सत्य का अनुसरण कैसे करें (10)

आज हम उसी विषय पर संगति जारी रखेंगे जिसके बारे में पिछली बैठक में बात की थी। हमारी पिछली बैठक की संगति का विषय क्या था? (पिछली बार, परमेश्वर ने मुख्य रूप से दो विषयों पर संगति की थी। सबसे पहले, परमेश्वर ने लोगों द्वारा उठाए इस सवाल पर संगति की थी : “अगर मानवजाति ने अपने आदर्शों और इच्छाओं का अनुसरण न किया होता, तो क्या आज संसार इतना विकसित हुआ होता?” इसके बाद, परमेश्वर ने शादी के बारे में लोगों के कुछ गलत परिप्रेक्ष्यों और दृष्टिकोणों पर, और फिर शादी की सही अवधारणा और परिभाषा के बारे में संगति की।) पिछली बार मैंने एक बहुत व्यापक विषय, शादी के बारे में संगति की थी। शादी एक व्यापक विषय है जो संपूर्ण मानवजाति से संबंधित और मानव विकास के इतिहास में रचा-बसा है। यह विषय लोगों के रोजमर्रा के जीवन से संबंधित है, और हरेक के लिए महत्वपूर्ण है। पिछली बार हमने इस विषय से संबंधित कुछ बातों पर संगति की थी, मुख्य रूप से शादी की उत्पत्ति और ढाँचे के साथ-साथ शादी में दोनों पक्षों के लिए परमेश्वर के निर्देश और विधान, और शादी में दोनों पक्षों को जो जिम्मेदारियाँ और दायित्व निभाने चाहिए, उनके बारे में संगति की थी। यह मुख्य रूप से किस पर आधारित थी? (बाइबल के अभिलेख पर।) यह संगति बाइबल में दर्ज वचनों और पदों पर आधारित थी, जिसमें परमेश्वर ने मानवजाति की रचना करने के बाद उसके लिए शादी का विधान बनाया था, है न? (हाँ।) हमारी पिछली संगति से, और मनुष्य की शादी के संबंध में बाइबल में दर्ज परमेश्वर के कुछ कथनों और कार्यों के बारे में पढ़कर, क्या अब तुम लोगों के पास शादी की कोई सटीक परिभाषा है? कुछ लोग कहते हैं : “हम युवा हैं, हमारे पास शादी की कोई अवधारणा नहीं है, न ही हमारे पास कोई अनुभव है। शादी को परिभाषित करना हमारे लिए मुश्किल है।” क्या यह मुश्किल है? (नहीं।) यह मुश्किल नहीं है। तो हमें शादी को कैसे परिभाषित करना चाहिए? मनुष्य की शादी के संबंध में परमेश्वर के कथनों और क्रियाकलापों के आधार पर, क्या तुम लोगों के पास शादी की सटीक परिभाषा नहीं होनी चाहिए? (होनी चाहिए।) शादी के संबंध में, चाहे तुम शादीशुदा हो या नहीं, तुम्हें अब मेरी संगति के शब्दों का सटीक ज्ञान होना चाहिए। यह सत्य का वह पहलू है जिसे तुम्हें जरूर समझना चाहिए। इस परिप्रेक्ष्य से बात करें, तो चाहे तुम्हारे पास शादी का कोई अनुभव हो या न हो, चाहे तुम्हें शादी में कोई दिलचस्पी हो या न हो, और शादी के संबंध में तुमने अतीत में जो भी जोड़-तोड़ की होगी और योजनाएँ बनाई होंगी, जब तक यह मामला सत्य के अनुसरण से जुड़ा है, तुम्हें इसके बारे में जरूर जानना चाहिए। यह एक ऐसा मामला भी है जिसे तुम्हें स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए, क्योंकि यह सत्य, मानवीय विचारों और दृष्टिकोणों, लोगों के सत्य के अनुसरण, तुम्हारे सिद्धांतों और सत्य के अनुसरण के मार्ग पर अभ्यास से संबंधित है। तो, चाहे तुमने पहले शादी का अनुभव किया हो या नहीं, चाहे तुम्हें शादी में रुचि हो या नहीं, या तुम्हारी शादी को लेकर तुम्हारी स्थिति जो भी हो, अगर तुम सत्य का अनुसरण करके उद्धार पाना चाहते हो, तो तुम्हारे पास शादी के संबंध में सटीक ज्ञान, सही विचार और दृष्टिकोण होने चाहिए, ठीक वैसे ही जैसे तुम्हारे पास सत्य से जुड़े किसी भी मामले में होता; तुम्हें अपने दिल में इसका प्रतिरोध नहीं करना चाहिए, या अपनी नजरों पर पर्दा चढ़ाकर इसके बारे में धारणाएँ नहीं बनानी चाहिए या अपनी पृष्ठभूमि और परिस्थिति के आधार पर इससे नहीं निपटना चाहिए या इसके बारे में कोई फैसला नहीं करना चाहिए। ये सभी गलत दृष्टिकोण हैं। शादी, किसी भी अन्य मामले की तरह, लोगों के दृष्टिकोण, नजरिये और परिप्रेक्ष्य से संबंधित है। अगर तुम शादी के मामले पर सही, सत्य के अनुरूप विचार, दृष्टिकोण, परिप्रेक्ष्य और राय रखना चाहते हो, तो तुम्हारे पास इस मामले का सटीक ज्ञान और परिभाषा होनी चाहिए, जो सभी सत्य से संबंधित हो। तो, जब शादी की बात आती है, तो तुम्हारे पास सही ज्ञान होना चाहिए और उस सत्य को समझना चाहिए जो परमेश्वर इस मामले में लोगों को समझाना चाहता है। सत्य को समझकर ही तुम्हारे पास शादी करने के बाद या जब तुम्हारे जीवन में शादी से संबंधित समस्याएँ होंगी तब इस विषय का सामना करने के लिए सही विचार और दृष्टिकोण हो सकते हैं; सिर्फ तभी तुम्हारे पास इस पर सही दृष्टिकोण और परिप्रेक्ष्य हो सकते हैं, और बेशक, शादी से जुड़ी समस्याओं को हल करने के लिए एक सटीक मार्ग हो सकता है। कुछ लोग कहते हैं : “मैं कभी शादी नहीं करूँगा।” और मुमकिन है कि तुम कभी शादी ही न करो, पर तुम्हारे पास शादी के बारे में अपरिहार्य रूप से कुछ छोटे-बड़े, सही-गलत, विचार और दृष्टिकोण होंगे। इसके अलावा, जीवन में तुम्हारा निश्चित तौर पर कुछ ऐसे लोगों या चीजों से सामना होगा जो शादी के मामले से जुड़ी समस्याएँ खड़ी करेंगी, तो तुम इन समस्याओं को कैसे देखोगे और इन्हें कैसे हल करोगे? जब शादी से संबंधित ये समस्याएँ सामने आती हैं, तो सटीक विचार, नजरिया, राय और अभ्यास के सिद्धांत रखने के लिए तुम्हें क्या करना चाहिए? परमेश्वर के इरादों के अनुरूप होने के लिए तुम्हें कैसे कार्य करना चाहिए? यह कुछ ऐसा है जिसे तुम्हें समझना चाहिए, जिसे तुम्हें आगे बढ़ते हुए अपनाना चाहिए। मेरा यह कहने का क्या मतलब है? मेरा मतलब है कि कुछ लोग ऐसे हैं जो सोचते होंगे कि शादी का उनसे कोई लेना-देना नहीं है, इसलिए वे ध्यान से नहीं सुनते हैं। क्या यह सही दृष्टिकोण है? (नहीं।) सही कहा। चाहे मैं जिस किसी विषय पर संगति करूँ, अगर यह सत्य से संबंधित है, सत्य का अनुसरण करने से संबंधित है, लोगों और चीजों को देखने, आचरण और कार्य करने के आधार और मानदंडों से संबंधित है, तो तुम्हें इसे स्वीकार कर ईमानदारी और ध्यान से सुनना चाहिए। क्योंकि यह सामान्य ज्ञान नहीं है, न ही यह ज्ञान है, पेशेवर ज्ञान होना तो दूर की बात है—यह सत्य है।

आओ हम फिर से शादी के विषय पर संगति जारी रखें। शादी की परिभाषा क्या होनी चाहिए? शादी के संबंध में परमेश्वर के विधान और व्यवस्थाओं के साथ-साथ दोनों शादीशुदा पक्षों के लिए उसके उपदेशों और निर्देशों के आधार पर, जिनके बारे में मैंने पिछली बार संगति की थी, शादी को लेकर तुम लोगों की अवधारणा और परिभाषा भ्रमित नहीं होनी चाहिए; बल्कि, यह बिल्कुल साफ और स्पष्ट होनी चाहिए। शादी परमेश्वर के विधान और व्यवस्थाओं के तहत एक पुरुष और एक महिला का मिलन होना चाहिए। यही शादी की संरचना है, जिसकी कुछ पूर्व शर्तें हैं। परमेश्वर के विधान और व्यवस्थाओं के तहत, एक पुरुष और एक महिला का मिलन शादी कहलाती है। ऐसा ही है न? (हाँ।) क्या शादी की ऐसी परिभाषा सैद्धांतिक रूप से सटीक नहीं है? (बिल्कुल है।) हम इसे सटीक कैसे कह सकते हैं? तुम लोगों को पक्का यकीन कैसे है कि यह सटीक है? क्योंकि यह बाइबल के अभिलेख पर आधारित है, और इसमें ऐसे संकेत हैं जिनका पालन किया जा सकता है। बाइबल के अभिलेख स्पष्ट रूप से शादी की उत्पत्ति की व्याख्या करते हैं। यही शादी की परिभाषा है। शादी की इस स्पष्ट परिभाषा के आधार पर, आओ अब देखें कि शादी में दोनों पक्ष कौन से कर्तव्य निभाते हैं। पिछली बैठक में हमने बाइबल के जो अंश पढ़े थे, क्या उनमें यह स्पष्ट रूप से दर्ज नहीं था? (बिल्कुल था।) शादी में दोनों पक्षों द्वारा निभाए जाने वाले सभी कर्तव्यों में से सबसे सरल कर्तव्य एक-दूसरे का साथ देना और मदद करना है। तो फिर, महिला के लिए परमेश्वर का क्या निर्देश था? (परमेश्वर ने महिला से कहा : “मैं तेरी पीड़ा और तेरे गर्भवती होने के दुःख को बहुत बढ़ाऊँगा; तू पीड़ित होकर बालक उत्पन्न करेगी; और तेरी लालसा तेरे पति की ओर होगी, और वह तुझ पर प्रभुता करेगा” (उत्पत्ति 3:16)।) बाइबल में इसी तरह से कहा गया है। हमारे आधुनिक शब्दों के हिसाब से, महिला के लिए परमेश्वर का निर्देश यह था कि वह अपना कर्तव्य निभाए। वह कौन सा कर्तव्य था? बच्चे पैदा करना, उनका पालन-पोषण करना और अपने पति की देखभाल करना और उससे बहुत प्यार करना। यह महिला के लिए परमेश्वर का निर्देश था। तो परमेश्वर ने पुरुष को कौन-सा कर्तव्य निभाने का निर्देश दिया? घर के मुखिया होने के नाते, पुरुष को पारिवारिक जीवन का बोझ उठाना और कड़ी मेहनत करके परिवार का भरण-पोषण करना होगा। उसे परिवार के सदस्यों, अपनी पत्नी और अपने जीवन का प्रबंध करने का बोझ भी उठाना होगा। महिला-पुरुषों के बीच परमेश्वर ने इस तरह कर्तव्यों को बाँटा है। महिला-पुरुषों के कर्तव्यों के बारे में तुम्हें स्पष्ट और निश्चित होना चाहिए। यही शादी की परिभाषा और ढाँचा है; साथ ही, वे जिम्मेदारियाँ और दायित्व भी हैं जो दोनों पक्षों को अपने ऊपर लेनी चाहिए और उन्हें पूरा करना चाहिए। यही शादी है और इसकी वास्तविक विषय-वस्तु है। हमने शादी के संबंध में जिन चीजों पर चर्चा की है, क्या उसमें कोई नकारात्मक बातें हैं? (नहीं।) इसमें कोई नकारात्मक बात नहीं है। यह सब अधिकतम शुद्ध, सत्य के अनुरूप, तथ्यों के अनुरूप और परमेश्वर के वचनों के अनुरूप है। बाइबल के अभिलेखों को आधार मानें, तो शादी का मामला आधुनिक लोगों के लिए बहुत निश्चित और स्पष्ट हो जाता है; हमें शादी की उत्पत्ति के बारे में बात करने के लिए पहले से बहुत सारी शर्तें रखने या बहुत से शब्दों का उपयोग करने की जरूरत नहीं है। यह आवश्यक नहीं है। शादी की परिभाषा स्पष्ट है, और शादी में दोनों पक्षों को जो कर्तव्य अपने ऊपर लेने चाहिए, जो दायित्व उन्हें पूरे करने चाहिए, वे भी स्पष्ट और निश्चित हैं। जब ये बातें किसी व्यक्ति को स्पष्ट और निश्चित हो जाती हैं, तो उसके सत्य के अनुसरण पर क्या प्रभाव पड़ता है? शादी की परिभाषा, संरचना और दोनों पक्षों के कर्तव्यों को समझने के पीछे क्या अर्थ है? यानी, इन चीजों पर संगति करने से लोगों पर क्या परिणाम और क्या प्रभाव होते हैं? आम भाषा में कहें, तो यह सब सुनकर तुम लोगों को क्या फायदा होता है? (जब शादी से हमारा सामना होता है या जब हम शादी के मामले को देखते हैं, तो इससे हमें चीजों को देखने के लिए एक सही और सत्य के अनुरूप दृष्टिकोण रखने में मदद मिलती है; हम दुष्ट प्रवृत्तियों या शैतान द्वारा डाले गए विचारों से प्रभावित या पथभ्रष्ट नहीं होंगे।) यह एक सकारात्मक प्रभाव है। क्या शादी की परिभाषा, इसके ढाँचे और दोनों पक्षों के कर्तव्यों पर संगति करने से लोग शादी के संबंध में सही विचार और दृष्टिकोण रख पाते हैं? (हाँ।) जब किसी व्यक्ति के पास सही विचार और दृष्टिकोण होते हैं, तो क्या इनके फायदे और सकारात्मक प्रभाव उसे अपनी चेतना में शादी के बारे में सही दृष्टिकोण स्थापित करने में सक्षम बनाते हैं? जब किसी व्यक्ति के पास शादी के बारे में सही राय, विचार और दृष्टिकोण होते हैं, तो क्या उसमें दुष्ट प्रवृत्तियों से संबंधित प्रतिकूल, नकारात्मक विचारों और दृष्टिकोणों के प्रति एक निश्चित प्रतिरोध और प्रतिरक्षा होती है? (हाँ, होती है।) इस प्रतिरोध और प्रतिरक्षा का क्या अर्थ है? इसका अर्थ यह है कि जब शादी के संबंध में संसार और समाज के कुछ दुष्ट विचारों और दृष्टिकोणों की बात आएगी, तो तुम उन्हें कम-से-कम पहचानने तो लगोगे। जब तुम इन्हें पहचानने लगोगे, तब तुम शादी को संसार की दुष्ट प्रवृत्तियों से आने वाले विचारों और दृष्टिकोणों के आधार पर नहीं देखोगे, न ही तुम उन विचारों और दृष्टिकोणों को स्वीकार करोगे। तो उन विचारों और दृष्टिकोणों को न स्वीकारने से तुम्हें क्या लाभ होगा? यही कि वे विचार और दृष्टिकोण शादी के संबंध में तुम्हारे परिप्रेक्ष्यों और क्रियाकलापों को नियंत्रित नहीं करेंगे, और वे अब तुम्हें भ्रष्ट नहीं करेंगे, न ही तुममें ये दुष्ट विचार और दृष्टिकोण पैदा करेंगे; इसलिए, तुम शादी को संसार की दुष्ट प्रवृत्तियों के अनुसार नहीं देखोगे, न ही तुम उन दुष्ट प्रवृत्तियों से प्रभावित होगे, इसलिए तुम शादी के मामले में अपनी गवाही पर दृढ़ रह सकोगे। तो एक अर्थ में, क्या तुम शादी से संबंधित उन शैतानी, सांसारिक विचारों, दृष्टिकोणों और परिप्रेक्ष्यों में से कुछ को त्याग चुके होगे? (हाँ।) जब लोगों को शादी की सटीक परिभाषा मिल जाती है, तो वे शादी से संबंधित अपने कुछ लक्ष्यों, आदर्शों और इच्छाओं को त्यागने में सक्षम होते हैं, पर क्या हमें यहीं रुक जाना चाहिए? क्या वे शादी के संबंध में अपने लक्ष्यों, आदर्शों और इच्छाओं को पूरी तरह से त्यागने में सक्षम हैं? इतना काफी नहीं है। उनके विचारों में शादी की एक सटीक परिभाषा और अवधारणा, शादी के बारे में सिर्फ एक प्रारंभिक, बुनियादी अवधारणा और ज्ञान के अलावा और कुछ भी नहीं है। मगर शादी के संबंध में संसार और समाज में प्रसारित होने वाले विभिन्न विचार, दृष्टिकोण और विषय अभी भी तुम्हारे विचारों और दृष्टिकोण को प्रभावित करेंगे, और शादी के संबंध में तुम्हारे परिप्रेक्ष्यों और यहाँ तक कि क्रियाकलापों को भी प्रभावित करेंगे। इसलिए, शादी की सटीक परिभाषा होने के बाद भी, लोग आज तक शादी को लेकर अपने लक्ष्यों, आदर्शों और इच्छाओं को पूरी तरह से त्यागने में असमर्थ हैं। इसके बाद, क्या हमें शादी के संबंध में लोगों में उत्पन्न होने वाले विभिन्न लक्ष्यों, आदर्शों और इच्छाओं के बारे में संगति नहीं करनी चाहिए? (बिल्कुल करनी चाहिए।)

