मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और वे व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों का सौदा तक कर देते हैं (भाग दस)
II. मसीह-विरोधियों के हित
घ. उनकी संभावनाएँ और नियति
पिछली बार जब हम मिले थे तो हमने किस विषय पर संगति की थी? (परमेश्वर ने मसीह-विरोधियों द्वारा “सेवाकर्ता” की भूमिका के साथ पेश आने के तरीके पर संगति की थी। सबसे पहले, परमेश्वर ने इस विषय पर संगति की कि परमेश्वर “सेवाकर्ताओं” को किस प्रकार परिभाषित करता है। परमेश्वर ने सेवाकर्ता का कार्य छोड़ चुके व्यक्ति और अभी भी सेवाकर्ता का कार्य कर रहे व्यक्ति के बीच के अंतर पर भी संगति की थी और अंत में, परमेश्वर ने “सेवाकर्ता” के संबंध में मसीह-विरोधियों के दृष्टिकोणों और लक्ष्यों का गहन विश्लेषण किया।) तो मसीह-विरोधी “सेवाकर्ता” की भूमिका के प्रति कैसा दृष्टिकोण और रवैया रखते हैं? वे क्या कहते हैं और क्या करते हैं? (“सेवाकर्ता” के प्रति मसीह-विरोधियों का अस्वीकृति और घृणा वाला रवैया होता है। वे इस उपाधि को ही स्वीकार नहीं करते, चाहे यह किसी से भी प्राप्त हुई हो और वे इस बात पर विश्वास करते हैं कि सेवाकर्ता होना अपमानजनक है। वे विश्वास करते हैं कि सेवाकर्ता परमेश्वर द्वारा मानवता के सार के आधार पर परिभाषित नहीं किए जाते हैं, बल्कि यह परमेश्वर द्वारा मनुष्य की पहचान और महत्व को चुनौती देना और उनका तिरस्कार करना है।) (मसीह-विरोधी यह प्रसिद्ध उक्ति कहते हैं : “जब दूसरे सुर्खियाँ बटोर रहे हों तो मैं पर्दे के पीछे जाकर काम नहीं करूँगा।” मसीह-विरोधी दूसरों से बस सेवा पाना चाहते हैं और सोचते हैं कि परमेश्वर को सेवा प्रदान करना लज्जाजनक कार्य है और इसलिए जब वे महसूस करते हैं कि वे स्वयं सेवाकर्ता हैं, तो वे परमेश्वर के घर में सेवा देना जारी नहीं रखना चाहते और इसकी जगह पलायन का रास्ता खोजना शुरू कर देते हैं और यहाँ तक कि वे विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न करने लगेंगे और विनाशकारी काम करेंगे।) “सेवाकर्ता” के प्रति मसीह-विरोधियों के रवैये पर विचार करें, तो हमें उनका सार क्या दिखाई देता है? (उनका सार परमेश्वर के प्रति शत्रुतापूर्ण और सत्य से घृणा करने वाला है।) और यह कैसा स्वभाव है, जब उनका सार परमेश्वर एवं सत्य के प्रति शत्रुतापूर्ण है? (यह दुष्ट और शातिर स्वभाव है।) सही है, यह दुष्ट और शातिर स्वभाव है। परमेश्वर में विश्वास के लिए मसीह-विरोधियों की पहली प्रेरणा और इरादा क्या हैं? वे क्या पाना चाहते हैं? उनकी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ क्या हैं? क्या वे सेवाकर्ता बनने आते हैं? क्या वे परमेश्वर में विश्वास करके एक अच्छा व्यक्ति बनने और सही पथ पर चलने के रवैये से आते हैं? (नहीं।) तो वे किस लिए आते हैं? सही कहें तो आशीष पाने के लिए और विशेष रूप से, वे राजाओं की तरह शासन करना, परमेश्वर के साथ राजाओं की तरह शासन करना और वे उच्च-स्तरीय और बेहतरीन चीजें पाना चाहते हैं। इसलिए, जब परमेश्वर कहता है कि वे लोग सेवाकर्ता हैं, तो यह मसीह-विरोधियों की आशीष पाने और राजाओं की तरह शासन करने की महत्वाकांक्षाओं तथा इच्छाओं के पूरी तरह प्रतिकूल होता है, यह उनकी अपेक्षाओं से बाहर की बात हो जाती है और उन्होंने कभी नहीं सोचा होता है कि परमेश्वर लोगों को यह उपाधि देगा। मसीह-विरोधी इस तथ्य को स्वीकार नहीं कर पाते हैं। और वे जब इस तथ्य को स्वीकार नहीं कर पाते हैं तो क्या कर सकते हैं? क्या वे इस तथ्य को स्वीकारना और खुद में बदलाव लाने का प्रयास करते हैं? वे न तो इस तथ्य को स्वीकारने और न ही अपनी महत्वाकांक्षाओं और स्वभावों में बदलाव लाने का प्रयास करते हैं। इसलिए, अगर उन्हें कहा जाता है कि वे सेवाकर्ता हैं और वे आशीष पाने के अपने इरादे तथा इच्छा से वंचित कर दिए जाते हैं तो वे कलीसिया में टिके नहीं रह सकेंगे। जिस क्षण उन्हें सत्य का एहसास होता है और पता चलता है कि ऐसी अभिव्यक्तियों वाले उनके जैसे लोग सेवाकर्ता हैं, वे सारी आशाएँ छोड़ देते हैं और अपना असली रंग दिखा देते हैं। वे सेवाकर्ता के रूप में अपनी यथास्थिति को बदलने का प्रयास नहीं करते, न ही वे “सेवाकर्ताओं” के प्रति अपने गलत रवैये और दृष्टिकोण में बदलाव लाने और सत्य के अनुसरण की राह पर चलने का प्रयास करते हैं। यही कारण है कि परमेश्वर चाहे जो भी व्यवस्था करे, ऐसे लोग उन व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण नहीं करेंगे और उन्हें स्वीकार नहीं करेंगे, और वे सत्य की तलाश नहीं करेंगे। इसकी जगह, वे अपना दिमाग चलाकर खुद को सेवाकर्ता के तमगे से मुक्ति दिलाने का कोई मानवीय तरीका सोचने का प्रयास करते हैं और वे इस पहचान को मिटाने के लिए हरसंभव कार्य करते हैं। मसीह-विरोधियों की इस अभिव्यक्ति पर विचार करें तो मसीह-विरोधियों का रोम-रोम सत्य का विरोधी है। वे सत्य पसंद नहीं करते, वे सत्य स्वीकार नहीं करते और सत्य के बारे में उनके अपने विचार, उनकी अपनी धारणाएँ होती हैं, लेकिन सामान्य तरीके से नहीं। बल्कि वे सकारात्मक चीजों तथा सत्य के प्रति दिल की गहराई से अत्यधिक विमुखता, नफरत और यहाँ तक कि शत्रुता महसूस करते हैं—यही मसीह-विरोधियों का सार है।
तुम लोगों द्वारा अभी-अभी दिए गए उत्तरों से मैं देख सकता हूँ कि तुम लोगों ने प्रत्येक संगति के कथ्य का सारांश नहीं निकाला है, और न ही बाद में प्रार्थना पढ़ी या उस पर मनन किया। पिछली बार हमने तीन मुख्य पहलुओं पर संगति की थी : पहला था सेवाकर्ता क्या है इसे परिभाषित करना; दूसरा था मसीह-विरोधियों द्वारा “सेवाकर्ता” की भूमिका के साथ पेश आने के तरीके या विशेष रूप से, सेवाकर्ता बनने के लिए उनकी अनिच्छा की सटीक अभिव्यक्तियाँ तथा व्यवहार और इसके पीछे के सही कारण; और तीसरा था कि मसीह-विरोधी के इरादे क्या हैं जब वे सेवाकर्ता बनना नहीं चाहते, यानी कि वे क्या करना चाहते हैं, उनकी महत्वाकांक्षाएँ क्या हैं और परमेश्वर में विश्वास करने का उनका उद्देश्य क्या है। मूलतः, हमने इन तीन पहलुओं में से मसीह-विरोधियों द्वारा “सेवाकर्ता” की भूमिका के साथ पेश आने के तरीके के उप-विषय पर संगति की और इन तीन पहलुओं के जरिए हमने “सेवाकर्ता” के प्रति किए जाने वाले मसीह-विरोधियों के विभिन्न अभ्यासों और व्यवहारों तथा इस बारे में उनके विचारों और दृष्टिकोण का गहन विश्लेषण किया। तुम लोग सुनने के बाद प्रत्येक संगति के कथ्य पर मनन नहीं करते। तुम इन चीजों को केवल थोड़े समय के लिए याद रखते हो, लेकिन अगर लंबा वक्त गुजर जाता है तो तुम ये चीजें भूल जाते हो। अगर तुम सत्य समझना और पाना चाहते हो तो तुम्हें दिल से प्रयास करना होगा और बार-बार प्रार्थना पढ़नी होगी और मनन करना करना होगा—तुम्हारे दिल में ये चीजें होनी जरूरी है। अगर तुम ऐसा नहीं करते, अगर तुम लोग इन चीजों को दिल से नहीं लेते और कोई प्रयास नहीं करते, और इन चीजों के बारे में अपने दिल में नहीं सोचते तो तुम लोग कुछ हासिल नहीं कर सकोगे। कुछ लोग कहते हैं, “मसीह-विरोधियों का मामला मेरे लिए बहुत दूर का विषय है। मैं कोई मसीह-विरोधी बनने की योजना नहीं बना रहा हूँ और मैं उनकी तरह बुरा व्यक्ति नहीं हूँ। मैं कर्तव्यनिष्ठा से केवल सबसे मामूली व्यक्ति बनूँगा और मेरे लिए यही ठीक है। मुझे जो भी करने के लिए कहा जाएगा, वह मैं करूँगा और मैं मसीह-विरोधियों का रास्ता नहीं चुनूँगा। इसके अलावा, अगर मेरा स्वभाव थोड़ा-बहुत मसीह-विरोधियों जैसा हुआ भी तो मैं समय के साथ इसमें धीरे-धीरे सुधार कर लूँगा और वह बस एक साधारण भ्रष्ट स्वभाव है, और इतना गंभीर नहीं है। इसे सुनने का कोई मतलब नहीं है।” क्या यह दृष्टिकोण सही है? (नहीं।) क्यों नहीं? अगर कोई स्वभाव में बदलाव करना चाहता है तो सबसे महत्वपूर्ण ये है कि उसे समझना चाहिए कि किसी भी तरह की परिस्थिति में उसके भ्रष्ट स्वभावों से कैसी स्थितियाँ, विचार और दृष्टिकोण उत्पन्न हो सकते हैं। इन चीजों को समझकर ही ऐसे लोग जान सकते हैं कि उनके अपने भ्रष्ट स्वभाव क्या हैं, ये किन क्षेत्रों में परमेश्वर का प्रतिरोध करते हैं और सत्य के विरुद्ध जाते हैं और उनके भीतर ऐसा क्या है जो सत्य के प्रतिकूल है; जब वे इन बातों को जान जाते हैं तो वे इन समस्याओं और भ्रष्ट स्वभावों का समाधान कर सकते हैं और सत्य वास्तविकता में प्रवेश प्राप्त कर सकते हैं। अगर तुम्हें प्रकट होने वाले विभिन्न भ्रष्ट स्वभावों, या विभिन्न परिस्थितियों में उत्पन्न हो सकने वाली विभिन्न स्थितियों की समझ नहीं है और तुम्हें उन तरीकों की समझ नहीं है, जिनसे ये चीजें सत्य का विरोध करती हैं या ये समझ नहीं है कि समस्याएँ कहाँ उत्पन्न होती हैं तो तुम इन समस्याओं का समाधान कैसे करोगे? अगर तुम इन समस्याओं का समाधान करना चाहते हो तो तुम्हें सबसे पहले यह समझना होगा कि उनका स्रोत कहाँ है, उनकी स्थिति क्या है, विशिष्ट समस्याएँ कहाँ उत्पन्न होती हैं, और इसके बाद यह तय करना होगा कि तुम्हें इसमें प्रवेश कैसे करना है। इस तरह से, तुम्हारे भ्रष्ट स्वभावों और उत्पन्न होने वाली विभिन्न स्थितियों का एक-एक कर समाधान किया जा सकता है। लगता है कि तुम लोग अभी भी सत्य वास्तविकता में प्रवेश या भ्रष्ट स्वभावों के समाधान एवं स्वभाव में बदलाव प्राप्त करने के संबंध में बहुत स्पष्ट नहीं हो; तुम अभी भी सही राह पर नहीं हो।
5. मसीह-विरोधी कलीसिया में अपने रुतबे को कैसे लेते हैं
आज हम मसीह-विरोधियों के हितों से संबंधित अंतिम विषय पर संगति करेंगे : मसीह-विरोधी कलीसिया में अपने रुतबे को कैसे लेते हैं। जब कलीसिया में उनकी हैसियत की बात आती है तो मसीह-विरोधी कैसी अभिव्यक्तियाँ दर्शाते हैं, वे क्या करते हैं और ये करते समय उनके दृष्टिकोण तथा स्वभाव सार क्या होते हैं—हम इन्हें तीन पहलुओं में बाँटेंगे और एक-एक कर इनका गहन विश्लेषण करेंगे। पहला पहलू है “दिखावे के साथ,” दूसरा है “पाखंड के साथ” और तीसरा है “सबसे आगे होकर।” इन तीनों में से प्रत्येक पहलू बहुत ही कम शब्दों में लिखा गया है और इसे संक्षिप्त माना जा सकता है, फिर भी प्रत्येक पहलू में मसीह-विरोधियों के अनेकों विविध क्रियाकलाप, अभिव्यक्तियाँ और कथन, साथ ही उनके रवैये और स्वभाव शामिल हैं। विचार करो कि मैंने आज के विषय पर संगति करने के लिए इन तीन पहलुओं को परिभाषित क्यों किया। मसीह-विरोधी कलीसिया में अपनी हैसियत को कैसे लेते हैं, इस विषय को पढ़ने के बाद तुम लोगों ने अपने मन में इसे कैसे परिभाषित किया? तुम्हारे मन में क्या विचार आए? अधिकांश लोग अपने मन में निस्संदेह रूप से मसीह-विरोधियों के अत्याचार, उनके रुतबा जताने, लोगों पर उनकी विजय और कलीसिया में उनके द्वारा सत्ता हथिया लेने की बात ही सोचते हैं, अर्थात् वे हमेशा अधिकारी बनना, अपना रुतबा जताना, सत्ता प्राप्त करना, लोगों पर नियंत्रण स्थापित करना चाहते हैं—मूलतः, लोग यही बातें सोचते हैं। ये अपेक्षाकृत स्पष्ट पहलू हैं, जो मसीह-विरोधी अक्सर कलीसिया में अभिव्यक्त करते हैं, तो इनके अलावा, अन्य अभिव्यक्तियाँ क्या होती हैं, जिन्हें लोग देख नहीं पाते। मसीह-विरोधी कलीसिया में अपनी अच्छी पकड़ बनाने, रुतबा हासिल करने और उच्च प्रतिष्ठा तथा सत्ता प्राप्त करने एवं अधिक लोगों पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए और क्या करते हैं? उनकी अन्य अभिव्यक्तियाँ क्या होती हैं? ये मसीह-विरोधियों के अधिक भ्रामक, कपटपूर्ण और प्रच्छन्न तरीके और साधन होते हैं और उनके दिल में कुछ अज्ञात विचार और गुप्त इरादे तथा लक्ष्य भी हो सकते हैं, है ना? तो चलो, उन सब पर एक-एक कर संगति करें।
i. दिखावे के साथ
पहला पहलू है “दिखावे के साथ।” “दिखावा” शब्द का शाब्दिक अर्थ समझना आसान है और यह स्पष्ट रूप से प्रशंसनीय शब्द नहीं है। जब किसी के बारे में कहा जाता है कि वह दिखावा अच्छा कर लेता है, तो इसका अर्थ है कि वह जो भी करता है वह दिखावा है, वह जो भी करता है उसे दूसरे समझ नहीं सकते, और वह दूसरों के साथ केवल सतही तौर पर कार्य करता है और बोलता है, तो जो व्यक्ति इस तरह से कार्य और व्यवहार करता है, वह निश्चित रूप से बहुत धूर्त व्यक्ति है। वह एक ईमानदार व्यक्ति नहीं है और वह एक सरल, निष्कपट व्यक्ति नहीं है, बल्कि वह शातिर दिमाग है, बहुत गूढ व्यक्ति है और दूसरों को धोखा देने में माहिर है। यह “दिखावा” शब्द की सबसे बुनियादी समझ है। तो ऐसे में मसीह-विरोधियों के व्यवहार और क्रियाकलापों और इस तरह के व्यवहार के बीच क्या संबंध है? वे ऐसा क्या करते हैं जो दिखाता है कि उनमें दिखावे का सार है? दिखावे में संलिप्त होने का उनका असली उद्देश्य क्या है? असल में उनका इरादा क्या है? उन्हें दिखावा क्यों करना पड़ता है? ये चीजें उस विषय से बहुत गहरे संबंध रखते हैं, जिस पर हम आज संगति करेंगे।
मसीह-विरोधी वे लोग हैं जो दूसरों के पीछे रहने को तैयार नहीं हैं। वे दूसरों पर निर्भर होने, दूसरे लोगों का आदेश, निर्देश और आज्ञा मानने को तैयार नहीं हैं और वे साधारण बने रहने और दूसरों द्वारा तुच्छ समझे जाने के लिए तैयार नहीं हैं। बल्कि वे ऐसे लोग होते हैं, जो प्रतिष्ठा चाहते हैं, चाहते हैं कि दूसरे लोग उन्हें बहुत सम्मान दें और बहुत महत्व दें। इसके अतिरिक्त, कलीसिया में और दूसरे लोगों के बीच वे और भी अधिक ऐसे व्यक्ति बनना चाहते हैं, जो दूसरों को आदेश दें, दूसरों को अपने लिए काम करने का निर्देश दें। वे अपनी प्रतिष्ठा, प्रभाव तथा शक्ति के जरिए अपनी इच्छाएँ पूरी करना चाहते हैं और वे साधारण लोग बनना नहीं चाहते, जिसे कोई भी आदेश और काम करने का निर्देश दे सके। ये वे अनुसरण और इच्छाएँ हैं जो अन्य लोगों के बीच मसीह-विरोधियों में होती हैं। जब बात दूसरों के बीच अपनी हैसियत की हो तो मसीह-विरोधी बहुत संवेदनशील हो जाते हैं। समूह में होने पर, उनका मानना है कि उनकी उम्र कोई मायने नहीं रखती, उनका शारीरिक स्वास्थ्य कोई मायने नहीं रखता। मायने यह रखता है कि अधिकांश लोग उन्हें कैसे देखते हैं, अधिकांश लोग उन्हें समय देते हैं या नहीं और अपने भाषणों तथा क्रियाकलापों में उन्हें स्थान देते हैं या नहीं, अधिकांश लोगों के दिलों में उनकी हैसियत और उनका स्थान ऊँचा है या साधारण, अधिकांश लोग उन्हें बड़ा आदमी मानते हैं या साधारण या उन्हें कुछ खास नहीं मानते, आदि; अधिकांश लोग उनकी परमेश्वर में आस्था रखने की योग्यता को कैसे देखते हैं, लोगों में उनकी बातों का वजन कितना है, अर्थात् कितने लोग उनकी बातों का अनुमोदन करते हैं, कितने लोग उनकी प्रशंसा करते हैं, उन्हें समर्थन देते हैं, उन्हें ध्यान से सुनते हैं और वे जो कुछ कहते हैं उसे आत्मसात करते हैं; इसके अतिरिक्त, अधिकांश लोगों की नजर में, उनकी आस्था बहुत ज्यादा है या बहुत कम, पीड़ा सहन करने का उनका दृढ़ निश्चय कैसा है, वे कितना त्याग करते हैं और कितना खपते हैं, परमेश्वर के घर में उनका योगदान कितना है, परमेश्वर के घर में उनका पद उच्च है या निम्न, अतीत में उन्होंने कौन-सी पीड़ा झेली है और उन्होंने कौन-से महत्वपूर्ण काम किए हैं—यही वे चीजें हैं, जिनके बारे में वे सबसे ज्यादा चिंतित रहते हैं। मसीह-विरोधी अक्सर अपने मन में पद और क्रम का आकलन करते हैं, अक्सर तुलना करते हैं कि कलीसिया में सबसे ज्यादा गुणी कौन है, कलीसिया में सबसे बेहतर वक्ता और वाक्पटु कौन है, व्यावसायिक रूप से सबसे ज्यादा कुशल कौन है और प्रौद्योगिकी के मामले में सबसे ज्यादा दक्ष कौन है। जब वे इन चीजों की तुलना करते हैं, तब वे विभिन्न व्यावसायिक कौशलों का अध्ययन करने का प्रयास करते रहते हैं और इनमें दक्षता और महारत हासिल करने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं। मसीह-विरोधी मुख्य रूप से उपदेश देने और परमेश्वर के वचनों की इस तरह से व्याख्या करने के लिए कोशिश करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जिससे उनकी प्रतिभा का प्रदर्शन हो और दूसरे लोग उन्हें सम्मान दें। जब वे ऐसा प्रयास कर रहे होते हैं, तब वे यह जानने का प्रयास नहीं करते कि सत्य को कैसे समझें या सत्य वास्तविकता में कैसे प्रवेश करें, बल्कि इसकी जगह वे यह सोच रहे होते हैं कि इन शब्दों को कैसे याद किया जाए, वे और ज्यादा लोगों के सामने कैसे अपने गुणों का प्रदर्शन कर सकते हैं जिससे कि और ज्यादा लोग जान सकें कि वे वाकई कुछ हैं, कि वे महज साधारण लोग नहीं हैं बल्कि वे सक्षम हैं और यह कि वे साधारण लोगों से ऊँची श्रेणी में हैं। इस तरह के विचारों, इरादों और मतों को प्रश्रय देते हुए, मसीह-विरोधी लोगों के बीच रहते हैं और सब तरह की अलग-अलग चीजें करते रहते हैं। चूँकि यह उनकी राय है और चूँकि उनके ये लक्ष्य और महत्वाकाक्षांएँ हैं, वे अच्छे व्यवहार, सही कथन और छोटे-बड़े सभी प्रकार के अच्छे क्रियाकलाप करने के अलावा कुछ नहीं कर सकते। ये व्यवहार और क्रियाकलाप उन लोगों को, जिन्हें कोई आध्यात्मिक समझ नहीं है, जो मूलतः सत्य का अनुसरण नहीं करते और जो केवल अच्छे आचरण पर ध्यान केंद्रित करते हैं, मसीह-विरोधियों से ईर्ष्या और उनकी प्रशंसा करने और यहाँ तक कि उनकी नकल और अनुसरण करने के लिए प्रेरित करते हैं, और इस तरह मसीह-विरोधियों का लक्ष्य पूरा हो जाता है। जब मसीह-विरोधी ऐसे इरादे और महत्वाकांक्षाएँ रखते हैं, तो वे कैसे व्यवहार करते हैं? इसी विषय पर हम आज संगति करेंगे। यह विषय संगति के लिए उपयुक्त है और इससे भी अधिक यह तुम में से प्रत्येक के लिए ध्यान देने और जानने योग्य विषय है।
