मद सात : वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं (भाग एक)
परिशिष्ट : कनाडा में मसीह-विरोधी घटना से निपटना
कनाडा के कलीसिया में अपने कर्तव्य निर्वहन करने वाले लोगों की अब कैसी स्थिति है? क्या तुम लोगों को मसीह विरोधी यान की पहचान है? क्या यान के बोलने और काम करने के तरीके में तुम्हें कोई समस्या दिखती है? (उस समय, मुझे कोई समस्या नहीं दिखी, मुझे बस इतना लगा कि वह काम की खोज-खबर नहीं ले रहा है। मुझे वास्तव में किसी और चीज के बारे में अधिक जानकारी नहीं थी।) अगला व्यक्ति अपनी बात जारी रखे। (मेरा यान से ज्यादा संपर्क नहीं था। दो साल पहले मैंने उसके साथ कुछ सभाओं में भाग लिया था, लेकिन उसके बाद मेरा उससे कोई संपर्क नहीं रहा।) यान तुम्हारी कलीसिया का अगुआ था, फिर ऐसा कैसे हो सकता है कि तुम्हारे किसी भी दल का उससे कोई संपर्क नहीं था? क्या ऐसा इसलिए है क्योंकि अब पता चल चुका है कि उसमें समस्याएँ हैं और तुम लोग अपनी जिम्मेदारियों से बचने की कोशिश कर रहे हो, या क्या वास्तव में तुम्हारा उससे कोई संपर्क नहीं था? मैंने सुना है कि किसी का यान के साथ अनुचित संबंध था—क्या ऐसा मामला है? (हाँ।) क्या तुम लोगों को यह समझ आया था? (नहीं।) तब तो, तुम लोग बहुत अंधे हो। कोई और कुछ बताए। (यान के साथ मेरा घनिष्ठ संपर्क था। उस समय, मुझे लगता था कि वह कुछ हद तक अहंकारी और खुद को औरों से श्रेष्ठ मानने वाला था, और उसे अपनी बड़ाई करना और दिखावा करना पसंद था। लेकिन मैं कभी यह नहीं पहचान सका कि उसमें एक मसीह-विरोधी का सार था।) उसे महिलाओं को लुभाना पसंद था; क्या तुम यह जानते थे? (नहीं। संगति में वह हमेशा कड़ाई से बोलता था कि पुरुषों और महिलाओं का अनैतिक होना विशेष रूप से बुरा है, और वह अक्सर संगति में कहता था कि हमें इस तरह के आचरण को रोकना होगा। मैंने कभी नहीं सोचा था कि बंद दरवाजों के पीछे वह खुद ऐसा हो सकता है।) अगला व्यक्ति बताना जारी रख सकता है। (मैं यान के साथ एक साल तक जुड़ा रहा, लेकिन मेरा उसके साथ बहुत अच्छा रिश्ता नहीं था और हमारे बीच सामंजस्यपूर्ण सहयोग नहीं था। केवल काम के बारे में बातचीत करने के दौरान मेरा उससे संपर्क होता था और उसके अलावा मेरा उससे ज्यादा संपर्क नहीं था। इसीलिए मैं उसे अच्छे से पहचान नहीं पाया।) तुम्हें उसकी ठीक से पहचान नहीं हो सकी? क्या ऐसा था कि तुम देख नहीं पा रहे थे कि क्या हो रहा है या तुम उसे पहचान नहीं पाए थे? तुम उसे ठीक से पहचान कैसे नहीं सके? यह परिणाम कैसे आया? (क्योंकि मैं जिस मार्ग पर चला वह गलत था और मैं एक गुणी व्यक्ति की आराधना करता था और उसका सम्मान करता था। यान बहुत अच्छा वक्ता था, और प्रत्येक संगति में वह परमेश्वर के वचनों और ऊपर वाले के धर्मोपदेशों और संगतियों को उद्धृत करता था। ऐसा लगता था कि वह समस्याओं को हल करना जानता था, और कलीसिया में कोई समस्या होने पर वह हमेशा उसे हल करने की कोशिश करता था।) यदि वह जानता था कि समस्याओं को कैसे हल किया जाए, तो कनाडा के कलीसिया की फिल्म निर्माण टीम के सामने इतनी सारी समस्याएँ कैसे हैं जो अब तक हल नहीं हुई हैं? तुम कहते हो कि वह वास्तव में जानता था कि समस्याओं को कैसे हल किया जाए, लेकिन क्या यह बकवास नहीं है? क्या यह भ्रामक बात नहीं है? (हाँ, है।) क्या तुम लोग धर्मोपदेश सुनते हो? क्या तुम हर सप्ताह सभा में भाग लेते हो? (हाँ, हम भाग लेते हैं।) तो, क्या जब मैं मसीह विरोधियों को पहचानने के बारे में उपदेश देता हूँ, तो तुम लोग मेरी बात सुनते हो? (हाँ।) मेरी बात सुनने के बाद, क्या तुमको यान के बारे में कुछ समझ आता है? क्या तुम लोगों को यान के काम करने के तरीके में कोई समस्या दिखाई पड़ती है? तुम लोग धर्मोपदेश सुन रहे थे और उसी जगह पर एकत्रित हो रहे थे जहाँ मसीह-विरोधी था, फिर भी तुम इतने स्पष्ट मसीह-विरोधी को नहीं देख पा रहे थे—यहाँ समस्या क्या है? यान दो साल पाँच महीने तक अगुआ था; कौन उसके सबसे अधिक संपर्क में रहता था? उसने किस टीम में सबसे अधिक समय बिताया? उस टीम में कितने लोग उसे पहचान पाए? कितने लोगों को पता चला कि उसमें कोई समस्या है और उन्होंने इसे जाहिर नहीं किया? किसे पता चला कि उसके साथ कोई समस्या है और इस बात को जाहिर करने के लिए आगे आया? क्या तुम लोग इन सवालों के जवाब जानते हो? (कोई भी नहीं पहचान पाया कि वह वास्तव में कैसा था।) तो तुम्हें बाद में कैसे पता चला कि वह मसीह-विरोधी था? (एक बहन, जिसका उसके साथ संबंध था, उसने कहा कि वह बुरी स्थिति में थी, और जब हमने उसकी परिस्थिति के बारे में अधिक जानने की कोशिश की, तो हमें महिलाओं के साथ यान के संबंधों के बारे में समस्या का पता चला।) वह बहन समस्या को प्रकाश में लाई, तो क्या किसी और ने इसकी सूचना दी? (नहीं।)
मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों के बारे में संगति और उनके गहन-विश्लेषण के दौरान, क्या तुम लोगों को यान के संबंध में किन्हीं अन्य समस्याओं का पता चला? (मसीह-विरोधियों को पहचानने के विषय पर संगति करके मुझे पता चला है कि यान लोगों के बीच दरार पैदा करने में बहुत तेज था। वह अक्सर मेरे सामने कुछ भाई-बहनों की आलोचना करता था और जिस बहन के साथ मैं काम करता था उसके साथ मेरे रिश्ते में यह कहते हुए कलह पैदा करने की कोशिश करता था कि वह सिर्फ खुशामदी है जो सत्य का पालन नहीं करती, वगैरह-वगैरह। इस वजह से मेरे मन में उसके बारे में कुछ राय बन गईं और आगे चल कर मैं उसके साथ ठीक से काम नहीं कर पाया।) वास्तव में, तुम सभी की यान के बारे में अपनी-अपनी राय थीं, लेकिन किसी ने भी वे बातें औरों को नहीं बताईं, न ही उसकी रिपोर्ट की। तुम सभी लोग खुशामदी हो जो कलीसिया के काम में देरी करना पसंद करते हो और इसकी बिल्कुल भी परवाह नहीं करते। उसने वह काम नहीं किया जो ऊपरवाले ने उसके लिए तय किया था और यह देखकर भी तुम लोगों ने उसकी रिपोर्ट नहीं की, बल्कि इस मसीह-विरोधी को बचाया और उसे बढ़ावा दिया। तुम लोगों ने उसकी रिपोर्ट क्यों नहीं की? क्या तुम उसे नाराज करने से डरते थे या तुम चीजों को पूरी तरह से नहीं समझते थे? (मैं चीजों को पूरी तरह से नहीं समझता था। कोई समस्या होने पर कभी-कभार उससे मिलने के अलावा, मैं आम तौर पर उसके साथ संपर्क नहीं रखता था। वह कहता था कि वह काम में व्यस्त है, लेकिन हमें नहीं पता था कि वह सच बोल रहा था या नहीं।) यह जाँचने की कोई जरूरत नहीं थी कि लोगों की नजरों से दूर रह कर वह क्या कर रहा था; वह जो कुछ ठीक तुम्हारे सामने कर रहा था, उसमें से कुछ की असलियत जानने में तो तुम्हें सक्षम होना चाहिए था। मसीह-विरोधी कुछ करते हैं, तो उनकी कुछ निश्चित अभिव्यक्तियाँ होती हैं। वह केवल निगाहों से ओझल हो कर ही काम नहीं कर रहा था; तुम उन अभिव्यक्तियों को व्यक्तिगत रूप से भी पहचान सकते थे। अगर तुम उन अभिव्यक्तियों को नहीं देख पाए, तो क्या तुम लोग अंधे नहीं थे? (हाँ।) तो, अगर अब फिर से ऐसा कोई व्यक्ति हो, तो क्या तुम उसे पहचान लोगे? क्या यान जैसा कोई व्यक्ति वास्तविक कार्य कर सकता है? क्या ऐसा व्यक्ति सत्य पर संगति कर सकता है और समस्याओं का समाधान कर सकता है? (नहीं।) तुमने जवाब में नहीं क्यों कहा? (कार्य के परिणामों के संदर्भ में, कलीसिया में कई समस्याएँ थीं जो लंबे समय तक हल नहीं हुईं, सभी कार्यों की प्रगति अविश्वसनीय रूप से धीमी थी, और हमने जो फिल्में बनाईं, वे परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं को पूरा नहीं करती थीं।) यान से निपटे जाने से पहले, क्या तुम लोगों ने देखा था कि यह एक समस्या थी? (नहीं।) तो, धर्मोपदेश सुनने के बाद तुम लोगों ने क्या समझा? तुम लोग ऐसी गंभीर समस्याओं को भी नहीं देख पाते, और फिर हमेशा बहाने ढूँढ़ते हो, कहते हो, “हम उसके संपर्क में नहीं थे। हम कैसे जान पाते कि वह हमारी नजरों से दूर क्या कर रहा था? हम तो बस साधारण विश्वासी हैं, वह अगुआ था। हम हमेशा उस पर निगाह नहीं रख सकते थे, इसलिए यह तर्कसंगत है कि हम उसकी असलियत नहीं जान पाए और उसकी रिपोर्ट नहीं की।” क्या तुम्हारा यही मतलब था? (हाँ।) इसकी प्रकृति क्या है? (हम अपनी जिम्मेदारियों से बचने की कोशिश कर रहे हैं।) तो, क्या तुम लोग यदि भविष्य में इसी तरह के किसी व्यक्ति से मिलते हो, तो इस मामले को फिर से इसी तरह से देखोगे? (नहीं, मैं इस मामले को फिर से ऐसे नहीं देखूँगा। जब मैं उसके बारे में कुछ जान जाऊँगा, तो मैं उसकी रिपोर्ट करूँगा।) मुझे यकीन नहीं है कि तुम ऐसा करोगे। कई कलीसियाओं में ऐसे लोग हैं जो झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों की सूचना देते हैं, लेकिन कनाडा के कलीसिया में ऐसा कोई भी नहीं था। यह मसीह-विरोधी इतने लंबे समय से सक्रिय था, और एक भी आदमी ने उसकी सूचना नहीं दी, किसी ने उसकी रिपोर्ट नहीं की। हाल ही में, अमेरिका में काम कर रही फिल्म निर्माण टीम ने किसी की रिपोर्ट करते हुए एक पत्र भेजा था। वह पत्र सुसंगठित और सुस्थापित तरीके से लिखा गया था, और बहुत विशिष्ट और सटीक भी था, मूलतः तथ्यात्मक आधार पर लिखा गया था। यह दिखाता है कि हर कलीसिया में कुछ ऐसे लोग होते हैं जो झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों को पहचान सकते हैं—यह अच्छी बात है। कभी-कभी झूठे अगुआ और मसीह-विरोधी लोग कुछ समय के लिए अच्छा प्रदर्शन करते हैं, और कुछ समस्याओं का खुलासा करते हैं। कुछ लोग केवल यह देख पाते हैं कि समस्याएँ हैं, लेकिन वे इन समस्याओं के सार और सत्य को नहीं समझ पाते और न ही उन्हें हल करना जानते हैं—यह पहचान न कर पाने से भी संबंधित है। ऐसी परिस्थितियों में तुम्हें क्या करना चाहिए? ऐसे समय में, तुम्हें उन्हें पहचानने के लिए किसी ऐसे व्यक्ति को बुलाना चाहिए जो सत्य समझता हो। यदि ऐसी जिम्मेदारी ले सकने वाले कई लोग हों, और सभी लोग मिलकर मामले की खोज, मामले पर संगति और चर्चा करें, तो तुम सभी आम सहमति पर पहुँच सकते हो और समस्या के सार को समझ सकते हो, और तब तुम पहचान सकोगे कि वह व्यक्ति झूठा अगुआ और मसीह-विरोधी है या नहीं। झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों की समस्या को हल करना इतना मुश्किल नहीं है; झूठे अगुआ लोग वास्तविक कार्य नहीं करते और उनका पता लगाना व उन्हें स्पष्ट रूप से देखना आसान है; मसीह-विरोधी लोग कलीसिया के काम में बाधा डालते हैं, उसे अस्त-व्यस्त कर देते हैं और उन्हें पहचानना और स्पष्ट रूप से देखना भी आसान होता है। ये सारी चीजें परमेश्वर के चुने हुए लोगों को उनके कर्तव्यों का पालन करने में बाधा डालने की समस्या से संबंधित हैं, और तुम्हें ऐसे लोगों की रिपोर्ट करनी चाहिए और उन्हें उजागर करना चाहिए—केवल ऐसा करके ही तुम कलीसिया के काम में देरी होने से रोक सकते हो। झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों के बारे में रिपोर्ट करना और उन्हें उजागर करना महत्वपूर्ण कार्य है जो यह सुनिश्चित करता है कि परमेश्वर के चुने हुए लोग अपने कर्तव्यों को अच्छी तरह से निभा सकते हैं, और परमेश्वर के चुने हुए सभी लोग इस जिम्मेदारी का निर्वाह करते हैं। चाहे वह कोई भी हो, यदि वह झूठा अगुआ या मसीह-विरोधी है, तो परमेश्वर के चुने हुए लोगों को उसे उजागर करना चाहिए और प्रकाश में लाना चाहिए, और इस तरह तुम अपनी जिम्मेदारी पूरी करोगे। जब तक रिपोर्ट की गई समस्या सच है और वास्तव में कोई झूठा अगुआ है या कोई मसीह-विरोधी घटना हुई है, तब तक परमेश्वर का घर हमेशा समयबद्ध तरीके से और सिद्धांतों के अनुसार उसे संभालेगा। तो, क्या तुम लोगों ने मसीह-विरोधी यान के साथ जो समस्या थी उसे सार्वजनिक किया? नहीं, तुम लोगों ने ऐसा नहीं किया। तुम इस शैतान द्वारा लंबे समय तक गुमराह होते रहे और उसके हाथों का खिलौना बने रहे, जैसे कि तुम्हें कुछ पता ही न हो। तुम्हारे बगल में इतना स्पष्ट मसीह-विरोधी था और वह इतने समय तक मनमानी करता रहा और तुम लोगों ने उसे बिना किसी चुनौती के यह सब जारी रखने दिया, क्या तुममें वाकई कोई जागरूकता नहीं है? क्या तुम सामान्य रूप से कलीसिया का जीवन जीते हो? क्या तुम पवित्र आत्मा के काम का आनंद ले पाते हो? क्या तुम हर बार किसी सभा में शामिल होने पर लाभान्वित होते हो? तुम्हें ये सब महसूस करने में सक्षम होना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मसीह-विरोधी यान ने कोई वास्तविक काम नहीं किया, उसने फिल्म निर्माण कार्य में देरी करवाई और उसने कलीसिया के काम को पूरी तरह से उलट-पुलट कर दिया। जिसके पास भी दिल हो वह इन चीजों को देख सकता था, लेकिन तुम लोगों में से किसी ने भी इस मसीह-विरोधी के चेहरे से नकाब नहीं उतारा, या इसकी रिपोर्ट नहीं की। ऐसा लगता है कि तुम्हें गंदे शैतानों और दुष्ट आत्माओं के साथ घुलना-मिलना पसंद है और तुम्हें सत्य से बिल्कुल भी प्रेम नहीं है। हो सकता है कि तुम इसे स्वीकार करने को तैयार न हो, लेकिन तथ्य यही है। तुम लोग एक शैतान के साथ घुलमिल गए थे और तब भी तुम सोचते हो कि यह सब बहुत बढ़िया है। तुम सोचते हो कि तुम्हें अब परमेश्वर के वचनों को पढ़ने या सत्य का अनुसरण करने की आवश्यकता नहीं है और तुम बस अपना कर्तव्य निभाने की औपचारिकताएँ करते रह सकते हो; तुम सोचते हो कि तुम्हें अब उद्धार प्राप्त करने, सत्य का अभ्यास करने, परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होने या अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाने के बारे में परेशान होने की और आवश्यकता नहीं है। तुम्हारा विश्वास है कि तुम वैसे ही बस अपनी देह का आनंद ले सकते हो और बेपरवाह और आजाद पंछी हो सकते हो, जैसे कि अतीत में सदोम के लोग खाते-पीते, मौज-मस्ती करते थे और कुछ भी उचित काम नहीं करते थे, कोई भी व्यक्ति जिम्मेदारी नहीं लेता था, और कोई भी मसीह-विरोधी को उजागर या उसकी रिपोर्ट नहीं करता था। इसके कारण लंबे समय तक कलीसिया पवित्र आत्मा के कार्य से वंचित रही। और तुम लोग परवाह नहीं करते, तुम्हारा पहले ही अधोपतन हो चुका है, और तुम लोग छद्म-विश्वासियों और गैर-विश्वासियों से अलग नहीं हो। तुम लोग वर्षों से धर्मोपदेश सुनते आ रहे हो, और अब भी तुम झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों को नहीं पहचान पाते, इसके बजाय तुम लोग मसीह-विरोधियों के साथ घुलने-मिलने और किसी बात पर गंभीरता से विचार किए बिना दिन भर खाते रहने को तैयार रहते हो। ऐसा व्यवहार यह दिखाने के लिए पर्याप्त है कि तुम लोग परमेश्वर के सच्चे विश्वासी नहीं हो। सबसे पहली बात यह है कि तुम सत्य से प्रेम नहीं करते या सत्य को स्वीकार नहीं करते; दूसरे, तुम लोगों को अपने कर्तव्य के प्रति किसी उत्तरदायित्व का बोध नहीं है, यह तो बिल्कुल नहीं कहा जा सकता कि तुम उसे निष्ठापूर्वक निभाते हो, और तुम बस कलीसिया के काम की अनदेखी करते हो। तुम लोग अपना कर्तव्य निभाते हुए दिखते हो, लेकिन तुम्हें कोई नतीजे नहीं मिलते; तुम बस औपचारिकताएँ कर रहे हो। झूठे अगुआ और मसीह-विरोधी लोग कलीसिया के काम को कितना भी बाधित करें और नुकसान पहुँचाएँ, तुम लोग इस बारे में पूरी तरह से अनजान हो, और यह बात तुम्हें बिल्कुल भी परेशान नहीं करती। जब कोई मसीह-विरोधी पूरी तरह से बेनकाब हो जाता है, तभी तुम लोग स्वीकार करते हो कि तुम्हें कोई पहचान नहीं है, और जब मैं उसके विवरण पूछता हूँ, तो तुम कहते हो, “मुझे नहीं पता, मैं जिम्मेदार नहीं हूँ!” इस तरह तुम लोग इस मामले से पूरी तरह से हाथ धो लेते हो। क्या तुम लोग सोचते हो कि ऐसा कहने से मामला खत्म हो गया और तुम अपनी जिम्मेदारी से बच जाओगे? क्या परमेश्वर का घर अब इस पर गौर नहीं करेगा? परमेश्वर के घर ने तुम्हें इतने समय तक सींचा है और तुमने बहुत से धर्मोपदेश सुने हैं, और इसका परिणाम क्या रहा? कलीसिया में मसीह-विरोधी का प्रकट होना एक गंभीर समस्या है, लेकिन तुम लोगों को इसकी जानकारी ही नहीं है। यह दिखाता है कि तुम लोग बिल्कुल भी प्रगति नहीं कर पाए हो, कि तुम चेतनाशून्य और मंदबुद्धि हो, और तुम दैहिक भोग-विलास में लगे हो। तुम लोग मरे हुए लोगों का ढेर हो, जिसमें एक भी व्यक्ति जीवित नहीं है, एक भी ऐसा नहीं है जो सत्य का अनुसरण करता हो, ज्यादा से ज्यादा सिर्फ कुछ लोग श्रमिक हैं। काफी समय से परमेश्वर पर विश्वास करने, धर्मोपदेश सुनने के बाद एक मसीह-विरोधी के साथ घुलना-मिलना, उसे उजागर न करना या उसकी रिपोर्ट न करना—तुम लोगों में और उस व्यक्ति में क्या अंतर है जो परमेश्वर पर विश्वास नहीं करता? तुम लोग मसीह-विरोधियों के साथ हो, तुम परमेश्वर के लोग नहीं हो; तुम लोग मसीह-विरोधियों का अनुसरण करते हो, शैतान का अनुसरण करते हो, और परमेश्वर के अनुयायी बिल्कुल नहीं हो। भले ही तुम लोगों ने वे बुरे काम नहीं किए जो इस मसीह-विरोधी ने किए थे, फिर भी तुमने उसका अनुसरण किया और उसका बचाव किया, क्योंकि तुम लोगों ने उसे उजागर नहीं किया या उसकी रिपोर्ट नहीं की और बकबक करते रहे कि तुम लोगों के इस मसीह-विरोधी से ज्यादा संबंध नहीं थे और तुम यह नहीं जानते थे कि वह क्या कर रहा था। ऐसा करके, क्या तुम खुली आँखों से मसीह-विरोधी को नहीं बचा रहे थे? मसीह-विरोधी ने इतने बुरे काम किए और कलीसिया के काम को पंगु बना दिया, कलीसिया के जीवन को पूरी तरह से अस्त-व्यस्त कर दिया, और फिर भी तुम लोग कहते हो कि तुम्हें नहीं पता था कि मसीह-विरोधी क्या कर रहा था—इस पर कौन विश्वास करेगा? तुम लोगों ने अपनी आँखों से देखा कि मसीह-विरोधी कलीसिया के काम को बाधित कर रहा था और क्षति पहुँचा रहा था और फिर भी तुम पूरी तरह से उदासीन रहे और जरा भी प्रतिक्रिया नहीं की। किसी ने भी उसे उजागर नहीं किया या उसकी रिपोर्ट नहीं की—तुम सभी इस एक छोटी-सी जिम्मेदारी को भी निभाने में विफल रहे और तुम लोग अंतरात्मा और विवेक से एकदम रहित हो! सभी कलीसियाएँ अक्सर झूठे अगुआओं और मसीह विरोधियों की रिपोर्ट करते हुए पत्र भेजती हैं—क्या तुम लोगों ने कभी ऐसा नहीं देखा? केवल कनाडा की कलीसिया ही रुके हुए पानी का ऐसा तालाब है जिसने कभी भी अपनी स्थिति की जानकारी देने के लिए ऊपरवाले से संपर्क नहीं किया है। तुम सब बस मुर्दा लोगों का एक समूह हो, जिसमें कोई भी जीवित नहीं है! परमेश्वर ऐसी कलीसिया को स्वीकार नहीं करेगा, और यदि तुम लोग पश्चाताप नहीं करते, तो तुम पूरी तरह से समाप्त हो जाओगे और सभी को हटा दिया जाएगा।
आज 10 जुलाई, 2019 है। आज से कनाडा का फिल्म निर्माण दल एक वर्ष के लिए औपचारिक रूप से अलगाव और आत्मचिंतन की अवधि से गुजरेगा। फिल्म निर्माण दल में कितने लोग हैं? (परमेश्वर, फिल्म निर्माण दल में 34 लोग हैं।) और, उनमें कितने अगुआ हैं? (दो।) ठीक है, तो तुम दोनों खड़े हो जाओ ताकि मैं तुम्हें देख सकूँ। फिल्म निर्माण दल के तुम सभी लोग 10 जुलाई का दिन याद रखना। आज से कनाडा के फिल्म निर्माण दल को औपचारिक रूप से एक वर्ष की अवधि के लिए ग्रुप बी के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा। यदि तुम लोग पश्चाताप करते हो तो तुम सामान्य कलीसिया में वापस आ सकते हो; हम देखेंगे कि इस एक वर्ष में तुम लोगों का व्यवहार कैसा रहता है—यदि तुम लोग अपना कर्तव्य निभाना जारी रख सकते हो, और पश्चाताप दिखाते हो, तो तुम फिर से कलीसियाई जीवन जीना शुरू कर सकते हो। समझे? (हाँ।) इस अवधि के दौरान तुम लोगों के कर्तव्य वही रहेंगे जो पहले थे। यदि तुम में से कुछ लोग बाहर निकाले जाने और निष्कासित होने से बचना चाहते हैं, तो बताओ कि अलगाव और आत्मचिंतन की इस पद्धति को अपनाने के बारे में तुम क्या सोचते हो? क्या तुम इससे संतुष्ट हो? (हाँ।) मैं तुम लोगों को एक वर्ष क्यों दे रहा हूँ? (हमें पश्चाताप करने का अवसर देने के लिए।) तुम लोगों को पश्चाताप करने का अवसर देने के लिए। यदि एक वर्ष के बाद भी तुम्हारा आचरण शर्मनाक रहता है, तुम्हारी कार्यकुशलता अपेक्षित स्तर पर नहीं पहुँचती है, तुम अब भी अपने पैर घसीटते हुए कर्तव्य का पालन करते हो और तुम्हारा कर्तव्य पहले की तरह ही अव्यवस्थित रहता है, तुम अपने पेशेवर काम और जीवन प्रवेश में कोई प्रगति नहीं करते हो, और कोई परिणाम प्राप्त नहीं करते हो, तो तुम एक और वर्ष की अवधि के लिए अलग-थलग रहोगे, और इस तरह से समयावधि साल-दर-साल बढ़ती जाएगी। जब तुम लोग प्रगति कर लोगे, यानी जब तुम अनुभवात्मक गवाही के कुछ लेख लिख सकोगे और तुम्हारा व्यवहार, समझ और कार्य परिणाम वास्तव में स्वीकार्य स्तर के होंगे, तो तुम फिर से कलीसियाई जीवन जीना शुरू कर सकोगे। कनाडा की कलीसिया में अन्य टीमें कलीसियाई जीवन जारी रख सकती हैं। हम देखेंगे कि भविष्य में अपने कर्तव्य निर्वाह के प्रति तुम लोगों का रवैया कैसा रहता है। यदि तुम्हारा आचरण अभी भी शर्मनाक होगा, तो कनाडा की कलीसिया में हर किसी को एकांतवास में भेज दिया जाएगा। समझ रहे हो? (हाँ।) मामले को संभालने के इस परिणाम के बारे में तुम्हारा क्या सोचना है? (यह अच्छा है।) क्या तुम्हारा वास्तव में मतलब है कि यह अच्छा है, या तुम बस ऐसे ही कह रहे हो? (यह वास्तव में अच्छा है।) ठीक है, तुम लोग इससे संतुष्ट हो। तो, यह आज का आखिरी धर्मोपदेश है जो तुम लोग सुनोगे। मेरा मूल इरादा तुम लोगों को पूरी तरह से अलग करने और हटाने का था, और तुम लोगों को फिर से धर्मोपदेश नहीं सुनने देने का था। इतने सालों तक तुमने जो धर्मोपदेश सुने हैं, वे व्यर्थ हैं और उनसे तुम्हें कुछ भी हासिल नहीं हुआ है, तो तुम लोग अब भी क्यों सुन रहे हो? तुम लोगों को देखकर मुझे बहुत दुःख होता है! तुम सब कितने चेतनाशून्य और मंदबुद्धि दिखते हो।
पहले जब मैं कनाडा की कलीसिया में एक बहन से बात कर रहा था, तो मैंने सुना कि वहाँ के माहौल में मूर्खतापूर्ण हँसी और अत्यधिक व्यभिचार भरा था, और वहाँ इतना शोर था कि वह टाइप नहीं कर पाती थी, मानो वह किसी शहर के व्यस्त इलाके में हो। तब मैं इसे नापसंद करने लगा और मैंने कहा कि कनाडा की कलीसिया के लोग श्रद्धालु नहीं, बल्कि सभी छद्म-विश्वासियों की तरह व्यभिचारी हैं, और वे सत्य का अनुसरण नहीं करते। बाद में, मैंने फिल्म निर्माण के मामलों पर इन लोगों के साथ संगति की और वे पूरी तरह से चेतनाशून्य थे। “चेतनाशून्य” का क्या मतलब है? जब मैं उनसे बात कर रहा था, तो उनके चेहरों पर न कोई प्रतिक्रिया आई, न कोई भाव दिखे, उनकी आँखें एक जगह पर टिकी हुई थीं, जैसे कि वे बुरी आत्माओं के कब्जे में हों—किसी भी चीज के बारे में उनकी कोई प्रतिक्रिया या रवैया नहीं था। क्या यह बहुत घृणात्मक नहीं है? इन लोगों की मानसिक स्थिति और वेश-भूषा को देखते हुए कहा जा सकता है कि कोई भी टीम अच्छी नहीं है, वे सभी अव्यवस्थित हैं, और खास तौर पर फिल्म निर्माण टीम में व्यभिचार की एक घटना हुई, और वे अभी भी कहते हैं कि उन्हें कुछ भी पता नहीं था। क्या वे जो कह रहे हैं वह सही है? क्या यह बात भ्रामक नहीं है? वास्तव में, मसीह-विरोधी यान का यह मामला पहले से ही अगुआओं और कार्यकर्ताओं द्वारा संभाला जा चुका है, लेकिन क्योंकि यह सब बहुत गंभीर और घृणित है, इसलिए मुझे व्यक्तिगत रूप से हस्तक्षेप करना पड़ा। मुझे हस्तक्षेप क्यों करना पड़ा? क्योंकि उन्होंने इसे ठीक से नहीं संभाला। उन्होंने बस कम करके बताने वाली कुछ बातें कहीं, वे किसी समस्या को हल नहीं कर सके, और मामले का गहन विश्लेषण बिल्कुल नहीं कर सके। तुम लोग आखिर कितने चेतनाशून्य हो? तुम्हारे चेहरे पर सुई चुभाई जाए तो भी खून नहीं निकलेगा; तुम कुछ भी महसूस करने में पूरी तरह से असमर्थ हो। सभी अगुआओं और कार्यकर्ताओं की काट-छाँट की जा चुकी है, लेकिन उसके बाद भी वे वैसे ही रहे, बदले नहीं। इसीलिए मुझे हस्तक्षेप करना पड़ा और तुम्हारे प्रति “व्यवहार” में बदलाव करना पड़ा। इस मामले से तुम लोगों ने क्या सबक सीखा है? तुम लोग मन ही मन दुखी हो रहे हो, है न? क्या तुम लोगों को लगता है कि यह उचित है कि मैं चीजों को इस तरह से संभाल रहा हूँ? (हाँ।) यह कैसे उचित है? मैं साफ-साफ कहना चाहता हूँ कि यदि तुम सही मार्ग का अनुसरण नहीं करते या सत्य का अभ्यास नहीं करते, यदि तुम परमेश्वर में विश्वास का झंडा तो फहराते हो, लेकिन गैर-विश्वासियों की तरह ही जीना चाहते हो और मनमानी करना चाहते हो, तो परमेश्वर में तुम लोगों का विश्वास अर्थहीन है। मैं क्यों कहता हूँ कि यह अर्थहीन है? परमेश्वर में आस्था का अर्थ कहाँ होता है? यह लोगों के चलने के मार्ग, जीवन के प्रति उनके दृष्टिकोण, तथा परमेश्वर में विश्वास रखने के बाद उनके जीवन की दिशा और लक्ष्यों में पूर्ण परिवर्तन में निहित होता है, इन चीजों में परमेश्वर में विश्वास न करने वालों से, सांसारिक लोगों से, तथा शैतानों से पूरी तरह से अलग होने में होता है, तथा विश्वासियों के चलने का मार्ग इन लोगों के बिल्कुल विपरीत होता है। यह विपरीत दिशा क्या है? इसका अर्थ है कि तुम अच्छे व्यक्ति बनना चाहते हो, तथा ऐसा व्यक्ति बनना चाहते हो जो परमेश्वर के प्रति समर्पित हो तथा जिसमें मानवीय सादृश्यता हो। तो, तुम इसे कैसे पा सकते हो? तुम्हें सत्य के लिए निरंतर प्रयासरत होने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, और केवल ऐसा करके ही तुम बदल पाओगे। यदि तुम सत्य का अनुसरण नहीं करते या सत्य का अभ्यास नहीं करते, तो परमेश्वर में तुम्हारी आस्था का कोई अर्थ या मूल्य नहीं है, तुम्हारी आस्था एक खाली खोल है, धोखा देने के लिए बोले गए राक्षसी शब्द, केवल खोखले शब्द हैं जिनका कोई प्रभाव नहीं होता। तुम्हें इस पर विचार करना चाहिए कि मैं यहाँ क्या कह रहा हूँ। ये वचन सबसे सरल और सबसे मौलिक सत्य हैं, और शायद तुमने पहले कभी इन पर विचार न किया हो। क्या ऐसा ही है? यदि तुम कहते हो, “मैं परमेश्वर में विश्वास करता हूँ। मैं वही करूँगा जो मुझे करना चाहिए, मैं वही करूँगा जो मैं चाहता हूँ, और जहाँ तक परमेश्वर के प्रति समर्पण, परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण, परमेश्वर के प्रति वफादार होने और मानवता से युक्त व्यक्ति होने की बात है, तो मेरा इन बातों से कोई लेना-देना नहीं है,” तो यदि इन बातों का तुमसे कोई लेना-देना नहीं है, फिर तुम परमेश्वर में विश्वास करके क्या कर रहे हो? तुम परमेश्वर में विश्वास क्यों करते हो? तुम उसमें किस तरह से विश्वास करना चाहते हो? परमेश्वर में विश्वास करके तुम किस तरह के व्यक्ति बनना चाहते हो? यदि इन बातों का तुमसे कोई मतलब नहीं है, तो सीधी बात है कि परमेश्वर में तुम्हारे विश्वास का कोई अर्थ नहीं है। अगर तुम हमेशा अपनी धारणाओं और कल्पनाओं पर भरोसा करते हुए परमेश्वर पर विश्वास करते हो, हमेशा अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार काम करते हो, जो चाहते हो वही करते हो और दैहिक तृप्ति पाने में लगे रहते हो, तब तुम्हारे विचारों और दृष्टिकोण, और तुम्हारे द्वारा किए जाने वाले कामों का सत्य से और परमेश्वर की अपेक्षाओं से कोई लेना-देना नहीं है, तो परमेश्वर पर तुम्हारा विश्वास निरर्थक है और तुम्हें विश्वास करते रहने की कोई जरूरत नहीं है। अगर तुम विश्वास करते भी रहते हो, तो यह प्रयासों की बर्बादी होगी, और परमेश्वर तुम्हें नहीं बचाएगा।
यह विषय बहुत गंभीर है, और तुम सभी इस मामले को संभालने के तरीके से परेशान महसूस करते हो; यह थोड़ा अप्रत्याशित था। जो भी हो, भविष्य में फिर इस तरह की घटनाएँ होंगी। अब जब हमने इस बार मामले को इस तरह संभाला है, और अगर भविष्य में इस तरह की बात फिर से होती है, तो इसे इस तरह से नहीं संभाला जाएगा, बल्कि शायद और अधिक सख्ती से निपटाया जाएगा। मुझे बताओ, क्या यह उचित है? (हाँ।)
अगली बार हम थोड़ा आसान विषय पर संगति करेंगे। क्या तुम लोगों को कहानियाँ सुनना पसंद है? (हाँ।) फिर मैं तुम लोगों को एक कहानी सुनाऊँगा। मुझे तुम लोगों को कौन-सी कहानी सुनानी चाहिए? तुम लोग किस तरह के विषय पर सुनना पसंद करोगे? तुम लोग कहानी सुनना पसंद करते हो, या वर्तमान विषयों या राजनीति पर चर्चा करने, अथवा इतिहास के बारे में सुनना पसंद करते हो? हम उन चीजों के बारे में बात नहीं करेंगे क्योंकि उनके बारे में बात करना व्यर्थ है। मैं परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोगों के व्यवहार, लोगों के स्वभाव और दैनिक जीवन में लोगों द्वारा अनुभव की जाने वाली विभिन्न स्थितियोँ के बारे में एक कहानी सुनाने जा रहा हूँ।
परिशिष्ट :
पूंजी पर एक चर्चा :
“बस ऐसे ही रहने दो!”
