अभ्यास (3)

तुम लोगों में अपने आप परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने, अपने बल पर परमेश्वर के वचनों का अनुभव करने, और दूसरों की अगुआई के बिना एक सामान्य आध्यात्मिक जीवन जीने में सक्षम होने के लिए स्वतंत्र रूप से रहने की क्षमता होनी चाहिए। तुम्हें जीने, सच्चे अनुभव में प्रवेश करने और सच्ची अंतर्दृष्टियाँ पाने के लिए परमेश्वर द्वारा आज बोले जा रहे वचनों पर निर्भर रहने में सक्षम होना चाहिए। केवल ऐसा करके ही तुम अडिग रह पाओगे। आज, बहुत लोग भविष्य के क्लेशों और परीक्षणों को पूरी तरह से नहीं समझते। भविष्य में कुछ लोग क्लेशों का अनुभव करेंगे, और कुछ लोग दंड का अनुभव करेंगे। यह दंड अधिक कठोर होगा; यह तथ्यों का आना होगा। आज तुम जो अनुभव, अभ्यास और अभिव्यक्त करते हो, वे सब भविष्य के परीक्षणों की नींव डालते हैं, और तुम्हें कम से कम स्वतंत्र रूप से जीने में सक्षम होना चाहिए। आज कलीसिया में कई लोगों की स्थिति आम तौर पर निम्नानुसार है : यदि कार्य करने के लिए अगुआ और कार्यकर्ता हैं, तो वे प्रसन्न हैं, और यदि नहीं हैं, तो वे अप्रसन्न हैं। वे कलीसिया के कार्य पर कोई ध्यान नहीं देते, और न ही अपने आध्यत्मिक जीवन पर ध्यान देते हैं, और उनके पास थोड़ी-सी भी ज़िम्मेदारी नहीं हैं—वे हानहाओ पक्षी[क] की तरह अव्यवस्थित ढंग से जीते हैं। स्पष्ट रूप से कहूँ तो, कई लोगों पर मैंने जो कार्य किया है, वह केवल जीतने का कार्य है, क्योंकि कई लोग मूलभूत रूप से पूर्ण बनाए जाने के अयोग्य हैं। केवल लोगों के एक छोटे-से हिस्से को ही पूर्ण बनाया जा सकता है। यदि इन वचनों को सुनकर तुम सोचते हो, “चूँकि परमेश्वर द्वारा किया जाने वाला कार्य केवल लोगों को जीतने के लिए है, इसलिए मैं केवल बेमन से अनुसरण करूँगा,” तो इस तरह का दृष्टिकोण कैसे स्वीकार्य हो सकता है? यदि तुम्हारे पास वास्तव में विवेक है, तो तुम्हारे पास बोझ और उत्तरदायित्व की भावना अवश्य होनी चाहिए। तुम्हें कहना चाहिए : “चाहे मुझे जीता जाए या पूर्ण बनाया जाए, मुझे गवाही देने का यह चरण सही ढंग से पूरा करना चाहिए।” एक सृजित प्राणी के रूप में व्यक्ति को परमेश्वर द्वारा सर्वथा जीता जा सकता है, और अंततः वह परमेश्वर-प्रेमी हृदय से परमेश्वर के प्रेम को चुकाते हुए और पूरी तरह से परमेश्वर के प्रति समर्पित होते हुए, परमेश्वर को संतुष्ट करने में सक्षम हो जाता है। यह मनुष्य का उत्तरदायित्व है, यह वह कर्तव्य है जिसे मनुष्य को अवश्य करना चाहिए, और यह वह बोझ है जिसे मनुष्य द्वारा अवश्य वहन किया जाना चाहिए, और मनुष्य को यह आदेश पूरा करना चाहिए। केवल तभी वह वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करता है। आज, तुम कलीसिया में जो करते हो, क्या वह तुम्हारे उत्तरदायित्व की पूर्ति है? यह इस बात पर निर्भर करता है कि तुम पर बोझ है या नहीं, और यह तुम्हारे अपने ज्ञान पर निर्भर करता है। इस कार्य का अनुभव करने में यदि मनुष्य जीत लिया