मसीह-विरोधी सत्य के विरोधी होते हैं, वे सत्य बिल्कुल नहीं स्वीकारते—जो स्पष्ट रूप से एक तथ्य की ओर संकेत करता है : मसीह-विरोधी कभी सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य नहीं करते, वे कभी सत्य का अभ्यास नहीं करते—जो कि एक मसीह-विरोधी की सबसे मुखर अभिव्यक्ति है। प्रतिष्ठा और हैसियत के अलावा, आशीष और पुरस्कार पाने के अलावा, दूसरी चीज है दैहिक-सुख और हैसियत से जुड़े लाभ, जिसे पाने के पीछे वे भागते हैं; और ऐसी स्थिति में वे स्वाभाविक रूप से विघ्न-बाधाएँ पैदा करते हैं। इन तथ्यों से पता चलता है कि वे जिन चीजों के पीछे भागते हैं, और जैसा उनका व्यवहार और अभिव्यक्तियाँ हैं, वे सारी चीजें परमेश्वर को नापसंद हैं। और ये सब सत्य का अनुसरण करने वाले लोगों का क्रियाकलाप और व्यवहार तो बिल्कुल नहीं होता। उदाहरण के लिए, कुछ मसीह-विरोधी जो पौलुस की तरह होते हैं, वे कर्तव्य करते समय कष्ट उठाने का संकल्प लेते हैं, पूरी-पूरी रात जागते हैं, बिना खाए-पिए काम करते रहते हैं, अपने शरीर वश में रख सकते हैं, किसी भी बीमारी और परेशानी से निकल सकते हैं। यह सब करने का उनका उद्देश्य क्या होता है? इसके जरिए वे लोगों को यह दिखाना चाहते हैं कि जब परमेश्वर के आदेश की बात आती है तो वे खुद को दरकिनार कर आत्म-त्याग कर सकते हैं; उनके लिए कर्तव्य ही सबकुछ है। वे यह सब दिखावा लोगों के सामने करते हैं, जब लोग आसपास होते हैं, तो वे जब आराम करना चाहिए, तब आराम नहीं करते, बल्कि जानबूझकर देर तक काम करते हैं, जल्दी उठते हैं और देर से सोने जाते हैं। लेकिन मसीह-विरोधी जब सुबह से शाम तक खुद को इस तरह थकाते हैं तो कर्तव्य निभाने में उनकी कार्यकुशलता और प्रभावशीलता के बारे में क्या कहेंगे? ये बातें तो उनकी सोच के दायरे से ही बाहर होती हैं। वे यह सब सिर्फ लोगों के सामने करने की कोशिश करते हैं, ताकि लोग उनका कष्ट देख सकें, और यह देख सकें कि वे अपने बारे में सोचे बिना किस तरह खुद को परमेश्वर के लिए खपाते हैं। वे इस बारे में बिल्कुल नहीं सोचते कि वे जो कर्तव्य कर रहे हैं और जो काम कर रहे हैं, वह सत्य सिद्धांतों के अनुसार हो भी रहा है या नहीं, वे इसके बारे में थोड़ा भी नहीं सोचते। वे केवल यही सोचते हैं कि सभी लोग उनके अच्छे व्यवहार को देख रहे हैं या नहीं, सबको इसकी जानकारी हो रही है या नहीं, क्या उन्होंने सब पर अपनी छाप छोड़ दी है और क्या यह छाप उनमें प्रशंसा और स्वीकार्यता का भाव पैदा करेगी, क्या ये लोग उनकी पीठ पीछे उन्हें शाबाशी देंगे और उनकी प्रशंसा करते हुए कहेंगे, “ये लोग वास्तव में कष्ट सह सकते हैं, इनकी सहनशक्ति और असाधारण दृढ़ता की भावना हममें से किसी के बस की बात नहीं। ये वे लोग हैं जो सत्य का अनुसरण करते हैं, जो कष्ट सहकर भारी बोझ उठा सकते हैं, ये लोग कलीसिया के स्तंभ हैं।” यह सुनकर मसीह-विरोधी सन्तुष्ट हो जाते हैं। मन में सोचते हैं, “मैं कितना चतुर हूँ जो ऐसा दिखावा किया, ऐसा करके मैंने कितनी चालाकी की! मुझे पता था कि लोग सिर्फ बाहर की चीजें देखते हैं, और उन्हें ये अच्छे व्यवहार पसंद है। मुझे पता था कि अगर मैं इस तरह से पेश आऊँगा, तो इससे लोगों की स्वीकृति मिलेगी, इससे मुझे शाबाशी मिलेगी, वे लोग तहेदिल से मेरी प्रशंसा करेंगे, और इस तरह वे मुझे पूरी तरह एक नई रोशनी में देखेंगे, और फिर कभी कोई मुझे हिकारत से नहीं देखेगा। और अगर कभी ऊपरवाले को पता चल भी गया कि मैं असली काम नहीं कर रहा और मुझे बर्खास्त कर दिया गया, तो निस्संदेह बहुत से लोग मेरे समर्थन में खड़े हो जाएँगे, जो मेरे लिए रोएँगे, मुझसे रुकने का आग्रह करेंगे और मेरे पक्ष में बोलेंगे।” वे गुप्त रूप से अपने नकली व्यवहार पर आनंदित रहते हैं—और क्या यह आनंद भी एक मसीह-विरोधी के प्रकृति सार को प्रकट नहीं करता? और यह क्या सार है? (दुष्टता।) सही है—यह दुष्टता का सार ही है। दुष्टता के इस सार के नियंत्रण में, मसीह-विरोधी आत्मतुष्टि और आत्मप्रशंसा की स्थिति उत्पन्न करते हैं, जिसके कारण वे गुप्त रूप से अपने दिल में परमेश्वर के विरुद्ध हल्ला मचाते हैं और उसका विरोध करते हैं। ऊपरी तौर पर, वे बड़ी कीमत चुकाते-से दिखते हैं और उनकी देह काफी पीड़ा सहती है, लेकिन क्या वे सच में परमेश्वर के बोझ के प्रति विचारशील हैं? क्या वे सच में परमेश्वर के लिए खुद को खपाते हैं? क्या वे अपना कर्तव्य निष्ठापूर्वक कर सकते हैं? नहीं, वे नहीं कर सकते। अपने दिल में वे गुप्त रूप से परमेश्वर से प्रतिस्पर्धा करते हैं, सोचते हैं, “क्या तुमने नहीं कहा कि मैं सत्य से रहित हूँ? क्या तुमने नहीं कहा कि मेरा स्वभाव भ्रष्ट है? क्या तुमने नहीं कहा कि मैं घमंडी और दंभी हूँ और यह कि मैं अपना राज्य स्थापित करने का प्रयास करता हूँ? क्या तुमने नहीं कहा कि मुझे कोई आध्यात्मिक समझ नहीं है, कि मैं सत्य को नहीं समझता और इसलिए सेवाकर्ता हूँ? मैं तुम्हें दिखाऊँगा कि मैं कैसे सेवा देता हूँ और जब मैं इस तरह सेवा देता हूँ और इस तरह काम करता हूँ तो भाई-बहन मेरे बारे में क्या सोचते हैं। मैं तुम्हें दिखाऊँगा कि मैं इस तरह काम करके और अधिक लोगों की सराहना पा सकता हूँ या नहीं। और एक दिन जब तुम मुझे दूर भेजना और मेरी निंदा करना चाहोगे तो मैं देखूँगा कि असल में तुम इसका प्रबंधन कैसे करते हो!” मसीह-विरोधी अपने दिल में इस तरह से परमेश्वर से प्रतिस्पर्धा करते हैं और सत्य के अनुसरण को इन अच्छे व्यवहारों से बदलने का प्रयास करते हैं। ऐसा करके वे परमेश्वर द्वारा कार्य करके लोगों को सत्य का अभ्यास करने की ओर ले जाने के उस व्यावहारिक प्रभाव को बेअसर करने का प्रयास करते हैं जिससे वे स्वभावगत बदलाव प्राप्त कर सकते हैं। सार रूप में, वे इस व्याख्या का उपयोग न्याय और ताड़ना के जरिए मनुष्य को बचाने के परमेश्वर के कार्य को नकारने और उसकी निंदा करने के लिए करते हैं और वे विश्वास करते हैं कि परमेश्वर द्वारा लोगों का न्याय करना गलत और अप्रभावी है। मसीह-विरोधियों के ये विचार और दृष्टिकोण दुष्ट, कपटी, परमेश्वर के प्रतिरोधी और परमेश्वर के विरुद्ध हैं। जब परमेश्वर ने उनकी स्पष्ट रूप से निंदा नहीं की हो, तो वे अपने दिल में परमेश्वर से प्रतिस्पर्धा करना शुरू कर देते हैं; जब परमेश्वर ने उनका खुलासा और उनके व्यवहार की निंदा नहीं की हो, तब वे दूसरों को गुमराह करने और लोगों का दिल जीतने के लिए दिखावे का उपयोग करने लगते हैं ताकि परमेश्वर के वचनों को नकार सकें और इस तथ्य को नकार सकें कि केवल सत्य का अनुसरण करके ही स्वभाव में बदलाव लाया जा सकता है और परमेश्वर के इरादे पूरे किए जा सकते हैं। क्या यह उनकी व्याख्या का सार नहीं है? क्या मसीह-विरोधियों का स्वभाव दुष्ट नहीं है? अपनी पीड़ा के पीछे, वे ऐसी महत्वाकांक्षाएँ और मिलावटें पालते हैं और इसी कारण से परमेश्वर ऐसे लोगों और ऐसे स्वभाव से घृणा करता है। लेकिन, मसीह-विरोधी कभी भी इस तथ्य को नहीं देखते या स्वीकार नहीं करते। परमेश्वर मनुष्य के अंतरतम हृदय की पड़ताल करता है, जबकि मनुष्य, मनुष्य का केवल बाहरी रूप देखता है—मसीह-विरोधियों के बारे में सबसे बेवकूफी वाली बात ये है कि वे इस तथ्य को स्वीकार नहीं करते, न ही इसे देख सकते हैं। और इसलिए वे खुद को लोगों के सामने प्रस्तुत करने और आकर्षक दिखाने के लिए अच्छे व्यवहार का उपयोग करने का हर संभव प्रयास करते हैं, ताकि दूसरे यह सोचें कि वे कष्ट और कठिनाई झेल सकते हैं, वह पीड़ा झेल सकते हैं जो आम लोग नहीं झेल सकते, वह काम कर सकते हैं जो आम लोग नहीं कर सकते, ताकि दूसरे लोग यह सोचें कि उनमें सहनशक्ति है, कि वे अपने शरीर को वश में कर सकते हैं, और उन्हें अपने स्वयं के दैहिक हितों या आनंद की कोई परवाह नहीं है। कभी-कभी तो वे इरादतन अपने कपड़े तब तक पहनेंगे, जब तक कि वे थोड़े गंदे न हो जाएँ और उन्हें धोएँगे नहीं, यहाँ तक कि तब भी नहीं धोएँगे जब उनमें से बदबू आने लग जाए; वे वह सब कुछ करेंगे जिससे दूसरे लोग उनकी आराधना करें। जितना ज्यादा वे दूसरों के सामने जाएँगे, उतना ही ज्यादा वे हरसंभव दिखावा करेंगे, ताकि लोग देख सकें कि वे सामान्य लोगों से अलग हैं, कि परमेश्वर के लिए खुद को खपाने की उनकी इच्छा सामान्य लोगों से ज्यादा है, कि पीड़ा सहने का उनका निश्चय सामान्य लोगों से ज्यादा दृढ़ है और यह कि उनमें कष्ट सहने की क्षमता सामान्य लोगों से अधिक है। मसीह-विरोधी इस तरह की परिस्थितियों में ऐसे व्यवहार करते हैं और इन व्यवहारों के पीछे मसीह-विरोधियों की दिली इच्छा ये होती है कि लोग उनकी आराधना करें और उनके बारे में ऊंचा सोचें। और जब वे अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेते हैं, जब उन्हें लोगों से प्रशंसा सुनने को मिलती है और जब वे देखते हैं कि लोग उन्हें ईर्ष्या, प्रशंसा और सराहना के भाव से देखते हैं, तब वे अपने दिल में प्रसन्न और संतुष्ट होते हैं।
मसीह-विरोधियों के पीड़ा सहन करने और कीमत चुकाने वाले सतही अच्छे व्यवहार तथा असल में परमेश्वर के इरादों के लिए विचारशील होने, वफादार होने और परमेश्वर के लिए अपने-आप को ईमानदारी से खपाने वाला होने में क्या अंतर है? (इरादा अलग है। जो खुद को परमेश्वर के लिए वास्तव में खपाते हैं, वे सिद्धांतों की खोज पर, काम के नतीजों पर और काम की दक्षता पर ध्यान केन्द्रित करेंगे। मसीह-विरोधी खुद को परमेश्वर के लिए खपाते दिखेंगे, लेकिन यह केवल दूसरों से सम्मान प्राप्त करने के लिए होगा। वे काम की दक्षता और काम के नतीजों की बिल्कुल चिंता नहीं करते।) सही है, उनके भाषणों तथा क्रियाकलापों के इरादों, प्रेरणा और स्रोत में अंतर है—यह बिल्कुल अलग है। जो लोग उनकी तरह पीड़ा सहन करते हैं और सत्य का अनुसरण करते हैं, वे इस पीड़ा के दौरान सिद्धांतों की तलाश करते हैं। सिद्धांतों की तलाश करना कम से कम यह दिखाता है कि उनमें समर्पण की मानसिकता है; वे अपने काम या अपने लिए काम करने का प्रयास नहीं करते, उनके क्रियाकलापों में समर्पण और परमेश्वर का भय मानने वाला दिल होता है और वे बिल्कुल स्पष्ट रूप से जानते हैं कि वे अपना कर्तव्य कर रहे हैं और मनुष्य के कामों में संलग्न नहीं हैं। हालांकि मसीह-विरोधी भी ऐसे ही पीड़ा सहते दिखाई देते हैं, लेकिन वे ऐसा आधे-अधूरे मन से करते हैं और इसका लोगों के सामने बस दिखावा करते हैं; वे सत्य सिद्धांतों की तलाश नहीं करते, उनके क्रियाकलापों में समर्पण या परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय नहीं होता, उनके दिल परमेश्वर के सामने उपस्थित नहीं होते और वे लोगों को जीतने और लोगों का समर्थन हासिल करने के लिए ऐसे व्यवहार और अभिव्यक्तियों का उपयोग करने का प्रयास करते हैं। यहाँ एक अंतर है, है ना? मसीह-विरोधियों के व्यवहार के सार को देखते हुए, क्या हम कह सकते हैं कि उनके द्वारा पीड़ा सहन करना केवल एक दिखावा है? (हाँ।) यह इस बात को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त है कि पीड़ा सहन करने का उनका व्यवहार और अभिव्यक्ति बस एक औपचारिकता है और लोगों के सामने दिखावा है—वे परमेश्वर के समक्ष कार्य नहीं कर रहे हैं। यह एक पहलू है। दूसरा पहलू यह है कि दिखावे और धोखेबाजी में मसीह-विरोधियों से ज्यादा पारंगत कोई नहीं होता—तो वे अनुकूलन में काफी सक्षम होते हैं और अक्सर लोगों को गुमराह करने और धोखा देने के लिए कुछ चालाकीपूर्ण तरीके उपयोग में लाते हैं, जिससे लोगों से अपनी आराधना करवाने के अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकें। वह यही काम सबसे अच्छी तरह कर सकते हैं, यह उनके खून में है, उनमें यह चालाकी और गिरगिट वाला सार जन्मजात होता है। उदाहरण के लिए, कुछ मसीह-विरोधी ऐसे होते हैं, जिनकी बातों और व्यवहार से लगता है कि वे बहुत दयालु और विनम्र हैं, जो कभी दूसरों की कमियाँ उजागर नहीं करते, जो सामंजस्य स्थापित करना जानते हैं, जो तुरंत दूसरों की आलोचना या निंदा नहीं करते, जो लोगों के निराश और कमजोर होने पर तुरंत मदद के लिए पहुँचते हैं। उन्हें देखकर लगता है कि वे सहृदय और दयालु हैं, अच्छे व्यक्ति हैं। जब लोग मुश्किल में होते हैं, वे कभी-कभी बातों से उनकी मदद करते हैं, और कभी-कभी कुछ क्रियाकलापों से; कभी-कभी ऐसा भी होता है कि वे उनकी मदद के लिए उन्हें कुछ पैसे या कोई वस्तु दान कर देते हैं। बाहर से उनके क्रियाकलाप अच्छे प्रतीत होते हैं। अधिकांश लोग सोचते हैं कि वे इसी प्रकार के व्यक्ति से मिलना और जुड़ना चाहते हैं; ऐसे लोग उन्हें डराने या परेशान करने का काम नहीं करेंगे और वे उनसे अधिक मदद ले सकते हैं—भौतिक या मानसिक सहयोग ले सकते हैं, उदाहरण के लिए, उच्च आध्यात्मिक सिद्धांतों, आदि में मदद। बाहर से, ऐसे लोग कुछ भी गलत नहीं करते : वे कलीसिया में विघ्न-बाधा उत्पन्न नहीं करते और जिस भी समूह में होते हैं, वहाँ तालमेल लाते प्रतीत होते हैं; उनके संचालन और मध्यस्थता में प्रत्येक व्यक्ति प्रसन्न दिखता है, लोग मिल-जुलकर रहते हैं और उनमें झगड़ा या विवाद नहीं होता। जब वे वहाँ होते हैं तो प्रत्येक व्यक्ति को लगता है कि वे एक-दूसरे के साथ कितनी अच्छी तरह मिल-जुलकर रहते हैं, वे एक-दूसरे के कितने करीब हैं। जब वे चले जाते हैं तो कुछ लोग एक दूसरे से गपशप करने लगते हैं, एक-दूसरे का बहिष्कार करने लगते हैं, ईर्ष्या करना और विवाद करना शुरू कर देते है; केवल जब ये मसीह-विरोधी उनके बीच होते हैं और शांति का आह्वान करते हैं, तभी सभी लोग बहस करना बंद करते हैं। ये मसीह-विरोधी अपने काम में बहुत सक्षम प्रतीत होते हैं, लेकिन एक चीज है, जो दिखाती है कि वे वास्तव में क्या कर रहे हैं : जिस किसी को वे सिखाते हैं और जिस किसी की वे अगुआई करते हैं है, उनमें से प्रत्येक व्यक्ति शब्द और धर्म-सिद्धांत बोल सकता है, वे सभी जानते हैं कि अपना रुतबा कैसे जताना है और दूसरों को उपदेश कैसे देना है, वे सभी जानते हैं कि लोगों की चापलूसी कैसे करनी है और उन्हें मक्खन कैसे लगाना है, वे जानते हैं कि कैसे ढ़ीला पड़ना है और धोखेबाज कैसे बनना है, वे जानते हैं कि किन लोगों को क्या कहना है, वे लोगों की खुशामद करना जानते हैं और बाहर से, बिल्कुल शांत दिखाई देते हैं। इन मसीह-विरोधियों ने कलीसिया को क्या बना दिया है? एक धार्मिक संगठन। और नतीजा क्या निकला? लोग अपने शैतानी फलसफों के अनुसार जीते हैं और सत्य का अनुसरण करने के इच्छुक नहीं हैं, और उनके पास कोई जीवन प्रवेश नहीं है, और उन्होंने पवित्र आत्मा के कार्य को बिल्कुल खो दिया है। इस तरह से मसीह-विरोधी भाई-बहनों को नुकसान पहुँचाते हैं और उन्हें तबाह कर देते हैं—और फिर भी, वे अभी भी सोचते हैं कि उन्होंने बड़ा योगदान दिया है, कि उन्होंने भाई-बहनों के लिए महान काम किए हैं और उन्हें महान आशीष दिलाए हैं। वे अक्सर भाई-बहनों को सिखाते हैं कि जब वे किसी भाई या बहन को समस्या में देखें तो उसके प्रति विनम्र और धैर्यवान, सहनशील और विचारशील बनें, कटुभाषी न बनें या दूसरों को ठेस न पहुँचाएँ, और वे दूसरों को निर्देश देते हैं कि बैठते या खड़े होते समय वे कौन-सी मुद्रा अपनाएँ या कौन-से वस्त्र पहनें। वे अक्सर भाई-बहनों को यह नहीं सिखाते कि सत्य को कैसे समझें या सत्य वास्तविकता में कैसे प्रवेश करें, बल्कि ये सिखाते हैं कि विनियमों का पालन और अच्छा व्यवहार कैसे करें। उनकी शिक्षाओं के तहत, लोगों का एक-दूसरे से मिलना-जुलना परमात्मा के वचनों पर आधारित नहीं होता है, न ही सत्य सिद्धांतों पर आधारित होता है, बल्कि लोगों को खुश रखने वाला व्यक्ति बनने के अंतर्वैयक्तिक फलसफों पर आधारित होती हैं। बाहर से, कोई भी एक दूसरे को नुकसान नहीं पहुँचाता, कोई भी दूसरे की विफलताएँ नहीं बताता, लेकिन कोई किसी को यह भी नहीं बताता कि वे वास्तव में क्या सोच रहे हैं और वे अपनी भ्रष्टता, विद्रोहीपन, कमियों और अपराधों के बारे में खुलकर बात नहीं करते हैं और उन पर संगति नहीं करते हैं। इसकी जगह, वे सतही स्तर पर बड़बड़ाते रहते हैं कि किसने पीड़ा सही है और कीमत चुकाई है, कौन अपने कर्तव्य करने में निष्ठावान रहा, कौन भाई-बहनों के लिए लाभप्रद रहा है, किसने परमेश्वर के घर में उल्लेखनीय योगदान दिया है, किसे सुसमाचार फैलाने के कारण गिरफ्तार किया गया है और दंड दिया गया है—वे इन्हीं विषयों पर बातें करते हैं। मसीह-विरोधी दूसरों के सामने खुद को आकर्षक ढंग से पेश करने और ढोंग करने के लिए केवल अच्छे व्यवहार—बाहर से विनम्र, धैर्यवान, सहनशील और मददगार होने—का ही उपयोग नहीं करते; वे दूसरों को इस अच्छे व्यवहार से संक्रमित करने के लिए व्यक्तिगत उदाहरण रखने की कोशिश भी करते हैं और उन्हें इसका अनुकरण करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। उनके अच्छे व्यवहार के पीछे का उद्देश्य केवल लोगों के आकर्षण का केंद्र बनना और लोगों को उनके बारे में ऊंचा सोचने के लिए प्रेरित करना है। जब परमेश्वर के चुने व्यक्ति अपने आत्मज्ञान के बारे में बोलते हैं और अपने भ्रष्ट स्वभावों का गहन विश्लेषण करते हैं, तब वे चुप रहते हैं और खुद अपनी भ्रष्टता का गहन विश्लेषण करने का कोई प्रयास बिल्कुल नहीं करते। जब भाई-बहन एक दूसरे की भ्रष्टता के खुलासों को उजागर करते हैं और काट-छांट करते हैं तो केवल मसीह-विरोधी ही सबके प्रति नम्रता, धैर्य और सहनशीलता का व्यवहार करते हैं; वे किसी के द्वारा प्रकट की गई भ्रष्टता को उजागर नहीं करते और यहाँ तक भाई-बहनों की उनके अच्छे व्यवहार और बदलाव के लिए सराहना और प्रशंसा भी करते हैं; वे प्रिय, विचारशील, सहनशील तथा राहत देने वाले व्यक्ति का अभिनय करते हुए लोगों को खुश रखने वाले व्यक्ति की भूमिका निभाते हैं। ये उन मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्तियाँ हैं जो दिखावा करने, धोखा देने और लोगों को गुमराह करने में सर्वाधिक माहिर हैं।
