मद तीन : सत्य का अनुसरण करने वालों को वे निकाल देते हैं और उन पर आक्रमण करते हैं

लोगों को नियंत्रित करने के लिए मसीह-विरोधी जिस तीसरी तरकीब का उपयोग करते हैं : सत्य का अनुसरण करने वालों को वे निकाल देते हैं और उन पर आक्रमण करते हैं। कुछ लोगों को सकारात्मक चीजें, न्याय और प्रकाश और सत्य के बारे में संगति करना पसंद होता है। वे अक्सर उन भाई-बहनों की तलाश में रहते हैं जो सत्य का अनुसरण करते हैं और सत्य के साथ संगति करने के लिए उसकी खोज में लगे रहते हैं। यह देखकर एक मसीह-विरोधी का गुस्सा भड़क उठता है। उनके लिए सत्य का अनुसरण करने वाला हर व्यक्ति आँख की किरकिरी की तरह, रास्ते के काँटे की तरह होता है; वे चाहते हैं कि सत्य का अनुसरण करने वाले सभी लोग उनके आक्रमणों, निकाले जाने और हमलों का शिकार बनते रहें। बेशक एक मसीह-विरोधी इन लोगों पर केवल ऐसी क्रूर, बर्बर रणनीति के साथ आक्रमण नहीं करेगा जो लोगों के देखने के लिए साफ और स्पष्ट हो। वे सत्य की संगति करने का तरीका अपनाते हैं और कुछ शब्दों और सिद्धांतों के साथ वे लोगों के मामले में फैसला सुनाते हैं और उन पर प्रहार करते हैं। इससे लोगों को लगता है कि वे जो कुछ भी कर रहे हैं वह वाजिब और उचित है, कि वे सहायता कर रहे हैं—कि वे जो कुछ कर रहे हैं उसमें कुछ भी गलत नहीं है। उनके ये “वाजिब और उचित” तरीके कौन से हैं? (वे लोगों के मामले में फैसला सुनाने और उन पर प्रहार करने के लिए परमेश्वर के वचनों का हवाला देते हैं।) सही है—वे लोगों को उजागर करने और उनके मामले में फैसला सुनाने के लिए परमेश्वर के वचनों का हवाला देते हैं। यही उनका सबसे आम तरीका होता है। बाहर से देखने पर तो बोलने का यह तरीका न्यायसंगत, उचित और काफी वाजिब लगता है, लेकिन अंदर से उनका इरादा दूसरों की मदद करना नहीं होता, बल्कि उन्हें उजागर करना, उनके मामले में फैसला सुनाना, उनकी निंदा करना और उन्हें नीचा दिखाना होता है। यही वह चीज है जिसे वह पूरा करना चाहते हैं। तो समस्या अंदर है जहाँ से उनकी शुरुआत होती है। चौकस निगाह रखने वाले लोग देख सकते हैं कि वे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि वो लोग सत्य का अनुसरण करते हैं और उससे प्रेम करते हैं और उनसे मसीह-विरोधी को खतरा होता है। और वह खतरा क्या होता है? सत्य के प्रति उनका प्रेम मसीह-विरोधी को किस तरह बाधित करता है? (वे उनकी असलियत देख सकते हैं और उन्हें पहचान सकते हैं।) ठीक है। सत्य से प्रेम करने वाले इन लोगों से मसीह-विरोधी को जो सबसे बड़ा खतरा होता है वह यह होता है कि वे मसीह-विरोधी द्वारा किए गए किसी भी बुरे काम को पहचान सकते हैं, चाहे वह कुछ भी हो; वे उसके सार की असलियत को देख सकते हैं और वे कहीं भी किसी भी समय उसे उजागर करने, उसकी रिपोर्ट करने और उसका पर्दाफाश करने और फिर उसकी निंदा करने और उसे अस्वीकार करने और कलीसिया से दूर करने के लिए उत्तरदायी होते हैं। अगर ऐसा होता है तो वे हमेशा के लिए अपनी हैसियत और सत्ता खो देंगे और आशीष पाने की उनकी संभावना पूरी तरह से मिट्टी में मिल जाएगी। यही कारण है कि एक मसीह-विरोधी के लिए सत्य का अनुसरण करने वाले ये लोग विरोधियों के बाद सबसे बड़ा खतरा होते हैं।

सत्य का अनुसरण करने वाले लोगों पर प्रहार करने और उनके मामले में फैसला सुनाने के लिए परमेश्वर के वचनों पर संगति का उपयोग करने जैसे बाहर से उचित लगने वाले तरीकों के अतिरिक्त मसीह-विरोधी उनके विरुद्ध कठोर कदम भी उठाते हैं। वे कठोर कदम क्या होते हैं? उदाहरण के लिए, वे किसी अगुआ या कार्यकर्ता के एक मामूली से अपराध को पकड़ कर बैठ जाएँगे; चाहे इसका संदर्भ कुछ भी हो, चाहे उस व्यक्ति को इससे ज्ञान प्राप्त हुआ हो और वह पश्चात्ताप कर पाया हो और चाहे वह सत्य का अनुसरण करने वाला व्यक्ति हो, वे उस व्यक्ति के मामले में फैसला सुनाने, उसकी निंदा करने और उसे बाहर निकालने के लिए इसकी गंभीरता को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करेंगे। मसीह-विरोधियों का मानना होता है कि घास से छुटकारा पाने के लिए आपको उसे जड़ से साफ करना होता है और इसलिए वे ऐसे लोगों को कलीसिया से बाहर निकाल देते हैं, ताकि वे मसीह-विरोधियों की हैसियत के लिए कोई खतरा न बनें। सभी बुरे लोग और मसीह-विरोधी ऐसे मौके हथियाने में माहिर होते हैं जिनका उपयोग अगुआओं और कार्यकर्ताओं के खिलाफ किया जा सकता है, और जब उन्हें कोई ऐसी चीज मिल जाती है तो वे उनकी झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों के रूप में निंदा करते हैं। कोई मामूली आरोप नहीं! परमेश्वर के चुने हुए लोग अगुआओं और कार्यकर्ताओं का चयन करते हैं; तुम हमेशा उनके विरुद्ध उपयोग करने के लिए मौकों की तलाश में क्यों रहते हो? ऐसे मौके पाने के पीछे तुम्हारा लक्ष्य क्या है? कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम उनकी जगह अगुआ बनना चाहते हो? एक बार जब बुरा व्यक्ति किसी अगुआ या कार्यकर्ता पर झूठे अगुआ और मसीह-विरोधी होने का आरोप लगा देता है, अगर वह जीते-जागते उदाहरणों की सूची भी दे देता है और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर देता है कि यह तथ्यों से मेल खाता है, तो फिर दिक्कत हो जाती है। उस अगुआ या कार्यकर्ता को आसानी से कलीसिया से बाहर निकाला जा सकता है। झूठा अगुआ या मसीह-विरोधी होना इतना बड़ा अपराध है कि एक बार अपराध साबित होने के बाद आरोपी की भरपूर निंदा की जाती है और परमेश्वर के विश्वासी के रूप में उसका करियर समाप्त हो जाता है। ऐसे तो वे बर्बाद हो जाएँगे, है न? यह कितनी बुरी बात है! इसके अलावा अगर मसीह-विरोधी खुद को अगुआ के रूप में चुने जाने के अवसर का लाभ उठा लेता है और कलीसिया का नियंत्रण अपने हाथ में ले लेता है, तो फिर क्या परमेश्वर के चुने हुए लोग मसीह-विरोधी के नियंत्रण में नहीं आ जाएँगे? तो फिर क्या कलीसिया मसीह-विरोधी का राज्य बन कर नहीं रह जाएगा? (बन जाएगा।) यह बहुत गंभीर खतरा है! क्या बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों के पास सत्य का अनुसरण करने वालों पर आक्रमण करने और उन्हें निकालने के लिए दूसरी तरकीबें भी होती हैं? क्या कुछ लोग सत्य का अनुसरण करने वाले भाई-बहनों को सबसे खतरनाक जगहों पर काम करने के लिए नहीं भेजते, ताकि वे सत्ता हथिया सकें और अपनी हैसियत को मजबूत कर सकें? वे कहते हैं, “वहाँ एक नया स्थापित कलीसिया है और वहाँ बहुत से ऐसे भाई-बहन हैं जो हाल ही में आस्था के साथ जुड़े हैं। उनकी कोई बुनियाद नहीं है और उनमें बुद्धि की भी कमी है। उन्हें किसी ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता है जो सत्य को समझता हो ताकि वह उनका सिंचन करे और उनकी जरूरतें पूरी करे। तुम तो दर्शनों की सच्चाई को समझते हो; इन नए लोगों को तुम्हारे जैसे किसी व्यक्ति की जरूरत है जो उनका सिंचन करे। यह काम और कोई नहीं कर सकता।” और इसी के साथ मसीह-विरोधी एक गंभीर छिपे हुए खतरे को खुद से दूर कर देता है। क्या वह सच में ऐसा इसलिए कर रहा है ताकि वह व्यक्ति उस कलीसिया की अगुआई और उसकी जरूरतें पूरी कर सके? (नहीं।) नहीं; वह ऐसा इसलिए कर रहा है क्योंकि वह जगह शत्रुतापूर्ण है, उसका वातावरण खतरनाक है। उसने उस व्यक्ति को कलीसिया का कार्य करने के लिए खतरनाक जगह पर रखा है, उसे इस बात की उत्सुकता है कि उन्हें बड़ा लाल अजगर पकड़ कर ले जाएगा। अगर वह व्यक्ति पकड़ा जाता है, तो मसीह-विरोधी की हैसियत को खतरे में डालने वाला कोई नहीं बचेगा और वह कलीसिया का नियंत्रण अपने हाथ में ले सकेगा। क्या यही उसकी चाल नहीं है? वह उस व्यक्ति को इस बहाने से दूर भेजता है कि वह नए लोगों के सिंचन के लिए उपयुक्त है और इस प्रकार अब उनके नापाक इरादों को कोई नहीं देख पाता। क्या यह उसकी चालाकी नहीं है? और भाई-बहनों को लगता है कि मसीह-विरोधी चतुर और बुद्धिमान है जो ऐसी व्यवस्था कर रहा है, कि वह परमेश्वर के इरादों के अनुसार कार्य करने वाला व्यक्ति है, लेकिन पता चलता है कि मसीह-विरोधी उन्हें धोखा दे रहा था और उनकी आँखों में धूल झोंक रहा था। देखने में तो मसीह-विरोधी की यह तरकीब काफी ईमानदार लगती है; कोई भी स्पष्ट रूप से नहीं देख सकता कि वास्तव में क्या हो रहा है और हर कोई गुमराह हो जाता है। जो लोग इससे गुमराह होते हैं उन्हें लगता है कि मसीह-विरोधी जो कुछ कर रहा है वह न्यायसंगत और उचित है, कि वह कार्य की चिंता करते हुए ऐसा कर रहा है—लेकिन कोई भी उसके असली इरादे को नहीं समझ पाता। मसीह-विरोधी दुष्ट होते हैं, है न? जहाँ कहीं भी खतरा होता है, वे तुम्हें वहीं ले जाते हैं और खुद से कहते हैं, “क्या तुम सत्य का अनुसरण नहीं करते? और क्या तुम मेरे खिलाफ नहीं जाते? क्या तुम हमेशा मुझे पहचान नहीं रहे हो और मेरे विरुद्ध उपयोग करने के लिए मौके ढूँढ़ रहे हो? ठीक है तो : मैं तुम्हें यहाँ से भगाने के लिए इस मौके का उपयोग करूँगा। अच्छा होगा कि तुम पकड़े जाओ—तुम फिर कभी अपने पैरों पर खड़े नहीं हो पाओगे!” यह बात तो निश्चित है कि मसीह-विरोधी कलीसिया में जिन लोगों को फँसाते और सताते हैं, उनमें से अधिकांश वे होते हैं जो अधिक अनुसरण करते हैं। जब इन लोगों को सताया और उन्हें निकाला जा रहा होता है तो मसीह-विरोधी उन्हें किस नजर से देखते हैं? वे खुद से कहते हैं, “ये लोग हमेशा उपदेश सुनते रहते हैं; वे कुछ न कुछ सत्य समझते हैं। मैं उन्हें सुनने से तो नहीं रोक सकता : उपदेश हर किसी के सुनने के लिए उपलब्ध हैं, इसलिए उन्हें सुनने से रोकने का कोई औचित्य नहीं है। लेकिन मान लो कि अगर मैं उन्हें सुनने की अनुमति देता हूँ, चूँकि उन उपदेशों में बताई जाने वालीं बहुत सी बातें झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों को उजागर करती हैं, तो अगर वे ज्यादा बातें सुन लेते हैं और जानने और समझने लगते हैं तो क्या यह मेरे लिए अच्छा होगा? मुझे आज नहीं तो कल अपने अगुआ के पद से हटना पड़ेगा, है न? ऐसा नहीं होगा। मुझे पहला कदम उठाना होगा।” जब कोई मसीह-विरोधी ऐसा इरादा बना लेता है, तो फिर वह कार्रवाई करने के लिए तैयार हो जाता है। अगर लोग सत्य को नहीं समझते तो फिर मुट्ठी भर लोग भी मसीह-विरोधी को पहचानने में सक्षम नहीं होंगे। ऐसा क्यों होता है कि मसीह-विरोधी तो यह सब करके बच जाते हैं, जबकि सत्य का अनुसरण करने वाले लोग शिकार बन जाते हैं? इसका एक कारण तो निश्चित रूप से मौजूद है : उन लोगों के दिल में सत्य और सकारात्मक चीजों के लिए कुछ प्रेम हो सकता है और उनमें सत्य का अनुसरण करने की कुछ आकांक्षा भी हो सकती है, लेकिन वे बहुत ज्यादा कायर भी होते हैं। वे सत्य को नहीं समझते, उनमें समझ की कमी होती है और वे बहुत मूर्ख होते हैं; वे एक मसीह-विरोधी के सार को नहीं देख पाते और वे कभी भी मसीह-विरोधी को उजागर करने के लिए खुद को तैयार नहीं कर पाते, जिसके कारण मसीह-विरोधी को पहला कदम उठाने और उन्हें नुकसान पहुँचाने का मौका मिल जाता है। अगर उन्हें यही परिणाम मिलता है या वे इसी स्थिति में पहुँचे हैं, तो फिर यह कैसे हुआ होगा? क्या मसीह-विरोधी ने उन्हें बर्बाद नहीं किया होगा? (किया होगा।) सत्य का अनुसरण करने वाले लोगों को इससे क्या सबक सीखना चाहिए? किसी अगुआ या कार्यकर्ता के साथ पेश आने के तरीके के संबंध में लोगों का क्या रवैया होना चाहिए? कोई अगुआ या कार्यकर्ता जो करता है, अगर वह सही और सत्य के अनुरूप हो, तो तुम उसका आज्ञापालन कर सकते हो; अगर वह जो करता है वह गलत है और सत्य के अनुरूप नहीं है, तो तुम्हें उसका आज्ञापालन नहीं करना चाहिए और तुम उसे उजागर कर सकते हो, उसका विरोध कर एक अलग राय रख सकते हो। अगर वह वास्तविक कार्य करने में असमर्थ हो या कलीसिया के काम में बाधा डालने वाले बुरे कार्य करता हो, और पता चल जाता है कि वह एक नकली अगुआ, नकली कार्यकर्ता या मसीह-विरोधी है, तो तुम उसे पहचानकर उजागर कर सकते हो और उसकी रिपोर्ट कर सकते हो। लेकिन, परमेश्वर के कुछ चुने हुए लोग सत्य नहीं समझते और विशेष रूप से कायर होते हैं। वे नकली अगुआओं और मसीह-विरोधियों द्वारा दबाए और सताए जाने से डरते हैं, इसलिए वे सिद्धांत पर बने रहने की हिम्मत नहीं करते। वे कहते हैं, “अगर अगुआ मुझे बाहर निकाल दे, तो मैं खत्म हो जाऊँगा; अगर वह सभी लोगों से मुझे उजागर करवा दे या मेरा त्याग करवा दे, तो फिर मैं परमेश्वर में विश्वास नहीं कर पाऊँगा। अगर मुझे कलीसिया से निकाल दिया गया, तो फिर परमेश्वर मुझे नहीं चाहेगा और मुझे नहीं बचाएगा। और क्या मेरी आस्था व्यर्थ नहीं चली जाएगी?” क्या ऐसी सोच हास्यास्पद नहीं है? क्या ऐसे लोगों की परमेश्वर में सच्ची आस्था होती है? कोई नकली अगुआ या मसीह-विरोधी जब तुम्हें निकाल देता है, तो क्या वह परमेश्वर का प्रतिनिधित्व कर रहा होता है? जब कोई नकली अगुआ या मसीह-विरोधी तुम्हें दंडित कर निकाल देता है, तो यह शैतान का काम होता है, और इसका परमेश्वर से कोई लेना-देना नहीं होता; जब लोगों को कलीसिया से निकाला या निष्कासित किया जाता है, तो यह परमेश्वर के इरादों के अनुरूप सिर्फ तभी होता है, जब यह कलीसिया और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के बीच एक संयुक्त निर्णय होता है, और जब निकालना या निष्कासन पूरी तरह से परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाओं और परमेश्वर के वचनों के सत्य सिद्धांतों के अनुरूप होता है। किसी नकली अगुआ या मसीह-विरोधी द्वारा निष्कासित किए जाने का यह अर्थ कैसे हो सकता है कि तुम्हें बचाया नहीं जा सकता? यह शैतान और मसीह-विरोधी द्वारा किया जाने वाला उत्पीड़न है, और इसका यह मतलब नहीं कि परमेश्वर द्वारा तुम्हें बचाया नहीं जाएगा। तुम्हें बचाया जा सकता है या नहीं, यह परमेश्वर पर निर्भर करता है। कोई इंसान यह निर्णय लेने के योग्य नहीं कि तुम्हें परमेश्वर द्वारा बचाया जा सकता है या नहीं। तुम्हें इस बारे में स्पष्ट होना चाहिए। और नकली अगुआ और मसीह-विरोधी द्वारा तुम्हारे निष्कासन को परमेश्वर द्वारा किया गया निष्कासन मानना—क्या यह परमेश्वर की गलत व्याख्या करना नहीं है? बेशक है। और यह परमेश्वर की गलत व्याख्या करना ही नहीं है, बल्कि परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह करना भी है। यह एक तरह से परमेश्वर की निंदा भी है। और क्या परमेश्वर की इस तरह गलत व्याख्या करना अज्ञानतापूर्ण और मूर्खता नहीं है? जब कोई नकली अगुआ या मसीह-विरोधी तुम्हें निष्कासित करता है, तो तुम सत्य क्यों नहीं खोजते? कुछ विवेक प्राप्त करने के लिए तुम किसी ऐसे व्यक्ति को क्यों नहीं खोजते, जो सत्य समझता हो? और तुमने उच्च अधिकारियों को इसकी रिपोर्ट क्यों नहीं करते? यह साबित करता है कि तुम्हें इस बात पर विश्वास नहीं है कि परमेश्वर के घर में सत्य सर्वोच्च है, यह दर्शाता है कि तुम्हें परमेश्वर में सच्ची आस्था नहीं है, कि तुम ऐसे व्यक्ति नहीं हो जो वास्तव में परमेश्वर में विश्वास करता है। अगर तुम परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता पर भरोसा करते हो, तो तुम नकली अगुआ या मसीह-विरोधी के प्रतिशोध से क्यों डरते हो? क्या वे तुम्हारे भाग्य का निर्धारण कर सकते हैं? अगर तुम भलीभाँति समझने, और यह पता लगाने में सक्षम हो कि उनके कार्य सत्य के विपरीत हैं, तो परमेश्वर के उन चुने हुए लोगों के साथ संगति क्यों नहीं करते जो सत्य समझते हैं? तुम्हारे पास मुँह है, तो तुम बोलने की हिम्मत क्यों नहीं करते? तुम नकली अगुआ या मसीह-विरोधी से इतना क्यों डरते हो? यह साबित करता है कि तुम कायर, बेकार, शैतान के अनुचर हो। अगर किसी झूठे नेता या मसीह-विरोधी द्वारा धमकी दिए जाने पर, तुम उच्च अधिकारियों को इसकी रिपोर्ट करने की हिम्मत नहीं करते, तो इससे पता चलता है कि तुम पहले से ही शैतान से बंधे हुए हो और तुम उनके साथ एक दिल हो; क्या यह शैतान का अनुसरण करना नहीं है? ऐसा व्यक्ति परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से एक कैसे हो सकता है? सीधे-सरल रूप में कहें तो वह नीच है। वे सभी लोग जो झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों के साथ एकदिल हैं, कभी भी अच्छे नहीं हो सकते; वे कुकर्मी होते हैं। ऐसे लोग शैतान के अनुचर बनने के लिए ही पैदा हुए हैं—वे शैतान के नौकर हैं और उन्हें छुटकारा नहीं मिल सकता। वे सभी जो मसीह-विरोधियों को बुरा काम करते हुए देखने पर भी उन्हें उजागर करने का साहस नहीं करते, जो मसीह-विरोधियों को नाराज करने से डरते हैं, यहाँ तक कि जो उनका बचाव करते और उनकी आज्ञा मानते हैं—क्या वे मूर्ख एवं अज्ञानी लोग नहीं हैं? अगर तुम सत्य सिद्धांतों से पूरी तरह अवगत हो और फिर भी उनका उल्लंघन करते हो और यहाँ तक कि बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों के साथ गठबंधन करते हो और गुट बनाते हो, तो क्या तुम शैतान के सहयोगी और अनुचर के रूप में काम नहीं कर रहे हो? तो फिर जब आखिरकार तुम्हारे साथ एक बुरे व्यक्ति और मसीह-विरोधियों के साथी के रूप में व्यवहार किया जाता है तो क्या तुम इसके लायक नहीं हो? अगर तुम परमेश्वर में विश्वास रखते हो, लेकिन परमेश्वर का अनुसरण करने के बजाय तुम मसीह-विरोधियों का अनुसरण करते हो, उनके अनुचरों या सहयोगियों में से एक के रूप में कार्य करते हो, तो क्या तुम अपनी ही कब्र नहीं खोद रहे हो, अपनी ही मौत के वारंट पर हस्ताक्षर नहीं कर रहे हो? अगर तुम परमेश्वर में विश्वास रखते हो, लेकिन परमेश्वर के प्रति समर्पित होने के बजाय तुम परमेश्वर के शत्रुओं—मसीह-विरोधियों—के आगे झुकते हो और उनकी शरण लेते हो और इसका परिणाम यह निकलता है कि इन मसीह-विरोधियों द्वारा तुम्हें बहकाया जाता है और तुम्हारे साथ दुर्व्यवहार किया जाता है, तो तुमने खुद ही मुसीबत अपने ऊपर बुलाई है। क्या तुम इसी लायक नहीं हो? अगर तुम मसीह-विरोधी को अपना स्वामी, अपना अगुआ, सहारा देने वाला कंधा समझते हो, तो फिर तुम शैतान की शरण ले रहे हो, तुम शैतान का अनुसरण कर रहे हो, जिसका मतलब यह है कि तुम भटक गए हो और तुमने गलत रास्ता अपना लिया है और ऐसे रास्ते पर कदम रख दिया है जहाँ से कोई वापसी नहीं है। मसीह-विरोधियों के प्रति तुम्हारा रवैया कैसा होना चाहिए? तुम्हें उन्हें उजागर करना चाहिए और उनसे लड़ना चाहिए। अगर तुम सिर्फ एक या दो लोग हो और इतने कमजोर हो कि अकेले मसीह-विरोधियों का सामना नहीं कर सकते, तो तुम्हें इन मसीह-विरोधियों की रिपोर्ट करने और उन्हें उजागर करने के लिए सत्य को समझने वाले और लोगों के साथ मिल कर उनका मुकाबला करना चाहिए और तब तक लड़ते रहना चाहिए जब तक कि उन्हें बाहर नहीं निकाल दिया जाता। मैंने सुना है कि पिछले दो वर्षों में चीन महादेश के कुछ देहाती इलाकों में परमेश्वर के चुने हुए लोग झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों को उनके पद से हटाने के लिए एकजुट हुए थे; कुछ झूठे अगुआ और मसीह-विरोधी तो निर्णय लेने वाले समूहों के मुखिया भी थे लेकिन फिर भी उन्हें परमेश्वर के चुने हुए लोगों ने वैसे ही हटा दिया। परमेश्वर के चुने हुए लोगों को ऊपरवाले की तरफ से मंजूरी मिलने की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी; सत्य सिद्धांतों के आधार पर वे इन झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों को पहचानने में सक्षम थे—जो वास्तविक कार्य नहीं करते थे और हमेशा भाई-बहनों को परेशान करते थे, जो बेकाबू हो गए थे और परमेश्वर के घर के कार्य को बिगाड़ रहे थे—उनका उन्होंने तुरंत निपटान किया। कुछ को निर्णय लेने वाले समूहों से बाहर धकेल दिया गया और कुछ को कलीसिया से निकाल दिया गया—जो बहुत अच्छी बात है! इससे पता चलता है कि परमेश्वर के चुने हुए लोग पहले ही परमेश्वर में विश्वास के सही रास्ते पर कदम रख चुके हैं। परमेश्वर के कुछ चुने हुए लोग पहले ही सत्य को समझ चुके हैं और अब उनका