अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (11)
पिछली सभा में हमने अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों की नौवीं मद पर संगति की थी : “परमेश्वर के घर की विभिन्न कार्य-व्यवस्थाओं को उसकी आवश्यकताओं के अनुसार सटीक रूप से संप्रेषित, जारी और लागू करना, उनके बारे में मार्गदर्शन, पर्यवेक्षण और आग्रह करना और उनके कार्यान्वयन की स्थिति का निरीक्षण और आगे की कार्रवाई करना।” हमने उन जिम्मेदारियों पर संगति की जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को निभानी चाहिए और उस कार्य पर भी, जो उन्हें करना चाहिए और हमने झूठे अगुआओं के कुछ व्यवहारों का विश्लेषण भी किया। हालाँकि हमने इस बात की बारीकियों पर संगति नहीं की कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं को प्रत्येक कार्य-व्यवस्था कैसे लागू करनी है, फिर भी हमने उन व्यवस्थाओं को लागू करने के सिद्धांतों की बारीकियों के साथ-साथ इस बात पर भी संगति जरूर की कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं को क्या करना चाहिए। क्या तुम लोगों को नौवीं मद पर हमारी संगति के माध्यम से अगुआओं और कार्यकर्ताओं द्वारा किए जाने वाले कार्य की ज्यादा विशिष्ट, सटीक परिभाषा मिली है? क्या अब तुम उस कार्य के बारे में स्पष्ट हो जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को करना चाहिए? उनके लिए मुख्य बात है कार्य को परमेश्वर की अपेक्षाओं और उसके घर की कार्य-व्यवस्थाओं के अनुसार लागू करना। मूल रूप से यही बात है। अब यह हम सभी को स्पष्ट है। परमेश्वर के घर में अगुआ या कार्यकर्ता को क्या काम करना चाहिए और उनकी क्या जिम्मेदारियाँ हैं, इस पर नौवीं मद में काफी विशिष्ट रूप से संगति की जानी चाहिए थी। यह मूल रूप से व्यापक है। उनकी जिम्मेदारियों का दायरा सीमांकित है और उन्हें जो काम करना चाहिए और उसे कैसे करना चाहिए, यह स्पष्ट रूप से बताया गया है। अब जबकि स्पष्ट रूप से बता दिया गया है, इसलिए अगर कोई व्यक्ति अभी भी नहीं जानता कि ठोस कार्य कैसे करना है तो यह उसमें खराब काबिलियत होने की समस्या है। वह ऐसा नकली अगुआ है, जो काम नहीं कर सकता। एक और तरह के नकली अगुआ होते हैं, जो सिर्फ अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के अनुसार कार्य की व्यवस्था करते हैं और लोगों का बेतरतीबी से इस्तेमाल करते हैं, जिसका परिणाम ज्यादा जोगी मठ उजाड़ के रूप में होता है। न सिर्फ काम ठीक से नहीं किया जाता—बल्कि वे उसे पूरी तरह से बिगाड़ देते हैं, और आगे का कोई रास्ता नहीं छोड़ते। नकली अगुआ कभी कार्य-व्यवस्थाएँ लागू नहीं करते, वास्तविक कार्य करना तो दूर की बात है। वे बस वही कार्य करते हैं जो उन्हें पसंद होता है, वे सिर्फ सामान्य मामलों के कार्य पर ध्यान केंद्रित करते हैं; जब वे कार्य करते हैं तो सिर्फ आदेश जारी करना, खोखले नारे लगाना और धर्म-सिद्धांतों के बारे में चिल्लाना जानते हैं। वे कभी कार्य की प्रगति का पता नहीं लगाते, न ही वे इस बात की परवाह करते हैं कि वह प्रभावी रहा है या नहीं। वे एक तरह के नकली अगुआ हैं। संक्षेप में, चाहे अगुआ के रूप में कोई व्यक्ति वास्तविक कार्य न कर पाए या वास्तविक कार्य न करे—चाहे परिस्थितियाँ कुछ भी हों—अगर वे अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ पूरी नहीं कर सकते या परमेश्वर का आदेश पूरा करने का काम नहीं कर सकते, और अगर वे परमेश्वर के घर द्वारा व्यवस्थित विभिन्न कार्यों को कार्यान्वित करने में कामयाब नहीं हो सकते, तो वे नकली अगुआ हैं।
अब अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों की नौवीं मद पर हमारी संगति और हमारे द्वारा उन विभिन्न तरीकों के खुलासों के जरिये, जिनसे नकली अगुआ खुद को अभिव्यक्त करते हैं, क्या तुम लोगों ने इस बात का कुछ बुनियादी ज्ञान और समझ हासिल की है कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ कैसे पूरी की जाएँ? (हाँ।) तो क्या तुम लोग परमेश्वर के घर के कार्य को आसान मानते हो? क्या मनुष्य से की गई अपेक्षाएँ ऊँची हैं? क्या वे अत्यधिक हैं? (वे ऊँची नहीं हैं; वे तमाम अपेक्षाएँ ऐसी हैं जिन्हें हम पूरी कर सकते हैं।) क्या ऐसे अगुआ और कार्यकर्ता हैं जो कहते हैं, “परमेश्वर का घर हमसे बहुत-सी चीजों की और बहुत तरह के काम करने की अपेक्षा करता है। अगुआ जितना ऊँचा होता है उसके काम का दायरा उतना ही बड़ा होता है और उतने ही ज्यादा कामों के लिए वह जिम्मेदार होता है। उस काम को अच्छी तरह से करने और यह देखने में कि वह ऊपरवाले की अपेक्षाओं के अनुसार कार्यान्वित हो—हम तो थकावट से मर ही जाएँगे, है ना?” क्या कोई व्यक्ति तमाम ठोस काम अच्छी तरह से करने, काम की हर मद जहाँ कार्यान्वित की जानी चाहिए वहाँ कार्यान्वित करने के कारण थकावट से गिरा है? (नहीं।) क्या कोई थकावट से बीमार हुआ है? क्या कोई इतना व्यस्त होता है कि उसके पास खाने या सोने का भी समय नहीं हो? (नहीं।) कुछ लोग कह सकते हैं, “नहीं से तुम्हारा क्या मतलब है? कुछ लोग कलीसिया का काम करने से बेशक थक जाते हैं, क्योंकि वे लंबे समय तक नियमित समय पर खाना नहीं खा पाते या नियमित तरीके से काम के बीच में थोड़ा आराम नहीं कर पाते, और संतुलित मात्रा में काम और आराम नहीं कर पाते। वे थकावट से बीमार पड़ जाते हैं।” क्या तुम लोगों ने ऐसी स्थिति घटित होने के बारे में सुना है? (नहीं।) क्या कोई व्यक्ति नौवीं मद सुनने और परमेश्वर के घर में कार्य की विभिन्न मदों की विशिष्ट विषयवस्तु के साथ-साथ उस विशिष्ट कार्य को करने में अगुआओं और कार्यकर्ताओं से अपेक्षित मानक देखने के बाद भय और डर महसूस करता है? क्या उसे लगता है, “अगुआ या कार्यकर्ता होना आसान नहीं है। स्वस्थ शरीर, अच्छी काबिलियत, विशालहृदयता, और अलौकिक ऊर्जा और शक्ति के बिना कौन अच्छी तरह से कार्य कर सकता है?” क्या किसी के मन में यह विचार आया है? क्या यह मान्य है? (नहीं।) इसे कौन-सी चीज अमान्य बनाती है? पहली बात तो यह है कि परमेश्वर के घर का काम करते समय अगुआओं और कार्यकर्ताओं को, चाहे उनका पद कुछ भी हो और चाहे उनकी जिम्मेदारी व्यापक हो या कार्य की एक ही मद तक सीमित हो, कम से कम अपना प्राथमिक कार्य अच्छी तरह से करना चाहिए, साथ ही एक या ज्यादा से ज्यादा दो अतिरिक्त कार्य भी करने चाहिए। अगर उन्हें व्यापक कार्य भी सौंपा जाए, तो भी इसका मतलब यह नहीं कि उन्हें आगे की व्यापक कार्रवाई करनी है या व्यापक मार्गदर्शन देना है। उन्हें सबसे महत्वपूर्ण कार्य का प्रभार लेने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए या साथ ही साथ, कार्य की कुछ मदों में कमजोर कड़ियों पर भी ध्यान देना चाहिए। कुछ लोग ऊर्जा से भरे हो सकते हैं, उनमें जिम्मेदारी की भावना और अच्छी काबिलियत हो सकती है और वे बहुआयामी कार्य की एक बड़ी शृंखला पूरी करने में सक्षम हो सकते हैं, लेकिन उनके मुख्य कार्य में प्राथमिक रूप से सिर्फ एक या दो मदें ही होती हैं। रहा दूसरा कार्य, तो उसके बारे में उन्हें सिर्फ जानकारी प्राप्त करनी चाहिए, उसके बारे में पूछताछ करनी चाहिए, उसे समझने की कोशिश करनी चाहिए और उन्हीं समस्याओं का समाधान करना चाहिए जिनके बारे में उन्हें पता चले। यह इसका एक हिस्सा है। दूसरा हिस्सा यह है कि अगर वे एक-साथ कई कार्य सँभाल भी रहे हों, तो भी उन्हें वे कार्य करने के लिए सिर्फ प्राथमिक पर्यवेक्षकों पर निर्भर रहने की जरूरत है। वे बस कार्य की विभिन्न मदों का पर्यवेक्षण करते हैं, उनकी जाँच करते हैं और मार्गदर्शन करते हैं; मुख्य कार्य जो उन्हें खुद करना है वह अभी भी कार्य की एक ही मद होती है। और क्या कोई कार्य की एक ही मद करके थक जाएगा? (नहीं।) अगर व्यक्ति की काबिलियत पर्याप्त है और उसका दिमाग लचीला है, तो वह समय आवंटित करने और कार्य को कारगर बनाने की दृष्टि से उसे उचित रूप से व्यवस्थित करेगा। वह अव्यवस्थित गड़बड़झाले में नहीं होगा, जिसके आगे कोई रास्ता न हो। वह इतना व्यस्त नहीं दिखेगा—वह एक निर्धारित दिनचर्या के अनुसार कार्य करेगा—लेकिन कार्य बेअसर नहीं होगा और वह अच्छे परिणाम देगा। वह ऐसा व्यक्ति होता है जिसमें काबिलियत होती है, जो जानता है कि श्रमशक्ति और समय का उचित आवंटन कैसे किया जाए। जिन लोगों में काबिलियत नहीं होती या खराब काबिलियत होती है, वे जो भी कार्य करते हैं वह अव्यवस्थित होता है। वे रोज काफी व्यस्त रहते हैं, लेकिन वे खुद निश्चित रूप से नहीं बता सकते कि वे किस चीज में व्यस्त हैं। उनके पास समय-सारणी नहीं होती, समय की अवधारणा नहीं होती; वे सुबह काफी जल्दी उठते हैं और रात काफी देर से सोते हैं; वे नियमित समय पर खाना नहीं खा सकते—लेकिन कार्य की प्रभावोत्पादकता को देखते हुए वे बिल्कुल भी कोई वास्तविक कार्य नहीं करते। क्या यह अत्यधिक खराब काबिलियत का मामला नहीं है? (हाँ, है।) ऐसे व्यक्ति रोज बिना आराम किए भागते-दौड़ते दिखते हैं, लेकिन वे कार्य के मूल तक नहीं पहुँच पाते, न ही वे इसमें भेद कर पाते हैं कि किसे पहले करना जरूरी है और किसे बाद में किया जा सकता है, और वे समस्याएँ हल करने में अक्षम होते हैं। इससे कार्य धीमा हो जाता है। वे दिल से फट पड़ने के लिए बेचैन रहते हैं और उनके मुँह में छाले हो जाते हैं। लेकिन इन मामलों में भी वे थकावट से गिर नहीं जाते। खराब काबिलियत वाले लोग दिन में आठ घंटे से ज्यादा कार्य कर सकते हैं, फिर भी उनके कार्य की प्रभावोत्पादकता अच्छी काबिलियत वाले लोगों से बहुत कम होती है। इसलिए उन्हें व्यस्त रहना पड़ता है, है ना? उन्हें व्यस्त रहना चाहिए—व्यस्त रहकर भी वे परिणाम नहीं पा सकते; अगर वे व्यस्त न रहें, तब तो काम रुक ही जाएगा। यह इतनी खराब काबिलियत वाला व्यक्ति है कि कार्य करने या उसकी जिम्मेदारी लेने में सक्षम नहीं है। इसके अलावा, परमेश्वर के घर के कार्य में कई मदें होती हैं और कर्मियों और समय के मामले में अपेक्षाएँ कुछ हद तक सख्त होती हैं। ज्यादातर लोगों के साथ, जब वे थोड़े व्यस्त होते हैं तो यह उत्कृष्टता के लिए प्रयास करने और अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिए होता है, क्योंकि परमेश्वर के घर का कार्य गैर-विश्वासियों के व्यवसायों और कारखानों से अलग होता है : वे आर्थिक प्रभावकारिता की माँग करते हैं, जबकि हम कार्य के परिणामों पर जोर देते हैं। लेकिन चूँकि ज्यादातर लोग खराब काबिलियत वाले, सिद्धांतहीन और अपने कार्य में अत्यधिक अक्षम होते हैं, इसलिए उन्हें परिणाम देने में ज्यादा समय लगता है। क्या अब तुममें से ज्यादातर लोगों के मन में अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों के बारे में कोई नकारात्मक विचार नहीं है? एक बात तो तय है : अगुआ और कार्यकर्ता परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं के अनुसार कार्य करके थकावट से सिकुड़ेंगे नहीं। इन बाहरी, वस्तुनिष्ठ कारकों से परे, एक और बात है जिसके बारे में तुम निश्चित हो सकते हो : अगर किसी व्यक्ति के पास कोई दायित्व है और वह एक निश्चित काबिलियत वाला व्यक्ति है—और इस तथ्य को नजरअंदाज मत करो कि पवित्र आत्मा का कार्य भी है—तो कुछ समस्याओं में जिनकी वह कल्पना नहीं कर सकता या जिनका वह पूर्वानुमान नहीं लगा सकता, और कुछ मामलों में जिनसे वह पहले नहीं गुजरा है और जिनका उसे कोई अनुभव नहीं है, पवित्र आत्मा उसे निरंतर याद दिलाएगा, हर समय उसे प्रबुद्ध करेगा और उसकी मदद करेगा। कलीसिया का कार्य पूरी तरह से मानव-शक्ति, ऊर्जा और निभाए जाने वाले दायित्वों पर निर्भर नहीं करता—उसका एक हिस्सा पवित्र आत्मा के कार्य और अगुआई पर निर्भर होना चाहिए, जैसा कि ज्यादातर लोगों ने अनुभव किया है। इसलिए कोई इसे किसी भी तरह से देखे, अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करना ऐसी चीज है जिसे अगुआ या कार्यकर्ता को हासिल करना ही चाहिए। यह उनसे कोई अतिरिक्त अपेक्षा नहीं है। जब गैर-विश्वासी लोग दुनिया में कार्य करते हैं तो वे अपनी व्यक्तिगत काबिलियत के आधार पर कार्य करते हैं। परमेश्वर के घर में कर्तव्य निभाना अलग है : व्यक्ति सिर्फ अपनी काबिलियत के आधार पर कार्य नहीं करता—अगर परिणाम प्राप्त करने हैं तो उन्हें सत्य-सिद्धांतों की अपनी समझ पर भी भरोसा करना चाहिए। अगर अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाना है तो उन्हें एक-दूसरे की मदद भी करनी चाहिए और सामंजस्य के साथ सहयोग करना चाहिए। कुछ लोग पूछ सकते हैं, “क्या परमेश्वर के घर में कार्य करने के लिए हमसे ‘कोई कार्य स्वीकार करो और मरते दम तक सर्वश्रेष्ठ करने का प्रयास करो’ अपेक्षित है? ‘वसंत के रेशम के कीड़े मरते दम तक बुनते रहेंगे’—क्या हमें यह हासिल करने की जरूरत है? क्या परमेश्वर का घर हमें तभी छोड़ेगा, जब हम थकावट से मर रहे होंगे?” क्या परमेश्वर मनुष्य से यही अपेक्षा करता है? (नहीं।) अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों संबंधी अपेक्षाओं पर हमारी संगति का उद्देश्य सिर्फ लोगों को इस बारे में स्पष्टता और समझ देना है कि परमेश्वर के कार्य के साथ उसके द्वारा अपेक्षित सत्य-सिद्धांतों और कार्यपद्धतियों के अनुसार कैसे सहयोग किया जाए, ताकि उसका कार्य एक व्यवस्थित, प्रभावी तरीके से आगे बढ़ सके और उसके वचन और कार्य उसके चुने हुए लोगों में बेहतर परिणाम प्राप्त कर सकें। इसका एक पहलू कार्य का विकास और विस्तार करने के बारे में है; दूसरा इस बारे में है कि परमेश्वर के वचन और कार्य उन लोगों पर अपेक्षित परिणाम हासिल कर सकें, जो उसका अनुसरण करते हैं। ये अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ हैं और वे चीजें हैं जो उन्हें अपने कार्य में हासिल करनी हैं।
मद दस : परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक चीजों (पुस्तकें, विभिन्न उपकरण, अनाज आदि) की उचित रूप से सुरक्षा करो और उनका समझदारी से आवंटन करो, और क्षति और बरबादी कम करने के लिए नियमित निरीक्षण, रखरखाव और मरम्मत करो; साथ ही, बुरे लोगों द्वारा उनका दुरुपयोग रोको
आज हम अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों की दसवीं मद के बारे में संगति करेंगे : “परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक चीजों (पुस्तकें, विभिन्न उपकरण, अनाज आदि) की उचित रूप से सुरक्षा करो और उनका समझदारी से आवंटन करो, और क्षति और बरबादी कम करने के लिए नियमित निरीक्षण, रखरखाव और मरम्मत करो; साथ ही, बुरे लोगों द्वारा उनका दुरुपयोग रोको।” नौवीं मद अगुआओं और कार्यकर्ताओं से अपेक्षाकृत व्यापक अपेक्षा के बारे में है। दसवीं मद कार्य के बारे में एक और बड़ा खंड है, जिसमें अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों के संबंध में एक और विशिष्ट अपेक्षा शामिल है। कार्य के इस भाग में वे चीजें शामिल हैं जो परमेश्वर के घर से संबंधित हैं, जिनमें से कुछ को उन लोगों की जीवन संबंधी जरूरतें पूरी करने के लिए खरीदा जाता है जो अपने कर्तव्य पूर्णकालिक रूप से निभाते हैं, और बाकी चीजें उपकरण, सामग्री इत्यादि हैं जो सुसमाचार फैलाने के कार्य के लिए खरीदे जाते हैं। परमेश्वर के वचनों की कुछ पुस्तकें और कुछ ऐसी चीजें भी इनमें शामिल हैं जो भाई-बहनों के जीवन-प्रवेश से जुड़ी हैं और जो परमेश्वर के घर को रखनी चाहिए। ये वे वस्तुएँ हैं जो परमेश्वर में लोगों के विश्वास से जुड़ी हैं। कुल मिलाकर तीन श्रेणियाँ हैं : जीवन के लिए आवश्यक चीजें, कार्य के लिए आवश्यक चीजें और परमेश्वर में विश्वास के लिए आवश्यक चीजें। चाहे ये चीजें परमेश्वर का घर खरीदे या भाई-बहन भेंट करें, जब ये परमेश्वर के घर के कब्जे में आ जाती हैं तो इनका संबंध अगुआओं और कार्यकर्ताओं द्वारा भौतिक चीजों के प्रबंधन और आवंटन के मुद्दे से हो जाता हैं। हालाँकि यह कार्य बाहर से कलीसियाई जीवन, प्रशासनिक कार्य या पेशेवर कार्य की तुलना में उतना महत्वपूर्ण नहीं लगता और ऐसा कुछ नहीं लगता जिसे एजेंडे में शामिल करने की जरूरत हो, फिर भी यह वो महत्वपूर्ण कार्य है जिसे करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए जरूरी है। परमेश्वर के घर की विभिन्न वस्तुएँ कर्तव्य निभाने वाले सभी कर्मियों के कार्य, जीवन, अध्ययन और ऐसी ही अन्य चीजों में शामिल हैं, इसलिए उनकी सुरक्षा और समझदारी से आवंटन बहुत महत्वपूर्ण है और इसे अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए।
उचित रूप से सुरक्षा करना
