मद चार : वे अपनी बड़ाई करते हैं और अपने बारे में गवाही देते हैं
परिशिष्ट : चूहों का शिकार
हाल ही में, मुझे एक नए मामले के बारे में पता चला है। इसे सुनो और सोचो कि यह लोगों के व्यवहार और स्वभाव से कैसे संबंधित है, यह कहानी किस बारे में है और यह किस प्रकार की समस्या को दर्शाती है। जब कुछ चीनी लोग अमेरिका आए तो यहां आने के बाद उन्होंने देखा कि न केवल यहां का सामाजिक परिवेश और माहौल चीन से काफी अलग है बल्कि यहां कुछ और भी है जो उन्हें बेहद दिलचस्प लगा। और वो यह था कि इस देश में, न केवल लोग स्वतंत्र थे, बल्कि सभी प्रकार के जीवित प्राणी और जानवर भी बहुत स्वतंत्र थे, और कोई भी उन्हें नुकसान नहीं पहुंचा रहा था। मानव की स्वतंत्रता निश्चित रूप से सामाजिक व्यवस्था का परिणाम है, तो सभी प्रकार के जीवित प्राणियों और जानवरों की इस स्वतंत्रता के पीछे क्या कारण था? क्या इसका संबंध भी सामाजिक व्यवस्थाओं से है? (बिल्कुल है।) इसका संबंध इस बात से है कि सामाजिक व्यवस्थाएं और सरकारी नीतियां संपूर्ण प्राकृतिक परिवेश की रक्षा और प्रबंधन कैसे करती हैं। यहां जंगली जानवर हर जगह पाए जाते हैं और हर जगह देखने को मिल जाते हैं। उदाहरण के लिए, आप हाइवे के किनारे घास के मैदान में जंगली हंसों को घास खाते हुए देख सकते हैं, और वहां कुछ ऐसे पार्क, घास के मैदान और जंगल भी हैं जहाँ आप कुछ हिरण, भालू या भेड़ियों और साथ ही पेरू पक्षी, तीतर और सभी प्रकार के पक्षियों और अन्य जंगली जानवरों को देख सकते हैं। जब लोग इस तरह का कोई दृश्य देखते हैं तो उनके मन में पहली छाप क्या पड़ती है? (उन्हें महसूस होता है कि उन्होंने प्रकृति को देखा है।) और जब वे प्रकृति को देखते हैं तो उनमें किस तरह की भावनाएं पैदा होती हैं? क्या वे यह नहीं कहेंगे : “इनके इस देश को तो देखो। यहां न केवल लोग स्वतंत्र हैं, बल्कि यहां के जानवर भी स्वतंत्र हैं। एक जानवर के रूप में पुनर्जन्म लेकर इस देश में जीना चीन में एक मनुष्य के रूप में जीने से ज्यादा बेहतर होगा, क्योंकि यहां जानवर भी स्वतंत्र रहते हैं और कोई भी उनके साथ दुर्व्यवहार नहीं करता”? क्या उनके मन में ऐसी भावनाएं नहीं आएंगी? (जरूर आएंगी।) जो लोग एक लंबे समय से यहां रह रहे हैं, उनके लिए ये चीजें सामान्य हो जाती हैं, और उन्हें यह बिल्कुल भी असामान्य नहीं लगतीं; उन्हें लगता है कि ये चीजें बहुत सामान्य हैं। लेकिन कुछ लोगों के लिए, इस तरह के परिवेश से परिचित होने के बाद, उनके मन में कुछ सक्रिय विचार उभरने लगते हैं : “ये सभी जानवर इतने स्वतंत्र हैं और कोई भी उनकी निगरानी नहीं करता या उन पर नजर नहीं रखता, तो क्या मैं उन्हें पकड़ सकता हूँ और खा सकता हूँ? कितना अच्छा होता अगर मैं उन्हें खा सकता, लेकिन मैं अंधाधुंध ऐसा काम नहीं कर सकता क्योंकि हो सकता है कि उन्हें कानून द्वारा संरक्षण प्राप्त हो। मुझे इस संभावना पर गौर करना होगा।” इस बारे में जानकारी इकठा करने पर उन्हें पता चलता है कि इस देश का कानून स्पष्ट रूप से कहता है कि जंगली जानवरों को राष्ट्रीय कानून के तहत समान रूप से संरक्षण प्राप्त है और लोग अपनी मर्जी से उनका शिकार नहीं कर सकते या उन्हें मार नहीं सकते। यदि कोई जानवरों का शिकार करना चाहता है, तो वह राज्य द्वारा निर्दिष्ट शिकार के क्षेत्र में ही ऐसा कर सकता है; इसके लिए उनके पास लाइसेंस भी होना चाहिए, और उन्हें हर उस जानवर के लिए शुल्क देना पड़ सकता है जिसे उन्होंने पकड़ा है। संक्षेप में कहें तो कानून इन जंगली जानवरों की रक्षा करता है और उनके बारे में स्पष्ट शर्तें निर्धारित हैं। कुछ लोग जंगली जानवरों की सुरक्षा के कानून को समझ ही नहीं सकते और वे सोचते हैं : “ये सब तो जंगली पकवान हैं और फिर भी सरकार हमें अपनी मर्जी से इन्हें पकड़ने और खाने की अनुमति नहीं देती है। यह तो बहुत ही अफसोस की बात है! चीन में तो कोई भी इसकी परवाह नहीं करता है : ‘यदि कोई इसकी रिपोर्ट न करे, तो सरकारी अधिकारी इसकी जांच भी नहीं करेंगे।’ आप किसी भी जानवर को पकड़कर खा सकते हैं, बस किसी को इस बारे में पता नहीं चलना चाहिए। लेकिन आप एक लोकतांत्रिक देश में ऐसा नहीं कर सकते। यहां कानूनी नियम होते हैं और मैं अन्य लोगों के देश में जाकर अपनी मर्जी से कुछ भी नहीं कर सकता। लेकिन ये सभी जानवर तो जंगली शिकार हैं और यह इतनी अफसोस की बात है कि हम केवल उन्हें देख सकते हैं, पर खा नहीं सकते! मुझे इसका कोई समाधान सोचना ही होगा। मैं बिना किसी को दिखाए और बिना कानून तोड़े इस शिकार को कैसे खा सकता हूँ?” कुछ लोग चालाकी करने की सोचते हैं और कहते हैं : “अगर मैं एक पिंजरा बनाता हूँ और जानवरों को आकर्षित करने के लिए उसमें थोड़ा सा स्वादिष्ट भोजन डालता हूँ और जंगली खरगोशों जैसे कोई छोटे जानवर पकड़ता हूँ और फिर उन्हें मारकर खाने के लिए एक सुनसान जगह तलाश करता हूँ, तो ऐसा करने पर मैं कोई कानून नहीं तोड़ूंगा, है ना? उन छोटे जानवरों को तो राज्य द्वारा संरक्षण प्राप्त नहीं है और उनके बारे में कानून में कोई स्पष्ट शर्तें भी निर्धारित नहीं की गईं हैं। अगर मैं ऐसा करता हूँ, तो मैं जंगली शिकार खा सकता हूँ और यह भी सुनिश्चित कर सकता हूँ कि मैं कानून का उल्लंघन ना करूँ। इससे बेहतर और कुछ नहीं होगा।” और यह विचार आने के बाद, वे एक पिंजरा लेते हैं और शिकार करना शुरू कर देते हैं। अभी दो दिन भी नहीं गुजरे थे कि एक चूहा पिंजरे में आता है और वे उसी समय उसे मारकर खा जाते हैं और एक जंगली शिकार वाला एहसास लेते हैं! इसे खाने के बाद वे किस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं? “जंगली जानवर बहुत स्वादिष्ट होते हैं। अब से मैं अन्य प्रकार के शिकार खाने के और भी नए तरीके सोचूंगा। मैं उन्हें खाने से नहीं डरता, बशर्ते मैं कानून न तोड़ूँ।” कहानी यहीं खत्म होती है।
कुछ लोग पूछते हैं, “क्या यह एक सच्ची कहानी है या यह मनगढ़ंत है?” अभी के लिए, इस बारे में चिंता न करो कि क्या यह सच्ची कहानी है या मनगढ़ंत है, और क्या वास्तव में ऐसा हुआ भी था या नहीं। बस इसी बात पर ध्यान दो कि इस कहानी के आधार पर, इस तरह के काम करने वाले लोग क्या गलत करते हैं। क्या इस तरह का काम करना एक गंभीर गलती है? क्या इसे कानून का उल्लंघन माना जाता है? क्या इसे अनैतिक माना जाता है? (बिल्कुल।) क्या यह नैतिकता के खिलाफ है या मानवता के खिलाफ है या किसी और चीज के खिलाफ है? पहले तो मुझे बताओ : क्या इस प्रकार का व्यवहार प्रशंसा के योग्य है या निंदा के योग्य है? तुम लोग कौन सा पक्ष लोगे? (निंदा वाला।) भले ही यह व्यवहार नैतिकता के खिलाफ हो, कानून के खिलाफ हो या मानवता के खिलाफ हो, चाहे कुछ भी हो, इस तरह का व्यवहार बुरा है और जिन लोगों में मानवता है वे ऐसा व्यवहार नहीं करते हैं। तो यह क्या है? क्या इस प्रकार का स्वभाव या व्यवहार एक गंभीर समस्या है? तुम लोग अपने खुद के मानकों के अनुसार इस मामले को कैसे आंकोगे? क्या रोजमर्रा के जीवन में और हर प्रकार के लोगों में इस तरह का व्यवहार आम होता है? (हाँ।) यह कोई बेहद कपटी या बुरा व्यवहार नहीं है, बल्कि यह एक अनुचित व्यवहार है और यह कोई ऐसी अभिव्यक्ति नहीं है जो सामान्य मानवता वाले लोगों के पास होनी चाहिए। तो वास्तव में यह किस प्रकार की अभिव्यक्ति है? चलो आगे बढ़ो और इसका वर्गीकरण करो। यह किस प्रकार का व्यवहार है? क्या इसे बढ़ावा दिया जाना चाहिए? (नहीं।) यह इस काबिल नहीं है कि इसे बढ़ावा दिया जाए और लोग इसकी प्रशंसा नहीं करते और इसलिए इसकी निंदा की जानी चाहिए और इसका तिरस्कार किया जाना चाहिए। इस तरह का व्यवहार काफी आम होता है और यह अक्सर हर प्रकार के लोगों में और रोजमर्रा के जीवन में दिखाई देता है, हमें अक्सर यह देखने को मिलता है और ऐसे लोग मौजूद हैं जो अक्सर इस तरह का काम करते हैं। तो फिर क्या यह ध्यान दिए जाने और चर्चा किए जाने के लायक नहीं है, ताकि प्रत्येक व्यक्ति को इस मामले की सटीक परिभाषा समझ आ सके और वे इस प्रकार के व्यवहार से खुद को दूर रख सकें? क्या ऐसा करना सही नहीं रहेगा? (बिल्कुल रहेगा।) तो फिर चलो इसे परिभाषित करते हैं—यह किस प्रकार का व्यवहार है? क्या यह अहंकारी व्यवहार है? क्या यह दुराग्रही व्यवहार है? क्या यह कपटी व्यवहार है? (नहीं।) क्या यह दुष्ट व्यवहार है? (थोड़ा सा।) यह कुछ हद तक इसके करीब है। तुम लोगों ने जो भी शब्द सीखे और समझे हैं, क्या उनमें ऐसे कोई शब्द हैं जो इस प्रकार के व्यवहार को परिभाषित कर सकें? (अनैतिक।) अनैतिक, इस शब्द में इस गुण का थोड़ा सा हिस्सा तो जरूर है। इस शब्द में इस प्रकार का व्यवहार और सार तो जरूर समाहित है लेकिन यह इसे पूरी तरह से सारांशित नहीं करता है। इस व्यवहार को दुर्भावनापूर्ण नहीं माना जा सकता है, क्योंकि यदि एक चूहे को मारना दुर्भावनापूर्ण है तो फिर चूहों का सफाया करना भी एक नकारात्मक बात होगी। जबकि चूहे का सफाया करना एक सकारात्मक बात है; चूहे लोगों को नुकसान पहुंचाते हैं, इसलिए उनका सफाया करना सही है। लेकिन क्या उनका सफाया करने और उन्हें खाने में कोई फर्क नहीं है? (बिल्कुल है।) तो फिर इस व्यवहार को कैसे सारांशित किया जा सकता है? तुम लोगों के दिमाग में ऐसे कौन से शब्द आते हैं जो इस तरह के व्यवहार से संबंधित हैं? (घिनौना।) (नीच।) नीच, अनैतिक और घिनौना। रोजमर्रा के जीवन में, नीच, अनुचित व्यवहार को सारांशित करने के लिए किस शब्द का उपयोग किया जाता है? (घटिया।) “घटिया” शब्द इस प्रकार के व्यवहार को ठीक और सटीक रूप से सारांशित करता है। इसे “घटिया” के रूप में परिभाषित क्यों किया गया है? यदि इसे अनैतिक, स्वार्थी या घिनौना कहा जाता, तो यह घटिया लोगों द्वारा प्रकट की जाने वाली केवल एक प्रकार की अभिव्यक्ति होती। “घटिया” के कई अर्थ होते हैं—अनैतिक होना, भ्रष्ट होना, घिनौना होना, स्वार्थी होना, चरित्रहीन होना, अच्छा व्यवहार न करना, खुलकर या ईमानदारी से अपने कार्य न करना बल्कि इसके बजाय छिपकर कार्य करना और केवल अनुचित काम करना। इस प्रकार के व्यवहार और अभिव्यक्तियाँ घटिया लोगों में होती हैं। उदाहरण के लिए, यदि किसी सामान्य व्यक्ति को कोई काम करना हो तो वह इसे खुले आम बिना किसी से छुपाए करता है, बशर्ते यह कोई उचित काम हो, और यदि यह काम कानून के विरुद्ध हो तो वह इसे छोड़ देता है और नहीं करता। लेकिन घटिया लोग ऐसे नहीं होते हैं; वे किसी भी कीमत पर अपने लक्ष्यों को प्राप्त करना चाहते हैं और उनके पास कानून की सीमाओं को लांघने के लिए रणनीतियां होती हैं। वे कानून को नजरअंदाज करते हैं और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के तरीके तलाशते हैं, भले ही ऐसा करना नैतिकता, सदाचार या मानवता के खिलाफ ही क्यों न हो और इसका परिणाम चाहे कुछ भी हो। वे इनमें से किसी भी चीज की परवाह नहीं करते और केवल किसी भी तरह से अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की कोशिश करते हैं। इसी को “घटिया” होना कहते हैं। क्या घटिया लोगों में कोई ईमानदारी या मर्यादा होती है? (नहीं।) क्या वे कुलीन लोग होते हैं या नीच होते हैं? (नीच।) वे किस तरह से नीच होते हैं? (उनके आचरण के लिए कोई नैतिक आधार रेखा नहीं है।) यह सही बात है, इस प्रकार के व्यक्ति के आचरण में कोई आधार रेखा या सिद्धांत नहीं होते हैं; वे परिणामों के बारे में नहीं सोचते और जो उनकी मर्जी हो वही करते हैं। वे कानून की, नैतिकता की और इस बात की परवाह नहीं करते कि क्या उनकी अंतरात्मा उनके कार्यों को स्वीकार सकती है या नहीं, और न ही उन्हें किसी के आरोप, आलोचना या निंदा की परवाह होती है। वे इन सब चीजों से बेपरवाह होते हैं और जब तक उन्हें लाभ और आनंद मिल रहा होता है तब तक उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। उनके काम करने का तरीका भ्रष्ट होता है, उनकी सोच घृणित और शर्मनाक होती है। घटिया होने का यही तो मतलब है। क्या “घटिया” शब्द को उन विभिन्न स्वभावों की अभिव्यक्तियों द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सकता है जिनके बारे में हमने पहले बात की थी? ऐसा करना सही नहीं होगा। “घटिया” शब्द काफी विशेष है, तो क्या घटिया लोग एक विशेष प्रकार के लोग होते हैं? नहीं, वे विशेष नहीं होते। क्या तुम लोगों के भीतर कोई घटियापन है? (हाँ।) इसकी विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? (कभी-कभी लोग अपना मुँह धोने के बाद काउंटर पर पानी फैला देते हैं और इसे साफ नहीं करते। और जब लोग अपना खाना खत्म कर लेते हैं, तो वे मेज से चावल के दाने और सब्जी का शोरबा साफ नहीं करते। जब उनके कपड़े गंदे हो जाते हैं, तो वे उन्हें मोड़े बिना ही किसी नुक्कड़ पर फेंक देते हैं। मुझे लगता है कि ये सभी हरकतें भी घटिया होने की अभिव्यक्तियाँ हैं।) वास्तव में, ये सभी चीजें हमारे रोजमर्रा के जीवन के छोटे-छोटे पहलू हैं और गंदा होना वास्तव में घटिया होना नहीं होता, बल्कि इसका संबंध मानवता में जीवन यापन करने से है। यदि कोई व्यक्ति समूह में रहते हुए ऐसे काम नहीं करता जो दूसरों के लिए फायदेमंद हों, और यदि उसका पालन-पोषण उचित ढंग से नहीं किया गया हो या वह दूसरों से अच्छा व्यवहार नहीं करता और लोगों के बुरे पहलू के पीछे पड़ा रहता है और दूसरों की नजरों में उनके लिए नफरत पैदा करता है, और वह जहां भी जाता है, वहां के नियमों या व्यवस्थाओं का पालन करना नहीं जानता और उसमें इस जागरूकता का अभाव है, तो फिर क्या उसकी मानवता में कुछ कमी नहीं है? (बिल्कुल है।) किस चीज की कमी है? इसमें सूझ-बूझ की कमी है। क्या इस तरह के लोगों में मर्यादा की कमी नहीं है? (बिल्कुल।) उनमें कोई मर्यादा नहीं है, कोई ईमानदारी नहीं है और उनकी परवरिश खराब तरीके से हुई थी। इसका संबंध मानव आचरण की आधार रेखा और सामान्य मानवता के साथ जीवन यापन करने से है। यदि कोई इन मानकों को भी पूरा नहीं कर सकता, तो कैसे संभव होगा कि वे सत्य का अभ्यास करें? कैसे संभव होगा कि वे परमेश्वर की महिमा करें? कैसे संभव होगा कि वे सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य करें? उनके लिए तो इनमें से कुछ भी करने की कोई संभावना नहीं है। इस तरह के व्यक्ति में कोई जमीर या सूझ-बूझ नहीं होती—क्या इनका प्रबंधन करना आसान होता है? क्या उनके लिए बदलना आसान होता है? यह बिल्कुल भी आसान नहीं होता। तो फिर वे कैसे बदल सकते हैं? यह इस बात पर निर्भर करेगा कि सभी को उनकी निगरानी करनी चाहिए, उन्हें रोकना टोकना और प्रेरित करना चाहिए। गंभीर मामलों में सभी को उनकी आलोचना करने के लिए खड़ा होना चाहिए। इस आलोचना के पीछे क्या मकसद है? इसका मकसद उनकी सहायता करना, अच्छा व्यवहार करने में उनकी मदद करना और उन्हें अपमानजनक और गलत काम करने से रोकना है। तो फिर वास्तव में घटिया होने का क्या मतलब है? इसके प्राथमिक लक्षण और अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? देखो क्या मेरा सारांश सटीक है या नहीं। घटिया लोग किसके बराबर होते हैं? वे ऐसे जंगली जानवरों के बराबर हैं जिन्हें पालतू नहीं बनाया गया है और जिन्हें गलत तरीके से पाला गया है और इसकी प्राथमिक अभिव्यक्तियाँ घमंड, क्रूरता, संयम की कमी, लापरवाही से कार्य करना, सत्य को जरा भी स्वीकार न करना, साथ ही जो चाहे वह करना, किसी की बात न सुनना, या किसी को भी उन्हें प्रबंधित करने की अनुमति नहीं देना, किसी के भी विरुद्ध जाने का साहस करना और किसी अन्य के प्रति कोई सम्मान न रखना है। मुझे बताओ कि क्या घटिया होने की विभिन्न अभिव्यक्तियाँ गंभीर होती हैं? (बिल्कुल होती हैं।) कम से कम, घमंड, सूझ-बूझ की कमी और लापरवाही से कार्य करने का यह स्वभाव बहुत गंभीर है। भले ही इस तरह के किसी व्यक्ति के बारे में ऐसा प्रतीत हो कि वह ऐसे काम नहीं करता जो परमेश्वर को आंकते हों या उसका विरोध करते हों, लेकिन उनके घमंडी स्वभाव के कारण, इसकी अत्यधिक संभावना है कि वे बुरे कार्य करेंगे और उसका विरोध करेंगे। उनके सभी कार्य उनके भ्रष्ट स्वभावों को दिखाते हैं। जब कोई व्यक्ति एक हद तक घटिया बन जाता है, तो वह एक डाकू और शैतान बन जाता है, और डाकू और शैतान कभी भी सत्य को स्वीकार नहीं करते—उन्हें केवल नष्ट किया जा सकता है।
क्या इस कहानी के बारे में बात करने का कोई महत्व है? (हाँ।) यद्यपि यह कहानी मनुष्य के प्रकृति सार या स्वभाव के बारे में नहीं है, लेकिन यह मनुष्य के व्यवहार से संबंधित है, जो कि मनुष्य के सार से अलग या असंबंधित नहीं होता है। इस कहानी को क्या कहा जाना चाहिए? चलो इसे एक प्रतीकात्मक गुणवत्ता वाला नाम देते हैं और कोई साफ-सीधा नाम नहीं रखते। (चूहों का शिकार।) “चूहों का शिकार” एक बढ़िया नाम है। किसी ने “पूरी तरह से वैध” तरीके से एक चूहा पकड़ा और कहा : “अब मैं क्या कर सकता हूँ? यह खुद चल कर यहाँ आया है और मुझे इसके लिए काफी खेद है। इसके अलावा, इसे चोट भी तो लगी है। अगर यह यहाँ से वापस बाहर निकल जाता है, तो यह मर जाएगा और फिर वैसे भी अन्य जानवर इसे खा लेंगे, तो फिर मैं ही क्यों न इसे खा लूँ? क्या ऐसा करना कानूनी तौर पर पूरी तरह से वैध नहीं होगा?” केवल उस चूहे को खाने के लिए उसने ये सारे बहाने बनाए और ये सभी कारण तलाश किए और फिर उसने निर्दोष अंतरात्मा के साथ इसे खाया। इसी को घटिया होना कहते हैं। ऐसा नहीं है कि अमेरिका में लोग मांस नहीं खा सकते, इसलिए ऐसा करने के लिए सारी परेशानी उठाने और इतना प्रयास करने का कोई फायदा नहीं है। यह घटिया लोगों के काम हैं। क्या सामान्य लोग भी इस तरह का काम करते हैं? क्या मानवता और ईमानदारी वाले लोग इस तरह का काम करते हैं? (नहीं।) वे ऐसा क्यों नहीं करते? इसका संबंध ईमानदारी से है। जो लोग प्रकृति से ही चोर होते हैं और उन्हें सुधारना असंभव होता है, वे हमेशा चोरी और ठगी करते रहते हैं और शर्मनाक काम करते रहते हैं। क्या उन्हें घर में किसी चीज की कमी होती है? जरूरी तो नहीं। चूंकि वे घटिया होते हैं, इसलिए उन्हें अपनी प्राथमिकताओं को प्राप्त करने और अपने अत्यधिक लालची स्वभाव को संतुष्ट करने के लिए चोरी करने पर निर्भर होना पड़ता है। इन चीजों को करने से उनके दिल को सुकून मिलता है। अगर वे इस तरह की हरकत न करें तो वे परेशान हो जाते हैं। इसी को घटिया होना कहते हैं। अब मैं इस कहानी को समाप्त करता हूँ और मुख्य विषय पर आता हूँ।
मुख्य विषय पर बात करने से पहले, आओ पहले हमारी पिछली संगति की विषय-वस्तु पर गौर करते हैं। परमेश्वर के चुने हुए लोग जो कर्तव्य निभाते हैं उन्हें छह मुख्य श्रेणियों में बाँटा जा सकता है। हमने पहली श्रेणी पर चर्चा पूरी कर ली है, अर्थात वे लोग जो सुसमाचार फैलाने का कर्तव्य निभाते हैं। दूसरी श्रेणी उन लोगों की है जो कलीसिया में विभिन्न स्तरों पर अगुआओं और कार्यकर्ताओं के कर्तव्यों का पालन करते हैं। इस श्रेणी के सदस्यों को बुनियादी रूप से दो मुख्य प्रकारों में बाँटा जा सकता है, और पिछली बार हमने इनमें से एक प्रकार, अर्थात् मसीह विरोधियों के बारे में बात की थी। मसीह विरोधी कैसे काम करते हैं, उनके पास कौन सी अभिव्यक्तियाँ होती हैं और वे ऐसी कौन सी चीजें करते हैं जिनके कारण उन्हें मसीह विरोधी के रूप में परिभाषित किया जाता है—हमने मसीह विरोधियों की इन अभिव्यक्तियों और स्वभावों को वर्गीकृत किया था। इसके अंतर्गत कौन सी विशिष्ट मदें थीं? (मद एक : वे लोगों के दिल जीतने का प्रयास करते हैं; मद दो : वे विरोधियों पर आक्रमण करते हैं और उन्हें निकाल देते हैं; मद तीन : सत्य का अनुसरण करने वालों को वे निकाल देते हैं और उन पर आक्रमण करते हैं; मद चार : वे अपनी बड़ाई करते हैं और अपने बारे में गवाही देते हैं; मद पाँच : वे लोगों को गुमराह करने, फुसलाने, धमकाने और नियंत्रित करने का काम करते हैं।) पिछली बार, पांच मदों को सारांशित किया गया था, और तुम लोगों ने उन सभी को नोट कर लिया था। अब अगली मदों को नोट करो। मद छह : वे कुटिल तरीकों से व्यवहार करते हैं, वे स्वेच्छाचारी और तानाशाह होते हैं, वे कभी दूसरों के साथ संगति नहीं करते, और वे दूसरों को अपने आज्ञापालन के लिए मजबूर करते हैं; मद सात : वे दुष्ट, धूर्त और कपटी हैं; मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं; मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और वे व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों का सौदा तक कर देते हैं; मद दस : वे सत्य से घृणा करते हैं, सिद्धांतों की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाते हैं और परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं की उपेक्षा करते हैं; मद ग्यारह : वे काट-छाँट करना स्वीकार नहीं करते और न ही गलत काम करने पर उनमें पश्चात्ताप का रवैया होता है, बल्कि वे धारणाएँ फैलाते हैं और परमेश्वर के बारे में सार्वजनिक रूप से आलोचना करते हैं; मद बारह : जब उनके पास कोई रुतबा नहीं होता या आशीष पाने की आशा नहीं होती तो वे पीछे हटना चाहते हैं; मद तेरह : वे कलीसिया के वित्तीय मामलों को नियंत्रित करने के साथ-साथ लोगों के दिलों को भी नियंत्रित करते हैं; मद चौदह : वे परमेश्वर के घर को अपना निजी क्षेत्र मानते हैं; मद पंद्रह : वे परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते और वे मसीह के सार को नकारते हैं। कुल 15 मद हैं और वे सभी मसीह विरोधी की विभिन्न अभिव्यक्तियों का गहन-विश्लेषण करती हैं और उन्हें उजागर करती हैं। ये 15 मदें असल में मसीह-विरोधियों के विभिन्न प्रकार के व्यवहार, अभिव्यक्तियों और स्वभावों को सारांशित करती हैं। इनमें से कुछ मदें देखने में सतही व्यवहार जैसी लगती हैं, लेकिन इन व्यवहारों के पीछे मसीह विरोधियों का अंतर्निहित स्वभाव सार होता है। क्या इन 15 मदों को उनके शाब्दिक अर्थ के संदर्भ में समझना आसान नहीं है? उन सभी मदों को सरल भाषा में बयान किया गया है और एक लिहाज से, उन्हें समझना आसान है, जबकि इसके अतिरिक्त, जो कुछ भी उनमें से प्रत्येक में सारांशित किया गया है वह मनुष्य की अभिव्यक्तियों, प्रकाशनों और सार से संबंधित है। प्रत्येक मद एक प्रकार का स्वभाव है; यह कोई अस्थायी व्यवहार या विचार नहीं होता है। स्वभाव क्या है? कोई किसी को कैसे समझा सकता है कि स्वभाव क्या है? स्वभाव से अभिप्राय है जब किसी व्यक्ति के तौर-तरीके विचार, राय, काम करने के सिद्धांत, संचालन के तरीके और जिस लक्ष्य का वे पीछा कर रहे हैं, वे समय और भौगोलिक स्थिति में परिवर्तन के साथ बिल्कुल भी नहीं बदलते हैं, चाहे वो व्यक्ति कहीं भी जाए। यदि जैसे ही किसी व्यक्ति का परिवेश बदलने के साथ ही उसका कार्य करने का तरीका भी बदल जाता है, तो यह एक भ्रष्ट स्वभाव का प्रकाशन नहीं है, बल्कि एक अस्थायी व्यवहार है। तो फिर एक असली स्वभाव का क्या मतलब है? (यह किसी भी समय और किसी भी स्थान पर किसी व्यक्ति पर हावी हो सकता है।) यह सही बात है, यह किसी भी समय और स्थान पर किसी व्यक्ति के शब्दों और कार्यों पर हावी हो सकता है, वह भी बिना किसी शर्तों वाले प्रतिबंध या प्रभाव के। यह एक सार है। सार उस चीज को कहते हैं जिस पर कोई जीवित रहने के लिए निर्भर रहता है; यह समय, स्थान या अन्य बाहरी कारकों में परिवर्तन के आधार पर नहीं बदलता। इसे व्यक्ति का सार कहते हैं। कुछ लोग कहते हैं : “मेरे पास मसीह-विरोधियों की कमोबेश ये सभी 15 अभिव्यक्तियाँ हैं जिन्हें आपने सारांशित किया है, लेकिन मैं रुतबे के पीछे नहीं भागता और मैं किसी महत्वाकांक्षा के साथ पैदा नहीं हुआ था। इसके अलावा, मेरे ऊपर इस समय कोई जिम्मेदारी नहीं है। मैं कोई अगुआ या कार्यकर्ता नहीं हूँ और मुझे चर्चा का विषय बनना पसंद नहीं है, तो क्या मसीह विरोधियों का प्रकृति सार मेरे लिए अप्रासंगिक नहीं है? यदि यह अप्रासंगिक है, तो क्या यह सच नहीं है कि मुझे इन संगतियों को सुनने या उनको सामने रखकर अपनी तुलना करने की आवश्यकता नहीं है?” क्या यही हकीकत नहीं है? (नहीं।) तो फिर मसीह विरोधियों की इन अभिव्यक्तियों के प्रति क्या दृष्टिकोण रखना चाहिए? इन अभिव्यक्तियों के बारे में संगति की गई सच्चाइयों के प्रति क्या दृष्टिकोण रखना चाहिए? तुम्हें सत्य को समझना चाहिए और इन संगतियों के भीतर खुद को पहचानना चाहिए, फिर सही रास्ता ढूंढना चाहिए और अपने कर्तव्य के निर्वहन और परमेश्वर की सेवा में सिद्धांतों को अपनाना चाहिए। केवल यही एक तरीका है जिससे तुम मसीह विरोधियों के रास्ते से अलग हो सकते हो और पूर्ण बनाए जाने के रास्ते पर चल सकते हो। यदि तुम लोग देखते हो कि मसीह विरोधियों की ये अभिव्यक्तियाँ तुमसे मेल खाती हैं, तो यह तुम लोगों के लिए एक चेतावनी, एक ताकीद, एक प्रकटीकरण और एक न्याय होगा। यदि यह तुम्हारे साथ मेल नहीं खातीं, लेकिन तुम यह महसूस कर सकते हो कि तुम्हारी दशाएँ भी ऐसी ही हैं, तो इन दशाओं को सुधारने के लिए तुम लोगों को और अधिक आत्मचिंतन करने और खुद को जानने की कोशिश करनी चाहिए और सत्य की खोज करनी चाहिए। इस तरह, तुम भी धीरे-धीरे अपने भ्रष्ट स्वभावों को त्याग सकते हो और मसीह विरोधियों के रास्ते पर चलने से बच सकते हो।
मसीह-विरोधियों द्वारा अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने का विश्लेषण
आज की संगति मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों की चौथी मद के बारे में है : अपनी बड़ाई करना और अपनी गवाही देना। अपना उन्नयन करना और अपनी गवाही देना, स्वयं पर इतराना, दूसरों की अपने बारे में बहुत अच्छी राय बनवाने और उनसे अपनी आराधना करवाने की कोशिश करना—भ्रष्ट मनुष्यजाति इन चीज़ों में माहिर है। जब लोग अपनी शैतानी प्रकृतियों से शासित होते हैं, तब वे सहज और स्वाभाविक ढंग से इसी तरह प्रतिक्रिया करते हैं, और यह भ्रष्ट मनुष्यजाति के सभी लोगों में है। लोग सामान्यतः कैसे अपनी बड़ाई करते हैं और अपनी गवाही देते हैं? वे दूसरों की अपने बारे में बहुत अच्छी राय बनवाने और उनसे अपनी आराधना करवाने के इस लक्ष्य को कैसे हासिल करते हैं? वे इस बात की गवाही देते हैं कि उन्होंने कितना कार्य किया है, कितना अधिक दुःख भोगा है, स्वयं को कितना अधिक खपाया है, और क्या कीमत चुकाई है। वे अपनी पूँजी के बारे में बातें करके अपनी बड़ाई करते हैं, जो उन्हें लोगों के दिमाग़ में अधिक ऊँचा, अधिक मजबूत, अधिक सुरक्षित स्थान देता है, ताकि अधिक से अधिक लोग उनकी सराहना करें, उन्हें मान दें, उनकी प्रशंसा करें, और यहाँ तक कि उनकी अराधना करें, उनका आदर करें, और उनका अनुसरण करें। यह लक्ष्य हासिल करने के लिए लोग कई ऐसे काम करते हैं, जो ऊपरी तौर पर तो परमेश्वर की गवाही देते हैं, लेकिन वास्तव में वे अपनी बड़ाई करते हैं और अपनी गवाही देते हैं। क्या इस तरह से कार्य करना उचित है? वे तार्किकता के दायरे से परे हैं और उन्हें कोई शर्म नहीं है : अर्थात्, वे निर्लज्ज ढंग से गवाही देते हैं कि उन्होंने परमेश्वर के लिए क्या-क्या किया है और उसके लिए कितना अधिक दुःख झेला है। वे तो अपनी योग्यताओं, प्रतिभाओं, अनुभव, विशेष कौशलों पर, सांसारिक आचरण की चतुर तकनीकों पर, लोगों के साथ खिलवाड़ के लिए प्रयुक्त अपने तौर-तरीक़ों पर इतराते तक हैं। अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने का उनका तरीका स्वयं पर इतराने और दूसरों को नीचा दिखाने के लिए है। वे छद्मावरणों और पाखंड का सहारा भी लेते हैं, जिनके द्वारा वे लोगों से अपनी कमज़ोरियाँ, कमियाँ और त्रुटियाँ छिपाते हैं, ताकि लोग हमेशा सिर्फ उनकी चमक-दमक ही देखें। जब वे नकारात्मक महसूस करते हैं तब दूसरे लोगों को यह बताने का साहस तक नहीं करते; उनमें लोगों के साथ खुलने और संगति करने का साहस नहीं होता, और जब वे कुछ ग़लत करते हैं, तो वे उसे छिपाने और उस पर लीपा-पोती करने में अपनी जी-जान लगा देते हैं। अपना कर्तव्य निभाने के दौरान उन्होंने कलीसिया के कार्य को जो नुक़सान पहुँचाया होता है उसका तो वे ज़िक्र तक नहीं करते। जब उन्होंने कोई छोटा-मोटा योगदान किया होता है या कोई छोटी-सी कामयाबी हासिल की होती है, तो वे उसका दिखावा करने को तत्पर रहते हैं। वे सारी दुनिया को यह जानने देने का इंतज़ार नहीं कर सकते कि वे कितने समर्थ हैं, उनमें कितनी अधिक क्षमता है, वे कितने असाधारण हैं, और सामान्य लोगों से कितने बेहतर हैं। क्या यह अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने का ही तरीका नहीं है? क्या अपनी बड़ाई करना और अपनी गवाही देना ऐसी चीज है, जिसे कोई जमीर और विवेक वाला व्यक्ति करता है? नहीं। इसलिए जब लोग यह करते हैं, तो सामान्यतः कौन-सा स्वभाव प्रगट होता है? अहंकार। यह प्रकट होने वाले मुख्य स्वभावों में से एक है, जिसके बाद छल-कपट आता है, जिसमें यथासंभव वह सब करना शामिल है जिससे दूसरे उनके प्रति अत्यधिक सम्मान का भाव रखें। उनके शब्द पूरी तरह अकाट्य होते हैं और उनमें अभिप्रेरणाएँ और कुचक्र स्पष्ट रूप से होते हैं, वे अपनी खूबियों का प्रदर्शन करते हैं, फिर भी वे इस तथ्य को छिपाना चाहते हैं। वे जो कुछ कहते हैं, उसका परिणाम यह होता है कि लोगों को यह महसूस करवाया जाता है कि वे दूसरों से बेहतर हैं, कि उनके बराबर कोई नहीं है, कि हर कोई उनसे हीनतर है। और क्या यह परिणाम चालाकीपूर्ण साधनों से हासिल नहीं किया गया है? ऐसे साधनों के पीछे कौन-सा स्वभाव है? और क्या उसमें दुष्टता के कोई तत्त्व हैं? (हाँ, हैं।) यह एक प्रकार का दुष्ट स्वभाव है। देखा जा सकता है कि उनके द्वारा प्रयुक्त ये साधन कपटपूर्ण स्वभाव से निर्देशित होते हैं—तो मैं क्यों कहता हूँ कि यह दुष्टतापूर्ण है? दुष्टता के साथ इसका क्या संबंध है? आप लोग क्या सोचते हो : अपनी बड़ाई करने तथा गवाही देने के अपने लक्ष्यों के बारे में क्या वे निष्कपट हो सकते हैं? नहीं हो सकते। लेकिन उनके दिलों की गहराइयों में हमेशा एक आकांक्षा होती है, और जो कुछ भी वे कहते और करते हैं वह उस आकांक्षा को बल प्रदान करता है, और वे जो कुछ कहते और करते हैं, उसके लक्ष्य और प्रयोजन बहुत गुप्त रखे जाते हैं। उदाहरण के लिए, इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए वे गुमराह करने वाली या किन्हीं संदिग्ध चालों का इस्तेमाल करेंगे। क्या इस तरह का दुराव-छिपाव अपनी प्रकृति में ही धूर्ततापूर्ण नहीं है? और क्या इस तरह की धूर्तता को दुष्टता नहीं कहा जा सकता? (हाँ।) इसे निश्चय ही दुष्टता कहा जा सकता है, और इसकी जड़ें छल-कपट से कहीं ज़्यादा गहराई तक फैली होती हैं। वे अपने लक्ष्य प्राप्त करने के लिए एक निश्चित तरीका या विधि का प्रयोग करते हैं। यह स्वभाव धोखेबाजी है। तथापि, उनके दिलों की गहराइयों में हर समय व्याप्त यह महत्वाकांक्षा और इच्छा कि लोग उनका अनुसरण करें, उनकी प्रशंसा करें, और नित्य उनकी आराधना करें, उन्हें अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने, तथा इन कार्यों को अनैतिकता और बेशर्मी से करने के लिए निर्देशित करती है। यह कैसा स्वभाव है? यह दुष्टता के स्तर तक पहुँच जाता है। दुष्टता सामान्य संकीर्ण मानसिकता या धूर्त होने और झूठ बोलने से कहीं अधिक है। यदि कोई व्यक्ति सामान्य भ्रष्टता से दुष्टता के स्तर तक पहुँच सकता है, तो क्या इसका अर्थ यह नहीं है कि वह कहीं ज्यादा भीतर तक भ्रष्ट है? (इसका यही अर्थ होता है।) तो दुष्टता के स्तर का वर्णन करो—इसे व्यक्त करने का उपयुक्त तरीका क्या है? कोई व्यक्ति सामान्य भ्रष्टता से दुष्टता तक क्यों पहुँच जाता है? क्या तुम इस मामले को स्पष्ट रूप से समझ सकते हो? धूर्तता और दुष्टता के बीच क्या अंतर है? जिस तरह से वे अभिव्यक्त होती हैं उस दृष्टिकोण से देखें तो दुष्टता और धूर्तता में नजदीकी संबंध है, लेकिन दुष्टता अधिक गंभीर है—यह धूर्तता का अपनी चरम सीमा पर होना है। यदि किसी व्यक्ति के बारे में कहा जाए कि वह दुष्ट स्वभाव का है, तो वह व्यक्ति सामान्य रूप से धूर्त नहीं है, चूंकि सामान्य धूर्तता का केवल यह अर्थ हो सकता है कि वह आदतन झूठा है या अपने कार्यों में बहुत ईमानदार नहीं है, जबकि दुष्टता अधिक गंभीर होती है और धूर्तता के मुकाबले इसका स्तर अधिक गहरा होता है। दुष्ट स्वभाव वाले व्यक्ति की धूर्तता औसत व्यक्ति की तुलना में अधिक और गंभीर होती है, तथा काम करने के उसके साधन एवं तरीके, और उसके क्रियाकलापों के पीछे के षडयंत्र, सभी गहरी चालाकियों एवं रहस्यों से भरे होते हैं, और अधिकांश लोग उन्हें समझ नहीं सकते हैं। यही दुष्टता है।