शादी की परिभाषा के बारे में मैं यह संगति यहीं पर समाप्त करूँगा। आगे हम इस बारे में संगति करेंगे कि शादी के कारण उत्पन्न होने वाले विभिन्न लक्ष्यों, आदर्शों और इच्छाओं को कैसे त्यागा जाए। सबसे पहले, हम शादी को लेकर लोगों की विभिन्न कल्पनाओं के बारे में संगति करेंगे। कल्पनाओं से मेरा मतलब है वो तस्वीरें जिनकी लोग अपने दिमाग में कल्पना करते हैं। ये तस्वीरें अभी असलियत नहीं बनी हैं; ये सिर्फ लोगों के दैनिक जीवन या उनके सामने आने वाली परिस्थितियों से उत्पन्न कल्पनाएँ हैं। ये कल्पनाएँ लोगों के दिमाग में छवियाँ और भ्रम पैदा करती हैं, यहाँ तक कि शादी के संबंध में उनके लक्ष्य, आदर्श और इच्छाएँ भी बन जाती हैं। तो, शादी के संबंध में अपने लक्ष्यों, आदर्शों और इच्छाओं को त्यागने के लिए, तुम्हें सबसे पहले उन तमाम फंतासियों को त्यागना चाहिए जो कभी तुम्हारे मन में और तुम्हारे दिल की गहराइयों में डाली गई थीं। शादी के संबंध में अपने लक्ष्यों, आदर्शों, और इच्छाओं को त्यागने के लिए सबसे पहले तुम लोगों को यही करना होगा—यानी, शादी से जुड़ी अपनी तमाम फंतासियों को त्यागना होगा। तो, आओ सबसे पहले बात करें कि लोगों के मन में शादी को लेकर क्या-क्या कल्पनाएँ होती हैं। शादी के बारे में सैकड़ों या हजारों साल पहले प्राचीन लोगों की विभिन्न राय वर्तमान से बहुत अलग हैं, तो हम उनके बारे में बात नहीं करेंगे। इसके बजाय, हम इस बारे में बात करेंगे कि शादी को लेकर आधुनिक लोगों की ताजा, लोकप्रिय, फैशन-परस्त और मुख्यधारा की राय और गतिविधियाँ क्या हैं; ये चीजें तुम लोगों को प्रभावित करती हैं, जिनसे तुम्हारे दिल की गहराइयों में या मन में शादी को लेकर लगातार तमाम तरह की कल्पनाएँ उत्पन्न होती रहती हैं। सबसे पहले, शादी के बारे में कुछ राय समाज में लोकप्रिय हो जाती हैं, और फिर साहित्य की विभिन्न रचनाओं में शादी के संबंध में लेखकों के विचार और दृष्टिकोण सामने आते हैं; जैसे-जैसे साहित्य की इन रचनाओं को स्क्रीन पर दिखाने के लिए टेलीविजन कार्यक्रमों और फिल्मों में बदला जाता है, वे शादी के बारे में लोगों की विभिन्न राय, इसके बारे में उनके विभिन्न लक्ष्यों, आदर्शों और इच्छाओं को और भी अधिक स्पष्ट रूप से सामने लाती हैं। कमोबेश, प्रत्यक्ष या अदृश्य रूप से, ये चीजें तुम लोगों के भीतर लगातार समाहित होती रहती हैं। इससे पहले कि तुम लोगों के पास शादी के बारे में कोई सटीक अवधारणा हो, शादी के संबंध में ये सामाजिक राय और संदेश तुममें पूर्वाग्रह पैदा करते हैं और तुम इन्हें स्वीकार लेते हो; फिर तुम लोग यह कल्पना करने लगते हो कि तुम्हारी शादी कैसी होगी और तुम्हारा जीवनसाथी कैसा होगा। चाहे ये संदेश टेलीविजन कार्यक्रमों, फिल्मों और उपन्यासों के जरिये तुम्हारे सामने आएँ या तुम्हारे सामाजिक दायरे और तुम्हारे जीवन में मौजूद लोगों के माध्यम से आएँ—स्रोत चाहे जो भी हो, ये सभी संदेश मनुष्य, समाज और संसार से आते हैं, या सटीक रूप से कहें, तो वे दुष्ट प्रवृत्तियों से आते और विकसित होते हैं। बेशक, अधिक सटीकता से कहें, तो वे शैतान से आते हैं। ऐसा ही है न? (बिल्कुल।) इस प्रक्रिया में, चाहे तुम लोगों ने शादी के बारे में किसी भी प्रकार के विचारों और दृष्टिकोणों को स्वीकारा हो, तथ्य यह है कि शादी के बारे में विभिन्न विचारों और दृष्टिकोणों को स्वीकारते हुए, तुम लगातार अपने विचारों में शादी के बारे में कल्पनाएँ कर रहे होते हो। ये सभी कल्पनाएँ एक ही चीज के इर्द-गिर्द घूमती हैं। जानते हो वह क्या चीज है? (रूमानी प्रेम।) अभी समाज में, ज्यादा लोकप्रिय या मुख्यधारा का संदेश रूमानी प्रेम के संदर्भ में शादी के बारे में बात करने के इर्द-गिर्द घूमता है; शादी की खुशी रूमानी प्रेम के अस्तित्व और इस बात पर निर्भर करती है कि पति-पत्नी एक-दूसरे से प्यार करते हैं या नहीं। शादी को लेकर समाज की ऐसी राय—ये बातें जो लोगों के विचारों और उनकी आत्मा की गहराई में व्याप्त हैं—मुख्य रूप से रूमानी प्रेम से संबंधित हैं। ऐसी राय लोगों में डाली जाती है, जिससे उनमें शादी के बारे में सभी प्रकार की कल्पनाएँ विकसित होने लगती हैं। उदाहरण के लिए, वे इस बारे में कल्पना करते हैं कि उनका प्रेमी कौन होगा, वह कैसा व्यक्ति होगा और जीवनसाथी के रूप में उनकी अपेक्षाएँ क्या हैं। विशेष रूप से, समाज से मिलने वाले कई ऐसे संदेश हैं जो कहते हैं कि उन्हें निश्चित रूप से उस व्यक्ति से प्यार करना चाहिए और उस व्यक्ति को भी उन्हीं से प्यार करना चाहिए, सिर्फ यही सच्चा रूमानी प्रेम है, सिर्फ सच्चा रूमानी प्रेम ही शादी की ओर बढ़ सकता है, सिर्फ रूमानी प्रेम पर आधारित शादी ही अच्छी और सुखद होती है, और जिस शादी में रूमानी प्रेम न हो वह शादी अनैतिक है। तो, जिस व्यक्ति से वह प्यार करेगा उसे ढूँढ़ने से पहले, हर कोई रूमानी प्रेम खोजने की तैयारी करता है, शादी के लिए अग्रिम व्यवस्थाएँ करता है, उस दिन के लिए तैयारी करता है जब उसका सामना उस व्यक्ति से होगा जिससे वह प्यार करेगा, ताकि वह बिना सोचे-विचारे अपने प्यार की राह पर चलकर उसे साकार कर सके। सही कहा न? (हाँ।) पहले के समय में, लोग रूमानी प्रेम के बारे में बात नहीं करते थे, न ही वे शादी की तथाकथित स्वतंत्रता के बारे में बात करते थे, या यह नहीं कहते थे कि प्रेम निर्दोष है, प्रेम सर्वोच्च है। उस समय लोग शादी, प्यार और रोमांस के बारे में बात करने से कतराते थे। खासकर जब इसमें विपरीत लिंग शामिल हो, तो लोगों को शर्म आती थी, उनके गाल लाल हो जाते थे और दिल तेजी से धड़कने लगते थे या उन्हें बोलने में भी कठिनाई होती थी। आज लोगों का रवैया बदल चुका है। जब वे दूसरों को इतनी शांति और आत्मविश्वास के साथ रोमांस और शादी के बारे में चर्चा करते हुए देखते हैं, तो वे भी ऐसा ही व्यक्ति बनना चाहते हैं जो रोमांस और शादी के बारे में स्वतंत्र रूप से और खुले तौर पर चर्चा करता हो, वो भी बिना शर्माए या दिल की धड़कनें तेज हुए। यही नहीं, जब वे उस व्यक्ति से मिलते हैं जिसे वे पाना चाहते हैं, जिससे अपने दिल की बात कहना चाहते हैं, तो खुलकर अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में सक्षम होना चाहते हैं; वे प्रणय निवेदन करने या करवाए जाने के सभी प्रकार के दृश्यों की भी कल्पना करते हैं, और इससे भी अधिक, वे यह कल्पना करते हैं कि जिससे वे प्रेम करेंगे और जिसका अनुसरण करेंगे वह व्यक्ति कैसा होगा। महिलाएँ कल्पना करती हैं कि वे जिस व्यक्ति का अनुसरण करेंगी वह एक सलोना राजकुमार होगा; वह कम-से-कम 1.8 मीटर लंबा, हाजिरजवाबी से बातें करने वाला, परिष्कृत, सुशिक्षित होगा; वह अच्छी पारिवारिक पृष्ठभूमि से होगा, और इससे भी बेहतर, उसके पास कार और घर होगा, सामाजिक रुतबा होगा, एक निश्चित मात्रा में धन भी होगा, वगैरह। जहाँ तक पुरुषों की बात है, वे कल्पना करते हैं कि उनकी जीवनसाथी एक गोरी-चिट्टी सुंदर महिला होगी, एक सुपरवुमन होगी जो सामाजिक समारोहों के साथ-साथ रसोई में भी चमके। वे यह भी कल्पना करते हैं कि उनकी जीवनसाथी एक सुंदर और धनी महिला होगी, और अगर उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि ठोस हो तो सोने में सुहागा होगा। तब लोग कहेंगे कि उन दोनों का मिलन रोमियो-जूलियट जैसा, एक आदर्श जोड़ी या स्वर्ग में बनी जोड़ी जैसा है, एक ऐसा जोड़ा जिससे देखने वाले ईर्ष्या करते हैं, जो कभी बहस नहीं करते या एक-दूसरे पर गुस्सा नहीं करते, जो कभी किसी कारण झगड़ते नहीं, एक-दूसरे से गहरा प्यार करते हैं—फिल्मी जोड़ों की तरह जो एक-दूसरे से तब तक प्यार करने की कसम खाते हैं जब तक कि समुद्र सूख न जाए और चट्टानें धूल में न बदल जाएँ, और वे साथ-साथ बूढ़े होने, कभी एक-दूसरे को नापसंद न करने या एक-दूसरे से दूर न जाने, कभी एक-दूसरे से हार न मानने और एक-दूसरे का साथ न छोड़ने की कसम खाते हैं। महिलाएँ कल्पना करती हैं कि एक दिन वे अपने प्रेमी से शादी करेंगी, और फिर पादरी के आशीष से, वे एक-दूसरे को अंगूठी पहनाएँगे, वचन देंगे, प्यार की कसमें खाएँगे, एक-दूसरे के साथ यह जीवन बिताने का वादा करेंगे और बीमारी या गरीबी में भी एक-दूसरे का साथ न छोड़ने या एक-दूसरे को न त्यागने का संकल्प लेंगे। पुरुष भी यह कल्पना करते हैं कि एक दिन वे उस महिला से शादी करेंगे जिससे वे प्यार करते हैं, और पादरी के आशीष से उन्हें अँगूठी पहनाएँगे और वादे करेंगे, कसम खाएँगे कि चाहे उनकी नई-नवेली दुल्हन आगे चलकर कितनी भी बूढ़ी या बदसूरत हो जाए, वे उसे नहीं छोड़ेंगे या उसे नहीं त्यागेंगे, और वे इस शादी को सबसे शानदार, सुखी बनाएँगे, और अपनी पत्नी को संसार की सारी खुशी देंगे। महिला-पुरुष सभी इस तरह की कल्पनाएँ करते हैं, ऐसा अनुसरण करते हैं, और अपने वास्तविक जीवन में वे लगातार शादी के बारे में सभी प्रकार के लक्ष्यों, आदर्शों और इच्छाओं को सीखते हैं। साथ ही, वे इन कल्पनाओं को अपने दिल की गहराइयों में बार-बार दोहराते हैं, इस उम्मीद में कि एक दिन उनकी कल्पनाएँ उनके वास्तविक जीवन में जरूर साकार होंगी, जिससे वे अब महज एक प्रकार का आदर्श या इच्छाएँ नहीं रह जाएँगी, बल्कि वास्तविकता बन जाएँगी। आधुनिक जीवन के प्रभाव और सभी प्रकार के सामाजिक संदेशों और सूचनाओं के अनुकूलन के तहत, हरेक महिला शादी की सफेद पोशाक पहनने और संसार की सबसे खूबसूरत दुल्हन, संसार की सबसे खुशहाल महिला बनने की उम्मीद करती है; वह अपनी हीरे की अंगूठी पहनने की भी आशा करती है, जो यकीनन एक कैरेट से ज्यादा की होनी चाहिए, और बेहतरीन शुद्धता वाली होनी चाहिए। इसमें कोई खामी नहीं होनी चाहिए, और उसका प्रेमी ही उसे यह अँगूठी पहनाए। यह एक महिला की शादी की कल्पना है। पहली बात, उसकी शादी के तरीके को लेकर कुछ कल्पनाएँ हैं; दूसरी बात, उसके मन में शादीशुदा जीवन के बारे में सभी प्रकार की कल्पनाएँ हैं; वह आशा करती है कि जिस पुरुष से प्यार करेगी वह उसकी उम्मीदों पर खरा उतरने में असफल नहीं होगा, शादी के बाद भी उससे उतना ही गहरा प्यार करेगा जितना कि तब करता था जब वे पहली बार मिले थे; वह किसी दूसरी महिला से प्यार नहीं करेगा, अपनी पत्नी को एक खुशहाल जीवन देगा, अपनी प्रतिबद्धता पर खरा उतरेगा, और जब तक समुद्र सूख नहीं जाते और चट्टानें धूल में नहीं बदल जातीं, तब तक वे इस जीवन और अगले जीवन में एक साथ रहेंगे। इसके अलावा, वह जिस व्यक्ति से प्यार करेगी, उसको लेकर भी उसके मन में सभी प्रकार की कल्पनाएँ और अपेक्षाएँ होंगी। कम-से-कम वह एक सलोना राजकुमार होना चाहिए, जो सफेद न सही काले घोड़े पर ही सवार हो। महिला चाहती है कि उसके आदर्श पुरुष में इस स्तर की राजकुमार-जैसी गुणवत्ता हो—यह कितना रूमानी और भव्य होगा, उसका जीवन कितना खुशहाल हो जाएगा। शादी को लेकर लोगों के मन में उत्पन्न इन कल्पनाओं का आधार समाज, उनके सामाजिक समूह या सभी प्रकार के संदेश, सभी प्रकार की किताबें, साहित्य की रचनाएँ और फिल्में हैं; इसमें उनके दिलों में मौजूद कुछ थोड़े से उत्कृष्ट तत्व भी शामिल होते हैं जो उनकी प्राथमिकताओं के अनुरूप होते हैं, और इसलिए वे प्यार करने के लिए सभी प्रकार के लोगों, सभी प्रकार के प्रेमियों और शादी के सभी रूपों और जीवन की कल्पना करते हैं। संक्षेप में, लोगों की विभिन्न कल्पनाएँ शादी के बारे में समाज की समझ, शादी की व्याख्या और शादी को लेकर विभिन्न प्रकार की राय पर आधारित हैं। महिलाएँ ऐसी होती हैं, और पुरुष भी कुछ अलग नहीं हैं। शादी को लेकर एक पुरुष की विभिन्न चाहतें किसी महिला से कम नहीं होती हैं। पुरुष भी अपनी पसंद की लड़की ढूँढ़ने की आशा करता है, जो गुणी, सौम्य, अच्छी और विचारशील हो, जो उसकी देखभाल करे और उसके साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार करे, और जो एक छोटी चिड़िया की तरह उस पर निर्भर रहे, उसके प्रति पूरी तरह से समर्पित हो, उसकी किसी भी खामी या कमी का मजाक न उड़ाए, यहाँ तक कि जो उसकी सभी कमियों और दोषों को भी स्वीकार करे, जो उसके निराश या हताश महसूस करने पर और असफल होने पर, उसकी मदद और समर्थन के लिए उसकी ओर हाथ बढ़ाकर कहे : “प्रिय, चिंता की कोई बात नहीं, मैं यहीं हूँ। ऐसा कुछ नहीं है जिसका हम साथ मिलकर सामना नहीं कर सकते। डरो मत। चाहे जो हो जाए, मैं हमेशा तुम्हारे साथ खड़ी रहूँगी।” महिलाओं को पुरुषों से सभी प्रकार की अपेक्षाएँ होती हैं, और ठीक उसी तरह, पुरुषों को भी महिलाओं से सभी प्रकार की अपेक्षाएँ होती हैं, तो चाहे पुरुष हों या महिलाएँ, वे अपने जीवनसाथी को भीड़ में खोज रहे होते हैं, और अपने जीवनसाथी की खोज का आधार शादी को लेकर उनकी तरह-तरह की कल्पनाएँ बनती हैं। बेशक, एक पुरुष अक्सर पहले समाज में मजबूती से पाँव जमाने, करियर बनाने, ढेर सारा धन अर्जित करने और एक निश्चित स्तर तक पूँजी जमा करने की कल्पना करेगा, जिसके बाद वह एक बेहतर जीवनसाथी की खोज करेगा जिसका रुतबा, पहचान, पसंद-नापसंद और प्राथमिकताएँ उसी के जैसी हों। जब तक वह उसे पसंद करता है और वह उसकी अपेक्षाओं पर खरी उतरती है, वह उसके लिए कुछ भी करने को, यहाँ तक कि उसके लिए जलते अंगारों पर भी चलने को तैयार रहेगा। बेशक, थोड़ा और यथार्थवादी रूप से कहें, तो वह उसके लिए कुछ अच्छी चीजें खरीदेगा, उसकी सांसारिक जरूरतों को पूरा करेगा, उसके लिए एक कार, घर, हीरे की अंगूठी, ब्रांडेड हैंडबैग और कपड़े खरीदेगा। अगर उसके पास साधन हैं, तो वह अपना निजी याट और निजी हवाई जहाज भी खरीदेगा, और अपनी प्रियतमा को साथ लेकर समुद्र की सैर करेगा जहाँ सिर्फ वे दोनों होंगे; या वह उसे दुनिया दिखाने ले जाएगा, दुनिया के सबसे मशहूर पहाड़, जगहें और दर्शनीय स्थान घुमाने ले जाएगा। ऐसा जीवन कितना शानदार होगा। महिलाएँ शादी से जुड़ी अपनी कल्पनाओं को साकार करने के लिए हर तरह की कीमत चुकाती हैं, और उसी तरह, पुरुष भी शादी को लेकर अपनी विभिन्न कल्पनाओं को साकार करने के लिए हर मुमकिन कोशिश और कार्य करते हैं। चाहे शादी के संबंध में तुम्हारी किसी भी प्रकार की कल्पना हो, जब तक यह संसार से जुड़ी होगी, भ्रष्ट मानवजाति की शादी के बारे में समझ और राय से जुड़ी होगी, या शादी के बारे में उस जानकारी से जुड़ी होगी जो संसार और भ्रष्ट मानवजाति तुममें पैदा करती है, ये विचार और दृष्टिकोण कुछ हद तक तुम्हारे जीवन और आस्था, और साथ ही जीवन पर तुम्हारे दृष्टिकोण और जीवन में अपनाए जाने वाले मार्ग को भी प्रभावित करेंगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि शादी एक ऐसी चीज है जिसे कोई भी बालिग व्यक्ति नहीं टाल सकता और न ही इस विषय से भाग सकता है। अगर तुम जीवन भर अकेले रहने का फैसला करते हो, कभी शादी नहीं करना चाहते, तो फिर भी शादी के बारे में कुछ कल्पनाएँ तुम्हारे मन में मौजूद रहेंगी। तुम अकेले रहने का फैसला कर सकते हो, पर जिस पल से तुम्हारे मन में शादी को लेकर सबसे बुनियादी अवधारणाएँ और विचार आए थे, तभी से शादी के बारे में ये सारी कल्पनाएँ भी उत्पन्न हुई होंगी। ये कल्पनाएँ न सिर्फ तुम्हारे विचारों पर छाई रहती हैं, बल्कि तुम्हारे दैनिक जीवन में भी व्याप्त हो जाती हैं, जब तुम तमाम तरह की चीजों से निपटते हो, तब ये तुम्हारे विचारों, दृष्टिकोणों और फैसलों को प्रभावित करती हैं। सरल शब्दों में कहें, तो अगर किसी महिला ने एक मानक तय कर रखा है कि वह किससे प्यार करेगी, तो मानक की परिपक्वता या सुदृढ़ता की परवाह किए बिना वह पुरुषों की मानवता और चरित्र की अच्छाई-बुराई को मापने, और साथ ही यह निर्धारित करने के लिए कि वे उसके साथ वक्त बिताने लायक हैं या नहीं, इसी मानक का उपयोग करेगी। यह मानक उसी मानक जैसा होगा जिसके आधार पर वह अपना जीवनसाथी चुनती है। उदाहरण के लिए, मान लो कि जैसा पुरुष उसे पसंद है उसकी खासियत है कि वह हिम्मतवाला हो, उसका चेहरा बड़ा, चौकोर हो और त्वचा बेदाग हो; वह थोड़े किताबी ढंग से शिष्टता के साथ बात करता हो, और काफी विनम्र हो। प्यार के बारे में अपने दृष्टिकोण से उसे ऐसा पुरुष अच्छा लगता है, और वह इस तरह के पुरुष की ओर ज्यादा झुकती है। तो उसके जीवन में, चाहे यह व्यक्ति उसका प्रेमी हो या न हो, वह यकीनन उसके बारे में अच्छा महसूस करेगी। मेरे कहने का मतलब है कि जब ऐसे किसी व्यक्ति से उसका सामना होगा, तो चाहे उसकी मानवता अच्छी हो या बुरी, उसका चरित्र कैसा भी हो, चाहे वह विश्वासघाती व्यक्ति हो या दुष्ट, ये सब बाद की बातें होंगी; वह पुरुषों को इन मानकों के आधार पर नहीं देखती है। फिर उसका मानक क्या है? यह वह मानक है जिसके आधार पर वह अपना पति चुनती है। अगर सामने वाला व्यक्ति पति चुनने के उसके मानक के अनुरूप है, तो भले ही वह ऐसा व्यक्ति न हो जिसे वह वास्तव में पति के रूप में चुनती, फिर भी वह ऐसा व्यक्ति है जिसके साथ वह समय बिताना चाहेगी। यह समस्या क्या दर्शाती है? प्यार के बारे में व्यक्ति का दृष्टिकोण—विशेष रूप से, प्यार या शादी में जीवनसाथी के संबंध में एक व्यक्ति का मानक—काफी हद तक विपरीत लिंग के सभी सदस्यों के प्रति उसके दृष्टिकोण को प्रभावित करता है। जब उसका सामना एक ऐसे पुरुष से होता है जो पति चुनने के उसके सभी मानकों पर खरा उतरता है, तो उसे उसकी हर चीज आँखों को भाती है, उसकी आवाज उसे प्यारी लगती है, और उसकी बातें सुनकर और उसकी हरकतें देखकर भी उसे सुकून मिलता है। भले ही यह वह व्यक्ति नहीं है जिससे वह प्यार करना और जिसका अनुसरण करना चाहती है, फिर भी वह उसकी आँखों को भाता है। आँखों को भाने की इसी बात से परेशानी शुरू होती है। तुम यह जानने की कोशिश नहीं करती कि वह जो भी कहता है वो सही है या गलत; तुम्हें उसके बारे में सब कुछ अच्छा और सही लगता है, और सोचती हो कि वह सब कुछ अच्छे से करता है। उसके बारे में इन अच्छी भावनाओं के कारण तुम धीरे-धीरे उसकी सराहना कर उसे पूजने लगती हो। उसकी सराहना करने और उसे पूजने का यह जज्बा कहाँ से आता है? यह जज्बा वह मानक है जिसके आधार पर तुम प्रेम और शादी के लिए अपना साथी चुनती हो। एक निश्चित स्तर पर, यह मानक दूसरों को देखने के तुम्हारे नजरिये को गुमराह करता है; और अधिक स्पष्टता से कहें, तो यह विपरीत लिंग के व्यक्ति को देखने के तुम्हारे मानदंडों और आधारों को धुंधला करता है। उसका बाहरी रंग-रूप तुम्हारे सौंदर्य मानकों से मेल खाता है, तो तुम्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसका चरित्र कैसा है, उसके क्रियाकलाप सिद्धांतों के अनुरूप हैं या नहीं, उसके पास सत्य सिद्धांत हैं या नहीं, वह सत्य का अनुसरण करता है या नहीं, उसमें परमेश्वर के प्रति सच्ची आस्था और समर्पण है या नहीं—ये चीजें तुम्हारे लिए बहुत धुंधली हो जाती हैं, और तुम्हारा इस व्यक्ति को देखने का नजरिया भावनात्मक रूप से प्रभावित हो सकता है। क्योंकि तुम्हें यह व्यक्ति अच्छा लगता है, और क्योंकि भावनात्मक स्तर पर वह तुम्हारे मानकों पर खरा उतरता है, तो तुम्हें उसकी सभी हरकतें अच्छी और सही लगती हैं; तुम उसकी रक्षा करती हो और उसे पूजती हो, इस हद तक कि जब वह कोई बुरा काम करता है, तो भी तुम उसे पहचान नहीं पाती हो, न ही उसका खुलासा करती हो या उसे त्यागती हो। इसकी वजह क्या है? क्योंकि यहाँ तुम्हारी भावनाएँ काम कर रही हैं, तुम्हारे दिल पर कब्जा कर रही हैं। जैसे ही तुम्हारी भावनाएँ सक्रिय होती हैं, तब क्या तुम्हारे लिए सिद्धांतों के अनुसार कार्य करना आसान होता है? तुम्हारी भावनाओं का पलड़ा ज्यादा भारी है, इसलिए तुम्हारे पास कोई सिद्धांत नहीं है। तो, इस मामले के परिणाम बहुत गंभीर होंगे। भले ही यह वह व्यक्ति नहीं है जिससे तुम प्यार करती हो या जिससे तुम शादी करना चाहती हो, मगर फिर भी वह तुम्हारे सौंदर्य मानकों और तुम्हारी भावनात्मक जरूरतों के अनुरूप है; इस पूर्वाग्रह के साथ, तुम न चाहकर भी अपनी भावनाओं से प्रभावित और नियंत्रित होती हो, और तुम्हारे लिए इस व्यक्ति को देखना, इस व्यक्ति में आने वाली समस्याओं और अपनी समस्याओं से परमेश्वर के वचनों के अनुसार निपटना बहुत कठिन होता है। जैसे ही भावनाएँ तुम्हें नियंत्रित करती हैं और तुम पर हावी होने वाली शक्ति बन जाती हैं, तो तुम्हारे लिए इन भावनात्मक बेड़ियों से मुक्त होना, सत्य पर अमल करने की वास्तविकता में प्रवेश करना बहुत मुश्किल हो जाता है। तो मेरी इन बातों का क्या मतलब है? यह कि सभी के मन में शादी को लेकर हर तरह की कल्पनाएँ होती हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि तुम शून्य में या किसी दूसरे ग्रह पर नहीं रहते हो, और बेशक तुम नाबालिग नहीं हो, मानसिक रूप से कमजोर या मूर्ख होना तो दूर की बात है; तुम बालिग हो और तुम्हारे विचार बालिगों जैसे हैं। साथ ही, तुमने शादी के बारे में समाज और दुष्ट मानवजाति से मिलने वाली जानकारी को स्वीकारते हुए, शादी के बारे में समाज की विभिन्न राय को भी अनजाने में स्वीकार लिया है। इन बातों को स्वीकारने के बाद तुम अनजाने में इसकी कल्पना करते हो कि तुम्हारा रूमानी साथी कौन होगा। कल्पना करने से मेरा क्या मतलब है? इसका मतलब है मन में अवास्तविक और खोखले विचारों को जगह देना। अभी हमने जो संगति की और खुलासा किया, उसके आधार पर यह मुख्य रूप से शादी के बारे में समाज और दुष्ट मानवजाति से आने वाली विभिन्न राय की ओर निर्देशित है। शादी के बारे में तुम्हारे पास एक सही और सत्य के अनुरूप दृष्टिकोण नहीं है, इसलिए तुम इस बारे में समाज और दुष्ट मानवजाति से आने वाले विभिन्न दृष्टिकोणों से अपरिहार्य रूप से प्रभावित होकर छीजते और भ्रष्ट होते हो, मगर तुम लोग यह नहीं जानते और न ही इस बारे में जागरूक हो। तुम यह महसूस नहीं कर पाते कि यह एक क्षरण, एक भ्रष्टता है। अनजाने में, तुम इस प्रभाव को प्राप्त करते हो, और अनजाने में, तुम यह सोचने लगते हो कि यह सब बहुत उचित और सही है, और तुम इसे एक स्वाभाविक चीज मान लेते हो, यह सोचते हुए कि ये सभी ऐसे विचार हैं जो वयस्कों के पास होने चाहिए। तुम स्वाभाविक रूप से इन सबको अपनी उचित आवश्यकताओं और उचित अपेक्षाओं में बदल दोगे—ऐसे उचित विचार जो एक वयस्क के पास होने ही चाहिए। फिर, जब से तुम्हें ये संदेश मिलने शुरू होंगे, शादी के बारे में तुम्हारी कल्पनाएँ अधिक से अधिक बढ़ती और गहराती जाएँगी। इसी के साथ, शादी की बात आने पर तुम शर्माना कम कर दोगे, या कोई कह सकता है कि शादी के बारे में इन कल्पनाओं को सक्रियता से अस्वीकार करने की तुम्हारी इच्छा कम हो जाएगी। दूसरे शब्दों में कहें, तो प्यार में अपने साथी से या शादी से संबंधित विभिन्न दृश्यों और चीजों के बारे में तुम्हारी कल्पनाएँ अधिक से अधिक अनैच्छिक और निर्भीक हो जाएँगी। ऐसा ही है न? (हाँ, बिल्कुल।) जितना ज्यादा लोग शादी के बारे में समाज और दुष्ट मानवजाति की राय और जानकारी को स्वीकारेंगे, वे अपनी शादी की कल्पना करने, अपना प्रेमी खोजने और उस साथी को पाने की चाह में उतने ही ज्यादा साहसी और बेलगाम हो जाएँगे। साथ ही, वे यह उम्मीद भी करते हैं कि उनका प्रेमी किसी रूमानी उपन्यास, टीवी नाटक या रूमानी फिल्म में दिखाए गए पात्र की तरह हो—जो उनसे बेपनाह प्यार करेगा, जब तक कि समुद्र सूख न जाए और चट्टानें धूल में न बदल जाएँ, और जो मरते दम तक वफादार रहेगा। जहाँ तक उनकी बात है, वे भी टीवी नाटकों और रूमानी उपन्यासों के पात्रों की तरह ही अपने साथी से तब तक गहरा प्यार करेंगे, जब तक कि समुद्र सूख नहीं जाते और चट्टानें धूल में नहीं बदल जातीं, और वे मरते दम तक वफादार बने रहेंगे। संक्षेप में, ये कल्पनाएँ मानवता और जीवन की वास्तविक जरूरतों से बहुत अलग हैं। बेशक, वे मानवता के सार से भी बहुत अलग हैं; वे वास्तविक जीवन से पूरी तरह असंगत हैं। ठीक वैसे ही जैसे जो चीजें लोगों को अच्छी लगती हैं, वो वास्तव में लोगों की कल्पनाओं से उपजे सुखद विचार ही होते हैं। क्योंकि ये विचार शादी के बारे में परमेश्वर की परिभाषा और व्यवस्थाओं के अनुरूप नहीं हैं, तो लोगों को इन विचारों और दृष्टिकोणों को त्याग देना चाहिए, जो तथ्यों के अनुरूप बिल्कुल नहीं हैं, जिनका उन्हें अनुसरण बिल्कुल नहीं करना चाहिए।

