे विघ्न-बाधाओं की समस्याओं को पहचान नहीं पाते

अगुआओं और कार्यकर्ताओं को बारहवीं जिम्मेदारी में रेखांकित किए गए इन कार्यों को करना चाहिए; हमें अब और ज्यादा विशिष्ट उदाहरणों पर संगति नहीं करनी चाहिए। आज की संगति का विषय नकली अगुआओं द्वारा ये कार्य किए जाने के समय उनकी विशिष्ट अभिव्यक्तियों को उजागर करना, और यह पहचान करना है कि कौन-से व्यवहार नकली अगुआओं के सार को दर्शाते हैं और किन्हें इस प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है। यह आज की संगति का मुख्य विषय है। सबसे पहले, इस कार्य में अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए अपेक्षा है परमेश्वर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था में विघ्न-बाधा डालने वाले विभिन्न लोगों, घटनाओं, और चीजों की तुरंत पहचान करना। अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए तुरंत पहचान अपेक्षित मानक है। जब भी कुछ सामने आता है, जैसे ही किसी गड़बड़ी का हल्का सा भी संकेत मिलता है, जैसे कि बुरे लोगों के चालबाजियाँ शुरू करने के संकेत, या किसी के परेशानी पैदा करने के संकेत मिलते हैं, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इसे भांप लेना चाहिए और सतर्क हो जाना चाहिए। यदि वे सुन्न और मंदबुद्धि हैं, तो यह परेशानी वाली बात होगी। खासकर उन स्थितियों में जहाँ बुरे लोग विघ्न डाल रहे हैं, जैसे ही यह समस्या उभरनी शुरू होती है और यह अस्पष्ट होता है कि इन लोगों का वास्तव में क्या करने का इरादा है या स्थिति कैसी बनेगी—अर्थात्, जब अगुआ और कार्यकर्ता अभी भी इस मामले की असलियत नहीं जान पाते हैं—तो उन्हें आँख मूंदकर कार्य नहीं करना चाहिए या इन लोगों को समय से पहले ही सचेत नहीं करना चाहिए ताकि गलत निर्णय से बचा जा सके। हालाँकि, इसका यह अर्थ नहीं है कि स्थिति पर ध्यान न दिया जाए और उससे अनजान रहा जाए। इसके बजाए, इसका अर्थ है कि इंतजार करो और देखो कि स्थिति कैसी बनती है और इन लोगों के इरादे, लक्ष्य, और मंशा क्या हैं। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यह कार्य करने की जरूरत है। जब स्थिति एक हद तक विकसित हो जाती है और ये लोग नकारात्मकता निकालने लगते हैं और भ्रांतियाँ फैलाने लगते हैं जिससे परमेश्वर के चुने हुए लोग बाधित होते हैं, तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए। उन्हें बेहिचक इन लोगों के बुरे कर्मों को उजागर करने, उनका गहन-विश्लेषण करने, और उन पर प्रतिबंध लगाने के लिए आगे आना चाहिए, जिससे दूसरे लोगों को सबक सीखने और बुरे लोगों को पहचानने और उनकी असलियत जानने में मदद मिल सके। विघ्न-बाधाऍं उत्पन्न करने वाले विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों को तुरंत और सटीकता से पहचानने की यह प्रक्रिया है—अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए यह कार्य करने के यही मायने हैं। इस कार्य का मुख्‍य लक्ष्य कलीसिया के कार्य में विघ्न-बाधा डालने वाले विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों को पहचानना, और फिर उनका तुरंत समाधान करना है। यही है जो अगुआ और कार्यकर्ता हासिल कर सकते हैं। तो, इस कार्य में नकली अगुआओं की क्या अभिव्यक्तियाँ हैं? हम नकली अगुआओं का किस प्रकार गहन-विश्लेषण कर सकते हैं और उन्हें कैसे पहचान सकते हैं? स्पष्ट रूप से, नकली अगुआ कलीसिया के कार्य में बुरे लोगों द्वारा उत्पन्न की जाने वाली बाधाओं को तुरंत और सटीकता से नहीं पहचान सकते हैं। नकली अगुआओं द्वारा कलीसिया के कार्य के निष्पादन में यह सबसे स्पष्ट मुद्दा है—उन्हें बुरे लोगों द्वारा कलीसिया के कार्य में उत्पन्न की गई बाधाओं के संबंध में कोई विवेक नहीं होता है। ऐसा कहने का क्या कारण है कि नकली अगुआ समस्याओं की पहचान नहीं कर सकते या समस्या के सार की असलियत नहीं जान सकते? कुछ लोगों के क्रियाकलाप स्पष्ट रूप से कलीसिया के कार्य में विघ्न-बाधाऍं होते हैं, लेकिन नकली अगुआ समस्याओं को पहचान या समझ नहीं सकते हैं; वे अंधे होते हैं। कुछ लोग कलीसिया में नकारात्मकता निकालने लगते हैं, दूसरे लोगों को गुमराह और बाधित करते हैं। दूसरे गुट बना लेते हैं, गुप्त रूप से संदिग्ध लेनदेन में संलिप्त होते हैं, कुछ लोगों के बारे में उनकी पीठ पीछे राय बनाते हैं। फिर भी कुछ लोग लापरवाही से एक दूसरे को बहकाते हैं और एक दूसरे के साथ छेड़खानी करते हैं। नकली अगुआ इन चीजों को न देखने का नाटक करता हे; वह इन मुद्दों की गंभीरता और इस बात से पूरी तरह अनजान होता है कि अगर इन मुद्दों का समाधान नहीं हुआ तो कितने लोगों का सत्य का अनुसरण और कर्तव्य निर्वहन प्रभावित होगा, और साथ ही उनके क्या परिणाम होंगे, इसलिए वह उन्हें नजरंदाज कर देता है। जब कुछ लोग मुद्दों पर ध्यान देते हैं और उनके बारे में नकली अगुआ को रिपोर्ट करते हैं, तो शायद नकली अगुआ कहे, “वे सभी भाई-बहन हैं—कौन है जो कोई भ्रष्टाचार नहीं दिखाता? किसमें भावनाऍं और इच्छाऍं नहीं होतीं? दूसरों का हल्के में मूल्यांकन या निंदा न करो!” चाहे कलीसिया में कोई बात कितनी भी बेतुकी, दुष्ट या सत्य के विपरीत क्यों न हो, नकली अगुआ उसे देखता ही नहीं है। सभाओं के दौरान कुछ लोग हमेशा इस तरह की नकारात्मक बाते करते हैं जैसेकि, “वे कहते रहते हैं कि परमेश्वर का दिन निकट है—वह वास्तव में कब आएगा?” कुछ भाई-बहन अनजाने में इससे प्रभावित हो जाते हैं, लेकिन नकली अगुआ की क्या प्रतिक्रिया होती है? वे इसे सामान्य कमजोरी मानते हैं और यह देखने में विफल रहते हैं कि यह नकारात्मकता निकालना है, दूसरों को गुमराह और बाधित करना है। कुछ भाई-बहन अपने कर्तव्य निर्वहन में स्‍पष्ट रूप से प्रभावित होते हैं। वे अब सुसमाचार का प्रचार नहीं करना चाहते हैं और सकारात्मक या सक्रिय रूप से सभाओं में शामिल होना बंद कर देते हैं। हर बार जब सभा होती है, तो उन्हें शामिल होने के लिए बुलाना पड़ता है। फिर भी, नकली अगुआ इसे समस्या के रूप में नहीं देखता है। वह इस बात पर ध्यान नहीं देता कि यह समस्या उत्पन्न होने पर कलीसिया में हरेक में क्या बदलाव होते हैं। वह बस यांत्रिक रूप से विनियम के तौर पर सभाएँ आयोजित करता है, इस बात से अनजान कि पर्दे के पीछे क्या हो रहा है, लोगों की दशाओं में क्या बदलाव आ रहे हैं, लोगों की क्या समस्याएँ हैं, उन्हें किसने उत्पन्न किया, मुख्य अपराधी कौन हैं, समस्याओं की उत्पत्ति किससे हुई, और किन मुद्दों को हल करने की आवश्यकता है—वह इनमें से कुछ भी नहीं समझ पाता। क्या ऐसा इसलिए है कि वह अंधा है और वह चीजों का अनुभव नहीं कर पाता है? (नहीं।) चूंकि वह अंधा नहीं है, तो फिर ऐसा क्यों है कि जब कलीसिया में इतनी गंभीर गड़बड़ियाँ, बाधाऍं और स्पष्ट भ्रांतियाँ दिखाई देती हैं, तो भी वह उन्हें देखने या पहचानने में विफल होता है? स्पष्ट रूप से, यह अगुआ अंधा है और इसमें आध्यात्मिक समझ की कमी है। कुछ लोगों का कहना है, “भले ही वह इन समस्याओं को पहचान नहीं पाता है, वह सभाओं के दौरान परमेश्वर के वचन पढ़कर लोगों को सुना सकता है। इस बात की परवाह किए बिना कि जो वह पढ़ रहा है वह लोगों को समझ आता है या नहीं या इससे कोई परिणाम मिलता है या नहीं, वह लगातार परमेश्वर के वचनों को पढ़ता रहता है। केवल इस कारण से, उसे अच्छा अगुआ माना जा सकता है।” वह केवल परमेश्वर के वचनों को पढ़ने पर ध्यान देता है—यदि इससे कोई परिणाम प्राप्त नहीं होते, तो क्या यह महज औपचारिकता नहीं है? यदि वह समस्याओं का समाधान नहीं कर सकता, तो लोगों को सभाओं से क्या लाभ हो सकता है? तो क्या यह अगुआ एक नकली अगुआ है? (हाँ।) इस कार्य को करते समय नकली अगुआ की एक अभिव्यक्ति अंधापन है। वह अंधा है—इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि समस्या उसके सामने कितनी स्पष्ट है या उसके आसपास घटित हो रही हो, वह उसे देख या पहचान नहीं सकता। बाहरी तौर पर, ऐसा लग सकता है कि वह परमेश्वर के वचनों को औसत व्यक्ति से अधिक संजोता है, लेकिन वह यह नहीं समझता कि परमेश्वर के वचन किस बारे में हैं, वह किन लोगों का उल्लेख करता है, या वह किन स्थितियों को संबोधित करता है—वह परमेश्वर के वचनों को वास्तविक जीवन से नहीं जोड़ सकता है। तो, वह किस समझ की संगति करता है? क्या उसकी संगति सत्य के अनुरूप होती है? क्या वह वास्तविक समस्याओं का समाधान कर सकता है? (नहीं।) जब वह प्रचार करता है, केवल खोखले व्याख्यान देता है, जैसेकि उसे सत्य की बड़ी समझ हो, लेकिन वह कलीसिया में बुरे लोगों द्वारा उत्पन्न किए जानेवाले स्पष्ट विघ्नों को पहचान नहीं सकता, इसके बजाय वह नाटक करता है जैसे कुछ हुआ ही न हो। क्या यह दर्शाता है कि वह सत्य समझता है और उसके पास विवेक है? क्या उसे परमेश्वर के वचनों की वास्तविक समझ है? (नहीं।) यदि वह सामान्य रूप से परमेश्वर के वचनों को पढ़ सकता है, तो वह समस्याओं को देखने और उनका समाधान करने के लिए उनका उपयोग क्यों नहीं कर सकता? ऐसा क्यों है कि जब वह परमेश्वर के वचनों को पढ़ता है, तो उसका मन कभी नहीं खुलता? परमेश्वर के वचनों को पढ़ने समय उसमें उत्सुकता दिखाई क्यों नहीं होती? इस मुद्दे की जड़ क्या है? वह अंधा क्यों है? उसके अंधेपन का क्या कारण है? (ऐसा इसलिए है क्योंकि उसमें परमेश्वर के वचनों को समझने की योग्यता नहीं है और उसकी काबिलियत बहुत खराब है।) सही कहा। ऐसा नहीं है कि वह आंखों से अंधा है, लेकिन उसका दिल अंधा है। अंधा दिल होने का क्या मतलब है? इसका मतलब है बहुत खराब काबिलियत और परमेश्वर के वचनों को समझने की योग्यता की कमी। चाहे वह परमेश्वर के कितने भी वचन क्यों न पढ़ ले, वह इन्हें केवल सतही तौर पर समझता है। वह इन्हें विभिन्न लोगों, घटनाओं, चीजों और स्थितियों से सम्बद्ध नहीं कर सकता जो कलीसिया में दिखाई पड़ती हैं, न ही वह सत्य सिद्धांतों के अनुसार विभिन्न समस्याओं से पेश आ सकता है, उन्हें संभाल और उनका समाधान कर सकता है। यह उसके अंधेपन का मूल है-उसमें खराब काबिलियत है और वह इस कार्य के लायक नहीं है। इसलिए, चाहे वह कितनी भी लगन से पढ़ाई करे और कठोर प्रशिक्षण ले, और लंगड़ा घोड़ा कितने भी पहले दौड़ शुरू करे, क्या वह अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों को पूरा कर सकता है? वह पूरा नहीं कर सकता। ये लोग बहुत दयनीय हैं। चाहे वे अपने आपको वचनों और धर्म-सिद्धांतों से कितना भी सज्जित कर लें, वे अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ पूरी नहीं कर सकते या इस कार्य को अंजाम नहीं दे सकते हैं।

अभी-अभी हमने इन नकली अगुआओं की अभिव्यक्ति के बारे में संगति की, जो यह है कि वे न तो यह देख सकते हैं कि बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों के कार्यकलापों से कलीसिया में बाधाएँ उत्पन्न होती हैं, न ही वे बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों के सार की असलियत जान पाते हैं। ऐसे मामलों का सामना करते समय जहाँ बुरे लोग विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न करते हैं, कभी-कभी उन्हें मामूली संकेत मिल सकता है, या, चाहे फिर यह उनके अनुभव, एहसास या सहज बोध से हो, उन्हें बस समझ आ जाता है कि कुछ बिल्कुल ठीक नहीं है, कि उस व्यक्ति के भाव, उसकी आंखों की अभिव्यंजना, और उसके शब्दों में कुछ असामान्य बात है। उन्हें थोड़ा एहसास हो सकता है, लेकिन वे बहुत सारी चीजों की असलियत नहीं जान पाते हैं, और वे अधिकांश समस्याओं को पहचान पाने में विफल रहते हैं। किस कारण से वे समस्याओं के सार की असलियत नहीं जान पाते हैं? इसमें एक दूसरा मुद्दा शामिल है। वे इतने मेहनती हैं, कि अपने कमरों में रहकर सारा दिन धर्मोपदेश लिखते हैं, अपनी आध्यात्मिक भक्ति के बारे में नोट बनाते हैं, परमेश्वर के वचनों की अपनी समझ और अनुभवों को लिखते हैं, भजन सीखते हैं, प्रतिदिन कितनी बार प्रार्थना करनी है, परमेश्वर के कितने वचनों को पढ़ना है, और कितने धर्मोपदेश सुनने हैं, और कितने समय में अनुभवजन्य गवाही लेख लिखना है उसके लक्ष्य तय करते हैं—वे इन सभी कार्यों को पूरा करते हैं, तो ऐसा क्यों है कि चीजों के घटित होने पर वे अभी भी उनकी असलियत नहीं जान पाते हैं? उन्हें सत्य नहीं समझते। वे केवल वचनों और धर्म-सिद्धांतों को गंभीरता से बोल सकते हैं और वे वास्तविक समस्याओं को हल नहीं कर सकते हैं। कुछ लोग हमेशा दूसरे लोगों को गुमराह करने के लिए वचन और धर्म-सिद्धांत बोलते हैं, और नकली अगुआ इसकी असलियत नहीं जान पाते हैं। हालाँकि कभी-कभी उन्हें समझ आ जाता है कि कुछ गलत है, कोई समस्या हो सकती है, यह देखकर कि वे लोग बुरे दिखाई नहीं पड़ते हैं, वे फिर भी भ्रमित तरीके से मुद्दे को जाने देते हैं। वे ऐसी समस्याओं का भेद पहचानने में सत्य सिद्धांतों की खोज करने में समर्थ नहीं होते, और भले ही उन्होंने ऐसे लोगों की स्थिति और सार को उजागर करने वाले परमेश्वर के वचनों को पढ़ा हो, उन्हें यह जानकारी नहीं होती कि उन्हें इन स्थितियों से कैसे जोड़ा जाए। जब वे प्रयास करना चाहते हैं, तो उन्हें पता नहीं होता कि इसे स्पष्ट कैसे किया जाए। वे समस्या के सार को समझाए बिना, और इस बारे में स्पष्ट रूप से बताए बिना लंबे समय तक बातचीत करते हैं कि ऐसे लोगों की समग्र अभिव्यक्तियाँ कैसी है, उनकी मानवता, कोशिश, उनका कर्तव्य निर्वहन, और परमेश्वर के लिए खुद को खपाने की महत्वाकांक्षाएँ कैसी हैं, या सत्य के प्रति उनका रवैया कैसा है, और क्या वे ऐसे लोग हैं जो सत्य को स्वीकार करते हैं। ये नकली अगुआ इन मामलों की असलियत नहीं जान सकते या इन मामलों को स्पष्ट रूप से समझा नहीं सकते हैं। भले ही उन्हें पता चल जाए कि समस्या है, वे अपनी बात स्पष्ट किए बिना, बड़बड़ाते हैं, और बहुत कुछ बोलते हैं। उनके श्रोताओं को भेद पहचानने, उनकी बातों से प्रमुख मुद्दों को निकालने, और उनके शब्दों का विश्लेषण करने में समर्थ होना चाहिए ताकि वे उनके द्वारा पूछे जानेवाले सवालों को जान सकें, यह जान सकें कि जिस व्यक्ति का वे वर्णन कर रहे हैं उसकी समग्र दशा कैसी है, और अंततः उस व्यक्ति के सार का निर्धारण कर सकें—कि वह व्यक्ति बुरा है या भला, कि वह सत्य की तलाश करने वाला कोई व्यक्ति है या सिर्फ एक मजदूर है। जब तुम किसी नकली अगुआ को किसी मुद्दे के बारे में बताने या कोई सवाल पूछने के लिए कहते हो, तो वह कभी भी मुद्दे का मूल और सार या उसके मूल बिंदु को स्पष्ट रूप से नहीं बता पाता है। संक्षेप में, नकली अगुआ का उन समस्याओं के प्रति कोई विशेष रवैया नहीं होता है जिनकी वह असलियत नहीं जान पाता है, और जिन मामलों में उसे कुछ संकेत मिल सकते हैं, वह अभी भी इन समस्याओं के सार की असलियत नहीं जान पाता है। यहाँ तक कि जब कुछ लोग नकारात्मकता जाहिर करते हैं और धारणाएँ फैलाते हैं, जिसका कलीसिया के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, वह इसकी भी असलियत नहीं जान पाता है। वह किसी समस्या के सतही स्तर या उसके शुरूआती चरण से उसके सार की असलियत नहीं जान पाता है या उसका निर्धारण नहीं कर पाता है। बेशक, समस्या के सार की असलियत जानना कोई आसान काम नहीं है। कलीसिया के कार्य में सबसे महत्वपूर्ण चीज परमेश्वर के वचनों के आधार पर विभिन्न लोगों के सार की असलियत जानना है। जो लोग सत्य समझते हैं वे इसे पा सकते हैं, लेकिन नकली अगुआ और नकली कार्यकर्ता इसे नहीं पा सकते। जब वे मसीह-विरोधियों को कलीसिया के कार्य में विघ्न डालते हुए देखते हैं, तो वे समस्या के सार की असलियत नहीं जान पाते हैं और मसीह-विरोधियों का यह कहते हुए बचाव भी करते हैं, “वे बस कुछ भ्रष्ट स्वभावों का खुलासा कर रहे हैं, और थोड़े अहंकारी, स्वेच्छाचारी और मनमाने हैं। वे अभी भी अपना कर्तव्य निभाने के दौरान कठिनाई झेल सकते हैं। इसलिए हमें उनकी आलोचना या निन्दा नहीं करनी चाहिए; हमें इस मामले को बड़ा मुद्दा नहीं बनाना चाहिए।” दूसरे लोग पूछते हैं, “यदि वे अपना कर्तव्य निभाने के दौरान कठिनाई झेल सकते हैं, तो क्या वे सत्य का अनुसरण करनेवाले लोग हैं? क्या उन्होंने पर्दे के पीछे लोगों को उकसाया, गुमराह किया, या फुसलाया है? क्या उन्होंने अपनी बड़ाई और अपने लिए गवाही दी है?” नकली अगुआ इन मामलों की असलियत नहीं जान पाते हैं। ऐसे भी कुछ लोग हैं, जो परमेश्वर की गवाही देने के नाम पर, जानबूझकर परमेश्वर को बदनाम करते हैं और ईशनिंदा करते हैं और परमेश्वर के बारे में अपनी धारणाओं का गहन-विश्लेषण करते हुए और अपनी धारणाओं को जानने की बात करते हुए जानबूझकर अफवाहें फैलाते हैं। उन्हें ऐसा करते हुए सुनने के बाद, नकली अगुआओं को लग सकता है कि उन्होंने जो कहा वह थोड़ा अलग है, लेकिन वे मुद्दे की गंभीरता की असलियत नहीं जान पाते हैं, और न ही वे इन शब्दों के नकारात्मक प्रभाव और गंभीर परिणामों को देख पाते हैं। अतः, ठीक नकली अगुआओं की नाक के तले होनेवाली विभिन्न विघ्न-बाधाओं पर या तो वे बिल्कुल देख ही नहीं पाते, या अगर देख भी लिया तो उन्हें यह जानकारी नहीं होती कि उनका वर्णन कैसे करना है या परमेश्वर के वचनों और इन स्थितियों के बीच संबंध कैसे जोड़ना है। ये बेहद स्पष्ट मामले उनके लिए गड़बड़झाला बन जाते हैं। नकली अगुआ मूर्ख होते हैं। कलीसिया में, वे यह भेद नहीं पहचान पाते कि कौन लोग सत्य की तलाश कर रहे हैं, और कौन लोग सच्चे विश्वासी हैं जो सत्य को स्वीकार कर सकते हैं। वे यह भेद नहीं पहचान पाते कि कौन-से लोग सत्य का अनुसरण नहीं करते हैं लेकिन अभी भी श्रम करने में समर्थ हैं, और अधिकांशतः मोल चुकाने और सिद्धांतों के अनुसार कार्य करने के इच्छुक हैं, और कभी-कभी नकारात्मक शब्द बोलने के बावजूद अपेक्षाकृत आज्ञाकारी और समर्पित हैं। वे यह भेद भी नहीं पहचान पाते हैं कि कौन-से लोग पूरी तरह से नकारात्मक भूमिकाएँ निभाते हैं, नकारात्मक बातें करते हैं और दूसरों का आकलन करते हैं, और हमेशा परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं और परमेश्वर के घर में कार्य की सभी मदों से संबंधित नियमों और अपेक्षाओं के बारे में धारणाएँ रखते हैं, और इन चीजों को स्वीकार करने की बजाय प्रतिरोध का रवैया रखते हैं, और इन चीजों के प्रति विशेष तौर पर असम्मानजनक होते हैं, इस हद तक कि वे उनका आकलन भी करने लगते हैं। संक्षेप में, नकली अगुआ किसी भी प्रकार के लोगों की असलियत नहीं जान पाते हैं। इससे भी बुरी बात यह है कि कलीसिया में कुछ लोग ऐसे हैं जो अक्सर गलत धारणाएँ फैलाते हैं, नकारात्मक बातें करते हैं और सभाओं के दौरान परमेश्वर के वचन भी नहीं पढ़ते हैं। वे हमेशा गुट बनाकर ईर्ष्या और कलह में लिप्त रहते हैं। कुछ लोग हमेशा अगुआ बनना चाहते हैं, हमेशा कलीसिया से लाभ कमाना चाहते हैं, और हमेशा परमेश्वर के घर की संपत्ति हड़पना चाहते हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो बाहरी तौर पर कुछ अच्छे व्यवहार के नजर आते हैं लेकिन अपने कर्तव्यों में कोई सकारात्मक भूमिका नहीं निभाते हैं। नकली अगुआ इन नकारात्मक चरित्रों की असलियत नहीं जान पाते हैं और उनका वर्गीकरण नहीं कर पाते हैं। वे यह असलियत भी नहीं जान पाते हैं कि ये लोग कौन-सा मार्ग ले रहे हैं, उनका सार क्या है, और वे सत्य को स्वीकार करनेवाले लोग हैं या नहीं। क्या नकली अगुआओं की काबिलियत के साथ यह एक समस्या नहीं है? इन नकली अगुआओं की काबिलियत अत्यधिक खराब होती है। वे जो कुछ भी करते हैं उसे पूरी तरह गड़बड़ कर देते हैं, और जिस किसी काम को वे अपने हाथ में लेते हैं वह पूरी तरह से अव्यवस्थित हो जाता है।