एक मसीह-विरोधी द्वारा अपनी बड़ाई करना और गवाही देना एक औसत व्यक्ति के ऐसा करने से कैसे अलग है? औसत व्यक्ति अक्सर शेखी बघारता है और दिखावा करता है ताकि लोग उसके बारे में ऊँचा सोचें, और उसके पास इन स्वभावों और अवस्थाओं की अभिव्यक्तियाँ भी होंगी, तो एक मसीह-विरोधी द्वारा अपनी बड़ाई करना और गवाही देना ऐसा करने वाले सामान्य लोगों से कैसे अलग है? अंतर कहाँ है? तुम्हें इस संबंध में स्पष्ट होना चाहिए—कभी-कभार अपना उन्नयन करने या शेखी बघारने की सभी अभिव्यक्तियों को मसीह-विरोधियों की श्रेणी में शामिल मत करो। क्या यह एक संकल्पनात्मक त्रुटि नहीं है? (बिल्कुल है।) तो इस मामले को स्पष्ट रूप से अलग कैसे किया जा सकता है? अंतर कहाँ है? यदि तुम इसके बारे में स्पष्ट रूप से बता सको, तो तुम अच्छी तरह से समझ सकते हो कि मसीह-विरोधी का सार क्या है। इसे समझने का प्रयास करो। (एक मसीह-विरोधी का काम करने का तरीका अधिक गुप्त होता है; वह कुछ ऐसे साधनों का उपयोग करता है जो लोगों को गुमराह करने के लिए बहुत उचित प्रतीत होते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि वह एक उचित मामले के बारे में बोल रहा है, किन्तु इससे पहले कि तुम इसे जानो, वह किसी को इसका पता चलने दिए बिना, अपनी बड़ाई करना और गवाही देना शुरू कर देता है। उसके साधन अपेक्षाकृत अधिक गुप्त होते हैं।) अपेक्षाकृत अधिक गुप्त साधन—यह उसे अपना उन्नयन करने और गवाही देने के उसके तरीके से अलग करना है। क्या इसके अलावा कुछ और भी है? मुझे बताओ कि होशोहवास में अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने और अनजाने में ऐसा करने की प्रकृति के बीच क्या अंतर है? (इरादे अलग-अलग हैं।) क्या यहीं पर अंतर नहीं है? (हाँ।) जब भ्रष्ट स्वभाव वाला एक औसत व्यक्ति अपनी बड़ाई करता है और इतराता है, तो वह केवल दिखावा करने के लिए ऐसा करता है। एक बार दिखावा हो गया, तो बात खत्म, और उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि दूसरे लोग उसके बारे में अच्छा सोचते हैं या बुरा। उसका इरादा अधिक स्पष्ट नहीं है, यह बस एक स्वभाव है जो उसे नियंत्रित कर रहा है, उस स्वभाव का बस एक प्रकटन है। बस इतना ही। क्या इस तरह के स्वभाव को बदलना आसान है? यदि ऐसा व्यक्ति सत्य का अनुसरण करता है, तो वह धीरे-धीरे बदलने में सक्षम होगा, जब वह काट-छाँट, न्याय और ताड़ना का अनुभव करेगा। उसमें धीरे-धीरे शर्म एवं तर्क-शक्ति की भावना और बढ़ेगी, और वह इस प्रकार के व्यवहार को कम से कम प्रदर्शित करेगा। वह इस प्रकार के व्यवहार की निंदा करेगा, और वह संयम बरतेगा तथा स्वयं पर लगाम लगाएगा। यह अनजाने में अपनी बड़ाई करना और अपनी गवाही देना ही है। यद्यपि होशोहवास में अपनी बड़ाई करना और अपनी गवाही देना और यही कार्य अनजाने में करना, इन दोनों के निहित स्वभाव एक जैसे ही हैं, लेकिन दोनों की प्रकृति भिन्न है। प्रकृति में वे दोनों कैसे भिन्न हैं? होशोहवास में अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने का काम इरादे से किया जाता है। जो लोग ऐसा करते हैं वे यूँ ही नहीं बोल रहे होते हैं—हर बार जब वे अपनी बड़ाई करते हैं और अपनी गवाही देते हैं, तो उनके निश्चित इरादे और छिपे हुए उद्देश्य होते हैं, और वे शैतानी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं के चलते ऐसे काम करते हैं। ऊपरी तौर पर, यह उसी प्रकार की अभिव्यक्ति प्रतीत होती है। दोनों मामलों में, लोग अपनी बड़ाई कर रहे हैं और अपनी गवाही दे रहे हैं, लेकिन अनजाने में अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने को परमेश्वर कैसे परिभाषित करता है? भ्रष्ट स्वभाव के प्रकटन के रूप में। और होशोहवास में अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने को परमेश्वर कैसे परिभाषित करता है? एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो लोगों को गुमराह करना चाहता है, जिसका इरादा है कि लोग उसके बारे में ऊँचा सोचें, उसकी आराधना करें, उसकी प्रशंसा करें और फिर उसका अनुसरण करें। उसके क्रियाकलापों की प्रकृति गुमराह करने वाली है। इसलिए, जैसे ही उसका इरादा लोगों को गुमराह करने और लोगों को अपने अधीन करने का होता है ताकि वे उसका अनुसरण करें और उसकी आराधना करें, तो वह बोलते और कार्य करते समय कुछ ऐसे साधनों और तरीकों का उपयोग करेगा जो आसानी से उन लोगों को गुमराह और पथभ्रष्ट कर सकते हैं जो सत्य नहीं समझते हैं और जिनका आधार मजबूत नहीं है। ऐसे लोगों में न केवल विवेक की कमी होती है, बल्कि, इसके विपरीत, उन्हें लगता है कि यह व्यक्ति जो कहता है वही सही है, और हो सकता है वे उसकी प्रशंसा करें और उसके प्रति ऊँचा सोचें, और समय के साथ वे उसकी आराधना और उसका अनुसरण करने लगेंगे। दैनिक जीवन में एक सबसे आम घटना यह है कि कोई व्यक्ति उपदेश सुनने के बाद उसे अच्छी तरह से समझता हुआ प्रतीत होता है, परन्तु बाद में जब उस पर आपदाएँ आती हैं, तो उसे नहीं पता होता है कि इन्हें कैसे हल किया जाए। वह प्रार्थना करने के लिए परमेश्वर के सामने जाता है, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं होता है, और अंत में, उसे इस मामले के बारे में पता लगाने के लिए अपने अगुआ के पास जाना पड़ता है और उससे समाधान पूछना पड़ता है। हर बार उस पर कोई समस्या आने पर, वह इसका समाधान अपने अगुआ से पूछना चाहता है। यह ऐसा ही है जैसे अफीम पीना कुछ लोगों के लिए एक लत और एक पैटर्न बन जाता है, और कुछ ही समय में, वे इसे पिए बिना नहीं रह सकते। इसलिए, मसीह-विरोधियों का अपनी बड़ाई करना और अपनी गवाही देना उन लोगों के लिए एक प्रकार का नशा बन जाता है जो छोटे आध्यात्मिक कद के, अविवेकी, मूर्ख और अज्ञानी हैं। जब भी उन पर कोई समस्या आती है, वे इसके बारे में पूछने के लिए मसीह-विरोधी के पास जाएँगे, और यदि मसीह-विरोधी कोई आदेश नहीं देता है, तो वे कुछ भी करने की हिम्मत नहीं करते, भले ही इस मामले पर सभी लोग पहले से ही चर्चा कर आम सहमति पर पहुँच चुके हों। वे मसीह-विरोधी की इच्छा के विरुद्ध जाने और दबाए जाने से डरते हैं, इसलिए हर मामले में, वे मसीह-विरोधी के बोलने के बाद ही कार्रवाई करने का साहस करते हैं। भले ही उन्होंने सत्य सिद्धांतों को स्पष्ट रूप से समझ लिया हो, फिर भी वे कोई निर्णय लेने या मामले को संभालने की हिम्मत नहीं करते हैं, इसके बजाय वे उस “स्वामी” की प्रतीक्षा करते हैं जिसकी ओर वे अंतिम फैसले और निर्णय के लिए आदर से देखते हैं। यदि उनका स्वामी कुछ नहीं कहता है, तो जो कोई भी इस मामले को संभाल रहा है, वह इस बारे में अनिश्चित महसूस करेगा कि उसे क्या करना चाहिए। क्या इन लोगों के विचारों को विषाक्त नहीं कर दिया गया है? (उन्हें विषाक्त कर दिया गया है।) विषाक्त किए जाने का यही अर्थ है। उनके विचारों को इतना अधिक विषाक्त करने के लिए, मसीह-विरोधी को कितना काम करना पड़ेगा, और मसीह-विरोधी को उनके भीतर कितने विषाक्त विचार डालने होंगे ताकि वे बहक जाएँ? यदि मसीह-विरोधी बार-बार स्वयं का गहन-विश्लेषण करें, और स्वयं को जानने लगें, और अक्सर अपनी कमजोरियाँ, गलतियाँ, और अपराध खुले में लोगों को दिखाने लगें, तो क्या अभी भी हर कोई उनकी ऐसे ही आराधना करेगा? बिल्कुल नहीं। ऐसा प्रतीत होता है कि मसीह-विरोधी अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने के लिए काफी प्रयास करते हैं, यही वजह है कि उन्होंने इतनी “सफलता” हासिल की है। वे यही परिणाम चाहते हैं। उनके बिना, किसी को पता नहीं होगा कि अपने कर्तव्यों को सही ढंग से कैसे निभाना है, और हर कोई पूरी तरह से असमंजस में रहेगा। यह स्पष्ट है कि इन लोगों को नियंत्रित करते समय, मसीह-विरोधी उनके भीतर चुपके से अनेक विषाक्त विचार डाल देते हैं हैं और इसके लिए वे काफी मेहनत करते हैं! यदि वे केवल कुछ शब्द ही कहते, तो क्या ये लोग तब भी उनसे इसी तरह विवश होते? कतई नहीं। जब मसीह-विरोधी औरों से अपनी आराधना करवाने, और हर मामले में अपनी प्रशंसा करवाने और अपनी बात मनवाने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में कामयाब हो जाते हैं, तो क्या उन्होंने ऐसे बहुत से काम नहीं किए हैं और ऐसे बहुत से शब्द नहीं कहे हैं जो उनकी बड़ाई करते हैं और उनकी गवाही देते हैं? ऐसा करने से उन्हें क्या परिणाम प्राप्त होता है? परिणाम यह है कि लोगों के पास कोई रास्ता नहीं होगा और वे उनके बिना जी नहीं पाएँगे—यह ऐसा है कि मानो आसमान टूट पड़ेगा और पृथ्वी उनके बिना घूमना बंद कर देगी, और परमेश्वर पर विश्वास करने का कोई मूल्य या अर्थ नहीं रहेगा, और धर्मोपदेश सुनना बेकार हो जाएगा। यह ऐसा भी है कि मसीह-विरोधी के आसपास होने पर उन्हें अपने जीवन में कुछ उम्मीद नजर आती है, और यदि मसीह-विरोधी की मृत्यु हो जाए तो वे सारी उम्मीद खो देंगे। क्या इन लोगों को शैतान ने बंदी नहीं बना लिया है? (उन्हें बंदी बना लिया गया है।) और क्या इस तरह के लोग इसी लायक नहीं हैं? (वे इसी लायक हैं।) हम ऐसा क्यों कहते हैं कि वे इसी लायक हैं? परमेश्वर एक है जिसमें तुम विश्वास करते हो, तो तुम मसीह-विरोधियों की आराधना और उनका अनुसरण क्यों करते हो, और हर मोड़ पर तुम उन्हें स्वयं को विवश और नियंत्रित क्यों करने देते हो? इसके अलावा, व्यक्ति चाहे कोई भी कर्तव्य क्यों न कर रहा हो, परमेश्वर के घर ने लोगों को स्पष्ट सिद्धांत और नियम प्रदान किए हैं। यदि कोई ऐसी कठिनाई है जिसे व्यक्ति अपने आप हल नहीं कर सकता है, तो उसे किसी ऐसे व्यक्ति से राय लेनी चाहिए जो सत्य समझता हो, और अधिक गंभीर मामलों में ऊपरवाले से राय लेनी चाहिए। लेकिन न केवल तुम सत्य की खोज नहीं करते हो, बल्कि इसके विपरीत, तुम इन मसीह-विरोधियों की बातों पर विश्वास करके लोगों की आराधना करते हो और उनकी प्रशंसा करते हो। इसलिए तुम शैतान के नौकर बन गए हो, और क्या इसके लिए केवल तुम स्वयं ही जिम्मेदार नहीं हो? क्या तुम इसी लायक नहीं हो? अपनी बड़ाई करना और अपनी गवाही देना मसीह-विरोधियों में एक साझा व्यवहार और अभिव्यक्ति है, और सबसे आम अभिव्यक्ति यही है। मसीह-विरोधी कैसे अपनी बड़ाई करते हैं और अपनी गवाही देते हैं, इसका मुख्य लक्षण क्या है? एक औसत व्यक्ति जिस तरह अपना उन्नयन करता है और अपनी गवाही देता है, यह उससे किस तरह से अलग है? ऐसा है कि इस कार्रवाई के पीछे मसीह-विरोधियों का अपना इरादा होता है, और वे इसे अनजाने में बिल्कुल नहीं कर रहे होते हैं। बल्कि, वे इरादों, इच्छाओं और महत्वाकांक्षाओं को पाल रहे होते हैं, और इस तरह से अपनी गवाही देने के परिणामों पर विचार करना भी बहुत भयावह है—वे लोगों को गुमराह और नियंत्रित कर सकते हैं।
मैं एक उदाहरण देता हूँ। तुम लोग विचार कर सकते हो कि इस प्रकार की अभिव्यक्ति और स्वभाव अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने से संबंधित है या नहीं। एक समय की बात है, एक अगुआ था जो किसी स्थान पर दो-तीन साल से कलीसिया का काम करता था। वह कई कलीसियाओं में घूम चुका था, और फिर आखिरकार उसने अपनी जड़ें वहीं जमा लीं। इसका क्या मतलब है कि उसने अपनी जड़ें जमा लीं? इसका मतलब है कि अधिकांश लोग उसे जानते थे और उसके प्रति अच्छे विचार रखते थे, और यह कि वह उस जगह अपेक्षाकृत खासा मशहूर था। जैसे ही लोग उसे देखते, वे उसका स्वागत करते, अपना स्थान उसे दे देते, और खाने के लिए उसे अच्छी चीजें भेंट करते। कोई भी उसके विरोध में आवाज नहीं उठाता था, उसका विरोध करने वाला कोई नहीं था, हर कोई इस अगुआ को अच्छे-से जानता था, और अंतरमन में वे सभी उसके काम करने के तरीके से काफी खुश थे और उसके नेतृत्व को स्वीकार रहे थे। यह पूरी तरह से नहीं पता है कि अगुआ ने वहाँ कितना काम किया था, उसने कितना बोला या किस बारे में बोला; ये जानकारी अज्ञात है, लेकिन संक्षेप में, अधिकांश लोगों ने उसके नेतृत्व को काफी हद तक स्वीकार किया था। कुछ समय बीतने के बाद, अगुआ ने कहा : “यहाँ के सभी भाई-बहन आज्ञाकारी तथा समर्पित हैं, और कलीसिया में सब कुछ अच्छा चल रहा है। दुर्भाग्य से, एक चीज है जो पूरी तरह से संतोषजनक नहीं है, वह यह है कि यहाँ का परिवेश खराब है। अगर परिवेश उपयुक्त होता, तो हम किसी अच्छे, धूप वाले दिन हज़ारों लोगों के साथ एक बड़ी सभा करने किसी बड़े पार्क में जाते, और एक माइक्रोफोन और लाउडस्पीकरों के सेट का उपयोग करके सत्य को व्यक्त करते, और अधिक लोगों को परमेश्वर में विश्वास करने के लिए प्रेरित करते। तब क्या हमारे काम का फल नहीं मिलता?” इसे सुनने के बाद, हरेक ने कहा, “आमीन” और इसे स्वीकार कर लिया। मुझे बताओ, क्या इस वाक्यांश “हम सत्य को व्यक्त करते” से कोई समस्या है? (हाँ।) क्या समस्या है? (अगुआ स्वयं को परमेश्वर मान रहा था।) तुम सभी लोगों ने पहचाना कि इससे समस्या है, लेकिन वहाँ उपस्थित भ्रमित लोगों ने इसे नहीं पहचाना। यहाँ तक कि उन्होंने इस वाक्य का जवाब “आमीन” कहकर दिया! क्या सत्य को इस अगुआ ने व्यक्त किया है? वह कौन है? वह एक आम अगुआ है; उसने कुछ साल काम किया और फिर सोचने लगा कि वह हर किसी से श्रेष्ठ है और यह भूल गया कि वह कौन है, और वह सत्य भी व्यक्त करना चाहता है—जो उसके लिए एक बहुत ही मुश्किल काम होगा। इससे क्या साबित होता है? इससे साबित होता है कि उसे नहीं पता कि वह कौन है, और उसे नहीं पता कि वह कौन सा कर्तव्य निभा रहा है। चूंकि उसका स्वभाव इस तरह का है, तो क्या उसके सामान्य कार्य या भाषण का कोई हिस्सा सत्य के अनुरूप है? उसके सामान्य कार्य और भाषण निश्चित रूप से भ्रमित और शैतानी शब्दों से भरे हुए हैं, और उनसे कलीसिया के लिए आपूर्ति और सिंचाई करने का परिणाम बिल्कुल प्राप्त नहीं किया जा सकता है। उसे तो यह भी नहीं पता कि सत्य क्या है, सत्य व्यक्त करना तो बहुत दूर की बात है। बस दो-तीन साल कहीं काम करके उसे लगा कि उसके पास थोड़ी प्रतिष्ठा और पूंजी है, और फिर वह भूल गया कि वह कौन है, वह स्वयं को बहुत अच्छा समझने लगा था, और सत्य को व्यक्त करना चाहता था। क्या ऐसी गलत धारणा रखना घिनौना नहीं है? यह गलत धारणा कहाँ से आती है? क्या उसे मानसिक विकार था, या यह एक क्षणिक आवेग था? उसने थोड़ा काम किया, स्थानीय कलीसिया में किसी ने भी उसका विरोध नहीं किया, और ऐसा प्रतीत होता था कि उसके लिए सब कुछ सुचारू रूप से चल रहा था, इसलिए उसने मान लिया कि सब कुछ उसके किए हुए कार्य का परिणाम था, और अचानक उसे लगा कि वह इसका श्रेय ले सकता है। उसने सोचा, “यदि मैं ऐसे उल्लेखनीय कार्य कर सकता हूँ, तो क्या मैं परमेश्वर नहीं हूँ? और अगर मैं परमेश्वर हूँ, तो मुझे अभी बहुत ही बुरी तरह से दबाया जा रहा है—अगर परिवेश बेहतर होता, तो मैं सत्य व्यक्त कर सकता था!” उसके मन में अचानक यह विचार आया? क्या उसके दिमाग में कुछ गड़बड़ तो नहीं है? (हाँ।) उसके दिमाग में कुछ गड़बड़ है। क्या उसमें तर्क की कमी नहीं है? क्या शैतान और मसीह-विरोधियों के कार्यों और शब्दों में सामान्य मानवता का तर्क हो सकता है? बिल्कुल नहीं हो सकता। इस अगुआ ने थोड़ा काम किया और कुछ परिणाम हासिल किए, फिर अचानक भूल गया कि वह इंसान है। क्या इसका ऐसे अनुचित शब्द उगलने में सक्षम होना उसके स्वभाव से संबंधित नहीं हैं? (हाँ, है।) यह कैसे संबंधित है? क्या वह स्वभाव से एक अनुयायी बनने के लिए तैयार है? क्या उसे पता है कि वह परमेश्वर का केवल एक साधारण अनुयायी है? उसे बिल्कुल पता नहीं है। उसका मानना है कि उसकी स्थिति और पहचान अन्य सभी से कहीं अधिक सम्मानजनक और श्रेष्ठ है। क्या तुम्हें इस प्रकार के व्यवहार और इसकी प्रकृति की जानकारी नहीं है? शैतान को हवा में क्यों फेंक दिया गया था? (वह परमेश्वर के बराबर बनना चाहता था।) क्योंकि वह परमेश्वर के बराबर बनना चाहता था। क्योंकि शैतान को ब्रह्मांड में अपने स्थान का पता नहीं था, उसे नहीं पता था कि वह कौन है, और उसे अपने स्वयं के माप का पता नहीं था, इसलिए जब परमेश्वर ने शैतान को उसी स्थान पर चलने की अनुमति दी जहाँ वह था, तो शैतान ने सोचना शुरू कर दिया कि वह परमेश्वर है। वह उन कार्यों को करना चाहता था जो परमेश्वर ने किए थे, वह उसका प्रतिनिधित्व करना चाहता था, उसका स्थान लेना चाहता था, और उसके अस्तित्व को नकारना चाहता था, और परिणामस्वरूप, उसे हवा में फेंक दिया गया। मसीह-विरोधी भी उसी तरह का काम करते हैं, उनके कार्यों की प्रकृति भी वैसी ही होती है, और शैतान तथा उनका स्रोत एक ही होता है। एक मसीह-विरोधी के लिए, ऐसी अभिव्यक्ति कभी-कभार का प्रकटन या किसी वहम का परिणाम नहीं है—यह वास्तव में उसकी शैतानी प्रकृति का प्रभुत्व है और उसके शैतानी स्वभाव का स्वाभाविक प्रकटन है। उस अगुआ की अभिव्यक्ति की प्रकृति क्या है जिसके बारे में मैंने अभी बात की? (यह अभिव्यक्ति मसीह-विरोधी की है।) हम अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने के मद में इस अभिव्यक्ति पर चर्चा क्यों कर रहे हैं? अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने से संबंधित इस अभिव्यक्ति की प्रकृति कैसी है? उसने जो शब्द बोलें “सत्य को व्यक्त करते” उनकी प्रकृति क्या है? मुझे ऐसा क्यों कहना पड़ता है कि ये शब्द अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने से संबंधित हैं? (इस अगुआ का मानना था कि वह लोगों को सत्य प्रदान कर सकता है।) उसका यही अर्थ था। जब उसने ऐसी बातें कही, तो उसे सुनने वाले लोगों ने सोचा, “तुम्हारा इतना प्रभावी अंदाज है, और तुम इतने उम्दा लहजे में बात कर सकते हो—क्या इस लहजे में परमेश्वर को बात नहीं करनी चाहिए? क्या इस तरह का प्रभावी अंदाज और आकांक्षा परमेश्वर में नहीं होनी चाहिए?” क्या इस अगुआ ने अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने के लक्ष्य को हासिल नहीं कर लिया है? उसने अनजाने में ही लोगों में अपने लिए सम्मान, आराधना, और प्रशंसा की भावनाएँ उत्पन्न कर दी हैं। क्या ऐसा नहीं था? (हाँ, ऐसा ही था।) यह मसीह-विरोधी का छिपा हुआ रूप है; यह वह मसीह-विरोधी है जो गुप्त रूप से अपनी बड़ाई कर रहा है और अपनी गवाही दे रहा है।
क्या अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने की अन्य अभिव्यक्तियाँ भी हैं? तुम सभी को इस मामले में आत्म-चिंतन करना चाहिए। क्या तुम अपनी गवाही देते समय ऐसा कोई काम करोगे? क्या तुम्हारा जमीर और विवेक तुम्हें रोकेगा और ऐसा कोई शर्मनाक काम करने से तुम स्वयं को रोक पाओगे? यदि तुम स्वयं को रोक सकते हो, तो यह साबित करता है कि तुममें तर्कशीलता है, कि तुम मसीह-विरोधियों से अलग हो। यदि तुममें यह तर्कशीलता नहीं है, और तुम्हारी इस तरह की महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ हैं, और तुम अपनी गवाही देने जैसा काम करने में सक्षम हो, तो तुम मसीह-विरोधी के जैसे ही हो। तो, तुम लोगों का मामला क्या है? क्या तुम संयम से काम लेते हो? यदि तुम्हारा दिल परमेश्वर का भय मानने वाला है, तुममें शर्म की भावना, और तर्कशीलता है, तो, भले ही तुम ये काम करना चाहते हो, तुम सोचोगे कि इनसे परमेश्वर का अपमान होगा और वह इनसे घृणा करेगा, और तुम स्वयं को संयमित रखने में सक्षम होगे और अपनी गवाही देने की हिम्मत नहीं करोगे। यदि तुम एक बार, दो बार संयम कर लेते हो, तो कुछ समय बाद ये विचार और ये इरादे थोड़ा-थोड़ा करके धीरे-धीरे कम होने लगेंगे। तुम्हें इन विचारों की समझ होगी और एहसास होगा कि वे अपमानजनक और घिनौने हैं, ऐसे काम करने की तुम्हारी उमंगें और इच्छाएँ कम हो जाएँगी, और तुम धीरे-धीरे उस हद तक स्वयं पर लगाम लगाने और स्वयं को नियंत्रित करने में सक्षम हो पाओगे कि मन में ऐसे विचारों का आना धीरे-धीरे कम हो जाएगा। यदि तुम उनके प्रति जागरूक हो लेकिन स्वयं को रोकने में असमर्थ हो, तुम्हारे इरादे ज्यादा ही मजबूत हैं, तुम बस इतना चाहते हो कि लोग तुम्हारी आराधना करें, और यदि कोई तुम्हारी आराधना नहीं करता या तुम्हारा अनुसरण नहीं करता, तो तुम असंतुष्ट महसूस करते हो, और घृणा से भर जाते हो, और कुछ करना चाहते हो, बेईमानी से अपनी गवाही देने और अपने ऊपर इतराने में समर्थ हो—तो तुम एक मसीह-विरोधी हो। तुम लोगों का मामला क्या है? (जब मैं ऐसे विचारों के प्रति जागरूक होता हूँ, तो मैं स्वयं को रोकने में समर्थ होता हूँ।) तुम स्वयं को रोकने के लिए किस पर भरोसा करते हो? (मैं इस बात पर भरोसा करता हूँ कि मुझे परमेश्वर के बारे में कुछ ज्ञान है और मेरा दिल परमेश्वर का भय मानता है।) यदि किसी के पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल है, तो वे संयम रख सकते हैं। संयम स्वयं को रोके रखने या स्वयं को बाधित करने से प्राप्त नहीं होता है, बल्कि यह सत्य समझने और परमेश्वर का भय मानने का परिणाम है। व्यक्ति तर्क-शक्ति और बोध-शक्ति से स्वयं पर संयम रखता है और साथ ही, वह इसलिए संयम रखता है क्योंकि उसके पास परमेश्वर का थोड़ा बहुत भय मानने वाला दिल होता है और उसका अपमान करने से उसे भय लगता है। यदि तुम्हारी तर्क-शक्ति तुम्हें संयमित नहीं रख सकती, और तुम्हारे पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल भी नहीं है, और यदि तुम्हें अपनी गवाही देते समय शर्मिंदगी महसूस नहीं होती है तथा ऐसा करते रहना चाहते हो, और तब तक छोड़ने को तैयार नहीं हो जब तक कि तुम्हें अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता, तो इसकी प्रकृति भिन्न है—तुम मसीह-विरोधी हो।
मसीह-विरोधी अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने के लिए नाना प्रकार की तकनीकों और अभिव्यक्तियों से युक्त होते हैं। कुछेक मामलों में मसीह-विरोधी अपने सभी गुणों के बारे में बात करते हुए प्रत्यक्ष रूप से अपनी बड़ाई करते हैं और अपनी गवाही देते हैं, जबकि अन्य मामलों में वे चुपके-से लोगों को अपने बारे में बड़ा सोचने के लिए प्रेरित करने के लिए व्यंजनापूर्ण शब्दों या ऐसी विधियों का अप्रत्यक्ष उपयोग करने के तरीके ढूँढ़तेहैं जिससे लोगों से अपनी प्रंशसा करवाने, अपनी आराधना करवाने, और अपना अनुसरण करवाने, और यहाँ तक कि लोगों के दिलों में स्थान पाने के अपने उद्देश्य को प्राप्त कर सकें—यह ऐसे व्यवहार की प्रकृति है। मसीह-विरोधियों का अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने का स्वभाव सामान्य लोगों के स्वभाव से उसकी प्रकृति, उससे प्राप्त परिणामों, उसके अभिव्यक्त होने के तरीकों और उसमें अंतर्निहित इरादों और उद्देश्यों के संदर्भ में भिन्न होता है। इसके अलावा, वे लोग जो अपनी बड़ाई करते हैं और अपनी गवाही देते हैं, क्या वे केवल अपने गुणों के बारे में ही बात करते हैं? कभी-कभी, वे अपने बुरे पहलुओं के बारे में भी बात करते हैं, लेकिन क्या वे सच में विश्लेषण कर रहे होते हैं और ऐसा करते समय स्वयं को जानने का प्रयास कर रहे होते हैं? (नहीं।) तो किसी व्यक्ति को कैसे पता चलता है कि उसका आत्म-ज्ञान वास्तविक नहीं है, बल्कि यह मिलावटी है और इसके पीछे कोई इरादा छिपा है? कोई व्यक्ति इस मामले को पूरी तरह कैसे समझ सकता है? यहाँ मुख्य बिंदु यह है कि जब वह स्वयं को जानने और अपनी कमजोरियों, त्रुटियों, कमियों, और भ्रष्ट स्वभावों को उजागर करने का प्रयास कर रहा होता है, तो उसी समय वह स्वयं को दोष-मुक्त करने के लिए बहाने और कारण भी तलाश रहा होता है। वह गुप्त रूप से लोगों को बताता है, “केवल मैं ही नहीं, हर कोई गलतियाँ करने में सक्षम है। तुम सब भी गलतियाँ करने में सक्षम हो। मैंने जो गलती की है वो क्षम्य है; यह मामूली गलती है। यदि तुम यही गलती करते हो, तो मेरी अपेक्षा तुम्हारा मामला बहुत ज्यादा गंभीर हो जाएगा, क्योंकि तुम लोग आत्म-चिंतन और आत्म-विश्लेषण नहीं करोगे। भले ही मैं गलतियाँ करता हूँ, तो भी मैं तुम लोगों से बेहतर हूँ और मेरे में अधिक तर्क-शक्ति और ईमानदारी है।” जब हर कोई यह सुनता है, तो वह सोचता है, “तुम बिल्कुल सही हो। तुम सत्य को इतना ज्यादा समझते हो, और तुम्हारा वास्तव में आध्यात्मिक कद है। जब तुम गलतियाँ करते हो, तो तुम आत्म-चिंतन और आत्म-विश्लेषण करने में सक्षम होते हो; तुम हम लोगों से कहीं बेहतर हो। यदि हम गलतियाँ करते हैं, तो हम आत्म-चिंतन नहीं करते हैं और स्वयं को जानने का प्रयास नहीं करते हैं, और शर्मिंदगी के भय से हम आत्म-विश्लेषण करने का साहस भी नहीं करते हैं। तुम्हारा आध्यात्मिक कद हमसे ऊँचा है और तुममें हमसे कहीं ज्यादा साहस है।” इन लोगों ने गलतियाँ की, फिर भी दूसरों से सम्मान पाया और अपना गुणगान किया—यह किस तरह का स्वभाव है? कुछ मसीह-विराधी विशेष रूप से दिखावा करने, लोगों को धोखा देने, और मुखौटा लगाने में माहिर होते हैं। जब उनका सत्य समझने वाले लोगों से सामना होता है, तो वे अपने आत्म-ज्ञान के बारे में बात करना शुरू कर देते हैं, और यह भी कहते हैं कि वे दानव और शैतान हैं, कि उनकी मानवता बुरी है, और यह कि वे शापित होने लायक हैं। मान लो कि तुम उनसे पूछते हो, “चूंकि तुम्हारा कहना है कि तुम एक दानव और शैतान हो, तो तुमने कौन-से बुरे काम किए हैं?” वो कहेंगे : “मैंने कुछ नहीं किया, लेकिन मैं एक दानव हूँ। और मैं केवल एक दानव नहीं हूँ; मैं एक शैतान भी हूँ!” फिर तुम उनसे पूछते हो, “चूंकि तुमने कहा कि तुम एक दानव और शैतान हो, तो तुमने दानव और शैतान वाले कौन-से बुरे काम किए, और तुमने परमेश्वर का प्रतिरोध कैसे किया? क्या तुम उन बुरे कामों के बारे में सत्य बता सकते हो जो तुमने किए थे?” वो कहेंगे : “मैंने कुछ भी बुरा नहीं किया!” फिर तुम और दबाव डालते हुए पूछो, “यदि तुमने कोई बुरा काम नहीं किया, तो तुमने ऐसा क्यों कहा कि तुम एक दानव और शैतान हो? ऐसा कह कर तुम क्या प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हो?” जब तुम उनके साथ इस तरह गंभीर हो जाते हो, तो उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं होता है। वास्तव