जाता है और उसके पास सच्चा ज्ञान हो तो फिर वह अपनी संभावनाओं या भाग्य की परवाह किए बिना समर्पण में सक्षम हो जाएगा। इस तरह से, परमेश्वर का महान कार्य अपनी संपूर्णता में संपन्न होगा, क्योंकि तुम लोग इससे अधिक किसी चीज में सक्षम नहीं हो, और किसी भी उच्च माँग को पूरा करने में असमर्थ हो। फिर भी भविष्य में कुछ लोगों को पूर्ण बनाया जाएगा। उनकी क्षमता में सुधार होगा, अपनी आत्माओं में उन्हें अधिक गहरा ज्ञान प्राप्त होगा, उनका जीवन विकसित होगा...। मगर कुछ लोग इसे प्राप्त करने में पूरी तरह से असमर्थ हैं, और इसलिए वे बचाए नहीं जा सकते। मेरे यह कहने का एक कारण है कि उन्हें क्यों बचाया नहीं जा सकता। भविष्य में कुछ जीते जाएँगे, कुछ बाहर निकाल दिए जाएँगे, कुछ पूर्ण बना दिए जाएँगे, और कुछ इस्तेमाल किए जाएँगे—और इसलिए कुछ लोग क्लेशों का अनुभव करेंगे, कुछ लोग दंड (प्राकृतिक आपदाओं और मानव-निर्मित दुर्भाग्य दोनों) का अनुभव करेंगे, कुछ बाहर निकाल दिए जाएँगे, और कुछ जीवित रहेंगे। इसमें प्रत्येक को किस्म के अनुसार वर्गीकृत किया जाएगा और प्रत्येक समूह व्यक्ति की एक किस्म का प्रतिनिधित्व करेगा। सभी लोगों को बाहर नहीं निकाला जाएगा, न ही सभी लोगों को पूर्ण बनाया जाएगा। इसका कारण यह है कि चीनी लोगों की क्षमता बहुत ख़राब है, और उनमें केवल एक छोटी-सी संख्या ऐसी है, जिसमें वह आत्म-जागरूकता है, जो पौलुस में थी। तुममें से कुछ लोगों में परमेश्वर को प्यार करने का वही दृढ़ संकल्प है, जो पतरस में था, या उसी प्रकार का विश्वास है, जैसा अय्यूब में था। तुम लोगों में मुश्किल से ही कोई ऐसा है, जो यहोवा से वैसे ही डरता है और उसकी वैसे ही सेवा करता है, जैसे दाऊद ने की थी, जिसके पास वफादारी का वही स्तर है। तुम लोग कितने दयनीय हो!

आज, पूर्ण बनाए जाने की बात मात्र एक पहलू है। चाहे जो भी हो, तुम लोगों को गवाही देने के इस चरण को सही ढंग से पूरा करना चाहिए। यदि तुम लोगों से मंदिर में परमेश्वर की सेवा करने के लिए कहा जाता, तो तुम ऐसा कैसे करते? यदि तुम याजक नहीं होते, और तुम्हारे पास परमेश्वर के पहलौठे पुत्रों या संतान की हैसियत न होती, तो क्या तुम तब भी वफादारी में सक्षम होते? क्या तुम तब भी राज्य के विस्तार के कार्य में अपने सारे प्रयास लगाने में सक्षम होते? क्या तुम तब भी परमेश्वर द्वारा आदेशित कार्य को ठीक से करने में सक्षम होते? इस बात पर ध्यान दिए बिना कि तुम्हारी ज़िंदगी कितनी विकसित हुई है, आज का कार्य तुम्हें अंदर से पूरी तरह से आश्वस्त होने और अपनी सभी धारणाओं को अलग रखने के लिए प्रेरित करेगा। चाहे तुम्हारे पास वह चीज हो या नहीं, जो जीवन का अनुसरण करने के लिए चाहिए, परमेश्वर का कार्य तुम्हें पूरी तरह से आश्वस्त करेगा। कुछ लोग कहते हैं : “मैं बस परमेश्वर पर विश्वास करता हूँ, और मैं यह नहीं समझता कि जीवन का अनुसरण करने का क्या अर्थ है।” और कुछ कहते हैं : “मैं परमेश्वर पर अपने विश्वास में