कुछ लोग परमेश्वर के घर के लिए चीजें खरीदते समय बिना सिद्धांतों के चढ़ावे पर खर्च करते हैं, और बिना अनुमति प्राप्त किए मनमाने ढंग से चीजें खरीदते हैं। नकली अगुआ, इसे देखकर, यहाँ तक कहते हैं, “हालाँकि उन्होंने थोड़ा ज्यादा पैसा खर्च किया, लेकिन उनके इरादे अच्छे थे। परमेश्वर के घर के लिए चीजें खरीदते समय, हमें सबसे अच्छी चीजें खरीदनी चाहिए; यह पैसे की बरबादी नहीं है। क्या चढ़ावे का इस तरह से इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए?” क्या उनके शब्दों में सिद्धांत हैं? (नहीं।) तो, ये किस प्रकार के शब्द हैं? क्या वे भ्रमित नहीं हैं? सिद्धांतहीन शब्द भ्रमित शब्द होते हैं, और आधारहीन शब्द भी भ्रमित शब्द होते हैं। कुछ लोग कलीसियाई जीवन के दौरान अक्सर शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलते हैं; वे विशेष रूप से वाक्पटु होते हैं, और संरचित तरीके से बात करते हैं जो काफी सुव्यवस्थित लगता है, और उनके पास बोलने का उत्कृष्ट कौशल होता है। ऐसे लोगों के बारे में नकली अगुआ क्या कहता है? “हमारा कलीसियाई जीवन पूरी तरह से फलाँ-फलाँ पर निर्भर करता है। वे सबसे ज्यादा स्पष्ट वक्ता हैं और उन्हें परमेश्वर के वचनों की सबसे ज्यादा समझ है। उनके बिना, हमारा कलीसियाई जीवन अविश्वसनीय रूप से रूखा और अरुचिकर हो जाएगा।” उन्हें तो पता ही नहीं होता कि ये लोग केवल शब्द और धर्म-सिद्धांत बोल रहे हैं। चाहे कोई व्यक्ति उन्हें कितना भी सुन ले, वह कोई शिक्षा नहीं पाएगा, सत्य नहीं समझेगा, या यह नहीं जान पाएगा कि अपनी स्थिति को समझने और अपनी समस्याओं को हल करने के लिए सत्य को स्वयं से कैसे जोड़ा जाए। नकली अगुआओं की चापलूसी और उकसावे के तहत, शब्द और धर्म-सिद्धांत बघारने वाले लोग, जो सुर्खियों में रहना पसंद करते हैं, और यहां तक कि जो लोग अक्सर अपने भाषणों में विषय से भटक जाते हैं, और प्रत्येक सभा में अनावश्यक, निरर्थक और व्यापक विषयों पर बड़बड़ाते रहते हैं, उन सभी को बोलने का अवसर दिया जाता है। नकली अगुआ उनका भेद पहचानने में असमर्थ होते हैं और उन्हें प्रतिभावान लोग भी मानते हैं, और यह कहते हुए उनकी चापलूसी करते हैं, “तुम लोग इतना अच्छा बोलते हो; तुम अनुभवजन्य गवाही लेख क्यों नहीं लिखते हो? कितनी शर्म की बात है!” कलीसिया में, विश्वविद्यालय के उन छात्रों, प्रोफेसरों और बुद्धिजीवियों को नकली अगुआओं द्वारा खजाना माना जाता है। वे कहते हैं, “ये बुद्धिजीवी और प्रोफेसर प्रतिभावान व्यक्ति हैं। उनका व्यापक अनुभव है और समाज में उनका नाम है। अगर वे कलीसिया में अगुआ और कार्यकर्ता बन जाते हैं, तो और ज्यादा कार्य किया जा सकता है, और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को और ज्यादा लाभ और ज्यादा फायदा मिल सकता है। भविष्य में, कलीसिया का कार्य पूरी तरह से उन पर निर्भर करेगा। हमारी अगुआई कर रहे इन बुद्धिजीवियों के साथ, परमेश्वर में हमारी आस्था निश्चित रूप से आशीष लाएगी।” अतः, जिन कलीसियाओं में नकली अगुआ उपस्थित हैं, वहाँ वे लोग जिनका समाज में रुतबा है, जो ज्ञानी हैं, जो सुवक्ता हैं, जो शब्दों और धर्म-सिद्धांतों के बारे में खोखली बातें करते हैं, जिनकी कुछ प्रतिष्ठा है, इत्यादि—ये सभी लोग जिनके पास कोई सत्य वास्तविकता नहीं है—कलीसिया में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन हो जाते हैं और नकली अगुआओं द्वारा उन्हें कलीसिया की मुख्य ताकतों और यहाँ तक कि तथाकथित स्तंभों के रूप में माना जाता है। जब कलीसिया में कुछ होता है, तो नकली अगुआ कहते हैं, “जाओ और फलाँ-फलाँ से पूछो; वह अमुक कंपनी का सीईओ था,” “जाओ और फलाँ-फलाँ से पूछो; वह अमुक विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थी,” या “जाओ और फलाँ-फलाँ से पूछो; वह एक लॉ फर्म में श्रेष्ठ वकील था।” नकली अगुआ इन लोगों को कलीसिया के स्तंभों और मुख्‍य ताकतों के रूप में मानते हैं। क्या ऐसी परिस्थितियों में कलीसिया का जीवन अच्छा हो सकता है? (नहीं।) तो, परिणाम क्या है? ये तथाकथित मुख्य ताकतें और स्तंभ गुप्त रूप से या खुलकर भी रुतबे की होड़ में रहते हैं और गुट बना लेते हैं, और अक्सर धारणाएँ और अफवाहें फैलाते हैं। कलीसिया में जो भाई-बहन सच्चे विश्वासी हैं, सत्य से प्रेम करते हैं, सत्य को स्वीकार कर सकते हैं, और जिनमें सत्य का शुद्ध बोध है उन्हें अक्सर उनके द्वारा अलग-थलग कर दिया जाता है और उनका दमन किया जाता है। ये तथाकथित प्रतिष्ठित सामाजिक हस्तियाँ, चाहे अपने कर्तव्यों का पालन करते समय या कोई भी कार्य करते समय, कोई निष्ठा नहीं रखते हैं और कभी भी सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य नहीं करते हैं—वे पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष समाज के तरीकों का पालन करते हैं। अतः, ऐसी कलीसिया में, जो लोग सही में सत्य का अनुसरण करते हैं, जिनके पास शुद्ध समझ है, और जिनमें थोड़ी मानवता और न्याय की भावना है, उनके पास बोलने का कोई स्थान नहीं होता, बोलने का कोई अधिकार नहीं होता, और निश्चित रूप से निर्णय लेने का कोई अधिकार नहीं होता है। कलीसिया में चाहे जो भी हो, तथाकथित प्रमुख सदस्यों का यह समूह ही सदैव अंतिम निर्णयकर्ता होता है। नकली अगुआ इन लोगों को आदर्श मानते हैं और इन पर आँख मूंद कर विश्वास करते हैं, इसलिए जब भी कुछ होता है तो समाधान के लिए वे आखिरकार उनके भरोसे रहते हैं। अगर ये लोग सत्य का अनुसरण करते होते और सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य करते होते, तो यह अच्छी बात होती। लेकिन, इनमें से अधिकांश लोग सत्य का अनुसरण नहीं करते हैं। उनके पास कुछ ज्ञान और शिक्षा होती है, उनका सामाजिक रुतबा होता है, और इन सबसे बढ़कर, उनमें धोखेबाज और कपटी इंसानियत होती है, और वे वाक्पटु होते हैं तथा दूसरों को गुमराह करने में माहिर होते हैं। मसीह-विरोधियों का प्रकृति सार सटीक रूप से यही है। नकली अगुआओं के इन लोगों पर भरोसा करने का क्या परिणाम होता है? वे कलीसिया के कार्य को और कलीसिया के जीवन की व्यवस्था को पूरी तरह बिगाड़ देते हैं, और वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश को पूरी तरह बर्बाद कर देते हैं, जिसकी वजह से कलीसिया अपनी गवाही पूरी तरह से खो देती है। कुछ नकली अगुआ कलीसिया में एक प्रभावशाली और ताकतवर व्यक्ति रखने की उम्मीद करते हैं जो राजनीति और वर्तमान घटनाओं को समझता हो, और वे सोचते हैं, “यदि ऐसा कोई व्यक्ति कलीसिया के स्तर का विस्तार कर सके, इसके प्रभाव को बढ़ा सके, और इसकी प्रतिष्ठा को बढ़ा सके, तो सुसमाचार फैलाने के कार्य आशाजनक होगा। वह सचमुच जश्न का कारण होगा!” नकली अगुआओं द्वारा नियंत्रित कलीसियाओं में, कलीसियाई जीवन के दौरान कुछ लोग राजनीति, वर्तमान घटनाओं, अंतरराष्ट्रीय हालात, और घरेलू हालात के बारे में विस्तार से बात करते हैं; वे उच्च-स्तर की राजनीतिक हस्तियों के निजी जीवन पर चर्चा करते हैं और इन राजनीतिक हस्तियों की साजिशों और खुल्लमखुल्ला षडयंत्रों का स्पष्ट और तार्किक तरीके से विश्लेषण भी करते हैं। नकली अगुआ ईर्ष्या से लार टपकाते कहते हैं, “आखिरकार, हमारी कलीसिया में दिखावे को बनाए रखने में हमारी मदद करने के लिए एक प्रभावशाली और ताकतवर व्यक्ति है! मैं हमेशा निराश, हताश महसूस करता था, और लगता था कि मैं अपना सिर ऊंचा नहीं रख सकता, क्योंकि हमारी कलीसिया में ऐसे प्रभावशाली और ताकतवर व्यक्ति की कमी थी। लेकिन अब हमारी कलीसिया में ऐसा व्यक्ति है। इसलिए, हमें इस व्यक्ति को वह करने देना और बोलने देना चाहिए जो भी वह चाहता है, और उसे आजादी देनी चाहिए। क्या परमेश्वर का घर आजादी और मानव अधिकारों का अभ्यास नहीं करता है? क्या राज्य का युग मानव अधिकारों पर बल नहीं देता है?” नकली अगुआ राजनीति के बारे में बात करना और प्रसिद्ध लोगों पर टिप्पणियाँ करना पसंद करनेवाले, अक्सर लोगों के बीच बड़े-बड़े और खोखले विचारों के बारे में बोलनेवाले लोगों को अद्भुत खजाने के रूप में मानते हैं और उन्हें कलीसिया के स्तंभों और मुख्‍य आधार के रूप में विकसित करना चाहते हैं। इसलिए, वे अक्सर उन्हें प्रोत्साहित और उनकी प्रशंसा करते हैं, इस डर से कि अगर वे नकारात्मक हो गए तो उससे कलीसिया का कार्य प्रभावित होगा। संक्षेप में, ये नकली अगुआ सुन्न और अंधे हैं। वे कलीसिया के कार्य में विघ्न-बाधा डालनेवाले विभिन्न लोगों को तुरंत नहीं पहचान पाते हैं। अगर वे उन्हें पहचान भी लेते हैं, तो वे बुरे लोगों के सार की असलियत नहीं जान पाते हैं। वे मसीह-विरोधियों की श्रेणी में आनेवाले स्पष्ट रूप से बुरे लोगों की असलियत भी नहीं जान पाते हैं, जैसेकि वे लोग जो गुट बना लेते हैं और स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लेते हैं। जब वे मसीह-विरोधियों को गुट बनाते, अपनी चीजें दिखाते, तथा अपनी अपार शक्ति के साथ अपनी मर्जी से कार्य करते देखते हैं, तो नकली अगुआ उनका मूल्यांकन कैसे करते हैं? “यह व्यक्ति असाधारण है, वह वास्तव में उल्लेखनीय है! मैंने पहले इस प्रतिभा पर ध्यान नहीं दिया था; वह मुझसे बहुत बेहतर है, उसके सामने तो मैं कुछ नहीं हूँ। उसकी क्षमताओं को तो देखो—वह जिम्मेदारियाँ उठाने और बातों को भुला देने में सक्षम है, शिष्टता से बात करता है, और वह अपनी बात पर कायम रहता है। दूसरी ओर, मैं किसी काम का नहीं हूँ; मैं एक डरपोक छोटी लड़की की तरह हूँ।” वह मसीह-विरोधियों की बहुत प्रशंसा करता है, उनके सामने झुक जाता है, और स्वेच्छा से उनका अनुयायी बन जाता है। नकली अगुआओं की इस अभिव्यक्ति की एक विशेषता अंधापन है, और दूसरी सुन्नता है। कुल मिलाकर, नकली अगुआओं की इस समस्या का सार खराब काबिलियत है।

