46. मैं घर आ गया हूँ

लेखक: चू कीन पोंग

प्रभु में मेरी आस्था को दस साल से भी अधिक हो गये थे और दो साल मैं कलीसिया में सेवारत था। फिर काम की वजह से विदेश जाने के लिए मुझे कलीसिया छोड़नी पड़ी। सिंगापुर सहित मैं कई स्थानों पर गया और मैंने पैसा कमाया। लेकिन आज के ज़माने में ताकत ही सब-कुछ है। हर आदमी एक-दूसरे के खिलाफ साज़िश रच रहा है, हर जगह छल-कपट का बोलबाला है। हर तरह के जटिल पारस्परिक व्यवहार में, मैं हमेशा लोगों से सावधान रहता था। लोग भी हमेशा मुझसे सतर्क रहते थे, जिसके कारण मेरे अंदर एक गहरा भाव रहता था कि मैं एक स्थिरता हासिल नहीं कर पा रहा हूँ। इस तरह के जीवन से मेरी देह और आत्मा में एक थकान आ गयी थी। मुझे दिलासा देने वाली एकमात्र चीज़ थी मेरी डायरी जिसमें मैंने धर्मशास्त्र के कुछ अंश लिख लिए थे। मैं उन्हें पढ़ता था जिससे मेरी आत्मा का खालीपन दूर हो जाता था। बरसों से मैं किसी कलीसिया की सभा में नहीं गया था लेकिन साल भर से मेरे मन में एक बात थी कि मुझे कोई ऐसी कलीसिया मिल जाए जहाँ मैं सच्चे मन से प्रभु की सेवा कर सकूँ। मैं अपने खाली समय में मलेशिया की बहुत-सी छोटी-बड़ी कलीसियाओं में गया, हर बार मैं उनमें जाता तो खुशी-खुशी था, लेकिन लौटता था मायूसी लेकर। मुझे हमेशा लगता था कि मन के अंदर कुछ कमी-सी है, लेकिन वो कमी क्या है, इसे मैं व्यक्त नहीं कर पाता था। इस कशमकश में मैंने इससे बिल्कुल उल्टा कदम उठाया, मैं वीडियो गेम खेलने लगा, ऑनलाइन फिल्में देखने लगा, कभी-कभी तो खेलते-खेलते सुबह हो जाती या एक के बाद दूसरी फिल्म देखता। मेरा सोने का समय गड़बड़ा गया। शुरू-शुरू में तो मुझे थोड़ा-बहुत एहसास था कि प्रभु इससे खुश नहीं होगा, लेकिन धीरे-धीरे मैं लापरवाह हो गया। इसी दौरान मेरा मोबाइल फोन गुम हो गया। उस वक्त मैं वाकई परेशान था, मेरे मोबाइल फोन के साथ-साथ उसके अंदर का सारा डेटा भी चला गया था। इसके अलावा, मैं अपना फेसबुक लॉग इन नहीं कर पा रहा था। यूँ तो देखने में यह सब-कुछ बुरा हुआ था, लेकिन मुझे आशा नहीं थी कि यही चीज़ मेरे जीवन की दिशा बदल देगी। एक पुरानी कहावत है न: "जो कुछ होता है, अच्छे के लिए होता है।"

2017 में मैंने नया मोबाइल फोन ले लिया। फरवरी के उत्तरार्द्ध में, मैंने फेसबुक पर लॉग इन किया और तब मैंने अनजाने में किसी अंग्रेज़ी-भाषा की प्रोफाइल की टाइमलाइन पर क्लिक कर दिया और देखा कि उस पर धर्मशास्त्र पोस्ट किए गए हैं। मैंने ऐसे उद्धरण भी देखे जो बाइबल से नहीं थे, लेकिन फिर भी वे सचमुच प्रेरक लगे और मैं भावुक हो गया। मैं कई दिनों तक फेसबुक पर अपनी नज़र गड़ाए रहा, बल्कि कुछ वचनों को देखने के लिए मैंने थोड़ा समय भी दिया। आखिरकार, मैंने अपनी रुचि की पोस्ट को पढ़ डाला। पढ़ने के बाद ही मुझे एहसास हुआ कि पोस्ट की मुख्य सामग्री धर्मशास्त्र के अंश की व्याख्या है जिसमें प्रभु यीशु ने कहा है: "जो मुझ से, 'हे प्रभु! हे प्रभु!' कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा" (मत्ती 7:21)। मुझे यह व्याख्या बहुत अनूठी लगी, उसमें प्रेरणा और प्रकाश था। मैंने उस व्यक्ति को अपने मित्र के तौर पर जोड़ा नहीं था, हालाँकि मैं उसकी टाइमलाइन पर और भी पोस्ट देखना चाहता था, लेकिन देख नहीं पाया। मगर मैं उसकी टाइमलाइन पर यह ज़रूर देख पाया कि वह फेसबुक यूज़र दक्षिण कोरिया से थी और वह सूज़न नामक एक बहन थी। मैंने उसे फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी, लेकिन शायद वह उस समय ऑनलाइन नहीं थी, इसलिए उसने मेरी फ्रेंड रिक्वेस्ट को तुरंत स्वीकार नहीं किया। दो दिनों के बाद, मैंने फेसबुक पर की फेई नामक एक अन्य चीनी-भाषी को जोड़ लिया जो दक्षिण कोरिया की ईसाई थी। उसने मुझे अपनी आस्था से जुड़े कुछ अनुभव बताए, उसने जो कुछ बताया, वह मुझे वाकई बहुत अच्छा लगा। मुझे आश्चर्य हुआ, जब मुझे पता चला कि की फेई भी बहन सूज़न की मित्र है, तो इस बार हमने मित्र के तौर पर एक-दूसरे को जोड़ लिया। उनकी फेसबुक पोस्ट पढ़कर और कभी-कभी आपसी चैट के ज़रिए, मुझे महसूस हुआ कि उन्हें परमेश्वर में आस्था की बहुत समझ है।