पूरा दिग्भ्रमित हूँ। मैं जानता हूँ कि मुझे पूर्ण नहीं बनाया जा सकता, और इसलिए मैं ताड़ित किए जाने के लिए तैयार हूँ।” यहाँ तक कि इस तरह के लोगों को भी, जो ताड़ित या नष्ट किए जाने के लिए तैयार हैं, यह स्वीकार करवाया जाना चाहिए कि आज का कार्य परमेश्वर द्वारा किया जाता है। कुछ लोग यह भी कहते हैं : “मैं पूर्ण बनाए जाने के लिए नहीं कहता, लेकिन आज मैं परमेश्वर के समस्त प्रशिक्षण को स्वीकार करने के लिए तैयार हूँ, और मैं सामान्य मानवता को जीने, अपनी क्षमता को सुधारने और परमेश्वर की सभी व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने के लिए तैयार हूँ...।” इसमें, उन्हें भी जीत लिया गया है और उनसे भी गवाही दिलवाई गई है, जिससे साबित होता है कि इन लोगों के भीतर परमेश्वर के कार्य का कुछ ज्ञान है। कार्य का यह चरण बहुत शीघ्रता से किया गया है, और भविष्य में, यह विदेशों में और भी तीव्रता से किया जाएगा। आज, विदेशों में लोग शायद ही प्रतीक्षा कर सकते हैं, वे सब चीन की ओर दौड़ रहे हैं—और इसलिए यदि तुम लोग पूर्ण नहीं बनाए जा सकते, तो तुम लोग विदेश में लोगों को रोकोगे। उस समय, चाहे तुम लोगों ने कितने भी अच्छे ढंग से प्रवेश किया हो या तुम कैसे भी हो, जब समय आएगा तो मेरा कार्य समाप्त और पूरा हो जाएगा! मेरे कार्य में तुम लोगों द्वारा देर नहीं की जाएगी। मैं समस्त मानवजाति का कार्य करता हूँ, और मुझे तुम लोगों पर और अधिक समय खर्च करने की कोई आवश्यकता नहीं है! तुम लोग अत्यधिक अनुत्साही हो, तुम लोगों में आत्म-जागरूकता की अत्यधिक कमी है! तुम लोग पूर्ण बनाए जाने के योग्य नहीं हो—तुम लोगों में मुश्किल से ही कोई संभावना है! भविष्य में, भले ही लोग इतने ढीले और आलसी बने रहें, और अपनी क्षमताओं को सुधारने में असमर्थ रहें, इससे समस्त ब्रह्मांड का कार्य बाधित नहीं होगा। जब परमेश्वर के कार्य के पूरा होने का समय आएगा, तो वह पूरा हो जाएगा, और जब लोगों को बाहर निकाले जाने का समय आएगा, तो वे बाहर निकाल दिए जाएँगे। निस्संदेह, जिन लोगों को पूर्ण किया जाना चाहिए, और जो पूर्ण होने के योग्य हैं, वे भी पूर्ण किए जाएँगे—लेकिन यदि तुम लोगों के पास कोई आशा नहीं है, तो परमेश्वर का कार्य तुम्हारी प्रतीक्षा नहीं करेगा! अंततः यदि तुम जीत लिए जाते हो, तो यह भी गवाही देना माना जा सकता है। इस बात की सीमाएँ हैं कि परमेश्वर तुम लोगों से क्या कहता है; मनुष्य जितना ऊँचा आध्यात्मिक कद प्राप्त करने में सक्षम होता है, उतनी ही ऊँची गवाही की अपेक्षा उससे की जाती है। ऐसा नहीं है कि, जैसी मनुष्य कल्पना करता है, इस तरह की गवाही बहुत उच्चतम सीमाओं तक पहुँच जाएगी और कि यह ज़बर्दस्त होगी—तुम चीनी लोगों में इसे हासिल कर सकने का कोई तरीका नहीं है। मैं इस पूरे समय तुम लोगों के साथ व्यस्त रहा हूँ, और तुम लोगों ने स्वयं इसे देखा है : मैं तुम लोगों से प्रतिरोध न करने, विद्रोही न होने, मेरी पीठ पीछे ऐसी चीजें न करने के लिए कह