47. कगार से लौट आना

झाओ गुआंगमिंग, चीन

1980 के दशक के प्रारंभ में, मैं उम्र से अपने 30 के दशक में था और एक निर्माण कंपनी के लिए काम कर रहा था। मैं खुद को युवा और फिट मानता था, लोगों के साथ वफ़ादारी और सम्मान के साथ पेश आता था और अपना काम ज़िम्मेदारी से करता था। मेरा निर्माण कौशल भी शीर्ष पर था, और मुझे यकीन था कि मैं कंपनी में बहुत तरक्की करूँगा और, एक बार जब मेरा कैरियर रास्ते पर आ जाएगा, तो मैं एक राजकुमार की तरह जी सकूँगा। यह मेरा लक्ष्य था और इसलिए मैं कंपनी के साथ बना रहा और कई वर्षों तक मैंने कड़ी मेहनत की। लेकिन मेरे निष्कलंक चरित्र और पेशेवर कौशल के बावजूद, मेरे प्रयासों को कंपनी ने कभी नहीं पहचाना, और मैं इसे कभी नहीं समझ पाया। हमारी कंपनी में ग्रेड 6 शीर्ष वेतन ग्रेड था, लेकिन मेरा वेतन ग्रेड 3 से ऊपर कभी नहीं गया। मैंने कई सहयोगियों को, जिनके पास न तो मेरे जैसा कौशल था और न ही जिन्होंने कंपनी में मेरी तरह लम्बे समय से काम किया था, वेतन में बढ़ोतरी पाते देखा, लेकिन यह मेरे साथ कभी नहीं हुआ। मैं हैरान और नाराज़ था कि उन्होंने क्यों बढ़ोतरी पाई पर मैंने नहीं। अंततः, एक सहकर्मी ने, जिसके साथ मेरा अच्छा मेल-झोल था, मुझे एक सलाह दी: "इस कंपनी में, प्रबंधक को मक्खन लगाना और कम से कम उसे चीनी नए साल और अन्य त्योहारों पर शुभकामनाएँ देना सबसे महत्वपूर्ण होता है।" यह सुनकर, मैं आखिरकार असली कारण समझ गया कि मुझे कंपनी द्वारा नज़रअंदाज़ क्यों किया गया था, और इस बात के अन्याय ने मुझे उग्र बना दिया। लेकिन यद्यपि मुझे कंपनी के उन चाटुकारों से नफ़रत थी, और उन लोगों के लिए तो और भी कम समय था जो काम तो बहुत कम करते थे लेकिन फिर भी गुप्त तरीकों से वेतन वृद्धि और पदोन्नति प्राप्त करते थे, मुझे कंपनी में अपनी एक जगह बनाने की आवश्यकता थी और इस तरह मुझे इन अलिखित नियमों को अपनाना पड़ा। इसलिए अगली बार जब चीनी नववर्ष आया, तो मैंने प्रबंधक को अपनी "हार्दिक शुभकामनाएँ व्यक्त कीं" और मुझे तुरंत ही पदोन्नत कर टीम लीडर बना दिया गया।

टीम लीडर के रूप में, मैं अपने काम में और भी अधिक कर्तव्यनिष्ठ और ज़िम्मेदार बन गया। यह सुनिश्चित करने के लिए काम मानक के अनुरूप किया जा रहा था और परियोजना के लक्ष्य पूरे हो रहे थे, मैं निर्माण स्थलों पर कड़ाई से निरीक्षण के लिए जाया करता था और इसके लिए निदेश दिया करता था। मैंने हर समय अपने दिमाग में श्रमिक सुरक्षा को बनाए रखा, और मेरी टीम में समस्त श्रमिकों द्वारा काम के प्रति मेरे रवैये की और पेशेवर मार्गदर्शन की प्रशंसा की जाती थी। लेकिन जब टीम लीडर्स को रखने या हटाने की बात आती थी, तो इसमें से कोई भी बात ज़्यादा मायने नहीं रखती थी—सबसे अधिक महत्वपूर्ण यह होता था कि प्रत्येक टीम लीडर ने प्रबंधक को कितने मूल्यवान उपहार दिए थे। कंपनी में अपनी नौकरी बनाए रखने के लिए, मेरे पास अस्तित्व के इस नियम के साथ चलने के अलावा कोई विकल्प न था, इससे मुझे "योग्यतम की उत्तरजीविता" कथन में निहित क्रूरता और लाचारी का अनुभव होता था।

इसके बाद के वर्षों में, सरकार द्वारा आर्थिक सुधारों और प्रतिबंधों को ढीला करने के कारण पूरे चीन में बड़े पैमाने पर विकास और निर्माण की परियोजनाएँ प्रारंभ हुईं। इसलिए, मेरी कंपनी ने व्यक्तियों को परियोजनाओं का आवंटन करना शुरू कर दिया, जिसका अर्थ था कि टीम लीडर्स को कॉन्ट्रैक्ट के लिए आपस में स्पर्धा करनी पड़ती थी। इसका परिणाम और भी अधिक खिलाना-पिलाना और उपहार देना हुआ, जिसमें हर टीम लीडर दूसरों से आगे निकलने की कोशिश करता था। जब भी हम टीम लीडर्स एक कार्य यूनिट के पास टेंडर के लिए एक परियोजना होने के बारे में सुनते थे, तो हम जल्द से जल्द यूनिट के संबंधित लोगों को हमारे उपहारों की घूस देकर आपस में छीना-झपटी किया करते थे। इस तरह, इन यूनिट लीडर्स को नाराज़ करने से बचने के लिए, हम सबसे अच्छे उपहार और देने के सर्वोत्तम तरीकों के बारे में अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाते थे: कुछ लोग मछली या चिकन के पेट के अंदर सोना डाल देते थे; कुछ नकद देते थे; कुछ सोने के गहने या हीरे की अंगूठियाँ देते थे। मैं भी रिश्वतखोरी की इस संस्कृति में फँस गया और कई घंटे ये सोचने में बिता देता था कि इन लोगों की ख़ुशामद करने के लिए क्या उपहार देने हैं। आखिरकार, मैंने बहुत कठिनाई के साथ एक कॉन्ट्रैक्ट पाया, लेकिन जैसे ही हमने कार्य शुरू किया, निर्माण ब्यूरो, निर्माण डिजाइन संस्थान, और गुणवत्ता और तकनीकी पर्यवेक्षण ब्यूरो—और साथ ही साथ स्थानीय कैडर के अधिकारी—सब के सब 'काम के निरीक्षण और अधिवीक्षण' के लिए आ गए। उन्होंने कहा कि साइट के साथ यह या वह समस्या थी, कि ये या वो मानक के अनुसार नहीं थे, और पूरी सुबह के निरीक्षण के बाद हम काम शुरू भी नहीं कर सके। मैंने तुरंत उन सभी को एक उत्तम दर्जे के रेस्तरां में दोपहर के भोजन और मदिरापान के लिए आमंत्रित किया, जिसमें मुझे हज़ारों युआन खर्च हुए। और भोजन के अंत में, मुझे अब भी उनमें से हर एक को 2,000 युआन से लेकर 10,000 युआन तक रिश्वत देनी पड़ी। काम शुरू करने की खातिर उनका अनुसमर्थन और अनुमोदन प्राप्त करने का यह एक मात्र तरीका था। लेकिन काम शुरू होने के बाद भी ये पर्यवेक्षी एजेंसियाँ परियोजना का निरीक्षण करने के लिए नियमित रूप से निरीक्षकों को भेजती रही। उन्होंने इन निरीक्षणों को "सामान्य" कहा, लेकिन वास्तव में हमसे अधिक धन हथियाने का यह एक और बहाना था। जब भी वे कार्यस्थल पर अपनी उपस्थिति से हमें 'सम्मानित' करते थे, उनके मनोरंजन, भोजन और पेय की व्यवस्था के लिए मैं भागता-फिरता था, और इन पर्यवेक्षी एजेंसी के निदेशक मुझे शॉपिंग मॉल में उनके साथ ले जाने के भी कारण ढूँढते थे, जहाँ वे डिज़ाइनर कपड़ों की खरीदारी करते और मुझसे बिल चुकाने की उम्मीद करते थे। कभी-कभी वे यह कहने के लिए भी निडर होते थे कि वे कठिनाई में थे, और मुझसे सीधे ही नकद माँग लेते थे। परियोजना को पटरी पर बनाए रखने के लिए, मैं बस इतना कर सकता था कि अपने दाँत पीस लूँ, अपना गुस्सा निगल जाऊं, उनके साथ अच्छा व्यवहार करता रहूँ, और यह मार यूँ ही सहता रहूँ। इससे भी बुरी बात यह थी कि लंबे समय तक मुझे इन एजेंसी निदेशकों के साथ शहर से बाहर जाना पड़ा था। लंबे समय तक अधिक पीने और अनियमित नींद के कारण, मुझे पेट की समस्या और उच्च रक्तचाप की शिकायतें रहने लगीं, और मैं बुरी तरह थक जाता था। इसलिए, जब परियोजना अंततः पूरी हुई और मुझे भुगतान किया गया, तो मुझे पता चला कि मुझे लगभग कोई आमदनी नहीं हुई थी। मैं सचमुच रो सकता था। ऐसे कठिन जीवन का सामना करते हुए, मैंने मन ही मन सोचा: "मेरे लिए अपने कौशल और कड़ी मेहनत पर भरोसा करके धन कमाना इतना मुश्किल क्यों है? क्यों राष्ट्रीय प्रणाली में हर एक विभाग के अगुवा इतने भ्रष्ट हैं?" मैंने बहुत असहाय महसूस किया, लेकिन धन अर्जित करने की मेरी सभी आशाओं को इन अधिकारियों पर रखने के अलावा मेरे पास और कोई विकल्प नहीं था। मैंने शुरू में माना था कि उनके साथ अच्छे संबंध बनाने का मतलब मेरे कैरियर के विकास के लिए नींव बनाना भी होगा, और मुझे कभी यह एहसास नहीं था कि मैं जो कुछ कर रहा था वह केवल पाप के दलदल वाले गड्ढे में डूबना और एक निराशाजनक स्थिति से गुज़रना था।

1992 में, एक जटिल और कठिन प्रक्रिया के बाद, मैंने शहर में एक निर्माण परियोजना का कॉन्ट्रैक्ट जीता, और मैंने अनुमान लगाया कि यह परियोजना मेरे लिए कुछ धन कमाएगी। ज्यों ही मैं उत्साहपूर्वक काम शुरू करने की तैयारी में लगा हुआ था, तो मेरे प्रबंधक ने मुझे बताया कि मुझे पहले शहर के 4 अधिकारियों में से प्रत्येक के लिए एक निजी विला बनाना था। उन्होंने कहा कि यह मेरे कैरियर विकास के लिए एक अच्छा अवसर था, और यह कि शहर के अधिकारियों पर एक एहसान करना यह गारंटी देगा कि मुझे भविष्य में कभी भी धन के बारे में चिंता नहीं करनी होगी और मैं जल्द ही एक अच्छा जीवन जी सकूँगा। आशा से छलकते दिल