अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (19)
मद बारह : उन विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों की तुरंत और सटीक रूप से पहचान करो, जो परमेश्वर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था में विघ्न-बाधा उत्पन्न करती हैं; उन्हें रोको और प्रतिबंधित करो, और चीजों को बदल दो; इसके अतिरिक्त, सत्य के बारे में संगति करो, ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोग ऐसी बातों के माध्यम से समझ विकसित करें और उनसे सीखें (भाग सात)
कलीसियाई जीवन में विघ्न-बाधा उत्पन्न करने वाले विभिन्न लोग, घटनाएँ और चीजें
अनुचित रिश्तों में लगे रहने वालों से निपटने के लिए सिद्धांत
परमेश्वर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था में विघ्न-बाधा डालने वाले विभिन्न लोगों, घटनाओं, और चीजों से जुड़े मामलों को हमने कुल ग्यारह मुद्दों में बाँट दिया है। इससे पहले, हमने छठे मुद्दे पर संगति की थी—अनुचित संबंधों में लिप्त होना। इसका मुख्य रूप से क्या मतलब है? दूसरों को बेधड़क लुभाना और कामुक इच्छाओं वाले संबंधों में लिप्त होना। इस पहलू के बारे में क्या संगति की गई थी? जब ऐसे लोग कलीसिया में दिखाई दें तो उनसे कैसे निपटा जाना चाहिए? इसके क्या समाधान हैं? क्या हमें आँखें मूंदकर इसे नजरंदाज कर देना चाहिए या सत्य सिद्धांतों के अनुसार समस्या का समाधान करना चाहिए? क्या हमें इससे बचना चाहिए या इसमें शामिल लोगों को प्रेम से प्रभावित करना चाहिए? क्या हमें उनसे सत्य पर संगति करनी चाहिए या उन्हें चेतावनी देकर निकाल देना चाहिए? इससे निपटने का सबसे उचित तरीका क्या है? (इसमें शामिल लोगों को चेतावनी देना और प्रतिबंधित करना। अगर उन्हें प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है तो उन्हें बाहर निकाल देना चाहिए।) उन्हें कैसे प्रतिबंधित किया जाना चाहिए? क्या ऐसा करना आसान है? जब ऐसे मामले होते हैं तो आम तौर पर इसमें शामिल लोगों को प्रतिबंधित करना इतना आसान नहीं होता। कुछ लोग ऐसी स्थिति को देखकर इसे अनुचित मानते हैं, मगर वे कुछ भी बोलने से शर्माते हैं। कुछ लोग अप्रत्यक्ष रूप से इसकी ओर इशारा कर सकते हैं, मगर जरूरी नहीं कि इसमें शामिल लोग उस पर ध्यान दें। उन सभी लोगों की मानवता कैसी है जो बेधड़क दूसरों को लुभा सकते हैं? क्या वे गरिमापूर्ण और ईमानदार लोग हैं? क्या वे संतों की मर्यादा वाले लोग हैं? क्या वे गरिमा और शर्म की भावना रखने वाले लोग हैं? (नहीं।) अगर कोई उन्हें सिर्फ शब्दों से याद दिला दे या सामान्य रूप से सत्य पर संगति कर दे तो क्या इससे समस्या हल हो सकती है? नहीं हो सकती। जब ऐसा कुछ होता है तो इसका मतलब है कि यह बात लंबे समय से उनके मन में घूम रही थी। उस समय, क्या इसे नियंत्रित करना आसान होता है? क्या उनकी मदद करने और उन्हें प्यार से प्रभावित करने की कोशिश करने से समस्या हल हो सकती है? (नहीं।) तो सबसे अच्छा समाधान क्या है? ऐसे लोगों को निकाल बाहर करना, उन्हें उन लोगों से अलग कर देना जो ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास करते हुए अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं, और उन्हें दूसरों को बाधित करना और नुकसान पहुँचाना जारी नहीं रखने देना।
आजकल कुछ कलीसियाओं में पुरुषों और महिलाओं द्वारा एक-दूसरे को लुभाने की घटनाएँ लगातार सामने आ रही हैं। ये लोग मौका मिलते ही एक-दूसरे को लुभाते हैं, खास तौर पर कामुकतापूर्ण व्यवहार करते हैं और उनमें शर्म की कोई भावना नहीं होती है। मैंने एक ऐसे आदमी के बारे में सुना था जिसने कई महिलाओं को लुभाया; वह गंभीर रिश्ते में शामिल नहीं होता था, बल्कि बेधड़क किसी भी महिला को लुभाता और उससे चिपकता रहता था। कुछ लोग कहते हैं, “वह बस सामान्य रूप से बातचीत कर रहा है; उसका बातचीत करने का तरीका ऐसा ही है।” ज्यादातर लोग बातचीत करने के इस तरीके को अशोभनीय, विद्रोही और घिनौना मानते हैं। क्या यह एक समस्या नहीं है? क्या इससे यह साबित हो सकता है कि ऐसे संबंध अनुचित हैं? अगर दो लोगों का अंतरंग मेलजोल न केवल उनके अपने कर्तव्य निर्वहन को, बल्कि दूसरों के कर्तव्य निर्वहन को भी प्रभावित करता है तो उन्हें प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए। उन्हें कलीसियाई जीवन में अंतरंग मेलजोल करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, खास तौर से पूर्णकालिक कर्तव्य वाली कलीसिया में तो इसकी अनुमति बिल्कुल नहीं दी जानी चाहिए, क्योंकि यह दूसरों के कर्तव्य निर्वहन को तो प्रभावित करता ही है और कलीसिया के कार्य के लिए भी हानिकारक है। जब वे अपने कर्तव्यों पर ध्यान लगा सकें तो अपने कर्तव्य निभाने के लिए पूर्णकालिक कलीसिया में वापस आ सकते हैं। कुछ लोग गंभीर संबंधों में लिप्त नहीं होते, बल्कि बेधड़क दूसरों को लुभाते और उनसे चिपके रहते हैं, वे कामुक इच्छाओं से खेलते हैं, कलीसियाई जीवन को बाधित करते हैं, लोगों की मनोदशा को प्रभावित करते हैं और दूसरों को बाधित करते हैं। यह स्थिति कलीसिया के कार्य में बाधा डालती है और इसे सिद्धांतों के अनुसार संभाला और हल किया जाना चाहिए; इन लोगों को समय रहते अलग कर देना चाहिए और निकाल देना चाहिए। क्या इस समस्या को संभालना आसान है? किसी को भी कलीसियाई जीवन और कलीसिया के कार्य में विघ्न-बाधा नहीं डालने देना चाहिए, और ऐसे मुद्दों को सिद्धांतों के अनुसार संभालना चाहिए। कुछ लोग कहते हैं, “जिनपरिस्थितियों में इन लोगों से निपटने के बाद उनके कर्तव्यों की जिम्मेदारी लेने वाला कोई नहीं होगा, उनसे निपटा नहीं जा सकता; उन्हें बस अपनी मर्जी से दूसरों को लुभाते रहने देना चाहिए। वे दूसरों को कैसे भी लुभाएँ, उन्हें इसकी अनुमति दे देनी चाहिए।” क्या परमेश्वर के घर में ऐसा कोई नियम है? क्या पिछली सभा की संगति में ऐसे लोगों से निपटने के बारे में कोई सिद्धांत था? (नहीं।) ऐसी स्थितियों का सामने होने पर, कलीसिया अगुआ और निरीक्षक उलझन में पड़ जाते हैं और वे नहीं जानते कि उनसे कैसे निपटा जाए, फिर ये लोग कलीसिया में दूसरों को बेधड़क लुभाने लगते हैं, जिससे ज्यादातर लोग असहज महसूस करते हैं और उन्हें कुछ नहीं समझ आता, वे अपने दिलों में घृणा महसूस करते हैं मगर बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाते और उन्हें इसे सहते रहना पड़ता है। अगुआओं और निरीक्षकों का मानना है कि कलीसिया का कार्य और परमेश्वर का घर इन लोगों के बिना नहीं चल सकता; अगर इन बेधड़क लुभाने वालों को दूर भेज दिया जाए तो काम करने के लिए लोग कम हो जाएँगे। क्या यह तर्क सही है? (नहीं।) इसमें क्या गलत है? (ये लोग काम नहीं कर सकते; उनका काम करने का कोई इरादा नहीं है।) यह बात एकदम सही है। तुम लोगों को क्या लगता है कि किस तरह के लोग दूसरों को बेधड़क लुभाने में सक्षम हैं? उनमें बिल्कुल भी संयम नहीं होता; वे छद्म-विश्वासी, अविश्वासी होते हैं। बात सिर्फ यही नहीं है कि वे सत्य से प्रेम नहीं करते, सत्य से विमुख होते हैं, उनमें आस्था की कमी है, वे युवा हैं और उनकी नींव उथली है—समस्या बस इतनी ही नहीं है। क्या सभी अविश्वासी जो परमेश्वर में विश्वास नहीं करते, दूसरों को बेधड़क लुभाने में सक्षम हैं? क्या वे सभी अनैतिक गतिविधियों में लिप्त होने में सक्षम हैं? उनमें से मुट्ठी भर लोग, कुछ गिने-चुने लोग अभी भी निष्ठा और गरिमा को महत्व देते हैं, अपनी प्रतिष्ठा की परवाह करते हैं और अपने आचरण का एक आधार रखते हैं। परमेश्वर के ये तथाकथित विश्वासी अविश्वासियों से थोड़े भी बेहतर नहीं हैं, तो क्या उन्हें अविश्वासी और छद्म-विश्वासी कहना अतिशयोक्ति होगी? (नहीं।) भले ही ये लोग परमेश्वर के घर में कुछ श्रम कर सकते हैं, मगर अपनी प्रकृति के मामले में, वे छद्म-विश्वासी और अविश्वासी हैं। वे जो कुछ भी करते हैं उसमें कोई सिद्धांत नहीं होता और वे बिना किसी आधार, गरिमा और शर्म की भावना के आचरण करते हैं। अविश्वासी इस विचार का भी समर्थन करते हैं, “जैसे पेड़ को उसकी छाल की जरूरत है वैसे ही लोगों को आत्मसम्मान की जरूरत है”; फिर भी ये लोग अपने आत्मसम्मान को बनाए नहीं रखना चाहते, तो क्या वे सत्य की चाह रख सकते हैं? क्या वे गंभीरता से परमेश्वर के लिए खुद को खपा सकते हैं? क्या वे अपने कर्तव्य में सिद्धांतों के अनुसार काम कर सकते हैं? बिल्कुल नहीं! वे शुद्ध रूप से श्रम कर रहे हैं। श्रम करने वाले लोगों में कोई सत्य नहीं होता; उनका श्रम बाधा डालता है और गड़बड़ी पैदा करता है, कर्तव्य पालन के मानक पर खरा नहीं उतरता। भले ही बाहरी रूप से वे अपना कर्तव्य निभाते हुए प्रतीत होते हैं, तुम उनके साथ सिद्धांतों पर कितनी भी संगति कर लो, वे तुम्हारी एक नहीं सुनते। वे अपनी मनमानी करते हैं, सिद्धांतों के अनुसार कार्य नहीं करते। जब ये लोग धर्मोपदेश सुनते हैं, तो उनके व्यवहार और हाव-भाव से उनके छद्म-विश्वासी होने का सार उजागर होता है। अन्य लोग सीधे बैठकर गंभीरता से और ध्यानपूर्वक सुनते हैं, मगर ये लोग कैसे सुनते हैं? कुछ लोग मेज के सहारे आराम करते हैं, बार-बार अंगड़ाई और जम्हाई लेते हैं, ठीक से नहीं बैठते, मनुष्य जैसे तो बिल्कुल नहीं दिखते। वे किस तरह के लोग हैं जो मनुष्य जैसे नहीं दिखते? वे मनुष्य तो बिल्कुल नहीं हैं; वे केवल मनुष्य होने का मुखौटा लगाते हैं। जब तुम लोग इस तरह के “साँपों” के समूह को धर्मोपदेश सुनने के लिए आते देखते हो तो तुम्हें कैसा लगता है? क्या इससे तुम्हें असहज महसूस नहीं होता? (होता है।) यह समूह घिनौना लगता है और उन्हें देखकर मुझे बोलने का मन नहीं करता। मैं मनुष्यों से बात करता हूँ, साँपों से नहीं। जो लोग इस तरह से धर्मोपदेश सुनते हैं, क्या उनकी स्थितियाँ उनके कर्तव्य पालन के साथ सुधर सकती हैं? क्या परमेश्वर में उनकी आस्था बढ़ सकती है और क्या वे अपने कर्तव्य पालन के साथ सत्य को अधिक स्पष्ट रूप से समझ सकते हैं? बिल्कुल नहीं! चाहे वे अपने कर्तव्य को कैसे भी निभाएँ, उनका आध्यात्मिक कद और आस्था नहीं बढ़ती। वे बिना किसी जागरूकता, आत्मग्लानि या अनुशासन के दैहिक वासनाओं और भ्रष्ट स्वभावों के भीतर जीते हुए सब कुछ मनमाने ढंग से और बिना किसी संयम के करते हैं—वे गैर-मानव हैं! ऐसे लोगों के लिए, उनके द्वारा की गई अन्य बुरी चीजों या सिद्धांतों का उल्लंघन करने और परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचाने वाले उनके क्रियाकलापों पर विचार किए बिना, केवल अनुचित संबंधों की शुरुआत करना ही उन्हें बाहर निकालने के लिए पर्याप्त है। यह बहुत ही सरल मामला है, फिर भी कलीसिया अगुआ और निरीक्षक बस अपने सिर खुजाते रह जाते हैं, वे नहीं जानते कि इससे कैसे निपटना है। इस मामले से निपटना बहुत आसान है; इस पर पहले संगति की जा चुकी है। इससे सिद्धांतों के अनुसार निपटना चाहिए और जिन्हें बाहर निकालना जरूरी है उन्हें निकाल देना चाहिए। ज्यादा सोच-विचार मत करो; परमेश्वर के घर का काम उनके बिना भी अच्छे से चलता रहेगा। मुझे बताओ, अगर किसी को कहीं कुत्ते का मल दिखे तो उसे क्या करना चाहिए? उसे तुरंत साफ कर देना चाहिए; अगर समय रहते साफ नहीं किया गया तो मक्खियाँ और मच्छर तुरंत आ जाएँगे और ऐसी जगह पर लोगों को शांति नहीं मिल सकती। इन सबसे मेरा क्या मतलब है? (यही कि कलीसिया में अनुचित संबंधों की शुरुआत करने की समस्या को हल करने के लिए, पहला कदम उन घृणित छद्म-विश्वासियों का सफाया करना है।) हाँ, मेरा बिल्कुल यही मतलब है। अगर कलीसिया में “कुत्ते के बदबूदार मल” किस्म के लोग होंगे तो वे यकीनन कुछ “बदबूदार मक्खियों” को भी आकर्षित करेंगे। कुत्ते के बदबूदार मल को साफ करने से ये मक्खियाँ अपने आप ही गायब हो जाएँगी। क्या यह समाधान नहीं है? क्या यह समाधान उचित है? (हाँ।) ऐसी समस्याओं से निपटने के दौरान, कुछ कलीसिया अगुआओं को हमेशा चिंता रहती है, वे कहते हैं, “अगर हम दूसरों को बेधड़क लुभाने वाले लोगों का सफाया कर दें तो क्या काम करने वाले लोग कम नहीं पड़ जाएँगे?” क्या यह कोई समस्या है? (नहीं।) क्यों नहीं? इस चिंता का समाधान कैसे किया जाना चाहिए? भले ही उनकी चिंता जायज हो, यह सोचकर कि अगर लोगों पर बहुत ज्यादा दबाव डाला गया और जो लोग काम कर सकते हैं उन्हें हटा दिया गया तो कार्य के इस हिस्से को करने के लिए कोई नहीं होगा, क्या उनकी जगह अन्य सक्षम लोगों को ढूंढना आसान नहीं होगा? (हाँ।) और अगर नए लोग तुरंत न भी मिलें तो बाद में उपयुक्त लोग मिल जाने पर परमेश्वर के घर के कार्य को प्रभावित किए बिना काम पूरा किया जा सकता है। परमेश्वर का घर ऐसे लोगों का समर्थन नहीं करता जो सही काम नहीं करते। अगर वे पश्चात्ताप करके सही तरीके से काम कर सकते हैं तो वे काम करना जारी रख सकते हैं, लेकिन अगर वे पश्चात्ताप नहीं करते हैं तो उन्हें अपना कर्तव्य निभाने से अयोग्य घोषित कर देना चाहिए। क्या यह न्यायसंगत और उचित नहीं है? परमेश्वर का घर छद्म-विश्वासियों और अविश्वासियों का समर्थन करने के बजाय श्रमिकों का समर्थन करेगा। क्या यह सिद्धांत सही है? (हाँ।) यह किस तरह से सही है? भले ही कोई श्रमिक सत्य का अनुसरण न करे, फिर भी वह श्रम करने के लिए तैयार रहता है, और परमेश्वर के घर में अच्छे व्यवहार के साथ और आज्ञाकारी तरीके से पूरा प्रयास करता है। भले ही वह केवल श्रम कर रहा हो, मगर वह निष्ठावान है और कम से कम बुरा इंसान तो नहीं है। परमेश्वर का घर इस तरह के लोगों को बनाए रखता है। अगर कोई व्यक्ति बुरा और घृणित है, हमेशा धूर्त और अति पापी अभ्यासों में लिप्त रहता है, और अगर वह अच्छी तरह से श्रम भी नहीं कर सकता और श्रमिक के मानक पर खरा नहीं उतरता है तो ऐसा इंसान अविश्वासी है और परमेश्वर का घर उसे बनाए नहीं रखता है। ऐसा नहीं है कि वह श्रमिक है इसलिए परमेश्वर का घर उसे बनाए नहीं रखता है, बल्कि ऐसा इसलिए है क्योंकि उसका श्रम मानक के अनुरूप भी नहीं है और उसका श्रम बस एक लेनदेन है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वह हमेशा बुराई करना और गड़बड़ी पैदा करना चाहता है, हमेशा कलीसिया में धूर्त और अति पापी अभ्यासों में लिप्त रहने की कोशिश करता है, कलीसिया की कार्य व्यवस्था बिगाड़ता है और ज्यादातर लोगों के कर्तव्य निर्वहन को प्रभावित करता है। ऐसे लोग कलीसिया के माहौल को दूषित करते हुए परमेश्वर का नाम बदनाम करते हैं—उन्हें निकाल बाहर करने से ज्यादा उचित और कुछ नहीं हो सकता। जहाँ कहीं भी “कुत्ते के बदबूदार मल” किस्म के लोग हों, उनका तुरंत सफाया कर देना चाहिए। समझ गए? (हाँ।)
XI. चुनावों में हेराफेरी करना और विघ्न डालना
आज हम अगुआओं और कार्यकर्ताओं की बारहवीं जिम्मेदारी पर संगति करना जारी रखेंगे : “उन विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों की तुरंत और सटीक रूप से पहचान करो, जो परमेश्वर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था में विघ्न-बाधा उत्पन्न करती हैं; उन्हें रोको और प्रतिबंधित करो, और चीजों को बदल दो; इसके अतिरिक्त, सत्य के बारे में संगति करो, ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोग ऐसी बातों के माध्यम से समझ विकसित करें और उनसे सीखें।” इस बारहवीं जिम्मेदारी की ग्यारहवीं समस्या क्या है? (चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करना।) हमने पहले भी मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों पर संगति करने और उन्हें उजागर करने के दौरान चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने के विषय पर थोड़ी संगति की है, है न? (हाँ।) परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्था में कलीसिया के चुनावों के नियम शामिल हैं। चुनाव साल में एक बार हो सकते हैं और कुछ विशेष परिस्थितियों में भी चुनाव हो सकते हैं। सभी कलीसियाओं को सभी स्तरों पर अगुआओं और कार्यकर्ताओं का चयन परमेश्वर के घर द्वारा निर्धारित सिद्धांतों के अनुसार करना चाहिए। चुनावों के नियमों में चुनाव के सिद्धांत, लोगों को चुनने के मानदंड, चुनावों के तरीके और नजरिए, और ध्यान देने वाले विभिन्न मामले शामिल हैं, जिनके बारे में भाई-बहनों को चुनावों के दौरान पता होना चाहिए। बेशक, हर चुनाव से पहले, सभी स्तरों के अगुआओं और कार्यकर्ताओं को चुनाव सिद्धांतों के सभी पहलुओं पर संगति करनी चाहिए, ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोग उन्हें स्पष्ट रूप से समझ सकें। इस तरह, चुनाव के नतीजे बेहतर होंगे। आज हम चुनावों के विवरण पर संगति नहीं करेंगे; आज की संगति का मुख्य विषय चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने की कुछ अभिव्यक्तियाँ हैं।
क. चुनावों में हेराफेरी करने और विघ्न डालने की अभिव्यक्तियाँ