अगुआओं और कार्यकर्ताओं के रूप में कलीसिया के प्रशासनिक कार्य को अच्छी तरह से करने और कलीसियाई जीवन को अच्छा बनाने से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है सुसमाचार फैलाने का कार्य और साथ ही उससे जुड़े विभिन्न कार्य अच्छी तरह से करना। इसके अलावा, परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक चीजों का उचित प्रबंधन भी किया जाना चाहिए। ये चीजें अच्छी तरह से सुरक्षित रखनी चाहिए; इन्हें फफूँद या कीड़े-मकोड़ों से ग्रस्त मत होने दो और लोगों को उन्हें अपनी निजी संपत्ति समझकर हड़पने मत दो। परमेश्वर के घर में इस बात के लिए विशिष्ट अपेक्षाएँ हैं कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यह कार्य अच्छी तरह से कैसे करना है और इसे करने के विशिष्ट चरण भी है। उन्हें यह जाँच करने से शुरुआत करनी है कि क्या इन चीजों का प्रबंधन करने वाले कर्मचारी उपयुक्त, जिम्मेदार लोग हैं और क्या वे जानते हैं कि उनका प्रबंधन कैसे करना है और क्या वे अपनी जिम्मेदारी कर्मठता से निभा सकते हैं—क्या ये चीजें उनके हाथों में सुरक्षित रहेंगी। उदाहरण के लिए, अनाज रखने के मामले में, बरसात के मौसम में—जब मौसम नम होता है और बहुत बारिश होती है—क्या वह स्थान जहाँ उसे रखा जाता है, सीलन भरा तो नहीं? क्या उसका प्रबंधन करने वाले लोग समय पर इसकी जाँच करते हैं? अगर अनाज में सीलन आ जाती है, तो क्या वे उसे सुखाने के लिए बाहर निकालते हैं? क्या वे इन चीजों का प्रबंधन उसी तरह निष्ठापूर्वक करते हैं, मानो वे उनकी अपनी चीजें हों? क्या उनमें ऐसी मानवता है? क्या उनमें ऐसी वफादारी है? उन्हें इन चीजों का प्रबंधन करने वाले लोगों की जाँच करने से शुरुआत करनी है, ताकि यह देखा जा सके कि उनकी मानवता कैसी है और क्या उनमें जमीर है और वे सद्गुणी हैं। अगर कोई व्यक्ति अच्छी मानवता वाला और दयालु लगता है और दूसरे ज्यादातर लोग उसके बारे में अच्छी रिपोर्ट देते हैं, फिर भी तुम नहीं जानते कि वह परमेश्वर के घर की चीजों का प्रबंधन करने के लिए उपयुक्त है या नहीं, तो क्या करना चाहिए? तुम्हें कार्य की प्रगति की जानकारी लेनी चाहिए, चीजों की जाँच करनी चाहिए और पर्यवेक्षण करना चाहिए। तुम्हें कुछ समय बाद चीजों के बारे में पूछताछ करनी चाहिए, ताकि पता चल सके कि अभिरक्षक अपनी जिम्मेदारी पूरी कर रहा है या नहीं। उदाहरण के लिए, अनाज के मामले में सबसे बड़ी चिंता नमी की होती है। अभिरक्षक को यह जाँच करनी चाहिए कि क्या अनाज-भंडार में नमी है और क्या अनाज में कीड़े होने की संभावना है, और उन्हें किसी ऐसे व्यक्ति को ढूँढ़ना चाहिए जो ऐसी चीजों के बारे में जानता हो, जिससे परामर्श कर यह समझा जा सके कि कौन-से तरीके अनाज में सीलन न आना और फफूँद या कीड़े न लगना सुनिश्चित कर सकते हैं। अनाज निकालकर बाहर रख देने के बाद उन्हें अक्सर अनाज-भंडार की जाँच करनी चाहिए या हवा आने-जाने के लिए अनाज-भंडार की खिड़कियाँ खोल देनी चाहिए। यह वास्तव में अपनी जिम्मेदारी पूरी करना होगा। अगर अभिरक्षक बिना आग्रह करवाए या बिना याद दिलवाए ये चीजें करने की पहल करता है तो वह भरोसेमंद है, जो आश्वस्त करने वाली बात है। तो विभिन्न प्रकार के उपकरणों की सुरक्षा करने वाले लोगों के बारे में क्या खयाल है—क्या वे इस कार्य के लिए सही हैं? तुम अभी नहीं जानते; तुम्हें उनकी भी जाँच करनी चाहिए। ज्यादातर उपकरण—इलेक्ट्रॉनिक्स, फर्नीचर, सुविधाएँ इत्यादि—अगर सामान्य रूप से उपयोग में न लिए जा रहे हों तो उनकी सुरक्षा कैसे की जाती है? क्या अभिरक्षक उनकी देखभाल और रखरखाव करता है? क्या वह इलेक्ट्रॉनिक्स की नियमित जाँच करता है, क्या वह उन्हें नियमित रूप सेचला करके देखता है? आसपास पूछने पर तुम्हें पता चल सकता है कि इन चीजों का अभिरक्षक नियमित रूप से ऐसा कर रहा है या नहीं। हो सकता है कि वे चीजें बेकार पड़ी हों, लेकिन उन पर कोई धूल नहीं जमी है, जिसका अर्थ है कि कोई व्यक्ति अक्सर उनकी देखभाल करने आता है—तुम देखोगे कि उनका अभिरक्षक ठीक है, वह अपनी जिम्मेदारी पूरी कर रहा है। तब तुम आश्वस्त हो सकते हो। परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें भी हैं। उनमें से प्रत्येक को पाना कठिन है और इसके अलावा, परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें परमेश्वर के प्रत्येक विश्वासी के लिए किसी भी अन्य चीज से ज्यादा महत्वपूर्ण होती हैं—अनाज, इलेक्ट्रॉनिक्स या ऐसी किसी अन्य वस्तु से भी ज्यादा। तो इन चीजों के मामले में तुम्हें उनका प्रबंधन करने के लिए और भी ज्यादा सही व्यक्ति और उन्हें संगृहीत करने के लिए और भी ज्यादा सही जगह ढूँढ़नी चाहिए। उचित वातायन, निगरानी और निरीक्षण भी आवश्यक हैं—इससे पुस्तकों में नमी या सीलन नहीं आएगी, न चूहे ही उन्हें कुतर पाएँगे। इन सभी चीजों पर ध्यान दिया जाना चाहिए। तो क्या ऐसी चीजों का प्रबंधन करने वाले लोग इस काम के लिए सही हैं? तुम्हें अक्सर इस बात पर भी नजर रखनी चाहिए। अगर देखभाल करने वाले आलसी, असावधान और लापरवाह हैं, तो कुछ चीजें नमी और फफूँद से नहीं तो कीड़ों से क्षतिग्रस्त हो जाएँगी। ये सब अगुआओं और कार्यकर्ताओं की ओर से ढीली निगरानी और निरीक्षण के कारण होने वाले नुकसान हैं। अगर देखभाल करने वाले इन चीजों की उचित देखभाल करते हैं, तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं की यह जिम्मेदारी पूरी हो जाती है। चाहे ये चीजें बड़ी हों या छोटी, और चाहे इनका अक्सर इस्तेमाल किया जाता हो या नहीं, अगर ये परमेश्वर के घर से संबंधित चीजों की श्रेणी में हैं तो इनका प्रबंधन करने के लिए किसी व्यक्ति की व्यवस्था करनी चाहिए। चीज चाहे जिस भी तरह की हो और जहाँ भी संगृहीत हो, सुरक्षित रहनी चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि उसके साथ कुछ भी गलत न हो। वफादार और जिम्मेदार होना यही है। अगर चीजों का प्रबंधन करने वाला व्यक्ति अयोग्य पाया जाए तो क्या करना चाहिए? उसे तुरंत किसी और काम पर लगा देना चाहिए और उसकी जगह पर रखने के लिए किसी और को ढूँढ़ना चाहिए। उदाहरण के लिए, कुछ लोग आलसी आवारा होते हैं, जो खाने के शौकीन होते हैं काम करने के नहीं और कोई जिम्मेदारी नहीं लेते। वे कलीसिया की चीजों के साथ लापरवाही से पेश आते हैं, मानो वे सार्वजनिक संपत्ति हों, और सोचते हैं कि जब तक वे खो नहीं जातीं, तब तक सब ठीक है। चाहे उन चीजों में फफूँद लग जाए या कीड़े पड़ जाएँ, या उनमें से कोई क्षतिग्रस्त हो जाए, वे न तो परवाह करते हैं और न ही इस बारे में पूछते हैं। जब भी तुम उनसे पूछते हो, वे यही कहते हैं कि वे उनकी जाँच करने गए थे और सब-कुछ ठीक है। वास्तव में, वे लंबे समय से उन चीजों को देखने गए ही नहीं। फिर एक दिन आता है जब कोई अचानक पाता है कि अनाज में फफूँद लग गई है और कुछ उपकरणों के तार चूहों ने कुतर दिए हैं, यहाँ तक कि परमेश्वर के वचनों की पुस्तकों में भी इतनी सीलन आ गई है कि उनमें लिखा हुआ धुँधला और अस्पष्ट हो गया है। इन चीजों के बारे में तभी पता लगना—क्या तब तक बहुत देर नहीं हो जाती? (हाँ, नुकसान तो हो ही चुका होता है।) यह गलत प्रबंधन का परिणाम है। तो क्या उनका प्रबंधन करने वाला व्यक्ति अयोग्य नहीं है? क्या वह खराब मानवता वाला और अनैतिक नहीं है? (हाँ, है।) गैर-विश्वासी ऐसे व्यक्ति को अनैतिक कहेंगे; हम क्या कहते हैं? यही कि इस व्यक्ति की मानवता खराब है, यह वफादार नहीं है। वह यह छोटी-सी जिम्मेदारी भी पूरी नहीं कर सकता; यहाँ तक कि वह ऐसा भी कुछ नहीं कर सकता, जिसे थोड़ी-सी मेहनत करने वाला, थोड़े-से जमीर और थोड़ी-सी मानवता वाला व्यक्ति भी कर सकता है। क्या वह अभी भी परमेश्वर में विश्वास रखता है? यहाँ तक कि गैर-विश्वासियों का भी यह विचार होता है, “अन्य लोगों ने तुम्हें जो कुछ भी सौंपा है, उसे निष्ठापूर्वक संभालने की पूरी कोशिश करो”—यह व्यक्ति गैर-विश्वासियों का न्यूनतम नैतिक मानक भी पूरा नहीं करता, इसलिए यह स्पष्ट रूप से वस्तु-प्रबंधन कार्मिक दल के सदस्य के रूप में सेवा करने के अयोग्य है। अयोग्य लोगों से तुरंत निपटना चाहिए और उनकी जगह काम करने के लिए उपयुक्त व्यक्ति ढूँढ़ने चाहिए। अगर तुम अपने वस्तु-प्रबंधन कार्मिक दल पर भरोसा नहीं करते और तुम्हारे पास खुद चीजों की जाँच करने का समय नहीं है, या किसी परिस्थितिजन्य कारण से चीजों की प्रगति की जानकारी नहीं ले सकते और उनकी जाँच नहीं कर सकते, तो उस स्थिति में क्या करना चाहिए? तुम उस व्यक्ति से, जो चीजों का प्रबंधन करता है, इस बात की गारंटी लिखवा सकते हो कि अगर उन चीजों का कोई नुकसान हुआ जिनका वह प्रबंधन करता है, तो वह उसका भुगतान करेगा या परमेश्वर के घर द्वारा दिया जाने वाला किसी भी तरह का दंड स्वीकारने के लिए तैयार रहेगा। इसे प्रशासनिक प्रणाली के अनुसार हल किया जाना चाहिए। अगर अगुआ या कार्यकर्ता इस स्तर तक अपना कार्य कर सकता है, तो वह अपनी जिम्मेदारी निभाएगा।
परमेश्वर के घर की कोई भी भौतिक वस्तु, चाहे वह बड़ी हो या छोटी, महँगी हो या सस्ती, चाहे वह तुम्हारे काम की हो या नहीं, अगर उसे सँभालने का काम तुम्हें दिया गया है, तो वह तुम्हारी जिम्मेदारी है। यह कार्य अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी के दायरे में आता है, इसलिए तुम्हें उसे उपयुक्त रूप से सुरक्षित रखने के लिए सही व्यक्ति और सही जगह ढूँढ़नी चाहिए। परमेश्वर के घर की चीजें क्षतिग्रस्त मत होने दो। उदाहरण के लिए, परमेश्वर के वचनों की पुस्तकों की सुरक्षा के मामले में—उनके लिए उपयुक्त कर्मी की व्यवस्था करने के बाद भी अगुआ या कार्यकर्ता को समय-समय पर इसके बारे में पूछताछ करनी चाहिए : “हाल ही में बहुत सारी पुस्तकें जारी की गई हैं, लेकिन लापरवाह मत होना, भले ही कम पुस्तकें बची हों। पुस्तकों को रखने में मुख्य बात उन्हें सीलन या धूप से क्षतिग्रस्त नहीं होने देना और उन्हें कुचलने और आकार बिगड़ने से बचाना है।” उन्हें इसके बारे में पता लगाते रहना चाहिए और समय-समय पर पूछताछ करते रहनी चाहिए। अगर नई पुस्तकें आई हैं, तो उन्हें पूछना चाहिए कि उनकी कितनी अच्छी तरह से सुरक्षा की जा रही है; क्या वे सब पहले वाली जगह में आ जाएँगी, और अगर नहीं, तो क्या उनके लिए कोई दूसरा स्थान ढूँढ़ लिया गया है, और वह स्थान कैसा है, क्या वह सुरक्षित और सूखा है; क्या पुस्तकें अच्छी तरह से रखी गई हैं; और अगर चूहों की चिंता है तो क्या बिल्ली रखने की जरूरत है। ये सभी वे चीजें हैं, जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को करनी चाहिए और अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए। यह काम थोड़ा महत्वहीन लग सकता है, लेकिन यह भी उन कार्यों में से एक है जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को नियमित रूप से करने चाहिए। इसे कमतर मत आँको—इसे गंभीरता से लेना चाहिए। हो सकता है, वे चीजें सार्वजनिक संपत्ति हों और किसी व्यक्ति की न हों, लेकिन उन्हें अच्छी तरह से सुरक्षित रखा जाना चाहिए; चाहे वे भविष्य में तुम्हारे काम की हों या नहीं, और चाहे वे तुम्हारे उपयोग के लिए हों या नहीं, उन्हें अच्छी तरह से सुरक्षित रखना तुम्हारी जिम्मेदारी है, तुम्हारा कर्त्तव्य है और तुम्हें इसे टालने और नजरअंदाज करने का कोई कारण या बहाना नहीं ढूँढ़ना चाहिए। अगर कोई चीज तुम्हारी जिम्मेदारी है, तो वह ऐसी चीज है जिसका तुम्हें प्रबंधन करना चाहिए, ऐसा कार्य है जो तुम्हें करना चाहिए। इन सबके साथ ही, तुम्हें पूछताछ करनी चाहिए और चीजों को समझने की कोशिश करनी चाहिए या व्यक्तिगत रूप से इसमें भाग लेना चाहिए। अगर तुम्हारे पास साइट पर जाकर खुद देखने का समय हो, तो यह निश्चित रूप से बेहतर होगा। लेकिन अगर परिस्थितियाँ और हालात ऐसा न करने दें या अगर तुम कार्य में बहुत व्यस्त हो, तो भी तुम्हें पूछताछ करनी चाहिए और समय-समय पर इसके बारे में पूछना चाहिए, ताकि परमेश्वर के घर की चीजों को किसी भी रूप में क्षतिग्रस्त या बरबाद होने से बचाया जा सके। ऐसा करने का मतलब है कि तुमने अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी निभाई है।
समझदारी से आवंटन करना
परमेश्वर के घर की भौतिक वस्तुओं के मामले में उनकी सुरक्षा के अलावा एक और महत्वपूर्ण कार्य है : उन्हें समझदारी से आवंटित करना। ये सभी वस्तुएँ लोगों के उपयोग के लिए हैं—ये सभी उपयोगी वस्तुएँ हैं—इसलिए इन्हें सुरक्षित रखने के पीछे मुख्य लक्ष्य यह है कि इनका समझदारी से उपयोग किया जा सके। इन वस्तुओं का समझदारी से उपयोग करने से पहले इन्हें समझदारी से आवंटित करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं पर निर्भर है। समझदारी से आवंटन करना क्या है? ये वस्तुएँ किसे उपयोग में दी जानी चाहिए, इसके लिए परमेश्वर के घर के पास सिद्धांत और नियम हैं। इन वस्तुओं का मुख्य उद्देश्य, चाहे वे भाई-बहनों द्वारा दी गई हों या परमेश्वर के घर द्वारा खरीदी गई हों, राहत कार्यों के लिए या कल्याण कार्यों में दान देने के लिए भंडारण करना नहीं है; इसके बजाय वे उन सभी भाई-बहनों के उपयोग के लिए हैं जो अपना कर्तव्य पूर्णकालिक रूप से निभाते हैं। इसलिए, उन्हें कैसे आवंटित किया जाना चाहिए—उनके आवंटन के क्या सिद्धांत हैं—यह एक और जिम्मेदारी है जिसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुओं के प्रबंधन में निभाना चाहिए। हमने यहाँ समझदारी से आवंटन करने का उल्लेख किया है; इस मामले में “समझदार” होना परमेश्वर के घर द्वारा अपेक्षित सिद्धांत है।
I. परमेश्वर के वचनों की पुस्तकों का समझदारी से आवंटन करना
हम परमेश्वर के वचनों की पुस्तकों से शुरू करेंगे। हर बार जब नई पुस्तकें जारी की जाती हैं तो इस संबंध में कि वे पुस्तकें किसे जारी की जानी चाहिए, परमेश्वर के घर की सैद्धांतिक अपेक्षाएँ और नियम हैं। कलीसिया में ऐसे लोग होते हैं जो परमेश्वर के वचन पढ़ते हैं और ऐसे लोग भी होते हैं जो परमेश्वर के वचन नहीं पढ़ते, ऐसे लोग होते हैं जो सत्य से प्रेम करते हैं और ऐसे लोग भी भी होते हैं जो सत्य से प्रेम नहीं करते, और ऐसे लोग होते हैं जो कर्तव्य निभाते हैं और ऐसे लोग भी भी होते हैं जो कर्तव्य नहीं निभाते—ऐसे लोगों के बीच अंतर किया जाना चाहिए। पाठ्यपुस्तकों की श्रेणी में कुछ विशेष पुस्तकें भी होती हैं—व्याकरण, शब्दकोश और ऐसी अन्य संदर्भ-पुस्तकें। ये सभी पुस्तकें सख्ती से सिद्धांतों के अनुसार वितरित की जानी चाहिए। उन्हें उन लोगों को दिया जाना चाहिए जिन्हें उनकी जरूरत हो, न कि उन लोगों को जिन्हें उनकी जरूरत नहीं हो। और फिर कुछ संदर्भ-पुस्तकें होती हैं जिनकी अपेक्षाकृत कम प्रतियाँ मुद्रित की जाती हैं—अगर वे किसी व्यक्ति को जारी की जाती हैं तो उस व्यक्ति से क्या अपेक्षित है? तुम उन्हें पढ़ सकते हो, लेकिन उन्हें नुकसान मत पहुँचाओ; उन्हें इधर-उधर मत छोड़ो या उनमें से मनमाने ढंग से पन्ने मत फाड़ो। और जब तुम उन्हें पढ़ लो तो उन्हें उनके मूल स्थान पर लौटा दो। परमेश्वर में विश्वास की पुस्तकों के मामले में, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उन्हें सख्ती से परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाओं के अनुसार वितरित करना चाहिए, और उन्हें परमेश्वर के चुने हुए लोगों को सिद्धांत समझने और उनके अनुसार कार्य करने देना चाहिए।
II. विभिन्न प्रकार के उपकरणों का समझदारी से आवंटन करना