के साथ, मैंने बैंक से ऋण लिया और दोस्तों और रिश्तेदारों से भी उधार लिया, हर संभव तरीके से धन इकठ्ठा करते हुए 4 विला बनाने के लिए पर्याप्त पूंजी जुटाई। लेकिन जैसे ही भवन का काम पूरा होने के करीब था, अनुशासन निरीक्षण आयोग के कुछ वरिष्ठ अधिकारी आ पहुँचे, और मुझे बात को सुलझाने एवं शहर के चार अधिकारियों को बचाने के लिए और भी खर्च करना पड़ा। लेकिन अंत में, मेरे सभी प्रयास कानून के लंबे हाथ को उनसे दूर रखने में असमर्थ थे: चूँकि उन चार अधिकारियों पर रिश्वत लेने और भ्रष्टाचार में शामिल होने का संदेह था, वे निरीक्षण अधिकारियों द्वारा निपटाए गए थे। मेरी सभी श्रमसाध्य योजनाएँ व्यर्थ हो गईं और 4 अधूरे विला उन अधिकारियों द्वारा ज़ब्त कर लिए गए। मैं कई लाख युआन के कर्ज में डूबा हुआ था, जिसका मेरे पास भुगतान करने का कोई तरीका नहीं था, और एक अकथनीय कड़वाहट एक भारी चट्टान की तरह मेरे सीने पर हावी हो गई।

अपनी लाचारी की स्थिति में, मैं केवल एक और निर्माण परियोजना पर अपनी आशाएँ टिका सकता था। अपने ऋणों का भुगतान करने के लिए मैंने कुछ ऐसा करना शुरू कर दिया जो मैंने अपने पूरे कैरियर में पहले कभी नहीं किया था, और जिसे करने के लिए मैं सबसे ज्यादा अनिच्छुक था—कन्नी काटना और घटिया सामग्री का उपयोग करना। राष्ट्रीय मानक स्टील का उपयोग करने के बजाय मैंने दूसरे नीचे स्तर के सामान का उपयोग करना शुरू कर दिया, और कंक्रीट में 6 सरियों के बंडलों की जगह मैंने 4 के बंडलों का उपयोग करना शुरू कर दिया, इस प्रकार मेरी स्टील की लागत एक तिहाई कम हो गई। मैंने अपनी कुल लागतों को कम करने के लिए कंक्रीट की गुणवत्ता भी घटा दी। सच कहा जाए तो, हर बार जब मैंने ऐसा किया तो मुझे बहुत बेचैनी हुई क्योंकि मैं घबराया हुआ था कि तैयार निर्माण की गुणवत्ता गंभीर रूप से प्रभावित होगी। और जब मैंने पूरे चीन में घटिया निर्माणों की खबरें सुनीं, जिनके टूट कर गिर पड़ने से कई आम नागरिक मारे गए थे, घायल हुए थे या दिवालिया हो गए थे, तो मैं विशेष रूप से चिंतित हो जाता थे और अक्सर बुरे सपने देखा करता था। यह बात इस हद तक पहुँच गई कि बिजली की गड़गड़ाहट की आवाज़ मेरे लिए आसन्न विनाश की घोषणा की तरह थी, शायद बिजली गिरने या किसी और चीज़ से आहत होकर मरने की। डर हर दिन मेरा पीछा किया करता था। इस स्थिति के कारण मैं अंततः बीमार पड़ गया, और मैं लगातार चक्कर आने, सिरदर्द होने और अनिद्रा से परेशान था, जो सब मेरे उच्च रक्तचाप के कारण होता था। मैं शारीरिक और आध्यात्मिक रूप से टूट चुका था और जीवन मेरे लिए एक जीवित नरक बन गया था। इस तरह मैंने खुद को संसार की प्रवृत्तियों में खो दिया और मैं पाप के उस दलदल में और गहरा डूबता गया। मुझे आश्चर्य हुआ जब परियोजना का आधा काम हो गया, तो मैं जिस यूनिट के लिए यह निर्माण कर रहा था, उसने मुझे कॉन्ट्रैक्ट में उल्लेखित भुगतान करने से इनकार कर दिया। बैंक से जो ऋण मैंने लिया था, वह मज़दूरों के वेतन को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं था, इसलिए मेरे पास सूदखोरों से ऊँचे ब्याज पर ऋण लेने के अलावा कोई चारा नहीं था। कई और असफलताओं के बाद, मुझे अंततः पता चला कि कॉन्ट्रैक्ट देने वाला यूनिट लंबे समय से कर्ज में था और उसके पास निर्माण परियोजना के वित्तीय पोषण का कोई तरीका नहीं था। मेरी एक अन्य परियोजना विफल हो गई थी, और मैंने इसमें से कुछ अच्छा करने के लिए अपने दिमाग को छान मारा। मैं पूरी तरह से थक चुका था और निराशा की स्थिति में जी रहा था। तब मैंने यह खबर सुनी कि एक अन्य कंपनी में एक टीम लीडर ने जिसने एक निर्माण परियोजना जीती थी, और बहुत बड़ा ऋण लिया था, वह उसे चुकाने में असमर्थ था, और इसलिए उसने खुद को फांसी लगा दी थी। ऐसा लगा मानो मैं भी नरक के दरवाज़े पर खड़ा था और हताशा में डूब रहा था। उसके बाद, लेनदारों ने अपने पैसे वापस पाने के लिए मेरे घर पर आना शुरू कर दिया: उनमें से कुछ मेरे बिस्तर पर लेट जाते थे और जाने