मद दो : वे विरोधियों पर आक्रमण करते हैं और उन्हें निकाल देते हैं

हमने लोगों को नियंत्रित करने के मसीह-विरोधियों के तरीकों की पहली अभिव्यक्ति, लोगों के दिल जीतने के बारे में संगति कर ली है और अब हम दूसरी अभिव्यक्ति के बारे में संगति करेंगे। लोगों को नियंत्रित करने के लिए मसीह-विरोधी जो दूसरा तरीका उपयोग करते हैं वह है विरोधियों पर आक्रमण करना और उन्हें निकालना। पहले तरीके में लोगों को गुमराह करना और उनके दिलों को जीतना शामिल होता है; ऐसा कोई व्यक्ति जब बात करेगा तो सतही तौर पर वह बहुत नरमी से और मानवीय धारणाओं के अनुरूप बोलता हुआ प्रतीत होगा और दूसरों को कोई नुकसान पहुँचाता हुआ नहीं लगेगा; वह अपेक्षाकृत चतुर और अस्पष्ट होगा; दूसरे लोग उसके बुरे इरादों और दुर्भावनापूर्ण, खूनी और लड़ाकू अभिव्यक्तियों को नहीं देख पाते; और वह केवल शातिर तरीकों का उपयोग करता है। दूसरा तरीका अधिक स्पष्ट होता है, यानी विरोधियों पर आक्रमण करना और उन्हें निकालना। “आक्रमण करना और निकालना” जैसे शब्दों के अर्थ से कोई यह बता सकता है कि वे सकारात्मक नहीं बल्कि अपमानजनक शब्द हैं। आक्रमण करने और निकालने का यह तरीका कुछ ऐसा है कि यह स्पष्ट रूप से सार्वजनिक होता है और हर कोई इसे देख सकता है। यह ऐसे ही है जैसे झगड़ालू लोग सड़क पर डांट-डपट कर रहे हों, एक दूसरे की कमियों को उजागर कर रहे हों, जिनकी बातें बेबाक और साफ होती हैं और जिन्हें सुनने वाले सारे लोग समझते हैं। उनके शब्दों में एक निश्चित आक्रामकता होती है, जिनसे कोई सहनशीलता नहीं झलकती बल्कि आक्रमण करने की पहल का पता चलता है। मसीह-विरोधियों द्वारा लोगों का सार्वजनिक दमन, लोगों को निकालना, लोगों के विरुद्ध हमले, और लोगों की समस्याएँ उजागर करना, सब निशाना बनाने के लिए होते हैं। निस्संदेह, वे ऐसे साधनों का उपयोग उन लोगों को निशाना बनाने के लिए करते हैं, जो सत्य का अनुसरण करते हैं और उन को पहचान सकते हैं। इन लोगों को तोड़कर वे अपनी स्थिति मजबूत करने का लक्ष्य हासिल करते हैं। इस तरह से लोगों पर आक्रमण कर उन्हें निकाल देना एक दुर्भावनापूर्ण प्रकृति का कार्य है। उनकी भाषा और बोलने के तरीके में आक्रामकता होती है : उजागर करना, निंदा करना, बदनामी करना और दुष्टतापूर्वक चरित्रहनन करना। यहाँ तक कि वे तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करते हैं, सकारात्मक चीजों के बारे में ऐसे बोलते हैं, मानो वे नकारात्मक हों और नकारात्मक चीजों के बारे में ऐसे, मानो वे सकारात्मक हों। इस तरह काले और सफेद को उलटना और सही और गलत को मिश्रित करना मसीह-विरोधियों का लोगों को हराने और उनका नाम खराब करने का लक्ष्य पूरा करता है। कौन सी मानसिकता विरोधियों पर इस आक्रमण और उन्हें निकाल देने को जन्म दे रही है? ज्यादातर समय यह ईर्ष्यालु मानसिकता से आता है। शातिर स्वभाव में ईर्ष्या के साथ तीव्र घृणा रहती है; और अपनी ईर्ष्या के परिणामस्वरूप मसीह-विरोधी लोगों पर आक्रमण करते हैं और उन्हें निकाल देते हैं। इस तरह की स्थिति में, अगर मसीह-विरोधियों को उजागर किया जाता है, उनकी रिपोर्ट की जाती है और वे अपनी हैसियत खो देते हैं और उनके दिमाग पर एक वार होता है; तो वे न तो समर्पण करते हैं और न ही इससे खुश होते हैं, और उनके लिए प्रतिशोध की एक मजबूत मानसिकता बनाना और भी आसान हो जाता है। बदला एक तरह की मानसिकता है, और वह एक तरह का भ्रष्ट स्वभाव भी है। जब मसीह-विरोधी देखते हैं कि किसी ने जो किया है, वह उनके लिए नुकसानदेह है, कि दूसरे उनसे ज्यादा सक्षम हैं, या किसी के कथन और सुझाव उनसे बेहतर या समझदारीपूर्ण हैं, और हर कोई उस व्यक्ति के कथनों और सुझावों से सहमत है, तो मसीह-विरोधी महसूस करते हैं कि उनका पद खतरे में है, उनके दिलों में ईर्ष्या और घृणा पैदा हो जाती है, और वे आक्रमण कर बदला लेते हैं। बदला लेते समय मसीह-विरोधी आम तौर पर अपने लक्ष्य पर पूर्वनिर्धारित वार करते हैं। वे तब तक लोगों पर आक्रमण करने और उन्हें तोड़ने में सक्रिय रहते हैं, जब तक दूसरा पक्ष समर्पण नहीं कर देता। तब जाकर उन्हें लगता है कि उनकी भड़ास निकल गई। लोगों पर आक्रमण और उन्हें निकालने की और क्या अभिव्यक्तियाँ होती हैं? (दूसरों को नीचा दिखाना।) दूसरों को नीचा दिखाना इसे अभिव्यक्त करने के तरीकों में से एक है; चाहे तुम कितना भी अच्छा काम करो, मसीह-विरोधी फिर भी तुम्हें नीचा दिखाएँगे या तुम्हारी निंदा करेंगे, जब तक कि तुम नकारात्मक, कमजोर और खड़े होने में अक्षम नहीं हो जाते। तब वे प्रसन्न होंगे, और उन्होंने अपना लक्ष्य पूरा कर लिया होगा। क्या निंदा करना दूसरों को नीचा दिखाने के अर्थ का एक हिस्सा है? (हाँ।) मसीह-विरोधी लोगों की निंदा कैसे करते हैं? वे राई का पहाड़ बनाते हैं। उदाहरण के लिए, तुमने कुछ ऐसा किया जो कोई