थोड़ा आध्यात्मिक कद भी है, शैतान अब उन्हें नियंत्रित नहीं करता और मूर्ख नहीं बनाता, वे शैतान के सामने खड़े होने और उसकी बुरी ताकतों के साथ युद्ध करने का साहस करते हैं। इससे यह भी पता चलता है कि कलीसिया में झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों की ताकतों का पलड़ा अब भारी नहीं रहा। इसलिए अब वे अपने शब्दों और कार्यों में इतने बेशर्म होने का साहस नहीं रखते। अब जैसे ही वे कोई चाल चलेंगे, कोई न कोई उन पर नजर रखने, उन्हें पहचानने और उन्हें अस्वीकार करने के लिए वहाँ होगा। कहने का मतलब यह है कि जो लोग वास्तव में सत्य को समझते हैं उनके दिलों में इंसान की हैसियत, प्रतिष्ठा और सत्ता का कोई खास महत्व नहीं होता। ऐसे लोग इन चीजों पर भरोसा नहीं करते। जब कोई व्यक्ति सक्रिय रूप से सत्य की खोज कर सकता है और उस पर संगति कर सकता है, और जब वह इस बात का पुनर्मूल्यांकन करना और आत्म-चिंतन करना शुरू कर देता है कि परमेश्वर में विश्वास रखने वाले लोगों को किस रास्ते पर चलना चाहिए और उसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए और वह यह सोचना शुरू कर देता है कि लोगों को किसका अनुसरण करना चाहिए, कौन से व्यवहार मनुष्य का अनुसरण करने वाले और कौन से परमेश्वर का अनुसरण करने वाले हैं, और फिर कई वर्षों तक इन सत्यों को टटोलने और उनका अनुभव करने के बाद जब वह अनजाने में ही कुछ सत्यों को समझने और पहचानने लगता है—तब उसका आध्यात्मिक कद थोड़ा बढ़ जाता है। सभी चीजों में सत्य की खोज करने में सक्षम होना परमेश्वर के प्रति विश्वास के सही मार्ग में प्रवेश करना होता है।

परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों को पहचानना और उन्हें अस्वीकार करने में सक्षम होना एक अच्छी बात है, एक अच्छा संयोग है। कुछ अगुआ वास्तविक कार्य नहीं कर सकते; वे केवल विघ्न-बाधा ही डालते हैं, जिससे कि कलीसिया के जीवन में कोई शांति नहीं रहती। सभी भाई-बहन उनसे असहमत रहते हैं और अंत में वे उन्हें अस्वीकार कर देते हैं। क्या उनका ऐसा करना सही है? (हाँ, सही है।) फिर कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जिन्हें अगुआ के रूप में चुना जाता है और शुरू में भाई-बहन कहते हैं, “हमने इन्हें चुना है, इसलिए हमें उनके कार्य में उनके साथ सहयोग करना चाहिए।” कुछ समय के बाद वे गलत चुनाव साबित होते हैं : वे परमेश्वर पर बहुत उत्साह से विश्वास रखते हैं, लेकिन उनमें आध्यात्मिक समझ नहीं होती है। उनका विकृतियों की ओर झुकाव होता है और वे घमंडी और आत्मतुष्ट होते हैं; वे दूसरों के साथ मामलों पर चर्चा नहीं करते और वे सिद्धांतों के अनुसार कुछ भी नहीं करते लेकिन बस लापरवाही से कार्य करते हैं। इसके कारण सुरक्षा में उल्लंघन होता है; कलीसिया के भाई-बहनों को लगातार गिरफ्तार किया जाता है और कलीसिया के कार्य को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। अगुआ न केवल खुद पर विचार नहीं करता बल्कि खुद को सही ठहराता है, अपना बचाव करने के लिए बहस करता है और अपनी जिम्मेदारी से मुँह मोड़ लेता है। अंत में, समूह उसे उसके पद से हटा देता है। क्या तुम्हें लगता है कि उन्होंने उस स्थिति को सही तरीके से संभाला? (हाँ।) हाँ, बिल्कुल! और उस व्यक्ति से निपटने के तुरंत बाद वे किसी और को चुन लेते हैं और कुछ समय बाद यह बात सबके सामने स्पष्ट हो जाती है कि यह व्यक्ति उस झूठे अगुआ से कहीं बेहतर है, जिससे यह साबित होता है कि समूह अब समझदार हुआ है और आगे बढ़ा है। यही वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा परमेश्वर के चुने हुए लोग जीवन में आगे बढ़ते हैं। यह काफी सामान्य है। क्या तुम्हें लगता है कि जब लोग इतने सालों तक उपदेशों को सुनते हैं तो वे समझदार हो जाते हैं, और हर अगुआ और कार्यकर्ता का सही चुनाव करते हैं—कि वे जिसे भी चुनेंगे, वही पद संभालेगा? क्या ऐसे ही होता है? (नहीं।) जब लोग सत्य सिद्धांतों को नहीं समझते, तो अगुआ चुनते समय उनका ध्यान हमेशा किसी तीव्र बुद्धि वाले, अच्छे वक्ता और प्रतिभाशाली व्यक्ति को चुनने पर रहता है। जब तक वह व्यक्ति अपने पद पर कुछ समय तक रहने के बाद झूठा अगुआ या मसीह-विरोधी साबित नहीं हो जाता, तब तक लोगों में समझ विकसित नहीं होती; उसके बाद वे फिर ऐसे व्यक्ति को कभी नहीं चुनते। तो फिर अगुआओं और कार्यकर्ताओं को चुनते समय वास्तव में किसे चुना जाना चाहिए? इसके लिए कोई निश्चित नियम नहीं हैं। यह ज्यादातर इस बात पर निर्भर करता है कि क्या कोई सही व्यक्ति है या नहीं और वह सत्य का अनुसरण करता है या नहीं। ऐसे कहें कि अगर कोई बुरा व्यक्ति या मसीह-विरोधी है तो तुम्हें उसे नहीं चुनना चाहिए, चाहे वह किसी भी तरह का व्यक्ति हो। अगर तुम ऐसा करोगे तो तुम अपने लिए गड्ढा खोद रहे होगे। क्या ऐसा नहीं है? (हाँ, ऐसा है।)

उस विषय पर फिर से आते हैं जिस पर हम अभी चर्चा कर रहे थे, कि मसीह-विरोधियों द्वारा उन लोगों पर आक्रमण किया जाता है और उन्हें निकाला जाता है, जो सत्य का अनुसरण करते हैं : इस बारे में मूल रूप से हमें जो कहना था, वह हम कह चुके हैं, है न? मसीह-विरोधी सत्य का अनुसरण करने वालों को निकाल कर उन पर आक्रमण कैसे करते हैं? वे अक्सर उन तरीकों का उपयोग करते हैं, जो दूसरों को उचित और उपयुक्त लगते हैं, यहाँ तक कि अन्य लोगों पर आक्रमण करने, उनकी निंदा करने और उन्हें गुमराह करने में लाभ उठाने के लिए वे सत्य पर बहस का उपयोग भी करते हैं। उदाहरण के लिए, अगर एक मसीह-विरोधी सोचता है कि उसके साथी सत्य का अनुसरण करते हैं और वे उसकी स्थिति को खतरे में डाल सकते हैं, तो मसीह-विरोधी लोगों को गुमराह करने और उनसे अपना आदर करवाने के लिए उत्कृष्ट उपदेश देता है और आध्यात्मिक सिद्धांतों पर बात करता है। इस तरह वे अपने साथियों और सहकर्मियों का महत्व घटाकर उन्हें दबा सकते हैं, और लोगों को यह महसूस करा सकते हैं कि हालाँकि उनके अगुआ के साथी सत्य का अनुसरण करने वाले लोग हैं, लेकिन वे क्षमता और काबिलियत के मामले में उनके अगुआ के बराबर नहीं हैं। कुछ लोग तो यहाँ तक कहते हैं, “हमारे अगुआ के उपदेश होते उत्कृष्ट हैं, कोई उनसे तुलना नहीं कर सकता।” किसी मसीह-विरोधी के लिए इस प्रकार की टिप्पणी सुनना अत्यंत संतोषजनक होता है। मन ही मन सोचते हैं, “तुम मेरे साथी हो, क्या तुम्हें कुछ सच्चाई नहीं मालूम? तुम मेरी तरह वाक्पटुता और ऊँचेपन से क्यों नहीं बोल सकते? अब तुम पूरी तरह से अपमानित हो चुके हो। तुममें काबिलियत की कमी है, फिर भी मुझसे लड़ने की हिम्मत करते हो!” मसीह-विरोधी यही सोच रहा होता है। मसीह-विरोधी का लक्ष्य क्या होता है? वह दूसरों को दबाने, उन्हें नीचा दिखाने और खुद को उनसे ऊपर रखने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं। मसीह-विरोधी हर उस व्यक्ति के साथ ऐसा ही व्यवहार करता है, जो सत्य का अनुसरण करता है या उसके साथ काम करता है। एक मसीह-विरोधी जो कुछ करता है, वह उसकी अपनी सत्ता और हैसियत पर केंद्रित होता है और इसका उद्देश्य दूसरों का सम्मान और प्रशंसा जीतना होता है। वह किसी को भी खुद से आगे नहीं जाने देता; जो भी उससे बेहतर होता है उसके अपमान, निकाले जाने और दमन के लिए बाध्य होता है। मसीह-विरोधी सत्य का अनुसरण करने वालों के विरुद्ध जिन तमाम साधनों का इस्तेमाल करते हैं, उनके पीछे इरादे और मकसद होते हैं। परमेश्वर के घर के कार्य की रक्षा करने का प्रयास करने के बजाय, उनका मकसद अपनी ताकत और रुतबा बचाना, साथ ही परमेश्वर के चुने हुए लोगों के दिल में अपनी जगह और छवि की रक्षा करना होता है। उनके तरीके और व्यवहार परमेश्वर के घर के कार्य में व्यवधान और गड़बड़ी पैदा करते हैं और कलीसियाई जीवन पर भी इनका विनाशकारी प्रभाव पड़ता है। क्या यह एक मसीह-विरोधी के कुकर्मों की सबसे आम अभिव्यक्ति नहीं है? इन बुरे कामों के अलावा, मसीह-विरोधी कुछ और भी करते हैं जो और अधिक घृणित है, वे हमेशा यह पता लगाने की कोशिश में लगे रहते हैं कि सत्य का अनुसरण करने वालों पर हावी कैसे हुआ जाए। उदाहरण के लिए, अगर कुछ लोगों ने व्यभिचार किया है या कोई अन्य अपराध किया है, तो मसीह-विरोधी उन पर आक्रमण करने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं, उनका अपमान करने, उन्हें उजागर और उनकी बदनामी करने के अवसर ढूँढ़ते हैं, उन्हें अपना कर्तव्य निभाने में हतोत्साहित करने के लिए उन पर ठप्पा लगाते हैं ताकि वे नकारात्मक हो जाएँ। मसीह-विरोधी परमेश्वर के चुने हुए लोगों को भी मजबूर करते हैं कि वे उनके साथ भेदभाव करें, उनसे किनारा कर लें और उन्हें नकार दें, ताकि सत्य का अनुसरण करने वाले अलग-थलग पड़ जाएं। अंत में, जब सत्य का अनुसरण करने वाले सभी लोग नकारात्मक और कमजोर महसूस करने लगते हैं, सक्रिय रूप से अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर पाते, और सभाओं में भाग लेने के इच्छुक नहीं रह जाते, तब मसीह-विरोधी अपने मकसद में कामयाब हो जाते हैं। चूँकि सत्य का अनुसरण करने वाले उनकी हैसियत और ताकत के लिए खतरा नहीं रह जाते, जब कोई उन्हें रिपोर्ट करने या उन्हें बेनकाब करने का साहस नहीं करता, तो मसीह-विरोधी सुकून महसूस करते हैं। कलीसिया में जिन लोगों से एक मसीह-विरोधी सबसे अधिक नफरत करता है, वे लोग होते हैं जो सत्य का अनुसरण करते हैं, विशेष रूप से वे लोग जो न्याय की भावना रखते हैं और जो झूठे अगुआ और मसीह-विरोधी को उजागर करने और उसकी रिपोर्ट करने की हिम्मत करते हैं। एक मसीह-विरोधी ऐसे लोगों को अपनी आँख की किरकिरी और रास्ते के काँटे के रूप में देखता है। अगर वह किसी ऐसे व्यक्ति को देखता है जो सत्य का अनुसरण करता है और जो स्वेच्छा से अपना कर्तव्य निभा रहा है, तो उसके दिल में द्वेष और शत्रुता की भावना पैदा हो जाती है और उसमें जरा सा भी प्रेम नहीं होता। एक मसीह-विरोधी सत्य का अनुसरण करने वाले लोगों की सहायता या समर्थन