लोगों को शादी के बारे में इन अवास्तविक कल्पनाओं को कैसे त्यागना चाहिए? उन्हें रोमांस और शादी के बारे में अपनी सोच और दृष्टिकोण सुधारना चाहिए। सबसे पहले, लोगों को प्यार के बारे में अपना तथाकथित दृष्टिकोण त्यागना चाहिए, भ्रामक बातें और कहावतें त्याग देनी चाहिए, जैसे कि किसी से तब तक प्यार करना जब तक समुद्र सूख न जाए और चट्टानें धूल में न बदल जाएँ, मरते दम तक अटूट प्यार करना, और ऐसा प्यार करना जो जन्म-जन्मांतर तक कायम रहे। लोगों को नहीं पता कि उनका यह प्यार जीवन भर कायम रहेगा या नहीं, फिर अगले जन्मों में और जब तक समुद्र सूख न जाए और चट्टानें धूल में न बदल जाएँ, तब तक साथ निभाने की तो बात छोड़ ही दो। समुद्र सूखने और चट्टानों को धूल में बदलने में कितने साल लगेंगे? अगर लोग इतने लंबे समय तक जी सकें तो क्या वे राक्षस नहीं कहलाएँगे? इस जीवन को अच्छी तरह से जीना, और इसे जागरूकता और स्पष्टता के साथ जीना ही काफी है। शादी में अपनी भूमिका अच्छे से निभाना, एक पुरुष या महिला को जो करना चाहिए वह करना, उन दायित्वों और जिम्मेदारियों को निभाना जो एक पुरुष या महिला को निभाने चाहिए, अपनी आपसी जिम्मेदारियों को पूरा करना, एक-दूसरे का सहयोग करना, एक-दूसरे की मदद करना, और जीवन-भर एक-दूसरे के साथ रहना काफी है। यह एक आदर्श और उचित शादी है, और इसके अलावा सभी चीजें, वह तथाकथित प्रेम, प्रेम के वो तथाकथित कसमें-वादे, वह प्रेम जो जन्म-जन्मांतर तक कायम रहता है—ये सभी चीजें बेकार हैं, इनका परमेश्वर द्वारा निर्धारित शादी, और महिला-पुरुषों के लिए परमेश्वर के निर्देशों और उपदेशों से कोई सरोकार नहीं है। क्योंकि किसी शादी का आधार चाहे कुछ भी हो, या पति या पत्नी की व्यक्तिगत शर्तें जो भी हों, चाहे वे गरीब हों या अमीर, उनकी प्रतिभाएँ, उनका रुतबा और उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि चाहे कुछ भी हो, या चाहे वे सटीक मेल या सटीक जोड़ी हों या न हों; चाहे शादी पहली नजर के प्यार के कारण हुई थी या माता-पिता ने तय की थी, चाहे यह संयोगवश हुई थी या लंबे समय तक प्यार में रहने के कारण—इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह कैसी शादी है, अगर दो लोग शादी करके शादीशुदा जीवन में प्रवेश करते हैं, तो उन्हें ख्वाबों की दुनिया से आखिर में हकीकत की दुनिया में लौटना ही पड़ता है। कोई भी वास्तविक जीवन से बच नहीं सकता, और हर शादी को, चाहे उसमें प्यार हो या न हो, आखिरकार दैनिक जीवन में लौटना ही होगा। उदाहरण के लिए, बिजली-पानी के बिल भरने हों और पत्नी शिकायत करे, “अरे नहीं, फिर से बिल ज्यादा आए हैं। सब कुछ महँगा हो रहा है, बस पगार नहीं बढ़ रही। चीजें इसी तरह महँगी होती रहीं तो लोग कैसे जिएँगे?” मगर वह चाहे कितनी ही शिकायतें कर ले, फिर भी उसे बिजली-पानी की जरूरत है, उसके पास कोई विकल्प नहीं है। तो वह बिल भरती है, और बिल भरने के बाद उसे खाने के सामान और बाकी खर्चों के लिए पैसे बचाने होते हैं, वह उन पैसों को बचाने की कोशिश करती है जो उसने बढ़े हुए बिल पर चुकाए थे। बाजार में सब्जियों पर छूट देखकर पति कहता है, “आज फलियों पर छूट मिल रही है। ज्यादा खरीद लो, दो हफ्तों के लिए खरीद लो।” पत्नी कहती है, “हमें कितना खरीदना चाहिए? अगर हमने बहुत ज्यादा खरीद लिया और इसे खा न पाए, तो यह सड़ जाएगी। और अगर हम इतना ज्यादा खरीदेंगे तो इसे फ्रीजर में भी नहीं रख पाएँगे!” इस पर पति जवाब देता है, “अगर हम यह सब रख नहीं पाएँगे, तो क्या थोड़ा ज्यादा नहीं खा सकते? हम दिन में दो बार फलियाँ खा सकते हैं। खाने के लिए महँगी चीजें खरीदने को लेकर हमेशा इतनी परेशान मत हुआ करो!” पति को पगार मिलती है तो वह कहता है, “मुझे इस महीने फिर से बोनस मिला है। अगर मुझे साल के अंत में बड़ा बोनस मिलता है, तो हम छुट्टियों पर जा सकते हैं। हर कोई छुट्टियाँ मनाने मालदीव या बाली जा रहा है। मैं भी तुम्हें छुट्टियों में वहाँ लेकर जाऊँगा, ताकि तुम अच्छा समय बिता सको।” उनके घर के आसपास के पेड़ों पर बहुत सारे फल लगते हैं, तो इस पर पति-पत्नी चर्चा करते हैं : “पिछले साल हमें अच्छी फसल नहीं मिली थी। इस साल बहुत सारे फल लगे हैं, तो हम कुछ फल बेचकर थोड़े पैसे कमा सकते हैं। कुछ पैसे कमाने के बाद शायद हम अपने घर की मरम्मत करवा सकें? हम एल्यूमीनियम एलॉय की बड़ी खिड़कियाँ और एक बड़ा नया लोहे का दरवाजा लगवा सकते हैं।” जब कड़ाके की ठंड पड़ती है, तो पत्नी कहती है, “मैं सात-आठ साल से यही सूती जैकेट पहन रही हूँ, और यह पतली होती जा रही है। पगार मिलने के बाद, तुम कुछ खर्चे घटाकर मेरे लिए एक नया विंटर जैकेट लेने के लिए थोड़े पैसे बचा सकते हो। एक डाउन जैकेट कम से कम तीन-चार सौ या शायद पाँच-छह सौ युआन की होती है।” पति कहता है, “ठीक है। मैं थोड़े पैसे बचाकर तुम्हारे लिए एक अच्छी, गर्म डक डाउन जैकेट खरीदूँगा।” इस पर पत्नी कहती है, “तुम मेरे लिए जैकेट खरीदना चाहते हो, पर तुम्हारे पास भी तो जैकेट नहीं है। एक अपने लिए भी खरीदो।” पति जवाब देता है, “मेरे पास पैसे बचे तो मैं भी खरीद लूँगा। अगर नहीं बचे, तो मैं अपना पुराना जैकेट एक और साल चला लूँगा।” कोई दूसरा पति अपनी पत्नी से कहता है, “मैंने सुना है कि पास में ही एक बड़ा रेस्टोरेंट खुला है जिसमें हर तरह का सी-फूड मिलता है। क्यों न हम वहाँ चलें?” पत्नी कहती है, “हाँ, चलो। हमारे पास इतना पैसा है कि हम वहाँ जा सकते हैं।” वे जाकर सी-फूड खाते हैं और खुशी-खुशी घर लौटते हैं। पत्नी सोचती है, “देखो अब मेरा जीवन कितना आरामदायक है। मैंने सही आदमी से शादी की। मैं ताजा सी-फूड खा सकती हूँ। मेरे पड़ोसियों की ताजा सी-फूड खाने की औकात नहीं है। मेरा जीवन शानदार है!” शादीशुदा जीवन ऐसा ही होता है न? (हाँ।) इस तरह जोड़-तोड़ और तर्क-वितर्क करते हुए उनका जीवन बीतता रहता है। वे हर रोज सुबह से शाम तक काम करते हैं, आठ बजे काम पर जाने के लिए उन्हें सुबह पाँच बजे उठना पड़ता है। जब अलार्म बजता है, तो वे सोचते हैं, “अरे, मेरा उठने का बिल्कुल भी मन नहीं है, पर मेरे पास कोई चारा नहीं। मुझे अपने परिवार का पेट भरने और जीने के लिए काम पर जाना ही होगा,” तो इस तरह वे सुबह बिस्तर से उठने के लिए संघर्ष करते हैं। “अच्छा हुआ जो आज मुझे देरी नहीं हुई, वो मेरा बोनस कम नहीं करेंगे।” वे काम खत्म करके घर लौटते हैं और कहते हैं, “आज कितना मुश्किल दिन रहा, बहुत कठिन! मुझे काम से कब फुरसत मिलेगी?” उन्हें पैसे कमाने और अपने परिवार का पेट भरने के लिए इतनी मेहनत करनी पड़ती है; अच्छी तरह से जीने के लिए, शादी के ढाँचे में दोनों लोगों का जीवन चलाते रहने के लिए या ताकि उनके जीवन में स्थिरता बनी रहे, उन्हें इसी तरह से जीना पड़ता है। बूढ़े होने तक और अपनी उम्र के आखिरी पड़ाव पर पहुँचने तक, वे अपना जीवन इसी तरह बिताते हैं, और बूढ़ी पत्नी कहती है, “मेरे स्वामी, देखो मेरे बाल सफेद हो गए हैं! मेरी आँखों के चारों ओर झुर्रियाँ आ गई हैं और गाल भी लटकने लगे हैं। क्या मैं अब बूढ़ी हो गई हूँ? क्या तुम मेरे बुढ़ापे को देखकर मुझे नापसंद करोगे और कोई दूसरी महिला को ले आओगे?” इस पर उसका पति जवाब देता है, “बिल्कुल नहीं, मेरी नादान बुढ़िया। मैंने तुम्हारे साथ पूरी जिंदगी बिता दी और तुम अभी भी मुझे नहीं जानती। क्या मैं तुम्हें सचमुच ऐसा आदमी लगता हूँ?” उसकी पत्नी हर वक्त सोचती रहती है कि वह बूढ़ी होगी तो उसका पति उसे पसंद नहीं करेगा और डरती है कि वह उसे नहीं चाहेगा। वह अपने पति को और ज्यादा टोकती है, तो उसका पति और कम बोलता है, उनके बीच बातें कम हो जाती हैं, और वे एक-दूसरे पर ध्यान न देते हुए टीवी पर अपने-अपने शो देखते रहते हैं। एक दिन, पत्नी कहती है, “सुनो, हमने अपने जीवन में बहुत बहस की है। तुम्हारे साथ इतने साल बिताना बहुत मुश्किल रहा है। मैं अपना अगला जीवन तुम जैसे आदमी के साथ नहीं बिताऊँगी। खाना खाने के बाद, तुम कभी साफ-सफाई में मेरी मदद नहीं करते, बस बैठकर देखते रहते हो। तुमने जीवन भर अपनी यह भूल नहीं सुधारी। तुम अपने उतरे हुए कपड़े खुद कभी नहीं धोते, हमेशा मुझे ही धोकर सुखाने पड़ते हैं। अगर मैं मर गई तो तुम्हारी मदद कौन करेगा?” उसका पति कहता है, “अच्छा, क्या मैं सच में तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊँगा? मेरे पीछे इतनी सारी जवान महिलाओं की लाइन लगी हैं कि मैं उनसे छुटकारा नहीं पा सकता।” उसकी पत्नी जवाब देती है, “बड़ी-बड़ी बातें करवा लो बस! खुद को देखा है कभी, कितने बदसूरत दिखते हो। मेरे अलावा भला कौन तुम्हारे साथ रहेगी।” इस पर उसका पति कहता है, “गुस्सा होना है तो होती रहो, पर बाहर बहुत से लोग हैं जो मुझे पसंद करते हैं। बस तुम ही हो जो मुझे नीची नजरों से देखती हो और मेरी बातों को गंभीरता से नहीं लेती।” उनकी शादी किस तरह की शादी है? पत्नी कहती है, “अरे, भले ही मेरे पास खुश होने का कोई कारण नहीं है और तुम्हारे साथ पूरा जीवन बिताने के बाद भी कोई अच्छी यादें नहीं हैं, अब जब मैं बूढ़ी हो गई हूँ तो सोच रही हूँ : अगर तुम मेरे साथ नहीं हुए, तो लगेगा कि जीवन में कोई कमी है। अगर तुम मुझसे पहले चल बसे, तो मैं दुखी रहूँगी और मेरे पास टोकने के लिए भी कोई नहीं होगा। मैं अकेली नहीं रहना चाहती। मुझे तुमसे पहले जाना होगा, ताकि तुम्हें बचा हुआ जीवन अकेले बिताना पड़े, तुम्हारे कपड़े धोने या तुम्हारा खाना बनाने के लिए कोई नहीं होगा, तुम्हारे दैनिक जीवन की देखभाल करने वाला कोई नहीं होगा, और तब तुम्हें मेरी नेकियाँ याद आएँगी। तुम्हीं ने कहा था न कि तुम्हारे पीछे बहुत सारी जवान महिलाओं की लाइन लगी है? मैं मर जाऊँगी तो जाकर ले आना किसी को।” उसका पति कहता है, “शांत हो जाओ, मैं ध्यान रखूँगा कि तुम मुझसे पहले ही जाओ। जब तुम चली जाओगी, तो मैं यकीकन तुमसे अच्छी जीवनसाथी ढूँढ़ ही लूँगा।” मगर वास्तव में वह अपने दिल में क्या सोचता है? “तुम पहले चली जाओ, और जब तुम चली जाओगी, तो मुझे अकेलापन काटने को दौड़ेगा। तुम कष्ट सहो, इससे बेहतर है कि मैं इस कठिनाई को झेलता रहूँ और इस प्रकार कष्ट सहूँ।” हालाँकि, बूढ़ी पत्नी हमेशा अपने पति के बारे में शिकायत करती रहती है कि वह यह काम गलत करता है, वह काम गलत करता है, उसमें यह कमी है और उसमें वो कमी है, और भले ही उसका पति अपनी खामियों को सुधार नहीं पाता, वे इसी तरह जीते रहते हैं, और समय के साथ उसे इसकी आदत हो जाती है। आखिर में, महिला खुद हार मान लेती है, पुरुष इसे सहता रहता है और इस तरह वे जीवन भर साथ रहते हैं। ऐसा होता है शादीशुदा जीवन।

भले ही ऐसी बहुत सी चीजें हैं जो वैवाहिक जीवन में व्यक्ति की पसंद के हिसाब से नहीं होती हैं, बहुत ज्यादा बहस होती रहती है, शादीशुदा जोड़े जीवन में बीमारी, गरीबी, आर्थिक कठिनाइयों का सामना करते हैं, और यहाँ तक कि बेहद सुख-दुख की घटनाओं के साथ-साथ ऐसी अन्य घटनाओं का भी सामना करते हैं, मगर वे इन तमाम बाधाओं को एक साथ पार कर जाते हैं, और उनका जीवनसाथी वह है जिसे वे कभी नहीं छोड़ सकते, कोई ऐसा व्यक्ति जिसे वो मरते दम तक नहीं छोड़ सकते। जीवनसाथी क्या होता है? एक पत्नी या पति होता है। पुरुष महिला के प्रति जीवन भर की जिम्मेदारियाँ निभाता है, और इसी तरह महिला भी पुरुष के प्रति जीवन भर की जिम्मेदारियाँ निभाती है; महिला जीवन भर पुरुष का साथ निभाती है, और पुरुष भी जीवन भर महिला का साथ देता है। उनमें से कोई भी साफ तौर पर नहीं बता सकता कि दोनों में से कौन दूसरे का ज्यादा साथ देता है; न ही कोई यह स्पष्ट बता सकता है कि किसने ज्यादा योगदान दिया है, किसने ज्यादा गलतियाँ की हैं, या किसमें ज्यादा खामियाँ हैं; दोनों में से कोई यह स्पष्ट नहीं बता सकता कि उनमें से कौन किस पर निर्भर है या उनके जीवन का मुख्य कमाने वाला व्यक्ति कौन है; कोई भी यह स्पष्ट नहीं कह सकता कि घर का मुखिया या प्रभारी कौन है और सहायक कौन है; कोई भी यह साफ तौर पर नहीं बता सकता कि उनमें से कौन दूसरे को छोड़ नहीं सकता, क्या पुरुष महिला के बिना नहीं रह सकता या फिर महिला पुरुष के बिना नहीं रह सकती; और जब वे बहस करते हैं तो दोनों में से कोई भी यह साफ तौर पर नहीं बता सकता कि कौन सही है और कौन गलत : यही जीवन है, शादी के ढाँचे में एक पुरुष और महिला का सामान्य जीवन ऐसा ही होता है, और मनुष्यों के लिए जीवन की सबसे आम और सामान्य स्थिति यही है। जीवन ऐसा ही होता है, मनुष्य की सभी प्रकार की खामियों और पूर्वाग्रहों के साथ, और इससे भी बढ़कर, मनुष्य की सभी प्रकार की आवश्यकताओं, और साथ ही मनुष्य के सभी सही या गलत, तर्कसंगत या अतार्किक फैसलों के साथ व्यक्ति अपनी अंतरात्मा और विवेक से काम लेता है। यही जीवन है, यही सबसे सामान्य जीवन है। इसमें सही और गलत का कोई महत्व नहीं है, यह सिर्फ तुलनात्मक रूप से जीवन की उचित और पारंपरिक स्थिति और जीवन की वास्तविकता है। अब, शादी के ढाँचे के भीतर जीवन और रहन-सहन की यह वास्तविकता लोगों को क्या बताती है? यही कि लोगों को शादी के बारे में अपनी तमाम अवास्तविक फंतासियों को त्याग देना चाहिए, उन सभी विचारों को त्याग देना चाहिए जिनका शादी की सही परिभाषा और परमेश्वर के विधान और व्यवस्थाओं से कोई लेना-देना नहीं है। ये सभी वो चीजें हैं जिन्हें लोगों को त्याग देना चाहिए, क्योंकि इनका सामान्य मनुष्य के जीवन या उन दायित्वों और जिम्मेदारियों से कोई लेना-देना नहीं है जिन्हें एक सामान्य व्यक्ति जीवन में पूरा करता है। इसलिए, लोगों को शादी के बारे में उन विभिन्न परिभाषाओं और कहावतों को त्याग देना चाहिए जो समाज और दुष्ट मानवजाति से आती हैं, खास तौर से उस तथाकथित प्रेम से जिसका वास्तव में शादीशुदा जीवन से कोई सरोकार नहीं है। शादी जीवन भर की प्रतिबद्धता नहीं है, न ही यह जीवन भर प्यार की कसमें खाना है, और यह जीवन भर कसमें-वादे पूरे करते रहना तो बिल्कुल भी नहीं है। बल्कि, यह शादी में एक पुरुष और महिला का वास्तविक जीवन है, यह वही है जिसकी उन्हें वास्तविक जीवन में जरूरत है और वास्तविक जीवन में उनकी अभिव्यक्ति है। कुछ लोग कहते हैं, “अगर तुम शादी के विषय पर संगति कर रहे हो और प्यार के बारे में बात नहीं करते, प्यार की कसमों के बारे में बात नहीं करते, या उस प्यार की बात नहीं करते जो तब तक कायम रहता है जब तक समुद्र सूख न जाए और चट्टानें धूल में न बदल जाएँ या उन कसमों-वादों के बारे में बात नहीं करते जो शादीशुदा जोड़े एक-दूसरे से करते हैं, तो तुम किस बारे में बात कर रहे हो?” मैं मानवता के बारे में, जिम्मेदारी के बारे में, और उन चीजों के बारे में बात कर रहा हूँ जो परमेश्वर के उपदेशों और निर्देशों के अनुसार एक पुरुष और महिला को करना चाहिए, मैं उन दायित्वों और जिम्मेदारियों को पूरा करने के बारे में बात कर रहा हूँ जो एक पुरुष और महिला को पूरे करने चाहिए; उन दायित्वों और जिम्मेदारियों को निभाने के बारे में बात कर रहा हूँ जो एक पुरुष और महिला को उठाने चाहिए—इस तरह, तुम्हारे दायित्व, तुम्हारी जिम्मेदारियाँ या तुम्हारा मकसद पूरा हो जाएगा। जो भी हो, शादी से जुड़ी जिन तमाम फंतासियों को त्यागने के बारे में हमें संगति करनी चाहिए, उससे संबंधित अभ्यास करने का सही तरीका क्या है? यही कि तुम्हें अपने विचारों या कार्यों का आधार दुष्ट मानवजाति और दुष्ट प्रवृत्तियों से आने वाले विभिन्न विचारों को नहीं बनाना चाहिए, बल्कि इनका आधार परमेश्वर के वचनों को बनाना चाहिए। परमेश्वर शादी के मुद्दे पर चाहे जो भी कहे, तुम्हें अपने विचार और कार्य उसके वचनों पर टिकाने चाहिए। यही सिद्धांत सही है, है न? (हाँ।) क्या अब हम शादी से जुड़ी तमाम फंतासियों को त्यागने के विषय पर संगति लगभग खत्म कर चुके हैं? क्या यह बात अब तुम्हें स्पष्ट हो चुकी है? (हाँ, यह स्पष्ट है।)