कुछ बाइबल के बारे में और कुछ ज़िंदगी के बारे में चैटिंग करके, मुझे सचमुच लगा कि कुछ चीज़ों के बारे मेरी खीझ को लेकर मेरी मदद करने का उनका दृष्टिकोण एकदम अलग है, और उनकी बातों में बहुत तर्क और अंतर्दृष्टि है। मैं प्रत्यक्ष तौर पर समझ गया कि वे दूसरों से अलग हैं। उनके संपर्क में रहकर, मुझे दिल में ज़्यादा ठहराव और सुकून महसूस हुआ। हालाँकि मैं उन्हें अच्छी तरह नहीं जानता था, लेकिन मुझे पता भी नहीं चला और मैं उन्हें उनकी सादगी और ईमानदारी के कारण अपना अच्छा मित्र मानने लगा। मैं उनके सामने अपना दिल खोल देना चाहता था। धीरे-धीरे मैं अपने जीवन में बदलाव लाने लगा।

एक हफ्ते के बाद 11 मार्च की शाम को, मैंने फेसबुक लॉग इन किया और देखा कि सूज़न ऑनलाइन है। पहले मैंने उससे किसी काम के सिलसिले में चैटिंग की, फिर मैंने उससे अपने दिल की बात कही, कोई ऐसी कलीसिया ढूँढ़ने की बात कही जहाँ मैं सेवा कर सकूँ, और यह भी कहा कि मैं इस विषय में उसके सुझाव चाहता हूँ। सूज़न ने कहा कि हर चीज़ की व्यवस्था और उसका शासन परमेश्वर के हाथों में है, मुझे परमेश्वर से और अधिक प्रार्थना करनी चाहिए और इस मामले में प्रयास करने चाहिए। परमेश्वर ने हर चीज़ का एक समय नियत किया हुआ है, हम सभी को उसकी प्रतीक्षा करनी चाहिए और उसके प्रति समर्पित हो जाना चाहिए। फिर उसने बहुत-सी कलीसियाओं के मौजूदा हालात पर चर्चा की: उपदेशकों के पास उपदेश देने के लिए कुछ नहीं है, कुछ कलीसियाओं की सभाओं में लोग ही नहीं आते और अगर बाकियों में लोग आते भी हैं, तो वे लोग पैसा कमाने, कारोबारी रिश्तों की और तमाम ऐसी बातें करते हैं जिनका आस्था से कोई लेना-देना नहीं होता। इन सारी बातों से वास्तव में यह ज़ाहिर होता है कि कलीसियाओं में अब पवित्र आत्मा का कार्य नहीं रह गया है और वे उजाड़ हो गयी हैं। मैं उसकी बातों को अपने अनुभव से समझ पा रहा था। मैं जब पहले कलीसिया में सेवा करता था, तो सहकर्मी नाम और कुछ पैसा बनाने की खातिर छीना-झपटी किया करते थे, एक-दूसरे के खिलाफ षडयंत्र रचते थे, एक-दूसरे को बदनाम किया करते थे, अपने छोटे-से क्षेत्र पर प्रभुत्व जमाने का प्रयास किया करते थे। उनके व्यवहार में भी उच्छृंखलता थी। एक के बाद एक ऐसी चीज़ें होते देख, मुझे खिन्नता होती थी और क्रोध आता था। उस समय, मैंने पादरी और अपने सहकर्मियों से पूछा कि मुझे इन सारी चीज़ों को किस ढंग से देखना चाहिए, लेकिन वे लोग मुझे कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाए। मुझे आश्चर्य हुआ, जब बहन सूज़न ने मेरी इस उलझन को सुलझा दिया जो मुझे लम्बे समय से खाए जा रही थी। मुझे अपने दिल में एक ऐसी खुशी का एहसास हुआ जिसे मैं बयाँ नहीं कर सकता।

हमने उस समय घटित हो रही विभिन्न आपदाओं और युद्ध के विषय पर भी चर्चा की, और हर तरफ आपदाओं और आसन्न युद्धों के संकेतों के द्वारा आकलन किया कि बाइबल में दी गयी प्रभु यीशु के दूसरे आगमन की भविष्यवाणियाँ मूलत: पूरी हो गयीं हैं और प्रभु जल्दी ही वापस आएगा। इससे मुझे दिन के समय ऑनलाइन मिला एक विश्वासी याद आ गया जिसने कहा था कि प्रभु 1991 में ही वापस चुका है, लेकिन मुझे सचमुच इस बात पर संदेह था। मैंने यह बात सूज़न से पूछी। जब उसने इस बारे में मेरी राय पूछी, तो मैंने कहा: "हो ही नहीं सकता। प्रभु जब वापस आएगा, तो वह निश्चित रूप से बादल पर आएगा जिसे सब लोग देख पाएँगे। लेकिन हमने तो प्रभु को बादल पर उतरते नहीं देखा, फिर कोई यह बात कैसे कह सकता है कि प्रभु पहले ही वापस आ चुका है?"