देखने में, मसीह विरोधियों की बातें हर तरह से दयालुतापूर्ण, सुसंस्कृत और विशिष्ट प्रतीत होती हैं। मसीह-विरोधी सिद्धांत का उल्लंघन करने, कलीसिया के कार्य में विघ्न-बाधा पैदा करने वाले को उजागर नहीं करते या उसकी आलोचना नहीं करते; वे आंखें मूंद लेते हैं, ताकि लोग यह सोचें कि वे हर मामले में उदार-हृदय हैं। लोगों ने चाहे किसी भ्रष्टता का खुलासा किया हो और जो भी दुष्कर्म करते हों, मसीह-विरोधीउसके प्रति सहानुभूति और सहनशीलता रखता है। वे क्रोधित नहीं होते, या अचानक आगबबूला नहीं हो जाते, जब वे कुछ गलत करते हैं और परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचाते हैं, तो वे लोगों को नाराज नहीं करेंगे और उन्हें दोष नहीं देंगे। चाहे कोई भी बुराई करे और कलीसिया के काम में बाधा डाले, वे कोई ध्यान नहीं देते, मानो इससे उनका कोई लेना-देना न हो, और वे इस कारण लोगों को कभी नाराज नहीं करेंगे। मसीह-विरोधी सबसे ज्यादा चिंता किस बात की करते हैं? इस बात की कि कितने लोग उनका सम्मान करते हैं, और जब वे कष्ट झेलते हैं तो कितने लोग उन्हें सम्मान देते हैं और इसके लिए उनकी प्रशंसा करते हैं। मसीह-विरोधी मानते हैं कि कष्ट कभी व्यर्थ नहीं जाना चाहिए; चाहे वे कोई भी कठिनाई सहें, कितनी भी कीमत चुकाएँ, कोई भी अच्छे कर्म करें, दूसरों के प्रति कितने भी दयालु, विचारशील और स्नेही हों, यह सब दूसरों के सामने किया जाना चाहिए, ताकि अधिक लोग इसे देख सकें। और ऐसा करने का उनका क्या उद्देश्य होता है? लोगों का समर्थन पाना, अपने कार्यों, आचरण और चरित्र के प्रति ज्यादा लोगों के दिलों में स्वीकृति बना पाना, शाबासी पाना। यहाँ तक कि ऐसे मसीह-विरोधी भी हैं, जो इस बाहरी अच्छे व्यवहार के माध्यम से अपनी छवि “एक अच्छे व्यक्ति” के रूप में स्थापित करने की कोशिश करते हैं, ताकि अधिक लोग मदद की तलाश में उनके पास आएँ। उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति कमजोर पड़ जाता है और विश्वास करता है कि अधिकांश लोग प्रेमविहीन हैं, कि वे बहुत स्वार्थी हैं और दूसरों की मदद करना पसंद नहीं करते और खुशमिजाज नहीं हैं और तब वे उस “अच्छे व्यक्ति” के बारे में सोचते हैं जो असल में मसीह-विरोधी होता है। या फिर, किसी को अपने काम में मुश्किल आती है और वह नहीं जानता कि इसका समाधान कैसे किया जाए। वह किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में नहीं सोच पाता जो उसकी मदद कर सके और जिस पहले व्यक्ति के बारे में वह सोच पाता है वह यही “अच्छा व्यक्ति” होता है जोकि असल में एक मसीह-विरोधी होता है। कोई व्यक्ति अब अपना कर्तव्य नहीं निभाना चाहता है, वह सांसारिक लक्ष्य पाना चाहता है, सत्ता और धन पाना चाहता है और अपना जीवन जीना चाहता है और भले ही वह बहुत निराश और कमजोर हो जाता है, वह परमेश्वर से प्रार्थना नहीं करता या किसी के साथ संगति नहीं करता, और इस परिस्थिति में वह उस “अच्छे व्यक्ति” के बारे में सोचता है जो असल में एक मसीह-विरोधी होता है। जैसे-जैसे चीजें इस तरह से आगे बढ़ती हैं, समस्याओं का सामना होने पर ये लोग परमेश्वर से प्रार्थना नहीं करते या अब परमेश्वर के वचनों का पाठ नहीं करते, बल्कि मदद के लिए इस “अच्छे व्यक्ति” पर भरोसा करना चाहते हैं जो असल में मसीह-विरोधी होता है। वे केवल इस चापलूस से ही दिल खोलकर अपनी बात कहते हैं, और इस चापलूस से अपनी कठिनाइयों का समाधान पूछते हैं; वे इस मसीह-विरोधी का समर्थन और अनुसरण करते हैं। और क्या इस तरह इस मसीह-विरोधी का लक्ष्य हासिल नहीं होता? जब मसीह-विरोधी अपना लक्ष्य हासिल कर लेता है, तो क्या कलीसिया में उसकी हैसियत साधारण लोगों की तुलना में ऊँची नहीं हो जाती? और जब वह पहले स्थान पर आ जाए और कलीसिया में बड़ा स्थान पा ले, तब क्या वह सचमुच संतुष्ट हो जाता है? नहीं, वह संतुष्ट नहीं होता। वह कौन-से लक्ष्य हासिल करना चाहता है? वह चाहता है कि और ज्यादा लोग उसे स्वीकृति दें, सम्मान दें और उसकी पूजा करें, लोगों के दिलों में उसका स्थान बने और खासकर जब परमेश्वर में आस्था रखने में लोगों को कठिनाई हो और उनके पास दूसरा कोई विकल्प न हो तो लोग उसकी ओर देखें, उस पर भरोसा करें और उसका अनुसरण करें। यह मसीह-विरोधी की पहले स्थान पर पहुँचने और कलीसिया में बड़ा स्थान पाने की इच्छा से भी कहीं ज्यादा गंभीर बात है। इसके विषय में इतनी गंभीर बात क्या है? (वे लोगों के दिल में जगह बनाने के लिए परमेश्वर से प्रतिस्पर्धा करते हैं। वे सीधे-सीधे परमेश्वर की जगह लेना चाहते हैं।) (ऐसे लोगों को पहचानना कठिन होता है। वे दूसरों को भ्रमित करने के लिए सतही तौर पर अच्छा व्यवहार करते हैं जिसके कारण किसी समस्या के सामने आने पर लोग आगे परमेश्वर के वचनों में सत्य की तलाश नहीं करते या सत्य पर संगति नहीं करते, बल्कि इसकी जगह इन मसीह-विरोधियों पर निर्भर रहते हैं और इनकी ओर देखते हैं, अपनी समस्या का समाधान इनसे करवाते हैं तथा इनके वचनों को सत्य मानते हैं, जिसके कारण ये लोग परमेश्वर से और अधिक दूर होते चले जाते हैं। यह अधिक कपटपूर्ण और दुर्भावनापूर्ण तरीका है।) यह सही है, तुम सब लोगों ने महत्वपूर्ण बिंदु को समझा और उसका उल्लेख किया है, जो यह है कि मसीह-विरोधी एक स्थिति रखते हैं और लोगों के दिलों में गहराई तक पैठ बनाते हैं और परमेश्वर की जगह लेना चाहते हैं। कोई कहता है, “अगर मैं परमेश्वर की तलाश में जाऊँ तो मैं उसे नहीं पा सकता; मैं उसे नहीं देख सकता। अगर मैं परमेश्वर के वचन जानना चाहूँ तो किताब इतनी मोटी है, उसमें बहुत सारे वचन हैं, और उत्तर ढूँढ़ना कठिन है। लेकिन अगर मैं इस व्यक्ति के पास जाता हूँ, तो मुझे तुरंत जवाब मिल जाता है; यह सुविधाजनक और लाभदायक दोनों है।” तुम देखो कि उनके क्रियाकलापों से लोग पहले से ही न केवल मन ही मन उनकी पूजा करने लगे हैं, बल्कि उनके लिए वहाँ एक जगह भी बन गई है। वे परमेश्वर की जगह लेना चाहते हैं—इन चीजों को करने के पीछे मसीह-विरोधी का यही लक्ष्य है। यह स्पष्ट है कि ये काम करके मसीह-विरोधी ने पहले ही प्रारंभिक सफलता प्राप्त कर ली है; इस मसीह-विरोधी के लिए इन अविवेकी लोगों के हृदय में पहले से ही स्थान है और कुछ लोग पहले से ही उसकी पूजा और उस पर भरोसा करते हैं। मसीह-विरोधी यही लक्ष्य हासिल करना चाहता है। अगर किसी को कोई समस्या होती है और वह मसीह-विरोधी को खोजने की जगह परमेश्वर से प्रार्थना करता है तो मसीह-विरोधी नाखुश हो जाता है और सोचता है, “तुम हमेशा परमेश्वर के पास क्यों जाते हो? तुम हमेशा परमेश्वर को क्यों याद करते हो? तुम मेरे पास क्यों नहीं आते या मुझे क्यों नहीं याद करते? मैं बहुत विनम्र और धैर्यवान हूँ, मैं चीजों का त्याग कर सकता हूँ और अपने को कितना खपा सकता हूँ और मैं परोपकार के लिए दान करता हूँ, इसलिए तुम मेरे पास क्यों नहीं आते? मैं तुम्हारी कितनी मदद करता हूँ। तुम्हें कोई समझ क्यों नहीं है?” वह अप्रसन्न और परेशान हो जाता है और उसे गुस्सा आता है—उस व्यक्ति पर और परमेश्वर पर गुस्सा आता है। अपना अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त करने के लिए, वह दिखावा करता रहता है, वह परोपकार के लिए दान करता रहता है और धैर्यवान तथा सहनशील बना रहता है, वह विनम्र दिखाई देता है, दयालुतापूर्वक बात करता है, कभी दूसरों का दिल नहीं दुखाता और जब लोग स्वयं को जानने का प्रयास कर रहे होते हैं तो वह अक्सर उन्हें सांत्वना प्रदान करता है। कोई कहता है : “मैं विद्रोही हूँ; मैं दानव और शैतान हूँ।” वह जवाब देता है : “तुम दानव या शैतान नहीं हो। यह बस एक छोटी-सी समस्या है। खुद को इतना नीचे मत गिराओ और इतना कम मत आंको। परमेश्वर ने हमें ऊँचा उठाया है; हम साधारण लोग नहीं हैं, और तुम्हें खुद को छोटा नहीं समझना चाहिए। तुम मुझसे कहीं बेहतर हो; मैं तुमसे ज्यादा भ्रष्ट हूँ। अगर तुम दानव हो, तो मैं एक दुष्ट दानव हूँ। अगर तुम दुष्ट दानव हो, तो मुझे तो नरक में जाना होगा और नरक का दुख भोगना पड़ेगा।” इस तरह वह लोगों की मदद करता है। अगर कोई स्वीकारता है कि उसने परमेश्वर के घर के हित में या कलीसिया के काम में कोई क्षति पहुँचाई है, तो मसीह-विरोधी उससे कहता है : “अपना कर्तव्य निभाते समय कलीसिया के काम को नुकसान पहुँचाना और थोड़ा भटक जाना कोई बड़ी बात नहीं है। मैंने भी पहले तुमसे कहीं ज़्यादा नुकसान पहुँचाया है और मैं कहीं ज्यादा टेढ़े-मेढ़े रास्तों से गुजरा हूँ। बस भविष्य में अपने काम करने के तरीके में बदलाव करो, यह कोई समस्या नहीं है। अगर तुम्हें लगता है कि तुम्हारा जमीर इसे सहन नहीं कर सकता तो मेरे पास कुछ पैसे हैं और मैं तुम्हारे बदले उस नुकसान की भरपाई कर दूँगा, इसलिए परेशान मत हो। अगर भविष्य में तुम्हें कोई समस्या आती है, तो सीधे मेरे पास आओ और मैं तुम्हारी मदद करने की हर संभव कोशिश करूँगा, और मुझसे जो भी हो सकेगा, मैं तुरंत करूँगा।” उसमें इस तरह की “व्यक्तिगत निष्ठा” की भावना होती है, लेकिन वह ऐसा वास्तव में किस लिए कर रहा है? क्या वह वास्तव में तुम्हारी मदद कर रहा है? वह तुम्हें नुकसान पहुँचा रहा है, तुम्हें खाई में धकेल रहा है—तुम शैतान के प्रलोभन में पड़ गए हो। वह तुम्हारे लिए गड्ढा खोदता है, और तुम सीधे उसमें कूद जाते हो; तुम जाल में फँस जाते हो और फिर भी सोचते हो कि सब बढ़िया है, और तुम जान भी नहीं पाते कि तुम्हें इस मसीह-विरोधी ने बर्बाद कर दिया—इतनी मूर्खता! शैतान और मसीह-विरोधी इसी तरह लोगों के साथ व्यवहार करते हैं, उन्हें गुमराह करते हैं और नुकसान पहुँचाते हैं। मसीह-विरोधी कहता है : “अगर तुम परमेश्वर के घर के हितों का थोड़ा-सा ध्यान रखो और भविष्य में थोड़ा सावधान रहो तो कोई दिक्कत नहीं है। इस मामले को सुधारा जा सकता है, कोई भी जानबूझकर ऐसा नहीं करेगा। हममें से कौन पूर्ण व्यक्ति है? हममें से कोई भी पूर्ण नहीं है; हम सभी भ्रष्ट हैं। मैं तुमसे बहुत ज्यादा बुरा था। चलो, हम भविष्य में एक-दूसरे को प्रोत्साहित करें। इसके अलावा, भले ही परमेश्वर के घर को कुछ नुकसान हुआ हो, परमेश्वर उसे याद नहीं रखेगा। परमेश्वर मनुष्य के प्रति बहुत क्षमाशील और सहिष्णु है। अगर हम एक-दूसरे के प्रति सहिष्णुता दिखा सकते हैं, तो क्या परमेश्वर को और भी अधिक सहिष्णु नहीं होना चाहिए? यदि परमेश्वर कहता है कि वह हमारे अपराधों को याद नहीं रखेगा, तो फिर हम आगे अपराधी नहीं रह जाते हैं।” किसी व्यक्ति ने चाहे कितनी भी बड़ी गलती की हो, मसीह-विरोधी यह दिखाने के लिए सिर्फ हँसी-मजाक करते हुए उस गलती को कम करके आंकता है और अनदेखा कर देता है, कि उसका दिल बहुत बड़ा है, और वह बहुत दयालु, महान और सहनशील है। इसके विपरीत, इससे लोग गलती से यह विश्वास करने लगते हैं कि परमेश्वर अपने कथनों में हमेशा लोगों की गलतियाँ उजागर करता है, हमेशा लोगों के भ्रष्ट स्वभावों के बारे में बढ़-चढ़कर बताता है, और हमेशा लोगों की छोटी-छोटी कमियाँ निकालता है। यदि कोई व्यक्ति अपराध करता है या विद्रोह करता है, तो परमेश्वर उसकी काट-छाँट करता है, उसका न्याय करता है और उसे ताड़ना देता है, और ऐसा लगता है कि वह लोगों के प्रति विचारशील नहीं है। जबकि, मसीह-विरोधी सभी परिस्थितियों में लोगों के प्रति सहिष्णु बना रह सकता है और उन्हें क्षमा कर सकता है; वह बहुत महान और सम्मानित व्यक्ति है। क्या यह ऐसा ही नहीं है? कुछ मसीह-विरोधी ऐसे भी हैं जो कहते हैं, “अविश्वासियों में एक कहावत है : 'समृद्ध और बड़े परिवार में, थोड़ी-बहुत बर्बादी से कोई फर्क नहीं पड़ता।' परमेश्वर का घर बहुत बड़ा है, और परमेश्वर प्रचुर आशीष देता है। थोड़ी-बहुत बर्बादी होना कोई बड़ी बात नहीं है; परमेश्वर हमें बहुत कुछ देता है। क्या हमने बहुत कुछ बर्बाद नहीं किया है? और तब परमेश्वर ने हमारे साथ कुछ किया है क्या? क्या परमेश्वर ने यह सब बर्दाश्त नहीं किया है? मनुष्य कमज़ोर और भ्रष्ट है, और परमेश्वर ने यह बहुत पहले ही देख लिया था, इसलिए यदि उसने यह देख लिया है तो वह हमें दंडित क्यों नहीं करता है? इससे सिद्ध होता है कि परमेश्वर धैर्यवान और दयावान है!” यह किस तरह की बात है? वे ऐसे शब्दों का उपयोग करते हैं, जो सही लगें और लोगों की धारणाओं के अनुरूप हों, जिससे लोगों को भ्रमित किया और लुभाया जा सके, उनकी दृष्टि को बिगाड़ा जा सके और उन्हें गुमराह किया जा सके, और जिससे वे परमेश्वर को समझने में गलती करें, ताकि उनमें परमेश्वर के प्रति समर्पण की थोड़ी-सी भी इच्छा या चाह न बचे। मसीह-विरोधियों द्वारा उकसाने, भ्रमित और गुमराह किए जाने के कारण, लोगों में जो थोड़ा-बहुत विवेक होता है, वे वह भी गँवा बैठते हैं और वे सभी मसीह-विरोधियों की आज्ञा का पालन और उनके प्रति समर्पण करना शुरू कर देते हैं।
विशेष रूप से दूसरे लोगों के आसपास होने पर मसीह-विरोधी दिखावा करने लगते हैं। फरीसियों की तरह ही, वे बाहर से लोगों के प्रति बहुत सहिष्णु और धैर्यवान, विनम्र और अच्छे स्वभाव वाले दिखाई देते हैं—वे हर व्यक्ति के लिए बहुत उदार और सहिष्णु प्रतीत होते हैं। समस्याओं का निपटान करते समय, वे हमेशा दिखाते हैं कि वे अपने पद और हैसियत के हिसाब से लोगों के प्रति कितने अधिक सहिष्णु हैं, और हर पहलू से वे उदार और खुले विचारों वाले दिखाई देते हैं, दूसरों में कमियाँ नहीं निकालते हैं और लोगों को दिखाते हैं कि वे कितने महान और दयालु हैं। वास्तव में, क्या मसीह-विरोधियों में सच में ये सार होते हैं? वे दूसरों की भलाई के लिए कार्य करते हैं, लोगों के प्रति सहिष्णु होते हैं, और सभी परिस्थितियों में लोगों की मदद कर सकते हैं, लेकिन इन चीजों को करने के पीछे उनका गुप्त प्रयोजन क्या है? अगर वे लोगों का दिल जीतने और उनका समर्थन खरीदने की कोशिश नहीं कर रहे होते तो क्या तब भी ये सब काम करते? क्या बंद दरवाजों के पीछे भी मसीह-विरोधी सच में ऐसे ही होते हैं? क्या वे वास्तव में वैसे ही होते हैं जैसे वे दूसरे लोगों के आसपास होने पर दिखाई देते हैं—विनम्र और धैर्यवान, दूसरों के प्रति सहिष्णु और प्रेम से दूसरों की मदद करने वाले? क्या उनका सार और स्वभाव ऐसा ही है? क्या उनका चरित्र ऐसा ही है? बिल्कुल नहीं। वे जो कुछ भी करते हैं वह दिखावा है और लोगों को गुमराह करने और लोगों का समर्थन पाने के लिए करते हैं, ताकि और भी लोगों के दिलों पर उनका अनुकूल प्रभाव पड़े और ताकि लोग उन्हें सबसे पहले रखें और जब भी कोई समस्या हो तो उनकी मदद लें। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, मसीह-विरोधी दूसरों के सामने दिखावा करने, सही बातें कहने और सही चीजें करने की सोच-समझकर योजना बनाते हैं। कौन जानता है कि बोलने के पहले वे अपने शब्दों को अपने दिमाग में कितनी बार छानेंगे या संसाधित करेंगे। वे सोच-समझकर योजना बनाएँगे और दिमाग लगाएँगे, अपने शब्दों, मुद्राओं, स्वर, आवाज और यहाँ तक कि लोगों को दिखाए जाने वाले हावभाव और बोलने के लहजे पर भी विचार करेंगे। वे इस बात पर विचार करेंगे कि वे किससे बात कर रहे हैं, वह व्यक्ति वृद्ध है या युवा, उस व्यक्ति की हैसियत उनसे अधिक है या कम, वह व्यक्ति उनका सम्मान करता है या नहीं, क्या वह व्यक्ति निजी तौर पर उनसे नाखुश है, उस व्यक्ति का व्यक्तित्व उनके व्यक्तित्व से मेल खाता है या नहीं, वह व्यक्ति क्या काम करता है, और कलीसिया में और अपने भाई-बहनों के दिलों में उसका क्या स्थान है। वे इन बातों का गौर से अवलोकन करेंगे और ध्यान से उन पर विचार करेंगे, और विचार करने के बाद वे तय करते हैं कि विभिन्न प्रकार के लोगों से कैसे मिलना चाहिए। चाहे मसीह-विरोधी विभिन्न प्रकार के लोगों के साथ जैसा भी व्यवहार करते हों, उनका लक्ष्य यही है कि लोग उन्हें सम्मान दें, लोग उन्हें बराबर का न मानें, बल्कि उनका आदर करें, जब वे बोलें तो और भी अधिक लोग उनकी प्रशंसा और उन पर भरोसा करें, जब वे कुछ करें तो उन्हें प्रोत्साहित करें और उनका अनुसरण करें, और जब वे कोई गलती करें तो उन्हें निरपराध ठहराएँ और उनका बचाव करें, और उनका खुलासा होने तथा उन्हें अस्वीकार किए जाने पर उनकी ओर से ज्यादा लोग संघर्ष करें, उनकी ओर से उग्र शिकायत करें और तर्क-वितर्क करें और परमेश्वर का विरोध करने के लिए आगे आएँ। जब उनके हाथ से सत्ता जाए तो सहायता के लिए, समर्थन व्यक्त करने और साथ देने के लिए उनके पास बहुत से लोग हों, जो दर्शाता है कि मसीह-विरोधियों ने कलीसिया में जिस हैसियत और सत्ता को पाने के लिए जानबूझकर योजना बनाई है, उसने लोगों के दिलों में गहराई से जड़ें जमा ली हैं, और यह कि उनका “श्रमसाध्य प्रयास” व्यर्थ नहीं गया है।