कतई नहीं करेगा, चाहे उनकी कठिनाइयाँ कितनी भी हों या वे कितने भी कमजोर और नकारात्मक क्यों न हों—वह बस इसे नजरअंदाज कर देगा। इसके बजाय वह मन ही मन इससे खुश होगा। और अगर किसी ने कभी उस पर आरोप लगाया हो या उसे उजागर किया हो, तो ऐसा इंसान जब भी किसी मुश्किल में होगा तो वह उसे और अधिक परेशानी में डालने के लिए इस अवसर का फायदा उठाएगा, उसे सबक सिखाने, उसकी निंदा करने, उसके लिए सभी रास्ते बंद करने के लिए और आखिरकार उसे इतना नकारात्मक बनाने के लिए हर तरह का आरोप लगाएगा कि वह अपना कर्तव्य ही न निभा सके। तब मसीह-विरोधी को खुद पर गर्व होता है और वह उस व्यक्ति के दुर्भाग्य पर खुश होता है। मसीह-विरोधी इसी तरह के कामों में माहिर होते हैं; सत्य का अनुसरण करने वालों को निकालना, उन पर आक्रमण करना और उनकी निंदा करना ही उनकी सबसे बड़ी विशेषज्ञता होती है। मसीह-विरोधियों की वो कौन-सी सोच है जिससे वे ऐसी बुराई कर पाते हैं? “अगर सत्य का अनुसरण करने वाले अक्सर उपदेश सुनेंगे, तो एक न एक दिन वे मेरे कार्यों की असलियत जान जाएँगे, और फिर वे निश्चित रूप से मुझे बेनकाब कर हटा देंगे। जब तक वे अपना कर्तव्य निभाएंगे, तब तक मेरी हैसियत, प्रतिष्ठा और सम्मान खतरे में रहेंगे। इसलिए पहले प्रहार करना बेहतर है, मौका मिलते ही उन्हें परेशान करना चाहिए, उनकी निंदा करनी चाहिए और उन्हें निष्क्रिय बना देना चाहिए, ताकि उनमें अपने कर्तव्यों का पालन करने की इच्छा ही न रहे। मसीह-विरोधी अगुआओं, कर्मियों और सत्य की खोज करने वालों में झगड़ा करवाते हैं, ताकि अगुआ और कार्यकर्ता उनसे घृणा करें, उनसे दूरी बना लें, उन्हें महत्व या तरक्की देना बंद कर दें। इस तरह, उन्हें सत्य का अनुसरण करने या अपने कर्तव्यों का पालन करने में कोई रुचि नहीं रहेगी। सत्य का अनुसरण करने वालों का नकारात्मक बने रहना ही अच्छा है।” मसीह-विरोधी इसी मकसद को हासिल करना चाहते हैं। जब कोई मसीह-विरोधी या बुरा व्यक्ति अपनी चालबाजी से तुम्हें फँसाता है, तुम्हारी निंदा करता है और तुम्हें अपमानित करता है, तो क्या तुम पहचान सकते हो कि क्या हो रहा है? क्या तुम शैतान की चालों को समझ सकते हो? तुम्हें इन्हें पहचानना सीखना होगा : “उन्होंने जो कुछ भी कहा वह बिल्कुल सही लग रहा था, लेकिन मुझे इससे नकारात्मक भावना क्यों महसूस हुई? मुझे अब अपना कर्तव्य निभाने का दिल क्यों नहीं करता? मुझे परमेश्वर के बारे में शक क्यों है? क्या जो कुछ उन्होंने कहा उसमें कोई दिक्कत थी? मुझ पर इसका नकारात्मक प्रभाव क्यों पड़ा? इन बातों को सुनने के बाद मेरे मन में परमेश्वर के बारे में गलतफहमियाँ और धारणाएँ क्यों पैदा हो गईं और मैं अब समर्पण क्यों नहीं करना चाहता? मेरे दिल में अब पहले जैसा उत्साह और परमेश्वर के लिए खुद को खपाने का संकल्प क्यों नहीं रहा? और मेरे दिल में अचानक परमेश्वर के कार्य के बारे में कुछ शक पैदा हो गए हैं—मुझे ऐसा लगता है कि मेरे दर्शन स्पष्ट नहीं हैं। मुझे नहीं पता कि इस तरह से अपने कर्तव्य का पालन करने का क्या मतलब है और मुझे ऐसा लगता है कि जो मैंने इतने वर्षों से परमेश्वर पर विश्वास रखा और जो मैंने कष्ट झेले हैं, उसके लिए मेरे पास दिखाने को कुछ भी नहीं है। अब मेरे दिल में कुछ अंधेरा सा है।” यह एक असामान्य बात है। सतही तौर पर सही लगने वाले शब्दों को सुनने से ऐसे परिणाम क्यों सामने आने चाहिए? क्या तुम्हें नहीं लगता कि इन शब्दों में कुछ गड़बड़ है? तो फिर वे किस तरह के शब्द हैं जिन्हें सुनते ही तुम में ऐसी प्रतिक्रियाएं पैदा होती हैं? किस तरह के शब्द सुनकर तुम्हारा परमेश्वर से विश्वास उठ जाता है? सबसे पहले एक बात तो पक्की है : मसीह-विरोधियों के सभी शब्द गुमराह करने वाले होते हैं; साँप की तरह वे सभी लोगों को पाप करने, परमेश्वर से खुद को दूर रखने और उसे अस्वीकार करने के लिए बहकाते हैं। उनका एक भी शब्द लोगों की जरूरतों को पूरा नहीं करता या उनकी मदद नहीं करता। उनके शब्द कहाँ से आते हैं? शैतान से। क्या तुम लोग उन शब्दों को पहचानते हो, जिनका उपयोग मसीह-विरोधी सत्य का अनुसरण करने वालों पर आक्रमण करने और उनकी निंदा करने के लिए करते हैं? मसीह-विरोधी केवल एक चीज से डरते हैं, वे हैं सत्य का अनुसरण करने वाले लोग। वे लोगों द्वारा परमेश्वर के प्रति समर्पण करने, परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए उठ खड़े होने और सृजित प्राणियों का कर्तव्य निभाने से डरते हैं; वे इस चीज से डरते हैं कि लोग परमेश्वर के सामने आएँ और सत्य की खोज करें। वे इसी से सबसे ज्यादा डरते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि एक बार जब परमेश्वर के चुने हुए लोग सत्य का अनुसरण करने के रास्ते पर कदम रख देते हैं, तो फिर जीवन में उनका विकास तेजी से होने लगता है और जैसे-जैसे यह होता है, उनका आध्यात्मिक कद भी बढ़ने लगता है—और जब सत्य लोगों के दिलों में घर कर लेता है और उनका जीवन बन जाता है, तो वह मसीह-विरोधियों का अंतिम दिन होता है : तब उनकी निंदा की जाएगी, उन्हें बेनकाब कर हटा दिया जाएगा और पूरी तरह से छोड़ दिया जाएगा। यही कारण है कि मसीह-विरोधी सत्य का अनुसरण करने वालों से सबसे अधिक नफरत करते हैं। एक मसीह-विरोधी की नजर में सत्य का अनुसरण करने वाले लोग नफरत के लायक दुश्मन होते हैं और वे उनके आक्रमणों और जबरदस्ती के साथ ही उनके परित्याग, उनके नुकसान और उनके दुर्व्यवहार का लक्ष्य होते हैं और इससे भी बढ़कर वे गुमराह किए जाने का लक्ष्य होते हैं। मसीह-विरोधियों के पास सत्य का अनुसरण करने वालों को गुमराह करने, नियंत्रित करने या उनके दिलों को बहकाने का कोई तरीका नहीं होता और वे खुले आम बेतरतीब ढंग से उन्हें निकाल और उन पर आक्रमण नहीं कर सकते, इसलिए उनके पास बस यही चारा रह जाता है कि वे उनके साथ अच्छी और मनभावन बातें करें और लोगों को अपने स्तर तक खींचने के लिए नरम तरकीबों का उपयोग करें। और अगर लोग उनका साथ नहीं देते और उनके काम नहीं आ सकते, तो वे उन्हें निकालने, उन्हें नकारात्मक और कमजोर बनाने और यहाँ तक कि उन्हें अपना कर्तव्य निभाने के लिए तैयार न होने देने के लिए सभी तरह की घिनौनी तरकीबें अपनाएँगे-और अंत में उन्हें परमेश्वर को छोड़ने के लिए मजबूर करेंगे। यह मसीह-विरोधियों के प्राथमिक बुरे कर्मों में से एक है और यह उनके प्रकृति सार की एक और विशिष्ट विशेषता है। यह उनकी प्रकृति की कौन सी विशेषता है? उनकी धोखेबाजी, उनका कपट, उनकी दुर्भावना। कलीसिया पर शासन करने की अपनी महत्वाकांक्षा और लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मसीह-विरोधी लगातार उन लोगों को गुमराह करने, निकालने और उन पर आक्रमण करने का सहारा लेते हैं जो सत्य का अनुसरण करते हैं। वे अपने अकथनीय लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ऐसा करते हैं जिससे सत्य का अनुसरण करने वाले सभी लोग नकारात्मक और कमजोर पड़ जाते हैं, उनकी आस्था फीकी हो जाती है और उनके दिल में परमेश्वर के बारे में गलतफहमियाँ पैदा हो जाती हैं। एक बार जब इन लोगों के दिल में परमेश्वर के बारे में गलतफहमियाँ और शिकायतें पैदा हो गईं, तो फिर वे सत्य का अनुसरण नहीं करेंगे, न ही वे स्वेच्छा से अपना कर्तव्य निभाएँगे—और इस तरह वे खुद को परमेश्वर से दूर कर लेंगे। और एक मसीह-विरोधी के लिए इसका क्या मतलब होता है? सबसे पहले तो इसका यह मतलब है कि अब कोई भी उनके पद के लिए खतरा नहीं बनेगा; दूसरे, एक बार जब ये सकारात्मक लोग निष्क्रिय और कमजोर हो जाएँगे और खुद को परमेश्वर से दूर कर लेंगे, तो फिर मसीह-विरोधी को कलीसिया में लोगों को गुमराह करने, बाधित करने और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नियंत्रित करने की पूरी छूट मिल जाएगी, ताकि वे उसका अनुसरण करें, उसका समर्थन करें और उसके सामने झुकें। इस प्रकार मसीह-विरोधी अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेता है। ऐसा करके क्या मसीह-विरोधी अपना कर्तव्य निभा रहे होते हैं? (नहीं।) तो फिर वे जो कुछ भी करते हैं उसका चरित्र क्या होता है? (वे बुराई कर रहे होते हैं।) “बुराई करना” इसे कहने के लिए एक व्यापक शब्द है; स्पष्ट रूप से कहें, तो वे लोगों को बाधित कर रहे हैं और उनके कार्यों में व्यवधान डाल रहे हैं, उन्हें सत्य का अनुसरण करने और परमेश्वर द्वारा बचाए जाने के रास्ते पर चलने से रोक रहे हैं। जब कोई मसीह-विरोधी किसी को सत्य का अनुसरण करते देखता है, तो वह क्रोधित हो जाता है; वह उससे नफरत करने लगता है। वह नफरत किस हद तक जाती है? जब वह देखता है कि कोई व्यक्ति सत्य का अनुसरण कर रहा है और मसीह के रास्ते पर चल रहा है और उसके रास्ते पर नहीं चल रहा या उसकी आराधना नहीं कर रहा है और उसके रास्ते पर नहीं है, तो वह उस व्यक्ति पर आक्रमण कर देता है, उसे निकाल देता है और उस व्यक्ति को दबाता है, ताकि वह गायब हो जाए। उसकी नफरत इस हद तक जाती है। संक्षेप में, मसीह-विरोधियों की इन अभिव्यक्तियों के आधार पर, हम यह तय कर सकते हैं कि वे अगुआई का कर्तव्य नहीं निभा रहे, क्योंकि वे परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने और सत्य के बारे में संगति करने में लोगों की अगुआई नहीं कर रहे, और लोगों की सिंचाई नहीं कर रहे या पोषण नहीं दे रहे हैं। इसके बजाय, वे कलीसियाई जीवन को बाधित और अव्यवस्थित करते हैं, कलीसिया के काम को ध्वस्त और नष्ट करते हैं, और लोगों को सत्य के अनुसरण और उद्धार पाने के मार्ग पर चलने से रोकते हैं। वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को पथभ्रष्ट करना चाहते हैं, जिससे वे उद्धार पाने का अवसर गँवा दें। यह अत्यंत पापपूर्ण लक्ष्य है, जिसे मसीह-विरोधी कलीसिया के कार्य को बाधित और अव्यवस्थित करके हासिल करना चाहते हैं।