सूज़न ने कहा, "भाई, आपको बाइबल का अच्छा ज्ञान है। अगर आप बाइबल के वचनों को ध्यान से देखेंगे, तो मुझे यकीन है कि आपको उत्तर मिल जाएगा। दरअसल, प्रभु के दूसरे आगमन को लेकर तरह-तरह की भविष्यवाणियाँ हैं। हम बाइबल की भविष्यवाणियों से समझ सकते हैं कि वे मुख्य रूप से दो श्रेणियों की हैं। एक तो वह जो अभी आपने बताई, जिसमें यह भविष्यवाणी की गयी है कि प्रभु सबके सामने बादल पर उतर कर आएगा और उसे हर कोई देख सकेगा। दूसरी तरह की भविष्यवाणी यह है कि प्रभु का आगमन गुप्त रूप से होगा और जिसकी जानकारी एक खास समूह के लोगों को ही होगी। जैसा कि प्रभु यीशु ने कहा है: 'देख, मैं चोर के समान आता हूँ' (प्रकाशितवाक्य 16:15)। 'आधी रात को धूम मची: "देखो, दूल्हा आ रहा है! उससे भेंट करने के लिये चलो"' (मत्ती 25:6)। 'चोर के समान' और 'आधी रात को धूम मची' का अर्थ है कि यह चुपचाप, बिना हलचल के, बिना किसी को बताए होगा। न स्वर्गों में कोई आवाज़ होगी, न धरती काँपेगी—इसे हर कोई नहीं देख पाएगा। प्रभु की वाणी को लोगों का एक छोटा-सा समूह ही सुन पाएगा, जो उसका स्वागत कर सकेंगे। ये प्रभु के गुप्त रूप से आने की भविष्यवाणियाँ हैं। अगर हम केवल प्रभु के बादल पर खुले तौर पर आने की भविष्यवाणियों से ही चिपके रहें और प्रभु के गुप्त आगमन को नज़रंदाज़ कर दें, तो क्या यह बात सही है? क्या हम प्रभु की वाणी को सुनने से वंचित नहीं रह जाएँगे? क्या हम प्रभु के स्वागत और स्वर्गिक राज्य में उठाए जाने के अवसर को गँवा नहीं देंगे?"

मैं सूज़न के प्रश्न से चकरा गया। मैंने उन अंशों को बार-बार पढ़ा और विचार किया: "क्या बाइबल के वचनों में विरोधाभास है? नहीं, नहीं, नहीं! ऐसा कैसे हो सकता है? दरअसल, प्रभु की वापसी को लेकर बाइबल की भविष्यवाणियों की दो श्रेणियाँ हैं! इसकी व्याख्या कैसे की जा सकती है?" मैं उलझन में था, इसलिए मैं उससे सहभागिता जारी रखने के लिए कहा। सूज़न ने कहा, "हम बाइबल की भविष्यवाणियों से समझ सकते हैं कि प्रभु का दूसरा आगमन दो तरह से होगा। एक तो गुप्त आगमन और दूसरा खुले तौर पर प्रकटन। अंत के दिनों में, परमेश्वर दुनिया में मनुष्य के पुत्र के रूप में देहधारण करेगा, देखने में मसीह प्रभु यीशु की तरह साधारण, सामान्य इंसान की तरह देहधारी होगा। उसमें मानवता होगी, वह सामान्य इंसान की तरह खाएगा, पहनेगा, जिएगा और काम करेगा। वह इंसानों के बीच रहेगा। इस तरह, हमारे नज़रिए से यह गोपनीय होगा क्योंकि कोई भी यह नहीं देख पाएगा कि वह परमेश्वर है। कोई भी उसकी असली पहचान नहीं जान पाएगा। एक बार जब यह मनुष्य का पुत्र अपना कार्य करने और बोलने लगेगा, तो जो लोग परमेश्वर की वाणी को सुन पाएँगे, वे मनुष्य के पुत्र के वचनों और कार्य से परमेश्वर के स्वभाव की अभिव्यक्ति को देख लेंगे। वे लोग परमेश्वर के अधिकार और सामर्थ्य को देख लेंगे और प्रभु के आगमन को पहचान जाएँगे। इससे प्रभु यीशु की भविष्यवाणी पूरी हो जाएगी: 'मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं; मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं' (यूहन्ना 10:27)। जो लोग परमेश्वर की वाणी को नहीं पहचान पाएँगे, वे यकीनन उसके बाहरी रूप के आधार पर देहधारी परमेश्वर को एक साधारण इंसान समझ बैठेंगे। वे लोग अंत के दिनों के मसीह को नकारेंगे, ठुकराएँगे, यहाँ तक कि उसका विरोध और निंदा करेंगे। यह बिल्कुल उसी तरह है जैसे जब प्रभु यीशु अपना कार्य करने के लिए आया, तो देखने में वह सामान्य, साधारण मनुष्य का पुत्र लगता था। इस वजह से अधिकतर लोगों ने उसे नकार दिया, उसका विरोध किया और उसकी निंदा की। केवल लोगों का एक छोटा-सा समूह ही उसके वचनों और कार्य से पहचान पाया कि वह प्रभु यीशु देहधारी मसीह है, वह परमेश्वर का प्रकटन है। इस तरह उन्होंने प्रभु यीशु का अनुसरण करके छुटकारा पाया।" बहन की सहभागिता सुनकर, मुझे लगा कि उसकी बातें विवेकपूर्ण हैं क्योंकि वे सब सत्य हैं। प्रभु यीशु जब अपना कार्य करने आया, तो वाकई ऐसा ही हुआ था। लेकिन मैंने इस पर फिर से सोचा: प्रकाशित-वाक्य में लिखा है कि जब प्रभु लौटेगा, तो वह खुले तौर पर बादल पर उतरेगा, यही बात सारे पादरी और एल्डर भी कहते हैं। इस बात को ध्यान में रखकर, मैंने तुरंत दृढ़ता से सूज़न से पूछा: "प्रभु यीशु ने खुद कहा है कि उसका दूसरा आगमन बादल पर होगा। तो यह देहधारण कैसे हो सकता है? आप बाइबल की इन बातों को कैसे नकार सकती हैं?" बहन सूज़न ने कहा: "अगर आप बाइबल की ठीक से जाँच-पड़ताल करेंगे तो आपको पता चल जाएगा कि ऐसे बहुत से स्थान हैं जहाँ भविष्यवाणी की गयी है कि प्रभु देहधारी होकर लौटेगा।" बहन सूज़न की कही बातों के अनुरूप, मुझे धर्मशास्त्र में कुछ अंश मिल गए और मैंने उन्हें पढ़ा: 'तुम भी तैयार रहो; क्योंकि जिस घड़ी तुम सोचते भी नहीं, उसी घड़ी मनुष्य का पुत्र आ जाएगा' (लूका 12:40)। 'क्योंकि जैसे बिजली आकाश के एक छोर से कौंध कर आकाश के दूसरे छोर तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य का पुत्र भी अपने दिन में प्रगट होगा। परन्तु पहले अवश्य है कि वह बहुत दु:ख उठाए, और इस युग के लोग उसे तुच्छ ठहराएँ' (लूका 17:24-25)