कलीसिया के चुनावों में अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए सबसे उपयुक्त उम्मीदवारों का चयन करने के संबंध में परमेश्वर के घर द्वारा निर्धारित चुनाव सिद्धांतों का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए। अगर चुनाव सिद्धांतों का उल्लंघन करके चुनाव के अन्य तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है तो यह झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों की करतूत है। परमेश्वर के घर को ऐसे उल्लंघनों को नियम-विरोधी घोषित करके चुनावों में हेराफेरी करने वाले मुख्य व्यक्तियों की जाँच करनी चाहिए और उनसे निपटना चाहिए। कलीसिया के चुनावों के दौरान, विभिन्न लोगों को बेनकाब किया जाएगा और लोगों की विभिन्न मानसिकताएँ उजागर होंगी। कुछ लोग अगुआ के रूप में चुने जाने या अपने लिए फायदेमंद लोगों के चयन के लिए परदे के पीछे बहुत-से नीच पैंतरे आजमाते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ लोग इस बात से डरते हैं कि जो लोग सत्य का अनुसरण करते हैं उन्हें अगुआ के रूप में चुन लिया जाएगा जिससे उनके रुतबे को खतरा होगा, और इसलिए वे इन लोगों की पीठ पीछे उनके द्वारा दिखाई गई कमजोरियों और की गई गलतियों पर अपना मूल्यांकन देने की हर मुमकिन कोशिश करते हैं, उन्हें मसीह-विरोधियों के स्वभाव वाले अभिमानी और आत्मतुष्ट लोग बताकर उनकी निंदा करते हैं, और यह सब केवल इसलिए करते हैं कि वे चुनाव हार जाएँ। अन्य लोग, अगुआ के रूप में चुने जाने के लिए, चुनाव के दौरान लोगों को रिश्वत देने के लिए अच्छी चीजें खरीदते हैं या लुभावने शब्दों के साथ उनसे वादे करते हैं, और दूसरों को भड़काने और बहकाने के लिए विभिन्न साधनों का उपयोग भी करते हैं कि किसके पक्ष में या किसके खिलाफ वोट देना है। चाहे वे किसी भी साधन और तरीके का उपयोग करें, वे सभी चुनावों में हेराफेरी करने और चुनाव के नतीजों को प्रभावित करने के लिए होते हैं। कलीसिया द्वारा बार-बार चुनावों के सिद्धांतों पर संगति करने के बावजूद—जैसे कि ऐसे लोगों को चुनना जिनकी मानवता अच्छी है, जो सत्य का अनुसरण करते हैं और जो सामान्य रूप से कर्तव्य निभाने में भाई-बहनों की अगुआई कर सकते हैं, जो सामान्य रूप से परमेश्वर के वचनों को पढ़ सकते हैं, सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर सकते हैं और ऐसे ही कई अन्य सिद्धांत—ये लोग सुनते ही नहीं हैं और छल-कपट करना चाहते हैं। छल-कपट करने का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि वे हमेशा धोखा देना चाहते हैं। वे कभी भी खुले तौर पर यह मूल्यांकन नहीं करते कि कौन अच्छा है और कौन नहीं, वे हमेशा छल-कपट करना चाहते हैं और परदे के पीछे रहकर कुटिल साजिशों और दाँव-पेंच में शामिल रहते हैं। वे परदे के पीछे से यह साजिश भी रचते हैं कि किसे चुना जाए और किसे नहीं, ताकि सभी लोग एकमत हो जाएँ। क्या यह छल-कपट नहीं है? क्या यह धोखाधड़ी नहीं है? (बिल्कुल है।) क्या यह सत्य सिद्धांतों के अनुसार खुले और पारदर्शी तरीके से चुनावों की सुरक्षा करना है? नहीं, ऐसा नहीं है—वे चुनावों में हेराफेरी करने के ढीठ प्रयास में मानवीय साजिशों और तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। चुनावों में हेराफेरी करने में उनका क्या उद्देश्य है? वे चुनाव के नतीजों को नियंत्रित करना चाहते हैं, वे खुद चुने जाना चाहते हैं, और अगर वे चुने नहीं जा सकते तो यह तय करना चाहते हैं कि कौन चुना जाएगा, इसलिए वे परदे के पीछे से छल-कपट करते हैं। वे कलीसिया के कार्य या भाई-बहनों के जीवन प्रवेश के बारे में विचार नहीं करते। वे परमेश्वर के घर या भाई-बहनों के हितों के बारे में नहीं सोचते; वे केवल अपने व्यक्तिगत हितों की परवाह करते हैं। जब चुनाव होते हैं तो उनके अपने इरादे और इच्छाएँ उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता होती हैं। तो वे चुनावों में हेराफेरी क्यों करना चाहते हैं? अगर कोई वास्तव में भाई-बहनों को परमेश्वर के सामने और सत्य वास्तविकता में लाना चाहता है तो क्या वह इस तरह से काम करेगा? क्या उसकी ऐसी महत्वाकांक्षाएँ होंगी? क्या वह ऐसा व्यवहार प्रदर्शित करेगा? नहीं, वह ऐसा नहीं करेगा। केवल गुप्त मंशाओं, महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं वाले लोग ही इस तरह से काम करेंगे जो कलीसिया के चुनावों में हेराफेरी करना चाहते हैं। कलीसिया के भीतर, वे कुछ ऐसे लोगों को अपने साथ जोड़ते हैं जो उनके साथ अच्छी तरह से घुल-मिल जाते हैं, जो उनके विचार साझा करते हैं और जिनकी मंशाएँ और लक्ष्य समान होते हैं, और साथ ही वे कुछ ऐसे लोगों को भी अपने जाल में फँसा लेते हैं जो आम तौर पर कमजोर होते हैं, सत्य का अधिक अनुसरण नहीं करते, और भ्रमित, अज्ञानी होते हैं, जो आसानी से बहकाए और छले जा सकते हैं, ताकि कलीसिया के चुनाव कार्य में बाधा डालने वाली शक्ति गठित की जा सके। कलीसिया का विरोध करने में उनका उद्देश्य खुद का चयन कराना और चुनाव के नतीजों में अंतिम फैसला करना है। वे अपने पूर्व-निर्धारित लोगों को चुनना चाहते हैं, जो उनके लिए फायदेमंद हों। अगर ये लोग चुने जाते हैं तो उनकी साजिश सफल होगी। इस तरह के चुनाव का नतीजा सही होगा या फिर गलत? (गलत।) यह निश्चित रूप से गलत होगा। धांधली करके चुनाव जीतने वाले बुरे लोग निश्चित रूप से बुरे लोगों के लिए ही फायदेमंद होंगे। वे इन बुरे लोगों के लिए फायदेमंद क्यों होंगे? क्योंकि बुरे लोग तब अपनी मनमर्जी से और बेधड़क काम कर सकते हैं और कलीसिया में बेकाबू हो सकते हैं और कोई भी उन्हें उजागर या प्रतिबंधित करने की हिम्मत नहीं करेगा। उन्हें निकाला नहीं जाएगा, जबकि जो लोग सत्य का अनुसरण करते हैं उन्हें उनके द्वारा बहिष्कृत किया जाएगा और दबाया जाएगा, और कलीसिया बुरे लोगों का कार्य-क्षेत्र बन जाएगी। यह स्पष्ट है कि बुरे लोगों द्वारा हेराफेरी किए गए चुनाव का अंतिम नतीजा निश्चित रूप से गलत होगा; यह यकीनन लोकप्रिय राय के खिलाफ जाता है और सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। कलीसिया अगुआओं और भाई-बहनों को चुनावों के दौरान इन लोगों के सभी व्यवहारों और क्रियाकलापों के बारे में पता होना चाहिए और उनसे सतर्क रहना चाहिए। उन्हें इस बारे में भ्रमित नहीं होना चाहिए। जैसे ही किसी चुनाव में हेराफेरी और गड़बड़ी के संकेत मिलें तो इसमें शामिल लोगों को प्रतिबंधित करने के लिए तुरंत उपाय किए जाने चाहिए, और अगर इन लोगों को प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता तो उन्हें अलग-थलग कर दिया जाना चाहिए। ये लोग विशेष रूप से दुस्साहसी और बेलगाम होते हैं, उन्हें नियंत्रित करना मुश्किल होता है। चुनावों में गड़बड़ी करने और नतीजों में हेराफेरी करने के लिए, वे यकीनन परदे के पीछे से छल-कपट करेंगे, कई तरह की बातें कहेंगे और करेंगे। इस बारे में क्या किया जाना चाहिए? इस मामले को संभालना आसान है। अगर कलीसिया अगुआओं को समस्या का पता चलता है तो उन्हें इसे उजागर करना और इसका प्रचार करना चाहिए; इस मामले की गंभीरता और परिणामों के बारे में और इस तरह के क्रियाकलापों की प्रकृति के बारे में भाई-बहनों से संगति करानी चाहिए। आखिर में, उन्हें कुछ कदम भी उठाने चाहिए। उन्हें कैसे कदम उठाने चाहिए? जो कोई भी हमेशा परदे के पीछे से छल-कपट करता है और चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने की कोशिश करता है, उसके साथ अनौपचारिक तरीके से निपटा जाना चाहिए और उसे चुनावों में भाग लेने से रोक दिया जाना चाहिए। इसका क्या मतलब है? इसका मतलब है कि उसका वोट नहीं गिना जाएगा। चाहे कितने भी लोग चुनाव में हेराफेरी और गड़बड़ी करने में शामिल हों, उनके सभी वोट रद्द कर दिए जाने चाहिए और उन्हें चुनाव में भाग लेने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। चाहे कोई भी व्यक्ति गुमराह या बाधित किया गया हो हो, अगर उसने चुनाव में हेराफेरी करने वाले तरीकों का पालन किया है और जानबूझकर चुनाव को नुकसान पहुँचाने के लिए बुरे लोगों के साथ साँठगाँठ की है, तो परमेश्वर के चुने हुए लोगों को उसे उजागर करने और चुनाव में भाग लेने के उसके अधिकार को रद्द करने के लिए आगे आना चाहिए। क्या यह अच्छा तरीका है? (हाँ।) यह पूरी तरह से कलीसिया के कार्य की सुरक्षा करने के लिए किया जाता है। क्या ये लोग प्रतिबंधों को मानने से इनकार नहीं करते? क्या वे परमेश्वर के घर के चुनाव सिद्धांतों को स्वीकारने से इनकार नहीं करते? क्या अंतिम फैसला वे खुद नहीं लेना चाहते? अगर अंतिम फैसला वे लेते हैं तो यह शैतान ही होगा जो अंतिम फैसला ले रहा होगा। परमेश्वर का घर और कलीसिया ऐसी जगहें हैं जहाँ सत्य का शासन है; शैतान को फैसले लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती। क्योंकि ये लोग छल-कपट करना चाहते हैं और जानबूझकर इस चुनाव में हेराफेरी और गड़बड़ी करना चाहते हैं, तो बात सरल है—उनके वोट रद्द कर दिए जाते हैं। चाहे वे किसी को भी वोट दें, इसका कोई फायदा नहीं है; उनकी कोई भी राय मान्य नहीं है, और भले ही वे चुनाव में भाग लेने पर जोर दें, इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। परमेश्वर के घर में प्रशासनिक आदेश और विनियम हैं, और इस चुनाव में भाग लेने का उनका अधिकार छीनकर रद्द कर दिया गया है। अगर वे फिर भी अगले चुनाव में बाधा डालते हैं तो चुनावों में भाग लेने का उनका अधिकार पूरी तरह से रद्द कर दिया जाएगा और आगे से उन्हें भाग लेने की अनुमति नहीं दी जाएगी। जो लोग चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने के लिए हमेशा छल-कपट करते हैं उनसे इसी तरह निपटना चाहिए।
जब भी कलीसिया में चुनाव होता है, हर बार कुछ ऐसे बुरे लोग होते हैं जो बेचैन होने लगते हैं : कुछ लोग चुनाव में हेराफेरी और गड़बड़ी करने की कोशिश में परदे के पीछे रहकर छल-कपट करते हैं, जबकि कुछ लोग अगुआ के पद के लिए दूसरों के साथ खुलेआम प्रतिस्पर्धा करने को उत्सुक रहते हैं, तब तक बहस करते हैं जब तक कि उनका चेहरा लाल न हो जाए, यहाँ तक कि वे उतावलेपन से काम लेने, हिंसा का सहारा लेने और मारपीट करने के कगार पर पहुँच जाते हैं, जिससे भाई-बहन दुविधा में पड़ जाते हैं कि किसकी सुनें या किसे चुनें। चुनाव के दौरान, वे सत्य पर संगति नहीं करते, न ही वे इस बात पर चर्चा करते हैं कि वे कलीसिया का कार्य कैसे करेंगे, काम में कौन से रास्ते होंगे या अगुआ के रूप में चुने जाने पर वे काम के लिए कौन-से विचार और योजनाएँ प्रस्तुत करेंगे। इसके बजाय, वे अन्य उम्मीदवारों की खामियों को उजागर करना और उन पर हमला करना सुनिश्चित करते हैं, साथ ही एक समूह के लोगों को दूसरे समूह के खिलाफ होने के लिए प्रेरित करते हैं, ताकि कलीसिया में बँटवारे की स्थिति पैदा हो जाए। ऐसा चुनाव क्या बन जाता है? यह कुछ ऐसा बन जाता है जिससे कलीसिया बँट जाती है। चुनाव के नतीजे आने से पहले ही कलीसिया बँट चुकी होती है। कलीसिया में चुनाव के दौरान क्या ऐसी घटना सामने आनी चाहिए? क्या यह सामान्य घटना है? नहीं, ऐसा नहीं है। अगर तुम अगुआ बनना चाहते हो और मानते हो कि तुम्हारे पास कुछ योग्यताएँ और जिम्मेदारी की भावना है और तुम इस काम के योग्य हो तो तुम परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुसार चुनाव में भाग ले सकते हो। बेशक, तुम अपनी ताकत और योग्यताएँ भी बता सकते हो, अपनी समझ और अनुभवों पर संगति कर सकते हो, ताकि भाई-बहन आश्वस्त हो सकें और तुम पर भरोसा कर सकें कि तुम कलीसिया की अगुआई का काम कर सकोगे। तुम्हें अगुआ के रूप में चुने जाने के अपने लक्ष्य को दूसरों पर हमला करके हासिल नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे लोग आसानी से गुमराह हो सकते हैं और नकारात्मक परिणाम सामने आ सकते हैं। छोटे आध्यात्मिक कद वाले और विवेकहीन भाई-बहन आसानी से तुम्हारे द्वारा गुमराह किए जा सकते हैं और उन्हें पता नहीं होगा कि किसे चुनना है, और कलीसिया भी अराजकता में फंसकर बंटटवारे का दंश झेल सकती है। क्या यह शैतान को शोषण करने का अवसर देना नहीं होगा? संक्षेप में, सिद्धांतों का पालन किए बिना चुनाव में भाग लेना, हमेशा महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ रखना और अगुआ के रूप में चुने जाने के अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए घिनौने तरीकों का इस्तेमाल करना, ये सभी चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने की प्रकृति के तरीके हैं और अनुचित चुनावी व्यवहार हैं। बेशक, कुछ लोग उचित व्यवहार करते हैं जिन्हें इससे अलग माना जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, अगर कोई उम्मीदवार कलीसिया के विभिन्न कामों को अच्छी तरह से करने के तरीके पर संगति करता है, जैसे कि सुसमाचार कार्य, पाठ-आधारित काम और काम से जुड़े सामान्य मामले, या कलीसियाई जीवन को कैसे बेहतर बनाया जाए, परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश की कठिनाइयों को कैसे हल किया जाए वगैरह, ये सब उचित तरीके है। अपने दृष्टिकोण और समझ को सही तरीके से व्यक्त करने, कलीसिया के कार्य के बारे में अपनी सोच और योजनाओं को साझा करने जैसी चीजें इत्यादि—ये सभी सामान्य भाषण और व्यवहार का हिस्सा हैं, और ये कलीसिया द्वारा निर्धारित चुनाव सिद्धांतों के अनुरूप हैं। इनके अलावा, चुनाव की अवधियों के दौरान प्रदर्शित कोई भी अनुचित व्यवहार जो विशेष रूप से स्पष्ट है, उस पर लोगों को नजर रखनी चाहिए। लोगों को इनके प्रति सतर्क रहना चाहिए और इन्हें पहचानना चाहिए—लापरवाह मत बनो।
कुछ लोग अपने कर्तव्यों का पालन न करने और कलीसियाई जीवन में भाग न लेने के लिए अक्सर काम में व्यस्त होने, अपने परिवार में कई समस्याएँ होने या अनुपयुक्त माहौल होने का बहाना बनाते हैं। लेकिन जब कलीसिया के अगुआओं को चुनने का समय आता है तो ये कठिनाइयाँ अचानक खत्म हो जाती हैं, और वे इस अवसर के लिए अच्छे से तैयार होकर चुनाव में भाग लेने के लिए आ जाते हैं। उन्होंने लंबे समय से अपना चेहरा नहीं दिखाया है, मगर कलीसिया के चुनाव की बेहतरीन खबर सुनते ही वे उत्सुकता से दौड़े आते हैं। वे किसलिए आ रहे हैं? वे चुनाव के लिए, कलीसिया अगुआ के पद के लिए, इस “आधिकारिक पद” के लिए आ रहे हैं। ऐसे लोग बड़ी चालाकी से काम लेते हैं। इस डर से कि दूसरों को संदेह होगा कि वे कलीसिया अगुआ बनना चाहते हैं, वे चुनाव का जिक्र करने से बचते हैं और लोगों की प्रशंसा पाने के लिए सिर्फ अपनी समझ और अनुभवों के बारे में संगति करने पर ध्यान देते हैं। वे सार्वजनिक तौर पर परमेश्वर के वचनों को खाते-पीते हैं, परमेश्वर के वचनों पर संगति करने में सबकी अगुआई करते हैं और अपनी खुद की अनुभवजन्य गवाही साझा करते हैं। वास्तव में, वे आम तौर पर कलीसियाई जीवन में शायद ही कभी भाग लेते हैं और शायद ही कभी सत्य पर संगति करते हैं, और न ही वे किसी अनुभवजन्य समझ के बारे में बोलने में सक्षम होते हैं। लेकिन जैसे-जैसे चुनाव करीब आते हैं, वे पहले से बहुत अलग हो जाते हैं। वे कलीसियाई जीवन में सक्रियता से भाग लेते हैं और प्रार्थना करने, भजन गाने और संगति करने के लिए उत्सुक रहते हैं; वे विशेष रूप से प्रेरित और सक्रिय दिखाई देते हैं और प्रमुखता से सामने आते हैं। सभाओं के बाद, वे भाई-बहनों के साथ पारिवारिक मामलों के बारे में बातचीत करने और संबंध बनाने के मौके खोजते हैं। जब वे किसी कलीसिया अगुआ को देखते हैं तो कहते हैं, “आप इन दिनों बहुत अच्छे नहीं दिख रहे। मेरे घर पर खजूर रखे हैं; मैं आपके लिए थोड़े खजूर लेकर आऊँगा।” जब वे किसी बहन को देखते हैं तो कहते हैं, “मैंने सुना है कि आपके परिवार को आर्थिक कठिनाइयाँ हो रही हैं। क्या मैं आपकी कोई मदद कर सकता हूँ? मैं आपको कुछ कपड़े दे सकता हूँ।” वे पहले के मुकाबले में अब हर सभा में विशेष रूप से सक्रिय होते हैं। पहले, वे बस कलीसिया में बने रहने के लिए कभी-कभार आ जाते थे और चाहे कोई भी उन्हें सभा में बुलाए, वे व्यस्त होने का बहाना बना देते थे। मगर चुनाव की अवधि के दौरान, वे अचानक सामने आकर हर सभा में भाग लेने लगते हैं और एक भी सभा नहीं छोड़ते। हर सभा में, भाई-बहन चुनाव से संबंधित मुद्दों और सिद्धांतों के बारे में संगति करते हैं और बेशक इसमें वे भी शामिल होते हैं। इस दौरान, वे भाई-बहनों के साथ अच्छे संबंध बनाने की पूरी कोशिश करते हैं, उनमें से कुछ लोगों को आकर्षित करने का प्रयास भी करते हैं। यहाँ तक कि वे भाई-बहनों के सामने कई बार चढ़ावा भी चढ़ाते हैं, जिससे ज्यादातर लोग हैरान रह जाते हैं और सोचते हैं, “उन्होंने इतने लंबे समय से परमेश्वर में विश्वास किया है, मगर हमने उन्हें पहले कभी चढ़ावा चढ़ाते नहीं देखा। वे इस बार इतने उदार क्यों बन रहे हैं? क्या उन्होंने वाकई खुद को बदलकर पहले से बेहतर बना लिया है?” कुछ मूर्ख और अज्ञानी लोग जो मामलों का आकलन नहीं कर सकते, वे सोचते हैं कि यह व्यक्ति वास्तव में बदल गया है, उन्होंने पहले इस व्यक्ति के बारे में गलत अनुमान लगाया था और अनजाने में उनके दिलों में उसके बारे अनुकूल छवि पनपने लगती है; वे सोचते हैं, “इस व्यक्ति का परिवार समृद्ध है; लोगों के साथ उसके अच्छे संबंध हैं और उसे काम करवाने के तरीके आते हैं। अगर वह कलीसिया अगुआ बन जाता है तो वह कलीसिया के लिए कई काम करवा सकेगा। क्या इससे सुसमाचार प्रचार में और कुछ ऐसे भाई-बहनों की मेजबानी करने में कलीसिया को मदद नहीं मिलेगी, जिन्हें सताया जा रहा है और जो कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं? अगर