हमने अभी शादी से जुड़ी तमाम फंतासियों को त्यागने के विषय पर संगति की, जिस पर कुछ लोगों ने कहा, “अगर मैं अकेले नहीं रहना चाहता और किसी को डेट करना या शादी के लिए किसी को ढूँढ़ना चाहता हूँ, तो मुझे परमेश्वर के वचनों का अभ्यास कैसे करना चाहिए ताकि मैं शादी से जुड़ी अपनी तमाम फंतासियों को त्याग सकूँ? मुझे इस सिद्धांत का अभ्यास कैसे करना चाहिए?” क्या यह जीवनसाथी चुनने के सिद्धांतों, शादी के लिए साथी चुनने के सिद्धांतों से संबंधित नहीं है? जीवनसाथी चुनने के बारे में संसार ने तुम्हारे भीतर कौन-से सिद्धांत स्थापित किए हैं? यह कि तुम्हारा साथी एक सलोना राजकुमार, एक गोरा-चिट्टा, सुंदर और अमीर आदमी या एक सुंदर और अमीर महिला हो, और अगर वह किसी अमीर परिवार की दूसरी पीढ़ी से हो तो और भी बेहतर होगा। ऐसे किसी व्यक्ति से शादी करके तुम अपने जीवन से 20 साल का संघर्ष घटा देते हो। आदमी ऐसा होना चाहिए जो तुम्हारे लिए हीरे की अंगूठी, शादी की पोशाक और शानदार शादी का खर्च उठा सके। वह ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जिसमें अपने करियर को लेकर महत्वाकांक्षा हो, जो दौलत कमा सकता हो या जिसके पास पहले से ही एक निश्चित मात्रा में धन हो। क्या संसार ने तुम्हारे मन में यही विचार और दृष्टिकोण नहीं डाले हैं? (बिल्कुल, डाले हैं।) फिर ऐसे लोग भी हैं जो कहते हैं, “मेरा जीवनसाथी वह होना चाहिए जिससे मुझे प्यार हो।” कोई और कहता है, “यह सही नहीं है। जरूरी नहीं कि जिससे तुम्हें प्यार हो वह भी तुमसे प्यार करे। प्यार दोतरफा होना चाहिए; जिससे तुम्हें प्यार हो उसे भी तुमसे प्यार होना चाहिए। अगर उसे तुमसे प्यार होगा तो वह कभी भी तुम्हें छोड़ने या त्यागने का नहीं सोचेगा। अगर जिससे तुम्हें प्यार है वह तुमसे प्यार नहीं करता, तो एक दिन वह तुम्हें छोड़कर चला जाएगा।” क्या ये विचार सही हैं? (नहीं।) तो फिर बताओ, जीवनसाथी चुनते समय तुम लोगों को ऐसे कौन-से सिद्धांत का पालन करना चाहिए जो परमेश्वर के वचनों पर आधारित हो और जो सत्य को अपनी कसौटी मानता हो? इस विषय के बारे में अब तुम लोग अपने पास मौजूद सही विचारों और दृष्टिकोणों के अनुसार बात करो। (अगर मैं एक साथी ढूँढ़ना चाहती हूँ, तो वह कम से कम ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो परमेश्वर में विश्वास रखता हो, जो सत्य का अनुसरण कर सकता हो, जिसके जीवन का लक्ष्य मेरे जैसा ही हो और जो उसी मार्ग पर चलता हो जिस पर मैं चलती हूँ।) कोई ऐसा व्यक्ति जिसकी महत्वाकांक्षाएँ तुम्हारी जैसी हों, जो उसी मार्ग पर चलता हो जिस पर तुम चलती हो, और जो परमेश्वर में विश्वास करता हो—तुमने जीवनसाथी चुनने के लिए कुछ विशेष कसौटी का जिक्र किया। और कौन बोलना चाहेगा? (हमें यह भी देखना होगा कि क्या उसमें मानवता है, और क्या वह शादीशुदा परिवार में अपनी जिम्मेदारियाँ और दायित्व पूरे कर सकता है। इसके अलावा भी कुछ है : ऐसा नहीं है कि अगर कोई अब शादी के लिए जीवनसाथी खोजना चाहता है तो उसे यकीनन कोई मिल ही जाएगा। इसकी व्यवस्था करना परमेश्वर पर निर्भर है, और व्यक्ति को समर्पण करके इंतजार करना चाहिए।) एक विशेष अभ्यास है, विचार और सिद्धांत का एक विशेष आधार भी है। तुम्हें समर्पण करके इंतजार करना होगा, अपना यह मामला परमेश्वर को सौंपकर उसे इसकी व्यवस्था करने देनी होगी, साथ ही तुम्हें इस मामले को सिद्धांतों के अनुसार भी देखना होगा। और कोई कुछ कहना चाहेगा? (परमेश्वर, मेरा भी यही विचार है, यानी हमें कोई ऐसा व्यक्ति ढूँढ़ना चाहिए जिसकी महत्वाकांक्षाएँ हमारे सामान हों और जो उसी मार्ग पर चलता हो जिस पर हम चलते हैं, कोई मानवता वाला व्यक्ति जो जिम्मेदारी उठा सकता हो। व्यक्ति को शादी के बारे में उन गलत विचारों को त्याग देना चाहिए जो शैतान उसमें भरता है, अपने कर्तव्य में दिल लगाना चाहिए, और परमेश्वर की संप्रभुता के प्रति समर्पण करके परमेश्वर की व्यवस्थाओं का इंतजार करना चाहिए।) अगर वह तुम्हारे लिए हीरे की अंगूठी न खरीद पाए, तो भी क्या तुम उससे शादी करोगी? (अगर उसमें मानवता है, तो भले ही वह मेरे लिए हीरे की अंगूठी न खरीद पाए, फिर भी मैं उससे शादी करूँगी।) मान लो कि उसके पास कुछ पैसे हैं और वह तुम्हारे लिए एक कैरेट की हीरे की अंगूठी खरीद सकता है, पर इसके बजाय वह तुम्हारे लिए सबसे लोकप्रिय 0.3 कैरेट की हीरे की अंगूठी खरीदता है, तो क्या तुम उससे शादी करना चाहोगी? (मैं उसके सामने ऐसी कोई माँग नहीं रखूँगी।) ऐसी कोई माँग न रखना ठीक है। पैसे बचाकर, तुम इसे समय के साथ खर्च कर सकते हो, और इसे दीर्घकालिक नजरिया कहते हैं। जीवनसाथी ढूँढ़ने से पहले ही, तुम्हें अच्छी तरह से जीने की मानसिकता मिल गई है—यह बहुत व्यावहारिक है! और कोई? (परमेश्वर, मुझे लगता है कि जीवनसाथी चुनने के लिए मुझे सबसे पहले ये सांसारिक कसौटियाँ त्यागनी होंगी। यानी, मुझे हमेशा एक सलोने राजकुमार, या एक सुंदर और अमीर आदमी, या किसी रोमांटिक व्यक्ति को खोजने के सपने नहीं देखने चाहिए। इन कसौटियों को त्यागने के बाद मुझे शादी को सही दृष्टिकोण से देखना होगा और फिर परमेश्वर के प्रति समर्पण करके सही समय का इंतजार करना चाहिए। इस तरह का कोई व्यक्ति सामने आ भी जाए, तो उसकी महत्वाकांक्षाएँ मेरी जैसी होनी चाहिए और वह उसी मार्ग पर चलना चाहिए जिस पर मैं चलती हूँ। मुझे अपने सांसारिक विचारों पर निर्भर होकर यह माँग नहीं करनी चाहिए कि वह आदमी मेरे प्रति विचारशील हो। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वह सत्य का अनुसरण कर सके और परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील हो।) अगर वह सत्य का अनुसरण करता है, परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील है, अपना कर्तव्य निभाने के लिए बाहर जाता है, इसलिए वह कभी घर पर नहीं होता और तुम्हें पारिवारिक जीवन का बोझ अकेले उठाना पड़ता है, और गैस टैंक में गैस खत्म हो जाने पर तुम्हें खुद इसे उठाकर ऊपर ले जाना पड़ता है, तब तुम क्या करोगी? (मैं यह सब खुद कर लूँगी।) और अगर नहीं कर सको, तो तुम किसी व्यक्ति की मदद ले सकती हो। (या फिर मैं किसी भाई-बहन की मदद ले सकती हूँ।) हाँ, इस स्थिति से निपटने के कई तरीके हैं। तो, अगर वह एक-दो या चार-पाँच साल के लिए दूर रहे, तब क्या तुम गुस्सा होओगी? “क्या यह एक विधवा की तरह जीना नहीं हुआ? उससे शादी करने का क्या मतलब था? क्या यह शादी से पहले जैसी स्थिति नहीं है, जब मैं अकेली रहती थी? मुझे सब कुछ खुद ही संभालना पड़ता है। उससे शादी करना मेरी बदकिस्मती थी!” क्या तुम ऐसा नहीं सोचोगी? (नहीं, मुझे ऐसा नहीं सोचना चाहिए, क्योंकि वह अपना कर्तव्य निभा रहा होगा और एक सही उद्देश्य के लिए काम कर रहा होगा। मुझे इसके लिए गुस्सा नहीं होना चाहिए।) ये विचार तो बड़े अच्छे हैं, पर क्या तुम वास्तविक जीवन में इन सब मुश्किलों से पार पा सकोगी? मान लो कि यह आदमी बेहद सच्चा है, आम तौर पर अपनी बातों और व्यवहार में संयमित रहता है, रोमांटिक नहीं है, और उसने तुम्हारे लिए कभी अच्छे कपड़े नहीं खरीदे, कभी तुम्हें फूल नहीं दिए, और खास तौर से कभी तुमसे यह नहीं कहा, “मैं तुमसे प्यार करता हूँ” या ऐसी कोई और बात नहीं कही, जिससे तुम्हें नहीं पता कि वह तुमसे प्यार करता है या नहीं, पर वह बड़ा अच्छा आदमी है जो तुम्हारे प्रति बहुत विचारशील और जीवन में तुम्हारी देखभाल करता है, वह बस ऐसी बातें नहीं कहता या कुछ रोमांटिक व्यवहार नहीं करता, और जब तुम नाराज हो तो तुम्हें मनाने या शांत करने की कोशिश नहीं करता—तो क्या उसके लिए तुम्हारे दिल में कोई नाराजगी नहीं होगी? (जब मैं परमेश्वर में विश्वास नहीं करती थी और सत्य नहीं समझती थी तब शायद मुझे नाराजगी होती, पर परमेश्वर की संगति सुनने के बाद, अब मुझे पता है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि वह ऐसी बातें कहता है और वैसी रोमांटिक चीजें करता है या नहीं। ये सांसारिक लोगों के विचार हैं और सामान्य मानवता वाले लोगों को इनका अनुसरण नहीं करना चाहिए। मुझे इन चीजों को त्याग देना चाहिए और फिर मैं शिकायत नहीं करूँगी।) तुम्हें शिकायत नहीं करनी चाहिए, है न? (सही कहा।) अभी तुम उस स्थिति में नहीं हो, और यह नहीं जानती कि तुम उस परिस्थिति में क्या महसूस करोगी, या तुम्हारा गुस्सा कैसे बढ़ेगा और मिजाज कैसे बदलेगा। हालाँकि, अभी सैद्धांतिक रूप से, तुम सभी जानते हो कि क्योंकि तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो, तो तुम्हें अपने जीवनसाथी से ऐसी अनुचित माँगें नहीं करनी चाहिए, न ही ऐसी चीजें होने पर तुम्हें अपने जीवनसाथी के खिलाफ शिकायत करनी चाहिए, क्योंकि ये वो चीजें नहीं हैं जो तुम चाहते हो। अभी तुम्हारे पास ये विचार हैं, पर क्या तुम उन्हें हासिल करने में सक्षम हो? क्या उन्हें हासिल करना आसान है? (हमें अपनी प्राथमिकताओं और अपने सांसारिक विचारों के खिलाफ विद्रोह करना चाहिए; फिर इन चीजों को त्यागना काफी आसान हो जाएगा।) मैं बताता हूँ कि तुम्हें इस मामले से कैसे निपटना चाहिए। पुरुषों और महिलाओं, सभी को इन समस्याओं का सामना करना पड़ेगा और शादीशुदा जीवन में ये विचार और मनोदशाएँ होंगी और सभी की ये जरूरतें होंगी। लेकिन सबसे बुनियादी बात तो तुम्हें यह समझनी चाहिए कि अगर तुम अपने दिल की इच्छा के अनुसार जीवनसाथी चुनती हो—इस तथ्य को अलग रखते हुए कि यह परमेश्वर द्वारा व्यवस्थित किया गया था—अगर तुमने उसे खुद चुना है और तुम उसके बारे में हर चीज से संतुष्ट हो, और विशेष रूप से, तुम्हारी और उसकी महत्वाकांक्षाएँ एक समान हैं और वह उसी मार्ग पर चलता है जिस पर तुम चलती हो, वह परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य निभा सकता है, उसका किया हर कार्य उचित है, तो तुम्हें एक तर्कसंगत रवैया अपनाकर उसे ऐसा करने देना चाहिए, उसे तुम्हारी भावनाओं और तुम्हारे अस्तित्व को भी अनदेखा करने देना चाहिए—सैद्धांतिक रूप से, तुम्हें ऐसा करने की कोशिश करनी चाहिए। इसके अलावा, अगर किसी विशेष स्थिति या किसी विशेष घटना के कारण ऐसी जरूरत या मनोदशा उत्पन्न होती है, तो तुम्हें परमेश्वर के सामने आकर प्रार्थना करनी चाहिए। क्या तुम प्रार्थना के बाद इन चीजों को पूरी तरह से त्याग पाओगी? बिल्कुल नहीं। आखिरकार लोग अपनी सामान्य मानवता के भीतर जीते हैं, उनके पास दिमाग है, और उनका दिमाग उनमें सभी प्रकार की मनोदशाएँ पैदा करेगा। हम अभी इस पर चर्चा नहीं करेंगे कि ये मनोदशाएँ सही हैं या गलत। फिलहाल, सबसे व्यावहारिक समस्या यह है कि तुम्हें इन मनोदशाओं को त्यागना मुश्किल लगता है। भले ही तुम उन्हें एक बार त्याग सको, वे फिर से किसी प्रकार की ठोस स्थिति में सामने आ सकते हैं। ऐसे में तुम्हें क्या करना चाहिए? तुम्हें उनसे परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि सैद्धांतिक रूप में, और स्वरूप और तर्कसंगतता के संदर्भ में, तुम पहले ही इस अनुसरण या आवश्यकता को त्याग चुके हो। बात बस इतनी है कि अपनी मानवता के कारण, अलग-अलग उम्र के लोगों की ये जरूरतें होंगी और वे अलग-अलग स्तर पर और कमोवेश इन मनोदशाओं का अनुभव करेंगे। तुम्हें इन वास्तविक स्थितियों के बारे में स्पष्टता है और इस बार परमेश्वर से प्रार्थना करके इस मनोदशा को त्याग देती हो, या फिर तुम जिस मनोदशा का अनुभव कर रही हो वह इतनी गंभीर नहीं है और तुम इसे बहुत गंभीरता से नहीं लेती। हालाँकि, निश्चित रूप से अगली बार फिर से तुम इसी मनोदशा का अनुभव करोगी। तब तुम्हारा विशिष्ट अभ्यास क्या रहेगा? यह कि तुम्हें यह कहते हुए इस पर कोई ध्यान देने या इसे गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है, “अरे, मेरे स्वभाव का यह पहलू अभी तक नहीं बदला है।” यह किसी प्रकार का स्वभाव नहीं है; यह बस एक अस्थायी मनोदशा है जिसका तुम्हारे स्वभाव से कोई लेना-देना नहीं है। न ही तुम्हें यह कहते हुए बात का बतंगड़ बनाने की जरूरत है, “अरे, मैं अभी भी ऐसी क्यों हूँ? क्या मैं सत्य का अनुसरण नहीं करती? मैं इस तरह का व्यवहार कैसे कर रही हूँ? कितनी बुरी बात है!” बात का बतंगड़ बनाने की कोई जरूरत नहीं है; यह तुम्हारी सामान्य मानवता की विभिन्न भावनाओं से संबंधित मनोदशा की अभिव्यक्ति मात्र है। इस पर ध्यान मत दो। यह मनोदशा को संभालने के संबंध में एक दृष्टिकोण है। इसके अलावा, अगर यह तुम्हारे सामान्य जीवन, आध्यात्मिक जीवन, या तुम्हारे कर्तव्य निभाने के क्रम और नियमितता को प्रभावित नहीं करता है, तो सब ठीक है। उदाहरण के लिए, मान लो कि तुम्हारा पति (या पत्नी) अपना कर्तव्य निभाने में व्यस्त है, तुम्हें एक-दूसरे को देखे हुए काफी समय हो गया है, और तुम्हारे पास आपस में बात करने का समय नहीं है। एक दिन तुम अचानक एक बहन को उसके पति के साथ बातचीत करते हुए देखती हो, और तुम्हारे दिल में एक मनोदशा उत्पन्न होती है, और तुम सोचती हो, “देखो, वह अपने पति के साथ मिलकर अपना कर्तव्य निभा सकती है। वे बहुत खुश और सुखी हैं। मेरा पति ही इतना निष्ठुर क्यों है? वह मुझसे यह क्यों नहीं पूछता, ‘तुम कैसी हो? क्या तुम ठीक हो?’ उसे मेरी चिंता क्यों नहीं है? वह मेरी कद्र क्यों नहीं करता या मुझसे प्यार क्यों नहीं करता?” तुम इस प्रकार की मनोदशा का अनुभव करती हो, और कुछ समय बाद सोचती हो, “अरे, नाराज होना अच्छी बात नहीं है।” यह जानते हुए भी कि ऐसा महसूस करना सही नहीं है, तुम ऐसा महसूस करती हो और खुद से बहस करते हुए कहती हो, “मैं उसे परेशान नहीं करूँगी, मैं बस इंतजार करूँगी कि वह मुझ पर ध्यान देना शुरू करे। अगर वह ऐसा नहीं करेगा तो मैं उससे नाराज हो जाऊँगी। हमारी शादी को इतने साल हो गए हैं, इतने समय में हमने एक-दूसरे को नहीं देखा है और वह अब भी नहीं कहता कि उसे मेरी याद आती है। उसे मेरी याद आती भी है या नहीं? उसे मुझसे कोई फर्क नहीं पड़ता, तो मैं भी उसकी कोई परवाह नहीं करूँगी!” तुम खुद से बहस करते हुए इसी मनोदशा में रहती हो। पल भर के लिए तुममें गुस्से का सैलाब और मनोदशा उत्पन्न हो जाती है। अगर तुम सामान्य रूप से सो और खा सकती हो, परमेश्वर के वचन पढ़ सकती हो, सभाओं में भाग ले सकती हो, अपना कर्तव्य सामान्य रूप से निभा सकती हो, और अपने भाई-बहनों के साथ सामान्य रूप से मिल-जुलकर रह सकती हो, तो तुम्हें ऐसी मनोदशाओं के बारे में चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है, और तुम अपने दिल में जो चाहो वह सोच सकती हो। तुम जो भी सोचती हो, अगर तुम्हारी तर्कशक्ति सामान्य है और तुम सामान्य रूप से अपना कर्तव्य निभा रही हो, तो कोई दिक्कत नहीं है। तुम्हें इसे जबरदस्ती दबाने की जरूरत नहीं है, न ही तुम्हें जबरदस्ती परमेश्वर से प्रार्थना करते हुए उसे तुम्हें अनुशासित करने या ताड़ना देने को कहने या खुद को पापी महसूस करने की जरूरत है। बात का बतंगड़ बनाने की कोई जरूरत ही नहीं है, क्योंकि यह मनोदशा जल्द ही खत्म हो जाएगी। अगर तुम्हें वाकई अपने पति की इतनी याद आती है, तो तुम उसे फोन करके उसका हाल-चाल पूछ सकती हो, तुम दोनों दिल खोलकर एक-दूसरे से बात कर सकते हो, और तब क्या वो अस्थायी मनोदशाएँ और गलतफहमियाँ दूर नहीं हो जाएँगी? दरअसल, उसे कुछ भी करने की जरूरत नहीं है। कभी-कभी तुम्हें बस एक क्षणिक एहसास होगा और तुम उसकी आवाज सुनना चाहोगी, या तुम कुछ समय के लिए अकेलापन और असंतुष्ट महसूस कर सकती हो, या तुम दुखी महसूस कर सकती हो, तब तुम फोन करके उससे बात कर सकती हो। तब तुम्हें पता चलता है कि वह ठीक है, वह तुमसे पहले की तरह ही बेपनाह प्यार करता है और तुम उसकी यादों में बसती हो। बात बस इतनी है कि वह काम में व्यस्त है, या ऐसा इसलिए है क्योंकि पुरुष बारीकियों को लेकर कुछ हद तक लापरवाह हो सकते हैं और वह अपने कर्तव्य में व्यस्त है जिससे उसे यह नहीं लगता कि बहुत समय हो गया है, और यही कारण है कि उसने तुमसे संपर्क नहीं किया। क्या यह अच्छी बात नहीं है कि वह व्यस्त है और सामान्य रूप से अपना कर्तव्य निभा रहा है? तुम यही चाहती थी न? अगर उसने कोई बुरा काम किया, कोई विघ्न डाला या गड़बड़ की, जिस वजह से उसे हटा दिया गया, तो क्या तुम्हें उसकी चिंता नहीं होगी? अभी उसके साथ सब कुछ सामान्य है, और सब पहले जैसा ही है—क्या इससे तुम्हारा मन शांत नहीं है? तुम्हें और क्या चाहिए? ऐसा ही होता है न? (हाँ, बिल्कुल।) जैसा कि अविश्वासी कहते हैं, इस तरह से कॉल करके एक-दूसरे से बात करने से दिल में अकेलापन और तड़प की भावनाएँ दूर हो जाती हैं, और क्या तब यह समस्या हल नहीं हो जाती? क्या कोई दिक्कत है? बताओ मुझे, अपने पति को फोन करके उसका हाल-चाल पूछना—क्या परमेश्वर ऐसी बात की निंदा करता है? (नहीं।) तुम दोनों कानूनन पति-पत्नी हो, और फोन करके उससे बात करना, एक-दूसरे के प्रति अपनी तड़प दिखाना, यह सब उचित है, यह सामान्य मानवीय भावना है, और यह कुछ ऐसा है जो तुम्हें मानवता के दायरे में करना चाहिए। इसके अलावा, यह मानवजाति के लिए शादी को लेकर परमेश्वर के विधान में शामिल है—एक-दूसरे का साथ देना, एक-दूसरे को सुकून देना और एक-दूसरे का सहयोग करना। अगर वह ये जिम्मेदारियाँ नहीं निभाता है, तो क्या तुम इन्हें निभाने में उसकी मदद नहीं कर सकती हो? यह बहुत ही सरल मामला है जिसे संभालना बहुत आसान है। क्या इस प्रकार अभ्यास करने से यह समस्या हल नहीं होती? क्या तुम्हारे दिल में सभी प्रकार की मनोदशाओं का पनपना जरूरी है? नहीं, बिल्कुल नहीं। इस पर अमल करना सरल है।

