अभ्यास (4)

जिस शांति और आनंद के बारे में आज मैं बोलता हूँ, वे वैसे नहीं हैं, जैसे तुम विश्वास करते और समझते हो। तुम सोचा करते थे कि शांति और आनंद का अर्थ है दिन भर प्रसन्न रहना, तुम्हारे परिवार में बीमारी या दुर्भाग्य की अनुपस्थिति होना, अपने हृदय में सदैव खुश रहना, दुःख की कोई भावना न होना, और एक अवर्णनीय आनंद का होना, चाहे तुम्हारा जीवन किसी भी सीमा तक विकसित हुआ हो। यह तुम्हारे वेतन में वृद्धि और तुम्हारे बेटे को हाल ही में विश्वविद्यालय में दाखिला मिलने के अतिरिक्त था। इन बातों को ध्यान में रखते हुए तुमने परमेश्वर से प्रार्थना की, और यह देखकर कि परमेश्वर का अनुग्रह कितना अधिक है, तुम उल्लसित हो गए और एक बड़ी मुस्कुराहट तुम्हारे चेहरे पर आ गई, और तुम परमेश्वर का धन्यवाद दिए बिना नहीं रह सके। ऐसी शांति और आनंद पवित्र आत्मा की उपस्थिति से आने वाली शांति और आनंद नहीं हैं। बल्कि, यह देह की संतुष्टि से पैदा होने वाली शांति और आनंद है। तुम्हें समझना चाहिए कि आज यह कौन-सा युग है; यह अनुग्रह का युग नहीं है, और यह अब वह समय नहीं है जब तुम मात्र रोटी से अपना पेट भरना चाहो। तुम उल्लसित हो सकते हो, क्योंकि तुम्हारे परिवार के साथ सब ठीक चल रहा है, किंतु तुम्हारा जीवन हाँफकर अपनी आखिरी साँस ले रहा है—और इसलिए, चाहे तुम्हारा आनंद कितना भी बड़ा हो, पवित्र आत्मा तुम्हारे साथ नहीं है। पवित्र आत्मा की उपस्थिति पाना सरल है : तुम्हें जो करना चाहिए उसे ठीक से करो, मनुष्य के कर्तव्य और कार्य अच्छी तरह से करो, और अपनी कमियों की भरपाई करने के लिए आवश्यक चीजों से स्वयं को सुसज्जित करने में सक्षम बनो। यदि तुम्हारे पास अपने जीवन के लिए सदैव एक दायित्व है, और तुम इसलिए खुश हो कि तुमने एक सत्य जान लिया है या परमेश्वर के वर्तमान कार्य को समझ लिया है, तो यह वास्तव में पवित्र आत्मा की उपस्थिति का होना है। या अगर कभी तुम अक्सर इसलिए व्यग्र हो जाते हो, क्योंकि तुम्हारा सामना किसी ऐसे मुद्दे से हो जाता है जिससे तुम नहीं जानते कि कैसे गुज़रना है, या तुम किसी ऐसे सत्य को समझने में असमर्थ होते हो, जिसकी संगति की जाती है, तो यह साबित करता है कि पवित्र आत्मा तुम्हारे साथ है। ये जीवन के अनुभव की सामान्य अवस्थाएँ हैं। तुम्हें पवित्र आत्मा की उपस्थिति के होने और न होने के बीच के अंतर को अवश्य समझना चाहिए, और इस बारे में अपने दृष्टिकोण में बहुत ज्यादा एकांगी नहीं होना चाहिए।

पहले यह कहा जाता था कि पवित्र आत्मा की उपस्थिति का होना और पवित्र आत्मा का कार्य पाना भिन्न-भिन्न हैं। पवित्र आत्मा की उपस्थिति होने की सामान्य अवस्था सामान्य विचारों, सामान्य विवेक और सामान्य मानवता होने में व्यक्त होती है। व्यक्ति का चरित्र वैसा ही रहेगा, जैसा वह हुआ करता था, किंतु उसके भीतर शांति होगी, और बाह्य रूप से उनमें संत की शिष्टता होगी। वे ऐसे ही होंगे, जब पवित्र आत्मा उनके साथ होता है। जब किसी के पास पवित्र आत्मा की उपस्थिति होती है, तो उसकी सोच सामान्य होती है। जब वे