में, उन्होंने कई बुरे काम किए हैं, लेकिन वे उनसे संबंधित तथ्यों को तुम्हारे साथ बिलकुल भी साझा नहीं करेंगे। वे बस कुछ बड़ी-बड़ी बातें करेंगे और खोखले तरीके से अपने आत्म-ज्ञान के बारे में कुछ सिद्धांत उगलेंगे। जब यह बात आती है कि उन्होंने लोगों को विशेष रूप से कैसे आकर्षित किया, लोगों को कैसे धोखा दिया, लोगों का उनकी भावनाओं के आधार पर कैसे इस्तेमाल किया, परमेश्वर के घर के हितों को गंभीरता से लेने में कैसे विफल हुए, कार्य व्यवस्थाओं के खिलाफ कैसे गए, ऊपरवाले को कैसे धोखा दिया, भाई-बहनों से बातें कैसे छिपाई, और परमेश्वर के घर के हितों को कितना नुकसान पहुँचाया, तो वे इन तथ्यों के बारे में एक शब्द भी नहीं कहेंगे। क्या यह सच्चा आत्म-ज्ञान है? (नहीं।) ऐसा कहकर कि वे एक दानव और शैतान हैं, क्या वे अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने के लिए आत्म-ज्ञान का नाटक नहीं कर रहे हैं? क्या यह उनके द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला एक तरीका नहीं है? (हाँ, है।) एक औसत व्यक्ति इस तरीके को समझ नहीं सकता है। जब कुछ अगुआओं को बर्खास्त कर दिया जाता है, उन्हें जल्द ही फिर से चुन लिया जाता है, और जब तुम इसका कारण पूछते हो, तो कुछ लोग कहते हैं : “वह अगुआ अच्छी क्षमता वाला है। उसे पता है कि वह दानव और शैतान है। और किसके पास ज्ञान का ऐसा स्तर है? सत्य की वास्तव में खोज करने वाले लोगों के पास ही ऐसा ज्ञान होता है। हममें से कोई भी अपने बारे में ऐसा ज्ञान प्राप्त करने में सक्षम नहीं है; औसत व्यक्ति का आध्यात्मिक कद इतना ऊँचा नहीं होता है। इस कारण से, सभी ने उसे फिर से चुना।” यहाँ क्या हो रहा है? इन लोगों को गुमराह किया गया है। इस अगुआ को पता था कि वह दानव और शैतान है लेकिन फिर भी हरेक ने उसे चुना, तो उसके ऐसा कहने से कि वह दानव और शैतान हैं, लोगों पर क्या प्रभाव और परिणाम होता है? (इससे लोग उसके बारे में अच्छा सोचने लगते हैं।) सही है, इससे लोग उसके बारे में अच्छा सोचने लगते हैं। अविश्वासी इस पद्धति को “आगे बढ़ने के लिए पीछे हटना” कहते हैं। इसका अर्थ है कि लोग उसके बारे में अच्छा सोचें, इसके लिए पहले वह अपने बारे में बुरी बातें कहता है ताकि दूसरे मान लें कि वह अपने बारे में खुलकर बात कर सकता है और स्वयं को जान सकता है, कि उसमें गहराई और अंतर्दृष्टि है, और उसे गहरी समझ है, और इस वजह से हर कोई उसकी और अधिक आराधना करता है। और हरेक द्वारा उसकी और अधिक आराधना करने का क्या परिणाम है? जब अगुआओं को फिर से चुनने का समय आता है, तो उसे अभी भी इस भूमिका के लिए एकदम सही व्यक्ति माना जाता है। क्या यह तरीका काफी चतुराई वाला नहीं है? यदि वह इस तरह अपने आत्म-ज्ञान के बारे में बात नहीं करता और यह नहीं कहता कि वह दानव और शैतान है, और इसके बजाय वह केवल नकारात्मक होता, तो जब दूसरे लोग इसे देखते, तो वे कहते, “जैसे ही तुम्हें बर्खास्त कर दिया गया और तुमने अपनी हैसियत खोई, तुम नकारात्मक हो गए। तुम हमें नकारात्मक नहीं होने का ज्ञान देते थे, और अब तुम्हारी नकारात्मकता हमसे भी ज्यादा गंभीर है। हम तुम्हें नहीं चुनेंगे।” कोई भी इस अगुआ के बारे में अच्छा नहीं सोचेगा। यद्यपि हर किसी को अभी भी उसके बारे में समझ नहीं होगी, फिर भी कम से कम वे उसे फिर से अगुआ नहीं चुनेंगे, और यह व्यक्ति दूसरों को अपने बारे में बहुत अच्छी राय रखने के लिए प्रेरित करने का अपना उद्देश्य हासिल नहीं कर पाएगा। लेकिन यह अगुआ यह कहते हुए पहल करता है : “मैं दानव और शैतान हूँ; परमेश्वर मुझे शाप दे सकता है और मुझे नरक के अठारहवें स्तर पर भेज सकता है और हो सकता है कि मुझे अनंत काल के लिए फिर से देह धारण करने की अनुमति न दे!” कुछ लोगों को यह सुनकर उसके लिए दुःख होता है और वे कहते हैं : “हमारे अगुआ ने बहुत कष्ट सहा है। ओह, उसके साथ कैसा अन्याय हुआ है! अगर परमेश्वर उसे अगुआ बनने की अनुमति नहीं देता है, तो हम उसे चुनेंगे।” हर कोई इस अगुआ को इतना समर्थन देता है, तो क्या उन्हें गुमराह नहीं किया गया है? उसके शब्दों के मूल इरादे की पुष्टि हो गई है, जो साबित करता है कि वह वास्तव में इस तरह से लोगों को गुमराह कर रहा है। शैतान कभी अपनी बड़ाई करके और अपनी गवाही देकर दूसरे लोगों को गुमराह करता है तो कभी जब उसके पास कोई विकल्प नहीं होता तो वह घुमा-फिरा कर अपनी गलतियाँ स्वीकार कर सकता है, लेकिन यह सब दिखावा है, और उसका उद्देश्य लोगों की सहानुभूति और समझ हासिल करना है। वह यह भी कहेगा, “कोई भी पूर्ण नहीं है। हर किसी का स्वभाव भ्रष्ट होता है और हर कोई गलतियाँ करने में सक्षम होता है। जब तक कोई अपनी गलतियों को सुधार सकता है, तब तक वह अच्छा इंसान है।” जब लोग यह सुनते हैं, तो उन्हें लगता है कि वह सही है, और वे शैतान की आराधना और उसका अनुसरण करना जारी रखते हैं। अति-सक्रिय रूप से अपनी ग़लतियों को स्वीकार करना, और गुप्त रूप से अपना उन्नयन करना और लोगों के दिलों में अपनी स्थिति को मजबूत करना शैतान का तरीका है, ताकि लोग उसके बारे में हर चीज स्वीकार करें—यहाँ तक कि उसकी त्रुटियों को भी—और फिर इन त्रुटियों को क्षमा कर दें, धीरे-धीरे उनके बारे में भूल जाएँ, और अंततः शैतान को पूरी तरह से स्वीकार लें, मृत्यु तक उसके प्रति वफादार रहें, उसे कभी न छोड़ें या त्यागें, और अंत तक उसका अनुसरण करते रहें। क्या यह शैतान के कार्य करने का तरीका नहीं है? शैतान इसी तरह से कार्य करता है, और मसीह-विरोधी भी इस तरह केतरीके का उपयोग करते हैं जब वे अपनी महत्वाकांक्षाओं और लोगों से अपनी आराधना और अनुसरण करवाने के उद्देश्य को पूरा करने के लिए कार्य करते हैं। इसके होने वाले परिणाम भी वैसे ही होते हैं, और शैतान द्वारा लोगों को गुमराह और भ्रष्ट करने के परिणामों से बिल्कुल भी भिन्न नहीं होते हैं।
जब कुछ लोग अपने आत्म-ज्ञान की बात करते हैं, तो वे खुद को पूरी तरह से अव्यवस्थित और अनुपयोगी बताते हैं, और यहाँ तक कहते हैं कि वे दानव और शैतान हैं, वे शापित होने लायक हैं, और यदि परमेश्वर उन्हें हटा भी दे, तो भी वे शिकायत नहीं करेंगे। हालाँकि, इन लोगों को अपने प्रकृति सार या अपने भ्रष्ट स्वभावों की सच्ची समझ नहीं है, और वे अपनी वास्तविक स्थिति के बारे में कुछ भी साझा करने में असमर्थ हैं। इसके बजाय वे दूसरों को गुमराह करने के लिए मुखौटे का उपयोग करने की कोशिश करते हैं, और लोगों को अंधा करने और धोखा देने के लिए अपनी गलतियों को सक्रिय रूप से स्वीकारने एवं “आगे बढ़ने के लिए पीछे हटने” के तरीके और तकनीक का उपयोग करते हैं, और फिर लोगों को उनके बारे में अच्छी राय बनाने के लिए मजबूर करते हैं। यही मसीह-विरोधियों का अभ्यास है। अगली बार जब तुम लोगों का सामना किसी ऐसे व्यक्ति से हो, तो तुम उसके साथ कैसा व्यवहार करोगे? (उसके बारे में गहराई से जानने की कोशिश करेंगे।) सही है, तुम्हें समस्या की छानबीन करना और उसकी गहराई में जाना सीखना चाहिए। और तुम्हें कितनी गहन छानबीन करनी चाहिए? छानबीन तब तक करो जब तक कि वे दया की भीख ना माँगें और कहें, “मैं आप लोगों को फिर कभी गुमराह नहीं करूँगा। अगर आप लोग मुझे अपना अगुआ भी चुनेंगे, तो भी मैं वो भूमिका नही निभाऊँगा।” उससे कहो, “हम कभी भी तुमसे दोबारा गुमराह नहीं होंगे या तुम्हें अपना अगुआ नहीं चुनेंगे, इसलिए सपने देखना बंद करो!” वह कैसा प्रतीत होता है? वे सभी जो अपने आत्म-ज्ञान के बारे में बहुत डींगे हांकते हैं, और खुद को कोसते भी हैं, जबकि उनकी कोई भी बात कतई सच प्रतीत नहीं होती, वे झूठे तरीके से आध्यात्मिक और पाखंडी लोग हैं, और उनके सभी शब्द गुमराह करने वाले हैं। ऐसे लोगों की बातचीत की कुछ विशेषता और कुछ विवरण होते हैं जिन्हें पहचानने में तुम्हें सक्षम होना चाहिए। उदाहरण के लिए, मुझे बताओ कि यदि किसी व्यक्ति को भेंट की सुरक्षा के लिए शपथ लिखने को कहा जाए, तो शपथ के पहले वाक्य में क्या लिखा जाएगा? तर्क-शक्ति और मानवता वाला व्यक्ति क्या लिखेगा? वह अपने उचित स्थान में खड़े होने और अपना रवैया बताने के लिए किस लहजे और वाक्यांश का उपयोग करेगा? जब आम इंसान बोलते हैं, तो हरेक समझ सकता है कि वे सामान्य ढंग से बोल रहे हैं, लेकिन जब महत्वाकांक्षी किस्म के कुकर्मी या मसीह-विरोधी बोलते हैं तो उनका एक विशेष लहजा होता है जो औसत व्यक्ति से भिन्न होता है। उदाहरण के लिए, वो कहते हैं : “यदि मैं, अमुक व्यक्ति, परमेश्वर की भेंट का एक पैसा भी हड़प लूं, तो मेरी अधम मृत्यु हो जाए—कार से कुचलकर मेरी मृत्यु हो जाए!” यह किस प्रकार का लहजा है? वे बड़बोले लहजे को चुनते हुए, “मैं” शब्द से आरंभ करते हैं—उनके लहजे और बोलने के ढंग के पीछे की प्रेरणा उनके द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले शब्दों में देखी जा सकती है। पहला शब्द है, “मैं”—वे बड़बोला लहजा और इतनी ऊंची आवाज चुनते हैं—क्या यह बड़बोली शपथ नहीं है? इस प्रकार की शपथ को क्या कहा जाता है? इसे बड़बोलापन और पाखंड कहा जाता है। इतनी आक्रामकता से शपथ लिखना—यह किस प्रकार का स्वभाव है? यह एक शपथ है, तो तुम यह शपथ किससे ले रहे हो? तुम यह शपथ परमेश्वर से ले रहे हो, तो एक आम इंसान को इस मामले में कैसे बोलना चाहिए? उसे विनम्र भाव से बोलना चाहिए, उसे अपने उचित स्थान पर खड़ा होना चाहिए, परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए, और दिल से बोलना चाहिए। उसे बड़बोले शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए या आक्रामक नहीं होना चाहिए। ऐसे लोग शपथ लेने के दौरान भी इतने आक्रामक होते हैं—उनका शैतानी स्वभाव इतना गंभीर होता है! यह कहना कठिन है कि उनकी शपथ सच्ची है या झूठी। उनका मतलब यह है : “क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है? क्या तुम्हें भय है कि मैं परमेश्वर के घर का लाभ उठा रहा हूँ, कि मैं भेंट चुरा रहा हूँ? तुम मेरा इस्तेमाल करते हो लेकिन तुम मुझ पर भरोसा नहीं करते हो, और तुम मुझे शपथ लेने के लिए कहते हो—फिर मैं शपथ लूंगा, तुम बस खड़े रहो और देखो कि मैं यह शपथ लेने का साहस करता हूँ कि नहीं! मुझे विश्वास नहीं होता कि मैं ऐसा कुछ कर सकता हूँ।” यह किस प्रकार का रवैया है? यह आक्रामकता और अनैतिकता है। वे परमेश्वर के विरुद्ध चिल्लाने की भी हिम्मत रखते हैं, और खुद को सही साबित करने और लोगों को गुमराह करने के लिए शपथ का इस्तेमाल करते हैं। क्या यह परमेश्वर का भय मानना है? इसमें किसी भी प्रकार की धर्मपरायणता नहीं है। इस प्रकार का व्यक्ति शैतान और मसीह-विरोधी है; मसीह-विरोधी इसी प्रकार बोलते हैं? शोरगुल के साथ शपथ लेना—यह किस प्रकार का स्वभाव है? क्या इस प्रकार के व्यक्ति को अभी भी बचाया जा सकता है? क्या तुम लोग इस प्रकार के व्यक्ति से पहले मिल चुके हो? तुम लोग नहीं जानते कि उनके द्वारा प्रदर्शित की जाने वाली इन अभिव्यक्तियों, खुलासों या स्वभावों को कैसे पहचाना जाए, क्या तुम जानते हो? कुछ लोग तो यह भी मानते हैं कि इस प्रकार का व्यक्ति स्पष्ट बुद्धि वाला, आध्यात्मिक समझ वाला, ईमानदार और परमेश्वर के प्रति वफादार होता है। क्या यह मूर्खता नहीं है? क्या यह विवेक की कमी नहीं है? यह खराब व्यवहार और स्वभाव उनकी शपथ के शब्दों और वाक्यांशों में देखा जा सकता है, लेकिन लोग अभी भी सोचते हैं कि यह मसीह-विरोधी काफी अच्छा है। क्या ये लोग सत्य को समझते हैं? ऐसा प्रतीत होता है कि तुम लोग केवल सिद्धांतों को समझते हो, तुम केवल सिद्धांतों के बारे में बात कर सकते हो और खोखले शब्द बोल सकते हो, और जब विशिष्ट मामलों और मुद्दों की बात आती है तो तुम विवेकहीन हो रहे हो। भविष्य में, यदि तुम्हारे समक्ष इस प्रकार के मामले आएं, तो क्या तुम विवेकशील होगे? (हाँ, हम होंगे।) ऐसी शपथ लिखने वाले सभी लोग जानवर हैं और उन सबमें मानवता की कमी है। क्या तुम लोगों ने ऐसी शपथ पहले कभी देखी है? क्या तुम लोगों ने पहले भी ऐसी शपथ लिखी है? (हाँ।) क्या इसमें वैसा ही लहजा और मुखड़ा था जैसा इसमें है? (यह उतना प्रत्यक्ष नहीं था।) फिर क्या इसकी प्रकृति समान थी? (हाँ।) इसकी प्रकृति समान थी। शपथ लेना युद्ध के मैदान में प्रवेश करने के समान नहीं है, जिसमें साहसिक आत्म-बलिदान की भावना अपेक्षित होती है। शपथ लेने में ऐसी भावना अपेक्षित नहीं होती है। जब तुम परमेश्वर की शपथ लेते हो, तो तुम्हें इसके बारे में अच्छी तरह से सोचना चाहिए, और समझना चाहिए कि तुम्हें शपथ लिखने की आवश्यकता क्यों है, तुम यह शपथ किससे ले रहे हो और किससे यह प्रतिज्ञा कर रहे हो। परमेश्वर इंसान का रवैया देखना चाहता है, न कि उसकी भावना। तुम्हारी वो भावना आक्रामक है और शोर मचाने वाला है; यह शैतान के अंहकारी स्वभाव की अभिव्यक्ति है। यह धर्मपरायणता नहीं है और न ही यह ऐसी अभिव्यक्ति है जो सृजित प्राणियों में होनी चाहिए, और सृजित प्राणियों के लिए ऐसी स्थिति को ग्रहण करना तो दूर की बात है। क्या इस अभिव्यक्ति को प्रदर्शित करने वाले लोग राष्ट्रीय वीरता से प्रभावित नहीं हैं? क्या यह इससे संबंधित है? लोगों के मन में गहरे तक जहर घोला गया है—जैसे ही वे कोई शपथ या प्रतिज्ञा लिखते हैं, वे उन सभी प्रसिद्ध हस्तियों के बारे में सोचते हैं जो सदियों से अपने देश और लोगों के प्रति वफ़ादार थे। वो प्रसिद्ध हस्तियाँ शैतान के गिरोह का हिस्सा थीं, और उन्होंने अपने आप को अलग दिखाने, अपने लिए गवाही देने, लोगों के दिलों में जगह बनाने और अपने लिए अच्छी प्रतिष्ठा कायम करने के लिए अनैतिक तरीके से काम किया, ताकि इतिहास में उनका नाम दर्ज हो सके और उनका अच्छा नाम हो जो अनंत काल तक बना रहे। बाद की पीढ़ियों ने इसका अपने देश के प्रति उनकी अंधभक्ति के रूप में मूल्य निरूपण किया; क्या तुम्हें लगता है कि वे सचमुच अंधे थे? यह अंधापन वास्तव में क्या है? यह सबसे विश्वासघाती, दुष्ट अभ्यास है, और इसमें व्यक्तिगत इरादा भी है। यह अंधापन नहीं है, और यह निश्चित रूप से भक्ति भी नहीं है—यह दुष्टता है।
हम मसीह-विरोधियों द्वारा अपनी गवाही देने के विषय पर पहले ही काफी सहभागिता कर चुके हैं। क्या इस विषय से संबंधित कोई अन्य मुद्दे हैं जिन्हें तुम लोग अभी भी पूरी तरह से नहीं समझते हो? कुछ लोग भाषा का इस्तेमाल करके, और स्वयं का बखान करने वाले कुछ शब्द बोलकर अपनी गवाही देते हैं, जबकि अन्य लोग व्यवहारों का इस्तेमाल करते हैं। अपनी गवाही देने के लिए व्यवहारों का इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति के कौन-कौन से लक्षण हैं? सतही तौर पर, वे कुछ ऐसा व्यवहार करते हैं जो अपेक्षाकृत लोगों की धारणाओं के अनुरूप हैं, जो लोगों का ध्यान खींचते हैं, और जिन्हें लोग बेहद नेक और अपेक्षाकृत नैतिक मानकों के अनुरूप मानते हैं। इन व्यवहारों के चलते लोग यह सोचने पर मजबूर होते हैं कि वे सम्मान-योग्य हैं, उनमें ईमानदारी है, वे वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करते हैं, वे बेहद पवित्र हैं, और उनमें वास्तव में परमेश्वर का भय मानने वाला दिल है, और वे सत्य का अनुसरण करने वाले लोग हैं। वे लोगों को गुमराह करने के लिए अक्सर कुछ ऊपरी अच्छे व्यवहारों का प्रदर्शन करते हैं—क्या इसमें भी अपना उन्नयन करने और अपनी गवाही देने की बू नहीं आती है? आमतौर पर लोग शब्दों के जरिये अपना उन्नयन करते हैं और अपनी गवाही देते हैं, स्पष्ट भाषण देकर बताते हैं कि वे आम लोगों से किस प्रकार भिन्न हैं और उनके पास दूसरों के मुकाबले अधिक बुद्धिमान राय कैसे हैं, ताकि लोग उनके बारे में बहुत अच्छी राय कायम करें और उन्हें ऊँची नजरों से देखें। हालाँकि, कुछ ऐसे तरीके हैं जिनमें स्पष्ट भाषण शामिल नहीं होता है, जहाँ लोग दूसरों से बेहतर होने की गवाही देने के लिए इसके बजाय बाहरी अभ्यासों का इस्तेमाल करते हैं। इस तरह के अभ्यास सुविचारित होते हैं, इनमें एक उद्देश्य और एक निश्चित इरादा होता है, और वे बेहद उद्देश्यपूर्ण होते हैं। उन्हें सम्मिलित और संसाधित किया जाता है ताकि लोगों को जो कुछ व्यवहार और अभ्यास दिखाई दें वो व्यक्ति की भावनाओं के अनुरूप हों, नेक हों, पवित्र हों, और संतोचित शालीनता के अनुरूप हों, और परमेश्वर-प्रेमी, परमेश्वर का भय मानने वाले, और सत्य के अनुरूप भी हों। इससे भी अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने और लोगों की अपने बारे में बहुत अच्छी राय बनवाने और अपनी आराधना करवाने का वही लक्ष्य प्राप्त होता है। क्या तुम लोगों ने कभी ऐसी चीज का सामना किया है या ऐसी चीज देखी है? क्या तुम लोगों में ये लक्षण हैं? क्या ये चीजें और यह विषय जिसकी मैं चर्चा कर रहा हूँ असल जिंदगी से भिन्न हैं? वास्तव में, वे भिन्न नहीं हैं। मैं एक बेहद सरल उदाहरण दूंगा। जब कुछ लोग अपना कर्तव्य निभाते हैं, तो वे ऊपरी तौर पर बहुत व्यस्त प्रतीत होते हैं; वे विशेष उद्देश्य से उस समय भी काम कर रहे होते हैं जब अन्य लोग खा या सो रहे हों, और जब अन्य लोग अपना कर्तव्य निभाना शुरू करते हैं, तो वे खाने या सोने चले जाते हैं। ऐसा करने में उनका क्या उद्देश्य होता है? वे ध्यान आकर्षित करना और हरेक को दिखाना चाहते हैं कि वे अपने कर्तव्य निभाने में इतने व्यस्त हैं कि उनके पास खाने या सोने का समय ही नहीं है। वे सोचते हैं : “तुम लोग वास्तव में बोझ नहीं उठाते हो। तुम लोग खाने और सोने को लेकर इतने सक्रिय कैसे हो? तुम लोग किसी काम के नहीं हो! मुझे देखो, मैं काम कर रहा हूँ जबकि तुम सभी खा रहे हो, और मैं रात में अभी भी काम कर रहा हूँ जब तुम सो रहे हो। क्या तुम लोग इस तरह कष्ट सह सकोगे? मैं इस कष्ट को सहन कर सकता हूँ; मैं अपने व्यवहार से एक मिसाल पेश कर रहा हूँ।” तुम लोग इस प्रकार के व्यवहार और लक्षण के बारे में क्या सोचते हो? क्या ये लोग जानबूझकर ऐसा नहीं कर रहे हैं? कुछ लोग ये काम जानबूझकर करते हैं, और यह किस तरह का व्यवहार है? ये लोग संप्रदायवादी बनना चाहते हैं; वे भीड़ से अलग होना और लोगों को दिखाना चाहते हैं कि वे पूरी रात बस अपना कर्तव्य निभाते रहे हैं, वे विशेष रूप से कष्ट सहने में सक्षम हैं। इस प्रकार हरेक व्यक्ति खासकर उनके लिए दुखी होगा और यह सोचते हुए उनके प्रति विशेष रूप से सहानुभूति दिखाएगा कि उनके कंधों पर भारी बोझ है, और इस हद तक है कि वे काम में डूबे हुए हैं और उनके पास खाने या सोने का समय भी नहीं है। और अगर उन्हें बचाया नहीं जा सकता, तो हरेक उनके लिए परमेश्वर से अनुनय-विनय करेगा, उनकी ओर से परमेश्वर से याचना करेगा, और उनके लिए प्रार्थना करेगा। ऐसा करते हुए, ये लोग अन्य लोगों की आँखों में धूल झोंकने और धोखे से उनकी सहानुभूति एवं प्रशंसा प्राप्त करने के लिए ऐसे अच्छे व्यवहारों और अभ्यासों का इस्तेमाल कर रहे हैं जो व्यक्ति की भावनाओं के अनुरूप हैं, जैसे कि मुसीबत झेलना और कीमत चुकाना। और इसका अंतिम परिणाम क्या है? उनके संपर्क में आने वाला हरेक व्यक्ति जिसने उन्हें कीमत चुकाते हुए देखा है, वे सभी एक स्वर में कहेंगे : “हमारा अगुआ सर्वाधिक सक्षम है, कष्ट सहने और कीमत चुकाने में सर्वाधिक सक्षम है!” तो क्या वे लोगों को गुमराह करने का अपना उद्देश्य पूरा नहीं कर पाए? फिर एक दिन, परमेश्वर का घर कहता है, “तुम लोगों का अगुआ वास्तविक काम नहीं करता है। वह अपने को व्यस्त रखता है और बिना किसी उद्देश्य के काम करता है; वह लापरवाही से काम करता है और वह मनमाना व्यवहार करने वाला और तानाशाह है। उसने कलीसिया के काम को बर्बाद कर दिया है, उसने ऐसा कोई काम नहीं किया है जो उसे करना चाहिए था, उसने सुसमाचार का काम नहीं किया या फिल्म प्रोडक्शन का काम नहीं किया, और कलीसिया का जीवन भी अस्त-व्यस्त कर दिया है। भाई-बहन सत्य नहीं समझते हैं, उनके पास जीवन प्रवेश नहीं है, और वे गवाही के लेख भी नहीं लिख सकते हैं। सबसे दयनीय बात तो यह है कि वे झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों को भी नहीं पहचान सकते हैं। इस तरह का अगुआ अत्यधिक अक्षम होता है; वो झूठा अगुआ है जिसे बर्खास्त कर देना चाहिए!” इन परिस्थितियों में, क्या उसे बर्खास्त करना आसान होगा? यह कठिन हो सकता है। चूंकि सभी भाई-बहनों ने उसे स्वीकार किया है और उसका समर्थन किया है, यदि कोई इस अगुआ को बर्खास्त करने की कोशिश करता है, तो भाई-बहन विरोध करेंगे और उसे पद पर बनाए रखने के लिए ऊपरवाले से अनुरोध करेंगे। ऐसा परिणाम क्यों होगा? क्योंकि यह झूठा अगुआ और मसीह-विरोधी लोगों को प्रेरित करने, उनका विश्वास जीतने, और उन्हें गुमराह करने के लिए मुसीबतें झेलने और कीमत चुकाने, और साथ ही मीठे शब्द बोलने जैसे बाहरी अच्छे व्यवहार का इस्तेमाल करता है। एक बार उसने लोगों को गुमराह करने के लिए झूठे दिखावों का इस्तेमाल कर लिया, तो हरेक उसकी बात करेगा और उसे छोड़ने में असमर्थ होगा। उन्हें स्पष्ट रूप से पता है कि इस अगुआ ने कोई खास वास्तविक काम नहीं किया है, और उसने सत्य को समझने और जीवन प्रवेश प्राप्त करने के लिए परमेश्वर के चुने हुए लोगों का मार्गदर्शन भी नहीं किया है, लेकिन ये लोग अभी भी उसका समर्थन करते हैं, उसको स्वीकार करते हैं, उसका अनुसरण करते हैं, और वे इस बात की भी परवाह नहीं करते कि उन्हें सत्य और जीवन प्राप्त नहीं होगा। सबसे बड़ी बात यह है कि इस अगुआ द्वारा गुमराह होने के कारण, ये सभी लोग उसकी आराधना करते हैं, उसके अलावा किसी अन्य अगुआ को स्वीकार नहीं करते, और उन्हें परमेश्वर की भी अब कोई आवश्यकता नहीं है। क्या वे इस अगुआ को परमेश्वर की तरह मान नहीं दे रहे हैं? यदि परमेश्वर का घर कहता है कि यह व्यक्ति वास्तविक काम नहीं करता है और वो झूठा अगुआ और मसीह-विरोधी है, तो उसके कलीसिया के लोग विरोध करेंगे और विद्रोह के लिए उठ खड़े होंगे। मुझे बताओ, इस मसीह-विरोधी ने किस हद तक उन लोगों को गुमराह किया है? अगर यह पवित्र आत्मा का काम है, तो लोगों के हालात केवल बेहतर होने चाहिए, और उन्हें सत्य ज्यादा समझ आना चाहिए, उन्हें परमेश्वर के प्रति अधिक समर्पित होना चाहिए, उनके दिलों में परमेश्वर का स्थान और बड़ा होना चाहिए, और उन्हें झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों को ज्यादा बेहतर ढंग से पहचानने में सक्षम होना चाहिए। इस दृष्टिकोण से, हमने जिस स्थिति की अभी चर्चा की है वो बिल्कुल भी पवित्र आत्मा का काम नहीं है—केवल मसीह-विरोधी और बुरी आत्माएँ ही कुछ समय काम करने के बाद इस हद तक लोगों को गुमराह कर सकती हैं। अनेक लोगों को इन मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह और नियंत्रित किया गया है, और उनके दिलों में, केवल मसीह-विरोधियों के लिए स्थान है और परमेश्वर के लिए कोई स्थान नहीं है। मसीह-विरोधियों ने बाहरी अच्छे व्यवहारों के माध्यम से अपनी बड़ाई करके और अपनी गवाही देकर यह अंतिम नतीजा प्राप्त किया है। वे अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने के लिए मुसीबत सहने और कीमत चुकाने के बाहरी अच्छे व्यवहारों का इस्तेमाल करते हैं, जो लोगों को गुमराह करने और नियंत्रित करने के लिए मसीह-विरोधियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले उपायों में से एक है। तुम लोगों को यह मामला अब स्पष्ट दिखाई देता है, है न? क्या एक मसीह-विरोधी द्वारा लोगों को गुमराह करने के लिए मुसीबत सहने और कीमत चुकाने के बाहरी अच्छे व्यवहारों का इस्तेमाल करना बेहद धूर्ततापूर्ण और कपटपूर्ण नहीं है? और क्या तुम लोग भी कभी-कभी ये काम नहीं करते हो? कुछ लोग अपने कर्तव्य में देर तक जागते रहने के लिए शाम के समय अपनी ऊर्जा बढ़ाने के लिए कॉफी पीते हैं। भाई-बहनों को उनके स्वास्थ्य की चिंता होती है और वे उनके लिए चिकन सूप बनाते हैं। सूप खत्म होने पर, ये लोग कहते हैं, “परमेश्वर का धन्यवाद! मैंने परमेश्वर की अनुकंपा का आनंद लिया है। मैं इसके लायक नहीं हूँ। अब जब मैंने चिकन सूप खत्म कर लिया है, तो मुझे अपने कर्तव्य को अधिक कुशलता से निभाना होगा!” वास्तव में, वे अपनी कुशलता में कोई सुधार किए बिना अपना कर्तव्य उसी तरीके से करना जारी रखते हैं जैसा वे आमतौर पर करते हैं। क्या वे दिखावा नहीं कर रहे हैं? वे दिखावा कर रहे हैं, और इस तरह का व्यवहार भी चोरी-चोरी अपनी बड़ाई करना और अपनी गवाही देना ही है; इसका यह परिणाम निकलता है कि लोग उन्हें स्वीकारते हैं, उनके बारे में बहुत अच्छी राय कायम करते हैं, और उनके कट्टर अनुयायी बन जाते हैं। यदि लोगों की इस प्रकार की मानसिकता है, तो क्या उन्होंने परमेश्वर को भुला नहीं दिया है? परमेश्वर अब और उनके दिलों में नहीं बसता, तो फिर वे दिन-रात किसके बारे में सोचते हैं? यह उनका “अच्छा अगुआ” है, उनका “प्यारा” है। कुछ मसीह-विरोधी सतही तौर पर अधिकांश लोगों के प्रति बहुत स्नेही होते हैं, और बोलते समय वे ऐसी तरकीबों का इस्तेमाल करते हैं, ताकि लोगों को दिखे कि वे बहुत स्नेही हैं, और वे उनके करीब आने के इच्छुक हैं। जो कोई भी उनके करीब जाता है वे खुशी जाहिर करते हैं और उनसे बातचीत करने लगते हैं, और वे ऐसे लोगों से बेहद कोमल लहजे में बात करते हैं। अगर उन्हें दिखाई भी देता है कि कुछ भाई-बहन अपने कार्यों में सिद्धांतहीन रहे हैं, और इस प्रकार कलीसिया के हितों को नुकसान पहुँचाया है, वे उनकी थोड़ी-सी भी काट-छाँट नहीं करते हैं, वे केवल उन्हें समझाते और दिलासा देते हैं, और जब वे अपना कर्तव्य निभाते हैं तो उन्हें मनाते हैं—वे लोगों को तब तक मनाते हैं जब तक कि वे हर किसी को अपने सामने नहीं ले आते हैं। लोग धीरे-धीरे इन मसीह-विरोधियों से प्रभावित हो जाते हैं, हर कोई उनके स्नेही दिलों को बहुत पसंद करता है और उन्हें परमेश्वर-प्रेमी कह कर पुकारता है। अंततः, हर कोई उनकी आराधना करता है और हर मामले में उनकी सहभागिता चाहता है, इन मसीह-विरोधियों को इस हद तक अंतरमन के अपने सारे विचार और भावनाएँ बताता है कि वे अब परमेश्वर से प्रार्थना भी नहीं करते हैं या परमेश्वर के वचनों में सत्य की तलाश भी नहीं करते हैं। क्या ये लोग इन मसीह-विरोधियों से गुमराह नहीं हुए हैं? यह एक दूसरा उपाय है जिसका इस्तेमाल मसीह-विरोधी लोगों को गुमराह करने के लिए करते हैं। जब तुम लोग इन व्यवहारों और अभ्यासों में सम्मिलित हो जाते हो, या इन इरादों को पालते हो, तो क्या तुम लोगों को जानकारी है कि इसमें एक समस्या है? और जब तुम्हें इसकी जानकारी होती है, तो क्या तुम अपने कामकाज के तरीकों में बदलाव कर सकते हो? तुम्हें जानकारी होने पर अगर तुम आत्मचिंतन करो और सच में ग्लानि महसूस करो और जाँच करो कि तुम्हारा व्यवहार, अभ्यास, या इरादे समस्या पैदा करने वाले हैं, तो यह साबित करता है कि तुमने अपने तरीके बदल दिए हैं। यदि तुम्हें अपनी समस्याओं की जानकारी है लेकिन तुम बस उन्हें अनदेखा कर देते हो और केवल अपने इरादों के अनुसार काम करते हो, समस्याओं में गहरे और गहरे फंसते चले जाते हो जब तक कि तुम उस स्थिति में नहीं पहुँच जाते जहाँ से तुम खुद को निकालने में समर्थ नहीं हो, तब तुमने अपना तरीका नहीं बदला है और तुम जानबूझकर स्वयं को परमेश्वर के विरुद्ध खड़ा कर रहे हो, अपनी बड़ाई कर रहे हो और अपनी गवाही दे रहे हो, और सही रास्ते से भटक रहे हो। यह कैसा स्वभाव है? यह एक मसीह-विरोधी का स्वभाव है। क्या यह गंभीर है? (हाँ, बिल्कुल है।) यह कितना गंभीर है? अगर कोई व्यक्ति अपनी आराधना और अनुसरण करवाने के लिए लोगों को मजबूर करने के लिए कष्ट सहकर और कीमत चुकाकर अत्यधिक कपटपूर्ण और धूर्ततापूर्ण तरीके अपनाता है, तो उसका परिणाम खुलेआम अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने के समान होता है—इसकी प्रकृति एक जैसी होती है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम अपनी बड़ाई करने और अपनी गवाही देने के लिए कौन से तरीकों का इस्तेमाल करते हो, चाहे यह स्पष्ट भाषण हो या बेशक कुछ अच्छे व्यवहार, प्रकृति में यह सब एक जैसा है। इसमें मसीह-विरोधी का गुण है, और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए परमेश्वर से लड़ाई करने का गुण है। तुम्हारे लक्षण चाहे जैसे भी हों या तुम चाहे कैसे भी तरीके क्यों ना अपना लो, जब तक तुम्हारा इरादा नहीं बदलता और परिणाम वही रहते हैं, तब तक यह सब प्रकृति में एक जैसा है। इससे यह स्पष्ट है कि मसीह-विरोधी बहुत धूर्त हैं और वे सत्य से प्रेम नहीं करते हैं या सत्य का अनुसरण नहीं करते हैं। हालाँकि वे लोगों को गुमराह करने के तरीके के तौर पर कष्ट सहने और कीमत चुकाने में सक्षम हैं—यह मसीह-विरोधियों की दुष्टता है।