पाँच लोग आपस में बातचीत कर रहे थे और उनमें से एक जिसका नाम मिस्टर यूनि था उसने कहा, “विश्वविद्यालय में बिताए समय में, मुझे कैंपस जीवन की सबसे ज्यादा याद आती है। कैंपस में हर तरह के पौधे थे, और वसंत और शरद ऋतु के दौरान, वहाँ का दृश्य बहुत सुंदर होता था, इसे देखकर मुझे सुकून और खुशी महसूस होती थी। और उस समय, मैं नौजवान था, आदर्शों से भरा और मासूम था और मुझ पर कोई ज्यादा दबाव नहीं था। मेरे विश्वविद्यालय के तीन वर्षों के दौरान जीवन बहुत आसान था। अगर मैं दस या बीस साल पीछे जा सकता और कैंपस के जीवन में लौट सकता, तो मुझे लगता है कि यह इस जीवन में सबसे अच्छी बात होती...।” यह था पहला व्यक्ति, जिसका नाम मिस्टर यूनि था। यूनि का क्या मतलब है? इसका मतलब एक विश्वविद्यालय का छात्र है; यहीं से मिस्टर यूनि नाम आया है। अभी मिस्टर यूनि अपने शानदार जीवन को पूरी तरह से याद कर इसका आनंद भी नहीं ले पाया था कि मिस्टर ग्रेजुएट बोल पड़ा, “क्या तीन साल के कोर्स को विश्वविद्यालय का कोर्स माना जा सकता है? यह तो एक व्यावसायिक कोर्स है। विश्वविद्यालय में बैचलर की डिग्री आमतौर पर चार साल की होती है; केवल उसे ही विश्वविद्यालय का कोर्स माना जा सकता है। मैं विश्वविद्यालय में चार साल तक था। अपने विश्वविद्यालय के वर्षों के दौरान, मैंने देखा कि प्रतिभा के बाजार में विश्वविद्यालय के बहुत सारे छात्र मौजूद थे और नौकरी ढूंढना काफी मुश्किल काम था। तो ग्रेजुएट होने से पहले, मैंने इसके बारे में सोचा था और ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल करने का फैसला किया। उस समय ग्रेजुएशन करने वाले कोई ज्यादा छात्र नहीं थे तो नौकरी ढूंढना आसान होता। जैसा मुझे उम्मीद थी, अपनी ग्रेजुएट डिग्री पूरी होने के बाद मुझे एक अच्छी आय वाली बढ़िया नौकरी मिली, और मैं बहुत अच्छे ढंग से जी रहा था। यह एक ग्रेजुएट छात्र होने का परिणाम था।” यह सुनकर तुम्हें क्या संदेश मिलता है? मिस्टर यूनि ने एक व्यावसायिक कोर्स से ग्रेजुएशन की उपाधि प्राप्त की थी, जबकि मिस्टर ग्रेजुएट ने एक ग्रेजुएट कोर्स से ग्रेजुएशन की थी और फिर उन्हें एक अच्छी आय वाली नौकरी मिली थी और समाज में उनकी हैसियत और सम्मान भी था। मिस्टर ग्रेजुएट खुशी-खुशी यह सब बातें कर रहे थे कि तभी मिस्टर मैनेजर ने कहा, “तुम तो अभी जवान हो, बच्चे! तुम्हारे पास समाज में कोई अनुभव नहीं है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम ग्रेजुएशन की डिग्री के लिए पढ़ाई करते हो या डॉक्टरेट की डिग्री के लिए, विश्वविद्यालय में एक अच्छा विषय चुनने से बेहतर कुछ भी नहीं हो सकता है। विश्वविद्यालय में पढ़ाई शुरू करने से पहले, मैंने बाजार के बारे में शोध किया और देखा कि सभी आकारों के व्यवसायों को प्रबंधन कौशल वाले लोगों की आवश्यकता होती है, इसलिए जब मैं विश्वविद्यालय गया तो मैंने बाजार प्रबंधन की पढ़ाई करने का निर्णय लिया और जब मैं अपनी ग्रेजुएशन समाप्त करूंगा तो मैं किसी कंपनी के शीर्ष प्रबंधकों में से एक बनूंगा, जिसे सीईओ भी कहा जाता है। जब मैंने ग्रेजुएशन पूरी की, तो यह एक ऐसा समय था जब सभी आकारों के विभिन्न व्यवसायों को मेरे जैसे प्रतिभाशाली लोगों की आवश्यकता थी। बाजार बहुत बड़ा था और जब मैंने नौकरी के लिए आवेदन करना शुरू किया, तो कई कंपनियों ने मुझे तुरंत काम पर रखने की कोशिश की। आखिरकार, मैं अपनी पसंद के अनुसार चुनने के लिए स्वतंत्र था। मैंने सबसे अच्छी विदेशी कंपनी चुनी और जल्द ही एक उच्च आय वाला प्रबंधक बन गया। पांच वर्षों के भीतर मैंने अपनी खुद की कार खरीद ली थी। काफी चालाकी दिखाई, है ना? देखा मैं कितने अच्छे विकल्प चुन सकता हूँ?” जब मिस्टर मैनेजर यह सब बातें कर रहा था, तो उसके पहले बोल चुके दोनों लोग थोड़ी विद्रोही मुद्रा महसूस कर रहे थे लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा। उन्होंने अपने दिलों में सोचा, “वह एक उच्च स्तरीय प्रबंधक है और काफी दूरदर्शी भी है। उसके पास हमसे कहीं अधिक पूंजी है। भले ही हम थोड़े विद्रोही महसूस कर रहे हैं, लेकिन हम कुछ नहीं कहेंगे। हम बस अपनी हार स्वीकार करेंगे।” जब मिस्टर मैनेजर ने बोलना समाप्त किया, तो वह खुद से बहुत खुश था और सोच रहा था कि ये युवा लोग उनसे कम अनुभवी हैं। वह इतना खुश हो ही रहा था कि, तभी मिस्टर अधिकारी नामक एक व्यक्ति ने बोलना शुरू किया। मिस्टर अधिकारी ने बाकी तीनों की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया था। उसने इत्मीनान से अपनी चाय पकड़ी, उसका एक घूँट लिया, अपने आसपास देखा, और कहा, “आजकल तो हर कोई विश्वविद्यालय का छात्र बना हुआ है। कौन है जो यूनिवर्सिटी में दाखिला नहीं ले सकता? बस विश्वविद्यालय जाना ही काफी नहीं है, और सिर्फ व्यापार करना भी पर्याप्त नहीं है। अगर तुम एक शीर्ष प्रबंधक भी हो, तब भी यह कोई जीवनभर के लिए नौकरी नहीं है, यह स्थिर नहीं है। मुख्य चीज एक सुरक्षित नौकरी ढूंढना है और फिर तुम जीवनभर के लिए सेट हो जाओगे!” जब दूसरों ने यह सुना, तो उन्होंने कहा, “जीवनभर के लिए नौकरी? आजकल कौन ऐसी चीजों के बारे में बातें करता है? यह तो अतीत की बात है!” मिस्टर अधिकारी ने कहा, “अतीत की बात? रहने दो, तुम ऐसा केवल इसलिए कह रहे हो क्योंकि तुम सभी लोग दूरदर्शी नहीं हो और तुम लोगों में अंतर्दृष्टि की कमी है! जब तुम्हें एक जीवनभर के लिए नौकरी मिलती है, तो भले ही तुम्हारी आय थोड़ी कम हो, लेकिन यह एक स्थिर जीवन सुनिश्चित करता है, और तुम्हारे पास अधिकार होता है और तुम हर जगह अपनी टांग अड़ा सकते हो! जब मैंने लोक सेवक बनने के लिए परीक्षा दी तो ज्यादातर लोगों को यह बात समझ में नहीं आई और उन्होंने पूछा कि इतना युवा होकर क्यों कोई सरकारी एजेंसियों के लिए काम करना चाहेगा। एक लोक सेवक बनने की परीक्षा पास करने के बाद, मेरे जो मित्र और रिश्तेदार नौकरी की तलाश में थे या किसी मुकदमेबाजी में उलझे हुए थे, वे मुझसे संपर्क करने लगे। अब यह तो ढेर सारा अधिकार हुआ, है ना? भले ही आय बहुत ज्यादा नहीं है, लेकिन मुझे आवास और एक कार प्रदान की गई थी। मुझे मिल रहे लाभ तुम लोगों से बेहतर हैं। इसके अलावा, जब मैं बाहर खाने-पीने और खरीदारी करने के लिए जाता हूँ तो मैं अपने खर्चों की प्रतिपूर्ति भी प्राप्त कर सकता हूँ, और मैं टैक्सी या विमान से भी मुफ्त में यात्रा कर सकता हूँ। तुम लोगों की नौकरियाँ उतनी अच्छी नहीं हैं; तुम लोगों के पास अस्थिर नौकरियाँ हैं। मैंने तुम लोगों से बहुत अच्छा किया है!” उसकी यह सब बातें सुनने के बाद दूसरे लोग असहज महसूस करने लगे और उन्होंने कहा, “बेशक तुम्हें मिलने वाले लाभ काफी अच्छे हैं, लेकिन तुम्हारी छवि बहुत खराब है। तुम हर जगह धोखाधड़ी करते रहते हो और एक अत्याचारी की तरह काम करते हो और लोगों की सेवा भी नहीं करते हो। तुम सिर्फ लोगों को नुकसान पहुंचाते हो और हर तरह के बुरे काम करते हो।” मिस्टर अधिकारी ने जवाब दिया, “तो क्या हुआ अगर मेरी छवि खराब है? मुझे तो इससे काफी फायदा होता है!” हर कोई इस मामले पर चर्चा कर रहा था, कि आखिरकार अंतिम व्यक्ति खुद को और न रोक सका, वह खड़ा हो गया और बोला, “देखो, तुम लोगों ने विश्वविद्यालय में पढ़ाई की है, तुमने ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त की है, तुम एक शीर्ष व्यवसाय प्रबंधक हो, तुम एक अधिकारी हो और मेरे पास तुम लोगों जैसा अनुभव नहीं है। भले ही मैं एक साधारण-सा व्यक्ति हूँ, फिर भी मुझे तुम्हारे साथ अपने अनुभव साझा करने हैं। जब मैं ‘मेटर’ में वापस गया...।” दूसरे लोग आश्चर्यचकित हो गए और उन्होंने पूछा, “यह ‘मेटर’ क्या है? लोक सेवा की परीक्षा पास करने से एक व्यक्ति लोक सेवक बन जाता है, ग्रेजुएशन की डिग्री के लिए पढ़ाई करने से एक व्यक्ति ग्रेजुएट बन जाता है, किसी कंपनी का शीर्ष प्रबंधक होने से एक व्यक्ति सीईओ बन जाता है, फिर इस ‘मेटर’ का क्या मतलब होता है? क्या तुम यह समझा सकते हो?” इस व्यक्ति ने कहा, “तो तुम लोग विश्वविद्यालय जा सकते हो, ग्रेजुएट डिग्री के लिए पढ़ाई कर सकते हो, एक शीर्ष व्यवसाय प्रबंधक बन सकते हो और एक लोक सेवक बन सकते हो, लेकिन मैं एक नजर डालने के लिए अपने अल्मा मेटर वापस नहीं जा सकता?” क्या तुमने देखा? उसे गुस्सा आ गया। इस साधारण से व्यक्ति की शिक्षा कम थी लेकिन वह फिर भी घमंडी था। दूसरों ने कहा, “हम सभी जानते हैं कि अपने अल्मा मेटर में वापस जाने का क्या मतलब होताहै। तुम्हें यह कहने की जरूरत नहीं है कि तुम ‘मेटर’ वापस गए। बस इतना कहो कि तुम अपने अल्मा मेटर वापस गए।” फिर दूसरों ने उससे पूछा कि उसके अल्मा मेटर का शिक्षा स्तर क्या था, क्या वह एक सीनियर हाई स्कूल, तकनीकी कॉलेज, विश्वविद्यालय था या एक ग्रेजुएट स्कूल था। उसने यह कहते हुए जवाब दिया, “मैं कभी विश्वविद्यालय नहीं गया, मैंने कभी ग्रेजुएट डिग्री के लिए पढ़ाई नहीं की और मैंने कभी लोक सेवक बनने के लिए परीक्षा नहीं दी। क्या सिर्फ प्राथमिक स्कूल जाना ठीक नहीं है? बस ऐसे ही रहने दो!” वह शर्मिंदा महसूस कर रहा था; उसने सबके सामने अपनी पृष्ठभूमि को प्रकट कर दिया था, और अब इसे और छुपाया नहीं जा सकता था। वह तो लगातार दिखावा किए जा रहा था। दूसरों के साथ बातचीत करते हुए उसने कभी भी अपनी शिक्षा का स्तर प्रकट नहीं किया था। अब सब कुछ सामने आ गया था, वह शर्मिंदा हो गया और वह दरवाजे की ओर बढ़ा और भाग खड़ा हुआ। दूसरे लोगों को समझ नहीं आया कि वह आखिर क्यों भागा था और उन सभी ने एक साथ कहा, “क्या तुम केवल एक प्राथमिक स्कूल से ग्रेजुएट नहीं हुए हो? तुम भाग क्यों रहे हो? और तुम्हें इस बात पर बहुत गर्व था!” मैं इस कहानी को यहीं समाप्त करूँगा; इसमें कमोबेश सारी बातें आ जाती हैं।
इस कहानी में पाँच लोग हैं। वे किस विषय पर चर्चा कर रहे हैं? (अपनी शैक्षणिक पृष्ठभूमि।) और वास्तव में शैक्षणिक पृष्ठभूमि का लोगों के लिए क्या अर्थ है? (यह उनकी सामाजिक हैसियत है।) किसी व्यक्ति की शैक्षणिक पृष्ठभूमि का संबंध उसकी सामाजिक हैसियत से होता है—यह एक वस्तुनिष्ठ तथ्य है। तो फिर लोग अपनी सामाजिक हैसियत पर चर्चा क्यों करना चाहते हैं? वे अपनी सामाजिक हैसियत और पहचान को उजागर कर चर्चा का विषय क्यों बनाना चाहते हैं? वे क्या कर रहे हैं? (वे केवल खुद का दिखावा कर रहे हैं।) तो, इस कहानी का शीर्षक क्या होना चाहिए? (अकादमिक पृष्ठभूमि की तुलना करना।) अगर कहानी का शीर्षक “शैक्षणिक पृष्ठभूमि की तुलना करना” होता, तो क्या यह बहुत रूखा नहीं होगा? (हाँ, होगा। “हैसियत का दिखावा” कैसा रहेगा?) यह कुछ ज्यादा ही सीधा है, अप्रत्यक्ष भी नहीं है और उतना गहरा नहीं है। अगर हम कहें कि मुख्य शीर्षक “पूंजी पर एक चर्चा” है और उपशीर्षक “बस ऐसे ही रहने दो” है तो कैसा रहेगा? यह थोड़ा व्यंग्यात्मक है, है ना? “पूंजी पर एक चर्चा” का मतलब है कि हर कोई अपनी शैक्षणिक पृष्ठभूमि और सामाजिक हैसियत सहित अपनी पूंजी पर चर्चा कर रहा है। और “बस ऐसे ही रहने दो” का क्या मतलब है? (यह स्वीकार नहीं करना कि कोई और मुझसे बेहतर है।) यह सही है, इसमें एक तरह का स्वभाव है। “तो क्या हुआ अगर तुम एक ग्रेजुएट छात्र हो? तो क्या हुआ अगर तुमने मुझसे उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त की है?” कोई भी यह स्वीकार नहीं करता है कि कोई और मुझसे बेहतर है। पूंजी पर चर्चा करने का यही तो मतलब है। भीड़ के बीच रहते हुए क्या इस तरह की बातचीत अक्सर सुनाई नहीं पड़ती? कुछ लोग होते हैं जो अपने परिवार की दौलत का दिखावा करते हैं, कुछ अपने परिवार की गौरवपूर्ण पृष्ठभूमि का दिखावा करते हैं, कुछ इस बात का करते हैं कि उनके उपनाम के साथ कुछ महाराजाओं और मशहूर हस्तियों का नाम जुड़ा हुआ है और कुछ लोग इस बारे में बात करते हैं कि उन्होंने किस विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन की है, वे कितने शानदार थे और यहाँ तक कि एक ब्यूटी सैलून में मालिश करने वाली लड़की भी कहती है, “मैंने एक प्रसिद्ध शिक्षक से मालिश करना सीखा है, जिन्होंने एक विशेषज्ञ की तरह मेरे काम में सुधार किया और व्यक्तिगत निरीक्षण प्रदान किया। आखिरकार, मैं एक प्रथम श्रेणी की पेशेवर मसाज थेरेपिस्ट बन गई और 2000 का दशक मेरा सबसे शानदार समय था...।” यह “शानदार” गलत जगह पर है। सेवा उद्योग में काम करने वाली एक मालिश करने वाली लड़की भी अपने “सबसे शानदार समय” के बारे में बात कर रही थी—वह तो सचमुच शेखी बघार रही थी और डींगें मार रही थी। इस विषय के तहत, हम मुख्य रूप से उन ऐसी खास वार्तालापों के बारे में बात कर रहे हैं जो अक्सर सुनी जाती हैं, उन व्यवहारों के बारे में जो अक्सर देखे जाते हैं, और उन स्वभावों के बारे में जो वास्तविक जीवन में लोगों के बीच अक्सर प्रकट होते हैं। लोग ऐसी पूंजी के बारे में बात क्यों करते हैं? इसके पीछे कौन-सा स्वभाव या प्रेरणा काम कर रही होती है? क्या जिन बातों के बारे में बात की जाती है, उन्हें शानदार माना जा सकता है? शानदार होने का इन बातों से कोई लेना-देना नहीं है। तो फिर, क्या लोगों को इस बारे में बातें करने से कुछ फायदा होता है? (नहीं।) और क्या तुम लोग भी इन बातों पर चर्चा करते हो? (हाँ।) तुम जानते हो कि इनका कोई फायदा नहीं होता, तो फिर तुम इनके बारे में क्यों बात करते हो? लोगों को ऐसी चीजों के बारे में बात करने में मजा क्यों आता है? (यही चीजें वह पूंजी हैं जिनका लोग दिखावा करते हैं।) इनका दिखावा करने का क्या उद्देश्य है? (ताकि दूसरों की नजरों में उनका ऊँचा सम्मान हो।) ऐसा इसलिए है क्योंकि कोई भी एक साधारण, सामान्य व्यक्ति नहीं बनना चाहता। यहाँ तक कि किसी प्राथमिक स्कूल से ग्रेजुएट होने वाले व्यक्ति ने भी अपने “मेटर” में वापस जाकर देखने की बात की, उसने चाहा कि वह इस तरह की साहित्यिक भाषा का प्रयोग कर दूसरों को मूर्ख बना दे और उन्हें सुन्न कर उनकी नजर में ऊँचा उठ सके। दूसरों की नजर में ऊँचा उठने के पीछे उसका क्या उद्देश्य है? ऐसा इसलिए है ताकि वह दूसरों से ऊपर हो सके, दूसरों के बीच एक जगह और पद प्राप्त कर सके, उसके सिर पर आभामंडल सजे, उसकी बातों में अधिकार हो, उसे दूसरों का समर्थन प्राप्त हो और वह प्रतिष्ठित बन सके। अगर तुम्हें इन चीजों को छोड़ना हो और एक साधारण और सामान्य व्यक्ति बनना हो, तो तुम्हारे पास क्या होना चाहिए? सबसे पहले तो तुम्हारे पास सही दृष्टिकोण होना चाहिए। यह सही दृष्टिकोण कैसे पैदा होता है? यह परमेश्वर के वचनों को पढ़ने और इस बात को समझने से पैदा होता है कि कुछ चीजों के प्रति तुम्हारा रवैया कैसा होना चाहिए जो परमेश्वर के इरादों के अनुरूप हो और जो लोगों में उनकी सामान्य मानवता के साथ होना चाहिए—यही सही दृष्टिकोण है। तो, एक साधारण, सामान्य और आम व्यक्ति के रूप में, सामाजिक हैसियत, सामाजिक पूंजी या पारिवारिक पृष्ठभूमि आदि जैसी इन सभी चीजों के प्रति सबसे उपयुक्त और सही दृष्टिकोण क्या है? क्या तुम लोगों को पता है? मान लो कि कोई ऐसा व्यक्ति है जो कई वर्षों से परमेश्वर पर विश्वास करता चला आया है, जो यह मानता है कि उसने बहुत-से सत्य समझ लिए हैं, जो यह मानता है कि वह परमेश्वर के मार्ग का अनुसरण करता है और परमेश्वर और अपने कर्तव्य के प्रति वफादार है, फिर भी वह समाज में और लोगों के बीच अपनी हैसियत और अपने मूल्य को बहुत महत्वपूर्ण मानता है और वह इन चीजों को बहुत संजोकर रखता है और अक्सर अपनी पूंजी, अपनी शानदार पृष्ठभूमि और अपने मूल्य का प्रदर्शन भी करता है—क्या ऐसा व्यक्ति सच में सत्य समझता है? बिल्कुल भी नहीं। तो, क्या वह व्यक्ति जो सत्य नहीं समझता, सत्य से प्रेम करने वाला व्यक्ति हो सकता है? (नहीं।) नहीं। पूंजी पर चर्चा करने और किसी के सत्य को समझने और उससे प्रेम करने के बीच क्या संबंध है? मैं ऐसा क्यों कहता हूँ कि जो व्यक्ति अपने मूल्य को संजोता है और अपनी पूंजी का प्रदर्शन करता है वह ऐसा व्यक्ति नहीं है जो सत्य से प्रेम करता है और इसे समझता है? जो व्यक्ति सचमुच सत्य से प्रेम करता है और उसे समझता है, उसे सामाजिक हैसियत और व्यक्तिगत पूंजी और मूल्य के इन मामलों को कैसे समझना और उनसे कैसे निपटना चाहिए? सामाजिक हैसियत में कौन-कौन सी चीजें शामिल होती हैं? पारिवारिक पृष्ठभूमि, शिक्षा, प्रतिष्ठा, समाज में उपलब्धियाँ, व्यक्तिगत प्रतिभाएँ और आपकी जातीयता। तो फिर यह सत्यापित करने के लिए इन मामलों से कैसे निपटते हो कि तुम सत्य समझने वाले व्यक्ति हो? इस सवाल का जवाब देना आसान होना चाहिए, है ना? सिद्धांत रूप में तो तुम लोगों को इस पहलू के बारे में बहुत कुछ समझ आता होगा। जो भी तुम्हारे मन में है कहो। ऐसा मत सोचो कि, “अरे, मैंने तो इसके बारे में अच्छी तरह से सोचा भी नहीं है इसलिए मैं कुछ नहीं कह सकता।” अगर तुमने इस बारे में अच्छे से नहीं सोचा है, तो बस वही कह दो जो तुम अपने मन में अभी सोच रहे हो। अगर तुम केवल अच्छी तरह से सोचकर ही कुछ कह सकते हो तो फिर उसे लेख लिखना कहते हैं। हम तो अभी बस ऐसे ही बातचीत कर रहे हैं; मैं तुम्हें कोई लेख लिखने के लिए नहीं कह रहा हूँ। सबसे पहले सैद्धांतिक दृष्टिकोण से बताओ। (मैं परमेश्वर के वचनों से यह समझता हूँ कि परमेश्वर यह नहीं देखता है कि कोई व्यक्ति कितना उच्च शिक्षित है या उसकी सामाजिक हैसियत क्या है, बल्कि मुख्य रूप से यह देखता है कि क्या वह सत्य का अनुसरण करते है, क्या वह सत्य का अभ्यास कर सकता है, और क्या वह सच्चे रूप से परमेश्वर के प्रति समर्पण करते हैं और मानक के अनुसार अपने कर्तव्य का पालन करते हैं या नहीं। अगर कोई उच्च सामाजिक रुतबा रखता है और उसने उच्च शिक्षा प्राप्त की है लेकिन उसके पास आध्यात्मिक समझ नहीं है, वे सत्य का अनुसरण करने के रास्ते पर नहीं चलते हैं और वे परमेश्वर का भय नहीं मानते हैं या बुराई से दूर नहीं रहते हैं, तो फिर उन्हें अंत में हटा दिया जाएगा और वे परमेश्वर के घर में स्थिर नहीं रह पाएंगे। इसलिए, किसी व्यक्ति की शैक्षणिक पृष्ठभूमि और हैसियत महत्वपूर्ण नहीं होती है। महत्वपूर्ण यह है कि कोई व्यक्ति सत्य का अनुसरण करता है या नहीं।) बहुत बढ़िया, यह सबसे बुनियादी अवधारणा है। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ कि यह सबसे बुनियादी है? ऐसा इसलिए है क्योंकि लोग मुख्य रूप से सामान्यतः इन विषयों और इस विषयवस्तु पर बात करते हैं। क्या किसी और की इस बारे में कोई अलग समझ है? जो कुछ पहले कहा जा चुका है उसमें कोई कुछ और जोड़े। (अगर कोई सत्य का अनुसरण कर सकता है, तो फिर वह समझ सकता है कि प्रसिद्धि, लाभ और हैसियत का अनुसरण करना वास्तव में एक प्रकार का बंधन है, एक जंजीर जो वे पहनते हैं, और जितना अधिक वे इन चीजों का अनुसरण करते हैं, उतना ही अधिक उन्हें खालीपन महसूस होगा और उतना ही अधिक वे उस प्रसिद्धि, लाभ और हैसियत के कारण लोगों को पहुंचने वाले नुकसान और दर्द को समझेंगे। जब वे इस बात को समझ लेते हैं और वे किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जो इन चीजों को पूंजी मानता है, तो उन्हें ऐसा व्यक्ति बहुत ही दयनीय लगेगा।) (जो व्यक्ति सच में सत्य से प्रेम करता और उसे समझता है, वह परमेश्वर के वचनों का उपयोग करके सामाजिक हैसियत और छवि को मापेगा, वह देखेगा कि परमेश्वर क्या कहता है और क्या अपेक्षा करता है, परमेश्वर क्या चाहता है कि लोग किसका अनुसरण करें, इन चीजों का अनुसरण करने से लोगों को अंततः क्या मिलेगा और जो कुछ उन्हें मिलता है वह उन परिणामों के अनुरूप है या नहीं जिन्हें परमेश्वर लोगों में देखने की आशा करता है।) तुम लोगों ने इस विषय को छुआ है, लेकिन जो कुछ तुम कहते हो, क्या उसका सत्य से कुछ गहरा संबंध है? क्या तुम लोग इसका मूल्यांकन करने में सक्षम हो? अधिकांश लोगों के पास थोड़ा बहुत अवधारणात्मक ज्ञान होता है और अगर मैं तुम लोगों को एक उपदेश देने के लिए कहूँ, तो यह एक प्रोत्साहन का उपदेश होगा। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ कि यह एक प्रोत्साहन का उपदेश होगा? प्रोत्साहन का उपदेश एक ऐसा उपदेश होता है जिसके द्वारा तुम ऐसी बातें करते हो जो लोगों को सलाह और प्रोत्साहन देती हैं—यह असली समस्याओं का समाधान नहीं कर सकता। हालाँकि हर वाक्य सही और उचित, मानवीय सूझ-बूझ और तर्कसंगत अपेक्षाओं के अनुरूप लग सकता है, लेकिन इसका सत्य से कम संबंध होता है, यह केवल लोगों के पास मौजूद थोड़ा-सा सतही और अवधारणात्मक ज्ञान है। अगर तुम इन शब्दों की दूसरों के साथ संगति करोगे, तो क्या तुम उनकी समस्याओं और कठिनाइयों के मूल स्रोत का समाधान कर पाओगे? नहीं, तुम नहीं कर पाओगे और इसीलिए मैं कहता हूँ कि यह एक प्रोत्साहन का उपदेश होगा। अगर तुम लोगों की समस्याओं और मुश्किलों के मूल स्रोत का समाधान नहीं कर सकते, तो तुम सत्य का उपयोग करके लोगों की समस्याओं का समाधान नहीं कर रहे हो। जो लोग सत्य को समझने में असमर्थ होते हैं, वे हमेशा ज्ञान, प्रतिष्ठा और हैसियत का समर्थन करेंगे और इन चीजों की बाधाओं और बंधन से बाहर निकलने में असमर्थ रहेंगे।
इस बारे में सोचो—तुम्हें मनुष्य के मूल्य, सामाजिक हैसियत और पारिवारिक पृष्ठभूमि के प्रति क्या रवैया अपनाना चाहिए? तुम्हारा सही रवैया क्या होना चाहिए? सबसे पहले तो तुम्हें परमेश्वर के वचनों से यह देखना चाहिए कि वह इस मामले के प्रति क्या रवैया अपनाता है; केवल तभी तुम सत्य समझ पाओगे और ऐसा कुछ भी नहीं करोगे जो सत्य के खिलाफ हो। तो, परमेश्वर किसी की पारिवारिक पृष्ठभूमि, सामाजिक हैसियत, उनके द्वारा प्राप्त शिक्षा और समाज में उनके पास मौजूद धन को कैसे देखता है? अगर तुम परमेश्वर के वचनों के आधार पर चीजों को नहीं देखते और परमेश्वर के पक्ष में खड़े नहीं हो सकते और परमेश्वर की ओर से चीजों को स्वीकार नहीं करते, तुम्हारा चीजों को देखने का तरीका निश्चित रूप से परमेश्वर के इरादे से बिल्कुल अलग होगा। अगर इसमें कोई बहुत अधिक अंतर नहीं है और केवल थोड़ा सा ही अंतर है, तो यह कोई बड़ी समस्या नहीं है; लेकिन अगर तुम्हारा चीजों को देखने का तरीका पूरी तरह से परमेश्वर के इरादे के खिलाफ है, तो यह चीज सत्य के विपरीत है। जहाँ तक परमेश्वर का सवाल है, वह लोगों को जो कुछ भी देता है और जितना देता है, यह उसी पर निर्भर करता है, और समाज में लोगों की जो भी हैसियत है वह परमेश्वर द्वारा ही निर्धारित की जाती है, लोग इसे स्वयं प्राप्त नहीं करते हैं। अगर परमेश्वर किसी को पीड़ा और गरीबी से पीड़ित करता है, तो क्या इसका यह मतलब है कि उनके पास बचाए जाने की कोई आशा नहीं है? अगर उनका मूल्य कम है और उनकी सामाजिक स्थिति निचली है, तो क्या परमेश्वर उन्हें नहीं बचाएगा? अगर उनकी समाज में हैसियत कम है, तो क्या वे परमेश्वर की नजर में भी छोटी हैसियत रखते हैं? जरूरी नहीं है। यह सब किस पर निर्भर करता है? यह इस पर निर्भर करता है कि यह व्यक्ति किस रास्ते पर चलता है, किस चीज का अनुसरण करता है और सत्य और परमेश्वर के प्रति उसका रवैया क्या है। अगर किसी की सामाजिक हैसियत बहुत छोटी है, उनका परिवार बहुत गरीब है और उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं की है, लेकिन फिर भी वे व्यावहारिक रूप से परमेश्वर में विश्वास रखते हैं और सत्य और सकारात्मक चीजों से प्रेम करते हैं, तो परमेश्वर की नजरों में उनका मूल्य ऊँचा होगा या नीचा, क्या वे महान होंगे या तुच्छ? वे मूल्यवान होते हैं। अगर हम इस परिप्रेक्ष्य से देखें, तो किसी का मूल्य—चाहे अधिक हो या कम, उच्च हो या निम्न—किस पर निर्भर करता है? यह इस बात पर निर्भर करता है कि परमेश्वर तुम्हें कैसे देखता है। अगर परमेश्वर तुम्हें किसी ऐसे व्यक्ति के रूप में देखता है जो सत्य का अनुसरण करता है, तो फिर तुम मूल्यवान हो और तुम कीमती हो—तुम एक कीमती पात्र हो। अगर परमेश्वर देखता है कि तुम सत्य का अनुसरण नहीं करते हो और तुम ईमानदारी से उसके लिए खुद को नहीं खपाते, तो फिर तुम उसके लिए बेकार हो और मूल्यवान नहीं हो—तुम एक तुच्छ पात्र हो। चाहे तुमने कितनी भी उच्च शिक्षा प्राप्त की हुई हो या समाज में तुम्हारी हैसियत कितनी भी ऊँची हो, अगर तुम सत्य का अनुसरण नहीं करते या उसे नहीं समझते, तो तुम्हारा मूल्य कभी भी ऊँचा नहीं हो सकता; भले ही बहुत से लोग तुम्हारा समर्थन करते हों, तुम्हारी प्रशंसा करते हों और तुम्हारा आदर सत्कार करते हों, फिर भी तुम एक नीच कमबख्त ही रहोगे। तो आखिर परमेश्वर लोगों को इस नजर से क्यों देखता है? ऐसे “कुलीन” व्यक्ति को जिसकी समाज में इतनी ऊँची हैसियत है, जिसकी इतने लोग प्रशंसा और सराहना करते हैं, जिसकी प्रतिष्ठा इतनी ऊँची है, उसे परमेश्वर निम्न क्यों समझता है? परमेश्वर लोगों को जिस नजर से देखता है वह दूसरों के बारे में लोगों के विचार से बिल्कुल विपरीत क्यों है? क्या परमेश्वर जानबूझकर खुद को लोगों के विरुद्ध खड़ा कर रहा है? बिल्कुल भी नहीं। ऐसा इसलिए है क्योंकि परमेश्वर सत्य है, परमेश्वर धार्मिकता है, जबकि मनुष्य भ्रष्ट है और उसके पास कोई सत्य या धार्मिकता नहीं है, और परमेश्वर मनुष्य को अपने खुद के मानक के अनुसार मापता है और मनुष्य को मापने के लिए उसका मानक सत्य है। यह बात थोड़ी काल्पनिक लग सकती है, इसलिए दूसरे शब्दों में कहें तो, परमेश्वर के माप का मानक परमेश्वर के प्रति एक व्यक्ति के रवैये, सत्य के प्रति उनके रवैये और सकारात्मक चीजों के प्रति उनके रवैये पर आधारित होता है—यह बात अब काल्पनिक नहीं है। मान लो कि कोई ऐसा व्यक्ति है जिसकी समाज में काफी ऊँची हैसियत है, जिसने उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त की है, जो बहुत शिक्षित और विकसित है और उसका पारिवारिक इतिहास विशेष रूप से गौरवशाली और शानदार है, फिर भी एक समस्या है : वह सकारात्मक चीजों से प्रेम नहीं करता, वह अपने दिल की गहराई से परमेश्वर के प्रति अरुचि, घृणा और नफरत महसूस करता है और जब परमेश्वर से संबंधित, परमेश्वर के विषयों या परमेश्वर के कार्य से संबंधित कोई बात सामने आती है, तो वह घृणा में अपने दांत पीसता है, उसकी आँखें जलने लगती हैं और यहाँ तक कि वह अन्य लोगों को मारना भी चाहता है। अगर कोई परमेश्वर या सत्य से संबंधित किसी विषय पर बात करने लगता है, तो वह घृणा और शत्रुता महसूस करता है, और उसकी पशुवादी प्रकृति बाहर आ जाती है। क्या ऐसा व्यक्ति मूल्यवान होता है या बेकार? उनकी शैक्षणिक पृष्ठभूमि और उनकी तथाकथित सामाजिक हैसियत और सामाजिक प्रतिष्ठा का परमेश्वर की नजर में क्या मूल्य होता है? कुछ भी नहीं। परमेश्वर ऐसे लोगों को कैसे देखता है? परमेश्वर ऐसे लोगों की प्रकृति को कैसे निर्धारित करता है? ऐसे लोग दानव और शैतान होते हैं, और वे सबसे अधिक बेकार नीच कमीने होते हैं। अब इसे देखते हुए, किसी के मूल्य के उच्च हो या निम्न के रूप में परिभाषित करने का क्या आधार होता है? (इसका आधार परमेश्वर, सत्य और सकारात्मक चीजों के प्रति उनका रवैया होता है।) बिल्कुल सही। सबसे पहले तो यह समझना चाहिए कि परमेश्वर का रवैया क्या है। सबसे पहले परमेश्वर के रवैये को समझना और उन सिद्धांतों और मानकों को समझना चाहिए जिनके द्वारा परमेश्वर लोगों को परिभाषित करता है और फिर लोगों को उन सिद्धांतों और मानकों के आधार पर मापना चाहिए जो परमेश्वर ने लोगों के लिए निर्धारित किए हैं—केवल यही सबसे सटीक, उचित और निष्पक्ष तरीका है। अब हमारे पास लोगों को मापने का एक आधार है, तो हमें इसे विशेष रूप से अभ्यास में कैसे लाना चाहिए? उदाहरण के लिए, किसी व्यक्ति ने बहुत उच्च शिक्षा प्राप्त की हुई है और वह जहाँ भी जाता है वहाँ लोकप्रिय होता है, हर कोई उसके बारे में अच्छा सोचता है, और दूसरों को ऐसा लगता है कि उसके पास बहुत अच्छी संभावनाएँ हैं—तो क्या फिर परमेश्वर की नजरों में उन्हें निश्चित रूप से उच्च माना जाएगा? (ऐसा जरूरी तो नहीं है।) तो हमें इस व्यक्ति का माप कैसे लेना चाहिए? किसी व्यक्ति की उच्चता और निम्नता न तो समाज में उसकी हैसियत पर आधारित होती है, न ही उसकी शैक्षणिक पृष्ठभूमि पर, और न ही यह उसकी जातीयता पर आधारित होती है, और निश्चित रूप से यह उसकी राष्ट्रीयता पर तो बिल्कुल भी आधारित नहीं होती है, तो फिर इसका आधार क्या होना चाहिए? (यह परमेश्वर के वचनों और सत्य व परमेश्वर के प्रति एक व्यक्ति के रवैये पर आधारित होना चाहिए।) यही सही है। उदाहरण के लिए, तुम लोग चीन महादेश से अमेरिका आए थे और अगर तुम एक दिन अमेरिकी नागरिक बन भी जाते हो, तो क्या तुम लोगों का मूल्य और हैसियत बदल जाएगी? (नहीं।) नहीं, ऐसा नहीं होगा; तुम तब भी ऐसे ही रहोगे। अगर तुम परमेश्वर में विश्वास रखते हो लेकिन फिर भी तुम्हें सत्य प्राप्त नहीं होता, तब भी तुम तबाह किए जाने वालों में शामिल रहोगे। कुछ सतही लोग वास्तव में परमेश्वर में विश्वास नहीं करते या सत्य का अनुसरण नहीं करते, वे धर्मनिरपेक्ष दुनिया का अनुसरण करते हैं और अमेरिकी नागरिक बनने के बाद, वे कहते हैं, “तुम चीनी लोग” और “तुम चीन महादेश के लोग।” मुझे बताओ, क्या ऐसे लोग उच्च होते हैं या नीच होते हैं? (नीच।) वे बहुत नीच होते हैं! वे ऐसा व्यवहार करते हैं मानो अमेरिकी नागरिक बनकर वे कुलीन हो गए हैं—क्या उनकी सोच सतही नहीं हैं? उनकी सोच बहुत सतही है। अगर कोई व्यक्ति प्रसिद्धि और लाभ, सामाजिक हैसियत, धन और शैक्षणिक उपलब्धियों को एक साधारण दिल के दृष्टिकोण से देख सकता है—बेशक, इस साधारण दिल का मतलब यह नहीं है कि तुम पहले ही इन चीजों का अनुभव कर चुके हो और इस संबंध में अब तुम्हें कुछ महसूस नहीं होता, बल्कि इसका मतलब यह है कि तुम्हारा अपना माप का एक मानक है और तुम इन चीजों को अपने जीवन की सबसे महत्वपूर्ण चीजें नहीं मानते और जिन मानकों और सिद्धांतों से तुम इन चीजों को मापते और देखते हो उनमें बदलाव आया है और साथ ही तुम्हारे मूल्यों में भी बदलाव आया है और तुम अब इन चीजों के प्रति सही रवैया अपना सकते हो और उन्हें साधारण दिल से देख सकते हो—इससे क्या साबित होता है? इससे साबित होता है कि तुम्हें तथाकथित सामाजिक हैसियत, मनुष्य के मूल्य आदि जैसी बाहरी चीजों से मुक्त कर दिया गया है। हो सकता है कि तुम लोग अभी इसे हासिल न कर सको, लेकिन जब तुम लोग वास्तव में सत्य को समझ सकोगे, तब तुम इन चीजों को स्पष्टता से समझ पाओगे। मैं तुम्हें एक उदाहरण देता हूँ। कोई व्यक्ति धनी भाई-बहनों से मिलता है और देखता है कि वे केवल ब्रांडेड कपड़े पहनते हैं और काफी दौलतमंद नजर आते हैं और वे नहीं जानते कि उनसे कैसे बात करनी है या उनके