भूखे होते हैं तो वे खाना चाहते हैं, जब वे प्यासे होते हैं तो वे पानी पीना चाहते हैं। ... सामान्य मानवता की ये अभिव्यक्तियाँ पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता नहीं हैं, यह लोगों की सामान्य सोच और पवित्र आत्मा की उपस्थिति होने की सामान्य अवस्था है। कुछ लोग गलती से यह मानते हैं कि जिनमें पवित्र आत्मा की उपस्थिति होती है, उन्हें भूख नहीं लगती, उन्हें थकान महसूस नहीं होती, और वे परिवार के बारे में सोचते प्रतीत नहीं होते, उन्होंने अपने आप को देह से लगभग पूरी तरह से अलग कर लिया होता है। वास्तव में, जितना अधिक पवित्र आत्मा लोगों के साथ होता है, उतना अधिक वे सामान्य होते हैं। वे परमेश्वर के लिए कष्ट उठाना और चीज़ों को त्यागना, स्वयं को परमेश्वर के लिए खपाना, और परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना जानते हैं; इसके अलावा, वे भोजन और वस्त्रों पर विचार करते हैं। दूसरे शब्दों में, उन्होंने सामान्य मानवता का ऐसा कुछ नहीं खोया होता, जो मनुष्य के पास होना चाहिए और जैसा उन्हें होना चाहिए, इसके बजाय, उनमें विवेक विशेष रूप से होता है। कभी-कभी वे परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं और परमेश्वर के कार्य पर विचार करते हैं; उनके हृदय में विश्वास होता है और वे सत्य का अनुसरण करने के इच्छुक होते हैं। बेशक, पवित्र आत्मा का कार्य इसी बुनियाद पर आधारित है। यदि लोग सामान्य सोच से रहित हैं, तो उनके पास कोई विवेक नहीं है—यह एक सामान्य अवस्था नहीं है। जब लोगों की सोच सामान्य होती है और पवित्र आत्मा उनके साथ होता है, तो उनमें निश्चित रूप से एक सामान्य व्यक्ति का विवेक होता है, और इसलिए, उनकी अवस्था सामान्य होती है। परमेश्वर के कार्य का अनुभव करने में, पवित्र आत्मा का कार्य कभी-कभार होता है, जबकि पवित्र आत्मा की उपस्थिति लगभग सतत रहती है। जब तक लोगों का विवेक और सोच सामान्य रहते हैं, और जब तक उनकी अवस्थाएँ सामान्य होती हैं, तब पवित्र आत्मा निश्चित रूप से उनके साथ होता है। जब लोगों का विवेक और सोच सामान्य नहीं होते, तो उनकी मानवता सामान्य नहीं होती। यदि इस पल पवित्र आत्मा का कार्य तुममें है, तो पवित्र आत्मा भी निश्चित रूप से तुम्हारे साथ होगा। किंतु यदि पवित्र आत्मा तुम्हारे साथ है, तो इसका यह अर्थ नहीं कि पवित्र आत्मा तुम्हारे भीतर निश्चित रूप से कार्य कर रहा है, क्योंकि पवित्र आत्मा विशेष समयों पर कार्य करता है। पवित्र आत्मा की उपस्थिति का होना केवल लोगों के सामान्य अस्तित्व को बनाए रख सकता है, किंतु पवित्र आत्मा केवल निश्चित समयों पर ही कार्य करता है। उदाहरण के लिए, यदि तुम कोई अगुआ या कार्यकर्ता हो, तो जब तुम कलीसिया को सिंचन और आपूर्ति प्रदान करते हो, तब पवित्र आत्मा तुम्हें कुछ वचनों से प्रबुद्ध करेगा, जो दूसरों के लिए शिक्षाप्रद होंगे और जो तुम्हारे भाइयों-बहनों की कुछ व्यावहारिक समस्याओं का समाधान कर सकते है—ऐसे समय पर पवित्र आत्मा कार्य कर रहा है। कभी-कभी जब तुम परमेश्वर के