कुछ लोग कुछ बेतुके सिद्धांतों और भावात्मक तर्कों के बारे में बात करते हैं जिससे लोग सोचने लगते हैं कि वे बुद्धिमान और ज्ञानवान हैं, और उनके क्रियाकलाप अत्यंत गहरे हैं, और इस प्रकार वे लोगों द्वारा अपनी आराधना किए जाने के अपने उद्देश्य को प्राप्त कर लेते हैं। यानी वे हर मामले में भागीदारी करना और अपनी राय देना चाहते हैं, और उस स्थिति में भी जब हरेक ने अंतिम फैसला कर लिया हो, यदि वे इससे संतुष्ट नहीं होते हैं, तो वे दिखावा करने के लिए कुछ बड़बोले विचार गंभीरता से प्रस्तुत करेंगे। क्या यह अपना उन्नयन करने और अपनी गवाही देने का एक तरीका नहीं है? कुछ मामलों में, हरेक ने वास्तव में मुद्दों पर बातचीत कर ली है, एक-दूसरे से सलाह कर ली है, सिद्धांत ढूंढ लिए हैं, और कार्य-योजना पर निर्णय कर लिया है, लेकिन वे निर्णय को स्वीकार नहीं करते हैं और यह कहते हुए अनुचित तरीके से चीजों को बाधित करते हैं, “यह नहीं चलेगा। तुम लोगों ने इस पर व्यपाक रूप से विचार नहीं किया है। हमने जिन पहलुओं पर बात की है, उनके अलावा मैंने एक और पहलू पर विचार किया है।” वास्तव में, उन्होंने जिस पहलू के बारे में सोचा वो केवल एक बेतुका सिद्धांत है; वे केवल बेकार के मुद्दों को तूल दे रहे हैं। उन्हें अच्छे से पता है कि वे बेकार के मुद्दों को तूल दे रहे हैं और अन्य लोगों के लिए चीजों को कठिन बना रहे हैं, लेकिन फिर भी वे ऐसा करते हैं। इसमें उनका क्या उद्देश्य है? यह लोगों को दिखाने के लिए है कि वे उनसे भिन्न हैं, दूसरों की अपेक्षा ज्यादा होशियार हैं। उनका मतलब है, “तुम सब लोगों का यह स्तर है? मुझे तुम लोगों को दिखाना है कि मेरा स्तर कहीं ऊँचा है।” वे आमतौर पर किसी भी व्यक्ति द्वारा कही गई किसी भी बात को नजरंदाज करते हैं, लेकिन जैसे ही कुछ महत्वपूर्ण बात होती है, तो वे चीजों को बिगाड़ना शुरू कर देते हैं। इस तरह के व्यक्ति को क्या कहा जाता है? आम बोलचाल की भाषा में, उसे मीनमेख निकालने वाला और मूर्ख कहा जाता है। मीनमेख निकालने वाले व्यक्ति का आम नजरिया क्या होता है? उसे बड़बोले विचार प्रस्तुत करने और कुछ घृणित और कुटिल अभ्यासों में सम्मिलित होने में आनंद आता है। यदि तुम उसे सही कार्य-योजना प्रस्तुत करने को कहते हो, तो वे एक भी कार्ययोजना प्रस्तुत नहीं कर पाएंगे, और यदि तुम उसे कोई गंभीर मुद्दा संभालने को कहते हो, वे ऐसा नहीं कर पाएंगे। वे केवल घृणित काम करते हैं, और सदैव लोगों को “हैरत” में डालना और अपनी योग्यता दिखाना चाहते हैं। इस वाक्यांश का इस्तेमाल कैसा लगता है? “एक बुजुर्ग औरत तुम्हें दिखाने के लिए लिपस्टिक लगाती है।” इसका अर्थ है कि वे सदैव अपनी योग्यताओं का दिखावा करना चाहते हैं, और भले ही वे उनके समक्ष अच्छे से दिखावा कर पाएं या नहीं, वे लोगों का बताना चाहते हैं, “मैं तुम लोगों की अपेक्षा कहीं अधिक उत्कृष्ट हूँ। तुम सब निकम्मे हो, तुम लोग बस मरणशील, साधारण लोग हो। मैं असाधारण और सर्वोत्कृष्ट हूँ। मैं तुम लोगों को हैरान करने के लिए अपने विचार साझा करूंगा और फिर तुम लोग देख सकते हो कि मैं सर्वश्रेष्ठ हूँ या नहीं।” क्या यह चीजों को खराब करना नहीं है? वे जानबूझकर चीजों को खराब कर रहे हैं। यह किस प्रकार का व्यवहार है? वे गड़बड़ियाँ और बाधाएँ उत्पन्न कर रहे हैं। उनका मतलब यह है कि : मैंने अभी तक यह नहीं दिखाया है कि मैं इस मामले में कितना चालाक हूँ, इसलिए चाहे किसी के हितों को नुकसान पहुँचे और चाहे किसी के प्रयास व्यर्थ हों, मैं तब तक इसे बिगाड़ता रहूँगा जब तक सभी यह न मान लें कि मैं श्रेष्ठ, योग्य और समर्थ हूँ। केवल तभी मैं इस मामले को बिना किसी बाधा के आगे बढ़ने दूंगा। क्या इस तरह के बुरे लोग मौजूद हैं? क्या तुम लोगों ने पहले भी इस तरह के काम किए हैं? (हॉं। कभी-कभी दूसरे लोगों ने मामले में चर्चा समाप्त कर दी थी और उपयुक्त योजना मिल गई थी, लेकिन चूंकि उन्होंने निर्णय-लेने की प्रक्रिया के दौरान मुझे जानकारी नहीं दी थी, तो मैंने जानबूझकर इसमें खामियाँ ढूंढ ली।) जब तुमने ऐेसा किया, तो क्या तुम्हें अपने अंतरमन में पता था कि यह सही है या गलत? क्या तुम्हें पता था कि इस समस्या की प्रकृति गंभीर है, और इससे गड़बड़ियाँ और बाधाएँ उत्पन्न हो रही हैं? (मुझे उस समय इसकी जानकारी नहीं थी, लेकिन अपने भाई-बहनों द्वारा गंभीर रूप से काट-छाँट किए जाने, और परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के वचनों को खाने-पीने से, मैंने देखा कि प्रकृति में यह समस्या गंभीर है, और यह कलीसिया के काम में गड़बड़ियाँ और बाधाएँ उत्पन्न कर रही है, और यह एक प्रकार का शैतानी व्यवहार है।) चूंकि तुमने पहचान लिया कि यह समस्या कितनी गंभीर है, और जब उसके बाद ऐसी चीजें तुम्हारे साथ भी घटीं, तो क्या तुम थोड़ा बदलाव ला पाए और क्या तुम अपने नजरिये में कुछ बदलाव ला पाए? (हॉं। जब मैंने ऐसे विचार प्रकट किए, तो मुझे पता था कि यह शैतानी स्वभाव था, और मैं उस तरीके से चीजें नहीं कर सकता था, और मैं होशोहवास में परमेश्वर से प्रार्थना करने और उन गलत विचारों का विरोध करने में सक्षम था।) तुम कुछ हद तक बदल पाए थे। जब तुम्हारे समक्ष भ्रष्टता जैसी समस्याएँ हों, तो तुम्हें उनका समाधान करने और स्वयं को रोकने के लिए सत्य की खोज, और परमेश्वर से प्रार्थना करनी पड़ती है। जब तुम सोचते हो कि दूसरे तुम्हारी तरफ घृणा से देखते हैं, वे तुम्हारे बारे में ऊँचा नहीं सोचते या तुम्हें गंभीरता से नहीं लेते, और इसके परिणामस्वरूप तुम गड़बड़ी उत्पन्न करना चाहते हो, जब तुम्हारे मन में यह विचार आता है, तो तुम्हें यह पता होना चाहिए कि यह सामान्य मानवता से नहीं बल्कि शैतानी स्वभाव से आता है, और यदि तुम इसी तरह चलते रहोगे, तो तकलीफ उठानी होगी, और तुम शायद परमेश्वर के स्वभाव को ठेस पहुँचाओगे। तुम्हें सबसे पहले स्वयं को रोकना आना चाहिए, और फिर परमेश्वर से प्रार्थना करने के लिए उसके समक्ष आना चाहिए और अपने मार्ग को बदलना चाहिए। जब लोग अपने विचारों में, अपने भ्रष्ट स्वभावों में मग्न रहते हैं, तो उनके द्वारा किया गया कोई भी काम सत्य के अनुरूप नहीं होता या परमेश्वर को संतुष्ट करने वाला नहीं होता है; वे जो कुछ भी करते हैं वो परमेश्वर का विरोधी हो जाता है। तुम लोग अब इस तथ्य को पहचान सकते हो, है न? तुम हमेशा शोहरत और लाभ के लिए लड़ना चाहते हो, प्रतिष्ठा और रुतबा पाने के लिए कलीसिया के काम में गड़बड़ी और बाधा उत्पन्न करने से भी नही हिचकिचाते, और ये मसीह-विरोधियों की सबसे स्पष्ट लक्षण होते हैं। वास्तव में, सभी लोगों में ये लक्षण होते हैं, लेकिन यदि तुम इन्हें पहचान और स्वीकार सकते हो, और फिर परमेश्वर के समक्ष सच्चे पश्चात्ताप का रवैया अपनाकर, और अपने नजरिये, व्यवहारों, और स्वभावों में बदलाव लाकर अपना तरीका बदल सकते हो, तो तुम सत्य का अनुसरण करने वाले व्यक्ति हो। यदि तुम इन वास्तविक समस्याओं को स्वीकार नहीं करते हो, तो तुम में निश्चित रूप से पश्चात्ताप की मनोवृति नहीं है, और तुम सत्य का अनुसरण करने वाले व्यक्ति नहीं हो। यदि तुम मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलने की जिद करते हो, और अंत तक इस मार्ग का अनुसरण करते हो, और तुम अभी भी सोचते हो कि यह कोई समस्या नहीं है और पश्चात्ताप नहीं करना चाहते हो, इसी तरह काम करने की और कार्यकर्ताओं और अगुआओं के साथ शोहरत और लाभ के लिए प्रतिस्पर्धा करने की जिद करते हो, दूसरों से ज्यादा अलग दिखने, भीड़ से अलग दिखने, और दूसरों से बेहतर होने पर जोर देते हो, तो भले ही तुम किसी भी समूह में क्यों ना हो, तुम मुसीबत में हो! यदि तुम प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागते रहते हो और जिद करके पश्चात्ताप करने से इनकार करते हो, तो तुम मसीह-विरोधी हो और अंत में दण्ड पाने के लिए अभिशप्त हो। परमेश्वर के वचन, सत्य, और जमीर और विवेक का तुम पर कोई असर नहीं होता है, और निश्चित तौर पर तुम्हारा अंत मसीह-विरोधियों के समान होगा। तुम्हें बचाया नहीं जा सकता, और तुम कभी नहीं सुधरोगे! लोग उद्धार प्राप्त कर सकते हैं या नहीं और परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के मार्ग पर चल सकते हैं या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वे स्वयं को जानने के बाद सच्चे पश्चात्ताप के लक्षण दिखाते हैं या नहीं, और वे किस नजरिये से सत्य को देखते हैं, और साथ ही वे कौन सा मार्ग चुनते हैं। यदि तुम एक मसीह-विरोधी के मार्ग का त्याग नहीं करते हो, और इसके बजाय अपनी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं को संतुष्ट करने का चुनाव करते हो, खुलेआम सत्य का विरोध करते हो, स्वयं को परमेश्वर के विरुद्ध खड़ा कर लेते हो, तो तुम नहीं सुधरोगे। यदि कोई व्यक्ति अपनी गलतियों की गंभीरता या अपने द्वारा किए गए बुरे कर्मों की परवाह किए बिना डरना नहीं जानता, और वह दोषी महसूस नहीं करता, बिना किसी पश्चात्ताप के अपने लिए बहाने बनाता रहता है, तो वह एक पक्का मसीह-विरोधी और शैतान है। यदि किसी व्यक्ति में मसीह-विरोधियों के विभिन्न लक्षण मौजूद हों, लेकिन वह अपनी गलतियों को स्वीकार सकता है, पीछे मुड़ सकता है, और उसके हृदय में पछतावा हो सकता है, तो वह व्यक्ति मसीह-विरोधियों से प्रकृति में भिन्न है और पूरी तरह से एक अलग मामला है। इसलिए, कोई व्यक्ति उद्धार प्राप्त कर सकता है या नहीं, इसकी कुंजी इस बात में निहित है कि क्या वह आत्मचिंतन कर सकता है, क्या उसके पास पश्चात्ताप करने वाला हृदय है, और क्या वह सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर चल सकता है।
मद चार, अपनी बड़ाई करना और अपने बारे में गवाही देना, मसीह-विरोधियों का एक सतत दृष्टिकोण है। तुम लोग उन स्पष्ट उपायों, तरीकों और पद्धतियों को पहचानने में सक्षम हो जिनके जरिए मसीह-विरोधी अपनी बड़ाई करते हैं और अपने बारे में गवाही देते हैं, लेकिन क्या तुम और अधिक छिपे हुए व्यवहारों और अभिव्यक्तियों को पहचान सकते हो? जब अपनी बड़ाई करने और अपने बारे में गवाही देने के लिए भाषा का उपयोग करने जैसी स्पष्ट चीजों की बात आती है, तो तुम लोग इन चीजों का खुलासा करते हो, तुमने दूसरे लोगों को भी उनका खुलासा करते देखा है, और तुम उन्हें पहचान सकते हो। लेकिन अगर किसी भाषा का उपयोग नहीं किया गया है और केवल व्यवहारपरक अभिव्यक्तियाँ हैं, तो क्या तुम लोग अभी भी उन्हें पहचान पाओगे? यह कहा जा सकता है कि अधिकांश लोग ऐसा नहीं कर पाएंगे। तो फिर, व्यवहारों के कौन से लक्षण हैं, जहाँ मसीह-विरोधी अपनी बड़ाई करते हैं और अपने बारे में गवाही देते हैं? उनके व्यवहार निश्चित रूप से मनुष्य की धारणाओं, कल्पनाओं, नैतिकताओं, जमीर, और भावनाओं के अनुरूप होते हैं। इसके अलावा और क्या? (यह लोगों की स्वीकृति और आराधना को संचित करता है।) यह स्वीकृति और आराधना को संचित करता है; इसका यही परिणाम निकलता है। यदि हम इस पर परिणाम के परिप्रेक्ष्य से गौर करें, तो इस व्यवहार में वाकई गुमराह करने का गुण है। इस कार्य की प्रकृति के परिप्रेक्ष्य से, यह बेहद उद्देश्यपूर्ण है। उदाहरण के लिए, जब कोई व्यक्ति बीमार पड़ता है, यदि वह लोगों को गुमराह करना चाहे और यह चाहे कि लोग उसके बारे में ऊँचा सोचें, तो क्या वह अपनी दवा लोगों के सामने लेगा या उस समय लेगा जब कोई आस-पास नहीं होगा? (लोगों के सामने लेगा।) क्या इसके पीछे कोई इरादा नहीं है? इसका अर्थ है कि वह बेहद उद्देश्यपूर्ण है। इस तरह से दवा लेने का उसका असल लक्ष्य क्या है? वह ऐसा करके अपने लिए श्रेय लेना चाहता है, और तुम्हें बताना चाहता है : “देखो, अपना कर्तव्य निभाकर मैं इतना थक गया हूँ कि बीमार पड़ गया, और फिर भी मैंने अभी तक शिकायत नहीं की या एक भी आँसू नहीं बहाया। मैं अपनी बीमारी का उपचार कर रहा हूँ, लेकिन दवा लेते हुए भी मैं अपना कर्तव्य निभा सकता हूँ।” वास्तव में, उसे यह बीमारी अपना कर्तव्य निभाने के दौरान हुई थकान से या परमेश्वर में विश्वास रखने के बाद नहीं हुई। वह बस लोगों को यह संदेश देने के लिए तमाम तरह के व्यवहारों का उपयोग करने की कोशिश कर रहा है कि वह कष्ट सह रहा है और कीमत चुका रहा है, उसने इस परिवेश में इतना कष्ट सहा है लेकिन एक बार भी शिकायत नहीं की, और अभी भी वह इतनी सक्रियता से अपना कर्तव्य निभा रहा है, और उसमें कष्ट सहने की इच्छाशक्ति है। इससे लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से क्या बताया जा रहा है? यह कि परमेश्वर के प्रति उसकी वफादारी पर संदेह नहीं किया जा सकता। वह यही बताना चाहता है कि वह वफादार है और कीमत चुकाने को तैयार है। क्या यह चुपके से अपनी बड़ाई करना नहीं है? यदि उसके पास विवेक होता, तो वह इस मामले को सामने नहीं लाता, किसी के आस-पास नहीं होने पर वह परमेश्वर से प्रार्थना करता, अपना दृढ़संकल्प दिखाता और स्वयं को जानने की कोशिश करता, या वह बस सामान्य रूप से अपनी दवाएँ लेता रहता। संक्षेप में, वह लोगों को यह बताने के लिए बाहरी व्यवहारों का उपयोग नहीं करता कि वह कष्ट सह रहा है, वह वफादारी से अपना कर्तव्य निभा रहा है, और उसे इनाम दिया जाना चाहिए। वह ऐसे इरादे नहीं पालता। लेकिन, यदि वह इस तरह से काम करता है जो विशेष रूप से दिखावा है, वह चाहता है कि लोग उसके बारे में ऊँचा सोचें और उसकी प्रशंसा करें, तो यह बेहद उद्देश्यपूर्ण है। और उसका उद्देश्य क्या है? यह लोगों को प्रसारित उसके संदेश के माध्यम से अपनी बड़ाई करने और अपने बारे में गवाही देने का परिणाम प्राप्त करना है। यदि वह वफादार है, तो परमेश्वर को इसकी जानकारी होगी, फिर उसे दूसरे लोगों के सामने इसके बारे में डींगे क्यों हाँकनी चाहिए और इसके बारे में हर किसी को क्यों बताना चाहिए? हर किसी को इसके बारे में बताने के पीछे उसका लक्ष्य क्या है? यह लोगों को उसके बारे में ऊँचा सोचने को मजबूर करने के लिए है। यदि उसका यह लक्ष्य नहीं होता, तो वह बिना किसी इरादे के काम करता, और दूसरे लोग उसे ये काम करते हुए नहीं देखते। यदि वह बेहद उद्देश्यपूर्ण है, तो वह अपने कार्यों के पैमाने को मापेगा, और बात का बतंगड़ बनाएगा, समय और स्थान पर विचार करेगा, और तब तक इंतजार करेगा जब तक हर कोई आस-पास नहीं आ जाता और फिर किसी व्यक्ति को अपनी दवा लाने के लिए कहेगा, सार्वजनिक रूप से और बेहद जोरशोर से इसका खुलासा करेगा। इसका बेहद स्पष्ट उद्देश्य है। यदि उसका यह लक्ष्य नहीं होता, तो वह अपनी दवा लेने के लिए हरेक के आस-पास आने का इंतजार नहीं करता। कष्ट सहने और कीमत चुकाने की तुम्हारी इच्छा परमेश्वर के साथ तुम्हारे रिश्ते से संबंधित है; तुम्हें इसे स्पष्ट करने और दूसरे लोगों को बताने की जरूरत नहीं है। यदि तुम इसके बारे में दूसरे लोगों को स्पष्ट करते हो, तो वे तुम्हें क्या दे सकते हैं? उनकी सहानुभूति और प्रशंसा प्राप्त करने के अलावा, क्या और कुछ है जो तुम उनसे प्राप्त कर सकते हो? नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं है। अपना कर्तव्य निभाने के दौरान जब तुम थोड़ा कष्ट सहते हो और थोड़ी कीमत चुकाते हो, तो एक तरह से, तुम्हें ये चीजें करनी ही चाहिए और तुम ये करने के इच्छुक हो, और तुम अपना कर्तव्य निभा रहे हो। दूसरे संदर्भ में, वे ऐसी अभिव्यक्तियाँ हैं जो तुम्हें एक सृजित प्राणी के रूप में सृजनकर्ता के प्रति दिखानी चाहिए, तो तुम्हें उनका प्रचार क्यों करना चाहिए? जब तुम उनका प्रचार करते हो, तो वे घृणित हो जाती हैं; तो ऐसे व्यवहार की प्रकृति क्या हो जाती है? यह अपनी बड़ाई करने और अपने बारे में गवाही देने और दूसरे लोगों को गुमराह करने में बदल जाती है—इसकी प्रकृति बदल जाती है। उदाहरण के लिए, कुछ लोग सदैव दूसरों के सामने अपनी खोपड़ी खुजाते हैं, और जब कोई व्यक्ति उनसे इस बारे में पूछता है, तो वे कहते हैं : “मैंने करीब 10 दिन से अपने बाल नहीं धोए हैं—मैं एक के बाद एक सुसमाचार सुनने वालों से मुलाकात कर रहा हूँ। कल मैंने अपने बाल धोने के लिए कुछ समय निकालने की कोशिश की थी लेकिन तभी एक संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ता छानबीन करने के लिए आ गया, और मैं उसे छोड़कर जा नहीं सका।” वास्तव में, वे जानबूझकर अपने बाल नहीं धो रहे हैं ताकि लोगों को दिखा सकें कि वे अपना कर्तव्य निभाने में व्यस्त हैं। इसे स्वयं पर इतराना कहा जाता है। स्वयं पर इतराने का उनका क्या लक्ष्य है? यह लोगों को उनके बारे में ऊँचा सोचने पर मजबूर करना है और इस व्यवहार की प्रकृति स्वयं की बड़ाई करना और अपने बारे में गवाही देना है। ऐसी मामूली बात पर भी, वे इसे यूं ही गुजर जाने नहीं देते, वे अभी भी बात का बतंगड़ बनाना चाहते हैं, इसे एक मूल्यवान स्रोत में बदल देना चाहते हैं जिसका उपयोग वे दिखावा करने, अपनी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं को संतुष्ट करने, और लोगों को उनके बारे में ऊँचा सोचने और उनकी आराधना करने के लिए मजबूर करने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कर सकें। क्या यह शर्मनाक नहीं है? यह शर्मनाक और घृणित है। ये सब चीजें कहाँ से आती हैं? वे शैतान के भ्रष्ट स्वभाव से आती हैं, जिसमें दिखावा, कपट, दुष्टता और महत्वाकांक्षाएँ शामिल रहती हैं। इस तरह के लोग निरंतर अपनी छवि, रुतबे, और प्रतिष्ठा के बारे में सोचते रहते हैं। वे किसी भी चीज को नहीं छोड़ते, वे सदैव उन चीजों को पूंजी में, संसाधनों में बदलने के तरीके ढूंढते रहते हैं जिनका उपयोग वे लोगों को अपने बारे में ऊँचा सोचने और उनकी आराधना करने के लिए मजबूर करने में कर सकें। अंत में, जब उन्हें अपना लक्ष्य प्राप्त हो जाता है, तो वे ऐसे व्यवहार करते हैं जैसे उन्हें इसकी कोई परवाह नहीं है। यह भी एक प्रकार का बनावटी रूप है, और भीतर से, वे वास्तव में चोरी-छिपे जश्न मना रहे होते हैं और अपने आप से खुश होते हैं। क्या यह और भी घृणास्पद नहीं है? यह स्पष्ट है कि उनका रुतबा पहले ही बहुत ऊँचा है, हर कोई उनका सम्मान करता है, उनकी ओर उम्मीद भरी नजरों से देखता है, उनकी आज्ञा का पालन करता है, और उनका अनुसरण करता है, लेकिन ऊपरी तौर पर, वे अभी भी दिखावा करते हैं कि उन्हें रुतबा पसंद नहीं है। यह और भी पाखंडपूर्ण है। अंत में, वे हरेक को गुमराह करते हैं, और कहते हैं कि वे बिना किसी महत्वाकांक्षा के पैदा हुए थे, वे केवल काम करने वाले लोग हैं। वास्तव में, एक छोटी सी जाँच इसका खुलासा कर सकती है : यदि उनसे उनका रुतबा छीन लिया जाए, तो वे तुरंत अपना कर्तव्य निभाना बंद कर देंगे। यह इतना तीव्र होगा; एक छोटी सी चीज उनकी महत्वाकांक्षाओं का खुलासा कर देगी। ये वो व्यवहार और दृष्टिकोण हैं जो शैतान के भ्रष्ट स्वभाव के कारण लोगों में, और साथ-ही-साथ लोगों की अलग-अलग कुरूप अवस्थाओं में सामने आते हैं। इन अभिव्यक्तियों से, यह देखा जा सकता है कि लोग रुतबा पसंद करते हैं और दूसरे लोगों के दिलों में स्थान बनाना चाहते हैं। वे दूसरे लोगों के दिलों को काबू में करना चाहते हैं, दूसरे लोगों को जीतना चाहते हैं, और चाहते हैं कि दूसरे लोग उनकी आराधना करें, उनकी ओर उम्मीद भरी नजरों से देखें, और उनका अनुसरण भी करें, इस प्रकार वे दूसरे लोगों के दिलों में परमेश्वर का स्थान ले लेते हैं। यह ऐसी इच्छा है जो जन्म से हरेक व्यक्ति में होती है। और इससे क्या साबित होता है? यह कि लोगों के जीवन में जो चीज उन्हें नियंत्रित करती है वह है शैतान का स्वभाव। भ्रष्ट मानवजाति में, एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जिसे रुतबा पसंद ना हो—मूर्ख लोग भी अधिकारी बनना चाहते हैं, और मंदबुद्धि भी दूसरों को नियंत्रित करना चाहते हैं। हरेक को रुतबा पसंद है, और हरेक रुतबा पाने की खातिर काम करता है, और रुतबे के लिए परमेश्वर से प्रतिस्पर्धा करता है। हरेक व्यक्ति के इस तरह के व्यवहार और दृष्टिकोण होते हैं, और साथ ही इस तरह का स्वभाव भी होता है। इसलिए, जब हम मसीह-विरोधियों को अपनी बड़ाई करते और अपने बारे में गवाही देते हुए उजागर करते हैं, तो हम प्रत्येक व्यक्ति के भ्रष्ट स्वभावों को भी उजागर कर रहे होते हैं। इसे उजागर करने का क्या उद्देश्य है? इसका उद्देश्य लोगों को यह समझाना है कि अपनी बड़ाई करने और अपने बारे में गवाही देने के ये व्यवहार और अभिव्यक्तियाँ वैसी नहीं हैं जो सामान्य इंसान में होनी चाहिए, बल्कि ये भ्रष्ट स्वभावों, और नकारात्मक, घृणित कार्यों का खुलासा हैं। अपनी बड़ाई करने और अपने बारे में गवाही देने के तुम्हारे तरीके कितने भी तेजतर्रार क्यों ना हों, और तुम्हारी करतूतें कितनी भी गुप्त क्यों ना हों, इनमें से कोई भी चीज ऐसी नहीं है जो सामान्य इंसान के पास होनी चाहिए, और परमेश्वर ऐसी सभी चीजों से घृणा करता है, उनकी निंदा करता है, और उन्हें शापित करता है। इसलिए, लोगों को ये सभी दृष्टिकोण त्याग देने चाहिए। अपनी बड़ाई करना और अपने बारे में गवाही देना ऐसी सहजवृत्ति नहीं है जिसे परमेश्वर ने इंसान के लिए बनाया हो—बल्कि, यह शैतान के भ्रष्ट स्वभाव के सर्वाधिक विशिष्ट खुलासों में से एक है, और इससे भी अधिक, यह शैतान के भ्रष्ट सार के सर्वाधिक विशिष्ट खास स्वभावों और दृष्टिकोणों में से एक है।
क्या कुछ विशिष्ट उदाहरणों के बारे में संगति करना तुम लोगों के लिए अपनी बड़ाई करने और अपने बारे में गवाही देने की विभिन्न अभिव्यक्तियों को समझने के संदर्भ में मददगार है, चाहे वे बोलने और कार्य करने के स्पष्ट या और अधिक छिपे हुए तरीके ही क्यों ना हों। (हाँ, यह मददगार है।) इससे क्या मदद मिलती है? यह स्वयं को और दूसरे लोगों को पहचानने में मदद करता है। मैं जिन दशाओं, अभिव्यक्तियों और खुलासों की बात कर रहा हूँ, ये सब वो चीजें हैं जिनका प्रदर्शन तुम लोग अक्सर करते हो, और तुम लोगों को इन चीजों से अपनी दशाओं का मिलान करके तुलना करनी चाहिए, यह समझना चाहिए कि तुम वास्तव में क्या हो, जीने के लिए तुम जिस जीवन पर निर्भर हो और भरोसा करते हो वो वास्तव में क्या है, इस जीवन में वास्तव में क्या समाहित है, ये स्वभाव वास्तव में लोगों को क्या करने पर मजबूर करते हैं, और वे लोगों को हकीकत में कैसे जीने देते हैं। इन विशिष्ट व्यवहारों, अभिव्यक्तियों, दृष्टिकोणों, और स्वभावों को समझकर, लोग धीरे-धीरे गहन विश्लेषण कर सकते हैं, और स्वयं को, अपने सार को, और परमेश्वर का विरोध करने वाली अपनी प्रकृति को जान सकते हैं, और इस प्रकार इन दृष्टिकोणों का त्याग कर सकते हैं, परमेश्वर के समक्ष आ सकते हैं और सही अर्थों में स्वयं को पूरी तरह बदल सकते हैं, और सत्य के अनुसार अभ्यास कर सकते हैं और हकीकत में इसे जी सकते हैं। कुछ लोग कहते हैं : “चूँकि अपनी बड़ाई करना और अपने बारे में गवाही देना एक ऐसा दृष्टिकोण है जो सत्य के अनुरूप नहीं है और जो शैतान और मसीह-विरोधियों का दृष्टिकोण है; यदि मैं कुछ नहीं कहता या कुछ नहीं करता हूँ, तो क्या इसका यह अर्थ नहीं है कि मैं अपनी बड़ाई नहीं कर रहा हूँ या अपने बारे में गवाही नहीं दे रहा हूँ?” यह सही नहीं है। तो कार्य करने का कौन-सा तरीका खुद को ऊँचा उठाना और अपने बारे में गवाही देना नहीं है? अगर तुम किसी मामले के संबंध में दिखावा करते और अपने बारे में गवाही देते हो, तो तुम यह परिणाम प्राप्त करोगे कि, कुछ लोग तुम्हारे बारे में ऊँची राय बनाएँगे और तुम्हारी पूजा करेंगे। लेकिन अगर तुम उसी मामले के संबंध में खुद को उजागर कर देते हो, और अपने आत्मज्ञान को साझा करते हो, तो उसकी प्रकृति अलग होती है। क्या यह सच नहीं है? अपने आत्मज्ञान के बारे में बात करने के लिए खुद को पूरी तरह उजागर कर देना, कुछ ऐसा है जो साधारण मानवता में होनी चाहिए। यह एक सकारात्मक चीज है। अगर तुम वास्तव में खुद को जानते हो और अपनी अवस्था के बारे में सही, वास्तविक और सटीक ढंग से बोलते हो; अगर तुम उस ज्ञान के बारे में बोलते हो जो पूरी तरह से परमेश्वर के वचनों पर आधारित है; अगर तुम्हें सुनने वाले इससे सीखते और लाभान्वित होते हैं; और अगर तुम परमेश्वर के कार्य की गवाही देते हो और उसे महिमामंडित करते हो, तो यह परमेश्वर के बारे में गवाही देना है। अगर खुद को पूरी तरह उजागर करने के माध्यम से, तुम अपनी खूबियों के बारे में खूब बोलते हो और इस बारे में कि तुमने कैसे कष्ट उठाया, और कैसे कीमत चुकाई और अपनी गवाही में कैसे दृढ़ता से खड़े रहे, और इसके परिणामस्वरूप लोग तुम्हारे बारे में ऊँची राय रखते हैं और तुम्हारी पूजा करते हैं, तो यह अपने बारे में गवाही देना है। तुम्हें इन दो व्यवहारों के बीच अंतर बता पाने में समर्थ होना चाहिए। उदाहरण के लिए, यह बताना परमेश्वर की बड़ाई करना और उसके बारे में गवाही देना है कि परीक्षणों का सामना करते समय तुम कितने कमजोर और नकारात्मक थे, और कैसे प्रार्थना करने और सत्य खोजने के बाद तुमने अंततः परमेश्वर का इरादा समझा, आस्था प्राप्त की और अपनी गवाही में दृढ़ रहे। यह दिखावा करना और अपने बारे में गवाही देना बिल्कुल नहीं है। इसलिए, तुम दिखावा कर रहे हो और अपने बारे में गवाही दे रहे हो या नहीं, यह मुख्य रूप से इस बात पर निर्भर करता है कि तुम अपने वास्तविक अनुभवों के बारे में बात कर रहे हो या नहीं, और इस पर भी कि क्या तुम परमेश्वर के बारे में गवाही देने का परिणाम हासिल करते हो; यह भी देखना आवश्यक है कि जब तुम अपनी अनुभवात्मक गवाही के बारे में बात करते हो, तो तुम्हारे इरादे और उद्देश्य क्या हैं। ऐसा करने से यह पहचानना आसान हो जाएगा कि तुम किस प्रकार के व्यवहार में लिप्त हो। अगर तुम गवाही देते समय सही इरादे रखते हो, तो भले ही लोग तुम्हारे बारे में ऊँची राय रखते हों और तुम्हारी पूजा करते हों, यह वास्तव में कोई समस्या नहीं है। अगर तुम्हारा इरादा गलत है, तो भले ही कोई तुम्हारे बारे में ऊँची राय न रखता हो या तुम्हारी पूजा न करता हो, फिर भी यह एक समस्या है—और अगर लोग तुम्हारे बारे में ऊँची राय रखते हैं और तुम्हारी पूजा करते हैं, तो यह और भी बड़ी समस्या है। इसलिए, यह निर्धारित करने के लिए कि कोई व्यक्ति अपनी बड़ाई कर रहा और अपने बारे में गवाही दे रहा है या नहीं, तुम सिर्फ नतीजों पर निर्भर नहीं रह सकते। तुम्हें मुख्य रूप से उनके इरादे को देखना चाहिए; इन दो व्यवहारों के बीच अंतर करने का सही तरीका इरादों पर आधारित है। अगर तुम सिर्फ नतीजों के आधार पर इसे पहचानने की कोशिश करते हो, तो संभव है कि अच्छे लोगों पर गलत ढंग से दोषारोपण कर दोगे। कुछ लोग विशेष रूप से सच्ची गवाही साझा करते हैं, और इसके चलते कुछ अन्य लोग उनके बारे में ऊँची राय रखते हैं और उनकी पूजा करते हैं—क्या तुम कह सकते हो कि वे लोग अपने बारे में गवाही दे रहे थे? नहीं, तुम नहीं कह सकते। उन लोगों में कोई समस्या नहीं हैं, जो गवाही वे साझा करते हैं और जो कर्तव्य वे करते हैं, वे दूसरे लोगों के लिए लाभकारी होते हैं, और सिर्फ विकृत समझ रखने वाले बेवकूफ और अज्ञानी लोग ही दूसरे लोगों की आराधना करते हैं। वक्ता के इरादे को देखना यह पहचानने की कुंजी है कि लोग अपनी बड़ाई कर रहे हैं या नहीं और अपने बारे में गवाही दे रहे हैं या नहीं। अगर तुम्हारा इरादा सभी को यह दिखाना है कि तुम्हारी भ्रष्टता कैसे उजागर हुई, और तुम कैसे बदल गए हो, और दूसरों को इससे लाभ उठाने में समर्थ बनाना है, तो तुम्हारे शब्द गंभीर और सच्चे हैं, और तथ्यों के अनुरूप हैं। ऐसे इरादे सही हैं, और तुम दिखावा नहीं कर रहे या अपने बारे में गवाही नहीं दे रहे। अगर तुम्हारा इरादा सभी को यह दिखाना है कि तुम्हारे पास वास्तविक अनुभव हैं, और तुम बदल गए हो और तुम्हारे पास सत्य वास्तविकता है, ताकि वे तुम्हारे बारे में ऊंचा सोचें और तुम्हारी पूजा करें, तो ये इरादे गलत हैं। यह दिखावा करना और अपने बारे में गवाही देना है। अगर तुम जिस अनुभवात्मक गवाही की बात करते हो वह झूठी है, उसमें मिलावट है और यह लोगों की आँखों पर पट्टी बांधने के इरादे से है, कि वे तुम्हारी वास्तविक अवस्था न देख सकें, और यह तुम्हारे इरादे, भ्रष्टता, कमजोरी या नकारात्मकता दूसरों के सामने प्रकट होने से रोकने के इरादे से है, तो ऐसे शब्द धोखा देने और गुमराह करने वाले हैं। यह झूठी गवाही है, यह परमेश्वर से चालाकी करना और परमेश्वर को लज्जित करता है, और यह वह है जिससे परमेश्वर सबसे ज्यादा नफरत करता है। इन अवस्थाओं के बीच स्पष्ट अंतर है, और इन सबको इरादे के आधार पर पहचाना जा सकता है। यदि तुम दूसरे लोगों को पहचान सकते हो, तो तुम उनकी दशाओं को समझ पाओगे, और फिर तुम स्वयं को भी पहचान पाओगे, और अपनी दशाओं को समझ पाओगे।