मसीह-विरोधी, लोगों के बीच अपना रुतबा, प्रतिष्ठा, सम्मान और अधिकार बनाए और बचाए रखने के लिए पूरी कोशिश करते हैं—वे कमजोर नहीं पड़ेंगे, कोमल हृदय नहीं बनेंगे और यहाँ तक कि वे थोड़े-से भी लापरवाह नहीं होंगे। वे हर व्यक्ति की आँखों से अभिव्यक्त होने वाले भावों, उनके व्यक्तित्व, उनकी दिनचर्याओं, उनके अनुसरणों, सकारात्मक और नकारात्मक चीजों के प्रति उनके रवैयों आदि को गौर से देखते हैं और इसके अलावा, वे दूसरे प्रत्येक व्यक्ति की आस्था और परमेश्वर में उनके विश्वास की निष्ठा तथा परमेश्वर के लिए स्वयं को खपाने और अपने कर्तव्य निभाने के प्रति उनके रवैये आदि को गौर से देखते हैं—वे इन चीजों का पता लगाने पर काफी मेहनत करते हैं। तो अपने इस रवैये के आधार पर, वे स्वयं को सत्य का अनुसरण करने वालों से और अपनी परख कर सकने वालों से बचाते और सुरक्षित रखते हैं और ऐसे लोगों के आसपास होने पर सावधानीपूर्वक बोलते और कार्य करते हैं। जब वे अपेक्षाकृत कमजोर व्यक्तित्व वाले ऐसे लोगों के इर्द-गिर्द होते हैं जो अक्सर नकारात्मक होते हैं और सत्य को नहीं समझते हैं, और जो मूर्ख होते हैं और सत्य की कम समझ रखते हैं, तब वे अपने प्रदर्शन की बार-बार हर संभव कोशिश करते हैं, लगातार इस तरह प्रदर्शन करते हैं मानो सर्कस में अभिनय कर रहे हों और प्रदर्शन करने के हर अवसर का लाभ उठाते हैं। उदाहरण के लिए, जब सभाओं में ज्यादातर लोग उन्हें स्वीकार करते हैं, कुछ लोग उनसे घृणा करते हैं, और इससे भी ज्यादा लोगों को उनके बारे में कोई समझ नहीं होती है, और तब वे प्रदर्शन शुरू करते हैं और संगति देने के अवसर तलाशते हैं। वे अपने निजी अनुभवों, अपने पिछले “शानदार इतिहास,” परमेश्वर के घर में हासिल किए गए गुण और यहाँ तक कि ऊपरवाले ने किस तरह उनकी सराहना की है और कैसे व्यक्तिगत रूप से उनकी काट-छाँट की है, इस पर संगति देते हैं—वे इस तरह के एक भी अवसर को अपने हाथ से जाने नहीं देते। चाहे वे किसी के साथ हों या कोई भी अवसर हो, मसीह-विरोधी हमेशा एक ही काम करते हैं : वे प्रदर्शन करते हैं; यानी, वे वाहवाही लूटने में लगे रहते हैं। मसीह-विरोधियों का सार यही है : वे सत्य से विमुख, दुष्ट और निर्लज्ज हो जाते हैं। वे अपने प्रदर्शन में किस हद तक चले जाते हैं? शायद तुम लोगों ने खुद भी कुछ को देखा होगा। उनमें से कुछ को स्पष्ट रूप से प्रदर्शन करते, दिखावा करते, लोगों का दिल जीतते और उन अवसरों का लाभ उठाते हुए देखा जा सकता है जिससे दूसरे उनके बारे में अच्छा सोचें। कुछ लोग उनसे घृणा करते हैं, कुछ उन्हें अनदेखा करते हैं और उनका मजाक भी उड़ाते हैं, लेकिन उन्हें इसकी परवाह नहीं है। उन्हें किस बात की परवाह है? उन्हें इस बात की परवाह है कि उनका प्रदर्शन लोगों पर गहरी छाप छोड़े, लोगों को यह लगे कि वे कोई बात कहने की कितनी हिम्मत रखते हैं, यानी कि उनमें साहस है, अगुआओं की शैली है, अगुआ बनने की प्रतिभा है, उन्हें सबके सामने मंच संभालने में डर नहीं लगता और इससे भी बढ़कर ये बात है कि वे बिना घबराहट के चीजों को संभालने की क्षमता रखते हैं। जब वे लोगों को ये बातें समझा और दिखा पाते हैं तो उन्हें संतुष्टि होती है और यही कारण है कि जब भी उन्हें ऐसा करने का अवसर मिलता है तो वे अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं और वे निर्बाध, निःसंकोच और बेझिझक होकर प्रदर्शन करते हैं। मसीह-विरोधी यही करते हैं। अगर मैं हमेशा सभाओं में मुख्य विषय पर संगति करूँ तो कुछ लोग मुझे सुनते समय ऊँघने लगते हैं। या फिर, जब मैं मुख्य विषय पर संगति करता हूँ तो लोगों का दिमाग तब भी दूसरी चीजों पर लगा रहता है और जो मैं कह रहा होता हूँ उस पर ध्यान देना उनके लिए आसान नहीं होता। ऐसी परिस्थितियों में, मैं थोड़ी बातचीत करता हूँ, कोई कहानी या कोई चुटकुला सुनाता हूँ। ये चीजें और कहानियाँ अक्सर कुछ भ्रष्ट स्वभावों व स्थितियों से संबंधित होती हैं जिन्हें लोग अपने जीवन में प्रकट करते हैं। मैं लोगों को जगाने के लिए कहानियाँ या कोई चुटकुला सुनाता हूँ, ताकि वे थोड़ा बेहतर तरीके से समझ सकें। जब मसीह-विरोधी यह देखते हैं तो वे सोचते हैं, “तुम सभाओं में अपने उपदेशों में चुटकुले सुनाते हो। मैं भी ऐसा कर सकता हूँ, मैं भी इसमें उतना ही अच्छा हूँ जितने तुम हो। मैं बस ऐसे ही कोई बेकार-सा चुटकुला सुनाऊँगा और हर व्यक्ति को हँसा दूँगा और हर कोई इसका आनंद लेगा—कितना बढ़िया रहेगा! मैं बस ऐसे ही कोई कहानी सुनाऊँगा, और फिर कोई भी सभाओं में शामिल नहीं होना चाहेगा, वे बस मेरी कहानियाँ सुनना चाहेंगे।” वे इस बात पर मेरे से प्रतिस्पर्धा करते हैं। क्या इस पर मेरे से प्रतिस्पर्धा करने का कोई अर्थ है? मैं कहानियाँ क्यों सुनाता हूँ? मैं बातचीत क्यों करता हूँ? लोग मेरे वार्तालाप और कहानियों से कुछ चीजें समझ सकते हैं और इससे उन्हें सत्य को सहजता से समझने में मदद मिलती है—मेरा ये प्रयोजन है। फिर भी, मसीह-विरोधी इस बात को पकड़ लेते हैं और इसका यह कहते हुए फायदा उठाने की कोशिश करते हैं कि “सभाओं के दौरान समय बहुत महत्वपूर्ण और निर्णायक होता है, तुम बस बातचीत में लगे रहते हो, तो मैं भी यही करूँगा।” क्या बातचीत हमेशा एक जैसी होती है? मसीह-विरोधी, ये रद्दी लोग, सत्य को समझते तक नहीं तो उनकी बातचीत से क्या फायदा होगा? उनकी कहानियों और चुटकुलों से क्या फायदा होगा? बिना आध्यात्मिक समझ वाले ये जानवर सत्य पर संगति करने और कहानियाँ कहने के गंभीर विषयों को बहुत ही सतही और लापरवाह तरीके से लेते हैं। किस तरह के लोग ऐसा करते हैं? मसीह-विरोधी, आध्यात्मिक समझ न रखने वाले लोग, और वे लोग जो सत्य का अनुसरण नहीं करते, ऐसे काम करना पसंद करते हैं।
भाई-बहनों की आँखें, ज्यादातर लोगों की आँखें, मसीह-विरोधियों द्वारा किए जाने वाले दिखावे के कामों में लगभग कोई गलती नहीं ढूँढ़ पाती हैं। ऐसा क्यों होता है? ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मसीह-विरोधी अपनी गलतियों को छिपा लेते हैं और तुम्हें उन्हें देखने नहीं देते; वे अपना दुष्ट पक्ष, अपना लंपट पक्ष और अपना बुरा पक्ष बंद दरवाजों के पीछे छिपाए रखते हैं। “बंद दरवाजों के पीछे” की जगह कहाँ है? ये वो जगहें हैं जिन्हें तुम नहीं देख सकते, यानी उनके अपने घर में, समाज में, अपने कार्यस्थल पर, अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के सामने; यही वे इलाके हैं, जिन्हें तुम नहीं देख सकते या जिनके तुम संपर्क में नहीं आ सकते। उनके शब्द और व्यवहार जिन्हें तुम देख सकते हो और जिनके संपर्क में आ सकते हो, यह पूरी तरह से उनका वह पक्ष है जो कि दिखावा है, जो प्रसंस्करण से गुजर चुका है। उनके जिस पक्ष को तुम नहीं देख सकते वह उनका असली सार है, उनका असली चेहरा है। और उनका असली चेहरा क्या है? जब वे अपने अविश्वासी परिवार के साथ होते हैं तो वे सभी प्रकार की बुरी बातें बोलते हैं—शिकायतें, नाराजगी भरी बातें, दूसरों के खिलाफ शत्रुतापूर्ण शब्द, भाई-बहनों को दोषी ठहराने और उनकी निंदा करने वाले शब्द, परमेश्वर के घर के धार्मिक नहीं होने की शिकायतें—वे ये सभी बातें कहते हैं, कुछ भी नहीं छोड़ते, जरा भी नहीं हिचकते। जब वे अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ होते हैं तो वे लौकिक दुनिया की चर्चा करते हैं और दूसरे लोगों के परिवारों के बारे में बातें करते हैं, वे अविश्वासियों की सभी सांसारिक गतिविधियों में शामिल होते हैं, और यहाँ तक कि शादियों और अंतिम संस्कारों में भी सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। वे अविश्वासियों के साथ बातें करते हैं, वे दूसरों को दोषी ठहराते हैं और उन्हें कोसते हैं, लोगों के बारे में अफ़वाहें फैलाते हैं और पीठ पीछे उनकी निंदा करते हैं—वे ये सभी बातें कहते हैं। जब अविश्वासियों के बीच होते हैं तो दूसरे लोगों से बात करते समय वे लोगों को ठगते हैं, षडयंत्रकारियों का गिरोह बनाते हैं, लोगों पर हमला करते हैं और कार्यस्थल पर वे दूसरों को फँसा सकते हैं, दूसरों के बारे में कहानियाँ सुना सकते हैं और उच्च पद पाने के लिए दूसरों को रौंद सकते हैं—वे ये सब चीजें भी कर सकते हैं। जब वे अपने परिवार या अविश्वासियों के साथ होते हैं तो वे धैर्यवान, सहनशील या विनम्र नहीं होते, बल्कि इसके बदले वे पूरी तरह से अपना असली रंग दिखाते हैं। परमेश्वर के घर में वे भेड़ की खाल में भेड़िये होते हैं, और जब वे अविश्वासियों, परमेश्वर में विश्वास न करने वाले लोगों, के बीच होते हैं तो वे सबके सामने अपना भेड़िया वाला चेहरा दिखाते हैं; वे अपने हितों के लिए, एक-एक बात, एक-एक कथन के लिए अविश्वासियों से लड़ते हैं, और छोटे से छोटे हित के लिए अविश्वासियों के साथ तब तक अंतहीन बहस करते हैं, जब तक कि उनका चेहरा लाल न हो जाए। यदि उन्हें परमेश्वर के घर में कोई लाभ नहीं मिलता या उनकी काट-छाँट की जाती है, तो वे घर जाकर हंगामा मचाते हैं, वे परेशानी खड़ी करते हैं, और इस तरह से कार्य करते हैं कि उनका परिवार उनसे डरता है। अविश्वासियों के बीच, उनमें ईसाइयों वाली कोई शालीनता नहीं होती, न ही वे ईसाइयों की तरह गवाही देते हैं—यहाँ तक कि वे मनुष्य भी नहीं हैं, बल्कि पूरी तरह से भेड़िए हैं। परमेश्वर के घर में और भाई-बहनों के सामने, वे वादे करते हैं, वे शपथ लेते हैं, अपना दृढ़ संकल्प अभिव्यक्त करते हैं, और वे परमेश्वर के लिए स्वयं को खपाने के इच्छुक दिखाई देते हैं और ऐसा लगता है कि उन्हें परमेश्वर पर आस्था है। फिर भी, जब वे अविश्वासियों के बीच आते हैं, तो उनके अनुसरण और विश्वास अविश्वासियों के समान ही होते हैं। कुछ लोग तो अविश्वासियों की तरह मशहूर हस्तियों का अनुसरण भी करते हैं और मशहूर हस्तियों के परिधानों की भी नकल करते हैं, अपने शरीर के ऊपरी हिस्से को खुला रखते हैं, बाल बिखरे हुए रखते हैं और बहुत ज्यादा मेकअप करते हैं—वे न तो किसी इंसान की तरह दिखाई देते हैं और न ही किसी भूत की तरह। वे फैशनेबल कपड़े पहनते हैं और समय के साथ फैशन बदलते रहते हैं, उन्हें लगता है कि जीवन बहुत मजेदार है, और उनके दिल में अविश्वासियों की जीवनशैली के प्रति कोई भी घृणा महसूस नहीं होती। मसीह-विरोधी कई काम करते हैं और कलीसिया में अपने लिए एक स्थान सुनिश्चित करने और लोगों के दिलों में अपने लिए प्रतिष्ठा और हैसियत बनाने का बहुत प्रयास करते हैं। उनका यह प्रयास पूरी तरह से अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए और उनके बारे में दूसरे लोग उच्च विचार रखें और उनकी आराधना करें, इस उद्देश्य के लिए होता है। ये व्यवहार, दृष्टिकोण और बाहरी खुलासे बंद दरवाजों के पीछे की उनकी जीवनशैली से स्पष्ट तुलनात्मक अंतर प्रस्तुत करते हैं और लोगों के पीठ पीछे के उनके क्रियाकलाप तथा व्यवहार वैसे बिल्कुल नहीं होते जैसे किसी ईसाई के क्रियाकलाप और व्यवहार होने चाहिए। इतनी स्पष्ट तुलना के साथ, हम यह निर्धारित कर सकते हैं कि वे जो भी करते हैं और भाई-बहनों के समक्ष जो भी खुलासा करते हैं, सब कुछ दिखावा है, वह सच्चाई नहीं है और न ही स्वाभाविक खुलासा है। मसीह-विरोधी केवल अपने लक्ष्य प्राप्त करने के लिए दिखावा करते हैं, अन्यथा वे ये काम करने के लिए कभी भी खुद से समझौता नहीं करते। उनके कार्यों और बंद दरवाजों के पीछे के उनके स्वभाव के खुलासों, साथ ही साथ उनके अनुसरणों पर विचार करके कहा जा सकता है कि उन्हें सत्य से प्रेम नहीं है, सकारात्मक चीजों से प्रेम नहीं है, उन्हें शालीनता और ईमानदारी से प्रेम नहीं है और वे पीड़ा सहना और कीमत चुकाना या ईसाई मार्ग का अनुसरण करना तो और भी कम पसंद करते हैं। इसलिए, वे जिन अच्छे व्यवहारों का दिखावा करते हैं वे दिल से नहीं आते, वे व्यवहार स्वैच्छिक नहीं होते, वास्तविक नहीं होते, बल्कि वे उनकी अपनी ही इच्छाओं के प्रतिकूल होते हैं, वे दूसरों को दिखाने के लिए किए जाते हैं, और लोगों का समर्थन पाने तथा दिल जीतने के लिए किए जाते हैं। कुछ लोग कहते हैं, “लोगों के दिल जीतने से उन्हें क्या लाभ होता है?” मसीह-विरोधियों में और आम लोगों में यहीं अंतर होता है; यह लाभ उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण है। तो फिर, यह लाभ क्या है? ये है कि जब वे लोगों के बीच खड़े होते हैं तो ऐसा कोई नहीं होता जो उन्हें नहीं जानता, ऐसा कोई नहीं होता, जो उनका समर्थन नहीं करता, ऐसा कोई नहीं होता जो उनकी प्रशंसा नहीं करता, ऐसा कोई नहीं होता जो उनकी आराधना नहीं करता। कोई समस्या होने पर लोग परमेश्वर की तलाश करने और प्रार्थना करने की जगह मसीह-विरोधी को खोजते हैं। और जब हर कोई मसीह-विरोधी की आराधना करता है और उनके आसपास चक्कर काटता है तो मसीह-विरोधी को कैसा महसूस होता है? उन्हें लगता है कि वे परमेश्वर के समान हैं या असाधारण व्यक्ति हैं और उन्हें लगता है कि उनके पाँव बादलों पर हैं, वे सातवें आसमान पर हैं, उनका जीवन किसी साधारण व्यक्ति के जीवन से अलग है। जब वे लोगों के बीच होते हैं, तो हर कोई उनकी प्रशंसा और सराहना करता है और उनकी इस तरह बड़ाई करता है मानो तारों के बीच वह चाँद हो—यह कितना बढ़िया एहसास है और उनके दिल को कितना आनंद, राहत और खुशी मिलती होगी! संक्षेप में कहें तो मसीह-विरोधी यही तो चाहते हैं। हालाँकि, लोगों के किसी समूह में अगर एक भी व्यक्ति मसीह-विरोधी पर ध्यान नहीं देता है, अगर बहुत कम लोग उनका नाम जानते हैं, अगर कोई उनकी क्षमताओं को नहीं जानता है, अगर ज्यादातर लोग उन्हें एक साधारण व्यक्ति, कोई ऐसा व्यक्ति मानते हैं जिसके पास कोई विशेष गुण नहीं है, कोई खूबी नहीं है, जिसके बारे में कुछ भी असाधारण नहीं है, ऐसा कुछ नहीं है, जिसके चलते दूसरे लोग उसे सम्मान या आदर दें, या किसी के लिए प्रशंसा से कहने लायक कुछ भी नहीं है तो इससे मसीह-विरोधी मन ही मन असहज और बुरा महसूस करते हैं; उन्हें देवत्व या सातवें आसमान पर होने जैसा महसूस नहीं होता। उनके हिसाब से इस तरह जीना बहुत उबाऊ, बहुत असहज, बहुत घुटन भरा, बहुत असंतुष्टिजनक और निरर्थक है। वे सोचते हैं कि अगर उन्हें जीवन भर एक साधारण व्यक्ति बनकर रहना है, कुछ कर्तव्य निभाने हैं और एक योग्य सृजित प्राणी बनना है, तो ऐसे जीवन में क्या आनंद है? परमेश्वर में विश्वास करने में इतना कम आनंद कैसे हो सकता है? उनके लिए, यह बहुत निम्न स्तर है, और इसे ऊँचा उठाना चाहिए। लेकिन इसे कैसे ऊँचा उठाया जाए? उन्हें अपनी लोकप्रियता बढ़ानी होगी, ताकि लोग उन पर भरोसा करें, और उनका अत्यधिक सम्मान करें, और वे वैभवशाली जीवन जी सकें। इसीलिए, जब वे प्रार्थना करते हैं तो वे अपने घर में अकेले प्रार्थना नहीं करते, बल्कि प्रार्थना करने के लिए निश्चित रूप से कलीसिया जाते हैं, भाई-बहनों के साथ मिलकर प्रार्थना करते हैं, ऊँची आवाज में प्रार्थना करते हैं, व्याकरण का ध्यान रखते हुए, तार्किक, व्यवस्थित रूप से और सोच-समझकर प्रार्थना करते हैं, ताकि सभी उपस्थित लोग सुन सकें, ताकि सभी उपस्थित लोग उनकी वाक्पटुता और स्पष्ट सोच को सुन सकें और जान सकें कि उनका अपना लक्ष्य है। जब वे परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं, तो वे उन्हें अपने घर पर अकेले नहीं पढ़ते। पहले वे घर पर इसकी तैयारी करते हैं और फिर दूसरों को सुनाने के लिए ऊँची आवाज में पढ़ते हैं, ताकि दूसरे लोग देख सकें कि वे परमेश्वर के जिन वचनों को पढ़ रहे हैं वे सभी महत्वपूर्ण और निर्णायक हैं। चाहे वे कुछ भी करें, वे हमेशा बंद दरवाजों के पीछे इसकी तैयारी करते हैं और जब वे इतनी तैयारी कर लेते हैं कि दूसरे लोग उन्हें सम्मान दें और स्वीकार करें, तभी वे दूसरों के सामने वह कार्य करते हैं। यहाँ तक कि कुछ लोग तो घर पर आईने के सामने इसकी प्रस्तुति का पूर्वावलोकन और तैयारी करते हैं, फिर प्रस्तुति के लिए दूसरों के सामने आते हैं। जब वे यह कार्य दूसरों के सामने करते हैं तो यह अपनी सबसे मूल अवस्था में नहीं होता, बल्कि पहले ही कई बार मसीह-विरोधी के विचारों, दृष्टिकोणों, भ्रष्ट स्वभावों, कुटिल योजनाओं और धूर्त उपायों द्वारा प्रसंस्कृत हो चुका होता है। कलीसिया में और लोगों के बीच रुतबा और लोकप्रियता पाने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, मसीह-विरोधी ये चीजें करने के लिए कोई भी कीमत चुकाने से पीछे नहीं हटेंगे। इसलिए, इन सभी चीजों को क्या कहा जाता है? क्या वे सच्चे खुलासे हैं? क्या स्वभावगत बदलाव चाहने वाले व्यक्ति को ये अभ्यास करने चाहिए? (नहीं।) वे सभी दिखावे से उत्पन्न होते हैं; मसीह-विरोधी सनक की हद तक दिखावा करते हैं!