साथ कैसे जुड़ना है और इसलिए वे खुद को विनम्र बना लेते हैं, वे उन धनी भाई-बहनों की चापलूसी करते हैं और घृणित तरीके से व्यवहार करते हैं—क्या ऐसा करना उनका खुद को नीचा दिखाना नहीं है? कुछ तो है जो यहाँ उन हावी होता है। कुछ लोग जब किसी धनी महिला से मिलते हैं तो वे उसे “बड़ी बहन” कहते हैं और जब किसी धनी पुरुष से मिलते हैं तो उसे “बड़ा भाई” कहते हैं। वे हमेशा इन लोगों की चापलूसी करना और खुद को आगे करना चाहते हैं। जब वे किसी गरीब और अति साधारण व्यक्ति को देखते हैं, जो किसी ग्रामीण क्षेत्र से आया हो और जिसकी शिक्षा का स्तर भी कम हो, तो वे उसे नीची नजर से देखते हैं और उसकी ओर कोई ध्यान नहीं देते और उनका रवैया बदल जाता है। क्या कलीसिया में ऐसी सामान्य प्रथाएँ चलती हैं? हाँ चलती हैं, और तुम लोग इससे इनकार नहीं कर सकते, क्योंकि तुम लोगों में से कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनका अपना व्यवहार भी कुछ ऐसा ही है। कुछ उन्हें “बड़े भाई” कहकर पुकारते हैं, कुछ “बड़ी बहन” बुलाते हैं, और कुछ “चाची” कहते हैं—ये सामाजिक प्रथाएँ काफी गंभीर हैं। इन लोगों के व्यवहार को देखते हुए, यह कहा जा सकता है कि वे ऐसे लोग नहीं हैं जो सत्य का अनुसरण करते हैं और उनके पास थोड़ी सी भी सत्य वास्तविकता नहीं है। तुम लोगों में अधिक संख्या ऐसे ही लोगों की है और अगर वे अपने अंदर बदलाव नहीं लाते तो अंत में वे सभी हटा दिए जाएँगे। भले ही ये गलत विचार लोगों की सत्य मार्ग की स्वीकृति को प्रभावित नहीं करते हैं, लेकिन वे लोगों के जीवन प्रवेश और उनके कर्तव्यों के पालन को प्रभावित कर सकते हैं; अगर वे सत्य को स्वीकार नहीं करते हैं, तो वे संभवतः कलीसिया में बाधाएँ पैदा करेंगे। अगर तुम परमेश्वर के इरादे को समझ सकते हो, तो तुम उन सिद्धांतों और मानकों को भी समझ सकते हो जिनके द्वारा इन चीजों को मापा जाता है। इसका एक और पहलू भी है और वह यह है कि चाहे किसी व्यक्ति की सामाजिक हैसियत या शैक्षिक पृष्ठभूमि कैसी भी हो, या वह किसी भी प्रकार की पारिवारिक पृष्ठभूमि से आता हो, एक ऐसा तथ्य है जिसे तुम्हें अवश्य स्वीकार करना होगा : तुम्हारी शैक्षिक उपलब्धियां और पारिवारिक पृष्ठभूमि तुम्हारे चरित्र को नहीं बदल सकतीं, न ही वे तुम्हारे स्वभाव को प्रभावित कर सकती हैं। क्या ऐसा नहीं है? (हाँ ऐसा ही है।) मैं ऐसा क्यों कहता हूँ? चाहे कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार के परिवार में पैदा हुआ हो या उसने किसी भी प्रकार की शिक्षा प्राप्त की हो, चाहे उसने उच्च शिक्षा प्राप्त की हो या न की हो और चाहे वे किसी भी सामाजिक पृष्ठभूमि में पैदा हुआ हो, चाहे उसकी सामाजिक हैसियत ऊँची हो या नीची, उसका भ्रष्ट स्वभाव किसी भी अन्य व्यक्ति के समान ही होता है। हर कोई एक जैसा होता है—इससे बचा नहीं जा सकता। तुम्हारी सामाजिक हैसियत और मूल्य इस तथ्य को नहीं बदल सकते कि तुम उस मानव जाति के सदस्य हो जिसे शैतान ने भ्रष्ट कर दिया है और न ही वे इस तथ्य को बदल सकते हैं कि तुम एक भ्रष्ट स्वभाव वाले भ्रष्ट इंसान हो जो परमेश्वर का विरोध करता है। इससे मेरा क्या मतलब है? मेरा मतलब यह है कि, चाहे तुम कितने भी धनी परिवार में पैदा हुए हो या तुमने कितनी भी उच्च शिक्षा प्राप्त की हो, तुम सभी के स्वभाव भ्रष्ट हैं; चाहे तुम कुलीन हो या नीच, अमीर हो या गरीब, तुम्हारी हैसियत ऊँची हो या नीची, तुम अभी भी एक भ्रष्ट मनुष्य ही हो। इसलिए, परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करने के बाद, तुम सभी एक समान हो और परमेश्वर सभी के प्रति निष्पक्ष और धार्मिक है। क्या लोगों को इस बात की समझ नहीं होनी चाहिए? (हाँ।) ऐसा कौन-सा व्यक्ति है जिसे शैतान द्वारा भ्रष्ट नहीं किया गया है और जो इसलिए भ्रष्ट स्वभाव से रहित है क्योंकि समाज में उसकी हैसियत ऊँची है और वह समस्त मानवजाति की सबसे श्रेष्ठ जाति में पैदा हुआ है? क्या यह कोई कहने योग्य बात है? क्या यह चीज मानवजाति के पूरे इतिहास में कभी घटित हुई है? (नहीं।) नहीं, ऐसा कभी नहीं हुआ। वास्तव में, अय्यूब, अब्राहम और उन नबियों और प्राचीन संतों और इस्राएलियों सहित, कोई भी मनुष्य इस निर्विवाद तथ्य के साथ जीने से बच नहीं सकता : इस संसार में रहते हुए, समस्त मानवजाति को शैतान द्वारा भ्रष्ट किया गया है। शैतान मनुष्य को भ्रष्ट करने में, इस बात की परवाह नहीं करता कि तुमने उच्च शिक्षा प्राप्त की है या नहीं, तुम्हारा पारिवारिक इतिहास क्या है, तुम्हारा उपनाम क्या है, या तुम्हारा वंश वृक्ष कितना बड़ा है, अंतिम परिणाम यही होता है कि : अगर तुम मानवजाति के बीच रहते हो, तो तुम शैतान द्वारा भ्रष्ट कर दिए गए हो। इसलिए, इस तथ्य को कि तुम्हारे पास शैतानी भ्रष्ट स्वभाव है और तुम अपने शैतानी भ्रष्ट स्वभाव के साथ जीते हो, तुम्हारे मूल्य और शैक्षणिक पृष्ठभूमि से नहीं बदला जा सकता। क्या लोगों को इस बात की समझ नहीं होनी चाहिए? (हाँ, होनी चाहिए।) फिर जब तुम लोग इन बातों को अच्छी तरह से समझ जाओगे, तो भविष्य में जब कोई व्यक्ति अपने उपहार और पूंजी का दिखावा करेगा, या जब तुम लोगों को फिर से अपने बीच कोई “श्रेष्ठ” व्यक्ति मिलेगा तो तुम लोग उसके साथ कैसा व्यवहार करोगे? (मैं उनके साथ परमेश्वर के वचनों के अनुसार व्यवहार करूँगा।) सही। और तुम उनसे परमेश्वर के वचनों के अनुसार कैसे व्यवहार करोगे? अगर तुम्हारे पास करने को कुछ भी नहीं है और तुम उनका अपमान करते हो और यह कहते हुए उनका मजाक उड़ाते हो कि, “देखो तुम कितने शिक्षित हो, तुम किस बात का दिखावा कर रहे हो? तुम फिर से अपनी पूंजी के बारे में बात कर रहे हो, लेकिन क्या तुम अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभा सकते हो? चाहे तुमने कितनी भी उच्च शिक्षा क्यों न प्राप्त की हो, क्या तुम अभी भी शैतान द्वारा भ्रष्ट नहीं किए गए हो?” तो क्या यह उनके साथ पेश आने का अच्छा तरीका है? यह सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है और एक सामान्य मानवता वाले किसी व्यक्ति को ऐसा नहीं करना चाहिए। तो फिर तुम्हें उनके साथ किस तरह से पेश आना चाहिए जो सिद्धांतों के अनुरूप हो? तुम्हें उनका सम्मान नहीं करना चाहिए, लेकिन न ही उन्हें छोटा दिखाना चाहिए—क्या यह समझौता नहीं है? (हाँ है।) क्या समझौता करना सही है? नहीं, ऐसा करना सही नहीं है। तुम्हें उनके साथ सही व्यवहार करना चाहिए और अगर तुम उनकी मदद करने के लिए उस सत्य का उपयोग कर सकते हो जो तुम समझते हो, तो उनकी मदद करो। अगर तुम उनकी मदद नहीं कर सकते, तो फिर अगर तुम एक अगुआ हो और तुम देखते हो कि वे किसी विशेष कर्तव्य के लिए उपयुक्त हैं, तो उनसे वह कर्तव्य निभाने को कहो। केवल इसलिए उन्हें नीची नजर से मत देखो क्योंकि उन्होंने बहुत उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त की है और यह मत सोचो, “रहने भी दो, इतनी उच्च शिक्षा प्राप्त करने का क्या फायदा है? क्या तुम सत्य समझते हो? मैंने उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं की है लेकिन मैं फिर भी एक अगुआ हूँ। मेरी काबिलियत अच्छी है, मैं तुमसे बेहतर हूँ, इसलिए मैं तुम्हें नीचा दिखाऊँगा और तुम्हें शर्मिंदा करूँगा!” इसे कहते हैं मतलबी होना और मानवता के बिना होना। “उनके साथ सही व्यवहार करने” का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है सत्य सिद्धांतों के अनुसार मामलों को संभालना। और यहाँ सत्य सिद्धांत क्या है? सत्य सिद्धांत लोगों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करना है। लोगों को उच्च सम्मान की नजर से मत देखो और उनके सामने खुद को दीन मत बनाओ, ऐसा मत सोचो कि तुम उनसे किसी निचले स्तर पर हो और उनकी चापलूसी भी मत करो, उन्हें अपने पैरों तले मत कुचलो और उनका अपमान मत करो; हो सकता है कि वे खुद को बहुत अधिक महत्व न देते हों और खुद का दिखावा भी न करते हों। क्या यह सही है कि तुम हमेशा डरते ही रहो कि वे खुद का दिखावा करेंगे और इसलिए हमेशा उन्हें कुचलते ही रहो? नहीं, यह सही नहीं है। इसे कहते हैं अधम होना और मानवता के बिना होना—अगर तुम एक तरफ ज्यादा नहीं झुक रहे हो, तो फिर तुम दूसरी तरफ ज्यादा झुक रहे हो। लोगों के साथ सही व्यवहार करना, लोगों के साथ निष्पक्षता से व्यवहार करना—यही सिद्धांत है। यह सिद्धांत सुनने में काफी सरल लगता है, लेकिन इसे अभ्यास में लाना इतना आसान नहीं है।
पहले, एक अगुआ किसी स्थान पर रहने के लिए जाता है। मैंने उससे कहा कि वह प्रासंगिक टीम के अगुआओं और सदस्यों को अपने साथ ले जा सकता है, क्योंकि इस तरह से उनके लिए अपने काम के बारे में चर्चा करना सुविधाजनक होगा। जो कुछ मैंने कहा उसे समझना मुश्किल नहीं था—कोई भी इसे सुनते ही समझ सकता है। अंत में, जिस प्रासंगिक कार्मिक को वह अपने साथ ले गया, उसके नाम काफी “उपलब्धियाँ” थीं : कुछ लोग उसके लिए चाय लेकर आए, कुछ ने उसके पैर धोए और उसकी पीठ रगड़ी—वे सब चापलूसों का एक समूह थे। यह अगुआ कितना घृणित था? एक संक्रामक रोग से पीड़ित व्यक्ति भी था जो हर दिन उसकी चापलूसी करता था, उसके आगे पीछे घूमता था और उसकी सेवा करता था। चापलूसी की भावना का आनंद लेने के लिए वह इस बीमारी से ग्रस्त होने का जोखिम उठाने को भी तैयार था। अंत में, चूंकि उसके जाने के बाद संक्रामक रोग से पीड़ित इस व्यक्ति का रोग फिर से उभर आया, इसलिए इस झूठे अगुआ का भी खुलासा हो गया। इसलिए, चाहे लोग सत्य को समझें या न समझें, उन्हें निश्चित रूप से बुरे काम नहीं करने चाहिए, अपनी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं पर भरोसा करके काम नहीं करना चाहिए और उनमें जोखिम उठाने वाली मानसिकता नहीं होनी चाहिए, क्योंकि परमेश्वर मनुष्य के दिलों की और समस्त पृथ्वी की जाँच करता है। “समस्त पृथ्वी” में क्या कुछ शामिल है? इसमें भौतिक और अभौतिक दोनों चीजें शामिल हैं। अपने दिमाग से परमेश्वर, परमेश्वर के अधिकार या परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता को मापने की कोशिश मत करो। लोग सृजित प्राणी हैं और उनका जीवन बहुत महत्वहीन है—फिर वे सृष्टिकर्ता की महानता को कैसे माप सकते हैं? वे सभी चीजों की रचना करने वाले और सभी चीजों पर संप्रभुता रखने वाले सृष्टिकर्ता की सर्वशक्तिमत्ता और बुद्धिमता को कैसे माप सकते हैं? तुम्हें अज्ञानतापूर्ण कार्य या बुरे कार्य बिल्कुल भी नहीं करने चाहिए। बुराई करने पर अवश्य ही प्रतिशोध लिया जाएगा और जब एक दिन परमेश्वर तुम्हें प्रकट करेगा, तो तुम्हें उससे भी अधिक दंड मिलेगा जिसकी तुमने अपेक्षा की थी और उस दिन तुम रोओगे और अपने दांत पीसोगे। तुम्हें आत्म-ज्ञान के साथ आचरण करना चाहिए। कुछ मामलों में, इससे पहले कि परमेश्वर तुम्हें प्रकट करे, तुम्हारे लिए बेहतर होगा कि तुम अपनी तुलना परमेश्वर के वचनों से करो, खुद पर चिंतन करो और दबी हुई बातों को प्रकाश में लाओ, अपनी समस्याओं का पता लगाओ और फिर उन्हें हल करने के लिए सत्य की तलाश करो—परमेश्वर द्वारा तुम्हें प्रकट करने की प्रतीक्षा मत करो। एक बार जब परमेश्वर तुम्हें प्रकट कर दे, तो फिर क्या तुम इसके कारण निष्क्रिय नहीं हो जाओगे? उस समय, तुम पहले से ही अपराध कर चुके होगे। परमेश्वर द्वारा तुम्हारी पड़ताल करने से लेकर तुम्हारे प्रकट होने तक, हो सकता है कि तुम्हारे मूल्य और तुम्हारे बारे में परमेश्वर की राय में बहुत परिवर्तन आ सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जहाँ परमेश्वर तुम्हारी पड़ताल कर रहा है, वहीं वह तुम्हें अवसर भी दे रहा है और अपनी आशाओं को तुम्हें सौंप रहा है, जब तक कि तुम्हारी सच्चाई प्रकट नहीं हो जाती। परमेश्वर द्वारा किसी को अपनी आशाएँ सौंपने से लेकर अंत में उसकी आशाओं के नष्ट हो जाने तक, परमेश्वर की मनःस्थिति कैसी होती है? उसमें बहुत बड़ी गिरावट आती है। और तुम्हारे लिए इसका क्या परिणाम होगा? जो मामले ज्यादा गंभीर नहीं होते उनमें, तुम परमेश्वर के लिए घृणा का विषय बन सकते हो और तुम्हें एक तरफ कर दिया जाएगा। “एक तरफ करने” का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि तुम्हें रखा जाएगा और तुम्हारा निरीक्षण किया जाएगा। और अधिक गंभीर मामलों में इसका क्या परिणाम होगा? परमेश्वर कहेगा, “यह व्यक्ति एक आपदा है और वह सेवा करने के योग्य भी नहीं है। मैं इस व्यक्ति को बिल्कुल भी नहीं बचाऊँगा!” एक बार जब परमेश्वर ने यह विचार बना लिया, तो फिर तुम्हारे पास कोई परिणाम नहीं होगा और ऐसा होने के बाद फिर तुम चाहे साष्टांग प्रणाम करो या अपना खून बहाओ, इससे कोई फायदा नहीं होगा, क्योंकि परमेश्वर पहले ही तुम्हें पर्याप्त मौके दे चूका होगा लेकिन तुमने कभी पश्चाताप नहीं किया होगा और तुम बहुत आगे चले गए होगे। इसलिए, चाहे तुम्हें कोई भी समस्या हो या चाहे तुम जैसा भी भ्रष्टाचार प्रकट करो, तुम्हें हमेशा परमेश्वर के वचनों के प्रकाश में अपने बारे में सोचना चाहिए और खुद को जानना चाहिए या अपने भाई-बहनों से इन बातों की ओर ध्यान दिलाने के लिए कहना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि तुम्हें परमेश्वर की जाँच-पड़ताल को स्वीकार करना चाहिए, परमेश्वर के सामने आना चाहिए और उससे तुम्हें प्रबुद्ध और रोशन करने के लिए कहना चाहिए। चाहे तुम कोई भी तरीका अपनाओ, समस्याओं को जल्दी पहचानना और फिर उनका समाधान करना एक ऐसा प्रभाव है जो आत्म-चिंतन द्वारा प्राप्त होता है और यह सबसे अच्छी चीज है जो तुम कर सकते हो। तुम्हें पश्चाताप महसूस करने से पहले तब तक इंतजार नहीं करना चाहिए जब तक कि परमेश्वर तुम्हें प्रकट करके समाप्त न कर दे, क्योंकि तब तक पश्चाताप करने में बहुत देर हो चुकी होगी! जब परमेश्वर किसी को प्रकट करता है, तो क्या वह अत्यधिक क्रोधित होता है या अत्यधिक दयालु होता है? यह कहना मुश्किल है, यह अज्ञात है और मैं तुम्हें इस बात की कोई गारंटी नहीं दे सकता—यह तुम पर निर्भर है कि तुम किस मार्ग पर चलते हो। क्या तुम लोगों को पता है कि मेरी जिम्मेदारी क्या है? मैं तुम लोगों को वह सब बता रहा हूँ जो मुझे बताना है, हर वह वचन कह रहा हूँ जो मुझे कहना चाहिए, तुम्हें एक भी वचन से वंचित नहीं कर रहा हूँ। चाहे मैं कोई भी तरीका अपनाऊं, चाहे वह लिखित शब्दों का प्रयोग हो, कहानी सुनाना हो या छोटे कार्यक्रम का निर्माण हो, हर हाल में, मैं वह सत्य तुम लोगों तक पहुँचा रहा हूँ जिन्हें परमेश्वर चाहता है कि तुम लोग विभिन्न माध्यमों से समझो और साथ ही मैं तुम लोगों को उन समस्याओं से भी अवगत करा रहा हूँ जो मैं देख सकता हूँ। मैं तुम लोगों को चेतावनी दे रहा हूँ, याद दिला रहा हूँ और प्रोत्साहित कर रहा हूँ और तुम लोगों को कुछ आपूर्ति, सहायता और समर्थन प्रदान कर रहा हूँ। कभी-कभी मैं कुछ कठोर बातें भी कह देता हूँ। यह मेरी जिम्मेदारी है और यह तुम पर निर्भर करता है कि तुम्हें बाकी के रास्ते पर कैसे चलना है। तुम्हें मेरे भाषण और चेहरे के भावों की जांच करने की आवश्यकता नहीं है और तुम्हें इस बात का भी ध्यानपूर्वक निरीक्षण करने की आवश्यकता नहीं है कि तुम्हारे बारे में बारे में मेरी क्या राय है—तुम्हारे लिए ये सब करना आवश्यक नहीं है। भविष्य में तुम्हारा परिणाम क्या होगा, इसका मुझसे कोई लेना-देना नहीं है; इसका संबंध केवल इस बात से है कि तुम खुद किसका अनुसरण करते हो। आज, मैं खिड़की खोल रहा हूँ और खुलकर बोल रहा हूँ, मैं पूरी तरह से स्पष्ट रूप से बोल रहा हूँ। क्या तुम लोगों ने मेरे द्वारा कहे गए प्रत्येक वचन और प्रत्येक वाक्य को सुन लिया और समझ लिया है और उसे भी जो कुछ मुझे अवश्य कहना चाहिए, जो कुछ मुझे कहना चाहिए, और जो कुछ मैंने अतीत में कहा है? मैं जो कुछ भी कहता हूँ उसमें कुछ भी अमूर्त नहीं है, कुछ भी ऐसा नहीं है जिसे तुम लोग नहीं समझते हो; तुम लोग सब कुछ समझ गए हो, और इसलिए मेरी जिम्मेदारी अब पूरी हो गई है। यह मत सोचो कि बोलना समाप्त करने के बाद भी मुझे तुम लोगों पर नजर रखनी होगी और अंत तक तुम्हारे साथ रहकर तुम्हारे लिए उत्तरदायी रहना होगा। तुम सभी लोग कई वर्षों से परमेश्वर पर विश्वास करते आए हो, तुम सभी वयस्क हो, कोई छोटे बच्चे नहीं हो। तुम लोगों के कामों के लिए तुम्हारे पास ऐसे अगुआ हैं जो तुम्हारे लिए जिम्मेदार होते हैं, यह कोई मेरी जिम्मेदारी नहीं है। मेरे पास काम का अपना एक दायरा है, मेरी अपनी जिम्मेदारियों का एक दायरा है; मुझे तुम लोगों में से हर एक के पीछे चलने और तुम लोगों की निगरानी करने और तुम्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करने की कोई जरूरत नहीं है और न ही ऐसा करना मेरे लिए संभव है—मैं ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं हूँ। जहाँ तक इस बात का प्रश्न है कि तुम लोग किस चीज का अनुसरण करते हो, तुम लोग निजी तौर पर क्या कहते और करते हो और तुम लोग किस मार्ग पर चलते हो, इनमें से किसी भी चीज का मुझसे कोई लेना-देना नहीं है। मैं यह क्यों कहता हूँ कि उनका मुझसे कोई लेना-देना नहीं है? अगर तुम लोग परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्यों को सही और उचित तरीके से निभा सकते हो, तो परमेश्वर का घर अंत तक तुम लोगों लिए उत्तरदायी रहेगा। अगर तुम लोग अपना कर्तव्य निभाने, कीमत चुकाने, सत्य को स्वीकार करने और सिद्धांत के अनुसार कार्य करने के लिए तैयार हो, तो परमेश्वर का घर तुम लोगों की अगुआई करेगा, तुम लोगों की देखभाल करेगा और तुम लोगों का समर्थन करेगा; अगर तुम लोग अपना कर्तव्य निभाने के लिए तैयार नहीं हो और बाहर जाकर काम करना और पैसा कमाना चाहते हो, तो परमेश्वर के घर के दरवाजे पूरी तरह से खुले हैं और तुम्हें सौहार्दपूर्वक विदा कर दिया जाएगा। हालाँकि, अगर तुम लोग परमेश्वर के घर में कोई बाधा पैदा करते हो, बुराई करते हो और हलचल मचाते हो, तो चाहे कोई भी यह बुराई करे, परमेश्वर के घर के प्रशासनिक आदेश और कार्य व्यवस्थाएँ हैं और तुम्हारे साथ इन सिद्धांतों के अनुसार व्यवहार किया जाएगा। क्या तुम लोग समझ गए? तुम लोग कई वर्षों से परमेश्वर पर विश्वास करते आए हो, तुमने इतने वर्षों में परमेश्वर के बहुत से वचन पढ़े हैं और सभाओं में भाग लिया है और उपदेशों को सुना है, तो फिर तुमने थोड़ा सा भी पश्चाताप क्यों नहीं किया या थोड़ा भी परिवर्तित क्यों नहीं हुए? ऐसे कई लोग हैं जो कई वर्षों से उपदेश सुन रहे हैं और उन्होंने कुछ सत्यों को भी समझ लिया है, फिर भी उन्होंने अभी तक पश्चाताप नहीं किया है, वे अभी भी अपने कर्तव्यों को अनमने ढंग से निभाते हैं और ये लोग खतरे में हैं। मैं तुम लोगों को एक वास्तविक बात बताता हूँ : हमेशा मुझसे यह अपेक्षा मत रखो कि मैं तुम लोगों पर नजर रखूँगा, तुम लोगों का ध्यान रखूँगा और तुम्हारा हाथ थामकर तुम लोगों को सिखाऊँगा, ताकि तुम लोग कुछ व्यावहारिक और प्रभावी काम कर सको। अगर मैं तुम लोगों पर नजर न रखूँ या तुम लोगों की निगरानी न करूँ और तुम लोगों को आगे बढ़ने को प्रोत्साहित न करूँ और तुम लोग अनमने बन जाओ और तुम्हारे काम की प्रगति धीमी हो जाए, तो तुम लोग खत्म हो जाओगे। इससे पता चलता है कि तुम लोग बिना किसी वफादारी के अपना कर्तव्य निभाते हो और तुम सभी मजदूर हो। चलो मैं तुम लोगों को बताता हूँ कि मेरी सेवकाई पूरी हो चुकी है और मैं अब तुम लोगों की देखभाल करने के लिए बाध्य नहीं हूँ। ऐसा इसलिए है क्योंकि पवित्रात्मा इन मामलों में तुम लोगों पर कार्य कर रहा है और तुम लोगों की जाँच कर रहा है; मुझे जो कुछ करना चाहिए था वह मैंने कर दिया है, मुझे जो कुछ कहना चाहिए था वह मैंने कह दिया गया है, मैंने अपनी सेवकाई अच्छी तरह से निभाई है, मैंने अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली है, और अब केवल यही बचा है कि तुम लोग अपने कार्यों और व्यवहार की जिम्मेदारी खुद लो। अगर तुम लोग सत्य को स्वीकार नहीं करते बल्कि लगातार अनमने रहते हो और कभी भी पश्चाताप करने के बारे में नहीं सोचते हो, तो फिर तुम लोगों की सजा का और तुम्हारे हटाए जाने का मुझसे कोई लेना-देना नहीं होगा।
मैंने अभी जो कहानी सुनाई है उसका एक पहलू यह था कि लोगों की सामाजिक हैसियत, मूल्य, पारिवारिक पृष्ठभूमि और शैक्षणिक पृष्ठभूमि इत्यादि को किस तरह से देखा जाए और यह कि इन चीजों के संबंध में मानक और सिद्धांत क्या हैं; इसका दूसरा पहलू यह था कि इन चीजों के प्रति क्या रवैया अपनाया जाए और उनके सार को स्पष्टता से कैसे देखा जाए। एक बार जब तुम इन चीजों के सार को स्पष्टता से देख लोगे, तो भले ही वे अभी भी तुम्हारे दिल में मौजूद क्यों न हों, तुम उनसे बेबस नहीं होगे और तुम उनके अनुसार नहीं जीओगे। जब तुम एक गैर-विश्वासी व्यक्ति विश्वविद्यालय में जाने और मास्टर या डॉक्टरेट की पढ़ाई करने के अपने गौरवशाली इतिहास का बखान करते देखते हो तो इस पर तुम्हारा दृष्टिकोण और रवैया क्या होता है? अगर तुम कहते हो कि, “एक विश्वविद्यालय में अंडर ग्रेजुएट की पढ़ाई करना कोई बड़ी बात नहीं है। मैंने तो कई वर्ष पहले अपनी ग्रेजुएट की डिग्री प्राप्त की थी,” अगर तुम्हारी मानसिकता ऐसी ही है, तो यह तुम्हारे लिए परेशानी वाली बात होगी और इससे पता चलता है कि परमेश्वर में अपने विश्वास के मामले में तुम्हारे अंदर ज्यादा बदलाव नहीं आया है। अगर वे तुमसे पूछें कि तुम्हारी शैक्षिक पृष्ठभूमि क्या है, और तुम कहो, “मैंने तो अभी प्राथमिक विद्यालय भी पास नहीं किया है और मैं तो अभी एक निबंध भी नहीं लिख सकता,” और वे देखें कि तुम कुछ भी नहीं हो और तुम्हें अनदेखा करना शुरू कर दें, तो क्या यह बहुत ही उत्तम नहीं है? तुम परमेश्वर के वचनों को और अधिक पढ़ने और अपने कर्तव्य को और अधिक निभाने के लिए समय बचा सकते हो, और यह करना सही है। गैर-विश्वासियों और छद्म-विश्वासियों के साथ गपशप करने का क्या मतलब है? अगर तुम कहो कि तुम्हारी शिक्षा का स्तर कम है और समाज में तुम्हारी कोई हैसियत नहीं है और कोई तुम्हारा अपमान करता है, तो तुम क्या करोगे? इस बात को दिल पर मत लो और बेबस महसूस मत करो, उन्हें बोलने दो, उन्हें जो कहना है कहने दो, इससे तुम्हें कोई मतलब नहीं है। जब तक यह तुम्हारे परमेश्वर में आस्था को लेकर सत्य का अनुसरण करने में देरी का कारण नहीं बनता, तब तक यह ठीक है। यह वास्तव में एक मामूली विषय है, लेकिन दैनिक जीवन में लोगों द्वारा व्यक्त की जाने वाली बातों के माध्यम से यह देखा जा सकता है कि लोग पूंजी की इन चीजों को बहुत महत्व देते हैं और वे उन्हें हमेशा अपने दिल में रखते हैं। यह न केवल लोगों के भाषण और व्यवहार को प्रभावित कर सकता है, बल्कि यह उनके जीवन में प्रवेश और परमेश्वर में विश्वास के सही मार्ग का चयन करने को भी प्रभावित कर सकता है। ठीक है, मैं इस तरह के विषय पर फिर कभी बात नहीं करूँगा। चलो उस विषय पर वापस आते हैं जिस पर हम पिछली बार संगति कर रहे थे और मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों पर संगति करना और उनका गहन विश्लेषण करना जारी रखते हैं।
मसीह-विरोधियों के दुष्ट, धूर्त और कपटी होने का गहन-विश्लेषण
I. सकारात्मक चीजों और सत्य के प्रति मसीह-विरोधियों की शत्रुता और नफरत का गहन-विश्लेषण
हम मसीह-विरोधियों की छठीं अभिव्यक्ति का विश्लेषण खत्म कर चुके हैं, और अब हम सातवीं अभिव्यक्ति का गहन विश्लेषण शुरू करेंगे : मसीह-विरोधियों का दुष्ट, धूर्त और कपटी होना। कुछ लोग कहते हैं, “यह देखते हुए कि हम मसीह-विरोधियों का विश्लेषण कर रहे हैं, तो क्या यह कहना बहुत नरमी नहीं होगी कि वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं? किसमें थोड़ा-बहुत दुष्ट या कपटी स्वभाव नहीं होता? आम लोगों में ये भ्रष्ट स्वभाव होते हैं, इसलिए अगर हम इस तरह से मसीह-विरोधियों को उजागर और पर्दाफाश करते हैं, तो क्या इसका मतलब यह नहीं होगा कि हर कोई मसीह-विरोधी है?” क्या तुम लोगों में से कोई ऐसा सोचता है? अगर तुम में से कोई वाकई ऐसा सोचता है, तो वह गलत है। क्या मसीह-विरोधियों की दुष्टता, धूर्तता और कपट और आम लोगों में इन भ्रष्ट स्वभावों के अभिव्यक्त होने में कोई अंतर है? निश्चित रूप से अंतर है, अन्यथा हम इन स्वभावों को मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्तियों में शामिल नहीं करते। आज, मैं पहले मुख्य रूप से इस अंतर पर संगति करूँगा, फिर मसीह विरोधियों के दुष्ट, धूर्त और कपटी स्वभाव के कुछ वास्तविक उदाहरणों और विशिष्ट अभिव्यक्तियों के बारे में बात करूँगा। “दुष्ट,” “धूर्त,” और “कपटी” शब्दों का शाब्दिक अर्थ समझना आसान है। कठिनाई मसीह विरोधियों और आम लोगों में इन प्रकार की अभिव्यक्तियों के बीच आवश्यक अंतर को समझने में है, हम इन भ्रष्ट स्वभावों और सार वाले एक प्रकार के व्यक्ति को मसीह-विरोधी के रूप में क्यों परिभाषित करते हैं, और मसीह-विरोधियों और आम भ्रष्ट मानवों के सार में क्या अंतर होता है। पहली बात यह है कि मसीह-विरोधी सत्य और परमेश्वर के प्रति खुले तौर पर वैर रखते हैं; वे परमेश्वर से उसके चुने हुए लोगों, उसके पद और लोगों के हृदय में जगह के लिए परमेश्वर से होड़ करते हैं, और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के दिलों को जीतने और उन्हें गुमराह करने और निष्क्रिय करने के लिए उनके इर्द-गिर्द कई तरह की चीजें भी करते हैं। संक्षेप में, मसीह विरोधियों के कामों और व्यवहार की प्रकृति, चाहे वह खुले तौर हो या गुप्त, हमेशा परमेश्वर की विरोधी होती है। मैं क्यों कहता हूँ कि यह परमेश्वर के प्रति शत्रुतापूर्ण है? ऐसा इसलिए है क्योंकि वे अच्छी तरह से जानते हैं कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं और कि वह परमेश्वर है, फिर भी चाहे जितनी संगति की जाए वे परमेश्वर का विरोध करते हैं और सत्य को नहीं स्वीकार करते। उदाहरण के लिए, कुछ मसीह-विरोधी कुछ लोगों को अपने जाल में फंसाते हैं और उन्हें गुमराह करते हैं और नियंत्रित करते हैं। वे इन लोगों को अपनी आज्ञा मानने और अनुसरण करने के लिए मजबूर करते हैं, और फिर वे धोखा देकर कलीसिया से सभी प्रकार की पुस्तकें और सामग्री प्राप्त करते हैं, और अपने स्वयं के कलीसिया स्थापित करते हैं और अपने राज्य स्थापित करते हैं, ताकि वे अपने अनुयायियों द्वारा अनुसरण और पूजा किए जाने का आनंद ले सकें, इसके बाद वे कलीसिया से लाभ उठाना शुरू कर देते हैं। इस तरह का व्यवहार स्पष्ट रूप से परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए परमेश्वर के साथ उनका होड़ करना है—क्या यह मसीह-विरोधियों का लक्षण नहीं है? क्या इस प्रत्यक्ष लक्षण के आधार पर इन लोगों को मसीह-विरोधी के रूप में परिभाषित करना अन्यायपूर्ण है? यह बिल्कुल अन्यायपूर्ण नहीं है—यह परिभाषा अत्यंत सटीक है! कुछ मसीह-विरोधी ऐसे भी हैं जो कलीसिया के भीतर गुट बनाते हैं और कलीसिया को तोड़ते हैं। वे लगातार कलीसिया के भीतर अपनी ताकतों को संवर्द्धित करते हैं, और जो उनसे असहमत होते हैं, उन्हें बाहर कर देते हैं। फिर वे उन लोगों को अपने साथ रखते हैं जो उनकी बात सुनते हैं और उनका अनुसरण करते हैं, ताकि वे अपनी सेना बना सकें और सभी को अपना कहा करने के लिए मजबूर कर सकें। क्या यह उनका अपना राज्य स्थापित करने जैसा नहीं है? ऊपर वाले की कार्य व्यवस्था या आवश्यकताओं की अनदेखी करते हुए वे उन्हें पूरा करने से इनकार करते हैं और इसके बजाय अपने तरीके से काम करते हैं, जिससे उनके अनुयायी ऊपर वाले का खुले आम विरोध करते हैं। उदाहरण के लिए, परमेश्वर के घर की अपेक्षा है कि वास्तविक कार्य करने में अक्षम अगुओं और कार्यकर्ताओं को तुरंत बदल दिया जाए। परंतु, मसीह-विरोधी सोचेगा कि, “हालाँकि कुछ नेता और कार्यकर्ता वास्तविक कार्य करने में सक्षम नहीं हैं, लेकिन वे मेरा समर्थन करते हैं और मुझे स्वीकार करते हैं, और मैं उनका पोषण करता रहा हूँ। ऐसे में ऊपर वाला जब तक मुझे न हटा दे, मैं किसी हाल में इन लोगों को नहीं बदलने दे सकता।” बताओ कि क्या वह कलीसिया उस मसीह-विरोधी के नियंत्रण में नहीं है? परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाएँ मसीह-विरोधी की मर्जी के हिसाब से नहीं हैं और उन्हें पूरा नहीं किया जा सकता है। जब कार्य व्यवस्थाएँ लंबे समय के लिए जारी की गई हों, और हर कलीसिया ने सूचना दी हो कि उन्हें कैसे लागू किया गया है, उदाहरण के लिए किसे दूसरे कर्तव्य पर फिर से नियुक्त किया गया है या किन परिस्थितियों के कारण प्रतिस्थापित किया गया है, फिर भी मसीह-विरोधी कभी कोई सूचना नहीं देता और कभी भी किसी की पुनर्नियुक्ति नहीं करता। कुछ लोग हमेशा अपने कर्तव्यों में बेपरवाही बरतते हैं जिससे कलीसिया का काम गंभीर रूप से प्रभावित होता है, लेकिन मसीह-विरोधी उनकी नियुक्ति में बदलाव नहीं करता। यहां तक कि जब ऊपर वाला मसीह-विरोधी को सीधे इन लोगों को बदलने के लिए कहता है, तो भी वह लंबे समय तक कोई जवाब नहीं देता। क्या इसमें कोई समस्या नहीं है? जब ऊपर वाला मसीह-विरोधी को कार्य व्यवस्थाएं लागू करने के लिए कहता है या किसी चीज के बारे में पूछताछ करने की कोशिश करता है, तो मसीह-विरोधी के साथ उसका संवाद प्रतिक्रियाहीन छोर पर पहुँच जाता है। कलीसिया में अन्य भाई-बहनों को इसके बारे में कुछ भी पता नहीं होता, उन्हें कोई संदेश नहीं मिलते, और ऊपर वाले से उनका कोई सम्पर्क नहीं होता—कलीसिया पूरी तरह से उस एक व्यक्ति के नियंत्रण में होता है। इस तरह से काम करने वाले मसीह-विरोधी की प्रकृति क्या है? यह मसीह-विरोधी द्वारा कलीसिया पर कब्जा करना है। मसीह-विरोधी कलीसिया में गुट बनाते हैं, वे अपना राज्य स्थापित करते हैं, वे परमेश्वर के घर का विरोध करते हैं, और वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नुकसान पहुँचाते हैं। लोग पवित्र आत्मा का काम छोड़ देते हैं, वे परमेश्वर की उपस्थिति को महसूस नहीं कर पाते हैं, वहाँ शांति या आनंद नहीं मिलता है, वे परमेश्वर में विश्वास खो देते हैं, औरअपने कर्तव्यों को पूरी ऊर्जा के साथ निभाना बंद कर देते हैं। वे नकारात्मक और भ्रष्ट भी हो जाते हैं, और उनका जीवन गतिहीन हो जाता है। ये सभी मसीह-विरोधी द्वारा लोगों को गुमराह और नियंत्रित किए जाने के परिणाम होते हैं। अब, मुख्य भूमि चीन के सभी पादरी क्षेत्रों में, कई झूठे अगुओं और मसीह-विरोधी लोगों को उजागर किया गया है और बदला गया है। उनमें कुछ झूठे अगुआ और कार्यकर्ता ऐसे हैं जिन्होंने कोई वास्तविक कार्य ही नहीं किया। उन सभी में मसीह-विरोधियों वाली अभिव्यक्तियाँ थीं, और उन सभी में मसीह-विरोधियों वाला स्वभाव था, फिर भी वे मसीह-विरोधी होने के स्तर तक नहीं पहुँचे थे, इसलिए उन्हें केवल प्रतिस्थापित किया गया। परंतु, कुछ लोग अपना ही कानून चलाते थे, हर चीज पर उनका अंतिम निर्णय होता था, उन्होंने कार्य व्यवस्थाओं का पूरी तरह से उल्लंघन करते हुए अपने तरीके से काम किया, और इसीलिए उन्हें मसीह-विरोधियों के रूप में परिभाषित कर निष्कासित कर दिया गया। झूठे अगुओं और मसीह-विरोधियों को उजागर करने और उनसे निपटने का यह तरीका अद्भुत है! मैं जब इन सूचना-पत्रों को देखता हूँ तो मुझे बहुत प्रसन्नता होती है, क्योंकि इससे पता चलता है कि परमेश्वर के चुने हुए कुछ लोगों ने वर्षों तक धर्मोपदेश सुनने के बाद थोड़ा-बहुत सत्य समझ लिया है। मैं क्यों कहता हूँ कि उन्होंने थोड़ा-बहुत सत्य समझ लिया है? ऐसा इसलिए है क्योंकि इन धर्मोपदेशों को सुनने के बाद, वे उन्हें जीवन में सामने आने वाले मामलों से जोड़ सकते हैं और उन पर लागू कर सकते हैं। इन सत्यों को सुनने पर हो सकता है कि वे उनको उस क्षण वास्तव में न समझ सकें, लेकिन बाद में उन्हें लोगों और घटनाओं के बारे में समझ आ जाती है। वे ऐसे सिद्धांत और मानक पा लेते हैं जिनसे वे उन लोगों का मापन कर सकते हैं जो अपने नियम बना लेते हैं, जो वास्तविक कार्य नहीं करते, जो वास्तविक समस्याओं को हल नहीं कर सकते, जो अपने कर्तव्यों में लापरवाह हैं और बोझ नहीं उठाते, और जिनमें उत्तरदायित्व बोध नहीं है। क्या यह प्रगति नहीं है? यह प्रगति है। यह नहीं कहा जा सकता कि उनके पास कद है, उन्होंने केवल सत्य को थोड़ा सा समझा है। परमेश्वर के चुने हुए लोगों में झूठे नेतृत्वकर्ताओं, मसीह-विरोधियों और वास्तविक कार्य न करने वालों तथा अपने कार्य में अक्षम लोगों के बारे में कुछ समझ है—क्या यह अच्छी बात नहीं है? यह अच्छी बात है; यह प्रदर्शित करती है कि परमेश्वर के चुने हुए लोग सत्य को समझते हैं और उनमें समझ है, और वे परमेश्वर के पक्ष में खड़े हो सकते हैं और कलीसिया के काम की रक्षा कर सकते हैं—यह जश्न मनाने लायक बात है। मसीह-विरोधियों के लिए उन लोगों को गुमराह करना संभव नहीं है जो सत्य को समझते हैं। वे उन लोगों को गुमराह कर सकते हैं जो सत्य को नहीं समझते और नासमझ हैं, लेकिन ऐसा कब तक संभव है? मुझे भरोसा है कि, जितना ज्यादा लोग सत्य को समझेंगे और जितना ज्यादा उनका परमेश्वर में विश्वास होगा, उन्हें मसीह-विरोधियों के बंधनों और बाधाओं को नकारने और उनसे छुटकारा पाने में उतना ही कम समय लगेगा। इसलिए, हमारे लिए मसीह-विरोधियों की विभिन्न विस्तृत अभिव्यक्तियों पर संगति करना अभी भी जरूरी है, अन्यथा अगर लोग मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह और नियंत्रित किए जाते रहेंगे, तो उनके लिए उद्धार प्राप्त करना बहुत मुश्किल होगा।