चुका हूँ, जो विघ्न डालती हैं या गड़बड़ी पैदा करती हैं। मैंने इस पर कई बार लोगों की सीधे तौर पर आलोचना की है, लेकिन यह भी पर्याप्त नहीं है—जिस क्षण वे मुड़ते हैं, वे बदल जाते हैं, जबकि कुछ लोग बिना किसी मलाल के गुप-चुप तरीके से मेरा प्रतिरोध करते हैं। क्या तुम्हें लगता है कि मुझे इसका कुछ भी पता नहीं है? क्या तुम्हें लगता है कि तुम मेरे लिए परेशानी पैदा कर सकते हो और इससे कुछ नहीं होगा? क्या तुम्हें लगता है कि जब तुम मेरी पीठ पीछे मेरे कार्य को नष्ट करने का प्रयास करते हो, तो मुझे पता नहीं चलता? क्या तुम्हें लगता है कि तुम्हारी छोटी-मोटी चालें तुम्हारे चरित्र का स्थान ले सकती हैं? तुम प्रकट रूप से हमेशा आज्ञाकारी हो, लेकिन गुप्त रूप से विश्वासघाती हो, तुम अपने दिल में कुटिल विचारों को छिपाते हो, और यहाँ तक कि तुम जैसे लोगों के लिए मृत्यु भी पर्याप्त दंड नहीं है। क्या तुम्हें लगता है कि पवित्र आत्मा द्वारा तुम्हारे भीतर किया गया कुछ मामूली कार्य मेरे प्रति तुम्हारे भय का स्थान ले सकता है? क्या तुम्हें लगता है कि तुमने स्वर्ग को पुकारकर प्रबुद्धता प्राप्त कर ली है? तुम्हें कोई शर्म नहीं है! तुम बहुत बेकार हो! क्या तुम्हें लगता है कि तुम्हारे “अच्छे कर्म” स्वर्ग जा रहे थे, और उनके परिणामस्वरूप उसने अपवाद के तौर पर तुम्हें यत्किंचित प्रतिभा प्रदान कर दी, जिसने तुम्हें दूसरों को धोखा देने और मुझे धोखा देने की अनुमति देते हुए तुम्हें वाक्पटु बना दिया है? तुम कितने अविवेकी हो! क्या तुम जानते हो कि तुम्हारी प्रबुद्धता कहाँ से आती है? क्या तुम नहीं जानते कि किसका भोजन खाकर तुम बड़े हो रहे हो? तुम कितने निर्लज्ज हो! तुममें से कुछ लोग चार-पाँच साल तक काट-छाँट किए जाने के बाद भी नहीं बदले हो और तुम इन मामलों के बारे में स्पष्ट हो। तुम्हें अपनी प्रकृति के बारे में स्पष्ट होना चाहिए और जब किसी दिन तुम्हें त्याग दिया जाएगा, तो आपत्ति मत करना। ऐसे कुछ लोगों की बहुत ज्यादा काट-छाँट की गई है जो अपनी सेवा में अपने से ऊपर और नीचे वाले दोनों तरह के लोगों को धोखा देते हैं; कुछ लोगों के साथ उनके धनलोलुप होने की वजह से भी कम काट-छाँट नहीं की गई है; महिला-पुरुषों के बीच स्पष्ट सीमाएँ न बनाए रखने की वजह से भी कुछ लोगों अक्सरकी अक्सर काट-छाँट की गई है; कुछ लोगों को इसलिए अत्यधिक काट-छाँट का भागी बनाया गया है क्योंकि वे आलसी हैं, केवल शरीर के प्रति सचेत हैं और जब कलीसिया में आते हैं तो सिद्धांतों के अनुसार कार्य नहीं करते; कुछ लोगों को इसलिए चेतावनी दी गई है कि वे जहाँ भी जाते हैं, गवाही देने में विफल रहते हैं, मनमर्जी और लापरवाही से कार्य करते हैं और यहाँ तक कि जानबूझकर पाप करते हैं; कुछ लोग सभाओं के दौरान केवल वचनों और सिद्धांतों की बात करते हैं, दूसरे सभी लोगों से श्रेष्ठतर होने का दिखावा करते हैं, उनमें थोड़ी-सी भी सत्य वास्तविकता नहीं होती, और वे अपने भाई-बहनों के साथ साज़िश