से इनकार करते थे, जबकि बाकी लोग उपद्रव मचाते और मुझे धमकी देते थे। मैं उनके साथ जितना हो सके विनीत और विनम्र था, और मैं पूरी तरह से अपमानित महसूस कर रहा था। मेरे करीबी दोस्तों और रिश्तेदारों तक ने सोचा कि मैं उनके ऋण चुकाने में असमर्थ था और वे मेरे खिलाफ़ होने लगे। यह उन दिनों के दौरान था कि मैं वास्तव में इस बात को मानने लगा कि मानव रिश्ते कितने चंचल हो सकते हैं। मैंने उन भाग-दौड़ के वर्षों को याद किया, जिन्होंने न केवल मुझे दरिद्र कर दिया था, बल्कि मुझे शारीरिक और मानसिक रूप से थका दिया था, और कई लाख युआन का क़र्ज़ हो गया था। मैंने आकाश की ओर देखा, एक लंबी आह भरी और मैंने कहा, "हे परमेश्वर, यह तो बहुत ही कठिन है। मैं वास्तव में अब जीना नहीं चाहता!"

जब मैं नरक के दरवाज़े पर इंतजार कर रहा था, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार मेरे कानों तक पहुँचा। मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के इन वचनों को देखा: "आज, चूंकि मैं तुम लोगों को इस स्थिति तक ले आया हूँ, इसलिए मैंने कई उपयुक्त व्यवस्थाएँ की हैं, और मेरे स्वयं के लक्ष्य हैं। यदि मैं तुम लोगों को आज उनके बारे में बताता, तो क्या तुम लोग उन्हें सच में जानने में समर्थ हो पाते? मैं मनुष्य के मन के विचारों और मनुष्य के हृदय की इच्छाओं से भली-भांति परिचित हूँ: कौन है जिसने ख़ुद के लिए कभी बचने का तरीका नहीं खोजा? कौन है जिसने कभी अपने लिए संभावनाओं के बारे में नहीं सोचा? फिर भी भले ही मनुष्य एक समृद्ध और चकित करने वाली मेधा से संपन्न हो, पर कौन इस भविष्यवाणी में समर्थ था कि युगों के बाद, वर्तमान जैसा हो गया है वैसा होगा? क्या यह वास्तव में तुम्हारे व्यक्तिनिष्ठ प्रयासों का परिणाम है? क्या यही तुम्हारे अथक परिश्रम का प्रतिदान है? क्या यह तुम्हारे मन में परिकल्पित सुंदर झाँकी है? यदि मैंने संपूर्ण मनुष्यजाति का मार्गदर्शन नहीं किया होता, तो कौन स्वयं को मेरी व्यवस्थाओं से अलग करने और कोई अन्य तरीका ढूँढने में समर्थ हो पाता? क्या मनुष्यों की यही कल्पनाएँ और इच्छाएँ उसे आज यहाँ तक लेकर आई हैं? बहुत से लोगों का संपूर्ण जीवन उनकी इच्छाएं पूरी हुए बिना ही बीत जाता है। क्या यह वास्तव में उनकी सोच में किसी दोष की वजह से होता है? बहुत से लोगों का जीवन अप्रत्याशित खुशी और संतुष्टि से भरा होता है। क्या यह वास्तव में इसलिए है क्योंकि वे बहुत कम अपेक्षा रखते हैं? संपूर्ण मानवजाति में कौन है जिसकी सर्वशक्तिमान की नज़रों में देखभाल नहीं की जाती? कौन सर्वशक्तिमान द्वारा तय प्रारब्ध के बीच नहीं रहता? क्या मनुष्य का जीवन और मृत्यु उसका अपना चुनाव है? क्या मनुष्य अपने भाग्य को खुद नियंत्रित करता है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 11)। जब मैंने इन वचनों को पढ़ा, तो मैं पूरी तरह से आश्वस्त हो गया। मुझे वास्तव में लगा कि हमारे भाग्य हमारे अपने हाथों में नहीं हैं। मैंने पिछले वर्षों के बारे में सोचा, कि कैसे मैंने अपने भविष्य के लिए योजना बनाई और हिसाब किया था, लेकिन मेरे लिए कोई बात नहीं बनी थी। मैंने बहुत धन कमाने के लिए और एक बेहतर जीवन शैली के लिए अपना सब कुछ लगा दिया था, लेकिन न केवल मैंने कोई धन नहीं कमाया, बल्कि ढेरों बर्बाद भी किया। मैंने एक बार भी नहीं सोचा था कि मैं—जो कभी ख़ास हुआ करता था—गरीबी की ऐसी दयनीय स्थिति में पहुँच सकता था। ऐसा क्यों था कि मैंने अपने भविष्य के लिए इतनी मेहनत की और फिर भी एक के बाद एक असफलता का सामना किया? ऐसा इसलिए था क्योंकि हर व्यक्ति का भाग्य उसके अपने हाथों में नही, बल्कि परमेश्वर के हाथों में होता है। सब कुछ परमेश्वर द्वारा शासित और पूर्वनिर्धारित होता है; सौभाग्य या दुर्भाग्य सभी परमेश्वर द्वारा प्रशासित हैं। मैं तहेदिल से महसूस कर सकता था कि ये परमेश्वर के वचन थे, और मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर को पुकारे बिना न रह सका: "हे