इन सभी प्रवचनों को सुनने के बाद, कुछ लोग अभी भी पहले की भांति ही अपनी बड़ाई करना और अपने बारे में गवाही देना जारी रखते हैं। तुम्हें ऐसे लोगों के प्रति कैसा दृष्टिकोण रखना चाहिए? उन्हें पहचानो, उन्हें उजागर करो, और उनसे दूरी बनाकर रखो। यदि संदर्भ के रूप में उनके शब्दों का मूल्य है, तो तुम उन शब्दों को ग्रहण कर सकते हो, लेकिन यदि उनका जरा भी कोई संदर्भात्मक मूल्य नहीं है, तो तुम्हें उनको त्याग देना चाहिए और उनसे प्रभावित नहीं होना चाहिए। यदि ऐसे लोग अगुआ हैं, तो उन्हें उजागर करो, उनकी रिपोर्ट करो, उनका त्याग करो, और उनकी अगुआई स्वीकार मत करो। यह कहो : “तुम सदैव अपनी बड़ाई करते हो और अपने बारे में गवाही देते हो, तुम सदैव हमें संवेदनहीन बना देते हो और हमें नियंत्रित करते हो, और तुम हमें गुमराह करते हो। हम सभी परमेश्वर से दूर हो गए हैं, और हमारे दिलों में भी परमेश्वर नहीं है—केवल तुम ही हो। अब हम तुम्हारा सामना करेंगे और तुम्हारा त्याग करेंगे।” तुम्हें इस तरीके से काम करना है, तुम्हें एक-दूसरे की निगरानी करनी है, स्वयं की और दूसरे लोगों दोनों की निगरानी करनी है। क्या तुम लोग दूसरों के सामने अक्सर अपनी खोपड़ी नहीं खुजाते हो, या लोगों को यह नहीं बताते हो कि तुमने कई बार भोजन छोड़ दिया जबकि वास्तव में तुम उनकी पीठ पीछे खूब सारा नाश्ता खा रहे थे? जब कभीपरिवेश ऐसा नहीं करने देता, तो लोगों के लिए यह सामान्य बात है कि वे काम में बहुत व्यस्त होने के कारण एक महीने तक स्नान नहीं करते, या किसी दिन स्नान करना छोड़ देते हैं या अपने बाल धोना छोड़ देते हैं। ये सब सामान्य घटनाएँ हैं, और वो कीमतें हैं जो लोगों को चुकानी चाहिए। ये कोई बड़ी बातें नहीं हैं—बात का बतंगड़ मत बनाओ। जब कोई व्यक्ति वास्तव में तिल का ताड़ बना देता है, तो वह जानबूझकर दूसरों के सामने अपनी खोपड़ी खुजाएगा और कहेगा कि उसने कई दिनों से अपने बाल नहीं धोए हैं, जानबूझकर दूसरे लोगों के सामने दवा लेगा, या दिखावा करेगा कि वो थका हुआ है और उसकी हालत बहुत खराब है; ऐसे में, हर किसी को उसे उजागर करने के लिए खड़ा होना चाहिए और उसके प्रति नाराजगी जतानी चाहिए। इस तरह से, इस बेशर्म व्यक्ति को रोका जा सकता है। वह पाखंड कर रहा है, दूसरे लोगों को दिखाने के लिए स्वयं का बखान कर रहा है, और फिर भी वह अपने व्यवहार के लिए लोगों से स्वीकृति पाने की कोशिश कर रहा है, ताकि दूसरे लोग उसकी तरफ ईर्ष्या, प्रशंसा और सराहना की नजर से देखें। क्या वह लोगों को धोखा नहीं दे रहा है? ये दृष्टिकोण वैसे ही हैं जैसे फरीसी गलियों के नुक्कड़ पर धर्मग्रंथ लेकर परमेश्वर से प्रार्थना करते थे। वे इससे अलग नहीं हैं। जैसे ही कोई बताता है कि फरीसी हाथों में धर्मग्रंथ लिए हुए गलियों के नुक्कड़ पर धर्मग्रंथ पढ़ रहे हैं या प्रार्थना कर रहे हैं, तो वह सोचता है, “यह बहुत शर्मनाक है, मैं वैसा कुछ नहीं करूंगा।” फिर भी वह दूसरों के सामने जानबूझकर दवा लेता है या अपनी खोपड़ी खुजाता है, इस बात से अनजान कि वह जो कुछ कर रहा है वो समान प्रकृति का है। वह इसे समझ नहीं सकता है। बाद में, जब तुम्हारे सामने ऐसे मामले आते हैं, तो तुम्हें ऐसे लोगों को पहचानना और उजागर करना सीखना चाहिए, उनके सभी पाखंड उजागर करने चाहिए—तब वह इस तरीके से कार्य करने की हिम्मत नहीं करेगा। तुम्हें उस पर कुछ दबाव बनाना चाहिए, और उसे यह सोचने पर मजबूर करना चाहिए कि ऐसे दृष्टिकोण, व्यवहार, और स्वभाव शर्मनाक हैं और सभी इनसे बहुत अधिक घृणा करते हैं। यदि लोग उनसे इतनी घृणा करते हैं, तो क्या परमेश्वर उनसे घृणा करता है? वह उनसे और भी ज्यादा घृणा करता है। स्वाभाविक तौर पर, तुम कुछ नहीं हो। तुम पहले से ही काफी दयनीय हो, भले ही तुम अपनी बड़ाई ना करो और अपने बारे में गवाही ना दो, यदि तुम इतने दयनीय हो और अभी भी अपनी बड़ाई करते हो और अपने बारे में गवाही देते हो, तो क्या लोगों को इससे घृणा नहीं होगी? तुमने कभी भी वफादारी से अपना कर्तव्य नहीं निभाया है, तुमने कभी भी सिद्धांतों के अनुसार काम नहीं किया है, और तुमने किसी भी तरह से परमेश्वर की अपेक्षाओं को पूरा नहीं किया है। तुम पहले से ही परेशानी में हो, ऐसे में अगर तुम अपनी बड़ाई करते हो और अपने बारे में गवाही देते हो, तो क्या तुम्हारे लिए चीजें और भी कठिन नहीं हो जाएंगी? तुम परमेश्वर की अपेक्षाओं से और भी दूर हो जाओगे, और उद्धार पाने के मानक तक पहुंचने की दूरी और भी बढ़ जाएगी।
मुझे बताओ, अपनी बड़ाई करने और अपने बारे में गवाही देने की समस्या की प्रकृति क्या है? शैतान ने लोगों को इस हद तक भ्रष्ट कर दिया है; क्या उनकी मानवता और सूझ-बूझ अब सामान्य नहीं रह गई हैं? क्या तुम लोगों ने अपने कर्तव्यों को निभाते हुए अपनी बड़ाई करने और अपने बारे में गवाही देने की अभिव्यक्तियों को दर्शाया है? इस विषय पर कौन बोल सकता है? (मैंने ऐसी अभिव्यक्ति को दर्शाया है। जब मैं देर रात तक अपना कर्तव्य निभा रहा होता हूँ, तो मैं इकट्ठा होने वाले समूह को एक संदेश भेजता हूँ ताकि दूसरे लोग जान सकें कि मैं इस समय तक भी सोया नहीं हूँ, और वे विचार करें कि मैं कष्ट सह सकता हूँ और कीमत चुका सकता हूँ। मैंने यह स्वयं किया है और दूसरे लोगों को भी अक्सर ऐसा करते देखा है।) ऐसा लगता है कि ऐसे लोग पर्याप्त संख्या में हैं और वे अल्पसंख्यक नहीं हैं। क्या ऐसा काम करना अनुचित नहीं है? यह कितनी मूर्खतापूर्ण बात है! और कोई कुछ कहना चाहता है? (मैंने ऐसी अभिव्यक्ति दर्शायी है। जब मैं देखता हूँ कि कलीसिया के काम में कुछ समस्याएँ हैं, तो मैं उनका हल करने में लग जाता हूँ, जिससे लोगों को यह गलतफहमी होती है कि मैं बहुत उत्साही हूँ, लेकिन अधिकांश समय मैं बोलने के बाद वास्तव में कुछ नहीं करता। मेरे कार्यों में कोई प्रगति नहीं होती और वे अपर्याप्त होते हैं, और अंत में समस्या का कोई हल नहीं निकलता, और मामला अनसुलझा ही रह जाता है। मैं अपने सतही उत्साह का उपयोग लोगों को बहकाने और इस तथ्य को छिपाने के लिए करता हूँ कि मैं सत्य का अभ्यास नहीं करता हूँ।) तुम खोखले शब्द बोल रहे हो, बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हो, और कोई वास्तविक कार्रवाई नहीं कर रहे हो। तुम लोगों को अपना जोश दिखाते हो, मानो तुम सत्य का अभ्यास कर रहे हो, लेकिन जब कुछ करने का समय आता है, तो तुम उसे करने के लिए गंभीरता से तैयार नहीं होते और केवल नारे लगाते हो। मूलतः, तुम एक धमाके के साथ शुरुआत करते हो और फुसफुसाहट के साथ ख़त्म करते हो, जिससे बात अधूरी रह जाती है। ऐसी अभिव्यक्ति भी गुमराह करने वाली है। और भविष्य में, जब ऐसा कुछ तुम्हारे साथ घटित होगा, तो क्या तुम इस मामले में समझदारी दिखाओगे? (अब मैं इसे कुछ-कुछ समझ सकता हूँ।) तो क्या तुम्हें दिशा का बोध है? यदि ऐसा कुछ तुम्हारे साथ दोबारा होता है, तो तुम दो अलग-अलग कदम उठा सकते हो : पहला कदम यह आकलन करना है कि क्या तुम वास्तव में इस मामले का ध्यान रख सकते हो या नहीं। यदि तुम रख सकते हो, तो तुम्हें इसे गंभीरता से और व्यावहारिक रूप से करना होगा। दूसरा कदम है परमेश्वर के समक्ष प्रार्थना करना और उसे इस मामले में तुम्हारा मार्गदर्शन करने के लिए कहना, और जब तुम कार्रवाई करते हो, तो तुम्हें हरेक के पर्यवेक्षण को भी स्वीकारना होगा और साथ ही इस काम को पूरा करने के लिए हरेक के साथ सहयोग करने और एकजुट होकर काम करने का संकल्प भी लेना होगा। यदि तुम चरणबद्ध तरीके से चीजें करना सीख लेते हो और व्यावहारिक ढंग से काम करते हो, तो तुम इस समस्या को हल कर लोगे। यदि तुम सदैव खोखले शब्द बोलते हो, बड़ी-बड़ी बातें करते हो, मूर्खतापूर्ण ढंग से बोलते हो, कुछ काम करते समय सतही तौर पर खानापूर्ति करते हो, और बिलकुल भी व्यावहारिक नहीं हो, तो तुम धूर्त हो। तुम यह देख पा रहे हो कि कलीसिया के काम में समस्या है और तुम यह सुझाव देने में सक्षम हो कि समस्या को कैसे हल किया जाना चाहिए, यह साबित करता है कि तुममें क्षमता हो सकती है और इस मामले को हल करने के लिए तुम्हारे पास कार्यात्मक योग्यताएँ हो सकती हैं। बात सिर्फ इतनी है कि तुम्हारे स्वभाव में समस्या है—तुम आवेगपूर्ण तरीके से कार्य करते हो, कीमत चुकाने के लिए तैयार नहीं हो, और केवल खोखले नारे लगाने पर ध्यान केंद्रित करते हो। कभी तुम्हें किसी समस्या का पता चले, तो सबसे पहले देखो कि तुम इसे हल कर सकते हो या नहीं, और यदि तुम हल कर सकते हो, तो इस कार्य को हाथ में लो और इसे पूरा करके ही दम लो, समस्या का हल करो, अपनी जिम्मेदारी निभाओ और उसका लेखा-जोखा परमेश्वर को दो। अपने कर्तव्य निभाने और व्यावहारिक तरीके से कार्य और आचरण करने का यही अर्थ है। यदि तुम इस समस्या का हल नहीं कर सकते हो, तो अपने अगुआ को इसकी रिपोर्ट करो और पता लगाओ कि इस मामले को संभालने के लिए कौन सा व्यक्ति सर्वाधिक उपयुक्त है। सबसे पहले, तुम्हें अपनी जिम्मेदारी पूरी करनी होगी; इस तरह, तुम अपना कर्तव्य निभा पाओगे और सही स्थान पर खड़े हो पाओगे। तुम्हें समस्या पता लगने के बाद, अगर तुम इसे हल नहीं कर सकते हो लेकिन इसकी रिपोर्ट करने में समर्थ हो, तो तुमने अपनी पहली जिम्मेदारी पूरी कर दी है। यदि तुम्हें लगता है कि यही वो कर्तव्य है जो तुम्हें निभाना चाहिए और तुम काम करने को तैयार हो, तो तुम्हें अपने भाई-बहनों से मदद मांगनी चाहिए; सबसे पहले सिद्धांतों के बारे में संगति करो और योजना बनाओ, और फिर इस मामले को पूरा करने के लिए सौहार्दपूर्ण तरीके से मिलकर काम करो। यह तुम्हारी दूसरी जिम्मेदारी है। यदि तुम इन दोनों जिम्मेदारियों को निभा सकते हो, तो तुमने अपने कर्तव्यों को अच्छे से निभाया होगा, और तुम योग्य सृजित प्राणी बन जाओगे। लोगों के कर्तव्यों में इन पहलुओं से अधिक कुछ नहीं होता। यदि तुम उन चीजों को संभाल सकते हो जिन्हें तुम देखते हो और जिन्हें तुम करने में समर्थ हो, और अपने कर्तव्यों को अच्छे ढंग से निभाते हो, तो तुम परमेश्वर के इरादो के अनुरूप हो।
क्या अपनी बड़ाई करने और अपने बारे में गवाही देने की कोई और अभिव्यक्तियाँ हैं? (मैंने हाल ही में ऐसी अभिव्यक्ति दिखाई थी। जब मैं अपने कर्तव्य निभा रहा था, मैंने स्वयं को सारा दिन कार्यों में व्यस्त रखा, और कलीसिया में कुछ समस्याएँ थीं जिन्हें मैंने व्यावहारिक रूप से नहीं सुलझाया और इसके बजाय उन्हें केवल अनमने ढंग से निपटाया। हालाँकि, कुछ लोगों ने देखा कि मैं हर रोज अपना कर्तव्य निभाने में व्यस्त था, इसलिए उन्होंने मेरे बारे में ऊँचा सोचा और मेरी प्रशंसा की। क्या इस व्यवहार में भी अपनी बड़ाई करने और अपने बारे में गवाही देने के तत्व शामिल नहीं हैं? मैं इस मामले को स्पष्ट रूप से नहीं समझ सकता हूँ और हमेशा थोड़ा बेबस महसूस करता हूँ।) क्या यह अपने बारे में गवाही देना है? यदि तुम अपने कर्तव्य निभाने में व्यस्त हो, कष्ट सहन करने में समर्थ हो और शिकायत नहीं करते हो, और परमेश्वर के चुने हुए लोग तुम्हारे बारे में ऊँचा सोचते हैं और तुम्हारी प्रशंसा करते हैं, तो यह सामान्य बात है और अपने बारे में गवाही देने से ऐसा नहीं होता है। तुम बस अपने कर्तव्य निभाने में व्यस्त हो और स्वयं का बखान या दिखावा नहीं कर रहे हो, और तुम कष्ट सहने के अपने अनुभवों के बारे में बात नहीं करते हो, इसलिए यह अपने बारे में गवाही देने से संबंधित नहीं है। हालाँकि, अनेक लोग अपने कर्तव्य निभाने के दौरान सतही तौर पर व्यस्त नजर आते हैं, जबकि वास्तव में, उनके काम के कोई परिणाम नहीं निकले हैं और उन्होंने किसी भी समस्या को नहीं सुलझाया है। क्या परमेश्वर इस तरह व्यस्त रहने वाले लोगों को स्वीकारता है? यदि तुम उन साधारण समस्याओं के साथ सारा दिन व्यस्त हो जिन्हें सत्य को समझने वाले और सिद्धांतों की समझ रखने वाले लोग दो घंटे में हल कर सकते हैं, और तुम बहुत थका हुआ महसूस करते हो और तुम्हें लगता है कि तुमने बहुत कष्ट सहा है, तो क्या तुम ना केवल स्वयं को बिना किसी काम के व्यस्त रखे हो, बल्कि बिना किसी उद्देश्य के इधर-उधर भटक रहे हो? क्या तुम इस तरह से अपने कर्तव्य निभाते हुए परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त कर सकते हो? (नहीं।) तुम बेहद अकुशलता से काम कर रहे हो! इस मामले में, तुम्हें सत्य सिद्धांतों की तलाश करनी चाहिए। कभी-कभी लोगों के पास बहुत कुछ होता है और वे सही में व्यस्त होते हैं, जो सामान्य बात है, लेकिन कभी-कभी उनके पास करने को बहुत कुछ नहीं होता है और फिर भी वे व्यस्त होते हैं। इसका क्या कारण है? एक कारण यह है कि तुम्हारा काम ठीक से नियोजित और व्यवस्थित नहीं है। तुम्हें काम के प्रमुख कर्तव्यों को समझना चाहिए, और उन्हें ठीक से नियोजित और व्यवस्थित करना चाहिए और अपने कर्तव्यों को अधिक कुशलता से निभाना चाहिए। बिना किसी उद्देश्य के भटकने और व्यर्थ में स्वयं को व्यस्त रखने को परमेश्वर स्वीकृति नहीं देगा। एक दूसरी स्थिति वह है जब तुम्हारा इरादा लोगों को यह सोचने पर मजबूर करने का होता है कि तुम व्यस्त हो, तुम दूसरों को धोखा देने के लिए इस उपाय और झूठे दिखावे का उपयोग करते हो। कुछ अगुआ और कार्यकर्ता जब इकट्ठा होते हैं तो वे वास्तविक समस्याओं को हल नहीं करते हैं और इसके बजाय बेतुकी टिप्पणियाँ करते हैं, लगातार विषय से भटक जाते हैं और प्रमुख मुद्दे पर आए बिना बोलते रहते हैं। कुशलता या प्रगति के लिए प्रयास किए बिना व्यस्त रहने के इस तरीके को बिना काम स्वयं को व्यस्त रखना कहा जाता है। और यह किस प्रकार का रवैया है? यह दिल लगाकर काम नहीं करना, अनमना होना, समय नष्ट करना, और अंत में अभी भी यह सोचना है, “इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि दूसरे लोग क्या सोचते हैं या परमेश्वर क्या सोचता है, जब तक मेरा जमीर एकदम साफ़ है मैं ठीक रहूँगा। कम-से-कम मैं बेकार नहीं बैठा हूँ, कम-से-कम मुझे मुफ्त में दोपहर का भोजन तो नहीं मिल रहा है।” सतही तौर पर, ऐसा लग सकता है कि तुम बेकार नहीं बैठे हो, तुम्हें मुफ्त में दोपहर का भोजन नहीं मिल रहा है, हर रोज या तो तुम सभाओं में जा रहे हो या अपना कर्तव्य निभा रहे हो, और तुम जो कुछ भी कर रहे हो वो कलीसिया के काम से संबंधित है, लेकिन असलियत में, मन की गहराइयों में, तुम्हें पता है कि तुम जो काम कर रहे हो वे उपयोगी नहीं हैं या उनका कोई मूल्य नहीं है, और तुम दिल लगाकर काम नहीं कर रहे हो। यह समस्याजनक है। तो, तुम कितने अच्छे ढंग से अपना कर्तव्य निभा रहे हो? तुम्हें अच्छे से पता है कि तुममें समस्या है, लेकिन तुम इसे हल करने के लिए सत्य की तलाश नहीं करते हो—यह अनमना, संवेदनहीन और अड़ियल होना है। अपने कर्तव्य निभाते समय अनमना होने और टालमटोल करने का क्या परिणाम होता है? तुम्हें निश्चित रूप से परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त नहीं होगी, क्योंकि तुम सिद्धांतों के अनुसार या कुशलता से काम नहीं करते हो, और इस तरह से अपना कर्तव्य निभाते हो मानो कि तुम मजदूरी कर रहे हो। यदि तुम्हारी काट-छाँट की गई है और मदद की गई है लेकिन अभी भी तुम पश्चात्ताप नहीं करते हो, और शिकायतें भी करते हो और नकारात्मक होते हो और काम करते समय ढीले पड़ जाते हो, तो तुम्हें केवल हटाया ही जा सकता है। इसलिए, यदि तुम अनमना होने की समस्या को हल करने के लिए सत्य का अनुसरण नहीं करते हो, तो चाहे तुम कितने भी लंबे समय तक अपने कर्तव्य निभा लो इसका कोई फायदा नहीं होगा, और तुम अपने कर्तव्यों को वफादारी से निभाने के मानकों पर खरे नहीं उतरोगे। इस समस्या पर गौर करना उचित है। परमेश्वर यह अपेक्षा करता है कि लोग सिद्धांतों के साथ काम करें, वे सत्य का अभ्यास करें, और ईमानदार बनें। यदि कोई व्यक्ति इन सत्यों में प्रवेश कर सकता है, तो उसे अपने कर्तव्य निभाने के परिणाम प्राप्त होंगे, और कम-से-कम वह सिद्धांतों के साथ काम करने में सक्षम हो पाएगा। व्यक्ति की कुशलता बढ़ाने का आधार और कुंजी इसी में है। यदि किसी व्यक्ति के पास सत्य सिद्धांत नहीं हैं, तो चाहे वह कितनी भी व्यस्तता से अपने कर्तव्य निभा ले और चाहे हर रोज वह कितनी भी देर तक काम कर ले, उसे सही परिणाम नहीं मिलेंगे। यह आकलन करते समय कि लोग अपने कर्तव्यों को वफादारी से निभाते हैं या नहीं, परमेश्वर यह नहीं देखता कि वे अपने कर्तव्य कितने समय तक निभाते हैं, बल्कि वह उनके व्यावहारिक परिणामों और उनकी कार्यकुशलता को देखता है, और यह भी देखता है कि वे सिद्धांतों के साथ और सत्य के अनुसार कार्य कर रहे हैं या नहीं। सरल शब्दों में कहें तो वह यह देखता है कि लोगों के पास अपने कर्तव्यों को निभाने में सच्ची अनुभवजन्य गवाही और जीवन प्रवेश है या नहीं। यदि लोगों के पास कोई सत्य वास्तविकता नहीं है, तो वे केवल मजूदर हैं, लेकिन यदि वे सत्य का अभ्यास कर सकते हैं और सिद्धांतों के साथ काम कर सकते हैं, तो यह लक्षण है कि वे परमेश्वर के लोगों के रूप में अपने कर्तव्य निभा रहे हैं। इस तुलना के माध्यम से, यह समझा जा सकता है कि उन लोगों को ही परमेश्वर के लोग समझा जा सकता है जो अपने कर्तव्य निभाने के मानकों पर खरे उतरते हैं। जो उन मानकों पर खरे नहीं उतरते, जो हमेशा अनमने रहते हैं, वे मजदूर हैं। यदि कोई व्यक्ति सत्य को समझ सकता है और सिद्धांतों के साथ काम कर सकता है, तो उसे कोई भी कर्तव्य निभाने में समस्या नहीं होगी, और जब तक वह कुछ समय के लिए प्रयास करता रहेगा, तो वह अंततः अपने कर्तव्य निभाने के मानकों पर खरा उतरेगा। जहाँ तक उन लोगों का संबंध है जिनकी काबिलियत बहुत कम है या जो हमेशा अनमने रहते हैं, तो उनके लिए अपेक्षाओं को पूरा करना कठिन होगा, और अपने कर्तव्य निभाना उनके लिए मजदूरी करने से अधिक कुछ नहीं है। जहाँ तक भ्रमित लोगों, मूर्खों और कम इंसानियत वाले लोगों का संबंध है जो उचित काम नहीं करते, चाहे जिस तरह से भी संगति की जाए सत्य को स्वीकार नहीं करते और लापरवाही से काम करना जारी रखते हैं, उन्हें केवल हटाया ही जा सकता है और उन्हें परमेश्वर में अपनी इच्छानुसार विश्वास करने के लिए छोड़ दिया जा सकता है। इसलिए, यदि कोई व्यक्ति सिद्धांतों के साथ अपना कर्तव्य नहीं निभाता है और बिना किसी उद्देश्य के इधर-उधर भटक रहा है और हर रोज व्यर्थ में स्वयं को व्यस्त रखता है, तो उसे इस समस्या का हल करने के लिए शीघ्रता से सत्य की तलाश करनी चाहिए और सिद्धांतों के साथ काम करना चाहिए। उसे सामान्य रूप से हर रोज अपना कर्तव्य निभाने लायक होना चाहिए और केवल लंबे समय तक काम करने पर संतुष्ट नहीं होना चाहिए; उसे कुशलता से काम करने और अंतिम उत्पाद तैयार करने को महत्व देना चाहिए—केवल ऐसे लोग ही हैं जिन्हें परमेश्वर स्वीकृति देता है और जो वफादारी से अपने कर्तव्य निभाते हैं।
आजकल, ऐसे बहुत से लोग हैं जो परमेश्वर का अनुसरण करते हैं और अपने कर्तव्य निभा रहे हैं, लेकिन उनके एक हिस्से ने कभी भी सत्य का अनुसरण नहीं किया है, और अपने कर्तव्य निभाते समय, वे सदैव लापरवाही से और अपनी इच्छानुसार वही काम करते हैं जो वे करना चाहते हैं। वे बड़ी गलतियाँ नहीं करते, लेकिन वे हर समय छोटी-छोटी गलतियाँ करते रहते हैं, विशेष रूप से हर रोज व्यस्त नजर आने के लिए, जबकि वास्तविकता में उन्होंने किसी भी सही मामले को नहीं संभाला होता है और अपना समय व्यर्थ गँवा रहे होते हैं। कोई कह सकता है कि वे केवल अपना काम चलाने के लिए काम करते हैं। क्या ऐसे लोग खतरे में नहीं हैं? यदि कोई व्यक्ति अपने कर्तव्यों और परमेश्वर के आदेश के प्रति सदैव ऐसे श्रद्धाहीन रवैये के साथ पेश आता है, तो इसके क्या परिणाम होंगे? अप्रभावी ढंग से काम करना और व्यक्ति को उसके कर्तव्यों से बर्खास्त कर देना मामूली परिणाम है—यदि कोई व्यक्ति विभिन्न प्रकार के बुरे काम करता है तो उसे बाहर निकाल देना चाहिए, और परमेश्वर ऐसे व्यक्ति को शैतान को सौंप देगा। शैतान को सौंप देने का क्या अर्थ होता है? इसका अर्थ है कि परमेश्वर अब और उसकी देखभाल नहीं करेगा, परमेश्वर उसे नहीं बचाएगा, और वह गलत रास्ते पर चलना आरंभ कर देगा और फिर उसे सजा दी जाएगी। तुम इसे समझते हो, है ना? अब वह समय है जब परमेश्वर लोगों को बेनकाब करता है, और यदि तुम अस्थायी तौर पर सही रास्ते पर नहीं चल रहे हो, तो परमेश्वर तुम्हें अपनी समस्याओं की पहचान करने का अवसर देने के लिए व्यावहारिक परिवेश का उपयोग करेगा। हालाँकि, एक बार तुम्हें पता चल जाए कि परमेश्वर ने तुम्हें विचार करने के लिए कुछ समय दिया है, कि परमेश्वर तुम्हें अंतिम अवसर दे रहा है, यदि तुम अब भी वापस नहीं लौटते हो और हठपूर्वक अनमने ढंग से अपना कर्तव्य निभाना जारी रखते हो, तो परमेश्वर कार्रवाई करेगा। जब परमेश्वर ने नीनवे शहर को ध्वस्त किया, तो क्या उसने तुरंत ऐसा किया था? उसने तुरंत नहीं किया था। जब परमेश्वर ने कार्रवाई की तो उसका पहला कदम क्या था? उसने सबसे पहले योना को सूचित किया, और उसे स्पष्ट रूप से बताया कि संपूर्ण प्रक्रिया कैसे चलेगी और उसके इरादे क्या हैं। इसके बाद, योना नीनवे गया और यह घोषणा करते हुए पूरे शहर में घूमा : “अब से चालीस दिन के बीतने पर नीनवे उलट दिया जाएगा” (योना 3:4)। यह संदेश हरेक ने सुना; पुरुष और महिलाओं, युवाओं और बुजुर्गों, और हर क्षेत्र के लोगों ने इसके बारे में सुना—हर परिवार को इसके बारे में पता था, और यहाँ तक कि उनके राजा ने भी यह समाचार सुना था। परमेश्वर ने इस तरह से कार्रवाई क्यों की? इस मामले पर गौर करने पर यह देखा जा सकता है कि चाहे वह लोगों को बचा रहा हो, लोगों को बेनकाब कर रहा हो, या उन्हें सजा दे रहा हो, जिस तरह से वह लोगों से व्यवहार करता है उन सभी में प्रक्रियाएँ और सिद्धांत होते हैं। वह अचानक सनक में आकर कार्रवाई नहीं करता, जब उसे किसी का रूप-रंग पसंद नहीं आता तो उसे तुरंत नष्ट नहीं कर देता है। इसके बजाय, वह कुछ समय गुजरने देता है। यह समय गुजरने देनेमें उसका क्या उद्देश्य है? (लोगों को पश्चात्ताप करने देना।) यह नीनवे के लोगों को बताने के लिए है कि वह क्या करने जा रहा है, ताकि वे विचार करें और धीरे-धीरे उसके इरादों को समझें और धीरे-धीरे वापस लौटना शुरू कर दें। लोग इसे पहचानें उसकी एक प्रक्रिया है, और इन 40 दिनों का समय परमेश्वर ने लोगों को वापस लौटने के लिए दिया है। यदि वे 40 दिनों के बाद भी वापस नहीं लौटे और उसके समक्ष अपने पापों को स्वीकार नहीं किया, तो परमेश्वर इस काम को उसी तरह पूरा करेगा जैसा उसने कहा था। ऐसा इसलिए है क्योंकि परमेश्वर जो कहता है वह सच होता है, और जो वह कहता है वह पूरा होगा—इन वचनों में कुछ भी झूठ नहीं होता। जब नीनवे के लोगों को यह समाचार मिला तो उनकी प्रतिक्रिया क्या थी? क्या उन्होंने खुद को तुरंत टाट और राख से ढक लिया था? नहीं, उसकी एक प्रक्रिया थी। शुरूआत में, लोगों को संदेह रहा होगा : “परमेश्वर हमें नष्ट कर देगा; क्या उसने वास्तव में ऐसा कहा था? हमने क्या किया था?” इसके बाद, सभी परिवारों ने एक दूसरे को इस मामले की जानकारी दी और मिलकर चर्चा की। उन्हें लगा कि संकट आ गया है और वे जीवन-मरण के दोराहे पर खड़े हैं। तो, फिर उन्हें क्या करना चाहिए? क्या उन्हें पाप स्वीकार करके पश्चात्ताप करना चाहिए, या शंकालु होकर प्रतिरोध करना चाहिए? यदि वे सही में शंकालु होकर प्रतिरोध करने का विकल्प चुनते हैं, तो इसका परिणाम यह होगा कि 40 दिनों बाद उन्हें नष्ट कर दिया जाएगा, लेकिन यदि वे अपने पाप स्वीकार लेते हैं और वापस लौट आते हैं, तो उन्हें अभी भी जिंदगी मिल जाएगी। कई दिनों तक सभी स्तरों पर इस मामले में विचार करने के बाद, बहुत थोड़े नागरिक अपने पापों को स्वीकारने और वापस लौटने का रवैया अपनाने में सक्षम हुए थे। वे आराधना में सिर झुकाने, त्याग करने, या कुछ अच्छे व्यवहार और अभिव्यक्तियाँ दिखाने में सक्षम थे। लेकिन एक सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति था जिसने इस शहर को बचाया था—यह कौन था? यह नीनवे का राजा था। उसने राजा से लेकर नीचे सर्वसाधारण तक पूरे देश को आदेश दिया कि वे स्वयं को टाट और राख से ढक लें, अपने पापों को स्वीकारें और यहोवा परमेश्वर के समक्ष पश्चात्ताप करें। ऐसा आदेश जारी करने के बाद, क्या शहर में कोई भी ऐसा ना करने की हिम्मत कर सकता था? एक राजा के पास इस प्रकार की शक्ति होती है। यदि उसने इस शक्ति का उपयोग बुरे काम करने के लिए किया होता, तो देश के लोगों को महाविनाश झेलना पड़ता, लेकिन इसके बजाय उसने अपनी शक्ति का उपयोग सही काम करने, परमेश्वर की आराधना करने और उसके पास वापस लौट जाने के लिए किया, और शहर सुरक्षित रहा, पूरे देश के लोग बच गए, और उन्हें दोषमुक्त होने की उम्मीद थी। क्या यह निर्णय इस राजा के एक ही विचार से नहीं हुआ था? यदि उसने कहा होता, “चाहे तुम लोग पश्चात्ताप करने को तैयार हो या नहीं, मैं ऐसा नहीं करूँगा; तुम लोग अपनी करनी के भागीदार हो। मैं ऐसी चीजों को नहीं मानता हूँ, और मैंने कोई बुरा काम नहीं किया है। इसके अलावा, मेरा रुतबा है, तो परमेश्वर मेरा क्या बिगाड़ सकता है? क्या वह मुझे राजगद्दी से हटा सकता है? यदि शहर नष्ट होता है, तो हो जाए। इन आम लोगों के बिना भी मैं राजा ही रहूँगा, जैसा कि मैं पहले था!” अगर मेरा ऐसा विचार होता, मेरी ऐसी सोच होती तो क्या होता? तो आम लोग बहुत कम बच पाते, और परमेश्वर आखिरकार उन लोगों को चुनकर बाहर ले आता जो पश्चात्ताप करने को तैयार थे। जब वह उन लोगों को बाहर ले आता, जो पश्चात्ताप करने के बजाय मरना पसंद करते, वे शहर के साथ नष्ट हो जाते, और बेशक राजा भी उनमें शामिल होता। और जो लोग पश्चात्ताप करने के लिए तैयार होते, परमेश्वर द्वारा उन्हें शहर से बाहर निकाल लिए जाने के बाद वे जिंदा रहते। लेकिन, इसमें सबसे अच्छी बात यह थी कि नीनवे का राजा स्वयं को टाट और राख से ढकने में अग्रणी भूमिका निभाने में सक्षम था, और शहर के आम लोगों को, चाहे वे महिला हों या पुरुष, युवा हों या बुजुर्ग—वे चाहे जो भी हों, कितने भी ऊँचे पदाधिकारी या कितने भी निम्न वर्ग के किसान—कुलीन से लेकर सामान्य नागरिकों तक, यह बताने में सक्षम था कि उन्हें स्वयं को टाट और राख से ढक लेना चाहिए और आराधना में यहोवा परमेश्वर के सामने घुटने टेकने चाहिए, उसे दंडवत करके अपने पापों को स्वीकारना चाहिए, वापस लौटने, अपने बुरे मार्ग से दूर होने और अपने हाथों की बुराई को त्यागने, परमेश्वर के समक्ष पश्चात्ताप करने और प्रार्थना करने का अपना रवैया अभिव्यक्त करना चाहिए ताकि वह उन्हें नष्ट ना करे। नीनवे के राजा ने परमेश्वर के समक्ष पश्चात्ताप करने और अपने पापों को स्वीकारने में अग्रणी भूमिका निभाई, और ऐसा करके शहर की पूरी आबादी को बचा लिया, और उसके साथ अनेक लोगों का भला हुआ। ऐसा करने में अग्रणी भूमिका निभाकर, उसकी शक्ति मूल्यवान हो गई। परमेश्वर के समक्ष वापस लौटने में लोगों की अगुआई करने वाले ऐसे राजा को ही परमेश्वर याद रखता है।
क्या मसीह-विरोधियों की अपनी बड़ाई करने और अपने बारे में गवाही देने की विषय-वस्तु की इतने विस्तार से संगति करने का तुम लोगों को कोई लाभ होता है? इस तरह बार-बार संगति करना, उदाहरण देना, कहानियाँ सुनाना, इसे वर्णित और परिभाषित करने के लिए अलग-अलग तरीकों और शब्दों का उपयोग करना—यदि लोग अब भी नहीं समझते, तो उनमें वाकई आध्यत्मिक समझ की कमी है, और इस तरह के लोग कभी नहीं सुधर सकते। इतने विस्तार से संगति करने का क्या लक्ष्य है? यह सुनिश्चित करना कि इन वचनों को सुनने के बाद लोग जो समझते और स्वीकारते हैं वह धर्म-सिद्धांत नहीं हैं, ना शाब्दिक अर्थ है, और ना कोई निश्चित भाव है, बल्कि चीजें जिस तरह से हैं उसके बारे में एक सत्य है और लोगों के सार, उनके अस्तित्व और उनके जीवन से संबंधित कुछ सत्य और सिद्धांत हैं। यदि तुम लोग मेरे बताए इन कथनों या इन उदाहरणों को तुलना करने के लिए अपनी वास्तविक स्थिति पर या अपने जीवन में बेनकाब की गई चीजों पर लागू कर सको तो तुम लोग सत्य को समझ सकते हो और आध्यात्मिक समझ वाले व्यक्ति बन सकते हो। तुलना के लिए लागू करने का मतलब यह है कि जिस किसी उदाहरण या मामले की चर्चा की गई है उसे अपनी स्थिति से जोड़ना और सत्य के जिस किसी पहलू पर संगति की गई है उसे अपनी स्थिति और अपने खुलासों से जोड़ना। यदि तुम यह जानते हो कि इन चीजों को आपस में कैसे जोड़ा जाए और इस ज्ञान का उपयोग कैसे किया जाए तो तुममें आध्यात्मिक समझ है, तुम्हारे सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने की उम्मीद है और तुम सत्य को समझ सकते हो। जो कुछ भी कहा जाए यदि तुम उसे नहीं समझते हो, यदि तुम इन बातों को खुद से नहीं जोड़ सकते हो, यदि तुम्हें लगता है कि तुमने जो कुछ भी सुना उसका तुम्हारे द्वारा किए गए खुलासे और तुम्हारे अपने प्रकृति सार से कोई लेना-देना नहीं है, और यदि तुम सह-संबंध नहीं ढूंढ सकते, तो तुम पूरी तरह से अज्ञानी हो और तुम्हें कुछ भी पूरी तरह समझ नहीं आता है; तुम में आध्यात्मिक समझ की कमी है। आध्यात्मिक समझ की कमी वाले ऐसे लोग केवल मजदूरी के लिए अच्छे होते हैं और सत्य वास्तविकता में प्रवेश नहीं कर सकते हैं। जो लोग उद्धार पाना चाहते हैं उन्हें सत्य वास्तविकता में प्रवेश अवश्य करना चाहिए, और सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने के लिए व्यक्ति को इन वचनों को समझना चाहिए और इन कहानियों और परिस्थितियों को समझना चाहिए जिनके बारे में मैंने बात की; साथ ही, प्रत्येक मामले, प्रत्येक प्रकार के खुलासे, और प्रत्येक प्रकार के व्यक्ति के सार, उसकी अभिव्यक्तियों और स्थितियों को समझना चाहिए, और इन सभी को खुद में धारण करने में सक्षम होना चाहिए। केवल इस तरीके से वे सत्य को समझ सकते हैं; यदि वे इस बिंदु तक नहीं पहुँचते, तो वे इसे नहीं समझ सकते। यह वैसा ही है जब लोग मुर्गी पालते हैं—यदि किसी व्यक्ति ने छह महीने तक मुर्गी पाली, और यह अब भी अंडे नहीं देती, तो क्या यह कहा जा सकता है कि यह मुर्गी अंडे नहीं देती है? (नहीं।) यदि मालिक के पास यह मुर्गी तीन साल से थी और उसने इसे अनाज और हरी सब्जियाँ खिलाई, लेकिन भले ही इसने कुछ भी खाया हो, यह अंडे नहीं देती है, तो क्या यह कहा जा सकता है कि यह मुर्गी अंडे नहीं देती है? (हाँ।) तो, जब बात लोगों की आती है, उनमें से कुछ लोगों ने चाहे कितने भी धर्मोपदेश सुने हों और चाहे तुमने उनके साथ सत्य के बारे में कितनी भी संगति की हो, वे नहीं समझ पाते। यह बिना आध्यात्मिक समझ वाला व्यक्ति है। एक दूसरी तरह का व्यक्ति होता है, जो सुनी हुई बात को समझ तो लेता है लेकिन उसे व्यवहार में नहीं ला पाता, वह वापस नहीं लौटता है। इस तरह के व्यक्ति का काम तमाम हो चुका है और वह सदोम शहर के निवासियों की भांति ही है—जो विनाश की वस्तु बनने के लिए अभिशप्त हैं। मसीह-विरोधी इसी श्रेणी के लोग होते हैं; चाहे तुम सत्य के बारे में उनके साथ कैसी भी संगति कर लो, वे वापस नहीं लौटेंगे। क्या यह महज एक अड़ियल स्वभाव है? (नहीं।) यह उनका प्रकृति सार है जो परमेश्वर विरोधी होता है और सत्य के प्रति वैर-भाव रखता है, और ऐसे व्यक्ति के लिए सत्य को समझना असंभव है। वे सत्य को शत्रु बना लेते हैं, सत्य और परमेश्वर का विरोध करते हैं, और सकारात्मक चीजों के प्रति वैर-भाव रखते हैं, इसलिए जब तुम सत्य के बारे में संगति करते हो, तो वे इसे सत्य के रूप में नहीं, बल्कि एक प्रकार के सिद्धांत, विद्वता या धर्म-सिद्धांत के रूप में समझते हैं। संगति को सुनने के बाद, वे अपने हृदय को इससे सुसज्जित कर लेते हैं ताकि इसके बाद वे दिखावा कर सकें और अपने हित, रुतबा, प्रसिद्धि और लाभ अर्जित कर सकें। यह उनका लक्ष्य है। चाहे तुम सत्य के बारे में कैसे भी संगति कर लो और चाहे तुम कैसे भी उदाहरणों की चर्चा कर लो, तुम उन्हें सुधार नहीं सकते, और तुम उनके इरादों को पलट नहीं सकते या उनके काम करने के तरीके को बदल नहीं सकते। वे ऐसे लोग हैं जो सत्य का अनुसरण नहीं करते। जो लोग सत्य को सुनने के बाद उसे स्वीकार नहीं करते और उसका अभ्यास नहीं करते, उनमें सत्य से बदलाव नहीं लाया जा सकता, और परमेश्वर ऐसे लोगों को बचाता नहीं है। इस प्रकार के लोगों को अनिवार्यतः ऐसे लोगों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो सत्य के प्रति वैर-भाव रखते हैं, और साफ-साफ कहा जाए तो वे मसीह-विरोधी हैं। मसीह-विरोधियों और आम लोगों में यही अंतर होता है।