जब मैंने धर्मशास्त्र के इन अंशों को पढ़ लिया, तो बहन सूज़न बोली: "इन भविष्यवाणियों में लिखा है कि 'मनुष्य का पुत्र आएगा' और 'वह मनुष्य का पुत्र भी होगा'। 'मनुष्य का पुत्र' इंसान से जन्मा है और उसमें सामान्य मानवता है। अगर वह आध्यात्मिक देह में प्रकट हुआ होता, तो उसे मनुष्य का पुत्र नहीं कहा जा सकता था, ठीक उसी तरह जैसे यहोवा परमेश्वर को मनुष्य का पुत्र नहीं कहा जा सकता। लोगों ने स्वर्गदूत भी देखे हैं, जो आध्यात्मिक प्राणी होते हैं और उन्हें भी मनुष्य का पुत्र नहीं कहा जा सकता। जो मानव रूप में हैं लेकिन आध्यात्मिक प्राणी हैं, उन्हें मनुष्य का पुत्र नहीं कहा जा सकता। देहधारी प्रभु यीशु को मनुष्य का पुत्र और मसीह इसलिए कहा जाता है क्योंकि वह परमेश्वर के आत्मा का देह रूप में अवतरण था और शरीर में आत्मा का साकार रूप था। वह साधारण और सामान्य इंसान था और इंसानों के बीच रहता था। प्रभु यीशु मनुष्य का पुत्र था, परमेश्वर का देहधारण था, इसलिए जब प्रभु यीशु ने कहा कि वह मनुष्य के पुत्र रूप में वापस आएगा, तो उसके कहने का अर्थ था कि वह फिर से भौतिक शरीर में मनुष्य के पुत्र के रूप में आएगा, न कि आध्यात्मिक रूप में। इसलिए, जब प्रभु यीशु ने कहा कि वह वापस आएगा, तो उसका अर्थ था कि वह देहधारी रूप में वापस आएगा। इसके अलावा, धर्मशास्त्र कहता है: 'परन्तु पहले अवश्य है कि वह बहुत दु:ख उठाए, और इस युग के लोग उसे तुच्छ ठहराएँ।' यह फिर से इस बात को साबित करती है कि जब प्रभु वापस आएगा, तो वह देहधारी रूप में आएगा। इस बात पर विचार कीजिये: अगर प्रभु हमारे सामने देहधारण करके आने के बजाय आध्यात्मिक देह में वापस आता, तो वह इतने दुख न उठाता, इस पीढ़ी द्वारा नकारे जाने की तो बात ही दूर है। किसकी हिम्मत होती कि वह परमेश्वर के आत्मा को नकारता? किसकी हिम्मत होती कि वह परमेश्वर के आत्मा को दुख देता? इसलिए, प्रभु देहधारण करके आएगा या आध्यात्मिक देह में आएगा, क्या यह बात अपने आपमें स्पष्ट नहीं है?"