समस्या नहीं थी, लेकिन वे इस मामले को बढ़ा चढ़ा कर पेश करना चाहते हैं ताकि तुम पर आक्रमण कर सकें, इसलिए वे तुम पर कीचड़ उछालने के तमाम तरीकों के बारे में सोचते हैं, और राई का पहाड़ बनाकर तुम्हारी निंदा करते हैं, ताकि सुनने वाले लोग सोचें कि मसीह-विरोधी जो कहते हैं, उसमें दम है और तुमने जरूर कुछ गलत किया है। इसके साथ, मसीह-विरोधी अपना लक्ष्य पूरा कर लेते हैं। यह है विरोधियों की निंदा करना, उन पर आक्रमण करना और उन्हें निकालना। निकालने का क्या अर्थ है? इसका अर्थ यह है कि अपने दिल में वे जानते हैं कि तुमने जो कुछ किया है वह सही था, परन्तु वे तुमसे ईर्ष्या और घृणा करते हैं, जानबूझकर तुम पर आक्रमण करने का प्रयास करते हैं, इसलिए वे कहते हैं कि तुमने जो किया वह गलत था। फिर वे तुम्हें बहस में हराने के लिए अपने विचारों और भ्रांतियों का उपयोग करेंगे, और सम्मोहक तरीके से बोलेंगे ताकि सुनने वाले सभी लोगों को लगे कि उनकी बात सही है और अच्छी तरह से कही गई है; तब, वे सभी लोग उनकी हाँ में हाँ मिलाएँगे और तुम्हारे विरोध में उनके पक्ष में खड़े हो जाएँगे। मसीह-विरोधी इसका उपयोग तुम पर आक्रमण करने, तुम्हें नकारात्मक और कमजोर बनाने के लिए करते हैं। इससे वे विरोधियों पर आक्रमण कर उन्हें निकालने का अपना लक्ष्य हासिल कर लेते हैं। विरोधियों को निकालना कभी-कभी आमने-सामने बहस के रूप में हो सकता है या कभी-कभी किसी के बारे में फैसला करके, आलोचना करके, विवाद खड़ा करके, उनकी बदनामी करके और पीठ पीछे उनके बारे में बातें बनाने के रूप में ऐसा किया जाता है। उदाहरण के लिए, जब कोई मसीह-विरोधी किसी विरोधी को निकालना चाहता है, तो वह सबसे पहले यह पता लगाता है कि इस विरोधी की किसके साथ सबसे अच्छी बनती है। फिर वह उस व्यक्ति के पास जाता है और कहता है : “तुम्हें पता है, फलां व्यक्ति कह रहा था कि तुम्हारे अंदर काबिलियत की कमी है, तुम्हारी समझने की क्षमता कम है और तुम्हारे पास आध्यात्मिक समझ नहीं है और तुम अपने कर्तव्य बिना सिद्धांतों के करते हो। मैंने उनसे बहस की क्योंकि मेरा मानना है कि तुम वास्तव में बहुत अच्छे इंसान हो।” इस तरह से कलह का बीज बोने से इन दोनों लोगों का आपसी संबंध खराब हो जाता है। मसीह-विरोधी एक तरफ खड़े रहकर लगातार कलह की आग को हवा देता रहता है जब तक कि रिश्ता पूरी तरह से टूट न जाए। इस तरह मसीह-विरोधी लोगों और उस विरोधी के बीच कलह का बीज बोता है जिससे लोग विरोधी से दूरी बनाए रखते हैं और इस तरह वह उन्हें अलग-थलग करने का लक्ष्य पूरा करता है। वह तब तक विरोधियों के खिलाफ लाभ उठाने के मौके तलाशता रहता है जब तक कि वह पराजित नहीं हो जाता और उसका नाम खराब नहीं हो जाता। मसीह-विरोधी इस गतिविधि को किसी प्रतिद्वंद्वी को हराने के रूप में देखता है ताकि वह व्यक्ति उसकी हैसियत के लिए कोई खतरा न बने। मसीह-विरोधी का मानना होता है कि किसी विरोधी को दबाकर रखना सबसे अच्छा है, लेकिन अगर उन्हें दबाकर नहीं रखा जा सकता तो फिर मसीह-विरोधी उन्हें अलग-थलग करने और फिर उन्हें निकालने के लिए हर संभव प्रयास करता है। अगर उन्हें निकाला नहीं जा सकता, तो फिर मसीह-विरोधी उन्हें अलग-थलग करना जारी रखता है और अंततः उन्हें झुकने और दया के लिए भीख माँगने पर मजबूर कर देता है। मसीह-विरोधी उन लोगों पर आक्रमण करने के लिए कुछ ताकतों को आकर्षित करके उनका उपयोग करता है जो सत्य का अनुसरण करते हैं या जिनकी राय उसकी अपनी राय के अनुरूप नहीं होती। वे कलीसिया को बर्बाद करते हैं और उसे गुटों में बाँट देते हैं, और अंततः कलीसिया दो या तीन गुटों में विभाजित हो जाता है—एक वह गुट जो उनकी बात सुनता है, एक जो उनकी नहीं सुनता और एक जो तटस्थ रहता है। उनके “शानदार” मार्गदर्शन के तहत अधिक से अधिक लोग उनकी बात सुनते हैं और ऐसे लोग कम ही होते हैं जो उनकी बात नहीं सुनते। पहले से अधिक लोग उनके सामने हथियार डाल देते हैं और मसीह-विरोधी से हट कर अलग राय रखने वाले लोग अलग-थलग पड़ जाते हैं और बोलने की हिम्मत नहीं करते। पहले से कम लोग ही उन्हें पहचान पाते या उनका विरोध कर पाते हैं और इस तरह मसीह-विरोधी धीरे-धीरे कलीसिया में अधिकांश लोगों पर नियंत्रण करके अधिकार की स्थिति को हासिल कर लेता है। यही वह लक्ष्य है जिसे मसीह-विरोधी प्राप्त करना चाहता है। जब मसीह-विरोधी उन लोगों के साथ व्यवहार करता है जिनकी राय उससे भिन्न होती है तो वह बिल्कुल भी सहिष्णुता नहीं दिखाता। वह सोचता है : “भले ही तुम्हारी राय मुझ से अलग है, फिर भी तुम्हें मेरी अगुआई के प्रति समर्पण करना होगा, क्योंकि अब अंतिम फैसला मेरा ही चलेगा। तुम मेरे नीचे हो। अगर तुम अजगर हो, तो तुम्हें कुण्डली मार कर बैठ जाना चाहिए; अगर बाघ हो, तो तुम्हें पेट के बल लेट जाना चाहिए; चाहे तुम्हारे पास जो भी क्षमताएँ हों, जब तक मैं यहाँ हूँ, तुम मुझसे ऊपर होने या किसी तरह की मुसीबत खड़ी करने के बारे में भूल ही जाओ!” यही वह लक्ष्य है जिसे मसीह-विरोधी प्राप्त करना चाहता है—कलीसिया को एकतरफा रूप से नियंत्रित करना और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नियंत्रित करना।