परमेश्वर के चुने हुए लोगों को मसीह-विरोधियों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए? उन्हें उनकी पहचान करनी चाहिए, उन्हें उजागर करना चाहिए, उनकी रिपोर्ट करनी चाहिए और उन्हें ठुकरा देना चाहिए। केवल तभी अंत तक परमेश्वर का अनुसरण और परमेश्वर में आस्था रखने के सही मार्ग में प्रवेश सुनिश्चित किया जा सकता है। मसीह-विरोधी तुम्हारे अगुआ नहीं हैं, चाहे उन्होंने दूसरों को गुमराह करके कैसे भी खुद को अगुआ चुनवाया हो। उन्हें स्वीकार मत करो और उनकी अगुआई मत मानो—तुम्हें उनकी पहचान करनी चाहिए और उन्हें ठुकरा देना चाहिए, क्योंकि वे सत्य को समझने में तुम्हारी मदद नहीं कर सकते और न ही वे तुम्हारा समर्थन कर सकते हैं या तुम्हारा पोषण कर सकते हैं। यही तथ्य हैं। अगर वे सत्य वास्तविकता की ओर तुम्हारा मार्गदर्शन नहीं कर सकते, तो वे अगुआ या कार्यकर्ता बनने के काबिल नहीं हैं। अगर वे सत्य को समझने और परमेश्वर के कार्य का अनुभव करने की ओर तुम्हारा मार्गदर्शन नहीं कर सकते, तो ये वे लोग हैं जो परमेश्वर का विरोध करते हैं और तुम्हें उन्हें पहचान लेना चाहिए, उन्हें उजागर करना चाहिए और उन्हें ठुकरा देना चाहिए। वे जो कुछ भी करते हैं उसका उद्देश्य तुम्हें अपना अनुसरण कराने के लिए गुमराह करना, और कलीसिया के कार्य को कमजोर करने और उसमें बाधा डालने के लिए तुम्हें अपने समूह में शामिल करना होता है, ताकि वे तुम्हें मसीह-विरोधियों का रास्ता अपनाने के लिए प्रेरित कर सकें, जैसा कि वे करते हैं। वे तुम्हें नरक में खींचना चाहते हैं! अगर तुम उन्हें बता नहीं सकते कि वे क्या हैं और मानते हो कि चूँकि वे तुम्हारे अगुआ हैं इसलिए तुम्हें उनकी आज्ञा माननी चाहिए और उनके प्रति रियायत बरतनी चाहिए, तो तुम एक ऐसे व्यक्ति हो जो सत्य और परमेश्वर दोनों के साथ विश्वासघात करता है—और ऐसे लोगों को बचाया नहीं जा सकता। अगर तुम बचाए जाना चाहते हो, तो तुम्हें न केवल बड़े लाल अजगर की बाधा पार करनी होगी, और न केवल बड़े लाल अजगर को पहचानने, उसके भयानक चेहरे की असलियत देखने और इसके खिलाफ पूरी तरह से विद्रोह करने में सक्षम होना होगा—बल्कि मसीह-विरोधियों की बाधा भी पार करनी होगी। कलीसिया में मसीह-विरोधी न केवल परमेश्वर का शत्रु होता है, बल्कि परमेश्वर के चुने हुए लोगों का भी शत्रु होता है। अगर तुम मसीह-विरोधी को नहीं पहचान सकते, तो तुम्हारे गुमराह होने और उनकी बातों में आ जाने, मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलने, और परमेश्वर द्वारा शापित और दंडित किए जाने की संभावना है। अगर ऐसा होता है, तो परमेश्वर में तुम्हारा विश्वास पूरी तरह से विफल हो गया है। उद्धार प्रदान किए जाने के लिए लोगों में क्या होना चाहिए? पहले, उन्हें कई सत्य समझने चाहिए, और मसीह-विरोधी का सार, स्वभाव और मार्ग पहचानने में सक्षम होना चाहिए। परमेश्वर में विश्वास करते हुए लोगों की आराधना या अनुसरण न करना सुनिश्चित करने का यह एकमात्र तरीका है, और अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करने का भी यही एकमात्र तरीका है। मसीह-विरोधी की पहचान करने में सक्षम लोग ही वास्तव में परमेश्वर में विश्वास कर सकते हैं, उसका अनुसरण कर सकते हैं और उसकी गवाही दे सकते हैं। तब कुछ लोग कहेंगे, “अगर मेरे पास इसके लिए फिलहाल सत्य नहीं है तो मैं क्या करूँ?” तुम्हें खुद को जल्दी से जल्दी सत्य से सुसज्जित करना चाहिए; तुम्हें लोगों और चीजों को समझना सीखना चाहिए। मसीह-विरोधी की पहचान करना कोई आसान बात नहीं है, इसके लिए उनका सार स्पष्ट रूप से देखने और उनके हर काम के पीछे की साजिशें, चालें और इरादे देख पाने की क्षमता होनी आवश्यक है। इस तरह तुम उनके द्वारा गुमराह नहीं होगे या उनके काबू में नहीं आओगे, और तुम अडिग होकर, सुरक्षित रूप से सत्य का अनुसरण कर सकते हो, और सत्य का अनुसरण करने और उद्धार प्राप्त करने के मार्ग पर दृढ़ रह सकते हो। अगर तुम मसीह-विरोधी की बाधा को पार नहीं कर सकते, तो यह कहा जा सकता है कि तुम एक बड़े ख़तरे में हो, और तुम्हें मसीह-विरोधी द्वारा गुमराह करके अपने कब्जे में किया जा सकता है और तुम्हें शैतान के प्रभाव में जीवन व्यतीत करना पड़ सकता है। वर्तमान में तुम लोगों के बीच कुछ ऐसे लोग हो सकते हैं जो सत्य का अनुसरण करने वालों को रोकें या ठोकर मारें, और ये उन लोगों के शत्रु हैं। क्या तुम लोग इसे स्वीकार करते हो? कुछ ऐसे लोग हैं जो इस तथ्य का सामना करने की हिम्मत नहीं रखते, न ही वे इसे तथ्य के रूप में स्वीकार करने की हिम्मत रखते हैं। लेकिन मसीह विरोधियों द्वारा लोगों को गुमराह करना वास्तव में कलीसियाओं में होता है और अक्सर होता है; बात केवल इतनी है कि लोग पहचान नहीं पाते। अगर तुम इस परीक्षा को पास नहीं कर सकते—मसीह-विरोधियों की परीक्षा, तब तुम या तो मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह हो चुके हो और उन्हीं के द्वारा नियंत्रित हो या उन्होंने तुम्हें कष्ट दिया है, पीड़ा पहुँचायी है, बाहर धकेला है और प्रताड़ित किया है। अंततः, तुम्हारा यह छोटा-सा तुच्छ जीवन लंबे समय तक नहीं टिकेगा, और मुरझा जाएगा; तुम परमेश्वर में विश्वास नहीं रख पाओगे, और तुम कहोगे, “परमेश्वर तो धार्मिक भी नहीं है! परमेश्वर कहाँ है? इस दुनिया में कोई न्याय या प्रकाश नहीं है, और परमेश्वर द्वारा मानवजाति का उद्धार जैसी कोई चीज़ नहीं है। हम काम करते हुए और पैसा कमाते हुए भी अपने दिन गुज़ार सकते हैं!” तुम परमेश्वर को नकारते हो, तुम परमेश्वर से भटक जाते हो और अब विश्वास नहीं करते कि वह मौजूद है; ऐसी कोई भी उम्मीद कि तुम्हारा उद्धार होगा, पूरी तरह से समाप्त हो चुकी है। इसलिए, अगर तुम उस जगह पहुँचना चाहते हो जहाँ पर तुम्हें उद्धार प्राप्त हो सके, तो पहली परीक्षा जो तुम्हें पास करनी होगी वह है शैतान की पहचान करने में सक्षम होना, और तुम्हारे अंदर शैतान के विरुद्ध खड़ा होने, उसे बेनकाब करने और उसे छोड़ देने का साहस भी होना चाहिए। फिर, शैतान कहाँ है? शैतान तुम्हारे बाजू में और तुम्हारे चारों तरफ़ है; हो सकता है कि वह तुम्हारे हृदय के भीतर भी रह रहा हो। अगर तुम शैतान के स्वभाव के अधीन रह रहे हो, तो यह कहा जा सकता है कि तुम शैतान के हो। तुम आध्यात्मिक क्षेत्र के शैतान और दुष्ट आत्माओं को देख या छू नहीं सकते, लेकिन व्यावहारिक जीवन में मौजूद शैतान और दुष्ट आत्माएँ हर जगह हैं। जो भी व्यक्ति सत्य से विमुख है, वह बुरा है, और जो भी अगुआ या कार्यकर्ता सत्य को स्वीकार नहीं करता, वह मसीह-विरोधी या नकली अगुआ है। क्या ऐसे लोग शैतान और जीवित दानव नहीं हैं? हो सकता है कि ये लोग वही हों, जिनकी तुम आराधना करते हो और जिनका सम्मान करते हो; ये वही लोग हो सकते हैं जो तुम्हारी अगुआई कर रहे हैं या वे लोग जिन्हें तुमने लंबे समय से अपने हृदय में सराहा है, जिन पर भरोसा किया है, जिन पर निर्भर रहे हो और जिनकी आशा की है। जबकि वास्तव में, वे तुम्हारे मार्ग में खड़ी बाधाएँ हैं और तुम्हें सत्य का अनुसरण करने और उद्धार पाने से रोक रहे हैं; वे नकली अगुआ और मसीह-विरोधी हैं। वे तुम्हारे जीवन और तुम्हारे मार्ग पर नियंत्रण कर सकते हैं, और वे तुम्हारे उद्धार के अवसर को बर्बाद कर सकते हैं। अगर तुम उन्हें पहचानने और उनकी वास्तविकता को समझने में विफल रहते हो, तो किसी भी क्षण तुम गुमराह हो सकते हो या उनके द्वारा पकड़े और दूर ले जाए जा सकते हो। इस प्रकार, तुम बहुत बड़े ख़तरे में हो। अगर तुम इस खतरे से खुद को मुक्त नहीं कर सकते, तो तुम शैतान के बलि के बकरे हो। वैसे भी, जो लोग गुमराह और नियंत्रित होते हैं, और मसीह-विरोधी के अनुयायी बन जाते हैं, वे कभी उद्धार प्राप्त नहीं कर सकते। चूँकि वे सत्य से प्रेम नहीं करते या उसका अनुसरण नहीं करते, इसलिए इसका अपरिहार्य परिणाम यह होगा कि वे गुमराह हो जाएंगे और मसीह-विरोधी का अनुसरण करेंगे।

कुछ लोग सोचते हैं कि वे सत्य का अनुसरण करने वाले व्यक्ति हैं और कहते हैं कि वे मसीह-विरोधियों को पहचानने में सक्षम हैं। वे खुद को जरूरत से ज्यादा आंक रहे हैं, है न? अगर तुम्हारा सामना साफ तौर पर किसी मसीह-विरोधी से होता है जिसके दांत नुकीले हैं, जिसमें खराब मानवता है और जिसने कुछ बुरे कर्म किए हैं, तो तुम स्वाभाविक रूप से उसे पहचानने में सक्षम होगे। लेकिन अगर तुम्हारा सामना किसी ऐसे मसीह-विरोधी से होता है जो देखने में धर्मपारायण लगता है, जो बहुत ही मृदुभाषी है और एक अच्छा व्यक्ति लगता है—एक ऐसा मसीह-विरोधी जो लोगों की धारणाओं के अनुरूप है—तो क्या तुम अभी भी इतना साहस दिखाओगे कि यह दावा करो कि तुम उसकी असलियत बता सकते हो? क्या तुम उस पर मसीह-विरोधी का ठप्पा लगाने का साहस रखते हो? अगर तुम उसे पहचानने में असमर्थ हो, तो तुम निश्चित रूप से उसकी प्रशंसा करोगे और उसके प्रति अच्छा रवैया रखोगे और ऐसे में उसका व्यवहार, उनकी राय और दृष्टिकोण, उसके कार्य—यहाँ तक कि सत्य की उसकी समझ भी—तुम्हें प्रभावित करेंगे। ये चीजें तुम्हें किस हद तक प्रभावित करेंगी? तुम मसीह-विरोधी से जलने लगोगे, उसकी नकल करोगे, उनका अनुकरण करोगे, उनका अनुसरण करोगे, जिससे तुम्हारा जीवन प्रवेश प्रभावित होगा; इससे सत्य की तुम्हारी तलाश और वास्तविकता में प्रवेश भी प्रभावित होगा, यह परमेश्वर के प्रति तुम्हारे रवैये को प्रभावित करेगा और यह इस बात को भी प्रभावित करेगा कि तुम वास्तव में परमेश्वर के प्रति समर्पण करते हो या नहीं और अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करते हो या नहीं। अंततः मसीह-विरोधी तुम्हारे लिए एक आराध्य बन जाएगा, तुम्हारे दिल में उसके लिए जगह बन जाएगी और तुम उससे बच नहीं पाओगे। जब तुम इस हद तक गुमराह किए जाते हो, तो तुम्हारे पास बचाए जाने की बहुत ही कम उम्मीद होती है, क्योंकि परमेश्वर के साथ तुम्हारा संबंध पूरी तरह से टूट चुका होता है, परमेश्वर के साथ तुम्हारा सामान्य संबंध भी खत्म हो गया होता है, और तुम खतरे के कगार पर होते हो। और यह तुम्हारे