वह इतना ही सक्रिय रह सका तो बहुत अच्छा होगा, मगर मुझे नहीं पता कि वह ऐसा करना जारी रख पाएगा या नहीं या फिर क्या वह हमारी कलीसिया का अगुआ बनने को तैयार होगा।” क्या कुछ लोगों को गुमराह करके मूर्ख नहीं बनाया गया है? यह व्यक्ति जो कुछ भी करता रहा है, उसका फल दिखने लगा है, है न? चीजें सही ढंग से हो रही हैं और नतीजे जल्द ही आने वाले हैं। वे यही चाहते हैं, है न? (हाँ।) इसके अलावा, वे किसी व्यक्ति को दो जोड़ी कपड़े देते हैं, किसी को टोकरी भर सब्जियाँ देते हैं, तो किसी और को थोड़ी दवाइयाँ दे देते हैं, यह पक्का करते हैं कि सबकी देखरेख हो। इस कारण लोग सोचते हैं, “अगर यह व्यक्ति कलीसिया का अगुआ बन गया तो क्या वह एक महान चरवाहा नहीं बनेगा? क्या वह ऐसा व्यक्ति नहीं है जिस पर ज्यादातर लोग भरोसा करना चाहते हैं?” क्या यही सही समय नहीं है? क्या भाई-बहन आसानी से ऐसे व्यक्ति को नहीं चुन लेंगे? यह व्यक्ति शिक्षित, वाक्पटु है और समाज में उसका एक खास रुतबा है। अगर कलीसिया को गिरफ्तारियों का सामना करना पड़ता है तो वह भाई-बहनों की रक्षा कर सकता है। अगर भाई-बहनों में से किसी के भी परिवार को कोई कठिनाई होती है तो वह मदद का हाथ बढ़ा सकता है और जब ज्यादा लोगों की जरूरत होगी तो वह कलीसिया के काम में भी मदद कर सकता है। लेकिन एक बात है जिसके बारे में ज्यादातर लोग अनिश्चित हैं : “वह पहले सत्य का अनुसरण नहीं करता था और लंबे समय तक शायद ही कभी सभाओं में शामिल होता था। मगर अब चुनाव का समय आया है तो वह आनन-फानन में कुछ सभाओं में शामिल हुआ है। अगर उसे अगुआ के रूप में चुना जाता है तो क्या वह सत्य समझेगा? अगर वह सत्य नहीं समझता है और केवल इन लोगों की रक्षा कर सकता है या उन्हें कुछ लाभ प्रदान कर सकता है तो क्या वह सत्य समझने में लोगों की मदद कर सकेगा? क्या वह लोगों को परमेश्वर के सामने ला सकेगा? इसमें संदेह है।” कुछ लोगों के दिलों में संदेह है, जबकि अन्य लोग पहले से ही इस व्यक्ति के लाभों से प्रभावित और खरीदे जा चुके हैं। क्या यह स्थिति बहुत खतरनाक नहीं है? एक अकेला वोट चुनाव जीतने में उसकी मदद कर सकता है। चुनाव का अंतिम नतीजा चाहे जो भी हो, क्या ऐसे लोगों के क्रियाकलाप और व्यवहार उचित हैं? (नहीं।) सबसे उपयुक्त क्षणों में, वे दान देते हैं, चढ़ावा चढ़ाते हैं और कुछ वास्तविक कठिनाइयों को हल करने में भाई-बहनों की मदद करते हैं। जब कुछ भाई-बहन अपने घर बदलते हैं तो वे परिवहन की व्यवस्था कर देते हैं और जब कुछ भाई-बहनों के परिवारों के पास पैसे की कमी होती है तो वे उन्हें कुछ पैसे उधार दे देते हैं। जब किसी के पास फोन नहीं होता तो वे उसे एक फोन खरीद देते हैं और जब किसी के पास कंप्यूटर नहीं होता है तो वे अपना कंप्यूटर उसे दे देते हैं। ... वे ये काम सबसे उपयुक्त क्षणों में, सबसे अहम मौकों पर करते हैं। यह कैसा व्यवहार है? क्या अगुआ के पद के लिए प्रतिस्पर्धा करने के इरादे के साथ, अकथ्य रहस्यों और उद्देश्यों के साथ ये काम करना, चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करना नहीं है? (बिल्कुल है।) वे पहले या बाद में नहीं आते, बल्कि अगुआ के चुनाव के समय ही दिखाई देते हैं। क्या वे अकथ्य रहस्यों को नहीं छिपा रहे हैं? यह और ज्यादा स्पष्ट नहीं हो सकता; वे पक्के तौर पर ऐसे रहस्य छिपा रहे होंगे जिनका उल्लेख तक नहीं किया जा सकता। ऐसा तो नहीं है कि अचानक उनकी अंतरात्मा जाग गई और वे कुछ अच्छे कर्म करना चाहते हैं; उनका लक्ष्य कलीसिया अगुआ के पद के लिए खड़ा होना, कलीसिया का प्रभारी बनना, और कलीसिया और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को बहकाना है। क्या वे इन लोगों को इसलिए बहकाना चाहते हैं ताकि वे वास्तव में उनके लिए काम कर सकें? (नहीं।) तो वे क्या करना चाहते हैं? वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को काबू में करना चाहते हैं, कलीसिया पर नियंत्रण करना चाहते हैं और कलीसिया में एक ऐसा पद निर्धारित करना चाहते हैं जहाँ वे अधिकारी के रूप में काम कर सकें और खुद फैसले ले सकें। क्या ये असामान्य तरीके और अभ्यास चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने के रूप में नहीं गिने जाते हैं? (बिल्कुल।)
कलीसिया के चुनावों के दौरान, कुछ लोग जो इस बात से डरते हैं कि उन्हें पर्याप्त वोट नहीं मिलेंगे वे खुद को वोट देते हैं। क्या यह बेतुका और अजीब नहीं लगता? किसी व्यक्ति की खुद को वोट देने की प्रकृति क्या है? क्या यह आत्मविश्वास की कमी, बेशर्मी या अत्यधिक महत्वाकांक्षा की अभिव्यक्ति नहीं है? यह सब कुछ है। उन्हें चुनाव न जीतने का डर है, इसलिए उनके पास खुद के लिए वोट करने के अलावा कोई और चारा नहीं बचता है—यह आत्मविश्वास की कमी है। उनमें वो बात नहीं है पर फिर भी वे अगुआ बनना चाहते हैं; इस डर से कि दूसरे उन्हें वोट नहीं देंगे, वे खुद के लिए वोट करते हैं। क्या यह बेशर्मी नहीं है? इसके अलावा, उनकी अत्यधिक महत्वाकांक्षा उनके निर्णय को इस हद तक प्रभावित करती है कि वे अपने गौरव को खिड़की से बाहर फेंक देते हैं और ईमानदारी और गरिमा भुला देते हैं : “अगर तुम मुझे वोट नहीं दोगे तो मैं अगुआ नहीं बन पाऊँगा; मुझे हर हाल में कलीसिया अगुआ बनना है। अगर मैं अगुआ नहीं बन सकता तो फिर मैं परमेश्वर में विश्वास नहीं करूँगा!” वे अगुआ बनने, अधिकारी के रूप में काम करने पर जोर देते हैं, जीवन में केवल तभी सहज और संतुष्ट महसूस करते हैं जब उनके पास रुतबा होता है—उनकी कितनी जबरदस्त महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ होती हैं! वे पद को बहुत ज्यादा संजोते हैं, सिर्फ अगुआ बनने के लिए परमेश्वर में विश्वास रखते हैं। अगुआ होने में क्या खास बात है? अगर वे रुतबे के लाभों को महत्व नहीं देते और इससे मिलने वाले सभी विशेषाधिकारों का आनंद नहीं लेते, तो क्या वे तब भी इस पद की लालसा करते? क्या वे तब भी खुद के लिए वोट करते? क्या उनकी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ तब भी इतनी बड़ी होतीं? क्या वे तब भी रुतबे को इतना अधिक संजोते? नहीं, वे ऐसा नहीं करते। ऐसे लोग हमेशा चुनावों में हस्तक्षेप करना और उसके लिए मेहनत करना चाहते हैं, वे किसी भी छल-कपट का सहारा लेते हैं। भले ही उन्हें खुद लगता हो कि इस तरह से काम करना शर्मनाक है, यह सच्चा या ईमानदार नहीं है, और कुछ हद तक अपमानजनक है, थोड़ा विचार करने के बाद, वे सोचते हैं, “जो भी हो, जरूरी तो अगुआ के रूप में चुना जाना है!” यह बेशर्मी है। वे लोकतांत्रिक देशों के चुनावों में इस्तेमाल होने वाली बहस के तरीकों की नकल भी करना चाहते हैं, जहाँ उम्मीदवार एक-दूसरे की कमियाँ उजागर करते हैं, एक-दूसरे की आलोचना और एक-दूसरे पर हमला करते हैं, और झगड़ों में शामिल होते हैं, वे कलीसिया के चुनावों में ये पैंतरे अपनाते हैं—क्या यह एक गंभीर गलती नहीं है? क्या यह ऐसे पैंतरे अपनाने के लिए गलत जगह नहीं है? अगर तुम इन धूर्त और अतिपापी क्रियाकलापों में लिप्त होने के लिए कलीसिया में आते हो और चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने की कोशिश करते हो, तो मैं तुम्हें बता दूँ, तुमने ऐसा करने के लिए गलत जगह चुनी है! यह परमेश्वर का घर है, समाज नहीं; जो कोई भी चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करता है, उसकी निंदा की जाएगी। कलीसिया में, चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने की कोशिश में चाहे जो भी तर्क, बहाने या तरीके इस्तेमाल किए जाएँ, उनका समर्थन नहीं किया जा सकता और यह बुरा कर्म है—यह हमेशा बुरा कर्म ही रहेगा! जो लोग चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने की कोशिश करते हैं उनकी निंदा की जाती है। ऐसे लोगों को परमेश्वर के घर के सदस्य या भाई-बहनों के रूप में नहीं देखा जाता, बल्कि इन्हें शैतान के सेवकों के रूप में देखा जाता है। शैतान के सेवक किस तरह की चीजें करते हैं? उन्हें वे सब चीजें करने में महारत है जो परमेश्वर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था में विघ्न-बाधा डालते हैं। चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने वाले लोग ये नकारात्मक भूमिकाएँ निभा रहे हैं, शैतान के सेवकों का काम कर रहे हैं। कलीसिया जो भी काम करती है, ये लोग उसे बिगाड़ने और नष्ट करने के लिए उठ खड़े होते हैं, वे परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं और विनियमों की अवहेलना करते हैं, परमेश्वर के प्रशासनिक आदेशों की अवहेलना करते हैं, और इससे भी बढ़कर वे परमेश्वर की अवहेलना करते हैं। वे परमेश्वर के घर में जो चाहे वो करने की कोशिश करते हैं, कलीसिया के विभिन्न मामलों में हेराफेरी करते हैं, और इससे भी बढ़कर वे कलीसिया के सदस्यों को बहकाते हैं, यहाँ तक कि कलीसिया के चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने की हद तक चले जाते हैं। वे किस तरह से कलीसिया के कर्मियों को बहकाने की कोशिश करते हैं? वे कलीसिया के चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने के मौके ढूँढते हैं। शैतान के इन सेवकों द्वारा किसी चुनाव में हेराफेरी और गड़बड़ी करने से चुनाव विफल हो जाता है। अगर शैतान के इन सेवकों की मर्जी चले और वे कलीसिया अगुआ बन जाएँ, तो चुनाव का नतीजा सही होगा या गलत? बेशक यह गलत होगा। सत्य पर संगति करके और सीखे गए सबक का सारांश प्रस्तुत करके दोबारा चुनाव कराया जाना चाहिए।
ख. कलीसिया के चुनावों में हेराफेरी करने वाले बुरे लोगों से निपटने के लिए सिद्धांत
दोबारा चुनाव किस तरह से कराया जाना चाहिए? (चुनाव के नतीजों को रद्द करके दूसरा चुनाव कराया जाना चाहिए।) यह एक तरीका है। इस चुनाव में बुरे लोगों द्वारा किस तरह से हेराफेरी की गई थी, इसके बारे में अंदरूनी जानकारी को सार्वजनिक किया जाना चाहिए, ताकि सभी को पता चले कि चुनाव प्रक्रिया कैसी थी और नतीजे कैसे आये थे। इस अंदरूनी जानकारी के सामने आने के बाद, चुनाव के नतीजों को रद्द करके दोबारा चुनाव कराया जाना चाहिए। इस तरह के चुनाव को परमेश्वर के चुने हुए ज्यादातर लोगों की स्वीकृति नहीं होनी चाहिए; और चाहे कोई भी चुना गया हो—नतीजे स्वीकार नहीं किए जा सकते। सामान्य परिस्थितियों में, सत्य पर संगति करके और अंदरूनी कहानी को उजागर करके, चुनाव के नतीजों को नकारा जा सकता है और दोबारा चुनाव कराया जा सकता है। मगर कभी-कभी, कुछ विशेष परिस्थितियों में, भले ही कुछ गिने-चुने लोगों को पता चले कि चुनाव के नतीजों में शैतान के सेवकों ने हेराफेरी की थी और जो व्यक्ति चुना गया है वह बिल्कुल भी काम नहीं कर सकता और सिर्फ एक कठपुतली है, क्योंकि कलीसिया में ज्यादातर लोग बुरे लोगों द्वारा गुमराह किए गए हैं और अभी भी शैतान के सेवकों के पक्ष में खड़े हैं, जबकि केवल थोड़े-बहुत लोगों के पास कुछ विवेक है और उन्हें अंदरूनी जानकारी पता है—और कोई भी इन गिने-चुने लोगों पर विश्वास नहीं करता या जब वे बोलते हैं तो उनकी बात कोई नहीं सुनता—वे अलग-थलग और शक्तिहीन हैं, और उनके पास मूल रूप से स्थिति को पलटने की ताकत नहीं है। ऐसी परिस्थितियों में, तुम चुनाव में हेराफेरी के बारे में अंदर की कहानी को उजागर कर सकते हो, मगर स्थिति को स्पष्ट रूप से समझना आसान नहीं होगा। उस स्थिति में, ऊँचे स्तर के अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इसकी रिपोर्ट करने के अलावा, तुम लोग और क्या कर सकते हो? अगर तुम कलीसियाई जीवन जीना जारी रखते हो, तो तुम्हें बहिष्कृत कर दिया जाएगा। किसी और कलीसिया की सभाओं में भाग लेना सही नहीं लगता, क्योंकि वहाँ के लोग यूँ ही किसी अजनबी की मेजबानी नहीं कर सकते। इससे तुम वाकई दुविधा में पड़ जाते हो! तुम देखते हो कि चुने गए कलीसिया अगुआ में बुरी मानवता है, वह राक्षस है, और वह ऐसा व्यक्ति नहीं है जिसे चुना जाना चाहिए, तो तुम उसे देखते ही गुस्सा हो जाते हो। तुम सभाओं में जाने से असहज महसूस करते हो, मगर न जाना कोई विकल्प नहीं है। अगर तुम नहीं जाते हो और कलीसिया से अपने सभी संबंध तोड़ देते हो, तो तुम अपना कलीसियाई जीवन खो दोगे, जो कि तुम नहीं कर सकते। तो क्या इस समस्या का कोई अच्छा समाधान है? इसके लिए बुद्धि लगानी होगी। अगर तुम जल्दबाजी में इन लोगों को उजागर करते हो तो इसका क्या परिणाम होगा? वे लोग तुम्हें दबाने, दूर भगाने के लिए एकजुट हो सकते हैं, या अगर चीजें वाकई अच्छी नहीं हुईं तो वे तुम्हें बाहर भी निकाल सकते हैं, जिससे तुम अन्याय का शिकार हो सकते हो। यह सबसे संभावित परिणाम है। तो सबसे अच्छा समाधान क्या है? (कुछ ऐसे भाई-बहनों के साथ मिलकर काम करना जिनमें विवेक है और इन लोगों द्वारा गुप्त रूप से चुनाव में हेराफेरी करने के बुरे कर्मों के सभी सबूत इकट्ठा करना। ऊँचे स्तर के अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इसकी रिपोर्ट करना और गुमराह भाई-बहनों को वापस लाने के लिए जल्द-से-जल्द उनके साथ सत्य पर संगति करना।) क्या इसे एक अच्छा समाधान मानेंगे? क्या इस तरह की चीजें जल्दबाजी में करना ठीक है? जल्दबाजी करने का क्या परिणाम होता है? (इससे अनजाने में दुश्मन सतर्क हो सकता है।) जब इस तरह के मामलों से तुम्हारा सामना होता है तो क्या तुम लोग डरते या घबराते हो? क्या तुम्हें डरना या घबराना चाहिए? (नहीं।) सैद्धांतिक रूप से, तुम्हें डरना नहीं चाहिए—तुम्हारा विवेक तुम्हें यही बताता है। मगर वास्तविकता क्या है? सबसे अहम बात यह है कि लोग सत्य समझते हैं या नहीं। अगर लोग सत्य नहीं समझते और केवल अपना संकल्प रखते हैं तो वे अंदर से डरे रहेंगे। जब तुम डरे हुए होते हो, तो चाहे तुम कुछ भी या कैसे भी करो, क्या तब नतीजे पाना आसान होता है? (नहीं।) जब तुम डरे होते हो, तो तुम कैसी स्थिति में होते हो? तुम इन लोगों की शक्ति से डरते हो, इस बात से डरते हो कि उन्हें पता चल जाएगा कि तुमने उन्हें पहचान लिया है और तुम उनसे सावधान रहते हो, और इस बात से भी डरते हो कि जब वे देखेंगे कि तुम उनके पक्ष में नहीं हो, तो वे तुम्हें दबाएँगे और अलग-थलग कर देंगे, आखिरकार तुम कलीसिया से बाहर कर दिए जाओगे। तुम्हारे दिल में ये चिंताएँ होंगी। जब तुम ऐसी चिंताएँ रखते हो, तो क्या तुम्हारे पास इन लोगों से बातचीत करने, उनके द्वारा पैदा की गई समस्याएँ हल करने या उनके बुरे कर्मों को उजागर करने के लिए बुद्धि, साहस और साधन हो सकते हैं, ताकि भाई-बहनों को थोड़ी पहचान हो और वे गुमराह न हों? काम करने का सबसे उचित तरीका क्या है? जब तुम डरे हुए होते हो, तो क्या तुम कमजोर स्थिति में नहीं होते? पहली बात, तुम कमजोर और निष्क्रिय होते हो। एक बात तो यह है कि तुममें परमेश्वर के प्रति दृढ़ आस्था नहीं है, और दूसरी बात, तुम यह सोचते हो, “तो ये बुरे लोग सफल हो गए हैं। ऐसा कैसे है कि फिलहाल मैं ही यह मामला समझ रहा हूँ? क्या दूसरों में कोई समझदारी है? अगर मैं दूसरों को सच्चाई बता दूँ, तो क्या वे मुझ पर विश्वास करेंगे? अगर वे मुझ पर विश्वास नहीं करेंगे, तो क्या वे मुझे उजागर कर देंगे? अगर वे सब मिलकर मुझसे निपटने के लिए तैयार हो जाएँ, और मैं अकेला और शक्तिहीन रह जाऊँ, तो क्या वे बुरे लोग मुझे निकालने के लिए तरह-तरह के बहाने ढूँढेंगे?” क्या तुम्हारे मन में ऐसी चिंताएँ नहीं होंगी? जब तुम्हें ऐसी चिंताएँ होंगी, तो तुम उन लोगों से कैसे निपटोगे? तुम उनके साथ सबसे उपयुक्त तरीके से और बुद्धिमानी से बातचीत कैसे कर सकते हो? इस समय, क्या तुम्हारे पास कोई दिशा या मार्ग नहीं है? साफ शब्दों में कहूँ तो जब तुम सबसे ज्यादा डरे हुए और कमजोर होते हो, तुम उनसे लड़ने या उनके साथ बातचीत करने और उनके द्वारा पैदा की गई समस्याओं को सुलझाने में असमर्थ होते हो। तो इस समय तुम्हारे लिए सबसे अच्छा नजरिया क्या है? क्या यह खुद को बचाने के लिए आगे बढ़कर पहले हमला करना, उनका सामना करना और उनके बुरे कर्मों को उजागर करना है? क्या यह उचित तरीका है? (नहीं।) यह उचित तरीका क्यों नहीं है? क्योंकि तुमने सोचा नहीं है कि कैसे काम करना है, तुम उनके सार को नहीं देख सकते, और न ही तुम यह जानते हो कि उन्हें कैसे उजागर किया जाए, फिर जो लोग गुमराह हो चुके हैं वे सत्य स्वीकार करके अपना रास्ता बदल सकते हैं या नहीं, यह तो दूर की बात है। तुम इन सभी चीजों में से कुछ नहीं जानते, और तुम इस बात को लेकर स्पष्ट भी नहीं हो कि तुम्हारे लिए सबसे ज्यादा लाभकारी और प्रभावी समाधान क्या है। भले ही तुम अभी तक पूरी तरह से नकारात्मकता के स्तर तक नहीं पहुँचे हो, पर कम से कम तुम्हारी वर्तमान स्थिति कमजोर और भयावह है, और अंदर-ही-अंदर कई चिंताएँ तुम्हें सता रही हैं। चाहे ये चिंताएँ जायज हों या तुम्हारी कमजोरी और भय के कारण हों, संक्षेप में, ये तथ्य हैं। जब ये तथ्य सामने आते हैं, तो सबसे अच्छा समाधान इंतजार करना और कुछ न करना सीखना है। कुछ न करने का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि चुनाव के बारे में सही स्थिति को उन लोगों के सामने उजागर करने में जल्दबाजी न करना जो भ्रमित हो गए हैं, और नवनिर्वाचित कलीसिया अगुआओं या उन लोगों के समूह का विरोध करने में