और होड़ करते हैं—वे प्रायः इसी वजह से उजागर किए गए हैं। मैंने ये वचन तुम लोगों से कई बार बोले हैं, और आज मैं इस बारे में इससे ज्यादा नहीं बोलूँगा—तुम जो चाहे करो! अपने निर्णय स्वयं लो! कई लोग विश्वासी बनने के बाद एक-दो साल से काट-छाँट के भागी बन रहे हैं, कुछ तीन-चार साल से तो कुछ को एक दशक से ज्यादा हो चुका है, फिर भी उनमें नाममात्र का बदलाव भी नहीं आया है। तुम क्या कहते हो, क्या तुम सूअरों की तरह नहीं हो? क्या ऐसा हो सकता है कि परमेश्वर तुम्हारे प्रति अन्यायी है? ऐसा न सोचो कि यदि तुम लोग एक निश्चित स्तर तक पहुँचने में असमर्थ रहे, तो परमेश्वर का कार्य समाप्त नहीं होगा। यदि तुम लोग परमेश्वर की अपेक्षाएँ पूरी करने में असमर्थ होगे, तो क्या परमेश्वर तब भी तुम्हारी प्रतीक्षा करेगा? मैं तुम्हें स्पष्ट रूप से बता देता हूँ—ऐसा मामला नहीं है। चीजों का ऐसा चित्ताकर्षक दृष्टिकोण मत रखो! आज के कार्य की एक समय-सीमा है, और परमेश्वर यूँ ही तुम्हारे साथ खेल नहीं रहा है! पहले, जब सेवाकर्मियों के परीक्षण का अनुभव करने की बात आई, तो लोगों ने सोचा कि यदि उन्हें परमेश्वर की अपनी गवाही में दृढ़ता से खड़े होना और उसके द्वारा जीता जाना है, तो उन्हें एक निश्चित बिंदु तक पहुँचना होगा—उन्हें स्वेच्छा से और खुशी से सेवाकर्मी होना था, और उन्हें हर दिन परमेश्वर की स्तुति करनी थी, और थोड़ा-सा भी बेलगाम या लापरवाह नहीं होना था। उन्होंने सोचा कि केवल तभी वे सच में सेवाकर्मी होते, लेकिन क्या यह वास्तव में ऐसा ही मामला है? उस समय विभिन्न प्रकार के लोग उजागर किए गए; उन्होंने कई तरह के व्यवहार प्रदर्शित किए। कुछ ने शिकायतें कीं, कुछ ने धारणाएँ प्रचारित कीं, कुछ ने सभाओं में जाना छोड़ दिया, और कुछ ने तो कलीसिया के पैसे तक बाँट दिए। भाई-बहन एक-दूसरे के ख़िलाफ साज़िशें कर रहे थे। यह वास्तव में एक महान मुक्ति थी, लेकिन इसके बारे में एक बात अच्छी थी : कोई भी पीछे नहीं हटा। यह सबसे मजबूत बिंदु था। इसकी वजह से उन्होंने शैतान के सामने गवाही का एक चरण पेश किया, और बाद में परमेश्वर के लोगों के रूप में पहचान प्राप्त की और आज तक सफल रहे हैं। परमेश्वर का कार्य उस तरह से नहीं किया जाता, जैसी तुम कल्पना करते हो, इसके बजाय, जब समय समाप्त हो जाता है, तो चाहे तुम किसी भी बिंदु पर क्यों न पहुँचे हो, कार्य समाप्त हो जाएगा। कुछ लोग कह सकते हैं : “इस तरह करके तुम लोगों को बचाते या उनसे प्यार नहीं करते—तुम धार्मिक परमेश्वर नहीं हो।” मैं तुम्हें स्पष्ट रूप से बता देता हूँ : आज मेरे कार्य का मर्म तुम्हें जीतना और तुमसे गवाही दिलवाना है। तुम्हें बचाना तो सिर्फ उससे जुड़ा हुआ एक कार्य है; तुमको बचाया जा सकता है या नहीं, यह तुम्हारी स्वयं की खोज पर निर्भर करता है, और मुझसे संबद्ध नहीं है। फिर भी मुझे तुम्हें जीतना चाहिए; हमेशा मुझ पर हावी होने का प्रयास मत करो—आज मैं कार्य करता और तुम्हें बचाता हूँ, तुम नहीं!