जब कोई मसीह-विरोधी किसी विरोधी पर आक्रमण करके उसे निकाल देता है, तो उसका मुख्य उद्देश्य क्या होता है? वे लोग कलीसिया में एक ऐसी स्थिति पैदा करने का प्रयास करते हैं जहाँ उनकी आवाज के विरोध में कोई आवाज न उठे, जहाँ उनकी सत्ता, उनकी अगुआई का दर्जा और उनके शब्द सब सर्वोपरि हों। सभी को उनकी बात माननी चाहिए, भले ही उनमें मतभेद हो, उन्हें इसे व्यक्त नहीं करना चाहिए, बल्कि इसे अपने दिल में सड़ने देना चाहिए। जो कोई भी उनके साथ खुले तौर पर असहमत होने का साहस करता है, वह मसीह-विरोधी का दुश्मन बन जाता है, वे सोचते रहते हैं कि किसी भी तरह उनके लिए हालात को मुश्किल बना दिया जाए और उन्हें गायब कर देने के लिए बेचैन रहते हैं। यह उन तरीकों में से एक है जिसके जरिए मसीह-विरोधी अपने रुतबे को मजबूत करने और अपनी सत्ता की रक्षा के लिए विरोध करने वालों पर आक्रमण कर उन्हें निकाल देते हैं। वे सोचते हैं, “तुम्हारी राय मुझसे अलग हो सकती है, लेकिन तुम उसके बारे में मनचाही बातें नहीं बना सकते, मेरी सत्ता और हैसियत को जोखिम में तो बिल्कुल नहीं डाल सकते। अगर कुछ कहना है, तो मुझसे अकेले में कह सकते हो। यदि तुम सबके सामने कहकर मुझे शर्मिंदा करोगे तो मुसीबत को बुलावा दोगे, और मुझे तुम्हारा ध्यान रखना पड़ेगा!” यह किस प्रकार का स्वभाव है? मसीह-विरोधी दूसरों को खुलकर नहीं बोलने देते। अगर उनकी कोई राय होती है—फिर वह चाहे मसीह-विरोधी के बारे में हो या किसी और चीज के बारे में—तो वे खुद उसे यूँ ही सामने नहीं ला सकते; उन्हें मसीह-विरोधी के चेहरे के भावों का ख्याल रखना चाहिए। अगर ऐसा नहीं किया, तो मसीह-विरोधी उन्हें शत्रु मानेगा और उन पर आक्रमण कर उन्हें निकाल देगा। यह किस तरह की प्रकृति है? यह एक मसीह-विरोधी की प्रकृति है। और वे ऐसा क्यों करते हैं? वे कलीसिया के लिए किसी वैकल्पिक आवाज की अनुमति नहीं देते, वे कलीसिया में अपने विरोधी को नहीं रहने देते, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को खुले तौर पर सत्य की संगति और लोगों की पहचान नहीं करने देते। वे सबसे ज्यादा इस बात से डरते हैं कि कहीं लोग उन्हें पहचानकर उजागर न कर दें; वे लगातार अपनी सत्ता और लोगों के दिलों में अपनी हैसियत को मजबूत करने की कोशिश में लगे रहते हैं, उन्हें लगता है हैसियत हमेशा बनी रहनी चाहिए। वे ऐसी कोई चीज बरदाश्त नहीं कर सकते, जो एक अगुआ के रूप में उनके गौरव, प्रतिष्ठा या हैसियत और मूल्य को धमकाए या उस पर असर डाले। क्या यह मसीह-विरोधियों की दुर्भावनापूर्ण प्रकृति की अभिव्यक्ति नहीं है? वे पहले से मौजूद अपनी ताकत से संतुष्ट नहीं होते, वे उसे भी मजबूत और सुरक्षित बनाकर शाश्वत सत्ता चाहते हैं। वे केवल लोगों के व्यवहार को ही नियंत्रित नहीं करना चाहते, बल्कि उनके दिलों को भी नियंत्रित करना चाहते हैं। मसीह-विरोधियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले ये तरीके पूरी तरह से अपनी सत्ता और हैसियत की रक्षा करने के लिए होते हैं, और ये पूरी तरह सत्ता से चिपके रहने की उनकी इच्छा का परिणाम है। अगर मसीह-विरोधी खुलेआम ईमानदारी से और सत्य के अनुरूप कार्य करते, तो फिर वे दूसरों के बोलने, उनके भिन्न सुझाव देने और उन्हें उजागर करने से क्यों डरते? ऐसा इसलिए है क्योंकि उनके इरादे पापपूर्ण हैं और उनकी अंतरात्मा अपराधबोध से ग्रस्त है। मसीह-विरोधी जानते हैं कि उन्होंने बहुत सारे बुरे कर्म किए हैं और एक बार अगर वे उजागर हो गए, तो न केवल उन्हें अपनी हैसियत बनाए रखना मुश्किल हो जाएगा, बल्कि उन्हें बाहर निकाले जाने या बहिष्कृत किए जाने का खतरा भी होगा। इसलिए, वे दूसरों को बेबस करने और उन्हें सीमित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते और उन्हें सत्य के बारे में संगति करने और अपने विवेक का प्रयोग करने से रोकते हैं। विशेष रूप से ऐसे लोग जिनमें न्याय की मजबूत भावना है या जो बुरे लोगों को उजागर करने की हिम्मत करते हैं, वे मसीह-विरोधी के लिए काँटा हैं और उन्हें लगातार परेशान करते हैं। मसीह-विरोधी सोचते हैं कि अगर न्याय की भावना रखने वालों को समर्पण करने को मजबूर कर दिया जाए और उन्हें बदनाम कर दिया जाए तो फिर कोई भी उन्हें उजागर करने की हिम्मत नहीं करेगा और असहमति की कोई आवाज नहीं उठेगी, इससे मसीह-विरोधी को सुरक्षित महसूस होता है। यह मसीह-विरोधी की एक सतत रणनीति होती है। वे सत्ता पर अपनी पकड़ को बिल्कुल भी ढीला नहीं करेंगे और इसे मजबूत करने के अपने