"मनुष्य का पुत्र" शब्दों को पढ़कर मैं चौंक गया। पहले मैंने "मनुष्य का पुत्र" के सवाल पर विचार किया था, लेकिन मुझे इसका अर्थ कभी समझ में नहीं आया था। बहन सूज़न की व्याख्या ने मेरे सारे संदेह दूर कर दिए। उसके स्पष्टीकरण को सुनकर, मैं भावुक हो गया। बहुत देर हो चुकी थी, इसलिए हमने एक-दूसरे से विदा ली और फेसबुक बंद कर दिया। मैं इतने जोश में था कि मुझे देर रात तक नींद नहीं आयी। मैंने इन बातों पर विचार किया कि मैं इतने बरसों से प्रभु में आस्था रखता रहा हूँ, लेकिन कभी इतनी बढ़िया सहभागिता नहीं सुनी। मैं स्तब्ध रह गया। दिल में एक तरह की आनंददायी स्पष्टता थी जिसे मैं बयाँ नहीं कर सकता।

अगले दिन, 12 मार्च को, मैंने एक अस्पष्ट-सी उम्मीद और शब्दातीत उत्तेजना महसूस की। उसकी वजह यह थी कि सूज़न ने पिछली रात मुझसे मनुष्य का पुत्र और देहधारण पर अधिकतर बातचीत कर ली थी। भले ही मुझे मनुष्य का पुत्र और देहधारण के बीच एक संबंध दिखायी दे रहा था और सैद्धांतिक रूप से मैं यह भी जानता था कि प्रभु यीशु देहधारी मसीह है, लेकिन कुछ सवाल अभी भी ऐसे थे जिनका उत्तर मैं जानना चाहता था, जैसे वास्तव में देहधारण क्या है, मसीह क्या है, किस आधार पर कोई यकीनी तौर पर कह सकता है कि परमेश्वर ने देहधारण कर लिया है, वगैरह-वगैरह। लेकिन चूँकि सूज़न और मैं दोनों दिन में काम करते थे और शाम को ही समय निकाल सकते थे, इसलिए मेरी इच्छा होती थी कि शाम थोड़ी ज़्यादा जल्दी आ जाए।

आखिरकार, शाम हुई और हम दोनों ऑनलाइन आ गये। लॉग इन करने के बाद, सूज़न से मेरा पहला सवाल देहधारण के बारे में ही था। उसने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के कुछ अंश भेजे और मुझे पढ़ने के लिए कहा। और मैं उन्हें पढ़ने लगा: "'देहधारण' परमेश्वर का देह में प्रकट होना है; परमेश्वर सृष्टि के मनुष्यों के मध्य देह की छवि में कार्य करता है। इसलिए, परमेश्वर को देहधारी होने के लिए, सबसे पहले देह बनना होता है, सामान्य मानवता वाला देह; यह सबसे मौलिक आवश्यकता है। वास्तव में, परमेश्वर के देहधारण का निहितार्थ यह है कि परमेश्वर देह में रह कर कार्य करता है, परमेश्वर अपने वास्तविक सार में देहधारी बन जाता है, वह मनुष्य बन जाता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर द्वारा धारण किये गए देह का सार)। "देहधारी परमेश्वर मसीह कहलाता है और मसीह परमेश्वर के आत्मा द्वारा धारण की गई देह है। यह देह किसी भी मनुष्य की देह से भिन्न है। यह भिन्नता इसलिए है क्योंकि मसीह मांस तथा खून से बना हुआ नहीं है; वह आत्मा का देहधारण है। उसके पास सामान्य मानवता तथा पूर्ण दिव्यता दोनों हैं। उसकी दिव्यता किसी भी मनुष्य द्वारा धारण नहीं की जाती। उसकी सामान्य मानवता देह में उसकी समस्त सामान्य गतिविधियां बनाए रखती है, जबकि उसकी दिव्यता स्वयं परमेश्वर के कार्य अभ्यास में लाती है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, स्वर्गिक परमपिता की इच्छा के प्रति आज्ञाकारिता ही मसीह का सार है)। "जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर का सार होगा और जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर की अभिव्यक्ति होगी। चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उस कार्य को सामने लाएगा, जो वह करना चाहता है, और चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उसे अभिव्यक्त करेगा जो वह है और वह मनुष्य के लिए सत्य को लाने, उसे जीवन प्रदान करने और उसे मार्ग दिखाने में सक्षम होगा। जिस देह में परमेश्वर का सार नहीं है, वह निश्चित रूप से देहधारी परमेश्वर नहीं है; इसमें कोई संदेह नहीं। अगर मनुष्य यह पता करना चाहता है कि क्या यह देहधारी परमेश्वर है, तो इसकी पुष्टि उसे उसके द्वारा अभिव्यक्त स्वभाव और उसके द्वारा बोले गए वचनों से करनी चाहिए। इसे ऐसे कहें, व्यक्ति को इस बात का निश्चय कि यह देहधारी परमेश्वर है या नहीं और कि यह सही मार्ग है या नहीं, उसके सार से करना चाहिए। और इसलिए, यह निर्धारित करने की कुंजी कि यह देहधारी परमेश्वर की देह है या नहीं, उसके बाहरी स्वरूप के बजाय उसके सार (उसका कार्य, उसके कथन, उसका स्वभाव और कई अन्य पहलू) में निहित है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना)। पढ़ने के बाद, मुझे लगा कि इन वचनों में साफ तौर पर देहधारण के रहस्य को समझाया गया है, खासतौर से मसीह की परिभाषा: "देहधारी परमेश्वर मसीह कहलाता ह।" यह बहुत ही साफ, सरल थी और मन को छू लेने वाले अंदाज़ में कही गयी थी! भले ही मुझे प्रभु में आस्था रखते दस वर्ष हो गए थे और मैं जानता था कि यीशु ही मसीह है, लेकिन मुझे ऐसे सत्य कभी समझ में नहीं आए थे कि हम प्रभु यीशु को मसीह क्यों कहते हैं। उस दिन, सूज़न द्वारा भेजे गए परमेश्वर के वचनों के अंशों से मुझे समझ में आया कि देहधारी परमेश्वर वास्तव में मसीह है, और मसीह वह है जिसमें परमेश्वर देहधारण करता है। मैंने इन वचनों पर ध्यान से मंथन किया, मैं जितना मंथन करता, मेरा दिल उतना ही अधिक प्रकाशित होता।