वचनों को खा-पी रहे होते हो, तो पवित्र आत्मा तुम्हें कुछ वचनों से प्रबुद्ध कर देता है, जो तुम्हारे अनुभवों के लिए विशेष रूप से प्रासंगिक होते हैं, जो तुम्हें अपनी खुद की अवस्थाओं का अधिक ज्ञान प्राप्त करने देते हैं; यह भी पवित्र आत्मा का कार्य है। कभी-कभी, जैसे मैं बोलता हूँ, तुम लोग सुनते हो, और मेरे वचनों से अपनी अवस्थाओं को मापने में सक्षम होते हो, और कभी-कभी तुम द्रवित या प्रेरित हो जाते हो; यह सब पवित्र आत्मा का कार्य है। कुछ लोग कहते हैं कि पवित्र आत्मा हर समय उनमें कार्य कर रहा है। यह असंभव है। यदि वे कहते कि पवित्र आत्मा हमेशा उनके साथ है, तो यह यथार्थपरक होता। यदि वे कहते कि उनकी सोच और उनका बोध हर समय सामान्य रहता है, तो यह भी यथार्थपरक होता और दिखाता कि पवित्र आत्मा उनके साथ है। यदि वे कहते हैं कि पवित्र आत्मा हमेशा उनके भीतर कार्य कर रहा है, कि वे हर पल परमेश्वर द्वारा प्रबुद्ध और पवित्र आत्मा द्वारा द्रवित किए जाते हैं, और हर समय नया ज्ञान प्राप्त करते हैं, तो यह किसी भी तरह से सामान्य नहीं है। यह पूर्णतः अलौकिक है! बिना किसी संदेह के, ऐसे लोग बुरी आत्माएँ हैं! यहाँ तक कि जब परमेश्वर का आत्मा देह में आता है, तब भी ऐसे समय होते हैं जब उसे भोजन करना चाहिए और आराम करना चाहिए—मनुष्यों की तो बात ही छोड़ दो। जो लोग बुरी आत्माओं से ग्रस्त हो गए हैं, वे देह की कमजोरी से रहित प्रतीत होते हैं। वे सब-कुछ त्यागने और छोड़ने में सक्षम होते हैं, वे भावनाओं से मुक्त होते हैं, यातना सहने में सक्षम होते हैं और जरा-सी भी थकान महसूस नहीं करते, मानो वे देहातीत हो चुके हों। क्या यह नितांत अलौकिक नहीं है? दुष्ट आत्माओं का कार्य अलौकिक है और कोई मनुष्य ऐसी चीजें प्राप्त नहीं कर सकता। जिन लोगों में विवेक की कमी होती है, वे जब ऐसे लोगों को देखते हैं, तो ईर्ष्या करते हैं : वे कहते हैं कि परमेश्वर पर उनका विश्वास बहुत मजबूत है, उनकी आस्था बहुत बड़ी है, और वे कमज़ोरी का मामूली-सा भी चिह्न प्रदर्शित नहीं करते! वास्तव में, ये सब दुष्ट आत्मा के कार्य की अभिव्यक्तियाँ है। क्योंकि सामान्य लोगों में अनिवार्य रूप से मानवीय कमजोरियाँ होती हैं; यह उन लोगों की सामान्य अवस्था है, जिनमें पवित्र आत्मा की उपस्थिति होती है।

अपनी गवाही में अडिग रहने का क्या अर्थ है? कुछ लोग कहते हैं कि वे बस वैसे ही अनुसरण करते हैं, जैसे अब करते हैं और इस चिंता में नहीं पड़ते कि वे जीवन प्राप्त करने में सक्षम हैं या नहीं; वे जीवन की खोज नहीं करते किंतु वे पीछे भी नहीं हटते। वे केवल यह स्वीकार करते हैं कि कार्य का यह चरण परमेश्वर द्वारा किया जा रहा है। क्या यह अपनी गवाही में विफल होना नहीं है? ऐसे लोग जीत लिए जाने की गवाही तक नहीं देते। जो लोग जीते जा चुके हैं, वे अन्य सभी की परवाह किए बिना अनुसरण करते हैं और जीवन की खोज करने में सक्षम होते हैं। वे न केवल व्यावहारिक परमेश्वर में विश्वास करते हैं, बल्कि परमेश्वर की सभी व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करना