परमेश्वर! अतीत में मैं आपको नहीं जानता था। मैंने अपने आप पर और मनुष्य की शक्ति पर भरोसा करने की कोशिश की पर इसका अंत एक निराशाजनक स्थिति में हुआ। आज, मैं अंततः समझ गया हूँ कि हर एक व्यक्ति का भाग्य, जीवन और मृत्यु, तुम्हारे हाथों में है। यदि यह स्थिति मेरे सामने नहीं आई होती, तो मैं तुम्हारे सामने न आया होता। हे परमेश्वर! मुझे मृत्यु के कगार से बचाने और मुझे जीवन का सामना करने की हिम्मत देने के लिए मैं तुम्हें धन्यवाद देता हूँ। अब से आगे, मुझे जीवन में किस पथ पर चलना चाहिए, इस बारे में मैं तुम्हारी व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करूँगा।"

उसके बाद, मैंने कलीसियाई जीवन जीना शुरू कर दिया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का परिवेश बाहरी दुनिया से बिल्कुल अलग था: भाइयों और बहनों के एक-दूसरे के साथ सरल, सीधे रिश्ते थे, और वे एक दूसरे के साथ बिना किसी भी तरह के ढोंग, भीतरी कलह या चालाकियों के, ईमानदारी से पेश आते थे। हर कोई परमेश्वर के वचनों को पढ़ता था और वे एक साथ परमेश्वर की प्रशंसा में स्तुति-गीत गाते थे; सभाओं में, भाई-बहन एक-दूसरे के साथ ईमानदार और खुले रहते थे और अपने स्वयं के अनुभवों, अपनी कमियों और कठिनाइयों के बारे में, और साथ ही परमेश्वर के वचनों की अपनी समझ और जानकारी के बारे में, सहभागिता किया करते थे। मैंने महसूस किया कि हर सभा जिसमें मैंने भाग लिया था, ताज़ा एवं नई थी और जीवन-शक्ति से भरपूर थी। भाइयों और बहनों के बीच कोई अनबन या कुशंका नहीं थी; सभी एक-दूसरे को समझते थे और एक-दूसरे को अच्छी तरह से जानते थे। वहाँ मुझे राहत और आज़ादी की एक अभूतपूर्व अनुभूति हुई और मैंने जितना पहले कभी भी महसूस किया था, उससे कहीं अधिक आराम और खुशी महसूस की। इसके साथ ही, परमेश्वर ने मुझे यह समझने के लिए निर्देशित किया कि मैं पिछले कुछ दशकों में इस तरह के कष्ट में क्यों रहा था। मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के इन वचनों को पढ़ा: "तुम्हारे दिल में एक बहुत बड़ा रहस्य है, जिसके बारे में तुमने कभी नहीं जाना है, क्योंकि तुम एक प्रकाशविहीन दुनिया में रह रहे हो। तुम्हारा दिल और तुम्हारी आत्मा शैतान द्वारा छीन लिए गए हैं। तुम्हारी आँखें अंधकार से धुंधला गई हैं, तुम न तो आकाश में सूर्य को देख सकते हो और न ही रात के टिमटिमाते तारे को। तुम्हारे कान कपटपूर्ण शब्दों से भरे हुए हैं, तुम न तो यहोवा की गरजती वाणी सुनते हो, न ही सिंहासन से बहने वाले पानी की आवाज़ को। तुमने वह सब कुछ खो दिया है जिस पर तुम्हारा हक है, वह सब भी जो सर्वशक्तिमान ने तुम्हें प्रदान किया था। तुम दु:ख के अनंत सागर में प्रवेश कर चुके हो, तुम्हारे पास न तो बचाव की शक्ति है, न जीवित बचे रहने की कोई उम्मीद है। तुम बस संघर्ष करते हो और व्यर्थ की भाग-दौड़ करते हो...। उस क्षण से, सर्वशक्तिमान के आशीषों से दूर, सर्वशक्तिमान के प्रावधानों की पहुंच से बाहर, ऐसे पथ पर चलते हुए जहां से लौटना संभव नहीं, तुम दुष्ट के द्वारा पीड़ित होने के लिए शापित हो गए थे। लाखों पुकार भी शायद ही तुम्हारे दिल और तुम्हारी आत्मा को जगा सकें। तुम उस शैतान की गोद में गहरी नींद में सो रहे हो, जो तुम्हें फुसलाकर एक ऐसे असीम क्षेत्र में ले गया है, जहाँ न कोई दिशा है, न कोई दिशा-सूचक। अब से, तुमने अपनी मौलिक मासूमियत और शुद्धता खो दी, और सर्वशक्तिमान की देखभाल से दूर रहना शुरू कर दिया। तुम्हारे दिल के भीतर, सभी मामलों में तुम्हें चलाने वाला शैतान है, वो तुम्हारा जीवन बन गया है। अब तुम उससे न तो डरते हो, न बचते हो, न ही उस पर शक करते हो; इसके बजाय, तुम उसे अपने दिल में परमेश्वर मानते हो। तुमने उसकी आराधना करना, उसे पूजना शुरू कर दिया है, तुम दोनों शरीर और छाया जैसे अविभाज्य हो गए हो, जो जीवन और मृत्यु में समान रूप से एक-दूसरे के लिए प्रतिबद्ध हैं। तुम्हें कुछ पता नहीं है कि तुम कहाँ से आए, क्यों पैदा हुए, या तुम क्यों मरोगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सर्वशक्तिमान की आह)। "शैतान राष्ट्रीय सरकारों और प्रसिद्ध एवं महान व्यक्तियों की शिक्षा और प्रभाव के माध्यम से लोगों को दूषित करता है। उनके शैतानी शब्द मनुष्य के जीवन-प्रकृति बन गए हैं। 