बहन सूज़न ने मुझे बताया कि ये सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन हैं; उसने मुझे यह भी बताया कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं, और केवल परमेश्वर स्वयं ही सत्य व्यक्त कर सकता है। जब उसने "सर्वशक्तिमान परमेश्वर" के वचनों का उल्लेख किया तो मैं एक पल को अवाक रह गया, हालाँकि यह मेरे लिए पूरी तरह से आश्चर्यजनक नहीं था क्योंकि मैंने पहले ही अनुमान लगा लिया था कि वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया से जुड़ी हो सकती है। मैंने इस कलीसिया के बारे में ऑनलाइन अफवाहें भी पढ़ी थीं। बात केवल इतनी थी कि मैं अपने आपको ईसाई मानता था, और मैं चाहता था कि मेरा दिल परमेश्वर के प्रति समर्पित हो, इसलिए मामले की सच्चाई को समझने से पहले, मैं हल्के तौर पर किसी भी निष्कर्ष पर नहीं आना चाहता था। मैं अपने शब्दों से पाप करने और परमेश्वर का अपमान करने से बचने के लिए ऐसा कर रहा था। इसके अलावा, मैं कई दिनों से यह बात सोच रहा था: बहन सूज़न और मैं कई बार बात कर चुके थे, भले ही मैं जिससे बात कर रहा था, उसे मैंने देखा नहीं था, लेकिन फिर भी सत्य पर उसकी सहभागित ने मेरी सारी उलझन दूर कर दी थी। उसके साथ चर्चाओं से और उसकी टाइमलाइन पर उसकी पोस्ट पढ़कर, मुझे लगा कि वो और की फेई दोनों सच्ची, स्नेही और नेक इंसान हैं। उनकी सहभागिता की सामग्री मेरे लिए सचमुच बहुत ही शिक्षाप्रद और लाभदायक थी। बाइबल में लिखा है कि तुम पेड़ से उसके फल का अंदाज़ा लगा सकते हो; अच्छे पेड़ अच्छा फल देते हैं और बुरे पेड़ बुरा फल देते हैं। इसलिए, बहन सूज़न और की फेई से अपने संपर्क के बाद, मेरे दिल के अंदर जो संदेह और आशंकाएँ थीं, वे धीरे-धीरे दूर हो गयी थीं। मैंने सूज़न से कहा कि वो अपनी सहभागिता जारी रखे।