लोगों के पास आँखें हैं ताकि वे चीजें देख सकें। कुछ देखने के बाद, व्यक्ति का दिमाग प्रतिक्रिया देगा और निर्णय लेगा, और निर्णय लेने के बाद, वह व्यक्ति नजरिया बना लेगा और अभ्यास का मार्ग प्राप्त करेगा। यह साबित करता है कि वह अंधा नहीं है—चाहे वह कुछ भी देखे, उसकी प्रतिक्रिया सामान्य होती है और उसे पता है कि इसका सामना कैसे करना है और इसे कैसे संभालना है। यह सामान्य सोच वाला व्यक्ति है। लोग जो कुछ देखते हैं उसके लिए प्रतिक्रिया देने की उनकी एक प्रक्रिया होती है; वे इस पर चिंतन-मनन करेंगे और ज्यादा या थोड़ा बहुत विचार करेंगे। जैसे-जैसे उनके विचार खुलते हैं, उस चीज की एक तस्वीर धीरे-धीरे उनके मन में बनने लगती है, और वे अपना खुद का नजरिया, रवैया और दृष्टिकोण विकसित कर लेते हैं। तो, इन चीजों को उत्पन्न करने की पूर्व-शर्त क्या है? व्यक्ति की आँखें चीजों को देखने, फिर एकत्र जानकारी को विचार करने के लिए उसके दिमाग और मन को स्थानांतरित करने में सक्षम होनी चाहिए। यदि कोई व्यक्ति अपनी आँखों से चीजों को देख सकता है, तो वह अंधा नहीं है, और फिर वह विचार और चिंतन-मनन कर सकता है, जागरूकता, रवैया और नजरिया बना सकता है, और अंततः सही निष्कर्ष निकाल सकता है। बेशक, इन निष्कर्षों पर पहुँचने में कुछ समय लगता है। इन निष्कर्षों पर पहुँचने से पहले जागरूकता, रवैये और नजरिये रखने का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि व्यक्ति का मन सक्रिय है, सुन्न नहीं है, जो साबित करता है कि व्यक्ति जिंदा है, मरा नहीं है। नकली अगुआओं में खराब काबिलियत होती है। यह किन तरीकों से खराब होती है? नकली अगुआओं में इन दोनों गुणों की कमी होती है। उनकी आँखें खुली होती हैं लेकिन वे चीजों को घटित होते या खुलते हुए नहीं देख सकते हैं जो‍कि अंधापन है। इसके अलावा, जब वे चीजों को देखते हैं, तो उनका दिमाग कोई प्रतिक्रिया नहीं देता है, वे कोई नजरिया या विचार नहीं बना पाते हैं, और उनके पास आकलन करने और उससे निष्कर्ष निकालने के साधन या सही तरीके नहीं होते हैं। यह आत्मा की सुन्नता है। आत्मा से सुन्न लोग किसी भी चीज का भेद नहीं पहचान पाते हैं, उनके पास सही मूल्यांकन या सटीक निर्णय नहीं होते हैं, और आखिरकार, वे सही निष्कर्ष नहीं निकाल पाते हैं, और उन्हें पता नहीं होता कि उनके हाथ में जो मामले हैं उनसे कैसे निपटना है, उन्हें संभालना कैसे है, या उनका समाधान कैसे करना है। यह सुन्न और मूर्ख होना है। जब कोई व्यक्ति अपनी आत्मा में इस हद तक सुन्न और मूर्ख हो जाता है कि कुछ घटित होने पर भी वह कोई प्रतिक्रिया नहीं करता, तो वह मृत अवस्था है—यह मामले का बिल्कुल सही तरीके वर्णन करना है। अभी के लिए हम इस बात को एक तरफ रख देते हैं कि नकली अगुआ वास्तव में मर चुके हैं या नहीं, और बस इतना कहें कि उनमें कम काबिलियत है। आखिर यह कितनी कम है? भले ही कितनी भी महत्वपूर्ण घटना क्यों न हुई हो, वे इसे नहीं देख पाते हैं, और अगर वे इसे देख भी लेते हैं, तो वे इसकी असलियत नहीं जान पाते हैं। उदाहरण के लिए, भले ही नकली अगुआ कितनी भी देर तक काम क्यों न कर लें, वे इस संबंध में कोई निष्कर्ष नहीं निकाल पाते हैं कि मामले का सार क्या है, इसे वर्गीकृत कैसे करना है, इसे परिभाषित कैसे करना है, या परिभाषा का आधार क्या है; उन्हें पता नहीं होता कि इन चीजों का मूल्यांकन कैसे करना है, और उनका मूल्यांकन करने के लिए उनके कोई मानक या सिद्धांत नहीं होते हैं। वे भ्रमित लोग हैं जिनकी आध्यात्मिक समझ कम होती है। पहले काम में नकली अगुआओं की यह प्राथमिक अभिव्यक्ति है। वे अंधे, मूर्ख, नासमझ और सुन्न हैं, फिर भी वे अगुआ बनना चाहते हैं। क्या इससे चीजों में विलंब नहीं हो रहा है? क्या यह बेहद परेशानी वाली बात नहीं है? यदि किसी ने पहले कभी अगुआ के रूप में सेवा नहीं की है, और यदि वह बस पहली मर्तबा किसी चीज का सामना कर रहा है, और इस मामले का परमेश्वर के वचनों में उल्लेख नहीं है और लोगों ने भी इसे नहीं सुना है—इसका मतलब है, अगर उसे इस मामले का कोई अनुभव या ज्ञान नहीं है—तो ऐसी परिस्थितियों में उस व्यक्ति को सही अंतर्दृष्टि, रवैया और नजरिया विकसित करने में समय लगेगा। लेकिन नकली अगुआओं को सुन्न और अंधा क्यों कहा जाता है? ऐसा इसलिए है क्योंकि मैंने अनेक वचन बोले हैं, लेकिन भले ही मैं चीजों को कितना ही उजागर और उनका कितना ही गहन-विश्लेषण क्यों न कर लूं, या कितने भी उदाहरण क्यों न दे लूं, नकली अगुआओं को मेरे वचन सुनने के बाद मामलों के बारे में केवल जानकारी मिल पाती है, लेकिन उनसे वे सत्य सिद्धांत नहीं समझ पाते। इसके अलावा, मैं जितना अधिक बोलता हूँ, वे उतना ही भ्रमित हो जाते हैं। उनका कहना है, “इतने ज्यादा मामलों, इतने ज्यादा वचनों, इतनी ज्यादा कहानियों को कौन याद रख सकता है और वास्तविक जीवन के साथ उनका संबंध कौन जोड़ सकता है? इतना ज्यादा मत कहो, मुझे इतना ज्यादा आत्मसात करने और इसे समझने में परेशानी हो रही है। मुझे बस इतना बताओ कि इस व्यक्ति को कैसे संभालना है : उन्हें निष्कासित कर दिया जाना चाहिए या रखना चाहिए?” क्या यह सुन्नता नहीं है? यह अत्यधिक सुन्नता है! वास्तव में, यह कहना कि वे सुन्न हैं उन्हें कुछ छूट देता है, चूंकि यह व्यक्ति युवा, या शायद अशिक्षित हो सकता है, या हो सकता है कि वह उम्रदराज और थोड़ा भ्रमित भी हो—ऐसे कहने से उसका स्वाभिमान बच जाता है। लेकिन वास्तव में, यह खराब काबिलियत और सत्य को समझने की क्षमता की कमी है। इस स्पष्टीकरण से यह बात स्पष्ट हो जाती है।

यदि कलीसिया में गंभीर विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न होती हैं और नकली अगुआ इन समस्याओं के सार की असलियत नहीं जान पाते हैं, तो क्या वे एक अगुआ के कार्य के योग्य हैं? क्या उनकी अगुआई में भाई-बहनों का बचाव हो सकता है? क्या कलीसिया का कार्य, वह परिवेश जिसमें भाई-बहन अपना कर्तव्य निभाते हैं, कलीसियाई जीवन की सामान्य व्यवस्था को बचाया और बनाए रखा जा सकता है? ये सबसे बुनियादी चीजें हैं जिन्हें अगुआओं और कार्यकर्ताओं को हासिल करना चाहिए। क्या नकली अगुआ इन चीजों को हासिल कर सकता है? नहीं, वह हासिल नहीं कर सकता। वह उन लोगों, घटनाओं और चीजों को पहचान भी नहीं पाता या उनकी असलियत भी नहीं जान पाता जो विघ्न-बाधाएँ पैदा करते हैं, तो वह अपने कार्य के अगले चरण की ओर आगे कैसे बढ़ सकता है? वह सबसे बुनियादी चीजों का भेद भी नहीं जान पाता है, जैसेकि भला इंसान कौन होता है, बुरा आदमी कौन होता है, धोखेबाज कौन होता है, या पाखंडी कौन होता है—तो वह कलीसिया के कार्य को कैसे संभाल सकता है? वह ऐसा करने में असमर्थ है। ऐसा नहीं है कि वह जानबूझकर वास्तविक कार्य नहीं करता है, या वह आलसी है और रुतबे के फायदों में लगा रहता है; बस इतना है कि उसकी खराब काबिलियत है और वह अपना कार्य करने में असमर्थ है। यह समस्या का सार है। बेहद खराब काबिलियत वाले लोग केवल सिद्धांतों की बात कर सकते हैं, और नियमों का पालन कर सकते हैं; सभाओं के दौरान, वे केवल दूसरों को बहला फुसलाकर और प्रोत्साहित करके ऐसी बातें कह सकते हैं, “परमेश्वर में पूर्ण रूप से विश्वास रखो! तुम ऐसे समय में शारीरिक सुखों में कैसे लिप्त हो सकते हो? तुम अभी भी धन और सांसारिक चीजों की लालसा कैसे कर सकते हो? परमेश्वर को कितना दुःख हुआ होगा!” वे केवल इस तरह के धर्मोपदेश दे सकते हैं। जब विघ्न, बाधाओं, और नकारात्मक बातें करने जैसे विभिन्न बुरे कार्य होते हैं, तो वे उन्हें देख या पहचान नहीं पाते हैं। भाई-बहन कलीसिया का सामान्य जीवन जीना चाहते हैं लेकिन वे ऐसा करने में असमर्थ होते हैं, और वे अपने कर्तव्य निभाने के लिए उचित परिवेश चाहते हैं लेकिन उन्हें यह नहीं मिल पाता। नकली अगुआ इन समस्याओं का हल नहीं कर सकता है, तो उसका क्या उपयोग है? भाई-बहन कलीसियाई जीवन जीना चाहते हैं, सत्य समझना चाहते हैं और अपनी कठिनाइयों और नकारात्मक स्थितियों का समाधान करना चाहते हैं। वे उत्सुकता से उम्मीद करते हैं कि इन वास्तविक समस्याओं को हल करने के लिए अगुआ और कार्यकर्ता स्पष्ट और पूर्ण रूप से सत्य की संगति कर पाएँ। यदि एक ऐसी कलीसिया है जहाँ सत्ता नकली अगुआ के पास है, तो क्या इन वास्तविक समस्याओं का समाधान हो सकता है? नकली अगुआ परमेश्वर के चुने हुए लोगों के दिल को नहीं समझ पाता है, और न ही उसे उनकी कठिनाइयाँ दिखाई देती हैं। इसके बजाए, वह शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलना और बड़े-बड़े, खोखले विचारों को बड़बड़ाना जारी रखता है, जिसकी वजह से परमेश्वर के चुने हुए लोगों को अत्यधिक निराशा होती है। कौन व्यक्ति अभी भी नियमित रूप से सभाओं में उपस्थित होना चाहेगा? क्या नकली अगुआ परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील हो सकते हैं, और उन बुरे लोगों, छद्म-विश्वासियों, अवसरवादियों, और व्यभिचारी लोगों को, जो दुष्ट हैं और सांसारिक चीजों से प्रेम करते हैं, परमेश्वर के वचनों और अपेक्षाओं के अनुसार कलीसिया से हटा सकते हैं, उन्हें परमेश्वर के चुने हुए लोगों के काम में हस्तक्षेप करने और उन्हें परेशान करने से रोक सकते हैं, और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को एक सामान्य कलीसियाई जीवन जीने में सक्षम बना सकते हैं? क्या नकली अगुआ इसे हासिल कर सकते हैं? वे इसे हासिल नहीं कर सकते। जब कोई व्यक्ति ऐसा अनुरोध करता है, तो नकली अगुआ क्या कहते हैं? “तुम बहुत ही उधम मचाते हो! क्या तुम्हें लगता है कि तुम ही एकमात्र ऐसे व्यक्ति हो जो परमेश्वर से प्रेम करता है और कर्तव्य निभाने में वफादार रहना चाहता है? ऐसा कौन नहीं चाहता? वे भी परमेश्वर में विश्वास करते हैं और परमेश्वर द्वारा चुने गए हैं। हालाँकि उनमें कुछ समस्याएँ हैं, लेकिन हमें उनके साथ सही तरीके से पेश आना चाहिए। हमेशा दूसरों में दोष मत ढूँढ़ो। इस अवसर का लाभ उठाओ और अपने बारे में विचार करो और खुद के बारे में और अधिक जानने का प्रयास करो; तुम्हें सहनशील और धैर्यवान होना सीखना चाहिए।” नकली अगुआ भ्रमित और अंधे होते हैं, और विभिन्न प्रकार के लोगों के साथ व्यवहार करने के उनके कोई सिद्धांत नहीं होते। वे उन लोगों की असलियत नहीं जान पाते जिन्हें प्रतिबंधित किया जाना चाहिए या बाहर निकाल दिया जाना चाहिए, इसके बजाए वह इन लोगों को जो चाहे करने देते हैं और कलीसिया में अत्याचारियों की तरह काम करते हैं, उन्हें काम करने के लिए भरपूर जगह देते हैं, जिससे कलीसिया में अव्यवस्था फैल जाती है, इस हद तक कि कुछ कलीसियाओं में विविधता के स्तर को एक वाक्यांश में वर्णित किया जा सकता है : वे वास्तव में भली-बुरी चीजों का जमावड़ा हैं। बुरे लोग, छद्म-विश्वासी, व्यभिचारी, स्थानीय अत्याचारी, और यहाँ तक कि कुछ लोग जो थोड़ा सा भी खतरा आने पर कलीसिया और भाई-बहनों को धोखा दे देंगे, ये सभी इन कलीसियाओं में एक साथ मिल जाते हैं। नकली अगुआ इन लोगों की असलियत नहीं जान पाते हैं, और वे उन्हें संभाल या उनका समाधान नहीं कर पाते। अतः, ऐसे अंधे और सुन्न नकली अगुआ की अगुआई में, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को बचाया नहीं जा सकता और कलीसिया का कार्य और कलीसियाई जीवन की सामान्य व्यवस्था को बनाए रखा नहीं जा सकता। ऐसे लोग जो सत्य से प्रेम करते हैं और सत्य को स्वीकार करने के इच्छुक हैं, वे ऐसे मिश्रित कलीसियाई जीवन में सत्य को कैसे समझ और प्राप्त कर सकते हैं? क्या उन लोगों के दिल में पीड़ा नहीं होगी? यदि कोई कलीसिया अगुआ कलीसिया के कार्य, कलीसियाई जीवन की सामान्य व्यवस्था, या भाई-बहनों के लिए उनका कर्तव्य निभाने के लिए परिवेश को सही ढंग से संभाल नहीं सकता है, या इन चीजों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकता है, तो यह अगुआ निःसंदेह नकली अगुआ है। उसे नकली अगुआ की उपाधि क्यों दी जाती है? ऐसा इसलिए है क्योंकि वह अंधा और सुन्न है, जिस कारण बुरे लोग बार-बार कलीसिया के काम में विघ्न-बाधा डालते हैं; इसके अलावा, जब इसके परिणाम पहले ही सामने आ चुके होते हैं, तब भी वह मुद्दों को तुरंत और सही ढंग से संभाल और हल नहीं कर सकता है, न ही वह कलीसिया के काम और भाई-बहनों के कलीसियाई जीवन को ठीक से बनाए रख सकता है। विनम्रता से कहें तो ऐसे अगुआ अपने काम में सक्षम नहीं हैं; सटीक रूप से कहें तो वे अपने कर्तव्यों में गंभीर रूप से विफल रहे हैं। यद्यपि वे अगुआ के रूप में सेवा करते हैं, फिर भी वे बुरे लोगों और शैतान के अनुचरों के हितों की रक्षा करते हैं, जबकि कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश की उपेक्षा करते हैं। वे उन बुरे लोगों का बचाव करते हैं और उन्हें बढ़ावा देते हैं जो भाई-बहनों को नुकसान पहुँचा कर कलीसिया के जीवन में विघ्न और बाधाएँ डालते हैं। यद्यपि, उनकी क्षमता और अभिव्यक्तियों को देखते हुए, वे केवल खराब काबिलियत वाले हैं और अपने कार्य में अक्षम हैं, और उन्हें मसीह-विरोधी के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता है, फिर भी कलीसिया के कार्य पर उनके कार्यकलापों के परिणाम गंभीर हैं। उनके कार्यों की प्रकृति उन मसीह-विरोधियों की तरह ही है जो स्वतंत्र राज्य स्थापित करते हैं और भाई-बहनों का दमन करते हैं। दोनों ही बुरे लोगों की रक्षा करते हैं और उन्हें बढ़ावा देते हैं, और शैतान के अनुचरों को कलीसिया में उनकी मर्जी से काम करने देते हैं। बात बस इतनी है कि नकली अगुआ खुलेआम और निर्लज्जता से बुराई नहीं करते और मसीह-विरोधियों की तरह कलीसिया के काम में बाधा नहीं डालते। वे जानबूझकर लोगों को अपनी ओर आकर्षित नहीं करते और उनसे अपनी आज्ञा नहीं मनवाते, परन्तु अंतिम परिणाम वही होता है जो मसीह-विरोधियों द्वारा स्वतंत्र राज्य स्थापित करने का होता है। दोनों का परिणाम यह होता है कि जो भाई-बहन सत्य से प्रेम करते हैं और ईमानदारी से अपना कर्तव्य निभाते हैं, उन्हें नुकसान पहुँचाया जाता है, उन्हें बर्बाद किया जाता है, और उनके पास जीने का कोई रास्ता नहीं बचता। ऐसे परिवेश और कलीसियाई जीवन में, ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का पालन करने वाले भाई-बहनों के लिए जीवन में प्रगति करना, और अपने कर्तव्यों को सामान्य रूप से निभाना बहुत कठिन होता है। स्वाभाविक रूप से, सुसमाचार फैलाने का कार्य और कलीसिया के विभिन्न कार्य भी बहुत बाधित होते हैं और सामान्य रूप से विकसित नहीं हो पाते हैं। यह नकली अगुआओं की पहली अभिव्यक्ति है जिसका हम बारहवीं जिम्मेदारी के संबंध में गहन-विश्लेषण कर रहे हैं—अपने आस-पास के लोगों, घटनाओं और चीजों पर ध्यान न देना और उनकी असलियत नहीं जान पाना। यह अभिव्यक्ति ऐसे लोगों को नकली अगुआ के रूप में परिभाषित करने के लिए पर्याप्त है।

II. नकली अगुआ कलीसिया के कार्य में विघ्न-बाधा उत्पन्न करने वाले लोगों से सिद्धांतों के अनुसार नहीं निपटते

अगुआओं और कार्यकर्ताओं की बारहवीं जिम्मेदारी में रेखांकित दूसरे कार्य के संबंध में, हम नकली अगुआओं की अभिव्य‍ि‍क्तियाँ उजागर करेंगे और उनका गहन-विश्लेषण करेंगे। दूसरा कार्य यह है कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं को मुद्दों की पहचान हो जाने पर तुरंत उनका समाधान करने के लिए सत्य सिद्धांतों का उपयोग करना चाहिए। हालाँकि, नकली अगुआ इस कार्य में भी अक्षम होते हैं। इसलिए, नकली अगुआओं की जिस दूसरी अभिव्यक्ति का हमें गहन-विश्लेषण करना चाहिए वो यह है कि उन्हें परमेश्वर के कार्य और कलीसिया के सामान्य जीवन में विघ्न-बाधाएँ डालनेवाले विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों को संभालने के लिए सिद्धांतों का पता नहीं होता है। जब नकली अगुआ कलीसियाई जीवन में भाग लेता है, तो वह परमेश्वर के वचनों को खाता और पीता है और परमेश्वर के वचनों का प्रार्थना-पाठ करता है, फिर भी उसे कभी समझ नहीं आता कि परमेश्वर के वचनों का क्या अर्थ है, परमेश्वर जो कुछ कहता है उसके सिद्धांतों को कभी नहीं समझ पाता है, और विभिन्न मामलों के लिए परमेश्वर द्वारा अपेक्षित सिद्धांतों और मानकों की उसे जानकारी नहीं होती है। इससे यह भी साबित होता है कि नकली अगुआओं में सत्य समझने की योग्यता की कमी होती है और उनकी काबिलियत अत्यधिक खराब होती है। कुछ लोग कहते हैं, “तुम कैसे कह सकते हो कि उनकी काबिलियत खराब है? वे बहुत अच्छा खाना पकाते हैं, फैशनेबल ढंग से कपड़े पहनते हैं, और दूसरों से बात करते समय मधुर ढंग से बात करते हैं; सभी उन्हें सुनना पसंद करते हैं।” क्या किसी व्यक्ति का रूप उसके सार को दर्शा सकता है? क्या कुछ बाहरी काम अच्छे ढंग से करने में योग्य होने का यह अर्थ है कि उनमें अच्छी काबिलियत है? किसी भी चीज का मूल्यांकन करने, उसकी पैमाइश करने, और उसे परिभाषित करने के लिए, हमेशा सटीक मानक होने चाहिए। किसी व्यक्ति की काबिलियत की पैमाइश करने के लिए, मानक यह है कि परमेश्वर के वचनों की उसकी समझ शुद्ध है या नहीं। यह कहना कि इन लोगों की काबिलियत खराब है, मुख्‍यतः सत्य समझने की उनकी योग्यता की कमी के बारे में होता है। हम व्यक्ति की काबिलियत को परमेश्वर के वचनों को समझने की उसकी योग्यता के आधार पर मापते हैं। क्या यह बेहद वस्तुनिष्ठ और निष्पक्ष नहीं है? (हाँ।) एक सृजित प्राणी के रूप में, यदि तुम सृष्टिकर्ता के वचनों को नहीं समझ सकते हो, तो तुम्हारी क्या काबिलियत है? क्या तुम्हारा दिमाग काम करता है? ऐसे व्यक्ति में मानवीय काबिलियत की कमी होती है; उसकी काबिलियत इस हद तक खराब है कि वह परमेश्वर के वचनों को भी नहीं समझ सकता है—क्या ऐसा व्यक्ति परमेश्वर के विश्वासी के तौर पर सत्य प्राप्त कर सकता है?