जल्दबाजी न करना जिन्होंने चुनाव में हेराफेरी और गड़बड़ी की है। उन्हें उजागर मत करो; इस समय, तुम्हें इंतजार करना सीखना चाहिए। कुछ लोग कहते हैं, “इंतजार करना बहुत निष्क्रिय होना है; मुझे और कितना इंतजार करना होगा?” इसके लिए बहुत लंबे समय तक इंतजार करने की जरूरत नहीं है। इंतजार करने के दौरान, प्रार्थना करने के लिए परमेश्वर के सामने आओ, परमेश्वर के वचन पढ़ो, और सत्य खोजो। ऐसी परिस्थितियों में, जब तुम सबसे ज्यादा भयभीत और कमजोर होते हो, तुम्हारी प्रार्थनाएँ सबसे सच्ची और ईमानदार होती हैं। तुम्हें मार्गदर्शन और सुरक्षा के लिए परमेश्वर की आवश्यकता होती है; तुम्हें परमेश्वर पर भरोसा करना होगा। जैसे-जैसे तुम प्रार्थना करोगे, तुम्हारा भय धीरे-धीरे कम होता जाएगा और फिर पूरी तरह खत्म हो जाएगा। जब तुम्हारा भय पूरी तरह से खत्म हो जाएगा, तो क्या तुम्हारी कमजोरी भी दूर नहीं हो जाएगी? (हाँ।) तुम्हारी चिंताएँ भी कम होती जाएँगी। ये भय, कमजोरियाँ और चिंताएँ हवा में गायब नहीं हो जातीं; बल्कि, बदलाव की इस प्रक्रिया के दौरान, तुम धीरे-धीरे कुछ चीजों को समझने लगते हो। तुम कौन-सी चीजें समझने लगोगे? एक बात तो यह है कि तुम जान जाओगे कि इन लोगों से कैसे निपटना है, किसे पहले उजागर करना है, और कैसे इस तरह से बोलना और काम करना है जिससे परमेश्वर के घर के कार्य को लाभ हो। इसके अलावा, तुम इन लोगों के व्यवहार की प्रकृति को भी जान जाओगे। तुम इन चीजों को कैसे समझ पाते हो? अपने इंतजार की प्रक्रिया के दौरान सत्य की खोज करके ही तुम धीरे-धीरे उन्हें समझ पाते हो। जब तुम इसे स्पष्टता से देखोगे, तो तुम खुद ही विचार करोगे कि तुम्हें किस तरह से बुद्धि का प्रयोग करना चाहिए, किससे बात करना उचित है, और किस तरह से बात करनी चाहिए ताकि वे प्रभावित हों, जिससे उन्हें चुनाव में हेराफेरी करने वाले बुरे लोगों के बारे में तथ्यों का पता चले, और वे अपना रास्ता बदल सकें, चुनाव में हेराफेरी और गड़बड़ी करने वालों के असली चेहरों को पहचान सकें और यह समझ सकें कि तथाकथित निर्वाचित अगुआ वास्तव में कैसा व्यक्ति है। तुममें इस तरह की बुद्धि होगी और तुम्हारे क्रियाकलाप भी व्यवस्थित होंगे। तो ये सकारात्मक लाभ कैसे प्राप्त होते हैं? ये सभी लाभ तुम्हारे इंतजार की प्रक्रिया के दौरान परमेश्वर द्वारा तुम्हें दिए जाते हैं। उनमें से कुछ पवित्र आत्मा के कार्य और प्रबुद्धता के कारण प्राप्त होते हैं, और कुछ ऐसे होते हैं जिन्हें परमेश्वर अपने वचनों में तुम्हें देखने और समझने देता है। परमेश्वर के वचन कहते हैं कि बिना तैयारी के युद्ध न लड़ो। इसका क्या मतलब है? इसका मतलब है कि चाहे तुम शैतान के विरुद्ध लड़ रहे हो या शैतान के सेवकों के बुरे कर्मों को उजागर कर रहे हो, तुम शैतान के साथ चाहे किसी भी तरह से लड़ो, तुम्हें खुद मजबूत होना, सत्य सिद्धांतों को समझना चाहिए, शैतान और बुरे लोगों के सार और बुरे कर्मों को समझने और फिर उन्हें उजागर करने में सक्षम होना चाहिए। ऐसा करने से ही तुम आखिरकार अच्छे नतीजे प्राप्त करोगे। एक बार जब तुम इन चीजों को समझ जाओगे, तो क्या तुम्हारे भय, कमजोरियाँ और चिंताएँ कम प्रबल और धुंधली नहीं हो जाएँगी? तुम्हें अब इतना डर नहीं लगेगा। तुम्हें जो चीजें महसूस होती हैं, वे धीरे-धीरे बदल जाएँगी; तुम पाओगे कि तुम उतने कमजोर नहीं हो जितने कि पहली बार ऐसी स्थिति आने पर थे। इसके बजाय, तुम पहले से कहीं ज्यादा मजबूत और आत्मविश्वासी महसूस करोगे और तुम्हें पता होगा कि क्या करना है। इस मुकाम पर, फिर से परमेश्वर से प्रार्थना करो और उससे सही अवसर तैयार करने के लिए कहो, और तब जाकर कार्रवाई करो। स्थिति के बारे में ऊँचे स्तर के अगुआओं और कार्यकर्ताओं को रिपोर्ट करो और साथ ही उन लोगों के साथ संगति करो जिनमें अच्छी मानवता है और जो ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास करते हैं, मगर वे भ्रमित और गुमराह हो गए थे क्योंकि वे सत्य नहीं समझते थे; उनके सामने चुनाव में हेराफेरी करने वाले बुरे लोगों के बारे में अंदरूनी जानकारी उजागर करो। एक बार जब तुम इनमें से एक या दो लोगों को जीत लेते हो, तो तुम्हारा डर मूल रूप से गायब हो जाएगा। तुम्हें एहसास होगा कि यह सब मानवीय शक्ति पर निर्भर रहकर नहीं किया जा सकता है, आवेग पर भरोसा करके तो बिल्कुल नहीं किया जा सकता; तुम क्षणिक आवेग या गुस्से पर या अस्थायी, तथाकथित न्याय की भावना पर भरोसा नहीं कर सकते—ये सब बेकार की चीजें हैं। परमेश्वर तुम्हारे लिए सही समय निकालेगा और प्रबुद्ध करेगा कि तुम्हें क्या कहना है, और तुम जो कुछ समझते हो उसके आधार पर, वह कदम-दर-कदम तुम्हारा मार्गदर्शन करेगा, तुम्हें अनुसरण करने का मार्ग देगा। शुरुआत में कमजोर और भयभीत होने से लेकर सिद्धांतों और मार्ग की खोज करने और समझने तक—इस अवधि के दौरान, तुम अभी भी इन बुरे लोगों के साथ सामान्य रूप से बातचीत कर सकते हो। सामान्य बातचीत के दौरान, लोगों के दिमाग खाली नहीं होते हैं; उनके मन में कुछ-न-कुछ चलता रहता है। जब तुम सत्य खोजते और प्रार्थना कर रहे होते हो, तुम इन लोगों पर ध्यान देते हो। तुम क्या देखते हो? तुम यह देखते हो कि वे किस तरह का मार्ग अपना रहे हैं और उनका सार वास्तव में क्या है। अगर वे जो कहते हैं वह सही है और कलीसिया के कार्य के सिद्धांतों के अनुरूप है, तो तुम उनकी बात सुन सकते हो; अगर उनकी बातें कलीसिया के कार्य में विघ्न-बाधा डालती हैं, तो तुम उन्हें सावधान किए बिना उनके साथ “सौहार्दपूर्ण” तरीके से बातचीत करने का एक बुद्धिमान तरीका अपनाते हुए, न सुनने या समय न होने का बहाना बना सकते हो। उनके साथ “सौहार्दपूर्ण” तरीके से बातचीत करते हुए, तुम उनके बुरे कर्मों के सबूत इकट्ठा करते हो, उनके ऐसे विभिन्न क्रियाकलापों और भ्रांतियों के आधार पर उन्हें पहचानते हो जो सत्य सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं और आगे पुष्टि करते हैं कि ये लोग शैतान के सेवक हैं। इस तरह से अभ्यास करने से तुम उनके द्वारा बेबस नहीं होते हो और साथ ही अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्य को भी पूरा करते हो—एक बुद्धिमान व्यक्ति यही करता है। केवल मानवता, बुद्धि और सत्य के प्रति प्रेम रखने वाले लोग ही सही मार्ग पर चल सकते हैं। बिना बुद्धि वाले लोग जो बेधड़क और बेपरवाही से काम करते हैं, हमेशा उतावलेपन और आवेग पर निर्भर रहते हैं, चाहे वे कुछ भी कर रहे हों या वे किसी भी परिस्थिति का सामना कर रहे हों, उनके क्रियाकलापों से अक्सर खराब नतीजे ही निकलते हैं। ऐसे लोग न केवल कलीसिया के काम में विघ्न-बाधा डालते हैं बल्कि खुद पर बहुत सारी अनावश्यक परेशानियाँ और मुसीबतें भी लाते हैं। वहीं, बुद्धिमान लोग अलग होते हैं। वे जो कुछ भी करते हैं, उसमें वे प्रतीक्षा करते हैं, ध्यान से देखते और खोज करते हैं, सही समय, परमेश्वर की व्यवस्थाओं और आयोजन का इंतजार करते हैं। इंतजार की अवधि के दौरान, वे परमेश्वर के इरादों की तलाश करने, एक उद्देश्य के साथ परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने, सत्य के सिद्धांतों को ज्यादा सटीकता से समझने और परमेश्वर के इरादों के अनुसार काम करने में सक्षम होते हैं। वे लोगों से लड़ने या उतावलेपन में वाद-विवाद में शामिल होने के बजाय, एक अच्छी लड़ाई लड़ने और परमेश्वर के लिए गवाही देने के लिए परमेश्वर के वचनों और सत्य का उपयोग करते हैं।
जब बुरे लोगों द्वारा चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने की बात आती है तो सबसे महत्वपूर्ण यह नहीं है कि तुम इन लोगों की असलियत पहचान सकते हो या नहीं या फिर उन्हें उजागर करने की तुम्हारी योजना कैसी है; सबसे जरूरी है समय रहते उच्च स्तर को स्थिति की रिपोर्ट देना। तुम्हें उनसे लड़ने के लिए बुद्धि का उपयोग करना चाहिए, परमेश्वर के समय का इंतजार करना चाहिए, परमेश्वर के इरादे खोजने चाहिए और अपने कर्तव्य से पीछे हटे बिना सत्य सिद्धांतों को खोजना चाहिए। ऐसा करने का अंतिम नतीजा क्या होगा? तुम अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्य को पूरा करोगे। उच्च स्तर पर स्थिति की रिपोर्ट देने और समाधान खोजने से न केवल समस्या हल होती है, बल्कि तुम्हें अंतर्दृष्टि भी मिलती है, तुम्हारा विवेक और बुद्धि बढ़ती है, आध्यात्मिक कद बढ़ता है और परमेश्वर में तुम्हारी आस्था मजबूत होती है। शैतान का सामना करने के अनुभव से लोगों को बहुत कुछ हासिल होता है और यह उनके लिए बहुत फायदेमंद होता है। वहीं दूसरी ओर, मान लो कि कोई व्यक्ति उतावलेपन और आवेग में आकर इन लोगों से तीखी लड़ाई लड़ने लगता है और उनसे आमने-सामने बहस करते हुए कहता है, “तुम चुनाव में हेराफेरी और गड़बड़ी कर रहे हो। भले ही तुम लोगों के पास बहुत शक्ति है, मैं तुम्हारे सामने नहीं झुकूँगा और मैं तुम लोगों से नहीं डरता!” ऐसे रवैये का नतीजा यह होता है कि उसे कलीसिया से निकाल दिया जाता है, जिससे वह महीनों तक घर पर रोता और कष्ट सहता रहता है; मगर फिर भी वह परमेश्वर के इरादों को नहीं समझता : “परमेश्वर, मैं इस झंझट में क्यों फँस गया? क्या तू मुझे नहीं चाहता? क्या तुझे मेरी परवाह नहीं है?” महीनों तक, वह नए धर्मोपदेशों और भजनों से अनजान रहता है, इस बात से अनजान रहता है कि कलीसिया क्या काम कर रही है, वह अपने कर्तव्य नहीं निभा पाता है, पूरी तरह से अलग-थलग पड़ जाता है, और बिल्कुल अंधकार में गिर जाता है। हर दिन, रोने के अलावा वह सिर्फ चिंता में डूबा रहता है। वह इस माहौल में परमेश्वर से प्रार्थना करना या उसके वचनों को खाना-पीना नहीं सीखता, जटिल परिस्थितियों में सत्य सिद्धांतों को खोजना तो दूर की बात है; वह बिल्कुल भी बुद्धिमान नहीं बन पाता है। कुछ महीनों तक रोने के बाद, आखिरकार एक दिन कोई उसे कलीसिया में वापस ले आता है और इस अवधि के दौरान उससे अपने अनुभव साझा करने के लिए कहता है, मगर वह सिर्फ रोते हुए शिकायत ही करता है : “मेरे साथ बहुत गलत हुआ है! मैंने कलीसिया में बाधा नहीं डाली। मैं बुरा इंसान नहीं हूँ; मुझे बुरे लोगों द्वारा फँसाया गया था।” जब उससे यह पूछा जाता है, “इस अवधि के दौरान तुमने क्या सबक सीखे? क्या तुमने कुछ भी हासिल किया?” तो वह जवाब देता है, “मैं क्या हासिल कर पाता? उन्होंने मुझे अलग-थलग कर दिया, परमेश्वर के वचनों की किताबें और भजन मुझसे छीन लिए और मैं कोई धर्मोपदेश भी नहीं सुन पाया। मैं सिर्फ आस्था के बारे में बात कर सकता था और कभी-कभी कुछ भजन गा लेता था जो मुझे याद थे। मैंने कुछ भी हासिल नहीं किया। शुक्र है कि परमेश्वर ने मुझे वापस बुलाने का समय तैयार कर दिया; नहीं तो, मैं बाहर जाकर पैसे कमाने के लिए व्यापार करने की सोच रहा था, क्योंकि वैसे भी उद्धार की कोई उम्मीद नहीं थी। परमेश्वर मुझे नहीं चाहता था और मैं विश्वास रखना जारी नहीं रख सकता था। मेरा दिल पूरी तरह से अंधकार में था।” अंत में वह कहता है, “परमेश्वर की भेड़ों को परमेश्वर कभी नहीं त्यागेगा” और यह निष्कर्ष निकालता है। इतनी महत्वपूर्ण और विशेष घटना का अनुभव करके इतना कम हासिल करना—क्या यह थोड़ा दयनीय नहीं है? क्या यह अनुचित नहीं है? ऐसी बड़ी स्थिति का सामना करते हुए, उसने कोई सबक नहीं सीखा और अपनी बुद्धि या आस्था को नहीं बढ़ाया; भले ही वह अभी भी दिल से परमेश्वर में विश्वास रखता है, पर उसे शैतान, राक्षसों और मसीह-विरोधियों ने इतना अधिक सताया है कि उसने लगभग विश्वास रखना ही बंद कर दिया। क्या वह अभी भी परमेश्वर के लिए गवाही दे सकता है? क्या यह व्यक्ति निकम्मा कायर नहीं है? घर पर रोने का क्या फायदा? वह रो-रोकर अँधा ही क्यों न हो जाए, क्या इससे कोई मदद मिलेगी? क्या यह मसीह-विरोधियों की समस्या हल कर सकता है? बुरा इंसान सफल हो गया है और अंत में इस व्यक्ति के पास कहने को बस यही है, “परमेश्वर की भेड़ों को परमेश्वर कभी नहीं त्यागेगा,” और उसने कुछ भी हासिल नहीं किया। उसके पास बुद्धि और आगे बढ़ने का कोई रास्ता नहीं है, वह परमेश्वर द्वारा दिए गए मार्ग के अनुसार परमेश्वर को खोजना और उसके सामने आकर उसके वचनों और सत्य को लेकर शैतान के खिलाफ लड़ना नहीं जानता है। वह आम तौर पर जो धर्म-सिद्धांत बोलता है उसका उसे कोई फायदा नहीं होता; जब ऐसे मामलों का सामना करने की बात आती है तो रोने के अलावा, उसे बस यही लगता है कि उसके साथ गलत हुआ है और वह शिकायत करता है—वह एक निकम्मा कायर है। निकम्मों कायरों की अक्सर कई अभिव्यक्तियाँ होती हैं, जो उनकी प्रमुख विशेषताएँ भी होती हैं। सबसे पहले, वे रोते हैं। दूसरा, उन्हें लगता है कि उनके साथ अन्याय हुआ है। तीसरा, वे अपने दिलों में शिकायत करते हैं। अपने दिलों में, वे यह भी कहते हैं, “परमेश्वर, तुम कहाँ हो? तुम्हें मेरी परवाह क्यों नहीं है? शैतान ने मुझे बहुत नुकसान पहुँचाया है, मैं जीवित नहीं रह सकता। मुझे जल्दी से बचा लो!” परमेश्वर कहता है, “तुम एक निकम्मे कायर हो, मनुष्य की चमड़ी में लिपटा हुआ कचरा हो। अगर तुम्हें परमेश्वर में विश्वास है तो डर किस बात का? शैतान से डरने की क्या बात है?” शैतान काम करते समय चाहे कोई भी षड्यंत्र और साजिश क्यों न रचे, हम डरते नहीं हैं। हमारे पास परमेश्वर है, हमारे पास सत्य है। परमेश्वर हमें बुद्धि देगा। परमेश्वर हर चीज पर संप्रभुता रखता है; सब कुछ परमेश्वर के आयोजन के अधीन है। तुम किससे डरते हो? रोना बस यही दर्शाता है कि तुम कायर और अयोग्य हो; तुम कचरे का टुकड़ा हो, प्राणवायु की बरबादी हो! रोने का मतलब है कि तुम शैतान के साथ समझौता कर रहे हो और शैतान से दया की भीख माँग रहे हो। क्या परमेश्वर ऐसे निकम्मे कायरों को पसंद करता है? (नहीं।) परमेश्वर तुम्हें एक निकम्मा कायर, मूर्ख, कचरे का टुकड़ा मानता है, जिसके पास कोई गवाही और कोई बुद्धि नहीं है। तुमने जो सत्य समझा था, उसका क्या हुआ? क्या तुमने परमेश्वर द्वारा उजागर किए गए मसीह-विरोधियों और शैतान की अभिव्यक्तियों के बारे में ज्यादा नहीं सुना है? क्या तुम इन बातों की असलियत समझ या पहचान नहीं सकते? क्या तुम्हें नहीं पता कि वे शैतान हैं? अगर तुम जानते हो कि वे शैतान हैं तो तुम्हें किस बात का डर है? तुम परमेश्वर से क्यों नहीं डरते और उससे भयभीत क्यों नहीं होते? क्या तुम शैतान से डरकर परमेश्वर को नाराज करने से नहीं डरते? क्या यह दुष्टतापूर्ण कृत्य नहीं है? जब ऐसी परिस्थितियाँ आती हैं तो तुम डर जाते हो और तुम्हारे पास कोई समाधान, कोई बुद्धि या प्रतिकार नहीं होता। इतने वर्षों तक धर्मोपदेश सुनने से तुम्हें क्या हासिल हुआ? क्या यह सब व्यर्थ हो गया है? क्या ऐसे बेकार कायर अपनी गवाही में दृढ़ रह सकते हैं? (नहीं।) जब ऐसी परिस्थितियाँ आती हैं जहाँ शैतान और बुरे लोग चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करते हैं, तो चाहे तुम अकेले और शक्तिहीन हो या तुम्हारे पास वास्तव में कुछ ऐसे भाई-बहनें हों जो तुमसे एकमत हों, तो कार्रवाई करने में जल्दबाजी मत करो। सबसे पहले, इंतजार करना सीखो। फिर, खोजना सीखो। इंतजार करने और खोजने के दौरान, अपना कर्तव्य मत छोड़ो। इंतजार करने का क्या मतलब है? इसका मतलब है सही समय और मौके के लिए परमेश्वर का इंतजार करना। और तुम्हें क्या खोजना चाहिए? परमेश्वर में विश्वास रखने और उसका अनुसरण करने में तुम्हें जिन सिद्धांतों और मार्ग पर चलना चाहिए उन्हें खोजो; परमेश्वर के इरादों के अनुरूप काम करने का तरीका खोजो, और यह खोजो कि शैतान और मसीह-विरोधी शक्तियों के विरुद्ध लड़ने के लिए काम कैसे करें ताकि हम शैतानी शक्तियों पर विजय प्राप्त करके विजेता बनें। अगर तुम अकेले हो, तो तुम्हें परमेश्वर से अधिक प्रार्थना करनी चाहिए, इंतजार करना और सत्य खोजना चाहिए। अगर दो-तीन लोग तुम्हारे साथ एकमत हैं तो तुम मिलकर संगति, प्रार्थना, इंतजार और खोज कर सकते हो। जब परमेश्वर ने उपयुक्त समय तैयार कर दिया हो, तो परमेश्वर से शक्ति और बुद्धि के लिए प्रार्थना करो, ताकि तुम जो कुछ भी करो या कहो वह उचित हो। ऐसा करने से, एक ओर तो तुम सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य निभाते हो, वहीं दूसरी ओर, तुम शैतान को भी दृढ़ता से और प्रभावी ढंग से उजागर कर सकते हो; साथ ही, तुम शैतान के सेवकों और मसीह-विरोधियों की साजिशों को पूरी तरह से उजागर और विफल कर सकते हो। क्या यह उचित है? ये तरीके, उपाय, मार्ग और सिद्धांत तुम लोगों को बताए गए हैं, इसलिए यह तुम पर निर्भर करता है कि तुम उन्हें कैसे लागू करते हो। क्या यह मार्ग पर्याप्त रूप से स्पष्ट है? (हाँ।) तो फिर, जब ऐसे मामलों से तुम लोगों का सामना हो, तो इस सिद्धांत के अनुसार अभ्यास करना। ऐसा करना आसान है।