मैंने जो अभी सवाल पूछा उस पर वापस आते हैं : “लोगों को शादी से जुड़ी अपनी तमाम फंतासियों को कैसे त्यागना चाहिए?” तुम सबने इस सवाल के जवाब में अपने-अपने विचार दिए। अगर लोग शादी से जुड़ी अपनी तमाम फंतासियों को त्यागना चाहते हैं, तो उन्हें पहले आस्था रखनी होगी और परमेश्वर की व्यवस्थाओं और विधान के प्रति समर्पण करना होगा। तुम्हारे मन में शादी के बारे में कोई व्यक्तिपरक या अवास्तविक कल्पनाएँ नहीं होनी चाहिए, जैसे कि तुम्हारा जीवनसाथी कौन है या वह कैसा व्यक्ति है; तुम्हें परमेश्वर के प्रति समर्पित रवैया रखना चाहिए, परमेश्वर की व्यवस्थाओं और विधान के प्रति समर्पण करना चाहिए, और यह भरोसा रखना चाहिए कि परमेश्वर तुम्हारे लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति ही चुनेगा। क्या समर्पित रवैया होना जरूरी नहीं है? (बिल्कुल है।) दूसरी बात, तुम्हें जीवनसाथी चुनने के उन मानदंडों को भी त्यागना होगा जो समाज की दुष्ट प्रवृत्तियों ने तुममें डाले हैं और फिर अपना जीवनसाथी चुनने के लिए सही मानदंड स्थापित करना होगा, यानी कम से कम तुम्हारा जीवनसाथी ऐसा व्यक्ति हो जो तुम्हारी तरह परमेश्वर में विश्वास करे और उसी मार्ग पर चले जिस पर तुम चलती हो—यह बात सामान्य परिप्रेक्ष्य से है। इसके अलावा, तुम्हारा जीवनसाथी शादी में एक पुरुष या महिला की जिम्मेदारियाँ निभाने में सक्षम होना चाहिए; उसे एक जीवनसाथी की जिम्मेदारियाँ निभानी आनी चाहिए। तुम इस पहलू को कैसे आँकोगी? तुम्हें अपने जीवनसाथी की मानवता की गुणवत्ता देखनी चाहिए, जैसे कि क्या उसमें जिम्मेदारी की भावना और अंतरात्मा है। और तुम यह कैसे आँकोगी कि किसी के पास अंतरात्मा और मानवता है या नहीं? अगर तुम उसके साथ नहीं जुड़ती तो तुम्हारे पास यह जानने का कोई और तरीका नहीं होगा कि उसकी मानवता कैसी है, और अगर तुम उनके साथ जुड़ती हो, वो भी काफी कम समय के लिए, तब भी शायद तुम यह पता न लगा पाओ कि वह कैसा व्यक्ति है। तो फिर, तुम यह कैसे आँकोगी कि उस व्यक्ति में मानवता है या नहीं? तुम यह देखोगी कि वह व्यक्ति अपने कर्तव्य की, परमेश्वर के आदेश की, और परमेश्वर के घर के कार्य की जिम्मेदारी उठाता है या नहीं, और क्या वह परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा कर सकता है और क्या वह अपने कर्तव्य में ईमानदार है—यह किसी व्यक्ति की मानवता की गुणवत्ता को आँकने का सबसे अच्छा तरीका है। मान लो कि इस व्यक्ति का चरित्र बहुत सच्चा है और वह परमेश्वर के घर द्वारा सौंपे गए कार्य को लेकर बेहद समर्पित, जिम्मेदार, गंभीर और ईमानदार रहता है, वह बहुत सावधानी बरतता है, बिल्कुल भी लापरवाही नहीं करता, किसी चीज को अनदेखा नहीं करता, और वह सत्य का अनुसरण करता है, परमेश्वर की हर बात ध्यान से और निष्ठापूर्वक सुनता है। जैसे ही उसे परमेश्वर के वचन समझ में आ जाते हैं, वह फौरन उन्हें अभ्यास में लाता है; भले ही ऐसे व्यक्ति में ऊँची काबिलियत न हो, पर कम से कम वह अपने कर्तव्य और कलीसिया के कार्य के प्रति अनमना नहीं होता, और ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी निभा सकता है। अगर वह अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठावान और जिम्मेदार है, तो वह यकीनन सच्चे दिल से तुम्हारे साथ अपना जीवन बिताएगा और मरते दम तक तुम्हारी जिम्मेदारी उठाएगा—ऐसे व्यक्ति का चरित्र परीक्षणों का सामना कर सकता है। भले ही तुम बीमार पड़ो, बूढ़ी हो जाओ, बदूसरत हो जाओ या तुममें दोष और कमियाँ हों, यह व्यक्ति हमेशा तुम्हारे साथ उचित व्यवहार कर तुम्हें बर्दाश्त करेगा, और वह हमेशा तुम्हारी और तुम्हारे परिवार की हिफाजत करने, तुम्हें टिकाऊ जीवन देने की अपनी पूरी कोशिश करेगा, ताकि तुम शांति से जी सको। शादीशुदा जीवन में यह किसी भी महिला-पुरुष के लिए सबसे खुशी की बात होती है। ऐसा जरूरी नहीं कि वह तुम्हें एक समृद्ध, विलासितापूर्ण या रोमांटिक जीवन दे सके, और यह भी जरूरी नहीं कि वह तुम्हें स्नेह या किसी अन्य पहलू के संदर्भ में कुछ भी अलग दे सके, पर कम-से-कम वह तुम्हें सुकून देगा और उसके साथ तुम्हारा जीवन व्यवस्थित हो जाएगा, और कोई खतरा या असहजता की भावना नहीं रहेगी। उस व्यक्ति को देखकर तुम यह जान लोगी कि 20-30 साल बाद या बुढ़ापे में उसके साथ जीवन कैसा होगा। जीवनसाथी चुनने के लिए इस तरह का व्यक्ति ही तुम्हारा मानदंड होना चाहिए। बेशक, जीवनसाथी चुनने का यह मानदंड थोड़ा ऊँचा है और आधुनिक मानवजाति के बीच ऐसे व्यक्ति को खोजना आसान नहीं है, है न? यह आँकने के लिए कि किसी का चरित्र कैसा है और क्या वह शादी में अपनी जिम्मेदारियाँ निभा पाएगा, तुम्हें कर्तव्य के प्रति उसका रवैया देखना होगा—यह एक पहलू है। दूसरा पहलू यह देखना होगा कि क्या उसके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल है। अगर है, तो कम-से-कम वह कुछ भी अमानवीय या अनैतिक काम नहीं करेगा, और इसलिए वह यकीनन तुम्हारे साथ अच्छी तरह पेश आएगा। अगर उसके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल नहीं है, वह बेशर्म और मनमाना है, या उसकी मानवता दुष्ट, कपटी और अहंकारी है; अगर उसके दिल में परमेश्वर नहीं है और वह खुद को दूसरों से श्रेष्ठ मानता है; अगर वह अपने कार्य, अपने कर्तव्यों और यहाँ तक कि परमेश्वर के आदेश और परमेश्वर के घर के किसी भी प्रमुख मामले से मनमाने तरीके से निपटता है, मनमर्जी से काम करता है, कभी भी सतर्क नहीं रहता, सिद्धांत नहीं खोजता, और खास तौर से चढ़ावे के मामले में वह इन्हें लापरवाही से लेकर इनका गलत इस्तेमाल करता है और वह किसी बात से नहीं डरता, तो तुम्हें ऐसे किसी व्यक्ति की तलाश बिल्कुल भी नहीं करनी चाहिए। परमेश्वर का भय मानने वाले दिल के बिना वह आदमी कुछ भी कर सकता है। अभी ऐसा आदमी शायद तुमसे मीठी-मीठी बातें कर अपने अटूट प्यार का वादा करे, पर एक दिन आएगा जब वह खुश नहीं होगा, जब तुम उसकी जरूरतों को पूरा नहीं कर पाओगी और उसके मन को नहीं भाओगी, तब वह कहेगा कि उसे तुमसे प्यार नहीं है और अब उसके दिल में तुम्हारे लिए कोई भावना नहीं है, और वह जब चाहे तब तुम्हें छोड़कर चला जाएगा। भले ही तुम दोनों का अभी तक तलाक न हुआ हो, फिर भी वह किसी और को ढूँढ़ने में लग जाएगा—यह सब मुमकिन है। वह तुम्हें कभी भी, कहीं भी छोड़ सकता है और वह कुछ भी करने में सक्षम है। ऐसे पुरुष बहुत खतरनाक होते हैं और उन्हें अपना पूरा जीवन सौंप देना ठीक नहीं है। अगर तुम्हें अपने प्रेमी, अपने प्रियतम, अपने चुने हुए जीवनसाथी के रूप में ऐसा व्यक्ति मिले, तो तुम मुसीबत में पड़ जाओगी। चाहे वह लंबा, अमीर और सुंदर ही क्यों न हो, बेहद प्रतिभाशाली क्यों न हो, और भले ही वह तुम्हारी अच्छी देखभाल करता हो और तुम्हारा ख्याल रखता हो, और सतही तौर पर कहें, तो वह विशेष रूप से उन मानदंडों पर खरा उतरता हो कि वह तुम्हारा बॉयफ्रेंड है या पति हो सके, फिर भी अगर उसके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल नहीं है, तो यह व्यक्ति तुम्हारा जीवनसाथी नहीं हो सकता। अगर तुम उस पर मुग्ध होकर उसके साथ प्रेम की डगर पर कदम बढ़ाती हो और फिर उससे शादी कर लेती हो, तो वह तुम्हारे जीवनभर के लिए बुरा अनुभव और तबाही बनकर रह जाएगा। तुम कहती हो, “मैं नहीं डरती, मैं सत्य का अनुसरण करती हूँ।” तुम एक दुष्ट के चंगुल में फँस चुकी हो, जो परमेश्वर से नफरत करता है, परमेश्वर की अवज्ञा करता है, और परमेश्वर में तुम्हारा विश्वास भंग करने के लिए हर तरह के पैंतरे आजमाता है—क्या तुम इस मुसीबत से उबर लोगी? अपने छोटे आध्यात्मिक कद और आस्था से तुम उसके अत्याचार को बर्दाश्त नहीं कर पाओगी, और कुछ दिन बाद ही तुम इतनी त्रस्त हो जाओगी कि दया की भीख माँगने लगोगी और परमेश्वर में विश्वास जारी नहीं रख पाओगी। तुम परमेश्वर में अपना भरोसा खो बैठोगी और तुम्हारा मन इस शत्रुतापूर्ण द्वंद्व से भरा होगा। यह मांस की चक्की में पिसकर टुकड़े-टुकड़े हो जाने जैसा है, इसमें मनुष्य जैसा कुछ भी नहीं है, तुम पूरी तरह इस दलदल में फँस चुकी होगी, जब तक कि आखिर में तुम्हारा हश्र उसी शैतान जैसा नहीं हो जाता जिससे तुमने शादी की है, और तुम्हारा जीवन वहीं खत्म हो जाएगा।

कोई व्यक्ति शादी में अपनी जिम्मेदारियाँ निभाने में सक्षम है या नहीं, यह आँकने के लिए हमने इसके दो मानदंडों पर संगति की। क्या तुम बता सकते हो, वे दो मानदंड क्या हैं? (बिल्कुल।) ये दो मानदंड लोगों की मानवता की गुणवत्ता से संबंधित हैं। एक मानदंड यह देखना है कि क्या वह अपना कर्तव्य निष्ठापूर्वक और जिम्मेदारी से निभाता है, और क्या वह कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा कर सकता है। तुम शायद कुछ लोगों को सिर्फ देखकर पूरी तरह आँक न सको; मुमकिन है कि वे रुतबा पाने के लिए या जब उनके पास रुतबा हो तो अपना कर्तव्य निभाने और कलीसिया के कार्य की रक्षा करने में सक्षम हों, पर जब उनके पास यह रुतबा नहीं रहेगा तो वे कैसे होंगे, यह तुमने अभी तक साफ तौर पर नहीं देखा है। अभी तुम्हारे पास उनके बारे में सटीक आकलन करने का कोई तरीका नहीं है। लेकिन जब तुम उन्हें बखेड़ा खड़ा करते, अपना रुतबा खोने पर परमेश्वर को कोसते और उसकी ईशनिंदा करते देखोगे, उन्हें यह कहते सुनोगे कि परमेश्वर धार्मिक नहीं है, तब जाकर तुम्हें उनकी पहचान होगी, और तुम सोचोगे, “इस व्यक्ति के पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल ही नहीं है। अच्छा हुआ जो इसने समय रहते अपने असली रंग दिखा दिए। अगर नहीं दिखाता तो मैं शादी के लिए इसे अपना जीवनसाथी चुन लेती।” देखा तुमने, जीवनसाथी चुनने का दूसरा मानदंड—क्या उसके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल है—भी महत्वपूर्ण है। अगर तुम इस मानदंड के आधार पर लोगों को आँकोगे और मापोगे, तो शादी के उस भयानक अनुभव से बच जाओगे। क्या जीवनसाथी चुनने के लिए ये दो मानदंड महत्वपूर्ण हैं? (बिल्कुल हैं।) क्या तुम उन्हें समझते हो? (हाँ।) कुछ महिलाएँ पैसों से बहुत प्यार करती हैं। जब वे किसी पुरुष से प्यार की राह पर कदम बढ़ाना शुरू करती हैं तो शुरुआत में बहुत ही सौम्य और समझदार मालूम पड़ती हैं, और पुरुष सोचता है, “यह महिला बहुत प्यारी है! एक नन्हीं चिड़िया जैसी, जो पूरे दिन मुझसे गोंद की तरह चिपकी रहती है। एक पुरुष ऐसी ही महिला के सपने देखता और उसे पाना चाहता है। एक पुरुष को ऐसी महिला की जरूरत होती है, जो मीठी जबान बोलती है, अपने पति पर निर्भर रहती है, और जो वास्तव में अपने पति को एहसास दिलाती है कि उसे उसकी जरूरत है। अगर मैं ऐसी महिला से जुड़ा रहूँगा और वह मेरे साथ होगी, तो मेरा जीवन बहुत खुशनुमा होगा।” तो वे शादी कर लेते हैं, मगर फिर उसे एहसास होता है कि वह परमेश्वर में विश्वास तो करती है, मगर सत्य के अनुसरण के लिए कड़ी मेहनत नहीं करती। जब भी वह उसके कर्तव्य निभाने का जिक्र करता है, तो वह कहती है कि उसके पास समय नहीं है, वह हमेशा बहाने ढूँढ़कर कहती है कि वह थकी हुई है, और कोई भी कष्ट नहीं सहना चाहती। घर पर वह न तो खाना बनाती है और न साफ-सफाई करती है, बल्कि हर समय सिर्फ टीवी देखती रहती है; जब वह किसी को डिजाइनर बैग खरीदते देखती है या फिर यह देखती है कि किसी का परिवार आलीशान बंगले में रह रहा है और उन्होंने महंगी गाड़ी खरीदी है, तो वह कहती है कि उस परिवार का पुरुष सदस्य कितना काबिल होगा; वह आम तौर पर फिजूलखर्ची करती है, और जब भी किसी सोने की दुकान, गहने की दुकान या विलासिता के सामान की दुकान में जाती है, तो वह हमेशा पैसे खर्च करके अच्छी चीजें खरीदना चाहती है। तुम्हें यह सब पल्ले नहीं पड़ता और तुम सोचते हो, “वह कितनी प्यारी हुआ करती थी। फिर ऐसी महिला कैसे बन गई?” देखा तुमने? वह बदल गई है, है न? जब तुम दोनों प्यार की राह पर कदम बढ़ा रहे थे, तब वह अपना कर्तव्य निभाने में सक्षम थी और थोड़ा कष्ट सह सकती थी, मगर वह सब सतही था। अब जब तुम्हारी शादी हो चुकी है, तो वह पहले जैसी नहीं रही। वह देखती है कि तुम उसकी भौतिक जरूरतें पूरी नहीं कर सकते तो तुम्हें यह कहकर दोष देती है, “तुम बाहर जाकर पैसे क्यों नहीं कमाते? परमेश्वर में विश्वास करके और अपना कर्तव्य निभाकर तुम्हें क्या मिलेगा? क्या परमेश्वर में विश्वास करके तुम हमारा पेट भर पाओगे? क्या परमेश्वर में विश्वास करके तुम अमीर बन पाओगे?” वह ऐसी बातें भी कहती है जो कोई अविश्वासी ही कह सकता है—क्या यह महिला सचमुच परमेश्वर में विश्वास करती है? (नहीं।) वह कभी अपना कर्तव्य नहीं निभाना चाहती, वह परमेश्वर में आस्था, सत्य के अनुसरण या उद्धार पाने की कोशिश के बारे में कुछ भी नहीं सोचती, और आखिर में बेहद विद्रोही बातें भी कह देती है; और उसके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल नहीं होता। तो फिर यह महिला हर समय किस बारे में सोचती है? (खाने-पीने, कपड़े-लत्ते और मौज-मस्ती के बारे में।) वह सिर्फ पैसे और भौतिक सुखों के बारे में सोचती है, और कुछ नहीं। इस संसार में उसे बस पैसों से प्यार है। अगर तुम उससे शादी करते हो और वह परमेश्वर में तुम्हारी आस्था में बाधा डालती है और तुम्हें अपनी आस्था त्याग कर सांसारिक चीजों का अनुसरण करने के लिए प्रोत्साहित करती है, तब तुम क्या करोगे? तुम अभी भी सत्य का अनुसरण करके उद्धार पाना चाहते हो, लेकिन अगर उसकी सुनोगे तो तुम उद्धार प्राप्त नहीं कर पाओगे। अगर तुम उसकी नहीं सुनोगे तो वह तुमसे बहस करेगी और तुम्हें तलाक दे देगी। और तलाक के बाद, तुम बिना किसी जीवनसाथी के अकेले रहोगे—क्या तुम इससे उबर पाओगे? अगर तुम्हारा कभी कोई साथी होता ही नहीं, तो कोई दिक्कत नहीं थी, पर अब तुम अपने जीवनसाथी के साथ कई साल बिता चुके हो और तुम्हें उसके साथ रहने की आदत पड़ चुकी है। अचानक तलाक के बाद तुम्हारा कोई साथी नहीं होता—क्या तुम इससे उबर सकते हो? इससे उबर पाना आसान नहीं है, है न? भले ही यह तुम्हारे जीवन की जरूरतों, भावनात्मक जरूरतों या तुम्हारे आंतरिक आध्यात्मिक संसार की बात हो, तुम इससे नहीं उबर सकते। तुम्हारे जीवन जीने का तरीका पहले से बदल चुका है, और तुम्हारी जीवन की पुरानी परिपाटी, लय और पद्धति पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो चुकी है। तुम्हारी शादी कैसी रही? इस शादी से तुम्हें क्या मिला? खुशहाली या तबाही? (तबाही।) यह शादी तुम्हारे लिए तबाही लेकर आई। इसलिए, अगर तुम लोगों को आँकना नहीं जानते और तुम लोगों को सही सिद्धांतों और परमेश्वर के वचनों पर आधारित किए बिना मापते हो, तो तुम्हें यूँ ही प्यार की राह पर कदम नहीं बढ़ाना चाहिए या प्यार की शुरुआत करने, शादी करने या शादीशुदा जीवन जीने के किसी भी विचार या योजना को बढ़ावा नहीं देना चाहिए। ऐसा इसलिए है, क्योंकि आजकल इस संसार की दुष्ट प्रवृत्तियों का प्रलोभन बहुत बढ़ गया है और हरेक व्यक्ति को जीवन में बहुत सारे प्रलोभनों और कई तरह के बहकावों का सामना करना पड़ता है; कोई भी उनसे उबर नहीं पाता, और अगर तुम सत्य का अनुसरण करते हो, तो भी तुम्हारे लिए इनसे उबरना काफी मुश्किल होगा। अगर तुम सत्य का अनुसरण कर सत्य की समझ और सत्य प्राप्त कर लेते हो, तब तुम उनसे उबर पाओगे। लेकिन सत्य को समझने और उसे प्राप्त करने से पहले प्रलोभन हमेशा तुम्हें बहकाएगा और हमेशा तुम्हारे लिए खतरा बना रहेगा। इसके अलावा, तुम लोगों के साथ एक गंभीर समस्या यह भी है कि तुम्हें लोगों को आँकना नहीं आता और तुम लोगों के सार को स्पष्ट रूप से देखने में सक्षम नहीं हो—यह सबसे गंभीर समस्या है। तुम्हें लोगों को आँकना कहाँ से आएगा? पुरुष बस यही आँकना जानते हैं कि क्या महिला सुंदर है, क्या वह कॉलेज तक पढ़ी, क्या उसका परिवार अमीर है, क्या उसे सजना-सँवरना आता है, क्या वह रोमांटिक होना जानती है, और क्या वह स्नेही हो सकती है। विस्तार से कहें, तो पुरुष बस इतना पता कर सकते हैं कि क्या महिला एक अच्छी पत्नी और माँ होगी, क्या वह भविष्य में अपने बच्चों को अच्छी तरह से पढ़ा सकेगी और क्या वह घर चला सकती है। पुरुषों को ज्यादा-से-ज्यादा बस इन्हीं चीजों को आँकना आता है। और महिलाएँ पुरुषों के बारे में क्या आँक सकती हैं? वे यह आँक सकती हैं कि क्या पुरुष को रोमांटिक होना आता है, क्या वह काबिल है, क्या वह परिवार का खजाना भरेगा, उसकी किस्मत में अमीरी लिखी है या गरीबी, और क्या उसके पास संसार में पाँव जमाए रखने के लिए कोई तरकीबें हैं। इससे भी बेहतर, महिलाएँ यह आँक सकती हैं कि क्या पुरुष कष्ट झेलने में सक्षम है, क्या वह परिवार को अच्छी तरह से सँभाल सकता है, क्या वह उसके साथ रहकर अच्छा खा-पी और पहन सकेगी, उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि कैसी है, क्या उसका परिवार संपन्न है, क्या उसके पास घर, गाड़ी और कारोबार है, क्या वह कोई कारोबार करता है या फिर किसान या मजदूर है, उसके परिवार की वर्तमान आर्थिक परिस्थिति कैसी है, और क्या उसके माँ-बाप ने उसकी शादी के लिए पैसे अलग रखे हैं। महिलाओं को हद से हद इन्हीं बातों का पता चल पाता है। संभावित प्रेमी का मानवता सार कैसा है, या वह परमेश्वर में विश्वास के मार्ग के संबंध में क्या फैसला करेगा, क्या तुम लोग ये सब स्पष्टता से देख सकते हो? (नहीं।) साफ शब्दों में कहें, तो क्या यह व्यक्ति एक मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलने में सक्षम है? क्या वह कुकर्मी है? उसकी मानवता की गुणवत्ता के प्रकटीकरण और अभिव्यक्ति के सारांश को देखा जाए, तो क्या वह सत्य का अनुसरण करने वालों में है या फिर उनमें से है जो सत्य से विमुख हो चुके हैं? क्या वह सत्य के अनुसरण के मार्ग पर चलने में सक्षम है? क्या वह उद्धार प्राप्त करने के काबिल है? और अगर तुम उससे शादी करती हो, तो क्या तुम दोनों पति-पत्नी की तरह राज्य में प्रवेश कर सकोगे? तुम ये सब चीजें स्पष्ट नहीं देख सकते, है न? कुछ लोग कहते हैं, “हमें इन चीजों को स्पष्ट देखने की क्या जरूरत है? संसार में बहुत सारे शादीशुदा लोग हैं। वे भी इन चीजों को स्पष्ट नहीं देख पाते, मगर फिर भी उनका जीवन ठीक से आगे बढ़ता रहता है, है न?” बहुत से लोग शादी को स्पष्ट रूप से नहीं देखते। अगर तुम्हारा सामना किसी नेक व्यक्ति से होता है जो शालीनता से रहता है और जिसके साथ तुम अपना जीवन बिना किसी बड़े झंझट या उतार-चढ़ाव के बिता सकते हो, और जिसके साथ तुम्हें कोई बड़ा कष्ट नहीं उठाना पड़ेगा, तो इसे एक अच्छा जीवन और एक अच्छी शादी माना जा सकता है। लेकिन कुछ लोग दूसरों को स्पष्ट रूप से नहीं देख पाते और सिर्फ इसी बात पर ध्यान देते हैं कि दूसरा व्यक्ति कैसा दिखता है और उसका रुतबा कैसा है। वह उससे मीठी-मीठी बातें करता है, और शादी के बाद जाकर ही पता चलता है कि उसका साथी एक बुरा व्यक्ति, एक शैतान है, और उस तरह के व्यक्ति के साथ बिताया गया हर दिन एक साल के बराबर होता है। महिलाएँ अक्सर आँसू बहाती हैं, जबकि पुरुषों को भी बहुत धोखा मिलता है और उन्हें प्रताड़ित किया जाता है, जिस कारण कुछ सालों बाद उनका तलाक हो जाता है। कुछ शादीशुदा जोड़े तब तलाक ले लेते हैं जब उनके बच्चे तीन-चार साल के या फिर किशोर उम्र के होते हैं, और कुछ के पास तो पोते-पोतियाँ भी होती हैं, जब उन्हें लगता है कि अब उनसे साथ नहीं रहा जाएगा, तो वे तलाक ले लेते हैं। आखिर में इन लोगों का क्या कहना होता है? “शादी एक कब्र है” और “शादी एक श्मशान है।” तो इसमें महिला की गलती थी या फिर पुरुष की, जिसका ऐसा परिणाम हुआ? दोनों ने गलतियाँ कीं और दोनों में कोई भी बेहतर नहीं था। वे नहीं जानते कि शादी या शादीशुदा जीवन की प्रकृति क्या है। शादी की प्रकृति एक-दूसरे की जिम्मेदारी लेना, वास्तविक जीवन में प्रवेश करना और एक-दूसरे का सहयोग करना है। यह दोनों भागीदारों की सामान्य[क] मानवता पर निर्भर करती है ताकि वे बुढ़ापे तक खुशी और स्थिरता से रह सकें और मरते दम तक साथ रहें। और शादीशुदा जीवन की क्या प्रकृति है? यह भी दोनों भागीदारों की सामान्य[ख] मानवता पर निर्भर करती है, और सिर्फ इसी तरह वे शांति से, व्यवस्थित और खुशहाल जीवन जी सकते हैं। दोनों भागीदारों को एक-दूसरे की जिम्मेदारी उठानी होगी, तभी वे आखिर में बुढ़ापे से लेकर मरते दम तक एक साथ रह सकेंगे। हालाँकि, यह राज्य में प्रवेश करना नहीं है; शादीशुदा जोड़े के लिए एक साथ राज्य में प्रवेश करना आसान नहीं है। भले ही वे राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते, मगर शादीशुदा जोड़े के आखिर में बुढ़ापे तक एक साथ रहने के लिए कम से कम उनमें अंतरात्मा और विवेक होना चाहिए, वो भी ऐसी मानवता के साथ जो मानक के अनुरूप हो। सही कहा न? (बिल्कुल।) इस तरह संगति करने से शादी में तुम लोगों का विश्वास बढ़ा है या कम हुआ है, या फिर इससे तुम्हें उचित रवैया और दृष्टिकोण मिला? (इससे हमें उचित रवैया और दृष्टिकोण मिला।) इस तरह से संगति करने का कम या ज्यादा आस्था रखने से कोई लेना-देना नहीं है, है न? मैं शादी से जुड़ी तमाम फंतासियों को त्यागने के बारे में बात कर रहा हूँ, इसका मकसद यह नहीं है कि तुम शादी को एकदम त्याग या ठुकरा दो, बल्कि यह है कि तुम इस मामले में उचित और तर्कसंगत दृष्टिकोण अपनाओ। अधिक सटीकता से कहें, तो इसका मकसद यह है कि तुम इस मामले में परमेश्वर के वचनों के अनुसार विचार कर सको और उचित रवैया अपनाकर इसे हल करो। इसका मकसद यह नहीं है कि तुम शादी के बारे में सोचना ही पूरी तरह से बंद कर दो—इसके बारे में नहीं सोचना इसे त्याग देने के बराबर नहीं है। वास्तव में इसे त्यागने का अर्थ इसके बारे में सही और सटीक विचार और दृष्टिकोण रखना है। अब, इस तरह से संगति करने के बाद, क्या तुम लोगों ने पहले से ही शादी से जुड़ी अपनी तमाम फंतासियों को त्याग नहीं दिया है? (बिल्कुल।) क्या अब तुम लोग शादी से डरते ज्यादा हो या फिर इसके लिए तरसते ज्यादा हो? वास्तव में इनमें से कोई भी मामला नहीं है। इससे डरने या इसके लिए इतना तरसने की कोई जरूरत नहीं है। अगर तुम अभी अकेले हो और कहते हो “मैं सत्य का अनुसरण करना और खुद को परमेश्वर के लिए खपाना चाहता हूँ। मैं अभी शादी के बारे में नहीं सोच रहा और मेरा शादी करने का कोई इरादा नहीं है, तो मैं शादी के बारे में ज्यादा नहीं सोचूँगा, इसे एक खाली पन्ना रहने दूँगा,” क्या यह दृष्टिकोण सही है? (नहीं, परमेश्वर हमारे साथ इस सत्य पर संगति इसलिए कर रहा है ताकि हम इसे धारण करें, इसे समझें और इस पर अमल करें। हमें परमेश्वर के कहे अनुसार ही कार्य करना चाहिए, और पूरी तरह परमेश्वर के वचनों के अनुसार, और सत्य को अपनी कसौटी मानकर ही लोगों और चीजों को देखना और आचरण और कार्य करना चाहिए। चाहे हम अभी शादी के बारे में सोच रहे हों या नहीं, फिर भी हमें इस सत्य को समझना होगा, क्योंकि सिर्फ तभी हम गलती करने से बचेंगे।) क्या यह सही समझ है? (बिल्कुल।)