बहन सूज़न ने कहा: "चूँकि वह देहधारी परमेश्वर है, इसलिए उसमें परमेश्वर की अभिव्यक्ति है, यानी कि वह वचन बोलता है। अंत के दिनों का देहधारी परमेश्वर न्याय करने, शुद्धिकरण करने और लोगों को बचाने के लिए मुख्य रूप से सत्य व्यक्त करने आया है। वे सारे लोग जो लौटकर आए प्रभु की वाणी को सुनते हैं, जो इसकी खोज और इसे स्वीकार कर सकते हैं, वे ऐसी बुद्धिमान कुँवारियाँ हैं जो प्रभु के भोज में शामिल होंगी। इससे प्रभु यीशु की यह भविष्यवाणी पूरी हो जाती है: 'आधी रात को धूम मची: "देखो, दूल्हा आ रहा है! उससे भेंट करने के लिये चलो"' (मत्ती 25:6)। बुद्धिमान कुँवारियाँ परमेश्वर की वाणी को सुनकर उससे मिलने जाती हैं। अनजाने में ही, प्रभु से आमने-सामने मिलने के लिए परमेश्वर के सिंहासन के समक्ष उन्नत की जाती हैं; वे अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय और शुद्धिकरण को स्वीकारती हैं। परमेश्वर के वचनों के न्याय से उनके भ्रष्ट स्वभाव रूपांतरित और शुद्ध होते हैं, और आपदा से पहले परमेश्वर द्वारा उन्हें विजेता बना दिया जाता है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर इंसान को बचाने और पूर्ण बनाने के लिए इसी वर्तमान चरण में गोपनीय रूप से कार्य कर रहा है। एक बार विजेताओं का समूह बन जाने के बाद, देह के अवतरण में परमेश्वर का गोपनीय कार्य पूरा हो जाएगा और दुनिया पर आपदाएँ टूट पड़ेंगी। परमेश्वर अच्छे को पुरस्कार और बुरे को दंड देगा, और फिर वह स्वयं को सभी देशों और विश्व के लोगों के सामने प्रकट करेगा। उस समय, प्रकाशित-वाक्य 1:7 में दी गयी प्रभु के बादल पर उतरने की भविष्यवाणी पूरी हो जाएगी: 'देखो, वह बादलों के साथ आनेवाला है, और हर एक आँख उसे देखेगी, वरन् जिन्होंने उसे बेधा था वे भी उसे देखेंगे, और पृथ्वी के सारे कुल उसके कारण छाती पीटेंगे' (प्रकाशितवाक्य 1:7)। यह बात युक्तिपूर्ण ढंग से कही जा सकती है कि जब लोग प्रभु को बादल पर उतरते देखेंगे, उसे स्वयं को सबके सामने प्रकट करते देखेंगे तो खुशी से पागल हो जाना चाहिए। लेकिन धर्मशास्त्र कहते हैं कि धरती के सारे सगे-संबंधी विलाप करेंगे। ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है कि परमेश्वर स्वयं को सार्वजनिक रूप से प्रकट कर रहा है, परमेश्वर का गोपनीय उद्धार-कार्य उसके देहधारण के द्वारा पहले ही समाप्त हो चुका होगा और वह अच्छे को पुरस्कार और बुरे को दंड देने का कार्य शुरू कर देगा। उस समय, वे सारे लोग जिन्होंने परमेश्वर के गोपनीय कार्य को नकार दिया था, वे उद्धार पाने के अपने अवसर को पूरी तरह से गँवा देंगे और जो लोग उसे कष्ट देंगे, सर्वशक्तिमान परमेश्वर यानी अंत के दिनों के मसीह का विरोध और निंदा करेंगे, वे जानेंगे कि जिस सर्वशक्तिमान परमेश्वर का उन्होंने विरोध और निंदा की, वह लौटकर आया प्रभु यीशु ही है। ज़रा इस बात पर विचार कीजिये कि वे अपनी छाती कैसे न पीटेंगे, विलाप कैसे न करेंगे और अपने दाँत कैसे न पीसेंगे? यह इन वचनों का संदर्भ है: 'पृथ्वी के सारे कुल उसके कारण छाती पीटेंगे।'"

बहन सूज़न की सहभागिता सुनकर, मेरे अंदर का संतोष और जोश दोनों लौट आए। जब मैं अपनी पुरानी कलीसिया का सदस्य था, तो मैंने वाकई इन अंशों को नहीं समझा था, केवल उनके शाब्दिक अर्थ को ही जाना था और सोचता था कि प्रभु की वापसी बादल पर सबके सामने होगी। आखिरकर, अब जा कर मुझे समझ में आया कि इंसान का न्याय करने और उसे बचाने की खातिर कार्य करने के लिए परमेश्वर पहले गोपनीय रूप से आता है। एक बार जब विजेताओं का समूह बन जाएगा, तब जा कर वह सभी देशों और दुनिया के सारे लोगों के सामने स्वयं को प्रकट करेगा। अगर हम आँखें मूँदकर इसी विचार से चिपके रहे कि प्रभु बादल पर सवार होकर वापस आएगा, और जब तक प्रभु बादल पर सवार होकर खुले तौर नहीं आता, तब तक हम इंतज़ार करेंगे और देहधारी रूप में परमेश्वर के गोपनीय कार्य को स्वीकार नहीं करेंगे, तो वह समय सीधे तौर पर हमारे नरक में जाने का होगा, क्योंकि तब तक इंसान को बचाने का परमेश्वर का कार्य पहले ही पूरा हो चुका होगा। प्रभु को उसके मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद। सूज़न द्वारा मेरे साथ सहभागिता करने के थोड़े-से समय में ही मैंने काफी कुछ समझ लिया था।

उसके बाद बहन सूज़न ने मुझसे पूछा कि क्या मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर को अपने उद्धारक के रूप में स्वीकारना चाहता हूँ। जब पहली बार उसने मुझसे यह बात पूछी, तो मैंने उत्तर नहीं दिया, और जब उसने दोबारा पूछा, तो मेरे अंदर एक ऐसा जोशा था कि मैं बयाँ नहीं कर सकता, मेरी आँखें भर आयीं। मैंने सच्चे मन से उत्तर दिया: "हाँ... स्वीकारना चाहता हूँ!" यह बात कहने के बाद, मुझे ऐसा लगा जैसे एक आवारा बेटा लम्बे समय तक जंगलों में भटकर, आखिरकार अपने प्रिय घर में वापस आ गया हो। मेरा दिल आनंद और सुकून से भर गया था।

मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार कर लिया था, मैंने बहन सूज़न की बहुत-सी पोस्ट को अपने फेसबुक पर फिर से पोस्ट किया। उसके तुरंत बाद, मेरे पाँच-छह फेसबुक मित्रों ने मुझे मैसेज भेजे कि "होश में आओ" और उन साइट्स के लिंक भेजे जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को बदनाम करने वाले आक्रमणों और आरोपों से भरी पड़ी थीं। मैं समझ गया कि यह हंगामा शैतान द्वारा खड़ा किया गया है, लेकिन इससे मैं प्रभावित नहीं हुआ। अगले दिन, एक पादरी ने मुझे ऑनलाइन संपर्क किया। थोड़ी देर इधर-उधर की बातें करने के बाद, उसने मुझसे पूछा, "क्या तुम सचमुच सर्वशक्तिमान परमेश्वर में आस्था रखते हो? क्या वजह है कि तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर में आस्था रखना चाहते हो?" इस बात ने वाकई मुझे परेशान कर दिया। मैंने उसी से सवाल किया: "परमेश्वर की भेड़ परमेश्वर की वाणी को सुनती है। मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों से पहचान लिया है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने जो कुछ व्यक्त किया है वह सब सत्य है, यह परमेश्वर की वाणी है, तो मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर में आस्था क्यों न रखूँ? बताइये?" शायद उसे उम्मीद नहीं थी कि मैं उससे इस तरह की बात पूछ लूँगा। वह कुछ देर तक चुप रहा। मैंने उससे फिर सवाल किया, "पादरी साहब, क्या कभी सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की जाँच-पड़ताल की है? क्या आपने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़े हैं? एक पादरी के तौर पर, आप खोज और जाँच-पड़ताल को नकार कर, बिना सोचे-समझे आकलन और आरोप कैसे लगा सकते हैं?" मुझे आश्चर्य हुआ जब वो कोई ठोस जवाब देने के बजाय 'हाँ-न, हाँ-न' करने लगा और फिर अचानक फेसबुक से गायब हो गया। उस पादरी को इतना घबराया हुआ देखकर, मेरी खुशी का ठिकाना न रहा, मुझे इतना संतोष मिला जैसे मैंने शैतान के किसी इम्तहान की कोई जंग जीत ली हो। दरअसल, मैंने पादरी से वही सवाल किए थे जो बहन सूज़न और की फेई हमारी आपसी चर्चा में अक्सर उठाती थीं; मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों से जो कुछ समझा था, वही कहा था। मुझे उम्मीद नहीं थी कि इतना दबंग पादरी मेरे सवालों से यूँ धराशायी हो जाएगा। इस छोटे-से अनुभव ने मुझे बहुत आत्मविश्वास दिया। परमेश्वर का धन्यवाद!

पाँच महीनें से ज़्यादा का समय पलक झपकते ही निकल गया। सभाओं में शामिल होकर और परमेश्वर के वचन पढ़कर, मुझे समझ में आया कि देहधारण क्या होता है, स्वर्ग के राज्य में किस तरह के लोग प्रवेश कर सकते हैं, और सत्य के अन्य पहलू भी समझ में आए। इस पूरी अवधि में, मैंने पादरियों और एल्डरों द्वारा फैलायी गयीं अफवाहों से अशांति का अनुभव किया। कई बार मैं नकारात्मक और कमज़ोर हुआ क्योंकि मैं शैतान की चाल को नहीं जान पाया, लेकिन परमेश्वर ने कभी मेरा साथ नहीं छोड़ा। दोनों बहनों ने मुझे जो परमेश्वर के वचन पढ़कर सुनाए थे और पूरे धैर्य से सत्य पर जो सहभागिता की थी, उनसे मुझे सत्य के प्रति एल्डरों और पादरियों की शत्रुतापूर्ण शैतानी प्रकृति, सार और परमेश्वर का विरोध समझ में आ गया। उन्होंने सत्य मार्ग की खोज और जाँच-पड़ताल करने से विश्वासियों को रोकने का जो जी-तोड़ घृणित अभियान चला रखा था, वह भी थोड़ा-थोड़ा समझ में आने लगा। वे लोग न तो मुझे कभी भटका सकते हैं और न ही नियंत्रित कर सकते हैं। मैं परमेश्वर के अनुग्रह और आशीषों के कारण ही शैतान के प्रभाव से मुक्त हो पाया और परमेश्वर के सिंहासन के समक्ष उन्नत हो पाया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का धन्यवाद! मेरे परमेश्वर की ओर मुड़ने को परमेश्वर ने बहुत पहले ही नियत और व्यवस्थित कर दिया था। मैं सन्देहरहित होकर परमेश्वर पर निर्भर रहूँगा और आगे बढ़ूँगा! जब मैं परमेश्वर के घर में आया, तो मैंने पहले यह वाला भजन सीखा था, "मानव जीवन के सही पथ पर चलना" : "परमेश्वर के वचन सत्य हैं, मैं उन्हें जितना पढ़ता हूँ, मेरा दिल उतना ही उज्ज्वल होता जाता है। परमेश्वर के वचन जीवन के रहस्य को प्रकट करते हैं और मुझे एकदम से प्रकाश के दर्शन कराते हैं। मैं समझ जाता हूँ कि मेरे पास जो भी है वो परमेश्वर से आया है—यह सब परमेश्वर का अनुग्रह है। मैं मसीह का अनुसरण करता हूँ और सत्य और जीवन को खोजता हूँ; मैं मानव जीवन के सही पथ पर चल रहा हूँ..." (मेमने का अनुसरण करना और नए गीत गाना)। और आज, मैं कलीसिया में भाई-बहनों के साथ मिलकर, सुसमाचार का प्रचार करता हूँ और परमेश्वर की गवाही देता हूँ। मैं पूरी लगन से अपना कर्तव्य निभाना और परमेश्वर के प्रेम का प्रतिदान देना चाहता हूँ!

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