कलीसिया के हर एक चुनाव के दौरान, अगुआओं और कार्यकर्ताओं के साथ ही परमेश्वर के चुने हुए लोगों पर भी चुनाव कार्य की सुरक्षा करने की जिम्मेदारी और दायित्व होता है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सत्य और चुनाव सिद्धांतों पर संगति करने के काम की जिम्मेदारी लेनी चाहिए; परमेश्वर के चुने हुए लोगों को अपनी हर समस्या सामने लानी चाहिए और फिर इन समस्याओं को हल करने के लिए सत्य पर संगति की जानी चाहिए। केवल इस तरह से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि चुनाव सुचारू रूप से चले। एक बात तो यह है कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं को परमेश्वर के घर के चुनाव सिद्धांतों का सख्ती से पालन करना चाहिए और परमेश्वर के घर में हर एक चुनाव का काम इन्हीं सिद्धांतों के आधार पर करना चाहिए। दूसरी बात, उन्हें चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने वाले बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों से भी सावधान रहना चाहिए। ये लोग शैतान के सेवक हैं, शैतान के साथी हैं। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उनसे एकदम सावधान और सतर्क रहना चाहिए, चुनावों के दौरान परदे के पीछे से चीजों में हेराफेरी करने और चुनाव की प्रक्रिया में गुप्त रूप से धांधली करने के लिए कुछ छल-कपट करने और चोरी-छिपे की जाने वाली कार्रवाइयों में लिप्त होने के उनके प्रयासों के प्रति सतर्क रहना चाहिए। अगर यह पता चलता है कि चुनाव में वाकई बुरे लोगों ने हेराफेरी की थी, जिसके कारण सही उम्मीदवार बाहर हो गया और ज्यादातर लोगों को इस तरह गुमराह किया गया कि गलत व्यक्ति—जो पद के लिए उपयुक्त नहीं है—अगुआ चुन लिया जाए; अगर ऐसी स्थिति आती है तो अभी भी इसका एक समाधान है। चुने गए व्यक्ति की वास्तविक स्थिति को उजागर किया जाना चाहिए। अगर ज्यादातर लोग सहमत हैं तो दोबारा चुनाव कराया जा सकता है। शैतान और बुरे लोगों की हेराफेरी से किया गया चुनाव, सत्य सिद्धांतों के आधार पर सामान्य रूप से कलीसिया द्वारा कराए गए चुनाव का नतीजा नहीं है। यह सकारात्मक चीज नहीं है और आज नहीं तो कल सच सामने आ ही जाएगा, सब उजागर हो जाएगा और तब चुनाव को रद्द कर दिया जाएगा। यह मानते हुए, अगर तुम ऐसी स्थितियों का सामना करते हो, तो तुम्हें कैसे काम करना चाहिए? तुम्हें कभी भी और कहीं भी शैतान के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार रहना चाहिए, न कि हाथ पर हाथ धरे बैठे रहना चाहिए। अगर तुम डरपोक, भ्रमित व्यक्ति या निकम्मे कायर हो, तो तुम उनके साथ समझौता करके उनसे सांठ-गाँठ कर सकते हो या उनसे इतनी बुरी तरह हार सकते हो कि तुम नकारात्मक हो जाओगे और ठीक होने में असमर्थ होगे। कुछ लोग बस हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं, वे कहते हैं, “मैं वैसे भी कलीसिया का अगुआ नहीं बन सकता। कोई भी सेवा करे, एक ही बात है। जिसमें भी क्षमता हो, वह आगे बढ़कर सेवा कर सकता है! अगर कोई मसीह-विरोधी सेवा करना चाहता है, तो इसका मुझसे कोई लेना-देना नहीं, और जब तक वह मुझे नहीं निकालता, तब तक सब ठीक है।” जो लोग ऐसा कहते हैं वे किसी काम के नहीं हैं। वे कल्पना नहीं कर सकते कि अगर कोई मसीह-विरोधी अगुआ के रूप में सेवा करता है तो इसके क्या परिणाम होंगे, ना ही वे यह सोच सकते हैं कि इसका परमेश्वर में उनके विश्वास और उनके उद्धार पर क्या प्रभाव पड़ेगा। सत्य को समझने वाले ही इसकी असलियत देख सकते हैं। वे कहेंगे : “अगर कोई मसीह-विरोधी कलीसिया का अगुआ बन जाता है, तो परमेश्वर के चुने हुए लोग पीड़ित होंगे। खासकर वे लोग जो सत्य का अनुसरण करते हैं, न्याय की भावना रखते हैं और तत्परता से अपना कर्तव्य निभाते हैं, उन सभी को दबाया और बाहर किया जाएगा। केवल भ्रमित और खुशामदी लोग ही फायदे में रहेंगे, और वे पिंजरे में कैद और मसीह-विरोधी की शक्ति के नियंत्रण में लाए गए होंगे।” लेकिन जो लोग सत्य का अनुसरण नहीं करते वे कभी भी इन बातों पर विचार नहीं करते। वे सोचते हैं : “इंसान बचाए जाने के लिए ही परमेश्वर पर विश्वास रखता है। हर कोई अपने चुने गए मार्ग पर चलता है। अगर कोई मसीह-विरोधी अगुआ बन भी जाता है, तो इसका मुझ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। अगर मैं बुरे काम नहीं करूँगा, तो वह मुझे दबा या निकाल नहीं सकता या कलीसिया से बाहर नहीं कर सकता।” क्या यह सही दृष्टिकोण है? (नहीं।) अगर परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से कोई भी कलीसिया के चुनावों के बारे में चिंतित नहीं होता, और वे किसी मसीह-विरोधी को सत्ता प्राप्त करने देते हैं, तो परिणाम क्या होंगे? क्या यह वास्तव में उतना ही सरल होगा, जितना लोग कल्पना करते हैं? कलीसियाई जीवन किस प्रकार के परिवर्तनों से गुजरेगा? यह सीधे तौर पर परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश से संबंधित है। अगर किसी कलीसिया में किसी मसीह-विरोधी की सत्ता रहती है, तो क्या होगा? उस कलीसिया में सत्य की सत्ता नहीं रहेगी और परमेश्वर के वचन भी नहीं रहेंगे—इसके बजाय, वहाँ छद्म-विश्वासियों और शैतान की सत्ता होगी। हालाँकि सभाओं में अभी भी परमेश्वर के वचन पढ़े जाते होंगे, लेकिन बोलने के अधिकार पर मसीह-विरोधियों का नियंत्रण रहता है। क्या मसीह-विरोधी सत्य के बारे में स्पष्ट रूप से संगति कर सकता है? क्या मसीह-विरोधी परमेश्वर के चुने हुए लोगों को स्वतंत्र रूप से और बिना किसी रोक-टोक के सत्य के बारे में संगति करने दे सकता है? यह असंभव है। एक बार जब किसी मसीह-विरोधी के पास सत्ता आती है तो वहाँ ज्यादा से ज्यादा बाधाएँ और गड़बड़ियाँ होंगी, कलीसियाई जीवन के नतीजे लगातार कमजोर होते जाएँगे और परमेश्वर के चुने हुए लोग इकट्ठा होने पर ज्यादा कुछ हासिल नहीं कर पाएँगे, जिससे परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश के लिए कठिनाइयाँ उत्पन्न होंगी। परमेश्वर के चुने हुए लोगों की समस्याएँ भी गई गुना बढ़ जाएँगी और वे हल नहीं की जा सकेंगी, और कुछ लोग जो सत्य का अभ्यास करने में सक्षम हैं उनका मार्ग भी बाधित हो जाएगा; कलीसियाई जीवन का माहौल पूरी तरह से बदल जाएगा, मानो काले बादल छाकर सूर्य को अवरुद्ध कर दिया हो। ऐसे में, क्या कलीसियाई जीवन में अभी भी आनंद बना रहेगा? वह निश्चित रूप से भारी संकट में पड़ जाएगा। कलीसिया में सत्य का अनुसरण करने वाले लोग कम ही होते हैं। अगर इन गिने-चुने लोगों को दबाया और बाहर किया जाता है तो यह कहा जा सकता है कि कलीसियाई जीवन खत्म हो जाएगा। अगर लोग इस परिणाम की असलियत नहीं समझ पाते हैं तो वे चुनावों पर ध्यान नहीं देंगे या उनकी परवाह नहीं करेंगे। अगर ज्यादातर लोग चुनावों को गंभीरता से नहीं लेते, सिद्धांतों का पालन नहीं करते, चुनावों को बहुत नकारात्मकता के साथ देखते हैं, और झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों से संकेत लेते हैं, तो जैसे ही बुरे लोग या जो सत्य से प्रेम नहीं करते वे कलीसिया के अगुआ बनेंगे, तो परमेश्वर के चुने हुए ज्यादातर लोगों को अपने जीवन प्रवेश में नुकसान उठाना पड़ेगा। इसलिए, कलीसिया के चुनावों के नतीजे सीधे तौर पर परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन की प्रगति और कलीसिया के भविष्य को प्रभावित करते हैं। परमेश्वर के चुने हुए लोगों को इसे स्पष्ट रूप से समझना चाहिए और बिल्कुल भी नकारात्मक रवैया नहीं अपनाना चाहिए। कुछ भ्रमित लोग इस मामले को नहीं समझ पाते; वे हमेशा अपनी कल्पनाओं पर भरोसा करते हुए यह सोचते हैं, “कलीसिया में हर कोई ईमानदार विश्वासी है, इसलिए कोई भी चुना जा सकता है; अगर वह कोई भाई या बहन है, तो वह अगुआ हो सकता है।” वे कलीसिया के चुनावों को बहुत सरलता से देखते हैं, जिससे कई नकारात्मक, गलत विचार और दृष्टिकोण सामने आते हैं। अगर झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों को वाकई अगुआओं और कार्यकर्ताओं के रूप में चुन लिया जाता है तो कलीसिया का काम खराब हो जाएगा और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश को यकीनन नुकसान पहुँचेगा। तब जाकर, लोगों को यह एहसास होगा कि सिद्धांतों के अनुसार चुनाव कराना कितना महत्वपूर्ण है।
हर कलीसिया में खुशामद करने वाले कुछ लोग होते हैं। इन खुशामदी लोगों को कुकर्मियों द्वारा चुनावों में हेरा-फेरी करने और उनमें गड़बड़ करने की बिल्कुल भी पहचान नहीं होती है। भले ही कुछ लोगों को थोड़ी सी पहचान हो, वे इसे अनदेखा कर देते हैं। कलीसियाई चुनावों में उठने वाले मुद्दों के प्रति उनका रवैया यह होता है, “अगर चीजें किसी को व्यक्तिगत रूप से प्रभावित नहीं करती हैं, तो उन्हें यूँ ही छोड़ दो।” उन्हें लगता है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि कौन अगुआ बनता है, कि इसका उनसे कोई लेना-देना नहीं है। जब तक वे खुशी-खुशी अपना दैनिक जीवन जी सकते हैं, तब तक वे ठीक रहते हैं। तुम इस तरह के लोगों के बारे में क्या सोचते हो? क्या ये सत्य से प्रेम करने वाले लोग हैं? (नहीं।) ये किस किस्म के लोग हैं? ये खुशामदी लोग हैं, और इन्हें छद्म-विश्वासी भी कहा जा सकता है। ये लोग सत्य का अनुसरण नहीं करते हैं; वे सिर्फ एक आसान जीवन जीना चाहते हैं, और दैहिक सुख-सुविधाओं का लालच करते हैं। वे बेहद स्वार्थी और बेहद चालाक होते हैं। क्या समाज में ऐसे बहुत से लोग हैं? चाहे कोई भी राजनीतिक दल सत्ता में हो, चाहे पद सँभालने वाला व्यक्ति कोई भी हो, वे बहुत पसंद किए जाते हैं, वे अपने सामाजिक संबंधों को सफलतापूर्वक सँभाल सकते हैं, और बड़े आराम से रह सकते हैं; चाहे कोई भी राजनीतिक आंदोलन छिड़ जाए, वे उसमें नहीं उलझते हैं। ये किस किस्म के लोग हैं? ये सबसे धोखेबाज, सबसे चालाक लोग हैं, जिन्हें “धूर्त व्यक्ति” और “दानवों” के रूप में जाना जाता है। वे शैतान के फलसफों के अनुसार जीवन जीते हैं, उनमें लेश मात्र भी सिद्धांत नहीं होता है। जो भी सत्ता में होता है, वे उसी की सेवा करते हैं, उसी की खुशामद करते हैं, उसी के गीत गाते हैं। वे अपने वरिष्ठों को बचाने के अलावा कुछ नहीं करते हैं, और उन्हें कभी भी नाराज नहीं करते हैं। उनके वरिष्ठ चाहे कितने भी बुरे कर्म क्यों न करें, वे न तो उनका विरोध करते हैं और न ही उनका समर्थन करते हैं, बल्कि अपने विचारों को अपने दिल की गहराइयों में छिपाए रखते हैं। चाहे सत्ता में कोई भी हो, उन्हें काफी पसंद किया जाता है। शैतान और शैतान राजा इस तरह के व्यक्ति को पसंद करते हैं। शैतान राजा इस तरह के व्यक्ति को क्यों पसंद करते हैं? क्योंकि वह शैतान राजाओं के मामलों को बिगाड़ता नहीं है और उनके लिए बिल्कुल भी खतरा नहीं बनता है। इस किस्म का व्यक्ति अपने स्व-आचरण में सिद्धांतहीन होता है, और अपने आचरण के लिए उसके पास कोई आधार नहीं होता, और उसमें ईमानदारी और गरिमा का अभाव होता है; वह बस समाज के रुझानों का अनुसरण करता है और शैतान राजाओं के सामने सिर झुकाता है, उनकी पसंद के अनुसार खुद को ढाल लेता है। क्या कलीसिया में ऐसे भी लोग नहीं हैं? क्या ऐसे लोग विजेता हो सकते हैं? क्या वे मसीह के अच्छे सैनिक हैं? क्या वे परमेश्वर के गवाह हैं? जब कुकर्मी और मसीह-विरोधी अपने सिर उठाते हैं और कलीसिया के कार्य में विघ्न डालते हैं, तो क्या ऐसे लोग उठ खड़े हो सकते हैं और उनके खिलाफ जंग छेड़ सकते हैं, उन्हें उजागर कर सकते हैं, पहचान सकते हैं और त्याग सकते हैं, उनके बुरे कर्मों का अंत कर सकते हैं और परमेश्वर के लिए गवाही दे सकते हैं? यकीनन वे ऐसा नहीं कर सकते हैं। ये धूर्त लोग वे नहीं हैं जिन्हें परमेश्वर पूर्ण बनाएगा या जिन्हें वह बचाएगा। वे कभी भी परमेश्वर के लिए गवाही नहीं देते हैं या उसके घर के हितों को बनाए नहीं रखते हैं। परमेश्वर की नजर में, ये उसका अनुसरण करने वाले या उसके प्रति समर्पण करने वाले लोग नहीं हैं, बल्कि वे लोग हैं जो आँख मूंदकर मुसीबत खड़ी करते हैं, और शैतान के गिरोह के सदस्य हैं—ये वही लोग हैं जिन्हें वह अपना कार्य पूरा करने के बाद हटा देगा। परमेश्वर ऐसे दुष्टों को सँजोकर नहीं रखता है। उनके पास न तो सत्य है और न ही जीवन है; वे जानवर और शैतान हैं; वे परमेश्वर के उद्धार के और उसके प्रेम का आनंद लेने के लायक नहीं हैं। इसलिए, परमेश्वर ऐसे लोगों को बड़ी आसानी से त्याग देता है और हटा देता है, और कलीसिया को उन्हें छद्म-विश्वासियों के रूप में फौरन बाहर निकाल देना चाहिए। उनके पास परमेश्वर के लिए सच्चा दिल नहीं है, तो क्या परमेश्वर उन्हें वास्तविक पोषण देगा? क्या वह उन्हें प्रबुद्ध करेगा और उनकी मदद करेगा? वह ऐसा नहीं करेगा। जब कलीसिया के चुनावों के दौरान विघ्न-बाधाएँ और गड़बड़ियाँ उत्पन्न होती हैं, और चुनाव के नतीजे कुकर्मियों द्वारा नियंत्रित और प्रभावित होते हैं, तो ये लोग परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने के लिए परमेश्वर के पक्ष में बिल्कुल भी खड़े नहीं होंगे। वे कुकर्मियों और मसीह विरोधियों के खिलाफ लड़ने के लिए, और शैतान की शक्तियों के खिलाफ अंत तक लड़ने के लिए सत्य सिद्धांतों का बिल्कुल भी पालन नहीं करेंगे। वे ऐसा बिल्कुल भी नहीं करेंगे, उनमें ऐसा करने की हिम्मत नहीं है। इसलिए, जो लोग परमेश्वर के लिए गवाही दे सकते हैं, उन्हें इन लोगों को पहचान लेना चाहिए और इन लोगों के साथ उन सत्यों की संगति नहीं करनी चाहिए जिन्हें वे समझते हैं या शैतान को पहचानने के बारे में संगति नहीं करनी चाहिए। अगर तुम उनके साथ इन चीजों की संगति करते भी हो, तो यह बेकार जाएगा; वे सत्य के पक्ष में नहीं खड़े होंगे। सहकर्मियों और साझेदारों को चुनते समय, तुम्हें ऐसे लोगों को बाहर रखना चाहिए और उन्हें नहीं चुनना चाहिए। तुम्हें उन्हें क्यों नहीं चुनना चाहिए? क्योंकि वे अपना धूर्त लोग हैं; वे परमेश्वर के पक्ष में नहीं खड़े होंगे, सत्य के पक्ष में नहीं खड़े होंगे, और शैतान के खिलाफ लड़ने के लिए दिल और दिमाग से तुम्हारे साथ एकजुट नहीं होंगे। अगर तुम उन पर विश्वास करके उन्हें अपनी आंतरिक बातें बताते हो, तो तुम बेवकूफ हो और शैतान के लिए हँसी का पात्र बन जाओगे। ऐसे लोगों के साथ सत्य की संगति मत करो या उन्हें उपदेश मत दो, और उनसे कोई उम्मीद मत रखो, क्योंकि परमेश्वर इन लोगों को बिल्कुल नहीं बचाता है। ये ऐसे लोग नहीं हैं जो परमेश्वर के साथ एकदिल और एकमन हों; ये दूर से जंग का नजारा देखने वाले दर्शक हैं, ये धूर्त लोग हैं। इस किस्म के लोग सिर्फ जोश-खरोश को देखने और आँख मूंदकर मुसीबत खड़ी करने के लिए परमेश्वर के घर में घुसपैठ करते हैं। इनमें न्याय की भावना नहीं होती है और न ही जिम्मेदारी की कोई समझ होती है; यहाँ तक कि इनमें उन भले लोगों के लिए सहानुभूति तक नहीं होती है जो कुकर्मियों द्वारा चोट पहुँचाए गए होते हैं। ऐसे लोगों को राक्षस और शैतान बुलाना सबसे उपयुक्त है। अगर न्याय की भावना वाला कोई व्यक्ति कुकर्मियों को उजागर करता है, तो वे उसका हौसला भी नहीं बढ़ाएँगे या उसे नैतिक समर्थन भी नहीं देंगे। इसलिए, इन लोगों पर कभी भरोसा मत करो; ये धूर्त लोग, गिरगिट, दानव हैं। ये परमेश्वर के सच्चे विश्वासी नहीं हैं, बल्कि ये शैतान के सेवक हैं। इन लोगों को कभी बचाया नहीं जा सकता है, और परमेश्वर उन्हें नहीं चाहता है; यह परमेश्वर की स्पष्ट इच्छा है। ज्यादातर कलीसियाओं में शायद ऐसे लोग होते हैं। उन्हें पहचानने के लिए अपनी कलीसिया में जरा नजर घुमाओ। जब कुछ होता है तो उनके साथ कभी भी सत्य पर संगति मत करो और उन्हें यह मत बताओ कि वास्तव में तुम्हारे साथ क्या चल रहा है। ऐसे लोगों से सावधान रहो और उनसे मत उलझो। ऐसे लोगों को ढूँढो जो वास्तव में परमेश्वर में विश्वास और न्याय की भावना रखते हैं—जब वे देखते हैं कि परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँच रहा है, कलीसिया के कार्य और कलीसियाई जीवन की व्यवस्था को बाधित किया जा रहा है या उसमें हेराफेरी की जा रही है तो वे व्यग्र और क्रोधित हो जाते हैं; वे कलीसिया को बाधित करने वाले इन बुरे लोगों से बहुत गहराई तक नफरत करते हैं; वे आगे बढ़कर बुरे लोगों को उजागर करना चाहते हैं और एकजुट होकर बुरे राक्षसों के खिलाफ लड़ने के लिए ऐसे लोगों को खोजने के लिए उत्सुक हैं जो सत्य समझते हों। ऐसे लोगों के साथ संगति करो और शैतान के खिलाफ लड़ने के लिए उनसे हाथ मिलाओ। ये लोग विजेता हैं, मसीह के अच्छे सैनिक हैं; केवल इन लोगों का ही मसीह के राज्य में हिस्सा है। उन सभी खुशामदी लोगों, बूढ़े साँपों, गिरगिटों, और सुन्न और मंदबुद्धि लोगों को बेनकाब किया जा चुका है; वे हटा दी जाने वाली वस्तुएँ हैं। वे भाई-बहन नहीं हैं, ना ही वे परमेश्वर के घर के लोग हैं, बल्कि छद्म-विश्वासी और अवसरवादी हैं जो भरोसे के लायक नहीं हैं। इन लोगों से निपटने का यही तरीका है : अगर वे बुराई कर सकते हैं तो उन्हें दूर कर दो; अगर वे बुरे लोग नहीं हैं और कलीसिया को बाधित करने में बुरे लोगों का साथ नहीं देते हैं तो वे अस्थायी रूप से कलीसिया में रह सकते हैं, जबकि तुम उनके पश्चात्ताप की राह देख रहे हो। पहली बात, इन लोगों के स्वभावों, मानवता और विभिन्न मामलों के प्रति उनके विचारों और रवैये को देखो और उन्हें समझो, और ऐसे लोगों के सार को समझते हुए अपने विवेक का इस्तेमाल करो। साथ ही, जब बुरे लोग चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करें तो इन खुशामदी लोगों से सावधान रहना जो बुरे लोगों के पक्ष में खड़े हैं, उनके सेवकों और साथियों के रूप में काम कर रहे हैं। संक्षेप में, चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने वाले बुरे लोगों के सभी अनुचित व्यवहारों के लिए, परमेश्वर के वचनों के अनुसार अपने विवेक का इस्तेमाल करना जरूरी है; जब तुम उनके सार को स्पष्टता से देखोगे तो तुम जान जाओगे कि सिद्धांतों के अनुसार उनसे उचित तरीके से कैसे निपटना है।