क्या इस वक्त कोई ऐसा है जो यह कहता हो, “हम अविवाहित हैं और अविश्वासियों का संसार कहता है कि अविवाहित रहना ही अच्छा है, तो क्या यह कहना सही नहीं होगा कि परमेश्वर के घर में अविवाहित लोग पवित्र हैं और विवाहित लोग अशुद्ध?” क्या कोई है जो ऐसी बातें कहता हो? कुछ शादीशुदा लोग ऐसे हैं जिन्हें शादी को लेकर हमेशा गलतफहमी रहती है। वे मानते हैं कि शादी के बाद उनके विचार उतने शुद्ध या सरल या स्वच्छ नहीं होते जितने पहले थे, कि शादी के बाद उनके विचार जटिल हो जाते हैं, और खास तौर पर विपरीत लिंग के साथ संबंध रखने के कारण शादीशुदा लोग अब पवित्र नहीं रहते। और इसलिए, परमेश्वर का कार्य स्वीकारने के बाद, वे दृढ़तापूर्वक अपने साथी से कहते हैं, “मैंने परमेश्वर के कार्य को स्वीकारा है, और आज से मुझे पवित्रता का अनुसरण करना चाहिए। मैं अब तुम्हारे साथ नहीं सो सकता। तुम्हें अकेले सोना होगा और मुझे दूसरे कमरे में सोना होगा।” तब से, वे अलग सोते हैं और उनका जीवनसाथी भी अकेला सोता है, पर वे अभी भी एक साथ रहते हैं। इस तरह के लोग क्या करना चाहते हैं? वे एक तरह से देह की पवित्रता पाना चाहते हैं। क्या यह शादी को लेकर गलतफहमी नहीं है? (हाँ।) क्या इस गलतफहमी को दूर करना आसान है? कुछ शादीशुदा लोग ऐसे हैं जो मानते हैं कि विपरीत लिंग के साथ संबंध बनाने के बाद वे पवित्र नहीं रहे। उनका निहितार्थ यह है कि अगर वे विपरीत लिंग के साथ संबंध नहीं रखते, अगर वे अपनी शादी को छोड़कर तलाक ले लेते हैं, तो वे पवित्र हो जाएँगे। अगर व्यक्ति इसी तरह से पवित्र होता है, तो क्या इसका मतलब यह नहीं होगा कि अविवाहित लोग और भी अधिक पवित्र हैं? ऐसी विकृत समझ के साथ लोग जो फैसले लेते या कार्य करते हैं, उनके कारण उनके साथी को बड़ी हैरानी होती है और उन्हें गुस्सा आता है। कुछ अविश्वासी पति या पत्नियाँ इसे गलत समझकर आस्था से घृणा करने लगती हैं, और कुछ ऐसे भी हैं जो ईशनिंदा वाली बातें भी करते हैं। मुझे बताओ, “पवित्रता” के चक्कर में ये लोग जो चीजें करते हैं, क्या वह सही है? (नहीं, सही नहीं है।) क्यों नहीं? पहली बात, उनकी सोच में दिक्कत है। क्या दिक्कत है? (वे परमेश्वर के वचनों को गलत समझते हैं।) सबसे पहले, शादी को लेकर उनके विचार विकृत हैं; दूसरा, पवित्रता और अपवित्रता की उनकी परिभाषाएँ और समझ भी विकृत हैं। उनका मानना है कि विपरीत लिंग के साथ संबंध न रखने से व्यक्ति पवित्र हो जाता है, तो फिर अपवित्रता क्या है? पवित्रता क्या है? क्या पवित्रता का अर्थ भ्रष्ट स्वभावों से रहित होना है? जब कोई सत्य प्राप्त कर लेता है और उसका स्वभाव बदल जाता है, तो उसका कोई भ्रष्ट स्वभाव नहीं रह जाता। जिस व्यक्ति के संबंध विपरीत लिंग के साथ नहीं रहे हैं, क्या उसका कोई भ्रष्ट स्वभाव नहीं होता है? क्या लोगों के भ्रष्ट स्वभाव सिर्फ तभी सामने आते हैं जब उनके संबंध विपरीत लिंग के साथ संबंध होते हैं? (नहीं।) जाहिर है कि यह समझ गलत है। शादी करने और विपरीत लिंग के साथ संबंध बना लेने के बाद तुम्हारा भ्रष्ट स्वभाव पहले से और बुरा नहीं हो जाता, बल्कि पहले जैसा ही रहता है। अगर तुम शादीशुदा नहीं हो और तुमने विपरीत लिंग के साथ संबंध नहीं बनाए तो क्या तुममें कोई भी भ्रष्ट स्वभाव है? तुममें बहुत सारे भ्रष्ट स्वभाव हैं। इसलिए, चाहे पुरुष हो या महिला, उसमें भ्रष्ट स्वभाव है या नहीं, इसका आकलन उसकी वैवाहिक स्थिति से नहीं होता; या इस आधार पर नहीं होता कि क्या वे शादीशुदा हैं या क्या उनके विपरीत लिंग के साथ संबंध रहे हैं। जो लोग इस तरह सोचते और व्यवहार करते हैं वे शादी को लेकर ऐसी गलतफहमी क्यों पालते हैं? वे ऐसा व्यवहार क्यों करते हैं? क्या यह ऐसी समस्या नहीं है जिसे हल किया जाना चाहिए? (है।) क्या तुम लोग इसे हल कर सकते हो? विपरीत लिंग के संपर्क में आने और उसके साथ संबंध बनाने मात्र से ही कोई व्यक्ति अपवित्र और बुरी तरह भ्रष्ट हो सकता है—ऐसा ही है न? (नहीं।) अगर ऐसा होता, तो महिला-पुरुष के मिलन का परमेश्वर का विधान बनाना भी एक गलती होती। तो, हम इस समस्या को कैसे हल कर सकते हैं? इस समस्या का स्रोत क्या है? इस स्रोत का विश्लेषण करके और इसे समझकर समस्या को हल किया जा सकता है। क्या तुम लोगों का भी यही दृष्टिकोण नहीं है? कोई चाहे विवाहित हो या अविवाहित, क्या शादी के बारे में सबका यही दृष्टिकोण नहीं होता? (हाँ, होता है।) मैं जानता हूँ कि तुम लोग इस समस्या से भाग नहीं सकते। तो, इस दृष्टिकोण का स्रोत क्या है? (लोग इस बारे में स्पष्ट नहीं हैं कि पवित्रता और अपवित्रता क्या होती है।) और लोगों को यह क्यों नहीं पता कि पवित्रता और अपवित्रता क्या होती है? (क्योंकि लोग परमेश्वर के वचनों को पूरी तरह से समझने या सत्य समझने में सक्षम नहीं हैं।) वे परमेश्वर के वचनों के किस पहलू को पूरी तरह से समझने में सक्षम नहीं हैं? (शादी एक ऐसी चीज है जिसे लोगों को आम तौर पर अपने जीवन में अनुभव करना चाहिए और यह परमेश्वर का विधान भी है, फिर भी लोग शादी करने और विपरीत लिंग के साथ संबंध रखने को इस बात से जोड़ते हैं कि वे पवित्र हैं या नहीं, जबकि वास्तव में पवित्र होने का मतलब है व्यक्ति सभी भ्रष्ट स्वभावों से रहित हो, और इसका इससे कोई लेना-देना नहीं है कि वे शादीशुदा हैं या नहीं। उदाहरण के लिए, कैथोलिक चर्च की ननों को ही देख लो। अगर वे परमेश्वर का अंत के दिनों का कार्य स्वीकार नहीं करतीं और सत्य को नहीं समझतीं, तो भले ही वे अपना पूरा जीवन अविवाहित बिता लें, फिर भी उन्हें पवित्र नहीं कहा जा सकता, क्योंकि उनके भ्रष्ट स्वभावों का समाधान नहीं हुआ है।) क्या इससे बात साफ तौर पर समझ आई? क्या पवित्रता और अपवित्रता के बीच अंतर इस बात पर निर्भर करता है कि व्यक्ति शादीशुदा है या नहीं? (नहीं।) नहीं, ऐसा नहीं है, और इसे साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं। उदाहरण के लिए, मानसिक विकलांग, मंदबुद्धि, मानसिक रूप से बीमार, कैथोलिक नन, बौद्ध भिक्षु और भिक्षुणी, सभी अविवाहित होते हैं, पर क्या वे सभी पवित्र हैं? (नहीं।) मानसिक विकलांग, मंदबुद्धि और मानसिक रूप से बीमार लोगों में सामान्य समझ नहीं होती; वे शादी नहीं कर सकते, उनमें से किसी भी पुरुष को पत्नी नहीं मिलती और किसी भी महिला को पति नहीं मिलता, मगर वे पवित्र नहीं हैं। कैथोलिक नन, बौद्ध भिक्षु और भिक्षुणी के साथ-साथ कुछ और विशेष समूहों के लोग शादी नहीं करते, मगर वे भी पवित्र नहीं हैं। “पवित्र नहीं” होने का क्या मतलब है? मेरा मतलब है कि वे स्वच्छ नहीं हैं। “स्वच्छ नहीं” होने का क्या मतलब है? (उनमें भ्रष्ट स्वभाव हैं।) सही कहा, इसका मतलब है कि उनमें भ्रष्ट स्वभाव हैं। इन सभी अविवाहित लोगों में भ्रष्ट स्वभाव हैं और इनमें से कोई भी पवित्र नहीं है। तो फिर, शादीशुदा लोगों का क्या? क्या शादीशुदा और अविवाहित लोगों के सार में कोई अंतर है? (नहीं।) सार की दृष्टि से उनके बीच कोई अंतर नहीं है। मेरे यह कहने का क्या मतलब है कि उनमें कोई अंतर नहीं है? (वे सभी शैतान द्वारा भ्रष्ट किए जा चुके हैं और उन सभी में भ्रष्ट स्वभाव हैं।) सही कहा, वे सभी शैतान द्वारा भ्रष्ट किए जा चुके हैं और उन सभी में भ्रष्ट स्वभाव हैं। वे परमेश्वर या सत्य के प्रति समर्पित होने में सक्षम नहीं हैं, और वे परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के मार्ग पर नहीं चल सकते। वे परमेश्वर द्वारा अनुशंसित नहीं हैं, वे बचाए नहीं गए हैं, और वे सभी अपवित्र हैं। तो, कोई व्यक्ति पवित्र है या अपवित्र, इसका आकलन इस बात से नहीं किया जा सकता कि वह शादीशुदा है या नहीं। तो फिर लोगों को शादी के बारे में इस प्रकार की गलतफहमी क्यों है, वे ऐसा क्यों मानते हैं कि शादीशुदा लोग पवित्र नहीं हैं, वे अपवित्र हैं? इस गलतफहमी का केंद्र बिंदु क्या है? (शादी को लेकर उनके विचार विकृत हैं।) क्या शादी और शादीशुदा जीवन को लेकर उनके विचार विकृत हैं या यह कि किसी और चीज को लेकर उनके विचार विकृत हैं? क्या कोई इसे स्पष्टता से समझा सकता है? जैसा कि हमने पहले कहा, हर शादी अंत में वास्तविक जीवन में लौट आती है। तो, क्या यह शादीशुदा जीवन उस चीज का स्रोत है जिसे लोग अपवित्र मानते हैं? (नहीं।) यह उसका स्रोत नहीं है जिसे लोग अपवित्र मानते हैं। लोगों के विचारों का स्रोत, जिसे वे अपवित्र मानते हैं, वास्तव में उनके मन और अंतरतम हृदय में ज्ञात होता है : यह उनकी यौन इच्छा है, और गलतफहमी यहीं होती है। किसी व्यक्ति के विवाहित या अविवाहित होने के आधार पर उसे पवित्र या अपवित्र कहना एक गलतफहमी और गलत धारणा है, और इसका स्रोत लोगों की अपनी दैहिक यौन इच्छा को लेकर भ्रामक और गलत समझ है। मैंने ऐसा क्यों कहा कि यह समझ भ्रामक है? लोगों का मानना है कि जब वे यौन इच्छा महसूस कर शादी कर लेते हैं तो उनके विपरीत लिंग के साथ संबंध बन जाते हैं और, एक बार जब वे विपरीत लिंग के साथ संबंध बना लेते हैं, तो उनका दैहिक यौन इच्छा वाला तथाकथित जीवन शुरू होता है, जिससे वे अपवित्र हो जाते हैं। उनका यही मानना है न? (हाँ, यही बात है।)

तो, आओ अब चर्चा करें कि यौन इच्छा आखिर कैसी चीज है। अगर तुम इसे सही ढंग से समझोगे और तुम्हारे पास इसकी सटीक, सही और वस्तुनिष्ठ व्याख्या और समझ होगी, तो तुम इस समस्या को और पवित्रता-अपवित्रता की इस गलत धारणा को सुलझा लोगे। क्या मैंने सही कहा? शादी करने के बाद लोगों की यौन इच्छाएँ संतुष्ट हो जाती हैं और वे अपनी यौन और दैहिक इच्छाओं को अभिव्यक्ति देते हैं, और इसलिए वे सोचते हैं, “हम शादीशुदा लोग पवित्र नहीं हैं, हम अपवित्र हैं। युवा अविवाहित महिला-पुरुष ही पवित्र हैं।” यह साफ तौर पर एक विकृत समझ है, जो यह न जानने से आती है कि यौन इच्छा आखिर क्या चीज है। अब आओ संसार के सबसे पहले इंसान पर नजर डालें : क्या आदम में यौन इच्छा थी? परमेश्वर ने जिस मानवजाति की रचना की है उसमें विचार, भाषा, इंद्रिय बोध होने के साथ ही उनकी अपनी स्वतंत्र इच्छा और भावनात्मक जरूरतें होती हैं। “भावनात्मक जरूरतों” का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि लोगों को उनका साथ देने और सहयोग करने, उनसे बात करने, उनकी देखभाल करने, उनका ख्याल रखने और दुलारने के लिए एक साथी की जरूरत होती है—ये भावनात्मक जरूरतें हैं। दूसरा पहलू यह है कि लोगों में यौन इच्छा भी होती है। ऐसा कहने का आधार क्या है? यह कि परमेश्वर ने आदम को बनाने के बाद कहा कि उसे एक साथी की जरूरत है, ऐसा साथी जो केवल उसके जीवन की जरूरतों और भावनात्मक जरूरतों के लिए हो। मगर परमेश्वर ने एक और जरूरत के बारे में भी कहा था। परमेश्वर ने क्या कहा? उत्पत्ति, अध्याय 2, पद 24 : “इस कारण पुरुष अपने माता-पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा, और वे एक ही तन बने रहेंगे।” इन वचनों का अर्थ बहुत स्पष्ट है; हमें इनके बारे में और स्पष्टता से चर्चा करने की जरूरत नहीं है। तुम इन वचनों को समझते हो, है न? जाहिर है, जब परमेश्वर ने मानवजाति के पूर्वज आदम को बनाया, तो आदम को भी इसकी जरूरत थी। बेशक, यह एक वस्तुनिष्ठ व्याख्या है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि जब परमेश्वर ने उसे बनाया, तो उसके पास यह संवेदी अंग था, और उसके पास भी ये शारीरिक स्थितियाँ और विशेषताएँ थीं—यह आदम की वास्तविक स्थिति थी, जो परमेश्वर द्वारा सृजित मानवजाति का पहला पूर्वज था, जो देह में पहला मानव था। उसके पास भाषा थी, वह सुन सकता था, देख सकता था, स्वाद ले सकता था, और उसके पास संवेदी अंग, भावनात्मक जरूरतें, यौन इच्छा, शारीरिक जरूरतें थीं, और बेशक उसके पास स्वतंत्र इच्छा भी थी, जैसा कि हमने अभी कहा। ये चीजें मिलकर परमेश्वर द्वारा सृजित मनुष्य को पूरा करती हैं। वास्तव में ऐसा ही है न? (बिल्कुल।) यह पुरुषों की शारीरिक संरचना है। और महिलाओं का क्या? परमेश्वर ने महिलाओं की शारीरिक संरचना पुरुषों से अलग बनाई और बेशक पुरुषों के समान ही यौन इच्छा भी दी। मैं यह किस आधार पर कह रहा हूँ? उत्पत्ति, अध्याय 3, पद 16 में, परमेश्वर ने कहा : “मैं तेरी पीड़ा और तेरे गर्भवती होने के दुःख को बहुत बढ़ाऊँगा; तू पीड़ित होकर बालक उत्पन्न करेगी।” इस “बच्चे पैदा करेगी” में उल्लिखित बच्चे कहाँ से आते हैं? मान लो कि कोई ऐसी महिला है जिसके पास इस तरह की शारीरिक जरूरत नहीं है, या अधिक सटीकता से कहें, तो उसमें महिलाओं वाली यौन इच्छा नहीं है—तो क्या वह गर्भधारण करने में सक्षम होगी? नहीं, और यह बहुत स्पष्ट है। तो अब, परमेश्वर की इन दो पंक्तियों को देखते हुए यह कह सकते हैं कि परमेश्वर द्वारा सृजित महिला-पुरुषों की शारीरिक संरचना अलग-अलग है, फिर भी शारीरिक विशेषता के मामले में दोनों की यौन इच्छा समान है। इसकी पुष्टि परमेश्वर द्वारा किए गए इन कर्मों से और मनुष्य को दिए गए निर्देशों की पंक्तियों में निहित संदेश से होती है। परमेश्वर द्वारा सृजित मनुष्यों के पास शारीरिक संरचनाएँ होती हैं और उनकी शारीरिक संरचनाओं की अपनी जरूरतें भी होती हैं। तो, अब हमें इस मामले को कैसे समझना चाहिए? यौन इच्छा नाम की यह चीज मानव अंग की तरह देह का ही एक हिस्सा है। उदाहरण के लिए, तुम सुबह छह बजे नाश्ता करते हो, और दोपहर तक कमोबेश सारा खाना पच जाता है, जिससे तुम्हारा पेट फिर से खाली हो जाता है। पेट इस सूचना को दिमाग तक भेजता है, और दिमाग तुम्हें बताता है, “तुम्हारा पेट खाली है; खाने का समय हो गया है।” पेट में हो रहा यह कैसा एहसास है? तुम्हें थोड़ा खाली और असहज लगता है, और तुम कुछ खाना चाहते हो। और कुछ खाने की इच्छा की यह भावना कहाँ से आती है? यह तुम्हारे संपूर्ण तंत्रिका तंत्र और तुम्हारे अंगों की कार्यप्रणाली और चयापचय का परिणाम है—यह इतना सरल है। यौन इच्छा की प्रकृति भी किसी अन्य शारीरिक अंग के समान ही होती है; प्रत्येक अंग तंत्रिका तंत्र से जुड़ा होता है, जो तुम्हारे विभिन्न अंगों को आदेश भेजता है। उदाहरण के लिए, तुम्हारी नाक गंध सूंघती है, और जब उसे दुर्गंध आती है तो यह गंध तुम्हारे तंत्रिका तंत्र में प्रवेश करती है, और तंत्रिका तंत्र तुम्हारे दिमाग को बताता है, “यह अच्छी गंध नहीं है, यह दुर्गंध है।” यह इस जानकारी को तुम तक पहुँचाता है, और फिर तुम तुरंत अपनी नाक बंद कर लेते हो या अपनी नाक के सामने हाथ लहराते हो—यह गतिविधियों की एक कड़ी है। देखा तुमने, गतिविधियों और कार्यों की यह कड़ी, और इस प्रकार की अनुभूति और जागरूकता, तुम्हारे शरीर के कुछ अंगों और तंत्रिका तंत्र द्वारा नियंत्रित होती है। उदाहरण के लिए, मान लो कि तुम बहुत तेज, कानफाड़ू आवाज सुनते हो, और कानों को यह सूचना मिलने के बाद तुम परेशान या दुखी होकर अपने कान बंद कर लेते हो। दरअसल, तुम्हारे कानों को तो बस एक आवाज सुनाई दी है, यह बस एक सूचना है, मगर इसका फैसला तुम्हारा दिमाग करता है कि यह तुम्हारे लिए लाभकारी है या नहीं। अगर इसका तुम पर कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ता, तो तुम इसे सुनते हो, समझते हो, और फिर ज्यादा ध्यान दिए बिना ही इसे भुला देते हो; अगर इसका तुम्हारे दिल या शरीर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, तो तुम्हारा दिमाग इसे पहचान लेगा और फिर तुम्हें अपने कान बंद करने या अपना मुँह खोलने के लिए कहेगा—इस तरह के कार्यों और विचारों की एक कड़ी चलेगी। मनुष्य की यौन इच्छा भी एकदम ऐसी ही होती है जहाँ संबंधित तंत्रिकाओं के नियंत्रण में अलग-अलग निर्णय लेने और व्याख्या करने वाले अंग काम करते हैं। मनुष्य की यौन इच्छा इतनी सरल सी चीज है। यह चीज मानव शरीर में किसी भी अन्य अंग के समान स्तर पर और उसके समकक्ष है, मगर इसकी अपनी विशिष्टता है, और यही कारण है कि लोगों के पास इसके बारे में हमेशा कई अलग-अलग विचार, दृष्टिकोण या राय होंगी। तो इस तरह से संगति करने के बाद क्या तुम लोगों के पास अब इसकी सही समझ नहीं होनी चाहिए? (बिल्कुल होनी चाहिए।) मनुष्य की यौन इच्छा में कुछ भी रहस्यमय नहीं है; इसे परमेश्वर ने बनाया है और यह मनुष्य के साथ ही अस्तित्व में आया है। क्योंकि इसे परमेश्वर ने नियत किया और रचा है, तो यह सिर्फ इसलिए नकारात्मक या अपवित्र चीज नहीं हो सकती कि लोगों में इसके बारे में तमाम तरह की गलतफहमियाँ और धारणाएँ हैं। यह मनुष्य के किसी भी अन्य संवेदी अंग जैसा ही है; यह मानव शरीर के भीतर मौजूद है और अगर यह परमेश्वर द्वारा व्यवस्थित और नियत उचित विवाह के भीतर काम करता है, तो यह एक सही चीज है। हालाँकि, अगर लोग इसमें संलिप्त होकर इसका गलत फायदा उठाते हैं, तो यह नकारात्मक चीज बन जाती है। यकीनन यौन इच्छा अपने आप में नकारात्मक नहीं है, बल्कि इसका गलत इस्तेमाल करने वाले लोग और ऐसे गलत विचार नकारात्मक हैं। जैसे प्रेम त्रिकोण, स्वच्छंद यौनाचार, सगे-संबंधियों के साथ यौन संबंध, बलात्कार और यौन उत्पीड़न वगैरह—यौन इच्छा से संबंधित ये चीजें नकारात्मक चीजें बन जाती हैं और इनका मानव देह की मूल यौन इच्छा से कोई लेना-देना नहीं है। देह की यौन इच्छा एक भौतिक अंग के समान है : इसे परमेश्वर ने बनाया है। लेकिन मानवजाति की दुष्टता और भ्रष्टता के कारण यौन इच्छा से संबंधित सभी प्रकार की दुष्ट चीजें घटित होती हैं, जिनका उचित और सामान्य यौन इच्छा से कोई लेना-देना नहीं होता—ये दो अलग-अलग प्रकृति के मामले हैं। ऐसा ही है न? (हाँ।) प्रेम त्रिकोण, विवाहेतर संबंध, सगे-संबंधियों के साथ यौन संबंध और यौन उत्पीड़न—ये सभी यौन इच्छा से संबंधित दुष्ट चीजें हैं जो भ्रष्ट मानवजाति के बीच होती हैं। इन चीजों का उचित यौन इच्छा और शादी से कोई लेना-देना नहीं है; ये अपवित्र, अनुचित चीजें हैं, और सकारात्मक चीजें नहीं हैं। क्या अब तुम्हें इसकी स्पष्ट समझ है? (हाँ।)