'स्वर्ग उन लोगों को नष्ट कर देता है जो स्वयं के लिए नहीं हैं' एक प्रसिद्ध शैतानी कहावत है जिसे हर किसी में डाल दिया गया है और यह मनुष्य का जीवन बन गया है। जीने के लिए दर्शन के कुछ अन्य शब्द भी हैं जो इसी तरह के हैं। शैतान प्रत्येक देश की उत्तम पारंपरिक संस्कृति के माध्यम से लोगों को शिक्षित करता है और मानवजाति को विनाश की विशाल खाई में गिरने और उसके द्वारा निगल लिए जाने पर मजबूर कर देता है, और अंत में परमेश्वर लोगों को नष्ट कर देता है क्योंकि वे शैतान की सेवा करते हैं और परमेश्वर का विरोध करते हैं" ("मसीह की बातचीत के अभिलेख" में 'मनुष्य का स्वभाव कैसे जानें')। तो खुद को थका देने और पिछले कुछ दशकों में इस दुनिया में भाग-दौड़ करते हुए खुद को इतना दुखी और परेशान करने का कारण यह था कि मैं शैतान द्वारा बनाए जीने के नियमों से जी रहा था, जैसे कि, "किसी व्यक्‍ति की नियति उसी के ही हाथ में होती है" "दुनिया पैसों के इशारों पर नाचती है" "स्वर्ग उन लोगों को नष्ट कर देता है जो स्वयं के लिए नहीं हैं" "खुशामदी और चापलूसी के बिना कोई कुछ भी हासिल नहीं कर पाता है", इत्यादि। इस शैतानी दर्शन के द्वारा जीकर, मुझे परमेश्वर के अस्तित्व का कोई पता नहीं था, और न ही यह ज्ञात था कि परमेश्वर हर किसी की नियति पर शासन करता है और उसकी व्यवस्था करता है। अपने जीवन में कोई भी दिशा-निर्देश या आचरण के सिद्धांतों के बिना, मैं इस अंधेरी दुनिया के बहाव के साथ बह गया था। मैं निश्चित रूप से यह नहीं देख पाया था कि इस अंधेरी दुनिया पर शैतान शासन करता है, और यह मानव समाज शैतान के प्रलोभनों, फंदों और धोखों से भरा है। इस अंधेरी और बुरी दुनिया में धन कमाने की खातिर, मैंने सीखा कि कैसे अधिकारियों की चापलूसी और खुशामद करनी है और अपनी निर्माण परियोजनाओं में चुपके से मैंने घटिया सामग्री का इस्तेमाल तक किया। मेरा विवेक धीरे-धीरे गायब हो गया था, और मैं मुझमें सत्यनिष्ठा या आत्म-सम्मान का अंश मात्र भी नहीं बचा था। मैं पाप में जितना गहरा डूबता गया, उतना ही कम मैंने एक इंसान की तरह महसूस किया। अंत में, मैंने कोई धन नहीं कमाया बल्कि मुझ पर ढ़ेरों कर्ज हो गया था, और मुझे इतना निराशा हुई कि मैंने लगभग आत्महत्या कर ही ली थी। मैंने उस टीम लीडर के बारे में सोचा, जिसने अपने विशाल ऋणों के कारण खुद को मार डाला था—क्या वह शैतान को चढ़ावे में दिया गया एक बलिदान नहीं था? और कौन जानता है कि हर साल के हर दिन इसी तरह की दूसरी कितनी त्रासदियाँ घटित होती हैं? उस बिंदु पर मैंने महसूस किया कि लोग इस परिस्थिति में आ जाते हैं इसका कारण शैतान के विष से होने वाला नुकसान, और शैतानी शासन के द्वारा निर्देशित सांसारिक चलन, हैं। जब मैंने यह सब सोचा, तो मेरे हृदय में परमेश्वर के प्रति कृतज्ञता का भाव भर गया और मैं परमेश्वर की दया और उद्धार के लिए बहुत आभारी हुआ। परमेश्वर ने मुझे अंधेरी दुनिया से बचाया था और वह मुझे परमेश्वर के घर वापस लाया था जहाँ मैं उसकी देखभाल और सुरक्षा का आनंद ले सकता था।

समय की अवधि के बाद, मुझे एक बार फिर अपने लेनदारों का सामना करना पड़ा, और मेरा दिल बहुत उथल-पुथल में था। जब मैंने उन सभी ऋणों के बारे में सोचा जो मुझे अब भी चुकाने थे, तो मैं एक बार फिर निर्माण परियोजनाओं को लेना चाहता था। हालांकि, मुझे पता था कि मेरी क्षमताएँ मेरी महत्वाकांक्षाओं से मेल नहीं खातीं थीं। मेरी उच्च रक्तचाप की समस्या फिर से बढ़ गई, और मुझे कुछ भी पता नहीं था कि मुझे क्या करना है। एक सभा में, किसी भाई ने मेरे लिए परमेश्वर के कुछ वचनों को पढ़ा: "परमेश्वर में सच्चे विश्वास का अर्थ यह है: इस विश्वास के आधार