अब हमें नकली अगुआओं की दूसरी अभिव्यक्ति पर संगति और उसका गहन-विश्लेषण करना चाहिए। नकली अगुआ यह नहीं जानते कि उन लोगों से कैसे निपटना है जो कलीसिया के कार्य में विघ्न-बाधाएँ डालते हैं, न ही वे विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों का भेद पहचान पाते हैं। यह ये दर्शाने के लिए पर्याप्त है कि नकली अगुआओं में खराब काबिलियत और सत्य को समझने की क्षमता में कमी होती है, और उनमें परमेश्वर के वचनों को समझने की काबिलियत नहीं होती है। उदाहरण के लिए, कोई न कोई व्यक्ति सदैव अगुआई करनेवाले व्यक्ति के विरोध में रहता है। नकली अगुआ भी देख सकते हैं कि इस व्यक्ति में समस्याएँ हैं और समझ सकते हैं कि वह एक बुरे व्यक्ति और एक मसीह-विरोधी जैसा दिखाई देता है। वे चीजों से संबंधित कुछ सुराग का पता लगा सकते हैं, यह तो ठीक-ठाक है। लेकिन अगर तुम उनसे पूछते हो, “तुम ऐसा क्यों कहते हो कि वह एक मसीह-विरोधी और एक बुरे व्यक्ति जैसा दिखाई देता है? क्या सबूत के रूप में विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ हैं? क्या तुम निर्धारित कर सकते हो कि वह एक मसीह-विरोधी और एक बुरा व्यक्ति केवल इसलिए है क्योंकि जो भी अगुआ हो वो हमेशा उसका विरोध करता है? उसे परिभाषित करने के लिए केवल उतना काफी नहीं है; यह केवल स्वभाव का मामला है, अहंकार और आत्मतुष्टि की समस्या है। क्या उनमें मसीह-विरोधी वाली प्रकृति है? क्या वह कोई ऐसा व्यक्ति है जो सत्य से विमुख है और सत्य से घृणा करता है? क्या उसने कलीसिया के कार्य में विघ्न डाला है? क्या उसने सभी अगुआओं और कार्यकर्ताओं की नकली अगुआओं और मसीह-विरोधियों के रूप में निंदा की है? क्या उसने इसमें से कुछ भी किया है?” वह प्रतिक्रिया देते हुए कहता है, “ऐसा प्रतीत होता है जैसे उसने किया है।” यदि तुम फिर पूछते हो, “हमें उसे कैसे परिभाषित करना चाहिए और उससे कैसे निपटना चाहिए?” वह कहता है कि वह नहीं जानता। यदि तुम पूछते हो, “इस तरह के व्यक्ति के लिए, क्या हमें उसे चेतावनी देनी चाहिए, और उजागर करना चाहिए जिससे विवेक प्राप्त करने में भाई-बहनों की मदद हो सके?” उसे अभी भी नहीं पता। यह बेखबर होने और चीजों की असलियत जान पाने में असमर्थ होने का मामला है। वह कुछ सुरागों को देख सकता है लेकिन उसे नहीं पता कि ऐसे लोगों को सिद्धांतों के अनुसार कैसे परिभाषित करना या संभालना है। क्या वह वास्तविक समस्याओं को हल कर सकता है? क्या वह परमेश्वर के चुने हुए लोगों को सबक सीखने में मदद कर सकता है? चूंकि ऐसे व्यक्ति कुकर्मी और मसीह-विरोधी होते हैं, तो उन्हें आज या कल निष्कासित कर दिया जाएगा। हालाँकि, यदि तुम उन्हें वास्तव में कोई बुरा कार्य करने से पहले निकाल देते हो या अलग-थलग कर देते हो, तो वे विरोध व्यक्त करेंगे, और भाई-बहन यह नहीं समझ पाएँगे कि तुमने ऐसा क्यों किया। इसलिए, कुछ समय के लिए उन्हें कर्तव्य का निर्वहन करने देना आवश्यक है। जब उनके बुरे कार्य अधिकाधिक स्पष्ट हो जाएँगे, और वे अफवाहें और भ्रांतियां फैलाना शुरू कर देंगे, भाई-बहनों को गुमराह करना और उनका दिल जीतने की कोशिश करेंगे, सत्ता और प्रभाव के लिए होड़ करेंगे, एक स्वतंत्र राज्य स्थापित करेंगे, और कलीसिया के कार्य को नष्ट करने का प्रयास करेंगे, तो अधिकांश लोग उनके प्रकृति सार को स्पष्ट रूप से पहचान पाएँगे, और स्वाभाविक रूप से वे उन्हें उजागर करने, पहचानने और अस्वीकार करने के लिए खड़े हो पाएँगे। फिर, तुम उन्हें निकाल सकते हो और सत्य सिद्धांतों के अनुसार उनसे निपट सकते हो। केवल इस तरह काम करने से भाई-बहनों को विवेक विकसित करने में मदद मिलेगी। क्या नकली अगुआ इस तरीके से समस्याओं को संभाल और हल कर सकते हैं? नकली अगुआओं में इस काबिलियत और ज्ञान की कमी होती है। क्या तुमने ऐसा कोई नकली अगुआ देखा है जो कुकर्मियों और मसीह-विरोधियों से तुरंत निपट सके? एक भी नहीं। इसलिए, नकली अगुआ भाई-बहनों को कुकर्मियों की बाधाओं और मसीह-विरोधियों के गुमराह करने से बिल्कुल भी नहीं बचाएँगे। अधिकांश नकली अगुआ बर्खास्त कर दिए जाने के बाद न केवल खुद को जानने में विफल होते हैं, बल्कि वे यह कहते हुए बहुत शिकायत भी करते हैं कि परमेश्वर के घर ने उनके साथ अन्याय किया है, यह “काम निकलवा कर मार देने” जैसा है, और वे यह दावा करते हैं कि उन्होंने प्रयास किया लेकिन उन्हें कोई सराहना नहीं मिली और उनके साथ गलत हुआ। यदि तुम उन्हें नकली अगुआ के रूप में उजागर करते हो, तो वे यह सोचकर विद्रोही बने रहते हैं : “मैंने कई वर्षों तक एक अगुआ के रूप में सेवा की; भले ही मेरी कोई उपलब्धियाँ नहीं थीं, लेकिन मैंने कम से कम कठिनाई तो सही। मुझे क्यों बर्खास्त किया गया? यह तो काम निकलवा कर मार देने जैसा है!” भले ही तुम उन्हें कैसे भी उजागर करो, वे विद्रोही बने रहते हैं। वे यह भी कहते हैं, “जब मुझे एक मसीह-विरोधी का पता चला था, तो मैं इतना चिंतित हो गया था कि अक्सर मेरे मुंह में छाले पड़ जाते थे और मैं अच्छे से सो नहीं पाता था। अगर मैं एक नकली अगुआ होता तो मैं इतना बोझ कैसे उठा सकता था?” उन्होंने कोई भी जरूरी काम नहीं किया, वे इसमें से कुछ भी काम करने में अक्षम थे, और उन्हें यह भी नहीं पता था कि क्या काम करना है, फिर भी वे अपनी प्रशंसा करने में सफल हो जाते हैं। क्या यह परेशानी की बात नहीं है? कितनी घिनौनी बात है!

कलीसिया में पैदा होने वाली विभिन्न समस्याओं के संबंध में, नकली अगुआओं को साफ तौर पर पता है कि उनकी प्रकृति कलीसिया के कार्य में विघ्न-बाधाएँ डालने की है, फिर भी वे उन्हें नजरंदाज करते हैं। जब उन्हें स्पष्ट समस्याएँ दिखाई देती हैं, तो वे केवल औपचारिकता निभाते हैं और मुद्दों के महत्वपूर्ण सार को उजागर करने का साहस नहीं करते। वे मुद्दे को ठोस रूप से संबोधित किए बिना, केवल कुछ आक्षेप लगाते हैं और धर्म-सिद्धांतों के प्रवचन देकर कुछ प्रोत्साहन देते हैं, और बस इतना ही। कुकर्मियों और मसीह-विरोधियों का सामना करते समय, वे असमंजस में पड़ जाते हैं, और उदासीनता का रवैया अपना लेते हैं, मानो उनसे उनका कोई लेना-देना ही न हो। वे इन मुद्दों से निपटने का सबसे उपयुक्त तरीका नहीं जानते हैं, नहीं जानते कि समस्याओं को हल करने के लिए क्या कहना चाहिए, नहीं जानते कि भाई-बहनों को कैसे बचाना है, और उन पर कोई जिम्मेदारी नहीं है। उनके पास बस थोड़ी सद्भावना है : “मुझे पता है कि तुम एक बुरे व्यक्ति हो। मैं तुम्हें भाई-बहनों को परेशान करने और नुकसान नहीं पहुँचाने दूंगा। जब तक मैं इस पद पर हूँ, मैं भाई-बहनों की रक्षा अवश्य करूंगा और अंत तक अपनी जिम्मेदारी निभाउंगा।” इसका क्या उपयोग है? क्या तुमने समस्या का हल कर लिया है? जब तुम चिंता करने में व्यस्त हो, तो क्या मसीह-विरोधी शांत बैठे रहेंगे? क्या वे कलीसिया के कार्य में विघ्न डालना बंद कर देंगे? जब वे देखते हैं कि तुम एक बेकार और कायर अगुआ हो, और निश्चित रूप से तुम्हारे पास कोई कार्य क्षमता नहीं है, तो वे तुम्हें बिल्कुल भी गंभीरता से नहीं लेंगे। अधिकांश मसीह-विरोधी और कुकर्मी विशेष रूप से धूर्त और कपटी होते हैं। वे भाई-बहनों को गुमराह करते हैं और उन्हें परेशान करते हैं, और तुम्हारे पास उन्हें रोकने या प्रतिबंधित करने का कोई तरीका नहीं होता। न ही तुम्हें पता होता है कि मुद्दों को सुलझाने के लिए किससे मदद लें; तुम बस चिंतित और उत्तेजित होते हो, और प्रार्थना करते हुए रोते हो। तुम बहुत दयनीय दिखाई देते हो; ऐसा प्रतीत होता है जैसे तुम परमेश्वर के इरादों के प्रति बहुत विचारशील हो और भाई-बहनों की बहुत परवाह करते हो। यहाँ तक कि मसीह-विरोधियों जैसे इस तरह के स्पष्ट रूप से कुकर्मियों के होते हुए भी, तुम उनसे बात नहीं कर सकते। तुम सत्य के अनुसार मसीह-विरोधियों के क्रियाकलापों और व्यवहारों का गहन-विश्लेषण करने में असमर्थ हो, न ही तुम विवेक विकसित करने के लिए भाई-बहनों की मदद करने के लिए मसीह-विरोधियों के इरादों, उद्देश्यों और व्यवहार को सार्वजनिक रूप से उजागर करने में समर्थ हो। तुम इनमें से कोई काम भी नहीं कर सकते हो। कुछ नकली अगुआ यह भी कहते हैं, “किसी को भी मसीह-विरोधियों को उजागर नहीं करना चाहिए। यदि भाई-बहनों को पता चल जाए कि वे मसीह-विरोधी हैं और वे उनसे दूर रहें, तो मसीह-विरोधी उनसे बदला लेने की कोशिश करेंगे।” क्या यह निकम्मा कायर होना नहीं है? क्या ऐसे लोग कलीसिया का कार्य संभाल सकते हैं? क्या वे भाई-बहनों को बचा सकते हैं ताकि वे एक सामान्य कलीसियाई जीवन जी सकें? समस्या का हल करने की यह किस प्रकार की पद्धति है? जब कुछ नहीं हो रहा है, तो वे निरंतर धर्म-सिद्धांतों के प्रवचन दे सकते हैं, लेकिन जब कुछ हो जाता है, तो वे उलझन में पड़ जाते हैं और भ्रमित हो जाते हैं, और बस रोने लगते हैं। क्या वे निकम्मे कायर नहीं हैं? भाई-बहनों को मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह होते और कुकर्मियों द्वारा परेशान होते हुए देखकर, वे असमंजस में पड़ जाते हैं, और उनके पास प्रतिक्रिया देने का कोई तरीका नहीं होता। उन्हें यह भी नहीं पता होता कि कलीसिया में उन भाई-बहनों के साथ एकजुट होने का सबसे बुनियादी काम कैसे किया जाए, जिनमें अपेक्षाकृत न्याय की भावना होती है, मानवता होती है, और जो साथ संगति करने के लिए सत्य को स्वीकार कर सकते हैं, इन समस्याओं को हल करने के लिए परमेश्वर के वचनों का उपयोग कर सकते हैं, और मसीह-विरोधियों को उजागर कर सकते हैं और उन्हें पहचान सकते हैं। क्या ऐसा व्यक्ति बेकार नहीं है? (हाँ।) कुछ नकली अगुआ अत्यधिक सतर्क, कायर और बेकार होते हैं। वे किस हद तक कायर और बेकार हैं? जब कुकर्मी कलीसिया के कार्य में विघ्न-बाधा डालने के लिए सामने आते हैं, विशेष रूप से कठोर और अहंकारपूर्ण ढंग से बोलते हैं, तो वे इतने डर जाते हैं कि यह सोचते हुए कांपने लगते हैं, “मैं उनसे निपटने की हिम्मत नहीं कर सकता। वे खतरनाक हैं; वे दुनिया में कुकर्मी हैं। यदि मैं भाई-बहनों को बचाने के लिए उन्हें उजागर करता हूँ, तो वे निश्चित रूप से मेरे खिलाफ कुछ ढूंढ लेंगे और बदला लेंगे। फिर मैं अगुआ बना कैसे रह सकता हूँ? उन्हें पता है कि मैं कहाँ रहता हूँ। क्या वे मेरे परिवार को नुकसान पहुँचाएँगे? क्या परमेश्वर में विश्वास करने के लिए वे मेरी रिपोर्ट करेंगे?” ऐसे नकली अगुआ कलीसिया के कार्य की जिम्मेदारी नहीं ले सकते। उनका अत्यधिक भय उन्हें निष्क्रियता में फंसाए रखता है; स्वाभाविक रूप से, वे ऐसे मुद्दों और ऐसे लोगों से निपटने के सिद्धांतों को संभवतः नहीं समझ पाते हैं। जिस किसी को भी कलीसिया के कार्य में विघ्न-बाधा डालने वाला माना जाता है, वह ऐसा व्यक्ति नहीं है जो कभी-कभार गलती करता है। बल्कि, उनकी मानवता इतनी बुरी है कि वे हमेशा लापरवाही भरे दुष्कर्म करते रहते हैं और कई बुरे काम करते रहते हैं। ऐसे व्यक्तियों में निःसंदेह कुकर्मियों का सार होता है। कुकर्मियों को संभालने के लिए भी कुछ बुद्धिमानी भरे तरीकों की आवश्यकता होती है। तुम्हें पृष्ठभूमि और परिवेश पर और इस बात पर विचार करने की आवश्यकता होती है कि कुकर्मियों से निपटने पर वे क्या कदम उठा सकते हैं, और क्या इससे कलीसिया में परेशानी खड़ी हो सकती है। केवल इन पहलुओं पर सावधानीपूर्वक विचार करने पर ही तुम मामले को उचित ढंग से, सत्य सिद्धांतों के अनुरूप और बुद्धि से काम लेते हुए संभाल सकते हो। जो लोग सत्य समझते हैं, वे ऐसे मुद्दों से निपटते समय अनजाने में ही सिद्धांतों को समझ लेंगे। जैसे-जैसे वे यह कार्य करेंगे, वे धीरे-धीरे समझ लेंगे कि विभिन्न लोगों के साथ कैसे व्यवहार करना है, तरीके और पद्धतियाँ विकसित करेंगे, और उनके मन बुद्धि से भरे होंगे। लेकिन अगुआओं में इन तरीकों, पद्धतियों और बुद्धि की पूरी तरह से कमी होती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वे परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील नहीं होते; वे इस बात पर विचार नहीं करते कि परमेश्वर के घर का कार्य प्रभावित होगा या नहीं, या अगुआओं और कार्यकर्ताओं को खतरे का सामना करना पड़ेगा या नहीं। चूँकि वे इन बातों पर विचार नहीं करते, इसलिए वे मामलों को बिना सिद्धांतों के और उससे भी अधिक बिना बुद्धि के निपटाते हैं। नकली अगुआ इन समस्याओं को संभाल नहीं पाते और इनसे सबक नहीं सीखते, जिससे यह साबित होता है कि वे सीखने के लिए तैयार नहीं हैं, अयोग्य हैं, उचित कार्यों की उपेक्षा करते हैं, तथा कोई भी काम करने में असमर्थ हैं। जब वे कुकर्मियों और मसीह-विरोधियों को बुराई करते और विघ्न डालते हुए देखते हैं, तो वे न तो इन लोगों को उजागर करते हैं और न ही मुद्दों को हल करते हैं। वे केवल अपने हितों की रक्षा के बारे में सोचते हैं, कलीसिया के कार्य या परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश के बारे में कोई परवाह नहीं करते। कुछ नकली अगुआ कमजोर लोगों को धमकाते हैं और साथ ही अपने से अधिक शक्तिशाली लोगों से डरते भी हैं; वे लगातार अपेक्षाकृत नम्र लोगों को धमकाते हैं और उनके सामने अपनी ताकत का दिखावा करते हैं, लेकिन जब उनका सामना कुकर्मियों और मसीह-विरोधियों से होता है तो वे केवल मुस्कुराते हैं और चापलूसी करते हैं। क्या परमेश्वर ऐसे नकली अगुआओं और नकली कार्यकर्ताओं को पसंद कर सकता है जिनके पास कोई सिद्धांत नहीं है? बिल्कुल नहीं। क्या परमेश्वर का घर ऐसे लोगों को अगुआ और कार्यकर्ता बनने के लिए तैयार कर सकता है जो कमजोरों पर रौब जमाते हैं और ताकतवरों से डरते हैं, और जिनमें न्याय की कोई समझ नहीं है? बिल्कुल नहीं। ये सभी लोग छद्म-विश्वासी और अविश्वासी हैं जिनके पास कोई विवेक या तर्क नहीं है और वे सत्य बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते हैं, और परमेश्वर का घर उन्हें नहीं चाहता है।