लिए एक आपदा होती है या आशीष? बेशक यह एक आपदा ही है; यह आशीष तो बिल्कुल भी नहीं है। हालाँकि कुछ मसीह-विरोधी छोटी-छोटी बातों में तुम्हारी मदद कर सकते हैं और तुम्हारे लिए लाभकारी सिद्ध हो सकते हैं या फिर वे तुम्हें प्रबुद्ध करने के लिए शब्द और धर्म-सिद्धांतों का उपदेश भी दे सकते हैं, लेकिन एक बार तुम उनके द्वारा गुमराह हुए, उनकी आराधना करने लगे और उनका अनुसरण करने लगे, तो तुम मुसीबत में पड़ जाओगे। तुम खुद के लिए बरबादी लाओगे और अपने लिए उद्धार का मौका खो दोगे। कुछ लोग कहते हैं, “वे कोई शैतान या एक बुरे व्यक्ति नहीं हैं, वे तो आध्यात्मिक व्यक्ति जैसे लगते हैं, एक ऐसा व्यक्ति जो सत्य का अनुसरण करता है।” क्या इन बातों में कोई सच्चाई है? (नहीं।) क्यों नहीं? जो भी कोई सचमुच सत्य का अनुसरण करता है, उसके मार्गदर्शन, सहायता और पोषण का प्रभाव या लाभ तुम्हें परमेश्वर के समक्ष लाता है, ताकि तुम उसके वचन और सत्य की तलाश कर सको, और तुम परमेश्वर के समक्ष आओ और उस पर निर्भर होना और उसे तलाशना सीखो और उसके साथ तुम्हारा रिश्ता और अधिक घनिष्ठ होता जाए। इसके विपरीत, अगर मसीह-विरोधी के साथ तुम्हारा रिश्ता और अधिक घनिष्ठ होता जाए, यहाँ तक कि तुम उसके इशारे पर नाचने लगो तो इसका क्या परिणाम निकलेगा? तुम गलत मार्ग पर भटक जाओगे और खुद को बरबाद कर दोगे। जब तुम किसी मसीह-विरोधी के साथ घनिष्ठ संबंध रखते हो, तो तुम्हारा परमेश्वर के साथ संबंध दूर का हो जाता है। और इसका परिणाम क्या होता है? वे तुम्हें अपने नजदीक लाएँगे और तुम परमेश्वर से दूर हो जाओगे। अगर तुम अपने दिल में किसी को आराध्य बना लेते हो, तो जब भी तुम परमेश्वर के वचनों और कार्य के बारे में धारणाएँ बनाओगे या जब परमेश्वर के वचन तुम्हारे इस आराध्य को उजागर करने लगेंगे, तो तुम तुरंत परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह कर दोगे, और यहाँ तक कि तुम परमेश्वर का विरोध और उससे विश्वासघात भी कर सकते हो; तुम अपने आराध्य के पक्ष में खड़े होगे और परमेश्वर का विरोध करोगे। ऐसा अक्सर होता है। जब कुछ झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों को बदला या निष्कासित किया जाता है, तो उनके साथी और अनुचर उनके बचाव में उतर आते हैं और शिकायत करने लगते हैं; कुछ तो नकारात्मक तक हो जाते हैं और परमेश्वर पर विश्वास करना बंद कर देते हैं। यह एक आम बात है, क्या ऐसा नहीं है? और ऐसा क्यों होता है कि वे विश्वास करना बंद कर देते हैं? वे कहते हैं, “हमारे अगुआ को बदल दिया गया है और उसे निष्कासित कर दिया गया है, तो फिर अब मुझ जैसा एक साधारण विश्वासी क्या उम्मीद कर सकता है?” क्या यह बकवास बात नहीं है? उनके शब्द संकेत देते हैं कि वे मसीह-विरोधी का अनुसरण करते हैं, कि वे मसीह-विरोधी द्वारा पूरी तरह से गुमराह किए जा चुके हैं। और उनके गुमराह होने का क्या परिणाम होता है? मसीह-विरोधी उनके लिए एक ऐसा आराध्य बन गया है जिसकी वे आराधना करते हैं; मसीह-विरोधी उनके लिए पूर्वज समान बन गया है : वे कैसे न छोड़ते, जब उनके पूर्वज को ही निष्कासित कर दिया गया? वे केवल मसीह-विरोधी की बात सुनते हैं और वे पूरी तरह से मसीह-विरोधी के नियंत्रण में होते हैं। उनका मानना होता है कि मसीह-विरोधी जो कुछ भी कहता और करता है वह सही है, और उसे सत्य के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए और उसके प्रति समर्पण किया जाना चाहिए, और इसलिए वे यह कभी भी बरदाश्त नहीं करते कि परमेश्वर के घर में कोई भी मसीह-विरोधी को उजागर करे और उसकी निंदा करे। एक बार जब मसीह-विरोधी को परमेश्वर के घर से निष्कासित कर दिया जाता है, तो जो लोग मसीह-विरोधी का अनुसरण करते हैं, वे खुद भी कलीसिया को छोड़ने का निर्णय कर लेते हैं; जैसा कि कहा जाता है, “पेड़ के गिरते ही बंदर तितर-बितर हो जाते हैं,” जैसा होता है। ऐसी बातें दर्शाती हैं कि मसीह-विरोधी और उनके अनुयायी शैतान के सेवक हैं, जो परमेश्वर के कार्य को अस्त-व्यस्त करने के लिए आए हैं। एक बार जब परमेश्वर के चुने हुए लोगों द्वारा उनका पर्दाफाश किया जाता है, उन्हें उजागर कर ठुकरा दिया जाता है, तो परमेश्वर में उनकी आस्था समाप्त हो जाती है। सभी मसीह-विरोधियों के अनुयायियों की एक विशिष्ट विशेषता होती है जो स्पष्ट रूप से दिखाई देती है : उन्हें किसी की भी बात समझ नहीं आती; वे केवल मसीह-विरोधियों की ही सुनते हैं। और एक बार जब मसीह-विरोधियों द्वारा उन्हें गुमराह कर दिया जाता है, तो फिर वे परमेश्वर के वचनों को सुनना बंद कर देते हैं और केवल मसीह-विरोधी को ही अपना प्रभु मानते हैं। क्या इस स्थिति में, उन्हें गुमराह नहीं किया जा रहा है, क्या उन पर नियंत्रण नहीं किया जा रहा है? केवल मसीह-विरोधियों के अनुयायी ही मसीह-विरोधियों के साथ खड़े होने की कोशिश करते हैं। जब मसीह-विरोधियों को उजागर और बेनकाब कर दिया जाता है, तो उनका अनुसरण करने वाले लोग उनके लिए चिंतित हो जाते हैं, वे उनके लिए आँसू बहाते हैं, वे उनकी ओर से शिकायत करते हैं और उनका बचाव करने की कोशिश करते हैं। ऐसे समय में वे परमेश्वर को भूल चुके होते हैं और अब वे परमेश्वर से प्रार्थना नहीं करते या सत्य की तलाश नहीं करते; वे केवल मसीह-विरोधियों का बचाव करते हैं और उनके लिए अपने दिमाग पर जोर डालते हैं; वे तो अब परमेश्वर को भी नहीं पहचानते। क्या वे वास्तव में परमेश्वर में विश्वास रखते हैं? वे वास्तव में किस पर विश्वास रखते हैं? यह बात तो पहले से ही स्पष्ट है। चाहे वे जो कुछ भी कहें या करें, मसीह-विरोधियों का एक ही उद्देश्य होता है : यह है लोगों की अगुआई करना, उनका प्रभु बनना और वे चाहते हैं कि हर कोई उनका गुलाम बनकर उनका अनुसरण करे और उनकी आज्ञा का पालन करे और अंततः उनके साथ परमेश्वर जैसा व्यवहार करे। यह उस रास्ते से किस प्रकार भिन्न है जिस पर पौलुस चला था? जब पौलुस का कार्य अपनी अंतिम अवस्था पर पहुँचा, तो उसने अपने दिल में कुछ वचन कहे; पौलुस ने कहा कि उसके लिए जीना ही मसीह के लिए था, और ऐसा कहने के पीछे उसका उद्देश्य यह था कि जो लोग प्रभु में विश्वास रखते हैं वे उसका अनुकरण करें, उसका अनुसरण करें और उसके साथ परमेश्वर जैसा व्यवहार करें। इन वचनों को कहने के पीछे पौलुस का यही उद्देश्य था, है न? और अगर मसीह-विरोधियों का कार्य वास्तव में उस स्तर तक पहुँच जाता है जहाँ लोग उनकी आराधना और आज्ञापालन करने लगते हैं, तो इन लोगों के दिलों में परमेश्वर के लिए कोई स्थान नहीं रहेगा; उनके दिलों पर पहले ही मसीह-विरोधियों का कब्जा हो चुका होगा। यही इसका परिणाम है। तुम कहते हो कि तुम्हें मसीह-विरोधी द्वारा गुमराह किए जाने की कोई चिंता नहीं है, कि तुम्हें एक मसीह-विरोधी का अनुसरण करने का कोई डर नहीं है, लेकिन ऐसा दावा करने का कोई फायदा नहीं है। यह भ्रमित करने वाली टिप्पणी है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अगर तुम सत्य का अनुसरण नहीं करते और हमेशा लोगों की आराधना और उनका अनुसरण करते रहते हो, तो तुम मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चल रहे होगे और तुम्हें इसका एहसास भी नहीं होगा। कई वर्षों तक परमेश्वर पर विश्वास रखने के बावजूद अनुभवात्मक गवाही से वंचित रहना न केवल सत्य और जीवन प्राप्त न करना बल्कि परमेश्वर का विरोध करने वाला व्यक्ति बन जाना : यह मसीह-विरोधियों का अनुसरण करने का अंतिम परिणाम होता है और यह एक ऐसा परिणाम है जिससे तुम खुद को बचा नहीं सकते, यह एक अपरिवर्तनीय तथ्य है। यह उसी तरह है जैसे कोई व्यक्ति बिजली को छू लेता है : तो उसे निश्चित रूप से झटका लगेगा। कुछ लोग यह कह सकते हैं, “मैं यह नहीं मानता; मुझे कोई डर नहीं है”—लेकिन क्या यहाँ मामला यह है कि तुम इस पर विश्वास रखते हो या डरते हो या नहीं? बिजली को छू कर देखो! तुम्हें झटका जरूर लगेगा। इसे न मानने से कोई फायदा नहीं होगा। इसे न मानना अज्ञानता है; ऐसा कहना गैरजिम्मेदाराना बात है। इसलिए, चाहे तुम किसी मसीह-विरोधी का अनुसरण करने के लिए तैयार हो या न हो, अगर तुम सत्य का अनुसरण नहीं करते और तुम्हारे प्रयास हमेशा शोहरत, लाभ और हैसियत पाने के उद्देश्य से होते हैं, तो तुम पहले ही मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चल पड़े हो। यह परिणाम तुम्हें धीरे-धीरे दिखेगा, जैसे पानी में बहता हुआ कचरा सतह पर आता है। यह अपरिहार्य है। मसीह-विरोधी जो करते हैं, वह यह कि वे लोगों को अपने समक्ष लाते हैं, वे उन्हें परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं को स्वीकार करने या परमेश्वर की संप्रभुता के प्रति समर्पण करने के बजाय अपने नियंत्रण और चालाकी को स्वीकार करने के लिए मजबूर करते हैं। मसीह-विरोधी लोगों को जीतना चाहते हैं, वे उन्हें प्राप्त करना चाहते हैं, उनका लक्ष्य परमेश्वर के चुने हुए सभी लोगों को नियंत्रित करना है, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को अपने हाथों में नियंत्रित करना है; वे तस्कर हैं। और मसीह-विरोधी लोगों को नियंत्रित करने के अपने उद्देश्य को हासिल करने के लिए क्या उपयोग करते हैं? वे उस आध्यात्मिक सिद्धांत का उपयोग करते हैं जिसकी लोग आराधना करते हैं, वे बाहर से आकर्षक सिद्धांतों का उपयोग करते हैं, वे लोगों को गुमराह करने के लिए उनकी सिद्धांतों की आराधना करने की भ्रष्ट मानसिकता का फायदा उठाकर बकवास करते हैं और अलंकृत बातें कहते हैं। संक्षेप में कहें तो, वे जो कुछ भी कहते हैं वे केवल शब्द और धर्म-सिद्धांत होते हैं, खाली सिद्धांत जो बाहर से आकर्षक और सत्य से उलट होते हैं। अगर लोग सत्य को नहीं समझते, तो वे निश्चित रूप से गुमराह हो जाएँगे; कम से कम, वे होश में आने से पहले कुछ समय के लिए तो गुमराह जरूर होंगे। वे अपने होश में आते तब हैं जब मसीह-विरोधी बेनकाब हो जाते हैं, फिर उस समय उन्हें बेहद पछतावा महसूस होता है। मसीह-विरोधियों