कुछ लोगों ने यदि पहले प्रारूप तैयार न किया हो तो वे सभाओं में संगति नहीं करते। उन्हें पहले बंद दरवाजों के पीछे एक प्रारूप तैयार करना पड़ता है, उसे कई बार संशोधित करना पड़ता है, उसे प्रसंस्कृत करना पड़ता है, निखारना पड़ता है और जब वह तैयार हो जाता है, तभी वे भाई-बहनों के सामने संगति करते हैं। कोई उनसे कहता है, “हम सभी यहाँ भाई-बहन हैं। सभाओं में बस ईमानदारी और सच्चाई से बोलें। बस जो मन में आए, वही बोलें। यही सबसे अच्छा तरीका है।” वे जवाब देते हैं, “नहीं, मैं नहीं कर सकता। अगर मैं ऐसा करता हूँ, तो भाई-बहन मुझे नीची नजर से देखेंगे।” देखो, वे अनजाने में कुछ सच कह देते हैं। हर मामले में, वे अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे को सुरक्षित रखने का प्रयास करते हैं। समाज में असाधारण प्रतिभा रखने वाले कुछ लोग, जो प्रोफेसर, विश्वविद्यालय के छात्र, डॉक्टरेट के छात्र या वैज्ञानिक शोधकर्ता हैं, खुद को साबित करने और अपने रुतबे तथा प्रतिष्ठा को सुरक्षित रखने के लिए लोगों से बातचीत करने के लिए कुछ दिखावटी व्यवहार और प्रसंस्कृत व्यवहार का उपयोग करते हैं। यानी, वे लोगों से बातचीत करने के लिए मुखौटा पहनते हैं, और लोग कभी नहीं जानते कि वे वास्तव में क्या हैं, क्या उनमें कोई कमजोरी है, वे बंद दरवाजों के पीछे क्या करते हैं, और जब बात उनके निजी जीवन और आचरण की आती है, तो हमेशा एक संदेह, हमेशा एक प्रश्नचिह्न बना रहता है। क्या ये लोग इतने बड़े दिखावे में लिप्त नहीं होते? तो, तुम लोगों को इन लोगों से कैसे व्यवहार रखना चाहिए? क्या ऐसा होना चाहिए कि चूँकि वे तुम्हारे साथ झूठ बोलते हैं, इसलिए तुम भी उनके साथ झूठ बोलो? उदाहरण के लिए, जब वे तुमसे मिलते हैं तो वे केवल विनम्रतापूर्वक अभिवादन करते हैं, इसलिए तुम भी उनके साथ लगातार विनम्र बने रहो—क्या यह स्वीकार्य है? (नहीं।) तो फिर, उनके साथ जुड़ने का उचित तरीका क्या है? (जब कोई पाता है कि वे इन अभिव्यक्तियों का दिखावा कर रहे हैं तो उसे सबसे पहले उन्हें उजागर करना चाहिए, उनके साथ इस संबंध में संगति करनी चाहिए कि इस तरह के स्वभाव के सार की प्रकृति क्या है और यह किस इरादे से संचालित होता है। अगर वे किसी की कही गई बातों को स्वीकार नहीं करते हैं तो उसे उनके साथ फिर से संगति नहीं करनी चाहिए।) तुम्हें उन्हें उजागर करना चाहिए, और अगर वे तुम्हारी कही गई बातों को स्वीकार नहीं करते हैं तो उनसे दूर रहो। क्या तुम सब लोगों में कोई ऐसा है जो अभी भी उनके बहकावे में आ सकता है और उनकी आराधना कर सकता है? अब तुम लोग अपने आध्यात्मिक कद के हिसाब से इन स्पष्ट फरीसियों को थोड़ा-बहुत ठीक से समझने में बुनियादी रूप से समर्थ हो, लेकिन अगर तुम्हारा सामना किसी ऐसे व्यक्ति से होता है जो अधिक सक्षम है, जो दिखावा कर सकता है, जो खुद को पूरी तरह छिपाए रखता है, क्या तुम लोग उन्हें ठीक से समझ पाओगे? अगर वे हमेशा अच्छी बातें कहें और करें, अगर यह प्रतीत होता हो कि उनमें कोई दोष नहीं है और उन्होंने कभी कोई गलती नहीं की है, अगर तुम कभी-कभी किसी विषय पर निराश और कमजोर हो जाते हो, लेकिन वे कभी नहीं होते और अगर कभी हुए भी तो वे अपने-आप इसका समाधान कर सकते हैं और इससे जल्दी ही बाहर आ सकते हैं, लेकिन तुम ऐसा नहीं कर सकते, तो जब तुम्हारा सामना ऐसे लोगों से होगा तो तुम उन्हें स्वीकृति दे दोगे और उनका अनुसरण करने लगोगे; अगर तुम ऐसे लोगों को नहीं पहचान पाते हो तो यह कहना मुश्किल है कि तुम उनके द्वारा गुमराह किए जाओगे या नहीं।
हमने दिखावे के इस विषय के कितने पहलुओं पर चर्चा की है? एक पहलू यह है कि वे पीड़ा सहन करने को दिखावे के रूप में उपयोग करते हैं। वास्तव में दिल से वे पीड़ा सहना नहीं चाहते हैं और वे इसके लिए बहुत प्रतिरोध महसूस करते हैं, फिर भी वे बहुत अनिच्छा से पीड़ा सहते हैं, चीजों का त्याग करते हैं, और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कीमत चुकाते हैं। पीड़ा सहन करने के बाद भी, वे इसे स्वीकार करने के इच्छुक नहीं हैं और महसूस करते हैं कि यह पीड़ा सहन करना इसके लायक नहीं था, क्योंकि बहुत से लोग इसके बारे में नहीं जान पाए। इसलिए वे हर जगह इसका प्रचार करते हैं, बहुत से अनजान लोगों को इसके बारे में बताते हैं। अंत में, कुछ लोगों को पता चलता है कि क्या हुआ था और उनके मन पर इनकी गहरी छाप पड़ती है, वे उनको बहुत आदर देते हैं और उनकी आराधना करते हैं, और इस तरह वे अपने लक्ष्यों को प्राप्त करते हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो खुद को अच्छे लोगों, अच्छे व्यवहार वाले और कर्तव्यपरायण लोगों के रूप में प्रचारित करते हैं, इस तरह की छवि, पहचान और व्यक्तित्व का उपयोग करके लोगों के साथ जुड़ना चाहते हैं, ताकि लोग उन्हें अच्छे लोग मानें और उनके करीब आएँ। वे और ज्यादा लोगों से प्रशंसा पाने के लिए इस तरह से अच्छे इंसान बनने को अपना लक्ष्य बनाते हैं, ताकि लोग उनका आदर करें और वे अपनी लोकप्रियता बढ़ा सकें। क्या ऐसा नहीं है? (हाँ, ऐसा ही है।) मसीह-विरोधियों द्वारा अपनाए जाने वाले कुछ तरीकों का उपयोग करके, हमने अभी-अभी उनके दिखावटी व्यवहार के पीछे के गुप्त उद्देश्यों और उनके दिखावे के सार को उजागर किया और उनका गहन-विश्लेषण किया है, वे जो काम करते और कहते हैं, और वे जैसी अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हैं उनसे साबित होता है कि वे दिखावा कर रहे हैं। हम इस पहलू पर संगति यहीं समाप्त करेंगे।
ii. पाखंड के साथ
अब हम दूसरे पहलू पर संगति करेंगे। मसीह-विरोधी अक्सर रुतबा हासिल करने के लिए ढोंग का उपयोग करते हैं; वे कुछ ऐसी बातें कहते हैं जो सुनने में अच्छी लगती हैं और जो लोगों की धारणाओं के अनुरूप होती हैं, और वे ऊपरी तौर पर कुछ ऐसी चीजें करते हैं जिससे लोग उन्हें स्वीकार कर लेते हैं और उनकी सराहना करते हैं, जिससे उनकी लोकप्रियता बढ़ जाती है—यह एक और तरीका है जिससे मसीह-विरोधी लोगों को गुमराह करते हैं। क्या पाखंड और दिखावे में कोई फर्क है? बाहरी व्यवहार के लिहाज से, दिखावा और पाखंड आम तौर पर एक ही स्थिति हैं; वे एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। हम उन पर अलग से संगति करेंगे ताकि वे लोगों को ज्यादा स्पष्ट समझ में आएँ, और ताकि लोग उन्हें ज्यादा स्पष्ट रूप से जान सकें। “पाखंड” का प्राथमिक अर्थ बनावटी नहीं है, बल्कि किसी और का रूप धारण करना है। मसीह-विरोधी पाखंड क्यों करते हैं? जाहिर है, उनके कुछ लक्ष्य होते हैं : मसीह-विरोधी रुतबा और प्रतिष्ठा हासिल करने के लिए पाखंड करते हैं; अगर ऐसा नहीं होता, तो वे कभी पाखंड नहीं करते, वे कभी ऐसी बेवकूफी नहीं करते। जो लोगों को आँखों से ही पहचान लेते हैं, वे इस बात को साफ-साफ देख पाते हैं। अगर लोग अक्सर पाखंड करते हैं, तो जाहिर है कि वे दूसरों की घृणा, तिरस्कार और निंदा अर्जित करेंगे—तो फिर भी मसीह-विरोधी ऐसा क्यों करते हैं? यह बस उनकी प्रकृति है : वे इस बात की परवाह नहीं करते हैं कि प्रतिष्ठा और रुतबा हासिल करने के लिए क्या-क्या करना पड़ता है, उनमें पहले से ही कोई शर्म नहीं है। लोगों के मन में रुतबा हासिल करने के लिए, मसीह-विरोधी सबसे पहले लोगों को उन पर भरोसा करने, उनका सम्मान करने, उनकी आराधना करने के लिए मजबूर करते हैं। तो वे इस लक्ष्य को कैसे हासिल करते हैं? लोगों की धारणाओं से मेल खाने वाला थोड़ा अच्छा व्यवहार और कुछ अच्छी अभिव्यक्तियों का ढोंग करने के अलावा, वे स्वयं को महान और मशहूर हस्तियों के अनुरूप ढाल लेते हैं, उनके बोलने के तरीके की नकल करते हैं, ताकि लोग उनके बारे में ऊँची राय बनाएँ और उनका सम्मान करें। इस तरह से, कलीसिया में कुछ लोग अनजाने में उनकी आराधना करना, खुशामद करना और उनका समर्थन करना शुरू कर देते हैं, वे मसीह-विरोधियों का आध्यात्मिक हस्तियों या मशहूर लोगों की तरह सम्मान करने लगते हैं, जिसका अर्थ है कि कलीसिया में और कुछ खास लोगों के दिलों में, मसीह-विरोधियों को आध्यात्मिक हस्तियों की तरह सराहना और सम्मान मिलता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि ज्यादातर लोग पूरी तरह से विवेकहीन हैं, और वे ऐसे किसी भी व्यक्ति की आराधना और सम्मान करने लगते हैं जिसे वे दिल से पसंद करते हैं और सराहते हैं। कलीसिया में, मसीह-विरोधी मुख्य रूप से किस तरह के व्यक्ति का रूप धारण करते हैं? वे आध्यात्मिक हस्तियों का रूप धारण करते हैं, क्योंकि ज्यादातर लोग आध्यात्मिक हस्तियों की आराधना करते हैं। यहूदी धर्म में, फरीसी आध्यात्मिक हस्तियाँ थे जिनकी लोग आराधना करते थे, लोग उनके ज्ञान, झूठी धार्मिकता और अच्छे व्यवहार के लिए उनकी आराधना करते थे; और इसलिए यहूदी धर्म में, फरीसी बहुत लोकप्रिय थे, उन्हें बेहद सराहा जाता था। आज, कलीसिया में कुछ ऐसे लोग हैं जिन्हें भी आध्यात्मिक हस्तियों की आराधना करना अच्छा लगता हैं। सबसे पहले, वे कलीसिया में उन लोगों की आराधना करते हैं जो कई वर्षों से परमेश्वर में विश्वास रखते आए हैं, जिनके पास कुछ तथाकथित आध्यात्मिक अनुभव और गवाहियाँ हैं, जिन्होंने परमेश्वर का अनुग्रह और आशीष प्राप्त किया है, जिन्होंने महान दर्शन देखे हैं, जिन्हें कुछ असाधारण अनुभव हुए हैं। इसके अलावा, ऐसे लोग भी हैं जो लोगों के बीच घमंडी और चिकनी-चुपड़ी बातें करते हैं, दूसरों में अपने प्रति आराधना और सराहना की भावना जगाते हैं। ऐसे लोग भी हैं जिनके कार्य करने के साधन, तरीके और सिद्धांत कलीसिया के नियमों के अनुरूप हैं, जिनका बाहरी व्यवहार धर्मनिष्ठ प्रतीत होता है। फिर ऐसे भी लोग हैं, जो परमेश्वर में बहुत आस्था रखने वाले प्रतीत होते हैं। इन सभी लोगों को आध्यात्मिक लोगों की उपाधि दी जाती है। तो मसीह-विरोधी आध्यात्मिक लोगों का रूप कैसे धारण करते हैं? वे जो करते हैं वह बहुत सरल है, वे वह बस वही चीजें कहते हैं जो आध्यात्मिक लोग कहते हैं और वही चीजें करते हैं जो आध्यात्मिक लोग करते हैं, ताकि लोग उन्हें एक आध्यात्मिक व्यक्ति के रूप में देखें। लेकिन क्या वे ये चीजें दिल से कहते और करते हैं? नहीं : यह नकल उतारना है, एक विनियम का पालन करना है, वे बस दूसरों को दिखाने के लिए ऐसा कर रहे हैं। मिसाल के तौर पर, जब उनके साथ कुछ होता है तो वे फौरन प्रार्थना करने लगते हैं—लेकिन वे सही मायने में खोज या प्रार्थना नहीं कर रहे होते हैं, वे यह सब बस आधे-अधूरे मन से कर रहे होते हैं, दिखावा कर रहे होते हैं, ताकि लोग कहें कि वे परमेश्वर से बहुत प्रेम करते हैं और परमश्वर का बहुत भय मानते हैं। इतना ही नहीं, जब वे बीमार पड़ते हैं और उन्हें इलाज की जरूरत पड़ती है, तो वे इलाज नहीं करवाते हैं और ना ही दवा लेते हैं जो उन्हें लेनी चाहिए। लोग कहते हैं, “अगर तुम दवा नहीं लोगे, तो तुम्हारी बीमारी और बढ़ सकती है। दवा के लिए एक समय होता है, और प्रार्थना के लिए एक समय होता है। तुम्हें बस अपनी आस्था का पालन करने और अपने कर्तव्य का त्याग नहीं करने की जरूरत है।” वे जवाब देते हैं, “कोई बात नहीं—परमेश्वर मेरे साथ है, मैं भयभीत नहीं हूँ।” बाहर से, वे शांत, निडर और आस्था से पूर्ण होने का दिखावा करते हैं, लेकिन भीतर से, वे आतंकित होते हैं और जैसे ही उन्हें कोई परेशानी महसूस होती है, वे चुपके से भागकर डॉक्टर के पास पहुँच जाते हैं। और अगर किसी को पता चल जाता है कि वे डॉक्टर के पास गए थे और उन्होंने दवा ली थी, तो वे इसे छिपाने के लिए कारण या बहाने ढूँढ़ने का प्रयास करते हैं। वे अक्सर यह भी कहते हैं, “बीमारी परमेश्वर की तरफ से दी गई एक परीक्षा है। जब तुम बीमारी में रहते हो, तो तुम बीमार हो जाते हो; जब तुम परमेश्वर के वचनों में रहते हो, तो तुम्हें कोई बीमारी नहीं होती है। हमें बीमारी में नहीं जीना चाहिए—अगर हम परमेश्वर के वचनों में जीएँगे, तो यह बीमारी गायब हो जाएगी।” खुलेआम, वे अक्सर लोगों को यही चीज सिखाते हैं, वे लोगों की मदद करने के लिए परमेश्वर के वचनों का उपयोग करते हैं; लेकिन सबसे छिपकर, वे मानवीय साधनों का उपयोग करके अपनी बीमारी को ठीक करते हैं। दूसरे लोगों के सामने, वे कहते हैं कि वे परमेश्वर पर निर्भर हैं और सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है, वे कहते हैं कि वे बीमारी या मृत्यु से नहीं डरते है; लेकिन अपने दिलों में, वे सबसे ज्यादा भयभीत रहते हैं, उन्हें बीमार पड़ने और अस्पताल जाने से डर लगता है, और मृत्यु से तो वे और भी ज्यादा आतंकित रहते हैं। उनमें सच्ची आस्था बिल्कुल नहीं होती है। दूसरे लोगों के सामने, वे प्रार्थना करते हैं और कहते हैं : “मैं खुशी-खुशी परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करता हूँ। सब कुछ परमेश्वर से आता है, और लोगों को शिकायत नहीं करनी चाहिए।” इस बीच, वे अपने दिलों में सोच रहे होते हैं : “मैंने अपना कर्तव्य बहुत निष्ठा से किया है, फिर मुझे यह बीमारी कैसे हो सकती है? और यह किसी और को कैसे नहीं हुई? क्या परमेश्वर इसका उपयोग मुझे बेनकाब करने, मुझे यह कर्तव्य करने से रोकने के लिए कर रहा है? क्या परमेश्वर मुझसे नफरत करता है? और अगर वह मुझसे नफरत करता है, तो क्या मैं एक सेवाकर्ता हूँ? क्या परमेश्वर सेवकाई करवाने के लिए मेरा उपयोग कर रहा है? क्या भविष्य में मेरा कोई परिणाम होगा?” वे ऊँची आवाज में शिकायत करने की हिम्मत नहीं करते हैं, लेकिन उनके दिलों में, परमेश्वर के बारे में संदेह दिखाई देने लगते हैं, वे मन ही मन सोचते हैं कि परमेश्वर जो कुछ भी करता है वह जरूरी नहीं कि सही हो। लेकिन, बाहर से, वे ऐसा दिखावा करते हैं जैसे कुछ भी गलत नहीं है, वे ऐसा दिखाते हैं कि जब वे बीमार पड़ जाते हैं, तो भी बीमारी उन्हें रोककर नहीं रख सकती है, और वे तब भी अपना कर्तव्य कर सकते हैं, और आज्ञाकारी और भरोसेमंद हो सकते हैं, वे तब भी परमेश्वर के लिए खुद को खपा सकते हैं। क्या यह दिखावा करना और पाखंड करना नहीं है? उनकी आस्था और समर्पण बनावटी हैं; उनकी निष्ठा बनावटी है। यहाँ कोई सच्चा समर्पण नहीं है, कोई सच्ची आस्था नहीं है, और सच्ची निर्भरता और आत्मसमर्पण तो और भी कम है। वे परमेश्वर के इरादों की तलाश नहीं करते हैं, वे अपने खुद के भ्रष्ट स्वभावों की जाँच नहीं करते हैं, और ना ही वे अपनी समस्याओं को सुलझाने के लिए सत्य की तलाश करते हैं। वे अपने दिलों में सिर्फ अपने दैहिक हितों, परिणाम और गंतव्य के बारे में सोचते हैं; उनके दिल परमेश्वर के बारे में शिकायतों, गलतफहमियों और संदेहों से भरे हुए हैं—और फिर भी, बाहर से, वे किसी आध्यात्मिक हस्ती जैसे दिखते हैं, और उनके साथ चाहे कुछ भी हो जाए, वे कहते हैं, “परमेश्वर की सद्भावना है, मुझे शिकायत नहीं करनी चाहिए।” उनकी जबानें शिकायत नहीं करती हैं, लेकिन उनके दिल डगमगाते रहते हैं : उनके दिलों में परमेश्वर के बारे में उनकी शिकायतों, गलतफहमियों और संदेहों का मंथन होता रहता है। प्रत्यक्ष रूप से, वे अक्सर परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं और अपना कर्तव्य करने में देरी नहीं करते हैं, लेकिन अपने दिलों में, वे पहले से ही अपना कर्तव्य छोड़ चुके होते हैं। क्या पाखंड का यही मतलब नहीं है? यही पाखंड है।
चाहे परिस्थिति कोई भी हो, मसीह-विरोधी हमेशा पाखंड करते रहेंगे; वे अवसर को लेकर कोई भेद नहीं करते हैं। मिसाल के तौर पर, कुछ भाई-बहन जब सभाओं में जाते हैं, तो वे एक-दूसरे का अभिवादन करते हैं। मसीह-विरोधी इस चीज को कैसे देखते हैं? वे कहते हैं, “गपशप करना बंद करो, हम सभा में हैं! तुम लोगों को क्या लगता है कि तुम कहाँ हो जो इस तरह की चीजों के बारे में गपशप कर रहे हो? तुम्हारे पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल नहीं है। गंभीर हो जाओ!” कुछ लोग अपना कर्तव्य करते समय बीच में कुछ देर का अवकाश लेते हैं, और जब कोई मसीह-विरोधी यह देखता है तो वह कहता है, “फिर से लापरवाह हो रहे हो, है ना? अब तुम्हें फौरन परमेश्वर के वचनों को पढ़ना चाहिए और प्रार्थना करने के लिए उसके सामने आना चाहिए।” जब भाई-बहन एक-दूसरे से व्यावसायिक कौशल सीखने के लिए विचारों का आदान-प्रदान करते हैं, तो वे कहेंगे, “तुम लोगों को पहले परमेश्वर के वचनों के बारे में संगति करनी चाहिए और प्रार्थना करनी चाहिए, और फिर बाद में, राय और विचारों का आदान-प्रदान करना चाहिए।” अगर किसी ने सभा शुरू होने से पहले प्रार्थना नहीं की है, तो मसीह-विरोधी उसे भला-बुरा कहेगा, उसे एक विशिष्ट प्रकार के व्यक्ति के रूप में परिभाषित करेगा, और उसके बारे में कुछ ना कुछ कहेगा। हर लिहाज से, वह दूसरों को यह दिखाता है कि वह बहुत आध्यात्मिक है, बहुत ईमानदार है, सत्य के प्रति बहुत कर्तव्यनिष्ठ है और उसका अनुसरण करने के लिए बहुत प्रयास करता है, अपने कर्तव्य के प्रति बहुत जिम्मेदार है, हर रोज नियमित रूप से परमेश्वर के वचनों को पढ़ सकता है, उसका एक सामान्य आध्यात्मिक जीवन है, वह नियमित रूप से सभाओं में शामिल होता है, सभाओं में शामिल होने पर वह प्रार्थना करता है, परमेश्वर के वचनों को पढ़ता है, और नियत तरीके से संगति करता है, और वह कभी भी गपशप या घरेलू मामलों के बारे में बातें नहीं करता है। अगर कोई उससे कहता है, “तुम्हारे बाल लंबे हो रहे हैं। तुम्हें जाकर बाल कटवा लेने चाहिए। अभी गर्मी का मौसम है, इसलिए अगर तुम बाल कटवा लोगे तो तुम्हें ठंडक महसूस होगी,” तो वह जवाब देता है, “इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि मेरे बाल थोड़े लंबे हो रहे हैं। कार्य जरूरी है। अगर मैं अपने बालों को कुछ दिन और बढ़ने दूँ तो भी गर्मी के कारण मुझे कोई समस्या नहीं होगी।” कोई कहता है, “तुम्हारे कपड़े फट गए हैं। अगर तुम उन्हें पहनते रहोगे, तो लोग तुम पर हँसेंगे।” मसीह-विरोधी कहता है, “इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। क्या परमेश्वर में विश्वास रखने वाले हम जैसे लोग अपना मजाक उड़ाए जाने की फिक्र करते हैं? हम सभी ने बहुत कष्ट सहा है, और हमने इस पूरे समय बड़े लाल अजगर का अत्याचार सहन किया है। हम सांसारिक लोगों द्वारा अस्वीकार किए जाने के मार्ग पर चले हैं। अगर लोग मेरे फटे-पुराने कपड़ों के कारण मुझ पर हँसते हैं तो क्या हुआ? जब तक परमेश्वर मुझे स्वीकार करता है, तब तक सिर्फ यही बात मायने रखती है।” क्या ऐसा कहना अच्छी बात है? (वह आध्यात्मिक होने का दिखावा कर रहा है।) कुछ लोग देखते हैं कि मैं प्रश्न पूछता हूँ और एक धर्मोपदेश के बाद सभी को उन पर संगति करने के लिए कहता हूँ, लेकिन लोग संगति में उनका उत्तर नहीं दे पाते हैं, इसलिए वे यह सारांश पेश करते हैं : “मुझे यहाँ कुछ नया प्रकाश मिला है। परमेश्वर कभी मुफ्त में कुछ नहीं खाता है, लेकिन हम पत्ता गोभी तक मुफ्त में खाते हैं।” क्या तुमने पहले यह कहते हुए सुना है? (नहीं।) वे कहते हैं कि परमेश्वर कभी मुफ्त में कुछ नहीं खाता है, जिसका अर्थ है कि परमेश्वर लोगों को धर्मोपदेश देता है और इसलिए उसने अपना भोजन अर्जित कर लिया है। हम किसी भी चीज पर संगति नहीं कर सकते हैं, इसलिए हम पत्ता गोभी भी मुफ्त में खाते हैं। कुछ विवेकहीन लोग इसे सत्य मान लेते हैं और इसे हर जगह बताते फिरते हैं। वे यह नहीं मानते हैं कि आत्म-ज्ञान पर संगति करने को, परमेश्वर के प्रति समर्पण करने और उससे प्रेम करने का प्रयास करने को, और ऐसे दूसरे सामान्य विषयों को जिन पर लोग अक्सर चर्चा करते हैं, आध्यात्मिक, उदात्त या नया प्रकाश माना जा सकता है। उनके लिए, सिर्फ उस व्यक्ति ने जो कहा है, वही नया प्रकाश है और वही उदात्त है! उस व्यक्ति ने जो कहा वह सही लगता है, लेकिन ध्यान से सोच-विचार करने पर, वह घिनौना लगता है और ऐसा कहना बेतुका है। यह उन लोगों की मनगढ़ंत बात है जिनके पास आध्यात्मिक समझ बिल्कुल नहीं है, लेकिन फिर भी वे आध्यात्मिक होने का दिखावा करना चाहते हैं, अपने पास सत्य का ज्ञान होने का दिखावा करना चाहते हैं, और यह दिखावा करना चाहते हैं कि वे सत्य समझते हैं—क्या यह बकवास नहीं है? (हाँ।) वे डींग हाँकने वाले और खोखले शब्द और सिद्धांत बोलना सीखने में विशेषज्ञता हासिल करते हैं, और वे सत्य का अभ्यास करने और वास्तविकता में प्रवेश करने को कोई महत्व नहीं देते हैं। इसलिए वे आध्यात्मिक सिद्धांत बोलना सीखने में विशेषज्ञता हासिल करते हैं और वे कभी भी यह देखने के लिए खुद का गहन-विश्लेषण नहीं करते हैं कि उनके पास सत्य वास्तविकता है या नहीं—क्या ये लोग ढोंगी नहीं हैं? परमेश्वर ऐसे लोगों से सबसे ज्यादा नफरत करता है।