अगला चरण यह है कि विभिन्न प्रकार के उपकरणों का आवंटन कैसे किया जाए। यह अपेक्षाकृत महत्वपूर्ण कार्य है। विभिन्न प्रकार के उपकरणों का आवंटन करने में कुछ हद तक सख्ती बरतनी होती है। ऐसे उपकरणों में इलेक्ट्रॉनिक्स के साथ-साथ विभिन्न व्यवसायों के लिए आवश्यक उपकरण भी शामिल हैं। जब अगुआ और कार्यकर्ता इन्हें वितरित करते हैं, तो इसके लिए भी कुछ सिद्धांत होने चाहिए। जिन लोगों को ये उपकरण जारी किए जाएँ, वे ऐसे लोग होने चाहिए जो उन्हें अच्छी तरह से संचालित करने में सक्षम हों और उनका सही, समझदारीपूर्ण उपयोग कर सकें। अगर कोई नौसिखिया है या उसे यह नहीं पता कि इस उपकरण का उपयोग कैसे करना है, तो उसे यह उपकरण जारी नहीं किया जाना चाहिए। यह विशेष रूप से अच्छे, उच्च-स्तरीय इलेक्ट्रॉनिक्स, जैसे कि उच्च-स्तरीय कैमरे और महँगे कंप्यूटर, साथ ही रिकॉर्डिंग के उपकरण, फोटोग्राफी के उपकरण या वीडियो पोस्ट-प्रोडक्शन के लिए आवश्यक उपकरण पर लागू होता है—ऐसे व्यक्ति को इस तरह के उपकरण बिल्कुल भी जारी नहीं किए जा सकते, ताकि नुकसान से बचा जा सके। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यह सुनिश्चित करना है कि ऐसे उपकरणों का उपयोग करने वाले लोग पहले तो मशीनरी की कद्र करने में सक्षम हों और दूसरे, उसका सही तरीके से उपयोग और रख-रखाव कर सकें। उदाहरण के लिए, कुछ मशीनों को उनके नियमों के अनुसार दो घंटे के उपयोग के बाद ठंडा होने के लिए दस मिनट आराम दिया जाना चाहिए। अगर उन्हें ठंडा नहीं किया जाता तो इससे मशीनों को नुकसान पहुँचेगा और उनका उपयोगी जीवन कम हो जाएगा। जो लोग मशीन की कद्र करते हैं, वे उसकी रख-रखाव संबंधी सावधानियों के अनुसार ही उसका उपयोग करेंगे; वे तुम्हारे कहे बिना ही अपने आप इन सावधानियों का पालन करेंगे, और अगर तुम उनसे आग्रह करोगे तो वे और भी ज्यादा सख्त और सटीक हो जाएँगे। ऐसे लोग मशीनरी का उपयोग करने के लिए उपयुक्त होते हैं; वे उच्च-स्तरीय चीजों का उपयोग करने के लिए उपयुक्त होते हैं, क्योंकि वे मशीनरी की कद्र करना जानते हैं और उसके रख-रखाव और मरम्मत संबंधी सावधानियों को गंभीरता से लेते हैं। ऐसे लोग, जो मशीनरी को सँजोकर रख सकते हैं और उसका सामान्य रूप से उपयोग कर सकते हैं, उच्च श्रेणी की मशीनरी के आवंटन और वितरण के लिए सबसे उपयुक्त होते हैं। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इस संबंध में उचित जाँच करनी चाहिए। अगर कोई उच्च-स्तरीय कंप्यूटर है और उसे किसी भी ऐसे व्यक्ति के उपयोग के लिए जारी किया जाता है जो उसकी जरूरत बताकर आवेदन करता है, तो क्या वहाँ सिद्धांत सही है? (नहीं।) इसमें क्या सही नहीं है? अगुआओं और कार्यकर्ताओं का ऐसी चीजों को वितरित और आवंटित करने का निर्णय उस व्यक्ति की व्यावसायिक योग्यता पर आधारित होना चाहिए जिसे कार्य सौंपा गया है; दूसरा उन्हें यह निर्णय इस बात पर आधारित करना चाहिए कि वह व्यक्ति मशीनरी को किस हद तक सँजोता है, क्या उसमें मानवता है, क्या वह मशीनरी का उपयोग करते समय उसकी कद्र करता है। अगर व्यक्ति मशीनरी की देखभाल करना नहीं जानता और व्यवसायिक कौशलों से अपरिचित है, और सिर्फ जिज्ञासावश मशीन के साथ खेलना चाहता है तो उसे प्रतिबंधित किया जाना चाहिए और उसे उसका उपयोग करने से मना किया जाना चाहिए। वह उच्च श्रेणी की मशीनरी का उपयोग और उसकी देखभाल करने के लिए उपयुक्त नहीं हैं। साधारण कार्य करने वालों को साधारण मशीनरी देना ही पर्याप्त है। जो लोग किसी पेशे को जानते हैं; अच्छी मानवता वाले हैं; और मशीनरी का उपयोग करना, उसका रख-रखाव करना और उसकी कद्र करना जानते हैं, वे उच्च श्रेणी की चीजों का उपयोग कर सकते हैं, क्योंकि वे उस पेशे में पारंगत होते हैं और उच्च श्रेणी की मशीनरी का उपयोग करने में सक्षम होते हैं। अगर तुम किसी भ्रमित या असभ्य व्यक्ति को कोई उच्च-स्तरीय चीज इस्तेमाल करने के लिए देते हो, तो वह कुछ ही दिनों में मशीन को बर्बाद कर देगा। दूसरे लोग उसका उपयोग नहीं कर पाएँगे और उसे ठीक करना आसान नहीं होगा। यह न सिर्फ कलीसिया के कार्य में बाधा डालता है, बल्कि परमेश्वर के घर की एक भौतिक वस्तु बर्बाद भी करता है। इसमें निहितार्थ क्या है? यही कि ऐसे लोग अच्छी मशीनों का इस्तेमाल करने के लायक नहीं हैं। अच्छी मशीनें इस्तेमाल के लिए उन लोगों को दी जानी चाहिए जिनमें मानवता है, जो किसी पेशे से अच्छी तरह परिचित हैं। जो लोग किसी पेशे के विशेषज्ञ नहीं हैं और जिनकी मानवता कमजोर है, उनके लिए साधारण चीजों का इस्तेमाल करना ही काफी है। क्या इस तरह से चीजों का आवंटन समझदारी भरा है? (हाँ, यह समझदारी भरा है।)
सभी तरह की भौतिक चीजों के साथ विभिन्न लोग विभिन्न प्रकार से पेश आते हैं। कुछ लोग उच्च-स्तरीय कंप्यूटर खरीदते हैं और दो साल के इस्तेमाल के बाद भी वह नया दिखता है; उसके स्क्रीन पर कभी उँगली की छाप नहीं दिखती और उसका कीबोर्ड हमेशा बहुत साफ रहता है, धूल का एक कण भी उस पर नहीं रहता। डेस्कटॉप अच्छा और साफ-सुथरा रहता है और कंप्यूटर में जो कुछ भी संगृहीत किया जाता है, वह सब काफी व्यवस्थित और स्पष्ट होता है। अगर कोई उनसे कहता है कि लंबे समय तक इस्तेमाल करना स्क्रीन के लिए खराब होता है, तो वे तुरंत पूछेंगे कि स्क्रीन को कैसे सुरक्षित रखा जाए—जो भी तरीका सबसे अच्छा होता है वे उसे ही अपनाते हैं। अगर कोई उनसे कहता है कि लंबे समय तक इस्तेमाल के बाद कंप्यूटर को निष्क्रिय रखने की जरूरत होती है, बहुत गर्म हो जाने पर वह खराब तरीके से काम करेगा, जिससे मशीन की लंबी उम्र प्रभावित होगी, तो जब उन्हें एहसास होता है कि वे अपने कंप्यूटर को दो घंटे से ज्यादा समय से इस्तेमाल कर रहे हैं, तो वे उसे ठंडा करने के लिए तुरंत बंद कर देंगे। अगर मौसम बहुत गर्म होने के कारण वह धीरे-धीरे ठंडा होता है, तो वे उसे हवा देने के लिए पंखा चला देंगे। वे मशीन का ऐसे ही विशेष ध्यान रखते हैं, जैसे कि वह उनका बच्चा हो। जब वे उसे बैग में रखते हैं तो विशेष रूप से चौकस और सावधान रहते हैं और जब वे उसे मेज पर रखते हैं तो मेज की सतह साफ करने के बाद उस पर मशीन ठीक से रखते हैं। क्या यह उनकी खूबी नहीं है? (हाँ, है।) ऐसे लोग न सिर्फ खुद मशीनरी को सँजोते हैं बल्कि जब वे दूसरों को मशीनरी को बर्बाद करते हुए और नुकसान पहुँचाते हुए देखते हैं तो उनसे यह बर्दाश्त नहीं होता। ऐसे लोग अच्छी मशीनरी का उपयोग करने के लिए उपयुक्त होते हैं। कुछ पैसे वाले लोग भी उच्च-स्तरीय कंप्यूटर खरीद लेते हैं, जिन्हें वे घर ले जाने के बाद बिल्कुल भी सँजोकर नहीं रखते। वे उन्हें साफ नहीं करते, चाहे उन पर कितनी भी धूल जम जाए, और उन्हें काफी गंदा कर देते हैं। दूसरे लोग मशीन दो साल इस्तेमाल करेंगे और वह फिर भी नई दिखेगी; ये लोग मशीन दो महीने ही इस्तेमाल करेंगे और वह ऐसी दिखेगी जैसे दस साल इस्तेमाल कर ली गई हो। उनसे कहो कि मशीनों को रख-रखाव की जरूरत होती है और वे कहेंगे, “उस चीज के रख-रखाव का क्या मतलब है? मशीनें लोगों की सेवा के लिए होती हैं, लोगों की सेवा करती हैं। अगर वह खराब हो जाए, तो नई खरीद लो!” नतीजतन, गलत इस्तेमाल के कारण मशीन छह महीने से भी कम समय में खराब हो जाती है। ऐसे लोगों के बारे में तुम्हारी क्या राय है? क्या वे उच्च-स्तरीय मशीनरी का उपयोग करने के योग्य हैं? (नहीं।) वे कितने भी अच्छे कंप्यूटर खरीद लें, उन्हें सँजोने के बारे में नहीं सोचते, बल्कि उन्हें इधर-उधर फेंक देते हैं और लापरवाही से रख देते हैं। उनके कुछ कंप्यूटरों पर खरोंचें आ जाती हैं; कुछ पानी से क्षतिग्रस्त हो जाते हैं; कुछ जमीन पर गिरकर टूट जाते हैं। वे उनका बहुत बेदर्दी से इस्तेमाल करते हैं। ऐसे लोगों की मानवता में किसी चीज की कमी होती है। क्या तुम लोग ऐसे लोगों के उपयोग के लिए अच्छी मशीनरी आवंटित करने को तैयार हो? (नहीं।) कुछ लोग चश्मा पहनते हैं और उसके लेंस हमेशा साफ रहते हैं, जबकि दूसरे लोगों के लेंसों की सतहें गंदी रहती है, जिन पर धूल और उँगलियों के निशान आदि रहते हैं। वे उनका इस तरह इस्तेमाल कैसे कर पाते हैं? जो लोग अपने चश्मे का खयाल रखते हैं, वे उन्हें नीचे रखते समय विशेष ध्यान रखते हैं; वे लेंस का स्पर्श मेज की सतह या किसी अन्य वस्तु से बिल्कुल नहीं होने देंगे, न ही वे लेंस पर खरोंच या रगड़ लगने देंगे। चश्मा विशेष रूप से निकट दृष्टि दोष वाले लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है—लेंसों पर खरोंच लगने पर तुम उनका इस्तेमाल कैसे करोगे? कुछ लोग अपने चश्मे के साथ बहुत रुखाई से पेश आते हैं और उसे थोड़ी देर पहनने के बाद ही उनके लेंस धुँधले हो जाते हैं। उन्हें पहनकर वे कुछ भी स्पष्ट रूप से नहीं देख पाते—इससे तो अच्छा है कि वे उन्हें पहने ही नहीं। फिर भी उन्हें लगता है कि उन्हें ऐसे ही पहने रहना ठीक है, मानो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता हो। मैं इस बात से हैरान हूँ : क्या चश्मा पहनने के पीछे उनका उद्देश्य यह नहीं होता कि चीजें ज्यादा स्पष्ट रूप से देख पाएँ? पूरी तरह से घिसे हुए लेंसों से वे स्पष्ट रूप से क्या देख सकते हैं? क्या ये लोग असभ्य नहीं हैं? बेशक असभ्य हैं! अत्यधिक असभ्य लोगों की मानवता से कोई कमी होती है—वे चीजों का खयाल रखना नहीं जानते, उन्हें सँजोना तो दूर की बात है।
जब परमेश्वर के घर के महत्वपूर्ण उपकरणों और औजारों की बात आती है, तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं की क्या जिम्मेदारी होती है? ऐसे उपकरण आवंटित करते समय उचित लोगों को दिए जाने चाहिए। ऐसे महत्वपूर्ण, उच्च श्रेणी के उपकरणों का इस्तेमाल करने वाले लोग निश्चित रूप से ऐसे होने चाहिए जो चीजों को सँजोना जानते हों। वे उन्हें सँजोएँगे, उनकी देखभाल करेंगे और उनका रख-रखाव करेंगे; जब वे उनके कब्जे में होंगे तो तुम आश्वस्त हो सकते हो कि वे उन्हें जानबूझकर या स्व-निर्मित कारकों से कभी नष्ट नहीं करेंगे या नुकसान नहीं पहुँचाएँगे, सिवाय इसके कि किसी क्षणिक लापरवाही या सामान्य ज्ञान के किसी तत्त्व की कमी के कारण ऐसा हो। ऐसे लोग इन उपकरणों का इस्तेमाल कर सकते हैं; उन्हें उच्च-स्तरीय, अच्छे उपकरण आवंटित किए जा सकते हैं। जो लोग चीजों का इस्तेमाल स्वाभाविक रूप से रुखाई से करते हैं, उन्हें इस्तेमाल करने के लिए साधारण सामान देना ही काफी होगा। साथ ही, ऐसे उपकरणों और औजारों के अभिरक्षक उनके इस्तेमाल का रिकॉर्ड रखने के लिए जिम्मेदार होते हैं : किसने क्या लिया है और उसने उसे कितने समय तक इस्तेमाल किया है, या कौन-सी वस्तु किसी के अनन्य उपयोग के लिए है, अगर वह क्षतिग्रस्त हो जाती है तो उसके मूल्य की भरपाई किसे करनी चाहिए। दोनों पक्षों की इन बातों पर सहमति होनी चाहिए, ताकि सभी के लिए चीजें निष्पक्ष और समझदारीपूर्ण हों। मशीनों और उपकरणों का अच्छी तरह से ध्यान रखा जाना चाहिए, चाहे उनका उपयोग अल्पकालिक हो या दीर्घकालिक; उपयोगकर्ता को उनका सही तरीके से उपयोग करना सीखना चाहिए और अगर वे खराब हो जाएँ तो उनकी तुरंत मरम्मत करवानी चाहिए। यह कार्य जितना ज्यादा सावधानी से किया जाएगा, उतना ही बेहतर होगा। अगर ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाए, जिसमें शैतान का शासन लोगों को गिरफ्तार कर रहा हो, तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं की सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी यह है कि वे महत्वपूर्ण उपकरण और औजारों को विश्वसनीय, भरोसेमंद लोगों को आवंटित करें। जब वे उन्हें भेज दें तो उन्हें संबंधित व्यक्तियों को यह कहते हुए कुछ सलाह देनी चाहिए, “ये परमेश्वर के घर की चीजें हैं, जिनका इस्तेमाल तुम अपना कर्तव्य निभाने में कर सकते हो। इनके साथ खिलवाड़ नहीं किया जाना चाहिए। तुम्हें इनका समझदारी से इस्तेमाल करना चाहिए और इनकी अच्छी तरह से देखभाल करनी चाहिए। इन्हें नुकसान मत पहुँचाना। चूँकि ये उपकरण और औजार कर्तव्य निभाने के लिए आवश्यक हैं, इसलिए अगर इन्हें कोई नुकसान होता है, तो इनके मूल्य के अनुसार क्षतिपूर्ति की जानी चाहिए। अगर क्षतिग्रस्त उपकरणों के कारण कार्य में देरी होती है, तो यह ज्यादा गंभीर प्रकृति का मुद्दा है, जिसका अर्थ है कि उनमें कुछ गड़बड़ी और टूट-फूट है। इसलिए तुम्हें यह जानना चाहिए कि कर्तव्य निभाने में तमाम तरह के उपकरणों और औजारों का सही तरीके से उपयोग कैसे किया जाए—तुम्हें परमेश्वर के घर की संपत्ति को नुकसान बिल्कुल नहीं पहुँचाना चाहिए। ये सिद्धांत अवश्य याद रखो : समझदारी से उपयोग और नियमित निरीक्षण, मरम्मत और रखरखाव—अगर कोई चीज खराब हो जाए तो उसकी तुरंत रिपोर्ट करके मरम्मत के लिए आवेदन करो।” इस कार्य को अच्छी तरह से करने के लिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं को जहाँ एक ओर आवंटन और उपयोग के सिद्धांत जानने चाहिए; वहीं दूसरी ओर, उन्हें उपयोगकर्ताओं को यह बताना चाहिए कि रख-रखाव और मरम्मत कैसे की जाए और अगर कोई खराबी आ जाए तो उन्हें ठीक कैसे किया जाए, इत्यादि। यह मानक ज्ञान है जो लोगों को तमाम तरह के उपकरणों और औजारों की देखभाल और उपयोग करने के मामले में समझना और रखना चाहिए।
अगुआओं और कार्यकर्ताओं को परमेश्वर के घर के विभिन्न उपकरण समझदारी से आवंटित करने चाहिए। उदाहरण के लिए, अगर किसी कर्मचारी को अपेक्षाकृत व्यापक लक्षणों वाले कंप्यूटर की जरूरत है, तो तुम्हें उन्हें वह आवंटित कर देना चाहिए। अगर वे कहें कि एक काफी नहीं है, तो तुम्हें उनसे पूछना चाहिए कि ऐसा क्यों है, और तुम्हें पूछताछ करके देखना चाहिए कि वे जो कह रहे हैं वह तथ्यपरक है या नहीं। सिर्फ उनके आवेदन के अनुसार चलते हुए उन्हें उतने कंप्यूटर मत दो जितने वे माँगते हैं, ऐसा न हो कि अगर वे कहें कि एक काफी नहीं है तो दो दे दो, और अगर वे कहें कि दो काफी नहीं है तो तीन दे दो। तब क्या तुम कंप्यूटरों को खिलौनों की तरह वितरित नहीं कर रहे होगे? क्या यह लापरवाही नहीं होगी? तुम्हें पहले स्थिति की जाँच करनी चाहिए और परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के आधार पर निर्णय लेना चाहिए। यदि कुछ लोग कर्तव्य निभाने की आड़ में अंधाधुंध आवेदन कर रहे हैं तो तुम्हें तमाम तरह के आवेदन मनमाने ढंग से स्वीकृत बिल्कुल नहीं करने चाहिए। इसके अलावा, महत्वपूर्ण कार्य करने वाले कुछ लोगों को उच्च श्रेणी के कंप्यूटरों की जरूरत हो सकती है, फिर भी उनके व्यक्तिगत कंप्यूटरों में निम्न श्रेणी के कॉन्फिगरेशन होते हैं। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इस पर भी तुरंत गौर करना चाहिए और उपकरणों का आवंटन समझदारी से करना चाहिए। कंप्यूटरों का प्रावधान व्यक्ति के कार्य की प्रकृति और कंप्यूटर के ग्रेड की जरूरतों के आधार पर तय किया जाना चाहिए। अगर कोई व्यक्ति सिर्फ एक साधारण अगुआ या कार्यकर्ता है और वह कंप्यूटर-तकनीक या वीडियो-निर्माण-कार्य में शामिल नहीं है और सिर्फ इंटरनेट खोलने, संसाधन खोजने और कॉल करने जैसे कामों के लिए ही कंप्यूटरों का उपयोग करता है और उसे अपने कंप्यूटर की विशिष्टताओँ के संदर्भ में ज्यादा कुछ नहीं चाहिए, तो उसके लिए एक साधारण कंप्यूटर का उपयोग करना ठीक रहेगा। कुछ बुजुर्ग लोग सिर्फ टाइपिंग, ऑनलाइन जाने और कॉल करने जैसे सरल कार्य करना ही जानते हैं, फिर भी जब वे अगुआ या कार्यकर्ता बन जाते हैं तो उन्हें बहुत उच्च-स्तरीय कंप्यूटर जारी कर दिए जाते हैं। क्या यह समझदारी है? क्या वे विशेषाधिकार नहीं चाह रहे हैं? क्या वे अपनी हैसियत का लाभ नहीं उठा रहे हैं? (हाँ, उठा रहे हैं।) इस तरह के उच्च-स्तरीय, उच्च श्रेणी के उपकरणों का इस्तेमाल किस काम के लिए किया जाना चाहिए? उन्हें संबंधित कर्मचारियों और पेशेवर कर्मियाँ को इस्तेमाल करने के लिए दिया जाना चाहिए। उनका किसी व्यक्ति की हैसियत से मिलान करने की जरूरत नहीं है। कुछ अगुआ और कार्यकर्ता गलती से यह मानते हैं कि उन्हें अपने विशेषाधिकारों का प्रयोग करते हुए परमेश्वर के घर की विभिन्न वस्तुओं के उपयोग का आनंद लेना चाहिए। क्या परमेश्वर के घर में ऐसा नियम है? नहीं। जब कुछ लोग अगुआ और कार्यकर्ता बन जाते हैं तो उन्हें तुरंत उच्च श्रेणी के कंप्यूटर, सेलफोन और हेडफोन जारी किए जाते हैं, उन्हें तमाम तरह के उच्च श्रेणी के उपकरण प्रदान किए जाते हैं। इसका परिणाम क्या होता है? क्या यह वास्तव में कार्य में अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिए किया जाता है? क्या वे लोग दैहिक आनंद के लिए लालायित नहीं हो रहे? वैसे भी, तुम उच्च श्रेणी के कंप्यूटरों का उपयोग किसलिए कर रहे हो? क्या तुम सिर्फ ऑनलाइन सभाएँ आयोजित कर शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का प्रचार नहीं कर रहे हो? क्या तुम वीडियो अपलोड करना जानते हो या वीडियो बनाने में सक्षम हो? क्या तुम नेटवर्क सुरक्षा बनाए रखना जानते हो या वेबसाइट बना सकते हो? क्या तुम इन पेशों को जानते हो? अगर नहीं, तो तुम्हारे लिए उच्च श्रेणी के कंप्यूटर का क्या उपयोग है? क्या ऐसा करना घृणित चीज नहीं है? (हाँ, है।) अगर तुम्हारे पास अपना पैसा है तो कोई परवाह नहीं करता कि तुम उससे कितने कंप्यूटर खरीदते हो और कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा, चाहे वे कितने भी उच्च श्रेणी के हों। हम अब इस बारे में बात कर रहे हैं कि परमेश्वर के घर की भौतिक वस्तुओं को किस तरह से समझदारी से आवंटित किया जाना चाहिए। “समझदारी से” का क्या अर्थ है? जब अगुआ और कार्यकर्ता परमेश्वर के घर के इस उच्च श्रेणी के उपकरण का इस्तेमाल करते हैं तो क्या इसे “समझदारी से” इस्तेमाल करना माना जाता है? (नहीं।) वे न तो इस पेशे के बारे में जानते हैं और न ही यह जानते हैं कि कोई काम कैसे करना है। क्या उच्च श्रेणी का कंप्यूटर रखना उन्हें उच्च श्रेणी का बना देता है? वे किस बात का दिखावा कर रहे हैं? परमेश्वर के घर में ऐसा कोई नियम नहीं है जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को अपनी भौतिक वस्तुओं के इस्तेमाल और आवंटन का विशेषाधिकार देता हो; उनके पास वह विशेषाधिकार नहीं है, और यह परमेश्वर के घर द्वारा वस्तुओं के आवंटन के लिए समझदारी भरा सिद्धांत नहीं है—यह बिल्कुल भी समझदारी भरा नहीं है। कोई व्यक्ति इन चीजों को खुद खरीद सकता है, अगर वह ऐसा करने की स्थिति में है; अगर वह ऐसा करने की स्थिति में नहीं है और उसे ये चीजें परमेश्वर का घर से आवंटित की जानी चाहिए, तो उसके लिए साधारण चीजों का इस्तेमाल करना ही पर्याप्त है। यह उचित और समझदारी भरा है। जो लोग वास्तव में इस उच्च श्रेणी के उपकरण का इस्तेमाल करना जानते हैं वे इस कार्य में शामिल पेशेवर कर्मचारी हैं, इसलिए परमेश्वर के घर को यह उपकरण उन्हें आवंटित कर देना चाहिए। ये कुछ सिद्धांत हैं, जिन्हें अगुआओं और कार्यकर्ताओं को परमेश्वर के घर की भौतिक वस्तुओं के आवंटन के संबंध में समझना-बूझना चाहिए। इन सिद्धांतों के आधार पर फिर से जाँच करके देखो कि इन चीजों को कहीं बिना समझदारी के आवंटित तो नहीं किया गया है। अगर किया गया है, तो जल्दी से इसे सुधारो। कुछ लोग अगुआ या कार्यकर्ता बनने के बाद देखते हैं कि परमेश्वर के घर में कोई उनकी चापलूसी नहीं कर रहा है, कोई उन्हें उच्च श्रेणी की वस्तुएँ जारी नहीं कर रहा है, और वे अभी भी अपने पुराने कपड़े ही पहन रहे हैं, अभी भी अपना बेहद साधारण छोटा कंप्यूटर ही इस्तेमाल कर रहे हैं और परमेश्वर के घर ने उन्हें अच्छा कंप्यूटर नहीं दिया है। तो वे वित्तीय टीम के पास जाते हैं और एक कंप्यूटर खरीदने के लिए आवेदन करते हैं। क्या यह समझदारी की बात है? (नहीं।) वे कहते हैं, “अगर तुम इसे मुझे जारी नहीं करोगे, तो मैं अपना कर्तव्य नहीं निभाऊँगा—मैं परमेश्वर के घर द्वारा अपने लिए इससे भी नए मॉडल का ज्यादा तेज चलने वाला उच्च श्रेणी का कंप्यूटर खरीदवाने का अवसर ढूँढ़ूँगा!” वे बहुत साहसी हैं—ऐसा कुछ नहीं जिसे वे करने की हिम्मत न करें। अगुआ बनने के बाद ये लोग परमेश्वर के घर को अपना मान लेते हैं और सोचते हैं, “परमेश्वर के घर का पैसा मेरा भी है—मैं इसे अपनी मर्जी से खर्च करूँगा!” यह ऐसी चीज है जिसे करने में मसीह-विरोधी सक्षम हैं।