अभी-अभी हमने चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने की कुछ घटनाओं और कुछ लोगों के क्रियाकलापों के बारे में संगति की। हालाँकि हर पहलू पर चर्चा नहीं की गई, मगर इन मुद्दों को हल करने के सिद्धांतों पर मूल रूप से संगति की गई। जैसे ही तुम लोग कलीसिया के भीतर चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने वाले लोगों को देखो, तुम्हें आगे बढ़कर उन्हें रोकना चाहिए। आज्ञाकारी मत बनो और खुशामदी लोगों की तरह व्यवहार मत करो। अगर कोई हमेशा चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने की कोशिश करता है, तो जैसे ही यह प्रवृत्ति दिखाई दे, भाई-बहनों को एक साथ आगे आकर उन्हें रोकना और उजागर करना चाहिए। अगर वे भ्रम में ऐसा कर रहे हैं, वे नहीं जानते कि इसे चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने के रूप में गिना जाता है, तो तुम लोग उन्हें यह समझा सकते हो : “तुम जो कर रहे हो वह चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करना है। शैतान के सेवक की भूमिका मत निभाओ। यह कलीसिया के अगुआओं का चुनाव है, मेयर या टाउनशिप प्रमुखों का चुनाव नहीं। इस काम को करने के लिए परमेश्वर के घर के अपने विनियम और अपने सिद्धांत हैं। मानवीय इरादों को इसमें शामिल नहीं किया जाना चाहिए; हमें इस काम के लिए सत्य सिद्धांतों का सख्ती से पालन करना चाहिए। अगर तुम्हारी काबिलियत कम है और तुम सत्य सिद्धांतों को नहीं समझ सकते या अगर तुम बूढ़े और भ्रमित हो, और तुम्हें चुनावों में भाग लेने के लिए आवश्यक बौद्धिकता की कमी है, तो तुम मतदान करने से पीछे हटकर केवल नतीजे का इंतजार कर सकते हो, मगर किसी भी तरह से तुम्हें चुनाव में हेराफेरी या गड़बड़ी नहीं करनी चाहिए या गड़बड़ी और व्यवधान पैदा नहीं करने चाहिए; ये बुरे कर्म हैं और परमेश्वर इससे घृणा करता है। ऐसे बुरे कर्मों की हमेशा निंदा की जाती है; ऐसा व्यक्ति कभी मत बनो या ना ही कभी इस मार्ग पर चलो। अगर तुम वास्तव में मनुष्य हो, तो चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी मत करो, क्योंकि जब यह एक तथ्य बन जाएगा, तो तुम्हें शैतान का सेवक करार देकर कलीसिया से बाहर कर दिया जाएगा।” अगर चुनावों में हेराफेरी और गड़बड़ी करने वाले लोगों का पता चले, तो कम काबिलियत वाले लोग जो यह नहीं समझते कि वास्तव में क्या हुआ है, उनके साथ प्यार से संगति की जा सकती है, उनका समर्थन किया जा सकता है, और उनको पोषण देकर उनकी मदद की जा सकती है। फिर उन लोगों का क्या जो सत्य सिद्धांतों से पूरी तरह अवगत होने के बाद भी, जानबूझकर चुनाव में हेराफेरी और गड़बड़ी करते हैं, यहाँ तक कि इसके खिलाफ चेतावनी को भी अनदेखा करते हैं? उनके लिए भी एक समाधान है : उन्हें अब चुनावों में भाग लेने की अनुमति नहीं है; उनसे उनके चुनाव अधिकार छीन लिए जाने चाहिए। संक्षेप में, चुनावों में हेराफेरी करने और गड़बड़ी करने के सभी कृत्यों को समान रूप से पहचाना जाना चाहिए, रोका जाना चाहिए और स्थिति को पलटने से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। चुनाव के गलत नतीजे आने और कलीसिया के काम को बाधित करने और नुकसान पहुँचाने से रोकने के लिए, इस तरह के व्यवहारों और क्रियाकलापों को कलीसिया में बिल्कुल भी होने नहीं दिया जाना चाहिए।
विघ्न-बाधा उत्पन्न करने वाले विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों का सारांश
अगुआओं और कार्यकर्ताओं की बारहवीं जिम्मेदारी में वे विभिन्न लोग, घटनाएँ और चीजें शामिल हैं जो परमेश्वर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था में विघ्न-बाधा डालती हैं। हमने संगति के लिए इन्हें ग्यारह मुद्दों में बाँट दिया है। हर एक मुद्दे में बताई गई बाधाओं और गड़बड़ियों की समस्याएँ या घटनाएँ लोगों के कर्तव्य निर्वहन और परमेश्वर में उनकी सच्ची आस्था से जुड़ी हैं। उन्हें इतनी सावधानी से क्यों बाँटा गया गया है? मैं हर मुद्दे को संगति और गहन-विश्लेषण के लिए क्यों उठाता हूँ? हर मुद्दे के शीर्षक से देखें तो इन चीजों को करने वाले लोगों की मानवता अच्छी नहीं है। पहले मुद्दे—सत्य पर संगति करते समय अक्सर विषय से भटक जाना, जिसे गंभीर नहीं माना जाता—को छोड़कर बाकी सभी मुद्दों की प्रकृति काफी गंभीर है। इन सभी अभिव्यक्तियों में बाधाएँ और गड़बड़ियाँ पैदा करने की प्रकृति होती है, और वे सभी कलीसिया के कार्य में बाधाएँ और गड़बड़ियाँ पैदा करते हैं; यही कारण है कि हम उन्हें एक-एक करके संगति और गहन-विश्लेषण के लिए उठाते हैं। जब कलीसियाई जीवन में या अपने कर्तव्य निर्वहन की प्रक्रिया में ये मुद्दे उठते हैं, तो लोगों को विशेष रूप से सतर्क रहकर उन्हें पहचानना चाहिए और उनकी असलियत जाननी चाहिए। जब लोग बाधाएँ और गड़बड़ियाँ पैदा करने वाली घटनाएँ होते हुए देखें, तो उन्हें रोकने और प्रतिबंधित करने के लिए आगे आना चाहिए। जहाँ तक पहले मुद्दे, “सत्य की संगति करते समय अक्सर विषय से भटक जाने” की बात है, लोग कभी-कभी अनजाने में ऐसा करते हैं, इसमें शामिल परिस्थितियाँ और इसकी प्रकृति बहुत गंभीर नहीं होती; लेकिन अगर वे अक्सर विषय से भटक जाते हैं और असंगत बातें करते हैं, जिससे उनके श्रोता खिन्न हो जाते हैं और इस तरह कलीसियाई जीवन में कोई अच्छे नतीजे हासिल नहीं होते, तो इससे कलीसिया के काम में बाधा और गड़बड़ी पैदा होती है। बाकी मुद्दों का जिक्र करने की भी जरूरत नहीं है; उनमें से कोई भी कलीसिया के काम और कलीसियाई जीवन की व्यवस्था में बाधा और गड़बड़ी पैदा करने के लिए काफी है। इसलिए, इनमें से हर एक मुद्दे पर विस्तार से संगति करना, उसे समझना और उसका गहन-विश्लेषण करना जरूरी है। जब दुर्भावनापूर्ण घटनाएँ घटती हैं, अगर तुम्हारे पास कलीसिया को बाधित करने वाले बुरे कर्मों के बारे में समझ और ज्ञान हो, तो तुम्हें उन्हें रोकने और प्रतिबंधित करने के लिए खड़े होना चाहिए। मोटे तौर पर कहें तो यह एक सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाना है; संक्षेप में, कम से कम, यह कलीसिया का सदस्य होने के कर्तव्य और जिम्मेदारी को पूरा करना है। क्या तुम्हें यही करने में सक्षम नहीं होना चाहिए? (हाँ।) अगर तुम ऐसा नहीं कर सकते तो इसके क्या परिणाम होंगे? ऐसा न कर पाने को हम कैसे परिभाषित करें? कम से कम, इसका मतलब है कि तुम भ्रमित हो; इसके अलावा, तुम ऐसे निकम्मे कायर हो जो शैतान से डरता है। साथ ही, जब शैतान और राक्षस परमेश्वर के कार्य और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था को बाधित करने के लिए प्रकट होते हैं, तो तुम लोग उदासीन और शक्तिहीन बने रहते हो, कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाते, और शैतान के विरुद्ध खड़े होकर लड़ाई लड़ने और परमेश्वर के लिए गवाही देने के लिए तुम्हारे पास आस्था और साहस की कमी होती है। ऐसी स्थिति में, तुम एक बेकार इंसान हो, जो परमेश्वर का अनुयायी होने के लायक नहीं है।
अगुआओं और कार्यकर्ताओं की बारहवीं जिम्मेदारी में कलीसिया में होने वाली विभिन्न प्रकार की घटनाएँ शामिल हैं जो परमेश्वर के कार्य में गड़बड़ करती और बाधा डालती हैं। हर एक घटना अगुआओं और कार्यकर्ताओं के साथ ही आम भाई-बहनों के परमेश्वर के प्रति रवैये से जुड़ी होती है। यह हर व्यक्ति के अपने कर्तव्य और जिम्मेदारियों के प्रति रवैये और साथ ही परमेश्वर के घर के कार्य को बाधित करने वाली इन नकारात्मक घटनाओं और चीजों के प्रति उनके रुख और दृष्टिकोण से भी जुड़ी होती है। बेशक, यह इससे भी जुड़ी होती है कि ऐसा व्यक्ति जिसने कई वर्षों तक परमेश्वर में विश्वास रखा है और धर्मोपदेश सुने हैं, क्या उसके पास शैतान के खिलाफ लड़ने और इन नकारात्मक घटनाओं और चीजों के सामने आने पर परमेश्वर की गवाही देने के लिए पर्याप्त आध्यात्मिक कद और आस्था है या नहीं। क्या यह मुख्य मुद्दों से संबंधित है? यह व्यक्ति के रुख और जिस मार्ग पर वह चलता है उसके साथ ही परमेश्वर, सत्य और अपने कर्तव्य के प्रति उसके रवैये से संबंधित है। इसलिए, इन वचनों को सुनने के बाद, तुम लोगों को यह समझना चाहिए कि ये लोगों के लिए परमेश्वर की अपेक्षाएँ हैं। उन्हें ऐसे धर्म-सिद्धांत, नियम या विनियम मत मानो जिनका पालन किया जाना चाहिए और जिन्हें लागू किया जाना चाहिए, बल्कि सत्य समझने के लिए उन पर ज्यादा चिंतन-मनन करो, फिर उनका अभ्यास करते हुए उनमें प्रवेश करो, इस प्रकार परमेश्वर की अपेक्षाओं को पूरा करो। जब बुरे लोग कलीसिया के कार्य में गड़बड़ी करते और बाधा डालते हैं, तो निष्क्रिय होकर खड़े मत रहो, तरह-तरह के बहाने बनाकर अपनी जिम्मेदारी से मत भागो, यह मत कहो कि तुम्हें परमेश्वर में विश्वास रखे कुछ ही समय हुआ है, तुम्हारा आध्यात्मिक कद छोटा है या तुम अभी बहुत छोटे हो। जब परमेश्वर कार्य की जाँच करता है, जब वह तुम्हारा रवैया देखने के लिए परिवेशों का आयोजन करता है, तो वह तुम्हारी उम्र नहीं देखता, यह नहीं देखता कि तुमने कितने वर्षों से उसमें विश्वास रखा है या तुमने कभी क्या कीमत चुकाई थी और तुमने क्या योग्यताएँ हासिल की हैं; परमेश्वर उस पल में तुम्हारा रवैया देखना चाहता है। अगर तुमने अक्सर इन मामलों पर कभी चिंतन-मनन नहीं किया है या इनके बारे में कभी नहीं खोजा है, और तुम हर मामले को भ्रमित स्थिति में बिना कुछ भी याद रखे, बिना सत्य खोजे, बिना कोई सबक सीखे या परमेश्वर द्वारा आयोजित विभिन्न परिवेशों को गंभीरता से लिए बिना ही जाने देते हो, अगर तुम बुरे लोगों को बाधाएँ और गड़बड़ियाँ पैदा करते हुए देखकर भाग जाते हो और कभी भी परमेश्वर के घर को इसकी रिपोर्ट नहीं करते या अपना रवैया नहीं दिखाते, तो भले ही तुमने कुकर्म में हिस्सा नहीं लिया, मगर इस मामले में तुम्हारे व्यवहार ने पहले ही तुम्हारे रुख और दृष्टिकोण का खुलासा कर दिया है—तुम शैतान के पक्ष में खड़े बस एक दर्शक हो। परमेश्वर हर चीज की जाँच-पड़ताल करता है और तुम उसे धोखा नहीं दे सकते। इसलिए, जब ये नकारात्मक मामले सामने आते हैं, जब तुम्हें उन विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों का पता चलता है जो कलीसिया के कार्य और कलीसियाई जीवन की सामान्य व्यवस्था में गड़बड़ी करती और बाधा डालती हैं, तो यह स्पष्ट रूप से परमेश्वर के प्रति तुम्हारे रवैये को प्रकट कर देता है। ऐसा हो सकता है कि तुम्हें परमेश्वर पर विश्वास रखे कुछ ही समय हुआ हो, तुम अभी अपेक्षाकृत कमउम्र हो और तुम्हारा आध्यात्मिक कद छोटा है, लेकिन अगर इन चीजों के घटने पर तुम सिद्धांतों के अनुसार काम करते हो, और बुरे लोगों को रोकने, प्रतिबंधित करने या यहाँ तक कि उन्हें उजागर करने की कोशिश करते हो, जोखिम उठाते हो और अपनी खुद की सुरक्षा की परवाह न करते हुए आगे बढ़कर परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करते हो—अगर तुम्हारे पास ऐसा दिल है, तो परमेश्वर के प्रति तुम्हारा रवैया और साथ ही परमेश्वर की गवाही देने और शैतान के विरुद्ध लड़ने का तुम्हारा दृढ़ संकल्प एक गवाही बन जाएगा जिसे लोगों के साथ-साथ परमेश्वर भी देखेगा। लोगों के बुरे कर्म, उनका परमेश्वर को चकमा देना और उससे छिपना, अपनी जिम्मेदारियों से बचना, शैतान के कुकर्म करने पर उसके आगे झुकना और समझौता करना—परमेश्वर यह सब देखेगा और एक दिन इन बुरे कर्मों का निपटारा होगा और एक फैसला आएगा। मगर इसी तरह, जब लोग परमेश्वर के घर और भाई-बहनों की ओर से बोलने के लिए शैतान की बाधाओं और गड़बड़ियों के खिलाफ खड़े होते हैं, परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने के लिए शैतान के खिलाफ लड़ते हैं, परमेश्वर की गवाही देने की आकांक्षा के साथ सत्य खोजते हैं, तो भले ही वे कभी-कभी शक्तिहीन और अकेले महसूस करते हों, उनमें बुद्धि की कमी हो, सत्य की केवल उथली समझ हो या वे सत्य के बारे में संगति करना चाहते हों मगर खुद को स्पष्ट रूप से व्यक्त नहीं कर पाते हों, जिसके कारण कुछ लोग उनका मजाक उड़ाते हैं और उन्हें नीची नजरों से देखते हैं, मगर परमेश्वर की नजरों में वह उनकी ईमानदारी को देखता है; वह इन क्रियाकलापों और व्यवहारों को नेक कर्म मानता है। कुकर्मों का एक दिन फैसला किया जाएगा और परमेश्वर के सामने उनका निष्कर्ष निकलेगा और नेक कर्मों के साथ भी यही होगा—मगर इन दोनों प्रकार के व्यवहारों में से प्रत्येक का निष्कर्ष पूरी तरह से अलग होगा। बुरे कर्मों का उचित प्रतिफल मिलेगा, और नेक कर्मों का बदला अच्छे व्यवहार से चुकाया जाएगा। परमेश्वर ने बहुत पहले से ही हर एक व्यक्ति के लिए यह निर्धारित कर दिया है, बस वह इस इंतजार में है कि अच्छाई को इनाम देने और बुराई को दंडित करने से पहले परमेश्वर के कार्य की अवधि के दौरान लोगों की विभिन्न अभिव्यक्तियाँ सामने आकर निर्धारित तथ्य बन जाएँ।
अगुआओं और कार्यकर्ताओं की बारहवीं जिम्मेदारी में लोगों, घटनाओं और चीजों से संबंधित ग्यारह समस्याएँ शामिल हैं जो कलीसिया के कार्य में गड़बड़ करती और बाधा डालती हैं। क्या ये ग्यारह समस्याएँ महत्वपूर्ण हैं? क्या वे लोगों का स्पष्ट रूप से खुलासा करती हैं? जब तुम लोग हर समस्या के बारे में संगति करते हो, तो तुम्हें इसमें ज्यादा मेहनत करनी चाहिए ताकि तुम सत्य स्पष्टता से समझ सको। इसमें यह शामिल है कि लोग न्याय और सकारात्मक चीजों को कैसे कायम रखते हैं, परमेश्वर की गवाही को कैसे कायम रखते हैं; इसमें यह भी शामिल है कि लोग शैतान से लड़ने के लिए, शैतान का चेहरा उजागर और बेनकाब करने के लिए, शैतान के बुरे कर्मों को रोकने और प्रतिबंधित करने के लिए कैसे आगे बढ़ते हैं—ये दो पहलू शामिल हैं। जब शैतान कलीसिया के कार्य में गड़बड़ करता और बाधा डालता है, तो क्या तुम कोई भूमिका निभाते हो? तुम क्या भूमिका निभाते हो? क्या तुमने वह किया है जिसकी परमेश्वर तुमसे अपेक्षा करता है? क्या तुमने उन दायित्वों और जिम्मेदारियों को पूरा किया है जिन्हें परमेश्वर के अनुयायी को पूरा करना चाहिए? जब ये समस्याएँ सामने आती हैं, तो क्या तुम समझौता करते हो, चीजों को सुलझाना आसान बनाते हो और खुशामदी बनकर बीच का रास्ता अपनाते हो या फिर तुम शैतान के बुरे कर्मों को रोकने और प्रतिबंधित करने के लिए खड़े होते हो और परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने के लिए अन्य सच्चे भाई-बहनों के साथ एकमत होकर काम करते हो? तुम किसकी रक्षा करते हो? क्या तुम बुरे लोगों के हितों और शैतान के हितों की रक्षा करते हो या परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करते हो? अगर कलीसिया के काम में गड़बड़ करने और बाधा डालने वाली कोई बात होती है और तुम कुछ नहीं करते, केवल खुशामदी व्यक्ति की तरह काम करते हो और खुद को बचाते हो, यह ध्यान रखते हो कि तुम अपने पारस्परिक संबंधों को अच्छी तरह संभाल सको और उसे कोई नुकसान न हो; तुम कलीसिया के कार्य में बाधा उत्पन्न होने के बारे में कभी भी चिंतित या व्यग्र महसूस नहीं करते, बुरे लोगों के बुरे कर्मों के प्रति कोई घृणा या क्रोध महसूस नहीं करते, परमेश्वर के घर और सभी भाई-बहनों के हितों के लिए कोई बोझ नहीं उठाते, परमेश्वर के प्रति किसी भी तरह से ऋणी महसूस नहीं करते और न ही कोई आत्म-ग्लानि महसूस करते हो, तो तुम खतरे में हो। अगर परमेश्वर की नजरों में तुम अंदर से लेकर बाहर तक एक खुशामदी व्यक्ति हो, जो कुछ भी घटित होने पर निष्क्रिय रूप से बस हाथ पर हाथ धरे देखता रहता है और उससे बचता है, अपनी किसी भी जिम्मेदारी या दायित्व को तनिक भी पूरा नहीं करता, तो तुम सचमुच खतरे में हो और परमेश्वर द्वारा हटाए जा सकते हो। अगर परमेश्वर के मन में तुम्हें श्रम तक नहीं करने देने का विचार आता है और वह तुमसे तंग हो जाता है, तो इस मुकाम पर तुम्हारा हटाया जाना तय है, जो बेहद खतरनाक है! जब परमेश्वर कहता है कि वह अब तुम जैसे लोगों को नहीं देखना चाहता और वह तुम जैसे लोगों को परमेश्वर के घर में कोई कर्तव्य या श्रम करते हुए देखकर अहमियत नहीं देता है, तो तुम एक दिन, आने वाले समय में किसी ही पल कलीसिया से हटाए जा सकते हो, जो तुम्हारा भाग्य बदल देगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि परमेश्वर के साथ तुम्हारा रिश्ता अब सामान्य नहीं है या तुमने खुद को परमेश्वर से दूर कर लिया है और उसे धोखा दिया है और यह इसी का नतीजा है। क्या तुम इस तथ्य को देख सकते हो? जब तुम इस तथ्य को समझ जाओगे, तब चाहे तुम इसे स्वीकार पाओ या नहीं, तुम्हारे दिल की सारी खूबसूरत उम्मीदें एक पल में गायब हो जाएँगी।