भी जानते हैं। ऐसे हैं वे लोग, जो गवाही देते हैं। जो लोग गवाही नहीं देते, उन्होंने कभी जीवन की खोज नहीं की है और वे अभी भी अस्पष्टता के साथ अनुसरण कर रहे हैं। तुम अनुसरण कर सकते हो, किंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि तुम जीते जा चुके हो, क्योंकि तुम्हें परमेश्वर के आज के कार्य की कोई समझ नहीं है। जीते जाने के लिए कुछ शर्तें पूरी करनी आवश्यक हैं। सभी अनुसरण करने वाले जीते नहीं गए हैं, क्योंकि अपने हृदय में तुम इस बारे में कुछ भी नहीं समझते कि तुम्हें आज के परमेश्वर का अनुसरण क्यों करना चाहिए, न ही तुम यह जानते हो कि तुम आज की स्थिति तक कैसे पहुँचे हो, किसने आज तक तुम्हें सहारा दिया है। परमेश्वर में विश्वास का कुछ लोगों का अभ्यास हमेशा कुंद और भ्रांत होता है; इस प्रकार, अनुसरण करने का आवश्यक रूप से यह अर्थ नहीं है कि तुम्हारे पास गवाही है। सच्ची गवाही वास्तव में क्या है? यहाँ कही गई गवाही के दो हिस्से हैं : एक तो जीत लिए जाने की गवाही, और दूसरी पूर्ण बना दिए जाने की गवाही (जो स्वाभाविक रूप से भविष्य के अधिक बड़े परीक्षणों और क्लेशों के बाद की गवाही होगी)। दूसरे शब्दों में, यदि तुम क्लेशों और परीक्षणों के दौरान अडिग रहने में सक्षम हो, तो तुमने दूसरे कदम की गवाही दे दी होगी। आज जो महत्वपूर्ण है, वह है गवाही का पहला कदम : ताड़ना और न्याय के परीक्षणों की हर घटना के दौरान अडिग रहने में सक्षम होना। यह जीत लिए जाने की गवाही है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि यह जीत का समय है। (तुम्हें पता होना चाहिए कि अब पृथ्वी पर परमेश्वर के कार्य का समय है; पृथ्वी पर देहधारी परमेश्वर का मुख्य कार्य पृथ्वी पर अपना अनुसरण करने वाले लोगों के समूह को न्याय और ताड़ना के माध्यम से जीतना है)। तुम जीत लिए जाने की गवाही देने में सक्षम हो या नहीं, यह न केवल इस बात पर निर्भर करता है कि तुम बिल्कुल अंत तक अनुसरण कर सकते हो या नहीं, बल्कि, इससे भी महत्वपूर्ण रूप से यह इस बात पर निर्भर करता है कि जब तुम परमेश्वर के कार्य के प्रत्येक चरण का अनुभव करते हो, तो तुम परमेश्वर के ताड़ना और न्याय की सच्ची समझ प्राप्त करने में सक्षम होते हो या नहीं, और इस बात पर कि तुम इस समस्त कार्य को वास्तव में समझते हो या नहीं। बिल्कुल अंत तक अनुसरण करने मात्र से तुम आगे बढ़ने में सफल नहीं हो जाओगे। तुम्हें ताड़ना और न्याय की हर घटना के दौरान स्वेच्छा से झुकने में सक्षम होना चाहिए, कार्य के हर उस चरण को, जिसका तुम अनुभव करते हो, वास्तव में समझने में सक्षम होना चाहिए, और परमेश्वर के स्वभाव का ज्ञान प्राप्त करने और इसके प्रति समर्पण करने में सक्षम होना चाहिए। यह जीत लिए जाने की परम गवाही है, जो तुम्हारे द्वारा दी जानी अपेक्षित है। जीत लिए जाने की गवाही मुख्य रूप से परमेश्वर के देहधारण के बारे में तुम्हारे ज्ञान को दर्शाती है। महत्त्वपूर्ण रूप से, इस कदम की गवाही परमेश्वर के देहधारण के लिए है। दुनिया के लोगों या शक्तिसंपन्न