पर कि सभी वस्तुओं पर परमेश्वर की संप्रभुता है, व्यक्ति परमेश्वर के वचनों और कार्यों का अनुभव करता है, अपने भ्रष्ट स्वभाव को शुद्ध करता है, परमेश्वर की इच्छा पूरी करता है और परमेश्वर को जान पाता है। केवल इस प्रकार की यात्रा को ही 'परमेश्वर में विश्वास' कहा जा सकता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना)। फिर भाई ने सहभागिता देते हुए कहा, "चूँकि हम परमेश्वर को मानते हैं, हमें परमेश्वर में सच्ची आस्था रखनी चाहिए। हमें तहेदिल से विश्वास करना चाहिए कि परमेश्वर के अधिकार और शक्ति की सभी चीज़ों पर प्रभुता होती है, और हमें अपने जीवन में सब कुछ परमेश्वर को सौंप देना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें परमेश्वर पर भरोसा करना, परमेश्वर को खोजना, परमेश्वर के कार्य का अनुभव करना, एवं परमेश्वर की अगुवाई की तलाश करना सीखना चाहिए, और हम यह सब स्वयं कर सकते हैं, ऐसा मानकर यहाँ-वहाँ व्यस्तता से अब और भाग-दौड़ नहीं करनी चाहिए। ऋण का भुगतान करना कुछ ऐसा है जो सभी तर्कसंगत और कर्तव्यनिष्ठ लोग करते हैं, इसलिए हमें बहादुर बनना होगा और अपने ऋणों का सामना करना होगा। हमें विश्वास करना होगा कि सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है, और कोई भी काम ऐसा नहीं है जिसे हम नहीं कर सकते। अपने ऋणों के बारे में, आपको परमेश्वर से और अधिक प्रार्थना करनी चाहिए और उसकी इच्छा की तलाश करनी चाहिए।"

भाई की सहायता पाकर, अब मेरे पास अभ्यास का एक तरीका था। मुझे पास ही एक निर्माण स्थल पर एक नौकरी मिली, जिसमें मेरे सभाओं में उपस्थित रहने या अपने कर्तव्यों को पूरा करने में कोई बाधा नहीं थी, और मैंने अपने ऋणों का भुगतान करने के लिए कुछ धन कमाना शुरू किया। मैं अब आगे निकलने के लिए सिर्फ अपने आप पर भरोसा नहीं करता था। जब मेरे लेनदार मेरे पास भुगतान के लिए आते थे, तो मैं उनके साथ ईमानदारी से पेश आने का अभ्यास करता था और मेरे पास जो कुछ भी होता था, उन्हें दिया करता था। अपने खेत से काटी गई फ़सलों को बेचकर जो आमदनी हुई, उसमें से भी मैंने कुछ कर्जे चुकाए। मैंने अपने सभी लेनदारों से एक वादा किया कि मैं अपने सारे कर्जे चुकाऊँगा, और उसके बाद उन्होंने मुझे और परेशान नहीं किया। जब बैंक ने मुझ पर ऋण चुकाने का दबाव डालने लोगों को भेजा, तो मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की और उसे यह सब सौंप दिया। "अगर उस बड़े ऋण को नहीं चुका पाने के कारण मुझे कुछ समय के लिए जेल भी जाना पड़ता है," मैंने सोचा, "तो मैं परमेश्वर के सभी आयोजनों और व्यवस्थाओं का पालन करूँगा।" जब मैंने परमेश्वर के कार्य का अनुभव करते हुए उसके प्रति समर्पण कर दिया, तभी मैंने देखा कि उसके काम कितने चमत्कारी हो सकते हैं, क्योंकि मैंने उसे मेरे आगे बढ़ने के लिए एक रास्ता खोलते हुए देखा। सरकार ने घोषणा की कि 1993 से पहले लिए गए सभी बैंक ऋणों को चुकाना नहीं होगा, क्योंकि उनमें से कोई भी ऋण बैंक के कंप्यूटर सिस्टम में दर्ज नहीं किया गया था और अधूरी जानकारी का मतलब था कि कुछ ऋण कभी भी नहीं चुकाए जा सकते। परमेश्वर को धन्यवाद हो! मेरे सभी ऋणों को 1993 से पहले ही लिया गया था और इसलिए लाखों युआन के मेरे ऋण को रद्द कर दिया गया। रोमांचित होकर, मैंने परमेश्वर को अपना आभार और अपनी स्तुति दी। मैंने सोचा: "अगर मुझे वह राशि अर्जित करनी होती जो शायद मैं यह कर पाने के पहले ही थक कर मर गया होता।" इससे मुझे व्यक्तिगत रूप से यह अनुभव करने की अनुमति मिली कि हर व्यक्ति का भाग्य वास्तव में परमेश्वर के हाथों में होता है, जैसा कि परमेश्वर के इन वचनों में वर्णित है: "मनुष्य का भाग्य परमेश्वर के हाथों से नियंत्रित होता है। तुम स्वयं को नियंत्रित करने में असमर्थ हो : हमेशा अपनी ओर से भाग-दौड़ करते रहने और व्यस्त रहने के बावजूद मनुष्य स्वयं को नियंत्रित करने में अक्षम रहता है। यदि तुम अपने भविष्य की संभावनाओं को जान सकते, यदि तुम अपने