III. विभिन्न प्रकार की दैनिक आपूर्तियों और भोजन का समझदारी से आवंटन करना
अब हम विभिन्न भौतिक वस्तुओं और उपकरणों के समझदारी भरे आवंटन के बारे में बात पूरी कर चुके हैं। इसके बाद हम रोजमर्रा की जिंदगी के सामान के बारे में बात करेंगे, जैसे कि अनाज, सब्जियाँ और सूखा भोजन और साथ ही खाना पकाने के लिए आवश्यक सामग्री, विभिन्न पूरक खाद्य पदार्थ, इत्यादि। ये वस्तुएँ न सिर्फ समझदारी से सुरक्षित रखनी होती हैं, बल्कि समझदारी से आवंटित भी करनी होती हैं। तो ये विभिन्न वस्तुएँ समझदारी से कैसे आवंटित की जाएँ? परमेश्वर के घर में अपने भोजन के लिए मानक हैं और जो लोग ऐसी वस्तुओं का प्रबंधन करते हैं, उन्हें वे वस्तुएँ उन मानकों का सख्ती से पालन करते हुए समझदारी से आवंटित करनी चाहिए। उन्हें अपने करीबी लोगों को ज्यादा मात्रा में अच्छा भोजन नहीं देना चाहिए। उदाहरण के लिए, अगर कुछ स्वादिष्ट, अच्छी गुणवत्ता वाला चावल खरीदा जाता है या अगर कुछ फल या मांस कभी-कभार ही खरीदा जाता है और तुम उसे उन लोगों को ज्यादा दे देते हो जिनके साथ तुम्हारे अच्छे संबंध हैं या सभी अच्छी चीजें उन्हें दे देते हो और दूसरों को खराब चीजें देते हो—तो क्या इसे समझदारी भरा आवंटन माना जाता है? (नहीं।) तो फिर यहाँ “समझदारी” कैसे मापी जाए? चीजें आवंटित करने का कौन-सा तरीका समझदारी भरा माना जा सकता है? परमेश्वर के घर द्वारा खाद्य पदार्थों के लिए निर्धारित सिद्धांतों और अपेक्षित मानकों के अनुसार समान आवंटन, जिसमें उतना ही जारी किया जाए जितना किया जाना चाहिए। अगर तुम्हें लगता है कि तुम किसी के करीब हो, तो तुम उन्हें अपना हिस्सा दे सकते हो। दूसरों की चीजों के मामले में उदार मत बनो और परमेश्वर के घर की भौतिक वस्तुओं का इस्तेमाल दूसरों के प्रति उदारता दिखाने के लिए मत करो; अगर तुम उदार होना चाहते हो, तो अपनी चीजों के मामले में होओ। परमेश्वर के घर में उदारता कोई सिद्धांत नहीं है—परमेश्वर के घर का सिद्धांत समझदारी से आवंटन है। रोजमर्रा की जिंदगी की जरूरतों और विभिन्न खाद्य पदार्थों का वितरण परमेश्वर के घर द्वारा निर्धारित मानकों के अनुसार किया जाना चाहिए, न कि मनमाने तरीके से। स्वाभाविक रूप से, अगुआ और कार्यकर्ता निरीक्षण करके देख सकते हैं कि क्या ऐसी चीजों के वितरण के लिए जिम्मेदार लोगों के इरादे सही हैं, क्या उनका वितरण समझदारी भरा है, क्या वितरण परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुसार किया जाता है, ज्यादातर लोग इसके कैसे होने की रिपोर्ट करते हैं, क्या उन्हें कोई शिकायत है और क्या सभी का खयाल रखा जाता है। अगर कभी चीजें कम हैं तो क्या करना चाहिए? क्या अगुआओं और कार्यकर्ताओं द्वारा उन्हें सिर्फ अपने ही खाने के लिए रखना ठीक है? कुछ लोग कह सकते हैं, “अगुआओं और कार्यकर्ताओं की हैसियत और प्रतिष्ठा सबसे ज्यादा होती है और वे आम तौर पर हमसे सबसे ज्यादा बात करते हैं जिससे उनका मुँह सूख जाता है। अगर कोई अच्छा खाद्य पदार्थ है तो हमें उसे उनके खाने के लिए छोड़ देना चाहिए।” क्या इस तरह से चीजों का आवंटन करना ठीक है? (नहीं; चीजें उन लोगों के लिए छोड़ी जानी चाहिए जिन्हें वास्तव में उनकी जरूरत है।) अगर कुछ अपेक्षाकृत महँगे हेल्थकेयर उत्पादों की आपूर्ति कम हो तो उन्हें कैसे आवंटित करना चाहिए? उन्हें उन लोगों को आवंटित करना चाहिए जिन्होंने कई सालों से खुद को परमेश्वर के लिए खपाकर योगदान दिया है। अपनी उम्र के कारण इन लोगों का स्वास्थ्य खराब है, फिर भी वे अभी भी निष्ठापूर्वक अपने कर्तव्य निभा रहे हैं और भाई-बहन उनसे काफी लाभान्वित हुए हैं। इन लोगों को अपने शरीर को थोड़ा स्वस्थ रखने और उसकी देखभाल करने की जरूरत है और यह सही ही है कि उन्हें वे हेल्थकेयर उत्पाद खाने और इस्तेमाल करने दिए जाएँ। कम आपूर्ति की वजह से किसी को झगड़ना नहीं चाहिए। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को ये चीजें इसी तरह आवंटित करनी चाहिए। क्या यह समझदारी की बात है? (हाँ।) तो क्या ज्यादातर लोगों को इस तरह के आवंटन पर आपत्ति होगी? क्या कोई ऐसा व्यक्ति है जो कहता हो, “हो सकता है मैं उतना बूढ़ा न होऊँ, लेकिन मेरे पास करने के लिए बहुत काम है—मैं रोज आठ घंटे से ज्यादा काम करता हूँ। हो सकता है मेरा काम उतना दक्षतापूर्ण न हो और हो सकता है मैं इसे बहुत सालों से न कर रहा होऊँ, लेकिन मेरा स्वास्थ्य भी कभी-कभी ज्यादा अच्छा नहीं रहता। कोई मेरा खयाल क्यों नहीं रखता? जब अच्छी चीजें होती हैं, तो उन्हें पाने की मेरी बारी कभी नहीं आती, लेकिन जब काम करना होता है तो हमेशा मुझे ही ढूँढ़ा जाता है”? क्या ऐसे व्यक्ति को हिस्सा दिया जाना चाहिए? चूँकि उसने यह माँगने की हिम्मत दिखाई, इसलिए उसके लिए कुछ छोड़ दो—क्या यह समझदारी की बात है? क्या तुम लोग ऐसा करने के लिए सहमत होगे? (नहीं।) अगर मैं होता, तो मैं सहमत होता। ऐसी चीजों के बारे में इतना परेशान क्यों होना? लोग अपना जीवन आनंद के लिए नहीं जीते; वे खाने, पीने और मौज-मस्ती करने के लिए नहीं जीते। ऐसी चीजों के लिए क्यों लड़ना? अगर कोई वास्तव में उनके लिए लड़ना चाहता है और उसकी परिस्थितियाँ कुछ हद तक उपयुक्त हैं तो उन्हें उन चीजों का थोड़ा आनंद लेने दो। उन पर कुछ विशेष अनुग्रह जरूर हो जाएगा, लेकिन तुम्हें इसका नुकसान नहीं होगा; इतना परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। तो मान लो कोई कहे, “तुम थोड़ा मुझे क्यों नहीं दे देते? मेरा स्वास्थ्य भी अच्छा नहीं है; अगर मुझे वास्तव में कुछ अच्छा खाने को मिले तो मैं अपने बेहतर स्वास्थ्य के साथ परमेश्वर के घर के लिए ज्यादा काम करने और ज्यादा मेहनत करने में सक्षम होऊँगा और मेरा काम ज्यादा दक्षतापूर्ण होगा।” चूँकि उसने यह अनुरोध किया है, इसलिए इसे अस्वीकार करके उसे शर्मिंदा मत करो, उसे कुछ वितरित कर दो। अन्य लोगों को इस बारे में ज्यादा परेशान नहीं होना चाहिए—थोड़ा और उदार बनो। क्या तुम्हारा जीवन उन चीजों के बिना वैसे ही नहीं चलेगा, जैसा अब तक चलता आया है? परमेश्वर लोगों को जो देता है वह कम नहीं है; वह भरपूर और प्रचुर है—चीजों के लिए लड़ने की कोई जरूरत नहीं। अगर कोई विशेष वस्तु है और किसी को उसे लेने या उसका आनंद लेने की जरूरत महसूस नहीं होती, तो अंततः जिस भी तरह के व्यक्ति को बहुमत सबसे उपयुक्त माने, उसे ही वह वस्तु खाने के लिए दे देनी चाहिए। हम मानवता पर और समझदारी से चीजें आवंटित करने पर जोर देते हैं। जो लोग ये चीजें प्राप्त करते हैं, उन्हें इन चीजों को परमेश्वर से स्वीकारना चाहिए और उसके अनुग्रह के लिए उसे धन्यवाद देना चाहिए। दूसरों को इनके लिए झगड़ना नहीं चाहिए। अगर तुम ऐसा करते हो, तो तुम अविवेकी हो, जानबूझकर परेशानी पैदा करते हो और गलत हो। ऐसी विशेष परिस्थितियों से इसी तरह निपटना चाहिए। विशेष परिस्थितियों और सामान्य परिस्थितियों के लिए एक-जैसे सिद्धांत हैं; उनके साथ मनमाना व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए, मानवीय संबंधों की जरूरतों के आधार पर तो बिल्कुल भी नहीं। जब ये चीजें समझदारी से आवंटित की जाती हैं तो अगुआ और कार्यकर्ता अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लेते हैं।
दैनिक आपूर्ति और भोजन का आवंटन करते समय, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को वास्तविक परिस्थितियों, व्यक्तियों की वास्तविक संख्या और वास्तविक अपेक्षित मात्रा के आधार पर ही ऐसा करना चाहिए, ताकि सही मायने में समझदारी से आवंटन किया जा सके और बर्बादी या नुकसान न हो। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यह जिम्मेदारी निभानी चाहिए। कभी-कभी जब उन्हें विशिष्ट परिस्थितियों की समझ न हो, तो वे कुछ चीजें एक बुनियादी सिद्धांत के अनुसार आवंटित कर सकते हैं और बाद में सभी लोगों की प्रतिक्रियाओं के जरिये और निगरानी करके यह जान सकते हैं कि आवंटन समझदारी से नहीं किया गया था, वह थोड़ा विनियमों से बँधा हुआ था। उस हालत में उन्हें अगली बार सुधार करना चाहिए, ताकि वह समस्या दोबारा पैदा न हो और बर्बादी और नुकसान कम किया जा सके। यह अपनी जिम्मेदारी निभाना है। बेशक, नुकसान और बर्बादी से बचने के लिए उन्हें चीजें आवंटित करते समय कुछ हद तक और ज्यादा परामर्श करना चाहिए; उन्हें सिद्धांतों का सख्ती से पालन भी करना चाहिए। यह आवश्यक है। चीजें उन्हें न देकर जिन्हें वास्तव में उनकी जरूरत है, जो ईमानदारी से अपना कर्तव्य निभा रहे हैं, जिनके पास सत्य वास्तविकता है, बल्कि खास तौर से आध्यात्मिक समझ नहीं रखने वाले चापलूसों को देकर, अविवेकपूर्ण तरीके से जारी मत करो। क्या ऐसा करना सिद्धांतों के अनुसार कार्य करना है? (नहीं।) क्या ऐसा करना अत्यधिक लापरवाही नहीं है? सिद्धांतों के अनुसार कार्य नहीं करना अपनी जिम्मेदारियाँ नहीं निभाना है। अपनी जिम्मेदारियाँ निभाने का क्या मतलब है? यह बेमन से कार्य नहीं करना और विनियमों का पालन करना है और यह निर्धारित चरणों की एक शृंखला अपनाने से पूरा नहीं होता—बल्कि यह परमेश्वर के घर द्वारा अपेक्षित सिद्धांतों का वास्तव में कड़ाई से पालन करते हुए कार्य करना है और साथ ही यह भी सुनिश्चित करना है कि परमेश्वर के घर की किसी भी चीज की कोई बर्बादी या क्षति न हो। यही वास्तव में अपनी जिम्मेदारी निभाना है। उदाहरण के लिए, पाँच लोगों को अंडे देने हों तो तुम्हें हर व्यक्ति को प्रति दिन एक अंडा देना चाहिए और उन्हें हर दस दिन में जारी करना चाहिए, तो तुम ठीक पचास अंडे भेजोगे। तुम्हें उन्हें इसी तरह से जारी करना चाहिए, अलग-अलग हिस्सों में, क्योंकि यह कम संख्या में होता है और इसका ध्यान रखना आसान होता है; इसके अलावा, यह उनके खाने के लिए बिल्कुल सही मात्रा है। परमेश्वर के घर द्वारा अपेक्षित मानकों और विनिर्देशों के अनुसार इस तरह से अभ्यास करना बिल्कुल सही है—यह सिद्धांतों के अनुसार कार्य करना है। अगर कोई अगुआ या कार्यकर्ता परेशानी के डर से उन्हें एक बार में सौ दिनों के अंडे—पाँच सौ अंडे—जारी कर दे तो क्या यह उचित होगा? मुझे बताओ, पचास अंडों का परिवहन और देखभाल आसान है या पाँच सौ अंडों का? (पचास अंडों का।) कम संख्या में परिवहन और देखभाल करना आसान होता है। कुछ लोग सौ दिनों के अंडे भेजते हैं और नतीजतन कुछ रास्ते में टूट जाते हैं और कुछ गंतव्य पर ले जाने पर कुचले जाते हैं। एक के बाद एक छोटी टूट-फूट से एक पूरा हिस्सा क्षतिग्रस्त हो जाता है। इसके अलावा, जब लोग बहुत सारे अंडे जारी होते देखते हैं, तो वे लापरवाही से उन्हें बर्बाद कर देते हैं, इसलिए अगली खेप आने के पहले दिन उनके पास खाने के लिए अंडे नहीं होते। तो जब ये अंडे टूटकर क्षतिग्रस्त हो जाते हैं तो क्या इसका कारण अगुआओं और कार्यकर्ताओं की लापरवाही नहीं होती? (होती है।) अगर वे और अंडे माँगते हैं, तो क्या तुम उन्हें दे सकते हो? सिद्धांतों के अनुसार तुम उन्हें नियत तिथि से पहले और अंडे नहीं दे सकते, लेकिन जब उनके पास खाने के लिए अंडे नहीं बचते तो वे व्यथित हो जाते हैं। यहाँ क्या किया जाना चाहिए? (उन्हें समय पर और सही मात्रा में अंडे दिए जाने चाहिए।) उन्हें समय पर और सही मात्रा में अंडे देना सिद्धांतों के अनुसार कार्य करना है—यह समझदारीपूर्ण आवंटन है। ये चीजें आवंटित करते समय अगुआओं और कार्यकर्ताओं को समझदारीपूर्ण आवंटन के सिद्धांत और परमेश्वर के घर द्वारा अपेक्षित मानक का पालन करना चाहिए, उन्हें समय पर और नियमित रूप से चीजें जारी करनी चाहिए। इसके अलावा, उन्हें इस बात की त्वरित समझ होनी चाहिए कि क्या बर्बादी के मामले सामने आए हैं, क्याउन चीजों के लिए दोबारा आवेदन या अनुरोध किए गए हैं जो बर्बादी के कारण घट गई हैं और क्या जारी की गई ऐसी चीजों की बर्बादी के मामले सामने आए हैं जो लोगों को पसंद नहीं आईं। उदाहरण के लिए, मांस और सब्जियाँ दोनों ही जारी की जाती हैं और ज्यादातर लोग मांस पसंद करते हैं, इसलिए वे उसे तीन या पाँच दिनों में खा सकते हैं और सब्जियाँ बच जाती हैं। सब्जियाँ लंबे समय तक नहीं टिकतीं; उनमें से कुछ सब्जियाँ थोड़े समय बाद खराब होकर सड़ जाती हैं, इसलिए वे अगली खेप जारी होने से पहले ही खत्म हो जाती हैं। तब कोई फिर से आवेदन करके और सब्जियाँ माँग सकता है। क्या ऐसे मामले में और सब्जियाँ दी जानी चाहिए? क्या उन्हें और सब्जियाँ देना समझदारी है? (नहीं।) दूसरे लोग चुपके से मांस और अंडे खा लेंगे और वे तमाम सब्जियाँ खा लेंगे जो उन्हें पसंद हैं, जबकि जो सब्जियाँ उन्हें पसंद नहीं हैं उन्हें नहीं खाने के तरह-तरह के कारण देंगे और बहाने बनाएँगे। जब सब्जियाँ पीली पड़कर खराब हो जाती हैं तो वे कहते हैं कि वे खाने लायक नहीं हैं और उन्हें सूअरों और मुर्गियों को खिला देते हैं या फेंक देते हैं, फिर और माँगते हैं। जब अगुआओं और कार्यकर्ताओं के सामने इस तरह के मामले आते हैं तो उन्हें इन मामलों को कैसे सँभालना है? अगर वे कहते हैं, “यह देखते हुए कि यह पर्याप्त नहीं है, मैं अगली बार तुम लोगों को और सब्जियाँ दूँगा—मैं तुम्हें और ज्यादा दूँगा क्योंकि तुम लोग बहुत ज्यादा सब्जियाँ खाते हो,” तो क्या इसे सँभालने का यह उचित तरीका है? क्या वे अंधे नहीं है? (हाँ, हैं।) ऐसा कैसे है कि वे अंधे हैं? (वे नहीं समझते कि वास्तव में क्या चल रहा है : उनके द्वारा जारी किया गया भोजन पर्याप्त नहीं होने का मुख्य कारण यह है कि वह बर्बाद हो गया था।) वे बिना यह समझे निष्कर्ष पर पहुँच जाते हैं कि वास्तव में क्या चल रहा है। ज्यादातर स्थानों पर खाने के लिए पर्याप्त भोजन होता है जो परमेश्वर के घर के विनिर्देशों के अनुसार जारी किया जाता है। वह सिर्फ एक ही जगह पर कम क्यों पड़ जाता है? क्या इसकी विशिष्ट जाँच नहीं की जानी चाहिए? उन्हें साइट पर जाना चाहिए और स्थिति के बारे में ध्यानपूर्वक और विस्तार से पूछना चाहिए, ताकि यह समझा जा सके कि क्या चल रहा है। अंत में अपनी जाँच और समझ के जरिये वे पाते हैं कि उस जगह का रसोइया एक बुरा और अनैतिक व्यक्ति है, जिसने लोगों का खाना मुर्गियों को खिलाकर परमेश्वर के घर का खाना जानबूझकर बर्बाद कर दिया। वह जो खाता है उसके बारे में बहुत नखरे करता है और सिर्फ स्वादिष्ट भोजन खाना पसंद करता है। जब मांस नहीं होता तब वह सब्जियाँ नहीं खाता और जब मांस होता है तो टोफू तक नहीं खाता। जब उसे अंडे मिलते हैं तो वह उन्हें हर समय खाता है। वह सिर्फ स्वादिष्ट भोजन चुनता है और कोई साधारण सब्जियाँ नहीं खाता, न ही वह उनके खराब होने की परवाह करता है। समझ से पता चला कि रसोइया एक बुरा व्यक्ति है—तो क्या उसे अगली बार चीजें जारी करते समय सब्जियाँ बढ़ाकर दी जानी चाहिए? (नहीं।) क्या उसे और सब्जियाँ न देना ही पर्याप्त है? एक बार पता चलने के बाद यह समस्या कैसे सँभाली जाए? उसे तुरंत बदल दो; यह कार्य सँभालने के लिए उसकी जगह किसी ऐसे व्यक्ति को लाओ जिसमें थोड़ी मानवता हो। समस्या का तुरंत पता लगाकर उसका समाधान करो और ऐसे बुरे, भ्रष्ट लोगों को हटा दो। कुछ लोग पूछ सकते हैं, “चूँकि वह अब खाना नहीं बनाता, तो क्या उसे मुर्गियों को चुगा डालने देना ठीक रहेगा?” (नहीं।) अगर वह मुर्गियों को चुगा डालेगा तो मुर्गियाँ अंडे नहीं देंगी; अगर वह सूअरों को खाना देगा तो सूअर दुबले हो जाएँगे। उन्हें किसी को भी खाना खिलाने देना ठीक नहीं होगा। ऐसे लोगों को चलता कर देना चाहिए—वे परमेश्वर के घर में कोई भी कर्तव्य निभाने के लिए अयोग्य हैं। अगर परमेश्वर के घर की भौतिक वस्तुएँ आवंटित करते समय कोई अन्य समस्याएँ दिखें तो उन्हें भी तुरंत हल करना चाहिए। इन समस्याओं को हल करने का क्या उद्देश्य है? परमेश्वर के घर की भौतिक वस्तुओं की बर्बादी और क्षति कम करना। कुछ लोग कह सकते हैं, “उन समस्याओं को हल करने