प्रयासों से कभी पीछे नहीं हटेंगे-वे जो कुछ भी बोलते हैं और जो भी करते हैं, उसका लक्ष्य केवल अपनी सत्ता और हैसियत की रक्षा करना होता है। यह तब विशेष रूप से सच होता है जब कोई विरोधी मौजूद होता है, और मसीह-विरोधी सुन लेता है कि विरोधी ने उसके बारे में कुछ कहा है या उसकी पीठ पीछे उसकी आलोचना की है। अगर बात ऐसी है तो, वह मुद्दा थोड़े समय में ही सुलझा लेगा, भले ही इसके लिए रात की नींद और दिन का खाना ही क्यों न छोड़ना पड़े। ऐसा कैसे है कि वह इतना प्रयास कर सकता है? ऐसा इसलिए है, क्योंकि उसे लगता है कि उसकी हैसियत खतरे में है, कि उसे चुनौती दी गई है। उसे लगता है कि अगर वह ऐसी कार्रवाई नहीं करता, तो उसकी सत्ता और हैसियत खतरे में पड़ जाएगी—कि जब उसके बुरे कर्म और उसका कुत्सित आचरण उजागर हो जाएँगे, तो वह न केवल अपनी हैसियत और सत्ता बनाए रखने में असमर्थ होगा, बल्कि उसे कलीसिया से बाहर या निष्कासित भी कर दिया जाएगा। यही कारण है कि वह इस मामले को दबाने और अपने लिए छिपे सभी खतरे दूर करने के तरीकों के बारे में सोचने में बेहद अधीर रहता है। यही एकमात्र तरीका है, जिससे वह अपनी हैसियत बरकरार रख सकता है। जहाँ तक मसीह-विरोधियों का सवाल है, हैसियत उनके जीवन के लिए प्राण-वायु है। जैसे ही वे सुनते हैं कि कोई उन्हें उजागर करने वाला है या उनकी रिपोर्ट करने वाला है, वे भयभीत होकर विचलित हो जाते हैं, भयभीत इस बात से कि कल वे अपनी हैसियत खो देंगे और फिर कभी न तो उस विशेषाधिकार की भावना का आनंद उठा पाएँगे जो उन्हें हैसियत ने दिया है, न ही हैसियत के लाभ उठा पाएँगे। वे डरते हैं कि अब कोई उनकी बात नहीं मानेगा या उनका अनुसरण नहीं करेगा, कोई उनकी चापलूसी नहीं करेगा या उनके कहे अनुसार काम नहीं करेगा। लेकिन जो बात उनके लिए सबसे असहनीय है, वह सिर्फ यह नहीं है कि वे अपनी हैसियत और सत्ता खो देंगे, बल्कि यह है कि उन्हें हटाया या निकाला भी जा सकता है। अगर ऐसा हो गया, तो हैसियत और सत्ता द्वारा उन्हें मिले तमाम लाभ और विशेषाधिकार की भावनाएँ, और साथ ही परमेश्वर में विश्वास करने से मिलने वाले तमाम आशीषों और पुरस्कारों की आशा एक पल में खत्म हो जाएगी। यह संभावना सहन करना उनके लिए सबसे कठिन है। एक बार जब वे अपनी सत्ता और हैसियत से मिलने वाले लाभ और विशेषाधिकार की भावना को गँवा देते हैं, उनके अच्छे दिन समाप्त हो जाएँगे। साथ ही इतने सारे बुरे कर्म करने के कारण उन पर विपत्ति आएगी और वे परमेश्वर के दंड की प्रतीक्षा करते रहेंगे।

विरोधी क्या होता है? वे कौन लोग होते हैं, जिन्हें मसीह-विरोधी अपना विरोधी समझता है? कम से कम, वे वो लोग होते हैं जो अगुआ के रूप में मसीह-विरोधी को गंभीरता से नहीं लेते; अर्थात् वे उनका आदर या आराधना नहीं करते, जो उन्हें सामान्य व्यक्ति समझते हैं। यह एक किस्म है। फिर ऐसे लोग भी होते हैं, जो सत्य से प्रेम करते हैं, सत्य का अनुसरण करते हैं, अपने स्वभाव में बदलाव लाने की कोशिश करते हैं, और परमेश्वर से प्रेम करने का प्रयास करते हैं; वे मसीह-विरोधी के मार्ग से भिन्न मार्ग अपनाते हैं, और वे मसीह-विरोधी की दृष्टि में विरोधी होते हैं। क्या इसके अलावा भी कोई और होते हैं? (जो लोग हमेशा मसीह-विरोधियों को सुझाव देते रहते हैं और उन्हें उजागर करने का साहस करते हैं।) जो कोई मसीह-विरोधी को सुझाव देने और उसे उजागर करने का साहस करता है, या जिसके विचार उसके विचारों से भिन्न होते हैं, उसे उसके द्वारा विरोधी समझा जाता है। एक किस्म और है : वे जो क्षमता और काबिलियत में मसीह-विरोधी के बराबर होते हैं, जिनकी बोलने और कार्य करने की क्षमता उनके समान होती है, या जिन्हें वे खुद से ऊँचा समझते और पहचानने में सक्षम होते हैं। मसीह-विरोधी के लिए यह असहनीय है, उसकी हैसियत के लिए खतरा है। ऐसे लोग मसीह-विरोधी के सबसे बड़े विरोधी होते हैं। मसीह-विरोधी ऐसे लोगों की उपेक्षा करने की हिम्मत नहीं करता या उनके प्रति जरा भी शिथिल नहीं होता। वह उन्हें अपने लिए एक काँटा समझते हैं जो उन्हें लगातार परेशान करता है और हर समय उनसे सावधान और सँभलकर रहता है और वह अपने हर काम में उनसे बचता है। खासकर तब जब मसीह-विरोधी देखता है कि कोई विरोधी उसे पहचानने वाला और उजागर करने वाला है, तो एक खास दहशत उन्हें जकड़ लेती है; वह इस तरह के विरोधी को निकाल देने और उस पर आक्रमण करने के लिए बेताब हो जाता है, और तब तक संतुष्ट नहीं होता, जब तक कलीसिया से उस विरोधी को हटा नहीं देता। ऐसी मानसिकता और इन चीजों से भरे दिल के साथ, वे किस तरह की चीजों में सक्षम हैं? क्या वे इन भाई-बहनों को दुश्मन समझेंगे, और इन्हें नीचे गिराने और इनसे छुटकारा पाने के तरीके सोचेंगे? वे निश्चित रूप से ऐसा करेंगे। वे विरोधियों को झुकाने के तरीकों के बारे में सोचने के लिए अपने दिमाग