जब किसी नकली अगुआ के काम में समस्याएँ आती हैं, तो उसकी प्रतिक्रिया हमेशा जिम्मेदारी से बचने की होती है। उनका सबसे आम कथन है, “मैंने उनके साथ संगति कर ली है।” यहाँ निहितार्थ यह है कि “मैंने वह सब कह दिया है जो मुझे कहना चाहिए था, इसलिए अगर कुछ गलत होता है तो यह उनकी जिम्मेदारी है। मेरा इससे कुछ लेना-देना नहीं है।” यही कारण है कि “मैंने उनके साथ संगति कर ली है” वाक्य नकली अगुआओं के लिए एक ताबीज और आदर्श-वाक्य होता है। अगर नकली अगुआ किसी मसीह-विरोधी को खुद को कानून मानते हुए, निरंकुशता से काम करते हुए और कलीसिया में अशांति पैदा करते हुए देखता है, तो भी वह संगति और सहायता के तरीके का ही उपयोग करता है। प्रोत्साहन और चेतावनी के कुछ शब्द कहने के बाद वह मान लेता है कि मसीह-विरोधी आज्ञाकारी और विनम्र हो जाएगा, और अब लोगों को गुमराह नहीं करेगा या कलीसियाई जीवन को बाधित नहीं करेगा। क्या यह मूर्खतापूर्ण मान्यता नहीं है? मसीह-विरोधियों की गड़बड़ियों पर रोक लगाने के लिए इस तरह के मूर्खतापूर्ण दृष्टिकोण का उपयोग करना दर्शाता है एक नकली अगुआ कैसे काम करता है, और यह सच में पूरी तरह से मूर्खता है! नकली अगुआ आँख मूँदकर फालतू के काम में संलग्न रहने के अलावा कुछ नहीं करते। वे अपने काम के मूलभूत कार्य निष्पादित करने में असमर्थ होते हैं और खुद को सामान्य मामलों में व्यस्त रखते हैं। वे उन लोगों का सिंचन नहीं करते जो सत्य को स्वीकार करने में सक्षम हैं, वे उन लोगों को नहीं रोकते जो बाधा डालते हैं और परेशान करते हैं, और वे उन लोगों को बाहर नहीं निकालते जो लापरवाही से बुरे कार्य करते हैं और बार-बार चेतावनी दिए जाने के बावजूद बदलने से इनकार कर देते हैं। वे विशेष रूप से इस बात पर गौर नहीं करते हैं कि मसीह-विरोधी बुरे काम कैसे करते हैं और कैसे विघ्न डालते हैं। वे न तो उन्हें उजागर करते हैं और न ही उन्हें पहचानते हैं, न ही उन्हें बाहर निकालते या निष्कासित करते हैं, और मसीह-विरोधियों को बुरे काम करने और कलीसिया के कार्य में विघ्न डालने देते हैं। वे इसकी कोई परवाह नहीं करते और सोचते हैं कि मसीह-विरोधियों के बुरे कार्यों का उनसे कोई लेना-देना नहीं है। नकली अगुआ, अपने काम में, केवल औपचारिकताएँ निभा पाते हैं; वे बस सामान्य मामलों से संबंधित थोड़ा-बहुत काम करते हैं और फिर सोचते हैं कि उन्होंने वास्तविक काम कर लिया है और वे अगुआओं के मानक पर खरे उतरते हैं। कलीसिया के कार्य में भले ही कोई भी विघ्न-बाधाएँ डाले, वे केवल उन्हें कुछ धर्म-सिद्धांत बताते हैं, कुछ उपदेश और अनुस्मारक देते हैं, और सोचते हैं कि समस्या हल हो गई है। वे खुद को सारा दिन व्यस्त रखते हैं, बड़े और छोटे दोनों तरह के मामले देखते हैं, और मानते हैं कि वे अच्छा काम कर रहे हैं। वे यह कहते हुए बड़ाई भी करते हैं, “हमारी कलीसिया को देखो। हरेक का अच्छा उपयोग किया जाता है : जो सुसमाचार का प्रवचन दे सकते हैं वे सुसमाचार का प्रवचन दे रहे हैं, जो वीडियो बना सकते हैं वे वीडियो बना रहे हैं, जो गा सकते हैं वे भजन रिकॉर्ड कर रहे हैं—हमारा कलीसियाई जीवन फलफूल रहा है!” हालाँकि, उन्हें कलीसिया में छिपी हुई अनेक समस्याएँ बिल्कुल भी दिखाई नहीं देती हैं। वे उन कुकर्मियों और छद्म-विश्वासियों को संभालने की हिम्मत नहीं जुटा पाते जो निरंतर कलीसिया के जीवन में विघ्न-बाधा डालते रहते हैं, इसलिए वे उन्हें नजरंदाज कर देते हैं। वे मसीह-विरोधियों की ओर से आँखें मूंद लेते हैं जो अपने तरीकों के अनुसार कार्य करते हैं, उनमें से हरेक लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने और अपने खुद के छोटे गुट बनाने की कोशिश में लगा रहता है। वे उन नए विश्वासियों द्वारा किए जाने वाले अनेक सवालों को संबोधित करने में असमर्थ होते हैं जो धार्मिकता के भूखे-प्यासे हैं। इन वास्तविक समस्याओं का समाधान करने के तरीके ढूंढने के बजाए, नकली अगुआ हमेशा उनसे बचने का प्रयास करते हैं, फिर भी यह दावा करते हैं कि “कलीसियाई जीवन फलफूल रहा है।” क्या यह दिखावा और धोखाधड़ी नहीं है? नकली अगुआ इन छद्म-विश्वासियों, कुकर्मियों, और मसीह-विरोधियों को कलीसिया से बाहर निकाले बिना या उनसे निपटे बिना कलीसिया में ही छोड़ देते हैं, जिससे वे लापरवाही से गलत काम करते हैं और कलीसिया के जीवन को पूरी तरह से अस्त-व्यस्त कर देते हैं, और इस दौरान वे ऐसा दिखावा करते हैं जैसे उन्हें यह सब दिखाई ही नहीं देता। ऐसे नकली अगुआ पूरी तरह से अंधे होते हैं! वे यह सोचते हुए छद्म-विश्वासियों, कुकर्मियों, और मसीह-विरोधियों के लिए सुरक्षात्मक आवरण का काम करते हैं, और इससे उन्हें गर्व की भावना भी मिलती है, कि इन भ्रष्ट लोगों को बाहर नहीं निकालना परमेश्वर के चुने हुए लोगों से प्रेम करना और उनका बचाव करना है। क्या यह कलीसिया के कार्य में विघ्न-बाधा डालना नहीं है? क्या यह जानबूझकर परमेश्वर का प्रतिरोध करना और उसके विरुद्ध कार्य करना नहीं है? लेकिन नकली अगुआओं को इसके बारे में कोई जागरूकता नहीं होती है। यदि तुम उनसे पूछते हो कि क्या इन वास्तविक समस्याओं का समाधान हो गया है, तो वे कहेंगे, “मैंने उनकी काट-छाँट कर दी है; मैंने उनके साथ संगति कर ली है,” इसका तात्पर्य यह है कि समस्याएँ हल हो गई हैं और अब उनसे इसका कोई लेना-देना नहीं है। क्या यह जिम्मेदारी से बचना नहीं है? नकली अगुआ के लिए, जब भी कोई कदाचार करता है, तो जब तक वे अनमने ढंग से अपराधी की काट-छाँट करते हैं और उसे कुछ अनुस्मारक और उपदेश देते हैं, तबतक उनका काम पूरा हो जाता है, और मानो उसने समस्या का समाधान कर लिया है, क्या यह धोखेबाजी में लिप्त होना नहीं है? नकली अगुआ स्पष्ट रूप से छद्म-विश्वासियों, कुकर्मियों और मसीह-विरोधियों को तुरंत बाहर निकालने विफल रहते हैं, और फिर वे यह कहते हुए दिखावटी बहाने बनाते हैं, “मैंने उनके साथ परमेश्वर के वचन पर संगति की, वे सभी जान गए कि उन्होंने क्या किया और उन्होंने पछतावा महसूस किया, वे सभी रोए और बोले कि वे निश्चित रूप से पश्चात्ताप करेंगे और अब अपना राज्य स्थापित करने का प्रयास नहीं करेंगे।” क्या ये नकली अगुआ घर-घर खेलने वाले बच्चे की तरह खुद को धोखा नहीं दे रहे? ये छद्म-विश्वासी, कुकर्मी और मसीह-विरोधी सभी ऐसे लोग हैं, जो सत्य से चिढ़ते हैं। उनमें से कोई भी सत्य को बिलकुल भी स्वीकार नहीं करता, और वे परमेश्वर के उद्धार का लक्ष्य नहीं हैं, बल्कि वे परमेश्वर की अतिशय नफरत और घृणा के लक्ष्य हैं। लेकिन नकली अगुआ इन छद्म-विश्वासियों, कुकर्मियों और मसीह-विरोधियों को भाई-बहनों की तरह मानते हैं, और प्रेम से उनकी मदद करते हैं। यहाँ समस्या का प्रकृति क्या है? क्या यह मूर्खता और अज्ञानता है, जो उन्हें इन लोगों को स्पष्ट रूप से देखने से रोकती है, या वे उनके नाराज होने के डर से उन्हें खुश करने की कोशिश करते हैं? कारण जो भी हो, जो सबसे ज्यादा मायने रखता है, वह यह है कि नकली अगुआ वास्तविक काम नहीं करते, और वे सत्य स्वीकार नहीं करते, या वे अपनी गलतियाँ नहीं मानते। यह ये दिखाने के लिए पर्याप्त है कि नकली अगुआओं में बिलकुल भी सत्य की कोई वास्तविकता नहीं होती। वे परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाओं के अनुसार कार्य नहीं करते, और विशेष रूप से जब कलीसिया को शुद्ध करने की बात आती है, तो वे अनमने ढंग काम करते हैं। वे केवल बेमन से कुछ स्पष्ट कुकर्मियों को बाहर निकालते हैं। जब उन्हें उजागर किया जाता है और उनकी काट-छाँट की जाती है, तो वे जिम्मेदारी से बचने और अपने पक्ष में बहस करने के लिए विभिन्न कारण और बहाने तक ढूँढ़ते हैं। इसलिए नकली अगुआ, जो कोई वास्तविक कार्य नहीं करता, एक ऐसी बाधा होता है, जो परमेश्वर की इच्छा पूरी होने से रोकता है। नकली अगुआ थोड़ा बहुत सतही, और सामान्य मामलों से संबंधित काम करते हैं, जिसका कोई मोल नहीं होता। वे कलीसिया में उत्पन्न होने वाली विभिन्न समस्याओं का समाधान कभी नहीं करते, वे बस उन्हें टालते हैं, इससे न केवल कलीसिया के कार्य की सामान्य प्रगति में देरी होती है, बल्कि परमेश्वर के चुने हुए लोगों का जीवन-प्रवेश भी प्रभावित होता है। स्पष्ट रूप से नकली अगुआ कलीसिया के कार्य को बाधित और अव्यवस्थित करते हैं और छद्म-विश्वासियों, कुकर्मियों और मसीह-विरोधियों के लिए सुरक्षा की छतरियों के रूप में कार्य करते हैं। आध्यात्मिक युद्ध के महत्वपूर्ण क्षण में, वे परमेश्वर का विरोध करने और उसे धोखा देने के लिए कु‍कर्मियों और मसीह-विरोधियों के पक्ष में खड़े होते हैं। क्या यह परमेश्वर से विश्वासघात की अभिव्यक्ति नहीं है? नकली अगुआओं के विचारों और व्यवहार को देखने से यह स्पष्ट होता है कि वे सत्य का अनुसरण करने वाले लोग नहीं होते। वे सत्य बिलकुल भी नहीं समझते, और वे अगुआई का कार्य करने के लिए पूरी तरह से अयोग्य होते हैं।

नकली अगुआ लोगों से परमेश्वर के वचनों के अनुसार नहीं अपितु अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार व्यवहार करते हैं। वे बिना किसी सिद्धांतों के कार्य करते हैं, और जो चाहते हैं वहीं करते हैं। जब वे देखते हैं कि मसीह-विरोधी कलीसिया में विघ्न डाल रहे हैं, तो नकली अगुआ उनसे नफरत नहीं करते। वे मानते हैं कि परमेश्वर के कुछ वचनों को मसीह-विरोधियों को पढ़कर सुनाने से उनकी विघ्न-बाधाऍं सीमित की जा सकती हैं। मसीह-विरोधी किस तरह के लोग हैं? वे दानव हैं, वे शैतान हैं! मसीह-विरोधी चाहे कितने भी वर्षों से परमेश्वर पर विश्वास करते रहे हों, वे सत्य बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते हैं और वे कलीसिया के कार्य में विघ्न-बाधाऍं डाल सकते हैं और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश में बाधा डाल सकते हैं। वे वास्तविक जीवन के दानव और शैतान हैं। नकली अगुआ मसीह-विरोधियों को पश्चाताप का एहसास कराने और परमेश्वर के वचनों के कुछ अंश पढ़कर उनका मन बदलने की उम्मीद करते हैं। क्या यह बेहद मूर्खतापूर्ण नहीं है? मसीह-विरोधियों जैसे लोग सत्य को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते हैं। चाहे उन्होंने कितने भी बुरे काम क्यों न किए हों, वे खुद पर चिंतन-मनन या खुद को जानने का प्रयास नहीं करेंगे, और चाहे उन्होंने कितनी भी गलतियाँ क्यों न की हों, वे अपनी त्रुटियाँ स्वीकार नहीं करेंगे। वे कमबख्त नरक के लिए नियत हैं, फिर भी नकली अगुआ सोचते हैं कि परमेश्वर के वचनों के कुछ अंश पढ़ने और कुछ उपदेश देने से वे बदल सकते हैं—क्या यह खयाली पुलाव पकाना नहीं है? यदि भ्रष्ट मानवजाति इतनी आसानी से सत्य स्वीकार कर लेती, तो परमेश्वर को न्याय और ताड़ना का कार्य करने की आवश्यकता नहीं होती। परमेश्वर अपने कार्य में इतने सारे वचन क्यों कहता है और इतने सारे सत्य क्यों व्यक्त करता है? ऐसा इसलिए है क्योंकि लोगों को बचाना आसान नहीं है, क्योंकि लोगों की मुश्किलें बहुत ज्यादा हैं और उनका विद्रोह बहुत बड़ा है! केवल उसी को बचाया जा सकता है जो सत्य को स्वीकार कर सकता है। जो सत्य से विमुख हैं और उससे नफरत करते हैं उन्हें नहीं बचाया जा सकता। हालाँकि, नकली अगुआओं का मानना है कि यदि वे छद्म-विश्वासियों, कुकर्मियों, और मसीह-विरोधियों को कुछ कठोर शब्द कह देते हैं, तो ये व्यक्ति पश्चाताप महसूस करेंगे और स्वयं को जानेंगे, और यदि वे तब उनसे कुछ उपदेशात्मक और सांत्वनापूर्ण शब्द कहेंगे, तो वे पश्चाताप करेंगे, जिससे वे अपने कर्तव्यों को करने पर अपना ध्यान केंद्रित कर सकेंगे, वफादार बन सकेंगे, और स्वभाव में परिवर्तन कर पाएँगे, और मसीह-विरोधी आज्ञाकारी भेड़ में बदल जाएँगे। क्या यह एक मूर्खतापूर्ण विचार नहीं है? यह विचार बहुत ज्यादा मूर्खतापूर्ण है! यह किसी पगले की बकवास जैसा है—चीजें इतनी सरल कैसे हो सकती हैं! परमेश्वर तीस वर्षों से अधिक समय से न्याय करने का काम कर रहा है, और लोगों को कितना आत्म-ज्ञान और परिवर्तन हासिल हुआ है? केवल चंद लोगों को कुछ परिणाम प्राप्त हुए हैं। जो लोग सत्य से प्रेम नहीं करते हैं, चाहे वे कितने भी धर्मोपदेश क्यों न सुन लें, ज्यादा से ज्यादा उन्हें कुछ धर्म-सिद्धांत समझ आएँगे। उनका जीवन स्वभाव बिल्कुल भी नहीं बदला है, और यहाँ तक कि वे अच्छा व्यवहार और अच्छे कार्य करते शायद ही दिखाई देते हैं। ये किस तरह के लोग हैं? ये वो लोग हैं जो पेट भर खाते हैं—वे सत्य बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते हैं। उनका ध्यान केवल परमेश्वर के अनुग्रह पर होता है और केवल आशीष की तलाश में रहते हैं; वे कुछ नहीं बस इंसान की खाल में भेड़िये हैं! शैतान ने लोगों को बुरी तरह भ्रष्ट कर दिया है; वे भ्रष्ट स्वभावों से भरे हुए हैं, और उनकी हड्डियों और खून में शैतान का विष भरा हुआ है। यदि वे सत्य, परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को स्वीकार नहीं कर सकते, तो वे परमेश्वर के सामने सचमुच समर्पण कैसे कर सकते हैं? वे अपना कर्तव्य वफादारी से कैसे निभा सकते हैं? वे परमेश्वर का भय कैसे मान सकते हैं और बुराई से कैसे दूर हो सकते हैं? क्या उद्धार पाना इतना आसान हो सकता है जितनी लोग कल्पना करते हैं? शैतान ने लोगों को हजारों सालों से, उस हद तक भ्रष्ट किया है कि वे दानव बन गए हैं। अब परमेश्वर उनको बचाने आया है, और चाहे वह कितने भी वचन क्यों न बोले, दानव बन चुके लोगों को सचमुच इंसान बनाना अविश्वसनीय रूप से कठिन कार्य है। न केवल परमेश्वर को अनेक सत्य उजागर करने की जरूरत होती है, अपितु लोगों को भी सत्य का अनुसरण करके, उसे स्वीकार करके, और उसका अभ्यास करके सहयोग करने के लिए अपनी भरपूर कोशिश करनी चाहिए—केवल तभी वे शैतान के प्रभाव से मुक्त हो सकते हैं और परमेश्वर का उद्धार पा सकते हैं। परमेश्वर ने एक बार कहा था, “बुलाए बहुत जाते हैं, लेकिन चुने कुछ ही जाते हैं।” हालाँकि अनेक लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं, जिन लोगों को परमेश्वर के न्याय और ताड़ना का सचमुच अनुभव होता है, और जो उसके कार्य के प्रति पूरी तरह समर्पित हो जाते हैं, केवल उन्हें ही शुद्ध किया और पूर्ण बनाया जा सकता है। जो छद्म-विश्वासी, कुकर्मी, और मसीह-विरोधी थोड़ा-भी सत्य स्वीकार नहीं करते, अपने दिलों में सत्य से विमुख हैं, उन्हें परमेश्वर का उद्धार कभी प्राप्त नहीं होगा, और परमेश्वर के कार्य द्वारा केवल उनका खुलासा किया और हटाया ही जा सकता है। नकली अगुआओं को परमेश्वर के कार्य की कोई समझ नहीं है। वे लोगों को बचाने के परमेश्वर के कार्य के बारे में ऐसे सरल शब्दों में सोचते हैं, और मानते हैं कि कुकर्मियों और मसीह-विरोधियों को परमेश्वर के कुछ वचन पढ़कर सुनाने और काट-छाँट के कुछ कठोर वचन कहने से, वे पश्चाताप करेंगे और बदल जाएँगे, और अपने कर्तव्यों को निभाने में वफादार बन जाएँगे। यहाँ समस्या क्या है? सत्य का अनुसरण न करने और सत्य को न समझने के अलावा, यह इसलिए भी है क्योंकि नकली अगुआओं की क्षमता बेहद खराब होती है; इसलिए, जब परमेश्वर के कार्य और परमेश्वर लोगों को कैसे बचाता है, इसकी बात आती है तो उन्हें बिल्कुल भी समझ नहीं होती है। यह देखने के लिए कि किसी व्यक्ति का सार क्या है, क्या उसमें सत्य वास्तविकता है, और उसके साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए, उसकी क्षमता और सत्य के प्रति उसके दृष्टिकोण पर विचार करना आवश्यक है—तुम्हें यह देखना चाहिए कि सत्य के बारे में उसकी समझ कैसी है और क्या वह सत्य स्वीकार कर सकता है। तो, यह मापने का आधार क्या है कि कोई व्यक्ति सत्य समझ सकता है या नहीं? यह मुख्य रूप से उसकी काबिलियत की गुणवत्ता और इस बात पर निर्भर करता है कि परमेश्वर के वचनों की उसकी समझ शुद्ध है या नहीं। कुछ लोग पचास या साठ साल तक जीवित रहते हैं और फिर भी मानवजाति के भ्रष्टाचार के सार और वास्तविकता की असलियत नहीं जान पाते हैं। वे अभी भी मानव समाज को सुंदर मानते हैं और दूसरों के साथ शांति और सद्भाव से रहना चाहते हैं। क्या यह बेहद मूर्खतापूर्ण और सरल होना नहीं है? यदि परमेश्वर पर विश्वास करने से सभी लोग अच्छे इंसान बन सकते, तो क्या लोगों को बचाने के लिए परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के कार्य की आवश्यकता होती? नकली अगुआ इसका निर्णय कि विभिन्न लोग असल में कैसे होते हैं, परमेश्वर के वचनों के आधार पर नहीं लेते, बल्कि केवल उनके बाहरी व्यवहार और व्यक्तिगत प्रभावों के आधार पर निर्णय लेते हैं। वे जो काम करते हैं वह भी बच्चों के घर-घर खेलने जैसे बहुत सतही होते हैं। वे सोचते हैं कि वे कभी-कभी किसी निश्चित स्थिति पर लागू करने के लिए परमेश्वर के सही वचन पा सकते हैं, और लोगों को परमेश्वर के कुछ वचन पढ़कर सुनाने मात्र से उनमें बदलाव आ जाएगा : “देखो, मेरी अगुआई और प्रोत्साहन के तहत, मेरी प्रेमपूर्ण सहायता से, परमेश्वर के वचनों ने लोगों पर प्रभाव डाला है। वे अब मसीह-विरोधी बने रहना नहीं चाहते, और वे परमेश्वर में विश्वास करने के बारे में अपने विचार बदलने को तैयार हैं। वे अब सत्ता और लाभ के लिए होड़ नहीं करेंगे, न ही वे स्वतंत्र राज्य स्थापित करेंगे; वे अब कलीसिया के काम में विघ्न-बाधा नहीं डालेंगे और न ही भाई-बहनों को गुमराह करेंगे या उन्हें अपने साथ नहीं जोड़ेंगे!” क्या तुम उन्हें रोक सकते हो? तुम उन लोगों को कभी नहीं रोक सकते जो वास्तव में कुकर्मी हैं और विघ्न-बाधाऍं डालते हैं। क्योंकि उनमें कुकर्मियों का सार है, वे दिन या रात के किसी भी समय बुरे काम करते हैं; जब भी उन्हें मौका मिलता है, वे बुरे काम करते हैं। क्या तुम्हारे लिए उन्हें कलीसिया से बाहर नहीं निकालना ठीक है? क्या वे स्वेच्छा से अपने बुरे कार्य छोड़ देंगे? वे इंसान नहीं हैं; वे दानव और शैतान हैं! दानव शैतान ने कितने साल परमेश्वर का विरोध किया है? यह आज भी परमेश्वर का विरोध करता है। मसीह-विरोधी और सभी प्रकार के कुकर्मी जो परमेश्वर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था में विघ्न-बाधा डालते हैं, वे वास्तविक जीवन के दानव और शैतान हैं; वे वास्तविक जीवन में दुश्मन हैं। क्या वे तुम्हारे कुछ शब्दों या तुम्हारे प्रेमपूर्ण हृदय के कारण अपना सार बदल सकते हैं? तुम बहुत मूर्ख हो! तुम सोचते हो कि तुम लोगों को पाप से बचा सकते हो, सिर्फ इसलिए कि तुम थोड़ा धर्म-सिद्धांत समझते हो? क्या तुम उन्हें बचा सकते हो? नरक उनकी नियति है, और तुम सोचते हो कि कुछ अच्छे शब्द उन्हें बदल सकते हैं। क्या यह इतना आसान है? अगर लोगों को बचाना इतना आसान होता, तो परमेश्वर को इतने सारे वचन कहने या न्याय और ताड़ना का कार्य करने की जरूरत नहीं होती। क्या उसे लोगों को बचाने के लिए इतना समय लगाने और श्रमसाध्य प्रयास करने की जरूरत होती?

अब, कलीसिया में, विभिन्न लोगों का पहले ही खुलासा किया जा चुका है और उन्हें उनके प्रकार के अनुसार समूहीकृत किया जा चुका है। हरेक को उनकी किस्म के अनुसार वर्गीकृत किया जाएगा, और परमेश्वर के घर में इस बात को नियमित करने के लिए सिद्धांत और प्रशासनिक आदेश हैं कि विभिन्न प्रकार के लोगों के साथ कैसा व्यवहार करना है और उन्हें कैसे संभालना है। परमेश्वर में धैर्य और सहनशीलता, कृपा और प्रेमपूर्ण-करुणा, और धार्मिकता का स्वभाव है—लेकिन यह बात न भूलो कि परमेश्वर में क्रोध और प्रताप भी है। कुछ लोग कहते हैं, “परमेश्वर चाहता है कि प्रत्येक व्यक्ति बचाया जाए और वह नहीं चाहता कि कोई भी तबाही झेले।” यह सच है, लेकिन परमेश्वर चाहता है कि “प्रत्येक व्यक्ति” बचाया जाए, प्रत्येक चीज या प्रत्येक दानव को नहीं। जब लोग बर्बाद होते हैं, तो परमेश्वर को दुःख और शोक का एहसास होता है। जब दानव तबाह होते हैं, तो यह उनका सही अंत है और उचित सजा है; परमेश्वर उनके लिए दुःख नहीं होता है। यह परमेश्वर का स्वभाव है और लोगों से निपटने का उसका सिद्धांत है। लोग यह सोचते हुए हमेशा परमेश्वर का विरोध करना चाहते हैं कि वे छद्म-विश्वासी, कुकर्मी, और मसीह-विरोधी भी इंसान हैं। उनका मानना है कि जो निरंतर कलीसिया के कार्य में विघ्न-बाधाएँ डालते हैं वे भी इंसान हैं, जो रुतबे की होड़ में लगे रहते हैं और स्वतंत्र राज्यों की स्थापना करते हैं वे भी इंसान हैं, और जो निरंतर संकीणर्ता में लिप्त रहते हैं वे भी इंसान हैं। वे इन सभी शैतानी किस्म के लोगों को परमेश्वर के चुने हुए लोगों में सूचीबद्ध करते हैं। क्या यह बेतुकी बात नहीं है? परमेश्वर जो चाहता है क्या यह उसके विरुद्ध नहीं है? क्योंकि मामलों पर उनके दृष्टिकोण परमेश्वर के वचनों और सत्य के पूरी तरह विरुद्ध होते हैं, विभिन्न नकारात्मक हस्तियों, दानवों, और शैतानों के संबंध में उनकी राय परमेश्वर के वचनों के पूरी तरह विपरीत है, और बहुत भिन्न है। परमेश्वर ने शैतान का अनुसरण करनेवाले दानवों के साथ कभी भी इंसान जैसा व्यवहार नहीं किया है। परमेश्वर इन लोगों को कैसे परिभाषित करता है? वे दानव शैतान के अनुचर हैं; वे जानवर हैं। नकली अगुआ, अपने अच्छे इरादों और भ्रमित प्रेम की वजह से, और अपनी खुद की स्वेच्छाचारी सोच से विवश होकर, इन छद्म-विश्वासियों, दानवों और शैतान के अनुचरों को भाई-बहन मानते हैं। इसलिए, वे उनसे बड़ा प्रेम और दया जताते हैं, निरंतर उनकी सहायता और उनका समर्थन करते हैं। क्योंकि नकली अगुआ उन लोगों को अपना समर्थन, सहायता, और अगुआई प्रदान करते हैं, इसलिए सच्चे भाई-बहन, जिन्हें परमेश्वर बचाना चाहता है, बुरी तरह परेशान होते हैं; कलीसिया का जीवन कभी भी सही मार्ग पर प्रवेश नहीं कर पाता है, और भाई-बहन कभी भी सामान्य रूप से परमेश्वर के वचनों को खा और पी नहीं सकते और कुकर्मियों से किसी बाधा के बिना सत्य की संगति नहीं कर पाते हैं। क्या यह नकली अगुआओं की “उपलब्धि” नहीं है? उनकी “उपलब्धि” बेहद महत्वपूर्ण है : न केवल वे भाई-बहनों को बचाने में विफल होते हैं, अपितु वे उन कुकर्मियों और मसीह-विरोधियों को अनुचित सम्मान और संरक्षण भी प्रदान करते हैं। क्या इससे कलीसिया के कार्य में गड़बड़ी पैदा नहीं होती? ऐसा करने वाले नकली अगुआओं की प्रकृति गड़बड़ी करने वाली होती है, फिर भी वे सोचते हैं कि वे कलीसिया के कार्य को संभाल रहे हैं तथा परमेश्वर के चुने हुए लोगों की सहायता कर रहे और सहारा दे रहे हैं। परमेश्वर नकली अगुआओं के इन क्रियाकलापों को कैसे देखता है? परमेश्वर उनसे घृणा करता है, वह उनसे खास तौर पर घृणा करता है! नकली अगुआ वास्तविक कार्य नहीं करते हैं लेकिन शैतान के अनुचरों के रूप में काम करते हुए, कुकर्मियों को बचाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। इस वजह से परमेश्वर के चुने हुए लोग—जो सत्य से प्रेम करते हैं—कलीसिया का जीवन जीने के बावजूद कलीसिया का सहारा और पोषण पाने में असमर्थ रहते हैं, और अपने कर्तव्यों को पूरा करना चाहते हैं फिर भी उनकी सुरक्षा की गारंटी नहीं हो पाती है। नकली अगुआओं को इन मामलों का पूरी तरह पता होता है और वे सोचते हैं, “मैं हरेक के साथ समान व्यवहार करता हूँ, तो तुम लोग शिकायत क्यों कर रहे हो? मुझे तुम लोगों को संतुष्ट करने के लिए क्या करना पड़ेगा? लोगों से निष्‍पक्ष व्यवहार करने का यही अर्थ है। तुम लोग बस मीनमेख निकाल रहे हो और तुम लोगों को प्रसन्न करना बड़ा मुश्किल है। कोई बात नहीं, मैं परमेश्वर के प्रति जवाबदेह हूँ; मैं सब कुछ उसके सामने कर रहा हूँ!” जब वे ऐसी बयानबाजी करते हैं तो क्या वे तर्कसंगत बातों से परे नहीं हैं? क्या वे अत्यंत मूर्ख नहीं हैं? उन पर वास्तव में तर्कसंगत बातों का कोई असर नहीं होता और वे अत्यंत मूर्ख भी हैं। परमेश्वर का घर प्रतिदिन इस बारे में बात करता है कि परमेश्वर मानवजाति की रक्षा कैसे करता है, लेकिन नकली अगुआ कभी भी परमेश्वर के वचनों को नहीं समझते हैं। वे सोचते हैं कि चाहे व्यक्ति कोई भी क्यों न हो, चाहे उनका सार कुछ भी क्यों न हो, चाहे उन्होंने जो काम किए वे कितने भी बुरे क्यों न हों, और चाहे उनकी मानवता कितनी भी द्वेषपूर्ण क्यों न हो, परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन में और लोगों के प्रेमपूर्वक समर्थन की सहायता से, वे अंततः पश्चाताप करेंगे और वापस लौट आएँगे। क्या यह नजरिया पूरी तरह गलत नहीं है? (हाँ है।) परमेश्वर के वचनों की गंभीर रूप से गलत समझ रखने के अलावा, नकली अगुआ परमेश्वर के इरादों को समझने का दिखावा भी करते हैं और एकतरफा ढंग से सोचते हुए और अपनी स्वार्थी इच्छाओं के अनुसार काम करते हुए, वे कुकर्मियों और मसीह-विरोधियों के प्रति दया और प्रेम दिखाते हैं। और इसका नतीजा क्या होता है? वे कुकर्मियों और मसीह-विरोधियों को बचाते हैं, उनके साथी बन जाते हैं, उन्हें कलीसिया के कार्य और कलीसिया के जीवन में विघ्न-बाधा डालने के लिए अवसर और पसंदीदा स्थान प्रदान करते हैं। इस बीच, जिन भाई-बहनों को वास्तव में सुरक्षा की आवश्यकता है, उन्हें नकली अगुआओं द्वारा नजरअंदाज कर दिया जाता है, वे उनसे कभी नहीं पूछते हैं, “तुम लोगों को कलीसिया में इन कुकर्मियों और मसीह-विरोधियों, और नकारात्मकता और धारणाएँ फैलाने वाले लोगों को देखकर कैसा महसूस होता है? क्या तुम लोग उन्हें कलीसिया में रखे जाने से सहमत हो? क्या तुम लोग उनके साथ मिलकर अपने कर्तव्य निभाने और कलीसिया का जीवन जीने के लिए तैयार हो?” वे कभी नहीं पूछते कि भाई-बहन इस बारे में क्या सोचते हैं। तुम लोग क्या सोचते हो—क्या ऐसे अगुआ और कार्यकर्ता बहुत ही घृणित नहीं हैं? वे अगुआ और कार्यकर्ता के नाम तले काम करते हैं, ऐसी उपाधियाँ धारण करते हैं, लेकिन वास्तव में वे शैतान और उसके अनुचरों की सुरक्षा करने का काम कर रहे हैं। यह वाकई दुःख की बात है! अगर तुम कहते हो कि ऐसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं की काबिलियत खराब है और वे वास्तविक काम नहीं करते हैं, तो वे शायद इस बात से सहमत न हों। वे यह सोचकर अन्याय महसूस करेंगे कि वे हर दिन व्यस्त रहते हैं और बेकार नहीं बैठते, तो ऐसा कैसे हो सकता है कि वे वास्तविक काम न करते? लेकिन उनकी अभिव्यक्तियों के आधार पर—सिक्के के दोनों पहलू महत्वपूर्ण होते हैं, दोनों तरफ के लोगों को समान मानना, निष्पक्ष व्यवहार को एक बहाने के रूप में उपयोग करना ताकि कुकर्मी और बाधा-विघ्न डालने वाले लोग कलीसिया पर हावी हो सकें, तथा कलीसिया में विभिन्न बुरे कामों को जारी रहने देना—ये अगुआ और कार्यकर्ता कौन हैं? उनकी अभिव्यक्तियों, उनके काम करने के तरीके और सिद्धांतों और काम करने के उनके प्रयोजनों के आधार पर, वे निःसंदेह नकली अगुआ और भ्रमित मूर्ख लोग हैं। क्या ऐसा कहना एकदम सही है? (हाँ।)

समाज में, चाहे वे जिस भी समूह या वर्ग के लोग हों, वे बुरे लोगों और अच्छे लोगों के बीच अंतर नहीं करते हैं, वे इस संबंध में तो और भी कम चर्चा करते हैं कि शैतान लोगों को कैसे भ्रष्ट करता है या भ्रष्ट मानवजाति का सार क्या है; वे अच्छाई और बुराई के बीच भी अंतर नहीं करते हैं। लेकिन परमेश्वर के घर में, हरेक चीज परमेश्वर के वचनों पर आधारित होती है; सत्य कभी नहीं बदलता, और परमेश्वर के वचन हर चीज पूरी करते हैं। कलीसिया में, परमेश्वर के वचनों से सभी प्रकार के लोगों का खुलासा किया जाता है, और उनमें से हरेक को उनके प्रकार के अनुसार स्वाभाविक रूप से समूहीकृत किया जाता है। सभी प्रकार के लोगों का उनकी मानवता, उद्यम और सार के आधार पर सर्वोत्तम उपयोग किया जाना चाहिए। क्या यह लोगों को उनकी श्रेणी के अनुसार वर्गीकृत करना है? यह लोगों को उनकी श्रेणी के अनुसार वर्गीकृत करना नहीं, अपितु उन्हें वर्गीकृत करना है। प्रत्येक व्यक्ति को उसके प्रकार के अनुसार समूहीकृत किया जाना चाहिए—वे जहाँ के हैं उन्हें वहीं रखा जाना चाहिए। एकसाथ मिलाना स्वीकार्य नहीं है; मिलाना अस्थायी है और उसकी नियत अवधि है। उदाहरण के लिए, जब बारदाना और गेंहू को एकसाथ मिलाया जाता है, तो यदि बारदाने को निकालने से गेंहू प्रभावित होता है और उस वजह से गेंहू खत्म हो सकता है, तो बारदाने को अभी अलग नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन उन्हें न निकालने के मायने ये नहीं हैं कि उन्हें वर्गीकृत नहीं किया गया है—तो उन्हें कब निकाला जाना चाहिए? सही समय पर; परमेश्वर वक्त तैयार करेगा। अब हरेक को उसके प्रकार के अनुसार समूहीकृत करने का समय है; हर प्रकार के लोगों को वर्गीकृत किया जाना चाहिए। यह आवश्यक है। यह कार्य क्यों किया जाना चाहिए? सैद्धांतिक परिप्रेक्ष्य में, परमेश्वर के वचनों का आधार होता है; वास्तविक स्थिति के परिप्रेक्ष्य में, यह करना आवश्यक है—इसका व्यावहारिक मोल है, और ऐसा करना अनिवार्य है। जब बारदाना को निकालने से गेंहू प्रभावित नहीं होता है, तो बारदाना को निकाल लिया और गेंहू से अलग कर लिया जाना चाहिए। यदि छद्म-विश्वासी और बुरे लोगों—जो बारदाने के अनुरूप हैं—को भाई-बहन माना जाता है, तो यह परमेश्वर के लिए खुद को ईमानदारी से खपाने वालेसभी भाई-बहनों के लिए बहुत ही अनुचित है। एक बात यह है किये लोग अक्सर कलीसिया के कार्य में विघ्न-बाधा डालने वाले बुरे लोगों द्वारा बाधित, परेशान और प्रभावित किए जाएँगे, और वे इन्हें नुकसान पहुँचाएंगे। दूसरी बात यह है, छोटे आध्यात्मिक कद वाले कुछ लोग सत्य नहीं समझते और विघ्न-बाधा डालने वाले बुरे लोगों के संपर्क में आने पर विवश हो जाते हैं, नकारात्मक और कमजोर हो जाते हैं, या यहाँ तक कि लड़खड़ा जाते हैं। इसके अलावा, विघ्न-बाधा डालने वाले लोग जो कुछ करते हैं और जो भी शब्द बोलते हैं उनसे अफरा-तफरी, अव्यवस्था और उपद्रवी स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं। सबसे वास्तविक स्थिति यह है कि जब वे कोई कर्तव्य निभाते हैं या कोई काम करते हैं, तो वे लापरवाही से गलत काम करते हैं और सिद्धांतों का पालन नहीं करते हैं, जिसकी वजह से जनशक्ति, भौतिक संसाधनों, और वित्तीय संसाधनों का भारी अपव्यय होता है और कोई परिणाम प्राप्त नहीं होता। अंत में, क्या होता है? जब उन्हें बरखास्त कर दिया जाता है, तो हरेक को बुरे कार्यों के लिए भुगतान करना पड़ता है। काम को फिर से करना पड़ता है, और उन लोगों के बरखास्त होने से पहले खपत हुई जनशक्ति, भौतिक संसाधन, समय और हरेक की अत्यंत कीमती ऊर्जा लापरवाही से किए गए गलत कार्यों के कारण बर्बाद हो जाती है और उसकी भरपाई नहीं की जा सकती। इस कार्य पर उनका जो नकारात्मक प्रभाव पड़ता है वह बहुत ज्यादा है! कोई भी इसकी जिम्मेदारी नहीं उठा सकता है। बाद में अगर काम अच्छे से हो भी जाता है, तो कोई भी पहले हुए नुकसान की भरपाई नहीं कर सकता है। कुछ लोग कहते हैं कि उन्हें नुकसान के एवज में पैसे देने के लिए मजबूर करना चाहिए; ऐसा भी करना चाहिए, लेकिन क्या पैसे से समय खरीदा जा सकता है? क्या पैसे से भाई-बहनों के समय और ऊर्जा, या जो ईमानदार कीमत उन्होंने चुकाई, उसे खरीदा जा सकता है? नहीं, ऐसा नहीं हो सकता—वे अमूल्य हैं! कलीसिया में चाहे कितने भी लोग विघ्न-बाधा क्यों न डालें, उसके परिणाम अथाह होते हैं। अनेकों भाई-बहनों का जीवन प्रवेश प्रभावित होगा। नुकसान बहुत ज्यादा है और उसकी भरपाई नहीं की जा सकती। क्या भाई-बहनों के जीवन के नुकसान की भरपाई की जा सकती है? इस नुकसान के लिए कौन भुगतान करेगा? इसलिए, इन बुरे लोगों को बाहर निकाल देना चाहिए। वे सत्य का अनुसरण करने वाले भाई-बहनों के जैसे नहीं हैं। वे दानवों और शैतान के जत्थे से संबंधित हैं, जो परमेश्वर के घर में बिगाड़ने और बर्बाद करने आए हैं। यदि इन बुरे लोगों को कलीसिया से बाहर नहीं निकाला जाता, तो कलीसिया का कार्य और कलीसिया के जीवन की व्यवस्था की कोई गारंटी नहीं दी जा सकती है। चाहे किसी खास समूह में कितने ही लोग क्यों न हो, जब तक उनमें एक भी व्यक्ति विघ्न-बाधा डालनेवाला है—कोई भी व्यक्ति जो लापरवाही से बुरे काम करता है, सिद्धांतों के अनुसार कभी भी मामलों को संभालता नहीं है, कभी भी सकारात्मक चीजों या सत्य को स्वीकार नहीं करता, किसी की बात नहीं सुनता, चाहे उसकारुतबा या ताकत कुछ भी हो, वह स्वेच्छा से मनमाने ढंग से काम करता है, और अनिवार्य रूप से जीवित शैतान है—ऐसा व्यक्ति, जब तक कलीसिया में रहता है, आज या कल कलीसिया के कार्य में बहुत बड़ी विघ्न-बाधा डालेगा। जब उसे बाहर निकालने और उसे संभालने का दिन आता है, तो कितने लोगों को उसके कारण उत्पन्न हुए बुरे परिणामों और उपद्रवी स्थितियों को ठीक करना पड़ता है! इसलिए, इन बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों को बाहर निकालना या निष्‍कासित करना एक महत्वपूर्ण कार्य है जिसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को करना चाहिए और इसे लेकर उन्हें लापरवाह नहीं होना चाहिए। हालाँकि, जिन लोगों को बाहर निकाला या निष्‍कासित किया जाना चाहिए, उनके प्रति नकली अगुआ दया और प्रेम दिखाते हैं, उनके बुरे कार्यों के प्रति आँखें मूंद लेते हैं, उन्हें सहन करते हैं और भाई-बहनों के रूप में उन्हें स्थान देते हैं, और उनमें से जो उनके लिए उपयोगी होते हैं उन्हें प्रतिभावान व्यक्ति के तौर पर सम्मान देते हैं और उन्हें विकसित करते तथा उनका उपयोग करते हैं। चाहे वे कितने भी बुरे काम क्यों न करें, नकली अगुआ उन्हें निर्दोष ठहराने के बहाने ढूंढ लेते हैं, और उन्हें प्रेमपूर्वक सहायता और समर्थन भी देते हैं। एक स्तर पर, क्या यह जानबूझकर की गई गड़बड़ी नहीं है? (हाँ है।) नकली अगुआ अपने विचारों और अपनी खुद की दयालुता और उत्साह से कार्य करते हैं, और अंततः कलीसिया और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए बड़ी परेशानी खड़ी कर देते हैं! यदि ये बुरे लोग सत्ता पा जाते हैं, तो उनके कारण कलीसिया पर जो विपत्तियाँ आती हैं और जो परिणाम उसे भुगतने पड़ते हैं, उनकी गणना नहीं की जा सकती।