आज तुम लोगों ने जो समझा है, वह पूरे इतिहास में ऐसे किसी भी व्यक्ति से ऊँचा है, जिसे पूर्ण नहीं बनाया गया था। चाहे तुम लोगों का परीक्षणों का ज्ञान हो या परमेश्वर में आस्था, वे परमेश्वर के किसी भी विश्वासी से ऊँचे हैं। जिन चीजों को तुम लोग समझते हो, ये वे हैं, जिन्हें तुम लोग परिवेशों के परीक्षणों से गुजरने से पहले जान गए हो, लेकिन तुम्हारा वास्तविक आध्यात्मिक कद उनके बिल्कुल भी अनुरूप नहीं है। तुम लोग जो जानते हो, वह उससे अधिक है, जिसे तुम लोग अभ्यास में लाते हो। यद्यपि तुम लोग कहते हो कि जो लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, उन्हें परमेश्वर से प्रेम करना चाहिए, और आशीषों के लिए नहीं बल्कि केवल परमेश्वर की इच्छा पूरी करने के लिए प्रयत्न करना चाहिए, किंतु जो तुम्हारे जीवन में अभिव्यक्त होता है, वह इससे एकदम अलग है, और बहुत दूषित हो गया है। अधिकतर लोग शांति और अन्य लाभों के लिए परमेश्वर पर विश्वास करते हैं। जब तक तुम्हारे लिए लाभप्रद न हो, तब तक तुम परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते, और यदि तुम परमेश्वर के अनुग्रह प्राप्त नहीं कर पाते, तो तुम खीज जाते हो। तुमने जो कहा, वो तुम्हारा असली आध्यात्मिक कद कैसे हो सकता है? जब अनिवार्य पारिवारिक घटनाओं, जैसे कि बच्चों का बीमार पड़ना, प्रियजनों का अस्पताल में भर्ती होना, फसल की ख़राब पैदावार, और परिवार के सदस्यों द्वारा उत्पीड़न, की बात आती है, तो ये अक्सर घटित होने वाले रोज़मर्रा के मामले भी तुम्हारे लिए बहुत अधिक हो जाते हैं। जब ऐसी चीजें होती हैं, तो तुम दहशत में आ जाते हो, तुम नहीं जानते कि क्या करना है—और अधिकांश समय तुम परमेश्वर के बारे में शिकायत करते हो। तुम शिकायत करते हो कि परमेश्वर के वचनों ने तुमको धोखा दिया है, कि परमेश्वर के कार्य ने तुम्हारा उपहास किया है। क्या तुम लोगों के ऐसे ही विचार नहीं हैं? क्या तुम्हें लगता है कि ऐसी चीजें कभी-कभार ही तुम लोगों के बीच में होती हैं? तुम लोग हर दिन इसी तरह की घटनाओं के बीच रहते हुए बिताते हो। तुम लोग परमेश्वर में अपने विश्वास की सफलता के बारे में और परमेश्वर की इच्छा कैसे पूरी करें, इस बारे में ज़रा भी विचार नहीं करते। तुम लोगों का असली आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है, यहाँ तक कि नन्हे चूज़े से भी छोटा। जब तुम्हारे पारिवारिक व्यवसाय में नुकसान होता है, तो तुम परमेश्वर के बारे में शिकायत करते हो, जब तुम लोग स्वयं को परमेश्वर की सुरक्षा से रहित किसी परिवेश में पाते हो, तब भी तुम परमेश्वर के बारे में शिकायत करते हो, यहाँ तक कि तुम तब भी शिकायत करते हो, जब तुम्हारे चूज़े मर जाते हैं या तुम्हारी बूढ़ी गाय बाड़े में बीमार पड़ जाती है। तुम तब शिकायत करते हो, जब तुम्हारे बेटे का शादी करने करने का समय आता है, लेकिन तुम्हारे परिवार के पास पर्याप्त धन नहीं होता; तुम मेज़बानी का कर्तव्य निभाना चाहते