पर जोर डालेंगे और उन्हें हराने के लिए किसी भी हद तक चले जाएँगे, ऐसा ही है न? विरोधियों पर काबू पाने का मतलब यह है कि मसीह-विरोधी हर किसी को उनकी बातें सुनने के लिए मजबूर करता है, ताकि कोई भी उन्हें उजागर करने की बात तो दूर, कुछ और कहने या उनसे अलग राय रखने की हिम्मत न करे। विरोधी को हराने का मतलब यह है कि मसीह-विरोधी उन्हें फँसाता है और उन्हें अपराधी ठहराता है, उनके बारे में झूठी धारणाएँ बनाता है ताकि विरोधी को मूर्ख बनाकर उसकी काट-छाँट की जाए, जिससे उसकी प्रतिष्ठा मिट्टी में मिल जाए। क्या ऐसा करना सबसे बुरा कर्म नहीं है? क्या इसके कारण परमेश्वर का स्वभाव नाराज नहीं होता? एक मसीह-विरोधी के पास विरोधियों पर आक्रमण करने और उन्हें निकालने के कई साधन और तरीके होते हैं। सार्वजनिक रूप से टकराव और तिरस्कार करने के अलावा उनके सबसे प्रभावशाली तरीकों में विरोधियों को आकर्षित कर उन्हें साथ मिलाना, अपनी बातें सुनने के लिए मजबूर करना शामिल होता है। अगर विरोधी उनकी बात नहीं सुनते तो मसीह-विरोधी उनका दमन करते हैं, उन्हें दबाते हैं और उन्हें बदनाम करते हैं, ठीक उसी तरह जैसे अविश्वासी अपने राजनीतिक विरोधियों से निपटते हैं। मसीह-विरोधी इतने दुष्ट और क्रूर होते हैं। लेकिन कभी-कभी मसीह-विरोधी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए नरम रुख भी अपनाते हैं। उदाहरण के लिए, अगर कोई ऐसा विरोधी है जिसकी राय उनके साथ मेल नहीं खाती, तो वे यह देखेंगे कि उस व्यक्ति की पसंद क्या है और उसकी कमजोरियाँ क्या हैं और फिर उन्हें झुकाने के लिए हर तरह के नीच तरीकों का उपयोग करेंगे। या फिर वे विनम्रता का दिखावा करेंगे और विरोधी के सामने अपनी गलतियाँ स्वीकार कर लेंगे या फिर वे विरोधी को लाभ पहुँचाने और उन्हें संतुष्ट करने के लिए किसी भी हद तक चले जाएँगे या शायद अपने करीबी दोस्तों के माध्यम से विरोधी को मनाने की कोशिश करेंगे; और फिर वे विरोधी के सामने इस बात का दिखावा करेंगे कि वे सत्य के बारे में संगति कर रहे हैं और कहेंगे : “कलीसिया के कार्य के लिए हमारी जोड़ी एकदम सही है; हम भविष्य में इस कलीसिया को आपस में बराबर-बराबर बाँट सकते हैं। भले ही अगुआ मैं हूँ, फिर भी मैं तुम्हारे सारे सुझाव सुनूँगा। बल्कि मैं खुद ही तुम्हारे साथ सहयोग करूँगा।” यदि विरोधी सत्य नहीं समझता, तो फिर मसीह-विरोधी के लिए उसे भर्ती करना आसान होगा। जो लोग सत्य समझते हैं वे इसे ठीक से समझ जाएँगे और कहेंगे, “यह व्यक्ति तो कोई षडयंत्रकारी है; वह खुले तौर पर आक्रमण नहीं कर रहा है, बल्कि चाल चल रहा है—किसी कठोर रणनीति के बजाय, प्यार से पेश आ रहा है।” किसी मसीह-विरोधी के लिए, विरोधी उसकी हैसियत और सत्ता के लिए खतरा होता है। कोई भी उनकी हैसियत और सत्ता के लिए खतरा बनता है, चाहे कोई भी हो, तो मसीह-विरोधी उसे “ठिकाने लगाने” के लिए किसी भी हद तक चले जाते हैं; अगर इन लोगों को नियंत्रित या भर्ती न किया जा सके, तो मसीह-विरोधी उन्हें सत्ता से गिरा देंगे या बाहर निकाल देंगे। अंततः, मसीह-विरोधी पूर्ण सत्ता पाने का अपना मकसद हासिल कर ही लेंगे और खुद ही कानून बन जाएँगे। ये ऐसी कुछ तरकीबें हैं जिन्हें मसीह-विरोधी अपनी हैसियत और सामर्थ्य बनाए रखने के लिए आदतन उपयोग में लाते हैं—वे विरोधियों पर आक्रमण करते हैं और उन्हें निकाल देते हैं।

विरोधियों पर आक्रमण करने और उन्हें निकालने के मसीह-विरोधियों के तरीकों, अभिव्यक्तियों, कार्रवाई के उद्देश्यों और कार्रवाई के स्रोतों के मूल क्या होते हैं? (शैतान होता है।) विशिष्ट रूप से कहें तो वे मनुष्य की महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं से और शैतान की प्रकृति से आते हैं। तो फिर मसीह-विरोधी का लक्ष्य क्या होता है? उसका लक्ष्य सत्ता हथियाना, लोगों के दिलों को नियंत्रित करना और अपनी हैसियत के लाभों का आनंद उठाना होता है। इसी से एक वास्तविक मसीह-विरोधी बनता है। लोगों के दिलों को जीतने और विरोधियों पर आक्रमण करके उन्हें निकालने के इन दो मदों के दृष्टिकोण से एक मसीह-विरोधी “अगुआ” शब्द के अर्थ और एक अगुआ की भूमिका की व्याख्या कैसे करता है? उसका मानना होता है कि एक अगुआ वह व्यक्ति होता है जिसके पास सत्ता और हैसियत होती है, उसके पास उन लोगों को आदेश देने, उन्हें आकर्षित करने, गुमराह करने, धमकाने और नियंत्रित करने की शक्ति होती है जिनकी वह अगुआई कर रहा होता है। इस तरह वह “अगुआ” शब्द का मतलब समझता है। इसलिए जब वे एक अगुआ की भूमिका में होते हैं, तो वे अपने काम में इन्हीं रणनीतियों का उपयोग करते हैं और इसी तरह अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं। तो फिर अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए वे वास्तव में क्या कर रहे होते हैं? यह बात विश्वास के साथ कही जा सकती है कि वे बुरे कर्म कर रहे होते हैं और सटीकता से कहें तो वे अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित कर रहे होते हैं, चुने हुए लोगों, लोगों के दिलों और हैसियत के मामले में परमेश्वर के साथ होड़ कर रहे होते हैं। वे लोगों के दिलों में परमेश्वर की जगह को बदलना चाहते हैं और ताकि लोग उनकी आराधना करें। क्या तुम लोगों के दिलों में भी अक्सर ऐसे इरादे और प्रेरणाएँ पैदा नहीं होतीं और क्या तुम लोग ऐसे व्यवहार और अभ्यास नहीं करते? क्या तुम अक्सर इन शैतानी स्वभावों को प्रकट नहीं करते? (हाँ, करते हैं।) इन शैतानी स्वभावों को प्रकाशित करना कितना गंभीर हो सकता है? क्या यह उस स्तर पर पहुँच गया है जहाँ तुम खुद को नियंत्रित भी नहीं कर सकते? जब ऐसा होता है, तो क्या तुम लोग जागरूकता, नियंत्रण और अनुशासन रखने में सक्षम होते हो? (हाँ, रहते हैं।) मुझे बताओ कि क्या कोई ऐसा व्यक्ति है जो सत्ता की इच्छा नहीं करता? क्या कोई ऐसा व्यक्ति है जिसे सत्ता पसंद नहीं है? क्या कोई ऐसा व्यक्ति है जो अपनी हैसियत के लाभों की लालसा नहीं करता? नहीं, ऐसा कोई नहीं है। इसका क्या कारण है? ऐसा इसलिए है क्योंकि शैतान ने सभी लोगों को भ्रष्ट कर दिया है; उन सभी की प्रकृति शैतानी है। एक बात जो सभी लोगों में समान है वह यह है कि उन्हें सत्ता, हैसियत और इस के साथ मिलने वाले लाभों का आनंद लेना बहुत पसंद होता है। यह एक ऐसा गुण है जो सभी लोगों में होता है। तो फिर कुछ लोगों को मसीह-विरोधी क्यों समझा जाता है, जबकि अन्य केवल मसीह-विरोधी का स्वभाव प्रकट करते हैं या मसीह-विरोधी के रास्ते पर चलते हैं? इन दोनों समूहों के बीच क्या अंतर हैं? सबसे पहले तो मैं उनकी मानवता के बीच जो अंतर है उसके बारे में बात करूँगा। क्या मसीह-विरोधियों में मानवता होती है? मसीह-विरोधियों के रास्ते पर चलने वाले लोगों और खुद मसीह-विरोधियों की मानवता के बीच क्या अंतर होते हैं? (मसीह-विरोधियों में अंतरात्मा और विवेक नहीं होता, उनमें मानवता नहीं होती, जबकि जो लोग मसीह-विरोधियों के रास्ते पर चलते हैं, उनमें अभी भी थोड़ा-बहुत अंतरात्मा और विवेक होता है। वे अभी भी सत्य को स्वीकार कर सकते हैं और परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को स्वीकार कर सकते हैं, और सच्चा पश्चात्ताप भी दिखा सकते हैं।) पश्चात्ताप को दिखाना अंतर का एक बिंदु है। क्या मसीह-विरोधियों को पश्चात्ताप करना आता है? (नहीं, उन्हें नहीं आता।) मसीह-विरोधी सत्य को थोड़ा सा भी स्वीकार नहीं करते; भले ही वे अपने मुंह के बल क्यों न गिर जाएं, वे पश्चात्ताप नहीं करेंगे। वे खुद को कभी भी नहीं जान सकेंगे। जब मानवता की बात आती है, तो मसीह-विरोधियों के रास्ते पर चलने वाले एक और तरीके से मसीह-विरोधियों से भिन्न होते हैं, जो एक औसत अच्छे व्यक्ति और एक बुरे व्यक्ति के बीच का अंतर होता है। अच्छे व्यक्ति अंतरात्मा और विवेक के साथ बोलते और कार्य करते हैं, जबकि बुरे व्यक्ति के पास अंतरात्मा और विवेक ही नहीं होता है। जब बुरे लोग कोई बुरा कार्य करते हैं और उजागर हो जाते हैं, तो वे बिल्कुल भी नरम नहीं पड़ते : “हम्म, अगर सबको पता भी चल जाए, तो वे क्या बिगाड़ लेंगे? मैं जो चाहे करूँ! मुझे इस बात की कोई परवाह नहीं है कि मुझे कौन उजागर करता है या मेरी आलोचना करता है। कोई भी वास्तव में मेरा क्या ही कर सकता है?” कोई बुरा व्यक्ति चाहे कितने भी बुरे कर्म क्यों न कर ले, उसे शर्मिंदगी महसूस नहीं होती है। जब कोई साधारण व्यक्ति कुछ बुरा करता है, तो वह इसे छिपाना और इस पर पर्दा डालना चाहता है। अगर कोई उसे उजागर कर देता है तो उसे किसी का सामना करने में बहुत शर्म महसूस होती है और यहाँ तक कि वह आगे जीना भी नहीं चाहता : “आह, मैं ऐसा कैसे कर सकता हूँ? मैं सचमुच बहुत बेशर्म हूँ!” वे बेहद पश्चात्ताप करते हैं और यहाँ तक कि खुद को कोसते भी हैं और कसमें खाते हैं कि वे फिर कभी ऐसा कुछ नहीं करेंगे। इस तरह का व्यवहार इस बात का प्रमाण है कि उनमें अभी भी शर्म की भावना मौजूद है और यह कि उनमें अभी भी कुछ मानवता है। जो व्यक्ति बेशर्म होता है उसमें अंतरात्मा और विवेक नहीं होता और सभी बुरे लोग बेशर्म होते हैं। चाहे एक बुरा व्यक्ति किस भी तरह का बुरा कार्य क्यों न करे, इससे उसका चेहरा लाल नहीं होगा या उसके दिल की धड़कनें तेज नहीं होंगी और वह अभी भी बड़ी ढिठाई के साथ अपने कार्यों का बचाव करेगा, नकारात्मक पहलुओं को सकारात्मक बनाएगा और बुरे कर्मों के बारे में ऐसे बात करेगा जैसे वे अच्छे हों। क्या इस तरह के व्यक्ति में कोई शर्म की भावना होती है? (नहीं होती।) अगर उनका रवैया इस तरह का है, तो क्या वे भविष्य में सचमुच पश्चात्ताप करेंगे? नहीं, वे बस वैसे ही करते रहेंगे जैसा वे करते आए हैं। इसका मतलब यह है कि वे बेशर्म हैं और बेशर्मी का मतलब है अंतरात्मा और विवेक का अभाव। अंतरात्मा और विवेक रखने वाले लोग कुछ बुरा करने पर उजागर हो जाते हैं तो किसी का सामना करने में बहुत शर्म महसूस करते हैं और वे ऐसा काम फिर कभी नहीं करते। ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्हें एहसास होता है कि यह एक शर्मनाक बात थी और वे इतने शर्मिंदा होते हैं कि किसी का सामना नहीं कर पाते; उनकी मानवता में शर्म की एक भावना होती है। क्या यह सामान्य मानवता के लिए न्यूनतम मानक नहीं है? (हाँ, है।) क्या किसी ऐसे व्यक्ति को इंसान कहा जा सकता है जिसे शर्म महसूस नहीं होती? नहीं कहा जा सकता। क्या जो व्यक्ति शर्म महसूस नहीं करता, उसका दिमाग एक सामान्य व्यक्ति जैसा होता है? (नहीं होता।) उनका दिमाग एक सामान्य व्यक्ति जैसा नहीं होता, सकारात्मक चीजों के प्रति प्रेम तो दूर की बात है। उनके लिए अंतरात्मा और विवेक का होना एक बहुत उच्च मानक है, जिस पर वे खरे नहीं उतरते। अब मसीह-विरोधियों और मसीह-विरोधियों के रास्ते पर चलने वालों के बीच सबसे बुनियादी अंतर क्या होता है? जब कोई व्यक्ति हैसियत के लिए परमेश्वर से प्रतिस्पर्धा करने पर किसी ऐसे व्यक्ति को उजागर करता है जिसमें मसीह-विरोधी का सार होता है, तो वह यह नहीं सोचेगा कि क्या उसने कुछ गलत किया है। वह इससे कुछ सीख लेकर परमेश्वर से मार्गदर्शन नहीं मांगेगा; बल्कि जैसे ही उसे किसी अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में चुने जाने का मौका मिलेगा, वह हैसियत पाने के लिए पहले की तरह ही परमेश्वर के साथ होड़ लगाना शुरू कर देगा, वह पश्चात्ताप करने के बजाय मरना बेहतर समझेगा। क्या इन लोगों में कोई तर्कशक्ति होती है? (नहीं होती।) और क्या जिन लोगों में कोई तर्क शक्ति नहीं होती, उन्हें कोई शर्म महसूस भी होती है? (नहीं होती।) ऐसे लोगों में न तो कोई तर्क शक्ति होती है और न ही शर्म की कोई भावना होती है। जब सामान्य मानवता, जमीर और विवेक रखने वाले लोग दूसरों को यह कहते हुए सुनते हैं कि वे हैसियत के लिए परमेश्वर के साथ होड़ कर रहे हैं, तो वे सोचेंगे, “अरे नहीं, यह तो एक गंभीर समस्या है! मैं तो परमेश्वर का अनुयायी हूँ! मैं उसके साथ हैसियत के लिए होड़ कैसे कर सकता हूँ? हैसियत के लिए परमेश्वर से होड़ करना कितना शर्मनाक है! मैं कितना सुन्न, मूर्ख और विवेकहीन हो गया हूँ जो मैंने ऐसा किया! मैं ऐसा कैसे कर सकता हूँ?” उन्हें अपनी करनी पर शर्मिंदगी और लज्जा महसूस होगी; और अगर फिर कभी ऐसी स्थिति आएगी, तो उनकी शर्मिंदगी की भावना उनके व्यवहार पर अंकुश लगाएगी। सभी लोगों की प्रकृति का सार शैतान की प्रकृति का सार होता है, लेकिन जिन लोगों में सामान्य मानवता वाली सूझ-बूझ होती है उनमें शर्म की भावना भी होती है और उनका व्यवहार संयमित होता है। जैसे-जैसे एक व्यक्ति की सत्य की समझ धीरे-धीरे गहरी होती जाती है और जैसे-जैसे परमेश्वर और सत्य के प्रति समर्पण के बारे में उसका ज्ञान और समझ गहरी होती जाती है, वैसे-वैसे शर्म की यह भावना न्यूनतम दहलीज से आगे बढ़ती जाएगी। वे सत्य और परमेश्वर का भय मानने वाले अपने दिल के द्वारा अधिकाधिक संयमित होते जाते हैं। वे खुद को सुधारना जारी रखते हैं और अधिक से अधिक सत्य के अनुरूप कार्य करते हैं। लेकिन, क्या मसीह-विरोधी सत्य का अनुसरण करेंगे? बिल्कुल भी नहीं करेंगे। उनके पास सामान्य मानवीय विवेक नहीं होती है, वे नहीं जानते कि सत्य का अनुसरण करने का क्या मतलब होता है और वे सत्य से उल्ट चलते हैं और उनके दिल में इसके प्रति थोड़ा सा भी प्रेम नहीं होता है, तो फिर वे सत्य का अनुसरण कैसे कर सकते हैं? सत्य का अनुसरण करना एक सामान्य मानवीय आवश्यकता है; जिन लोगों में धार्मिकता की भूख और प्यास होगी, केवल वही सत्य से प्रेम और उसका अनुसरण करेंगे। जिन लोगों में सामान्य मानवता नहीं है, वे कभी भी सत्य का अनुसरण नहीं करेंगे।

जो लोग मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलते हैं वे वास्तविक मसीह-विरोधी से भिन्न होते हैं। कुछ लोग देखते हैं कि वे एक मसीह-विरोधी जैसे स्वभावों से भरे हुए हैं, और वे शोहरत, लाभ और हैसियत के पीछे दौड़ते हैं और इन्हें बहुत मूल्यवान मानते हैं और कभी भी उन्हें छोड़ नहीं पाते। वे इस बात पर दृढ़ विश्वास रखते हैं कि उनके अंदर मसीह-विरोधी की प्रकृति है और उन्हें बचाया नहीं जा सकता। अगर तुम सच में खुद को नहीं जानते और यह भी नहीं जानते कि तुम एक मसीह-विरोधी हो या एक बुरे व्यक्ति हो, तो फिर तुम्हें इस बात पर चिंतन करना चाहिए कि क्या तुम्हारे अंदर शर्म की समझ या भावना है या नहीं। अगर तुम ऐसा नहीं करते, तो फिर तुम खतरे में हो, और यह कहा जा सकता है कि तुम्हारे अंदर एक बुरे व्यक्ति या मसीह-विरोधी का प्रकृति सार है। भले ही तुम अभी