अभी-अभी मैंने मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्तियों और ऐसे लोगों को मसीह-विरोधी के रूप में परिभाषित करने के कारणों को सरल शब्दों में समझाया है। तो, मसीह-विरोधियों की दुष्टता, धूर्तता और कपट की अभिव्यक्तियों और सामान्य लोगों के भ्रष्ट स्वभावों के बीच क्या अंतर है? क्या तुम्हें इसकी कोई समझ है? मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ, और इस का संबंध निश्चित रूप से दुष्टता, धूर्तता और कपट से है। बाइबल में अय्यूब की पुस्तक में परमेश्वर और शैतान के बीच का एक वार्तालाप दर्ज है। परमेश्वर शैतान से पूछता है, “तू कहाँ से आता है?” (अय्यूब 1:7)। और शैतान कैसे उत्तर देता है? (“पृथ्वी पर इधर-उधर घूमते-फिरते और डोलते-डालते आया हूँ” (अय्यूब 1:7)।) अब तक भी लोग यह नहीं समझ पाए हैं कि शैतान का इससे क्या मतलब था—इसी को स्वभाव कहते हैं। शैतान के कहने का जो मतलब था उसे लोग समझ क्यों नहीं पाते? ऐसा इसलिए है क्योंकि तुम अभी भी यह नहीं समझ पाए हो कि शैतान वास्तव में कहाँ से आता है। शैतान ने जो कहा उसमें समस्या क्या है? वह एक तरह का स्वभाव है, और वह है दुष्ट स्वभाव। अभी उस पंक्ति के बारे में बात करना समाप्त करते हैं और विश्लेषण करते हैं कि उसके बाद क्या होता है। परमेश्वर के प्रश्न का उत्तर देने के बाद शैतान परमेश्वर के सामने आता है और परमेश्वर शैतान से कहता है, “क्या तू ने मेरे दास अय्यूब पर ध्यान दिया है? क्योंकि उसके तुल्य खरा और सीधा और मेरा भय माननेवाला और बुराई से दूर रहनेवाला मनुष्य और कोई नहीं है” (अय्यूब 1:8)। परमेश्वर ने जो कहा, उसे सुनकर किसी सामान्य व्यक्ति की आमतौर पर क्या प्रतिक्रिया होगी? (वे देखना चाहेंगे कि अय्यूब ने कैसे कार्य किया।) लोग तुरंत सोचेंगे, “अय्यूब परमेश्वर का भय मानता था और बुराई से दूर रहता था और वह एक खरा व्यक्ति था। मैं वास्तव में उसकी प्रशंसा करता हूँ!” यह प्रशंसा कहाँ से आती है? यह सामान्य मानवता के भीतर सकारात्मक चीजों के लिए एक तरह की लालसा, प्रेम और तड़प से उत्पन्न होती है। परंतु, यदि तुम सत्य से प्रेम नहीं करते, तो तुम इन शब्दों को सुनकर क्या प्रकट करोगे? (तिरस्कार।) तुम इन शब्दों का तिरस्कार करोगे और उनकी अनदेखी करोगे। कुछ लोग सोचेंगे, “परमेश्वर का भय मानो और बुराई से दूर रहो? यह भय क्या है? ‘बुराई से दूर रहो’ का क्या अर्थ है? आजकल कोई खरा मनुष्य कहाँ मिल सकता है?” इन शब्दों को सुनने के बाद भी लगता है कि उन्हें कुछ महसूस नहीं हुआ, तो क्या उनके हृदय इन चीजों के लिए तरसते और लालायित हैं? (नहीं।) क्या वे इन चीजों की इच्छा रखते हैं? (नहीं।) क्या वे लगातार यह समझने की कोशिश करना चाहते हैं कि इसमें क्या रहस्य छिपे हैं? क्या उनकी ऐसी आकांक्षा है? नहीं, उनकी ऐसी आकांक्षा नहीं है; उनके हृदय में यह जानने की इच्छा नहीं है। एक अन्य प्रकार का भी व्यक्ति होता है जो जब सुनता है कि परमेश्वर ने कहा कि अय्यूब उसका भय मानता था और बुराई से दूर रहता था, कि वह एक खरा आदमी था, तो असामान्य प्रतिक्रिया करता है। वे कहते हैं, “हुंह? अय्यूब परमेश्वर का भय मानता था और बुराई से दूर रहता था, और वह खरा आदमी था—क्या ऐसे किसी व्यक्ति का कोई अस्तित्व है? मुझे दिखाओ कि वह कैसे खरा था—मुझे विश्वास नहीं होता!” क्या इस तरह के लोग, जिनके ऐसे विचार और अभिव्यक्तियाँ हों, वास्तव में परमेश्वर के कहे वचनों पर विश्वास करते हैं और उन्हें स्वीकार करते हैं? (नहीं।) वे वास्तव में उन पर न विश्वास करते हैं, न ही उन्हें स्वीकार करते हैं। पहले तो एक बात तय है कि वे स्वीकार नहीं करते कि परमेश्वर ने जो कहा है वह सत्य, विश्वसनीय और सटीक है, वे परमेश्वर के वचनों को सत्य, सृष्टिकर्ता के वचन और सम्पूर्ण मानवजाति के लिए सर्वोच्च सत्य के रूप में नहीं मानते। चूंकि वे परमेश्वर के वचनों को सत्य नहीं मानते, तो वे परमेश्वर को कैसे मानते हैं? चूँकि वे परमेश्वर के वचनों को नकारते हैं, तो क्या वे संभवतः स्वीकार कर सकते हैं कि परमेश्वर परमेश्वर है? निश्चित रूप से नहीं, क्योंकि वे परमेश्वर के वचनों को नकारते हैं, परमेश्वर के दृष्टिकोण को नकारते हैं, और परमेश्वर के कथनों को नकारते हैं, जिसका निहितार्थ है कि वे परमेश्वर के अस्तित्व को नकारते हैं और इस बात को नकारते हैं कि वही सभी सकारात्मक चीजों की वास्तविकता है। यह बात तय है। एक और बात है : इस तरह के लोगों का परमेश्वर द्वारा व्यक्त सत्यों और सकारात्मक और नकारात्मक चीजों के प्रति क्या रवैया है, और उनके रवैये के पीछे कौन सा स्वभाव होता है? अय्यूब के बारे में उनका क्या नजरिया है? “ऐसा होना संभव नहीं है! क्या दुनिया में अब भी भी ऐसा कोई हो सकता है? यह सिर्फ एक ऐतिहासिक कथा है। ऐसा कोई व्यक्ति इस दुनिया में नहीं होना चाहिए। केवल विश्वासघाती और बुरे, कुकर्मी और दुष्टों को ही जीना चाहिए। अय्यूब जैसे लोगों को जीना नहीं मर जाना चाहिए!” यह कैसा स्वभाव है? (दुष्टतापूर्ण।) यह शैतान की दुष्टता है। क्या मानवजाति में अब ऐसे लोग हैं जिनका स्वभाव बिल्कुल शैतान जैसा ही दुष्ट है? यह सुन कर कि परमेश्वर ने कहा, “अय्यूब मेरा भय मानने वाला और बुराई से दूर रहने वाला है; वह खरा मनुष्य है” किस तरह के लोग सहमत नहीं होते, इस बात को स्वीकार करने से इनकार करते हैं, विकर्षण और घृणा महसूस करते हैं, और यहाँ तक मन ही मन शाप भी देते हैं? क्या हम कह सकते हैं कि ऐसी चीजों को बढ़ावा देने वाले शैतान के जैसे ही हैं? (हाँ।) तो, क्या इन लोगों को मसीह-विरोधी के रूप में परिभाषित करना बात को बहुत बढ़ाने जैसा है? (नहीं।) जब परमेश्वर ने शैतान से स्पष्टता और गंभीरता से कहा, “अय्यूब मेरा भय मानने वाला और बुराई से दूर रहने वाला है; वह खरा मनुष्य है,” तो शैतान का रवैया क्या था? उसने इस तथ्य पर संदेह किया। इसका एक पहलू यह है कि शैतान को संदेह था कि अय्यूब वैसा मनुष्य है और उसे यह संभव नहीं लगा। ऐसा इसलिए था क्योंकि शैतान दुष्ट है और मानता है कि सभी चीजों में दुष्टता है; उसने यह नहीं माना कि मानवजाति में कोई ऐसा व्यक्ति हो सकता है जो इतना अद्भुत हो, जिसे परमेश्वर वास्तव में खरे के रूप में देखे—शैतान ने इस तथ्य पर विश्वास नहीं किया। दूसरा पहलू यह है कि जब परमेश्वर ने अय्यूब जैसे अच्छे व्यक्ति को पा लिया, तो शैतान ने अपने दिल में क्या महसूस किया? सबसे पहले, बिल्कुल सतही स्तर पर, उसने यह सोचते हुए ईर्ष्या महसूस की कि “कोई खरा मनुष्य कैसे हो सकता है? क्या मैंने पूरी मानवजाति को भ्रष्ट नहीं कर दिया है? लोग पूरे तौर पर मेरे जैसे ही हैं, उन सभी ने तुम्हें धोखा दिया है। वे तुम्हारा अनुसरण कैसे कर सकते हैं?” यदि हम मानवीय भाषा में इसका अनुवाद करें, तो यह उसकी मानसिकता थी। शैतान को विश्वास नहीं था कि ऐसा संभव है, और उसके न मानने के दो पहलू हैं : पहला यह कि शैतान चाहता था कि अय्यूब का अस्तित्व न हो, दूसरा यह कि शैतान ने सोचा, “अगर उसका अस्तित्व है भी, तो मैं उसे समाप्त कर दूँगा।” क्या यह शैतान की दुष्टता नहीं थी? (हाँ।) यह शैतान की दुष्टता थी। वह नहीं चाहता था कि कोई सचमुच अच्छा मनुष्य, कोई ऐसा मनुष्य जो परमेश्वर का भय मानता हो और बुराई से दूर रहता हो, परमेश्वर के सामने आए, वह नहीं चाहता था कि अय्यूब जैसा कोई व्यक्ति दुनिया में रहे, वह नहीं चाहता था कि ऐसा किसी ऐसे व्यक्ति का अस्तित्व हो, और वह तो यह भी नहीं चाहता था कि ऐसा कोई व्यक्ति पैदा हो—यह शैतान की दुष्टता थी। शैतान की दुष्टता का स्रोत क्या है? उसका स्वभाव सार दुष्ट है। इसके अलावा, शैतान सभी सकारात्मक चीजों के प्रति शत्रुभाव रखता है। “सभी सकारात्मक चीजों” में क्या शामिल है? इसमें वे लोग शामिल हैं जो परमेश्वर का भय मानते हैं और बुराई से दूर रहते हैं और खरे हैं। अय्यूब के प्रति शत्रुभाव रखने से, क्या शैतान परमेश्वर के प्रति शत्रुता नहीं दिखा रहा था? (हाँ, दिखा रहा था।) वास्तव में चीजें ऐसी ही थीं। जब शैतान अय्यूब के प्रति शत्रुता दिखा रहा था, वह परमेश्वर से भी घृणा कर रहा था। वह नहीं चाहता था कि कोई भी परमेश्वर की आराधना करे—इसी से वह सबसे अधिक खुश होता था और यही उसकी सबसे बड़ी इच्छा थी। और फिर, ये सभी तथ्य उसकी आशा के विपरीत निकले, जो वह देखना चाहता था और जिसकी उसे लालसा थी, उसके बिल्कुल विपरीत निकले। ऐसी अद्भुत बात उसकी आँखों के सामने हुई, और फिर भी उसकी दुष्टता ने, उसके खोट ने, उसे परमेश्वर से एक और बार बात करने के लिए प्रेरित किया। उसके और परमेश्वर के बीच का संवाद आगे है। क्या कोई इसका मूल पाठ जानता है? (“क्या अय्यूब परमेश्वर का भय बिना लाभ के मानता है?” (अय्यूब 1:9)।) शैतान ने सीधी बात नहीं की, उसके शब्दों में एक षड्यंत्र था। उसने कहा, “क्या अय्यूब परमेश्वर का भय बिना लाभ के मानता है?” ताकि तुम लोग इस बारे में सोचो। बताओ कि क्या परमेश्वर जानता था कि शैतान का क्या मतलब था? (हाँ।) परमेश्वर जानता था। परमेश्वर शैतान को खूब अच्छी तरह से जानता था और मामले को बिल्कुल स्पष्टता से देख सकता था। जैसे ही उसने कहा, “क्या अय्यूब परमेश्वर का भय बिना लाभ के मानता है?” परमेश्वर जान गया कि वह क्या करेगा। जब परमेश्वर ने देखा कि वह कुछ करना चाहता है, तो उसने जान लिया कि अवसर आ गया है, कि अय्यूब को परखने के लिए शैतान का उपयोग करने का समय आ गया है। तो, उनमें से कौन बुद्धिमान था? (परमेश्वर।) शैतान यह नहीं जानता था और उसने सोचा, “क्या परमेश्वर ने मुझे अय्यूब को छूने की अनुमति नहीं दी? मुझे कभी उम्मीद नहीं थी कि वह इस बात के लिए सहमत होगा।” इस कहानी को हम यहीं छोड़ते हैं। मूल रूप से सभी जानते हैं कि आगे क्या हुआ।
आओ, अब शैतान ने जो कहा उसमें उसकी अभिव्यक्तियों और स्वभाव का विश्लेषण करें, साथ ही यह भी देखें कि ऐसा कहने में उसकी प्रेरणा और इरादे क्या थे। सबसे पहले, शैतान ने परमेश्वर की कही बातों पर विश्वास नहीं किया, अर्थात्, उसने परमेश्वर के कहे वचनों की विषय-वस्तु और तथ्यों के प्रति संदेहपूर्ण रवैया अपनाया। परमेश्वर की कही बातों पर संदेह करने के साथ-साथ, वह परमेश्वर की कही बातों को नकारने के लिए किसी तरीके का उपयोग करना चाहता था, लेकिन वह सीधे तौर पर नकार नहीं सकता था। इसमें शैतान की दुष्टता कहाँ थी? यह पहले से अधिक कपटपूर्ण तरीका अपनाने में निहित थी जिसमें वह अपने मन में कह रहा था कि “मैं सीधे तौर पर तेरी बात नहीं नकारूँगा। मैं तुझसे अय्यूब को गाली देने की अनुमति लूँगा, और फिर उसे कहूँगा कि तुझे नकारे। यही सबसे अच्छा परिणाम होगा। क्या तब तू विफल नहीं हो जाएगा?” उसका यही उद्देश्य था। परमेश्वर के साथ अपने संवाद और अपने विचारों में शैतान ने कैसा स्वभाव प्रकट किया? स्पष्टतः उसका स्वभाव दुष्टतापूर्ण था। शैतान की दुष्टता और सामान्य भ्रष्ट मानवजाति की दुष्टता में क्या अंतर है? यहाँ शैतान कौन सी भूमिका निभा रहा था? वह सीधे अय्यूब को खोज कर उसे परमेश्वर को नकारने करने के लिए मजबूर नहीं कर रहा था। यदि अय्यूब पलट कर मुकाबला करता तो शैतान को शर्मिंदा होना पड़ता, इसलिए शैतान ने वह काम नहीं किया। तो, शैतान ने क्या किया? शैतान ने जो किया उसकी ठीक-ठीक प्रेरणा, साधन और चालें क्या थीं? (दूसरे के माध्यम से हमला करना।) तुम वास्तव में शैतान को कम आँकते हो; उसकी दुष्टता को मनुष्य नहीं आँक सकते। दुनिया की सभी न्यायपूर्ण और अद्भुत सकारात्मक चीजें शैतान को अद्भुत नहीं लगतीं—वह इन सभी चीजों को दुष्टतापूर्ण और गंदा बनाना चाहता है। शैतान और भ्रष्ट मनुष्यों के बीच सबसे बड़ा अंतर क्या है? सबसे बड़ा अंतर यह है कि वह अच्छी तरह से जानता है कि परमेश्वर सत्य है, कि परमेश्वर के पास बुद्धि और अधिकार है, और कि परमेश्वर ही सभी सकारात्मक चीजों का स्रोत है, फिर भी वह इन चीजों को स्वीकार नहीं करता है, और इसके बजाय वह इन सभी चीजों से विकर्षित होता है, उनके प्रति गहरी अरुचि रखता है, उनसे घृणा करता है, और यहाँ तक कि उन सभी चीजों को बुरा-भला भी कहता है। परंतु, भ्रष्ट मनुष्य प्रायः शैतान द्वारा गुमराह किए जाते हैं, और वे नहीं जानते कि सकारात्मक चीजें क्या हैं, या कौन सी चीजें न्यायसंगत हैं, और वे इससे भी कम यह जानते हैं कि सत्य क्या है या परमेश्वर की आकाँक्षा क्या है। यद्यपि वे थोड़े भ्रष्ट स्वभाव उजागर करते हैं, लेकिन ये दुष्ट और कपटी भ्रष्ट स्वभाव तब प्रकट होते हैं जब लोग मूर्ख, अज्ञानी, चेतनाशून्य, अंधे और ठगे हुए होते हों, और सत्य को न समझते हों, जबकि शैतान सब कुछ जानते-बूझते गलत काम करता है। हम उसे शैतान क्यों कहते हैं? ऐसा इसलिए है क्योंकि वह आध्यात्मिक क्षेत्र में और पूरे ब्रह्मांड में परमेश्वर द्वारा किए गए सभी कामों को देख सकता है और यह सब देखते हुए भी परमेश्वर की मौजूदगी को नकारता है, परमेश्वर की सत्य होने को नकारता है, और इस तथ्य को नकारता है कि सम्पूर्ण मानवजाति पर परमेश्वर की संप्रभुता है। परमेश्वर का अनुसरण चाहे जितने लोग करें, परमेश्वर चाहे कितना भी महान कार्य करे, परमेश्वर के पास चाहे जितना महान अधिकार हो, या परमेश्वर कितना भी सर्वशक्तिमान हो, शैतान फिर भी इन सब को नकारता है और बिना किसी लज्जा या सम्मान के वह मानवजाति को पंगु, अंधा और भ्रष्ट बनाता है, मानवजाति को गुमराह करने और उसका अनुसरण करने के लिए बाध्य करने को सभी प्रकार के तरीकों का उपयोग करता है। मैंने अभी जो कहा वह शैतान की दुष्टता की प्राथमिक अभिव्यक्तियाँ थीं? वह परमेश्वर के विरुद्ध चलने का विशेषज्ञ है, वह परमेश्वर की कही बातों को स्वीकार नहीं करता भले ही उसके शब्द कितने ही सही क्यों न हों, वह स्वीकार नहीं करता कि परमेश्वर के वचन सकारात्मक बातें और सत्य हैं, और यह चीजों को उलट देता है। उदाहरण के लिए, परमेश्वर ने लोगों से मनुष्य की रचना के इतिहास को लिपिबद्ध करने को कहा, और मनुष्य की रचना के तथ्यों से संबंधित दस्तावेजों के अलावा, ऐसे सबूतों के निशान भी हैं जिन्हें पाया जा सकता है। और शैतान ने क्या किया? इसने “डार्विनवाद” को गढ़ा और कहा कि मनुष्य का विकास वानरों से हुआ, उसने एक चित्र बनाया जिसमें दिखाया गया कि वानरों का क्रमिक विकास चार पैरों वाले प्राणियों से दो पैरों वाले प्राणियों में हुआ जो सीधे खड़े होकर चलते हैं, उसने इस विधर्म और भ्रांति को गढ़ा। परिणामस्वरूप, भले ही कुछ लोग अब विकासवाद को नकारते हों, फिर भी बहुत से लोग नहीं मानते कि मनुष्य परमेश्वर से आया है। क्या यह शैतान की दुष्टता नहीं है? (हाँ, है।) यही शैतान की दुष्टता है। वह परमेश्वर को कितना भी महान कार्य करते देखे, शैतान फिर भी अंत तक परमेश्वर के विरुद्ध खड़ा होता है और उसका विरोध करता है। परमेश्वर हर दिन शैतान को न नष्ट करता है, न ही उसका समाधान करता है, वह लगातार परमेश्वर का विरोध करता है। यहीं पर शैतान की दुष्टता निहित है, और इसका मूल कारण यह है कि उसका सार दुष्टतापूर्ण है।
अय्यूब की किताब में दी गई शैतान और परमेश्वर की बातचीत में क्या शैतान की अभिव्यक्तियों और मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्तियों के बीच कोई संबंध दिखता है? (हाँ।) कैसा संबंध? मैं इस अंश का उल्लेख क्यों कर रहा हूँ? मसीह विरोधियों की दुष्टता, धूर्तता और कपट एक ऐसा विषय है जिससे अक्सर तुम्हारा सामना होता है, और ये चीज़ें वास्तविक अभिव्यक्तियाँ भी हैं जिन्हें तुम अक्सर देखते हो, फिर मैं मसीह-विरोधियों की इन अभिव्यक्तियों के अलग से विश्लेषण के लिए एक ही मद के रूप में क्यों सूचीबद्ध कर रहा हूँ? हमने अभी शैतान की दुष्टता के बारे में बात की कि वह कैसे विशेष रूप से खुद को परमेश्वर के विरुद्ध खड़ा करता है, तो क्या मसीह-विरोधी भी ऐसा नहीं करते? (वे करते हैं।) मसीह विरोधियों की अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? कोई धर्मोपदेश सुनने के बाद मसीह-विरोधी जानते हैं कि उपदेश अच्छा है और वे उन शब्दों को समझ सकते हैं। इसके अलावा, उनके पास कुछ काबिलियत होती है, और एक बार जब वे उन शब्दों को समझ लेते हैं, तो जिन चीजों को वे पसंद करते हैं और जो उनकी धारणा के अनुरूप होती हैं, उन्हें याद करने का प्रयास करते हैं। फिर, उनके आधार पर वे अपने स्वयं के धर्मोपदेश तैयार करते हैं जिसे सुन कर औरों को बहुत अच्छा लगता है। हालाँकि, यह मसीह-विरोधियों की दुष्टता की प्राथमिक अभिव्यक्ति नहीं है; फिर उनकी प्राथमिक अभिव्यक्ति क्या है? इस तरह के लोग सत्य को समझ सकते हैं, तो मुझे बताओ कि क्या उनमें सही और गलत के बीच अंतर बताने की क्षमता होती है? (हाँ।) हाँ, उनमें यह क्षमता होती है, वे मूर्ख नहीं होते। उदाहरण के लिए, वे अक्सर भाई-बहनों के संपर्क में आते हैं और मन ही मन जानते हैं कि कौन लोग सत्य का अनुसरण करते हैं और कौन नहीं। वे अपने हृदय में जानते हैं कि कौन खुद को समर्पित कर सकता है और चीजों को त्याग सकता है, कौन अपने कर्तव्य को निष्ठापूर्वक निभा सकता है, और कौन निश्चित रूप से सत्य का अभ्यास करने और सामान्य मामलों का सामना होने पर सिद्धांतों के अनुसार कार्य करने का विकल्प चुन सकता है। लेकिन क्या वे ऐसे लोगों के साथ निष्पक्ष व्यवहार कर सकते हैं? (नहीं।) वे लोगों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं जिसका संबंध मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्तियों से होता है? उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति उनके लिए कोई खतरा नहीं है, तब वे सोचते हैं, “तुम सत्य का अनुसरण करते हो और तुम मुझसे ज्यादा योग्य हो, लेकिन मैं तुम्हें प्रोत्साहन नहीं दूंगा। तुमको प्रोत्साहन न देने का मतलब यह नहीं है कि मैं तुम्हें अनदेखा कर दूंगा। यदि तुम मेरी खूब चापलूसी करोगे, तो मैं तुम्हें अपने साथ रखूंगा। अगर तुम कभी मेरी चापलूसी नहीं करते और हमेशा इतने ईमानदार रहते हो, हमेशा निष्पक्ष तरीके से काम करते हो और सिद्धांतों का पालन करते हो, तो तुम मेरे किसी भी बुरे काम को पहचान जाओगे और मेरी असलियत समझ जाओगे, और तुम मेरे साथ सत्य पर संगति करोगे ताकि मैं पश्चाताप करूं, और इससे मुझे बहुत शर्मसार होना पड़ेगा। यदि तुम मेरे काम में दखल नहीं दोगे, तो ठीक है। यदि तुम हमेशा मेरे काम में दखल देते रहोहो, तो मैं तुम्हें खत्म कर दूंगा!” उनकी योजना इसी प्रकार की होती है, और वे अपने मन में इसी तरह की गणना करते हैं। यह कैसा स्वभाव है? उनके दो स्वभाव हैं : कुटिलता और दुष्टता। किसी व्यक्ति को पीड़ा पहुँचाने वाला काम करने से पहले वे इसी तरह सोचते हैं—यह दुष्टता है। वे अच्छी तरह जानते हैं कि यह व्यक्ति सत्य का अनुसरण करता है और उसमें न्यायबोध है, लेकिन वे उसे प्रोत्साहित नहीं करते, वे उस व्यक्ति के करीब नहीं आते, और अपने हृदय में उन्हें लगता है कि वह व्यक्ति उनसे दूरी रखता है और विकर्षण महसूस करता है—यह कैसा स्वभाव है? यह दुष्टता है। यह दुष्टता किस बात को संदर्भित करती है? ऐसा नहीं है कि मसीह-विरोधी यह नहीं समझते कि सकारात्मक चीजें क्या हैं और नकारात्मक चीजें क्या हैं; वे जानते हैं कि सही मार्ग क्या है, बात सिर्फ इतनी है कि वे उसका पालन नहीं करते, वे सत्य का अभ्यास नहीं करते, वे किसी की नहीं सुनते हैं, और दुष्टता का मार्ग चुनते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ महिलाएँ अच्छे नैतिक आचरण वाली महिला बनने और उचित जीवन जीने के लिए तैयार नहीं हैं, बल्कि इसके बजाय वेश्यालय भाग जाना चाहती हैं। इन दिनों कोई भी न तो उनकी दलाली करता है, न उन्हें वेश्यावृत्ति के लिए मजबूर करता है, फिर भी वेश्यालय क्यों जाना है? ऐसा इसलिए है क्योंकि वे दुष्ट हैं और ऐसे ही बनने के लिए पैदा हुई हैं। मसीह-विरोधी इसी तरह के कचरे हैं, और हम उनका विश्लेषण करते हैं और उन्हें मसीह-विरोधी के रूप में परिभाषित करते हैं क्योंकि मसीह-विरोधी की दुष्टता कभी भी सामान्य लोगों की ईमानदारी और अच्छाई नहीं बन सकती—यह उनके और भ्रष्ट स्वभाव वाले सामान्य लोगों के बीच का अंतर है। चाहे उनकी काट-छाँट हो, या कलीसिया उन पर नकेल कसने के लिए प्रशासनिक आदेशों का उपयोग करे, या भाई-बहन उनका विरोध करने और उन्हें उजागर करने के लिए उठ खड़े हों, पर कुछ भी उनके काम के मूल इरादों और सिद्धांतों को नहीं बदल सकता है—ऐसा कभी नहीं हो सकता। कोई भी उन्हें बदल नहीं सकता, कोई भी उनका हृदय-परिवर्तन नहीं कर सकता और उनके विचारों या आचरण के सिद्धांतों को त्यागने के लिए मजबूर नहीं कर सकता; तुम उन्हें बदल नहीं सकते—वे मसीह-विरोधी हैं। क्या तुमने सोचा था कि मसीह-विरोधी इतने दुष्ट हैं कि वे नहीं जानते कि क्या अच्छा है और क्या बुरा? वे जानते हैं। जब कोई मसीह-विरोधी ऊपर वाले को किसी मुद्दे की या काम के बारे में सूचना देता है, तो वह बहुत मधुर शब्दों का इस्तेमाल करता है, और जब तुम इन सूचना विवरणों को पढ़ते हो, तो तुम्हें लगता है कि वह व्यक्ति बहुत अच्छी क्षमता वाला होना चाहिए। हालाँकि, जब तुम्हें जमीनी वास्तविकता का पता चलता है, तो पाते हो कि वे अपने काम में हमेशा कार्य व्यवस्था का उल्लंघन करते हैं, वे सत्य का अनुसरण करने वालों पर अत्याचार करते हैं, और कलीसिया के काम में बाधा डालते हैं—वे मसीह-विरोधी हैं। कुछ मसीह-विरोधियों लोगों ने हमारे कलीसिया की वेबसाइट पर टिप्पणियाँ की हैं और, जब तुम उनकी पृष्ठभूमि या उत्पत्ति नहीं जानते, तो केवल यह देखते हो कि उनकी टिप्पणियाँ कितनी सुघड़ता से व्यक्त की गई हैं, खास तौर पर अच्छी लेखन शैली में स्पष्टता से लिखी गई पंक्तियाँ, और तुम्हें लगता है कि वह व्यक्ति अच्छी काबिलियत वाला होगा। उनके बारे में जानकारी करने के बाद ही तुम्हें पता चलता है कि वे मसीह-विरोधी हैं, कि उन्होंने बहुत बुरे काम किए थे और तीन साल पहले उन्हें कलीसिया से निकाल दिया गया था। वे परमेश्वर के घर की वेबसाइट पर लगातार संदेश पोस्ट करते रहते थे ताकि ऊपर वाले का ध्यान उन पर जाए, ताकि उन्हें पदोन्नत किया जाए और उन्हें सुधार का मौका दिया जाए; यह सब ऐसा ही है। मुझे बताओ, क्या मसीह-विरोधी आशीष पाना चाहते हैं? (हाँ।) वे वास्तव में आशीष पाना चाहते हैं; उन्हें मृत्यु से डर लगता है और नष्ट होने से डर लगता है।
मसीह-विरोधियों की दुष्टता की प्राथमिक अभिव्यक्ति क्या है? वह यह है कि उन्हें स्पष्ट रूप से पता होता है कि क्या सही है और क्या सत्य के अनुरूप है, लेकिन जब उन्हें कुछ करना होता है, तो वे हमेशा वही चुनते हैं जो सिद्धांतों का उल्लंघन करता हो और सत्य के विरुद्ध हो, और जो उनके अपने हितों और पद के अनकूल हो—यह मसीह-विरोधियों के दुष्ट स्वभाव की प्राथमिक अभिव्यक्ति है। वे चाहे जितने वचनों और सिद्धांतों को समझते हों, धर्मोपदेशों में वे कितनी भी मधुर भाषा का उपयोग करते हों, या अन्य लोगों को वे कितनी भी आध्यात्मिक समझ रखने वाले लगते हों, पर जब वे काम करते हैं, तो वे केवल एक सिद्धांत और एक तरीका चुनते हैं, और वह है सत्य के विरुद्ध जाना, अपने हितों की रक्षा करना, और अंत तक सत्य का सौ प्रतिशत प्रतिरोध करना—यही वह सिद्धांत और तरीका है जिसके अनुसार वे कार्य करने का फैसला करते हैं। इसके अलावा, वे अपने हृदय में जिस परमेश्वर और सत्य की कल्पना करते हैं, वे वास्तव में कैसे हैं? सत्य के प्रति उनका रवैया केवल इसके बारे में बोलने और उपदेश देने में सक्षम होने की चाह तक है, उनका रवैया उसे अभ्यास में लाने का नहीं है। परमेश्वर के चुने हुए लोगों से खूब सम्मानित होने की इच्छा के साथ वे इसके बारे में केवल बातें करते हैं, और फिर इसका उपयोग कलीसिया के अगुआ के पद पर काबिज होने और परमेश्वर के चुने हुए लोगों पर प्रभुत्व स्थापित करने के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए करते हैं। वे अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए उपदेश सिद्धांत का उपयोग करते हैं—क्या यह सत्य की अवमानना करना, सत्य के साथ खिलवाड़ और सत्य को पैरों तले रौंदना नहीं है? क्या वे सत्य के साथ इस तरह के व्यवहार से परमेश्वर के स्वभाव का अपमान नहीं करते हैं? वे बस सत्य का उपयोग करते हैं। उनके हृदय में सत्य सिर्फ एक नारा है, कुछ ऊँचे शब्द हैं, ऐसे ऊँचे शब्द जिनका उपयोग वे लोगों को गुमराह करने और उन्हें जीतने के लिए कर सकते हैं, जो लोगों की अद्भुत चीजों की प्यास बुझा सकते हैं। वे सोचते हैं कि इस दुनिया में ऐसा कोई नहीं है जो सत्य का अभ्यास कर सके या सत्य को जी सके, कि ऐसा हो ही नहीं सकता, कि यह असंभव है, और केवल वही सत्य है जिसे हर कोई स्वीकार करता हो और जो व्यवहार्य हो। वे सत्य के बारे में बात भले ही करते हों, लेकिन अपने हृदय में वे स्वीकार नहीं करते हैं कि यह सत्य है। हम इस मामले का परीक्षण कैसे करें? (वे सत्य का अभ्यास नहीं करते।) वे कभी सत्य का अभ्यास नहीं करते; यह एक पहलू है। और दूसरा महत्वपूर्ण पहलू क्या है? जब वे वास्तविक जीवन में चीजों का सामना करते हैं, तो वे जिस धर्म-सिद्धांत को समझते हैं, वह कभी भी काम में नहीं लाए जा सकते। वे ऐसे दिखते हैं मानो उन्हें वास्तव में आध्यात्मिक समझ हो, वे एक के बाद एक धर्म-सिद्धांतों का प्रचार करते हैं, लेकिन जब वे मुद्दों का सामना करते हैं, तो उनके तरीके विकृत होते हैं। सत्य का अभ्यास करने में वे भले न सक्षम हों, लेकिन वे जो करते हैं उसे कम से कम मानवीय धारणाओं और कल्पनाओं के अनुरूप होना चाहिए, मानवीय मानकों और पसंद के अनुरूप होना चाहिए, और कम से कम यह सबके लिए स्वीकार्य होना चाहिए। इस तरह, उनकी स्थिति स्थिर रहेगी। यद्यपि, वास्तविक जीवन में वे जो काम करते हैं वे अविश्वसनीय रूप से विकृत होते हैं, और बस एक नजर डालने भर से पता चल जाता है कि वे सत्य नहीं समझते। वे सत्य क्यों नहीं समझते? अपने हृदय में वे सत्य से विमुख होते हैं, वे सत्य को स्वीकार नहीं करते, वे शैतानी दर्शनों के अनुसार काम करने में आनंद पाते हैं, मामलों को सँभालने के लिए वे हमेशा मानवीय तरीकों का उपयोग करना चाहते हैं, और उनके लिए बस इतना ही पर्याप्त होता है कि वे इन मामलों को संभालने के माध्यम से दूसरों को सहमत कर सकें और प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकें। यदि कोई मसीह-विरोधी किसी स्थान पर पहुंचने पर किसी को किसी खोखले सिद्धांत का प्रचार करते पाता है, तो वह बहुत उत्साहित हो जाता है, लेकिन यदि कोई सत्य वास्तविकता का उपदेश दे रहा हो और लोगों की विभिन्न स्थितियों आदि के विवरण दे रहा हो, तो उन्हें हमेशा लगता है कि वक्ता उनकी आलोचना कर रहा है और उनके दिल पर चोट कर रहा है, और इसलिए वे घृणा महसूस करते हैं और उसे नहीं सुनना चाहते। यदि उनसे इस बारे में संगति करने के लिए कहा जाए कि हाल ही में उनकी स्थिति कैसी रही है, क्या उन्होंने कोई प्रगति की है, और क्या उन्हें अपने कर्तव्य निभाने में किसी कठिनाई का सामना करना पड़ा है, तो उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं होता। यदि तुम सत्य के इस पहलू पर संगति करना जारी रखते हो, तो वे सो जाते हैं; उन्हें इस बारे में सुनना अच्छा नहीं लगता। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो तुम्हारे साथ गपशप करते समय खूब रुचि दिखाते हैं, लेकिन किसी को सत्य पर संगति करते हुए सुनते ही वे कोने में छिपकर बैठ जाते हैं और झपकी लेने लगते हैं—उन्हें सत्य से बिल्कुल भी प्रेम नहीं है। वे किस हद तक सत्य से प्रेम नहीं करते? गंभीरता से न देखें तो उनकी इसमें रुचि नहीं होती, और उनके लिए श्रमिक बनना ही पर्याप्त होता है; गंभीरता से देखा जाए तो वे सत्य से विमुख होते हैं, वे सत्य से विशेष रूप से घृणा महसूस करते हैं, और वे इसे स्वीकार नहीं कर सकते। यदि इस तरह का व्यक्ति अगुआ है, तो वह मसीह-विरोधी है; यदि वह कोई साधारण अनुयायी है, तो वह अभी भी मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चल रहा है और मसीह-विरोधियों का उत्तराधिकारी है। बाहर से वे बुद्धिमान और गुणी दिखते हैं, जिनमें कुछ बेहतर काबिलियत दिखती है, लेकिन उनका प्रकृति सार मसीह-विरोधियों वाला होता है—यह ऐसा ही है। ये आकलन किस बात पर आधारित हैं? ये सभी सत्य और सकारात्मक चीजों के प्रति उनके दृष्टिकोण पर आधारित हैं। यह सत्य के प्रति लोगों के दृष्टिकोण का एक पक्ष है। दूसरा पक्ष यह है कि बहुत से मौकों पर लोग सीधे सत्य का सामना नहीं करते, कुछ चीजों में सत्य शामिल नहीं होता है, लोग यह नहीं सोच पाते हैं कि इसमें सत्य का कौन-सा पक्ष शामिल है, और इसलिए, वह कौन है जिसका वे सीधे सामना करते हैं? वे जिसका सीधे सामना करते हैं वह परमेश्वर है। और, ये लोग परमेश्वर के साथ कैसा व्यवहार करते हैं? वे किस अभिव्यक्ति में अपना दुष्ट स्वभाव प्रदर्शित करते हैं? क्या वे सच्ची प्रार्थना करते हैं और परमेश्वर के साथ सच में एक होते हैं? क्या उनका रवैया ईमानदार होता है? क्या उनमें सच्ची आस्था होती है? (नहीं।) क्या वे वास्तव में परमेश्वर पर भरोसा करते हैं और वास्तव में खुद को परमेश्वर को सौंप देते हैं? क्या वे वास्तव में परमेश्वर का भय मानते हैं? (नहीं।) ये सभी व्यावहारिक मामले हैं और ये बिल्कुल भी खाली खुशामद या पिष्टोक्ति नहीं हैं। यदि तुम नहीं समझते कि ये शब्द व्यावहारिक हैं, तो तुम्हारे पास कोई आध्यात्मिक समझ नहीं है। मैं तुम्हें ऐसे लोगों की अभिव्यक्तियों का एक उदाहरण देती हूँ। कुछ लोग सभाओं में अपनी मुट्ठियाँ भींच लेते हैं और कसमें खाते हैं, कहते हैं, “मैं जब तक जीवित रहूँगा, शादी नहीं करूँगा, नौकरी छोड़ दूँगा, और मैं सब कुछ त्याग दूँगा और अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करूँगा!” जब वे चीखना-चिल्लाना बंद कर देते हैं और परमेश्वर के लिए खुद को खपाने जा रहे होते हैं, तो वे विचार करते हैं “मैं परमेश्वर से और अधिक आशीष कैसे प्राप्त कर सकता हूँ? मुझे परमेश्वर के देखने लायक कुछ करना होगा।” परंतु, वे परमेश्वर को यह कहते हुए सुनते हैं कि वह उनके जैसे लोगों से प्यार नहीं करता, और वे सोचते हैं, “मैं अब क्या करूं? मैं खुद को परमेश्वर से दूर कर लूँगा जिससे परमेश्वर मुझे न देख सके।” यह किस तरह की स्थिति है? (सावधानीपूर्ण।) वे परमेश्वर से बचने के लिए उससे दूर रहते हैं। और उनके सावधानी बरतने में कौन-सा स्वभाव छिपा है? दुष्टता। जब वे कोई काम करते हैं तो वे हमेशा खुद को परमेश्वर से बचाते हैं, उन्हें डर लगता है कि परमेश्वर उनकी असलियत जान लेगा, और वे परमेश्वर की जाँच स्वीकार नहीं करते—क्या यह परमेश्वर में विश्वास है? क्या यह परमेश्वर का प्रतिरोध करना नहीं है? यह बहुत नकारात्मक स्थिति है, यह सामान्य नहीं है। यद्यपि वे अभी भी परमेश्वर के वचनों को खाना-पीना जारी रख सकते हैं, लेकिन जैसे ही वे परमेश्वर को लोगों का न्याय करने और उन्हें उजागर करने के वचन बोलते हुए सुनते हैं, वे वहाँ से भाग जाते हैं, या फिर जल्दी से कोई बहाना बनाते हैं और खुद को छिपाने के लिए कोई समझौता करने का तरीका ढूँढ़ लेते हैं। वे खुद को छिपाने की बहुत कोशिश करते हैं, और हर संभव कोशिश करते हैं कि बचकर रहें और सावधान रहें, इसी के साथ वे अपने दिल में परमेश्वर से लगातार लड़ते रहते हैं। अपने कामों में वे न तो परमेश्वर के इरादों की तलाश करते है, न ही सत्य की। इसके बजाय, वे और भी अधिक यह दिखाना चाहते हैं कि वे सत्य को स्वीकार कर सकते हैं और बिना किसी शिकायत के परमेश्वर के प्रति समर्पण कर सकते हैं, बनावटीपन और गलतबयानी के जरिये वे सभी की स्वीकृति पाने की कोशिश करते हैं। जहाँ तक इसकी बात है कि परमेश्वर क्या कहता है, वह ऐसे लोगों से क्या अपेक्षा करता है, और ऐसे लोगों का कैसे मूल्यांकन करता है और कैसे परिभाषित करता है, ऐसी चीजों की न तो उन्हें परवाह होती है, न ही वे इन्हें जानना चाहते हैं। अपने दिलों में वे वास्तव में स्पष्ट नहीं होते कि परमेश्वर असल में कौन है, बल्कि इसके बजाय सब कुछ उनकी कल्पना और आकलन होता है। जब परमेश्वर कुछ ऐसा करता है जो उनकी धारणाओं के विपरीत होता है, तो अपने दिल में वे उसकी निंदा करते हैं। यद्यपि वे कहते हैं कि वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं, लेकिन उनके दिल संदेह से भरे होते हैं। यह लोगों का दुष्ट स्वभाव है।