जब लोग पहली बार परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, तो उनका दिल उत्साही होता है। हालाँकि वे अपने भविष्य की मंजिल या संभावनाएँ नहीं देख सकते, उन्हें हमेशा यही महसूस होता है कि वे परमेश्वर पर निर्भर हो सकते हैं। वे हमेशा सुंदर और सकारात्मक चीजों की आकांक्षा रखते हैं। यह शक्ति कहाँ से आती है? लोग नहीं जानते; वे इसे समझ ही नहीं पाते : “सभी लोग एक जैसे होते हैं, सभी एक ही हवा में जीते हैं और एक ही सूरज के नीचे रहते हैं। फिर ऐसा क्यों है कि अविश्वासियों के दिलों में इन चीजों की कमी होती है, जबकि हमारे पास नहीं?” क्या यह एक रहस्य नहीं है? यह ताकत परमेश्वर से आती है। यह बेहद कीमती चीज है; लोग इसके साथ पैदा नहीं होते हैं। अगर यह सभी के पास जन्म से होती, तो वे एक जैसे होते; मानवजाति के बीच कोई ऊँच-नीच, कुलीन या घटिया का कोई भेद नहीं होता और न ही परमेश्वर में विश्वास रखने और न रखने वालों के बीच कोई अंतर होता। जो उनके पास नहीं है, वह तुम्हारे पास हो सकता है; तुम्हारे पास वह सबसे कीमती चीज हो सकती है जो मानवता के बीच मौजूद है। इसे सबसे कीमती चीज क्यों कहते हैं? क्योंकि ठीक इसी आशा और अपेक्षा के कारण, तुम परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्यों को पूरा करने पर ध्यान दे सकते हो। किसी व्यक्ति के उद्धार पाने में सक्षम होने के लिए यह सबसे बुनियादी शर्त है। इसी अपेक्षा के कारण तुम्हारे पास एक अवसर होता है और परमेश्वर के लिए खुद को खपाने, एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य निभाने और एक नेक इंसान, बचाया गया इंसान बनने का थोड़ा-सा संकल्प है। इससे मिलने वाले लाभ बहुत अधिक हैं। तो यह चीज कहाँ से आती है? यह परमेश्वर से आती है; यह परमेश्वर द्वारा दी जाती है। हालाँकि, जब परमेश्वर किसी को और नहीं चाहता, तब यह चीज उससे छीन ली जाती है। वह अब सुंदर चीजों के लिए नहीं तरसता या उनकी अपेक्षा नहीं करता; वह अब उनसे कोई उम्मीद नहीं रखता। उसका दिल अंधकारमय होकर डूबने लगता है। वह किसी भी सुंदर या सकारात्मक चीज और साथ ही परमेश्वर के वादों का अनुसरण करने का उत्साह खो देता है। वह एक अविश्वासी जैसा बन गया है। एक बार जब यह चीज खो जाती है, तब क्या वह व्यक्ति परमेश्वर के घर में रहकर परमेश्वर में विश्वास रखना और उसका अनुसरण करना जारी रख सकता है? क्या परमेश्वर में उसकी आस्था का मार्ग समाप्त नहीं हो गया है? जब तुम अनुसरण करने का संकल्प होने की यह पूर्वापेक्षा खो देते हो, तो तुम चलती-फिरती लाश बन जाते हो। “चलती-फिरती लाश” होने का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि तुम अब परमेश्वर के वचनों को नहीं समझ सकते। जब तुममें यह पूर्वापेक्षा होती है, तो तुम परमेश्वर के वचनों को समझ सकते हो, आशा रख सकते हो, तुम्हारी आस्था प्रेरित हो सकती है और यह पूर्वापेक्षा तुम्हें सत्य का अनुसरण करने की प्रेरणा दे सकती है। लेकिन, जब तुम यह मूलभूत पूर्वापेक्षा खो देते हो, तो यह प्रेरणा गायब हो जाती है। तुममें परमेश्वर के वचनों को सुनने के लिए कोई उत्साह या रुचि नहीं होती। वादे और अपेक्षाएँ अब तुम्हें दिलचस्प नहीं लगतीं या तुम्हें प्रेरित नहीं करतीं। तुम्हारे लिए, परमेश्वर के वचन उच्च-स्तरीय सिद्धांत बन गए हैं। तुम उनके लिए कोशिश नहीं करते और परमेश्वर अब तुम्हें प्रबुद्ध नहीं करता। तुम परमेश्वर के वचनों से कोई सत्य प्राप्त नहीं कर सकते। क्या परमेश्वर में आस्था का यह मार्ग तुम्हारे लिए समाप्त नहीं हो गया है? जब बात यहाँ तक पहुँच जाती है, तो परमेश्वर पहले ही तुम्हें ठुकरा चुका होता है; क्या तुम अभी भी परमेश्वर को अपना मन बदलने के लिए मजबूर कर सकते हो? यह आसान नहीं होगा। जब परमेश्वर यह निश्चित कर लेता है कि वह किसी व्यक्ति को अब और नहीं चाहता, तो वह व्यक्ति अंदर से ऐसा ही महसूस करता है। जब यह चीज छीन ली जाती है, तो परमेश्वर में विश्वास रखने, अपने कर्तव्य निभाने और बचाए जाने जैसे विभिन्न मामलों के प्रति तुम्हारा रवैया पहले से पूरी तरह अलग हो जाएगा। कभी जो उत्साहपूर्ण अनुसरण रहा था, उस पर अब विचार करने पर तुम्हें यह दुरूह, समझ से परे और अविश्वसनीय लगेगा। जब तुम अपनी वर्तमान स्थिति की तुलना अपनी पिछली स्थिति से करते हुए इसे अविश्वसनीय पाओगे, तो तुम्हारी आंतरिक स्थिति में गुणात्मक बदलाव आ चुका होगा; तुम पूरी तरह से अलग इंसान होगे, तुम पहले जैसे व्यक्ति नहीं होगे। ऐसा क्यों होगा? ऐसा इसलिए नहीं होगा क्योंकि परिवेश बदल गया है; क्योंकि तुम बड़े हो गए हो और ज्यादा षड्यंत्र रचने लग गए हो; क्योंकि तुमने ज्यादा अनुभव और जीवन की अंतर्दृष्टि प्राप्त कर ली है, जिसने तुम्हारे विचारों और दृष्टिकोणों को बदल दिया है। बल्कि, ऐसा इसलिए होगा क्योंकि परमेश्वर ने अपना मन बदल लिया है, उसके विचार बदल गए हैं, और साथ ही तुम्हारे प्रति उसका रवैया और अपेक्षाएँ बदल गई हैं। तो, तुम खुद की जगह एक अलग व्यक्ति बन गए हो। अब इसे देखते हुए, अगर कोई व्यक्ति वह चीज खो देता है जो परमेश्वर ने उसे दी तो है, मगर जिसे वह सबसे मामूली, सबसे महत्वहीन चीज मानता है, तो अब वह व्यक्ति बिना किसी खुशी के पीड़ा के कुचक्र में फँस जाएगा। इसलिए, कभी भी उस स्थिति तक मत पहुँचो। अगर ऐसा होता है, तो तुम्हें यह महसूस हो सकता है कि तुम्हारे कंधों से एक भार उतर गया है, तुम आजाद हो गए हो, तनावमुक्त हो गए हो, अब तुम्हें परमेश्वर में विश्वास रखने या अपने कर्तव्यों का पालन करने की कोई जरूरत नहीं है, और तुम अविश्वासियों की तरह, पिंजरे से निकले पक्षी की तरह आजादी और बेफिक्री से जी सकते हो। मगर यह सिर्फ क्षणिक आराम, खुशी और आत्म-भोग है। जैसे-जैसे तुम आगे बढ़ोगे, अपने आगे के मार्ग की ओर देखोगे—क्या तुम तब भी इतने खुश होगे? नहीं, तुम खुश नहीं होगे। आगे तुम्हारे लिए मुश्किल समय आने वाला है! जब तुम सृष्टिकर्ता के प्रभुत्व में रहते हो, तो चाहे सृष्टिकर्ता तुम्हारे लिए चीजों को कैसे भी आयोजित करे, वह तुम्हारे साथ क्या और कैसे करता है, वह तुम्हारे लिए कितने भी परीक्षण और क्लेश लाता है, तुम कितना भी कष्ट सहते हो, या भले ही कोई नासमझी, गलतफहमियाँ और अन्य चीजें उत्पन्न होती हों, कम से कम तुम्हें यह लगेगा कि तुम परमेश्वर के हाथों में हो, तुम परमेश्वर पर भरोसा कर सकते हो और तुम्हारा दिल शांत होता है। मगर जब परमेश्वर तुम्हें नहीं चाहता और तुम यह नहीं समझ पाते कि परमेश्वर अब तुम्हारे साथ किस तरह व्यवहार करता है और तुम इस भरोसे को खो देते हो, तो ऐसा लगता है जैसे पूरा संसार तुम्हारे चारों ओर टूटकर बिखर गया है। यह ठीक वैसा ही है जैसे जब तुम बच्चे थे और केवल यही सोचते थे, “मेरी माँ सबसे प्यारी है, माँ मेरी परवाह करती है और मुझे सबसे ज्यादा प्यार करती है, माँ नहीं मर सकती।” जब तुम माँ के बीमार पड़ने की खबर सुनते, तो तुमसे यह बर्दाश्त नहीं होता। तुम सोचते कि अगर तुम्हारी माँ वास्तव में मर गई, तो आसमान टूट पड़ेगा और तुम जी नहीं पाओगे। यही तर्क परमेश्वर में विश्वास रखने पर भी लागू होता है। परमेश्वर में व्यक्ति की आस्था में उसे सबसे अधिक शांति और खुशी परमेश्वर में विश्वास रखने, परमेश्वर पर भरोसा करने और यह विश्वास करने से मिलती है कि उसकी नियति सृष्टिकर्ता के हाथों में है। व्यक्ति में स्थिरता की भावना इस सच्चे विश्वास और निर्भरता से आती है। जब तुम्हें लगता है कि यह विश्वास और निर्भरता खत्म हो गई है और तुम्हारा दिल अभी-अभी खोदे गए किसी गड्ढे की तरह खाली महसूस करता है, तब क्या तुम्हारा सब कुछ खत्म नहीं हो गया है? अपनी निर्भरता को खोने के बाद क्या तुममें जीवन जीने की ताकत बची रहती है? ऐसे लोग चलती-फिरती लाशों जैसे होते हैं, जो अपने अंत की प्रतीक्षा करते हुए बस अपना पेट भरते रहते हैं।
अब कुछ लोग लगातार खराब व्यवहार करते हैं, लगातार बुराई करते हैं और अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए कलीसिया के कार्य में गड़बड़ी करते और बाधा डालते हैं और उसे नुकसान पहुँचाते हैं, यहाँ तक कि परमेश्वर के घर के हितों को भी काफी नुकसान पहुँचाते हैं। उन्होंने कभी भी परमेश्वर के प्रति ईमानदारी या निष्ठा नहीं दिखाई है, समर्पण करना तो दूर की बात है। इसलिए, परमेश्वर ने उन्हें कभी स्वीकार नहीं किया है। वे बुरे लोग हैं जिन्होंने आशीष पाने के इरादे से परमेश्वर के घर में घुसपैठ की है। परमेश्वर उन्हें प्रवेश करने की अनुमति इसलिए देता है ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोग सबक सीख सकें और उनकी समझ बढ़े। हालाँकि वे भी उन लोगों में से हैं जिन्हें बुलाया गया है, मगर उन्हें उनके लगातार प्रदर्शित व्यवहार के कारण चुना नहीं गया है। उनकी स्थिति कैसी है? तुम लोग छानबीन कर सकते हो; उनमें से किसी का भी जीवन ठीक नहीं चल रहा है। जो लोग परमेश्वर पर भरोसा करते हैं और कभी भी, कहीं भी उसका पोषण प्राप्त करते हैं, उनका जीवन स्तर उन लोगों से मूल रूप से भिन्न होता है जिन्हें परमेश्वर का पोषण और मदद नहीं मिलती है और वे परिस्थितियों का सामना करते हुए हमेशा अथाह गड्ढे में गिर जाते हैं। जिन लोगों को परमेश्वर का पोषण नहीं मिलता है, उनके पास कोई शांति या खुशी नहीं होती है, वे पूरे दिन भय, बेचैनी, अशांति और चिंता का अनुभव करते हैं। वे किस तरह के दिन बिताते हैं? क्या अथाह गड्ढे में दिन बिताना आसान है? नहीं, यह आसान नहीं है। इस अथाह गड्ढे को किनारे करो, अगर तुम लगातार कुछ दिन नकारात्मकता में ही बिता लो, तो भी तुम बहुत पीड़ित होगे। इसलिए, वर्तमान समय को संजोओ और इस महान अवसर को हाथ से मत जाने दो। परमेश्वर के छह-हजार-वर्षीय प्रबंधन कार्य में अपना कर्तव्य निभाना सम्मान की बात है। यह हर व्यक्ति के लिए सम्मान की बात है। यह अपमान की बात नहीं है; मुख्य बात यह है कि तुम परमेश्वर से मिले इस सम्मान को किस तरह से लेते हो और उसका बदला कैसे चुकाते हो। परमेश्वर ने तुम्हें ऊपर उठाया है; उसकी दयालुता की सराहना करना मत भूलो। तुम्हें परमेश्वर के अनुग्रह का ऋण चुकाना आना चाहिए। तुम्हें इसका ऋण कैसे चुकाना चाहिए? परमेश्वर को तुम्हारा पैसा या तुम्हारा जीवन नहीं चाहिए और न ही वह तुम्हारे परिवार से विरासत में मिली कोई संपत्ति चाहता है। परमेश्वर क्या चाहता है? परमेश्वर तुम्हारी ईमानदारी और निष्ठा चाहता है। यह ईमानदारी और निष्ठा कैसे अभिव्यक्त होती है? यह तुम्हारी प्रतिबद्धता है कि तुम एक ईमानदार दिल के साथ और परमेश्वर के वचनों के अनुसार काम करो, चाहे वह कुछ भी कहे। परमेश्वर के वचन क्या हैं? वे सत्य हैं। एक बार जब तुम सत्य को मानकर स्वीकार लेते हो, तो तुम्हें इसे कैसे लागू करना चाहिए? तुम्हें सत्य सिद्धांतों के अनुसार अभ्यास करना चाहिए। ठीक वैसा ही करो जैसा कि परमेश्वर कहता है। सत्य का अभ्यास करने में केवल दिखावा मत करो और परिस्थितियों से सामना होने पर अपनी मर्जी से काम मत करो, बाद में बहाने मत बनाओ और ऐसी छिपी हुई और कपटी बातें मत बोलो जिनमें ईमानदारी और निष्ठा का अभाव हो—परमेश्वर यह नहीं देखना चाहता है। किसी व्यक्ति में सबसे कीमती चीज ईमानदारी है। एक ईमानदार व्यक्ति को कैसा व्यवहार करना चाहिए? उसे ठीक वैसा ही करना चाहिए जैसा परमेश्वर अपेक्षा करता है, उसे दृढ़तापूर्वक परमेश्वर के वचनों का पालन करना चाहिए। भले ही वह इसे हद से ज्यादा करे मानो वह विनियमों का पालन कर रहा हो, जिससे दूसरे उसे थोड़ा बेवकूफ समझें, उसे इसकी परवाह नहीं करनी चाहिए। उसे अभी भी परमेश्वर के वचनों का पालन करते रहना चाहिए। परमेश्वर लोगों से यही ईमानदारी चाहता है। अगर तुम हमेशा षड्यंत्र और धूर्तता से काम लेते हो और दूसरों की नजरों में कभी बेवकूफ नहीं दिखना चाहते, अपने हितों को थोड़ा भी नुकसान नहीं पहुँचाना चाहते, तो तुम सत्य का अभ्यास करने में असमर्थ हो, क्योंकि तुममें ईमानदारी नहीं है। जिन लोगों में ईमानदारी की कमी होती है और फिर भी वे धोखेबाजी करने की कोशिश करते हैं, वे बहुत ही अधिक चालाक होते हैं और परमेश्वर उन्हें पसंद नहीं करता। जब वे परमेश्वर के वचनों का अभ्यास करते हैं, तो वे चुन-चुनकर काम करते हैं, केवल वही करते हैं जो उनके लिए फायदेमंद हो और जो उनके लिए फायदेमंद नहीं है उसे करने से बचते हैं। वे आम तौर पर सुखद बातें करते हैं, सिर्फ शानदार लगने वाले विचारों के अलावा कुछ नहीं बोलते, मगर जब समस्याएँ सामने आती हैं, तो वे छिप जाते हैं, उनका कोई अता-पता तक नहीं मिलता और जब दूसरे लोग समस्याएँ हल कर लेते हैं तो वे फिर से वापस आ जाते हैं। ऐसा व्यक्ति किस तरह का कमीना है? जब कोई चीज उसके लिए फायदेमंद होती है, तो वह पहल करता है और आगे बढ़ता है, दूसरों की तुलना में ज्यादा सक्रिय होता है। लेकिन जब उसके व्यक्तिगत हित दांव पर होते हैं, तो वे पीछे हट जाते हैं और नकारात्मक हो जाते हैं। वे अपने सभी सुखद लगने वाले शब्द, अपना रुख और अपने दृष्टिकोण खो देते हैं। परमेश्वर इस तरह के व्यक्ति को पसंद नहीं करता। वह ऐसे चालाक व्यक्ति की जगह किसी ऐसे व्यक्ति को ज्यादा पसंद करेगा जो दूसरों की नजरों में बेवकूफ प्रतीत होता है।
XII. राजनीति पर चर्चा करना
हमने अगुआओं और कार्यकर्ताओं की बारहवीं जिम्मेदारी में शामिल ग्यारह समस्याओं के बारे में संगति पूरी कर ली है। इन ग्यारह समस्याओं के अलावा, आओ एक और समस्या के बारे में बात करें। भले ही यह समस्या कलीसियाई जीवन में आम तौर पर नहीं देखी जाती, मगर यहाँ इसकी चर्चा करना जरूरी है, जिससे यह बारहवीं समस्या बन जाएगी—राजनीति पर चर्चा करना। क्या कलीसियाई जीवन में राजनीतिक विषयों पर चर्चा करना उचित है? (नहीं।) कलीसियाई जीवन परमेश्वर के वचनों को पढ़ने, परमेश्वर की आराधना करने और परमेश्वर के बारे में अपनी समझ और परमेश्वर के वचनों के अनुभवजन्य ज्ञान को साझा करने के लिए है। हालाँकि, इस दौरान कुछ लोग राजनीति के बारे में लंबी-चौड़ी बातें करते हैं, जैसे कि राजनीतिक परिस्थितियाँ, राजनीतिक हस्तियाँ, राजनीतिक परिदृश्य, राजनीतिक दृष्टिकोण और राजनीतिक रुख। क्या यह उचित है? जब परमेश्वर द्वारा सभी चीजों और मानवजाति पर संप्रभुता रखने के विषयों पर चर्चा की जाती है, तो कुछ लोग यंत्रवत ढंग से यह विचार लागू करते हैं कि राजनीतिक हस्तियाँ भी परमेश्वर के हाथों में हैं, वे कहते हैं कि कुछ राजनीतिक हस्तियाँ भी परमेश्वर में विश्वास और उसका अनुसरण करती हैं, और यहाँ तक कि आध्यात्मिक नोट और न जाने क्या-क्या चीजें लिखती हैं। क्या यह दूसरों को उलझन में डालना नहीं है? कुछ लोग तो यहाँ तक कहते हैं, “हम ईसाइयों को इस राजनेता का समर्थन करना चाहिए क्योंकि वह न सिर्फ एक विश्वासी है, बल्कि हम विश्वासियों के हितों की भी रक्षा करता है। वह हमारे जैसा ही है और हमें उसका समर्थन करते हुए उसे चुनना चाहिए।” कलीसियाई जीवन में, वे इस राजनीतिक व्यक्ति को बड़े पैमाने पर बढ़ावा भी देते हैं। क्या यह उचित है? क्या ईसाई राजनीति में भाग लेते हैं? (नहीं।) इसमें भाग लेने से बचने के लिए तुम क्या कर सकते हो? सबसे पहले, चाहे तुम किसी भी पार्टी का समर्थन करते हो या तुम्हारे राजनीतिक दृष्टिकोण कुछ भी हों, उन्हें कलीसियाई जीवन में चर्चा के लिए मत लाओ। बेशक, यह बात और भी ज्यादा अहम है कि अलग-अलग राजनीतिक दृष्टिकोण रखने वाले लोगों के बीच कलीसियाई जीवन में वाद-विवाद भी नहीं होना चाहिए। उदाहरण के लिए, अगर तुम्हारे और किसी अन्य व्यक्ति के अलग-अलग दृष्टिकोण हैं और तुम अलग-अलग राजनीतिक हस्तियों का समर्थन करते हो, तो तुम लोग एक-दूसरे से मिलने पर इस बारे में चर्चा कर सकते हो; इसकी अनुमति है, मगर तुम सभाओं में ऐसा कुछ बिल्कुल नहीं कर सकते। तुम दोनों एक-दूसरे को निजी संदेश भेज सकते हो, मिलकर बातचीत कर सकते हो या तुम अपने चेहरे लाल हो जाने तक बहस भी कर सकते हो, इसमें कोई भी हस्तक्षेप नहीं करेगा; यह एक लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत एक नागरिक का अधिकार है। मगर कलीसियाई जीवन में, तुम केवल एक देश के नागरिक नहीं हो; इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के सदस्य हो। इस व्यवस्था में, यही तुम्हारी पहचान है। राजनीतिक विषयों या राजनीतिक हस्तियों से संबंधित विषयों को कलीसिया में मत लाओ। तुम जो चर्चा करते हो, वह सिर्फ तुम्हारे व्यक्तिगत रुख और दृष्टिकोण को दर्शाता है, कलीसिया के नहीं। कलीसिया को न तो राजनीति में और ना ही किसी राजनीतिक व्यवस्था, व्यक्ति, नेता या समूह में कोई दिलचस्पी है, क्योंकि इन मामलों में सत्य शामिल नहीं होता है और इनका परमेश्वर में विश्वास करने से कोई संबंध नहीं है। राजनीति से संबंधित कोई भी विषय कलीसियाई जीवन में नहीं लाया जाना चाहिए। कुछ लोग कहते हैं, “तो क्या कलीसियाई जीवन के बाहर सभी का मिलकर इस विषय पर चर्चा करना ठीक है?” ऐसा न करना ही बेहतर है। अगर तुम अलग-अलग राजनीतिक दृष्टिकोणों वाले अविश्वासियों के बीच चर्चा में शामिल होना चाहते हो, तो यह तुम्हारी मर्जी है; यह तुम्हारी आजादी है और परमेश्वर का घर इसमें हस्तक्षेप नहीं करेगा। लेकिन जब कलीसिया के सदस्य एक साथ मिलते हैं या औपचारिक सभाओं के दौरान, इन राजनीतिक दृष्टिकोणों या तर्कों को मुख्य विषय मत बनाओ और यह झूठा दिखावा मत करो कि तुम्हारे राजनीतिक दृष्टिकोणों का परमेश्वर के वचनों, सत्य या परमेश्वर की संप्रभुता से कोई लेना-देना है। तुम्हारे राजनीतिक दृष्टिकोणों का सत्य से बिल्कुल भी कोई लेना-देना नहीं है, उनके बीच दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है, इसलिए ऐसा दिखावा मत करो!