हो, लेकिन तुम्हारे पास पैसे नहीं होते, तब भी तुम शिकायत करते हो। तुम शिकायतों से लबालब भरे हो, और इस वजह से कभी-कभी सभाओं में भी नहीं जाते या परमेश्वर के वचनों को खाते और पीते भी नहीं हो, कभी-कभी लंबे समय तक नकारात्मक भी हो जाते हो। आज तुम्हारे साथ जो कुछ भी होता है, उसका तुम्हारी संभावनाओं या भाग्य से कोई संबंध नहीं होता; ये चीजें तब भी होतीं, जब तुम परमेश्वर पर विश्वास न करते, मगर आज तुम उनका उत्तरदायित्व परमेश्वर पर डाल देते हो और जोर देकर कहते हो कि परमेश्वर ने तुम्हें बहिष्कृत कर दिया है। परमेश्वर में तुम्हारे विश्वास का क्या हाल है? क्या तुमने अपना जीवन सचमुच अर्पित किया है? यदि तुम लोगों ने अय्यूब के समान परीक्षण सहे होते, तो आज परमेश्वर का अनुसरण करने वाले तुम लोगों में से कोई भी अडिग न रह पाता, तुम सभी लोग नीचे गिर जाते। और, निस्संदेह, तुम लोगों और अय्यूब के बीच ज़मीन-आसमान का अंतर है। आज यदि तुम लोगों की आधी संपत्ति जब्त कर ली जाए, तो तुम लोग परमेश्वर के अस्तित्व को नकारने की हिम्मत कर लोगे; यदि तुम्हारा बेटा या बेटी तुमसे छीन लिया जाए, तो तुम चिल्लाते हुए सड़कों पर दौड़ोगे कि तुम्हारे साथ अन्याय हुआ है; यदि आजीविका कमाने का तुम्हारा एकमात्र रास्ता बंद हो जाए, तो तुम परमेश्वर से उसके बारे में पूछताछ करने की कोशिश करोगे; तुम पूछोगे कि मैंने तुम्हें डराने के लिए शुरुआत में इतने सारे वचन क्यों कहे। ऐसा कुछ नहीं है, जिसे तुम लोग ऐसे समय में करने की हिम्मत न करो। यह दर्शाता है कि तुम लोगों ने वास्तव में कोई सच्ची अंतर्दृष्टि नहीं पाई है, और तुम्हारा कोई वास्तविक आध्यात्मिक कद नहीं है। इसलिए, तुम लोगों में परीक्षण अत्यधिक बड़े हैं, क्योंकि तुम लोग बहुत ज्यादा जानते हो, लेकिन तुम लोग वास्तव में जो समझते हो, वह उसका हज़ारवाँ हिस्सा भी नहीं है जिससे तुम लोग अवगत हो। मात्र समझने-बूझने पर मत रुको; तुम लोगों ने अच्छी तरह से देखा है कि तुम लोग वास्तव में कितना अभ्यास में ला सकते हो, पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता और रोशनी में से कितनी तुम्हारे कठोर परिश्रम के पसीने से अर्जित की गई है, और तुम लोगों ने अपने कितने अभ्यासों में अपने स्वयं के संकल्प को साकार किया है। तुम्हें अपने आध्यात्मिक कद और अभ्यास को गंभीरता से लेना चाहिए। परमेश्वर में अपने विश्वास में तुम्हें किसी के लिए भी मात्र ढोंग करने का प्रयास नहीं करना चाहिए—अंततः तुम सत्य और जीवन प्राप्त कर सकते हो या नहीं, यह तुम्हारी स्वयं की खोज पर निर्भर करता है।

फुटनोट :

क. हानहाओ पक्षी की कहानी ईसप की चींटी और टिड्डी की नीति-कथा से काफ़ी मिलती-जुलती है। जब मौसम गर्म होता है, तब हानहाओ पक्षी अपने पड़ोसी नीलकंठ द्वारा बार-बार चेताए जाने के बावजूद घोंसला बनाने के बजाय सोना पसंद करता है। जब सर्दी आती है, तो हानहाओ ठिठुरकर मर जाता है।

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