के लिए व्यक्ति को रसोई की जाँच करनी होगी। क्या तुम्हीं ने नहीं कहा है कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं को रसोई में जाने की अनुमति नहीं है? उन्हें अब क्यों अनुमति दी जा रही है?” ये दो अलग-अलग मुद्दे हैं। मैंने यह नहीं कहा कि उन्हें जाने की अनुमति नहीं है—वह अगुआओं और कार्यकर्ताओं के यह न जानने का कि कार्य कैसे करना है, आलस्य से इधर-उधर घूमने का, पद के लाभों का लालच करने और हमेशा खाने के लिए अच्छी चीजें खोजने रसोई में जाने का विश्लेषण था। वर्तमान मामले में वे समस्याएँ हल करने के लिए रसोई में जा रहे हैं, न कि खाने के लिए अच्छी चीजें खोजने। जब जाना अपेक्षित हो तब जाओ और जब अपेक्षित न हो तब मत जाओ। अगुआओं और कार्यकर्ताओं के पास करने के लिए बहुत कार्य होता है और यह उनके कार्यों में से एक है, एक ऐसा कार्य जिसकी विशेष समस्याएँ सिर्फ रसोई के भीतर जाकर और उसकी बारीकियाँ समझकर ही जानी जा सकती हैं। अगर कोई रसोइया अनुपयुक्त पाया जाए, तो उसे तुरंत बर्खास्त कर देना चाहिए और उसके स्थान पर कोई उपयुक्त व्यक्ति रखना चाहिए। ऐसा करने से यह सुनिश्चित होता है कि परमेश्वर के घर द्वारा जारी की गई वस्तुएँ बर्बाद और खराब नहीं होतीं। मैं इसे जिस भी तरह से कहूँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं से यह अपेक्षित है कि वे अपनी जिम्मेदारियाँ निभाएँ—अगर यह तुम्हारी चिंता का विषय है और तुम्हें करना है तो तुम्हें निश्चित रूप से इसकी चिंता करनी चाहिए और इसके बारे में जो करना जरूरी है वह करना चाहिए। तुम्हें खुद निरीक्षण करना चाहिए और अपने दोनों कानों से ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए कि हर तरह का व्यक्ति इसके बारे में क्या कहता है—और निश्चित रूप से तुम्हें सभी तरह की चीजों के बारे में राय, विचार और विवेक रखना भी दिल से सीखना चाहिए; दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि परमेश्वर के घर द्वारा पालन किए जाने वाले सिद्धांत दिल से अपनाने चाहिए और किसी भी समय उनसे हटना नहीं चाहिए। तुम जो भी कार्य कर रहे हो, तुम्हें पहले यह समझना चाहिए कि परमेश्वर के घर द्वारा अपेक्षित सिद्धांत और नियम क्या हैं; कार्य शुरू करने से पहले तुम्हें खुद से कुछ और बार ऐसे प्रश्न पूछने चाहिए : क्या मैं परमेश्वर के घर द्वारा अपेक्षित सिद्धांतों के बारे में स्पष्ट हूँ? अगर इसे परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुसार करना है, तो इसे कैसे करना चाहिए? विशेष परिस्थितियों में इसे सिद्धांतों के अनुसार कैसे करना चाहिए? सामान्य परिस्थितियों में इसे कैसे सँभालना चाहिए? कार्य शुरू करने से पहले तुम्हें खुद से ये और ऐसे अन्य सवाल बिल्कुल पूछने चाहिए और परमेश्वर के सामने ज्यादा प्रार्थना करनी चाहिए। इसका एक हिस्सा आत्म-परीक्षण है; दूसरा हिस्सा परमेश्वर की जाँच स्वीकारना है। ऐसा करने से अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कम गलतियाँ करने और अपने कार्य में कम भटकने, परमेश्वर के घर की भौतिक वस्तुओं की बर्बादी कम करने और उसके घर को होने वाला नुकसान घटाने में मदद मिलती है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि ऐसा करने से अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ बनी रहती हैं और वे उन जिम्मेदारियों को पूरा करते हैं। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को वास्तव में यही करना चाहिए। यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं से की जाने वाली अपेक्षा है। परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुओं की सुरक्षा और आवंटन करना कोई जटिल कार्य नहीं है। एक ओर यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं के सिद्धांतों से परिचित होने का मामला है; दूसरी ओर अगुआओं और कार्यकर्ताओं को विभिन्न भौतिक वस्तुओं के प्रबंधन के प्रभारियों के साथ इन सिद्धांतों के बारे में ज्यादा से ज्यादा संगति करनी चाहिए, चीजों की प्रगति के बारे में ज्यादा जानना चाहिए, चीजों को ज्यादा समझने की कोशिश करनी चाहिए और उनके प्रबंधन की स्थिति की ज्यादा जाँच करनी चाहिए, साथ ही परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुओं के आवंटन पर पर्यवेक्षकों के साथ ज्यादा संगति करनी चाहिए ताकि उन्हें इन सिद्धांतों की ज्यादा गहन समझ मिल सके। बेशक अगुआओं और कार्यकर्ताओं को लगातार पूछताछ कर यह पता करते रहना चाहिए कि वे लोग वस्तुओं का आवंटन और वितरण कैसे कर रहे हैं और कोई विशेष परिस्थितियाँ तो नहीं हैं—उदाहरण के लिए, क्या पर्यवेक्षक विभिन्न ऋतुओं में, विभिन्न समयों पर और ऐसे मामलों में जहाँ विभिन्न प्रकार के लोगों की अलग-अलग जरूरतें हों, परमेश्वर के घर द्वारा अपेक्षित सिद्धांतों के अनुसार वस्तुओं का आवंटन कर रहे हैं। ऐसा करने का उद्देश्य परमेश्वर के घर की विभिन्न वस्तुओं को अपने कार्य प्रभावी ढंग से करने में सक्षम बनाना, उनका यथासंभव अधिकतम सीमा तक समझदारी से इस्तेमाल किया जाना और यथासंभव सर्वोत्तम देखभाल और यथासंभव सर्वोत्तम रखरखाव के साथ उनकी सुरक्षा करना है। यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है।
परमेश्वर के घर की भौतिक वस्तुओं को ठीक से प्रबंधित करना परमेश्वर के चुने हुए सभी लोगों की जिम्मेदारी है
अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ समझने के बाद क्या तुमने वे सिद्धांत भी समझे हैं जिन्हें प्रत्येक भाई-बहन को परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुओं के साथ पेश आते समय समझना चाहिए? हो सकता है तुम लोग अगुआ और कार्यकर्ता न हो, लेकिन फिर भी तुम्हें पर्यवेक्षण की जिम्मेदारी निभानी चाहिए। यह परमेश्वर के चुने हुए लोगों का अधिकार है। साथ ही, परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुओं—तमाम तरह की पुस्तकें और उपकरण; दैनिक भोजन, पेय और वस्तुएँ; इत्यादि—के साथ सभी को प्रेम और परवाह से पेश आना चाहिए। सभी लोग जिन विभिन्न चीजों का इस्तेमाल करते हैं, उन्हें उनकी नियमित जाँच, मरम्मत और रखरखाव भी करना चाहिए और उन्हें उनका समझदारी से इस्तेमाल करना चाहिए—उन्हें अपने कब्जे में खराब और बर्बाद मत होने दो या उन्हें अविवेकपूर्ण तरीके से नष्ट मत करो। कुछ लोग कहते हैं, “वैसे भी यह चीज मेरी नहीं है। इसे मैंने अपने पैसे से नहीं खरीदा। इसे मुझे परमेश्वर के घर ने जारी किया है—यह सार्वजनिक संपत्ति है। मुझे इस बात की परवाह करने की जरूरत नहीं है कि इसका रखरखाव और मरम्मत कब की जाती है या इसे कहाँ रखा जाता है। मैं इसे इस तरह अपने साथ लिए-लिए नहीं फिर सकता, मानो मैंने इसका अपहरण कर लिया हो।” क्या यह एक समझदारी भरा विचार है? क्या यह पूरी तरह से स्वार्थपूर्ण और मानवता से रहित नहीं है? (हाँ, है।) तो परमेश्वर के घर की भौतिक वस्तुओं के उपयोग में किन सिद्धांतों का पालन करना चाहिए? अगर कोई चीज तुम्हारे उपयोग के लिए आवंटित की गई है तो उसका उपयोग करते समय उसकी मरम्मत और देखभाल करना तुम्हारा काम है। तुम पूरी तरह से जिम्मेदार हो; किसी और के आग्रह या पर्यवेक्षण के बिना तुम्हें उस वस्तु के साथ इस तरह पेश आना चाहिए, उसे इस तरह सँजोना चाहिए और उसकी इस तरह रक्षा करनी चाहिए मानो वह तुम्हारी व्यक्तिगत संपत्ति हो। मानवता होने का यही अर्थ है। तुम्हें जारी किए जाते समय उस चीज की हालत चाहे जैसी भी रही हो, जब तुम्हें उसका उपयोग करने की अनुमति न रहे या तुमने उसका उपयोग खत्म कर लिया हो, तो तुम्हें उसे पूरी तरह से सही और मूल हालत में उस व्यक्ति को वापस कर देना चाहिए जो उसे सुरक्षित रखता है। इसे विवेकशील होना कहते हैं; यह चीज मानवता में होनी चाहिए। तुम कहते हो कि तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो, तुम्हारे पास जमीर और विवेक है, तुम सत्य से प्रेम करते हो, सत्य का अनुसरण करते हो और सत्य के प्रति समर्पण करते हो, लेकिन अगर तुममें वह न्यूनतम मानवता ही नहीं है जो एक भौतिक वस्तु के साथ पेश आने में होनी चाहिए, तो तुम सत्य से प्रेम करने या उसका अभ्यास करने की बात भी कैसे कर सकते हो? क्या यह कुछ ज्यादा ही खोखली बात नहीं है? अगर तुम एक भौतिक वस्तु के साथ पेश आने में भी अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा सकते, तो इसका मतलब है कि तुम्हारी मानवता अच्छी नहीं है—“मानवता नहीं होना” इसे कहने का एक सामान्य तरीका है। इसके अलावा, तुम अपनी चीजों का उपयोग कैसे भी करो, चाहे तुम उनके साथ रुखाई से पेश आओ या सावधानी से, यह तुम्हारा अधिकार है। कोई इसमें हस्तक्षेप नहीं करेगा। लेकिन परमेश्वर के घर के पास अपनी चीजों के उपयोग करने के सिद्धांत हैं। ये तमाम सिद्धांत जमीर और विवेक पर आधारित हैं और भले ही वे सत्य की ऊँचाई तक न पहुँच पाते हों, फिर भी कम से कम वे मानवता के मानकों के अनुरूप हैं। अगर तुम मानवता के इस मानक को भी पूरा नहीं कर सकते, अगर तुम परमेश्वर के घर से तुम्हें जारी किए गए उपकरणों और आपूर्तियों के साथ सही तरह से पेश भी नहीं आ सकते और उनका सही तरीके से उपयोग भी नहीं कर सकते, तो तुम सत्य समझकर उसकी वास्तविकता में प्रवेश कर सकते हो या नहीं, यह एक समस्या है—इस पर प्रश्नचिह्न लगना लाजमी है। इसलिए जब तुम्हारे इन चीजों के साथ पेश आने की बात आती है, तो तुम्हें इनका उपयोग करने का अधिकार है और स्वाभाविक रूप से तुम्हारी जिम्मेदारी भी है कि तुम इनकी मरम्मत, रखरखाव और देखभाल करो। तुम्हें इन चीजों को गंभीरता से लेना चाहिए। अगर तुम गैर-विश्वासियों की तरह कहते हो, “यह वैसे भी मेरी नहीं है। इसे मैंने अपने पैसे से नहीं खरीदा। अगर कोई सार्वजनिक चीज टूटती है तो टूट जाए—बस नई खरीद लो या सबसे खराब स्थिति में उसे ठीक कर लो। फिर भी ऐसा नहीं है कि मैंने कुछ खो दिया हो।” अगर तुम ऐसे सोचते हो, तो यह परेशानी की बात है—तुम खतरे में हो। तुम्हारा चरित्र ईमानदार नहीं है और तुम्हारे इरादे सही नहीं हैं। अपनी चीजों का संयम से इस्तेमाल करना लेकिन परमेश्वर के घर की चीजों को महत्वहीन समझना, उन्हें सँजोने का ध्यान न रखना—क्या यह ऐसा व्यक्ति नहीं है जिसके इरादे सही नहीं हैं? क्या परमेश्वर ऐसे लोगों को पसंद करता है जिनके इरादे सही नहीं होते? (नहीं।) मुझे बताओ, क्या परमेश्वर ऐसे लोगों की जाँच करता है जिनके इरादे सही नहीं होते? (हाँ, करता है।) परमेश्वर उन लोगों की जिनके इरादे सही होते हैं और उनकी भी जिनके इरादे सही नहीं होते, समान रूप से जाँच करता है। जब तुम परमेश्वर की जाँच स्वीकारते हो तो तुम्हें क्या करना चाहिए अगर तुम पाते हो कि तुम उस तरह से सोच रहे हो? उस पर ध्यान नहीं देते? उसे बिना जाँचे छोड़ देते हो? उसकी परवाह नहीं करते? “मैं क्या सोचता हूँ यह मेरा व्यक्तिगत मामला है। इसमें दखल देने वाले तुम कौन होते हो? अगर तुम मुझे कोई चीज इस्तेमाल करने देते हो, तो मुझे उसका इस्तेमाल करने का अधिकार है—और हर हालत में, जब तक मैं मशीन तोड़ ही नहीं देता तब तक यह ठीक है। तुम इतनी ऊँची और इतनी सारी माँगें क्यों कर रहे हो?” क्या यह सोचने का एक अच्छा तरीका है? (नहीं।) यह “मानवता नहीं होना” है। अगर तुम्हारे ऐसे विचार हैं तो तुम्हें परमेश्वर की जाँच स्वीकारनी चाहिए और कहना चाहिए, “परमेश्वर, मेरा स्वभाव भ्रष्ट है और मेरी मानवता खराब है। मैं सोचता था कि मैं काफी नेक और सम्माननीय हूँ, मुझमें गरिमा है; मैंने नहीं सोचा था कि यह छोटी-सी वस्तु मुझे प्रकट कर देगी : मुझमें स्वार्थपूर्ण इच्छाएँ हैं; मेरे इरादे सही नहीं हैं; मेरे अपने छोटे-छोटे लक्ष्य हैं। मैं तुम्हारी जाँच और अनुशासन स्वीकार कर खुद को बदलने के लिए तैयार हूँ।” तुम्हें परमेश्वर के सामने प्रार्थना और पश्चात्ताप करना चाहिए और उसे अपनी जाँच करने देनी चाहिए। उसकी जाँच स्वीकार कर तुम्हें कैसे बदलना चाहिए? तुम कहोगे, “जैसे मैं पहले सोचता था, मेरा वैसा सोचना अनैतिक था—यह गैर-विश्वासियों की सोच है, छद्म-विश्वासियों की सोच है। मैं अब उस तरह नहीं सोच सकता। मुझे उस रास्ते पर नहीं जाना चाहिए। मैं परमेश्वर का विश्वासी हूँ; मुझे मानवता और गरिमा वाला व्यक्ति बनने की जरूरत है, मुझे वे काम करने की जरूरत है जो परमेश्वर को पसंद हों। मुझे भविष्य में उपकरणों और मशीनों के इस्तेमाल करने का अपना तरीका बदलने की जरूरत है। मुझे उन्हें तब आराम देना चाहिए जब उन्हें आराम देने की जरूरत है और आवश्यकतानुसार उनकी मरम्मत और उनका रखरखाव करना चाहिए। उनका सामान्य इस्तेमाल सुनिश्चित करने के लिए मुझे उन्हें अक्सर साफ करना चाहिए और नियमित रूप से उनके विभिन्न पुर्जों की जाँच करनी चाहिए। उनका इस्तेमाल कर लेने के बाद मैं तुरंत उन्हें साफ करके वापस सुरक्षित स्थान पर रख दूँगा ताकि असंबद्ध लोग उनके साथ छेड़छाड़ न कर सकें।” फिर जब तुम भविष्य में दोबारा मशीनों का इस्तेमाल करोगे तो तुम खास तौर से सावधान और चौकस रहोगे। तुम्हारे विचार लगातार बदलते रहेंगे और तुम्हारे तरीके सुधरेंगे, वे तुम्हारे पिछले स्वार्थपूर्ण, घृणित विचारों और क्रियाकलापों से हटकर जिम्मेदारी की भावना, चीजों की देखभाल करने वाले और जिम्मेदारी लेने वाले मन की ओर जाएँगे। तुम्हारी सोच में बदलाव तुम्हारे वास्तव में बदलने की शुरुआत है। जब तुम अपनी सोच और विचारों को अपने अभ्यास में परिणत करते हो तो यह तुम्हारे तरीकों में बदलाव बन जाता है। जब यह इस स्तर पर पहुँचता है तो परमेश्वर देखता है कि तुम वास्तव में बदल रहे हो और पश्चात्ताप कर रहे हो; तुम्हारे द्वारा किए गए ये उलटफेर और बदलाव वास्तव में परमेश्वर को स्वीकार्य होंगे। यह सत्य का अभ्यास करना है। सत्य का अभ्यास करने में व्यक्ति में सबसे बुनियादी चीज क्या होनी चाहिए? लोगों में जमीर और विवेक होना चाहिए। और क्या स्वार्थी, घृणित व्यक्ति में जमीर और विवेक होता है? (नहीं।) हो सकता है धर्म-सिद्धांत के तौर पर तुम जानते हो कि तुम परमेश्वर के घर की वस्तुएँ इधर-उधर पड़ी नहीं छोड़ सकते या उन्हें नुकसान पहुँचाकर बर्बाद नहीं कर सकते या उनके साथ गैर-जिम्मेदार नहीं हो सकते—लेकिन तुम्हारे दिल और विचारों में तुम्हारा रवैया क्या होता है? “इन चीजों की परवाह करने का क्या मतलब है? ये चीजें मेरी हैं ही नहीं।” ऐसी सोच तुम्हारे व्यवहार को संचालित करेगी और क्या तब जो धर्म-सिद्धांत तुम जानते हो वह किसी काम का होगा? नहीं—वह सिर्फ धर्म-सिद्धांत ही होगा जिसका कोई फायदा नहीं होगा। जब तुम्हारी सोच और विचार बदल जाएँगे और तुम सच में बदल जाओगे और परमेश्वर के सामने पश्चात्ताप करोगे, तभी तुम्हारा व्यवहार और तुम्हारे व्यावहारिक क्रियाकलाप बदलने शुरू होंगे। तभी तुम जो जिओगे उसमें मानवता आनी शुरू होगी; तभी तुम सत्य वास्तविकता में प्रवेश करना शुरू करोगे। ऐसी छोटी-सी बात व्यक्ति की मानवता प्रकट करती है, साथ ही यह भी कि क्या वह व्यक्ति सच में सत्य से प्रेम करता है।
परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुओं का प्रबंधन करना ऐसी जिम्मेदारी है जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को निभानी चाहिए और परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से प्रत्येक को सामूहिक रूप से पर्यवेक्षण, सहायता और अधिकतम सहयोग प्रदान करना चाहिए। यह हर किसी की जिम्मेदारी है। परमेश्वर के चुने हुए लोगों को मिसाल पेश करनी चाहिए। उन्हें खुद से शुरुआत करनी चाहिए—जब वे खुद अच्छा कार्य करते हैं, तभी वे दूसरों का निरीक्षण और यह आकलन करने के योग्य होते हैं कि दूसरे जो करते हैं वह उपयुक्त और सिद्धांतों के अनुरूप है या नहीं। यह ऐसा मामला है जिसमें हर कोई शामिल है, यह छोटी-सी बात लोगों की मानवता और साथ ही सत्य के प्रति उनका रवैया प्रकट कर देती है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यह कार्य अच्छी तरह से और अत्यधिक जोश के साथ, परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुसार करना चाहिए और हर आम भाई-बहन को भी इस मामले को सख्ती और सावधानी से लेना चाहिए। तुम्हें अक्सर आत्म-चिंतन कर इस बात पर विचार करना चाहिए कि कहीं तुम्हारी मानवता और सोच में कोई समस्या तो नहीं है और इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि तुम्हारा रवैया कैसा है। जब तुम्हें पता लगे कि तुम्हारे रवैये और सोच में कोई समस्या है, तो तुम्हें तुरंत प्रार्थना करनी चाहिए और खुद को बदलना चाहिए—और परमेश्वर के घर की चीजों का प्रबंधन या इस्तेमाल करते समय तुम्हें कुछ हद तक यह प्रयास करना चाहिए कि न तो तुम्हारा जमीर तुम्हें फटकारे, न ही परमेश्वर तुमसे निराश हो, और कुछ हद तक यह कि दूसरे तुम्हारी प्रशंसा करें और जो कुछ तुम करते हो उसे स्वीकार करें और कहें कि तुममें मानवता है जो सभी को दिखाई देती है। मुख्य बात यह है कि ऐसा करते समय लोगों को सिद्धांत बनाए रखने चाहिए। यह वह दायित्व है जिसे लोगों को पूरा करना चाहिए, ऐसी चीज है जिसे परमेश्वर के घर के किसी भी सदस्य को हासिल करना चाहिए। यह सिर्फ अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी नहीं है।