भाग्य को नियंत्रित कर सकते, तो क्या तुम तब भी एक सृजित प्राणी होते? संक्षेप में, परमेश्वर चाहे जैसे भी कार्य करे, उसका समस्त कार्य केवल मनुष्य के वास्ते होता है। उदाहरण के लिए, स्वर्ग और पृथ्वी और उन सभी चीज़ों को लो, जिन्हें परमेश्वर ने मनुष्य की सेवा करने के लिए सृजित किया : चंद्रमा, सूर्य और तारे, जिन्हें उसने मनुष्य के लिए बनाया, जानवर और पेड़-पौधे, बसंत, ग्रीष्म, शरद और शीत ऋतु इत्यादि—ये सब मनुष्य के अस्तित्व के वास्ते ही बनाए गए हैं। और इसलिए, परमेश्वर मनुष्य को चाहे जैसे भी ताड़ित करता हो या चाहे जैसे भी उसका न्याय करता हो, यह सब मनुष्य के उद्धार के वास्ते ही है। यद्यपि वह मनुष्य को उसकी दैहिक आशाओं से वंचित कर देता है, पर यह मनुष्य को शुद्ध करने के वास्ते है, और मनुष्य का शुद्धिकरण इसलिए किया जाता है, ताकि वह जीवित रह सके। मनुष्य की मंज़िल सृजनकर्ता के हाथ में है, तो मनुष्य स्वयं को नियंत्रित कैसे कर सकता है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मनुष्य के सामान्य जीवन को बहाल करना और उसे एक अद्भुत मंज़िल पर ले जाना)

अपने अनुभवों के दौरान, मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य के बारे में और भी निश्चित हो गया और मेरी आस्था बलवती हुई। इसके बाद के वर्षों में, मैंने सभाओं में जाना और अपने कर्तव्यों को पूरा करना जारी रखा, जबकि अपने शेष ऋणों को चुकाने के लिए स्थानीय निर्माण टीमों के लिए काम भी करता रहा। जब भी मैं किसी अच्छे चरित्र वाले व्यक्ति से मिलता जो सुसमाचार सुनने के लिए उपयुक्त उम्मीदवार होता, तो मैं उसके लिए प्रचार करता, और मैं उन लोगों में से कुछ को जिनके साथ मेरे अच्छे संबंध थे, परमेश्वर के सामने ले आता था। हालाँकि मैं अभी भी हर दिन व्यस्त था, जीवन बदल गया था क्योंकि मैं अब शैतान के दर्शन और नियमों से नहीं जीता था, और मैं अब दुनिया की बुरी प्रवृत्तियों का पालन नहीं करता था और न ही समृद्ध होकर एक बेहतर जीवन शैली चाहता था। इसके बजाय, मैं परमेश्वर के शासन के प्रति समर्पित होकर और उसकी अपेक्षाओं के अनुसार जीता था, ईमानदार और मानवीय रहता था, सत्य के अनुसार खुद को पेश करता था, परमेश्वर का भय मानता था और बुराई से दूर रहता था। व्यवहार करने का यह तरीका खुला और सीधा महसूस हुआ, और मैं सहज और अंदर से रोशन महसूस करने लगा। धीरे-धीरे, मैंने अपने जमीर और विवेक को पुनर्प्राप्त करना शुरू कर दिया, और मुझे जो विभिन्न बीमारियाँ हुईं थीं, वे गायब होने लगीं। इस वर्ष मैं 75 साल का हो गया, लेकिन मैं स्वस्थ हूँ, में खुशमिजाज़ रहता हूँ, और मैंने अपने सभी कर्ज चुका दिए हैं। जो लोग मुझे अच्छी तरह से जानते हैं, वे मेरी प्रशंसा करते हैं और कहते हैं कि मैं भाग्यशाली हूँ। लेकिन मैं बिना किसी संदेह के जानता हूँ कि यह सब सर्वशक्तिमान परमेश्वर के उद्धार और उसकी दया का परिणाम है। यह सर्वशक्तिमान परमेश्वर था जिसने मुझे मृत्यु की कगार से बचाया, जिसने मेरी ज़रूरत के समय मुझे अपना जीवन वापस दे दिया, और जिसने मेरे जीवन के लिए सही दिशा दिखाई। इन सभी अनुभवों के दौरान, मैंने सचमुच महसूस किया कि परमेश्वर की अगुवाई के बिना हम मनुष्य निश्चित रूप से नुकसान उठाएँगे और शैतान द्वारा निगल लिए जाएँगे। केवल सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लोगों को बचा सकता है; केवल सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए वचन लोगों को पाप के बंधन से दूर ले जा सकते हैं और हमें दिखा सकते हैं कि सच्चे इंसानों के रूप में कैसे जीना है। केवल उन सत्यों को स्वीकार करके जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने व्यक्त किए हैं और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रति समर्पण और उसकी उपासना करके ही, मानवजाति सच्ची खुशी में जी सकती है और एक अच्छे भविष्य एवं अंतिम गंतव्य को हासिल कर सकती है!

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