कुछ मसीह-विरोधी अक्सर परमेश्वर की परीक्षा लेने की कोशिश करते हैं। वे एक कदम आगे बढ़ते हैं, स्थिति का जायजा लेते हैं, और फिर दूसरा कदम उठाते हैं; सरल शब्दों में, उन्हें “प्रतीक्षा करो और देखो” वाला रवैया रखने वाला कहा जा सकता है। “प्रतीक्षा करो और देखो” का क्या अर्थ है? मैं तुम्हें एक उदाहरण देती हूँ। मान लो, कोई व्यक्ति अपनी नौकरी छोड़ देता है और फिर परमेश्वर के सामने प्रार्थना करता है, “हे ईश्वर, अब मेरे पास नौकरी नहीं है। मुझे उम्मीद है कि तुम भविष्य में मेरा समर्थन करोगे। मैं सब कुछ तुम्हारे हाथ में सौंपता हूँ। मैं अपना जीवन तुम्हें समर्पित करता हूँ।” जब वह प्रार्थना कर लेता है, तो यह देखने के लिए प्रतीक्षा करता है कि क्या परमेश्वर उसे आशीष में कुछ देता है, क्या वह उसके सामने कोई अलौकिक खुलासा करता है या उसे अधिक अनुग्रह देता है, क्या उन्हें कम से कम पहले से कुछ अधिक मिलता है और दुनिया में नौकरी करते समय जितना आनंद मिलता था, उससे श्रेष्ठतर आनंद मिलता है। यह उसका परमेश्वर को परखना है। ऐसी प्रार्थना और ऐसा समर्पण क्या है? (यह लेन-देन है।) क्या इस लेन-देन में दुष्ट स्वभाव नहीं है? (हाँ।) उनका नजरिया थोड़ा-सा प्रलोभन देकर परमेश्वर से अनुग्रह और आशीष माँगने जैसे अधिक मूल्यवान योगदान आकर्षित करने के काम को आगे बढ़ाना है—यही उनका उद्देश्य है। कोई कहता है, “चीन में स्थिति बहुत भयानक है। बड़े लाल अजगर द्वारा लोगों को गिरफ्तार किए जाने की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। दो लोगों का एक साथ इकट्ठा होना भी खतरनाक है, चार लोगों के परिवार का एक साथ इकट्ठा होना भी खतरनाक है। इन स्थितियों में चीन में ईश्वर पर विश्वास करना बहुत खतरनाक है। अगर वास्तव में कुछ गलत हो जाए, तो क्या हम तब भी बचा लिए जाएँगे? क्या हमारा विश्वास करना व्यर्थ नहीं हो जाएगा?” वे सोचने लगते हैं, “मुझे देश छोड़ने का कोई तरीका सोचना होगा। जब पहले हालात अच्छे थे, तो मैं आराम और सुविधा के लालच में चीन छोड़ना नहीं चाहता था। अपने परिवार के साथ मिलकर रहना बहुत अच्छा था, और मैं ईश्वर पर भी विश्वास कर सकता था और आशीष भी पा सकता था; वह हर तरह से बढ़िया स्थिति थी। अब स्थितियाँ खराब हैं, आपदाएँ आ गई हैं, और मुझे जल्दी से चीन छोड़ना चाहिए। देश छोड़ने के बाद भी मैं अपना कर्तव्य निभा सकता हूँ, और अपना कर्तव्य निभाकर मुझे आशीष पाने का मौका मिलेगा।” अंत में, वे देश छोड़कर भाग जाते हैं। यह क्या है? यह अवसरवाद है। हर कोई जोड़-घटाव में लगा हो सकता है, और हर किसी की मानसिकता लेन-देन वाली होती है—क्या यह दुष्टता नहीं है? क्या तुम लोगों के बीच ऐसे लोग हैं? अपने दिल में वे कहते हैं, “अगर दुनिया मुझे परेशान करती है, तो मेरे माता-पिता और परिवार मेरी रक्षा कर सकते हैं। अगर मुझे ईश्वर में मेरे विश्वास के लिए गिरफ्तार कर लिया जाता है, तो क्या ईश्वर मुझे सुरक्षित रखेगा? ऐसा लगता है कि इस बारे में निश्चित रूप से जान पाना मुश्किल है। अगर मैं इस बारे में निश्चित रूप से नहीं जान सकता, तो मुझे क्या करना चाहिए? मेरे माता-पिता निश्चित रूप से मेरी रक्षा नहीं कर पाएंगे। जब किसी को ईश्वर में विश्वास करने के कारण गिरफ्तार किया जाता है, तो आम लोग उसे बचा नहीं सकते, और अगर मैं बड़े लाल अजगर की क्रूर यातनाएँ और पीड़ाएँ सहन नहीं कर पाया और यहूदा बन गया, तो क्या मेरा छोटा-सा जीवन बर्बाद नहीं हो जाएगा? बेहतर होगा कि मैं देश छोड़कर चला जाऊँ और विदेश में ईश्वर में विश्वास करूँ।” क्या कोई ऐसा है जो ऐसा सोचता है? जरूर होगा, है न? तो, क्या कोई ऐसा है जो कहता है, “तुम हमें बदनाम करते हो, और हमने वैसा नहीं सोचा है”? इस तरह के लोग निश्चित रूप से कम नहीं हैं, और समय के साथ तुम यह देखोगे और समझोगे।
मसीह-विरोधियों की दुष्टता की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं? पहली यह है कि वे सकारात्मक चीजों को स्वीकार नहीं करते, वे स्वीकार नहीं करते कि सत्य जैसी कोई चीज है, और वे सोचते हैं कि उनकी विधर्मी भ्रांतियाँ और दुष्टतापूर्ण नकारात्मक चीजें ही सत्य हैं—यह मसीह-विरोधियों की दुष्टता की एक अभिव्यक्ति है। उदाहरण के लिए, कुछ लोग कहते हैं, “खुशियों की चाबी आपके अपने हाथ में होती है” और “केवल शक्ति होने पर ही सब कुछ मिल सकता है”—ये मसीह-विरोधियों के तर्क है। वे मानते हैं कि शक्ति के पीछे-पीछे ऐसे लोग आते हैं जो उनकी खुशामद और चापलूसी करते हैं, उपहार देते हैं और उनकी बेहद चाटुकारिता करते हैं, साथ ही उन्हें रुतबे के सभी प्रकार के लाभ मिलते हैं और सभी प्रकार के आनंद मिलते हैं; उनका विश्वास है कि शक्ति पा लेने के बाद उन्हें किसी के द्वारा आगे की ओर धकेले जाने की या किसी की अगुआई की जरूरत नहीं होगी, और वे दूसरों की अगुआई कर सकते हैं—यह उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता होती है। तुम उनके इस तरह के गुणा-भाग के बारे में क्या सोचते हो? क्या यह दुष्टता नहीं है? (हाँ, है।) मसीह-विरोधी सत्य के स्थान पर अपने शैतानी तर्क और विधर्मी भ्रांतियों का उपयोग करते हैं—यह उनकी दुष्टता का एक पहलू है। सबसे पहली बात यह है कि वे सत्य को स्वीकार नहीं करते, वे सकारात्मक चीजों का होना नहीं स्वीकारते, और वे सकारात्मक चीजों का सही होना नहीं स्वीकार करते। इसके अलावा, यद्यपि कुछ लोग स्वीकार करते हैं कि इस दुनिया में सकारात्मक चीजें और नकारात्मक चीजें हैं, पर वे सकारात्मक चीजों और सत्य के अस्तित्व को कैसे देखते हैं? वे अब भी इसे पसंद नहीं करते, वे जो जीवन चुनते हैं और परमेश्वर में अपने विश्वास में जिस मार्ग पर चलते हैं, वह सब नकारात्मक बना रहता है और सत्य के विपरीत होता है। वे केवल अपने हितों की रक्षा करते हैं। कोई चीज सकारात्मक हो या नकारात्मक, जब तक वह उनके हितों की रक्षा कर सकती है, तब तक वह ठीक है, यह सर्वोच्च है। क्या यह दुष्ट स्वभाव नहीं है? एक और पहलू है : इस तरह के दुष्ट सार वाले लोग स्वाभाविक रूप से परमेश्वर की विनम्रता और छिपे रहने की प्रवृत्ति, उसकी वफादारी और अच्छाई के प्रति तिरस्कार का भाव रखते हैं; वे स्वाभाविक रूप से इन सकारात्मक चीजों के प्रति अवमाननाकारी होते हैं। उदाहरण के लिए, मुझे देखो : क्या मैं बहुत साधारण नहीं हूँ? मैं साधारण हूँ, तुम यह कहने की हिम्मत क्यों नहीं करते? मैं खुद स्वीकार करती हूँ कि मैं साधारण हूँ। मैंने खुद को कभी असाधारण या महान नहीं माना। मैं बस एक साधारण व्यक्ति हूँ; मैंने हमेशा इस तथ्य को स्वीकार किया है और मैं इस तथ्य का सामना करने का साहस करता हूँ। मैं कोई “सुपरमैन” या कोई महान व्यक्ति नहीं बनना चाहता—यह कितना थकाऊ होगा! मैं जैसा साधारण व्यक्ति हूँ, उसे लोग नीची नजर से देखते हैं और हमेशा मेरे बारे में धारणाएँ पालते हैं। वास्तव में परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोग जब मेरे सामने आते हैं, तो मैं बाहर से कैसी भी दिखूँ, वे कुछ पवित्रता के भाव के साथ आते हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो मुझसे बहुत विनम्रता से बात करने के बावजूद अपने दिल में मेरे प्रति अवमाननाकारी रवैया रखते हैं और मैं उनके लहजे और उनके शरीर के हाव-भाव से यह बता सकती हूँ। यद्यपि कभी-कभी वे बहुत सम्मान करते दिखते हैं, लेकिन मैं उनसे जो भी कहती हूँ, उसका जवाब हमेशा “नहीं” में देते हैं, हमेशा मेरी बात को नकारते हैं। उदाहरण के लिए, मैं कहती हूँ कि आज मौसम बहुत गर्म है और वे कहते हैं, “नहीं, ऐसा नहीं है। कल बहुत गर्मी थी।” वे मेरी बात को नकारते हैं, है न? तुम उनसे चाहे जो कहो, वे हमेशा उसे नकारते हैं। क्या हमारे आस-पास ऐसे लोग नहीं हैं? (हाँ, हैं।) मैं कहती हूँ, “आज का खाना नमकीन है। क्या इसमें नमक ज्यादा है या सोया सॉस ज्यादा है?” और, वे कहते हैं, “दोनों में से कुछ भी नहीं। इसमें चीनी बहुत ज्यादा है।” मैं चाहे जो भी कहूँ, वे उसे नकारते हैं, इसलिए मैं कुछ और कहती ही नहीं, हम एकमत नहीं होते और हम अलग-अलग भाषा बोलते हैं। फिर कुछ ऐसे भी हैं जो जब मुझे परमेश्वर में आस्था के बारे में बात करते हुए सुनते हैं, तो कहते हैं, “तुम इस बारे में बात करने में माहिर हो, इसलिए मैं सुनूंगा।” लेकिन, अगर मैं किसी बाहरी चीज के बारे में थोड़ा-भी बोलती हूँ, तो वे आगे नहीं सुनना चाहते, जैसे मुझे बाहरी चीजों के बारे में कुछ भी पता न हो। ठीक है कि वे मेरी ओर ध्यान नहीं देते, तो मैं चुप रहना चाहती हूँ। मुझे जरूरत नहीं कि कोई मेरी ओर ध्यान दे, मैं बस वही करती हूँ जो मुझे करना चाहिए। मेरी अपनी जिम्मेदारियाँ हैं, और मेरा अपना जीवन जीने का तरीका है। मुझे बताओ कि लोगों के ये दृष्टिकोण क्या प्रदर्शित करते हैं? वे देखते हैं कि मैं एक महान या सक्षम व्यक्ति की तरह नहीं दिखती, और मैं एक साधारण व्यक्ति की तरह बोलती और काम करती हूँ, और इसलिए वे सोचते हैं, “तुम ईश्वर की तरह क्यों नहीं हो? मुझे देखो। अगर मैं ईश्वर होता, तो मैं बिल्कुल उनके जैसा होता।” यह परमेश्वर जैसा होने या न होने का मामला नहीं है। यह तो तुम्हारी मांग है कि मैं परमेश्वर जैसी बनूँ, मैंने कभी नहीं कहा कि मैं उसके जैसी हूँ, और मैंने कभी उसके जैसा बनना नहीं चाहा; मैं बस वही करती हूँ जो मुझे करना चाहिए। अगर मैं कहीं जाती हूँ और कुछ लोग मुझे नहीं पहचानते हैं, तो यह बहुत अच्छा है, क्योंकि इससे मैं परेशानी से बच जाती हूँ। देखो, प्रभु यीशु ने उस समय यहूदिया में बहुत-सी बातें कहीं और काम किया, और उसके अनुयायी शिष्यों का स्वभाव चाहे जितना भ्रष्ट क्यों न रहा हो, यीशु के प्रति उन लोगों का रवैया वैसा ही था जैसा मनुष्य का परमेश्वर के प्रति रवैया होता है—उनका रिश्ता सामान्य था। फिर भी कुछ लोग थे जो प्रभु यीशु के बारे में कहते थे, “क्या वह बढ़ई का बेटा नहीं है?” और यहाँ तक कि कुछ लोग जो लंबे समय तक उसका अनुसरण करते रहे, वे भी लगातार यही दृष्टिकोण अपनाए रहे। यह कुछ ऐसी बात है जिसका सामना देहधारी परमेश्वर को साधारण, सामान्य मनुष्य बनने में अक्सर करना पड़ता है, और यह एक सामान्य घटना है। कुछ लोग जब पहली बार मुझसे मिलते हैं तो बहुत उत्साही होते हैं, जब मैं जाती हूँ तो वे जमीन पर लेट जाते हैं और रोते हैं, लेकिन वास्तविक बातचीत के दौरान यह सब काम नहीं करता, और कई बार मुझे यह सहना पड़ता है। मुझे इसे क्यों सहना पड़ता है? क्योंकि कुछ लोग मूर्ख होते हैं, कुछ लोग सुसंस्कृत नहीं हो सकते, कुछ लोगों की सेवाकर्मियों के रूप में जरूरत होती है, और कुछ सभी तर्कों को अनसुना करने वाले होते हैं। इसलिए मुझे कभी-कभी यह सब सहना पड़ता है, और कभी-कभी कुछ ऐसे लोग होते हैं जिन्हें मैं अपने करीब नहीं आने देती; ये लोग बहुत ही घृणास्पद होते हैं और उनका स्वभाव विरोधी होता है। कितना विरोधी? उदाहरण के लिए, मैं एक छोटा कुत्ता देखती हूँ जो बहुत प्यारा दिखता है और मैं कहती हूँ, “चलो इसे हुआमाओ बुलाते हैं।” और इस नाम के प्रति ज्यादातर लोगों का रवैया क्या होता है? यह एक नाम भर है, और चूँकि मैंने इसे सबसे पहले सोचा था, इसलिए कुत्ते को यही नाम दिया जाना चाहिए; यह एक बहुत ही सामान्य बात है। कुछ विरोधी स्वभाव वाले लोग उसे यह नाम नहीं देंगे, और कहेंगे, “हुआमाओ कैसा नाम है? मैंने तो पहले कभी किसी कुत्ते का नाम हुआमाओ नहीं सुना। इसे ऐसा नाम नहीं देते, हमें इसे कोई अंग्रेजी नाम देना चाहिए।” मैं कहती हूँ, “मैं अंग्रेजी नाम रखने में बहुत अच्छी नहीं हूँ, इसलिए तुम लोग इसे जो चाहो वह नाम दो और मैं तुम लोगों का फैसला मान लूँगी।” मैं उनके फैसले के आगे क्यों झुकती हूँ? यह एक छोटी-सी बात है, तो इस पर बहस क्यों? कुछ लोग झुकते नहीं हैं और इसके बजाय ऐसी चीजों पर बहस करते हैं। सिर्फ इसलिए कि मैं झुकती हूँ, इसका मतलब यह नहीं है कि मैं मानती हूँ कि मैंने गलत किया है; यह केवल वह सिद्धांत है जिसके अनुसार मैं चलती हूँ और काम करती हूँ। सिर्फ इसलिए कि मैं तुमसे बहस नहीं करती, इसका मतलब यह नहीं है कि मैं तुमसे डरती हूँ। मैं बहस नहीं करती, लेकिन मैं अपने दिल में जानती हूँ कि तुम लोग छद्म-विश्वासी हो, और मैं तुम जैसे लोगों के बजाय किसी कुत्ते के साथ व्यवहार करना पसंद करूँगी। मेरे जीवन के दायरे में जिन कुछ लोगों के साथ मुझे बातचीत करनी ही पड़ती है, उनके अलावा जिन लोगों के साथ मैं व्यवहार रखती हूँ, वे भाई-बहन हैं, परमेश्वर के घर के लोग हैं—यह मेरा सिद्धांत है। मैं एक भी गैर-विश्वासी के साथ बातचीत नहीं करती; मुझे ऐसा करने की जरूरत नहीं है। हालाँकि, अगर परमेश्वर के घर में छद्म-विश्वासी हैं जो परमेश्वर के घर के प्रति मैत्रीपूर्ण हैं, तो वे कलीसिया के मित्र हो सकते हैं। चाहे वे कलीसिया की मदद करें या कुछ प्रयास करें और कलीसिया के लिए कुछ मामलों को सँभालें, तो कलीसिया उनके साथ तालमेल बना सकती है, लेकिन मैं उनके साथ वैसा व्यवहार नहीं करूँगी जैसा मैं भाई-बहनों के साथ करती हूँ; मैं अपने काम में बहुत व्यस्त हूँ और मेरे पास ऐसे मामलों से निपटने का समय नहीं है। कुछ लोग जो कई वर्षों से परमेश्वर पर विश्वास करते आ रहे हैं, उनमें परमेश्वर के कार्य, देहधारी परमेश्वर और परमेश्वर द्वारा लोगों को बचाए जाने के बारे में कुछ अवधारणाएँ होनी चाहिए, फिर भी उनके हृदय परमेश्वर का भय मानने वाले बिल्कुल नहीं हैं। वे बिल्कुल गैर-विश्वासियों जैसे हैं और तनिक भी नहीं बदले हैं। मुझे बताओ, ये लोग क्या चीज हैं? वे जन्मजात शैतान हैं, परमेश्वर के दुश्मन हैं। जब किसी का शैतानी लोगों के साथ जुड़ाव गहरा होता है, तो यह दैवीय आपदा और विपत्ति बन जाता है।
तुम सभी लोग अपने दैनिक जीवन से समझ सकते हो कि तुम चाहे जिस समूह में शामिल हो जाओ, हमेशा कोई न कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो तुम्हें पसंद नहीं करता होगा, और उन्हें भड़काया या नाराज न किया जाए तब भी वे तुम्हारे बारे में बुरी बातें कहेंगे, तुम्हारा आकलन करेंगे, और तुम पर कलंक लगाएँगे। तुम्हें पता नहीं कि क्या हुआ है, फिर भी वे तुम्हें नापसंद करेंगे, तुम्हारे साथ ठीक से व्यवहार नहीं करेंगे और तुम पर धौंस जमाना चाहेंगे—यह कैसी स्थिति है? तुम्हें नहीं पता कि तुमने उन्हें नाराज करने वाला क्या काम किया है, लेकिन किसी अज्ञात कारण से वे तुम पर धौंस जमाते हैं। क्या ऐसे बुरे लोग होते हैं? (हाँ। होते हैं।) वे तुम्हारे विरोधी हैं और उनकी व्याख्या केवल इसी रूप में की जा सकती है। तुम्हारा उनसे कोई संवाद होने से पहले ही वे तुम्हें तुरंत नापसंद करने लगते हैं और सोचते हैं कि किस तरह से तुम्हें नुकसान पहुँचा सकते हैं—क्या वे तुम्हारे कट्टर विरोधी नहीं हैं? (हाँ, हैं।) क्या तुम किसी कट्टर विरोधी के साथ अच्छे से रह सकते हो? क्या तुम एक ही रास्ते पर चल सकते हो? बिल्कुल नहीं। तो क्या तुम ऐसे लोगों से झगड़ोगे और बहस करोगे? (नहीं, मैं उनसे बहस नहीं करूँगा।) क्यों नहीं? क्योंकि वे विवेक से परे हैं। कुछ लोग स्वाभाविक रूप से सकारात्मक चीजों, सही चीजों, ऐसी चीजों से विमुख होते और घृणा करते हैं जो मानव जाति के बीच तुलनात्मक रूप से अच्छी हैं, यानी, सकारात्मक चीजें जिन्हें लोग पाना चाहते हैं और पसंद करते हैं; इस तरह के लोगों में एक जो स्पष्ट स्वभाव होता है, वह दुष्टता का होता है—वे दुष्ट लोग होते हैं। उदाहरण के लिए, एक आदमी एक प्रेमिका की तलाश में निकलता है और सोचता है, “चाहे वह बदसूरत हो या सुंदर, यदि वह गुणी और अच्छी हो, और जीवन में उससे निभ सकती हो, तो इतना पर्याप्त है। विशेष रूप से, मानवता और आस्था वाली महिला हुई तो मैं चाहे अमीर होऊँ या गरीब, बदसूरत होऊँ या सुंदर, या बीमार हो जाऊं, वह मेरे साथ रहने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध होगी।” सभ्य लोग आमतौर पर इस तरह का दृष्टिकोण रखते हैं। किस तरह के लोग इस तरह का दृष्टिकोण पसंद नहीं करते या अनुमोदित नहीं करते? (दुष्ट लोग।) तो बताओ कि दुष्ट लोग कैसा दृष्टिकोण रखते हैं? जब वे ये शब्द सुनते हैं तो उनकी क्या प्रतिक्रिया होती है? वे तुम्हारा उपहास करते हुए कहते हैं, “बेवकूफ। हम किस युग में हैं? और तुम ऐसी किसी प्रेमिका की तलाश कर रहे हो? तुम्हें किसी अमीर और सुंदर महिला की तलाश करनी चाहिए!” साधारण पुरुष सभ्य और गुणी महिलाओं से विवाह करते हैं और एकीकृत और खुशहाल परिवार के साथ बढ़िया जीवन जीते हैं; वे जीवन में अपना आचरण साफ-सुथरा रखते हैं। क्या दुष्ट लोग इस तरह सोचते हैं? (नहीं।) वे कहते हैं, “अब इस दुनिया में, क्या किसी आदमी को तब तक आदमी कहा जा सकता है, जब तक उसकी 10 या उससे भी ज्यादा प्रेमिकाएँ और कई पत्नियाँ न हों? अगर ऐसा नहीं हैं, तो उसका जीवन बर्बाद है!” वे सभी ऐसा दृष्टिकोण रखते हैं। तुम उनसे कहते हो, “कोई सभ्य, गुणी और अच्छी महिला खोजो जिसमें विशेष रूप से मानवता और आस्था हो,” लेकिन क्या यह उन्हें स्वीकार्य है? (नहीं।) वे तुम्हारा उपहास करते हैं और कहते हैं, “तुम बहुत मूर्ख हो! दुनिया में अब कोई भी दूसरों के मामलों की परवाह नहीं करता, हर कोई निर्बंध और स्वतंत्र रहता है। खासकर, जब तुम चीन छोड़कर पश्चिम में जाते हो, तो वहाँ और भी स्वतंत्रता होती है क्योंकि कोई भी तुम पर हर वक्त नजरें गड़ाए नहीं रहता। तुम अपने प्रति इतना कठोर क्यों हो रहे हो? तुम बहुत मूर्ख हो!” यही उनका दृष्टिकोण है। तो, जब तुम उनसे सकारात्मक चीजों, सत्य और न्याय से संबंधित मनुष्य की सबसे अद्भुत सकारात्मक चीजों, के बारे में बात करते हो, तो उन्हें कैसा लगता है? वे घृणा महसूस करते हैं और अपने दिल में तुम्हें कोसते हैं। एक बार जब वे जान जाते हैं कि तुम इस तरह के व्यक्ति हो, तो उनके हृदय तुम्हारे प्रति सावधान हो जाएंगे और वे तुमसे बच कर रहेंगे। जो लोग एक ही जैसे नहीं होते, वे एक ही रास्ते पर भी नहीं चलते। वे जानते हैं कि तुम उनके जैसे लोगों के प्रति घृणा महसूस करते हो और अपने दिल में वे तुम जैसे लोगों को नीची निगाह से देखते हैं। वे तुमसे इस बारे में बात नहीं करना चाहते कि वे खुद को कितना सजाते-सँवारते हैं और कितना समय दूसरे लोगों के साथ बर्बाद करते हैं। उन्हें डर लगता है कि तुम उनके साथ सत्य पर संगति करोगे और उन्हें सही रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करोगे और उन्हें इससे पूरी तरह से घृणा महसूस होती है; दूसरे शब्दों में, अपने दिल की गहराई में, वे सभी सकारात्मक चीजों को नीची निगाह से देखते हैं। इसलिए, अगर तुम सुसमाचार का प्रचार करते समय ऐसे लोगों से मिलते हो, तो तुम उन्हें यह सब नहीं समझा सकते। भले ही तुम ऐसा करो और वे विश्वास करने लगें, फिर भी वे मसीह-विरोधी हैं और उन्हें बचाया नहीं जा सकता। तुम लोग यहाँ बैठकर मेरा उपदेश क्यों सुन पाते हो? क्या ऐसा इसलिए नहीं कि तुम्हारे हृदय थोड़ा सत्य-प्रेमी हैं? मेरे तुमसे बात करने के दौरान जब पवित्र आत्मा तुम पर काम करता है, तब तक तुम अपने हृदय में प्रेरित और प्रोत्साहित महसूस करोगे, और तुम न्याय, सत्य और उद्धार की तलाश में खुद को समर्पित करना, कष्ट सहना और खुद को खपाना चाहोगे। जिस क्षण वे दुष्ट लोग किसी को न्याय, सत्य और परमेश्वर के लिए खुद को खपाने की बात करते सुनते हैं, उन्हें लगता है कि ये शब्द खोखले हैं, ये नारे हैं, ये समझ से परे हैं, और वे ऐसे लोगों के साथ भेदभाव करने लगते हैं। इसलिए, इन दुष्ट लोगों से मुलाकात होने पर तुम लोग उनके साथ किसी भी विषय पर संगति मत करो, तुम लोग उनके जैसे नहीं हो, इसलिए बस दूरी बनाए रखो। जब मैं ऐसे लोगों से मिलती हूँ और देखती हूँ कि मेरे प्रति उनका यह रवैया है और वे इस स्वर में बोलते हैं, तो क्या मुझे उनकी काट-छाँट करनी चाहिए और उन्हें उपदेश देना चाहिए? (नहीं, ऐसा करना आवश्यक नहीं है।) यह बिल्कुल आवश्यक नहीं है, उन पर ध्यान देने की कोई आवश्यकता नहीं है, उन पर प्रतिक्रिया करने की कोई आवश्यकता नहीं है। क्या तुम उनका प्रत्युत्तर देकर उन्हें बदल सकते हो? तुम उन्हें नहीं बदल सकते। बस उन्हें एक किनारे कर दो और ऐसे ही छोड़ दो; इस तरह के लोग परमेश्वर पर अपने विश्वास में लंबे समय तक नहीं टिक सकेंगे। पहली बात : वे सत्य से प्रेम नहीं करते; दूसरी : वे सकारात्मक चीजों से घृणा करते हैं; तीसरी : वे परमेश्वर से भेदभाव करते हैं, वे परमेश्वर के स्वभाव और परमेश्वर के बारे में प्रेम करने योग्य हर चीज का सबसे कम सम्मान और उसकी सबसे अधिक अवमानना करते हैं—ये चीजें निर्धारित करती हैं कि वे कभी भी परमेश्वर द्वारा बचाए नहीं जाएँगे। ऐसे लोग चाहे जहाँ हों, चाहे वे निष्कपट हों या कपटी, उनमें ऐसी अभिव्यक्तियों का होना निर्धारित करता है कि उनके स्वभाव में निश्चित रूप से कुछ दुष्टता है।
जहाँ कहीं भी किसी मसीह-विरोधी का बोलबाला होता है, वहाँ कलीसियाई जीवन और परमेश्वर के चुने हुए लोगों द्वारा अपने कर्तव्यों का पालन करने से प्राप्त होने वाले प्रभाव अच्छे नहीं होंगे और परमेश्वर के घर का काम बाधित होगा। इसलिए यदि मसीह-विरोधियों को छाँटकर निष्कासित नहीं किया गया, तो कलीसिया के काम को भारी नुकसान होगा और परमेश्वर के चुने हुए बहुत से लोगों को नुकसान होगा! नकली अगुआ प्राथमिक रूप से वास्तविक कार्य नहीं कर सकते और जब वे कुछ सामान्य मामले देखते हैं, तो उनकी प्रगति धीमी होती है और वे अप्रभावी होते हैं। इसके अतिरिक्त, उन्हें यह भी नहीं पता होता कि सत्य का अनुसरण करने वाले अच्छी काबिलियत वाले अच्छे लोगों को कैसे विकसित किया जाए और उनका उपयोग कैसे किया जाए। और मसीह-विरोधियों का क्या? जब चीजें किसी मसीह-विरोधी के प्रभाव में होती हैं, तो वे केवल अपनी प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के लिए ही काम करते हैं, वे कोई वास्तविक काम नहीं करते, और वे सीधे-सीधे कलीसिया के काम में विघ्न-बाधा पहुँचाते हैं—मसीह-विरोधी विशेष रूप से विनाश में लगे होते हैं और शैतान से जरा भी अलग नहीं होते। यदि मसीह-विरोधी सत्य से प्रेम करने और उसका अनुसरण करने वाले कुछ लोगों को देखते हैं, तो उन्हें बेचैनी महसूस होती है। यह बेचैनी कहाँ से आती है? यह उनके दुष्ट स्वभाव के कारण होती है, अर्थात, उनकी प्रकृति में दुष्ट स्वभाव होता है जो न्याय से, सकारात्मक चीजों से, सत्य से नफरत करता है, और परमेश्वर का विरोध करता है। इसीलिए, जब वे किसी को सत्य का अनुसरण करते देखते हैं, तो कहते हैं कि “तुम बहुत शिक्षित नहीं हो और देखने में भी कुछ खास नहीं हो, लेकिन फिर भी तुम वास्तव में सत्य का अनुसरण करते हो।” यह कैसा दृष्टिकोण प्रदर्शित करता है? यह अवमानना है। उदाहरण के लिए, कुछ भाई-बहनों के पास कुछ खूबियाँ या विशेष कौशल हैं और वे उनसे संबंधित कर्तव्य निभाना चाहते हैं। वास्तव में, यह उनकी विभिन्न स्थितियों के संदर्भ में उपयुक्त है, लेकिन मसीह-विरोधी ऐसे भाई-बहनों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं? अपने हृदय में वे सोचते हैं, “यदि तुम यह कर्तव्य निभाना चाहते हो तो तुम्हें पहले मेरे नजदीक होना होगा और मेरे गिरोह में शामिल होना होगा, और उसके बाद ही मैं तुम्हें वांछित कर्तव्य निभाने की अनुमति दूंगा। नहीं तो, बस सपने देखो!” क्या मसीह-विरोधी इसी तरह से कार्य नहीं करते? मसीह-विरोधी उन लोगों से इतना क्यों चिढ़ते हैं जो ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास करते हैं, जिनमें न्याय और मानवता की थोड़ी समझ है, और जो सत्य का अनुसरण करने का थोड़ा प्रयास करते हैं? वे हमेशा ऐसे लोगों से क्यों नाराज रहते हैं? जब वे लोगों को सत्य का अनुसरण करते और अच्छा व्यवहार करते देखते हैं, ऐसे लोग जो कभी नकारात्मक नहीं होते और जिनके इरादे नेक होते हैं, तो वे असहज महसूस करते हैं। मसीह-विरोधी जब लोगों को निष्पक्ष रूप से कार्य करते देखते हैं, उन लोगों को देखते हैं जो अपना कर्तव्य सिद्धांतों के अनुसार निभा सकते हैं और जो सत्य समझने के बाद उसे व्यवहार में ला सकते हैं, तो वे वास्तव में क्रोधित हो जाते हैं, वे उन लोगों को पीड़ा देने का तरीका सोचने में अपना दिमाग दौड़ाते हैं, और उनके लिए चीजों को मुश्किल बनाने की कोशिश करते हैं। यदि कोई मसीह-विरोधी के प्रकृति सार को स्पष्टता से समझ लेता है, उसकी धूर्तता और दुष्टता को देख लेता है और उन्हें उजागर करना चाहता है और उनकी रिपोर्ट करना चाहता है, तो मसीह-विरोधी क्या करते हैं? मसीह-विरोधी अपनी आँख की किरकिरी और देह में चुभने वाले इस काँटे को निकालने के लिए जो कुछ भी किया जा सकता है उस हर तरीके के बारे में सोचता है और भाई-बहनों को उकसाता है कि वे इस व्यक्ति को अस्वीकार करें। साधारण भाई-बहनों की कलीसिया में कोई प्रतिष्ठा और रुतबा नहीं होता; उन्हें इस मसीह-विरोधी के बारे में थोड़ी-बहुत ही समझ होती है और वे इस मसीह-विरोधी के लिए कोई खतरा नहीं होते। फिर मसीह-विरोधी हमेशा उन्हें नापसंद क्यों करता है और ऐसे व्यक्तियों के साथ ऐसा व्यवहार करता है मानो वे उसकी आँख की किरकिरी और उसके शरीर में चुभा हुआ काँटा हों? ऐसे व्यक्ति मसीह-विरोधी की राह में बाधक कैसे हैं? मसीह-विरोधी ऐसे लोगों से तालमेल क्यों नहीं बना पाता? ऐसा इसलिए है क्योंकि मसीह-विरोधी में दुष्ट स्वभाव होता है। वह सत्य का अनुसरण करने वाले या सही मार्ग पर चलने वाले लोगों को बर्दाश्त नहीं कर सकता। वे जानबूझकर उन लोगों के खिलाफ खड़े होते हैं जो सही मार्ग पर चलना चाहते हैं और उनके लिए चीजों को मुश्किल बनाते हैं, और उनसे छुटकारा पाने का कोई रास्ता निकालने की कोशिश में दिमाग खपाते हैं, या फिर वे उन लोगों पर अत्याचार करते हैं ताकि वे नकारात्मक और कमजोर हो जाएँ, या वे उनके खिलाफ कुछ तलाश लेंगे और उसे चारों ओर फैलाएँगे ताकि दूसरे लोग उन्हें अस्वीकार कर दें, और तब वे खुश होंगे। यदि तुम उनकी बात नहीं सुनते या उनकी कही बातों का पालन नहीं करते, और सत्य का अनुसरण करना, सही मार्ग का अनुसरण करना और अच्छा व्यक्ति बनना जारी रखते हो, तो वे अपने हृदय में असहज महसूस करते हैं, और तुम्हें अपना कर्तव्य निभाते हुए देखकर वे परेशानी और बेचैनी महसूस करते हैं। यह किसलिए है? क्या तुमने उन्हें नाखुश किया है? नहीं, तुमने ऐसा नहीं किया है। जब तुमने उनके साथ कुछ नहीं किया या किसी भी तरह से उनके हितों को नुकसान नहीं पहुँचाया, तो वे तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार क्यों करते हैं? यह सब केवल इतना दिखाता है कि इस तरह की चीज—मसीह-विरोधी—की प्रकृति दुष्टतापूर्ण होती है, और वे स्वाभाविक रूप से न्याय, सकारात्मक चीजों और सत्य के विरोधी हैं। यदि तुम उनसे पूछो कि वास्तव में क्या हो रहा है, तो उन्हें भी नहीं पता होता; वे बस इरादतन तुम्हारे लिए चीजों को मुश्किल बनाते हैं। यदि तुम किसी चीज को किसी एक तरीके से करने को कहो, तो उन्हें इसे किसी दूसरे तरीके से करना होता है; अगर तुम कहो कि फलाँ आदमी बहुत ढंग का नहीं है, तो वे बताएंगे कि वह व्यक्ति तो बहुत बढ़िया है; जो तुम कहो कि सुसमाचार फैलाने का यह बढ़िया तरीका है, तो वे कहेंगे कि वह खराब तरीका है; यदि तुम कहो कि कोई बहन जिसने केवल एक या दो साल से परमेश्वर में विश्वास किया है, वह नकारात्मक और कमजोर हो गई है और उसे सहारा दिया जाना चाहिए, तो वे कहते हैं, “कोई जरूरत नहीं है, वह तुमसे ज्यादा मजबूत है।” संक्षेप में, वे तुमसे हमेशा असहमत रहते हैं और जानबूझकर तुम्हारे उलट ही कार्य करते हैं। तुमसे असहमत रहने का उनका सिद्धांत क्या है? वह यह है कि तुम जिस किसी चीज को सही कहो, वे उसे गलत कहेंगे, और तुम जिसे भी गलत कहोगे, वे उसे सही कहेंगे। क्या उनके कामों में कोई सत्य सिद्धांत हैं? बिल्कुल नहीं। वे बस चाहते हैं कि तुम मूर्खता कर बैठो, चित हो जाओ, टूट जाओ, हार जाओ ताकि तुम अपना सिर ऊँचा न उठा सको, आगे से सत्य का अनुसरण न करो, कमजोर हो जाओ, और अब और विश्वास न करो, तभी उनका लक्ष्य हासिल होता है और वे अपने दिल में खुशी महसूस करते हैं। यहाँ क्या मामला है? यह उस तरह के लोगों का दुष्ट सार है जो मसीह-विरोधी हैं। अगर वे भाई-बहनों को परमेश्वर की स्तुति करते और परमेश्वर की गवाही देते और अपने ऊपर कोई ध्यान नहीं देते देखते हैं, तो क्या वे प्रसन्न होते हैं? नहीं, वे प्रसन्न नहीं होते। उन्हें कैसा लगता है? उन्हें ईर्ष्या होती है। साधारणतया, जब लोग किसी को किसी अन्य की प्रशंसा करते हुए सुनते हैं, तो उनकी सामान्य प्रतिक्रिया होती है, “मैं भी तो बहुत बढ़िया हूँ; मेरी भी प्रशंसा क्यों नहीं करते?” उनका यह छोटा सा विचार होता है, लेकिन जब वे किसी को परमेश्वर के लिए गवाही देते हुए सुनते हैं, तो वे सोचते हैं, “उनके पास ऐसा अनुभव है और वे ऐसी गवाही देते हैं, और हर कोई उन्हें स्वीकार करता है। उनके पास यह समझ है; मेरे पास ऐसी समझ क्यों नहीं है?” वे उस व्यक्ति से जलते हैं और उसकी प्रशंसा करते हैं। मसीह-विरोधियों की एक खासियत होती है : जब वे किसी को परमेश्वर के लिए गवाही देने में यह कहते हुए सुनते हैं कि, “यह परमेश्वर ने किया है, यह परमेश्वर का अनुशासन है, ये परमेश्वर के कर्म हैं, परमेश्वर की व्यवस्थाएँ हैं, और मैं समर्पण करने को तैयार हूँ,” तो वे दुःखी होते हैं और सोचते हैं, “तुम कहते हो कि सब कुछ परमेश्वर ने किया है। क्या तुमने देखा है कि परमेश्वर किसी भी चीज पर कैसे शासन करता है? क्या तुम लोगों ने महसूस किया है कि परमेश्वर किसी भी चीज की व्यवस्था कैसे करता है? मुझे इस बारे में कुछ भी क्यों नहीं पता है?” इसका एक पक्ष यह है कि वे ठीक उसी तरह के हैं जैसे शैतान अय्यूब के प्रति परमेश्वर की स्वीकृति से पेश आया था। जब परमेश्वर किसी व्यक्ति को हासिल करता है, तो मसीह-विरोधियों की मानसिकता शैतान जैसी ही होती है—उनका स्वभाव शैतान का स्वभाव होता है। दूसरा पक्ष यह है कि यदि कोई व्यक्ति सत्य समझता है और मसीह-विरोधियों को पहचानता है, और मसीह-विरोधियों का अनुसरण नहीं करता, बल्कि उन्हें खारिज करता है, तो मसीह-विरोधियों की मानसिकता उन्मादपूर्ण हो जाती है, और वे सोचते हैं, “मैं इस व्यक्ति को जरा भी हासिल नहीं कर सकता, इसलिए मैं उसे नष्ट कर दूँगा!” इसलिए, जब अय्यूब ने परीक्षणों का सामना किया, तो परमेश्वर ने शैतान से कहा, “सुन, वह तेरे हाथ में है, केवल उसका प्राण छोड़ देना।” यदि परमेश्वर ने यह नहीं कहा होता, तो क्या शैतान दया दिखाता? (नहीं।) निश्चित ही वह बिल्कुल दया नहीं दिखाता।