क्या अब तुम अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों की दसवीं मद के बारे में कमोबेश स्पष्ट हो? सिद्धांतों को समझने के बाद लोगों को यह कार्य करने में ज्यादा चौकस और सावधान रहना चाहिए और उन्हें इसके लिए ज्यादा मेहनत करनी चाहिए और आलसी नहीं होना चाहिए—तब वे मूल रूप से परमेश्वर के घर की भौतिक वस्तुओं की क्षति और बर्बादी कम कर पाएँगे और उन्हें बुरे लोगों द्वारा लूटे जाने से बचा पाएँगे। यह प्राप्य है। मैं क्यों कहता हूँ कि इसे हासिल करना आसान है? ये ऐसे मामले हैं जो घर पर हर किसी के दैनिक जीवन से संबंधित हो सकते हैं। अपने घर की चीजों का प्रबंधन करने में चौकस रहना आसान है, इसलिए अगर तुम परमेश्वर के घर की चीजों की सुरक्षा वैसे ही करते हो मानो वे तुम्हारी अपनी हों, परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं के अनुसार उन्हें समझदारी से आवंटित करते हो और उनकी क्षति और बर्बादी कम कर देते हो और बुरे लोगों को उन्हें लूटने नहीं देते तो तुम अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी पूरी कर रहे होते हो। यह कार्य अपनी प्रकृति से एक सामान्य कार्य प्रतीत होता है। हम इसे सामान्य कार्य क्यों कह रहे हैं? इसमें भौतिक वस्तुओं का प्रबंधन शामिल है। उनका अच्छी तरह से प्रबंधन और आवंटन करके तुम अपनी जिम्मेदारी पूरी कर रहे होते हो। साथ ही इस कार्य का सिद्धांत काफी सरल है—इसमें सिर्फ एक ही सिद्धांत शामिल है और इसमें जटिल सत्य शामिल नहीं हैं। अगर किसी के पास दायित्व है और उसके इरादे सही हैं तो वह इस कार्य को अच्छी तरह से कर सकता है, इसके लिए बहुत ज्यादा सत्य समझने और बहुत ज्यादा सत्य पर संगति किए जाने की जरूरत नहीं है। इसलिए यह एक एकल कार्य है और एक सामान्य कार्य है। यह ऐसा कार्य है जिसे करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए आसान है। अगर तुम थोड़े ज्यादा मेहनती हो, ज्यादा सवाल पूछते हो, ज्यादा पूछताछ करते हो, ज्यादा दिलचस्पी लेते हो और सही इरादे रखते हो तो तुम इसे कर सकते हो। यह बिल्कुल भी जटिल नहीं है। हमने अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों की दसवीं मद पर अपनी संगति समाप्त कर ली है। यह बहुत आसान है।
परमेश्वर के घर की भौतिक वस्तुओं के प्रति नकली अगुआओं का रवैया और अभिव्यक्तियाँ
अब जबकि तुमने अगुआओं और कार्यकर्ताओं की यह जिम्मेदारी समझ ली है तो इसके संबंध में हम उन अभिव्यक्तियों का विश्लेषण करेंगे जो नकली अगुआ इस कार्य को करते समय प्रदर्शित करते हैं और इस बात का भी विश्लेषण करेंगे कि वे ऐसी कौन-सी चीजें करते हैं जो उन्हें नकली अगुआ के रूप में परिभाषित करवा सकती हैं। पहली, जब नकली अगुआ यह कार्य करते हैं तो वे विभिन्न वस्तुओं की समुचित सुरक्षा करने में सक्षम नहीं होते। जब तमाम तरह की भौतिक वस्तुओं की बात आती है, तो उनकी सुरक्षा करना महत्वपूर्ण कार्य की पहली मद है। नकली अगुआ अपने हर कार्य में गड़बड़ करते हैं; जिस तरह सत्य और उससे जुड़े विभिन्न सिद्धांतों की बात आने पर वे दलदल में फँस जाते हैं, उसी तरह परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुओं की सुरक्षा करने के मामले में भी वे इसी तरह गड़बड़ करते हैं। वे नहीं जानते कि उन भौतिक वस्तुओं का प्रबंधन करने के लिए किस तरह के लोग ढूँढ़ने चाहिए या उन्हें किस तरीके से सुरक्षित रखना चाहिए। उनके पास इस कार्य को करने के लिए कोई सटीक लक्ष्य और कोई विशिष्ट योजना नहीं होती, सोपानवार विस्तृत योजना होना तो दूर की बात है। अगर कोई परेशानी उठाने को तैयार हो तो इन वस्तुओं की सुरक्षा की जा सकती है; अगर न हो तो नकली अगुआ इन वस्तुओं को लापरवाही से अलग रख देता है। उसे उन वस्तुओं को सुरक्षित रखने के लिए कोई उपयुक्त व्यक्ति या उनका भंडारण करने के लिए कोई उपयुक्त स्थान नहीं मिलता, उन्हें सुरक्षित रखने के विशिष्ट सिद्धांतों के बारे में संगति तो वह बिल्कुल नहीं करता। साथ ही वह इन भौतिक वस्तुओं के भविष्य में स्थान निर्धारण, मरम्मत और रखरखाव के लिए कोई व्यवस्था नहीं करता। कुछ नकली अगुआ तो इस बात से भी पूरी तरह से अनभिज्ञ होते हैं कि परमेश्वर के घर में क्या-क्या वस्तुएँ हैं—वे न तो इसकी परवाह करते हैं और न ही इसके बारे में पूछते हैं। उदाहरण के लिए मान लो परमेश्वर के घर ने परमेश्वर के वचनों की नई पुस्तकें छापी हैं। वितरित किए जाने के बाद उनमें से कितनी पुस्तकें बची हैं, उन्हें संगृहीत करने के लिए किसे नियुक्त किया गया है, उन्हें कैसे संगृहीत किया जा रहा है और क्या उन्हें सही स्थान पर संगृहीत किया जा रहा है—नकली अगुआ इनमें से कुछ भी नहीं जानता, न ही वह इनके बारे में पता लगाता है या पूछताछ करता है। वह पूछताछ क्यों नहीं करता? उसे लगता है कि परमेश्वर के घर की भौतिक वस्तुओं की सुरक्षा करना एक छोटा मामला है, और वह एक अगुआ है, ऐसा व्यक्ति जो महत्वपूर्ण कार्य करता है, जो सिर्फ उपदेश देता है। वह इन “छोटे मामलों” पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देता, बल्कि उन्हें ऐसे लोगों को करने के लिए सौंप देता है जो कुछ नहीं समझते और उसे परवाह नहीं होती कि वे अच्छे से किए जा रहे हैं या बुरे तरीके से। इसलिए वह परमेश्वर के घर की भौतिक वस्तुओं की सुरक्षा के कार्य को बिल्कुल भी गंभीरता से नहीं लेता। यह एक कारण है। दूसरा कारण यह है कि कुछ नकली अगुआ भ्रमित होते हैं—उनके दिमाग में उथल-पुथल मची रहती है। उनमें चीजों की सुरक्षा के लिए सामान्य सोच या जागरूकता नहीं होती और उनके पास परमेश्वर के घर की वस्तुओं की सुरक्षा करने के लिए कोई प्रक्रिया या मार्ग नहीं होता। इसलिए वे नहीं जानते कि उनमें से कितनी चीजें क्षतिग्रस्त हो गई हैं और यह भी नहीं जानते कि क्या उनके बर्बाद होने के मामले भी हैं। जब कुछ चीजें बुरे लोगों द्वारा ले ली जाती हैं, तो नकली अगुआ कहता है, “उन्हें ले लेने दो—वैसे भी सब-कुछ परमेश्वर के हाथों में है।” कुछ महत्वपूर्ण वस्तुएँ व्यक्तियों द्वारा बिना किसी की स्वीकृति के इस्तेमाल की जाती हैं; वे लोग उन चीजों को ले लेते हैं और दूसरे लोग उन्हें अपने कार्य में इस्तेमाल नहीं कर पाते और कोई उन्हें माँगने की हिम्मत नहीं करता। नकली अगुआ कहता है, “यह कोई बड़ी बात नहीं है। बस नई खरीद लो। उन्होंने वह चीज ले ली है, इसलिए उन्हें पहले उसका इस्तेमाल करने दो। वह एक चीज ही तो है—चाहे जो भी उसका इस्तेमाल करे, एक ही बात है। अगर वे उसका समझदारी से इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं तो यह उनके और परमेश्वर के बीच का मामला है। हमें इसमें हस्तक्षेप करने की कोई जरूरत नहीं है।” देखो वे मुद्दे को “सँभालने” के लिए एक भव्य धर्म-सिद्धांत का किस तरह प्रचार करते हैं, बड़े मुद्दों को छोटे मुद्दों में बदल देते हैं और छोटे मुद्दों को मुद्दे ही नहीं रहने देते। जब परमेश्वर के घर की विभिन्न वस्तुओं की सुरक्षा की बात आती है तो नकली अगुआ अपनी कोई जिम्मेदारी पूरी नहीं करते। वे उसकी परवाह नहीं करते या उसके बारे में नहीं पूछते और वे किसी भी समस्या का समाधान या प्रबंधन नहीं करते। अगर ऊपरवाला भी उनके कार्य को देखता हो तो भी वे सिर्फ बहाने बनाकर टाल-मटोल करते हैं, और कुछ नहीं।
कुछ भाई-बहन परमेश्वर के घर के उपयोग के लिए उपकरण, कपड़े और दवाइयाँ खरीदते हैं और जब कोई नकली अगुआ उन वस्तुओं को देखता है तो वह उनमें से अच्छे कपड़े, जूते और बैग अपने लिए छाँट लेता है और दूसरों को सिर्फ वही बचा हुआ सामान लेने देता है जिसकी उसे खुद जरूरत नहीं होती। जिन मूर्खों की वह अगुआई करता है, वे इसे देखकर कहते हैं, “हमारे अगुआ को जो चाहिए, वह उसने चुन लिया है—अब हमारी बारी है। जब हम भी चुन लेंगे तब जो बेकार सामान बचेगा उसे अपने नीचे के भाई-बहनों की ओर ठेल देंगे।” जिसके भी हाथ ये चीजें लगती हैं वे उसी की हो जाती हैं और बची हुई चीजें जो किसी को पसंद नहीं आतीं, फेंक दी जाती हैं और कोई उनकी सुरक्षा नहीं करता। इसलिए परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुओं की सुरक्षा के लिए नाममात्र के स्थान होते तो हैं, लेकिन वास्तव में उनकी सुरक्षा बिल्कुल नहीं की जाती—वे स्थान कूड़े के ढेर होते हैं जिनका प्रबंधन कोई नहीं करता। वे बस चीजों को किसी जगह फेंक देते हैं और उनका ढेर लगने देते हैं। वहाँ कपड़े, जूते, जुराब, दवाएँ, इलेक्ट्रॉनिक्स और साथ ही रोजमर्रा का सामान और रसोई के बर्तन होते हैं—यह एक गड़बड़झाला होता है जिसमें तमाम तरह का कबाड़ होता है, यहाँ तक कि लोगों का भोजन और कुत्तों का भोजन भी आपस में मिल जाता है। अगर तुम पूछो कि इन चीजों का प्रबंधन कौन करता है और क्या वह इनकी छँटाई करता है; या क्या इन चीजों के लिए निर्देश हैं और इन्हें कैसे सुरक्षित रखने की जरूरत है; या क्या ये चीजें परमेश्वर के घर के कार्य के लिए आवश्यक नहीं हैं, क्या भाई-बहनों को इनकी जरूरत है—तो कोई इनका जवाब नहीं जानता। भाई-बहनों का जवाब न जानना काफी सामान्य है, लेकिन अगुआओं और कार्यकर्ताओं के पास भी इनमें से किसी भी सवाल का जवाब नहीं होता—वे इन चीजों की जिम्मेदारी से पूरी तरह बचते हैं और या तो यह कहकर कि “मुझे नहीं पता” या यह कहकर कि “कोई इसका खयाल रख रहा है,” तुम्हें टाल देते हैं और परमेश्वर के घर को धोखा देते हैं। इससे ये समस्याएँ अनसुलझी रह जाती हैं। अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुओं का प्रबंधन करने के लिए उपयुक्त लोगों को ढूँढ़ना मुश्किल नहीं है, है ना? नकली अगुआ इन चीजों की उचित सुरक्षा करने, उनकारिकॉर्ड दुरुस्त रखने और उन्हें अच्छी तरह से छाँटकर रखने के लिए किसी वफादार व्यक्ति को खोजने का सरल कार्य भी नहीं करते। तो फिर वे क्या करते हैं? जब भाई-बहन परमेश्वर के घर को कपड़े या रोजमर्रा की जरूरत की चीजें चढ़ाते हैं तो नकली अगुआ उन चीजों को देखकर उनके चारों ओर झुंड बना लेते हैं, जैसे भूखे भेड़ियों का झुंड इकट्ठे मांस खा रहा हो। जो भी कपड़े उन्हें जँचते हैं वे उन्हें बार-बार पहनकर देखते हैं और अपने लिए लगातार चीजें चुनते रहते हैं। जब परमेश्वर का घर विभिन्न प्रकार की महत्वपूर्ण और महँगी मशीनरी और उपकरण खरीदता है, तो वे पहले अपने लिए अच्छी चीजें चुनने दौड़ते हैं। वे अच्छी चीजें क्यों चुनते हैं? उन्हें लगता है कि अगुआ या कार्यकर्ता के तौर पर उन्हें परमेश्वर के घर की चीजों के उपयोग का विशेषाधिकार प्राप्त है। परमेश्वर का घर जो भी चीजें जारी करता है, वे हमेशा सबसे अच्छी चीजें पहले चुन लेते हैं। परमेश्वर के घर की चीजों के साथ वे इसी तरह पेश आते हैं। क्या यह कार्य करना है? क्या यह नकली अगुआओं की अभिव्यक्ति नहीं है? जब अवधि समाप्ति की तिथि वाली चीजों—जैसे कि भोजन और दवाओं—की बात आती है तो नकली अगुआ उनकी परवाह ही नहीं करते। वे उनका प्रबंधन करने के लिए उपयुक्त कर्मचारी नहीं ढूँढ़ते, न ही वे कर्मचारियों से यह कहते हैं, “इनमें से कुछ चीजों की अवधि समाप्ति की तिथि होती है, इसलिए इनका तुरंत रिकॉर्ड बना लो। इनकी अवधि समाप्ति की तिथि से पहले इन्हें जल्दी से भाई-बहनों को आवंटित कर दो, ताकि इनका समझदारी से उपयोग किया जा सके—इनकी अवधि समाप्त होने का इंतजार मत करो; इन्हें बर्बाद मत होने दो।” नकली अगुआ कभी ये काम नहीं करते। जब किसी चीज की अवधि समाप्त हो जाती है तो वे बस उसे फेंक देते हैं। जब अगुआ और कार्यकर्ता परमेश्वर के घर में कार्य करते हैं, तो असल में उन्हें परमेश्वर के घर का प्रबंधक होना चाहिए। पहली चीज जो उन्हें करनी चाहिए, वह है परमेश्वर के घर की वस्तुओं की समझदारी से सुरक्षा करना, उन पर कड़ी निगरानी रखना और उनकी उचित जाँच करना। यह भी परमेश्वर के घर का एक बुनियादी कार्य है, फिर भी नकली अगुआ ऐसा बुनियादी कार्य भी नहीं कर सकते। क्या वे भ्रमित, खराब काबिलियत वाले और मंदबुद्धि होते हैं—या उनके इरादे सही नहीं होते? अगर वे मंदबुद्धि और भ्रमित होते, तो अपने लिए अच्छी चीजें चुनना कैसे जानते? वे अपनी चीजें क्यों नहीं छोड़ देते या दूसरों को क्यों नहीं दे देते? वे अपनी चीजें क्यों नहीं खराब या क्षतिग्रस्त करते? और परमेश्वर के घर की चीजों के प्रति उनका यह रवैया क्यों रहता है? स्पष्ट रूप से उनमें नैतिकता नहीं होती और उनके इरादे सही नहीं होते। जब अगुआ और कार्यकर्ता हैसियत प्राप्त कर लेते हैं और परमेश्वर के घर के कार्य के बड़े दायरे के संपर्क में आ जाते हैं, तो उन्हें परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुओं और सार्वजनिक संपत्ति तक पहुँच का विशेषाधिकार प्राप्त हो जाता है और वे इन चीजों के बारे में सबसे ज्यादा जानकारी रखते हैं। फिर भी कुछ अगुआ उन्हें अनदेखा करते हैं, उन्हें ठीक से सुरक्षित नहीं रखते और किसी को भी उनका इस्तेमाल करने और उन्हें ले जाने देते हैं, जो कोई भी उनकी देखभाल करने को तैयार होता है उसी को करने देते हैं और अगर कोई उनकी देखभाल करने को तैयार नहीं होता और गैर-जिम्मेदार होता है तो वे इसका बुरा नहीं मानते और भले ही उन्हें पता चले कि किसी को कोई समस्या है, वे उसका समाधान नहीं करते। ये नकली अगुआ होते हैं। इस बिंदु पर हमने निष्कर्ष निकाला है कि नकली अगुआ न सिर्फ खराब काबिलियत वाले और दायित्व न उठाने वाले होते हैं, बल्कि गलत इरादे भी रखते हैं और खराब चरित्र के होते हैं। चूँकि ये अगुआ खराब काबिलियत वाले होते हैं और उनमें समझ की कमी होती है, इसलिए उनका सत्य और जीवन-प्रवेश से जुड़ा कार्य खराब तरीके से करना समझ में आता है। और चूँकि वे खराब काबिलियत वाले होते हैं और उनमें कार्य क्षमता नहीं होती, इसलिए उनका प्रशासन से जुड़ा कार्य खराब तरीके से करना करना भी बर्दाश्त किया जा सकता है। लेकिन उनका परमेश्वर के घर की विभिन्न वस्तुओं के प्रबंधन से जुड़ा कार्य करने में भी सक्षम न होना—जो कि सबसे न्यूनतम, सरल कार्य है—कुछ और भी स्पष्ट रूप से दर्शाता है : कुछ नकली अगुआओं की समस्या खराब काबिलियत होने और दायित्व न उठाने जितनी सरल नहीं होती, इससे भी बढ़कर वे खास तौर से घटिया चरित्र और खराब मानवता वाले होते हैं। अगुआओं और कार्यकर्ताओं की दसवीं जिम्मेदारी पर हमारी संगति के जरिये नकली अगुआओं की एक और अभिव्यक्ति प्रकट हुई है : वे न सिर्फ खराब काबिलियत वाले, दायित्व नहीं उठाने वाले और दैहिक सुख के लालची होते हैं—बल्कि वे खराब चरित्र के भी होते हैं और उनके इरादे सही नहीं होते। जो चीजें उनकी नहीं होतीं वे उनके लिए चिंता का विषय नहीं होतीं—वे उनकी सुरक्षा तक नहीं करते। उन्हें परमेश्वर के घर का प्रबंधक बनाया गया है, फिर भी वे जिस पत्तल में खाते हैं उसी में छेद करते हैं और परमेश्वर के घर पर निर्भर रहने के बावजूद उसके हितों की रक्षा नहीं करते; वे परमेश्वर के घर की चीजें लापरवाही से एक तरफ फेंक देते हैं मानो वे बाहरी लोगों की हों, और उनकी सुरक्षा नहीं करते, उन्हें लगता है कि वे कोई बड़ी चीजें नहीं हैं। यह सिर्फ अपनी जिम्मेदारियाँ निभाने में विफलता नहीं है—यह उनकी मानवता के साथ समस्या है, यह नैतिकता की एक बड़ी कमी है! जिन चीजों की सुरक्षा करने की उनसे अपेक्षा की जाती है उनकी खराब तरीके से सुरक्षा करना या उनकी सुरक्षा ही नहीं करना इस बात का द्योतक है कि नकली अगुआओं में मानवता नहीं होती और उनके इरादे सही नहीं होते। वे परमेश्वर के घर की वस्तुओं की सुरक्षा तक अच्छी तरह से नहीं कर सकते, इसलिए अगर उन्हें उन वस्तुओं को आवंटित करना हो तो क्या वे ऐसा समझदारी से कर सकते हैं? वे सिद्धांतों के अनुसार कार्य करने में तो और भी पीछे रह जाते हैं। वे परमेश्वर के घर की वस्तुएँ लापरवाही से फेंके जाते, क्षतिग्रस्त और बर्बाद होते देखते हैं, जिनका प्रबंधन करने वाला कोई अच्छा व्यक्ति नहीं होता और वे अपने दिलों में अच्छी तरह जानते हैं कि ऐसा करना सही नहीं है—फिर भी वे इसे नहीं सँभालते। यह इरादे सही नहीं होना है। क्या वे कमीने, जिनके इरादे सही नहीं होते, परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुएँ समझदारी से आवंटित कर सकते हैं? वे ऐसा करने में और भी कम सक्षम होते हैं—अगर तुम उनसे ये चीजें आवंटित करवाओगे तो वे ऐसे काम करेंगे जिनमें नैतिकता की और भी कमी होगी।