कुछ लोग राजनीति पर चर्चा करना चाहते हैं, मगर घर पर इस विषय पर चर्चा करने वाला कोई नहीं होता, इसलिए ऐसी बातचीत कभी नहीं हो पाती है। यह देखकर कि सभी भाई-बहन वयस्क हैं, उन्हें लगता है कि उन्हें राजनीति पर चर्चा करने और अपने राजनीतिक दृष्टिकोणों को सामने रखने का एक रास्ता मिल गया है। वे इस अच्छे अवसर को पाकर उत्साहित होते हैं, राजनीतिक दृष्टिकोण, वर्तमान घटनाओं और अंतर्राष्ट्रीय स्थिति के बारे में बात करना चाहते हैं। वे कुछ इस तरह से इन पर चर्चा शुरू करते हैं, “ये सभी परमेश्वर की संप्रभुता के अधीन हैं। मानवजाति की राजनीति और ये राजनेता भी परमेश्वर की संप्रभुता के अधीन हैं। परमेश्वर उन्हें नियुक्त करता है।” इस प्रस्तावना के बाद, वे राजनीति और वर्तमान घटनाओं पर विस्तार से चर्चा करना शुरू करते हैं और इस तरह से चर्चा समाप्त करते हैं, “राजनीति परमेश्वर की संप्रभुता से बच नहीं सकती; इस सबमें परमेश्वर की सद्भावना है।” अगर लोग इन मामलों की असलियत नहीं समझ सकते, तो उन्हें इन पर लापरवाही से बात नहीं करनी चाहिए। सत्य पर संगति करना सत्य पर संगति करना ही है; यहाँ राजनीति या राजनीतिक हस्तियों पर चर्चा मत करो। राजनीति पर चर्चा करना सत्य की संगति करना नहीं है, यह लोगों को गुमराह करना है। अगर तुम राजनीति पर बात करना चाहते हो, तो राजनीति से प्यार करने वाले लोगों का एक समूह खोजकर खुद उनसे बात करो; तुम जी भर कर बात कर सकोगे। कलीसिया में हमेशा इन विषयों पर बात करके तुम क्या हासिल करना चाहते हो? क्या तुम जानबूझकर लोगों को तुम्हारी प्रशंसा करने और तुम्हें अगुआ चुनने के लिए मजबूर करना चाहते हो? ये गुप्त मंशाएँ हैं! जो लोग राजनीति पर बात करना पसंद करते हैं, वे ऐसे लोग हैं जो अपने उचित कामों में नहीं लगे हैं और निश्चित रूप से सत्य का अनुसरण नहीं कर रहे हैं। कलीसिया की सभाओं में कभी भी राजनीतिक विषयों पर चर्चा मत करो। कुछ लोग कहते हैं, “अगर हम लोकतांत्रिक चुनावों, राजनीतिक व्यवस्थाओं और स्वतंत्र देशों की नीतियों के बारे में बात नहीं कर सकते, तो बड़े लाल अजगर के देश में उच्च अधिकारियों की राजनीति और घोटालों के बारे में क्या कहोगे, जैसे कि एक भ्रष्ट अधिकारी ने कितना सोना लूटा है और उसके पास कितनी रखैलें हैं? क्या हम इन चीजों पर चर्चा कर सकते हैं?” क्या इन विषयों से तुम्हें घृणा नहीं होती? तुम इन घिनौनी चीजों की इतनी परवाह क्यों करते हो? ऐसा क्यों है कि मुझे इन मामलों के बारे में परवाह करना और पढ़ना घिनौना लगता है? कुछ लोग इन चीजों में खास रुचि रखते हैं, उन्हें ये बिल्कुल भी घिनौनी नहीं लगतीं। वे इन चीजों के बारे में ऑनलाइन पढ़ने के इच्छुक होते हैं, जब भी उनके पास समय होता है, वे यही करते हैं। इन चीजों को पढ़कर उनका दिल सहज, सुरक्षित और संतुष्ट महसूस करता है। ऐसा क्यों है कि वे परमेश्वर के वचनों को पढ़कर इतना संतुष्ट महसूस नहीं करते? क्या यह थोड़ा घिनौना नहीं है? क्या यह उचित कामों की उपेक्षा करना नहीं है? ऐसे उत्तम समय के दौरान, आँगन में टहलना, ताजी हवा में साँस लेना और नजारों को निहारना भी तुम्हारे मिजाज को खुश कर देगा। मगर कुछ लोग ऐसा करना ही नहीं चाहते हैं; इसके बजाय, जब भी उनके पास कुछ खाली समय होता है, वे बस कंप्यूटर पर नजर गड़ाए रहते हैं, समाचार देखते हैं और गपशप करते हैं—किस भ्रष्ट अधिकारी ने कितनी रखैलें रखी हुई थीं, किस भ्रष्ट अधिकारी की कितनी संपत्तियां उसके घर से जब्त की गईं, बड़े लाल अजगर के किस उच्च अधिकारी ने किसको मार डाला या किसने किसकी हत्या की। वे आम तौर पर इन चीजों की परवाह करते हैं। इस जानकारी को इकट्ठा करने के बाद वे ज्ञान से भरपूर महसूस करते हैं, जिसे वे फिर सभाओं में सबके साथ बाँटते हैं। क्या यह जहर फैलाना नहीं है? क्या उन राक्षसों के लिए कुकर्म करना सामान्य बात नहीं है? कुछ लोग कहते हैं, “उनके लिए कुकर्म करना सामान्य बात है, मगर वे जो कुछ भयानक काम करते हैं तुम उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते।” उनकी कल्पना करने का क्या फायदा? क्या तुम्हें दिमाग इसलिए दिया गया है ताकि तुम यह कल्पना कर सको कि वे क्या-क्या दुष्ट काम करते हैं? क्या यह तुम्हारे उचित कामों की उपेक्षा नहीं है? क्या तुम्हें ऐसा लगता है कि कुछ अकल्पनीय दुष्टता को जानना तुम्हें दूसरों से श्रेष्ठ बनाता है? इससे तुम्हें क्या लाभ हो सकता है? क्या इससे तुम और ज्यादा घृणित महसूस नहीं करोगे? ये लोग जो अपने उचित कामों की उपेक्षा करते हैं, वे हमेशा राजनीतिक परिदृश्य के इन भद्दे, घृणित मामलों की परवाह करते हैं। क्या वे सीधे-सादे लोग नहीं हैं? अपना जीवन जीने के बजाय हमेशा उनके मामलों की चिंता क्यों करें? क्या यह बेवकूफी नहीं है? क्या यह कामचोरी करना नहीं है? कुछ लोग कहते हैं, “बड़ा लाल अजगर विश्वासियों को सताता है। उन्हें बड़े लाल अजगर से घृणा करनी चाहिए। यकीनन विश्वासियों को भी बड़े लाल अजगर के उच्च अधिकारियों के घोटालों, भ्रष्टता, दुर्व्यवहार और अनैतिकता के साथ-साथ उनके द्वारा किए जाने वाले गलत कामों में दिलचस्पी होगी। क्या विश्वासियों को इन घोटालों के उजागर होने पर खुशी से ताली नहीं बजानी चाहिए?” क्या तुम इन चीजों को पाने के लिए परमेश्वर पर विश्वास और उसका अनुसरण करते हो? कलीसिया में राजनीतिक मामलों के बारे में बात करना, विशेष रूप से बड़े लाल अजगर के उच्च अधिकारियों के उजागर किए गए घोटालों के बारे में बात करना, सबसे घिनौना है। तुम्हें इस पर बिल्कुल भी चर्चा नहीं करनी चाहिए! मुझसे इस बारे में बात तो बिल्कुल मत करो, मुझे यह घिनौना लगता है! मैं तुमसे कह रहा हूँ, न इसके बारे में बात करो और न ही इस बारे में पढ़ो, नहीं तो एक दिन ऐसा आएगा जब तुम्हें उन चीजों को पढ़ने का पछतावा होगा। जब तुम्हें इसका पछतावा होगा, तब तुम्हें पता चलेगा कि यह कैसा महसूस होता है; ये चीजें घिनौनेपन की हदें पार कर सकती हैं। इन चीजों के बारे में बहुत ज्यादा सुनने और पढ़ने से कोई फायदा नहीं होता। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ कि इनसे कोई फायदा नहीं होता? क्योंकि इन घिनौनी बातों से अपना दिमाग भरने के बाद तुममें परमेश्वर के वचनों को सुनने की इच्छा ही नहीं रह जाएगी। हालाँकि इन विषयों में राजनीति शामिल है, मगर ये मामले और भी ज्यादा घिनौने हैं। अगर तुम इन चीजों के बारे में बात करना चाहते हो, तो कुछ अविश्वासियों से दिल खोलकर बात कर लो, उनसे जो चाहो वह कहो, पर चाहे जो भी हो, कलीसियाई जीवन में या भाई-बहनों के बीच इनके बारे में बात मत करो। कुछ लोग कहते हैं, “बड़े लाल अजगर के उच्च अधिकारियों के घिनौने और दुष्ट कर्मों के बारे में बात करने से भाई-बहन बेहतर ढंग से पहचान कर पाते हैं और वे अपना गुस्सा निकाल पाते हैं।” गुस्सा निकालने का क्या फायदा है? क्या गुस्सा निकालना गवाही देना है? यह तुम्हारा दायित्व है या कर्तव्य? इन चीजों के बारे में बात करना बेकार है, इनका कोई मूल्य नहीं है। तुम बड़े लाल अजगर के दुष्ट कर्मों को चाहे कितना भी उजागर करो, परमेश्वर इसे याद नहीं रखेगा। इसके विपरीत, अगर तुम इस बारे में बात करते हो कि तुमने बड़े लाल अजगर के उत्पीड़न का अनुभव कैसे किया, कैसे तुमने उसके भय और धमकियों से आजाद होकर उन पर विजय प्राप्त की, कैसे तुमने परमेश्वर पर भरोसा किया और ऐसे परिवेश में अपनी गवाही में दृढ़ रहे, तो परमेश्वर इसे स्वीकारता है। मगर राजनीति के बारे में बात करने का जीवन प्रवेश से कोई लेना-देना नहीं है, और परमेश्वर इसे स्वीकार नहीं करता। कुछ लोग कहते हैं, “मैं बड़े लाल अजगर के अधिकारियों की भ्रष्टता को उजागर करता हूँ, वे एक बार के भोजन पर कैसे हजारों युआन खर्च दर देते हैं या वे आलीशान होटलों पर कितना खर्च करते हैं; क्या यह ठीक है?” इन सबका तुमसे क्या लेना-देना है? क्या यह संसार और यह समाज ऐसा ही नहीं है? तुम किसके लिए खड़े हो रहे हो? यह परमेश्वर के लिए गवाही देना नहीं है, न तो यह बड़े लाल अजगर के सार को उजागर करना है, और न ही यह बड़े लाल अजगर के खिलाफ विद्रोह करने की अभिव्यक्ति है। लोगों को भ्रमित मत करो या पाखंडी मत बनो; इनमें से कुछ भी सत्य का अभ्यास करना नहीं है। भ्रष्ट अधिकारियों और राजनेताओं के घूस लेने की हमें परवाह नहीं है, न ही यह ऐसी चीज है जिसे हमें उजागर करने की जरूरत है। इन मामलों पर ध्यान मत दो। ये चीजें पूरे इतिहास में शैतान के शासन में मौजूद रही हैं, और वे जो कुछ भी करते हैं उसका हमारे परमेश्वर के कार्य का अनुभव करने या परमेश्वर के लिए गवाही देने से कोई लेना-देना नहीं है। इसलिए चाहे जो भी हो जाए, उन विषयों को “परमेश्वर के लिए गवाही देने के लिए बड़े लाल अजगर के खिलाफ विद्रोह करने और उसे उजागर करने” के विषय में मत मिलाओ, और इन अजीब, घिनौने और दुष्ट मामलों को कलीसियाई जीवन या भाई-बहनों के बीच चर्चा के लिए मत लाओ। अगर तुम वाकई राजनीति पर चर्चा करना चाहते हो, तो अविश्वासियों के साथ चर्चा करो। तुम निजी तौर पर उन लोगों के साथ चाहे कैसे भी चर्चा करो जो ऐसे शौक रखते हैं, यह सब ठीक है। यह तुम्हारा अपना शौक और रुचि है; यह तुम्हारी स्वतंत्रता और अधिकार है, और कोई भी इसमें हस्तक्षेप नहीं करता है। लेकिन सभा के समय और भाई-बहनों के सामने, इन मामलों पर चर्चा मत करो। अगर कोई सुनने को तैयार भी हो, तो भी उसके बारे में बात मत करो, क्योंकि इसका प्रभाव कलीसियाई जीवन और परमेश्वर के चुने हुए लोगों की सत्य की समझ पर पड़ता है।
चाहे वे राजनीति से संबंधित हों या राजनेताओं के निजी जीवन के घोटालों से, इन विषयों को कलीसियाई जीवन में चर्चा के लिए मत लाओ। अगर किसी को कलीसियाई जीवन में सभाओं की विषय-वस्तु में कोई दिलचस्पी नहीं है और वह हमेशा इन मामलों पर चर्चा करना पसंद करता है, हर सभा में उनके बारे में बात करता है, तो फिर भाई-बहनों को क्या करना चाहिए? उन्हें ऐसे लोगों को यह कहते हुए प्रतिबंधित करना चाहिए, “यह सभा का समय है, उन फालतू चीजों के बारे में बात मत करो। अगर तुम उनके बारे में बात करना चाहते हो, तो घर जाकर वही करो!” अगर उन्हें रोका नहीं जा सकता और वे अभी भी उनके बारे में बात करना जारी रखते हैं तो क्या करना चाहिए? उन्हें बाहर निकाल दो, और तब तक वापस मत आने दो जब तक वे चुप न हो जाएँ। एक और तरीका भी है जो इससे भी ज्यादा प्रभावी है : जैसे ही वे राजनीति पर बात करने के लिए अपना मुँह खोलें, तो भाई-बहन उन्हें अकेले बात करने के लिए छोड़कर दूसरे कमरे में जा सकते हैं। संक्षेप में, राजनीति पर बात करना पसंद करने वाले लोग निश्चित रूप से मौजूद हैं। ऐसे लोग उचित कामों को नजरंदाज करते हैं, सत्य का अनुसरण नहीं करते, अपने कर्तव्यों को अच्छी तरह से निभाने के बारे में चिंतन नहीं करते, यह नहीं सोचते कि कलीसिया के काम में क्या कठिनाइयाँ हैं या भाई-बहनों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, वे यह भी नहीं सोचते कि उनकी अपनी कौन-सी वास्तविक समस्याओं का समाधान किया जाना चाहिए—वे इन उचित मामलों के बारे में नहीं सोचते। बल्कि, वे केवल उन घिनौने, कुटिल मामलों के बारे में सोचते हैं, और उनको लेकर विशेष रूप से उत्साही होते हैं। खासकर अब, जबकि सूचना बड़े पैमाने पर मौजूद है और सभी प्रकार के माध्यमों से सुलभ है—इससे ये लोग अपने शौक और रुचियों को संतुष्ट कर सकते हैं। हम उनके शौक और रुचियों में हस्तक्षेप नहीं करते, मगर परमेश्वर के घर में एक विनियम है कि सभाओं में राजनीतिक विषयों पर चर्चा करना कलीसिया के कार्य में विघ्न-बाधा डालने की समस्या में शामिल है। इस प्रकार, कलीसियाई जीवन के दौरान और जब भाई-बहन एक साथ मिलते हैं, तो इन विषयों पर सख्ती से प्रतिबंध लगा होता है। कुछ लोग कहते हैं, “ये विषय प्रतिबंधित हैं, मगर हमारे विभिन्न राजनीतिक दृष्टिकोणों का क्या, हमें कौन सी पार्टी पसंद या नापसंद है, हम किसे वोट देते हैं या नहीं देते—क्या कलीसिया इनमें हस्तक्षेप करती है?” आओ इस बात को जरा स्पष्ट करें : तुम जिसे चाहो उसे वोट दो, जिसे चाहो पसंद करो—कलीसिया इन मामलों में हस्तक्षेप नहीं करती, यह तुम्हारी अपनी आजादी है। क्या यह हस्तक्षेप न करना पहले से ही बड़ी उदारता नहीं है? तुमने एक नागरिक के रूप में अपने दायित्वों और मानवाधिकारों का पूरा आनंद उठाया है; क्या यह सम्मान पर्याप्त नहीं है? यह पहले से ही काफी है; और फिर भी तुम कलीसिया में खुलकर अपने दिल की बात कहना चाहते हो? यह नियमों के खिलाफ है। अगर ऐसे लोगों से तुम्हारा सामना होता है, तो उन्हें प्रतिबंधित करने का कोई तरीका खोजो। सबसे पहले, उनके साथ यह कहते हुए स्पष्टता से संगति करो, “क्या तुम अपनी आस्था में नए हो? क्या तुम पहली बार सभा में आए हो और तुम्हें परमेश्वर के घर के नियमों के बारे में नहीं पता है? तो मैं तुम्हें बता दूँ : यह सभा करने की जगह है और यह सभा का समय है। तुम्हारा जो भी राजनीतिक दृष्टिकोण या विचार हों, तुम्हें उन्हें कलीसिया में बिल्कुल नहीं फैलाना चाहिए और न ही सभाओं में उनके बारे में चर्चा करनी चाहिए। हम इसे सुनना नहीं चाहते और ना ही हम इन चीजों के बारे में तुम्हारी बातें सुनने के लिए बाध्य हैं। तुमने गलत जगह चुनी है। सभा के बाद, जब तुम यहाँ से चले जाओ, तो जो चाहे कह सकते हो; कोई भी हस्तक्षेप नहीं करेगा। यह तुम्हारी आजादी है।” अगर वे तुम्हारी बातों को समझते हैं और याद रखते हैं, और अगली बार इनके बारे में बात नहीं करते हैं, तो ठीक है, उन्होंने अपनी ओर से थोड़ा विवेक दिखाया है। लेकिन अगर संगति करने के बाद भी वे इसी तरह से बोलना जारी रखते हैं, हर सभा में हमेशा राजनीतिक दृष्टिकोण साझा करते हैं, तो क्या उन्हें बोलने से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए? (बिल्कुल।) चाहे वे राजनीति में शामिल हों या नहीं, अगर कोई राजनीतिक विषयों पर बात करता है, तो इसे गुट बनाने, रुतबे के लिए होड़ करने, नकारात्मकता फैलाने और परमेश्वर के घर के कार्य में विघ्न-बाधा डालने वाले विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों जैसे अन्य व्यवहारों के साथ गिना जाना चाहिए। ऐसे लोगों के साथ कोई शिष्टाचार नहीं दिखाया जा सकता; उन्हें निश्चित रूप से रोका और प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। बेशक, जो लोग राजनीति की बात करते हैं वे यह जरूरी नहीं कि बुरे या अच्छे हों; यह भी हो सकता है कि उन्हें ये मुद्दे और विषय पसंद हों। मगर हम यकीन से कह सकते हैं कि ये लोग वास्तव में सत्य का अनुसरण नहीं करते। संक्षेप में, इन लोगों से निपटने के सिद्धांत पर पहले ही स्पष्ट रूप से चर्चा की जा चुकी है : उन्हें परमेश्वर के घर के विनियम बताओ। अगर उन्हें स्पष्ट रूप से समझाने के बाद भी वे राजनीतिक विषयों के बारे में बात करना जारी रखते हैं और चेतावनियों पर ध्यान नहीं देते, तो उन्हें अलग-थलग कर दो। वे पश्चात्ताप करने के बाद ही कलीसियाई जीवन जीना जारी रख सकते हैं। अगर वे कभी पश्चात्ताप नहीं करते, तो उन्हें सभाओं में मत आने दो। इस मामले से निपटना इतना सरल होना चाहिए। किसी सरल मामले को जटिल मत बनाओ, इससे किसी को कोई लाभ नहीं होता।
24 जुलाई 2021