जब ये तथाकथित आध्यात्मिक लोग इकट्ठा होते हैं, तो वे दार्शनिक चिंतन करते हैं, रहस्यों पर चर्चा करते हैं, खुद को जानने और परमेश्वर को जानने के बारे में बात करते हैं। वे जिन चीजों के बारे में बात करते हैं वे बहुत उदात्त होती हैं और सुनने में यह सांसारिक बातों जैसी बिल्कुल नहीं लगती हैं। वे लगातार बातें करते रहते हैं, विषय से हट जाते हैं और पूरी तरह से अप्रासंगिक चीजों के बारे में बात करते हैं। “पूरी तरह से अप्रासंगिक चीजों के बारे में बात करने” का क्या मतलब है? वे लगातार तब तक बोलते रहते हैं जब तक कि वे सरासर बकवास ना करने लगें, वे यह देखने के लिए एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हैं कि किसने परमेश्वर के वचन ज्यादा पढ़े हैं और वे परमेश्वर के वचनों के कितने अध्याय याद रख सकते हैं और उनका प्रचार कर सकते हैं, कौन दूसरों की तुलना में ज्यादा उदात्त और ज्यादा गहन तरीके से प्रचार कर सकता है, और कौन इस तरीके से प्रचार कर सकता है जो दूसरों की तुलना में ज्यादा प्रकाश लेकर आए। वे इन चीजों के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं, और इसे “आध्यात्मिकता में प्रतिस्पर्धा” कहा जाता है। कभी-कभी लोग इकट्ठे होकर गपशप करते हैं, और इस बारे में बात करते हैं कि हाल ही में उनका हाल-चाल कैसा रहा है या वे कुछ बाहरी मामलों के बारे में बात करते हैं। फिर वहाँ एक “आध्यात्मिक व्यक्ति” आता है, और जब वह सभी को इन चीजों के बारे में बात करते हुए सुनता है, तो वह परमेश्वर के वचनों की अपनी किताब लेता है और इसे पढ़ने के लिए एक कोना ढूँढ लेता है। क्या ऐसा व्यक्ति असामाजिक और अजीब नहीं लगता है? जब मैं किसी मुख्य विषय पर कुछ लोगों के साथ संगति करता हूँ, तो हम बीच में थोड़ा अवकाश लेते हैं और बाहरी मामलों के बारे में गपशप करते हैं—क्या यह सामान्य नहीं है? इस बातचीत के दौरान, कुछ लोग बिल्कुल कुछ नहीं बोलते हैं। उनका यह मतलब होता है कि, “जब तुम सत्य पर संगति करोगे तो मैं सुनूँगा, लेकिन अगर तुम गपशप करना शुरू कर दोगे तो मैं सुनना बंद कर दूँगा। अगर तुम लंबे समय तक गपशप करते रहोगे, तो मैं यहाँ से चला जाऊँगा।” वे कहाँ चले जाते हैं? वे प्रार्थना करने के लिए कोई जगह ढूँढ लेते हैं, और आत्मविश्वास से कहते हैं, “हे परमेश्वर, कृपया मेरा दिल वापस ले लो। मुझे तुम्हारे सामने शांत रहने दो, मुझे गैर-विश्वासियों के मामलों में उलझने मत दो और मुझे सांसारिक रुझानों द्वारा भटकने मत दो।” क्या यह बहुत आध्यात्मिक है? वे मानते हैं कि ऐसा ही है। जब तुम घरेलू मामलों और हाल ही में तुम्हारी स्थिति कैसी रही है इस बारे में बात करते हो, तो उन्हें लगता है कि यह सत्य पर संगति करना नहीं है, इसमें परमेश्वर के वचनों का बिल्कुल भी जिक्र नहीं है, और इसलिए वे वहाँ से चले जाते हैं और प्रार्थना करने के लिए परमेश्वर के सामने पहुँच जाते हैं। क्या यह थोड़ा-सा अजीब नहीं है? यह उन लोगों का पाखंड है जो आध्यात्मिक बनने का प्रयास करते हैं—वे पाखंड करने में बहुत ही अच्छे हैं! पाखंड करने का उनका लक्ष्य दूसरों को यह दिखाना होता है कि वे आध्यात्मिक हैं, अपनी खोज में ईमानदार हैं, हमेशा परमेश्वर के सामने रहते हैं, उनके शब्दों में प्रकाश निहित है, वे सत्य की खोज करते हैं, बाहरी सांसारिक दुनिया या पारिवारिक स्नेह से बाधित नहीं हैं, उनकी ऐसी कोई दैहिक जरूरतें नहीं हैं, वे सामान्य लोगों से अलग हैं, उन्होंने पहले से ही सांसारिक दुनिया और ऐसी निम्न-स्तरीय रुचियों को छोड़ दिया है। जब कुछ लोग गैर-विश्वासियों से थोड़ी देर बात करते हैं, तो वे कहते हैं, “यह सही नहीं है। ये गैर-विश्वासी बुरे लोग हैं। जैसे ही तुम उनसे बात करते हो और उनके मामलों में घुल-मिल जाते हैं, तुम अपने भीतर परेशानी महसूस करने लगते हो और तुम्हें परमेश्वर के सामने जल्दी से जल्दी अपना अपराध स्वीकार करना चाहिए और प्रार्थना करनी चाहिए। तुम्हें परमेश्वर के वचनों को पढ़ने की जल्दी करनी चाहिए, उसके वचनों को अपने में समाहित होने और भरने देना चाहिए।” और इसलिए, जब वे परमेश्वर में विश्वास नहीं रखने वाले लोगों, गैर-विश्वासियों, को देखते हैं, तो वे उनसे कतराते हैं और उनसे बात नहीं करते हैं। यहाँ ताकि कि वे सामान्य बातचीत भी नहीं करते हैं, और लोग उन्हें अजीब समझते हैं। उनका इस तरह से कार्य करने का आधार यह है कि, “सभी गैर-विश्वासी दुष्ट लोग होते हैं और हमें उनसे बात नहीं करनी चाहिए। परमेश्वर दुष्ट लोगों से नफरत करता है, इसलिए अगर हम दुष्ट लोगों से मेलजोल रखेंगे और उनके पास जाएँगे, तो परमेश्वर भी इससे नफरत करेगा। परमेश्वर जिससे नफरत करता है, हमें उससे नफरत करनी चाहिए, और परमेश्वर जिसे नकारता है, हमें भी उसे नकारना चाहिए।” अगर वे किसी भाई या बहन को अपने परिवार के किसी गैर-विश्वासी सदस्य या अपने किसी गैर-विश्वासी दोस्त से बोलते हुए, दिल खोलकर बातचीत करते हुए या घरेलू मामलों पर बात करते हुए देखते हैं, तो वे उसके बारे में राय बना लेते हैं, और सोचते हैं, “वह एक अनुभवी विश्वासी है, जिसने कई वर्षों से परमेश्वर में विश्वास रखा है। वह गैर-विश्वासियों से दूर रहने का प्रयास नहीं करता है, बल्कि उनके बहुत पास चला जाता है। यह उसका परमेश्वर से विश्वासघात करना है, और जब वह किसी समस्या का सामना करेगा, तो वह निश्चित रूप से यहूदा बन जाएगा।” वे ऐसे लोगों को एक उपनाम दे देते हैं। कुछ लोगों के माता-पिता खुद परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते हैं, लेकिन वे अपनी संतान के परमेश्वर में विश्वास रखने पर आपत्ति भी नहीं करते हैं। वे कभी-कभी अपने माता-पिता को फोन करके पूछते हैं कि उनका हाल-चाल कैसा है, या जब वे बीमार पड़ जाते हैं, तो वे उनकी देखभाल करने के लिए घर लौट जाते हैं—यह पूरी तरह से सामान्य है और परमेश्वर इसकी निंदा नहीं करता है। और ये आध्यात्मिक लोग—ये मसीह-विरोधी—क्या करते हैं? क्या वे चीजों को इसी तरह से देखते हैं? वे इस पर हंगामा करते हैं और कहते हैं, “तुम लोग आम तौर पर बहुत अच्छी तरह से बोलते हो और तुम दूसरों को उनके स्नेह-बंधनों से मुक्त होने और उनसे बाधित नहीं होने के लिए प्रेरित करते हो। लेकिन मैं देख रहा हूँ कि तुम्हारे स्नेह-बंधन तो इससे भी ज्यादा मजबूत हैं। तुम्हारे माता-पिता परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते हैं, इसलिए तुम्हें उन्हें नकार देना चाहिए।” दूसरा व्यक्ति जवाब देता है, “मेरे माता-पिता परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते हैं, लेकिन वे मेरे रास्ते में भी नहीं आते हैं। वे मेरा बहुत समर्थन करते हैं।” मसीह-विरोधी जवाब देता है, “चाहे वे तुम्हारा समर्थन क्यों ना करते हों, यह स्वीकार करने लायक नहीं है और तब भी वे दुष्ट लोग ही हैं। तुम अब भी उनके लिए खाना कैसे पका सकते हो?” दूसरा कहता है, “क्या यह सामान्य मानवीय स्नेह नहीं है? क्या अपने माता-पिता के लिए भोजन पकाना और उनके लिए कुछ संतानोचित प्रेम दिखाना सामान्य नहीं है? परमेश्वर इसकी निंदा नहीं करता है, तो तुम इसकी निंदा क्यों कर रहे हो?” मसीह-विरोधी जवाब देता है, “परमेश्वर इतनी छोटी-सी बात के लिए खुद को परेशान नहीं करेगा! चूँकि परमेश्वर इसके लिए खुद को परेशान नहीं करेगा, इसलिए हमें अपना पक्ष दृढ़ता से रखना चाहिए और अपनी गवाही में दृढ़ रहना चाहिए। तुम लोगों ने इतने वर्षों से परमेश्वर में विश्वास रखा है और फिर भी तुम्हारे पास कोई सूझ-बूझ या आध्यात्मिक कद नहीं है, और तुम दुष्ट लोगों के साथ इतना अच्छा व्यवहार कर सकते हो—तुम्हारे स्नेह-बंधन बहुत मजबूत हैं!” वह इसकी भी निंदा करता है! वह लोगों की निंदा करता है और उनके कुछ भी करने पर यह दिखाने के लिए उन्हें एक उपनाम दे देता है कि उसके पास आध्यात्मिक कद है, कि वह अपने अनुसरण में ईमानदार है, कि उसमें आस्था है, लेकिन अंत में जब उसके अपने परिवार के किसी सदस्य का निधन हो जाता है, तो वह इतने दिनों तक रोता रहता है कि वह बिस्तर से उठ तक नहीं पाता है और यहाँ तक कि अपनी आस्था को भी छोड़ देना चाहता है। कोई उससे पूछता है, “क्या तुम आध्यात्मिक व्यक्ति नहीं हो?” वह जवाब देता है, “क्या आध्यात्मिक लोग कमजोर नहीं हो सकते हैं? क्या मैं थोड़ी देर के लिए कमजोर नहीं हो सकता?” क्या यह कुतर्क नहीं है? बनावटी आध्यात्मिक लोग दिखावा करने की क्षमता रखते हैं, और यह पाखंड कहलाता है। वे दिखावा करते हैं कि उनमें कोई कमजोरी नहीं है, वे आज्ञाकारी हैं, उनकी परमेश्वर में आस्था है और वे परमेश्वर के प्रति वफादार हैं, अपनी शपथों को निभा सकते हैं, कष्ट सह सकते हैं और खुद को खपा सकते हैं, और ऐसे किसी भी तरह से व्यवहार नहीं करते हैं जिसे लोग शायद अनुपयुक्त या आदर्श के अयोग्य समझ लें। उनके बाहरी व्यवहार को देखते हुए, लोग उन्हें स्वीकार कर लेते हैं और उनमें कोई दोष नहीं निकाल पाते हैं, वे मूल रूप से ईसाई शालीनता के अनुरूप प्रतीत होते हैं, और यहाँ तक कि वे नकारात्मक या कमजोर भी प्रतीत नहीं होते हैं। जब वे किसी को कमजोर पड़ते हुए और नकारात्मक महसूस करते हुए देखते हैं, तो वे अक्सर उसे सख्ती से फटकार लगाते हैं, और कहते हैं, “तुम इतनी मामूली-सी बात पर कमजोर पड़ जाते हो—क्या इससे परमेश्वर को बहुत ठेस नहीं पहुँचती है? क्या तुम्हें जरा भी अंदाजा है कि अभी क्या समय हुआ है? परमेश्वर ने हमसे इतने सारे वचन कहे हैं, फिर भी तुम कमजोर कैसे पड़ सकते हो? तुम लोग परमेश्वर के दिल को इतना छोटा कैसे समझ सकते हो? तुम चाहे किसी भी समस्या का सामना क्यों ना करो, तुम्हें हमेशा प्रार्थना करने के लिए परमेश्वर के सामने जाना चाहिए, परमेश्वर से प्रेम करना और उसके प्रति वफदार होना सीखना चाहिए, और तुम्हें समर्पण करना चाहिए और कमजोर नहीं पड़ना चाहिए। अगर तुम हमेशा अपने देह के प्रति विचारशील रहते हो, तो क्या तुम परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह नहीं कर रहे हो?” सुनने में ऐसा नहीं लगता है कि उसने यहाँ जो कुछ भी कहा है, उसमें कोई समस्या है, लेकिन यह सब कुछ खोखला है और लोगों की समस्याओं को नहीं सुलझा सकता है। वे कहते हैं, “क्या तुम्हें पता है कि अभी क्या समय हुआ है?”—क्या इसका लोगों के कमजोर महसूस करने से कोई लेना-देना है? क्या इसका विद्रोह करने से कोई लेना-देना है? लोगों के स्वभाव भ्रष्ट होते हैं और लोग अपने देह के भीतर रहते हैं, और लोग कभी भी कमजोर पड़ सकते हैं और विद्रोही बन सकते हैं।
मसीह-विरोधी आध्यात्मिक लोगों की, भाई-बहनों में सर्वश्रेष्ठ होने की, और ऐसे लोगों की भूमिका निभाना चाहते हैं, जो सत्य समझते हैं और जो कमजोर और अपरिपक्व लोगों की मदद कर सकते हैं। इस भूमिका को निभाने के पीछे उनका लक्ष्य क्या है? सबसे पहले, वे मानते हैं कि वे पहले से ही देह और सांसारिक दुनिया से परे जा चुके हैं, सामान्य मानवता की कमजोरी और दैहिक जरूरतों को छोड़ चुके हैं। वे मानते हैं कि परमेश्वर के घर में वे ही ऐसे लोग हैं जो महत्वपूर्ण कार्य स्वीकार कर सकते हैं, परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील हो सकते हैं, और जिनके दिल परमेश्वर के वचनों से भरे हुए हैं। वे इस बात के लिए अपनी तारीफ करते हैं कि वे पहले से ही परमेश्वर की अपेक्षाओं को पूरा कर चुके हैं और परमेश्वर को संतुष्ट कर चुके हैं, परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील हो पाए हैं और उस अद्भुत गंतव्य को प्राप्त कर पाए हैं जिसका वादा परमेश्वर ने किया है। इसलिए वे अक्सर बहुत आत्मसंतुष्ट महसूस करते हैं और सोचते हैं कि वे बाकियों से कहीं बेहतर हैं। वे दूसरों को फटकारने, और दूसरों की निंदा करने और उन पर फैसले सुनाने के लिए उन शब्दों का उपयोग करते हैं जिन्हें वे अपने मन से याद रख सकते हैं और समझ सकते हैं। वे अक्सर दूसरों को सीमित करने और निर्देश देने के लिए ऐसे कुछ दृष्टिकोणों और कहावतों का भी उपयोग करते हैं जिनकी कल्पना वे अपनी धारणाओं में करते हैं, जिससे दूसरे लोग विनियमों को बनाए रखें और उनकी बात मानें, ताकि वे कलीसिया में अपने रुतबे की रक्षा कर सकें। उनका मानना है कि जब तक वे आध्यात्मिक सिद्धांतों के एक समूह का प्रचार कर सकते हैं, प्रचलित नारे लगा सकते हैं, अगुआई कर सकते हैं, आगे आकर कार्य स्वीकार करने के लिए इच्छुक हो सकते हैं, और कलीसिया की सामान्य व्यवस्था को बनाए रख सकते हैं, तब तक वे आध्यात्मिक लोग बने रहेंगे, और उनका रुतबा स्थिर रहेगा। इसलिए वे अपने आप को आध्यात्मिक लोगों के रूप में पेश करते हैं और ऐसा होने के लिए अपनी तारीफ करते हैं, जबकि साथ ही वे अपने आप को सर्वशक्तिमान, पूरी तरह से सक्षम और परिपूर्ण लोगों के रूप में भी पेश करते हैं। मिसाल के तौर पर, अगर तुम उनसे पूछते हो कि क्या वे टाइप कर सकते हैं, तो वे कहते हैं, “हाँ, टाइप करना मेरे लिए मुश्किल नहीं है।” तुम उनसे पूछते हो, “क्या तुम मशीनें ठीक कर सकते हो?” तो वे कहते हैं, “सभी मशीनों के सिद्धांत एक जैसे ही होते हैं। हाँ, मैं उन्हें ठीक कर सकता हूँ।” तुम पूछते हो, “क्या तुम ट्रैक्टर ठीक कर सकते हो?” इस पर वे कहते हैं, “क्या उस अपरिष्कृत मशीन को ठीक करना मशीनों को ठीक कर पाने के रूप में गिना जाता है?” तुम उनसे पूछते हो, “क्या तुम खाना पका सकते हो?” वे कहते हैं, “मैं खाना खाता हूँ, तो यकीनन मैं खाना पका भी सकता हूँ!” तुम पूछते हो, “क्या तुम हवाई जहाज उड़ा सकते हो?” वे कहते हैं, “मैंने कभी सीखा तो नहीं है, लेकिन अगर मैंने इसे सीखा, तो मैं यह कर सकता हूँ। मैं हवाई जहाज का कप्तान बन सकता हूँ, कोई समस्या नहीं है।” उन्हें लगता है कि वे कुछ भी कर सकते हैं, वे हर चीज में अच्छे हैं। किसी का कंप्यूटर खराब हो जाता है और वह उन्हें इसे ठीक करने के लिए कहता है। वे कहते हैं कि वे इसे आसानी से ठीक कर सकते हैं, लेकिन उन्हें इस बारे में वाकई कुछ पता नहीं होता है और वे नहीं जानते हैं कि इसे कैसे ठीक करना है, और अंत में, इसे बार-बार ठीक करने का प्रयास करने के बाद होता यह है कि वे कंप्यूटर में मौजूद सारी जानकारी मिटा देते हैं। जिस व्यक्ति का वह कंप्यूटर होता है वह उनसे पूछता है, “तुम इसे ठीक कर सकते हो या नहीं?” और वे जवाब देते हैं, “मैंने पहले कंप्यूटर ठीक किए हैं, लेकिन अब मैं थोड़ा-सा भूल गया हूँ कि इसे कैसे करना है। बेहतर होगा कि तुम किसी और से इसे ठीक करवा लो।” वे दिखावा करने में बहुत अच्छे हैं, है ना? इस तरह के लोगों में महादूत जैसा स्वभाव होता है; वे कभी यह नहीं कह सकते हैं कि “मुझे नहीं पता कि इसे कैसे करना है,” या “मैं यह नहीं कर सकता,” या “मैं इसे करने में अच्छा नहीं हूँ,” या “मैंने इसे पहले कभी नहीं देखा है,” या “मैं नहीं जानता”—वे ऐसी बातें कभी नहीं कह सकते हैं। चाहे मामला कुछ भी हो, अगर तुम लोग उनसे इस बारे में पूछते हो, तो चाहे उन्हें नहीं भी पता हो कि इसे कैसे करना है और उन्होंने इसे पहले कभी देखा भी ना हो, तो भी उन्हें कारण और बहाने पेश करने ही होंगे, ताकि तुम लोग गलती से यह मान लो कि वे हर चीज में अच्छे हैं, सब कुछ करना जानते हैं, सब कुछ कर सकते हैं, और सब कुछ करना संभव है। वे किस तरह का व्यक्ति बनना चाहते हैं? (अतिमानव, पूरी तरह से सक्षम लोग।) वे पूरी तरह से सक्षम लोग बनना चाहते हैं, अपने आप को प्रकाश के दूतों के रूप में पेश करना चाहते हैं—क्या वे इस तरह की चीज नहीं हैं? क्योंकि मसीह-विरोधी हमेशा यह दिखावा करना चाहते हैं कि वे हर चीज में अच्छे हैं, इसलिए जब तुम उन्हें दूसरों के साथ मिलकर कार्य करने, विचारों का आदान-प्रदान करने, चर्चा करने, संगति करने और दूसरों के साथ मुद्दों पर बातचीत करने के लिए कहते हो, तो वे ऐसा नहीं कर पाते हैं। वे कहते हैं, “मुझे अपने साथ कार्य करने के लिए किसी की जरूरत नहीं है। मुझे सहायक की जरूरत नहीं है। मुझे कोई भी चीज करने के लिए किसी की मदद की जरूरत नहीं है। मैं इसे अपने आप कर सकता हूँ, मुझे पता है कि सब कुछ कैसे करना है। मैं पूरी तरह से सक्षम हूँ, और ऐसा कुछ भी नहीं है जो मैं नहीं कर सकता हूँ, ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे मैं हासिल नहीं कर सकता हूँ, और ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे मैं पूरा नहीं कर सकता हूँ। मैं कौन हूँ? तुम लोग किसी भी चीज को करने का तरीका नहीं जानते हो, और अगर तुम्हें किसी चीज को करने का तरीका आता भी है, तो तुम उसमें कुशल नहीं हो। भले ही मैंने सिर्फ एक काम करना सीखा हो, लेकिन मुझे सारी चीजों को करने का तरीका आता है। अगर मैं