परमेश्वर के घर में फिलहाल ए‍क विनियम है कि चाहे कोई भी बुरे काम क्यों न करे, अगर इससे परमेश्वर के घर का नुकसान होता है, तो उसे इसकी भरपाई करनी होगी। यदि नुकसान बहुत ज्यादा है और इसके परिणाम गंभीर हैं, तो क्या समस्या का हल पैसे से भरपाई करके किया जा सकता है? कुछ नुकसान ऐसे होते हैं जिनकी भरपाई कितने भी पैसे से नहीं की जा सकती है; वे अपूरणीय और अप्राप्य होते हैं। प्रत्येक दिन अब बेहद कीमती और महत्वपूर्ण है। एकबार दिन बीत जाए, तो क्या उस समय को फिर से प्राप्त किया जा सकता है? वह भी अप्राप्य है। हम ऐसा क्यों कहते हैं कि कुछ चीजों का हाथ से निकल जाना जीवन भर का पछतावा होता है? ठीक इसीलिए क्योंकि समय को फिर से प्राप्त नहीं किया जा सकता है। मेरा यह कहने से क्या मतलब है? समस्याओं के होने के बाद उन्हें ह‍ल करने के लिए उन पर पैसे खर्च करने से अच्छा है समस्याओं के उत्पन्न होने से पहले उन्हें रोक दिया जाए; समस्याओं को हल करने का यह सबसे अच्छा तरीका है। “घोड़े के भाग जाने के बाद अस्तबल का दरवाजा बंद करना” अंतिम उपाय है। समस्या होने से पहले ही उसकी रोकथाम करना सबसे अच्‍छी बात होती है। इसका अर्थ है कि कोई विघ्न-बाधा उत्पन्न होने से पहले, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कलीसिया में विभिन्न प्रकार के लोगों के बारे में स्पष्ट विवेक और गहन समझ होनी चाहिए, और विभिन्न प्रकार के लोगों की अवस्थाओं, स्वभावों और अनुसरणों के साथ-साथ कर्तव्य निभाते समय उनके रवैये और दृष्टिकोण का सावधानीपूर्वक निरीक्षण करना चाहिए और उन्हें तुरंत समझना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सभी भाई-बहनों के पास अपने कर्तव्य निभाने के लिए कलीसिया का सामान्य जीवन और परिवेश हो। इस तरह, कलीसिया का कार्य व्यवस्थित तरीके से आगे बढ़ सकता है। ये अगुआओंऔर कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ हैं। बेशक, नकली अगुआ इस काम के लिए नहीं हैं; वे भ्रमित और बेकार लोग हैं। अब उनके पास एक चतुर विचार है : “जो कोई भी सिद्धांतों का पालन नहीं करता है और काम में गड़बड़ी करता है, उस पर जुर्माना लगाया जाएगा! अगर कोई मसीह-विरोधी कुछ गलत करता है, तो उस पर जुर्माना लगाया जाएगा!” वे सोचते हैं कि जुर्माना लगाना सबसे अच्छा समाधान और अभ्यास का सबसे अच्छा सिद्धांत है। अगर जुर्माना लगाने से सभी समस्याओं का समाधान हो सकता, तो सत्य का अनुसरण करने का क्या फायदा होता? नकली अगुआ को नकली क्यों कहा जाता है? इसलिए क्योंकि वह सत्य नहीं समझता है, और वह विनियमों का पालन करने को सत्य का अभ्यास करने के समान मानता है और जिन वचनों और धर्म-सिद्धांतों को वह समझता है उन्हें सत्य मानता है, और जब समस्याएँ होती हैं, तो वह बिल्कुल भी सही सिद्धांत या दिशा नहीं ढूंढ पाता है और समस्याओं का जड़ से समाधान नहीं कर पाता है। वह परमेश्वर के वचनों को नहीं समझता और यह नहीं समझ पाता है कि परमेश्वर का क्या मतलब है, लेकिन फिर भी काम करना चाहता है और अगुआ या कार्यकर्ता बनना चाहता है—कितनी मूर्खतापूर्ण बात है! इस संबंध में, नकली अगुआ की मुख्य अभिव्यक्ति क्या है? वह कलीसिया के काम में विघ्न-बाधा डालने वाले विभिन्न प्रकार के लोगों के सार को नहीं देख सकता है, उन्हें वर्गीकृत नहीं कर सकता है, और निश्चित रूप से सिद्धांतों के अनुसार उनके साथ व्यवहार नहीं कर सकता है और उन्हें संभाल नहीं सकता है। नकली अगुआ के मन में ये सब गड़बड़ झालाहै। वह अपनी उत्सुकता और अपनी खुद की धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर परमेश्वर के वचनों और उसके अर्थ के बारे मेंअनुमान लगाता है। साथ ही, वह यह मानते हुए परमेश्वर पर अपनी दयालुता, उत्साह, और व्यक्तिगत कल्पनाओं और धारणाओं को थोप देता है कि ये चीजें सत्य के अनुरूप हैं, परमेश्वर के इरादों के अनुरूप हैं, और परमेश्वर की इच्छा को प्रस्तुत कर सकती हैं। इस प्रकार, वह काम करने और परमेश्वर के चुने हुए लोगों की अगुआई करने के लिए इन चीजों पर भरोसा करता है। हम नकली अगुआओं की दूसरी अभिव्यक्ति पर संगति यहीं समाप्त करेंगे।

III. नकली अगुआ बुरे लोगों को उजागर नहीं करते और रोकते नहीं

इसके बाद, हम नकली अगुआओं की तीसरी अभिव्यक्ति पर संगति करेंगे, जोकि कलीसिया के कार्य में विघ्न-बाधा डालनेवाले लोगों की अनदेखी करना और उनके बारे में कोई पूछताछ नहीं करना है—यहाँ तक कि जब उन्हें पता चलता है कि बुरे लोग और मसीह-विरोधी कलीसिया के कार्य में बाधा डाल रहे हैं, तब भी वे इस पर ध्यान नहीं देते हैं। इसकी प्रकृति पहली दो अभिव्यक्तियों की अपेक्षा ज्यादा गंभीर है। इसे ज्यादा गंभीर क्यों कहा गया है? पहली दो अभिव्यक्तियाँ नकली अगुआओं की काबिलियत से जुड़ी हैं, लेकिन यह अभिव्यक्ति नकली अगुआओं की मानवता शामिल से संबंधित है। कुछ नकली अगुआओं की काबिलियत इतनी खराब होती है कि वे कलीसिया के कार्य में विघ्न-बाधा डालने की प्रकृति की असलियत नहीं जान पाते हैं। कुछ नकली अगुआ, हालाँकि वे कलीसिया के कार्य में विघ्न-बाधा डालने की समस्याओं का पता लगा सकते हैं, लेकिन दुर्भाग्य से सत्य नहीं समझते हैं और इन समस्याओं को न तो संभाल पाते हैं और न इनका समाधान कर पाते हैं। वे हमेशा अपने खुद के विचारों और उत्साह से काम करते हैं, जो वे करना चाहते हैं वही करते हैं, मन में यह सोचते हैं कि “जब तक मैं कलीसिया का कार्य कर रहा हूँ, ठीक है; जो लोग विघ्न-बाधा डालते हैं, वह उनका व्यक्तिगत मामला है और इसका मुझसे कुछ लेनादेना नहीं है।” कुछ नकली अगुआ ऐसे भी हैं जिनमें थोड़ी बहुत काबिलियत होती है और वे थोड़ा बहुत काम कर सकते हैं, और जिन्हें हर तरह के व्यक्ति को संभालने के लिए सिद्धांतों के बारे में थोड़ी समझ होती है। हालाँकि, वे लोगों को नाराज करने से डरते हैं, इसलिए जब वे बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों को विघ्न-बाधा डालते हुए देखते हैं, तो वे उन्हें उजागर करने, रोकने या प्रतिबंधित करने का साहस नहीं करते हैं। वे शैतानी दर्शन के अनुसार जीते हैं, और वे उन मामलों पर आँखें मूंद लेते हैं जिनका उनसे कोई लेना-देना नहीं होता है। उन्हें इस बात की बिल्कुल भी परवाह नहीं होती कि कलीसिया के कार्य के क्या परिणाम होंगे, या परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश पर इसका कितना प्रभाव पड़ेगा; उन्हें लगता है उनका इन चीजों से कोई लेना-देना नहीं है। इसलिए, ऐसे नकली अगुआके कार्यकाल के दौरान, कलीसियाई जीवन की सामान्य व्यवस्था कायम नहीं रह पाती है और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश की रक्षा नहीं हो पाती है। इस समस्या की प्रकृति क्या है? ऐसा नहीं है कि ये नकली अगुआ कार्य नहीं कर सकते हैं क्योंकि उनकी काबिलियत खराब है; ऐसा इसलिए है क्योंकि उनकी मानवता कमजोर है, और उनमें जमीर और तर्कशक्तिकी कमी है, इसलिए वे वास्तविक कार्य नहीं करते हैं। नकली अगुआ किस तरह से नकली हैं? उनमें मानवता के जमीर और विवेक की कमी है; इ‍सलिए, अगुआओं के रूप में काम करने की उनकी अवधि के दौरान, कलीसिया के कार्य में विघ्न-बाधा डालनेवाले बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों के मुद्दे का बिल्कुल भी समाधान नहीं हो पाया है। कुछ भाई-बहनों को बहुत ज्यादा नुकसान हुआ है, और कलीसिया के कार्य को भी भारी नुकसान पहुँचा है। जब इस तरह के नकली अगुआकोई समस्या देखते हैं, तो जब वे किसी बुरे व्यक्ति या मसीह-विरोधी को विघ्न-बाधा डालते हुए देखते हैं, तो उन्हें पता होता है कि उनकी जिम्मेदारी क्या है, उन्हें क्या करना चाहिए और उन्हें इसे कैसे करना चाहिए, फिर भी वे कुछ भी नहीं करते, और वे तो मूर्ख भी बन जाते हैं, इसे पूरी तरह अनदेखा कर देते हैं, और अपने वरिष्ठ अधिकारियों को मामले की रिपोर्ट नहीं करते हैं। वे बहाना बनाते हैं कि उन्हें कोई जानकारी नहीं है और उन्होंने कुछ नहीं देखा, और बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों को कलीसिया के कार्य में विघ्न-बाधा डालने देते हैं। क्या उनकी मानवता में कोई समस्या नहीं है? क्या वे बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों के खेमे के नहीं हैं? उनकी अगुआई का क्या सिद्धांत होता है? “मैं कोई व्यवधान या गड़बड़ी नहीं करता, लेकिन मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगा जिससे किसी को ठेस पहुँचे, या जो दूसरों की गरिमा को नुकसान पहुँचाए। भले ही तुम मुझे एक नकली अगुआ के रूप में चित्रित करो, मैं फिर भी ऐसा कुछ नहीं करूँगा जिससे किसी को ठेस पहुँचे। मुझे अपने लिए कोई रास्ता निकालना होगा।” यह किस तरह का तर्क है? यह शैतान का तर्क है। और यह किस प्रकार का स्वभाव है? क्या यह बहुत ही धूर्ततापूर्ण और कपटपूर्ण नहीं है? ऐसा इंसान परमेश्वर के आदेश के प्रति अपने व्यवहार में जरा भी ईमानदार नहीं होता; वह अपने कर्तव्य के प्रदर्शन में हमेशा चालाक और धूर्त रहता है, कई ओछी गणनाएँ करते हुए वह सभी चीजों में अपने बारे में ही सोचता है। वह कलीसिया के कार्य पर जरा भी विचार नहीं करता और उसमें कोई जमीर या विवेक नहीं होता। वह मूल रूप से कलीसिया के अगुआके रूप में सेवा करने के योग्य नहीं है। ऐसे व्यक्ति के पास कलीसिया के कार्य या परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश के प्रति थोड़ा-सा भी बोझ नहीं होता है। वह केवल अपने हितों और आनंद की परवाह करता है; वह बिना इस बात की परवाह किए कि परमेश्वर के चुने हुए लोग किस स्थिति में हैं, केवल रुतबे के लाभों में लिप्त होने पर ध्यान केंद्रित करता है। क्या वह सबसे स्वार्थी और नीच व्यक्ति नहीं है? यहाँ तक कि जब वे बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों को कलीसिया के कार्य में विघ्न-बाधा डालते हुए पाता है, तब भी वह इस पर ध्यान नहीं देता, मानो इन मामलों का उससे कोई लेना-देना ही न हो। वह उस चरवाहे की तरह है जो भेड़िये को भेड़खाते हुए देखता है, लेकिन कुछ नहीं करता, केवल अपने जीवन को बचाने की चिंता करता है। ऐसा व्यक्ति चरवाहा बनने के योग्य नहीं है। इस तरह का नकली अगुआ जो कुछ भी करता है वह अपनी प्रतिष्ठा, रुतबे, ताकत और वर्तमान में उसके द्वारा लिए जा रहे विभिन्न फायदों को अधिकाधिक बचाने के लिए होता है। उसके दिलपर परमेश्वर के आदेश, कलीसिया के कार्य या परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश के लिए कोई बोझ नहीं होता है, जो उसका कर्तव्य और जिम्मेदारियाँ हैं; वह इन पर कभी विचार नहीं करता। वह सोचता है, “एक अगुआ को ये कार्य क्यों करने चाहिए? इन कार्यों को न करने का परिणाम काट-छाँट, निंदा और भाई-बहनों द्वारा नकार दिया जाना क्यों होता है?” वह समझ नहीं पाता और पूरी तरह से उदासीन हो जाता है। मेरे विचार से, इस तरह का इंसान कितना भी शिष्ट, या कितना भी नियम को मानने वाला या अल्पभाषी, या मेहनती और सक्षम क्यों न दिखे, यह तथ्य कि वह सिद्धांतों के बिना कार्य करता है और कलीसिया के कार्य के लिए कोई जिम्मेदारी नहीं लेता, मुझे उसे, “अलग दृष्टिकोण” से देखने के लिए बाध्य करता है। अंततः, मैं इस तरह के व्यक्ति को ऐसे परिभाषित करूँगा : हो सकता है कि वे कोई बड़ी गलती न करें, पर वे बहुत धूर्त और धोखेबाज होते हैं; वे बिलकुल भी कोई जिम्मेदारी नहीं लेते, न ही वे कलीसिया का कार्य बिलकुल भी कायम रखते हैं। उनमें कोई मानवता नहीं होती। मुझे लगता है कि वे किसी जानवर जैसे होते हैं—चालाकी में वे कुछ लोमड़ी की तरह होते हैं। लोग कहते हैं कि लोमड़ी चालाक होती है, लेकिन असल में ये लोग लोमड़ियों से भी ज्यादा चालाक होते हैं। सतही तौर पर ऐसा लगता है कि उन्होंने कोई बुरा काम नहीं किया है, लेकिन वास्तव में वे जो कुछ भी कहते और करते हैं वह उनके अपने यश, लाभ और रुतबे के लिए होता है। वे जो कुछ भी करते हैं, वह अपने रुतबे का लाभ उठाने के उद्देश्य से करते हैं, और वे परमेश्वर के इरादों पर बिल्कुल भी विचार नहीं करते। वे कलीसिया के कार्य में उत्पन्न होने वाली समस्याओं का जरा भी समाधान नहीं करते, न ही वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश से संबंधित वास्तविक मुद्दों को संबोधित करते हैं। ये नकली अगुआ परमेश्वर के चुने हुए लोगों को सत्य वास्तविकता में ले जाने के लिए कोई काम नहीं करते। आखिर वे जो कुछ भी करते हैं उसका उद्देश्य क्या है? क्या यह सिर्फ लोगों को खुश करने और इसलिए नहीं है कि दूसरे लोग उनका अत्यधिक सम्मान करें? वे बिना किसी का अपमान किए सभी को अपने बारे में अच्छा सोचने पर मजबूर करने की कोशिश करते हैं, इस तरह वे अपनी प्रतिष्ठा और अपने रुतबे का लाभ उठाते हैं। उनके बारे में सबसे ज्यादा नफरत की बात यह है कि उनके सभी काम परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश में कोई फायदा नहीं पहुँचाते; इसके बजाए, वे लोगों को गुमराह करते हैं, दूसरों को उनकी प्रशंसा करने और उन्हें पूजने के लिए मजबूर करते हैं। क्या ये लोग लोमड़ियों से भी ज्यादा धूर्त और धोखेबाज नहीं हैं? ये लोग सटीक रूप से वास्तविक नकली अगुआ हैं। इनके पास अगुआ का रुतबा है और ये इस पद को धारण करते हैं, लेकिन कोई वास्तविक काम नहीं करते, सिर्फ कुछ दिखने वाले, सतही सामान्य मामलों का ध्यान रखते हैं, या फिर ऊपरवाले द्वारा विशेष रूप से सौंपे गए काम को अनिच्छा से करते हैं। यदि ऊपरवाले से कोई विशेष कार्य नहीं मिलता है, तो वे कलीसिया का कोई भी आवश्यक कार्य नहीं करते हैं। कलीसिया के कार्य और कलीसियाई जीवन की व्यवस्था को बनाए रखने से जुड़े मामलों के संबंध में, वे लोगों को नाराज करने से डरते हैं और सिद्धांतों को बनाए रखने की हिम्मत नहीं करते। वे कलीसिया के कार्य में संचित समस्याओं में से किसी का भी समाधान नहीं करते, और यहाँ तक कि जब वे देखते हैं कि परमेश्वर के घर की संपत्ति मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों द्वारा बर्बाद की जा रही है, तो वे इसे रोकने या प्रतिबंधित करने के लिए कुछ नहीं करते हैं। अपने दिल में, वे स्पष्ट रूप से जानते हैं कि ये लोग बुराई कर रहे हैं और परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचा रहे हैं, फिर भी वे मूर्ख बने रहते हैं और एक शब्द भी नहीं बोलते हैं। ये धूर्त और धोखेबाज लोग हैं। क्या ये लोग लोमड़ियों से भी ज्यादा चालाक नहीं हैं? वे बाहरी तौर पर सभी के साथ मिलनसार होते हैं और किसी को नुकसान पहुँचाने के लिए कुछ नहीं करते, लेकिन वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश, कलीसिया के कार्य और सुसमाचार फैलाने के काम के प्रमुख मामले में विलंब करते हैं। क्या ऐसे लोग अगुआ और कार्यकर्ता बनने के योग्य हैं? क्या वे शैतान के अनुचर नहीं हैं? क्या वे कलीसिया के कार्य में विघ्न-बाधा डालने वाले नहीं हैं? हालाँकि सतही तौर पर उन्होंने साफ-साफ कोई बुराई नहीं की है, लेकिन उनके इस तरह काम करने के परिणाम बुराई करने से भी ज्यादा गंभीर होते हैं। वे परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने में बाधा डालते हैं, परमेश्वर का विरोध करते हैं, और कलीसिया के कार्य में विघ्न-बाधा डालते हैं। वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नुकसान पहुँचाते हैं और यहाँ तक कि परमेश्वर के चुने हुए लोगों के बचाए जाने की आशा को भी नष्ट कर सकते हैं। मुझे बताओ, क्या यह बुराई करना नहीं है? यह बिलकुल वैसा ही है जैसा लोगों को खुश करनेवाला व्यक्ति करता है जो सिद्धांतों का बिल्कुल भी पालन नहीं करता। जो लोग सत्य नहीं समझते हैं वे इस तरह से काम करने वाले नकली अगुआओं के भयानक परिणामों को पूरी तरह से नहीं समझ सकते हैं, न ही वे समझ सकते हैं कि उनके इरादे, मंतव्यऔर उद्देश्य क्या हैं। तुम कभी नहीं समझ पाओगे कि उनके दिल में क्या चल रहा है और वे वास्तव में क्या करना चाहते हैं—ऐसे लोग बहुत धूर्त होते हैं! लाक्षणिक रूप से कहें, तो वे धूर्त लोमड़ियाँ हैं; सही से कहें, तो वे जीवित दानव हैं, लोगों के बीच जीवित दानव!