कुछ लोगों का स्वभाव मसीह-विरोधी वाला होता है, और वे अक्सर कुछ भ्रष्ट स्वभाव दिखाते हैं, लेकिन साथ ही ऐसे खुलासे होने पर, वे आत्मचिंतन कर खुद को जानते भी हैं, और सत्य स्वीकार कर उसका अभ्यास करने में सक्षम होते हैं, और कुछ समय बाद उनमें बदलाव देखा जा सकता है। ऐसे लोगों के उद्धार की संभावना है। ऐसे लोग भी हैं जो बाहर से, चीजों को त्यागने, स्वयं को खपाने, कष्ट सहने और कीमत चुकाने में सक्षम प्रतीत होते हैं, लेकिन उनके प्रकृति सार में, वे सत्य से विमुख होते हैं और इससे घृणा करते हैं। जब तुम उनके साथ सत्य के बारे में संगति करते हो, तो वे इससे विमुख और इसके विरोधी हो जाते हैं। वे सभाओं और धर्मोपदेशों के दौरान झपकी लेते हैं और सो जाते हैं। उन्हें ये उबाऊ लगते हैं, और जो वे सुन रहे हैं वह समझ आने के बावजूद भी उसे अमल में नहीं लाते हैं। दूसरे लोग भी हैं जो धर्मोपदेशों को गंभीरता से सुनते प्रतीत होते हैं, लेकिन उनके हृदय में सत्य की प्यास नहीं होती और परमेश्वर के वचनों के प्रति उनका रवैया ऐसा होता है कि वे उन्हें एक प्रकार के आध्यात्मिक ज्ञान या सिद्धांत के रूप में मूल्यांकित करते हैं। और इसलिए, चाहे वे कितने भी वर्षों से विश्वासी रहे हों, या उन्होंने परमेश्वर के कितने भी वचन पढ़े हों या कितने भी धर्मोपदेश सुने हों, रुतबा पाने और सत्ता को सम्मान देने के उनके दृष्टिकोण में, या सत्य से विमुख होने, सत्य से घृणा करने, और परमेश्वर का प्रतिरोध करने के उनके रवैये में कोई बदलाव नहीं आता है। वे ठेठ मसीह-विरोधी हैं। यदि तुम उन्हें यह कहकर उजागर करते हो, “तुम जो कर रहे हो वह लोगों के दिल जीतने की कोशिश है, और जब तुम अपनी बड़ाई करते हो और अपने बारे में गवाही देते हो, तो तुम लोगों को गुमराह कर रहे हो और परमेश्वर के साथ रुतबे के लिए होड़ लगा रहे हो। ये शैतान और मसीह-विरोधियों के क्रियाकलाप हैं,” तो क्या वे ऐसी निंदा को स्वीकारने में सक्षम हैं? कतई नहीं। वे क्या सोचते हैं? “मेरा काम करने का यह तरीका सही है, तो मैं इसी तरह काम करता हूँ। चाहे तुम मेरी कैसे भी निंदा करो, चाहे तुम कुछ भी कहो, और चाहे यह कितना भी सही प्रतीत हो, मैं काम करने के इस तरीके, इस चाह, इस प्रयास को नहीं छोड़ने वाला हूँ।” यह निश्चित है, तो : ये मसीह-विरोधी हैं। तुम्हारे द्वारा कही गई कोई भी बात उनके दृष्टिकोण, इरादे, एजेंडे, महत्वकांक्षाओं, या इच्छाओं को नहीं बदल सकती। यह मसीह-विरोधियों का ठेठ प्रकृति सार है; उन्हें कोई नहीं बदल सकता। चाहे लोग उनके साथ सत्य के बारे में कैसे भी संगति करें, या चाहे वे कैसी भी भाषा या शब्दों का उपयोग करें, चाहे समय, स्थान, या संदर्भ कोई भी हो, कुछ भी उन्हें बदल नहीं सकता। चाहे उनका परिवेश कैसे भी बदले, चाहे उनके आसपास के लोग, घटनाएँ, और चीजें कैसे भी बदलें, और चाहे समय कैसे भी बदले, या परमेश्वर कितने भी बड़े संकेत और चमत्कार दिखाए, परमेश्वर उन पर कितनी भी कृपा बरसाए, या परमेश्वर उन्हें कैसे भी दंडित करे, चीजों को देखने का उनका नजरिया और उनका एजेंडा कभी नहीं बदलेगा, और सत्ता हथियाने की उनकी महत्वाकांक्षा और इच्छा कभी नहीं बदलेगी। खुद के आचरण और दूसरों के साथ मेलजोल करने का उनका तरीका कभी नहीं बदलेगा, ना ही सत्य और परमेश्वर से घृणा करने का उनका रवैया बदलेगा। जब दूसरे लोग बताते हैं कि वे जो कर रहे हैं वह अपनी बड़ाई करना और अपने बारे में गवाही देना है और लोगों को गुमराह करने की कोशिश करना है, तो वे बोलने का अपना अंदाज बदल लेते हैं जिससे दूसरे लोग उनमें खमियाँ ना ढूंढ सकें या उन्हें समझ ना सकें। वे अपना प्रबंधन जारी रखने और परमेश्वर के चुने हुए लोगों पर शासन करने और उन्हें नियंत्रित करने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए और भी अधिक धूर्त तरीकों का उपयोग करते हैं। यह वही है जो एक मसीह-विरोधी में अभिव्यक्त होता है, और यह एक मसीह-विरोधी के सार से उत्पन्न होता है। यहाँ तक कि अगर परमेश्वर उन्हें बताए कि उन्हें दंडित किया जाएगा, कि उनका अंत आ गया है, कि वे अभिशप्त हैं, क्या इससे उनका सार बदल सकता है? क्या यह सत्य के प्रति उनके दृष्टिकोण को बदल सकता है? क्या यह रुतबा, प्रसिद्धि और लाभ के प्रति उनके लगाव को बदल सकता है? नहीं बदल सकता। जिन लोगों को शैतान ने भ्रष्ट किया है उनको सामान्य मानवता वाले ऐसे लोगों में बदल देना जो परमेश्वर की आराधना करते हों, परमेश्वर का कार्य है; इसे हासिल किया जा सकता है। लेकिन क्या राक्षसों को सामान्य लोगों में बदलना संभव है, उन लोगों को जो मानवीय त्वचा ओढ़े हुए हैं लेकिन जिनका सार शैतानी है, और जो परमेश्वर से शत्रुता रखते हैं? यह असंभव होगा। परमेश्वर इस तरह का कार्य नहीं करता है; जिन लोगों को परमेश्वर बचाता है उनमें ऐसे लोग शामिल नहीं हैं। तो फिर, परमेश्वर ऐसे लोगों को कैसे परिभाषित करता है? वे शैतान के हैं। वे परमेश्वर के चयन या उद्धार के विषय नहीं हैं; परमेश्वर ऐसे लोगों को नहीं चाहता है। चाहे उन्होंने कितने भी समय तक परमेश्वर में विश्वास किया हो, उन्होंने जितना भी कष्ट उठाया हो या उनकी जो भी उपलब्धियाँ रही हों, उनका एजेंडा नहीं बदलेगा। वे अपनी महत्वाकांक्षाओं या इच्छाओं का त्याग नहीं करेंगे, अपनी प्रतिष्ठा तथा लोगों को हासिल करने के लिए परमेश्वर के साथ होड़ लगाने की अपनी अभिप्रेरणा और लालसा को तो वे और भी नहीं त्याग पाएँगे। ऐसे लोग असली मसीह-विरोधी हैं।
कुछ लोग कहते हैं, “क्या यह सच नहीं है कि मसीह-विरोधी बस क्षण भर के लिए भ्रमित होने पर बुरे कर्म और परमेश्वर का प्रतिरोध कर सकते हैं? यदि परमेश्वर कुछ संकेत और चमत्कार दिखाए या उन्हें थोड़ा दंड दे, ताकि वे परमेश्वर को देख सकें, तो क्या वे तब परमेश्वर को स्वीकार कर उसके प्रति समर्पित नहीं हो पाएंगे? क्या वे तब यह स्वीकार नहीं करेंगे और मान नहीं पाएंगे कि परमेश्वर ही सत्य है और रुतबे के लिए अब और परमेश्वर के साथ होड़ नहीं लगानी है? क्या ऐसा नहीं है कि उनमें कोई आस्था नहीं है क्योंकि उन्होंने परमेश्वर को कोई संकेत या चमत्कार दिखाते नहीं देखा है या परमेश्वर के आध्यात्मिक शरीर को नहीं देखा है, और इसलिए वे बहुत कमज़ोर हैं और फिर वे शैतान के झांसे में आ जाते हैं?” नहीं, वैसा नहीं है। मसीह-विरोधियों की महत्वाकांक्षाएँ, इच्छाएँ, और सार अस्थायी तौर पर झांसे में आए किसी मूर्ख और सत्य को ना समझने वाले किसी व्यक्ति से एकदम विशिष्ट और भिन्न हैं। मसीह-विरोधियों में शैतानी प्रकृति अंतर्निहित होती है और वे जन्म से ही सत्य से विमुख होते हैं और सत्य से घृणा करते हैं। वे ऐसे शैतान हैं जो परमेश्वर के साथ मेल-मिलाप नहीं कर सकते, जो परमेश्वर का प्रतिरोध करते हैं और अंत तक परमेश्वर के साथ होड़ लगाते हैं, और वे मानव त्वचा ओढ़ने वाले जीवित शैतान हैं। ऐसे लोगों को उनके प्रकृति सार के अनुसार मसीह-विरोधियों के रूप में परिभाषित किया जाता है, और इसलिए वे परमेश्वर के घर में कौन सी भूमिका निभा सकते हैं और क्या काम कर सकते हैं? वे परमेश्वर के काम में बाधा डालते हैं, उसे बिगाड़ते हैं, ध्वस्त करते हैं और नष्ट करते हैं। ये लोग परमेश्वर के घर में ये काम करने से खुद को नहीं रोक पाते हैं। वे ऐसे ही हैं, उनमें शैतानी प्रकृति है, और यह भेड़ियों के समान है जो झुंड के बीच में घुसकर भेड़ों को खा जाने पर आमादा हैं—यही उनका एकमात्र उद्देश्य है। एक दूसरे परिप्रेक्ष्य में बात करें, तो परमेश्वर इन लोगों को अपने घर में क्यों आने देता है? ऐसा इसलिए है ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोगों में समझ बढ़ सके। किसी ने नहीं देखा है कि दानव शैतान कैसा दिखता है, इसके क्रियाकलापों का सार क्या है, इसके विशिष्ट खुलासे क्या हैं, या यह लोगों को कैसे गुमराह करता है और दुनिया में कैसे परमेश्वर का विरोध करता है। जब दानव शैतान का उल्लेख किया जाता है, तो उन्हें लगता है कि यह अमूर्त और खोखला है, यह पर्याप्त ठोस नहीं है। वे पूछते हैं, “शैतान कहाँ है?” जवाब आता है, “हवा में।” “तो, फिर शैतान कितना बड़ा है? यह विशेष रूप से कौन से चमत्कार करता है? यह किन खास तरीकों से परमेश्वर का विरोध करता है? इसका प्रकृति सार क्या है?” उन्हें लगता है कि यह सब बहुत ही अमूर्त, अस्पष्ट और खोखला है। हालाँकि, मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्तियों और खुलासों के माध्यम से, वे इन चीज़ों को शैतान के कार्यों और उसके प्रकृति सार से मिला सकते हैं, और फिर यह सब ठोस हो जाता है और अमूर्त या खोखला नहीं रह जाता। एक बार सब ठोस हो जाने पर लोग इसे बोलते हुए सुन सकते हैं, इसका व्यवहार देख सकते हैं, और ध्यान से इसके प्रकृति सार को समझ सकते हैं। इस तरह, क्या फिर उन्हें ऐसा नहीं लगता कि दानव शैतान का सार, जिसके बारे में परमेश्वर बात करता है, ज्यादा ठोस और वास्तविक हो जाता है, और वे व्यावहारिक तुलना कर सकते हैं? कुछ लोगों का आध्यात्मिक कद अपरिपक्व होता है और वे सत्य को नहीं समझते हैं, और थोड़ी क्षणिक मूर्खता के चलते वे मसीह-विरोधियों के झांसे में आकर गुमराह हो जाते हैं, और इसलिए वे एक साल या दो साल के लिए चले जाते हैं। जब वे परमेश्वर के घर में लौटते हैं, तो उन्हें एहसास होता है कि शैतान का अनुसरण करना अच्छा नहीं लगता। जब ये लोग पहली बार मसीह-विरोधियों का अनुसरण आरंभ करते हैं, तो उन्हें लगता है कि उनके पास पर्याप्त कारण और बहुत विश्वास है, और वे कहते हैं, “ऊपरवाला नहीं चाहता कि हम मसीह-विरोधियों का अनुसरण करें, लेकिन हम उनका अनुसरण करेंगे, और एक दिन हम सही साबित होंगे!” इसका परिणाम यह निकलता है कि, कुछ समय बाद, उन्हें लगता कि उन्होंने पवित्रात्मा का कार्य गँवा दिया है, और वे अपने दिलों में कोई भी पुष्टि महसूस करने में असमर्थ हैं। उनके लिए, ऐसा लगता है जैसे परमेश्वर अब और उनके साथ नहीं है, उनकी आस्था का अर्थ और दिशा खो गई है, और धीरे-धीरे उन्हें मसीह-विरोधियों की अधिकाधिक समझ होने लगती है। पहले वे सोचते थे कि मसीह-विरोधी वास्तव में सत्य को समझते हैं, और उनका अनुसरण करके वे अपनी आस्था में गलत नहीं हो सकते, लेकिन अब उन्हें दिखाई देता है कि मसीह-विरोधियों में गंभीर समस्याएँ हैं, मसीह-विरोधी ऐसे बोलते हैं मानो वे सत्य को समझते हैं, फिर भी वे कभी सत्य का अभ्यास नहीं करते—यह एक तथ्य है। वे देखते हैं कि उन्होंने इतने लंबे समय तक मसीह-विरोधियों का अनुसरण किया है और उन्हें कोई सत्य प्राप्त नहीं हुआ, और मसीह-विरोधियों का अनुसरण करते रहना वास्तव में बहुत खतरनाक है, और इसलिए उन्हें पछतावा होता है, वे मसीह-विरोधियों को अस्वीकार करते हैं, और परमेश्वर के घर लौटने के लिए तैयार हो जाते हैं। एक बार जब परमेश्वर का घर ऐसे लोगों को वापस ले लेता है, तो उन लोगों से उनके अनुभव को बताने के लिए कहा जाता है, और वे कहते हैं, “वह मसीह-विरोधी लोगों को गुमराह करने में बहुत माहिर था। उस समय, चाहे मैं उसके बारे में कुछ भी सोचता वह सही लगता था, लेकिन नतीजा यह हुआ कि मुझे कुछ भी हासिल नहीं हुआ, मैंने कोई सत्य नहीं समझा, और एक साल से अधिक समय तक उसका अनुसरण करने के बाद भी मेरे पास सत्य वास्तविकता का एक संकेत भी नहीं आया। मैंने कीमती समय बर्बाद किया। मुझे वाकई बहुत बड़ा नुकसान हुआ है!” असफलता का यह अनुभव उनकी सबसे गहरी स्मृति बन जाता है। उनके परमेश्वर के घर लौटने के बाद, जितना अधिक वे धर्मोपदेश सुनते हैं, उतना ही अधिक वे सत्य को समझते हैं और उनका दिल उतना अधिक उज्ज्वल होता जाता है। जब वे उस समय के बारे में सोचते हैं जो उन्होंने उस मसीह-विरोधी का अनुसरण करते हुए बिताया था और देखते हैं कि उन्हें किस तरह नुकसान उठाना पड़ा है, तो उन्हें लगता है कि मसीह-विरोधी वास्तव में शैतान है और मूल रूप से सत्य से रहित है, केवल परमेश्वर ही सत्य है, और वे फिर कभी किसी अन्य मनुष्य का अनुसरण करने का साहस नहीं करते। जब दोबारा अगुआ चुनने का समय आता है, तो वे बहुत सावधानी से अपना वोट देते हैं, यह सोचकर कि, “यदि मैं किसी खास व्यक्ति को अपना वोट देता हूँ, तो सबसे ज़्यादा संभावना है कि कोई मसीह-विरोधी चुना जाएगा। यदि मैं किसी खास व्यक्ति को अपना वोट नहीं देता, तो शायद कोई मसीह-विरोधी नहीं चुना जाएगा। मुझे सावधान रहना चाहिए और लोगों का मूल्यांकन सिद्धांतों के अनुसार करना चाहिए।” क्या अब उनके क्रियाकलाप सिद्धांतों और मानकों पर आधारित नहीं हैं? (हाँ, वे हैं।) यह अच्छी बात है। कुछ लोग मसीह-विरोधियों से गुमराह होकर कहते हैं, “हमारे साथ ऐसा क्यों हुआ? क्या परमेश्वर ने हमें अलग कर दिया है? क्या अब उसे हमारी परवाह नहीं है?” ऐसी स्थिति में, यदि परमेश्वर तुमसे कहे कि मसीह-विरोधियों का अनुसरण ना करो, तो क्या तुम सहमत होगे? नहीं, तुम सहमत नहीं होगे। तुम फिर भी उनका अनुसरण करने पर जोर दोगे, और परमेश्वर केवल इतना ही कर सकता है कि तुम्हें ऐसा करने की अनुमति दे और फिर तथ्यों का उपयोग करके तुम्हें सबक सिखाए। कुछ समय तक मसीह-विरोधियों का अनुसरण करने के बाद, तुम अचानक होश में आते हो और देखते हो कि तुमने अपने जीवन में नुकसान उठाया है, और उसके बाद ही तुम्हें पछतावा होता है और तुम मसीह-विरोधियों को ठुकराने और एक बार फिर से परमेश्वर के सामने लौटने के लिए तैयार हो जाते हो। तुम्हारे लिए सौभाग्य की बात है कि परमेश्वर सहिष्णु और दयालु है, और वह अब भी तुम्हें चाहता है। यदि वह ऐसा नहीं करता, तो तुम पूरी तरह से समाप्त हो जाते, तुम्हारे पास उद्धार पाने का कोई मौका नहीं होता—मसीह-विरोधियों का अनुसरण करने का कोई भला अंत नहीं है।
तुम्हें मसीह-विरोधियों को स्पष्ट रूप से देखना और सही ढंग से पहचानना चाहिए। तुम्हें पता होना चाहिए कि मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों को कैसे समझना है और, साथ ही, तुम्हें स्पष्ट रूप से पता होना चाहिए कि तुम्हारे प्रकृति सार में ऐसी कई चीजें हैं जो मसीह-विरोधियों के समान हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि तुम सभी उस मानवजाति से संबंधित हो जिसे शैतान ने भ्रष्ट कर दिया है, और एकमात्र अंतर यह है कि मसीह-विरोधी पूरी तरह से शैतान के नियंत्रण में हैं, और वे शैतान के साथी बन गए हैं और उसकी तरफ से बोलते हैं। तुम भी भ्रष्ट मानवजाति से संबंधित हो, लेकिन तुम सत्य स्वीकारने में समर्थ हो और तुम्हें उद्धार प्राप्त होने की उम्मीद है। हालाँकि, सार की दृष्टि से ऐसी कई चीजें हैं जो तुम्हारे और मसीह-विरोधियों में समान हैं, और तुम्हारे तरीके और एजेंडे भी एक जैसे हैं। बात केवल इतनी है कि एक बार जब तुमने सत्य को सुन लिया और धर्मोपदेशों को सुन लिया, तो तुम अपना मार्ग बदलने में सक्षम हो जाते हो, और मार्ग बदलने में सक्षम होना यह निर्धारित करता है कि तुम्हें उद्धार प्राप्त होने की उम्मीद है—तुम में और मसीह-विरोधियों के बीच यही अंतर है। इसलिए, जब मैं मसीह-विरोधियों को उजागर कर रहा हूँ, तो तुम्हें भी तुलना करनी चाहिए और पहचानना चाहिए कि तुम्हारे और मसीह-विरोधियों में कौन सी चीजें समान हैं, और कौन सी अभिव्यक्तियाँ, स्वभाव, और सार के पहलू तुम उनके साथ साझा करते हो। ऐसा करके, तब क्या तुम खुद को बेहतर ढंग से जान नहीं पाओगे? यह मानते हुए कि तुम मसीह-विरोधी नहीं हो, तुम हमेशा विरोधी भावना रखते हो, मसीह-विरोधियों के प्रति अत्यधिक घृणा महसूस करते हो, और यह तुलना करने या आत्मचिंतन करने और यह समझने को तैयार नहीं हो कि तुम किस मार्ग का अनुसरण कर रहे हो, तो इसका परिणाम क्या होगा? शैतानी स्वभाव के साथ, तुम्हारे मसीह-विरोधी बनने की बहुत अधिक संभावना है। ऐसा इसलिए है क्योंकि कोई भी मसीह-विरोधी जानबूझकर मसीह-विरोधी बनने की कोशिश नहीं करता, और फिर बन जाता है; ऐसा इसलिए है क्योंकि वह सत्य का अनुसरण नहीं करता और इस तरह आखिर में वह मसीह-विरोधी के मार्ग का अनुसरण करता है। क्या इस धार्मिक दुनिया में वे सभी लोग जो सत्य से प्रेम नहीं करते, मसीह-विरोधी नहीं हैं? वो हरेक व्यक्ति मसीह-विरोधी है जो अपने प्रकृति सार पर चिंतन नहीं करता और उसे नहीं समझ पाता, और जो अपनी धारणााओं और कल्पनाओं के अनुसार परमेश्वर में विश्वास करता है। एक बार जब तुम मसीह-विरोधी के मार्ग पर चल पड़ते हो, रुतबा प्राप्त कर लेते हो, और इस तथ्य के साथ कि तुम्हारे पास कुछ खूबियाँ और सीख भी हैं, और हर कोई तुम्हारी प्रशंसा करता है, तो जैसे-जैसे तुम्हारे काम करने का समय बढ़ता जाता है, तुम्हारे लिए लोगों के दिलों में जगह बनती चली जाती है। तुम जिस काम के लिए जिम्मेदार हो जब उसका दायरा बढ़ता है तो तुम अधिकाधिक लोगों की अगुआई करने लगते हो, तुम्हें अधिकाधिक पूंजी प्राप्त होने लगती है, और तब तुम सच्चे पौलुस बन जाते हो। क्या यह सब तुम पर निर्भर नहीं है? इस मार्ग का अनुसरण करने की तुम्हारी कोई योजना नहीं थी, लेकिन कैसे तुम अनजाने में मसीह-विरोधी के मार्ग पर चल पड़े? इसका एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि यदि तुम सत्य का अनुसरण नहीं करते हो, तो तुम निश्चित रूप से रुतबे और प्रतिष्ठा का अनुसरण करोगे, तुम अपने ही काम में लगे रहोगे, आखिरकार इसके बारे में कोई जानकारी हुए बिना, तुम एक मसीह-विरोधी के मार्ग का अनुसरण कर रहे होगे। यदि मसीह-विरोधी के मार्ग का अनुसरण करने वाले लोग समय के साथ बदलते नहीं है, और जब उन्हें रुतबा हासिल हो जाता है तो वे काफी संभव है कि मसीह-विरोधी बन जाएँ—यह परिणाम अपरिहार्य है। यदि उन्हें यह मामला स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देता है, तो वे खतरे में पड़ जाते हैं, क्योंकि हरेक के पास भ्रष्ट स्वभाव हैं और हरेक को प्रतिष्ठा और रुतबे से प्रेम होता है, यदि वे सत्य से प्रेम नहीं करते, तो प्रतिष्ठा और रुतबे के कारण उनके गिरने की ज्यादा संभावना है। परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के बिना, हरेक व्यक्ति मसीह-विरोधी के मार्ग का अनुसरण करेगा तथा प्रतिष्ठा और रुतबे के कारण गिरेगा, और यह ऐसी बात है जिसे कोई नकार नहीं सकता। तुम्हारा कहना है, “मुझमें केवल यदा-कदा ये खुलासे होते हैं, वे बस अस्थायी अभिव्यक्तियाँ हैं। भले ही मुझमें भी वही सार है जैसा मसीह-विरोधियों में होता है, फिर भी मैं मसीह-विरोधियों से अलग हूँ क्योंकि मेरी उनके जैसी बड़ी महत्वाकांक्षाएँ नहीं हैं। इसके अलावा, जब मैं अपना कर्तव्य निभा रहा होता हूँ, तो लगातार आत्मचिंतन करता हूँ, पछतावा महसूस करता हूँ, सत्य की तलाश करता हूँ, और सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य करता हूँ। मेरे व्यवहार को देखा जाए, तो मैं मसीह-विरोधी नहीं हूँ और मैं बनना भी नहीं चाहता, इसलिए मैं संभवतः मसीह-विरोधी नहीं बन सकता।” शायद तुम अभी मसीह-विरोधी नहीं हो, लेकिन क्या तुम सुनिश्चित कर सकते हो कि तुम मसीह-विरोधी के मार्ग का अनुसरण नहीं करोगे और मसीह-विरोधी नहीं बनोगे? क्या तुम ऐसी गारंटी दे सकते हो? नहीं, तुम गारंटी नहीं दे सकते। तो तुम ऐसी गारंटी कैसे दे सकते हो? इसका एकमात्र तरीका सत्य का अनुसरण करना है। तब तुम सत्य का अनुसरण कैसे करोगे? क्या तुम्हारे पास ऐसा करने का कोई तरीका है? सबसे पहले, तुम्हें इस तथ्य को स्वीकारना चाहिए कि तुम मसीह-विरोधियों के जैसा ही स्वभाव सार साझा करते हो। भले ही तुम अभी मसीह-विरोधी नहीं हो, तुम्हारे लिए, सबसे घातक और खतरनाक चीज क्या है? वो यह है कि तुम्हारा प्रकृति सार मसीह-विरोधियों के जैसा है। क्या यह तुम्हारे लिए अच्छी बात है? (नहीं।) बिल्कुल भी नहीं। यह तुम्हारे लिए घातक है। इसलिए, जब तुम मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों को उजागर करने वाले इन धर्मोपदेशों को सुन रहे हो, तो ऐसा मत सोचो कि इन चीजों का तुमसे कोई लेना-देना नहीं है; यह गलत रवैया है। तो फिर, इन तथ्यों और अभिव्यक्तियों को स्वीकारने के लिए तुम्हारा किस प्रकार का रवैया होना चाहिए? उनसे अपनी तुलना करो, और स्वीकारो कि तुम में मसीह-विरोधी का प्रकृति सार है, और फिर अपनी परख करके पता लगाओ कि तुम्हारी कौन सी अभिव्यक्तियाँ और खुलासे मसीह-विरोधियों के समान हैं। सबसे पहले, इस तथ्य को स्वीकारो—स्वांग मत रचाओ या घुमा-फिराकर कहने की कोशिश ना करो। तुम जिस मार्ग पर चल रहे हो वो मसीह-विरोधी का मार्ग है, इसलिए यह कहना तथ्यों के अनुसार है कि तुम एक मसीह-विरोधी हो; बात सिर्फ इतनी है कि परमेश्वर के घर ने अभी तक तुम्हें इस रूप में परिभाषित नहीं किया है और बस तुम्हें पश्चात्ताप करने का अवसर दे रहा है। क्या तुम्हें बात समझ आती है? सबसे पहले, इस तथ्य को स्वीकारो और मान लो, और फिर तुम्हें जो करना है वह यह है कि तुम परमेश्वर के समक्ष आओ और उससे अनुशासित होने और तुम्हें नियंत्रण में रखने के लिए कहो। परमेश्वर की उपस्थिति के प्रकाश से दूर मत जाओ या उसका संरक्षण मत छोड़ो, और इस तरह से जब तुम कुछ करोगे तो तुम्हारा जमीर और विवेक तुम्हें नियंत्रण में रखेगा, और तुम्हारे पास परमेश्वर के वचन भी होंगे जो तुम्हें रोशनी देंगे, तुम्हारा मार्गदर्शन करेंगे, और तुम्हें नियंत्रण में रखेंगे। इसके अलावा, तुम्हारे पास पवित्रात्मा का काम भी होगा जो तुम्हारा मार्गदर्शन करेगा, तुम्हारे आसपास के लोगों, घटनाओं, और चीजों को तुम्हारे लिए चेतावनी के रूप में व्यवस्थित करेगा और तुम्हें अनुशासित करेगा। परमेश्वर तुम्हें कैसे चेतावनी देता है? परमेश्वर कई तरीकों से काम करता है। कभी-कभी, परमेश्वर तुम्हारे दिल में एक स्पष्ट भावना उत्पन्न करेगा, जिससे तुम स्पष्ट रूप से महसूस कर सकोगे कि तुम्हें नियंत्रित रखने की आवश्यकता है, तुम स्वेच्छा से कार्य नहीं कर सकते, यदि तुम गलत काम करोगे तो तुम परमेश्वर को शर्मिंदा करोगे और स्वयं को मूर्ख बनाओगे, और इसलिए तुम स्वयं को नियंत्रित करो। क्या इस तरह परमेश्वर तुम्हारी रक्षा नहीं कर रहा है? यह एक तरीका है। कभी-कभी, परमेश्वर तुम्हारे अंतरतम से घिक्कारेगा और तुम्हें साफ-साफ शब्दों में बताएगा कि इस तरह से कार्य करना शर्मनाक है, वह इससे घृणा करता है, यह अभिशप्त है, अर्थात्, वह तुम्हें घिक्कारने के लिए साफ-साफ शब्दों का उपयोग करता है ताकि तुम स्वयं से अपनी तुलना करो। इस तरह से तुम्हें घिक्कारने में परमेश्वर का उद्देश्य क्या है? वह ऐसा तुम्हारे जमीर को कुछ महसूस कराने के लिए करता है, और जब तुम्हें कुछ महसूस होता है, तो तुम उसके प्रभाव, परिणामों और अपनी शर्म की भावना पर विचार करोगे, और तुम अपने क्रियाकलापों और व्यवहारों में कुछ संयम बरतोगे। एक बार जब तुम्हारे पास ऐसे कई अनुभव हो जाएंगे, तो तुम पाओगे कि भले ही ये भ्रष्ट स्वभाव लोगों के अंदर गहरी जड़ें जमा चुके हैं, जब लोग सत्य को स्वीकारने में सक्षम हो जाते हैं और अपने भ्रष्ट स्वभावों की सच्चाई को स्पष्ट रूप से देख पाते हैं, तो वे जानबूझकर अपनी दैहिक इच्छाओं के खिलाफ विद्रोह कर सकते हैं; जब लोग सत्य को व्यवहार में लाने में सक्षम हो जाते हैं, तो उनका शैतानी स्वभाव शुद्ध हो जाता है और बदल जाता है। मनुष्य का शैतानी स्वभाव अविनाशी या अपरिवर्तनीय नहीं है—जब तुम सत्य को स्वीकारने और सत्य को व्यवहार में लाने में सक्षम हो जाते हो, तो तुम्हारा शैतानी स्वभाव स्वाभाविक रूप से समाप्त हो जाएगा और बदल जाएगा। एक बार जब तुम यह अनुभव कर लोगे कि सत्य को व्यवहार में लाना कितना मधुर है, तो तुम सोचने लगोगे कि, “मैं पहले कितना बेशर्म था। दूसरों से अपनी आराधना करवाने के लिए चाहे मैंने कितने भी बेबाक शब्द कहे हों या मैंने अपनी कितनी भी बड़ाई की हो, मुझे कोई शर्म महसूस नहीं हुई और बाद में मुझे कोई होश नहीं रहा। अब मुझे लगता है कि उस तरह से काम करना गलत था और मैंने अपनी प्रतिष्ठा खो दी है, और ऐसा लगता है जैसे बहुत सी निगाहें मुझे घूर रही हैं।” यह परमेश्वर का कर्म है। वह तुम्हें एक एहसास देता है, और तुम्हें ऐसा लगेगा कि तुम खुद को धिक्कार रहे हो, और फिर तुम बुराई नहीं करोगे या अपने मार्ग पर नहीं टिकोगे। अनजाने में, अपनी बड़ाई करने और अपने बारे में गवाही देने के तुम्हारे तरीके कम होते जाते हैं, तुम लगातार आत्म-संयम बरतने लगते हो, और तुम्हें अधिकाधिक यह महसूस होता है कि इस तरह से कार्य करने से तुम्हारा दिल सहज होता है और तुम्हारी अंतरात्मा शांत होती है—यह प्रकाश में रहना है, और अब तनाव में रहने या स्वयं को छिपाने के लिए झूठे या मधुर शब्दों का उपयोग करने की कोई आवश्यकता नहीं है। अतीत में, तुम अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए हर दिन झूठ बोलते थे और झूठ बोलते रहते थे। हर बार जब तुम झूठ बोलते थे, तो तुम्हें इस डर से उस झूठ को बोलते रहना पड़ता था कि कहीं तुम्हारा पर्दाफाश ना हो जाए। इसका नतीजा यह हुआ कि तुमने ज्यादा से ज्यादा झूठ बोला, और बाद में तुम्हें अपने झूठ को बोलते रहने के लिए बहुत प्रयास करना पड़ा और अपना दिमाग खपाना पड़ा; तुम एक ऐसा जीवन जी रहे थे जो न तो मनुष्यों जैसा था और न ही राक्षसों जैसा, और बहुत थकाऊ था! अब, तुम एक ईमानदार व्यक्ति बनना चाहते हो, और तुम अपना दिल खोलकर ऐसी बातें बोल सकते हो जो वास्तविक हों। तुम्हें हर दिन झूठ बोलने और झूठ बोलते रहने की कोई ज़रूरत नहीं है, तुम अब झूठ बोलने को लेकर विवश नहीं हो, तुम बहुत कम कष्ट उठाते हो, तुम एक ऐसा जीवन जीते हो जो बहुत ही निश्चिंत, स्वतंत्र और मुक्त होता जा रहा है, अपने अंतरमन में तुम शांति और खुशी की भावनाओं का आनंद लेते हो—तुम इस जीवन की मिठास का स्वाद चख रहे हो। और जब तुम इस जीवन की मिठास का स्वाद चख रहे होते हो, तो तुम्हारी आंतरिक दुनिया अब धोखेबाज़, दुष्ट या झूठी नहीं रह जाती। इसके बजाय, अब तुम परमेश्वर के सामने आने के लिए तैयार हो, जब तुम्हें कोई समस्या होती है तो तुम परमेश्वर से प्रार्थना करते हो और सत्य की तलाश करते हो, जब तुम्हें कोई समस्या होती है तो तुम दूसरों के साथ इस पर चर्चा करने में सक्षम होते हो, और अब तुम एकतरफा या मनमाने ढंग से कार्य नहीं करते। तुम्हें अधिक से अधिक यह महसूस होने लगता है कि जिस तरह से तुम काम करते थे वह घृणित था और अब तुम उस तरह से काम नहीं करना चाहते। इसके बजाय, तुम सत्य, सूझ-बूझ और परमेश्वर के इरादों के अनुरूप काम करते हो; तुम्हारे काम करने का तरीका बदल गया है। जब तुम इन चीजों को हासिल करने में सक्षम हो जाते हो, तो क्या इसका यह अर्थ नहीं है कि तुम मसीह-विरोधी के मार्ग से हट गए हो? और जब तुम मसीह-विरोधी के मार्ग से हट गए हो, तो क्या इसका यह अर्थ नहीं है कि तुम उद्धार पाने के मार्ग पर चल पड़े हो? जब तुम उद्धार पाने के मार्ग पर चल पड़े हो और अक्सर परमेश्वर के सामने आते हो, तो तुम्हारा रवैया, इरादा, परिप्रेक्ष्य, तुम्हारे जीवन के लक्ष्य और जीवन की दिशा अब परमेश्वर के विरोध में नहीं रहती, तुम सकारात्मक चीजों से प्यार करने लगते हो, और तुम निष्पक्षता, धार्मिकता और सच्चाई से प्यार करने लगते हो। जब ऐसा होता है, तो तुम्हारा अंतरमन और विचार बदलने लगते हैं। जब तुम उद्धार पाने के मार्ग पर चल पड़े हो, तो क्या तुम अब भी मसीह-विरोधी बन सकते हो? क्या तुम अब भी जानबूझकर परमेश्वर का विरोध कर सकते हो? नहीं, तुम ऐसा नहीं कर सकते, और तुम अब खतरे से बाहर हो। केवल इस स्थिति में प्रवेश करने पर ही लोग परमेश्वर में आस्था के सही मार्ग पर आ सकेंगे, और केवल इस तरह से सत्य की तलाश करके और उसे स्वीकार करके ही वे अपनी शैतानी प्रकृति और मसीह-विरोधी प्रकृति के कारण उत्पन्न परेशानियों, नियंत्रण और अशांति को दूर कर सकेंगे। क्या तुम अब जीवन में सत्य का अनुसरण करने के सही मार्ग पर चल पड़ हो? यदि नहीं, तो शीघ्रता करो और इस मार्ग पर आने के लिए कड़ी मेहनत करो। यदि तुम सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर नहीं आ सकते हो, तो तुम अब भी खतरे में जी रहे होगे—जो लोग मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चलते हैं, उन्हें किसी भी समय हटा दिए जाने का खतरा रहता है।