एक चीज में कुशल हूँ, तो इसका मतलब है कि मैं सभी चीजों में कुशल हूँ। मुझे लेख लिखना आता है और मैं विदेशी भाषाएँ बोल सकता हूँ। भले ही मैं इसी समय कोई विदेशी भाषा नहीं बोल सकता हूँ, लेकिन अगर मैं पढ़ाई करूँ, तो मुझे पाँच विदेशी भाषाएँ सीखने में कोई समस्या नहीं होगी।” कोई उनसे पूछता है कि क्या वे फिल्मों में अभिनय कर सकते हैं, गा सकते हैं और नाच सकते हैं, और वे कहते हैं कि वे ये सभी चीजें कर सकते हैं। वे डींगें हाँकने में माहिर हैं, है ना? वे दिखावा करते हैं कि वे कुछ भी कर सकते हैं और उन्हें सभी चीजों को करने का तरीका आता है—वे वाकई महादूत की प्रकृति वाले हैं। कोई उनसे पूछता है कि क्या वे इतने वर्षों में परमेश्वर में विश्वास रखने के दौरान कभी कमजोर पड़े हैं, और वे जवाब देते हैं, “इसमें कमजोर पड़ने की क्या बात है? परमेश्वर के वचन बहुत स्पष्ट रूप से बोले गए हैं। हमें कमजोर नहीं पड़ना चाहिए। अगर हम कमजोर पड़ते हैं, तो इसका मतलब है कि हम परमेश्वर को निराश कर रहे हैं। हमें परमेश्वर के प्रेम का प्रतिदान करने के लिए 120 प्रतिशत प्रयास करना चाहिए!” दूसरा व्यक्ति पूछता है, “क्या इतने वर्षों पहले घर छोड़ने के बाद कभी तुम्हें घर की याद आई है? क्या घर की याद आने पर तुम रोते हो?” वे जवाब देते हैं, “इसमें रोने की क्या बात है? परमेश्वर मेरे दिल में है। जब मैं परमेश्वर के बारे में सोचता हूँ, तो फिर मुझे घर की याद नहीं आती है। मेरे परिवार के सभी गैर-विश्वासी सदस्य दुष्ट और शैतान हैं। मैं उन्हें शापित किए जाने के लिए प्रार्थना करता हूँ।” दूसरा व्यक्ति उनसे पूछता है, “क्या तुम अपनी आस्था के वर्षों में कभी पथभ्रष्ट हुए हो?” वे जवाब देते हैं, “परमेश्वर के वचन बहुत स्पष्ट रूप से बोले गए हैं, तो कोई पथभ्रष्ट कैसे हो सकता है? जो पथभ्रष्ट हो जाते हैं, वे विवेकहीन लोग होते हैं जिन्हें आध्यात्मिक समझ नहीं होती है। क्या मेरी जैसी काबिलियत वाला व्यक्ति पथभ्रष्ट हो सकता है? क्या मैं गलत मार्ग अपना सकता हूँ? बिल्कुल नहीं।” वे मानते हैं कि वे हर चीज में अच्छे हैं, बाकी सभी से बेहतर हैं। वे उन लोगों के बारे में क्या सोचते हैं जो नकारात्मक और कमजोर पड़ जाते हैं? वे कहते हैं, “जो लोग नकारात्मक और कमजोर पड़ जाते हैं उनके पास करने के लिए कुछ बेहतर नहीं होता है।” क्या मामला वाकई ऐसा है? थोड़ी नकारात्मकता और कमजोरी सामान्य है, जबकि कुछ नकारात्मकता और कमजोरी के पीछे कोई कारण होता है, तो वे इस समस्या को यह कहकर कैसे समझा सकते हैं कि इन लोगों के पास “करने के लिए कुछ बेहतर नहीं है”? मसीह-विरोधी इस तरह से आध्यात्मिक होने का दिखावा करते हैं, हर चीज कर पाने का दिखावा करते हैं, खुद में कोई भी कमी या कमजोरी नहीं होने का दिखावा करते हैं, और इससे भी ज्यादा वे इस बात का दिखावा करते हैं कि वे विद्रोही नहीं हैं और उन्होंने कभी कोई अपराध नहीं किया है।
चाहे कोई भी संदर्भ हो, मसीह-विरोधी चाहे कोई भी कर्तव्य कर रहा हो, वह यह छाप छोड़ने का प्रयास करेगा कि वह कमजोर नहीं है, कि वह हमेशा मजबूत, आस्था से पूर्ण है, कभी नकारात्मक नहीं है, ताकि लोग कभी भी उसके वास्तविक आध्यात्मिक कद या परमेश्वर के प्रति उसके वास्तविक रवैये को नहीं देख पाएँ। वास्तव में, अपने दिल की गहराइयों में क्या वे सचमुच यह मानते हैं कि ऐसा कुछ नहीं है जो वे नहीं कर सकते हैं? क्या वे वाकई यह मानते हैं कि उनमें कोई कमजोरी, नकारात्मकता या भ्रष्टता के खुलासे नहीं हैं? बिल्कुल नहीं। वे दिखावा करने में अच्छे होते हैं, चीजों को छिपाने में माहिर होते हैं। वे लोगों को अपना मजबूत और शानदार पक्ष दिखाना पसंद करते हैं; वे नहीं चाहते हैं कि वे उनका वह पक्ष देखें जो कमजोर और सच्चा है। उनका उद्देश्य स्पष्ट होता है : सीधी-सी बात है, वे अपनी साख, इन लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाए रखना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि अगर वे अपनी नकारात्मकता और कमजोरी दूसरों के सामने उजागर कर देंगे, अपना विद्रोही और भ्रष्ट पक्ष प्रकट कर देंगे, तो यह उनकी हैसियत और प्रतिष्ठा के लिए एक गंभीर क्षति होगी—तो बेकार की परेशानी खड़ी होगी। इसलिए, वे इस बात को स्वीकार करने के बजाय मरना ज्यादा पसंद करेंगे कि ऐसे समय भी आते हैं जब वे कमजोर, विद्रोही और नकारात्मक होते हैं। और अगर ऐसा कभी हो भी जाए जब हर कोई उनके कमजोर और विद्रोही पक्ष को देख ले, जब वे देख लें कि वे भ्रष्ट हैं, और बिल्कुल नहीं बदले हैं, तो वे अभी भी उस दिखावे को बरकरार रखेंगे। वे सोचते हैं कि अगर वे यह स्वीकार कर लेंगे कि उनके पास भ्रष्ट स्वभाव है, वे एक साधारण महत्वहीन व्यक्ति हैं, तो वे लोगों के दिलों में अपना स्थान खो देंगे, सबकी आराधना और अगाध प्रेम खो देंगे, और इस प्रकार पूरी तरह से विफल हो जाएँगे। और इसलिए, चाहे कुछ भी हो जाए, वे लोगों से खुलकर बात नहीं करेंगे; कुछ भी हो जाए, वे अपना सामर्थ्य और हैसियत किसी और को नहीं देंगे; इसके बजाय, वे प्रतिस्पर्धा करने का हर संभव प्रयास करेंगे, और कभी हार नहीं मानेंगे। जब भी वे किसी समस्या का सामना करते हैं, तो वे सुर्खियों में आने और खुद को दिखाने और अपना प्रदर्शन करने की पहल करते हैं। जैसे ही कोई समस्या होती है और परिणाम आते हैं, वे भागकर कहीं छिप जाते हैं या किसी और पर जिम्मेदारी डालने का प्रयास करते हैं। अगर वे ऐसी किसी समस्या का सामना करते हैं जिसे वे समझते हैं, तो वे जो कर सकते हैं उसका तुरंत दिखावा करने लगते हैं और दूसरों को अपने बारे में बताने के अवसर ले लेते हैं, ताकि लोग देख सकें कि उनके पास खूबियाँ और खास कौशल हैं और वे उनके बारे में ऊँची राय बना सकें और उनकी आराधना कर सकें। अगर कोई बड़ी घटना घटती है, और कोई उनसे पूछता है कि वे इस घटना को कैसे समझते हैं, तो वे अपने विचार प्रकट करने से कतराते हैं, और इसके बजाय दूसरों को पहले बोलने देते हैं। उनके संकोच के कारण होते हैं : ऐसा नहीं है कि उनका अपना कोई विचार नहीं होता है, लेकिन वे डरते हैं कि उनका विचार कहीं गलत ना हो, कि अगर उन्होंने इसे सबके सामने रख दिया, तो दूसरे लोग इसका खंडन करेंगे, और उन्हें शर्मिंदगी उठानी पड़ेगी और इसलिए वे अपने विचार व्यक्त नहीं करते हैं; या उनके पास कोई विचार ही नहीं होता है और वे उस मामले को स्पष्ट रूप से नहीं समझ पाते हैं, वे यह सोचकर मनमाने ढंग से बोलने की हिम्मत नहीं कर पाते हैं कि उनकी गलती पर लोग हँसेंगे—इसलिए मौन ही उनका एकमात्र विकल्प होता है। संक्षेप में, वे इसलिए अपने विचार व्यक्त करने को तैयार नहीं होते हैं क्योंकि वे डरते हैं कि वे अपनी असलियत प्रकट कर देंगे, कि लोग यह देख लेंगे कि वे दरिद्र और दयनीय हैं, और इससे दूसरों के मन में उनकी जो छवि है वह प्रभावित हो जाएगी। इसलिए, जब बाकी लोग अपने नजरिए, विचारों और ज्ञान पर संगति कर लेते हैं, तो वे कुछ ऊँचे और ज्यादा मजबूत दावों को पकड़ लेते हैं, जिन्हें फिर वे ऐसे पेश करते हैं मानो ये उनके अपने नजरिए और अपनी समझ हों। वे उन्हें संक्षेप में प्रस्तुत करते हैं और सबके साथ उन पर संगति करते हैं और इस तरह से दूसरों के दिलों में ऊँचा रुतबा हासिल कर लेते हैं। मसीह-विरोधी बेहद चालाक होते हैं : जब कोई दृष्टिकोण व्यक्त करने का समय आता है, तो वे कभी भी दूसरों से खुलकर बात नहीं करते हैं और उन्हें अपनी वास्तविक स्थिति नहीं दिखाते हैं, या लोगों को यह नहीं जानने देते हैं कि वे वास्तव में क्या सोचते हैं, उनकी योग्यता कैसी है, उनकी मानवता कैसी है, समझने की उनकी शक्तियाँ कैसी हैं, और क्या उन्हें सत्य का सही ज्ञान है। और इसलिए, डींग मारने और आध्यात्मिक तथा एक आदर्श व्यक्ति होने का दिखावा करने के साथ-साथ, वे अपने असली चेहरे और वास्तविक आध्यात्मिक कद को ढकने की भी पूरी कोशिश करते हैं। वे भाई-बहनों के सामने कभी भी अपनी कमजोरियों को प्रकट नहीं करते हैं, और ना ही वे कभी भी अपनी खुद की कमियों और दोषों को जानने का प्रयास करते हैं; इसके बजाय, वे उन्हें ढकने का पूरा प्रयास करते हैं। लोग उनसे पूछते हैं, “तुमने इतने वर्षों से परमेश्वर में विश्वास रखा है, क्या तुम्हें कभी परमेश्वर के बारे में कोई संदेह हुआ है?” वे उत्तर देते हैं, “नहीं।” उनसे पूछा जाता है, “क्या तुम कभी परमेश्वर के लिए खपाने में अपना सब कुछ त्याग देने पर पछताए हो?” वे उत्तर देते हैं, “नहीं।” “जब तुम बीमार थे, तो क्या तुम परेशान रहते थे और क्या तुम्हें घर की याद सताती थी?” और वे जवाब देते हैं, “कभी नहीं।” तो तुम देखते हो, मसीह-विरोधी खुद को बहुत पक्के, दृढ़-इच्छाशक्ति वाले, अहं का त्याग करने और कष्ट सहने में सक्षम व्यक्ति के रूप में चित्रित करते हैं, एक ऐसे व्यक्ति के रूप में, जो बस निर्दोष, त्रुटिरहित या समस्याविहीन हो। अगर कोई उनकी भ्रष्टता और कमियों की ओर इशारा करता है, उनके साथ किसी सामान्य भाई या बहन के रूप में बराबरी का व्यवहार करता है, और उनके साथ खुलकर सहभागिता करता है, तो वे मामले को कैसे देखते हैं? वे स्वयं को सच्चा और सही ठहराने, खुद को सही साबित करने और अंततः लोगों को यह दिखाने का भरसक प्रयास करते हैं कि उनके साथ कोई समस्या नहीं है, और वे एक परिपूर्ण, आध्यात्मिक व्यक्ति हैं। क्या यह सब कुछ पाखंड नहीं है? जो भी लोग खुद को निष्कलंक और पवित्र समझते हैं, वे सभी ढोंगी हैं। मैं क्यों कहता हूँ कि वे सभी ढोंगी हैं? मुझे बताओ, क्या भ्रष्ट मनुष्यों में कोई निर्दोष है? क्या वाकई कोई पवित्र है? (नहीं।) निश्चित रूप से नहीं है। मनुष्य निर्दोष कैसे हो सकता है जब उसे शैतान ने इतनी बुरी तरह से भ्रष्ट कर दिया है? इसके अलावा, इंसान सहज रूप से सत्य से युक्त नहीं होता है। सिर्फ परमेश्वर पवित्र है; सारी भ्रष्ट मानवता मलिन है। अगर कोई व्यक्ति किसी पवित्र व्यक्ति का रूप धारण करता है और कहता है कि वह निष्कलंक है, तो वह व्यक्ति कैसा होगा? वह एक दुष्ट व्यक्ति, एक शैतान, एक महादूत होगा—वह पक्के तौर पर मसीह-विरोधी होगा। सिर्फ कोई मसीह-विरोधी ही निर्दोष और पवित्र व्यक्ति होने का दावा करेगा। क्या मसीह-विरोधी खुद को जानते हैं? (नहीं।) और, चूँकि वे खुद को नहीं जानते हैं, तो क्या वे अपने आत्म-ज्ञान के बारे में संगति करेंगे? (नहीं।) क्या ऐसे मसीह-विरोधी हैं जो अपने आत्म-ज्ञान के बारे में संगति करेंगे? (हाँ।) किस तरह के लोग ऐसा करते हैं? (ढोंगी लोग।) सही कहा। ये लोग खुद को जानने का दिखावा करते हैं, और राई का पहाड़ बनाते हैं और खुद को बहुत सारे बड़े-बड़े उपनाम देते हैं और कहते हैं कि वे शैतान और राक्षस हैं और दिखावा करते हैं कि उन्हें अपने बारे में गहन ज्ञान है। वे झूठमूठ के आध्यात्मिक लोग हैं, है ना? क्या वे ढोंगी नहीं हैं? जब वे अपने आत्म-ज्ञान के बारे में संगति करते हैं, तो क्या वे वाकई खुद को जानते हैं? (नहीं।) तो वे अपने आत्म-ज्ञान के बारे में क्या कहते हैं? (जब मसीह-विरोधी अपने आत्म-ज्ञान के बारे में बात करते हैं तो वे अपनी वास्तविक परिस्थिति के बारे में बात नहीं करते हैं, वे सिर्फ खोखले शब्द और सिद्धांत के शब्द बोलते हैं, जो बिल्कुल भी व्यावहारिक नहीं होते हैं; ऐसा प्रतीत होता है कि उनके पास बहुत गहन ज्ञान है, लेकिन उनमें पश्चात्ताप का कोई चिन्ह नहीं होता है।) क्या यह अपने बारे में वास्तविक ज्ञान है? यहाँ कोई सच्चा पश्चात्ताप नहीं है, तो क्या उन्होंने खुद से नफरत करने का परिणाम हासिल कर लिया है? जब यहाँ कोई पश्चात्ताप नहीं है और खुद से कोई नफरत नहीं है, तो इसका अर्थ यह है कि वे सही मायने में खुद को नहीं जानते हैं। मसीह-विरोधी जिस आत्म-ज्ञान की बात करते हैं, उसमें सिर्फ वही चीजें शामिल होती हैं जो उनके बारे में हर किसी को मालूम हैं, जो हर किसी को दिखाई देती हैं। वे कुतर्क और आत्म-औचित्य का भी सहारा लेते हैं ताकि सबको यह महसूस करवा सकें कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है, और इसके बावजूद भी अपने आत्म-ज्ञान के बारे में बोल सकें, ताकि लोग उनके बारे में और भी ऊँची राय बनाएँ। यह देखकर कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है, फिर भी वे आत्म-चिंतन कर रहे हैं और खुद को जानने का प्रयास कर रहे हैं, लोग यही सोचते हैं कि “अगर वह वाकई कुछ गलत करता भी है, तो उसमें खुद को जानने की और ज्यादा संभावना होगी। वह कितना धर्मनिष्ठ है!” मसीह-विरोधी का ऐसा करने का क्या परिणाम होता है? वह लोगों को गुमराह करता है। वह सही मायने में अपने खुद के भ्रष्ट स्वभाव का गहन-विश्लेषण नहीं करता है या उसे नहीं समझता है ताकि दूसरे लोग इससे सबक सीख सकें; बल्कि, वह अपने आत्म-ज्ञान के बारे में संगति करने का उपयोग दूसरों से अपने बारे में और ऊँची राय बनवाने के लिए करता है। इस कार्य की क्या प्रकृति है? (लोगों को गुमराह करने के लिए अपनी गवाही देना।) सही कहा। वह लोगों को गुमराह कर रहा है। इसे खुद को जानना कैसे मान सकते हैं? यह धोखा है, बस और कुछ नहीं। वह अपने आत्म-ज्ञान के बारे में बात करने का उपयोग लोगों को गुमराह करने के लिए कर रहा है, ताकि लोग यह सोचें कि वह आध्यात्मिक है, और खुद को जानता है, जिससे लोग उसके बारे में ऊँची राय बनाएँ और उसकी आराधना करें। यह एक नीच और घिनौना अभ्यास है—और यह मसीह-विरोधियों की दुष्टता है।
कलीसिया में अपना कर्तव्य करने वाले ऐसे कुछ लोग हैं जो तकनीकी रूप से मुश्किल कार्यों को करने में स्पष्ट रूप से असमर्थ हैं, फिर भी वे दल में शामिल किए जाने के लिए जोर देते हैं। उनका मानना है कि वे इससे पहले एक संबंधित व्यावसायिक कौशल सीख चुके हैं, वे इस विशेषज्ञता को समझते हैं, वे इसे करने का तरीका जानते हैं, और इसलिए वे इस कार्य को लेने के लिए जोर देते हैं। वे सत्य नहीं समझते हैं और यही नहीं, सत्य नहीं समझने के आधार पर, वे दूसरों के साथ संगति या कार्य भी नहीं करते हैं, फिर सत्य सिद्धांतों की तलाश करना तो दूर की बात है, और वे इस बात पर जोर देते हैं कि वे इसे समझते हैं और इसके बारे में जानते हैं। तो, क्या एक तरफ कोई व्यावसायिक कौशल जानने और उसे करने का तरीका पता होने और दूसरी तरफ सत्य सिद्धांतों को समझने के बीच कोई फर्क है? व्यावसायिक कौशल जानने और उसे करने का तरीका पता होने का क्या यह अर्थ है कि व्यक्ति सत्य सिद्धांतों को समझता है? (नहीं।) जिन लोगों को आध्यात्मिक समझ नहीं होती है, वे यह मानते हैं कि व्यावसायिक कौशल जानने का अर्थ है कि वे सत्य सिद्धांतों को समझते हैं, और इसलिए वे बेधड़क अपनी मर्जी के मुताबिक कार्य करना शुरू कर सकते हैं, इसके लिए उन्हें किसी की बात सुनने की जरूरत नहीं है और वे इस कार्य को परमेश्वर के घर के नियमों के अनुसार करने के लिए बाध्य नहीं हैं। वे मानते हैं कि यह उनका मामला है और कोई भी दूसरा व्यक्ति इसमें दखल नहीं दे सकता या इसके बारे में उनसे नहीं पूछ सकता—कार्य वैसा ही होगा जैसा वे उसे करेंगे, और जो वे करेंगे उसे मानक मान लिया जाए। क्या मसीह-विरोधी इसी तरह से व्यवहार नहीं करते हैं? क्या यह एक गंभीर समस्या नहीं है? अगर कोई व्यक्ति सिर्फ व्यावसायिक कौशल जानता है और वह सत्य नहीं समझता है, तो उसके कर्तव्य करने से क्या परिणाम सामने आएँगे? (वे कलीसिया के कार्य में विघ्न डालेंगे।) सिर्फ विघ्न डालेंगे? क्या वे घमंडी और दंभी नहीं बन जाएँगे? क्या वे ऐसी चीजें नहीं करेंगे जो परमेश्वर को शर्मिंदा करती हों? (हाँ।) अपने कर्तव्य का निर्वहन करके, तुम लोगों को जो प्रभाव प्राप्त करना है वह है परमेश्वर की गवाही देना; तुम सिर्फ किसी पेशे में शामिल नहीं होते हो, बल्कि अपने कर्तव्य का निर्वहन करके तुम परमेश्वर की गवाही देने का प्रभाव प्राप्त करते हो, और इसलिए यह व्यावसायिक कौशल सिर्फ उस कर्तव्य की सेवा कर रहा है जिसे तुम कर रहे हो। व्यावसायिक कौशल सत्य का निरूपण बिल्कुल नहीं है, और किसी व्यावसायिक कौशल में निपुण होने का यह अर्थ नहीं है कि तुम सत्य मझते हो या कि तुम कार्य को सत्य सिद्धांतों के अनुसार कर सकते हो। कुछ लोग इस पर आपत्ति जताते हैं, और कहते हैं, “मैं परमेश्वर के घर आया, मैं यह व्यावसायिक कौशल जानता हूँ, मैं इसे करने का तरीका जानता हूँ, इसलिए परमेश्वर के घर को मुझे महत्वपूर्ण कार्य देने चाहिए और मेरे बारे में ऊँची राय बनानी चाहिए। इसे मुझे शर्मिंदा नहीं करना चाहिए या मेरे व्यावसायिक कौशल के दायरे में आने वाली किसी भी चीज में अपनी नाक नहीं घुसानी चाहिए। दूसरों को सिखाना मेरा कार्य होना चाहिए। परमेश्वर के घर को मेरे साथ कार्य करने के लिए उन लोगों की व्यवस्था नहीं करनी चाहिए जो इस कार्य को करने का तरीका नहीं जानते हैं। ये लोग मेरे साथ कार्य करने के योग्य नहीं हैं।” क्या यह सोचने का सही तरीका है? (नहीं।) दूसरे लोग उनके साथ कार्य करने के योग्य नहीं हैं—क्या मसीह-विरोधी इसी तरीके से नहीं सोचता है? अगर परमेश्वर के घर में ऐसा कोई नहीं है जो तुम्हारे साथ कार्य करने के योग्य हो, तो फिर क्या तुम इस कर्तव्य को करने के योग्य हो? तुम खुद को क्या समझते हो? क्या तुम्हें पूर्ण बना दिया गया है? तुम इस कर्तव्य को करने के योग्य नहीं हो! तुम्हें यह कर्तव्य करने का अवसर सिर्फ इसलिए मिला है क्योंकि परमेश्वर तुम्हारी बड़ाई करता है। तुम्हें अपने कर्तव्य करने के सिद्धांतों को समझना चाहिए। अब तुम परमेश्वर की गवाही दे रहे हो, किसी पेशे में शामिल नहीं हो रहे हो। तुम जो भी थोड़ा बहुत व्यावसायिक कौशल जानते हो, उसका उपयोग सिर्फ सेवा प्रदान करने के लिए और इस कर्तव्य की पूर्ति करने के लिए किया जाता है। इसलिए, तुम जो कर्तव्य करते हो, वह चाहे तकनीकी रूप से कितना भी मुश्किल क्यों ना हो, तुम्हें हमेशा उसके हर हिस्से में सत्य सिद्धांतों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए ताकि तुम परमेश्वर की गवाही देने का प्रभाव प्राप्त कर सको। अगर तुम यह प्रभाव प्राप्त नहीं कर पाते हो और तुम जो कर्तव्य करते हो उससे परमेश्वर शर्मसार होता है, तो फिर तुम्हारी तकनीकी क्षमताओं का क्या उपयोग रह जाएगा? क्या उनकी कोई कीमत रहेगी? नहीं, उनकी कोई कीमत नहीं रहेगी। इसलिए, उस मामूली से व्यावसायिक कौशल और तकनीकी क्षमता को सत्य मत मानो—वे सत्य नहीं हैं और संजोकर रखने योग्य नहीं हैं। अगर परमेश्वर के घर ने तुम्हारा उपयोग नहीं किया, अगर परमेश्वर ने तुम्हारी बड़ाई नहीं की, तो तुम्हारे थोड़े-से व्यावसायिक कौशल और तकनीकी क्षमता की कोई कीमत नहीं रहेगी। सत्य की तुलना में, उन चीजों की कीमत धेले भर की भी नहीं हैं!