एक फार्म कलीसिया में, जहाँ कुत्ते पाले जाते हैं, उन्हें पालने के लिए जिम्मेदार व्यक्ति नवजात पिल्लों का बहुत ध्यान रखता है। उसे डर लगा कि पिल्लों को उनकी जरूरत के हिसाब से पोषण नहीं मिलेगा, इसलिए उसने कुत्तों के खाने के लिए जैविक अंडों के लिए आवेदन किया। वहाँ के नकली अगुआ ने तुरंत अनुरोध का अनुमोदन कर दिया; उसने इस बारे में नहीं सोचा कि जैविक अंडे कितने दुर्लभ हैं। वे लोगों के खाने के लिए भी पर्याप्त नहीं हैं तो वे कुत्तों को कैसे देंगे? क्या यह इस मामले को सँभालने का बेतुका तरीका नहीं है? उस नकली अगुआ के इस व्यवहार की प्रकृति क्या है? इसका वर्णन कैसे किया जाए? क्या उस नकली अगुआ का यह अभ्यास बेतुका नहीं है? वह नकली अगुआ हर समय जब भी अपना मुँह खोलकर कुछ बोलता है वे लोगों की रुचि के अनुरूप धर्म-सिद्धांत होते हैं, लेकिन असल में वह सत्य सिद्धांतों को जरा भी नहीं समझता, इसलिए जब कुछ होता है तो वह उसे इंसानी कल्पनाओं, प्राथमिकताओं और व्यक्तिपरक इच्छाओं के अनुसार देखता और सँभालता है—और अंततः वह कुत्तों को जैविक अंडे खिलाने जैसा घिनौना काम कर डालता हैं। क्या उस नकली अगुआ द्वारा परमेश्वर के घर की वस्तुओं का इस तरह से आवंटन समझदारी भरा माना जा सकता है? (नहीं।) वह समझदारी से आवंटन क्यों नहीं कर सकता? ऊपर से ऐसा लगता है कि नकली अगुआ इस बहुत छोटे मामले में भी हस्तक्षेप कर रहा था, उसका ध्यान रख रहा था, उसकी प्रगति की जानकारी ले रहा था और उसके पास इस आवेदन का समर्थन करने के लिए पर्याप्त कारण और आधार थे—लेकिन क्या वह सिद्धांतों के अनुरूप कार्य कर रहा था? क्या वह परमेश्वर के घर द्वारा अपेक्षित सिद्धांतों के अनुसार कार्य कर रहा था? नहीं। तो उसके इस कार्य की प्रकृति को देखते हुए यह सत्कर्म है या दुष्कर्म? यह उसकी जिम्मेदारी का निर्वाह है या उपेक्षा? यह जिम्मेदारियों की उपेक्षा करना है—यह असैद्धांतिक है, लापरवाही से बुरे काम करना है! इस मामले के जरिये तुम इस नकली अगुआ की मानवता का सार क्या देखते हो? क्या यह विनियमों की विकृत समझ और उनका अंधा अनुप्रयोग नहीं है? हर सांस के साथ वह जो कुछ भी कहता है, वे सही धर्म-सिद्धांत होते हैं और ऐसा लगता है जैसे उसमें कोई गलत वाक्यांश नहीं होता, फिर भी असल में वह विकृत होता है। ऐसे लोग नकली आध्यात्मिक होते हैं और उनकी समझ विकृत होती है—वे कचरे के टुकड़े होते हैं जिनमें आध्यात्मिक समझ नहीं होती। हमने अभी उल्लेख किया कि नकली अगुआओं की मानवता ऐसी होती है कि वे घटिया चरित्र के होते हैं और उनके इरादे सही नहीं होते। जब परमेश्वर के घर की वस्तुएँ आवंटित करने का समय आता है तो उनमें सिद्धांत नहीं होते और वे उन्हें आँख मूँदकर आवंटित करते हैं, जिससे पता चलता है कि नकली अगुआओं की समझ विकृत होती है और वे आँख मूँदकर विनियमों को लागू करते हैं और अपने क्रियाकलापों में सिद्धांतहीन होते हैं—वे बस आँख मूँदकर और बेतरतीब ढंग से काम करते हैं। नकली अगुआ ऊपर से बहुत उदार और दयालु लगते हैं, जबकि असल में यह झूठी उदारता और झूठी दयालुता होती है। उदाहरण के लिए, जब एक कुतिया ने पिल्लों को जन्म दिया तो कुत्ता-पालक ने कहा कि उन्हें कुत्तों को वह कंबल देना चाहिए जो लोगों को दिया जाता है। तब किसी ने कहा, “कुत्तों को नया कंबल देना अफसोस की बात होगी—इसके बजाय उसे भाई-बहनों को देना बेहतर होगा और हमारा पुराना कंबल जानवरों को दे देना।” तुम इस सुझाव के बारे में क्या सोचते हो? नई चीजें लोगों को और पुरानी चीजें जानवरों को देना काफी समझदारी है। यही सिद्धांत है; यही समझदारी भरा आवंटन है। नकली अगुआओं का सामना जब ऐसी चीजों से होता है तो वे उनसे कैसे निपटते हैं? यह सुनने के बाद वहाँ मौजूद नकली अगुआ ने सोचा : “जानवरों को कभी नई चीजें इस्तेमाल करने को नहीं मिलतीं। वे हमेशा पुरानी, गंदी चीजें इस्तेमाल करते रहते हैं। हम लोगों को हमेशा नई चीजें इस्तेमाल करने को मिलती हैं। परमेश्वर के वचनों में कहा गया है कि कभी-कभी हम सूअरों या कुत्तों से भी गए-बीते होते हैं। इसलिए चीजों के लिए सूअरों और कुत्तों से मत लड़ो। यह मानवता की कमी है।” लिहाजा उसने उन जानवरों को नया कंबल दे दिया। वहाँ मौजूद लोगों को पुराना कंबल इस्तेमाल करने से कोई नुकसान नहीं हुआ होगा, लेकिन जिस तरह से इस चीज को सँभाला गया वह इस मुद्दे का बहुत अच्छा उदाहरण है। इस मामले में नकली अगुआ ने क्या भूमिका निभाई? क्या तुम लोग कहोगे कि सामान्य लोग ऐसा कर पाएँगे? (नहीं।) तो इस मामले को सँभालते समय किस तरह के लोग चीजों को इस हद तक पहुँचने देते हैं? (बेतुके लोग जिनमें सामान्य लोगों जैसी समझ या सोच नहीं होती।) ये सभी उत्तर सही हैं—वे लोग नाकारा हैं। जब सामान्य लोग ऐसी किसी चीज का सामना करते हैं तो वे जानते हैं कि उसे समझदारी से कैसे सँभालना है, लेकिन विकृत समझ वाले झूठ-मूठ के आध्यात्मिक नकली अगुआ नहीं जानते कि इसे कैसे सँभालना है। इसे सँभालने के उनके तरीके का भी एक आधार प्रतीत होता है और वह परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुरूप और प्रचुर, समझदारी भरे औचित्यों द्वारा समर्थित भी प्रतीत होता है—फिर भी लोग इसे सुनने के बाद यह नहीं जान पाते कि हँसें या रोएँ, यह इतना हास्यास्पद होता है। ऐसा कैसे है कि वे इतना सरल, स्पष्ट तर्क भी नहीं समझ पाते? वे इसे इतने विकृत तरीके से कैसे सँभालते हैं? यह घिनौना है। अगर तुम उनसे फार्म के प्रबंधकों के रूप में कार्य करवाओगे तो वे कुत्तों से चूहे पकड़वाएँगे, बिल्लियाँ से घर की रखवाली करवाएँगे और सूअरों को बिस्तरों पर सुलाएँगे—सब-कुछ गड्ड-मड्ड हो जाएगा। क्या नकली अगुआ परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुएँ समझदारी से आवंटित करने में सक्षम होते हैं? (नहीं।) वे एक अलग तरह के उलझे हुए और बेतुके किस्म के लोग होते हैं। खास तौर से विकृत समझ और गलत इरादे रखने वाले नकली अगुआओं के अलावा, ज्यादातर नकली अगुआ भी इस तरह के कार्य को गड्ड-मड्ड और अस्तव्यस्त कर देते हैं, हालाँकि उनमें थोड़ी काबिलियत होती है और उनकी समझ विकृत नहीं होती। वे सबसे मामूली जिम्मेदारियाँ भी नहीं निभा पाते जो उन्हें निभानी चाहिए। इसलिए जब तुम उनसे इस कार्य के बारे में पूछते हो, तो उनका हमेशा एक ही जवाब होता है : “फलाँ-फलाँ आदमी इस पर काम कर रहा है। फलाँ-फलाँ आदमी जानता है। अगर तुम्हारा कोई सवाल है, तो मुझे फलाँ-फलाँ से पूछना होगा।” और यही वह आखिरी बात है जो तुम इसके बारे में सुनोगे। नकली अगुआ इस कार्य को करते समय यही अभिव्यक्ति प्रदर्शित करते हैं।
जब परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुएँ आवंटित करने के कार्य की बात आती है, तो नकली अगुआ परमेश्वर के घर द्वारा अपेक्षित सिद्धांतों के अनुसार ऐसा करने में असमर्थ ही नहीं होते, बल्कि वे अपनी बहुत-सी व्यक्तिगत भावनाएँ, प्राथमिकताएँ, इच्छाएँ और साथ ही अपनी व्यक्तिगत समझ भी इसमें मिला देते हैं। वे इस कार्य को गड्ड-मड्ड करके उलझा देते हैं जिसमें कोई कहने लायक सिद्धांत बिल्कुल नहीं होता। इसलिए जब कोई नकली अगुआ परमेश्वर के घर की विभिन्न वस्तुओं का प्रबंधन कर रहा होता है तो, ऐसी परिस्थितियों में जहाँ कोई नहीं जानता कि क्या हो रहा है, अक्सर चीजें क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, बेवजह बर्बाद हो जाती हैं या गायब हो जाती हैं और उनका हिसाब सही नहीं बैठता। कुछ अन्य वस्तुएँ लोग बिना रजिस्टर में लिखे या बिना बताए अपने निजी उपयोग के लिए ले जाते हैं। नकली अगुआ सामान्य मामलों के ऐसे सरल कार्य का प्रबंधन भी अच्छी तरह से नहीं कर सकते। वे इस कार्य को अव्यवस्थित कर देते हैं, फिर भी वे यह सोचकर सहज महसूस करते हैं कि उन्होंने बहुत काम किया है। नकली अगुआ परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुओं का नियमित निरीक्षण, रखरखाव और देखभाल कभी नहीं करते; दिल से वे इन वस्तुओं के बारे में जरा भी परवाह नहीं करते। मान लो तुम उनसे पूछते हो, “क्या कोई इन उपकरणों का रखरखाव और देखभाल करता है? क्या इनकी मरम्मत करते समय स्पेयर पार्ट्स खरीदने में फिजूलखर्ची के मामले हुए हैं? या किसी के द्वारा ज्यादा खर्च किए जाने या ठगे जाने के मामले हुए हैं? क्या इन घटनाओं के बाद किसी को जवाबदेह ठहराया गया? क्या किसी पर जुर्माना लगाया गया या चेतावनी दी गई?” नकली अगुआ इनमें से कुछ नहीं जानते या इनमें से किसी की परवाह नहीं करते। क्या परमेश्वर के घर के लिए चीजें खरीदते समय पैसे नाजायज तरीके से खर्च किए गए थे, क्या उन चीजों को खरीदने के बाद उनका प्रबंधन करने के लिए किसी को नियुक्त किया गया था, क्या खरीदी गई चीजें उपयुक्त हैं और क्या उनका प्रभावी उपयोग किया जा सकता है, अगर नहीं तो क्या उन्हें निर्दिष्ट समय-सीमा के भीतर वापस किया गया या बदला गया था—वे इनमें से कुछ नहीं जानते। वे इतने मूर्ख हैं—वे कुछ नहीं जानते। नकली अगुआ सिर्फ यही सोचते हैं कि सभाओं में धर्म-सिद्धांतों का उपदेश कैसे दें ताकि लोग उनका सम्मान करें; जब वस्तुओं के प्रबंधन के विशिष्ट मामले की बात आती है तो उनमें कोई कार्य क्षमता नहीं होती, न ही उनका इस मामले के प्रति कोई रवैया होता है। वे नहीं जानते कि यह वह कार्य है जो उन्हें करना चाहिए, न ही वे यह जानते हैं कि इसे कैसे करना है। नकली अगुआओं का परमेश्वर के घर की वस्तुओं के बारे में यह दृष्टिकोण होता है कि वे सभी की हैं, इसलिए जो कोई भी किसी चीज का इस्तेमाल करना चाहे वह कर सकता है और जिसे किसी चीज की जरूरत हो वह उसे ले सकता है या उच्च अधिकारियों से उसके लिए आवेदन कर सकता है—यह सभी का अधिकार है और परमेश्वर के घर की वस्तुएँ किसी व्यक्ति के प्रबंधन या नियंत्रण में नहीं होनी चाहिए। इसलिए अगर कोई व्यक्ति मशीन तोड़ दे या खो दे तो वे परवाह नहीं करते और अगर कोई कुछ खरीदने के लिए आवेदन करता है तो वे इस बात की भी परवाह नहीं करते कि वह महँगी है या सस्ती। तथ्य यह है कि परमेश्वर के घर में इन चीजों के लिए नियम हैं। अगर अगुआ और कार्यकर्ता अपनी जिम्मेदारियाँ निभाते हैं और परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुसार उचित जाँच करते हैं तो ऐसे तमाम नुकसानों और बर्बादी से बचा जा सकता है। लेकिन नकली अगुआ यह सबसे आसान कार्य भी नहीं करते जो नुकसान रोक सकता है। क्या वे परमेश्वर के घर का खाना मुफ्त में नहीं खा रहे हैं? क्या वे मुफ्तखोरी नहीं कर रहे हैं? क्या यह नकली अगुआओं के “नकलीपन” की एक विशिष्ट अभिव्यक्ति नहीं है? अगर तुम्हारा सामना ऐसे किसी अगुआ से हो जाए तो तुम लोग उससे कैसे निपटोगे? (उसे बर्खास्त कर देंगे।) बस उसे बर्खास्त कर दोगे, और हो गया? क्या तुम्हें उसे एक-दो सबक सिखाने की जरूरत नहीं है? “वह मशीन वहाँ रखी थी, उसमें सीलन आ गई और किसी ने कई दिनों तक उसकी जाँच नहीं की। यह स्पष्ट नहीं है कि उसमें बिजली अभी भी जाती है या चूहों ने उसके तार कुतर दिए हैं। तुम इन चीजों की चिंता क्यों नहीं करते? मैं जिस कंप्यूटर का इस्तेमाल करता हूँ वह टूटा हुआ है और उसे मरम्मत की जरूरत है। अगर उसकी मरम्मत नहीं की गई तो कार्य में देरी होगी। फिर भी मैंने तुमसे इसके लिए कई बार आवेदन किया है—तुमने ध्यान क्यों नहीं दिया? तुम सिर-कटे मुर्गे की तरह पूरे दिन आँख मूँदकर किस काम में व्यस्त रहते हो? जब तुम जैसे अगुआ पर कार्य करने का भरोसा किया जाता है तो तुम पूरे काम में देरी करते हो और तमाम मशीनें और भौतिक वस्तुएँ तुम्हारे हाथों नष्ट हो जाती हैं। तुम परमेश्वर के घर की विभिन्न वस्तुओं की देखभाल या प्रबंधन नहीं करते। तुम अगुआ होने लायक नहीं हो—जल्दी करो और पद छोड़ दो!” क्या उसे इस तरह से डाँटना ठीक है? (हाँ।) अगुआओं और कार्यकर्ताओं को डाँटने की हिम्मत करने वाले व्यक्ति में क्या होता है? पहले तो उसे बहादुर होना चाहिए और उसमें न्याय की भावना होनी चाहिए। कुछ लोग कह सकते हैं, “मैं अगुआओं और कार्यकर्ताओं को डाँटने की हिम्मत नहीं करूँगा। वे अधिकारी हैं और मैं सिर्फ प्यादा हूँ, मेरा पद उनसे बहुत नीचे का है। उनके पास सत्य है और वे धर्मोपदेश दे सकते हैं। मैं किसी भी चीज में अच्छा नहीं हूँ और उन्हें डाँटने की स्थिति में नहीं हूँ।” क्या यह एक बदमाश का तर्क नहीं है? (हाँ, है।) तो फिर तुम लोग ऐसे अगुआ को कैसे डाँटोगे? “अगर तुम यह काम कर सकते हो तो इसे करने की पूरी कोशिश करो और इसे परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुसार करो। तुम हमारे लिए जो भी व्यवस्था करोगे, हम उसका पालन करेंगे। लेकिन अगर तुम इस काम को करने की पूरी कोशिश नहीं करते, अगर तुम इसे परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुसार नहीं करते, तो तुम हमसे अपनी बात सुनने की उम्मीद नहीं कर सकते! इसके अलावा, अगर तुम कोई वास्तविक कार्य नहीं करते, तो हमें तुम्हें तुम्हारे पद से हटाकर बाहर निकालने का अधिकार है! अगर तुम किसी को नुकसान पहुँचाना ही चाहते हो तो खुद को नुकसान पहुँचाओ—तुम्हें हम सभी को नुकसान पहुँचाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।” क्या तुम लोग उसे इस तरह से डाँटने की हिम्मत करोगे? (हाँ।) तुम अभी ऐसा कहते हो; लेकिन जब ऐसा करने का समय आएगा तो क्या तुम वास्तव में ऐसा करोगे? आम तौर पर सत्य सिद्धांतों और महत्वपूर्ण मामलों से जुड़ी चीजों के बारे में तुम लापरवाही से बात करने की हिम्मत नहीं करते, क्योंकि तुम डरते हो कि अंतर्दृष्टि का अभाव और बोलने में स्पष्टता की कमी का मतलब यह हो सकता है कि तुम सिर्फ अगुआओं और कार्यकर्ताओं की आलोचना करके गड़बड़ी पैदा कर रहे हो। लेकिन तुम्हें भौतिक वस्तुओं के प्रबंधन के मामले में अंतर्दृष्टि रखने में सक्षम होना चाहिए; तुम्हें इस मामले में समझदारी सीखनी चाहिए और उसके सिद्धांत समझने चाहिए।
एक आदमी था जो फिल्म निर्माण टीम में कपड़ों का प्रभारी था। वह अपने कामों में उच्छृंखल था और हमेशा नजर बचाकर परमेश्वर के घर की वस्तुओं का दुरुपयोग करता था। जब उसने फिल्म निर्माण टीम छोड़ी तो वह कुछ चीजें अपने साथ ले गया और बाद में खातों की जाँच से पता चला कि उसने बहुत सारा पैसा लिया था जिसका हिसाब नहीं मिल रहा था। इसके अलावा, हालाँकि वह काम नहीं कर रहा था, फिर भी उसके पास पैसे थे और उसने बहुत-सी महँगी चीजें भी खरीदी थीं। जब वह फिल्म निर्माण टीम में था तो बहुत-से लोग उसकी चापलूसी करते थे और वे सभी उससे अच्छे संबंध बनाना चाहते थे ताकि जब उन्हें कपड़ों की जरूरत हो तो बस उनके कहते ही वह उन्हें कुछ कपड़े दे दे। अगर किसी व्यक्ति के उससे खराब संबंध थे तो वह उसे वे कपड़े भी नहीं देता था जो उसे मिलने चाहिए थे। यह क्या समस्या है? यह प्रबंधन कर्मियों की समस्या है। एक ओर वह खुद इन चीजों का दुरुपयोग कर रहा था; दूसरी ओर उसने परमेश्वर के घर की वस्तुएँ सिद्धांतों के अनुसार आवंटित नहीं कीं, बल्कि वह अपनी भावनाओं, अपनी इच्छा और अपने संबंधों के हिसाब से चला। सिद्धांतों के अनुसार इस व्यक्ति को दूर कर देना चाहिए था। यह एक स्पष्ट समस्या थी। नकली अगुआ ने न सिर्फ ऐसा नहीं किया, बल्कि उसे एक अच्छा व्यक्ति समझकर उसे अपना कर्तव्य निभाने के लिए दूसरी जगह भेजने की व्यवस्था भी कर दी। क्या यह गलती को और बढ़ाना नहीं था? तुम क्या सोचते हो, यह कार्य कैसे किया गया? क्या यह सिद्धांतों के अनुरूप था? क्या इस अगुआ ने वे जिम्मेदारियाँ निभाईं जो एक अगुआ को निभानी चाहिए? (नहीं।) इस बात को एक तरफ रखते हुए कि अगुआ उस व्यक्ति से इस तरह निपटने से क्या लाभ प्राप्त कर सकता था—सिर्फ इस बात से आँकते हुए कि वह मामले से कैसे निपटा, इसकी प्रकृति क्या थी? यह भावनाओं के आधार पर एक बुरे व्यक्ति को आश्रय देने और उससे परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुसार नहीं निपटने की प्रकृति थी। तो इसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों की दसवीं मद से जोड़ने पर, इस तरह के अगुआ और कार्यकर्ता परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुओं के साथ पेश आने में क्या गलती करते हैं? क्या इस अगुआ ने अपनी जिम्मेदारियाँ निभाईं? क्या उसका इस मामले को सँभालने का तरीका परमेश्वर के घर की वस्तुओं की सुरक्षा करने पर आधारित था? निश्चित रूप से ऐसा नहीं था। उसने परमेश्वर के घर की वस्तुओं को गंभीरता से नहीं लिया, यहाँ तक कि उसने आँख मूँदकर इन चीजों को बुरे व्यक्ति को बर्बाद करने या अपनी मर्जी से ले जाने दिया। अगर दूसरे लोग उसकी चीजों को क्षतिग्रस्त या गलत तरीके से इस्तेमाल करें तो क्या वह उससे इसी तरह से निपटेगा? नहीं—तब वह बदला और मुआवजा लेने के बारे में सोचेगा। तो उसने परमेश्वर के घर की वस्तुओं को उस तरह से क्यों नहीं सँभाला? उसने यह तक कहा, “अगर वह चाहे तो कुछ वस्तुएँ ले सकता है—वह बहुत ज्यादा नहीं ले रहा है। अगर वह चाहे तो इन चीजों का थोड़ा-बहुत दुरुपयोग कर सकता है—ऐसा करने की थोड़ी-बहुत इच्छा किसमें नहीं होती? वह जो थोड़ी-सी राशि का दुरुपयोग करता है, उससे क्या फर्क पड़ता है? ऐसा नहीं है कि इससे दूसरों को कम मिल रहा है।” यह किस तरह का रवैया है? क्या परमेश्वर के घर की वस्तुओं के प्रति अगुआओं और कार्यकर्ताओं का यही रवैया होना चाहिए? (नहीं।) क्या वे जिस पत्तल में खाते हैं उसी में छेद नहीं कर रहे? और अंत में उसने क्या तर्क दिया? “उसे इन चीजों का दुरुपयोग करने दो—हमें उसके साथ हिसाब चुकता करने की कोई जरूरत नहीं है। उन छोटी-मोटी धनराशियों और वस्तुओं का मूल्य ही कितना है? मसीह-विरोधी उससे कहीं ज्यादा का दुरुपयोग करते हैं। उसके द्वारा इन वस्तुओं का दुरुपयोग करना उसके और परमेश्वर के बीच का मामला है—यह उसे देखना है कि समय आने पर वह परमेश्वर के सामने अपना हिसाब कैसे देगा। इसका हमसे कोई लेना-देना नहीं है।” किसी अगुआ को ऐसी बात कहते सुनकर तुम लोगों में कौन-से विचार और भावनाएँ आती हैं? न्याय की थोड़ी-सी भी समझ रखने वाला, जमीर की थोड़ी-सी भी जागरूकता रखने वाला कोई भी व्यक्ति ये शब्द सुनकर मन ही मन रोएगा और अत्यंत दुखी और निराश होगा, भले ही वह एक साधारण अनुयायी ही क्यों न हों, अगुआ या कार्यकर्ता होने की तो बात ही छोड़ो! इस तरह का नकली अगुआ परमेश्वर के बहुत-से अनुग्रह और उसकी सुरक्षा, और उसके बहुत-से सत्यों का आनंद लेता है, लेकिन फिर भी वह परमेश्वर के घर की वस्तुओं के प्रति इस तरह का निष्ठुर रवैया रखता है। क्या उसमें मानवता होती है? क्या वह अगुआ या कार्यकर्ता बनने के योग्य होता है? (नहीं।) एक बार ऐसे व्यक्ति को बर्खास्त कर दिया जाए तो क्या वह भविष्य में अगुआ या कार्यकर्ता बनने के योग्य होता है? (नहीं—उसकी मानवता खराब होती है।) उसकी खराब मानवता कैसे अभिव्यक्त होती है? (उसके द्वारा परमेश्वर के घर के हित कायम नहीं रखने से।) वह कौन-सा विशिष्ट क्रियाकलाप है जिसमें वह परमेश्वर के घर के हित कायम नहीं रखता? इस विशिष्ट अभिव्यक्ति का सार क्या होता है? ऐसे लोगों के इरादे सही नहीं होते और वे निम्न चरित्र के होते हैं; वे बहुत अच्छी तरह बोलते हैं लेकिन कुछ भी वास्तविक नहीं करते। ऐसे लोग अगुआ और कार्यकर्ता बिल्कुल नहीं होने चाहिए। जिनके इरादे सही नहीं होते वे सत्य के प्रेमी नहीं होते, बल्कि अपने फायदे के लिए काम करते हैं; जिनके इरादे सही नहीं होते वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों के बारे में बिल्कुल नहीं सोचते और कलीसिया का कार्य या परमेश्वर के घर के हित बिल्कुल भी कायम नहीं रखते।