अधिकांश लोग अपना कर्तव्य निभाते समय अपने मसीह-विरोधी स्वभाव से लड़ रहे होते हैं; प्रतिष्ठा, रुतबे, धन और हितों के लिए लड़ते-लड़ते थक चुके होते हैं, दिमाग और शरीर से पस्त हो चुके होते हैं। तो, इस समस्या का समाधान कब तक हो सकता है? केवल सत्य का अनुसरण करके और सत्य को स्वीकार करने में समर्थ होकर ही तुम अपने मसीह-विरोधी प्रकृति सार की बाधाओं और बंधनों को धीरे-धीरे छोड़ सकते हो और अपने शैतानी स्वभाव को धीरे-धीरे कमजोर और खत्म कर सकते हो, और ऐसा करते हुए तुम उम्मीद कर सकते हो कि तुम शैतान की शक्ति से खुद को मुक्त करा पाओगे। क्या तुम लोग इन चीजों के कारण, यह महसूस करते हुए एकांत में रोए हो कि तुम कभी बदल नहीं सकते, कभी सत्य से प्रेम नहीं कर सकते, और सत्य सिद्धांतों के अनुसार चीजों को कभी संभाल नहीं सकते, और क्या तुम लोग अपने आप से इतनी ज्यादा घृणा करते हो कि तुम स्वयं को तमाचा मारते हो और फूट-फूट कर रोते हो? क्या तुमने ऐसा कई बार किया है? यदि किसी ने ऐसा बहुत बार नहीं किया है तो क्या वह उसे सुन्न नहीं कर देता है? ऐसा व्यक्ति कभी भी नहीं समझ सकता कि वह भ्रष्ट है, और फिर भी वह मानता है कि वह अच्छा काम करता है, उसमें काबिलियत और प्रतिभा है, उसे अनेकों सत्य की समझ है, और वह सिद्धांतों के अनुसार कई चीजों को संभाल सकता है, और बेहद आश्वस्त महसूस करता है—ऐसा व्यक्ति सुन्न हो जाता है, वह सोचता है कि वह महान है, और यह उसके लिए बहुत खतरनाक होता है! क्या तुम लोग अब सचमुच में समझ सकते हो कि तुम्हारा आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है, तुम लोग अपने भ्रष्ट स्वभावों को त्याग देने से कोसों दूर हो, और तुम अभी भी खतरे वाले क्षेत्र में हो? जो लोग सत्य का अनुसरण नहीं करते उनमें यह बोध नहीं होता है, और ना ही उन लोगों में जिनके पास पवित्रात्मा का कोई काम नहीं होता है। अधिकांश लोग यह सोचते हुए चकित और भ्रमित होते हैं कि जब तक वे अपना कर्तव्य सही ढंग से निभाते हैं और कोई बुरा काम नहीं करते, तो वे मसीह-विरोधियों के मार्ग पर नहीं चल रहे हैं, और जब तक वे सभी तरह के बुरे काम नहीं करते तो वे मसीह-विरोधी नहीं हैं। इस वजह से, अधिकांश समय वे संवेदनशून्यता की स्थिति में रहते हैं, और यह सोचते हुए अक्सर अपने आप में खुशी महसूस करते हैं कि वे महान हैं और उन्हें जल्द ही उद्धार प्राप्त हो जाएगा, और मसीह-विरोधियों के मार्ग का उनसे कोई लेना-देना नहीं है। तुम लोगों की प्रतिदिन की प्रार्थनाओं का उपयोग इस बात को परखने के लिए किया जा सकता है कि तुम इस स्थिति में हो या नहीं। तुम लोग प्रतिदिन परमेश्वर के सामने आने पर क्या प्रार्थना करते हो? यदि तुम प्रतिदिन कहते हो, “हे परमेश्वर, मैं तुमसे प्रेम करता हूँ! हे परमेश्वर, मैं तुम्हारे समक्ष समर्पण करने को तैयार हूँ! हे परमेश्वर, तुमने मुझे जो आदेश दिया है मैं उसे पूरा करने को तैयार हूँ! मैं वफादारी से अपना कर्तव्य निभा सकता हूँ, और मैं तुम्हें संतुष्ट करने और तुम्हारे द्वारा पूर्ण किए जाने के लिए कृतसंकल्प हूँ। चाहे मुझमें कितनी भी मसीह-विरोधी अभिव्यक्तियाँ हों या मुझे अपने बारे में कितनी भी मामूली जानकारी हो, तुम अब भी मुझसे प्रेम करते हो और मुझे बचाना चाहते हो,” तो यह कौन सी अभिव्यक्ति है? यह संवेदनशून्यता है, तुम केवल दृढ़-निश्चय दिखा रहे हो, और तुम्हें अपने प्रकृति सार की जरा भी कोई समझ नहीं है। तुम उत्साहपूर्ण चरण में हो, और सत्य वास्तविकता धारण करने से कोसों दूर हो। तुम लोग एक सच्ची प्रार्थना कर सको, परमेश्वर से अपने दिल की बात कह सको, उसे अपनी वास्तविक स्थिति बता सको, अपने दिल में शांति और आनन्द महसूस कर सको, और यह महसूस कर सको कि तुम सचमुच परमेश्वर के सामने रह रहे हो, उससे पहले कितना समय बीत जाता है? मुझे बताओ कि तुम्हारे एक बार ऐसा करने से पहले कितना समय बीत जाता है? एक महीना, दो महीने, छह महीने, या एक साल? यदि तुमने कभी भी एक सच्ची प्रार्थना नहीं की है और तुम अब भी वैसे ही प्रार्थना करते हो जैसे धार्मिक दुनिया में लोग करते हैं, सदा यह कहते हुए कि तुम परमेश्वर से प्रेम करते हो, सदैव अपना दृढ़-निश्चय दिखाते हो, सदैव एक जैसे वाक्यांश बोलते हो, तो तुम लोगों में बहुत कमी है और तुम्हारे पास जरा भी कोई सत्य वास्तविकता नहीं है। आम तौर पर, जिन लोगों ने तीन या पाँच साल से परमेश्वर में विश्वास किया है, वे परमेश्वर के सामने आने पर ऐसी बचकानी और अज्ञानी बातें नहीं कहते, क्योंकि उन्हें यकीन होता है कि वे परमेश्वर का अनुसरण करेंगे, और उनमें आस्था भी होती है, और वे पहले से ही परमेश्वर के कार्य, परमेश्वर के इरादों, परमेश्वर की प्रबंधन योजना और परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य के बारे में दर्शनों की सच्चाई को स्पष्ट रूप से समझते हैं। जब वे परमेश्वर के सामने आते हैं तो वे ज़्यादातर किस बात के लिए प्रार्थना करते हैं? एक बात है स्वयं को जानना, और एक है कुछ सच्चे शब्द बोलना : हे परमेश्वर, आज मैं थोड़ी मुसीबत में हूँ, मैंने कुछ ऐसा किया है जिसने मुझे तुम्हारा ऋणी बना दिया है, मुझमें कुछ कमी है, और मेरी तुमसे प्रार्थना है कि तुम मेरी रक्षा करो, और मेरा मार्गदर्शन करो, मुझे प्रबुद्ध करो, और मुझे रोशन करो। यह व्यक्ति सत्य वास्तविकता से संबंधित कुछ सच्ची बातें कहना शुरू करता है, और वह दृढ़-निश्चय की उन अभिव्यक्तियों और नारों को अब और नहीं बोलता जो वे उत्साही लोग बोलते हैं जिन्होंने अभी-अभी विश्वास करना शुरू किया है। वह ये बातें क्यों नहीं बोलता है? उसे लगता है कि ऐसी बातें करने का कोई मतलब नहीं है, ऐसी बातें सत्य की उसकी आत्मिक जरूरत या जीवन प्रवेश के लिए उसकी जरूरत को पूरा नहीं कर सकती। तुमने चाहे कितने भी साल विश्वास किया हो, चाहे तुमने आधे-अधूरे मन से काम किया हो या परमेश्वर से प्रार्थना करते समय तुम सच्चे मन से उसके सामने आए हो, दस में से कितने दिन तुम वे खोखले शब्द और तकिया कलाम बोलते हो? हो सकता है कोई कहे कि एक दिन, तो बाकी के नौ दिन उसने क्या प्रार्थना की? यदि उसकी प्रार्थना उसके कर्तव्य और जीवन प्रवेश से संबंधित है, तो ठीक है, और यह दर्शाता है कि वह सत्य का, परमेश्वर के वचनों का, और अपने कर्तव्यों का कुछ बोझ उठा रहा है, और वह अब इतना सुन्न नहीं है। “वह अब इतना सुन्न नहीं है” से मेरा क्या मतलब है? मेरा मतलब है कि जब लोगों के भ्रष्ट स्वभावों और विभिन्न स्थितियों से संबंधित मामलों का उल्लेख किया जाता है, तो उन्हें कुछ महसूस होता है और उनमें जागरूकता आती है, और वे समझ भी सकते हैं। वे समझ और बोध हासिल करने में सक्षम हैं, और उन्हें ये बातें समझ आती हैं चाहे उन्हें कैसे भी समझाया गया हो और वे लगभग उनके मुताबिक ही चलते हैं—यह दर्शाता है कि उन्होंने कुछ आध्यात्मिक कद हासिल कर लिया है। सुन्न लोग कौन सी अभिव्यक्तियों को प्रदर्शित करते हैं? बिना कोई प्रयास किए, और बिना किसी प्रगति के वे प्रतिदिन उसी तरह जीते हैं, और इसी वजह से वे परमेश्वर से प्रार्थना करते समय हमेशा वही पुरानी बातें बोलते हैं। उन्हें जीवन प्रवेश कतई समझ नहीं आता, उनकी कोई आध्यात्मिक समझ नहीं होती, उन्हें कुछ महसूस नहीं होता, उनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं होती चाहे वे कितने भी धर्मोपदेश क्यों ना सुन लें, और सत्य की संगति कैसे भी की हो, उन्हें यह सब नीरस लगता है और उन्हें लगता है कि इन सब का एक ही अर्थ है। तो, क्या उनके पास परमेश्वर से कहने के लिए कुछ होता है? परमेश्वर के सामने आने पर लोग क्या प्रार्थना करेंगे और क्या कहेंगे यह उनके दिलों में मौजूद उन शब्दों पर निर्भर करता है जो वे परमेश्वर से कहना चाहते हैं और उन्हें लगता है कि उन्हें ये बातें परमेश्वर से बिल्कुल कहनी चाहिए। अपने दिल में तुम्हें कम-से-कम परमेश्वर की अपेक्षाओं, तुम्हारे सामने आने वाली समस्याओं, और इस बात की समझ होनी चाहिए कि तुम परमेश्वर की अपेक्षाओं को कैसे पूरा करोगे। यदि तुम्हारे दिल में कुछ नहीं है, और तुम केवल सुखद लगने वाले कुछ शब्द, कुछ नारे और कुछ धर्म-सिद्धांत कह सकते हो, और बस आधे-अधूरे मन से कहते हो, तो वह प्रार्थना नहीं है। यदि तुमने इतने वर्षों तक अपनी निष्ठा बनाए रखने की प्रतिज्ञा की है, लेकिन व्यावहारिक रूप से कुछ भी नहीं किया है, और अंत में तुम अभी भी परमेश्वर को धोखा देने, परमेश्वर को अस्वीकार करने, और किसी भी समय छोड़कर जाने के लिए उत्तरदायी हो, तो यह दर्शाता है कि तुम्हारा कोई आध्यात्मिक कद नहीं है। यदि, जब तुम लोग प्रार्थना करने के लिए अब परमेश्वर के सामने आते हो, तो तुम परमेश्वर के साथ अपने रिश्ते को परमेश्वर की अपेक्षाओं और अपने स्वयं के स्वभावगत बदलाव के लिए प्रासंगिक बनाए रख सकते हो, तो तुम्हारा परमेश्वर के साथ रिश्ता स्थापित हो चुका होगा, तुम मसीह-विरोधी के मार्ग पर नहीं चलोगे, और इसका अर्थ है कि तुम परमेश्वर में आस्था रखने के सही मार्ग पर चल पड़े हो।
क्या तुम लोग मसीह-विरोधियों की अपनी बड़ाई करने और अपने बारे में गवाही देने की विभिन्न अभिव्यक्तियों और साथ ही ऐसे व्यवहार की प्रकृति की परिभाषाओं को स्पष्ट रूप से समझ गए हो? क्या मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्तियों और सामान्य लोगों के भ्रष्ट स्वभावों के बीच कोई अंतर है? क्या तुम लोग वाकई किसी समस्या का सामना करते समय इनसे अपनी तुलना कर सकते हो? क्या तुम मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्तियों को सामान्य भ्रष्ट लोगों की अभिव्यक्तियों के रूप में, और इसके विपरीत भी मान सकते हो। तुम इन दो बातों में कैसे अंतर करोगे? किसी व्यक्ति की सतत अभिव्यक्तियों और खुलासों से उसके स्वभाव को आंकना और उसके सार को उसके स्वभाव से आंकना, उसके बारे में परिभाषा बनाने का सटीक तरीका है। मसीह-विरोधी सत्य को स्वीकार नहीं करते या परमेश्वर की बड़ाई नहीं करते; वे केवल अपनी बड़ाई करते हैं और अपने बारे में गवाही देते हैं। यह अभिव्यक्ति अत्यंत स्पष्ट और प्रमुख है, और यह पूरी तरह से उनकी शैतानी प्रकृति द्वारा नियंत्रित है। भले ही सामान्य लोग भी अपनी बड़ाई करते हैं और अपने बारे में गवाही देते हैं, लेकिन जब तुम उनके साथ सत्य पर संगति करते हो, तो वे इसे स्वीकारने में सक्षम होते हैं और मानते हैं कि परमेश्वर ही सत्य है, और वे सत्य को स्वीकार सकते हैं, केवल उनके लिए बदलाव बहुत तेजी से या आसानी से नहीं होता है—मसीह-विरोधियों और सामान्य लोगों के बीच यही अंतर होता है। अब यह कहने के बाद, क्या उनके बीच अंतर करना आसान हो जाता है? मसीह-विरोधियों की एक विशेषता होती है : जब उसे सत्य से प्रेम नहीं होता या वह सत्य को नकारता है, तो क्या वह इसे सीधे ही नकार देता है? (नहीं।) वह सत्य को नकारने के लिए कौन-सी विधि का उपयोग करता है ताकि तुम्हें दिखाई दे कि वह सत्य को नहीं मानता है? वह यह कहते हुए तुम्हारा खंडन करने के लिए कुतर्क करेगा कि तुम जिस बात पर संगति कर रहे हो वह सत्य नहीं है, और सत्य केवल वही है जिस बात पर वह संगति करता है। उदाहरण के लिए, वह अपने बारे में गवाही देता है और कोई व्यक्ति उसे उजागर कर देता है, और बाद में, वह कौन सी अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करता है जो दूसरों को यह पुष्टि करने देती हैं कि उसे सत्य से प्रेम नहीं है या वह सत्य को स्वीकार नहीं करता है? कुतर्क करना और खुद को निर्दोष ठहराने की कोशिश करना एक बात है, और वास्तविक सत्य को छिपाना भी एक बात है, और यही सत्य उसका एजेंडा है। उसका एजेंडा अपने बारे में गवाही देना है ताकि दूसरे उसका अत्यधिक सम्मान करें। वह तुम्हें अपना एजेंडा पता नहीं चलने देगा; वह केवल झूठी और लुभावनी बातें करेगा, कुतर्क करेगा, तुम्हारी आँखों में धूल झोंकेगा, तुम्हें उलझन में डाल देगा, ताकि अंत में तुम कहो कि वह अपने बारे में गवाही नहीं दे रहा है, और फिर उसे अपना लक्ष्य प्राप्त हो जाएगा। वह झूठी और लुभावनी बातें करता है, कुतर्क करता है, लोगों को की आँखों में धूल झोंकता है, यह स्वीकार नहीं करता कि वह अपने बारे में गवाही दे रहा है, यह स्वीकार नहीं करता कि तुम उसे उजागर करो, वह तुमसे अपनी निन्दा स्वीकार नहीं करता, और इस तथ्य में परिभाषित होना तो उसे और भी कम स्वीकार है। वह इसे कतई स्वीकार नहीं करता, और यह कहते हुए बहाने भी बनाता है, “कि यह मेरा अपने बारे में गवाही देना नहीं है। मेरे लिए ऐसा कहने का एक कारण और संदर्भ है। उस स्थिति में कुछ अनुचित शब्द कहना पूरी तरह से सामान्य है और कोई समस्या नहीं है। क्या इसे अपने बारे में गवाही देना माना जा सकता है? इतना ही नहीं, मैंने यह सारा काम किया है और फिर भी मैंने कोई योग्यता अर्जित नहीं की है, मुझे अभी भी ऐसा करने की वजह से कष्ट उठाना पड़ रहा है। यदि कुछ लोग मेरा अत्यधिक सम्मान करते हैं और मेरी आराधना करते हैं तो यह कोई बड़ी बात नहीं है।” उसे नहीं लगता कि ऐसा अपमानजनक व्यवहार और ऐसा घिनौना कृत्य कोई बड़ी बात है—क्या यह सत्य को स्वीकारने का रवैया है? उसे इन बुरे कर्मों के कारण कोई शर्मिंदगी महसूस नहीं होती है, और वह खुद को महान भी मानता है—यह बुरे लोगों का सार है। मसीह-विरोधी का मानना है कि अपनी बड़ाई करना और अपने बारे में गवाही देना पूरी तरह से उचित है और यही उसे करना चाहिए। उसे लगता है, “मैं यह इसलिए करता हूँ क्योंकि यह मेरी क्षमता है—क्या दूसरे लोग यह करने लायक हैं? मैंने हरेक का समर्थन अर्जित किया है, मैंने कलीसिया का काम करने के लिए बहुत मेहनत की है, मैंने परमेश्वर के घर के लिए इतने बड़े योगदान किए हैं और अत्यधिक जोखिम उठाए हैं! अगर तुम मुझे कोई इनाम या कोई लाभ नहीं देते हो तो क्या यह उचित है? क्या परमेश्वर धार्मिक नहीं है? क्या वह प्रत्येक व्यक्ति को उसके क्रियाकलापों के अनुसार प्रतिफल नहीं देता है? तो फिर, क्या मैं ये सभी योगदान देने और इन सभी जोखिमों को उठाने के कारण सभी के समर्थन का हकदार नहीं हूँ?” उसे लगता है कि उसे अपना कर्तव्य निभाने के एवज में कुछ मिलना चाहिए, और उसका न्यूनतम इनाम यह होना चाहिए कि उसे हरेक का समर्थन मिले और वह जिस निष्ठा, सम्मान और लाभ का हकदार है, उसका आनंद उठा सके। क्या यह सत्य को स्वीकारने का रवैया है? (नहीं।) तो, यहाँ सत्य क्या है? उदाहरण के लिए, तुम उन्हें कहते हो, “लोगों को चाहे कितना भी कष्ट सहन करना पड़े, वे सृजित प्राणी हैं, और उन्हें कष्ट सहन करना चाहिए क्योंकि उनमें भ्रष्ट स्वभाव हैं। अपना कर्तव्य निभाते हुए कष्ट सहन करना केवल एक तरीका है जिसमें लोग कष्ट सहन करते हैं। चाहे हम कितने भी सक्षम हों या हमारे पास कितने भी गुण हों, हमें परमेश्वर से किसी इनाम की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए या उससे सौदा करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।” क्या यह सत्य नहीं है? यह सर्वाधिक आधारभूत सत्य है जो सृजित प्राणियों को समझना चाहिए। हालाँकि, क्या यह सत्य उनके सांसारिक आचरण के फलसफों, और उनके विचारों और दृष्टिकोण में मिल सकता है? (नहीं।) क्या वे इस सत्य को सुनकर इसे स्वीकार करते हैं? नहीं, वे स्वीकार नहीं करते। उनका रवैया कैसा है? उनका मानना है कि परमेश्वर के घर में होना दुनिया में होने जैसा है, उन्हें उनकी मेहनत के अनुसार इनाम दिया जाना चाहिए, उन्हें अपना कर्तव्य निभाने के लिए कुछ-ना-कुछ अवश्य मिलना चाहिए, और यदि वे कुछ जोखिम उठाते हैं, तो उन्हें वह लाभ और अनुग्रह मिलना चाहिए जिसके वे हकदार हैं। अपना कर्तव्य निभाना हरेक व्यक्ति की जिम्मेदारी और दायित्व है, और इसमें मेहनताने की बात नहीं आनी चाहिए। क्या मसीह-विरोधी इस सत्य को स्वीकारता है? उसका क्या रवैया है? वह तिरस्कारपूर्ण और विरोधी भाव से कहता है, “मूर्खों, तुमने यह भी स्वीकार लिया! क्या वह सत्य है? वह सत्य नहीं है, वह तो बस लोगों को धोखा देना है। लोगों में निष्पक्षता और समानता—वही सत्य है!” यह कौन सी कहने वाली बात है? यह शैतान का तर्क, पाखंड और भ्रांति है। और क्या वह उन लोगों को गुमराह कर सकता है जो सत्य को नहीं समझते? वह उन्हें बहुत आसानी से गुमराह कर सकता है! कुछ लोग कमजोर होते हैं, वे अपने कर्तव्य को निभाने से संबंधित सत्य को नहीं समझते, साथ ही उनमें काबिलियत और समझने की योग्यता की कमी होती है, और उनमें बहुत अधिक आस्था नहीं होती, और जब वे ऐसी बातें सुनते हैं, तो उन्हें लगता है कि वे बिल्कुल सही हैं, और वे सोचते हैं, “हाँ, वास्तव में। मैं इतना मूर्ख कैसे हो सकता हूँ? आज आखिरकार मुझे कोई ऐसा व्यक्ति मिला है जो समझता है। वह जो कहता है वो सही है!” ये लोग केवल उन्हीं चीजों को सुनते और स्वीकारते हैं जो उचित लगती हैं और उनकी धारणाओं के अनुरूप होती हैं; वे परमेश्वर के वचनों को इस सिद्धांत के अनुसार नहीं देखते कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं। चाहे परमेश्वर के वचन लोगों की भावनाओं, लोगों की सोच और तर्क, लोगों के रीति-रिवाजों और आदतों या पारंपरिक संस्कृति के अनुरूप हों या नहीं, परमेश्वर के वचन अंतिम हैं, और उनमें से हर एक वचन, शुरू से अंत तक सत्य है। परमेश्वर के वचनों पर किसी को सवाल करने या उनका विश्लेषण करने की आवश्यकता नहीं है, और चाहे सारी मानवजाति उन्हें सही या गलत माने, या कोई उन्हें स्वीकारे या नहीं, परमेश्वर के वचन सदैव सत्य हैं। परमेश्वर के वचनों को समय की कसौटी पर खरा उतरने की आवश्यकता नहीं है, न ही उन्हें मानवजाति द्वारा अनुभव के माध्यम से सत्यापित किये जाने की आवश्यकता है—परमेश्वर के वचन सत्य हैं। क्या मसीह-विरोधी ऐसा ही सोचता है? वह सोचता है, “परमेश्वर को विवेकशील होना ही चाहिए! परमेश्वर की धार्मिकता का क्या अर्थ है? क्या ऐसा नहीं है कि जो लोग बहुत कष्ट सहते हैं और अत्यधिक सक्षम हैं, उन्हें बड़े इनाम मिलते हैं, और जो लोग कम कष्ट सहते हैं, जो बहुत सक्षम नहीं हैं, और जो कोई योगदान नहीं करते हैं, उन्हें मामूली इनाम मिलता है?” क्या परमेश्वर ऐसा कहता है? (नहीं।) परमेश्वर ऐसा नहीं कहता। परमेश्वर क्या कहता है? परमेश्वर कहता है कि अपना कर्तव्य निभाना हरेक व्यक्ति का उद्यम है, अपना कर्तव्य निभाने के अपने सिद्धांत होते हैं, हरेक व्यक्ति को अपना कर्तव्य सत्य-सिद्धांतों के अनुसार निभाना चाहिए, और सृजित प्राणियों से यही करने की अपेक्षा की जाती है। क्या यहाँ मेहनताने का कोई उल्लेख है? इनाम का कोई उल्लेख है? (नहीं।) मेहनताने या इनाम का कोई उल्लेख नहीं है—यह एक दायित्व है। “दायित्व” का क्या अर्थ है? दायित्व वह है जो लोगों से निभाने की अपेक्षा की जाती है, जिसके लिए व्यक्ति के श्रम के अनुसार इनाम नहीं मिलता। परमेश्वर ने कभी यह निर्धारित नहीं किया कि जो व्यक्ति अपने कर्तव्य को बहुत अधिक निभाता है उसे बड़ा इनाम मिलना चाहिए, और जो व्यक्ति अपने कर्तव्य को कम निभाता है या उसे ऐसे तरीके से निभाता है जो अच्छा नहीं है तो उसे मामूली इनाम मिलना चाहिए—परमेश्वर ने ऐसा कभी नहीं कहा। तो, परमेश्वर के वचन क्या कहते हैं? परमेश्वर कहता है कि अपना कर्तव्य निभाना हरेक व्यक्ति का उद्यम है और यह ऐसा कार्य है जिसे करने की सृजित प्राणियों से अपेक्षा की जाती है—यही सत्य है। क्या मसीह-विरोधी इसे ऐसे ही समझता है? वह परमेश्वर के इन वचनों के साथ कैसा व्यवहार करता है? वह उनसे अलग तरह का व्यवहार करेगा। उसके अपने हितों के परिप्रेक्ष्य में, वह परमेश्वर के वचनों की विकृत व्याख्या करेगा। संक्षेप में कहें तो वह परमेश्वर के वचनों के साथ छेड़छाड़ करता है, परमेश्वर के वचनों और सत्य को अपनी व्याख्या में बदलने के लिए अपने साधनों और समझ का उपयोग करता है। और ऐसी व्याख्या की क्या प्रकृति है? यह उसके लिए लाभकारी है, यह लोगों को गुमराह कर सकती है, तथा लोगों को भड़का सकती है और लुभा सकती है। वह परमेश्वर के वचनों को अपने बोलने के तरीके में बदल लेता है, मानो वे सत्य हों जिन्हें वह व्यक्त कर रहा हो, और परमेश्वर के कुछ कहने के बाद, उसे परमेश्वर के कहने के तरीके और परमेश्वर के वचनों के सिद्धांतों को अपने तरीके में बदलना पड़ता है। उसके द्वारा इसे अपने तरीके से बदल लिए जाने के बाद क्या अब भी यह सत्य है? नहीं, यह सत्य नहीं है—यह एक भ्रांति और पाखंड है। क्या तुम लोग इस मामले को समझने में सक्षम हो? (हाँ, कुछ हद तक।) इतने सारे धर्मोपदेशों को सुनने के बाद, कुछ लोगों को थोड़ी समझ आई है। और मसीह-विरोधी के सत्य का विरोध करने और सत्य को नकारने का सार क्या है? (यह परमेश्वर के वचनों के साथ छेड़छाड़ करना और उनकी विकृत व्याख्या करना है।) और परमेश्वर के वचनों के साथ छेड़छाड़ करने और उनकी विकृत व्याख्या करने में उसका इरादा क्या है? ऐसा इसलिए है कि लोग सत्य को स्वीकार न करके उसकी भ्रांतियों और पाखंडों को स्वीकार लें। वह अपनी सोच और तर्क, अपने हितों और दृष्टिकोणों और अपनी धारणाओं के अनुसार सत्य को गलत तरीके से प्रस्तुत करता है। तब यह उसके लिए लाभकारी होता है, और वह कुछ ऐसे लोगों को भड़का और गुमराह भी कर सकता है जो मूर्ख और अज्ञानी हैं, और जो सत्य को नहीं समझते। तुम जब पहली बार उसकी बातें सुनोगे तो वे तुम्हें सही लग सकती हैं, लेकिन यदि तुम उनका ध्यानपूर्वक विश्लेषण करोगे तो तुम पाओगे कि उनमें शैतान की महत्वाकांक्षाएं और षड्यंत्र छिपे हुए हैं। उसकी महत्वाकांक्षाओं और षड्यंत्रों का उद्देश्य क्या है? उनका उद्देश्य खुद को लाभ पहुँचाना, अपने कार्य करने के तरीकों और व्यवहार को स्वीकार्य बनाना, लोगों से अपने बारे में अच्छा मूल्यांकन करवाना, उसके खराब और बुरे व्यवहार को उचित व्यवहार और कार्य करने के ऐसे तरीकों में बदलना है जो सत्य के अनुरूप हों। इस तरह से, उसका मानना है कि लोग उसे अस्वीकार नहीं करेंगे, और परमेश्वर उसकी निंदा नहीं करेगा। वह शायद दूसरों को गुमराह करने में सक्षम हो सकता है ताकि लोग उसे अस्वीकार न करें, लेकिन क्या वह परमेश्वर को उसकी निंदा न करने के लिए राजी कर सकता है? क्या मनुष्य परमेश्वर के सार को बदल सकता है? (नहीं।) यहीं पर मसीह-विरोधी सबसे ज़्यादा मूर्ख होता है। वह अपनी चतुराई भरी जुबान और अपने “चतुर दिमाग” का इस्तेमाल करके सत्य के साथ छेड़छाड़ करने के लिए किसी तरह की भ्रांति और पाखंड के बारे में सोचना चाहता है ताकि उसका कथन मान्य हो सके, और इस तरह वह परमेश्वर के कथनों को नकारता है और सत्य के अस्तित्व को नकारता है—क्या यह उसकी गलत सोच नहीं है? क्या वह अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकता है? (नहीं।) कुछ लोग पूछते हैं कि जब कोई मसीह-विरोधी कुछ लोगों को गुमराह करता है तो क्या किया जा सकता है। यदि ऐसे लोगों को सचमुच गुमराह किया गया है और वे अपना मार्ग बदलने में असमर्थ हैं, तो इसका मतलब है कि वे बेनकाब कर हटा दिए जाते हैं और ऐसा उचित ही है। यह उनका विनाश है और वे बच निकलने में असमर्थ हैं; वे मरने के लिए अभिशप्त हैं, और परमेश्वर ने कभी भी उनके जैसे लोगों को बचाने की योजना नहीं बनाई। वे झूठे बहानों से कलीसिया में दाखिल होते हैं और थोड़ा श्रम करके थोड़े अनुग्रह का आनंद उठाते हैं, और जब परमेश्वर को उनकी आवश्यकता नहीं रहती, तो वह उन्हें शैतान को सौंप देता है। ऐसा होता है कि वे कोई पाखंड और भ्रांति सुनते हैं, और इसे सुनकर ताली बजाते हैं और उसे अपनी स्वीकृति देते हैं, और फिर वे शैतान के रास्ते पर चलने लगते हैं। यह क्या है? यह सेवा प्रदान करने के लिए शैतान का इस्तेमाल करना है। प्रकाशितवाक्य की किताब में एक पद है जो कहता है, “जो अन्याय करता है, वह अन्याय ही करता रहे; और जो मलिन है, वह मलिन बना रहे; और जो धर्मी है, वह धर्मी बना रहे; और जो पवित्र है; वह पवित्र बना रहे” (प्रकाशितवाक्य 22:11)। इसका अर्थ है कि लोगों को उनकी किस्म के लोगों के अनुसार अलग किया जाएगा। जब बात मसीह-विरोधियों के रास्ते पर चलने वाले लोगों की आती है, तो क्या यह उनकी ओर से बस क्षणिक लापरवाही है? क्या इसका कारण यह था कि परमेश्वर निगरानी नहीं रख रहा था? यह तो उनके लिए मरने का अभिशाप है! ऐसे लोगों के साथ कुछ समय तक जुड़ने के बाद, तुम देखोगे कि वे इस लायक नहीं हैं कि उन्हें बचाया जाए—वे बहुत अभागे हैं! उनके चरित्र और सत्य के उनके अनुसरण को देखते हुए, उनकी प्रकृति दुष्ट है और सत्य से विमुख है, और वे बचाए जाने के लायक नहीं हैं, वे परमेश्वर से ऐसी असीम अनुकंपा पाने के लायक नहीं हैं। यदि परमेश्वर उन पर यह अनुकंपा नहीं करता, तो उन्हें यह प्राप्त ही नहीं होगी, और इसलिए उन्हें तीन शब्दों में सारांशित करने का सबसे सटीक तरीका है “मरने के लिए अभिशप्त।”