इस तरह से संगति करने के बाद, क्या अब तुम शादीशुदा लोगों की उन विकृत समझ और गतिविधियों को स्पष्ट रूप से समझ सकते हो, और उनमें से सही-गलत को पहचान सकते हो? (बिल्कुल।) जब तुम्हारा सामना आस्था में किसी नवागत व्यक्ति से होगा जो कहता है, “हमने परमेश्वर के कार्य को स्वीकारा है, तो क्या एक शादीशुदा जोड़े के रूप में हमें अलग रहना होगा?” तब तुम क्या कहोगे? (हम मना कर देंगे।) तुम उससे पूछ सकते हो, “तुम्हें अलग रहने की क्या जरूरत है? क्या तुम दोनों में कोई बहस हुई है? क्या तुममें कोई इतनी जोर से खर्राटे मारता है कि दूसरे का सोना मुश्किल हो जाता हो? अगर ऐसा है, तो यह तुम्हारी समस्या है और तुम अलग रह सकते हो। अगर इसका कारण कुछ और है तो ऐसा करने की कोई जरूरत नहीं।” कोई और व्यक्ति कहता है, “अरे, हम करीब चालीस साल से शादीशुदा जोड़े की तरह एक साथ रह रहे हैं। हम बूढ़े हो गए हैं, हमारे बच्चे बड़े हो गए हैं, तो क्या हमें अलग-अलग बिस्तर पर सोना चाहिए? हमें अब साथ नहीं सोना चाहिए, हमारे बच्चे हम पर हँसेंगे। हमें बुढ़ापे में अपनी शुद्धता बनाए रखनी चाहिए।” क्या यह तर्कसंगत बात है? (नहीं।) नहीं, ऐसा नहीं है। वे बुढ़ापे में अपनी शुद्धता बनाए रखना चाहते हैं; यह शुद्धता कैसी चीज है? वे जवानी में क्या कर रहे थे? क्या यह बस एक बहाना नहीं है? क्या ऐसे लोग घृणित नहीं हैं? (बिल्कुल हैं।) जब ऐसे लोगों से तुम्हारा सामना हो, तो उनसे कहो, “हम परमेश्वर में अपने विश्वास में ऐसी बातें नहीं कहते, न ही परमेश्वर के घर की ऐसी आवश्यकताएँ या नियम हैं। तुम समय के साथ जान जाओगे। तुम जैसे चाहो वैसे रह सकते हो; यह तुम्हारा अपना मामला है, और इसका परमेश्वर में विश्वास या सत्य के अनुसरण से कोई लेना-देना नहीं है, न ही उद्धार पाने से कोई सरोकार है। तुम्हें इन चीजों के बारे में पूछने की जरूरत नहीं है, न ही तुम्हें इनके लिए कुछ भी त्यागने की जरूरत है।” क्या तब मामला सुलझ नहीं गया? (बिल्कुल।) तो शादी में मानव यौन इच्छा का मसला हल हो गया—सबसे बड़ी कठिनाई दूर हो गई। इस तरह संगति करने से क्या तुम लोगों को इस मामले की स्पष्ट हो गई है? क्या तुम्हें अभी भी यौन इच्छा रहस्यमयी लगती है? (नहीं।) क्या तुम्हें अभी भी लगता है कि यौन इच्छा अपवित्र या गंदी चीज है? (नहीं।) जहाँ तक यौन इच्छा की बात है, यह अपवित्र और गंदी नहीं है; यह उचित है। हालाँकि, अगर लोग इसके साथ खिलवाड़ करते हैं, तो यह उचित नहीं रहता और यह पूरी तरह से एक अलग चीज बन जाती है। जो भी हो, इस तरह से संगति करने के बाद, क्या शादी के बारे में लोगों की विभिन्न वास्तविक और अवास्तविक कल्पनाएँ हल नहीं हो गई हैं? (बिल्कुल।) शादी की परिभाषाओं और अवधारणाओं पर संगति करने के बाद, शादी के संबंध में तुम्हारे कुत्सित और विकृत लक्ष्य, आदर्श और इच्छाएँ मूल रूप से तुम्हारे मन से कुछ हद तक दूर हो गई हैं। जो कुछ बची हैं उन्हें तुम्हें धीरे-धीरे अपने अंदर पहचानना होगा और वास्तविक जीवन में अपने व्यक्तिगत अभ्यास के जरिए धीरे-धीरे अनुभव करना और सीखना होगा। बेशक, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि लोगों में शादी को लेकर सही समझ और परिप्रेक्ष्य होना चाहिए—यह बहुत महत्वपूर्ण है। चाहे तुम भविष्य में शादी करने की सोच रहे हो या नहीं, शादी के प्रति तुम्हारा रवैया और परिप्रेक्ष्य सत्य के तुम्हारे अनुसरण को प्रभावित करेगा, और इसलिए तुम्हें इस विषय पर परमेश्वर के वचनों को विस्तार से पढ़कर आखिर में शादी को लेकर सही परिप्रेक्ष्य और समझ जरूर हासिल करनी चाहिए, जो कम से कम सत्य के अनुरूप हो। जब इस विषय पर हमारी संगति समाप्त हो जाएगी, तब क्या तुम्हारा ज्ञान विस्तृत नहीं होगा? (जरूर होगा।) तब तुम इतने बचकाने और संकीर्ण सोच वाले नहीं रहोगे, है न? जब तुम भविष्य में लोगों के साथ इस मामले पर चर्चा करोगे, तो वे देखेंगे कि तुम युवा दिखते हो, मगर फिर भी तुम्हें इसकी समझ है, और वे पूछेंगे, “तुम्हारी शादी को कितने साल हो गए हैं?” तब तुम जवाब दोगे, “मैंने अभी तक शादी नहीं की है।” वे कहेंगे, “फिर तुममें शादी के बारे में ऐसी वयस्कों वाली समझ कहाँ से आई, तुम्हारी समझ तो वयस्कों से भी ज्यादा परिपक्व है?” तो तुम जवाब दोगे, “मैं सत्य समझता हूँ, और इन सत्यों का एक आधार है जिन्हें मैं समझता हूँ। अगर तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं, तो मैं अपनी बाइबल लाकर तुम्हें वो स्थिति दिखाऊँगा जब परमेश्वर ने आदम को बनाया था, तब तुम्हें पता चलेगा कि मेरी बात सही है या नहीं।” अंत में, तुम उनका दिल जीत लेते हो, और ऐसा इसलिए है क्योंकि तुम जो कुछ भी कहते हो उसका आधार तुम्हारी स्पष्ट समझ और व्याख्या है, जिसमें मानवीय कल्पनाओं या धारणाओं या किसी भी विकृत मानवीय दृष्टिकोण की मिलावट नहीं है—तुम्हारी हर बात सत्य और परमेश्वर के वचनों के अनुरूप है।

अब जब शादीशुदा लोगों की विकृत समझ और अभ्यासों की समस्या पर हमारी संगति खत्म हो गई है, तो आओ अब इस विषय पर संगति करें, “वैवाहिक सुख के पीछे भागना तुम्हारा मकसद नहीं है।” लोगों का शादी से जुड़ी तमाम फंतासियों को त्यागने का मतलब बस इतना है कि अब उनके पास शादी की अवधारणा और परिभाषा के संबंध में कुछ सही समझ और विचार हैं जो काफी हद तक सत्य के अनुरूप हैं; हालाँकि, इसका मतलब यह नहीं है कि वे शादी से संबंधित अपने लक्ष्यों, आदर्शों और इच्छाओं को पूरी तरह से त्यागने में सक्षम हैं। जहाँ तक शादीशुदा लोगों की बात है, वे अपने वैवाहिक सुख को कैसे बनाए रखते हैं? यह कहा जा सकता है कि बहुत से लोगों का वैवाहिक सुख के प्रति सही रवैया नहीं होता, या वे वैवाहिक सुख और मनुष्य के मकसद के बीच संबंध को सही ढंग से समझने में असमर्थ होते हैं। क्या यह भी एक समस्या नहीं है? (हाँ, बिल्कुल है।) शादीशुदा लोग हमेशा शादी को जीवन की एक प्रमुख घटना मानते हैं और शादी पर बहुत जोर देते हैं। इसलिए वे अपने जीवन की सारी खुशियाँ अपने शादीशुदा जीवन और अपने जीवनसाथी को सौंप देते हैं, वे मानते हैं कि वैवाहिक सुख के पीछे भागना ही इस जीवन का एकमात्र लक्ष्य है। यही वजह है कि कई लोग वैवाहिक सुख के लिए बहुत प्रयास करते हैं, बड़ी कीमत चुकाते हैं और बड़े त्याग भी करते हैं। उदाहरण के लिए, मान लो किसी की शादी होती है, और अपने साथी को आकर्षित करने के लिए, अपनी शादी और अपने प्यार को “तरोताजा” बनाए रखने के लिए वह बहुत सी चीजें करता है। कोई महिला कहती है, “पुरुष के दिल का रास्ता उसके पेट से होकर गुजरता है,” और इसलिए वह अपनी माँ या बड़ों से खाना बनाना, बढ़िया व्यंजन और पेस्ट्री बनाना, और ऐसी हर तरह की चीजें बनाना सीखती है जो उसके पति को पसंद है, और वह उसके लिए स्वादिष्ट और रुचिकर भोजन बनाने की पूरी कोशिश करती है। जब उसका पति भूखा होता है, तो वह उसके बढ़िया व्यंजनों के बारे में सोचता है, फिर वह घर के बारे में सोचता है, उसे याद करता है, और फिर जल्दी घर चला आता है। इस तरह उसे अक्सर घर में अकेला नहीं रहना पड़ता, बल्कि अक्सर उसका पति उसके पास होता है, और इसलिए उसे लगता है कि अपने पति के पेट के रास्ते उसके दिल तक पहुँचने के लिए कुछ जायकेदार व्यंजन बनाना सीखना बहुत जरूरी है। क्योंकि यह वैवाहिक सुख को बरकरार रखने का एक तरीका है और क्योंकि यही वह कीमत है जो एक महिला को चुकानी चाहिए और अपनी वैवाहिक सुख की खातिर उसे जिम्मेदारी निभानी चाहिए, तो वह इस तरह से अपनी शादी को बनाए रखने के लिए कड़ी मेहनत करती है। कुछ महिलाएँ अपनी शादी को लेकर असुरक्षित महसूस करती हैं, और वे अक्सर अपने पतियों को खुश, आकर्षित और प्रेरित करने के लिए कई पैंतरे आजमाती हैं। उदाहरण के लिए, इस तरह की महिला अक्सर अपने पति से पूछेगी कि क्या उसे याद है कि उनके प्यार की शुरुआत कब हुई थी, वे पहली बार कब मिले थे, उनकी शादी की सालगिरह कब है, और ऐसी ही कुछ अन्य अहम तारीखें कौन सी हैं। अगर उसके पति को ये सब याद है, तो उसे लगता है कि वह उससे प्यार करता है, वह उसके दिल में बसती है। अगर उसे ये सब याद नहीं रहता तो वह नाराज होकर शिकायत करती है, “तुम्हें इतनी खास तारीख भी याद नहीं। क्या तुम अब मुझसे प्यार नहीं करते?” देखा तुमने, अपने जीवनसाथी को आकर्षित करने, उसका ध्यान खींचने और अपनी वैवाहिक सुख बरकरार रखने के निरंतर प्रयास में, महिला-पुरुष दोनों ही अपने साथी को प्रेरित करने के लिए सांसारिक पैंतरे आजमाते हैं, और वे सभी बेतुकी और बचकानी चीजें करते हैं। कुछ महिलाएँ ऐसी भी हैं जो कोई भी कीमत चुकाएँगी, फिर चाहे यह उनकी सेहत के लिए हानिकारक ही क्यों न हो। उदाहरण के लिए, तीस साल से अधिक उम्र की कुछ महिलाएँ जब यह देखती हैं कि उनकी त्वचा अब उतनी कोमल और गोरी-चिट्टी नहीं रही, और उनके चेहरे अब उतने चमकदार और सुंदर नहीं रहे, तो वे फेसलिफ्ट कराती हैं या हाइलूरोनिक एसिड का इंजेक्शन लगवाती हैं। कुछ महिलाएँ ज्यादा सुंदर दिखने के लिए डबल आइलिड सर्जरी कराती हैं और अपनी भौहों पर टैटू बनवाती हैं, वे अक्सर अपने पतियों को आकर्षित करने के लिए बहुत सुंदर और कामुक तरीके से सजती हैं, और वे ऐसी रोमांटिक चीजें करना भी सीखती हैं जो दूसरे अपने वैवाहिक सुख को बनाए रखने के लिए करते हैं। उदाहरण के लिए, किसी खास दिन ऐसी महिला मोमबत्तियों और रेड वाइन के साथ एक शानदार डिनर तैयार कर सकती है। फिर जब उसका पति घर आता है, तो वह बत्तियाँ बुझा देती है और उसकी आँखें बंद करके पूछती है, “आज कौन सा दिन है?” उसका पति काफी देर तक अंदाजा लगाने की कोशिश करता है, पर सोच नहीं पाता कि आज क्या खास दिन है। वह मोमबत्तियाँ जलाती है और जब उसका पति आँखें खोलता है तो पता चलता है कि आज उसी का जन्मदिन है और वह कहता है, “अरे, कितना अद्भुत है! मैं तुमसे बेइंतहा प्यार करता हूँ! मुझे खुद अपना जन्मदिन याद नहीं था। तुम्हें मेरा जन्मदिन याद रहा, तुम बहुत प्यारी हो!” तब पत्नी बेहद खुश होती है। अपने पति के इन चंद शब्दों से ही वह संतुष्ट और सहज महसूस करती है। पुरुष और महिलाएँ दोनों अपनी वैवाहिक सुख को बनाए रखने के तरीकों के बारे में सोचने में अपना दिमाग लगाते हैं। पत्नी बड़े बदलाव और त्याग करती है, बहुत समय खपाती और कोशिश करती है, और पति भी वही करता है, कड़ी मेहनत करता है और दुनिया में जाकर पैसे कमाता है, अपना बटुआ भरता है, और अपनी पत्नी को बेहतर से बेहतर जीवन देने के लिए ढेर सारे पैसे घर लाता है। अपनी वैवाहिक सुख बनाए रखने के लिए वह दूसरों से भी सीखता है और अपनी पत्नी के लिए गुलाब, जन्मदिन के उपहार, क्रिसमस के उपहार और वेलेंटाइन डे पर चॉकलेट वगैरह खरीदता है, और उसे खुश करने के तरीकों के बारे में सोचने में अपना दिमाग लगाता है, वह ये छोटी-छोटी चीजें करने का भरसक प्रयास करता है। और फिर एक दिन वह अपनी नौकरी से हाथ धो बैठता है और अपनी पत्नी को बताने की हिम्मत नहीं करता, डरता है कि वह उसे तलाक दे देगी या उनकी शादी पहले की तरह खुशहाल नहीं रहेगी। तो वह हर दिन काम पर जाने और समय पर काम खत्म करने का दिखावा करते हुए काम की तलाश में जगह-जगह जाकर नौकरी के लिए आवेदन भरता है। जब पगार का दिन आता है और उसे कोई पैसे नहीं मिलते तो वह क्या करता है? वह अपनी पत्नी को खुश करने के लिए हर किसी से उधार लेता है और कहता है, “देखो, मुझे इस महीने 2,000 युआन का बोनस मिला है। अपने लिए कुछ अच्छा खरीद लो।” उसकी पत्नी को असलियत की भनक भी नहीं होती, और वह सच में जाकर कुछ विलासिता की चीजें खरीद लाती है। उसका मन चिंता से भर जाता है और उसे लगता है कि अब कोई रास्ता नहीं बचा है, और उसकी चिंता बढ़ती जाती है। चाहे पुरुष हो या महिला, वे सभी अपनी वैवाहिक सुख बनाए रखने के लिए कई कदम उठाते हैं और बहुत समय खपाते और प्रयास करते हैं, यहाँ तक कि वे अपनी सूझबूझ के विरुद्ध जाकर भी काम करते हैं। इतना समय खपाने और कोशिश करने के बावजूद इसमें शामिल लोगों को नहीं पता होता कि इन चीजों का सही तरीके से सामना कैसे करें या उन्हें कैसे संभालें, यहाँ तक कि अपनी वैवाहिक सुख को बनाए रखने के लिए वे अपना दिमाग दौड़ाते हैं और दूसरों का अध्ययन कर उनसे सीखते और राय लेते हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो परमेश्वर में विश्वास करने के बाद अपना कर्तव्य और परमेश्वर के घर से मिला आदेश स्वीकारते हैं, मगर जब कर्तव्य निभाने का समय आता है तो वे अपनी वैवाहिक सुख और संतुष्टि बरकरार रखने के चक्कर में बहुत पीछे रह जाते हैं। उन्हें मूल रूप से किसी दूर जगह जाकर सुसमाचार प्रचार करना था, जिसमें वे हफ्ते में एक बार या लंबे अंतराल बाद घर लौटते या वे घर छोड़कर अपनी विभिन्न काबिलियत और परिस्थिति के अनुसार पूरे समय अपना कर्तव्य निभा सकते थे, मगर वे डरते हैं कि उनका जीवनसाथी उनसे नाराज हो जाएगा, उनकी शादी खुशहाल नहीं रहेगी या फिर उनकी शादी ही टूट जाएगी, तो अपनी वैवाहिक सुख को बनाए रखने के लिए वे अपना बहुत सारा समय गँवा देते हैं जो उन्हें अपना कर्तव्य निभाने में लगाना चाहिए था। खास तौर पर जब वे अपने जीवनसाथी को शिकायत करते या नाखुश होते या रोते देखते हैं, तो अपनी शादी को बचाए रखने के लिए और भी सतर्क हो जाते हैं। वे अपने जीवनसाथी को संतुष्ट करने के लिए हरसंभव प्रयास और अपनी शादी को खुशहाल बनाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, ताकि यह टूटने न पाए। बेशक, इससे भी अधिक गंभीर बात यह है कि कुछ लोग अपने वैवाहिक सुख को बरकरार रखने के लिए परमेश्वर के घर की पुकार को ठुकराकर अपना कर्तव्य निभाने से इनकार कर देते हैं। जब उन्हें अपना कर्तव्य निभाने के लिए घर छोड़ देना चाहिए, तब क्योंकि वे अपने जीवनसाथी से अलग होना बर्दाश्त नहीं कर सकते या क्योंकि उनके जीवनसाथी के माँ-बाप परमेश्वर में उनके विश्वास का विरोध करते हैं और उनके नौकरी छोड़कर कर्तव्य निभाने के लिए घर छोड़ने का विरोध करते हैं, तो वे समझौता करके अपना कर्तव्य त्याग देते हैं, और इसके बजाय अपनी वैवाहिक सुख और अपनी शादी की अखंडता बनाए रखने का फैसला करते हैं। अपने वैवाहिक सुख और अपनी शादी की अखंडता बनाए रखने के लिए, और अपनी शादी को टूटकर खत्म होने से बचाने के लिए, वे सिर्फ विवाहित जीवन में अपनी जिम्मेदारियों और दायित्वों को पूरा करने और एक सृजित प्राणी के मकसद को त्यागने का रास्ता चुनते हैं। तुम्हें इसका एहसास नहीं होता, परिवार या समाज में तुम्हारी भूमिका कुछ भी हो—चाहे वह पत्नी, पति, बच्चे, माता-पिता, कर्मचारी या कुछ और भूमिका हो—और चाहे वैवाहिक जीवन में तुम्हारी भूमिका महत्वपूर्ण हो या न हो, परमेश्वर के सामने तुम्हारी एक ही पहचान है और वह एक सृजित प्राणी के रूप में है। परमेश्वर के सामने तुम्हारी कोई दूसरी पहचान नहीं है। इसलिए, जब परमेश्वर का घर तुम्हें बुलाता है, यही वह समय है जब तुम्हें अपना मकसद पूरा करना चाहिए। यानी, एक सृजित प्राणी के रूप में, ऐसा नहीं है कि तुम्हें अपना मकसद सिर्फ तभी पूरा करना चाहिए जब तुम्हारे वैवाहिक सुख और तुम्हारी शादी की अखंडता को बनाए रखने की शर्त पूरी हो, बल्कि ऐसा है कि अगर तुम एक सृजित प्राणी हो, तो परमेश्वर ने जो मकसद तुम्हें सौंपा है, तुम्हें उसे बिना शर्त पूरा करना चाहिए; परिस्थिति चाहे जो भी हो, परमेश्वर द्वारा तुम्हें सौंपे गए मकसद को प्राथमिकता देना हमेशा तुम पर निर्भर करता है, जबकि शादी के जरिए तुम्हें सौंपे गए मकसद और जिम्मेदारियों को निभाना अधिक महत्वपूर्ण नहीं है। एक सृजित प्राणी के रूप में तुम्हें जो भी मकसद पूरा करना चाहिए, जो परमेश्वर ने तुम्हें सौंपा है, वह किसी भी स्थिति में और किसी भी परिस्थिति में हमेशा तुम्हारी सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। इसलिए तुम अपने वैवाहिक सुख को चाहे कितना भी बरकरार रखना चाहो या तुम्हारी वैवाहिक स्थिति चाहे कैसी भी हो या तुम्हारा साथी तुम्हारी शादी के लिए चाहे कितनी भी बड़ी कीमत चुकाता हो, इनमें से कोई भी उस मकसद को ठुकराने का कारण नहीं है जो परमेश्वर ने तुम्हें सौंपा है। यानी तुम्हारी शादी चाहे कितनी भी खुशहाल क्यों न हो या इसकी अखंडता कितनी भी मजबूत क्यों न हो, एक सृजित प्राणी के रूप में तुम्हारी पहचान नहीं बदलती है और, इस तरह, परमेश्वर तुम्हें जो मकसद सौंपता है तुम सबसे पहले उसे पूरा करने के लिए बाध्य हो, और इससे कोई शर्त नहीं जुड़ी है। तो, जब परमेश्वर तुम्हें तुम्हारा मकसद सौंपे, जब तुम्हारे पास एक सृजित प्राणी का कर्तव्य और मकसद हो, तो तुम्हें एक सुखी विवाह के अपने लक्ष्य को और एक अटूट शादी को बनाए रखने की कोशिश को त्याग देना चाहिए, तुम्हें अपनी पहली प्राथमिकता परमेश्वर को और उसके घर से मिले मकसद को बना लेना चाहिए, और बेवकूफी नहीं करनी चाहिए। वैवाहिक सुख को बरकरार रखना एक ऐसी जिम्मेदारी है जिसे तुम पति या पत्नी के नाते शादी के ढाँचे के भीतर निभाते हो; यह सृष्टिकर्ता के सामने किसी सृजित प्राणी की जिम्मेदारी या मकसद नहीं है, इसलिए तुम्हें अपना वैवाहिक सुख बरकरार रखने के लिए सृष्टिकर्ता द्वारा सौंपे गए मकसद को नहीं त्यागना चाहिए, न ही तुम्हें इतनी सारी मूर्खतापूर्ण, ओछी और बचकानी हरकतें करनी चाहिए जिनका पति या पत्नी होने की जिम्मेदारियों से कोई लेना-देना नहीं है। तुम्हें बस परमेश्वर के वचनों और उसकी अपेक्षाओं के अनुरूप पति या पत्नी के रूप में अपनी जिम्मेदारियों और दायित्वों को पूरा करना है—यानी, परमेश्वर के सबसे शुरुआती निर्देशों के अनुसार काम करना चाहिए। कम से कम, तुम्हें पति या पत्नी की जिम्मेदारियों को सामान्य मानवता की अंतरात्मा और विवेक से पूरा करना चाहिए, और यही काफी है। जहाँ तक तथाकथित “पुरुष के दिल का रास्ता उसके पेट से होकर गुजरता है” या रोमांस या लगातार सभी प्रकार की सालगिरह मनाने, या दो लोगों की दुनिया, या “एक दूसरे का हाथ पकड़ना और साथ-साथ बूढ़े होना” या “मैं तुम्हें हमेशा वैसे ही प्यार करता रहूँगा जैसे आज करता हूँ,” और ऐसी कई और बेतुकी चीजों की बात है, ये एक सामान्य महिला-पुरुष की जिम्मेदारियाँ नहीं हैं। बेशक, अधिक सटीक होकर कहें, तो ये चीजें सत्य का अनुसरण करने वाले किसी व्यक्ति की शादी के ढाँचे के भीतर की जिम्मेदारियाँ और दायित्व नहीं हैं। ये जीवन जीने के तरीके और जीवन लक्ष्य ऐसी चीजें नहीं हैं जिनमें सत्य का अनुसरण करने वाला कोई व्यक्ति संलग्न रहे, इसलिए तुम्हें सबसे पहले इन नीरस, मूर्खतापूर्ण, बचकानी, सतही, घृणित और बेकार कहावतों, दृष्टिकोणों और अभ्यासों को अपने मन से पूरी तरह त्याग देना चाहिए। अपनी शादी को बिगड़ने मत होने दो, वैवाहिक सुख की अपनी चाहत को अपने हाथ-पैरों, विचारों और कदमों पर ऐसा हावी मत होने दो कि तुम खुद ही बचकाने, मूर्ख, अशिष्ट और दुष्ट बन जाओ। सुखी विवाहित जीवन की ये सांसारिक चाहतें ऐसे दायित्व और जिम्मेदारियाँ नहीं हैं जिन्हें सामान्य विवेक वाले किसी व्यक्ति को पूरा करना चाहिए, बल्कि ये चीजें पूरी तरह से इस दुष्ट संसार और भ्रष्ट मानवजाति से विकसित हुई हैं और सभी लोगों की मानवता और विचारों पर विनाशकारी प्रभाव डालती हैं। वे तुम्हारे मन को पतित करेंगी, तुम्हारी मानवता को विकृत करेंगी, और तुम्हारे विचारों को दुष्ट, जटिल, अराजक और यहाँ तक कि अतिवादी बना देंगी। उदाहरण के लिए, कुछ महिलाएँ दूसरे पुरुषों को रोमांटिक होते, अपनी शादी की सालगिरह पर अपनी पत्नियों को गुलाब देते, या अपनी पत्नियों को शॉपिंग के लिए बाहर ले जाते या उन्हें गले लगाते या उनके गुस्सा या नाराज होने पर उन्हें कुछ खास उपहार देते या उन्हें खुश करने के लिए चकित करते हुए देखती हैं। अगर तुम इन कहावतों और अभ्यासों को स्वीकार कर लोगी, तो तुम भी चाहोगी कि तुम्हारा साथी ये चीजें करे, तुम भी उस तरह का जीवन और उस तरह का व्यवहार चाहोगी, और इस तरह तुम्हारी सूझ-बूझ की भावना असामान्य हो जाएगी और ऐसी कहावतों, विचारों और अभ्यासों से विचलित होकर छीज जाएगी। अगर तुम्हारा साथी तुम्हारे लिए गुलाब नहीं खरीदता, तुम्हें खुश करने की कोशिश नहीं करता या तुम्हारे लिए कुछ भी रोमांटिक नहीं करता, तो तुम गुस्सा, नाराज और नाखुश होती हो—तुम तमाम चीजें महसूस करती हो। जब तुम्हारा जीवन इन चीजों से भर जाता है, तो एक महिला होने के नाते तुम्हें जो दायित्व पूरे करने चाहिए और एक सृजित प्राणी के तौर पर परमेश्वर के घर में तुम्हें जो कर्तव्य और जिम्मेदारियाँ निभानी चाहिए, वे सभी अस्त-व्यस्त हो जाती हैं। तुम असंतोष की दशा में रहोगी, और असंतोष की इन भावनाओं और विचारों से तुम्हारी सामान्य जिंदगी और दिनचर्या गड़बड़ा जाएगी। इसलिए, तुम्हारी इच्छाएँ तुम्हारी सामान्य मानवता की तार्किक सोच, तुम्हारे सामान्य निर्णय और हाँ, एक सामान्य व्यक्ति के रूप में तुम्हें जो जिम्मेदारियाँ और दायित्व पूरे करने चाहिए, उन्हें प्रभावित करेंगीं। अगर तुम सांसारिक चीजों और वैवाहिक सुख के पीछे भागते हो, तो तुम निश्चित रूप से “सांसारिक व्यक्ति” बन जाओगे। अगर तुम सिर्फ वैवाहिक सुख के पीछे भागते हो, तो यकीनन तुम हमेशा अपने जीवनसाथी से “मैं तुमसे प्यार करता हूँ” जैसी बातें सुनना चाहोगी, और अगर तुम्हारे जीवनसाथी ने यह कभी नहीं कहा कि “मैं तुमसे प्यार करता हूँ,” तो तुम सोचोगी, “अरे, मेरी शादी बहुत बेकार है। मेरा पति लकड़ी के तख्ते जैसा सुन्न है, एक नंबर का बेवकूफ है। बहुत हुआ तो वह थोड़े-से पैसे घर ले आता है, थोड़ी मेहनत और थोड़ा परिश्रम कर लेता है। खाने के समय हो तो वह कह देता है, ‘चलो खाना खाते हैं,’ और सोने का समय होने पर कह देता है, ‘अब सो जाओ, तुम्हें अच्छे सपने आएँ, शुभरात्रि,’ और बस हो गया। वह कभी यह क्यों नहीं कह सकता, ‘मैं तुमसे प्यार करता हूँ’? क्या वह इतनी छोटी-सी रोमांटिक बात भी नहीं कह सकता?” जब तुम्हारा दिल ऐसी चीजों से भरा हो, तो क्या तुम एक सामान्य व्यक्ति हो सकते हो? क्या तुम एक निरंतर असामान्य और भावुक दशा में नहीं रहते? (रहते हैं।) कुछ लोगों को संसार की इन दुष्ट प्रवृत्तियों की कोई पहचान नहीं होती; उनमें कोई प्रतिरोध, कोई प्रतिरक्षा नहीं होती। ऐसी महिला इस मामले को, इन रोमांटिक बातों को वैवाहिक सुख का संकेत मानती है, और फिर वह इसे पाना, इसका अनुकरण करना, इसे हासिल करना चाहती है, और जब वह इसे हासिल नहीं कर पाती है तो वह गुस्सा होती है, और अक्सर अपने पति से पूछती है “बताओ, तुम मुझसे प्यार करते हो या नहीं?” इतनी बार पूछने पर उसका पति गुस्सा हो जाता है और शरमाते हुए कहता है, “मैं तुमसे प्यार करता हूँ, बेबी।” और वह कहती है, “जरा फिर से कहो न।” उसका पति खुद को इतना रोकता है कि उसका चेहरा और गर्दन दोनों लाल हो जाते हैं और फिर वह थोड़ा सोचकर कहता है, “बेबी, मैं तुमसे प्यार करता हूँ।” देखा तुमने, यह भला आदमी ऐसी छोटी सी बात कह देता है, मगर यह उसके दिल से नहीं निकली है, इसलिए वह असहज महसूस करता है। उसे यह कहते सुन उसकी पत्नी खुश हो जाती है, और कहती है, “ये हुई न बात!” फिर उसका पति क्या कहता है? “अब बोलो। क्या अब तुम खुश हो? तुम बस खोट खोज रही हो।” तुम्हीं बताओ, जब एक महिला और पुरुष इस तरह का वैवाहिक जीवन जीते हैं, तो क्या यह खुशहाली है? (नहीं।) क्या तुम्हें “मैं तुमसे प्यार करता हूँ” शब्द सुनकर खुशी होती है? क्या यह वैवाहिक सुख की व्याख्या करता है? क्या यह इतना सरल है? (नहीं।) कोई महिला हमेशा अपने पति से पूछती रहती है, “सुनो, क्या तुम्हें लगता है कि मैं बूढ़ी लगने लगी हूँ?” उसका पति ईमानदार है, तो वह ईमानदारी से कहता है, “हाँ, थोड़ी सी। चालीस साल के बाद कौन बूढ़ा नहीं लगता?” वह जवाब देती है, “अच्छा, तो क्या तुम मुझसे प्यार नहीं करते? तुम यह क्यों नहीं कहते कि मैं जवान दिखती हूँ? क्या तुम्हें मेरा बूढ़ा होना पसंद नहीं? क्या तुम कोई रखैल ढूँढ़ना चाहते हो?” इस पर उसका पति जवाब देता है, “हद है! मैं तुमसे ईमानदारी से कुछ कह भी नहीं सकता। दिक्कत क्या है तुम्हें? मैं तो बस सच कह रहा था। कौन बूढ़ा नहीं होता? क्या तुम कोई राक्षस बनना चाहती हो?” ऐसी महिलाएँ मूढ़ होती हैं। इस तरह के तथाकथित वैवाहिक सुख का अनुसरण करने वालों को हम क्या कहते हैं? घटिया शब्दों में कहें, तो वे निकृष्ट हैं। और अगर घटिया शब्दों में न कहें तो हम उन्हें क्या कहेंगे? दिमाग से पैदल। “दिमाग से पैदल” से मेरा क्या मतलब है? मेरा मतलब है कि उनमें सामान्य मानवता वाली सोच नहीं है। चालीस या पचास साल की उम्र में, वे बुढ़ापे के करीब पहुँच रही हैं, मगर फिर भी यह स्पष्ट नहीं देख सकतीं कि जीवन क्या है, वैवाहिक जीवन क्या है, और वे हमेशा बेकार और घटिया चीजें करना पसंद करती हैं। वे इसे वैवाहिक सुख मानती हैं, कि यह उनकी स्वतंत्रता और उनका अधिकार है, उन्हें इसी तरह से अनुसरण करना और जीना चाहिए, और शादी के प्रति यही रवैया अपनाना चाहिए। क्या यह उनकी ओर से गलत व्यवहार नहीं है? (बिल्कुल है।) क्या ऐसे बहुत से लोग हैं जो उचित व्यवहार नहीं करते? (हाँ।) अविश्वासियों की दुनिया में इनकी संख्या बहुत है, मगर क्या परमेश्वर के घर में कोई ऐसा है? क्या ऐसे बहुत हैं? रोमांस, उपहार, आलिंगन, चकित, और ऐसे शब्द कि “मैं तुमसे प्यार करता हूँ,” वगैरह सभी वैवाहिक सुख के संकेत हैं जिनका वे अनुसरण करते हैं और ये वैवाहिक सुख की उनकी खोज के लक्ष्य हैं। परमेश्वर में विश्वास नहीं करने वाले लोग ऐसे होते हैं, और परमेश्वर में विश्वास करने वाले भी बहुत से लोग इस तरह के अनुसरण में लगे हुए हैं और उनके भी ऐसे विचार हैं। ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्होंने दस साल या उससे भी ज्यादा समय से परमेश्वर में विश्वास किया है, कुछ उपदेश सुने हैं और कुछ सत्यों को समझा है, मगर अपने वैवाहिक सुख को बरकरार रखने, अपने जीवनसाथी का साथ देने, और अपनी शादी में किए वादों को पूरा करने और वैवाहिक सुख के जिस लक्ष्य को पाने की कसमें खाई थीं, उसे हासिल करने के लिए सृष्टिकर्ता के सामने अपनी जिम्मेदारियों और कर्तव्यों को कभी नहीं निभाया है। बल्कि, वे अपने घर के बाहर पैर तक नहीं रखते, परमेश्वर के घर का कार्य चाहे कितना भी जरूरी क्यों न हो, वे घर नहीं छोड़ते, और अपना कर्तव्य निभाने के लिए अपने जीवनसाथी को नहीं त्यागते, बल्कि वे तो वैवाहिक सुख के अनुसरण और उसे बनाए रखने को अपने जीवन का लक्ष्य मानते हैं जिसके लिए उन्हें संघर्ष और निरंतर कोशिश करनी है। ऐसी चीज का अनुसरण करके क्या वे सत्य का अनुसरण कर रहे हैं? बिल्कुल नहीं। क्योंकि अपने मन में, अपने दिल की गहराई में और यहाँ तक कि अपने क्रियाकलापों में भी उन्होंने वैवाहिक सुख के अनुसरण को नहीं त्यागा और न ही जीवन के प्रति इस विचार, दृष्टिकोण और नजरिये को त्यागा कि “वैवाहिक सुख के पीछे भागना व्यक्ति के जीवन का मकसद है,” इसलिए वे सत्य प्राप्त करने में पूरी तरह असमर्थ हैं। तुम लोग अभी शादीशुदा नहीं हो और तुमने अभी तक शादी में प्रवेश नहीं किया है। अगर तुम लोग शादी करते वक्त भी इस दृष्टिकोण को कायम रखोगे, तो तुम लोग भी सत्य प्राप्त नहीं कर पाओगे। वैवाहिक सुख पाने के बाद तुम सत्य प्राप्त नहीं कर पाओगे। तुम वैवाहिक सुख के पीछे भागने को अपने जीवन का मकसद मानते हो, इसलिए तुम आखिर में सृष्टिकर्ता के सामने अपना मकसद पूरा करने का मौका गँवा दोगे। अगर तुम सृष्टिकर्ता के सामने एक सृजित प्राणी होने का मकसद पूरा करने का मौका और अधिकार त्यागते हो, तो तुम सत्य के अनुसरण को भी त्याग देते हो, और हाँ, तुम उद्धार पाने से भी हार मान लेते हो—यह तुम्हारा फैसला है।