मसीह-विरोधी उन भाई-बहनों के प्रति क्या रवैया रखते हैं जो सत्य का अनुसरण करते हैं और उससे प्रेम करते हैं, जो कुछ आस्था रखते हैं और जो कुछ निष्ठा के साथ अपना कर्तव्य निभाते हैं? और वे कुछ ऐसे लोगों के प्रति क्या रवैया रखते हैं जो परमेश्वर की गवाही देने के लिए जीवन अनुभवों के बारे में बात करते हैं और जो अक्सर भाई-बहनों के साथ सत्य पर संगति करते हैं? (वे ईर्ष्या और नफरत महसूस करते हैं।) उनका रवैया किस पर निर्भर करता है? यह उनके दुष्ट स्वभाव पर निर्भर करता है। इसलिए, जब तुम लोग अक्सर उन्हें किसी पर बेवजह अत्याचार करते, किसी से नफरत करते और कुछ लोगों को पीड़ित करते देखते हो, तुम तब जान जाते हो कि मसीह-विरोधियों के दुष्ट स्वभाव को कोई भी नहीं बदल सकता, और वह स्वभाव गहरे में जड़ जमाए है और जन्मजात है। इस बिंदु से देखा जा सकता है कि जो लोग मसीह-विरोधी हैं, वे संभवतः उद्धार नहीं हासिल कर सकेंगे। वे भाई-बहनों को परमेश्वर के लिए गवाही नहीं देने देते हैं, तो क्या वे खुद परमेश्वर के लिए गवाही दे सकते हैं? (नहीं।) जब अन्य लोग परमेश्वर के लिए गवाही देते हैं तो वे इससे इतनी नफरत करते हैं कि वे अपने दाँत पीसने लगते हैं, तो मुझे बताओ, क्या वे परमेश्वर के लिए गवाही दे सकते हैं? वे परमेश्वर के लिए गवाही देने में बिल्कुल अक्षम हैं। कुछ लोग कहते हैं, “यह सही नहीं है, कुछ मसीह-विरोधी परमेश्वर के लिए इतनी अच्छी गवाही देते हैं कि उसे सुनकर भाई-बहन रो पड़ते हैं।” यह किस तरह की गवाही है? तुम लोगों को इस तरह की “गवाही” सुननी होगी ताकि तय किया जा सके कि वह सच्ची गवाही है या नहीं। मान लो कि कोई ऐसा व्यक्ति है जिसके पास अच्छी नौकरी और अच्छा परिवार है और परमेश्वर से प्रेरित होकर वह अपनी नौकरी और परिवार को त्याग देता है और अपना तन-मन परमेश्वर के लिए खपाने में लगा देता है; भले ही वह अपने दिल में दुखी महसूस करता हो, फिर भी वह सब कुछ त्याग देता है। भाई-बहन उनसे कहते हैं, “क्या तुम थोड़ा-भी कमजोर नहीं महसूस कर रहे हो?” वह जवाब देता है, “हाँ, थोड़ी-सी कमजोरी महसूस कर रहा हूँ, लेकिन मेरा अपना परिवार और नौकरी को छोड़ने में समर्थ हो पाना, क्या यह सब परमेश्वर का काम नहीं है? मैं प्रतिदिन दो या तीन हजार और महीने में दसियों हजार कमाता था, और मेरे पास बहुत सारी संपत्तियाँ थीं। परमेश्वर में विश्वास करना शुरू करने के बाद अपना कर्तव्य निभाने के लिए मैंने अपनी संपत्तियाँ देखभाल के लिए किसी और को सौंप दीं।” दूसरे पूछते हैं, “क्या तुमने अपनी संपत्ति किसी और को सौंपने के बाद उसकी देखभाल नहीं की है? क्या अब तुम उसके किसी हिस्से के मालिक नहीं हो? तुमने अपनी संपत्तियाँ कैसे छोड़ीं?” वे जवाब देते हैं, “यह परमेश्वर ने किया था।” क्या यह बहुत अस्पष्ट नहीं है? (हाँ।) वे सिर्फ खोखले शब्द हैं। इसके अलावा, क्या उनका यह बताना कि उनकी कमाई कितनी ज्यादा थी, केवल शेखी बघारना नहीं है? वे ऐसा क्यों कहते हैं? वे इस बात की गवाही दे रहे हैं कि उन्होंने कितना त्याग किया है। क्या वे परमेश्वर के लिए गवाही दे रहे हैं? वे अपने थोड़े-से “शानदार” इतिहास की गवाही दे रहे हैं, उस कीमत की गवाही दे रहे हैं जो उन्होंने चुकाई है और अतीत में उन्होंने क्या खर्च किया है, उन्होंने कितना समर्पण किया है, और कि उन्हें परमेश्वर से कोई शिकायत नहीं है। क्या इसका कोई भी हिस्सा परमेश्वर की गवाही देता है? तुम नहीं देख सके कि इन सभी चीजों में परमेश्वर ने क्या किया है, क्या तुमने देखा है? यह सच नहीं है कि वे परमेश्वर के लिए गवाही देते हैं; स्पष्ट रूप से वे अपने लिए गवाही दे रहे हैं, फिर भी वे कहते हैं कि वे परमेश्वर के लिए गवाही दे रहे हैं! क्या यह धोखा देना नहीं है? वे खुद अपनी गवाही देने के लिए परमेश्वर के लिए गवाही देने का बहाना करते हैं—क्या यह पाखंड नहीं है? तो फिर क्यों कुछ लोग इसे सुनकर बहुत भावुक हो जाते हैं और लगातार रोते हैं? हर तरफ हर तरह के मूर्ख हैं! जब कोई परमेश्वर के लिए गवाही देने का उल्लेख करता है, तो मसीह-विरोधियों को अपनी कुछ छोटी-मोटी चीजों के बारे में बात करनी पड़ती है, जो उन्होंने की होती हैं, जो उन्होंने समर्पित की हैं, और जो थोड़ा बहुत समय उन्होंने खुद को खपाने में लगाया है, और जैसे-जैसे समय बीतता है, लोग ध्यान देना बंद कर देते हैं, इसलिए वे कहने के लिए नई-नई बातें लेकर आते हैं, और इस तरह वे अपने लिए गवाही देते हैं। अगर कोई उनसे बेहतर है और उनसे बेहतर संगति कर सकता है, सत्य का कुछ प्रकाश ला सकता है, तो वे असहज महसूस करते हैं। क्या वे इसलिए असहज महसूस करते हैं कि सत्य से संबंधित उनके प्रयास दूसरों से हीन हैं और वे श्रेष्ठ बनने के लिए उत्सुक हैं? नहीं, वे किसी को भी अपने से बेहतर नहीं होने देंगे, वे दूसरों का उनसे बेहतर होना बर्दाश्त नहीं कर सकते, और वे केवल तभी खुश होते हैं जब वे दूसरों से बेहतर हों। क्या यह दुष्टता नहीं है? अगर कोई और तुमसे बेहतर है और सत्य को तुमसे ज्यादा समझता है, तो तुम्हें उससे सीखना चाहिए—क्या यह अच्छी बात नहीं है? यह ऐसी चीज है जिस पर सभी को खुश होना चाहिए। उदाहरण के लिए, अय्यूब था, जो मानव इतिहास में परमेश्वर के अनुयायियों में से एक था। यह परमेश्वर के छह हजार साल के प्रबंधन कार्य में घटित एक शानदार बात थी, या यह एक शर्मनाक बात थी? (यह एक शानदार बात थी।) यह शानदार बात थी। इस मामले में तुम्हें क्या रवैया अपनाना चाहिए? तुम्हारा क्या दृष्टिकोण होना चाहिए? तुम्हें परमेश्वर के लिए खुश होना चाहिए और उसका जश्न मनाना चाहिए, परमेश्वर की शक्ति की स्तुति करनी चाहिए, प्रशंसा करनी चाहिए कि परमेश्वर ने महिमा प्राप्त की है—यह एक अच्छी बात थी। यह इतनी अच्छी बात थी, और फिर भी कुछ लोग इससे घृणा भी करते हैं और बहुत नापसंद करते हैं। क्या यह उनका दुष्ट होना नहीं है? साफ कहें तो, यह उनका दुष्ट होना है, और ऐसा उनके दुष्ट स्वभाव के कारण होता है।
मसीह विरोधियों का स्वभाव दुष्टतापूर्ण होता है; वे न केवल सत्य को स्वीकार नहीं करते, बल्कि वे परमेश्वर का प्रतिरोध भी कर सकते हैं, अपना स्वयं का राज्य स्थापित कर सकते हैं, और वे बिना डिगे परमेश्वर का विरोध करते हैं—यह दुष्ट स्वभाव है। क्या तुम लोगों को दुष्ट स्वभावों की कोई समझ है? अधिकांश लोग शायद इन स्वभावों को पहचानना नहीं जानते, तो चलो एक उदाहरण लेते हैं। कुछ लोग आम तौर पर सामान्य परिस्थितियों में बहुत सामान्य व्यवहार करते हैं : वे दूसरों से बहुत सामान्य तरीके से बात करते हैं और सामान्य तरीके से ही दूसरों से मेलजोल करते हैं, सामान्य लोगों की तरह दिखते हैं और कुछ भी बुरा नहीं करते। परंतु, जब वे सभाओं में आते हैं और परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं और सत्य पर संगति करते हैं, तो उनमें से कुछ लोग उसे नहीं सुनना चाहते, कुछ को नींद आ जाती है, कुछ इससे विमुख होते हैं और वे उन्हें यह सब असहनीय लगता है, वे इसे नहीं सुनना चाहते, और कुछ अनजाने ही सो जाते हैं और उन्हें कुछ पता नहीं होता—यह क्या हो रहा है? जब कोई सत्य पर संगति करना शुरू करता है तो इतनी सारी असामान्य घटनाएँ क्यों अभिव्यक्त होती हैं? इनमें से कुछ लोग असामान्य स्थिति में होते हैं, लेकिन कुछ दुष्टता के कारण ऐसा करते हैं। उनके दुष्टात्माओं के वश में होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता, और कई बार लोग इसे पूरी तरह से समझ नहीं पाते या स्पष्ट रूप से भेद नहीं कर पाते। मसीह विरोधियों के भीतर दुष्टात्माएँ होती हैं। यदि तुम उनसे पूछो कि वे सत्य से शत्रुता क्यों रखते हैं, तो वे कहते हैं कि उनकी सत्य से शत्रुता नहीं है और इस बात को स्वीकार करने से हठपूर्वक इनकार करते हैं, जबकि वास्तविक तथ्य यह है कि अपने हृदय में वे जानते हैं कि वे सत्य से प्रेम नहीं करते। जब कोई भी परमेश्वर के वचनों को नहीं पढ़ रहा होता, तो वे दूसरों के साथ ऐसे मिलते-जुलते हैं जैसे वे सामान्य लोग हों और तुम्हें नहीं पता होता कि उनके मन में क्या है। परंतु, जब कोई परमेश्वर के वचनों को पढ़ता है, तो वे सुनना नहीं चाहते और उनके हृदय में घृणा पैदा होती है। यह उनकी प्रकृति का अनावृत होना है—वे दुष्टात्माएँ हैं; वे इस तरह की चीज हैं। क्या परमेश्वर के वचनों ने इन लोगों के सार को उजागर किया है या उनकी दुखती रग को छेड़ा है? ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है। जब वे सभाओं में जाते हैं, तो वे परमेश्वर के वचन पढ़ रहे किसी व्यक्ति को नहीं सुनना चाहते—क्या यह उनका दुष्ट होना नहीं है? “दुष्ट होना” का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है सत्य के प्रति, सकारात्मक चीजों के प्रति, और सकारात्मक लोगों के प्रति अकारण शत्रुता रखना; उन्हें स्वयं भी नहीं पता होता कि इसका कारण क्या है, उन्हें तो बस वैसे ही काम करना है। दुष्ट होने का यही अर्थ है और सादा शब्दों में, यह केवल नीच होना है। कुछ मसीह-विरोधी कहते हैं, “कोई केवल परमेश्वर के वचनों को पढ़ना शुरू कर दे, और मेरा सुनने का मन ही नहीं होता। मुझे केवल किसी को परमेश्वर के लिए गवाही देते हुए सुनने की जरूरत है और मुझे घृणा हो जाती है, लेकिन मुझे भी नहीं पता कि ऐसा क्यों है। जब मैं किसी को सत्य से प्रेम करते और उसका अनुसरण करते हुए देखता हूँ, तो मैं उससे तालमेल नहीं बना पाता, मैं उसके खिलाफ खड़ा होना चाहता हूँ, हमेशा उन्हें शाप देना चाहता हूँ, उनके पीठ पीछे उन्हें नुकसान पहुंचाना चाहता हूँ और उन्हें मौत के घाट उतारना चाहता हूँ।” वे यह भी नहीं जानते कि वे ऐसा क्यों महसूस करते हैं—यह उनका दुष्ट होना है। इसका वास्तविक कारण क्या है? मसीह-विरोधियों के अंदर सामान्य व्यक्ति की भावना नहीं होती, उनमें सामान्य मानवता नहीं होती—अंतिम विश्लेषण में ऐसा ही होता है। यदि कोई सामान्य व्यक्ति परमेश्वर को सत्य के विभिन्न पहलुओं पर इतना साफ-साफ और सुबोधगम्य तरीके से बोलते हुए सुनता है, तो वह सोचता है, “ऐसे दुष्ट और अनैतिक युग में, जहाँ सही और गलत में अंतर नहीं किया जा सकता और अच्छे-बुरे को लेकर भ्रम हैं, इतना सारा सत्य और इतने उत्कृष्ट वचनों को सुन पाना कितना मूल्यवान और दुर्लभ है!” यह मूल्यवान क्यों है? परमेश्वर के वचन उन लोगों की इच्छाओं और प्रेरणा को जगाते हैं जिनके पास हृदय और आत्मा दोनों हैं। कौन सी प्रेरणा? वे न्याय और सकारात्मक चीजों के लिए लालायित रहते हैं, वे परमेश्वर के सामने जीने की तीव्र लालसा करते हैं, दुनिया में निष्पक्षता और धार्मिकता चाहते हैं, और चाहते हैं कि परमेश्वर आकर दुनिया पर सत्ता स्थापित करे—यह उन सभी लोगों की पुकार है जो सत्य से प्रेम करते हैं। परंतु, क्या मसीह-विरोधी इन चीजों के लिए लालायित होते हैं? (नहीं।) मसीह-विरोधी किस चीज की लालसा करते हैं? मसीह-विरोधियों के हृदय की गहराइयों में होता है कि “अगर मैं सत्ता में होता, तो मैं उन सभी को नष्ट कर देता जिन्हें मैं नापसंद करता हूँ! जब कोई मसीह के बारे में यह गवाही देता है कि वह प्रकट होकर कार्य करने वाला परमेश्वर है, परमेश्वर के मानवजाति के संप्रभु होने की गवाही देता है, और परमेश्वर के वचनों के सत्य होने, मानवजाति के सर्वोच्च जीवन सिद्धांत होने और मानव अस्तित्व के लिए आधार होने की गवाही देता है, तो मुझे घृणा होती है, नफरत महसूस होती है, और मैं इसे सुनना नहीं चाहता!” यह कुछ ऐसा है जो मसीह-विरोधियों के भीतर गहराई तक समाया होता है। क्या मसीह-विरोधियों का यह स्वभाव नहीं होता? जब तक कोई उनकी आराधना करता है, उनका सम्मान करता है, और उनका अनुसरण करता है, तब तक वे दोस्त होते हैं, वे एक ही दल में होते हैं; यदि कोई हमेशा सत्य पर संगति करता है और परमेश्वर के लिए गवाही देता है, तो मसीह-विरोधी उनसे दूर हो जाते हैं और उनके प्रति घृणा महसूस करते हैं, और यहाँ तक कि उन पर हमला करते हैं, उन्हें बहिष्कृत करते हैं, और उन्हें पीड़ा देते हैं—यह दुष्टता है। जब हम दुष्टता के बारे में बात करते हैं, तो उसका संदर्भ हमेशा शैतान की चालाक योजनाओं से होता है; शैतान जो काम करता है वह दुष्टता है, बड़ा लाल अजगर जो काम करता है वह दुष्टता है, मसीह-विरोधी जो काम करते हैं वह दुष्टता है, और जब हम उनके दुष्ट होने के बारे में बात करते हैं, तो यह मुख्य रूप से सभी सकारात्मक चीजों के प्रति शत्रुता रखने और विशेष रूप से सत्य और परमेश्वर का विरोध करने को संदर्भित करता है—यह दुष्टता है, और यह मसीह-विरोधियों का स्वभाव है।
सोचो कि तुमने किन मसीह-विरोधियों का सामना किया है और उनके बारे में जाना है जो इस तरह के दुष्ट स्वभाव का प्रदर्शन करते हैं। एक बार मेरा सामना एक ऐसी कर्कशा महिला से हुआ जिसकी मानवता अत्यधिक दुर्भावनापूर्ण थी। परमेश्वर का घर जब भी बड़ी आपदाओं के बारे में उपदेश देता कि वे शीघ्र ही आने वाली हैं, ज्यादा समय नहीं है, और इस पर कि भाई-बहनों को अच्छे कर्मों की तैयारी कैसे करनी चाहिए, उन्हें सत्य का अनुसरण करने के लिए कैसे प्रयास करना चाहिए, उन्हें परमेश्वर के इरादों को पूरा करने के लिए अपने कर्तव्यों को कैसे अच्छी तरह से निभाना चाहिए, और कैसे उन्हें अपने लिए किसी भी पछतावे की वजह नहीं छोड़नी चाहिए, परमेश्वर का घर जब भी इन चीजों का उपदेश करता, यह महिला अपने हृदय में कोसती और सोचती थी, “दुनिया का अंत? जीवन तो बहुत बढ़िया है। तुम्हारे लिए दुनिया का अंत हो सकता है, लेकिन यह मेरे लिए दुनिया का अंत नहीं है! बड़ी आपदाएँ आ भी जाएँ तो भी मुझे और जीना है। अगर किसी को मरना ही है, तो तुम लोग मरो!” यह महिला अतार्किक है या नहीं? जब भी कोई सत्य के इस पहलू पर संगति करता, तो वह अतार्किक हो जाती और उसके हृदय में घृणा पैदा हो जाती, और वह सोचती, “मेरा जीवन जैसा है, ठीक है! मेरे पास बहुत पैसा है, मेरे पास कारें हैं, घर हैं, मेरी बड़ी आय है, मैं अपने स्थानीय क्षेत्र में बड़ी शख्सियत हूँ, और कोई भी मुझे अपमानित करने की हिम्मत नहीं कर सकता। मेरी जीवन दशाएँ इतनी अच्छी हैं, अगर बड़ी आपदाएँ आती हैं, तो क्या मुझे नुकसान नहीं होगा? मैं अभी मरने के लिए तैयार नहीं हूँ!” परमेश्वर के कार्य और इस दुष्ट दुनिया और दुष्ट मानवजाति को नष्ट करने की परमेश्वर की इच्छा के बारे में उसका दृष्टिकोण क्या था? (वह उनके प्रति शत्रुता रखती थी।) परमेश्वर चाहे जो करे, अगर उसमें उसके हित शामिल होते, अगर उससे उसके हितों को नुकसान पहुँचता, तो वह उससे नफरत करती और उसके प्रति शत्रुता रखती, और यह सोचकर उससे सहमत नहीं होती कि, “तुम जो कर रहे हो, वह गलत है!” और वह तुरंत परमेश्वर के कर्मों को नकार देती। इसके अलावा, उसकी सबसे ज्यादा दुष्टतापूर्ण बात यह थी कि उसे निष्पक्षता और धार्मिकता का प्रभावी होना पसंद नहीं था; चाहे जिसके पास सत्ता हो, सत्ता चाहे परमेश्वर के पास ही क्यों न हो और निष्पक्षता और धार्मिकता हो, इससे यदि उसके हितों को नुकसान पहुँचता तो वह उससे असहमत रहती—उसके लिए उसके हित परमेश्वर से अधिक महत्वपूर्ण थे। क्या उसके कार्य दानवी प्रकृति के नहीं थे? और जब दानवी प्रकृति काम करती है, तो क्या यह वैसा ही नहीं होता जैसे कि जब कोई दुष्ट आत्मा किसी पर कब्जा कर लेती है तो वह कहता है कि वह परमेश्वर के वचन नहीं सुनना चाहता? (हाँ।) जब भी कोई परमेश्वर के वचन पढ़ता है, तो वह दुष्ट आत्मा कहती है कि वह इसे सुनना नहीं चाहती। जब भी कोई भाई या बहन जल्द ही परमेश्वर के दिन के आने या बड़ी आपदाओं के जल्दी आने के बारे में संगति करता है, तो यह दुष्ट स्त्री उससे नफरत करती है और अपने हृदय में उसे कोसती है। वह क्यों कोसती है? यदि परमेश्वर दुनिया को नष्ट करता है, तो वह अपनी सारी संपत्ति खो देगी—कोई भी चीज जब उसके हितों पर असर डालती है, तो वह उसे कोसती है। इसलिए, उसका कोसना उसी प्रकृति का है जैसा कि कोई दुष्ट आत्मा कहे कि वह परमेश्वर के वचनों को नहीं सुनना चाहती। दोनों का साझा गुण यह है कि जब भी कोई सत्य का उल्लेख करता है, अपनी आत्मा की गहराइयों को उघाड़ता है, अपनी कुरूपता, अपनी दुष्टता और अपनी धूर्तता को अनावृत करता है, तो उनके हृदय में नफरत, संघर्ष और प्रतिरोध उत्पन्न होते हैं, और फिर वे कोसते हैं और अपशब्द बोलते हैं—दुष्ट आत्मा ऐसी ही होती है। बाहर से देखने पर, यह कर्कशा महिला किसी सामान्य व्यक्ति की तरह ही बोलती और काम करती थी, ऐसा नहीं लगता था कि वह किसी दानव के कब्जे में है, फिर भी उसके कार्यों की प्रकृति दानवी ही थी। तुम लोगों को जब मौका मिले, तो तुम कलीसिया के अमीर लोगों से पूछ सकते हो “जब परमेश्वर का दिन आएगा और बड़ी आपदाएँ आएँगी, और तुम्हारी पारिवारिक संपत्ति पूरी तरह से नष्ट हो जाएगी, तो क्या तुम परेशान होगे? क्या तुम परमेश्वर का दिन आने का इंतजार कर रहे हो? क्या तुम परमेश्वर के सत्ता संभालने और निष्पक्षता और धार्मिकता के प्रभुत्व की प्रतीक्षा कर रहे हो? क्या तुम परमेश्वर द्वारा इस दुष्ट मानवजाति का विनाश करने की प्रतीक्षा कर रहे हो, भले ही तुम भी नष्ट हो जाओ? क्या तुम ऐसा होने देने के लिए तैयार हो?” देखो कि उनका दृष्टिकोण क्या है। कुछ लोग ऐसा घटित होने के लिए तैयार होंगे, और कुछ नहीं। पूरी दुनिया, पूरा ब्रह्मांड, परमेश्वर द्वारा शासित सभी भौतिक चीजें—हम यहाँ अमूर्त चीजों की बात नहीं कर रहे हैं, केवल भौतिक दायरे में आने वाली चीजें : पारिवारिक संपत्ति, कारें, घर, पैसा, इत्यादि—इन सभी चीजों को साथ में लें, तो भी क्या वे परमेश्वर के हाथ में रेत के एक कण के भी बराबर हैं? (नहीं।) हालांकि, जब लोगों को ये चीजें मिल जाती हैं, तो वे उन्हें छोड़ना नहीं चाहते और ऐसा महसूस करते हैं कि उनके पास परमेश्वर से विवाद करने की पूंजी है, और कहते हैं, “यदि तुम मेरी पारिवारिक संपत्ति छीन लेते हो तो मैं तुमसे नफरत करूंगा, मैं तुम्हारा विरोध करूंगा, और मैं इस बात को स्वीकार नहीं करूंगा कि तुम परमेश्वर हो!” क्या परमेश्वर का परमेश्वर होना या न होना तुम्हारी स्वीकृति पर निर्भर करता है? (नहीं।) क्या तुम्हारे पास उस थोड़ी-सी पारिवारिक संपत्ति का होना परमेश्वर से विवाद करने की पूंजी है? तुम बहुत अज्ञानी हो! हीरे पृथ्वी की सबसे मूल्यवान चीज हैं। साधारण लोग जब एक कैरेट का हीरा देखते हैं, तो वे चकित हो जाते हैं और कहते हैं, “इतना बड़ा हीरा! इसकी कीमत 10 या 20 हजार अमेरिकी डॉलर होगी!” उन्हें लगता है कि हीरे बहुत कीमती हैं। फिर मैंने एक समाचार सुना जिसमें बताया गया था कि पृथ्वी से थोड़ी ही दूरी पर स्थित एक ग्रह पूरी तरह से हीरे से बना है, और मुझे अचानक कुछ एहसास हुआ : लोग बहुत अदूरदर्शी हैं। जब तुम किसी हीरे को चमकते देखते हो, तो तुम्हें वह बहुत पसंद आता है और तुम्हें लगता है कि यह बहुत अच्छी बात है, लेकिन जब तुम सुनते हो कि एक पूरा ग्रह हीरे से बना है, तो तुम्हारा क्या नजरिया होता है? हीरे के बारे में तुम्हारा नजरिया बदल जाता है। यानी, तुम्हें जब कोई दूसरी जानकारी मिलती है, तो तुम्हारा क्षितिज अचानक बड़ा हो जाता है, तुम्हें केवल अपने सामने की छोटी-सी जगह ही नहीं दिखती, तुम कुएँ के मेंढक नहीं रह जाते, क्योंकि तुम्हारी जानकारी बढ़ गई है, और तुम्हारी धारणा बदल गई है, विकसित हो गई है। इस दुनिया में जीते हुए, लोग अपने साथ घटित होने वाली हर चीज का और अलग-अलग वातावरण का लगातार सामना करते हैं, लोगों के क्षितिज लगातार बदल रहे हैं, और साथ ही साथ उनके दृष्टिकोण लगातार नवीनीकृत हो रहे हैं। यह सामान्य है, और यही वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से परमेश्वर लोगों को इस जीवन में क्रमिक प्रगति करने, तथा संपूर्ण विश्व एवं परमेश्वर के कर्मों के बारे में अंतर्दृष्टि, परिप्रेक्ष्य और समझ में निरंतर प्रगति करने का कारण बनाता है। तो, अब जब तुम लोगों ने मुझसे यह मामले का वर्णन सुन लिया है, तो तुम्हें इसे कैसे लेना चाहिए? क्या तुम्हें सोचना चाहिए “ओह, पृथ्वी पर लोग इतने अज्ञानी हैं, उनमें अंतर्दृष्टि की कमी है, और वे इतना कम जानते हैं!”? कहने का तात्पर्य यह है कि पूरे ब्रह्मांड के बारे में, पूरी मानव जाति के बारे में, परमेश्वर द्वारा नियंत्रित सभी चीजों के बारे में, परमेश्वर के नियंत्रण की सभी चीजों के बारे में तुम्हारे विचार और अंतर्दृष्टि शायद उस छोटे से हीरे के बारे में तुम्हारी समझ जैसी हो सकती है जिसके मूल्य की तुलना हीरे से बने पूरे ग्रह से की जा रही हो, सही है ना? (हाँ, सही है।) हम इससे क्या निष्कर्ष निकाल सकते हैं? पृथ्वी पर, किसी ने चाहे जो उपलब्धि हासिल की हो, उसे कितनी भी प्रसिद्धि मिली हो, उसने कितना भी शानदार प्रदर्शन किया हो, उसे डींगें नहीं हाँकनी चाहिए, क्योंकि मनुष्य बहुत ही तुच्छ हैं और उनका मोल एक पैसे भर भी नहीं है! परमेश्वर ने धरती पर कुछ हीरे तैयार किए हैं और लोग उनके लिए लड़े हैं। क्या लोगों को नहीं पता कि परमेश्वर के हाथ में कितने ग्रह हैं जिनमें हीरे से भी बेहतर चीजें हैं? क्या लोग दयनीय नहीं हैं? (हाँ, हैं।) लोग इतने ही दयनीय हैं; वे बहुत अज्ञानी हैं।
मसीह-विरोधी लोग परमेश्वर का प्रतिरोध करने के अलावा कुछ नहीं कर सकते; वे स्वाभाविक रूप से सत्य और सकारात्मक चीजों से नफरत करते हैं, और वे उन लोगों को भी नहीं छोड़ सकते जो सत्य का अनुसरण करते हैं और सकारात्मक चीजों से प्यार करते हैं, बल्कि ऐसे लोगों की वे निंदा करते हैं, उन पर अत्याचार करते हैं और उन्हें बहिष्कृत करते हैं। जहाँ तक उनके साथ मिलीभगत करने वालों की बात है, तो वे स्वाभाविक रूप से एक-दूसरे से बँधे हुए हैं, एक-दूसरे की रक्षा करते हैं, एक-दूसरे को आश्रय देते हैं, और एक-दूसरे के तलवे चाटते हैं। इससे हम देख सकते हैं कि मसीह-विरोधी लोग पुनर्जीवित दुष्ट आत्माएँ और गंदे दानव हैं, और उनमें सामान्य मानवता नहीं है। वे जो सत्य सुनते हैं उसे चाहे जितना समझते हों, या वे वचनों और धर्म-सिद्धांतों का कितना भी स्पष्टता से उपदेश देते हों, जब अभ्यास करने की बारी आती है, तो वे केवल सत्य के विरुद्ध जाना और परमेश्वर का प्रतिरोध करना, और अपने पद और हितों की रक्षा करना ही चुनते हैं—यह उनकी दुष्टता है। वे किस तरह से सबसे अधिक दुष्ट हैं? इस तरह से कि वे सत्य से नफरत करते हैं; वे बिना किसी स्पष्टीकरण या कारण के सत्य से नफरत करते हैं। यदि तुम उनसे पूछो कि वे सत्य से नफरत क्यों करते हैं, तो वे शायद इसका उत्तर न दे पाएँ, लेकिन उनका हर कार्य मसीह-विरोधियों के स्वभाव और तरीकों वाला होता है, और उनका हर काम लोगों को गुमराह करता है और फंसाता है, परमेश्वर के घर के काम में विघ्न-बाधा डालता है—उनके हर काम का यही परिणाम होता है। हर स्तर पर अगुओं और कार्यकर्ताओं या अपने आस-पास के उन साधारण भाई-बहनों को देखो जिन्हें तुम जानते हो और जिनसे तुम्हारा संपर्क है और तुलना करो यह देखने के लिए कि क्या कोई भी सत्य का अनुसरण करने वाले भाई-बहनों से अकारण नफरत करता है और हमेशा उन लोगों पर हमला करना और बहिष्कृत करना चाहता है। वे स्वयं जानते हैं कि यह सही नहीं है, लेकिन वे ऐसा करना बंद करने में असमर्थ हैं, वे इन भाई-बहनों के सामने मधुर शब्द बोलते हैं लेकिन उनकी पीठ पीछे बिल्कुल अलग तरीके से काम करते हैं, अपना दानवी चेहरा दिखाते हैं और उनका विरोध करना शुरू कर देते हैं। यह दुष्टता नहीं है, तो क्या है? मसीह-विरोधियों के बारे में सबसे घृणायोग्य बात क्या है? परमेश्वर के चुने हुए लोगों और उनके आस-पास के लोगों को गुमराह करने और यहाँ तक कि ऊपर वाले को धोखा देने और उनसे छल करने के लिए वे अक्सर सही बातें कहते हैं, और इससे भी आगे, वे प्रशंसात्मक शब्दों से परमेश्वर को धोखा देना चाहते हैं और लोगों का भरोसा जीतना चाहते हैं, और फिर बेलगाम होकर, उतावली में काम करते हैं, और परमेश्वर के घर में मनचाहा करते हैं। वे जानते हैं कि कैसे सही तरीके से बोलना है, कैसे गलत तरीके से बोलना है, और वे जानते हैं कि उन्हें कैसे काम करना चाहिए, कैसे नहीं करना चाहिए, सिद्धांत क्या हैं, सिद्धांत क्या नहीं हैं, सिद्धांतों के खिलाफ जाना क्या है और सिद्धांतों के अनुसार काम करना क्या है। अपने हृदय में इन चीजों के बारे में वे अस्पष्ट नहीं होते, और कुछ तो इन चीजों को बहुत साफ-साफ और सुबोधगम्य तरीके से जानते भी हैं, लेकिन वे सिद्धांतों को कितनी भी अच्छी तरह से समझें और स्पष्ट रूप से जानें, जब वे कुछ करते हैं तो वे सत्य का जरा भी अभ्यास नहीं करते, और अपनी इच्छाओं के अनुरूप अनायास ही बुरे काम करते हैं। यह उनके शैतानी और मसीह-विरोधी होने की प्रकृति का निर्धारण करता है। वे न केवल सत्य से विमुख हैं और उससे नफरत करते हैं, बल्कि वे अक्सर सकारात्मक चीजों से नफरत करते हैं और उनकी निंदा करते हैं। बड़ा लाल अजगर सत्य और परमेश्वर से नफरत क्यों करता है? यह पूरी तरह से उसकी शैतानी प्रकृति से तय होता है। कुछ भाई-बहनों को इतना सताया और त्रस्त किया जाता है कि वे अपने घर वापस नहीं लौट सकते, और वे राक्षस और शैतान कहते हैं कि “ये लोग अब सामान्य रूप से नहीं रह रहे हैं; उन्होंने अपने परिवारों को त्याग दिया है।” वास्तव में, वे घर नहीं जा सकते क्योंकि बड़ा लाल अजगर उन्हें सता रहा होता है। इस तरह की चीजें बहुत होती हैं। तुम लोगों ने ऐसी और कौन-सी बातें सुनीं हैं? (बड़ा लाल अजगर कहता है कि अगर लोग परमेश्वर के वचनों को बहुत अधिक पढ़ते हैं तो उनका दिमाग खराब हो जाता है।) बड़ा लाल अजगर कहता है, “लोगों का दिमाग परमेश्वर के वचनों से खराब हो जाता है; वे परमेश्वरित कर दिए गए हैं।” यह सत्य को उलटना है। साफ तौर पर यह बड़ा लाल अजगर ही है जो लोगों को भ्रष्ट करता है और उनका दिमाग खराब करता है, और फिर भी यह पलटकर कहता है कि परमेश्वर के वचन लोगों का दिमाग खराब करते हैं—ये दानव बहुत दुष्ट हैं! बड़ा लाल अजगर दूसरों द्वारा किए गए सभी अच्छे कामों पर अपना दावा करता है और अपने बुरे कामों के लिए दूसरों को दोषी ठहराता है। मसीह-विरोधी भी यही करते हैं; उनके तरीके बिल्कुल बड़े लाल अजगर और शैतान जैसे ही हैं। वे वास्तव में शैतान के अनुचर हैं!