व्यक्तियों के सामने तुम क्या करते या कहते हो, यह मायने नहीं रखता; सबसे बढ़कर यह मायने रखता है कि तुम परमेश्वर के मुँह से निकले सभी वचनों और उसके समस्त कार्यों के प्रति समर्पण करने में सक्षम हो या नहीं। इसलिए गवाही के इस चरण में निशाने पर शैतान सहित परमेश्वर के सभी दुश्मन हैं—वे राक्षस और दुश्मन जो विश्वास नहीं करते कि परमेश्वर दूसरी बार देहधारण करेगा तथा और भी बड़े कार्य करने आएगा, और इसके अतिरिक्त वे भी निशाने पर हैं जो परमेश्वर के देह में लौटने के तथ्य पर विश्वास नहीं करते। दूसरे शब्दों में कहें तो इसके निशाने पर सभी मसीह-विरोधी हैं—वे सभी शत्रु जो परमेश्वर के देहधारण में विश्वास नहीं करते हैं।

परमेश्वर के बारे में सोचना और परमेश्वर के लिए तड़पना यह साबित नहीं करता कि तुम परमेश्वर द्वारा जीते जा चुके हो; यह इस बात पर निर्भर करता है कि तुम यह मानते हो या नहीं कि वह देह बना हुआ वचन है, तुम यह मानते हो या नहीं कि वचन देह बन गया है, और तुम यह मानते हो या नहीं कि पवित्रात्मा वचन बन गया है और वचन देह में प्रकट हुआ है। यही प्रमुख गवाही है। यह मायने नहीं रखता कि तुम किस तरह से अनुसरण करते हो, न ही यह कि तुम अपने आप को कैसे खपाते हो; महत्वपूर्ण यह है कि तुम इस सामान्य मानवता से यह पता लगाने में सक्षम हो या नहीं कि वचन देह बन गया है और सत्य का आत्मा देह में साकार हुआ है—कि समस्त सत्य, मार्ग और जीवन देह में आ गया है, परमेश्वर के आत्मा का वास्तव में पृथ्वी पर आगमन हो गया है और आत्मा देह में आ गया है। यद्यपि, सतही तौर पर, यह पवित्र आत्मा द्वारा गर्भधारण से भिन्न प्रतीत होता है, किंतु इस कार्य से तुम और अधिक स्पष्टता से देखने में सक्षम होते हो कि पवित्रात्मा पहले ही देह में साकार हो गया है, और इसके अतिरिक्त, वचन देह बन गया है, और वचन देह में प्रकट हो गया है। तुम इन वचनों का वास्तविक अर्थ समझने में सक्षम हो : “आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था।” इसके अलावा, तुम्हें यह भी समझना चाहिए कि आज का वचन परमेश्वर है, और देखना चाहिए कि वचन देह बनता है। यह सर्वोत्तम गवाही है, जो तुम दे सकते हो। यह साबित करता है कि तुम्हें परमेश्वर के देहधारण का सच्चा ज्ञान है—तुम न केवल उसे जानने में सक्षम हो, बल्कि यह भी जानते हो कि जिस मार्ग पर तुम आज चलते हो, वह जीवन का मार्ग है, और सत्य का मार्ग है। कार्य का जो चरण यीशु ने संपन्न किया, उसने केवल “वचन परमेश्वर के साथ था” का सार ही पूरा किया : परमेश्वर का सत्य परमेश्वर के साथ था, और परमेश्वर का आत्मा देह के साथ था और उस देह से अभिन्न था। अर्थात, देहधारी परमेश्वर का देह परमेश्वर के आत्मा के साथ था, जो इस बात अधिक बड़ा प्रमाण है कि देहधारी यीशु परमेश्वर का प्रथम देहधारण था। कार्य का यह चरण ठीक-ठीक “वचन देह बनता है” के आंतरिक अर्थ को पूरा करता है, “वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था”, को और गहन अर्थ देता है और तुम्हें इन वचनों पर दृढ़ता से विश्वास कराता