अपनी बड़ाई करना और अपने बारे में गवाही देना मसीह-विरोधियों की प्राथमिक अभिव्यक्ति है, और इस अभिव्यक्ति के अनुसार उनके सार को परिभाषित करना बेहद उचित और ठोस है—यह खोखली परिभाषा नहीं है। उनके एजेंडों, महत्वाकांक्षाओं, उनके सार के खुलासों, और उनके क्रियाकलापों के सतत लक्ष्यों को देखकर, कोई भी समझ सकता है कि अपनी बड़ाई करना और अपने बारे में गवाही देना मसीह-विरोधियों की विशेष अभिव्यक्ति है। क्या ऐसा कोई मसीह-विरोधी है जिसने कभी भी अपनी बड़ाई नहीं की और अपने बारे में गवाही नहीं दी। (नहीं।) क्यों नहीं? क्योंकि उसकी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ अपार हैं, और वह उन्हें नियंत्रित नहीं कर सकता है। चाहे वह लोगों के किसी भी समूह में रहे, यदि कोई भी उसकी बड़ाई नहीं करता और उसकी आराधना नहीं करता, तो उसे लगता है कि जीवन का कोई मूल्य या अर्थ नहीं है, यही वजह है कि वह अपने लक्ष्यों को पाने के लिए अपनी बड़ाई करने और अपने बारे में गवाही देने के लिए इतना उत्सुक रहता है। वह दूसरों से श्रेष्ठ होने के लिए जीता है, और उसे ऐसे लोगों की आवश्यकता होती है जो उसकी आराधना करें और उसका अनुसरण करें, और भले ही वे लोग खिझाऊ, घृणित मक्खियों या भिखारियों के गिरोह जैसे हों, उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। जब तक ऐसे लोग हैं जो उसकी आराधना करते हैं और उसका अनुसरण करते हैं, तब तक वे सहज महसूस करते हैं। यदि उसे प्रशंसकों से बेहिसाब तालियाँ मिल सकें, जैसा कि प्रसिद्ध गायकों को मिलती हैं, तो वह सातवें आसमान पर होगा, उसे इसका आनंद लेना अच्छा लगता है—यह मसीह विरोधी की प्रकृति है। चाहे किसी भी तरह के लोग उसका अनुसरण करें या उसकी आराधना करें, मसीह-विरोधी उन सभी को पसंद करता है। भले ही उसका अनुसरण करने वाले लोग सबसे अभागे और घृणित हों, भले ही वे जानवर हों, जब तक वे उसकी बड़ाई करते हैं और रुतबे के लिए उसकी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं को संतुष्ट करते हैं, तब तक मसीह-विरोधी बुरा नहीं मानता। तो, क्या मसीह-विरोधी अपनी बड़ाई करने और अपने बारे में गवाही देने, और जहाँ भी वह जाता है वहाँ दिखावा करने से खुद को रोक सकता है (नहीं।) यह उसका सार है। मुझे बताओ, वे किस प्रकार के लोग हैं जो सच में परमेश्वर का अनुसरण करते हैं? मानवजाति में, एक प्रकार का व्यक्ति है जिसे परमेश्वर चुनना और बचाना चाहता है, और इन लोगों में थोड़ा सा जमीर, विवेक और शर्म होती है। जो लोग इससे थोड़े बेहतर हैं वे सत्य से प्रेम करने, सकारात्मक चीजों से प्रेम करने, और परमेश्वर की निष्पक्षता और धार्मिकता से प्रेम करने में सक्षम हैं; वे दुष्टता से घृणा करने में सक्षम हैं, जब वे अन्यायपूर्ण या दुष्ट चीजों को देखते हैं तो वे क्रोधित महसूस करते हैं, और भले ही वे इन चीजों के बारे में कुछ भी करने में समर्थ न हों, फिर भी वे उनसे घृणा करते हैं—ये वो लोग हैं जिन्हें परमेश्वर थोड़ा बहुत चाहता है। जहाँ तक उन लोगों का सवाल है जिनमें यह मानवता और सार नहीं है, परमेश्वर उन्हें नहीं चाहता, चाहे वे परमेश्वर की अच्छाई या उसकी महानता के बारे में कितनी भी बातें करें। उदाहरण के लिए, धर्म में फरीसी उन्हीं पुराने खोखले सिद्धांतों और सतही शब्दों के साथ परमेश्वर की बड़ाई करते हैं और परमेश्वर के बारे में गवाही देते हैं, और दो हजार साल बाद भी वे उन्हें कहने से नहीं थकते। अब परमेश्वर बहुत सारे सत्य व्यक्त कर रहा है, लेकिन वे उन्हें देख नहीं सकते, वे उन्हें अनदेखा करते हैं, और कुछ लोग तो उनकी निंदा और तिरस्कार भी करते हैं। यह पूरी तरह से उनका खुलासा करता है, और परमेश्वर ने बहुत पहले ही उन्हें पाखंडी फरीसी के रूप में परिभाषित किया है, जिनमें से सभी शैतान के गिरोह का हिस्सा हैं; परमेश्वर ने उन्हें दानवों और शैतानों, सूअरों और कुत्तों के रूप में नामित किया है। जब मसीह-विरोधी ऐसे लोगों के समूह में आता है और देखता है कि उनमें से बहुत कम लोग सत्य को समझ सकते हैं, उनमें से किसी में भी कोई विवेक या प्रतिभा नहीं है, तो वह दिखावा करने के लिए इस अवसर का लाभ उठाने में शीघ्रता करता है। कुछ लोग डींगें हांकते हैं कि एक बार उन्हें एक साथ दो विश्व-स्तरीय विश्वविद्यालयों में दाखिला मिला था, और अंत में वे वहां नहीं गए क्योंकि उन्होंने परमेश्वर में विश्वास रख लिया था और उसके आदेश को स्वीकार लिया था। उनकी यह बात सुनकर कुछ लोग उनका बहुत सम्मान करने लगते हैं। यदि तुम सत्य को नहीं समझते हो, और यदि जिन चीजों से तुम प्रेम करते हो और तुम्हारा वैश्विक दृष्टिकोण सांसारिक लोगों के समान है, तो तुम इस तरह के लोगों की आराधना करोगे, और इसीलिए जब मसीह-विरोधी ऐसी बातें कहता है, तो तुम उसके द्वारा गुमराह किए और मूर्ख बनाए जाओगे। मसीह-विरोधी चोरी-छिपे इस तरह अपनी बड़ाई करता है, और उसके द्वारा उन अविवेकी मूर्ख लोगों को गुमराह किया जाता है। मसीह-विरोधी को यह सोचकर बहुत प्रसन्नता महसूस होती है कि उसके अधीन कोई भी व्यक्ति सामान्य नहीं है, जबकि वास्तव में वे सभी लोग भ्रमित और बेकार लोगों का समूह मात्र हैं। जिनके पास सत्य को समझने की कोई योग्यता नहीं है उन सभी लोगों को शैतानों और मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह किया जा सकता है। जब वे शैतानों और मसीह-विरोधियों को बोलते हुए सुनते हैं, तो उन्हें महसूस होता है कि ये शब्द उनके अपने विचारों और रुचियों से वास्तव में मेल खा रहे हैं, इसलिए उन्हें इसे सुनने में आनंद आता है। वे जो सुन रहे हैं उसके बारे में निर्णय लेने के लिए सामान्य सोच का उपयोग करने में सक्षम नहीं हैं, न ही उन्हें कोई ऐसा व्यक्ति मिलेगा जो सत्य को समझता हो और उन्हें ऐसी चीजों को समझने में मदद कर सके; जब तक उन्हें लगता है कि वे जो सुन रहे हैं वह उचित जान पड़ता है, वे इसे स्वीकारने के लिए तैयार रहेंगे, और इस तरह वे अनजाने में ही गुमराह हो जाते हैं। यदि सत्य को समझने की क्षमता रखने वाले और मसीह-विरोधियों को बोलते हुए सुनने का विवेक रखने वाले लोग जान जायेंगे कि वे लोग दूसरों को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं तो वे उन्हें अस्वीकार कर देंगे। जिन भ्रमित लोगों में विवेक की कमी है, वे विश्वास कर लेंगे कि मसीह-विरोधियों के पास शिक्षण है, अच्छी काबिलियत है, और संभावनाएँ हैं। वे चीजों को इस तरह से देखेंगे, और किसी सतही घटना से गुमराह हो जाएंगे; उन्हें पता नहीं होगा कि सत्य सिद्धांत क्या हैं, और वे शैतानों का अनुसरण करना आरंभ कर देंगे। क्या ऐसे लोग अपनी मूर्खता और अज्ञानता के कारण अपना विनाश नहीं कर लेते हैं? यह ऐसे ही होता है। यदि तुम्हें मसीह-विरोधी द्वारा अक्सर अपनी बड़ाई करने और अपने बारे में गवाही देने की विभिन्न अभिव्यक्तियों, या ऐसे करने के उसके अलग-अलग तरीकों की समझ है, और तुम उसके शब्दों के पीछे के उद्देश्य और एजेंडा का अनुमान लगाने में समर्थ हो, तो तुम्हारे लिए मसीह-विरोधियों के सार को समझना आसान हो जाएगा, और तब तुम उसे तुरंत अस्वीकार करने और उसे शाप देने में समर्थ हो जाओगे, और उसे दोबारा कभी नहीं देख पाओगे। तुम ऐसा क्यों करोगे? क्योंकि जब तुम मसीह-विरोधी को बोलते और कार्य करते देखते हो, तो तुम उसे तुच्छ जानोगे और उससे घृणा करोगे, तुम्हें बुरा लगेगा जैसे कि तुम मक्खियों को देख रहे हो और तुम उन्हें जल्द से जल्द वहाँ से भगा देना चाहोगे। इसलिए, एक बार तुम्हें मसीह-विरोधी के क्रियाकलापों और व्यवहार की समझ हो जाने पर, तुम्हें उसको तुरंत उजागर कर देना चाहिए ताकि दूसरे लोग उसे पहचान सकें, और फिर उसे सिद्धांतों के अनुसार कलीसिया से निष्कासित कर सकें। क्या तुम लोगों में यह करने का साहस है? अगर परमेश्वर के चुने हुए लोग यह काम कर सकते हैं, तो यह दर्शाता है कि उनका आध्यात्मिक कद बढ़ गया है, और वे परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशीलता दिखा सकते हैं और परमेश्वर के घर के कार्य की सुरक्षा कर सकते हैं। जब परमेश्वर के चुने हुए लोग सत्य को समझते हैं और उनमें विवेक होता है, तो मसीह-विरोधियों के लिए कलीसिया में या परमेश्वर के घर में पैर जमाना संभव नहीं होगा।
चाहे कोई भी मौका हो, जब तक मसीह-विरोधी के पास अवसर है, वह दिखावा करेगा और अपने बारे में गवाही देगा, और जब तक ऐसे लोग हैं जो उसकी आराधना करते हैं और उसकी तरफ प्रशंसा, ईर्ष्या, और श्रद्धा भरी निगाहों से देखते हैं, वह खुश होगा—उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे लोग कौन हैं। क्या उसके कोई मानक हैं जो उसे उन लोगों से चाहिए जो उसका अनुसरण करते हैं, उसकी आराधना करते हैं, और उसका आदर करते हैं? (नहीं।) चाहे वे लोग बेवकूफ, मानसिक रूप से अयोग्य, बुरे लोग या छद्म-विश्वासी हों, चाहे वे कैसे भी लोग हों, इनमें वे लोग भी शामिल हैं जिन्हें निकाल और हटा दिया जाना चाहिए, जब तक वे लोग उसका अनुसरण करते हैं, उसकी आराधना करते हैं और उसकी बड़ाई करते हैं, तो मसीह-विरोधी उन्हें स्वीकार लेता है, वह उन्हें बहुत पसंद करता है, और उनका पक्ष लेकर और उनकी रक्षा करके उनका दिल जीत लेता है। मसीह-विरोधी उन लोगों को अपनी भेड़ों, अपनी निजी संपत्ति की तरह देखता है, और वह किसी को भी उनका तबादला करने, उन्हें उजागर करने, या उनसे निपटने की अनुमति नहीं देता। भले ही वे लोग मसीह-विरोधी की खुशामद करें और उसके दिल में जगह बना लें, भले ही वे कितनी भी घृणास्पद और घिनौनी बातें कहें, मसीह-विरोधी इस सबका आनंद उठाता है; जब तक वे लोग मसीह-विरोधी की झूठी तारीफ करते हैं उसके लिए यह सब ठीक होता है। मसीह-विरोधी जो कुछ भी कहता और करता है वह इसलिए होता है ताकि दूसरे लोग उसका सम्मान करें, उसे पसंद करें, उसका अनुसरण करें, और उसका अनुसरण करने वाले लोग भले ही कितने भी खराब काम करें, मसीह-विरोधी उनकी जाँच-पड़ताल नहीं करेगा, और चाहे उनकी मानवता कितनी भी कपटी और दुर्भावनापूर्ण क्यों ना हो, वह इसकी परवाह नहीं करेगा। जब तक वे लोग उसका अनुसरण करते हैं, उसकी आराधना करते हैं, मसीह-विरोधी उन्हें पसंद करेगा, और जब तक वे लोग मसीह-विरोधी की शक्ति और रुतबा बनाए रख सकते हैं, और उसके विरुद्ध नहीं जाते या उसका विरोध नहीं करते हैं, तो मसीह-विरोधी को बहुत संतुष्टि होगी—मसीह-विरोधी ऐसे ही होते हैं। इसके विपरीत, मसीह-विरोधी उन लोगों के साथ कैसा व्यवहार करता है जो सदैव उसे उजागर करते रहते हैं, और जो उसे अपनी बड़ाई करने और अपने बारे में गवाही देने से रोकते हैं, और जो ऐसा करने के लिए उसका तिरस्कार करते हैं, साथ ही जो उसके साथ सत्य की संगति करते हैं, जो उसकी समस्याओं के सार को समझ सकते हैं, और जो उसे सही में समझते हैं? वह शर्म से तुरंत क्रोधित हो जाता है, और उन लोगों से सावधान हो जाता है, उन्हें बहिष्कृत करता है, उन पर आक्रमण करता है, और अंत में उन लोगों को अलग-थलग करने के तरीकों के बारे में सोचता है जो उसे पहचान सकते हैं और उसका विरोध कर सकते हैं। उसके ऐसा करने के पीछे क्या कारण है? ऐसा इसलिए है क्योंकि जब वह अपनी बड़ाई करता है और अपने बारे में गवाही दे रहा होता है तो वह हमेशा सोचता है कि वे लोग उसकी आँखों की किरकिरी और उसकी परेशानी का कारण हैं, और वे लोग उसे पहचान लेंगे और उसे अस्वीकार कर देंगे, उसे उजागर कर देंगे, और उसके अच्छे काम को बर्बाद कर देंगे। जिस पल मसीह-विरोधी उन लोगों पर ध्यान देने लगता है, तो वह असहज महसूस करने लगता है और सदैव उन लोगों से यह सोचकर निपटना चाहता है कि अगर वह उन लोगों से निपट सकता है, तो वह जब भी दोबारा अपनी बड़ाई करेगा और अपने बारे में गवाही देगा, उसे उजागर करने या रोकने वाला कोई नहीं होगा, और वह मनमाने तरीके से बुरे काम कर पाएगा। मसीह-विरोधी इसी सिद्धांत के अनुसार कार्य करता है। चाहे किसी भी तरह के लोग उसकी चापलूसी करें, उसकी प्रशंसा करें या उसकी बड़ाई करें, चाहे उनका कहा तथ्यों के अनुरूप हो या नहीं, भले ही वे झूठ बोल रहे हों, मसीह-विरोधी उन्हें खुशी-खुशी स्वीकारेगा, उसे उनको सुनने में आनंद आएगा, और वह उन लोगों को तहेदिल से पसंद करेगा। उसे कोई परवाह नहीं है कि उन लोगों में क्या समस्याएँ हैं, अगर उसे उन लोगों की समस्याओं का पता लग भी जाता है, तो वह उन्हें छिपा लेगा, उन पर पर्दा डाल देगा, और उनके बारे में एक शब्द भी नहीं बोलेगा। जब तक मसीह-विरोधी का अनुसरण और उसकी झूठी तारीफ करने वाले लोग उसके साथ हैं, वह इसका आनंद लेता रहेगा। मसीह-विरोधी इसी तरह काम करते हैं। क्या तुम लोग ये काम करने में सक्षम हो जो मसीह-विरोधी करते हैं? उदाहरण के लिए, मान लो कि तुम लोग कलीसिया में अगुआ और कार्यकर्ता हो, परमेश्वर के चुने हुए लोगों में तुम्हारा रुतबा और प्रतिष्ठा है। यदि भाई-बहन तुम्हारा बहुत सम्मान करें, तुम्हारी झूठी तारीफ करें, तुम्हारी चापलूसी करें, और अक्सर तुम्हारी प्रशंसा करें, और कहें कि तुम अच्छे उपदेश देते हो, तुम अच्छे दिखते हो, और तुम उनके लिए सबसे अच्छे अगुआ हो, तो तुम्हें कैसा लगेगा? क्या तुम उनके शब्दों के पीछे छिपे इरादे को समझ पाओगे? क्या तुम ऐसे लोगों को अस्वीकार कर इनसे दूर रह सकोगे? यदि नहीं, तो तुम खतरे में हो। तुम्हें स्पष्ट रूप से पता है कि तुम दिखने में उतने अच्छे नहीं हो, तुम सत्य वास्तिवकता की संगति करने में सक्षम नहीं हो, और फिर भी जब तुम लोगों को अपने बारे में इस तरह झूठी तारीफ करते हुए सुनते हो तो तुम्हें खुशी महसूस होती है, और सदैव ऐसे लोगों के पास जाना और उन्हें बढ़ावा देना चाहते हो, क्या इसका मतलब यह नहीं है कि तुम मुसीबत में हो? इसका मतलब है कि तुम खतरे में हो।
जब अगुआ और कार्यकर्ता काम कर रहे हों तो कभी-कभी पवित्रात्मा उन्हें प्रबुद्ध और रोशन करता है, वे कुछ असली अनुभवों के बारे में बात कर सकते हैं, और स्वाभाविक रूप से उनके पास ऐसे लोग होंगे जो उनका अत्यधिक सम्मान करते होंगे और उनकी आराधना करते होंगे, जो उनका अनुसरण करते होंगे और उनसे ऐसे जुड़े होंगे जैसे उनकी अपनी छाया—ऐसे समय में, उन्हें इन चीजों को कैसे देखना चाहिए? हर किसी की अपनी-अपनी पसंद होती है, हर कोई घमंडी होता है; अगर लोग किसी को अपनी प्रशंसा और चापलूसी करते हुए सुनते हैं तो वे इसका भरपूर आनंद लेते हैं। ऐसा महसूस करना सामान्य बात है और यह कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन, यदि वे किसी ऐेसे व्यक्ति को बढ़ावा देते हैं जो उनकी भरपूर प्रशंसा कर सकता है और उनकी चापलूसी कर सकता है और वे ऐसे व्यक्ति को किसी महत्वपूर्ण काम में लगाते हैं तो वह खतरनाक है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जिन लोगों को दूसरों की चापलूसी और भरपूर प्रशंसा करना पसंद होता है वे बहुत ज्यादा धूर्त और धोखेबाज होते हैं और वे ईमानदार या सच्चे नहीं होते। जैसे ही इन लोगों को रुतबा हासिल हो जाता है तो उनसे परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश या कलीसिया के काम को कोई लाभ नहीं होता। ये लोग मक्कार होते हैं और काम बिगाड़ने में सर्वाधिक सक्षम होते हैं। जो लोग तुलनात्मक रूप से सीधे-सच्चे होते हैं वे कभी भी दूसरों की भरपूर प्रशंसा नहीं करते। भले ही वे दिल से तुम्हारी तारीफ करते हों लेकिन वे इसे खुलकर नहीं कहेंगे और अगर उन्हें पता चल जाए कि तुम में खामियाँ हैं या तुमने कुछ गलत किया है तो वे इसके बारे में तुम्हें बताएँगे। हालाँकि कुछ लोग सीधे-सच्चे लोगों को पसंद नहीं करते और जब कोई उनकी खामियाँ बताता है या उनकी निंदा करता है तो वे उस व्यक्ति पर अत्याचार करेंगे और उसे निकाल देंगे, और उस व्यक्ति की खामियों और कमियों का फायदा उठाकर निरंतर उसकी आलोचना और निंदा करेंगे। ऐसा करके, क्या वे भले लोगों पर अत्याचार नहीं कर रहे हैं और उन्हें नुकसान नहीं पहुँचा रहे हैं? इस तरह के काम करना और ऐसे भले लोगों को सताना ऐसे काम हैं जिनसे परमेश्वर अत्यधिक घृणा करता है। भले लोगों को सताना एक दुष्टतापूर्ण काम है! और यदि कोई बहुत सारे भले लोगों को सताता है तो वह राक्षस है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सभी के साथ निष्पक्ष और प्रेमपूर्ण व्यवहार करना चाहिए और उन्हें सिद्धांतों के अनुसार मामलों से निपटना चाहिए। विशेषकर जब तुम्हारे आसपास ऐसे लोग हों जो तुम्हारी झूठी तारीफ और चापलूसी करते हों, तुम्हारे इर्द-गिर्द मंडराते हों, तो तुम्हें उनके साथ सही व्यवहार करना चाहिए, प्रेमपूर्वक उनकी सहायता करनी चाहिए, उनसे उनके उचित कार्य करवाने चाहिए और अविश्वासियों की तरह लोगों की झूठी तारीफ नहीं करने देनी चाहिए; अपनी स्थिति और परिप्रेक्ष्य को स्पष्ट रूप से बताओ, उन्हें अपमानित और शर्मिंदा महसूस कराओ ताकि वे दोबारा ऐसा कभी न करें। यदि तुम सिद्धांतों का पालन कर सकते हो और लोगों के साथ अच्छे ढंग से व्यवहार कर सकते हो तो क्या इन तुच्छ विदूषकों और शैतानी किस्म के लोगों को शर्म नहीं आएगी। इससे शैतान को शर्मिंदगी महसूस होगी और परमेश्वर को संतुष्टि मिलेगी। दूसरों की चापलूसी करना पसंद करने वाले लोगों का मानना है कि अगुआ और कार्यकर्ता उन सभी लोगों को पसंद करते हैं जो उनकी चापलूसी करते हैं और जब भी कोई उनकी झूठी तारीफ या चापलूसी करता है तो उनके घमंड की और रुतबे के लिए उनकी इच्छा की तृप्ति होती है। सत्य से प्रेम करने वाले लोगों को यह सब पसंद नहीं आता है, और वे इन सबको नापसंद करते हैं और इन सबसे अत्यधिक घृणा करते हैं। केवल झूठे अगुआओं को ही चापलूसी में आनंद आता है। परमेश्वर का घर शायद उनकी सराहना या प्रशंसा न करे, परन्तु यदि परमेश्वर के चुने हुए लोग उनकी सराहना और प्रशंसा करते हैं तो उन्हें बहुत खुशी मिलती है और वे इसका भरपूर आनंद उठाते हैं, और अंततः उन्हें इससे कुछ सांत्वना भी मिलती है। मसीह-विरोधियों को झूठी तारीफ से और भी अधिक खुशी मिलती है और उन्हें सबसे अधिक आनंद तब मिलता है जब इस तरह के लोग उनके करीब आते हैं और उनके इर्द-गिर्द मंडराते हैं। क्या यह परेशानी वाली बात नहीं है? मसीह-विरोधी ऐसे ही होते हैं; उन्हें लोगों से अपनी प्रशंसा और सराहना करवाना, अपनी आराधना करवाना और अपना अनुसरण करवाना पसंद आता है, जबकि सत्य का अनुसरण करने वाले और अपेक्षाकृत सीधे-सच्चे लोगों को इनमें से कुछ भी पसंद नहीं आता है। तुम्हें उन लोगों के करीब जाना चाहिए जो तुमसे सच्ची बात कह सकें; इस तरह के लोगों का साथ होना तुम्हारे लिए बहुत फायदेमंद है। खास तौर पर ऐसे लोगों का तुम्हारे आसपास होना तुम्हें भटकने से बचा सकता है जो तुममें किसी समस्या का पता चलने पर तुम्हें डाँटने-फटकारने और तुम्हें उजागर करने का साहस रखते हों। उन्हें तुम्हारे रुतबे से कोई फर्क नहीं पड़ता है, और जिस पल उन्हें पता चलता है कि तुमने सत्य सिद्धांतों के विरुद्ध कुछ किया है, तो आवश्यक होने पर वे तुम्हें फटकारेंगे और तुम्हें उजागर भी करेंगे। केवल ऐसे लोग ही सीधे-सच्चे और न्यायप्रिय लोग होते हैं और चाहे वे तुम्हें कैसे भी उजागर करें और कैसे भी तुम्हें डाँटें-फटकारें, यह सब तुम्हारी मदद करने, तुम्हारी निगरानी करने और तुम्हें आगे बढ़ाने के लिए होता है। तुम्हें ऐसे लोगों के करीब जाना चाहिए; ऐसे लोगों को अपने साथ रखने से, ऐसे लोगों की मदद से, तुम अपेक्षाकृत अधिक सुरक्षित हो जाते हो—परमेश्वर की सुरक्षा पाने का भी यही अर्थ है। सत्य समझने वाले और सिद्धातों का पालन करने वाले लोगों का तुम्हारे साथ होना और रोजाना तुम्हारी निगरानी करना, तुम्हारे लिए अपना कर्तव्य निभाने और अच्छे से काम करने के लिए बहुत फायदेमंद है। तुम्हें उन धूर्त, धोखेबाज लोगों को अपना सहायक बिल्कुल नहीं बनाना चाहिए जो तुम्हारी चापलूसी करते हैं और तुम्हारी झूठी तारीफ करते हैं; इस तरह के लोगों का तुम्हारे साथ चिपके रहना अपने ऊपर बदबूदार मक्खियों को बैठने देने के समान है, इससे तुम बहुत सारे जीवाणुओं और विषाणुओं के संपर्क में आ जाओगे! ऐसे लोग तुम्हें परेशान कर सकते हैं और तुम्हारे काम को प्रभावित कर सकते हैं, वे तुम्हें प्रलोभन में फंसाकर भटका सकते हैं और वे तुम्हारे लिए आपदा और विपत्ति ला सकते हैं। तुम्हें उनसे दूर रहना चाहिए, जितना ज्यादा दूर रहोगे उतना बेहतर होगा, और यदि तुम यह जान सको कि उनमें छद्म-विश्वासियों का सार है और उन्हें कलीसिया से बाहर निकाल सको तो और भी बेहतर होगा। एक बार जब सत्य का अनुसरण करने वाला कोई सीधा-सच्चा व्यक्ति यह देखता है कि तुम में कोई समस्या है तो वह तुम्हें सत्य बताएगा, चाहे तुम्हारा रुतबा कुछ भी हो, चाहे तुम उसके साथ कैसा भी व्यवहार करो, और भले ही तुम उसे बरखास्त कर दो। वह कभी भी इसे छुपाने या झूठ बोलने की कोशिश नहीं करेगा। अपने आसपास ऐसे बहुत से लोगों को रखना काफी फायदेमंद होता है! जब तुम ऐसा कुछ करते हो जो सिद्धांतों के विरुद्ध है, तो वे तुम्हें उजागर कर देंगे, तुम्हारी समस्याओं पर राय देंगे, और स्पष्ट रूप से और ईमानदारी से तुम्हारी समस्याएँ और त्रुटियाँ बताएँगे; वे तुम्हारी इज्जत बचाने में मदद करने की कोशिश नहीं करेंगे, और तुम्हें बहुत सारे लोगों के सामने शर्मिंदगी से बचने का मौका भी नहीं देंगे। तुम्हें ऐसे लोगों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए? क्या तुम्हें उन्हें सजा देनी चाहिए या उनके करीब जाना चाहिए? (उनके करीब जाना चाहिए।) सही है। तुम्हें उनके साथ दिल खोलकर बात करनी चाहिए और उनके साथ यह कहते हुए संगति करनी चाहिए, “तुमने मेरी जिस समस्या के बारे में बताया वह सही थी। उस समय, मैं घमंड और रुतबे के विचारों से भरा था। मुझे लगा कि मैं इतने सालों से अगुआ रहा हूँ, इसके बावजूद तुमने न केवल मेरी इज्जत बचाने की कोशिश नहीं की, बल्कि इतने सारे लोगों के सामने मेरी समस्याएँ भी बताई, और इसलिए मैं इसे स्वीकार नहीं कर सका। हालाँकि, अब मुझे दिखाई देता है कि मैंने जो किया वो वास्तव में सिद्धांतों और सत्य के विरुद्ध था, और मुझे वह नहीं करना चाहिए था। अगुआ का पद होने के क्या मायने होते हैं? क्या यह बस मेरा कर्तव्य नहीं है? हम सभी अपना कर्तव्य निभा रहे हैं और हम सबका रुतबा एक समान है। केवल अंतर यह है कि मेरे कंधों पर थोड़ी ज्यादा जिम्मेदारी है, बस इतना ही। यदि तुम्हें भविष्य में किसी समस्या का पता चले तो जो तुम्हें कहना हो कह देना, और हमारे बीच कोई व्यक्तिगत द्वेष नहीं होगा। अगर सत्य की हमारी समझ में अंतर है तो हम एक साथ संगति कर सकते हैं। परमेश्वर के घर में और परमेश्वर और सत्य के सामने, हम एक होंगे, अलग-अलग नहीं।” यह सत्य का अभ्यास करने और उससे प्रेम करने का रवैया है। यदि तुम मसीह-विरोधी के मार्ग से दूर रहना चाहते हो तो तुम्हें क्या करना चाहिए? तुम्हें ऐसे लोगों के करीब आने की पहल करनी चाहिए जो सत्य से प्रेम करते हैं, जो ईमानदार हैं, ऐसे लोगों के करीब आना चाहिए जो तुम्हारी समस्याएँ बता सकते हैं, जो तुम्हारी समस्याओं का पता चलने पर सच बोल सकते हैं और तुम्हें डांट-फटकार सकते हैं, और विशेष रूप से ऐसे लोगों के जो तुम्हारी समस्याओं का पता चलने पर तुम्हारी काट-छाँट कर सकते हैं—ये वे लोग हैं जो तुम्हारे लिए सबसे अधिक फायदेमंद हैं और तुम्हें उन्हें संजोना चाहिए। यदि तुम ऐसे अच्छे लोगों को छोड़ देते हो और उनसे छुटकारा पा लेते हो तो तुम परमेश्वर की सुरक्षा गँवा दोगे और आपदा धीरे-धीरे तुम्हारे पास आ जाएगी। अच्छे लोगों और सत्य को समझने वाले लोगों के करीब आने से तुम्हें शांति और आनंद मिलेगा, और तुम आपदा को दूर रख सकोगे; बुरे लोगों, बेशर्म लोगों और तुम्हारी चापलूसी करने वाले लोगों के करीब आने से तुम खतरे में पड़ जाओगे। न केवल तुम आसानी से ठगे और छले जाओगे, बल्कि तुम पर कभी भी आपदा आ सकती है। तुम्हें पता होना चाहिए कि किस तरह के लोग तुम्हारे लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद हो सकते हैं—ये वे लोग हैं जो तुम्हारे कुछ गलत करने पर, या जब तुम अपनी बड़ाई करते हो और अपने बारे में गवाही देते हो और दूसरों को गुमराह करते हो तो, तुम्हें चेतावनी दे सकते हैं, इससे तुम्हें सर्वाधिक फायदा हो सकता है। ऐसे लोगों के करीब जाना ही सही मार्ग है। क्या तुम लोग इसके लिए सक्षम हो? यदि कोई ऐसा कुछ कहता है जिससे तुम्हारी प्रतिष्ठा नष्ट होती है और तुम अपना शेष जीवन उससे नाराज होकर यह कहते हुए बिताते हो, “तुमने मुझे उजागर क्यों किया? मैंने तुम्हारे साथ कभी गलत व्यवहार नहीं किया। तुम सदैव मेरे लिए चीजें मुश्किल क्यों कर देते हो?” और तुम्हारे दिल में द्वेष पैदा हो जाता है, रिश्तों में दरार पड़ जाती है और तुम हमेशा सोचते हो, “मैं अगुआ हूँ, मेरी यह पहचान है और मेरा यह रुतबा है, और मैं तुम्हें इस तरह से बात करने की अनुमति नहीं दूँगा,” तो यह किस तरह की अभिव्यक्ति है? यह सत्य स्वीकार नहीं करना और स्वयं को दूसरों के विरोध में खड़ा करना है; यह कुछ हद तक अक्ल के अंधे होने जैसा है। क्या यह रुतबे को लेकर तुम्हारी सोच नहीं है जो मुसीबत खड़ी कर रही है? यह दर्शाता है कि तुम्हारे भ्रष्ट स्वभाव बेहद गंभीर हैं। जो लोग सदैव रुतबे के बारे में सोचते रहते हैं वे घोर मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोग होते हैं। यदि वे बुरे काम भी करेंगे, तो बहुत जल्द उनका खुलासा हो जाएगा और उन्हें हटा दिया जाएगा। लोगों के लिए सत्य को ठुकराना और उसे स्वीकार न करना बहुत ख़तरनाक है! हमेशा रुतबे के लिए होड़ करने की इच्छा रखना और रुतबे के लाभों का लालच करना खतरे के संकेत हैं। जब किसी का दिल हमेशा रुतबे से बेबस रहता है तो क्या वह अभी भी सत्य का अभ्यास कर सकता है और सिद्धांतों के अनुसार चीज़ों को संभाल सकता है? यदि कोई व्यक्ति सत्य पर अमल करने में असमर्थ है और हमेशा प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के लिए काम करता है और हमेशा चीजों को करने के लिए अपनी शक्ति का उपयोग करता है तो क्या वह स्पष्ट रूप से मसीह-विरोधी नहीं है जो अपना असली रंग दिखा रहा है?
अपनी बड़ाई करने और अपने बारे में गवाही देने की ऐसी अभिव्यक्तियाँ मसीह-विरोधियों की सर्वाधिक आम अभिव्यक्तियाँ हैं। चाहे यह रोजाना के जीवन में हो या जिस तरह से वे दूसरों के साथ व्यवहार करते हैं, या चाहे यह कलीसियाई जीवन में हो, इन अभिव्यक्तियों को सदैव देखा जा सकता है, क्योंकि ये अभिव्यक्तियाँ भ्रष्ट स्वभावों का प्रकटन होती हैं। उदाहरण के लिए, किसी व्यक्ति का अपने कर्तव्य के प्रति कैसा दृष्टिकोण है, कोई व्यक्ति दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करता है, और वह दूसरों को कैसे पहचानता है, इनसे संबंधित सत्यों पर हमने संगति में चर्चा की है। क्या ऐसा है कि तुम लोगों को अपने सामान्य जीवन में इन चीजों की ठोस अभिव्यक्तियों का पता है, लेकिन तुम उन्हें समस्याओं के रूप में नहीं देख पाते हो? या फिर क्या ऐसा है कि तुमने इन विशिष्ट समस्याओं के आधार पर प्रवेश करने का निर्णय नहीं लिया है? यदि तुम लोग स्वभावों से आरंभ नहीं करते हो, या तुम कभी-कभार इन अभिव्यक्तियों को प्रदर्शित करते हो, फिर भी तुम्हें नहीं पता कि वे स्वभावगत समस्याएँ हैं या नहीं, और इसलिए तुम उन्हें नजरंदाज करते हो, फिर तुम स्वभावगत बदलाव लाने के आसपास भी कहीं नहीं हो। यदि तुम यह समझने में विफल रहते हो कि ये अभिव्यक्तियाँ तुम्हारे अपनी बड़ाई करने और अपने बारे में गवाही देने के बारे में हैं, यदि तुम्हें नहीं पता कि ये अभिव्यक्तियाँ तुम्हारे भ्रष्ट स्वभाव द्वारा नियंत्रित हो रही हैं, और तुम उन्हें एक प्रकार की व्यक्तित्व विशेषता या चीजों को करने का एक सहज तरीका या संज्ञान मानते हो, और उन्हें कम तरजीह देते हो, और तुम उन्हें अपने भ्रष्ट स्वभाव और भ्रष्ट सार के खुलासों के रूप में नहीं लेते हो, तो तुम्हें ऐसे भ्रष्ट स्वभाव को बदलने में कठिनाई होगी। जिसे लोग स्वभावों से संबंधित समझ सकते हैं, चाहे वह चीजों को करने का तरीका हो या उनकी अपनी दशा हो, चाहे वह बाहरी व्यवहार हो या उनका भाषण और कथन, चाहे वह उनके विचार और दृष्टिकोण हों या किसी खास विषय को लेकर उनकी समझ हो, अगर यह स्वभाव और सार से संबंधित है, उन्हें इसे हमेशा मनुष्य के प्रकृति सार के मूर्त रूप या खुलासे मानना चाहिए, और इस तरह, क्या उनकी समझ व्यापक नहीं हो जाएगी? उन्हें केवल बड़ी-बड़ी बातें ही नहीं समझनी चाहिए, जैसे कि कोई व्यक्ति परमेश्वर का विरोध करता है, सत्य से प्रेम नहीं करता है, रुतबे का लालची है, या अपनी बातों से लोगों को गुमराह करता है, बल्कि विशिष्ट विचारों और इरादों जैसी छोटी-छोटी चीजों से लेकर तर्क या कथन जैसी बड़ी चीजों तक सब कुछ समझना चाहिए। मैंने अभी कुल मिलाकर छह बातें बताईं, जिनमें विचार और दृष्टिकोण के साथ-साथ किसी खास विषय पर व्यक्ति की समझ भी शामिल थी। विचार और दृष्टिकोण ऐसी चीजें हैं जो व्यक्ति की चेतना और सोच के भीतर विद्यमान होती हैं; समझ ऐसी चीज है जिसे पहले से ही पहचाना जा चुका है और जिसके बारे में व्यक्ति ठोस शब्द और कथन बना सकता है; फिर व्यवहार और भाषा आती है। कुल मिलाकर ये चार चीजें हैं। कथन और तर्क भी हैं। कथन और तर्क किसके विपरीत हैं? (इरादों और विचारों के।) विचार अस्पष्ट चीजें हैं जो अनजाने में मस्तिष्क में उत्पन्न होती हैं। उन्हें अभी तक सही या गलत के रूप में परिभाषित नहीं किया गया है, तुम बस उन्हें सोचते हो, और उन्होंने अभी तक तुम्हारे भीतर आकार नहीं लिया है, जबकि बोले गए तर्क बनाए जाते हैं। कुल मिलाकर तीन समूह और छह चीजें हैं। इन छह चीजों को अपने भ्रष्ट स्वभावों के सार का गहन-विश्लेषण करने और स्वभावगत बदलाव लाने के मार्ग के रूप में लो, अब से इन छह चीजों से अपने भ्रष्ट स्वभावों और भ्रष्ट सार को जानने का प्रयास करो, और इस प्रकार तुम सही में स्वयं को जान पाओगे।
आज की संगति सुनने के बाद क्या तुम लोगों को इन बातों को आत्मसात करने के लिए कुछ समय चाहिए? जब तुम लोग एक साथ इकट्ठा होते हो, तो क्या तुम इस बुनियाद पर कुछ प्रकाश डाल सकते हो या खुद से इसकी तुलना कर सकते हो? यह महत्वपूर्ण है, और यह तुम्हारे लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद है। जब तुम लोग एक साथ इकट्ठा होते हो, तो तुम लोगों को संगति करने, विचारों का आदान-प्रदान करने और अपने अनुभवों और अनुभूतियों पर चर्चा करने की आवश्यकता होती है—यह सबसे प्रभावी है। हम पहले हमेशा “विचार करना” शब्द का प्रयोग करते थे; बोलचाल की भाषा में, हम कहते हैं, “चिंतन-मनन करना।” इसका अर्थ है अधिक पढ़ना, अधिक प्रार्थना-पढ़ना, अधिक सोचना, और अधिक खोजना, उस समय जो तुमने समझा था उसे ग्रहण करना, साथ ही जो तुम नहीं समझ पाए थे और जिन्हें तुमने धर्म-सिद्धांत, महत्वपूर्ण बिंदु, और ऐसे मुद्दे माना था जिन्हें हर किसी ने गलत समझा था, और जिन मुद्दों को तुमने नहीं समझा था, और उन सभी पर संगति में ध्यान केंद्रित करना—यही “चिंतन-मनन करने” का अर्थ है। इस तरह, इन सत्यों के विवरण, सत्यों के बीच विभिन्न अंतरों और प्रत्येक सत्य की परिभाषाओं के बारे में तुम्हारी समझ अधिक स्पष्ट और सटीक हो जाएगी। तुम लोगों को क्या लगता है कि हाल के वर्षों में तुमने जिन विभिन्न सत्यों को समझा और व्यवहार में लाया है, वे पहले की तुलना में अधिक अस्पष्ट हो गए हैं या स्पष्ट हुए हैं? (स्पष्ट हुए हैं।) और इन वर्षों में, क्या परमेश्वर में तुम लोगों की आस्था के मार्ग में, अपने आचरण की दिशा में, और अपना कर्तव्य निभाने के पीछे के इरादे, प्रेरणा और मूल प्रोत्साहन में कोई बड़ा बदलाव आया है? (परमेश्वर द्वारा थोड़ी ताड़ना और अनुशासन से गुजरने, और परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने के बाद, मुझे लगता है कि कुछ बदलाव आया है।) यह सही है कि बदलाव हुआ है और ऐसा ही होना चाहिए। कुछ लोग शुरू से ही उदासीन रहे हैं और इतने सारे धर्मोपदेश सुनने के बाद भी उनमें रत्ती भर भी बदलाव नहीं आया है। वे अपने अंतरमन में प्रेरित नहीं होते, अर्थात्, कोई भी सभा या संगति उनकी वह दिशा नहीं बदल सकती जिसमें वे जा रहे हैं—वे बहुत सुन्न और मंदबुद्धि हैं! उद्धार पाने का मार्ग अब अधिकाधिक स्पष्ट होता जा रहा है, और अनुभवी लोग साफ-साफ देख रहे हैं कि किस प्रकार परमेश्वर मनुष्य को बचाता है, और ऐसा करने में उसका क्या उद्देश्य है। अगर इतने सालों तक परमेश्वर पर विश्वास करने के बाद भी तुम नहीं जानते कि परमेश्वर लोगों को कैसे बचाता है और उन्हें भ्रष्टता से कैसे शुद्ध करता है, तो यह दर्शाता है कि तुममें सत्य की कोई समझ नहीं है और परमेश्वर के कार्य की थोड़ी सी भी समझ नहीं है। क्या ऐसे लोग अपनी आस्था में संभ्रमित नहीं हैं?
20 मार्च 2019