क्या अब हमने मसीह विरोधियों की दुष्ट, धूर्त और कपटी अभिव्यक्तियों पर संगति करना काफी हद तक समाप्त कर लिया है? क्या मेरी आज की संगति उससे अलग और अधिक वास्तविक नहीं है जिसे तुम लोग शाब्दिक तौर पर समझ सकते हो? परमेश्वर के घर ने हाल के वर्षों में कई वीडियो बनाए हैं, और कुछ भजन और फिल्में वगैरह सहित, वे सभी ऑनलाइन अपलोड कर दी गई हैं। मुख्य भूमि चीन में एक मसीह-विरोधी ने इन चीजों को ऑनलाइन देखने के बाद कहा कि “तुमने ये कार्यक्रम विदेश में बनाए हैं और हम चीन में भी ऐसा कर सकते हैं।” फिर उसने एक भर्ती अभियान चलाकर कुछ लोगों का एक गिरोह बनाया, और बड़े लाल अजगर के देश में एक गायन मंडली शुरू की। अंत में, इन लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। मसीह-विरोधी को ऐसा करने की क्या जरूरत थी? क्या उसका कोई उद्देश्य था? (हाँ।) उसका उद्देश्य क्या था? (लोगों पर नियंत्रण करना।) उसका उद्देश्य लोगों पर नियंत्रण करने की इच्छा करने जैसा सरल नहीं था। वह अपना खुद का गुट बनाना चाहता था। उसका विचार था कि “परमेश्वर के घर में गायन मंडली हो सकती है, तो मैं भी कर सकता हूँ! अगर मैं सफल हो गया, तो मेरा अपना गुट तैयार हो जाएगा। मेरे एक इशारे पर बहुत से लोग मेरे साथ आ जाएँगे!” इस तरह वह परमेश्वर की कलीसिया की जगह ले सकता था। क्या यही वह लक्ष्य नहीं था जिसे वह हासिल करना चाहता था? लेकिन इसका नतीजा यह हुआ कि बड़े लाल अजगर ने उसे जकड़ लिया और उसका खयाली पुलाव धरा का धरा रह गया। परमेश्वर का घर यह कार्य सुनिश्चित सुरक्षा के अंतर्गत करता है। क्या बड़े लाल अजगर द्वारा शासित देश में उस मसीह-विरोधी के लिए ऐसी स्थिति मौजूद थी? वहाँ ऐसी स्थिति नहीं थी, फिर भी वह दिखावा करना चाहता था। वह बहुत अच्छी तरह से दिखावा भी नहीं कर सका, और अंततः चीजें उसके लिए गलत हो गईं। कुछ साल पहले, एक अन्य समूह ने भी एक कार्यक्रम तैयार कर उसे ऑनलाइन डाल दिया था। वे नृत्य करने के साथ पुरानी धुनें गाते थे और उन्होंने जातीय अल्पसंख्यक शैली के फूलदार छापे वाले कपड़े पहने थे। उनका कार्यक्रम बहुत पारंपरिक और पुराने किस्म का था। मुझे बताओ कि क्या ये मसीह-विरोधी सिर्फ बाधा नहीं पैदा करते? (हाँ, ऐसा ही है।) गैर-विश्वासियों और धार्मिक लोगों को वास्तविक स्थिति का पता नहीं था और वे मानते थे कि ये चीजें वास्तव में कलीसिया ने की थीं। मसीह-विरोधी हमेशा मूर्खतापूर्ण काम करते हैं; वे न केवल दुष्ट हैं, बल्कि मूर्ख भी हैं। वे मूर्ख क्यों हैं? क्या इसलिए कि वे इतने दुष्ट हैं कि वे दुष्टता के कारण मूर्ख बन गए हैं? नहीं। कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसी व्यक्ति में कितनी काबिलियत है, अगर वह कुछ सत्य समझता है, तो भले ही उसके पास आगे का कोई रास्ता न हो और वह यह न जानता हो कि उसके लिए क्या करना उचित है और क्या अनुचित, फिर भी उसके मन में एक आधाररेखा होती है : वह लापरवाही से या आँख मूंदकर काम नहीं करेगा। क्या ऐसा नहीं है? (हाँ, ऐसा ही है।) परंतु, जो लोग सत्य नहीं समझते और जो अकारण ही बहुत अहंकारी हैं, वे मनमाने ढंग से काम करते हैं। उनके लिए मनमाने ढंग से काम करने का क्या मतलब है? इस तरह के लोगों में तर्क की कोई समझ नहीं होती और तर्क की समझ न रखने वाले लोग मुद्दों पर विचार नहीं कर सकते। “विचार करने” से मेरा क्या मतलब है? मेरा मतलब है कि शुरुआती चरणों में क्या करना है, क्या तैयारी करनी है, कार्रवाई करते समय किन चीजों की जरूरत होगी, यह कार्यक्रम क्यों बनाया जाना चाहिए और कार्यक्रम बनने के बाद उससे कितने लोग प्रभावित हो सकते हैं, कितने लोगों को शिक्षित किया जा सकता है और क्या इसके कोई परिणाम या कमियाँ हैं—इन सबका मूल्यांकन किया जाना चाहिए। इस मूल्यांकन प्रक्रिया को “विचार करना” कहा जाता है। क्या ये मूर्ख लोग चीजों पर विचार कर सकते हैं? (नहीं।) जो लोग मुद्दों पर विचार नहीं कर सकते, वे तर्कहीन हैं; क्या उन्हें सत्य की कोई समझ है? निश्चित रूप से नहीं। यदि कोई वास्तव में कुछ सत्य समझता है, तो उसकी तार्किक समझ अधिक स्पष्ट और अधिक सुदृढ़ हो जाएगी। वे इस बारे में अधिक स्पष्ट हो सकते हैं कि क्या सकारात्मक है, क्या नकारात्मक है, क्या सही है, क्या गलत है, और फलां-फलां सिद्धांत कौन-से दायरे में आता है; अर्थात्, वे कुछ अच्छा करें या बुरा करें, उनके हृदय में एक मानक होता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई तुमसे कहे कि सड़क पर नंगे दौड़ो, तो क्या तुम ऐसा करोगे? (नहीं।) यदि कोई तुम्हें मारे तो क्या ऐसा करोगे? कोई तुम्हें दस हजार युआन दे तो क्या तुम ऐसा करोगे? (ऐसा करना शर्मनाक होगा। मैं ऐसा नहीं कर सकता।) यह जानना कि ऐसा करना शर्मनाक बात होगी, यह एक तरह की सोच है, एक तरह का फैसला और एक तरह का रवैया है जो तर्कसंगत होने से पैदा होता है, यानी, केवल इस तर्कसंगति के साथ ही तुम ऐसी सोच और ऐसा रवैया रख पाते हो। इसलिए, तुम्हें पैसों का लालच दिया जाए या क्रूरता से प्रताड़ित किया जाए और सताया जाए या कैसे भी मजबूर किया जाए, तुम फिर भी ऐसा नहीं करोगे, तब तुम बिल्कुल अप्रभावित रहोगे और दृढ़ रहोगे। मसीह-विरोधी सत्य नहीं समझते, और इसीलिए वे जो कुछ भी करते हैं उसकी कोई अवधारणा नहीं होती। यहाँ “अवधारणा” का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि उन्हें नहीं पता होता कि परमेश्वर के पक्ष में गवाही देने के लिए क्या करना चाहिए। इस मसीह-विरोधी को विश्वास था कि उसका हृदय बहुत ही प्रेमपूर्ण है, उसने एक गायन मंडली का वीडियो बनाने के लिए समूह बनाया और बहुत सारा पैसा खर्च किया और जोखिम भी मोल लिया। मुख्य भूमि चीन की स्थिति विदेशों की तुलना में बुरी है, ऐसे में कुछ गलत हुआ तो क्या होगा? क्या उसने इस पर विचार किया? हो सकता है कि उसने स्थितियों पर किसी हद तक विचार किया हो, लेकिन उसे नहीं पता था कि कौन से कार्यक्रम बनाने चाहिए या क्या परिणाम प्राप्त करने चाहिए—वह इसे बिल्कुल भी नहीं समझ पाया। वह क्यों नहीं समझ पाया? उसमें यह तर्कसंगतता नहीं थी। तर्कसंगतता कैसे आती है? केवल सत्य को समझने पर ही लोगों का विवेक धीरे-धीरे स्पष्ट और ठोस हो सकता है। मसीह-विरोधी लोगों की प्रकृति सत्य से घृणा करने की वाली होती है, वे स्वाभाविक रूप से सकारात्मक चीजों का विरोध करते हैं, और अपने अंतरतम हृदय में वे कभी भी सत्य से प्रेम नहीं कर पाते, तो क्या वे सत्य समझ सकते हैं? (नहीं।) अगर वे सत्य नहीं समझ सकते, तो क्या वे सामान्य मानवता वाली सोच रख सकते हैं? उनमें यह कभी नहीं हो सकता। क्या सामान्य मानवीय सोच से रहित लोगों में तर्कसंगतता होती है? नहीं, उनमें यह नहीं होता। मसीह-विरोधी जब कुछ करते और कहते हैं, तो उनका परिप्रेक्ष्य और उनके कृत्य शैतानों और दुष्ट आत्माओं द्वारा की जाने वाली चीजों से अलग नहीं होते। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ कि कोई अंतर नहीं होता? उदाहरण के लिए, किसी को वास्तव में उपदेश देना और दिखावा करना बहुत पसंद है, तो वह हमेशा ऐसे लोगों की तलाश में रहता है जो उसका उपदेश सुनें। लोग भले उसे सुनना पसंद न करें, फिर भी वह उपदेश देता रहता है; जब दूसरे लोग उसके प्रति चिढ़ महसूस करते हैं, तो उसे पता नहीं चलता, और वह उन लोगों को ध्यान से देखने की कोशिश नहीं करता, वह यह नहीं देखता कि उन लोगों को क्या चाहिए, और वह केवल अपने आप को संतुष्ट करता है। क्या यह लज्जाजनक नहीं है? यह लज्जाजनक है और वह तर्कशून्य है। क्या इस तर्कशून्यता और शैतान तथा बुरी आत्माओं के कब्जे में फँसे किसी व्यक्ति के अनियमित और मनमाने भाषण और कार्यों के बीच कोई अंतर है? हालाँकि वह नंगा होकर सड़क पर पागलों की तरह दौड़ते मानसिक रोगी जैसा नहीं दिखता, फिर भी तुम देख सकते हों कि वह तर्कहीन तरीके से काम करता है। जब उसे भाई-बहनों का सिंचन करने, या सुसमाचार फैलाने, या कोई कर्तव्य निभाने के लिए कहा जाता है, तो वह पूरी तरह से सिद्धांतहीन होता है और बस अपनी मर्जी से बेपरवाही से काम करता है। कुछ लोग ऐसे हैं जो 20 साल से सुसमाचार का प्रचार कर रहे हैं और लेकिन एक भी व्यक्ति हासिल नहीं कर सके हैं, फिर भी वे अगुआ बनना चाहते हैं। क्या ऐसे लोग हैं? हाँ, ऐसे लोग हैं। वे बिल्कुल सिद्धांतहीन हैं, वे जो कुछ भी करते हैं उसमें गड़बड़ी करते हैं, और फिर भी वे अगुआ बन कर अन्य लोगों की अगुआई करना चाहते हैं—निश्चित ही ऐसे बहुत से लोग हैं। वे इतने सालों से परमेश्वर पर विश्वास करते आए हैं, उन्होंने परमेश्वर के बहुत से वचन पढ़े हैं, और उन्होंने बहुत से उपदेश सुने हैं, लेकिन वे एक भी सत्य नहीं समझते हैं। तो, उनमें समझ की कमी किस चीज से संबंधित है? किस कारण वे कुछ समझ नहीं पाते? क्या इसलिए कि उनमें काबिलियत और समझने की क्षमता बहुत कम है, या उनका चरित्र खराब है और वे सत्य से प्रेम नहीं करते हैं? (इसका संबंध उनके सार से है।) यह उनके सार से क्यों संबंधित है? (क्योंकि उनका सार दुष्ट है, वे पवित्र आत्मा का कार्य नहीं प्राप्त कर सकते हैं, और परमेश्वर ऐसे लोगों पर कार्य नहीं करता, इसलिए चाहे वे परमेश्वर के वचनों को कैसे भी खाएं और पिएं, वे कभी भी सत्य नहीं समझ पाएंगे।) यह एक वस्तुनिष्ठ कारण है। वस्तुनिष्ठ कारण निश्चित रूप से यह है कि पवित्र आत्मा उन पर कार्य नहीं करता और इसलिए निश्चित ही वे कुछ भी नहीं समझ पाएंगे—यह बात सब पर लागू होती है। एक व्यक्तिपरक कारण भी है, और वह क्या है? (ऐसे लोग सत्य से घृणा करते हैं।) और जो लोग सत्य से घृणा करते हैं, वे सत्य को कैसे देखते हैं? (अपने प्रतिपक्ष के रूप में।) वे सत्य को अपना प्रतिपक्षी मानते हैं; यह एक पहलू है। और क्या? क्या वे सत्य के व्यावहारिक पक्ष को समझने में सक्षम हैं? बिल्कुल नहीं। अगर वे इस स्तर को भी नहीं समझ सकते, तो बताओ कि क्या वे सत्य समझने में सक्षम हैं? कतई नहीं, वे सत्य नहीं समझ सकते। वस्तुनिष्ठ कारण यह है कि ऐसे लोग पवित्र आत्मा के कार्यों को प्राप्त करने में असमर्थ हैं, और परमेश्वर उनका प्रबोधन नहीं करता है। व्यक्तिपरक कारण यह है कि वे परमेश्वर, सत्य और सकारात्मक चीजों से शत्रुता रखते हैं, और उनकी निगाह में कोई भी सकारात्मक चीज सकारात्मक नहीं है। तो वे अपने हृदय में वे किन चीजों को सकारात्मक मानते हैं? वे ऐसी चीजें हैं जिनकी वकालत शैतान करता है—ऐसी चीजें जो दुष्टतापूर्ण, खोखली और अस्पष्ट हैं। तो, क्या ये दुष्ट लोग जो सत्य से घृणा करते हैं, सत्य समझने में सक्षम हैं? वे इसे कभी नहीं समझ सकते क्योंकि वे इसे स्वीकार नहीं करते। अब, बताओ कि क्या ऐसे लोगों के साथ सत्य पर संगति करने का कोई अर्थ है? जब तुम उन्हें परमेश्वर के वचन पढ़कर सुनाते हो, तो क्या वे उन्हें सुनने के इच्छुक हो सकते हैं? वे सभी गैर-विश्वासी और दानव हैं, तो वे परमेश्वर के वचन कैसे सुन सकते हैं? कुछ लोग इस मामले की तह तक नहीं जा पाते और कहते हैं, “जब मैं उनके साथ सत्य पर संगति करता हूँ तो वे क्यों नहीं समझते? क्या वे मनुष्य नहीं हैं?” तुम उलझन में पड़ जाते हो और उनको कुछ नहीं समझा पाते। कुछ लोगों की बातें तुम सुन ही नहीं सकते और जो काम वे करते हैं वे बिल्कुल ऊटपटांग होते हैं—वे गैर-विश्वासी, दानव होते हैं और हर तरह के विवेक से परे होते हैं। मैं ये शब्द क्यों कहता हूँ, “हर तरह के विवेक से परे”? तुम मानते हो कि परमेश्वर का वजूद है और परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभुता रखता है—क्या ये सकारात्मक चीजें नहीं हैं? (हैं।) और ये लोग क्या मानते हैं? “इस तरह से परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभुता रखता है? उसमें कुछ उल्लेखनीय नहीं है।” क्या वे हर तरह के विवेक से परे नहीं हैं? (हाँ हैं।) ऐसे लोगों के साथ संवाद करने का कोई तरीका नहीं होता; वे अलग ही किस्म के हैं, जंगली जानवर और हर तरह के विवेक से परे हैं। जानवर कभी नहीं समझते कि सकारात्मक चीजें क्या हैं या सत्य क्या है, इसलिए उनके साथ संवाद करने का कोई तरीका नहीं होता। तुम्हारा उनके साथ संवाद करने में असमर्थ होने का तथ्य कोई समय की समस्या नहीं है, न ही इसका संबंध इस दिशा में तुम्हारे कठिन प्रयासों से है, बल्कि इससे है कि वे समझने में सक्षम ही नहीं हैं, इसलिए उनसे और क्या कहना है? इन लोगों के भीतर वास्तव में क्या है? उनके दिलों में कोई ईमानदारी, सच्चाई और अच्छाई नहीं है, केवल दुष्टता है, वे दुष्टता से भरे हुए हैं। यही कारण है कि ये लोग सभी हर तरह के विवेक से परे हैं और उन्हें नहीं बचाया जा सकता।
जब कपट और धूर्तता की तुलना दुष्ट स्वभाव से की जाती है, तो वे अपेक्षाकृत कम गंभीर और सतही होते हैं। यदि वे अपेक्षाकृत सतही हैं, तो मैं यहाँ उनका उल्लेख क्यों कर रहा हूँ? मसीह-विरोधी धूर्तता, समझ में न आने वाले और अस्पष्ट तरीके से बोलते और काम करते हैं, जिससे दूसरों को लगता है कि वे कपटी और धोखेबाज हैं, और आम लोग मामले की सच्चाई तक नहीं पहुँच पाते। वे धूर्तता से काम करते और बोलते हैं और निष्कपट, ईमानदार और सत्य का अनुसरण करने वाले लोगों से उनकी नहीं बनती। इसके बजाय, वे अक्सर ऐसे लोगों के साथ खिलवाड़ करते हैं और उनका उपयोग करते हैं। उन लोगों को जरा भी पता नहीं चलता और मसीह-विरोधी इन लोगों से खिलवाड़ करते हैं, धोखा देते हैं, और यहाँ तक कि उनका उपयोग भी करते हैं। बेशक, मसीह-विरोधी लोगों द्वारा अपनाए गए ये व्यवहार और तरीके लोगों के लिए बहुत हानिकारक नहीं होते। फिर, वह क्या चीज है जो लोगों को बहुत नुकसान पहुँचाती है? जो और भी अधिक गंभीर बात है वह है मसीह-विरोधियों का दुष्ट स्वभाव, और इस स्वभाव के कारण उनका लोगों को गुमराह करना, नियंत्रित करना और लोगों पर अत्याचार करना। जब मसीह विरोधियों के कार्यों की बात आती है तो उनके पास हमेशा एक प्रेरणा होती है और एक इरादा होता है जिसे वे दूसरों को नहीं बता सकते। वे बिना किसी कारण के कभी भी कुछ भी समर्पित या खर्च नहीं करते, न ही वे बिना किसी कारण या बिना प्रतिफल के परमेश्वर के घर के लिए या किसी के लिए कुछ करते हैं। उनके हर कार्य और शब्द के पीछे एक प्रेरणा, एक इरादा होता है, और जिस क्षण उनका इरादा और प्रेरणा उजागर हो जाती है, या उनकी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ नष्ट हो जाती हैं, वे पीछे हटने का अवसर तलाशने लगते हैं। अपने हृदय में, वे सोचते हैं, “यह काम इस लायक नहीं है कि मैं अकारण ही इसके लिए खुद को समर्पित करूं या खपाऊं, यह मेरे लायक नहीं है। परमेश्वर में विश्वास करने से किसी को कुछ तो मिलना ही चाहिए। अगर कोई बिना किसी प्रतिफल की माँग किए खुद को परमेश्वर के लिए खपाता है, तो वह बेवकूफी है।” उनका तर्क है : “मुफ्त की दावत जैसी कोई चीज नहीं होती है।” वे उस जमीर और विवेक, व्यवहार और अच्छे कर्मों को जो सामान्य लोगों के पास होने चाहिए और उन्हें करना चाहिए, उसे बेवकूफी और मूर्खता बताते हैं। क्या यह दुष्टता नहीं है? (हाँ।) यह अविश्वसनीय रूप से दुष्टतापूर्ण है। उदाहरण के लिए, परमेश्वर का घर अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने वाले भाई-बहनों के लिए कुछ कार्य व्यवस्थाएँ बनाता है और उनके जीवन के लिए कुछ सुविधाएं प्रदान करता है, लेकिन मसीह-विरोधी उन्हें भीतर से बाधित करते हैं। उन्हें बाधित करने में मसीह-विरोधियों का उद्देश्य क्या होता है? अगर यह कार्य व्यवस्था मसीह-विरोधी की ओर से होती तो यह जानकर भाई-बहन उसके प्रति कृतज्ञता का अनुभव करते, तो मसीह विरोधी अगुआई करता। अगर भाई-बहन नहीं जानते कि कार्य व्यवस्था किसने की और सोचते हैं कि वह व्यवस्था परमेश्वर के घर ने की है, और वे परमेश्वर को धन्यवाद देते हैं, तो क्या मसीह विरोधी ऐसा करेगा? बिल्कुल नहीं। कार्य व्यवस्था मसीह विरोधी के पास तक ही अटक जाएगी और लागू नहीं होगी। परमेश्वर के घर द्वारा इन कार्य व्यवस्थाओं को जारी करना भाई-बहनों के लिए लाभदायक है, और सुसमाचार का कार्य बेहतर तरीके से फैल सकता है; परमेश्वर के कार्य से संबंधित यह एक बड़ी बात है, इसलिए जो लोग अगुआ के रूप में कार्य करते हैं, उन्हें इसके साथ कैसे सहयोग करना चाहिए? उन्हें सहयोग करने और कार्य को कार्यान्वित करने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए। परंतु, कुछ मसीह-विरोधी इसे भीतर से बाधित करते हैं और दो साल तक दिए गए कार्य का कार्यान्वयन नहीं करते। इसका कारण क्या है? यह शैतान द्वारा बाधाएँ और गड़बड़ियाँ पैदा करना है। कुछ कलीसियाओं में मसीह-विरोधियों ने अशांति फैला रखी है और नियंत्रण स्थापित कर रखा है, और वहाँ अपने कर्तव्यों का पालन करने वाले भाई-बहनों की देखभाल नहीं की जाती। मसीह-विरोधी इससे खुश होते हैं, और अपने हृदय में सोचते हैं, “इतनी बढ़िया चीज और इतने जबरदस्त लाभों का मैं लाभार्थी हूँ, इतना काफी है। सभी भाई-बहन लाभार्थी कैसे हो सकते हैं?” भाई-बहनों को लाभ मिलने से मसीह-विरोधी पर क्या असर पड़ेगा? इससे उन पर जरा भी असर नहीं पड़ेगा। उन्हें लाभ होगा, सभी को लाभ होगा, और यह बहुत अच्छा होगा! समग्र स्थिति के बारे में सोचो : तुम्हें इसे बाधित नहीं करना चाहिए, न ही तुम्हें इसे रोकना चाहिए, बल्कि इसे खुशी से लागू करना चाहिए। क्या यह सामान्य बात नहीं है? (हाँ, है।) यह ऐसा कर्तव्य है जिसे हर व्यक्ति को निभाना चाहिए, और यह तुम्हारी जिम्मेदारी है। इसका एक पहलू यह है कि इसमें तुम्हें कुछ भी खर्च नहीं करना पड़ता, जबकि दूसरा पहलू यह है : क्या हर कोई यह नहीं चाहता कि सुसमाचार का कार्य बढ़े? (हम चाहते हैं।) जब वे भाई-बहनों को परमेश्वर की कृपा का आनंद लेते देखते हैं, तो क्या उन्हें ईर्ष्या होती है? वे किस बात से ईर्ष्या करते हैं? क्या मसीह-विरोधी दानव नहीं हैं? तो, मसीह-विरोधी कार्य को लागू क्यों नहीं करते? ऐसा इसलिए है कि वे ईर्ष्यालु हैं। क्या वे मानते हैं कि कार्य को लागू करना सुसमाचार के कार्य को बढ़ाने के लिए फायदेमंद होगा? (नहीं, वे ऐसा नहीं मानते।) क्या यह उनके हितों को प्रभावित करता है? इसका उनसे क्या संबंध है? इसका उनसे कोई लेना-देना नहीं है, फिर भी वे इसे लागू नहीं करते, और यह उनका दुष्ट होना है। वे जीवित शैतान हैं और उन्हें शाप दिया जाना चाहिए! ऐसे मामले में, जिसका संबंध परमेश्वर के घर के कार्य और अपने कर्तव्यों को निभाने वाले इतने सारे लोगों से है, वे उसे बाधित करने के परिणामों के बारे में बिल्कुल भी नहीं सोचते। अगर उनके पास थोड़ी भी नेकनीयती होती, तो वे ऐसा नहीं कर पाते। वे इस तरह से क्यों काम करते हैं? यह खलनायकी है, दुष्टता है। क्या तुम लोग ऐसे काम करते हो? यदि तुम ऐसे काम कर सकते हो, तो तुम लोग मसीह-विरोधियों से अलग नहीं हो, और तुम लोग भी जीवित शैतान हो। तुम लोगों को ऐसे काम नहीं करने चाहिए! कुछ मसीह-विरोधी ऐसे भी हैं जो देखते हैं कि कलीसिया में दुष्ट लोग हैं जो अक्सर कलीसिया के काम में बाधा डालते हैं, जो कलीसिया में उत्पात मचाते हैं, लेकिन वे इसे अनदेखा करते हैं। जब उनसे ऐसे लोगों से निपटने के लिए कहा जाता है, तो वे हिचकते हैं और उनसे निपटने में टाल-मटोल करते हैं। वे भाई-बहनों के हितों पर विचार नहीं करते; वे केवल यह विचार करते हैं कि उनकी अपनी प्रतिष्ठा को नुकसान न पहुँचे, बस इतना ही। वे सोचते हैं, “मुझे अगुआ बनाया गया है इसलिए मेरा अंतिम निर्णय होना चाहिए। मेरे पास पूर्ण शक्ति और अधिकार है। तुम जिसे कहते हो, अगर मैं उसे निकाल देता हूँ, तो इससे लगेगा कि मैं पूरी तरह से शक्तिहीन हूँ। मुझे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भाई-बहनों को पता रहे कि वे लोग मेरी देखभाल में हैं और मेरे अधीनस्थ हैं।” वे किसका प्रतिरोध कर रहे होते हैं? (परमेश्वर का।) क्या परमेश्वर का प्रतिरोध करना दुष्टता नहीं है? यह दुष्टता है। क्या तुम जानते हो कि मनुष्य किस तरह की चीज है? परमेश्वर ने तुममें जान फूंकी है, और अगर तुम इतनी महत्वपूर्ण चीज नहीं जानते, तो क्या तुम मूर्ख नहीं हो? परमेश्वर किसी भी समय तुम्हारा जीवन समाप्त कर सकता है, और फिर भी तुम खुद को परमेश्वर के विरुद्ध खड़ा कर रहे हो—यह दुष्टता है, और तुम जीवित शैतान हो! इसलिए, एक पहलू यह है कि तुम लोगों को सत्य का अनुसरण करना चाहिए और मसीह-विरोधियों के मार्ग का अनुसरण नहीं करना चाहिए; इसके अलावा, तुम लोगों को जानना चाहिए कि मसीह-विरोधियों को कैसे पहचाना जाए। यदि तुम किसी मसीह-विरोधी से मिलते हो, तो तुम्हें उसका बारीकी से देखना चाहिए, और यदि तुम उन्हें कोई बुरा काम करने की तैयारी में देखो, तो उन्हें तुरंत रोक दो, और भाई-बहनों के साथ मिलकर उन्हें बेनकाब करो, उनका गहन विश्लेषण करो, उन्हें अस्वीकार करो और उन्हें निष्कासित करो। मैंने हाल ही में एक कलीसिया में कई युवा भाई-बहनों के बारे में सुना था जो किसी झूठे अगुआ को बाहर निकालने के लिए एकजुट हुए थे। मैं कहता हूँ कि इन युवाओं ने प्रगति की है, वे शैतानी फलसफों के अनुसार नहीं जीते, वे सत्य का अभ्यास कर सकते हैं और सिद्धांतों के अनुसार कार्य कर सकते हैं, और वे अधिकांश लोगों से बहुत बेहतर हैं। अधिकांश लोगों के पास सांसारिक व्यवहार के लिए फलसफे हैं, शैतान का जहर उनमें गहराई तक समाया है, और अभी तक शैतान के प्रभाव से बाहर नहीं निकले हैं। किसी झूठे अगुआ को हटाने में सक्षम होना दिखाता है कि व्यक्ति कुछ सत्य समझता है और परमेश्वर के घर के कार्य की रक्षा कर सकता है—यह अच्छी बात है। यह दिखाता है कि संबंधित व्यक्ति जीवन में परिपक्व हो गया है और अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभा सकता है।
आज मसीह-विरोधियों की दुष्टता, धूर्तता और कपटीपन के सार के पहलुओं के साथ-साथ उनकी विभिन्न अभिव्यक्तियों पर संगति करके और उन्हें उजागर करके, हम देख पाते हैं कि मसीह-विरोधी स्वाभाविक रूप से परमेश्वर के विरोधी होते हैं। कुछ लोग कहते हैं, “भले ही मेरा स्वभाव मसीह-विरोधियों का स्वभाव हो, लेकिन मेरा प्रकृति सार मसीह-विरोधियों जैसा नहीं है, और मैं कभी भी मसीह-विरोधी नहीं बनूँगा।” तुम इस रवैये के बारे में क्या सोचते हैं? भले ही तुममें मसीह-विरोधी जैसा सार न हो, फिर भी तुममें मसीह-विरोधी की ये अभिव्यक्तियाँ और प्रकाशन हैं, तुम उसे ही जीते हो जिसे मसीह-विरोधी जीता है, और तुममें मसीह-विरोधी का स्वभाव है, और इसलिए तुम मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलने के खतरे में हो। रुतबा, प्रभाव और पूंजी के साथ, यह केवल समय की बात है कि तुम मसीह-विरोधी बन जाओगे, और यह एक तथ्य है। ऐसा कहने के पीछे मेरा इरादा क्या है? मैं यह तुम्हारे लिए खतरे की घंटी बजाने और तुम्हें एक तथ्य बताने के लिए कह रहा हूँ : जब कोई व्यक्ति मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चलना शुरू करता है, तो दो संभावनाएँ होती हैं। एक यह है कि तुम समय के साथ इसे समझ लोगे, दिशा बदल लोगे, आत्मचिंतन करोगे, पश्चाताप करोगे, और परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होने में सक्षम हो जाओगे। यह सबसे अच्छी संभावना है, और तुम्हें उद्धार प्राप्त करने की आशा रहेगी। हालाँकि, यदि तुम सत्य की खोज वाले मार्ग का अनुसरण नहीं कर सकते, तो जब तुम बहुत अधिक बुरे काम कर लेते हो और मसीह-विरोधी के रूप में परिभाषित हो जाते हो, तो परिणामों के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता। क्या तुम समझते हो? (हाँ।) यह अच्छा है कि तुम समझते हो। मेरा इससे क्या मतलब है? मेरा मतलब है कि, यदि तुममें मसीह-विरोधी की अभिव्यक्तियाँ हैं, तो तुम्हारे पास अभी भी बाहर निकलने और पश्चाताप करने का अवसर है, लेकिन एक बार मसीह-विरोधी बन जाने पर, तुम खतरे में पड़ जाओगे। इसलिए, जब तुम जान लो कि तुम्हारे अंदर मसीह-विरोधी जैसी अभिव्यक्तियाँ हैं, तो तुम्हें अपना रास्ता बदलना चाहिए, सत्य की तलाश करनी चाहिए और इस समस्या को हल करना चाहिए; इस मामले को हल्के में न लो। अन्यथा, जब तुम्हारे पास शक्ति और अवसर होंगे, तो तुम लापरवाही से बुरे काम करेंगे और कलीसिया के काम में विघ्न-बाधा डालोगे। तुम परिणामों को झेल नहीं पाओगे, और बहुत संभव है कि यह तुम्हारे परिणाम और तुम्हारी मंजिल को प्रभावित करे।
आज हमने मसीह विरोधियों के दुष्ट स्वभाव और आम लोगों के दुष्ट स्वभाव के बीच के अंतर को स्पष्ट रूप से समझा दिया है। क्या तुम लोग अब इसे समझते हो? सभी भ्रष्ट मनुष्यों में दुष्ट स्वभाव होते हैं और उन सभी में दुष्ट स्वभाव के प्रकाशन और अभिव्यक्तियाँ होती हैं। परंतु, आम लोगों के दुष्ट स्वभाव और मसीह-विरोधियों के दुष्ट स्वभाव में अंतर होता है। हालाँकि आम लोगों में भी दुष्ट स्वभाव होता है, लेकिन उनके हृदय में सत्य की लालसा होती है और वे सत्य से प्रेम करते हैं, और परमेश्वर में अपनी आस्था और अपने कर्तव्यों का पालन करने के दौरान वे सत्य को स्वीकार करने में सक्षम होते हैं। हालाँकि वे जितने सत्य व्यवहार में ला सकते हैं वे सीमित होते हैं, फिर भी वे कुछ सत्य अभ्यास में ला सकते हैं, और इस तरह उनके भ्रष्ट स्वभाव को धीरे-धीरे शुद्ध किया जा सकता है और वास्तव में बदला जा सकता है, और अंत में वे मूलतः परमेश्वर के प्रति समर्पित होने और उद्धार प्राप्त करने में सक्षम होते हैं। दूसरी ओर, मसीह-विरोधी सत्य से तनिक भी प्रेम नहीं करते, वे सत्य कभी नहीं स्वीकारते, और वे इसे कभी अभ्यास में नहीं लाते। मैं यहाँ जो कुछ भी कहता हूँ, तुम लोगों को उसके अनुसार देखने और समझने का प्रयास करना चाहिए; चाहे वह कलीसिया का अगुआ हो या कार्यकर्ता, या कोई साधारण भाई-बहन, देखो कि क्या वह व्यक्ति अपनी समझ के दायरे में सत्य को अभ्यास में ला सकता है। उदाहरण के लिए, मान लो कि कोई व्यक्ति एक सत्य सिद्धांत समझता है, लेकिन जब उसे अभ्यास में लाने का समय आता है, तो वह उसे बिल्कुल भी अभ्यास में नहीं लाता और वह अपनी मर्जी से और मनमाने ढंग से काम करता है—यह दुष्टता है और ऐसे व्यक्ति को बचाया जाना कठिन है। कुछ लोग वास्तव में सत्य नहीं समझते, लेकिन अपने हृदय में वे ठीक उसी की खोज में होते हैं जो परमेश्वर के इरादों के अनुसार और सत्य के अनुरूप हो। दिल की गहराई से वे सत्य के विरुद्ध नहीं जाना चाहते। चूंकि वे सत्य नहीं समझते, बस इसीलिए वे सिद्धांतों के विपरीत बोलते और कार्य करते हैं, वे गलतियाँ करते हैं, और यहाँ तक कि ऐसे काम भी करते हैं जिससे विघ्न-बाधाएँ पैदा होती हैं—इसकी प्रकृति क्या है? इसकी प्रकृति कुकर्म करने से नहीं जुड़ी है; यह सब मूर्खता और अज्ञानता के कारण होता है। ऐसे लोग ये बुरे काम केवल इसलिए करते हैं क्योंकि वे सत्य नहीं समझते, क्योंकि वे सत्य सिद्धांतों को प्राप्त करने में अक्षम हैं, और क्योंकि उनकी धारणाओं और कल्पनाओं के अनुसार उन्हें लगता है कि ये काम करना सही है, इसलिए वे उस तरह से कार्य करते हैं, और इसीलिए परमेश्वर उन्हें मूर्ख और अज्ञानी, कम काबिलियत वाले के रूप में निर्धारित करता है; ऐसा नहीं है कि वे सत्य समझते हुए भी जानबूझकर उसके विरुद्ध जाते हों। जहाँ तक उन अगुआओं और कार्यकर्ताओं का सवाल है जो हमेशा अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के अनुसार काम करते हैं और सत्य नहीं समझने के कारण अक्सर परमेश्वर के घर के काम को बाधित करते हैं, तो तुम्हें इन समस्याओं के हल के लिए पर्यवेक्षण और प्रतिबंधों को लागू करने, और सत्य पर अधिक संगति करने का अभ्यास करना चाहिए। यदि किसी की काबिलियत बहुत कम है और वह सत्य सिद्धांतों को नहीं समझ सकता, तो उसे झूठे अगुआ के नाते सेवामुक्त करने का समय आ गया है। यदि वह सत्य समझता है लेकिन जानबूझकर सत्य के विरुद्ध जाता है, तो उसकी काट-छाँट की जानी चाहिए। यदि वह हमेशा सत्य स्वीकार करने में असमर्थ रहता है और कोई पछतावा भी नहीं दिखाता है, तो उससे दुष्ट व्यक्ति के रूप में निपटा जाना चाहिए, और उसे हटा दिया जाना चाहिए। हालाँकि, मसीह-विरोधियों की प्रकृति दुष्ट लोगों या झूठे अगुआओं की प्रकृति से कहीं अधिक गंभीर होती है, क्योंकि मसीह-विरोधी जानबूझकर कलीसिया का काम बाधित करते हैं। वे सत्य समझते हों तब भी वे इसका अभ्यास नहीं करते, वे किसी की नहीं सुनते, और अगर वे सुनते भी हैं, तो वे जो सुनते हैं उसे स्वीकार नहीं करते। भले ही ऊपरी तौर पर वे इसे स्वीकार करते हुए दिखें, लेकिन वे अपने अंतरतम हृदय में इसका प्रतिरोध करते हैं, और जब कार्य करने का समय आता है, तब भी वे परमेश्वर के घर के हितों के बारे में कोई विचार किए बिना अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार कार्य करते हैं। जब वे अन्य लोगों के आस-पास होते हैं, तो वे कुछ मानवीय शब्द बोलते हैं और उनमें कुछ हद तक मानव-सादृश्य होते है, लेकिन जब वे लोगों की पीठ पीछे कार्य करते हैं, तो उनकी राक्षसी प्रकृति उभर आती है—ये मसीह-विरोधी हैं। कुछ लोगों को जब रुतबा मिलता है, तो वे हर तरह की बुराई करते हैं और मसीह-विरोधी बन जाते हैं। कुछ लोगों के पास कोई रुतबा नहीं होता, फिर भी उनका प्रकृति सार मसीह-विरोधियों जैसा ही होता है—क्या तुम कह सकते हो कि वे अच्छे लोग हैं? जैसे ही उन्हें रुतबा मिलता है, वे हर तरह के बुरे काम करने लगते हैं—वे मसीह-विरोधी हैं।