कह सकते हैं कि मसीह-विरोधियों का पाखंड एक ऐसा साधन है जिसका उपयोग वे लोगों के दिलों में जगह बनाने के लिए करते हैं—वे पाखंड के साधन का उपयोग लोगों को गुमराह करने और उन्हें गलत दिशा में भेजने के लिए करते हैं। ये लोग पाखंड में शामिल हो सकते हैं यह बात ना सिर्फ यह दर्शाती है कि वे मूल रूप से सत्य स्वीकार नहीं करते हैं या सत्य को नहीं मानते हैं, बल्कि यह भी दर्शाती है कि एक इससे भी ज्यादा यथार्थवादी व्याख्या है जो इन लोगों पर लागू होती है : उन्हें आध्यात्मिक समझ बिल्कुल नहीं है। “उन्हें आध्यात्मिक समझ बिल्कुल नहीं है” का क्या अर्थ है? इसका अर्थ यह है कि वे परमेश्वर के वचनों या सत्य को नहीं समझते हैं। और चूँकि वे सत्य को नहीं समझते हैं, इसलिए उन्हें यह मालूम नहीं है कि परमेश्वर किस तरह के लोगों से प्रेम करता है, और इसलिए वे इस तरह के आध्यात्मिक व्यक्ति की कल्पना कर लेते हैं और फिर पाखंड और दिखावा करते हैं। वे इस तरह के व्यक्ति की तरह कार्य करते हैं, और यह मानते हैं कि ऐसा करने से परमेश्वर और दूसरे लोगों से खुद को पसंद करवा सकते हैं। दरअसल, होता इसका उल्टा है, क्योंकि इस तरह के लोग ठीक वही होते हैं जिनसे परमेश्वर नफरत करता है और जिनकी वह निंदा करता है। इसलिए इस तरह का व्यक्ति मत बनो। अगर तुम भी ऐसा व्यक्ति बनना चाहते हो, अगर तुम अक्सर इस तरह से पाखंड और दिखावा करते हो, और इस तरह से लोगों को गुमराह करते हो, तो इसका अर्थ है कि तुम मसीह-विरोधी के मार्ग पर चल रहे हो। तुम्हें यह कहना सीखना ही चाहिए, “मुझमें कमजोरी है, मुझमें नकारात्मकता है, मेरे पास भ्रष्ट स्वभाव हैं। मैं एक साधारण व्यक्ति हूँ, मैं कोई खास नहीं हूँ। ऐसी कई चीजें हैं जो मुझे समझ नहीं आती हैं और मुझे नहीं पता कि उन्हें कैसे करना है। मैं अक्सर कमजोर पड़ जाता हूँ और शैतान द्वारा गुमराह हो जाता हूँ जिससे मैं शैतान के प्रलोभन में पड़ जाता हूँ। तकनीकी कौशल का अध्ययन करने के लिहाज से, मैं ज्यादा से ज्यादा एक या दो कौशलों में महारत हासिल कर सकता हूँ, और मैं सीख सकता हूँ कि सामान्य रूप से उन्हें कैसे करना है। मैं जानता हूँ कि इस व्यावसायिक कौशल को कैसे करना है, और मेरे पास यही खास कौशल है। मैं एक साधारण व्यक्ति हूँ, मेरे में ज्यादा काबिलियत नहीं है, और मेरा बोध औसत स्तर का है। सत्य के लिहाज से, मैं उतना ही समझता हूँ जितना परमेश्वर संगति में देता है। मैं ऐसी कोई भी चीज नहीं समझ पाता जिसे परमेश्वर उजागर नहीं करता है या स्पष्ट रूप से नहीं समझाता है, और मेरी काबिलियत औसत स्तर की है। भाई-बहन मुझे कलीसिया के या दल के अगुआ के रूप में चुनते हैं, और यह परमेश्वर द्वारा मेरी बड़ाई करना है, और यह इसलिए नहीं है कि मैं दूसरों से बेहतर हूँ। मेरे पास शेखी बघारने के लिए कुछ भी नहीं है।” क्या तुम लोग ऐसी चीज कह सकते हो? क्या तुमने कभी ऐसी कोई चीज कही है? क्या तुम अपने दिल में इस तरह से सोचते हो? अगर तुम अपने दिल में हमेशा यह महसूस करते हो कि तुम महान हो, अद्भुत हो, बाकी लोगों से कहीं बेहतर हो, लाखों में एक हो, तुम जिस किसी समूह में होते हो उसमें खास होते हो, तुम सर्वोच्च हो, अगर तुम किसी समूह में एक या दो महीने बिताओ, तो तुम्हारे खास कौशल, प्रतिभाएँ, काबिलियत और बोध को सभी देख सकते हैं और उन्हें साधारण लोगों के कौशल, प्रतिभाओं, काबिलियत और बोध से बेहतर माना जा सकता है—अगर तुम अपने दिल में खुद को हमेशा इस तरह से मापते और स्थान देते हो, तो तुम बहुत बड़े खतरे में हो और बहुत बड़ी मुसीबत में हो।
पूरी मानवजाति में ऐसे बहुत ही कम लोग हैं, जो सही मायने में सत्य समझ पाते हैं, और पूर्ण लोगों की या ऐसे लोगों की तादाद तो और भी कम है जो कुछ भी कर सकते हैं—हर कोई साधारण है। कुछ लोग सोचते हैं कि वे साधारण नहीं हैं, तो यह विचार कैसे उत्पन्न होता है? यह उनके पास कुछ ऐसा होने से उत्पन्न होता है जिसमें वे अच्छे हैं; कुछ लोग गाना गाने में अच्छे होते हैं, तो कुछ अभिनय करने में, कुछ तकनीकी कौशलों में, कुछ शारीरिक मेहनत करने में, कुछ सामाजिक मेलजोल रखने में, कुछ राजनीति में, और कुछ व्यापार में, वगैरह-वगैरह। इनमें से किसी भी चीज का सत्य से कोई लेना-देना नहीं है, फिर भी वे अक्सर तुम्हें गलतफहमी में डाल देती हैं और तुम्हें गलती से यह सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि तुम बाकी लोगों से कहीं बेहतर हो। इन चीजों का तुम्हें गलती से यह सोचने पर मजबूर करना क्यों गलत है कि तुम बाकी लोगों से कहीं बेहतर हो? ये चीजें जिनमें तुम अच्छे हो और यह तथाकथित “बाकी लोगों से कहीं बेहतर होने” का यह अर्थ नहीं है कि तुम सत्य समझ सकते हो, तुम सत्य समझने के लिहाज से साधारण लोगों से आगे निकल सकते हो, या परमेश्वर का उद्धार खोजने और पूर्ण बनाए जाने के लिहाज से तुम्हारे पास अनुकूल स्थितियाँ हैं—इनका अर्थ ये चीजें नहीं है। तुम लोगों को यह मामला स्पष्ट रूप से पहचान लेना चाहिए! जब परमेश्वर ने अपने वचन बोलना और अपना कार्य करना शुरू किया, तब से लेकर अब तक, उसने अनगिनत वचन बोले हैं और अनगिनत कार्य किए हैं, और क्या पूरी भ्रष्ट मानवजाति में से एक भी व्यक्ति ने परमेश्वर के कथनों में यह देखा है कि वह सृष्टिकर्ता है और वह जो वचन बोलता है वे सत्य हैं? क्या एक भी व्यक्ति परमेश्वर के वचनों में उसकी पहचान और उसका दर्जा देख सकता है और फिर परमेश्वर की पहचान और उसके दर्जे की गवाही देने के लिए खड़ा हो सकता है? एक भी नहीं! इस तथ्य से यह साबित होता है कि, सारी मानवजाति की काबिलियत, दिमाग और बोध के लिहाज से, किसी के पास सत्य समझने के लिए जरूरी स्थितियाँ नहीं हैं, इस तथ्य को छोड़ दो कि सभी मनुष्यों में शैतान के भ्रष्ट स्वभाव होते हैं। कुछ लोग कहते हैं, “अगर हमारे पास सत्य समझने के लिए जरूरी स्थिति है ही नहीं, तो अब हम थोड़ा सत्य कैसे समझते हैं?” क्या ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि मैंने इस बारे में बहुत कुछ बोला है? मैंने इतना कुछ बोला है कि अब मेरा बोलने का भी मन नहीं करता है और मैं बोलने से ऊब गया हूँ। जब भी मैं बोलता हूँ और तुम लोगों के साथ संगति करता हूँ, तो मुझे विषयों को मुख्य विषयों, बीच के विषयों और उपविषयों में बाँटना पड़ता है, चीजों को लगातार ब्योरेवार तरीके से समझाना पड़ता है, और उसके बावजूद तुम लोगों को समझ नहीं आता है, तो फिर तुम लोगों की काबिलियत किस तरह की होगी? कुछ लोग अब भी बहुत अहंकारी और आत्मतुष्ट हैं, लेकिन तुम लोगों के पास अहंकारी होने के लिए क्या है? मैं देखता हूँ कि तुम में से ज्यादातर लोगों में कोई सराहनीय बात नहीं है। इतने वर्षों तक तकनीकी कार्य करने के बाद, तुम में से कितने लोग सत्य सिद्धांतों को सही मायने में समझते हो, सत्य सिद्धांतों का पालन कर सकते हो और अपने कार्य सत्य सिद्धांतों के अनुसार कर सकते हो? तुम कोई भी कार्य अच्छी तरह से नहीं करते हो, चाहे वह कार्य कोई भी हो, और ऊपरवाले को इस बारे में हमेशा तुम्हें व्यक्तिगत रूप से निर्देश देना पड़ता है कि चीजों को कैसे करना है। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो कुछ भी सही नहीं होता है, और अगर कोई कार्य ऊपरवाले की निगरानी और निर्देशों के बिना आगे बढ़ता है, तो समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। मुझे बताओ, क्या ऐसे लोगों के पास डींग हाँकने के लिए कुछ है? नहीं, उनके पास कुछ नहीं है, फिर भी वे हर लिहाज से परिपूर्ण, आध्यात्मिक, महान और श्रेष्ठ लोग होने का दिखावा करते हैं—क्या वे बेशर्म नहीं हैं? तुम लोग वाकई तकलीफदेह हो! मैं चाहे किसी भी विषय पर संगति करूँ, मुझे उसे ब्योरेवार तरीके से करना पड़ता है, जितना ज्यादा ब्योरा हो, उतना बेहतर है। चीजों को थोड़ा और सादे तरीके से समझाने से काम नहीं बनेगा। लोगों की काबिलियत और उनका बोध ऐसा ही है; वे बेहद दयनीय हैं और फिर भी वे मानते हैं कि वे महान हैं। मैं इस पहलू पर अपनी संगति यहीं समाप्त करूँगा।
iii. सबसे आगे होना
अब हम तीसरे पहलू पर संगति करेंगे : सबसे आगे होना। मसीह-विरोधी चाहे जो भी करें, वे हमेशा सबसे आगे होना चाहते हैं—यह उनकी प्रकृति की सबसे प्रमुख अभिव्यक्ति है। अगर कोई भी व्यक्ति सबसे आगे होना चाहता है, तो यह एक बहुत गंभीर समस्या है और ऐसे सभी लोग वास्तव में मसीह-विरोधी हैं। “सबसे आगे होने” का क्या अर्थ है? मसीह-विरोधियों में महादूत, शैतान का सार होता है; वे स्वभावतः सामान्य या साधारण लोग नहीं बनना चाहते हैं। अगर उन्हें साधारण लोगों की तरह रहना, साधारण जीवन जीना पड़े तो वे ऐसा नहीं करना चाहेंगे और असंतुष्ट महसूस करेंगे, और लगातार संघर्षशील रहेंगे। वे लगातार संघर्षशील क्यों रहेंगे? क्योंकि वे हलचल मचाना और दूसरों को दिखाने के लिए कुछ करतब करना चाहते हैं, ताकि दूसरे लोग जान सकें कि स्वर्ग और पृथ्वी के बीच उनके जैसा कोई शक्तिशाली व्यक्ति मौजूद है। वे अपना नाम करना चाहते हैं, ताकि दूसरों को पता चले कि वे एक ऐसी मछली हैं जो कि तालाब से भी बड़ी है, जैसा कि अविश्वासी कहते हैं। यह मछलियाँ किस तरह की चीजें हैं जो कि इतनी बड़ी हैं कि अपने तालाब में ही न समाएँ? ये बुरी आत्माएँ हैं, मलिन दानव हैं, महादूत, शैतान और राक्षस हैं। मसीह-विरोधी जीवन में जो मिला है उससे संतुष्ट रहकर और एक सामान्य व्यक्ति का जीवन जीते हुए, अपने दिन गुजारने की इच्छा स्वाभाविक रूप से नहीं रखते हैं; वे चुपचाप अपना कर्तव्य करने से मतलब नहीं रखते या साधारण शिष्ट लोगों की तरह व्यवहार नहीं करते—उन्हें ऐसा बनने से संतुष्टि नहीं मिलती। इसलिए, वे ऊपरी तौर पर चाहे जैसा भी व्यवहार करें, लेकिन दिल में, वे जीवन में जो मिला है उससे नाखुश रहते हैं और वे कुछ खास काम करेगें। क्या काम करेंगे? वे कुछ ऐसे काम करेंगे, जो सामान्य लोग कभी नहीं सोच सकते। वे चर्चा में बने रहना चाहते हैं और इसके लिए कोई परेशानी उठाने या कोई कीमत अदा करने से नहीं हिचकिचाएँगे। एक कहावत है : “नए अधिकारी दूसरों को प्रभावित करने के लिए तत्पर रहते हैं।” जब कोई मसीह-विरोधी अगुआ बन जाता है, तो उसे लगता है कि उसे कुछ हैरतंगेज काम जरूर करने चाहिए और “अपने करियर में कुछ उपलब्धियाँ” हासिल करनी चाहिए, जिससे साबित हो सके कि वह कोई साधारण व्यक्ति नहीं है। यहाँ सबसे गंभीर समस्या क्या है? हालाँकि वे कलीसिया में काम कर रहे हैं और अपने कर्तव्य करने का स्वांग भर रहे हैं, पर वे कभी परमेश्वर से खोजने नहीं जाते कि वे अपने कर्तव्य कैसे करें या कलीसिया का काम अच्छी तरह कैसे करें, न ही वे यह जानने की ज्यादा कोशिश करते हैं कि परमेश्वर के घर के क्या नियम हैं, सत्य सिद्धांत क्या हैं या इस तरह से कैसे कार्य करें, जिससे परमेश्वर के घर के काम और भाई-बहनों को लाभ हो, परमेश्वर को शर्मिंदा करने वाली कोई बात न हो, परमेश्वर की गवाही दी जा सके, कलीसिया के काम को सुचारू रूप से आगे बढ़ने में सक्षम बनाया जा सके और जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि उनके काम में लापरवाही के चलते कोई गलती न हो। वे इन चीजों के बारे में कभी नहीं पूछते और इन चीजों के बारे में कभी पता नहीं लगाते—उनके दिल में ये चीजें नहीं हैं, उनका दिल इन चीजों से नहीं भरा है। तो वे क्या पता लगाते हैं? उनके दिल में क्या भरा होता है? उनके दिल में ये विचार भरे होते हैं कि वे अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कैसे कर सकते हैं और ये कैसे दिखा सकते हैं कि वे बाकियों से अलग हैं और कलीसिया में अपनी अगुआई की शैली का प्रदर्शन कैसे कर सकते हैं, ताकि दूसरे लोगों को पता चले कि वे कलीसिया के आधार स्तंभों में से हैं और कलीसिया में उनके बिना काम नहीं चल सकता, और ये कि कलीसिया के सभी काम उनको साथ लेकर ही अच्छी तरह चल सकते हैं। मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्तियों और उनके क्रियाकलापों की प्रेरणा तथा मूल आवेग के आधार पर निर्णय करते हुए वे अपने आप को किस स्थिति में रखते हैं? वे खुद को सबसे आगे रखते हैं। और इसे कैसे अभिव्यक्त करते हैं? (वे किसी की भी बात नहीं मानते और हमेशा चाहते हैं कि वे जो कहें, वही माना जाए और दूसरे लोग उन्हीं की बात मानें।) किसी की भी बात नहीं मानने में समस्या है; इसमें कोई अर्थ छिपा है। वह अर्थ ये है कि वे जब कलीसिया का काम करते हैं तो वे अपना कर्तव्य नहीं कर रहे हैं, न ही वे परमेश्वर के इरादे का ध्यान रखते हैं और इसलिए वे सत्य सिद्धांतों की तलाश करने, कलीसिया के नियमों का पता लगाने या परमेश्वर के घर के लिए अपेक्षित सिद्धांतों को जानने की जरूरत महसूस नहीं करते—यहाँ तक कि वे मेरी कही किसी बात पर ध्यान नहीं देते। वे किन सिद्धांतों का पालन करते हैं? वे कलीसिया के काम और अपने भाई-बहनों की सेवा करते समय ऐसे सिद्धांतों और प्रेरणाओं का ध्यान रखते हैं, जिससे उनके अपने कार्य पूरे हो सकें। जब तक वे कलीसिया में और अपने भाई-बहनों के बीच अपनी जगह बना पाते हैं, और प्रतिष्ठा और फैसले लेने की शक्ति प्राप्त कर पाते हैं, तब तक उनके लिए इतना पर्याप्त है; और इसके बाद वे अपने कर्तव्य से अपना तथाकथित “परिणाम” हासिल कर चुके होंगे। उनका लक्ष्य क्या है? उनका लक्ष्य सृजित प्राणी का कर्तव्य पूरा करना या परमेश्वर के बोझ का ध्यान रखना नहीं होता, बल्कि कलीसिया के लिए काम करना और अपने भाई-बहनों की सेवा करना और ऐसा करते समय इन सभी चीजों पर नियंत्रण प्राप्त करना होता है। मैं क्यों कहता हूँ कि वे इन सभी चीजों पर नियंत्रण करना चाहते हैं? क्योंकि जब वे काम कर रहे होते हैं तो पहले वे अपने लिए पैर रखने की जगह बनाते हैं, कुछ प्रसिद्धि पाते हैं, उनकी प्रतिष्ठा बढ़ती है, वे फैसले करने और निर्णय लेने की ताकत पा लेते हैं और तब वे परमेश्वर को महज कहने भर का स्वामी बनाकर, स्वयं परमेश्वर का स्थान ले सकते हैं। अपने प्रभाव के दायरे में, वे देहधारी परमेश्वर को केवल नाम का स्वामी, कठपुतली बना देते हैं और “सबसे आगे होने” का अर्थ यही है। क्या मसीह-विरोधी यही कार्य नहीं करते? मसीह-विरोधी इसी तरह का व्यवहार करते हैं। मसीह-विरोधी अपने कर्तव्य करने के अवसर का उपयोग पूरी तरह अपने गुणों और प्रतिभाओं को दिखाने और अपनी अनूठी सोच तथा कार्यों को प्रदर्शित करने के लिए करते हैं, जिससे कि उन्हें लोगों का समर्थन मिल सके और ज्यादा लोग उनकी ओर आकृष्ट हो सकें। इसके बाद वे अधिकार हासिल करने, निर्णय करने और कलीसिया में चीजों पर नियंत्रण हासिल करने की हैसियत प्राप्त करते हैं और इससे बहुत से लोग उनकी आज्ञा मानने लगते हैं और उनके प्रति समर्पित हो जाते हैं, और परमेश्वर बाहरी हो जाता है—क्या यह परमेश्वर को केवल कहने भर का स्वामी बना देना नहीं है? मसीह-विरोधी अपने क्रियाकलापों से यह लक्ष्य प्राप्त करना चाहते हैं और जहाँ भी मसीह-विरोधियों का शासन होता है, वहाँ अंततः यही होता है।
अगर किसी कलीसिया में सत्ता एक मसीह-विरोधी के पास है तो वहाँ के भाई-बहनों की क्या स्थिति होगी? वे केवल वही कार्य करेंगे जो मसीह-विरोधी कहेंगे, वे अपने प्रत्येक कार्य सिर्फ विनियमों के अनुसार करेंगे, वे सत्य को नहीं समझेंगे और सत्य की तलाश नहीं करेंगे। वे चाहे जितनी पीड़ा सहें या जितनी बड़ी कीमत चुकाएँ, लेकिन वे जीवन प्रवेश में कोई प्रगति नहीं कर सकेंगे। यहाँ तक कि ऐसी कलीसिया में अगर मैं भी जाऊँ तो मुझे भी ठुकरा दिया जाएगा। यह मसीह-विरोधी नाम से तो उनका अगुआ है, लेकिन असलियत ये है कि यह मसीह-विरोधी उनका मालिक और उनका परमेश्वर बन बैठा है। मसीह-विरोधी के नियंत्रण वाली किसी भी कलीसिया में सत्य और परमेश्वर तो केवल कहने भर के लिए रह जाते हैं। किसी मसीह-विरोधी के सबसे आगे होने का अर्थ यही है। क्या यह गंभीर बात नहीं है? जब किसी कलीसिया में लोगों पर मसीह-विरोधी का नियंत्रण हो और बाहर के लोग वहाँ काम करने जाते हों तो क्या इन लोगों को अपने स्वामी के इशारे से बोलना और कार्य नहीं करना पड़ेगा? वे एक एकीकृत कमान के अधीन होते हैं, एक ही तरह से काम करते हैं और कोई भी इससे इतर कुछ कहने का साहस नहीं करता। अपने स्वामी का एक इशारा देखकर ये लोग समझ जाते हैं कि इसका क्या अर्थ है और वे उसी के अनुसार कार्य करते हैं। अगर मैं उनसे कुछ पूछूँ तो वे अपनी भाषा में एक-दूसरे से बात करते हैं। इसका अर्थ है कि वे नहीं चाहते कि मैं जानूँ कि वे क्या कह रहे हैं, वे मुझसे बचना चाहते हैं और वे मुझे बाहरी समझते हैं। क्या यह एक समस्या नहीं है? मुझसे बचने की उनकी इच्छा की प्रकृति क्या है? यह मसीह-विरोधियों का स्वभाव और सार है—वे कलीसिया पर और वहाँ के लोगों पर नियंत्रण चाहते हैं। मसीह-विरोधी चाहे जो भी करें, यह तय है कि वे सत्य सिद्धांतों के अनुसार काम नहीं करेंगे, परमेश्वर के घर के हितों का ध्यान तो बिल्कुल भी नहीं रखेंगे; वे अपने स्वयं के साम्राज्य स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं और अपने काम में व्यस्त हैं। यह अपना कर्तव्य करना कैसे हुआ? इस तरह वे कर्तव्य निभाने का स्वांग करने की आड़ में अपने स्वयं के साम्राज्य स्थापित कर रहे हैं। चूंकि मसीह-विरोधियों की प्रकृति इसी तरह की होती है, भले ही वे यह न कहें कि व्यक्तिपरक ढंग से उन्हें रुतबा पसंद है और वे रुतबा चाहते हैं, लेकिन जैसे ही वे कोई काम करते हैं और अपना हाथ बढ़ाते हैं, मसीह-विरोधियों की राह पर चल पड़ते हैं, उनकी राक्षसी प्रकृति का खुलासा हो जाता है और वे अपने स्वयं के साम्राज्य स्थापित करने का प्रयास करने लगते हैं। जब भी वे कुछ करते हैं, वे अपने ही धंधे में संलग्न होने का प्रयास करते हैं; जब भी वे कुछ करते हैं, वे अपने साधनों और तरीकों से काम करने की कोशिश करते हैं। जब ऊपरवाला किसी चीज की व्यवस्था करता है और यह उन तक पहुँचती है तो मसीह-विरोधी इसका कार्यान्वयन नहीं करते, बल्कि इसकी जगह वे इस चीज का अध्ययन करते हैं, इस पर विचार करते हैं और इस पर संगति करते हैं। इस पर संगति करने का उनका क्या लक्ष्य है? इसे कार्यान्वित करने के बजाए हर किसी के साथ इस बात पर चर्चा करना कि इसे ग्रहण किया जाएगा या नहीं और यह काम करेगी या नहीं। परमेश्वर जो भी कहता और करता है, वह सत्य है, लेकिन जब यह किसी मसीह-विरोधी के पास पहुँचता है तो यह बदलकर ऐसी चीज बन जाता है, जिसका अध्ययन करना उनके लिए जरूरी है। वे इसका अध्ययन, विश्लेषण और इस पर चर्चा करते हैं, और अंत में, मनुष्य से परमेश्वर की जो अपेक्षाएँ और परमेश्वर की व्यवस्थाएँ हैं, उनका वे हर किसी से खंडन कराते हैं। अपने दिल में वे सोचते हैं, “तुम सत्य नहीं हो, तुम सिर्फ एक साधारण व्यक्ति हो। तुम क्या कहते हो यह कोई मायने नहीं रखता और अगर तुम मेरे क्षेत्राधिकार में अपने हिसाब से अंतिम निर्णय लेना चाहते हो तो तुम यह भूल जाओ! अभी यहाँ का प्रभारी मैं हूँ तो हर किसी को वही करना पड़ेगा जो मैं कहूँगा। निर्णय लेने के और अन्य सारे अधिकार पूरी तरह मेरे पास हैं और तुम यहाँ सिर्फ नाम के स्वामी हो। मेरे काम और प्रभाव के दायरे के भीतर हर चीज पर अंतिम निर्णय मुझे ही लेना है। भले ही तुम सत्य को समझते हो और तुम जो भी कहते हो, वह सत्य है, लेकिन उससे मुझ पर कोई असर नहीं होगा!” यह एक मसीह-विरोधी और दानव है, है ना? तो जब कलीसिया की कार्य व्यवस्थाएँ, ऊपरवाले की अपेक्षाएँ और सत्य सिद्धांत किसी मसीह-विरोधी के क्षेत्र में पहुँचते हैं तो वे बिल्कुल कार्यान्वित नहीं किए जाते। ये चीजें कार्यान्वित नहीं हो रही हैं तो इसके लिए क्या किया जा सकता है? जब कोई कलीसिया इन्हें कार्यान्वित नहीं करती है तो इसका अर्थ यह है कि वहाँ के अगुआओं और कार्यकर्ताओं के साथ कोई समस्या है और इन अवरोधों एवं बाधाओं से निपटना चाहिए। क्या तुम सोचते हो कि परमेश्वर का घर तुम्हारा कुछ नहीं कर सकता? अगर परमेश्वर का घर तुम्हारा उपयोग कर सकता है तो यह तुम्हें संभाल भी सकता है। क्या तुम सोचते हो कि यह लौकिक संसार है? क्या तुम सोचते हो कि अगर तुम्हारा प्रभाव है, तुम तानाशाह की तरह काम करते हो और तुम काफी क्रूर, निरंकुश और दुष्ट हो तो कोई तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता है? अगर ऐसा है तो तुम गलत हो! यह परमेश्वर का घर है। परमेश्वर के घर में सत्य का शासन चलता है और यह लोगों से सिद्धांतपूर्वक व्यवहार करता है। परमेश्वर का घर तुम्हारा उपयोग कर सकता है और परमेश्वर का घर तुम्हारा उपयोग नहीं भी कर सकता है और तुम्हें निकाल भी सकता है—तुम्हारा उपयोग किया जाएगा या नहीं, इसका निर्णय परमेश्वर के वचन द्वारा होगा। अगर तुम यहाँ अनुचित तरीके से विघ्न उत्पन्न करोगे और काम में बाधा डालोगे तो अंततः तुम्हें निकाल दिया जाएगा; अगर तुम सेवा प्रदान करने का प्रयास करते हो, यहाँ रुकते हो और अपनी जगह समझते हो और अच्छे से व्यवहार करते हो तो परमेश्वर का घर तुम्हें सेवा प्रदान करने के लिए रखेगा और देखेगा कि तुम्हारे सेवा प्रदान करने का क्या परिणाम निकलता है।
मसीह-विरोधियों द्वारा अपने स्वयं के साम्राज्य स्थापित करने स्थापित करने का सार, सबसे आगे होने, परमेश्वर की अवहेलना करने, सत्य की अवहेलना करने और कलीसिया के नियमों की अवहेलना करने का सार है। वे बस “कलीसिया” के नाम की सेवा करते हैं, बस “परमेश्वर के घर” के नाम की सेवा करते हैं, वे बस “भाई-बहन” कहलाने वाले लोगों के समूह की सेवा करते हैं और वे सृजित प्राणी का कर्तव्य कभी नहीं निभाते, परमेश्वर का अनुसरण या उसके वचनों के प्रति समर्पण तो बिल्कुल भी नहीं करते हैं—यही उनका अपने स्वयं के साम्राज्य स्थापित करना है। मसीह-विरोधियों का सार यही है और यह सार है सबसे आगे होना। अब, क्या इस सार की निंदा की गई है या अनुमोदन किया गया है? (निंदा की गई है।) और चूंकि इसकी निंदा की गई है, तो तुम लोगों द्वारा इन लोगों को अस्वीकार किया जाना चाहिए। कुछ भ्रमित, अनभिज्ञ और दृष्टिहीन लोग ऐसे लोगों को देखकर उनका अनुसरण करते हैं, उनकी प्रशंसा, सराहना तथा आराधना करते हैं और यहाँ तक कि उनके सामने झुकना चाहते हैं—वे बिल्कुल मूर्ख हैं! मसीह-विरोधी तुम्हें कहाँ ले जा सकते हैं? उनके द्वारा तुम्हारी अगुआई किया जाना ऐसा ही है जैसे बड़ा लाल अजगर तुम्हारी अगुआई कर रहा हो, और वे तब तक नहीं रुकेंगे जब तक तुम्हें किसी गड्ढे या खाई में न धकेल दें। जब वे तुम्हें पूरी तरह बर्बाद कर देंगे, वे तुम्हें लात मार देंगे; तुम्हें कुछ भी हासिल नहीं होगा और तुम्हारा परमेश्वर पर विश्वास किया जाना व्यर्थ होगा। अगर तुम लोग अंधे हो और इन लोगों की सच्चाई नहीं देख सकते हो और तुम इन लोगों की आज्ञा मानते हो, इनके प्रति समर्पण और इनका अनुसरण करते हो तो तुम लोग पूरी तरह अज्ञानी हो और मरने के ही लायक हो। तो अगर तुम्हारा सामना ऐसे लोगों से होता है तो तुम्हें क्या करना चाहिए? जब तुम्हारा सामना कलीसिया में किसी ऐसे व्यक्ति से होता है, जो दिखावे और पाखंड में लगा है, जो करता तो कुछ नहीं लेकिन सबसे आगे होना चाहता है, सत्य का तिरस्कार करता है, परमेश्वर का तिरस्कार करता है और कलीसिया के नियमों का तिरस्कार करता है, तो हर व्यक्ति को उसकी काट-छाँट करने और उसे अस्वीकार करने के लिए खड़ा होना चाहिए। अगर ऐसे लोग परमेश्वर के घर में शिष्टतापूर्वक श्रम करते हैं तो उन्हें श्रम करने दो; अगर वे शिष्ट नहीं हैं और हमेशा अनुचित रूप से काम में बाधा डालते हैं तो तुम्हें परमेश्वर के घर के प्रशासनिक आदेशों का कार्यान्वयन कर उन्हें दूर कर देना चाहिए।
23 मई 2020