जब बात आती है कि इन नकली अगुआओं को उनके स्वभाव सार के आधार पर कैसे चित्रण किया जाना चाहिए, तो उन्हें मनमाने ढंग से बुरे लोगों, मसीह-विरोधियों, पाखंडियों आदि की श्रेणियों में नहीं रखा जा सकता है। हालाँकि, जो कुछ वे अभिव्यक्त करते हैं, जैसे कि उनकी मानवता की अभिव्यक्तियाँ और कलीसिया के कार्य के प्रति उनका रवैया, साथ ही साथ जिन समस्याओं का उन्हें पता चलता है उनका समाधान नहीं करना, उसे मद्देनजर रखें तो वे सबसे ज्यादा भ्रष्ट प्रकार के नकली अगुआ हैं। उनकी विभिन्न अभिव्यक्तियों को देखें तो, भले ही वे सक्रिय रूप से गुट नहीं बनाते हैं या अपने स्वयं के स्वतंत्र राज्य स्थापित नहीं करते हैं, और शायद ही कभी खुद की गवाही देते हैं, और भले ही भाई-बहनों के साथ उनकी अच्छी बनती है, वे कठिनाई सहन कर सकते हैं, कीमत चुका सकते हैं, चढ़ावे चुराने से बच सकते हैं, और यहाँ तक कि खास विशेषाधिकार माँगने से खुद को कड़ाई से रोक सकते हैं, फिर भी, जब वे कलीसिया के कार्य में विघ्न-बाधा डालने वाले विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों का सामना करते हैं, या उन विभिन्न लोगों का सामना करते हैं जो चढ़ावे को बर्बाद करते हैं और परमेश्वर के घर की संपत्ति को नुकसान पहुँचाते हैं, तो वे उन्हें रोकते या संभालते नहीं हैं, वे कुछ नहीं कहते या कोई काम नहीं करते हैं। ऐसे लोग दिल दहला देनेवाले हैं! वे सबसे घृणित प्रकार के नकली अगुआ हैं; वे कभी सुधरने वाले नहीं हैं! मैं क्यों कहता हूँ कि वे कभी नहीं सुधरने वाले हैं? ऐसा नहीं है कि उनकी काबिलियत खराब है या वे परमेश्वर के वचन नहीं समझ सकते हैं—उनमें समझने की एक निश्चित क्षमता और कार्य क्षमता होती है, लेकिन जब वे किसी को कलीसिया के कार्य में विघ्न-बाधा डालते हुए पाते हैं, तो वे इसे संभालते नहीं या इसका समाधान नहीं करते हैं। वे इस काम को अनिच्छा से तभी करते हैं जब उन्हें अपने वरिष्ठ अगुआओं की सख्त निगरानी और लगातार पूछताछ का सामना करना पड़ता है, या जब उनकी काट-छाँट की जाती है। चाहे वे इस काम को करें या नहीं, या वे इसे कैसे भी करें, खुद को बचाना उनकी शीर्ष प्राथमिकता होती है। वे अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों को बिल्कुल भी पूरा नहीं करते हैं। खुद को बचाने और अपने खुद के हितों को बनाए रखने के अलावा, वे कोई अनिवार्य काम नहीं करते हैं, और वे केवल थोड़ा बहुत सतही काम करते हैं जिसे करने के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं होता। खुद को बचाने के अलावा, वे किसी भी चीज के बारे में परवाह नहीं करते हैं। क्या वे लोमड़ी से ज्यादा धूर्त और चालाक नहीं हैं? कुछ लोगों का कहना है, “छोटे जानवरों को खाना लोमड़ी की सहज प्रवृत्ति होती है, तो क्या खुद को बचाना नकली अगुआओं की सहज प्रवृत्ति नहीं है?” क्या य‍ह एक सहज प्रवृत्ति है? यह उनकी प्रकृति है! ये नकली अगुआ परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचाने और कलीसिया के कार्य को बर्बाद करने की कीमत पर अपने खुद के रुतबे, प्रतिष्ठा, और अपनी इज्जत को बचाते हैं, लोगों के साथ संबंध बनाकर रखते हैं, और किसी का भी अपमान करने से बचते हैं। वे कर्मचारियों की बरखास्तगी या समायोजन का काम भी व्यक्तिगत रूप से नहीं करते, बल्कि दूसरों को यह काम सौंप देते हैं। वे सोचते हैं, “यदि वह व्यक्ति बदला लेता है, तो वह मेरे पीछे नहीं आएगा। मेरा जिस भी स्थिति से सामना हो, उसमें सबसे पहले मुझे खुद को बचाना है।” ये लोग कुछ ज्यादा ही धूर्त हैं! अगुआ और कार्यकर्ताओं के रूप में, वे इस जिम्मेदारी को भी अपने ऊपर नहीं ले सकते हैं, तो क्या वे अगुआ होने लायक हैं? वे बस निकम्मे कायर हैं! इस मामूली-से साहस के बिना भी क्या वे परमेश्वर के विश्वासी हैं? क्या अपने कर्तव्य निभाने के दौरान अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए चालाकी का सहारा लेनेवाले लोग परमेश्वर के अनुयायी होते हैं? परमेश्वर ऐसे लोगों को नहीं चाहता है। ये नकली अगुआलोमड़ियों की भांति धूर्त और चालाक होते हैं। जब वे किसी को विघ्न-बाधा डालते देखते हैं, तो वे न इसे संभालते हैं और न इसका समाधान करते हैं—वे बस वास्तविक कार्य नहीं करते हैं। चाहे उन्हें कितना भी उजागर किया जाए या उनकी काट-छाँट की जाए, वे कोई कार्यवाही नहीं करते। चूंकि वे अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों का पूरा नहीं करते हैं, तो फिर वे उस पद पर क्यों बैठे हैं? क्या ऐसा इसलिए है कि वे सजावट का हिस्सा बन सकें? क्या ऐसा इसलिए है कि वे रुतबे के लाभ में लिप्त रह सकें? वे बिल्कुल भी उस पद के लायक नहीं हैं! कोई वास्तविक काम न करने के बावजूद भी वे चाहते हैं कि भाई-बहन उनकी प्रशंसा करें और उनकी पूजा करें—क्या यह एक दानव की मानसिकता नहीं है? यह कितनी शर्मनाक बात है! कुछ लोग कहते हैं कि वे बिल्कुल भी अगुआ बनना नहीं चाहते हैं। तो फिर वे अपनी प्रतिष्ठा और रुतबा क्यों बरकरार रखते हैं? यदि वे अगुआ नहीं बनना चाहते, तो वे सक्रिय रूप से इस्तीफा दे सकते हैं। वे इस्तीफा क्यों नहीं देते हैं? वे उस पद पर क्यों बैठे हैं और उसे छोड़ते क्यों नहीं? यदि वे इस्तीफा देना नहीं चाहते, तो उन्हें कर्तव्यनिष्ठा से कुछ वास्तविक कार्य करना चाहिए। और कोई विकल्प नहीं है—यह उनकी जिम्मेदारी है। यदि वे वास्तविक कार्य नहीं कर सकते, तो उनके लिए यह सबसे अच्‍छा होगा कि वे इसके लिए जवाबदेह बनें और इस्तीफा दें; उन्हें कलीसिया के कार्य में विलंब नहीं करना चाहिए, या परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नुकसान नहीं पहुँचाना चाहिए। यदि उनमें इतना भी जमीर और विवेक नहीं है, तो क्या उनमें अभी भी कोई मानवताबची है? वेइस लायक भी नहीं हैं कि उन्हें इंसान कहा जाए! चाहे वे अगुआ हों या कार्यकर्ता, जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं वे केवल तभी मानव कहलाने लायक होते हैं जब उनमें थोड़ा भी जमीर और विवेक हो।

एक अगुआ या कार्यकर्ता होने के लिए, व्यक्ति में काबिलियत का एक निश्चित स्तर अवश्य होना चाहिए। व्यक्ति की काबिलियत उसकी कार्य क्षमता और उस हद को निर्धारित करती है जिस हद तक वह सत्य सिद्धांतों को समझ सकता है। यदि तुम्हारी काबिलियत में कुछ कमी है और तुममें सत्य की पर्याप्त गहन समझ नहीं है, लेकिन तुम जितना समझ सकते हो उतना अभ्यास करने में समर्थ हो, और जो तुम जो समझते हो उसे अमल में ला सकते हो, और दिल से तुम शुद्ध और ईमानदार हो, और अपने खुद की ओर से कोई षडयंत्र नहीं रचते हो या प्रसिद्धि, लाभ, और रुतबा पाने के पीछे नहीं भागते हो, और परमेश्वर की जाँच को स्वीकार कर सकते हो, तो तुम सही व्यक्ति हो। हालाँकि, नकली अगुआओं में ये गुण नहीं होते हैं। वे कलीसिया में पैदा होनेवाली विभिन्न विघ्न-बाधाओं की परवाह नहीं करते हैं; यदि वे इन समस्याओं को देखते भी हैं, तो उन पर ध्यान नहीं देते। यदि तुम उनसे पूछो कि क्या उन्हें स्थिति की जानकारी है, तो वे कहेंगे, “मेरे विचार में मुझे इसके बारे में थोड़ी बहुत जानकारी है, लेकिन मुझे हर चीज पता नहीं है।” यह सब ठीक उनकी नाक के नीचे होता है—वे ऐसा क्यों कहते हैं कि उन्हें इसके बारे में कुछ नहीं पता? क्या वे लोगों को धोखा देने की कोशिश तो नहीं कर रहे हैं? चूँकि उन्हें इसके बारे में पता है, तो क्या उन्होंने सोचा है कि इसे कैसे संभालना है? क्या उन्होंने कोई काम किया है? क्या उन्होंने कोई समाधान ढूंढने की कोशिश की है? उनका उत्तर होता है, “उस व्यक्ति की काबिलियत मेरे से बेहतर है, और वहवाक्पटु और मधुरभाषी है; मेरी उसके बीच में हस्तक्षेप करने की हिम्मत नहीं होती है। क्या होगा अगर मैं किसी ऐसी बात पर बोलूँ जो वास्तव में कोई मुद्दा ही नहीं है और इससे उसे ठेस पहुंचे? उसके बाद मेरा काम मुश्किल हो जाएगा!” चूँकि उनकी हिम्मत नहीं होती, इसलिए वे निकम्मे कायर हैं और अपने कर्तव्य में लापरवाही बरतते हैं, और वे अगुआ होने के काबिल नहीं हैं! जब उन्हें इस तरह की स्थिति का सामना करना पड़ता है, तो क्या उन्हें पता होता है कि स्थिति को कैसे संभालना है? वे कहते हैं, “हालांकि मुझे पता है कि इससे कैसे निपटना है, फिर भी मेरी हिम्मत नहीं होती। क्या ऊपरवाला इसी स्थिति के लिए नहीं है? एक निर्णय लेनेवाला समूह भी है। मैं वो व्यक्ति कैसे हो सकता हूँ जिस पर यह कार्य आ पड़ा है?” चूँकि उन्होंने यह सब देखा है और इसके बारे में जानते हैं, इसलिए उन्हें इस स्थिति को संभालना चाहिए। यदि उनका आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है और वे इस मुद्दे से नहीं निपट सकते हैं, तो क्या उन्होंने समस्या के बारे में अपने वरिष्ठ अधिकारियों को बताया है? क्या उन्होंने इसकी रिपोर्ट की है? क्या उन्होंने वो काम कर लिया है जो उनकी जिम्मेदारियों और उन्हें मिले काम के दायरे में आता है? क्या उन्होंने अपनी कोई भी जिम्मेदारी पूरी की है? बिल्कुल भी नहीं! अपने दिल में, उन्हें अच्छी तरह से पता है : “मुझे इस मुद्दे की जानकारी थी, लेकिन मैंने कोई कार्यवाही नहीं की। मैंदोषी महसूस करता हूँ! मुझे उस मामले की रिपोर्ट करनी चाहिए थी लेकिन नहीं की। लेकिन दूसरे लोगों ने भी ऐसा नहीं किया—इसका मुझसे क्या लेना-देना है?” क्या दूसरे लोग भी अगुआ हैं? चाहे दूसरे लोग ऐसा करें या नहीं यह उन लोगों का सरोकार है—इन अगुआओं ने इसे अब तक क्यों नहीं किया है? यदि दूसरे लोग इसे नहीं करते हैं, तो क्या इसका यह अर्थ है कि इन अगुआओं को इसे नहीं करना चाहिए? क्या यह सत्य है? अगर दूसरे लोगों ने इसे किया भी होता, तो क्या वह इन अगुआओं के इस कार्य को करने का स्थान ले सकता था? ये अगुआजो करते हैं वह उनका अपना काम है। क्या उन्होंने अपनी जिम्मेदारियों और दायित्वों को पूरा कर लिया है? यदि उन्होंने नहीं किया है, तो वे अपने कर्तव्य में लापरवाह हैं, अगुआ बनने के अयोग्य हैं, और उन्हें जिम्मेदारी लेनी चाहिए और इस्तीफा दे देना चाहिए। वे इस बात की कोई सराहना नहीं करते हैं कि उन्हें कैसे ऊपर उठाया गया है, वे भाई-बहनों के भरोसे के अयोग्य हैं, वे परमेश्वर के घर के भरोसे के अयोग्य हैं, और वे परमेश्वर के उत्कर्ष के तो और भी अधिक अयोग्य हैं। वे हृदयहीन दुष्ट हैं। तीसरे प्रकार के नकली अगुआ में उनके चरित्र की समस्या होती है। चाहे उनका व्यक्तिगत अनुसरण और जीवन प्रवेश कैसा भी हो, सिर्फ इस तथ्य से कि अपने कार्यकाल के दौरान वे कोई वास्तविक कार्य नहीं करते, कलीसिया के लिए किसी नुकसान की भरपाई नहीं करते, और निश्चित रूप से बुरे लोगों के बुरे कर्मों को तुरंत रोकने या संभालने में सक्षम नहीं होते, यह आकलन किया जा सकता है कि इस प्रकार के व्यक्ति में न केवल खराब क्षमता और वास्तविक कार्य न करने की समस्या होती है, बल्कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उनमें कोई मानवता नहीं होती। उनका जमीर पूरी तरह सड़ गया है, और उनके पास कोई विवेक नहीं है। आम बोलचाल में, वे नैतिक रूप से दिवालिया हैं; वे चरम सीमा तक स्वार्थी और घृणित हैं, तथा वे भरोसे लायक भी नहीं हैं। हमने जिन तीन प्रकार के लोगों का गहन-विश्लेषण किया है, उनमें से इस प्रकार की मानवता सबसे खराब है। पहले दो प्रकार के लोगों की काबिलियत खराब होती है, वे काम नहीं कर सकते, और वे लोगों को विकसित करने और बढ़ावा देने के लिए परमेश्वर के घर के सिद्धांतों और मानकों को पूरा नहीं करते, इसलिए उन्हें विकसित या इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। उनकी काबिलियत बेहद खराब होती है, वे अंधे और सुन्न होते हैं, और वे व्यावहारिक रूप से मृत लोग हैं—वे उजागर करने और गहन-विश्लेषण करने के लायक नहीं हैं। तीसरे प्रकार के लोग सबसे अधिक नीच हैं। वे अपनी मानवता के मामले में बेहद घृणित हैं, और हम इस प्रकार को धूर्त और चालाक के रूप में चित्रित करते हैं। ये लोग लोमड़ियों से भी ज्यादा चालाक होते हैं। वे कोई वास्तविक काम नहीं करते हैं, फिर भी उनके पास बहुत सारे बहाने होते हैं और वे पूरी तरह से सहज महसूस करते हैं। चाहे कितने भी बुरे लोग और मसीह-विरोधी लोग कलीसिया के कार्य में बाधा क्यों न डालें, वे इसके बारे में चिंतित या परेशान नहीं होते हैं और फिर भी अगुआ बने रहना चाहते हैं। ये अगुआ सत्ता के इतने आसक्त क्यों हैं? इन अगुआओं का कहना है, “आदमी ऊपर की ओर जाने के लिए संघर्ष करता है; पानी नीचे की ओर बहता है। हर किसी को सत्ता से प्रेम होता है।” वे कोई भी वास्तविक कार्य नहीं करना चाहते हैं लेकिन वे अभी भी अपने पद पर बने रहना और अपने रुतबे का लाभ उठाना चाहते हैं। वे किस तरह के नीच हैं? वे शुद्ध रूप से शैतान की किस्म के हैं, वे बिल्कुल भी अच्छे नहीं हैं।

आज हमने अगुआओं और कार्यकर्ताओं की बारहवीं जिम्मेदारी के बारे में तीन बिंदुओं पर चर्चा की। बारहवीं जिम्मेदारी में हमने जिन नकली अगुआओं का गहन-विश्लेषण किया, वे मूल रूप से वही नकली अगुआ हैं जिन्हें हमने पहले उजागर किया था। हालाँकि हमने तीन बिंदुओं का विश्लेषण किया, लेकिन वे मुख्य रूप से दो समस्याओं को समाविष्ट करते हैं : एक यह है कि उनकी काबिलियत खराब है और वे वास्तविक कार्य नहीं कर सकते हैं; दूसरा यह है कि उनकी मानवता अधम, घृणित, धूर्त और चालाक है, और वे वास्तविक कार्य नहीं करते हैं। ये नकली अगुआओं की मूलभूत, अनिवार्य समस्याएँ हैं। अगर किसी व्यक्ति में इन दो समस्याओं में से एक है, तो वह एक नकली अगुआ है। यह किसी भी संदेह से परे है।

4 सितंबर 2021

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