है कि “आरंभ में वचन था”। कहने का अर्थ है कि सृष्टि के निर्माण के समय परमेश्वर वचनों से संपन्न था, उसके वचन उसके साथ थे और उससे अभिन्न थे, और अंतिम युग में वह अपने वचनों के सामर्थ्य और उसके अधिकार को और भी अधिक स्पष्ट करता है, और मनुष्य को परमेश्वर के सभी तरीके देखने—उसके सभी वचनों को सुनने का अवसर देता है। ऐसा है अंतिम युग का कार्य। तुम्हें इन चीजों को हर पहलू से जान लेना चाहिए। यह देह को जानने का प्रश्न नहीं है, बल्कि इस बात का है कि तुम देह और वचन को कैसे जानते हो। यही वह गवाही है, जो तुम्हें देनी चाहिए, जिसे हर किसी को जानना चाहिए। चूँकि यह दूसरे देहधारण का कार्य है—और यह आख़िरी बार है जब परमेश्वर देह बना है—यह देहधारण के अर्थ को सर्वथा पूरा कर देता है, देह में परमेश्वर के समस्त कार्य को पूरी तरह से कार्यान्वित और प्रकट करता है, और परमेश्वर के देह में होने के युग का अंत करता है। इसलिए तुम्हें देहधारण के अर्थ को अवश्य जानना चाहिए। यह मायने नहीं रखता कि तुम कितनी भाग-दौड़ करते हो, या तुम अन्य बाहरी मामलों को कितनी अच्छी तरह से पूरा करते हो; जो मायने रखता है, वह यह है कि तुम वास्तव में देहधारी परमेश्वर के सामने झुकने और अपना पूरा अस्तित्व परमेश्वर को अर्पित करने, और उसके मुँह से निकलने वाले सभी वचनों के प्रति समर्पण करने में सक्षम हो या नहीं। यही तुम्हें करना चाहिए और इसी का तुम्हें पालन करना चाहिए।

गवाही का आखिरी कदम इस बात की गवाही है कि तुम पूर्ण बनाए जाने के योग्य हो या नहीं—जिसका अर्थ है कि देहधारी परमेश्वर के मुँह से बोले गए सभी वचनों को समझने के बाद तुम्हें परमेश्वर का ज्ञान हो जाता है और तुम उसके बारे में निश्चित हो जाते हो, तुम परमेश्वर के मुँह से निकले सभी वचनों को जीते हो और वे स्थितियाँ प्राप्त करते हो, जिनके लिए परमेश्वर तुमसे कहता है—पतरस की शैली और अय्यूब की आस्था—ऐसे कि तुम मृत्यु होने तक समर्पण कर सको, अपने आप को पूरी तरह से उसे सौंप दो, और अंततः ऐसे व्यक्ति की छवि प्राप्त करो जो मानक पर खरा उतरता हो, अर्थात् ऐसे व्यक्ति की छवि, जिसे परमेश्वर की ताड़ना और न्याय का अनुभव करने के बाद जीता और पूर्ण बनाया जा चुका हो। यही परम गवाही है—जो उस व्यक्ति द्वारा दी जानी ज़रूरी है, जिसे अंततः पूर्ण बना दिया गया है। ये गवाही के दो कदम हैं, जो तुम लोग को उठाने चाहिए, और ये परस्पर संबंधित हैं, और दोनों में से प्रत्येक अपरिहार्य है। किंतु एक बात तुम्हें अवश्य जाननी चाहिए : आज जिस गवाही की मैं तुमसे अपेक्षा करता हूँ, वह न तो दुनिया के लोगों पर निर्देशित है, न ही किसी एक व्यक्ति पर, बल्कि उस पर है जो मैं तुमसे माँगता हूँ। यह इस बात से मापी जाती है कि तुम मुझे संतुष्ट करने में सक्षम हो या नहीं, और तुम मेरी उन अपेक्षाओं के मानकों को सर्वथा पूरा करने में समर्थ हो या नहीं, जो मैं तुम लोगों में से प्रत्येक से करता हूँ। यही वह चीज़ है, जिसे तुम लोगों को समझना चाहिए।

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