एक मसीह-विरोधी नहीं हो, तुम भविष्य में बन सकते हो। जो लोग सत्य का अनुसरण नहीं करते वे जिस चीज को करने के लिए सबसे कम इच्छुक होते हैं, वह है आत्मचिंतन करना और खुद को जानना। वे कहते हैं : “मुझे इस बात की परवाह नहीं कि लोग मुझे मसीह-विरोधी कहते हैं। आखिर शोहरत, लाभ और हैसियत किसे पसंद नहीं है? जो भी कहता है कि उसे शोहरत, लाभ और हैसियत पसंद नहीं है, वह झूठ बोल रहा है। ऐसा कौन है जिसके पास हैसियत हो और वह इसके लाभों का आनंद न ले? केवल मूर्ख व्यक्ति ही ऐसा हो सकता है। अपनी हैसियत के लाभों का आनंद लेने में सक्षम होना ही तो असल क्षमता है!” किस तरह का व्यक्ति ऐसी बातें करता है? क्या यह ऐसा व्यक्ति नहीं है जो सत्य से विमुख है? इस तरह का व्यक्ति बहुत जिद्दी होता है-क्या उन्हें बचाया जा सकता है? उन्हें बिल्कुल भी नहीं बचाया जा सकता, क्योंकि परमेश्वर बुरे लोगों को नहीं बचाता; इस तरह के लोग शैतान जैसे होते हैं, वे जानवर होते हैं। कुछ लोग यह नहीं जानते कि वे परमेश्वर के उद्धार की वस्तु हो सकते हैं या नहीं। इस मामले में, जब परमेश्वर के वचन तुम्हारे प्रकृति सार और तुम्हारे भ्रष्ट स्वभाव को उजागर करते हों, तो देखो कि क्या तुम इसे महसूस कर सकते हो या नहीं और क्या तुम्हें अंदर ही अंदर शर्म आती है या नहीं और क्या तुम सोचते हो कि परमेश्वर जो उजागर करता है वही तुम्हारा असली स्वरूप है, जिसके कारण तुम्हें शर्म आएगी और यह महसूस होगा कि तुम्हारे पास खुद को छिपाने के लिए कोई जगह नहीं है। अगर तुम्हारे अंदर शर्म की यह भावना है, अगर तुम इसके प्रति जागरूक हो, तो फिर यह अच्छी बात है। कुछ लोग तो यहाँ तक कहते हैं : “परमेश्वर के वचनों ने मुझे पूरी तरह से उजागर कर दिया है। मुझे किसी का सामना करने में बहुत शर्म आती है और मेरे लिए छिपने की कोई जगह नहीं है। मुझे लगता है कि मुझे नरक भेज दिया जाना चाहिए, मैं परमेश्वर के उद्धार के योग्य नहीं हूँ। मेरे अंदर इतनी नकारात्मकता है कि मुझे लगता है कि मैं जीने के लायक भी नहीं हूँ। मुझे बस मर जाना चाहिए और यह मामला खत्म करना चाहिए।” क्या इस तरह महसूस करना अच्छी बात है या बुरी? यह एक अच्छी बात है। कुछ लोग समझ नहीं पाते और कहते हैं : “यह एक अच्छी बात कैसे हो सकती है?” (यह दर्शाता है कि इस व्यक्ति में शर्म की भावना है।) यह शर्म से तय नहीं होता। सबसे पहले तो इस तरह की भावना होने का मतलब यह है कि कम से कम तुम परमेश्वर के वचनों को समझते हो। दूसरा, तुम्हारे आत्म-ज्ञान का आधार क्या है? (परमेश्वर के वचनों को स्वीकार करना।) ठीक है। तुम स्वीकार करते हो कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं, जिसका मतलब यह है कि तुम इस बात का मूल्यांकन करने के लिए परमेश्वर के वचनों को मानक के रूप में उपयोग कर रहे हो कि क्या तुम बचाए जा सकते हो या नहीं और यह कि तुम किस तरह के व्यक्ति हो—तुम पहले ही उसके वचनों को आत्म-मूल्यांकन का मानक बना चुके हो। इससे साबित होता है कि तुम्हारे दिल में उसके प्रति सच्ची आस्था है। तुम परमेश्वर के वचनों को तभी आत्म-मूल्यांकन के मानक के रूप में सत्य मान सकते हो जब तुम्हें परमेश्वर पर सच्ची आस्था होगी। जो व्यक्ति ऐसा करता है, उसके बचाए जाने का मौका होता है—यह उतना आसान नहीं है कि किसी में शर्म की भावना है या नहीं।

जहाँ तक इस अभिव्यक्ति का सवाल है—मसीह-विरोधियों द्वारा विरोधियों पर आक्रमण करना और उन्हें निकालना—तो हम पहले ही “विरोधी” शब्द की परिभाषा पर चर्चा कर चुके हैं। तो इस शब्द के दायरे में कौन से लोग आते हैं? इसमें मुख्य रूप से ऐसे लोग आते हैं जो विभिन्न मामलों में मसीह-विरोधियों के अलग दृष्टिकोण रखते हैं और जो उनसे अलग रास्ते पर चलते हैं। मसीह-विरोधियों की नजर में ये सभी लोग उनके विरोधी बन जाते हैं, और मसीह-विरोधियों के हमलों का निशाना होते हैं। मसीह-विरोधियों का मानना होता है कि विरोधियों पर आक्रमण करना और उन्हें निकालना पूरी तरह से उचित है, कि यह परमेश्वर के घर के कार्य की रक्षा करना और कलीसिया के जीवन की रक्षा करना है, जबकि वास्तव में यह उनकी हैसियत और सत्ता की रक्षा करने का एक तरीका और साधन होता है। इसका काम परमेश्वर के घर के कार्य की रक्षा करना बिल्कुल भी नहीं होता और यह परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए कलीसियाई जीवन की सामान्य व्यवस्था को बनाए रखने के लिए तो बिल्कुल काम नहीं करता। यहाँ जिन विरोधियों की बात की गई है उनमें से कुछ लोग सत्य का अनुसरण करते हैं। हमें यह बात निश्चित रूप से इसलिए पता है क्योंकि मसीह-विरोधी लोगों द्वारा सत्य का अनुसरण करने के खिलाफ होते हैं और केवल सत्य का अनुसरण करने वाले ही मसीह-विरोधियों को पहचान सकते हैं।

22 जनवरी 2019

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