क्या तुम लोगों में कोई ऐसा है जिसने पाया हो कि वह खुद एक तेजी से उभरता हुआ मसीह-विरोधी है और जिसने महसूस किया हो कि एक बार रुतबा हासिल कर लेने के बाद वह सौ प्रतिशत मसीह-विरोधी हो जाएगा? यदि ऐसा है, तो जब दूसरे लोग तुम्हें अगुआ के रूप में चुनेंगे, तो तुम्हें उन्हें तुम्हारा चयन बिल्कुल नहीं करने देना चाहिए और कहना चाहिए, “मैं इससे दूर हूँ। कृपया मुझे मत चुनो। यदि तुम लोग ऐसा करते हो, तो मेरे लिए सब कुछ खत्म हो जाएगा।” इसे खुद के बारे में जानना कहते हैं। रुतबा न होना तुम्हारी सुरक्षा है। साधारण अनुयायी के रूप में तुम्हें बड़ी बुराई करने का मौका कभी नहीं मिल सकता, और तुम्हें दंडित किए जाने की संभावना शून्य हो सकती है। परंतु, जैसे ही तुम रुतबा हासिल करते हो, तुम्हारे द्वारा बुरा काम किए जाने की संभाव्यता सौ प्रतिशत हो जाती है, साथ ही तुम्हें दंडित किए जाने की संभाव्यता भी सौ प्रतिशत हो जाती है, और फिर तुम्हारे लिए सब कुछ खत्म हो जाता है, और तुम उद्धार पाने के अपने अवसरों को एकदम नष्ट कर देते हो। यदि तुममें महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ हैं, तो तुम्हें जल्दी से जल्दी परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए, समस्या के हल के लिए सत्य की तलाश करनी चाहिए, परमेश्वर पर भरोसा करना चाहिए और आत्म-संयम का अभ्यास करना चाहिए, और अपने पद के नशे में नहीं डूबना चाहिए, और फिर तुम सामान्य तरीके से अपना कर्तव्य निभा सकोगे। यदि तुम हमेशा आधिकारिक पदनामों पर ध्यान केंद्रित रखते हो और अपने पद के मजे में डूबे रहते हो, और अपने कर्तव्य-निर्वाह पर ध्यान नहीं देते, तो तुम झाँसेबाज हो और तुम्हें निकाल दिया जाना चाहिए। जब तुम कोई कर्तव्य स्वीकार करते हो, तो पद पर ध्यान केंद्रित न करो; तुम्हें बस अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाना चाहिए—मामलों को अच्छी तरह से सँभालना किसी भी दूसरी चीज से अधिक वास्तविक है। यदि तुम अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभा सकते हो, तो क्या तुमने परमेश्वर को संतुष्ट नहीं किया होगा? जहाँ तक तुम्हारा सवाल है, यह वह अंतिम तरीका है जिससे तुम बुराई करने से बच सकते हो। यह अच्छी बात है या बुरी कि तुम लोगों पर हमेशा प्रतिबंध लगाए जाएँ और तुम्हें कोई पद पाने की अनुमति न दी जाए? (यह अच्छी बात है।) ऐसा है तो, फिर कुछ लोग इतने पर भी चुनावों के दौरान रुतबे के लिए प्रतिस्पर्धा करने में इतनी मेहनत क्यों करते हैं? ऐसे लोग बहुत अधिक महत्वाकांक्षी होते हैं। बहुत अधिक महत्वाकांक्षा रखना सामान्य बात नहीं है—वे लोग दुष्ट हो रहे हैं। कई युवा बहनें जो अभी उम्र के तीसरे दशक में है, वे आधिकारिक पद पाना चाहती हैं और उन्हें रुतबे से बहुत प्यार है। यदि उन्हें अगुआ के रूप में नहीं चुना जाता है, तो वे मुँह फुला लेती हैं और खाना बंद कर देती हैं। हालाँकि वे अपने दृढ़ संकल्प के मामले में थोड़ा बचकानी लगती हैं, लेकिन जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ती जाएगी, चीजें बेहद गंभीर होती जाएंगी और वे विशेषज्ञ बन जाएंगी, है न? कुछ स्त्रियाँ सुनती हैं कि बहुत पहले की बात है कि एक स्त्री महारानी बन गई थी और इस पर वे अविश्वसनीय ईर्ष्या महसूस करती हैं कि काश वे वही स्त्री हो पातीं। वे साधारण नहीं बनना चाहतीं, और परमेश्वर में अपनी आस्था में वे सिर्फ साधारण अनुयायी नहीं बनना चाहतीं। उनके हृदय में उनकी इच्छाओं की लौ लगातार जलती रहती है, और जैसे ही उन्हें खुद को दिखाने का मौका मिलता है, वे उसे पकड़ लेती हैं। वे अपने कर्तव्यों को अच्छी तरह से पूरा नहीं करना चाहतीं, अपनी जिम्मेदारियों को पूरा नहीं करना चाहतीं, सत्य का अनुसरण करने में अपना दिल नहीं लगाना चाहतीं या परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित नहीं होना चाहतीं। उन्हें सत्य का अनुसरण करना और इस तरह से अपने कर्तव्यों का पालन करना पसंद नहीं है, और वे ऐसा सादा जीवन नहीं जीना चाहतीं—यह उनके लिए परेशानी का सबब होता है। क्या तुम लोगों में से कोई ऐसा है? उदाहरण के लिए एक महिला को लो जो अनैतिक संबंध बनाना पसंद करती है; चाहे उसका पति उसके प्रति कितना भी अच्छा क्यों न हो या उसके पास कितना भी धन क्यों न हो, वह उसका दिल कभी नहीं जीत पाता। कुछ महिलाओं के कई बच्चे होते हैं और फिर भी वे पुरुषों को लुभाने की बेतहाशा कोशिश करती हैं, और कोई भी पुरुष उन पर नजर नहीं रख सकता—यह दुष्ट होना है। यह दुष्ट ऊर्जा कहाँ से आती है? (यह उनकी प्रकृति के भीतर से आती है।) और उनकी ऐसी प्रकृति कैसे बनती है? उनके अंदर अशुद्ध आत्माएँ रहती हैं, और वे अशुद्ध आत्माओं का पुनर्जन्म हैं। हालाँकि आध्यात्मिक क्षेत्र में मामले जटिल हैं, पर वे कितने भी जटिल क्यों न हों, जब तक कोई सत्य समझता है और इन मामलों को परमेश्वर के वचनों के अनुसार देख सकता है, तब तक उसमें विवेक हो सकता है, और इसे आध्यात्मिक क्षेत्र में सीधे भेदना कहा जाता है। जब तुम सत्य समझते हो, तो तुम चीजों को तन्मयता से और बिल्कुल ठीक-ठीक देख सकते हो, तुम्हारी सोच भी चुस्त और स्पष्ट हो जाती है, और तुम्हारा हृदय उजला हो जाता है। यदि तुम सत्य नहीं समझते, तो तुम्हारा दिल हमेशा भ्रमित रहेगा, तुम्हें अपने हृदय में कभी नहीं पता होगा कि तुम क्या कर रहे हो, और तुम किसी भी तरफ मुड़ने से डरने वाले मूर्ख की तरह रहोगे। तुम डरोगे कि अगर तुमने ज्यादा काम किया तो वह दिखावा करना होगा, और अगर ऐसा नहीं करते तो तुम्हें डर लगेगा कि तुम अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी नहीं कर रहे हो; तुम हमेशा ऐसी ही स्थिति में रहोगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि तुम्हें सत्य की बहुत कम समझ है। सत्य की बहुत कम समझ रखने वाले व्यक्ति की पहली अभिव्यक्ति क्या होती है? वे क्षुद्र और बेकार जीवन जीते हैं। मसीह-विरोधियों के हाथों का खिलौना बनने, डराए-धमकाए जाने और इधर-उधर पटके जाने के बाद जिस दिन उनकी आँख खुलती है, उस दिन उन्हें एहसास होता है कि कैसे वे मसीह-विरोधियों के पीछे भागते थे, उनकी सेवा करते थे और उनके लिए काम करते थे, फिर भी कहते थे कि मसीह-विरोधी परमेश्वर से प्यार करते हैं और उनके प्रति निष्ठावान हैं। तब जाकर उन्हें पता चलता है कि वे इन सभी शब्दों का गलत इस्तेमाल करते थे। क्या यह बहुत अनुपयोगी नहीं है? (हाँ, है।) यह अनुपयोगी क्यों है? यह स्थिति उनके सत्य न समझने के कारण उपजती है और उन्हें वही मिला होता है जिसके वे हकदार हैं! अगर तुम सत्य समझते हो, तो तुम मसीह-विरोधियों को समझ सकते हो और उन्हें भली-भाँति पहचान सकते हो, और फिर तुम उन्हें उजागर कर बाहर निकाल सकते हो। क्या तुम तब भी उनसे गुमराह होते रहोगे और उनका अनुसरण करते रहोगे? निश्चय ही ऐसा नहीं होगा। इसके अलावा, तुमने इतने सारे धर्मोपदेश सुने हैं, परमेश्वर के घर ने इतने सालों तक तुमको सींचा और विकसित किया है, इसलिए यदि तुम किसी भी सत्य को नहीं समझते, यदि तुम मसीह-विरोधियों को नहीं पहचान सकते और तुम उन जिम्मेदारियों को भी पूरा नहीं करते जो तुम्हें पूरी करनी चाहिए, और अंततः मसीह-विरोधियों के साथ दौड़ते हो और उनके साथी बन जाते हो, तो क्या यह सब तुमको अनुपयोगी नहीं बनाता? क्या ऐसे लोग दयनीय नहीं हैं? यदि तुम नाममात्र के लिए परमेश्वर का अनुसरण करते हो, फिर भी मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह किए जाते और खींच लिए जाते हो और फिर कई सालों तक एक मसीह-विरोधी के मार्ग का अनुसरण करते हो, और अब वापस लौटना चाहते हो, लेकिन तुममें अपने भाई-बहनों का सामना करने का साहस नहीं है, तो क्या यह जीने का बेकार तरीका नहीं है? तुम कितने भी परेशान क्यों न हों, इसका कोई फायदा नहीं है। यह किसकी गलती है कि तुम सत्य नहीं समझते? तुम अपने अलावा किसी और को दोष नहीं दे सकते।
हमने मसीह विरोधियों की कुल सात अलग-अलग अभिव्यक्तियों पर संगति की है। जहाँ तक विस्तृत अभिव्यक्तियों की बात है, तो हमने प्रत्येक के बारे में बात की है, जिस सार का हमने गहन विश्लेषण किया है, और जिन विभिन्न परिस्थितियों के बारे में हमने बात की है, उनमें से कोई भी बात हवा में गढ़ी हुई नहीं है, बल्कि सुस्थापित और तथ्यों पर आधारित है। हालाँकि, एक बात है : यदि तुम लोग इन बातों को सुनने के बाद वास्तविक चीजें सामने आने पर उनकी तुलना करने में सक्षम नहीं हो, तो यह क्या दिखाता है? सबसे पहले, यह दिखाता है कि तुममें आध्यात्मिक समझ की कमी है, और यदि कभी-कभार तुम लोगों के पास कुछ आध्यात्मिक समझ होती भी है, तो वह आधी-अधूरी होती है, पूर्ण आध्यात्मिक समझ नहीं होती; दूसरे, यह दर्शाता है कि तुम सत्य से प्रेम नहीं करते और सत्य को गंभीरता से नहीं लेते; तीसरे, यह दिखाता है कि तुममें काबिलियत की बहुत कमी है और समझने की क्षमता बिल्कुल नहीं है। मैंने मसीह-विरोधियों को उजागर करते हुए बहुत कुछ कहा है, लेकिन तुम्हें उसमें से कुछ भी समझ में नहीं आया। उस समय तुम्हें लग सकता है कि तुम इसे समझ गए हो, लेकिन बाद में यह समझ धुँधला जाती है, और इससे पता चलता है कि तुम अभी भी इसे नहीं समझ पाए हो। तुम क्यों नहीं समझते? क्या इसका समझ की क्षमता से कोई संबंध है? जब मैंने इस स्तर तक चीजों को समझाया है और तुम अभी भी नहीं समझ पाए हो, तो इसका मतलब है कि तुममें समझने की क्षमता की बहुत कमी है और सत्य समझने की क्षमता तुममें वास्तव में नहीं है। क्या मैं जो कह रहा हूँ वह बिल्कुल ठीक है? ऐसा ही है। तुम लोगों में से कुछ लोग हैं जो 10 या 20 वर्षों से धर्मोपदेश सुन रहे हैं और फिर भी सत्य नहीं समझते। हम इसकी व्याख्या कैसे कर सकते हैं? केवल दो संभावनाएँ हैं : एक यह कि तुम्हारे पास आध्यात्मिक समझ नहीं है, तुममें काबिलियत की कमी है, और तुम सत्य समझने में सक्षम नहीं हो; दूसरी यह कि, हालाँकि तुम्हारे पास आध्यात्मिक समझ है, लेकिन तुम सत्य से प्रेम नहीं करते और सत्य में तुम्हारी रुचि नहीं है। तुम पर यदि इन दो संभावनाओं में से कोई एक लागू होती है, तो तुम्हारे भीतर सत्य को समझने की योग्यता नहीं है। यदि तुम पर दोनों संभावनाएँ लागू होती हैं, तो तुम बचाए जाने की सीमा से परे हो, और यह आशाविहीन है। यदि मेरे संगति समाप्त करने के बाद भी तुम लोग अपनी उचित तुलना नहीं कर सकते, और नहीं जानते कि मेरे कहने का मतलब क्या है, तो यह तथ्य तुम्हारी समझने की क्षमता के बारे में क्या बताता है? क्या यह बहुत कम नहीं है? यदि तुम लोग ज्यादा आलसी हो, आराम की लालसा करते हो, सत्य के प्रति कोई प्रेम नहीं रखते, व्यक्तिगत प्राथमिकताएँ रखते, और बाहरी मामलों से विचलित होते हो, तो इन वचनों का तुम पर कम से कम प्रभाव पड़ेगा, और उनका प्रभाव बहुत कम होगा—यह ऐसा ही है। वास्तव में, मसीह विरोधियों की पहचान करना बहुत आसान है। इसका एक पक्ष है काम करने के जिन तरीकों का वे उपयोग करते हैं उन्हें साफ समझ लेना, जबकि दूसरा पक्ष यह देखना है कि उनका स्वभाव कैसा है, जीवन में उनकी दिशा और अस्तित्व के बारे में उनके विचार क्या हैं, भाई-बहनों के प्रति, कर्तव्य के प्रति, परमेश्वर के घर के हितों के प्रति, परमेश्वर के प्रति, सत्य के प्रति, और सकारात्मक चीजों के प्रति उनका रवैया क्या है, और कार्यकलाप के उनके सिद्धांत क्या हैं। इन पक्षों का उपयोग करके मूल रूप से तुम उन्हें वर्गीकृत कर सकोगे। क्या अब भी बहुत देर तक उनका देखने और उनके बारे में जानने की कोई जरूरत होगी? नहीं। मसीह-विरोधी केवल अनैतिक संबंधों में संलिप्त नहीं होते, न ही वे लोगों पर केवल अत्याचार करते हैं। उनकी प्रकृति शैतानी होती है और वे कुछ भी करने में सक्षम होते हैं। यदि इन धर्मोपदेशों को सुनने के बाद भी तुम लोग मसीह-विरोधियों के स्वभाव को पहचानने में असमर्थ हो और यह नहीं बता सकते कि वे जो प्रकट कर रहे हैं वह मसीह-विरोधी स्वभाव है, तो क्या तुम लोगों ने उन धर्मोपदेशों में से कुछ भी समझा है? तुम धर्म-सिद्धांत को तो याद रखते हो, लेकिन तुम किसी भी चीज की उससे तुलना नहीं कर सकते, और जब तथ्यों का सामना होता है तो तुम्हारा धर्म-सिद्धांत कमजोर और अप्रभावी रहता है, और यह साबित करता है कि तुम लोगों ने उसे नहीं समझा है। यदि तुम इसे उसी समय समझते हो और बाद में कुछ प्रार्थना-पाठ करते हो, यदि तुम अक्सर भाई-बहनों के साथ इन चीजों पर संगति करते हो, इन सत्यों पर ध्यान देते हो और उन पर मनन करते हो, और अक्सर परमेश्वर के सामने प्रार्थना करते हो, तो तुम अधिक लाभ प्राप्त करोगे। परंतु, यदि तुम अपने कर्तव्य में आराम की कामना करते हो, ढीले हो, तुम पर कोई बोझ नहीं है, तुम्हारी व्यक्तिगत प्राथमिकताएँ हैं, तुम मनमौजी हो, वास्तव में सत्य से प्रेम नहीं करते, सांसारिक प्रवृत्तियों का अनुसरण करते हो, और बाहरी मामलों से आकर्षित होते हो, तो तुम अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाने में असमर्थ रहोगे। अंत में, ये सत्य जिन पर हमने संगति की है, वे तुम्हारे लिए व्यर्थ हो जाएँगे और जो कुछ बचेगा वह केवल शब्द और धर्म-सिद्धांत होंगे, और इसका अर्थ होगा कि तुमने यह सब बेमतलब ही सुना है। क्या तुम लोग इन संगतियों को बाद में फिर से सुनते हो? (हाँ।) तुम उन्हें कितनी बार सुन सकते हो? क्या हर बार सुनने पर उनका अलग प्रभाव होता है? क्या तुम बाद में उन पर मनन करते हो? उन पर मनन करने के बाद तुम पर कैसे प्रभाव रह जाते हैं? जहाँ तक तुम्हारा सवाल है, तो क्या ये उपदेश तुम्हारे लिए अभ्यास के सिद्धांत और तुम्हारे जीवन में लोगों और चीजों को पहचानने के मानदंड बन सकते हैं? (मैं मसीह विरोधियों के कुछ स्पष्ट स्वभावों और अभिव्यक्तियों की तुलना खुद से कर सकता हूँ, यानी, मैं जो कुछ कहता और करता हूँ उसका स्पष्ट इरादा दूसरों के हृदयों को आकर्षित करना है, और मैं परमेश्वर के उजागर करने वाले वचनों के बारे में सोचता हूँ और जानता हूँ कि मेरे कार्यों की प्रकृति दूसरों के हृदय आकर्षित करने वाली है और ऐसा मैं किसी उद्देश्य से कर रहा हूँ। परंतु, लोगों की पहचान करने के मामले में मैं अभी भी काफी कमजोर हूँ, और मैं उद्देश्य के साथ परमेश्वर के वचनों की तुलना अपने आस-पास के लोगों से नहीं करता।) मुझे बताओ कि जब तुम खुद को स्पष्टता से देखना चाहते हो, तो दर्पण का उपयोग करते हो या मटमैले पानी के पोखर का? (दर्पण का।) दर्पण में देखने का क्या लाभ है? तुम खुद को अधिक स्पष्टता से देख सकते हो। इसलिए, यह बहुत सीमित सी बात है कि तुम केवल अपने आप को पहचान सकते हो; तुम्हें दूसरों को पहचान करना भी सीखना चाहिए। दूसरों की पहचान करने का मतलब उन्हें जानबूझकर मसीह-विरोधियों के रूप में वर्गीकृत करना नहीं है, बल्कि विभिन्न प्रकार के लोगों की कथनी और करनी को मापने और पहचानने या समझने के सिद्धांत अपनाना है। एक व्यक्ति के लिए यह लाभदायक होता है और ऐसा करने से वह लोगों के साथ सिद्धांतों के अनुसार सही व्यवहार भी कर सकता है, जो दूसरों के साथ अपना कर्तव्य निभाते समय सामंजस्यपूर्ण सहयोग प्राप्त करने में लाभप्रद है। परंतु, केवल स्वयं को जानने पर भरोसा करने वाला व्यक्ति केवल सीमित परिणाम ही पा सकता है। सत्य का अनुसरण करते समय तुम केवल स्वयं को जानने पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सकते। तुम्हें परमेश्वर के प्रति समर्पण का प्रभाव पाने के लिए सत्य को व्यवहार में लाने पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए। केवल एक पहलू पर ध्यान केंद्रित करने पर तुम कभी सत्य को पूरी तरह नहीं समझ सकोगे या सत्य वास्तविकता में प्रवेश नहीं कर सकोगे, न ही तुम जीवन में आगे बढ़ पाओगे। यह काफी हद तक केवल शब्दों और धर्म-सिद्धांतों को समझने जैसा ही है, और तुम परमेश्वर को जानने में असमर्थ रहोगे। जो लोग वास्तव में सत्य समझते हैं, वे सभी चीजों की असलियत समझते हैं। वे न केवल स्वयं को जानते हैं, बल्कि वे दूसरों की भी पहचान कर सकते हैं, और वे सभी प्रकार के लोगों, घटनाओं और चीजों की असलियत पूरी तरह से समझ सकते हैं। केवल इसी तरह से कोई व्यक्ति अपने कर्तव्य का निर्वाह मानक के अनुसार कर सकता है और परमेश्वर द्वारा उपयोग में लाया जा सकता है।
आज मसीह विरोधियों के दुष्ट स्वभाव की अभिव्यक्तियों पर संगति करने से तुम लोगों को दुष्ट स्वभाव के बारे में कौन सी गहरी और नई समझ मिली है? इस पर संगति करो। (हे परमेश्वर, आज जिस बात ने मुझे सबसे अधिक झिंझोड़ा है, वह है परमेश्वर का यह कहना कि यदि हम मसीह-विरोधियों की तरह कार्य करते हैं और जानबूझकर परमेश्वर के घर के कार्य में विघ्न-बाधा डालते हैं, तो हम जिंदा शैतान हैं। परमेश्वर ने कुछ ऐसे लोगों के बारे में बात की जो किसी का खुद से बेहतर होना बर्दाश्त नहीं कर सकते, और मैंने अपने बारे में विचार किया और महसूस किया कि मुझमें प्रतिस्पर्धा की खास तौर पर गंभीर भावना है, और जब मैं देखता हूँ कि जिस व्यक्ति के साथ मैं अपना कर्तव्य निभाता हूँ, उसमें मुझसे अधिक ताकत है, तो मैं परेशान हो जाता हूँ, और मैं हमेशा उनसे आगे निकलना चाहता हूँ। मुझे लगता है कि मेरी स्थिति परमेश्वर द्वारा उजागर किए गए जीवित शैतानों जैसी है, और मैं पाता हूँ कि इस मामले की प्रकृति मेरी कल्पना से कहीं अधिक गंभीर है, और यह बात मुझे डराती है। मैंने इसे कभी बहुत गहराई से नहीं समझा, और अब जब मैं देखता हूँ कि मेरा यह भ्रष्ट स्वभाव कितना गंभीर है, तो मैं बहुत परेशान हो जाता हूँ।) अब तुम इसे पहचान गए हो। लोगों के भ्रष्ट स्वभाव क्षणिक प्रकटीकरण जितने सरल नहीं होते; उनका एक मूल कारण और उनसे जुड़ी कुछ चीजें होती हैं जो तुम्हारे लिए उन भ्रष्ट स्वभावों को दूर करना कठिन बना देती हैं, वे हमेशा तुम्हें नियंत्रित करते हैं और तुमसे इतनी ज्यादा भ्रष्टता प्रकट करवाते हैं कि तुम खुद को रोक नहीं पाते। लोग स्पष्ट रूप से नहीं बता पाते कि क्यों वे ऐसे हैं, और इसे नियंत्रित नहीं कर सकते—ये लोगों के स्वभाव हैं। किसी व्यक्ति के लिए इस तरह के भ्रष्ट स्वभाव को स्पष्ट रूप से समझ पाना प्रगति का एक पक्ष है। जब इस तरह के भ्रष्ट स्वभाव की बात आती है, तो यदि तुम सत्य की खोज कर सकते हो और उसके सार को स्पष्ट देख सकते हो, यदि तुम परमेश्वर के न्याय, परीक्षणों और शोधन को स्वीकार कर सकते हो, यदि ऐसा करके तुम एक ऐसी स्थिति प्राप्त कर सकते हो जिसमें तुम सत्य का अभ्यास करो और वास्तव में परमेश्वर के प्रति समर्पित हो जाओ, तो यह भ्रष्ट स्वभाव बदल सकता है—यह सत्य की समझ के आधार पर तुम्हारा सत्य को अभ्यास में लाना आरंभ करना है। तुम लोगों में से अधिकांश के लिए अब अपने भ्रष्ट स्वभाव को प्रकट करते समय आत्म-संयम का प्रयोग करना बहुत कठिन है, और इसका मतलब है कि तुमने अभी तक सत्य का अभ्यास करना शुरू नहीं किया है; अपने कर्तव्य-पालन में तुम लोग जो थोड़ा-बहुत करते हो, वह ज्यादातर व्यक्तिगत रुचि, प्राथमिकता और यहाँ तक कि उग्रता पर आधारित होता है, और स्वभावगत बदलाव से इसका कोई संबंध नहीं होता, ठीक है न? (सही है।) बढ़िया, तुम प्रेरित हुए। और कौन बोलना चाहेगा? (आज परमेश्वर की संगति सुनने के बाद मैं बहुत द्रवित महसूस कर रहा हूँ। मैं सोचता था कि दुष्टता का मतलब कपटपूर्ण ढंग से बोलना, खुलकर न बोलना, हमेशा दिखावा करना और दूसरों को धोखा देना है। दुष्ट स्वभाव क्या होता है, इस पर आज परमेश्वर द्वारा किए गए गहन विश्लेषण को सुनकर, अब मैं जानता हूँ कि दुष्टता का अर्थ है सत्य और सकारात्मक चीजों का प्रतिरोध करना और उनसे संघर्ष करना, और यदि कोई सत्य और सकारात्मक चीजों से लड़ता है और उनका विरोध करता है, तो यह उसका दुष्ट स्वभाव है। दुष्ट स्वभाव के बारे में मेरी समझ बहुत छिछली थी, लेकिन अब जब मैंने परमेश्वर की संगति सुनी है, तो मुझे एक नई समझ मिली है। इसके अलावा, जिस बात ने मुझे बहुत झकझोरा है, वह है परमेश्वर का यह कहना कि कनाडाई फिल्म निर्माण टीम को एक साल के लिए ग्रुप बी के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा। यह सुनकर मुझे वास्तव में झटका लगा और परमेश्वर ने इस मामले को जिस तरह से संभाला उससे मैं परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव देख सकता हूँ। मैं देख पाता हूँ कि उस टीम में एक भी व्यक्ति सत्य का अभ्यास नहीं कर रहा था और इस बात ने परमेश्वर के घर के काम में बहुत बड़ी बाधाएँ पैदा कीं, और यह सब मुझे सचमुच गुस्सा दिलाता है। हाल ही में हमारी टीम के लोग भी इसी तरह की स्थिति में रहे हैं, यानी, हम पर किसी कर्तव्य का भार नहीं है। जब हमारा कार्यभार पहले से हल्का हो गया, तो हमने अपने कर्तव्य के लिए स्पष्ट योजनाएँ नहीं बनाईं और अपने कर्तव्य में ढिलाई बरती, बस दिन गुजारते रहे। आज परमेश्वर की संगति सुनकर मैं समझ पाया हूँ कि यदि कोई सत्य का अभ्यास नहीं करता है या अपने कर्तव्य में उन्नति का प्रयास नहीं करता, और यदि कोई सत्य के बारे में गंभीर नहीं है, तो परमेश्वर कर्तव्य-निर्वाह के प्रति इस तरह के रवैये को सख्त नापसंद करता है। मैं यह भी समझ पा रहा हूँ कि अपने कर्तव्य-निर्वाह के लिए हमें समय और अवसर को सँजोना चाहिए। यदि हम अपने कर्तव्य को सँजोते नहीं, तो जब परमेश्वर द्वारा हमारी प्रतीक्षा किए जाने का समय, और परमेश्वर द्वारा हमें दिए गए अवसर बर्बाद हो जाएंगे, तो वह लोगों पर अपना क्रोध बरसाएगा, और तब तक पछतावे के लिए बहुत देर हो चुकी होगी।) ऐसा लगता है कि तुम लोगों पर कुछ दबाव रखने की जरूरत है, है न? (हाँ।) बढ़िया। यह एक वास्तविक समस्या है, और जब तुम लोग इकट्ठा होते हो, तो तुम्हें इस समस्या को हल करने के तरीके पर संगति करनी चाहिए। तुम लोगों को नियमित अंतराल पर मिल-बैठकर संगति करनी चाहिए, एक सारांश निकालना चाहिए और एक नई योजना ढूंढ़नी चाहिए। इस जीवन में मुझ समेत हर व्यक्ति का एक ध्येय है, और कोई व्यक्ति यदि अपने ध्येय के लिए नहीं जीता, तो उसके लिए इस जीवन को जीने का कोई मूल्य नहीं है। यदि तुम्हारे जीवन जीने का कोई मूल्य नहीं है, तो तुम्हारा जीवन मूल्यहीन है। मैं इसे मूल्यहीन क्यों कहता हूँ? तुम एक चलती-फिरती लाश की तरह जीवन जिओगे; तुम जीने के लायक नहीं होगे। यदि तुम अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी नहीं करते और अपने ध्येय को पूरा नहीं करते, तो तुम परमेश्वर द्वारा दी गई सभी चीजों का आनंद लेने के लायक नहीं हो। यह क्या संकेत करता है? इसका मतलब है कि परमेश्वर किसी भी क्षण तुमसे सब कुछ छीन सकता है। परमेश्वर दे सकता है, और परमेश्वर ले भी सकता है—ऐसा ही है। वास्तव में, यहाँ मौजूद हर व्यक्ति का एक ध्येय है, बस तुम सभी के काम अलग-अलग हैं। गैर-विश्वासियों का भी ध्येय होता है। उनका ध्येय इस दुनिया में सब कुछ खराब करना और समाज में अव्यवस्था पैदा करना है ताकि लोग अधिक से अधिक पीड़ा में जिएं और आपदाओं के बीच मरें। तुम लोगों का ध्येय परमेश्वर के कार्य में सहयोग करना, परमेश्वर के सुसमाचार और नए कार्य को फैलाने के साथ ही साथ सत्य को समझना और उद्धार प्राप्त करना है—यह सर्वाधिक आनंददायी है। मानव इतिहास में इससे अधिक आनंदमय या इससे बड़ा सौभाग्य कुछ भी नहीं रहा है। इससे अधिक महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं है; यह जीवन की सबसे बड़ी बात है, और यह मानव इतिहास की सबसे बड़ी बात है। यदि तुम अपना ध्येय त्याग देते हो और अपने कर्तव्य और जिम्मेदारियों से विरत हो जाते हो, तो तुम्हारा जीवन मूल्यहीन हो जाएगा, और तुम्हारे लिए जीने का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा। हो सकता है कि तुम अभी मरो नहीं और अपना शेष जीवन इसी संसार में जियो, फिर भी तुम्हारे लिए जीने का कोई अर्थ या मूल्य नहीं रह जाएगा। मान लो कि कोई व्यक्ति है जिसने कभी सत्य या परमेश्वर के मार्ग के बारे में नहीं सुना, और एक व्यक्ति जो कभी जानता था कि परमेश्वर की प्रबंधन योजना क्या है और परमेश्वर के मार्ग को समझता था, लेकिन अंत में उसे सत्य या जीवन प्राप्त नहीं हुआ, मुझे बताओ कि इस संसार में रहते हुए वे दोनों क्या अपने अंतरतम हृदय में एक जैसा ही महसूस करेंगे? (नहीं।) गैर-विश्वासी अपना ध्येय नहीं जानते; उन्हें ध्येय की कोई समझ नहीं होती। तुम जानते हो कि तुम्हारा ध्येय कहां से आया है, तुम जानते हो कि परमेश्वर सृष्टिकर्ता है, सभी चीजों का संप्रभु है, तुम जानते हो कि लोग परमेश्वर से आते हैं और उन्हें उसी के पास लौटना चाहिए—यह सब जानते हुए भी क्या तुम इस दुनिया में शांति से रह सकते हो? क्या तुम अभी भी अपना जीवन सहजता से जैसे-तैसे जी सकते हो? नहीं, तुम ऐसा नहीं कर सकते। चूँकि परमेश्वर ने तुम्हें यह ध्येय दिया है, इसलिए तुम्हें सुसमाचार फैलाने की जिम्मेदारी उठानी चाहिए, दूसरों के सामने परमेश्वर के लिए गवाही देनी चाहिए, वे सभी जिम्मेदारियाँ पूरी करनी चाहिए जो किसी मनुष्य को निभानी चाहिए, जिस सत्य को तुम समझते हो, उसे और अपनी अनुभवजन्य गवाही को सभी के लाभ के लिए समर्पित करना चाहिए, और तब परमेश्वर संतुष्ट होगा। लोग वास्तव में बस यही चीजें करने में सक्षम हैं। तुम जब तक थोड़ा कष्ट सह सकते हो, कुछ कीमत चुका सकते हो, और आराम की लालसा थोड़ी घटा सकते हो, तब तक तुम इन चीजों को पाने योग्य रहोगे। इस तरह, तुम्हारा परिणाम गैर-विश्वासियों से अलग होगा, और परमेश्वर तुम्हें अलग तरीके से मापेगा—यह बहुत दुर्लभ है! परमेश्वर तुम्हें यह आशीष देता है, और यदि तुम इसे सँजोना नहीं जानते, तो तुम घोर विद्रोही हो। चूँकि तुमने परमेश्वर में आस्था का यह मार्ग चुना है, इसलिए इसके बारे में दुविधा मत पालो, बल्कि एकनिष्ठ होकर अपने हृदय को शांत करो और अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाओ। पछतावे में मत रहो। भले ही तुम अभी पतरस जैसा आध्यात्मिक कद न हासिल कर सको और अय्यूब जैसे धार्मिक कृत्य न कर सको, फिर भी अपने कर्तव्य को मानक के अनुसार निभाने का प्रयास करो। “अपने कर्तव्य को मानक के अनुसार निभाने” का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है बिना किसी ढिलाई के, बिना कोई गुप्त मंशा पाले या किसी भी चीज को रोके सत्य सिद्धांतों और परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं के अनुसार अपना कर्तव्य निभाना—ऐसा करने पर तुम अपने कर्तव्य को मानक के अनुसार निभा रहे होगे। परमेश्वर लोगों से बहुत कुछ अपेक्षा नहीं करता, है ना? (हाँ, सही है।) क्या इसे हासिल करना आसान है? यह मानवता के दायरे में आने वाली बात है और तुम्हें इसे हासिल करने में सक्षम होना चाहिए। क्या कोई और सवाल है? यदि नहीं, तो हम आज के लिए इस संगति को यहीं समाप्त कर सकते हैं।
10 जुलाई 2019