हम वैवाहिक सुख के अनुसरण को त्यागने के बारे में संगति इसलिए नहीं कर रहे कि तुम शादी को ही त्याग दो, न ही इसका मकसद तुम्हें तलाक लेने के लिए उकसाना है, बल्कि हम यह संगति इसलिए कर रहे हैं ताकि तुम वैवाहिक सुख के संबंध में अपनी सभी इच्छाओं को त्याग दो। सबसे पहले, तुम्हें उन विचारों को त्याग देना चाहिए जो तुम्हारे वैवाहिक सुख के अनुसरण में तुम पर हावी हैं, और फिर तुम्हें वैवाहिक सुख के पीछे भागने के अभ्यास को त्याग कर अपना ज्यादातर समय और ऊर्जा एक सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाने और सत्य के अनुसरण में लगाना चाहिए। जहाँ तक शादी की बात है, अगर यह तुम्हारे सत्य के अनुसरण में बाधा नहीं डालती या उसके आड़े नहीं आती है, तो तुम्हें जो दायित्व पूरे करने चाहिए, जो मकसद पूरा करना चाहिए, और शादी के ढांचे के भीतर तुम्हें जो भूमिका निभानी चाहिए, वह नहीं बदलेगी। इसलिए, तुम्हें वैवाहिक सुख का अनुसरण त्यागने के लिए कहने का मतलब यह नहीं है कि तुम औपचारिकता के चक्कर में शादी को ही त्याग दो या तलाक ले लो, बल्कि इसका मतलब एक सृजित प्राणी के रूप में तुम्हें अपना मकसद पूरा करने और वह कर्तव्य निभाने के लिए कहना है जो तुम्हें शादी में निभाई जाने वाली जिम्मेदारियों को पूरा करने के आधार पर निभाना चाहिए। बेशक, अगर तुम्हारा वैवाहिक सुख का अनुसरण एक सृजित प्राणी के रूप में तुम्हारे कर्तव्य निर्वहन को प्रभावित, बाधित या यहाँ तक कि उसे बर्बाद करता है, तो तुम्हें न सिर्फ वैवाहिक सुख के अनुसरण को, बल्कि अपनी पूरी शादी को ही त्याग देना चाहिए। इन समस्याओं पर संगति करने का अंतिम उद्देश्य और अर्थ क्या है? यह कि वैवाहिक सुख तुम्हारे कदमों को न रोके, तुम्हारे हाथ न बाँधे, तुम्हारी आँखों पर पर्दा न डाले, तुम्हारी दृष्टि विकृत न करे, तुम्हें परेशान न करे और तुम्हारे दिमाग को काबू न करे; यह संगति इसलिए है ताकि तुम्हारा जीवन और जीवन पथ वैवाहिक सुख के अनुसरण से न अट जाए, और ताकि तुम शादी में पूरी की जाने वाली जिम्मेदारियों और दायित्वों के प्रति सही रवैया अपना सको और उन जिम्मेदारियों और दायित्वों के संबंध में, जो तुम्हें पूरे करने चाहिए, उनके बारे में सही फैसले ले सको। अभ्यास करने का एक बेहतर तरीका यह है कि तुम अपना ज्यादा समय और ताकत अपने कर्तव्य में लगाओ, वह कर्तव्य निभाओ जो तुम्हें निभाना चाहिए, और परमेश्वर द्वारा सौंपे गए मकसद को पूरा करो। तुम्हें कभी नहीं भूलना चाहिए कि तुम एक सृजित प्राणी हो, परमेश्वर ने ही तुम्हें जीवन के इस पड़ाव पर लाकर खड़ा किया है, वह परमेश्वर ही है जिसने तुम्हें शादी की व्यवस्था दी, एक परिवार दिया और वो जिम्मेदारियाँ सौंपी जो तुम्हें शादी के ढांचे के भीतर निभानी चाहिए, और कि वह तुम नहीं हो जिसने तुम्हारी शादी तय की है, या ऐसा नहीं है कि तुम्हारी शादी बस यूँ ही हो गई, या फिर तुम अपनी क्षमताओं और ताकत के भरोसे अपने वैवाहिक सुख को बरकरार रख सकते हो। क्या अब मैंने इसे स्पष्ट रूप से समझा दिया है? (हाँ।) क्या तुम समझते हो कि तुम्हें क्या करना है? क्या अब तुम्हारा मार्ग स्पष्ट है? (हाँ।) अगर वैवाहिक जीवन में तुम्हारी जिम्मेदारियों और दायित्वों और एक सृजित प्राणी के रूप में तुम्हारे कर्तव्य और मकसद के बीच कोई टकराव या विरोधाभास नहीं है, तो ऐसी परिस्थिति में तुम्हें शादी के ढाँचे के भीतर जरूरत के मुताबिक अपनी जिम्मेदारियाँ निभानी चाहिए, उन्हें अच्छे से पूरा करना चाहिए, वे जिम्मेदारियाँ उठानी चाहिए जो तुम्हें उठानी हैं और उनसे भागने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। तुम्हें अपने साथी की, उसके जीवन की, उसकी भावनाओं और उसके बारे में हर चीज की जिम्मेदारी लेनी होगी। हालाँकि, जब शादी के ढाँचे के भीतर तुम्हारे द्वारा निभाई जाने वाली जिम्मेदारियों और दायित्वों और एक सृजित प्राणी के रूप में तुम्हारे मकसद और कर्तव्य के बीच कोई टकराव होता है, तो तुम्हें अपना कर्तव्य या मकसद नहीं बल्कि शादी के ढांचे के भीतर अपनी जिम्मेदारियों को त्याग देना चाहिए। परमेश्वर तुमसे यही अपेक्षा करता है, यह तुम्हारे लिए परमेश्वर का आदेश है और बेशक, हर पुरुष और महिला से परमेश्वर यही अपेक्षा करता है। जब तुम यह सब करने में सक्षम होगे तभी सत्य और परमेश्वर का अनुसरण करोगे। अगर तुम इसमें सक्षम नहीं हो और इस तरह से अभ्यास नहीं कर सकते, तो तुम बस नाममात्र के विश्वासी हो, तुम सच्चे दिल से परमेश्वर का अनुसरण नहीं करते, और सत्य का अनुसरण करने वालों में से भी नहीं हो। अब तुम्हारे पास अपना कर्तव्य निभाने के लिए चीन छोड़ने का अवसर और परिस्थिति है, और कुछ लोग कहते हैं, “अगर मैं अपना कर्तव्य निभाने के लिए चीन छोड़ता हूँ, तो मुझे अपने जीवनसाथी को घर पर छोड़ना होगा। क्या हम फिर कभी एक-दूसरे को नहीं देख पाएँगे? क्या हमें अलग नहीं रहना पड़ेगा? क्या हमारी शादी खत्म नहीं हो जाएगी?” कुछ लोग सोचते हैं, “अरे, मेरी जीवनसाथी मेरे बिना कैसे जिएगी? अगर मैं वहाँ नहीं हुआ तो क्या हमारी शादी टूट नहीं जाएगी? क्या हमारी शादी टूट जाएगी? फिर मैं भविष्य में क्या करूँगा?” क्या तुम्हें भविष्य की चिंता करनी चाहिए? तुम्हें सबसे ज्यादा किस बात की चिंता करनी चाहिए? अगर तुम सत्य का अनुसरण करने वाले व्यक्ति बनना चाहते हो, तो तुम्हें सबसे ज्यादा चिंता यह करनी चाहिए कि उस चीज को कैसे त्याग सको जिसे त्यागने के लिए परमेश्वर तुमसे कहता है और उस मकसद को कैसे पूरा कर सको जिसे परमेश्वर तुम्हें पूरा करने के लिए कहता है। अगर भविष्य में तुम्हें बिना शादी के और बिना अपने साथी के रहना है, तो आने वाले दिनों में भी तुम इतनी ही अच्छी तरह से बुढ़ापे तक जीवित रह सकते हो। हालाँकि, अगर तुम यह अवसर छोड़ देते हो, तो यह तुम्हारे कर्तव्य और उस मकसद को त्यागने के समान है जो परमेश्वर ने तुम्हें सौंपा है। परमेश्वर के लिए, तब तुम ऐसे व्यक्ति नहीं रहोगे जो सत्य का अनुसरण करता है, जो वास्तव में परमेश्वर को चाहता है, या जो उद्धार पाना चाहता है। अगर तुम सक्रियता से उद्धार पाने और अपना मकसद पूरा करने का अपना अवसर और अधिकार त्यागना चाहते हो और इसके बजाय शादी को चुनते हो, पति-पत्नी की तरह साथ रहने का फैसला करते हो, अपने जीवनसाथी के साथ रहना और उसे संतुष्ट करना चुनते हो, और अपनी शादी को बरकरार रखना चाहते हो, तो अंत में तुम कुछ चीजें हासिल करोगे और कुछ चीजें खो दोगे। तुम्हें अंदाजा तो है न कि तुम क्या खो दोगे? शादी तुम्हारा सब कुछ नहीं है, न ही वैवाहिक सुख तुम्हारा सब कुछ है—यह तुम्हारी किस्मत तय नहीं कर सकता, यह तुम्हारा भविष्य भी तय नहीं कर सकता, तो फिर तुम्हारी मंजिल तय करना तो दूर की बात है। तो, लोगों को क्या फैसला करना चाहिए, और क्या उन्हें वैवाहिक सुख का अनुसरण त्याग कर एक सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाना चाहिए, यह उन पर निर्भर करता है। क्या हमने अब “वैवाहिक सुख के पीछे भागना तुम्हारा मकसद नहीं है” के विषय पर स्पष्ट रूप से संगति कर ली है? (बिल्कुल।) क्या ऐसी कोई समस्या है जो तुम लोगों को मुश्किल लगती है और जिसके बारे में मेरी संगति सुनने के बाद भी तुम नहीं जानते कि इनका अभ्यास कैसे करें? (नहीं।) इस संगति को सुनकर क्या अब तुम पहले से ज्यादा स्पष्ट महसूस कर रहे हो, तुम्हारे पास अभ्यास का एक सटीक मार्ग और अभ्यास करने के लिए एक सही लक्ष्य है? क्या अब तुम जानते हो कि तुम्हें आगे कैसे अभ्यास करना चाहिए? (हाँ।) तो चलो इस संगति को यहीं खत्म करते हैं। फिर मिलेंगे!

14 जनवरी 2023

फुटनोट :

क. मूल पाठ में “सामान्य” शब्द शामिल नहीं है।

ख. मूल पाठ में “सामान्य” शब्द शामिल नहीं है।

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