पहली बुनियादी चीज जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को करनी चाहिए, वह है परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुओं की उचित निगरानी रखना, उचित तरीके से जाँच करना और परमेश्वर के घर की ठीक से रखवाली करना, बुरे लोगों को कोई भी वस्तु खराब या बर्बाद नहीं करने देना या उसका दुरुपयोग नहीं करने देना। उन्हें कम से कम इतना तो करना ही चाहिए। जैसे ही तुम्हें अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में चुना जाता है, परमेश्वर का घर तुम्हें अपना प्रबंधक मानता है : तुम प्रबंधकीय वर्ग से हो और तुम्हारे द्वारा अपने कंधों पर लिया गया कार्य दूसरों के कार्य की तुलना में भारी होता है। तुम पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है। इसीलिए तुम्हारा हर रवैया, तुम्हारा हर क्रियाकलाप, समस्याओं से निपटने की तुम्हारी हर योजना और समस्याएँ हल करने का तुम्हारा हर तरीका, सभी में परमेश्वर के घर के हित शामिल रहते हैं। अगर तुम परमेश्वर के घर के हितों पर विचार तक नहीं करते या उन्हें गंभीरता से नहीं लेते, तो तुम उसके घर के प्रबंधक बनने के योग्य नहीं हो। यह किस तरह का व्यक्ति है? वह परमेश्वर के घर का प्रबंधक बनने के योग्य क्यों नहीं है? नकली अगुआओं में कुछ ऐसे भी हैं जिनकी सिर्फ काबिलियत ही खराब नहीं हैं—बल्कि उनकी मुख्य समस्या यह है कि वे कोई दायित्व नहीं उठाते; वे नहीं जानते कि काम कैसे करना है लेकिन सत्य नहीं खोजते और वे न्यूनतम जिम्मेदारियाँ निभाने में भी असमर्थ रहते हैं जो एक प्रबंधक को निभानी चाहिए। उनमें जमीर या विवेक नहीं होता। ऐसा इसलिए है क्योंकि उनके इरादे सही नहीं होते, वे अधम चरित्र के और स्वार्थी और नीच होते हैं; वे कलीसिया के कार्य को बिल्कुल भी कायम नहीं रखते, बल्कि अक्सर कलीसिया के हितों को नुकसान पहुँचाते हैं और उनके साथ विश्वासघात करते हैं, लोगों की चापलूसी करते हैं और कलीसिया के हितों को नुकसान पहुँचाने की कीमत पर अन्य लोगों के साथ अपने संबंध बनाए रखते हैं। वे परमेश्वर के घर की भौतिक वस्तुओं को बुरे लोगों द्वारा नुकसान पहुँचाने, बर्बाद करने, खोने, यहाँ तक कि उनका दुरुपयोग करने देते हैं और इसकी बिल्कुल भी परवाह नहीं करते या इसके बारे में थोड़ी-सी भी कृतज्ञता महसूस नहीं करते या उन्हें थोड़ा-सा भी अपराधबोध नहीं होता। इसलिए जब अगुआओं और कार्यकर्ताओं को चुनने की बात आती है तो इसे मानवता के परिप्रेक्ष्य से देखने पर वह सबसे बुनियादी चीज क्या है जो उनमें होनी चाहिए? उनमें जमीर और न्याय की भावना होनी चाहिए और उनके इरादे सही होने चाहिए। उनकी मानवता पहले निर्धारित मानदंडों पर खरी उतरनी चाहिए। उनमें चाहे जितनी भी कार्यक्षमता या जिस भी स्तर की काबिलियत हो, इस तरह के लोग अगर पर्यवेक्षक के रूप में काम करेंगे तो ही वे मानक स्तर के प्रबंधक होंगे। कम से कम वे परमेश्वर के घर के हित और भाई-बहनों के सामान्य हित बनाए रखने में सक्षम होंगे। वे भाई-बहनों के हितों के साथ विश्वासघात बिल्कुल नहीं करेंगे और न ही परमेश्वर के घर के हितों के साथ विश्वासघात करेंगे। जब परमेश्वर के घर और भाई-बहनों के हितों को नुकसान या चोट पहुँचने वाली होगी, वे उससे पहले ही इसके बारे में सोच लेंगे और वे पहले व्यक्ति होंगे जो आगे आकर उनकी रक्षा करेंगे, भले ही ऐसा करने से उनकी अपनी सुरक्षा खतरे में पड़ जाए या उन्हें इसकी कीमत चुकानी पड़े या कष्ट उठाना पड़े। ये सभी ऐसी चीजें हैं जो जमीर और विवेक वाले लोग कर सकते हैं। कुछ नकली अगुआ और कार्यकर्ता खतरनाक परिस्थितियों से सामना होने पर खुद को छिपाने के लिए भागकरसुरक्षित जगह ढूँढ़ने लगते हैं, लेकिन परमेश्वर के घर की महत्वपूर्ण वस्तुओं—परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें, सेलफोन, कंप्यूटर इत्यादि—की वे न तो परवाह करते हैं न ही उनके बारे में पूछताछ करते हैं। अगर उन्हें इस बात की चिंता होती कि उनके गिरफ्तार होने पर कलीसिया के कार्य की दीर्घकालीन परियोजना पर क्या असर पड़ेगा, तो वे इन चीजों को सँभालने के लिए दूसरों को भेज सकते थे—लेकिन ये नकली अगुआ सिर्फ अपनी सुरक्षा की खातिर छिप जाते हैं। वे मौत से डरते हैं और वे जो कर सकते हैं वह नहीं करते ताकि वे सुरक्षित रह सकें। इसलिए ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ नकली अगुआओं की लापरवाही, निष्क्रियता और गैरजिम्मेदारी के कारण परमेश्वर के घर की विभिन्न वस्तुएँ और परमेश्वर को चढ़ाए गए चढ़ावे खतरनाक स्थितियाँ आने पर बड़े लाल अजगर द्वारा लूट लिए जाते हैं, जिससे गंभीर नुकसान होता है। जब कलीसिया में ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हुई ही होती हैं तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं का पहला विचार परमेश्वर के घर के उपकरण और भौतिक वस्तुएँ उपयुक्त स्थानों पर रखने, उन्हें प्रबंधन के लिए उपयुक्त लोगों को सौंपने का होना चाहिए; बड़े लाल अजगर को उन्हें नहीं ले जाने देना चाहिए। लेकिन नकली अगुआओं के मन में कभी ऐसी बातें नहीं आतीं; वे परमेश्वर के घर के हितों को कभी पहले नहीं रखते, इसके बजाय वे अपनी सुरक्षा को पहले रखते हैं। वास्तविक कार्य करने में नकली अगुआओं की विफलता के कारण अक्सर परमेश्वर के घर की विभिन्न महत्वपूर्ण वस्तुओं को नुकसान या क्षति पहुँचती है। क्या यह नकली अगुआओं द्वारा कर्तव्य की गंभीर उपेक्षा नहीं है? (हाँ, है।)
अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों की दसवीं मद के संबंध में नकली अगुआओं की वह मुख्य अभिव्यक्ति क्या है जिसे हम उजागर कर रहे हैं? परमेश्वर के घर की भौतिक वस्तुओं के प्रति नकली अगुआओं का रवैया उदासीनता और उपेक्षा का होता है; वे सिद्धांतों के अनुसार नहीं चलते, बल्कि अपनी कल्पनाओं और प्राथमिकताओं के आधार पर उन चीजों को बेतरतीबी से आवंटित करते हैं। जब वे चीजों का प्रबंधन कर रहे होते हैं तो अक्सर परमेश्वर के घर की वस्तुएँ कमोबेश क्षतिग्रस्त और बर्बाद हो जाती हैं, जिससे परमेश्वर के घर के कार्य का नुकसान होता है। यह नकली अगुआओं की मुख्य अभिव्यक्ति है। नकली अगुआ सामान्य मामलों का यह सबसे सरल, एकल कार्य भी नहीं सँभाल सकते; वे इसे कर ही नहीं पाते या इसे अच्छी तरह से नहीं कर सकते—तो फिर वे क्या कर सकते हैं? इसलिए जब तुम ऐसे लोगों को अगुआओं के रूप में कार्य करते हुए देखो तो तुम उनके कार्य का निरीक्षण और पर्यवेक्षण कर सकते हो। अगर वे सामान्य मामलों वाले इस एकल कार्य को भी बर्बाद कर देते हैं, वह भी नहीं करते जो वे कर सकते हैं और जब उनके पास समय नहीं होता तो इसे करने के लिए अन्य उपयुक्त लोगों को नहीं ढूँढ़ते तो ऐसे अगुआ तुरंत बर्खास्त कर दिए जाने चाहिए और उनके पदों से हटा दिए जाने चाहिए। परमेश्वर का घर उनका कभी उपयोग नहीं करेगा। क्या यह उचित है? (हाँ, उचित है।) क्यों? जिस व्यक्ति के इरादे सही नहीं होते, जिसकी समझ विकृत होती है और जो सिर्फ अपनी भावनाओं और अपनी स्वार्थपूर्ण, नीच महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं के अनुसार कार्य करता है, वह भरोसेमंद नहीं होता। अविश्वसनीय व्यक्ति कौन-सा कार्य अच्छी तरह से कर सकता है? वह कौन-सा कर्तव्य अच्छी तरह से निभा सकता है? क्या वह निष्ठा के साथ कर्तव्य निभाने में सक्षम होता है? (नहीं।)
अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों की दसवीं मद पर आज की संगति के जरिये क्या मैंने अगुआओं और कार्यकर्ताओं से अपेक्षित सिद्धांतों और मानकों में से एक और को स्पष्ट रूप से नहीं समझा दिया है? यहाँ जो शामिल है वह काबिलियत का सवाल नहीं है, न ही यह कार्यक्षमता का सवाल है, बल्कि मानवता का सवाल है। उन लोगों का निरीक्षण करो जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं के रूप में सेवा कर रहे हैं या जिन्हें कलीसिया विकसित कर रही है और देखो कि क्या उनमें से कोई ऐसा है जिसकी मानवता खराब है और जिसके इरादे सही नहीं हैं, जिसकी मानवता दसवीं मद में गहन-विश्लेषित नकली अगुआओं जैसी ही है। अगर तुम्हें वाकई ऐसे अगुआ और कार्यकर्ता मिलें, तो तुम्हें उन्हें बर्खास्त कर देना चाहिए और याद रखना चाहिए कि ऐसे लोगों को कभी अगुआ के रूप में नहीं चुनना है और ऐसे लोगों को कभी अगुआ और कार्यकर्ता बनने के लिए विकसित नहीं करना है। अगर कुछ लोग उन लोगों का चरित्र नहीं समझते और उन्हें चुन लेते हैं तो तुरंत उनकी रिपोर्ट करो। उन्हें अगुआ और कार्यकर्ता बनने का मौका मत दो। वे लोग वास्तिक कार्य करने के लिए अगुआ और कार्यकर्ता नहीं बनते, बल्कि कलीसिया का कार्य नष्ट करने के लिए बनते हैं। अगर वे अगुआ बन जाते हैं तो इसके परिणामस्वरूप परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुएँ बर्बाद हो जाएँगी। क्या तुम लोग ऐसा परिणाम देखने के लिए तैयार हो? (नहीं।) तो फिर तुम्हें ऐसे लोगों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए? अगर वे वर्तमान में अगुआ के रूप में सेवा कर रहे हैं, तो उनकी रिपोर्ट करो और उन्हें उनके पदों से हटा दो। अगर वे वर्तमान में अगुआ के रूप में सेवा नहीं कर रहे हैं, अगर वे अभी चुने नहीं गए हैं तो सभी को बताओ : “यह व्यक्ति अच्छा नहीं है। इसे मत चुनो, चाहे कुछ भी करो; यह कलीसिया के लिए हानिकारक होगा।” और अगर लोग धोखे में आकर और गुमराह होकर उन्हें चुन लेते हैं तो तुम्हें तुरंत सभी को सूचित करना चाहिए : “हमने आज कुछ गलत कर दिया। हमने खराब मानवता वाले एक ऐसे व्यक्ति को अपना अगुआ चुन लिया, जिसके इरादे सही नहीं हैं। अब जबकि हमने ऐसा कर दिया है तो परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान और क्षति पहुँचेगी। परमेश्वर के घर के हितों और विभिन्न वस्तुओं को नुकसान से बचाने के लिए हमें उसे तुरंत उसके पद से हटाना होगा। हमें उसे उसके षड्यंत्र में सफल नहीं होने देना चाहिए।” क्या ऐसा करना उचित है? (हाँ, उचित है।)
अगुआओं और कार्यकर्ताओं के रूप में चुने जाने वाले लोगों में काबिलियत और कार्यक्षमता होनी आवश्यक है; अब उनके चरित्र से संबंधित अपेक्षाएँ भी हैं। तुम लोग क्या कहते हो, क्या ऐसा है कि ज्यादातर लोग अगुआ और कार्यकर्ता होने के मानदंड पूरे नहीं करते? इन तीनों में से क्या सबसे महत्वपूर्ण है? (मानवता।) और दूसरी? (कार्यक्षमता।) उसके बाद? (उनमें काबिलियत है या नहीं।) यह क्रम काफी सटीक है। जब तुम लोग भविष्य में अगुआओं का चुनाव करो, तो उन्हें इसी क्रम के अनुसार मापना। कुछ लोग कहते हैं, “इस क्रम में एक समस्या है। मान लो मानवता पहले आती है, और कुछ लोग हैं जिनकी मानवता तो अच्छी है लेकिन काबिलियत खराब है, और अगर वे अगुआ के रूप में चुन लिए जाते हैं तो वे कोई वास्तविक कार्य करने में सक्षम नहीं होंगे—तो क्या फिर भी केवल लोगों की मानवता पर विचार करना ठीक है?” लोगों की मानवता सबसे महत्वपूर्ण है और यह पहली चीज है जिस पर तुम्हें ध्यान देना चाहिए, लेकिन अगुआओं और कार्यकर्ताओं का चुनाव करते समय केवल यही एक विचारणीय चीज नहीं है। अगर व्यक्ति की मानवता मानक स्तर की हो, तो फिर उसकी कार्यक्षमता देखो। अगर उसमें कार्यक्षमता की कमी हो और वह कोई वास्तविक काम न कर सकता हो, तो तुम उससे ऐसा काम करने के लिए कह सकते हो, जो उसकी क्षमताओं पर भारी न पड़े। अगर वह अच्छी इंसानियत का हो, काम अपने कंधों पर लेकर उसे अच्छी तरह से करने की पूरी कोशिश कर सकता हो और भरोसेमंद हो, परमेश्वर के घर को उसका उपयोग करने में कोई आशंका न हो, और वह ज्यादातर भाई-बहनों के लिए शिक्षाप्रद, मददगार और फायदेमंद हो, तो वह पर्याप्त अच्छा है। अगर उसकी काबिलियत खराब है और उसमें कार्यक्षमता नहीं है या फिर वह अपनी कार्यक्षमता के मामले में औसत है, तो उससे कोई साधारण काम या एक ही काम करवाओ। अगर उसमें अच्छी काबिलियत और मजबूत कार्यक्षमता है तो वह कोई महत्वपूर्ण कार्य या कई विभिन्न कार्य कर सकता है। क्या तुम इस तरह की व्यवस्था करने का प्रबंध भी नहीं कर सकते? अगर वह तुच्छ मानवता वाला है और उसके इरादे सही नहीं हैं, तो चाहे उसकी कार्यक्षमता कितनी भी बढ़िया क्यों न हो, क्या वह काम अच्छी तरह से कर पाएगा? (नहीं।) अगर वह किसी कंपनी या कुछ कर्मचारियों का प्रबंधन कर रहा होता, तो शायद कोई समस्या न होती—लेकिन अगर उससे परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुओं का प्रबंधन करने के लिए कहा जाए, तो क्या समस्याएँ पैदा होंगी? सबसे पहले, वह उन वस्तुओं का प्रबंधन या रखरखाव परमेश्वर के घर द्वारा अपेक्षित सिद्धांतों के अनुसार बिलकुल नहीं करेगा। उसके इरादे सही नहीं होते, वह सत्य से प्रेम नहीं करता और उसके दिल में षड्यंत्रों के अतिरिक्त कुछ नहीं होता, दुष्ट विचारों और सोच के अतिरिक्त कुछ नहीं होता, इसलिए जब भी वह कार्य करता है, अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार और अपने हितों के आधार पर करता है, सत्य सिद्धांतों के आधार पर नहीं, न ही न्याय के आधार पर। वह केवल इस बात पर विचार करता है कि वह क्या खोएगा या पाएगा और परमेश्वर के घर द्वारा अपेक्षित सिद्धांतों पर कोई विचार नहीं करता—और इस प्रकार उसका अगुआओं और कार्यकर्ताओं के काम में विफल होना नियत है। यह किससे निर्धारित होता है? उसके चरित्र से; यह उसकी कार्यक्षमता से निर्धारित नहीं होता। और इसलिए, यह आँकते हुए कि कोई सज्जन है या नीच, और वह अगुआओं और कार्यकर्ताओं के चयन के लिए परमेश्वर के घर के मानक पूरे करता है या नहीं, पहले उसकी मानवता देखो : अगर वह भरोसेमंद और योग्य मानवता वाला है, तो इसके बाद इस बात पर विचार करो कि क्या उसमें कार्यक्षमता है और क्या उसके पास दायित्व है; फिर अन्य पहलुओं पर विचार करो।
यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों की दसवीं मद है। यह कमोबेश वही है जिसका नकली अगुआओं के विभिन्न व्यवहारों की दसवीं मद में गहन-विश्लेषण किया गया है। नकली अगुआ परमेश्वर के घर की भौतिक वस्तुओं के साथ जिन रवैयों और व्यवहारों से पेश आते हैं, उनमें देखा जा सकता है कि उनमें से ज्यादातर में जमीर और विवेक नहीं होता, उनकी मानवता बहुत खराब होती है और वे कोई जिम्मेदारी नहीं लेते—तुम कह सकते हो कि उनके इरादे सही नहीं होते। क्या अब हमारे पास नकली अगुआओं का वर्णन करने के लिए एक और सबूत नहीं है? कुछ नकली अगुआ इसलिए काम नहीं कर सकते क्योंकि उनकी काबिलियत कम होती है, वे अंधे होते हैं और चीजों के बारे में कोई अंतर्दृष्टि नहीं रखते। कुछ इसलिए वास्तविक कार्य नहीं करते क्योंकि उनके इरादे सही नहीं होते और वे सिर्फ अपने फायदे के लिए काम करते हैं—वे परमेश्वर के घर के हित कायम नहीं रखते और उन्हें इस बात की परवाह नहीं होती कि परमेश्वर के चुने हुए लोग जीते हैं या मरते हैं। परमेश्वर के घर के कार्य में देरी होने और उसके चुने हुए लोगों को नुकसान पहुँचने से रोकने के लिए हर तरह के नकली अगुआ को जल्दी से जल्दी बर्खास्त कर हटा देना चाहिए।
1 मई 2021