का अनुसरण करने वाले लोगों ने पहले ही पवित्र आत्मा के कार्य को खो दिया है; क्योंकि वे अपने दिल में आराध्यों की आराधना करते हैं, लोगों का अनुसरण करते हैं और परमेश्वर द्वारा ठुकराए जाते हैं और उसने उन्हें बेनकाब करने के लिए एक तरफ कर दिया है। इसलिए, मसीह-विरोधियों का अनुसरण करना बहुत खतरनाक होता है; मसीह-विरोधियों की तरह जो लोग मसीह-विरोधियों का अनुसरण करते हैं उनसे परमेश्वर सबसे अधिक घृणा करता है। और इन लोगों को एक तरफ करने के पीछे परमेश्वर का उद्देश्य क्या होता है? इसके पीछे उद्देश्य परमेश्वर के चुने हुए लोगों के होश में आने, मसीह-विरोधियों को पहचानने और उन्हें उजागर करने में सक्षम होने और इन मसीह-विरोधियों को पूरी तरह से अस्वीकार करने तक प्रतीक्षा करने का होता है, जिसके बाद मसीह-विरोधियों के अंतिम दिन आ चुके होंगे। क्या मसीह-विरोधियों का हर काम लोगों के लिए हानिकारक नहीं होता? वे सत्य का अनुसरण नहीं करते और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को गुमराह करने और नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं, वे लोगों को भी सत्य का अनुसरण नहीं करने देते, वे परमेश्वर के कार्य के प्रति समर्पण नहीं करते और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को अपना अनुसरण कराने के लिए गुमराह करने की कोशिश करते हैं—इस सबसे स्पष्ट होता है कि मसीह-विरोधियों के दिल में परमेश्वर का भय नहीं होता और वे उसके सामने समर्पण नहीं करते और न ही उनमें सत्य के प्रति कोई प्रेम होता है। इसके बजाय वे परमेश्वर का विरोध करने और परमेश्वर के चुने हुए लोगों से होड़ करने के लिए हैसियत और सत्ता प्राप्त करने के हर संभावित तरीकों के बारे में सोचते रहते हैं, ताकि वे अंततः परमेश्वर के खिलाफ अपना खुद का राज्य बना सकें—यह सब दर्शाता है कि मसीह-विरोधी देहधारी परमेश्वर के घोर शत्रु हैं और परमेश्वर के विनाश की वस्तु हैं। परमेश्वर के प्रति लोगों की आस्था के लिए सबसे खतरनाक चीज मसीह-विरोधियों द्वारा उन्हें गुमराह और नियंत्रित करना होता है। अगर लोगों ने पहले ही मसीह-विरोधियों का अनुसरण करना शुरू कर दिया है, अगर वे पहले से ही पूरी तरह से मसीह-विरोधियों की तरफ खड़े हैं, तो वे ऐसे लोग हैं जिन्होंने परमेश्वर को धोखा दिया है और उसके विरुद्ध खड़े हैं, ऐसी स्थिति में उनका परिणाम बिना कुछ कहे ही तय है।

कमोबेश यही बात है जिस पर संगति करनी है कि मसीह-विरोधी सत्य का अनुसरण करने वाले लोगों को कैसे निकालते और आक्रमण करते हैं। सत्य का अनुसरण करने वाले लोगों को निकालने और उन पर आक्रमण करने के पीछे उनका उद्देश्य और इरादा और वह रवैया, तरीके और तरकीबें जिनसे वे सत्य का अनुसरण करने वाले लोगों के साथ व्यवहार करते हैं, और साथ ही सत्य का अनुसरण करने वाले लोगों को मसीह-विरोधियों के प्रति जो कार्यवाही करनी चाहिए—हमने इनमें से प्रत्येक विषय पर थोड़ी-बहुत चर्चा की है, यद्यपि अभी तक विस्तृत रूप से नहीं की है। भविष्य की संगति अभी भी इन क्षेत्रों में विशिष्ट परिस्थितियों और विशिष्ट मामलों के हिसाब से और भी सत्य को छू सकती है। ऐसी विशिष्ट विषय-वस्तु पर संगति करते समय धर्मोपदेश सुनने वालों को कैसा रवैया अपनाना चाहिए? उन्हें पूरा ध्यान देना चाहिए, परमेश्वर के समक्ष शांति से रहना चाहिए और विचलित नहीं होना चाहिए, क्योंकि सत्य के हर पहलू के विशिष्ट बयान और परिभाषाएँ होती हैं और प्रत्येक की विशिष्ट सामग्री और अभ्यास के सिद्धांत होते हैं। इसके अलावा, हम विभिन्न कोणों और तरीकों से संज्ञानात्मक विषयों पर बात करेंगे, जिनमें प्रत्येक सामग्री क्षेत्र के भीतर का सत्य शामिल है, साथ ही इसमें वे सत्य भी शामिल हैं जिन्हें लोगों को समझना चाहिए और वह मार्ग भी शामिल है जिस पर उन्हें अभ्यास करना चाहिए। इन सभी बातों पर स्पष्टता मिलने तक संगति करने और विचार करने की आवश्यकता है, तभी इसका कोई परिणाम देखने को मिलेगा। हम अपनी वर्तमान विस्तृत संगति के माध्यम से देखेंगे कि अपने कर्तव्य को निभाने में शामिल सत्य सिद्धांत उतने सरल नहीं होते जितना लोग सोचते हैं। सत्य को समझना उन लोगों के लिए वास्तव में कठिन होता है जिनके पास समझने की क्षमता नहीं होती। सत्य को समझना किसी विश्वविद्यालय में पढ़ने के समान ही कुछ हद तक कठिन होता है, लेकिन अगर किसी में समझने की क्षमता है तो उसे यह कठिन नहीं लगेगा। जब तक कोई सत्य को सुनने के बाद इसे समझ सकता है तो उसके पास स्वाभाविक रूप से इसका अभ्यास करने के लिए एक मार्ग होगा, और जितना अधिक वह सत्य का अभ्यास करने में प्रशिक्षित होगा, उसके अभ्यास का मार्ग उतना ही व्यापक होगा और वह सिद्धांतों को और अधिक सटीकता से समझ पाएगा। दूसरी ओर, अगर तुम इस तरह की विस्तृत संगति को नहीं सुनते हो और केवल सामान्यीकृत और सैद्धांतिक चीजों को ही समझते हो, तो तुम देखोगे कि अभ्यास के समय तुम्हारे हाथ बँधे होंगे। जब तुम सत्य सिद्धांतों की तलाश करोगे, तो ऐसा लगेगा कि तुम जिस भी दिशा में भी मुड़ते हो वह गलत है और चाहे तुम कुछ भी कर लो, तुम उन्हें सही तरीके से समझने में असमर्थ महसूस करोगे। लेकिन अब ऐसी ठोस परिभाषाओं और विशिष्टताओं के साथ तुम्हारे लिए इसका दायरा सीमित कर दिया गया है, और सत्य को विशिष्ट बना दिया गया है, तो जब तुम फिर से सत्य का अभ्यास करना शुरू करोगे तो तुम अधिक स्वतंत्र महसूस करोगे क्योंकि यह तुम्हारे लिए विस्तृत होगा। उदाहरण के लिए, मान लो मैंने तुम्हें एक नोटबुक खरीदने के लिए कहा। अगर मैंने तुम्हें केवल उसके आकार, मोटाई और कीमत जैसी मौलिक आवश्यकताओं के बारे में बताया होता, तो शायद तुम्हें इन सिद्धांतों को समझने और उन्हें अभ्यास में लाने के लिए कुछ प्रयास करने पड़ सकते थे। लेकिन अगर मैं तुम्हें नोटबुक के विशिष्ट रंग, आकार, पन्नों की संख्या, विशिष्ट फॉर्मेटिंग और कागज की गुणवत्ता जैसी चीजें बताऊँ—तो फिर ऐसे विवरण बताए जाने के बाद क्या तुम्हारे द्वारा समझे गए सिद्धांत अधिक ठोस नहीं होंगे? और अगर मैं तुम्हें इससे भी अधिक विशिष्ट जानकारी देता, तुम्हें एक कागज का एक पन्ना देता और तुमसे एक ऐसी नोटबुक खरीदने के लिए कहता जिसका कागज इसी गुणवत्ता, मोटाई, रंग, और ग्रिड आकार और मात्रा का हो या अगर मैं प्रत्येक विशेषता के लिए सटीक आवश्यकताओं के बारे में विनिर्देश देता, तो क्या जब तुम इसे खरीदने जाते, तो तुम्हारे लिए विकल्पों की सीमा कम नहीं हो जाती? (हाँ, हो जाती।) क्या अभ्यास के समय प्रासंगिक सिद्धांत तुम्हारे लिए और अधिक ठोस और सरल नहीं हो जाते? अगर तुम्हारे अभ्यास की बात करें तो क्या इससे तुम्हें मदद मिलेगी या बाधा पैदा होगी? (यह मददगार होना चाहिए।) वास्तव में, यह मददगार होना चाहिए क्योंकि सत्य के विभिन्न पहलुओं को अधिक ठोस ढंग से और अधिक विस्तार से बताया गया है, विशेष मामलों, विशेष अभिव्यक्तियों और अभ्यास करने के तरीकों की तफसील तक—ये सभी बातें तुम्हें विस्तार से बताई गई हैं। अगर अभी भी तुम इसे अभ्यास में नहीं ला सकते, तो फिर तुम्हारे अंदर सत्य को समझने की कोई योग्यता नहीं है।

तुम लोग सत्य को प्राप्त करने और पूर्ण बनाए जाने में सक्षम हो या नहीं, यह इस पर निर्भर है कि तुम लोगों में अभी सत्य को समझने की क्षमता है या नहीं। अब, मैं यहाँ तक पहुँच चुका हूँ कि मैंने कर्तव्यों के उचित निष्पादन से संबंधित सत्यों को प्रत्येक कर्तव्य को निभाने वाले व्यक्तियों के आधार पर छह प्रकारों में वर्गीकृत कर दिया है; इनमें से प्रत्येक प्रकार को आगे विशिष्ट श्रेणियों में विभाजित किया गया है और प्रत्येक श्रेणी के भीतर विस्तृत संगति के उपखंड हैं। तुम लोगों के मामले में, क्या इस प्रकार का उपदेश और ऐसे सत्यों की संगति तुम लोगों को सत्य की बेहतर समझ की ओर ले जाती है और तुम्हें अभ्यास करने के लिए अधिक सिद्धांत प्रदान करती है, या इससे सिद्धांतों को तलाशना और अधिक कठिन हो जाता है? (इसकी वजह से हमें और अधिक सिद्धांत मिलते हैं।) इससे तुम्हें अधिक समझ प्राप्त होनी चाहिए और ऐसा होने पर मेरा विस्तृत धर्मोपदेश तुम लोगों के लिए सहायक सिद्ध होना चाहिए। इससे तुम लोगों को अधिक स्पष्टता मिलनी चाहिए, न कि अधिक भ्रम होना चाहिए। यह इस बात पर निर्भर करता है कि किसी में सत्य को समझने की क्षमता है या नहीं। अगर कोई वास्तव में अच्छी काबिलियत वाला व्यक्ति है जिसमें आध्यात्मिक समझ है, तो वह इस बारे में अधिक से अधिक स्पष्ट महसूस करेगा; लेकिन अगर किसी में खराब काबिलियत है और आध्यात्मिक समझ की भी कमी है, तो वह इसे समझने में कम सक्षम होगा और वह केवल अधिक से अधिक भ्रम में पड़ जाएगा। कुछ लोग कह सकते हैं, “पहले मुझे लगता था कि मैं थोड़ा बहुत समझता हूँ, लेकिन अब जितना अधिक मैं सुनता हूँ, उतना ही अधिक भ्रम में पड़ जाता हूँ, जैसे मानो मेरे अंदर कुछ भी नहीं बचा है। ऐसा क्या हो रहा है?” अगर जीवन प्रवेश के बारे में बहुत अधिक विस्तार से बात की जाती है, तो लोगों के लिए इसे समझना मुश्किल हो जाता है, अगर उनके पास अनुभव की कमी है और उनकी काबिलियत खराब है। जितनी अधिक विस्तृत बात होगी, खराब काबिलियत के लोगों की उतना ही अधिक उलझने की संभावना रहेगी। उनके उलझने की आशंका क्यों होती है? इसमें कई स्थितियाँ होती हैं। एक यह है कि ऐसे लोगों में आध्यात्मिक समझ की कमी होती है। वे सत्य को नहीं समझते—यानी वे यह नहीं समझते कि सत्य या कोई विशेष दशा क्या होती है। उन्हें ये बातें समझ नहीं आती। यह स्थिति सत्य को समझने की क्षमता की कमी की होती है। ऐसे लोगों के मामले में केवल एक ही अंतिम उपाय किया जा सकता है : उन्हें स्पष्ट रूप से बताना कि जब भी उनके साथ कुछ घटित हो तो उन्हें क्या करना चाहिए, बिल्कुल उसी तरह जैसे एक रोबोट को आवश्यकता अनुसार कार्यों को करने के लिए प्रोग्राम किया जाता है। बस उनसे विनियमों का पालन करवाना ही काफी होता है। इस तरीके से ऐसे लोगों में परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं; उनके लिए कोई अन्य तरीका नहीं है। मैं अब इस अंतिम उपाय का उपयोग कर रहा हूँ, सबसे ठोस चीजों तक अधिक से अधिक विस्तार से बात करना—सबसे ठोस चीजों पर काम करना। कुछ लोगों का कहना है कि वे अभी भी नहीं समझे, तो मैं अब उन्हें विशेष रूप से बताऊँगा कि उनके मार्ग में जो कुछ भी आता है उससे कैसे निपटना है और उसे कैसे सँभालना है। मैं उनसे विनियमों का पालन करवा रहा हूँ; मैं बस इतना ही कर सकता हूँ, क्योंकि उनमें सत्य को समझने की क्षमता नहीं है। हर किसी की दशा एकदम समान नहीं होती, लेकिन उनमें मामूली ही अंतर हैं। अगर तुम चाहते हो कि मैं तुम लोगों से एक-एक करके हर एक के बारे में विशेष रूप से और स्पष्ट रूप से बात करूँ, तो मुझे उन सभी तक पहुँचने में काफी कठिनाई होगी, क्योंकि तुममें से बहुत से लोग ऐसे हैं जिनकी काबिलियत खराब है। हमें तुम लोगों में से उनकी आवश्यकता होगी जो आध्यात्मिक समझ रखते हैं और जो इस कार्य के उस हिस्से को करने के लिए सत्य को समझने में सक्षम हैं। मेरा कार्य तो पहले ही काफी हद तक पूरा हो चुका है। यही सब कुछ है जो करना संभव था; मैं जो कुछ कर सकता था, वह सब मैंने किया है। देहधारी परमेश्वर द्वारा किए गए सभी कार्य और बोले गए सभी वचन एक साधारण व्यक्ति के लिए समझने योग्य और सुलभ हैं। सामान्य मानवता की सोच और प्रतिक्रियाओं वाले लोगों के साथ यही सब किया जा सकता है। कुछ लोग पूछते हैं, “क्या परमेश्वर चमत्कार नहीं करेगा?” परमेश्वर चमत्कार नहीं करता; ये सभी चीजें वास्तविक, व्यावहारिक तरीके से की जानी चाहिए। यह ठीक वैसा ही है जैसे परमेश्वर के कार्य तीन चरणों में होते हैं : मानव जाति के जीवन में उसकी अगुआई करने के लिए कुछ नियमों की घोषणा से शुरू करना, फिर क्रूस पर चढ़ना और छुटकारे का कार्य और फिर वहाँ से अंत के दिनों तक जिनमें परमेश्वर का देहधारण मानव जाति को बचाने वाले सभी सत्यों को व्यक्त करता है—प्रत्येक चरण वास्तविक, व्यावहारिक तरीके से किया जाता है, मनुष्य के साथ आमने-सामने बात करना और कार्य करना। इसमें कोई चमत्कार नहीं है। सबसे बड़ा चमत्कार तो यही है कि परमेश्वर खुद व्यक्तिगत रूप से बोलता और कार्य करता है और वह चाहे कोई भी तरीका अपनाए, वह अंततः लोगों के एक समूह को पूर्ण बनाएगा और उन्हें प्राप्त करेगा। यह निश्चित रूप से होकर रहेगा; बस समय की बात है। यही सबसे बड़ा संकेत और चमत्कार है और परमेश्वर मनुष्य के दिल में सत्य के कार्य करने के लिए किसी अन्य अलौकिक तरीके का उपयोग नहीं करेगा। अब जबकि इन सत्यों के बारे में इतने विस्तार से संगति की जा चुकी है, तो अगर तुम्हारे पास समझने की क्षमता है और तुम वास्तव में सत्य का अनुसरण करने वाले व्यक्ति हो, तो अगर तुम सच में ध्यान दो और थोड़ा प्रयास करो, तो तुम्हारे लिए सत्य को या अभ्यास के सिद्धांतों को न समझना असंभव होगा। कुछ लोग कहते हैं कि वे सत्य से प्रेम करते हैं, लेकिन इतने वर्षों तक धर्मोपदेश सुनने के बाद भी वे अभी तक इसे क्यों नहीं समझ पाए हैं? दो संभावनाएँ हैं। एक यह है कि उनमें किसी भी प्रकार की कोई आध्यात्मिक समझ नहीं है और वे सत्य को समझने में असमर्थ हैं; दूसरा यह है कि वे वास्तव में सत्य से प्रेम नहीं करते और उन्होंने कभी भी इसका अनुसरण करने का प्रयास नहीं किया है। यही इसके दो संभावित कारण हैं। कुछ अन्य लोग कहते हैं कि वे सत्य को इसलिए नहीं समझते क्योंकि वे लंबे समय से परमेश्वर पर विश्वास नहीं कर रहे हैं और उन्होंने ज्यादा धर्मोपदेश नहीं सुने हैं, और उनके पास अधिक अनुभव नहीं है। यह भी एक और कारण है। हालाँकि, अगर तुम वास्तव में सत्य से प्रेम करने वाले व्यक्ति हो, तो जैसे-जैसे परमेश्वर में तुम्हारे विश्वास के वर्ष बढ़ते जाएँगे, तुम्हारी सत्य की समझ भी उतनी ही बढ़ती जाएगी और तुम्हारा आध्यात्मिक कद भी उतना ही ऊँचा होता जाएगा।

सत्य के किसी भी पहलू के बारे में संगति करने में, उसे पूरी तरह प्रस्तुत करने में केवल कुछ शब्दों से ज्यादा की जरूरत पड़ती है, इस तरह कि उससे सभी समस्याएँ हल हो सकें। आजकल लोगों के लिए सामान्यताएँ केवल सिद्धांत हैं, केवल विचारधारा होते हैं। तो, मैं लोगों को कैसे समझा सकता हूँ और कैसे उन्हें इस बात में सक्षम बना सकता हूँ कि जब वे किसी चीज को स्वीकार कर लें तो फिर इसे अपने अभ्यास के सिद्धांतों में बदल सकें? मुझे और विशिष्टता से और विस्तार से बात करनी होगी। भले ही मैं कोई कहानी सुनाऊँ या सत्य के बारे में संगति करूँ या अभ्यास के बारे में बात करूँ, उन्हें कुल मिलाकर अधिक विस्तृत और विशिष्ट होना चाहिए। विशिष्ट भाषण तुम लोगों के लिए फायदेमंद है। तो इसलिए मुझे तुम लोगों के लिए नई कहानियाँ और उदाहरण सोचने के लिए हमेशा अपने दिमाग पर जोर देना पड़ेगा ताकि तुम लोग थोड़ा बहुत और समझ सको। मैं इन सभी सत्यों को एक के बाद एक घटनाओं में व्यक्त करता हूँ और जिन सत्यों पर मैं संगति करता हूँ उन्हें प्रत्येक उस घटना के साथ जोड़ता जाता हूँ, ताकि तुम लोगों के मन में एक छवि बने जिसके साथ तुम अपनी तुलना कर सको और देख सको कि क्या तुमने कभी इस तरह से कार्य किया है, या तुम कभी ऐसे व्यक्ति की तरह कार्य करोगे, या कभी तुमने इस तरह से सोचा है या कभी तुम ऐसी स्थिति में फँसे हो। जैसे-जैसे तुम लोग इन सत्यों को सुनते हो, मैं इसे इस तरह बनाता हूँ कि तुम्हारे पास लगातार उसकी एक छवि रहे, मानो तुम उसमें पूरी तरह से डूबे हुए हो। यही कारण है कि मैं कहानियाँ सुनाता हूँ और उदाहरण देता हूँ। कुछ लोग ऐसे हैं जो कहानी शुरू होते ही अधीर हो जाते हैं। “एक और कहानी? मैं क्या कोई तीन साल का बच्चा हूँ?” बेशक आयु के लिहाज से तुम छोटे न हो, लेकिन परमेश्वर पर विश्वास रखने और सत्य का अनुसरण करने के मार्ग में तुम तीन साल से भी कम उम्र के हो सकते हो—यही इस मामले की सच्चाई है। इसलिए, तुम लोगों के साथ तीन साल के बच्चों जैसा व्यवहार करना तुम लोगों का कोई अपमान नहीं है और यह बिल्कुल भी जरूरत से ज्यादा नहीं है; जैसे मैं देखता हूँ, तो यह तुम लोगों को ज्यादा आंक रहा है। जब तीन साल का बच्चा किसी वयस्क को कहते सुनता है कि कैंची तेज हैं और उन्हें छूना नहीं चाहिए, तो वह इस बात को एक सिद्धांत के रूप में याद रखेगा। वे उन्हें बिल्कुल भी नहीं छुएँगे और उनसे मिलते-जुलते औजारों या ब्लेडों को भी नहीं छुएँगे। उन्हें पता है कि वे सभी तेज हैं; वे जानते हैं कि उन्हें इस सिद्धांत में महारत हासिल करनी है। तो क्या लोग किसी ऐसी चीज में सिद्धांत तलाश सकते हैं जिसका अनुभव उन्होंने अपने अभ्यास में कई बार किया हो? यानी, क्या तुम परमेश्वर के कार्यों के पीछे के इरादों को, उसकी तुमसे अपेक्षाओं को और किसी विषय में उसके आवश्यक मानकों को समझ सकते हो? एक सामान्य व्यक्ति की बुद्धि के अनुसार, तुम्हें ये बातें समझ में आनी चाहिए। फिर ऐसी कौन सी परिस्थितियाँ हैं जिनमें लोग उन्हें नहीं समझते, चाहे मैं कुछ भी कहूँ? ऐसा होने का मुख्य कारण सबसे पहले तो उस शोरगुल भरे माहौल से संबंधित है जिसमें लोग रहते हैं, लोगों के पास सँभालने के लिए इतनी सारी मामूली और बोझल चीजें होती हैं कि वे परमेश्वर के वचन को ध्यानपूर्वक पढ़ने-प्रार्थना करने के लिए इच्छुक नहीं होते और वे सत्य को पाने के लिए कोई प्रयास नहीं करते। यह विवेक का एक पहलू है; इसका दूसरा पहलू यह है कि लोगों की सत्य के प्रति प्यास और प्रेम इतना कम होता है कि अगर दस को पूर्ण स्कोर माना जाए, तो वर्तमान में तुम लोगों की सत्य के प्रति प्रेम की सीमा अधिकतम तीन या पाँच पर होगी। इसलिए, लोगों द्वारा सत्य को न समझ पाने और अंततः इसे प्राप्त न कर पाने के पीछे बड़ा कारण यह होता है कि उन्होंने इसे खुद पर लागू नहीं किया है और यह भी है कि वे पूरे दिल से इसके लिए प्रयास नहीं करते, और अपने दिल में वे सत्य से उतना भी प्रेम नहीं करते। सत्य के प्रति लोगों के प्रेम का स्तर पर्याप्त नहीं होता। यह केवल थोड़ी सी दिलचस्पी की हद तक होता है; यह प्रेम के स्तर तक नहीं पहुँचता। यह केवल इसलिए है क्योंकि लोगों ने इस दुनिया में इतनी ज्यादा असफलताओं और कष्टों का सामना किया है कि वे इसी तरह नहीं जी पाते और क्योंकि उन्होंने परमेश्वर को हर दिन अपना काम करते, लोगों को बचाते और सत्य के बारे में संगति करते और मनुष्य को जो कुछ वह प्रदान करता है, उसकी प्रचुरता को देखा है, इसलिए उन्हें लगता है कि परमेश्वर ही है जो अच्छा है और वे उसके वचनों को पढ़ने और सत्य की ओर प्रयास करने के लिए तत्पर हो जाते हैं। उन्हें इसी चीज में थोड़ी दिलचस्पी होती है। लोगों का दिल अपना अधिकतर समय कहाँ व्यतीत करता है? वे सभी अनेक तुच्छ बातों में उलझे रहते हैं और भावनात्मक संबंधों, पारस्परिक संबंधों, हैसियत और अहंकार और समाज के रुझानों जैसे विभिन्न मुद्दों में व्यस्त रहते हैं। यहाँ तक कि कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपना ज्यादातर समय और ऊर्जा अपने भोजन, कपड़ों, वेशभूषा और देह के आनंद पर लगाते हैं। वे इन चीजों पर सचमुच अपना अनमोल समय बरबाद करते हैं और यह कहकर इसकी महिमा करते हैं : “मैं परमेश्वर के लिए खुद को खपा रहा हूँ!” आखिरकार अंत में, वे पीछे मुड़कर देखते हैं कि परमेश्वर ने उनके लिए इतने वचन कहे और इतने लंबे समय तक कार्य किया, फिर भी उन्होंने सत्य प्राप्त नहीं किया है। ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि परमेश्वर ने उन्हें यह नहीं दिया, बल्कि इसलिए है क्योंकि उन्होंने दिल से सत्य को स्वीकार नहीं किया या खुद पर सत्य को लागू नहीं किया, हालाँकि उन्होंने परमेश्वर को इसे बहुत अधिक व्यक्त करते देखा था। यही कारण है कि वे परमेश्वर में अपने कई वर्षों के विश्वास में सत्य और जीवन प्राप्त नहीं कर पाए और अंत में हटा दिए गए।

22 जनवरी 2019

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